Download App

Romantic Story In Hindi : अलौकिक प्रेम – सुषमा ने गौरव से दूरी क्यों बना ली

Romantic Story In Hindi : कुछ दिनों से सुषमा के मन में उथलपुथल मची हुई थी. अपने आत्मीय से नाता तोड़ लेना उस के अंतर्मन को छलनी कर गया था. उस के बाद उस ने मौन धारण कर लिया था. हालांकि वह जानती थी यह मौन बहुत घातक होगा उस के लिए, लेकिन वह गहरे अवसाद में घिर गई थी. उस के डाक्टर ने कह दिया था जब तक वह नहीं चाहेगी वे उसे ठीक नहीं कर पाएंगे. सुषमा को देख कर लगता था वह ठीक होना ही नहीं चाहती है. उस का मन आज बेहद उदास था. उस की आंखों से नींद गायब थी. अचानक जाने क्या हुआ उस ने अपने 4 साल से बंद याहू मेल को खोला.

एक के बाद एक मेल वह पढ़ती गई, तो उस की यादों की परतें खुलती गईं. उसे ऐसा लग रहा था जैसे कल की बात हो जब उस ने सोशल नैटवर्किंग जौइन किया था. उस वक्त बड़ा उत्साह था उस में. रोज नएनए चेहरे जुड़ते. उन से बातें होतीं फिर वह उन्हें बाहर कर देती. लेकिन कुछ दिनों से एक चेहरा ऐसा था जो अकसर उस के साथ चैट पर होता. पहला परिचय ही काफी दमदार था उस का. ‘‘हे, आई एम डाक्टर गौरव. 28 इयर्स ओल्ड, जानवरों का डाक्टर हूं. 2 बार आईएएस का प्री और मेन निकाला है, लेकिन इंटरव्यू में रह गया. पर अभी हारा नहीं हूं. पीसीएस बन कर रहूंगा. फिलहाल एक कोचिंग सैंटर में आईएएस की कोचिंग में पढ़ाता हूं और जल्दी ही अपना कोचिंग सैंटर खोलने वाला हूं.’’

अवाक सी रह गई थी सुषमा. उस ने बस यह लिखा, ‘‘आई एम सुषमा.’’

‘‘बड़ा खूबसूरत है आप का नाम. आप जानती हैं सुषमा का क्या मीनिंग होता है?’’

‘‘मालूम है मीनिंग. आप को बताने की जरूरत नहीं है.’’

‘‘हाहाहा, बड़ी खतरनाक हैं आप. आई लाइक इट. वैसे क्या पसंद है आप को?’’

‘‘पढ़नालिखना और आप को?’’

‘‘पढ़नालिखना मुझे भी बहुत पसंद है. नहीं पढ़ूंगा तो 2 वक्त की रोटी नहीं मिलेगी. कोचिंग सैंटर में स्टूडैंट बहुत दिमाग खाते हैं. उन्हें समझाने के लिए खुद भी बहुत पढ़ना पड़ता है, यार.’’

‘‘हे, यार किसे कहा?’’

‘‘तुम्हें और किसे.’’

‘‘तुम नहीं आप कहिए मिस्टर गौरव.’’

‘‘ओके झांसी की रानी, इतना गुस्सा.’’

मन ही मन हंस पड़ी थी सुषमा. उस के बाद कुछ दिनों तक वह व्यस्त रही. फिर एक दिन जैसे ही औनलाइन हुई, उधर से मैसेज मिला, ‘‘हे, गौरव हियर, हाऊ आर यू?’’

‘‘आप को और कुछ काम नहीं है क्या? वहीं खाते, पीते और सोते हैं क्या आप?’’

‘‘हाहाहा, सारा काम नैट से ही होता है मेरा और आप ने कितना इंतजार करवाया. कहां थीं आप इतने दिन?’’

‘‘आप से मतलब और भी काम हैं हमारे.’’

‘‘ओकेओके झांसी की रानी. कोई बात नहीं, लेकिन कभीकभार आ जाया कीजिए. आप से 2 बातें कर के मन को सुकून मिलता है.’’ जाने क्यों आज सुषमा ने उस की बातों में संजीदगी महसूस की.

‘‘गौरव, क्या हुआ है. आज आप कुछ उदास हैं?’’

‘‘हां सुषमा, कुछ दिनों से घर में टैंशन चल रही है.’’

‘‘ओह किस बात पर?’’

‘‘घर के लोग चाहते हैं कि मैं कोई जौब कर लूं या अपना क्लिनिक खोल लूं. जबकि मेरा सपना है प्रशासनिक अधिकारी बनने का. रोजरोज इस बात पर घर में कलह होता है. समझ में नहीं आता कि हम क्या करें?’’

‘‘इतना परेशान मत होइए आप. सब ठीक हो जाएगा. खुद पर भरोसा रखिए. आप का सपना जरूर पूरा होगा.’’

‘‘सुषमा, आप की इन बातों से हमें बहुत बल मिलता है. आप हमारी अच्छी दोस्त बनोगी? हम बुरे इंसान नहीं हैं.’’

‘‘हम दोस्त तो हैं गौरव. यह अच्छा और बुरा क्या होता है?’’

‘‘हाहाहा, कैसे समझाऊं आप को. अच्छा, एक छोटा सा फेवर चाहिए मुझे.’’

‘‘क्या?’’

‘‘डरो नहीं आप, जान नहीं मांग रहे हैं हम आप से.’’

‘‘फिर भी बताओ क्या चाहिए आप को मुझ से?’’

‘‘बस इतना कि आप हमारी बात सुन लिया कीजिए. बड़े अकेले हैं हम. घर में मौमडैड हैं जिन्हें सिर्फ पैसा चाहिए. जबकि घर में पैसे की कमी नहीं है. बड़ा भाई अपनी पसंद से शादी कर के हैदराबाद में सैटल्ड है. उस का घर आना वर्जित कर दिया गया है. किसी को फुरसत नहीं है मेरी बात सुनने की.’’ ‘‘ठीक है गौरव, लेकिन दोस्ती में कभी मर्यादा तोड़ने की कोशिश मत करना.’’ ‘‘ओके, कभी शिकायत का मौका नहीं दूंगा आप को. अब तो तुम कह सकता हूं न?’’

‘‘तुम भी न गौरव, ठीक है कह सकते हो.’’ उस दिन से दोस्ती और गहरी होने लगी थी. जब भी वक्त मिलता सुषमा औनलाइन आती और गौरव से ढेरों बातें करती. हफ्ते में 1 दिन संडे को वे जरूर बात करते. गौरव बड़ा होनहार था. पढ़नेपढ़ाने वाला. उस की बातों में हमेशा शालीनता बनी रहती. और अब वह उसे सुषमा नहीं सु कह कर बुलाने लगा था. कहता था, ‘‘बड़ा लंबा नाम है, मैं तो सु कहूंगा तुम्हें.’’ ‘‘ओके गौरव.’’

एक दिन सुषमा ने कहा, ‘‘गौरव, तुम मेरे बारे में क्या जानते हो?’’

‘‘तुम ने कभी बताया ही नहीं.’’

‘‘और तुम ने पूछा भी नहीं.’’ ‘‘हां नहीं पूछा क्योंकि तुम मेरी दोस्त हो और दोस्ती किसी बात की मुहताज नहीं होती. सच कुछ भी हो दोस्ती हमेशा बनी रहेगी.’’ नाज हो आया था सुषमा को गौरव की दोस्ती पर. लेकिन आज वह यह सोच कर आई थी कि गौरव को अपने जीवन का हर सच बता देगी.

‘‘गौरव…’’

‘‘हां सु.’’

‘‘गौरव…’’

‘‘बोलो न सु, किस बात से परेशान हो आज? जो मन में हो कह दो.’’

‘‘सच जान कर दोस्ती तो नहीं तोड़ोगे?’’

‘‘हाहाहा, मैं प्राण जाए पर वचन न जाए वाला आदमी हूं, अब बताओ.’’

‘‘गौरव, आई एम मैरिड.’’

‘‘हाहाहा, बस इतनी सी बात. मैरिड होना कोई पाप नहीं है. सु, जब तुम मेरी दोस्त बनी थीं तब तुम भी कुछ नहीं जानती थीं मेरे बारे में. आज तुम्हारा मान और बढ़ गया है मेरी नजरों में.’’ सच में आज सुषमा को भी अभिमान हो आया था खुद पर. अब गौरव उस का सब से अच्छा दोस्त था. हफ्ते में 1 दिन वे चैट पर मिलते और उस दिन गौरव के पास बातों का खजाना होता. गौरव का जन्मदिन आने वाले था. सुषमा ने अपने हाथ से उस के लिए कार्ड डिजाइन किया और 19 जुलाई को रात 12 बजे उसे कार्ड मेल किया. गौरव उस वक्त औनलाइन था. बहुत खुश हुआ और अचानक बोला, ‘‘सु, एक बात बोलूं?’’

‘‘नहीं, मत बोलो गौरव.’’

‘‘हाहाहा, अरे मुझे कहनी है यार.’’

‘‘तो कहो न, मुझ से पूछा क्यों? मेरे मना करने से क्या नहीं कहोगे?’’

‘‘सु, मुझे आज एक गिफ्ट चाहिए तुम से.’’

‘‘क्या गिफ्ट गौरव? पहले कहते तो भेज देती तुम्हें.’’

‘‘अरे वह गिफ्ट नहीं.’’

‘‘साफसाफ बोलो गौरव, क्या कहना चाहते हो?’’

‘‘सु, हमारी दोस्ती को पूरा 1 साल हो चुका है. तुम्हारी आवाज नहीं सुनी अब तक. प्लीज, आज अपनी आवाज सुना दो मुझे.’’

‘‘ठीक है गौरव, अपना नंबर दो. कल शाम को काल करूंगी तुम्हें.’’

‘‘थैंक्स सु. कल मैं शाम होने का इंतजार करूंगा.’’ बड़े असमंजस में थी सुषमा कि काल करे या नहीं. गौरव इंतजार करता होगा. अंत में मन की जीत हुई. शाम को उस ने गौरव को काल किया तो वह बहुत खुश हुआ. ‘‘सु, तुम ने आज मुझे जिंदगी का सब से बड़ा गिफ्ट दिया है. तुम्हारी आवाज को मैं ने अपने मनमस्तिष्क में सहेज लिया है.’’

‘‘गौरव, क्या बोलते रहते हो तुम?’’

‘‘सच कह रहा हूं, सु.’’

उस दिन के बाद उन की फोन पर भी बातें होने लगीं. एक दिन शाम को 8 बजे गौरव का फोन आया, ‘‘सु, सुनो न.’’

‘‘हां गौरव, क्या हुआ? ये तुम्हारी आवाज क्यों लड़खड़ा रही है?’’

‘‘सु. मैं शराब पी रहा हूं अपने दोस्तों के साथ.’’

‘‘गौरव, तुम पागल हो गए हो क्या? घर जाओ अपने.’’ ‘‘ओके. अब कल सुबह बात करना मुझ से,’’ फिर फोन काट दिया था. वह जानती थी कि सुबह तक गौरव का गुस्सा शांत हो जाएगा और वह खुद ही अपने घर चला जाएगा. और ऐसा ही हुआ.

उन की दोस्ती को पूरे 2 साल होने वाले थे. दोनों को एकदूसरे का इंतजार रहता.

एक दिन गौरव ने कहा, ‘‘सु, एक बात कहूं?’’

‘‘नहीं गौरव.’’

‘‘मुझे कहनी है, सु.’’

‘‘फिर पूछते क्यों हो?’’

‘‘ऐसे ही. अच्छा लगता है जब तुम मना करती हो और मैं फिर भी पूछता हूं.’’

‘‘पूछो क्या पूछना है?’’

‘‘सु, इन दिनों मैं तुम्हारे बारे में बहुत सोचने लगा हूं. हैरान हूं इस बात से कि मुझे क्या हो रहा है?’’ ‘‘कुछ नहीं हुआ है गौरव, हम बहुत बातें करते हैं न, इसलिए तुम्हें ऐसा लगता है.’’

‘‘नहीं सु, एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’

‘‘कह दो, मना करने पर भी कहोगे ही न?’’

‘‘सु.’’

‘‘हां गौरव बोलो.’’

‘‘मुझे प्यार हो गया है.’’

‘‘बधाई हो गौरव. कौन है वह?’’

‘‘सु, तुम नाराज हो जाओगी.’’

‘‘ओके मत बताओ, मैं जा रही हूं.’’

‘‘सु रुको न, मुझे तुम से प्यार हो गया है. जानता हूं तुम बुरा मान जाओगी, लेकिन एक बात बताओ क्या तुम मुझे रोक सकती हो प्यार करने से? नहीं न? मेरा मन है तुम मत करना मुझ से प्यार.’’ ‘‘गौरव, तुम पागल हो गए हो. तुम जानते हो मेरी सीमाओं को. तुम्हें यह सोचना भी नहीं चाहिए था. यह तो पाप है गौरव.’’ ‘‘मेरा प्यार पाप नहीं है, सु. मैं ने कभी तुम्हें गलत नजर से नहीं देखा है. यह प्यार पवित्र व निस्वार्थ है. सु, तुम से नहीं कहूंगा अपना प्यार स्वीकार करने को.’’

‘‘गौरव, प्लीज मुझे कमजोर मत बनाओ.’’

‘‘सु, तुम कमजोर नहीं हो. तुम्हारा गौरव तुम्हें कभी कमजोर नहीं बनने देगा.’’ एक लंबी चुप्पी के बाद सुषमा ने बात वहीं खत्म कर दी और इस के बाद कई दिनों तक उस ने गौरव से बात नहीं की. लेकिन कब तक? मन ही मन तो वह भी गौरव से प्यार करने लगी थी. एक दिन उस ने खुद गौरव को फोन किया, ‘‘गौरव कैसे हो?’’

‘‘जिंदा हूं सु. मरूंगा नहीं इतनी जल्दी.’’

‘‘मरें तुम्हारे दुश्मन.’’

‘‘हाहाहा सु, मुझे विश्वास था कि तुम लौट आओगी मेरे पास.’’ ‘‘हां गौरव लौट आई हूं अपनी सीमाएं तोड़ कर, लेकिन कभी गलत काम न हो हम से.’’ ‘‘मुझ पर यकीन रखो मैं तुम्हें कभी शर्मिंदा नहीं होने दूंगा.’’ प्रेम की मौन स्वीकृति पर दोनों बहुत खुश थे. एक दिन बातों ही बातों में सुषमा ने पूछ लिया, ‘‘गौरव, तुम्हारी लाइफ में कोई और भी है क्या?’’ ‘‘अब सिर्फ तुम हो सु. मैडिकल कालेज, हैदराबाद में थी एक लड़की. हम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे. लेकिन पढ़ाई पूरी होने के बाद जब मैं दिल्ली वापस आ गया तो उस के मांबाप ने उस की शादी कर दी.’’ उस दिन बात यहीं खत्म हो गई. एक दिन गौरव बड़ा परेशान था.

‘‘क्या हुआ गौरव?’’ सुषमा ने पूछा.

‘‘सु, घर वाले शादी की जिद कर रहे हैं. आज शाम को लड़की देखने जाना है.’’

‘‘अरे तो जाओ न गौरव, इस में परेशान होने की क्या बात है?’’

‘‘मेरे घर वालों को दहेज चाहिए सु और इस के लिए वे कोई भी लड़की मेरे पल्ले बांध देंगे.’’ ‘‘तुम जाओ तो सही फिर बताना कैसी है लड़की?’’

‘‘तुम कह रही हो तो जाता हूं.’’ शाम को गौरव का गुस्से से भरा फोन आया, ‘‘तुम ने ही जिद की वरना मैं नहीं जाता. लड़की कंपनी सेक्रेटरी है. खुद को जाने क्या समझ रही थी. मना कर आया हूं मैं.’’

‘‘शांत हो जाओ गौरव, कोई और अच्छी लड़की मिल जाएगी.’’ गौरव के घर वाले शादी के लिए जोर डाल रहे थे. सुषमा जानती थी गौरव की परेशानी को, लेकिन चुप रही. एक दिन वह बोली, ‘‘गौरव, सुनो न.’’

‘‘हां कहो, सु.’’

‘‘राधा और किशन का प्रेम कैसा था?’’

‘‘सु, वह अलौकिक प्रेम था. राधाकिशन का दैहिक नहीं आत्मिक मिलन हुआ था.’’ ‘‘गौरव, मुझे राधाकिशन का प्रेम आकर्षित करता है.’’

‘‘तो आज से तुम मेरी राधा हुईं, सु.’’

सुषमा थोड़ी देर चुप रही फिर बोली, ‘‘गौरव…’’

‘‘हां सु, क्या मैं ने कुछ गलत कहा? तुम चुप क्यों हो गई हो?’’

सुषमा चुप ही रही. 19 जुलाई आने वाली थी. वह इस बार भी गौरव को कुछ खास तोहफा देना चाहती थी. उस ने राधाकिशन का एक कार्ड बनाया और गौरव को अपनी शुभकामनाएं दीं. अपने नाम की जगह उस ने लिखा राधागौरव. कार्ड देख कर पागल हो गया गौरव. बहुत खुश था वह इसलिए फोन पर रोता रहा फिर बोला, ‘‘राधे, आज तुम ने मेरे नाम के साथ अपना नाम जोड़ कर मुझे सब से अनमोल गिफ्ट दिया है. अब कुछ नहीं चाहिए मुझे. यह किशन सिर्फ तुम्हारा है.’’ गौरव के लिए लड़की पसंद कर ली गई थी. जैसेजैसे गौरव की शादी का दिन पास आ रहा था, सुषमा बहुत परेशान रहने लगी थी. उसे डर था उन का रिश्ता कहीं गौरव की नई जिंदगी में दुख न घोल दे.

