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Box Office : ‘सिकंदर’ के बाद ‘जाट’ भी पस्त, धड़ाधड़ गिरे पीवीआर आयनौक्स के शेयर के दाम

Box Office : अप्रैल माह में बड़े बजट की फिल्में तो रिलीज हुईं मगर बौक्स औफिस पर वे चल नहीं पाईं. निर्माता और निर्देशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है.

अप्रैल माह के पहले सप्ताह ने नहीं जगाई कोई उम्मीद. 2025 की पहली तिमाही इतनी सूखी रही कि निर्माता, निर्देशक, कलाकारों व सिनेमाघर मालिकों के साथ ही आम जनता की जेब से करोड़ों रूपए चले गए. देश में दो सब से बड़े मल्टीप्लैक्स चैन हैं- पीवीआर और आयनौक्स. अब यह दोनों एक हो गए हैं.

जनवरी 2025 के पहले सप्ताह में पीवीआर आयनौक्स के शेयर के दाम प्रति शेयर लगभग 1600 रूपए थे, जो कि 30 मार्च को घट कर प्रति शेयर लगभग 958 रुपए हो गए थे. यानी कि इस के शेयर धारक को प्रति शेयर सिर्फ तीन माह के अंदर 642 रूपए का नुकसान हो गया था.

सभी को उम्मीद थी कि तिमाही के अंतिम दिन रिलीज हो रही सलमान खान की फिल्म ‘सिकंदर’ कुछ कमाल करेगी. इसे पूरे दो सप्ताह में 12 दिन (30 मार्च से दस अप्रैल) का समय मिल रहा था. लेकिन ‘सिकंदर’ इस कदर बौक्स औफिस पर डूबी कि 4 अप्रैल को पीवीआर आयनौक्स के शेयर के दाम प्रति शेयर लगभग 58 रूपए घटकर 900 रुपए पर पहुंच गए थे.

अप्रैल के पहले सप्ताह में कोई नई फिल्म रिलीज नहीं हुई, मगर मोहनलाल की विवादित डब मलयालम फिल्म ‘‘लूसी 2 इम्पूरन’ ने थोड़ा सहारा दिया. उस के बाद अप्रैल के दूसरे सप्ताह से एक दिन पहले 10 अप्रैल को सनी देओल की फिल्म ‘जाट’’ रिलीज हुई. ‘सिकंदर’ के मुकाबले पांच प्रतिशत ठीक होने के बावजूद अति विभत्स हिंसा व खून खराबा के चलते पहले ही दिन इस फिल्म को दर्शक नहीं मिले. परिणामतः पीवीआर मल्टीप्लैक्स के शेयर के दाम ज्यादा नहीं बढ़े. फिर भी 4 अप्रैल को 900 रुपए के मुकाबले 11 अप्रैल को 16 रुपए बढ़ कर 916 रूपए हो गया.

शेयर बाजार से जुड़े लोगों की राय में यह दाम इसलिए बढ़े कि लोग अभी भी उम्मीद लगाए हुए हैं कि शनिवार, रविवार वो सोमवार को छुट्टी के दिन ‘जाट’ कुछ कमाई कर लेगी. यदि ऐसा नहीं हुआ तो मंगलवार, 15 अप्रैल को पीवीआर आयनोक्स की हालत काफी खराब हो जाएगी.

अब बात अप्रैल माह के पहले सप्ताह के बाक्स आफिस रिपोर्ट की की जाए, तो अप्रैल के पहले सप्ताह 4 अप्रैल को कोई नई फिल्म रिलीज नहीं हुई. जिस के चलते मार्च के चौथे और अप्रैल के पहले सप्ताह को मिला कर सलमान खान की फिल्म महज 102 करोड़ रूपए ही कमा सकी.

सिकंदर की इतनी बुरी दुर्गति हुई यह फिल्म असफल फिल्मों ‘जीरो’ और ‘लाल सिंह चड्ढा’ की भी बराबरी नहीं कर पाई.

दो सप्ताह के अंदर मोहनलाल की मलयालम फिल्म ‘लूसी 2 इम्पूरन’ ने हिंदी और मलयालम मिला कर केवल भारत में 102 करोड़ रूपए तथा पूरे विश्व में 262 करोड़ रूपए कमाए.

अप्रैल माह के पहले सप्ताह की समाप्ति से एक दिन पहले 10 अप्रैल को सनी देओल व रणवीर हुडा अभिनीत फिल्म ‘‘जाट’’ रिलीज हुई. निर्माताओं के अनुसार इस फिल्म ने पहले दिन महज साढ़े 9 करोड़ रूपए ही बाक्स आफिस पर एकत्र कर सकी. 100 करोड़ रूपए में बनी फिल्म ‘जाट’ पहले दिन के कलेक्यान के आधार पर लाइफ टाइम बिजनेस 70 करोड़ ही कर पाएगी. यानी कि फिल्म की लागत वसूल नहीं कर पाएगी.

यदि शनिवार, रविवार और सोमवार की छुट्टी के दिनों में कोई चमत्कार हो जाए तो स्थिति बदल सकती है.

Family Story : वसंत आ गया – सौरभ ने पति का फर्ज कैसे निभाया

Family Story : ट्रिन ट्रिन…फोन की घंटी बजती जा रही थी मगर इस से बेखबर आलोक टीवी पर विश्व कप फुटबाल मैच संबंधी समाचार सुनने में व्यस्त थे. तब मैं बच्चों का नाश्ता पैक करती हुई उन पर झुंझला पड़ी, ‘‘अरे बाबा, जरा फोन तो अटेंड कीजिए, मैं फ्री नहीं हूं. ये समाचार तो दिन में न जाने कितनी बार दोहराए जाएंगे.’’

आलोक चौंकते हुए उठे और अपनी स्टाइल में फोन रिसीव किया, ‘‘हैलो…आलोक एट दिस एंड.’’

स्कूल जाते नेहा और अतुल को छोड़ने मैं बाहर की ओर चल पड़ी. दोनों को रिकशे में बिठा कर लौटी तो देखा, आलोक किसी से बात करने में जुटे थे. मुझे देखते ही बोले, ‘‘रंजू, तुम्हारा फोन है. कोई मिस्टर अनुराग हैं जो सिर्फ तुम से बात करने को बेताब हैं,’’ कह कर उन्होंने रिसीवर मुझे थमा दिया और खुद अपने छूटते समाचारों की ओर दौड़ पड़े.

मुझे कुछ याद ही नहीं आ रहा था कि कौन अनुराग है जिसे मैं जानती हूं, पर बात तो करनी ही थी सो बोल पड़ी, ‘‘हैलो, मैं रंजू बोल रही हूं…क्या मैं जान सकती हूं कि आप कौन साहब बोल रहे हैं?’’

‘‘मैं अनुराग, पहचाना मुझे? जरा दिमाग पर जोर डालना पड़ेगा. इतनी जल्दी भुला दिया मुझे?’’ फोन करने वाला जब अपना परिचय न दे कर मजाक करने लगा और पहेलियां बुझाने लगा तो मुझे बहुत गुस्सा आया कि पता नहीं कौन है जो इस तरह की बातें कर रहा है, पर आवाज कुछ जानीपहचानी सी लग रही थी. इसलिए अपनी वाणी पर अंकुश लगाती हुई मैं बोली, ‘‘माफ कीजिएगा, अब भी मैं आप को पहचान नहीं पाई.’’

‘‘मेरी प्यारी बहना, अपने सौरभ भाई की आवाज भी तुम पहचान नहीं पाओगी, ऐसा तो मैं ने सोचा ही नहीं था.’’

‘‘सौरभ भाई, आप…वाह…, तो मुझे उल्लू बनाने के लिए अपना नाम अनुराग बता रहे थे,’’ खुशी से मैं इतनी जोर से चीखी कि आलोक घबरा कर मेरे पास दौड़े चले आए.

‘‘क्या हुआ? इतनी जोर से क्यों चीखीं? कहीं छिपकली दिख गई क्या?’’

मैं इनकार में सिर हिलाती हुई हंस पड़ी, क्योंकि छिपकली देख कर भी मैं डर के मारे हमेशा चीख पड़ती हूं. फिर रिसीवर में माउथपीस पर हाथ रख कर बोली, ‘‘जरा रुकिए, अभी आ कर बताती हूं,’’ तो आलोक लौट गए.

‘‘हां, अब बताइए भाई, इतने दिनों बाद बहन की याद आई? कब आए आप स्ंिगापुर से? बाकी लोग कैसे हैं?’’ मैं ने सवालों की झड़ी लगा दी.

‘‘फिलहाल किसी के बारे में मुझे कोई खबर नहीं है, क्योंकि सब से ज्यादा मुझे सिर्फ तुम्हारी याद आई, इसलिए भारत आने के बाद सब से पहले मैं ने तुम्हें फोन किया. तुम से मिलने मैं कल ही तुम्हारे घर आ रहा हूं. पूरे 2 दिन तुम्हें बोर होना पड़ेगा. इसलिए कमर कस कर तैयार हो जाओ. बाकी बातें अब तुम्हारे घर पर ही होंगी, बाय,’’ इतना कह कर भाई ने फोन काट दिया.

सौरभ भाई कल सच में हमारे घर आने वाले हैं, सोच कर मैं खुशी से झूम उठी. 10 साल हो गए थे उन्हें देखे. आखिरी बार उन्हें अपनी शादी के वक्त देखा था.

अपने मातापिता की मैं अकेली संतान थी, पर दोनों चचेरे भाई सौरभ और सौभिक मुझ पर इतना प्यार लुटाते

थे कि मुझे कभी एहसास ही न हुआ कि मेरा अपना कोई सगा भाई या बहन नहीं है. काकाकाकी की तो मैं वैसे भी लाड़ली थी.

इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था कि हम भुवनेश्वर में रहते थे और काका का परिवार पुरी में. हमारा लगभग हर सप्ताह ही एकदूसरे से मिलनाजुलना हो जाता था. इसलिए 60-65 किलोमीटर की दूरी हमारे लिए कोई माने नहीं रखती थी.

मेरी सौभिक भाई से उतनी नहीं पटती थी, जितनी सौरभ भाई से. मेरे प्यारे और चहेते भैया तो सौरभ भाई ही थे. उन के अलावा समुद्र का आकर्षण ही था जो प्रत्येक सप्ताह मुझे पुरी खींच लाता था.

उन दिनों मैं दर्शनशास्त्र में एम.ए. कर रही थी इसलिए सौरभ भाई की जीवनदर्शन की गहरी बातें मुझे अच्छी लगती थीं. एक दिन वह कहने लगे, ‘रंजू, अपने भाई की एक बात गांठ बांध लो, गलती स्वीकार करने में ही समझदारी होती है. जीवन कोई कोर्ट नहीं है जहां कभीकभी गलत बात को भी तर्क द्वारा सही साबित कर दिया जाता है.’

मैं उन का मुंह ताकती रह गई तो वह आगे बोले, ‘तुम शायद ठीक से मेरी बात समझ नहीं पाईं. ठीक है, इस बात को मैं तुम्हें फिल्मी भाषा में समझाता हूं. थोड़ी देर पहले तुम ‘आनंद’ फिल्म का जिक्र कर रही थीं. मैं ने भी देख रखी है यह फिल्म. इस के एक सीन में जब अमिताभ रमेश देव से पूछता है कि तुम ने क्यों उस धनी सेठ को कोई बीमारी न होते हुए भी झूठमूठ की महंगी गोलियां दे कर एक मोटी रकम झटक ली. तो इस पर रमेश देव कहता है कि अगर ऐसे धनी लोगों को बेवकूफ बना कर मैं पैसे नहीं लूंगा तो गरीब लोगों का मुफ्त इलाज कैसे करूंगा?

‘एक नजर में रमेश देव का यह तर्क सही भी लगता है, परंतु सचाई की कसौटी पर परखा जाए तो क्या वह गलत नहीं था? अगर किसी गरीब की वह मदद करना चाहता था तो अपनी ओर से जितनी हो सके करनी चाहिए थी. इस के लिए किसी अमीर को लूटना न तो न्यायसंगत है और न ही तर्कसंगत, इसलिए ज्ञानी पुरुष गलत बात को सही साबित करने के लिए तर्क नहीं दिया करते बल्कि उस भूल को सुधारने का प्रयास करते हैं.’

एक दिन कालिज से घर लौटी तो मां एक खुशखबरी के साथ मेरा इंतजार कर रही थीं. मुझे देखते ही बोलीं, ‘सुना तू ने, तेरे काका का फोन आया था कि कल तेरे सौरभ भाई के लिए लड़की देखने कानपुर चलना है. सौरभ ने कहा है कि उसे हम सब से ज्यादा तुझ पर भरोसा है कि तू ही उस के लिए सही लड़की तलाश सकती है.’

मुझे अपनेआप पर नाज हो आया कि मेरे भाई को मुझ पर कितना यकीन है.

दूसरे दिन सौरभ भाई और सौभिक भाई के अलावा हम सब कानपुर पहुंचे तो मैं बहुत खुश थी. हम सभी को लड़की पसंद आ गई. हां, उस की उम्र जरूर मेरी मां और काकी के विचार से कुछ ज्यादा थी, पर आजकल 27 साल में शादी करना कोई खास बात नहीं होती. फिर उसे देख कर कोई 22-23 से ज्यादा की नहीं समझ सकता था.

बैठक में सब को चायनाश्ता देने और थोड़ी देर वहां बैठने के बाद जब भाभी अंदर जाने लगीं तो काकी ने मुझ से कहा, ‘रंजू, तुम अंदर जा कर संगीता के साथ बातें करो. यहां बड़ों के बीच बैठी बोर हो जाओगी. फिर हमें तो कुछ उस से पूछना है नहीं.’

मैं भी भाभी के साथ बात करना चाहती थी, इसलिए अंदर चली गई. तभी उन के  घर में भाभी के बचपन से काम करने वाली आया कमली ने उन्हें एक टेबलेट खाने को दी. मेरे कुछ पूछने से पहले की कमली बोली, ‘शायद घबराहट के मारे बेबी के सिर में कुछ दर्द सा होने लगा है. आप तो समझ ही सकती हैं क्योंकि आप भी लड़की हैं.’

इस पर मैं बोली, ‘मैं समझ सकती हूं, पर च्ंिता करने की कोई बात नहीं है. हम सब को भाभी पहले ही पसंद आ चुकी हैं.’

भाभी ने तब तल्ख स्वर में कहा था, ‘पसंद तो सभी करते हैं पर शादी कोई नहीं.’

‘पर हम तो आज सगाई भी कर के जाने वाले हैं.’ मुझे लगा कि पहले कोई रिश्ता नहीं हो पाया होगा इसलिए भाभी ऐसे बोल रही हैं.

फिर सगाई कर के ही लौटे थे. इस के 10 दिन बाद सौरभ भाई के पास एक गुमनाम फोन आया कि जिस लड़की से आप शादी करने जा रहे हैं वह एक गिरे हुए चरित्र की लड़की है. अपने स्वभाव के मुताबिक सुनीसुनाई बात पर यकीन न करते हुए भाई ने फोन करने वाले से सख्त लहजे में कहा था, ‘आप को इस विषय में च्ंिता करने की कोई आवश्यकता नहीं है. उस के चरित्र के विषय में मुझे सब पता है.’

करीब एक महीने बाद ही धूमधाम से हम सब संगीता भाभी को दुलहन बना कर घर ले आए. उन के साथ दहेज में कमली भी आई थी. हमारे घर वालों ने सोचा ससुराल में भाभी को ज्यादा परेशानी न हो इस वजह से उन के मायके वालों ने उसे साथ भेजा है.

सौरभ भाई खूबसूरत दुलहन पा कर बहुत खुश थे. दुलहन पसंद करने के एवज में मैं ने उन से लाकेट समेत सोने की खूबसूरत एक चेन और कानों की बालियां मांगी थीं जो शादी के दिन ही उन्होंने मुझे दे दी थीं.

अगले दिन जब मैं फूलों का गजरा देने भाभी के कमरे की ओर जा रही थी तो मैं ने सौभिक भाई को छिप कर भाभी के कमरे में झांकते हुए देखा. मैं ने उत्सुकतावश घूम कर दूसरी ओर की खिड़की से कमरे के अंदर देखा तो दंग रह गई. भाभी सिर्फ साया और ब्लाउज पहने घुटने मोड़ कर पलंग पर बैठी थीं. साया भी घुटने तक चढ़ा हुआ था जिस में गोरी पिंडलियां छिले हुए केले के तने जैसी उजली और सुंदर लग रही थीं. उन के गीले केशों से टपकते हुए पानी से पीछे ब्लाउज भी गीला हो रहा था. उस पर गहरे गले का ब्लाउज पुष्ट उभारों को ढकने के लिए अपर्याप्त लग रहा था. इस दशा में वह साक्षात कामदेव की रति लग रही थीं.

सहसा ही मैं स्वप्नलोक की दुनिया से यथार्थ के धरातल पर लौट आई. फिर सधे कदमों से जा कर पीछे से सौभिक भाई की पीठ थपथपा दी और अनजान सी बनती हुई बोली, ‘भाई, तुम यहां खड़े क्या कर रहे हो? बाहर काका तुम्हें तलाश रहे हैं.’

सौभिक भाई बुरी तरह झेंप गए, बोले, ‘वो…वो…मैं. सौरभ भाई को ढूंढ़ रहा था.’

वह मुझ से नजरें चुराते हुए बिजली की गति से वहां से चले गए. मैं गजरे की थाली लिए भाभी के कमरे में अंदर पहुंची. ‘यह क्या भाभी? इस तरह क्यों बैठी हो? जल्दी से साड़ी बांध कर तैयार हो जाओ, तुम्हें देखने आसपास के लोग आते ही होंगे.’

‘मुझे नहीं पता साड़ी कैसे बांधी जाती है. कमली मेरे लिए दूध लेने गई है, वही आ कर मुझे साड़ी पहनाएगी,’ भाभी का स्वर एकदम सपाट था.

‘अच्छा, लगता है, तुम सिर्फ सलवारसूट ही पहनती हो. आओ, मैं तुम्हें बताती हूं कि साड़ी कैसे बांधी जाती है. मैं तो कभीकभी घर पर शौकिया साड़ी बांध लेती हूं.’

बातें करते हुए मैं ने उन की साड़ी बांधी. फिर केशों को अच्छी तरह पोंछ कर हेयर ड्रायर से सुखा कर पोनी बना दी. फिर हेयर पिन से मोगरे का गजरा लगाया और चेहरे का भी पूरा मेकअप कर डाला. सब से अंत में मांग भरने के बाद जब मैं ने उन के माथे पर मांगटीका सजाया तो कुछ पलों तक मैं खुद उस अपूर्व सुंदरी को निहारती रह गई.

इतनी देर तक मैं उन से अकेले ही बात करती रही. उन का चेहरा एकदम निर्विकार था. पूरे शृंगार के बावजूद कुछ कमी सी लग रही थी. शायद वह कमी थी भाभी के मुखड़े पर नजर न आने वाली स्वाभाविक लज्जा, क्योंकि यही तो वह आभूषण है जो एक भारतीय दुलहन की सुंदरता में चार चांद लगा देता है. ऐसा क्यों था, मैं तब समझ नहीं पाई थी, परंतु अगली रात को रिसेप्शन पार्टी के वक्त इस का राज खुल गया.

वह रात शायद सौरभ भाई के जीवन की सब से दुख भरी रात थी.

उस दिन मौका मिलने पर जबतब मैं सौरभ भाई को भाभी का नाम ले कर छेड़ती थी. रात को रिसेप्शन पार्टी पूरे शबाब पर थी. दूल्हादुलहन को मंडप में बिठाया गया था. लोग तोहफे और बुके ले कर जब दुलहन के पास पहुंचते तो इतनी सुंदर दुलहन देख पलक झपकाना भूल जाते. हम सब खुश थे, पर हमारी खुशी पर जल्दी ही तुषारापात हो गया.

वह पूर्णिमा की रात थी. हर पूर्णिमा को ज्वारभाटे के साथ समुद्र का शोर इतना बढ़ जाता कि काका के घर तक साफ सुनाई पड़ता. उस वक्त ऐसा ही लगा था जैसे अचानक ही शांत समुद्र में इस कदर ज्वारभाटा आ गया हो जो हमारे घर के अमनचैन को तबाह और बरबाद कर डालने पर उतारू हो. मेरे मन में भी शायद समुद्र से कम ज्वारभाटे न थे.

अचानक ही दुलहन बनी भाभी अपने शरीर की हरेक वस्तु को नोंचनोंच कर फेंकने लगीं, फिर पूरे अहाते में चीखती हुई इधर से उधर दौड़ने लगीं. बड़ी मुश्किल से उन्हें काबू में किया गया. कमली ने दौड़ कर कोई दवा भाभी को खिलाई तो वह धीरेधीरे कुरसी पर बेहोश सी पड़ गईं. तब भाभी को उठा कर कमरे में लिटा दिया गया. फिर तो सभी लोगों ने कमली को कटघरे में ला खड़ा किया. उस का चेहरा सफेद पड़ चुका था. उस ने डरते और रोते हुए बताया, ‘पिछले 4 सालों से संगीता बेबी को अचानक दौरे पड़ने शुरू हो गए. रोज दवा लेने से वह कुछ ठीक रहती हैं, परंतु अगर किसी कारणवश 10-11 दिन तक दवा नहीं लें तो दौरा पड़ जाता है. यह सब जान कर कौन शादी के लिए तैयार होता? इसलिए इस बारे में कुछ न बता कर यह शादी कर दी गई.

