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किराएदार : प्यारा या आफत, इसे कुछ इस तरह समझिए

छोटा शहर और बड़ा मकान. सासससुर रहे नहीं और दोनों बच्चे बाहर चले गए. बेटी अपनी ससुराल और बेटा आगे की पढ़ाई करने के लिए किसी दूसरे शहर या देश. पूरा घर सायंसायं करता है. और तो और घर की ठीक से साफसफाई भी नहीं हो पाती. रिटायरमैंट में अभी 5 साल बाकी हैं. इतने बड़े घर में रहते हुए सरोज को बड़ा अकेलापन महसूस होता था. दोनों पतिपत्नी आखिर करें तो क्या करें. दोनों हिस्सों के बीच पार्टीशन करवा लिया ताकि दोनों परिवारों की प्राइवेसी बनी रहे. घर के बाहर टू-लेट का बोर्ड टांगते ही किराएदारों की लाइन लग गई.

राजेश और सीमा भी मकान देखने आए थे. मकान तो खैर सभी को पहली ही नजर में पसंद आ जाता था मगर यह परिवार सरोज को भी पसंद आ गया था. खासकर सीमा की 8 माह की बिटिया ने सरोज को अपने मोहपाश में बांध लिया था. सबकुछ तय हो जाने के बाद 11 महीने के किराएनामे पर दोनों तरफ से हस्ताक्षर हुए और 4 दिन बाद ही राजेश अपनी छोटी सी फैमिली के साथ घर में पहले किराएदार के रूप में शिफ्ट हो गया.

सरोज की यों भी किसी के फटे में टांग अड़ाने की आदत नहीं थी, इसलिए सबकुछ बहुत सही चल रहा था. सीमा की तरफ से आती उस की बिटिया की किलकारी से घर में रौनक होने लगी. घर भी साफसुथरा रहने लगा और सब से बड़ी बात कि सरोज को कभीकभार दुलारने के लिए एक नन्ही साथी मिल गई थी.

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संबंधों का बेजा इस्तेमाल

एक दिन जैसे ही सरोज औफिस से आई, दरवाजे पर दस्तक हुई. देखा तो सीमा खड़ी थी अपनी बिटिया के साथ. ‘‘आंटी, मैं जरा बाजार तक हो कर आती हूं, आप प्लीज पीहू को रख लेंगी?’’

हालांकि सरोज का मन नहीं था, वह थकी होने के कारण आराम से बैठ कर पति के साथ चाय पीने के मूड में थी मगर शिष्टाचारवश मना नहीं कर सकी और पीहू को गोद में ले लिया. सरोज की पूरी शाम पीहू को संभालने में बीत गई. कहीं उस ने पानी बिखेरा तो कहीं शूशू किया. उस के चक्कर में सरोज रात का खाना भी नहीं बना सकी जिस से पति नाराज हुए सो अलग.

इस के बाद तो अकसर ही सीमा पीहू को उन्हें थमा कर सैरसपाटे पर, कभी पिक्चर तो कभी बाजार और सहेलियों के यहां जाने लगी. सरोज सीधीसादी महिला थी, कुछ कह नहीं सकी और किराएनामे के अनुसार, 11 महीने से पहले मकान खाली भी नहीं करवा सकती थी. धीरेधीरे सरोज को सीमा से मन ही मन डर लगने लगा. जब भी दरवाजे पर दस्तक होती, वह सहम उठती कि कहीं सीमा पीहू को न थमा दे. किराएदार सरोज के गले की हड्डी बन गए जिसे न उगलते बन रहा था, न निगलते.

लक्ष्मी की कहानी भी कोई अलग नहीं थी, पति के रिटायरमैंट के बाद अतिरिक्त आमदनी के विकल्प में उन्होंने अपने घर के 2 कमरे किराए पर दे दिए. उन्होंने कालेज स्टूडैंट्स को किराएदार के रूप में चुना ताकि मकान खाली करवाने में ज्यादा दिक्कत न आए. मगर देर रात तक आने वाली तेज म्यूजिक की आवाज ने उन की रातों की नींद हराम कर दी. आएदिन लड़के पार्टियां करते थे. कभीकभी शराबकबाब भी चलता था. और तो और, किराया भी टाइम पर नहीं मिलता था. ऐसे में उन्हें अपने फैसले पर पछतावा हो रहा था.

किराएदार सलमा का अनुभव तो सब से ही अलग था. हुआ यों कि सबकुछ देखभाल कर उस ने अपना खाली पड़ा मकान किराए पर दे दिया और खुद बेटे के पास रहने दिल्ली चली गई. किराया हर 6 माह का एडवांस देने की बात तय हुई थी. पहली छमाही के बाद जब वह अपने शहर किराया लेने और मकान को संभालने के उद्देश्य से गई तो किराएदार ने उन्हें यह कहते हुए खाली हाथ लौटा दिया कि मकान में काफी टूटफूट थी. मरम्मत और रंगरोगन करवाने में सारा किराया ऐडजस्ट हो गया. सलमा से कुछ भी कहते नहीं बना. उस ने अगले 6 महीने में उन्हें मकान खाली करवाने का नोटिस देने में ही भलाई समझी.

मगर ऐसा हमेशा नहीं होता कि किराएदार आफत का पिटारा ही होते हों. कई बार ये बहुत प्यारे भी होते हैं. मीनल कभी सावित्री देवी की किराएदार रही थीं. आज भी उन का रिश्ता फोन के माध्यम से जुड़ा हुआ है. मीनल ने एक बहू की तरह उन का खयाल रखा था तो सावित्री ने भी उसे नासमझ उम्र में बच्चे पालने सिखाए थे. मीनल के बच्चे आज भी उन्हें दादी कहते हैं.

सामंजस्य जरूरी

मीना बरसों से अपने मकान में पेइंग गेस्ट रखती आई है. वह सिर्फ कामकाजी महिलाओं और लड़कियों को ही रखती है. अपने उसूलों की पक्की मीना किराएनामे के नियमों में जरा भी लापरवाही या ढील बरदाश्त नहीं करती. साथ ही, वह अपनी तरफ से भी किसी को शिकायत का मौका नहीं देती. न तो किसी को ज्यादा मुंह लगाती है और न ही किसी को नजरअंदाज करती है. इसी का नतीजा है कि बरसों बाद भी जब वे किराएदार उस शहर में आती हैं तो मीना से मिले बिना नहीं जातीं.

