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Education : जो लिखेगा पढ़ेगा, वही आगे बढ़ेगा

Education : आज डिजिटल टैकनोलौजी भले ही चारों तरफ हावी हो गई हो पर जो किताबों या पत्रिकाओं से जुड़ा रहता है उस में एक स्पष्ट अंतर देखने को मिलता है. वह बाकियों से ज्यादा धैर्यवान और समझदार जान पड़ता है.

आज के दौर में पेरैंट्स को सब से बड़ी शिकायत यह होती है कि उन के बच्चे मोबाइल, लैपटौप या कंप्यूटर से बाहर निकल ही नहीं रहे हैं. उन का सारा समय इसी पर बीत रहा है. बच्चे किताबे पढ़ना ही नहीं चाहते हैं. इस से उन की सेहत खराब हो रही है. आंखों में दर्द रहता है. चश्मा जल्दी लग जा रहा है. हर उम्र के बच्चों से पेरैंट्स यह एक कौमन शिकायत होती है. कई पेरैंट्स इस के समाधान के लिए मनोविज्ञानियों के पास जाते हैं. कई पेरैंट्स जल्दी चले जाते हैं तो कई बच्चों से लड़ते झगड़ते गुस्सा करने के बाद तब जाते हैं जब बच्चे उन की बात सुनने से इंकार करने लगते हैं.

मनोविज्ञानी डाक्टर मधुबाला यादव बाल मनोविज्ञान में स्पैशलिस्ट है, उन का कहना है ‘पेरैंट्स टीनएज बच्चों को ले कर ज्यादा परेशान होते हैं. इस के पीछे की वजह यह है कि इंटरनेट पर वह बहुत कुछ उपलब्ध है जो बच्चों के मन पर बुरा असर डालता है. इस में हिंसा और सैक्स भी शामिल होता है. मोबाइल, लैपटौप या कंप्यूटर के जरीये बच्चे इंटरनेट द्वारा घर के अंदर एक कमरे में रहते हुए भी पूरी दुनिया से जुड जाते हैं. बाल मन बड़ा उत्सुक होता है सब कुछ जानने के लिए. पैरेंटस इस बात को ले कर परेशान होते हैं कि पता नहीं बंद कमरे में बच्चा क्या देख सीख रहा है.’

दूसरी तरफ बच्चे अपने बचाव में तर्क देते हैं कि उन की पढ़ाई के लिए इंटरनेट, मोबाइल, लैपटौप या कंप्यूटर समय की जरूरत हो गए हैं. यह बात आंशिक रूप से सत्य हो सकती है. इस के लिए सरकार भी दोषी है. कोविड के समय औनलाइन पढ़ाई के नाम पर जिस तरह का काम किया गया उस के परिणाम सामने आ रहे हैं. यह कमजोर वर्ग के साथ एक साजिश है. कमजोर वर्ग के बच्चे जब किताबें नहीं पढेंगे तो न उन को तर्क करना आएगा न ही वह लिखना सीख पाएंगे. जब पढ़नालिखना नहीं आएगा तो वह आगे भी नहीं बढ़ पाएंगे. अमीरों के बच्चे कोचिंग कर के पढ़नालिखना सीख भी लेते हैं जबकि गरीबों के बच्चे पिछड़ते जा रहे हैं.

अभी भी डाक्टर, इंजीनियर और वकील बनने वाले युवाओं को मोटीमोटी किताबें पढ़नी पढ़ती हैं. हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा में लिखना पड़ता है. नीट और जेईई जैसे कंपटीशन वाली परीक्षाओं में सवाल के जवाब चार में से सही पर केवल टिक लगाना पड़ता है. इस के बाद जब वह डाक्टर, इंजीनियर और वकील बनने की पढ़ाई करते हैं तो किताबें ही उन की साथी होती हैं. बात केवल यहीं तक सीमित नहीं है. युवा अगर राजनीति में भी जाना चाहते हैं या अपना बिजनेस करना चाहते हैं तो भी अपना काम संभालने के लिए पढ़नालिखना और समझना जरूरी होता है. इस के बिना दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है जो युवाओं को आगे बढ़ने से रोकता है.

बचपन से ही सिखाए लिखना पढ़ना

मनोविज्ञानी डाक्टर मधुबाला यादव कहती हैं ‘बचपन में सीखने की अदभुत ताकत होती है. इस समय जिस तरह की आदत पेरैंट्स अपने बच्चों की डालते हैं वही आगे चलती है. मोबाइल की आदत बच्चों में अपने मातापिता को देख कर ही पड़ती है. जब बच्चों के सामने पेरैंट्स लगातार मोबाइल चलाते रहते हैं तो बच्चे भी उस को लेना चाहते हैं. वह रोने लगते हैं तो 5-6 माह के बच्चों को मोबाइल पकड़ा दिया जाता है. जिस से बच्चा चुप हो जाता है. यही आदत लग जाती है. बच्चा मोबाइल ले कर अकेले रहना पंसद करने लगता है. यही आदत तब शिकायत में बदल जाती है जब बच्चा टीनएज का होता है. अगर पेरैंट्स बचपन से ही सावधान रहे तो परेशानी कम होगी.’

डाक्टर मधुबाला यादव ने इस के कुछ टिप्स दिए हैं- घर पर किताबों से कराए पढ़ाई

बचपन से ही बच्चे के साथ रोजाना किताबों से पढ़ने का लक्ष्य रखना चाहिए. सप्ताह में चार बार उन्हें पढ़ कर सुनाने की कोशिश करें. उन से भी पढ़ कर सुनाने को कहे. यह किताबें उन की स्कूल बुक्स न भी हो तो कोई दिक्कत नहीं है. आज के समय में उम्र के हिसाब की किताबें और पत्रिकाएं बाजार में मिल रही है. जैसे चंपक पत्रिका को कक्षा 3 से 8 तक के बच्चों के हिसाब से तैयार किया जाता है. अक्षर थोड़ा बड़े होते हैं. बौक्स सरल होते हैं जिन को पढ़ना आसान होता है. कहानियों के अलावा भी रोचक सामाग्री इस में होती है.

बच्चों को चुनने दें मनपंसद किताबें

कई बार देखा गया है कि पेरैंट्स अपनी पंसद की किताबें ले आते हैं. जो बच्चों को पसंद नहीं आती और वह नहीं पढ़ते हैं. पेरैंट्स जब भी किताबें खरीदने जाए बच्चों किताबें चुनने में शामिल करें. इस से उन्हें अपनी रुचि की किताबें चुनने का मौका मिलेगा और उन्हें पढ़ने के समय का बेसब्री से इंतजार रहेगा. उन की आदत किताबें पढ़ने की होने लगेगी.

बच्चों को सिखाएं नए शब्दों

पढ़ने के लिए नए नए शब्दों को जानना जरूरी होता है. विभिन्न प्रकार की किताबें पढ़ने या नियमित बातचीत में नए शब्दों को शामिल करने से आप के बच्चे की शब्दावली विकसित करने में मदद मिलेगी. स्कूल शुरू होने से पहले वे जितने ज्यादा शब्द जानेंगे, उतनी ही आसानी से वे स्कूल स्तर की किताबें पढ़ पाएंगे. इस को सिखाने का आधार रोचक होना चाहिए जिस से बच्चों का मन लग सके.

लिखने की आदत डालें

पढ़ना तब तक अधूरा है जब तक कि लिखना न सीख लें. बच्चे को लिखना सिखाने के लिए एक बेहतरीन गतिविधि है बिंदीदार रेखाओं पर अक्षरों का आकार बनाना. इस से उन्हें अक्षर बनाना सीखने में मदद मिलती है. लिखने के लिए जरूरी है कि पेंसिल पकड़ने का सही तरीका उन को सिखाएं. इस का सही तरीका अंगूठे, तर्जनी और मध्यमा उंगलियों से पेंसिल पकड़ना है, जिसे ‘ट्राइपोड ग्रैस्प’ कहते हैं. इस तरह पेंसिल पकड़ने से पेंसिल की गति बेहतर होती है और हाथ स्थिर रहता है.

शब्दों और वाक्यों को लिखना शुरू करते समय, छोटे बच्चों के लिए शब्दों की वर्तनी का अंदाजा लगाना कोई असामान्य बात नहीं है. अकसर बच्चे शब्दों की वर्तनी उन के उच्चारण के अनुसार ही लिखते हैं. यह प्रयोग पूरी तरह से सामान्य है और लिखना सीखने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. कई बच्चों को लिखने में दिक्कत होती है क्योंकि वे बहुत जल्दीजल्दी लिखने की कोशिश करते हैं. बच्चे को अक्षर लिखने में समय लेने के लिए प्रोत्साहित करें और उन्हें समझाए कि गलतियां करना ठीक है. यानी उन्हें रबड़ का इस्तेमाल करना भी सिखाएं. वह शब्द को पूरा पूरा लिखें. बीच में अधूरा छोड़ने की आदत राइटिंग को बिगाड़ने का काम करती है.

घर में पुस्तकालय

जिन बच्चों में बचपन से ही पढ़नेलिखने की आदत पड़ जाती है वह युवा होने पर भी किताबें पढ़ने में रूचि रखते हैं. ऐसे में जरूरी है कि घर में मंदिर की जगह पुस्तकालय बनाएं. उन में अच्छीअच्छी खूबसूरत किताबें रखें. उन का सही रखरखाव करें. इस से देखने वाले पर प्रभाव तो पड़ता ही है न चाहते हुए भी किताबें पढ़ने का मन होने लगता है. पहले घर में किताबें रखने के लिए केवल लोहे या लकड़ी की अलमारी ही होती थी. बदलते दौर में इंटीरियर ने किताबों को रखने के लिए खूबसूरत प्रयोग करने शुरू कर दिए हैं. यह हल्के, टिकाऊ और देखने में सुदंर होते हैं. देखने वाले पर प्रभाव डालते हैं. सही लाइट और चेयर का प्रयोग इस अंदाज को और बेहतरीन बनाता है. एक छोटा घर किताबों के बिना घर जैसा नहीं लगता है. घर में किताबें रखने की जगह बनाए. इंटीरियर डिजाइनर रश्मि गुप्ता ने इस के लिए कुछ टिप्स दिए हैं.

• हर घर गलियारे आमतौर पर बनाये ही जाते हैं. इन का प्रयोग एक जगह से दूसरी जगह जाने में ही होता है. इस गलियारे की दीवारों पर अलमारियां लगा कर इस को पुस्तकालयों में बदला जा सकता है. जिस से जगह का अधिकतम उपयोग होगा पुस्तकालय भी बन जाएगा. किताबों की अलमारियों का दीवार से दीवार, फर्श से छत तक होना जरूरी नहीं है. इन को बीच में भी बनाया जा सकता है. जिस से उपर नीचे की खाली जगह को खाली रखा जा सकता है. नीचे गमलों में पौधे रखे जा सकते हैं. जो अलग लुक देंगे.

• किताबों को रखने के लिए कई तरह के बुककेस, हेडबोर्ड बाजार में उपलब्ध हैं. जिन का प्रयोग वहां पर कर सकते हैं जहां पर आप बैठ कर पढ़ना चाहते हैं. अपार्टमेंट में बालकनी का प्रयोग चाय पीने के लिए करते हैं वहीं बैठ कर किताबों का भी आनंद ले सकते हैं. इन को रखने के बने बनाए रैक जरूरत और जगह के अनुसार से खरीद सकते हैं. कुछ लोग अपने बिस्तर के नीचे किताबें रखना पंसद करते हैं. ऐसे में नया बिस्तर खरीदने की जरूरत नहीं है. कोई भी छोटी और चैड़ी बुकशेल्फ या बेंच इस काम को कर सकती है.

• आप किताबों को सीढ़ियों में रखें या फिर फ्रेम में बनी अलमारियों में, जगह बचाने वाले बिस्तर किताबों के भंडारण के लिए एक बेहतरीन समाधान हो सकते हैं. घर अपार्टमेंट में कुछ न कुछ बेकार जगह होती है. चाहे वह दीवार का कोई कोना हो जहां कुर्सी नहीं रखी जा सकती या कोई दूर-दराज का कोना, एक बुकशेल्फ उस जगह का अच्छा इस्तेमाल कर सकती है. पुस्तक अलमारियों की खूबसूरती यह है कि वे विभिन्न आकारों और आकारों में आती हैं.

किताबें घर के इंटीरियर का हिस्सा हो सकती हैं. अलमारी या बुकसेल्फ में करीने से लगी किताबें बेहद खूबसूरत दिखती हैं. यह देखने वाले पर प्रभाव डालती हैं. किताबों का देख कर वह आप के बारे में अपनी धारणा बदलने को मजबूर हो जाता है. बड़े नेता, वकील और डाक्टरों के घरों में किताबों से सजी जगह देखने को जरूर मिल जाती है. यह न केवल पढ़ने की आदत डालती है किताबों की महक माहौल को जीवंत बनाए रखने का काम करती है. सुकून के साथ किताबें पढ़ने से जानकारी ही नहीं मानसिक शांति भी मिलती है. ऐसे में अपने घर में किताबों की जगह बनाए और उन को रखिए. देखिए आप के और परिवार के जीवन में कैसा बदलाव आता है.

Religion : श्री बांके बिहारी मंदिर विवाद – खतरे की घंटी हैं ये कौरिडोर

Religion : अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पर टैरिफ का बोझ लाद रहा है और सरकार मंदिर के कौरिडोर बनाने में अपना कीमती समय बरबाद कर रही है. पर उत्तर प्रदेश के वृंदावन में बने श्री बांके बिहारी मंदिर पर अलग ही विवाद खड़ा हो गया है. विवाद यह है कि क्या श्री बांके बिहारी मंदिर एक निजी धार्मिक संस्था है और सरकार बिना अनुमति इस के प्रबंधन में दखल दे रही है?

इस सिलसिले में सुप्रीम कोर्ट ने श्री बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधन विवाद पर सुनवाई की. दरअसल, याचिकाकर्ता ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस नए कानून को चुनौती दी है, जो मंदिर का प्रबंधन एक ट्रस्ट को देने की बात करता है. वकील श्याम दीवान ने आरोप लगाया कि सरकार मंदिर की आय से जमीन खरीदने और निर्माण जैसे काम करना चाहती है, जो कि अनुचित है. यह हमारा निजी धन है, सरकार इसे जबरन ले रही है.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि कोई भी देवता पूरी तरह निजी नहीं हो सकते. जब लाखों लोग दर्शन करने आते हैं, तो मंदिर को केवल निजी संस्था कैसे कहा जा सकता है?

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मंदिर की कमाई सिर्फ प्रबंधन के लिए नहीं, बल्कि श्रद्धालुओं और मंदिर क्षेत्र के विकास के लिए भी होनी चाहिए. सरकार की ओर से वकील नवीन पाहवा ने बताया कि सरकार यमुना तट से मंदिर तक एक कौरिडोर बनाना चाहती है, ताकि दर्शन करने वालों को सुविधा मिले. उन्होंने यह भी कहा कि मंदिर का पैसा केवल मंदिर से जुड़ी गतिविधियों पर ही खर्च किया जाएगा.

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि मंदिर फंड के उपयोग की निगरानी के लिए हाईकोर्ट के किसी रिटायर्ड जज को नियुक्त किया जा सकता है, जो एक न्यूट्रल समिति के अध्यक्ष होंगे.

इस मामले में जो भी अंतिम निर्णय होगा, वह तो भविष्य में पता चलेगा, पर सरकार द्वारा धार्मिक स्थलों को लोगों की भलाई के नाम पर पिकनिक स्पौट बनाना किसी लिहाज से सही नहीं है. उत्तराखंड में हाल ही में जो कुदरती कहर हुआ है, वह धार्मिक स्थलों के कौरिडोर बनाने के नाम पर ही हुआ है. पहाड़ों पर 4 लेन के हाईवे बनाने का क्या तुक है? पहाड़ों पर धमाके कर के निर्माण करना कुदरत को चुनौती देने जैसा है, जिसे वह स्वीकार कर लेती है और उत्तरकाशी के धराली जैसे गांव को लील जाती है.

Kanwar Yatra : श्रद्धा, सियासत और समाज का द्वंद्व

Kanwar Yatra : भारत एक ऐसा देश है जहां अंधविश्वास, आस्था और संस्कृति सदियों से अपनी जड़े जमाई बैठी है. यह जड़ें इतनी गहरी हैं कि इसे जब छेड़ा गया तो लोगों के खून बहे हैं. पूरी दुनिया में केवल भारत ही एक ऐसा देश है जहां धर्म सिर्फ पूजापाठ तक ही सिमित नहीं है बल्कि राजनीतिक रणनीति, समाजिक व्यवस्था और जनमानस की चेतना का हिस्सा है. हिंदू धर्म की जीवंत अभिव्यक्तियों में से एक है कांवड़ यात्रा. श्रावण मास में हर साल लाखों श्रद्धालु सुल्तानगंज एवं अन्य नदियों से जल ले कर देवघर के बाबा बैद्यनाथ में जल अर्पण करते हैं. इस के साथ ही वे इस दौरान पैदल कांवड़ यात्रा पर रहते हैं.

कहां से शुरू होती है कांवड़ यात्रा ?

कांवड़ यात्रा की शुरुआत बिहार के सुल्तानगंज में, गंगा उत्तरवाहिनी से बड़ी भारी मात्रा में श्रद्धालु बाबा बैद्यनाथ धाम के लिए जल भरते हैं. इस के साथ ही पूरे देश भर से लाखों श्रद्धालु अपने अपने गांव और शहर से कांवड़ ले कर निकलते हैं. कुछ मोटर साइकल से, कुछ ट्रेक्टरों से और ज्यादातर लोग पैदल ही बोल बम के जयघोष के साथ देवघर के लिए प्रस्थान करते हैं.

नियम के मुताबिक जल गिराते समय सभी कांवड़िए नंगे पांव होते हैं, चप्पल नहीं पहनते हैं, व्रत रखते हैं. इस के साथ ही धार्मिक अनुशासन का पालन करते हैं. लेकिन क्या सचमुच यह धार्मिक यात्रा का उदहारण है?

हर साल कांवड़ यात्रा से पहले शासन प्रशासन पूरी व्यवस्था करता है. सड़कों की मरम्मत की जाती, बिजली की व्यवस्था, पानी, चिकित्सा, पुलिस के साथ साथ आज कल ड्रोन कैमरों को भी ड्यूटी पर लगाया जाता है. इस के साथ ही कांवड़ियों के लिए विशेष रूट की व्यवस्था और यातायात प्रबंधन एवं शिविर, शौचालय, भोजन, लाउड स्पीकर व सजावट भी की जाती है.

झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा में प्रशासन के साथसाथ हिंदू संगठनों की भी भागीदारी रहती है. यात्रा मार्ग पर वीआईपी ट्रीटमेंट भी मिलता है. इस साल भी कांवड़ यात्रा के मद्देनजर कई हाइवे को वन-वे किया गया. इस वजह से आम लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है और एम्बुलैंस घंटों जाम में फंसी रहती है.

आस्था या शक्ति प्रदर्शन

हजारों की संख्या में कांवड़ यात्रा पर निकले समूह के पास पैसा कहां से आता है इस का सीधा और साफ जवाब है ‘चंदा’. स्थानीय दुकानदार, व्यापारी समूह, तथाकथित समाजसेवी और धर्म आधारित संगठन और राजनीतिक दल से चंदा इकट्ठा किया जाता है. इस के साथ ही अन्य लोग अपने पैसों पर कांवड़ यात्रा पर जाते हैं.

बड़ी संख्या में धार्मिक ट्रस्ट, अखाड़े, स्वयंसेवी संगठन और स्थानीय राजनेता भी कावड़ यात्रा को फंडिंग करते हैं. इस की वजह साफ है, क्योंकि धार्मिक यात्रा में भीड़ जुटा कर शक्ति प्रदर्शन करना होता है. चंदा देने वाले भीड़ में अपनी दुकान का बैनर या पार्टी का झंडा लगवा लेते हैं ताकि प्रचार भी हो और प्रभाव भी.

कावड़ यात्रा के खर्च का अनुमान लगाया जाए तो मोटे तौर पर एक शिविर में 50,000 से 5 लख रुपए तक का खर्च बैठता है. बड़े शहरों में भाव पंडाल, डीजे, लाइटिंग जनरेटर, भोजन, चिकित्सा आदि का कुल खर्च करोड़ में चला जाता है.

उत्तर भारत में कावड़ यात्रा का बजट अब दुर्गा पूजा या गणेश उत्सव जैसा हो चला है हाल के वर्षों में कुछ कावड़ यात्रा समितियां ने 40 से 50 लख रुपए तक का बजट घोषित किया है. सवाल यह उठता है कि यह आस्था है या धार्मिक बाजारवाद?

धर्म किसी भी व्यक्ति की व्यक्तिगत श्रद्धा होती है, लेकिन जब यह सार्वजनिक शक्ति का प्रदर्शन बन जाए तो समस्याएं उत्पन्न होती है. कावड़ यात्रा के दौरान अब डीजे पर सिर्फ कांवरिया ही नहीं नाच रहे हैं बल्कि अब इस में अश्लील डांस भी पेश किया जा रहा है ताकि कांवड़ियों का मनोरंजन किया जा सके. 21 वीं सदी में लोग धर्म तो ठीक से मान नहीं पा रहे हैं लेकिन धार्मिक उन्माद उन के मस्तिस्क पर एक गहरा प्रभाव डाल चुकी है जिस वजह से आज धर्म कहीं का नहीं रह गया. धार्मिक उन्माद समाज में होना यह समाज के लिए सब से शर्मिंदगी की बात है. और इस से भी शर्मिंदगी की बात यह है कि लोग आजकल धार्मिक उन्माद का समर्थन भी कर रहे हैं. लेकिन लोगों को यह समझ नहीं आ रहा कि यही धार्मिक उन्माद उन की मौत की कारण बनती है, इस धार्मिक उन्माद में मौत की तस्वीर बनी महाकुंभ.

सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो आजकल वायरल है जिस में कावड़िया लाठी डंडे पुलिस की पिटाई कर देते हैं. वायरल वीडियो में यह साफ तौर पर देखा जा सकता है कि आस्था के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति को भी किस तरह नुकसान पहुंचाया जाता है.

क्या धर्म यही सिखाता है? क्या यही धर्म है? या फिर धार्मिक उन्माद की परिभाषा ही धर्म की परिभाषा है, एंबुलेंस रोकना, सड़क पर नाचना और लोगों को गालियां देना यह किस धर्म में जायज है.

धर्म क्या सिखाता है, लोग क्या करते हैं?

महादेव को भोला भंडारी कहते हैं. वे तपस्वी हैं और त्याग के प्रतीक हैं. उन की पूजा में संयम शांति, व्रत और साधना का स्थान है. लेकिन जब कावड़ यात्रा डीजे पर चल रहा है और ब्रांडेड कपड़े पहन कर सोशल मीडिया पर रील बनाए जा रहे हैं तब सवाल उठता है क्या यह भक्ति है या फैशन है?

धर्म आत्मचिंतन का रास्ता है, लेकिन सामूहिक जोश का जरिया बन गया है आजकल, कावड़ यात्रा मर्दानगी और धार्मिक वर्चस्व के साथसाथ मनोरंजन का भी प्रतीक बनती जा रही है. अगर लोग धर्म को मानना शुरू कर दें तो सही मायने में तो न जाति का झगड़ा रहेगा, न ऊंच नीच का झगड़ा रहेगा और न ही कालेगोरे का भेद रहेगा. धार्मिक किताबों में उन्माद का जिक्र कहीं भी नहीं है लेकिन फिर भी आजकल धार्मिक उन्माद को ही धर्म माना जा रहा है. मेनस्ट्रीम मीडिया ने भी धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

छतरपुर के एक बहुत बड़े पीठाधीश्वर पर्ची लिख कर सब का भूत, भविष्य, वर्तमान बता देते है और ऐसे टोनाटोटका बताते हैं कि जिस से सब का कल्याण हो जाता है. क्या धाम की पेशी लगाने से लोगों की परेशानियां खत्म हो जाएंगी? उन का कल्याण हो जाएगा और उन्हें मोक्ष प्राप्त हो जाएंगे? लोग इतने अंधविश्वासी कैसे हो सकते हैं? भगवान के नाम का इस्तेमाल कर आजकल बड़ा से बड़ा बिजनेस खड़ा किया जा रहा है. आज के बाबा कल के तथाकथित भगवान बनेंगे और उन के नाम पर यह धंधा जो आज करोड़ों में चल रहा है वह कल अरबों में चलेगा.

लोगों को कौन बरगला रहा है?

धार्मिक यात्रा अब केवल आस्था नहीं बल्कि राजनीतिक शक्ति के प्रदर्शन का माध्यम बन चुकी है. राजनीतिक दल में विशेष कर भाजपा, धर्म के नाम पर जन भावनाओं को भड़काती है. धार्मिक यात्रा में भाजपा शामिल होती है, नेताओं को मुख्य अतिथि बनती है और मीडिया के जगह इस महिमामंडित करती है. और इस का सीधा और स्पष्ट कारण यह है कि भाजपा को सत्ता में बने रहने के लिए यह करना ही पड़ेगा क्योंकि भाजपा विकास की राजनीति कर नहीं सकती क्योंकि विकास उन के आसपास भी नहीं भटकता है. भाजपा सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए काम करती है, जो उन की पार्टी को चंदा देते हैं अब इस में चाहे वह कंपनी बीफ एक्सपोर्ट करने का बिजनेस ही क्यों ना करती हो.

भाजपा की राजनीति विकास के नाम से कभी भी शुरू नहीं हुई थी उस का मुख्य एजेंडा धार्मिक उन्माद ही था. सरकार सड़कों अस्पतालों और स्कूलों के बजाय मंदिर, मूर्तियां, धार्मिक मार्ग और यात्राओं पर ज्यादा निवेश कर रही है. राम मंदिर, ब्रज यात्रा, कावड़ यात्रा और बुलडोजर, यह सभी एक ही दिशा में इशारा करते हैं कि धार्मिक यात्रा को मुख्य एजेंडा बना कर जनमानस को भावनात्मक रूप से नियंत्रित किया जाए.

धार्मिक यात्रा या न्याय यात्रा?

उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड व दिल्ली जैसे राज्यों में बेरोजगारी शिक्षा की गिरती स्थित महिला सुरक्षा महंगाई भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे प्रमुख हैं. लेकिन इन मुद्दों पर भाजपा कभी भी न्याय यात्रा नहीं निकलती. वह सिर्फ और सिर्फ धर्म की यात्रा पर जोर देती है.

आखिर कावड़ यात्रा को इतनी प्राथमिकता क्यों मिलती है किसी बेरोजगार के लिए कोई यात्रा क्यों नहीं निकलती? किसानों के अधिकारों के लिए कोई यात्रा क्यों नहीं निकलते बल्कि उन के लिए तो सड़के बंद कर दी जाती हैं. देश को न्याय की जरूरत है या धार्मिक यात्रा की जरूरत है यह अब देश के लोगों को तय करना होगा. धार्मिक यात्रा में पैसा फूंकना कितना सही है और विकास पर पैसा ना फूंकना कितना सही है. देश धार्मिक यात्राओं से आगे बढ़ेगा या इनोवेशन, स्टार्टअप, स्किल्स और शिक्षा से आगे बढ़ेगा? धरती खोदने से देश आगे बढ़ेगा या देश अपने लोगों को जोड़ कर आगे बढ़ेगा?

देश के सामने इस वक्त सब से बड़ी चुनौती है बेरोजगारी. 12वीं, ग्रेजुएशन यहां तक की पोस्ट ग्रेजुएट युवाओं को नौकरी नहीं मिल पा रही है. शिक्षा की गुणवत्ता गिर रही है स्टार्टअप्स को पूंजी नहीं, विचार नहीं और मार्गदर्शन नहीं मिल रहा है. देश के प्रधानमंत्री ट्रंप के सामने कमजोर नजर आते हैं और विदेश नीति औंधेमुंह गिरी हुई है. डंका पीट कर और चिल्लाचिल्ला कर मेनस्ट्रीम मीडिया सिर्फ एक ही बात कह रहा है कि हम विश्व की चौथी अर्थव्यवस्था बन गए हैं. लेकिन क्या मेनस्ट्रीम मीडिया यह बताया कि हम प्रेस फ्रीडम आफ इंडेक्स में कितने नंबर पर हैं? हम हंगर इंडेक्स में कितने नंबर पर है? और प्रति व्यक्ति आय के रूप में हमारा नंबर कितना है?

कावड़ यात्रा इस देश की समस्याओं का समाधान नहीं है, धार्मिक उन्माद से किसी का पेट नहीं भरने वाला. देश को चाहिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, रोजगार नीति, डिजिटल नवाचार और वैज्ञानिक सोच. देश को आगे बढ़ाने के लिए सरकार को इनोवेशन और तकनीकी विकास पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है. सरकार को प्रोत्साहन अपने इंजीनियर, साइंटिस्ट और अपने युवाओं को देना चाहिए न कि धार्मिक यात्राओं को प्रोत्साहित करना चाहिए.

लोगों का साइंटिफिक टेम्परामेंट बढ़ाने की जरूरत है, उन्हें आर्थिक रूप से काबिल बनाया जाए. सरकार को धर्म का प्रचारप्रसार करने की अनुमति नहीं होनी चाहिए, यह लोगों की निजी आस्था का विषय होना चाहिए.

धार्मिक यात्रा के लिए सड़कें खाली, लेकिन स्कूल बंद ?

दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और झारखंड में देखा गया की कावड़ यात्रा के लिए ट्रैफिक को रोका गया. सड़कें खाली करवाई गईं. कई जगहों पर स्कूल में अवकाश घोषित किया गया ताकि सड़क पर कांवड़ियां ही निकल सके. सरकार जितना त्वरित विकास कावड़ यात्रियों के लिए कर रही है शायद उतना ही त्वरित विकास सरकारी स्कूलों, सरकारी अस्पतालों और सरकारी सड़कों के लिए किया जाता तो बेहतर होता.

देश में आज भी ऐसे नक्सल प्रभावित कई गांव हैं जहां बिजली नहीं है, पानी नहीं है और वहां के आदिवासी आज भी जंगल पर ही निर्भर हैं और उसी से अपना जीवन यापन करते हैं. देश में शिक्षकों की भारी कमी है जिसे नहीं भरा जा रहा है. कांवड़ यात्रा भारतीय जनता पार्टी के लिए इसलिए भी स्पैशल है क्योंकि अगर कावड़ यात्रा में कहीं भी ऊंचनीच हो गई तो बिहार की सत्ता हाथ से जा सकती है और इसे और बेहतर इसलिए किया जा रहा है ताकि बिहार की जनता को यह विश्वास दिलाया जाए कि भाजपा नई धर्म की परिभाषा है. भाजपा धर्म की रक्षक है और भाजपा ही सनातन धर्म और सनातन धर्म के लोगों की कर्ताधर्ता है.

धर्म या शिक्षा: कौन सा रास्ता सही

कई लोगों का यह मानना है कि धर्म आत्मिक शांति देती है जो कि खुद को तस्सली देने भर की बात है. दरअसल, शिक्षा जीवन के संघर्ष में टिकने की ताकत देती है. शिक्षा से रोजगार, अधिकार, संविधान की समझ और स्वतंत्रता मिलती है. समाज के विकास के लिए जरूरी है कि धर्म को निजी आस्था तक ही सीमित रखा जाए और शिक्षा, विज्ञान, चिकित्सा और नवाचार को प्राथमिकता दी जाए.

वो ठीक है कि कावड़ यात्रा आस्था का प्रतीक है मगर इस पर राजनीतिक लाभ उठाना और धार्मिक उन्माद फैलाना सरासर रोका जाना चाहिए. सरकार को धार्मिक यात्राओं से अधिक सामाजिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पर ध्यान देना चाहिए. देश को चाहिए न्याय यात्रा, विकास यात्रा न कि धार्मिक यात्रा.

Skincare Routine : मेरे चेहरे का रंग डार्क हो रहा है, मेरी उम्र 24 साल है

Skincare Routine : पहले मेरा रंग साफ था. मैं खानेपीने, नहाने का ध्यान भी रखता हूं. ऐसा क्यों हो रहा है?

जवाब : आप ध्यान रखें कि धूप में जा रहे हैं तो सनस्क्रीन जरूर लगाएं. ज्यादा देर धूप में रहने से त्वचा में मेलानिन तत्त्व बढ़ जाता है जिस से रंग गहरा होने लगता है. पानी खूब पिएं. आप के खाने में अगर विटामिन सी, आयरन या अन्य पोषक तत्त्वों की कमी है तो त्वचा मुरझाई और डार्क दिखने लगती है. हरी सब्जियां, फल, खासकर पपीता, संतरा, अनार और मेवे, विटामिन युक्त चीजें लें. जंक फूड, ज्यादा तेलमसाले और मीठा कम करें.

पूरी नींद न लेना या मानसिक तनाव भी चेहरे की रंगत को प्रभावित करता है. रोजाना 7-8 घंटे की नींद लें. आधा टमाटर काट कर सीधे चेहरे पर रगड़ें.

10 मिनट बाद धो लें. इस में लाइकोपीन होता है जो स्किन ब्राइट करता है. अगर आप कैमिकल वाली क्रीम्स, ब्लीच या सस्ते प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं तो उस से त्वचा को नुकसान हो सकता है. और्गेनिक या डाक्टर द्वारा सुझाए उत्पादों का उपयोग करें. एलोवेरा, नीम, हल्दी युक्त फेसवाश बेहतर होता है.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

Parenting Teenagers : मेरा बेटा स्वभाव से बहुत चिड़चिड़ा है, उम्र 16 साल है

Parenting Teenagers : उसे खुद पर किया हुआ मजाक जरा भी पसंद नहीं आता और वह नाराज हो जाता है. पति तो औफिशियल टूर पर ज्यादातर बाहर रहते हैं. बेटे के सारे नखरे मां के नाते मुझे ही उठाने पड़ते हैं. उस के चिड़चिड़ेपन से कई बार बहुत परेशान हो जाती हूं. क्या करूं?

जवाब : 16 साल की उम्र में बच्चे अकसर संवेदनशील हो जाते हैं. अपने बेटे से शांत माहौल में बात करें. हो सकता है कि उस के मन में कोई दबाव, चिंता या असुरक्षा हो, जिसे वह ठीक से व्यक्त नहीं कर पा रहा हो. फ्रैंडली हो कर उस से बात करें.

हालांकि आप के पति ज्यादातर बाहर रहते हैं, फिर भी उन्हें इस स्थिति से अवगत कराएं. अगर संभव हो तो वीडियो कौल के जरिए बेटे से नियमित रूप से बात करवाएं. उस से बेटे को एहसास होगा कि वे भी उस की परवा करते हैं. पिता की मौजूदगी उसे इमोशनली स्टेबल करने में मदद कर सकती है.

अगर उसे अपने ऊपर मजाक पसंद नहीं तो घर में यह नियम बना दें कि कोई भी किसी का अपमानजनक मजाक नहीं उड़ाएगा, खासकर उस के सामने. उसे सुरक्षित महसूस कराना जरूरी है.

उस की दिनचर्या तय करें. नियमित नींद, संतुलित भोजन, मोबाइल, वीडियो गेम की सीमित समयसीमा और थोड़ीबहुत शारीरिक गतिविधि जैसे मौर्निंग वाक या साइक्ंिलग से उस के मूड में सुधार हो सकता है.

आप हर समय उस के मूड को संभाल नहीं सकतीं. आप एक मां हैं लेकिन एक इंसान भी हैं. जब बहुत तनाव लगे तो थोड़ी देर खुद को समय दें. किताब पढ़ें, किसी दोस्त से बात करें, टहलने जाएं.

धीरेधीरे संवाद, प्यार और अनुशासन से आप अपने बेटे के साथ बेहतर रिश्ता बना सकती हैं.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

Family Problem : मुझे भाभी के साथ पति का हंसीमजाक करना पसंद नहीं

Family Problem : हमारी शादी हुए 3 साल हो चुके हैं. अभी तक संतान नहीं हुई. पति अकसर शाम को अपने बड़े भाई के घर खानेपीने चले जाते हैं. भाभी भी उन के साथ शराब पीती है, और वे लोग खुल कर हंसीमजाक, नौनवेज जौक्स सुनाते हैं. मैं पति को वहां आएदिन जाने के लिए मना करती हूं तो वे कहते हैं, तुम भी चलो. लेकिन मुझे शराब पीना बिलकुल पसंद नहीं, न ही मुझे उस घर का माहौल अच्छा लगता है. भाभी का मेरे पति के साथ खुला व्यवहार मुझे खलता है, कभीकभी दोनों पर शक भी होता है. मैं क्या करूं कि जिस से पति वहां जाना कम कर दें?

जवाब : आप की चिंता बिलकुल स्वाभाविक है. किसी भी पत्नी का पति अगर इस तरह किसी और महिला (चाहे वह रिश्तेदार ही क्यों न हो) के साथ ज्यादा समय बिताए तो असहजता होना लाजिमी है. अपने पति से लड़ाई झगड़े के बिना बहुत शांति और प्यार से अपनी बात रखें. आप कह सकती हैं कि मैं चाहती हूं कि तुम अपने भाई से मिलो, लेकिन आएदिन वहां जाना और उस माहौल में समय बिताना मुझे अच्छा नहीं लगता.

पति के नजरिए को भी समझें उन से पूछें कि वे भाई के घर क्यों जाना पसंद करते हैं. उन की बात सुनें और फिर कोई ऐसा रास्ता निकालें जो आप को भी पसंद हो जैसे कि साथ में बाहर घूमने जाना, घर पर कोई खास समय बिताना जैसे फिल्म देखना या साथ में खाना बनाना. इस से उन की जरूरत भी पूरी होगी और आप भी सहज रहेंगी.

अगर आप को भाईभाभी के घर जाना पसंद नहीं तो उन्हें अपने घर बुलाएं. वे आप के घर पर मेहमान बन कर आएंगे तो उन्हें अपने हिसाब से खिलाएंपिलाएं, जिस में आप कंफर्टेबल महसूस करेंगी.

बच्चा न होना भी मानसिक दबाव और रिश्तों में दूरी का कारण बन सकता है. आप दोनों को मिल कर डाक्टर से मिलना चाहिए ताकि पता चल सके कि समस्या क्या है.

इस रिश्ते को बचाने के लिए संवाद सब से जरूरी है. अपने मन की बात दबाइए मत, समय और समझदारी का सहारा लीजिए. और हां, खुद की भावनाओं और आत्मसम्मान की अनदेखी मत कीजिए. अपने मानसिक स्वास्थ्य का खयाल रखें. किसी भरोसेमंद फ्रैंड या बहन से भी बात कर सलाह ले सकती हैं. यदि संभव हो तो विवाह सलाहकार से मिल कर बातचीत करें. कई बार तीसरे पक्ष की सलाह से चीजें साफ हो जाती हैं.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

Family Story In Hindi : सोचा न था – क्यों पछता रही थी सुरभि

Family Story In Hindi : ‘बेटी है. एक दिन पराए घर जाना है, अभी तो सब सुखसुविधाएं भोग ले.’ यही सब सोच कर सुरभि को छूट देती रही थी सुनंदा लेकिन उस के प्यारलाड़ का यह नतीजा निकलेगा किस ने सोचा था.

सुबह 9 बजे डाइनिंग टेबल पर नाश्ता करते हुए आलोक को गंभीर, चिंतामग्न देख कर सुनंदा ने पूछा, ‘‘क्या सोच रहे हो?’’ गहरी सांस लेते हुए कुछ न कह कर आलोक चुपचाप चाय पीते रहे.
‘‘बताओ, परेशान लग रहे हो, कुछ तो है.’’
बेहद गंभीर स्वर में आलोक ने कहा, ‘‘मैं रात में 3 बजे उठा था, बच्चों के कमरे की लाइट जलती देख जा कर देखा, तुम्हारी लाड़ली लैपटौप पर कुछ देख रही थी. मैं उसे डांटने वाला था लेकिन चुपचाप वापस आ गया वरना सौरभ की नींद डिस्टर्ब हो जाती. तुम्हारी लाडली की वजह से वैसे भी रात को उस की नींद खराब होती रहती है. तुम्हारी ही जिद पर मैं ने सुरभि को लैपटौप ले कर दिया था कि उसे प्रोजैक्ट बनाने होते हैं. मैं ने तो लैपटौप पर उसे हमेशा कोई न कोई शो ही देखते देखा है.’’
सुनंदा चुप रही, जानती है कि सुरभि को रात में कोई न कोई शो देखने का चस्का लग गया है. वह भी गुस्सा होती है पर जब सुरभि का चेहरा देखती है, उसे डांटने का मन नहीं करता.
आलोक फिर बोले, ‘‘मुझे उस की आदतें बिलकुल पसंद नहीं हैं, फिर कह रहा हूं, उसे समझाओ कि यह कैरियर बनाने का समय है.’’
‘‘हां, समझाऊंगी उसे.’’
‘‘तुम समझ चुकीं,’’ कह कर आलोक औफिस चले गए.
सुनंदा रोज के काम निबटाती हुई बच्चों के रूम में गई. स्कूल जाने से पहले सौरभ रोज की तरह अपना सारा सामान संभाल कर रख गया था लेकिन पूरे कमरे में सुरभि का सामान यहांवहां बिखरा पड़ा था. सीख लेगी, बच्ची ही तो है, सोच कर सुनंदा ने ही रोज की तरह उस का सामान संभाला पर साथ ही साथ यह भी सोच रही थी, सौरभ से 3 साल बड़ी है सुरभि पर दोनों के स्वभाव, आदतों में जमीनआसमान का अंतर है. कोई बात नहीं, सब सीख ही लेती हैं लड़कियां समय के साथ.

दोनों स्कूल से 4 बजे तक वापस आए. सुरभि आते ही शुरू हो गई, ‘‘क्या बोरिंग जगह है स्कूल, कितनी बोरियत होती है क्लास में बैठेबैठे. मैं तो आज आखिर के तीन पीरियड लाइब्रेरी में छिप कर नौवेल ही पढ़ती रही.’’
‘‘क्या?’’
‘‘हां मां, बिलकुल मन नहीं कर रहा था पढ़ने का.’’
‘‘एक दिन तो ठीक है, अब रोजरोज यह मत करना.’’
‘‘क्या फर्क पड़ जाएगा, किसी फ्रैंड से नोट्स ले लूंगी.’’
‘‘नहीं बेटा, पढ़ाई पर ध्यान दो, तुम रात में शो क्यों देख रही थीं, तुम्हारे पापा बहुत नाराज हैं तुम से.’’
‘‘उन्हें तो मेरी हर बात पर गुस्सा आता है.’’
‘‘पर 2 महीने बाद ही तो तुम्हारी 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं हैं, अब पढ़ना ही चाहिए.’’
‘‘मां, मुझे मत बताओ मुझे क्या करना है, जब मन होगा, पढ़ लूंगी.’’
सौरभ इस बीच फ्रैश हो कर अपना हर सामान यथास्थान रख टेबल पर रखा दूध और नाश्ता खा कर खेलने जाने की तैयारी करने लगा. बीचबीच में सुनंदा को अपने टैस्ट के नंबर बताता जा रहा था. पूरे ड्राइंगरूम में सुरभि के जूते, मोजे, बैग, रिबन फैले थे. सुनंदा ने कहा, ‘‘सुरभि, आज से अपना सामान तुम ही रखोगी.’’
‘‘प्लीज मां, आप ही रख दो न,’’ कहते हुए सुनंदा के गले में बांहें डाल कर चिपट गई तो सुनंदा हमेशा की तरह पिघलती चली गई, ‘‘अच्छा, ठीक है.’’
‘‘मेरी प्यारी मम्मा,’’ कह कर टीवी देखते हुए नाश्ता करने लगी. सुरभि 5 बजे सोने के लिए लेट गई. आलोक 6 बजे औफिस से आए, पूछा, ‘‘बच्चे कहां हैं?’’
‘‘सौरभ खेलने गया है, सुरभि सो रही है.’’
‘‘इस समय उसे मत सोने दिया करो, रात में सोने या पढ़ने के बजाय लैपटौप पर बैठी रहती है या फोन रहता है हाथ में. पता नहीं मैं ने तुम्हारे कहने पर लैपटौप और फोन क्यों खरीद कर दे दिया?’’
‘‘आप चिंता मत करो, पढ़ लेगी. अभी आराम करने दो उसे.’’
‘‘जीवन में वह आराम ही तो कर रही है.’’
सुरभि साढ़े 6 बजे सो कर उठी, फिर टीवी देखने बैठ गई. आलोक ने कहा, ‘‘सुरभि, अब पढ़ाई पर ध्यान दो, बहुत कम समय बचा है.’’
‘‘पढ़ लूंगी, पापा, अभी बहुत दिन है.’’ सौरभ आ कर होमवर्क करने को बैठ चुका था. आलोक ने कहा, ‘‘सुरभि, अब मैं तुम्हें लैपटौप पर या फोन पर टाइम खराब करते न देखूं, समझे?’’
‘‘मम्मी, देखो न.’’
‘‘अरे, पढ़ लेगी, 10वीं में भी तो उस के 95 फीसदी मार्क्स आए थे.’’
‘‘हां, तब वह पढ़ती थी, उस का दिमाग तेज है, जानता हूं पढ़ेगी तो अच्छे मार्क्स ही आएंगे पर पढ़े तो, मैं तो उसे हमेशा टाइम खराब करते ही देखता हूं.’’
‘‘अच्छा, अभी यह टौपिक बंद करो, सुरभि अब पढ़ना शुरू करो,’’ सुनंदा ने कहा तो सुरभि का मुंह लटक गया, ‘‘मम्मी, आप भी पापा की तरह शुरू हो गईं.’’ सुनंदा फिर नरम पड़ गई, ‘‘अच्छा, चलो, यह टौपिक अब खत्म करो.’’ आलोक ने सुनंदा को नाराज निगाहों से देखा जिसे नजरअंदाज कर सुनंदा किचन में चली गई.

सुनंदा किचन में काम करते हुए सोचती रही कि उस ने दोनों बच्चों की परवरिश में रातदिन एक किए हैं, उच्चशिक्षित होते हुए भी सिर्फ बच्चों पर ध्यान देने के लिए कभी कहीं जौब करने की भी नहीं सोची. दोनों बच्चों को एकजैसे प्यार और देखरेख से पाला है, फिर दोनों बच्चों में इतना फर्क क्यों है. सुरभि जहां हर बात में निराश करती है वहीं सौरभ की हर आदत, हर बात प्रशंसनीय है. पर हां, जब सुरभि की बात होती है, वह सचमुच उस का जायजनाजायज साथ देती है, हर बार यही सोच लेती है, लड़की है, कल विवाह कर चली जाएगी, फिर कहां, कैसे रहेगी, क्या पता, कम से कम यहां तो हर सुखसुविधा में पलेबढ़े.

परीक्षा के एक महीने पहले सुरभि ने ऐलान किया, ‘‘मुझे मैथ्स की ट्यूशन चाहिए.’’ आलोक चौंक पड़े, ‘‘अब? जब सारे बच्चे आराम से रिवीजन कर रहे हैं, तुम्हें ट्यूशन याद आई? मैं ने तुम से कितनी बार पूछा था, तुम ने यही कहा कि मैं सब कर लूंगी, अब क्या हो गया?’’
‘‘बाकी लोगों ने जहां ट्यूशन लगाई थी वहां 7 बजे का टाइम था, ट्यूशन के लिए मुझे इतनी सुबह नहीं उठना था.’’ आलोक को बहुत तेज गुस्सा आया, सुनंदा ने फौरन बात संभाली, ‘‘चलो, जो हो गया सो हो गया. अब कहां और कब हैं क्लासेज?’’
‘‘अब 10 बजे का टाइम है.’’ आलोक को किसी तरह समझबुझ कर सुनंदा ने फीस जमा करवा दी पर अब भी सुरभि का आलसी, लापरवाह स्वभाव बना रहा. अकसर ट्यूशन का टाइम निकल जाता. सुनंदा उसे उठाउठा कर थक जाती पर सुरभि के कानों पर जूं न रेंगती. 1 महीने में 15 दिन ही गई.
सुरभि के तौरतरीके देख आलोक सिर पकड़ लेते. दिनरात टोकने पर जितना पढ़ती, उस से 65 फीसदी मार्क्स ही आए. आलोक और सुनंदा को बहुत निराशा हुई. आलोक ने कहा, ‘‘बच्चे रातदिन आगे बढ़ते हैं और यह 95 फीसदी से 65 फीसदी पर पहुंच गई. सारी सुखसुविधा मिली हुई है, मां आगेपीछे घूमती है, घर में पढ़ने के अलावा कोई काम नहीं रहता फिर भी मेहनत से भागती है. कोई औसत स्टूडैंट होती तो बात और थी. दिमाग तेज होते हुए भी जो न पढ़े, उस का क्या किया जा सकता है.’’
सुरभि ने झट से जवाब दिया, ‘‘पापा, मैं खुश हूं अपने नंबरों से. आप को कुछ ज्यादा ही उम्मीद रहती है तो मैं क्या करूं.’’
‘‘हां, तो अपनी बेटी के भविष्य के लिए कुछ उम्मीद करता हूं तो क्या बुरा है.’’
सुनंदा हमेशा की तरह यह बहस बंद करवा कर आलोक को ही समझती रही.

बचपन से ही सुरभि का पांच दोस्तों का ग्रुप था, उस में 2 लड़के थे. 12वीं के बाद सब अलगअलग कालेज में चले गए थे. अब वीकैंड पर ही मिलते थे. सब आसपास की सोसाइटी में ही रहते थे. अब तो स्लीपओवर भी शुरू हो गया था, किसी एक के घर रात में रुक कर मूवी देखते, खातेपीते और बातें करते. अकसर यह प्रोग्राम शनिवार की रात को होता था. सुबह अपनेअपने घर पहुंच कर दिनभर सोते.

आलोक ने कहा, ‘‘सुनंदा, यह स्लीपओवर का चक्कर मुझे पसंद नहीं है. बच्चे दिन में जितना मिलें, घूमेफिरें पर रात को क्या किसी के घर में रुकते हैं?’’
‘‘अब जमाना बदल गया है, आलोक. हर बात के लिए बच्चों को टोकना अच्छा नहीं. सब को जानते ही हैं हम. सब अच्छे घरों के अच्छे बच्चे हैं.’’
‘‘जमाना कितना भी बदल जाए, बच्चों की फिक्र तो होती ही है न.’’
‘‘तुम चिंता मत करो, कहीं कुछ गलत नहीं है.’’
सुरभि ने बीएमएम के लिए एडमिशन लिया था. वहां भी सुरभि का पढ़ने में मन नहीं लग रहा था. आलोक उस के गिरते ग्राफ पर बहुत चिंतित थे. सुनंदा का कहना था, ‘‘कर लेगी धीरेधीरे सब. अब हर बच्चा तो टौप नहीं कर सकता न.’’
‘‘सुनंदा, ऐसा नहीं है कि उस का दिमाग कमजोर है. उस का दिमाग तेज है, इसलिए उस के खराब नंबर मुझ से सहन नहीं होते और एक सौरभ है, अपने स्वभाव, हर आदत में एक शानदार बच्चा. उसे पढ़ने के लिए कहने की भी जरूरत नहीं पड़ती. उस की फर्स्ट पोजीशन लगातार बनी हुई है. सुरभि ने आलस, कामचोरी की हद कर रखी है.’’
सुनंदा भी इस बार गंभीर थी. वह भी तो थकने लगी थी. उसे चुप देख आलोक ने फिर कहा, ‘‘तुम उसे बहुत लाड़प्यार करती हो, सुनंदा. उसी का फायदा उठाती है वह. क्या किया जाए, तुम उस की साइड ले कर खड़ी हो जाती हो.’’
इस के बाद काफी सोचविचार के बाद सुनंदा ने सुरभि से बातें कीं. लैपटौप पर देखे गए शोज, मूवीज, किस ने क्या ट्वीट किया, यही सब सुरभि के शौक थे. उस की दुनिया यही चीजें थीं. वह अपने चार दोस्तों को छोड़ कर बाकी सब की कमियां गिनाती. वह अपनेआप को बिलकुल परफैक्ट समझने वाली एक जिद्दी व गुस्सैल लड़की हो चुकी थी. पिता का जिक्र छिड़ते ही चिढ़ जाती, ‘‘मम्मी, आप पापा की बात तो रहने ही दो. उन्हें तो मुझ में बस कमियां ही दिखती हैं.’’
‘‘पर बेटा, वे तुम्हारे दुश्मन तो हैं नहीं.’’
‘‘बातें तो वे वैसी ही करते हैं, उन्हें मेरा चैन से जीना पसंद ही नहीं है.’’

जब भी सुरभि को समझने की कोशिश की जाती, घर का माहौल खराब हो जाता. सुनंदा सिर पकड़ लेती. सौरभ पर भी सुरभि चिल्ला पड़ती, मां से भाई की भी बुराई, शिकायतें करने के लिए उस के पास बहुत सी निरर्थक बातें थी. उस का मन होता तो कालेज जाती नहीं, दिनभर आराम करती. रात में फिर ही चीजें ले कर बैठ जाती. मातापिता दिनरात क्या कह रहे हैं, इस की चिंता नहीं थी उसे. किस सैलिब्रिटी ने क्या ट्वीट किया है, उस में ज्यादा रुचि थी. सुनंदा अकसर परेशान हो जाती, कहां गलती हो गई, यह क्या होता जा रहा था.
एक दिन सुरभि ने कहा, ‘‘मम्मी, कालेज के एक नए दोस्त ने हम 15 लोगों को बर्थडे पार्टी पर बुलाया है, डिनर पर.’’
‘‘कहां?’’
‘‘एक क्लब में.’’
‘‘नहीं जाना है.’’
‘‘मम्मी, प्लीज, कभी इस तरह कहीं नहीं गई. लड़कियां तो पता नहीं कहांकहां घूमती हैं, जाने दो न.’’
‘‘नहीं, तुम्हारे पापा मना करेंगे.’’
‘‘उन्हें मत बताना, मम्मी, प्लीज, प्लीज, आप ही तो मेरी हर बात समझती हैं, प्लीज, जाने दो न,’’ कह कर सुरभि सुनंदा से चिपट ही गई. सुरभि का प्लीजप्लीज जारी रहा तो सुनंदा ढीली पड़ गई, बोली, ‘‘मुझे सोचने दो.’’
‘‘नहीं, मां, मैं जा रही हूं, बस. पापा पूछेंगे तो बता देना कि आज रिया के घर में स्लीपओवर है.’’
‘‘तो क्या तुम सुबह आओगी?’’
‘‘ओह, नहीं, आप कहना रिया के घर डिनर है, लेट आएगी, चाबी ले कर गई है.’’ सुनंदा ने बेमन से ही सही, हां में सिर हिला दिया. पता था अब वह जा कर ही मानेगी. ज्यादा मना किया तो झुठ बोलना शुरू कर देगी. सौरभ इस समय घर पर नहीं है, सुरभि तैयार हो कर निकल गई.
आलोक ने पूछा तो सुनंदा ने झुठ बोल दिया. साढ़े 10 बजे के आसपास आलोक और सुनंदा सोने लेट गए. सौरभ भी सोने के लिए लेट चुका था.
आलोक ने कहा, ‘‘सुनंदा, तुम ने सुरभि को कुछ ज्यादा ही छूट दे रखी है.’’ सुनंदा चुप ही रही.
‘‘और यह स्लीपओवर तो मुझे बिलकुल ही पसंद नहीं है.’’ सुनंदा अब भी चुप ही रही. उस का मन आज उदास था. पहली बार आलोक से झुठ बोलने का अपराधबोध उसे खा रहा था. वह बेटी के लाड़प्यार के हाथों सचमुच मजबूर हो गई थी.

आंख लगी ही थी कि घर का लैंडलाइन फोन बज उठा. रात के सन्नाटे में असमय फोन की घंटी से आलोक को कुछ चिंता सी हुई. वे भागे, फोन उठाया. उधर से जो भी कहा गया, आलोक के चेहरे की हवाइयां उड़ गईं. वे बुत बने सुनंदा को आते देखते रहे और ‘हम आ रहे हैं,’ कह कर फोन रख दिया. सुनंदा अब घबराई, क्या हुआ?’’ आलोक कुछ नहीं बोले, ?ाटके से उठ कर कमरे में गए और जल्दीजल्दी कपड़े बदलने लगे. सुनंदा पीछेपीछे आई, ‘‘क्या हुआ, बताओ न, आलोक.’’
‘‘तुम्हारी लाड़ली जिस पार्टी में गई थी, वहां रेड की है पुलिस ने, ड्रग्स मिले हैं बच्चों के पास, पुलिस सब को थाने ले गई है, वहीं से फोन था,’’ कहते हुए आलोक ने जलती निगाहों से सुनंदा को घूरा. वह अपमानित, शर्मिंदा सी बिलखबिलख कर रो पड़ी.
‘‘अब मांबेटी खुश हो न, ऐसा कुछ तो होना ही था.’’
‘‘मैं भी चल रही हूं.’’
‘‘नहीं, तुम रहने ही दो.’’
‘‘प्लीज,’’ कह कर रोती हुई सुनंदा झटपट कपड़े बदल कर बोली, ‘‘सौरभ को उठा दूं?’’
‘‘नहीं, उसे सोने दो, बहन की करतूत पता न चले तो ही अच्छा है.’’

आलोक के पीछेपीछे चल पड़ी सुनंदा. उस की आंखों से पश्चात्ताप के आंसू बहे चले जा रहे थे. वह बारबार आलोक से माफी मांग रही थी. कार में बैठते हुए भी बारबार एहसास हो रहा था कि ये सब उसी के जरूरत से ज्यादा लाड़प्यार के कारण हुआ है.

जरूरत से ज्यादा खादपानी से तो पौधा भी गल जाता है. सुरभि अभी तक ड्रग्स वगैरह के चक्करों से दूर है, यह विश्वास तो था सुनंदा को लेकिन बात यहां तक पहुंचेगी, यह तो आशा भी न थी. अनावश्यक लाड़प्यार का यह परिणाम सामने आएगा, ऐसा तो कभी सोचा ही न था. Family Story In Hindi

Love Story in Hindi : एक लड़की – प्यार के नाम से क्यों चिढ़ती थी शबनम?

Love Story in Hindi : मैंने पकौड़ा खा कर चाय का पहला घूंट भरा ही था कि बाहर से शबनम की किसी पर बिगड़ने की तेज आवाज सुनाई दी. वह लगातार किसी को डांटे जा रही थी. उत्सुकतावश मैं बाहर निकली तो देखा कि वह गार्ड से उलझ रही है.

एक घायल लड़के को अपने कंधे पर एक तरह से लादे हुए वह अंदर दाखिल होने की कोशिश में थी और गार्ड लड़के को अंदर ले जाने से मना कर रहा था.

‘‘भैया, होस्टल के नियम तो तुम मुझे सिखाओ मत. कोई सड़क पर मर रहा है, तो क्या उसे मर जाने दूं? क्या होस्टल प्रशासन आएगा उसे बचाने? नहीं न. अरे, इंसानियत की तो बात ही छोड़ दो, यह बताओ किस कानून में लिखा है कि एक घायल को होस्टल में ला कर दवा लगाना मना है? मैं इसे कमरे में तो ले जा नहीं रही. बाहर ग्राउंड में जो बैंच है, उसी पर लिटाऊंगी. फिर तुम्हें क्या प्रौब्लम हो रही है? लड़कियां अपने बौयफ्रैंड को ले कर अंदर घुसती हैं तब तो तुम से कुछ बोला नहीं जाता,’’ शबनम झल्लाती हुई कह रही थी.

गार्ड ने झेंपते हुए दरवाजा खोल दिया और शबनम बड़बड़ाती हुई अंदर दाखिल हुई. उस ने किसी तरह लड़के को बैंच पर लिटाया और जोर से चीखी, ‘‘अरे, कोई है? ओ बाजी, देख क्या रही हो? जाओ, जरा पानी ले कर आओ.’’ फिर मुझ पर नजर पड़ते ही उस ने कहा, ‘‘नेहा, प्लीज डिटोल ला देना. इस के घाव पोंछ दूं और हां, कौटन भी लेती आना.’’

मैं ने अपनी अलमारी से डिटोल निकाला और बाहर आई. देखा, शबनम अब उस लड़के पर बरस रही है, ‘‘कर ली खुदकुशी? मिल गया मजा? तेरे जैसे लाखों लड़के देखे हैं. लड़की ने बात नहीं की तो या फेल हुए तो जान देने चल दिए. पैसा नहीं है, तो जी कर क्या करना है? अरे मरो, पर यहां आ कर क्यों मरते हो?’’

शबनम उसे लगातार डांट रही थी और वह खामोशी से शबनम को देखे जा रहा था. उस का दायां हाथ काफी जख्मी हो गया था. एक तरफ चेहरे और पैरों पर भी चोट लगी थी. माथे से भी खून बह रहा था.

बाजी बालटी में पानी भर लाईं और शबनम उस में रुई डुबाडुबा कर उस के घाव पोंछने लगी. फिर घाव पर डिटोल लगा कर पट्टी बांध दी और मुझ से बोली, ‘‘तू जरा इसे ठंडा पानी पिला दे, तब तक मैं इस के घर वालों को खबर कर देती हूं.’’

‘‘तू इसे पहले से जानती थी शबनम?’’ मैं ने पूछा तो वह मुसकराई.

‘‘अरे नहीं, मैं औफिस से आ रही थी, तो देखा यह लड़का जानबूझ कर गाड़ी के नीचे आ गया. इस के सिर पर चोट लगी थी, इसलिए यहां उठा लाई. अब घर वाले आ कर इसे अस्पताल ले जाएं या घर, उन की मरजी,’’ कह कर उस ने लड़के से उस के पिता का नंबर पूछा और उन्हें बुला लिया.

इधर मैं अपने कमरे में आ कर शबनम के बारे में सोचने लगी. आज कितना अलग रूप देखा था मैं ने उस का. उस लड़के के घाव पोंछते वक्त वह कितनी सहज थी. लड़कियां चाहे कुछ भी कहें, आज मैं ने महसूस किया था कि वह दिल की कितनी अच्छी है.

पूरे होस्टल में अक्खड़, मुंहफट और घमंडी कही जाने वाली शबनम की बुराई करने से कोई नहीं चूकता. लड़कियां हों या गार्ड या फिर कामवाली, हर किसी की यही शिकायत थी कि शबनम कभी सीधे मुंह बात नहीं करती है. अकड़ दिखाती है. टीवी देखने आती है तो जबरदस्ती वही चैनल लगाती है, जो उसे देखना हो. दूसरों की नहीं सुनती. वैसे ही उस की जिद रहती है कि काम वाली सुबह सब से पहले उस का कमरा साफ करे.

पहनावे में भी दूसरों से बिलकुल अलग दिखती थी वह. गरमी हो या सर्दी, हमेशा पूरी बाजू के कपड़े पहनती, जिस की नैक भी ऊपर तब बंद होती. उस की इस अटपटी ड्रैस की वजह से लड़कियां अकसर उस का मजाक उड़ाती थीं पर वह इस पर ध्यान नहीं देती थी.

देखने में वह खूबसूरत थी पर नाम के विपरीत चेहरे पर कोमलता नहीं सख्ती के भाव होते थे. डीलडौल भी काफी अच्छा था और आवाज काफी सख्त थी, जो उस की पर्सनैलिटी को दबंग बनाती थी और सामने वाला उस से पंगे लेने से बचता था.

वह मेरे कमरे के साथ वाले कमरे में रहती थी, इसलिए मुझ से उस की थोड़ीबहुत बातचीत होती रहती थी. हम 1-2 दफा साथ घूमने भी गए थे, पर हमेशा ही मुझे वह ऐसी बंद किताब लगी जिसे चाह कर भी पढ़ना मुमकिन नहीं था.

8-10 दिन बाद की बात है, मैं ने देखा, शबनम ग्राउंड में बैंच पर बैठी किसी लड़के से बात कर रही है. उस वक्त शबनम की आवाज इतनी तेज थी कि लग रहा था, वह उस लड़के को डांट रही है. 2-3 लड़कियां उधर से शबनम का मजाक उड़ाती हुई आ रही थीं.

एक कह रही थी, ‘‘लो आ गई उस लड़के की शामत. उसे नहीं पता कि किस लड़की से पाला पड़ा है उस का.’’

दूसरी ने कमैंट किया, ‘‘लड़का कह रहा होगा, मुझ पर करो न यों सितम…’’

मैं ने गौर से देखा, यह तो वही लड़का था, जिस की उस दिन शबनम ने मरहमपट्टी की थी. लड़का अब काफी हद तक ठीक हो चुका था पर माथे और हाथ पर अभी भी पट्टी बंधी थी.

बाद में जब मैं ने शबनम से उस के बारे में पूछा तो वह बोली, ‘‘धन्यवाद कहने आया था और हिम्मत तो देखो, मुझ से दोस्ती करना चाहता था. कह रहा था, फिर मिलने आऊंगा.’’

‘‘तो तुम ने क्या कहा?’’

‘‘अरे, मुझे क्या कहना था, अच्छी तरह समझा दिया कि मैं दोस्तीवोस्ती के चक्कर में नहीं पड़ने वाली. रोजरोज मेरा दिमाग खाने के लिए आने की जरूरत नहीं. लड़कों की फितरत अच्छी तरह समझती हूं मैं.’’

आगे उस लड़के का हश्र क्या होगा, यह मैं अच्छी तरह समझ सकती थी, इसलिए शबनम को और न छेड़ते हुए मैं मुसकराती हुई अपने कमरे में चली आई.

उस दिन के बाद 2-3 बार और भी मैं ने उस लड़के को शबनम से बातें करते देखा और हमेशा शबनम उसे झिड़कती हुई ही दिखी. एक दिन उस ने बताया कि वह लड़का हाथ धो कर पीछे पड़ गया है. फोन भी करने लगा है कि मैं तुम्हें पसंद करता हूं. अरे यार, बदतमीजी की भी हद होती है. घाव पर मरहम क्या लगाया, वह तो हाथ पकड़ने पर आमादा हो गया है.

‘‘तो इस में बुराई क्या है यार. वह तुझे इतना चाहता है, देखने में भी हैंडसम है. अच्छा कमाता है, घरपरिवार भी अच्छा है, तू ने ही बताया है. तो तू मना क्यों कर रही है? क्या कोई और है तेरी जिंदगी में?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, कोई और नहीं है. जरूरत भी नहीं है मुझे. और वह जैसा भी है उस से मुझे क्या लेनादेना? आज पीछे पड़ा है, तो हो सकता है कल देखना भी न चाहे, अजनबी बन जाए. हजारों कमियां निकाले मुझ में. इतना ही अच्छा है तो ढूंढ़ ले न कोई अच्छी लड़की. मैं ने क्या मना किया है? मैं क्यों अपनी खुशियां किसी और के आसरे छोड़ूं? जैसी भी हूं, ठीक हूं…’’ कहतेकहते उस की आंखें नम हो उठीं.

‘‘शबनम, प्यार बहुत खूबसूरत होता है. वह वीरान जिंदगी में खुशियों की बहार ले कर आता है. किसी से हो जाए तो सूरत, उम्र, जाति कुछ नहीं दिखता. इंसान इस प्यार को पाने के लिए हर कुरबानी देने को तैयार रहता है.’’ मैं ने समझाना चाहा.

पर वह अकड़ती हुई बोली, ‘‘बहुत देखे हैं प्यार करने वाले. मैं इन झमेलों से दूर सही…’’ और अपने कमरे में चली गई.

अगले दिन वह लड़का मुझे होस्टल के गेट पर मिल गया. मुझ से विनती करता हुआ बोला, ‘‘प्लीज नेहाजी, आप ही समझाओ न शबनमजी को. वे मुझ से मिलना नहीं चाहतीं.’’

‘‘तुम प्यार करते हो उस से?’’ में ने सीधा प्रश्न किया तो चकित नजरों से उस ने मेरी तरफ देखा फिर सिर हिलाता हुआ बोला, ‘‘बहुत ज्यादा. जिंदगी में पहली दफा ऐसी लड़की देखी. खुद पर निर्भर, दूसरों के लिए लड़ने वाली, आत्मविश्वास से भरपूर. उस ने मुझे जीना सिखाया है. मुश्किलों से हार मानने के बजाय लड़ने का जज्बा पैदा किया है. मैं ने तो औरतों को सिर्फ पति के इशारों पर चलते, रोतेसुबकते और घरेलू काम करते देखा था. पर वह बहुत अलग है. जितना ही उसे देखता हूं, उसे पाने की तमन्ना बढ़ती जाती है. प्लीज, आप मेरी मदद करें. मेरे मन की बातें उस तक पहुंचा दें.’’

‘‘मैं कोशिश करती हूं,’’ मैं ने कहा तो उस के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई. मुझे नमस्ते कर के वह चला गया.

रात को मैं फिर से शबनम के कमरे में दाखिल हुई. वह अकेली थी. ‘‘आज वह गेट पर मिला था,’’ मैं ने कहा.

‘‘जानती हूं. मुझे बाहर बुला रहा था लेकिन मैं नहीं गई.’’

मैं ने उसे कुरेदा, ‘‘तू प्यार से भाग क्यों रही है? जानती है, प्यार हर दर्द मिटा देता है?’’

वह हंसी, ‘‘प्यार दर्द मिटाता नहीं, नए जख्म पैदा करता है. बहुत स्वार्थी होता है प्यार.’’

‘‘मैं आज वजह जान कर रहूंगी कि आखिर क्यों भागती है तू प्यार से? या तो मुझे हकीकत बता दे या फिर उस लड़के को अपना ले जो सिर्फ तेरी राह देख रहा है.’’

‘‘मैं ने भी देखी थी किसी की राह पर उस ने…,’’ कहते हुए अचानक उस की आंखें भीग गईं.

मैं ने प्यार से उस का माथा सहलाते हुए कहा, ‘‘शबनम, अपने दिल का दर्द बाहर निकाल. तभी तू खुश रह सकेगी. मुझे सबकुछ बता दे. मैं जानती हूं, तू दिल की बहुत अच्छी है. पर कुछ तो ऐसा है जो तेरे दिल को तड़पाता है. यह पीड़ा तुझे सामान्य नहीं रहने देती. तेरे चेहरे, तेरे व्यवहार में झलकने लगती है. यकीन रख, तू जो भी बताएगी, वह सिर्फ मुझ तक रहेगा. पर मुझ से कुछ मत छिपा. किस ने चोट पहुंचाई है तुझे?’’

वह थोड़ी नौर्मल हुई तो बिस्तर पर पीठ टिका कर बैठ गई और कहने लगी, ‘‘नेहा,

4 साल पहले तक मैं भी एक ऐसी लड़की थी जिस का दिल किसी के लिए धड़कता था. मैं भी प्यार को बहुत खूबसूरत मानती थी. मेरी भी तमन्नाएं थीं, कुछ सपने थे. दूसरों से प्रेम से बातें करना, मिल कर रहना अच्छा लगता था मुझे. जिसे प्यार किया, उसी के साथ पूरी उम्र गुजारना चाहती थी और उस की यानी विक्रम की भी यही मरजी थी. उस ने मुझे हमेशा ऐतबार दिलाया था कि वह मुझे प्यार करता है, मेरे साथ घर बसाना चाहता है. हमारी जोड़ी कालेज में भी मशहूर थी. पर वक्त की चोट ने उस की असलियत मेरे सामने ला कर रख दी.’’

‘‘एक दिन मैं ने देखा कि मेरी बांह और पीठ पर सफेद निशान हो गए हैं. मैं घबरा गई. डाक्टरों के चक्कर लगाने लगी पर दाग बढ़ते ही गए. जब मैं ने यह राज विक्रम के आगे खोला तो उस के चेहरे के भाव ही बदल गए और 2-4 दिनों के अंदर ही उस का व्यवहार भी बदलने लगा. अब वह मुझ से दूर रहने की कोशिश करता. हालांकि 1-2 दफा मेरे कहने पर वह मेरे साथ डाक्टर के यहां भी गया पर कुछ अनमना सा रहता था. धीरेधीरे वह मिलने से भी कतराने लगा.

‘‘उधर हमारी पढ़ाई पूरी हो गई और पापा को मेरी शादी की फिक्र होने लगी. मैं ने विक्रम से इस बारे में चर्चा की तो वह शादी से बिलकुल मुकर गया. मैं तड़प उठी. उस के आगे रोई, गिड़गिड़ाई पर सिर्फ इस सफेद दाग की वजह से वह मुझ से जुड़ने को तैयार नहीं हुआ.’’ कहते हुए उस ने अपने कुरते की बाजू ऊपर उठाई. उस की बांह पर कई जगह सफेद दाग थे.

शून्य की तरफ देखते हुए वह बोली, ‘‘मैं आज भी उसे भुला नहीं सकी पर कहां जानती थी कि उस का प्यार सिर्फ मेरे शरीर से जुड़ा था. शरीर में दोष उत्पन्न हुआ तो उस ने राहें बदल लीं. किसी और से शादी कर ली. तभी मैं ने समझा कितना स्वार्थी, कितना संकीर्ण होता है यह प्यार.

‘‘मैं ने तो विक्रम की शक्ल नहीं देखी थी. देखने में बिलकुल ऐवरेज था. सांवला, मोटा. मैं उस से बहुत खूबसूरत थी. मैं चाहती तो उस की कमियां गिना कर उसे ठुकरा सकती थी. पर मैं ने तो प्यार किया था और उस ने ऐसी चोट दी कि सारे जज्बात ही खत्म कर डाले. तभी से मुझ में एक तरह की जिद आ गई. मैं समझ गई कि जिंदगी में मांगने पर कुछ नहीं मिलता. मुझे जो चाहिए होता वह जबरदस्ती दूसरों से छीनने लगी. खुद को कमजोर महसूस नहीं कर सकती मैं. किसी की सहानुभूति भरी नजरें भी नहीं चाहिए. न ही किसी का इनकार सह पाती हूं. यही जिद मेरे व्यवहार में नजर आने लगा है. और शायद यही वजह है कि मैं 35 की हो गई पर शादी के नाम से दूर भागती हूं.’’

‘‘यह सब बहुत ही स्वाभाविक है शबनम. पर सच तो यह है कि विक्रम का प्यार मैच्योर नहीं था. वह दिल से तुझ से जुड़ ही नहीं सका था, इसीलिए तुम्हारे रिश्ते का धागा बहुत कमजोर था. वह हलकी सी चोट भी सह नहीं सका. पर अर्पण की आंखों में देखा है मैं ने, वाकई उस के दिल में सिर्फ तुम हो, क्योंकि उस ने सूरत देख कर नहीं, तुम्हारे गुण देख कर तुम्हें चाहा है. इसलिए वह तुम्हारा साथ कभी नहीं छोड़ेगा. किसी स्वार्थी इंसान की वजह से खुद को खुशियों से बेजार रखना कहां की अक्लमंदी है?

‘‘शबनम, यदि ठंडी हवा के झोंके सा अर्पण का प्यार तुम्हारे जख्मों पर मरहम लगा सकता है, तो दिल की खिड़कियां बंद कर लेना सही नहीं.’’

‘‘मैं कैसे मान लूं कि अर्पण का प्यार सच्चा है, स्वार्थी नहीं.’’

‘‘ऐसा कर, उसे हर बात बता दे. फिर देख, वह क्या कहता है. मैं जानती हूं, उस का जवाब निश्चित रूप से हां होगा.’’

शबनम ने उसी वक्त फोन उठाया और बोली, ‘‘ठीक है, यह भी कर के देख लेती हूं. अभी तेरे सामने बताती हूं उसे सब कुछ.’’

फिर उस ने फोन मिलाया और स्पीकर औन कर बोली, ‘‘अर्पण, मैं तुम से बात

करना चाहती हूं अभी, इसी वक्त. समय है तुम्हारे पास?’’

‘‘बिलकुल, आप कहिए तो,’’ अर्पण ने जवाब दिया.

‘‘अर्पण, तुम्हारे दिल की बात नेहा ने मुझ तक पहुंचा दी है. अब मैं अपनी जिंदगी की असलियत तुम तक पहुंचाना चाहती हूं. बस एक हकीकत, जिसे सुन कर तुम्हारा सारा प्यार काफूर हो जाएगा…’’

‘‘ऐसा क्या है शबनमजी?’’

‘‘बात यह है कि मेरे पूरे शरीर पर सफेद दाग हैं, जो ठीक नहीं हो सकते. गले पर, पीठ पर, बांहों पर और आगे… हर जगह. अब बताओ, क्या है तुम्हारा फैसला?’’

‘‘फैसला क्यों बदलेगा शबनमजी? और दूसरी बात यह कि किस ने कहा दाग ठीक नहीं हो सकते? मेरे अंकल डाक्टर हैं, उन्हें दिखाएंगे हम. वक्त लगता है, पर ऐेसे दाग ठीक हो जाते हैं. मान लीजिए, ठीक न हुए तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि मैं आप को चाहता हूं. कमियां तो मुझ में भी हैं, पर उस से क्या? एकदूसरे को अपनाने का मतलब एकदूसरे की खूबियों और कमियों को स्वीकारना ही तो होता है. कल को मेरे शरीर पर कुछ हो जाए या मुझे कोई बीमारी हो जाए तो क्या आप मुझे छोड़ देंगी? नहीं न शबनमजी, बताइए? मेरी मम्मी पास ही बैठी हैं, उन्होंने सब कुछ सुन लिया है और उन की तरफ से भी हां है. आप बस मेरा साथ दीजिए. आप नहीं जानतीं, मैं ने बहुत कुछ सीखा है आप से. आप मेरे साथ रहेंगी तो मैं खुद को बेहतर ढंग से पहचान सकूंगा. जी सकूंगा अपनी जिंदगी. आई लव यू…’’

शबनम ने मेरी तरफ देखा. मैं ने उस से हां कहने का इशारा किया तो वह धीरे से बोल उठी, ‘‘आई लव यू टू…’’

फिर शबनम ने तुरंत फोन काट दिया और मेरे गले लग कर रोने लगी. मैं जानती थी. आज उस की आंखें भले ही रो रही हों पर दिल पहली दफा पूरी तरह प्यार में डूबा मुसकरा रहा था. Love Story in Hindi

Romantic Story in Hindi : ब्रेकअप – आखिर क्यों नविका ने यश के साथ किया रिश्ता खत्म?

Romantic Story in Hindi : ड्राइंगरूम में सोफे पर बैठ पत्रिका पढ़ रही स्मिता का ध्यान डोरबैल बजने से टूटा. दरवाजा खोलने पर स्मिता को बेटे यश का उड़ा चेहरा देख धक्का लगा. घबराई सी स्मिता बेटे से पूछ बैठी, ‘‘क्या हुआ यश? सब ठीक तो है?’’

बिना कुछ कहे यश सीधे अपने बैडरूम में चला गया. स्मिता तेज कदमों से पीछेपीछे भागी सी गई. पूछा, ‘‘क्या हुआ यश?’’

यश सिर पकड़े बैड पर बैठा सिसकने लगा. जैसे ही स्मिता ने उस के पास बैठ कर उस के सिर पर हाथ रखा वह मां की गोद में ढह सा गया और फिर फूटफूट कर रो पड़ा.

स्मिता ने बेहद परेशान होते हुए पूछा, ‘‘बताओ तो यश क्या हुआ?’’

यश रोए जा रहा था. स्मिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस का 25 साल का बेटा आज तक ऐसे नहीं रोया था. उस का सिर सहलाती वह चुप हो गई थी. समझ गई थी कि थोड़ा संभलने पर ही बता पाएगा. यश की सिसकियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. कुछ देर बाद फिर स्मिता ने पूछा, ‘‘बताओ बेटा क्या हुआ?’’

‘‘मां, नविका से ब्रेकअप हो गया.’’

‘‘क्या? यह कैसे हो सकता है? नविका को यह क्या हुआ? बेटा यह तो नामुमकिन है.’’

यश ने रोते हुए कहा, ‘‘नविका ने अभी फोन पर कहा कि अब हम साथ नहीं हैं. वह यह रिश्ता खत्म करना चाहती है.’’

स्मिता को गहरा धक्का लगा. यह कैसे हो सकता है. 4 साल से वह, यश के पापा विपुल, यश की छोटी बहन समृद्धि नविका को इस घर की बहू के रूप में ही देख रहे हैं. इतने समय से स्मिता यही सोच कर चिंतामुक्त रही कि जैसी केयर नविका यश की करती है, वैसी वह मां हो कर भी नहीं कर पाती. इस लड़की को यह क्या हुआ? स्मिता के कानों में नविका का मधुर स्वर मां…मां… कहना गूंज उठा. बीते साल आंखों के आगे घूम गए. बेटे को कैसे चुप करवाए वह तो खुद ही रोने लगी. वह तो खुद ही इस लड़की से गहराई से जुड़ चुकी है.

अचानक यश उठ कर बैठ गया. मां की आंखों में आंसू देखे, तो उन्हें पोंछते हुए फिर से रोने लगा, ‘‘मां, यह नविका ने क्या किया?’’

‘‘उस ने ऐसे क्यों किया, यश? कल रात तो वह यहां हमारे साथ डिनर कर के गई. फिर रातोंरात ऐसी कौन सी बात हो गई?’’

‘‘पता नहीं, मां. उस ने कहा कि अब वह इस रिश्ते को और आगे नहीं ले जा पाएगी. उसे महसूस हो रहा है कि वह इस रिश्ते में जीवनभर के लिए नहीं बंध सकती. वह भी हम सब को बहुत मिस करेगी, उस के लिए भी मुश्किल होगा पर वह अपनेआप को संभाल लेगी और कहा कि मैं भी खुद को संभाल लूं और आप सब को उस की तरफ से सौरी कह दूं.’’

स्मिता हैरान व ठगी से बैठी रह गई थी. यह क्या हो रहा है? लड़कों की बेवफाई, दगाबाजी तो सुनी थी पर यह लड़की क्या खेल खेल गई मेरे बेटे के साथ… हम सब की भावनाओं के साथ. दोनों मांबेटे ठगे से बैठे थे. स्मिता ने बहुत कहा पर यश ने कुछ नहीं खाया. चुपचाप बैड पर आंसू बहाते हुए लेटा रहा. स्मिता बेचैन सी पूरे घर में इधर से उधर चक्कर लगाती रही.

शाम को विपुल और समृद्धि भी आ गए. आते ही दोनों ने घर में पसरी उदासी महसूस कर ली थी. सब बात जानने के बाद वे दोनों भी सिर पकड़ कर बैठ गए. यह कोई आम सी लड़की और एक आम से लड़के के ब्रेकअप की खबर थोड़े ही थी. इतने लंबे समय में नविका सब के दिलों में बस सी गई थी.

इस घर से दूर नविका तो खुद ही नहीं रह सकती थी. घर में हर किसी को खुश करती थकती नहीं थी. विपुल के बहुत जोर देने पर यश ने सब के साथ बैठ कर मुश्किल से खाना खाया, डाइनिंगटेबल पर अजीब सा सन्नाटा था. समृद्धि को भी नविका के साथ बिताया एकएक पल याद आ रहा था. नविका से कितनी छोटी है वह पर कैसी दोस्त बन गई थी. कुछ भी दिक्कत हो नविका झट से दूर कर देती थी.

विपुल को भी उस का पापा कह कर बात करना याद आ रहा था. सब सोच में डूबे हुए थे कि यह हुआ क्या? कल ही तो यहां साथ में बैठ कर डिनर कर रही थी. आज ब्रेकअप हो गया. यह एक लड़के से ब्रेकअप नहीं था. नविका के साथ पूरा परिवार जुड़ चुका था. सब ने बहुत बेचैनी भरी उदासी से खाना खत्म किया. कोई कुछ नहीं बोल रहा था.

स्मिता से बेटे की आंसू भरी आंखें देखी नहीं जा रही थीं. उस के लिए बेटे को इस हाल में देखना मुश्किल हो रहा था. रात को सोने से पहले स्मिता ने पूछा, ‘‘यश, मैं नविका से बात करूं?’’

‘‘नहीं मां, रहने दो. अब वह बात ही नहीं करना चाहती. फोन ही नहीं उठा रही है.’’

स्मिता हैरान. दुखी मन से बैड पर लेट तो गई पर उस की आंखों से नींद कोसों दूर विपुल के सोने के बाद बालकनी में रखी कुरसी पर आ कर बैठ गई. पिछले 4 सालों की एकएक बात आंखों के सामने आती चली गई…

यश और नविका मुंबई में ही एक दोस्त की पार्टी में मिले थे. दोनों की दोस्ती हो गई थी. नविका यश से 3 साल बड़ी थी, यह जान कर भी यश को कोई फर्क नहीं पड़ा था. वह नविका से बहुत प्रभावित हुआ था. नविका सुंदर, आत्मनिर्भर, आधुनिक, होशियार थी. अपनी उम्र से बहुत कम ही दिखती थी. स्मिता के परिवार को भी उस से मिल कर अच्छा लगा था.

चुटकियों में यश और समृद्धि के किसी भी प्रोजैक्ट में हैल्प करती. बेटे से बड़ी लड़की को भी उस की खूबियों के कारण स्मिता ने सहर्ष स्वीकार कर लिया था. स्मिता और विपुल खुले विचारों के थे. नविका के परिवार में उस के मम्मीपापा और एक भाई था. एक दिन नविका ने स्मिता से कहा कि मां आप मुझे कितना प्यार करती हैं और मेरी मम्मी तो बस मेरे भाई के ही चारों तरफ घूमती रहती हैं. मैं कहां जा रही हूं, क्या कर रही हूं, मम्मीपापा को इस से कुछ लेनादेना नहीं होता. भाई ही उन दोनों की दुनिया है. इसलिए मैं जल्दी आत्मनिर्भर बनना चाहती हूं.

सुन कर स्मिता ने नविका पर अपने स्नेह की बरसात कर दी थी.

उस दिन से तो जैसे स्मिता ने मान लिया कि उस के 2 नहीं 3 बच्चे हैं. कुछ भी होता

नविका जरूर होती. कहीं जाना हो नविका साथ होती. यह तय सा ही हो गया था कि यश के सैटल हो जाने के बाद दोनों का विवाह कर दिया जाएगा.

एक दिन स्मिता ने कहा, ‘‘नविका, मैं सोच रही हूं कि तुम्हारे पेरैंट्स से मिल लूं.’’

इस पर नविका बोली, ‘‘रहने दो मां. अभी नहीं. मेरे परिवार वाले बहुत रूढि़वादी हैं. जल्दी नहीं मानेंगे. मुझे लगता कि अभी रुकना चाहिए.’’

यश तो आंखें बंद कर नविका की हर बात में हां में हां ऐसे मिलाता था कि कई बार स्मिता हंस कर कह उठती थी, ‘‘विपुल, यह तो पक्का जोरू का गुलाम निकलेगा.’’

विपुल भी हंस कर कहते थे, ‘‘परंपरा निभाएगा. बाप की तरह बेटा भी जोरू का गुलाम बनेगा.’’

कई बार स्मिता तो यह सोच कर सचमुच मन ही मन गंभीर हो उठती थी कि यश सचमुच नविका के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकता. अपनी हर चीज के लिए उस पर निर्भर रहता है. कोई फौर्म हो, कहीं आवेदन करना हो, उस के सब काम नविका ही करती और नविका यश को खुश रखने का हर जतन करती. उसे मुंबई में ही अच्छी जौब मिल गई थी.

जौब के साथसाथ वह घर के हर सदस्य की हर चीज में हमेशा हैल्प करती. स्मिता मन ही मन हैरान होती कि यह लड़की क्या है… इतना कौन करता है? किसी को कोई भी जरूरत हो, नविका हाजिर और उस का खुशमिजाज स्वभाव भी लाजवाब था जिस के कारण स्मिता का उस से रोज मिलने पर भी मन नहीं भरता था. जितनी देर घर में रहती हंसती ही रहती. स्मिता नविका को याद कर रो पड़ी. रात के 2 बजे बालकनी में बैठ कर वह नविका को याद कर रो रही थी.

स्मिता का बारबार नविका को फोन कर पूछने का मन हो रहा था कि यह क्या किया तुम ने? यश के मना करने के बावजूद स्मिता यह ठान चुकी थी कि वह यह जरूर पूछेगी नविका से कि उस ने यह इमोशनल चीटिंग क्यों की? क्या इतने दिनों से वह टाइमपास कर रही थी? अचानक बिना कारण बताए कोई लड़की ब्रेकअप की घोषणा कर देती है, वह भी यश जैसे नर्म दिल स्वभाव वाले लड़के के साथ जो नविका को खुश देख कर ही खुश रहता था.

इतने में ही अपने कंधे पर हाथ  का स्पर्श महसूस हुआ तो स्मिता चौंकी. यश था, उस की गोद में सिर रख कर जमीन पर ही बैठ गया. दोनों चुप रहे. दोनों की आंखों से आंसू बहते रहे.

फिर विपुल भी उठ कर आ गए. दोनों को प्यार से उठाते हुए गंभीर स्वर में कहा, ‘‘जो हो गया, सो हो गया, अब यही सोच कर तुम लोग परेशान मत हो. आराम करो, कल बात करेंगे.’’

अगले दिन भी घर में सन्नाटा पसरा रहा. यश चुपचाप सुबह कालेज चला गया. स्मिता ने उस से दिन में 2-3 बार बात की. पूछा, ‘‘नविका से बात हुई?’’

‘‘नहीं, मम्मी वह फोन नहीं उठा रही है.’’

उदासीभरी हैरानी में स्मिता ने भी दिन बिताया. वह बारबार अपना फोन चैक कर रही थी. इतने सालों में आज पहली बार न नविका का कोई मैसेज था न ही मिस्ड कौल. स्मिता को तो स्वयं ही नविका के टच में रहने की इतनी आदत थी फिर यश को कैसा लगा रहा होगा. यह सोच कर ही उस का मन उदास हो जाता था.

3 दिन बीत गए, नविका ने किसी से संपर्क नहीं किया. घर में चारों उदास थे, जैसे घर का कोई महत्त्वपूर्ण सदस्य एकदम से साथ छोड़ गया हो. सब चुप थे. अब नविका का कोई नाम ही नहीं ले रहा था ताकि कोई दुखी न हो. मगर बिना कारण जाने स्मिता को चैन नहीं आ रहा था. वह बिना किसी को बताए बांद्रा कुर्ला कौंप्लैक्स पहुंच गई. नविका का औफिस उसे पता था.

अत: उस के औफिस चल दी. औफिस के बाहर पहुंच सोचा एक बार फोन करती. अगर उठा लिया तो ठीक वरना औफिस में चली जाएगी.

अत: नविका के औफिस की बिल्डिंग के बाहर खड़ी हो कर स्मिता ने फोन किया. हैरान हुई जब नविका ने उस का फोन उठा लिया, ‘‘नविका, मैं तुम्हारे औफिस के बाहर खड़ी हूं, मिलना है तुम से.’’

‘‘अरे, मां, आप यहां? मैं अभी आती हूं.’’

नविका दूर से भागी सी आती दिखी तो स्मिता की आंखें उसे इतने दिनों बाद देख भीग सी गईं. वह सचमुच नविका को प्यार करने लगी थी. उसे बहू के रूप में स्वीकार कर चुकी थी. उस पर अथाह स्नेह लुटाया था. फिर यह लड़की अचानक गैर क्यों हो गई?

नविका आते ही उस के गले लग गई. दोनों रोड पर यों ही बिना कुछ कहे कुछ पल खड़ी रहीं. फिर नविका ने कहा, ‘‘आइए, मां, कौफी हाउस चलते हैं.’’

नविका स्मिता का हाथ पकड़े चल रही थी. स्मिता का दिल भर आया. यह हाथ, साथ, छूट गया है. दोनों जब एक कौर्नर की टेबल पर बैठ गईं तो नविका ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘‘मां, आप कैसी हैं?’’

स्मिता ने बिना किसी भूमिका के कहा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया, मैं जानने आई हूं?’’

नविका ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘‘मां, मैं थकने लगी थी.’’

‘‘क्यों? किस बात से? हम लोगों के प्यार में कहां कमी देखी तुम ने? इतने साल हम से जुड़ी रही और अचानक बिना कारण बताए यह सब किया जाता है? यह पूरे परिवार के साथ इमोशनल चीटिंग नहीं है?’’ स्मिता के स्वर में नाराजगी घुल आई.

‘‘नहीं मां, आप लोगों के प्यार में तो कोई कमी नहीं थी, पर मैं अपने ही झूठ से थकने लगी थी. मैं ने आप लोगों से झूठ बोला था. मैं यश से 3 नहीं, 7 साल बड़ी हूं.’’

स्मिता बुरी तरह चौंकी, ‘‘क्या?’’

‘‘हां, मैं तलाकशुदा भी हूं. इसलिए मैं ने आप को कभी अपनी फैमिली से मिलने नहीं दिया. मैं जानती थी आप लोग यह सुन कर मुझ से दूर हो जाएंगे. मैं इतनी लविंग फैमिली खोना नहीं चाहती थी. इसलिए झूठ बोलती थी.’’

‘‘शादी कहां हुई थी? तलाक क्यों हुआ था?’’

‘‘यहीं मुंबई में ही. मैं ने घर से भाग कर शादी की थी. मेरे पेरैंट्स आज तक मुझ से नाराज हैं और फिर मेरी उस से नहीं बनी तो तलाक हो गया. मैं मम्मीपापा के पास वापस आ गई. उन्होंने मुझे कभी माफ नहीं किया. मैं ने आगे पढ़ाई

की. आज मैं अच्छी जौब पर हूं. फिर यश मिल गया तो अच्छा लगा. मैं ने अपना सब सच छिपा लिया. यश अच्छा लड़का है. मुझ से काफी छोटा है, पर उस के साथ रहने पर उस की उम्र के हिसाब से मुझे कई दिक्कतें होती हैं. उस की उम्र से मैच करने में अपनेआप पर काफी मेहनत करनी पड़ती है. आजकल मानसिक रूप से थकने लगी हूं.

‘‘यश कभी अपनी दूसरी दोस्तों के साथ बात भी करता है तो मैं असुरक्षित

महसूस करती हूं. मैं ने बहुत सोचा मां. उम्र के अंतर के कारण मैं शायद यह असुरक्षा हमेशा महसूस करूंगी. मैं ने भी दुनिया देखी है मां. बहुत सोचने के बाद मुझे यही लगा कि अब मुझे आप लोगों की जिंदगी से दूर हो जाना चाहिए. मैं वैसे भी अपनी शर्तों पर, अपने हिसाब से जीना चाहती हूं. आत्मनिर्भर हूं, आप लोगों से जुड़ कर समाज का कोई ताना, व्यंग्य भविष्य में मैं सुनना पसंद नहीं करूंगी.

‘‘मैं ने बहुत मेहनत की है. अभी और ऊंचाइयों पर जाऊंगी, आप लोग हमेशा याद आएंगे. लाइफ ऐसी ही है, चलती रहती है. आप ठीक समझें तो घर में सब को बता देना, सब आप के ऊपर है और हम कोई सैलिब्रिटी तो हैं नहीं, जिन्हें इस तरह का कदम उठाने पर समाज का कोई डर नहीं होता. हम तो आम लोग हैं. मुझे या आप लोगों को रोजरोज के तानेउलाहने पसंद नहीं आएंगे. यश में अभी बहुत बचपना है. यह भी हो सकता है कि समाज से पहले वही खुद बातबात में मेरा मजाक उड़ाने लगे. मुझे बहुत सारी बातें सोच कर आप सब से दूर होना ही सही लग रहा है.’’

कौफी ठंडी हो चुकी थी. नविका पेमैंट कर उठ खड़ी हुई. कैब आ गई तो स्मिता के गले लगते हुए बोली, ‘‘आई विल मिस यू, मां,’’ और फिर चल दी.

स्मिता अजीब सी मनोदशा में कैब में बैठ गई. दिल चाह रहा था, दूर जाती हुई नविका को आवाज दे कर बुला ले और कस कर गले से लगा ले, पर वह  जा चुकी थी, हमेशा के लिए. उसे कह भी नहीं पाई थी कि उसे भी उस की बहुत याद आएगी. 4 सालों से अपने सारे सच छिपा कर सब के दिलों में जगह बना चुकी थी वह. सच ही कह रही थी वह कि सच छिपातेछिपाते थक सी गई होगी. अगर वह अपने भविष्य को ले कर पौजिटिव है, आगे बढ़ना चाहती है, स्मिता को भले ही अपने परिवार के साथ यह इमोशनल चीटिंग लग रही हो, पर नविका को पूरा हक है अपनी सोच, अपने मन से जीने का.

अगर वह अभी से इस रिश्ते में मानसिक रूप से थक रही है, अभी से यश और अपनी उम्र के अंतर के बोझ से थक रही है तो उसे पूरा हक है इस रिश्ते से आजाद होने का. मगर यह सच है कि स्मिता को उस की याद बहुत आएगी. मन ही मन नविका को भविष्य के लिए शुभकामनाएं दे कर स्मिता ने गहरी सांस लेते हुए कार की सीट पर बैठ कर आंखें मूंद लीं. Romantic Story in Hindi

Social Story In Hindi : गुरु दक्षिणा – स्वामी प्रज्ञानंद को क्यों लोग पसंद नहीं करते थे?

Social Story In Hindi : भक्ति कार्यक्रम में माइक पर कहा गया कि स्वामीजी दक्षिणा नहीं लेते, लेकिन दानदक्षिणा का पुण्य लाभ इतना है कि जो भक्त दक्षिणा देते हैं उस का दसगुना उन्हें मिलता है. भक्तों के उस हुजूम में कामता और राधा भी थे, उन्हें संतान की चाह थी. एकांत में विशेष पूजा के दौरान स्वामी प्रज्ञानंद ने राधा से दक्षिणा चाही. स्वामीजी की चाह क्या थी और राधा ने दक्षिणा में क्या दिया?

आश्रम का यह सब से बड़ा कार्यक्रम होता था. जब तक बड़े बाबा थे तब तक ज्यादा भीड़ नहीं होती थी. उन्हें यह तामझाम करना नहीं आता था. छोटेमोटे चढ़ावे और एक प्रौढ़ सी नौकरानी से उन की जिंदगी कट गई थी. पर उन के बाद आश्रम से जो लोग जुड़े थे, उन का स्वार्थ भी इस से जुड़ना शुरू हो गया था.

‘‘गुरु पूर्णिमा का पर्व तो मनाना ही चाहिए,’’ रामगोविंद ने सलाह दी, ‘‘दशपुर के आश्रम में अयोध्या के एक युवा संत आए हैं, उन से निवेदन किया जाए तो अच्छा रहेगा.’’

रामगोविंद की सलाह पर आश्रम वाले प्रज्ञानंद को बुला लाए थे. आश्रम के भक्तजनों का निमंत्रण वे अस्वीकार नहीं कर पा रहे थे. यही तय हुआ कि माह में कुछ दिन के लिए प्रज्ञानंद इधर आते रहेंगे.

इस बार विशेष तैयारियां होनी शुरू हो गई थीं. गांव के प्रधान ने पंचायत समिति के प्रधान को जा कर समझाया था कि यह चुनाव का वर्ष है, अभी से सक्रिय होना होगा. कार्ड आदि सामान 15 दिन पहले पहुंचाना है. इस से भीड़ बढ़ जाएगी.

‘‘भंडारे का खर्चा?’’ पंचायत समिति के प्रधान ने पूछा तो गांव के प्रधान ने कहा था, ‘‘देखो, इस प्रकार के कार्यक्रम में जो भी आता है वह अपनी श्रद्धा से खर्च करता है. भंडारे में सेब, पूरी, सब्जी, बस ज्यादा खर्चा नहीं होगा. हिसाब बाद में होता रहेगा.’’

‘‘स्वामीजी का खर्चा?’’

‘‘वे तो हम को ही देंगे. चढ़ावे में जो भी आएगा उस का आधा उन का होगा आधा हमारा,’’ गांव के प्रधान ने कहा, ‘‘पिछली बार हम ने 60 प्रतिशत लिया था, जो भेंट होगी, बड़े महाराजजी की तसवीर की होगी, लोग उन्हें भेंट चढ़ाएंगे, वह थाली में रखी रहेगी. वहीं रामगोविंद रहेंगे, वे सारा हिसाब रख लेंगे, बाद में हम बैठ कर जोड़ लगा लेंगे. आप तो बस, मंत्रीजी को आने को कहें.’’

