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कायनात मुस्कुरा उठी: पराग की मनोदशा आखिर क्यों बिगड़ी?

बरसों से सजा पोते की शादी का ख्वाब वाकई आज सच होने जा रहा था. तभी फिजां में स्वरलहरी गूंज उठी. उन्हें लगा कि उन के साथसाथ पूरी कायनात मुसकरा रही थी. क्या तानी पराग की मनःस्थिति सुधार पाने में कामयाब हो पाई? पराग की मनःस्थिति आखिर क्यों बिगड़ी?

स्लिप्ड डिस्क के कारण व्हीलचेयर का प्रयोग कर रहे तेजस्वी यादव, आखिर क्या है स्लिप्ड डिस्क

लोकसभा चुनाव 2024 के प्रचार में अचानक बिहार के नेता प्रतिपक्ष और पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव का एक वीडियो वायरल हो गया जिस में वह व्हीलचेयर पर बैठे दिखे और वे लोगों का सहारा ले कर चल रहे थे. लोगों को अचानक यह समझ नहीं आया कि तेजस्वी यादव को क्या हो गया है ? इस की वजह उन की कमर का दर्द था. अररिया में चुनाव प्रचार करते कमर में अचानक दर्द शुरू हुआ. चुनाव प्रचार की वजह से उन को आराम भी करने को नहीं मिल रहा जिस से उन को कमर दर्द से राहत नहीं मिल रही है.

बीमारी के बीच भी तेजस्वी यादव चुनाव मैदान पर डटे नजर आते हैं. चुनाव के बीच वह आराम करने से बच रहे हैं. बीमारी के बीच भी वह सारण और सिवान पहुंचे और यहां कई जनसभाओं को संबोधित किया. सारण में तेजस्वी यादव अपनी बहन और इस लोकसभा क्षेत्र की उम्मीदवार रोहिणी आचार्य के समर्थन में एयरपोर्ट मैदान, राजेंद्र स्टेडियम में दो अलगअलग चुनावी सभाओं को संबोधित किया.

उन को मंच पर खड़े होने में समस्या आ रही थी. जिसे देखते हुए साथ चल रहे विकासशील इनसान पार्टी के संस्थापक मुकेश साहनी आगे आए. उन्होंने तेजस्वी का सहारा दिया और साहनी के कंधे के सहारे उन्होंने मतदाताओं को संबोधित किया. देर शाम तेजस्वी वापस पटना लौटे तो एक बार फिर व्हील चेयर पर एयरपोर्ट से बाहर नजर निकले और आवास के लिए प्रस्थान कर गए. तेजस्वी यादव को कमर दर्द की दिक्कत है. रीढ़ की हड्डी एल-4 और एल-5 में दर्द होने से कमर का दर्द हो रहा है. इस को स्लिप्ड डिस्क भी कहते हैं.

क्या होती है स्लिप्ड डिस्क

स्लिप्ड डिस्क तब होती है जब रीढ़ की हड्डी में हड्डियों के बीच ऊतक का एक नरम तकिया बाहर की ओर उभर जाता है. अगर यह नसों पर दबाव डालता है तो दर्द होता है. यह आमतौर पर आराम, हल्के व्यायाम और दर्द निवारक दवाओं से धीरेधीरे ठीक हो जाता है. इस को प्रोलैप्सड या हर्नियेटेड डिस्क भी कहा जाता है.

स्लिप्ड डिस्क के कारण पीठ के निचले हिस्से में दर्द, कंधों, पीठ, बांहों, हाथों, टांगों या पैरों में सुन्नता या झुनझुनी सी होती है. गर्दन में दर्द के साथ पीठ को मोड़ने या सीधा करने में दर्द होता है. कई बार जब डिस्क के दबाव से नितंबों, कूल्हों या पैरों में दर्द होने लगता है. सभी स्लिप्ड डिस्क के लक्षण पहले से नहीं दिखते हैं, जिस से कभी यह पता ही नहीं चलता कि डिस्क खिसक गई है.

कई बार उम्र बढ़ने, बहुत कठिन व्यायाम करने, भारी वस्तुओं को गलत तरीके से उठाने, लंबे समय तक बैठे रहना या गाड़ी चलाना, एक्सरसाइज न करने या अधिक वजन होने के कारण भी स्लिप्ड डिस्क हो सकता है. ज्यादा बाइक चलाने और सड़क ठीक न होने के कारण भी कमर का दर्द होने लगता है. इस से कमर में झटके पड़ते हैं. धूम्रपान करने वालों में निकोटीन रीढ़ की हड्डी में डिस्क ऊतक को कमजोर कर देता है. जिस से ऐेसे लोगों में यह परेशानी बढ़ जाती है.

स्लिप्ड डिस्क का इलाज

स्लिप्ड डिस्क से राहत के लिए लाइफ स्टाइल में बदलाव करना होता है. डाक्टर कुछ एक्सरसाइज बताता है. ज्यादा से ज्यादा आराम करने और दर्द निवारक दवाएं लेने से स्लिप्ड डिस्क के दर्द से राहत मिल सकती है. यदि दर्द बहुत तेज है तो पहले आराम करने की आवश्यकता हो सकती है. लेकिन जितनी जल्दी हो सके हल्का व्यायाम शुरू करें. यह तेजी से बेहतर होने में मदद करेगा.

व्यायाम में धीरेधीरे अपनी गतिविधि को बढ़ाएं. दर्द को कम करने के लिए इबुप्रोफेन जैसे सूजन रोधी दर्द निवारक दवाएं ली जा सकती हैं. जब दर्द अधिक हो तभी यह दवा लें क्योंकि इस के भी साइड इफैक्ट होते हैं.

अगर आराम, एक्सरसाइज और दर्द की दवा लेने के बाद भी राहत नहीं मिल रही है तो डाक्टर एमआरआई स्कैन जैसे अन्य जांच के लिए कह सकता है. जिस के आधार पर  फिजियोथेरैपिस्ट से इलाज के लिए कहा जा सकता है. स्लिप्ड डिस्क में आमतौर पर सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन यदि आप को लक्षण हैं तो डाक्टर सर्जरी की सलाह भी दे सकते हैं. स्लिप्ड डिस्क के इलाज में औस्टियोपैथी जैसी मैनुअल थेरैपी, पीठ के निचले हिस्से के दर्द को कम करने में मदद कर सकती है.

Mother’s Day 2024 : मदर्स डे पर पढ़ें मां से जुड़ी ये 10 प्रेरणादायक कहानियां

Mother’s Day 2024 : हर साल मई में मदर्स डे मनाया जाता है. इस साल 12 मई यानी रविवार को यह खास दिन मनाया जाएगा. इस दिन का हम सभी को बेसब्री से इंतजार रहता है. इस दुनिया में हमारे कितने भी रिश्ते बने पर मां की तरह कोई भी प्यार नहीं कर पाएगा. एक मां ही है, जो निस्वार्थ प्रेम करना जानती है, तो क्यों न इस मदर्स डे पर आप भी अपने मां के लिए कुछ खास करें. अगर आपको और आपकी मां को कहानियां पढ़ना पसंद है, तो हम इस आर्टिकल में लेकर आए हैं, टॉप 10 मदर्स डे स्पेशल स्टोरी. जिन्हें पढ़कर आप मोटिवेट होंगे और आपके रिश्ते भी मजबूत होंगे.

 

1. अम्मां जैसा कोई नहीं – क्या अनु ने अम्मा का साथ निभाया

mothers day special

अस्पताल के शांत वातावरण में वह न जाने कब तक सोती रहती, अगर नर्स की मधुर आवाज कानों में न गूंजती, ‘‘मैडमजी, ब्रश कर लो, चाय लाई हूं.’’

वह ब्रश करने को उठी तो उसे हलका सा चक्कर आ गया.

‘‘अरेअरे, मैडमजी, आप को बैड से उतरने की जरूरत नहीं. यहां बैठेबैठे ही ब्रश कर लीजिए.’’

साथ लाई ट्रौली खिसका कर नर्स ने उसे ब्रश कराया, तौलिए से मुंह पोंछा, बैड को पीछे से ऊपर किया. सहारे से बैठा कर चायबिस्कुट दिए. चाय पी कर वह पूरी तरह से चैतन्य हो गई. नर्स ने अखबार पकड़ाते हुए कहा, ‘‘किसी चीज की जरूरत हो तो बैड के साथ लगा बटन दबा दीजिएगा, मैं आ जाऊंगी.’’

50 वर्ष की उस की जिंदगी के ये सब से सुखद क्षण थे. इतने इतमीनान से सुबह की चाय पी कर अखबार पढ़ना उसे एक सपना सा लग रहा था. जब तक अखबार खत्म हुआ, नर्स नाश्ता व दूध ले कर हाजिर हो गई. साथ ही, वह कोई दवा भी खिला गई. उस के बाद वह फिर सो गई और तब उठी जब नर्स उसे खाना खाने के लिए जगाने आई. खाने में 2 सब्जियां, दाल, सलाद, दही, चावल, चपातियां और मिक्स फ्रूट्स थे. घर में तो दिन भर की भागदौड़ से थकने के बाद किसी तरह एक फुलका गले के नीचे उतरता था, लेकिन यहां वह सारा खाना बड़े इतमीनान से खा गई थी.

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2. मां का बटुआ- बेटी को समझ आती है मां की अहमियत

maa ka batua

मैं अकेली बैठी धूप सेंक रही हूं. मां की कही बातें याद आ रही हैं. मां को अपने पास रहने के लिए ले कर आई थी. मां अकेली घर में रहती थीं. हमें उन की चिंता लगी रहती थी. पर मां अपना घर छोड़ कर कहीं जाना ही नहीं चाहती थीं. एक बार जब वे ज्यादा बीमार पड़ीं तो मैं इलाज का बहाना बना कर उन्हें अपने घर ले आई. पर पूरे रास्ते मां हम से बोलती आईं, ‘हमें क्यों ले जा रही हो? क्या मैं अपनी जड़ से अलग हो कर तुम्हारे यहां चैन व सुकून से रह पाऊंगी? किसी पेड़ को अपनी जड़ से अलग होने पर पनपते देखा है. मैं अपने घर से अलग हो कर चैन से मर भी नहीं पाऊंगी.’ मैं उन्हें समझाती, ‘मां, तुम किस जमाने की बात कर रही हो. अब वो जमाना नहीं रहा. अब लड़की की शादी कहां से होती है, और वह अपने हसबैंड के साथ रहती कहां है. देश की तो बात ही छोड़ो, लोग अपनी जीविका के लिए विदेश जा कर रह रहे हैं. मां, कोई नहीं जानता कि कब, कहां, किस की मौत होगी. ‘घर में कोई नहीं है. तुम अकेले वहां रहती हो. हम लोग तुम्हारे लिए परेशान रहते हैं. यहां मेरे बच्चों के साथ आराम से रहोगी. बच्चों के साथ तुम्हारा मन लगेगा.’

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3. बेटी का सुख : वह मां के बारे में क्यों ज्यादा सोचती थी

beti ka sukh

मैं नहीं जानती बेटे क्या सुख देते हैं, किंतु बेटी क्या सुख देती है यह मैं जरूर जानती हूं. मैं नहीं कहती बेटी, बेटों से अच्छी है या कि बेटे के मातापिता खुशहाल रहेंगे. किंतु यह निश्चित तौर पर आज 70 वर्ष की उम्र में बेटी की मां व उस के 75 वर्षीय पिता कितने खुशहाल हैं, यह मैं जानती हूं. जब वह मेरे घर आती है तो पहनने, ओढ़ने, सोने, बिछाने के कपड़ों का ब्योरा लेती है. बिना इजाजत, बिना मुंह खोले फटापुराना निकाल कर, नई चादर, तकिए के गिलाफ, बैडकवर आदि अलमारी में लगा जाती है. रसोईघर में कड़ाही, भगौने, तवा, चिमटे, टूटे हैंडल वाले बरतन नौकरों में बांट, नए उपकरण, नए बरतन संजो जाती है.

