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Love Story In Hindi : कहां हो तुम – दोस्ती और प्यार के बीच में फंसे लड़के लड़की की कहानी

Love Story In Hindi : ऋतु अपने कालेज के गेट के बाहर निकली तो उस ने देखा बहुत तेज बारिश हो रही है. ‘ओ नो, अब मैं घर कैसे जाऊंगी?’ उस ने परेशान होते हुए अपनेआप से कहा. इतनी तेज बारिश में तो छाता भी नाकामयाब हो जाता है और ऊपर से यह तेज हवा व पानी की बौछारें जो उसे लगातार गीला कर रही थीं. सड़क पर इतने बड़ेबड़े गड्ढे थे कि संभलसंभल कर चलना पड़ रहा था. जरा सा चूके नहीं कि सड़क पर नीचे गिर जाओ. लाख संभालने की कोशिश करने पर भी हवा का आवेग छाते को बारबार उस के हाथों से छुड़ा ले जा रहा था. ऐसे में अगर औटोरिक्शा मिल जाता तो कितना अच्छा होता पर जितने भी औटोरिक्शा दिखे, सब सवारियों से लदे हुए थे.

उस ने एक ठंडी सी आह भरी और पैदल ही रवाना हो गई, उसे लगा जैसे मौसम ने उस के खिलाफ कोई साजिश रची हो. झुंझलाहट से भरी धीरेधीरे वह अपने घर की तरफ बढ़ने लगी कि अचानक किसी ने उस के आगे स्कूटर रोका. उस ने छाता हटा कर देखा तो यह पिनाकी था. ‘‘हैलो ऋतु, इतनी बारिश में कहां जा रही हो?’’

‘‘यार, कालेज से घर जा रही हूं और कहां जाऊंगी.’’ ‘‘इस तरह भीगते हुए क्यों जा रही है?’’

‘‘तू खुद भी तो भीग रहा है, देख.’’ ‘‘ओके, अब तुम छाते को बंद करो और जल्दी से मेरे स्कूटर पर बैठो, यह बारिश रुकने वाली नहीं, समझी.’’

ऋतु ने छाता बंद किया और किसी यंत्रचालित गुडि़या की तरह चुपचाप उस के स्कूटर पर बैठ गई. आज उसे पिनाकी बहुत भला लग रहा था, जैसे डूबते को कोई तिनका मिल गया हो. हालांकि दोनों भीगते हुए घर पहुंचे पर ऋतु खुश थी. घर पहुंची तो देखा मां ने चाय के साथ गरमागरम पकौड़े बनाए हैं. उन की खुशबू से ही वह खिंचती हुई सीधी रसोई में पहुंच गई और प्लेट में रखे पकौड़ों पर हाथ साफ करने लगी तो मां ने उस का हाथ बीच में ही रोक लिया और बोली, ‘‘न न ऋ तु, ऐसे नहीं, पहले हाथमुंह धो कर आ और अपने कपड़े देख, पूरे गीले हैं, जुकाम हो जाएगा, जा पहले कपड़े बदल ले. पापा और भैया बालकनी में बैठे हैं, तुम भी वहीं आ जाना.’’ ‘भूख के मारे तो मेरी जान निकली जा रही है और मां हैं कि…’ यह बुदबुदाती सी वह अपने कमरे में गई और जल्दी से फ्रैश हो कर अपने दोनों भाइयों के बीच आ कर बैठ गई. छोटे वाले मुकेश भैया ने उस के सिर पर चपत लगाते हुए कहा, ‘‘पगली, इतनी बारिश में भीगती हुई आई है, एक फोन कर दिया होता तो मैं तुझे लेने आ जाता.’’

‘‘हां भैया, मैं इतनी परेशान हुई और कोई औटोरिक्शा भी नहीं मिला, वह तो भला हो पिनाकी का जो मुझे आधे रास्ते में मिल गया वरना पता नहीं आज क्या होता.’’ इतना कह कर वह किसी भूखी शेरनी की तरह पकौड़ों पर टूट पड़ी. अब बारिश कुछ कम हो गई थी और ढलते हुए सूरज के साथ आकाश में रेनबो धीरेधीरे आकार ले रहा था. कितना मनोरम दृश्य था, बालकनी की दीवार पर हाथ रख कर मैं कुदरत के इस अद्भुत नजारे को निहार रही थी कि मां ने पकौड़े की प्लेट देते हुए कहा, ‘‘ले ऋ तु, ये मिसेज मुखर्जी को दे आ.’’ उस ने प्लेट पकड़ी और पड़ोस में पहुंच गई. घर के अंदर घुसते ही उसे हीक सी आने लगी, उस ने अपनी नाक सिकोड़ ली. उस की ऐसी मुखमुद्रा देख कर पिनाकी की हंसी छूट गई.

वह ठहाका लगाते हुए बोला, ‘‘भीगी बिल्ली की नाक तो देखो कैसी सिकुड़ गई है,’’ यह सुन कर ऋ तु गुस्से में उस के पीछे भागी और उस की पीठ पर एक धौल जमाई. पिनाकी उहआह करता हुआ बोला, ‘‘तुम लड़कियां कितनी कठोर होती हो, किसी के दर्द का तुम्हें एहसास तक नहीं होता.’’

‘‘हा…हा…हा… बड़ा आया दर्द का एहसास नहीं होता, मुझे चिढ़ाएगा तो ऐसे ही मार खाएगा.’’ मिसेज मुखर्जी रसोई में मछली तल रही थीं, जिस की बदबू से ऋ तु की हालत खराब हो रही थी. उस ने पकौड़ों की प्लेट उन्हें पकड़ाई और बाहर की ओर लपकते हुए बोली, ‘‘मैं तो जा रही हूं बाबा, वरना इस बदबू से मैं बेहोश हो जाऊंगी.’’

मिसेज मुखर्जी ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम को मछली की बदबू आती है लेकिन ऋ तु अगर तुम्हारी शादी किसी बंगाली घर में हो गई, तब क्या करेगी.’’

बंगाली लोग प्यारी लड़की को लाली कह कर बुलाते हैं. पिनाकी की मां को ऋ तु के लाललाल गालों पर मुसकान बहुत पसंद थी. वह अकसर उसे कालेज जाते हुए देख कर छेड़ा करती थी. ‘‘ऋ तु तुमी खूब शुंदर लागछी, देखो कोई तुमा के उठा कर न ले जाए.’’

पिनाकी ने सच ही तो कहा था ऋ तु को उस के दर्द का एहसास कहां था. वह जब भी उसे देखता उस के दिल में दर्द होता था. ऋ तु अपनी लंबीलंबी 2 चोटियों को पीठ के पीछे फेंकते हुए अपनी बड़ीबड़ी और गहरी आंखें कुछ यों घूमाती है कि उन्हें देख कर पिनाकी के होश उड़ जाते हैं और जब बात करतेकरते वह अपना निचला होंठ दांतों के नीचे दबाती है तो उस की हर अदा पर फिदा पिनाकी उस की अदाओं पर मरमिटना चाहता है. पर ऋतु से वह इस बात को कहे तो कैसे कहे. कहीं ऐसा न हो कि ऋतु यह बात जानने के बाद उस से दोस्ती ही तोड़ दे. फिर उसे देखे बिना, उस से बात किए बिना वह जी ही नहीं पाएगा न, बस यही सोच कर मन की बात मन में लिए अपने प्यार को किसी कीमती हीरे की तरह मन में छिपाए उसे छिपछिप कर देखता है. आमनेसामने घर होने की वजह से उस की यह ख्वाहिश तो पूरी हो ही जाती है. कभी बाहर जाते हुए तो कभी बालकनी में खड़ी ऋतु उसे दिख ही जाती है पर वह उसे छिप कर देखता है अपने कमरे की खिड़की से.

‘‘पिनाकी, क्या सोच रहा है?’’ ऋतु उस के पास खड़ी चिल्ला रही थी इस बात से बेखबर कि वह उसी के खयालों में खोया हुआ है. कितना फासला होता है ख्वाब और उस की ताबीर में. ख्वाब में वह उस के जितनी नजदीक थी असल में उतनी ही दूर. जितना खूबसूरत उस का खयाल था, क्या उस की ताबीर भी उतनी ही खूबसूरत थी. हां, मगर ख्वाब और उस की ताबीर के बीच का फासला मिटाना उस के वश की बात नहीं थी. ‘‘तू चल मेरे साथ,’’ ऋतु उसे खींचती हुई स्टडी टेबल तक ले गई. ‘‘कल सर ने मैथ्स का यह नया चैप्टर सौल्व करवाया, लेकिन मेरे तो भेजे में कुछ नहीं बैठा, अब तू ही कुछ समझा दे न.’’

ऋतु को पता था कि पिनाकी मैथ्स का मास्टर है, इसलिए जब भी उसे कोई सवाल समझ नहीं आता तो वह पिनाकी की मदद लेती है, ‘‘कितनी बार कहा था मां से यह मैथ्स मेरे बस का रोग नहीं, लेकिन वे सुनती ही नहीं, अब निशा को ही देख आर्ट्स लिया है उस ने, कितनी फ्री रहती है. कोई पढ़ाई का बोझ नहीं और यहां तो बस, कलम घिसते रहो, फिर भी कुछ हासिल नहीं होता.’’ ‘‘इतनी बकबक में दिमाग लगाने के बजाय थोड़ा पढ़ाई में लगाया होता तो सब समझ आ जाता.’’

‘‘मेरा और मैथ्स का तो शुरू से ही छत्तीस का आंकड़ा रहा है, पिनाकी.’’ पिनाकी एक घंटे तक उसे समझाने की कोशिश करता रहा पर ऋ तु के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा था.

‘‘तुम सही कहती हो ऋतु, यह मैथ्स तुम्हारे बस की नहीं है, तुम्हारा तो इस में पास होना भी मुश्किल है यार.’’

पिनाकी ने अपना सिर धुनते हुए कहा तो ऋ तु को हंसी आ गई. वह जोरजोर से हंसे जा रही थी और पिनाकी उसे अपलक निहारे जा रहा था. उस के जाने के बाद पिनाकी तकिए को सीने से चिपटाए ऋ तु के ख्वाब देखने में मगन हो गया. जब वह उस के पास बैठी थी तो उस के लंबे खुले बाल पंखे की हवा से उड़ कर बारबार उस के कंधे को छू रहे थे और इत्र में घुली मदहोश करती उस की सांसों की खुशबू ने पिनाकी के होश उड़ा दिए थे. पर अपने मन की इन कोमल संवेदनशील भावनाओं को दिल में छिपा कर रखने में, इस दबीछिपी सी चाहत में, शायद उस के दिल को ज्यादा सुकून मिलता था. कहते हैं अगर प्यार हो जाए तो उस का इजहार कर देना चाहिए. मगर क्या यह इतना आसान होता है और फिर दोस्ती में यह और भी ज्यादा मुश्किल हो जाता है, क्योंकि यह जो दिल है, शीशे सा नाजुक होता है. जरा सी ठेस लगी नहीं, कि छन्न से टूट कर बिखर जाता है. इसीलिए अपने नाजुक दिल को मनामना कर दिल में प्रीत का ख्वाब संजोए पिनाकी ऋ तु की दोस्ती में ही खुश था, क्योंकि इस तरह वे दोनों जिंदादिली से मिलतेजुलते और हंसतेखेलते थे.

ऋतु भले ही पिनाकी के दिल की बात न समझ पाई हो पर उस की सहेली उमा ने यह बात भांप ली थी कि पिनाकी के लिए ऋ तु दोस्त से कहीं बढ़ कर है. उस ने ऋतु से कहा भी था, ‘‘तुझे पता है ऋतु, पिनाकी दीवाना है तेरा.’’ और यह सुन कर खूब हंसी थी वह और कहा था, ‘‘धत्त पगली, वह मेरा अच्छा दोस्त है. एक ऐसा दोस्त जो हर मुश्किल घड़ी में न जाने कैसे किसी सुपरमैन की तरह मेरी मदद के लिए पहुंच जाता है और फिर यह कहां लिखा है कि एक लड़का और एक लड़की दोस्त नहीं हो सकते, इस बात को दिल से निकाल दे, ऐसा कुछ नहीं है.’’

‘‘पर मैं ने कई बार उस की आंखों में तेरे लिए उमड़ते प्यार को देखा है, पगली चाहता है वह तुझे.’’ ‘‘तेरा तो दिमाग खराब हो गया लगता है. उस की आंखें ही पढ़ती रहती है, कहीं तुझे ही तो उस से प्यार नहीं हो गया. कहे तो तेरी बात चलाएं.’’

‘‘तुझे तो समझाना ही बेकार है.’’ ‘‘उमा, सच कहूं तो मुझे ये बातें बकवास लगती हैं. मुझे लगता है हमारे मातापिता हमारे लिए जो जीवनसाथी चुनते हैं, वही सही होता है. मैं तो अरेंज मैरिज में ज्यादा विश्वास रखती हूं, सात फेरों के बाद जीवनसाथी से जो प्यार होता है वही सच्चा प्यार है और वह प्यार कभी उम्र के साथ कम नहीं होता बल्कि और बढ़ता ही है.’’

उमा आंखें फाड़े ऋ तु को देख रही थी, ‘‘मैं ने सोचा नहीं था कि तू इतनी ज्ञानी है. धन्य हो, आप के चरण कहां हैं देवी.’’ और फिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.

इस के बाद फिर कभी उमा ने यह बात नहीं छेड़ी, पर उसे इस बात का एहसास जरूर था कि एक न एक दिन यह एकतरफा प्यार पिनाकी को तोड़ कर रख देगा. पर कुछ हालात होते ही ऐसे हैं जिन पर इंसान का बस नहीं चलता. और अब घर में भी ऋ तु की शादी के चर्चे चलने लगे थे, जिन्हें सुन कर वह मन ही मन बड़ी खुश होती थी कि चलो, अब कम से कम पढ़ाई से तो छुटकारा मिलेगा. सुंदर तो थी ही वह, इसीलिए रिश्तों की लाइन सी लग गई थी. उस के दोनों भाई हंसते हुए चुटकी लेते थे, ‘‘तेरी तो लौटरी लग गई ऋ तु, लड़कों की लाइन लगी है तेरे रिश्ते के लिए. यह तो वही बात हुई, ‘एक अनार और सौ बीमार’?’’

‘‘मम्मी, देखो न भैया को,’’ यह कह कर वह शरमा जाती थी. ऋतु और उमा बड़े गौर से कुछ तसवीरें देखने में मग्न थीं. ऋ तु तसवीरों को देखदेख कर टेबल पर रखती जा रही थी, फिर अचानक एक तसवीर पर उन दोनों सहेलियों को निगाहें थम गईं. दोनों ने एकदूसरे की तरफ देखा. ऋतु की आंखों की चमक साफसाफ बता रही थी कि उसे यह लड़का पसंद आ गया था. गोरा रंग, अच्छी कदकाठी और पहनावा ये सारी चीजें उस के शानदार व्यक्तित्व की झलकियां लग रही थीं. उमा ने भौंहें उचका कर इशारा किया तो ऋतु ने पलक झपका दी. उमा बोली, ‘‘तो ये हैं हमारे होने वाले जीजाजी,’’ उस ने तसवीर ऋ तु के हाथ से खींच ली और भागने लगी.

‘‘उमा की बच्ची, दे मुझे,’’ कहती ऋ तु उस के पीछे भागी. पर उमा ने एक न सुनी, तसवीर ले जा कर ऋतु की मम्मी को दे दी और बोली, ‘‘यह लो आंटी, आप का होने वाला दामाद.’’

मां ने पहले तसवीर को, फिर ऋतु को देखा तो वह शरमा कर वहां से भाग गई. लड़का डाक्टर था और उस का परिवार भी काफी संपन्न व उच्च विचारों वाला था. एक लड़की जो भी गुण अपने पति में चाहती है वे सारे गुण उस के होने वाले पति कार्तिक में थे. और क्या चाहिए था उसे. उस की जिंदगी तो संवरने जा रही थी और वह यह सोच कर भी खुश थी कि अब शादी हो जाएगी तो पढ़ाई से पीछा छूटेगा. उस ने जितना पढ़ लिया, काफी था. पर लड़के वालों ने कहा कि उस का ग्रेजुएशन पूरा होने के बाद ही वे शादी करेंगे. ऋ तु की सहमति से रिश्ता तय हुआ और आननफानन सगाई की तारीख भी पक्की हो गई.

सगाई के दिन पिनाकी और उस का परिवार वहां मौजूद नहीं था. उस की दादी की बीमारी की खबर सुन कर वे लोग गांव चले गए थे. गांव से लौटने में उन्हें 15 दिन लग गए. वापस लौटा तो सब से पहले ऋ तु को ही देखना चाहता था पिनाकी. और ऋ तु भी उतावली थी अपने सब से प्यारे दोस्त को सगाई की अंगूठी दिखाने के लिए. जैसे ही उसे पता चला कि पिनाकी लौट आया है वह दौड़ीदौड़ी चली आई पिनाकी के घर. पिनाकी की नजर खिड़की के बाहर उस के घर की ओर ही लगी थी. जब उस ने ऋ तु को अपने घर की ओर आते देखा तो वह सोच रहा था आज कुछ भी हो जाए वह उसे अपने दिल की बात बता कर ही रहेगा. उसे क्या पता था कि उस की पीठ पीछे उस की दुनिया उजाड़ने की तैयारी हो चुकी है. ‘‘पिनाकी बाबू, किधर हो,’’ ऋतु शोर मचाती हुई अंदर दाखिल हुई.

‘‘हैलो ऋतु, आज खूब खुश लागछी तुमी?’’ पिनाकी की मां ने उस के चेहरे पर इतनी खुशी और चमक देख कर पूछा. ‘‘बात ही कुछ ऐसी है आंटी, ये देखो,’’ ऐसा कह कर उस ने अपनी अंगूठी वाला हाथ आगे कर दिया और चहकते हुए अपनी सगाई का किस्सा सुनाने लगी.

