कितनी तनहा, कितनी कातिल
गुजरी अपनी सारी रात
टूटे सपने, भीगी पलकें
बीती भारीभारी रात
याद तुम्हारी बनी ब्याहता
लेटी रही संग मेरे
फिर भी मुझे रही सताती
मादक बदन, कुंआरी रात
बिना तुम्हारे यौवन रोया
संयम ने ताने मारे
चटक चांदनी रही चिढ़ाती
रोई प्यारीप्यारी रात
एक प्रश्न का हल तलाशते
बीत गया था दिन सारा
अब न पूछना, हाय, किस तरह
मैं ने यहां गुजारी रात.
– सूर्यकुमार पांडेय
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