‘‘गौरव, शादी के बाद तुम मुझ से बात मत करना,’’ एक दिन वह बोली.

‘‘क्यों नहीं करूंगा सु, तुम से बात नहीं हुई तो मैं मर जाऊंगा.’’ नहीं गौरव, ऐसा मत कहो. तुम अपनी पत्नी को बहुत प्यार देना. कभी कोई दुख न देना. तुम चिंता मत करो सु, तुम्हारा गौरव कभी तुम्हें शर्मिंदा नहीं करेगा. गौरव की शादी हो गई. गौरव के घर वालों को खूब सारा दहेज और गौरव को एक अच्छी पत्नी मिल गई. गौरव ने अपनी पत्नी को सुषमा के बारे में सब कुछ बता दिया, तो वह इस बात से खफा रहने लगी. जब भी गौरव चैट पर होता, वह गुस्सा हो जाती. गौरव ने सुषमा को सब बताया. सुषमा का मन बड़ा दुखी हुआ. अब वह खुद भी गौरव से कटने लगी.

‘‘सु, क्या हो गया है तुम्हें, मुझ से बात क्यों नहीं करती हो?’’ एक दिन गौरव बोला.

‘‘गौरव, मैं व्यस्त थी.’’

‘‘नहीं, तुम झूठ बोल रही हो, तुम्हारी आवाज से मैं समझता हूं.’’ गौरव की जिंदगी में खुशियां लाने के लिए सुषमा ने मन ही मन एक फैसला कर लिया. उस ने गौरव को एक मेल किया और कहा, ‘‘गौरव वक्त आ गया है हमारे अलग होने का. किशन भी तो गए थे राधा से दूर, लेकिन उन का प्रेम जन्मजन्मांतर के लिए अमर हो गया. आज यह राधा भी दूर जाने का फैसला कर बैठी है. कोई सवाल मत करना तुम, तुम्हें कसम है मेरे प्यार की. और हां, काल मत करना. मैं ने अपना नंबर बदल दिया है. आज से ये मेल भी बंद हो जाएगी. अब तुम्हें अपनी पत्नी के साथ अपना घरसंसार बसाना है.

-तुम्हारी राधा.’’

मन पर पत्थर रख कर सुषमा ने गौरव से बना ली थीं. आज 3 साल बाद याहू मेल को खोला तो देखा, गौरव ने हर हफ्ते उसे मेल किया था.

‘‘सु, मैं बाप बनने वाला हूं, तुम खुश हो न?’’ ‘‘सु, मैं ने राजस्थान पीसीएस क्लियर कर लिया है. मेरी आंखों से तुम ने जो सपना देखा था वह पूरा हो गया, सु.’’ ‘‘आज मैं बहुत खुश हूं सु, मेरा बेटा हुआ है. मैं ने उस का नाम मोहित रखा है. तुम्हें पसंद था न मोहित नाम?’’

सु…ये..सु वो.. इन 3 सालों में जाने कितने मेल किए थे गौरव ने. सुषमा यह देख कर हैरान रह गई. 2 दिन पहले का मेल था, ‘‘सु, याद है तुम ने कहा था कि जब तुम्हारी जिम्मेदारियां पूरी हो जाएंगी, तुम मेरे साथ ताजमहल देखने जाओगी. मैं उस दिन का इंतजार कर रहा हूं.’’ होंठों पर मीठी सी मुसकराहट आ गई सुषमा के आंखों के आगे. कौंध गया 30 साल बाद का वह दृश्य. वह जर्जर बूढ़ी काया वाली हो गई है और गौरव का हाथ थामे ताजमहल के सामने खड़ी है. और, गौरव सु, ‘देखो ये है ताजमहल. प्रेम की अनमोल धरोहर, प्रेम की शाश्वत तसवीर,’ कह रहा है. वह मजबूती से गौरव का हाथ थामे अलौकिक प्रेम को आत्मसात होते देख रही है. Romantic Story In Hindi 

लेखिका : उषा शर्मा 

Social Story In Hindi : न्याय – बेकसूर को न्याय दिलाने वाले व्यक्ति की दिलचस्प कहानी

Social Story In Hindi : पिछले वर्ष अपनी पत्नी शुभलक्ष्मी के कहने पर वे दोनों दक्षिण भारत की यात्रा पर निकले थे. जब चेन्नई पहुंचे तो कन्याकुमारी जाने का भी मन बन गया. विवेकानंद स्मारक तक कई पर्यटक जाते थे और अब तो यह एक तरह का तीर्थस्थान हो गया था. घंटों तक ऊंची चट्टान पर बैठे लहरों का आनंद लेते रहे ेऔर आंतरिक शांति की प्रेरणा पाते रहे. इस तीर्थस्थल पर जब तक बैठे रहो एक सुखद आनंद का अनुभव होता है जो कई महीने तक साथ रहता है.

आने वाले तूफान से अनभिज्ञ दोनों पत्थर की एक शिला पर एकदूसरे से सट कर बैठे थे. ऊंची उठती लहरों से आई ठंडी हवा जब उन्हें स्पर्श करती थी तो वे सिहर कर और पास हो जाते थे. एक ऐसा वातावरण और इतना अलौकिक कि किसी भी भाषा में वर्णन करना असंभव है.

तभी उन्हें लगा कि एक डौलफिन मछली हवा में लगभग 20 मीटर ऊपर उछली और उन्हें अपने आगोश में समा कर वापस समुद्र में चली गई.

यह डौलफिन नहीं सुनामी था. एक प्राणलेवा कहर. इस मुसीबत में उन्हें कोई होश नहीं रहा. कब कहां बह गए, पता नहीं. जो हाथ इतनी देर से एकदूसरे को पकड़े थे अब सहारा खो बैठे थे. न चीख सके न चिल्ला पाए. जब होश ही नहीं तो मदद किस से मांगते?

जब उन्हें होश आया तो किनारे से दूर अपने को धरती पर पड़े पाया.

‘शुभलक्ष्मी,’ सदानंद के मुंह से कांपते स्वर में निकला, ‘यह क्या हो रहा है?’

एक अर्द्धनग्न युवक पास खड़ा था. कुछ दूर पर कुछ शरीर बिखरे पड़े थे. युवक ने उधर इशारा किया और लड़खड़ाते सदानंद को सहारा दिया. उन लोगों में सदानंद ने अपनी पत्नी शुभलक्ष्मी को पहचान लिया. मौत इतनी भयानक होगी, इस का उसे कोई अनुमान नहीं था. डरतेडरते पत्नी के पास गया. एक आशा की किरण जागी. सांस चल रही थी. उस युवक व अन्य स्वयंसेवकों की सहायता से वह उसे अपने होटल के कमरे में ले गए जो सौभाग्य से सुरक्षित था.

डाक्टरी सुविधा भी मिली और कुछ ही घंटों की चिंता के बाद शुभलक्ष्मी को होश आ गया. आंखें खुलने पर इतने सारे अजनबियों को देख कर शुभलक्ष्मी घबरा गई, परंतु फिर सदानंद को सामने खड़ा पा कर आश्वस्त हुई.

‘यह सब क्या हो गया?’ पत्नी के स्वर में कंपन था.

धीरेधीरे सदानंद ने शुभलक्ष्मी को सुनामी के तांडवनृत्य के बारे में बताया.

‘कितना सौभाग्य है हमारा, जो हम बच गए,’ सदानंद ने कहा.

‘हजारोंलाखों लोगों का जीवन एकदम तहसनहस हो गया है.’

‘न मैं ने कहा होता, न हम यहां आते,’ शुभलक्ष्मी के स्वर में अपराधबोध की भावना थी.

‘नहीं, तुम्हारा ऐसा सोचना गलत है. हादसा तो कहीं भी किसी तरह का हो सकता है,’ सदानंद ने पत्नी का हाथ अपने हाथों में ले कर समझाया, ‘घर बैठे भूकंप आ जाता, जमीन खिसक जाती, सड़क पर दुर्घटना हो जाती.’

‘बसबस, मुझे डर लग रहा है,’ शुभलक्ष्मी ने पूछा, ‘बच्चों को बताया?’

‘सब को बता दिया और कह दिया कि हम सकुशल व आनंदपूर्वक हैं,’ सदानंद ने मीठे व्यंग्य से कहा.

‘सब अब निश्चिंत हैं. यातायात ठीक होने पर आ भी सकते हैं. वैसे मैं ने मना कर दिया है.’

‘ठीक किया,’ शुभलक्ष्मी ने उदास हो कर कहा.

‘जानती हो, लक्ष्मी, जब मुझे होश आया तो मैं ने सब से पहले क्या पूछा?’ सदानंद ने माहौल हलका करने के लिए कहा.

‘मेरे बारे में पूछा होगा और क्या?’ शुभलक्ष्मी मुसकराई.

‘नहीं,’ सदानंद ने हंस कर कहा, ‘मैं ने पूछा मेरा चश्मा कहां गया?’

‘छि: तुम और तुम्हारा चश्मा.’ शुभलक्ष्मी हंस पड़ी. अचानक याद आया, ‘पर हम बचे कैसे?’

‘वसीम ने बचाया,’ सदानंद ने कहा.

‘वसीम? यह कौन है?’ शुभलक्ष्मी ने आश्चर्य से पूछा.

‘वैसे तो कोई नहीं, लेकिन हमारे लिए तो मसीहा है,’ सदानंद ने बाहर खड़े वसीम को अंदर बुलाया और कहा, ‘यह वसीम है.’

जबसुनामी ने उन्हें समुद्र में खींच लिया था तब अनेक लोग फंसे हुए थे. लहरें कभी नीचे ले जाती थीं

तो कभी ऊपर उछाल देती थीं. वसीम अच्छा तैराक भी था

जो इस हादसे

के समय कहीं आसपास घूम रहा था. अपनी जान की परवा न कर उस ने कई लोगों को खींच कर तट पर पहुंचाया था. कोई बचा, तो कोई नहीं. बचने वालों में सदानंद और उस की पत्नी भी थे.

‘थैंक यू.’ शुभलक्ष्मी ने कहा.

वसीम की मुसकान में एक अनोखापन था.

‘हिंदी कम जानता है,’ सदानंद ने कहा.

कृतज्ञता दिखाते हुए शुभलक्ष्मी

ने पूछा, ‘बेचारे को कोई इनाम दिया?’

‘लेता ही नहीं,’ सदानंद ने गहरी सांस ले कर कहा.

‘मैं ने तो सारा पर्स इसे दे दिया था लेकिन इस ने सिर हिला दिया. मेरी जिंदगी में तो ऐसा इनसान पहली बार आया है.’

‘सब तुम्हारी तरह के थोड़े होते हैं,’ शुभलक्ष्मी ने कटाक्ष किया, ‘सिर्फ सजा देना जानते हो.’

आज वही वसीम सदानंद के सामने खड़ा था. सिर झुकाए एक अपराधी के कठघरे में.

चेन्नई से मुंबई काम की खोज में आया था. 2 महीने हो चुके थे लेकिन ऐसे ही छुटपुट काम के अलावा कुछ नहीं. एक झोंपड़ी में एक आदमी ने एक कोना सोने भर को दे दिया था. पड़ोस में एक दूसरा आदमी रहता था जो काम तो करता नहीं था, बस अपनी पत्नी से काम करवाता था और उस की कमाई शराब में उड़ा देता था. ऐसी बातें आम होती हैं और कोई भी अधिक ध्यान नहीं देता.

देर रात झगड़ा और चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर वसीम बाहर आ गया. सारे पड़ोसी तो जानते थे इसलिए कोई बाहर नहीं आया. वह आदमी अपनी पत्नी व 6-7 साल के बच्चे को बुरी तरह पीट रहा था. दोनों के ही खून निकल रहा था. औरत चीख रही थी और बच्चा रो रहा था.

क्रोध में आ कर उस आदमी ने पास पड़ा एक पत्थर उठा लिया.

बच्चे के सिर पर पटकने ही वाला था कि वसीम का सब्र टूट गया. उस ने पत्थर छीन लिया. दोनों में हाथापाई

होने लगी. अपने बचाव के लिए वसीम ने उसे धक्का दिया तो वह पीछे गिर पड़ा. एक नुकीला पत्थर उस आदमी

के सिर में घुस गया और खून बहने लगा. वसीम की समझ में कुछ न आया कि वह क्या करे?

तब तक कुछ तमाशबीन इकट्ठे हो गए थे. औरत छाती पीटपीट कर रो रही थी. डाक्टरी सहायता के अभाव में जब तक उसे अस्पताल पहुंचाया गया, उस की मौत हो गई थी.

पुलिस वसीम को पकड़ कर ले गई. अदालत में पड़ोसियों ने ही नहीं बल्कि मृत आदमी की पत्नी ने भी वसीम के विरुद्ध गवाही दी. इस तरह निचली अदालत ने उसे कातिल करार दिया. आज सदानंद की अदालत में उस की अपील की सुनवाई थी.

सदानंद सोच रहे थे कि जो आदमी अपनी जान की परवा न कर के दूसरों की जान बचा सकता है, क्या वह किसी का कत्ल भी कर सकता था? पड़ोसियों की और मृतक की पत्नी की गवाही पर सारा मामला टिका था. वसीम की बात पर कोई विश्वास नहीं कर रहा था कि वह तो केवल बच्चे की जान बचा रहा था. हाथापाई में वह आदमी मर गया. न तो उसे मारने की कोई इच्छा थी और न ही कारण.

अब सदानंद क्या करें?

पड़ोसियों से पूछा कि क्या वे चश्मदीद गवाह थे? सब लोग तो बाद में रोनापीटना सुन कर बाहर आए थे. इसलिए उन की गवाही अविश्वसनीय थी.

मृतक की पत्नी से पूछा, ‘‘क्या मुलजिम की तुम्हारे पति से कोई दुश्मनी थी?’’

‘‘नहीं,’’ पत्नी का उत्तर था.

‘‘मुलजिम ने तुम्हारे पति को क्या मारा?’’ सदानंद ने पूछा.

पत्नी चुप रही. कोई उत्तर नहीं दिया.

‘‘तुम्हारा पति क्या शराब के नशे में बच्चे को मारने जा रहा था?’’ सदानंद ने पूछा.

पत्नी फिर भी चुप रही. दूसरी बार पूछने पर उस ने अनिच्छा से स्वीकार किया.

‘‘मुलजिम ने तुम्हारे बच्चे को बचाने के लिए हाथापाई की, यह सच है?’’ सदानंद ने पूछा.

2-3 बार पूछने पर पत्नी ने स्वीकार किया.

सदानंद ने अधिक प्रश्न नहीं किए. उन की दृष्टि में मामला स्पष्ट था. यह एक ऐसी दुर्घटना थी जिस के लिए वसीम जिम्मेदार नहीं था. पूरी तरह निर्दोष बता कर उसे बाइज्जत रिहा कर दिया गया.

घर पर जब शुभलक्ष्मी को यह बताया तो उसे बहुत अच्छा लगा.

‘‘बेचारा, उस का पता मालूम है?’’ शुभलक्ष्मी ने कहा, ‘‘उसे कोई काम दिला सकते हो?’’

‘‘कोशिश करूंगा,’’ सदानंद ने कहा.

‘‘उसे बुलाने के लिए एक आदमी को भेजा है.’’ Social Story In Hindi

Family Story In Hindi : वी लव यू सीजर – एक बेजुबान जानवर ने कैसे जोड़ा दो परिवारों को ?

Family Story In Hindi : सोसायटी में होली मिलन का कार्यक्रम चल रहा था. 20 साला रेवती अपनी मम्मी, पापा और भाई के साथ कार्यक्रम में थी. लोग एकदूसरे को गुझिया खिलाते और गले मिलते.

रेवती की नजर सामने से आते हुए तनेजा परिवार पर पड़ी. तनेजा उन के पड़ोसी भी हैं, पर जब से रेवती ने
होश संभाला है, तब से दोनों परिवारों के बीच मनमुटाव ही पाया है. पता नहीं, क्यों एक तनाव और खामोशी सी छाई रहती है दोनों परिवारों के बीच.

यही सब सोच कर उस का मन भी कसैला हो गया. शायद तनेजा परिवार के मन में यही चल रहा होगा, तभी तो उन लोगों ने सिन्हा अंकल को तो गुझिया खिलाई और गले भी मिले, पर रेवती और उस के मम्मीपापा को अनदेखा कर दिया और आगे बढ़ गए.

आज से पहले रेवती ने भी कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया था, पर आज जब अचानक से तनेजा अंकल, आंटी और उन का 24 साल का बेटा शेखर ठीक सामने आ कर भी नहीं बोले, तो उस के मन को बुरा जरूर लगा.

“अच्छा मम्मी, एक बात पूछूं…. बुरा तो नहीं मानोगी,” रेवती उदास लहजे में बोली. “हां… हां, पूछ,” मम्मी ने कहा. “ये जो पड़ोस वाले तनेजा अंकल हैं न… हम लोगों से क्यों नहीं बोलते हैं ?”

मम्मी थोड़ी देर तक तो चुप रहीं, फिर मम्मी ने रेवती का जवाब देना शुरू किया, “बेटी, तेरे पापा को डौगी बहुत अच्छे लगते हैं. जब तू छोटी थी, तब वो एक जरमन शेफर्ड ब्रीड का डौगी ले कर आए थे. उस के बाल भूरे और काले से थे… कुछ धूपछांव लिए हुए… इसलिए कभी वह भूरा लगता तो कभी काला… उस की चमकीली आंखों में हम लोगों के लिए हमेशा
प्यार झलकता.