2 दिन पहले से आश्रम में अखंड रामायण का पाठ शुरू हो चुका था. दूरदूर से भक्त आने लगे थे. इस बार स्वामी प्रज्ञानंद ने बड़े चित्र, जिस में शिव शंकर और स्वामी शंकराचार्य के साथ उन की भी तसवीर थी, गांवगांव बंटवा दिए थे. बहुत बड़ा सा एक पोस्टर आश्रम के दरवाजे पर भी लगा हुआ था.

मास्टर रामचंद्र ने पोस्टर देख कर चौंकते हुए कहा, ‘‘यह क्या, शिव और आदि शंकराचार्य के साथ स्वामी प्रज्ञानंद, क्या यह शिव का पोता है?’’

‘‘चुप करो,’’ उन की पत्नी ने टोकते हुए कहा, ‘‘तुम हर जगह कुतर्क ले आते हो. यह भी नहीं देखते कि ये लोग कितना काम कर रहे हैं, इन्होंने तो कोई चेला, शिष्य नहीं बनाया, ये तो समिति के लोग हैं जो स्वामीजी को ले आते हैं और उत्सव हो जाता है.’’

तब तक नील कोठी से आने वाली बस आ गई थी. औरतें अपनेअपने थैले, अटैचियां ले कर उतरीं. उतरते ही भजन शुरू हो गया. तेज स्वर के साथ सुरबेसुर सभी एकसाथ थे.

‘‘देखदेख, ये बाबा से कहने गए हैं कि हम आ गए हैं,’’ जानकी बहन ने कहा.

‘‘नहींनहीं, ये तो रसोई में बताने गए हैं कि गरम चाय बना दो, हम आ गए हैं,’’ नंदा ने धीरे से कहा.

‘‘चुप कर, लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे,’’ नंदा की मां ने बेटी को टोका.

शहर के जानेमाने सेठ भी 2-3 बार वहां आ चुके थे. हर बार की तरह इस बार भी भंडारे की सामग्री उन की दुकान से ही आ रही थी. वे भी जानते थे कि न तो यहां सामान तुलता है न कहीं कोई क्वालिटी देखी जाती है. दानेदार चीनी के भाव में यहां सल्फर की बोरियां आराम से खप जाती हैं. वनस्पति घी की भी 50 किस्में हैं, नुकसान का अंदेशा दूरदूर तक नहीं था.

तभी जीप आ कर रुकी. उस में से स्वामीजी का शिष्य भास्कर नीचे उतरा. उस ने अपनी जेब से एक परचा निकाल कर पंचायत समिति के मानमलजी को पकड़ाते हुए कहा, ‘‘स्वामीजी ने दिया है. कृपया पढ़ लें.’’

मानमलजी ने परचा पढ़ा और बोले, ‘‘यार, तुम्हीं ले आते, रुपए हम दे देते. महाराज ने फलों के साथ बिसलरी का पानी भी लिखा है, जो यहां मिलता नहीं. खैर, यहां से गाड़ी जाएगी, जो भी होगा, देखेंगे.’’

भास्कर ने फिर गंभीर मुद्रा में कहा, ‘‘महाराज के साथ मथुरा के ठाकुरजी भी आ रहे हैं. महाराज चाहते हैं, यहां कभी रासलीला भी हो, भागवत का पाठ भी, ये उन्हीं के लिए है.’’

‘‘हां, वे भंडारे का प्रसाद भी तो खाते होंगे,’’ बूढ़े मास्टर रामचंद्रजी चीखे.

‘‘चुप करो,’’ मानमलजी को गुस्सा आ गया था, ‘‘बूढ़ों के साथ यही दिक्कत है.’’

बात आईगई हो गई. सामने सड़क पर दूसरी बस, जो मालता से आई थी, आ कर रुकी. तभी 4-5 कारें, दशपुर से भी आ गईं.

‘‘मैं चलता हूं,’’ मानमलजी बोले, ‘‘महाराज तो कल 11 बजे आएंगे… सुबह हमारे यहां भी कार्यक्रम है.’’

सुबह से ही अतिथियों का आना शुरू हो गया था. लगभग 7 से 10 हजार स्त्रीपुरुष जमा होंगे, इस बार तो गांवगांव जीप घुमाई गई थी. सत्संग और फिर भंडारा, भंडारे के नाम पर भीड़ अच्छी- खासी आ जाती है. संयोजकजी मोबाइल से बारबार स्वामीजी से संपर्क साध रहे थे और माइक पर कहते जा रहे थे, ‘‘थोड़ी देर में स्वामीजी हमारे बीच में होंगे, तब तक हम कार्यक्रम प्रारंभ करते हैं.’’

संयोजकजी ने माइक से घोषणा की कि बड़े बाबा के जमाने से रामचंद्रजी इस आश्रम से जुड़े हैं. वे संक्षेप में अपनी बात कहें, क्योंकि थोड़ी ही देर में स्वामी प्रज्ञानंदजी हमारे बीच में होंगे…अभी और भी श्रोताओं को बोलना है.

अचानक दौड़ती कारें आश्रम के प्रांगण में आ कर रुकीं तो आयोजक लोग हाथ में मालाएं ले कर तेजी से उस ओर दौड़े.

‘‘विलंब के लिए क्षमा चाहता हूं,’’ स्वामीजी ने अपने दंड के साथ कार से नीचे उतरते हुए कहा.

उन के साथ आए लोग भी उन के पीछेपीछे चल दिए.

‘‘आइए, ठाकुरजी, यह भी अब अपना ही आश्रम है,’’ स्वामी प्रज्ञानंद बोले, ‘‘आप की भागवत की यहां बहुत चर्चा है. आप समय निकालें तो यहां भी भागवत कथा हो जाए.’’

आयोजक समिति के सदस्य स्वामीजी का संकेत पा चुके थे और उद्घोषक ने माइक पर भागवत कथा का महत्त्वपूर्ण समाचार दे दिया. जनजन तक पहुंचाने के लिए आह्वान भी कर दिया. श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट से इस का स्वागत किया. कहा जाता है कि कलियुग में भागवत कथा के श्रवण मात्र से सारे पाप धुल जाते हैं.

स्वामीजी कह रहे थे, ‘‘आज गुरु- पूर्णिमा है. गुरु साक्षात शिव के अवतार होते हैं. गुरु का पूरा शरीर ब्रह्म का शरीर है.’’

भाषण के बाद भीड़ खड़ी हो गई. उद्घोषक गुरुपूजा के लिए पंक्ति बना कर आने को कह रहा था.

स्वामीजी ने परात में अपने पांव रखे तो बिसलरी के जल को लोटों में लिया गया, क्योंकि कुएं के पानी से स्वामीजी के पांव में इन्फैक्शन होने का डर जो था. पांव धोए गए, चरणामृत अलग से जमा किया गया…फिर उस में पांव के जल को मिला दिया गया. अब चरणामृत को कार्यकर्ता चम्मच से सभी के दाएं हाथ में दे रहे थे और उस के लिए भी धक्का- मुक्की शुरू हो चुकी थी.

फिर स्वामीजी के पैर के नाखून पर रोली लगा कर पूजा करते हुए दक्षिणा देने का कार्यक्रम शुरू हुआ. उद्घोषक कह रहा था, ‘‘स्वामीजी दक्षिणा नहीं लेते, पर सपने में गुरु महाराज ने कहा है कि दक्षिणा जो दी जाती है, उस का दसगुना भक्तों को वापस हो जाता है, यह परंपरा है. आप स्वेच्छा से जो भी देना चाहें, दें, गुरुकृपा से आप को इस का कई गुना मिलता रहेगा, गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु… गुरु साक्षात परब्रह्म…’’ माइक पर मंत्रों का पाठ भी हो रहा था.

बड़ी मुश्किल से कामता प्रसाद को स्वामीजी से मिलने का मौका मिला.

‘‘अरे, आप भी यहां आए हैं?’’ स्वामीजी बोले, ‘‘हां, राधाजी तो दिखी थीं, वे तो पूजा के लिए आ गई थीं पर आप कहां रह गए?’’

‘‘जी, मैं भी यहीं था.’’

‘‘अच्छाअच्छा, ध्यान नहीं गया. रात को आप लोग कमरे में आ जाना, वहां रामगोविंद हैं, वे सब व्यवस्था कर देंगे.’’

संध्या को ही दोनों तैयार हो गए थे. निर्देशानुसार राधा ने गुलाबी रंग की सिल्क की साड़ी और हरे रंग की चूडि़यां पहन रखी थीं. राधा की शादी हुए 7 साल हो गए थे, पर पुत्र सुख नहीं मिला था. पड़ोसिन नंदा ने कहा था कि पूजा होती है, करवा ले. सुना है प्रज्ञानंद से पूजा करवाने पर बहुतों को पुत्र लाभ मिला है. कोई बाधा हो तो हट जाती है. तभी कामता प्रसाद ने स्वामीजी से संपर्क किया था और उन्होंने आज का दिन बताया था.

कामता प्रसाद जब वहां पहुंचे तो उन्हें कमरे के भीतर ले जाया गया. रामगोविंद ने सारी पूजा की सामग्री रख दी. सामने तसवीर के पास एक कद्दू रखा था. सामने की चौकी पर हलदी, रोली, चावल की अनेक आकृतियां बनी हुई थीं.

‘‘आप पहले आएंगे, पूजा होगी, ध्यान होगा, फिर भाभीजी आएंगी, बाद में उन की अलग से भी पूजा होगी,’’ रामगोविंद ने बताया.

कामता प्रसाद तो अपनी पूजा कर के बाहर के कमरे में आ गए. तब भीतर से आवाज आई और राधा को बुलाया गया. राधा भीतर गई. उस ने स्वामी प्रज्ञानंद को प्रणाम किया. कमरे में बाबा ही अकेले थे, वे आंखें बंद किए संस्कृत में श्लोक पढ़ते जा रहे थे, राधा सामने बैठी थी. अचानक प्रज्ञानंद की आंखें खुलीं, दृष्टि सीधी राधा के वक्षस्थल से होती हुई उस की पूरी देह पर फैल गई.

राधा सिहर उठी. उसे लगा, कहीं कुछ गलत तो नहीं हो रहा है. स्वामीजी ने फिर आंखें बंद कर लीं, फिर पंचपात्र में से छोटी तांबे की चम्मच से जल निकाल कर स्वामीजी ने राधा की दाईं हथेली पर रखा और बोले, ‘‘आचमन कर लो.’’

‘नहीं, नहीं, राधा, नहीं,’ जैसे उस के भीतर से कोई बोला हो.

राधा ने उंगलियों को थोड़ा सा खोल दिया और जल बह गया. उस ने आचमन के लिए अंजलि को होंठों से लगाया फिर हाथ नीचे रख लिया.

‘‘एक बार और,’’ मंत्र पढ़ते हुए स्वामीजी ने जल उस की हथेली पर रखा. इस बार आंखें उस के शरीर पर एक्सरे की किरण की तरह बढ़ रही थीं.

उस ने पहले की तरह वहीं जल गिराया और उठना चाहा.

‘‘आप कहां चलीं. पूजा को बीच में छोड़ते नहीं,’’ स्वामी प्रज्ञानंद ने उठ कर उसे पकड़ना चाहा. उन का हाथ राधा की कमर से होते हुए उस की छातियों पर आ चुका था.

‘‘हट, पापी,’’ कहते हुए राधा का हाथ तेजी से प्रज्ञानंद के गाल पर पड़ा और वह चीखी.

‘‘क्या हुआ, क्या हुआ,’’ बोलता रामगोविंद भीतर की ओर दौड़ा. वह किवाड़ बंद करना चाह रहा था लेकिन तब तक राधा किवाड़ को धक्का देती हुई पास के कमरे में पहुंच गई थी. उस की साड़ी खुल गई थी. उस ने उसे तेजी से ठीक किया और बाहर की ओर दौड़ पड़ी.

‘‘कहां हैं ये, कहां हैं ये…’’ राधा चीख रही थी.

‘‘साहब तो अपने कमरे की तरफ गए हैं,’’ किसी ने बताया.

राधा तेजी से कामता के कमरे की तरफ दौड़ी. उस के पीछे और भी लोग जो आश्रम में थे, आ गए थे.

कमरे में कामता प्रसाद गहरी नींद में सो रहे थे. अचेत थे.

‘‘रात को जागरण हुआ था, दिनभर कार्यक्रम में थे, थक गए हैं, ऐसी गहरी नींद तो भाग्यवानों को ही आती है,’’ पीछे से आवाज आई.

‘‘जब जग जाएं तब पूजा कर आना, आश्रम का दरवाजा तो हमेशा खुला रहता है,’’ एक सलाह आई.

राधा ने जलती आंखों से उसे देखा और बोली, ‘‘अपनी सलाह अपने पास रख, यह स्वर्ग तुझे ही मुबारक हो,’’ फिर उस ने सामने पानी से भरी बालटी उठाई और कामता के माथे पर उड़ेल दी. पानी की तेज धार से कामता की नींद खुल गई.

‘‘क्या हुआ?’’ वह बोला.

‘‘कुछ नहीं, तुम इतनी गहरी नींद में सो कैसे गए?’’ राधा बोली.

‘‘स्वामीजी ने जो जल दिया था उस का आचमन करते ही मुझे झपकी आनी शुरू हो गई थी, मुझ से वहां बैठा ही नहीं गया, इसलिए उठ कर चला आया. तुम पूजा कर आईं?’’ कामता ने पूछा.

‘‘हां, अच्छी तरह पूजा हो गई है, तुम इस नरक से जल्दी बाहर चलो.’’

कामता प्रसाद कुछ समझ नहीं पा रहे थे. राधा ने तेजी से अपनी अटैची उठाई और गीले कपड़ों में ही पति का हाथ पकड़े आश्रम के अहाते से बाहर निकल गई.

उधर स्वामी प्रज्ञानंद अब बाहर तख्त पर आ कर बैठ गए थे. महिलाएं उन के पांव दबाने के लिए प्रतीक्षारत थीं.

‘‘गुरुपूजा पर गुरु का पाद सेवन का पुण्य वर्षों की साधना से मिलता है,’’ रामगोविंद सब को समझा रहा था.

बाबा की निगाहें अपनी गाड़ी की ओर बढ़ती राधा पर टंगी हुई थीं. उन का दायां हाथ बारबार अपने गाल पर चला जाता जहां अब हलकी सूजन आ गई थी. Social Story In Hindi

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