पिनाकी पास खड़ा सब सुन रहा था. उसे देख कर ऋ तु उस के पास जा कर अपनी अंगूठी दिखाते हुए कहने लगी, ‘‘देख ना, कैसी है, है न सुंदर. अब ऐसा मुंह बना कर क्यों खड़ा है, अरे यार, तुम लोग गांव गए थे और मुहूर्त तो किसी का इंतजार नहीं करता न, बस इसीलिए, पर तू चिंता मत कर, तुझे पार्टी जरूर दूंगी.’’

पिनाकी मुंह फेर कर खड़ा था, शायद वह अपने आंसू छिपाना चाहता था. फिर वह वहां से चला गया. ऋ तु उसे आवाज लगाती रह गई. ‘‘अरे पिनाकी, सुन तो क्या हुआ,’’ ऋ तु उस की तरफ बढ़ते हुए बोली.

पर वह वापस नहीं आया और दोबारा उसे कभी नहीं मिला क्योंकि अगले दिन ही वह शहर छोड़ कर गांव चला गया. ऋ तु सोचती रह गई. ‘‘आखिर क्या गलती हुई उस से जो उस का प्यारा दोस्त उस से रूठ गया. उस की शादी हो गई और वह अपनी गृहस्थी में रम गई पर पिनाकी जैसे दोस्त को खो कर कई बार उस का दुखी मन पुकारा करता, ‘‘कहां हो तुम?’’ Love Story In Hindi

Social Story : छुटकारा – सुगना किसके यहां जाकर बैठती थी ?

Social Story : खुला सा आंगन. आंगन में ही है टूटाफूटा सा बड़ा दरवाजा और उस दरवाजे से लग कर 2 कमरे. कमरों से सटे हुए बरामदे में रसोई. यह है गंजोई का घर. 4 बेटियां और पत्नी है गंजोई के परिवार में. गंजोई की पत्नी सुगना पुरानी साड़ी की फटी पट्टियों से गुंथी रहती. मैली सी चारपाई पर गंजोई पैर फैला कर लेटा रहता और सुगना अपनी बातों से उस का मन बहलाया करती.  सुगना को पति की सेवा से फुरसत मिलती, तो घर की खोजखबर लेती. गंजोई तो अजगर था. दास मलूका का शुक्रिया अदा करता और अपने दाने के इंतजार में पड़ा रहता. गंजोई की बड़ी बेटी अंजू 15 साल से कुछ ऊपर. काली, ठिगनी, सुस्त, थोड़ी मोटी और चुपचुप सी रहती थी. वह लोगों के घरों में झाड़ूबरतन किया करती और धीरेधीरे उस ने अपनी दोनों छोटी बहनों को भी जानपहचान के घरों में काम पर लगवा दिया था.

अंजू के बाद वाली संजू 13 साल की दुबलीपतली, गठी हुई, उम्र के मुताबिक सही कदकाठी. खूबसूरत तो नहीं, पर बदसूरत भी नहीं थी वह. धीमी और मीठी आवाज. जल्दीजल्दी काम निबटाती. जिन घरों में काम करती, वहीं के बच्चों से वह अपना मन बहलाती. 8 साल की रंजू बेहद दुबली. गेहुआं रंग. उलझेउलझे तेल चुपड़े बाल और मैली सी फ्रौक. उस के काम में सब से ज्यादा फुरती थी. उस का मन मचलता था अपने साथ के बच्चों के साथ खेलने और भागनेदौड़ने के लिए, इसलिए वह जल्दीजल्दी काम करने की कोशिश में कुछ न कुछ गड़बड़ करती रहती और डांट सुनती रहती, पर थी धुन की पक्की. सब से छोटी रीना 6 साल की थी. अंजू के साथ काम पर जाती और उस की मदद करती. बरतन मांजना अभी वह सीख रही थी और झाड़ू ठीकठाक लगा लेती थी. कुलमिला कर सारी बहनें मिल कर दालरोटी का जुगाड़ कर लेती थीं.

एक चीज थी, जो चारों बहनों में एकजैसी थी. उन की खाली आंखों में जिंदगी की चमक. खूब जीना चाहती थीं. वे सब जो भी थीं, जैसे भी थीं, खूब हंसना और कुछ न कुछ गुनगुनाते रहना उन की आदत थी. महल्ले की औरतें ज्यादातर मजदूर थीं या फिर लोगों के यहां आया, महरी का काम करती थीं. गंजोई जब घर पर नहीं होता था, तो सुगना रेशमी साड़ी पहन कर किसी पड़ोसन के यहां जा बैठती. औरतें भी बातोंबातों मे ंउसे छेड़तीं, ‘ये चटकमटक के दिन तेरे नहीं तेरी बेटियों के हैं. जवानी में भी उन से अपने ही घर का पानी भरवाएगी क्या? ‘लड़कियां बड़ी हो रही हैं. भेज अपने निठल्ले मरद को बाहर. घरबार देखे. रिश्ताकुनबा देखे. ऐसे घर बैठे तो कोई तुम्हारे दरवाजे चढ़ेगा नहीं.’

सुगना खिसियानी सी हंसी हंसती और बोलती, ‘‘तू ही बता सरोज, हमारे पास न जेवर है, न जमीन. जो थोड़ाबहुत मेरी सास के गांठपल्ले था, वह पहले ही अंजू के बापू ने दारू में घोल कर चढ़ा लिया. अब तो ऐसा है कि चूल्हा भी अनाज देख कर ही गरम होता है.’’

‘‘अरे तो उसे काम पर क्यों नहीं भेजती? इतनी बड़ी अनाज की मंडी है, बड़ेबड़े आढ़ती बैठते हैं. जाए किसी के पास. कोई न कोई काम मिल ही जाएगा, बेटियों की कमाई से घर चलता है कोई,’’ सरोज की सास ने दोटूक सुनाया. अब सुगना ने वहां से खिसकने में ही अपनी भलाई समझी. ऐसा नहीं है कि सुगना और गंजोई को अपनी जवान होती बेटियों की फिक्र नहीं थी, पर वे दोनों ठहरे मिजाज के मस्तमौला. उन्हें लगता था कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा. सुगना और गंजोई का परिवार समय की ताल में ताल मिलाता एकएक कदम उस के साथ चलता चला जा रहा था. समय भी चिकनी सड़क पर सरपट चाल चल रहा था बिना किसी रुकावट के, बिना किसी मुश्किल के. अंजू की ज्यादातर सखियों का ब्याह हो चुका था, पर उसे अपने ब्याह न होने का मलाल न था. न ही उसे जरूरत महसूस होती थी. सुगना और गंजोई को उस के ब्याह की काई आस न थी. इसलिए कोशिश करने का खयाल भी किसी के धकियाने से ही आता था और धक्का हटते ही वे फिर आराम की मुद्रा में टेक लगा लेते और फिर घर चलाने में अंजू का अहम योगदान था.

संजू भी 14 साल की उम्र में ज्यादा तीखी और मुखर हो गई थी. अब वह घर से निकलती, तो उस की उभरती देह पर चुस्त फिटिंग वाला सूट होता. अपनी मालकिनों की उतरन को सजाचमका कर जब वह अपने तन पर डालती, तो उन पुराने कपड़ों से भी ताजगी फूट पड़ती. महल्ले के जवान होते मजदूर बच्चे छिपछिप कर उसे देखते और वह उन्हें देख कर बड़ी अदा से अनदेखा कर देती, मानो सावन को पता ही न हो कि उस की बारिश में सब भीग जाता है. अब संजू का ध्यान काम में कम लगता, सोचती और मुसकराती रहती. उस के साथ की लड़कियां उस से चिढ़तीं, ‘बड़ी फैशन वाली बन गई है. बरतन मांजने जाती है या थाली में मुंह देखने? ’

अंजू भी पीछे न रहती. वह कहती, ‘‘अरे, बरतन तो मुझे देखते ही चमक जाते हैं. तुम्हारी तरह नहीं कि शक्ल देख कर घूरा भी छींक दे.’’ गंजोई के घर से बाईं तरफ 3 मकान छोड़ कर कमलकिशोर का घर था. वह एक 17 साल का ठीकठाक सी शक्ल वाला लड़का था, जो बाजार में साइकिल की दुकान पर पंचर लगाने का काम करता था. वह जवानी के उस पायदान पर था, जहां सबकुछ खूबसूरत और आसान लगता है. खाली समय में रंगीन चश्मा लगा कर वह फिल्मी गाने गुनगुनाता.

उस ने मालिक से बड़ी मिन्नत कर के दुकान से एक पुरानी साइकिल ले ली थी और साइकिल की दुकान पर मंजे हुए अपने हुनर को आजमा कर उस साइकिल को नई जिंदगी दे डाली थी. एक दिन कमलकिशोर घर के बाहर खड़ा हो कर अपनी साइकिल को साफ कर रहा था और साथ ही कुछ गाना गुनगुना रहा था, ‘‘चोरीचोरी आ जा गोरी पीपल की छांव में, कहीं कोई…’’ तभी उस की नजर संजू पर पड़ी, ‘‘यह कौन है. बड़ी मस्त दिख रही है.’’ इतने में संजू की नजर कमलकिशोर पर पड़ी. आंखें सिकोड़, कमर पर हाथ रख संजू थोड़ा गुस्से और बड़ी अदा से गुर्रा कर बोली, ‘‘आंखें फाड़ कर क्या देख रहा है? बोलूं तेरे बापू को?’’

‘‘भड़क क्यों रही है? देख ही तो रहा हूं. तू सुगना काकी की बेटी है न? चल, नाम बता अपना?’’ कमलकिशोर ने उस की तरफ बढ़ते हुए फिल्मी अंदाज में पूछा. संजू को हंसी आ गई, ‘‘चल जा अपना काम कर,’’ कह कर वह घर में घुस गई.

कमलकिशोर का मन गुदगुदाहट से भर गया. संजू को गए बहुत वक्त बीत चुका था, पर वह वहीं खड़ा अब भी उन पलों को आगेपीछे कर के अपने सपनों में जी रहा था. ‘‘संजू, जरा चूल्हा जला दे और आटे में थोड़ा नमक डाल कर मुझे दे दे. खाने का समय हो गया है. बस, अभी सब खाना मांगने वाले हैं,’’ अंजू ने कहा. इतने में ही सुगना की आवाज आई, ‘‘ऐ अंजू, खाना कब देगी? मुझे जोरों की भूख लगी है.’’ सुगना और गंजोई आंगन में पड़ी खाट पर जमे हुए थे. गंजोई आसमान की ओर मुंह कर के लेटा था और सुगना उस के पैर दबा रही थी. रसोई में जान खपाने से ज्यादा आसान था यह काम. गंजोई के खाते ही सुगना खुद खाने बैठ जाती, फिर बाद में बच्चे आपस में मिलबैठ कर खा लेते. ‘हांहां, खाना बन रहा है,’’ संजू ने चिढ़ कर जवाब दिया. अंजू ने संजू की तरफ देखा, पर बोली कुछ भी नहीं. अब उसे संजू के लिए फिक्र होने लगी थी. जब तक उस का खुद का ब्याह न हो जाता, तब तक संजू का ब्याह होना मुश्किल था. अपनी आस उसे थी नहीं, पर संजू…

आज रात संजू को भी नींद नहीं आ रही थी. ‘चल, नाम बता अपना’ उस के कानों में गूंज रहा था. उसे फिर हंसी आने लगी. वह कमलकिशोर ही तो था. कितनी ही बार तो देखा है उसे, फिर आज क्या बात हो गई? संजू समझने की कोशिश कर रही थी. आज संजू की लाली में कुछ ज्यादा ही चमक थी. शायद सुबह की धूप का असर था या फिर रात को दबे पैर उस की चारपाई में घुस आए खयालों का, पता नहीं. घर से पहला कदम ही निकला था कि नजर बाईं ओर मुड़ गई. हड़बड़ाहट में दूसरा कदम तो बाहर निकला नहीं, पहला भी अंदर चला गया. दरवाजे की ओट ले कर संजू अपनी घबराहट पर काबू पाने की कोशिश करने लगी. अपने घर के बाहर कमलकिशोर पूरी तरह मुस्तैद खड़ा था. आखिर संजू की चारपाई से निकल कर वह खयाल उस के भी तो बिस्तर में घुसा था. कमलकिशोर की नजर संजू पर पड़ चुकी थी. वह समझ गया था कि संजू काम पर जाने वाली है. वह पहले ही साइकिल ले कर उस के काम की दिशा की ओर चल पड़ा था. इधर संजू भी संभल चुकी थी. वह तन कर बाहर निकली, बाएं देखा, फिर दाएं देखा, फिर एक निराशा की ढीली सांस, जिस में राहत पाने की भरसक कोशिश की गई थी, छोड़ते हुए अनमनी सी काम पर चल दी. ‘‘संजू, तेरे मांबापू तेरा ब्याह मुझ से तो क्या किसी से भी नहीं होने देंगे,’’ कमलकिशोर संजू से कह रहा था.

कमलकिशोर और संजू को एकदूसरे के नजदीक आने में ज्यादा समय नहीं लगा था. दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगता. अपना काम खत्म कर दोनों रोज मिलते, एकदूसरे के साथ जीने के सपने देखते. सुगना और गंजोई की बेजारी संजू की चाह को और हवा देती, पर वह अंजू के बारे में सोच कर बेचैन हो जाती. उसे कोई रास्ता नजर नहीं आता था, जो उस घर की बेटियों को ससुराल के दरवाजे तक पहुंचाता हो. मांबाप को अपनी कमाऊ बेटियों को विदा करने की कोई जल्दी न थी.

अंजू को संजू और कमलकिशोर के इश्क की खबर थी, संजू ने ही उसे बताया था एक दिन.

‘‘संजू, भाग कर जाएगी मेरे साथ?’’

‘‘चल हट. बड़ा आया भगा कर ले जाने वाला. कहां रखेगा? क्या खिलाएगा मुझे? और मेरे घर वाले? महल्ले वाले जीने नहीं देंगे. मेरी बहनों की जिंदगी खराब हो जाएगी,’’ संजू ने उसे घुड़का और आखिरी बात कहतेकहते उसे खुद की आवाज सुनाई नहीं दी, आंखें सिकुड़ गईं और चेहरे पर उदासी उभर आई. कमलकिशोर ने हलके से झिड़क कर कहा, ‘‘तो यहां रह कर तू कौन सा उन का घर भर देगी. भाग चल. तेरे बाप का बोझ कुछ कम हो जाएगा. यहां रह कर जिंदा भूत की तरह बरतन ही तो घिसेगी. मेरे साथ चल, तेरी जिंदगी संवार दूंगा.’’ संजू ने उसे घूर कर देखा, पर बोली कुछ नहीं. गरमी की रात में सभी आंगन और बरामदे में ही सोते थे. आज संजू ने अपना बिस्तर अंजू के साथ जमीन पर ही बिछा लिया था. चारपाइयां कम थीं, सो अंजू जमीन पर ही सोती थी. रीना और रंजू भी एक चारपाई पर वहां बेसुध सो रही थीं. सुगना बरामदे में थी. संजू और अंजू दोनों चुपचाप सी आसमान को घूर रही थीं. दोनों को नींद नहीं आ रही थी. वे चुप थीं, पर शायद उन के मन के बीच संवाद चल रहा था. संजू जरा बेचैन दिखी, तो अंजू ने अपना हाथ उस के सिर पर रखते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ संजू, नींद नहीं आ रही है?’’

बेहद अपनेपन में भीगे शब्दों की नमी में संजू भी नहा गई, ‘‘हां दीदी, आज तो नींद सचमुच नहीं आ रही.’’

‘‘अच्छा, यह बता कि कमलकिशोर कैसा है? क्या लाया वह आज तेरे लिए? आजकल तो तू कुछ बताती ही नहीं मुझे,’’ अंजू ने बनावटी गुस्से से मुंह फुला कर कहा. संजू ने अंजू की तरफ देखा और खिलखिला कर हंस दी, ‘‘दीदी, तुम बड़ी चालाक हो. मेरा मुंह खुलवाने के लिए कमलकिशोर का नाम ले दिया.’’ कमलकिशोर का नाम लेते ही संजू जरा संजीदा हो गई. ठंडी सांस छोड़ते हुए उस ने कहा, ‘‘दीदी, आज वह मुझे अपने साथ भाग चलने के लिए कह रहा था.’’

‘‘तो भाग जा. किस के लिए रुकी हुई है?’’ अंजू ने सहज भाव से कहा. और एक दिन महल्ले में आग लग गई. गंजोई पहली बार हरकत में आया, ‘‘अरी सुगना, संजू आई क्या?’’

‘‘नहीं. अंजू के बापू,’’ कहते हुए सुगना बीच आंगन में बैठ छाती पीटपीट कर रो रही थी. दिन ढल रहा था. सुबह से निकली संजू का अब तक कुछ पता न था. गंजोई ने हर जगह खबर ले ली थी और यह बात अब पूरे महल्ले को पता थी. पता चला था कि कमलकिशोर भी सुबह से गायब था. दो और दो चार भांपने में किसी ने समय न गंवाया. गंजोई ने अपना सिर पीट लिया. सुगना रोरो कर बच्चियों को कोस रही थी, ‘‘जाओ, तुम लोग भी भाग जाओ, कोई न कोई मिल ही जाएगा चौक पर. अरे, भागना ही था तो तू ही भाग जाती,’’ उस ने अंजू की तरफ इशारा कर के कहा, ‘‘भगोड़ों का घर नाम धरा जाएगा हमारा. अंजू के बापू कुछ करो. हाय, यह क्या कर दिया? अब तो जिंदगी पत्थर जैसी भारी हो जाएगी. लोग हमें जीने नहीं देंगे, कौन ब्याहेगा इन बेटियों को?’’

गंजोई महल्ले के बड़ेबूढ़ों के आगे रो रहा था. एक बुजुर्ग ने अपनी घरघराती आवाज में लताड़ा, ‘‘देख गंजोई, तू ने तो कभी खबर ली नहीं अपने बच्चों की, अब पछताने से क्या होगा. लड़की भाग गई और धर गई कलंक तेरी सात पुश्तों पर. अब जरा सुध ले और बाकियों को संभाल.’’

