गांव में रहने वाले अंशिका के ससुर को एक दिन अचानक हार्ट अटैक आया तो अंशिका के पति उन्हें अपने साथ दिल्ली ले आए. 10 दिन तक अस्पताल में रहने के बाद वे वापस घर आ गए. एक तरफ जहां उस के ससुर को स्वास्थ्य लाभ हो रहा था वहीं दूसरी तरफ अंशिका की मुसीबतें दिन पर दिन बढ़तीं जा रही थीं. ससुर के घर आने के बाद उन्हें देखने आने वालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था. दो बच्चों की पढ़ाई सास और बीमार ससुर की जिम्मेदारी. उसे ही समझ नहीं आ रहा था कि कैसे मैनेज करे.
अंशुल के पिता को प्रोस्टेट की समस्या थी. एक दिन जब बहुत अधिक समस्या बढ़ गई तो डाक्टर ने औपरेशन करने की सलाह दी. अंशुल को अभी मुंबई पहुंचे भी 1 साल ही हुआ था सो बहुत अधिक जानकारी भी नहीं थी. पर जैसे ही पिता को हौस्पिटल में एडमिड कराया तो उस की 2 बहनें और भाई भी मुंबई पहुंच गए. अब अंशुल पिता से कम अपने भाईबहनों से ज्यादा परेशान था क्योंकि पिताजी तो आईसीयू में थे, उन्हें खानापीना सब हौस्पिटल से ही मिलता था परंतु भाईबहन मुंबई में नए थे और वहां की कोई जानकारी न होने के कारण वे प्रत्येक काम के लिए अंशुल पर ही निर्भर थे जिस से अंशुल बहुत परेशान हो जाता.
हारी बीमारी तो हर किसी को कभी भी आ सकती है. यह सही है कि ऐसी स्थिति में इंसान को किसी अपने की दरकार होती है परंतु पहले के मुकाबले आज हौस्पिटल्स में इलाज के मायने बहुत बदल गए हैं. आजकल मरीज को हौस्पिटल्स में एडमिड कराने के बाद उस के परिजन का काम सिर्फ हौस्पिटल्स को पैसा देना होता है, यही नहीं अपने मरीज से मिलने तक का समय निर्धारित होता है. पहले जहां मिलने, देखने और बातचीत करने का कोई साधन नहीं होता था वहीं आज तकनीक का जादुई पिटारा मोबाइल का जमाना है जिस में पूरी दुनिया समाई रहती है. ऐसे में जब मरीज को देखने वाले अनावश्यक रूप से हौस्पिटल्स में भीड़ बढ़ाते हैं तो मरीज के परिजनों के लिए उन की खातिरदारी करना सब से बड़ी समस्या होती है. यही नहीं कई बार तो मेहमानों की खातिरदारी के कारण मरीज की समुचित देखभाल तक भी नहीं हो पाती. जब भी कोई परिचित बीमार होता है तो निम्न बातों का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है-
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