गौरव और नगमा के बीच शुरू हुई हंसीठिठोली बढ़ती जा रही थी. गौरव मर्यादा की लाइन लांघना नहीं चाहता था, लेकिन नगमा तो सरेआम उस का हाथ पकड़ लेती, उसे खींच कर शाम के सिनेमा शो में ले जाती.

गौ?रव सर्दी की ठंड के बावजूद पसीने में भीग गया था. पसीना आने के बावजूद वह इस तरह कांप रहा था मानो मलेरिया बुखार चढ़ा हो. उठ कर देखा तो रात के 12 बजे थे. बिस्तर के दूसरे छोर पर शिवानी बेखबर सो रही थी.

तौलिए से पसीना पोंछा और लेट कर सोचने लगा, कितना भयानक सपना था. गौरव को सब पुरानी बातें याद आने लगीं.

नगमा गौरव की वरिष्ठ अधिकारी थी. जब नई आई थी तो गौरव के अहम ने उसे अपना अधिकारी नहीं माना था. बातबात पर दोनों में बहस होती थी और कभीकभी तो गुस्से में नगमा उसे अपने कमरे से बाहर जाने का आदेश भी दे देती थी. कभी ऐसा भी होता था कि नगमा बुलाती थी और वह नहीं जाता था. जाता था तो फाइल उस के सामने रखता नहीं था, पटक देता था.

अहम के टकराव का एक और खास कारण था. गौरव अपनी मेहनत व लगन से पदोन्नति पाता हुआ इस पद पर पहुंचा था. मगर नगमा स्पर्धा से आई थी. जो परीक्षा पास कर के आते हैं उन में श्रेष्ठ होने की भावना आ जाती है.

लेकिन जब से एक पार्टी में नगमा और गौरव की भेंट हुई, दोनों का एकदूसरे के प्रति नजरिया ही बदल गया था.

कार्यालय की एक लड़की का विवाह था. बहुत से लोग आमंत्रित थे. गौरव अपनी पत्नी के साथ आया था. आते ही सब अपनेअपने परिचितों को या तो ढूंढ़ रहे थे या उन से नजरें बचा कर छिपते फिर रहे थे.

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