‘‘देख, अब तू हमारी बिरादरी से बाहर हो गया है. हमारे भी लड़केलड़कियां हैं. कुछ तो कायदाकानून रखना पड़ेगा,’’ एक ने कहा था. यह सुन कर गंजोई फफक कर रो पड़ा. वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘देखिए, आप लोग ऐसा मत कहिए. आप ही साथ छोड़ने की बात करेंगे, तो हम किस से मदद मांगेंगे. मुश्किल में तो अपने ही काम आते हैं.’’ हुमेशा यहां के एक मंदिर के बुजुर्ग थे. वे बहुत ही कांइयां मिजाज के थे. कुछ सोच कर उन्होंने कहा, ‘‘देख गंजोई, जब हम गांव में रहते थे, वहां के नियमकानून अलग थे. या यों कह लो कि बड़ेबुजुर्गों ने बड़ी सूझबूझ के साथ परिवार पर विपत्ति का तोड़ निकाला था. जो तब भी सही थे और अब भी सही ही माने जाएंगे.

‘‘गांव में जब कोई लड़की भाग जाती थी, तो उस परिवार को जाति से बाहर कर दिया जाता था और बच्चे की एक नादानी की वजह से पूरा कुनबा बरबाद हो जाता था. ‘‘तू अपनी लड़की को न खोज, न ही उसे दोबारा घर में घुसने देना. तू उस का श्राद्ध कर दे, ऐसा करने से माना जाता है कि लड़की भागी नहीं मर गई. फिर कोई उंगली नहीं उठाता. यह हमारी जाति का एक रिवाज है, जो गांव में आज भी माना जाता है. गांव वालों को खूब खिलापिला कर खुश कर दिया जाता है. फिर सब उसे मरा मान कर भूल जाते हैं.’’ गंजोई ने संजू का श्राद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उस ने तय भोजन से 2 अतिरिक्त पकवान बनवाए. सुगना ने चाव से सब को परोसा. अंजू ने भी जलेबी खाई. हुमेशा को 2 जोड़ी कपड़े भी दिए गए. कमलकिशोर के परिवार को उस का श्राद्ध करने की जरूरत नहीं थी. वह तो लड़का था न. Social Story

Family Story Hindi : वसूली – निरपत के साथ पंडों ने कैसा सलूक किया

Family Story Hindi : जाति के साथ अपने नाम की पुकार सुन कर निरपत चौंका. हड़बड़ा कर घर से बाहर निकला तो देखा, सामने एक व्यक्ति सफेद पायजामा और मोटे कपड़े का लंबा कुरता पहने खड़ा मुसकरा रहा था, जिस के माथे पर लंबा तिलक था. उड़ती धूल व लूलपट से बचाव के लिए उस ने सिर और कानों पर कपड़ा लपेट रखा था. निरपत उसे अचंभे से देख ही रहा था कि उस ने भौंहें उठाते हुए पूछ लिया, ‘‘आप ही निरपतलाल हैं न, दिवंगत सरजू के सुपुत्र?’’

‘‘हां, मगर मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘अरे, नहीं पहचाना,’’ उस का स्वर व्यंग्यात्मक था.

निरपत अनभिज्ञ सा उसे देखता रह गया. उलझन में पड़ गया कि कौन हो सकता है, जो घर के सामने खड़ा हो कर बड़े अधिकार से उस का और पिताजी का नाम ले रहा है.

‘‘आश्चर्य है निरपतलाल, कि आप इतनी जल्दी भूल गए, प्रयाग जा कर कुछ संकल्प किया था कभी आप ने?’’ तंज सा कसते हुए उस ने सिर पर बांधा कपड़ा खोल दिया.

उस का चेहरा देखते ही निरपत को याद आ गया. पंडे, झंडे, नाई, नावें, श्रद्धानत भीड़ और भी बहुतकुछ. पिछले शुरुआती जाड़े की ही तो बात है,

6 महीने भी नहीं हुए होंगे. वह पिता के फूल विसर्जित करने गया था. साथ में मां के अलावा 2 रिश्तेदार भी थे.

भोर में ट्रेन जैसे ही नैनी स्टेशन पर रुकी तो पुलिस वालों की तरह संदिग्ध की तलाश सी करते हुए कई लोग ट्रेन में चढ़ आए थे और उस का घुटा सिर देखते हुए बारीबारी से पूछ लेते थे कि कहां के रहने वाले हो, किस जाति के हो. यह व्यक्ति जवाब पाने के बाद ठहर गया और सफेद कपड़े में बंधी मटकी देखते हुए बोला, ‘आप हमारे ही यजमान हैं. अब आप को किसी की बातों में आने की जरूरत नहीं और न कहीं भटकने की जरूरत है. अपना सामान समेट लीजिए अगला स्टेशन आने में देर नहीं है.’

अपने पंडे का नाम सुन कर वे आश्वस्त हो गए कि अब कहीं भटकना नहीं पड़ेगा. वरना अनजानी जगह और कर्मकांडी स्थल पर होने वाली ठगी से भयभीत थे. यही व्यक्ति रेलवे स्टेशन से आटोरिकशा में साथ बैठ कर उन्हें रेलपुल के पास यमुना किनारे ले गया था. नाई और नाव वाले से मेहनताना तय करवा दिया, हालांकि इन सब में खासी रकम अदा करनी पड़ी थी. इस ने यह भी बताया कि पंडा महाराज का घर पास में ही है, वे यहीं से आप लोगों के साथ संगम तक नाव में जाएंगे और पूरे विधिविधान से पूजन करवा कर अस्थिविसर्जन करवा देंगे. तब तक जिन्हें बाल बनवाना हो, बनवा लें. शुद्धि के लिए यहां भी बाल बनवाने पड़ते हैं, अन्यथा शुद्धि नहीं होती.

पंडे के आते ही नाव संगम की ओर बढ़ी. नाव ने किनारा छोड़ा तो थोड़ी देर में रेल का पुल दूर होता लगा. पुल के ऊपर गुजरती रेलगाड़ी, बहती यमुना की नीली अथाह जलराशि, आसपास से गुजरती नावें और नावों के पीछे मंडराते सफेद पक्षियों के समूह, सब निरपत को चकित कर रहे थे.

वह नाव में पहली बार बैठा था. अन्य नावों में सवार यात्री नदी में कुछ फेंकते तो पक्षी झपटते हुए जल में क्रीड़ा करने लगते. उस ने भी साथ लाए चने फेंके तो पक्षियों का झुंड उस की नाव के पीछे लग लिया. चढ़ते सूरज की गुनगुनी धूप में छोटी सी जलयात्रा से वह रोमांचित था, यहां तक कि वह पिता के मृत्युशोक को थोड़ी देर के लिए भूल सा गया था.

तभी पंडे ने शुद्ध उच्चारण व मीठी वाणी में संगम की महिमा का गुणगान आरंभ कर दिया. मां ध्यानमग्न हो कर हाथ जोड़े सुनने लगीं. उन्होंने जब यह बताया कि संगम में अस्थि विसर्जित करने से मृतक की आत्मा को मोक्ष मिलता है, आत्मा कहीं भटकती नहीं है तो मां के चेहरे पर गहरा संतोष उभरा था. उन्होंने कुछ और भी बातें बताईं, ‘चूंकि यह धार्मिक स्थान है, फिर भी यहां चोरउचक्कों, लुच्चेलफंगों, ठगों की कमी नहीं है. इसलिए आप सभी को सतर्क रहना है. कोई कितना भी बातें बनाए, आप का हितैषी बने, किसी की बातों में नहीं आना है. कोई भी फूल, पत्ती, प्रसाद, दूध चढ़ाने को दे तो हाथ में नहीं लेना, वरना ठगी के शिकार हो सकते हैं.

‘एक बात बहुत गौर से सुनो, अस्थियां जल में प्रवाहित करते समय ध्यान रहे कि किसी के हाथ न आने पाएं वरना पानी में क्रीड़ा कर रहे केवट अस्थियों के जलमग्न होने के पहले कठौते में लोप लेते हैं और फिर धन की मांग करते हैं, अन्यथा अस्थियों को कहीं भी फेंक देने की धमकी देते हैं. इस से श्रद्धालुओं का मन खराब हो जाता है.’

साथ आए रिश्तेदार और मां सम्मोहित से हो कर उन की बातें सुन रहे थे. सुन तो निरपत भी रहा था, पर उस का ध्यान इधरउधर के दृश्यों की ओर अधिक था. जब नाव संगम के करीब पहुंचने लगी और पंडितजी आश्वस्त हो गए कि उन की बातों का प्रभाव पड़ रहा है तो अपने हित की बातों पर आए. उन्होंने निरपत की ओर लक्ष्य कर के कहा, ‘आप अपने मन में क्या संकल्प कर के आए हैं?’

निरपत चुप रहा. उसे कोई जवाब नहीं सूझा. पंडितजी ने कुरेदा, ‘अरे, भई, जब कोई किसी धार्मिक स्थान पर धर्मकर्म करने जाता है तो अपने मन में कुछ तो सोच कर जाता है कि कम से कम इतना दानपुण्य करेंगे. आप ने भी तो कुछ सोचा होगा?’

निरपत फिर भी चुप रहा. पंडितजी को उस की चुप्पी भा रही थी. मुसकरा कर बोले, ‘आप शायद संकोच कर रहे हैं. कई लोग यहां आ कर गुप्तदान करते हैं. अगर ऐसी कोई मंशा है तो बताएं.’

निरपत को चुप देख मां ने हस्तक्षेप किया, ‘महाराज, अभी यह बच्चा है. इसे उतनी समझ नहीं है. आप ही ज्ञान दो.’

पंडितजी प्रसन्न हो उठे, बोले, ‘कितने भाईबहन हैं?’

‘अकेला लड़का है,’ जवाब मां ने दिया.

‘हूं…तो इन के पिताजी सब इन्हीं के लिए छोड़ गए हैं. कुछ ले कर तो नहीं गए न. सब को यहीं छोड़ कर जाना पड़ता है, कोई कुछ साथ नहीं ले जाता. न जमीन, न जायदाद और न धनदौलत. लेकिन धर्मकर्म, दानपुण्य साथ जाता है. धर्मकर्म की अधूरी इच्छा को उन की संतानें पूरी करती हैं. इसीलिए यहां बहुत दूरदूर से आ कर श्रद्धालु दानपुण्य करते हैं. आप लोग भी बहुत दूर से आए हैं, कितनी दूर है आप का घरगांव?’

‘कमसेकम 500 मिलोमीटर,’ एक रिश्तेदार ने बताया.

‘आप सभी के मन में आस्था होगी, तभी इतनी दूर से किरायाभाड़ा लगा कर आए हैं.’

‘हां, महाराज,’ दूसरे रिश्तेदार ने समर्थन किया.

‘तब आप सभी मेरी बातें ध्यान से सुनिए. नियम है कि मृतक को वैतरणी पार करवाने के लिए गौदान करना होता है. उन की आत्मा की शांति के लिए कमसेकम 5 भूखे ब्राह्मणों को भरपेट भोजन, वस्त्र और पूजन के लिए जो भी दक्षिणा आप देना चाहें, यह आप की श्रद्धा पर निर्भर है.’

निरपत उन की चतुराईभरी बातों को समझ रहा था. उस ने एतराज करना चाहा, ‘मगर पंडितजी, हमें यहां से वापस जा कर अपने गांव में गंगभोज करना ही होगा. वहां गौपूजन भी होगा. 5 से अधिक ब्रह्मणों को भरपेट भोजन भी कराया जाएगा और जो भी बन पड़ेगा, दानपुण्य भी किया ही जाएगा.’

‘यह तो अच्छी बात है, परंतु यहां की बात और है. यह तीर्थस्थल है. माघ के महीने में महात्माओं व भक्तों का बड़ा जमघट होता है. कितने धनिक सारी भौतिक सुखसुविधाएं त्याग कर कर महीनेभर यहां कल्पवास करते हैं. विश्वप्रसिद्ध कुंभ का आयोजन यहीं होता है. यहां देवों का निवास है. आप यहां के महत्त्व को जानिए.’

मां उन की बातें बड़े गौर से सुन रही थीं और प्रभावित भी हो रही थीं. उन्होंने हाथ जोड़ते हुए समर्थन ही कर दिया, ‘आप की सब बातें सच्ची हैं, महाराज.’

‘मैं सत्य ही बोलता हूं. ये सब ज्ञान की बातें हैं. बड़बड़े नेता, अभिनेता, पूंजीपति यहां आ कर अपने प्रियजनों के मोक्ष के लिए हम से कर्मकांड करवाते हैं?’

‘मगर पंडितजी हम लोग छोटे किसान हैं, जो विधि आप बता रहे हैं, हमारी सामर्थ्य के बाहर है,’ निरपत ने विनम्रता से कहा.

‘अगर सामर्थ्य नहीं तो कोई बात नहीं, हम तो मृतक की आत्मा के मोक्ष का उचित मार्ग बता रहे हैं. आगे आप की जैसी इच्छा,’ उन्होंने उपेक्षित भाव से मां की ओर देखा.

मां अनुरोध सा कर बैठीं, ‘आप की ऐसी कृपा हो जाए महाराज कि उन की आत्मा को शांति मिले.’

‘जब कोई कार्य नियमधर्म, विधिविधान से होता है, तब ही कृपा बरसती है.’

‘लेकिन, हमारे गांव के लोग बताते हैं कि इतना खर्च नहीं होता है,’ निरपत ने शंका व्यक्त की. ‘उन की बात छोड़ो. अपनी इच्छा बताओ. अगर धन की कमी है तो उस की चिंता छोड़ो. हम ऐसे लालची नहीं हैं कि कर्मकांड में कोई कसर छोड़ दें. आप की माताजी चाहती हैं कि कार्य उचित ढंग से पूर्ण हो.’

‘हां, महाराज,’ मां ने खुले मन से समर्थन किया.

‘तो ठीक है,’ कहते हुए पंडित जी तेजी से मंत्रोच्चारण करने लगे.

वापसी में मां संतुष्ट थीं कि पति की आत्मा की शांति के लिए कोई कोरकसर नहीं छोड़ी गई है. पंडे की मोटी पोथी में दर्ज वंश के अनेक लोगों के नामों को सुन कर उन का विश्वास और बढ़ा था. साथ आए दोनों रिश्तेदार खुश थे कि बिना किसी झंझट के सब निबट गया और सकुशल तीर्थलाभ भी हो गया. लेकिन निरपत ठगा सा महसूस कर रहा था. किराएभर का रुपया छोड़ कर सब तो दक्षिणा के नाम पर धरवा लिया गया था. परेशान था कि गौदान के नाम पर एक बछिया की पूंछ का स्पर्शभर कराया गया और बछिया वाला तुरंत बछिया सहित कहीं गायब हो गया. 5 ब्राह्मणों को तो भोजन करा दिया जाएगा. जबकि गंगा के घटनेघुटने पानी में खड़ा कर के सब स्वीकार करा लिया गया था, सब उधार पर. और कहते हैं कि फसल आने पर उन का आदमी गांव आएगा, तब चुकता कर देना. खीझ सी उस के मन में उठ रही थी, लेकिन मां के कारण चुप रह जाना पड़ा था.

आननफानन पेड़ के नीचे बिछाई गई नंगी चारपाई पर आगंतुक आसन से बैठा था. तगादे की चिट्ठी एक तुड़ेमुड़े कागज के रूप में नोटिस की तरह निरपत को पकड़ा दी थी जिसे पढ़ कर वह अचंभे में था. हिसाब भी समझा दिया था कि 1 गौ का दान, 5 भूखे ब्राह्मणों का उत्तम भोजन, उन के वस्त्र, उधार पर किए गए कर्मकांड पर ब्याज और गांव तक आनेजाने का उस पर हुआ व्यय. यह भी स्पष्ट कर दिया था कि उस ने जो परेशनी व कष्ट गांव तक पहुंचने में उठाए हैं, उन का मूल्य नहीं जोड़ा गया है. उस के लिए जो भी भेंट करेंगे, वह सहर्ष स्वीकार कर लेगा, नानुकुर नहीं करेगा.

आसपास गांव के कुछ फालतू लोग इकट्ठे हो गए थे और उत्सुकता से देख रहे थे. निरपत ने मां की ओर देखा, जो आगंतुक की ओर हाथ जोड़े दया की पात्र बनी खड़ी थी.

‘‘महाराज, हम इतना रुपया नहीं दे सकते और न हमारे पास है,’’ निरपत ने अडिगता से कहा.

‘‘हम जानते हैं, गांव वालों के पास नकद रुपया नहीं होता है, जब फसल बिकती है, तब ही रुपया आता है.’’

‘‘इस बार फसल भी कमजोर हुई है,’’ निरपत ने विनय सी की.

‘‘आप मंडी जा कर अनाज बेचने की तैयारी में हैं. चावल की फसल इस बार ठीक हुई थी. मैं ने सब पता कर लिया है.’’

‘‘अगर मैं आप की मांग पूरी करने से मना कर दूं तो…’’ निरपत ने पलटा खाया.

आगंतुक हंसा, उस ने भीड़ पर नजर घुमाई और मां की ओर देखते हुए बोला, ‘‘आप मना तो कर ही नहीं सकते. जो आदमी श्रद्धा से 500 किलोमीटर दूर जा कर अपनी मां के सामने गंगा में खड़े हो कर संकल्प करता है, वह कर्मकांड की उधारी से कैसे इनकार कर सकता है? कहीं आप यह तो नहीं सोच रहे थे कि वसूली करने आप के गांव कोई आ नहीं सकेगा?’’

निरपत को चुप रह जाना पड़ा. उस के मन में यह विचार आया भी था. उस ने मां की ओर देखा. उन की आंखें डबडबा गई थीं. भीड़ में खुसुरफुसुर होने लगी. वह धीमे से बोला, ‘‘अभी हमारे पास रुपए नहीं हैं.’’

‘‘रुपए की चिंता न करें. ईश्वर की कृपा से आप के पास इतना धनधान्य है कि आप अनाज दे कर पितृऋण से मुक्त हो सकते हैं.’’

‘‘आप अनाज ले कर कैसे जा सकेंगे?’’

‘‘उस की भी चिंता आप न करें.’’

दोनों का वार्त्तालाप एक बहस का रूप लेने लगा तो मां रोने लगी और करुण स्वर में बोली, ‘‘क्यों बहस करते हो निरपत, जब ये अनाज लेने को तैयार हैं तो दे दो और मुक्ति पाओ.’’

