भारत में लोकसभा चुनाव से पहले मेटा ने वादा किया था कि वह अपने सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर गलत सूचना फैलाने के लिए एआई जनित सामग्री के दुरुपयोग को रोकेगी और ऐसे कंटैंट का पता लगाने और हटाने को प्राथमिकता देगी जो हिंसा, उग्रता और नफरत को बढ़ावा देते हैं. मगर अफसोस कि मेटा पर्याप्त सबूतों के बावजूद सुधारात्मक उपायों को लागू करने में न सिर्फ विफल रही, बल्कि भड़काऊ विज्ञापनों को मंजूरी दे कर उस ने चुनाव के दौरान खूब आर्थिक लाभ कमाया. फेसबुक-इंस्टाग्राम ने नफरत फैलाने वाले विज्ञापनों से खूब मोटी कमाई की. इन दोनों प्लेटफौर्म पर मुसलमानों के खिलाफ अपशब्दों वाले विज्ञापनों की भरमार रही. 8 मई से 13 मई के बीच मेटा ने 14 बेहद भड़काऊ विज्ञापनों को मंजूरी दी. इन विज्ञापनों में मुसलिम अल्पसंख्यकों को निशाना बना कर उन के खिलाफ बहुसंख्यकों को हिंसा के लिए उकसाने का प्रयास किया गया.

आम चुनाव में सोशल मीडिया मंचों के दुरुपयोग की आशंकाएं पहले से ही थीं जो सच साबित हुईं हैं. इंडिया सिविल वाच के सहयोग से कौर्पोरेट जवाबदेही समूह 'एको' के हाल में किए गए एक अध्ययन में इस तथ्य का खुलासा हुआ है कि फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफौर्म को संचालित करने वाली मेटा कंपनी चुनावी दुष्प्रचार, नफरतभरे भाषण और हिंसा को बढ़ावा देने वाले एआई जेनरेटेड फोटो वाले विज्ञापनों का पता लगाने और उन्हें ब्लौक करने में विफल रही. इस से उसे मोटी कमाई हुई. एको ने पहले भी आगाह किया था कि कई दल भ्रामक विज्ञापनों के लिए बड़ी रकम खर्च करने के लिए तैयार हैं.

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