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नीतीश सरकार पर पकड़ बनाते लालू यादव

पिछले 3 जनवरी को राजद सुप्रीमो लालू यादव अपने लाव-लशकर के साथ आईजीआईएमएस (इंदिरा गांधी इंस्टीच्युट और मेडिकल साइंस) का मुआयना करने पहुंच गए. अस्पताल के अपफसरों में हड़कंप मच गया. अस्पताल के ओपीडी में डाक्टरों के गायब रहने और गंदगी को लेकर उन्होंने अपफसरों की जम कर क्लास लगाई. उसके बाद विरोधियों ने नीतीश की खिंचाई शुरू कर दी है.

इसके पहले 24 नवंबर को लालू ने नीतीश कुमार की महादलित की नीति को पलट दिया. उन्होंने ऐलान कर दिया कि बिहार की सभी दलित जातियों को महादलित की सुविधाएं मिलेंगी. इससे राज्य सराकर की विकास योजनाओं को आखिरी आदमी तक पहुंचाने में मदद मिलेगी. राजद कार्यालय में पार्टी के विधायकों की बैठक में उन्होंने इस बात का ऐलान करते हुए नीतीश कुमार को सलाह दे डाली की सभी दलित जातियों को महादलित जातियों के बराबर सुविधएं मिलनी चाहिए. जदयू के कई नेता दबी जुबान से कह रहे हैं कि लालू को इस तरह के ऐलानों और सलाहों से बचना चाहिए, नहीं तो महागठबंधन में दरार पड़ सकती है. ऐसे मसलों को महागठबंधन के नेताओं विधायकों की बैठकों में उठाना चाहिए, न कि खुले मंच से मनमाने तरीके से ऐलान करना चाहिए.

नीतीश और लालू ने मिल कर चुनाव में कामयाबी तो हासिल कर ली है, लेकिन अब यह देखने वाली बात होगी कि सरकार चलाने मे दोनों के बीच कितना ओर कैसा तालमेल बन पाता है? नीतीश और लालू को जानने वाले साफ तौर पर कहते हैं कि लालू और उनके परिवार के महत्वाकांक्षाओं को बोझ उठाना नीतीश के लिए सबसे बड़ी चुनाती है.

नीतीश कुमार बात-बेबात दावा दावा करते रहे हैं कि महागठबंधन की सरकार सरपट चलेगी और कोई रूकावट नहीं आएगी. दूसरी ओर लालू यादव बार-बार सफाई दे रहे हैं कि अब बिहार की केवल तरक्की होगी और किसी को भी कानून को हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जाएगी.

जदयू के एक बड़े नेता को इस बात का डर है कि लालू नीतीश सरकार पर हावी हो सकते हैं. लालू की महत्वाकांक्षा को काबू में रखना नीतीश कुमार के लिए आसान नहीं होगा. अपने बेटों तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री के साथ पीडब्ल्यूडी मंत्री और तेजप्रताप यादव को हेल्थ मिनिस्टर बना लालू ने नीतीश सरकार पर अपना कब्जा बना लिया है.

लालू यादव अगर सच्चे मन से नीतीश का साथ देते हैं तो नरेंद्र मोदी के अच्छे दिन का वादा पूरा होने में भले ही देर लगे लेकिन बिहार और बिहारियों के लिए अच्छे दिन आने में देर नहीं लगेगी. लालू यादव कहते हैं कि पिछले 10 सालों से नीतीश बिहार की तरक्की की कोशिशों में लगे हुए हैं, इसलिए उन्हें वह पूरा सहयोग देंगे. कभी लाठी रैली में यकीन रखने वाले लालू इस बात का पूरा ख्याल रख रहे हैं कि उनसे मिलने आए किसी भी नेता, समर्थक या कार्यकर्ता के हाथों में लाठी, पिस्तौल, रायपफल या बंदूक नहीं हो. इसके अलावा लालू ने पार्टी के झंडा और बैनरों को गाडि़यों पर लगाने के लिए भी सख्त मनाही की है.

यह सच है कि बिहार के 37वें मुख्यमंत्री बनने वाले नीतीश कुमार 5वीं बार राज्य के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पिछले 18 सालों से अपने धुर विरोधी लालू यादव की मदद से बैठे हैं. सूबे की सियासत में लालू को हाशिए पर ढकेलने वाले नीतीश ने ही उन्हें फिर से बिहार से लेकर दिल्ली तक सत्ता के केंद्र में ला दिया है. गौरतलब है कि लालू और नीतीश पिछले 24 सालों से लगातार बिहार की सियासत की धुरी बने हुए हैं और पिछले 20 सालों से वे एक दूसरे की विरोध की राजनीति करते रहे हैं. आज दोनों जिस किसी भी सियासी मजबूरियों की वजह से फिर से साथ मिले हैं और बिहार विधन सभा में उन्हें कामयाबी मिलने के बाद तो उत्तर भारत की सियासत में नया विकल्प पैदा करने की उम्मीद जगने लगी है.

ताजा विधन सभा चुनाव में लालू-नीतीश के गठजोड़ ने साबित कर दिया है कि उसके पास वोट है. 243 सदस्यों वाले बिहार विधन सभा में महागठबंधन के पाले में 178 सीट हैं. इसमें जदयू की झोली में 71, राजद के खाते में 80 और कांग्रेस के हाथ में 27 सीटें गई हैं. नीतीश की पार्टी जदयू को 16.8, राजद को 18.4 और कांग्रेस को 6.7 पफीसदी वोट मिले जो कुल 41.9 पफीसदी हो जाता है. ऐसे में महागठबंधन को फिलहाल किसी दल या गठबंधन से चुनौती मिलना दूर की कौड़ी ही होगी.