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4. मम्मी जी के बेटे जी- मां और शरद का रिश्ता कैसा था?

kahani

प्रतिभा ने अपनी ससुराल फोन किया. 3 बार घंटी बजने के बाद वहां उस के पति शरद ने रिसीवर उठाया और हौले से कहा, ‘‘हैलो?’’ शरद की आवाज सुन कर प्रतिभा मुसकराई. उस ने चाहा कि वह शरद से कहे कि मम्मीजी के बेटेजी.

मगर यह बात उस के होंठों से बाहर निकलतेनिकलते रह गई. वह सांस रोके असमंजस में रिसीवर थामे रही. उधर से शरद ने दोबारा कहा, ‘‘हैलो?’’ प्रतिभा शरद के बारबार ‘हैलो’ कहते सुनने से रोमांचित होने लगी, पर उस ने शरद की ‘हैलो’ का कोई जवाब नहीं दिया. सांसों की ध्वनि टैलीफोन पर गूंजती रही. फिर शरद ने थोड़ी प्रतीक्षा के बाद झल्लाते हुए कहा, ‘‘हैलो, बोलिए?’’ किंतु प्रतिभा ने फिर भी उत्तर नहीं दिया, उलटे, वह हंसने को बेताब हो रही थी, इसीलिए उस ने रिसीवर रख दिया. रिसीवर रखने के बाद उस की हंसी फूट पड़ी. हंसतेहंसते वह पास बैठी अपनी बेटी जूही के कंधे झक झोरने लगी. जूही को मम्मी की हंसी पर आश्चर्य हुआ. इसीलिए उस ने पूछा, ‘‘मम्मी, किस बात पर इतनी हंसी आ रही है? टैलीफोन पर ऐसी क्या बात हो गई?’’ ‘‘टैलीफोन पर कोई बात ही कहां हुई,’’ प्रतिभा ने उत्तर दिया. ‘‘तो फिर आप को इतनी हंसी क्यों आ रही है? पापा पर?’’ जूही चौंकी. ‘‘हां.’’

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5. ममता – क्या ममता का रूप भी कभी बदल पाता है

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दालान से गायत्री ने अपनी बेटी की चीख सुनी और फिर तेजी से पेपर वेट के गिरने की आवाज आई तो उन के कान खड़े हो गए. उन की बेटी प्रिया और नातिन रानी में जोरों की तूतू, मैंमैं हो रही थी. कहां 10 साल की बच्ची रानी और कहां 35 साल की प्रिया, दोनों का कोई जोड़ नहीं था. एक अनुभवों की खान थी और दूसरी नादानी का भंडार, पर ऐसे तनी हुई थीं दोनों जैसे एकदूसरे की प्रतिद्वंद्वी हों.

‘‘आखिर तू मेरी बात नहीं सुनेगी.’’

‘‘नहीं, मैं 2 चोटियां करूंगी.’’

‘‘क्यों? तुझे इस बात की समझ है कि तेरे चेहरे पर 2 चोटियां फबेंगी या 1 चोटी.’’

‘‘फिर भी मैं ने कह दिया तो कह दिया,’’ रानी ने अपना अंतिम फैसला सुना डाला और इसी के साथ चांटों की आवाज सुनाई दी थी गायत्री को.

रात गहरा गई थी. गायत्री सोने की कोशिश कर रही थीं. यह सोते समय चोटी बांधने का मसला क्यों? जरूर दिन की चोटियां रानी ने खोल दी होंगी. वह दौड़ कर दालान में पहुंचीं तो देखा कि प्रिया के बाल बिखरे हुए थे. साड़ी का आंचल जमीन पर लोट रहा था. एक चप्पल उस ने अपने हाथ में उठा रखी थी. बेटी का यह रूप देख कर गायत्री को जोरों की हंसी आ गई. मां की हंसी से चिढ़ कर प्रिया ने चप्पल नीचे पटक दी. रानी डर कर गायत्री के पीछे जा छिपी.

‘‘पता नहीं मैं ने किस करमजली को जन्म दिया है. हाय, जन्म देते समय मर क्यों नहीं गई,’’ प्रिया ने माथे पर हाथ मार कर रोना शुरू कर दिया.

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6. बेटी : मां अपनी पोती के साथ कैसा व्यवहार कर रही थी?

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सीमा को चुभने लगा था मां का बातबात पर उस की तारीफ करना और टिन्नी को उस का उदाहरण देदे कर घुङकना. लेकिन अभी भी बीते वक्त से चिपकी मां आज और कल में फर्क नहीं करना चाहती थीं. जब यही अंतर सीमा ने मां को समझाय तो वह हतप्रभ रह गईं.

तेज कदमों से अपूर्व को घर में दाखिल होते देख सीमा सोचने लगी कि आज जरूर कोई खास बात होगी क्योंकि जब भी कोई नई सूचना अपूर्व को मिलती, अपनेआप ही उन की साधारण चाल में तेजी आ जाती.
सीमा को अपूर्व की यह सरलता बहुत भाती. अपूर्व के घर में दाखिल होने से पहले ही सीमा ने दरवाजा खोल दिया. अपूर्व ने आश्चर्य से सीमा को देखा और पूछा, ‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि मैं आ गया हूं?’’

‘‘यह कहिए कि आया ही नहीं हूं, एक अच्छी खबर भी साथ में लाया हूं, अपूर्व के चेहरे को देख कर सीमा बोली.’’

‘‘तुम्हें तो जासूसी विभाग में होना चाहिए था,’’ अपूर्व हंस कर बोले.

‘‘जल्दी से बताइए, क्या खुशखबरी लाए हैं,’’ सीमा चहकी.

‘‘चाय की चुसकी के साथ बताऊंगा,’’ अपूर्व सीमा के धैर्य की परीक्षा लेते हुए बोले.

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7. इमोशनल फूल : क्यों वह मासूम बच्चे से छुटकारा पाना चाहती थी?

emotional fool

वृक्षारोपण की औपचारिकता पूरी हुई तो मैं पार्क का चक्कर काटने के बहाने एक सुरक्षाकर्मी के साथ उस परिचित कोने की ओर खिसक लिया. पार्क में प्रवेश करने के साथ ही उमा आंटी की यादें मेरे दिमाग के द्वार थपथपाने लगी थीं और शायद उन्हीं यादों के वशीभूत मेरे कदम इस ओर उठ आए थे. पल्लू से ओट किए वहां बैठी एक वृद्धा के चेहरे की झलक दिखी तो मैं चौंक उठा. ‘अरे, ये तो उमा आंटी हैं!’

सुरक्षाकर्मी बीच में टपक पड़ा था, ‘मंत्रीजी हैं. पार्क में वृक्षारोपण के लिए आए हैं.’

मैं ने झुक कर प्रणाम किया तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया, ‘ऐसे ही नेक काम करते रहो. पर याद रखना बेटा, बीज बोने से बड़ा काम उसे सींचना है. यदि सींचने की हिम्मत नहीं रखते तो कभी बीज बोने की जुर्रत भी मत करना. न धरती के गर्भ में और न किसी स्त्री के गर्भ में.’ अपनी बात समाप्त कर वे उठ कर एक ओर चल दी थीं. मैं अवाक सा उन्हें जाते देखता रह गया था.

सवेरे उठा तो फिर वही बात जेहन में उभर आई. मैं गाड़ी उठा कर पार्क की ओर चल पड़ा. कदम सीधे वहीं जा कर रुके जहां मैं ने कल पौधा लगाया था. कल जहां पब्लिक, प्रैसवालों का जमघट लगा हुआ था आज वहां पर एक चिड़िया भी नजर नहीं आ रही थी. पौधा मुरझा कर लटक गया था. मैं दूर कहीं बहते पाइप को खींच कर लाया और पौधों को पानी पिलाया. तृप्त पौधों के साथ मेरा मन भी ख़ुशी से लहलहाने लगा. पाइप छोड़ कर पलटा तो उमा आंटी खड़ी मुसकरा रही थीं, ‘तुम सच्चे अर्थों में जनता के सेवक हो.’

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8. बिनब्याही मां: नीलम की रातों की नींद क्यों हराम हो गई

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सर्दी की खिलीखिली सी दोपहर में जैसे ही स्कूल की छुट्टी की घंटी बजी, मैं और मेरी सहेली सुजाता रोज की तरह स्कूल से बाहर आ गए. स्कूल के गेट के बाहर छोटेछोटे दुकानदारों ने अपनी अस्थायी दुकानें सड़क के किनारे, ठेले पर और साइकिल के पीछे लगे कैरियर पर बंधे लकड़ी के डब्बों में सजा रखी थीं, जिन में बच्चों को आकर्षित करने के लिए तरहतरह की टौफियां, चाट, सस्ती गेंदें व खिलौने के अलावा पेनकौपी भी थीं.

मैं ने एक साइकिल वाले से अपना पसंदीदा खट्टामीठा चूरन लिया और सुजाता के साथ रेलवे लाइन की ओर बढ़ गई. सुजाता बारबार मेरी ओर बेचैनी से देख रही थी, लेकिन कुछ बोल नहीं रही थी. रेलवे लाइन पार करने के बाद आखिरकार उस से रहा नहीं गया और उस ने मुझ से पूछा, “नीलम, सुना है, आज तेरी विकास से लड़ाई हो गई थी?”

“हां, तो उस में कौन सी नई बात है. अकसर होती है, पर बाद में दोस्ती भी तो हो जाती है,” मैं ने लापरवाही से चूरन की पुड़िया से उंगली में चूरन ले कर चाटते हुए कहा.

“बात तो कुछ नहीं, लेकिन मुझे पता चला कि उस ने तेरे हाथ पर काट भी लिया था,” उस ने बहुत रहस्यात्मक ढंग से कहा, तो मैं ने उस की ओर सवालिया निगाह से देखा और फिर अपने हाथ को देखा, जहां उस ने काटा था, अब तो वहां कोई निशान भी नहीं दिख रहा था.

“तो क्या हुआ? अब तो ठीक है सब. मैं ने भी उस के 2 बार काटा बदले में,” मैं ने शेखी बघारते हुए उसे बताया, जबकि मैं खुद डेढ़ पसली की थी. 10 साल की उम्र के हिसाब से मैं काफी दुबली थी, जबकि मेरी हमउम्र सहेलियां मुझ से बड़ी दिखती थीं.

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9. हमें तुम से प्यार कितना : अंशू से कितना प्यार करती थी मधु

humein tumse pyar kitna

मधु के मातापिता उस के लिए काबिल वर की तलाश कर रहे थे. मधु ने फैसला किया कि यह ठीक समय है जब उसे आलोक और अंशू के बारे में उन्हें बता देना चाहिए.

‘‘पापा, मैं आप को आलोक के बारे में बताना चाहती हूं. पिछले कुछ दिनों से मैं उस के घर जाती रही हूं. वह शादीशुदा था. उस की पत्नी सुहानी की मृत्यु कुछ वर्षों पहले हो चुकी है. उस का एक लड़का अंशू है जिसे वह बड़े प्यार से पाल रहा है. मैं आलोक को बहुत चाहती हूं.’’

मधु के कहने पर उस के पापा ने पूछा, ‘‘तुम्हें उस के शादीशुदा होने पर कोई आपत्ति नहीं है. बेशक, उस की पत्नी अब इस दुनिया में नहीं है. अच्छी तरह सोच कर फैसला करना. यह सारी जिंदगी का सवाल है. कहीं ऐसा तो नहीं है तुम आलोक और अंशू पर तरस खा कर यह शादी करना चाहती हो?’’

