रीता को घर के काम से फुरसत ही नहीं मिलती थी. घर में सब से बड़ी बेटी होने की वजह से वह घर का सारा काम संभालती. उस की मां अधिकतर नानी के घर जा कर रहती. रीता लापरवाह सी अपने काम में व्यस्त रहती. अकसर उस का मौसा चौरे उन के घर आता और उस से हमदर्दी जताता. चौरे सरकारी विभाग में इंजीनियर था और उस के पास अनापशनाप काफी पैसा था. वह इश्कबाज था और लड़कियों पर अकसर दिल खोल कर पैसा उड़ाता था. रीता के लिए भी वह कभी साड़ी, तो कभी मेकअप का सामान ला कर देता रहता. रीता को घर में इस सामान के बारे में कोई पूछता भी नहीं था कि उस के पास ये सब कहां से आ रहा है. उस के पिता पैतृक संपत्ति के हिस्से की बाट जोह रहे थे.

छोटी बेटियों पर वे ध्यान देते, लेकिन घर की बड़ी लड़की रीता जैसे घर की काम वाली ही मानी जाती. उसे सिर्फ काम करने के लिए कहा जाता. छोटी बहनें इधरउधर मटरगश्ती करती रहतीं, पर रीता घर के कामों में ही उलझी रहती. मां को तो अपने मायके से ही लगाव था, इसलिए वे तो अधिकतर मायके में ही रहतीं. रीता ही घर चला रही थी. मौसा चौरे के लिए यह सुनहरा मौका था. वह जबतब आ कर रीता से परांठे बनाने को कहता, कभी आमलेट बनवाता. सामान वह खुद ही ले कर आता. अकसर वह रीता के आसपास ही मंडराता रहता. धीरेधीरे उस ने रीता को कभीकभार अपने फ्लैट पर बुलाना भी शुरू कर दिया. अकसर जब रीता की मौसी कहीं बाहर गई होतीं, तो वह रीता को अपने फ्लैट पर बुला लेता और उस के साथ मौजमस्ती करता.

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