फिलहाल तो 90 के दशक वाले लालू और आज के लालू में काफी फर्क नजर आ रहा है. पहले लालू की सोच थी कि वोट तरक्की से नहीं, बल्कि जातीय गोलबंदी से मिलती है, पर इस बार लालू भी नीतीश के सुर में सुर मिला कर तरक्की की रट लगाने लगे हैं. लालू के बेटे और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कहते हैं कि सरकार का इकलौता एजेंडा बिहार की तरक्की है. अभी तो सरकार ने काम करना शुरू ही किया है, जल्द ही अच्छे नतीजे सामने आएंगे तो सारे विरोध्यिों की जुबान पर ताला लग जाएगा.

बिहार के सियासी मामलों के जानकार और चिंतक हेमंत राव कहते हैं कि अपराध और भ्रष्टाचार पर नकेल कस कर ही नीतीश सरकार जनता की उम्मीदों पर खरे उतर सकती हैं. नीतीश के लिए सबसे बड़ी चुनौती और खतरा लालू यादव की महत्वाकांक्षा और उनके परिवार को आगे बढ़ाने की ललक होगी. अब यह देखना होगा कि लालू की महत्वाकांक्षाओं, उनके ठेठ गवंई अंदाज और मुंहपफट अंदाज को नीतीश कितना और कब तक बर्दाश्त कर पाते हैं? जिस नीतीश को भाजपा से 17 साल पुराना नाता तोड़ने में जरा भी देरी और हिचक नहीं हुई वह लालू कितने दिनों तक दोस्ती निभा पाते हैं?

शराब: कमाई से सरकारें मालामाल, घर-परिवार बेहाल

महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘अगर मैं 1 दिन के लिए तानाशाह बन जाऊं, तो बिना मुआवजा दिए शराब की दुकानों व कारखानों को बंद करा दूंगा.’’ गांधीजी ने पूरी सूझबूझ के साथ यह बात कही थी, क्योंकि बरबादी का बड़ा कारण यह शराब ही है. कुछ समय पहले केरल सरकार ने राज्य में शराबबंदी का ऐलान कर इस मुद्दे पर फिर बहस छेड़ दी है. भारत में आजादी के बाद से अब तक शराबबंदी के तमाम प्रयासों का सबक यही है कि पूर्ण शराबबंदी को लागू करना प्रदेश सरकारों के लिए संभव ही नहीं रहा. जिस भी राज्य में शराबबंदी लागू की गई, वहां शराब की तस्करी बढ़ गई.

देश में सब से पहले महाराष्ट्र में शराबबंदी लागू हुई. इस की खिलाफत में मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. अप्रैल, 1950 में मुंबई के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई ने राज्य में शराब पर प्रतिबंध लगाया, तो अदालत में व्यक्तिगत आजादी के आधार पर इस अधिनियम को चुनौती दी गई.

सर्वोच्च न्यायालय ने द स्टेट औफ बौंबे वर्सेज एफएन बालसरा मामले में 1951 में फैसला सुनाते हुए अुनच्छेद 47 की विस्तार से व्याख्या की. इस का सार यह था कि सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक जीवन व स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार तथा राज्य के द्वारा शराबबंदी लागू करने में कोई परस्पर विरोध नहीं है. साथ ही शीर्ष अदालत ने अलकोहल का औषधीय प्रयोग और साफसफाई के रसायन के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी.

जहां शराबबंदी, वहां ये हाल

देश में गुजरात, मिजोरम व नागालैंड ऐसे प्रदेश हैं, जहां पूर्ण शराबबंदी है. गुजरात में तो आजादी के बाद से ही शराब पर पाबंदी है, पर अफसोस यह महज कहने को ही है. वहां शराब हर जगह आसानी से उपलब्ध है. अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पुलिस महकमा हर साल सवा सौ करोड़ की अवैध शराब जब्त करता है. हर साल जहरीली शराब पीने से मौतें होती हैं. 2009 में गुजरात में जहरीली शराब पीने से 148 लोग मारे गए थे.

मिजोरम राज्य में 1995 में शराबबंदी का कानून पारित किया गया था. मगर अगस्त, 2014 में शराबबंदी खत्म करने का फैसला कर नया कानून पारित कर दिया गया. सरकार का मानना था कि शराबबंदी से फायदा कम नुकसान ज्यादा हो रहा है. नागालैंड में भी करीब इसी समय से शराबबंदी लागू है. नागालैंड के मुख्यमंत्री ने अभी हाल ही में कहा है कि वे शराबबंदी की फिर से समीक्षा करने की सोच रहे हैं.

केरल सरकार ने भी 2014 में चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी करने का फैसला किया है. गौरतलब है कि देश में सब से ज्यादा शराब की खपत केरल में ही होती है. राज्य को 22 फीसदी राजस्व शराब से ही हासिल होता है. शराबबंदी लागू होने से यहां के पर्यटन पर गलत असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है.

