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तलाक की कम दर, क्या शादी में संतुष्टि की गारंटी है, Mr&Mrs Dhoni कैसे कपल लगते हैं

शादी की 15वीं सालगरिह मनाते मिस्टर और मिसेज धोनी की वीडियो शायद आपने भी देखी हो, य दोनों सिंपल कपड़ों में केक काटकर एकदूसरे को खिला रहे हैं, कोई तामझाम नहीं, न पतली लंबी ग्लासेज में ऊपर तक भरी शैंपेन, न फूलों के मंहगे बुके के साथ आते गेस्ट, न फाइव स्टार होटल में डीजे की धुन पर थिरकते नशे में चूर मेहमान.

मैरिज को लेकर इनका कंसैप्ट साफ है, “शादी दो लोगों के बीच होती है इसलिए एनीवर्सरी भी इनके बीच ही होनी चाहिए” और शायद यही वजह है कि महेंद्र सिंह धोनी और साक्षी का रिश्ता हर बीते साल के साथ गहराता चला जा रहा है.

शादी के शोध को समझें
नेशनल लाइब्रेरी औफ मैडिसिन में प्रकाशित एक रिपोर्ट How Couple’s Relationship Lasts Over Time? A Model for Marital Satisfaction के अनुसार, “डिवोर्स पर जाकर खत्म होनेवाली शादियों में से ज्यादातर में यह पाया गया कि ऐसे कपल्स के रिश्तों में संतुष्टि की भावना खत्म हो गई थी. रिसर्च करने वाले यह जानना चाहते थे कि आखिर इस रिश्ते में आपसी संतुष्टि को पैदा करने वाली या बढ़ानेवाली चीजें क्या हो सकती है? जिसे पता कर पतिपत्नी के रिश्ते में संतोष का प्रतिशत बढ़ाया जा सके. इस शोध में यह भी पाया गया कि रिश्ते की क्वालिटी और इसमें संतुष्टि का भाव पूरी तरह से आपसी प्रेम और वैवाहिक संबंध पर टिका होता है,
यहां पर वैवाहिक संबंध का मतलब है कि पतिपत्नी अपने पारिवारिक जिम्मेदारियों को किस तरह से व्यवस्थित करते हैं, जैसा कि धोनी के मामले में दिखा कि किस तरह धोनी के नहीं रहने पर साक्षी की ओर से कोई शिकायत नहीं रहा, इस केस में पत्नी ने अपने पति के प्रति दायित्वों को पूरा किया वैवाहिक संबंधों के अंतर्गत और भी कई चीजें आई है, जो संतुष्टि के भाव को जन्म देती है जैसे परिवार की जिम्मेदारियों में दोनों की भूमिकाएं, दोनों के पास फ्री टाइम, प्राइवेसी, बढ़िया कम्युनिकेशन और परिवार के बाहर के रिश्ते का आपसी मैनेजमेंट.

ग्लैमरिया चकाचौंध से कैसे बची रही धोनी की शादी
इनकी रिश्ते की सादगी ही इनकी हैप्पी मैरिड लाइफ का पीलर है, इसके लिए इनको प्यार का डिस्पले करने की, एयरपोर्ट पर आतेजाते समय पैपराजी को दिखाने के लिए हाथ थमाने की, पब्लिक प्लेस पर एकदूसरे की तरफ चुम्मियां उछालने की जरूरत नहीं पड़ती. घर के अंदर और बाहर की इनकी तस्वीरें आपको 80-90 के दशक की फैमिलीज की तरह लगती है. सैलिब्रिटी कपल होने के बावजूद रिश्ते पर ग्लैमर की चकाचौंध को हावी नहीं होने देना भी इनके लंबे टिकाऊ रिलेशनशिप का आधार है.

 

कुछ दिन पहले दोनों मुकेश अंबानी के छोटे बेटे की प्रीवैडिंग फंक्शन में पहुंचे थे, इस मौके पर मिसेज धोनी ने शादी का ‘पिछौड़ा’ पहना था, ‘पिछौड़ा’ वह ट्रैडिशनल ड्रैस है जिसे शादी के दिन दुल्हन पहनती है, इसके बाद यह ड्रैस या इसकी चुनरी हर खास मौके पर मैरिड वुमन कैरी करती है. मिसेज धोनी चाहती तो किसी भी सैलिब्रेटी डिजाइनर के शोरूम से एक ड्रैस चूज कर सकती थी लेकिन उन्होंने शादी से जुड़े फंक्शन में अपनी शादी का ‘पिछौड़ा’ पहन अपने रिश्ते की मजबूती पर मुहर लगाई, जो होने वाले दंपति और नई युवा पीढ़ी के लिए मैसेज था, जो पता नहीं इन्हें समझ भी आई हो या नहीं.

शादी में आज सबसे जरूरी है ‘अंडरस्टैडिंग’
यह कपल एकदूसरे को कई मायनों में कंप्लीट करते हैं, 4 जुलाई के 2010 को साक्षी रावत, मिसेज धोनी बन गई. तब से अब तक मिसेज धोनी हर मौके पर पति का साथ देती नजर आई. साल 2015 की बात है साक्षी की पहली प्रैग्नेंसी के आखिरी दिनों में धोनी उनके साथ नहीं थे, यहां तक कि अपनी इकलौती बेटी जीवा धोनी के जन्म के समय में क्रिकेटर एमएस धोनी आईसीसी वर्ल्ड कप 2015 की वजह से भारतीय टीम के कैप्टन के रूप में आष्ट्रेलिया दौरे पर थे.
यहां सवाल उठता है कि हसबैंड के रूप में धोनी का पत्नी से दूर रहने का कौन्फिडेंस कहां से आया ? दरअसल इसका क्रैडिट भी साक्षी धोनी को ही जाना चाहिए, जीवा के जन्म के दिन करीब आ रहे थे और काफी लोगों ने साक्षी के सामने यह सवाल खड़ा किया था कि “आपके पति इस खास वक्त पर आपके साथ क्यों नहीं है?”, तब साक्षी ने कहा था, “क्रिकेट उनकी फर्स्ट प्रायोरिटी है और वह मेरी फर्स्ट प्रायोरिटी है और मैं उनसे मोहब्ब्त करती हूं इसलिए मुझे नहीं लगता कि मैंने कोई त्याग किया है”

क्या शो औफ शादी के टिके रहने की गारंटी है
मैरिड लाइफ में गिफ्टबाजी करने में कोई हर्ज नहीं, बल्कि इससे रिलेशनशिप की फ्रेशनेस बरकरार रहती है. चौकलेट, फ्लावर्स, टैडीबियर, परफ्यूम, कैंडल लाइट डिनर से रिश्ते की गरमाहट बनी रहती है, जो हर कपल के लिए जरूरी है लेकिन ज्यादा दिखावा कहीं आपके रिलेशनशिप के खोखलेपन को ढकने की कवायद तो नहीं.
कुछ दिनों से क्रिकेटर हार्दिक पांड्या और उनकी पत्नी नताशा स्टोनविक की तलाक की खबरों ने जोर पकड़ रखा है, टी20 वर्ल्ड

 

पैसा और प्यार की दोस्ती की कोई गारंटी नहीं होती
फरवरी 2023 में हार्दिक ने नताशा से हिंदू और इसाई रिच्युअल से दोबारा शादी की थी, जबकि इनकी पहली शादी 2020 में लौकडाउन के दिनों में हुई थी. उदयपुर में हुई इस शादी में हार्दिक की शानोशौकत साफ नजर आ रही थी लेकिन सारी चकाचौंध कुछ महीने में ही गायब हो गई, वजह चाहे जो कुछ भी हो यह तो शत प्रतिशत सत्य साबित हुई कि शादी के जलसे पर करोड़ों लूटाकर भी आपसी प्यार और तालमेल को कायम नहीं किया जा सकता है. नोटों की गड्डियों पर रखी प्यार और विश्वास के इमारत की नींव भरभराकर गिर जाएगी.

क्या तलाक की कम दर, शादी में संतुष्टि की गारंटी है
ग्लोबल इंडेक्स के डेटा पर गौर करें, तो पूरे विश्व में भारत में तलाक का दर सबसे कम है, जो करीब एक प्रतिशत है, वहीं वियतनाम इस मामले में भारत का सबसे करीबी है जहां तलाक का दर 7 प्रतिशत है जबकि पुर्तगाल में डिवोर्स रेट करीब 94 प्रतिशत है. एक प्रतिशत का आंकड़ा वाकई पन्नों पर न के बराबर है लेकिन क्या बाकी के 99 प्रतिशत हसबैंडवाइफ वाकई खुश हैं, क्या उनके बीच संतुष्टि का भाव है, क्या वे पारिवारिक जिम्मेदारी जैसे वैवाहिक बंधन को अच्छी तरह निभा रहे हैं, यह इनमें से एक बड़ा हिस्सा जबरदस्ती अपने विवाह को ढो रहा है ताकि देसी समाज उनको हीन भावना से न देखें. ये आंकड़ा इन 99 प्रतिशत जोड़ों में से बहुतों की पोल खोलता है

. Journal of family medicine and primary care की रिपोर्ट पर गौर करें, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 बताती है कि 18 से 49 साल की मैरिड वुमन में से कम से कम 29.3% प्रतिशत ने अपनी मैरिड लाइफ में एक बार वौयलेंस का शिकार हुई है, जो नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की तुलना में थोड़ा कम है, NFHS-4 में यह दर 31.2% थी, इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि दुनियाभर की कमसेकम 60% महिलाएं अलगअलग वजहों से घरेलू हिंसा की शिकार हैं. इसलिए भारत की कम डिवोर्स रेट की वजह कमरों के अंदर खुश पतिपत्नी नहीं, बल्कि तकियों में दबी सिसकियां, टीवी के तेज वौल्यूम में दबी पीटने की आवाजें भी हो सकती है.

सामने रखी चीजें भी ढूढ़ते रहते हैं, तो पौपकौर्न सिंड्रोम के शिकार हैं आप

क्या आप का भी पूरा दिन मोबाइल पर कभी कौल, कभी व्हाट्सएप, कभी फेसबुक तो कभी इंस्टाग्राम पर स्क्रोलिंग करते हुए बीतता है और आप को किसी एक काम पर फोकस ही नहीं कर पाने की समस्या हो रही है तो आप का दिमाग पौपकौर्न ब्रेन सिंड्रोम का शिकार हो चुका है.

 

एक रिसर्च के अनुसार जब किसी व्यक्ति का किसी भी चीज को देखने का ध्यान बनाए रखने की क्षमता कम हो जाती है तो वह पौपकौर्न सिंड्रोम का शिकार माना जा सकता है. जहां 2004 में टीवी देखते हुए चैनल बदलने के लिए कोई व्यक्ति ढाई मिनट लगाता था वहीं 2012 में यह टाइम स्पैन कम हो कर सवा मिनट हो गया और आज 2024 में मोबाइल या टीवी की स्क्रीन पर यह स्पैन सिर्फ 47 सैकंड रह गया है यानी महज 47 सैकंड बाद उस का दिमाग दूसरी किसी चीज को देखने या सुनने की मांग करता है.

 

पौपकौर्न ब्रेन के लक्षण
एक्स्पर्ट्स के अनुसार पौपकौर्न ब्रेन के शिकार लोग किसी काम पर फोकस नहीं कर पाते हैं. अगर इस का सही समय पर इलाज न हो तो धीरेधीरे लर्निंग और मैमोरी पर भी नैगेटिव असर पड़ता है. साथ ही, इस से व्यक्ति के इमोशन पर भी असर पड़ता है. पौपकौर्न ब्रेन सिंड्रोम में व्यक्ति का दिमाग अस्थिर रहता है, जिस की वजह से वह जरूरी चीजों को फोकस नहीं कर पाता है.
वहीं कई लोगों में एंग्जायटी की भी परेशानी देखने को मिली है. पौपकौर्न ब्रेन में दिमाग डिजिटल दुनिया की तरह मल्टीटास्किंग और स्क्रोलिंग का आदी हो जाता है और दिमाग काम करने के दौरान वैसे ही रिऐक्ट करता है और आप के विचार पौपकौर्न की तरह इधरउधर घूमने लगते हैं. इस सिंड्रोम का असर दिमाग की कार्यक्षमता पर पड़ता है, जिस की वजह से व्यक्ति को कई बार सामने रखी हुई चीजें भी नहीं मिलती हैं. इस के अलावा व्यक्ति याद की हुई चीजों को तुरंत ही भूल जाता है.

मैंटल हैल्‍थ की दुनिया में ‘पौपकौर्न ब्रेन’ एक नया चिंता का विषय है. 30, 60 और 90 सैकंड की रील्स और शौर्ट्स आप को भले ही कुछ समय का मजा दे रहे हों लेकिन अंत में ये आप को पौपकौर्न ब्रेन का शिकार बना रहे हैं. सिर्फ युवा, बुजुर्ग ही नहीं, टीनएजर्स और बच्चे भी इस का शिकार हो रहे हैं.
2017 में फेसबुक ने एक डेटा शेयर किया था जिस में कंपनी ने बताया था कि रोजाना एक आम यूजर 300 फुट स्क्रीन स्क्रोल करता है और यह एक महीने में 2.7 किलोमीटर हो जाता है. आप को बता दें, यह डेटा जिस समय का है उस समय सोशल मीडिया पर शौर्ट्स और वीडियो का चलन नहीं था, ऐसे में अब यह आंकड़ा पहले के मुकाबले काफी ज्यादा हो गया होगा.

