छोटा शहर और बड़ा मकान. सासससुर रहे नहीं और दोनों बच्चे बाहर चले गए. बेटी अपनी ससुराल और बेटा आगे की पढ़ाई करने के लिए किसी दूसरे शहर या देश. पूरा घर सायंसायं करता है. और तो और घर की ठीक से साफसफाई भी नहीं हो पाती. रिटायरमैंट में अभी 5 साल बाकी हैं. इतने बड़े घर में रहते हुए सरोज को बड़ा अकेलापन महसूस होता था. दोनों पतिपत्नी आखिर करें तो क्या करें. दोनों हिस्सों के बीच पार्टीशन करवा लिया ताकि दोनों परिवारों की प्राइवेसी बनी रहे. घर के बाहर टू-लेट का बोर्ड टांगते ही किराएदारों की लाइन लग गई.

राजेश और सीमा भी मकान देखने आए थे. मकान तो खैर सभी को पहली ही नजर में पसंद आ जाता था मगर यह परिवार सरोज को भी पसंद आ गया था. खासकर सीमा की 8 माह की बिटिया ने सरोज को अपने मोहपाश में बांध लिया था. सबकुछ तय हो जाने के बाद 11 महीने के किराएनामे पर दोनों तरफ से हस्ताक्षर हुए और 4 दिन बाद ही राजेश अपनी छोटी सी फैमिली के साथ घर में पहले किराएदार के रूप में शिफ्ट हो गया.

सरोज की यों भी किसी के फटे में टांग अड़ाने की आदत नहीं थी, इसलिए सबकुछ बहुत सही चल रहा था. सीमा की तरफ से आती उस की बिटिया की किलकारी से घर में रौनक होने लगी. घर भी साफसुथरा रहने लगा और सब से बड़ी बात कि सरोज को कभीकभार दुलारने के लिए एक नन्ही साथी मिल गई थी.

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संबंधों का बेजा इस्तेमाल

एक दिन जैसे ही सरोज औफिस से आई, दरवाजे पर दस्तक हुई. देखा तो सीमा खड़ी थी अपनी बिटिया के साथ. ‘‘आंटी, मैं जरा बाजार तक हो कर आती हूं, आप प्लीज पीहू को रख लेंगी?’’

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