‘‘जितने में इन की उधारी चुकता हो जाए. पिता की आत्मा को क्यों कष्ट में डालते हो. सब उन का ही तो है. वे इतनी खेती छोड़ कर मरे हैं.’’

मां के हस्तक्षेप से निरपत को चुप रह जाना पड़ा. मां ने गांव वालों की मदद से 1 बोरा गेहूं निकलवा दिया. पर आगंतुक नहीं माना. उस ने 2 बोरे गेहूं और आधा बोरा चावल पर ही समझौता किया. भीड़ बढ़ गई थी. लोगों में कुतूहल था कि यह व्यक्ति इतना अनाज कैसे ले जाएगा. भीड़ में बच्चे भी थे. उस ने बच्चों से कहा, ‘‘जाओ, गुप्ताजी को बुला लाओ.’’

उन बच्चों में गुप्ताजी का बेटा भी खड़ा था. वह दौड़ कर पिताजी को बुला लाया. आगंतुक तो पहले ही उन से बात कर के आया था. दोनों के बीच कुछ देर मोलभाव का नाटक चलता रहा. गांव के बनिए ने मौके का फायदा उठाया. नोटों की गड्डी जब आगंतुक ने थामी तो निरपत निरीह भाव से देखता रह गया. द्य

पंडे ने शुद्ध उच्चारण व मीठी वाणी में संगम की महिमा का गुणगान आरंभ कर दिया. मां ध्यानमग्न हो कर हाथ जोड़े सुनने लगीं. उन्होंने जब यह बताया कि संगम में अस्थि विसर्जित करने से मृतक की आत्मा को मोक्ष मिलता है, आत्मा कहीं भटकती नहीं है तो मां के चेहरे पर गहरा संतोष उभरा था. Family Story Hindi

Ahmedabad Plane Crash : 20 हजार करोड़ का ड्रीम लाइनर क्यों है खास ?

Ahmedabad Plane Crash : अहमदाबाद विमान हादसे के बाद सब से अधिक चर्चा बोइंग 787 ड्रीमलाइनर की है. यह सब से आरामदायक यात्री विमान माना जाता है. क्या है इस की खासियत ?

अहमदाबाद से लंदन जाने वाला एयर इंडिया का जो विमान सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरने के कुछ ही देर बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया, वह बोइंग 787 ड्रीमलाइनर विमान था. जिस में 2 पायलट और चालक दल के सदस्यों सहित 242 लोग सवार थे. एयर इंडिया विमान का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर सब से ज्यादा बिकने वाला यात्री विमान है. ड्रीमलाइनर को ‘भविष्य का विमान’ कहा जाता है. इस में विशाल केबिन और बड़ी खिड़कियां होती हैं. ड्रीमलाइनर एक चौड़े शरीर वाला जेट है जिसे लंबी दूरी की दक्षता के लिए डिजाइन किया गया है. विमान जब गिरा तो वह केवल 625 फीट की ऊंचाई पर पहुंचा था.

बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान को सब से उन्नत यात्री विमानों में से एक माना जाता है. बोइंग 787 से जुड़ी यह पहली इतनी बड़ी घटना है. यह विमान 2014 में एयर इंडिया के बेड़े में शामिल हुआ था. बोइंग ने 2007 में लंबी दूरी के जेट के रूप में 787 को पेश किया था. पहले यह बोइंग 777 का सुधरा मौडल था. इस को बोइंग 767 को बदलने के लिए भी बनाया गया था. इस की पहली परीक्षण उड़ान दिसंबर 2009 में हुई थी. पहली कमर्शियल उड़ान बोइंग 787 ने 2012 में भरी थी.

बोइंग 787 में क्या था खास

ड्रीमलाइनर एक वाइड बौडी जेट है जिसे लंबी दूरी की दक्षता के लिए डिजाइन किया गया है. इस में कार्बन फाइबर कंपोजिट संरचना है, जो इसे पुराने एल्युमीनियम विमान बौडी की तुलना में हल्का बनाती है. यह अपने पहले के बोइंग की तुलना में 25 फीसदी कम ईंधन का उपयोग करता है. बोइंग ने 787 ड्रीमलाइनर को अपना सब से ज्यादा बिकने वाला यात्री विमान कहा है क्योंकि इस में आरामदायक कौकपिट के साथसाथ विशाल केबिन और बड़ी खिड़कियां होती हैं. पुराने विमानों की तुलना में इस में केबिन का दबाव कम है और हवा में नमी भी ज्यादा है. इस के 3 मौडल हैं 787-8, 787-9 और 787-10.

इस की खिड़कियां इलैक्ट्रौनिक डिमिंग फीचर के साथ आती हैं. यात्री बटन दबा कर खिड़की को धुंधला या साफ कर सकते हैं, जिस से बाहर का नजारा और आरामदायक हो जाता है. ड्रीमलाइनर का केबिन प्रेशर 6,000 फीट की ऊंचाई के बराबर रखा जाता है, जबकि सामान्य विमान 8,000 फीट पर होते हैं. इस से यात्रियों को कम थकान और सिरदर्द की शिकायत होती है.

इस के इंजन और डिजाइन की वजह से यह विमान कम शोर करता है, जिस से यात्रियों को शांत और आरामदायक अनुभव मिलता है. ड्रीमलाइनर 14,000 किलोमीटर तक की उड़ान भर सकता है. जो इसे लंबी दूरी की अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए आदर्श बनाता है. उदाहरण के लिए, यह दिल्ली से न्यूयौर्क तक बिना रुके उड़ सकता है.

बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर 4 अलगअलग कंपनियां बनाती हैं. 2003 में इस का नाम ड्रीमलाइनर रखने को ले कर एक विश्व स्तर पर औनलाइन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था. जिस में 5 लाख वोट पड़े थे. जिन में सब से अधिक लोगों को ड्रीमलाइनर नाम पंसद आया था. बोइंग 787 ड्रीमलाइनर को बनाने में केवल बोइंग कंपनी अकेले काम नहीं करती. इस विमान को तैयार करने में 4 प्रमुख कंपनियां अपने अपने विशेष पार्ट्स बनाती हैं.

बोइंग ड्रीमलाइनर की डिजाइन और अंतिम असेंबली का जिम्मा संभालती है. इस के दो प्रमुख असेंबली प्लांट हैं. एक सिएटल, वाशिंगटन में और दूसरा चाल्र्सटन, साउथ कैरोलिना में. बोइंग विमान के मुख्य ढांचे, जैसे फ्यूजलाज (प्लेन की मेन बौडी) और आखिरी असेंबलिंग का काम करता है. मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज नामक जापानी कंपनी ड्रीमलाइनर के पंखों को बनाती है. ड्रीमलाइनर के पंख इस की सब से बड़ी खासियत हैं, क्योंकि ये कार्बन फाइबर कम्पोजिट से बने होते हैं, जो इसे हल्का और फ्यूल एफिशिएंट बनाते हैं.

एयरबस ड्रीमलाइनर के कुछ हिस्सों, जैसे टेल सेक्शन और कुछ इंटीरियर पार्ट्स को बनाने का काम करती है. रोल्स रोयस और जनरल इलैक्ट्रिक नामक दोनों कंपनियां ड्रीमलाइनर के इंजन बनाती हैं. ड्रीमलाइनर दो प्रकार के इंजनों के साथ आता है. रोल्स रोयस ट्रेंट 1000 और जनरल इलैक्ट्रिक इंजन. यह न केवल शक्तिशाली हैं बल्कि ईंधन की खपत को 20 फीसदी तक कम करते हैं. इस के अलावा छोटेछोटे पार्ट्स जैसे लैंडिंग गियर, एवियोनिक्स, और इंटीरियर फिटिंग्स के लिए दुनिया भर की अन्य कंपनियां भी शामिल होती हैं. कुल मिला कर ड्रीमलाइनर का निर्माण 50 से ज्यादा देशों की 100 से अधिक कंपनियों का संयुक्त प्रयास है.

20 हजार करोड़ होती है ड्रीमलाइनर की कीमत

दुर्घटनाग्रस्त होने वाला विमान 787-8 का मौडल था, जो 248 यात्रियों को ले जा सकता है. यह 13,530 किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है. यह 57 मीटर लंबा है और इस के पंखों का फैलाव 60 मीटर है. यह ट्रेंट 1000 इंजन से लैस है. ड्रीमलाइनर अपनी सुरक्षा को ले कर चर्चा में था. 2013 में भारत सहित दुनिया भर के उड़ान सुरक्षा नियामकों ने बोइंग 787 ड्रीमलाइनर के पूरे बेड़े को उड़ान भरने से रोक दिया था. उस समय, एयर इंडिया (तब सरकारी स्वामित्व वाली) के पास छह 787 विमान थे. ड्रीमलाइनर्स के अलावा बोइंग को 2018 और 2019 में अपने 737 मैक्स विमान की दो घातक दुर्घटनाओं के बाद से अपने जेट की सुरक्षा को ले कर बढ़ती जांच का सामना करना पड़ रहा है.

बोइंग 787-8 की औसत कीमत लगभग 248.3 मिलियन डौलर यानी करीब 20,000 करोड़ रुपए है. बोइंग 787-9 मौडल थोड़ा बड़ा और ज्यादा उन्नत है, जिस की कीमत लगभग 292.5 मिलियन डौलर करीब 24,000 करोड़ रुपए है. बोइंग 787-10 यह सब से बड़ा मौडल है, जिस की कीमत 338.4 मिलियन डौलर करीब यानी 28,000 करोड़ रुपए तक जाती है. इस की खरीददारी में भी छूट मिलती है.

थोक और्डर पर भारी डिस्काउंट मिलता है. अगर कोई एयरलाइन 50 ड्रीमलाइनर खरीदती है, तो बोइंग 20 से 30 फीसदी तक डिस्काउंट दे सकती है. इस के अलावा, कई एयरलाइंस विमान खरीदने की बजाय लीज पर लेती हैं, जिस से लागत और कम हो जाती है. लीजिंग का खर्च मासिक या वार्षिक आधार पर 1 से 2 मिलियन डौलर तक हो सकता है, जो विमान के मौडल और लीज की शर्तों पर निर्भर करता है.
भारत में बोइंग 787 ड्रीमलाइनर का उपयोग मुख्य रूप से एयर इंडिया करती है. यह विमान लंबी दूरी की अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों, जैसे दिल्ली-लंदन या मुंबई-न्यूयौर्क, के लिए पसंदीदा है. भारतीय यात्रियों को इस की बड़ी खिड़कियां, आरामदायक सीटें, और शांत केबिन काफी पसंद आते हैं. हालांकि, हाल के हादसों ने भारतीय उड्डयन प्राधिकरण को सतर्क कर दिया है, और इस की सख्त निगरानी की जा रही है.

कैसे बने उड़ने वाले जहाज

17 दिसंबर 1903 में पहली बार उत्तरी कैरोलिना के किटी हौक में ओरविल और विल्बर राइट ने विमान से इतिहास की पहली सफल उड़ान भरी. ओरविल ने गैसोलीन से चलने वाले इस टू सीटर विमान का संचालन किया. जो अपनी पहली उड़ान में 12 सेकंड तक हवा में रहा और 120 फीट की दूरी तय की. इस को राइट ब्रदर्स की पहली उड़ान माना जाता है. ओरविल और विल्बर राइट ओहियो के डेटन में पलेबढ़े और 1890 के दशक में जरमन इंजीनियर औटो लिलिएनथल की ग्लाइडर उड़ानों के बारे में जानने के बाद विमानन में रुचि विकसित हुई. अपने बड़े भाइयों के विपरीत, औरविल और विल्बर ने कौलेज में पढ़ाई नहीं की, लेकिन उन के पास असाधारण तकनीकी क्षमता और यांत्रिक डिजाइन में समस्याओं को हल करने के लिए एक परिष्कृत दृष्टिकोण था.

दोनों भाइयों ने प्रिंटिंग प्रेस का निर्माण किया और 1892 में एक साइकिल बिक्री और मरम्मत की दुकान खोली. जल्द ही, वे अपनी खुद की साइकिलें बनाने लगे और इस अनुभव ने उन के विभिन्न व्यवसायों से लाभ के साथ मिल कर, उन्हें दुनिया का पहला हवाई जहाज बनाने के अपने सपने को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाने की अनुमति दी.

1900 में परीक्षण किए गए उन के पहले ग्लाइडर ने खराब प्रदर्शन किया, लेकिन 1901 में परीक्षण किए गए एक नए डिजाइन ने अधिक सफलता प्राप्त की. उस वर्ष के अंत में दोनों ने विभिन्न आकृतियों और डिजाइनों के लगभग 200 पंखों और एयरफ्रेम का परीक्षण किया. किल डेविल्स हिल्स में अपने 1902 ग्लाइडर में सैकड़ों सफल उड़ानें भरीं.

उन के बाइप्लेन ग्लाइडर में एक स्टीयरिंग सिस्टम था, जो एक चलने योग्य पतवार पर आधारित था. मशीनिस्ट चार्ल्स टेलर की सहायता से 12-होर्सपावर का इंटरनल कम्बशन इंजन डिजाइन किया और इसे रखने के लिए एक नया विमान बनाया. उन्होंने 1903 में अपने विमान को दो टुकड़ों में किट्टी हौक पहुंचाया. 14 दिसंबर को ऑरविल ने उड़ान का पहला प्रयास किया. उड़ान भरने के दौरान इंजन बंद हो गया और विमान क्षतिग्रस्त हो गया. उन्होंने इसे ठीक करने में 3 दिन बिताए. फिर 17 दिसंबर को सुबह 5 गवाहों के सामने विमान उडाया. विमान एक मोनोरेल ट्रैक से नीचे हवा में उड़ गया, 12 सेकंड तक हवा में रहा और 120 फीट ऊपर उड़ा. इस के साथ ही आधुनिक विमानन युग का जन्म हुआ.

राइट बंधुओं ने अपने हवाई जहाजों को और विकसित किया, लेकिन अपनी उड़ान मशीनों के लिए पेटेंट और अनुबंध हासिल करने के लिए अपनी सफलताओं के बारे में कम जानकारी दी. 1905 तक उन के विमान जटिल युद्धाभ्यास कर सकते थे और एक बार में 39 मिनट तक हवा में रह सकते थे. 1908 में उन्होंने फ्रांस की यात्रा की और अपनी पहली सार्वजनिक उड़ान भरी. जिस से व्यापक सार्वजनिक उत्साह पैदा हुआ.

1909 में अमेरिकी सेना के सिग्नल कोर ने एक विशेष रूप से निर्मित विमान खरीदा और भाइयों ने अपने विमान बनाने और बाजार में लाने के लिए राइट कंपनी की स्थापना की. 1913 में पहली कमर्शियल हुई. तब से अब तक उडने वाले विमानों की तकनीति में बहुत बदलाव हुए. इस के बाद भी होने वाले हादसे हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि हम अपनी सब से सुरक्षित यात्रा कब कर सकेंगे जब किसी हादसे का खतरा नहीं होगा.

Social Story : गांव की इज्जत – शालिनी देवी की क्या मांग थी?

Social Story : शालिनी देवी जब से गांव की सरपंच चुनी गई थीं, गांव वालों को राहत क्या पहुंचातीं, उलटे गरीबों को दबाने व पहुंच वालों का पक्ष लेने लगी थीं. शालिनी देवी का मकान गांव के अंदर था, जहां कच्ची सड़क जाती थी. सड़क को पक्की बनाने की बात तो शालिनी देवी करती थीं, पर अपना नया मकान गांव के बाहर मेन रोड के किनारे बनाना चाहती थीं, इसलिए वे गरीब गफूर मियां पर मेन रोड वाली सड़क पर उन की जमीन सस्ते दाम पर देने का दबाव डालने लगी थीं. गफूर मियां को यह बात अच्छी नहीं लगी. वे हजारी बढ़ई के फर्नीचर बनाने की दुकान में काम करते थे. मेहनताने में जोकुछ भी मिलता, उसी से अपना परिवार चलाते थे.

बड़ों के सामने गफूर मियां की बोली फूटती न थी. एक बार गांव के ही एक बड़े खेतिहर ने उन का खेत दबा लिया था, पर हजारी ने ही आवाज उठा कर गफूर मियां को बचाया था. गफूर मियां हजारी बढ़ई को सबकुछ बता देते थे. उन्होंने बताया कि शालिनी देवी अपना नया मकान बनाने के लिए उन की जमीन मांग रही हैं. इस बात पर हजारी बढ़ई खूब बिगड़े और बोले, ‘‘यह तो शालिनी देवी का जुल्म है. यह बात मैं मुखिया राधे चौधरी के पास ले जाऊंगा.’’ हजारी बढ़ई जानते थे कि मुखिया इंसाफपसंद तो हैं, पर शालिनी देवी के मामले में वे कुछ नहीं बोलेंगे. दबी आवाज में यह बात भी उठी थी कि शालिनी देवी का मुखिया से नाजायज संबंध है.

एक दिन हजारी बढ़ई गफूर मियां का पक्ष लेते हुए सरपंच शालिनी देवी से कहने लगे, ‘‘चाचीजी, हम लोग गरीब हैं. हमें आप से इंसाफ की उम्मीद है. आप गफूर मियां को दबा कर उन की जमीन सस्ते दाम में हड़पने की मत सोचिए, नहीं तो यह बात पूरे गांव में फैलेगी. विरोधी लोग आप के खिलाफ आवाज उठाएंगे. मैं नहीं चाहता कि अगले चुनाव में आप सरपंच का पद पाने से रह जाएं.’’ यह सुन कर शालिनी देवी गुस्से से कांप उठीं और बोलीं, ‘‘तुम उस गफूर की बात कर रहे हो, जो बिरादरी में छोटा है. उस की हिम्मत है, तो मुखिया के पास जा कर शिकायत करे.’’ हजारी बढ़ई बोले, ‘‘आप की नजर में तो मैं भी छोटा हूं… छोटे भी कभीकभी बड़ा काम कर जाते हैं.’’