‘‘पापा, मैं जानती हूं यह सब इतना आसान नहीं है, लेकिन सच्चे दिल से जब हम कोशिश करते हैं तो सबकुछ संभव हो जाता है. अंशु मुझे बहुत प्यार करता है. उसे मां की सख्त जरूरत है. जब तक वह मुझे मां के रूप में अपना नहीं लेता है, मैं इंतजार करूंगी. बचपन से आप ने मुझे हर चुनौती से जूझने की शिक्षा और आजादी दी है. मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह फैसला कर रही हूं.’’

मधु के यकीन दिलाने पर उस की मां ने कहा, ‘‘मैं समझ सकती हूं, अगर अंशू के लालनपालन में तुम आलोक की मदद करोगी तो उस घर में तुम्हें इज्जत और भरपूर प्यार मिलेगा. सासससुर भी तुम्हें बहुत प्यार देंगे. मैं बहुत खुश हूं तुम आलोक की पत्नी खोने का दर्द महसूस कर रही हो और अंशू को मां मिल जाएगी. ऐसे अच्छे परिवार में तुम्हारा स्वागत होगा, मुझे लगता है हमारी परवरिश रंग लाई है.’’

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1o.  उसकी मम्मी मेरी अम्मा – आखिर दिक्षा अपनी मम्मी से क्यों नफरत करती थी?

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दीक्षा की मम्मी उसे कार से मेरे घर छोड़ गईं. मैं संकोच के कारण उन्हें अंदर आने तक को न कह सकी. अंदर बुलाती तो उन्हें हींग, जीरे की दुर्गंध से सनी अम्मा से मिलवाना पड़ता. उस की मम्मी जातेजाते महंगे इत्र की भीनीभीनी खुशबू छोड़ गई थीं, जो काफी देर तक मेरे मन को सुगंधित किए रही. मेरे न चाहते हुए भी दीक्षा सीधे रसोई की तरफ चली गई और बोली, ‘‘रसोई से मसालों की चटपटी सी सुगंध आ रही है. मौसी क्या बना रही हैं?’’ मैं ने मन ही मन कहा, ‘सुगंध या दुर्गंध?’ फिर झेंपते हुए बोली, ‘‘पतौड़े.’’ दीक्षा चहक कर बोली, ‘‘सच, 3-4 साल पहले दादीमां के गांव में खाए थे.’’मैं ने दीक्षा को लताड़ा, ‘‘धत, पतौड़े भी कोई खास चीज होती है. तेरे घर उस दिन पेस्ट्री खाई थी, कितनी स्वादिष्ठ थी, मुंह में घुलती चली गई थी.’’

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‘पाप पुण्य नहीं’ सही मतदान ही 5 साल की गांरटी देगा

कांग्रेस और सपा को वोट देना पाप है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यूपी में माफियाओं को नष्ट कर दिया. योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के एटा लोकसभा क्षेत्र में प्रचार कर रहे थे. इस दौरान सार्वजनिक रैली को संबोधित करते हुए उन्होने कहा कि उत्तर प्रदेश में माफियाओं के राज को खत्म कर दिया है. भाजपा आप के हितों के लिए काम कर रही है. कांग्रेस की सरकार आई तो वह एसटी, एससी व ओबीसी आरक्षण के एक हिस्से को मुसलमानों को दे देगी.

योगी ने कहा कि ‘उस समय के बारे में सोचें जब समाजवादी पार्टी के शासन के दौरान राजीव पाल की हत्या कर दी गई थी. भाजपा सरकार में एक माफिया ने उमेश पाल की हत्या कर दी थी, लेकिन अब हर कोई जानता है कि माफिया को कैसे नष्ट कर दिया गया. भाजपा आप के हितों के लिए काम कर रही है. इन चुनावों में आप को वोट देने से पहले जाति या धर्म नहीं देखना है. आप केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा देखिए.

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कांग्रेस और एसपी गठबंधन से सावधान रहें. यह यहां दो काम करने आए हैं, ‘अगर ये सत्ता में आए तो एसटी, एससी और ओबीसी आरक्षण का एक हिस्सा मुसलमानों को देंगे. इस इरादे के साथ देश के इसलामीकरण और तालिबानी व्यवस्था को लागू कर कांग्रेस देश को विभाजन की ओर धकेल रही है. दूसरी ओर वे कह रहे हैं कि वे अल्पसंख्यकों को जो चाहें खाने की आजादी देंगे. क्या यह बहुसंख्यकों के लिए आपत्तिजनक है? यूपी में गोहत्या प्रतिबंधित है. कांग्रेस एसपी को दिया गया कोई भी वोट पाप का कारण होगा.’

संविधान ने मतदान को कहा, पाप पुण्य को नहीं

देश का संविधान कहता है कि हर भारत के नागरिक को अपना जनप्रतिनिधि चुनने का अधिकार है. इस के लिए लोकसभा, विधानसभा और पंचायत के चुनाव होते हैं. नागारिक बिना किसी डर लाभ के वोट करें. अपने जनप्रतिनिधि को वोट दे कर चुन सके. वह सरकार बनाए देश के हित और विकास में वोट दे. हर 5 साल के बाद नागरिकों को यह अधिकार मिलता है. वोट देने के समय यह देखना जरूरी होता है कि जिसे आप चुन रहे हैं वह कैसा है ? राजनीतिक दल अपने अलगअलग तरह के प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतार देते हैं. इस के बाद उस के पक्ष में वैसा ही प्रचार होता है जैसे गोरेपन की क्रीम का होता है.

वैसे तो लोकसभा के चुनाव सांसद चुनने के लिए होता है. लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में प्रचार यह किया जा रहा है कि केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा देख कर चुनाव हो. योगी ने अपने भाषण में कहा कि ‘आप केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा देखिए.’ वोट देते समय आप को अपने सांसद का चेहरा देखने की जरूरत है. आप के क्षेत्र में जो चुनाव लड़ रहा है उसे देख कर वोट दीजिए. वोट पाने के लिए ही पाप और पुण्य की बात कही जा रही है.

असल में रूढ़िवादी सोच हमें पाप, पुण्य और पुर्नजन्म की कहानियां सुनाती है. हम कोई भी काम करने से पहले पाप, पुण्य को देखते हैं. इस के सामने आते ही हम अपनी आंखें बंद कर लेते हैं. इस के बाद कोई भी हमें बेवकूफ बना कर जा सकता है. यही बात चुनाव प्रचार में समझाई जा रही है. योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री होने के साथ ही साथ संत भी हैं. तो उन की इस तरह की अपील ज्यादा प्रभावी होती है. इसीलिए भाजपा उन का प्रयोग कर रही है. चुनाव प्रचार में वह नरेंद्र मोदी के बाद भाजपा के नंबर दो के नेता हैं. उन का प्रचार धर्म का प्रचार लगता है.

पुण्य मतलब भाजपा

योगी आदित्यनाथ के बयान में पाप मतलब कांग्रेस और दूसरे विरोधी दल हैं तो पुण्य मतलब भाजपा है. मतदान को भी योगी ने एक तरह का दान समझ लिया है. दान के बारे में कहा जाता है कि यह सुपात्र को ही दिया जाता है. अब देखिए यहां सुपात्र किस को बताया जा रहा है. जो दिन भर हिंदूमुसलमान करें. मंदिर बनवाए, अपार शक्ति वाला राजा हो. वह ऋषि मुनियों की जमात से आए. यहां शूद्र हो कर पठनपाठन करने वालों को सुपात्र नहीं माना गया है. भाजपा खुद को दूसरे दलो से श्रेष्ठ मानती है. चुनाव प्रचार में भाजपा अपने 10 साल की सरकार के कामकाज पर हिसाब देने बात करने को तैयार नहीं है.

उसे लगता है कि यह बातें जनता को लुभाने में सफल नहीं होगी. ऐसे में भाजपा के निशाने पर या तो कांग्रेस का गांधी परिवार है या फिर हिंदूमुसलमान. 3 चरण के चुनाव प्रचार में यही देखने को मिल रहा है. 10 साल केंद्र में भाजपा की सरकार काम कर रही है 7 साल से उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार है. यह डबल इंजन की सरकार से प्रदेश को क्या हासिल हुआ ? न तो परिक्षाओं में पेपर लीक रुकी है न नौकरियां मिल रही हैं. रिश्वतखोरी भी कम नहीं हुई है. आखिर बदलाव है कहां ? इस वजह से ही भाजपा पाप पुण्य को मुद्दा बना रही है.

मतदान कोई दान नहीं है. जिस को बिना कुछ सोचेसमझे दे दिया जाए. मतदान एक अधिकार है. जिम्मेदारी है. ऐसे में संविधान कहता है कि अपने मत का प्रयोग बहुत सोचसमझ कर करें. तभी लोकतंत्र की अवधारणा सच होगी. अगर किसी दबाव या लोभ के बल पर वोट दिया गया तो वोट की ताकत को कमजोर करना होगा. इस से लोकतंत्र भी कमजोर होगा. मतदान आप का अधिकार ही नहीं जिम्मेदारी भी है. सोचसमझ कर सतर्कता के साथ मतदान करें. आप का सही मतदान ही 5 साल की गांरटी देगा.

मई का पहला सप्ताह, कैसा रहा बौलीवुड का कारोबार हम तो डूबेंगें सनम, तुम्हे भी ले डूबेंगे

अप्रैल के चौथे सप्ताह तक देशभर के सिनेमाघरों में विरानी छा चुकी थी. इस के बावजूद कुछ फिल्मकार अपने पीआर के कहने पर खुद के साथसाथ पूरे सिनेमा उद्योग को डुबाने पर आमादा नजर आ रहे हैं. एक मई से लगभग 80 प्रतिशत सिनेमाघरों पर फिलहाल दो माह के लिए ताला लग चुका है.

कुछ सिंगल स्क्रीन्स हर दिन सिर्फ एक शो कर रहे हैं तो वहीं कुछ मल्टीप्लैक्स अपने यहां की 4 में से 3 स्क्रीन्स बंद कर एक स्क्रीन्स के कुछ शो चला रहे हैं. ऐसे में नए कलाकारों से सजी नए निर्देशक की फिल्म को सिनेमाघरो में उभारने से पहले निर्माता को 10 बार सोचना चाहिए. मगर नएनए निर्माता तो अपने पीआर के कहने पर ‘सूली पर चढ़ते’ हुए नजर आ रहे हैं.

जी हां, मई के पहले सप्ताह यानी कि 3 मई को लेखक व निर्देशक दानिश जावेद की फिल्म ‘प्यार के दो नाम’ प्रदर्शित हुई. इस फिल्म में भाव्या सचदेव, अंकिता साहू, कनिका गौतम, अचल तंकवाल ने अभिनय किया है. इस फिल्म का कहीं ठीक से प्रचार नहीं किया गया था. दर्शकों को इस फिल्म के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. मगर फिल्म के निर्माता ने अपने पीआर की सलाह पर फिल्म को 3 मई को प्रदर्शित कर दिया.

फिल्म को एडवांस बुकिंग शून्य मिली, जिस के चलते 3 मई के सभी शो रद्द हो गए. 3 मई को मुंबई अंधेरी स्थित ‘पीवीआर आईकान’ मल्टीप्लैक्स की एक स्क्रीन में शाम पौने आठ बजे पहला शो संपन्न हुआ. यह पहला शो ही प्रेस शो, प्रीमियर शो और आम दर्शकों के लिए शो था.

कहने का अर्थ यह कि इस शो की सारी टिकटें निर्माता ने अपनी जेब से खरीदी थीं और लोगों ने मुफ्त में फिल्म देखी. फिर भी सिनेमा हौल पूरा भरा हुआ नहीं था. आखिर निर्माता व पीआरओ के बुलाने पर कितने लोग आते, वह भी शुक्रवार 3 मई को रात पौने आठ बजे के शो में. कुल मिला कर फिल्म ‘प्यार के दो नाम’’ का सिनेमाघर में प्रदर्शित होना या न होना को आप यही कह सकते हैं कि ‘जंगल में मोर नाचा, किस ने जाना.’

हमारे सूत्र बताते हैं कि इस फिल्म ने पूरे सप्ताह 5 लाख रूपए भी नहीं कमाए, जबकि निर्माता की तरफ से 20 लाख रूपए की टिकट बिकने की बात की गई है. यदि हम निर्माता की बात सही मान लें, तो भी उस के हाथ में 20 लाख में से महज 5 लाख रूपए ही आए होंगें, अब बेचारा निर्माता इस राशि का क्या करेगा.

ऊपर से इस फिल्म पर भी सिनेमा को डुबाने का आरोप लग गया. नए कलाकारों का कैरियर शुरू होने से पहले ही डूब गया. यदि निर्माता ने ठीक से प्रचार किया होता और दर्शकों तक खबर सही ढंग से पहुंचाई होती कि उन की फिल्म का विषय क्या है और किस शहर के किस सिनेमाघर में लग रही है, तो शायद कुछ पैसे कमा लेते.

फिल्म ‘प्यार के दो नाम’ में प्यार के नए मायने बताए गए हैं. एक प्यारी से प्रेम कहानी वाली इस फिल्म में गांधीजी और नेल्सन मंडेला के विचारों का टकराव भी है. अब यदि दर्शक इसे देखते तो शायद उन्हें यह फिल्म पसंद आ जाती, मगर निर्माता की अपनी गलती की वजह से फिल्म देखने दर्शक सिनेमाघर ही नहीं पहुंचा.

उधर सिनेमाघर मालिकों को अब सिर्फ दक्षिण की फिल्मों ‘कलकी 2898’ और पुष्पा 2’ के प्रदर्शन का इंतजार है, जिन से उन्हें उम्मीद है कि दर्शक सिनेमाघर आएगा. पर अफसोस इन फिल्मों के प्रदर्शन की तारीखें अभी तक कई बार बदल चुकी हैं. अब नए समाचार के अनुसार 27 जून को ‘कलकी 2898’ और 15 अगस्त को ‘पुष्पा 2’ प्रदर्शित होगी. जबकि हिंदी में एक भी बड़ी फिल्म सितंबर तक रिलीज नहीं होने वाली है.

कुछ फिल्मों की तारीखें आगे खिसका दी गई हैं. पहले 15 अगस्त को रोहित शेट्टी अपनी फिल्म ‘सिंघम अगेन’ ले कर आने वाले थे, पर अब वह इतना डर गए हैं कि वह ‘सिंघम अगेन’ को 15 अगस्त की बजाय 2025 के जनवरी माह में लाने की बात कर रहे हैं.

अधिकारियों और बिल्डर्स के भ्रष्टाचार के खेल में पिसते ग्राहक

अपने घर का सपना तो हर व्यक्ति की आंखों में होता है मगर आज के समय में घर बनाना आसान नहीं है. एक आम आदमी जीवन के 35-40 साल कठोर श्रम के बाद जो पैसा जोड़ता है उस में से रोजमर्रा की जरूरतों और बच्चों की पढ़ाई आदि का खर्च निकाल कर वह जो थोड़ीथोड़ी बचत करता है उस पूंजी से ही उम्र के 50वें या 60वें साल में जा कर कहीं अपना घर बना पाता है.

अनेक लोग जो 40 की उम्र के आसपास घर बनवाते हैं या खरीदते हैं, वे इस के लिए बैंक से लोन लेते हैं और फिर जीवनभर लोन चुकाते हैं. कभीकभी तो अपने घर का सपना पूरा करने में घर की गृहणी के सारे जेवर तक बिक जाते हैं. उस का सारा स्त्रीधन निकल जाता है. परन्तु अपने जीवनभर की कमाई बिल्डर को सौंपने के बाद भी यदि किसी को उस के सपने का घर न मिले, या तय समय में न मिल कर सालों के इंतजार के बाद मिले अथवा ऐसा घर मिले जिस की दीवारें कुछ ही समय में झड़ने लगे तो बेचारे की क्या दशा होगी? वह खुद को ठगा हुआ महसूस करेगा.

कई बार तो लोग ऐसी घटनाओं से इतने आहत हो जाते हैं कि खुदकुशी तक कर बैठते हैं. उपभोक्ता फोरम में ऐसे मामलों की फाइलों के ढेर लगे हुए हैं. अदालतों में अनेक बिल्डरों के खिलाफ मामले दर्ज हैं, मगर ऐसी घटनाएं जारी है.

जीवनभर की पूंजी लगा देने के बाद भी अपना घर न मिलने के ऐसे ही एक मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक फैसला 8 मई को सुनाया है. दिल्ली हाईकोर्ट ने हरियाणा के गुरुग्राम में सरकारी रीयल एस्टेट कंपनी एनबीसीसी को एक फ्लैट खरीदार को 12% ब्याज के साथ 76 लाख रुपए से अधिक रकम लौटाने का आदेश दिया है. यही नहीं ग्राहक को मानसिक पीड़ा देने की एवज में 5 लाख रुपए अतिरिक्त देने का भी आदेश दिया गया है.

गौरतलब है कि रीयल एस्टेट कंपनी एनबीसीसी को सारा भुगतान करने के बाद भी 6 सालों से अपना फ्लैट मिलने का इंतजार करने वाले याचिकाकर्ता संजय रघुनाथ पिपलानी एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं. उन्होंने वर्ष 2012 में गुरुग्राम के लिए शुरू की गई परियोजना एनबीसीसी ग्रीन व्यू अपार्टमेंट में एक फ्लैट बुक कराया था, लेकिन 2017 में 76 लाख रुपए से अधिक की पूरी बिक्री कीमत का भुगतान करने के बावजूद उन्हें आज तक फ्लैट नहीं मिला.

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने एनबीसीसी को खरीदार (वादी) द्वारा भुगतान की गई पूरी रकम 30 जनवरी 2021 से आज तक 12 प्रतिशत ब्याज के साथ वापस करने का आदेश देते हुए कहा कि घर खरीदना किसी व्यक्ति या परिवार का अपने जीवन काल में किए गए सब से महत्वपूर्ण निवेशों में से एक है. इस में अकसर बरसों की बचत, सावधानीपूर्वक योजना और भावनात्मक निवेश शामिल होता है.

अदालत ने कंपनी को फटकार लगाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को पिछले 7 साल में घर बदलने पड़े और अत्यधिक मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ा है. वादी को 6 साल से अधिक की देरी और अनिश्चितता के कारण काफी परेशानी उठानी पड़ी. ऐसे में यह अदालत एनबीसीसी को याचिकाकर्ता को हर्जाने के रूप में 5 लाख रुपए का भुगतान करने का निर्देश देती है.

इस संबंध में याचिकाकर्ता ने बताया कि उस ने 2012 में गुड़गांव में एनबीसीसी द्वारा शुरू की गई एक परियोजना ‘एनबीसीसी ग्रीन व्यू अपार्टमेंट’ में एक फ्लैट बुक कराया था, लेकिन 2017 में 76,85,576 रुपए की पूरी बिक्री कीमत का भुगतान करने के बावजूद, फ्लैट उसे कभी नहीं सौंपा गया.

कोर्ट ने कहा कि “घर खरीदना किसी व्यक्ति या परिवार द्वारा अपने जीवनकाल में किए गए सब से महत्वपूर्ण निवेशों में से एक है. इस में अकसर वर्षों की बचत, सावधानीपूर्वक योजना और भावनात्मक निवेश शामिल होता है. जब ऐसे घरों के निर्माता अपना वादा पूरा करने में असफल हो जाते हैं, तो वे घर खरीदने वालों के भरोसे और वित्तीय सुरक्षा को चकनाचूर कर देते हैं और घर खरीदने वालों को ऐसी स्थिति में डाल देते हैं, जहां उन्हें अत्यधिक तनाव, चिंता, अनिश्चितता का सामना करना पड़ सकता है और अंततः सहारा लेने के लिए कानूनी रास्ते अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है.”

जज ने कहा, “अपने निवेश के भविष्य और उन के रहने की व्यवस्था की स्थिरता के बारे में अनिश्चितता के कारण अधर में रहने का भावनात्मक बोझ कम नहीं किया जा सकता है. गलत घर खरीदने वालों को मुआवजा देना न केवल पिछले अन्याय को सुधारने का मामला है, बल्कि भविष्य के कदाचार को रोकने का भी मामला है.”

एनबीसीसी को मुआवजा देने के लिए कहते समय, एचसी ने इस तथ्य को भी ध्यान में रखा कि याचिकाकर्ता को पिछले 7 वर्षों में आवास बदलने और खुद की देखभाल करने के लिए मजबूर किया गया था.

अदालत ने कहा, “यह एक घर खरीदार द्वारा झेली गई अत्यधिक कठिनाई का एक क्लासिक मामला है, जिसे अपनी पूरी जिंदगी की बचत खर्च करने के बाद दरदर भटकना पड़ा. प्रतिवादी ने घर खरीदने वालों के साथ इस तरह का व्यवहार कर के बेहद अनुचित व्यवहार किया है.” .

गुरुग्राम में एनबीसीसी ने कई ऐसे प्रोजैक्ट बनाए हैं जो मानक पर खरे नहीं उतरे हैं. एनबीसीसी के अधिकारियों और बिल्डर्स के गठजोड़ के चलते भ्रष्टाचार का ऐसा खेल चल रहा है जिस में ग्राहक पिस रहा है. 2 साल पहले सैक्टर 37 डी स्थित एनबीसीसी की ग्रीन व्यू सोसायटी रहने के लिए असुरक्षित पाई गई. जबकि इस को बने कुछ ही समय बीता था. यहां फ्लैट्स की दीवारों से प्लास्टर गिरने लगा और कई फ्लैट की छतें दरक गईं.

ग्रीन व्यू सोसायटी के आरडब्ल्यूए के अध्यक्ष जी मोहंती कहते हैं कि उन्हें एनबीसीसी की बातों पर भरोसा नहीं है. 5 साल पहले जो फ्लैट ग्राहकों को दिए गए वह 5 साल में जर्जर हो गए. जब शुरू में इस की शिकायत एनबीसीसी के अधिकारियों से की गई थी तब विशेषज्ञों की रिपोर्ट को उन्होंने इस अंदाज में प्रस्तुत किया था कि इमारत सुरक्षित है और थोड़ी सी मरम्मत की जरूरत है. लेकिन जब एक फ्लैट की छत गिरी और दो महिलाओं की जानें गई तब एनबीसीसी ने इमारत को असुरक्षित बताते हुए रातोंरात खाली करने का आदेश जारी कर दिया. सब के लिए अचानक अपनी रिहाइश छोड़ कर कहीं और शिफ्ट हो जाना कितना मुश्किल था.

कई परिवार में बहुत बूढ़े लोग थे, वे रातोरात कहां चले जाते? लोगों ने कंपनी के खिलाफ धरने प्रदर्शन किए. आज भी उस सोसाइटी में कई लोग खतरे के बीच रह रहे हैं. फ्लैट बनाने के लिए इतनी घटिया सामग्री लगाई गई कि 5 साल में ही बिल्डिंग जर्जर हो गई. इन की इमारतों का लगातार क्षरण हो रहा है. लगातार प्लास्टर गिर रहा है. कंक्रीट धीरेधीरे टूट कर गिर रही है. सरिया बाहर निकल आए हैं. यह क्रम लगातार चल रहा है, मगर ग्राहक क्या करे, कहां जाए? सारी पूंजी तो फ्लैट खरीदने में लगा दी अब कहीं बाहर रहने पर किराए के लिए पैसा कहां से लाएं?

