Download App

पूरा सच बताना जरूरी नहीं दांपत्य रिश्ते में

क्या आप कह सकते हैं कि आप अपने पार्टनर के साथ पूरी तरह लौयल हैं? क्या कभी ऐसा हुआ है कि सच बोलने की कीमत आप को चुकानी पड़ी हो? अपने पार्टनर से अपना हर सीक्रेट शेयर करना कहीं आप को महंगा तो नहीं पड़ गया? क्या आप के झूठ नहीं सच की वजह से कभी पार्टनर की भावनाएं आहात हुए हैं और आप को अपने उस सच बोलने का पछतावा है?

रहीम का बहुत प्रसिद्ध दोहा है-

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय.
टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गांठ परि जाय॥

अर्थात प्रेम के धागे को कभी तोड़ना नहीं चाहिए, क्योंकि यदि यह एक बार टूट जाता है, तो फिर दोबारा नहीं जुड़ता और जुड़ता भी है, तो इस में गांठ पड़ी रह जाती है. यदि यह धागा नईनई शादी का हो तो इस के टूटने या इस में गांठ पड़ने की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं, क्योंकि आरंभ में यह थोड़ा कच्चा होता है. रिश्ते की गांठें भले ही बाहर नजर न आएं, मगर मन में तो पड़ी ही रह जाती हैं, जो पूरी उम्र सालती रहती हैं.

दूसरे शब्दों में कहें तो कई बार हमारी सच बोलने की आदत हमारे अच्छे भले रिश्ते में ऐसी दरार डालती है जो कभी नहीं भर पाती. वैसे भी पतिपत्नी का रिश्ता, कभी बर्फ का तो कभी आग का होता है. कभी खुशी का तो कभी गम का होता है लेकिन इस रिश्ते की डोर जितनी मजबूत होती है उतनी नाजुक भी होती है. भरोसे से गूंथी हुई और प्यार में भीगी हुई यह डोर विश्वास पर टिकी होती है. यही सोच कर आप अपने शादी से पहले के अफेयर की बात भी अपने पार्टनर से शेयर कर बैठते हैं.

लेकिन जैसे ही पार्टनर को यह बात पता चलती है उसे आप की सचाई पर गर्व नहीं होता लेकिन पहले के अफेयर के बारे में जानकर दोनों के बीच एक दरार सी खींच जाती है और डोर कमजोर होने लगती है. साथ ही अपने मन को लाख मन ले समझा लें कि अब ऐसा कुछ नहीं है लेकिन एक दरार दोनों के बीच अनजाने में ही आ जाती है. जिसे भरना मुश्किल हो जाती है.

सच छिपाने के पीछे क्या है वजह?

औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार, लोग अकसर इसलिए झूठ बोलते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि उन के साथी की भावनाओं को ठेस न पहुंचे. यह झूठ बोलने के पीछे एक प्रकार की सुरक्षा और संरक्षण की भावना होती है, जिस का मकसद होता है रिश्तों को मजबूत और खुशहाल बनाना.

मनोवैज्ञानिक रौबिन डनबर ने भी बताया है कि झूठ बोलने से भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचती, जिस से रिश्तों को स्थिर और मधुर बनाए रखने में मदद मिलती है. लेकिन यह भी महत्वपूर्ण है कि झूठ नकारात्मक प्रभाव डालने वाला न हो और सचाई को हमेशा महत्वपूर्ण रखा जाए.

कई बार अपने साथी से प्यार इतना ज्यादा होता है कि उस की भावनाएं आहत करने के बारे में पार्टनर सोच भी नहीं सकता और कई बार सच इतना कटु होता है की पता होता कि सामने वाले को यह अच्छा नहीं लगेगा और इस से फायदा तो कुछ नहीं होगा बस हमारे बीच तनाव ही बढ़ेगा. यही बात सोच कर लोग अपने पार्टनर को पूरा सच नहीं बताते.

किन बातो में सच छिपाया जाता है ?

अपने एक्स की बात करने से पहले 10 बार सोचा जाता है. इस से भरोसा टूटने का दर ज्यादा होता है. पार्टनर के पोजेसिव होने पर सच बताना भारी पड़ सकता है.

अगर किसी की मौत या एक्सीडेंट जैसी किसी गंभीर घटना के बारे में जानकारी देनी हो, तो थोड़ा सा झूठ बोल कर मनोबल बढ़ाया जा सकता है.

अगर किसी की पसंदनापसंद का असर पार्टनर पर पड़ता है, तो पार्टनर को खुश करने के लिए सफ़ेद झूठ बोलना पड़ सकता है.

अगर किसी को अपनी भावनाएं ठीक से बतानी न आ रही हों, तो वह झूठ बोल सकता है.

अगर किसी को खुद को बेहतर महसूस करवाना हो, तो वह झूठ बोल सकता है.

अपने मायके की हर बात बताना जरुरी नहीं है. कई बार अच्छे के लिए बताए गई बातों के लिए पूरी जिंदगी ताने सुनने को मिलते हैं कि तुम्हारे घरवाले तो ऐसे ही हैं. इसलिए ऐसे कोई बात या उन की कमजोरी अपने मुंह से क्यों बताना.

ज्यादातर पत्नियां अपने पति को अपनी लंबीचौड़ी शौपिंग लिस्ट के बारे में नहीं बताती. यही नहीं, 50% पति आज भी ऐसे हैं जो अपनी पत्नी की खरीदारी के बारे में नहीं जानते होंगे.

रिलेशनशिप में झगड़ा रोकने के लिए कई बार झूठ बोला जाता है. जब पार्टनर के किसी सवाल के कारण आप ज्यादा परेशान हो जाते हैं तब झूठ बोलना ही सब से आसान लगता है.

सब कुछ बताने की जरुरत ही क्या है?

टीनएज में हम सभी पर इश्क का जूनून सवार होता है. लेकिन बहुत कम रिश्ते इस उम्र में परवान चढ़ कर शादी तक पहुंचते हैं और फिर आप जिंदगी में आगे बढ़ कर शादी का फैसला लेते हैं. यह सही भी है लेकिन जब आप अपनी जिंदगी में आगे बाद ही चुके हैं तो फिर उन्ही गड़े मुर्दों को उखाड़ कर अपने जीवनसाथी को यह बात बताने का मतलब क्या है. अब आप इस बात को बहुत पीछे छोड़ चुके हैं इसलिए उसे भूल जाइए कुछ इस तरह जैसे ये सब कभी आप के साथ घटित ही न हुआ हो फिर साथी को इस बात को बताने का तो सवाल ही नहीं उठता.

कई बार सच नुकसानदायक भी हो सकता है

जब व्यक्ति अपनी जिंदगी से अत्याधिक खुश होता है, तो उसे यह लगता है कि उसे अपने जीवनसाथी से कुछ नहीं छिपाना चाहिए लेकिन यह ईमानदारी हर बार कारगर नहीं होती. आप को नहीं पता होता कि क्या आप का जीवनसाथी इस सच को सुनने के लिए तैयार है, न ही आप यह जानते हैं कि वह इस पर कैसी प्रतिक्रिया देगा. हो सकता है इस के पीछे आप का इरादा नेक हो लेकिन यह आप के संबंधों में बड़ी दरार भी खड़ी कर सकता है.

एक महान उद्देश्य के लिए बोला गया झूठ कई ऐसे सच के ऊपर स्वीकार्य है जिस का कोई फल न हो या वह सच किसी को तकलीफ या नुकसान पहुंचाए. विशेष कर किसी की मदद करने के लिए या जीवन बचाने के लिए बोला गया झूठ सच से कई गुना सही रहता है.

फिर भी अंतिम जवाब तो यही होगा कि आप अपने रिश्तों को टटोलिए. एक, दो, दस मौकों पर परखिए और देखिए कि क्या अनुभव मिलता है. आप में इतनी सामर्थ्य तो होगी कि इस के बाद स्वतः निर्णय ले सकें कि अब आगे किस राह चलना है. अगर सच छिपाना है, तो उस की जिम्मेदारी लीजिए और सच बताना है तो उस की वजह से अगर रिश्ते के बीच कलह के लिए जगह बन जाती है, तो उस के साथ डील करना भी आप को आना चाहिए.

अपने बच्चे के लिए नैनी रखते समय किन बातों का धयान रखें

ऐश्वर्या राय बच्चन और अनुष्का शर्मा के नक़्शेकदम पर चलते हुए दीपिका ने भी कहा है कि वह अपनी बेटी के लिए नैनी नहीं रखेंगी. इस के साथ ही सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई कि अगर दीपिका इतनी बड़ी सेलिब्रेट हो कर नैनी नहीं रख रही, तो घर में रहने वाली हाउस वाइफ को नैनी रखने की क्या जरुरत है?

क्या एक आम महिला की दीपिका से तुलना करना सही है? इस के आलावा क्या दोनों की हैल्थ कंडीशन एक जैसे ही होगी?

कथनी और करनी में फर्क होता है. किसे पता दीपिका पादुकोण के घर यहां नौकरों की पूरी फौज है. वहां बच्चे के लिए नैनी है या नहीं हम नहीं कह सकते? क्या एक सैलीब्रिटी के ऊपर घर की वही जिम्मेवारियां होगीं, जो एक आम महिला के ऊपर है?

वास्तव में आम महिलाओं को ऐसे प्रिविलेज्ड औरतों का उदाहरण देना सही नहीं है. इस बारे में पेशे से टीचर अर्चना का कहना है कि हम में से कइयों को कोई सपोर्ट नहीं मिला. डिप्रेशन पर बात तक नहीं होती. उस मुश्किल और तनहा समय ने मेरा पूरा जीवन बदल दिया. मेरा क्रोनिक पैन बढ़ गया. अवसाद ने कई बार मुझे मौत के दरवाजे पर ला कर खड़ा कर दिया. किसी प्रिविलेज्ड स्त्री की चौइस को आम स्त्रियों पर थोपना भी अतिवाद नहीं शोषण है.

इस बारे में आशा जोकि एक हाउसवाइफ हैं उन का कहना है कि यह नहीं भूलना चाहिए कि सैलिब्रिटी पर घर गृहस्थी की जिम्मेवारी नहीं होती. एकएक काम के लिए 10 -10 हेल्पिंग हैंड होते हैं. हमें तो बच्चे के साथ पूरा घर भी संभालना होता है. शारीरिक और मानसिक स्वास्थय के लिए भी सैलिब्रिटी को मदद होगी लेकिन हमें हेल्पिंग हैंड बहुत लिमिट में मिले होते हैं. इसलिए यह अपनी सिचुएशन पर निर्भर करता है की नैनी रखनी है या नहीं.

वही मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली आस्था का कहना है कि किसी दूसरे के लिविंग स्टाइल को कौपी नहीं किया जा सकता. सैलिब्रिटी से तुलना सही नहीं हैं. बच्चा होने के बाद अपनी नौकरी छोड़ कर नहीं बैठ सकती. हम आम लोग हैं और घर चलने के लिए इस महंगाई में पतिपत्नी दोनों का ही काम करना जरुरी होता है तो ऐसे में बच्चे को पालने के लिए किसी की मदद तो लेनी ही पड़ेगी.

हालांकि इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि बच्चेे को एक गैर इंसान के हाथ में सौंपना एक मुश्किल काम है क्योंकि बीते कई सालों से दुनियाभर में आया की ओर से अपराध और क्रूरता के मामले सामने आए हैं. ऐसे में आप को ऐसे व्यक्ति की जरूरत होगी जो न सिर्फ बच्चेल को संभाल सके बल्कि ऐसे उस के लिए सेफ भी हो.

इस के आलावा उस के पास बच्चे को संभालने और प्यार से पालने का एक्सपीरियन्स भी हो. इसलिए एक अच्छी नैनी ढूंढने के लिए थोड़ी मेहनत तो करनी ही पड़ती है. इसलिए आज के समय में नैनी रखना बुरा नहीं है लेकिन जरुरी यह है की नैनी रखने से पहले उसे कई पहलुओं पर जांच लें ताकि बाद में कोई परेशानी न हो. इसलिए आइए जानें नैनी रखने से पहले किन बातों का धयान रखें.

नैनी का बैकग्राउंड चेक करें

नैनी को रखने से पहले उस का पूरी तरह से बैकग्राउंड चेक करें. उस के पिछले अनुभव, रेफरेंसेस, और कोई आपराधिक रिकॉर्ड न हो, यह सब सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है. नैनी के बारे में जानने के लिए उस की पिछली नौकरी के नियोक्ता से भी संपर्क कर सकते हैं.

इमरजेंसी में नैनी हेल्प कर सकें

करीबी पुलिस कंट्रोल रूम, अपने बच्चे के डॉक्टर और क़रीबी अस्पताल की पूरी जानकारी उन्हें दें. उन्हें आप के घर का पता भी अच्छी तरह याद होना चाहिए.

नैनी होशियार हो

नैनी को फ़र्स्ट-एड किट का इस्तेमाल करने और बच्चे की सभी दवाइयों की अच्छी समझ होनी चाहिए और यह भी पता होना चाहिए कि घर में ये चीजें कहां रखी गई हैं.

नैनी के सभी डाक्यूमेंट्स की जांच करें

नैनी के जरूरी कागज़ों को चेक करें जैसे आधार कार्ड, वोटर आईडी, फोन नंबर, पता फिर इस बात की जांच करें. पुलिस में भी उस का वेरिफिकेशन रजिस्ट्रेशन कराएं. नैनी और उसे उपलब्ध करवाने वाली एजेंसी के बारे में कुछ जरूरी दस्तावेज की एकएक प्रति अपने पास रखें.

नैनी को बच्चे संभालने का एक्सपीरियन्स होना चाहिए

नैनी को कितना अनुभव है, अगर नैनी को ज्या दा अनुभव नहीं है तो उसे बच्चे को संभालने में परेशानी आएगी. इस के अलावा आप आया को रखने से पहले ट्रायल ले कर देखें, कुछ दिन बच्चेन को नैनी के साथ छोड़ कर देखें, अगर बच्चाअ कंफर्टेबल है या आया बच्चेद को आसानी से संभाल पा रही है तो ही उसे रखें.

नैनी की हेल्थ कंडीशन के बारे में भी जान लें

बच्चों के इम्युनिटी कमजोर होती है और ऐसे में अजगर नैनी को कोई हैल्थ इशू है तो बच्चा जल्दी से इन्फेक्शन कैच कर लेगा. इसलिए इस बारे में पहले ही जानकारी लें कि उसे कोई स्किन डिजीज है या फिर जल्दीजल्दी फीवर आदि तो नहीं आता.

नैनी में साफसफाई की आदत भी हो

छोटे बच्चों के मामले में साफसफाई का खास ख्याल रखना पड़ता है. इसलिए देख लें कि जो नैनी आप रख रहे हैं, वह हाइजीन के प्रति सचेत है या नहीं. नैनी को देखें की उस ने साफ कपड़े पहने हुए हैं या नहीं, उस के बाल नाखून सही से कटे हुए हैं या नहीं. उसे बताएं कि बच्चे की साफसफाई को ले कर उसे पूरी तरह सजग होना होगा.

घर में सीसीटीवी कैमरे भी लगे हों

आज के टाइम में घर में सीसीटीवी कैमरे लगे होना बहुत जरुरी है ताकि आप नैनी की गतिविधियों पर नज़र रख सकें कि वह किस तरह आप के बच्चे का ख्याल रख रही है.

आस्था : रोज शाम 6 बजे घर आ जाने वाले पतिदेव को क्या हुआ

रात के 8 बज चुके थे. पुष्पेंद्रजी अभी तक घर नहीं पहुंचे थे. पत्नी बारबार घड़ी की तरफ बेचैनी से देख रही थीं. सोच रही थीं कि रोज शाम 6 बजे के पाबंद पतिदेव को आज क्या हो गया? इतनी देर तो कभी नहीं होती… तभी उन्हें सहसा याद आया कि सुबह उन्होंने गरज कर यही कहा था कि आज कुंभ के लिए कन्फर्म टिकट ले कर ही आना है.

इतने में बाहर गाड़ी के आने की आवाज कानों में पड़ी. गाड़ी की आवाज से पत्नी भलीभांति परिचित थीं और श्रीमानजी के आने का संकेत उन्हें मिल चुका था.

पुष्पी ने खीजते हुए ऊंची आवाज में कहा, ‘‘आज भी रिजर्वेशन करा लाए या मुंह लटका कर चले आए?’’

शांत स्वभाव के पुष्पेंद्रजी ने कहा, ‘‘एजेंट से कह आया हूं कि टिकट के इंतजाम में कितने भी रुपए लगें, करवा देना, वरना घर पहुंच कर मेरी खैर नहीं.’’

यह सुन कर पत्नी ने कुछ राहत की सांस ली और यह सोच कर मुसकराईं, ‘चलो, मेरा कुछ तो इन पर असर है.’

सारा मामला कुंभ स्नान से जुड़ा हुआ था. उज्जैन में कुंभ शुरू होने वाला था. पत्नी चाहती थीं कि 14 को ही पहुंच कर कुंभ के पहले स्नान का लाभ ले लिया जाए.

चाय पी कर पुष्पेंद्रजी अखबार पकड़ने ही वाले थे कि फोन की घंटी बज उठी. सोच के मुताबिक फोन एजेंट का ही था. उस ने कहा, ‘सर, रिजर्वेशन तो हो गया है, लेकिन भक्तों की भीड़ के चलते 14 तारीख के बजाय 20 तारीख के टिकट मिले हैं, वे भी हर टिकट के एक हजार रुपए ज्यादा देने पर.’

पुष्पेंद्रजी के लिए यह हैरानी की बात थी कि टिकट की कीमत है 8 सौ रुपए और ऐक्स्ट्रा हजार रुपए. उन्हें समझ नहीं आया कि हजार रुपए ज्यादा देने के लिए रोएं या टिकट मिलने की खुशी मनाएं. फिर उन्हें लगा कि एक पति को आदर्श पति का दर्जा हासिल करने के लिए पत्नी की मांगों को सिरआंखों पर रखना पड़ता है. फिर यहां तो धार्मिक आस्था का भी सवाल है.

पुष्पेंद्रजी गाड़ी उठा कर टिकट लाने चले गए और थोड़ी देर बाद उन्होंने टिकटों को पत्नी के सुपुर्द कर राहत की सांस ली.

पर यह क्या, 20 तारीख के टिकट देख कर पुष्पेंद्रजी की पत्नी बिफर पड़ीं. घर का सारा माहौल अशांत हो गया.

14 तारीख के बजाय 20 तारीख के टिकट श्रीमतीजी को गंवारा नहीं थे. सो, गुस्से में उन्होंने कहा, ‘‘अगर आप खुद टिकट लेने जाते, तो यह नौबत नहीं आती. अपना काम खुद करना चाहिए, एजेंटों  के भरोसे रहोगे, तो काम ऐसा ही होगा. आखिरकार दफ्तर में करते ही क्या हो, सिवा अपना और दूसरों का टिफिन खाने के?’’