शालिनी देवी एक दिन दूसरे सरपंचों से बोलीं, ‘‘क्या हमारा चुनाव इसलिए हुआ है कि हम दूसरे लोगों की धौंस से डर जाएं?’’ मुखिया राधे चौधरी ने शालिनी देवी को समझाया कि हजारी बढ़ई व गफूर मियां जैसे छोटे लोगों से डरने की जरूरत नहीं है. शालिनी देवी खूबसूरत व चालाक थीं. उन की एक ही बेटी थी रेशमा, जो उन का कहना नहीं मानती थी. वह खेतखलिहानों में घूमती रहती थी. शालिनी देवी के लिए अब एक ही रास्ता बचा था, जल्दी ही उस की शादी कर उसे ससुराल विदा कर दो. जल्दी ही एक पड़ोसी गांव में उन्हें एक खेतिहर परिवार मिल गया. लड़का नौकरी के बजाय गांव की राजनीति में पैर पसार रहा था. भविष्य अच्छा देख कर शालिनी देवी ने रेशमा की शादी उस से तय कर दी. शालिनी देवी ने हजारी बढ़ई को बुलाया और बोलीं, ‘‘मेरी बेटी रेशमा की शादी है. तुम उस के लिए फर्नीचर बना दो. मेहनताना व लकडि़यों के दाम मैं दे दूंगी.’’

इज्जत समझ कर हजारी बढ़ई ने गफूर मियां व मजदूरों को काम पर लगा कर अच्छा फर्नीचर बनवा दिया. मेहनताना देते समय शालिनी देवी कतराने लगीं, ‘‘तुम मुझ से कुछ ज्यादा पैसे ले रहे हो. लकडि़यों की मुझे पहचान नहीं… सागवान है कि शीशम या शाल… कुछकुछ आमजामुन की लकड़ी भी लगती है.’’ हजारी बढ़ई बोला, ‘‘यह सागवान ही है. मेरे पेट पर लात मत मारिए. अपना समझ कर मैं ने दाम ठीक लिया है. मुझे मजदूरों को मेहनताना देना पड़ता है. फर्नीचर आप नहीं ले जाएंगी, तो दूसरे खरीदार न मिलने से मैं मारा जाऊंगा.’’ मौका देख कर शालिनी देवी बदले पर उतर आईं और बोलीं, ‘‘मैं औनेपौने दाम पर सामान नहीं लूंगी. मैं तो शहर से मंगाऊंगी.’’ तभी वहां मुखिया राधे चौधरी आ गए. वे भी शालिनी देवी का पक्ष लेते हुए बोले, ‘‘ज्यादा पैसा ले कर गफूर मियां का बदला लेना चाहते हो तुम?’’

हजारी बढ़ई तमक कर बोले, ‘‘मैं गलती कर गया. सुन लीजिए, जो मेरे दिल में कांटी ठोंकता है, उस के लिए मैं भी कांटी ठोंकता हूं… मैं बढ़ई हूं, रूखी लकडि़यों को छील कर चिकना करना मैं अच्छी तरह जानता हूं. आप का दिल भी रूखा हो गया है. मैं इसे छील कर चिकना करूंगा.

‘‘शालिनी देवी, आप की बेटी गांव के नाते मेरी बहन है. मैं बिना कुछ लिए यह फर्नीचर उसे देता हूं… आगे आप की मरजी…’’

हजारी बढ़ई ने मजदूरों से सारा फर्नीचर उठवा कर शालिनी देवी के यहां भिजवा दिया. शालिनी देवी को लगा कि हजारी उस के दिल में कांटी ठोंक गया है. गांव में क्या हिंदू क्या मुसलिम, सभी हजारी को प्यार करते थे. एक गूंगी लड़की की शादी नहीं हो रही थी. हजारी ने उस लड़की से शादी कर गांव में एक मिसाल कायम की थी. इस पर गांव के सभी लोग कहा करते थे, ‘हजारी जैसे आदमी को ही गांव का मुखिया या सरपंच होना चाहिए.’ शालिनी देवी के घर बरात आई. उसी समय मूसलाधार बारिश हो गई. कच्ची सड़क पर दोनों ओर से ढलान था. सड़क पर पानी भर गया था. कहीं से निकलने की उम्मीद नहीं थी. चारों तरफ पानी ही पानी नजर आने लगा. ‘दरवाजे पर बरात कैसे आएगी?’ सभी बराती व घराती सोचने लगे.

दूल्हा कार से आया था. ड्राइवर ने कह दिया, ‘‘कार दरवाजे तक नहीं जा सकती. कीचड़ में फंस जाएगी, तो निकालना भी मुश्किल होगा.’’ शालिनी देवी सोच में पड़ गईं.

मुखिया राधे चौधरी भी परेशान हुए, क्योंकि इतनी जल्दी पानी को भी नहीं निकाला जा सकता था. गांव की बिजली भी चली गई थी. पंप लगाना भी मुश्किल था. पैट्रोमैक्स जलाना पड़ रहा था. फिर कीचड़ तो हटाई नहीं जा सकती थी. उस में पैर धंसते थे, तो मुश्किल से निकलते थे… मिट्टी में गिर कर दोचार लोग धोतीपैंट भी खराब कर चुके थे. बराती अलग बिगड़ रहे थे. एक बोला, ‘‘कार दरवाजे पर जानी चाहिए. दूल्हा घोड़ी पर नहीं चढ़ेगा. वह गोद में भी नहीं जाएगा.’’ दूल्हे के पिता बिगड़ गए और बोले, ‘‘कोई पुख्ता इंतजाम न होने से मैं बरात वापस ले जाऊंगा.’’ शालिनी देवी रोने लगीं, ‘‘इसीलिए मैं नया मकान मेन रोड पर बनाना चाहती थी. लेकिन जमीन नहीं मिलती. गफूर मियां अपनी जमीन नहीं देता. हजारी बढ़ई ने उसे चढ़ा कर रखा हुआ है.’’ शालिनी देवी ने अपनेआप को चारों ओर से हारा हुआ पाया. उन्हें मुखिया राधे चौधरी पर गुस्सा आ रहा था, जो कुछ नहीं कर पा रहे थे. तभी हजारी बढ़ई गफूर मियां के साथ आए और बोले, ‘‘गांव की इज्जत का सवाल है. गांव की बेटी की शादी है… बरातियों की बात भी जायज है. कार दरवाजे तक जानी ही चाहिए…’’

शालिनी देवी हार मानते हुए बोल उठीं, ‘‘हजारी, कोई उपाय करो… समझो, तुम्हारी बहन की शादी है.’’ ‘सब सुलट जाएगा. आप अपना दिल साफ रखिए.’’ शालिनी देवी को लगा कि हजारी ने एक बार फिर एक कांटी उन के दिल में ठोंक दी है. हजारी बढ़ई गफूर मियां से बोले, ‘‘मुसीबत की घड़ी में दुश्मनी नहीं देखी जाती. दुकान में फर्नीचर के लिए जितने भी पटरे चीर कर रखे हुए हैं, सब उठवा कर मंगा लो और बिछा दो. उसी पर से बराती भी जाएंगे और कार भी जाएगी दरवाजे तक. ‘‘लकड़ी के पटरों पर से गुजरते हुए कार के कीचड़ में फंसने का सवाल ही नहीं उठता. बांस की कीलें ठोंक दो. कुछ गांव वालों को पटरियों के आसपास ले चलो…’’

सभी पटरियां लाने को तैयार हो गए, क्योंकि गांव की इज्जत का सवाल सामने था. इस तरह हजारी बढ़ई, गफूर मियां और गांव वालों की मेहनत से एक पुल सा बन गया. उस पर से कार पार हो गई. बराती खुश हो कर हजारी बढ़ई की तारीफ करने लगे. शालिनी देवी की खुशी का ठिकाना न था. वे खुशी से झूम उठीं. मुखिया राधे चौधरी हजारी बढ़ई की पीठ थपथपाते हुए बोले, ‘‘इस खुशी में मैं अपने बगीचे के 5 पेड़ तुम्हें देता हूं.’’ पता नहीं, मुखिया हजारी को खुश कर रहे थे या शालिनी देवी को. शालिनी देवी ने देखा कि हजारी बढ़ई और गफूर मियां भोज खाने नहीं आए, तो लगा कि दिल में एक कांटी और ठुंक गई है. बरात विदा होते ही शालिनी देवी हजारी बढ़ई के घर पहुंच गईं और आंसू छलकाते हुए बोलीं, ‘तुम ने मेरे यहां खाना भी नहीं खाया. इतना रूठ गए हो… क्यों मुझ से नाराज हो? मैं अब कुछ नहीं करूंगी, गफूर की जमीन भी नहीं लूंगी. हां, कच्ची सड़क को पक्की कराने की कोशिश जरूर करूंगी…

‘‘सच ही तुम ने मेरे रूखे दिल को छील कर चिकना कर दिया है… तुम मेरी बात मानो…उखाड़ दो अपने दिल से कांटी… तब मुझेचैन मिलेगा.’’

हजारी बढ़ई बोला, ‘‘दरअसल, आप सरपंच होते ही हमें छोटा समझने लगी थीं. आप भूल गई थीं कि छोटी सूई भी कभी काम आती है.’’ तभी हजारी की गूंगी बीवी कटोरे में गुड़ और लोटे में पानी ले आई. पानी पीने के बाद शालिनी देवी ने साथ आए नौकरों के सिर से टोकरा उतारा और गूंगी के हाथ में रख दिया. फिर वे हजारी से बोलीं, ‘‘शाम को अपने परिवार के साथ खाना खाने जरूर आना, साथ में अपने मजदूरों को लाना. मैं तुम सब का इंतजार करूंगी.’’ टोकरे में साड़ी, धोती, मिठाई, दही और पूरियां थीं. धोती के एक छोर में फर्नीचर के मेहनताने और लागत से भी ज्यादा रुपए बंधे हुए थे. हजारी बढ़ई आंखें फाड़े शालिनी देवी को जाते देखते रहे, जिन का दिल चिकना हो गया था. अब कांटी भी उखड़ चुकी थी. Social Story

Story In Hindi : घर की लाज – कैसे आरुषि ने सुरुचि को जीने की राह दिखाई?

Story In Hindi : आरुषि और सुरुचि जुड़वां बहनें थीं, एकसाथ पलीबढ़ी थीं, जहां आरुषि ने खुद को आजाद कर अपना जीवन अपनी शर्तों पर जीने की हिम्मत दिखाई, वहीं, सुरुचि पर लोकलाज का बोझ परिवार ने लाद दिया. कैसे आरुषि ने सुरुचि को इस जकड़न से निकाला?

जिंदगी में हर कहानी के समानांतर एक कहानी चलती है, जिस का लेखक उस कहानी से जुड़ा मुख्य किरदार स्वयं होता है. उसी के व्यवहार और क्रियाकलाप के अनुसार कहानी अपने रंग बदलती है. इन दोनों कहानियों के इर्दगिर्द ढेरों किरदार अपनीअपनी भूमिका जीवंत करने में जुटे रहते हैं. उन किरदारों का व्यवहार और नजरिया समानांतर चल रहे उन दोनों कथानकों के मुख्य किरदार के प्रति मौके और मतलब के अनुसार बदलते रहते हैं.

अपने इर्दगिर्द चल रहे उन किरदारों के बदलते रवैए को आरुषि और सुरुचि मौसी की जिंदगी ने बखूबी सम?ा. ये दोनों मम्मी की सहेलियां थीं, जुड़वां बहनें. जमींदार परिवार की आनबान मानी जाती हैं बेटियां, क्योंकि शान माने जाने का अधिकार तो बेटों के ही पास रहा.

मम्मी अकसर उन की चर्चा किया करती थीं, ‘आरुषि के परिवार में बेटियों की शादी में पैसे, सोनेचांदी के अलावा ढेरों गाय, बैल, भैंस, घोड़े देने की परंपरा सालों से चलती आ रही थी. उन के घर में बेटियों पर दिल खोल कर खर्च किया जाता था सिवा उन की पढ़ाई के.’

आरुषि की शादी तय हो चुकी थी, मेहमान आ चुके थे. सारा घर मेहमानों से भरा था. शादी के 2 दिनों पहले काफी देर होने पर जब आरुषि ने कमरे का दरवाजा नहीं खोला तो उस की छोटी चाची ने जा कर दरवाजा खटखटाया. दरवाजा अंदर से बंद नहीं था, इसलिए खुल गया. भीतर जाने पर पता चला कि आरुषि कमरे में नहीं है.

यह खबर पूरे घर में बिजली की भांति कौंध गई. जांचपड़ताल करने पर पता चला कि आरुषि के पिता रघुवीर चाचा के एक दोस्त कनक बाबू का बेटा हेमांग भी गायब है. वे लोग बोकारो से इसी शादी में शामिल होने आए थे. इसी गांव के थे और रघुवीर चाचा से उन की पुरानी दोस्ती थी. सालों पहले उन का परिवार बोकारो में बस गया था. लेकिन संबंध अभी भी उसी तरह कायम था. इन लोगों का एकदो साल में आनाजाना और मिलना हो जाता था. जब भी वे लोग गांव आते थे तो रघुवीर चाचा के घर पर ही रुकते थे क्योंकि उन का अपना पुश्तैनी घर सालों से बंद था. इतने भरेपूरे परिवार में कभी किसी को यह शक नहीं हुआ कि आरुषि का हेमांग से कोई संबंध है.

अगर दोनों बच्चों ने यह बात अपने परिवार वालों को बताई होती तो शायद वे अपनी दोस्ती को रिश्तेदारी में बदलने के लिए तैयार भी हो जाते लेकिन उस वक्त कोई मातापिता बच्चों को इतना हक देते कहां थे कि वे अपनी पसंद और शादी की बात उन से कर सकें.

आरुषि के पिता दबंग किस्म के इंसान थे. उन की सोच में घर की औरतें पैरों में पहनी जाने वाली खुबसूरत मोजरी के समान हुआ करती हैं. उन तक आरुषि के गायब होने की खबर पहुंचते ही वे सीधे आंगन में आए और बिना कुछ बोले चाची को कमरे में ले गए. दरवाजा बंद हुआ और अंदर से तब तक चीखनेचिल्लाने की आवाजें आती रहीं जब तक वे पीटते हुए थक नहीं गए.

पति के सामने हमेशा चुप रहने वाली चाची भी आज रोते हुए चिल्ला रही थीं, ‘मार डालो मु?ो, कम से कम आज मेरी एक बेटी तो इस कैद से आजाद हो गई. नहीं तो 2 दिनों बाद तुम्हारी ही तरह किसी और भेडि़ए के हाथों की कठपुतली बन कर रह जाती.’ थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और चाचा दनदनाते हुए बाहर चले गए.

कुछ देर बाद आरुषि के छोटे चाचा ने आ कर घर के मालिक का फरमान सुनाया, ‘आरुषि की जगह अब सुरुचि की शादी की तैयारी शुरू करो.’

सुरुचि शादी के लिए तैयार थी या नहीं, किसी ने उस से पूछना जरूरी नहीं सम?ा. अकेले में चाची ने उसे जा कर सम?ाया, ‘बेटा, मेरी जिंदगी तो बीत गई. तुम्हारे सामने तुम्हारी पूरी जिंदगी पड़ी है. अभी बस तुम इस घर से चली जाओ. आगे जैसी तुम्हारी मरजी. अपने फैसले अगर खुद ले सको तो जरूर लेना. अपनी खुशियां हासिल करने का हक हर किसी को है. मेरी तरह घुटन में अपनी जिंदगी बरबाद मत करना. मेरा आशीर्वाद हर कदम पर तुम्हारे साथ रहेगा.’

धूमधाम से शादी संपन्न हो गई. सुरुचि उस घर की छोटी दुलहन और मधुर की पत्नी के रूप में ससुराल पहुंच गई.

विदाई के अगले ही दिन एक सुसाइड नोट लिख कर सुरुचि की मां ने फांसी लगा ली. ‘मैं अब तक अपने पति की ज्यादती बरदाश्त करती रही, बिना रीढ़ की हड्डी वाली अपनी जिंदगी व्यतीत करती रही पर अब और बरदाश्त नहीं होता. मेरी बेटियां अब इस घर से चली गई हैं. अब मैं अपनी वजूदहीन जिंदगी के बो?ा को और बरदाश्त नहीं कर सकती. मैं अपनी मरजी से आत्महत्या कर रही हूं, इस के लिए किसी और को जिम्मेदार न माना जाए.’

बिना पुलिस को इस की खबर किए आननफानन चाची का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

उधर आरुषि कनक बाबू के बेटे हेमांग के साथ बोकारो न जा कर कहीं और चली गई. हेमांग के परिवार वालों ने पता लगाने की कोशिश की, लेकिन कुछ पता नहीं चलने पर वे लोग भी शांत बैठ गए.

करीब 10 वर्षों बाद हेमांग और आरुषि अचानक से बोकारो आए, साथ में अपने 9 साल के जुड़वां बच्चों हृदयंश और हिमांगी को ले कर. परिवार वालों ने हेमांग और आरुषि को कुछ यों अपनाया, जैसे कभी कुछ हुआ ही न हो.

पता चला कि वे दोनों घर छोड़ने के बाद सीधे बड़ौदा गए जहां कुछ दिन हेमांग अपने एक दोस्त के घर पर ठहरा. उसी की मदद से एक प्राइवेट फर्म में नौकरी की शुरुआत की और कुछ दिन बाद उन्होंने कोर्ट मैरिज कर ली. 2 साल बाद हेमांग ने अपने अनुभव के आधार पर कैमिकल लाइन में अपनी नई शुरुआत की.

मेहनत और लगन के योगदान से काम अच्छा चला और दोनों को समय ने मनचाही खुशियां दीं. पूरी तरह स्थापित होने के बाद अब उन दोनों ने घरवालों से मिलने का यह प्रोग्राम बनाया था.

कहते हैं सफलता और पैसा गुनाहों पर भी परदा डालने में सफल होता है, फिर ये दोनों तो बस अपनी खुशियां तलाशने निकले थे और साथ ले कर आए थे रिश्तेदारों के लिए ढेर सारी उम्मीदें. इन की अच्छीखासी संपत्ति के माध्यम से उन की चाहत पूरी हो सकती थी.