 

 

पौपकौर्न ब्रेन से बचने के तरीके
• एक्सपर्ट के अनुसार इस सिंड्रोम से बचने के लिए व्यक्ति को सब से पहले सोशल मीडिया पर कितना वक्त बिताना है, इस का समय निर्धारित यानी एक टाइमटेबल बनाना चाहिए.
• औफिस में काम के बीच ब्रेक लेते समय मोबाइल यूज करने के बजाय दोस्तों से बात करें. इस सिंड्रोम से बचने के लिए खाना खाते वक्त मोबाइल यूज नहीं करना चाहिए.
• अखबार, पत्रपत्रिकाएं पढ़ने की आदत डालिए. मोबाइल पर डिपेंडेंसी कम कीजिए. अपनी हौबीज पर फोकस कीजिए और उस के लिए समय निकालिए.
• पूरे दिन का एक रूटीन बनाएं, प्रकृति के साथ समय बिताएं.
• जरूरी कार्यों को प्राथमिकता दें, पहले जरूरी कामों को निबटाएं और समयसमय पर नियमित ब्रेक लें.
• पौपकौर्न ब्रेन से बचने के लिए एक समय में एक ही काम करने पर फोकस करें.
• पौपकौर्न ब्रेन से बचने के लिए समयसमय पर डिजिटल डीटौक्स करें, नियमित अंतराल पर डिजिटल डिवाइस से दूरी बनाएं. साथ ही, मल्टीटास्किंग की जगह सिंगलटास्किंग पर फोकस करें.
• व्यायाम के लिए भी समय निकालें. इस के अलावा ऐक्सरसाइज से अपने फोकस को बेहतर करें.

 

‘मैं तुम्हें कभी तंग नहीं करूंगी, बहू

 

बेटे की शादी के कुछ महीने बाद ही सुमित्रा ने अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए. रोजरोज की कलह से परेशान बेटेबहू ने अलग घर ले लिया लेकिन 15 दिन के अंदर ही सुमित्रा को ऐसी खबर मिली जिस से उस के स्वभाव में अचानक परिवर्तन आ गया.

 

खिड़की से बाहर झांक रही सुमित्रा ने एक अनजान युवक को गेट के सामने मोटरसाइकिल रोकते देखा.

‘‘रवि, तू यहां क्या कर रहा है?’’ सामने के फ्लैट की बालकनी में खड़े अजय ने ऊंची आवाज में मोटर- साइकिल सवार से प्रश्न किया.

‘‘यार, एक बुरी खबर देने आया हूं.’’

‘‘क्या हुआ है?’’

‘‘शर्मा सर का ट्रक से एक्सीडेंट हुआ जिस में वह मर गए.’’

खिड़की में खड़ी सुमित्रा अपने पति राजेंद्र के बाजार से घर लौटने का ही इंतजार कर रही थीं. रवि के मुंह से यह सब सुन कर उन के दिमाग को जबरदस्त झटका लगा. विधवा हो जाने के एहसास से उन की चेतना को लकवा मार गया और वह धड़ाम से फर्श पर गिरीं और बेहोश हो गईं.

 

छोटे बेटे समीर और बेटी रितु के प्रयासों से कुछ देर बाद जब सुमित्रा को होश आया तो उन दोनों की आंखों से बहते आंसुओं को देख कर उन के मन की पीड़ा लौट आई और वह अपनी बेटी से लिपट कर जोर से रोने लगीं.

उसी समय राजेंद्रजी ने कमरे में प्रवेश किया. पति को सहीसलामत देख कर सुमित्रा ने मन ही मन तीव्र खुशी व हैरानी के मिलेजुले भाव महसूस किए. फिर पति को सवालिया नजरों से देखने लगीं.

‘‘सुमित्रा, हम लुट गए. कंगाल हो गए. आज संजीव…’’ और इतना कह पत्नी के कंधे पर हाथ रख वह किसी छोटे बच्चे की तरह बिलखने लगे थे.

सुमित्रा की समझ में आ गया कि रवि उन के बड़े बेटे संजीव की दुर्घटना में असामयिक मौत की खबर लाया था. इस नए सदमे ने उन्हें गूंगा बना दिया. वह न रोईं और न ही कुछ बोल पाईं. इस मानसिक आघात ने उन के सोचनेसमझने की शक्ति पूरी तरह से छीन ली थी.

करीब 15 दिन पहले ही संजीव अपनी पत्नी रीना और 3 साल की बेटी पल्लवी के साथ अलग किराए के मकान में रहने चला गया था.

पड़ोसी कपूर साहब, रीना व पल्लवी को अपनी कार से ले आए. कुछ दूसरे पड़ोसी, राजेंद्रजी और समीर के साथ उस अस्पताल में गए जहां संजीव की मौत हुई थी.

अपनी बहू रीना से गले लग कर रोते हुए सुमित्रा बारबार एक ही बात कह रही थीं, ‘‘मैं तुम दोनों को घर से जाने को मजबूर न करती तो आज मेरे संजीव के साथ यह हादसा न होता.’’

इस अपराधबोध ने सुमित्रा को तेरहवीं तक गहरी उदासी का शिकार बनाए रखा. इस कारण वह सांत्वना देने आ रहे लोगों से न ठीक से बोल पातीं, न ही अपनी गृहस्थी की जिम्मेदारियों का उन्हें कोई ध्यान आता.

ज्यादातर वह अपनी विधवा बहू का मुर्झाया चेहरा निहारते हुए मौन आंसू बहाने लगतीं. कभीकभी पल्लवी को छाती से लगा कर खूब प्यार करतीं, पर आंसू तब भी उन की पलकों को भिगोए रखते.

तेरहवीं के अगले दिन वर्षों की बीमार नजर आ रही सुमित्रा क्रियाशील हो उठीं. सब से पहले समीर और उस के दोस्तों की मदद से टैंपू में भर कर संजीव का सारा सामान किराए के मकान से वापस मंगवा लिया.

उसी दिन शाम को सुमित्रा के निमंत्रण पर रीना के मातापिता और भैयाभाभी उन के घर आए.

सुमित्रा ने सब को संबोधित कर गंभीर लहजे में कहा, ‘‘पहले मेरी और रीना की बनती नहीं थी पर अब आप सब लोग निश्चिंत रहें. हमारे बीच किसी भी तरह का टकराव अब आप लोगों को देखनेसुनने में नहीं आएगा.’’

‘‘आंटी, मेरी छोटी बहन पर दुख का भारी पहाड़ टूटा है. अपनी बहन और भांजी की कैसी भी सहायता करने से मैं कभी पीछे नहीं हटूंगा,’’ रीना के भाई रोहित ने भावुक हो कर अपने दिल की इच्छा जाहिर की.

‘‘आप सब को बुरा न लगे तो रीना और पल्लवी हमारे साथ भी आ कर रह सकती हैं,’’ रीना के पिता कौशिक साहब ने हिचकते हुए अपना प्रस्ताव रखा.

सुमित्रा उन की बातें खामोश हो कर सुनती रहीं. वह रीना के मायके वालों की आंखों में छाए चिंता के भावों को आसानी से पढ़ सकती थीं.

 

रीना के साथ पिछले 6 महीनों में सुमित्रा के संबंध बहुत ज्यादा बिगड़ गए थे. समीर की शादी करीब 3 महीने बाद होने वाली थी. नई बहू के आने की बात को देखते हुए सुमित्रा ने रीना को और ज्यादा दबा कर रखने के प्रयास तेज कर दिए थे.

‘इस घर में रहना है तो जो मैं चाहती हूं वही करना होगा, नहीं तो अलग हो जाओ,’ रोजरोज की उन की ऐसी धमकियों से तंग आ कर संजीव और रीना ने अलग मकान लिया था.

उन की बेटी सास के हाथों अब तो और भी दुख पाएगी, रीना के मातापिता के मन के इस डर को सुमित्रा भली प्रकार समझ रही थीं.

उन के इस डर को दूर करने के लिए ही सुमित्रा ने अपनी खामोशी को तोड़ते हुए भावुक लहजे में कहा, ‘‘मेरा बेटा हमें छोड़ कर चला गया है, तो अब अपनी बहू को मैं बेटी बना कर रखूंगी. मैं ने मन ही मन कुछ फैसला लिया है जिन्हें पहली बार मैं आप सभी के सामने उजागर करूंगी.’’

आंखों से बह आए आंसुओं को पोंछती हुई सुमित्रा सब की आंखों का केंद्र बन गईं. राजेंद्रजी, समीर और रितु के हावभाव से यह साफ पता लग रहा था कि जो सुमित्रा कहने जा रही थीं, उस का अंदाजा उन्हें भी न था.

‘‘समीर की शादी होने से पहले ही रीना के लिए हम छत पर 2 कमरों का सेट तैयार करवाएंगे ताकि वह देवरानी के आने से पहले या बाद में जब चाहे अपनी रसोई अलग कर ले. इस के लिए रीना आजाद रहेगी.

‘‘अतीत में मैं ने रीना के नौकरी करने का सदा विरोध किया, पर अब मैं चाहती हूं कि वह आत्मनिर्भर बने. मेरी दिली इच्छा है कि वह बी.एड. का फार्म भरे और अपनी काबिलीयत बढ़ाए.

‘‘आप सब के सामने मैं रीना से कहती हूं कि अब से वह मुझे अपनी मां समझे. जीवन की कठिन राहों पर मजबूत कदमों से आगे बढ़ने के लिए उसे मेरा सहयोग, सहारा और आशीर्वाद सदा उपलब्ध रहेगा.’’

सुमित्रा के स्वभाव में आया बदलाव सब को हैरान कर गया. उन के मुंह से निकले शब्दों में छिपी भावुकता व ईमानदारी सभी के दिलों को छू कर उन की पलकें नम कर गईं. एक तेजतर्रार, झगड़ालू व घमंडी स्त्री का इस कदर कायाकल्प हो जाना सभी को अविश्वसनीय लग रहा था.

रीना अचानक अपनी जगह से उठी और सुमित्रा के पास आ बैठी. सास ने बांहें फैलाईं और बहू उन की छाती से लग कर सुबकने लगी.

कमरे का माहौल बड़ा भावुक और संजीदा हो गया. रीना के मातापिता व भैयाभाभी के पास अब रीना व पल्लवी के हितों पर चर्चा करने के लिए कोई कारण नहीं बचा.

क्या सुमित्रा का सचमुच कायाकल्प हुआ है? इस सवाल को अपने दिलों में समेटे सभी लोग कुछ देर बाद विदा ले कर अपनेअपने घर चले गए.

अब सिर्फ अपने परिवारजनों की मौजूदगी में सुमित्रा ने अपने मनोभावों को शब्द देना जारी रखा, ‘‘समीर और रितु, तुम दोनों अपनी भाभी को इस पल से पूरा मानसम्मान दोगे. रीना के साथ तुम ने गलत व्यवहार किया तो उसे मैं अपना अपमान समझूंगी.’’

‘‘मम्मी, आप को मुझ से कोई शिकायत नहीं होगी,’’ रितु उठ कर रीना की बगल में आ बैठी और बड़े प्यार से भाभी का हाथ अपने हाथों में ले लिया.

‘‘मेरा दिमाग खराब नहीं है जो मैं किसी से बिना बात उलझूंगा,’’ समीर अचानक भड़क उठा.

‘‘बेटे, अगर तुम्हारा रवैया नहीं बदला तो रीना को साथ ले कर एक दिन मैं इस घर को छोड़ जाऊंगी.’’

सुमित्रा की इस धमकी का ऐसा प्रभाव हुआ कि समीर चुपचाप अपनी जगह सिर झुका कर बैठ गया.

‘‘सुमित्रा, तुम सब तरह की चिंताएं अपने मन से निकाल दो. रीना और पल्लवी के भविष्य को सुखद बनाने के लिए हम सब मिल कर सहयोग करेंगे,’’ राजेंद्रजी से ऐसा आश्वासन पा कर सुमित्रा धन्यवाद भाव से मुसकरा उठी थीं.

कमरे से जब सब चले गए तब सुमित्रा ने रीना से साफसाफ पूछा, ‘‘बहू, तुम्हें मेरे मुंह से निकली बातों पर क्या विश्वास नहीं हो रहा है?’’

‘‘आप ऐसा क्यों सोच रही हैं, मम्मी. आप लोगों के अलावा अब मेरा असली सहारा कौन बनेगा?’’ रीना का गला भर आया.

‘‘मैं तुम्हें कभी तंग नहीं करूंगी, बहू. बस, तुम यह घर छोड़ कर जाने का विचार अपने मन में कभी मत लाना, नहीं तो मैं खुद को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी.’’

‘‘नहीं, मम्मी. मैं आप के पास रहूंगी और आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.’’

‘‘देख, पल्लवी के नाम से मैं ने 1 लाख रुपए फिक्स्ड डिपोजिट करने का फैसला कर लिया है. आने वाले समय में यह रकम बढ़ कर उस की पढ़ाई और शादी के काम आएगी.’’

‘‘जी,’’ रीना की आंखों में खुशी की चमक उभरी.