घर के सपने दिखा कर तमाम निर्माण कंपनियों ने हजारोंलाखों जरूरतमंद लोगों को अपने जाल में फंसा रखा है. प्राधिकरणों के डायरैक्टरों और अधिकारियों की मिलीभगत से कौड़ियों के भाव ली गई जमीनों पर इंजीनियरों और ठेकेदारों से घटिया कंस्ट्रक्शन करवा कर तमाम निर्माण कम्पनियां चाहे सरकारी हों या गैर सरकारी, करोड़ोंअरबों का वारा न्यारा कर रही हैं. इस भ्रष्टाचार में सरकारों और बैंकों की भूमिकाएं भी संदेह के घेरे में हैं. नुकसान उठा रहा है आम आदमी. लाखों लोग रेरा जैसे कानून के बावजूद एक अदद घर की आस में धक्के खा रहे हैं.

देश के कोनेकोने में ऐसे असंख्य भवन खड़े हो रहे हैं जो कंपनी डायरैक्टरों, अधिकारियों, राजनेताओं, बिल्डरों और ठेकेदारों के गठजोड़ के कारण घटिया सामग्री इस्तेमाल कर बनाए गए हैं. जब कोई हादसा होता है तो अधिकारी सारा ठीकरा ठेकेदार के सिर फोड़ कर खुद पाक साफ निकल जाते हैं. ठेकेदार गिरफ्तार होता है और कुछ समय में पैसा खिला कर उसे भी बचा लिया जाता है. चाहे मुंबई की आदर्श सोसाइटी का किस्सा हो या नोएडा के ट्विन टावरों के ध्वस्तीकरण का, अदालतें ने इन को गिराने के आदेश तो दिए मगर जब तक सब से ऊपर की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को कौलर पकड़ कर जेल नहीं भेजा जाएगा तब तक यह यह गंदा खेल रुकने वाला नहीं है.

अदालत द्वारा रीयल एस्टेट कंपनी एनबीसीसी के खिलाफ आदेश सुनाने और पीड़ित को पूरा पैसा वापस दिलाने भर से यह धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार नहीं रुकेगा जब तक एनबीसीसी के डायरैक्टर के. पी. महादेवास्वामी से जवाबदारी न मांगी जाए. जब तक उन को अदालत के कटघरे में न बुलाया जाए.

‘निसंतानता’ जैसे बड़े विषय पर फिल्म बनाने से क्यों कतरा रहा बौलीवुड

रश्मि मां नहीं बन पाई, क्योंकि उस का बारबार मिसकैरिज हो जाता था. उन्होंने कई बार डाक्टर से सलाह ले कर दवाइयां लीं, लेकिन वह मां नहीं बनी. अंत में रश्मि ने अपनी जिंदगी को अपनी तरीके से जीना शुरू किया, जिस में उस ने नौकरी कर ली और अपनी हौबी को करना शुरू किया. आज वह खुश है, लेकिन 50 साल की इस उम्र में भी वह जब भी अपने पति के साथ किसी गेटटूगेदर में जाती है, लोगों को फुसफुसाते हुए सुनती है या दयाभाव को जाहिर करते हुए पाती है, जो, हालांकि, पहले की अपेक्षा कम हुआ है. उन दोनों की इस बिंदास जीवनशैली से कई पतिपत्नी प्रेरित भी होते हैं, जो रश्मि को अच्छा लगता है.

पतिपत्नी में अच्छी बौंडिंग

असल में जब दंपती मातापिता बनते हैं तो उन की जिंदगी बच्चों के पालनपोषण में गुजर जाती है. ऐसे में बहुत कम पतिपत्नी होते हैं जो एकदूसरे की जिंदगी का ध्यान रख पाते हैं. जबकि देखा गया है कि निसंतान पतिपत्नी का आपसी प्यार और उन की बौंडिंग बहुत अच्छी होती है. अभिनेता दिलीप कुमार और अभिनेत्री सायरा बानो की आपसी बौंडिंग इस का एक उदाहरण है. उन के कोई संतान नहीं थी, लेकिन उन दोनों का आपसी प्यार बहुत स्ट्रौंग था. एक बार अभिनेत्री सायरा बानो ने कहा भी है कि मेरे अपने बच्चे भले ही नहीं हैं लेकिन मेरे आसपास बहुत सारे बच्चे हैं जिन को मैं ने अपने परिवार में बड़ा होते हुए देखा है. उन में केवल परिवार ही नहीं, बल्कि हमारे घर के हैल्पर भी है. हम दोनों को कभी नहीं लगा कि हमारे बच्चे नहीं हैं.

चौइस कपल्स की

असल में मां बनना एक महिला के लिए नैसर्गिक प्रक्रिया है, लेकिन कई बार कुछ कारणों से महिला मां नहीं बन पाती. सार्वजनिक स्थानों पर ऐसी महिला के प्रति समाज और परिवार आजकल हीनभावना दिखाने की अपेक्षा दयाभाव ज्यादा दिखाते हैं. अगर कपल संभ्रांत परिवार का हो, तो फिर क्या ही कहने. लोगों की हमदर्दी अनचाहे ही उन पर आ गिरती है, मसलन उन के बाद में उन की प्रौपर्टी का मालिक कौन होगा, व्यवसाय को कौन चलाएगा आदि कई प्रश्नों का सामना उन्हें करना पड़ता है, जो उन कपल को कई बार खराब भी लगता है.

हालांकि आजकल कई प्रकार के इलाज द्वारा प्रैगनैंसी संभव है, मसलन सरोगेसी, अडौप्शन, आईवीएफ आदि लेकिन ये सब उन कपल्स की चौइस होती है कि बच्चा उन्हें चाहिए या नहीं. आजकल अधिकतर पतिपत्नी दोनों कामकाजी हैं, बच्चे की जिम्मेदारी लेने से वे घबराते हैं.

सीमा और कुशल की भी कहानी यही है. 10 साल हुए उन की शादी को. दोनों मुंबई में रहते हैं. दोनों आर्किटैक्ट हैं लेकिन उन्हें बच्चा नहीं चाहिए, क्योंकि बच्चे को पालने वाला कोई नहीं है और वे अपने बच्चे की जिम्मेदारी सास या मां पर देना नहीं चाहते. यह उन दोनों की सम्मिलित सोच है, दोनों अपनी जिंदगी से खुश हैं. हालांकि परिवार वाले उन पर बच्चे के लिए प्रैशर बनाते हैं लेकिन उन्होंने साफसाफ कह दिया है कि हम दोनों में कोई डिफैक्ट नहीं है और हमें बच्चा नहीं चाहिए. सो, परिवार वाले भी चुप हैं.

क्या कहते हैं आंकड़े

हाल के वर्षों में विकासशील देशों में बिना बच्चे वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि देखी जा रही है. भारत भी उन में से एक है. भारत में निसंतानता बढ़ी है. वर्ष 2015-2016 में भारत में 7 फीसदी महिलाएं निसंतान थीं, जो 2019-2021 में बढ़ कर 12 फीसदी हो गईं. संतानहीनता शिक्षा के स्तर, शादी की उम्र, बौडी मास इंडैक्स (बीएमआई) स्तर और थायरौयड की उपस्थिति से सकारात्मक रूप से जुड़ी हुई है, जिस में शहरी महिलाओं में निसंतानता की संख्या अधिक है. इस की वजह महिलाओं की स्कूली शिक्षा, आत्मनिर्भरता, शादी की उम्र, मीडिया एक्सपोज़र आदि के बढ़ते रुझान को देखते हुए निसंतान महिलाओं का प्रतिशत बढ़ रहा है. यही वजह है कि आजकल औलाद पाने का कारोबार भी खूब बढ़ रहा है.

नहीं लिखी गई कहानियां

अगर फिल्मों की बात करें तो फिल्मों की कहानियां भी आज तक ऐसी नहीं लिखी गईं जिन में किसी दंपती को फिल्म के अंत तक बच्चा नहीं है और वे अपनी जिंदगी को एक अलग अंदाज में जी रहे हैं. अधिकतर फिल्मों में ऐक्ट्रैस निसंतान तो होती है, लेकिन अंत में उसे किसी न किसी रूप में बच्चा मिल ही जाता है, जो दर्शकों के लिए पौजिटिव एन्डिंग होती है. इस बारे में ‘लिपस्टिक अंडर माय बुर्का’ की निर्देशक और लेखक अलंकृता श्रीवास्तव कहती हैं, “यह सही है कि निसंतान दंपती को ले कर फिल्मों की कहानियां नहीं लिखी गईं और आज की तारीख में दंपती की चौइस कई बार मातापिता बनने की नहीं होती और किसी ने इस विषय पर फिल्म बनाने या लिखने के बारे में सोचा भी नहीं है.

“असल में हमारे दर्शक किसी फिल्म का सुखांत चाहते हैं. नकारात्मक एन्डिंग को वे पसंद नहीं करते, इसलिए जो समाज या परिवार में होता है, उसे ही अधिकतर फिल्म के विषय के रूप में लिया जाता है.”

महिला फिल्ममेकरों की जरूरत

फिल्म निर्देशक व लेखक अलंकृता श्रीवास्तव आगे कहती हैं, “बिना मां बने किसी स्टोरी का फोकस, शायद नहीं हुआ है. रियल लाइफ में महिलाएं या तो मां बनना नहीं चाहतीं या फिर किसी मैडिकल कारण से वे मां नहीं बन सकतीं. ऐसे में बच्चा पाने के आजकल कई साधन उपलब्ध हैं जिन में बच्चे को अडौप्ट किया जा सकता है, आईवीएफ करवा सकते हैं, सरोगेसी एक औप्शन है. मां न बनने की बात को मैं ने ‘शो बौम्बे बेगम्स’ में अभिनेत्री शाहाना गोस्वामी के माध्यम से दिखाया है, जो प्रैगनैंसी के लिए स्ट्रगल कर रही होती है. मिसकैरिज होता रहता है. सरोगेसी या अडौप्शन के लिए वह जाती है और वह ये सब अपने पति के लिए कर रही है, क्योंकि पति को बच्चा चाहिए.”

फिल्मों में ऐसे चरित्र होते हैं जिन्हें बच्चा नहीं हो रहा है, लेकिन पूरी तरह से मुख्य भूमिका में मां न बन पाने को ले कर अभी तक कहानी नहीं बनी है. फिल्म क्रू में भी करीना कपूर को बच्चा नहीं होता. यह सही है कि मुख्य पात्र पर फोकस कर जिन्हें बच्चा नहीं चाहिए या नहीं है, वैसी कहानी शायद आगे कोई अवश्य लिखेगा, जिसे फिल्ममेकर बनाएंगे, लेकिन इस में अधिक से अधिक महिला निर्माता, निर्देशक और लेखक की आवश्यकता है जो महिलाप्रधान फिल्म बनाने पर अधिक महत्त्व देंगे और जिस में इस विषय पर फोकस होगा.

अल्टीमेट गोल मां बनना नहीं होता

अलंकृता आगे कहती हैं, “मैं ने अभी इस विषय पर फिल्म बनाने के बारे में सोचा नहीं है, पर सोचना अवश्य चाहूंगी, क्योंकि जैसा मैं ने देखा है कि यह एक कपल की खुद की चौइस होती है कि वे बच्चा चाहते हैं या नहीं. आज एक महिला सिंगल रह कर भी मां बनना पसंद करती है, जबकि कोईकोई महिला शादी के बाद भी मां बनना नहीं चाहती. किसी में भी कोई समस्या आज नहीं है.
“मैं ने मां बनने को ले कर कई थीम पर फिल्में बनाई हैं क्योंकि एक महिला के मां बनने के बाद भी कई समस्याएं आती हैं. मां बनना किसी के लिए आसान नहीं होता. जैसा कि मेरी फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माइ बुर्का’ में कोंकणा सेन को अधिक बच्चा नहीं चाहिए, इसलिए वह बर्थ कंट्रोल करना चाहती है, जबकि फिल्म ‘डौली किटी और वो चमके सितारे’ में कोंकणा के चरित्र में भी जटिल मदरहुड को दिखाया गया है, जहां वह 2 बच्चों में से एक को ले कर चली जाती है.

“असल में मां बनना आसान नहीं होता. सीरीज ‘मेड इन हैवन’ में भी सभी मांओं की एक अलग तसवीर दिखाई गई है, सभी मां परफैक्ट नहीं होतीं. मदरहुड एक ईमानदार और प्यार देने वाली होती है, इसे ग्लोरीफाय करने की जरूरत नहीं होती क्योंकि वह भी एक ह्यूमन बीइंग है और उस का व्यवहार अपने बच्चे के प्रति अलग हो सकता है. मैं ऐसी ही सोच रखती हूं और मैं ने उसे ही परदे पर लाने की कोशिश की है.

“मेरे हिसाब से आज की महिला का अल्टीमेट गोल मां बनना नहीं हो सकता. मैं ने अपने काम में इसे दिखाना चाहा भी है. अभी आगे काफी इक्स्प्लोर करना है, जिस में शायद मां न बनने की चौइस, विषय पर भी फोकस डाली जाएगा. इस में मैं खासतौर पर यह भी कहना चाहूंगी कि किसी भी महिला की खुद की चाहत होनी चाहिए कि उसे बच्चा चाहिए या नहीं, उस की फ्रीडम, उस का संकल्प, जिसे सभी सहयोग दें, उस की इस चौइस को कोई गलत न ठहराएं. इस पर अधिक से अधिक कहानी कही जानी चाहिए.”

महिलाओं को न दें देवी का दर्जा

अलंकृता बताती हैं, “मुझे बहुत ताज्जुब होता है कि महिलाओं को देवी का दर्जा दे दिया जाता है. महिला सुपरवुमन नहीं है. साधारण महिला है. उसे सांस लेने की आजादी चाहिए, जो अभी तक उसे नहीं मिल पाई है.”

ऐक्ट्रैसेस जो रियल लाइफ में नहीं बनीं मां

इस के अलावा बौलीवुड की ऐसी कई ऐक्ट्रैस हैं जिन्होंने मां की भूमिका परदे पर बखूबी निभाई पर रियल लाइफ में मां नहीं बनीं क्योंकि यह उन की अपनी चौइस रही. वे अपने पार्टनर या परिवार के साथ अकसर क्वालिटी टाइम बिताती नजर आती हैं. आइए जानते हैं उन के बारे में.

अभिनेत्री सायरा बानो के अलावा अभिनेत्री जयाप्रदा ने भी मां की कई भूमिकाएं फिल्मों में निभाईं और चर्चित रहीं.

जयाप्रदा

बौलीवुड की खूबसूरत ऐक्ट्रैस में शुमार जयाप्रदा की शादी साल 1986 में फिल्म प्रोड्यूसर श्रीकांत नाहटा से हुई. कपल की कोई संतान नहीं है.

शबाना आजमी

शबाना आजमी ने मशहूर गीतकार और लेखक जावेद अख्तर से शादी की. दोनों की जोड़ी को आज भी फैंस का भरपूर प्यार मिलता है. शबाना और जावेद की शादी को कई साल हो चुके हैं लेकिन अब तक शबाना मां नहीं बनीं. शबाना का उन के सौतेले बच्चों के साथ मधुर रिश्ता है.

रेखा

करोड़ों दिलों की धड़कन अभिनेत्री रेखा को आज भी दर्शक स्क्रीन पर देखना पसंद करते हैं. रेखा इस वक्त 68 साल की हो चुकी हैं. 3 शादियां करने के बाद भी वे मां नहीं बनीं, क्योंकि यह उन की चौइस रही.

संगीता बिजलानी

संगीता बिजलानी ने भारतीय क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन से शादी की थी. शादी के लंबे वक्त के बाद भी संगीता मां नहीं बन पाई थीं. हालांकि, संगीता और मोहम्मद अजहरुद्दीन का रिश्ता ज्यादा लंबे समय तक नहीं चला था. दोनों ने शादी के 14 साल बाद तलाक ले लिया था.

हेलेन

अभिनेत्री हेलेन ने भी सलीम खान के साथ शादी की और अब सलीम खान के बच्चों को अपना मानती हैं.

बुढ़ापे में समझदारी से करें रोगों का मुकाबला, तभी रहेंगे फिट

कुछ साल पहले रिलीज हुई अमिताभ बच्चन और दीपिका पादुकोण की फिल्म ‘पीकू’ बूढे़ पिता और बेटी के बीच जिम्मेदारीभरे रिश्ते को दिखाती है. फिल्म की कहानी में अमिताभ बच्चन कब्ज की बीमारी से परेशान होते हैं. उन का डायलौग ‘मोशन से इमोशन जुड़ा होता है’ फिल्म के प्रचार में खूब इस्तेमाल किया जा रहा है. कब्ज जैसे बहुत सारे रोग बुढ़ापे की परेशानियों के रूप में सामने आते हैं. आज के दौर में विज्ञान ने खूब तरक्की कर ली है. ऐसे में मनुष्य की औसत उम्र बढ़ गई है. उम्र के बढ़ने के साथ कुछ बीमारियां भी साथ आती हैं. समझदारी के साथ इन रोगों का मुकाबला करते हुए बुढ़ापे को स्वस्थ बनाए रखा जा सकता है.

राजेंद्र नगर अस्पताल, लखनऊ की डा. सुनीता चंद्रा कहती हैं, ‘‘खानपान, ऐक्सरसाइज और समयसमय पर बीमारियों की जांच कराने से बुढ़ापे के रोगों से बचा जा सकता है. जरूरी है कि इस तरह की बीमारियों की जानकारी दी जाए जिस से उम्रदराज लोग स्वस्थ और सेहतमंद रह सकें.’’ डा. सुनीता चंद्रा बताती हैं, ‘‘बुढ़ापे की बीमारियां उम्र के हिसाब से आती हैं. अगर बुढ़ापे में समयसमय पर डाक्टरी जांच कराई जाए और बीमारियों का इलाज शुरुआती दौर में ही कर लिया जाए तो इन बीमारियों के प्रभाव को कम किया जा सकता है.’’

बुढ़ापे की प्रमुख बीमारियां

बुढ़ापे की ज्यादातर बीमारियां बचपन और जवानी में शरीर की अनदेखी के कारण होती हैं. कुछ बीमारियां शरीर के अंगों की शिथिलता और उन में आने वाले बदलावों के कारण होती हैं. इन का शुरुआत से ही ध्यान रखा जाए तो बुढ़ापे के प्रभाव को कम किया जा सकता है. 

मोटापा

बुढ़ापे की वह परेशानी है जो जवानी के दिनों से ही शुरू हो जाती है. बुढ़ापे में मोटापा एक रोग बन जाता है. इस के चलते शरीर की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं. हड्डियों में आर्थ्राइटिस, हाईब्लडप्रैशर, मधुमेह यानी डायबिटीज, कोलैस्ट्रौल का बढ़ना, पथरी आदि प्रमुख हैं. महिलाओं की तुलना में पुरुषों में मोटापा ज्यादा खतरनाक होता है. मोटापा अपने साथ कई तरह की बीमारियां ले कर आता है. हाईब्लडप्रैशर बुढ़ापे में बहुत परेशान करता है. कई बार हाईब्लडप्रैशर हाईपरटैंशन बन जाता है जिस के कारण सिरदर्द, जी मिचलाना, सांस फूलना और पैरों में सूजन जैसी परेशानियां आ जाती हैं.

मधुमेह

ये रोग बुढ़ापे की सब से बड़ी बीमारी के रूप में सामने आ रहा है. काम न करने, मोटापा बढ़ने, मानसिक तनाव, स्टीरौइड दवाएं खाने के कुप्रभाव के चलते मधुमेह का रोग हो जाता है. मधुमेह के चलते आंखों में अंधापन, किडनी, हार्ट अटैक और पक्षाघात यानी पैरालाइसिस का रोग हो जाता है.

हार्ट अटैक

ये बुढ़ापे की दूसरी बड़ी परेशानी है. हदय में रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियों में बहने वाला रक्त बाधित होने लगता है जिस की वजह से सीने में दर्द की शिकायत होती है. यह दर्द बाईं भुजा की ओर से शुरू हो कर कंधे की तरफ बढ़ता जाता है. दर्द के साथ तेजी से पसीना शरीर से निकलने लगता है. कई बार जब दिमाग तक रक्त नहीं पहुंच पाता तो पक्षाघात यानी पैरालाइसिस का अटैक हो जाता है.

बुढ़ापे में पेट की बीमारियां भी बहुत होती हैं. इस का सब से बड़ा कारण पाचन प्रक्रिया का कमजोर होना होता है. आंत में खाने को पचाने की क्षमता कम हो जाती है, जिस से एसिडिटी बनने लगती है. कई बार इन सब वजहों से पेप्टिक अल्सर हो जाता है. इस में पेट का दर्द तेज हो जाता है. पेट की बीमारियों में दूसरी बड़ी बीमारी कब्ज की होती है. बुढ़ापे में शरीर चलनेफिरने में शिथिलता का अनुभव करता है, जिस की वजह से खाना ठीक से हजम नहीं होता है. इस के  साथ ही, खाने में फाइबर की मात्रा कम होने से भी कब्ज की बीमारी हो जाती है. कब्ज अगर लंबेसमय तक बना रहे तो पाइल्स की बीमारी भी परेशान करती है.

मोतियाबिंद बुढ़ापे में आंखों की रोशनी को छीनने का काम करता है. इस के साथ ही, याददाश्त का कमजोर होना और कानों में सुनने की शक्ति का कमजोर होना आम परेशानियां हैं.

क्या होती हैं वजहें

आंत की गति धीमी हो जाती है. जिस के चलते पाचनक्रिया कमजोर हो जाती है. नतीजतन, बुढ़ापे में पेट की बीमारियां होने लगती हैं.

किडनी की परेशानी साफ पानी न मिलने के चलते होती है. किडनी की सक्रियता कमजोर होने से किडनी रोग बढ़ जाते हैं.

बुढ़ापे के दिनों में शरीर में हार्मोंस कम होने लगते हैं. इस से शरीर के तमाम अंगों की सक्रियता शिथिल होने लगती है. इस के चलते जबान में स्वाद लेने की क्षमता कमजोर होने लगती है.

बुढ़ापे में कान सुनना कम कर देते हैं. इस से श्रवण शक्ति कमजोर होने लगती है.

हार्मोंस के कम होने के चलते शरीर की त्वचा ढीली होने लगती है. त्वचा पर झांइयां और दागधब्बे पड़ने लगते हैं. इस से चेहरे पर हलकेहलके रोएं आने लगते हैं.  

मेरे पूरे चेहरे पर बाल उग आए हैं, मैं क्या करूं?

सवाल
मैं 34 वर्षीय महिला हूं और 1 साल पहले तक मेरी त्वचा बहुत साफ थी. थोड़े दिनों पहले मैं ने नोटिस किया कि मेरे चेहरे पर एकदो बाल हैं और अब तो पूरे चेहरे पर बाल उग आए हैं जिस से अब मुझे न तो अपने चेहरे पर हाथ लगाना अच्छा लगता है और न ही शीशे में चेहरा देखना. धीरेधीरे मेरा कौन्फिडैंस भी खत्म होता जा रहा है. आप मुझे इस का सही ट्रीटमैंट बताएं?