हेमांग के परिवार वाले आरुषि, हृदयंश और हिमांगी को ले कर रघुवीर चाचा के घर पहुंचे. कुछ देर की चुप्पी के बाद चाचा बोले, ‘अब तो जो होना था हो चुका, अब पहले की तरह सामान्य हो कर तुम लोग अपना जीवन जियो.’

आंसूभरी आंखों से बस इतना ही बोल पाई आरुषि, ‘सबकुछ पहले की तरह सामान्य कैसे, क्या मां अब वापस आ पाएंगी?’ यह कहतेकहते उस की आवाज भर्रा गई. हेमांग ने उसे थाम लिया और आरुषि फूटफूट कर रो पड़ी.

सुरुचि भी अपने हिस्से की जिंदगी को सहेजने की चाहत में उसे काटे जा रही थी. ससुराल आने के कुछ ही दिनों बाद उसे पता चला कि उस का पति मधुर अपनी विधवा भाभी के प्रेम में बुरी तरह जकड़ा हुआ है. इसे प्रेम कहना भी प्रेम का अपमान होगा क्योंकि अगर प्रेम होता तो मधुर ने उन के संग शादी की हिम्मत दिखाई होती. किसी लड़की की जिंदगी बरबाद करने बरात ले कर न जाता.

शुरूशुरू में सुरुचि अपने अंदर की उम्मीदों को सिंचित करती रही. उसे लगता था कि वह अपने व्यवहार से मधुर को सही रास्ते पर ले आएगी. जब तक सासससुर जिंदा थे, मधुर भाभी के कमरे में मौका देख कर जाता था. थोड़ा लिहाज बाकी था उस में. मातापिता को सब जानकारी थी पर हर मांबाप की तरह वे भी किसी और की बेटी को अपने बिगड़ैल बेटे को सुधारने का मोह संवरण नहीं कर पाए थे.

उन्होंने एक लड़की की जिंदगी नरक में धकेलने के गुनाह की भरपाई की चाहत में अपनी आधी संपत्ति अपनी उस बहू के नाम पर कर दी जिस ने कभी पति का सुख पाया ही नहीं.

मायके वाले तो शादी कर के अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री मान बैठे थे. एक बार मायके जाने पर सुरुचि के उतरे चेहरे को देख कर उस की चाची ने उस के दांपत्य जीवन की खोजबीन की थी. जब सुरुचि ने उन्हें हकीकत बताई तो उन्होंने एक संस्कारी महिला की तरह नसीहत दे डाली कि लड़की की डोली ससुराल जाती है और अर्थी ही वहां से बाहर निकलती है. इस के बाद नियति मान कर सुरुचि अपनी जिंदगी काटती जा रही थी.

मातापिता के निधन के बाद मधुर ने अपनी बचीखुची लोकलाज भी बेच खाई. अब वह दिन में भी भाभी वंदना के कमरे में जाने लगा था. सुरुचि की हैसियत अब उस घर की बस एक नौकरानी के समान रह गई थी.

अपने मायके वालों से मिलने के बाद आरुषि अपनी जुड़वां छोटी बहन से मिलने उस की ससुराल आई. जिस वक्त वह वहां पहुंची, मधुर घर पर नहीं था.

सुरुचि के उतरे चेहरे को देख कर जब उस ने उस से पूछा तो सुरुचि ने उसे सारी आपबीती बयां कर दी.

‘तुम इतने सालों से इस नरक में अपनी जिंदगी कैसे गुजार रही हो? पापा ने तुम्हारी सहायता नहीं की, फिर भी इस गंद के खिलाफ तुम्हें आवाज उठानी चाहिए थी. जब तुम ने अपने लिए कुछ नहीं किया तो किसी और से उम्मीद कैसे कर सकती हो? चलो मेरे साथ, जो होगा देखा जाएगा और हां, यहां जो जमीन तुम्हारे नाम की गई है, उसे किसी को सौंपने का खयाल भी मत लाना. उस पर तुम्हारे सासससुर ने बस तुम्हारा हक सौंपा है.’’

आरुषि की बातों से हेमांग के चेहरे पर सहमति के भाव परिलक्षित हो रहे थे.

मधुर बाहर से आ कर सीधे अपनी भाभी वंदना के कमरे में गया. वहां उसे पता चला कि सुरुचि की बहन आई हुई है.

आरुषि ने सुरुचि से उस के बैग संभालने को कह कर उस से अपने साथ चलने को कहा.

वे लोग निकलने ही वाले थे कि सामने से मधुर आता हुआ दिखा, बेशर्म की तरह दांत निपोरते हुए बोला, ‘जितना ज्यादा दिन हो सके, अपनी इस बहन के साथ ही रहना. कुछ दिन मैं भी अपनी जिंदगी सुकून से जी सकूंगा. और हां, साली साहिबा, मेरा समय अच्छा था

कि आप शादी के पहले ही साढ़ूजी

के साथ भाग गईं. थोड़ीबहुत जिंदगी जो मैं जी रहा हूं, उस का मजा भी किरकिरा हो जाता क्योंकि आप की खुबसूरती देख मैं खुद को 2 नावों में सवार होने से नहीं रोक पाता और मैं एकसाथ 2 नावों पर पैर रख कर गिरने का खतरा मोल नहीं लेना चाहता.’

हेमांग गुस्से में मुट्ठी भींच कर मधुर की तरफ बढ़ा. मगर आरुषि ने उस के हाथ पकड़ लिए और जातेजाते यह कह कर गई, ‘सुरुचि अब तुम्हें जल्दी ही पूरी तरह आजाद कर देगी, जा कर तलाक के कागजात भिजवाती हूं. बस, उस संपत्ति की उम्मीद मत करना जो तुम्हारे पेरैंट्स ने सुरुचि के नाम की है.’

समय अपनी निर्बाध गति से बढ़ता रहा. सुरुचि और मधुर का तलाक हो गया. कुछ वर्षों बाद ही हेमांग के एक विधुर दोस्त धवल ने सुरुचि के सामने शादी का प्रस्ताव रखा. धवल एक सुल?ा हुआ इंसान था. सुरुचि ने इस शादी के लिए हामी भर दी और अपनी बची जिंदगी के लिए खुशियों के कुछ कतरे सहेजने में जुट गई. 2 साल बाद बेटी आन्या ने उन की जिंदगी में आ कर उसे और भी खूबसूरत बना दिया.

समय बीतता रहा. बच्चे बड़े हो गए. हृदयंश और हिमांगी ने हेमांग के बिजनैस में अपना सहयोग देते हुए उसे और बढ़ाया. दोनों ने मातापिता का आशीर्वाद ले कर अपनी पसंद का जीवनसाथी चुना और कुछ समय बाद अपनाअपना घर ले कर एक ही शहर में रिश्ते की मिठास को सहेजे खुशहाल जिंदगी का आनंद लेने लगे.

वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता, करवट लेना उस का स्वभाव है. 2020 में पूरे विश्व में कोरोना का प्रकोप फैला. लौकडाउन लगा. तमाम बंदिशों के बीच पता नहीं कैसे हेमांग, आरुषि और उन के 2 नौकर कोविड पौजिटिव पाए गए.

क्वारंटाइन और फिर हौस्पिटल के तमाम इंतजामों के बावजूद हेमांग को बचाया नहीं जा सका. दोनों बच्चों और सुरुचि के परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. उस की जिंदगी को सहेजने वाला हेमांगरूपी एक खंभा धराशायी हो चुका था और दूसरा खंभा जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहा था. आरुषि की हालत के मद्देनजर डाक्टर ने उसे हेमांग के बारे में बताने को मना किया था. बारबार वह हेमांग की हालत के बारे में पूछती, ‘‘कैसे हैं हेमांग?’

‘ठीक हैं, सुधार हो रहा है,’ कह कर उस की बात को टाल दिया जाता. ऐसा कहते वक्त परिवार का वह सदस्य किस मानसिक जद्दोजेहद को ?ोल रहा होता, इस का सही से शाब्दिक बयान कर पाना किसी के वश का नहीं.

आरुषि कहती, ‘हम दोनों को एक ही कमरे में क्यों नहीं रखवा देते?’

जवाब मिलता, ‘डाक्टर ने कहा है कि 2 बीमार एक कमरे में नहीं रह सकते.’

अपनी जंग में आरुषि भी वैंटिलेटर पर आ गई. 5 दिन वह वैंटिलेटर पर रही. इन्फैक्शन लिवर तक पहुंच गया था. आखिरकार एक और जिंदगी हार गई, मौत जीत गई.

हेमांग को गुजरे 11 दिन हो चुके थे. अगले दिन उन की बारहवीं थी. देररात आरुषि की तबीयत ज्यादा बिगड़ने लगी और सुबह 4 बजे उस ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया, बिना यह जाने कि अब उस का सुहाग भी इस दुनिया में नहीं है. आरुषि के चले जाने से हेमांग की बारहवीं भी उस दिन नहीं हो पाई. उन दोनों की बारहवीं की रस्म आरुषि के जाने के 12 दिनों बाद एकसाथ ही की गई.

कहते हैं, रिश्ता ऊपर से बन कर आता है पर इन दोनों ने अपना रिश्ता खुद बनाया, सामाजिक नियमों और परंपराओं के परे जा कर अपनी हिम्मत और कर्मों से निर्धारित किया. इस दुनिया को अलविदा कहते हुए अपने पीछे छोड़ गए अपने बच्चों के लिए गहरा दर्द और सामाजिक उसूलों व संस्कारों की दुहाई देने वाले लोगों के लिए ये वाक्य- ‘हेमांग और आरुषि एकदूसरे के लिए ही बने थे. हेमांग के बिना आरुषि जिंदा नहीं रह पाती. उस के जाने की खबर बरदाश्त नहीं कर पाती. इसलिए हेमांग अपने साथ आरुषि को भी ले गए.’

साथसाथ जिंदगी जीने के बाद इन दोनों ने अपनी मौत भी ऊपर वाले से एकसाथ ही मांग ली थी. जो लोग इन के घर छोड़ कर जाने से नाराज थे उन लोगों के लिए इन का प्रेम अब एक मिसाल बन चुका था, जो जिंदगी के साथ भी और जिंदगी के बाद भी एकदूसरे के ही बन कर रहेंगे. यह प्रेम लोगों के लिए एक शाब्दिक मिसाल बन चुका था, जो कुछ समय बाद उन की सोच में सामान्य हो जाएगा. लेकिन इन के अपने बच्चों और सुरुचि के परिवार पर इन के जाने का सचमुच फर्क पड़ा था और बहुत फर्क पड़ा था, जिस से उबरने में उन्हें काफी समय लगेगा. समानांतर चलती दोनों कहानियां अपनाअपना समय ले कर आई थीं. Story In Hindi

Love Story In Hindi : तुम सही थी निशा – क्यों वैभव इतना निशा के प्रति आकर्षित था

Love Story In Hindi : ‘अभी तुम 10-15 मिनट हो न यहां?’’ वैभव ने गार्डन में निशा के करीब जा कर पूछा.

‘‘कुछ काम है?’’ निशा ने पलट कर सवाल किया.

निशा का यह औपचारिक व्यवहार वैभव को अजीब लगा. वह झेंपता हुआ बोला, ‘‘कोई काम नहीं है. बस, तुम्हें न्यू ईयर का गिफ्ट देना है. तुम्हारे लिए एक डायरी खरीद कर रखी है. तुम पहली जनवरी को तो आई नहीं, 10 को आई हो. मैं कई दिन डायरी ले कर गार्डन आया, लेकिन आज नहीं ले कर आया. रुकना, मैं डायरी ले कर आ रहा हूं.’’

‘‘तुम डायरी लेने घर जाओगे? रहने दो, मुझे नहीं चाहिए. कई डायरियां हैं घर में,’’ निशा बोली.

‘‘यह मैं ने कब कहा कि तुम्हारे पास डायरी नहीं है. तुम्हारे पास सबकुछ है. बस, मेरी खुशी के लिए ले लो. मैं ने बड़े प्रेम से उसे तुम्हारे लिए रखा है. मैं लेने जा रहा हूं,’’ निशा के जवाब को सुने बिना वैभव वहां से चला गया.

कुछ देर बाद वह बतौर गिफ्ट डायरी ले कर गार्डन में वापस आया. तब तक निशा के आसपास काफी लोग आ गए थे. वहां उस ने गिफ्ट देना उचित नहीं समझा, लेकिन जब निशा गार्डन से जाने लगी तो वैभव रास्ते में उस से मिला.

‘‘लो,’’ वैभव ने डायरी आगे बढ़ाते हुए बड़े प्रेम से कहा.

लेकिन निशा ने डायरी लेने के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ाया. वह चुपचाप खड़ी रही.

‘‘लो,’’ वैभव ने दोबारा कहा.

‘‘नहीं, मैं इसे नहीं ले सकती,’’ निशा ने सीधे शब्दों में इनकार कर दिया.

‘‘आखिर क्यों?’’ वैभव ने खुद को अपमानित महसूस करते हुए जानना चाहा.

‘‘मैं घरपरिवार वाली हूं, मैं इसे किसी भी हालत में नहीं ले सकती,’’ निशा यह कह कर आगे बढ़ गई.

इस बार वैभव ने भी कुछ नहीं कहा. उस के दिल को जबरदस्त धक्का लगा. वह डायरी को अपनी कमीज के नीचे छिपाते हुए विपरीत दिशा की ओर चल पड़ा. उस की आंखों में आंसू उमड़ आए थे. कुछ दूर चलने के बाद वह एकांत में बैठ गया और सोचने लगा कि वह उस डायरी का क्या करे?

तभी उस के मन में आया कि डायरी को वह योग सिखाने वाले गुरुजी को दे देगा. तत्काल उस ने उस पृष्ठ को फाड़ा, जिस पर बड़े प्यार से निशा को संबोधित करते हुए नववर्ष की शुभकामना लिखी थी. उस ने जा कर गुरुजी को डायरी दे दी. गुरुजी ने गिफ्ट सहर्ष स्वीकार कर लिया और उसे आशीर्वाद दिया, लेकिन उसे वह खुशी नहीं मिली, जो निशा से मिलती. अभी भी उस का मन अशांत था और वह यकीन ही नहीं कर पा रहा था कि एक छोटी सी डायरी स्वीकार करने में निशा ने इतनी हठ क्यों दिखाई.

वह तरहतरह की बातें सोच रहा था, ‘चलो, इस गिफ्ट के बहाने हकीकत पता लग गई. जिस निशा को मैं जीजान से चाहता हूं, उस के मन में मेरे प्रति इतनी भी भावना नहीं है कि वह मेरा गिफ्ट तक ले सके. मैं भ्रम में जी रहा था.

‘अब उस से कोई संबंध नहीं रखूंगा. आज से सारा रिश्ता खत्म…नहीं…नहीं, लेकिन क्या मैं ऐसा कर पाऊंगा? क्या मैं उस से दूर रह कर जी पाऊंगा…शायद नहीं…क्यों नहीं जी पाऊंगा? उस से दूरी तो बना ही सकता हूं. दूर से देख लिया करूंगा, लेकिन मिलूंगा नहीं और न ही बात करूंगा. वह यही तो चाहती है. कब उस ने मुझ से मन से बात की? मैं ही तो उस से बात करता था. 10 शब्द बोलता था तो ‘हांहूं’ वह भी कर देती थी. कोई लगाव थोड़े ही था. लगाव तो मेरा था कि उस के बिना रातदिन बेचैन रहा करता था. उस के लिए तड़पता रहा, जिस ने आज मेरा इतना बड़ा अपमान कर दिया.

‘अगर ऐसा मालूम होता तो मैं उसे गिफ्ट देने का विचार ही मन में न लाता. ऐसी बेइज्जती मेरी इस से पहले कभी नहीं हुई. अब मैं उस से नजरें मिलाने लायक भी नहीं रहा. क्या मुंह ले कर उस के सामने जाऊंगा? अब तो दूरी ही ठीक है.’

लेकिन क्या ऐसा सोचने से मन बदल सकता था वैभव का? उस का प्यार बारबार उस पर हावी हो जाता और वह निशा से दूर रहने का निर्णय ले पाने में असफल हो जाता.

दिनभर उस का मन किसी काम में नहीं लगा. वह बेचैन रहा. उसे रात को ठीक से नींद भी नहीं आई. तरहतरह के विचार उस के मन में आते रहे.

वह उस बात को अपनी पत्नी सरिता से भी शेयर नहीं कर सकता था. हालांकि निशा के बारे में वह सरिता को बताया करता था, लेकिन यह बताने की उस की हिम्मत न थी. उसे डर था कि सरिता उस का मजाक उड़ाएगी. अंदर ही अंदर वह घुट रहा था.

अगले दिन सुबह 5 बजे वह जागा. रात को उस ने निश्चय किया था कि कुछ दिन तक वह गार्डन नहीं जाएगा, लेकिन सुबह खुद को रोक नहीं सका. निशा की एक झलक पाने के लिए वह बेचैन हो उठा और घर से चल पड़ा.

रास्ते में तरहतरह के विचार उस के मन में आते रहे, ‘आज निशा मिलेगी तो उस से बात नहीं करूंगा. अभिवादन भी नहीं. वह अपनेआप को समझती क्या है? उसे खुद पर घमंड है, तो मैं भी किसी मामले में उस से कम नहीं हूं. उस से मेरा कोई स्वार्थ नहीं है. बस, एक लगाव है, अपनापन है, जिसे वह गलत समझती है.’

लेकिन जब गार्डन आती हुई निशा अचानक दिखी, तो वैभव खुद को रोक नहीं पाया. वह उसे देखने लगा. निशा भी उसी की ओर देख रही थी. वैभव के मन में आया कि वह रास्ता बदल ले, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सका.

निशा वैभव के करीब आ गई, लेकिन वह उस की ओर न देख कर सामने देख रही थी. वैभव की निगाहें उसी पर थीं. वह सोच रहा था, ‘देखो न, आज इस ने एक बार भी पलट कर नहीं देखा. जाओजाओ, मैं ही कौन सा मरा जा रहा हूं, तुम से बात करने के लिए. मैं आज निशा की तरफ बिलकुल नहीं देखूंगा आखिर वह अपनेआप को समझती क्या है और ऐसे ही कब तक अपनी मनमरजी चलाती है.‘

तभी निशा उस की ओर पलटी. वैभव के हाथ तत्काल अभिवादन की मुद्रा में जुड़ गए. निशा ने भी अभिवादन का जवाब दिया, लेकिन आगे उन दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं हुई.