‘‘सुनो बहू, एक बात और कहती हूं मैं,’’ सुमित्रा की आंखों में फिर से आंसू चमके और गला रुंधने सा लगा, ‘‘करीब 4 साल पहले तुम ने इस घर में दुलहन बन कर कदम रखा था और मैं वादा करती हूं कि उचित समय और उचित लड़का मिलने पर तुम्हें डोली में बिठा कर यहां से विदा भी कर दूंगी. जरूरत पड़ी तो पल्लवी अपने दादादादी के पास रहेगी और तुम अपनी नई घरगृहस्थी…’’

‘‘बस, मम्मीजी, और कुछ मत कहिए आप,’’ रीना ने उन के मुंह पर अपना हाथ रख दिया, ‘‘मुझे विश्वास हो गया है कि पल्लवी और मैं आप दोनों की छत्रछाया में यहां बिलकुल सुरक्षित हैं. मुझ में दूसरी शादी करने में जरा भी दिलचस्पी कभी पैदा नहीं होगी.’’

रीना अपने सासससुर के लिए जब चाय बनाने चली गई तो राजेंद्रजी ने सुमित्रा का माथा चूम कर उन की प्रशंसा की, ‘‘सुमि, आज जो मैं ने देखासुना है उस पर मुझे आश्चर्य हो रहा है, साथ ही गर्व भी कर रहा हूं. एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछिए,’’ सुमित्रा ने पति के कंधे पर सिर टिकाते हुए कहा और आंखें मूंद लीं.

‘‘तुम्हारी सोच, तुम्हारा नजरिया… तुम्हारे दिल के भाव अचानक इस तरह कैसे बदल गए हैं?’’

‘‘आप मुझ में आए बदलाव का क्या कारण समझते हैं?’’ आंखें बंद किएकिए ही सुमित्रा बोलीं.

‘‘मुझे लगता है संजीव की असमय हुई मौत ने तुम्हें बदला है, पर फिर वैसा ही बदलाव मेरे अंदर क्यों नहीं आया?’’

‘‘संजीव इस दुनिया में नहीं रहा, ये जानने से पहले मुझे एक और जबरदस्त सदमा लगा था. क्या आप को उस की याद है?’’

‘‘हां, जो लड़का बुरी खबर लाया था वह संजीव का जूनियर था और तुम समझीं कि वह कोई मेरा छात्र है और मेरी न रहने की खबर लाया है.’’

‘‘दरअसल, गलत अंदाजा लगा कर मैं बेहोश हो गई थी. फिर मुझे धीरेधीरे होश आया तो मेरे मन ने काम करना शुरू किया.

‘‘सब से पहले असहाय और असुरक्षित हो जाने के भय ने मेरे दिलोदिमाग को जकड़ा था. मन में गहरी पीड़ा होने के बावजूद अपनी जिस जिम्मेदारी का मुझे ध्यान आया वह रितु की शादी का था.

‘‘कैसे पूरी करूंगी मैं यह जिम्मेदारी? मन में यह सवाल कौंधा तो जवाब में सब से पहले संजीव और रीना की शक्लें उभरी थीं. उन से मेरा लाख झगड़ा होता रहा हो पर मुसीबत के समय मन को उन्हीं दोनों की याद पहले आई थी,’’ अपने मन की बातों को सुमित्रा बड़े धीरेधीरे बोलते हुए पति के साथ बांट रही थीं.

राजेंद्रजी खामोश रह कर सुमित्रा के आगे बोलने का इंतजार करने लगे.

सुमित्रा ने पति की आंखों में देखते हुए भावुक लहजे में आगे कहा, ‘‘मेरे बहूबेटे मुसीबत में मेरा मजबूत सहारा बनेंगे, अगर मेरी यह उम्मीद भविष्य में पूरी न होती तो मेरा दिल उन दोनों को कितना कोसता.’’

एक पल रुक कर सुमित्रा फिर बोलीं, ‘‘असली विपदा का पहाड़ तो रीना के सिर पर टूटा था. मेरी ही तरह क्या उस ने भी उन लोगों का ध्यान नहीं किया होगा जो इस कठिन समय में उस के काम आएंगे?’’

‘‘जरूर आया होगा,’’ राजेंद्रजी बोले.

‘‘अगर उस ने हमें विश्वसनीय लोगों की सूची में नहीं रखा होगा तो यह हमारे लिए बड़े शर्म की बात है और अगर हमारे सहयोग और सहारे की उसे आशा है और हम उस की उम्मीदों पर खरे न उतरे तो क्या वह हमें नहीं कोसेगी?’’

‘‘तुम्हारे मनोभाव अब मेरी समझ में आ रहे हैं. तुम्हारे कायाकल्प का कारण मैं अब समझ सकता हूं,’’ राजेंद्रजी ने प्यार से पत्नी का माथा एक बार फिर चूमा.

‘‘हमारा बेटा संजीव अब बहू और पोती के रूप में अपना अस्तित्व बनाए हुए है और ये दोनों हमें कोसें ऐसा मैं कभी नहीं चाहूंगी. इन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए ही मैं ने अपने को बदल डाला है. कभी मैं राह से भटकूं तो आप मुझे टोक कर सही राह दिखा देना,’’ सुमित्रा ने अपने जीवनसाथी से हाथ जोड़ कर विनती की.

‘‘उस की जरूरत नहीं पड़ेगी क्योंकि तुम्हारा यह कायाकल्प दिल की गहराइयों से हुआ है.’’

अपने पति की आंखों में अपने लिए गहरे सम्मान, प्रशंसा व प्रेम के भावों को पढ़ कर सुमित्रा हौले से मुसकराईं.

बरसात में ब्रेन भी होता है बीमार, बचना है तो जानें मानसून डिप्रेशन के बारे में

वैसे तो मानसून के आने पर गरमी थोड़ा कम हो जाती है. लेकिन मौसम चाहे मानसून का हो, गरमी हो या सर्दी, उस का सीधा असर व्यक्ति के व्यवहार पर पड़ता है. इस भीषण गरमी और गरमी के साथसाथ मानसून के कारण थकान-चिड़चिड़ाहट भी बढ़ती जा रही है जो मानसून डिप्रेशन की एक बड़ी वजह बन रहा है. आइए जानें, क्या है मानसून डिप्रैशन और इस से कैसे बचें.

यह मशहूर गीत तो आप ने सुना ही होगा, ‘धूप में निकला न करो रूप की रानी, गोरा रंग कला न पड़ जाए…’ लेकिन इस साल जिस हिसाब से बारिश और गरमी पड़ रही है, उस से बात सिर्फ रूपरंग की नहीं है बल्कि उस से कहीं आगे बढ़ कर बात मानसिक स्वास्थ्य तक जा पहुंची है. बारिश की वजह से घर से बाहर निकलना तक मुश्किल हो जाता है. इस का शरीर पर ही नहीं, मन पर भी असर पड़ता है.

 

मन में एक भय पैदा हो गया है
कुछ सालों से मौसम का पैटर्न लगातार बदल रहा है. इस से लोग काफी परेशान हैं. हालांकि साइंटिस्टों ने इस की चेतावनी 1900 में ही देनी शुरू कर दी थी कि पेड़ काट कर कंक्रीट के जंगल बनाने का खमियाजा भुगतना ही पड़ेगा. इस की वजह से मौसम में बदलाव होगा ही होगा. अब यह मौसमी बदलाव किसी से संभल ही नहीं सकता. न सरकार संभाल सकती है न व्यक्तिगत स्तर पर कुछ किया जा सकता है. अब मन में यही भाव हो गया है के ये गरमीबरसात तो ले कर डूबेगी. जितनी खबरें एन्वायरमैंट के बारे में आ रही हैं वे सब बड़ी डिप्रैसिंग हैं.

वेदर चेंज किस तरह लोगों के मन में पर प्रभाव डाल रहा
बहुत से लोग बच्चों को ले कर चिंता में हैं. डर यह सता रहा है कि अगर मौसम इसी प्रकार बदलता रहा तो भविष्य कैसा होगा. खासतौर पर उन को ज्यादा परेशानी है जिन्होंने मौसम के बदलाव की वजह से सूखे और बाढ़ का संकट झेला है. मौसम में बदलाव से जिन की जिंदगी पर असर पड़ा है उन की मैंटल हैल्थ ज्यादा खराब हो रही है.

वेदर चेंज के कारण फसलों को नुकसान हो रहा है. कई फसलों की सप्लाई पर असर पड़ता है. फल और सब्जियों के रेट बढ़ने से महंगाई आसमान छूने लगती है. कई लोग चाह कर भी इन को खरीद नहीं पाते हैं. फिश, पशुपक्षी खत्म हो जाएंगे, पानी का स्तर कम हो जाएगा आदि.

 

ऐसे में वो सोचते हैं कि अगर अभी यह हो रहा है तो आगे क्या होगा. लोगों को भविष्य का डर सताने लगता है. यही डर एंग्जायटी में बदल जाता है. मौसम में बदलाव से जिन की जिंदगी पर असर पड़ा है उन की मैंटल हैल्थ ज्यादा खराब हो रही है. लेकिन इस सच से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि यह तो अब आप को सहना पड़ेगा. हमारे मांबाप और पिछली पीढ़ी ने जो गलती की थी, अब उस से बचने का पूरी तरह तो कोई तरीका नहीं है. लेकिन कुछ हद तक सावधानी बरत कर इसे काम किया जा सकता है.

क्या है मानसून डिप्रैशन
मौसम में होने वाले बदलाव का सीधा असर व्यक्ति की मैंटल हैल्थ पर पड़ता है. गरमी, बरसात की वजह से उस का कुछ करने, यहां तक कि खानेपीने तक, का मन नहीं करता. एक बार की बारिश से ही हालत इतनी खराब हो जाती है कि चारों तरफ पानी ही पानी हो जाता है. लोग औफिस जाने में भी कतराने लगते है क्योंकि उन्हें 1 घंटे के रस्ते में 4-4 घंटे जाम में लग जाते हैं. ऐसे में लगता है बाहर जा कर क्या करना है. इसलिए व्यक्ति खुद को एक कमरे में बंद कर लेता है. व्यक्ति अकेला रहने लगता है और एंग्ज़ाइटी का शिकार हो जाता है. इस के अलावा, एकाग्रता की कमी और एनर्जी का स्तर भी लो हो जाता है.

आइए जानें मानसून और गरमी ब्रेन पर किस तरह से असर डालती है
मानसून ब्लूज चूंकि कोई क्लीनिकल डिसऔर्डर नहीं है बल्कि मानसून में चूंकि सूर्य का प्रकाश कम हो जाता है और सर्केडियन रिदम की समस्या के कारण यह दिक्कत ट्रिगर हो सकती है. मानसून के दिनों में यूवी एक्‍सपोजर कम हो जाता है. इस से शरीर में मेलाटोनिनन, सेरोटोनिनन और विटामिन-डी की कमी हो जाती है. सेरोटोनिन की कमी से मूड और भूख प्रभावित होती है. बरसात में कई दिनों तक धूप नहीं दिखती, इस के कारण भी आप की उदासी बढ़ सकती है. असल में जब हमारी आंखें सूर्य के प्रकाश को देखती हैं, तो यह मस्तिष्क को संदेश भेजती हैं जो नींद, भूख, तापमान, मनोदशा और गतिविधि को नियंत्रित करता है. बरसात में यह प्रक्रिया धीमी हो जाती है, जिस के कारण आप अधिक उदासी का अनुभव कर सकते हैं.

इस के आलावा, कुछ लोग ज्यादा गरमी सहन नहीं कर पाते. ऐसे में उन्हें सूरज की रोशनी से परेशानी होने लगती है. ज्यादा तेज धूप लोगों में निराशा की भावना लाती है. दरअसल, ज्यादा गरमी से पसीना आता है. ऐसी स्थिति में शरीर रक्तवाहिकाओं को चौड़ा कर के स्वयं को ठंडा करने की कोशिश करता है. लेकिन गरमी की वजह से ब्रेन में सेराटोनिन और डोपामाइन कैमिकल की मात्रा बढ़ जाती है. इस से हमारे मूड में चेंज आता है. ज्यादा सेराटोनिन होने से लोगों में एंग्जाइटी डिसऔर्डर होने लगता है. ऐसे में चिड़चिड़ापन, गुस्सा आने, चिंतातनाव जैसे विकारों के मामले काफी बढ़ जाते हैं.

मानसून डिप्रैशन के लक्षण

-थोड़ा काम करने पर भी थकान का काफी ज्यादा महसूस होना.
-किसी भी काम में मन न लगना
-घर से बाहर न जाने के बहाने खोजना
-व्यवहार में चिड़चिड़ापन आना
-अकेले रहने का मन करना
-बातबात पर मूड ख़राब होना और गुस्सा आना
-खुदकुशी करने के खयाल आना
-एनर्जी लैवल का कम हो जाना

कैसे बचें
-बरसात के समय बाहर निकलना अवौयड करें. कहीं जाना है, तो थोड़ा पहले चले जाएं.
-बाहर जाएं तो सिर को कवर करें. किसी कैप का इस्तेमाल करें
-छाता ले कर जाएं
-अपनी नींद के पैटर्न को समझें और रोज एक ही समय पर सोएं. नींद का पूरा होना बहुत जरूरी है.
-इस मौसम में वौक पर जाना मुश्किल लग रहा हो, तो कोई बात नहीं, आप घर में ही ऐक्सरसाइज कर लें. इसे अपने डेली रूटीन में शामिल करें
-कम से कम 10 से 12 गिलास पानी जरूर पिएं ताकि बौडी का तापमान सही रहे.
-अच्छे वैंटिलेशन में रहें.
-कपड़ों का चुनाव भी सोचसमझ कर करें. बारिश के हिसाब से ही कपड़ों का चुनाव करें.
-अपनी डाइट का भी धयान रखें. बाहर ज्यादा खाने से बचें. तलाभुना काम खाएं और हरी सब्जियां व फल ज्यादा खाएं. आप की डाइट में फाइबर खूब होना चाहिए.
-डिप्रैशन कम न हो तो डाक्टर की सलाह लें.

