Story In Hindi : आरुषि और सुरुचि जुड़वां बहनें थीं, एकसाथ पलीबढ़ी थीं, जहां आरुषि ने खुद को आजाद कर अपना जीवन अपनी शर्तों पर जीने की हिम्मत दिखाई, वहीं, सुरुचि पर लोकलाज का बोझ परिवार ने लाद दिया. कैसे आरुषि ने सुरुचि को इस जकड़न से निकाला?

जिंदगी में हर कहानी के समानांतर एक कहानी चलती है, जिस का लेखक उस कहानी से जुड़ा मुख्य किरदार स्वयं होता है. उसी के व्यवहार और क्रियाकलाप के अनुसार कहानी अपने रंग बदलती है. इन दोनों कहानियों के इर्दगिर्द ढेरों किरदार अपनीअपनी भूमिका जीवंत करने में जुटे रहते हैं. उन किरदारों का व्यवहार और नजरिया समानांतर चल रहे उन दोनों कथानकों के मुख्य किरदार के प्रति मौके और मतलब के अनुसार बदलते रहते हैं.

अपने इर्दगिर्द चल रहे उन किरदारों के बदलते रवैए को आरुषि और सुरुचि मौसी की जिंदगी ने बखूबी सम?ा. ये दोनों मम्मी की सहेलियां थीं, जुड़वां बहनें. जमींदार परिवार की आनबान मानी जाती हैं बेटियां, क्योंकि शान माने जाने का अधिकार तो बेटों के ही पास रहा.

मम्मी अकसर उन की चर्चा किया करती थीं, ‘आरुषि के परिवार में बेटियों की शादी में पैसे, सोनेचांदी के अलावा ढेरों गाय, बैल, भैंस, घोड़े देने की परंपरा सालों से चलती आ रही थी. उन के घर में बेटियों पर दिल खोल कर खर्च किया जाता था सिवा उन की पढ़ाई के.’

आरुषि की शादी तय हो चुकी थी, मेहमान आ चुके थे. सारा घर मेहमानों से भरा था. शादी के 2 दिनों पहले काफी देर होने पर जब आरुषि ने कमरे का दरवाजा नहीं खोला तो उस की छोटी चाची ने जा कर दरवाजा खटखटाया. दरवाजा अंदर से बंद नहीं था, इसलिए खुल गया. भीतर जाने पर पता चला कि आरुषि कमरे में नहीं है.

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