‘मैं ने उन्हें बचपन से पाला है, इसलिए मुझे साथ भेज दिया गया ताकि उन्हें समय से दवा खिला सकूं. सब ने सोचा कि नियति ने चाहा तो किसी को पता नहीं चलेगा, पर शायद नियति को यह मंजूर नहीं था,’ कह कर कमली फूटफूट कर रोने लगी.

काकी तो यह सुन कर बेहोश हो गईं. मां ने उन्हें संभाला. घर के सभी लोग एकदम आक्रोश से भर उठे. इतने बड़े धोखे को कोई कैसे पचा सकता था. तुरंत उन के मायके वालों को फोन कर दिया कि आ कर अपनी बेटी को ले जाएं. सहसा ही मैं अपराधबोध से भर उठी थी. जिस भाई ने मुझ पर भरोसा कर के मेरी स्वीकृति मात्र से लड़की देखे बिना शादी कर ली उसी भाई का जीवन मेरी वजह से बरबादी के कगार पर पहुंच गया था. इस की टीस रहरह कर मेरे मनमस्तिष्क को विषैले दंश से घायल करती रही और मैं अंदर ही अंदर लहूलुहान होती रही.

2 दिन बाद भाभी के मातापिता आए. हमारे सारे रिश्तेदारों ने उन्हें जितना मुंह उतनी बातें कहीं. जी भर कर उन्हें लताड़ा, फटकारा और वे सिर झुकाए सबकुछ चुपचाप सुनते रहे. 2 घंटे बाद जब सभी के मन के गुबार निकल गए तो भाभी के पिता सब के सामने हाथ जोड़ कर बोले, ‘आप लोगों का गुस्सा जायज है. हम यह स्वीकार करते हैं कि हम ने आप से धोखा किया. हम अपनी बेटी को ले कर अभी चले जाएंगे.

‘परंतु जाने से पहले मैं आप लोगों से यह कहना चाहता हूं कि हमारी बेटी कोई जन्म से ऐसी मानसिक रोगी नहीं थी. उसे इस हाल में पहुंचाने वाला आप का यह बेदर्द समाज है. 7 साल पहले एक जमींदार घराने के अच्छे पद पर कार्यरत लड़के के साथ हम ने संगीता का रिश्ता तय किया था. सगाई होने तक तो वे यही कहते रहे कि आप अपनी मरजी से अपनी बेटी को जो भी देना चाहें दे सकते हैं, हमारी ओर से कोई मांग नहीं है. फिर शादी के 2 दिन पहले इतनी ज्यादा मांग कर बैठे जो किसी भी सूरत में हम पूरी नहीं कर सकते थे.

‘अंतत: हम ने इस रिश्ते को यहीं खत्म कर देना बेहतर समझा, परंतु वे इसे अपना अपमान समझ बैठे और बदला लेने पर उतारू हो गए. चूंकि वे स्थानीय लोग थे इसलिए हमारे घर जो भी रिश्ता ले कर आता उस से संगीता के चरित्र के बारे में उलटीसीधी बातें कर के रिश्ता तोड़ने लगे. इस के अलावा वे हमारे जानपहचान वालों के बीच भी संगीता की बदनामी करने लगे.

‘इन सब बातों से संगीता का आत्मविश्वास खोने लगा और वह एकदम गुमसुम हो गई. फिर धीरेधीरे मनोरोगी हो गई. इलाज के बाद भी खास फर्क नहीं पड़ा. जब आप लोग किसी की बातों में नहीं आए तो किसी तरह आप के घर रिश्ता करने में हम कामयाब हो गए.

‘मन से हम इस साध को भी मिटा न सके  कि बेटी का घर बसता हुआ देखें. हम यह भूल ही गए कि धोखा दे कर न आज तक किसी का भला हुआ है और न होगा. हो सके तो हमें माफ कर दीजिए. आप लोगों का जो अपमान हुआ और दिल को जो ठेस पहुंची उस की भरपाई तो मैं नहीं कर पाऊंगा, पर आप लोगों का जितना खर्चा हुआ है वह मैं घर पहुंचते ही ड्राफ्ट द्वारा भेज दूंगा. बस, अब हमें इजाजत दीजिए.’

फिर वह कमली से बोले, ‘जाओ कमली, संगीता को ले आओ.’

यह सुन कर एकदम सन्नाटा छा गया. तभी जाती हुई कमली को रोकते हुए सौरभ भाई बोले, ‘ठहरो, कमली, संगीता कहीं नहीं जाएगी. यह सही है कि इन लोगों ने हमें धोखा दिया और हम सब को ठेस पहुंचाई. इस के लिए इन्हें सजा भी मिलनी चाहिए, और सजा यह होगी कि आज के बाद इन से हमारा कोई संबंध नहीं होगा. परंतु इस में संगीता की कोई गलती नहीं है, क्योंकि उस की मानसिक दशा तो ऐसी है ही नहीं कि वह इन बातों को समझ सके.

‘परंतु मैं ने तो अपने पूरे होशोहवास में मनप्राण से उसे पत्नी स्वीकारा है. अग्नि को साक्षी मान कर हर दुखसुख में साथ निभाने का प्रण किया है. कहते हैं जन्म, शादी और मृत्यु सब पहले से तय होते हैं. अगर ऐसा है तो यही सही, संगीता जैसी भी है अब मेरे साथ ही रहेगी. मैं अपने सभी परिजनों से हाथ जोड़ कर विनती करता हूं

कि मुझे मेरे जीवनपथ से विचलित न करें क्योंकि मेरा निर्णय अटल है.’

सौरभ भाई के स्वभाव से हम सब वाकिफ थे. वह जो कहते उसे पूरा करने में कोई कसर न छोड़ते, इसलिए एकाएक ही मानो सभी को सांप सूंघ गया.

संगीता भाभी के मातापिता सौरभ भाई को लाखों आशीष देते चले गए. बाकी वहां मौजूद सभी नातेरिश्तेदारों में से किसीकिसी ने सौरभ भाई को सनकी, बेवकूफ और पागल आदि विशेषणों से विभूषित किया और धीरेधीरे चलते बने. आजकल किसी के पास इतना वक्त ही कहां होता है कि किसी की व्यक्तिगत बातों और समस्याओं में अपना कीमती वक्त गंवाए.

भाभी के आने के बाद मैं बहुत मौजमस्ती करने की योजना मन ही मन बना चुकी थी, पर अब तो सब मन की मन ही में रही. तीसरे दिन अपने मम्मीपापा के साथ ही मैं ने लौटने का मन बना लिया.

दुखी मन से मैं भुवनेश्वर लौट आई. आने से पहले चुपके से एक रुमाल में सोने की चेन और कानों की बालियां कमली को दे आई कि मेरे जाने के बाद सौरभ भाई को दे देना. जब उन की ज्ंिदगी में बहार आई ही नहीं तो मैं कैसे उस तोहफे को कबूल कर सकती थी.

सौरभ भाई के साथ हुए हादसे को काकी झेल नहीं पाईं और एक साल के अंदर ही उन का देहांत हो गया. काकी के गम को हम अभी भुला भी नहीं पाए थे कि एक दिन नाग के डसने से कमली का सहारा भी टूट गया. बिना किसी औरत के सहारे के सौरभ भाई के लिए संगीता भाभी को संभालना मुश्किल होने लगा था, इसलिए सौरभ भाई ने कोशिश कर के अपना तबादला भुवनेश्वर करवा लिया ताकि मैं और मम्मी उन की देखभाल कर सकें.

मकान भी उन्होंने हमारे घर के करीब ही लिया था. वहां आ कर मेरी मदद से घर व्यवस्थित करने के बाद सब से पहले वह संगीता भाभी को अच्छे मनोचिकित्सक के पास ले गए. मैं भी साथ थी.

डाक्टर ने पहले एकांत में सौरभ भाई से संगीता भाभी की पूरी केस हिस्ट्री सुनी फिर जांच करने के बाद कहा कि उन्हें डिप्रेसिव साइकोसिस हो गया है. ज्यादा अवसाद की वजह से ऐसा हो जाता है. इस में रोेगी जब तक क्रोनिक अवस्था में रहता है तो किसी को जल्दी पता नहीं चल पाता कि अमुक आदमी को कोई बीमारी भी है, परंतु 10 से ज्यादा दिन तक वह दवा न ले तो फिर उस बीमारी की परिणति एक्यूट अवस्था में हो जाती है जिस में रोगी को कुछ होश नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है. अपने बाल और कपड़े आदि नोंचनेफाड़ने जैसी हरकतें करने लगता है.

डाक्टर ने आगे बताया कि एक बार अगर यह बीमारी किसी को हो जाए तो उसे एकदम जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता, परंतु जीवनपर्यंत रोजाना इस मर्ज की दवा की एक गोली लेने से सामान्य जीवन जीया जा सकता है. दवा के साथ ही साथ साईकोथैरेपी से मरीज में आश्चर्यजनक सुधार हो सकता है और यह सिर्फ उस के परिवार वाले ही कर सकते हैं. मरीज के साथ प्यार भरा व्यवहार रखने के साथसाथ बातों और अन्य तरीकों से घर वाले उस का खोया आत्मविश्वास फिर से लौटा सकते हैं.

डाक्टर के कहे अनुसार हम ने भाभी का इलाज शुरू कर दिया. मां तो अपने घर के काम में ही व्यस्त रहती थीं, इसलिए भाई की अनुपस्थिति में भाभी के साथ रहने और उन में आत्मविश्वास जगाने के लिए मैं ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी. भाई और मैं बातोंबातों में निरंतर उन्हें यकीन दिलाने की कोशिश करते कि वह बहुत अच्छी हैं, सुंदर हैं और हरेक काम अच्छी तरह कर सकती हैं.

शुरू में वह नानुकर करती थीं, फिर धीरेधीरे मेरे साथ खुल गईं. हम तीनों मिल कर कभी लूडो खेलते, कभी बाहर घूमने चले जाते.

लगातार प्रयास से 6 महीने के अंदर संगीता भाभी में इतना परिवर्तन आ गया कि वह हंसनेमुसकराने लगीं. लोगों से बातें करने लगीं और नजदीक के बाजार तक अकेली जा कर सब्जी बगैरह खरीद कर लाने लगीं. दूसरे लोग उन्हें देख कर किसी भी तरह से असामान्य नहीं कह सकते थे. यों कहें कि वह काफी हद तक सामान्य हो चुकी थीं.

हमें आश्चर्य इस बात का हो रहा था कि इस बीच न तो काका और न ही सौभिक भाई कभी हालचाल पूछने आए, पर सब कुछ ठीक चल रहा था, इसलिए हम ने खास ध्यान नहीं दिया.

इस के 5 महीने बाद ही मेरी शादी हो गई और मैं अपनी ससुराल दिल्ली चली गई. ससुराल आ कर धीरेधीरे मेरे दिमाग से सौरभ भाई की यादें पीछे छूटने लगीं क्योंकि आलोक के अपने मातापिता के एकलौते बेटे होने के कारण वृद्ध सासससुर की पूरी जिम्मेदारी मेरे ऊपर थी. उन्हें छोड़ कर मेरा शहर से बाहर जाना मुश्किल था.

मेरे ससुराल जाने के 2 महीने बाद ही पापा ने एक दिन फोन किया कि अच्छी नौकरी मिलने के कारण सौरभ भाई संगीता भाभी के साथ सिंगापुर चले गए हैं. फिर तो सौरभ भाई मेरे जेहन में एक भूली हुई कहानी बन कर रह गए थे.

अचानक किसी के हाथ की थपथपाहट मैं ने अपने गाल पर महसूस की तो सहसा चौंक पड़ी और सामने आलोक को देख कर मुसकरा पड़ी.

‘‘कहां खोई हो, डार्ल्ंिग, कल तुम्हारे प्यारे सौरभ भाई पधार रहे हैं. उन के स्वागत की तैयारी नहीं करनी है?’’ आलोक बोले. वह सौरभ भाई के प्रति मेरे लगाव को अच्छी तरह जानते थे.

‘‘अच्छा, तो आप को पता था कि फोन सौरभ भाई का था.’’

‘‘हां, भई, पता तो है, आखिर वह हमारे साले साहब जो ठहरे. फिर मैं ने ही तो उन से पहले बात की थी.’’

दूसरे दिन सुबह जल्दी उठ कर मैं ने नहाधो कर सौरभ भाई के मनपसंद दमआलू और सूजी का हलवा बना कर रख दिया. पूरी का आटा भी गूंध कर रख दिया ताकि उन के आने के बाद जल्दी से गरमगरम पूरियां तल दूं.

आलोक उठ कर तैयार हो गए थे और बच्चे भी तैयार होने लगे थे. रविवार होने की वजह से उन्हें स्कूल तो जाना नहीं था. कोई गाड़ी घर के बाहर से गुजरती तो मैं खिड़की से झांक कर देखने लगती. आलोक मेरी अकुलाहट देख कर मंदमंद मुसकरा रहे थे.

आखिर जब तंग आ कर मैं ने देखना छोड़ दिया तो अचानक पौने 9 बजे दरवाजे की घंटी बज उठी. मैं ने दौड़ कर दरवाजा खोला तो सामने सदाबहार मुसकान लिए सौरभ भाई अटैची के साथ खड़े थे. वह तो वैसे ही थे, बस बदन पहले की अपेक्षा कुछ भर गया था और मूंछें भी रख ली थीं.

उन से पहली बार मिलने के कारण बच्चे नमस्ते करने के बाद कुछ सकुचाए से खड़े रहे. सौरभ भाई ने घुटनों के बल बैठते हुए अपनी बांहें पसार कर जब उन्हें करीब बुलाया तो दोनों बच्चे उन के गले लग गए.

मैं भाई को प्रणाम करने के बाद दरवाजा बंद करने ही वाली थी कि वह बोले, ‘‘अरे, क्या अपनी भाभी और भतीजे को अंदर नहीं आने दोगी?’’

मैं हक्कीबक्की सी उन का मुंह ताकने लगी क्योंकि उन्होंने भाभी और भतीजे के बारे में फोन पर कुछ कहा ही नहीं था. तभी भाभी ने अपने 7 वर्षीय बेटे के साथ कमरे में प्रवेश किया.

कुछ पलों तक तो मैं कमर से भी नीचे तक चोटी वाली सुंदर भाभी को देख ठगी सी खड़ी रह गई, फिर खुशी के अतिरेक में उन के गले लग गई.

सभी का एकदूसरे से मिलनेमिलाने का दौर खत्म होने और थोड़ी देर बातें करने के बाद भाभी नहाने चली गईं. फिर नाश्ते के बाद बच्चे खेलने में व्यस्त हो गए और आलोक तथा सौरभ भाई अपने कामकाज के बारे में एकदूसरे को बताने लगे.

थोड़ी देर उन के साथ बैठने के बाद जब मैं दोपहर के भोजन की तैयारी करने रसोई में गई तो मेरे मना करने के बावजूद संगीता भाभी काम में हाथ बंटाने आ गईं. सधे हाथों से सब्जी काटती हुई वह सिंगापुर में बिताए दिनों के बारे में बताती जा रही थीं. उन्होंने साफ शब्दों में स्वीकारा कि अगर सौरभ भाई जैसा पति और मेरी जैसी ननद उन्हें नहीं मिलती तो शायद वह कभी ठीक नहीं हो पातीं. भाभी को इस रूप में देख कर मेरा अपराधबोध स्वत: ही दूर हो गया.

दोपहर के भोजन के बाद भाभी ने कुछ देर लेटना चाहा. आलोक अपने आफिस के कुछ पेंडिंग काम निबटाने चले गए. बच्चे टीवी पर स्पाइडरमैन कार्टून फिल्म देखने में खो गए तो मुझे सौरभ भाई से एकांत में बातें करने का मौका मिल गया.

बहुतेरे सवाल मेरे मानसपटल पर उमड़घुमड़ रहे थे जिन का जवाब सिर्फ सौरभ भाई ही दे सकते थे. आराम से सोफे  पर पीठ टिका कर बैठती हुई मैं बोली, ‘‘अब मुझे सब कुछ जल्दी बताइए कि मेरी शादी के बाद क्या हुआ. मैं सब कुछ जानने को बेताब हूं,’’ मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रही थी.

भैया ने लंबी सांस छोड़ते हुए कहना शुरू किया, ‘‘रंजू, तुम्हारी शादी के बाद कुछ भी ऐसा खास नहीं हुआ जो बताया जा सके. जो कुछ भी हुआ था तुम्हारी शादी से पहले हुआ था, परंतु आज तक मैं तुम्हें यह नहीं बता पाया कि पुरी से भुवनेश्वर तबादला मैं ने सिर्फ संगीता के लिए नहीं करवाया था, बल्कि इस की और भी वजह थी.’’

मैं आश्चर्य से उन का मुंह देखने लगी कि अब और किस रहस्य से परदा उठने वाला है. मैं ने पूछा, ‘‘और क्या वजह थी?’’

‘‘मां के बाद कमली किसी तरह सब संभाले हुए थी, परंतु उस के गुजरने के बाद तो मेरे लिए जैसे मुसीबतों के कई द्वार एकसाथ खुल गए. एक दिन संगीता ने मुझे बताया कि सौभिक ने आज जबरन मेरा चुंबन लिया. जब संगीता ने उस से कहा कि वह मुझ से कह देंगी तो माफी मांगते हुए सौभिक ने कहा कि यह बात भैया को नहीं बताना. फिर कभी वह ऐसा नहीं करेगा.

‘‘यह सुन कर मैं सन्न रह गया. मैं तो कभी सोच भी नहीं सकता था कि मेरा अपना भाई भी कभी ऐसी हरकत कर सकता है. बाबा को मैं इस बात की भनक भी नहीं लगने देना चाहता था, इसलिए 2-4 दिन की छुट्टियां ले कर दौड़धूप कर मैं ने हास्टल में सौभिक के रहने का इंतजाम कर दिया. बाबा के पूछने पर मैं ने कह दिया कि हमारे घर का माहौल सौभिक की पढ़ाई के लिए उपयुक्त नहीं है.

‘‘वह कुछ पूछे बिना ही हास्टल चला गया क्योंकि उस के मन में चोर था. रंजू, आगे क्या बताऊं, बात यहीं तक रहती तो गनीमत थी, पर वक्त भी शायद कभीकभी ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करता है कि अपना साया भी साथ छोड़ देता नजर आता है.

‘‘मेरी तो कहते हुए जुबान लड़खड़ा रही है पर लोगों को ऐसे काम करते लाज नहीं आती. कामांध मनुष्य रिश्तों की गरिमा तक को ताक पर रख देता है. उस के सामने जायजनाजायज में कोई फर्क नहीं होता.

‘‘एक दिन आफिस से लौटा तो अपने कमरे में घुसते ही क्या देखता हूं कि संगीता घोर निद्रा में पलंग पर सोई पड़ी है क्योंकि तब उस की दवाओं में नींद की गोलियां भी हुआ करती थीं. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे. सलवार के एक पैर का पायंचा घुटने तक सिमट आया था और उस के अनावृत पैर को काका की उंगलियां जिस बेशरमी से सहला रही थीं वह नजारा देखना मेरे लिए असह्य था. मेरे कानों में सीटियां सी बजने लगीं और दिल बेकाबू होने लगा.

‘‘किसी तरह दिल को संयत कर मैं यह सोच कर वापस दरवाजे की ओर मुड़ गया और बाबा को आवाज देता हुआ अंदर आया जिस से हम दोनों ही शर्मिंदा होने से बच जाएं. जब मैं दोबारा अंदर गया तो बाबा संगीता को चादर ओढ़ा रहे थे, मेरी ओर देखते हुए बोले, ‘अभीअभी सोई है.’ फिर वह कमरे से बाहर निकल गए. इन हालात में तुम ही कहो, मैं कैसे वहां रह सकता था? इसीलिए भुवनेश्वर तबादला करा लिया.’’

‘‘यकीन नहीं होता कि काका ने ऐसा किया. काकी के न रहने से शायद परिस्थितियों ने उन का विवेक ही हर लिया था जो पुत्रवधू को उन्होंने गलत नजरों से देखा,’’ कह कर शायद मैं खुद को ही झूठी दिलासा देने लगी.

भाई आगे बोले, ‘‘रिश्तों का पतन मैं अपनी आंखों से देख चुका था. जब रक्षक ही भक्षक बनने पर उतारू हो जाए तो वहां रहने का सवाल ही पैदा नहीं होता. इत्तिफाकन जल्दी ही मुझे सिंगापुर में एक अच्छी नौकरी मिल गई तो मैं संगीता को ले कर हमेशा के लिए उस घर और घर के लोगों को अलविदा कह आया ताकि दुनिया के सामने रिश्तों का झूठा परदा पड़ा रहे.

‘‘जब मुझे यकीन हो गया कि दवा लेते हुए संगीता स्वस्थ और सामान्य जीवन जी सकती है तो डाक्टर की सलाह ले कर हम ने अपना परिवार आगे बढ़ाने का विचार किया. जब मुझे स्वदेश की याद सताने लगी तो इंटरनेट के जरिए मैं ने नौकरी की तलाश जारी कर दी. इत्तिफाक से मुझे मनचाही नौकरी दिल्ली में मिल गई तो मैं चला आया और सब से पहले तुम से मिला. अब और किसी से मिलने की चाह भी नहीं है,’’ कह कर सौरभ भाई चुप हो गए.