पर्यावरण की रक्षा के लिए सभी को कदम उठाने होंगे. इस वैदर चेंज को कम तो नहीं किया जा सकता लेकिन इस के और ज्यादा बढ़ने से रोका तो जा ही सकता है. पुरानी पीढ़ी वाली गलती आप न दोहराएं. अगर आप को अपने बच्चों के भविष्य का डर सता रहा है तो डिप्रैशन में जाना उस का कोई इलाज नहीं है बल्कि आप अपने स्तर पर उसे रोकने के लिए जो कुछ कर सकते हैं वह करें, जैसे कि खूब पेड़ लगाए और लगा कर छोड़ न दें बल्कि उन्हें बड़ा करें, उन की देखभाल करें. गरमी और बरसात में पानी भरने से रोकने के उपाय करें और हल्ला मचाने व डिप्रैशन में जाने से अच्छा है, उस के लिए हर संभव प्रयास करें.

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पत्नियों की नजर पतियों पर कम पौकेट पर अधिक होती है

जब तक हम अविवाहित थे यह बात हमारी समझ से परे थी कि पत्नियों की नजर अपने पतियों पर कम उन की पौकेट पर अधिक होती है. तब यह सुन कर ऐसा लगता था मानो पत्नी कोई सुलताना डाकू हो जो पति की जेब पर डाका डाल कर दरियादिली से अपने और अपने बच्चों के ऊपर पैसा लुटाती हो.

जो भी हो, अविवाहित रहते हुए हम कभी भी इस बात से इत्तेफाक न रख सके कि पत्नी की नजर पति की पौकेट पर होती है. तब तो शादी के खयाल मात्र से ही मन में खुशी का बैंडबाजा बजने लगता था. ‘आह, वो ऐसी होगी, वो वैसी होगी’ यही सोचसोच कर मन में लड्डू फूटते रहते थे.

पत्नी का मतलब हमारी दृष्टि में एक सच्ची जीवनसाथी जो पति का खूब खयाल रखती है उस से अधिक कुछ और नहीं था. पत्नी का पौकेटमार होना हमारे लिए सोचना भी पाप था. वह उम्र ही ऐसी थी.

यह सही है कि जब तक नदी में गोता न लगा ले तब तक उस की गहराई की केवल कल्पना की जा सकती है, वास्तविक गहराई नहीं जानी जा सकती. ऊंट को अपनी ऊंचाई का सही आभास तब तक नहीं होता जब तक वह पहाड़ के नीचे से न निकल जाए.

हर मर्द शादी से पहले अपनेआप को बड़ा ऊंचा ऊंट समझता है और जब शादी के पहाड़ के नीचे से गुजरता है तब उसे अपने वास्तविक कद का पता चलता है. बड़ेबड़े हिटलर पत्नी के आगे पानी मांगते हैं जब वह टेढ़ी या तिरछी नजर से देखती है.

हम भी बचपन से अपने को बड़ा पढ़ाकूपिस्सू और कलमघिस्सू समझते रहे. अपनेआप को बड़ा ज्ञानी, ध्यानी समझते रहे. हमें ऐसा लगता था जैसे सारी दुनिया का ज्ञान हम ने ही बटोर रखा है. कोई रचना प्रकाशित हुई नहीं कि बल्लियों उछलने लगते थे.

शादी के बाद जब एक रचना छप कर आई तो श्रीमतीजी पर रोब गालिब करने और अपने लेखक होने की महानता को सत्यापित कराने के लिए उस रचना को महत्त्वपूर्ण सर्टिफिकेट की तरह उन के सम्मुख प्रस्तुत किया. श्रीमतीजी ने पहले तो उस रचना को बड़ी ही उपेक्षित नजर से देखा. इस से हमारा दिल दहल गया. लेकिन हमारा सम्मान रखते हुए 2-3 लाइनें पढ़ीं और फिर पूछा, ‘‘डार्लिंग, इस का कितना पैसा मिलेगा?’’

हम श्रीमती के प्रश्न और प्रश्नवाचक नजर से कुछ असहज हुए और फिर अचकचाते हुए बोले, ‘‘ये तो छापने वाले जानें.’’

यह सुनते ही श्रीमतीजी ने रचना को एक ओर रखते हुए कहा, ‘‘माल (रचना) तुम्हारा और कीमत जानें पत्रिका वाले, यह भी कोई बात हुई.’’

हम ने श्रीमतीजी को थोड़ा समझाते हुए कहा, ‘‘अभी हम इतने बड़े कालिदास नहीं हुए कि अपनी रचनाओं की कीमत स्वयं तय करें. वे छाप देते हैं, क्या यह कम बड़ी बात है.’’

‘‘टाइमवेस्ट और कुछ नहीं,’’ श्रीमतीजी हमें बालक की तरह नसीहत देती हुई बोलीं.

उस दिन हमें कुछकुछ लगा कि पत्नियां पौकेटमार भी होती हैं, पैसे पर नजर रखती हैं.

उस दिन हमें सचमुच यह भी लगा कि अपुन की औकात क्या है? मन तो हुआ कि सब लिखनापढ़ना छोड़ दें और डिगरी कालेज की लेक्चररी में ही अपनी जिंदगी काट दें. पर लिखने का कीड़ा जिसे काटता है वही जानता है. इस के काटने के दर्द में कितना मजा होता है.

जब भी श्रीमतीजी हमें लिखता हुआ देखतीं तो मुंह बिचका कर निकल जातीं, जैसे हम न जाने कितना घटिया और मनहूस काम कर रहे हों. उस समय श्रीमतीजी की नजर में हम स्वयं को कितना लज्जित महसूस करते, उस का वर्णन करना मुश्किल है. इस अपमान से बचने का हमारे पास एक ही रास्ता बचा था कि श्रीमतीजी की नजरों से बच कर चोरीछिपे लिखा जाए.

एक दिन ऐसा हुआ कि हम ने अपना सीना कुछ चौड़ा महसूस किया. हुआ यह कि 2 रचनाओं के चैक एकसाथ आ गए. इन चैकों की रकम इतनी थी कि श्रीमतीजी की पसंद की साड़ी आराम से आ सकती थी. हम ने श्रीमतीजी को मस्का लगाते हुए कहा, ‘‘लो महारानीजी, तुम्हारी साड़ी आ गई.’’

साड़ी का नाम सुनते ही श्रीमतीजी ऐसे दौड़ी चली आईं जैसे भूखी लोमड़ी को अंगूरों का गुच्छा लटका नजर आ गया हो. आते ही चहकीं, ‘‘कहां है साड़ी? लाओ, दिखाओ?’’

हम ने दोनों चैक श्रीमतीजी को पकड़ा दिए. श्रीमतीजी ने दोनों चैकों की धनराशि देखी और थैंक्यू बोलते हुए हमारे गाल पर एक प्यारी चिकोटी काट ली. हम इस प्यारी चिकोटी से ऐसे निहाल हो गए जैसे हमें साहित्य अकादमी का साहित्यरत्न अवार्ड मिल गया हो.

हमें एकबारगी यह ख्वाब आया कि श्रीमतीजी यह तो पूछेंगी ही कि किन रचनाओं से यह धनराशि प्राप्त हुई है. लेकिन उन्होंने यह पूछने की जहमत नहीं उठाई. बस, कसी हुई नजर से इतना कहा, ‘‘जहां से ये चैक आए हैं वहीं रचना भेजा करो. मुफ्त वालों के लिए लिखने की जरूरत नहीं है.’’

हम मान गए कि श्रीमतीजी को हमारी रचनाओं से मतलब नहीं, उन की नजर सिर्फ आने वाले चैकों पर है.

इस के बाद जब कभी भी पोस्टमैन आता तो हम से पहले श्रीमतीजी उस के दर्शन के लिए पहुंच जातीं. एक दिन पोस्टमैन की आवाज आते ही श्रीमतीजी रसोई से दौड़ती हुई दरवाजे पर पहुंचीं. हम भी चहलकदमी करते हुए श्रीमतीजी  के पीछेपीछे दरवाजे तक पहुंचे.

पोस्टमैन बोला, ‘‘बाबूजी, आप का मनीऔर्डर है.’’

श्रीमतीजी हमें बिना कोई अवसर दिए तुरंत बोलीं, ‘‘कितने का है?’’

‘‘मैडमजी, 50 रुपए का.’’

‘‘क्या? क्या कहा, 50 रुपए का?’’ श्रीमतीजी ऐसे मुंह बना कर बोलीं जैसे पोस्टमैन से बोलने में गलती हो गई हो.

हम ने स्थिति को संभालते हुए कहा, ‘‘अरे भाई, ठीक से देखो. आजकल 50 रुपए कोई नहीं भेजता, 500 रुपए का होगा.’’

हमारे कहने पर पोस्टमैन ने एक बार फिर से मनीऔर्डर को देखा. धनराशि अंकों में देखी, शब्दों में देखी. फिर आश्वस्त हो कर बोला, ‘‘बाबूजी, 50 रुपए का ही है.’’

जैसे ही पोस्टमैन ने 50 रुपए का नोट निकाल कर श्रीमतीजी की ओर बढ़ाया तो वे खिन्न हो कर बोलीं, ‘‘यह दौलत इन्हीं को दे दो, बच्चे टौफी खा लेंगे.’’

पोस्टमैन ने व्यंग्यात्मक मुसकराहट के साथ वह 50 रुपए का नोट हमारी ओर बढ़ा दिया. मेरे लिए तो वह 50 रुपए का नोट भी किसी पुरस्कार से कम नहीं था. लेकिन श्रीमतीजी के खिन्नताभरे व्यंग्यबाण और पोस्टमैन की व्यंग्यात्मक हंसी ऐसी लग रही थी जैसे हिंदी का लेखक दीनहीन, गयागुजरा और फालतू का प्राणी हो जिस को कई प्रकार से अपमानित किया जा सकता हो और बड़ी आसानी से मखौल का पात्र बनाया जा सकता हो.

उस दिन श्रीमतीजी की नजर में हम 50 रुपए के आदमी बन कर रह गए थे.

धर्मकर्म की राजनीति के चलते हार गए ऋषि सुनक

ब्रिटेन के आम चुनाव में सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी बुरी तरह हार चुकी है और ऋषि सुनक की विदाई हो चुकी है. मसलन उन्होंने हार की जिम्मेदारी भी ले ली है. जिम्मेदारी लेनी भी थी क्योंकि सुनक पूरी तरह धर्मकर्म के भरोसे बैठे हुए थे चुनाव क्या खाक जिताते.

जिस तरह 4 जून को भारत में आए नतीजों से भाजपा के भक्तगण हैरान और परेशान थे कि यह हुआ तो हुआ कैसे, ठीक उस के एक महीने बाद 5 जुलाई को डबल झटका यहां उन्हीं भक्तों को ऋषि सुनक की बुरी तरह से मिली हार से फिर मिल गया है.
हार भी कोई मामूली नहीं है. ऋषि सुनक वाली सत्ताधारी कंजर्वेटिव पार्टी 14 साल बाद लेबर पार्टी से चुनाव हारी है. लेबर पार्टी जिसे भारत की कांग्रेस जैसा कहा जा सकता है, के 61 साल के कीर स्टार्मर देश के 58वें प्रधानमंत्री बन गए हैं.

सुनक ने हार स्वीकार कर पार्टी से माफी मांगी है. हैरानी यह कि हार मामूली नहीं है. सरकार बनाने के लिए 326 सीटों की जरूरत होती है. लेबर पार्टी ने कुल 650 सीटों में से 412 जीत दर्ज की है. वहीँ कंजर्वेटिव पार्टी को 120 ही सीटें मिल पाईं. इसे कंजर्वेटिव पार्टी की 200 सालों में मिली सब से बड़ी हार कहा जा रहा है.
जब से ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने थे उन्हें ले कर भारत में हिंदुत्व के समर्थक सनातन के फैलाव के रूप में देख रहे थे. उन का भारत में खूब प्रचारप्रसार भी किया गया. मगर दरअसल वे तो कंजर्वेटिव पार्टी के लिए महज बलि का बकरा थे, क्योंकि कंजर्वेटिव पार्टी की हालत ब्रिटेन में खस्ता होती चली जा रही थी. हुआ भी यही कि इस हार की जिम्मेदारी ऋषि सुनक ने अपने ऊपर ले ली.

 

ब्रिटेन में ऋषि सुनक की पार्टी की हार लगभग तय थी. चुनाव से पहले प्रमुख अख़बार ‘द डेली टैलीग्राफ’ ने एक सर्वे का हवाला तक यह कहते दिया था कि प्रधानमंत्री ऋषि सुनक उत्तरी इंगलैंड सीट से चुनाव हार सकते हैं. और तो और, 4 जुलाई को होने जा रहे मतदान में उन की कंजर्वेटिव पार्टी के हाउस औफ कौमन्स की 650 में से महज 53 सीटें ही ले जाने की स्थिति में रहेगी.
जिस तरह 400 पार के नारे के साथ भारत के सर्वे धारक भाजपा की जीत के दावे कर रहे थे उस लिहाज से आमतौर पर विदेशी सर्वेक्षण भक्ति और आस्था से प्रेरित नहीं होते, और ब्रिटेन के मामले में तो साफ़ दिखा भी कि सत्तारुढ़ दल की ही दुर्गति के चर्चे पहले ही आम हो गए थे.