पुष्पेंद्रजी शांत स्वभाव के जरूर थे, पर वे नटखट भी कम नहीं थे. उन्हें भी कभीकभी सांप की पूंछ पर पैर रखने में मजा आता था.

उन्होंने पत्नी के गले में प्यार से बांहें डाल कर कहा, ‘‘टिकट का रिजर्वेशन क्या मेरे ससुरजी के हाथ में है, जो हमारी मरजी से टिकट देगा. फिर प्राणप्यारी, अगर 14 की जगह 20 को स्नान कर लेंगे, तो न हमें पाप लगेगा और न ही हमारे पुण्य में कोई कमी हो जाएगी.’’

यह सुन कर पुष्पी ने आंखें लाल कीं, तो पुष्पेंद्रजी ने नजरें नीचे कीं.

पुष्पेंद्रजी के बड़े भाई गजेंद्रजी थे. खाने की चीजों के प्रति अटूट लालसा के चलते बचपन से ही लोग उन्हें प्यार से गजेंद्र कहने लगे थे.

गजेंद्रजी आकार में गज के समान थे, तो उन की पत्नी गौरी की जबान गज भर की थी.

धार्मिकता के एकदम महीन कपड़े उन्होंने भी पहन रखे थे. भक्ति व धार्मिक कामों में दोनों देवरानीजेठानी एक से बढ़ कर एक थीं. इस मुद्दे पर किसी दूसरे को बोलने का हक नहीं था.

कुलमिला कर कहा जाए, तो धार्मिक नजरिए से उन का घर एक मंदिर था, दोनों भाइयों की पत्नियां पुजारिन थीं और बाकी सदस्य भक्त थे.

घर में धार्मिकता व पत्नीभक्ति का आलम यह था कि पत्नी के पदचिह्नों पर चलना पतियों के लिए जरूरी परंपरा थी.

इस की मजबूत नींव उन के पूज्य दादाजी व पिताजी ने पहले ही रख दी थी. पत्नीभक्ति की परंपरा उन तक ही नहीं सिमटी थी, बल्कि उन के दोनों बेटों ने भी इसी राह पर चलने का व्रत ले रखा था.

आखिरकार 20 तारीख आ ही गई. घर पर चौकीदार को छोड़ कर सारा परिवार कुंभ स्नान के लिए निकल पड़ा.

कुंभ की भीड़ का यह नजारा था कि मुट्ठीभर रेत फेंकने पर वह नीचे न गिर कर लोगों के सिर पर ही गिरती. इन हालात में वहां ठहरने का इंतजाम करना आसान नहीं था. हर कारोबारी इस कुंभ में इतना कमा लेना चाहता था कि उस का मुनाफा आगे आने वाले कुंभ तक चले.

पंडे तो अपनेआप को भगवान का एजेंट बता रहे थे. वे इस बात का यकीन दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे कि उन के बिना भगवान तक पहुंचा ही नहीं जा सकता.

होटल, खानेपाने की चीजें व पूजा से संबंधित हर सामान, आभूषण वगैरह कई गुना ज्यादा दामों पर बेचे जा रहे थे. खरीदने वालों में भी कम जोश नहीं था. भले ही घर में झगड़ा कर के आए हों या जमीन गिरवी रख कर आए हों, लेकिन पुण्य कमाने की होड़ में कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता था.

पुष्पेंद्रजी ने कुछ बुजुर्गों से उन के आने की वजह पूछी, तो उन्होंने कहा कि अगले 12 सालों तक उन के रहने की गारंटी नहीं है, इसीलिए वे तनमनधन से इसी कुंभ में स्नान कर के पुण्य कमाने आए हैं.

पुष्पेंद्रजी ने कहा कि लंबी जिंदगी की गारंटी व सारी इच्छाएं पूरी होने के लिए तो यहां आए हो, फिर कहते हो कि गारंटी नहीं है.

इस का मतलब है कि आप को कुंभ स्नान व भगवान में विश्वास नहीं है. मामला विश्वास और अविश्वास के बीच झूल रहा था.

होटल वाले एक दिन के लिए 10 हजार रुपयों की मांग कर रहे थे. अमीर गजेंद्रजी को भी एक बार सोचना पड़ गया. उन्होंने महिला मंडली से कहा कि एक दिन स्नान कर के लौट आएंगे, लेकिन पत्नियों की भक्ति फिर आड़े आ गई.

दोनों ने एक आवाज में कहा कि इतनी दूर आने के बाद पति के साथ कम से कम 3 स्नान जरूरी हैं, नहीं तो सारा पुण्य मिट्टी में मिल जाएगा.

दूसरे दिन सब सुबहसुबह उठ गए और पंडे को खोजने की सोच रहे थे कि उन की इच्छा तुरंत पूरी हो गई, क्योंकि पंडे ने खुद ही उन्हें खोज लिया था.

पंडे ने सारे विधिविधान से स्नान और पूजा करने का ठेका 20 हजार रुपए में ले लिया.

परिवार के सभी सदस्यों ने पंडे का साथ दिया, क्योंकि जीवन में अच्छे दिन जो आने वाले थे.

नदी पर फैली गंदगी और पानी का रंग देख कर तो पुष्पेंद्रजी का मन कसैला हो गया.

उन्होंने गंदा पानी देख कर कहा कि इस में डुबकी लगा कर पुण्य कमाने की तुलना में पाप क्या बुरा है? पुण्य मिलेगा या नहीं, पर बीमारियों का आना तय है.

पंडे ने कुछ मंत्र पढ़ कर पतिपत्नी को एकदूसरे का हाथ पकड़ कर डुबकी लगाने व भगवान से अगले 7 जन्मों में भी पतिपत्नी बने रहने का वरदान मांगने को कहा.

गजेंद्रपुष्पेंद्रजी ने बुदबुदाते हुए कहा कि यही जन्म इन के साथ भारी पड़ रहा है और पंडा है कि 1-2, नहीं पूरे 7 जन्मों तक मारने पर तुला है.

पुष्पेंद्रजी ने मजाक भरे लहजे में पंडे से पूछा, ‘‘भैया, आप ने अपनी पत्नी के साथ अभी तक डुबकी लगाई है कि नहीं? क्योंकि धार्मिकता का पूरा ठेका आप ने ही ले रखा है.’’

पंडा भी घुटापिटा था. उस ने भी उसी अंदाज में जवाब दिया, ‘‘डुबकी मैं भी रोज लगाता हूं, लेकिन अपनी पत्नी के साथ नहीं.’’

3 दिन जैसेतैसे कटे. होटल खाली कर जैसे ही स्टेशन पहुंचे, पता चला कि आगे मालगाड़ी पटरी से उतर गई है और 2 दिन तक गाडि़यां नहीं चलेंगी.

यह सुन कर दोनों भाइयों में पहाड़ टूट पड़ा, क्योंकि उन की हालत धोबी के कुत्ते जैसे हो गई, घर का न घाट का.

भाइयों ने चिढ़ते हुए महिला मंडली पर आक्रामक मुद्रा में कहा कि लो, यहीं से अच्छे दिन शुरू हो गए.

सारा परिवार 2 दिन तक ठसाठस भरी धर्मशाला में रुका.

धर्मशाला की भीड़ में गौरी की 2 तोले की सोने की चैन गायब हो गई. लेकिन उस ने डर और उलाहने की वजह से किसी को नहीं बताया.

2 दिन बाद वे सभी गाड़ी में चढ़े, तो पता चला कि रिजर्वेशन का डब्बा नहीं लग पाया और सब को जनरल डब्बे में सफर करना पड़ेगा.

जनरल डब्बे की बात सुन कर गजेंद्रजी के होश उड़ गए, क्योंकि पिछले 20 सालों से उन्होंने हवाईजहाज या रेलगाड़ी में एयरकंडीशंड क्लास से कम में सफर नहीं किया था.

वे आधी दूर ही पहुंचे थे कि पड़ोसी का फोन आया कि सिक्योरिटी गार्ड घर का सामान ले कर चंपत हो गया है.

यह सुन कर पुष्पेंद्रजी ने अपने बाल नोच कर कहा, ‘‘जिंदगी में इस से ज्यादा और बुराई क्या हो सकती है. जिस सिक्योरिटी गार्ड के भरोसे अपने घर को रखा, वही चोर निकला. और हम सब यहां अच्छाई बटोरने आए थे.’’

कुंभ स्नान के बाद उन्हें यह तीसरा झटका लग चुका था. पता नहीं, आगे और क्याक्या होगा. घर पहुंचे, तो पोतों ने कहा कि शरीर में जबरदस्त खुजली हो रही है.

पुष्पेंद्रजी ने मन ही मन कहा कि बेटा, मुझे भी माली व जिस्मानी खुजली हो रही है. गंदे व कीचड़ वाले पानी में नहाने पर खुजली नहीं होगी, तो क्या काया कंचन की हो जाएगी. फर्क यही है कि तुम कह रहे हो, लेकिन मैं बता नहीं पा रहा हूं.

पुण्य कमाने के चक्कर में अब तक डेढ़ लाख रुपए से ज्यादा ही खर्च हो चुके थे. उन्होंने कहा कि इतने रुपए में पूरा परिवार घर में ही सालभर बोतलबंद पानी में डुबकी लगा सकता था, पर पत्नियों की धार्मिक आस्था का भी जवाब नहीं था.

उन्होंने कहा कि दुख मत मनाइए, ये सब दुर्घटनाएं पिछले कुंभ में स्नान न करने का फल हैं. इस बार के स्नान का फल आने वाले समय में जरूर मिलेगा, सब्र रखिए. यह सुन कर दोनों भाई हैरानी से एकदूसरे का चेहरा देखने लगे.

धीरेधीरे क्या अमेरिका बनाम भारत होने लगा है

यह आश्चर्यजनक तथ्य सामने आया है कि अमेरिका द्वारा भारत सरकार के एक पूर्व अधिकारी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजकीय यात्रा के आसपास देश में सिख अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित नाकाम साजिश में शामिल होने का आरोप लगा दिया है.

संघीय अभियोजकों ने न्यूयार्क स्थित अमेरिक के न्यायालय में प्रस्तुत एक अभियोग में 18 अक्तूबर 2024 को दावा किया, विकास यादव उम्र 39 कैबिनेट सचिवालय में कार्यरत थे, जहां भारत की विदेशी खुफिया सेवा ‘रिसर्च एंड एनालिसिस विंग’ (रा) का मुख्यालय भी है.

अमेरिकी जांच एजंसी एफबीआई ने आश्चर्य जनक ढंग से विकास यादव को वांछित घोषित कर दिया है. और 10 अक्तूबर को विकास यादव की फोटो प्रसारित की है. सीधी सी बात है अमेरिका जिस तरीके से व्यवहार कर रहा है समय में अमेरिका बनाम भारत बने की दिशा में है.

इधर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल के मुताबिक, आरोपी अब भारत सरकार का कर्मचारी नहीं है.

इस के क्या मतलब निकलते हैं, यह आसानी से समझा जा सकता है, ऐसा लगता है कि भारत बचाव पक्ष की भूमिका में है.

अमेरिकी न्याय मंत्रालय ने अपने अभियोग में कहा, विकास यादव फरार है. पहले अभियोग पत्र में यादव को ‘सीसी 1’.

(सह-साजिशकर्ता) के रूप में चिह्नित किया गया है. दूसरी तरफ इस कथित साजिश में शामिल सह आरोपी निखिल गुप्ता को गत वर्ष चेक गणराज्य से हिरासत में लिया गया था तथा प्रत्यर्पण के बाद वह अमेरिकी जेल में बंद है. अमेरिकी अटार्नी जनरल मेरिक बी गारलैंड के मुताबिक, ‘आज के आरोप दर्शाते हैं कि न्याय विभाग अमेरिकियों को निशाना बनाने, उन्हें खतरे में डालने तथा किसी अमेरिकी नागरिक के अधिकारों को कमजोर करने के प्रयासों को बर्दाश्त नहीं करेगा.’

एफबीआई निदेशक क्रिस्टोफर रे ने कहा है, ‘आरोपी एक भारतीय सरकारी कर्मचारी है. उस ने एक आपराधिक सहयोगी के साथ मिल कर कथित तौर पर साजिश रची और अमेरिकी धरती पर एक अमेरिकी नागरिक की हत्या का प्रयास किया.’ अब अब सोचने वाली बात यह है कि अगर यह हालत आज दुनिया के सामने है तो भारत को अपना पक्ष बहुत ही मजबूती के साथ रखना चाहिए और यह बताना चाहिए कि सच क्या है और भारत सरकार कुछ भी छुपा नहीं रही है क्योंकि सब से बड़ी चुनौती है आप के विश्वसनीयता का.

हालांकि भारत सरकार ने अमेरिकी धरती पर किसी अमेरिकी नागरिक की हत्या की ऐसी किसी भी साजिश में अपनी संलिप्तता से इनकार किया है. अमेरिका के आरोपों के बाद भारत सरकार ने मामले की जांच के लिए एक जांच समिति गठित की थी. अमेरिका ने इस मामले में भारत के सहयोग पर संतोष जताया था. अदालत में दूसरा अभियोग पत्र इस मुद्दे पर संघीय जांच ब्यूरो (एफबीआइ), न्याय मंत्रालय और विदेश मंत्रालय के अधिकारियों की एक इंटर एजेंसी टीम के साथ बैठक के लिए यहां भारतीय जांच समिति के आने के 48 घंटे के भीतर दायर किया गया है.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने मीडिया से कहा, “हम सहयोग से संतुष्ट हैं. यह एक सतत प्रक्रिया है. हम उन के साथ इस पर काम करना जारी रखेंगे. हम सहयोग की सराहना करते हैं और अपनी जांच के बारे में हमें जानकारी देते रहने की सराहना करते हैं. हम उन्हें अपनी जांच से अवगत कराते रहते हैं.’

मिलर ने कहा, “बैठक में हम ने जांच समिति के सदस्यों को अमेरिका द्वारा की जा रही जांच के बारे में बताया. हमें उन से उन के द्वारा की जा रही जांच के बारे में जानकारी मिली है. यह एक सार्थक बैठक थी.” उन्होंने कहा, “उन्होंने हमें बताया कि जिस व्यक्ति का नाम न्याय विभाग के अभियोग पत्र में है, अब वह भारत सरकार का कर्मचारी नहीं है.’

इधर जारी 18 पन्नों के अभियोग पत्र में यादव की सैन्य वर्दी में एक तस्वीर है. न्यूयार्क में एक कार में दो व्यक्तियों द्वारा डालर का आदानप्रदान करने की तस्वीर भी है, जिस के बारे में संघीय अभियोजकों कहना है कि तस्वीर में दिख रहा व्यक्ति गुप्ता और यादव की ओर से न्यूयार्क में सिख अलगाववादी नेता की हत्या के लिए कथित हत्यारे को धनराशि दे रहा था.

तस्वीर 9 जून, 2023 की है. अभियोग पत्र में अमेरिकी नागरिक एवं सिख अलगाववादी का नाम नहीं लिखा गया है. न्याय मंत्रालय द्वारा अभियोग जारी किए जाने के बाद अलगाववादी गुट ‘सिख फौर जस्टिस’ के ‘जनरल काउंसल’ पन्नू ने एक बयान में कहा, “रा अधिकारी विकास यादव पर अमेरिकी सरकार ने ‘भाड़े पर हत्या’ की साजिश का आरोप लगा कर देश और विदेश में अमेरिकी नागरिकों के जीवन, स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने के मौलिक संवैधानिक कर्तव्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को फिर से दोहराया है.”

अभियोग में आरोप लगाया गया है कि विकास यादव ने निखिल गुप्ता के साथ मिल कर 2023 की गर्मियों में सिख अलगाववादी नेता की हत्या की साजिश रची थी. गुप्ता ने भाड़े पर एक व्यक्ति को इस हत्या को अंजाम देने का जिम्मा सौंपा था. यह अज्ञात व्यक्ति एफबीआई का मुखबिर था, जिस ने इस काम के लिए 1,00,000 अमेरिकी डौलर मांगे थे और 9 जून, 2023 को अग्रिम भुगतान के रूप में उसे 15,000 अमेरिकी डौलर मिले थे.

यह कथित घटनाक्रम तब का है जब राष्ट्रपति जो बाइडेन ने प्रधानमंत्री मोदी को 22 जून को ऐतिहासिक राजकीय यात्रा पर आमंत्रित किया था. आरोप के मुताबिक, यादव ने गुप्ता और भाड़े पर लिए गए हत्यारे को राजकीय यात्रा से ठीक पहले या उस दौरान काम नहीं करने के लिए कहा था.

अभियोग के अनुसार, अमेरिकी सिख अलगाववादी की हत्या की साजिश और उसी अवधि के दौरान कनाडा में एक अन्य सिख अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की घटना के बीच संबंध है. संघीय अभियोजकों ने दोनों घटनाओं पर यादव, गुप्ता और कथित हत्यारे के बीच हुए संचार को साझा किया है.

संघीय अभियोजकों ने आरोप लगाया, ‘इस के कुछ मिनट बाद यादव ने गुप्ता को संदेश भेजा, जिस में निर्देश दिया गया ‘उन्हें भी अपने स्तर पर इस का सत्यापन करने दीजिए. अगर वे इस बात का कोई सबूत जुटा पाते हैं कि वह अंदर है. तो हमारी ओर से इस के लिए मंजूरी होगी.”
यह सब एक जासूसी उपन्यास या थ्रिलर सिनेमा जैसा घटनाक्रम है, मगर इस घटनाक्रम से भारत सरकार की विश्वसनीयता पर जो सवाल आने वाले समय पर खड़े होंगे उस के जवाब के लिए सरकार को अभी से तैयार होना पड़ेगा.

धर्म का सहारा ले सिंघम अगेन को सफल बनाने कोशिश में रोहित शेट्टी

बौलीवुड में अपने समय के मशहूर स्टंट मैन व एक्शन डायरैक्टर रहे मुडू बाबू शेट्टी उर्फ शेट्टी के बेटे रोहित शेट्टी ने 2003 में फिल्म ‘जमीन’ से बतौर निर्देशक बौलीवुड में कदम रखा तो इस फिल्म को असफलता ही हाथ लगी. फिर कौमेडी फिल्म ‘गोलमाल’ निर्देशित की, इसे थोड़ी सी सफलता मिल गई. उस के बाद वह ‘गोलमाल’ फ्रेंचाइजी के सिक्वल बनाने लगे.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sarita (@sarita_magazine)

2011 में रोहित शेट्टी ने एक्शन प्रधान तमिल फिल्म ‘सिंगम’ का हिंदी रीमेक ‘सिंघम’ इसे सफलता मिल गई. उस के बाद जबजब रोहित शेट्टी ने ‘सिंघम’ का सिक्वल बनाया, सफलता मिलती रही. पर बीचबीच में ‘बोल बच्चन’, ‘दिलवाले’ व ‘सिंबा’ जैसी फिल्में बौक्स औफिस पर लड़खड़ाती रही. मगर हर बार वह असफलता का ठीकारा दूसरों पर थोपने में सफल होते रहे.

2015 के बाद अचानक रोहित शेट्टी अपने पीआरओ की कठपुटली बन गए. उन की हर फिल्म में उन का पीआरओ कैमियो किरदार निभाने लगा. रोहित शेट्टी भी खुलेआम प्रेस कांफ्रेंस में दावा करने लगे कि उन का पीआरओ उन की फिल्म में कैमियो करता है, जिस के एवज में वह उन की फिल्म की रिव्यू को एक स्टार ज्यादा दिलवा देता है. और यहीं से रोहित शेट्टी का पतन शुरू हो गया. 23 दिसंबर 2023 को रोहित शेट्टी निर्देशित 180 करोड़ रूपए की लागत में बनी फिल्म ‘सर्कस’ रिलीज हुई और यह फिल्म बौक्स औफिस पर बामुश्किल 50 करोड़ रूपए एकत्र कर सकी, इस में से निर्माता की जेब में 20 करोड़ ही पहुंचे. फिर वह एक वेब सीरीज ‘इंडियन पोलिस फोर्स’ ले कर आए, यह सीरीज बहुत बुरी तरह से असफल रही.

इन असफलताओं से रोहित शेट्टी अपना आत्मविश्वास खो बैठे. अब वह 300 करोड़ की लागत की फिल्म ‘‘सिंघम अगेन’’ ले कर आए रहे हैं, जिसे वह दीवाली के अवसर पर एक नवंबर 2024 को रिलीज कर रहे हैं, जिस का मुकाबला कार्तिक आर्यन की अनीस बज़मी निर्देशित फिल्म ‘‘भूल भुलैय्या 3’’ से है.

पूरी तरह से हताश रोहित शेट्टी व उन की पीआर टीम अभी से फिल्म ‘सिंघम अगेन’ को बौक्स औफिस पर हजार करोड़ रूपए से भी अधिक कमाने वाली फिल्म बताने लग गए हैं. इस के लिए रोहित शेट्टी ने ‘श्री राम’, ‘रामायण’, बजरंगबली’ के साथ ही ‘जय श्री राम के नारे का सहारा लिया है. और अपनी पीआरटीम के साथ मिल कर पूरी फिल्म को गलत ढंग से प्रचारित कर रहे हैं.

शायद रोहित शेट्टी भूल गए कि पिछले कुछ वर्षों में बौलीवुड को डुबाने में प्रोपगेंडा फिल्मों के अलावा धर्म की चाशनी में डूबी फिल्मों का ही अहम योगदान रहा है. इतना ही नहीं इस फिल्म में रोहित शेट्टी ने अक्षय कुमार, अजय देवगन, करीना कपूर, अर्जुन कपूर, रणवीर सिंह, जैकी श्राफ, दीपिका पादुकोण जैसे सितारों का जमावड़ा किया है, जो कि पिछले 10 वर्षों से लगातार असफलता का दंश झेलते आ रहे हैं.

करीना कपूर तो खुलेआम कह चुकी हैं कि जिन की मर्जी हो वह उन की फिल्म देखे, वह खुद किसी को फिल्म देखने के लिए बुलाने नहीं जाती. इतना ही नहीं रोहित शेट्टी ने अपने पीआरओ व मार्केटिंग टीम के इशारे पर नाचते हुए ट्रेलर लांच के दिन से ही अपने फैंस व दर्शकों को बुरी तरह से नाराज कर दिया है.

वेब सीरीज ‘इंडियन पुलिस फोर्स’ तथा फिल्म ‘सर्कस’ के बुरी तरह से असफल होने के बावजूद रोहित शेट्टी का दिमाग सातवें आसमान पर है. वह आज भी अपने आप को खुदा ही समझते हैं. इस बार दिवाली के अवसर पर रोहित शेट्टी अपनी ‘सिंघम’ फ्रेंचाइजी की पांचवी फिल्म ‘सिंघम अगेन’ ले कर आ रहे हैं जिस में अजय देवगन, अक्षय कुमार, करीना कपूर खान, रणवीर सिंह, जैकी श्राफ, दीपिका पादुकोण, अर्जुन कपूर व टाइगर श्राफ जैसे कलाकारों का समावेश हैं. इस बार दिवाली पर रोहित शेट्टी की फिल्म ‘‘सिंघम अगेन’’ अकेले नहीं आ रही है. बल्कि इस बार इस फिल्म की टक्कर टी-सीरीज निर्मित व अनीश बज़मी निर्देशित फिल्म ‘‘भूल भुलैय्या 3’’  से है.

2024 में बौक्स औफिस पर ‘स्त्री 2’ और ‘मुंज्या’ के अलावा सभी फिल्में बुरी तरह से असफल रही हैं. इस कटु तथ्य को देखते हुए समझदारी इसी में थी की दिवाली के अवसर पर इस टकराव को रोकने के लिए कोई न कोई कदम उठाया जाना चाहिए था. मतलब यह कि ‘सिंघम अगेन’ और ‘भूल भुलैय्या 3’ दोनों को एक ही दिन थिएटर में आने से बचना चाहिए था. इस के लिए रोहित शेट्टी को पहल करनी चाहिए थी क्योंकि टी-सीरीज ने गत वर्ष ही ऐलान कर दिया था कि उन की फिल्म ‘भूल भुलैय्या 3’, 2024 में दिवाली पर रिलीज होगी. उस वक्त रोहित शेट्टी की फिल्म को ले कर कोई सुगबुगाहट नहीं थी.

ऐसे में जरूरी था कि रोहित शेट्टी, टी-सीरीज के साथ बातचीत कर इस टकराव को रोकने की दिशा में काम करते, तो दोनों फिल्मों के साथसाथ भारतीय सिनेमा को फायदा होता. लेकिन अहम में चूर रोहित शेट्टी ने बातचीत की पहल नहीं की. रोहित शेट्टी को लग रहा है कि उन के पास तो स्टार सितारों की लंबी चौड़ी फौज के साथ ही ‘वाय काम 18’ और ‘जियो सिनेमा’ का साथ है. इसलिए वह किसी आगे नहीं झुकेंगे.

मगर रोहित शेट्टी यह भूल गए कि उन के पास ‘सिंघम अगेन’ में ‘स्टार’ कलाकार जरूर हैं, लेकिन यह सारे बुरी तरह से असफल स्टार हैं. यह वे स्टार हैं, जो पिछले कई वर्षों से लगातार असफलता ही दर्ज कराते आ रहे हैं. पर घमंड में चूर रोहित शेट्टी ने अपने ओवर कंफीडेंस के बल पर दर्शकों को मूर्ख समझते हैं. तभी तो रोहित शेट्टी ने पहली गलती यह की कि अजय देवगन, अक्षय कुमार, दीपिका पादुकोण, करीना कपूर, टाइगर श्राफ व अर्जुन कपूर जैसे असफल कलाकारों की फौज के बल बूते पर शतरंजी चाल चलते हुए रोहित शेट्टी ने सोशल मीडिया पर हौव्वा खड़ा करने की कोशिश की कि फिल्म ‘सिंघम अगेन’ दिवाली पर आएगी या नहीं आएगी…?

रोहित शेट्टी सोच रहे थे कि उन की इस पर तरकीब से डर कर टी-सीरीज स्वयं ही अपनी फिल्म ‘भूल भुलैय्या 3’ को दिवाली पर रिलीज नहीं करेगा. मगर अफसोस रोहित शेट्टी की सोच गलत निकली. उन्हें लगता है कि जैसे वह अपनी फिल्मों में हवा में कार व हेलीकौप्टर उड़ाते रहते हैं, उसी तरह उन की हवा बाजी की बातों से ही वह मैदान जीत ले जाएंगे. वह यह भूल गए कि टीसीरीज लगातार एक ही बात करता रहा कि फिल्म ‘‘भूल भुलैय्या 3’’ दिवाली पर ही आएगी.

जैसे ही टीसीरीज ने अपनी चाल चलते हुए संकेत दिया कि वह 6 अक्तूबर को अपनी फिल्म ‘‘भूल भुलैय्या 3’’ का ट्रेलर रिलीज कर सकते हैं, वैसे ही आननफानन में रोहित शेट्टी ने 7 अक्टूबर को बीकेसी में ‘जियो सिनेमा’ से ही जुड़े एक भव्य हाल में 2 हजार लोगों की मौजूदगी में भव्य स्तर पर ‘सिंघम अगेन’ के ट्रेलर को लांच करने का ऐलान कर दिया. पर टीसीरीज ने ‘भूल भुलैय्या 3’ का ट्रेलर 9 अक्तूबर को जारी किया.

रोहित शेट्टी ने अपने कलाकारों व मीडिया की मौजूदगी में लगभग 5 मिनट की अवधि का ट्रेलर 7 अक्तूबर को जारी कर दिया. इस अवसर पर सभी कलाकार एकदूसरे का गुणगान करने के साथ ही खुद को भाग्यशाली बताते रहे कि वह ‘सिंघम अगेन’ का हिस्सा हैं. फिल्म के संबंध में किसी ने भी कोई बात नहीं की. वैसे भी किसी के पास कहने को कुछ बचा ही नहीं था. रोहित शेट्टी ने फिल्म के ट्रेलर में पूरी कहानी ही नहीं सब कुछ बयां कर ही दिया है.

7 अक्टूबर को रिलीज हुआ ‘सिंघम अगेन’ का ट्रेलर देख कर दर्शक भड़क गए. पहली बात तो ट्रेलर किसी को पसंद नहीं आया. दूसरी बात दर्शकों को अहसास हुआ कि रोहित शेट्टी और उन की पूरी टीम अब तक उन्हें मूर्ख बना रही थी. ट्रेलर से स्पष्ट हो जाता है कि फिल्म ‘सिंघम अगेन’ को दिवाली पर ही रिलीज किया जा सकता है, क्योंकि फिल्म की कहानी ‘रामायण’ पर है.

रोहित शेट्टी अपनी फिल्म के दौरान सिनेमाघरों में ‘जय श्री राम’ के नारे सुनना चाहते हैं. शायद रोहित शेट्टी को पूरा यकीन है कि राम मंदिर की बात करने वाले राजनैतिक दल का भी उन्हें पूरा समर्थन मिलेगा. इसलिए दर्शक को गुस्सा आया कि पूरी फिल्म राममय होने के बावजूद वह यह हवा क्यों फैला रहे थे कि फिल्म ‘सिंघम अगेन’ दिवाली पर आएगी या नहीं आएगी. रोहित शेट्टी का पब्लिसिटी का यह तरीका उन्हें ही ले डूबा. सच यही है कि ‘सिंघम अगेन’ का ट्रेलर जारी होते ही लोग खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.

पूरे 4 मिनट 58 सेकंड लंबा ‘सिंघम अगेन’ का ट्रेलर चूंचूं का मुरब्बा के अलावा कुछ नहीं है. इस ट्रेलर के ही अनुरूप यदि फिल्म होगी, तो यह कहना सटीक रहेगा कि रोहित शेट्टी ने ‘सकर्स’ व ‘इंडियन पोलिस फोर्स’ की असफलता से कुछ नहीं सीखा. शायद रोहित शेट्टी के पास ‘सिंघम अगेन’ के लिए कहानी नहीं थी. इसलिए उन्होंने भी धर्म व राष्ट्रवाद का सहारा लेते हुए ‘रामायण’ की कहानी, राम, लक्ष्मण, महाबली हनुमान, जटायु, रावण व श्रीलंका से ले कर मराठा और छत्रपति शिवाजी महाराज तक को जोड़कर चूंचूं का मुरब्बा बना डाला. यह ट्रेलर निराश और बोर करता है. रोहित शेट्टी ने तो इस बार संवाद भी घटिया व चोरी के रख दिए. ट्रेलर में एक जगह करीना कपूर का संवाद है, ‘‘दया दरवाजा तोड़…’’ वाह क्या बात है. लोकप्रिय टीवी सीरियल ‘सीआईडी’ के लगभग हर एपीसोड में यह संवाद सुनाई देता रहा है. पूरा ट्रेलर इसी बात का संकेत देता है कि रोहित शेट्टी ने ‘रामायण’ की कहानी व उस के पात्रों के साथ अपने ‘कौप यूनिवर्स’ के किरदारों को जोड़ दिया है. ‘आदिपुरूष’ की वजह से भी लोग सशंकित है कि पता नहीं रोहित शेट्टी ने ‘सिंघम अगेन’ में ‘रामायण’ को किस तरह से पेश कर दिया हो.

वैसे ट्रेलर से यह अहसास भी होता है कि ‘कौप युनिवर्स’ की कहानी के पैरलल ही ‘राम लीला’ के बहाने रामायण की कहानी चलती रहेगी और निर्देशक ने दोनों के किरदारों को एक साथ रिलेट करवाने की कोशिश की है. सिंघम यानी कि अजय देवगन को राम, अक्षय कुमार को जटायु, टाइगर श्राफ को लक्ष्मण, रणवीर सिंह को महाबली हनुमान, करीना कपूर खान को सीता के रूप में पेश किया है. वहीं अर्जुन कपूर को रावण बनाया है. इस तरह गोवा का बाजीराव सिंघम अब पूरी तरह से भक्ति के रंग में रंग चुका है और इस बार फिल्म में पूरी रामायण को देखा जा सकेगा.

‘सिंघम अगेन’ के ट्रेलर की शुरूआत अजय देवगन उर्फ सिंघम के कश्मीर की धरती पर खड़े हो कर बर्फ को देखते हुए होती है, तभी उन की पत्नी यानी कि करीना कपूर आती है और वह कहती है कि, ‘कल हमारी रामलीला में राम 14 साल के लिए वनवास जाएंगे.’ इस पर उन का बेटा सवाल करता है ‘क्या आप को सीरियसली लगता है कि भगवान राम सीता मां को लेने 3000 किलोमीटर दूर श्रीलंका गए थे.’

करीना इसे सच बताते हुए कहती है कि समस्या यही है कि आज की पीढ़ी यह सच नहीं जानती. तब बेटा अपने पिता सिंघम यानी कि अजय देवगन से सवाल करता है कि, ‘ यदि मां को कोई वहां ले जाए, तो क्या आप मां को वहां से लाने जाएंगे?’ इस पर अजय देवगन कहते हैं, ‘‘गूगल कर ले बाजीराव सिंघम को ले कर..’

उस के रामायण के दूसरे पात्रों के जिक्र के साथ ‘सिंघम’ के बाकी किरदार सामने आते हैं. अगले दृश्य में अजय देवगन कहते हैं कि ‘अब श्रीलंका’ का जलना तय है. इस का मतलब किसी ने करीना कपूर को किडनैप कर लिया है. फिर बहुत बड़े स्तर पर एक्शन सीन शुरू होते हैं, जिन में हेलीकौप्टर से ले कर कार तक उड़ती नजर आती है. जैकी श्राफ और फिर अर्जुन कपूर की एंट्री होती है. यहीं पर खुलासा होता है कि अर्जुन कपूर फिल्म का विलेन रावण है. फिर पुलिस औफिसर शक्ति शेट्टी के किरदार में दीपिका पादुकोण आती हैं जो कि खुद को ‘लेडी सिंघम’ बताती हैं. एक बार फिर एक्शन दृश्य शुरू होते हैं. उस के बाद टाइगर श्राफ नजर आते हैं. फिर रवि किशन मंत्री के रूप में नजर आते हैं, जिन से अजय देवगन उर्फ सिंघम दूसरे देश पर हमला करने की इजाजत मांगने जाता है. फौरन बाद रणवीर सिंह नजर आते हैं.

उस के बाद एक बार फिर अर्जुन कपूर आते हैं और कहते हैं कि, ‘तुम सभी को मार डालूंगा, खत्म कर दूंगा.’ फिर कहानी श्रीलंका पहुंच जाती है. एक मंदिर को दिखा कर बताया जाता है कि, ‘यह सीता मां का मंदिर है और यहां पर हनुमानजी के पैर के निशान आज भी हैं.’ फिर एक्शन शुरू होता है. उस के बाद हेलीकौप्टर से जटायु यानी कि अक्षय कुमार की एंट्री होती है. एक बार फिर एरियल से फिल्माए गए एक्शन दृश्य नजर आते हैं, उस के बाद अजय देवगन आ कर कहते हैं, ‘‘तेरे सामने जो खड़ा है वह महात्मा गांधी का आदर करता है, मगर पूजा छत्रपति शिवाजी महाराज की करता है.’’

अजय का यह संवाद अपनेआप ही विवाद पैदा करने वाला है. ट्रेलर से यह बात साफ होती है कि जैकी श्राफ का किरदार फिल्म ‘सूर्यवंशी’ से आगे बढ़ा है और इस बार उन का हथियार रावण बने अर्जुन कपूर हैं. रावण उर्फ अर्जुन कपूर से लड़ने के लिए राम, लक्षमण, महाबली हनुामन, जटायु सहित 6 स्टारों की फौज है. ट्रेलर से यह साफ नहीं हुआ कि इस में सिंघम उर्फ राम यानी कि अजय देवगन अपनी टीम के साथ दूसरे देश श्रीलंका जाते हैं या किसी अन्य पड़ोसी देश.

इस तरह ‘सिंघम अगेन’ का ट्रेलर शुरू में ही बता देता है कि इस बार रोहित शेट्टी ने नए पन के नाम पर फिल्म में रामायण की कहानी और राष्ट्वाद का तड़का पिरो दिया है. वह रामायण की कहानी को आधुनिक रूप में पेश कर रहे हैं.

रोहित शेट्टी की फिल्म ‘सिंघम अगेन’ के पीआरओ ने पत्रकारों से साफसाफ कह दिया है कि उन की फिल्म का कोई भी कलाकार पत्रकारों को इंटरव्यू नहीं देगा. वह तो सारी लड़ाई धर्म के हथकंडे व सोशल मीडिया के बल पर जीत जाएंगे. वैसे भी ‘सिंघम अगेन’ बौक्स औफिस पर हजार करोड़ रूपए से ज्यादा कमाने वाली है. अब यह रोहित शेट्टी और उन की टीम का ‘पानी का बताशा’ साबित होगा या क्या होगा, यह आने वाला वक्त ही बताएगा.

लेकिन धर्म के भरासे नैय्या पार करने यानी कि हजार करोड़ रूपए से अधिक जुटाने के लिए ‘सिंघम अगेन’ की एक टीम यानी कि रोहित शेट्टी, राम बने अजय देवगन व सीता बनी करीना कपूर खान दशहरे के दिन दिल्ली जा कर ‘लव कुश’ रामलीला में रावण वध कर अपनी फिल्म का प्रचार किया, तो वहीं फिल्म के दूसरे कलाकार अहमदाबाद जा कर ‘नवारौत्सव’ में गरबा व डांडिया डांस’ खेल कर फिल्मों का प्रचार कर आए.

इस के बाद ‘भूल भुलैय्या 3’ से प्रचार में आगे निकलने के लिए 14 अक्टूबर को अजय देवगन व रोहित शेट्टी ने एक दूसरा काम करते हुए ‘गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकौर्ड’ में नाम दर्ज करवाया. इस के लिए सिंघम अगेन’ की टीम के अजय देवगन और रोहित शेट्टी ने फूड डिलीवरी एप स्विगी के साथ मिल कर मुंबई के एक स्कूल में बच्चों को बुला कर 11,000 वड़ा पाव बांटे, जिस से एक ही डिलीवरी में सब से बड़े वड़ा पाव और्डर का नया गिनीज वर्ल्ड रिकौर्ड बनाया गया. लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या बच्चों का महज एक वड़ा पाव खाने से पेट भर गया? इस तरह के प्रचार से वह फिल्म को बौक्स औफिस पर सफल बनाने का कहीं दुःस्वप्न तो नहीं देख रहे हैं. क्या यह 11 हजार बच्चे ‘सिंघम अगेन’ को दिवाली के दिन देखने जाएंगे या रोहित शेट्टी इन बच्चों को मुफ्त में फिल्म दिखाने की कोई व्यवस्था करने वाले हैं? सोशल मीडिया व कई तरह के सवाल उठ रहे हैं,जिन के जवाब कोई नहीं दे रहा.

इस के बाद ‘सिंघम अगेन’ की तरफ से सब से बड़ा धमाका 19 अक्तूबर को किया गया. फिल्म का पहला गाना ‘बजरंग बली’ रिलीज किया गया. इस गाने में राम ( अजय देगवन, राम की वेश भूषा में ) और बजरंगबली (रणवीर सिंह, हनुमान की वेश भूषा में ) की मुलाकात के दृश्य के अलावा रामायण के कई दृष्य दिखाए गए हैं. इस गाने में ‘जय श्री राम’ के नारे भी खूब लगाए गए हैं. फिल्म की वीआरटी दावा कर रही है कि फिल्म का यह गाना ‘हनुमान चालीसा’ से प्रेरित है. कुल मिला कर इस बार रोहित शेट्टी पूरी तरह से धर्म को बेचने पर उतारू हैं.

रोहित शेट्टी ने ‘सिंघम अगेन’ की कहानी चुनने से ले कर कलाकारों के चयन में भी काफी गलतियां की हैं. रावण के प्रतीकात्मक किरदार में अर्जुन कपूर हैं, जिन से अपने संवाद तक ठीक से बोला नहीं जा रहा है. अर्जुन कपूर अभिनय के मामले में भी शून्य ही हैं.

अर्जुन कपूर पिछले 10 वर्षों से केवल मलायका संग रोमांस को ले कर ही चर्चा में रहते आए हैं. ट्रेलर में वह किसी दृष्टि से रावण नहीं लगते. तो वहीं जटायु के प्रतीक अक्षय कुमार भी काफी निराश करते हैं. यूं भी अब तक लगातार 15 असफल फिल्में दे चुके अक्षय कुमार के दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं. सरकार ने भी उन्हें झटका देते हुए सिनेमाघरों मे चलने वाला उन का एक एड हटा दिया.

शक्ति शेट्टी के किरदार में दीपिका पादुकोण कहीं से भी पुलिस अफसर नहीं लगती. ऊपर से तमगा यह कि उन के मुंह से खुद को ‘लेडी सिंघम’ कहा जाना सुन लोग हंस पड़ते हैं. सोशल मीउिया पर लोग लिख रहे हैं कि अर्जुन कपूर इतने बड़े विलेन कब से हो गए कि उन्हे मिटाने के लिए ‘कौप यूनिवर्स’ के छह दिग्गज स्टार लगे हुए हैं.

ट्रेलर से अहसास होता है कि फिल्म में हास्य के ताजे क्षणों का अभाव होगा. गाने भी आकर्षक नहीं. इस बार कहीं कोई रोमांस के पल होंगे, ऐसा आभास ट्रेलर नहीं देता. एक्शन दृश्य में कोई नवीनता नहीं है. यह सच है कि सभी एक्शन दृश्य बहुत बड़े स्तर पर फिल्माए गए हैं, पर इस तरह के एक्शन दृश्य दर्शक रोहित शेट्टी की पिछली फिल्मों में देख ही चुके हैं.

लेकिन ‘सिंघम अगेन’ का ट्रेलर आने के बाद सोशल मीडिया पर जबरदस्त आलोचना हो रही है. सोशल मीडिया पर हो रही ट्रोलिंग से बौखला कर दीपिका पादुकोण की टीम प्रचारित कर रही है कि यह कारस्तानी आलिया भट्ट की है. आलिया भट्ट, दीपिका पादुकोण की जगह लेने के प्रयास में लगी हुई है. उधर जैसे ही अर्जुन कपूर ने अपने सोशल मीडिया पेज पर फिल्म ‘सिंघम अगेन’ का ट्रेलर पोस्ट करते हुए लिखा, ‘‘मैं हूं रावण..’’. उस के बाद अर्जुन कपूर की ट्रोलिंग शुरू हो गई. लोग लिख रहे हैं कि अर्जुन को अभिनय नहीं आता वगैरह.

अब देखना होगा कि ‘रामायण’ व ‘जय श्री राम’ के सहारे रोहित शेट्टी के दावे के अनुरूप फिल्म ‘सिंघम अगेन’ हजार करोड़ रूपए से अधिक कमा पाती है या नहीं…

Diwali 2024 : क्यों फीकी हो रही फिल्मी और आम लोगों की दीवाली

दीवाली रोशनी व मिठाई का त्योहार है. मुंह मीठा करने व खुशी व्यक्त करने का त्योहार है. बौलीवुड की फिल्मों में दीवाली के त्योहार को बहुत ज्यादा महत्त्व नहीं दिया गया. इस त्योहार का चित्रण करते हुए बस धार्मिक पूजापाठ ही दिखाया गया. कुछ फिल्मों में घर को रोशन करने के अलावा पटाखे फोड़ने को अहमियत दी गई, मगर पटाखों से हमेशा दुर्घटना ही दिखाई गई क्योंकि बौलीवुड के फिल्मकारों की नजर में यह ऐसा त्योहार है जिस में उन्हें नाटकीयता लाने का अवसर कम मिलता है. बौलीवुड फिल्मों में तो होली, करवाचौथ, गणेशोत्सव व नवरात्रोत्सव का जरूरत से ज्यादा चित्रण व महिमामंडन ही नहीं बल्कि इन त्योहारों को अतिभव्यता के साथ पेश किया जाता रहा है.

बौलीवुड के लिए दीवाली का त्योहार हमेशा पारिवारिक पुनर्मिलन का त्योहार व मुंह मीठा करने या यों कहें कि मिठाई बांटने का त्योहार ही रहा. मसलन, साल 2000 में प्रदर्शित फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ दीवाली की छुट्टियों के दौरान घर लौट कर लड्डुओं का स्वाद लेने और परिवार की गर्मजोशी को गले लगाने की भावना को खूबसूरती से दर्शाती है, जो रायचंद परिवार के असाधारण उत्सवों की याद दिलाता है. यह अलग बात है कि आम जीवन में दीवाली के उत्सव में रायचंदों जैसी भव्यता के दर्शन नहीं होते. दीवाली के दौरान प्रियजनों के साथ पुनर्मिलन की भावना घर से दूर रहने वाले हम में से कई लोगों के साथ गूंजती है.

यों तो फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ में मुख्य रूप से जया बच्चन और शाहरुख खान यानी कि मांबेटे के बीच त्योहार को दिखाया गया है, लेकिन यह प्रतिष्ठित दीवाली दृश्य हर सिनेप्रेमी के दिल में बसा हुआ है. ‘कभी खुशी कभी गम’ वर्ष 2001 की आखिरी फिल्म थी, जिस का मुख्य कथानक रोशनी के त्योहार पर केंद्रित था.

‘कभी खुशी कभी गम’ से पहले संजय दत्त, महेश मांजरेकर निर्देशित 1999 की फिल्म ‘वास्तव’ में दीवाली पर घरवापसी दिखाई गई है. उस में खूंखार गैंगस्टर रघु (संजय दत्त) है जो अपने परिवार के साथ दीवाली मनाने के लिए जबरन अपने ठिकाने से हर वर्ष निकलता है, जबकि उस का परिवार ऐसा नहीं चाहता पर रघु (संजय दत्त) को अपनी मां (रीमा लागू) से मिलना होता है.

पारिवारिक पुनर्मिलन के अलावा दीवाली का त्योहार देसी जोड़ों के लिए फ्लर्ट करने हेतु सामाजिक रूप से स्वीकृत क्षण के रूप में भी चित्रित किया गया. 1994 में आई क्लासिक फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ में 14 गीतों में से एक परिवार के दीवाली उत्सव को समर्पित है. इस गाने के दौरान निशा (माधुरी दीक्षित) और प्रेम (सलमान खान) का प्यार परवान चढ़ता है.

लेकिन 20वीं सदी के अंत और 21वीं सदी की शुरुआत के साथ ही सिनेमा से ‘दीवाली’ का त्योहार गायब हो गया, उस की जगह होली और करवाचौथ का खुमार चढ़ता गया. वास्तव में दीवाली के त्योहार में फिल्मकार अपनी आदत के अनुसार ‘उन्मुक्तता’ व ‘घटियापन’ नहीं परोस पा रहे थे, जबकि यह सब वे होली व करवाचौथ में आसानी से पिरो रहे थे. यह अलग बात है कि अब सिनेमा से ये त्योहार भी गायब हो रहे हैं, क्योंकि सिनेमा में परिवार ही नहीं रहे.

1997 में प्रदर्शित कमल हासन की क्लासिक फिल्म ‘चाची 420’ में दीवाली को खुशियां बांटने के त्योहार के रूप में चित्रित किया गया है. फिल्म का एक दृश्य प्रमुख प्रेरकशक्ति के रूप में काम करता है. कथानक के अनुसार, नामधारी पात्र अपनी बेटी के लिए एक गवर्नेंस के रूप में काम करता है, जिसे एक युवा फातिमा सना शेख ने निभाया है, जब एक गलत पटाखे से वह घायल हो जाती है तो उसे वह बचाता है.

अभिनेत्री तब्बू, जूही चावला, गोविंदा और चंद्रचूड़ सिंह अभिनीत फिल्म ‘आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया’ में दीवाली और छुट्टियों के जश्न को ले कर एक गाना ‘आई है दीवाली…’ है जो पूरे महल्ले को दीयों से जगमगाती सड़क पर इकट्ठा करता है.

अभिनेत्री श्रीदेवी अभिनीत फिल्म ‘सदमा’ में दीवाली का दृश्य दिल दहलाने वाला है. दीवाली मनाने के लिए श्रीदेवी और कमल हासन फुल्झड़ियां और पटाखे जलाते हैं. इस सीन में ‘ऐ जिंदगी गले लगा ले…’ गाना है.

अभिनेता आमिर खान द्वारा निर्देशित फिल्म ‘तारे जमीन पर’ में ईशान अपने परिवार द्वारा उसे बोर्डिंग स्कूल भेजने के फैसले से परेशान हो कर दीवाली नहीं मना पा रहा है. दर्शक देखते हैं कि वह उदास बैठा है, जबकि उस के परिवार और पड़ोस के बाकी लोग पटाखे फोड़ कर दीवाली मनाते हैं, जिस का वह आनंद लेता था.

दीवाली रोशनी का त्योहार है, जिसे पर्यावरण-अनुकूल तरीके से मनाया जाना चाहिए. इस संदेश को देने के लिए शाहरुख खान की फिल्म ‘स्वदेश’ में मोमबत्तियों को जला कर व आकाश में चमकते तारों यानी कि कृति की अपनी चमकती रोशनी से दीवाली मनाई गई. इस दृश्य में शाहरुख खान का नृत्य भी है. दीवाली की भावना को ‘स्वदेश’ में सरल लेकिन शक्तिशाली क्षणों में सब से अच्छी तरह कैद किया गया है.

बौलीवुड वालों की दीवाली

बौलीवुड से जुड़े लोगों के लिए दीवाली का त्योहार सदैव मिठाइयां बांटने और अपने घर को रोशन करने व घर के अंदर खानापीना तक ही सीमित रहा है. पहले राज कपूर से ले कर अमिताभ बच्चन तक तकरीबन सभी दिग्गज कलाकार अपने घर में ‘दीवाली मिलन समारोह’ का आयोजन करते थे, जहां लोग एकदूसरे को शुभकामनाएं देने व गले मिलने से ले कर मिठाइयों या उपहारों का आदानप्रदान करते थे. तब तक दीवाली के दिन फिल्मी हस्तियों के बौलीवुड से जुड़े लोगों, तकनीशियन आदि के अलावा पत्रकारों के घरों तक मिठाई व अन्य उपहार भिजवाने का चलन था.

अभिनेता शाहरुख खान तो नियम से सभी के घर उपहार भिजवाते रहे हैं लेकिन 2014 के बाद धीरेधीरे बौलीवुड कई खेमों में बंटता चला गया. कोविड 19 की महामारी के बाद से तो बौलीवुड के दिग्गज भी अपनेअपने घर तक ही सीमित हो कर रह गए हैं. आज हालत यह है कि बौलीवुड की फिल्मों के साथ ही बौलीवुड से दीवाली का त्योहार गायब सा हो गया है.

लेकिन दीवाली के त्योहार की छुट्टियों का फायदा लेने के लिए दीवाली पर फिल्में प्रदर्शित करने को ले कर जरूर मारामारी होती रही है, जोकि आज भी बदस्तूर जारी है. इस बार दीवाली के अवसर पर एक नवंबर के दिन बड़े बजट की 2 फिल्में प्रदर्शित होने वाली हैं. इन में से एक अनीस बज्मी निर्देशित ‘भूल भुलैया 3’ तथा दूसरी रोहित शेट्टी निर्देशित ‘सिंघम अगेन’ है. ‘भूल भुलैया 3’ में कार्तिक आर्यन, विद्या बालन, माधुरी दीक्षित, विजय राज, राजेश शर्मा, राजपाल यादव व तृप्ति डिमरी हैं तो वहीं ‘सिंघम अगेन’ में अजय देवगन, अक्षय कुमार, दीपिका पादुकोण, रणबीर कपूर, टाइगर श्रौफ, करीना कपूर, अर्जुन कपूर व जैकी श्रौफ जैसे सितारे हैं.

टीवी सीरियलों में दीवाली का त्योहर बन गया इवैंट

2001 में प्रदर्शित फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ के बाद बौलीवुड फिल्मों से दीवाली का त्योहार गायब हो गया, जबकि टीवी सीरियलों में दीवाली का त्योहार महज एक इवैंट मात्र बन कर रह गया. किसी इवैंट को जिस तरह से बहुत बड़ा बनाने का प्रयास होता है उसी तरह टीवी सीरियलों में दीवाली के त्योहार को ‘पांच दिन के त्योहार’ यानी कि पांच दिन का इवैंट मान कर चित्रित किया जाता है.

टीवी सीरियल के निर्माता ऐसा करते हुए अपने सीरियल के एपिसोड बढ़ाने व टीआरपी बटोरने पर ही सारा ध्यान देते हैं. टीवी सीरियलों में दीवाली का त्योहार मेलोड्रामा के अलावा कुछ नहीं होता. टीआरपी के मद्दे नजर टीवी सीरियलों मे पकवान व मिठाई बनाने या इन की खरीदारी करने से ले कर पटाखों की खरीदारी, घर को रंगबिरंगे बल्बों आदि से सजाने, पूजा की वस्तुओं की खरीदारी, पूजापाठ करना घर के अंदर या बाहर रंगोली बनाना, पटाखे फोड़ना, फुल?ाडि़यां जलाना आदि को अतिभव्य तरीके से फिल्माया जाता है. मगर अफसोस कि टीवी सीरियलों के दीवाली दृश्य दर्शकों को आकर्षित करने में सफल नहीं होते.

आम जीवन में दीवाली या उत्सव गायब, महज दिखावा

फिल्मों से दीवाली के गायब होने की मुख्य वजह यह है कि आम इंसानी जिंदगी से ही दीवाली का उत्सव गायब हो चुका है. आम जीवन से दीवाली या उत्सव को गायब करने में डिजिटलाइजेशन, तकनीकी विकास के साथसाथ राजनीतिक हालात भी जिम्मेदार हैं. इंसान पहले उत्सव मनाने में यकीन करता था. पहले हर इंसान के लिए ‘दीवाली’ या ‘होली’ को उत्सव के तौर पर मनाना भी मनोरंजन का एक साधन था. लोग दीवाली के त्योहार की तैयारी कम से कम एक माह पहले से करना शुरू कर देते थे. एक माह पहले से ही बाजार विभिन्न तरीकों के पटाखों, खिलौने वाली बंदूकों, तरहतरह के पकवानों, शुभकामनाएं भेजने के लिए ग्रीटिंग कार्ड्स, रंगोली के लिए कई तरह की डिजाइनें व रंग, मिट्टी के विभिन्न डिजाइनों व रंगों की दीया आदि की दुकानों से पट जाते थे. लेकिन अब ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता. दीवाली के एक सप्ताह पहले से ही दीये और पटाखों की कुछ दुकानें नजर आती हैं.

अब आम इंसान के लिए दीवाली का त्योहर मनाना महज परंपरा का पालन व मजबूरी मात्र है. बड़े शहरों में कुछ धनाढ्य लोग जरूर अपने पैसों का दिखावा इस दिन करते हुए नजर आते हैं. अन्यथा आम इंसान अपने घरों के दरवाजे या खिड़की पर बाजार से चाइना निर्मित छोटे बल्बों की एक लड़ी लगा कर घर को रोशन करने की रस्म निभा लेता है. वह घर के अंदर परिवार के साथ बैठ कर लक्ष्मीजी की पूजा कर, दोचार दिए जला व शगुन के नाम पर कुछ पटाखे फोड़ देता है. अब दीवाली की शुभकमानाओं के ग्रीटिंग कार्ड भेजने की परंपरा खत्म हो गई है. लोग व्हाट्सऐप पर संदेश भेज कर अपना कर्तव्य निभा लेते हैं. अब तो लोग एकदूसरे के घर जाने से भी दूरी बनाने लगे हैं. उपहारों का आदानप्रदान भी व्हाट्सऐप तक ही सीमित हो कर रह गया है. सच कहें तो इंसान धीरेधीरे एकाकी होता जा रहा है, जिस का असर दीवाली जैसे त्योहार पर भी नजर आता है.

दीवाली में घटती रुचि

वास्तव में फिल्मों से दीवाली के गायब होने के बाद अब आम जनमानस इस त्योहार के साथ जुड़ नहीं पाता. फिल्मों में दीवाली का त्योहार किसी धर्म विशेष तक सीमित नहीं रहता था पर एक तरफ फिल्मों से दीवाली के गायब होने और दूसरी तरफ 2014 के बाद देश में राजनीतिक माहौल बदलने के साथ ही देश के अंदर धर्म को ले कर काफी लंबीचौड़ी दीवारें खड़ी हो गई हैं तो वहीं महंगाई अपना काम कर रही है. तीसरी तरफ सरकार व अदालती आदेश के चलते भी लोगों का पटाखों आदि से मोह भंग हो गया है. कोई भी इंसान पटाखे जलाते हुए खुशी के माहौल को बेवजह पुलिस आदि के चक्कर में पड़ कर दुखदायी नहीं बनाना चाहता.

दीवाली का महत्त्व हिंदूवादी संगठनों व वर्तमान सरकार के लिए भी माने नहीं रखता. यदि लोग ध्यान देंगे तो पता चलेगा कि जब 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी बने थे तब उन्होंने हिंदू चेतना जगाने के मकसद से गुजरात में ‘वायब्रैंट गुजरात’ का नारा देते हुए नवरात्रोत्सव को गरबा व डांडिया खेलने का एक इवैंट बना दिया था. धीरेधीरे गुजरात ही नहीं, यह ‘गरबा व डांडिया’ इवैंट बहुत बड़े पैमाने पर पूरे देश के ढेर सारे शहरों में होने लगे. इस इवैंट से गायकों, डांडिया बनाने वालों, इवैंट में जा नाचगा कर मनोरंजन पाने वालों के लिए नईनई पोशाकें बनाने वालों का एक नया धंधा शुरू हो गया. फिर 9 दिनों के नवरात्रोत्सव में हर दिन के लिए अलगअलग रंग की पोशाक का सिलसिला शुरू कर दिया गया.

इसी तर्ज पर गणेशोत्सव भी मनाया जाने लगा, जिस के चलते हर गणेश पंडाल के सामने कतारें लगने लगीं. वर्ष 2000 से पहले मुंबई के ‘लाल बाग का राजा’ के दर्शन हर इंसान बड़े आराम से कर लेता था, तब कतारें नहीं लगती थीं, तब वहां भीड़ नहीं होती थी, पर 2002 के बाद ही यह भी इवैंट हो गया. इवैंट का मतलब बाजारीकरण हो गया तो खुद राज्य सरकारें व वर्तमान केंद्र सरकार से जुड़े लोगों की रुचि गणेशोत्सव और नवरात्रोत्सव में है पर ऐसा लगता है कि दीवाली में अब कोई रुचि नहीं रह गई है.

दीवाली ऐसा त्योहार है जिसे हजारों या लाखों लोग एकसाथ किसी जगह पर इकट्ठा हो कर नहीं मना सकते. इसलिए भी सरकार ने इस तरह के त्योहार पर कई तरह की पाबंदियां लादते हुए धीरेधीरे लोगों के अंदर दीवाली मनाने का उत्साह ही खत्म कर दिया है.

Diwali 2024 : इस दीवाली खुद चमकाएं अपना घर

दीवाली पर घर की सफाई हर साल की तरह एक बड़ी चुनौती बन जाती है लेकिन इस बार क्यों न इसे एक खास अवसर में बदलें, क्यों न घर को पूरी फैमिली के साथ मिल कर चमकाएं, इस से न केवल सफाई जल्दी होगी बल्कि परिवार के साथ बिताए पलों की खुशियां भी दोगुनी हो जाएंगी.

क्यों न इस बार दीवाली कुछ खास अंदाज में मनाएं. घर को चमकाने की जिम्मेदारी किसी बाहरी व्यक्ति को क्यों सौंपना? क्या यह काम सब फैमिली मैंबर्स मिल कर साथ में नहीं कर सकते?

क्या आप को नहीं लगता इस से पैसों की भी बचत होगी और एंजौयमैंट भी ज्यादा होगा? इस से न सिर्फ आप का एक्स्ट्रा टाइम बचेगा बल्कि फैमिली के साथ टाइम स्पैंड करने का मौका भी मिलेगा.

लेकिन हां, घर की सफाई कोई एक ही व्यक्ति करे, ऐसा नहीं होना चाहिए. इस के लिए घर के हर सदस्य को साफसफाई का ध्यान रखना चाहिए. ऐसे में घर के सदस्यों को अलगअलग काम सौंपे जाएं. इस से कम समय में ही पूरे घर की साफसफाई हो जाएगी. वैसे भी, हम सब अपनीअपनी लाइफ में इतना बिजी हैं कि छोटेबड़े इकट्ठे कम ही हो पाते हैं. लेकिन इस बार सफाई के बहाने सब साथ मिल कर काम बांट लेते हैं और एकदूसरे के सहयोग से म्यूजिक सुनते हुए, खातेपीते हुए, घर के कुछ काम भी निबटा लें.

यकीन मानिए साथ मिल कर घर चमकाने का जो सुख है वह बाहर से लेबर बुला कर करवाने में नहीं मिलेगा. उस में तो आप को सफाई करवाना भी बोझ लगेगा. ऊपर से खासा पैसा खर्च होगा सो अलग. और अगर आप यह काम खुद ही कर लेते हैं तो आधे पैसों की बचत कर त्योहार का पूरा खर्चा निकाल लेंगे, वह भी एंजौय करते हुए. साथ ही, अगर आप खुद ही सफाई के काम में लगेंगे तो समय के बीतने का पता ही नहीं चलेगा.

अब घर को चमकाने का काम सिर्फ महिलाओं का ही नहीं बल्कि घर के सब सदस्यों का होगा और आने वाले हर साल आप अपने हिस्से के टास्क को पूरा करने के लिए खुद बेचैन रहेंगी तो आप को इतनी खुशी मिलेगी कि त्योहार मनाने का मजा ही दोगुना हो जाएगा. अगर यकीन नहीं हो रहा तो जरा इस दीवाली यह कर के देख लें. आइए जानें कि कम खर्च में कैसे अपने घर को चमकाएं.

पुताई के लिए क्या सामान चाहिए

पेंट, ब्रश, पेंट मिक्सर, प्लास्टिक शीट, इंटीरियर पेंट प्राइमर, पेंट रोलर, कोमल बालों वाला हाथ का पेंट ब्रश, कैनवास या प्लास्टिक का ड्रौपक्लौथ, पेंटर्स टेप, पानी, माइल्ड लिक्विड डिटर्जेंट, साफ कपड़ा या स्पंज आदि.

जहां काम करना है, वहां ऐसे करें तैयारी

जिस भी जगह पेंट कर रहे हैं, वहां रोशनी का अच्छा इंतजाम होना चाहिए. आप चाहें तो लाइट अच्छी रखें या फिर खिड़कियां खोल लें. पेंट से पहले आप पीपी किट, चश्मा और मास्क लगा लें. अगर दीवार पर कोई छेद है तो पहले आप पुट्टी से छेद भर दें. फर्श या न हटने वाले सामान को पेपर या पोलीथिन से ढक दें. दीवारों पर लगी कोई भी नौब्स, आउटलेट कवर्स, लाइट स्विच फेस्प्लेट्स, थर्मोस्टेट, पेंटिंग आदि उतार दें ताकि स्मूथ तरीके से पेंट किया जा सके.

जिस कमरे में आप पेंट करने जा रहे हैं वहां से फर्नीचर और अन्य सामान हटा दें. अपने घर के फर्नीचर और बाकी सभी चीजों को प्लास्टिक कवर की मदद से ढक दें ताकि वे गंदे न हों. सभी इलैक्ट्रौनिक सामान का प्लग निकाल दें और संभाल कर रख दें. पेंटर टेप की मदद से सीलिंग फैन और छत के किनारों को ढक दें.

खराब पेंट को हटाएं

अगर आप के घर की सतह पर कोई पुराना, खराब पेंट है तो आप को आगे बढ़ने से पहले उसे हटाना होगा. किसी भी ढीले पेंट को हटाने के लिए वायर ब्रश या पेंट स्क्रैपर का उपयोग करें और किसी भी खुरदरी सतह को चिकना करने के लिए पावर सैंडर (या लकड़ी के ब्लौक के चारों ओर लपेटे गए सैंडपेपर का एक टुकड़ा) का उपयोग करें.

छत पर पेंट

छत पर रोलर से पेंट करना ज्यादा आसान रहता है. इस से हाथ भी नहीं दुखते. पूरी छत पर पेंट करने के बाद उसे सूखने दें और फिर दूसरा कोट करें. छत की आउट लाइनिंग के लिए 2 -3 इंच के पेंट ब्रश का यूज करें.

पेंट का चुनाव करें

100 प्रतिशत ऐक्रेलिक लेटेक्स जैसी उच्च गुणवत्ता वाला बाहरी पेंट चुनें. इस से बेहतर रंग बनेगा, यह जल्दी सूखेगा और लंबे समय तक टिकाऊ रहेगा.

जो भी पेंट लें उस के ‘प्रीमियम’ या ‘सुपर प्रीमियम’ लेबल वाले डब्बे चुनें.

पेंट को इस्तेमाल करने से पहले अच्छे से मिक्स किया जाना जरूरी होता है. पेंट को कंसिस्टेन्सी पर लाने के लिए बिजली से चलने वाले पेंट मिक्सर या हाथ से चलाने वाली स्टिक का इस्तेमाल करिए.

प्राइमर का यूज करें

दीवारों को पेंट करते समय प्राइमर का इस्तेमाल करना अच्छा रहता है क्योंकि यह लंबे समय तक टिकता है और साथ ही, इस के ज्यादा कोट करने की भी जरूरत नहीं होती. प्राइमर खासतौर पर तब और भी फायदेमंद हो जाता है जब आप को हलके रंग के ऊपर गहरे रंग का पेंट करना होता है. तंग दरारों में और जिन जगहों पर कठिनाई से पहुंचा जा सकता हो वहां ब्रश की नोक से प्राइमर लगाइए. कोनों, दीवार के फिक्सचर्स पर विशेष ध्यान दीजिए. प्राइमर को अच्छी तरह से सूखने दें.

पेंट कुछ इस तरह करें

छत पर पेंट करने के लिए आप रोलर का उपयोग करें. पेंट करते वक्त ध्यान रखें, डब्ल्यू आकार में पेंट करें, पहले ऊपर से नीचे, फिर दाएं से बाएं. पहला कोट सूखने के बाद दूसरा कोट लगाएं. इस से पेंट काफी जल्दी होगा. ऊंचाई वाली जगह पर पेंट के लिए सीढ़ी का यूज करें.
पेंट ब्रश की नोक को पेंट में डुबोइए और अतिरिक्त पेंट को बह जाने दीजिए. अब कमरे में ऊपर वाले किसी कोने से दीवार पर पेंट लगाइए. जब आप ने दीवार की बाहरी एजेज को पेंट कर लिया हो तब बीच वाला हिस्सा पेंट करने के लिए चौड़े रोलर का इस्तेमाल करिए.

पेंट की टौप कंपनियां

एशियन पेंट्स, नेरोलैक पेंट्स, बर्जर पेंट, जोतुन पेंट्स, ड्यूलक्स पेंट्स, शालीमार पेंट्स, इंडिगो पेंट्स, जेनसन और निकोल्सन पेंट्स, निप्पोन पेंट्स, स्नोकेम पेंट्स, एक्रिलिक पेंट आदि.

पेंट कैसेकैसे

हमारे घर में कुछ ऐसे कमरे होते हैं जहां कम या मध्यम रोशनी होती है. उन के लिए मिड शीन इमल्शन जैसे सिल्क या वेलवेट बेस्ट हैं.

मैट फिनिश : गहरे रंग की दीवारें, जहां अधिक सूरज की रोशनी आती है वहां मैट फिनिश सही रहता है.

सेमी ग्लास पेंट्स : किचन और बाथरूम के लिए, जहां नमी ज्यादा होती है वहां सैमी ग्लास पेंट्स ठीक रहते हैं.

पेंट की कीमत

आमतौर पर एक लिटर पेंट की कीमत तकरीबन 355 रुपए से शुरू होती है. पेंट के दाम कई बातों पर निर्भर करते हैं, जैसे कि आप कौन से प्रकार का पेंट ले रहे हैं, बाहरी रंग के लिए या अंदरूनी रंग के लिए. साथ ही, वह पेंट इनेमल वाला है, ऐक्रेलिक है, वाटरप्रूफ है या किसी अन्य प्रकार का है. जैसे कि, एशियन पेंट्स की 1 लिटर की कीमत 470 रुपए है. वहीं नेरोलैक के 1 लिटर पेंट की कीमत 490 रुपए है.

डीलक्स प्रोमिस इंटीरियर इमल्शन पेंट 4 लिटर के पैक की कीमत 852 रुपए है. प्राकृतिक पेंट सफेद डिस्टैंपर एक लिटर वाल पेंट 90 रुपए में मिल जाता है. जोतुन ड्युरोसन एक्शन ऐक्रेलिक इमल्शन पेंट्स का शानदार सफेद और वाइब्रैंट रंग का 4 लिटर का पैक 940 रुपए का मिलता है. 1001 रेडी मिक्स सौल्वेंट वौल पेंट 400 मिलीलिटर का 165 रुपए में मिल जाता है.

निप्पोन पेंट ऐक्रेलिक लेटेक्स प्राइमर, (1 लिटर, सफेद) की कीमत 153 रुपए है.

इंडीकस ड्रेपर इंटीरियर पेंट वाटर प्रूफ ऐक्रेलिक इमल्शन घर के अंदर की दीवारों के लिए अच्छा रहता है. एंटी-पील तकनीक. 1 लीटर की कीमत 425 रुपए है.

सोफे की साफसफाई

सोफों को साफ करवाने में बहुत खर्च हो जाता है जबकि आजकल बहुत से ऐसे क्लीनर आ गए हैं जिन की मदद से मिनटों में आप अपने सोफे को चमका देंगे. सब से पहले तो आप कौटन के साफ कपड़े से धुलमिट्टी को साफ करें. वैक्यूम क्लीनर की मदद से सोफे के हरेक हिस्से से सब से पहले जमी हुई धूल निकाल लें. इस से धूल और मिट्टी बड़ी ही आसानी से साफ हो जाती है.

अगर आप घर पर ही कोई स्प्रे बनाना चाहते हैं तो उस के लिए एक स्प्रे बोतल में आधा कप कंडीशनर, आधा कप विनेगर और बाकी गरम पानी डाल कर मिला लें. इसे सोफे पर स्प्रे कर के थोड़ी देर के लिए छोड़ें और फिर किसी कपड़े या सौफ्ट ब्रिस्टल वाले ब्रश से साफ कर लें.

कपड़े के सोफे के लिए साबुन, फिटकरी और गुनगुने पानी का मिश्रण बनाएं और इसे दाग वाली जगह पर हलके से स्प्रे करें. इस के बाद किसी सूखे कपड़े से इसे पोंछ दें. लैदर के सोफे के लिए फिटकरी के साथ औलिव औयल का इस्तेमाल करें.

वेलवेट सोफा पर डस्ट काफी जमा हो जाती है. इसे आप साफ करने के लिए वैक्यूम क्लीनर की मदद ले सकते हैं. इस के अलावा आप चाहें तो इसे सौफ्ट डिटर्जेंट की मदद से भी क्लीन कर सकते हैं.

लैदर सोफा को क्लीन करना आसान होता है. आप चाहें तो इस का क्लीनर खरीद लें और इस की मदद से इसे साफ कर लें. इस के अलावा, आप सोफे को पानी और सिरके के घोल की मदद से भी क्लीन कर सकते हैं. आप चाहें तो किसी सौफ्ट कपड़े को गीला कर निचोडें़ और उस की मदद से इसे क्लीन कर लें.

लैदर, रैक्सीन और फैब्रिक की तरह पोलिएस्टर को साफ नहीं करना चाहिए. यह सोफे को डैमेज करता है. पोलिएस्टर के सोफे को साफ करने के लिए साफ और हलके गीले स्पंज का इस्तेमाल करें. इसे दाग की जगह पर हलके हाथों से रगड़ें. अगर दाग नहीं निकलता है तो पानी और डिश सोप को ले कर इसे साफ करें.

सोफे पर लगे टुकड़ों, गंदगी और बालों को हटाने के लिए ब्रश का इस्तेमाल करें. अधिक अच्छी तरह से साफ करने के लिए वैक्यूम पर ब्रश अटैचमैंट का उपयोग करें. यदि संभव हो तो कुशन हटाएं और उन्हें अलग से साफ करें. सोफे पर बेकिंग सोडा छिड़कें और 20-30 मिनट के लिए छोड़ दें. फिर बेकिंग सोडा को वैक्यूम करें. सोफे को हवा में सूखने दें.

सोफा क्लीनर कैसेकैसे

यूनीवैक्स कार एंड सोफा ड्राई क्लीनिंग कैमिकल : कार और सोफा ड्राई क्लीनिंग कैमिकल- अपहोल्स्ट्री क्लीनर (1 लिटर) की कीमत 500 रुपए है लेकिन डिस्काउंट के बाद कम कीमत में मिल जाएगा.

वेवेक्स अपहोल्स्ट्री एंड कारपेट क्लीनर : वेवेक्स अपहोल्स्ट्री और कारपेट क्लीनर (1 लिटर) – कार सीट क्लीनर, सोफा क्लीनर, कारपेट क्लीनर, काररूफ क्लीनर और अधिक के लिए कार इंटीरियर क्लीनर के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. इस में क्लीनिंग ब्रश और कपड़ा शामिल है. इस की कीमत भी 500 रुपए के आसपास है और यह डिस्काउंट के बाद काफी सस्ता पड़ेगा.

सेनु अपहोल्स्ट्री क्लीनर : यह एक अच्छा क्लीनर है जो 600 मिलीलिटर के पैक में आता है. इस का सोफा फैब्रिक, कारपेट और कारसीट पर स्प्रे किया जाता है. यह जिद्दी दागों को हटाता है. इस की कीमत 330 रुपए है.

किचन की सफाई

किचन में धूलमिट्टी के अलावा तेल के दागधब्बे दीवार और फर्श पर आ जाते हैं. इसे साफ करते समय डिशसोप, गरम पानी, स्कैच क्लीनर की मदद ले सकते हैं. किचन की दीवारों, रैंप और सिंक साफ करें. किचन में रखे डब्बों आदि को भी ?ाड़पोंछ लें. धब्बों को साफ करने के लिए एल्बो ग्रीस का इस्तेमाल करें. गिलास और दूसरे नाजुक बरतनों को एहतियात से धोएं.

चांदी के बरतनों की सफाई

चांदी के बरतनों की सफाई के लिए किसी बड़े बरतन में थोड़ा पानी ले कर उस में एल्यूमीनियम फोइल का एक टुकड़ा, थोड़ा सा खाने वाला सोडा और कपड़े धोने के साबुन का एक टुकड़ा मिलाएं और उबाल दें. इस पानी में चांदी के बरतनों को कुछ देर के लिए छोड़ दें, फिर ठंडे पानी से धो लें. इस के अलावा चांदी के बरतनों पर टूथपेस्ट लगा कर और कुछ देर बाद रगड़ कर धोने से भी वे चमक उठते हैं. 1 लिटर पानी में 1 चम्मच बेकिंग सोडा डाल कर चांदी के बरतनों को इस में डाल दें. उस के बाद फोइल पेपर से रगड़ें. चांदी के बरतन चमक उठेंगे.

पीतल के बरतनों की सफाई

पीतल के बरतनों या दूसरी चीजों को साफ करने के लिए इमली, नमक, नीबू और सिरके का इस्तेमाल कर सकते हैं. वैसे, पीतल के शोपीस
और पुराने बरतनों को साफ करने के लिए मार्केट में खास लिक्विड भी मिलता है.

माइक्रोवेव की सफाई

नीबू में एसिडिक गुण होते हैं जो सफाई के लिए बहुत अच्छे होते हैं. आधे कटोरे पानी में आधा नीबू निचोड़ें और इसे अच्छे से मिला लें. अब इसे माइक्रोवेव में अच्छे से उबाल कर 10 मिनट के लिए छोड़ दें. इस की नमी माइक्रोवेव में फैल जाएगी. अब इसे मुलायम कपड़े से पोंछ कर साफ कर लें. इस में थोड़ा सा वाइट वेनेगर मिलाने से यह और भी ज्यादा चमक जाएगा.

पंखों की सफाई

पंखों की सफाई करने से पहले फर्नीचर, बैड आदि पर पुरानी बैडशीट या पुराने अखबार डाल दें जिस से पंखों की गंदगी उन पर न गिरे. फिर सूखे कपड़े से पंखा साफ करें. इस के बाद साबुन वाले पानी में कपड़ा भिगो कर पंखा साफ करें और आखिर में सूखे कपड़े से पोछ दें. बेहतर होगा कि सीढ़ी पर खड़े हो कर पंखे साफ करें. ऐसा मुमकिन न हो तो एक लंबे रौड में सूखा कपड़ा बांध लें और उस से पंखे साफ करें. फिर गीला कपड़ा बांध कर साफ करें.

इस के अलावा एक पुराने तकिए के कवर को पंखे के ब्लेड में डालें जैसे कि आप इसे तकिए पर चढ़ाते हैं. इस के बाद इसे ऊपर से ब्लेड पकड़ कर साफ करें. इस तरह इस पर जमी सारी गंदगी कवर के जरिए बाहर आ जाएगी.

डोरबेल और स्विचबोर्ड भी साफ करें

डोरबेल और दूसरे स्विचबोर्ड भी साफ करें. इन्हें कई लोग छूते हैं. साथ ही, इन पर धूलधब्बे भी जमते रहते हैं. इन्हें साफ करने के लिए सब से पहले आप घर का मेन स्विच औफ कर दें. फिर कपड़े को डिटर्जेंट घोल में गीला करें और स्विच पर रगड़ें. जब ये अच्छी तरह सूख जाएं, तभी पावर औन करें.

बाथरूम की सफाई

बाथटब को साफ करने के लिए सिरके में वाशिंग पाउडर मिलाएं और जहां दाग है, वहां लगा दें. 10 मिनट के बाद रगड़ कर धो दें. बाथरूम के पीले दागधब्बों को हटाने के लिए तारपीन तेल में नमक मिला कर साफ करें. इस से बाथरूम चमक उठेगा. सफाई के बाद बाथरूम में खुशबू के लिए एयर फ्रैशनर लगाएं.

घर को जगमगाएं इन रंगबिरंगी लाइट वाली लडि़यों से

पावर पिक्सल की 15 मीटर की लड़ी का रेट तकरीबन 100 रुपए है. फैंसी लाइट में एक चिडि़या और तितली की शेप की लटकन आई है.

तितली वाली डिजाइन का रेट 1,500 रुपए है जबकि बर्ड्स वाली डिजाइन की कीमत 2,000 रुपए है. वहीं, इस बार एक और नई चीज देखने में आ रही है कि काफी लंबी लडि़यों की मांग ज्यादा है और बाजारों में भी वही मिल रही हैं. इस बार 15 या 20 मीटर की लड़ी की मांग कम है, इस की जगह 50 मीटर या उस से भी ज्यादा लंबी लड़ी लोग ज्यादा खरीद रहे हैं. इसी वजह से इस बार पिक्सल लाइट्स की लडि़यों में काफी लंबी लैंथ भी मार्केट में आई है, जो 150 से 200 मीटर तक की है.

लंबीलंबी लाइट को रोल कर के, उस पर वाइट टेप लगा कर घर की छत पर लगा कर कई तरह के लाइट के गुच्छे बनाए जा सकते हैं. इन गुच्छों को थोड़ाथोड़ा गैप के साथ दीवारों पर लटकाया जा सकता है.

खिड़कियों, दरवाजों और फर्नीचर को सजाने के लिए एलईडी स्ट्रिप लाइट्स का इस्तेमाल किया जा सकता है. आंगन को सजाने के लिए भी इन का इस्तेमाल किया जा सकता है.

बालकनी को सजाने के लिए फेयरी लाइट्स का इस्तेमाल किया जा सकता है. कलरफुल लाइट्स सब को भाती है तो आप बाजार से मल्टीकलर लेड लाइट्स ले आएं. इन्हें चाहें आप बालकनी में रेलिंग पर लटकाएं या इन का गुलदस्ता बना कर रखें. ये देखने में काफी आकर्षक लगती हैं.

दीवाली पर आप अपनी बालकनी को रंगबिरंगी लडि़यों वाली लाइट्स से सजा सकते हैं. इस के साथ ही स्टार वाली या लटकने वाली लाइटें भी लगा सकते हैं.

फेयरी लाइट्स को वायरलैस या सोलर पावर्ड लेना चाहिए. इन्हें लगाने के लिए लड़ी या हुक और नेल्स का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस की कीमत 300 रुपए से शुरू हो जाती है.

स्टार लाइट्स का अपना ही क्रेज है. आप भी इन लाइट्स को अपने घर में लगा सकते हैं. ये लाइट्स काफी लंबी नहीं होती हैं, इसलिए इन्हें उस दीवार पर लगाया जाता है जिसे आप को ज्यादा आकर्षक दिखाना होता है. इसी तरह बालकनी में एक वौल से दूसरी वौल तक हैंग इन्हें किया जाता है, जिस से ये बहुत आकर्षक लगती हैं. ये ज्यादा महंगी भी नहीं आतीं बल्कि 200 रुपए से 500 रुपए तक की कीमत में मिल जाती हैं.

सैंसर वाले सैल वाले दीये काफी पसंद किए गए हैं, जिन्हें पानी पर रखने से वे जलते थे. इसी में एक नई वैरायटी आई है हैंगिंग सैंसर वाले दीये. इसे बस लटकाना होता है और ये दीये की तरह जलते नजर आते हैं. इन की कीमत प्रति पीस 30-40 रुपए तक है.

ढीलीढाली रिसर्च से बनी फिल्म “सैक्टर 36”

साइकोपैथ्स या साइकोकिलर्स को ले कर बौलीवुड में फिल्में कम बनी हैं. यह डार्क जोन माना जाता है. इस तरह की फिल्में भारत में कमर्शियली हिट नहीं होतीं. एक ऐसे अपराधी को परदे पर देखना और उस के क्राइम की डिटेलिंग में जाना घिनौना लगता है, हां पर इन किरदारों को निभाने वाले कलाकारों की इंटैंसिटी जरूर चर्चा में आ जाती है.

आमतौर से भारत में ऐसे डायरैक्टर कम ही हैं जो ऐसे किरदारों को ठीक से फिल्माएं और इस के साइकोलौजिकल साइड को समझ पाएं. हौलीवुड में साइकोथ्रिलर फिल्में खूब बनती हैं. वहां दर्शक इस तरह की फिल्में देखना पसंद भी करते हैं. ‘डार्क नाइट्स’ और ‘जोकर’ जैसी फिल्में इस के उदाहरण हैं. वहीं भारत में इस तरह की फिल्मों को ओटीटी लायक ही समझा जाता है क्योंकि इस में मसालों की कमी रहती है.

फिल्म ‘सैक्टर 36’ भी ओटीटी पर रिलीज हुई. यह एक क्राइम थ्रिलर फिल्म है जो असल घटना पर आधारित है. यह घटना ‘निठारी कांड’ के नाम से जानी जाती है. साल 2006 में नोएडा के सैक्टर 36 के निठारी गांव में घटी उस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था जब पता चला कि एक कोठी के पीछे वाले नाले से करीब 2 दर्जन बच्चों और बच्चियों के नरकंकाल बरामद हुए हैं. इस मामले में कोठी के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उस का नौकर सुरेंद्र कोली आरोपी थे.

यह एक घृणित फिल्म है. एक नाले से कटे हुए हाथ से शुरू हुई तफतीश करीब दो दर्जन बच्चों के अस्थिपंजर तक पहुंचेगी, यह सब किसी वीभत्स फिल्म जैसा लगता है. पिछले साल सुबूतों के अभाव में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस कांड के दोनों आरोपियों को बरी कर दिया था.
आजकल निठारी कांड एक बार फिर चर्चा में है. आखिरकार गाजियाबाद की सैशन कोर्ट ने प्रदेश सरकार को मौत का परवाना जारी कर दिया है. कोर्ट ने प्रदेश सरकार को कोली का डैथ वारंट जारी कर इसे लागू करने के लिए आवश्यक कार्यवाही करने के निर्देश दिए हैं.

फिल्म की यह कहानी सच्ची घटना से प्रेरित है. आज भी निठारी गांव के बच्चों की आंखों में खौफ नजर आता है. सैक्टर 31 की कोठी नंबर डी-5 में इंसान के रूप में मौजूद भेडि़यों ने 17 बच्चों को अपना शिकार बना कर वहीं दफन कर दिया. इस कोठी में रहने वाले नरपिशाचों ने मासूम बच्चों को किसी न किसी बहाने अपने पास बुला कर उन के साथ हैवानियत की हदें पार कीं. साथ में, उन की हत्या करने के बाद लाशों को टुकड़टुकड़े कर नाले में बहा दिया.

यह फिल्म उन्हीं हत्याओं की तफतीश करती है. मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली बच्चों के शवों के छोटेछोटे टुकड़े कर पका कर खाते थे और हड्डियां कोठी के पीछे नाले में बहा देते थे.

फिल्म की कहानी एक कोठी से शुरू होती है, जहां प्रेम सिंह (विक्रांत मैसी) सोफे पर लेटे हुए टीवी पर करोड़पति बनाने वाला शो देख रहा होता है. शो खत्म होने पर वह उठता है, प्लेट में हड्डियां साफ करता है और ऊपर अपने कमरे में जाता है जहां पहले से बंधी स्कूली बच्ची को बेरहमी से मौत के घाट उतार देता है. यह पहला ही सीन रोंगटे खड़े कर देता है.

कोठी के पास की बस्ती से लगातार बच्चे गायब हो रहे हैं. बच्चों के मातापिता इंस्पैक्टर रामचरण पांडे (दीपक डोबरियाल) के पास लगातार बच्चों के गायब होने की शिकायत दर्ज कराने आ रहे हैं. जब एक दिन पांडेजी की खुद की बच्ची अगवा होने के कगार पर आ जाती है तब रामचरण पांडे का जमीर जागता है और एक के बाद एक खुलासे सामने आते हैं.

निर्देशक ने अपनी पहली ही फिल्म में एक साइकोपैथ की मनोदशा, सिस्टम की खामियां और अमीरगरीब की खाई को दिखाया है. फिल्म में पुलिस पर व्यंग्य भी किया गया कि कैसे अमीर बिजनैसमैन के बेटे को 2 दिनों में खोज निकालने वाली पुलिस गरीब बच्चों की गुमशुदगी को ले कर कानों में तेल डाले बैठी रहती है.

अच्छी बात यह है कि फिल्म को जस का तस रखा गया है. फिल्म को ड्रामेटिक नहीं होने दिया गया. जांच को भी सामान्य रखा गया है, ऐसा नहीं लगने दिया कि पुलिस ने इस हाई प्रोफाइल मामले को कई सुरागों, गुत्थियों से सुल?ाया हो. शुरुआत से ही प्रेम सिंह और उस के मालिक पर शक था, वही मुजरिम निकले भी.

हां, डायरैक्टर ने साइकोकिलर प्रेम सिंह की साइकोलौजी में घुसने की नाकाम कोशिश जरूर की है. परदे पर यह दिखाने की कोशिश हुई कि चूंकि उस का बचपन बेहद डिस्टर्ब रहा, इस कारण वह बच्चों से ऐसी बर्बरता करता था. यह बात न ठीक से डिलीवर हो सकी, न जस्टिफाई हो पाई.

वहीं, मालिक के किरदार की लेयर भी ठीक से देखने को नहीं मिलती. उसे बहुत कम स्क्रीनटाइम दिया गया. फिल्म साइकोथ्रिलर के नाम पर महज अच्छी ऐक्ंिटग और बर्बर हिंसा परोसती है, कैरेक्टर के बैकग्राउंड पर लेशमात्र की रिसर्च नहीं की गई है.

‘12वीं फेल’ के बाद साइकोपैथ की भूमिका में विक्रांत मैसी ने बढि़या अदाकारी दिखाई है. दीपक डोबरियाल का अभिनय भी बढि़या है. तकनीकी दृष्टि से फिल्म ठीकठाक है, परंतु हिंसा ज्यादा है. यह फिल्म कमजोर दिलवालों के लिए नहीं बनी है. इस तरह की फिल्मों में गीतसंगीत कोई माने नहीं रखता. सिनेमेटोग्राफी बढि़या है.

फिल्म रूखीसूखी है, फिल्म में कोई मनोरंजन नहीं है, नायिका भी नहीं है. फिल्म में बच्चियों के शरीर के कटे अंगों को पका कर खाते हुए दिखाया गया है. फिर भी क्राइम थ्रिल वाली फिल्में पसंद करने वालों को यह कुछ हद तक भा सकती है.

लव सितारा??

फिल्म ‘लव सितारा’ एक फैमिली ड्रामा है. इस साफसुथरी मगर धीमी फिल्म को परिवार के साथ एंजौय कर सकते हैं. फिल्म हम सब को एक ऐसे संसार में ले जाती है जहां आप, हम सब उल?ो हुए हैं. हम सब परिवार से ही बातें छिपाते हैं कि कहीं हमें जज न किया जाए. इस से चीजें और भी खराब हो जाती हैं.

फिल्म एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के गिल्ट की बात भी करती है. यह अपने परिवार को हमेशा सच बताने को कहती है. फिल्म बताती है कि खुशी हमेशा सचाई में मिलती है.

फिल्म की साधारण कहानी बेहतरीन अंदाज में फिल्माई गई है. कहानी आप को मुसकराने के लिए बाध्य करेगी. कहानी में एक छोटे से दक्षिण भारतीय घर को दिखाने की कोशिश की गई है. आसपास की प्रकृति का पूरा इस्तेमाल किया गया है. डाइनिंग टेबल के गौसिप से ले कर शादी से पहले की उथलपुथल तक यह कहानी रोचक बनी रहती है. शोभिता धुलिपाला के चेहरे पर हर वक्त फैली मुसकान दर्शकों को मुसकराने पर बाध्य करती है.

कहानी की शुरुआत सितारा (शोभिता धुलिपाला) से होती है. डाक्टर से पता चलता है कि वह प्रैग्नैंट है. इस बात का सितारा को खुद को पता नहीं था. वह शौक्ड रह जाती है. उसे बैस्ट डिजाइनर का अवार्ड मिलने वाला था, इसलिए उस ने पार्टी रखी थी. पार्टी में वह अपने बौयफ्रैंड अर्जुन (राजीव सिद्धार्थ) का पार्टी में इंतजार कर रही थी.

अगले सीन में हम अर्जुन को देखते है. आते ही वह सितारा से लेट आने पर सौरी कहता है. सितारा अर्जुन से कहती है कि वह उस से शादी करना चाहती है. अर्जुन शौक्ड रह जाता है. 2 साल पहले उस ने सितारा को प्रपोज किया था परंतु सितारा ने मना कर दिया था. इस बार अर्जुन मान जाता है. सितारा चाहती थी कि अर्जुन के सिंगापुर जाने से पहले वे दोनों शादी कर लें. दोनों अपनेअपने घरवालों से शादी की बात बता देते हैं. सितारा के पापा बेटी की शादी बड़े होटल में करना चाहते थे परंतु सितारा अपनी शादी नानी के घर से करना चाहती थी. अर्जुन को उस ने नहीं बताया था कि वह प्रैग्नैंट है. सितारा अपने मम्मीपापा के साथ नानी के घर आ जाती है.

सितारा की नानी सितारा की मौसी हेमा (सोनाली कुलकर्णी) के साथ रहती थी. हेमा एयरहोस्टेस थी. उस ने अभी तक शादी नहीं की थी. सितारा को एक फोटो अलबम से पता चलता है कि उस के डैडी अरविंद और एयरहोस्टेस हेमा के बीच अवैध संबंध हैं. इस के बारे में उस की मां को कुछ भी पता नहीं है.

हेमा अरविंद पर अपनी पत्नी को तलाक लेने के लिए दबाव बनाती है. अब सितारा अपने पापा से ठीक से बात नहीं करती थी. वह गिल्ट फील कर रही थी. उसे यह पता नहीं था कि यह बच्चा किस का है. लंदन में एक रात नशे में चूर सितारा के किसी युवक के साथ संबंध बन गए थे.

इधर सितारा की मां को भी पता चल जाता है कि वह प्रैग्नैंट है. तभी वहां अर्जुन भी आता है. सुन कर उसे भी पता चल जाता है कि सतारा प्रैग्नैंट है. सितारा अर्जुन को सब सच बता देती है कि उस की मौसी और पापा का अफेसर था. सितारा की मां हेमा को माफ करने वाली नहीं थी.

सितारा फैसला करती है कि वह अपने बच्चे को जन्म देगी और पालेगी. सितारा को कुछ वर्षों पहले पता चल गया था कि उस की दोनों ओवरीज डैमेज हैं और भविष्य में वह कोई बच्चा पैदा नहीं कर सकेगी.

5 महीने बीत जाते हैं. अरविंद दुबई जाने वाला है, यह बात उस ने हेमा से छिपाई थी. अब हेमा अरविंद को रोकने की कोशिश करती है. मगर अरविंद उसे छोड़ कर चला जाता है.

दादी के पूछने पर सितारा बताती है कि वह अपने बच्चे को रखना चाहती है.

हेमा की लाइफ खुश नहीं थी. अर्जुन सिंगापुर पहुंच जाता है. सितारा अपने बच्चे के लिए एक नर्सरी का डिजाइन करती है. 5 महीने बाद हेमा वापस अपने घर आ जाती है और अपनी बहन से सौरी कहती है. तभी दादी हेमा और लता से कहती हैं कि तुम्हारा पिता मुझे छोड़ कर अपनी प्रेमिका के साथ भाग गया था. जब वह छोड़ कर गया तो दादी 20 वर्ष की थीं. उन के 2 बच्चे थे. इसीलिए दादी ने इन दोनों को प्यार नहीं दिया. वे सितारा से कहती हैं कि उन्होंने उस के बच्चे के नाम प्रौपर्टी वगैरह सबकुछ कर दिया. सितारा अर्जुन के पास वापस सिंगापुर लौट जाती है. दोनों एकदूसरे को गले लगाते हैं.

फिल्म की यह कहानी एक अनहैप्पी फैमिली की है. यह कहानी 4 पीढि़यों की बेटियों की कहानी है- घर की मुखिया मां, उन की 2 बेटियों- एक शादीशुदा और दूसरी एक शादीशुदा मर्द संग विवाहेतर रिश्तों में. केरल में रह रही सितारा की नानी बिंदास है, सैक्स, संभोग और मैथुन उन के लिए गायों के वंश बढ़ाने के साधन मात्र हैं.

शुरू में यह फिल्म धीमी रफ्तार में चलती है. फिल्म में जयश्री, उस की दोनों बेटियां- वर्जीनिया रौड्रिग्स व सोनाली कुलकर्णी और शोभिता धुलिपाला हैं. तीन पीढि़यों की ये बेटियां जब क्लाइमैक्स में एकसाथ फ्रेम में होती हैं तो फ्रेम खिल उठता है. लेकिन यहां तक आतेआते
3 पीढि़यों की 4 अलग कहानियों की सचाई खुलती है.

फिल्म का निर्देशन अच्छा है. फिल्म साफसुथरी है. फिल्म का हर फ्रेम किसी पेंटिंग जैसा लगता है. किरदारों की पोशाकों पर ध्यान दिया गया है. फिल्म की पटकथा थोड़ी और चुस्त होती तो ज्यादा अच्छा होता. निर्देशिका कहानी को आखिरी के 30 मिनटों में सारा सस्पैंस खोलती है. गीतसंगीत याद नहीं रह पाते. शोभिता धुलिपाला का काम सब से बढि़या है. सिनेमेटोग्राफी अच्छी है.

पूजापाठ से नहीं, धनधान्य मेहनत से मिलता है

दीवाली को धार्मिक त्योहार मानने की हमारी पुरानी परंपरा है और इस में पूजापाठ से धनधान्य पाने की कल्पना बहुत ज्यादा हावी रहती है. दीवाली असल में अब पूजापाठ, लक्ष्मीपूजन, स्नान, दानदक्षिणा का नहीं, खुशी का अवसर है. दीवाली ऐसा दिन है जिसे भारत के अधिकांश लोग कुछ नए से जोड़ते हैं और इस को इसी दृष्टि से देखा जाना चाहिए.

दीवाली पर पूजापाठ से क्या लक्ष्मी मिलती है, इस पर अंधविश्वासों में फंसने से पहले कुछ जान लें.

सैकड़ों पौराणिक कथाएं हैं जो पूजापाठ व धनधान्य से जुड़ी हैं. वे सब अतार्किक और चमत्कारों वाली हैं. उन्हीं के चक्कर में लोग इस दिन बहुत सा समय और पैसा ही नहीं खर्च कर डालते, बल्कि बरबाद भी कर देते हैं.

एक कहानी देखिए- एक बार नारद मुनि ने वैकुंठ धाम पहुंच कर विष्णु से कहा कि प्रभु, पृथ्वी पर आप का प्रभाव कम हो रहा है. जो धर्म के रास्ते पर चल रहे हैं उन का भला नहीं हो रहा और जो पाप कर रहे हैं उन का खूब भला हो रहा है. यह सुन कर विष्णु ने कहा कि ऐसा नहीं है देवर्षि, नियति के अनुसार ही सब हो रहा है और वही उचित है. तब नारद ने कहा कि मैं ने स्वयं अपनी आंखों से देखा है. तब विष्णुजी ने कहा कि इस तरह की किसी एक घटना के बारे में बताओ.

तब नारद ने एक घटना का उल्लेख करते हुए बताया कि जब वे जंगल से गुजर रहे थे तब एक गाय दलदल में फंसी हुई थी. कोई उसे बचाने के लिए नहीं आ रहा था. उसी दौरान एक चोर आया. उस ने गाय को बचाया नहीं बल्कि उस पर पैर रख कर दलदल लांघ कर निकल गया.

आगे चल कर उसे सोने की मोहरों से भरी थैली मिली. फिर वहां से एक बूढ़ा साधु गुजरा. उस ने गाय को बचाने की पूरी कोशिश की और बचाने में कामयाब भी हो गया. लेकिन जब गाय को बचा कर वह साधु आगे गया तो एक गड्ढे में गिर गया. सो, बताइए, यह कौन सा न्याय है.

नारद की बात सुन कर प्रभु ने कहा कि जो चोर गाय पर पैर रख कर भाग गया था उस के भाग्य में तो खजाना था लेकिन उस के पाप के चलते उसे कुछ ही सोने की मोहरें मिलीं.

वहीं उस साधु के भाग्य में मृत्यु लिखी थी लेकिन उस ने गाय की जान बचाई. उस के इस पुण्य के चलते उस की मृत्यु टल गई और वह एक छोटी सी चोट में बदल गई. यही कारण था कि वह गड्ढे में जा गिरा.

ऐसे में इंसान का भाग्य उस के कर्म पर ही निर्धारित होता है. सत्कर्मों का प्रभाव ऐसा होता है कि दुखों और संकटों से मनुष्य का उद्धार हो जाता है.

इस कहानी में तर्क नहीं है. कहानी में उठाए गए सवालों का अतार्किक, इल्लौजिकल उत्तर विष्णु के मुंह से कहलवाया गया है ताकि कोई भक्त आपत्ति न कर सके.

दुखी और असंतुष्ट जीवन

आईटी और एआई के इस दौर में भी आम जिंदगी में इस तरह के पौराणिक किस्सेकहानियां चल रहे हैं और सोशल मीडिया पर दोहराए जा रहे हैं. ऐसे में यह सोचना लाजिमी है कि आखिर लोग क्यों इस हद तक तथाकथित भाग्य के मुहताज हैं कि वे तर्कों और कर्मों की उपेक्षा कर भाग्यवाद को बढ़ाने वाले किस्सों में फंस जाते हैं और अपनी उपलब्धि की वास्तविक खुशी को अनदेखा करते हुए ज्यादातर दुखी और असंतुष्ट रहना ही पसंद करते हैं. यह उन का ‘कम्फर्ट’ जोन है जो धार्मिक प्रचार की देन है.

पैसा लोग कमाते अपनी मेहनत से हैं लेकिन धर्म के बिचौलिए यह कह कर कायल कर देते हैं कि यह भगवान की देन है. इस की तह में एक साजिश है. पूजापाठ में पैसा खर्च करना होता है उन लोगों पर जो पूजापाठ कराते हैं.

यह एक धार्मिक टैक्स है, जिस का भुगतान लोग अपनी आमदनी के मुताबिक करते हैं. दीवाली पर भी दान दिया जाता है जो नकदी के अलावा अन्न के रूप में वस्त्र, भूमि, सोना, चांदी और गाय से ले कर गिलास और चम्मच तक होते हैं जिन्हें पंडेपुजारी लेते हैं. ये वे लोग हैं जो खुद मेहनत नहीं करते.

दुनिया का सब से चालाक वह व्यक्ति होगा जिस ने भगवान का आविष्कार किया और उस से भी ज्यादा वह चालाक होगा जिस ने भाग्य की कल्पना गढ़ी. भाग्य शब्द के माने बहुत साफ हैं कि होता वही है जो ईश्वर चाहता है. सुख, ऐश्वर्य, प्रसन्नता, पैसा वगैरह सब प्रभुकृपा से ही प्राप्त होते हैं और प्रभुकृपा उन्हीं लोगों पर होती है जो उस का पूजापाठ, भजन, ध्यान, आरती वगैरह करते हैं. अधिकतर लोगों ने बहुत सहज ढंग से बिना कोई तर्क किए मान लिया है कि दूसरी कई चीजों और सुखों की तरह पैसा और खुशी भी पूजापाठ से आते हैं, मेहनत से नहीं. मंदिर ही नहीं, मसजिदों, चर्च, गुरुद्वारों, बौद्ध विहार सब में यही होता है.

अगर ऐसा है तो फिर लोग पैसा कमाने के लिए मेहनत क्यों करते हैं, इस सवाल का जवाब बेहद जटिल और पेचीदा है जिस का कनैक्शन धर्म के ठेकेदारों ने सीधा भाग्य से जोड़ दिया है. जिंदगी भाग्यप्रधान है, इस वाक्य को महिमामंडित करते ऊपर बताई गई कहानी की तरह सैकड़ों-हजारों किस्से चलन में हैं. जिन का सार यह है कि अगर भाग्य में पैसा होगा तो आदमी को कुछ करने की जरूरत नहीं और अगर भाग्य में पैसा नहीं तो आदमी लाख पसीना बहा ले उसे पैसा नहीं मिलने वाला. इस की वजह से धर्म के बिचौलिए कि, ‘उन्हें पूजा करने पर भी कुछ नहीं मिला,’ अपने हर आरोप से निकल जाते हैं.

दीवाली पर खुशियां मनाई जानी चाहिए, रोशनी होनी चाहिए, मिलन होना चाहिए पर यहां से शुरू होता है पूजापाठ और अंधविश्वासों का बाजार भी, जिस की चपेट में हर कोई है.

असल में लोग जितने ज्यादा पूजापाठी और अंधविश्वासी होते जाते हैं उतनी ही खुशियां और पैसा भी उन से दूर होते जाते हैं. जो हर दीवाली लक्ष्मीगणेश की मूर्तियों के सामने बैठे घंटों पूजा करते रहते हैं उस से उन के पास लक्ष्मी यानी पैसा तो कभी आता नहीं, उलटे खर्च हो जाता है.

दीवाली महंगा त्योहार है जिस में पूजापाठ पर खर्च भी अनापशनाप होता है और लोग इसे खुशीखुशी इस आस में करते भी हैं कि आज कुछ हजार खर्च कर भी देंगे तो भगवान कल को उस से हजार नहीं तो सौ गुना कर के दे ही देगा.

जबकि, दीवाली मेहनत से मिलने वाले फल की उपलब्धि पर खुशी मनाने का त्योहार है, यह भाग्य चमकाने वाला नहीं. पूजापाठ से कुछ नहीं होता. इस के उदाहरण तो पौराणिक कहानियों में भी मिल जाते हैं.

ज्यादा अंधविश्वास, कम विकास

हर साल लक्ष्मीपूजन के बाद भी देश में क्यों भूखे हैं, क्यों गरीब हैं, क्यों लोग स्लमों में रहने को मजबूर हैं? इन सवाल का दोटूक जवाब यह निकलता है कि ये ज्यादा अंधविश्वासी हैं और अंधविश्वास इन की मेहनत पर पानी फेर देता है. हमारे यहां साइंटिस्ट नहीं हो रहे, कांवडि़यों, राम, कृष्ण और हनुमान सहित शिवभक्तों की भरमार है. दुनिया के बहुत देश इस तरह के अंधविश्वासों से गुजर कर विज्ञान और तर्क को अपना चुके हैं. जिस देश की पूरी पीढ़ी ही बुरी तरह से दकियानूसी, रूढि़वादी, पूजापाठी और अंधविश्वासी हो वह गरीबी को समाप्त नहीं कर सकता.

दुनिया में सब से ज्यादा और तेजी से अगर कोई देश तरक्की कर रहा है तो हर कोई जानता है कि वह चीन है जहां अनास्थावादी ज्यादा हैं जो न पूजापाठी हैं और न ही अंधविश्वासों में विश्वास करते हैं. वे विज्ञान और तर्क से जिंदगी चलाते हैं, इसलिए भाग्यवादियों के मुकाबले वे ज्यादा खुश रहते हैं. इस से मन का डर भी खत्म होता है कि ईश्वर को पूजापाठ के जरिए खुश करो तो वह मालामाल कर देगा और न करो तो कंगाल बना देगा. मेहनती व्यक्ति, मेहनती जाति और मेहनती देश इन पाखंडों से जितने दूर रहते हैं उतनी ज्यादा उन्नति करते हैं.

वर्ल्ड पौपुलेशन सर्वे 2023 के मुताबिक सब से ज्यादा 91 फीसदी नास्तिक चीन में हैं. ये लोग किसी ईश्वर, धर्म या पवित्र किताब के गुलाम नहीं हैं. नास्तिकों की संख्या के मामले में जापान दूसरे नंबर पर है. जापान के 86 फीसदी लोग किसी धर्म को नहीं मानते. स्वीडन तीसरे नंबर पर है जहां के 78 फीसदी लोग किसी धर्म या भगवान पर भरोसा नहीं करते.

इस शृंखला में भारत 60वें नंबर पर है जहां महज 6 फीसदी लोग ही खुद को नास्तिक बताते हैं बाकी 94 फीसदी भाग्यवादी और भगवानवादी हैं. वे किसी न किसी धर्म, ईश्वर, धर्मग्रंथ और चमत्कारी शक्तियों को मानते हैं जिन में ज्योतिष, तंत्रमंत्र वगैरह भी शामिल हैं. पूजापाठ, मंदिर, मसजिद, चर्च, गुरुद्वारे जैसे धर्मस्थल इन्हीं 94 फीसदी से गुलजार हैं. इन में भी बहुसंख्यक हिंदुओं का तो कहना ही क्या जिन का रोज कोई न कोई तीजत्योहार होता है. दीवाली को इस तरह के पूजापाठ के त्योहारों से अलग रखा जाना चाहिए. दीवाली चूंकि सब से बड़ा और खास त्योहार है इसलिए इस की चमकदमक देखते ही बनती है.

खुशी में भी फिसड्डी

अब एक और शर्म की बात खुशी की. दीवाली का त्योहार मशहूर है कि इस दिन लोग खुश रहते हैं, तरहतरह के पकवान खाते हैं, नए कपड़े पहनते हैं, आतिशबाजी चलाते हैं, घर रोशन करते हैं वगैरहवगैरह.

इसी साल 20 मार्च को जारी हुई वर्ल्ड हैप्पीनैस रिपोर्ट के मुताबिक 143 देशों में भारत 126वें नंबर पर है, यानी दुखियारों के मामलों और गिनती में हम टौप 20 में हैं. इस रैंकिंग में हम इतने नीचे हैं. इस का सीधा सा मतलब यह है कि देश के लोग खुश नहीं हैं. लीबिया, इराक, फिलिस्तीन और नाइजर जैसे देश भी भारत से बेहतर स्थिति में हैं. इस इंडैक्स के प्रमुख पैमाने अगर पूजापाठ होते तो तय है हम 7 साल से पहले नंबर पर काबिज फिनलैंड को भी धकिया देते लेकिन इस के प्रमुख पैमाने जीवन प्रत्याशा, सामाजिक बंधन, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार हैं.

भष्टाचार में भी भारत दुनियाभर के देशों का गुरु है. ट्रांसपेरैंसी इंटरनैशनल ने इसी साल 30 जनवरी को 180 देशों में भ्रष्टाचार पर एक रिपोर्ट जारी की है जिस के मुताबिक भारत में भ्रष्टाचार बढ़ा है.

करप्शन इंडैक्स में हम अब 93वें पायदान पर आ गए हैं जबकि 2022 में 85वें स्थान पर थे. 180वे नंबर पर रहने वाला सोमालिया सब से भ्रष्ट और पहले नंबर पर रहने वाला डेनमार्क सब से कम भ्रष्ट है जो खुशहाली के मामले में दूसरे नंबर पर है.

पूजापाठ से अगर खुशी आ रही होती, पैसा मिल रहा होता, सुख, समृद्धि, संपन्नता और स्वास्थ्य मिलते होते तो हैप्पी दीवाली कहने और सुनने दोनों में वाकई खुशी और संतुष्टि दोनों मिलते लेकिन ऐसा है नहीं, यह कई मौकों पर उजागर होता रहता है. कोरोनाकाल इस का जीवंत और बेहतर उदाहरण है.

कोविड से उजागर हुआ था सच

कोविड 19 का भयावह दौर लोग मुद्दत तक नहीं भूल पाएंगे, जब मौत हर किसी के सिर पर खड़ी थी. कब कौन मर जाए, इस की कोई गारंटी नहीं थी. कोरोना वायरस से बचने के लिए लोगों ने जम कर पूजापाठ किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हुक्म पर खूब तालीथाली बजाई गई थी. लेकिन मौतों का सिलसिला बजाय कम होने के और बढ़ गया था. पूरी दुनिया सहित भारत भी दहशत में था. यह दहशत दोहरी इस लिहाज से थी कि कोरोना का कोई इलाज नहीं था और लोगों को सिवा भगवान के कुछ नहीं दिख रहा था जो खुद लौकडाउन के चलते ताले में बंद कर दिया गया था.

इस श्राप से बचाने के लिए कोई देवीदेवता, अल्लाह या जीजस या कोई और आगे नहीं आया तो लोगों का ऊपर वाले से भरोसा उठने लगा था और लोग दवाइयों पर विश्वास करने लगे थे. पहली बार लोगों को विज्ञान की अहमियत समझ आई थी और जब इस महामारी का वैक्सीन वैज्ञानिकों ने बहुत कम वक्त में खोज निकाला तो लोगों ने राहत की सांस ली. लेकिन बहुत कम लोगों ने ही विज्ञान और वैज्ञानिकों को इस का श्रेय दिया. अधिकतर लोग इसे भी भगवान की देन और लीला मानते रहे और सबकुछ सामान्य हो जाने के बाद फिर धर्मस्थलों पर जा कर धार्मिक टैक्स भरने लगे. यह ठीक वैसा ही था जैसे पैसा मिल जाने का श्रेय ऊपर वाले को दिया जाता है और न मिलने पर या कम मिलने पर लोग अपनी किस्मत को दोष देते खामोश हो जाते हैं.

भाग्य प्रधान विश्व रचि राखा

धर्म ने कभी लोगों को यह नहीं बताया और सिखाया कि मेहनत से खुशी और पैसा और उस से भी ज्यादा अहम आत्मसंतुष्टि मिलती है.

धर्म के दुकानदारों को मालूम है कि पैसा पेड़ पर नहीं उगता, इसलिए लोग इसे कमाएंगे ही कमाएंगे. उन का मकसद सिर्फ इतना रहता है कि लोग जितना भी कमाएं उस का बड़ा हिस्सा उन्हें धार्मिक टैक्स की शक्ल में देते रहें. जिस से उन्हें मेहनत न करनी पड़े.

सालभर लोग विभिन्न तीजत्योहारों पर चढ़ावा देते ही रहते हैं. उसे झटकते रहने के लिए दीवाली को लक्ष्मी का त्योहार बना डाला गया जिस से लोग मेहनत से हासिल की गई कमाई का श्रेय खुद न लेने लगें.

अब अगर मेहनत, किस्मत और खुशी की बात की जाए तो लोगों का यह पूछना बहुत आम है कि कई बार क्या, अकसर ही ज्यादा मेहनत करने वालों को कम पैसा मिलता है, ऐसा क्यों? अगर पैसा सिर्फ मेहनत से आ रहा होता और भाग्य का उस में कोई रोल न होता तो सब से ज्यादा आमदनी किसानों और मजदूरों की होनी चाहिए. यह सवाल कतई तर्कसंगत नहीं है जिस का पहला जवाब तो यही है कि क्या सभी पूजापाठियों को उम्मीद के मुताबिक पैसा मिलता है? जवाब है नहीं. अगर मिलता होता तो देश में कोई गरीब ही न होता.

पूजापाठ का रोग अब निचले स्तर तक महामारी सरीखा पसर गया है. गरीब से गरीब आदमी भी लक्ष्मीपूजन पूरे तामझाम से करता है, फिर भी वह गरीब है. उसे जो भी मिलता है वह उस की मेहनत से मिलता है और उस का भी बड़ा हिस्सा वह इन्हीं धार्मिक प्रपंचों में खर्च कर देता है.

रही बात कमज्यादा की, तो यह शिक्षा, स्किल और मेहनत के अलावा लगन और मिलने वाले मौकों पर भी निर्भर करता है. अधिकतर किसानमजदूर अर्धशिक्षित हैं, इसलिए कम कमा पाते हैं. उन का शोषण भी इसी अज्ञान और अशिक्षा के चलते जम कर होता है. उन्हें भी एक साजिश के तहत भाग्यवादी बना दिया गया है और अब हिंदू एकता के नाम पर फुसलाया जा रहा है. इस के लिए उन में मुसलमानों का डर जम कर फैलाया जा रहा है.

अधिकतर गरीब छोटी जातियों वाले हैं जिन के दिमाग में सदियों से ठूंसठूंस कर यह बात भर दी गई है कि तुम पिछले जन्मों के कर्मों और पापों के चलते छोटी जाति वाले और गरीब हो और अगर अगले जन्म में इस का दोहराव नहीं चाहते तो इस जन्म में दानपुण्य और पूजापाठ करते रहो, सारी दरिद्रता दूर हो जाएगी.

जो मामूली तादाद में दलित आरक्षण के चलते सरकारी नौकरियों में आ कर ठीकठाक जिंदगी जी रहे हैं वे भी यथास्थिति बनाए रखने के लिए पूजापाठी होते जा रहे हैं. एक तरह से उन्हें अछूत सवर्ण होने की मान्यता मिलने लगी है. रही बात मिडल क्लास की, तो उन्हें यह कहानी सुना कर बहला दिया जाता है कि भिखारी था जो रोज भगवान के नाम पर भीख मांगता रहता था लेकिन उसे पेट भरने और जिंदा रहने लायक ही भीख मिलती थी.

एक बार विष्णु और लक्ष्मी भ्रमण पर निकले तो लक्ष्मी को उस भिखारी पर दया आ गई. पहले उन्होंने विष्णु से कहा कि हे नाथ, यह भिखारी दिनभर आप का नाम लेता रहता है. इस के बाद भी इतना दरिद्र है, ऐसा क्यों? इस पर विष्णु ने कहा कि धन इस के भाग्य में ही नहीं है तो मैं भी कुछ नहीं कर सकता. यह हमेशा ही गरीब रहेगा. इस जवाब पर लक्ष्मी ने कहा तो ठीक है, मैं इसे धनवान बनाए देती हूं. जिस रास्ते से भिखारी को गुजरना था उस पर लक्ष्मी ने पैसों और गहनों की पोटली रख दी कि भिखारी इन्हें उठाएगा और उस की गरीबी दूर हो जाएगी. इस पर विष्णु मंदमंद मुसकराते हुए तमाशा देखते रहे.

उस दिन भिखारी को लगा कि अगर अंधे हो कर भीख मांगी जाए तो ज्यादा मिलेगी, इसलिए वह आंखें बंद कर चलने की प्रैक्टिस करने लगा और आंखें बंद किए ही रास्ता पार कर गया. वे पोटलियां उसे दिखी ही नहीं.

इस तरह की कहानियां जानबूझ कर लिखी गई हैं ताकि लोग पूजापाठ और भाग्य पर अपना विश्वास कायम रखें. जबकि दीवाली का त्योहार नई उमंगों, नए प्रकाश, नए रिश्तों, नए उत्साह का त्योहार है. यह ऐसा त्योहार है जिस में शहर के शहर, गांव के गांव चमचमाने लगते हैं. यह हताशा और गरीबी पर आशा और परिश्रम का गुणगान करने वाला त्योहार है जिसे पूरा देश मिल कर मनाता है.

रोशनी व खुशियों का त्योहार

दीवाली धन का सम्मान करने का दिन है. उस धन के सम्मान का दिन, जिसे आप ने मेहनत से पाया है और इसलिए उसे मनाने में कुछ ज्यादा करने से न कतराएं. बस, यह ध्यान रखें कि प्रकाश में, दीयों में, रोशनियों में, पटाखों में (जहां भी इन की अनुमति है) आप खुद ऐसा हादसा न कर बैठें जो खुशी को कम कर दे.

आप की दीवाली प्रकाशमयी हो, आप को दीवाली हर नई खुशी दे, यह आप को स्फूर्ति दे, यही इस खुले त्योहार का आमंत्रण है.

यह ऐसा त्योहार है जिसे लोग घरों में बंद रह कर नहीं मनाते, घर को बाहर से भी प्रकाशमय कर के मनाते हैं. वे यह बताते हैं कि उन की रोशनी अमावस्या की काली रात को दूर कर सकती है. यह अंधेरे पर आदमी के परिश्रम का अवसर है. जीभर कर दीवाली मनाइए. पूरी रात मनाइए. सब के साथ मनाइए. पूरी तैयारी के साथ मनाइए. पूरे वर्ष अच्छे दिनों की कामनाओं के साथ मनाइए.

यह अकेला अवसर है जिस दिन आप अपने घर को बाहर से रोशन कर के अपनी खुशी अनजानों के साथ सांझ कर सकते हैं.

इतने गरीब हैं हम

दुनियाभर में हम कहां खड़े हैं, इस की शुरुआत प्रतिव्यक्ति औसत आय से करें तो आईएमएफ की इसी एक जुलाई को जारी रिपोर्ट के मुताबिक भारतीयों की औसत आमदनी 2.28 लाख रुपए है जबकि उस की जीडीपी 3.94 ट्रिलियन डौलर है. इसी को बड़े गर्व से हमारे प्रधानमंत्री और उन की सरकार अकसर गाया करते हैं कि आज हम दुनिया की 5वीं सब से बड़ी इकोनौमी हैं. 28.78 ट्रिलियन डौलर की पहले नंबर की जीडीपी वाले अमेरिका की प्रतिव्यक्ति औसत आय भारत से लगभग 31 गुना ज्यादा 71.30 लाख रुपए है. इस लिस्ट में अमेरिका 1960 से टौप पर है. जीडीपी के मामले में चीन दूसरे नंबर पर है, जहां प्रतिव्यक्ति औसत आय 10.97 लाख रुपए है.

जरमनी की जीडीपी 4.59 ट्रिलियन डौलर है लेकिन वहां प्रतिव्यक्ति औसत आमदनी 45.34 लाख रुपए है. जीडीपी के मामले में जापान 4.11 लाख ट्रिलियन डौलर के साथ चौथे नंबर पर है जहां प्रतिव्यक्ति औसत आय 27.67 लाख रुपए है. यूके की जीडीपी भारत के बाद 6ठे नंबर पर 3.50 ट्रिलियन डौलर है लेकिन वहां प्रतिव्यक्ति औसत आय 42.65 लाख रुपए है. फ्रांस की जीडीपी 3.13 ट्रिलियन डौलर है और प्रतिव्यक्ति औसत आय 39.55 लाख रुपए है. ब्राजील 2.33 ट्रिलियन डौलर की जीडीपी के साथ 8वें नंबर पर है लेकिन उस की प्रतिव्यक्ति औसत आय 9.48 लाख रुपए है. 9वे नंबर पर इटली है जिस की जीडीपी 2.33 ट्रिलियन डौलर और प्रतिव्यक्ति औसत आय 33.05 लाख रुपए है. टौप 10 देशों में 10वें नंबर पर कनाडा है जिस की जीडीपी 2.24 ट्रिलियन डौलर है लेकिन प्रतिव्यक्ति औसत आमदनी 45.62 लाख रुपए है.

जाहिर है, हमारे देश के कर्णधार 5वीं सब से बड़ी अर्थव्यवस्था का फटा ढोल पीटते रहते हैं लेकिन वे यह नहीं बताते कि प्रतिव्यक्ति औसत आय के मामले में हम फिसड्डी क्यों हैं. घोषित तौर पर जिस देश में 80 करोड़ और अघोषित तौर पर कोई 120 करोड़ लोग गरीब हों उस देश के लोगों को पूजापाठ करने की नहीं बल्कि मेहनत करने की जरूरत है.

श्रीमती का रूप वर्गीकरण : हम तो उन के हर रूप पर फिदा हैं

दुनिया में हम पर किसी ने यदि कोई उपकार किया है तो वे हैं हमारी आदरणीय श्रीमतीजी. आप कृपया इस शब्दावली को मजाक न समझें. घरेलू जिंदगी में सुखशांति का यह एक अस्त्र है. विभिन्न अवसरों पर उन के स्वरूप को महसूस कर हम नतीजा पेश कर रहे हैं. वैसे, सच तो यह है कि जब समझ में कुछ न आए तो वंदना-स्तुति से कार्य साध लेना चाहिए और हम इसी टैक्नीक से खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं. अब मुख्य बिंदु पर आते हैं, ताकि श्रीमती के लाजवाब व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला जा सके.

समय कभी एकजैसा नहीं रहता, इसलिए खास समय पर उन के रूप की बानगी जुदाजुदा होती है. सो, मैं अकसर इस रिसर्च में जुटा रहता हूं कि आखिर उन का मूल स्वरूप कौन सा है? कभी गाय तो कभी शेरनी, कभी अप्सरा तो कभी विकराल रौद्र रूप…

वैसे, बेसिकली हमें उन से कोई गिलाशिकवा नहीं है, हम जैसे मनमरजी के जीव, आजाद पंछी को उन्होंने निभा लिया और ट्रेंड कर कुशल पति बना दिया, यही उपकार हमारे लिए कीमती है. दिन में दसियों बार उन के ऐसे श्रीवचनों को सुन कर अब सच में हमें अपने मूलस्वरूप का ज्ञान संभव हो सका है. अपनी अल्पबुद्धि से उन के जो विभिन्न रूप समयसमय पर समझ पाया हूं वे आप से शेयर कर रहा हूं ताकि हमारे वर्गीकरणों से आप भी मूल्यांकन व आकलन का सदुपयोग कर सकें.

समससमय पर उन के मुख से निकलते शुभ वचनों पर ध्यान दें तो आप भी इस रिसर्च को आसानी से समझ सकते हैं. आप की सुविधा के लिए हम चुनिंदा रूप और संवाद की बानगी आप की सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं. गारंटी मानिए यह लेख वक्तबेवक्त आप के काम आएगा और घर की शांति में सहयोग करने वाला साबित होगा.

१. इतिहास विश्लेषक : यह रूप दिन में अकसर 10-20 बार अनुभव हो जाता है. ‘तुम्हारे सारे खानदान की हकीकत जानती हूं. मुझे सब का कच्चाचिट्ठा पता है. मुझ से गड़े मुरदे मत उखड़वाओ…’ जैसी शब्दावली उन के इतिहासपसंद व्यक्तित्व को जाहिर करती है.

२. डौन स्वरूप : जब उन का पारा ऊंचाई छृने लगता है तो यह रूप भी जाहिर हो जाता है. उस समय उन की भाषाशैली में कठोरता टपकने लगती है, ‘कान खोल कर सुन लो, अगर फिर कभी ऐसा किया तो…मैं अब और सहन नहीं करूंगी…मुझ से बुरा कोई नहीं होगा…मैं जो करूंगी, पता चल जाएगा, सबक तो सिखा कर रहूंगी आप को.’ सच पूछें तो इस रूप से बहुत तनाव, भय और डर महसूस होता है.

३. शक्की, शंकालु स्वभाव : यह उस समय प्रकट होता है जब हम मोबाइल या लैपटौप पर काम कर रहे होते हैं. व्हाट्सऐप, फेसबुक पर हमारी मौजूदगी उन्हें शंकालू बना देती है और फिर उन का यह रूप फूट पड़ता है, ‘किस सौतन से चैटिंग चल रही है… कितनी दोस्त बना रखी हैं इस उम्र में…’ स्वाभाविक है उन की दहाड़ सुनते ही हमारा औफलाइन हो जाना तय है. कारण, जब ज्वालामुखी विस्फोट के चांस सौ प्रतिशत बढ़ जाते हैं, हम तुरंत जरूरी काम छोड़ कर उन की वंदना-स्तुतिगान में जुट जाते हैं.

४. धार्मिक : यह रूप चौबीसों घंटे हावी रहता है. ‘भगवान जाने आप की क्या माया है, आप को तो ईश्वर भी नहीं समझा सकता. पाप में पड़ोगे अगर मुझ से छल करोगे…’ ऐसे संवाद उन के धर्मभीरू होने की दुहाई देते हैं और इस स्वरूप में होने पर हमें कोई परेशानी नहीं होती. यह उन का सौम्य और शांत स्वरूप है.

५. अर्थशास्त्री स्वरूप : यह रूप दिनभर दिखलाईर् पड़ता है. कारण, महंगाई और बजट के असंतुलन से उन का हिसाब गड़बड़ा जाता है. तब वे हमारे साथसाथ बच्चों को भी हिदायतें देने लगती हैं. ‘आमदनी बढ़ाए बिना मुझ से पनीर, पकवानों की उम्मीद मत करना, कोई खजाना नहीं गड़ा घर में, न कोई नोट छापने की मशीन लगा रखी है जो तुम सब के नखरेडिमांड पूरी करूं, चटनी चाटो और मौज करो.’ उन की मजबूरी को हम समझते हैं. आसमान छूती महंगाई में बेचारी क्या करें? दोष हमारा है, हम जितना उन्हें देते हैं उस से सवाया करने की टैंशन में वे हमेशा घुली रहती हैं.

६. भविष्यवक्ता : हालांकि, उन्हें न तो ज्योतिष का ज्ञान है, न ही अंकशास्त्र और न ही भविष्यवाणी के स्रोतों का, लेकिन फिर भी सीमा पार जा कर अपनी मन की शक्ति से हमारे भविष्य को ले कर दिन में अनेकानेक बार भविष्यवाणी करती रहती हैं, तब हम उन के दिव्यस्वरूप के कायल हो जाते हैं. ‘सात जन्मों तक मेरी जैसी पत्नी नहीं मिलनी.’ यह अमर वाक्य इस घोषणा का प्रमाण है.

७. भ्रमित रूप : कभीकभी श्रीमतीजी इस अज्ञेय स्वरूप को धारण कर बैठती हैं. तब सच में हमें पता नहीं चलता कि वे हम से चाहती क्या हैं? इस रूप में ताने, व्यंग्यबाणों की बौछार से हम खुद भ्रमित हो जाते हैं. हमारी समझ पर प्रश्नचिन्ह नाचने लगते हैं. ‘आदमी हो या औरत? पजामा तो नहीं… कैसे आदमी हो, बच्चे हो क्या?’ जैसे वाक्यांश हमें भ्रमित कर देते हैं.

८. स्वार्थी स्वरूप : यह रूप टीवी चैनल बदलने, शौपिंग मौल, सैल, ज्वैलरी खरीदने, ब्यूटीपार्लर के लिए जाते समय आसानी से नजर आ जाता है. फैशनपरस्ती में वे शायद कालोनी में किसी से पीछे रहना नहीं चाहतीं, इसलिए खुद की डिमांड पूरी करवा कर ही मानती हैं. ‘हमेशा खुद की ही सोचते हो, दूसरों की जरूरत भी समझना सीखो, अरे आप की पत्नी हूं, पहला हक मेरा बनता है, कभी तो अपने पर्स का स्पर्श कर लेने दिया करो, 2 हजार रुपए देना सेल लगी है, मैं पिछले सप्ताह भी नहीं गई… इतनी कंजूसी भी ठीक नहीं.’

९. कुंठाग्रस्त रूप : ‘हाय क्या बुरे काम किए थे जो…जो घरवालों ने इस के साथ ब्याह रचा दिया, कब सुधरेंगे, कब समझेंगे, समझ नाम की चीज तो है ही नहीं.’ ऐसे वाक्यांश भी अकसर प्रतिदिन सुनने पड़ते हैं. तब हम समझ जाते हैं कि उन पर डिप्रैशन का दौरा पड़ गया है. तुरंत हम गंभीरता का लबादा ओढ़ कर उन की अदालत में पेश हो जाते हैं और उन के गुबार को कान में रुई ठूंस कर ध्यान से सुनते हैं. तब जा कर वे नौर्मल हो पाती हैं, दिमाग कूल होता है और फिर रसोई गरम.

१०. पुलिसिया रूप : इस रूप के वर्गीकरण की जरूरत नहीं. कारण, इस रूप से पति साहबानों को अकसर रूबरू होना पड़ता है. ‘फोन क्यों नहीं उठा रहे, कहां हो…ट्रेन की आवाज तो सुनाई ही नहीं पड़ रही, औफिस से कब निकले, आजकल ऐसे बनठन कर क्यों जाते हो?’ जैसे अनगिनत सवालों की वर्षा हंसतेमुसकराते झेलने की आदत पड़ गई है. इस रूप में हम भीगी बिल्ली की तरह सहने में ही भलाई मानते हैं.

११. आलसी स्वरूप : यह रूप महीने में कभीकभार नजर आता है, सो दुर्लभ श्रेणी में रखा जा सकता है. इस का पता ऐसे संवादों से होता है- ‘आज मूड नहीं, बाहर होटल में खा लेते हैं, चाय बना लो, मुझे भी पिला देना’ आदिइत्यादि. मुझे इस बात पर गर्व है कि कामकाज में वो कभी लापरवाही नहीं करतीं. समय से सब काम घड़ी की सुइयों के मुताबिक करती हैं.

१२. शृंगार स्वरूप : सब रूपों में यह श्रेष्ठतम स्वरूप है लेकिन यह कभीकभी ही देखने को मिलता है. सच तो यह है कि इस रूप को अफोर्ड करने की हमारी कैपेसिटी भी नहीं. जवैलरी की खरीद, औनलाइन शौपिंग के समय बजट की डिमांड के अनुरूप वो इस रूप में प्रकट होती हैं. यह रामबाण रूप भी है. कभी खाली नहीं जाता और हमें आत्मसमर्पण कर के ही दम लेता है.

अब इस वर्गीकरण को समाप्त करें. कारण, जन्ममतांतर की इस गाथा को वर्गीकृत-परिभाषित करना सरल नहीं. लेकिन यह सत्य है कि रूप चाहे कोईर् भी क्यों न हो, उस के पीछे हमारा भला ही छिपा रहता है. कहने को चाहे कितनी ही बातें बना लें लेकिन यह सिर्फ पत्नी ही है जो घर को एक करने के लिए अपना सबकुछ खो कर भी खुश रहती है.

ईंटसीमेंट के ढांचे को घर बनाने और उस में रहने वालों की जिंदगी को सुखद बनाने में पत्नीजी अपना सबकुछ दांव पर लगा देती हैं. इस तथ्य को कैसे भुलाया जा सकता है? यही कारण है, हमें उन के किसी भी रूप से कभी शिकायत नहीं होती. वो कहेंगी भी तो किस से? जिस के पीछे घर छोड़ कर आईं उस पर हक तो बनता ही है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें