रहस्य और रोमांच प्रधान फिल्म ‘‘वजीर’’ की कहानी का ताना बाना ‘वजीर’ जो मौजूद नही है, के इर्द गिर्द बुना गया है. और यह रहस्य बहुत जल्द दर्शकों की समझ में आ जाता है. कुल मिलाकर फिल्म की कहानी यह है कि एक व्हीलचेअर पर बैठा शतंरज का माहिर खिलाड़ी किस तरह अपने मकसद को हासिल करने के लिए एक एटीएस आफिसर को अपना मोहरा बनाकर चालें चलता है.
फिल्म की कहानी शुरू होती है एटीएस ऑफिसर दानिश अली (फरहान अख्तर) की कत्थक डांसर रूहाना (अदिति राव हैदरी) के संग शादी, खुशहाल जिंदगी और एक चार साल की बेटी नूरी का पिता बनने से. एक दिन जब यह परिवार रूहाना के एक शो में जा रहा होता है, तभी अपने घुंघरू ठीक कराने के लिए एक दुकान के सामने गाड़ी रूकवा कर रूहाना दुकान के अंदर जाती है, तभी दानिश अली की नजर एक अपराधी पर पड़ती है.
दानिश अपनी कार से उसका पीछा करने लगता है. दोनो तरफ से बंदूक की गोलियां चलती है. जिसमें दानिश की बेटी नूरी मारी जाती है. इसके लिए रूहाना, दानिष को अपराधी मानकर उसे छोड़कर अपनी मां के पास चली जाती है. इतना ही नहीं एटीएस के उच्च अफसरों को यकीन है कि यह अपराधी किसी नेता से मिलने दिल्ली आया है, पर दानिश के हाथों यह अपराधी मारा जाता है. इसके चलते दानिश को सस्पेंड कर दिया जाता है.
फिर दानिश की मुलाकात व्हील चेअर पर रहने वाले, शतरंज के माहिर खिलाड़ी व टीचर पं. ओमकार नाथ धर (अमिताभ बच्चन) से होती है. दोनों के बीच दोस्ती हो जाती है. पं.ओमकार नाथ धर अपने पत्नी व बेटी की मौत की कहानी सुनाकर दानिश को यकीन दिला देते हैं कि उन दोनों का असली अपराधी एक ही है. यहीं पता चलता है कि रूहाना अपनी बेटी नीरू को शतरंज सिखाने के लिए पं.धर के पास लाती थी, जबकि पं. धर की बेटी, सामाजिक मंत्री कुरेषी (मानव कौल) की बेटी को पेंटिग सिखाने जाती थी और मंत्री कुरेषी उसे मौत के घाट उतार देते हैं.
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