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टीनएजर्स खुद लें लाइफ का Decision,पेरैंट्स की सिर्फ मोहर लगवाएं

टीनएजर्स को अब अपने पेरैंट्स की उंगली पकड़ कर चलना छोड़ना होगा, अपने हर छोटेबड़े निर्णयों के लिए पेरैंट्स का मुंह ताकना छोड़ना होगा. अपने सपनों, ख्वाइशों की उड़ान खुद के बल पर भरनी होगी तभी वे जीवन की रेस में आगे बढ़ पाएंगे.

Health

“यार मुझे समझ नहीं आ रहा मैं अपने पेरैंट्स को कैसे समझाऊं? मैं कुकिंग की लाइन को अपना कैरियर बनाना चाहता हूं और अपने देश के फूड कल्चर को विदेश तक ले जाना चाहता हूं. तुझे तो पता है बचपन से ही मुझे किचन में नई नई रैसिपी ट्राइ करने का शौक था और मम्मी की एब्सेंस में भी मैं किचन में कुछ न कुछ नया बनाता रहता था.

“लेकिन मेरे मम्मीपापा को जब मैं ने अपने इस सपने के बारे में बताया तो उन्होंने मेरे इस निर्णय को गलत ठहराते हुए कहा ‘नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता, क्या तुम सोसाइटी में हमारा मजाक बनवा कर हमारी नायक कटवाओगे. तुम शुरू से क्लास में टौपर रहे हो. ये कुकिंगवुकिंग कर के कुछ नहीं होने वाला. तुम्हें तो हायर स्टडीस कर के किसी बड़ी कंपनी में सीनियर पोस्ट हासिल करनी है.”

एक टीनएजर होने के नाते मैं शिशिर की भावनाओं जो समझ रहा था और मन ही मन हैरान हो रहा था हर पेरैंट्स की तरह शिशिर के पेरैंट्स को भी आखिर शिशिर का पैशन क्यों नहीं दिखाई नहीं दे रहा और क्यों शिशिर भी बिना अपने पेरैंट्स की सहमति के अपने लिए सही निर्णय नहीं ले पा रहा क्यों अपने पेरैंट्स के खिलाफ जा कर अपने लिए सही निर्णय लेने का कान्फिडैंस उस में नहीं है ?

लेकिन मैं ने मन ही मन उसे सही राय देने का सोच लिया था कि वह अपने मन की करे क्योंकि जब वह अपने पैशन को फौलो कर के सफल होगा तो सब से ज्यादा प्राउड फील उस के ही पेरैंट्स को होगा. क्योंकि शिशिर से बेहतर उस के कैरियर के लिए निर्णय कोई और नहीं ले सकता.

टीनएजर्स पेरैंट्स की उंगली थामना छोड़ें

आज के हर टीनएजर को यह समझना होगा कि अब वह दूध पीता बच्चा नहीं रहा. अब वह बड़ा हो गया है. एक टीनएजर है जो 5 या 6 फीट लंबा है. उसे अब अपनी जिंदगी के हर छोटेछोटे निर्णयों के लिए पेरैंट्स पर डिपेंडेंट होने या उन का मुंह ताकने की जरूरत नहीं है. अब उन्हें पेरैंट्स की उंगली पकड़ कर चलना छोड़ कर जीवन की रेस में आगे बढ़ने के लिए लंबी दौड़ लगानी होगी वरना वह औरों से पीछे रह जाएगा. बदलते समय के साथ उसे कान्फिडैंट बन कर अपना अच्छा बुरा खुद सोचना होगा. अपनी लाइफ में सक्सैसफुल होने के लिए रिस्क लेने होंगे और अपने निर्णयों पर पेरैंट्स की सिर्फ मोहर लगवानी होगी.

कुएं के मेंढक न बनें

“मौम, मैं बाहर खेलने जाऊं, क्या मैं स्कूल ट्रिप पर जा सकता हूं? डैड, क्या मैं अपने फ्रैंड की बर्थ डे पार्टी पर जा सकता हूं? क्या मैं अपनी फ्रेंड के साथ ओन्ली गर्ल्स ट्रिप पर जा सकती हूं.”
डे टू डे लाइफ की ऐसी छोटीछोटी बातों पर पेरैंट्स का मुंह ताकना छोड़ कर टीनएजर्स अपने निर्णय खुद लें और जिंदगी को भरपूर जीएं वरना वे कुएं के मेंढक बन कर जाएंगे.

बदलनी होगी सोच

विदेशों में बच्चे छोटी उम्र में ही आत्मनिर्भर बन जाते हैं. पांच-छह साल की उम्र से वे मांबाप से अलगअलग बेडरूम में सोते हैं और 15-16 की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते तो वे अलग घर में रहने लगते हैं और इसी उम्र से वे अपने निर्णय खुद लेने लगते हैं. परंतु भारतीय परिवारों में ऐसा नहीं होता. हमारे परिवारों में बच्चे चाहें जितना मर्जी बड़े हो जाएं उन्हें बच्चा ही समझा जाता है और उन से उम्मीद की जाती है कि वे हर बात पेरैंट्स से पूछ कर करें या उन की रजामंदी लें जो कि सही नहीं है. टीनएजर्स जितना अपने जीवन के निर्णय खुद लेंगे उतना ही उन में कान्फिडेंस आएगा और जीवन में उन के सफल होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी.

मेरे परिवार वाले मेरी गर्लफ्रेंड से शादी नहीं करवा रहे हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

एक तरफ मेरा प्यार हैदूसरी तरफ उज्जवल भविष्य. मैं 24 वर्षीय सरकारी नौकरी में कार्यरत नौजवान हूं. एक लड़के में जो खूबियां होनी चाहिए वे सब मुझ में है. मैं 18 साल की एक लड़की, जो अभी 12वींस्टूडैंट हैसे प्यार करता है. वह मुझ पर जीजान से फिदा है. हमारे बीच 3-4 बार सैक्स भी हो चुका है. मैं उस से शादी करना चाहता हूं पर पारिवारिक परिस्थितियों के कारण ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मैं एक संपन्न जाट परिवार से हूं जबकि वह एक मध्वर्गीय पंजाबी परिवार से है.

मेरी शादी के लिए संपन्न जाट परिवारों से रिश्ते आ रहे हैं. अपनी मरजी से शादी करूंगा तो हो सकता है मेरे परिवार वाले मुझे जायदाद से बेदखल भी कर दें. फैसला नहीं ले पा रहा हूं कि घरवालों की मरजी के साथ चलूं या अपने प्यार से शादी कर के आर्थिक परेशानियों का सामना करूं. आप की सलाह मुझे फैसला लेने में मदद करेगी.

जवाब

प्यार किया है तो उसे निभाने की हिम्मत भी रखिए. वह लड़की आप से प्यार करती है. आप पर भरोसा रख कर ही उस ने अपना सबकुछ आप को सौंपा है. अब परिवारवालों के दबाव में आ कर उसे छोड़ किसी दूसरी लड़की के साथ विवाह करना उस लड़की के साथ बेइंसाफी होगी. परिवारवालों का इतना डर तब नहीं हुआ जब उस लड़की के साथ फिजिकल रिलेशन बना रहे थे.

आप सरकारी नौकरी कर रहे हैं. आर्थिक रूप से मजबूत हैं. लड़की समझदार है तो शादी के बाद घर चलाने में वह भी अपना सहयोग देगी. वैसे तो भविष्य की गारंटी तो कोई नहीं दे सकता लेकिन हो सकता है विवाह के बाद आप के परिवार वालों का दिल बदल जाए और वे आप के विवाद को स्वीकार कर लें. इसलिए हमारी राय तो यही है कि अपनी पसंद की लड़की से ही विवाह कीजिए, सुखी रहेंगे.

गिनीपिग: सभ्रांत चेहरे के पीछे की क्या शख्सीयत थी?

40 वर्ष में ही राजी के बाल काफी सफेद हो गए थे. वह पार्लर जाती, बाल डाई करवा कर आ जाती. पार्लर वाली के लिए वह एक मोटी आसामी थी. राजी हर समय सुंदर दिखना चाहती थी. वह क्या उस का पति अनिरुद्ध और दोनों बेटियां भी तो यही चाहती थीं.

कौरपोरेट वर्ल्ड की जानीपहचानी हस्ती अनिरुद्ध कपूर का जब राजी से विवाह हुआ तब राजी रज्जो हुआ करती थी. मालूम नहीं अनिरुद्ध की मां को रज्जो में ऐसा क्या दिखा था. जयपुर में एक विवाह समारोह में उसे देख कर उन्होंने राजी को अनिरुद्ध के लिए अपने मन में बसा लिया. रज्जो विवाह कराने वाले पंडित शिवप्रसाद की बेटी थी. 12वीं पास रज्जो यों तो बहुत सलीके वाली थी, परंतु एमबीए अनिरुद्ध के लिए कहीं से भी फिट नहीं थी.

विवाह संपन्न होने के बाद अनिरुद्ध की मां ने पंडितजी के सामने अपने बेटे की शादी का प्रस्ताव रख दिया.  पंडितजी के लिए यह प्रस्ताव उन के भोजन के थाल में परोसा हुआ ऐसा लड्डू था जो न निगलते बन रहा था न ही उगलते. वे असमंजस में थे. कहां वे ब्राह्मण और कहां लड़का पंजाबी. कहां लड़के का इतना बड़ा धनाढ्य और आधुनिक परिवार, कहां वे इतने गरीब. दोनों परिवारों में कोई मेल नहीं, जमीनआसमान का अंतर. वे समझ नहीं पा रहे थे कि इस रिश्ते को स्वीकारें या नकारें.

पंडित शिवप्रसाद ने दबी जबान में पूछा, ‘बहनजी, लड़का…’

पंडितजी अभी अपनी बात पूरी नहीं कर पाए थे कि श्रीमती कपूर ने उन्हें बताया कि लड़का किसी सेमिनार में विदेश गया हुआ है.  श्रीमती कपूर के साथ उन के पति श्रीदेश कपूर और अनिरुद्ध के दोनों छोेटे भाई भी इस विवाह समारोह में जयपुर आए थे.  पंडितजी असमंजस में थे.  ‘मैं समझ सकती हूं पंडितजी कि आप हमारे पंजाबी परिवार में अपनी बेटी को भेजने में झिझक रहे हैं. पर अब इन सब बातों में कुछ नहीं रखा है. मुझे ही देख लीजिए, मैं कायस्थ परिवार से हूं और कपूर साहब पंजाबी…तो क्या आप की बेटी हमारे पंजाबी परिवार की बहू नहीं बन सकती?’

पंडितजी मध्यमवर्गीय अवश्य थे परंतु खुले विचारों के थे. उन्होंने श्रीमती कपूर से कहा, ‘बहनजी, मुझे 1-2 दिन का समय दे दें. मैं घर में सलाह कर लूं.’  ‘ठीक है पंडितजी, हम आप का जवाब सुन कर ही दिल्ली वापस जाएंगे,’ श्रीमती कपूर ने कहा.

अगले ही दिन सुषमाजी को उस शादी वाले घर के यजमान के साथ अपने घर आया देख पंडितजी पसोपेश में पड़ गए.

‘पंडितजी, आप सोच लीजिए, इतना अच्छा घरवर जरा मुश्किल ही है मिलना.’

‘जी, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है…’ फिर कुछ झिझक कर बोले, ‘वर को भी हम ने नहीं देखा है…इधर हमारी पुत्री भी अभी पढ़ाई करना चाहती है…’ पंडितजी असमंजस में घिरे रहे.

‘जहां तक पढ़ाई का सवाल है, हमारा लड़का तो खुद ही एमबीए है. चाहेगी तो, जरूर आगे पढ़ लेगी…जहां तक लड़के को देखने का सवाल है तो वह 15 दिन में आ जाएगा, देख लीजिएगा. हमें आप की बेटी की खूबसूरती और सादगी भा गई है पंडितजी. हमें और किसी चीज की इच्छा नहीं है सिवा सुंदर लड़की के,’ सुषमाजी ने अपनी अमीरी का एहसास करवाया.  बात इस पर आ कर ठहर गई कि अनिरुद्ध के विदेश से लौट कर आते ही वे उसे ले कर जयपुर आ जाएंगी.

कपूर परिवार दिल्ली लौट गया तो शास्त्रीजी ने चैन की सांस ली और फिर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए. रज्जो को इस वर्ष बीए में प्रवेश भी दिलवाना था, उसे अच्छे कपड़ों की जरूरत होगी. पत्नी से वे इन्हीं बातों पर चर्चा करते रहते.  किसी न किसी प्रकार पंडित शिवप्रसाद ने इस मध्यमवर्गीय लोगों के महल्ले में घर तो बना लिया था परंतु वे इसे थोड़ा सजानासंवारना चाहते थे. बेटी के ब्याह के लिए अच्छे रिश्ते की चाहत हर मातापिता को होती ही है. वे भी अपना ‘स्टेटस’ बनाना चाहते थे.  सुषमा कपूर को जयपुर से दिल्ली गए हुए अब लगभग 1 महीना हो गया था. पंडितजी के लिए भी वे एक सपना सी हो गई थीं. पर अचानक एक दिन वह सपना हकीकत में बदल गया जब एक बड़ी सी सफेद गाड़ी से लकदक करती सुषमाजी उतरीं. उन के साथ एक सुदर्शन युवक भी था. बेचारे पंडितजी का मुंह खुला का खुला रह गया. दोनों हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हुए उन्होंने सुषमाजी और उस युवक को बैठक में बैठाया.