“सोसायटी के पार्क में वह तेरे पापा के संग खूब खेलता था. हम सब उसे ‘ब्रूनो’ नाम से बुलाते थे… एक बार की बात है, जब तेरे पापा ब्रूनो को मौर्निंग वाक पर ले कर जा रहे थे, तब मिस्टर तनेजा का छोटा भाई अपने घर से निकला. उस के हाथ में एक डंडा था. ब्रूनो ने समझा कि वे उसे मारने के लिए आ रहे हैं.

आतंकित हो कर वह उन पर भूंकने लगा. तेरे पापा के हाथ से जंजीर में होने के बावजूद वह उन पर झपटने लगा… जरमन शेफर्ड देखने में थोडे तेजतर्रार लगते हैं, इसलिए वे भी ब्रूनो के भूंकने से डर गए और बिना आगेपीछे देखे ही रोड
पर भाग लिए. इस से पहले कि वे कुछ समझ पाते, पीछे से आती एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी… बस, तब से तनेजा परिवार उन की मौत के लिए हमें ही जिम्मेदार मानता है और हम लोगों से संबंध नहीं रखता. अकसर ही वे लोग गाड़ी की पार्किंग या म्यूजिक से होने वाली आवाज के लिए हम से लड़ते ही रहते हैं. हालांकि तेरे पापा ने तब से ब्रूनो को अपने एक दोस्त को सौंप दिया है और इस घर में उसे कभी ले कर नहीं आए,” कह कर मम्मी चुप हो गई थीं, पर रेवती अपनेआप में डूब गई और सवाल करने लगी कि ये तो एकमात्र कुसंयोग था कि ब्रूनो के भूंकने से वे भागे और दुर्घटनाग्रस्त हो गए. इस के लिए 2 पड़ोसियों में दुश्मनी को पालना कहां तक उचित है?

रेवती ने इन बातों पर और सोचविचार करना छोड़ दिया और किचन में जा कर अपने लिए नूडल्स बनाने लगी.

सर्दियों की धूप में एक दिन रेवती अपनी सहेली रिया के साथ सोसायटी के पार्क में बैठी हुई थी. सूरज की किरणें उस के गोरे चेहरे को और भी सुनहरा बना रही थी. आज के दिन कई दिन
बाद ऐसी धूप खिली थी, इसलिए पार्क में काफी गहमागहमी थी. एक छोटा सा डौगी, जो एक बुलडौग
था, रेवती के पैरों के पास आ खड़ा हुआ और अपनी छोटी सी जीभ निकाल कर उस की तरफ एकटक देखने लगा.

रेवती को उस का अपनी तरफ टुकुरटुकुर देखना बहुत अच्छा लगा. उस ने प्यार से डौगी के बालों को सहला दिया. डौगी तो जैसे इसी प्यारभरे स्पर्श का इंतजार ही कर रहा था. उस ने झट से अपनी दोनों अगली टांगें पसार दीं और वहीं घास पर बैठने की तैयारी करने लगा. इतने में उसे ढूंढते हुए एक लड़का
आवाज देते हुए आया. रेवती ने आवाज की दिशा में अपनी नजर दौड़ाई, तो देखा कि ये तो उस के पड़ोसी मिस्टर तनेजा का बेटा शेखर था.

शेखर पहले तो रेवती को देख कर ठिठक गया, पर अगले कुछ पलों में रेवती की तरफ एक फीकी सी मुसकराहट दे दी और बोला, “इसी को ढूंढ़ रहा था… बहुत नौटी हो गया है. सर्दियों में नहाने से बहुत कतराता है. पर, आज मैं ने इसे नहला ही दिया,” बोल रहा था शेखर.

बदले में रेवती को समझ नहीं आया कि वो आखिर कहे तो क्या कहे?

“इस का नाम क्या है?” रिया ने पूछ ही लिया.

“सीजर… सीजर रखा है मैं ने इस का नाम… अच्छा है न,” शेखर ने रेवती की तरफ देखते हुए कहा, पर उत्तर रिया ने दिया, “डैम गुड.”

शेखर ने सीजर को पुकारा और उस के साथ धीरेधीरे दौड़ लगाने लगा.

“हाय, कितना सुंदर है?” रिया ने कहा.

“कौन…? डौगी या डौगी वाला,” रेवती ने चुसकी ली, तो रिया ने कहा, “मुझे तो दोनो पसंद आ गए हैं. किसी के साथ भी अफेयर करवा दे,” शरारती अंदाज में रिया कह रही थी.

“कितना अच्छा लड़का है, हैंडसम और मीठा बोलने वाला. उस की आंखें भी बोलते समय उस की जबान का साथ देती हैं… और रेवती को देख कर वो मुसकराया भी था… क्यों नहीं मुसकराए भाई? पड़ोसी ही तो है… और फिर हम दोनों हमउम्र भी हैं और युवा भी… पुरानी दुश्मनी से हमें क्या?” मन ही मन सोचने लगी थी रेवती.

अगले दिन जब रेवती कालेज से लौट रही थी, तभी उस की स्कूटी रास्ते में खराब हो गई. रेवती को कुछ समझ नहीं आ रहा था. उस ने आसपास देखा, कोई मेकैनिक भी नजर नहीं आया. वह स्कूटी को किनारे खड़ी कर अपने पापा को फोन लगाने जा रही थी कि वहां शेखर आ गया.

“क्या हुआ? कोई दिक्कत है क्या?”

“स्कूटी खराब हो गई है.”

“कोई बात नहीं. मैं देख लेता हूं,” कह कर शेखर ने स्कूटी को स्टार्ट किया, तो स्कूटी बड़ी आसानी से स्टार्ट हो गई.

“थैंक यू,” रेवती ने कहा.

“इट्स आल राइट,”शेखर ने मुसकरा कर जवाब दिया.

इस के बाद वे दोनों सड़क के किनारे खड़े हो कर बातें करने लगे, जिस में शेखर ने अपनेआप को डौगीज का बहुत बड़ा प्रेमी बताया और रेवती को यह भी कहा कि 2 दिन बाद ही शहर में एक डौग शो होने जा रहा है, जिस में बहुत सारे लोग अपने पेट्स ले कर आएंगे और जिस का डौगी सब से प्यारा और स्मार्ट होगा, उसे विजेता घोषित किया जाएगा.

हालांकि रेवती को डौग्स पसंद तो थे, पर इतने नहीं कि वो किसी डौग शो को देखने जाए, पर शेखर की बातों में उसे ऐसा आमंत्रण महसूस हुआ कि रेवती ने मन ही मन डौग शो में जाने का विचार बना लिया.

अपनी सहेली रिया को ले कर रेवती डौग शो में पहुंची. यहां पहुंच कर उस का मन खुशियों से भर गया. कितनी अलगअलग जाति के अलग
डौगीज थे. यहां पर भूटिया, लेब्राडोर, साइबेरियन हस्की और दुर्लभ प्रजाति का पूडल अपनी अदाएं दिखा रहे थे.

डौग्स से अधिक तो उन के मालिक इठला रहे थे और वे कभी अपने पालतू को निहारते तो कभी उन के पेट्स पर पड़ने वाली दूसरों की निगाहों को देखते… जैसे वे कहना चाह रहे हों कि अरे भाई मेरे डौग को नजर तो मत लगाओ.

इतने में शेखर ने रेवती को देख लिया था और हाथ से हेलो का वेव किया. सीजर तो आज एकदम तरोताजा और खूबसूरत लग रहा था. उस के बाल चमकीले लग रहे थे.

शेखर रेवती के पास आया और दोनों बातें करने लगे. शेखर उसे डौग्स से संबंधित तरहतरह की नई जानकारी दिए जा रहा था.

रेवती और शेखर को एकसाथ समय बिताना काफी अच्छा लग रहा था और उन दोनों ने अपने घर में बरसों से पल रहे तनाव पर भी बातें कीं. अब तक दोनों के बीच मोबाइल नंबरों का लेनदेन भी हो चुका था.

शो के अंत में आयोजकों द्वारा जलपान की व्यवस्था थी. शेखर, रेवती और रिया जलपान करने लगे और उस के बाद दोनों ने एकदूसरे से
विदा ली.

शेखर और रेवती दोनों के बीच व्हाट्सएप पर चैटिंग की शुरुआत भी हो गई थी. और कहना गलत नहीं होगा कि दोनों के बीच प्रेम का अंकुर जन्म ले चुका था.

एक दिन की बात है, जब शेखर अपने फ्लैट से निकल रहा था. सामने से रेवती आ रही थी और दोनों की आंखों में एकदूसरे के प्रति प्रेमभरी मुसकराहट थी. कहते हैं न कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते, पर, इन दोनों के मामले में ऐसा ही हुआ.

शेखर और रेवती को मुसकराते हुए रेवती के भाई ने देख लिया और उसे रेवती पर शक हो गया. उस ने घर आ कर चुपके से रेवती का मोबाइल चेक किया, जिस में व्हाट्सएप पर ढेर सारे मैसेज और चैट थे. इतना ही नहीं, उस ने काल रिकौर्डिंग भी सुन ली.

और यह बात उस ने अपने मम्मीपापा को भी बता दी. चूंकि दोनों परिवारों में तनातनी थी, इसलिए रेवती और शेखर की दोस्ती किसी को रास नहीं आई.

रेवती का मोबाइल छीन लिया गया और उस के घर से बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई.

रेवती का भाई ही उसे कालेज छोड़ने और लेने जाता.

पिछले कई दिनों से रेवती का कोई मैसेज भी नहीं आया और न ही फोन. फोन करने पर उठा नहीं, तो शेखर परेशान हो उठा. उस ने रेवती की बालकनी के चक्कर लगाने शुरू कर दिए. हालांकि उस की मेहनत बेकार नहीं गई. एक बार रेवती बालकनी में निकली, तो उस की निगाहें शेखर से मिलीं.

रेवती की सूनी आंखों को देख कर वह जान गया कि उस के प्रेम संबंधों का पता रेवती के घर वालों को लग गया है.

इस मामले में शेखर को भी समझ नहीं आ रहा था कि आगे वो क्या करे. दोनों परिवारों के संबंध इतने खराब थे कि शेखर उन के घर जाना ठीक नहीं समझता था. पता नहीं, रेवती के मातापिता और भाई कैसा व्यवहार करें, पर प्रेम इन दोनों के दिल की तड़प बढा रहा था. और रेवती से बात करने का मन कर रहा था शेखर का.

रविवार का दिन था. शेखर ब्रूनो को ले कर सोसायटी के पार्क में आया. उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, जब उस ने पार्क में रेवती को भी देखा, पर अगले ही पल वह गंभीर हो गया. क्योंकि शेखर जानता था कि कहीं न कहीं से रेवती पर नजर जरूर रखी जा रही है, इसीलिए रेवती
उसे देख कर मुसकराई भी नहीं और उस का फोन अब भी बंद आ रहा था.

रेवती को सामने देख कर भी उस से बात नहीं कर पाना शेखर को और भी परेशान कर रहा था, फिर अचानक उसे संदेश लेनदेन का बहुत पुराना, पर कारगर तरीका याद आया और उस ने फौरन ही सीजर को पास बुलाया और उस के गले में लटके पट्टे में एक क्लिप की
सहायता से एक परची फंसा दी. उस पर्ची पर लिखा था, ‘मैं तुम से बात करना चाहता हूं.’

सीजर खेलतेखेलते रेवती के पास पहुंचा और अपनी छोटीछोटी चमकीली आंखों से रेवती को निहारने लगा. रेवती ने थकी आंखों से सीजर को देखा और उस के सिर को सहलाया, तभी उस की नजर उस परची पर पड़ गई. रेवती ने धीरे से वह परची निकाली और सरसरी निगाह से उसे पढ़ा और सब की नजर बचाते हुए उस का जवाब लिखा कि मैं बात नहीं कर सकती. घर में सबको पता चला गया है.

सीजर फिर से भाग कर शेखर के पास वो परची दे आया. और कुछ दिनों तक बिलकुल फिल्मी अंदाज में सीजर उन दोनों के प्रेम की पातियां एकदूसरे तक पहुंचाने और लाने का काम करता रहा. सीजर के इस काम पर किसी को भी शक भी नहीं हुआ था.

‘आखिर कब तक मैं और रेवती इस तरह से बात करते रहेंगे… हम दोनों ही बालिग हैं और हमें अपने जीवनसाथी चुनने का हक है,’ मन ही मन सोच रहा था शेखर.

उस दिन रेवती अपनी मम्मी के साथ पार्क में आई, तो शेखर के अंदर बहता हुआ जवान खून जोर मारने लगा और वो बिना कुछ सोचेसमझे रेवती और उस की मम्मी के पास पहुंच गया. सीजर भी उस के साथ था.

“नमस्ते आंटी. मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं,” शेखर को इस तरह से बोलते देख कर रेवती कीमम्मी चौंक पड़ी थीं.

“हां… हां, बोलो.”

“दरअसल, मैं और रेवती एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं और शादी भी करना चाहते हैं. समय आ गया है कि हम दोनों
परिवार पुरानी कडुवाहट मिटा लें, क्योंकि जो भी हुआ, उस में किसी की गलती नहीं थी.”

ऐसी बातें शेखर के मुंह से सुन कर रेवती की मम्मी बेटी का मुंह ताकने लगी थी. मम्मी ने कुछ नहीं कहा, बस रेवती का हाथ पकड़ा और घर चली आईं.

कुछ दिनों तक रेवती पार्क में भी नहीं आई. इस बीच शेखर का बैंक पीओ का रिजल्ट निकल आया था और उस ने इम्तिहान पास कर लिया था. अब बैंक की अच्छी नौकरी के रास्ते उस के लिए खुल गए थे.

रेवती के फ्लैट की घंटी बजी, तो उस की मम्मी ने दरवाजा खोला. सामने मिस्टर तनेजा अपना परिवार लिए हुए खड़े थे.

“अंदर आने को नहीं कहोगी,” शेखर की मम्मी ने कहा.

दोनों परिवार के लोग आमनेसामने बैठ गए थे और बातचीत शेखर के पिताजी ने शुरू की और कहा, “देखिए, अभी तक हम दोनों पड़ोसी एक गलतफहमी के कारण आपसी तनाव में रहे, जिस का हमें कोई लाभ नहीं हुआ… पर, अब समय आ गया है कि हम लोग दुश्मनी भुला दें,” शेखर के पापा इतना कह कर चुप हुए, तो उस की मम्मी कहने लगी,
“दरअसल, हम शेखर के लिए रेवती का हाथ मांगने आए हैं. दोनों ही एकदूसरे को पसंद करते हैं… और शेखर की बैंक पीओ की नौकरी लग गई है,
इसलिए हमारा विनम्र निवेदन है कि…” शेखर की मां ने हाथ जोड़ लिए और आगे का वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया था, जबकि सीजर बारीबारी से सब का मुंह ताक रहा था.

रेवती के पापा ने रेवती की ओर देखा और फिर एक नजर उस की मां के चेहरे पर डाली और वे समझ गए कि वे सब क्या चाहते हैं.
उन्होंने सीजर को पास बुलाया और उस के बालों में हाथ घुमाने लगे.

“बहुत दिनों से मैं देख रहा था कि आप ने इतना सुंदर डौगी पाला हुआ है… मैं इसे प्यार भी करना चाहता था, पर हिचकता था. पर जब आप के घर से रिश्ता जुड़ जाएगा, तब मैं सीजर से खेल सकूंगा… हमारी तरफ से रिश्ता पक्का समझिए आप लोग.”

सभी के चेहरे पर खुशी की मुसकराहट थी. रेवती ने शरमा कर नजरें झुका रखी थीं. शेखर ने सीजर को गोद में उठा लिया और उस के कान में कहने लगा, “वी लव यू सीजर.”

सीजर अपनी छोटी सी जीभ निकाल कर शेखर और रेवती को बारीबारी देख रहा था.

एक बेजबान जानवर ने दो परिवारों के बीच तनाव को खत्म कर के दो प्यार करने वालों को मिलाने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी. Family Story In Hindi

Social Story : कशमकश – दो जिगरी दोस्त क्यों मजबूर हुए गोलियां बरसाने के लिए ?

Social Story : मई 1948, कश्मीर घाटी, शाम का समय था. सूरज पहाड़ों के पीछे धीरेधीरे अस्त हो रहा था और ठंड बढ़ रही थी. मेजर वरुण चाय का मग खत्म कर ही रहा था कि नायक सुरजीत उस के सामने आया, और उस ने सैल्यूट मारा.

 ‘‘सर, हमें सामने वाले दुश्मन के बारे में पता चल गया है. हम ने उन की रेडियो फ्रीक्वैंसी पकड़ ली है और उन के संदेश डीकोड कर रहे हैं. हमारे सामने वाले मोरचे पर 18 पंजाब पलटन की कंपनी है और उस का कमांडर है मेजर जमील महमूद.’’

नायक सुरजीत की बात सुनते ही वरुण को जोर का धक्का लगा और चंद सैकंड के लिए वह कुछ बोल नहीं सका. फिर उस ने अपनेआप को संभाला और बोला, ‘‘शाबाश सुरजीत, आप की टीम ने बहुत अच्छा काम किया. आप की दी हुई खबर बहुत काम आएगी. आप जा सकते हैं.’’