मकान मालिक और किराएदार का रिश्ता बेहद नाजुक होता है. किराएदार को एक ऐसे मकान से लगाव रखना होता है जिसे छोड़ कर जाना निश्चित है. वहीं मकान मालिक को भी अपने खूनपसीने की कमाई से बना मकान ऐसे व्यक्ति को सौंपना होता है जिसे उस मकान से दिली लगाव नहीं होता. दोनों को ही एकदूसरे पर भरोसा करना होता है. तो ऐसा क्या करें कि दोनों के बीच टकराव की स्थिति न आए, मकान खाली करने के  बाद भी दिलों में जगह बनी रहे.

यदि आप मकान मालिक हैं

– अपनी और किराएदार दोनों की निजता का सम्मान करें यानी मकान का जो हिस्सा आप किराए पर देना चाहते हैं, कोशिश करें कि उस का प्रवेश आप के घर के अंदर से न हो, कमरे ऊपरी मंजिल पर हैं तो सीढि़यां बाहर से रखें और निचली मंजिल पर हों तो दोनों हिस्सों के बीच एक पार्टीशन अवश्य हो जो इन्हें एकदूसरे से अलग करता हो.

– अपनी प्राथमिकता तय करें कि आप मकान को किराए पर क्यों देना चाहते हैं. अकेलापन दूर करने के लिए, आय के अतिरिक्त स्रोत के लिए या फिर उस की देखभाल करवाने के लिए. किराएदार चुनते समय अपनी प्राथमिकता को ध्यान में रखें.

– किराए पर मकान देने से पहले सभी आपसी शर्तें तय कर लें कि आप उन से क्या चाहते और क्या नहीं चाहते हैं. उन पर स्वयं भी कायम रहें और किराएदार को भी पाबंद करें. सभी शर्तों को किराएनामे में दर्ज करें और दोनों पक्षों व गवाहों की उपस्थिति में किरायानामा पंजीकृत करवाएं.

– किराएदार से एक निश्चित दूरी बना कर रखें यानी न तो उस के व्यक्तिगत मामलों में आप हस्तक्षेप करें और न ही उसे ये अधिकार दें. महल्ले में यहांवहां पीठ पीछे उस की चुगली या बुराई न करें.

– सामान्य शिष्टाचार अवश्य निभाएं, जैसी हारीबीमारी में उस की मदद करें. सामाजिक और बड़े पारिवारिक समारोह में किराएदार को भी आमंत्रित करें. अत्यंत निजी समारोह में यह आवश्यक नहीं है.

– समयसमय पर किराएदार बदलते रहें वरना कई बार दबंग किस्म के लोगों से मकान खाली करवाना मुश्किल हो जाता है.

– किराएदार के बिजलीपानी आदि के कनैक्शन अलग रखें ताकि बिलों के भुगतान में कोई झंझट न हो.

– मकान के रखरखाव के बारे में पहले ही तय कर लें ताकि सलमा की तरह कड़वा अनुभव न हो.

– मकान देने से पहले ही किराएदार के संबंध में आवश्यक जानकारी जुटा लें. उस के पहचानपत्र की पड़ताल कर लें. आजकल तो पुलिस वैरिफिकेशन भी आवश्यक हो गया है.

– किराएदार से मोह का नहीं, स्नेह का रिश्ता रखें. उस से साफ कह दें कि आप को क्याक्या नापसंद है.

– कभीकभार किराएदार के साथ बैठ कर चाय पिएं.

– यदि किराएदार के बच्चे छोटे हैं तो उन से प्रेमभाव रखें, मगर उतना ही जितना आप की पर्सनललाइफ को डिस्टर्ब न करे.

– सभी सावधानियों के बाद भी यदि किराएदार से पटरी न बैठे तो किराएनामे के अनुसार नोटिस दे कर उस से मकान खाली करने को कह दें. मगर यहां भी इंसानियत के नाते, एक बार उस की भी अवश्य सुनें. यदि उसे कुछ समय की मुहलत चाहिए तो सहानुभूतिपूर्वक विचार करें.

यदि उपरोक्त इन बातों का खयाल रखेंगी तो आप का किराएदार प्यारा सा होगा, आफत का पिटारा नहीं.

मासूमों से हवस पूरी करने की घिनौनी प्रवृत्ति

उत्तर प्रदेश के उन्नाव में 62 साल के एक बुजुर्ग ने 7 साल की मासूम बच्ची को अपनी हवस की आग में झोंक दिया. यह बुजुर्ग अपनी वासना की पूर्ति के लिए उस बच्ची को अश्लील फिल्में दिखाता था. बच्ची के मना करने पर उसे जान से मारने की धमकी दे कर डराता रहता था. घटना 2 नवंबर, 2017 की है. इस से पहले भी वह इस बच्ची को बहलाफुसला कर अपने घर ले जा चुका था.

इस बार उस ने बच्ची के साथ दुष्कर्म किया तो मां को बच्ची की सहमी हालत देख कर शक हुआ. बहुत पूछने पर बच्ची ने मां को सच बताया तो उस के पैरों तले जमीन ही खिसक गई. जब मां ने पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई तब जा कर बुजुर्ग की असलियत खुली.

नवंबर माह में ही हाथरस के शिक्षक ने भी 7 साल की मासूम लड़की, जोकि उस के पास ट्यूशन पढ़ने आई, को अपनी हवस का शिकार बना डाला.

गुरुशिष्य के रिश्ते को तारतार करने वाली ऐसी घटना और पड़ोसी बुजुर्ग की हरकत बताती हैं कि मासूमों से हवस पूरी करने की घिनौनी प्रवृत्ति कम नहीं हो रही है. एक शिक्षक जब ऐसी करतूत करता है तो यह कहना गलत नहीं होगा कि ऐसे यौन अपराध सिर्फ अशिक्षित व निम्नवर्गीय तबकों में ही नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग में होते हैं. बच्चों को ऐसे हैवानों से बचाने के लिए कानूनी उपायों के अलावा आम लोगों को जागरूक होना पड़ेगा.