इस के बाद गार्डन में दोनों अपनेअपने क्रियाकलाप में लग गए, लेकिन वैभव का मन बारबार निशा की ओर भाग रहा था.

ऐसे ही कई दिन गुजर गए. वैभव को निशा के बिना चैन नहीं था, लेकिन वह ऊपर से खुद को ऐसा दिखाने की कोशिश करता कि जैसे उस का निशा से कोई सरोकार ही नहीं है.

निशा सबकुछ समझ रही थी. एक दिन उस ने वैभव को रोका और मुसकराते हुए पूछा, ‘‘नाराज हो क्या?’’

‘‘नहीं. नाराज उन से हुआ जाता है, जो अपने हों. आप से मैं क्यों नाराज होने लगा?’’

निशा मुसकराते हुए बोली, ‘‘कुछ भी कहो, लेकिन नाराज तो हो. तुम्हारा चेहरा, दिल का हाल बयान कर रहा है, लेकिन तुम ने मेरी मजबूरी नहीं समझी.’’

‘‘एक छोटा सा गिफ्ट लेने में क्या मजबूरी थी?’’ वैभव ने तल्खी के साथ पूछा.

‘‘मजबूरी थी, वैभव. तुम ने समझने की कोशिश नहीं की,’’ निशा ने कहा.

‘‘मैं भी जानूं कि क्या मजबूरी थी?’’ वैभव ने जानना चाहा.

‘‘वैभव, सिर्फ भावनाओं से ही काम नहीं चलता. आगेपीछे भी सोचना पड़ता है. मैं ने कहा था न कि मैं घरपरिवार वाली हूं. तुम ने इस पर तो विचार नहीं किया और नाराज हो कर बैठ गए,’’ निशा ने कहा, ‘‘मैं अगर तुम्हारा गिफ्ट ले कर घर जाती तो घर के लोगपूछते कि किस ने दिया? सोचो, मैं क्या जवाब देती?

‘‘डायरी में तुम ने अपना नाम तो जरूर लिखा होगा. तुम्हारा नाम देख कर घर वाले क्या सोचते? इस बारे में तो तुम ने कुछ सोचा नहीं. बस, मुंह फुला लिया. बेवजह शक पैदा होता और मेरे लिए परेशानी खड़ी हो जाती. ऐसा भी हो सकता था कि मेरा गार्डन में आना हमेशा के लिए बंद हो जाता. तब हम दोनों मिल भी न पाते.’’

यह सुन कर वैभव को अपनी गलती का एहसास हुआ. उस के सारे गिलेशिकवे दूर हो गए और वह बोला, ‘‘तुम अपनी जगह सही थी, निशा.

‘‘तुम ने तो बड़ी समझदारी का काम किया. मुझे माफ कर दो. तुम्हारा फैसला ठीक था.

‘‘अब मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है. एक छोटा सा गिफ्ट तुम्हें वाकई परेशानी में डाल सकता था.’’ Love Story In Hindi 

Family Story Hindi : मेरे हिस्से की कोशिश – क्या हुआ अनुज के साथ ?

Family Story Hindi : ट्रेन अभी लुधियाना पहुंची नहीं थी और मेरा मन पहले ही घबराने लगा था. वहां मेरा घर है, वही घर जहां जाने को मेरा मन सदा मचलता रहता था. मेरा वह घर जहां मेरा अधिकार आज भी सुरक्षित है, किसी ने मेरा बुरा नहीं किया. जो भी हुआ है मेरी ही इच्छा से हुआ है. जहां सब मुझे बांहें पसारे प्यार से स्वीकार करना चाहते हैं और अब उसी घर में मैं जाने से घबराता हूं. ऐसा लगता है हर तरफ से हंसी की आवाज आती है. शर्म आने लगती है मुझे. ऐसा लगता है मां की नजरें हर तरफ से मुझे घूर रही हैं. मन में उमड़घुमड़ रहे झंझावातों में उलझा मैं अतीत में विचरण करने लगता हूं.

‘वाह बेटा, वाह, तेरे पापा को तो नई पत्नी मिल ही गई, वे मुझे भूल गए, पर क्या तुझे भी मां याद नहीं रही. कितनी आसानी से किसी अजनबी को मां कहने लगा है तू.’

‘ऐसा नहीं है मुन्ना कि तू मेरे पास आता है तो मुझे किसी तरह की तकलीफ होती है. बच्चे, मैं तेरी बूआ हूं. मेरा खून है तू. मेरे भैयाभाभी की निशानी है तू. तू घर नहीं जाएगा तो अपने पिता से और दूर हो जाएगा. बेटा, अपने पापा के बारे में तो सोच. उन के दिल पर क्या बीतती होगी जब तू लुधियाना आ कर भी अपने घर नहीं जाता. दादी की सोच, जो हर पल द्वार ही निहारती रहती हैं कि कब उन का पोता आएगा और…’

‘ये दादी न होतीं तो कितना अच्छा होता न… इतनी लंबी उम्र भी किस काम की. न इंसान मर सकता है और न ही पूरी तरह जी पाता है… हमारे ही साथ ऐसा क्यों हो गया बूआ?’

बूआ की गोद में छिप कर मैं जारजार रो पड़ा था. बुरा लगा होगा न बूआ को, उन की मां को कोस रहा था मैं. पिछले 10 साल से दादी अधरंग से ग्रस्त बिस्तर पर पड़ी हैं और मेरी मां चलतीफिरती, हंसतीखेलती दादी की दिनरात सेवा करतीं. एक दिन सोईं तो फिर उठी ही नहीं. हैरान रह गए थे हम सब. ऐसा कैसे हो सकता है, अभी तो सोई थीं और अभी…

‘अरे, यमराज रास्ता भूल गया. मुझे ले जाना था इसे क्यों ले गया… मेरा कफन चुरा लिया तू ने बेटी. बड़ी ईमानदार थी, फिर मेरे ही साथ बेईमानी कर दी.’

विलाप करकर के दादी थक गई थीं. मांगने से मौत मिल जाती तो दादी कब की इस संसार से जा चुकी होतीं. बस, यही तो नहीं होता न. अपने चाहे से मरा नहीं न जाता. मरने वाला छूट जाता है और जो पीछे रह जाते हैं वे तिलतिल कर मरते हैं क्योंकि अपनी इच्छा से मर तो पाते नहीं और मरने वाले के बिना जीना उन्हें आता ही नहीं.

‘इस होली पर जब आओ तो अपने ही घर जाना अनुज. भैया, मुझ से नाराज हो रहे थे कि मैं ही तुम्हें समझाती नहीं हूं. बेटे, अपने पापा का तो सोच. भाभी गईं, अब तू भी घर न जाएगा तो उन का क्या होगा?’

‘पिताजी का क्या? नई पत्नी और एक पलीपलाई बेटी मिल गई है न उन्हें.’

‘चुप रह, अनुज,’ बूआ बोलीं, ‘ज्यादा बकबक की तो एक दूंगी तेरे मुंह पर. क्या तू ने भैया को इस शादी के लिए नहीं मनाया था? हम सब तो तेरी शादी कर के बहू लाने की सोच रहे थे. तब तू ने ही समझाया था न कि मेरी शादी कर के समस्या हल नहीं होगी. कम उम्र की लड़की कैसे इतनी समस्याओं से जूझ पाएगी, हर पल की मरीज दादी का खानापीना और…’

‘हां, मुझे याद है बूआ, मैं नहीं कहता कि जो हुआ मेरी मरजी से नहीं हुआ. मैं ने ही पापा को मनाया था कि वे मेरी जगह अपनी शादी कर लें. विभा आंटी से भी मैं ने ही बात की थी. लेकिन अब बदले हालात में मैं यह सब सहन नहीं कर पा रहा हूं. घर जाता हूं तो हर कोने में मां की मौजूदगी का एहसास होने से बहुत तकलीफ होती है. जिस घर में मैं इकलौती संतान था अब एक 18-20 साल की लड़की जो मेरी कानूनी बहन है, वही अधिकारसंपन्न दिखाई देती है. दादी को नई बहू मिल गई, पापा को नई पत्नी और उस लड़की को पिता.’

‘यह तो सोचने की बात है न मुन्ना. तुझे भी तो एक बहन मिली है न. विभा को तू मां न कह लेकिन कोई रिश्ता तो उस से बांध ले. जितनी मुश्किल तेरे लिए है इस रिश्ते को स्वीकारने की उतनी ही मुश्किल उन के लिए भी है. वे भी कोशिश कर रहे हैं, तू भी तो कर. उस बच्ची के सिर पर हाथ रखेगा तभी तुझे  बड़प्पन का एहसास होगा. तू क्या समझता है उन दोनों के लिए आसान है एक टूटे घर में आ कर उस की किरचें समेटना, जहां कणकण में सिर्फ तेरी मां बसी हैं. तेरा घर तो वहीं है. उन मांबेटी के बारे में जरा सोच.

‘तुम चैन से दिल्ली में रह कर अगर अपनी नौकरी कर रहे हो तो इसीलिए कि विभा घर संभाल रही है. तुम्हारे पिता का खानापीना देखती है, दादी को संभालती है. क्या वह तुम्हारे घर की नौकरानी है, जिस का मानसम्मान करना तुम्हें भारी लग रहा है.

‘6 महीने हो गए हैं भाभी को मरे और इन 6 महीनों में क्या विभा ने कोई प्रयास नहीं किया तुम्हारे समीप आने का? वह फोन पर बात करना चाहती है तो तुम चुप रहते हो. घर आने को कहती है तो तुम घर नहीं जाते. अब क्या करे वह? उस का दोष क्या है. बोलो?’ बहुत नाराज थीं बूआ. किसी का भी कोई दोष नहीं है. मैं दोष किसे दूं. दोष तो समय का है, जिस ने मेरी मां को छीन लिया.

मैं निश्चिंत हूं कि मेरे पिता का घर उजड़ कर फिर बस गया है और उस के लिए समूल प्रयास भी मेरा ही था. सब व्यवस्थित हैं. मेरे दोस्त विनय की विधवा चाची हैं विभा आंटी. हम दोनों के ही प्रयास से यह संभव हो पाया है.

मां तो एक ही होती है न, उन्हें मैं मां नहीं मान पा रहा हूं. और वह लड़की अणिमा, जो कल तक मेरे मित्र की चचेरी बहन थी अब मेरी भी बहन है. उम्र भर बहन के लिए मां से झगड़ा करता रहा, बहन का जन्म मां की मौत के बाद होगा, कब सोचा था मैं ने.

लुधियाना आ गया. ऐसा लग रहा था मानो गाड़ी का समूल भार पटरी पर नहीं मेरे मन पर है. एक अपराधबोध का बोझ. क्या सचमुच मैं ने अपनी मां के साथ अन्याय किया है? घर आ गया मैं. कांपते हाथ से मैं ने दरवाजे की घंटी बजा दी. मां की जगह कोई और होगी, इसी भाव से समूल चेतना सुन्न होने लगी.

‘‘आ गया मुन्ना…बेटा, आ जा.’’

दादी का स्वर कानों में पड़ा. दरवाजा खुला था. पापा भी नहीं थे घर पर. दादी अकेली थीं. दादी ने पास बिठा कर प्यार किया और देर तक रोते रहे हम.

‘‘बड़ा निर्मोही है रे मुन्ना. घर की याद नहीं आती.’’

अब क्या उत्तर दूं मैं. चारों तरफ नजर घुमा कर देखा.

‘‘दादी, कहां गए हैं सब. पापा कहां हैं?’’

‘‘अणिमा कहीं चली गई है. विभा और तेरा बाप उसे ढूंढ़ने गए हैं.’’

‘‘कहीं चली गई. क्या मतलब?’’

‘‘इस घर में उस का मन नहीं लगता,’’ दादी बोलीं, ‘‘तू भी तो आता नहीं. यह घर उजड़ गया है मुन्ना. खुशी तो सारी की सारी तेरी मां अपने साथ ले गई. मुझे भी तो मौत नहीं न आती. सभी घुटेघुटे जी रहे हैं. कोई भी तो खुश नहीं है न. इस तरह नहीं जिया जाता मुन्ना.’’

चारों तरफ एक उदासी सी नजर आई मुझे. उठ कर सारा घर देख आया. मेरा कमरा वैसा का वैसा ही था जैसा पहले था. जाहिर था कि इस कमरे में कोई नहीं रहता. पापा को फोन किया.

‘‘पापा, कहां हैं आप? मैं घर आया और आप कहां चले गए?’’

‘‘अणिमा अपने घर चली आई है मुन्ना. वह वापस आना ही नहीं चाहती. विनय भी यहीं है.’’

‘‘पापा, आप घर आइए. मैं वहां पहुंचता हूं. मैं बात करता हूं उस से.’’

घटनाक्रम इतनी जल्दी बदल जाएगा किस ने सोचा था. मैं जो खुद अपने घर आना नहीं चाहता अब अपने से 8 साल छोटी लड़की से पूछने जा रहा हूं कि वह घर क्यों नहीं आती? कैसी विडंबना है न, जिस सवाल का जवाब मेरे पास नहीं है उसी सवाल का जवाब उस से पूछने जा रहा हूं.  जब मैं विनय और अणिमा के पास पहुंचा तब तक पापा घर के लिए निकल चुके थे. विभा आंटी भी पापा के साथ लौट चुकी थीं. अणिमा वहां विनय के साथ थी.

‘‘वह घर मेरा नहीं है विनय भैया. देखा न मेरी मां उस आदमी के साथ चली भी गईं. मेरी चिंता नहीं है उन्हें. अनुज की मां तो उसे मर कर छोड़ गईं, मेरी मां तो मुझे जिंदा ही छोड़ गईं. अब मां मुझे प्यार नहीं करतीं. अनुज घर नहीं आता तो क्या मेरा दोष है? उस के कमरे में मत जाओ, उस की चीजों को मत छेड़ो, मेरा घर कहां है, विनय भैया. घर तो मेरी मां को मिला है न, मुझे नहीं. मेरे अपने पिता का घर है न यह. मैं यहीं रहूंगी अपने घर में. नहीं जाऊंगी वहां.’’

दरवाजे की ओट में बस खड़ा का खड़ा रह गया मैं. इस की पीड़ा मेरी ही तो पीड़ा है न. काटो तो खून नहीं रहा मुझ में. किस शब्दकोष का सहारा ले कर इस लड़की को समझाऊं. गलत तो कहीं नहीं है न यह लड़की. सब को अपनी ही पीड़ा बड़ी लगती है. मैं सोच रहा था मेरा घर कहीं नहीं रहा और यह लड़की अणिमा भी तो सही कह रही है न.

‘‘आसान नहीं है पराए घर में जा कर रहना. वह उन का घर है, मेरा नहीं. मैं यहां रहूं तो अनुज के पापा को क्या समस्या है?’’

‘‘तुम अकेली कैसे रह सकती हो यहां?’’

‘‘क्यों नहीं रह सकती. यह मेरा कमरा है. यह मेरा सामान है.’’

‘‘वह घर भी तुम्हारा ही है, अणिमा.’’

विनय अपनी चचेरी बहन अणिमा को समझा रहा था और वह समझना नहीं चाह रही थी. जैसे किसी और में मां को देखना मेरे लिए मुश्किल है उसी तरह मेरे पिता को अपना पिता बना लेना इस के लिए भी आसान नहीं हो सकता. भारी कदमों से सामने चला आया मैं. कुछ कहतीकहती रुक गई अणिमा. कितनी बदलीबदली सी लग रही है वह. चेहरे की मासूमियत अब कहीं है ही नहीं. हालात इंसान को समय से पहले ही बड़ा बना देते हैं न. उस की सूजीसूजी आंखें बता रही हैं कि वह बहुत देर से रो रही है. मैं घर नहीं आता हूं तो क्या उस का गुस्सा पापा और दादी इस बच्ची पर उतारते हैं? ठीक ही तो किया इस ने जो घर ही छोड़ कर आ गई. इस की जगह मैं होता तो मैं भी यही करता. ‘‘ओह, आ गए तुम भी.’’

दांत पीस कर कहा अणिमा ने. मेरे लिए उस के मन में उमड़ताघुमड़ता जहर जबान पर न आ जाए तो क्या करे.

इस रिश्ते में तो कुछ भी सामान्य नहीं है. इस रिश्ते को बचाने के लिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी. अणिमा मेरी बहन नहीं थी लेकिन इसे अपनी बहन मानना पड़ेगा मुझे. स्नेह दे कर अपना बनाना होगा मुझे. यही मेरी न हो पाई तो विभा आंटी भी मेरी मां कभी नहीं बन सकेंगी. कब तक वे भी इस घर और उस घर में सेतु का काम कर पाएंगी. पास आ कर अणिमा के सिर पर हाथ रखा मैं ने. झरझर बह चली उस की आंखें जैसे पूछ रही हों मुझ से, ‘अब और क्या करूं मैं?’

‘‘मैं राखी पर नहीं आया, वह मेरी भूल थी. अब आया हूं तो क्या तुम यहां छिपी रहोगी. तिलक नहीं लगाओगी मुझे?’’

विनय भीगी आंखों से मुझे देख रहा था, मानो कह रहा हो जहां तक उसे करना था उस ने किया, इस से आगे तो जो करना है मुझे ही करना है.  अणिमा को अपनी छाती से लगा लिया तो नन्ही सी बालिका की तरह जारजार रो पड़ी वह. उस की भावभंगिमा समझ पा रहा था मैं. अपने हिस्से की कोशिश तो वह कर चुकी है. अब बाकी तो मेरे हिस्से की कोशिश है.

