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प्रदूषण का अजगर कहीं निगल न ले

त्यौहारों पर सांस्कृतिक चेतना और परंपरा की प्रगाढ़ता से उत्पन्न होने वाले उत्साह के बजाय क्या उन्माद ज्यादा बढ़ता जा रहा है? यह सवाल इसलिए कि प्रकाश के पर्व दीपावली के बहाने देशभर के शहरों और महानगरों में पटाखों का जो बेकाबू धूम-धड़ाका पिछले दिनों हुआ है, उसने आबोहवा को इस हद तक जहरीला बना दिया कि वह जानलेवा साबित हो रहा है. वातावरण में पटाखों के प्रदूषण का असर अभी तक कायम है. यही वजह है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल-एनजीटी यानी राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण से बिगड़े हालात पर केंद्र और राज्य की केजरीवाल सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि दोनों ही सरकारें प्रदूषण के खिलाफ कदम नहीं उठा रही हैं.

दिल्ली सरकार के यह सफाई देने पर कि प्रदूषण को लेकर उसने गुरुवार को दो बैठकें की हैं, एनजीटी ने कहा कि आप 20 बैठकें कर लीजिए, लेकिन उससे क्या फर्क पड़ेगा? कोई एक काम बताइए, जो आपने प्रदूषण को कम करने के लिए किया हो. यही नहीं, एनजीटी ने हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और यूपी के पर्यावरण सचिवों को भी तलब करके इन सभी राज्यों से 8 नवंबर तक रिपोर्ट मांगी है कि वे कैसे प्रदूषण कम करने के लिए काम करेंगे और अब तक क्या किया है.

जाहिर है कि प्रदूषण की समस्या जितनी गंभीर है, सरकारों का काम उतना ही अप्रभावी और अगंभीर है. टालमटोल का रवैया कैसा है, यह इस बात से भी समझा जा सकता है कि एनजीटी की फटकार पर दिल्ली सरकार ने एनजीटी से कहा कि दिल्ली में प्रदूषण के बढ़ने की मुख्य वजह खेतों में जलाया जानेवाला फसलों का उच्छिष्ट यानी पुआल वगैरह है. जाहिर है कि दूसरे पर दोषारोपण वाले इस जवाब से झल्लाकर एनजीटी को कहना पड़ा कि क्रॉप बर्निंग के आलावा दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने की कई और वजहें भी हैं, क्या आपने उन पर कोई काम किया है?

एनजीटी ने कहा कि आप अभी तक दस साल पुरानी डीजल गाड़ियों को दिल्ली की सड़कों से नहीं हटा पाए हैं. आखिर हम अपने बच्चों और नौनिहालों को क्या दे रहे हैं? प्रदूषण उनके लिए कितना जानलेवा है, इसपर तो सोचना होगा. दरअसल, निर्माण कार्य के दौरान उठने और उड़ने वाली धूल भी शहरों में प्रदूषण बढ़ाने का बड़ा कारण है. इसके अलावा फालतू प्लास्टिक और कूड़े को जलाने से भी हमारा वायुमंडल खासा प्रदूषित हो रहा है. जहां तक पटाखों की बात है, उनसे निकलने वाले रसायन हवा में कम से कम 20 घंटे तक रहते हैं और इसके बाद वे जमीन पर, पानी में और सब्जियों-फसलों व घास में उतर आते हैं. जाहिर है कि यही प्रदूषण खाने-पीने और सांस के जरिए हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है.

गौरतलब है कि इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में ही गाइडलाइन दी है, लेकिन कोई उनका पालन नहीं करता. पटाखे कहां जलाने हैं, कबतक जला सकते हैं, इनमें रसायन के इस्तेमाल का तरीका क्या होना चाहिए, आदि-आदि सभी बातों का गाइडलाइन में बाकायदा जिक्र है, लेकिन अफसोस कि सरकारें अबतक कुछ नहीं कर पाई हैं और प्रदूषण का अजगर हमारी सेहत को निगलता चला जा रहा है.

रथयात्रा से रणनीति की और सपा

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की रथयात्रा की शुरुआत जिस तरह से हुई, उसने उन लोगों को जरूर निराश किया होगा, जो यह उम्मीद बांधे बैठे थे कि इस कार्यक्रम से पार्टी के विभाजन का आरंभ हो जाएगा. हुआ इसका उल्टा. काफी समय बाद यह पहला मौका था, जब पार्टी के सारे बडे़ नेता एक साथ दिखाई दिए और उनके व्यवहार में मनमुटाव भी नहीं दिखा.

यह ठीक है कि पिछले कुछ सप्ताह में पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के झगड़े जिस तरह से सतह पर आए, उनसे उसकी छवि को खासा नुकसान पहुंचा. अभी न तो यह कहा जा सकता है कि रथयात्रा की शुरुआत में जो एकता दिखाई दी है, वह उस नुकसान की कितनी भरपाई कर पाएगी, और न ही यह कि ये एकता कितनी स्थायी होगी. पार्टी अगर आगामी विधानसभा चुनाव से कोई बड़ी उम्मीद बांधना चाहती है, तो उसे चुनाव तक लगातार यह दिखाना होगा कि उसके शीर्ष नेतृत्व में कोई दरार नहीं है.

मुख्यमंत्री अखिलेश अपनी ‘विकास से विजय की ओर’ रथयात्रा उस समय शुरू कर रहे हैं, जब चुनाव प्रचार के मामले में समाजवादी पार्टी बाकी दलों से पिछड़ चुकी है. भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह पहले ही कई सभाएं कर चुके हैं. इसके अलावा भाजपा ने विरोधी दलों के बड़े नेताओं को तोड़ने का अभियान भी चलाया हुआ है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की खाट सभाएं भी पिछले दिनों खूब चर्चा में रहीं. कांग्रेस ने राज बब्बर व शीला दीक्षित जैसे नेताओं की टीम को वहां लगातार सक्रिय कर रखा है. दूसरी ओर, बहुजन समाज पार्टी की मायावती अपनी जनसभाओं में भीड़ जुटाने के सारे रिकॉर्ड तोड़ चुकी हैं. अखिलेश यादव ने आगामी चुनाव के लिए अपनी उपलब्धियों को सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाया है. बेशक उनकी उपलब्धियां छोटी नहीं हैं, लेकिन सिर्फ उपलब्धियों के नाम पर वोट हासिल करना कभी आसान नहीं होता.

सत्ताधारी दल जब दोबारा जनादेश हासिल करने के लिए मैदान में उतरता है, तो उसे ‘एंटीइनकंबेन्सी’ का सामना भी करना पड़ता है. मुख्यमंत्री यह मान रहे होंगे कि वह अपनी उपलब्धियों के बखान से इस कारक को खत्म करने में सफल हो जाएंगे. लेकिन फिलहाल उनकी समस्या सिर्फ ‘एंटीइनकंबेन्सी’ नहीं होगी, बल्कि उन्हें लोगों को इस बात के प्रति भी आश्वस्त करना होगा कि उनकी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में कोई मतभेद नहीं है. यह आसान नहीं होगा, खासकर उस समय, जब विरोधी दल इस मतभेद को चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बनाते दिख रहे हैं.

अगले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की अपनी छवि भी दांव पर लगी है. शुरू में भले ही उन्हें नौसिखुआ कहा जा रहा था, यहां तक कहा जा रहा था कि असली मुख्यमंत्री वह नहीं, पार्टी के दूसरे वरिष्ठ नेता हैं. पर अब पांच साल बाद उनकी उपलब्धियों की चर्चा होती है. सबसे बड़ी बात यह है कि पांच साल सरकार चलाने के बाद उनके विरोधी भी उन पर कोई निजी आरोप लगाने की स्थिति में नहीं हैं. पर अब अखिलेश को यह साबित करना है कि उनकी यह छवि पार्टी को वोट भी दिला सकती है. और इससे कठिन काम लोगों को यह भरोसा दिलाना है कि मुख्यमंत्री पद के लिए वह अपनी पार्टी की सर्वसम्मत पसंद हैं. विधानसभा चुनाव अब बहुत पास हैं, फिर भी इतना वक्त तो है ही कि अगर कोशिश हो, तो पार्टी की छवि को पहुंचे नुकसान की भरपाई की जा सके. हालांकि, यह वक्त भरपाई से आगे जाकर विरोधियों को परास्त करने की रणनीति बनाने का है.

अपनाने की हिम्मत तो करो

सर्वोच्च न्यायालय इन दिनों ट्रिपल तलाक यानी तलाक तलाकत लाक कह कर मुसलिम शादीशुदा औरत को छोड़ देने वाले धार्मिक कानून पर विचार कर रहा है. भारतीय जनता पार्टी थोड़े असमंजस में है. चुनाव जीतने से पहले तो वह ढोल पीटपीट कर सामान्य विवाह कानून की वकालत करती थी पर अब मुसलिम धार्मिक कानून के बारे में कुछ भी कहने से कतरा रही है. उस का कहना है कि मामला औरत के अस्तित्व का है, धर्म का नहीं, पर यह दलील लचर है, क्योंकि सरकार तो खुद सैकड़ों फैसले हिंदू संस्कृति समाज को ले कर करती फिर रही है.

कांग्रेस सरकार भी यही करती रही है पर भाजपा सरकार कुछ ज्यादा ही उत्साहित रहती है और कभी योग, कभी वंदेमातरम, कभी भारत माता को हिंदू देवी का रूप दे कर, तो कभी धर्म का सा रूप दे कर जनता को कुछ करने पर मजबूर करती रहती है. मुसलिम कानून में परिवर्तन की आवश्यकता है, क्योंकि यह पुराना और आज के युग के लायक नहीं पर सवाल है कि यह परिवर्तन करे कौन? कठमुल्ले तो उलटा चाहते हैं कि जो थोड़ाबहुत बदलाव आया है वह भी बंद हो जाए और समाज हदीस के अनुसार चले. उन्हें मोबाइल, कारों, हवाईजहाजों, मिसाइलों से शिकायत नहीं है, जो धर्म की स्थापना के समय नहीं थीं पर रोजमर्रा के व्यवहार में पुराने चिपके रहना चाहते हैं.

अदालतें समझती हैं 3 बार तलाक कह कर पत्नी से छुटकारा पाना गलत है पर उसे अवैध घोषित करने पर धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन माना जाएगा, जो भारत के ही नहीं दुनिया के सभी संविधानों में किसी न किसी रूप में है. औरत मुसलिम हो या हिंदू अथवा ईसाई जब धर्म से बंध जाती है तो उस के पास चौइस रहती ही नहीं कि वह धर्म के एक हिस्से को माने और दूसरे को नहीं. अदालत में जिन औरतों ने दुहाई दी है वे एक तरफ तो कह रही हैं कि वे मुसलिम हैं, पर मुसलिम कानून के अनुसार हुए विवाह के एक नियम को गलत मान रही हैं. यह दोगलापन है.

व्यक्तिगत कानूनों का पर्याय कम से कम भारत में तो मौजूद है. यहां कानूनों की भरमार है, जो विवाह, विरासत, जन्म, मृत्यु पर धर्म को नकारने का हक देते हैं. जो औरतें मुसलिम ट्रिपल तलाक के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट गई हैं उन्हें तार्किक स्पैशल मैरिज ऐक्ट जैसे कानूनों का रास्ता अपनाने से कोई नहीं रोकता. धर्म से छिटक कर अधार्मिक या नौनबिलीवर बनना आसान नहीं है पर यही उपाय है जिस से धर्म की मोटी दीवारों को तोड़ा जा सकता है. धर्म प्रचारक तो लगे रहेंगे कि धर्म की दुकानें चलती रहें. न हिंदू पंडे चाहेंगे कि घंटों चलने वाले फेरे बंद हों, न पादरी चाहेंगे कि उबाऊ खड़े हों, बैठे हों वाली कवायद के बिना ईसाई विवाह हों और न ही मुल्ला चाहेंगे कि मुसलिम विवाह के उलझे कानूनों में कोई कमी की जाए.

रास्ता तो एक ही है कि धर्म की जंजीरों से मुक्त हों. सुप्रीम कोर्ट यह कहेगा नहीं और ट्रिपल तलाक पर मामला अधर में लटका रहेगा या गेंद संसद की तरफ लुढ़का दी जाएगी. अदालतों का हस्तक्षेप वहां जरूरी है जहां रास्ता न हो. भारत में तो मौजूद है, उसे अपनाने की हिम्मत करो मुहतरिमाओ.

एक बोतल हवा की कीमत…

दिल्ली की हवा इतनी खराब हो चुकी है कि यहां सांस लेना भी मुश्किल है. दीवाली के बाद यहां की हवा और जहरीली हो गई. दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन गई है. दिल्ली के प्रदूषण को लेकर सरकार चिंतित है तो वहीं एक राहत की खबर है कि आप बहुत जल्द बोतल बंद हवा खरीदकर अपने लिए शुद्ध हवा की व्यवस्था कर सकते हैं.

हवा का कारोबार

चीन में बोतलबंद हवा का कारोबार तेजी से फलफूल रहा है. लोग बोतल बंद शुद्ध हवा से सांस लेकर अपनी जिंदगी बचा रहे हैं. चीन के अलावा ऑस्ट्रेलिया में भी बोतल बंद हवा का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है. यहां अलग अलग नाम से बोतलबंद ताजी हवा बिक रही है. वायु प्रदूषण का कहर झेल रहे बीजिंग और चीन के कुछ प्रमुख शहरों में बोतलबंद हवा बेची जा रही है.

एक बोतल सांस की कीमत यहां एक बोतल बंद हवा की कीमत तकरीबन 7800 रूपये रखी है, हलांकि इलाके के बदलते ही दाम भी बदल जाते हैं. शीशे के जार में हवा बीजिंग और चीन के अलग-अलग इलाकों में धड़ल्ले से बिक रही है. मैशेबल की रिपोर्ट की माने तो विटैलिटी एयर चीन के लोगं की बोतलबंद हवा की जरुरत को पूरा करती है. विटैलिटी एयर के प्रतिनिधि की माने तो उन्हें चीन के अलग-अलग शहरों से उन्हें शुद्ध हवा के लिए ऑर्डर मिल रहे हैं. जब हवा और दूषित हो जाती है तो उनकी बिक्री और बढ़ जाती है. न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक ऑस्ट्रेलियाई और कनाडियन फर्म पहाड़ों से शुद्ध हवा लेकर उसे पैक कर अपना बिजनेस बढ़ रही है.

दिल्ली में सांस के लिए चुकानी होगी मोटी रकम

धीरे-धीरे बोतलबंद हवा का बाजार भारत में भी बढ़ने लगा है. दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शूमार दिल्ली के लोगों के साथ अब आप भी कैन में भरी हवा खरीद सकते हैं. भारत में प्राकृतिक हवा की बिक्री शुरू करने जा रही है और जिसकी एक सांस की कीमत 12.50 रुपए है. इन बोतल बंद कैन में कम्प्रेश्ड एयर होती है, जिसे मास्क पहनकर इस हवा से सांस ली जाती है. कनाडा की स्टार्टअप कंपनी इससे पहले विदेशों में इस हवा को बेच चुकी हैं अब इसे भारत में मई से बेचने की तयारी में हैं.

मुश्किल में फंसे कोच कुंबले

राजकोट में दो टेस्ट डेब्यू तय माने जा रहे हैं. पहला वेन्यू राजकोट का जो पहली बार किसी टेस्ट मैच की मेजबानी करेगा. दूसरे डेब्यू को लेकर अभी तस्वीर साफ नहीं है.

टीम इंडिया के कोच अनिल कुंबले इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज के शुरुआती मैच से पहले सिलेक्शन की दुविधा में हैं. वह यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि हार्दिक पंड्या को 'पांचवें बॉलर' के तौर पर प्लेइंग इलेवन में लें या फिर करुण नायर को 'छठे बैट्समैन' के तौर पर डेब्यू का मौका दिया जाए.

हालांकि भारत के हेड कोच ने अपनी प्राथमिकता का खुलासा नहीं किया और दोनों प्लेयर्स के टैलेंट का गुणगान किया. कुंबले ने स्पष्ट किया कि टीम हार्दिक को बतौर ऑलराउंडर खुद एक्सप्रेस करने देना चाहेगी, जिसमें पांचवें बॉलर बनने की काबिलियत है और साथ ही उन्होंने यह बात भी बताई कि टीम मैनेजमेंट प्रतिभाशाली करुण का भी पूर्ण समर्थन करेगा, अगर उन्हें मौका मिलता है.

हार्दिक के बारे में पूछने पर इस महान स्पिनर ने सकारात्मक जवाब दिया. उन्होंने कहा, 'हार्दिक काफी प्रतिभाशाली प्लेयर है. जब वह आईपीएल में भी आया था, उसने अपनी क्षमता दिखाई थी. हां, छोटा फॉर्मेट अलग है, लेकिन हम सभी हार्दिक की क्षमता देख चुके हैं. भले ही टी20 में आपने उसकी झलक देखी हो, या फिर धर्मशाला (3 विकेट) में उसे बोलिंग या दिल्ली (30 से ज्यादा रन) में बैटिंग करते देखा हो. इसलिए हमने उसे टेस्ट टीम में शामिल करने का समर्थन किया. हम सभी पांचवें बॉलर की अहमियत समझते हैं. अगर कोई 140 की रफ्तार से बोलिंग कर सकता है और वह लोअर ऑर्डर में बैटिंग का भी विकल्प देता है, तो हम सचमुच देख रहे हैं कि हार्दिक कैसे उभरते हैं. टीम में एक ऑलराउंडर का होना अच्छा होगा.'

वहीं जब चर्चा करुण नायर की ओर बढ़ी जो छठे स्पेशलिस्ट बैट्समैन के रूप में पसंद हो सकते हैं, तो कुंबले इस बारे में भी पॉजिटिव नजर आए. उन्होंने कहा, 'करुण ने घरेलू क्रिकेट में काफी बढ़िया किया है. उन्होंने लगातार रन जुटाए हैं. ऐसी भी बातें चल रही थीं कि उन्होंने इंडिया ए के लिए ऑस्ट्रेलिया में रन नहीं जुटाए थे, लेकिन हम निरंतरता देख रहे हैं. इसलिए वह न्यूजीलैंड टेस्ट टीम का हिस्सा थे. इसके बाद वह रणजी ट्रोफी में खेले, वहां रन जुटाए, सेंचुरी जड़ी. रोहित शर्मा चोटिल हैं, तो इससे करुण के लिए मौका खुल गया है.'

रिलायंस पर 1.6 अरब डॉलर का सरकारी जुर्माना

सरकारी कंपनी ओएनजीसी के ब्लॉक से गैस निकालने में दोषी पाए जाने के बाद केंद्र सरकार द्वारा रिलायंस इंडस्ट्रीज और इसकी साझेदार-ब्रिटिश पेट्रोलियम व नीको रिसोर्सेज पर लगभग 1.6 अरब डॉलर का जुर्माना लगाने के केन्द्र सरकार के फैसले को रिलायंस इंडस्ट्रीज ने गलत ठहराया है. कंपनी ने कहा है कि वह इसे कानूनी चुनौती देगी.

रिलायंस इंडस्ट्रीज की तरफ से यहां जारी एक बयान में बताया गया है कि केजी -डीडब्ल्यूएन- 98- 3 ब्लॉक, जिसे केडी डी6 के नाम से जाना जाता है, की सीमाओं के भीतर काम किया गया है. कंपनी के मुताबिक वहां परिचालन के दौरान सभी लागू नियमों और उत्पादन भागीदारी करार ( पीएससी) के प्रावधानों के तहत काम किया गया है. सरकार की तरफ से जो दावे किये गए हैं, वह पीएससी के प्रमुख तत्वों की गलत व्याख्या पर आधारित है.

उल्लेखनीय है कि पेट्रोलियम मंत्रालय ने आरआईएल को बीते दिन नोटिस जारी किया था. रिलायंस पर आरोप है कि वह केजी बेसिन में ओएनजीसी के ब्लॉक से सात वर्षो तक गैस निकालती रही. आरआईएल और ओएनजीसी के गैस ब्लॉक आसपास ही हैं.

बॉलिंग न मिलने पर दर्शकों को गाली देते थे

ऑस्‍ट्रेलिया के पूर्व कप्‍तान रिकी पोटिंग ने दक्षिण अफ्रीका और ऑस्‍ट्रेलिया के बीच पर्थ टेस्‍ट से जुड़े शो के दौरान चौंकाने वाला खुलासा किया. पोटिंग ने कहा कि जब वे कप्‍तान थे उस समय ग्‍लेन मैक्‍ग्राथ को संभालना सबसे मुश्किल काम था.

रिकी पोटिंग ऑस्‍ट्रेलिया के सबसे सफल कप्‍तान हैं. उनके नेतृत्‍व में कंगारू टीम ने दो बार वर्ल्‍ड कप जीता था. उन्‍होंने ऑस्‍ट्रेलिया के लिए 168 टेस्‍ट में कप्‍तानी की.

पोटिंग ने कहा, “कप्‍तान के रूप में मेरे लिए ग्‍लेन मैक्‍ग्राथ सबसे मुश्किल खिलाड़ी थे. सब लोग यह सोचते होंगे कि वे आसान खिलाड़ी थे. आप उन्‍हें गेंद दे देंगे और वे आपका काम आसान कर देंगे. और हां, यह बात सही थी लेकिन कुछ मामलों में आपको उनसे गेंद छीननी होती थी.”

पोंटिंग के अनुसार मैक्‍ग्राथ को जब गेंदबाजी आक्रमण से हटाया जाता था तो वे नाराज हो जाया करते थे. वे इसके लिए जवाब मांगते रहते थे. उन्‍होंने कहा, “मैं उनसे कहता था, काफी हुआ दोस्‍त. थोड़ा आराम करो. तब वे मुंह पर अपना हाथ रखकर हर तरह के नाम से मुझे बुलाते थे.”

उन्‍होंने बताया कि मैक्‍ग्राथ अपना गुस्‍सा दर्शकों को गाली देकर निकालते थे. पोटिंग ने कहा, “वे फाइन लेग पर खड़े हो जाते और बॉलिंग ना मिल पाने की वजह से दर्शकों को गालियां देते.”

पोटिंग और मैक्‍ग्राथ ने पांच बार एशेज ट्रॉफी व तीन वर्ल्‍ड कप जीते थे. पिजन के नाम से मशहूर मैक्‍ग्राथ ने साल 2007 में संन्‍यास लिया था. वहीं पोटिंग ने 2012 में क्रिकेट को अलविदा कहा.

लोन नहीं चुकाने वालों की मुश्किलें बढ़ी

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ऋण वसूली मामलों के तेजी से निपटान पर जोर दिया है. उन्होंने कहा है कि बैंकों का कर्ज लेकर समय पर नहीं लौटाने वालों को नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के तहत बचाव के असीमित अवसर नहीं दिये जा सकते हैं.

जेटली ने कहा, ‘यह सामान्य न्यायिक अथवा अर्ध-न्यायिक प्रक्रिया नहीं है जिसमें लोगों को बचाव के लिये असीमित अवसर दिये जाते हैं क्योंकि स्वाभाविक न्याय प्रक्रिया को अस्वाभाविक तरीके से लंबा खींचा जायेगा तो विवाद कभी समाप्त नहीं होंगे. इसलिये जहां तक कर्ज नहीं लौटाने के मामले हैं उनमें वसूली प्रक्रिया को और बेहतर और सक्षम बनाना होगा.’ देशभर में विभिन्न ऋण वसूली न्यायाधिकरणों में पांच लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि के करीब 95,000 मामले लंबित हैं.

जेटली ने आज यहां ऋण वसूली पर आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा, ‘इसलिये हर ऐसे मामले में जहां संबंधित पक्ष मामले को लंबा खींचने में कामयाब रहता है देश के निवेश परिवेश को नुकसान पहुंचाता है. बैंकों का पैसा यदि इस तरह डिफाल्टरों के पास फंसा रहेगा तो बैंक दूसरों को कर्ज नहीं दे पायेंगे. दूसरे लोग इस धन को उत्पादक कार्यों में इस्तेमाल कर सकते थे, जिसका देश को फायदा मिलता.’

अब क्रिकेट मैदान में हुए इंजर्ड तो…

भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व महान स्पिनर अनिल कुंबले की घातक गेंदबाजी के अलावा बल्लेबाज उनके नए प्रयोगों से भी खौफ खाते थे. टीम इंडिया के नए कोच नियुक्त होते ही सभी को उनसे ये उम्मीद थी कि वो टीम की रणनीति में भी नए प्रयोग कर भारतीय टीम को नंबर वन की पोजिशन दिलाए और हुआ भी कुछ ऐसा ही.

टीम इंडिया को कोच अनिल कुंबले ने एक 'प्रोटोकॉल' बनाया है कि चोट से उबर रहे प्लेयर्स को नैशनल टीम में वापसी करने पर अपने नाम का विचार कराने के लिए 'डोमेस्टिक क्रिकेट' में खेलना होगा. बीते समय में ऐसे कई उदाहरण रहे हैं, जब प्लेयर्स गंभीर चोट के बाद तेजी से वापसी के चक्कर में चोटिल हो गए. कुंबले को लगता है कि 'प्लेयर्स के साथ बातचीत इसमें अहम है' क्योंकि उनकी वापसी की उत्सुकता को समझा जा सकता है.

अनिल कुंबले ने कहा, 'किसी भी टीम की गतिविधि में बातचीत अहम है. जल्दी फिट होने की बजाए खिलाड़ी का पूरी तरह फिट होना अहम है. चोटिल खिलाड़ी को टीम में जल्दी वापसी करने की सोचने के बजाए पूरी तरह फिट होने पर सोचना चाहिए. यह टीम के और उसके खुद के लिए ज्यादा बेहतर है.'

वह राहुल और रोहित के लिए बहुत दुखी थे, जिन्हें हाल में जांघ की गंभीर चोट लगी थी, जिसकी सर्जरी की जरूरत हो सकती है. उन्होंने कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि केएल राहुल जो इतना बढ़िया खेले, अब नहीं खेल रहे. इसी तरह भुवी, शिखर, रोहित के लिए यह बड़ा झटका है. रोहित के लिए बहुत दुखी हूं क्योंकि वह टेस्ट फॉर्मेट में बढ़िया कर रहा था. निश्चित रूप से हम रोहित की छोटे फॉर्मेट में अहमियत जानते हैं.'

क्या आपका मैमोरी कार्ड काम नहीं कर रहा?

स्मार्टफोन हो या फिर कैमरा माइक्रोएसडी कार्ड का इस्तेमाल दोनों ही डिवाइस में होता है. केवल इस्तेमाल ही नहीं यह फोन और कैमरा दोनों के लिए ही बेहद जरुरी भी है. यह आपके डिवाइस की मैमोरी है, जिसके बिना आपका डिवाइस अधूरा है. इसीलिए माइक्रो एसडी कार्ड की डिमांड बढ़ती जा रही है और इसीलिए कई छोटी बड़ी कंपनियां माइक्रो एसडी कार्ड पेश कर रही हैं.

अपने फोन के लिए या कैमरे के लिए माइक्रो एसडी कार्ड खरीदने से पहले आप उस कार्ड के बारे में अच्छी जानकारी ले लें. एक खराब एसडी कार्ड की वजह से आपके डिवाइस में भी दिक्कतें आ सकती हैं.

आज हम आपको बता रहें वो जरुरी बातें जो आपको एक अच्छे माइक्रोएसडी कार्ड को खरीदने से पहले जाननी चाहिए.

तीन फॉर्मेट

माइक्रो एसडी कार्ड तीन फॉर्मेट में मौजूद हैं. एसडी, एसडीएचसी एंड एसडीएक्ससी. ये तीनों ही अलग होते हैं और सभी स्लॉट्स में काम नहीं करते हैं.

ये है अंतर

एसडी- इसमें 2जीबी तक की स्टोरेज होती है और ये किसी भी स्लॉट में प्रयोग किया जा सकता है.

एसडीएचसी- यह 2जीबी से 32जीबी स्टोरेज तक आते हैं.

एसडीएक्ससी- यह 32जीबी से शुरू होकर 2 टीबी तक होते हैं और यह केवल एसडीएक्ससी में सपोर्ट होते हैं.

अलग होती हैं क्लास

एसडी कार्ड अलग अलग क्लास में उपलब्ध हैं, क्लास 2, 4, 6 और 10. यह नंबर इनकी स्पीड बताती है. यानी कि कितनी स्पीड से ये फाइल्स ट्रान्सफर कर सकते हैं.

खरीदते हुए ध्यान रखें

जब आप कार्ड खरीद रहे हों तो आपको ध्यान देना चाहिए कि एस डी कार्ड आपके फोन के लिए सही हो. ज्यादा स्पीड और मैमोरी का कार्ड आपके लिए बेकार है यदि उसे आपका डिवाइस सपोर्ट न करे.

कहीं डुप्लीकेट कार्ड तो नहीं ले रहे हैं आप!

कार्ड खरीदते हुए आपको थोड़ी सावधानी बरतने की जरुरत भी है. ऐसा अक्सर होता है कि हमारा पल्ले डुप्लीकेट कार्ड पड़ जाता है. मार्केट में उपलब्ध हर तीसरा कार्ड फेक हो सकता है.

 

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