सुरजीत ने सैल्यूट मारा और चला गया. उस के जाने के बाद वरुण सोचने लगा, ‘18 पंजाब-मेरी पलटन. मेजर जमील महमूद-मेरा जिगरी दोस्त. क्या मैं उस की जान ले लूं जिस ने कभी मेरी जान बचाई थी. यह कहां का इंसाफ होगा?’

वरुण अतीत में खो गया…

देश के बंटवारे के पहले, लाहौर में उन दोनों के घर आसपास थे. दोनों खानदानों में अच्छा मेलमिलाप था. उन दोनों के पिता एक ही दफ्तर में काम करते थे.

दोनों तरफ के सब बच्चों में दोस्ती थी पर जमील और वरुण के बीच खास लगाव था. दोनों लंगोटिया यार थे. इस की वजह थी कि दोनों न सिर्फ हमउम्र थे, दोनों महाबदमाश भी थे. शैतानी करने में माहिर थे, पर साथसाथ पढ़ाई करने में भी काफी तेज थे. क्लास में दोनों बहुत अच्छे नंबर पाते थे, इसलिए शैतानी करने पर आमतौर पर उन्हें केवल डांट ही पड़ती थी.

स्कूली शिक्षा हासिल कर लेने के बाद दोनों एक ही कालेज में पढ़ने लगे. तब तक दूसरा महायुद्ध शुरू हो गया था. कालेज की पढ़ाई पूरी होने पर दोनों ने तय किया कि वे सेना में अफसर बनेंगे. जमील के अब्बा को उस का इरादा काफी नेक लगा और उन्होंने फौरन अपनी रजामंदी दे दी. उस की मां ने कुछ नहीं कहा, पर सब देख सकते थे कि वे खुश नहीं थीं. वरुण के मातापिता दोनों ही उस के फौजी बनने के खिलाफ थे. वे कहते थे, ‘यह तो अंगरेजों की सेना है. हमारा बेटा क्यों उन की लड़ाई में लड़े और उन के लिए अपनी जान खतरे में डाले.’

बड़ी मुश्किल से वरुण ने उन को मनाया. फिर दोनों दोस्तों ने अफसर बनने के लिए इंटरव्यू दिए. दोनों चुन लिए गए. अफसर ट्रेनिंग स्कूल में 6 महीने की शिक्षा पा कर उन को कमीशन मिल गया, और वे अफसर बन गए. वह समय था दिसंबर, 1943. जमील और वरुण दोनों की पोस्टिंग एक ही पलटन में हुई- ‘18 पंजाब’. उन की पलटन उस समय देश की पूर्वी सीमा पर थी. वह जापानी सेना का सामना कर रही थी. जब जमील और वरुण पलटन में पहुंचे तो पता चला कि उन पर हमला होने की आशंका थी. वैसे तो पिछले 18 महीने से जापानी सेना शांत बैठी थी. पूरे बर्मा पर कब्जा करने के बाद लगता था कि अब वह आगे नहीं बढ़ेंगी. पर जासूसों ने बताया कि वह किसी बड़े हमले की तैयारी कर रही है. 18 पंजाब पलटन को कोहिमा का मोरचा मिला था.

अप्रैल 1944 के पहले हफ्ते में जापानी सेना ने धावा बोल दिया. पूरी ताकत से जापानी सेना कोहिमा और उस के आसपास के इलाके पर टूट पड़ी. उस का जोश इतना था कि 18 पंजाब पलटन और उन की साथी पलटनों को पीछे हटना पड़ा. पर उन्होंने जल्द ही स्थिति पर काबू पा लिया. उन को मालूम था कि उन के पीछे बहुत ही कम सेना थी. सो, अगर जापानी उन का मोरचा तोड़ कर आगे निकल गए तो पूरे भारत को खतरा हो जाएगा.

कई दिनों तक घमासान युद्ध चलता रहा. एक मोरचे पर दोनों जमील और वरुण तकरीबन साथसाथ ही लड़ रहे थे. वरुण की नजर सामने आते जापानी सैनिकों पर थी. जमील ने देखा कि दाहिनी ओर से कुछ और जापानी उन की तरफ बढ़ रहे थे जिन में से एक सैनिक वरुण को निशाना बना रहा था.

‘वरुण बच के,’ जमील चिल्लाया और कूद कर उस ने वरुण को धक्का दे दिया. वरुण नीचे गिरा और जापानी सिपाही की गोली जमील के कंधे में लगी. फिर जापानी सिपाही उन तक पहुंच गए और दोनों गुटों में हाथापाई होने लगी. आखिर 18 पंजाब पलटन के बहादुर सैनिकों ने जापानियों को खदेड़ दिया. उस के बाद ही वे जमील को डाक्टर के पास ले जा सके.

जमील का समय अच्छा था कि गोली केवल मांस को छू कर निकल गई थी. हड्डी बच गई थी. इसलिए वह जल्दी ही ठीक हो गया.

वरुण उस से मिलने डाक्टरी तंबू में गया. उस ने कहा, ‘यार जमील, तू ने मेरी जान बचाई है.’

‘उल्लू के पट्ठे,’ (दोनों दोस्त एकदूसरे को ऐसे प्यारभरे शब्दों में अकसर बुलाया करते थे), ‘अगर तुझे नहीं बचाता तो किस को बचाता, दुश्मनों को,’ जमील ने जवाब दिया.

आखिर लड़ाई समाप्त हुई. जापानी हार गए. 18 पंजाब पलटन मेरठ छावनी में वापस आई.

समय बीता और 15 अगस्त, 1947 का महत्त्वपूर्ण दिन आया. हिंदुस्तान को आजादी मिल गई पर देश का बंटवारा हो गया. जमीन बंटी, आजादी बंटी, सामान बंटा और फौज भी बंटी.

18 पंजाब पलटन पाकिस्तान के हिस्से में आई. वरुण की पोस्टिंग किसी और पलटन में हो गई. जाने से पहले वह जा कर जमील से गले मिला.

‘अब हम अलगअलग मुल्कों के बाशिंदे हो गए हैं,’ जमील ने कहा.

‘पर फिर भी हम दोस्त रहेंगे, हमेशाहमेशा के लिए,’ वरुण ने जवाब दिया.

तभी वरुण की तंद्रा भंग हुई और वह वर्तमान में लौट आया. वरुण कशमकश में फंसा हुआ था कि महज 8 महीने बाद ही दोनों दुश्मन बन कर, एकदूसरे का सामना कर रहे थे.

उस रात वरुण को नींद नहीं आई. वैसे तो जब लड़ाई में विराम होता, जैसे अब था, वरुण रात को 2 बार उठ कर संत्रियों को जांचता था. उस रात वह केवल एक बार गया. बाकी समय वह इस सोच में डूबा था कि कैसे वह जमील से मिले.

देर रात उस के दिमाग में एक खयाल आया और वरुण ने उस पर अमल करने का पक्का इरादा तय किया. खतरनाक तरीका था पर वरुण को कोई और रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था.

सुबह होते ही उस ने नायक सुरजीत को बुलवाया. सुरजीत उस के सामने आया, सैल्यूट मारा और उस ने पूछा, ‘‘जी सर?’’

‘‘सुरजीत, क्या तुम हमारे सामने वाले दुश्मन की टोली से रेडियो द्वारा संपर्क कर सकते हो?’’ वरुण ने उस से पूछा.

सुरजीत थोड़ा चौंका, फिर बोला, ‘‘कर सकते हैं, सर. हमें उन की रेडियो की फ्रीक्वैंसी मालूम है.’’

‘‘तो अभी जा कर उन को यह संदेश भेजो,’’ वरुण ने एक कागज पर लिखा-

‘‘मेजर जमील महमूद, मैं तुम से थोड़ी देर के लिए मिलना चाहता हूं. अगर तुम्हें मंजूर है तो आज दोपहर 3 बजे दोनों मोरचों के बीच चिनार के पेड़ के नीचे मिलो. पौने 3 बजे से 2 घंटे के लिए मैं अपनी तरफ से गोली चलाना बंद करवा दूंगा.’’

सुरजीत ने संदेश पढ़ा. यह स्पष्ट था कि वह कुछ पूछना चाह रहा था, पर फौज के सीनियर अफसर से कोई भी सवाल नहीं करता है. उस ने सैल्यूट मारा और आज्ञा का पालन करने के लिए वहां से चला गया.

2 घंटे बाद वह वरुण के पास वापस आया, ‘‘सर, मेजर जमील आप की बात मान गए गए हैं. वे 3 बजे आप को चिनार के पेड़ के पास मिलेंगे. उन की तरफ से भी 2 घंटे के लिए गोलाबारी बंद रहेगी,’’ उस ने बताया.

ठीक 3 बजे वरुण चिनार के पेड़ के पास पहुंचा. जमील उस का इंतजार कर रहा था. वरुण को देखते ही वह बोल उठा, ‘‘अबे उल्लू के…सौरी मेजर वरुण, मैं भूल गया कि अब हम दुश्मन हैं.’’

‘‘हां यार,’’ वरुण ने जवाब दिया. ‘‘दो दोस्त, बिना चाहे, एकदूसरे पर गोलियां बरसाने जा रहे हैं. हाय रे इंसान की मजबूरियां.’’

‘‘यह दुनिया है कठोर, बेरहम और मतलबी,’’ जमील बोला, ‘‘अगर हमें इस दुनिया में रहना है तो सबकुछ सहना पड़ेगा. पर अब बातें खत्म करो. अगर हमारे सीनियर अफसरों को पता चलेगा कि हम मिले हैं, तो हम दोनों के कोर्ट मार्शल हो जाएंगे. दुश्मन से संपर्क करना गद्दारी मानी जाती है. वैसे, मैं कोशिश करूंगा कि लड़ाई के दौरान तुम मेरे सामने न आओ.’’

‘‘मैं भी ऐसा ही चाहता हूं कि हम दोनों को एकदूसरे पर गोलियां न बरसानी पड़े,’’ वरुण ने जवाब दिया.

‘‘पर जाने से पहले मेरी तुम से एक विनती है,’’ जमील ने आगे कहा, ‘‘अगर मैं तुम से पहले मर जाऊं और हमारे मुल्कों के बीच सुलह हो जाए, तो तुम मेरी कब्र पर आ कर मुझे बता देना कि मुबारक हो जमील, अब हम फिर दोस्त बन सकते हैं.’’

‘‘मैं जरूर ऐसा ही करूंगा,’’ वरुण ने वादा किया, ‘‘काश, मैं भी तुम से ऐसा करने को कह सकता, पर मेरी तो कब्र ही नहीं होगी. अलविदा मेरे दोस्त.’’

‘‘अलविदा मेरे भाई,’’ जमील ने जवाब दिया. और दोनों मेजर घूम कर, बिना पीछे देखे, अपने अपने मोरचे को लौट गए. Social Story

Family Story : टीकू की करनी – किसने और क्यों लगाया अपने परिवार को दांव पर ?

Family Story : 14 साल की बीना एक बहुत ही सुलझी और समझदार लड़की थी. उस का एक गरीब परिवार में जन्म हुआ और अपने मां, बाबा और बड़े भाई टीकू के साथ शहर के कोने में बसी एक छोटी सी झुग्गी में रहती थी.

बीना के बाबा और भाई टीकू कोई काम नहीं करते. बीना अपनी मां के साथ घरों में साफसफाई का काम कर कुछ पैसे कमा लाती और जैसेतैसे घर का गुजारा होता.

मां टीकू को काम करने के लिए बहुत समझाती, पर उस के कानों पर जूं तक न रेंगती. सारा दिन झुग्गी के आवारा लड़कों के साथ टाइमपास कर के रात को घर आ कर मां पर धौंस जमाता. बाबा का तो महीनों कुछ पता ही नहीं रहता था.

झुग्गी के पीछे की तरफ सरकारी फ्लैट्स बने थे. उन्हीं फ्लैटों में रहने वाली अनीता के यहां बीना काम करने जाती थी. काम करने के बाद बीना अनीता की छोटी बेटी नीला के साथ थोड़ीबहुत बातचीत करती और उस से नईनई बातें सीखती.

नीला को देख बीना का मन भी पढ़ने के लिए करता था. वह भी दूसरी लड़कियों की तरह हंसीखुशी रहना चाहती थी. पढ़लिख कर अपनी मां के लिए कुछ करना चाहती थी, पर घर के हालात और गरीबी इन सब के बीच में सब से बड़ा रोड़ा थी.

अनीता का घर छोटा सा ही था. घर में रसोई, बाथरूम और 2 ही कमरे थे. पूरा घर साफसुथरा और करीने से सजा था. एक बालकनी थी, जिस में अनीता ने गमले लगा रखे थे. इन गमलों में छोटेछोटे पौधे थे. दोचार कटोरों में चिड़ियों के लिए दानापानी रखा था. चिड़िया भी बड़े मजे से इन कटोरों से चुगने आतीं और पानी पीतीं. बालकनी की दीवार पर अनीता की बेटी नीला के हाथ की बनी दोचार पेंटिंग्स लगी थीं.

बीना अनीता के घर का सारा काम निबटा कर थोड़ी देर के लिए बालकनी में पड़ी कुरसी पर बैठ कुछ वक्त बिताती. यहां उसे बड़ा ही सुकून मिलता.

बालकनी में बैठ बीना भी सोचती कि काश, मेरा घर भी ऐसे ही होता और वह भी अपने घर में ये सब गमले और पौधे लगा पाती.

तभी अनीता ने बीना को आवाज लगाई और उसे एक थैला देते हुए कहा, “बीना, इस थैले में चादर, दरी, चुन्नी और कुछ घर का सामान है, तू ले जाना. कुछ काम आए तो रख लेना, नहीं तो झुग्गी में बांट देना. और हां, काम हो गया हो तो अब तुम जाओ. मुझे भी अब आराम करना है.”

“हांहां आंटी, मैं जा रही हूं. आप दरवाजा बंद कर लो,” अनीता के हाथ से सामान का थैला ले बीना घर की ओर चल दी.

घर पहुंचतेपहुंचते शाम के 5 बज गए थे. मां अभी तक घर नहीं आई थी. बीना ने मां के आने तक रात के खाने की तैयारी कर ली. मां ने आ कर रोटी बनाई.

बीना और मां ने खाना खाया और मां जल्दी ही सो गईं और बीना भी झुग्गी के बाहर लगी लाइट की रोशनी में नीला से लाई किताब के रंगीन चित्र देखते हुए जमीन पर बिछी फटीपुरानी दरी पर ही सो गई.

सुबह उठ कर बीना ने मां से कहा, “मां, आज मैं काम पर नहीं जाऊंगी. तबीयत ठीक नहीं है. आज कुछ आराम करूंगी.”

“ठीक है बीना, जैसी तेरी मरजी,” कह कर मां काम पर चली गई.

मां के जाने के बाद बीना ने अपने लिए चाय बनाई और डब्बे में पड़ी रात की बची रोटी खा कर जमीन पर बिछी दरी पर लेट गई. लेटे हुए छत तकते हुए अचानक उठी और अनीता का दिया थैला खोला और उस में से सारा सामान बाहर निकाला.

बीना ने घर पर पड़े पुराने संदूक को कमरे में एक कोने में लगाया और उस पर घर में फैले पड़े चादर, तकिए लपेट कर रखे. बीना ने अनीता की दी हुई चादर करीने से संदूक पर बिछा दी. झोले दीवार पर टांग दिए.

कमरे को अच्छे से साफ कर बीना ने अनीता की दी हुई पुरानी दरी जमीन पर बिछा दी. कोने में पड़ी पुरानी सी चौकी पर अनीता की दी हुई चुन्नी बिछाई और चौकी को संदूक के आगे टेबल की तरह दरी पर रख दिया. थैले से निकली एक पुरानी सी पेंटिंग को दीवार पर टांग दिया. कमरे में फैला सारा सामान करीने से रख दिया.

बस इतना करने से ही बीना का कमरा सुंदर लगने लगा और वह मन ही मन बहुत खुश हो गई.

तभी पड़ोस की लता आंटी बीना के कमरे में आई और चौंकती हुई बोली, “अरे बीना, यह तेरा ही कमरा है क्या? बहुत साफ और सुंदर लग रहा है.”

“हांहां, मेरा ही कमरा है. बस थोड़ा ठीकठाक किया है,” बीना ने खुशी से कहा.

शाम को मां जब काम से लौटी, तो कमरे की हालत देख खुश हो गई और बीना को आवाज लगाई, “अरे बीना, तू ने तो बहुत ही सुंदर कर दिया कमरा, बिलकुल फ्लैटों जैसा… इसीलिए आज काम से छुट्टी की थी तू ने.”

“हां मां, मेरा भी मन करता है कि मैं भी अपने घर को सुंदर रखूं. वह फ्लैट वाली नीला की मम्मी अनीता आंटी ने कुछ सामान दिया था. बस, उस से ही थोड़ा सा ठीकठाक किया है,” बीना ने मां का हाथ पकड़ते हुए कहा.

“हां, मन तो मेरा भी करता है, पर तू तो जानती ही है कि इन सब के लिए पैसा और वक्त दोनों चाहिए. वक्त तो निकाल भी लो, पर पैसे? पर जो भी है बीना, आज कमरे को देख अच्छा लग रहा है,” मां ने खुश होते हुए कहा.

रात को टीकू कमरे में आया और आंखें फाड़ कर कमरे के बदले रूप रंग को देखता रहा और बोला, “भई, यह कमरा अपना ही है? किस ने किया है यह सब?”

“मैं ने किया है. कोई दिक्कत?”बीना ने कहा.

“अरे नहीं, नहीं, एक नंबर का चकाचक लग रहा है. अमीरों वाली फीलिंग आ रही है.

