पाकिस्तान ने गुप्तचरी के आरोप में पकड़े भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को 25 दिसंबर को मां अवंती जाधव व पत्नी चैतन्य जाधव से मिलने तो दिया पर शीशे की दीवार के पीछे और केवल टैलीफोन से बात कर के. सारी बात रिकौर्ड भी की गई और सुनी भी गई. कमरे में जाने से पहले मां व पत्नी के कपड़े बदलवाए गए, आभूषण उतरवाए गए और जूते तक निकलवाए गए. भारत में इस पर गंभीर आपत्ति की जा रही है.

हमारी आपत्ति तो सही है पर यह अब एक स्टैंडर्ड व्यवस्था है जो दुनियाभर में जासूसों व अपराधियों के साथ की जाती है. पाकिस्तान ने चाहे कितनी ही अति की हो, कुलभषण जाधव को सजा दे कर वह अपने कानूनों के अनुसार तो यह हक रखता है. अंतर्राष्ट्रीय कानून भी इस बारे में देशों को छूट देता है और अमेरिका जैसे लोकतंत्र में भी देशीविदेशी अपराधियों, खासतौर पर गुप्तचरों के साथ ऐसा ही किया जाता है.

इस प्रक्रिया को असल में सामान्य मानना चाहिए और व्यर्थ में पाकिस्तान विरोधी माहौल नहीं बनाना चाहिए. भारत सरकार आजकल चीन और पाकिस्तान का राजनीतिक उपयोग उसी तरह करने लगी है जैसे एक जमाने में इंदिरा गांधी ने हर मामले में विदेशी हाथ को कोसना शुरू कर दिया था. खालिस्तान समस्या की जड़ भी पाकिस्तान को घोषित कर दिया गया था जबकि उस का हल अंत में ब्लूस्टार औपरेशन व राजीव गांधी-संत लोगोंवाल समझौते से हुआ था.

जासूसी कांडों में अगर अपने जासूस को वापस लाना हो तो जासूसों की अदलाबदली होती है. पर इस मामले में अगर यह प्रक्रिया चल रही हो तो अभी तक सामने नहीं आई है. भारत ने घोषित रूप से किसी पाकिस्तानी जासूस को नहीं पकड़ रखा है जबकि नरेंद्र मोदी तो मणिशंकर अय्यर और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर तीरतुक्का लगाते हुए गुजरात चुनाव में फायदा उठाने के मकसद से गुप्तचरी का सा आरोप लगा चुके हैं. अगर ऐसे हालात में हमारे पास कोई पाकिस्तानी कुलभूषण जाधव नहीं है तो यह हमारी असफलता की निशानी है. पाकिस्तानी जासूस यहां नहीं होंगे, यह तो नहीं माना जा सकता.

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