जवाब
कहते हैं चेहरे की खूबसूरती पर ही पहली नजर आ कर टिकती है और आप का उसी चेहरे पर बालों की ग्रोथ के होने से परेशान होना लाजिमी है. ऐसे में आप उन्हें निकलवाने के लिए वैक्स वगैरह का सहारा बिलकुल न लें, क्योंकि उस से ग्रोथ और बढ़ती है.

आप स्त्री विशेषज्ञ को दिखाएं क्योंकि ऐसा अकसर हार्मोंस का बैलेंस बिगड़ने से होता है और वे जरूरी टैस्ट के जरिए दवाइयों के माध्यम से उन्हें बैलेंस करने की कोशिश करेंगी जिस से धीरधीरे बालों की ग्रोथ अपनेआप कम होने लगेगी.

दूसरा रास्ता है कि आप लेजर ट्रीटमैंट भी करवा सकती हैं. इस से आप का खोया कौन्फिडैंस वापस लौट सकेगा. लेकिन यह सब डाक्टर की सलाह के अनुसार ही करें.

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यूं हटाएं चेहरे से अनचाहे बाल

क्या आपके चेहरे पर भी बहुत अधिक बाल हैं? ऐसे बाल जो आपके चेहरे की खूबसूरती को कम कर देते हैं? अब आपको घबराने की जरूरत नहीं है. ज्यादातर लड़कियों को चेहरे पर बालों की समस्या होती है और कई बार यह समस्या उनके आत्मविश्वास को कम कर देती है. अक्सर ऐसा तनाव की वजह से होता है, तो कई बार अनुवांशिक या हॉर्मोनल असंतुलन के चलते भी चेहरे पर बाल निकल आते हैं.

हर बार चेहरे पर ब्लीच कराने से चेहरे की रौनक चली जाती है और बार-बार वैक्सिंग कराना भी इस समास्या का सही समाधान नहीं है. पर अगर चेहरे पर मौजूद बालों का रंग हल्का हो जाए तो? ऐसे कई घरेलू उपाय हैं जिन्हें अपनाकर आप अपने चेहरे के बालों का रंग हल्का कर सकती हैं. रंग हल्का हो जाने की वजह से वे कम नजर आएंगे और उतने बुरे भी नहीं लगेंगे.

1. संतरे के छिलके और दही का पेस्ट

संतरे का छिलका त्वचा के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है. इसके इस्तेमाल से चेहरे पर निखार आता है. साथ ही चेहरे पर मौजूद बाल भी हल्के हो जाते हैं. अगर आपको और बेहतर परिणम चाहिए तो संतरे के छिलके में थोड़ी दही और नींबू के रस की कुछ बूंदें मिला लीजिए. इस पेस्ट को हर रोज लगाने से चेहरे पर निखार आएगा, कील-मुंहासों की समस्या दूर हो जाएगी और सबसे बड़ी बात, चेहरे पर मौजूद बालों का रंग हल्का हो जाएगा.

2. पपीते और हल्दी का पेस्ट

पपीता एक नेचुरल ब्लीच है जो चेहरे की रंगत साफ करने के साथ ही चेहरे पर मौजूद बालों को भी हल्का करता है. आप चाहें तो पपीते में चुटकीभर हल्दी भी मिला सकते हैं. इस पेस्ट से हर रोज कुछ देर मसाज करें और फिर 20 मिनट के लिए यूं ही छोड़ दें. फिर चेहरा साफ कर लें. कुछ ही दिनों में चेहरे पर मौजूद बाल हल्के हो जाएंगे.

3. नींबू का रस और शहद

अगर आपको अपने चेहरे पर मौजूद बालों का रंग हल्का करना है और रंगत निखारनी है तो शहद और नींबू के रस को मिलाकर लगाने का उपाय आपके लिए बहुत फायदेमंद रहेगा. हर रोज इस मिश्रण को चेहरे पर लगाकर 10 मिनट के लिए छोड़ दें. कुछ ही दिनों में आपको फर्क नजर आने लगेगा.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

बदल गया जमाना: सास और बहू की कहानी

आदित्य और वसुंधरा की शादी एक महीना पहले हुई थी. घर के सारे मेहमान चले गए थे. अम्मा दिनभर फैले हुए घर को समेटने में लगी रहतीं. आदित्य ने कई बार कहा, “अम्मा, वसुंधरा को खाना बनाने दिया करो, ज्यादा नहीं तो कम से कम वह तुम्हारी मदद तो कर ही देगी.”

पर, अम्मा तो अम्मा थीं. “अभी सवा महीना भी नहीं हुआ है शादी को हुए, दुनिया क्या कहेगी. बहू के हाथ की अभी मेहंदी भी नहीं छुटी और उसे चूल्हे में झोंक दिया. तुम लोग तो नए जमाने के बच्चे हो, कुछ भी कहतेकरते हो पर दुनियादारी तो हमें देखनीसमझनी है.”

वसुंधरा मांबेटे के बीच दर्शक की तरह ताकती रहती थी. “अम्मा, अम्मा.” “क्या है आदि?” अम्मा सब्जी छौंकने में व्यस्त थीं. “अम्मा, बाहर लल्लू चाचा आए हैं.” “अरे, लल्लू भाईसाहब आए हैं.” लल्लू चाचा मेरे बाबू जी के बचपन के दोस्त थे. सुखदुख, अमीरीगरीबी के साथी. पहले तो बगल वाले घर में रहते थे. लल्लू चाचा…पड़ोसी कम, रिश्तेदार ज्यादा थे. आज के जमाने में तो रिश्तेदार भी इतना नहीं सोचते जितना कि ये दोनों परिवार एकदूसरे के लिए सोचा करते थे. पर समय ने करवट बदली और लल्लू भाईसाहब को यह महल्ला छोड़ कर दूसरे महल्ले में जाना पड़ा.

“अम्मा, चलोगी भी कि बस यहीं खड़ेख़ड़े मुसकराती रहोगी,” आदित्य ने अम्मा का कंधा हिलाया. “आदित्य, बेटा जरा दौड़ कर नुक्कड़ से गुलाबजामुन ले आ. तुम्हारे चाचा को हरिया की दुकान के गुलाबजामुन बहुत पसंद हैं.” आदित्य अम्मा की बात सुन कर मुसकराने लगा.

“सुन बहू वसुंधरा, अंदर जा कर अच्छी सी साड़ी पहन कर बाहर आ जा. ये चाचा तुम से मिले बिना नहीं जाएंगे. जरा सिर पर पल्ला कायदे से रखना, थोड़ा पुराने विचार के हैं. जनेऊ धारण करते हैं, लहसुनप्याज नहीं खाते. जल्दी किसी के यहां खातेपीते नहीं. वह तो हमारा घर है,  जानते हैं हम कितना साफसफ़ाई से काम करते हैं.”अम्मा के चेहरे पर गर्व का भाव उभर आया. ‘कितना नाराज होंगे भाईसाहब, सालभर हो गया, ऐसा बापबेटे के बीच  फंसी रहती हूं कि उन के घर नहीं जा पाती,’ अम्मा बड़बड़ाए जा रही थीं.

“प्रणाम भाईसाहब, बहुत दिनों बाद आना हुआ?”“प्रणाम, हां, बस ऐसे ही.” लल्लूजी मतलब… हम सब के लल्लू चाचा. दोहरे बदन के, पान से रंगे हुए दांत, झक दूध की तरह सफेद कुरताधोती, माथे पर चंदन का टीका, गरदन के पास से जनेऊ झांक रहा था. आदित्य बचपन से उन्हें ऐसे ही देख रहा था. मजाल था कि कुरते पर एक सिलवट मिल जाए.

“और लड्डू, कैसे हो?” चाचा ने कहा तो आदित्य पत्नी वसुंधरा के सामने अपना यह नाम सुन कर झेंप गया. अम्मा ने वसुंधरा को ऊपर से नीचे तक देखा. ऐसे देखा जैसे कोई मैटल डिटैक्टर से जांच कर रहा हो. फिर वसुंधरा को आंखों से इशारा किया. वसुंधरा चाचाजी के पैर छूने के लिए जैसे ही झुकी, चाचाजी रामराम कह कर उठ खड़े हुए.

“क्या हुआ भाईसाहब, कोई गलती हो गई क्या बहू से?” “अरे नहीं भाभी, काहे की गलती, जइसे निशा वईसे वसुंधरा. ई सब तो लक्छमी की अवतार हैं. इन से क्या पैर छुआना.” अम्मा का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया, “और घर में सब ठीकठाक है न?” अम्मा के ठीकठाक के पीछे एक प्रश्नचिन्ह की महक आ रही थी. लल्लू चाचा  का बेटा वैभव ने चाचाजी और चाचीजी के खिलाफ जा कर कोर्टमैरिज की थी. लड़की दूसरी बिरादरी की थी. वैभव के साथ ही नौकरी करती थी. प्यार हुआ और झटपट शादी कर ली. लल्लू भाईसाहब और भाभीजी ने तो गुस्से के मारे कोई पार्टी भी नहीं करी थी.

“हां भाभी, घर में सब ठीकठाक है.” “भाईसाहब, चाय तो पिएंगे न?”  पूजापाठ किए बिना चाचाजी कुछ खातेपीते नहीं थे. “हां, सिर्फ चाय पिलाइए, नाश्ता कर के आए हैं.” अम्मा आश्चर्य से चाचाजी को देख रही थीं.  इतनी सुबहसुबह शकुंतला… उस के तो हमेशा घुटनों में ही दर्द होता रहता है,  हो सकता है बहू ने जिम्मेदारियां संभाल ली हों. अरे भैया, आए हैं तो खा कर जाइए.  आप की पसंद के गुलाबजामुन मंगाए हैं.”

गुलाबजामुन के नाम से चाचाजी  का चेहरा खिल उठा, “गुलाबजामुन, अरे वही हरिया के हैं क्या?” “हांहां, भाईसाहब, आप की पसंद के मंगवाए हैं.” “तब तो हम जरूर खाएंगे. भाभी वह ऐसा है न, निशा बिटिया कहती है, खाली पेट गैस बनने लगती है. दवा भी खानी होती है, इसलिए अब पहले नाश्तापानी, फिर कोई काम दूजा.”

अम्मा का चेहरा देखने लायक था. आदित्य मन ही मन मुसकरा रहा था. अम्मा दिन में चारचार बार चाचाजी और उन के परिवार के बारे में बात करती थीं. ‘देखो और सीखो, उस महल्ले में क्या गए, लोगों ने पंडितजी के सारे रीतिरिवाज अपना लिए. तुम लोग हो, पूजा से मतलब न दानपुण्य से. बिना नहाएधोए गायभैंस की तरह कचरकचर जब देखो तब मुंह में कुछ न कुछ भर लेते हो. कितनी बार कहा, बिना नहाएधोए चौके में मत घुसा करो, लक्ष्मी की हानि होती है. पर कौन समझाए इन बापबेटे को,’ अम्मा वसुंधरा से बुदबुदाए जा रही थीं, ‘जानती हो वसुंधरा, शकुंतला ने अपनी बहू के लिए कितने सपने देखे थे.  भैया से चुराचुरा कर बड़ेबड़े गहने बनवाए थे कि बहू को शादी में चढ़ाएंगे. पर वह नासपीटा वैभव, अपनी मरजी की शादी कर बैठा. शकुंतला के मन का शौक मन ही में रह गया.’