कठोर फैसले की जरूरत

जब तक सरकारों की मौजूदा नीतियां कायम रहेंगी, तब तक शराब की लत की चपेट में आने से लोगों को नहीं बचा सकते. अगर हर गलीनुक्कड़ पर शराब की दुकानें खोल देंगे, तो लोग ज्यादा सेवन करेंगे ही. जहां शराब बंद करने का दिखावा किया जाता है, वहां अवैध बिक्री शुरू हो जाती है और खराब गुणवत्ता वाली शराब बिकने लगती है, जो जानलेवा साबित होती है. शराब के आदी लोग ज्यादा दाम पर भी घटिया शराब पीने लगते हैं, जो मौत के करीब ले जाती है.

इसलिए व्यक्ति से ज्यादा सरकार को कठोर फैसला करना चाहिए. इस मामले में भारत को सिंगापुर से सीखना चाहिए. वहां सिगरेट के सेवन से सेहत पर होने वाले नुकसान को देखते हुए सरकार ने बाकी देशों से सिगरेट की 7 गुना ज्यादा कीमत तय कर दी है. इस से लोगों ने सिगरेट खरीदना कम कर दिया है. सिगरेट के पैकेटों पर  भयानक चेतावनी छापने के साथसाथ सजा भी तय कर दी गई है. इस से लोगों में डर पैदा हो गया है. उन्होंने सार्वजनिक जगहों पर सिगरेट पीना बंद कर दिया है. सिगरेट का पैकेट फेंकते पकड़े जाने पर भी जेल भेज दिया जाता है.

लेकिन हमारे यहां सरकारों की नीतियां सिगरेट पीने से रोकने के बजाय उन्हें सहजता से उपलब्ध कराने वाली हैं. ऐसे में समाज का माली तानाबाना टूटना लाजिम है. यदि सरकारें उपलब्धता पर नियंत्रण करें, तब ही लोगों को इन के सेवन से रोका जा सकता है.

तेल की धार पर भारी शराब की धार

दरअसल, शराब का असली नशा तो इस धंधे की कमाई की चाशनी में डूबने वालों पर ही ज्यादा चढ़ता है. फिर चाहे वे सरकारें हों या शराब का धंधा करने वाले. सभी चाहते हैं कि शराब से उन की तिजोरियों की सेहत हर दिन दुरुस्त होती रहे. राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार अपनी शराब नीतियों को ले कर खासी बदनाम रही है, तो पिछली गहलोत सरकार ने भी शराब से कमाई का खेल बड़ी चतुराई के साथ खेला है.

इस सरकार की ओर से शराब की दुकानों के खुलने का समय सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक सीमित कर के और अंगरेजी शराब की दुकानों में कमी कर के प्रचार तो यह किया गया था कि सरकार शराब पर लगाम लगा रही है, लेकिन शराब से होने वाली कमाई का मोह यह सरकार भी नहीं छोड़ पाई. दरअसल, सरकार ने इस के ऐवज में गलीगली में 24 घंटे खुलने वाले रैस्टोरैंट बार खोल दिए. राजस्थान सरकार का खजाना भरने के मामले में शराब का नंबर पहला है. दरअसल, मोटी कमाई के मामले में बाड़मेर में तेल से मिल रही 6 हजार करोड़ की रौयल्टी को ले कर जितना होहल्ला मचाया जा रहा है, उस से कहीं ज्यादा तो अब शराब उगल रही है. आर्थिक मामलों के सरकारी और गैरसरकारी माहिरों का मानना है कि तेल की रौयल्टी तो अब अगले कुछ सालों के लिए स्थायी हो गई है, लेकिन शराब का कारोबार प्रदेश सरकार के लिए राजस्व बढ़ाने के लिए एक खास जरीया बन गया है.

शराब का मोह क्यों

प्रदेश के आबकारी महकमे के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, मार्च, 2014 तक सरकार को शराब से तमाम तरह की चोरीचकारी के बाद कई हजार करोड़ रुपए मिल चुके हैं. अप्रैल, 2014 से अक्तूबर, 2014 के बीच कमाई का यह आंकड़ा लगभग क्व4,650 करोड़ का है. इस मोटी कमाई को देखते हुए सरकार ने नई शराब नीति में इस कमाई को दोगुना करने का टारगेट बनाया है. इस के लिए सरकार ने ठेका शुल्क व स्टांप ड्यूटी में बढ़ोतरी के साथसाथ शराब की कीमत में भी 20 फीसदी इजाफा कर दिया.

प्रदेश के तमाम शहरी व ग्रामीण इलाकों में शराब का साया बरकरार रहे, इस के लिए सरकार ने चतुराई भरा खेल खेला है. नई शराब नीति से शहरों में जहां रैस्टोरैंट बारों की बाढ़ सी आ गई है, वहीं देहाती इलाकों की 6,680 दुकानों को कंपोजिट कैटेगरी में रख कर देशी शराब की आड़ में अंगरेजी शराब भी मुहैया करा दी है. कंपोजिट कैटेगरी का मतलब है कि देशी शराब की दुकान में अंगरेजी शराब व बीयर भी बेची जा सकती है.

अब जब सरकारी आमदनी के खास बड़े जरीए तेल की धार के बराबर ही शराब की धार है, तो ऐसे में भला सरकार शराब का मोह क्यों छोड़ेगी? वैसे भी सत्ता पर काबिज हर सरकार की कोशिश रहती है कि वह राजस्व बढ़ाने के लिए शराब के धंधे का ज्यादा से ज्यादा दोहन कर ले. जाहिर है, ऐसे में सरकारें नशाबंदी का कदम उठाने के बारे में सोच भी नहीं सकतीं.