ये भी हैं शिकार

मशहूर सितारवादक अनुष्का शंकर भी बचपन में बाल यौनशोषण की शिकार हुई थीं. बकौल अनुष्का शंकर, ‘‘मैं बचपन में छेड़छाड़ व विभिन्न प्रकार के शारीरिक शोषण का शिकार हुई. मुझे नहीं पता था, इस से किस प्रकार निबटना है. मुझे नहीं पता था कि इसे कैसे रोका जा सकता था. बतौर महिला, मुझे लगता है कि मैं ज्यादातर समय भय के साए में रहती हूं, रात में अकेले बाहर निकलने में डरती हूं, घड़ी का समय पूछने वाले व्यक्ति को जवाब देने में डरती हूं. इसी प्रकार की तमाम अन्य बातें हैं जिन से मुझे डर लगता है.’’

महिला अधिकारों के लिए खुल कर बोलने वाली अभिनेत्री कल्कि कोचलिन ने भी अपने बचपन के दुखद हिस्से को बयान किया. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वे अपनी कहानी सुना कर सुर्खियां नहीं बटोरना चाहती थीं. यह तो उन के जीवन की सचाई है और उन्होंने इसे लंबे वक्त तक झेला है.

टैलीविजन की मशहूर हस्ती ओपरा विनफ्रे को भावुक इंटरव्यू लेने के लिए जाना जाता है. लेकिन डेविड लैटरमैन के शो में जब वे पहुंचीं तो उन की जिंदगी के बारे में जान कर लोगों की आंखें भर आईं. ओपरा का 9 साल की उम्र में एक रिश्तेदार ने बलात्कार किया. 10 से 14 वर्ष की उम्र तक उन का शोषण होता रहा.

ये मशहूर हस्तियां हैं जिन को हम सभी जानते हैं, ये गिनेचुने नाम ही हैं. कुछ ही लोग खुल कर कह पाते हैं लेकिन ज्यादातर लोग अपने इस दर्द को कह नहीं पाते. वे शर्मिंदगी के साथ जीवन जीते रहते हैं. हालांकि दोष उन का नहीं, फिर भी वे अपने साथ हुई घटना में खुद को अपराधियों की तरह महसूस करते हैं. दरअसल, हमारा समाज, हमारी मानसिकता ऐसी हो गई है कि हम उन्हें हेयदृष्टि से देखने लगते हैं, बातें बनाते हैं. हम ऐसे लोगों को समाज की मुख्यधारा से जुड़ने का अधिकार क्यों छीन लेते हैं.

स्कूल व परिवार

परिवार वाले अपने बच्चों के साथ घटने वाली यौनशोषण की घटनाओं को छिपा लेते हैं और बच्चों के ऊपर ही पहरा सा लगा देते हैं जिस कारण बच्चा उन चिंताओं से उबर ही नहीं पाता. सभ्य समाज का हिस्सा होते हुए भी हमारे नौनिहाल अपनों से ही सुरक्षित नहीं. जिन शिक्षण संस्थानों में बच्चों को भविष्य निर्माण के लिए भेजा जाता है उन शिक्षण संस्थानों में भी वे अब सुरक्षित नहीं हैं.

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के मुताबिक, बीते 3 सालों में स्कूलों के भीतर बच्चों के साथ होने वाली शारीरिक प्रताड़ना, यौनशोषण, दुर्व्यवहार और हत्या जैसी घटनाओं में तीनगुना बढ़ोतरी हुई है. शिक्षकों और स्कूल कर्मचारियों द्वारा ही बच्चों के उत्पीड़न की घटनाएं पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ी हैं. बाल सुरक्षा एक्ट 2012 के अस्तित्व में आने के बाद ऐसे मामले ज्यादा सामने आए हैं.

एक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, अमूमन बाल यौनशोषण व लड़कियों के साथ होने वाली यौनहिंसा में 90 प्रतिशत पहचान वालों के जरिए ही ये अपराध अंजाम पाए जाते हैं. यानी सब से ज्यादा अपने बच्चों को सुरक्षा अपनों से देनी है. कितनी अजीब बात है न कि जिन अपनों पर हम आंख मूंद कर विश्वास करते हैं वे ही इस तरह की चोट दे जाते जो जिंदगीभर सालती रहती है.

सवाल यह उठता है कि छोटे बच्चों को हम किस तरह से समझाएं कि उन के कोमल मन पर हमेशा दुश्चिंताएं न शामिल हों या कोमल मन में कोई ऐसा प्रभाव न पड़े कि वे डरेसहमे रहें और उन के नैसर्गिक विकास में कोई प्रभाव पड़े.

अपने बच्चों को एक मां बेहतर तरीके से समझा सकती है कि गुड टच और बैड टच क्या होता है. अगर कोई उन को छूता है, तो वह छुअन बुरी भी होती है. उस से कैसे बचें, छोटे बच्चों को उन के शारीरिक संरचना के जरिए समझाया जा सकता है कि मम्मी के अलावा कोई दूसरा उन के शरीर के कोमल अंगों को हाथ नहीं लगा सकता और न वे ही किसी दूसरे को गलती से या खेल में यहां छू सकते हैं.

अकसर घर के बड़े सदस्य बच्चों की बातें नहीं सुनते हैं. छोटे बच्चों से संवाद बेहद जरूरी है. वे स्कूल में क्या पढ़ते हैं? कौन सी टीचर या सर उन के साथ कैसा व्यवहार करते हैं? किस के साथ खेलतेकूदते हैं आदि ये सब बातें बच्चों से रोजाना पूछनी हैं. बच्चा चाव से अपनी बातें बताना चाहता है लेकिन अकसर पेरैंट्स उन्हें या तो खेलने के लिए कह देते हैं या चुप रहने को कह देते हैं. कहने का अर्थ सिर्फ इतना है कि अपने बच्चों से संवाद बनाए रखिए ताकि वे अपने साथ घटित सभी बातें बताएं.

खुद करें पहल

बच्चों से अपने उन रिश्तेदारों को दूर रखिए, बच्चे जिन्हें पसंद नहीं करते. अकसर हम देखते हैं कुछ परिचित बच्चों को चूमना, कस के पकड़ना या फिर उन के गालों को चिकोटी काटते हैं. हमारी नजर में वह उन के प्यार जताने का तरीका है लेकिन बच्चे अच्छी बुरी छुअन को महसूस कर लेते हैं. अगर बच्चा पसंद नहीं करता है ये सब, तो अपने परिचित को रोकिए. अपने बच्चे के दिल को पढ़ना सीखिए.