एक अकेले टैलीग्राफ ही नहीं, बल्कि कई दूसरे सर्वेक्षणों में भी लेबर पार्टी को काफी बढ़त पर बताया था. ब्रिटिश इंटरनैश्नल मार्केटिंग रिसर्च और डाटा एनालिसिस कंपनी यूगोव (you Gov) के पोल में भी कंजर्वेटिव पार्टी को 20 फीसदी और लेबर पार्टी को 47 फीसदी वोट मिलने की बात कही थी. एक और सर्वे पोलिटिको पोल में तो कंजर्वेटिव पार्टी को तीसरे नंबर पर जाते दिखाया गया था. उसे केवल 18 फीसदी वोट मिलने की संभावना जताई गई थी. रिफौर्म यूके पार्टी को 19 फीसदी वोटों के साथ दूसरा स्थान दिया गया. रिफौर्म यूके 2018 में गठित नईनवेली छोटी सी लेकिन दक्षिणपंथी ही पार्टी है जिस के मुखिया वे नाइजेल फराज हैं जिन्हें एक वक्त में ब्रिटेन को यूरोपीय संघ से बाहर निकालने के लिए जाना जाता है.

यह वह वक्त है जब भारत में भाजपा की दुर्दशा की चर्चा दुनियाभर में जारी है लेकिन कोई स्पष्ट निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पा रहा है कि ऐसा क्यों हुआ? सिर्फ एक सरिता पत्रिका ही है जो यह बताती रही कि नरेंद्र मोदी और भाजपा जनता को धर्म की आड़ ले कर गुमराह कर रहे हैं, बहलाफुसला रहे हैं जिस की हकीकत जनता समझने लगी है. नरेंद्र मोदी हालांकि टीडीपी और जेडीयू की बैसाखियों के सहारे तीसरी बार प्रधानमंत्री बन जरूर गए हैं लेकिन उन के तेवर अब पहले जैसे आक्रामक और तानाशाही वाले नहीं रह गए हैं. हालांकि वे अपनी तरफ से ठसक दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन वे पुराने ज़माने के ठाकुरों सरीखी साफ़साफ़ दिखती है जिन के पास आन, बान और शान के संस्मरण ज्यादा होते हैं भगवा हवेली में अब कम दीयों की रोशनी है.

 

इसी तर्ज पर अगर ब्रिटेन में ऋषि सुनक की हार की स्क्रिप्ट लिखी जा रही है तो उस की प्रस्तावना या इबारत शुरू ही इस बात से होती है कि कंजर्वेटिव पार्टी भी घोषित तौर पर दक्षिणपंथी है. इस बात को इतिहास के साथसाथ उस के वर्तमान चुनावप्रचार से भी समझा जा सकता है. कंजर्वेटिव पार्टी के कुछ उम्मीदवार भारत का हवाला देते हुए यह प्रचार करते रहे कि मोदी फिर प्रधानमंत्री बन गए हैं. इस का मतलब यह था कि आने वाले महीने कश्मीर के लोगों के लिए और कठिन होने वाले हैं. असल में एक पत्र के जरिए कश्मीरी और पाकिस्तानी समुदाय के मतदाताओं को इस तरह लुभाने की कोशिश कंजर्वेटिव पार्टी कर रही थी कि हम अगर जीते तो संसद में कश्मीर मुद्दा उठाएंगे. इस स्टाइल के प्रचार को लेबर पार्टी ने विभाजनकारी बताते हुए एतराज किया था.

घोषित तौर पर ही लाल रंग के झंडे वाली सौ साल पुरानी लेबर पार्टी उदार वामपंथी मानी जाती है जो धरमकरम और चर्चों की राजनीति से दूर रहती है. इस का दिल और दिमाग समाजवादी है क्योंकि इस का जन्म ही मजदूर संगठनों की देन है. तीन बार प्रधानमंत्री रहे टोनी ब्लेयर लेबर पार्टी के एक लोकप्रिय नेता रहे हैं.

 

 

इस चुनाव में लेबर पार्टी के एक प्रमुख नेता डेविड लैमी भारत का नाम लेते हुए कंजर्वेटिव पार्टी पर 25 जून को जम कर यह कहते हुए बरसे थे कि 14 साल से कंजर्वेटिव पार्टी सत्ता में है. इस दौरान कितनी दीवाली आईं गईं लेकिन सरकार भारत के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमैंट यानी मुक्त व्यापार समझौता कराने में असफल रही है. उन के निशाने पर ऋषि सुनक के साथसाथ पूर्व प्रधानमंत्री बोरिस जौनसन भी थे. हालांकि, 10 लाख भारतीयों को रिझाने के लिए उन्होंने जम कर भारत की तारीफ भी की.
ब्रिटेन के चुनाव में मसलन महंगाई, इमिग्रेशन, पर्यावरण, अर्थव्यवस्था, घरेलू और विदेश नीति वगैरह मुदद बने. दूसरी बात जिसे लोग कहने से कतरा जा रहे हैं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही ऋषि सुनक भी अपना धार्मिक चेहरा उजागर करने को ही जीत की गारंटी मानने लगे थे. वे नियमित रूप से साउथेम्पटन स्थित मंदिर में जाते रहे, जिस का हल्ला उन के प्रधानमंत्री बनने के बाद मचा था. कम ही लोगों को जानकारी है कि वे यहां अकसर भंडारा भी करवाते थे. यह ठीक है कि उन्होंने बेहद उठापटक के दौर में यह पद संभाला था लेकिन उन के सामने खुद की काबिलीयत को साबित करने का सुनहरा मौका भी था जिसे वे धर्म और पूजापाठ के दिखावे की राजनीति के चलते चूक गए.

हालात से लड़ने के बजाय ऋषि ने धर्म का सहारा लिया और धर्मस्थलों के चक्कर काटने शुरू कर दिए. सितंबर 2022 में जब वे भारत आए थे तब दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर में भी उन्होंने पूजापाठ और जलाभिषेक करते हुए अपने हिंदू होने का राग आलापा था. 12 नवंबर, 2023 को दीवाली पर उन्होंने 10 डाउनिंग स्ट्रीट में दीवाली की ग्रैंड पार्टी आयोजित की थी. उस दिन उन्होंने अपने पहले ब्रिटिश एशियाई प्रधानमंत्री होने से ज्यादा कट्टर हिंदू होने का जिक्र किया था. इस भव्य और खर्चीले दीवाली समारोह में प्रीति जिंटा, अक्षय कुमार और ट्विंकल खन्ना जैसे फ़िल्मी सितारे खासतौर से शामिल हुए थे.
दीवाली का जिक्र कर डेविड लैमी ने कूटनीतिक चाल चलते ईसाई मतदाताओं को क्या याद दिलाने की कोशिश की थी, इस सवाल का जवाब यही था कि उन्होंने भी एक धार्मिक चाल चली, जिस की कोई काट ऋषि सुनक या कंजर्वेटिव पार्टी के पास नहीं था. दीवाली की पार्टी में ऋषि सुनक की पत्नी अक्षता मूर्ति परंपरागत भारतीय परिधान में थीं लेकिन ऋषि हास्यास्पद लग रहे थे क्योंकि उन्होंने टाई भी पहनी थी और शाल भी कंधों पर डाल रखा था. उस दिन उन के परिवार ने जम कर पूजापाठ और भजनआरती वगैरह किए.

ऋषि सुनक अपने हिंदू होने पर गर्व करें, यह किसी के लिए एतराज की बात नहीं लेकिन वे खुद के धार्मिक, कर्मकांडी और मूर्तिपूजक होने की नुमाइश बहैसियत ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हर कभी खुलेआम करें, यह बात ब्रिटेनवासी हजम नहीं कर पाए क्योंकि उन का भगवान देश की बदहाली दूर नहीं कर पाया जिस की जिम्मेदारी ब्रिटेन के लोगों ने उन्हें दी थी. जब भारत के हिंदू ही नरेंद्र मोदी का धर्मकर्म ज्यादा बरदाश्त नहीं कर पाए जिस के चलते उन्होंने भाजपा को 240 पर समेट दिया तो दक्षिणपंथी सुनक ब्रिटेन में कैसे कामयाब हो जाते.यह बात भी कम अहम नहीं कि ब्रिटेन के लोगों ने कभी ऋषि सुनक के हिंदू होने को अन्यथा नहीं लिया. उलटे, उन का स्वागत ही किया था. लेकिन वह स्वागत एक ऐसे स्मार्ट और प्रतिभाशाली नेता के तौर पर किया गया था जो देश की लड़खड़ाती हालत को संभालने की कूवत रखता है. यह उम्मीद तो तभी ढहना शुरू हो गई थी जब ऋषि सुनक घबरा कर हिंदू देवीदेवताओं का गुणगान ‘गंगा मैया ने बुलाया है’ वाली तर्ज पर करने लगे थे.
इस का एक बेहतर उदाहरण मोरारी बापू की रामकथा में उन का नरेंद्र मोदीकी तरह ‘राम सिया राम’ करते रहना था. यह रामकथा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में 15 अगस्त, 2023 को आयोजित की गई थी. कथा की शुरुआत में ही उन्होंने कहा था कि, ‘मैं आज यहां प्रधानमंत्री के नहीं, बल्कि एक हिंदू के रूप में आया हूं. 10 डाउनिंग स्ट्रीट में एक सुनहरा गणेश प्रसन्नतापूर्वक बैठा है. साउथेम्पटन मंदिर में मेरे मातापिता और परिवारजन हवनपूजाआरती करते थे. बाद में मैं और मेरे भाईबहन दोपहर का भोजन और प्रसाद परोसने लगे थे.’

मोरारी बापू से रूबरू होते उन्होंने कहा था, ‘मैं आज यहां से रामायण को याद करते हुए जा रहा हूं लेकिन साथ ही, भगवदगीता और हनुमान चालीसा को भी याद करता हूं.’ आखिर में जय सिया राम का नारा लगाते हुए उन्होंने मोरारी बापू से ब्रिटेन के लोगों की सेवा करने के लिए असीम शक्ति मांगी. बापू ने गदगद होते उन्हें आशीर्वाद और सोमनाथ के मंदिर वाला शिवलिंग तोहफे में दे दिया.

यहां यह तुलना करना गैरप्रासंगिक नहीं कि ऐसा भारत में कोई करता तो सनातनी उस का क्या हश्र करते जहां मुसलमानों को आएदिन उन की पूजा पद्धतियों और त्योहारों के रीतिरिवाजों को ले कर तरहतरह से कोसा जाता है. मानो धर्म और ऊपर वाले में आस्था के कापीराइट सिर्फ सनातनी हिंदुओं के ही हों. और तो और, दलितों को भी आएदिन मंदिरों से मारपीट कर खदेड़े जाने की घटनाएं बहुत आम हैं. इस पर भी तरस खाने लायक बात यह कि राग सहिष्णुता और विश्वगुरु बनने गाया जाता है.
ऐसा एक नहीं, बल्कि कई मौकों पर हुआ जब ऋषि सुनक ने अपनी आस्था सार्वजनिक रूप से व्यक्त करते नरेंद्र मोदी को भी पछाड़ने की कोशिश की. दुनियाभर के मीडिया और बुद्धिजीवियों ने कंजर्वेटिव पार्टी की इस बाबत तारीफ की थी कि उस ने एक हिंदू अल्पसंख्यक को सब से बड़े पद पर बैठाया. लेकिन उन्हीं दिनों में पाकिस्तानी मूल के कनाडाई लेखक तारेक फतह के इस ट्वीट की भी चर्चा रही थी कि ऋषि और कमला एकदूसरे के विपरीत हैं. कमला हिंदू और अपनी भारतीय पहचान पर शर्मिंदा थीं वहीं ऋषि सुनक ने अपनी हिंदू पहचान जबरदस्ती प्रचारित की.
असल में लोग अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की तुलना महज भारतीय मूल के होने पर करने लगे थे. लेकिन लोग यह भूल गए थे कि कमला हैरिस अमेरिका की वामपंथी पार्टी डैमोक्रेटिक से ताल्लुक रखती हैं और सुनक ब्रिटेन की दक्षिणपंथी पार्टी कंजर्वेटिव से गहरे तक कनैक्ट हैं.

यह कहने में कोई हिचक नहीं कि जो भगवान राम अपने देश में ही भाजपा को 370 सीटें नहीं दिला सके, अपने ही लोकसभा क्षेत्र फ़ैजाबाद में नहीं जिता पाए, तमाम टोटकों और कर्मकांडों के बाद भी एनडीए को 400 पार नहीं करा सके वह ब्रिटेन जा कर ऋषि सुनक और कंजर्वेटिव पार्टी की नैया पार कैसे लगा पाते? और फिर, फैसला वोटर को करना था जिस ने दुनियाभर में पिछले 10 साल जम कर दक्षिणपंथ को हवा दी और अब घबरा कर उस से किनारा कर रहे हैं क्योंकि धर्म जीवन की कठिनाइयां हल नहीं कर पा रहा.
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में भी लड़ाई वामपंथ और दक्षिणपंथ की है जिस में हालफ़िलहाल कांटे की टक्कर है. भारत में कमजोर पड़ते दक्षिणपंथ का असर ब्रिटेन के वोटरों पर, थोड़ाबहुत ही सही, पड़ा है.

