अग्निहोत्री परिवार तो जैसे आसमान से गिरा और खजूर में अटक गया. सचाई को सांप के मुंह में छछूंदर सा न उगलते बन रहा था न निगलते. उस का धर्म तो भ्रष्ट हो चुका था लेकिन भ्रम बनाए रखना जरूरी था. पर कब तक और कैसे?

मिसेज मालती अग्निहोत्री ने घर आए मेहमानों का मुसकराते हुए स्वागत किया और उन्हें सोफ़े पर बैठने का इशारा करते हुए कहा–

“आइए, बैठिए.” फिर बालबच्चों के हाल चाल पूछे और किचन की ओर देख कर आवाज लगाई- “रवींद्र, जरा चायनाश्ता ले आओ और...” उन की बात अभी पूरी भी नहीं हो पाई थी की रवींद्र चायनाश्ते की ट्रे ले कर ड्राइंगरूम में प्रकट हो गया.

“अरे वाह, मालतीजी, आप का कुक तो बहुत ही एफ़िशिएंट है. बात पूरी होने के पहले ही चाय ले  आया,” मेहमान महिला ने प्रशंसनीय भाव से रवींद्र की ओर देखते हुए कहा.

“वह क्या है न मैडम, जब आप सोसाइटी में दाखिल हुए थे, तभी गार्ड का फोन आया यह बताने के लिए कि मेहमान आ गए हैं. बस, तभी हम ने चाय चढ़ा दी थी,” खीसें निपोरते हुए रवींद्र ने जवाब दिया और मालतीजी ने मुसकराते हुए उसे किचन में जाने का इशारा कर दिया.

मालतीजी के बड़े से घर में 3 पीढ़ियां एकसाथ रहती थीं. उन के सासससुर, उन के पति और  उन के 2 बच्चे. इस भरेपूरे परिवार को मालतीजी 3 नौकरों की मदद से चलाती थीं और बाकी समय अपने सोशल वर्क को देती थीं. रवींद्र के इलावा घर में 2 नौकरानियां थीं और ये सब उन के विला के पीछे बने सर्वेंट क्वार्टर में रहते थे.

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