आप का बच्चा अगर दैनिक क्रियाकलाप से हट कर कोई व्यवहार करता है, ज्यादा चुप है, अपने किसी अंग में दर्द बता रहा है या रात में चौंक रहा है, किसी खास परिचित को देख के सहम रहा है तो तुरंत उस का मन टटोलिए. कहीं कुछ अनचाही घटना घटित न हुई हो. कुछ भी अप्रिय किसी परिचित या अनजाने से भी हुआ है तो पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराइए. लोकलाज का भय या बच्चे को गलत न समझिए. बच्चे को घर में बंद कर देना, उस को ही डांटना गलत होगा. कोमल मन ने वैसे ही बहुतकुछ सहा है, उस पर उसी को अपराधियों की तरह जिंदगी जीने के लिए मजबूर करना अन्यायपूर्ण होगा. साथ ही, बच्चे की काउंसलिंग भी कराइए. पारिवारिक प्यार के साथ उस के मन पर पड़े घाव को काउंसलर की भी जरूरत होती है जो उस के बालमन पर पड़ी चोट के दबाव को हटा कर जिंदगी की तरफ मोड़ सके.

अपनी सुरक्षा बच्चे स्वयं कर सकें, इस के लिए उन्हें मूलभूत बातों को बताएं, उन्हें समझाएं. हो सके तो सैल्फ डिफैंस के लिए मार्शल आर्ट भी सिखाएं. मजबूत मन के साथ एक मजबूत तन की भी जरूरत है. इसलिए, जरूरी है बच्चों को नैतिकता का पाठ पढ़ाया जाए. उन्हें वह शिक्षा दी जाए कि वे मजबूत किरदार व एक आदर्श इंसान बनें.

भारी भारी रात

कितनी तनहा, कितनी कातिल

गुजरी अपनी सारी रात

टूटे सपने, भीगी पलकें

बीती भारीभारी रात

याद तुम्हारी बनी ब्याहता

लेटी रही संग मेरे

फिर भी मुझे रही सताती

मादक बदन, कुंआरी रात

बिना तुम्हारे यौवन रोया

संयम ने ताने मारे

चटक चांदनी रही चिढ़ाती

रोई प्यारीप्यारी रात

एक प्रश्न का हल तलाशते

बीत गया था दिन सारा

अब न पूछना, हाय, किस तरह

मैं ने यहां गुजारी रात.

– सूर्यकुमार पांडेय

कांग्रेस का पथ : गुजरात चुनाव के बाद मिलते स्पष्ट संकेत

गुजरात में कांग्रेस का भारतीय जनता पार्टी को भारी चुनौती देने में सफलता पा लेने और बाद के कई उपचुनावों के परिणामों से स्पष्ट है कि देश को अगर एक पार्टी की तानाशाही से बचाना है तो सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ बाकी पार्टियों को एकसाथ मिल कर काम करना होगा. यह आसान नहीं है क्योंकि ‘फूट डालो राज करो’ की हिंदू संस्कृति हमारी रगरग में भरी है और इस का परिणाम हम सदियों से भुगत रहे हैं.

देश की उन्नति के लिए जरूरी है कि पूरा देश एक सोच के साथ निर्माण के कार्य में लगे और जाति, वर्ण, धर्म, भाषा और संस्कृति के भेदभावों को भुला दे. भारतीय जनता पार्टी ने जिस तरह 2014 में एक स्वच्छ, विकास को समर्पित सरकार का रोडमैप पेश किया था, वह आकर्षक था पर अब पता चल रहा है कि कथनी और करनी में बहुत अंतर है. देश को भ्रष्टाचारमुक्त शासन तो नहीं मिला, ऊपर से धार्मिक अनाचारयुक्त शासन पल्ले में मिल गया है.

देशभर में आज विध्वंसक बातें हो रही हैं. कहीं गाय के नाम पर हत्याएं हो रही हैं, कोई कभी पद्मावती के नाम पर तो कोई लव जिहाद का नाम ले कर उत्पात मचा रहा है. कोई संविधान बदलने की बात कर रहा है. कभी लोगों की नकदी पर हमला हो रहा है तो कहीं चुनाव जीतने के घिनौने हथकंडे अपनाए जा रहे हैं. देश बिखर सा रहा है. अर्थव्यवस्था में स्थायित्व की बात है ही नहीं.

देश की आंतरिक नीतियां हों या विदेश नीति, कभी उत्तर की ओर दौड़ती है तो कभी दक्षिण की ओर. कभी पाकिस्तान व चीन हमारे गहरे दोस्त बन जाते हैं तो कभी शत्रु. कभी नई तकनीक की बुलेट ट्रेनों की बात होती है तो कभी रामसीता की विशाल मूर्तियों को विकास की गोली बताया जाता है.

इस का दोष देश की विपक्षी पार्टियों को जाता है कि वे सत्तारूढ़ पार्टी को इस तरह कठघरे में नहीं खड़ा कर पा रही हैं जैसे भारतीय जनता पार्टी ने 2010 और 2014 के बीच कांग्रेस को खड़ा किया था. विनोद राय जैसे भाजपा मित्र कंप्ट्रोलर ऐंड औडिटर जनरल (सीएजी) की सहायता से भाजपा ने सफलतापूर्वक कांग्रेस को कोयले और 2जी स्पैक्ट्रम घोटालों से पोत दिया था. दूसरी पार्टियां तब भाजपा का खुल कर साथ दे रही थीं.

कांग्रेस ने गुजरात में हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी व अल्पेश ठाकोर के साथ समझौता कर के सफल सा प्रयास किया पर बाद में वह इसे भुला सा रही है. वह काम उसे हर शहर में, हर उपचुनाव में, हर राज्य के चुनावों में करना होगा. कांग्रेस को अपनी 70 साल तक राज करने की अकड़ छोड़ कर, छोटी पार्टियों व छोटे गुटों को साथ ले कर चलना होगा ताकि भगवाई संकीर्णवादी सोच के खतरे से देश को निकाला जा सके.

देश का विकास अपनी छाती पीटने से या राजपथ पर योग करने से नहीं होगा, यह कारखानों, खेतों, बैंकों, दफ्तरों, बाजारों, विश्वविद्यालयों, रेलों व हवाईअड्डों को ढंग से चलाने से होगा. अगर हर जगह पूजापाठ का आलम रहेगा तो देश हमेशा की तरह फिसड्डी रहेगा.