“अरे हां अम्मां, मैं सुबह 10-15 दिनों के लिए अपने दोस्तों के साथ कहीं जा रहा हूं. मुझे अब नींद भी आ रही है. जल्दी से कुछ खाने को दे दे,” टीकू बोला.

टीकू सुबह दोस्तों के साथ निकल लिया और बाबा का तो कई महीनों से कुछ पता ही न था.

बीना भी मां के साथ सुबह काम पर निकल गई और अनीता के फ्लैट पर पहुंची. अनीता बालकनी में लगे पौधों की काटछांट कर रही थी और गमलों में से कई पौधों की कटिंग फेंक दी थी.

“आंटी, ये कटिंग्स मैं ले लूं?”

“तुम इन का क्या करोगी?”

“मैं भी इन्हें अपने कमरे के बाहर मिट्टी में लगा लूंगी. मेरा बहुत मन करता है पौधे लगाने का. ”

“अच्छा तो ये दोचार गमले भी ले जा. वैसे भी मुझे बदलने हैं ये.”

“ठीक है आंटी. शाम को काम से लौटते हुए मैं ले जाऊंगी,” बीना ने चहकते हुए कहा.

अनीता के घर से शाम को गमले और पौधों की कटिंग्स ले कर बीना झुग्गी पहुंची. गमलों में कटिंग्स लगा कर गमले झुग्गी के बाहर रख दिए.

पौधे गमलों में कई दिन तक यों ही मुरझाए पड़े रहे. बीना रोजाना काम पर आतेजाते गमलों को देखती और उदास हो जाती और सोचती, ‘मैं तो पानी भी डालती हूं गमलों में, फिर पौधे मर क्यों गए? क्या गरीबों के यहां पौधे भी नहीं होते?’

कई दिनों तक गमले ऐसे ही पड़े रहे. बीना भी नाउम्मीद हो चुकी थी. शाम को काम से झुग्गी पहुंची तो गमले में मनीप्लांट की छोटी सी पत्ती उगती दिखी. बीना की ख़ुशी का कोई ठिकाना न था.

कुछ ही महीनों में मनीप्लांट की बेल बीना की झुग्गी के दरवाजे के ऊपर फैल गई. अब बीना की झुग्गी दूर से ही दिख जाती. पौधों और मनीप्लांट के कारण पूरी बस्ती में बीना की झुग्गी की अलग ही पहचान बन गई थी.

बीना को लगता जैसे वह भी अनीता जैसे ही फ्लैट में रह रही हो. उसे अपनी झुग्गी फ्लैटों से भी अच्छी लगने लगी. काम खत्म कर वह जल्दी ही अपने घर पहुंचने की करती और बड़े ही चाव से अपने कमरे को सजाती, पौधों में पानी डालती, कमरे की ड्योढ़ी पर बैठ पौधों से बातें करती.

बीना की खुशी उस के चेहरे से साफ झलकती थी. उस की आसपड़ोस की सहेलियां भी गमलों के पास आ बैठतीं और सब खूब बतियातीं.

शाम को काम से वापस आ कर बीना और उस की मां खाना खा रही थीं, तभी बाहर खूब शोर होने लगा. मां ने बाहर जा कर देखा तो चारों ओर पुलिस ही पुलिस थी.

पड़ोस की लता आंटी से बीना ने पूछा, “यह क्या हो रहा है?”

“कुछ लड़कों को ढूंढ़ रहे हैं ये पुलिस वाले. सामने वाले महल्ले में पत्थरबाजी की है उन लड़कों ने. अब ये हर झुग्गी की तलाशी ले रहे हैं,” लता आंटी ने कहा, “पूरी रात झुग्गी में तलाशी चलती रही.”

सुबह बीना मां के साथ काम के लिए निकल गई. दोपहर के करीब मां बीना के पास घबराती हुई अनीता के फ्लैट पर उसे लेने पहुंची.

डोर बैल बजने पर अनीता ने दरवाजा खोला. सामने बीना की मां खड़ी थी.

“क्या हुआ? इतनी घबराई हुई क्यों हो तुम?” अनीता ने बीना की मां से पूछा.

“तुम बीना को भेज दो मेरे साथ. झुग्गी में पुलिस आई हुई है और तलाशी ले रहे हैं. पड़ोसन ने मुझे बताया है कि पुलिस वाले मेरी झुग्गी की तलाशी लेने के लिए मेरा इंतजार कर रहे हैं. बस जल्दी से बीना को भेजो,” बीना की मां ने एक ही सांस में सारी बात अनीता को बताई.

“चलो, चलो मां,” बीना मां का हाथ पकड़ फ्लैट से अपनी झुग्गी की ओर दौड़ पड़ी.

बस्ती में दूर से ही पुलिस वाले नजर आ रहे थे. बस्ती के अंदर बीना की झुग्गी के आसपास लोगों की भीड़ लगी थी.

बीना और मां के पहुंचते ही एक पुलिस वाले ने बीना की मां को अपनी ओर बुलाया और पूछा, “हां अम्मां, यह फोटो देखो और बताओ कि इसे जानती हो तुम?”

“हांहां, यह तो मेरा लड़का टीकू है,” मां ने कहा.

“तुम्हारा लड़का सामने महल्ले में हुई पत्थरबाजी में शामिल था. करोड़ों का नुकसान हुआ है. हमारे पास और्डर हैं. पत्थरबाजी में शामिल सभी लड़कों की झुग्गी पर बुलडोजर चलेगा आज. अपना कोई सामान है, तो निकाल लो झुग्गी में से,” पुलिस वाले ने कड़कती आवाज में कहा.

यह सब सुनते ही बीना और उस की मां के होश उड़ गए. गलती टीकू की थी, पर आज के अन्यायी समाज ने पूरे घर को बेघरबार कर दिया और वह भी इसलिए कि पुलिस और शासन अपने हाथ में असीम ताकत रखते हैं.

बीना और उस की मां तो क्रूर शासकों के लिए चींटी जैसे हैं. बिना टीकू को अदालत द्वारा दोषी ठहराए उसे तो गिरफ्तार कर लिया, पूरे परिवार को बिना दोष के सजा दे दी. पुलिस वालों के सामने दोनों खूब गिड़गिड़ाने लगीं, पर इस से तो पुलिस की हिम्मत बढ़ती है कि वह सर्वशक्तिमान है और कोई भी चूंचपड़ करेगा, उन के बुलडोजर और सिस्टम रौंद देंगे.

भीड़ को तितरबितर कर पुलिस वाले ने बीना की झुग्गी पर बुलडोजर चलाने का हुक्म दिया. मां के कंधे पर सिर रख बीना दहाड़ें मार चीखती रही, पर किसी ने उस पर ध्यान नहीं दिया. बीना की आंखों के सामने मिनटों में ही उस की झुग्गी, गमले, मनीप्लांट सब मिट्टी में मिल गए. मलबे में चादर, चुन्नी दबे दिख रहे थे.

बीना यह सब देख जमीन पर बेहोश हो कर गिर पड़ी. मां बीना को गोद में लिए वहीं जमीन पर बैठ गई. बीना की फ्लैट जैसी झुग्गी का दूरदूर तक अतापता न था. Family Story

Magazines On The Move : अब सरिता और चंपक तेजस एक्सप्रेस के पैसेंजर्स को भी मिलेंगे

Magazines on the Move : पुराने दिनों की यादें फिर से ताजा होने जा रही है. रेलयात्रा के दौरान पैसेंजर्स पत्रिकाओं को एंजौय कर सकेंगे.

एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स ( AIM ) ने प्रसार भारती के WAVES OTT और ONDC (ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स) डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर मैगजीन स्टोर को लॉन्च किया. इस स्टोर में 100 से अधिक मैगजीन ब्रांड्स पूरे भारत में उपलब्ध होंगे. इसे क्लिक करते ही आप अपनी पसंदीदा पत्रिका को एंजौय कर सकेंगे.

8 अगस्त 2025 को दिल्ली में 14वां इंडियन मैगज़ीन कांग्रेस 2025 का आयोजन किया गया. इस अवसर पर कई मशहूर प्रकाशन समूहों के प्रकाशक, संपादक, डिजिटल मीडिया प्रमुख, नीति निर्माता, मार्केटर मौजूद थे. The Deep Connect – Building Communities. Nurturing Trust. Re-imagining the Future विषय पर आयोजित कांग्रेस में इस बात पर जोर दिया गया कि आज भी पत्रिकाएं तेजी से भाग रही डिजिटल दुनिया की नकल करने की बजाय गहराई से जुड़ने में यकीन करती है और इसी वजह से उसने अपने रीडर्स का भरोसा कायम कर रखा है.

एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स यानि ‘एआईएम’, देशभर में 40 से अधिक पब्लिशर्स और 300 से भी अधिक मैगजीन्स का प्रतिनिधित्व करती है. एआईएम की ओर से आयोजित इस कांग्रेस में 3 ऐतिहासिक डिजिटल और भौतिक वितरण पहल की घोषणा की गई. वे हैं –

1. WAVES OTT पर मैगजीन स्टोर – यह सौ से अधिक मैगजीन को एक क्लिक में रीडर्स को उपलब्ध कराएगा.

2. ONDC पर सेलर-साइड ऐप लॉन्च किया गया, इसकी मदद से विक्रेता यानि सेलर्स सीधे प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रिंट या डिजिटल मैगजीन बेच सकेंगे. DigiHaat पर भी मैगजीन की शुरुआत की गई है. यह ओएनडीसी आधारित डिजिटल बाजार है.

3. “Magazines on the Move” नाम से एक बेहद रोचक पहल की शुरुआत IRCTC (भारतीय रेलवे खान-पान एवं पर्यटन निगम) के साथ की गई है. इसके तहत तेजस एक्सप्रेस के यात्रियों को उनकी सीट पर ही पत्रिकाएं उपलब्ध कराई जाएगी. फिलहाल यह सुविधा मुंबई–अहमदाबाद और दिल्ली–लखनऊ रूट के तेजस ट्रेनों में उपलब्ध है. इस सुविधा के तहत पैसेंजर्स को एक क्यूरेटेड मेन्यू मिलेगा, जिससे वे अपनी पसंद की मैगजीन चुन सकेंगे. इन्हें आईआरसीटीसी स्टाफ के जरिए पैसेंजर की सीट तक पहुंचाया जाएगा. जल्दी ही इस पहल को 100 से अधिक प्रीमियम ट्रेनों में उपलब्ध कराए जाने की योजना है.

एआईएम के प्रेसिडेंट और दिल्ली प्रेस के एग्जीक्यूटिव पब्लिशर अनंत नाथ ने कहा कि ‘द इंडियन मैगजीन कांग्रेस’ हमेशा से विचारों और अवसरों को जोड़ने का जरिया रहा है. इन नई पहलों का उद्देश्य हर किसी के लिए मैगजीन उपलब्ध करना है फिर चाहे वह प्रिंट हो या डिजिटल. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि एआईएम का उद्देश्य वितरण के अलग अलग माध्यमों का इस्तेमाल कर रीडर्स से कनेक्ट करना है.

प्रसार भारती के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और अध्यक्ष गौरव द्विवेदी ने WAVES OTT पर मैगजीन स्टोर शुरू किए जाने को एक ऐतिहासिक पल बताया. वहीं आरआरसीटीसी के निदेशक राहुल हिमालयन ने मैग्जीन्स ऑन द मूव पहल की शुरआत की. इस अवसर पर दिल्ली प्रेस के एडिटर इन चीफ परेश नाथ, बी डब्लू बिजनेस वर्ल्ड और एक्सचेंज 4 मीडिया ग्रुप के चेयरमैन डॉ अनुराग बत्रा भी उपस्थित रहे.

Romantic Story In Hindi : देरसबेर पर खुशी घनेर – हरदीप भाभी के लिए परेशान क्यों था

Romantic Story In Hindi : क्या करे वह. पिछली बार पंजाब गया था तो पक्का सोच कर गया था कि सब बताएगा पर हिम्मत नहीं जुटा पाया और अब फिर जाना पड़ेगा. बहन, गुरमीत की शादी जो है. शेरीपोवा व डेढ़ वर्षीय बेटे माइकल को ले जाए तो क्या बताए वहां कि बिना बताए रशियन लड़की से कोर्ट मैरिज कर ली थी और अब उन का एक बेटा भी है. उन को न ले जाए, न बताए तो जब उस के मातापिता उस की शादी की इंडिया में बात चलाएंगे तो क्या करेगा, क्या कहेगा. पति जीत की चिंता जान शेरी ने सुझाया कि शादी में वह भी जाएगी. वह जीत के परिवार से मिलना चाहती है और जैसा उस ने सुन रखा है, इंडियन मैरिजज आर अ ग्रेट फन, वह भी देखना चाहती है.

उस ने जीत को साथ ले जा अपने लिए सुंदर से 4 सलवार सूट खरीदे. रंग गोरा और तीखे नैननक्श वाली शेरीपोवा ने जब वे पहने तो सच में भारतीय दिखने लगी. लंबे बालों में चोटी गूंथ, थोड़ा शृंगार कर गोदी में माइकल को ले और जीत को जबरदस्ती साथ खड़ा कर शेरी ने कैमरे से फोटो खींच ली. फोटो देख जीत हंसा, ‘‘नकली इंडियन.’’ शेरी ने जवाब दिया, ‘‘मीत की शादी पर जाऊंगी तो तुम्हें असली इंडियन बन कर बताऊंगी.’’

शेरी ने एक फोटो अपने मातापिता को भेज दी और दूसरी फ्रेम में सजा दी. तय हुआ सब चलेंगे तो शेरी ने अपनी मरजी से मीत के लिए सुंदरसुंदर चीजें व शृंगार का सामान खरीदा और एक सुंदर महंगी सी घड़ी मीत के होने वाले पति के लिए ली. जीत ने घर में विशेष रूप से फोन कर बता दिया कि एअरपोर्ट केवल छोटा भाई हरदीप ही आए. जीत को डर था कि घर के बाकी सदस्य शेरी और बच्चे को उस के साथ देख पता नहीं कैसा व्यवहार करें. फ्लाइट समय पर पहुंची. छोटा भाई हरदीप पहले तो नहीं समझा पर फिर उस के दिमाग का शक ठीक निकला. जीत ने जब सब बताया कि कैसे एक ही जगह नौकरी करते, बाद में साथ रहते, उन्होंने शादी कर ली पर डर के कारण घर में नहीं बताया. हरदीप ने शेरी के कंधे पर हाथ रख कहा, ‘‘डोंट वरी, एवरीथिंग विल बी फाइन.’’

बेबी माइकल को जीत की गोद से ले कार में बिठाया. घर पहुंच योजना के अनुसार, पहले जीत माइकल को गोद लिए कार से निकला. सब घर के दरवाजे पर खडे़ इंतजार कर रहे थे. हरदीप ने कार से सामान निकाल भाभी को बाहर आने को कहा. सब हैरान पर मीत भाग कर कार के पास आई और हाथ बढ़ा भाभी का हाथ थाम उसे दरवाजे तक लाई. शेरी ने झुक कर पहले जीत के पिता, फिर मां के पैर छुए. जब कोई कुछ न बोला तो हरदीप ने माइकल को गोदी उठा नाचना शुरू किया, ‘‘बधाई जी बधाई भाभी आई भाभी आई.’’

मां को जब समझ आया तो आगे बढ़ शेरी को गले लगाया. सब अंदर आए पर जीत एकदम चुप था. पिता ने माइकल के सिर पर हाथ रखा तो जीत ने समझ लिया कि सब ठीक है. पिता के सामने हाथ जोड़ माफी मांगते उसे अफसोस हुआ कि उसे पहले ही बता देना चाहिए था, जैसा शेरी ने किया था. उस ने जब शादी के निर्णय को अपने मातापिता को बताया था तो वे खुश तो नहीं थे पर कहा था, ‘तुम्हारी मरजी.’

घर में शादी की सब तैयारी हो चुकी थी. हरदीप ने जीत को अपने साथ लगाया और शादी में लेनदेन, रीतिरिवाज के बारे में समझाया. लड़की की शादी है, सब ठीकठाक होना चाहिए. माइकल को सब उठाए फिरते थे. जीत व्यस्त था, शेरी अकेली सी पड़ गई थी. बस, मीत ही शेरी के आसपास रहती. वह उसे सब अंगरेजी में बता रही थी. घर में कुछ औरतें काम में हाथ बंटा रही थीं. उन में से एक मीत की सहेली वीरा की मां थीं जो शेरी का विशेष ध्यान रख रही थीं. मीत के कहने पर वीरा भी अपने कपड़े आदि ले 4 दिन पहले ही आ गई थी. मीत ने सहेली को समझाते हुए कहा कि भाभी शेरी को अंगरेजी में बात कर हर रीतिरिवाज व शादी में होने वाली रस्मों के बारे में बताए. जो कुछ भी वे जानना चाहें, उन्हें बताए. शेरी के लिए शादी के मौके पर पहनने वाले कपड़े सलवार सूट, लहंगा, चोली कुरती आदि मंगवा लिए गए और अब वीरा उन्हें उसे पहना कर साइज देख रही थी. शेरी, जो स्कर्ट पहनने की आदी थी, के लिए ये सब कुछ ज्यादा ही था पर वह खुश थी.

