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साल की पहली हिट फिल्म साबित हो सकती है ‘वजीर’…!

बिजॉय नाम्बियार के निर्देशन में बनी फिल्म 'वजीर' 8 जनवरी को सिनेमाघरों में दस्तक देने के लिए पूरी तरह से तैयार है. फरहान अख्तर और अमिताभ बच्चन स्टारर यह फिल्म महीनों से सुर्खियां बटोर रही है और हर प्रमोशन के साथ दर्शकों का उत्साह बढ़ा रही है.

वजीर की कहानी है पंडित ओंकारनाथ धर (अमिताभ बच्चन), दानिश अली (फरहान अख्तर), रूहाना अली (अदिति राव हैदरी) और वजीर (नील नितिन मुकेश) की. वजीर इस साल की बहुप्रतीक्षित फिल्मों में से एक है. खासकर एक साथ इतने स्टार्स का होना फिल्म को काफी पॉपुलर कर रहा है.

इंडस्ट्री के ट्रेड एनालिस्ट की मानें तो 'वजीर' की ओपनिंग एवरेज हो सकती है, लेकिन मेट्रो शहरों के मल्टीप्लेक्सेस में अच्छी ओपनिंग होगी. फिल्म की कुल बजट है लगभग 90 करोड़, लेकिन काफी कम उम्मीद है कि पहले वीकेंड में फिल्म अपना बजट निकाल पाएगी.

ओपनिंग

वजीर मेट्रो शहरों की मल्टीप्लेक्सेस में अच्छी कमाई कर सकती है. लेकिन बाकी शहरों में फिल्म शायद ज्यादा अच्छा व्यापार नहीं कर पाएगी. एनालिस्ट्स  की मानें तो 20% ओपनिंग की उम्मीद की जा रही है.

स्क्रीन रिलीज

फिल्म भारत में लगभग 2000 स्क्रीन पर रिलीज की जाएगी. कमाई के हिसाब से देखी जाए तो यह काफी है. लेकिन विधु विनोद चोपड़ा की फिल्म के हिसाब से काफी कम है.

बॉक्स ऑफिस

ट्रेड एनालिस्टों की बात मानें तो वजीर ओपनिंग डे पर 5-6 करोड़ की कमाई कर सकती है. इसके बाद फिल्म का कलेक्शन word of mouth पर निर्भर करेगी.

फर्स्ट वीकेंड

यदि फिल्म की Word Of Mouth अच्छी रही तो पहले वीकेंड पर फिल्म 20 करोड़ तक का बिजनेस कर सकती है. वहीं, अगर लोगों को फिल्म पसंद नहीं आई तो फिल्म की कमाई 15 करोड़ तक सिमट सकती है.

लाइफटाइम कलेक्शन

अगर फिल्म दर्शकों को पसंद आई तो फिल्म का लाइमटाइम कलेक्शन 70 करोड़ से ज्यादा माना जा रहा है. यदि फिल्म एवरेज गई, तो यह 50-55 करोड़ तक में रूक सकता है. यानि की फिल्म हो जाएगी सुपरफ्लॉप.

पॉजिटिव बातें

फिल्म के साथ अच्छी बातें यह है कि यह नए साल की पहली फिल्म है. और तीन हफ्तों के लंबे गैप के बाद रिलीज हो रही है. वहीं, फिल्म के साथ फरहान अख्तर और अमिताभ बच्चन जैसे सितारों के नाम भी जुड़े हैं.

पठानकोट पर आतंकी हमला

पठानकोट में एअरबेस पर आतंकवादी हमला एक बार फिर यह साबित कर गया कि देश में कोई भी, कहीं भी सुरक्षित नहीं है और आतंकवादियों ने आत्मघाती हमलों का जो पाठ पढ़ लिया है उस का मुकाबला करना आसान नहीं. पाकिस्तान की सरकार और उस की सेना को कोसना आसान है पर यह बात साफ है कि अब हालात ऐसे हो गए हैं कि उन के काबू में नहीं रहे. उन के लिए अब इस जिन को बोतल में वापस डालना आसान नहीं.

दुनियाभर में जो आतंकवाद फैल रहा है वह जमीन या पैसे पर नियंत्रण पाने के लिए नहीं है, वह दिमाग पर कंट्रोल करने के लिए है और इस में सब से बड़ा हथियार भी दिमाग पर कंट्रोल है. धर्म के नाम पर निहत्थे, निर्दोषों को मारना और खुद मर जाने का पाठ पढ़ाना बहुत कठिन है. सेनाएं अपने सैनिकों को मरने के लिए तैयार करती हैं पर साथ ही यह भी बताती हैं कि उन को बचाने की पूरी तरह तैयारी कर ली गई है और मरेगा दुश्मन ही.

आतंकवादियों को पाठ पढ़ाया जाता है कि तुम्हें मारना ही है और धर्म की खातिर दुश्मन यानी विधर्मियों के ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारना है. आतंकवादी जानता है कि आखिरकार वह मरेगा ही और उसे याद भी नहीं किया जाएगा. उस के मातापिता को न पैसा मिलेगा, न सम्मान. कोई जा कर बस यह कह देगा कि धर्म की खातिर उन के बेटे ने कुरबानी दे दी है. जब इतनी सी कीमत से काम चल जाए तो आतंकवाद पर काबू कैसे पाया जा सकेगा.

दुनियाभर की सरकारें आतंकवादियों के केंद्रों पर हमला कर रही हैं पर ये तो जंगली पौधे हैं जो हर जगह उग सकते हैं. धर्म के प्रचारक चप्पेचप्पे पर मौजूद हैं. और बचपन में ही मातापिता की मेहरबानी से युवा भारी संख्या में धर्म के नाम पर खुद को अर्पित कर देते हैं.

भारत में जो राधे मां, आसाराम बापू, रामरहीम जैसे सैकड़ों संत का बिल्ला लगाए घूम रहे हैं और जिन के आश्रमों व मठों में युवा, प्रौढ़ व वृद्ध कतारें लगाए दिखते हैं, असल में वे आतंकवाद के जहरीले पौधों की खेती करवाने वाले हैं. सरकारों की हिम्मत नहीं है कि वे इन पर कंट्रोल कर सकें.

इसलामाबाद को कोसना आसान है पर गुनाह तो दिल्ली, वाशिंगटन, लंदन, पेरिस, बीजिंग सब जगह हो रहा है. और सभी जगह की सरकारें धर्म की खेती करने वालों को छूट दे रही हैं.

मामला चाहे नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे के बनारस की गंगा आरती का हो, पुतिन का चर्चों में जाना, आबूधाबी में विशाल मसजिद बनवाने का या पोप को कई देशों के प्रधानों से भी बढ़ कर स्थान पाने का, सब में एक बात समान है, सब उस जमीन को खादपानी दे रहे हैं जिस में आतंकवाद की जहरीली खेती होती है.

सभ्य समाज होहल्ला मचा रहा है पर धर्म की रक्षा में लगा रहता है. दोनों साथ नहीं चल सकते. हर धर्म ने आतंकवादी पैदा किए हैं या कर रहा है. और जब तक धर्म को आदर, सम्मान, पैसा व सेवक मिलेंगे, आतंकवादी पनपते व बढ़ते रहेंगे और पठानकोट जैसी क्रूर घटनाएं घटती रहेंगी.

फर्जी फाइनैंस कंपनियां और लालच में लुटते लोग

रामनाथ ने नया घर खरीदने के लिए जिस फाइनैंस कंपनी में पेट काट कर तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए 50 हजार रुपए की रकम जमा कराई थी, वहां अब अलीगढ़ी ताला झूल रहा था. जबकि फाइनैंस कंपनी ने तो यही कहा था कि कुछ ही समय में उस का पैसा दोगुना कर वापस लौटा दिया जाएगा. वह समय आज तक नहीं आया और शायद आएगा भी नहीं.

जानकारी के मुताबिक, राजस्थान के कई शहरों खासकर जयपुर, जोधपुर, कोटा, भीलवाड़ा व उदयपुर में कई फाइनैंस कंपनियों की धोखाधड़ी के सैकड़ों मामले दर्ज हुए हैं.

जेवीजी फाइनैंस कंपनी, हीलियस ग्रुप, राप्ती ग्रुप, फर्स्ट ग्रुप, यंग फौर्मर कंपनी, स्वर्ण भूमि फाइनैंस कंपनी, लोक विकास फाइनैंस कंपनी, चंबल वित्त विकास, अनंज ग्रुप, नौर्थसाउथ ग्रुप फाइनैंस कंपनी, फौरैस्ट इंडिया फाइनैंस कंपनी वगैरह कंपनियों में लाखों लोगों की पूंजी फंसी हुई है.

जयपुर के पास ही सांगानेर इलाके में स्वर्ण भूमि फाइनैंस कंपनी के ताला लगे दफ्तर की तरफ देखते हुए सांगानेर में किराना स्टोर की दुकान चला रहे अशोक कुमार से जब पूछा गया कि स्वर्ण भूमि फाइनैंस कंपनी का क्या मतलब है? तो उस ने एक फीकी मुसकान के साथ जवाब दिया, ‘‘स्वर्ण कमाओ और भूमिगत हो जाओ.’’

लोक विकास कंपनी से गुस्साए देवेंद्र का कहना है, ‘‘मेरी सारी बचत लुट गई. रोजाना पैसा जमा करने का खाता खोला था. अपने जमा 16 हजार रुपए और ब्याज लेना था. इस से पहले ही कंपनी रफूचक्कर हो गई.’’

दुकानदार कन्नूलाल का कहना था, ‘‘यह एक छूत की बीमारी की तरह था. हम ने उम्मीद लगाई थी कि शायद हम भी कुछ दिनों में अमीर हो जाएंगे, इसलिए एक लाख रुपए की पूंजी सावधि खाते में लगा दी. पर होश तब आया, जब फूटी कौड़ी भी नहीं मिली.’’

गणेश प्रजापत ने रिटायरमैंट के बाद पहले तो कोई छोटामोटा धंधा करने का मन बनाया, लेकिन बाद में पता नहीं क्या सूझा कि लोक विकास कंपनी में पैसा लगा बैठे. अब न तो कंपनी का पता है और न ही रकम का.

फर्जी गैरबैंकिंग कंपनियों का निवेशकों की रकम ले कर छूमंतर होने का सिलसिला पिछले 10-15 सालों में ज्यादा बढ़ा है. हैरान करने वाली बात यह है कि गैरबैंकिंग फाइनैंस कंपनियों ने एजेंटों का जाल फैला कर उन के बूते अपना गोरखधंधा जमाया और रकम बटोरते ही उड़ गए.

लेकिन सब से ज्यादा बुरी गत तो एजेंटों की हुई. इन में से कुछ ने तो खुदकुशी कर ली, तो कई एजेंट भाग गए और जो लोकल इलाके में अपनी साख बनाए हुए थे, उन्हें अपना घरमकान तक बेचना पड़ा.

कदमकदम पर ठगी
कार फाइनैंस के बहाने रकम उड़ाने वाले जालसाज दिनेश शर्मा ने नौकरी दिलाने के नाम पर भी लोगों से लाखों रुपए की ठगी की. उस ने खुद को एक जानीमानी फाइनैंस कंपनी का रिकवरी एजेंट बताते हुए एक लोकल अखबार में इश्तिहार दिया कि दोपहिया और चौपहिया गाड़ी के लिए लोन लेने वाले मिलें. मिलने के लिए उस ने एक मोबाइल नंबर दिया था.

जयपुर की लालकोठी कालोनी में विधानसभा भवन के पीछे रहने वाले नरेंद्र अवस्थी ने दिनेश शर्मा से एक कार खरीदने के लिए फाइनैंस कराने के लिए कहा. सवा 2 लाख रुपए की पुरानी कार के लिए नरेंद्र अवस्थी के पास एक लाख, 20 हजार रुपए थे. एक लाख रुपए फाइनैंस कराने की बात तय हुई.

दिनेश शर्मा के कहने पर 1 सितंबर, 2015 को नरेंद्र अवस्थी रुपए ले कर आईसीआईसीआई बैंक पहुंचा. दिनेश शर्मा ने उसे रिसैप्शन पर बैठा दिया और रुपए खाते में जमा कराने के बहाने ले कर चला गया. जब वह काफी देर तक नहीं लौटा, तो नरेंद्र अवस्थी ने उसे काफी खोजा. इस के बाद उस ने थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई.

दूसरी घटना में सूर्य नगर, जयपुर के रहने वाले दांतों के डाक्टर सुमित कुमार ने बजाज नगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई. रिपोर्ट के मुताबिक, जगतपुरा रोड पर रहने वाले श्रवण लाल जांगिड़ ने उन के मकान को जयपुर डवलपमैंट अथौरिटी में कराने के लिए 40 हजार रुपए ले लिए. बदले में फर्जी कागजात थमा दिए.

आनेजाने के दौरान सुमित कुमार की बीवी की नौकरी और इनकम टैक्स दफ्तर में फाइल खुलवाने के लिए अगस्त महीने में 50 हजार रुपए और ले लिए. वे कागजात जयपुर डवलपमैंट अथौरिटी में दिखाने पर श्रवण लाल जांगिड़ की पोल खुली.

जयपुर में एक कंपनी ने अपनी चेन स्कीम में लुभावने ख्वाब दिखा कर दौसा जिले के हजारों लोगों को सदस्य बनाया और 13 करोड़ रुपए ठग कर उस के कर्ताधर्ता फरार हो गए. परेशान लोगों ने थाने में रिपोर्ट लिखाई. केस की जांच चल रही है.

दरअसल, आम आदमी की कमाई को अगर कोई ठगता है, तो इस में कुसूर उन लोगों का भी है, जिन्हें अपने पैसे को हिफाजत से रखने का सलीका नहीं है. चढ़ावे के नाम पर पंडेपुजारी, पार्टी के नाम पर नेता व टैक्सों के नाम पर सरकारें आम जनता की जेब हलकी करती हैं. ऐसे में अगर बोगस कंपनियां भी बहती गंगा में हाथ धो लें, तो हैरत कैसी?

यह बात दीगर है कि हमारे देश में धर्म, जाति व मजहब के नाम पर दाढ़ीचोटी वाले सदियों से भोलेभाले गरीबों को चूस रहे हैं, तभी तो मठमंदिरों, बाबाओं के पास अपार धनदौलत है.

बचत करना और उस को संभाल कर रखना जरूरी है, ताकि रकम के डूबने की नौबत न आए. हिफाजत के लिहाज से बैंक, पोस्ट औफिस व सरकारी स्कीमों को बेहतर माना जाता है.

कई बैंकों में ऐसा हो चुका है कि बैंक के मुलाजिमों ने अपने रिकौर्ड से खाताधारकों के दस्तखत देख कर फर्जी दस्तखत किए और मीआद खत्म होने से पहले खुद ही उस की फर्जी अर्जी लगा कर रकम निकाल ली. एटीएम से दूसरों का पैसा निकाल लेना तो अब मामूली बात है.

बरतें चौकसी
गौरतलब है कि हमारे देश के कारपोरेट जगत में गड़बड़ी व धोखाधड़ी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. हालांकि सरकार ने कंपनियों के लिए कारोबार के सही हालात दिखाना कानूनन जरूरी किया हुआ है. सेबी, यूटीआई व आईसीआईसीआई बैंक वगैरह कई संस्थाएं व संगठन भी इश्तिहार देते रहते हैं. लेकिन ज्यादातर लोग उन पर ध्यान ही नहीं देते. वे इस बात की परवाह नहीं करते कि कहीं भी पैसा लगाने का फैसला करने से पहले जागरूक होना बेहद जरूरी है.

उप्र पंचायत चुनाव: घाव भरने में जुटी सपा-भाजपा

उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों का जब नतीजा सामने आया, तो समाजवादी पार्टी को सब से ज्यादा झटका लगा. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में अपनी जीत पक्की मान कर चलने वाली भारतीय जनता पार्टी को भी इन पंचायत चुनाव के नतीजों से ऐसा कुछ हासिल नहीं हुआ, जिस से पता चल सके कि उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी की इमेज बरकरार है.

पंचायत चुनावों में सब से ज्यादा फायदा बहुजन समाज पार्टी को हुआ, जिस को सभी सोया हुआ मान कर चल रहे थे. कांग्रेस की खस्ता हालत ने उस के संगठन की मजबूरियों को उजागर कर जता दिया है कि विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय लड़ाई ही दिखाई देगी. पंचायत चुनावों में झटका खाई सपा और भाजपा अपने घाव भरने के लिए ज्यादा से ज्यादा जिला पंचायत अध्यक्षों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही हैं, जिस से वे अपने संगठन में गिरते जोश को संभाल सकें.

सामान्य रूप से देखें, तो सत्ता के दखल में जिला पंचायत सदस्यों (डिस्ट्रिक्ट डवलपमैंट कमेटी यानी डीडीसी) और क्षेत्र पंचायत सदस्य (ब्लौक डवलपमैंट कमेटी यानी बीडीसी) की कोई अहमियत नहीं होती है. डीडीसी के सभी सदस्य मिल कर जिला पंचायत अध्यक्ष को चुनते हैं और बीडीसी मिल कर ब्लौक प्रमुख का चुनाव करते हैं.

पंचायतों के विकास के लिए आने वाली योजनाओं को बनाने में जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लौक प्रमुख का अपना अहम रोल होता है. इन योजनाओं में मिलने वाले ठेकों को दिलाने में राजनीतिक  रसूख बड़ी मदद करता है. इस के अलावा विधानसभा और लोकसभा चुनावों में टिकट मांगने के लिए यह योग्यता का बड़ा पैमाना बन जाता है. यह राजनीति में बढ़ते रसूख का परिचय भी देता है.

यही वजह है कि उत्तर प्रदेश के सब से बड़े राजनीतिक घराने मुलायम परिवार के सदस्यों से ले कर तमाम मंत्रियों और विधायकों के परिवार के लोगों ने इन चुनावों में अपनी दावेदारी पेश की. कई जीते, तो ज्यादातर को मुंह की खानी पड़ी.

मुलायम परिवार जीता
लोकसभा चुनाव की ही तरह पंचायत चुनावों में भी समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव का परिवार जीत गया, पर सपा सरकार में शामिल दूसरे मंत्रियों और विधायकों में से ज्यादातर अपने परिवारों को जितवाने में नाकाम रहे.

मुलायम सिंह यादव के परिवार के लोग इटावा और मैनपुरी से चुनाव लड़े थे और वे निर्विरोध ही चुनाव जीत गए. मुलायम सिंह यादव के भतीजे और सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन शीला यादव जसवंतनगर सीट से जिला पंचायत सदस्य, सांसद तेज प्रताप सिंह की माता मृदुला यादव सैफई से बीडीसी, मुलायम सिंह यादव के भतीजे अंशुल यादव सैफई से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीत गए.

मुलायम सिंह के साले अजंत सिंह इटावा से बीडीसी सदस्य का चुनाव जीते. अब ये भी जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लौक प्रमुख बनने का सफर तय करेंगे.

अखिलेश सरकार के कई मंत्री और विधायक भी अपने परिवार के लोगों को चुनाव लड़ा रहे थे. इन में से कैबिनेट मंत्री अवधेश प्रसाद, मनोज पांडेय, राज्यमंत्री हाजी रियाज, विजय बहादुर, एसपी यादव, राधेश्याम सिंह, रामकरन आर्य, रामपाल राजवंशी, शंखलाल माझी और बंशीधर बौद्ध के परिवारजन चुनाव हार गए.

सपा के कई दूसरे नेता अपने परिवार वालों को जिताने में कामयाब भी रहे. जिला पंचायत चुनावों के समय बूथ कब्जाने को ले कर चर्चा में आए सपा नेता तोताराम यादव जिला पंचायत का चुनाव हार गए. वे 20वें नंबर पर रहे.

चारों खाने चित भाजपा
भारतीय जनता पार्टी साल 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले ही प्रदेश को जीत लेना चाहती थी. अपनी ताकत दिखाने के लिए वह पहली बार जिला पंचायत चुनाव में उतरी थी. परेशानी की बात यह है कि भाजपा की सब से करारी हार वहां हुई है, जहां से उस के नेता केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गोद लिए गांव जयापुर, वाराणसी और केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के गोद लिए गांव बेंती, लखनऊ तक में भाजपा के समर्थन से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार चुनाव हार गए. इस के अलावा आगरा, देवरिया, गाजीपुर, फतेहपुर, बरेली और अमेठी में भी भाजपा को वह कामयाबी नहीं मिली, जिस की उसे उम्मीद थी.

भाजपा ने बडे़ जोरशोर से पंचायत चुनावों में अपने समर्थन वाले उम्मीदवार उतारे थे. उसे लग रहा था कि पंचायत चुनाव जीत कर विधानसभा चुनावों का रास्ता साफ होगा.

भाजपा ने अपने जख्मों पर मरहम लगाने का काम करते हुए कहा है कि उसे पिछले चुनावों के मुकाबले 10 गुना ज्यादा लोगों ने वोट दिया है. इन चुनावों से पार्टी को गांवगांव तक पहुंचने में कामयाबी मिली है.

ताकतवर बसपा
बसपा ने पंचायत चुनावों में खुल कर उम्मीदवार नहीं उतारे थे. दूसरे ही दलों की तरह वह भी अपने समर्थन से चुनाव लड़वा रही थी. उस के समर्थन वाले उम्मीदवार सब से ज्यादा चुनाव जीते हैं. इस जीत से बसपा को नई ताकत मिली है.

बसपा मुखिया मायावती ने कहा कि प्रदेश के लोग बसपा के साथ हैं. मायावती को अब इस बात का मलाल है कि मूर्तियां लगवाने और पार्क बनवाने के जो काम पिछली सरकार के समय हुए थे, वे सही नहीं थे.

कांग्रेस अखिलेश यादव और नरेंद्र मोदी की गिरती साख का फायदा उठाने में चूक गई. वह प्रदेश की जनता के सामने किसी भी तरह का राजनीतिक विकल्प नहीं बन पाई.

राहुल गांधी के अमेठी और सोनिया गांधी की रायबरेली तक में कांग्रेस के लोग चुनाव नहीं जीते. रायबरेली में कांग्रेस की जिला पंचायत अध्यक्ष रही सुमन सिंह जिला पंचायत सदस्य का चुनाव हार गईं, वहीं प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री के फैजाबाद जिले में कांग्रेस के समर्थन से चुनाव मैदान में उतरे उम्मीदवार हार गए.

इस से साफ है कि विधानसभा चुनाव में भी अहम मुकाबला सपा, बसपा और भाजपा के ही बीच रहने वाला है.जिला पंचायत के चुनाव छोटे भले ही रहे हों, पर इन का असर दूर तक दिख रहा है.                        

पचपन में भी न करें सेक्स से परहेज, पढ़ें खास रिपोर्ट

कुछ समय पहले की बात है. एक विख्यात सेक्स विशेषज्ञ को एक महिला का पत्र मिला. लिखा था, मेरे पति 54 साल के हैं. उन्होंने फैसला किया है कि वह अब भविष्य में मुझ से कोई जिस्मानी संबंध न रखेंगे. उन का कहना है कि उन्होंने कहीं पढ़ा है कि 50 साल बाद वीर्य का निकलना मर्द पर अधिक शारीरिक दबाव डालता है और वह अगर नियमित संभोग में लिप्त रहेगा तो उस की आयु कम रह जाएगी यानी वह वक्त से पहले मर जाएगा. इसलिए उन्होंने सेक्स को पूरी तरह से त्याग दिया है. क्या इस बात में सचाई  है? अगर नहीं, तो आप कृपया उन्हें सही सलाह दें.

मैं आशा करती हूं कि इस में कोई सत्य न हो, क्योंकि यद्यपि मैं 50 की हूं मेरी इच्छाएं अभी बहुत जवान हैं. मैं इस विचार से ही बहुत उदास हो जाती हूं कि अब ताउम्र मुझे सेक्स सुख की प्राप्ति नहीं होगी. मैं ने अपने पति को समझाने की बहुत कोशिश की. मुझे यकीन है कि वह गलत हैं. लेकिन मेरे पास कोई मेडिकल सुबूत नहीं है, इसलिए वह मेरी बात पर ध्यान नहीं देते. मुझे विश्वास है कि जहां मैं नाकाम रही वहीं आप कामयाब हो जाएंगे.

यह केवल एक महिला का दुखड़ा नहीं है. अगर सर्वे किया जाए तो 50 से ऊपर की ज्यादातर महिलाएं इसी कहानी को दोहराएंगी और महिलाएं ही क्यों पुरुषों का भी यही हाल है. सेक्स से इस विमुखता के कारण स्पष्ट और जगजाहिर हैं, लेकिन एक बात जिसे मुश्किल से स्वीकार किया जाता है और जो आधुनिक शोध से साबित है, वह यह है कि सेक्स न करने से व्यक्ति जल्दी बूढ़ा हो जाता है और उसे बीमारियां भी घेर लेती हैं.

एक 55 साल की महिला से सेक्स के बाद जब उस के प्रेमी ने कहा कि वह जवान लग रही है, तो उस ने आईना देखा. उस ने अपने शरीर में अजीब किस्म की तरंगों को महसूस किया और उसे लगा कि वह अपने जीवन में 20 वर्ष पहले लौट आई है.

50 के बाद सेक्स में दिलचस्पी कम होने की कई वजहें हैं. हालांकि अब वैदिक काल जैसी कट्टरता नहीं है, लेकिन अब भी सोच यही है कि 50 पर गृहस्थ आश्रम खत्म हो जाता है और वानप्रस्थ आश्रम शुरू हो जाता है. इसलिए शायद ही कोई घर बचा हो जिस में यह वाक्य न दोहराया जाता हो : नातीपोते वाले हो गए, अब तुम्हारे खेलने के दिन कहां बाकी हैं. शर्म करो, अब बचपना छोड़ो. बहूबेटे क्या कहेंगे? क्या सोचेंगे कि बूढ़ों को अब भी चैन नहीं है.

दरअसल, भक्तिकाल में जब ब्रह्मचर्य और वीर्य को सुरक्षित रखने पर जो बल दिया गया उस से यह सोच विकसित हो गई कि सेक्स का उद्देश्य आनंदित स्वस्थ और तनावमुक्त रहना नहीं बल्कि केवल उत्पत्ति है. एक बार जब संतान की उत्पत्ति हो जाए तो सेक्स पर विराम लगा देना चाहिए.

इस तथाकथित धार्मिक धारणा पर अब तक साइंस का गिलाफ चढ़ाने का प्रयास किया जाता रहा है. मसलन, हाल ही में ‘योग’ से  संबंधित एक पत्रिका में लिखा था, ‘‘वीर्य में सेक्स हारमोन होते हैं. उन्हें सुरक्षित रखें और सेक्स में लिप्त हो कर उसे बरबाद न करें. यह कीमती हारमोन यदि बचा लिए जाते हैं तो वापस रक्त में चले जाते हैं और शरीर में ताजगी और स्फूर्ति आ जाती है. आधी छटांक वीर्य 40 छटांक रक्त के बराबर होता है, क्योंकि वह इतने ही खून से बनता है. जिस्म से जितनी बार वीर्य निकलता है उतनी ही बार कीमती रासायनिक तत्त्व बरबाद हो जाते हैं, वह तत्त्व जो नर्व व बे्रन टिश्यू के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण  हैं. यही वजह है कि अति उत्तेजक पुरुषों की पत्नियां और वेश्याओं की आयु बहुत कम होती है.

इस पूरे ‘प्रवचन’ के लिए एक ही शब्द है, बकवास. सब से पहली बात तो यह है कि वीर्य में शुक्राणु बड़ी मात्रा में साधारण शकर, सेट्रिक एसिड, एसकोरबिक एसिड, विटामिन सी, बाइकारबोनेट, फासफेट और अन्य पदार्थ होते हैं जो ज्यादातर एंजाइम होते हैं, इन सब का उत्पादन अंडकोशिकाएं, सेमिनल बेसिकल्स और एपिडर्मिस व वसा की डक्ट के जरिए होता है. वीर्य में सेक्स हारमोन होते ही नहीं. यह सारे तत्त्व या पदार्थ जिस्म में खाने की सप्लाई से बनते हैं जोकि एक न खत्म होने वाली प्रक्रिया है. निष्कासित होने से पहले वीर्य सेमिनल वेसिकल्स में स्टोर होता है, अगर इसे निष्कासित नहीं किया गया तो भीगे ख्वाबों से यह अपनेआप हो जाएगा. जाहिर है इस के शरीर में स्टोर होने का अर्थ है कि जिस्म में यह सरकुलेशन का हिस्सा रहा ही नहीं है और न ही ऐसी कोई प्रक्रिया है जिस से वीर्य फिर खून में शामिल हो कर ऊर्जा का हिस्सा बन जाए.

विख्यात वैज्ञानिक डॉक्टर इसाडोर रूबिन का कहना है, ‘‘अगर यह धारणा सही होती कि वीर्य के निकलने से या महिला के चरम आनंद प्राप्त करने से जिस्म में कमजोरी आ जाती है और उम्र में कटौती हो जाती है, तो कुंआरों की आयु विवाहितों से ज्यादा होती, क्योंकि अविवाहितों को सेक्स के अवसर कम मिलते हैं. वास्तविकता यह है कि विवाहित व्यक्ति लंबे समय तक जीते हैं.’’ हाल में किए गए शोधों से पता चला है कि अगर कोई व्यक्ति काफी दिन तक सेक्स से दूर रहता है तो कुछ प्रोस्टेटिक फ्लूड सख्त हो कर ग्रंथि में रह जाते हैं. इस से प्रोस्टेट ग्रंथि का आकार बढ़ जाता है और व्यक्ति को पेशाब करने में कठिनाई होने लगती है. इस समस्या पर अगर ध्यान न दिया जाए तो फिर प्रोस्टेट की सर्जरी आवश्यक हो जाती है.

50 के बाद सेक्स से विमुखता का एक अन्य कारण यह है कि जवानी में लोग कसरत पर और अपने जिस्म को सुडौल रखने के लिए खानपान पर अकसर खास ध्यान नहीं  देते. इस से उम्र के साथ उन के शरीर पर फैट जमा होने लगता है जिस से वह मोटे हो जाते हैं. यह जानने के लिए ज्ञानी होना आवश्यक नहीं है कि मोटापा अपनेआप में कई गंभीर बीमारियों की जड़ होता है. व्यक्ति जब बीमार रहेगा तो उस का ध्यान सेक्स की ओर कहां जाएगा, साथ ही पुरुष का जब पेट निकल जाता है और उस का सीना भी औरतों की तरह लटक जाता है तो वह उस मुस्तैदी से सेक्स में लिप्त नहीं हो पाता जैसे वह जवानी में होता था. महिलाओं के बेडौल और मोटे होने से उन में मर्द के लिए पहले जैसा आकर्षण नहीं रह पाता. इसलिए जरूरी है कि उम्र के हर हिस्से में कसरत की जाए और अपना वजन नियंत्रित रखा जाए.

वैसे सेक्स भी अपनेआप में बेहतरीन कसरत है. अन्य फायदों के अलावा इस से मांसपेशियों सुगठित रहती हैं, ब्लड प्रेशर सामान्य और अतिरिक्त फैट कम हो जाता है. गौरतलब है कि पुरुष के गुप्तांग में जोश स्पंजी टिश्यू के छिद्रों में खून के बहाव से आता है. अगर आप के जिस्म पर 1 किलो अतिरिक्त फैट है तो रक्त को 22 मील और ज्यादा सरकुलेट होना पड़ता है. अगर व्यक्ति बहुत मोटा है तो फैट उस के सामान्य सरकुलेशन को और कमजोर कर देता है और खास मौके पर इतना रक्त उपलब्ध नहीं होता कि पूरी तरह से जोश में आ जाए.

दरअसल, खानेपीने का तरीका सामान्य सेहत को ही नहीं सेक्स जीवन को भी प्रभावित करता है. इस में कोई दोराय नहीं कि पतिपत्नी क्योंकि एक ही छत के नीचे रहते हैं इसलिए खाना भी एक सा ही खाते हैं. अगर किसी दंपती के खाने में विटामिन ‘बी’ की कमी है तो इस का उन के जीवन पर जटिल प्रभाव पडे़गा. इस की वजह से पत्नी में अतिरिक्त एस्ट्रोजन (महिला सेक्स हारमोन) आ जाएंगे और उस की सेक्स इच्छाएं बढ़ जाएंगी जबकि पति में इस का उलटा असर होता है. एस्टो्रजन के बढ़ने से उस के एंड्रोजन (पुरुष सेक्स हारमोन) में कमी आ जाती है.

दूसरे शब्दों में, स्थिति यह हो जाएगी कि पत्नी तो ज्यादा प्यार करना चाहेगी, लेकिन पति की इच्छाएं कम हो जाएंगी. इसलिए आवश्यक है कि संतुलित हाई प्रोटीन खुराक ली जाए. साथ ही शराब और सिगरेट की अधिकता से बचा जाए, क्योंकि इन दोनों के सेवन से व्यक्ति वक्त से पहले चरम पर पहुंच जाता है और फिर अतृप्त सा महसूस करता है.

गौरतलब है कि इंटरनेशनल जर्नल आफ सेक्सोलोजी-7 के अनुसार विटामिन और हारमोंस का गहरा रिश्ता है. दर्द भरी माहवारी में राहत के लिए जब टेस्टेस्टेरोन हारमोन दिया जाता है तो उस की अधिक सफलता के लिए साथ ही विटामिन ‘डी’ भी दिया जाता है. इसी तरह से गर्भपात के संभावित खतरे से बचने के लिए प्रोजेस्टरोन हारमोन के साथ विटामिन ‘सी’  दिया जाता है.

50 के बाद सेक्स से विमुखता की एक वजह यह भी है कि दोनों पतिपत्नी बननासंवरना काफी हद तक कम कर देते हैं. अच्छे और आकर्षक कपडे़ पहनने से और बाल अच्छी तरह बनाने से यकीनन महिला का मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है.

यहां यह बताना भी आवश्यक होगा कि इसी किस्म का आकर्षण लाने के लिए पुरुषों को भी चाहिए कि वे कसरत करें, ब्यूटी पार्लर जाएं और अच्छे कपडे़ पहनें, साथ ही उन की पत्नी जब रजोनिवृत्ति से गुजर रही हो तो उस का विशेष ध्यान रखें. पत्नी जितना खुल कर अपने पति से बातें कर सकती है उतना वह अपने डाक्टर से भी नहीं कह पाती. इसलिए अगर रजोनिवृत्ति के दौरान पति ने उसे सही से संभाल लिया तो आगे का सेक्स जीवन बेहतर रहेगा.

अब तक जो बहस की गई है उस से स्पष्ट है कि अच्छे, स्वस्थ और लंबे जीवन के लिए 50 के बाद भी सेक्स उतना ही आवश्यक है जितना कि उस से पहले. लेकिन उसे बेहतर बनाए रखने के लिए अपने नजरिए में बदलाव लाना भी जरूरी है और अगर कोई समस्या है तो मनोवैज्ञानिक और डाक्टर से खुल कर बात करने में कोई शर्म नहीं करनी चाहिए.

नेपाल में फेल हुई नरेंद्र मोदी की कूटनीति

प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी जब नेपाल यात्रा पर गए, तो पशुपतिनाथ मंदिर में उन का शानदार स्वागत हुआ. इस से खुश हो कर नरेंद्र मोदी ने उस मंदिर की विजिटिंग बुक में लिखा, ‘पशुपतिनाथ हैं जो भारत और नेपाल को जोड़ते हैं. मैं प्रार्थना करता हूं कि वे दोनों देशों पर अपनी कृपा रखेंगे.’

सब से पहले तो नरेंद्र मोदी यहीं गलत हो गए थे. वे धार्मिक समानता के बल पर दैवीय कृपा की आस लगा बैठे थे, क्योंकि अगर धर्म के नाम पर ही बेहतरीन कूटनीतिक रिश्ते बनते होते, तो मध्यपूर्व के कई इसलामी देशों के साथ भारत के बेहतर संबंध कभी न बन पाते और पाकिस्तान के रिश्ते ईरान, सीरिया से ऐसे तो खराब न होते. पाकिस्तान से टूट कर बंगलादेश भी न बनता.

अगर नेपाल की बात करें, तो जब से वहां का नया संविधान आया है, तब से इस इलाके के तमाम समीकरण बदलने लगे हैं. भारत से उस के संबंधों में एक गांठ बन गई है. रहीसही कसर मधेशी समस्या ने पूरी कर दी है. नतीजतन, नेपाल भारत का दामन छोड़ कर चीन और बंगलादेश की ओर झुक गया है.

आज भारतनेपाल के आपसी संबंधों में खटास ही नहीं आई है, बल्कि नेपालचीन, नेपालबंगलादेश और बंगलादेशचीन के संबंधों के समीकरण भी बदल रहे हैं. कुलमिला कर इस पूरे मामले में एक हद तक इस समय भारत थोड़ा अलगथलग पड़ गया है.

बिगड़ गया खेल
साल 2002 के दंगों में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की इमेज को जो धक्का लगा था, उसे दुरुस्त करने के लिहाज से वे प्रधानमंत्री बनते ही पड़ोसी देशों समेत दुनिया के तमाम देशों के साथ संबंधों को नया रूप देने में जुट गए थे. इस की शुरुआत उन्होंने भूटान से की. फिर ब्रिक्स सम्मेलन के लिए ब्राजील गए. इस के बाद कुछ ही समय में उन्होंने 2 बार नेपाल का दौरा किया.

नरेंद्र मोदी से पहले साल 1997 में प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल ने नेपाल का दौरा किया था. मतलब पिछले 18 सालों से भारत के किसी प्रधानमंत्री ने नेपाल का दौरा नहीं किया था. नेपाल के साथ संबंधों को गरमाने में नरेंद्र मोदी की सरकार ने तेजी दिखाई.

भारत की ओर से पहले ही नेपाल को रेल लाइन से जोड़ने का काम शुरू हो चुका था, पर काम सुस्ती से आगे बढ़ रहा था. अब मोदी सरकार ने उस में रफ्तार लाने का फैसला किया है. बताया जाता है कि जोगबानीविराटनगर के बीच रेल लाइन बिछाने का काम केवल 20 फीसदी ही बाकी रह गया है.

मोदी सरकार बनने के बाद पड़ोसी देशों के साथ भारत के संबंध दुरुस्त होते दिख रहे थे, पर नेपाल के ताजा घटनाक्रम के चलते अचानक पूरा मामला पटरी से उतर गया और खेल बिगड़ गया है.

अब आम नेपालियों में धीरेधीरे यह सोच बन रही है कि किसी दूसरे देश की सुरक्षा में नेपाली अपना खून क्यों बहाएं. गौरतलब है कि ब्रिटेन और भारत की सेना में बड़ी तादाद में नेपाली हैं.

चीन की ओर झुकाव
पत्रिका ‘रिपब्लिकन’ में छपे एक इंटरव्यू में नेपाल की प्रधानमंत्री रह चुकी कीर्ति निधि बिस्ता ने कहा कि चीन हमेशा से नेपाल का अच्छा दोस्त रहा है. लिपूलेख दर्रा समझौते के अलावा चीन से नेपाल को कोई परेशानी नहीं है. नेपाल इस समझौते को रद्द करना चाहता है.

गौरतलब है कि लिपूलेख दर्रे पर लंबे समय से नेपाल अपना हक जताता रहा है. यह दर्रा भारत, चीन और नेपाल तीनों देश के करीब से हो कर गुजरता है. इस दर्रे का इस्तेमाल भारतचीन व्यापार और कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए होता रहा है.

इस इंटरव्यू का सार यह है कि 2 सौ सालों तक खुद गुलाम रहने के बाद भारत 1950 से ही नेपाल को अपना उपनिवेश बनाने की फिराक में रहा है. भारत हमेशा से नेपाल की सुरक्षा और जल संसाधन पर अपना कब्जा चाहता है.

मौजूदा संकट पर कीर्ति निधि बिस्ता का मानना है कि मधेशियों को ले कर भारत को चिंता करने की कतई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह नेपाल का अंदरूनी मामला है.

गौरतलब है कि भारतीय सीमा पर नाकाबंदी के चलते नेपाल में जरूरी सामान की किल्लत हो गई है. इस से नेपाल के अहम को ठेस लगी है.

भारत द्वारा प्रस्तावित पनबिजली परियोजना को ले कर नेपाल की राजनीति भी गरमा गई है. क्या सत्ताधारी और क्या विपक्षी दल, नेपाल के नेताओं ने यह डर जाहिर किया है कि प्रस्तावित मैगा परियोजना के बहाने भारत की नजर नेपाल के पानी पर रही है. जहां तक इस पनबिजली परियोजना का सवाल है, तो भारत ने साफ कर दिया था कि नेपाल चाहे तो प्रस्ताव में अपनी तरफ से कुछ जोड़घटाव कर सकता है.

नेपाल व भारत के संबंधों के बीच आई ताजा दरार ने उसे चीन की तरफ पूरी तरह से धकेल दिया है. केवल नेपाल ही नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया में चीन अपने दबदबे के काम में लगा हुआ है. उस की नजर बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर पर है. हिंद महासागर में चीन के स्ट्रिंग औफ पर्ल्स दक्षिण एशियाई देशों के लिए ही नहीं, बल्कि अमेरिका के लिए भी चिंता की बात है. वह यहां चीनी सेना और कारोबारी नैटवर्क की पैठ चाहता है. इतना ही नहीं, चीन बंगलादेश व पाकिस्तान के अलावा श्रीलंका और म्यांमार में बंदरगाह बनाने का इच्छुक है. चीन साल 2020 तक अरुणाचल प्रदेश तक रेल लाइन बिछाने का भी ऐलान कर चुका है.

चीन बंगलादेश के साथ भी अपने कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने पर  जोर दे रहा है. गौरतलब है कि चीन की ओर से पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने जब कभी भारत का दौरा किया था, तब बंगलादेश का भी दौरा किया था.

चीनी हथियार के 3 खरीदारों में एक बंगलादेश भी है और वह 82 फीसदी हथियार चीन से ही खरीदता है. चीन अपने युद्धपोत और पनडुब्बी तैनात करने के लिए बंगाल की खाड़ी में बंगलादेश की सीमा का इस्तेमाल करने के जुगाड़ में लगा हुआ है. भारत के लिए निश्चित तौर पर यह चिंता की बात है.

कुलमिला कर नेपाल चाहता है कि दादागीरी के बजाय भारत नेपाल की संप्रभुता का सम्मान करते हुए बड़े भाई की तरह पेश आए. मोदी सरकार को यह बात मान लेनी चाहिए कि नेपाल कभी हिंदू राष्ट्र हुआ करता था, पर दुनिया के बदले माहौल में अब यह भारत की ही तरह एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है. वह अपनी मरजी से चलेगा, पशुपतिनाथ मंदिर के पुजारियों की राय से नहीं, जो भारतीय मूल के हैं.                 

विवाह को वैभव नहीं, जीवन निधि बनाएं

भारतीय संस्कृति में विवाह एक विशेष उत्सव माना जाता है, इसलिए इसे बड़े उत्साह और धूमधाम से किया जाता है. वैसे विवाह 7 वचन और अग्नि के 7 फेरों के साथ जीवन भर साथ निभाने की रस्म मात्र है. लेकिन कुछ मिनटों में हो सकने वाली इन रस्मों के लिए यदि आस्ट्रेलिया से फूलों का जहाज आए और पूरा नगर बिजली की रोशनी से जगमगाए या एक नकली विशाल महल ही खड़ा कर दिया जाए तो उस पर इतना खर्च हो जाता है जिस से हजारों की रोटी जीवन भर चल सकती है.

पर यह बात तो हुई उन संपन्न लोगों की शादी की जिस के लिए न तो उन्हें किसी से उधार लेना पड़ता है, न ही कर्ज और न ही घर या जमीन बेचना पड़ता है. हां, इस चकाचौंध का असर मध्यवर्ग पर जरूर पड़ता है, जो यह सोचता है कि यदि पूरा नगर सजाया गया है तो मैं क्या अपना घर भी नहीं सजा सकता? और इस के लिए वह अपनी जमापूंजी तो खर्च करता ही है, कर्जदार भी बन जाता है.

मध्यवर्ग से अधिक मुश्किल उच्च मध्यवर्ग की है जिसे समाज में अपनी रईसी का झंडा गाड़े रखना है. रवींद्र के यहां दावत में विदेशी फल थे, चाट के 5 स्टौल थे और खाने के 10 तो सुशील कैसे पीछे रहते. उन्होंने पार्टी की तो बड़ेबड़े बैलून से सारा पंडाल सजाया और 15 स्टौल आइसक्रीम, चुसकी आदि के ही रखवा दिए. मिठाइयां 50 तरह की रखीं.

हर व्यक्ति अमूमन एक बार में 300 ग्राम या 500 ग्राम से अधिक नहीं खा पाता. यदि बहुत वैराइटी होती है तो चखने के चक्कर में बरबाद बहुत करता है और यदि समझदार होता है तो चुन कर खा लेता है. इस में सब से अधिक चांदी कैटरर की होती है. जितनी अधिक चीजें होंगी उतने ही उन के दाम होंगे. लेकिन कोई भी व्यक्ति खाता तो सीमित ही है.

पहले और अब में फर्क

पहले बरात आती थी तो कई दिन रुकती थी. लड़की के घरपरिवार का हर सदस्य बरातियों की खातिर करता था. बराती बन कर जाना मतलब 2 या 3 दिन की बादशाहत थी. लेकिन तब और अब में फर्क यह है कि अब बरातीघराती में फर्क होता ही नहीं. न कोई काम करना चाहता है न ही जिम्मेदारी निभाना चाहता है. सभी साहब बन कर आते हैं, इसलिए कैटरर का प्रचलन अधिक हो गया है, जो बेहद खर्चीला है.

पहले विवाह की सभी रस्में गीतसंगीत व ढोलक की थाप के साथ घरपरिवार की महिलाओं के बीच होती थीं. बहन, बूआ, चाची, ताई और महल्ले व पड़ोस की महिलाएं जुटतीं तो तरहतरह के मधुर गीतों के साथ रस्में निभातीं जिस से घर में रौनक हो जाती. अब घरपरिवार हम 2 हमारे 2 ने सीमित कर दिए. अब चाची, ताई आदि रिश्ते सीमित हो गए हैं तो रौनक के लिए किट्टी पार्टी, क्लब आदि में बनाए रिश्ते ही सब से ऊपर हो जाते हैं. ये रिश्ते अब केवल जेवरकपड़े की नुमाइश मात्र हो गए हैं. अब पुरानी रस्मों का कोई औचित्य नहीं रह गया है. अब वे रस्में नए अंदाज में नजाकत से किट्टी पार्टी की महिलाओं को बुला कर होती हैं.

अब घर वालों को उन के करने का न तो कारण ज्ञात है न अवसर, लेकिन लकीर के फकीर की तरह उन को करना है इसलिए करना है. पहले हलदी आदि के उबटन से त्वचा चमक उठती थी, लेकिन अब सब से पहले यह पूछा जाता है कौन से पार्लर से मेकअप कराया है या कौन सी ब्यूटीशियन आई है? अब सभी शुभदिन में ही विवाह करना चाहते हैं, इसलिए उस दिन ब्यूटीपार्लर में दुलहनों की कतार रहती है.

वैसे तो बरातें ही 12-1 बजे पहुंचती हैं, उस पर दूल्हा और घर वाले बैठे दुलहन का पार्लर से लौटने का इंतजार करते रहते हैं. अधिकांश निमंत्रित तो खाना खा और शगुन दे कर चले जाते हैं. बहुत कम लोग दुलहन को देखने के लिए रुक पाते हैं. आज हर महिला अच्छे से तैयार होना, पहननाओढ़ना जानती है और हर रस्म पर अलगअलग साजसज्जा. क्या यह हजारों रुपए की बरबादी नहीं कही जाएगी?

अनावश्यक दिखावा

एक गरीब कन्या का विवाह हो जाए इतना खर्च तो लेडीज संगीत तैयार कराने वाला ले लेता है. क्या ये सब दिखावा आवश्यक खर्च है? क्या लड़की होना इन सब की वजह से बोझ है? और क्या मात्र दहेज ही सामाजिक कुव्यवस्था की जिम्मेदार है या मानवीय मानसिकता भी, जिस ने विवाह को एक व्यापार बना दिया है?

अब दिखावे में खर्च ज्यादा

पुराने समय में कन्या पक्ष वर पक्ष वालों को मानसम्मान हेतु भेंट देता था व अपनी कन्या के उपयोग के लिए उस की पसंद की वस्तुएं. लेकिन यह उपहार दानवीय आकार ग्रहण कर दहेज बन गया है. दहेज के साथ जो दिखावा व तड़कभड़क जनजीवन और समाज के साथ जुड़ गया है, वह विवाह में अधिक कमर तोड़ देने वाला है. दिखावे में जो खर्च होता है वह अपव्यय है. हर वस्तु को सजा कर प्रस्तुत करना अच्छा है, लेकिन अब सजावट वस्तु से अधिक मूल्य की होने लगी है. पहले मात्र गोटे और कलावे से कपड़े बांध दिए जाते थे, लेकिन अब उन को तरहतरह की टे्र आदि में कलात्मक आकार दे कर प्रस्तुत किया जाता है.

बन गया व्यापार

इस में दोराय नहीं कि यदि कलात्मक सोच है तो अच्छा लगता है, लेकिन अब इस ने भी व्यापार का रूप ले लिया है. जहां एक तरफ दहेज प्रदर्शन बिलकुल निषिद्ध है, वहीं दूसरी तरफ सजी हुई दहेज की साडि़यां व जेवर वगैरह दिखाने के लिए लंबी जगह का इंतजाम किया जाता है. अफसोस तब होता है जब उस सजावट को एक क्षण में तोड़ कर कोने में ढेर कर दिया जाता है. तब यह लगता है यदि उतना मूल्य देय वस्तु में जुड़ा होता या स्वयं बचाया होता तो उपयोगी होता. क्व100 की वस्तु की सजावट में क्व100 खर्च कर देना कहां की समझदारी है?

वैवाहिक कार्यक्रम में वरमाला के नाम पर भव्य सैट तैयार किया जाता है. यह एक तरह से मुख्य रस्म बन चुकी है, इसलिए इस की विशेष तैयारियां की जाती हैं. वरमाला रस्म कम तमाशा अधिक होती है.

अधिकतर देखा जाता है कि वर अपनी गरदन अकड़ा लेता है. शायद ऐसा कर के वह अपनी होने वाली पत्नी पर रोब डालना चाहता है. दोस्त उसे ऊंचा उठा लेते हैं, साथ ही उसे प्रोत्साहित करने के लिए व्यंग्य आदि भी करते रहते हैं, जो स्थिति को हास्यास्पद तो बनाता ही है कहींकहीं बिगाड़ भी देता है. वधू माला फेंक कर या उछल कर डाल रही है या उसे उस की सहेलियां या भाई उठा रहा है या फिर उस के लिए स्टूल लाया जा रहा है, ये स्थितियां भी बहुत अशोभनीय लगती हैं.

बिजली की बेहिसाब जगमगाहट और विशाल पंडाल की टनों फूलों से सजावट क्या यह सब आवश्यक है? जहां देश में बिजली का संकट गहराता जा रहा है, वहां इतना अपव्यय क्या ठीक है? बैंडबाजे ध्वनि प्रदूषण तो उत्पन्न करते ही हैं, उन की धुन पर नाचतेथिरकते अकसर हास्यास्पद भी लगते हैं. साथ ही बरात का शोर आसपास के बच्चों के पढ़ने में व्यवधान बनने के साथ थके हुए उन लोगों के लिए, जिन का उस शादी से कोई लेनादेना नहीं है, अप्रिय स्थिति पैदा करता है.

यदि ये अनावश्यक खर्चे नवविवाहित जोड़े के आगे जीवन के लिए जीवन निधि बनें तो अधिक अच्छा है.

ऐसे काम करेगा दुनिया का पहला इंटेलिजेंट फुटवियर

अमेरिका के लास वेगास में 6 जनवरी से कन्ज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स शो CES 2016 शुरू हो गया है. इसमें ऐप से कंट्रोल होने वाला स्मार्ट शू पेश किया गया. इसे दुनिया का पहला 'इंटेलिजेंट फुटवियर' भी कहा जा रहा है. ऐप की मदद से ये शू पैरों को गर्म और टाइट रखता है. सर्दियों के मौसम में ये काफी फायदेमंद साबित हो सकता है.

कैसे काम करेगा ये इंटेलिजेंट फुटवियर

– दुनिया के इस पहले इंटेलिजेंट फुटवियर को डिजीसोल (Digitsole) कंपनी ने बनाया है.

– इसके सोल में हीटर और सेंसर दिया गया है.

– हीटर पैर के तलवों को 30 डिग्री सेल्सियस तक गर्म रख सकता है.

– इसमें एक बैटरी और ब्लूटूथ सेंसर भी है. रेग्युलर यूसेज पर ये बैटरी 8 घंटे काम करती है.

– सेंसर यूजर के फुटस्टेप्स को काउंट करता है और ऐप में डाटा डिस्प्ले करता है.

– मोबाइल ऐप के जरिए इसके टेम्परेचर को बढ़ाया या घटाया जा सकता है. साथ ही इसे टाइट और लूज भी किया जा सकता है.

– दिखने में ये आम फुटवेयर से बड़ा है और इसमें ट्रेडिशनल शूज की तरह लेस भी नहीं हैं.

– इसे माइक्रो USB चार्जर की मदद से चार्ज किया जा सकता है.

– साथ ही शू यूजर को ये भी बताएगा कि कब इसके सोल बदलने का वक्त है.

कितनी है कीमत?

– इसकी कीमत 450 डॉलर (लगभग 30049 रुपए) है.

– इसे सबसे पहले सितंबर में अमेरिकी मार्केट में लॉन्च किया जाएगा.

– इसे बनाने में निओटेक (Neotech) का इस्तेमाल किया गया है. इस टेक्नोलॉजी में ऑर्थोलाइट का इस्तेमाल कर लाइटवेट मटेरियल्स बनाए जाते हैं.

हाइड्रोजन बम के पहले सफल परीक्षण की उत्तरी कोरिया की घोषणा की दुनियाभर में आलोचना हो रही है। किम जोंग-उन ने पिछले महीने संकेत दिए थे कि उनके परमाणु-संपन्न देश ने हाइड्रोजन बम भी विकसित कर लिया है। उत्तर कोरिया इससे पहले एटम बम के भी तीन परीक्षण कर चुका है। खास बात यह है कि एटम बम की तुलना में हाइड्रोजन बम ज़्यादा खतरनाक है।

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ये है दुनिया का सबसे छोटा कंप्यूटर, कीमत 577 रुपए

पिछले साथ जिफ कैमरा लांच करने वाली कंपनी नेक्‍ट बिग थिंग ने किकस्‍टार्टर में एक नई डिवाइस ले कर आई है, ये हैं 8 यूएस डॉलर का माइक्रोकंप्‍यूटर चिप, इसका आकार ए‍क क्रेडिट कार्ड के बराबर है ,जिसे आप मॉनीटर और कीबोर्ड से अटैच कर सकते हैं. कंपनी का कहना है चिप दुनिया का पहला ऐसा कंप्‍यूटर है जिसकी कीमत 577 रुपए है.

किकस्‍टार्टर कैंपेन में नेक्‍ट बिग थिंग को अब तक 50,000 डॉलर तक की राशि मिल चुकी है, हालाकि कंपनी को 6,20,000 डॉलर यानी 4 करोड़ की जरूरत है जिससे ये इसका आधिकारिक रूप से उत्‍पादन शुरु कर सकते हैं. इसके अलावा नेक्‍ट बिग थिंग एक पॉकेट चिप सर्किट बोर्ड पोर्टेबल भी बना रही है, जिसमें 5 घंटे बैटरी बैकप के लिए 3000 एमएएच बैटरी दी गई है.

चिप माइक्रोकंप्‍यूटर में 1 गीगाहर्ट ऑलविनल आर 8 प्रोसेसर, माली 400 जीपीयू, 512 एमबी रैम, 4 जीबी इंटरनल मैमोरी, यूएसबी पोर्ट, ऑटीजी सपोर्ट, ब्‍लूटूथ, वाईफाई जैसे फीचर दिए गए हैं. इसके साथ इसमें लाइबर ऑफिस, क्रोम ब्राउजर, वेब सर्फ जैसी प्री लोडेड एप्‍लीकेशन दी गईं हैं.

इसरो ने बेंगलुरू में बनाया स्पेस पार्क, ये होगा खास

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने बेंगलुरू में 100 एकड़ क्षेत्र में स्पेस पार्क का निर्माण किया है. यहां निजी कंपनियां इसरो के सेटेलाइट और रॉकेट के लिए कलपुर्जे बनाने का संयंत्र लगाएगी.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (इसरो) के सेटेलाइट केंद्र के निदेशक एम. अन्नादुरई ने विज्ञान कांग्रेस के दौरान बताया, "बेंगलुरू में व्हाइटफील्ड के नजदीक निजी क्षेत्र के लिए स्पेस पार्क बनाया गया है. यह 100 एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में फैला हुआ है. अगले महीने इसका उद्घाटन किया जाएगा.”

इसरो आने वाले दिनों में नेविगेशन, रिमोट सेंसिंग इत्यादि सेवाओं के लिए कई सेटेलाइट लांच करने की तैयारी में है. इस पार्क में निजी कंपनियां इन सेटेलाइटों के लिए कलपुर्जों का निर्माण करेगी ताकि अंतरिक्ष तकनीक के क्षेत्र में तेजी से काम हो.

अन्नादुरई ने कहा, "हमने उनसे (निजी कंपनियों) कहा है कि वे अपनी क्षमता को तेजी से बढ़ाए या फिर स्पेस पार्क में अपना संयंत्र लगाएं और हमारी सुविधाओं का इस्तेमाल कर हमारे सेटेलाइटों के लिए कलपुर्जे बनाएं." अन्नादुरई आगे कहते हैं, "यह स्पेस पार्क सरकार के 'मेक इन इंडिया' पहल को आगे बढ़ाएगा. पिछले कई सालों से सरकारी कंपनी एचएएल (हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड) और दूसरी निजी कंपनियां हमारे लिए सेटेलाइट और रॉकेटों के कलपुर्जे का निर्माण करते आ रहे हैं.

अन्नादुरई एक वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं जो भारत के मंगलयान और चंद्र मिशन से जुड़े रहे हैं. उन्होंने मैसूर विश्वविद्यालय में आयोजित विज्ञान कांग्रेस अधिवेशन में 'अंतरिक्ष विज्ञान, तकनीक और अनुप्रयोग' विषय पर छात्रों और प्रतिनिधियों को संबोधित किया. इसरो रॉकेट और सेटेलाइट की 80 फीसद से अधिक कलपुर्जो का निर्माण निजी क्षेत्र से करवाती है. इसरो के लिए देश भर के 500 से ज्यादा छोटे, मझोले और बड़ी इकाईयां कलपुर्जो का निर्माण करती हैं. 

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