मानवीय मामलों में राजनीति के आखिर क्या है मायने

पाकिस्तान ने गुप्तचरी के आरोप में पकड़े भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को 25 दिसंबर को मां अवंती जाधव व पत्नी चैतन्य जाधव से मिलने तो दिया पर शीशे की दीवार के पीछे और केवल टैलीफोन से बात कर के. सारी बात रिकौर्ड भी की गई और सुनी भी गई. कमरे में जाने से पहले मां व पत्नी के कपड़े बदलवाए गए, आभूषण उतरवाए गए और जूते तक निकलवाए गए. भारत में इस पर गंभीर आपत्ति की जा रही है.

हमारी आपत्ति तो सही है पर यह अब एक स्टैंडर्ड व्यवस्था है जो दुनियाभर में जासूसों व अपराधियों के साथ की जाती है. पाकिस्तान ने चाहे कितनी ही अति की हो, कुलभषण जाधव को सजा दे कर वह अपने कानूनों के अनुसार तो यह हक रखता है. अंतर्राष्ट्रीय कानून भी इस बारे में देशों को छूट देता है और अमेरिका जैसे लोकतंत्र में भी देशीविदेशी अपराधियों, खासतौर पर गुप्तचरों के साथ ऐसा ही किया जाता है.

इस प्रक्रिया को असल में सामान्य मानना चाहिए और व्यर्थ में पाकिस्तान विरोधी माहौल नहीं बनाना चाहिए. भारत सरकार आजकल चीन और पाकिस्तान का राजनीतिक उपयोग उसी तरह करने लगी है जैसे एक जमाने में इंदिरा गांधी ने हर मामले में विदेशी हाथ को कोसना शुरू कर दिया था. खालिस्तान समस्या की जड़ भी पाकिस्तान को घोषित कर दिया गया था जबकि उस का हल अंत में ब्लूस्टार औपरेशन व राजीव गांधी-संत लोगोंवाल समझौते से हुआ था.

जासूसी कांडों में अगर अपने जासूस को वापस लाना हो तो जासूसों की अदलाबदली होती है. पर इस मामले में अगर यह प्रक्रिया चल रही हो तो अभी तक सामने नहीं आई है. भारत ने घोषित रूप से किसी पाकिस्तानी जासूस को नहीं पकड़ रखा है जबकि नरेंद्र मोदी तो मणिशंकर अय्यर और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर तीरतुक्का लगाते हुए गुजरात चुनाव में फायदा उठाने के मकसद से गुप्तचरी का सा आरोप लगा चुके हैं. अगर ऐसे हालात में हमारे पास कोई पाकिस्तानी कुलभूषण जाधव नहीं है तो यह हमारी असफलता की निशानी है. पाकिस्तानी जासूस यहां नहीं होंगे, यह तो नहीं माना जा सकता.

मानवीय मामलों में राजनीति जितनी कम हो उतना अच्छा है. संवेदनशील मामलों को सैंसेशनल बनाने की इलैक्ट्रौनिक मीडिया की आदत देश की मानसिकता में जहर घोल रही है. कुलभूषण जाधव अब तक ठीकठाक है, यही गनीमत समझी जानी चाहिए.

आपके इस दवाब से कहीं भ्रष्ट न हो जाए बचपन

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के एक नामी विद्यालय में विज्ञान की परीक्षा चल रही थी. विद्यार्थियों के निरीक्षण करने के कार्य पर तैनात वरिष्ठ अध्यापिका ने देखा कि एक छात्रा पांव की तरफ पड़े अपने कुरते का सिरा बारबार उठाती है और फिर ठीक कर देती है. पीछे से उस के करीब जा कर अनुभवी अध्यापिका ने तिरछी नजर से देखा, तो पाया कि सफेद कुरते के उस सिरे के पीछे कुछ फार्मूले लिखे थे.

अध्यापिका ने चपरासी से कैंची मंगवाई और कुरते के उस सिरे को काट कर अपने पास रख लिया और छात्रा से कहा कि कल अपने अभिभावक को ले कर स्कूल आना, तभी परीक्षा में बैठने दिया जाएगा.

हालांकि अध्यापिका चाहती तो परीक्षा में नकल करते हुए उस लड़की को रंगेहाथों पकड़ कर रस्टीकेट करने यानी परीक्षा कक्ष से निकालने की प्रक्रिया अपना सकती थी, लेकिन छात्रा के भविष्य और उस की कोमल भावनाओं को देखते हुए उन्होंने ऐसा नहीं किया.

परीक्षा क्यों

परीक्षा प्रणाली का अर्थ है कि छात्र अपने अध्ययन के प्रति संजीदा हों. वर्षभर जो पाठ्यक्रम उन्हें पढ़ाया गया है, उस से उन्होंने कितना सीखा है, परीक्षा से इस का आकलन हो जाता है. छात्र कठिन परिश्रम व अपनी कुक्षाग्रता के आधार पर परीक्षा में अंक प्राप्त कर अपनी श्रेष्ठता सिद्घ करें, न कि नकल कर के.

‘योर स्कूल एज चाइल्ड’ के लेखक लारेंस कुटनर अमेरिका में एक सर्वेक्षण का जिक्र करते हुए लिखते हैं कि तकरीबन 70 प्रतिशत छात्रों ने माना है कि उन्होंने अपने हाईस्कूल तक के स्कूली सफर में कभी न कभी नकल की है.

नकल क्यों करते हैं बच्चे

गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस युग में जो बच्चे आगे दौड़ते हैं वे ही जीवन के शिखर तक पहुंच सकते हैं, जबकि प्रतिस्पर्धा में फिसड्डी रहने वाले बच्चों का कैरियर अनिश्चित रहता है. इसलिए आज का छात्र आरंभ से ही यह समझता है कि यदि उसे जीवन में ऊंचाई प्राप्त करनी है तो प्रतिस्पर्धा में सब से, आगे रहना है. ये बातें घर में सोतेबैठते व खाते हर समय मातापिता द्वारा उस से दोहराई जाती हैं.

छात्र जीवन उम्र का ऐसा पड़ाव होता है जहां एकाग्रता केवल लक्ष्य प्राप्त करने की ही होती है. ऐसे में नैतिकता, आदर्श, ईमानदारी आदि पढ़ाए गए पाठ गौण हो जाते हैं. छात्र लक्ष्य प्राप्त करने के लिए कोई भी मार्ग अपना सकता है फिर चाहे वह नकल करना हो या कोई और.

