अपनी 3 बेटियों के साथ खुश थी लेकिन सास सुमित्रा को एक पोता चाहिए था, जिस के चलते उसे चौथी बार भी मां बनने के लिए मजबूर किया गया. क्या शिखा सास की उम्मीदों पर खरी उतर पाने में कामयाब हो सकी? ‘‘डाक्टर से 4 दिनों बाद का अपौइंटमैंट ले लेता हूं,’’ चाय का घूंट भरते हुए अरुण ने कहा तो शिखा का कलेजा धक्क से रह गया. ‘‘एक काम करो, जल्दी से नाश्ता तैयार कर दो.

औफिस जाते समय हो सकेगा तो डाक्टर से मिल कर कल या परसों का ही समय ले लूंगा, क्योंकि यह काम जितनी जल्दी निबट जाए, अच्छा है.’’ ‘‘हां, वह तो ठीक है, अरुण पर एक बार ठंडे दिमाग से सोच कर देख लेते कि कहीं हम...’’ ‘‘अब इस में सोचना क्या है?’’ शिखा की बात को बीच में ही काटते हुए अरुण बोला, ‘‘वैसे भी कितनी मुश्किल से तो एक डाक्टर मिला है और तुम्हें और वक्त चाहिए. यह काम तो उसी दिन हो जाता पर तुम्हें ही वक्त चाहिए था. पता है न, इन सब कामों में रिस्क कितना बढ़ गया है. नौकरी पर तो आफत आएगी ही, जेल भी हो सकती है. लेकिन जो भी हो, यह तो करवाना ही पड़ेगा. मां सही ही कह रही हैं कि जितनी जल्दी इस समस्या से छुटकारा पा लें, अच्छा है.’’ ‘‘पर, अरुण...’’ ‘‘क्या, पर? कहना क्या चाहती हो तुम? पता है न, सिर्फ तुम्हारी मूर्खता के कारण आज 3-3 बेटियां पैदा हो गईं.

लेकिन इस बार कोई मूर्खता नहीं करूंगा मैं क्योंकि मु?ा में अब और बो?ा उठाने की ताकत नहीं है,’’ भुनभुनाते हुए अरुण ने अखबार में आंखें गढ़ा दीं कि तभी ढाई साल की प्यारी सी जूही ‘पापापापा’ कर उस की गोद में चढ़ने की कोशिश करने लगी. लेकिन अरुण ने बड़ी निर्दयता से उसे परे धकेल दिया और उठ कर कमरे में चला गया. अरुण का व्यवहार देख शिखा की आंखों से दो बूंद आंसू टपके और रोती हुई बच्ची को गोद में उठा कर वह भी अरुण के पीछेपीछे कमरे में आ गई. ‘‘अरुण, एक बार सोच कर देखो न, अगर यह बेटा होता तो क्या उस की जिम्मेदारी नहीं उठानी पड़ती तुम्हें?’’ यह बोलते शिखा की आवाज भर्रा गई, ‘‘अरुण, यह भी तुम्हारा ही खून है न. और क्या पता, कल को यही बेटी तुम्हारा नाम रोशन करे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...