अमृतपाल और राशिद का लोकसभा पहुंचना संघ और भाजपा के लिए बड़ा संदेश

भाजपा के शासन में धर्म का महासंग्राम चल रहा है और आगे भी उस की मंशा इसे चलाए रखने की है. लेकिन इस महासंग्राम में अपने ही अपनों से लड़ेंगे, यह निश्चित है, जैसे महाभारत का युद्ध जिस में दोनों पक्ष किसी बाहर के दुश्मन से नहीं लड़े, अपने ही अपनों से लड़े.

सिखों के लिए अलग खालिस्तान की मांग उठाने वाले जरनैल सिंह भिंडरावाले के भक्त अमृतपाल सिंह और जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 निरस्त होने के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले इंजीनियर राशिद का बड़े अंतर से लोकसभा चुनाव जीतना और देश की संसद में बतौर ‘माननीय’ पहुंचना यह संदेश देता है कि देश के अंदर जितनी जोर से हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र का डंका पीटा गया, उतनी ही जोर से उस की प्रतिध्वनि भी उत्पन्न हुई.

भिंडरावाले का भक्त और खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह ने असम की जेल में रहते हुए पंजाब की खडूर साहिब सीट से सांसद का चुनाव जीता और जम्मूकश्मीर में धारा 370 हटाने की मुखालफत करने वाले इंजीनियर राशिद ने दिल्ली की तिहाड़ जेल में रहते हुए उत्तरी कश्मीर की बारामूला सीट से जम्मूकश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नैशनल कान्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को 2 लाख से ज्यादा वोटों से हरा कर अपनी जगह लोकसभा में सुनिश्चित की है.

भाजपा और संघ के शासन में देश के अंदर धर्म का महासंग्राम चल रहा है और आगे भी उस की मंशा इसे चलाए रखने की है. लेकिन इस महासंग्राम में अपने ही अपनों से लड़ेंगे, यह निश्चित है. जैसे, महाभारत का युद्ध. वे भी किसी बाहर के दुश्मन से नहीं लड़े, अपने ही अपनों से लड़े, मगर हासिल क्या हुआ? खून से लथपथ धरती और विधवाओं की करुण चीखों से गूंजता आसमान. यह तो शुक्र है ‘इंडिया’ गठबंधन का, जिस ने फिलहाल लोकतंत्र को जीवित रखा हुआ है.

माननीय बने अमृतपाल

‘वारिस पंजाब दे’ के अमृतपाल सिंह को कल तक खालिस्तानी समर्थक कहा जाता था, आज वे अचानक संसद में ‘माननीय’ कहलाएंगे. बता दें कि अमृतपाल पर वैमनस्य फैलाने, हत्या के प्रयास और पुलिसकर्मियों पर हमले से संबंधित कई मामले दर्ज हैं. ‘वारिस पंजाब दे’ राजनीतिक समूह के प्रमुख प्रचारक अमृतपाल सिंह ने निर्दलीय के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस के कुलबीर सिंह जीरा को लगभग 2 लाख मतों के अंतर से हराया है. जाहिर है, देश में सिखों का एक बहुत बड़ा तबका अमृतपाल के विचारों और फैसलों के समर्थन में एकजुट है. सांसद अमृतपाल का कहना है कि वे खालिस्तानी जरनैल सिंह भिंडरावाले के विचारों से प्रेरित हैं.

कुछ वर्षों पहले तक अमृतपाल सिंह की जींस-टीशर्ट वाली तसवीरें दिखा करती थीं, मगर अब वे भिंडरावाले के समान सफेद कुरते और नीली पगड़ी में दिखते हैं. असम की जेल से चुनाव लड़ने के बाद पंजाब की खडूर साहिब सीट से सांसद चुने गए कट्टरपंथी नेता अमृतपाल सिंह को पद की शपथ लेने के लिए 4 दिनों की पैरोल मिली है. राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपाल सिंह ने 11 जून को पंजाब सरकार को पत्र लिख कर पैरोल के लिए अनुरोध किया था ताकि वे संसद में शपथ ले सकें. राज्य सरकार ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला को एक आवेदन भेजा था और उस के आधार पर पैरोल का फैसला लिया गया है.

अमृतपाल सिंह मूलतया पंजाब के जल्लूपुर गांव के रहने वाले हैं. उन की पढ़ाई गांव के स्कूल में महज 12वीं तक हुई है. साल 2012 में अमृतपाल दुबई गए, वहां उन्होंने ट्रांसपोर्ट का कारोबार किया. उन के ज्यादातर सगेसंबंधी दुबई में रहते हैं. वे सितंबर 2022 में भारत लौटे. उसी महीने उन्हें ‘वारिस पंजाब दे’ का प्रमुख नियुक्त किया गया, जो एक भारतीय पंजाबी फिल्म अभिनेता और सामाजिक कार्यकर्ता दीप सिद्धू द्वारा स्थापित एक संगठन है, जिन की फरवरी 2022 में एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी.

यह संगठन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए कृषि सुधारों के खिलाफ किसान आंदोलन जैसे विशाल अभियान का हिस्सा था. भारत लौटने के बाद से अमृतपाल सिंह सिखों के अधिकारों की रक्षा के लिए सिख समुदाय के एक बड़े हिस्से का नेतृत्व कर रहे थे. गौरतलब है कि सिख समुदाय भारत की आबादी का 1.7 प्रतिशत है. खालिस्तान आंदोलन के समर्थकों के बीच अमृतपाल सिंह के भाषण बहुत तेजी से लोकप्रिय हुए हैं.

30 वर्षीय अमृतपाल सिंह के आगे एक लंबा राजनीतिक कैरियर है. जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह जैसे भाजपा की पहली पंक्ति के नेताओं के पास अब ज्यादा लंबा वक़्त नहीं बचा है. अगले कुछ वर्षों के दौरान अगर भाजपा और संघ अगर ध्रुवीकरण की राजनीति ही करते रहे और धर्म का परचम बुलंद करते रहे तो देश के भीतर महाभारत की शुरुआत होते देर नहीं लगेगी. यहां हिंदू, मुसलिम, सिख सभी अपने अपने धर्म का परचम लहराते नजर आएंगे जो दुनिया के इस सब से बड़े लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं होगा.

अमृतपाल ने पिछले साल 10 फरवरी को अपने पैतृक गांव में एक सादे समारोह में ब्रिटेन की रहने वाली एनआरआई लड़की किरणदीप से शादी की है. आनंद कारज में दोनों परिवारों के लोग शामिल हुए. किरणदीप मूल रूप से जालंधर के कुलारां गांव की हैं, लेकिन कुछ समय पहले उन का परिवार इंगलैंड में बस गया था.

शादी के समय से ही कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन के कारण अमृतपाल सिंह गिरफ्तार हुए और जेल भेजे गए. वे किसान आंदोलन का बड़ा चेहरा तो बन ही चुके थे, जिस के कारण केंद्र सरकार की नजर उन पर थी. उसी समय उन्होंने और उन के सैकड़ों समर्थकों ने जेल में बंद अपने एक सहयोगी की रिहाई की मांग को ले कर तलवारों और बंदूकों के साथ पंजाब के अजनाला पुलिस थाने पर धावा बोल दिया था.

18 मार्च को पंजाब में पुलिस ने सड़कों पर नाकाबंदी की. हजारों की संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया ताकि अमृतपाल की गिरफ्तारी हो सके, लेकिन अमृतपाल शहर से निकल भागने में कामयाब रहे.

इस के बाद भारतीय अधिकारियों ने एक महीने तक तलाशी अभियान चलाया, जिस में हजारों अर्धसैनिक बल के जवानों को तैनात किया गया और पंजाब के कुछ इलाकों में मोबाइल इंटरनैट सेवाएं निलंबित कर दी गईं. अमृतपाल सिंह के 154 समर्थकों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिन के पास से पुलिस ने 10 बंदूकें और गोलाबारूद जब्त दिखाया. बाद में पंजाब के मोगा जिले के रोडे गांव के एक गुरुद्वारे से अमृतपाल सिंह की भी गिरफ्तारी हुई.

अमृतपाल सिंह को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया, जिस के तहत राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा माने जाने वाले लोगों को बिना किसी आरोप के एक साल तक हिरासत में रखा जा सकता है. बता दें कि अमृतपाल की हिरासत अवधि 24 जुलाई को समाप्त होनी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव की मतगणना से एक दिन पहले 3 जून को उन की हिरासत की अवधि को एक साल के लिए बढ़ा दिया गया. अमृतपाल सिंह पर एनएसए के तहत मामला दर्ज है. इस के अतिरिक्त हत्या व अपहरण समेत कई और केस दर्ज हैं. लेकिन यही अमृतपाल सिंह देश की संसद में पंजाब के एक बड़े तबके का प्रतिनिधित्व करते नज़र आएंगे. जबजब भाजपा और संघ हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र का मुद्दा गरम करेंगे तबतब प्रतिक्रिया के तौर पर अलग खालिस्तान का मुद्दा भी उछाला जाएगा.

जम्मूकश्मीर ने भी चौंकाया

लोकसभा चुनाव नतीजों में कश्मीर का जनादेश भी काफी चौंकाने वाला रहा है. ‘नया कश्मीर’ ने 2 हाईप्रोफाइल निर्वाचन क्षेत्रों से राज्य के 2 पूर्व मुख्यमंत्रियों उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती की जगह जेल में बंद इंजीनियर राशिद को चुन कर देश की संसद में भेजा है.

चुनाव के दिन सूबे की जनता ने ऐतिहासिक रूप से बड़ी संख्या में घरों से निकल कर ऐसी नाटकीय पटकथा लिखी जिस ने जम्मूकश्मीर में अब्दुल्ला और भाजपा के साथ गलबहियां कर चुकीं महबूबा मुफ्ती की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. ‘इंजीनियर राशिद’ के नाम से मशहूर निर्दलीय उम्मीदवार अब्दुल राशिद ने उमर अब्दुल्ला को 2 लाख वोटों के बड़े अंतर से हरा दिया. एनसी नेता उमर अब्दुल्ला की बारामूला सीट से हार इसलिए भी ज्यादा चर्चित रही क्योंकि राशिद ने दिल्ली की उच्च सुरक्षा वाली तिहाड़ जेल में बंद रहते हुए लोकसभा का चुनाव लड़ा. वे अपने प्रचार के लिए अपने समर्थकों के बीच नहीं थे. बावजूद इस के, उन के सिर जीत का सेहरा बांध कर अगर जम्मूकश्मीर की जनता ने उन्हें संसद तक पहुंचाया है तो यह संदेश भाजपा और संघ के लिए है कि जम्मूकश्मीर से धारा 370 हटाना सब को रास नहीं आया है. मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग राशिद के समर्थन में इसलिए भी निकल कर आया क्योंकि उसे लगा कि राशिद को लोगों का साथ देने की सजा दी जा रही है.

गौरतलब है कि अब्दुल राशिद गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं. राशिद को जम्मूकश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद गिरफ्तार किया गया था. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद जब कश्मीर में हर राजनीतिक दल ने फिर से इस की बहाली के मामले में आत्मसमर्पण कर दिया, तब इंजीनियर राशिद अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे. हालांकि अभी वे केवल एक आरोपी हैं और दोषी साबित नहीं हुए हैं, इसलिए चुनाव आयोग ने उन का नामांकन स्वीकार कर लिया था. दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें आज, 5 जुलाई को, लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ लेने के लिए 2 घंटे की पैरोल प्रदान की. वे पुलिस अभिरक्षा में संसद आए.

इंजीनियर राशिद की जीत ने जम्मूकश्मीर के उन नेताओं को संजीवनी देने का काम किया है जो भाजपा और संघ के धर्मप्रचार से खुश नहीं, बल्कि भयभीत हैं. यही वजह है, इंजीनियर राशिद के हाथों मात खाने के बाद भी जम्मूकश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नैशनल कान्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने इंजीनियर राशिद को रिहा करने की मांग उठाई है. उमर अब्दुल्ला ने एक्स पर लिखा, “मैं जम्मूकश्मीर के लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले तथा अन्य सांसदों को बधाई देता हूं जो आज शपथ ले रहे हैं. यह हमारे लोकतंत्र के लिए महत्त्वपूर्ण अवसर है. इस बात को स्वीकार करना जरूरी है कि उत्तरी कश्मीर के लोगों ने इंजीनियर राशिद को चुना है और उन्हें लोकसभा की सदस्यता की शपथ लेने तथा अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिलना चाहिए.”

 

अमृतपाल सिंह और इंजीनियर राशिद जैसे नेताओं का लोकसभा में पहुंचना भाजपा-नीत एनडीए के लिए मुश्किल जरूर पैदा करेगा. अगर संघ और भाजपा हिंदू धर्म के प्रचारप्रसार पर ज्यादा जोर देंगे तो उन्हें अन्य धर्म के लोगों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा.

सेक्स करने के बाद सिर में दर्द होने लगता है, इस से बचने के लिए क्या करूंं ?

