महात्मा गांधी ने कहा था, ‘‘अगर मैं 1 दिन के लिए तानाशाह बन जाऊं, तो बिना मुआवजा दिए शराब की दुकानों व कारखानों को बंद करा दूंगा.’’ गांधीजी ने पूरी सूझबूझ के साथ यह बात कही थी, क्योंकि बरबादी का बड़ा कारण यह शराब ही है. कुछ समय पहले केरल सरकार ने राज्य में शराबबंदी का ऐलान कर इस मुद्दे पर फिर बहस छेड़ दी है. भारत में आजादी के बाद से अब तक शराबबंदी के तमाम प्रयासों का सबक यही है कि पूर्ण शराबबंदी को लागू करना प्रदेश सरकारों के लिए संभव ही नहीं रहा. जिस भी राज्य में शराबबंदी लागू की गई, वहां शराब की तस्करी बढ़ गई.

देश में सब से पहले महाराष्ट्र में शराबबंदी लागू हुई. इस की खिलाफत में मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. अप्रैल, 1950 में मुंबई के मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई ने राज्य में शराब पर प्रतिबंध लगाया, तो अदालत में व्यक्तिगत आजादी के आधार पर इस अधिनियम को चुनौती दी गई.

सर्वोच्च न्यायालय ने द स्टेट औफ बौंबे वर्सेज एफएन बालसरा मामले में 1951 में फैसला सुनाते हुए अुनच्छेद 47 की विस्तार से व्याख्या की. इस का सार यह था कि सर्वोच्च न्यायालय के मुताबिक जीवन व स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार तथा राज्य के द्वारा शराबबंदी लागू करने में कोई परस्पर विरोध नहीं है. साथ ही शीर्ष अदालत ने अलकोहल का औषधीय प्रयोग और साफसफाई के रसायन के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी.

जहां शराबबंदी, वहां ये हाल

देश में गुजरात, मिजोरम व नागालैंड ऐसे प्रदेश हैं, जहां पूर्ण शराबबंदी है. गुजरात में तो आजादी के बाद से ही शराब पर पाबंदी है, पर अफसोस यह महज कहने को ही है. वहां शराब हर जगह आसानी से उपलब्ध है. अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि पुलिस महकमा हर साल सवा सौ करोड़ की अवैध शराब जब्त करता है. हर साल जहरीली शराब पीने से मौतें होती हैं. 2009 में गुजरात में जहरीली शराब पीने से 148 लोग मारे गए थे.

मिजोरम राज्य में 1995 में शराबबंदी का कानून पारित किया गया था. मगर अगस्त, 2014 में शराबबंदी खत्म करने का फैसला कर नया कानून पारित कर दिया गया. सरकार का मानना था कि शराबबंदी से फायदा कम नुकसान ज्यादा हो रहा है. नागालैंड में भी करीब इसी समय से शराबबंदी लागू है. नागालैंड के मुख्यमंत्री ने अभी हाल ही में कहा है कि वे शराबबंदी की फिर से समीक्षा करने की सोच रहे हैं.

केरल सरकार ने भी 2014 में चरणबद्ध तरीके से शराबबंदी करने का फैसला किया है. गौरतलब है कि देश में सब से ज्यादा शराब की खपत केरल में ही होती है. राज्य को 22 फीसदी राजस्व शराब से ही हासिल होता है. शराबबंदी लागू होने से यहां के पर्यटन पर गलत असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है.

कठोर फैसले की जरूरत

जब तक सरकारों की मौजूदा नीतियां कायम रहेंगी, तब तक शराब की लत की चपेट में आने से लोगों को नहीं बचा सकते. अगर हर गलीनुक्कड़ पर शराब की दुकानें खोल देंगे, तो लोग ज्यादा सेवन करेंगे ही. जहां शराब बंद करने का दिखावा किया जाता है, वहां अवैध बिक्री शुरू हो जाती है और खराब गुणवत्ता वाली शराब बिकने लगती है, जो जानलेवा साबित होती है. शराब के आदी लोग ज्यादा दाम पर भी घटिया शराब पीने लगते हैं, जो मौत के करीब ले जाती है.