‘और…पंडितजी कैसे हैं? ये हैं हमारे बड़े बेटे अनिरुद्ध.’  अनिरुद्ध ने बड़ी शालीनता से हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्ते किया.  पंडितजी अनिरुद्ध की शालीनता से गद्गद हो गए.

सुषमाजी ने पर्स से निकाल कर अनिरुद्ध की जन्मपत्री पंडितजी को पकड़ाई, ‘आप तो सोच रहे होंगे कि अब हम आएंगे ही नहीं, पर अनिरुद्ध ही विदेश से देर से आया. मैं ने सोचा कि इसे साथ ले कर आना ही ठीक रहेगा…’  पंडितजी के मस्तिष्क पर फिर से दबाव सा पड़ने लगा.

‘अनिरुद्ध बाबू, मेरी बेटी सिर्फ 12वीं पास है, परंतु उसे पढ़ने का बहुत शौक है. इसी वर्ष उसे बीए में प्रवेश लेना है.’

‘हमारे यहां पढ़ाई के लिए कोई रोकटोक नहीं है. आप की बेटी जितना पढ़ना चाहे पढ़ सकती है,’ अनिरुद्ध ने कहा.

‘यानी बेटा भी तैयार है,’ पंडितजी का मन फिर से डांवांडोल होने लगा, ‘जरूर कहीं कुछ गड़बड़ होगी,’ उन्होंने सोचा. इस सोचविचार के बीच लड़की, लड़के की देखादेखी भी हो गई, जन्मपत्री भी मिल गई और पसोपेश में ही शादी भी तय हो गई. पंडितजी अब भी अजीब सी ऊहापोह में ही पडे़ हुए थे.

‘अब, जब सबकुछ तय हो गया है तब क्यों आप डांवांडोल हो रहे हैं?’ पंडिताइन बारबार पंडितजी को समझातीं.

‘पंडितजी, ग्रह इतने अच्छे मिल रहे हैं फिर क्यों बिना बात ही परेशान रहते हैं?’ उन के मित्र उन्हें समझाते.

‘मेरी समझ में तो कुछ आ नहीं रहा है. कैसे सब कुछ होता जा रहा है,’ पंडितजी अनमने से कहते.

महीने भर में ही विवाह भी संपन्न हो गया और उन की लाडली रज्जो अपनी ससुराल पहुंच गई. पंडितजी ने तो तब बेटी का घर देखा जब वे उसे लेने दिल्ली गए. क्या घर था. उन की आंखें चुंधिया गईं. दरबान से ले कर ड्राइवर, महाराज, अन्य कामों के लिए कई नौकरचाकर.  कुछ देर बेटी के घर में रुकने के बाद वे उसे ले कर जयपुर रवाना हो गए. लेकिन उन की चिंता का अभी अंत नहीं हुआ था. रास्तेभर वे सोचते रहे, ‘नहीं… कुछ तो कमी होगी वरना…’  ड्राइवर के सामने कुछ पूछ नहीं सकते थे अत: बेटी से रास्तेभर इधरउधर की बातें ही करते रहे.  घर पहुंचते ही रज्जो की मां उसे घेर कर बैठ गईं, ‘तू खुश तो है न?’ मां ने उसे सीने से लगा लिया.

‘हां मां, मैं बहुत खुश हूं. सभी लोग बहुत अच्छे हैं.’  बेटी खुश है जान कर पंडिताइन की आंखें खुशी से छलछला आईं.

‘लेकिन हम लोग मुंबई चले जाएंगे,’ रज्जो ने अचानक यह भेद खोला तो पंडितजी चिंतित हो उठे.

‘क्यों? मुंबई क्यों?’ पंडितजी उठ कर चारपाई पर बैठ गए.

‘इन की नौकरी मुंबई में ही है न?’ रज्जो ने बताया.

एक और राज खुला था. पंडितजी तो अब तक यही सोच रहे थे कि अनिरुद्ध दिल्ली में ही नौकरी कर रहे हैं. इतनी दूर…मुंबई में…उन का दिल फिर घबराहट से भर उठा.

अगले दिन अनिरुद्ध रज्जो को लेने जयपुर पहुंच गए थे. उस दिन पंडितजी ने खुल कर दामाद से बात की और आंखों में आंसू भर कर प्रार्थना की, ‘बेटे, हम जानते हैं कि हमारी बेटी आप के घर के योग्य नहीं है, परंतु अब तो जो होना था हो चुका है. अब उस का ध्यान आप को ही रखना है,’ पंडितजी ने दामाद के सामने दोनों हाथ जोड़ दिए थे. उन की पत्नी भी हाथ जोड़े खड़ी थीं.

‘यह क्या कर रहे हैं आप मुंबु…’ अनिरुद्ध के मुंह से मुंबु सुन कर पंडितजी चौंक उठे.

‘मुझे राजी ने सब बता दिया है. मांजी और बाबूजी को मिला कर ही उस ने यह नया शब्द बनाया है ‘मुंबु’ यानी मां और बाबूजी. आप मेरे लिए भी मुंबु ही हुए न…’

पंडितजी व उन की पत्नी की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी. क्या राजकुमार सा दामाद है, सुंदर और सुशील. ‘मैं जानता हूं मातापिता को अपनी बेटी की बहुत चिंता रहती है. पर आप चिंता न करें. मुझे अपनी मां को यह प्रूव कर के दिखाना है कि मैं कैसे पत्थर तराशने की कला में माहिर हूं?’

‘मतलब…?’

‘मैं ने ही मौम से कहा था कि वे मेरे लिए कोई साधारण घर की लड़की ढूंढ़ें. मैं उन्हें दिखाऊंगा कि उसे तराश कर कैसे हीरा बनाया जाता है,’ अनिरुद्ध ने फिर से मुसकरा कर पंडितजी को बताया.

‘मतलब? मेरी बेटी आप के लिए महज एक परीक्षण की चीज…मात्र ‘गिनीपिग’?’ पंडितजी को चक्कर से आने लगे, ‘अगर परीक्षण सफल न हुआ तो…?’

‘आप चिंता क्यों करते हैं मुंबु, मेरी ये दूसरी मां हैं. इन्होंने मुझे बहुत प्यार से पाला है पर हर बार ये मुझ से ऐक्सपैरिमैंट करवाती रही हैं और मैं हमेशा उन के टैस्ट में पास होता रहा हूं.’

‘ऐक्सपैरिमैंट…टैस्ट…पास…? क्या मैं ने अपनी रज्जो को प्रयोग की भट्ठी में झोंक दिया है?’ पंडितजी के मुंह से अनायास ही निकल गया.

‘नहीं, बिलकुल नहीं,’ अनिरुद्ध को कितना विश्वास था स्वयं पर और रज्जो पर भी.  खैर, वह समय तो बीत चुका था जब पंडितजी की स्थिति कोई निर्णय लेने की होती. अब तो परीक्षण का परिणाम देखने के लिए ही उन्हें समय की सूली पर लटकते रहना था.

अनिरुद्ध अपनी राजी और पंडितजी की रज्जो को ले कर मुंबई चले गए थे. अनिरुद्ध ने ससुरजी के यहां एक टेलीफोन भी लगवा दिया था, जिस से वे अपनी प्यारी बिटिया की स्थिति जानते रहें. साल भर तक केवल फोन पर ही मुंबु से रज्जो की बात होती रही. साल भर बाद अनिरुद्ध स्वयं अपनी पत्नी को ले कर जब जयपुर आए तो रज्जो को देख कर मुंबु की आंखें फटी की फटी रह गईं. वह अब उन की रज्जो नहीं रह गई थी. अनिरुद्ध की पत्नी राजी और फिर राज हो गई थी.

बेटी को देख कर पंडितजी फूले नहीं समा रहे थे. उन्होंने आसपास के सभी लोगों को बेटी, दामाद से मिलने के लिए बुलवा दिया था. आखिर, अनिरुद्ध को कहना ही पड़ा, ‘मुंबु, मैं और राज आप से एक दिन के लिए मिलने आए हैं. कल हमें दिल्ली भी जाना है. मौम मेरे ‘ऐक्सपैरिमैंट’ को ठोकबजा कर देखना चाहती हैं. आप बातें कीजिए. इतने लोेगों को बुला कर तो…’ वे और कुछ कहतेकहते चुप रह गया थे. शायद रज्जो ने पति को इशारा किया था. पंडितजी की हसरत ही रह गई कि वे महल्ले के लोगों को जोड़ कर कुछ कथाकीर्तन करते.

अगले दिन सुबह अनिरुद्ध अपनी खूबसूरत, मौडर्न, फर्राटेदार अंगरेजी बोलने वाली पत्नी को ले कर दिल्ली रवाना हो गया था. लंबी सांस भरते ‘मुंबु’ ने सोचा था कि चलो बेटी खुश तो है. समय अपनी गति से चलता रहा. इस बीच रज्जो के 2 बेटियां हो चुकी थीं.

लगभग हर वर्ष अनिरुद्ध पत्नी को दोनों बेटियों सहित 2-4 दिन के लिए नाना के यहां भेज देते. अनिरुद्ध की बेटियां कहां नानानानी का लाड़प्यार पा सकी थीं. वे तो बस आतीं और जब तक ना…ना उन के मुंह से निकलता तब तक तो उन के जाने का दिन आ जाता. कुछ वर्ष इसी तरह बीत गए. रज्जो से दूर रहने का गम और अकेलापन पंडित पंडिताइन को खाए जा रहा था. 10 वर्ष के अंदर ही वे चल बसे और वह घर सदा के लिए बंद हो गया. रज्जो ने उस पर अपने हाथों से ही मोटा ताला लटकाया था. उस दिन वह कितना फूटफूट कर रोई थी. धीरेधीरे रज्जो की बेटियां भी बड़ी हो चली थीं. फिर उन की शादियां भी हो गईं. एक बेटी सिंगापुर और दूसरी दुबई में सैटल हो गई थी. एक एमबीए और दूसरी मैडिकल औफिसर. दामाद भी इतने भले कि सासससुर का ध्यान अपने मातापिता से भी अधिक रखते.

20 वर्ष मुंबई में रह कर अनिरुद्ध और रज्जो भी सिंगापुर चले गए थे. दिल्ली में अब मातापिता भी नहीं रहे थे. भाई अपनीअपनी गृहस्थी में व्यस्त थे. सब कुछ बहुत अच्छा मिला रज्जो को लेकिन न जाने क्यों वह उम्र के इस पड़ाव पर आ कर कुछ बेचैन सी रहने लगी थी. कभी महसूस करती कि उस का पूरा जीवन ऐसे ही तो बीता है, जैसा अनिरुद्ध ने चाहा था या ‘ऐक्सपैरिमैंट’ किया था. उस ने अपने हिसाब से, अपनी सोच से कुछ किया क्या…? अनिरुद्ध के हिसाब से हाथों में हाथ डाल कर पार्टियां, डांस, पिकनिक और न जाने क्याक्या, सिर्फ शोे बिजनैस. उस का अपना क्या रहा…? कहां रही वह सीधीसादी, साधारण से महल्ले की रज्जो?

सिंगापुर में वह अनमनी सी रहने लगी थी. दिन भर मुंह सी कर बैठी रहती. आकाश को निहारा करती. कारण समझ में नहीं आ रहा था. बेटियों से सलाह कर के अनिरुद्ध भारत वापस आ गए. मुंबई में एक फ्लैट पहले से ही खरीद रखा था. यहां भी वे अपनी जौब में व्यस्त रहते थे अनिरुद्ध, परंतु रज्जो अपनी यादों की पुरानी गलियों में भटकती रहती. एकदम तन्हा, नितांत अकेली. हर 15 दिन में ब्यूटीपार्लर जा कर खुद को सजानेसंवारने वाली रज्जो एक बार कई दिनों के लिए बीमार पड़ गई. शायद वह अकेलापन महसूस कर रही थी. इस से भी अधिक उस के मस्तिष्क में ‘मुंबु’ की असमय मृत्यु मंडराती रहती. उस के पास इतना कुछ है तब भी वह इतनी उदास रहती. उसे ‘मुंबु’ और उन का घर याद आता रहता.