वह 2 दिन रह कर लाजपतनगर स्थित अपने नए मकान में चले गए. मैं बहुत खुश थी कि अब फिर से सौरभ भाई से मिलना होता रहेगा. मेरे दिल से मानो एक बोझ उतर गया था क्योंकि हो न हो मेरी ही वजह से पतझड़ में तब्दील हो गए मेरे प्रिय और आदरणीय भाई के जीवन में भी आखिर वसंत आ ही गया.

जातेजाते भाभी ने मेरे हाथ में छोटा सा एक पैकेट थमा दिया. बाद में उसे मैं ने खोला तो उस में उन की शादी के वक्त मुझे दी गई चेन और कानों की बालियों के साथ एक जोड़ी जड़ाऊ कंगन थे, जिन्हें प्यार से मैं ने चूम लिया.

Online Hindi Story : आईना – किस राह पर चलने लगी थी सुंदर की बेटी

Online Hindi Story : मस्ती में कंधे पर कालिज बैग लटकाए सुरुचि कान में मोबाइल का ईयरफोन लगा कर एफएम पर गाने सुनती हुई मेट्रो से उतरी. स्वचालित सीढि़यों से नीचे आ कर उस ने इधरउधर देखा पर सुकेश कहीं नजर नहीं आया. अपने बालों में हाथ फेरती सुरुचि मन ही मन सोचने लगी कि सुकेश कभी भी टाइम पर नहीं पहुंचता है. हमेशा इंतजार करवाता है. आज फिर लेट.

गुस्से से भरी सुरुचि ने फोन मिला कर अपना सारा गुस्सा सुकेश पर उतार दिया. बेचारा सुकेश जवाब भी नहीं दे सका. बस, इतना कह पाया, ‘‘टै्रफिक में फंस गया हूं.’’

सुरुचि फोन पर ही सुकेश को एक छोटा बालक समझ कर डांटती रही और बेचारा सुकेश चुपचाप डांट सुनता रहा. उस की हिम्मत नहीं हुई कि फोन काट दे. 3-4 मिनट बाद उस की कार ने सुरुचि के पास आ कर हलका सा हार्न बजाया. गरदन झटक कर सुरुचि ने कार का दरवाजा खोला और उस में बैठ गई, लेकिन उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ.

‘‘जल्दी नहीं आ सकते थे. जानते हो, अकेली खूबसूरत जवान लड़की सड़क के किनारे किसी का इंतजार कर रही हो तो आतेजाते लोग कैसे घूर कर देखते हैं. कितना अजीब लगता है, लेकिन तुम्हें क्या, लड़के हो, रास्ते में कहीं अटक गए होगे किसी खूबसूरत कन्या को देखने के लिए.’’

‘‘अरे बाबा, शांत हो कर मेरी बात सुनो. दिल्ली शहर के टै्रफिक का हाल तो तुम्हें मालूम है, कहीं भी भीड़ में फंस सकते हैं.’’

‘‘टै्रफिक का बहाना मत बनाओ, मैं भी दिल्ली में रहती हूं.’’

‘‘तुम तो मेट्रो में आ गईं, टै्रफिक का पता ही नहीं चला, लेकिन मैं तो सड़क पर कार चला रहा था.’’

‘‘बहाने मत बनाओ, सब जानती हूं तुम लड़कों को. कहीं कोई लड़की देखी नहीं कि रुक गए, घूरने या छेड़ने के लिए.’’

‘‘तुम इतना विश्वास के साथ कैसे कह सकती हो?’’

‘‘विश्वास तो पूरा है पर फुरसत में बताऊंगी कि कैसे मुझे पक्का यकीन है…’’

‘‘तो अभी बता दो, फुरसत में…’’

‘‘इस समय तो तुम कार की रफ्तार बढ़ाओ, मैं शुरू से फिल्म देखना चाहती हूं. देर से पहुंचे तो मजा नहीं आएगा.’’

सिनेमाहाल के अंधेरे में सुरुचि फिल्म देखने में मस्त थी, तभी उसे लगा कि सुकेश के हाथ उस के बदन पर रेंग रहे हैं. उस ने फौरन उस के हाथ को झटक दिया और अंधेरे में घूर कर देखा. फिर बोली, ‘‘सुकेश, चुपचाप फिल्म देखो, याद है न मैं ने कार में क्या कहा था, एकदम सच कहा था, जीताजागता उदाहरण तुम ने खुद ही दे दिया. जब तक मैं न कहूं, अपनी सीमा में रहो वरना कराटे का एक हाथ यदि भूले से भी लग गया तो फिर मेरे से यह मत कहना कि बौयफें्रड पर ही प्रैक्टिस.’’

यह सुन कर बेचारा सुकेश अपनी सीट पर सिमट गया और सोचने लगा कि किस घड़ी में कराटे चैंपियन लड़की पर दिल दे बैठा. फिल्म समाप्त होने पर सुकेश कुछ अलगअलग सा चलने लगा तो सुरुचि ने उस का हाथ पकड़ा और बोली, ‘‘इस तरह छिटक के कहां जा रहे हो, भूख लगी है, रेस्तरां में चल कर खाना खाते हैं,’’ और दोनों पास के रेस्तरां में खाना खाने चले गए.

कोने की एक सीट पर बैठे सुकेश व सुरुचि बातें करने व खाने में मस्त थे. तभी शहर के मशहूर व्यापारी सुंदर सहगल भी उसी रेस्तरां में अपने कुछ मित्रों के साथ आए और एक मेज पर बैठ कर बिजनेस की बातें करने लगे. आज के भागदौड़ के समय में घर के सदस्य भी एकदूसरे के लिए एक पल का समय नहीं निकाल पाते हैं, सुरुचि के पिता सुंदर सहगल भी इसी का एक उदाहरण हैं. आज बापबेटी आमनेसामने की मेज पर बैठे थे फिर भी एकदूसरे को नहीं देख सके.

लगभग 1 घंटे तक रेस्तरां में बैठे रहने के बाद पहले सुरुचि जाने के लिए उठी. वह सुंदर की टेबल के पास से गुजरी और उस का पर्स टेबल के कोने से अटक गया. जल्दी से पर्स छुड़ाया और ‘सौरी अंकल’ कह कर सुकेश के हाथ में हाथ डाले निकल गई. उसे इस बात का एहसास ही नहीं हुआ कि वह टेबल पर बैठे अंकल और कोई नहीं उस के पिता सुंदर सहगल थे.

लेकिन पिता ने देख लिया कि वह उस की बेटी है. अपने को नियंत्रण में रख कर वह बिजनेस डील पर बातें करते रहे. उन्होंने यह जाहिर नहीं होने दिया कि वह उन की बेटी थी. रेस्तरां से निकल कर सुंदर सीधे घर पहुंचे. उन की पत्नी सोनिया कहीं बाहर जाने की तैयारी कर रही थीं. मेकअप करते हुए सोनिया ने पति से पूछा, ‘‘क्या बात है, दोपहर में कैसे आना हुआ, तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘हां, ठीक है.’’

‘‘तबीयत ठीक है तो इतनी जल्दी? कुछ बात तो है…आप का घर लौटने का समय रात 11 बजे के बाद ही होता है. आज क्या बात है?’’

‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘किटी पार्टी में और कहां जा सकती हूं. एक सफल बिजनेसमैन की बीवी और क्या कर सकती है.’’

‘‘किटी पार्टी के चक्कर कम करो और घर की तरफ ध्यान देना शुरू करो.’’

‘‘आप तो हमेशा व्यापार में डूबे रहते हैं. यह अचानक घर की तरफ ध्यान कहां से आ गया?’’

‘‘अब समय आ गया है कि तुम सुरुचि की ओर ध्यान देना शुरू कर दो. आज उस ने वह काम किया है जिस की मैं कल्पना नहीं कर सकता था.’’

‘‘मैं समझी नहीं, उस ने कौन सा ऐसा काम कर दिया…खुल कर बताइए.’’

‘‘क्या बताऊं, कहां से बात शुरू करूं, मुझे तो बताते हुए भी शर्म आ रही है.’’

‘‘मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है कि आप क्या बताना चाहते हैं?’’ सोनिया, जो अब तक मेकअप में व्यस्त थी, पति की तरफ पलट कर उत्सुकतावश देखने लगी.

‘‘सोनिया, तुम्हारी बेटी के रंगढंग आजकल सही नहीं हैं,’’ सुंदर सहगल तमतमाते हुए बोले, ‘‘खुल्लमखुल्ला एक लड़के के हाथों में हाथ डाले शहर में घूम रही है. उसे इतना भी होश नहीं था कि उस का बाप सामने खड़ा है.’’

कुछ देर तक सोनिया सुंदर को घूरती रही फिर बोली, ‘‘देखिए, आप की यह नाराजगी और क्रोध सेहत के लिए अच्छा नहीं है. थोड़ी शांति के साथ इस विषय पर सोचें और धीमी आवाज में बात करें.’’

इस पर सुंदर सहगल का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया. चेहरा लाल हो गया और ब्लडप्रेशर ऊपर हो गया. सोनिया ने पति को दवा दी और सहारा दे कर बिस्तर पर लिटाया. खुद का किटी पार्टी में जाने का प्रोग्राम कैंसल कर दिया.

सुंदर को चैन नहीं था. उस ने फिर से सोनिया से सुरुचि की बात शुरू कर दी. अब सोनिया, जो इस विषय को टालना चाहती थी, ने कहना शुरू किया, ‘‘आप इस बात को इतना तूल क्यों दे रहे हैं. मैं सुकेश से मिल चुकी हूं. आजकल लड़कालड़की में कोई अंतर नहीं है. कालिज में एकसाथ पढ़ते हैं. एकसाथ रहने, घूमनेफिरने में कोई एतराज नहीं करते और फिर मुझे अपनी बेटी पर पूरा भरोसा है कि वह कोई गलत काम कर ही नहीं सकती है. मैं ने उसे पूरी ट्रेनिंग दे रखी है. आप को मालूम भी नहीं है, वह कराटे जानती है और 2 बार मनचलों पर कराटे का इस्तेमाल भी कर चुकी है…’’

‘‘सोनिया, तुम सुरुचि के गलत काम में उस का साथ दे रही हो,’’ सुंदर सहगल ने तमतमाते हुए बीच में बात काटी.

‘‘मैं आप से बारबार शांत होने के लिए कह रही हूं और आप हैं कि एक ही बात को रटे जा रहे हैं. आखिर वह है तो आप की ही बेटी. तो आप से अलग कैसे हो सकती है.

‘‘आप अपनी जवानी के दिनों को याद कीजिए. 25 साल पहले, आप क्या थे. एक अमीर

बाप की बिगड़ी औलाद जो महज मौजमस्ती के लिए कालिज जाता था. आप ने कभी कोई क्लास भी अटैंड की थी, याद कर के बता सकते हैं मुझे.’’

‘‘तुम क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘वही जो आप मुझ से सुनना चाह रहे थे…आप का ज्यादातर समय लड़कियों के कालिज के सामने गुजरता था. आप ने कितनी लड़कियों को छेड़ा था शायद गिनती भी नहीं कर सकते, मैं भी उन्हीं में से एक थी. आतेजाते लड़कियों को छेड़ना, फब्तियां कसना ही आप और आप की मित्रमंडली का प्रिय काम था. छटे हुए गुंडे थे आप सब, इसलिए हर लड़की घबराती थी और मेरा तो जीना ही हराम कर दिया था आप ने. मैं कमजोर थी क्योंकि मेरा बाप गरीब था और कोई भाई आप की हरकतों का जवाब देने वाला नहीं था. इसलिए आप की हरकतों को नजरअंदाज करती रही.

‘‘हद तो तब हो गई थी जब मेरे घर की गली में आप ने डेरा जमा लिया था. आतेजाते मेरा हाथ पकड़ लेते थे. कितना शर्मिंदा होना पड़ता था मुझे. मेरे मांबाप पर क्या बीतती थी, आप ने कभी सोचा था. मेरा हाथ पकड़ कर खीखी कर पूरी गुंडों की टोली के साथ हंसते थे. शर्म के मारे जब एक सप्ताह तक मैं घर से नहीं निकली तो आप मेरे घर में घुस आए. कभी सोचने की कोशिश भी शायद नहीं की होगी आप ने कि क्या बीती होगी मेरे मांबाप पर और आज मुझ से कह रहे हैं कि अपनी बेटी को संभालूं. खून आप का भी है, कुछ तो बाप के गुण बच्चों में जाएंगे लेकिन मैं खुद सतर्क हूं क्योंकि मैं खुद भुगत चुकी हूं कि इन हालात में लड़की और उस के मातापिता पर क्या बीतती है.

‘‘इतिहास खुद को दोहराता है. आज से 25 साल पहले जब उस दिन सब हदें पार कर के आप मेरे घर में घुसे थे कि शरीफ बाप क्या कर लेगा और अपनी मनमानी कर लेंगे तब मैं अपने कमरे में पढ़ रही थी और कमरे में आ कर आप ने मेरा हाथ पकड़ लिया था. मैं चिल्ला पड़ी थी. पड़ोस में शकुंतला आंटी ने देख लिया था. उन के शोर मचाने पर आसपास की सारी औरतें जमा हो गई थीं…जम कर आप की धुनाई की थी, शायद आप उस घटना को भूल गए होंगे, लेकिन मैं आज तक नहीं भूली हूं.

‘‘महल्ले की औरतों ने आप की चप्पलों, जूतों, झाड़ू से जम कर पिटाई की थी, सारे कपड़े फट गए थे, नाक से खून निकल रहा था और आप को पिटता देख आप के सारे चमचे दोस्त भाग गए थे और उस अधमरी हालत में घसीटते हुए सारी औरतें आप को इसी घर में लाई थीं. ससुरजी भागते हुए दुकान छोड़ कर घर आए और आप की करतूतों के लिए सिर झुका लिया था, लिखित माफी मांगी थी, कहो तो अभी वह माफीनामा दिखाऊं, अभी तक संभाल कर रखा है.’’

सुंदर सहगल कुछ नहीं बोल सके और धम से बिस्तर पर बैठ गए. सोनिया ने उन के अतीत का आईना सामने जो रख दिया था. सच कितना कड़वा होता है शायद इस बात का अंदाजा उन्हें आज हुआ.

आज इतिहास करवट बदल कर सामने खड़ा है. खुद अपना चेहरा देखने की हिम्मत नहीं हो रही है, सुधबुध खो कर वह शून्य में गुम हो चुके थे. सोनिया क्या बोल रही है, उन के कान नहीं सुन रहे थे, लेकिन सोनिया कहे जा रही थी :

‘‘आप सुन रहे हैं न, चोटग्रस्त होने की वजह से एक हफ्ते तक आप बिस्तर से नहीं उठ सके थे. जो बदनामी आप को आज याद आ रही है, वह मेरे पिता और ससुरजी को भी आई थी. बदनामी लड़के वालों की भी होती है. एक गुंडे के साथ कोई अपनी लड़की का ब्याह नहीं कर रहा था. चारों तरफ से नकारने के बाद सिर्फ 2 ही रास्ते थे आप के पास या तो किसी गुंडे की बहन से शादी करते या कुंआरे रह कर सारी उम्र गुंडागर्दी करते.

‘‘जिस बाप की लड़की के पीछे गुंडा लग जाए, वह कर भी क्या सकता था. ससुरजी ने जब सब रास्ते बंद देख कर मेरा हाथ मेरे पिता से मांगा तो मजबूरी से दब कर एक गुंडे को न चाहते हुए भी उन्हें अपना दामाद स्वीकार करना पड़ा,’’ कहतेकहते सोनिया भी पलंग का पाया पकड़ कर सुबक कर रोने लगी.

बात तो सच है, जवानी की रवानी में जो कुछ किया जाता है, उस को भूल कर हम सभी बच्चों से एक आदर्श व्यवहार की उम्मीद करते हैं. क्या अपने और बच्चों के लिए अलग आदर्श होने चाहिए, कदापि नहीं. पर कौन इस का पालन करता है. सुंदर सहगल तो केवल एक पात्र हैं जो हर व्यक्ति चरितार्थ करता है.

Hindi Kahani : घोंसला – वृद्धावस्था के संवेगों को उकेरती मर्मस्पर्शी कहानी

Hindi Kahani : सुबह होतेहोते महल्ले में खबर फैल  गई थी कि कोने के मकान में  रहने वाले कपिल कुमार संसार छोड़ कर चले गए. सभी हैरान थे. सुबह से ही उन के घर से रोने की आवाजें आ रही थीं. पड़ोस में रहने वाले उन के हमउम्र दोस्त बहुत दुखी थे. वास्तव में वे मन से भयभीत थे.

उम्र के इस पड़ाव में जैसेतैसे दिन कट रहे थे. सब दोस्तों की मंडली कपिल कुमार के आंगन में सुबहशाम जमती थी. कपिल कुमार को चलनेफिरने में दिक्कत थी, इसलिए सब यारदोस्त उन के यहां ही एकत्रित हो जाते और फिर कभी कोई ताश की बाजी चलती तो कभी लूडो खेला जाता. कपिल कुमार की आवाज में खासा रोब था. ऊपर से जिंदादिली ऐसी कि रोते हुए को वे हंसा देते.

विनोद साहब तो उन की खबर सुन कर सुन्न रह गए. बिलकुल बगल वाला घर उन का ही था. इसलिए सब से पहले खबर उन्हें ही मिली. विनोद साहब अपनी पत्नी के साथ अकेले रहते थे. उन के दोनों बेटे अमेरिका में सैटल थे. कभीकभी मौत का ध्यान कर वे डर जाया करते थे कि अगर वे पहले चले गए तो उन की पत्नी अकेली रह जाएगी, तब उन की भोली पत्नी कैसे पैंशन और बैंक आदि के काम कर पाएगी. दोनों बेटे अपनीअपनी नौकरी में इतने मस्त थे कि वे कभी एक हफ्ते से ज्यादा इंडिया आए ही नहीं.

विनोद साहब काफी ईमानदार व मिलनसार व्यक्ति थे. वे कपिल कुमार से 3 साल बड़े थे. उन्हें मन ही मन काफी विश्वास था कि आगे उन्हें कुछ होगा तो वे उन की पत्नी की जरूर मदद कर देंगे. परंतु कपिल कुमार की अकस्मात मौत की खबर ने उन की चिंता बढ़ा दी थी.

चाय का ठेला लगाने वाला नानका सुबह उन के घर आ कर खबर पक्की कर गया था. वह सुबकसुबक कर रो रहा था. कपिल कुमार अकसर उसे छेड़ा करते थे. उस की शादी नहीं हुई थी. पर अपना घर बसाने का उस के मन में बहुत चाव था. वह पंजाब के होशियारपुर का रहने वाला था. उस के मातापिता बचपन में ही गुजर गए थे. उसे विधवा मौसी ने पाला था. फिर वह भी कैंसर से बीमार हो कर ऊपर वाले को प्यारी हो गई थी. उस का मन संसार से विरक्त हो गया था.

वह घरबार छोड़ कर इधरउधर घूमता रहा. एक दिन विनोद साहब को ट्रेन में मिला था. उस के बारे में जान कर वह उसे सम झाबु झा कर साथ ले आए थे. उन्होंने अपनी मंडली की मदद से उस को चाय का ठेला लगवा दिया था. दिनभर उस के ठेले पर अच्छा जमघट लगा रहता. उस की मीठी बोली का रस लोगों के दिलों तक पहुंच जाता था और सब उस के कायल हो जाते थे. सारा दिन मंडली का चायनाश्ता उस की जिम्मेदारी थी. वे लोग भी उस का खूब खयाल रखते. कभी उस को बड़ा और्डर मिल जाता तो वे सब उस की मदद करने बैठ जाते. उन से उस का कुछ बंधा हुआ नहीं था. जब जिस का मन होता वह उसे पकड़ा देता और उस ने भी उन के साथ कुछ हिसाबकिताब नहीं रखा था. नानका के लिए वे सभी लोग खून से बड़े रिश्ते वाले थे.

उन लोगों के दिए प्यार और अपनेपन ने उस के शुष्क मन में हरियाली भर दी. आज कपिल कुमार के जाते ही उस को लगा कि उस का अपना उसे छोड़ कर चला गया. उन की मंडली के खन्ना साहब को भी जब से खबर मिली थी तब से वे भी काफी उदास थे. मन ही मन सोच रहे थे कि उन सब का घोंसला टूट गया. दिल चाह रहा था कि दौड़ कर कपिल कुमार के घर पहुंच जाएं पर पांव थे कि साथ नहीं दे रहे थे. शायद मन ही मन अपना भविष्य वे कपिल कुमार में देख कर डर गए थे.

उन के बेटे ने जब से खबर सुनाई थी, वे सोच में डूबे थे. पता नहीं जिंदगी का मोह था या सचाई से सामना करने का डर जो उन्हें अपने जिगरी यार के घर जाने से रोक रहा था. उन के कानों में कपिल कुमार के जोरदार ठहाकों की आवाज गूंज रही थी. कल शाम ही लूडो खेलते हुए वे जब बाजी जीत गए तो बोले थे, ‘मु झ से कोई जीत नहीं सकता.’

सरदार इंदरपाल का भी यही हाल था. वे कपिल कुमार के घर सुबह ही पहुंच गए थे. उन की बौडी के पास बैठे वे पथरा से गए थे. परिवार के रोने की आवाजें रहरह कर उन के कानों में गूंज रही थीं. ‘पापाजी की तसवीरों में से अच्छी सी तसवीर निकालो…’, ‘बेटे को खबर कर दी…’,  ‘अच्छा दोपहर तक पहुंचेगा…’ ‘बेटी आ गई…’ अचानक रोने की आवाज तेज हो गई. उन के भाईबहन पहुंच गए थे. सरदार इंद्रपाल को मालूम था कि कपिल कुमार के अपने भाई से रिश्ते कुछ खास अच्छे नहीं थे पर अंतिम यात्रा में सब को शामिल होना था.