शराब का सरकारी अर्थशास्त्र

प्रशासन की सरपरस्ती में शराब का कानूनी व गैरकानूनी धंधा खूब फूलफल रहा है, जिस में पुलिस, सरकार सब शामिल हैं. सरकार के पास पढ़ेलिखे, अनपढ़, अमीरगरीब, हर तबके के लिए देशी से ले कर अंगरेजी शराब तक का बंदोबस्त है. शराब को घरघर पहुंचाने के लिए गांवों व शहरों में ठेका देने का काम भी बड़ी सूझबूझ के साथ किया जाता है ताकि कोई इलाका अछूता न रह जाए.

दरअसल, पैसे कमाने की सहूलियत के लिए इसे कानूनी और गैरकानूनी बता दिया गया है यानी जो सरकार बेचे, वह कानूनी है और जिस से उस का फायदा न हो, वह गैरकानूनी. जबकि शराब तो सिर्फ शराब है, जो इनसान को तिलतिल कर मारने का काम करती है. कच्ची शराब हो या शराब की लाइसैंसी दुकानें, दोनों से आम आदमी की बरबादी और सरकार व सरकारी आदमियों का मुनाफा हो रहा है. लाइसैंसी शराब से सरकारें हर साल अरबों रुपए का राजस्व हासिल करती हैं और गैरकानूनी घोषित की गई शराब में सरकारी लोगों का हिस्सा होता है.

शराब का नशा करना इनसान की कुदरती भूख नहीं है. इसलिए इस का होना या न होना कोई माने नहीं रखता. अगर इस की कुदरती भूख होती तो दुनिया के हर शख्स में नशाखोरी की लत पड़ गई होती. भारत में तो कई तथाकथित देवताओं तक को शराब पिलाई जाती है. यहां शराब पीनेपिलाने का इतिहास बहुत पुराना है. राजामहाराजाओं के जमाने से ही यहां शराब का खूब चलन रहा है. शराब की वजह से कई रियासतें, राजामहाराजा बरबाद हो गए, तो भला आम आदमी की क्या बिसात है? सरकार एक तरह से वही काम कर रही है, जो अंगरेजों ने नवाबों के साथ किया था. उन्हें नशे में डुबोए रखा और अंदर ही अंदर उन की जड़ें खोखली कर समूचे भारत को गुलामी की बेडि़यों में जकड़ लिया.

भ्रम की स्थिति

चोरी, डकैती, हत्या, लूट, बलात्कार जैसे अपराधों को रोकना सरकार का फर्ज है, तो फिर सरकार लोगों को नैतिक बुराई शराब को पीने की दावत क्यों देती है? मसलन, भ्रूण हत्या भी तो अपराध है, फिर भी अनेक बार लड़कियों को पैदा होने से पहले ही कोख में मार दिया जाता है. ऐसे में सरकारें इस अपराध को रोकने में नाकाम हैं, तो इस का मतलब यह कतई नहीं कि वे लाइसैंस जांच केंद्र खुलवा कर इसे कानूनन सही ठहरा दें. अगर कोई पति अपनी पत्नी को मारने से बाज नहीं आता, तो उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करने के बजाय क्या उसे पत्नी को मारनेपीटने का कानूनी लाइसैंस दे दिया जाए? शराब के मामले में सरकारों ने ठीक ऐसा ही किया है. नशाबंदी लागू करने के बजाय उन्होंने गांवों, शहरों, कसबों में लाइसैंसी दुकानें खुलवा कर शराब पर कानूनी होने का ठप्पा लगा दिया है.

भले ही सरकारों ने शराब को राजस्व हासिल करने का सब से बड़ा जरीया बना रखा है, लेकिन सच तो यह है कि इस मामले में सरकारें भ्रम की स्थिति में हैं. उन्हें इस का अर्थशास्त्र समझने की जरूरत है. पिछले साल राजस्थान सरकार ने क्व7 हजार करोड़ आबकारी राजस्व तय किया था. इस में से करीब क्व5 सौ करोड़ शराब की लौबी ने चुकाए ही नहीं. करीब 2 हजार करोड़ आबकारी विभाग, आबकारी पुलिस थाने वगैरह पर खर्च हो गए यानी आधा पैसा तो इन की मशीनरी पर ही खर्च हो जाता है. बाकी बचे 50 फीसदी राजस्व के बदले में 80 फीसदी अपराध, हत्याएं, लूट, बलात्कार व दूसरे तरह के कई अपराध शराब पीने से होते हैं और लाखों परिवारों की बरबादी होती है, वह अलग.

असली फायदा तो तब माना जाए जब शराबबंदी पर अमल हो. इस से जो पैसा लोगों के पास बचेगा वह बाजार में जाएगा. लोग जरूरत की चीजों पर टैक्स चुकाएंगे, जो सीधेसीधे सरकारों के खातों में जाएगा. इस से सरकारों का राजस्व बढ़ेगा, लेकिन सरकारें इस हिसाबकिताब को समझने में चूक कर रही हैं.

पूरे देश पर चढ़ा सरूर

भले ही आज भी शराब पीने के नाम पर लोग नाकभौं सिकोड़ते हों, लेकिन बाजार झूठ नहीं बोलता. जोश ए जवानी, नोटों से भरी जेबें और तेजी से बदलते माहौल के चलते शराब का नशा सिर चढ़ कर बोल रहा है. भारतीय अलकोहल पेय बाजार जिस तेजी से सालाना बढ़ रहा है, वह काफी चिंताजनक है और स्पष्ट है कि देश की बड़ी आबादी शराब की गिरफ्त में है. देश में बीयर पीने वालों की भी कमी नहीं है और व्हिस्की पीने के मामले में तो भारतीयों ने व्हिस्की के सब से बड़े बाजार माने जाने वाले अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है.

एक रिसर्च के मुताबिक, भारत में शराब पीना 16 से 18 साल की उम्र से शुरू हो कर 25 से 30 साल की उम्र में चरम पर पहुंच जाता है. इस समय भारत की 35 करोड़ की आबादी 18 से 35 साल की है और अगले 5 साल में इस में 5 से 7 करोड़ का इजाफा होने का अंदाजा है. यही वजह है कि दुनिया के तमाम शराब के कारोबारी भारत की ओर रुख कर रहे हैं.

नशा नहीं, रोग है शराब

भारत समेत दुनिया भर में शराब का सेवन करने से होने वाली बीमारियों की वजह से 33 लाख लोग हर साल मौत को गले लगाते हैं. इतना ही नहीं भारत में सड़क हादसों में हर साल करीब 1,38,000 लोग मारे जाते हैं. अलकोहल ऐंड ड्रग इन्फौर्मेशन सैंटर के एक अध्ययन के मुताबिक, इन में से 40 फीसदी हादसे शराब पी कर वाहन चलाने की वजह से होते हैं.शराबखोरी कितना भयानक रोग बनता जा रहा है, यह इस से समझा जा सकता है कि दुनिया में बीमारियों, विकलांगता व मौत की वजह के जो कारण बताए जाते हैं, उन में शराबखोरी 2010 तक छठा कारण थी, लेकिन अब तीसरे पायदान पर आ पहुंची है. इंसान में 2 सौ से ज्यादा बीमारियों का खतरा शराब के सेवन से बढ़ता है.

पब्लिक हैल्थ फाउंडेशन नामक संस्था ने राजस्थान समेत 6 राज्यों के बारे में एक अध्ययन किया है और उस की रिसर्च के मुताबिक, शराब पर टैक्स व उस के दाम बढ़ने के बावजूद शराब की खपत बढ़ रही है. इस रिसर्च में राजस्थान, तमिलनाडु, ओडिशा, सिक्किम, मेघालय व बिहार शामिल हैं. रिसर्च से पता चला है कि 28 फीसदी शराबी आत्महत्या करते हैं. आत्महत्या के सभी मामलों में से 50 फीसदी शराब या अन्य नशे पर निर्भरता से जुड़े होते हैं. शराब के सेवन से आत्महत्या करने वालों में किशोरों की संख्या ज्यादा है, जो कुल आत्महत्या के मामलों में से 70 फीसदी है. शराब की लत इतनी आसानी से नहीं छूटती पर इसे छोड़ना नामुमकिन भी नहीं. आप के बेहतर स्वास्थ्य व भविष्य के लिए इस लत को छोड़ना बेहद जरूरी है.

फिल्म रिव्यू: वजीर.. रहस्य और रोमांच की अनोखी कहानी

रहस्य और रोमांच प्रधान फिल्म ‘‘वजीर’’ की कहानी का ताना बाना ‘वजीर’ जो मौजूद नही है, के इर्द गिर्द बुना गया है. और यह रहस्य बहुत जल्द दर्शकों की समझ में आ जाता है. कुल मिलाकर फिल्म की कहानी यह है कि एक व्हीलचेअर पर बैठा शतंरज का माहिर खिलाड़ी किस तरह अपने मकसद को हासिल करने के लिए एक एटीएस आफिसर को अपना मोहरा बनाकर चालें चलता है.

फिल्म की कहानी शुरू होती है एटीएस ऑफिसर दानिश अली (फरहान अख्तर) की कत्थक डांसर रूहाना (अदिति राव हैदरी) के संग शादी, खुशहाल जिंदगी और एक चार साल की बेटी नूरी का पिता बनने से. एक दिन जब यह परिवार रूहाना के एक शो में जा रहा होता है, तभी अपने घुंघरू ठीक कराने के लिए एक दुकान के सामने गाड़ी रूकवा कर रूहाना दुकान के अंदर जाती है, तभी दानिश अली की नजर एक अपराधी पर पड़ती है.

दानिश अपनी कार से उसका पीछा करने लगता है. दोनो तरफ से बंदूक की गोलियां चलती है. जिसमें दानिश की बेटी नूरी मारी जाती है. इसके लिए रूहाना, दानिष को अपराधी मानकर उसे छोड़कर अपनी मां के पास चली जाती है. इतना ही नहीं एटीएस के उच्च अफसरों को यकीन है कि यह अपराधी किसी नेता से मिलने दिल्ली आया है, पर दानिश के हाथों यह अपराधी मारा जाता है. इसके चलते दानिश को सस्पेंड कर दिया जाता है.

फिर दानिश की मुलाकात व्हील चेअर पर रहने वाले, शतरंज के माहिर खिलाड़ी व टीचर पं. ओमकार नाथ धर (अमिताभ बच्चन) से होती है. दोनों के बीच दोस्ती हो जाती है. पं.ओमकार नाथ धर अपने पत्नी व बेटी की मौत की कहानी सुनाकर दानिश को यकीन दिला देते हैं कि उन दोनों का असली अपराधी एक ही है. यहीं पता चलता है कि रूहाना अपनी बेटी नीरू को शतरंज सिखाने के लिए पं.धर के पास लाती थी, जबकि पं. धर की बेटी, सामाजिक मंत्री कुरेषी (मानव कौल) की बेटी को पेंटिग सिखाने जाती थी और मंत्री कुरेषी उसे मौत के घाट उतार देते हैं.

कहा जाता है कि सीढि़यों पर फिसलकर मौत हुई. इससे पं.धर सहमत नहीं है. पं.धर अपनी बेटी की हत्यारे को सजा दिलाने के लिए दानिश को मोहरा बनाते हैं. वह दानिश को शतरंज का खेल सिखाते हुए शतरंज के खेल के साथ ही वजीर की दास्तान सुनाते हुए नकली वजीर की कथा सुनाते हैं कि वजीर (नील नितिन मुकेष) उन्हे मारना चाहता है. फिर हर दिन एक नई कहानी सुनाकर वजीर की आवाज में दानिश को फोनकर पं. धर एक घटनाक्रम रचते हैं, जिसमें वह खुद को बम से उड़ा लेते हैं, पर वजीर की तलाश में दानिशस अली, श्रीनगर में मंत्री कुरेषी तक पहुंच जाता है, जहां पता चलता है कि कुरेषी की बेटी मुन्नी उनकी बेटी नहीं है. बल्कि कुरेषी एक आतंकवादी है, जिसने कुछ साल पहले कश्मीर में तबाही मचायी थी और मुन्नी के माता पिता के सहित कईयों को मौत के घाट उतारा था.

पर अचानक सेना के पहुंच जाने पर उसने मुन्नी को अपने सीने से चिपकाकर कहानी सुनायी थी कि आतंकवादियों ने सब कुछ लूट लिया. सिर्फ वह और उनकी बेटी किसी तरह बच गयी.उसके बाद मुन्नी को वह डराकर रखते थे. कुरेषी खुद नेता बनकर मंत्री बन गए थे. पर आतंकवादियों से उनके संपर्क बने हुए थे. सच जानने के बाद दानिश, कुरेषी को मौत के घाट उतार देता है. फिर मुन्नी सारा सच टीवी चैनलों के सामने सुनाती है और अंत में पता चलता है कि वजीर कोई और नहीं, बल्कि खुद पं. धर ही वजीर की काल्पनिक कहानी दानिश को सुनाया करते थे और शतरंज का नियम बताते हैं कि शतरंज के खेल में हारने वाला हार कर भी जीतता है.

यॅूं तो यह कुशलता से बनायी गयी फिल्म है. फोटोग्राफी अच्छी है. लोकेशन और कलाकारों का चयन काफी कुशलता के साथ किया गया है. मगर रहस्य और रोमांच रूपी  कथानक काफी कमजोर व लचर है. फिल्म में नील नितिन मुकेश और अदिति राव हैदरी ने क्या सोचकर अभिनय किया, यह समझ से परे हैं. पूरी फिल्म में फरहान अख्तर सपाट चेहरे के साथ ही नजर आते हैं. अभिनेता के रूप में फरहान अख्तर और मानव कौल दोनों काफी निराश करते हैं.

फिल्म में जॉन अब्राहम का भी दुरूपयोग किया गया है. दर्शक अमिताभ बच्चन की वजह से ही ‘वजीर’ देखना चाहेगा. पूरी फिल्म में बदला लेने का आतुर पिता का भाव उनकी आंखों में स्पष्ट रूप से नजर आता है.

कहानी पूरी तरह से जोड़तोड़ पर आधारित है. फिल्म देखने के बाद यह बात समझ में नहीं आती कि इसकी कथा व पटकथा लिखने में विधु विनोद चोपड़ा को 14 साल का लंबा वक्त क्यों लगा. कहानी में कुछ भी नयापन नही है. राजनेता और आंतक वादियों या राजनेता व अपराधियों के गठजोड़ के कथानक पर कई फिल्में बन चुकी हैं. निर्देशक के तौर पर बिजॉय नांबियार कहीं से भी प्रभावित नहीं करते. तकनीकी स्तर पर तमाम खामियां नजर आती हैं. इंटरवल के बाद फिल्म बहुत कमजोर हो जाती है. लगता है जैसे कि फिल्म को बेवजह खींचा जा रहा है. रोमांच का अता पता नहीं रहता. फिल्म की कहानी व घटनाक्रम में तमाम कमियां हैं.

अपूर्वी ने गोल्ड मेडल जीतने के साथ बनाया वर्ल्ड रिकार्ड

देश की स्टार महिला निशानेबाज अपूर्वी चंदेला ने विश्व रिकार्ड तोडक़र इतिहास रचते हुए स्वीडिश कप ग्रां प्री की 10 मीटर एयर राइफल स्पर्धा का स्वर्ण जीत लिया. साव्जो में खेली गई चैंपियनशिप में चंदेला ने 211.2 अंक हासिल कर नया विश्व रिकार्ड बना दिया.

उन्होंने चीन की ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता यी सिलिंग (211) का रिकार्ड तोड़ा. स्पर्धा का रजत स्वीडन की एस्ट्रिड स्टीफेनसन (207.6) और कांस्य पदक स्टाइन नीलसन (185) ने जीता. राजस्थान की चंदेला बेहतरीन फार्म में हैं और उन्होंने गत वर्ष राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भी स्वर्ण जीता था.

गत वर्ष अप्रैल में कोरिया में आयोजित आईएसएसएफ विश्वकप में कांस्य पदक जीतकर चंदेला ने ओलंपिक कोटा हासिल किया था. उन्होंने भरोसा जताया कि चैंपियनशिप में स्वर्ण मिलने से इस वर्ष रियो ओलंपिक के लिए उनकी तैयारी को मजबूती मिलेगी.

आखिर शाहिद अफरीदी को इतना गुस्सा क्यों आता है…!

पाकिस्तान के टी-20 कप्तान शाहिद अफरीदी का गुस्सा लाहौर में देखने को मिला, जब एक रिपोर्टर से बहस के दौरान यह क्रिकेटर प्रेस कांफ्रेंस के बीच से ही उठकर चले गए. अफरीदी की इस प्रतिक्रिया का विरोध करते हुए मीडिया ने इस ऑलराउंडर से माफी की मांग की है. यह घटना उस वक्त की है जब एक टीवी पत्रकार ने कप्तान अफरीदी से टी-20 विश्व कप को लेकर सवाल पूछे.

पत्रकार ने अफरीदी से पूछा 'आपकी कप्तानी में टीम का रिकॉर्ड अच्छा नहीं रहा. आप जिस तरह से कप्तानी करते हैं क्या उसमें बदलाव की जरूरत है.' इस सवाल को सुनते ही अफरीदी गुस्से में आ गए और सवाल को घटिया बताते हुए प्रेस कांफ्रेंस से उठ कर चले गए. अफरीदी के वहां से जाने के बाद पत्रकारों ने टीम के ड्रेसिंग रूम के बाहर जमकर विरोध किया और कप्तान से माफी की मांग भी की.

इससे पहले पाकिस्तान के टी20 कप्तान शाहिद अफरीदी ने ट्विटर पर विवादास्पद तेज गेंदबाज मोहम्मद आमिर की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी का स्वागत करते हुए लिखा था कि सच बोलने के कारण उन्हें दूसरा मौका मिलना चाहिये था. आमिर ने न्यूजीलैंड के खिलाफ सीमित ओवरों की श्रृंखला के लिये पाकिस्तानी टीम में वापसी की है. अफरीदी ने ट्विटर पर लिखा था – 'हम सभी को आगे बढ़ने की जरूरत है और मैं आमिर के साथ हूं. मुझे उम्मीद है कि वह पूरी लगन और प्रतिबद्धता से पाकिस्तान क्रिकेट की सेवा करेगा.’

वीडियो: वर्ल्ड कप से पहले ये किस तैयारी में जुटे हैं धौनी

टीम इंडिया टी-20 वर्ल्ड कप की तैयारियों में जुटी हुई है. भारत की मेजबानी में मार्च से शुरू होने वाले इस महामुकाबले के लिए फैन्स की तैयारियां भी शुरू हो चुकी हैं. हाल ही में स्टार स्पोर्ट्स ने एक वीडियो जारी किया है, जिसमें कैप्टन कूल महेंद्र सिंह धौनी और उनकी हेयरस्टायलिस्ट सपना भावनानी नजर आ रही हैं.

स्टार स्पोर्ट्स के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इस वीडियो को शेयर करते हुए लिखा गया है, 'अब समय आ गया है फैन्स की तैयारी का टीम इंडिया और धौनी को टी-20 वर्ल्ड कप जिताने में मदद करने के लिए. आपकी क्या तैयारी है?'

वीडियो की शुरुआत धौनी के इस डायलॉग के साथ होती है, 'विराट और जड्डू कहते हैं कि जिवा के आने के बाद से मैं बहुत बोरिंग हो गया हूं.' वीडियो में धौनी और हेयरस्टायलिस्ट उनके नए हेयरस्टाइल को डिस्कस करते नजर आ रहे हैं.

लेकिन अंत में दोनों किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाते हैं. वीडियो बहुत मजेदार है. और आपने अगर अभी तक नहीं देखा तो इसे जरूर देखिए-

शाहरूख बोले, अच्छी लगती है आराध्या-अबराम की जोड़ी

बॉलीवुड के महानायक अमिताभ और किंग खान शाहरूख खान दोनों के ही घरों में नन्हें मेहमान इन दिनों चर्चा में हैं. जहां एक तरफ शाहरूख का बेटा अबराम सुर्खियां बटोर रहा है, तो वहीं महानायक की पोती (अभिषेक-ऐश्वर्या की बेटी) आराध्या भी अपनी खूबसूरती और मासूमियत से चर्चा में है. इसी क्रम में एक प्रेस मीट के दौरान किंग खान ने कहा कि उन्हें आराध्या और अबराम की जोड़ी अच्छी लगती है. उनकी इच्छा है कि दोनों बड़े होकर एक साथ किसी फिल्म में नजर आए. जिस पर शाहरूख की खास दोस्त और अभिनेत्री काजोल देवगन ने कहा था कि अबराम छोटा है, आराध्या बड़ी दोनों की जोड़ी ठीक नहीं लगेगी. इस पर शाहरूख ने कहा कि ‘प्यार की कोई उम्र नहीं होती’.

इसके बाद अब महानायक का बयान भी सामने आया है, हाल ही में फिल्म वजीर के प्रमोशन के दौरान उनसे पूछा गया कि उनका शाहरूख की इस इच्छा पर क्या कहना है, तो बिग भी ने कहा “उनके मुंह में घी-शक्कर, दूध मलाई सब हो.” अब इससे यह तो साफ है कि बिग बी भी चाहते हैं कि अबराम और आराध्या भविष्य में साथ में पर्दे पर दिखाई दें. हालांकि बिग बी की नातिन नव्या भी शाहरूख के बड़े बेटे आर्यन के साथ पढ़ती है. दोनों में गहरी दोस्ती भी है.

सोनू निगम ने लॉन्च किया इंडिया का पहला ट्रांसजेंडर बैंड

सोनू निगम ने इंडिया का पहला ट्रांसजेंडर म्यूजिक बैंड लॉन्च किया है. “6 पैक बैंड” नामक यह एल्बम वाय फिल्म्स के बैनर तले रिलीज किया जाएगा. एल्बम का पहला सॉन्ग 'हम हैं हैप्पी' सोनू निगम ने रिलीज किया. इस गाने को ग्रैमी विनर सिंगर फर्रेल्ल विलियम्स के सुपरहिट सॉन्ग 'हैप्पी' की थीम पर बनाया गया है. गाने के लिए अनुष्का शर्मा ने भी आवाज दी है. इवेंट के दौरान सोनू निगम ने बताया, "मैं इस बात से दुखी था कि उन्हें (ट्रांडजेंडर) रिस्पेक्टेबल जॉब, अच्छा बिजनेस नहीं दे सकता… हम उन्हें नॉर्मल इंसान की तरह क्यों नहीं देख पाते. सड़कों या शादियों में ही क्यों मिलते हैं. ऐसा कब तक चलता रहेगा, यह सोचकर दुखी था."

सोनू ने यह भी बताया कि बैंड के सभी मेंबर्स की एनर्जी देखकर काफी अच्छा लगा. बता दें, इस बैंड में छह ट्रांसजेंडर सिंगर हैं, जो भारतीय हिजड़ा कम्युनिटी से हैं.

ये है 6 पैक बैंड के मेंबर्स…

आशा जगताप, भाविका पाटिल, चांदनी सुवर्णकर, फ़िदा खान, कोमल जगताप और रवीना जगताप बैंड के ये मेंबर्स खुद को 6 पैक बुलाते हैं. आशीष पाटिल इसके प्रोड्यूसर हैं. निशांत नायक ने इसे डायरेक्ट किया है. एल्बम का पहला सॉन्ग 'हम हैं हैप्पी' के म्यूजिक को शमीर टंडन ने री-क्रिएट किया है. इसके कोरियोग्राफर निशांत भट्ट हैं.

विन डीजल के साथ शूटिंग के लिए तैयार हैं दीपिका पादुकोण

दीपिका पादुकोण फरवरी से अपनी हॉलीवुड फिल्म की शूटिंग करने के लिए पूरी तरह तैयार है.  'XXX- Xander Cage Return's में वे काम कर सकती हैं. इस बात की पृष्टि 'XXX- Xander Cage Return's के डायरेक्टर डी.ज. करसो ने ट्विटर पर की. उन्होंने लिखा की फिल्म की शूटिंग जनवरी में शुरू हो गई है, लेकिन बॉलीवुड ब्यूटी इसमें फरवरी में शामिल होगी. बता दें कि कुछ दिनों पहले दीपिका पादुकोण और विन डीजल की एक फोटो सोशल साइट पर पोस्ट की गई थी जिसके बाद से ये अफवाएं उड़ने लगी थी कि वह हॉलीवुड में डेब्यू करने वाली है. बीते दिन दीपिका ने अपना 30वां बर्थडे सेलिब्रेट किया है.

दीपिका का पिछला साल यानी 2015 काफी व्यस्त रहा. उन्होंने पीकू, तमाशा और बाजीराव मस्तानी जैसी तीन बैक टू बैक हिट फिल्में की है. अब दीपिका जल्द ही विन डीजल के साथ अपनी पहली हॉलीवुड फिल्म की शूटिंग में जुट जाएंगी.

फिल्म हुई फ्लॉप, तो इन सुपरस्टार्स ने लौटा दी अपनी फीस

रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की जोड़ी वाकई लाजवाब है. लेकिन प्रोफेशनल लेवेल पर उनके नए कदम की जितनी तारीफ की जाए कम है. गौरतलब है कि रणबीर कपूर और दीपिका पादुकोण की हालिया रिलीज़ फिल्म तमाशा, भारत की आधी से ज़्यादा जनता को ना समझ आई ना पसंद. लेकिन इस फिल्म के लिए साजिद नाडियाडवाला ने रणबीर और दीपिका को काफी मोटी रकम दी थी. इसी वजह से फिल्म का बजट भी बढ़ गया था लेकिन फिल्म बॉक्स ऑफिस पर नहीं टिकी. और फिर खबरें बाहर आने लगीं कि रणबीर ने फिल्म के लिए 38 करोड़ रूपये लिए थे.

तमाशा बॉक्स ऑफिस पर एवरेज थी, लेकिन फिल्म को उस तरह का ऑडियंस नहीं मिला जैसी रणबीर दीपिका की पेयरिंग से उम्मीद की जा रही थी. बस इसी को ध्यान में रखते हुए रणबीर दीपिका ने वो किया जो ज़्यादातर लोग कभी नहीं करेंगे. अगर खबरों की मानें तो रणबीर ने अपनी फीस से 10 करोड़ और दीपिका ने 5 करोड़ प्रोड्यूसर को वापस कर दिए हैं, क्योंकि फिल्म फ्लॉप होने की ज़िम्मेदारी सबकी होती है. दोनों के ही इस प्रोफेशनल एटीट्यूड की तारीफ करना तो बनता है.

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