शुरू हुआ मेहमानों का आना, खातिरदारी, रस्में, जिन में शेरी भी संकोच से ही सही, भाग ले रही थी. मिलने वालों से वह बस, मुसकरा कर ही अभिनंदन कर पा रही थी. जीत का तो कुछ पता ही नहीं, बस रात को ही देख पाती थी. शादी के घर में इतने काम जो होते हैं. और फिर बड़ा भाई होने के नाते उस की जिम्मेदारी भी ज्यादा थी. माइकल तो सब से बहुत हिलमिल गया था, जैसे उसे मां की जरूरत ही नहीं. आज मेहंदी की रात थी. महिलाएं मेहंदी लगवा रही थीं. गानाबजाना, नाचना, हंसीमजाक चल रहा था. शेरी के लिए सब नया था. पर वह अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रही थी सब का साथ देने की. वीरा ने हाथ पकड़ शेरी को नाचने के लिए उकसाया. शेरी भी सब की देखादेखी पैर थिरकाने व हाथ मटकाने लगी. सब ने जोरदार गाने के साथ ताली बजा कर उस की सराहना की. जीत भी अब रुक न सका. माइकल को गोद में उठा कर शेरी के साथ नाचने लगा. हरदीप तो कभी इधर तो कभी उधर घूम कैमरे से सब की फोटो खींचने में लगा रहा.

सुबह से ही हलदी लगाने, चूड़ा चढ़ाने, कलीरे बांधने की रस्में शुरू हो गई थीं. शेरी अपना कैमरा निकाल सब की फोटो खींचने लगी. उसे ये सब देख उत्सुकता हो रही थी. दोपहर के खाने के बाद मीत को दुलहन के रूप में शृंगार के लिए पार्लर जाना था. उस ने भाभी और वीरा को भी साथ लिया. माइकल को जीत ने संभाला. शेरी को भी दुलहन की तरह  सजाया गया. सुंदर मेकअप, हेयरस्टाइल, हरेपीले रंग का भारीभरकम, अति सुंदर लहंगाचोली, ओढ़नी और आभूषणों से सज्जित शेरी का तो जैसे रूप ही बदल गया. वीरा की सज्जा दूसरी तरह की थी, सुंदर सलवारकमीज व लंबी वेणी हेयरस्टाइल में वह पक्की पंजाबन दिखना चाहती थी. जब दुलहन मीत सजसंवर कर बाहर आई तो शेरी अचंभित थी, इतना बदलाव, इतनी सुंदर. उस ने मीत का हाथ थाम कहा, ‘‘वैरी ब्यूटीफुल.’’

मीत का उत्तर था, ‘‘यू टू.’’

पार्लर में काम करती एक लड़की ने तीनों की फोटो खींची. जब तीनों को कार से घर लाया गया तो सब ने उन की बलाएं लीं. सासूजी ने शेरी को सोने के जड़ाऊ कंगन पहना, उस की कलाइयां चूमीं. उन के पीछे खड़े जीत से जब शेरी की आंख मिली तो एक के चेहरे पर अचरज था और दूसरे के चेहरे पर शर्म के भाव. सब तैयार हो पंडाल में इकट्ठे हुए. जीत और दीप इधरउधर इंतजाम देख रहे थे. शेरी ने जीत के साथ कई हिंदी फिल्में देखी थीं पर यह कभी नहीं सोचा था कि उसे यह सब वास्तव में देखने को मिलेगा. शोरशराबे, गानेबजाने, नाचने का जोरदार दौर चल रहा था. बरात द्वार पर थी. जयमाला, मिलनी आदि की रीति के बाद मीत और दूल्हे पुनीत को सजे स्टेज पर बैठाया गया. खाने का दौर शुरू हुआ तो मां ने जीत को समझाया कि माइकल को गोदी में ले शेरी को बारीबारी से सभी रिश्तेदारों से मिलवाओ. कौन कहेगा, यह रूसी लड़की है, एकदम भारतीय वेश में सब के पास जा चरणस्पर्श करती, गले मिलती, हाथ मिलाती मुसकराती शेरी सब की सराहना का केंद्र बनी रही.

माइकल थक कर सो गया था. रात को फेरों और फिर विदाई का समय होते लगभग सुबह होने वाली थी. मीत सब के गले मिल रो रही थी. शेरी ने भी आगे बढ़ इस रस्म को पूरा करना चाहा तो मीत ने भाभी का माथा चूमा और गाल सहलाया. मीत के पति पुनीत ने जीत और शेरी से गले मिल विदा ली. सब बहुत थके हुए थे. कुछ लोग सो गए थे पर जीत और दीप अभी भी सब समेटने में लगे हुए थे. सबकुछ ठीकठाक देख जीत कमरे में आया और पाया कि शेरी माइकल को लिए, सो रही है. आज उसे देख उस में एक नया रूप दिखा. कैसे वह उन की भाषा न जानते हुए भी सब से घुलमिल गई थी. कैसे उस के परिवार ने उसे सहज स्वीकार कर लिया था. माइकल तो सब का दुलारा बच्चा बन गया था. जीत ने झुक कर शेरी का माथा चूमा. स्पर्श पाते ही शेरी ने आंखें खोल जीत को आलिंगनबद्ध किया और दोनों असीमित सुख के संसार में डूब गए.

अब जीत वापस जाने की तैयारी में था. 2 दिन बाद उन की फ्लाइट थी. मीत और  उस के पति पुनीत भी आ गए थे. जाने वाले दिन सब ने साथ बैठ चाय पी. सब उदास थे. कार में सामान रखा जा रहा था. माइकल तो चाचा दीप की गोदी से उतरना ही नहीं चाहता था. गले मिलते शेरी की आंखें गीली थीं. ससुरजी के पैर छुए तो उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘‘जल्दी आना.’’ फ्लाइट समय पर थी. सारे रास्ते सो कर थकावट उतारी. शनिवार रात काफी देर से घर पहुंचे. इतवार सुबह उठ दोनों ने मिल कर घर को व्यवस्थित किया. शेरी ने अपनी मां को फोन पर शादी का हाल बताया और जीत के परिवार की बहुत प्रशंसा की. पिता से भी बात हुई. उन्होंने भी एक अच्छा समाचार सुनाया कि शेरी की छोटी बहन के लिए अमेरिका से एक लड़के का विवाह प्रस्ताव आया है. रशियन लड़का सिनयोन वहां काफी समय से कार्यरत है. और उस के मातापिता सिनयोन के मातापिता से वहां मिल चुके हैं.

मां ने कहा कि यदि जीत ठीक समझे तो दोनों जा कर सिनयोन से मिल आएं. अगले हफ्ते समय तय कर दोनों एक अच्छे रैस्टोरैंट में उस से मिले. जीत को सिनयोन बहुत अच्छा लड़का लगा. शेरी को भी सिनयोन सलीकेदार और बुद्धिमत्ता में बहुत आगे लगा. सिनयोन ने बताया कि मलवीना की इंटर्नशिप 6 माह में पूरी हो जाएगी. शादी अमेरिका में होगी और इसी बीच पासपोर्ट वीजा आदि का प्रबंध भी हो जाएगा. शेरी खुश थी कि उस की बहन भी अमेरिका में रहेगी तो मिलना होता रहेगा  शादी का पूरा प्रबंध सिनयोन ने अपने हाथ में लिया. 6 माह का समय बीतने से पहले ही वीजा मिल जाने से शेरी के मातापिता आ गए. सिनयोन के मातापिता को वीजा न मिल पाया. मलवीना शादी की तारीख से एक सप्ताह पहले आ गई और उस के लिए वैडिंग गाउन और बाकी की शौपिंग पूरी हो गई. शादी बहुत ही शानदार ढंग से हुई. सिनयोन के मातापिता वहां बैठे ही पूरी शादी का आनंद वीडियो से देख खुश थे.

3 महीने का समय बीता और शेरी के मातापिता के वापस लौटने का समय हो गया. इस दौरान सब से अच्छी बात यह रही कि उन्हें जीत व शेरी को खुश देख बहुत खुशी हुई. अब दोनों बेटियां यहां होने से उन का भी आनाजाना लगा रहेगा. शेरी के मातापिता अपनी भाषा में ही बातचीत करते थे पर जरूरी बात को शेरी अंगरेजी में जीत को बता देती. शेरी जीत की भाषा जानती नहीं, इसलिए उस ने माइकल को रशियन भाषा सिखाने की कोशिश की पर विफल रही. जब कभी जीत या शेरी के घर से फोन पर बात होती तो कुछ समय के लिए फोन माइकल को भी दिया जाता. वह कुछ समझता तो नहीं पर अपनी हंसी से सब को खुश कर देता. फेसबुक पर फोटो देख वह अपने नानानानी, दादादादी को पहचान लेता था. जीत ने फिर सोचा कि शेरी को सब से मिलाने में देरी अवश्य हुई पर सब को खुश देख उसे भी ढेरों खुशियां मिलीं. यह तो और भी अच्छा हुआ कि शेरी का परिवार भी उस से बहुत खुश है क्योंकि वह उन की बेटी को जो खुश रखता है. उन की बेटी थी ही इतनी अच्छी कि खुशी उस के पास स्वयं आ जाती है. इस बार जब शेरी की बहन मलवीना के ससुराल वालों का आना और मिलना हुआ तो लगा जैसे वे सब अपने ही हैं. अब उन के परिवार का दायरा बढ़ गया है. मन ही मन सोचा कि सब का प्यार और मेलजोल बना रहे तो सब का फायदा है. हमारा तो सब से ज्यादा क्योंकि शेरी अब प्रैगनैंट है और डिलीवरी के समय उस की मां आ कर सब संभाल लेंगी. Romantic Story In Hindi 

Hindi Love Stories : सिर्फ अफसोस

Hindi Love Stories : शैलेश यही कुछ 4 दिन के लिए मसूरी में अपनी कंपनी के काम के लिए आया था. काम 3 दिन में ही निबट गया तो सोचा कि क्यों न आखिरी दिन मसूरी की हसीन वादियों को आंखों में समेट लिया जाए और निकल पड़ा अपने होटल से. होटल से निकल कर उस ने फोन से औनलाइन ही कैब बुक कर दी और निकल गया मसूरी की सुंदरता को निहारने. कैब का ड्राइवर मसूरी का ही निवासी था, ऐसा उस की भाषा से लग रहा था. शायद इसीलिए उसे शैलेश को मसूरी घुमाने में किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ रहा था.

वह उन रास्तों से अच्छी तरह परिचित था जो उस की यात्रा को तीव्र और आरामदायक बनाएंगे. कैब का ड्राइवर पहाड़ों में रहने वाला सीधासाधा पहाड़ी व्यक्ति था. वह बिना अपना फायदा या नुकसान देखे खुद भी शैलेश के साथ निकल पड़ा और शैलेश को हर जगह की जानकारी पूरे विस्तार से देने लगा था. अब शैलेश भी ड्राइवर के साथ खुल चुका था. शैलेश ने पूछा, ‘‘भाईसाहब, आप का नाम क्या है?’’

‘‘मेरा नाम महिंदर,’’ ड्राइवर ने बताया.

अब दोनों मानो अच्छे मित्र बन गए हों. महिंदर ने शैलेश को सारी जानीमानी जगहों पर घुमाया. समय कम था, इसीलिए शैलेश हर जगह नहीं घूम सका. मौसम काफी खुशनुमा था पर शैलेश को नहीं पता था कि मसूरी में मौसम को करवट बदलते देर नहीं लगती. देखते ही देखते  झमा झम बारिश होने लगी. महिंदर को इन सब की आदत थी, उस ने शैलेश से कहा, ’’घबराइए मत साहब, यहां आइए इस होटल में.’’

शैलेश ने देखा कि महिंदर जिस को होटल बोल रहा था वह असल में एक ढाबा था. शैलेश को महिंदर के इस भोलेपन पर थोड़ी हंसी आई पर उस ने अपनी हंसी को होंठों पर नहीं आने दिया क्योंकि वह ढाबा भी प्रकृति की गोद में इतना सुंदर लग रहा था कि पूछो मत.

शैलेश ने महिंदर से कहा, ’’सच में भाईसाहब, इस के आगे तो हमारी दिल्ली के बड़ेबड़े पांचसितारा वाले होटल भी फीके हैं.’’

ठंडा मौसम था. शैलेश थोड़ा सिकुड़ सा रहा था. महिंदर सम झ गया था कि शैलेश को इस ठंड की आदत नहीं है. उस ने अपने और शैलेश के लिए 2 गरमागरम कौफी का आर्डर दे दिया.

महिंदर ने अब शैलेश की चुटकी लेना शुरू कर दिया, ‘‘और भाईसाहब, शादीवादी हुई कि नहीं अभी तक?’’

‘‘क्या लगता है?’’ शैलेश ने प्रश्न के बदले प्रश्न किया.

‘‘लगते तो धोखा खाए आशिक हो.’’

शैलेश ने महिंदर की बात का बुरा नहीं माना, बल्कि धीरे से हंस दिया.

शैलेश के चेहरे पर हंसी देख महिंदर तपाक से उस की तरफ उंगली दिखाता हुआ बोला, ‘‘है ना? सही बोला ना साब?’’

ढाबे के कर्मचारी ने उन के सामने उन की कौफियों के कप रख दिए और चलता बना.

महिंदर ने फिर उसी बात को छेड़ते हुए पूछा, ‘‘बताओ न साब, क्या किस्सा था वह.’’

शैलेश पहले तो थोड़ा झिझका, फिर अपना किस्सा सुनाने को तैयार हो गया.

शैलेश ने बताना शुरू किया, ‘‘उस वक्त मैं 11वीं जमात में दाखिल हुआ था. मैट्रिक पास करने के बाद 11वीं जमात में वह मेरा पहला दिन था. उस दिन कई न्यूकमर्स भी पहली बार स्कूल आए थे. उन्हीं में से एक थी रबीना. रबीना को पहली बार देख कर मेरे दिल में उस के लिए किसी प्रकार की कोई भावना तो नहीं उमड़ी पर धीरेधीरे हम दोनों में दोस्ती होनी शुरू हो गई और वह मु झे अपने बाकी दोस्तों से ज्यादा प्यारी भी हो गई. रबीना का बदन काफी गोरा था जो धूप में जाने से और गुलाबी हो उठता. उस के हाथों पर छोटेछोटे भूरे रंग के रोएं, बाल भी कहींकहीं से भूरे, भराकसा जिस्म, ऊपर से सजसंवर के उस का स्कूल में आना मु झे बड़ा आकर्षित करता था. रबीना के प्रति मेरी नजदीकियां बढ़ती चली जा रही थीं पर एक लड़की थी जो अकसर मेरे और रबीना के बीच आ जाती, वह थी संजना.’’

‘‘संजना कौन हैं साब?’’ जिज्ञासु महिंदर ने शैलेश से पूछा.

‘‘संजना तो वह थी जिस की बात मैं ने मानी होती तो आज पछताना नहीं पड़ता.’’

महिंदर अब और सतर्क हो कर किस्सा सुनने लगा.

‘‘रबीना तो अभी कुछ ही दिनों पहले मेरी जिंदगी में आई थी पर संजना तो बचपन से ही मेरे दिल में बसती थी. संजना और मैं ने जब से पढ़ना शुरू किया तब से हम साथ ही थे. हमारे घर वाले भी एकदूसरे को अच्छी तरह से जानते थे. संजना मेरा पहला प्यार थी और मैं उस का. पर जब से रबीना मेरी जिंदगी में आई, मैं हर दिन रबीना के थोड़ा और पास आता गया और संजना से दूर होता गया. मु झे रबीना के नजदीक देख कक्षा के तमाम छात्र जलते थे. लड़कियों को रबीना से जलन होती और लड़कों को मु झ से. पर सब से ज्यादा कोई जलता था तो वह थी मेरी संजना. उस का जलना मु झे जब फुजूल का लगता था पर अब वाजिब लगता है. भला आप जिसे चाहते हों अगर वह आप के सामने ही किसी और का होने लगे तो इंसान का खून तो वैसे ही जल जाए. संजना मु झ से हमेशा कहती थी.’’

शैलेश की नजर बाहर गई, बारिश थम चुकी थी पर उस का किस्सा और उन की कौफी अभी आधी बची थी.

महिंदर ने पूछा, ‘‘क्या कहती थी?’’

शैलेश ने किस्सा चालू रखा, ‘‘संजना जब भी मु झ से ज्यादा चिढ़ जाती तो बोलती, ‘तुम भूलो मत वह एक मुसलमान है. तुम्हारा आगे एकसाथ कोई भविष्य नहीं है, काम तो मैं ही आऊंगी, इसीलिए संभल जाओ वरना बाद में बहुत पछताना पड़ेगा.’ पर रबीना के इश्क में मैं ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी, कुछ और दिखता ही नहीं था. देखतेदेखते 2 साल गुजर गए. मैं ने और रबीना ने एक ही कालेज में दाखिला लेने की पूरी तैयारी भी कर ली. पर 12वीं जमात के बाद संजना आगे क्या करेगी, न तो मैं ने कभी जानने की कोशिश की और न उस ने कभी बताने की.

देखते ही देखते समय बीतता गया. संजना का नंबर भी अब उस की यादों की तरह मेरे फोन से मिट गया. अब मेरी फोन की कौल हिस्ट्री में सिर्फ रबीना के नाम की ही एक लंबी लिस्ट होती और उस से घंटों बात करने का रिकौर्ड. हमारे इश्क के चर्चे पूरे कालेज में होने लगे और रबीना भी मु झे उतना ही पसंद करती थी जितना मैं उसे.