किसी भी तरह से ज्यादा अंक हासिल करने की होड़ से एक खामोश संदेश यह मिल रहा है कि नकल ऐसे की जाए कि पकड़े न जा सकें और जो न पकड़ा गया वह औरों से आगे निकल गया. अनेक छात्रों में यह धारणा बनी हुई है कि इस खामोश संदेश के विरुद्ध जाना यानी नकल न करने में नंबर कम हो जाएंगे और तब पछतावा होगा. वहीं जो मातापिता इस का विरोध करते हैं उन्हें दाकियानूसी करार दिया जाता है.

बच्चे देश के भविष्य हैं

देश में भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है. जिस को जहां मौका मिल रहा है अपना घर भरने की सोच रहा है. लालची लोगों ने देश के विकास में बाधाएं डाली हैं.

ऐसे माहौल में स्कूलों और अभिभावकों का यह नैतिक दायित्व है कि वे बच्चों को आरंभ से ही नैतिक और राष्ट्र को सर्वोपरि मान कर कार्य करने का पाठ पढ़ाएं. परीक्षा में जो बच्चे नकल करते हैं या शौर्टकट अपनाते है उन पर विशेष ध्यान दें और उन के प्रति सुधार के कार्य करें. क्योंकि जो आज स्कूल जा रहे हैं, कल वे ही देश को चलाएंगे.

बालमन पढ़ें अभिभावक

बच्चों की सब से बड़ी पाठशाला उस का घर होती है. मातापिता का दायित्व है कि वे कारण ढूंढ़ें कि बच्चे ने नकल करने का अपराध क्यों किया. ऐसा हो सकता है कि कुछ और समस्याएं रही हों जिन के कारण बच्चे पर मानसिक दबाव पड़ रहा है और वह स्वतंत्र मानस से अध्ययन नहीं कर पा रहा है. यदि ऐसा है तो मातापिता उस दबाव को दूर करने का प्रयास करें ताकि विद्यार्थी स्वतंत्र मानस से अध्ययन के प्रति निष्ठावान हो जाए और परीक्षा में नकल करने की नौबत न आए.

बच्चे पर कभी भी दबाव न डालें कि वह अमुक बच्चे की तरह अच्छे ग्रेड लाए या अपनी कक्षा या स्कूल में टौप करे. कई बार परीक्षा में नकल करने का कारण अच्छा ग्रेड लाना या अमुक बच्चे से अधिक अंक लाना या टौप करना भी होता है, जिस के लिए बच्चे के मातापिता उस पर जोर डालते रहते हैं. अभिभावकों को चाहिए कि विद्यार्थी को मानसिक दबाव से मुक्ति दिलाने के लिए उसे ऐसे खेल खेलने की सलाह दें जिन में प्रतिस्पर्धा का दबाव न हो.

अनैतिक आचरण न अपनाएं

अभिभावक बच्चों के समक्ष सदैव आदर्श प्रस्तुत करें, क्योंकि मातापिता द्वारा किए जा रहे कार्यों का बच्चों की कोमल मानसिकता पर सीधा प्र्रभाव पड़ता है और वे उस का अनुसरण करने लगते हैं. यदि माता या पिता टैक्स बचा कर परिवार में यह कहते हैं कि सरकार को फालतू पैसा देने का क्या फायदा है, तो उन के इस प्रकार के आचरण का छात्र पर बुरा असर पड़ता है, जबकि अभिभावक को परिवार में यही कहना चाहिए कि टैक्स बचाना एक चोरी है और इसे कभी नहीं करना चाहिए.

अभिभावकों की जिम्मेदारी

दिल्ली के एक प्रतिष्ठित सीनियर सैकंडरी स्कूल के प्रिंसिपल बताते हैं कि नकल करते पकड़े गए छात्रों के अभिभावकों को बुलाया जाता है और उन्हें सलाह दी जाती है कि वे अपने बच्चों को घर में अच्छी नैतिक व आदर्श शिक्षा दें ताकि बच्चा जीवन में कभी भी गलत हथकंडा न अपनाए. वे बताते हैं कि अभिभावक बहुत शर्मिंदा होते हैं. और दुखी हो कर बच्चे को भविष्य में इस तरह उन्हें बुलाने की नौबत न आने के लिए बच्चे को समझाते हैं.

कभीकभी अभिभावक इतने क्रोधित हो जाते हैं कि बच्चों पर वहीं हाथ छोड़ देते हैं या फिर घर जा कर उस की बुरी तरह पिटाई करते हैं.

बच्चा इतना तेज होता है कि वह पहले से ही अपनी मां को समझा कर आता है कि फलां अध्यापक मुझ से जलता है और मेरे बगल की सीट में बैठा बच्चा नकल कर रहा था उसे छोड़ दिया जबकि मैं नकल नहीं कर रहा था मुझे पकड़ लिया. ऐसे अभिभावक अपने बच्चे का खुल कर पक्ष लेते हैं और अध्यापक को आड़े हाथों लेते हैं.

क्या आप जानते हैं : चुकंदर में छिपा है सेहत का खजाना

किसी को खून की कमी होती है, तो सभी उसे चुकंदर खाने को कहते हैं. चुकंदर में अनेक गुण होते हैं. चुकंदर को जब काटा या छीला जाता है तो अंदर से लाल या गुलाबी रंग का रस निकलता है.

चुकंदर में अच्छी मात्रा में लौह, विटामिन और खनिज होते हैं जो खून बढ़ाने और साफ करने के काम में मददगार होते हैं. इस में पाए जाने वाले एंटीऔक्सीडैंट तत्त्व शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं. यह प्राकृतिक शर्करा का खजाना होता है. इस में सोडियम, पोटैशियम फास्फोरस, क्लोरीन, आयोडीन और अन्य महत्त्वपूर्ण विटामिन पाए जाते हैं. चुकंदर में गुरदे और लिवर को साफ करने के प्राकृतिक गुण हैं.

इस में उपस्थित पोटैशियम शरीर को प्रतिदिन पोषण प्रदान करने में मदद करता है तो वहीं क्लोरीन गुरदों के शोधन में मदद करता है. यह हाजमा संबंधी समस्याओं जैसे उलटी, दस्त, चक्कर आदि में लाभदायक होता है. चुकंदर का रस पीने से खून की कमी दूर हो जाती है क्योंकि इस में लौह भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. चुकंदर का रस हाइपरटैंशन और हृदय संबंधी समस्याओं को दूर रखता है, खासतौर से महिलाओं के लिए यह बहुत लाभकारी है.

चुकंदर में बेटेन नामक तत्त्व पाया जाता है, आंत व पेट को साफ करने के लिए शरीर को इस की आवश्यकता होती है और चुकंदर में उपस्थित यह तत्त्व उस की भरपाई करता है. कई शोधों के अनुसार, चुकंदर कैंसर में भी लाभदायक होता है. चुकंदर और उस के पत्ते फोलेट का अच्छा स्रोत होते हैं, जो उच्च रक्तचाप और अल्जाइमर यानी भूलने की बीमारी को दूर करने में सहायक होते हैं.

वीडियो : इस एक्ट्रेस ने अपने सेक्सी डांस मूव्स से मचाया सोशल मीडिया पर धमाल

बिग बौस में अपनी अदाओं के जलवे दिखा चुकीं नोरा फतेही इन दिनों अपने जबरदस्त मूव्स को लेकर चर्चा में हैं. वैसे तो नोरा पहले भी पहले भी अपने डांस से धमाका कर चुकीं हैं.

पर इसबार सोशल मीडिया पर उनके जो वीडियो सामने आए हैं उन्हें देखकर कोई भी खुद को उनके डांस मूव्स पर थिरकने से रोक नहीं पाएगा. बता दें कि कुछ दिन पहले उन्होंने अपने इंस्टाग्राम एकाउंट पर बैले डांस का वीडियो डाला था. जो जमकर वायरल हो रहा है.

इस गाने में नोरा फतेही बहुत ही शानदार ढंग से डांस कर रही हैं, उनकी कमर बीट्स पर चल रही हैं. इस वीडियो के जरिये उन्होंने दिखा दिया है कि बैले डांस में वे कितनी माहिर हैं.

आइये देखें उनका बैले डांस वीडियो

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नोरा अपने बेहतरीन डांस के लिए पहचानी जाती हैं . वे कमाल का बैले डांस करती हैं. बता दें कि नोरा फतेही ने ‘बाहुबली’ में ‘मनोहारी’ गाने पर जबरदस्त डांस किया था. प्रभास के साथ इस गाने में उनकी कैमेस्ट्री काफी जमी भी थी. उन्होंने इस गाने से काफी चर्चा बटोरी और लोगों ने नोरा को काफी पसंद भी किया. यही नहीं, बिग बौस के घर में भी नोरा ने अपनी सेक्सी अदाओं के साथ बेहतरीन डांस मूव्ज दिखाए थे.

वैसे कुछ दिन पहले ही नोरा फतेही हार्डी संधू के नए पंजाबी सान्ग में भी नजर आई थीं. हार्डी के नए गाने ‘नाह’ में वे उनकी महबूबा के रोल में दिखी थीं. नोरा फतेही इंडो-कैनेडियन हैं. 25 वर्षीया नोरा ने बौलीवुड फिल्म ‘रोरः टाइगर्स औफ द सुंदरबंस’ से अपने करियर की शुरुआत की थी. उसके बाद वे ‘क्रेजी कुक्कड़ फैमिली’ में भी नजर आईं लेकिन उनकी ये फिल्में बौक्स औफिस पर कुछ खास कमाल न दिखा सकीं. भले ही नोरा ने फिल्मों से नाम न कमाया हो पर उन्होंने अपने आइटम सान्ग से काफी सुर्खियां बटोरी है.

तेलुगु फिल्म ‘टेंपर’, ‘बाहुबली’ और ‘किक-2’ में उनके गानों ने उन्हें पौपुलर बनाने का काम किया. वे मलयालम फिल्म ‘डबल बैरल’ में भी नजर आ चुकी हैं. फतेही इंग्लिश, हिंदी, फ्रेंच और अरेबिक भाषाएं बोल लेती हैं.

स्मार्टफोन यूजर्स सावधान, खतरे में है आपका बैंक अकाउंट

आज हममे से ज्यादातर लोग आपना आधे से ज्यादा काम अपने स्मार्ट फोन पर ही कर लेते हैं. आपको तो पता ही होगा कि स्मार्टफोन में रोजाना नए-नए अपडेट तो आते रहते हैं. रोज नए ऐप्स भी आ रहे हैं और स्मार्टफोन यूजर बिना सोचे-समझे इन्हें डाउनलोड भी कर लेते हैं. लेकिन बिना सोचे समझे ऐप्स या सौफ्टवेयर को अपडेट कर लेना आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है. ऐसे में आपको कुछ भी डाउनलोड करते समय या सौफ्टवेयर अपडेट करते समय थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत है. हम आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हाल ही में एक नया एंड्रौयड मालवेयर ढूंढा गया है जो 232 बैंकिंग ऐप्स को निशाना बना रहा है. दावा किया जा रहा है कि मालवेयर को यूजर्स के लौगिन से जुड़ी जानकारियां चोरी करने के लिए डिजाइन किया गया है.

क्या होता है मालवेयर

मालवेयर एक तरह का सौफ्टवेयर है, जिसे कंप्यूटर या स्मार्टफोन में बिना यूजर की जानकारी के सेंध मारने के लिए बनाया जाता है. इसके जरिए हैकर्स स्मार्टफोन डिवाइस को टारगेट करते हैं और आपका डिवाइस हैक कर उसमें से जरूरी जानकारी चोरी कर लेते हैं.

इन बैंकिंग ऐप्स पर है खतरा

रिपोर्ट्स के मुताबिक, नया मालवेयर भारतीय बैंकों के ऐप्स को निशाना बना रहा है. इनमें HDFC मोबाइल बैंकिंग, एक्सिस मोबाइल, SBI पर्सनल, ICICI बैंक, IDBI बैंक, बड़ौदा एमपासबुक और यूनियन बैंक के ऐप्स शामिल हैं. क्विकहील सिक्योरिटी लैब्स के मुताबिक इस एंड्रौयड बैंकिंग मालवेयर को Android.banker.A2f8a बताया जा रहा है.

क्यों किया गया है डिजाइन

क्विकहील सिक्योरिटी लैब्स का दावा है कि इस मालवेयर को यूजर्स के लौगिन से जुड़ी जानकारियां चोरी करने के लिए डिजाइन किया गया है. यह मालवेयर मोबाइल के एसएमएस हाइजैक करने से लेकर खतरनाक सर्वर पर फोन के कौन्टैक्ट्स और एसएमएस अपलोड कर सकता है. मालवेयर आपके स्मार्टफोन के मैसेज को हाइजैक करने के साथ ही पोन पर आने वाले OTP को भी रीड कर लेता है. यह आपके फोन की सभी जरूरी जानकारी को चोरी कर आपके बैंक अकाउंट से पैसे आदि आसानी से निकाल सकता है.

