साइकोपैथ्स या साइकोकिलर्स को ले कर बौलीवुड में फिल्में कम बनी हैं. यह डार्क जोन माना जाता है. इस तरह की फिल्में भारत में कमर्शियली हिट नहीं होतीं. एक ऐसे अपराधी को परदे पर देखना और उस के क्राइम की डिटेलिंग में जाना घिनौना लगता है, हां पर इन किरदारों को निभाने वाले कलाकारों की इंटैंसिटी जरूर चर्चा में आ जाती है.
आमतौर से भारत में ऐसे डायरैक्टर कम ही हैं जो ऐसे किरदारों को ठीक से फिल्माएं और इस के साइकोलौजिकल साइड को समझ पाएं. हौलीवुड में साइकोथ्रिलर फिल्में खूब बनती हैं. वहां दर्शक इस तरह की फिल्में देखना पसंद भी करते हैं. ‘डार्क नाइट्स’ और ‘जोकर’ जैसी फिल्में इस के उदाहरण हैं. वहीं भारत में इस तरह की फिल्मों को ओटीटी लायक ही समझा जाता है क्योंकि इस में मसालों की कमी रहती है.
फिल्म ‘सैक्टर 36’ भी ओटीटी पर रिलीज हुई. यह एक क्राइम थ्रिलर फिल्म है जो असल घटना पर आधारित है. यह घटना ‘निठारी कांड’ के नाम से जानी जाती है. साल 2006 में नोएडा के सैक्टर 36 के निठारी गांव में घटी उस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था जब पता चला कि एक कोठी के पीछे वाले नाले से करीब 2 दर्जन बच्चों और बच्चियों के नरकंकाल बरामद हुए हैं. इस मामले में कोठी के मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर और उस का नौकर सुरेंद्र कोली आरोपी थे.
यह एक घृणित फिल्म है. एक नाले से कटे हुए हाथ से शुरू हुई तफतीश करीब दो दर्जन बच्चों के अस्थिपंजर तक पहुंचेगी, यह सब किसी वीभत्स फिल्म जैसा लगता है. पिछले साल सुबूतों के अभाव में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस कांड के दोनों आरोपियों को बरी कर दिया था.
आजकल निठारी कांड एक बार फिर चर्चा में है. आखिरकार गाजियाबाद की सैशन कोर्ट ने प्रदेश सरकार को मौत का परवाना जारी कर दिया है. कोर्ट ने प्रदेश सरकार को कोली का डैथ वारंट जारी कर इसे लागू करने के लिए आवश्यक कार्यवाही करने के निर्देश दिए हैं.