“भाभी, आप लोगों को परसों का न्योता देने आए हैं. बहू और लड्डू को साथ ले कर आइएगा. कम से कम बहू भी हमारा घर देख ले.” “हांहां भैया, जरूर.  हम भी कितने दिनों से सोच रहे थे आप के घर आने के लिए. पर काम से फुरसत ही नहीं मिल रही थी. हम जरूर आएंगे.” लल्लू चाचा हमें निमंत्रित कर के चले गए और अम्मा वसुंधरा के सामने पूरा पिटारा खोल कर बैठ गईं. “ध्यान रखना बेटा, एक अच्छी सी साड़ी पहन कर चलना और अपने सारे भारी वाले गहने पहन कर चलना. शकुंतला बहुत ध्यान देती है इन सब चीजों पर. जानती नहीं हो तुम उस का स्वभाव, सारे महल्ले में रिपोर्ट देगी कि बहू के मायके से कुछ मिला ही नहीं. आंखें नीची कर के बैठना, जितना कम हो सके उतना कम बोलना. ये सब औरतें…क्या कहते हैं अंग्रेजी में कैमरे की तरह काम करती हैं, सबकुछ रिकौर्ड कर लेती हैं अपने दिमाग में. इसलिए थोड़ा कोशिश करना कि कोई गलती न हो तुम्हारी तरफ से. उन के चौके में लहसुनप्याज नहीं बनता है, तो हो सकता है, तुम्हें खाने में स्वाद न लगे पर चुपचाप सब खा लेना. एक दिन की बात है बेटा,  हमारी इज्जत रख लेना.”

वसुंधरा चुपचाप उन की हां में हां मिलाए जा रही थी. आखिर वह दिन भी आ गया. वसुंधरा अपनी सासुमां के कहे अनुसार भारी सी लाल बनारसी साड़ी, गहनों से लदीफंदी चाचाजी के घर पहुंची थी. सब की आवाज को सुन कर चाचीजी चौके से बाहर आ गईं. वसुंधरा ने उन के पैर छुए. चाचीजी ने आशीर्वाद का पिटारा खोल दिया, “दूधो नहाओ, पूतो फलो. घरभर का नाम रोशन करो. बैठोबैठो बेटा, कितने दिनों बाद आई है. तुम्हारी सास को फुरसत ही नहीं.”

“अरे ऐसा क्यों कहती हो शकुंतला, तुम तो जानती हो अकेले प्राणी हैं हम.  क्याक्या देखें  और कहाकहां देखें.” “जीजी, सही कह रही हैं आप. महल्ला क्या छूटा, आनाजाना भी छूट गया. पर प्रेम वैसा ही है आज भी हमारे बीच, बिटिया.”  “अरे बात ही करती रहोगी या बहू को कुछ खिलाओ भी,” लल्लू चाचा ने जोर से आवाज लगाई.’अरे हांहां, खिलाती हूं. काहे गला फाड़ रहे हो वैभव के पापा.’ तभी एक दुबलीपतली सी स्मार्ट और बिंदास सी दिखने वाली लड़की, जिस ने जींस के ऊपर कुरती डाल रखी थी और गले में एक पतली से सोने की चेन, हाथ में ट्रे ले कर प्रकट हुई. “नमस्ते चाचाजी, नमस्ते चाचीजी.”

“अरे नमस्ते से कैसे काम चलेगा निशा, तुम्हारे घर पहली बार आईं चाचीजी के पैर तो छुओ,” चाचीजी ने कहा. “ओएमजी, सौरीसौरी, मैं भूल गई थी,”  निशा खिलखिला कर हंस पड़ी. सब के पैर छूने के बाद निशा वसुंधरा की ओर मुड़ी, “वैलकम भाभी, मैं निशा, आप की देवरानी.” निशा ने अपनी बड़ीबड़ी, गोलगोल आंखों को घुमा कर कहा. वसुंधरा उसे आश्चर्य से देखती रह गई. “आप परेशान मत होइए. वैसे तो आप मुझ से पद में बड़ी हैं यानी जिठानी हैं पर शादी के मामले में मैं आप से सीनियर हूं.” उस के चेहरे पर एक अजीब सी शरारत थी, “एक्चुअली, हमारी लवमैरिज है, थोड़ा मेलो ड्रामा भी हुआ था,” उस ने धीरे से कानों में फुसफुसाया.

शकुंतला मौसी निशा के आने से थोड़ी असहज हो गई थीं. “क्या शकुंतला, अपनी बहू के लिए तुम ने इतने सारे गहने गढ़वाए थे. यह क्या एकदम मरी सी चेन पहने हुए है. निशा बेटा, तुम्हारी सास ने तुम्हें कुछ पहनने को नहीं दिया क्या?” शकुंतला मौसी का चेहरा उतर गया था. पर निशा ने बड़ी बेफिक्री और चपलता से जवाब दिया, “चाचीजी, आज के जमाने में गहने पहनता ही कौन है. हर समय यही डर लगा रहता है कि कहीं कोई चोर छीन न ले. वैसे भी, साड़ी  तो मेरे बस की नहीं. औऱ जींस और सलवार सूट पर भारी गहने अच्छे नहीं लगते. मैं तो बस ऐसे ही फंकी टाइप के गहने पहनती हूं. चाचीजी, ये लीजिए गरमागरम प्याज की पकौड़ी, लहसुनधनिया की चटनी के साथ खा कर देखिए, मैं ने बनाई हैं, मजा आ जाएगा.”

आज तो एक के बाद एक विस्फोट हो रहे थे. अम्मा को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि उन के साथ क्या हो रहा है. या तो जमाना आगे बढ़ गया है या फिर वही पीछे रह गई हैं. तभी शंकुतला चाचीजी ने अम्मा के कान में धीरे से फुसफुसाया, ‘जीजी, बहू के पैर तो देखो.’ “क्या हुआ शकुंतला जीजी?”

“आप की बहू की बीच की उंगली बड़ी है. अम्मा कहती थीं, जिस लड़की के पैर की उंगलियां बड़ी होती हैं वह अपने पति पर राज करती है राज. जीजी, पहले दिन से ही लगाम कस कर रखना वरना तुम्हारा बेटवा फ़ुर्र हो जाएगा. फिर न कहना, हम सचेत नहीं किए.” वसुंधरा चुपचाप उन दोनों की बातों को सुन रही थी. फिलहाल तो उसे उन के बेटे की कमान निशा के हाथों में ही दिख रही थी.

वहीं, अम्मा क्यों पीछे रहतीं. उन्हें अपनी बहू के सामने यह बताना था कि वह कितना भी अपने रूप का जादू अपने पति के ऊपर चला दे पर उन का बेटा तो सिर्फ उन का ही है. “अरे शकुंतला, दुनिया का मैं नहीं जानती,  पर मेरा बेटा तो गऊ है, गऊ. मेरी मरजी के बिना तो वह घर के बाहर कदम भी नहीं रखता. पान, बीड़ी सिगरेट तो बहुत दूर की बात है. जमाने की हवा तो उसे बिलकुल भी नहीं लगी.”

वसुंधरा चुपचाप उन दोनों की बातों को सुन कर मुसकरा रही थी. उस की मम्मीजी अपने लल्ला का गुणगान करने से नहीं थक रही थीं और उन का लल्ला तो शादी की पहली रात ही उस के सामने यह स्वीकार कर चुका था कि वह कभीकभी दोस्तों के साथ शराब पी लेता है पर आदत नहीं है. पानगुटके का भी कोई विशेष शौक नहीं है पर कसम भी नहीं है. वसुंधरा सास के इस भ्रम को तोड़ना नहीं चाहती थी.

तभी एक और बम फूटा.  निशा की नजर अचानक अपनी सास की तरफ गई और वह झुंझला उठी, “क्या मम्मीजी, कितनी बार कहा है आप से कि मैचिंग कपड़े पहना कीजिए. देखिए न, आप फिर से वही लालपीली चूड़ियां पहन कर खड़ी हो गई हैं.”

अभी तक शकुंतला मौसीजी वसुंधरा की सासुमां को दिव्यज्ञान दे रही थीं, अब उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. “अरे बिटिया, अब हमारी उम्र थोड़ी है  यह सब मैचिंगवैचिंग पहनने की.”

“क्या मम्मी, आप भी न किस जमाने की बात कर रही हैं और हां, हम जो आप के लिए रात में पहनने के लिए गाउन लाए थे, एक बार भी पहना कि नहीं… कि वैसे ही अलमारी में पड़ा हुआ है,” निशा नौनस्टौप बोले जा रही थी, “वसुंधरा भाभी, आप ही बताइए, आज के जमाने में कैसे लोग 5 मीटर की साड़ी लपेट कर सोते हैं, मुझे तो टीशर्ट और कैपरी के बिना नींद ही नहीं आती.”

अम्मा का चेहरा देखने लायक हो रहा था.  आदित्य की हंसी रुक न रही थी. दिनभर लल्लूजी घर के खूबियों का आलाप करने वाली अम्मा सोचसोच परेशान हो रही थीं कि वसुंधरा तो कुछ भी नहीं कहेगी पर घर पहुंच कर बापबेटे उस का जीना हराम कर देंगे. तभी शकुंतला ने कहा, “जीजीजी, चलिए खाना लग गया है. खाना खा लीजिए, ठंडा हो जाएगा.” एक बड़ी सी मेज पर बहुत सारे स्वादिष्ठ व्यंजन लगे हुए थे. खाने की खुशबू ने सब की भूख को और भी बढ़ा दिया.

“निशा बेटा, क्याक्या बनाया है हमारी बहू के लिए,”  लल्लू चाचा ने बड़ी जिज्ञासा से पूछा.

“पापाजी, गोभी मुसल्लम, सोयाबीन के कबाब और मुगलई परांठा. मैं ने तो मम्मीजी से कहा था कि चिकन टिक्का भी बना दूं पर मम्मीजी तैयार नहीं हुईं.”

अम्मा का मुंह पर एक के बाद एक उतारचढ़ाव आ रहे थे. वे समझ नहीं पा रही थीं कि उन के साथ यह क्या हो रहा है. आखिर उन्होंने धीरे से पूछ ही लिया, “शकुंतला, अब तुम्हारी तबीयत कैसी रहती है?”

“जीजीजी, डाक्टर ने बताया हैं कि विटामिन बी12 बहुत कम हो गया है, अच्छा खाना खाने को बोले हैं.” तभी निशा ने एक और बम फोड़ा. “आंटीजी, डाक्टर ने कहा है मीटमुरगा ज्यादा से ज्यादा खाइए. पर मम्मीजी तैयार नहीं होतीं. मैं चिकन सूप बहुत शानदार बनाती हूं. एक बार खा लेंगी तो उंगलियां चाटती रह जाएंगी. पर मम्मीजी तैयार ही नहीं होतीं.”

अब अम्मा के लिए वहां बैठना और भी मुश्किल होता जा रहा था. उन्होंने जल्दीजल्दी दोचार निवाले  गले के नीचे उतारे और आदित्य की तरफ इशारा किया. “कल औफिस भी है न तुम्हारा? जल्दी करो पहुंचतेपहुंचते लेट हो जाएंगे. खाना वाकई बहुत स्वादिष्ठ था.”

वसुंधरा ने सभी के पैर छुए और गाड़ी में आ कर बैठ गई. रास्तेभर आदित्य और उस के पापा ने अम्मा को खूब छेड़ा. “पापा, कबाब इतने शानदार बने थे कि मजा आ गया.” तब आदित्य के पापा ने कनखियों से आदित्य को देखते हुए कहा, “गोभी मुसल्लम अगर बताई न जाए तो एकदम नौनवेज की तरह लग रही थी.”

“अम्मा, अगली बार निशा के हाथ का चिकन सूप पीने जरूर चलेंगे.” वसुंधरा दोनों बापबेटे की छेड़खानी को अच्छी तरह से समझ रही थी और अम्मा खिसियाई हुई चुपचाप खिड़की के बाहर देख रही थीं, सोच रही थीं कि वाकई में जमाना बहुत बदल गया है.

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