‘‘अपने घर चलो, अणिमा. यह घर भी तुम्हारा है, पगली. लेकिन उस घर में हमें तुम्हारी ज्यादा जरूरत है. मैं तुम सब से दूर रहा वह मेरी गलती थी. अब आया हूं तो तुम तो दूर मत रहो.  ‘‘मां से सदा बहन मांगा करता था. कुछ खो कर कुछ पाना ही शायद मेरे हिस्से में लिखा था इस तरह. तो इसी तरह ही सही, अणिमा के आंसू पोंछ मैं ने उस का मस्तक चूम लिया. जिस ममत्व से वह मेरे गले लगी थी उस से यह आभास पूर्ण रूप से हो रहा था मुझे कि देर हुई है तो मेरी ही तरफ से हुई है. अणिमा तो शायद पहले ही दिन से मुझे अपना मान चुकी थी.  Family Story Hindi

Hindi Stories Love : तुम देना साथ मेरा – अजय के साथ कौन-सा हादसा हुआ?

Hindi Stories Love : शादी, विदाई और उस की रस्मों में कैसे एक हफ्ता गुजर गया, पता ही न चला. मम्मीपापा का लगातार भागदौड़ कर सबकुछ करना, रिश्तेदारों का जमघट, सहेलियों की मीठी छेड़छाड़ और हर आनेजाने वाले की जबान पर बस, उस का ही नाम. भविष्य के स्वप्निल सपनों में खोई नेहा अजय के संग विदा हो कर अब अपने ससुराल पहुंच चुकी थी.

उसे यह सब किसी सपने सा प्रतीत हो रहा था. खयालों में खोया उस का मन कब अतीत की गलियों में विचरने लगा, उसे पता ही नहीं चला. तकरीबन 2 साल पहले औफिस में अजय से उस की मुलाकात हुई थी. उस की सादगी अजय को पहली ही नजर में भा गई थी. अजय ने मन ही मन उसे अपना हमसफर बनाने का निश्चय कर लिया था. एक दिन मौका देख कर उस ने अपने दिल की बात नेहा को बताई. नेहा भी अजय को बहुत पसंद करती थी. सो, उस ने सहर्ष स्वीकृति दे दी.

अजय की इंटर्नशिप कंप्लीट होने के बाद उस के घर में शादी की बात जोर पकड़ने लगी. शादी के लिए कई रिश्ते आए, पर अजय को तो सांवलीसलोनी सी नेहा पसंद थी.

मां ने नाक सिकोड़ते हुए कहा, ‘वे लोग हमारी हैसियत के बराबर नहीं हैं. तुझे पसंद भी आई तो इतने साधारण नाकनक्शे वाली लड़की.’

पर उस ने तो जैसे जिद पकड़ ली कि वह नेहा से ही शादी करेगा. घर का इकलौता वारिस होने की वजह से आखिरकार घर वालों को उस की जिद के आगे झाकना पड़ा. आननफानन ही एक महीने के अंदर शादी की तारीख पक्की हो गई और फिर नेहा दुलहन बन कर अजय के घर आ गई.

‘‘कहां खो गईं मैडम? पैकिंग भी करनी है. कल ही देहरादून के लिए हमारी फ्लाइट है. हनीमून पर साथ जाना है या खयालों में ही गुम रहना है,’’ अजय के झाझोकरने पर वह अतीत की यादों से बाहर आई.

दूसरे दिन दोनों हनीमून के लिए देहरादून निकल गए. पहले दिन तो दोनों देहरादून की वादियों में पैदल ही सैर करते निकले. कुदरत के समीप हो कर उन दोनों के बीच नजदीकियां भी बढ़ रही थीं. दोनों ने साथ में काफी अच्छा वक्त बिताया.

दूसरे दिन उन्होंने नैनीताल घूमने का प्लान बनाया. वे लोग कुछ ही दूर निकले थे कि अचानक गाड़ी में झटके लगने लगे. जब तक वे कुछ समझ पाते, गाड़ी पर से नियंत्रण छूट गया और लैंड स्लाइडिंग की वजह से गाड़ी गहरी खाई में जा गिरी. जब होश आया तो नेहा ने खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया. उस के हाथपैरों में पट्टियां बंधी थीं और सिर में भी काफी चोट आई थी. उस ने आसपास नजर दौड़ाई. अजय कहीं नजर नहीं आए. अनजाने भय की आशंका से उस का हृदय कांप उठा. वह लड़खड़ाते हुए बिस्तर से उतरी. कुछ ही कदम चल पाई थी कि असहनीय पीड़ा की वजह से वह जमीन पर जा गिरी. नर्स ने आ कर उसे संभाला.

‘‘मेरे पति भी मेरे साथ थे. वे कहां हैं अब?’’ नेहा ने सवाल किया.

‘‘वे अभी ओटी में हैं. जब तक डाक्टर बाहर नहीं आते, सही से कुछ बताना मुश्किल है,’’ नर्स ने उत्तर दिया.

पूरे 2 दिनों के बाद अजय को होश आया. जब उस ने उठने की कोशिश की तो उस के पैर काम नहीं कर रहे थे. इशारे से नेहा को अपने पास बुला कर पूछा तो वह रो पड़ी.

‘‘ऐक्सिडैंट की वजह से आप ने अपना पैर हमेशा के लिए गंवा दिया है,’’ सुन कर अजय स्तब्ध रह गया.

नियति पर हमारा वश कहां चलता है. अजय के पैर के साथसाथ उन दोनों की शादीशुदा जिंदगी पर भी जैसे ग्रहण लग गया था.

नेहा के मातापिता हालखबर लेने उस की ससुराल आए. काफी देर तक इधरउधर की बात करने के बाद उस की मां बहाने से उठ कर पूरे घर में नेहा को ढूंढ़ने लगी. नेहा को अकेला पा कर मां उसे खींचते हुए एक ओर ले गई. ‘‘जाने किस की नजर लग गई हमारी बच्ची को,’’ वह नेहा से लिपट कर रो पड़ी.

नेहा के तो जैसे आंसू ही सूख चुके थे. वह निर्विकार भाव से बोली, ‘‘नियति के आगे किस का जोर चलता है मां. शायद मेरे नसीब में यही सब होना लिखा था. तुम अपनेआप को संभालो.’’

मां ने अपने आंसू पोंछ डाले और उसे समझने के अंदाज में बोली, ‘‘देख बिट्टो, अभी तो तेरी जिंदगी सही से शुरू भी नहीं हुई और इतना बड़ा हादसा हो गया. तेरे सामने पहाड़ सी जिंदगी पड़ी है. तू एक अपाहिज के साथ इतना लंबा सफर कैसे तय कर पाएगी?

‘‘देख, तू एक बार अच्छे से सोचसमझ ले. अभी तो सबकुछ ठीक लग रहा है, पर एक वक्त के बाद वह तुझे बोझ सा लगने लगेगा. तू उस के साथ ताउम्र खुश नहीं रह पाएगी.’’

जब बहुत देर तक नेहा कमरे में नहीं आई तो अपनी व्हीलचेयर चलाते हुए अजय उसे घर में चारों ओर ढूंढ़ने लगा.

जैसे ही वह बालकनी के पास पहुंचा, कानों में नेहा की बात पड़ी, ‘‘यह कैसी बात कर रही हो, मां? एक बात बताओ, क्या अजय की जगह यह हादसा मेरे साथ हुआ होता तब भी क्या आप यह सलाह दे पातीं? मैं अजय से बहुत प्यार करती हूं मां. बस, कहने भर को मैं ने सात जन्म साथ निभाने की कसमें नहीं खाई थीं. मैं ने सच्चे दिल से उन्हें अपना हमसफर माना था. चाहे कुछ भी हो जाए, मैं उन का साथ कभी नहीं छोड़ूंगी. मैं आप के हाथ जोड़ती हूं.

‘‘आप ने यह बात आज तो कह दी, पर भविष्य में गलती से भी यह बात अपनी जबान पर मत लाइएगा. बहुत मुश्किल से अजय उस हादसे से उबरने की कोशिश कर रहे हैं. वे सुनेंगे यह सब तो पूरी तरह टूट जाएंगे मां.’’

वैसे तो अजय नेहा से बेइंतहा मोहब्बत करता था, पर आज उस की बातें सुन नेहा के लिए उस के दिल में प्यार और इज्जत और भी ज्यादा बढ़ गई. लेकिन साथ ही उस की झुठी मुसकान के पीछे का दर्द महसूस कर उस की आंखों में आंसुओं का सैलाब उमड़ आया. किसी तरह खुद को जब्त करते हुए उस ने नेहा को आवाज लगाई.

‘‘अरे आप…? आप को कुछ चाहिए था क्या? सौरी, मैं थोड़ा मां से बात करने लग गई थी,’’ उस ने पूछा.

‘‘नहीं, कुछ भी नहीं चाहिए था. बस, तुम बहुत देर से नहीं दिखीं तो ढूंढ़ते हुए इधर आ गया,’’ अजय ने उत्तर दिया.

धीरेधीरे दिन बीतने लगे. नेहा पूरी तत्परता से अपना फर्ज निभा रही थी. वह दिनरात चकरी की तरह घूमघूम कर सब का खयाल रखती, पर इस पर भी किसी को वह फूटी आंख नहीं सुहा रही थी. बातबात पर सास हमेशा उलाहने देती रहती, ‘‘इस के तो कदम ही बहुत अशुभ पड़े हमारे घर में. यहां आते ही हमारे बेटे की जिंदगी को नरक से भी बदतर बना दिया.’’

यह सब सुन कर तो उस का दिल छलनी हो जाता, पर जब वह अजय का बुझा चेहरा देखती तो खुद को समेट कर होंठों पर झुठी मुसकान सजाए वह उस में आत्मविश्वास भरने की कोशिश करती.

नेहा के अनवरत कोशिश करते रहने से अजय धीरेधीरे उस हादसे से बाहर आने लगा, पर उस की नौकरी छूट जाने से घर में थोड़ी आर्थिक तंगी होने लग गई थी.

इधर कुछ दिनों से अजय का दोस्त विनय सब की बहुत मदद कर रहा था. दिन में कम से कम दो बार फोन कर वह अजय की हालखबर लेता और जो भी जरूरत का सामान होता, उसे लाने में भी मदद करता. इस मुश्किल की घड़ी में उस का साथ खड़े होना नेहा को बहुत मजबूती दे रहा था. आने वाले खतरे से बेखबर वह विनय के प्रति कृतज्ञ हो रही थी.

एक दिन बातों ही बातों में उस ने आर्थिक तंगी के बारे में विनय को बताया और नौकरी करने की इच्छा जताई.

‘‘मेरे औफिस में स्टेनो का पद खाली है. मैं जानता हूं कि यह पद आप के लायक नहीं, पर फिलहाल अगर आप इस से काम चला सकें तो सही होगा. मैं बहुत जल्द आप के लिए कोई अच्छी जगह काम देख दूंगा,’’ विनय ने हिचकते हुए कहा.

विनय का एहसान मानते हुए नेहा काम पर जाने लगी. इस से पूरी तरह न सही, पर एक हद तक परिवार की गाड़ी पटरी पर आने लगी थी.

एक दिन काम ज्यादा रहने से उसे थोड़ा ज्यादा देर तक औफिस में रुकना पड़ा. बाकी का स्टाफ जा चुका था. वह जल्दीजल्दी अपना काम निबटा रही थी, तभी बाहर तेज बारिश होने लगी. बरसात की वजह से बिजली चली गई तो वह काम बंद कर बारिश थमने का इंतजार करने लगी.

‘‘आज तो घर जाने में बहुत देर हो जाएगी. जाने अजय ने कुछ खाया होगा भी या नहीं,’’ वह बारबार बेचैनी से घड़ी देखती हुई चहलकदमी कर रही थी.

जब बहुत देर तक बारिश नहीं रुकी तो वह वापस कुरसी पर आ कर बैठ गई. तभी पीछे से आ कर विनय ने नेहा के कंधे को छुआ, ‘‘आप कितनी सुंदर हैं भाभी. इस गुलाबी साड़ी में तो आप और भी गजब ढा रही हैं. आप इतनी खूबसूरत हैं. इस का सही इस्तेमाल कीजिए और जिंदगी का मजा लीजिए,’’ उस ने कुटिल मुसकान बिखेरते हुए कहा.

‘‘कहना क्या चाहते हो तुम? होश में तो हो? अगर अजय को मैं ने तुम्हारी यह करतूत बताई तो वे तुम्हारा क्या हश्र करेंगे, इस का अंदाजा भी है तुम्हें,’’ क्रोध से कांपते हुए उस ने कहा.

‘‘वह अपाहिज मेरा क्या बिगाड़ लेगा. सही से खड़ा तक नहीं हो पाता वह. तुम क्यों अपनी जवानी उस के पीछे बरबाद कर रही हो. मेरा साथ दो. किसी को इस बात की कानोंकान खबर नहीं लगने दूंगा,’’ विनय ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा.

वह नेहा के साथ जोरजबरदस्ती पर उतर आया, तभी औफिस का मेन गेट खुला और सफाई करने वाली बाई अंदर की तरफ आती दिखी. नेहा ने पूरा जोर लगा कर विनय को परे धकेला और लगभग दौड़ते हुए बाहर की ओर भागी. किसी तरह उस ने अपने कपड़ों को ठीक किया और औटो में बैठी. पूरे रास्ते उस की नजर के सामने विनय का वीभत्स रूप आ रहा था. उस के पूरे बदन में जैसे कंपकंपी दौड़ गई. किसी तरह खुद को संभालते हुए वह घर पहुंची.

घर का काम निबटा कर अजय को सुलाया और खुद भी बगल में लेट गई, पर आज नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. सारी रात उस ने आंखों ही आंखों में काट दी. सुबह अजय ने उस के औफिस न जाने का कारण पूछा. इस से पहले कि वह कुछ कहती, विनय उस की सास के साथ कमरे में दाखिल हुआ. सास ने जलती हुई आंखों से उसे घूरते हुए पूछा, ‘‘बताती क्यों नहीं कि औफिस क्यों नहीं जा रही?’’

नेहा के कोई उत्तर न देने पर उन्होंने खुद ही बोलना शुरू किया, ‘‘अरे, अपना न सही, पर कम से कम हमारे घर की इज्जत का ही खयाल किया होता. अगर कुकर्म ही करने थे तो यह सतीसावित्री होने का ढोंग क्यों?’’

नेहा बुत बन कर खुद पर लगाए चरित्रहीनता के इलजाम को चुपचाप सुनती रही. उस ने उम्मीदभरी आंखों से अजय की तरफ देखा, पर उस की आंखों में भी सवाल देख कर वह अंदर ही अंदर टूट गई.

‘‘आप दोनों बाहर जाइए, मुझे नेहा से अकेले में कुछ बात करनी है,’’ अजय ने कहा.

दोनों कमरे से बाहर चले गए. कमरे में बहुत देर तक सन्नाटा फैला रहा. आखिरकार खामोशी तोड़ते हुए अजय ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारे साथ इस रिश्ते में नहीं रह सकता. मुझे तलाक चाहिए.’’

पूरी दुनिया उस पर लांछन लगाए, नेहा को परवा नहीं थी, पर जिस से उस ने दिलोजान से प्यार किया, वही आज लोगों की बातों में आ कर उस के चरित्र पर उंगली उठा रहा है. यह देख नेहा सन्न रह गई.

सारी रात बिस्तर पर करवट बदलते नेहा सिसकती रही. अजय सब जानतेबूझते भी खामोश था. सुबह उठते ही नेहा ने अपने कपड़े सूटकेस में डाले और कमरे से निकलते वक्त अजय की तरफ उम्मीदभरी निगाहों से देखा, पर अजय किसी किताब में इस कदर रमा था कि उस ने नजरें उठा कर उस की ओर देखना भी उचित न समझ. बोझ दिल से नेहा घर से बाहर निकल गई.

आज घर में अजीब सा सन्नाटा छाया था. मांबाऊजी पार्क की तरफ गए थे. नेहा के चले जाने से पूरे घर में जैसे वीरानी छा गई थी. वह बारबार फोन हाथ में लेता और फिर उसे परे रख देता. जब बेचैनी बहुत ज्यादा बढ़ गई तो व्हीलचेयर खिसका कर वह मेज की तरफ बढ़ा और वहां रखे मोबाइल में एफएम औन किया. गीत बज रहा था, ‘हमें तुम से प्यार कितना यह हम नहीं जानते, मगर जी नहीं सकते तुम्हारे बिना…’

गीत सुन कर उसे नेहा की बहुत ज्यादा याद आने लगी. खुद को बहुत संयत किया, पर आज जैसे आंसू रुकना ही नहीं चाह रहे थे. वह अपनी शादी की तसवीर सीने से लगा कर फूटफूट कर रोने लगा, ‘हम ने साथ मिल कर कितने सपने देखे थे, पर क्षणभर में सारे सपने टूट गए. मैं तो तुम्हें खुशियां भी न दे पाया, उलटे तुम्हारी जिंदगी में एक बोझ की तरह बन कर रह गया. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकता, पर मेरा यह अंधकारमय साथ तुम्हारी जिंदगी में एक ग्रहण की तरह है. तुम्हारी बेहतरी मुझ से दूर होने में ही थी. मुझे मेरी कड़वी बातों के लिए माफ कर देना.

‘काश, तुम्हें यह बता पाता कि मैं तुम से कितना प्यार करता हूं. तुम बिन मैं कुछ भी नहीं हूं. मेरी जिंदगी में वापस आ जाओ. लौट आओ नेहा, प्लीज लौट आओ,’ वह अपना सिर घुटने में छिपाए जारबेजार रोए जा रहा था, तभी कंधे पर किसी का स्पर्श महसूस हुआ. तब वह खुद को संयमित करने की कोशिश करने लगा.

‘‘तो अब बता दो कि मुझ से कितना प्यार करते हो. मैं वापस आ गई हूं अजय और अब मैं तुम से दूर कभी नहीं जाऊंगी. सिर्फ तुम ही नहीं, मैं भी तुम्हारे बिना अधूरी हूं. आज के बाद मुझे खुद से दूर करने की कोशिश भी मत करना,’’ उस ने अजय की गोद में अपना सिर रखते हुए कहा.

अजय ने सहमति में सिर हिलाया और मजबूती से नेहा का हाथ थाम लिया. तभी एफएम में गाना बज उठा, ‘जब कोई बात बिगड़ जाए, जब कोई मुश्किल पड़ जाए, तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवाज…’  Hindi Stories Love

लेखिका : मोनिका राज

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