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सहिब, बीवी और बॉस: जब मंदोदरी बनीं कामदेव

‘साहिब, बीवी और बॉस‘ की तिकड़ी के बीच संदेह और छिपा एजेंडा दिनोंदिन दिलचस्प होता जा रहा है. मंदोदरी (रेशम टिपनिस) अपने भतीजे विनोद (ध्रुव सिंह) को अनीशा के करीब ले जाने के लिए हर संभव कोशिश करती है. लेकिन सनी/बलमा पांडे हमेशा अपनी पत्नी को बचाने के लिए उसके हर प्लान में अड़चन डालता है.

इस बार मंदोदरी विनोद और अनीशा के लिए कामदेव बनने का प्रयास करती है, वह विनोद को अनीशा को लुभाने के लिए कई सुझाव और जेस्चर के बारे में बताती है. लेकिन दुर्भाग्यवश विनोद को उसकी पसंद-नापसंद के बारे में कुछ नहीं पता और वह आर्टिफिशियल परफ्यूम वाले फूल लेकर आता है, जिससे अनीशा को फिर से माइग्रेन का दर्द शुरू हो जाता है.

जब माइग्रेन के कारण अनीशा अपने घर जाती है, तब मंदोदरी और विनोद अनीशा को देखने वहां आ जाते हैं. अपने घर में उनके साथ बैठने के समय, मंदोदरी बेहोशी का नाटक करती है और परिवार के सदस्यों को नाखुश करने के बजाय चुपचाप बैठने और आराम करने का फैसला करती है. पूरा परिवार मंदोदरी के तिकड़मों और विनोद की हरकतों से परेशान है. पूरा परिवार इन दोनों बिन बुलाये मेहमानों से छुटकारा पाने की योजना बनाता है. क्या मंदोदरी को मूर्ख बनाना आसान होगा? क्या उन्हें पता चल जायेगा कि अनीशा शादीशुदा है? अनीशा और सनी इस नई मुसीबत से कैसे निपटेंगे?

रेशम टिपनिस, जिन्होंने सब टीवी के साहिब बीवी और बॉस में मंदोदरी की भूमिका निभाई है, ने कहा, ‘‘मंदोदरी विनोद और अनीशा को करीब लाने के लिए हर तरह की तरकीब अपनाने की कोशिश करती है. इस बार उसने बेहोश होने और घर में रुकने का नाटक किया. शो की शूटिंग करने में हमेशा मजा आता है क्योंकि सभी कलाकार और क्रू एक बड़े खुशहाल परिवार की तरह हैं. मुझे उम्मीद है कि दर्शक शो को पसंद करेंगें.‘‘ 

रिकॉर्ड इनिंग के बाद प्रणव को सचिन ने दिया ये खास गिफ्ट

सचिन तेंडुलकर ने रिकॉर्ड तोड़ नाबाद 1009 रन की इनिंग खेलने वाले क्रिकेटर प्रणव धनावड़े को एक खास बैट गिफ्ट किया है. इस बैट पर सचिन के ऑटोग्राफ हैं. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने ट्विटर पर इसकी पुष्टि करते हुए बताया कि सचिन ने इतिहास रचने वाले 15 साल के प्रणव को तोहफे में अपना साइन किया हुआ बैट दिया.

बीसीसीआई ने कहा, “मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर ने रिकॉर्ड तोड़ इनिंग खेलने वाले प्रणव धनावड़े को अपने ऑटोग्राफ किया हुआ बैट गिफ्ट में दिया.” सचिन ने इससे पहले प्रणव को वर्ल्ड रिकॉर्ड इनिंग खेलने पर बधाई भी दी थी. महाराष्ट्र के मंत्री एकनाथ शिंदे ने भी प्रणव को बुके देकर सम्मानित किया था. शिंदे ने कहा कि प्रणव ने अपने जिले, राज्य और देश का नाम रोशन किया है और देश या विदेश में कोचिंग को लेकर उसकी हर संभव मदद की जाएगी.

लिवरपूल में चौथी बाउट के लिए तैयार हैं विजेन्दर सिंह

भारत के मुक्केबाज विजेन्दर सिंह शानिवार को इको अरेना में होने वाले अपने चौथे पेशेवर मुकाबले के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. विजेन्दर अभी तक एक भी मैच नहीं हारे हैं. उन्होंने अपने पिछले तीनों मुकाबलों में जीत हासिल की है. इन तीनों जीतों के लिए विजेन्दर ने तीन ही राउंड खेले थे.

अपने चौथे मुकाबले में भी उनकी कोशिश इसी प्रदर्शन को जारी रखने की होगी. विजेन्दर मुक्केबाजी के लिए अपने प्ररेणास्त्रोत बीटल्स जोंस, पॉल, रिंगो और जॉर्ज को मानते हैं. उनका अगला मैच लिवरपूल की ऐतिहासिक जगह मैथ्यू स्ट्रीट के केवरन क्लब में होगा.

विजेन्दर ने कहा, ‘‘मैंने जब इंग्लैंड में पेशेवर मुक्केबाजी की शुरुआत की थी तो मैंने सोचा था एक दिन मैं लिवरपूल में मेरे हीरो रहे खिलाड़ियों की जन्मभूमि पर खेलूंगा. अब यह सपना सच होने जा रहा है.’’

विजेन्दर का मकसद 2016 के अभियान की शानदार शुरुआत करना है. उनका साल का पहला मुकाबला 2008 के ओलम्पिक कांस्य पदक विजेता से होना है. उन्होंने कहा, ‘‘मैंने साल के आखिर में शानदार खेल दिखाया. मेरी कोशिश उसी प्रदर्शन को जारी रखने की होगी. यह मेरे लिए काफी अहम साल है. मैं ज्यादा से ज्यादा मैच खेल अनुभव हासिल करना चाहता हूं.’’

इस साल फेसबुक में आ सकते हैं ये 6 हाईटेक फीचर्स

साल 2016 में गूगल के बाद यदि किसी टेक कंपनी पर लोगों की सबसे ज्यादा नजर होगी, तो वह फेसबुक है. फेसबुक की खासियत है कि वह हर साल कोई न कोई नया फीचर जरूर एड करती है.

इस साल होंगे ये नए फीचर…

1. वर्चुअल रिएलिटी कंटेंट
फेसबुक ने साल 2015 में वर्चुअल रिएलिटी कंपनी ऑक्युलस रिफ्ट को टेकओवर किया था. ऐसे में माना जा रहा है कि फेसबुक में इस साल वर्चुअल रिएलिटी कंटेंट आ सकता है. इसके अलावा ऑक्युलस रिफ्ट गैमिंग के क्षेत्र में एक बड़ा नाम हो सकती है.

2. फेसबुक इंस्टेंट आर्टिकल्स में सुधार
फेसबुक ने साल 2015 में इंस्टेंट आर्टिकल फीचर लॉन्च किया था. हालांकि ये केवल 9 पब्लिशर्स के लिए ही था. इस फीचर के जरिए आर्टिकल्स दस गुना ज्यादा तेजी से लोड होते हैं. इस फीचर का मकसद था कि यूजर को ज्यादा तेजी से कंटेंट और पब्लिशर को ज्यादा रीडर मिले. साथ ही फेसबुक के यूजर्स की संख्या भी बढ़े. हालांकि इसे पब्लिशर्स का अच्छा रिस्पांस नहीं मिला था. ऐसे में फेसबुक इस साल अपने इंस्टेंट आर्टिकल फीचर में सुधार करेगा.

3. डिजिटल असिस्टेंट सर्विस
एप्पल के सीरी और गूगल के गूगल नाउ के बाद फेसबुक अपनी वॉइस असिस्टेंट सर्विस फेसबुक M पर काम कर रहा है. ये सर्विस फेसबुक मैसेंजर के अंदर होगी. फेसबुक M के जरिए यूजर्स को ह्यूमन असिस्टेंट सर्विस दी जाती है. जैसे अगर आपको किसी शब्द को बोलने में तकलीफ हो रही है तो ये बताएगा कि इसे किस तरह से बोलें.

4. वॉट्सऐप वीडियो कॉलिंग
फेसबुक ने साल 2014 में वॉट्सऐप का टेकओवर कर लिया था. इसके बाद अप्रैल 2015 में वॉट्सऐप ने कॉलिंग की सुविधा लोगों को देनी शुरू की थी. पिछले दिनों वेबसाइट ने वॉट्सऐप के iOS ऐप का स्क्रीनशॉट शेयर किया है जिसमें वॉट्सऐप पर होने वाले ऑनगोइंग वीडियो कॉल को दिखाया गया है. वेबसाइट के मुताबिक iOS यूजर के लिए बने वॉट्सऐप के 2.12.16.2 वर्जन को टेस्ट किया जा रहा है. इस वर्जन में वीडियो कॉल सपोर्ट मौजूद है. उम्मीद की जा रही है कि यह फीचर मार्च 2016 तक लॉन्च कर दिया जाएगा.

5. 2G में बेहतर स्पीड
इस साल फेसबुक 2G नेटवर्क कनेक्शन में और बेहतर स्पीड दे सकता है. पिछले साल अगस्त में 2G को ध्यान में रखते हुए फेसबुक लाइट लॉन्च किया गया था. इसके अलावा कंपनी ने अपने सभी कर्मचारियों के लिए एक नया रूल निकाला था जिसमें हर मंगलवार फेसबुक के ऑफिस में एक घंटे 2G स्पीड पर काम करना होगा.

6. ब्रेकअप फीचर
फेसबुक ने पिछले साल के आखिर में अपने ब्रेकअप फीचर का ट्रायल शुरू किया था. इस फीचर के जरिए जैसे ही यूजर अपना रिलेशनशिप स्टेटस बदलेगा, वैसे ही उसमें पुराने पार्टनर की प्रोफाइल का See Less का ऑप्शन आएगा. इसके बाद आपकी न्यूज फीड में पुराने पार्टनर की प्रोफाइल पिक्चर या कोई दूसरी अपडेट नहीं मिलेगी.

मेरी लड़ाई स्टार के स्टाफ की फीस को लेकर है: आकाश

बौलीवुड में छोटे व करेक्टर आर्टिस्टों के मुकाबले कहीं ज्यादा पैसा स्टार कलाकारों के स्टाफ को दिए जाने का मुद्दा गरमाता जा रहा है. फिल्मों के लिए कलाकारों का चयन करने वाले मशहूर कास्टिंग डायरेक्टर मुकेश छाबरा के साथ बतौर एसोसिएट डायरेक्टर के रूप में कार्यरत आकाश दहिया तीस से अधिक फिल्मों के लिए कास्टिंग कर चुके हैं.

इतना ही नहीं वह अब तक ‘कमीने’,‘चिल्लर पार्टी’,‘साहब बीबी गैंगस्टर’, ‘फोर्स’, ‘रॉक स्टार’, ‘डी डे’, ‘हाइवे’, ‘बॉबी जासूस’, ‘पीके’, ‘मेरठिया गैंगस्टर’ और ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’ जैसी फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं. पर छोटे व करेक्टर आर्टिस्टों की पारिश्रमिक राशि के मुद्दे पर वह खुलकर बात करते हैं.

पारिश्रमिक राशि के मुद्दे पर आकाश दहिया कहते हैं-‘‘बौलीवुड में सही मायनों में कलाकार को पैसा एक खास मुकाम पर ही मिलता है. और जब कलाकार को अच्छा पैसा मिलता है, तो उसके पूरे स्टाफ को अच्छा पैसा मिलता है. आप शायद यकीन न करें, पर स्टार कलाकार के स्टाफ को हम करेक्टर आर्टिस्टों से कहीं ज्यादा पैसा मिलता है. मैंने देखा है कि तीस तीस हजार रूपए स्टार कलाकार के स्टाफ को मिल रहे हैं. स्टार के ट्रेनर को अच्छे पैसों के साथ साथ रहने के लिए फाइव स्टार होटल मिलता है.

एक कलाकार,जिसके पीछे निर्देशक लड़ाई कर रहा होता है कि फिल्म में छोटा किरदार है, पर मुझे इसके लिए अच्छा कलाकार चाहिए, उस कलाकार को अच्छे पैसे नहीं मिलते हैं. मैं एसोसिएट कास्टिंग डायेरक्टर के रूप में काम करता हूं. यानी कि कास्टिंग से जुड़ा हुआ हूं. तो मैंने देखा है कि कास्टिंग के वक्त निर्देशक हमसे कहता है कि उसे फलां किरदार के लिए अच्छा कलाकार चाहिए.

जब हम उन्हे अच्छा कलाकार तलाश करके देते हैं,तब बात प्रोडक्शन में पहुंचती है और वहां से कहा जता है कि, ‘हमारे पा सिर्फ इतना पैसा ही है.’ तब कलाकार असमंजस में पड़ जाता है. उसे काम भी करना है, कास्टिंग एजेंसी के साथ भी संबंध बनाकर रखना है, पर पैसे अच्छे नहीं मिल रहे हैं. इतना ही नही कलाकार को जितने पैसे मिलते हैं, उसी अनुपात में सेट पर यानी कि शूटिंग के दौरान उसे ट्रीटमेंट भी मिलता है. मैंने खुद देखा है कि सेट पर एक ही वैनिटी में पांच करेक्टर आट्रिस्टों को रहना पड़ता है. होटल में तीन लोगों के साथ रूम शेअर करना पड़ता है.

यह सब चलता रहता है. जैसे जैसे हम ग्रो होते हैं, वैसे वैसे अच्छे पैसे मिलने शुरू होते हैं. यह सब चलता रहता है. पर उम्मीद है कि चीजें बदलेंगी. नवाजुद्दीन सिद्दिकी जैसे कलाकार आ रहे हैं. काम कर रहे हैं और अच्छा पैसा भी ले रहे हैं. तो उम्मीद है कि धीरे धीरे चीजें बदलेंगी.’’

तो क्या निर्देशक की तरफ से भी कलाकार की पारिश्रमिक राशि पर कैंची चलायी जाती है?इस सवाल पर आकाश दहिया कहते हैं-‘‘जी नही! निर्देशक हमेशा चाहता है कि वह अपनी फिल्म में अच्छे कलाकार के साथ काम करे. पर उस फिल्म के लिए निर्देशक को खुद फीस मिल रही होती है, इसलिए वह कलाकारों की पारिश्रमिक राशि के मुद्दे पर ज्यादा जुड़ा नहीं रहता. निर्माता अपनी जगह सही है. क्योंकि उसे स्टार के स्टाफ को भी पैसा देना होता है. अतः वह कहीं तो कटौती करेगा.

मेरी लड़ाई जो है,वह स्टार के स्टाफ को दिए जाने वाले पैसे को लेकर है. यदि स्टार अपनी पारिश्रमिक राशि में से अपने स्टाफ को पैसा देना शुरू करें, तो निर्माता की तरफ से स्टार के स्टाफ को दिया जाने वाला पैसा छोटे या करेक्टर आर्टिस्ट के हिस्से आ सकता है. इससे होगा यह कि जो अच्छे कलाकार कम पारिश्रमिक राशि की वजह से किसी फिल्म से हट जाते हैं,वह नहीं हटेंगे और फिल्म ज्यादा बेहतर बन सकेगी.’’

कलाकारों की पारिश्रमिक राशि में कारपोरेट कंपनियों की दखलंदाजी के सवाल पर आकाश दहिया कहते हैं-‘‘सिर्फ निर्माता और लाइन प्रोड्यूसर की दखलंदाजी होती है. आखिर लाइन प्रोड्यूसर को भी अपना हिस्सा बचाना होता है. इससे हमेशा कलाकार और वह भी छोटे आर्टिस्टों की ही पारिश्रमिक राशि पर कैंची चलती है. तकनीशियन की पारिश्रमिक राशि पर कभी कैंची नहीं चलती.’’

सिनेमा में आ रहे बदलाव के साथ ही धीरे धीरे बौलीवुड ‘‘फैमिली बिजनेस’’ के टैग से बाहर निकल रहा है. इसी के साथ पिछले दो तीन सालों से एक ही फिल्म के हीरो और हीरोइन की पारिश्रमिक राशि के अंतर को खत्म करने का मसला गर्माया हुआ है. कुछ अभिनेत्रियों ने तो खुलेआम हीरो के समकक्ष पारिश्रमिक राशि हीरोइनो को दिए जाने की मांग बुलंद कर रखी है. अब बौलीवुड की हीरोइने चाहती हैं कि पूरे समाज व देश की ही तरह बौलीवुड में भी नर नारी समानता की बात होनी चाहिए.

तो वहीं दीपिका पादुकोण इस मुद्दे को थोड़ा सा अलग अंदाज में बयां करते हुए कहती हैं-‘‘मुझे लगता है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान हीरोईनों को भी काफी अच्छे पैसे मिलने लगे हैं. सच यह है कि हीरो व हीरोईन की पारिश्रमिक राशि के बीच लंबा अंतर है. आगे यह अंतर कम हो सकता है, यह अच्छी बात है. मेरी राय में हीरो व हीरोईन की पारिश्रमिक राशि के बीच अंतर होना चाहिए. जिस तरह से खान या अक्षय कुमार, जो फिल्म इंडस्ट्री में पिछले बीस या पच्चीस वर्षों से कार्यरत है, उनके साथ तो हम अपनी तुलना कर ही नहीं सकते. पर नई पीढ़ी के कलकारों के बीच तो समानता होनी चाहिए.’’

निजी जिंदगी की बॉक्सर बनी ‘साला खड़ूस’ की हीरोईन

बौलीवुड में कौन, कब और कैसे फिल्म कलाकार बन जाए, कहा नहीं जा सकता. जब स्पोर्टस खासकर बाक्सिंग पर आधारित फिल्म ‘‘साला खड़ूस’’ की पटकथा के साथ अभिनेता आर माधवन मशहूर फिल्मकार राज कुमार हिरानी से मिले और उन्होने बताया कि वह इस पटकथा पर आधारित फिल्म को नवोदित निर्देशक सुधा कोंगरा के निर्देशन में करने जा रहे हैं, और वह चाहते हैं कि राज कुमार हिरानी इसका निर्माण करे. पटकथा पढ़ने के बाद जब राज कुमार हिरानी फिल्म ‘‘साला खड़ूस’’ का निर्माण करने के लिए तैयार हुए, तो उन्होने सपने में भी नहीं सोचा था कि उन्हे इस फिल्म की हीरोईन के रूप में किसी बॉक्सर को ही चुनना पड़ेगा.

फिल्म के कंटेंट की मांग का ख्याल रखते हुए राज कुमार हिरानी और सुधा कोंगरा ने करीबन 700 नवोदित कलाकारों के आडीशन लिए, पर संतुष्ट नहीं हुए. अंततः उनकी तलाश निजी जिंदगी की बाक्सर रितिका सिंह पर जाकर रूकी. जी हां! रितिका सिंह राष्ट्रीय स्तर की बाक्सर हैं. उन्होने बाक्सिंग के साथ साथ मार्शल आर्ट में भी ट्रेनिंग ले रखी है. वह राज कुंद्रा और संजय दत्त की ‘सुपर फाइट लीग’ का हिस्सा रही हैं.

रितिका सिंह ने किक बाक्सिंग, कराटे और एमएमए में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं. लेकिन फिल्म ‘‘साला खड़ूस’’में अभिनय करने के लिए रितिका सिंह को काफी मेहनत करनी पड़ी. खुद रितिका सिंह बताती हैं- ‘‘फिल्म की हीरोइन और निजी जिंदगी के बाक्सर की शारीरिक बनावट के साथ साथ दोनों की बॉडी लैंगवेज में काफी अंतर होता है. इसलिए मुझे वर्कशाप करना पड़ा और काफी मेहनत करनी पड़ी. इस फिल्म में मैने एक ऐसी मच्छीमार लड़की का किरदार निभाया है, जिसे बाक्सर कोच बने आर माधवन ट्रेनिंग देकर राष्ट्रीय स्तर का बाक्सर बनाते हैं. 

फिल्म रिव्यू: चौरंगा

जाति उत्पीड़न, भ्रष्ट आचरण और लालच के इर्द गिर्द घूमते कथानक वाली फिल्म ‘‘चौरंगा’’ में नवोदित निर्देशक बिकास रंजन मिश्रा ने सब कुछ बहुत ही ज्यादा सतही स्तर पर पेश किया है. गांव के अंदर रोजमर्रा की जिंदगी में जातिगत भेदभाव, नारी शोषण, गरीबों के अपमान का भी चित्रण है. मगर जाति उत्पीड़न के मुद्दे को अपने कंधे पर ढोने के लिए संतू बहुत ही ज्यादा छोटा है.

जाति उत्पीड़न को दर्शाने की बजाय इस फिल्म में उंची जाति के जमींदार पुरूष को नीची जाति की औरत के साथ सेक्स/मैथुन करते हुए ही ज्यादा दिखाया गया है. फिल्म में जमींदार व भूमिहीन मजदूरों के बीच का अंतर, अमीरी व गरीबी के बीच विभाजित समाज का चित्रण करने का प्रयास किया गया है, पर सब कुछ बहुत ही सतही स्तर पर है. फिल्म में मंदिर के अंधे पुजारी (ध्रतमान चटर्जी)के माध्यम से धार्मिकता की आड़ में पनप रही बुराई का नग्न चित्रण भी है.

‘‘चौरंगा’’कहानी एक युवा 14 वर्षीय  दलित किषोर संतू (सोहम मैत्रा) के गुस्से की है. संतू का गुस्सा इस बात को लेकर है कि उसकी मां धनिया (तनिष्ठा चटर्जी) उसे उसके बड़े भाई बजरंगी (रिधि सेन) की तरह स्कूल पढ़ने के लिए नहीं भेजती है. धनिया का गांव के जमींदार धवल (संजय सूरी) के साथ गुप्त रूप से सेक्स संबंध चल रहे हैं. संतू दिन भर पेड़ पर चढ़कर धवल की बेटी मोना (इना झा) को स्कूटर पर स्कूल जाते हुए देखता रहता है और उससे प्रेम कर बैठता है. बजंरगी स्कूल की छुट्टियों में गांव आता है, तो गांव की उंची जाति के दो युवक उसे बेमतलब पीटते हैं. इनमें से एक युवक रघु (अंषुमन झा) है. एक युवक को संतू थप्पड़ मार देता है. एक तरफ धनिया व धवल की रात के अंधेरे में गौशाला के अंदर मैथुन लीला चल रही है, तो दूसरी तरफ दिन में पेड़ पर चढ़े संतू की नजरें मोना का पीछा करती रहती है.

शहर में पढ़ाई कर रहा बजरंगी गांव आने के बाद अपने भाई संतू को अच्छी सीख देने की बजाय वह उसे लड़कियों की अर्धनग्न तस्वीरें दिखाता है और प्रेम का पाठ ही पढ़ाता है, जिससे उत्साहित होकर बजरंगी से मोना के नाम प्रेमपत्र लिखवाकर संतू, मोना को देता है. इधर रात में पूरे गांव वासियों के लिए सिनेमा का प्रबंध किया गया है. उधर रात के अंधेरे में धवल, धनिया के साथ मैथुन में इस कदर मस्त है कि उसी दौरान एक सांप धनिया को काट लेता है और धनिया की मौत हो जाती है.

धनिया की लाश को ठिकाने लगाने के बाद धवल ठंड में स्नान करता है और बीमार हो जाता है. बीमारी की हालत में ही धवल को संतू द्वारा मोना को दिया गया प्रेम पत्र मिल जाता है और वह बौखला जाता है. धवल, बजरंगी को पीटता है. बजरंगी भागता है. जिसका पीछा दोनो युवक करते हैं. इनके पीछे संतू भागता है. फिर एक युवक संतू को मारने के लिए दौड़ाता है. संतू भागकर चलती ट्रेन में चढ़ जाता है. इधर दूसरा युवक बजरंगी का खून कर देता है.

कथानक के स्तर पर भी निर्देशक बिकास रंजन मिश्रा भ्रमित नजर आते हैं. या यॅूं कहें कि उनकी कहानी में विरोधाभास है. जमींदार अपनी पत्नी की उपेक्षा कर दलित नारी धनिया के संग गुप्त सेक्स संबंध बनाता रहता है और इसी वजह से वह धनिया के बड़े बेटे बजरंगी की शिक्षा का खर्च वहन करता है, तो फिर सवाल उठता है कि वह धनिया के दूसरे बेटे संतू की शिक्षा का खर्च क्यों नहीं वहन करता. जबकि जमींदार के पास धन की कमी नहीं है.

इतना ही नहीं फिल्म के शुरू होने पर जब गांव की उंची जाति के दो युवक संतू के भाई बजरंगी (रिधि सेन) को पीटते हैं, तो संतू एक युवक को थप्पड़ मार देता है, और वह दोनो युवक वहां से चले जाते हैं. मगर फिल्म के क्लायमेक्स में जब वही दोनों युवक बजंरगी को पीटते हैं, तो संतू विरोध नहीं करता है, बल्कि उन दोनों में से एक युवक उसके पीछे पड़ जाता है और संतू उनसे भागकर चलती मालगाड़ी में चढ़ जाता है, इधर दूसरा युवक बजरंगी को खत्म कर देता है. जमींदार की बेटी मोना और संतू के बीच का प्रेम  भी परदे पर ठीक से नहीं उभर पाया है.

फिल्म में तनिष्ठा चटर्जी, संजय सूरी सहित किसी के भी पात्र सही ठंग से उभरकर नहीं आते हैं. फिल्म कई मुद्दे उठाती है, मगर गांव की सभ्यता, संस्कृति व गांव वासियों के बीच जो आपसी रिश्ते होते हैं, उनकी अनदेखी की गयी है. सामाजिक ताने बाने और उसकी गतिशीलता को चित्रित करने में निर्देशक बुरी तरह से असफल रहे. फिल्म ‘‘चैंरगा’’ में कमर्शियल वैल्यू का अभाव है. यह फिल्म मल्टी प्लैक्स कल्चर की भी नहीं है.

सामाजिक वहशीपन

ज्योति सिंह के 16 दिसंबर, 2012 को हुए बलात्कार मामले के बाद मुख्य अपराधी, जो उस समय नाबालिग था, के छूटने पर होहल्ला मचाने का औचित्य नहीं है. हम भावना में बह कर सामूहिक रूप से उसी तरह का वहशीपन दिखाने में लग गए हैं जैसे उस ने चलती बस में युवती का बलात्कार करते हुए दिखाया था, उस ने गुप्तांगों में लोहे का सरिया तक डाल दिया था.

वह नाबालिग अब छूट रहा है तो देश का एक वर्ग कानून के गलत होने का मुद्दा खड़ा करने लगा है कि नाबालिग है तो क्या, है तो अपराधी ही. उसे सजा मिलनी ही चाहिए. जूवेनाइल जस्टिस ऐक्ट कानून गलत नहीं है, सही है. उसे केवल एक अपराधी के लिए बदल कर संसद ने ठीक नहीं किया है. समाज की आत्मा लगता है कुंद हो गई है कि वह बदले की भावना में एक किशोर को सदासदा के लिए सींखचों में बंद देखना चाहता है. वह समझता है कि उस के खुद के मातापिता, बड़े लोग, स्कूलकालेज, नौकरी देने वाले यहां तक कि कोई भी उसे अनुशासन में न रख पाएगा.

यह सोच अपनेआप में एक समाज की आंतरिक कमजोरी की पोल खोलती है. हम मान कर चल रहे हैं कि एक बार का अपराधी हमेशा का अपराधी. तभी बारबार यह मांग की जाती है कि ऐसे अपराधियों को तो फांसी पर चढ़ा देना चाहिए. यह समाज की विकृत विचारधारा है.

ज्योति सिंह, जिसे निर्भया कह कर पुकारा गया क्योंकि बलात्कार के पीडि़त का नाम लेने पर बंदिश है, की मां अब चाहती है कि उस की कुरबानी को गुमनामी में न रखा जाए. सच है कि उस के साथ जो हुआ वह गलत था पर इस का कोई उत्तर जेल के सींखचों के पीछे नहीं है. एक को जेल में बंद कर के 120 करोड़ लोगों को सुरक्षा नहीं दी जा सकती. बलात्कार के अपराधी हर रोज पैदा होते हैं. उसी तरह का वहशीपन सैकड़ों बार दोहराया जाता है. ज्यादातर मामलों में तो अपराधी पकड़ा भी नहीं जाता. जब कोई पकड़ा भी जाता है तो वह छूट भी जाता है.

ऐसी दशा में किसी एक पर पूरा गुस्सा उतारना समाज की कमजोरी जताता है. यह वैसे ही है जैसे पाकिस्तान के साथ होने वाली खटपट का बदला पड़ोस के दादरी के मुसलिम परिवार को मारपीट कर लेना.

सरकार ने जूवेनाइल जस्टिस ऐक्ट में जो परिवर्तन किया है वह गलत है. बलात्कार जिस का अंत हत्या में हो, कोई अन्य जघन्य अपराध हो, किशोर को तो किशोर माना ही जाना चाहिए. नाबालिगों को जिंदगी भर के लिए बंद कर देना गलत है. नाबालिग अपराध करते हैं, इस के लिए दोषी तो समाज, मातापिता, सरकार, सामान्य कानून व्यवस्था है. अपनी कमजोरी को एक असहाय, अकेले पड़ गए किशोर के मत्थे मढ़ना गलत है. यह धार्मिक पौराणिक दंड व्यवस्था की याद दिलाती है जिस में आरोप लगा कर मार डालना हाकिम का अधिकार माना जाता रहा है.

आगरा: ताजमहल से लेकर लाल किला, सब कुछ है शानदार

दिल्ली से लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आगरा एक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल है. यह शहर जहां उर्दू के मशहूर शायर ‘मिर्जा गालिब’ की जन्मस्थली रहा है वहीं मशहूर संगीतज्ञ उस्ताद फैयाज खान भी आगरा घराने के थे. मुगलकाल में आगरा मुगल साम्राज्य की राजधानी बन कर प्रसिद्ध हुआ. 1526 में यह मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के हाथों में आया था. 1571 में अकबर ने आगरा में एक किले का निर्माण करवाया. जहांगीर और शाहजहां के शासनकाल में आगरा नगर चारदीवारी से घिरा था जिस में 16 प्रवेशद्वार थे. 1803 में आगरा ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे में आ गया. उत्तर भारत में ब्रिटिश शासन का विस्तार होने पर आगरा को उत्तरपश्चिम सूबों की राजधानी बना दिया गया. यों तो इस का क्रमबद्ध इतिहास लोदी काल से ही शुरू होता है पर इस के वर्तमान रूप को सजानेसंवारने का श्रेय मुगलों को जाता है.

दर्शनीय स्थल

ताजमहल : आगरा के दर्शनीय स्थलों में यह सब से अधिक लोकप्रिय है. यमुना तट पर सफेद संगमरमर से बनी यह इमारत शाहजहां और उस की बेगम मुमताज के प्यार की यादगार है, जो 1653 में बन कर तैयार हुई थी. इस के निर्माण में लगभग 22 वर्ष का समय लगा था. ताजमहल के प्रवेशद्वार पर कुरान की आयतें उत्कीर्ण हैं और ऊपर की ओर कई छोटेछोटे गुंबद बने हैं. ताजमहल की रूपरेखा ईरान के वास्तुविद उस्ताद ईसा ने बनाई थी. इस महल की अद्वितीय नक्काशी देखने लायक है. महल में बनी छतरियों पर कीमती पत्थर और रत्न जड़े थे ताजमहल के चारों तरफ लाल पत्थरों की ऊंची चारदीवारी है जिस में पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशा में खुलने वाले 3 दरवाजे हैं. इस का मुख्यद्वार दक्षिणी दरवाजा ही है.

ताजमहल की मुख्य इमारत एक विशाल चबूतरे पर बनी है जिस के चारों कोनों पर 4 विशाल मीनारें हैं. इन मीनारों के बीच में ही शाहजहां और मुमताज का मकबरा स्थित है जहां उन्हें दफनाया गया था. इन के मकबरों पर कलात्मक ढंग से पच्चीकारी की गई है. ये दोनों मकबरे चारों तरफ से महीन जालियों से घिरे हैं. यहां के मुख्यद्वार और केंद्रीय इमारत के बीच ईरानी डिजाइन का एक भव्य फौआरेदार बगीचा है जहां पर्यटकों को एक अलग ही सुकून मिलता है. ताजमहल बनाने के लिए श्रमिक तक जहां रहते थे, वह स्थान एक छोटे से कसबे ‘ताजगंज’ के नाम से जाना जाता है.

लाल किला : अकबर ने यमुना नदी के किनारे पर इस किले का निर्माण शुरू करवाया जो लगभग 8 साल में बन कर तैयार हुआ. यह आगरा की दूसरी महत्त्वपूर्ण इमारत है. इस के ज्यादातर भवनों का निर्माण अकबर के बाद शाहजहां और औरंगजेब के शासनकाल में हुआ था. इस किले के निर्माण में अधिकतर लाल पत्थर का निर्माण हुआ. किले के बाहरी दरवाजे पर एक घुड़सवार की प्रतिमा है जो राजपूत सरदार अमर सिंह राठौर की उस बहादुरी की याद दिलाती है जब वह किले की ऊंची दीवार से अपने घोड़े सहित कूदा था. किले के अंदर कई भव्य इमारतें हैं जिन में शीशमहल, जहांगीर महल, दीवाने आम, दीवाने खास, रंगमहल नूरजहां महल आदि खासतौर से देखने लायक हैं. पर्यटकों के लिए यह किला सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है. यह किला ताजमहल से 3 किलोमीटर की दूरी पर है. किले में बने सम्मान बुर्ज से ताजमहल का नजारा देखा जा सकता है. शाहजहां ने इसी किले में अपने जीवन के आखिरी दिन बिताए.

सिकंदरा : इस भव्य इमारत का निर्माण सम्राट अकबर ने शुरू करवाया था जिसे 1613 में उस के बेटे जहांगीर ने पूर्णता प्रदान की. सिकंदरा में अकबर की कब्र है, जिस के लिए सीढि़यों से हो कर नीचे जाना पड़ता है. यह इमारत लाल पत्थर तथा संगमरमर की बनी है. यह हिंदूमुसलिम स्थापत्य कला का अद्भुत संगम है. यह शहर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जहां रिकशा, आटो, टैक्सी आदि वाहनों से पहुंचा जा सकता है.

चीनी का रोजा : यह फारसी वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है. इस आयताकार मकबरे का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपने दीवान तत्कालीन विद्वान और कवि शकुल्लाह की याद में करवाया था. पर्यटक इसे देखने जरूर आते हैं.

एतमादुद्दौला  का मकबरा : सफेद संगमरमर से बनी यह भव्य इमारत फारसी स्थापत्य कला का शानदार नमूना है जिसे बेगम नूरजहां ने अपने पिता गयासुद्दीन बेग की याद में बनवाया था. यहीं पर नूरजहां की मां भी दफनाई गई थी. ताजमहल से पहले बनी यह इमारत ताजमहल बनाने की प्रेरणा भी रही थी. इमारत के चारों ओर उद्यान हैं और इस की जालीदार खिड़कियां इसे अलग ही खूबसूरती प्रदान करती हैं.

जामा मसजिद : इस का निर्माण शाहजहां की अविवाहित बेटी जहांआरा ने करवाया था. यह आगरा के किनारी बाजार जाने वाले रास्ते पर स्थित है.

सेंट पीटर्स चर्च : यह ऊंची मीनारों वाला चर्च है. इस की मीनारों को आगरा के किसी भी भाग से देखा जा सकता है. इस भव्य चर्च के बगल में ही अकबर द्वारा बनवाया गया ऐतिहासिक अकबरी चर्च भी है जिस को देखने का पर्यटकों में काफी उत्साह रहता है.

वायु मार्ग :

आगरा के लिए देश के मुख्य शहरों से सरकारी एवं प्राइवेट सभी प्रकार की सीधी विमान सेवा उपलब्ध है.

रेल मार्ग :

आगरा दिल्ली-चेन्नई रेल मार्ग पर स्थित होने के कारण देश के सभी प्रमुख नगरों से रेल द्वारा जुड़ा है.

कहां ठहरें :

क्लार्क शिराज होटल (पांचसितारा) 54 ताज रोड, आगरा, फोन : 282001; आईटीसी मुगल आगरा (पांचसितारा) ताजगंज आगरा, जयपी पैलेस होटल आगरा (पांचसितारा) फतेहाबाद रोड, आगरा, ओबेराय अमरविलास होटल आगरा (पांचसितारा) ताज ईस्ट गेट रोड, आगरा; ताज व्यू होटल आगरा (पांचसितारा) ताजगंज फतेहाबाद रोड, आगरा; दी ओबेराय अमरविलास आगरा (पांचसितारा) ताज ईस्ट गेट रोड, ताज नगरी स्कीम आगरा; हालिडे इन आगरा (चारसितारा) एमजी रोड, संजय प्लेस आगरा; हावर्ड पार्क प्लाजा इंटरनेशनल होटल आगरा (चारसितारा) फतेहाबाद रोड, आगरा;

अतिथि होटल (तीनसितारा) टूरिस्ट काम्प्लेक्स एरिया, फतेहाबाद रोड, आगरा; गंगा रतन होटल (तीनसितारा) फतेहाबाद रोड, नेशनल कैपिटल टेरेटरी आफ दिल्ली; होटल अमर (तीनसितारा) फतेहाबाद रोड, टूरिस्ट काम्प्लेक्स एरिया, आगरा, होटल ताज प्लाजा (तीनसितारा) ताजमहल ईस्ट गेट शिल्पग्राम वीआईपी रोड, आगरा; पुष्पविला होटल (तीनसितारा) वीआईपी रोड से ताजमहल फतेहाबाद रोड, आगरा; अमर यात्री निवास होटल, (साधारण) 181/1 फतेहाबाद रोड, आगरा.

बिहार में दबंगई पर नकेल कसना सबसे बड़ी चुनौती

बिहार को अपराध और भ्रष्टाचार से निजात दिलाने का दावा कर रही महागठबंधन की सरकार पर पहला कलंक राजद के ही विधायक सरोज यादव ने लगा डाला. पिछले 20 नबंबर को नीतीश कुमार ने अपने कैबिनेट के साथ शपथ लिया और 23 नबंबर को राजद विधायक ने आरा के चारपोखरी थाना के थानेदार कुवंर गुप्ता को जान से मारने की धमकी दे डाली. थानेदार को कसूर यही था कि उसने पहली बार विधायक बने सरोज यादव की पैरवी सुनने से मना कर दिया था.

यादव ने 23 नबंबर को एक हत्याकंड के मामले में थानेदार को फोन किया और थानेदार ने इस मामले में पुलिस के सीनियर अफसरों से बात करने की सलाह दी. इससे विधयक का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया और थानेदार को पटक कर मारने और जान लेने की धमकी दे डाली. विधायक ने बाद में सपफाई देते हुए कहा कि थानेदार ने उन्हें औकात में रहने की धमकी दी थी, जिसके बाद थानेदार को पटक कर मारने की बात कहीं.

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