‘‘न तो मैं ने कभी सोचा कि वह पराए धर्म की है और न उस ने. स्कूल के समय में तो मैं रबीना के जिस्म की तरफ आकर्षित था. उस की खूबसूरती के लिए उसे चाहता था पर अब मैं उसे दिल से चाहने लगा था. मैं ने कालेज में होस्टल में रहने के बावजूद कभी रबीना से जिस्मानी रिश्ता नहीं बनाना चाहा. अब मु झे पता चला दिल से प्यार करना किसे कहते हैं. मु झे अब रबीना कैसे भी स्वीकार थी. चाहे वह पराए धर्म की हो या कभी उस की सुंदरता चली भी जाए तो भी मैं उसे छोड़ना नहीं चाहता था.’’

शैलेश किस्सा बीच में रोक बाहर देखने लगा. मौसम फिर करवट बदल रहा था. हलकीहलकी बूंदाबांदी फिर शुरू हो गई.

शैलेश फिर अपने अधूरे किस्से पर वापस आया और महिंदर से पूछा, ‘‘हां, तो मैं कहां पर था.’’

‘‘आप रबीना को दिल से चाहने लगे थे,’’ महिंदर ने याद दिलाया.

‘‘हां, अब हम एकदूसरे को अपना जीवनसाथी बनाना चाहते थे, पर अब एक सब से बड़ी अड़चन थी जिसे हम हमेशा से नजरअंदाज करते रहे थे. वह थी हमारी अलगअलग कौमें. चलो और कोई बिरादरी या जात होती तो चलता पर एक हिंदू और मुसलिम की जात को हमारा समाज हमेशा से एकदूसरे का दुश्मन सम झता है. हमें अच्छी तरह से मालूम था कि न तो मेरे घर वाले इस शादी के लिए मानेंगे और न ही रबीना के. मैं ने रबीना से कहा था कि ‘तुम हिंदू हो जाओ न.’

‘‘तब उस ने मु झ से धीरे से कहा, ‘तुम मुसलमान हो जाओ. मैं अपने अम्मीअब्बा की इकलौती हूं. मैं हिंदू हो गई तो उन का क्या होगा.’

‘‘मैं ने कहा, ‘ऐसे तो मैं भी इकलौता हूं अपने मांबाप का और तुम सम झती क्यों नहीं, हिंदू धर्म एक शुद्ध और सात्विक धर्म है और तुम एक बार हिंदू बन गई तो मैं अपने मांबाप को मना ही लूंगा.’

‘‘‘और मेरे अम्मीअब्बा का क्या? अरे, इकलौती बेटी के लिए कितने सपने देखते हैं. उस के वालिद पता है? एक वालिद उस के लिए अच्छा शौहर ढूंढ़ने के सपने देखते हैं, उस के निकाह के सपने देखते हैं, उस के लिए अपनी सारी जमापूंजी लगा देते हैं और बदले में सिर्फ समाज के सामने इज्जत से उठी नाक चाहते हैं जो मेरे हिंदू बनने पर शर्म से कट जाएगी,’ रबीना ने भी अपना पक्ष साफसाफ मेरे सामने रख दिया.

‘‘‘और अगर मैं मुसलमान बन गया तो मेरे मांबाप का तो सिर गर्व से उठ जाएगा न?’ मैं ने भी गरम दिमाग में बोल दिया पर अगले ही पल लगा कि ऐसा नहीं बोलना चाहिए था.

‘‘वह उठ कर चली गई. मु झे लगा कि अभी गुस्सा है, जब शांत हो जाएगी, फिर आ जाएगी मेरे पास. पर मु झे क्या पता था कि वह मु झ से वास्ता ही छोड़ देगी और इतनी आसानी से मु झे भुला देगी. स्कूल के समय में जिस तरह रबीना के पीछे मरने वालों की कोई कमी नहीं थी उसी प्रकार कालेज में भी लड़के रबीना के प्रति आकर्षित रहते. मु झ से मनमुटाव होने के बाद उस ने अपना नया साथी ढूंढ़ लिया जो उसी की कौम का था और हमारे ही कालेज का था. कालेज भी अब खत्म हो चुका था और हमारा एकदूसरे से वास्ता भी. मैं ने कई महीनों तक उस को सोशल मीडिया पर मैसेज करने की कोशिश की पर हर जगह से खुद को ब्लौक पाया. मेरा नंबर उस ने ब्लैक लिस्ट में डाल दिया. अब मेरे कानों में संजना की उस दिन वाली बात गूंजने लगी, ‘काम तो मैं ही आऊंगी.’ कुछ दिन उदास रहा और खुद को यही तसल्ली देता रहा कि वह तो वैसे भी मुसलिम थी, चली गई तो क्या हुआ, पर मैं ने अपने मांबाप को तो नहीं छोड़ा न.

‘‘मु झे आज सम झ में आया कि जिसे तुम चाहो अगर वह तुम्हारे सामने ही किसी और की हो जाए तो कैसा लगता है, और कुछ ऐसा ही लगता होगा मेरी संजना को उस वक्त. मैं ने तय किया कि फिर संजना का हाथ पकड़ं ूगा. पर मन में ही विचार किया कि किस मुहं से जाऊंगा उस के पास? क्या कहूंगा उस से कि क्या हुआ मेरे साथ और मान लो कह भी दिया तो क्या वह फिर से स्वीकार करेगी मु झे?

‘‘मैं ने अपना स्वाभिमान छोड़ कर सोच लिया कि जो कुछ हुआ सब बता दूंगा उसे, उसे ही जीत जाने दूंगा. अगर अपनेआप को गलत साबित कर के मैं फिर उस का हो जाऊं तो क्या बुराई है? पर उसे ढूंढ़ने पर पता चला कि अब वह दिल्ली में नहीं रहती. सारे सोशल मीडिया को छान मारा पर वह वहां पर भी कहीं नहीं मिली. फिर हताश हो कर अपनी जिंदगी को रुकने नहीं दिया बल्कि एक कंपनी में जौब कर लिया. और संजना का मिलना न मिलना प्रकृति के ऊपर छोड़ दिया.’’

‘‘फिर क्या हुआ साब?’’ महिंदर सुनना चाहता था कि आगे क्या हुआ.

‘‘फिर क्या होगा? जिंदगी चल ही रही है. आज नहीं तो कल वह मिल जाएगी, अगर न भी मिली तो भी सम झ लूंगा कि मेरी ही गलती की सजा है जो उस वक्त उस की कद्र नहीं कर पाया.’’

शैलेश ने बाहर देखा, मौसम की मार और जोर से पड़ने लगी और जिस तरह से वह और महिंदर मौसम की मार से बचने के लिए ढाबे में घुसे थे उसी तरह और पर्यटक भी ढाबे के अंदर पनाह लेने लगे. ढाबे का कर्मचारी फटाफट अपनी सारी टेबलों पर कपड़ा मारने लगा और उन से बैठने को कहने लगा.

तभी शैलेश की नजर एक नौजवान औरत पर पड़ी जो उसी बरसात से बचते हुए ढाबे में आई थी. उस औरत को देख शैलेश की आंखें उस पर गड़ी की गड़़ी रह गईं. मानो दिमाग पर जोर दे कर कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो.

शैलेश को पराई औरत को ऐसे घूरते देख महिंदर बोला, ‘‘अरे साब, ऐसे मत देखो वरना बिना बात में दोनों को खुराक मिल जाएगी अभी.’’

‘‘क्यों?’’ शैलेश ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘दिखता नहीं क्या, नईनई शादी हुई है.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘अरे साब, आधे हाथ चूडि़यों से भरे हैं और माथे पे सिंदूर नहीं दिखता क्या?’’ महिंदर भोलेपन में फिर से बोला, ‘‘कोई बात नहीं साब, आप को कैसे पता होगा, पर मु झे सब पता है नईनई शादी के बाद लड़कियां ऐसे ही फैशन करती हैं. मेरी वाली भी करती थी न,’’ कह कर महिंदर शरमा गया.

शैलेश अनबना सा रह गया मानो महिंदर की बात वह मानना नहीं चाहता था.

‘‘अरे क्या हुआ साब? जानते हो क्या इसे?’’ महिंदर ने पूछा.

‘‘अरे यही तो मेरी संजना है. पर यह शादी और मसूरी का क्या चक्कर?’’ संजना अब पहले से ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी थी. उस का जिस्म भी भर गया था, चेहरे पर ऐसी चमक मानो जिंदगी में कोई चिंता ही न हो. पर संजना के माथे का सिंदूर और कलाइयों पर चूडि़यां शैलेश को अंदर से खाए जा रही थीं. कुछ सम झ में भी नहीं आ रहा था कि वह यहां कैसे.

शैलेश अपनी टेबल से उठ खड़ा हुआ और जा कर संजना के सामने अचानक से प्रकट हो गया. दोनों एकदूसरे को मसूरी में देख चौंक गए. उन्होंने ऐसा इत्तफाक सिर्फ कहानियों और फिल्मों में ही देखा था.

संजना ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘तुम? और यहां?’’

‘‘मैं तो काम से आया था कल निकल जाऊंगा, लेकिन तुम यहां कैसे?’’ शैलेश ने पूछा.

‘‘मेरी कुछ दिनों पहले ही शादी हुई है,’’ संजना ने एक नौजवान की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘इन्होंने ही प्लान बनाया था हमारा हनीमून मसूरी में ही मनेगा.’’

संजना ने आगे बड़े ही मजाकिया लहजे में पूछा मानो उसे सब पता हो, ‘‘और अपना सुनाओ कैसी चल रही है तुम्हारी और रबीना की जिंदगी, शादीवादी हुई?’’ यह कह कर संजना मुसकरा गई.

बरसात फिर से थम गई. शैलेश इस से पहले कुछ बोलता, संजना के पति ने उसे इशारा कर जल्दी से चलने को कहा. संजना ने भी जवाब सुने बिना ही शैलेश को अलविदा कर दिया और आगे बढ़ गई. संजना ने पीछे मुड़ कर शैलेश को देखा और बड़ी ही बेरहमी से कहा, ‘‘क्यों, आना पड़ा न मेरे ही पास.’’

भोले महिंदर ने शैलेश को दिलासा दिलाते हुए उस के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘‘चलो साब, वरना फिर बारिश शुरू हो जाएगी, वापस भी तो जाना है न.’’

शैलेश दूर जाती संजना को देख रहा था. वक्त उस के हाथ से निकल चुका था. अब कभी वापस नहीं आएगा.

लेखक : हेमंत कुमार

Social Story : प्रायश्चित्त – अनुभा के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था

Social Story : रात के 2 बजे के करीब अनुभा की आंखें खुलीं तो उस ने देखा, सुगम बिस्तर पर नहीं है. 5-7 मिनट बाद जब सुगम वापस नहीं आया तो अनुभा को कुछ चिंता हुई. वह उठ कर बाहर की तरफ जाने वाले दरवाजे पर गई तो उस ने पाया दरवाजे की सांकल खुली हुई है. सुगम को अचानक बाहर जाने की क्या जरूरत आ पड़ी. अनुभा यह सोच ही रही थी कि पास के कमरे से खुसुरफुसुर की आवाजें आईं. संभवतया सुलभा की बच्ची को कोई परेशानी हुई होगी. यही सोच कर शायद उस ने सामने वाला दरवाजा न खोल कर कमरों को जोड़ने वाला दरवाजा खोलने का निर्णय लिया होगा. निश्चित रूप से कोई बड़ी परेशानी रही होगी. वरना यह दरवाजा तो दिन के समय तक दोनों तरफ से बंद रहता है. आशंकाओं से भरी अनुभा ने कुछ झिझकते हुए दरवाजा खोल दिया.

आंखों के सामने का दृश्य अविश्वसनीय था. सुगम और सुलभा अंतरंग प्रणय की अवस्था में थे. अनुभा को कुछ समझ में नहीं आया की वह क्या करे. उसे चक्कर सा आ गया, वह गिरने लगी. ‘सुगम…’ अनुभा गिरने से पहले पूरी ताकत लगा कर चीखी. अनुभा की चीख में इतनी तेजी तो थी ही कि वह प्रगत प्रताप और जैविका की नींद खोल सके.

‘‘यह तो अनुभा की आवाज है. पेट से है. कहीं कुछ गड़बड़,’’ कहते हुए आशंकित जैविका उठ बैठी.

‘‘चलो,चल कर कर देखते हैं,’’ प्रगत प्रताप बिस्तर छोड़ते हुए बोले.

तेज कदमों से दोनों सुगम के कमरे की तरफ चल दिए. चूंकि आगे वाले दरवाजे का सांकल खुला हुआ ही था, इसलिए ढकेलते ही खुल गया. कमरे में सुगम व अनुभा दोनों को न पा कर वे भी कमरों को जोड़ने वाले दरवाजे की तरफ दौड़े.

फर्श पर अनुभा को लगभग बेहोश व सुगम और सुलभा को साथ खड़ा देख कर प्रगत प्रताप और जैविका को माजरा समझते देर न लगी.

‘‘यह क्या सुगम? कितना नीचे गिर गए हो तुम? अपने बड़े भाई की पत्नी के साथ इस तरह के संबंध रखते हुए तुम्हें शर्म नहीं आती,’’ प्रगत प्रताप सुगम को डांटते हुए बोले.

‘‘सुलभा तुम? तुम तो सुगम से बड़ी हो, उम्र में भी और ओहदे व मानमर्यादा में भी,’’ जैविका सुलभा को डांटते हुए बोली, ‘‘डायन भी सात घर छोड़ कर बच्चे खाती है.’’

‘‘वाह, सुगम, खूब नाम रोशन किया है हमारा. इंग्लिश स्कूल में तुम को शिक्षा दिलवाई थी परंतु देशी सभ्यता और संस्कृति को भूलने को नहीं कहा था. दुनिया को अब क्या मुंह दिखाऊंगा,’’ प्रगत प्रताप की आंखों में आंसू आ गए. आवाज भर्रा गई.

सुगम व सुलभा मुजरिमों की तरह सिर झुकाए खड़े थे. अब तक अनुभा भी कुछकुछ होश में आ गई थी.

प्रगत प्रताप इस शहर के जानेमाने उद्योगपति हैं. इन्होंने अपनी काबिलीयत के दम पर अपने पुरखों से विरासत में मिले ब्याजबट्टे के धंधे को छोड़ कर कारखाना डालने की हिम्मत की. और आज सफलता के उस मुकाम पर हैं जहां पहुंचने की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है. परिवार में पत्नी जैविका और 3 बच्चे हैं. सब से बड़ी लड़की सरला की शादी हो चुकी है जो अपनी ससुराल में सुखी है. उस से छोटा लड़का अगम है. अगम की उम्र 34 साल है. अगम की पत्नी का नाम सुलभा है और दोनों की शादी 5 साल पहले हुई है. इन दोनों की एक बेटी है जिस का नाम विधा है. सब से छोटा बेटा सुगम है जो लगभग 27 साल का है जो यह नई वाली फैक्टरी को संभालता है. सुगम भी शादीशुदा है और अभी पिछले महीने ही शादी की पहली सालगिरह बड़ी धूमधाम से मनाई है. इस की पत्नी अनुभा अभी एक माह की गर्भवती है.

प्रगत प्रताप अपने नाम के अनुरूप प्रगतिशील विचारधारा के तो हैं ही, साथ ही अपने पुरखों द्वारा दी गई सीख का सम्मान करने वाले भी हैं. शायद यह ही कारण है कि नए व्यवसाय को अपनाने के बावजूद उन्होंने अपनी हवेली के नवीनीकरण के समय पुरखों की मान्यता को ध्यान में रखते हुए हवेली की आमूलचूल डिजाइन पुरानी ही रखी. 20 कमरों वाली इस हवेली की खासीयत यह है कि यदि इस के सभी दरवाजे खोल दिए जाएं तो सब कमरे अंदर ही अंदर एकदूसरे से जुड़ जाएं.

इन सब के अतिरिक्त, प्रगत प्रताप की खासीयत और थी. वे बेहद न्यायप्रिय थे. यही कारण था कि उन की फैक्टरियों में एक भी मजदूर मैनेजमैंट विरोधी नहीं था. सभी कर्मचारी उन के फैसलों का सम्मान करते थे.

अगम पिछले 2 दिनों से कारखाने के काम के सिलसिले में शहर से बाहर गया हुआ था. उस का सप्ताहभर बाद लौटने का प्रोग्राम था. पिछले 6 महीनों से कारखाने के विस्तारीकरण का काम चल रहा था. इसी कारण अगम ज्यादातर बाहर ही रहता था.

‘‘क्यों किया तुम ने ऐसा सुगम?’’ अनुभा की रुलाई अब फूट पड़ी थी.

‘‘जवाब दो सुगम, असली गुनाहगार तो तुम अनुभा के ही हो? और सुलभा, तुम अगम को क्या जवाब दोगी? किस मुंह से उस के सामने जाओगी. क्या उस के विश्वास का जवाब यह अविश्वास, फरेब और धोखेबाजी ही है?’’ जैविका की रुलाई भी अब फूट पड़ी थी.

‘‘जवाब दो सुगम, जवाब दो. तुम्हें हमारे होने वाले बच्चे की कसम, बताओ, मुझ में क्या कमी थी जो तुम ने मेरे साथ यह दगाबाजी की,’’ अनुभा बच्चों की तरह बिलख कर रोते हुए सुगम से प्रश्न करती रही.

सुगम व सुलभा मूर्ति की तरह निश्चल खड़े रहे.

‘‘जवाब दो सुगम. तुम्हें अपने होने वाले बच्चे की कसम है,’’ अनुभा ने अपना प्रश्न फिर जोर दे कर दोहरा दिया. अनुभा ने अपना प्रश्न 3-4 बार दोहरा दिया.