एक दिन नौकरानी ने ब्यूटीशियन को घर पर ही रज्जो का फेशियल   करने के लिए बुला लिया. शायद साहब के आदेश पर, परंतु रज्जो ने उसे वापस भेज दिया. कई दिनों से उस की मनोदशा अजीब सी थी. अनिरुद्ध ने छोटी बेटी रोज को सिंगापुर से रज्जो की देखभाल के लिए बुला लिया था. उस के 2 छोटे बच्चे थे जिन्हें उस के पति आया की मदद से संभाल लेते थे. अत: वह मातापिता के पास बीचबीच में आ जाती थी. रज्जो सोचती कि वह बेटी को अपनी सेवा के लिए बुला लेती है पर वह स्वयं किस दिन अपने मातापिता की जरूरत में काम आ सकी थी? अंदर ही अंदर रज्जो को घुन लगने लगा था. शीशे के सामने खड़ी हो कर अपने सफेद बालों को देख कर अचानक ही वह सोचने लगी कि किसी राजा ने केवल एक बाल सफेद देख कर राजपाट त्यागने का फैसला ले लिया था. उस का तो न जाने कब से सारा सिर ही सफेद है. हर बार डाई करवा कर स्वयं को जवान सिद्ध करने की होड़ में ही लगी रही है. बाकी कभी कुछ नहीं किया. बस, केवल ‘ऐक्सपैरिमैंट’ यानी ‘गिनीपिग’ भर बनी रही ताउम्र.

अकसर आंसू ढुलक कर उस के गालों पर बहने लगते. छोटी बेटी रोज इस बार मां को देख कर सहम गई थी. जब रोते हुए देखा तो बोली, ‘‘क्या हुआ, मौम…? आर यू आल राइट..?’’ सुबकियों के बीच रज्जो ने सिर हिलाया कि वह ठीक है.

‘‘फिर आप रो क्यों रही हैं?’’

रात में भी मां को करवटें बदलते देख कर रोज कुछ परेशान सी हो उठी थी. अचानक वह उठ बैठी और मां को बांहों में भर लिया, ‘‘आई वांट टू विजिट माय होमटाउन…आय वांट टू मीट पीपल हू वर अराउंड मी…’’ सुबकते हुए रज्जो ने अपनी खूबसूरत बेटी रोज के कंधे पर अपना सिर रख दिया और जोर से बिलख उठी.

‘‘तुम जानती हो राज, कितने साल हो गए हैं तुम्हें वहां गए? तुम से किसी का कौंटैक्ट भी नहीं है शायद…फिर…?’’ अनिरुद्ध उस की बात सुन कर बौखला उठे थे.

‘‘मैं ‘मुंबु’ का  घर खोल कर देखना चाहता हूं.’’

‘‘करोगी क्या वहां जा कर…कौन पहचानेगा तुम्हें?’’

‘‘अनि, प्लीज, मैं मुंबु का घर खोलना चाहती हूं, सहन में बनी हुई तुलसी की क्यारी को छूना चाहती हूं… मुझे पता है कृष्णा बहनजी, इंदु मौसी, सरोज मौसी मुझे देख कर खुश होंगी. बस…जस्ट वंस…मेरा बचपन मुझे पुकार रहा है…मेरा घर मुझे पुकार रहा है.’’

‘‘वहां कौन रहा होगा…  तुम जानती हो क्या?’’ उन की राज में रज्जो प्रवेश कर रही थी. कितनी मुश्किल से उस मिट्टी की गंध शरीर से मलमल कर छुड़ाई थी उस ने. अब फिर से 60 वर्ष की उम्र में उन की पत्नी उस गंध को लपेटने के लिए व्याकुल हो उठी थी.

‘‘कौन जाएगा तुम्हारे साथ. यह बेचारी अपना घर, बच्चे, जौब सबकुछ छोड़ कर तुम्हारे लिए आई है.’’

रोज के मन में मां के प्रति कुछ पिघलने लगा, ‘‘ओके डैड…आय विल टेक हर विद मी जस्ट फौर टू डेज औनली…’’ उसे वापस भी तो जाना था.  रज्जो रोज के साथ मुंबु के शहर जयपुर आ गई. स्टेशन से घर तक का सफर रिकशे में बमुश्किल से कटा. वह जल्दी अपने मुंबु के घर पहुंचना चाहती थी. रास्ते भर वह उन सड़कों और गलियारों को बच्चों की तरह खुश हो कर निहारती जा रही थी.

रज्जो तो मानो अपने बचपन की सैर करने लगी थी. बीमारी से कमजोर हुई रज्जो में मानो किसी ने फूंक कर ताजी हवा का झोंका भर दिया था.  मां के पर्स से चाबी निकाल कर रोज ने जैसे ही दरवाजे के ताले से जूझना शुरू किया, ऊपर से कच्ची मिट्टी भरभरा कर उस के खूबसूरत चेहरे पर फैल गई. हाथों से चेहरे को झाड़ते हुए उस ने खीझ कर मां की ओर देखा. ‘‘मौम, कांट वी हैव समवन टू क्लीन द डोर. ओ…माय गुडनैस.’’

धीरेधीरे आसपास के दरवाजे खुलने लगे. औरतें फुसफुसाती हुई उन की ओर बढ़ीं. रोज ने पैंट में से रुमाल निकाल कर मुंह पर फैली मिट्टी को साफ करने की बेकार सी कोशिश की.

‘‘कौन हो?’’ लाठी पकड़े एक बुजुर्ग महिला चश्मे में से झांकने का प्रयास कर रही थी.

रज्जो की आंखों में चमक भर आई.

‘‘लाखी चाची,’’ उस ने आंसुओं से चेहरा तर कर लिया और झुकी कमर वाली महिला के गले लग कर सुबकने लगी, ‘‘रज्जो हूं चाची, आप की रज्जो… पहचाना नहीं?’’

अंदर से चाची की किसी बहू ने एक खाट ला कर सड़क के किनारे डाल दी थी. घूंघट के भीतर से बहुएं पैंट पहनी हुई सुंदरी को निहार रही थीं.

‘‘जरूर कोई मेम है…’’ एक ने फुसफुस कर के दूसरी के कान में कहा.

रोज उन के पास चली आई, ‘‘नमस्ते, मैं इन की बेटी… कोई सर्वेंट मिल जाएगा यहां? ताला भी नहीं खुल रहा है. उसे भी खोलना होगा.’’

घूंघट वाली बहुओं में से एक ने घर में बरतन मांजती हुई महरी को आवाज दे कर बाहर बुला लिया.

‘‘आप इसे चाबी दे दीजिए, यह खोल देगी.’’

महरी ने उस के हाथ से चाबी ले ली और ताले में चाबी घुमाने लगी तो कुंडा टूट कर उस के हाथ में आ गया.

‘‘महरी को वहीं छोड़ रोज उस ओर बढ़ गई जहां रज्जो खाट पर बैठी बुजुर्ग महिला से बातें कर रही थी.

रोज के लिए यह माहौल कुतूहल भरा था.

‘‘तेरी 2 बेटी हैं न रज्जी?’’ बूढ़ी औरत उसे अच्छी प्रकार देखना चाहती थी. वह अपने चेहरे को ऊपरनीचे करने लगी थी.

‘‘बहुत कम दिखाई देता है बेटी. देखो, अब तो हमारी उमर का कोई एकाध ही बचा होगा. सभी साथ छोड़ गए. अच्छा किया तू आ गई…तेरे से मिलना हो गया.’’

रोज के सामने चाय का  प्याला आ गया था और दोनों बहुएं उस की कुरसी के इर्दगिर्द खड़ी हो गई थीं.

‘‘ले बेटी, समोसा फोड़ ले.’’

रोज को हंसी आने को हुई पर उस ने कंट्रोल कर लिया. समोसा कुतरते हुए उस ने ‘मुंबु’ के मकान के बाहरी हिस्से में उगे पीपल के छोटेछोटे पौधों पर नजर गढ़ा दी.

‘‘हर साल काट देते हैं हम जी… पर ये हर साल उग आते हैं,’’ घूंघट वाली एक बहू ने उस की दृष्टि भांप ली थी.

‘मुंबु’ के घर में अब भी जीवन है वह सोचने लगी. लेकिन रात में इस घर में तो रहा नहीं जा सकता. जयपुर तो इतना बड़ा शहर है, अच्छेअच्छे होटल हैं. वह मौम को वहां रहने के लिए मना लेगी.

‘‘बेटा, मैं जिन से मिलने आई थी, उन में से तो कोई भी नहीं रहा.’’

रोज ने मां का कंधा दबा कर उन्हें सांत्वना देने का प्रयास किया.

‘‘इट्स औल राइट मौम. जिंदगी ऐसे ही चलती है,’’ फिर थोड़ा रुक कर रोज आगे कहती है, ‘‘मौम, अंदर चलेंगी? आप का तुलसी का चौरा…’’

‘‘हां, और कोई तो मिला नहीं…’’ राजी दुखी थी.

‘‘चलिए, अंदर देखते हैं,’’ रोज उस का ध्यान बटाना चाहती थी.

‘‘हां,’’ कह कर रज्जो ने हाथ में पकड़ा हुआ चाय का प्याला मेज पर रखा और उठ खड़ी हुई. उस के साथ लाखी चाची भी अपना डंडा उठा कर उस के घर की ओर बढ़ चलीं. उन के पीछेपीछे दोनों घूंघट वाली बहुएं भी.

रोज आगे बढ़ कर सहन पार कर गई थी. पीछेपीछे राजी आ रही थी. तुलसी का अधटूटा चौरा सहन में मृत्युशैया पर पड़े बूढ़े की तरह मानो किसी की प्रतीक्षा कर रहा था. रज्जो ने सिंहद्वार में प्रवेश किया ही था कि ऊपर से अधटूटी लटकी हुई बल्ली उस के सिर पर गिरी और वह वहीं पसर गई. लाखी चाची को बहुओं ने पीछे खींच लिया था. जोरदार आवाज सुन कर रोज ने पीछे मुड़ कर देखा. ‘‘मौम…’’ वह चिल्लाई.

पर…मौम की आवाज शांत हो गई थी…हमेशाहमेशा के लिए. उस की आंखें उलट चुकी थीं और प्रतीक्षारत तुलसी के टूटे हुए चौरे पर अटक गई थीं. ‘राज कपूर’ की फिर से रज्जो बनने की हसरत पूरी हो गई थी. समय ने उसे कहांकहां घुमाफिरा कर, उस के साथ न जाने कितने प्रयोग कर के रज्जो को फिर से उसी धूल में मिला दिया था जिस से निकल कर वह ताउम्र समय के साथ आंखमिचौनी करती रही थी. अब वह गिनीपिग नहीं रही थी. अब उस पर कोई ऐक्सपैरिमैंट नहीं कर सकता था.

बदला : बेवफा पति को पत्नी ने कैसे सिखाया सबक ?

‘इस बार आप इतने दुखी क्यों हो? आप को क्या हो गया है? इस से पहले आप को इतना परेशान कभी नहीं देखा था. आप की हंसी कहां चली गई? इस बार छुट्टियों में जब से आप आए हो, न तो स्वयं चैन से हो और न दूसरों को चैन से जीने दे रहे हो,’ पत्नी अमृता की पीड़ा मानों उस की जुबां पर आ रही थी. उस ने अपने पति को पहले इतना बेसुध कभी नहीं देखा था. वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं थे. विश्वविद्यालय के शिक्षक थे.

 

भावी पीढ़ी को तैयार करना जिन का मुख्य उद्देश्य था, उस की यह स्थिति सचमुच चिंताजनक थी. उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? इतना प्यार करने वाला पति इतनी उपेक्षा करेगा, यह कभी सोचा नहीं था. यह सोचते हुए कब नींद आ गई पता ही नहीं चला.

 

सुबह उठी तो वह बाथरूम में थे. नाश्ता तैयार कर के लाई तो कौन कहे नाश्ता करने को, वह तो नाश्ते की तरफ देख भी नहीं रहे थे. कुछ पूछो तो एकटक देखने के सिवा कुछ बोलते नहीं थे. उन की स्थिति एक चुप हजार चुप जैसी थी.

 

मैं उस के व्यवहार में आए बदलाव से आश्चर्यचकित थी. मैं क्षणभर के लिए अतीत के सुनहरे ख्वाबों में खो गई. उन के अगाध प्यार को पा कर मेरी खुशी का ठिकाना न था. मायके की सुखसुविधा भी याद नहीं रही. 12वीं पास मुझे किस प्रकार बीए और एमए इतिहास में कराया. देखतेदेखते मैं ने नेट की परीक्षा दी और प्रथम प्रयास में पास कर ली. यह सब इन की तपस्या का परिणाम था कि मैं असिस्टैंट प्रोफैसर बनने की योग्यता प्राप्त कर ली. मेरी खुशी का ठिकाना न था.

 

मैं अपनेआप को सब से खुशनसीब पत्नी मानती थी मगर यह अचानक क्या से क्या हो गया? पता नहीं किस के ध्यान में हर समय खोए रहते हैं? मैं यह सोच ही रही थी कि भाभी, आप ने मुझे याद किया… आवाज से मैं वर्तमान में लौटी और बोल पड़ी,”आओ देवरजी, बैठो. कैसे हो आप? पढ़ाईलिखाई कैसी चल रही है आप की?”

 

“ठीक चल रही है, भाभीजी. पढ़ाई तो करनी ही है. अगर नहीं पढ़ाई करेंगे तो नौकरी कैसे मिलेगी,” देवर के ऐसा कहने पर वह बोली, “तुम्हें पढ़ाने वाले कौन हैं? वे कैसे पढ़ाते हैं? कोर्स के अतिरिक्त कुछ जीवनव्यवहार की भी शिक्षा मिलती है या नहीं?”

 

“जीवन मूल्यों की शिक्षा, इसे तो भूल ही जाओ, भाभी. कैंपस का वातावरण ठीक नहीं है, भाभीजी. जब बाड़ ही खेत खाने लगे तो खेत की रक्षा कैसे संभव है? जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो भला कौन बचा सकता है? मेरा मतलब शिक्षकों से है. उन के दायित्व बोध में स्पष्ट गिरावट दिख रही है.’’

 

“यदि ऐसी बात है तो तुम लोगों को सामने आना चाहिए. इस के लिए बड़ी लड़ाई की जरूरत है. अच्छा यह बताओ कि तुम्हें पढ़ाने वाले शिक्षक कौन है?”

 

“एक तो सर (भ्राताश्री) हैं और एक इन की बहुत खास डाक्टर दीपिका हैं और 2 अन्य हैं. जब हमारे शिक्षक चर्चा में हों और उन पर प्रश्नचिह्न लग रहे हों तो उन से जीवन मूल्यों की शिक्षा बेमानी समझी जाएगी.”

 

“खास डाक्टर दीपिका से तुम्हारा क्या मतलब है?” मेरे कड़क आवाज में कहने पर वह बोला, “प्लीज भाभी, मुझे क्षमा करें, मुझ से गलती हो गई. भविष्य में ध्यान रखूंगा. अब ऐसी गलती नहीं होगी.”

 

उस की बात सुन कर मैं ने उस से कहा,”तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है. मुझे दीपिका के बारे में बताओ. मैं उस के बारे में सबकुछ जानना चाहती हूं.”

 

मेरी प्रार्थना को अस्वीकार करते हुए उस ने मुझे कुछ भी बताने से मना कर दिया. निस्सहाय मैं रो पड़ी. मेरे बहते आंसुओं को देख कर वह घबरा गया और बोला,”चुप हो जाओ, भाभी. भैया और डाक्टर दीपिका की प्रेम कहानी इतिहास विभाग में खूब चर्चित है. दोनों एकदूसरे के प्रेम में खोएखोए से रहते हैं. मगर भाभी, मेरा नाम कहीं नहीं आना चाहिए.”

 

मैं ने उसे आश्वस्त कर भेज दिया और इस उधेड़बुन में खो गई कि अब मुझे क्या करना चाहिए. अपने प्राणप्यारे पति को किसी के प्यार पर कुरबान तो कर नहीं सकती. क्या दीपिका यह जानती है कि वह जिस से प्यार कर रही है वह शख्श शादीशुदा है. अगर इस सचाई को जानते हुए वह आगे बढ़ी है तो मैं उसे कभी माफ नहीं करूंगी.

 

दूसरे दिन पति डाक्टर अमित से मैं ने दीपिका के बारे में पूछा तो वह अनजान बनने की कोशिश करने लगे. जब मैं ने उन से कहा कि मुझ से कुछ मत छिपाने की कोशिश मत करो, मुझे सब कुछ पता चल गया है तो वह बोले,”अमृता, मैं उसे बहुत चाहता हूं और उस के बिना जीवित नहीं रह सकता.”

 

“अच्छा यह बताओ कि उसे यह बताए हो कि तुम शादीशुदा हो. यदि बताए हो फिर भी वह आगे बढ़ी है तो दोनों की नौकरी को खतरा है.”

 

मुझे ‘पता नहीं कह कर’ उन्होंने बात टालने की कोशिश की. उन की बात से मुझे सचाई समझने में देरी नहीं हुई. आगे की रणनीति पर मैं विचार करने लगी.

 

पति अमित की बेवफाई से बेचैन मैं कुछ समझ नहीं पा रही थी कि मैं क्या करूं? अंत में निराश हो कर मैं अपने बड़े भाई को फोन पर सबकुछ बता दिया. छुट्टियों के बाद वह मुझे ले कर कुलपति के पास गए. उन्होंने हमारी बात को बड़े ध्यान से सुना. उन के चेहरे से अप्रसन्नता साफ झलक रही थी. उन्होंने डाक्टर दीपिका को याद किया. उन के आने पर उन से मेरा परिचय कराते हुए कहा,”इन से कभी मिली हो? कभीकभी अनजान में व्यक्ति से बहुत बड़ी गलती हो जाती है. यह महिला डाक्टर अमित की पत्नी हैं,” यह सुन कर डाक्टर दीपिका आश्चर्यचकित हो कर बोलीं,”डाक्टर अमित शादीशुदा, ऐसा नहीं हो सकता, सर. यदि ऐसा है तो मेरे साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है, सर. मुझे माफ कर देना सर.”

 

कुलपति बोले, “स्थायी समाधान के लिए मैं तुम्हें तुम्हारे गृहजिले के विश्वविद्यालय में भेजना चाहता हूं, वहां के कुलपति से बात हो गई है,” यह सुन कर दीपिका बहुत खुश हुई और अपने गृहजिले में चली गई. इस के बाद अमित बुलाए गए.

 

उस के आने पर कुलपति ने कहा,”अमित, दीपिका नौकरी छोड़ कर यहां से चली गई और अब उस के स्थान पर तुम्हारी पत्नी नौकरी जौइन करेगी. अब मेरे पास कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए,” इतनी कठिन समस्या का इतना सरल और स्थायी  समाधान पा कर खुशी के कारण पत्नी अमृता की आंखें छलछला उठीं.

Breakup के बारे में बताया तो लग जाएगा पहरा, दिल टूटने की बातें रहे दिल तक

आज के टाइम में ब्रेकअप होना कोई बड़ी बात नहीं है. यह तो अब लाइफ का पार्ट है जिससे कुछ सीख ही मिलती है. टीनएजर्स में यह काफी कॉमन हो गया है. लेकिन ब्रेकअप होना एक बड़ा मुद्दा तब बन जाता है. जब हम इसे दूसरों से शेयर करके बड़ा बना देते है. वरना इसे लाइफ के एक एक्सपीरिएंस की तरह भी लिया जा सकता है.

रचना ने बताया कि अभी कुछ महीने पहले ही उनका अपने बॉयफ्रेंड, जिसके साथ उन्होंने शादी तक का सपना देखा था, उससे ब्रेकअप हो गया. जब यह बात मेरे घर में पता चली तो मुझ पर बेवजह का एक प्रेशर क्रिएट हो गया. हर समय हर कोई मुझे नसीहतें दे रहा था. मम्मी ने तो यहाँ तक कह दिया अब बाकी की पढ़ाई अपने ससुराल जाकर करना हम तुम्हारें लिए लड़का देख रहे है. जब तक मैं अपने बॉयफ्रेंड के साथ थी उन्हें कोई परवाह नहीं थी पर ब्रेकअप के होते ही उन्हें समाज की और लोग क्या कहेंगे की चिंता हो गई. यही हाल मेरे दोस्तों का भी था वे मुझे बेचारी की तरह देखने लगे.

 

इमोशनली वीक न बनें

अगर आप खुद इमोशनली वीक बनेंगे तो लोग तो आप पर तरस खाएंगे ही. इसलिए पहले आप खुद अपने को संभाले। जब लोग देखेंगे कि आप नार्मल है तो वह भी आपको नार्मल लेंगे लेकिन उन्हें लगेगा कि आप दुखी हैं तो वे भी परेशान होंगे और आपको इस परेशानी से निकलने का जो भी हल उन्हें समझ आएगा वे आपको वह करने को कहेंगे फिर आप उसे करना चाहें या न चाहें.

सोशल मीडिया पर शेयर क्यों करना

आजकल रिलेशनशिप स्टेटस सोशल मीडिया पर शेयर करना फैशन बन गया है। ब्रेकअप होते ही अपने रिलेशन का ढिंढोरा पीटना गलत है. ऐसा करके आप खुद लोगों को अपने बारे में बात करने का मौका दे रहे है साथ ही आपका पार्टनर जिससे ब्रेकअप हुआ है उसे भी अम्बेरेस कर रहे हैं. इसलिए ऐसा करने से बचें।

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हंसी का पात्र ही बनेंगे

लोगों को बताकर आप हंसी का पात्र ही बनेंगे ये दुनिया का दस्तूर है कि वो रो रोकर आपसे आपका गम पूछेंगे और हंस हंस के उड़ा देंगे. इसका मतलब वे आपके आगे तो आपके दुःख में साथ होने का दिखावा करेंगे लेकिन जैसे ही आप चले जायेंगे। वे खुद आपकी चुगलियां करके सबको बताएँगे की इस चोमू के साथ तो कोई लड़की रह ही नहीं सकती थी, पता नहीं उस लड़की ने ब्रेकअप करने में इतने देर क्यों कर दी ओर भी जाने कितनी बातें वे करेंगे.

बॉउंडेशन लग जाएगी

अपने पेरेंट्स को बता देंगे इस बारें में तो वो कुछ ज्यादा ही परेशान हो जाएंगे। उन्हें लगेगा कि आप अपना कामधाम छोड़कर इन बेकार की बातों में लगे हैं. आप उन्हें यह नहीं समझा पाएंगे कि यह भी लाइफ का पार्ट है. एग्जाम में नंबर काम आने से लेकर किसी शादी में ना जाने का जिम्मेवार अब वो ब्रेकअप को ही ठहराएंगे भले ही इस बात से उसका कुछ लेना देना हो या नहीं।

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तू नहीं तो कोई और सही

तू नहीं तो और सही

अगर एक से ब्रेकअप हो गया तो क्या हुआ, उससे बाहर निकले। ज़िंदगी बहुत खूबसूरत है उसे भरपूर जिएं। तू नहीं तो और सही का फार्मूला अपनाएँ और खुश रहें

लाइफ के एक्सपीरिएंस की तरह ही लें

अपने अनुभव से सीखना, आपके अगले रिश्ते को मजबूत बना सकता है। आप एक बार फिर से डेटिंग करना शुरू करें, उसके पहले थोड़ा समय लेकर विचार करें कि आपका ब्रेकअप किस वजह से हुआ था। खुद से इस तरह की बातें पूछें, “जो हुआ उससे मैं क्या सीख सकता हूँ?” और “मैं इस अनुभव का उपयोग अपने अगले रिश्ते के लिए एक मजबूत नींव बनाने के लिए कैसे कर सकता हूं?”

ब्रेकअप सपोर्ट ग्रुप जॉइन करें

अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को अपने ब्रेकअप के किस्से सुनकर क्यों परेशान करना. इससे तो अच्छा है कि आप कुछ अपने जैसे ही लोगों को ढूंढे और उनसे बातचीत करें. इससे आपको पता चलेगा कि दुनिया में कितना गम है मेरा गम कितना कम है. इसके लिए ब्रेकअप स्पोर्ट ग्रुप जॉइन करें और जल्द से जल्द इस फेस से बाहर आने की कोशिश करें.

जजमेंटल हो जायेंगे लोग

आपकी गलती निकालेंगे लोग. हो सकता है ब्रेकअप का जिम्मेवार वे आपके नेचर को ठहरा दे या फिर आपकी कम हाइट और तो और आपके रंग और सुंदरता को लेकर भी सवाल उठा सकते है. हाँ, इस सब में बात घूम फिर कर आपके करिअर पर कब आ जाएगी कह नहीं सकते. इसलिए किसी को बताकर कुछ हासिल नहीं होगा. यह आपका दर्द है तो इससे बाहर भी आपको खुद ही आना होगा.

ब्रेकअप को पॉजिटिव लो

ब्रेकअप को पॉजिटिव लो. यह किसी अच्छे के लिए ही हुआ होगा। हो सकता है कि आप उससे कुछ ज्यादा अच्छा डिज़र्व करते हों. दूसरे अब आपको अच्छे बुरे में फर्क करना भी आ गया होगा और अपनी चॉइस के बारें में भी बेहतर पता चल गया होगा कि आपको अब कैसा पार्टनर चाहिए.

खुद से प्यार करो

अपना दर्द काम करने के उपायें करें और एक बार खुद के ही गले मिले। खुद को सकारात्‍मक भावना के साथ अच्‍छे कामों में लगाएं। जब भी उनकी याद आए, तो आने दें। रोने का मन करे तो रो भी लें, लेकिन उसके बाद फिर से फ्रेश होकर अपने जीवन में आगे बढ़ें और अपने लिए तय किए लक्ष्‍यों को पाने में जुट जाएं। खुद से प्यार करें और अपने को बेहतर बनाने में समय लगाएं।

 

 

शादी कोई बिजनेस डील नहीं, शर्तों की लंबी लिस्ट गैरजरूरी

“न चाहूं सोना चांदी न चाहूं हीरा मोती
यह मेरे किस काम के.. न मांगूं बंगला बाड़ी
न मांगूं घोड़ा गाड़ी .. यह तो हैं बस नाम के
देती है दिल दे बदले में दिल के .. देती है दिल दे बदले में दिल के
हे हे हे हे हे हे रे साहिबा प्यार में सौदा नहीं”

कितना प्यारा गीत है और कितनी अच्छी बात कही है न इस गीत में .. प्यार में सौदा नहीं !

सच में अगर जिंदगी में जिसे आप चाहते हैं, उसके साथ एक खुशहाल जिंदगी गुजारना चाहते हैं तो प्यार सबसे जरूरी है, प्यार न हो तो बाकी सब चीजें किस काम की लेकिन आज के बदलते समय में विवाह जो एक बेहद प्यारा सा रिश्ता है जो परस्पर सहयोग, समझदारी, विश्वास और आपसी सामंजस्य पर टिका होना चाहिए वह शर्तों में बंधा बंधन होने लगा है !

इस खूबसूरत रिश्ते में बंधने से पूर्व ही लड़का या लड़की की तरफ से अनेक शर्तों की लंबी लिस्ट सामने वाले पर लाद दी जाने लगी हैं . तो आप ही सोचिए जिस रिश्ते की शुरुआत ही शर्तों पर हो उस के टिकने सफल और खुशहाल होने की कितनी संभावना होगी ?

पिछले दिनों 37 वर्षीय युवती की शादी की ऐसी ही एक शर्तों वाली लिस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हुई जिसमें दूल्हे की तलाश में युवती ने दूल्हे में होने वाले जो गुणों, लुक्स और करियर की एक लंबी लिस्ट बनाई जिस पर पर लोगों ने खूब चर्चा की.

मुंबई में रहने वाली यह युवती अपने लिए ऐसा दूल्हा चाहती है जिसका मुंबई में अपना खुद का घर, नौकरी या बिजनेस हो. इसके अलावा, वह चाहती है कि लड़के का परिवार अच्छा पढ़ा लिखा हो और और अगर सर्जन (डाक्टर) या चार्टर्ड अकाउंटेंट यानी कि सी. ए. हो तो और भी अच्छा . युवती जो खुद 10 साल से नौकरी कर रही है और उसकी सालाना आमदनी 4 लाख रुपए है लेकिन उसकी शर्त है कि लड़के की आमदनी 1 करोड़ रुपए सालाना होनी चाहिए. लड़का अगर यूरोप में रहता है तो भी सही है लेकिन यूरोप में भी इटली उसके लिए सबसे अच्छा रहेगा !

 

लड़की की शादी से पहले की निम्न 12 शर्तें देखकर आप भी सोच में पड़ जाएंगे कि कि आखिर यह शादी है या सौदा जिसमें इतनी शर्तें हैं –

• अच्‍छी कमाई हो.
• अपना घर हो.
• स्‍ट्रान्‍ग बैकअप हो.
• फैसले लेने की आजादी हो.
• खाना बनाने के लिए नौकर/नौकरानी हो.
• एक साल में लो लॉन्‍ग ट्रिप हो.
• हर साल दो स्‍मॉट ट्रिप.
• मेरे लिए नौकरी करने की बाध्‍यता न हो.
• मेरे साथ गाली-गलौज और हिंसात्‍मक व्‍यवहार न हो.
• दहेज नहीं दूंगी.
• पहले की शादी से कोई बच्‍चा न हो.
• सास-ससुर का कोई हस्‍तक्षेप न हो.

आप ही सोचिए जिस रिश्ते में इतनी शर्तें होंगी आखिर वह कितने दिन चलेगा ! वैवाहिक रिश्ते की नींव प्यार और विश्वास पर टिकी होती है लेकिन जब वैवाहिक रिश्ते शर्तों पर बनते हैं तो उन की उम्र अधिक लंबी नहीं होती. कई बार तो वे जुड़ने से पहले ही धराशायी हो जाते हैं.

ऐसी ही एक अनोखी शर्त पश्चिम बंगाल में सरकारी नौकरी कर रहे एक युवक ने भी पेश की जो शादी के लिए पार्टनर की तलाश में है . हालांकि उसकी अपनी होने वाली पत्नी के लिए कुछ अधिक मांगें नहीं हैं . उसे अपनी पत्नी की उम्र 18 से 22 वर्ष के बीच चाहिए. उसकी 12वीं तक की पढ़ाई काफी है, लेकिन सबसे जरूरी शर्त यह है कि लड़की को सोशल मीडिया यानी फेसबुकवाट्सएप की लत नहीं होनी चाहिए.

पश्चिम बंगाल में शादी के लिए विज्ञापनों के मामले में यह नया ट्रेंड है, जो लगातार सामने आ रहा है. दरअसल ,लड़के नहीं चाहते कि सोशल मीडिया उनके वैवाहिक रिश्ते के बीच में दीवार बने . विज्ञापन देने वाले इस वर ने नाम नहीं छापने के शर्त पर कहा- ‘मैं खुशहाल दांपत्य जीवन के लिए शादी करना चाहता हूं क्योंकि यह देखा जा रहा है कि घरेलू महिलाएं सोशल मीडिया पर इतनी व्यस्त हो जाती हैं कि वह पति या घर की अन्य किसी की बातों पर ध्यान ही नहीं देती हैं. यही नहीं, आए दिन खबरें भी आती हैं कि वाट्सएप व फेसबुक के माध्यम से फलांफलां अपराध हुआ. फेसबुक व वाट्सएप पर गलत प्रोपोजल भी दिए जाते हैं.’

एक अन्य प्रकार की शर्त में कुछ लड़के विदेश में बसने के लिए ऐसी लड़की से शादी करते हैं, जो विदेश में पढऩे के लिए योग्य हो. दोनों के बीच शादी की यह शर्त होती है कि लड़का व उसका परिवार उसे विदेश भेजने का पूरा खर्च उठाएंगे और फिर लड़की अपने जीवनसाथी को मिलने वाला वीजा भेजकर उसे भी विदेश बुला लेगी. हाल ही में ऐसे कुछ शादी के सौदों की नाकामयाबी कई परिवारों के लिए बहुत महंगी साबित हुई है.

सोशल मीडिया पर आजकल शर्तों वाली शादी यानी वैडिंग कान्ट्रैक्ट की भी कई वीडियोज देखने में आ रही हैं जिसमें कपल वैडिंग कान्ट्रैक्ट पर सिग्नेचर करते नजर आ रहे हैं. इस वैडिंग कान्ट्रैक्ट यानी शर्तों वाली शादी में वैडिंग कान्ट्रैक्ट पर कपल अपनी सारी शर्तें लिखकर अपने पार्टनर से सिग्नेचर करवाते हैं. इस कान्ट्रैक्ट में आप अपनी इच्छा से कुछ भी लिखवा सकते हैं.

शादी करने से पहले इस वैडिंग कान्ट्रैक्ट को बनवाने के लिए कपल सबसे पहले तो अपनी पसंद-नापसंद के बारे में एकदूसरे से खुल कर बात करते हैं. फिर वैडिंग कान्ट्रैक्ट में अपनी सारी शर्तें लिखकर अपने पार्टनर से सिग्नेचर करवाते हैं. कान्ट्रैक्ट में लिखी सभी बातों का शादी के बाद पालन करवाना ही वैडिंग कान्ट्रैक्ट का मकसद होता है. सोशल मीडिया पर हाल ही में वायरल हो रहे एक वीडियो में

पहली शर्त है कि दोनों महीने में सिर्फ एक पिज्जा खाएंगे.

दूसरी शर्त है दूल्हा हमेशा घर के खाने के लिए हां बोलेगा,

तीसरी शर्त दुल्हन रोज साड़ी पहनेगी,

चौथी नाइट पार्टी तो कर सकते हैं, लेकिन सिर्फ एक साथ,

पांचवीं शर्त है कि दोनों को रोज जिम जाना ही होगा.

छठी शर्त है कि दूल्हे को हर रविवार नाश्ता बनाना होगा,

सातवीं शर्त के मुताबिक दूल्हे को हर पार्टी में दुल्हन की सुंदर फोटो लेनी होगी और

आठवीं शर्त में लिखा गया है कि हर 15 दिन में दूल्हा दुल्हन को शॉपिंग पर लेकर जाएगा.

भले ही लोगों को यह वैडिंग कान्ट्रैक्ट बहुत अच्छा लग रहा है. परन्तु सवाल यह उठता है कि जिस रिश्ते में बंधने से पूर्व ही इतनी शर्तें हैं वे उनके वैवाहिक जीवन को किस दिशा में ले जाएंगी और क्या आपसी विश्वास पर आधारित शादी के पवित्र बंधन की सार्थकता तार-तार नहीं हो जाएगी ?

हमारे समाज में विवाह को हमेशा से पति-पत्नी के बीच प्यार और विश्वास के रिश्ते के रूप में देखा गया है ऐसे में किसी भी शादी की सफलता के लिए ऐसे व्यक्ति से करनी चाहिए जिसमें लड़का लड़की दोनों एक दूसरे से तन मन धन से जुड़े होने चाहिए ,दोनों को एक दूसरे पर भरोसा होना चाहिए न कि शादी शर्तों पर आधारित होनी चाहिए!

जब पति को बांटना पड़े, तो पत्नी कैसे रहे खुश?

हाल ही में बिग बौस ओटीटी शुरू हुआ है जिस में अरमान मालिक नाम के यूटूबर अपनी दो पत्नियों के साथ घर के सदस्य बने हैं. इन तीनों के बीच गजब का बौन्ड देखने को मिला है. अरमान अपनी दोनों पत्नियों के साथ तालमेल मिलाते दिखे हैं. अपनी सामान्य जिंदगी में भी तीनों साथ रहते हैं और दोनों बीवियां बहनों की तरह एक ही घर में रहती हैं. अरमान ने जब कृतिका से 2018 में शादी की थी तो वह पहले से ही शादीशुदा थे. अरमान की पहली पत्नी पायल है.

इन तीनों के मिलने की कहानी काफी रोचक है. पायल ने अरमान से 2011 में लव मैरिज की थी. अरमान मलिक और पायल की जिंदगी अच्छी खास चल रही थी तभी कृतिका की एंट्री हुई और सब कुछ बदल गया था. कृतिका और पायल दोनों बेस्ट फ्रेंड थीं. ऐसे में कृतिका अरमान से पहली बार उनके ही घर पर मिली थीं. पायल ने अपनी बेस्ट फ्रेंड को बेटे के बर्थडे पर बुलाया था और इसी बीच फोटोज को शेयर करने को लेकर अरमान के साथ कृतिका का नंबर एक्सचेंज हुआ था. यहां से दोनों के बीच बातें होने लगीं. फिर एक बार hu पायल ने कृतिका को सहेली की हैसियत से 6 दिनों के लिए अपने घर रोक लिया था. उस के बाद कृतिका हमेशा के लिए उसी के घर में रुक गई. अरमान ने उस से शादी कर ली थी.

शादी के बाद जब अरमान ने पहली पत्नी पायल को इस शादी की बात बताई तो वो काफी शाक्ड हो गईं. वह पति के इस कदम से काफी नाराज थीं. उन्होंने उनकी दूसरी शादी को स्वीकार तो कर लिया था मगर अरमान के साथ दूरी बना ली थी. करीब एक साल उन के बीच कुछ भी ठीक नहीं रहा मगर फिर उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि वे एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते. अब पायल और कृतिका दोनों ही अरमान के साथ रहती हैं और कमाल का बौन्ड शेयर करती हैं.

रिश्तों में जुड़ाव जरूरी

रिश्ता कोई भी हो जब वह बंधन लगने लगे तो दम घुटता है और जब उस में स्पार्क न रहे तो बोरियत होने लगती है. अरमान जैसे लोग अगर दो पार्टनर के साथ भी खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं और रिश्तों में दोस्ताना जुड़ाव है तो फिर यह बात समस्या नहीं बन सकती कि घर में सौतन के साथ कैसे रहा जाए. पायल और कृतिका आज बहनों की तरह साथ रह रही हैं और अपने बच्चों के साथ व्यस्त हैं. ऐसे में दोनों पत्नियों में किसी को फर्क नहीं पड़ता किउन्हें अपने पति को आपस में बांटना पड़ रहा है.

पहले के समय में रिश्तों में उतना ज्यादा खुलापन नहीं था. घर में कई भाई होते थे और सब अपनीअपनी पत्नी के साथ बस रात में ही थोड़ा समय बिता पाते थे. वरना पूरा परिवार हमेशा साथ ही होता था. मगर आजकल हालात बदल रहे हैं. अब संयुक्त परिवार का जमाना नहीं रहा. ऐसे में घरों में लोग कम हैं. अक्सर देखा जाता है कि लड़के लड़कियां घर से दूर शहरों में अकेले अपने पार्टनर के साथ रहते हैं. ऐसे में उन के पास जो थोड़े बहुत रिश्ते होते हैं उसी में स्पार्क ढूंढते हैं. अगर पार्टनर के अलावा कोई पसंद आ जाए और वह पार्टनर का भी करीबी हो तो रिश्ते गहरे होते देर नहीं लगती. यही अरमान वाले केस में भी हुआ. कृतिका अरमान की पत्नी पायल की सहेली थी और दोनों में गहरी दोस्ती थी. इसी क्रम में कृतिका और अरमान आपस में मिले और करीब आए. जब दोनों ने एकदूसरे के लिए फील करना शुरू किया तो उन्होंने शादी कर ली. पायल उन दोनों के बढ़ते रिश्ते से अनजान नहीं थी मगर फिर भी शादी की खबर से वह पहले तो शौक्ड रह गई. बाद में घरवालों की सलाह पर वह अरमान से दूर भी हो गई. मगर अरमान और उन का प्यार कम नहीं हुआ था. दोनों एकदूसरे के बिना अधूरा महसूस कर रहे थे सो पायल लौट आई.

इस तरह पायल ने जब कृतिका और अरमान के संबंधों को सहमति दे दी और उस की जिंदगी में वापस लौट आई तो तीनों की ही जिंदगी बदल गई. अब तीनों एक साथ खुशी से रह रहे हैं और सोशल मीडिया पर अपने ब्लौग्स डाल कर खूब पैसे भी कमा रहे हैं. तीनों के आपस में मिल जाने से उन को सफलता के नए मुकाम मिलने लगे हैं. फिलहाल अरमान मलिक देश के सबसे रईस यूट्यूबर्स में से भी एक हैं. यूट्यूब के दम पर सिर्फ ढाई सालों में ही अरमान और उनकी फैमिली ने बेहिसाब कमाई कर ली है. सोशल मीडिया पर उनके लाखों फौलोअर्स हैं. एक इंटरव्यू में अरमान ने बताया था कि कभी एक मैकेनिक के तौर पर काम करने करते थे लेकिन आज वह 10 फ्लैट्स के मालिक बन चुके हैं.

यहां पर अगर पायल जिद कर जाती और कृतिका से शादी नहीं होने देती या उन दोनों की शादी के बाद खुद मुंह बनाए रहती और लड़झगड़ कर तलाक ले कर अलग हो जाती तो मामला पेंचीदा हो जाता. तलाक मिलने में सालों लगते हैं और पैसा एवं समय लगाने के साथ परेशानियां भी बहुत उठानी पड़ती हैं. नया पार्टनर मिलना भी आसान नहीं होता. तब ये तीन इतने सफल भी नहीं हो पाते. बच्चों की जिंदगी भी प्रभावित होती. इसलिए ऐसे मामलों में थोड़ी समझदारी और धैर्य से काम लेना जरूरी हो जाता है.

अगर आपका पार्टनर किसी और के साथ इन्वाल्व हो जाता है और उसे घर भी ले आता है तो आप का परेशान होना जायज है. मगर आप जब समझ रहे हैं कि जो हो गया उसे बदला नहीं जा सकता तो रोने धोने, लड़ने झगड़ने या तलाक ले कर अलग होने से आप की समस्या हल नहीं होगी. फिर क्यों न जो हो चुका है उसी में खुश रहा जाए और उस के साथ निभाने की एक भरपूर कोशिश की जाए. क्या पता जिंदगी का ये नया मंजर आप को भी रास आने लगे.

अवधेश पासी दलित हैं, तो क्या इसलिए नहीं बन रहे डिप्टी स्पीकर?

मोदी भक्ति की आदत कुछ इस कदर मीडिया को पड़ गई है कि उसकी हर मुमकिन कोशिश यह जताने की रहती है कि इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीकठाक नहीं है . अब उसका नया पूर्वाग्रह और बचपना यह हल्ला मचाना है कि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने लोकसभा के डिप्टी स्पीकर पद के लिए अयोध्या से सपा सांसद अवधेश पासी का नाम प्रस्तावित कर इंडिया ब्लाक को धर्म संकट में डाल दिया है और ममता बनर्जी की राह उससे अलग सी है .

उलट इसके हकीकत यह है कि अवधेश पासी का नाम इस पद के लिए आगे कर ममता बनर्जी ने गठबंधन की तो राह आसान की है लेकिन  एनडीए को कटघरे में खड़ा कर दिया है कि अगर वाकई वह वर्ण व्यवस्था से परे हो और विपक्ष का सहयोग चाहता हो तो इस लोकप्रिय और अनुभवी दलित सांसद को डिप्टी स्पीकर बनाए . यह प्रस्ताव ममता बनर्जी ने फोन पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को दिया है जिन्हें भाजपा ने स्पीकर पद मेनेज करने की जिम्मेदारी दी थी अब देखना दिलचस्प होगा कि राजनाथ सिंह क्या एक्शन लेते हैं ?

अव्वल तो 4 जून की दुर्गति के बाद भी भाजपा अपनी मनमानी से बाज नहीं आ रही है जिस पर यह कहावत लागू होती है कि रस्सी जल गई लेकिन बल नहीं गये . डिप्टी स्पीकर पद के लिए कहावत तो यह भी लागू होती है कि सूत न कपास जुलाहों में लट्ठमलट्ठा क्योंकि भाजपा चाहती ही नहीं कि इस अहम पद पर किसी को बैठाया जाए और अगर बैठाया भी जाए तो कम से कम वह अवधेश पासी न हों

अवधेश पासी क्यों न हों इसकी बड़ी वजह यह है कि अयोध्या जीत कर उन्होंने भाजपा की यादगार किरकिरी कर दी है . फैजाबाद लोकसभा सीट से उन्होंने भाजपा के ठाकुर लल्लू सिंह को शिकस्त देकर एक झटके में कई मिथक तोड़ते कई गलतफहमिया भी दूर कर दी हैं . हाल तो यह है कि उत्तरप्रदेश की 79 लोकसभा सीटें एक तरफ और एक यह एक तरफ की तर्ज पर अयोध्या कसक रही है . चुनाव प्रचार के दौरान यह नारा खूब चला था कि न मथुरा न काशी अबकी बारी अवधेश पासी. ठीक इसी तर्ज पर जब अवधेश लोकसभा में शपथ ले रहे थे तब भी जय अवधेश और जय संविधान के नारे जमकर लगे थे .

लोकसभा चुनाव नतीजे आए एक महीना पूरा होने को है लेकिन भाजपा यह नहीं स्वीकार पा रही कि उसका दलित और मुस्लिम विरोधी चाल चरित्र और चेहरा बेनकाब हो चुका है . इंडिया ब्लाक और उसमें भी खासतौर से राहुल गांधी ने लड़ाई मनु स्मृति बनाम संविधान बना दी थी आज भी यह लड़ाई जारी है ममता बनर्जी का अवधेश पासी का नाम आगे बढ़ाना उसी मुहिम का हिस्सा है . कांग्रेस अगर खुद का कोई उम्मीदवार आगे बढ़ाती तो बात टाय टांय फिस्स होकर रह जाती क्योंकि लोकसभा स्पीकर पद के लिए उसके उम्मीदवार के सुरेश को उम्मीद के मुताबिक तबज्जो नही मिली थी .

के सुरेश भी दलित समुदाय से हैं पर कांग्रेस का यह दलित कार्ड चल नहीं पाया था. क्योंकि जनता दल यू और टीडीपी ने पहले ही भाजपा को क्लीन चिट और फ्री हेंड दे दिए थे . जाहिर है यह सौदा 4 और 5 जून के दरमियां ही तय हो चुका था कि लोकसभा स्पीकर भाजपा के ओम बिरला ही होंगे . लेकिन डिप्टी स्पीकर को लेकर स्थिति साफ़ नहीं है कि वह भाजपा का होगा या उसके सहयोगी दलों में से किसी का होगा . वैसे अभी तक का घटनाक्रम देख तो लगता है कि यह पद किसी का ही नही हो यही मुनाफे का सौदा भाजपा के लिए होगा. पिछली लोकसभा में भी उसने यह पद खाली रखा था .

अगर दबाब बढ़ता है तो दिख यह भी रहा है कि भाजपा किसी दलित को ही आगे लाना फायदे का सौदा समझेगी . क्योंकि राहुल गांधी उसके मनुवाद पर लगातार हमलावर हैं . 1 जुलाई को संसद में उनका यह कहना बेहद पूर्व नियोजित था कि भाजपा के हिन्दू , हिन्दू ही नहीं हैं क्योंकि वे हिंसा और नफरत फैलाते हैं . उम्मीद के मुताबिक भाजपा ने हल्ला मचाया कि यह हिन्दू समाज का अपमान है और उन्हें इस बाबत माफ़ी मांगना चाहिए .

इस बयान का कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे के उन बयानों से गहरा ताल्लुक है जिनमे वे कहते रहे हैं कि भाजपा हर कभी दलितों को अपमानित करती है और मैं 22 जनबरी के प्राण प्रतिष्टा समारोह में अयोध्या इसलिए नहीं गया था कि मुझे अपमानित होने की आशंका थी . निष्कर्ष यह कि भाजपा अगर अपना ब्राह्मणवाद नहीं छोड़ पा रही तो कांग्रेस भी अपना दलित प्रेम उजागर करने से चूकती नहीं .

कांग्रेस और इंडिया गठबंधन आखिर क्यों संविधान को सीने से लगाए शान से घूम रहे हैं , इस सवाल का जवाव बेहद साफ है कि भाजपा अभी गफलत में है कि वह संविधान और मनु स्मृति में से किसे चुने .दो नावों की सवारी अब पहले की तरह संभव नहीं दिख रही . शपथ बाले दिन नरेन्द्र मोदी संविधान को माथे से लगाते हैं तो दस दिन बाद ही फिर काशी जाकर गंगा मैया और भगवान का राग अलापने लगते हैं .

तस्वीर अब धुंधली नहीं रह गई है कि वे या कोई और नेता या तो संविधान के बताए रास्ते पर चलें जो भीमराव आम्बेडकर का दिया हुआ है या फिर ब्राह्मणवाद को फालो करते रहें जो तुलसियों और मनुओ ने दिया है . यानी नफरत और हिंसा को चुन लें या फिर बराबरी की बात करें जो भाजपा और नरेंद्र मोदी के बस की बात नहीं क्योंकि उनकी डोर आरएसएस की अंगुलियों में बंधी है .

ममता बनर्जी से अवधेश पासी का नाम प्रस्तावित करवाकर इंडिया गठबंधन ने 4 जून की तरह ही एडवांस में बाजी मार ली है फिर भले ही भाजपा डिप्टी स्पीकर के लिए चुनाव करवाए या न करवाए और करवाए तो फिर पासी जीते या न जीते इससे उसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला . इस मांग का मकसद भाजपा का दलित विरोधी चेहरा एक बार और उजागर करना है. बिलाशक अवधेश पासी इस लोकसभा का एक अतिरिक्त आकर्षण हैं क्योंकि वे रामनगरी से रामभक्तों को शिकस्त देकर दिल्ली पहुंचे हैं.

अब अगर नीतिश कुमार और चंद्रबाबू नायडू वोटिंग होने की स्थिति में अवधेश पासी के खिलाफ जाते हैं तो जनता और खुद उनका वोटर उनकी गिनती दक्षिणापंथियों और तिलकधारियों में करने यह कहते  मजबूर होगा कि आपने तो सत्ता की खातिर अपने उसूल ताक में रख दिए . इससे तो बेहतर है कि जनता दल यू और टीडीपी अपना विलय ही भाजपा में कर लें और गंगा जी में डुबकी लगाकर शुद्ध हो जाएं .

ऐसा होना संभव है इसलिए एनडीए को अब हर छोटी बड़ी बात पर दलितों का ध्यान रखने मजबूर किया जा रहा है और जाहिर है इंडिया ब्लाक की तरफ से कभी यह बात टीएमसी कहेगी कभी कांग्रेस कहेगी और कभी सपा तो कभी डीएमके कहेगी तो कभी कोई और सहयोगी कहेगा . लेकिन एनडीए में ऐसा होना मुमकिन नही कि सभी छोटे बड़े दल पूजापाठ करने में लग जाएं .

यह शुरुआत है आगे आगे यह लड़ाई और दिलचस्प होगी क्योंकि यह वाकई में 2 विचारधाराओ की लड़ाई है इसी कड़ी में. राहुल गांधी का एक जुलाई वाला कथित हिन्दू विरोधी बयान दरसल में हिन्दू विरोधी नहीं है बल्कि हिन्दू धर्म की एक खूबी उजागर करता हुआ है कि चूंकि हिन्दू हिंसक है इसलिए अभी तक उसका अस्तित्व है. नहीं तो वह कब का मिट खप गया होता और यह बात हिन्दुओं के लिए शर्म या मुंह छिपाने की नही बल्कि गर्व की होनी चाहिए .

इन और ऐसे मुद्दों या बयानों पर इंडिया ब्लाक में कोई मतभेद नहीं हैं . होते तो अवधेश पासी के नाम की पेशकश अयोध्या से 907 किलोमीटर दूर बैठी ममता बनर्जी न करतीं जिन्हें पश्चिम बंगाल के दलितों ने भरपूर समर्थन दिया है. ठीक वैसा ही जैसा उत्तरप्रदेश में सपा और कांग्रेस को दिया है . ऐसे में इन शीर्षकों वाली ब्रेकिंग न्यूज के कोई माने नहीं रह जाते कि ममता की गुगली में फिर फंसा इंडिया ब्लाक.. या गठबंधन में रार और तकरार …हकीकत में तो फंस एनडीए रहा है .

Hathras Stampede : मौत का सत्संग, भगदड़ में 121 मौतें, तबाही का जिम्मेदार कौन

उनको यकीन था कि बाबा की एक झलक उन्हें उनके कष्टों से मुक्ति दे देगी. एक बूढ़ी औरत जो महीनों से बीमार थी, बुखार छूट ही नहीं रहा था, वह अपनी 16 साल की पोती के साथ इस यकीन से आयी थी बाबा की चरणरज मिलते ही वह भली चंगी हो जाएगी. एक विधवा का बच्चा बीमार था, वह अपने बच्चे के ठीक होने की उम्मीद लगाकर उसको लेकर बाबा के सत्संग में आयी थी. उस बूढ़े पर लाला का कर्ज था, वह इस आशा से आया था कि बाबा के आशीर्वाद से इस बार फसल अच्छी हो जाएगी तो कर्ज उतर जाएगा. कितनी ही जवान लड़कियां अच्छा घरवर पाने का आशीर्वाद बाबा से प्राप्त करना चाहती थीं. उनसे कहा गया था कि अगर बाबा की चरण धूलि मिल गयी तो हर अरमान पूरा हो जाएगा. कितने लड़के इस आशा में आये थे कि बाबा के आशीर्वाद से नौकरी लग जाएगी तो घर की बदहाली ख़त्म होगी.

 

बाबा के सत्संग में हाथरस जिले से ही नहीं बल्कि कस्बों से, दूरदूर के गांवों से, अन्य जिलों से और हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से भी कोई दो से ढाई लाख लोग जमा हुए थे. भीड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वाहनों की संख्या तीन किलोमीटर तक फैली हुई थी. हर श्रद्धालु के मन में कोई इच्छा थी और यकीन था कि वह इच्छा बाबा के आशीर्वाद से पूरी हो जाएगी. बाबा की दिव्य वाणी कानों में पड़ जाएगी तो सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. देश की भोली, अनपढ़, धर्मभीरु जनता को यह यकीन बाबा ने दिलाया, बाबा के सैकड़ों सेवादारों ने दिलाया और धर्म का परचम बुलंद करके राजनीति की चाशनी चाटने वाली भारतीय जनता पार्टी ने दिलाया जो इन बाबाओं के प्रति लोगों की उत्सुकता जगाने का काम पिछले दस सालों से निरंतर कर रही है.

भोले ग्रामीण और उससे भी भोली ग्रामीण महिलाएं कितनी आशाएं लेकर बाबा के सत्संग में आयी थी. धर्म का सबसे ज्यादा डर औरतों में ही फैलाया जाता है. धर्म और धर्म के ठेकेदारों की सेवा औरतों से ही करवाई जाती है. उनसे कहा जाता है कि यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उनके पूरे परिवार पर प्रलय आ जाएगी. तो ऐसे सत्संगों में औरतों की उपस्थिति सबसे ज्यादा होती है.

बाबा के सत्संग में भी औरतें अपनी पतियों, बच्चों के साथ बड़ी संख्या में आयी थीं. कोई ट्रेक्टर ट्रौली पर लद कर आया था, कोई बस से, कोई टैम्पो पकड़ के, कोई किराए की गाड़ी पर, कोई बस से तो कोई अपने दोपहिया वाहन पर. लेकिन उनकी वापसी चार कन्धों पर हो रही थी. अनेक लोगों को एक ही एम्बुलेंस में एक के ऊपर एक डाल कर ले जाया जा रहा रहा था. अनेक औरतों को बस की सीटों पर लिटा दिया गया था. सीटों पर जगह भर गयी तो बस की जमीन पर लिटाया जाने लगा. जिस बस में ज़िंदा आईं थीं उसी में लाश बन कर जा रही थी. क्योंकि वह मौत का सत्संग था और बाबा ने यमराज बनकर सबकी जान हर ली थी. हाथरस में बाबा के सत्संग में जब भगदड़ मची तो एक दूसरे के पैरों तले कुचल कर मारे जाने वालों में सात नन्हें मासूम बच्चों और दो पुरुषों के अलावा मरने वाली सब औरतें ही हैं.

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सिकंदराराऊ में 2 जुलाई मंगलवार की दोपहर नारायण साकार विश्व हरि भोले बाबा नाम के एक बाबा ने सत्संग का आयोजन किया था. ऊंचे मंच पर बाबा अपनी पत्नी के साथ विराजमान था. सामने विशाल मैदान में कोई ढाई लाख लोग जिसमें बड़ी संख्या में महिलायें और बच्चे थे, भीषण गर्मी में बैठे बाबा का प्रवचन सुन रहे थे. अचानक मंच पर बाबा उठ खड़ा हुआ. सेवादारों ने आवाज लगानी शुरू की – बाबा प्रस्थान कर रहे हैं. आप लोग उनकी चरणरज ले लें और अपने कष्टों से मुक्ति पाएं.

भीड़ बिना सोचे समझे उठ कर बाबा की ओर बढ़ने लगी. इससे पहले कि बाबा नजरों से ओझल हो जाएं भीड़ उन तक पहुंच जाना चाहती थी. बाबा की चरणर पाकर अपने कष्टों से मुक्ति पाने के लिए ही तो इतनी दूर आये थे. किसी तरह चरणरज तो मिलनी ही चाहिए. वरना आना ही फिजूल हो जाएगा. भीड़ एक दूसरे पर चढ़ कर बाबा के निकट पहुंच जाना चाहती थी. धक्के पर धक्के लग रहे थे. चीख पुकार मच रही थी. तभी एक औरत धक्का खा कर गिरी. भीड़ उसके जिस्म पर उसके सिर पर चढ़ कर बाबा की ओर लपकी. फिर कई औरतें और बच्चे गिरे. भीड़ उनको भी कुचलती हुई बाबा की ओर बढ़ी जा रही थी. आगे दलदल से भरा खेत था. कइयों का पैर फिसला. वे एक के ऊपर एक गिरने लगे. पीछे से उमड़ रही भीड़ ने कोई परवाह नहीं की. वे तो बस किसी तरह बाबा तक पहुंचने के लिए पूरा जोर लगा रहे थे. और बाबा अपने सेवादारों के बीच अपनी कार की तरफ लपके जा रहे थे. उनके पीछे दलदल में लोग एक के ऊपर एक गिर रहे थे. रौंदे जा रहे थे. उनकी चीख बाबा के कानों को सुनाई नहीं दे रही थी. दलदल में नीचे दबे लोगों के मुंह और नाक में गीली मिट्टी भर चुकी थी. उनकी साँसें टूट रही थीं. एक नहीं दो नहीं कोई डेढ़ सौ से ज़्यादा लोग कष्टों से मुक्ति पाने की आशा में जीवन से मुक्ति पा चुके थे. मगर बाबा ने उनकी ओर एक बार पलट कर भी नहीं देखा. उसके सेवादार पास आने वाले श्रद्धालुओं पर लाठियां भांज रहे थे कि कहीं उनके गंदे हाथ बाबा के उजले कपड़ों से ना छू जाएं. उनकी लाठियां खा कर कितने ही लोग घायल हुए. कितने जमीन पर गिर गए और दूसरों द्वारा रौंद डाले गए. मगर बाबा इन मौतों से बेखबर बढ़ता चला गया और अपनी लखदख कार में सवार होकर निकल गया.

नारायण साकार विश्व हरि भोले बाबा नाम का यह बाबा कौन है? जो हाथरस का यमराज बन कर आया और डेढ़ सौ लोगों की जानें लील कर अंतर्ध्यान हो गया? कब और कैसे उसकी ख्याति इतनी बढ़ गयी कि उसके लाखों अनुयायी बन गए? दरअसल इस बाबा का असली नाम है सूरज पाल सिंह है. 17 साल पहले सूरज पाल सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में एक सब इंस्पेक्टर था. नौकरी से इस्तीफा देकर यह सत्रह साल पहले बाबा बन कर प्रवचन करने लगा. वह अपनी पत्नी के साथ गांव गांव पंडाल लगा कर प्रवचन करता और जल्दी ही उसने अपने सेवादारों की एक फ़ौज बना ली. सेवादार उसकी ख्याति बांटने में लग गए. बाबा ये चमत्कार कर सकते हैं. बाबा कष्टों से मुक्त कर सकते हैं. बाबा की वाणी में परमात्मा का वास है. उनकी दिव्यवाणी कानों में पड़ते ही सारे दुःख दूर हो जाते हैं. ऐसी बातें दूर दूर तक फैलाई गयी. जल्दी ही बाबा मशहूर हो गया और उसके बड़े बड़े कार्यक्रमों का आयोजन होने लगा. जिसमें टिकट लेकर लोग आने लगे. पहले उसने अपनी पैतृक जमीन पर एक आश्रम बनाया फिर गांव-गांव, शहर-शहर बाबा की समितियां बन गयीं. समितियों के माध्यम से सत्संग के आयोजन होने लगे. पूरा खर्चा समितियां उठाती और उसके सदस्य लोगों से चन्दा जुटाते. प्रवचन के बाद भंडारा होता, जिसका प्रसाद पाने के लिए भीड़ टूटी पड़ती.

बाबा महंगे सूटबूट और आंखों पर काला चश्मा चढ़ा कर चांदी के चमकते सिंहासन पर बैठता और प्रवचन करता. उसकी आस्था का साम्राज्य फैलने लगा और जल्दी ही वह लाखोंकरोड़ों में खेलने लगा. सत्ता से नजदीकियां बन गयीं. पुलिस प्रशासन को वह अपनी जेब में रखने लगा. यादव बिरादरी से सम्बन्ध रखने वाला यह बाबा जल्दी ही गरीब, वंचित समाज का परमात्मा बन गया. जहां उसके सत्संग होते, जहां लाखों की भीड़ वह जुटाया, उस ओर से प्रशासन अपनी आंखें मूँद लेता. किसी भी ऐसे आयोजन के लिए जिसमे इतनी बड़ी तादात में लोगों का हुजूम उमड़ना हो तो प्रशासन से उसकी परमिशन लेनी होती है. कार्यक्रम की अनुमति के लिए क्षेत्र के थानाप्रभारी और चौकी इंचार्ज से लेकर बीट के सिपाही तक की रिपोर्ट लगती है. मगर बाबा के कार्यकर्म में इतनी बड़ी तादाद में लोगों के आने के बावजूद कभी किसी ने कोई सवाल नहीं किया और उसको हर सत्संग के लिए चुटकियों में अनुमति मिलती रही.

बाबा प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की योगी सरकार के लिए बड़ा वोटबैंक खड़ा कर चुका था. बाबा के एक इशारे पर उसके प्रवचन सुनने वाली जनता अपना वोट भाजपा की झोली में डालती थी, तो ऐसे में बाबा के कार्यकर्मों पर कौन ऊँगली उठाता? मजेदार बात यह कि पुलिस में बाबा के कई अनुयायी थे. बाबा के सत्संग आयोजित होते तो ये अनुयायी पुलिस की वर्दी उतार कर बाबा के सेवादार बन जाते और पूरी व्यवस्था देखते. बाबा भारतीय जनता पार्टी और संघ के कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहे थे. बाबा देश की गरीब जनता के दिल दिमाग में धर्म का डर बिठाने और साधुसंतों, पंडितपुजारियों की सेवा में ही स्वर्ग की प्राप्ति का मार्ग दिखा रहे थे. बाबा बता रहे थे कि जनता के मूल मुद्दों, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी और तमाम दूसरी समस्याओं का समाधान सरकार के पास नहीं भगवान् के पास है, ऐसा करके बाबा सरकार को बड़ी रहत पहुंचा रहे थे, तो बाबा पर कोई ऊंगली कैसे उठती? बाबा संघ और भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे थे, यही वजह है कि डेढ़ सौ मौतों के बाद जो एफआईआर पुलिस ने दर्ज की उसमें बाबा का कहीं नाम तक नहीं है. सैकड़ों लोग गंभीर घायल अवस्था में अस्पतालों में जिंदगी-मौत की जंग लड़ रहे हैं, डेढ़ सौ लोगों को मार कर बाबा फुर्र हो गया, मगर योगी की पुलिस उसको गिरफ्तार करने की कोशिश भी करती नज़र नहीं आ रही है. उलटे योगी बयान दे रहे हैं कि हम पता करेंगे कि यह हादसा है या किसी की साजिश? लानत है ऐसे शासन-प्रशासन पर.

हत्यारा सिर्फ बाबा नहीं सरकार भी है

देश में आये दिन धार्मिक स्थलों पर भारी भीड़ जुटने लगी है. आये दिन इन स्थलों पर भगदड़ मचती है. एक्सीडेंट होते हैं और वे श्रद्धालु जो बड़ी आस्था लेकर आते हैं, हादसों का शिकार हो रहे हैं. मारे जा रहे है. घायल हो रहे हैं. उनका अंगभंग हो रहा है. जीवन भर के लिए अपंगता का शिकार हो रहे हैं. मगर इससे सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता. 140 करोड़ में से कुछ हजार या कुछ लाख कम हो जाएं तो क्या गम?

लेकिन उस मासूम बच्चे की हालत देखो जो हाथ में दूध की बोतल लिए दलदल में अपनी मां की लाश से चिपका बैठा है? उसका पूरा बचपन और किशोरावस्था जो उसकी मां की छत्रछाया और सुरक्षा में बीतना था वह सहारा इस सरकार और उसके पाले हुए बाबाओं ने छीन लिया.

उस बूढ़ी दादी से पूछो उसके दिल पर क्या गुजर रही है जो अपनी सोलह साल की पोती की लाश के पास बैठी यह सोच रही है कि बेटाबहू पूछेंगे कि उनकी इकलौती बेटी कैसे मर गयी तो वह क्या जवाब देगी?

उस आदमी से पूछो जो दोनों हाथ में एक एक बच्चा उठाये अपनी बीवी की लाश को टुकुर टुकुर देख रहा है जैसे वह अभी उठ खड़ी होगी और कहेगे लाओ मुन्ने को मुझे दे दो. तुम कहां दोनों को उठा कर चलोगे?

एक एक आदमी की पीड़ा अगर पूछी जाए तो हृदय फट जाए. मगर सरकार की सेहत पर उनके दुःख का कोई असर नहीं होता. वह मरने वाले के परिजन को दो दो लाख और घायलों को पचास हजार की रकम देकर अपने फर्ज से मुक्त हो जाती है. हर बार हर हादसे के बाद ऐसा ही होता है और जब तक हम धार्मिक चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकलेंगे तब तक ऐसा ही होता रहेगा.

एक जनवरी 2022 – जम्मू कश्मीर स्थित प्रसिद्ध माता वैष्णव देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण भगदड़ मची और 12 लोगों की वहाँ कुचल कर मौत हो गयी. करीब एक दर्जन लोग बुरी तरह घायल हुए.

25 जनवरी 2005 – महाराष्ट्र के सतारा जिले में मानधारदेवी मंदिर में वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान 350 से ज्यादा श्रद्धालुओं की कुचलकर मौत हुई.

13 अक्टूबर 2013 – मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हुई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए.

3 अक्टूबर 2014 – दशहरा समारोह समाप्त होने के तुरंत बाद पटना के गांधी मैदान में भगदड़ मचने से 32 लोगों की मौत हुए और 26 लोग घायल हुए.

19 नवम्बर 2012 – पटना में गंगा नदी के तट पर छठ पूजा के दौरान एक अस्थाई पल ढहने से भगदड़ में 20 लोगों की मौत हुई.

8 नवम्बर 2011 – हरिद्वार में गंगा नहीं के तट पर हरकी पौड़ी घाट पर मची भगदड़ में 20 लोग मारे गए.

14 जनवरी 2011 – केरल के इडुक्की जिले में एक जीप के सबरीमाला मंदिर के दर्शन कर लौट रहे तीर्थयात्रियों से टकरा जाने के कारण मची भगदड़ में 104 श्रद्धालुओं की मौत हुई और 50 से ज़्यादा घायल हुए थे.

2008 में राजस्थान के जयपुर में स्थित चामुंडा मंदिर में बम की अफवाह से भगदड़ मची जिसमे 250 लोग मारे गए.

इंदौर में रामनवमी के मौके पर एक मंदिर में हो रहे हवन कार्यक्रम में पुरानी बावड़ी पर बना स्लैब टूटा तो कुएं में गिर कर 36 लोगों की मौत हुई जिसमें जयादातर औरतें थी.

2003 में महाराष्ट्र के नासिक में कुम्भ के मेले में मची भगदड़ में 39 लोग मरे.

2008 में हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी मंदिर में अफवाह के कारण भगदड़ मची और 146 लोग मारे गए.

2015 में आंध्र प्रदेश के राजमुंद्री में गोदावरी नदी के घाट पर भगदड़ मची और 27 तीर्थयात्री मारे गए.

2010 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में स्थित कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में भगदड़ मचने से 63 लोगों की मौत हुई.

मेरी फ्रेंड का मेरे पति से अफेयर है, मैं अंदर ही अंदर घुट रही हूं, मैं क्या करूं ?

सवाल
मेरी शादी को 3 साल हो गए हैं लेकिन मुझे पिछले दिनों पता चला है कि मेरी फ्रैंड, जिस का मेरे घर में खूब आनाजाना है, का मेरे पति से अफेयर है. मेरी 1 साल की बच्ची भी है. ऐसे में मैं अंदर ही अंदर घुट रही हूं. क्या करूं?

जवाब
आप के पति का शादीशुदा होने के बावजूद इस तरह से आप की फ्रैंड से संबंध रखना सही नहीं है. ऐसे में आप ठोस सुबूतों के साथ पति से खुल कर बात करें. इस से उन के मन में डर रहेगा कि आप सबकुछ जान गई हैं और साथ ही, अपनी फ्रैंड का घर में आनाजाना बंद करें.

पति से स्पष्ट कह दें कि अगर यह सब खत्म नहीं हुआ, तो मैं तुम्हारे साथ नहीं रह पाऊंगी. इस बीच, अपने पति को खूब प्यार दीजिए, सजिएसंवरिए ताकि वे आप की फ्रैंड के पास जाने के बारे में सोचें ही नहीं. आप को उन्हें सुधरने का एक मौका जरूर देना चाहिए.

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आखिर कब पड़ती है किसी और की जरूरत

वैवाहिक जीवन में सैक्स की अहम भूमिका होती है. लेकिन यदि पति किसी ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर से ग्रस्त हो, तो पत्नी की जिंदगी उम्र भर के लिए कष्टमय हो जाती है. सैक्सोलौजिस्ट डा. सी.के. कुंदरा ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर के बारे में बताते हुए कहते हैं कि उन की क्लीनिक में शादी के बाद कृष्णानगर की मृदुला अपनी मां के साथ आई. हुआ यह था कि शादी के बाद मृदुला एकदम बुझीबुझी सी मायके आई, तो उस की मां उसे देख कर परेशान हो गईं. लेकिन मां के लाख पूछने पर भी उस ने कोई वजह नहीं बताई.

उस ने अपनी सहेली आशा को बताया कि वह अब ससुराल नहीं जाना चाहती, क्योंकि उस के पति महेश उस से संबंध बनाने के दौरान उस के यौनांग में बुरी तरह से चिकोटी काटते हैं और पूरे शरीर को हाथ फेरने के बजाय नाखूनों से खरोंचते हैं. जिस से घाव बन जाते हैं, हलका खून निकलता है. उसे देख कर महेश खुश होते हैं. फिर संबंध बनाते हैं. यह कह कर मृदुला रोने लगी. डा. कुंदरा ने आगे बताया कि आशा ने जब उस की मां को यह बात ताई तो वे मृदुला को ले कर मेरे पास आईं.

मृदुला की तरह कई महिलाएं अपनी पीड़ा को व्यक्त नहीं कर पाती हैं. मृदुला का पति ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर से ही पीड़ित था. इस स्थिति में स्त्री के लिए पूरी जिंदगी ऐसे पुरुष के साथ बिताना असंभव हो जाता है. उसे ऐसे किसी व्यक्ति की जरूरत महसूस होने लगती है, जो उस के मन की बात को समझे और उसे क्या करना चाहिए, इस के बारे में बताए.

कारण

सैक्सोलौजिस्ट डा. रामप्रसाद शाह के मुताबिक, ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर से व्यक्ति कई कारणों से ग्रसित होता है:

सैक्सफेरामौन: यानी गंध के प्रति कामुकता. ऐेसे पुरुष स्त्री देह की गंध से उत्तेजित हो कर सैक्स करते हैं. ऐसे में कोई भी स्त्री, जिस की देह गंध से ऐसा व्यक्ति उत्तेजित हुआ हो, उसे हासिल करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है.

ऐक्सेसिव डिजायर: दीपक की उम्र 60 साल से ऊपर है. इस के बावजूद भी वह घर से बाहर सब्जी बेचने वाली, घरों में काम करने वाली और सस्ती कालगर्ल से कभीकभी सुबह तो कभी रात भर रख कर संबंध बनाता है. संबंध बनाने के लिए वह शराब का भी सहारा लेता है. घर वाले उस से परेशान रहते हैं, इसलिए उस से अलग और दूर रहते हैं. ऐसे शारीरिक संबंध बनाने वाला व्यक्ति ऐक्सेसिव डिजायर  पीडि़त होता है.

फेटिशिज्म: इस में व्यक्ति उन चीजों के प्रति आकर्षित रहता है, जो उस की सैक्स इच्छाओं को पूरा करने में सहायक होती हैं. जैसे सैक्सी किताबें, महिलाओं के अंडरगारमैंट्स और दोस्तों से सैक्स की बातें करना.

लक्ष्मी नगर की निशा का कहना है कि उस के पति दिनेश हमेशा दोस्तों के साथ किनकिन महिलाओं के साथ सहवास कबकब और कैसेकैसे किया जैसी बातें हमेशा करते हैं. उस के बाद वह निशा से संबंध बनाने की कोशिश करते हैं. ऐसे व्यक्ति महिलाओं को छिप कर देखने के साथ उन के साथ संबंध बनाने के लिए आतुर भी रहते हैं.

बस्टियैलिटी: ऐसे पुरुष पर सैक्स इतना हावी हो जाता है कि वह किसी से भी सहवास करने में नहीं झिझकता. जयपुर का रमेश अपनी इसी आदत की वजह से अपनी साली की 14 साल की लड़की से शारीरिक संबंध बना बैठा. ऐसे पुरुषों द्वारा अकसर रिश्तों की मर्यादा को ताक पर रख कर ऐसे संबंध बनाए जाते हैं. ऐसे में असहाय महिलाएं, लड़कियां, यहां तक कि पशु भी गिरफ्त में आ जाते हैं.

ऐग्जिबिशनिज्म: इस से ग्रस्त व्यक्ति अपने गुप्तांग को महिला या छोटेछोटे बच्चेबच्चियों को जबरदस्ती दिखाता है. इस से उसे खुशी के साथ संतुष्टि भी मिलती है. लेकिन इस से अप्रत्यक्ष रूप से ही सही हानि होती है इसलिए इसे अब गैरकानूनी की धारा में रखा जाता है. इस में जुर्माना और कैद भी है.

पीडोफीलिया: इस सैक्सुअल डिसऔर्डर से पीडि़त पुरुष अकसर छोटी उम्र की लड़कियों व लड़कों से संबंध बना कर अपनी कामवासना को संतुष्ट करता है. नरेंद्र की उम्र 50 के ऊपर हो चुकी थी पर वह बारबार 14 से 15 साल की नाबालिग लड़की से शारीरिक संबंध बनाने की लालसा रखता था. आखिर उस ने नाबालिग से संबंध बना ही डाला और कई दिनों तक सहवास करता रहा. अंत में पकड़े जाने पर नेपाल की जेल में 14 साल की सजा काट रहा है.

वैवाहिक रेप

हालांकि यह अजीब सा लगता है कि विवाह के बाद पति द्वारा पत्नी का रेप. लेकिन इस में कोई दोराय नहीं कि आज भी कई विवाहित महिलाओं को इस त्रासदी से गुजरना पड़ता है, क्योंकि अकसर पति अपनी पत्नी की इच्छाओं, भावनाओं को भूल कर जबरन यौन संबंध बनाता है. यह यौन शोषण और बलात्कार की श्रेणी में आता है. हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 375 और 379 के तहत पत्नी को अधिकार है कि वह ऐसा होने पर कानूनी तौर पर तलाक ले सकती है.

समाधान

सैक्सोलौजिस्ट डा. रामप्रसाद शाह का कहना है कि ऐसी स्थिति में नईनवेली दुलहन को संयम से काम लेना चाहिए. वह पति की उपेक्षा न कर के व ताना न दे कर प्यार से उसे समझाए.

सामान्य सहवास के लिए प्रेरित करे. ऐसे लोगों का मनोचिकित्सक द्वारा इलाज किया जा सकता है. ऐसे मरीज की काउंसलिंग की जाती है और बीमारी किस हद तक है पता चलने पर सलाह दी जाती है. अगर पति तब भी ठीक न हो और मानसिक व शारीरिक पीड़ा पहुंचाए, तो पत्नी तलाक ले कर अपनी जिंदगी को नई दिशा दे सकती है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि मस्तिष्क में स्थित न्यूरो ट्रांसमीटर में किसी प्रकार की खराबी, मस्तिष्क में रासायनिक कोशिकाओं में कमी, जींस की विकृति आदि इस समस्या की वजहें होती हैं और अकसर 60 साल से ज्यादा उम्र के व्यक्ति इस के शिकार होते हैं. गलत संगत, अश्लील किताबें पढ़ना, ब्लू फिल्में देखना आदि भी इस में सहायक होते हैं.

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