सरदार इंद्रपाल अपने ही विचारों में खो गए. उन का एक ही बेटा था. अपना सबकुछ लगा कर उसे पढ़ायालिखाया. अमेरिका में एक बड़ी कंपनी में काम करता था. डौलरों में तनख्वाह मिलती थी, खूब पैसा भेजता था. शुरू में तो हमेशा कहता था, ‘कुछ साल का अनुभव लेने के बाद वापस आ जाएगा, तब अपने देश में उसे अच्छी नौकरी मिल जाएगी.’ धीरेधीरे उसे अपने भविष्य के आगे बेटे का भविष्य दिखाई देने लगा. इंद्रपाल पत्नी के साथ अपने पुश्तैनी मकान में रह गए और फिर एक दिन पत्नी भी छोड़ कर चली गई. अब तो ये यारदोस्त की मंडली ही उन के लिए सबकुछ थी.

आज उन में भी एक विकेट गिर गया. कपिल कुमार के घर से बाहर आ कर उन का दिल बहुत भावुक हो गया. उन्होंने बेटे को फोन मिलाया. ‘‘क्या हुआ पापाजी, सब ठीक है न?’’ उस की आवाज की घबराहट सुन कर सरदार इंद्रपाल को अपनी गलती का एहसास हुआ. वहां इस समय मध्यरात्रि थी.

अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हुए बोले, ‘‘हां पुत्तर, सब ठीक है. रात को बुरा सपना आया था, सो तुम सब की खैरियत जानने के लिए फोन किया था. टाइम का खयाल ही दिमाग से निकल गया.’’

बेटे के दिल तक पिता की व्याकुलता पहुंच चुकी थी. उस ने धीरे से कहा, ‘‘पापाजी, क्या हुआ है?’’‘‘मेरा यार कपिल सानू छड के चला गया,’’ कहतेकहते वे बच्चों की तरह बिलख कर रोने लगे. बेटे ने कई तरह से उन को दिलासा दिया और जल्दी ही आने का वादा कर के उन्हें शांत किया.

इधर बंगाली बाबू का भी घर पर यही हाल था. जब से कपिल कुमार की डैथ का उन्हें पता चला, तब से वे न जाने कितनी बार टौयलेट जा कर आए थे. वे शुरू से कम बोलते थे, पर मितभाषी होने पर भी कुदरत ने इमोशंस उन को भी कम नहीं दिए थे. वे अच्छे सरकारी ओहदे से रिटायर्ड थे. बहुत से लोगों से उन की जानपहचान थी. परंतु रिटायरमैंट के बाद संयोग से जिस भी दोस्त को फोन किया, तो पता चला कि वह इस लोक को छोड़ गया. तब से उन के मन में वहम हो गया, इसलिए उन्होंने फोन करना ही छोड़ दिया.

सब उन का मजाक उड़ाते कि उन के फोन करने और न करने से कुछ बदलने वाला नहीं है. पर वे मुसकरा कर कहते ‘फोन न करने से मेरे मोबाइल में उन का नंबर बना रहता और दिल को तसल्ली रहती है कि मेरे पास अभी भी इतने सारे दोस्त हैं,’ उन की पत्नी कब से पैरों में चप्पल डाले तैयार खड़ी थी पर बंगाली बाबू के पेट में बारबार मरोड़ उठने लगते थे. आखिर हिम्मत कर के वे अपने यार के अंतिम दर्शन के लिए निकल पड़े. रितेश साहब इन सब से कुछ विपरीत थे. वे सुबह ही कपिल

कुमार के घर पर आ कर पूरा इंतजाम संभाल रहे थे. शादीब्याह हो या किसी का मरना, वे इसी तरह अपनी फ्री सेवा प्रदान करते हैं. किसी के बिना कुछ कहे सब इंतजाम वे अपने से कर लेते थे, फिर कपिल तो उन का यार था. इस में कैसे वे पीछे रह जाते. बाहर तंबू लगवाते वे सोच रहे थे कि बाकी दोस्त कहां रह गए. सब की मनोदशा का उन को कुछकुछ अंदाजा था. नानका वहां पहले से पहुंचा हुआ था. घर के बाहर लगे लैटर बौक्स से पानी का बिल हाथ में लिए आया और फूटफूट कर रोने लगा.

‘‘हर बार साहब मु झे पहले जा कर बिल भरने की हिदायत देते थे और सब के बिल इकट्ठे कर के देते थे. अब मु झे कौन…’’ रितेश साहब ने उसे अपने कंधे से लगा लिया और उसे चुप कराने लगे. नानका सब का दुलारा था. पानी का बिल हो या किसी बीमार रिश्तेदार को देखने जाना हो, सब का यह मुंहबोला बेटा हमेशा उन के साथ जाता था. वह कब उन के दुखसुख का साथी बन गया था, यह किसी को नहीं पता था.

दोपहर तक कपिल कुमार का बेटा परिवार सहित आ गया. सभी रिश्तेदार भी धीरेधीरे जमने शुरू हो गए. कपिल कुमार की मित्रमंडली भी उन के घर के आगे जमा हो गई. आती भी कैसे नहीं, यार को अंतिम यात्रा में कंधा देना था. अर्थी के उठाते ही एक बार फिर रुदन का स्वर ऊंचा हो गया. महल्ले के कोने में खड़ा नानका चाय वाले की आंखें नम हो आई थीं. इस मित्रमंडली की वजह से उस का मनोरंजन होता रहता था, वरना आजकल तो सब लोग घर में ही घुसे रहते हैं, कोई किसी से बात कर के राजी ही नहीं है.

शाम होतेहोते सबकुछ खत्म हो गया. जिस आदमी के ठहाकों से पूरी गली गूंजती थी, वहां आज मातम छाया था. सब अपने घरों में जा कर दुबक गए.

रितेश साहब ने हिम्मत की और कपिल कुमार के घर के आंगन में पहुंच गए. घरपरिवार के लोग अंदर थे. बाहर मित्रमंडली की कुरसियां तितरबितर थीं. धीरेधीरे उन्होंने कुरसियों को सहेजना शुरू किया और बड़े जतन से उसे सटाने लगे. वे बीच में कोई जगह खाली नहीं छोड़ना चाहते थे, शायद ऐसा करने से तथाकथित यमराज उन दोस्तों तक न पहुंच पाए. बाहर हलचल की आवाज सुन कर कपिल कुमार का बेटा बाहर आ गया.

उन्हें कुरसी लगाते देख कर बोला, ‘‘अंकल, कोई आने वाले हैं?’’ ‘‘हां बेटा, हम सब की मजलिस का समय हो गया है,’’ कहतेकहते फफक कर रोने लगे. उन्हें किसी तरह चुप करवा कर कपिल कुमार का बेटा उन्हें उन के घर छोड़ कर आया.

3-4 दिनों में ही सब क्रियाकर्मों के साथ उस ने सामान का निबटारा शुरू कर दिया. सब सामान पुराना था, इसलिए बेहतर यही सम झा गया कि आसपड़ोस वालों को या गरीबों को दे दिया जाए. कपिल कुमार की मित्रमंडली का मन था कि सभी कुरसियां वह ज्यों की त्यों छोड़ दे पर सकुचाहट की वजह से प्रकट में कोई नहीं बोला.  शायद, दोबारा अपनी मंडली को एकसाथ एकत्रित करने का साहस बटोर रहे थे.

चौथे के अगले दिन उन्हें पता चला कि सब सामान इधरउधर दे कर मकान का भी सौदा हो गया है. मानवीय संवेदनाओं को दरकिनार कर व्यावहारिक होने में अब कम ही समय लगता है. नम आंखों के साथ कपिल कुमार का बेटा सब से विदाई ले कर चला गया.

उस के जाते ही सारे दोस्त अपनेअपने घरों से निकल आए जैसे उस के जाने का इंतजार कर रहे हों. कपिल कुमार के घर के बाहर एक कोने में टैंट वाले की दरी अभी भी पड़ी थी. चुपचाप सारे दोस्त असहज हो कर भी उसी दरी पर बैठने की कोशिश करने लगे. उम्र के इस मोड़ पर चौकड़ी मार कर बैठना मुश्किल था, सब निशब्द थे पर उन के मौन में भी एक प्रश्न था कि कल से कहां बैठने का इंतजाम करना है.

महल्ले के कोने में खड़ा चायवाला नानका अचानक से हाथ जोड़े उन के सामने आ कर खड़ा हो गया.  ‘‘साहब, कपिल कुमार के बेटे ने सारी कुरसियां मु झे दे दी हैं. आप सब से विनती है कि आप चल कर मेरी दुकान पर बैठें. आप सब हैं, तो इस महल्ले में रौनक है, वरना आजकल कौन किसी से बात करता है.’’

कुछ ही देर में चाय वाले के यहां उन सब का नया घोंसला तैयार था और वे सब बैठे लूडो खेलने की तैयारी में लगे थे.

Best Hindi Story : जीवन की डाटा एंट्री – जिंदगी से हताश युवक की दिल छूती कहानी

Best Hindi Story : इधरउधर नजरें घुमा कर अनंत देसाई ने आफिस का मुआयना किया. उन्होंने आज ही अखबार के आधे पृष्ठ का रंगीन विज्ञापन देखा था. डेल्टा इन्फोसिस प्राइवेट लिमिटेड का नाम इस विज्ञापन में देख कर और उस की बारीकियां पढ़ कर देसाईजी ने चैन की सांस ली थी कि चलो, बेटे रोहित का कहीं तो ठिकाना हो सकता है. नौकरियां नहीं हैं तो क्या इस एम.एन.सी. (मल्टीनेशनल कंपनी) कल्चर ने रोजीरोटी के कुछ और रास्ते निकाल ही दिए हैं. उन से बेटे का हताशनिराश चेहरा अब और नहीं देखा जा रहा था.

रोहित एम.सी.ए. करने के बाद एक कंप्यूटर कंपनी की सेल्स मार्केटिंग में लगा हुआ था. सुबह 8 बजे का निकला रात के 8 बजे ही घर आ पाता था. धूप हो, बारिश हो या तबीयत खराब हो, वह छुट्टी की बात सोच भी नहीं सकता था, उस पर वेतन 2,500 रुपए.

अपने जहीन बेटे की ज्ंिदगी को 2,500 रुपए में गिरवी पड़ी देख कर अनंत देसाई को भारी छटपटाहट होती थी. उन्होंने एक दिन गुस्से में कहा भी था, ‘‘यह नौकरी छोड़ क्यों नहीं देते?’’

रोहित ने लाचारी से आंखें उठाई थीं, ‘‘यह नौकरी छोड़ भी दूं तो करूंगा क्या? आप तो देख रहे हैं कि 2 वर्ष से लिखित परीक्षा पास कर के भी साक्षात्कार में मात खा रहा हूं. नौकरी हथिया लेता है कोई सिफारिशी लड़का या लड़की.’’

‘‘उच्च तकनीकी शिक्षा ले कर भी बाजार में नौकरी के लिए मारेमारे घूमते हो यह मुझ से देखा नहीं जाता है.’’

‘‘पापा, और रास्ता भी क्या है?’’ कह कर रोहित मायूस हो गया था.

अभी उसे नौकरी करते 5 महीने ही बीते थे कि रोहित बारबार बीमार पड़ने लगा जिस का असर उस के काम पर भी पड़ रहा था. इस से पहले कि

कंपनी वाले उसे नौकरी से निकाल देते उस ने नौकरी छोड़ दी.

इस के बाद से ही रोहित ने अपने को कमरें में बंद कर लिया. न घूमने निकलता, न दोस्तों से मिलता. मम्मी कभी जबरन उसे टेलीविजन के सामने बैठा देतीं तो उस की आंखें टीवी के परदे पर स्थिर हो जातीं लेकिन ध्यान कहीं और भटकता रहता.

अनंत देसाई ने रोजगार समाचार के अलावा अन्य अखबार भी मंगाने शुरू कर दिए थे. वह रोहित के लिए नौकरियों के विज्ञापन को लाल स्याही के घेरे में तो ले लेते लेकिन एक भी नौकरी जीवन के घेरे में नहीं आ पा रही थी.

पितापुत्र दोनों डेल्टा इन्फोसिस के कार्यालय की शानोशौकत से प्रभावित बैठे थे. यू आकार के काउंटर के पीछे 2 लड़के व 1 लड़की मुस्तैदी से काम कर रहे थे. दाईं तरफ बने एक केबिन को देख कर अनंत देसाई ने सोचा इस में जरूर डायरेक्टर नीलेश याज्ञनिक बैठे होंगे.

रिसेप्शन के गुदगुदे सोफे पर पहलू बदलते हुए अनंत देसाई ने धीमे से बेटे से कहा, ‘‘आफिस तो अच्छा है.’’

रोहित ने सिर हिला कर समर्थन किया. थोड़ी देर में चपरासी ने झुक कर कहा, ‘‘आप लोगों को सर बुला रहे हैं.’’

उन के अंदर आते ही नीलेश ने बड़ी गर्मजोशी से उन का स्वागत किया और दोनों से हाथ मिलाया. अनंत देसाई ने सीधे ही बता दिया, ‘‘देखिए, डाटा एंट्री के बारे में मैं थोड़ाबहुत जानता हूं. मैं अपने बेटे के लिए कोई काम ढूंढ़ रहा हूं. आप ने जो विज्ञापन दिया था उस के बारे में विस्तार से बताइए.’’

‘‘जरूर’’ नफासत से कंधे उचकाते हुए नीलेश ने कहना शुरू किया, ‘‘आजकल विदेशों में बड़े होटलों, अस्पतालों और शैक्षणिक संस्थानों के पास समय नहीं है इसलिए वे अपनी स्केन फाइल के दस्तावेज बनवाने के लिए हमारे पास भेजते हैं. आप ने शायद ओबलौग इ लाइब्रेरी का नाम सुना होगा?’’ नीलेश ने सीधे ही उन की आंखों में देख कर पूछा.

न जानते हुए भी उन के मुंह से ‘हां’ निकला तो नीलेश ने कहा, ‘‘बस, वही हमारे सब से बड़े क्लाइंट हैं.’’

‘‘आप का यह पहला आफिस है?’’

‘‘नहीं, हमारे मुंबई और दिल्ली में भी आफिस हैं. वहां की प्रगति देख कर मैं ने सोचा कि एक आफिस यहां भी खोला जाए.’’

‘‘मेरा बेटा डाटा एंट्री का काम करना चाहता है. इस के लिए मुझे क्या करना होगा?’’

‘‘डाटा एंट्री करने वाले कंप्यूटर आपरेटर कहलाते हैं. इन से हम 2,500 रुपए सिक्योरिटी मनी के रूप में लेते हैं. वे यह काम घर बैठ कर भी कर सकते हैं.’’

‘‘जी, इस काम से आगे क्या उम्मीद की जा सकती है?’’

‘‘अजी साहब, अभीअभी तो यह काम शुरू हुआ है पर जो विदेशी कंपनियां भारत को काम दे रही हैं वे यहां के प्रतिभावान लोगों को अपने देश में भी बुला सकती हैं.’’

‘‘पहले काल सेंटर व ट्रांसक्रिप्शन का ऐसा ही शोर मचा था. कुछ काल सेंटर तो बंद भी हो गए.’’

‘‘उन के प्रबंधक नाकाबिल रहे होंगे. बड़े शहरों में तो अभी भी धड़ल्ले से काल सेंटर चल रहे हैं. मुझे कोई जल्दी नहीं है, आप सोच लीजिए. वैसे मेरे पास इतना काम है कि मैं 400 लोगों को काम दे सकता हूं.’’

अनंत देसाई ने फौरन कहा, ‘‘मैं 2,500 रुपए अभी देना चाहता हूं.’’

‘‘धन्यवाद, आप इस काम की पूरी जानकारी यहां के मैनेजर सोमी से ले लीजिए और उन्हीं के पास रुपए जमा कर दीजिए.’’

केबिन से बाहर आ कर उन्होंने देखा बाईं तरफ लकड़ी के केबिन के बाहर नेमप्लेट लगी थी ‘सोमी’.

देसाई और रोहित कुरसियां खींच कर सोमी के सामने बैठ गए. देसाई ने उन से कहा, ‘‘मैं अपने बेटे रोहित की सिक्योरिटी फीस देना चाहता हूं पर उस से पहले मैं यह शंका दूर करना चाहता हूं कि जो लोग यह काम करेंगे उन्हें पैसा किस हिसाब से मिलेगा.’’

‘‘देखिए, बहुराष्ट्रीय कंपनी हमें किसी फर्म की स्केन फाइल भेजती है. मान लीजिए उस में देख कर कोई आपरेटर 1 हजार करेक्टर यानी लैटर्स टाइप करता है तो हम उसे एक शब्द मान कर पेमेंट करेंगे. अभी यह कंपनी नई है इसलिए एक शब्द के लिए 6 रुपए देगी पर बाद में यह पैसा बढ़ा कर 20 रुपए प्रति शब्द कर देगी.’’

‘‘यह काम तो अमेरिका में भी हो सकता था.’’

‘‘हां, हो तो सकता था किंतु वहां महंगा बहुत है. वहां उन्हें प्रति शब्द 2 डालर यानी कि 90 रुपए देने होते हैं. भारत में कमीशन देने के बाद भी उन्हें यह सस्ता पड़ता है और हां, साइज के हिसाब से भी टाइपिंग पेमेंट होगी.’’

अनंत देसाई प्रभावित हो गए और तुरंत ही रोहित का सिक्योरिटी फार्म भरकर 2,500 रुपए जमा कर दिए. 10 रुपए के स्टांप पेपर पर मैनेजर ने अपने व याज्ञनिक के हस्ताक्षर करवा कर उन्हें दे दिए.

उस दिन अपने आफिस के काम में देसाई का मन नहीं लग रहा था. इस समय कंप्यूटर खरीदने की बात तो सोची भी नहीं जा सकती थी क्योंकि साल के अंदर ही शिखा की शादी करनी थी लेकिन अब तो कंप्यूटर खरीदना ही है, चाहे किसी भी हालत में. रोहित के चेहरे की हताशा को किसी तरह पोंछना ही होगा. जब से उन्होंने एक बेरोजगार युवक की आत्महत्या की बात पढ़ ली थी तब से दिल में एक डर सा बैठ गया था.

घर की दशा को देखते हुए रोहित उन्हें बारबार समझा चुका था कि कोई पुराना कंप्यूप्टर ले लेना चाहिए लेकिन वह जिद पर अड़े थे कि बहुराष्ट्रीय कंपनी का मामला है, हर चीज उसी के स्तर की होनी चाहिए.

कंप्यूटर आते ही जैसे रोहित की ज्ंिदगी में पंख निकल आए थे. वह 5-6 घंटे बैठ कर टाइप करता और जैसे ही काम पूरा होता वह दस्तावेज डेल्टा इन्फोसिस प्रा.लि. को दे आता. सोमी उसे तुरंत ही भुगतान कर देते. याज्ञनिक तो अकसर टूर पर बाहर रहते थे.

2 माह में ही रोहित ने अच्छीखासी रकम कमा ली. तब घर के कोनेकोने में जैसे खुशी की तरंगें मचलने लगी थीं. रोहित की मां बेटे की टाइपिंग स्पीड देख कर निहाल थीं लेकिन पिता की नजर बहुत दूर तक देख रही थी. उन्हें सपने में भी किसी विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनी का बोर्ड नजर आता रहता जिस के पारदर्शी कांच के अंदर बैठे अपने बेटे का मुसकराता चेहरा देख कर वह खिल जाते थे.

इसी सपने को पूरा करने के लिए वह याज्ञनिक से मिलना चाहते थे लेकिन अनेक शहरों में फैले काम की वजह से उन का यहां आना कम होता था. सोमी से उन्होंने कह रखा था कि जैसे ही याज्ञनिक साहब आफिस आएं उन्हें तुरंत खबर करें.

याज्ञनिक के शहर में आने की खबर पाते ही वह एक किलो मिठाई का डब्बा ले कर उन से मिलने चल दिए.

मिठाई का डब्बा थोड़ी आनाकानी के बाद लेते हुए याज्ञनिक मुसकराए, ‘‘देसाईजी, इस की क्या जरूरत थी?’’

‘‘साहब, यह मिठाई मैं नहीं एक पिता दे रहा है. आप ने मेरे बेटे के चेहरे की हंसी वापस लौटा दी है. वह आप के यहां का काम करते हुए प्रतियोगिता की तैयारी कर रहा है.’’

‘‘बहुत खूब, इस शहर के डाटा आपरेटरों में वही सब से होनहार है.’’

‘‘रियली,’’ कहते हुए देसाई की आंखों में सुदूर देश के किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के आफिस में लगी हुई बेटे की नेमप्लेट कौंध गई.

तभी नीलेश याज्ञनिक के मोबाइल की घंटी बज उठी. मोबाइल पर क्या बातें हुईं यह अनंत देसाई की समझ में नहीं आया लेकिन नीलेश के चेहरे की खुशी देख कर वह यह तो समझ गए कि कोई अच्छी खबर है.

मोबाइल का स्विच बंद करते ही उन्होंने बेहद गर्मजोशी से देसाई से हाथ मिलाया और उत्साह से कहा, ‘‘देसाई, आप की यह मिठाई मेरे लिए शुभ समाचार लाई है.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘अभी बताता हूं,’’ यह कह कर नीलेश ने घंटी दबा दी. कुछ पल बाद ही चपरासी आ कर खड़ा हो गया तो वह बोले, ‘‘गोपीराम, भाग कर आफिस में सभी के लिए बटरस्काच आइस्क्रीम लाओ.’’

‘‘ऐसी भी क्या खुशखबरी है जी?’’ अनंत देसाई ने पूछा.

‘‘यों समझिए कि एक माह से रुका पड़ा साढ़े 12 करोड़ रुपए का भुगतान हो गया है. इस पैसे के कारण दिल्ली और मुंबई के आपरेटरों का पेमेंट रुका हुआ था. कितना बुरा लगता है जब हमारे आपरेटर काम करते हैं और हम समय से उन्हें भुगतान नहीं दे पाते. अब मैं उन्हें भुगतान दे सकता हूं.’’

तीसरे दिन ही नीलेश ने आपरेटरों की एक मीटिंग रखी, ‘‘मैं सोच रहा हूं कि काम इतना बढ़ रहा है कि हर 3 दिन बाद आप लोगों को भुगतान करने में सोमी साहब परेशान हो जाते हैं तो क्यों न आप लोगों के काम के हिसाब से 15 या 30 दिन में भुगतान कर दिया करें. अब इस कंपनी का अकाउंट यहां केलोटस बैंक में है. आप चाहें तो इस की जांच कर लें. हम अब चेक से भुगतान करेंगे. अब आप लोग निर्णय लें कि आप 15 दिन भुगतान चाहते हैं या एक माह बाद?’’

आपरेटरों ने आपस में विचार कर 15 दिन बाद भुगतान लेने की बात पर सहमति जता दी.

अगले माह के दोनों चेकों का बैंक ने भुगतान किया लेकिन उस के बाद के चेक बाउंस होने लगे. जब शोर मचने लगा तो सोमी ने समझाया, ‘‘हम इतना बड़ा आफिस ले कर बैठे हैं. कहीं भाग जाने वाले नहीं हैं? लीजिए, आप लोग याज्ञनिक सर से बात कर लीजिए.’’

सोमी ने तुरंत ही उन के मोबाइल का नंबर डायल किया और उन से बात कर के बोले, ‘‘सर, कह रहे हैं कि रोहित को फोन दो.’’

रोहित ने फोन पर कहा, ‘‘सर, हमारे चेक बाउंस हो रहे हैं.’’

‘‘देखो, एक बैंक की एल.सी. में कुछ स्पेल्ंिग की गलती है, उसे वापस भेजा है. जब दूसरी एल.सी. आएगी तब पैसा जमा होगा, तब आप लोगों का भुगतान हो जाएगा. सिक्योरिटी के लिए आप चेक लेते जाइए. एकसाथ भुगतान हो जाएगा.’’

‘‘ओ, थैंक्स, सर, आप ने हमारा संदेह दूर कर दिया.’’

रोहित ने अपने साथियों को इस बातचीत के बारे में बताया.

‘‘खैर, पेमेंट कहां जाएगा,’’ एक दादा टाइप लड़के ने कहा, ‘‘यदि पेमेंट नहीं दिया तो इस आफिस का फर्नीचर बेच कर अपना पैसा ले लेंगे.’’

इस तरह 3 महीने बीत गए. सभी आपरेटरों का गुस्सा सीमा पार करने लगा. अपने सामने मुसीबत खड़ी देख सोमी ने मोबाइल पर नीलेश और रोहित के बीच बात करा दी.

‘‘आप की एल.सी. पता नहीं कब जमा होगी. अब कोई आपरेटर इंतजार करने के लिए तैयार नहीं है,’’ रोहित जोर से चिल्लाया.

तभी दादा टाइप उस लड़के ने रोहित के हाथ से फोन छीन लिया और दहाड़ा, ‘‘सर, यदि कल तक हमें पेमेंट नहीं मिली तो हम सब आप के आफिस का सामान बेच कर अपना पैसा वसूल करेंगे.’’

‘‘ओ भाई, ऐसा मत करना,’’ नीलेश का स्वर हड़बड़ा गया, ‘‘चलो, मैं किसी भी तरह पैसे का इंतजाम कर के सुबह 10 बजे आफिस पहुंच रहा हूं. आप सब लोग भी आ जाइए.’’

दूसरे दिन सुबह का समाचारपत्र पढ़ कर 400 परिवार सन्न रह गए. हर समाचारपत्र का एक ही मजमून था कि प्रदेश के सब से बड़े डाटा एंट्री का भंडाफोड़…साथ में था पुलिस वालों के बीच मुंह लटकाए सोमी का फोटो.

अनंत देसाई ने धड़कते दिल से खबर पढ़ी, ‘‘सोमी गिरफ्तार लेकिन नीलेश याज्ञनिक तमाम आपरेटरों की जमा सिक्योरिटी ले कर और उन से मुफ्त में काम करा के 15 करोड़ रुपए का फायदा उठा कर फरार.’’

उस दादा टाइप लड़के ने अखबार पढ़ कर सोचा आफिस को फर्नीचर सहित आग लगा आए लेकिन आगे पढ़ कर वह सन्न रह गया क्योंकि आगे लिखा था कि आफिस व फर्नीचर नीलेश याज्ञनिक ने किराए पर ले रखा था.

उधर सोमी की मां बेटे की गिरफ्तारी से बेहोशी में थी. उन्हें जैसे ही होश आता चिल्लातीं, ‘‘सोमी, मैं ने पहले ही मना किया था कि तू इस कंपनी का मालिक मत बन. कोई वैसे ही लाखों रुपए का आफिस किसी के नाम नहीं करता.’’

और रोहित? वह अपने को संभालने की कोशिश कर रहा था. धीरेधीरे फिर वह अपने कमरे में बंद रहने लगा.

Love Story : बंद लिफाफा – केशव दिल्ली क्यों गया था?

Love Story : केशव को दिल्ली गए 2 दिन हो गए थे और लौटने में 4-5 दिन और लगने की संभावना थी. ये चंद दिन काटने भी रजनी के लिए बहुत मुश्किल हो रहे थे. केशव के बिना रहने का उस का यह पहला अवसर था. बिस्तर पर पड़ेपड़े आखिर कोई करवटें भी कब तक बदलता रहेगा. खीज कर उसे उठना पड़ा था.

रजनी ने घड़ी में समय देखा, 9 बज गए थे और सारा घर बिखरा पड़ा था. केशव को इस तरह के बिखराव से बहुत चिढ़ थी. अगर वह होता तो रजनी को डांटने के बजाय खुद ही सामान सलीके से रखना शुरू कर देता और उसे काम में लगे देख कर रजनी सारा आलस्य भूल कर उठती और स्वयं भी काम में लग जाती. केशव की याद आते ही रजनी के गालों पर लालिमा छा गई. उस ने उठ कर घर को संवारना शुरू कर दिया.

बिस्तर की चादर उठाई ही थी कि एक बंद लिफाफे पर रजनी की नजर टिक गई. हाथ में उठा कर उसे कुछ क्षणों तक देखती रही. मां की चिट्ठी थी और पिछले 10 दिन से इसी तरह तकिए के नीचे दबी पड़ी थी. केशव ने तो कई बार कहा था, ‘‘खोल कर पढ़ लो, आखिर मां की ही तो चिट्ठी है.’’

पर रजनी का मन ही नहीं हुआ. वह समझती थी कि पत्र पढ़ कर उसे मानसिक तनाव ही होगा. फिर से उस लिफाफे को तकिए के नीचे दबाती हुई वह बिस्तर पर लेट गई और अतीत में विचरण करने लगी:

मां का नाराज होना स्वाभाविक था, परंतु इस में भी कोई शक नहीं कि वे रजनी को बहुत प्यार करती थीं.

मां कहा करतीं, ‘मेरी रजनी तो परी है,’ अपनी खूबसूरत बेटी पर उन्हें बड़ा नाज था. पासपड़ोस और रिश्तेदारों में हर तरफ रजनी की सुंदरता के चर्चे थे. सिर्फ सुंदर ही नहीं, वह गुणवती भी थी. मां ने उसे सिलाईकढ़ाई, चित्रकला और नृत्य की भी शिक्षा दिलाई थी. रजनी के लिए तब से रिश्ते आने लगे थे जब वह बालिग भी नहीं हुई थी. पिताजी सिर्फ रजनी की पढ़ाई की ही चिंता करते, पर मां का तो सारा ध्यान लड़के की तलाश में लगा था.

यह तो अच्छा था कि उस के लिए जो भी रिश्ते आए, उन में से कोई भी लड़का मां को पसंद नहीं आया था.

आसपड़ोस और रिश्तेदारों के सामने रजनी की सुंदरता का बखान करते हुए मां कहतीं, ‘कुंआरी बेटी छाती पर बोझ होती है और वह अगर सुंदर होने के साथसाथ गुणी भी हो तो बोझ दोगुना हो जाता है. रजनी के लिए योग्य वर ढूंढ़ना बड़ा कठिन काम है. हम अकेले क्या कर लेंगे? आप भी ध्यान रखिएगा.’

बारबार मां के यही कहते रहने से उन की मुंहबोली बहन सुलभा अपने रिश्ते के एक लड़के का प्रस्ताव रजनी के लिए लाई लेकिन लड़के का फोटो देखते ही मां सुलभा पर बरस पड़ीं, ‘अरी सुलभा, तेरी आंखों को क्या हो गया है जो मेरी बेटी के लिए काना दूल्हा ढूंढ़ कर लाई है.’

‘काना? यह तू क्या कह रही है, कमला. लड़के की एक आंख दूसरी से थोड़ी छोटी है तो क्या वह काना हो गया,’ सुलभा मौसी भी चिढ़ गईं.

‘और नहीं तो क्या…एक छोटी, दूसरी बड़ी, काना नहीं तो और क्या कहूं?’ मां हाथ नचाती बोलीं, ‘मेरी बेटी में कोई खोट नहीं, फिर मैं क्यों ब्याहने लगी इस से…’ मां का क्रोध दोगुना हो गया था.

उस दिन मां ने सुलभा मौसी से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ दिया. इस घटना के बाद मां रिश्तेदारों में इस बात को ले कर मशहूर होती गईं कि उन्हें अपनी बेटी की सुंदरता पर बड़ा घमंड है, इसीलिए बेटी के लिए जो भी रिश्ता आता है, बस लड़के के दोष ही ढूंढ़ कर निकालती रहती हैं. मां का तनाव बढ़ रहा था पर रजनी और पिताजी मां की पीड़ा से अनभिज्ञ थे. रजनी जल्दी से जल्दी एम.ए. कर लेना चाहती थी. उसे स्वयं भी इस बात का डर था कि अगर मां को कोई अच्छा लड़का मिल जाएगा तो उस की पढ़ाई पूरी न हो पाएगी.

आखिर रजनी की एम.ए. की पढ़ाई भी हो गई पर मां अपनी तलाश में असफल ही रहीं. रजनी नौकरी करना चाहती थी तो पिताजी ने चुपके से उसे इजाजत भी दे दी. उस ने आवेदनपत्र भेजने शुरू कर दिए. इस बीच उस के लिए रिश्ते भी आते रहे. अब तो उस की सुंदरता के साथसाथ पढ़ाई को भी ध्यान में रखा जाने लगा, जिस से मां की परेशानी और बढ़ गई.

जब रजनी के लिए कानपुर के एक कालेज से व्याख्याता पद के लिए नियुक्तिपत्र आया तो मां और पिताजी के बीच जम कर झगड़ा हुआ और अंत में मां का निर्णयात्मक स्वर उभरा, ‘रजनी नहीं जाएगी.’

‘क्यों नहीं?’ मां के निर्णय का खंडन करते हुए पिताजी का प्रश्न सुनाई दिया.

‘बेकार सवाल मत कीजिए. मैं अपनी खूबसूरत और जवान बेटी को अकेली दूसरे शहर जा कर नौकरी करने की इजाजत नहीं दे सकती और अगर इसे नौकरी करनी ही है तो यहीं शहर में करे.’

‘कमला, समझने की कोशिश करो. रजनी अब छोटी बच्ची नहीं रही…और फिर अच्छी नौकरी बारबार नहीं मिलती. तुम यह न समझना कि मैं उस का पक्ष ले रहा हूं. वह अपना फैसला खुद कर चुकी है और हमें उस के निर्णय में दखलंदाजी का हक नहीं है,’ पिताजी ने मां को समझाते हुए कहा.

‘क्यों नहीं है हक? क्या हम उस के कोई…’ अब मां का स्वर भीग गया था.

रजनी का दिल भर आया. मां उस की दुश्मन नहीं थीं पर रजनी भी हाथ आया मौका खोना नहीं चाहती थी. धीरे से उस ने मां के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘मां, मैं अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती हूं. मुझे मत रोको.’

रजनी के हाथों को अपने कंधों से झटकते हुए मां पिताजी पर ही बरस पड़ीं,  ‘देख लीजिएगा, आप की लाड़ली हमारी नाक कटवा कर ही मानेगी. दूसरे शहर में कोई रोकटोक न रहेगी. अपनी मनमानी करती फिरेगी. घर की इज्जत मिट्टी में मिल गई तो सिर पीटने से कोई फायदा नहीं होगा.’

मां अनापशनाप कहे जा रही थीं और पिताजी सिर थामे सोफे पर चुप बैठे थे. रजनी उन्हें अकेला छोड़ कर कमरे से निकल गई थी.

मां की लाख कोशिशों के बावजूद पिताजी ने एक बार भी रजनी को जाने से मना नहीं किया. नए शहर, नए माहौल और एक नई व्यस्तता भरी जिंदगी में वह अपनेआप को ढालने का प्रयास करने लगी. देखने में रजनी स्वयं एक छात्रा सी लगती थी. अपने से ऊंचे कद के लड़कों को पढ़ाते समय प्राय: वह घबरा सी जाती थी. लड़के उस के इसी शांत और डरेडरे से स्वभाव का फायदा उठा कर उसे छेड़ बैठते और तब बेबस रजनी का मन होता कि नौकरी ही छोड़ दे. कभीकभी तो वह अपनेआप को बेहद अकेली महसूस करती. कालेज के अन्य प्राध्यापकों से वह वैसे भी घुलमिल नहीं पा रही थी. बस, अपने काम से ही मतलब रखती थी.

एक दिन कुछ शरारती छात्रों ने कालेज से लौट रही रजनी को रास्ते में रोक लिया. हलकी सी बूंदाबांदी भी हो रही थी और लग रहा था कि कुछ ही मिनटों में जोरों की बारिश शुरू हो जाएगी. ऐसे में अपनेआप को इन लड़कों से घिरा पा कर उसे कंपकंपी छूटने लगी.

‘मैडम, आज आप ने जो कुछ पढ़ाया, वह हमारी समझ में नहीं आया. कृपया जरा समझा दीजिए,’ एक छात्र ने उस के समीप आ कर कहा.

‘क्यों, कक्षा में क्या करते रहते हैं आप लोग?’ चेहरे पर क्रोध भरा तनाव लाने का असफल प्रयास करते हुए रजनी ने पूछा.

‘दरअसल मैडम, हम कोशिश तो करते हैं कि पढ़ाई में ध्यान दें, पर आप हैं ही इतनी सुंदर कि पढ़ाई भूल कर बस आप को ही देखे चले जाते हैं…’ दूसरे छात्र ने कहा और जैसे ही उस ने अपना हाथ रजनी के चेहरे की ओर बढ़ाया, एक मजबूत हाथ ने उसे रोक लिया. प्रोफेसर केशव को पास पा कर रजनी को तसल्ली हुई.

‘कल सवेरे आप सब प्रिंसिपल साहब के कक्ष में मुझ से मिलिएगा. अब फूटिए यहां से…’ प्रोफेसर केशव के धीमे किंतु आदेशात्मक स्वर से सभी छात्र वहां से खिसक गए. रजनी चुपचाप केशव के साथ चल पड़ी. वैसे रजनी कई बार उन से मिल चुकी थी, पर ज्यादा बातचीत कभी नहीं हुई थी.

‘कहां रहती हैं आप?’ केशव ने चलतेचलते पूछा.

‘होस्टल में,’ रजनी ने धीमे से कहा.

‘पहले कहां थीं?’

‘जयपुर में.’

फिर दोनों के बीच एक गहरी चुप्पी छा गई. वे चुपचाप चल रहे थे कि केशव ने कहा, ‘आप में अभी तक आत्म- विश्वास नहीं आया है. आप पढ़ाते समय इतना ज्यादा घबराती हैं कि छात्रछात्राओं पर गहरा प्रभाव नहीं छोड़ पातीं.’

‘जी, मैं जानती हूं, पर यह मेरा पहला अवसर है.’

‘कोई बात नहीं,’ प्रोफेसर केशव मुसकरा दिए थे, ‘पर अब यह कोशिश कीजिएगा कि आत्मविश्वास हमेशा बना रहे. वैसे उन छात्रों से मैं निबट लूंगा. अब वे आप को कभी परेशान नहीं करेंगे.’

रजनी ने एक बार सिर उठा कर उन्हें देखा था. आकर्षक व्यक्तित्व वाले केशव के सांवले चेहरे का सब से बड़ा आकर्षण था उन की लंबी नाक. रजनी प्रभावित हुए बिना न रह सकी.

उस रात रजनी ढंग से सो भी न सकी. लड़कों की शरारत और केशव की शराफत का खयाल दिमाग में ऐसे कुलबुलाता रहा कि वह रात भर करवटें ही बदलती रही. उसे लगा कि वह केशव की मदद को आजीवन भूल न सकेगी.

दूसरे दिन रजनी केशव से मिली तो केशव के चेहरे पर उस घटना की याद का जैसे कोई चिह्न ही नहीं था. रजनी के नमस्कार का जवाब दे कर वे आगे बढ़ गए थे. धीरेधीरे रजनी का केशव के प्रति आकर्षण बढ़ता चला गया. केशव ने कभी भी यह जताने की कोशिश नहीं की थी कि रजनी की मदद कर के उन्होंने कोई एहसान किया हो.

रजनी जब भी केशव को देखती, अपलक उन्हें देखती रह जाती. उसे इस प्रकार अपनी ओर देखते हुए पा कर केशव धीरे से मुसकरा देते और यही मुसकराहट एक तीर सी रजनी के हृदय को भेद जाती. धीरेधीरे रजनी का यह आकर्षण प्रेम बन कर फूटने लगा तो उस ने निर्णय लिया कि वह केशव के सामने विवाह का प्रस्ताव रखेगी.

एक दिन रजनी ने प्रोफेसर केशव को दोपहर के खाने का आमंत्रण दे दिया. होटल में रजनी केशव के सामने यही सोच कर झेंपी सी बैठी रही कि वह इस बात को कहेगी कैसे. सोचतेसोचते वह परेशान सी हो गई.

‘क्या बात है, रजनी?’ केशव ने बातचीत में पहल की, ‘तुम खामोश क्यों हो?’

रजनी चुप रही.

‘कुछ कहना चाहती हो?’

‘हां…’

‘क्या बात है? क्या फिर किसी ने परेशान किया?’ केशव ने शरारत और आत्मीयता से भरा प्रश्न किया तो रजनी की आंखों से आंसू बहने लगे. प्रेम की विवशता और शर्म की खाई के बीच सिर्फ आंसुओं का ही सहारा था, जो शायद उस के प्रेम की गहराई को स्पष्ट कर पाते. वह धीरे से बोली, ‘मैं आप से प्रेम करती हूं और शादी भी करना चाहती हूं.’

‘शादीब्याह में इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं,’ केशव ने कहा तो सुन कर रजनी चौंक गई. क्या केशव उस के प्यार को ठुकरा रहा है?

‘तुम मेरे बारे में कुछ भी नहीं जानतीं,’ केशव ने आगे कहा, ‘पहले जान लो, फिर निर्णय लेना.

‘शादी के बाद शायद मैं तुम पर बोझ बन जाऊं,’ कहते हुए केशव ने अपनी पैंट को घुटने तक खींच लिया. उस का घुटने से नीचे नकली पैर लगा था.

देखते ही रजनी की चीख निकल गई. वह धीरे से बोली, ‘यह कैसे हुआ?’

‘सड़क दुर्घटना से…’

रजनी की आंखों से अश्रुधारा बह चली थी. उस के निर्णय में एकाएक परिवर्तन आया. पल भर में ही उस ने सोच लिया कि वह शादी के बाद ही मां और पिताजी को सूचना देगी. वह जानती थी कि मां एक अपाहिज को अपने दामाद के रूप में कभी भी स्वीकार नहीं कर पाएंगी. एक सादे से समारोह में रजनी ने केशव से विवाह कर लिया.

मां को पत्र लिखने के कुछ ही दिन बाद उन का जवाब आ गया. पर रजनी लिफाफा खोल न सकी. वह सोचने लगी कि मां का दिल अवश्य ही टूटा होगा और पत्र भी उन्होंने उसे कोसते हुए ही लिखा होगा. रजनी को हमेशा पिताजी का खयाल आता था. मां इस घटना के लिए पिताजी को ही जिम्मेदार ठहराती होंगी. पिताजी को भी शायद अब पछतावा ही होता होगा कि रजनी को यहां क्यों भेजा.

अभी वह यह सब सोच ही रही थी कि नौकरानी की आवाज सुनाई दी तो वह अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गई.

‘‘मालकिन, आप की माताजी आई हैं.’’

‘‘मां?’’ रजनी चौंक गई, ‘‘कब आईं?’’

‘‘अभी कुछ देर पहले. नहा रही हैं.’’

रजनी के मन में कई तरह के विचार आने लगे. मां के आने से उस का मन शंकित हो उठा. न जाने वे क्या सोच कर आई हैं और केशव के साथ कैसा व्यवहार करेंगी? अचानक उसे लिफाफे का खयाल आया. दौड़ते हुए गई और तकिए के नीचे दबे लिफाफे को खोल कर पढ़ने लगी :

‘बेटी रजनी,

नहीं जानती कि अगर तू ने शादी के पहले मुझे यह बताया होता कि केशव अपाहिज है तो मैं क्या निर्णय लेती, पर बाद में पता चला तो थोड़ी सी पीड़ा सिर्फ यह सोच कर हुई कि अपने हाथों से तुझे दुलहन न बना सकी.

धीरेधीरे मैं यह महसूस करने लगी हूं कि तू ने गलत निर्णय नहीं लिया है बल्कि अपने इस निर्णय से यह साबित कर दिया है कि तू अपनी मां की तरह शारीरिक सुंदरता को महत्त्व देने वाली नहीं, वरन हृदय की सुंदरता को पहचानने वाली पारखी है. तेरे निर्णय पर मुझे नाज है. मैं तुझ से मिलने आ रही हूं.

तुम्हारी मां.’

रजनी को लगा कि मारे खुशी के वह पागल हो जाएगी. उसी तरह लिफाफे को तकिए के नीचे रख कर वह जोर से स्नानघर का दरवाजा पीटने लगी, ‘‘जल्दी आओ न मां, तुम्हें देखने को आंखें तरस गई हैं.’’

‘‘इतनी बड़ी हो गई है, पर अभी बचपना नहीं गया,’’ मां का बुदबुदाता सा स्वर सुनाई दिया.

रजनी को लगा कि मां जल्दीजल्दी से शरीर पर पानी डालने लगी हैं.

Hindi Story : क्या तुम आबाद हो – किस ने तबाह कर दी थी कृति और कल्पना की जिंदगी?

Hindi Story : कलरात अचानक नन्ही की तबीयत बहुत खराब होने की वजह से मैं परेशान हो गई. जय को फोन लगाया तो कवरेज से बाहर बता रहा था. रात के आठ बज रहे थे. कुछ सम झ नहीं आया तो मैं अकेली ही डाक्टर को दिखाने के लिए निकल पड़ी. नीरवता में अजीब सी शांति थी. मु झे यह रात बहुत भा रही थी. चारों ओर फैली उस कालिमा में रोमांस के अलावा और कुछ था तो वह था नन्ही की बीमारी के लिए चिंता और मेरे तेज चलते कदमों की आहट.

डाक्टर के कैबिन से बाहर आते ही मैं ने राहत की सांस ली. नन्ही को वायरल था, घबराने वाली बात नहीं थी. अंधेरा और गहरा हो गया था. दिल की धड़कनें तेज हो रही थीं. अपनेआप पर गुस्सा भी आ रहा था. नन्ही की बीमारी ने मेरा दिलदिमाग सुन्न कर दिया था. बगैर सोचे रात को निकल पड़ी थी.

जय बहुत गुस्सा करेंगे. गुस्सा याद आते ही शरीर में डर से  झुर झुरी पैदा हो गई. जय जब गुस्सा करते हैं तो उन्हें कुछ भी तो सम झ में नहीं आता है… कभीकभी तो हाथ भी उठा देते हैं. मेरी खुद्दारी सिर्फ मेरे पास थी. इस से जय को कुछ लेनादेना नहीं था. वे तो अपने पौरुष बल को जबतब दिखा कर मु झे और कमजोर कर देते हैं.

कभीकभी सोचती हूं कि मेरे मांबाप ने मुझे पढ़ाया ही क्यों. अनपढ़ रहती तो ज्यादा अच्छा था. तभी मोबाइल की रिंग ने मुझे चौंका दिया. जय का नंबर देख थोड़ी राहत महसूस हुई.

‘‘कहां हो? मैं घर आया तो दरवाजे पर ताला लगा देख घबरा गया,’’ जय का घबराया स्वर सुन मेरा डर और बढ़ गया.

मैं ने कांपती आवाज में जवाब दिया, ‘‘नन्ही की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी… तुम्हारा मोबाइल कवरेज क्षेत्र से बाहर बता रहा था. पड़ोसी के घर चाबी है, ले लेना.’’

‘‘तुम वहीं रहो, मैं थोड़ी देर में आता हूं,’’ कह कर जय ने फोन काट दिया.

मेरे बेचैन मन को शांति मिली.

फोन कटने के बाद जैसे ही नजर उठाई कि मु झे बरसों पुरानी मेरी एक दोस्त दिखाई दी.

हम एकदूसरे को कुछ देर देखते रह गए. बात करने की पहल उसी ने की, ‘‘व्हाट ए सरप्राइज… कल्पना तुम मु झे यहां ऐसे मिलोगी, मैं सोच भी नहीं सकती थी.’’

मैं ने मुसकराते हुए हलके से उस का हाथ दबा दिया.

बरसों पहले जब हम जुदा हुए थे तो छोटी सी बात पर हम दोनों के बीच दरार आ गई थी. बरसों की दूरी ने उस दरार को भर दिया था. हम सहज थे और मु झे अपनी सहजता पर विस्मय भी हो रहा था.

हालांकि मु झे उसे देख कर खास खुशी नहीं हुई. यह अप्रत्याशित मुलाकात मेरे अकेलेपन की समस्या से छुटकारा दिला देगी, यह सोच कर मेरा मन संतोष से भर गया. वह मेरे पास आ गई. मेरा हाथ पकड़ पास की बैंच पर बैठ गई तो मु झे भी बैठना पड़ा. उस ने मेरी बच्ची को मेरी गोद से अपनी गोद में ले लिया.

मैं ने उस का चेहरा गौर से देखा. थकी और परेशान लग रही थी. मु झे बरसों पुरानी बात याद आ गई, जब वह मु झे अपना दुखड़ा सुनाया करती थी और मैं ऊब जाया करती थी. वह हर समय अपने प्रेमी के बारे में बातें कर के जी हलका कर लेती थी पर मैं और भारी हो जाती थी. मैं वाहियात बातों पर अपना समय खराब नहीं करना चाहती थी. इसीलिए उस समय या बाद के दिनों में मेरा कोई प्रेमी नहीं हुआ.

‘‘कहां खो गई कल्पना?’’ उस की नम्र आवाज मु झे भूत से वर्तमान में ले आई.

‘‘कृति तुम अपने बारे में बताओ? इतने साल बाद मिली हो. तुम जिस से प्यार करती थी उसी से तुम्हारी शादी हुई या किसी और से? कितना प्यार करती थी न तुम उस से. तुम्हारी हरेक बात में सिर्फ उसी का जिक्र होता था,’’ वह बोली.

‘‘मैं उसे अभी तक नहीं भूल पाई… आखिर तक नहीं भूल पाऊंगी. शायद भूलना चाहूं तब भी नहीं भूल सकती. जानती हो कल्पना जिस दिन मैं उस को भूल जाऊंगी, उस दिन मैं मर जाऊंगी. उस ने मेरे साथ विश्वासघात किया, मु झे धोखा दिया. प्यार मु झ से किया और शादी किसी और से…’’

मैं उसे कभी माफ नहीं करूंगी. मैं मरते दम तक उसे कोसती रहूंगी. वह जहां है जैसे भी है कभी खुश नहीं रहेगा. मेरी जिंदगी को बरबाद करने वाला कभी आबाद नहीं रहेगा. मेरे अंदर एक आग हमेशा जलती रहती है, जिसे मैं कभी बु झने नहीं दूंगी, क्योंकि मैं इसी आग के सहारे अभी तक जिंदा हूं. मैं अब किसी आदमी पर भरोसा नहीं कर पाती… वह मेरा विश्वास इस कदर तोड़ गया है.

‘‘मेरे शरीर के 1-1 हिस्से पर उस के स्पर्श के निशान हैं. उस ने मु झे निचोड़ दिया है. मेरे अंदर अब कुछ भी नहीं बचा है कि मैं अब किसी दूसरे पुरुष से शादी भी कर सकूं. मैं टूट गई हूं. बस अब तो मेरी एक ही ख्वाहिश है कि किसी भी तरह वह बेवफा मु झे मिल जाए और मैं उस से बदला ले सकूं. हालांकि मैं जानती हूं उस से बदला लेने के बाद मेरे मन में रिक्तता भर जाएगी. जीने की इच्छा खत्म हो जाएगी, लेकिन इस सब के बावजूद मैं उसे खोज रही हूं, कई शहर भटक रही हूं. बस एक ही ख्वाहिश लिए कि वह एक बार मिल जाए कहीं भी.’’

मैं परेशान हो गई. अभी भी इस की बातों में, इस के जेहन में सिर्फ वही लड़का है. इन्हीं वाहियात बातों के कारण मैं ने इस से दूरी बना ली थी. पर आज… आज की अप्रत्याशित मुलाकात के बाद भी इस के पास बात करने के लिए सिर्फ एक ही व्यक्ति था.

मैं ने कहा, ‘‘कृति भूल जाओ उस शख्स को, जिस ने तुम्हें इतना दर्द दिया है. उसे तुम्हारी कद्र नहीं है. तुम क्यों उस के पीछे अपना जीवन बरबाद कर रही हो. आगे बढ़ो… तुम्हें उस से कहीं अच्छा और ज्यादा प्यार करने वाला लड़का मिल जाएगा.’’

उस ने मु झे अजीब नजरों से देखा फिर धीरे से कहा, ‘‘क्या तुम आबाद हो?’’

यह एक विचित्र प्रश्न था मेरे लिए. मेरे मन में उथलपुथल होने लगी. क्या मैं आबाद हूं?

मेरी पलकें बादल बन गईं और आंखें समुद्र… पानी अंदर ही अंदर पीने की नाकाम कोशिश करने लगी कि क्या हम औरतों के हिस्से यही लिखा है. बारबार चोट खाने के बाद हम अपने ही वजूद को बचाने की नाकाम कोशिश करते रहते हैं. कई बार तो यह नाकाम कोशिश हमें पीड़ा दे जाती है. क्या हमारा मन बारबार नहीं रूठता? मगर फिर खुदबखुद मान भी जाता है क्योंकि वह जानता है कि हमें मनाने वाला कोई नहीं है.

मेरी आंखों में पानी देख कल्पना का हाथ मेरे हाथ में आ गया. एक अनकही आत्मीयता का फूल हमारे मन में खिल गया. एक नजर उस ने मु झे देखा और फिर कहा, ‘‘कह दो कल्पना अपने अंदर का सारा दर्द… शायद तुम्हारा दर्द कुछ हलका हो जाए,’’ उस की बड़ीबड़ी आंखों में ममता उतर आई.

‘‘मैं क्या बताऊं कृति, मेरी जिंदगी रेगिस्तान है, जिस में कोई फूल नहीं खिल सकता. पोस्ट ग्रैजुएशन करते ही मेरी शादी हो गई. कई ख्वाबों को ले कर मैं सुसराल आ गई. सुहागरात के दिन करीब 12 बजे मेरे पति शराब के नशे में लड़खड़ाते हुए आए.

‘‘मेरी कल्पनाओं के ख्वाब मन के खुले आसमान में उमंगें भर रहे थे. पर मेरी कल्पनाओं के विपरीत आते ही मेरी साड़ी उतार दी… न प्यार न मनुहार. मैं शर्म से सिकुड़ गई. उस की हंसी कमरे के चारों तरफ गूंज गई. मैं ने धीरे से कहा कि व्हाट इज दिस.

मगर जैसे उसे कुछ सुनाई ही नहीं दिया. मैं रो पड़ी. उस के चुंबन से मेरा दम घुटने लगा. मन गुस्से से भर गया. दिल में यही खयाल आया कि यह इंसान नहीं जानवर है. मैं बर्फ सी ठंडी पड़ गई.

कुछ मिनटों के बाद वह शांत सो गया पर मैं रातभर जागती रही. शरीर और मन दर्द से तड़पता रहा. कृति मैं बलात्कार की शिकार हो गई थी. इस से बचने का कोई उपाय हमारे समाज के पास नहीं है. मेरा पति अब हर रात मेरा बलात्कार करता है और मैं कुछ नहीं कर सकती. कुछ न कर सकने की पीड़ा मेरे अंदर आग जलाती रहती है. घर है राजमहल जैसा. सारी सुखसुविधाएं… पर मु झे इन सुखसुविधाओं से कोई मतलब नहीं. मैं एक भटकती आत्मा की तरह दिनभर भटकती रहती हूं. मेरे सपने तिरोहित हो गए कल्पना. पढ़लिख कर अनपढ़से भी बदतर जिंदगी… अकेलापन काटने के लिए कई नुसखे आजमाए… पर कुंठा और हताशा मेरे अंदर निराशा भरती गई. मेरा दर्द आंसुओं के रूप में बहने लगा. मैं एक लंबी सांस ले कर चुप हो गई.’’

‘‘ओह, कल्पना तुम कितना सहन करती हो… मु झ से कहीं ज्यादा. शायद सारे मर्द कमीने होते हैं. जहां भी मर्द को मौका मिला औरत के शरीर को नापने लगता है. कभी हाथों से तो कभी आंखों से. इसीलिए मु झे सख्त नफरत है मर्द जात से.’’

अभी कृति कुछ और कहना चाह रही थी कि गाड़ी की आवाज से मैं कांप गई. पति की गाड़ी का हौर्न मेरे दिलोदिमाग पर छाया रहता है. मैं ने हलके से कृति का हाथ दबा दिया. स्पर्श की अपनी भाषा होती है. शायद कृति सम झ गई और गाड़ी की दिशा में देखने लगी.

जय को देखते ही अचानक उस की सांसें तेज हो गईं और वह जोर से चिल्ला पड़ी,

‘‘यही तो है वह बेवफा, जिस ने मेरी जिंदगी बरबाद कर दी. तुम्हारी शादी इस से हुई है? तभी तो यह जानवर है… नहींनहीं यह जानवर नहीं यह तो राक्षस है राक्षस… औरतों के शरीर से खेलने की आदत हो गई है इसे. मैं इसी को तो कोस रही थी. मेरा आज कुदरत पर से विश्वास उठ गया… तुम्हारी जैसी लड़की को यह हैवान मिला.’’

अचानक जय ने मेरा हाथ पकड़ खींचते हुए गाड़ी में बैठा दिए. गाड़ी चल दी. मैं अंदर से खोखली हो गई थी. अब मु झे अपनी इस दोस्त से ईर्ष्या होने लगी… कम से कम उस के पास याद करने के लिए बेवफाई का अनुभव तो है पर मेरे पास क्या है?

एक दलदल जिस में मैं धंसती जा रही थी, जहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं था. मेरा मन कहीं और था पर मेरा शरीर एक और शरीर के साथ चले जा रहा था उसी विशाल मकान में जहां मैं रोज रात अपने ही शरीर का शोर सुनती हूं.

Bollywood : कलाकारों का सारा ध्यान अभिनय के बजाय प्रौपर्टी खरीदनेबेचने पर

Bollywood : पहले कलाकार अभिनय को सिर्फ कला से जोड़ कर देखते थे इसलिए उन्हें प्रौपर्टी जोड़ने या अत्यधिक पैसों का लोभ नहीं था. बदलते समय की फिल्मों में कौर्पोरेट के दखल और कलाकारों की पैसा कूटने की भूख ने कला को दोयम बना दिया.

50, 60 और 70 के दशकों में सब से अमीर अभिनेता कौन था? शायद आप दिलीप कुमार, देव आनंद, राज कपूर, राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन समेत कई अभिनेताओं के नाम गिना देंगे. लेकिन सच यह नहीं है. सच यह है कि इन तीनों दशकों में सर्वाधिक अमीर कलाकार कौमेडियन भगवान दादा थे. उन्होंने यह धन फिल्मों में अभिनय व फिल्म निर्माण से कमाया था. उन के पास बहुत पैसा था. लेकिन, समय ने उन्हें ऐसा धोखा दिया कि जिंदगी के आखिरी दिन उन्हें मुंबई की एक चाल में किराए पर गुजरबसर करने पड़े.

सब से अहम बात यह है कि भगवान दादा पहले मुंबई की एक कपड़ा मिल में मजदूरी करते थे. 8 साल तक नौकरी करने के बाद 1938 में भगवान दादा ने फिल्मों से जुड़ते हुए अपनी पहली फिल्म ‘बहादुर किसान’ का सहनिर्देशन किया.

1940 के दशक में भगवान दादा को कम बजट वाली फिल्मों की सफलताओं से प्रसिद्धि हासिल हुई, जिस ने उन्हें छोटे शहरों में लोकप्रिय बना दिया. 1942 में भगवान दादा जागृति प्रोडक्शंस के साथसाथ निर्माता भी बन गए. 1951 में राज कपूर ने उन के साथ एक सामाजिक फिल्म ‘अलबेला’ बनाई, जो उस साल की सब से बड़ी हिट फिल्मों में से एक थी. इस फिल्म का गाना ‘शोला जो भड़के…’ आज भी लोग सुनना पसंद करते हैं. इस के बाद भगवान दादा ने ‘झमेला’ (1953) और ‘भागमभाग’ (1956) जैसी ब्लौकबस्टर फिल्में बनाईं.

50 के दशक में उन्होंने अपने रहने के लिए जुहू में सागर किनारे 25 कमरों वाला बंगला खरीदा. उन के पास 7 लग्जरी कारों का काफिला भी था. वे हर दिन शूटिंग के लिए अलग कार में जाया करते थे. उस जमाने में भगवान दादा भारत के सब से अमीर और सब से अधिक पारिश्रमिक पाने वाले कलाकारों में से एक थे. वे सिर्फ दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद जैसे सुपरस्टार से पीछे थे पर इस बंगले के बाद उन्होंने कभी कोई संपत्ति नहीं खरीदी.

एक बार राज कपूर ने उन्हें सलाह दी थी कि उन्हें चाहिए कि वे हर फिल्म की सफलता के बाद कोई न कोई प्रौपर्टी खरीद लिया करें, तब भगवान दादा ने मुसकराते हुए कहा था, ‘‘मैं ठहरा संतोषी जीव. मेरा काम अच्छा चल रहा है. मुझे रहने के लिए बंगला चाहिए था, वह मेरे पास है. शौक के लिए कार चाहिए तो 7 कारें हैं. अब इस से ज्यादा कुछ नहीं चाहिए. फिर बुरे वक्त में मेरे साथ इस इंडस्ट्री का हर शख्स रहेगा.’’

लेकिन कहते हैं कि जो बुलंदी पर है वह कब जमीं पर आ जाए, कहा नहीं जा सकता और यहां लोग सिर्फ चढ़ते सूरज के साथ होते हैं, ढलते सूरज के साथ नहीं पर विनम्र स्वभाव के सीधेसादे भगवान दादा गिरगिट की तरह रंग बदलती इंसानी प्रवृत्ति से शायद वाकिफ नहीं थे. 1960 के बाद भगवान दादा चरित्र भूमिकाएं निभाते हुए शोहरत बटोरते रहे.

1970 के बाद धीरेधीरे उन्हें फिल्में मिलनी कम हो गईं पर उन के शौक कम नहीं हुए. उन को यकीन था कि आज नहीं तो कल, लोग उन्हें बुला कर काम देंगे. इसी आस में उन्होंने अपना बंगला व कारें बेच डालीं.

इधर भगवान दादा का बंगला व कारें बिक रही थीं तो दूसरी तरफ फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोग उन से दूरी बढ़ा रहे थे. एक वक्त वह आया जब भगवान दादा मुंबई के दादर इलाके की एक चाल में रहने लगे. तब उन से मिलने संगीतकार सी रामचंद्र, गीतकार राजेंद्र कृष्ण और अभिनेता अशोक कुमार के अलावा कोई नहीं जाता था. उन की आर्थिक हालत दिनोंदिन बदतर होती गई. आखिरकार, 4 फरवरी, 2002 को 89 वर्ष की उम्र में भगवान दादा का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.

सिर्फ भगवान दादा ही नहीं, 70 के दशक तक के किसी भी कलाकार ने धन जमा कर के रखने या संपत्ति खरीद कर जखीरा बनाने की तरफ ध्यान नहीं दिया. उस वक्त के कलाकार व फिल्मकार तो कलाप्रेमी थे. उन के अंदर धन की बेहिसाब लालसा नहीं थी. उस वक्त के कलाकार फिल्मों में अच्छा किरदार निभाने या अच्छे कंटैंट पर बेहतरीन फिल्म बनाने से ले कर एकदूसरे के सुखदुख में अपनेपन के भाव के साथ उपस्थित रहने पर ही सारा ध्यान देते थे. लेकिन 1980 के बाद कलाकारों की जो नई जमात आनी शुरू हुई, उस में काफी बदलाव नजर आ रहा था. कला को ले कर इन के दृष्टिकोण में बदलाव नजर आने लगा था. यह पीढ़ी कला के साथ धन कमाने पर भी जोर देने लगी थी पर ये सभी कला की सेवा करना चाहते थे और दाल में नमक या यों कहें कि आटे में नमक की तर्ज पर धन के बारे में सोचने लगे थे. यह सोच गलत नहीं थी क्योंकि हम सभी जानते हैं कि यदि भोजन में नमक न हो तो भोजन में स्वाद नहीं आता.

कौर्पोरेट कल्चर हुआ हावी

2001 में जी स्टूडियो निर्मित फिल्म ‘गदर : एक प्रेम कथा’ के साथ ही फिल्म इंडस्ट्री में अचानक कौर्पोरेट कल्चर इस कदर हावी हुआ कि बौलीवुड की दिशा व दशा बदलने के साथ ही कलाकार व फिल्मकार की सोच में इस कदर परिवर्तन हुआ कि ये सभी ‘कला’ के बजाय ‘धन’ और ‘आटे में नमक’ के बजाय ‘नमक में आटा’ मिलाने लगे.

वास्तव में कौर्पोरेट कंपनियों ने कदम रखते हुए ‘कला’ के बजाय पैसे से पैसा कमाने की सोच के साथ जिस कलाकार की उस की अभिनय क्षमता के बल पर 10 रुपया कीमत थी, उसे इन कौर्पोरेट कंपनियों ने 200 रुपए थमा कर एकसाथ कई फिल्मों का अनुबंध कर लिया. उन दिनों खबरें बहुत तेजी से वायरल हुई थीं कि रिलायंस एंटरटेनमैंट ने अमिताभ बच्चन को 1,500 करोड़ रुपए में साइन किया. एक अन्य कौर्पोरेट कंपनी ने अक्षय कुमार को एक फिल्म के लिए 150 करोड़ रुपए में साइन किया, जबकि उन दिनों अक्षय कुमार को निजी फिल्म निर्माता 2 करोड़ रुपए देने में भी हिचकिचा रहे थे.

इसी तरह एक कंपनी ने सनी देओल को 2 हजार करोड़ रुपए में साइन किया था. सनी देआल ने उस के साथ केवल एक फिल्म की और उस फिल्म को रिलीज करने में उसे नाकों चने चबवा दिए. 2001 से 2010 के बीच में करीबन 30 कौर्पोरेट कंपनियां मैदान में आ गई थीं और इसी तरह से कलाकारों के बीच धन बांट रही थीं. उन्हीं दिनों एक मराठी के सुपरस्टार ने हम से कहा था, ‘‘बौलीवुड में यह जो हो रहा है, इस के चलते सिनेमा बरबाद हो जाएगा.

मराठी सिनेमा से जुड़े कलाकारों को भी पारिश्रमिक राशि अधिक मिलने लगी है, मगर जिन्हें पहले 10 रुपए मिलते थे, उन्हें अब 15 रुपए से 20 रुपए मिल रहे हैं. हिंदी की तरह 10 रुपए की जगह 200 से 300 रुपए नहीं मिल रहे.’’

इतना ही नहीं, 2013 में मशहूर फिल्म निर्देशक राजकुमार संतोषी ने मीडिया से बात करते हुए कहा था कि, ‘ये जो हालात हैं उन्हें देखते हुए कह सकता हूं कि बहुत जल्द वह दिन आएगा जब हर कलाकार टिकट ले कर घरघर जाएगा और लोगों को टिकट देते हुए कहेगा कि मेरी फिल्म जा कर देख लीजिए.’

2013 में राजकुमार संतोषी ने यह जो इशारा किया था, उस की तरफ बौलीवुड बढ़ता नजर आने लगा था. 2015 की शुरुआत से हूबहू वही हो रहा है. फिल्म ‘फतेह’ से ले कर ‘स्काई फोर्स’ के कलाकारों व निर्माताओं ने लगभग घरघर जा कर मुफ्त में टिकटें दीं, मगर दर्शक फिर भी फिल्म देखने सिनेमाघर नहीं गए.

संपत्ति बनाने पर ध्यान

एक तरफ कौर्पोरेट या यों कहें कि फिल्म स्टूडियो सिनेमा बनाने के लिए अपने अंदाज में पैसा बांटते हुए अपनी फिल्मों में सुपरस्टार होने का विज्ञापन कर शेयर बाजार में अपने शेयर के दाम बढ़ा कर आम भोलीभाली जनता को लूटते रहे तो वहीं कौर्पोरेट कल्चर में पलबढ़ रहे फिल्म निर्देशक व कलाकारों ने भगवान दादा की हालत से सबक सीखने के नाम पर प्रतिभा की अपेक्षा कहीं ज्यादा अनापशनाप मिल रहे पैसे से मुंबई व मुंबई के बाहर संपत्ति खरीदना शुरू कर दिया. इस का परिणाम यह हुआ कि कलाकार हो या फिल्म निर्देशक, हर किसी की नजर इस बात पर टिक गई कि कहां से कितना पैसा मिलेगा तो कौन सी प्रौपर्टी खरीद सकेंगे. धीरेधीरे इन का ‘कला’ या ‘किरदार’ या ‘कहानी’ से कोई सरोकार ही नहीं रह गया.

2001 के बाद कुकुरमुत्ते की भांति उभरी ये कौर्पोरेट कंपनियां फिल्म बनाने की आड़ में क्याक्या कर रही थीं या कर रही हैं, इस को ले कर कुछ ठोस कहना मुश्किल है. मगर एक उदाहरण बताना सटीक रहेगा. एक कौर्पोरेट कंपनी बहुत तेजी से उभरी थी. उस के 10 रुपए के शेयर के दाम अचानक 90 रुपए पर पहुंच गए थे. इस कौर्पोरेट कंपनी के चमचे लोगों को दिग्भ्रमित कर रहे थे कि इस कंपनी के शेयर के दाम बहुत जल्द 1,500 रुपए का आंकड़ा पार कर लेंगे.

उस वक्त यह बात लोगों को सही लग रही थी क्योंकि यह कंपनी सुनील शेट्टी, परेश रावल सहित कई दिग्गज कलाकारों को ले कर फिल्में बना रही थी पर कुछ समय बाद पता चला कि यह कंपनी तेल व डीजल की कालाबाजारी में लिप्त थी और इस के सभी डायरैक्टर जेल की सलाखों के पीछे चले गए थे. जिन आम लोगों ने अपनी गाढ़ी कमाई को अच्छा लाभ कमाने के लिए इस कंपनी के शेयर खरीदे थे, वे सब कंगाल हो गए. लेकिन फिल्म निर्देशकों या कलाकारों की सेहत पर कोई असर नहीं हुआ क्योंकि इन्हें तो पैसे मिल चुके थे और इन्होंने उस धन को संपत्ति खरीदने में लगा दिया था तो ये सभी चैन की नींद सोते रहे. अब तो इन्हें उन फिल्मों की शूटिंग भी नहीं करनी थी जिन के लिए उस कौर्पोरेट ने उन्हें पैसे दे दिए थे.

अब उस कंपनी के डायरैक्टर कब जेल से बाहर आए या अभी तक नहीं आए, पता नहीं चला पर उस के बाद इस कौर्पोरेट कंपनी का कहीं कोई नामोनिशान नजर नहीं आया. अब तक ‘ईरोज’ सहित करीबन 20 से अधिक कौर्पोरेट कंपनियां गायब हो चुकी हैं. उन के गायब होने से किसी कलाकार या फिल्म निर्देशक को अपनी संपत्ति बेच कर धन वापस करने की जरूरत भी नहीं पड़ी, मगर आम इंसान जिस ने शेयर में अपनी गाढ़ी कमाई लगाई थी वह जरूर रो रहा है.

अभिनय का बेड़ा गर्क

इस सारे खेल के बीच हम आएदिन सुनते रहते हैं कि फलां कलाकार ने फलां प्रौपर्टी खरीद ली. मजेदार बात यह है कि एक फिल्म रिलीज होती है, बौक्स औफिस पर फिल्म लागत का 10 प्रतिशत भी वसूल नहीं कर पाती यानी कि पूरा नुकसान हो जाता है मगर कलाकार द्वारा नई संपत्ति खरीदने की खबरें आ जाती हैं.

सब से ताजातरीन उदहारण वरुण धवन का लीजिए. उस की फिल्म ‘बेबी जौन’ रिलीज हुई. फिल्म ने बौक्स औफिस पर पानी तक नहीं मांगा पर 3 दिनों बाद ही वरुण धवन ने लगभग 50 करोड़ रुपए में एक नई संपत्ति खरीद ली. आखिर ऐसा कैसे संभव है? फिल्म से जो नुकसान हुआ वह कौन भरता है. यह तो वही जनता भरती है जिस ने फिल्म निर्माण से जुड़ी कौर्पोरेट कंपनी के शेयर में पैसा इन्वैस्ट कर रखा है या कर रही है. यह ऐसा लंबा व जटिल विषय है जिस पर आप जितनी बात करेंगे या सोचेंगे, उतना ही जलेबी की तरह घूमते रह जाएंगे.

बहराहल, आइए अब हम यह जान लें कि इन दिनों किस कलाकार के पास कितनी प्रौपर्टी है या कोविड के बाद किस ने कौन सी प्रौपर्टी बेची या खरीदी. कलाकार की फिल्मों से तो आप सभी खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि आखिर कलाकार क्यों फिल्मों में अपनी अभिनय प्रतिभा का कमाल नहीं दिखा रहे हैं.

धनकुबेर बने कलाकार

इस फेहरिस्त में अमिताभ बच्चन का सब से पहला नाम आता है. अमिताभ बच्चन ने मुंबई के ओशिवाड़ा इलाके के अपने डुपलैक्स फ्लैट को 83 करोड़ रुपए में बेच दिया. इस समय उन के पास देशविदेश में अरबों रुपए की प्रौपर्टी है. उन्होंने अपने बेटे अभिषेक बच्चन के साथ मिल कर भी कई प्रौपर्टी खरीदी हैं. ऐसे में बिग बी इन प्रौपर्टीज को बेच कर और किराए पर दे कर मोटी कमाई कर रहे हैं.

फिलहाल अमिताभ बच्चन अभी मुंबई में जुहू ‘जलसा’ बंगले में रहते हैं. 10,125 वर्गफुट में फैले इस बंगले की कीमत करीब 120 करोड़ रुपए बताई जाती है.

ऐसे ही अक्षय कुमार ने भी रियल एस्टेट में सब से ज्यादा इन्वैस्ट कर रखा है. भारत में मुंबई से ले कर गोवा तक में अक्षय कुमार के कई घर हैं तो वहीं उन की प्रौपर्टी कनाडा, मौरिशस, इंग्लैंड व दुबई में भी है.

बात यदि नवाब की पदवी धारण करने वाले अभिनेता सैफ अली खान की हो तो उन के पास भी तमाम प्रौपर्टीज हैं. 150 मिलियन डौलर (1200 करोड़ रुपए से अधिक) की अनुमानित कुल संपत्ति के साथ सैफ अली खान की संपत्ति उन के फिल्मी कैरियर से कहीं अधिक है, जो उन के रियल एस्टेट संपत्तियों के प्रभावशाली संग्रह से पता चलता है.

नएनए जमे कार्तिक आर्यन भी इस रेस का हिस्सा बन गए हैं. उन के पास मुंबई में करोड़ों के अर्पाटमैंट्स हैं. एक वैबसाइट के अनुसार, मिथुन चक्रवर्ती की नैटवर्थ 101 करोड़ रुपए है. जबकि उन की दर्जनों फिल्में फ्लौप रही हैं. ऐसे ही अभिनेता मनोज बाजपेयी वर्सोवा इलाके में आलीशान अपार्टमैंट में रहते हैं जिस की कीमत 40 करोड़ बताई जाती है. उन के पास बिहार में कई प्रौपर्टीज हैं तो वहीं कुछ जमीन उत्तराखंड में भी है.

बौलीवुड में फ्लौप होने के बावजूद वरुण धवन ने कई प्रौपर्टीज जमा कर ली हैं. वरुण धवन और उन की पत्नी नताशा ने ‘बेबी जौन’ के असफल होने के 2 दिनों बाद ही जुहू में ट्वेंटी बाय डी डेकोर प्रोजैक्ट की 7वीं मंजिल पर साढ़े 44 करोड़ रुपए का फ्लैट खरीदा है. सौदे के पंजीकरण के लिए धवन ने 2.67 करोड़ रुपए की स्टांप ड्यूटी का भुगतान किया है. यह अपार्टमैंट 5,112 वर्गफुट का है और इस में 4 कार पार्किंग स्थान हैं तो वहीं वरुण और उन की मां करुणा ने भी इसी बिल्डिंग के 6ठे फ्लोर पर एक अपार्टमैंट खरीदा है. अपार्टमैंट 4,617 वर्गफुट का है और इस में 4 कार पार्किंग स्थान हैं. वरुण के पास कार्टर रोड पर सागर दर्शन बिल्डिंग में एक अपार्टमैंट है.

अजय देवगन के पास प्राइवेट जेट, कई कारों के अलावा मुंबई व गोवा में प्रौपर्टीज हैं. मुंबई में अजय देवगन के 2 घर हैं. एक जुहू में फ्लैट है और दूसरा मालगाड़ी रोड पर बंगला है. गोवा में अजय देवगन और काजोल के पास एक आलीशान विला है. मुंबई के अंधेरी पश्चिम में अजय देवगन के पास 5 औफिस स्पेस हैं.

सलमान खान ने मुंबई में बांद्रा इलाके के गैलेक्सी अपार्टमैंट से ले कर दुबई में एक शानदार घर तक, कई भव्य संपत्तियों में निवेश किया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, उन की अपार लोकप्रियता और आकर्षक कैरियर ने उन की कुल संपत्ति 2,900 करोड़ रुपए तक पहुंचा दी है.

मिस्टर परफैक्शनिस्ट के नाम से मशहूर आमिर खान के पास टाइम्स औफ इंडिया के अनुसार, अनुमानित कुल संपत्ति 1,862 करोड़ रुपए है.

सलमान खान या आमिर खान की ही तरह लगभग हर कलाकार ने संपत्तियां खरीद रखी हैं तो वहीं वे अभिनय के अलावा कई तरह के व्यवसायों से भी जुड़े हुए हैं. इसी वजह से वे अभिनय पर कम ध्यान दे रहे हैं.

Online Hindi Story : बलात्कार – लड़कियों ने कैसे उठाया तकनीक का लाभ ?

Online Hindi Story : अखबार के पहले पन्ने पर बड़ेबड़े अक्षरों में छपा था : पुलिस स्टेशन से मात्र 100 मीटर दूर स्थित फ्लैट में चाकू की नोक पर नकाबपोश ने बलात्कार किया. महिला के बयान के आधार पर विस्तृत वर्णन छपा था. महिला संगठनों द्वारा सरकार की लानतमलानत की गई. गृहमंत्री के घर पर प्रदर्शन हुआ. अखबार के तीसरे पन्ने पर खोजी पत्रकार ने बढ़ते बलात्कार की घटनाओं के आंकड़े छापे. विपक्ष के नेता ने प्रदेश में बढ़ते अपराध के लिए जिम्मेदार गृहमंत्री का इस्तीफा मांगा और सहानुभूति के लिए महिला के घर गए. पासपड़ोस के लोगों के साक्षात्कार लिए गए. किसी एक पड़ोसी ने महिला के संदिग्ध चरित्र पर टिप्पणी कर दी तो महिला पत्रकार उस व्यक्ति के पीछे पड़ गई. किसी का आचरण संदिग्ध हो तो क्या आप को उस से बलात्कार करने का अधिकार मिल गया?

पुलिस आई. विधि विज्ञान विशेषज्ञ आए. महिला का चिकित्सकीय परीक्षण हुआ. महिला के शरीर से वीर्य का नमूना लिया गया. घटनास्थल से उंगलियों के निशान उठाए गए. बिस्तर के कपड़ों पर वीर्य के धब्बों को अंकित कर कपड़े सील किए गए. महिला के शरीर से और कपड़ों पर पड़े वीर्य के नमूनों को डी.एन.ए. जांच के लिए विधि विज्ञान प्रयोगशाला भेजा गया. पुलिस ने प्रदेश के शातिर सभी अपराधियों का डी.एन.ए. परीक्षण कर रखा था. उन के डी.एन.ए. प्रिंट कंप्यूटर में सुरक्षित उपलब्ध थे. बलात्कारी के वीर्य के डी.एन.ए. प्रिंट का अपराधियों के डी.एन.ए. प्रिंट से मिलान किया गया.

परिणाम चौंकाने वाले थे. बलात्कारी के वीर्य के डी.एन.ए. प्रिंट का मिलान जिस अपराधी के डी.एन.ए. से हुआ था वह शातिर अपराधी प्रदेश के एक केंद्रीय कारागार में बलात्कार के अपराध में ही सजा काट रहा था. वारदात के समय वह जेल में ही था, उस के पुख्ता सुबूत थे. डी.एन.ए. के परिणाम गलत नहीं हो सकते. पुलिस और विधि विज्ञान के विशेषज्ञ भौचक थे. दोबारा डी.एन.ए. परीक्षण हुआ और फिर मिलान किया गया. दूसरी प्रयोगशाला में भी परीक्षण किया गया, परिणाम वही थे. डी.एन.ए. परीक्षण के आधार पर ही सजायाफ्ता अपराधी को पहले सजा हुई थी. मुख्य साक्ष्य तब भी डी.एन.ए. परीक्षण और मिलान ही था. तब भी कोई चश्मदीद गवाह नहीं था.

अखबार वालों को फिर उछालने को मसाला मिल गया. विधि विज्ञान की डी.एन.ए. लैब की वीर्य परीक्षण प्रणाली पर सवाल उठाए गए. डी.एन.ए. जांच की सार्थकता पर भी सवाल उठे. डी.एन.ए. प्रिंट जुड़वां बच्चों को छोड़ कर, करोड़ों लोगों में से भी किन्हीं 2 का एक जैसा होना वैज्ञानिक आधार पर संभव नहीं था. यह केस इस आधार को ही चुनौती थी. जेल में बंद अपराधी जेल में कहता फिर रहा था कि वह अपनी पहली सजा को न्यायालय में चुनौती देगा. उस ने अपने वकील को बुलाया था.

जेल का रिकार्ड देखा गया. पिछले दिनों कौनकौन उस से मिलने आया था. यह देखा गया. घटना के पिछले हफ्ते अपराधी से जेल में मिलने एक महिला आई थी जो उस की बहन थी. तहकीकात की गई. अपराधी की बहन अपराधी के घर ठिकाने पर नहीं थी. वह वहां रहती भी नहीं थी. उस की शादी किसी दूसरे शहर में हुई थी. वह वहीं रहती थी.

एक टीम उस शहर में भेजी गई तो पता चला कि वह हैदराबाद गई हुई थी. सूचना के अनुसार जेल में मिलने की तारीख से पहले से ही. हैदराबाद में पता चला कि जेल में मिलने की तारीख को तो अपराधी की बहन की डिलीवरी वहां के एक अस्पताल में हुई थी. उस रोज वह अस्पताल में थी. अभी भी वहीं थी. फिर वह महिला कौन थी जो अपराधी से मिलने जेल में आई थी? क्या अपराधी का डी.एन.ए जांच का नतीजा गलत था? क्या उस को गलत सजा हुई थी? बलात्कार स्थल से प्राप्त वीर्य के नमूने का डी.एन.ए. का मिलान संदिग्ध अपराधी के रक्त के डी.एन.ए. से किया जाता है. क्या दोनों डी.एन.ए. में फर्क हो सकता है? वैसे तो कहते हैं एक व्यक्ति की हर कोशिका, रक्त, वीर्य, थूक आदि सभी का डी.एन.ए. एक होता है, लेकिन जब दूसरे व्यक्ति का रक्त चढ़ाया जाता है तब क्या रक्त के डी.एन.ए. में परिवर्तन हो सकता है? कहीं ऐसा ही कुछ सजायाफ्ता अपराधी के साथ तो नहीं हुआ था? क्या किसी परिस्थिति विशेष में शरीर के अवयवों का डी.एन.ए. बदल सकता है?

इन सभी सवालों का उत्तर जानना आवश्यक था. कारण, अपराधी अपने वकील द्वारा उच्च न्यायालय में केस करने जा रहा था. अत: केस से संबंधित एस.पी. विधि विज्ञान प्रयोगशाला के विशेषज्ञ के पास गए. विशेषज्ञ ने बताया कि ब्लड बैंक से रक्त लेने वाले के रक्त का डी.एन.ए. नहीं बदलता. कारण चढ़ाए गए रक्त में मुख्यतया लाल रक्त कण ही होते हैं और उन में कोई डी.एन.ए. नहीं होता. डी.एन.ए. केवल श्वेत रक्त कणों में होता है और उन का नंबर इतना कम हो जाता है कि छोटे से रक्त के सैंपल में उन का आना असंभव है. फिर इन सभी रक्त कणों का जीवन चक्र मात्र कुछ महीनों का ही होता है.

‘‘तो क्या किसी भी स्थिति में, जैसे बारबार ब्लड ट्रांसफ्यूजन हो या कई बोतलें रक्त चढ़ें तो रक्त का डी.एन.ए. बदल सकता है?’’ एस.पी. ने पूछा. ‘‘नहीं, संभावना न के बराबर है. हां, एक स्थिति में रक्त का डी.एन.ए. बदल सकता है, जब व्यक्ति का बोन मैरो प्रत्यारोपण किया जाए.

‘‘देखिए, रक्त हड्डियों में स्थित रक्त मज्जा से बनता है. रक्त कणों का जीवन मात्र 120 दिनों का होता है. बोन मैरो ट्रांसप्लांट में हम व्यक्ति की स्वयं की रक्त मज्जा को सर्वथा खत्म कर उस की जगह दूसरे व्यक्ति की रक्त मज्जा की कोशिकाओं को स्थापित करते हैं. तब नई रक्त मज्जा की कोशिकाएं अपनी डी.एन.ए. वाले रक्त कण बनाती हैं. रक्त में वही मिलते हैं. अत: रक्त का डी.एन.ए. बदल जाता है.’’ ‘‘क्या ऐसे में वीर्य का डी.एन.ए. भी बदल जाएगा?’’ एस.पी. ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ फिर कुछ सोच कर, ‘‘हां, अगर उस के जननांग के किसी भाग, प्रोस्टेट आदि का इंफेक्शन हो और उस के फलस्वरूप वीर्य में काफी पस सेल्स, अर्थात रक्त की श्वेत कण कोशिकाएं हों तो जरूर मिक्स डी.एन.ए. पैटर्न मिल सकता है. शुक्राणुओं का एक डी.एन.ए. और श्वेत कणों का दूसरा. इधर जिस महिला का बलात्कार हुआ था उस पर नजर रखी जा रही थी. वह एक ट्रैवल एजेंसी में काम करती थी. शुरू में तो उस की हरकतें सामान्य ही दिखीं. आफिस, घर, थोड़ाबहुत इधरउधर. जानपहचान वालों से पूछताछ पर उस महिला की काफी संग्दिध गतिविधियों का पता लगा. धीरेधीरे परतें खुलती गईं. समय गुजरने के साथसाथ वह अपने वास्तविक आचरण पर आ गई. जिन महिलाओं से वह मिलती थी, जिन पुरुषों के संपर्क में आती थी उन पर नजर रखी गई तो असलियत सामने आ गई. वह एक कालगर्ल रैकेट (देह व्यापार गिरोह) की सदस्य थी. पुलिस ने जाल बिछाया और आखिर में सभी को पकड़ लिया.

जब उन लड़कियों और उस महिला को जेल में लाया गया तो महिला को देख कर एक पुलिस वाला बोला, ‘‘अरे, यह तो वही है जो बलात्कारी कैदी से मिलने आई थी. बड़ा मुंह ढक कर आई थी.’’ तहकीकात की गई तो और सचाई सामने आ गई. साक्ष्य जुड़ते गए और आखिर में महिला और कैदी ने स्वीकार कर लिया कि कैदी का वीर्य, महिला जब बहन के नाम से मिलने आई थी तभी ले गई थी और तयशुदा ढोंग रच कर उस ने बलात्कार होने का शोर मचा कर जेल से लाए गए वीर्य का प्रयोग किया.

विधि विज्ञान का वैज्ञानिक आधार बढ़ा है तो अपराधी भी शातिर हो गए हैं.

Best Hindi Story : सच्चा प्यार – दो चाहने वालों के दिल क्यों जुदा हो गए ?

Best Hindi Story : अनुपम और शिखा दोनों इंगलिश मीडियम के सैंट जेवियर्स स्कूल में पढ़ते थे. दोनों ही उच्चमध्यवर्गीय परिवार से थे. शिखा मातापिता की इकलौती संतान थी जबकि अनुपम की एक छोटी बहन थी. धनसंपत्ति के मामले में शिखा का परिवार अनुपम के परिवार की तुलना में काफी बेहतर था. शिखा के पिता पुलिस इंस्पैक्टर थे. उन की ऊपरी आमदनी काफी थी. शहर में उन का रुतबा था. अनुपम और शिखा दोनों पहली कक्षा से ही साथ पढ़ते आए थे, इसलिए वे अच्छे दोस्त बन गए थे. दोनों के परिवारों में भी अच्छी दोस्ती थी. शिखा सुंदर थी अनुपम देखने में काफी स्मार्ट था.

उस दिन उन का 10वीं के बोर्ड का रिजल्ट आने वाला था. शिखा भी अनुपम के घर अपना रिजल्ट देखने आई. अनुपम ने अपना लैपटौप खोला और बोर्ड की वैबसाइट पर गया. कुछ ही पलों में दोनों का रिजल्ट भी पता चल गया. अनुपम को 95 प्रतिशत अंक मिले थे और शिखा को 85 प्रतिशत. दोनों अपनेअपने रिजल्ट से संतुष्ट थे. और एकदूसरे को बधाई दे रहे थे. अनुपम की मां ने दोनों का मुंह मीठा कराया.

शिखा बोली, ‘‘अब आगे क्या पढ़ना है, मैथ्स या बायोलौजी? तुम्हारे तो दोनों ही सब्जैक्ट्स में अच्छे मार्क्स हैं?’’

‘‘मैं तो पीसीएम ही लूंगा. और तुम?’’

‘‘मैं तो आर्ट्स लूंगी, मेरा प्रशासनिक सेवा में जाने का मन है.’’

‘‘मेरी प्रशासनिक सेवा में रुचि नहीं है. जिंदगीभर नेताओं और मंत्रियों की जीहुजूरी करनी होगी.’’

‘‘मैं तुम्हें एक सलाह दूं?’’

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘तुम पायलट बनो. तुम पर पायलट वाली ड्रैस बहुत सूट करेगी और तुम दोगुना स्मार्ट लगोगे. मैं भी तुम्हारे साथसाथ हवा में उड़ने लगूंगी.’’

‘‘मेरे साथ?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, पायलट अपनी बीवी को साथ नहीं ले जा सकते, क्या.’’

तब शिखा को ध्यान आया कि वह क्या बोल गई और शर्म के मारे वहां से भाग गई. अनुपम पुकारता रहा पर उस ने मुड़ कर पीछे नहीं देखा. थोड़ी देर में अनुपम की मां भी वहां आ गईं. वे उन दोनों की बातें सुन चुकी थीं. उन्होंने कहा, ‘‘शिखा ने अनजाने में अपने मन की बात कह डाली है. शिखा तो अच्छी लड़की है. मुझे तो पसंद है. तुम अपनी पढ़ाई पूरी कर लो. अगर तुम्हें पसंद है तो मैं उस की मां से बात करती हूं.’’

अनुपम बोला, ‘‘यह तो बाद की बात है मां, अभी तक हम सिर्फ अच्छे दोस्त हैं. पहले मुझे अपना कैरियर देखना है.’’

मां बोलीं, ‘‘शिखा ने अच्छी सलाह दी है तुम्हें. मेरा बेटा पायलट बन कर बहुत अच्छा लगेगा.’’

‘‘मम्मी, उस में बहुत ज्यादा खर्च आएगा.’’

‘‘खर्च की चिंता मत करो, अगर तुम्हारा मन करता है तब तुम जरूर पायलट बनो अन्यथा अगर कोई और पढ़ाई करनी है तो ठीक से सोच लो. तुम्हारी रुचि जिस में हो, वही पढ़ो,’’ अनुपम के पापा ने उन की बात सुन कर कहा.

उन दिनों 21वीं सदी का प्रारंभ था. भारत के आकाशमार्ग में नईनई एयरलाइंस कंपनियां उभर कर आ रही थीं. अनुपम ने मन में सोचा कि पायलट का कैरियर भी अच्छा रहेगा. उधर अनुपम की मां ने भी शिखा की मां से बात कर शिखा के मन की बात बता दी थी. दोनों परिवार भविष्य में इस रिश्ते को अंजाम देने पर सहमत थे.

एक दिन स्कूल में अनुपम ने शिखा से कहा, ‘‘मैं ने सोच लिया है कि मैं पायलट ही बनूंगा. तुम मेरे साथ उड़ने को तैयार रहना.’’

‘‘मैं तो न जाने कब से तैयार बैठी हूं,’’ शरारती अंदाज में शिखा ने कहा.

‘‘ठीक है, मेरा इंतजार करना, पर कमर्शियल पायलट बनने के बाद ही शादी करूंगा.’’

‘‘नो प्रौब्लम.’’

अब अनुपम और शिखा दोनों काफी नजदीक आ चुके थे. दोनों अपने भविष्य के सुनहरे सपने देखने लगे थे. देखतेदेखते दोनों 12वीं पास कर चुके थे. अनुपम को अच्छे कमर्शियल पायलट बनने के लिए अमेरिका के एक फ्लाइंग स्कूल जाना था.

भारत में मल्टीइंजन वायुयान और एयरबस ए-320 जैसे विमानों पर सिमुलेशन की सुविधा नहीं थी जोकि अच्छे कमर्शियल पायलट के लिए जरूरी था. इसलिए अनुपम के पापा ने गांव की जमीन बेच कर और कुछ प्रोविडैंट फंड से लोन ले कर अमेरिकन फ्लाइंग स्कूल की फीस का प्रबंध कर लिया था. अनुपम ने अमेरिका जा कर एक मान्यताप्राप्त फ्लाइंग स्कूल में ऐडमिशन लिया. शिखा ने स्थानीय कालेज में बीए में ऐडमिशन ले लिया.

अमेरिका जाने के बाद फोन और वीडियो चैट पर दोनों बातें करते. समय का पहिया अपनी गति से घूम रहा था. देखतेदेखते 3 वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका था. अनुपम को कमर्शियल पायलट लाइसैंस मिल गया. शिखा को प्रशासनिक सेवा में सफलता नहीं मिली. उस ने अनुपम से कहा कि प्रशासनिक सेवा के लिए वह एक बार और कंपीट करने का प्रयास करेगी.

अनुपम ने प्राइवेट एयरलाइंस में पायलट की नौकरी जौइन की. लगभग 2 साल वह घरेलू उड़ान पर था. एकदो बार उस ने शिखा को भी अपनी फ्लाइट से सैर कराई. शिखा को कौकपिट दिखाया और कुछ विमान संचालन के बारे में बताया. शिखा को लगा कि उस का सपना पूरा होने जा रहा है. एक साल बाद अनुपम को अंतर्राष्ट्रीय वायुमार्ग पर उड़ान भरने का मौका मिला. कभी सिंगापुर, कभी हौंगकौंग तो कभी लंदन.

शिखा को दूसरे वर्ष भी प्रशासनिक सेवा में सफलता नहीं मिली. इधर शिखा के परिवार वाले उस की शादी जल्दी करना चाहते थे. अनुपम ने उन से 1-2 साल का और समय मांगा. दरअसल, अनुपम के पिता उस की पढ़ाई के लिए काफी कर्ज ले चुके थे. अनुपम चाहता था कि अपनी कमाई से कुछ कर्ज उतार दे और छोटी बहन की शादी हो जाए.

वैसे तो वह प्राइवेट एयरलाइंस घरेलू वायुसेवा में देश में दूसरे स्थान पर थी पर इस कंपनी की आंतरिक स्थिति ठीक नहीं थी. 2007 में कंपनी ने दूसरी घरेलू एयरलाइंस कंपनी को खरीदा था जिस के बाद इस की आर्थिक स्थिति बिगड़ने लगी थी. 2010 तक हालत बदतर होने लगे थे. बीचबीच में कर्मचारियों को बिना वेतन 2-2 महीने काम करना पड़ा था.

उधर शिखा के पिता शादी के लिए अनुपम पर दबाव डाल रहे थे. पर बारबार अनुपम कुछ और समय मांगता ताकि पिता का बोझ कुछ हलका हो. जो कुछ अनुपम की कमाई होती, उसे वह पिता को दे देता. इसी वजह से अनुपम की बहन की शादी भी अच्छे से हो गई. उस के पिता रिटायर भी हो गए थे.

रिटायरमैंट के समय जो कुछ रकम मिली और अनुपम की ओर से मिले पैसों को मिला कर उन्होंने शहर में एक फ्लैट ले लिया. पर अभी भी फ्लैट के मालिकाना हक के लिए और रुपयों की जरूरत थी. अनुपम को कभी 2 महीने तो कभी 3 महीने पर वेतन मिलता जो फ्लैट में खर्च हो जाता. अब भी एक बड़ी रकम फ्लैट के लिए देनी थी.

एक दिन शिखा के पापा ने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘आज अनुपम से फाइनल बात कर लेता हूं, आखिर कब तक इंतजार करूंगा और दूसरी बात, मुझे पायलट की नौकरी उतनी पसंद भी नहीं. ये लोग देशविदेश घूमते रहते हैं. इस का क्या भरोसा, कहीं किसी के साथ चक्कर न चल रहा हो.’’

अनुपम के मातापिता तो चाहते थे कि अनुपम शादी के लिए तैयार हो जाए, पर वह तैयार नहीं हुआ. उस का कहना था कि कम से कम यह घर तो अपना हो जाए, उस के बाद ही शादी होगी. इधर एयरलाइंस की हालत बद से बदतर होती गई. वर्ष 2012 में जब अनुपम घरेलू उड़ान पर था तो उस ने दर्दभरी आवाज में यात्रियों को संबोधित किया, ‘‘आज की आखिरी उड़ान में आप लोगों की सेवा करने का अवसर मिला. हम ने 2 महीने तक बिना वेतन के अपनी समझ और सामर्थ्य के अनुसार आप की सेवा की है.’’

इस के चंद दिनों बाद इस एयरलाइंस की घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों का लाइसैंस रद्द कर दिया गया. पायलट हो कर भी अनुपम बेकार हो गया.

शिखा के पिता ने बेटी से कहा, ‘‘बेटे, हम ने तुम्हारे लिए एक आईएएस लड़का देखा है. वे लोग तुम्हें देख चुके हैं और तुम से शादी के लिए तैयार हैं. वे कोई खास दहेज भी नहीं मांग रहे हैं वरना आजकल तो आईएएस को करोड़ डेढ़करोड़ रुपए आसानी से मिल जाता है.’’

‘‘पापा, मैं और अनुपम तो वर्षों से एकदूसरे को जानते हैं और चाहते भी हैं. यह तो उस के साथ विश्वासघात होगा. हम कुछ और इंतजार कर सकते हैं. हर किसी का समय एकसा नहीं होता. कुछ दिनों में उस की स्थिति भी अच्छी हो जाएगी, मुझे पूरा विश्वास है.’’

‘‘हम लोग लगभग 2 साल से उसी के इंतजार में बैठे हैं, अब और समय गंवाना व्यर्थ है.’’

‘‘नहीं, एक बार मुझे अनुपम से बात करने दें.’’

शिखा ने अनुपम से मिल कर यह बात बताई. शिखा तो कोर्ट मैरिज करने को भी तैयार थी पर अनुपम को यह ठीक नहीं लगा. वह तो अनुपम का इंतजार भी करने को तैयार थी.

शिखा ने पिता से कहा, ‘‘मैं अनुपम के लिए इंतजार कर सकती हूं.’’

‘‘मगर, मैं नहीं कर सकता और न ही लड़के वाले. इतना अच्छा लड़का मैं हाथ से नहीं निकलने दूंगा. तुम्हें इस लड़के से शादी करनी होगी.’’

उस के पिता ने शिखा की मां को बुला कर कहा, ‘‘अपनी बेटी को समझाओ वरना मैं अभी के तुम को गोली मार कर खुद को भी गोली मार दूंगा.’’ यह बोल कर उन्होंने पौकेट से पिस्तौल निकाल कर पत्नी पर तान दी.

मां ने कहा, ‘‘बेटे, पापा का कहना मान ले. तुम तो इन का स्वभाव जानती हो. ये कुछ भी कर बैठेंगे.’’

शिखा को आखिरकार पिता का कहना मानना पड़ा ही शिखा अब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की पत्नी थी. उस के पास सबकुछ था, घर, बंगला, नौकरचाकर. कुछ दिनों तक तो वह थोड़ी उदास रही पर जब वह प्रैग्नैंट हुई तो उस का मन अब अपने गर्भ में पलने वाले जीव की ओर आकृष्ट हुआ.

उधर, अनुपम के लिए लगभग 1 साल का समय ठीक नहीं रहा. एक कंपनी से उसे पायलट का औफर भी मिला तो वह कंपनी उस की लाचारी का फायदा उठा कर इतना कम वेतन दे रही थी कि वह तैयार नहीं हुआ. इस के कुछ ही महीने बाद उसे सिंगापुर के एक मशहूर फ्लाइंग एकेडमी में फ्लाइट इंस्ट्रक्टर की नौकरी मिल गई. वेतन, पायलट की तुलना में कम था पर आराम की नौकरी थी. ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी थी  इस नौकरी में. अनुपम सिंगापुर चला गया.

इधर शिखा ने एक बेटे को जन्म दिया. देखतेदेखते एक साल और गुजर गया. अनुपम के मातापिता अब उस की शादी के लिए दबाव बना रहे थे. अनुपम ने सबकुछ अपने मातापिता पर छोड़ दिया था. उस ने बस इतना कहा कि जिस लड़की को वे पसंद करें उस से फाइनल करने से पहले वह एक बार बात करना चाहेगा.

कुछ दिनों बाद अनुपम अपने एक दोस्त की शादी में भारत आया. वह दोस्त का बराती बन कर गया. जयमाला के दौरान स्टेज पर ही लड़की लड़खड़ा कर गिर पड़ी. उस का बाएं पैर का निचला हिस्सा कृत्रिम था, जो निकल पड़ा था. पूरी बरात और लड़की के यहां के मेहमान यह देख कर आश्चर्यचकित थे.

दूल्हे के पिता ने कहा, ‘‘यह शादी नहीं हो सकती. आप लोगों ने धोखा दिया है.’’

लड़की के पिता बोले, ‘‘आप को तो मैं ने बता दिया था कि लड़की का एक पैर खराब है.’’

‘‘आप ने सिर्फ खराब कहा था. नकली पैर की बात नहीं बताई थी. यह शादी नहीं होगी और बरात वापस जाएगी.’’

तब तक लड़की का भाई भी आ कर बोला, ‘‘आप को इसीलिए डेढ़ करोड़ रुपए का दहेज दिया गया है. शादी तो आप को करनी ही होगी वरना…’’

अनुपम का दोस्त, जो दूल्हा था, ने कहा, ‘‘वरना क्या कर लेंगे. मैं जानता हूं आप मजिस्ट्रेट हैं. देखता हूं आप क्या कर लेंगे. अपनी दो नंबर की कमाई के बल पर आप जो चाहें नहीं कर सकते. आप ने नकली पैर की बात क्यों छिपाई थी. लड़की दिखाने के समय तो हम ने इस की चाल देख कर समझा कि शायद पैर में किसी खोट के चलते लंगड़ा कर चल रही है, पर इस का तो पैर ही नहीं है, अब यह शादी नहीं होगी. बरात वापस जाएगी.’’

तब तक अनुपम भी दोस्त के पास पहुंचा. उस के पीछे एक महिला गोद में बच्चे को ले कर आई. वह शिखा थी. उस ने दुलहन बनी लड़की का पैर फिक्स किया. वह शिखा से रोते हुए बोली, ‘‘भाभी, मैं कहती थी न कि मेरी शादी न करें आप लोग. मुझे बोझ समझ कर घर से दूर करना चाहा था न?’’

‘‘नहीं मुन्नी, ऐसी बात नहीं है. हम तो तुम्हारा भला सोच रहे थे.’’ शिखा इतना ही बोल पाई थी और उस की आंखों से आंसू निकलने लगे. इतने में उस की नजर अनुपम पर पड़ी तो बोली, ‘‘अनुपम, तुम यहां?’’

अनुपम ने शिखा की ओर देखा. मुन्नी और विशेष कर शिखा को रोते देख कर वह भी दुखी था. बरात वापस जाने की तैयारी में थी. दूल्हेदोस्त ने शिखा को देख कर कहा, ‘‘अरे शिखा, तुम यहां?’’

‘‘हां, यह मेरी ननद मुन्नी है.’’

‘‘अच्छा, तो यह तुम लोगों का फैमिली बिजनैस है. तुम ने अनुपम को ठगा और अब तुम लोग मुझे उल्लू बना रहे थे. चल, अनुपम चल, अब यहां नहीं रुकना है.’’

अनुपम बोला, ‘‘तुम चलो, मैं शिखा से बात कर के आता हूं.’’

बरात लौट गई. शिखा अनुपम से बोली, ‘‘मुझे उम्मीद है, तुम मुझे गलत नहीं समझोगे और माफ कर दोगे. मैं अपने प्यार की कुर्बानी देने के लिए मजबूर थी. अगर ऐसा नहीं करती तो मैं

अपनी मम्मी और पापा की मौत की जिम्मेदार होती.’’

‘‘मैं ने न तुम्हें गलत समझा है और न ही तुम्हें माफी मांगने की जरूरत है.’’

लड़की के पिता ने बरातियों से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘आप लोग क्षमा करें, मैं बेटी के हाथ तो पीले नहीं कर सका लेकिन आप लोग कृपया भोजन कर के जाएं वरना सारा खाना व्यर्थ बरबाद जाएगा.’’

मेहमानों ने कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में हमारे गले के अंदर निवाला नहीं उतरेगा. बिटिया की डोली न उठ सकी इस का हमें भी काफी दुख है. हमें माफ करें.’’

तब अनुपम ने कहा, ‘‘आप की बिटिया की डोली उठेगी और मेरे घर तक जाएगी. अगर आप लोगों को ऐतराज न हो.’’

वहां मौजूद सभी लोगों की निगाहें अनुपम पर गड़ी थीं. लड़की के पिता ने  झुक कर अनुपम के पैर छूने चाहे तो उस ने तुरंत उन्हें मना किया.

शिखा के पति ने कहा, ‘‘मुझे शिखा ने तुम्हारे बारे में बताया था कि तुम दोनों स्कूल में अच्छे दोस्त थे. पर मैं तुम से अभी तक मिल नहीं सका था. तुम ने मेरे लिए ऐसे हीरे को छोड़ दिया.’’

मुन्नी की शादी उसी मंडप में हुई. विदा होते समय वह अपनी भाभी शिखा से बोली, ‘‘प्यार इस को कहते हैं, भाभी. आप के या आप के परिवार को अनुपम अभी भी दुखी नहीं देखना चाहते हैं.’’

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