सवाल

मैं 26 साल की विवाहित युवती हूं. विवाह 6 महीने पहले हुआ है. मैं तभी से एक विचित्र परेशानी से गुजर रही हूं. जब जब हम सैक्स करते हैं, उस के तुरंत बाद मुझे सिर में जोर का दर्द होने लगता है. मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों हो रहा है? कहीं यह किसी गंभीर भीतरी रोग का लक्षण तो नहीं है? इस से बचने के लिए मुझे क्या करना चाहिए? कोई घरेलू नुस्खा हो तो बताएं?

जवाब

आप जरा भी परेशान न हों. यह समस्या कई युवक युवतियों में देखी जाती है. इस का संबंध शरीर की जटिल रसायनिकी से होता है. यों समझें कि यह एक तरह का कैमिकल लोचा है. जिस समय सैक्स के समय कामोन्माद यानी और्गेज्म प्राप्त होता है, उस समय शरीर की रसायनिकी में आए परिवर्तनों के चलते सिर की रक्तवाहिकाएं कुछ देर के लिए फैल जाती हैं. धमनियों में आए इस अस्थाई फैलाव से उन के साथसाथ चल रही तंत्रिकाओं पर जोर पड़ता है, जिस कारण सिर में दर्द होने लगता है.

आप आगे इस दर्द से परेशान न हों, इस के लिए आप एक छोटा सा घरेलू नुसखा अपना सकती हैं. सहवास से 40-45 मिनट पहले आप पैरासिटामोल की साधारण दर्दनिवारक गोली लें. साइड इफैक्ट्स के नजरिए से पैरासिटामोल बहुत सुरक्षित दवा है. इसे लेने से कोई नुकसान नहीं होता.

जिन्हें पैरासिटामोल सूट नहीं करती, उन्हें अपने फैमिली डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए. यदि डाक्टर कहे तो नियम से प्रोप्रानोलोल सरीखी बीटा ब्लौकर दवा लेते रहने से और्गैज्म के समय सिर की धमनियों में फैलाव नहीं आता और सिरदर्द से बचाव होता है.

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कामुकता का राज और स्त्री की संतुष्टि को कुछ इस तरह समझिए

मेरठ का 30 वर्षीय मनोहर अपने वैवाहिक जीवन से खुश नहीं था, कारण शारीरिक अस्वस्थता उस के यौन संबंध में आड़े आ रही थी. एक वर्ष पहले ही उस की शादी हुई थी. वह पीठ और पैर के जोड़ों के दर्द की वजह से संसर्ग के समय पत्नी के साथ सुखद संबंध बनाने में असहज हो जाता था. सैक्स को ले कर उस के मन में कई तरह की भ्रांतियां थीं.

दूसरी तरफ उस की 24 वर्षीय पत्नी उसे सैक्स के मामले में कमजोर समझ रही थी, क्योंकि वह उस सुखद एहसास को महसूस नहीं कर पाती थी जिस की उस ने कल्पना की थी. उन दोनों ने अलगअलग तरीके से अपनी समस्याएं सुलझाने की कोशिश की. वे दोस्तों की सलाह पर सैक्सोलौजिस्ट के पास गए. उस ने उन से तमाम तरह की पूछताछ के बाद समुचित सलाह दी.

क्या आप जानते हैं कि सैक्स का संबंध जितना दैहिक आकर्षण, दिली तमन्ना, परिवेश और भावनात्मक प्रवाह से है, उतना ही यह विज्ञान से भी जुड़ा हुआ है. हर किसी के मन में उठने वाले कुछ सामान्य सवाल हैं कि किसी पुरुष को पहली नजर में अपने जीवनसाथी के सुंदर चेहरे के अलावा और क्या अच्छा लगता है? रिश्ते को तरोताजा और एकदूसरे के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए क्या तौरतरीके अपनाने चाहिए?

सैक्स जीवन को बेहतर बनाने और रिश्ते में प्यार कायम रखने के लिए क्या कुछ किया जा सकता है? रिश्ते में प्रगाढ़ता कैसे आएगी? हमें कोई बहुत अच्छा क्यों लगने लगता है? किसी की धूर्तता या दीवानगी के पीछे सैक्स की कामुकता के बदलाव का राज क्या है? खुश रहने के लिए कितना सैक्स जरूरी है? सैक्स में फ्लर्ट किस हद तक किया जाना चाहिए?

इन सवालों के अलावा सब से चिंताजनक सवाल अंग के साइज और शीघ्र स्खलन की समस्या को ले कर भी होता है. इन सारे सवालों के पीछे वैज्ञानिक तथ्य छिपा है, जबकि सामान्य पुरुष उन से अनजान बने रह कर भावनात्मक स्तर पर कमजोर बन जाता है या फिर आत्मविश्वास खो बैठता है.

वैज्ञानिक शोध : संसर्ग का संघर्ष

हाल में किए गए वैज्ञानिक शोध के अनुसार, यौन सुख का चरमोत्कर्ष पुरुषों के दिमाग में तय होता है, जबकि महिलाओं के लिए सैक्स के दौरान विविध तरीके माने रखते हैं. चिकित्सा जगत के वैज्ञानिक बताते हैं कि पुरुष गलत तरीके के यौन संबंध को खुद नियंत्रित कर सकता है, जो उस की शारीरिक संरचना पर निर्भर है.

पुरुषों के लिए बेहतर यौनानंद और सहज यौन संबंध उस के यौनांग, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी पर निर्भर करता है. पुरुषों में यदि रीढ़ की हड्डी की चोट या न्यूरोट्रांसमीटर सुखद यौन प्रक्रिया में बाधक बन सकता है, तो महिलाओं के लिए जननांग की दीवारें इस के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होती हैं और कामोत्तेजना में बाधक बन सकती हैं.

शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि एक पुरुष में संसर्ग सुख तक पहुंचने की क्षमता काफी हद तक उस के अपने शरीर की संरचना पर निर्भर है, जिस का नियंत्रण आसानी से नहीं हो पाता है. इस के लिए पुरुषों में मस्तिष्क, रीढ़ की हड्डी और शिश्न जिम्मेदार होते हैं.

मैडिसन के इंडियाना यूनिवर्सिटी स्कूल और मायो क्सीविक स्थित वैज्ञानिकों ने सैक्सुअल और न्यूरो एनाटोमी से संबंधित संसर्ग के प्रचलित तथ्यों का अध्ययन कर विश्लेषण किया. विश्लेषण के अनुसार,

डा. सीगल बताते हैं, ‘‘पुरुष के अंग के आकार के विपरीत किसी भी स्वस्थ पुरुष में संसर्ग करने की क्षमता काफी हद तक उस के तंत्रिकातंत्र पर निर्भर है. शरीर को नियंत्रित करने वाले तंत्रिकातंत्र और सहानुभूतिक तंत्रिकातंत्र के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए, जो शरीर के भीतर जूझने या स्वच्छंद होने की स्थिति को नियंत्रित करता है.’’

डा. सीगल अपने शोध के आधार पर बताते हैं कि शारीरिक संबंध के दौरान संवेदना मस्तिष्क या रीढ़ की हड्डी द्वारा पहुंचती है और फिर इस के दूसरे छोर को संकेत मिलता है कि आगे क्या करना है. इस आधार पर वैज्ञानिकों ने पाया कि उत्तेजना 2 तथ्यों पर निर्भर है.

एक मनोवैज्ञानिक और दूसरी शारीरिक, जिस में शिश्न की उत्तेजना प्रत्यक्ष तौर पर बनती है.

इन 2 कारणों में से सामान्य मनोवैज्ञानिक तर्क की मान्यता में पूरी सचाई नहीं है. डा. सीगल का कहना है कि रीढ़ की हड्डी की चोट से शिश्न की उत्तेजना में कमी आने से संसर्ग सुख की प्राप्ति प्रभावित हो जाती है. इसी तरह से मस्तिष्क में मनोवैज्ञानिक समस्याओं में अवसाद आदि से तंत्रिका रसायन में बदलाव आने से संसर्ग और अधिक असहज या कष्टप्रद बन जाता है.

स्त्री की यौन तृप्ति

कोई युवती कितनी कामुक या सैक्स के प्रति उन्मादी हो सकती है? इस के लिए बड़ा सवाल यह है कि उसे यौन तृप्ति किस हद तक कितने समय में मिल पाती है? विश्लेषणों के अनुसार, शोधकर्ता वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ऐसे लोगों को चिकित्सकीय सहायता मिल सकती है और वे सुखद यौन संबंध में बाधक बनने वाली बहुचर्चित भ्रांतियों से बच सकते हैं.

इस शोध में यह भी पाया गया है कि युवतियों के लिए यौन तृप्ति का अनुभव कहीं अधिक जटिल समस्या है. इस बारे में पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने माइक्रोस्कोप के जरिए युवतियों के अंग की दीवारों में होने वाले बदलावों और असंगत प्रभाव बनने वाली स्थिति का पता लगाया है.

वैज्ञानिकों ने एमआरआई स्कैन के जरिए महिला के दिमाग में संसर्ग के दौरान की  सक्रियता मालूम कर उत्तेजना की समस्या से जूझने वाले पुरुषों को सुझाव दिया है कि वे अपनी समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं. उन्हें सैक्सुअल समस्याओं के निबटारे के लिए डाक्टरी सलाह लेनी चाहिए, न कि नीम हकीम की सलाह या सुनीसुनाई बातों को महत्त्व देना चाहिए. इस अध्ययन को जर्नल औफ क्लीनिकल एनाटौमी में प्रकाशित किया गया है.

महत्त्वपूर्ण है संसर्ग की शैली

डा. सीगल के अनुसार, महिलाओं के लिए संसर्ग के सिलसिले में अपनाई गई पोजिशन महत्त्वपूर्ण है. विभिन्न सैक्सुअल पोजिशंस के संदर्भ में शोधकर्ताओं द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में भी पाया गया है कि स्त्री के यौनांग की दीवारों को विभिन्न तरीके से उत्तेजित किया जा सकता है.

आज की भागदौड़भरी जीवनशैली में मानसिक तनाव के साथसाथ शारीरिक अस्वस्थता भी सैक्स जीवन को प्रभावित कर देती है. ऐसे में कोई पुरुष चाहे तो अपनी सैक्स संबंधी समस्याओं को डाक्टरी सलाह के जरिए दूर कर सकता है.

कठिनाई यह है कि ऐसे डाक्टर कम होते हैं और जो प्रचार करते हैं वे दवाएं बेचने के इच्छुक होते हैं, सलाह देने में कम. वैसे, बड़े अस्पतालों में स्किन व वीडी रोग (वैस्कुलर डिजीज) विभाग होता है. अगर कोई युगल किसी सैक्स समस्या से जूझ रहा है तो वह इस विभाग में डाक्टर को दिखा कर सलाह ले सकता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

कहीं बीमार न कर दे Monsoon, रखें इन बातों का खास ख्याल

झुलसा देने वाली गरमी के बीच सभी को राहत का एहसास कराने वाले मानसून का इंतजार होता है. लेकिन इस मौसम के दौरान स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. इस का प्राथमिक कारण तापमान में होने वाला अचानक परिवर्तन है, जिस से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है और फिर संक्रमण की चपेट में आने की संभावना बढ़ जाती है. इस के अतिरिक्त जीवाणु जैसे अनेक और्गेनिज्म गरम व उमसभरी स्थितियों में काफी तेजी से पनपने लगते हैं.

सामान्य मूत्र में किसी प्रकार के जर्म्स और बैक्टीरिया नहीं पाए जाते, लेकिन ये मलाशय के क्षेत्र में उपस्थित रहते हैं. यूरिनरी ट्रैक इन्फैक्शन यानी यूटीआई मूत्र प्रणाली में होने वाला जीवाणु संक्रमण है. मलाशय के आसपास के क्षेत्रों में उपस्थित बैक्टीरिया मानसून के दौरान काफी तेजी से पनप जाते हैं जो संक्रमण का कारण बनते हैं.

बैक्टीरिया जब मूत्राशय में पहुंच जाते हैं तब ये प्रदाहन का कारण बन जाते हैं, इस संक्रमण को सिस्टाइटिस कहते हैं. वहीं, जब ये किडनी में पहुंच कर प्रदाहन का कारण बनते हैं, तब इसे पाइलोनेफ्राइटिस कहा जाता है, इसे कहीं अधिक गंभीर समस्या माना जाता है. इस प्रकार का संक्रमण महिलाओं के अलावा पुरुषों में भी हो सकता है. हालांकि इस रोग की चपेट में आने की संभावना महिलाओं में अधिक होती है. इस का कारण शारीरिक संरचना की भिन्नता है. महिलाओं का मूत्रीय क्षेत्र पुरुषों की अपेक्षा छोटा होता है. महिलाएं बारबार संक्रमण की शिकायत करती हैं. बच्चे भी संक्रमण की चपेट में आ सकते हैं, लेकिन उन में इस की संभावना कम होती है.

मूत्रीय क्षेत्र के संक्रमण के लक्षण काफी सामान्य या आम होते हैं तथा आसानी से पहचाने जा सकते हैं. इन में मूत्र त्याग के समय दर्द (डिस्यूरिया), मूत्र त्याग की बारंबार इच्छा, मूत्र त्याग के समय जलन, पेट के निचले हिस्से में घाव का एहसास होना, पीठ के निचले हिस्से अथवा पेट के निचले हिस्से में दर्द, ज्वर, चक्कर आना, उल्टी तथा कंपकंपी का एहसास आदि शामिल हैं.

मूत्रीय क्षेत्र के संक्रमण के कारण संक्रमित व्यक्ति को काफी बेचैनी महसूस हो सकती है. आयु, लिंग तथा संक्रमण के स्थान के अनुसार इस के लक्षणों में भिन्नता हो सकती है. लेकिन यदि एक व्यक्ति यूटीआई से संक्रमित हो जाता है तो इस को ले कर बहुत अधिक चिंता करने की जरूरत नहीं है. इसे यूरिन कल्चर परीक्षण से पता लगाया जाता है. मूत्र में बैक्टीरिया की संख्या तथा रक्त के नमूने में श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या से संक्रमण की गंभीरता का पता चलता है. कुछ उपायों को अपनाकर निश्चित रूप से मूत्रीय संक्रमण से बचा जा सकता है. कुछ स्वीकारोक्ति व कुछ वर्जनाओं का पालन कर शरीर को व्यापक सूक्ष्मजैविक गतिविधियों, विशेषकर मानसून के दौरान, से सुरक्षित रखा जा सकता है.

एक व्यक्ति को संक्रमण तथा वर्षा ऋतु के दौरान ढेर सारा पानी, जूस तथा सूप पीना चाहिए. इस से मूत्र का प्रवाह बढ़ जाएगा तथा किसी भी प्रकार के संक्रमण की चपेट में आने की संभावना कम हो जाएगी. इस के अतिरिक्त हमें मूत्र को रोक कर नहीं रखना चाहिए, बल्कि जब भी इस के उत्सर्जन की इच्छा प्रकट हो, इस का त्याग अवश्य किया जाना चाहिए. पेयजल किसी भी स्थिति में कीटाणु रहित होना चाहिए, यह फिल्टर्ड या उबला हुआ होना चाहिए. इस मौसम में गैर मौसमी फलों के बजाय मौसमी फलों के सेवन की सलाह दी जाती है.

गुप्तांगों की साफसफाई तथा व्यक्तिगत स्वच्छता पुरुषों व महिलाओं के लिए अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, खासकर उमस- भरी मौसमी स्थितियों में.

साफसफाई का रखें ध्यान

महिलाओं को इस मौसम के दौरान कुछ बातें अवश्य याद रखनी चाहिए. यूटीआई के अत्यंत प्रचलित कारणों में से एक है आंत का बैक्टीरिया, जो त्वचा में रहता है तथा यह मूत्र क्षेत्र में फैल जाता है. इस के बाद यह बैक्टीरिया आगे बढ़ कर मूत्राशय में पहुंच कर संक्रमण का कारण बन जाता है. महिलाओं को पीछे से आगे की तरफ सफाई नहीं करनी चाहिए, बल्कि आगे से पीछे की तरफ करनी चाहिए. पाश्चात्य शैली के टौयलेट्स में उपलब्ध वाटर जेट का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, इस के बजाय हाथ से इस्तेमाल किए जाने वाले शावर्स का उपयोग करना चाहिए.

इस के अतिरिक्त कई बार सहवास के दौरान यौन क्षेत्र के बैक्टीरिया मूत्र क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं, जिस के कारण मूत्र मार्ग में संक्रमण हो सकता है. हनीमून मनाने वाले युगलों में सिस्टाइटिस काफी आम है. समुचित साफसफाई तथा पर्याप्त जलग्रहण के जरिए इस से बचा जा सकता है.

महिलाओं के लिए उच्चस्तरीय साफसफाई को मेंटेन रखना काफी आवश्यक है. मासिक धर्म के दौरान यह और अधिक जरूरी हो जाता है. स्वच्छ व शुष्क सैनिट्री नैपकिन्स का इस्तेमाल करना चाहिए. इस के अतिरिक्त इस दौरान मधुमेह से पीडि़त, गर्भवती या रजोनिवृत्ति के दौर से गुजर रही महिलाओं के मूत्र क्षेत्र के संक्रमण से पीडि़त होने की संभावना काफी बढ़ जाती है. रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में एट्रौफिक वैजाइनल डीजैनरेशन का विकास हो सकता है, जो आगे बढ़ कर मूत्र क्षेत्र के संक्रमण की संभावना को जन्म दे सकता है.

पूरी तरह से सूखे हुए कपड़ों को पहनें. आंतरिक वस्त्र कौटन के होने चाहिए और बरसात के मौसम में इन्हें अवश्य ही इस्तरी किया जाना चाहिए. गुप्तांगों की सफाई के लिए जल में ऐंटीसैप्टिक्स के इस्तेमाल की कोई जरूरत नहीं है, जब तक कि चिकित्सक इस की सलाह न दें. वास्तव में ये ऐंटीसैप्टिक त्वचा की सामान्य जीवाणु परत को नष्ट कर सकते हैं तथा त्वचा की एलर्जी व संक्रमणों को बढ़ा सकते हैं. माताओं को नवजात शिशुओं में होने वाले नैपी रैशेज पर नियमित रूप से नजर रखनी चाहिए तथा उन्हें शिशुओं की नैपी को सूखा रखना चाहिए.

पुरुष भी रखें ध्यान

पुरुषों को इस बात की अवश्य जानकारी होनी चाहिए कि लिंग का खतना कराने से यौन संक्रमित रोगों (एसटीडीज), मूत्र क्षेत्र के संक्रमण और कैंसर्स से बचाव में सहायता मिलती है. इस के अतिरिक्त बेनाइन प्रौस्टेटिक हाइपरप्लेसिया (बीपीएच), जोकि आयु के बढ़ने के साथ प्रौस्टेट ग्रंथि के बढ़ने की स्थिति होती है, मूत्र क्षेत्र के संक्रमण की संभावना को बढ़ा देता है. इस पर नजर रखना जरूरी है.

यदि समय से पहचान कर ली जाए तो मूत्र क्षेत्र के संक्रमण का आसानी से उपचार किया जा सकता है. किसी भी प्रकार के बेआरामी वाले लक्षणों के प्रकट होने पर व्यक्ति को तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. यदि इस का उपचार समय से नहीं किया जाता तो यह संक्रमण गंभीर स्थिति उत्पन्न कर सकता है.

पार्टनर गुस्से वाला हो, तो कैसे डील करें

हम हर रोज अलग अलग कई चीजों से डील करते है. ऐसे में अगर पार्टनर गुस्से वाला हो, तो उससे भी डील करना सीख लें. शायद इससे ज़िंदगी कुछ आसान हो जाएँ और आपका रिलेशनशिप भी हैप्पी एंड हेल्थी हो जाएँ. वैसे भी जहाँ प्यार होता है वहां रूठना मनाना तो चलता ही रहता है.

पार्टनर गुस्से वाला हो, तो एक हद तक समझाओ फिर गिवअप कर दो. ये भूल जाओं की उसे समझ आएगी। लोग कहते है गुस्सा करना सेहत के लिए ठीक नहीं, तुम चिड़चिड़े हो जाओगे, दोस्त यार गायब हो जायेंगे. ये सब बकवास बातें हैं. लेकिन उसके साथ डील कैसे करें ये याद रखों। गुस्सा भी एक इमोशन और भावनाओं के जैसा है उसे समझें ओर उसी के अनुसार डील करें।

वो काम न करों, जो गुस्सा दिलाते हैं

जब भी कोई एक गुस्सा हो, तो दूसरे को सबसे पहले इस बात का कारण पता लगाना चाहिए कि वो क्यों गुस्सा है. मतलब दोनों पार्टनर के बीच झगड़ा किस बात को लेकर होता है, इस बात को समझें और नोट कर लें. इससे गुस्सा भड़केगा नहीं. अगर उन्हें आपका ज्यादा फोन पर बात करना पसंद नहीं, तो उनके सामने ज्यादा बात करने से बचे.

पार्टनर गुस्सा है, तो उठकर कहीं ओर चले जाओ

किसी का गुस्सा भी एक हद तक बर्दाश्त किया जा सकता है इसलिए जब पार्टनर गुस्सा करें, तो उठकर कही चले जाओ जैसे कि उस टाइम आप गार्डनिंग करें, म्यूजिक सुनें, टीवी देखे। इससे आपको गुस्सा भी नहीं आएगा और फील गुड़ होगा.

हर सवाल का जवाब नहीं मिल सकता

अगर पार्टनर गुस्से में है तो जरुरी नहीं कि हर बात पर बहस की जाये और उसका जवाब दिया जाएं। यदि आप हर बात का जवाब देंगे तो विवाद की स्थिति पैदा हो जाएगी. इसलिए पार्टनर गुस्से में है, तो आप ना बहस करके सारे गड़े मुर्दे उखाड़ें।

एक चुप सौ को हराता है

ये कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि एक चुप सौ को हराता है. यह बिलकुल सही बात है. जब आप चुप रहेंगे तो पार्टनर को भी अपनी गलती का अहसास जल्दी ही हो जायेगा वो अपने व्यवहार के लिए आपसे माफ़ी भले ही ना मांगे लेकिन आपसे इधर उधर की नार्मल बातचीत करके यह जरूर जता देंगे कि वह ओवररीएक्ट कर रहे थे.

शांत माहौल में बात करें

अगर कोई बात करनी भी है, तो माहौल शांत होने पर प्यार से करें। ऐसे बात करेंगे तो पार्टनर को ज्यादा अच्छे से समझ आएगा. जब पार्टनर का गुस्सा कम हो जाए तो उनका मूड देखकर बात करें।

एंगर मैनेजमेंट थेरेपी

पहले खुद ही पता करने की कोशिश करें कि गुस्सा करना पार्टनर का नेचर है, वह आजकल ऑफिस या फिर घर कि किसी बात को लेकर परेशां है या फिर किसी ट्रॉमा की वजह से उसका व्यवहार गुस्सैल हो गया है. ये पता करने के बाद जरुरत लगे तो उन्हें एंगर मैनेजमेंट थेरेपी दिलवाएं इससे जरूर मदद मिलेगी.

पार्टनर की पर्सनालिटी को समझें

आपके पार्टनर को कब, किन बातों पर क्यों गुस्सा आता है. इन बातों पर धयान दे और ऐसे सिचुएशन में पड़ने से बचे. इससे घर का माहौल शांत रहेगा क्यूंकि आप अपनी तरफ से कोई बढ़ावा नहीं दे रहें.

दिल पर मत ले यार

आपको अगर अपने पार्टनर का नेचर पता है, तो आप जानते होंगे कि वह आपको उल्टा सीधा गुस्से में बोल रहे हैं. हालाँकि आपके बारें में वह ऐसे सोच नहीं रखते इसलिए उनकी कहीं हर बात को दिल से ना लगाएं.

अपनी गलती भी मानें

लड़ाई को हार जीत का खेल न बनाएं। हर बात पर खुद को सही साबित की कोशिश न करें।
अगर गलती आपकी हो तो उसे ना मानकर पार्टनर को ओर ज्यादा गुस्सा ना दिलाएं। उन्हें एहसास दिलाएं कि आपसे गलती हुई और आपको इस बात का अफसोस है. देखिये कैसे मिंटो में उनका गुस्सा शांत हो जाता है.

पार्टनर के विचारों को समझे और उसके हिसाब से डील करें

पार्टनर को और उनकी बातों को अपने मुताबिक ना समझें। क्योंकि लाइफ में सभी का सोचने का नजरिया अलग-अलग होता है। किसी बात को लेकर आपकी और उनकी राय अलग अलग हो सकती है. एक दूसरे पर अपनी राय ना थोपे बल्कि जिसको जैसा पसंद है उसे वैसा करने की आज़ादी दें ताकि आप दोनों एक दूसरे का सम्मान कर सकें और झगडे की वजह ही ख़तम हो जाएँ।

जादू की झप्पी लें

गुस्से में हग करना सबसे अच्छा तरीका है. किसी को हग करने से हैप्पी हार्मोन रिलीज होते हैं. इसके अलावा नसों को शांत करने में मदद करता है. जब भी पार्टनर गुस्सा करे, तो उसे कस के हग कर लें. उस पर चिल्लाने, उसे समझने और गुस्सा करने के बजाए जादू की झप्पी सबसे ज्यादा गुस्सा कंट्रोल करती है.

पार्टनर गुस्से वाला है, तो हद तक बर्दाश्त करें

अपनी इंसल्ट बर्दाश्त ना करें

अगर पार्टनर की आदत हो गए है बार बार सबके सामने आपको नीचा देखने की तो हर बार आप यह सब ना सहें और पार्टनर से अपने रिलेशन के बारें में एकटुक बात करें और किसी नतीजे पर पहुंचे.

अपनी सेल्फ रेस्पेक्ट न छोड़े

अगर हर बार लड़ाई ख़तम करने की वजह से गलती न होते हुए भी झुकना और अपने अस्तित्व को खोते जाने की अगर आपने आदत बना ली है, तो उसे छोड़ दे. अपने सेल्फ रेस्पेक्ट से बढ़कर कुछ नहीं है. आप पार्टनर के साथ डील करने की पूरी कोशिश करें। लेकिन अगर पानी सर से ऊपर चला जाएँ, तो उन्हें समझाना या उनके साथ डील करना बेकार है. ऐसे टॉक्सिक रिलेशन से बाहर आने के बारें में सोचने का भी आपको पूरा हक़ है.

 

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