इसलिए व्यक्ति से ज्यादा सरकार को कठोर फैसला करना चाहिए. इस मामले में भारत को सिंगापुर से सीखना चाहिए. वहां सिगरेट के सेवन से सेहत पर होने वाले नुकसान को देखते हुए सरकार ने बाकी देशों से सिगरेट की 7 गुना ज्यादा कीमत तय कर दी है. इस से लोगों ने सिगरेट खरीदना कम कर दिया है. सिगरेट के पैकेटों पर  भयानक चेतावनी छापने के साथसाथ सजा भी तय कर दी गई है. इस से लोगों में डर पैदा हो गया है. उन्होंने सार्वजनिक जगहों पर सिगरेट पीना बंद कर दिया है. सिगरेट का पैकेट फेंकते पकड़े जाने पर भी जेल भेज दिया जाता है.

लेकिन हमारे यहां सरकारों की नीतियां सिगरेट पीने से रोकने के बजाय उन्हें सहजता से उपलब्ध कराने वाली हैं. ऐसे में समाज का माली तानाबाना टूटना लाजिम है. यदि सरकारें उपलब्धता पर नियंत्रण करें, तब ही लोगों को इन के सेवन से रोका जा सकता है.

तेल की धार पर भारी शराब की धार

दरअसल, शराब का असली नशा तो इस धंधे की कमाई की चाशनी में डूबने वालों पर ही ज्यादा चढ़ता है. फिर चाहे वे सरकारें हों या शराब का धंधा करने वाले. सभी चाहते हैं कि शराब से उन की तिजोरियों की सेहत हर दिन दुरुस्त होती रहे. राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार अपनी शराब नीतियों को ले कर खासी बदनाम रही है, तो पिछली गहलोत सरकार ने भी शराब से कमाई का खेल बड़ी चतुराई के साथ खेला है.

इस सरकार की ओर से शराब की दुकानों के खुलने का समय सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक सीमित कर के और अंगरेजी शराब की दुकानों में कमी कर के प्रचार तो यह किया गया था कि सरकार शराब पर लगाम लगा रही है, लेकिन शराब से होने वाली कमाई का मोह यह सरकार भी नहीं छोड़ पाई. दरअसल, सरकार ने इस के ऐवज में गलीगली में 24 घंटे खुलने वाले रैस्टोरैंट बार खोल दिए. राजस्थान सरकार का खजाना भरने के मामले में शराब का नंबर पहला है. दरअसल, मोटी कमाई के मामले में बाड़मेर में तेल से मिल रही 6 हजार करोड़ की रौयल्टी को ले कर जितना होहल्ला मचाया जा रहा है, उस से कहीं ज्यादा तो अब शराब उगल रही है. आर्थिक मामलों के सरकारी और गैरसरकारी माहिरों का मानना है कि तेल की रौयल्टी तो अब अगले कुछ सालों के लिए स्थायी हो गई है, लेकिन शराब का कारोबार प्रदेश सरकार के लिए राजस्व बढ़ाने के लिए एक खास जरीया बन गया है.

शराब का मोह क्यों

प्रदेश के आबकारी महकमे के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, मार्च, 2014 तक सरकार को शराब से तमाम तरह की चोरीचकारी के बाद कई हजार करोड़ रुपए मिल चुके हैं. अप्रैल, 2014 से अक्तूबर, 2014 के बीच कमाई का यह आंकड़ा लगभग क्व4,650 करोड़ का है. इस मोटी कमाई को देखते हुए सरकार ने नई शराब नीति में इस कमाई को दोगुना करने का टारगेट बनाया है. इस के लिए सरकार ने ठेका शुल्क व स्टांप ड्यूटी में बढ़ोतरी के साथसाथ शराब की कीमत में भी 20 फीसदी इजाफा कर दिया.

प्रदेश के तमाम शहरी व ग्रामीण इलाकों में शराब का साया बरकरार रहे, इस के लिए सरकार ने चतुराई भरा खेल खेला है. नई शराब नीति से शहरों में जहां रैस्टोरैंट बारों की बाढ़ सी आ गई है, वहीं देहाती इलाकों की 6,680 दुकानों को कंपोजिट कैटेगरी में रख कर देशी शराब की आड़ में अंगरेजी शराब भी मुहैया करा दी है. कंपोजिट कैटेगरी का मतलब है कि देशी शराब की दुकान में अंगरेजी शराब व बीयर भी बेची जा सकती है.

अब जब सरकारी आमदनी के खास बड़े जरीए तेल की धार के बराबर ही शराब की धार है, तो ऐसे में भला सरकार शराब का मोह क्यों छोड़ेगी? वैसे भी सत्ता पर काबिज हर सरकार की कोशिश रहती है कि वह राजस्व बढ़ाने के लिए शराब के धंधे का ज्यादा से ज्यादा दोहन कर ले. जाहिर है, ऐसे में सरकारें नशाबंदी का कदम उठाने के बारे में सोच भी नहीं सकतीं.

शराब का सरकारी अर्थशास्त्र

प्रशासन की सरपरस्ती में शराब का कानूनी व गैरकानूनी धंधा खूब फूलफल रहा है, जिस में पुलिस, सरकार सब शामिल हैं. सरकार के पास पढ़ेलिखे, अनपढ़, अमीरगरीब, हर तबके के लिए देशी से ले कर अंगरेजी शराब तक का बंदोबस्त है. शराब को घरघर पहुंचाने के लिए गांवों व शहरों में ठेका देने का काम भी बड़ी सूझबूझ के साथ किया जाता है ताकि कोई इलाका अछूता न रह जाए.

दरअसल, पैसे कमाने की सहूलियत के लिए इसे कानूनी और गैरकानूनी बता दिया गया है यानी जो सरकार बेचे, वह कानूनी है और जिस से उस का फायदा न हो, वह गैरकानूनी. जबकि शराब तो सिर्फ शराब है, जो इनसान को तिलतिल कर मारने का काम करती है. कच्ची शराब हो या शराब की लाइसैंसी दुकानें, दोनों से आम आदमी की बरबादी और सरकार व सरकारी आदमियों का मुनाफा हो रहा है. लाइसैंसी शराब से सरकारें हर साल अरबों रुपए का राजस्व हासिल करती हैं और गैरकानूनी घोषित की गई शराब में सरकारी लोगों का हिस्सा होता है.

शराब का नशा करना इनसान की कुदरती भूख नहीं है. इसलिए इस का होना या न होना कोई माने नहीं रखता. अगर इस की कुदरती भूख होती तो दुनिया के हर शख्स में नशाखोरी की लत पड़ गई होती. भारत में तो कई तथाकथित देवताओं तक को शराब पिलाई जाती है. यहां शराब पीनेपिलाने का इतिहास बहुत पुराना है. राजामहाराजाओं के जमाने से ही यहां शराब का खूब चलन रहा है. शराब की वजह से कई रियासतें, राजामहाराजा बरबाद हो गए, तो भला आम आदमी की क्या बिसात है? सरकार एक तरह से वही काम कर रही है, जो अंगरेजों ने नवाबों के साथ किया था. उन्हें नशे में डुबोए रखा और अंदर ही अंदर उन की जड़ें खोखली कर समूचे भारत को गुलामी की बेडि़यों में जकड़ लिया.

भ्रम की स्थिति

चोरी, डकैती, हत्या, लूट, बलात्कार जैसे अपराधों को रोकना सरकार का फर्ज है, तो फिर सरकार लोगों को नैतिक बुराई शराब को पीने की दावत क्यों देती है? मसलन, भ्रूण हत्या भी तो अपराध है, फिर भी अनेक बार लड़कियों को पैदा होने से पहले ही कोख में मार दिया जाता है. ऐसे में सरकारें इस अपराध को रोकने में नाकाम हैं, तो इस का मतलब यह कतई नहीं कि वे लाइसैंस जांच केंद्र खुलवा कर इसे कानूनन सही ठहरा दें. अगर कोई पति अपनी पत्नी को मारने से बाज नहीं आता, तो उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करने के बजाय क्या उसे पत्नी को मारनेपीटने का कानूनी लाइसैंस दे दिया जाए? शराब के मामले में सरकारों ने ठीक ऐसा ही किया है. नशाबंदी लागू करने के बजाय उन्होंने गांवों, शहरों, कसबों में लाइसैंसी दुकानें खुलवा कर शराब पर कानूनी होने का ठप्पा लगा दिया है.

भले ही सरकारों ने शराब को राजस्व हासिल करने का सब से बड़ा जरीया बना रखा है, लेकिन सच तो यह है कि इस मामले में सरकारें भ्रम की स्थिति में हैं. उन्हें इस का अर्थशास्त्र समझने की जरूरत है. पिछले साल राजस्थान सरकार ने क्व7 हजार करोड़ आबकारी राजस्व तय किया था. इस में से करीब क्व5 सौ करोड़ शराब की लौबी ने चुकाए ही नहीं. करीब 2 हजार करोड़ आबकारी विभाग, आबकारी पुलिस थाने वगैरह पर खर्च हो गए यानी आधा पैसा तो इन की मशीनरी पर ही खर्च हो जाता है. बाकी बचे 50 फीसदी राजस्व के बदले में 80 फीसदी अपराध, हत्याएं, लूट, बलात्कार व दूसरे तरह के कई अपराध शराब पीने से होते हैं और लाखों परिवारों की बरबादी होती है, वह अलग.

असली फायदा तो तब माना जाए जब शराबबंदी पर अमल हो. इस से जो पैसा लोगों के पास बचेगा वह बाजार में जाएगा. लोग जरूरत की चीजों पर टैक्स चुकाएंगे, जो सीधेसीधे सरकारों के खातों में जाएगा. इस से सरकारों का राजस्व बढ़ेगा, लेकिन सरकारें इस हिसाबकिताब को समझने में चूक कर रही हैं.

पूरे देश पर चढ़ा सरूर

भले ही आज भी शराब पीने के नाम पर लोग नाकभौं सिकोड़ते हों, लेकिन बाजार झूठ नहीं बोलता. जोश ए जवानी, नोटों से भरी जेबें और तेजी से बदलते माहौल के चलते शराब का नशा सिर चढ़ कर बोल रहा है. भारतीय अलकोहल पेय बाजार जिस तेजी से सालाना बढ़ रहा है, वह काफी चिंताजनक है और स्पष्ट है कि देश की बड़ी आबादी शराब की गिरफ्त में है. देश में बीयर पीने वालों की भी कमी नहीं है और व्हिस्की पीने के मामले में तो भारतीयों ने व्हिस्की के सब से बड़े बाजार माने जाने वाले अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है.

एक रिसर्च के मुताबिक, भारत में शराब पीना 16 से 18 साल की उम्र से शुरू हो कर 25 से 30 साल की उम्र में चरम पर पहुंच जाता है. इस समय भारत की 35 करोड़ की आबादी 18 से 35 साल की है और अगले 5 साल में इस में 5 से 7 करोड़ का इजाफा होने का अंदाजा है. यही वजह है कि दुनिया के तमाम शराब के कारोबारी भारत की ओर रुख कर रहे हैं.

नशा नहीं, रोग है शराब

भारत समेत दुनिया भर में शराब का सेवन करने से होने वाली बीमारियों की वजह से 33 लाख लोग हर साल मौत को गले लगाते हैं. इतना ही नहीं भारत में सड़क हादसों में हर साल करीब 1,38,000 लोग मारे जाते हैं. अलकोहल ऐंड ड्रग इन्फौर्मेशन सैंटर के एक अध्ययन के मुताबिक, इन में से 40 फीसदी हादसे शराब पी कर वाहन चलाने की वजह से होते हैं.शराबखोरी कितना भयानक रोग बनता जा रहा है, यह इस से समझा जा सकता है कि दुनिया में बीमारियों, विकलांगता व मौत की वजह के जो कारण बताए जाते हैं, उन में शराबखोरी 2010 तक छठा कारण थी, लेकिन अब तीसरे पायदान पर आ पहुंची है. इंसान में 2 सौ से ज्यादा बीमारियों का खतरा शराब के सेवन से बढ़ता है.

पब्लिक हैल्थ फाउंडेशन नामक संस्था ने राजस्थान समेत 6 राज्यों के बारे में एक अध्ययन किया है और उस की रिसर्च के मुताबिक, शराब पर टैक्स व उस के दाम बढ़ने के बावजूद शराब की खपत बढ़ रही है. इस रिसर्च में राजस्थान, तमिलनाडु, ओडिशा, सिक्किम, मेघालय व बिहार शामिल हैं. रिसर्च से पता चला है कि 28 फीसदी शराबी आत्महत्या करते हैं. आत्महत्या के सभी मामलों में से 50 फीसदी शराब या अन्य नशे पर निर्भरता से जुड़े होते हैं. शराब के सेवन से आत्महत्या करने वालों में किशोरों की संख्या ज्यादा है, जो कुल आत्महत्या के मामलों में से 70 फीसदी है. शराब की लत इतनी आसानी से नहीं छूटती पर इसे छोड़ना नामुमकिन भी नहीं. आप के बेहतर स्वास्थ्य व भविष्य के लिए इस लत को छोड़ना बेहद जरूरी है.

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