‘‘नहीं अनुभा, तुम में या तुम्हारे प्यार में कोई कमी नहीं है. लेकिन कुछ ‘अतिरिक्त’ पाने की चाह में हम दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए,’’ सुगम दबी आवाज में सफाई देते हुए बोला.

‘‘क्या हर स्त्री और पुरुष के अंगों की बनावट अलगअलग होती है? कहां से तुम्हें कुछ ‘अतिरिक्त’ मिलेगा? आखिर यह ‘अतिरिक्त’ क्या है? और सब से बड़ा प्रश्न यह ‘अतिरिक्त’ पा कर समाज में कितना सम्मान मिलेगा? समाज में तुम्हारा ओहदा कितना बढ़ जाएगा? अपनी पत्नी के अलावा कितनी और स्त्रियों से संबंध रखे हैं तुम ने? और कितना कुछ ‘अतिरिक्त’ पाया तुम ने. यह जानने के बाद कौन सी संस्था पुरस्कृत करने वाली है तुम्हें? मुझे बताओ तो जरा,’’ प्रगत प्रताप गुस्से से भर कर सुगम से पूछ बैठे.

‘‘सुगम, तुम्हें एक बार भी नहीं लगा कि तुम मुझ से विश्वासघात कर के कितना बड़ा गुनाह कर रहे हो. मैं तुम्हारा साथ और संबंल पाने की खातिर अपने मां, बाप, भाई, बहन सभी को छोड़ कर आई हूं सिर्फ तुम्हारे भरोसे पर…’’ अनुभा रोए जा रही थी.

‘‘गुनाह तो इस कुलटा का भी है. यह भी इस गुनाह में बराबर की साझीदार है,’’ जैविका सुलभा की तरफ इशारा कर के बोलीं.

सुगम अपना अपमान सहन कर रहा था लेकिन जैसे ही जैविका ने सुलभा के प्रति सख्त शब्दों का इस्तेमाल किया तो वह तिलमिला उठा. उस की सुलभा के प्रति यह सहानुभूति शायद तात्कालिक शारीरिक संबंधों की वजह से थी.

‘‘गुनाह, कौन सा गुनाह मम्मी?

2 शादीशुदा स्त्रीपुरुष के बीच आपसी संबंध को तो अदालत भी गुनाह नहीं मानती. इन संबंधों के आधार पर किसी को सजा नहीं मिल सकती है, न ही किसी को परेशान किया जा सकता है,’’ सुगम अब अपनी बेशर्मी को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का जामा पहनाने लगा.

सुगम की इस दलील को सुन कर प्रगत प्रताप सुन्न रह गए. उन्हें लगा यह उन के दिए गए संस्कारों की हार है. अब तक अपनेआप को संभाले हुए प्रगत प्रताप और अधिक सहन नहीं कर पाए, फूटफूट कर रो पड़े.

सुगम को अपने मजबूत पिता से इस तरह की प्रतिक्रिया की उम्मीद न थी. वह सोच रहा था. प्रगत प्रताप उसे डांटेंगे और शायद एकदो चांटें भी रसीद कर दें. उस ने अपनी मां जैविका को कई बार रोते हुए देखा था, किंतु अपने पिता का इस प्रकार बिलखबिलख कर रोना वह पहली बार देख रहा था. वह मन ही मन अपनेआप को धिक्कारने लगा. अपने पिता से नजरें मिलाने की हिम्मत उस में नहीं थी.

रोते हुए प्रगत प्रताव व जैविका अनुभा को अपने साथ ले कर कमरे से बाहर निकल गए.

सुगम व सुलभा कुछ समय तक चुपचाप खड़े रहे. शायद दोनों को ही अपनी गलती का एहसास हो गया था.

कुछ मिनटों के बाद सुगम भी वापस कमरे में आ गया. अनुभा पहले ही अपने सासससुर के साथ उन के कमरों में चली गई थी.

दूसरे दिन सुबह हमेशा की तरह प्रगत प्रताप के पास अगम का फोन आया. वह बड़े उत्साह के साथ अपने व्यवसाय की सफलता की बातें बता रहा था. उसे कई छोटेछोटे औडर्स मिल चुके थे. एक बहुत बड़े और्डर के लिए बातचीत चल रही थी. यदि यह और्डर उसे मिल जाता है तो फिर पीछे मुड़ कर नहीं देखना होगा. किंतु इसे पाने के लिए उसे कम से कम एक सप्ताह और रुकना होगा.

प्रगत प्रताप नहीं चाहते थे कि इस घटना के कारण से अगम के व्यवसाय पर कोई उलटा असर पड़े, सो उन्होंने उसे जरूरत के मुताबिक काम करने की सलाह दी.

2 दिनों तक घर में मुर्दनी सी छायी रही. सभी सदस्य एकदूसरे से कटते से रहे. कोई किसी से नजरें मिलाने की स्थिति में नहीं था. सभी अपनेअपने कमरों में बंद थे. कोई भी काम पर नहीं गया. तीसरे दिन नाश्ते की टेबल पर सुगम ने सभी को बुलवाया. सभी की आंखों में एक अजीब तरह की उदासी थी. सुलभा की आंखों से भी पछतावे के आंसू बह रहे थे.

‘‘पिताजी, मैं अपनी गलती स्वीकार करती हूं. मुझ से बहुत ही बड़ी गलती हुई है. मैं ने आप की शिक्षा व सामाजिकता और अनुभा के विश्वास को गहरी चोट पहुंचाई है.’’

मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है मैं अनुभा को ले कर दूसरे घर में शिफ्ट हो जाता हूं, क्योंकि यहां रहने पर मैं हमेशा अपराधबोध से ग्रस्त रहूंगा. इस अवस्था में साथ रहना दोनों परिवारों के लिए ठीक नहीं होगा. मैं अनुभा को वचन देता हूं कि भविष्य में मुझ से इस तरह की कोई गलती नहीं होगी,’’ यह सब कहते समय सुगम की आंखें भीगी हुई थीं.

‘‘लेकिन अगम को क्या कहेंगे?’’ प्रगत प्रताप ने पूछा.

‘‘उस से शहर में हमारा जो दूसरा घर है उस पर कुछ लोग कब्जा करना चाहते थे. सो, आननफानन यह फैसला लेना पड़ा वरना प्रौपर्टी हाथ से चली जाती. उन्हें असली बात मत बताइए वरना कोई भी अपने भाई व पत्नी पर विश्वास नहीं करेगा,’’ सुगम लगभग रोते हुए बोला.

‘‘तुम क्या कहती हो अनुभा? वैसे, पहली गलती तो सभी माफ कर देते है,’’ प्रगत प्रताप ने अनुभा की तरफ देख कर पूछा.

‘‘जैसा आप उचित समझें, पिताजी,’’ कहते हुए अनुभा की आंखों में भी आंसू थे पर घाव तो गहरा था और भरे या न भरे, पता नहीं. Social Story

Family Story : अब बस पापा – जब एक बेटी बनी मां की ढाल

Family Story : आशा का मन बहुत परेशान था. आज पापा ने फिर मां के ऊपर हाथ उठाया था. विमला, उस की मां 70 साल की हो चली थी. इस उम्र में भी उस के 76 वर्षीय पिता जबतब अपनी पत्नी पर हाथ उठाते थे. अभीअभी मोबाइल पर मां से बात कर के उस का मन आहत हो चुका था. पर उस की मजबूरी यह थी कि वह अपनी यह परेशानी किसी को बता नहीं सकती थी. अपने पति व बच्चों को भी कैसे बताती कि इस उम्र में भी उस के पिता उस की मां पर हाथ उठाते हैं.

मां के शब्द अभी भी उस के दिमाग में गूंज रहे थे, ‘बेटा, अब और नहीं सहा जाता है. इन बूढ़ी हड्डियों में अब इतनी जान नहीं बची है कि तुम्हारे पापा के हाथों से बरसते मुक्कों का वेग सह सकें. पहले शरीर में ताकत थी. मार खाने के बाद भी लगातार काम में लगी रहती थी. कभी तुम लोगों पर अपनी तकलीफ जाहिर नहीं होने दी. पर अब मार खाने के बाद हाथ, पैर, पीठ, गरदन पूरा शरीर जैसे जवाब दे देता है. दर्द के कारण रातरात भर नींद नहीं आती है. कराहती हूं तो भी चिल्लाते हैं. शरीर जैसे जिंदा लाश में तबदील हो गया है. जी करता है, या तो कहीं चली जाऊं या फिर मौत ही आ जाए ताकि इस दर्द से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाए. पर दोनों ही बातें नहीं हो पातीं. चलने तक को मुहताज हो गई हूं.’

आशा मां के दर्द, पीड़ा और बेबसी से अच्छी तरह वाकिफ थी, लेकिन वह कर भी क्या सकती थी. मां को अपने घर ले आना भी तो समस्या का समाधान नहीं था, और आखिर कब तक मां को वह अपने घर रख सकती थी? अपनी घरगृहस्थी के प्रति भी तो उस की कोई जिम्मेदारी थी. ऊपर से भाइयों के ताने सुनने को मिलते, सो अलग. उस के दोनों भाई अपनीअपनी गृहस्थी में व्यस्त थे. अलग रह रहे मांबाप की भी कभीकभी टोह ले लिया करते थे.

वैसे तो बचपन से उस ने अपनी मां को पापा से मार खाते देखा था. घर के हर छोटेबड़े निर्णय पर मां की चुप्पी व पिता के कथन की मुहर लगते देखा था. वह दोनों के स्वभाव से परिचित थी. वह जानती थी कि सदा से ही घरगृहस्थी के प्रति बेपरवाह व लापरवाह पापा के साथ मां ने कितनी तकलीफें सही हैं और बड़ी मेहनत से तिनकातिनका जोड़ कर अपनी गृहस्थी बसाई व बच्चों को पढ़ालिखा कर काबिल बनाया. वरना पापा को तो यह तक नहीं मालूम था कि कौन सा बच्चा किस क्लास में पढ़ रहा है. वे तो अपनी मौजमस्ती में ही सदा रमे रहे.

उन दोनों के व्यक्तित्व व व्यवहार में जमीनआसमान का फर्क था. एक तरफ जहां मां आत्मविश्वासी, ईमानदार, मेहनती, कुशल और सादगीपसंद महिला थीं, वहीं दूसरी ओर उस के पिता मस्तमौला, स्वार्थी, लालची और रसिया किस्म के इंसान थे, जो स्थिति के अनुसार अपना रंग बदलने में भी माहिर थे. आज भी दोनों के व्यक्तित्व में इंचमात्र भी अंतर नहीं आया था. हां, शारीरिक रूप से अस्वस्थ व कमजोर होने के कारण मां थोड़ी चिड़चिड़ी अवश्य हो गई थीं. इसलिए अब जब भी उन के बीच वादविवाद की स्थिति बनती थी तो वे प्रत्युत्तर में पापा को बुराभला जरूर कहती थीं. यह बात पापा को कतई बरदाश्त नहीं होती थी. आखिर सालों से वे उन होंठों पर चुप्पी की मुहर देखते आए थे, सो, इस बात को हजम करने में उन्हें बहुत मुश्किल होती थी कि उन की पत्नी उन से जबान लड़ाती है. दोनों भाई भी यों तो मां को बहुत प्यार करते थे लेकिन उन की आपसी लड़ाई में अकसर पापा का ही पक्ष लिया करते थे.

आशा को मालूम था कि पिछली बार जब पापा ने मां पर हाथ उठाया था तो अत्यधिक आवेश व क्षोभ में मां ने भी उन का हाथ पकड़ कर उन्हें झिंझोड़ दिया था, और सख्त ताकीद की थी कि वे अब ये सब नही सहेंगी. तब आननफानन पापा ने सभी बच्चों को फोन लगा कर उन्हें उन की मां द्वारा की गई इस हरकत के बारे में बताया था. तब छोटे भैया ने घर पहुंच कर मां को खूब लताड़ लगाई थी और यह तक कह दिया था कि आप की बहू आप से सौ गुना अच्छी है, जो अपने पति से इस तरह का व्यवहार तो नहीं करती है. पता नहीं, पर शायद उन की भी पुरुषवादी सोच मां के इस कृत्य से आहत हो गई थी.

आशा को बहुत बुरा लगा था, आखिर इन मर्दों को यह क्यों नहीं समझ आता कि औरत भी हाड़मांस से बनी एक इंसान है, वह कोई मशीन नहीं जिस में कोई संवेदना न हो. उसे भी दर्द और तकलीफ होती है, वह भी कितना और कब तक सहे? और आखिर सहे भी क्यों?

भैया ने उस से भी फोन कर मां की शिकायत की थी, इस उद्देश्य से कि वह मां को समझाए कि इस उम्र में ये बातें उन्हें शोभा नहीं देतीं. बोलना तो वह भी बहुतकुछ चाहती थी, पर इस डर से कि बात कहीं और न बिगड़ जाए, सिर्फ हांहूं कर के फोन रख दिया था. काश, उस वक्त उस ने भी सचाई बोल कर भाई का मुंह बंद कर दिया होता, कि भैया, मां से तो आप की पत्नी की तुलना हो भी नहीं सकती है. क्योंकि न ही वे भाभी जैसे झूठ बोलने में यकीन रखती हैं और न अपना आत्मसम्मान कभी गिरवी रख सकती हैं. उन्होंने तो सदा सिर्फ अपनी जिम्मेदारियां ही निभाई हैं, बिना अपने अधिकारों की परवा किए. पर आप की पत्नी तो हमेशा से ही मस्त व बिंदास रही हैं, जबजब आप ने उन की मरजी के खिलाफ कोई भी काम किया है तबतब उन्होंने क्याक्या तांडव किए हैं, क्या आप को याद नहीं है? और अब जबकि आप उन की जीहुजूरी में हमेशा ही लगे रहते हो तो वे आप का विरोध करेंगी ही क्यों? भाभी की याद करतेकरते आशा के मुंह में जैसे कड़वाहट सी घुल गई.

विचारों के भंवर में इसी तरह गोते लगाती हुई आशा की तंद्रा दरवाजे की घंटी की आवाज से टूट गई. घड़ी की ओर निगाहें घुमा कर वह मन ही मन बुदबुदा उठी, ‘अब कैसे होगा काम, बच्चे आ गए, आज उस का सारा काम पड़ा हुआ है.’ भारी मन से उठते हुए उस ने दरवाजा खोला, तो चहकते हुए दोनों बच्चों ने घर में प्रवेश किया, ‘‘ममा, पता है, आज ड्राइंग टीचर को मेरी ड्राइंग बहुत अच्छी लगी, पूरी क्लास ने मेरे लिए क्लैप किया. टीचर ने मुझे टू स्टार्स भी दिए हैं. देखो,’’ नन्हीं परी ने मां को अपनी ड्राइंग शीट दिखाते हुए कहा.

‘‘ओहो, मेरी रानी बिटिया तो बड़ी होशियार है, आई एम प्राउड औफ यू,’’ कहते हुए उस ने नन्हीं परी को गले लगा लिया. परी अभी 7 साल की थी व दूसरी कक्षा में पड़ती थी. उस से बड़ा सौरभ था. जो कि 7वीं क्लास में पढ़ता था.

‘‘ममा, बहुत भूख लगी है, मेरे लिए पहले खाना लगा दो प्लीज,’’ सौरभ अपना बैग रखते हुए बोला.

‘‘ओके, बच्चो, आप फ्रैश हो कर आओ, तब तक मैं जल्दी से आप के लिए खाना परोसती हूं,’’ कह कर आशा किचन की तरफ चल दी. उस ने अभी तक कुछ भी खाने को नहीं बनाया था. बस, कामवाली काम कर के जा चुकी थी, लेकिन उस ने घर भी नहीं समेटा था. बच्चों की पसंद ध्यान में रखते हुए उस ने जल्दी से गरमागरम परांठे और आलू फ्राई बना कर सौस के साथ परोस दिया. बच्चों को खिलातेखिलाते भी उस के दिमाग में कुछ उधेड़बुन चल रही थी.

कुछ देर बाद उस ने दोनों बच्चों को तैयार कर अपनी पड़ोसिन सीमा के पास छोड़ा. और खुद सीधा अपनी मां के घर चल दी. वहां पहुंच कर पता चला कि पापा कहीं बाहर गए हैं. मां की हालत देख उस की रुलाई फूट पड़ी, पर अपने आंसुओं को जब्त कर वह बड़े ही शांत स्वर में बोली, ‘‘मां, चलो तैयार हो जाओ, हमें पुलिस स्टेशन चलना है.’’

‘‘लेकिन बेटा, एक बार और सोच

ले. अभी बात ढकी हुई है, कल को आसपड़ोस, समाजबिरादरी, नातेरिश्तेदारों तक फैल जाएगी. लोग क्या कहेंगे? बहुत बदनामी होगी हमारी. सब क्या सोचेंगे?’’ मां ने कुछ अनुनयपूर्वक कहा.

‘‘जिस को जो सोचना है सोच ले, मगर अब मैं आप को और जुल्म सहने नहीं दूंगी. मां, तुम समझती क्यों नहीं हो, जुल्म सहना भी एक बहुत बड़ा अपराध है और आज तक आप सब सहती आई हो. आप की इसी सहनशीलता ने पापा को और प्रोत्साहित किया. मगर अब, पापा को यह बात समझनी ही होगी कि आप पर हाथ उठाना उन के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है.’’

मां को तैयार कर आटो में उन का हाथ थाम कर उन के साथ बैठती आशा ने जैसे मन ही मन ठान लिया था, अब बस, पापा. Family Story

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें