सोमेश सर अपने एक दोस्त को विदा कर स्टेशन से तेज कदमों से लौट रहे थे। अभी 9 बजे हैं। 1 घंटा हाथ में है। जल्दीजल्दी तैयार हो कर स्कूल पहुंचना है। देर होना उन्हें पसंद नहीं। वे इस से बचना चाहते हैं। देर से पहुंचने वाले शिक्षकों को स्कूल के प्रिंसिपल जिस अंदाज में देखते हैं, वे नहीं चाहते कभी उसी अंदाज में उन्हें भी देखा जा।
रेलवे कालोनी अभी दूर थी। और 10 मिनट का वक्त लगेगा क्वार्टर पहुंचने में। वे चाहते तो स्टेशन तक आने के लिए अपनी बाइक का इस्तेमाल कर सकते थे। लेकिन कोई फायदा नहीं। क्वार्टर से निकल कर लगभग 100 मीटर का फासला तय करने के बाद बाइक को स्टैंड में खड़ा कर देना पड़ता है। बाइक चला कर स्टेशन तक नहीं पहुंचा जा सकता। एक लंबा ओवरब्रिज पार करने के बाद स्टेशन पहुंचा जाता है। उन्होंने ओवरब्रिज पार करते ही कदमों की रफ्तार बढ़ा ली।
“नमस्कार सोमेश सर…”
उन्होंने चलतेचलते मुड़ कर देखा, अपनी कालोनी के गोपालजी उन के पीछेपीछे चले आ रहे हैं।
“क्या बात है गोपाल बाबू, कहीं बाहर गए थे?”
“नहीं, अखबार लेने गए थे,” उन्होंने अखबार दिखाते हुए कहा।
“अब मुझे भी आपलोगों की तरह सुबहसवेरे अखबार बांचने की आदत लग गई है।”
“अच्छी आदत है…लेकिन हौकर गणेशी रोजाना दे जाता है न?”
“हां, इधर 2-4 रोज से नहीं आ रहा है। इसलिए स्टेशन जा कर चौबेजी के स्टौल से ले आते हैं।”
“आज हैडलाइन में क्या है?” कदम बढ़ाते हुए सोमेश सर ने यों ही पूछ डाला।
“अभी तो पूरा पढ़ा नहीं है लेकिन देख रहे हैं बड़ेबड़े अक्षरों में 2-3 तस्कर के पकङाने की खबर छपी है।”
“तस्कर…”
“अरे वही सर, गाय वाले तस्कर… बहुत मन बढ़ गया है इन ससुरों का. जगहजगह पिटने पर भी नहीं चेताते हैं। हम जिस को पूजते हैं उसी को हत्या कर के…कैसा घोर पाप करते हैं। आप ही कहिए कि यह सब बरदाश्त करने लायक है सर। सही करते हैं गौभक्त लोग, निकाल दें कचूमर इन का… तुम अगर कानून नहीं मानोगे तो भगत लोग कानून हाथ में लेंगे ही…जैसे को तैसा वाला मामला यहां लागू होना चाहिए… गोपाल बाबू अपने रौ में बोलते रहे। इधर सोमेश सर चुप्पी साध कर आगे बढ़ते रहे। बोलतेबोलते जब उन्हें यह एहसास हुआ कि सोमेश सर उन की बातों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं तो चुप हो गए। कुछ पल तक खामोशी भी उन के साथ चलती रही। बाद में सोमेश सर ने ही विषय बदलते हुए चुप्पी तोड़ी,“कौन सी ड्यूटी चल रही है?”
“डे शिफ्ट। अभी तैयार हो कर जाना है।
गोपाल बाबू रेलवे के डीजल इंजन शेड में फ्यूल क्लर्क हैं। अपने नाम के अनुरूप गोपालक भी हैं। अपने क्वार्टर के पीछे खाली पड़े हिस्से को लोहे के एंगलों और चदरों से घेर कर एक ग्वालघर बना रखा है। जाहिर है, लोहे की ये सामग्रियां जर्जर अवस्था में पड़े लोकोशेड की हैं। ढहतेगिरते लोकोशेड की लौह संपत्ति के इस छोटे से हिस्से का अनाधिकृत उपयोग पर किसी ने आपत्ति नहीं जताई। चूंकि गऊ माता का घर बनाने का मामला था, गोपाल बाबू दिनदहाड़े लौह सामग्रियों को खुद ढो कर ले आए थे। 3 गाएं पाल रखी हैं। तीनों गायों को वे देश की तथाकथित पवित्र नदियों के नाम से संबोधित करते हैं- गंगा, जमुना और सरस्वती।
ड्यूटी से बचे हुए समय का उपयोग तीनों गायों की सेवा में लगाते हैं। गाय के प्रति उन का अतिरिक्त प्रेम, भक्ति और आस्था से पूरी कालोनी परिचित है। कहीं भी गौकशी कोई मामला सामने आता है तो वे फूट पड़ते हैं। खुल कर अपना विरोध जताते हैं। पूरी कालोनी उन्हें सच्चे गौभक्त के रूप में देखती है। गायों की सानीपानी, नहानधोआन, ग्वालघर की सफाई आदि कामों के लिए उन्होंने कभी किसी सहायक की आवश्यकता नहीं समझी। ये सारे कार्य बड़े प्रेम और मनोयोग से करते हैं।
गायों के चारे के लिए पुआल से कुट्टी (पुआल के छोटेछोटे टुकड़े ) बनाने वाली बिजली से संचालित मशीन भी उन्होंने ग्वालघर के एक कोने में लगा रखी है। स्वीचऔन किया, मशीन चालू। 10 मिनट में ही चारा तैयार। क्वार्टर के आसपास के लोगों के कानों में सुबहशाम जब गोपाल बाबू का लयबद्ध स्वर पड़ता है तो समझ जाते हैं कि वे दूध दुहने के काम में लग गए हैं।
वे अकसर कहा करते हैं कि दूध दुहना बड़ा पुण्य काम है। धूपबत्ती जला कर सब से पहले तीनों गायों को प्रणाम करते हैं। गायों के दूध देने के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं। दुहने के दौरान कुमार विशु की ‘गऊ महिमा…’ वाला गीत का मुखड़ा उसी सुर में गुनगुनाना नहीं भूलते,”गौमाता के श्रीचरण बसते जिस घरग्राम, बारह ज्योतिर्लिंग वहीं चारों धाम। घरघर जब भी पालते गौमाता को लोग, सुख वैभव भरपूर हो, निकट न आवे रोग…”
तीनों गायों से मिलने वाला भरपूर दूध का थोड़ा सा हिस्सा घर में उपयोग के लिए रख कर शेष हिस्सा बेच डालते हैं। कुछ होटल वाले, आसपास के क्वार्टर वाले स्वयं आ कर दूध ले जाते हैं।
सोमेश सर का क्वार्टर गोपाल बाबू के क्वार्टर से 5 ब्लौक की दूरी पर है। गोपाल बाबू अपने क्वार्टर वाले ब्लौक के करीब आते ही एक क्वार्टर की ओर अंगुली उठा कर फुसफुसाए,“देख रहे हैं सर…”
“क्या?”
“यहां भी गाय पाली जा रही है.”
वह क्वार्टर जोसफ का है. वह भी डीजलशेड में फ्यूल क्लर्क है. कहें तो वह गोपाल बाबू का सहकर्मी है। कुछ दिन पहले वह भी पालने के लिए एक गाय खरीद कर ले आया। उस का परिवार बड़ा है। परिवार में 4 बच्चों के अलावा वृद्ध मांपापा भी हैं। क्लर्की की तनख्वाह से घर चलाना मुश्किल हो रहा था, सो उस ने दूध बेच कर अतिरिक्त आय की प्राप्ति के मकसद से गाय खरीद कर ले आया। अपने क्वार्टर के पिछवाड़े मिट्टी से बने एक छोटे से घर को ग्वालघर का रूप दे कर अपनी गाय को बड़े जतन से पोस रहा है। जितनी सेवा, देखभाल की जरूरत है, उस से कहीं ज्यादा वह करता है। गाय की सेहत, उस की तंदरुस्ती इस बात की पुष्टि करती है।
जोसफ और उस के परिवार वाले अपनी गाय को मारिया कह कर संबोधित करते हैं। गाय को घर ले आने के 10-15 दिनों तक परिवार वाले उसे मैया ही कह कर पुकारते थे।
एक दिन जोसफ की पत्नी मार्था ने सुझाव दिया,“ क्यों न हम इसे मारिया कह कर पुकारें,” पत्नी के मुख से मारिया का नाम उच्चारित होते ही उस के भीतर कुछ हरहराने लगा। एक हूक सी उठी थी उस के सीने में। अंतस भीगने लगा था। आंखें भी पनीली हो गईं थीं। मरिया उस की 10 वर्षीया बेटी का नाम था, जो अब नहीं है। उस दर्दनाक हादसे की याद ने उसे हिला कर रख दिया था। क्वार्टर से निकली थी मुख्य सड़क पर। एक बाइक वाले ने सामने आए कुत्ते को बचाने के कवायद में अपनी बाइक मारिया पर चढ़ा दी थी। अंगअंग चूर हो गया था। इलाज का मौका भी नहीं दिया उस ने…
जोसफ ने कोई आपत्ति नहीं जताई पत्नी के सुझाव पर। अब वह मारिया में अपनी दिवंगत बेटी की छवि देखने लगा है। मारिया उस के लिए एक गाय नहीं रही, वरन बेटी थी। जोसफ और मार्था के बेटी सदृश्य प्यारदुलार, स्नेह, ममत्व पा कर मारिया भी अभिभूत थी।
जिस दिन जोसफ मारिया को खरीद कर लाया, उसी दिन से ही गोपाल बाबू दबी जबान में पूरी कालोनी में उलटीसीधी बातें सुनाने लगे थे। कुछ इस अंदाज में कि जैसे गाय पालने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ एक ही समुदाय को है। गाय के प्रति भक्तिभावना किसी दूसरे समुदाय में नहीं देखी जा सकती…गौभक्षक के घर में गऊ मैया की दुर्गति होने जा रही है अदि।
जोसफ के प्रति गोपाल बाबू का कटाक्ष उन्हें समझने में देर नहीं लगी। कहने की भंगिमा ही ऐसी थी। सोमेश सर किंचित पल के लिए थोड़ी तिक्तता से भर उठे। वे चाहते तो करारा जवाब दे सकते थे। जोसफ दूसरे समुदाय का है, इसलिए उस का गाय पोसना उन्हें नागवार गुजर रहा है। तब तो मुसलिमम और यूरोपीय देशों में पाली जा रही गायों को ले कर उन्हें घोर आपत्ति होनी चाहिए। उन्होंने बात आगे नहीं बढ़ाई, बस इतना ही कहा, “इस में आप को कोई दिक्कत नहीं होनी चहिए गोपाल बाबू,” उन का स्वर अपनेआप अपेक्षाकृत शुष्क और तीखा हो गया था। शायद इसे गोपाल बाबू ने महसूस कर लिया था।
“अच्छा सर चलते हैं, ड्यूटी पर पहुंचना है।”
सोमेश सर ने घड़ी देखी,”ओह, 10 मिनट का रास्ता तय करने में 15 मिनट लग गए। अगर रास्ते में गोपाल बाबू न मिलते तो अब तक मैं अपने क्वार्टर पहुंच जाता,” लंबेलंबे डग भरते हुए वे क्वार्टर पहुंचे।
“ट्रेन लेट थी क्या?”
“नहीं, रस्ते में गोपाल बाबू मिल गए थे। उन की चाल में चाल मिलाते, बतियाते देर हो गई,” पत्नी को जवाब दे कर जल्दीजल्दी तैयार होने लगे।
रविवार का दिन था। घड़ी दिन का 10 बजा रही थी। सोमेश सर बाजार से कुछ सब्जियां लेने निकले थे। हाथ में झोला ले कर अपने क्वार्टर से कुछ कदम बढ़े ही थे कि दूर से मुख्य सड़क के किनारे वाली रेल की पटरियों के आसपास कालोनी के लोगों का अच्छाखासा हुजूम दिखा। ऐसी रेल कालोनी कम ही देखने को मिलती है जिस में दाखिल होने वाली मुख्य सड़क के 2-3 मीटर की दूरी से ही रेल की पटरियां शुरू हो जाती हैं। ये पटरियां सीधे लोकोशेड से जा मिलती हैं। लोकोशेड एक ऐसा कार्यस्थल, जहां स्टीम इंजन की मरम्मती, पैसेंजेर, गुड्स ट्रेनों से जुड़ कर उस की रवानगी से पहले जांचपड़ताल होती थी।
लोकोशेड का अपना वर्कशौप भी होता था, जिस में इंजनों के मुत्तालिक छोटेमोटे कलपुरजे भी बनाए जाते थे। लोको ड्राइवरों की ड्यूटी का रोस्टर भी यहीं मैंटेन होता था। अब तो लोकोशेड जर्जर अवस्था में है। स्टीम इंजन का जमाना लदे एक लंबा समय बीत गया। आहिस्ताआहिस्ता जमींदोज होते लोकोशेड के पीछे एक डीजलशेड बना दिया गया था, जहां फ्यूल के रूप में डीजल तेल की रिफिलिंग के लिए डीजल इंजन इन रेल की पटरियों से गुजरती हुई यहां पहुंचती हैं।
कालोनी का नाम है लोकोपाड़ा।ब्रिटिश हुकूमत के जमाने में लोकोशेड के सामने बनी इस कालोनी का नामकरण शायद इसी को ध्यान में रख कर कर दिया गया था। कालोनी की मुख्य सड़क के किनारेकिनारे लोहे की लंबीलंबी रैलिंग और उस के ढाई मीटर की दूरी से शुरू होती है पटरियां। उस के बाद लगभग 50 मीटर चौड़ी खाली जगह। यही खाली जगह अब मैदान का रूप ले चुका है।
सोमेश सर को पटरियों पर 3 डीजल इंजन एक के पीछे एक खड़ी दिखीं। माजरे को समझने के लिए उन्होंने अपने कदम तेज कर लिए। सामने से खटारा साइकिल पर सवार हौकर गणेशी को आता देखा तो उन्होंने अधीरतापूर्वक पूछा,“क्या हुआ है गणेशी?”
“रनओवर हो गया।”
“रनओवर… किस का?”
“गाय का।”
“किस की गाय?”
“पता नहीं सर।”
सोमेश सर जब भीड़ के करीब पहुंचे तो उन्होंने देखा कि रेलवे के सभी विभागीय प्रभारी लोको फोरमैन, कैरिज फोरमैन, आईओडब्ल्यू, पीडब्ल्यूआई, स्टेशन मैनेजर, रेलवे सुरक्षा बल के निरीक्षक पहुंचे हुए थे। साथ में कई जवान लुंगी बांधे, खुला बदन, सिर पर गमछा धरे बगल में शुक्लाजी खड़े थे। इत्मीनान से खैनी मल रहे थे। सोमेश सर ने उन्हें कुरेदा, “कैसे हुआ यह सब शुक्लाजी?”
“अरे, क्या बताएं सरजी, इधर मैदान में बच्चा सब क्रिकेट खेल रहे थे। 3 गाएं उधर से आ कर मैदान में घुस गई थीं। एक बच्चा एक गाय को पत्थर उठा कर इतना जोर से मारा कि वह बिलबिला कर लाइन की तरफ भागी। ऐन वक्त यही डीजल इंजन आई थी। मास्टर (चालक) कोशिश किया कि ब्रेक मार कर रोक दें, लेकिन तब तक धक्का खा कर गाय लाइन के बीच में आ गई और बस…”
“जल्दीजल्दी बोलो यह किस की गाय है?”
रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ ) के सब इंस्पैक्टर मुखर्जी सर भीड़ से मुखातिब थे। कुछ दिन पहले ही मुखर्जी सर बंगाल के किसी रेलवे स्टेशन से तबादला हो कर यहां ओहदानशीं थे।
“देखो, बाद में पता लग जाएगा कि किस की गाय है तो भारी केस बन जाएगा….रेललाइन में घर का जानवर का घूमनाफिरना रेल के नियमकानून का खिलाफ है।”
भीड़ में फुसफुसाहट थी,”देखिए, रेल का काम कितना हंपर हो रहा है। स्टेशन मैनेजेर ने बताया कि यह जो 2 डीजल इंजन खड़ा है उन को तेल भर कर मालगाड़ी और पैसेंजर ट्रेन ले जाना है। कितना डिटेन हो रहा है डीजल इंजन। इस के चलते दोनों ट्रेन भी डिटेन हुआ तो डीआरएम लेबल से पूछताछ शुरू हो जाएगी।”
इसी बीच मुखर्जी सर के बगल में खड़े सुरक्षा बल के एक जवान दबी जबान में कुछ फुसफुसाया,”गोपाल मिश्रा कौन हैं? वे इधर हैं क्या?”
“जी, हम हैं सर…” गोपाल बाबू नमूदार हुए. अतिरिक्त विनम्रता के साथ हाथ जोड़े सब इंस्पैक्टर के सामने खड़े हो गए।
“यह आप की गाय है?”
“कैसी बात करते हैं हुजूर। अगर मेरी गऊ मैया होती तो अब तक हम इस को ऐसे ही पड़े रहने देते? अपने हाथों से क्लीयर कर देते और विधिविधान के साथ क्रियाकर्म भी कर देते. रामराम…ब्रह्महत्या का इतना घोर पाप ले कर हम जीवित रह पाएंगे?सर, हम भी रेल के मुलाजिम हैं, हम भी समझते हैं कि कितना डिटेन हो रहा है रेल का परिचालन…”
“आप के पास कितनी गाएं हैं?”
“सर, 3 हैं- गंगा, जमुना, सरस्वती. तीनों ग्वालघर में हैं… अभी तो सानीपानी दे कर आ रहे हैं। विश्वास नहीं हो तो सर चल कर जांच कर लें।”
सब इंस्पैक्टर ने अपने 2 जवानों को इशारा किया। वे दोनों गोपाल बाबू के साथ हो लिए। वहां पहुंच कर उन दोनों ने देखा कि एक ही नाद में तीनों गाय भोजन कर रही हैं। गोपाल बाबू की तीनों गायों का सशरीर मौजूद होने का सुबूत पा कर सब इंस्पैक्टर ने लावारिस गाय का रनओवर केस दर्ज कर मैडिकल डिपार्टमैंट के सैनेटरी इंस्पैक्टर को लाइन क्लीयर करने की हिदायत दी और अपने जवानों के साथ औफिस के लिए रवाना हो गए।
जोसफ को गाय खरीदे कुछ ही दिन हुए थे, इसलिए इस की खबर कालोनी वालों को भी नहीं थी। सिर्फ पड़ोसी ही जानते थे पर किसी ने मुंह नहीं खोला।
भीड़ जब छंटने लगी तो सहसा सोमेश सर की नजर जोसफ पर पड़ी, जो रनओवर स्पौट पर रेलवे ट्रैक को क्लीयर करने वाले सफाईकर्मियों की मदद कर रहा था। बिजली की मानिंद उन के जेहन में एक शंका कौंधी। कहीं यह मृत गाय जोसफ की तो नहीं? वे लंबेलंबे डग भरते हुए जोसफ के पास पहुंचे और उस के कंधे पर हाथ रख कर धीरे से पूछा, “तुम्हारी गाय?”
“नहीं…वह तो गोपाल बाबू के ग्वालघर में है।”
“क्या?” सोमेश सर जैसे आसमान से गिरे। जिस व्यक्ति को जोसफ का गाय पालना नागवार गुजर रहा है, उस के घर में जोसफ की गाय… उन के मन में एक और शंका उभरी कि कहीं जोसफ ने मारिया को बेच तो नहीं दिया। जोसफ के मुंह से ही शंका का निवारण चाह रहे थे, “लेकिन तुम्हारी गाय वहां क्यों?”
“उन की तीनों गायों के जिंदा होने के सुबूत के लिए।”
“मतलब…मैं समझा नहीं जोसफ… साफसाफ कहो न…”
“गंगा, जमुना और सरस्वती ये तीनों गायों को जीवित दिखाने के लिए वे मेरी मारिया को ले गए।”
“उन की 3 गाएं और तुम्हारी 1 कुल 4 हुए न?” जोसफ की बातें उन्हें पहेली जैसी लग रही थीं। गुस्सा भी आ रहा था उन्हें। सीधी सी बात को पेचीदा बना कर क्यों उलझा रहा है।
जोसफ तफसील से बताने लगा कि घंटाभर पहले गोपाल बाबू उस के पास दौड़तेहांफते आए और हाथपैर जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगे,”कुछ घंटे के लिए मारिया को मुझे दे दो जोसफ भाई।”
“लेकिन क्यों?” जोसफ ने हैरानी से पूछा।
“देख भाई, मेरी गाय गंगा रेलवे ट्रैक पर रनओवर हो गई है। अब कानूनी काररवाई शुरू हो जाएगी और हम बुरी तरह फंस जाएंगे।”
“तो मारिया को ले कर क्या करेंगे?”
“मारिया को गंगा बना कर दिखा देंगे कि हमारी तीनों गाय जिंदा हैं।”
“लेकिन…” जोसफ की दुविधा वाली स्थिति को भांपते हुए गोपाल बाबू उस के पैर पर गिर पड़े, “देख भाई, न मत कहो…इस मुसीबत से तुम ही मुझे उबार सकते हो…जीवनभर नहीं भूलेंगे तुम्हारा यह उपकार।”
जोसफ इनकार नहीं कर सका। गोपाल बाबू ने मारिया को घर ले जा कर झटपट जमुना और सरस्वती के साथ बांध दिया। गोपाल बाबू की प्यारी गंगा जा चुकी थी। अब उस की भूमिका में मारिया थी, मुसीबत के फंदे से उन्हें बचाने वाली मारिया।
मामले की असलीयत से वाकिफ होते ही सोमेश सर का मुंह अचरज से खुला का खुला रह गया। उन्हें गौभक्त गोपाल बाबू के चेहरे पर किसी कसाई का चेहरा चस्पां नजर आने लगा।
लेखिका-मार्टिन जौन