फोन में कैसे भेजा जाता है मालवेयर

क्विकहील के ब्लौग के मुताबिक, Android.banker.A2f8a फर्जी फ्लैश प्लेयर ऐप के जरिए फैलाया जा रहा है. इसे आम तौर पर थर्ड पार्टी ऐप स्टोर में भेजा जा रहा है. ऐडोब फ्लैशप्लेयर इंटरनेट पर काफी पौपुलर है. फ्लैश प्लेयर की लोकप्रियता दुनिया भर में काफी है, इसलिए इसे हैकर्स टारगेट पर पहुंचने के लिए इस्तेमाल करते हैं.

कैसे काम करता है ये मालवेयर

यह मालवेयर फ्लैश के जरिए आपके स्मार्टफोन में इंस्टौल होता है. हालांकि, इंस्टौल होने पर इसका आइकौन नहीं दिखाई देता. दरअसल, मालवेयर बैकग्राउंड में काम करता है और इन 232 बैंकिंग ऐप्स में से किसी एक को चेक करता है. टारगेट ऐप मिलते ही स्मार्टफोन यूजर को नोटिफिकेशन भेजता है, जो दिखने में बैंकिंग ऐप जैसा ही होता है. यूजर इन भेजे गए नोटिफिकेशन से आसानी से धोखा खा जाते हैं. नोटिफिकेशन को ओपन करते की एक फर्जी लौग इन विंडो दिखाई देती है, यहीं से आपकी संवेदनशील जानकारियां हैकर्स के पास जानी शुरू हो जाती है. इसलिए सावधान रहकर ही किसी नोटिफिकेशन को औन करें.

बिहार के बैंकों में मुनाफाखोरी का खेल, सिक्के जमा करवा रहा है ‘सिक्का गिरोह’

बिहार में अचानक से बड़ी संख्या में सिक्का गिरोह पैदा हो गये हैं. वे सुनियोजित तरीके से बैंकों में सिक्का जमा करा रहे हैं. खबरें हैं कि दर्जनों लोग बिहार शहर के अलग-अलग बैंकों में अपने खाते में औसतन दो हजार रुपये के सिक्के जमा करने के लिए पहुंच रहे हैं. इसके पीछे का कारण मुनाफाखोरी बताया जा रहा है.

नोट एक्सचेंज में मुनाफाखोरी का खेल : जानकारों के मुताबिक नोट के बदले पैसा बदलने वालों की संख्या भी अच्छी खासी बढ़ गयी है. ये दलाल दुकानदारों को 100 रुपये के सिक्के के बदले 80-90 रुपये दे रहे हैं. दुकानदार अपने दुकान से सिक्के हटाने के चक्कर में ऐसा कर रहे हैं. वे दुकानदारों से सिक्के जमा कर हर दिन अपने बैंक खाते में जमा कर रहे हैं.

मुनाफाखोरी करने वाले लोगों अथवा दलालों ने अपने अपने परिवार के सदस्यों के नाम पर प्रमुख बैंकों में खाता खुलवा रखा है और इन्ही खातों का इस्तेमाल वे मुनाफाखोरी के लिए कर रहे हैं. खाता होने के कारण बैंक प्रबंधक सिक्के लेने से मना नहीं कर पा रहे हैं. बैंक प्रबंधकों की मानें, तो जिस तरह से पिछले कुछ दिनों से बैंक में सिक्के जमा करने वाले लोगों की संख्या अप्रत्याशित तौर पर बढ़ रही है, वह चिंताजनक है.

सिक्के जमा करने बड़ी संख्या में चैन बनाकर पहुंच रहे हैं लोग : स्टेट बैंक, सेंट्रल बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, यूनियन बैंक, कौर्पोरेशन बैंक, केनरा बैंक, बैंक औफ बड़ौदा आदि बैंकों में हर दिन बड़ी संख्या में लोग चेन बना कर अपने-अपने खाते में रुपये के साथ एक हजार-दो हजार रुपये के सिक्के लेकर पहुंच रहे हैं.

बैंक अफसरों के मुताबिक नोटबंदी के दौरान जिस तरीके से बड़े लोगों का पैसा जमा कराने कई लोग लाइन लगा कर आ रहे थे, ठिक उसी प्रकार से अब बड़े कारोबारियों का पैसा जमा कराने दलालों की एक पूरी फौज खड़ी हो गयी है.

बैंक सिक्के लेने से कतरा रहे हैं

बैंकों में लगातार थोक में सिक्का जमा करने की वजह से बैंकों के सामने उन्हें स्टोर करने की समस्या आ रही है. ऐसे में बैंक अब सिक्के लेने में कतरा रहे हैं.

बैंक शाखा मजबूर : ज्ञात हो कि भारतीय रिजर्व बैंक ने कोई भी खाताधारक से एक दिन में एक हजार रुपये के सिक्के स्वीकार करने के निर्देश सार्वजनिक और निजी बैंक को दे रखे हैं. जबकि भारतीय रिजर्व बैंक बैंकों में जमा सिक्के नहीं लेता है. ऐसे में जमा कराए जा रहे सिक्को का बैंक शाखा क्या करें, उनकी समझ में नहीं आ रहा है.

आम लोगों की परेशानी बढ़ी : दुकानदार एक रुपये के छोटे सिक्के स्वीकार नहीं कर रहे हैं. इस कारण आम लोगों को काफी परेशानी दिन पर दिन बढ़ रही है. लगातार देखा जा रहा है कि आम आदमी से लेकर औटो चालक, ठेला चालक, चाय दुकानदार तथा होटल संचालक हर कोई एक रुपये के छोटे सिक्के लेने से कतरा रहा है.

एक दूसरा भी पहलू : नोटबंदी के दौरान बैंकों द्वारा भारी मात्रा में बड़े नोट के बदले सिक्के दिये गये थे. वही सिक्के आम जनता और दुकानदारों के लिए भारी परेशानी का कारण बने हुए हैं. बैंकों द्वारा सिक्के नहीं लिये जाने के कारण बड़ी संख्या में सिक्के जमा हैं. लोगों ने बैंकों द्वारा सिक्के नहीं लेने के संबंध में वित्त मंत्री और रिजर्व बैंक को पत्र लिख कर आवश्यक कार्रवाई करने को कहा है.

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