शालिनी देवी जब से गांव की सरपंच चुनी गई थीं, गांव वालों को राहत क्या पहुंचातीं, उलटे गरीबों को दबाने व पहुंच वालों का पक्ष लेने लगी थीं. शालिनी देवी का मकान गांव के अंदर था, जहां कच्ची सड़क जाती थी. सड़क को पक्की बनाने की बात तो शालिनी देवी करती थीं, पर अपना नया मकान गांव के बाहर मेन रोड के किनारे बनाना चाहती थीं, इसलिए वे गरीब गफूर मियां पर मेन रोड वाली सड़क पर उन की जमीन सस्ते दाम पर देने का दबाव डालने लगी थीं. गफूर मियां को यह बात अच्छी नहीं लगी. वे हजारी बढ़ई के फर्नीचर बनाने की दुकान में काम करते थे. मेहनताने में जोकुछ भी मिलता, उसी से अपना परिवार चलाते थे.

बड़ों के सामने गफूर मियां की बोली फूटती न थी. एक बार गांव के ही एक बड़े खेतिहर ने उन का खेत दबा लिया था, पर हजारी ने ही आवाज उठा कर गफूर मियां को बचाया था. गफूर मियां हजारी बढ़ई को सबकुछ बता देते थे. उन्होंने बताया कि शालिनी देवी अपना नया मकान बनाने के लिए उन की जमीन मांग रही हैं. इस बात पर हजारी बढ़ई खूब बिगड़े और बोले, ‘‘यह तो शालिनी देवी का जुल्म है. यह बात मैं मुखिया राधे चौधरी के पास ले जाऊंगा.’’ हजारी बढ़ई जानते थे कि मुखिया इंसाफपसंद तो हैं, पर शालिनी देवी के मामले में वे कुछ नहीं बोलेंगे. दबी आवाज में यह बात भी उठी थी कि शालिनी देवी का मुखिया से नाजायज संबंध है.

एक दिन हजारी बढ़ई गफूर मियां का पक्ष लेते हुए सरपंच शालिनी देवी से कहने लगे, ‘‘चाचीजी, हम लोग गरीब हैं. हमें आप से इंसाफ की उम्मीद है. आप गफूर मियां को दबा कर उन की जमीन सस्ते दाम में हड़पने की मत सोचिए, नहीं तो यह बात पूरे गांव में फैलेगी. विरोधी लोग आप के खिलाफ आवाज उठाएंगे. मैं नहीं चाहता कि अगले चुनाव में आप सरपंच का पद पाने से रह जाएं.’’ यह सुन कर शालिनी देवी गुस्से से कांप उठीं और बोलीं, ‘‘तुम उस गफूर की बात कर रहे हो, जो बिरादरी में छोटा है. उस की हिम्मत है, तो मुखिया के पास जा कर शिकायत करे.’’ हजारी बढ़ई बोले, ‘‘आप की नजर में तो मैं भी छोटा हूं... छोटे भी कभीकभी बड़ा काम कर जाते हैं.’’

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