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ब्यूटी कौरिडोर डैस्टिनेशंस : दिलकश दक्षिण भारत

देश में यों तो पर्यटन के सैकड़ों ठिकाने हैं लेकिन दक्षिण भारत के टूरिस्ट स्पौट्स टूरिज्म एजेंसियों और घुमक्कड़ों की रेटिंग में सब से अव्वल रहते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि साउथ इंडिया में देश के हर मौसम, मिजाज और माहौल के हिसाब से ऐसी कई जगहें हैं जो दुनियाभर के ठौरठिकानों का सारा आनंद एक ही जगह मुहैया करा देती हैं.

अगर आप साउथ इंडिया का रुख कर रहे हैं तो किसी एक शहर घूमने के बजाय एक कौरिडोर को कवर करें ताकि आप को बिना कोई बड़ा रास्ता या रूट बदले घूमने की नईनई जगहें और शहर मिल जाएं. इस मामले में दक्षिण भारत का ब्यूटी कौरिडोर सब से उचित विकल्प है. इस रूट में आप बेंगलुरु घूमने जाते हैं तो आप को इस कौरिडोर में आगे चल कर मैसूर, ऊटी और कूर्ग भी घूमने को मिलेंगे. यह रूट दक्षिण के सब से सुंदर रूटों में शुमार है, जहां एकसाथ आप को बहुतकुछ देखने को मिल जाएगा. यदि आप बेंगलुरु में हैं तो यहां से मैसूर मात्र 149 किलोमीटर की दूरी पर है. मैसूर से ऊटी 125 किलोमीटर है और ऊटी से कूर्ग 107 किलोमीटर है. हालांकि कई पर्यटक बेंगलुरु  से मैसूर तो आ जाते हैं लेकिन उस के बाद ऊटी जाने के बजाय कूर्ग जाते हैं. आप के पास दोनों विकल्प हैं. लगभग 20-30 किलोमीटर का फर्क है मैसूर से. फिर देर किस बात की, उठाइए अपना बैग और निकल पडि़ए इस ब्यूटी कौरिडोर को नापने.

बेंगलुरु के हाईटैक दर्शन : देश की सिलीकौन वैली और आईटी सिटी के नाम से मशहूर कर्नाटक का हाईटैक शहर बेंगलुरु नैचुरल और टैक्नो टच के फ्यजून से लैस है जहां ऐतिहासिक स्थलों, मंदिरों, मौल, गगनचुंबी इमारतें सब देखने को मिल जाते हैं. यहां से मुथयाला माधुवु, मैसूर, श्रवणबेल गोला, नागरहोल, बांदीपुर, रंगनाथिटु, बेलूर और हैलेबिड जैसे पर्यटन स्थलों तक भी आसानी से पहुंचा जा सकता है.

1537 में बसे इस शहर में कब्बन पार्क और संग्रहालय ऐतिहासिक महत्त्व के हैं. इस के अलावा सचिवालय, गांधी भवन, टीपू सुल्तान का सुमेर महल, बांसगुडी तथा हरे कृष्ण मंदिर, लाल बाग, बेंगलुरु पैलेस, साईं बाबा का आश्रम, नृत्यग्राम, बनेरघाट अभयारण्य कुछ ऐसे स्थल हैं जहां घूम कर आप बेंगलुरु का मिजाज पूरी तरह से समझ जाते हैं.

यहां के दक्षिण में बसवनगुडी मंदिर का निर्माण करीब 500 साल पहले कराया गया था. यहां 15 फुट ऊंची और 20 फुट लंबी नंदी की प्रतिमा है और इसे ग्रेनाइट के सिर्फ एक चट्टान के जरिए बनाया गया है. पूजापाठ के चक्कर में पड़ने के बजाय

इस की स्थापत्यकला और हिस्टोरिकल फैक्टर के लिए इसे देखा जा सकता है. ऐसे ही शिव मंदिर, उत्तर बेंगलुरु के राजाजीनगर में स्थित कृष्ण और राधा का मंदिर दुनिया का सब से बड़ा इस्कौन मंदिर है.

पिरामिड वैली : बेंगलुरु से करीब 30 किलोमीटर दूर पिरामिड वैली में नैचुरल ब्यूटी का दीदार होगा. प्राकृतिक सुंदरता, पहाडि़यां, जल निकाय आदि इस की खूबसूरती में चारचांद लगा देती हैं.

चुन्ची फौल्स और बन्नेरुघट्टा जैव उद्यान : अपने नाम की तरह अनूठे इस झरने की दूरी बेंगलुरु से

55 किलोमीटर है. पिकनिक के शौकीनों की यह मनपसंद जगह है. इसी के पास बन्नेरुघट्टा जैव उद्यान करीब 104 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है. इस के तहत वन विभाग के अनेक श्रेणी

के संरक्षित वन हैं. 1971 में स्थापित इस उद्यान में प्रकृति रिजर्व, चिडि़याघर, बच्चों का पार्क, मत्स्यालय, मगरमच्छ पार्क, संग्रहालय, तितली पार्क, सांप पार्क और यहां तक कि पालतू जानवर भी हैं.

इनोवेटिव फिल्म सिटी : यह जगह पर्यटन में मनोरंजन तलाशने वालों के लिए है. बेंगलुरु मैसूर स्टेट हाइवे-17 पर बनी फिल्मसिटी सुबह

10 बजे से शाम 6:30 बजे तक खुलती है. एक व्यक्ति का 299 से 499 रुपए तक का पास बनता है जिस में इनोवेटिव स्टूडियो,  म्यूजियम, 4डी थिएटर, टौडलर डेन, लुइस तुसाद वैक्स म्यूजियम और थीमबेस्ड रैस्टोरैंट घूम सकते हैं. वन्नाडो सिटी डायनासोर वर्ल्ड भी रोमांचित करता है.

वेनकटप्पा आर्ट गैलरी : आर्ट्स प्रेमियों के लिए यहां की आर्ट गैलरी में लगभग 600 पेंटिग्स प्रदर्शित की गई हैं. पेंटिंग्स के अलावा यहां नाटकीय प्रदर्शनी का कलैक्शन भी शानदार है.

बेंगलुरु पैलेस : इस पैलेस की वास्तुकला तुदौर शैली पर आधारित है. जाहिर है करीब 800 एकड़ में फैले इस महल को बेंगलुरु का सब से आकर्षक पर्यटन कहना गलत नहीं होगा. इस के आगे एक गार्डन है, जिसे इंगलैंड के विंसर कास्टल की तर्ज पर बनाया गया है.

नेहरू प्लैनेटेरियम : नेहरू प्लैनेटेरियम 1989 में नगर निगम द्वारा स्थापित किया गया था. आकाशगंगाओं का विशाल रंगचित्र इस तारामंडल के प्रदर्शनी हौल में दिखाई देता है. साइंस सैंटर और एक विज्ञापन पार्क भी यहां है.

टीपू पैलेस : अगर आप को टीपू पैलेस देखना है तो चले आइए बेंगलुरु के सब से व्यस्त मार्केट कृष्णा राजेंद्र नगर (केआर मार्केट). यह पैलेस बेंगलुरुमैसूर राज मार्ग पर है. इतिहास की जानकारी रखने वालों को यह जगह खासी भाती है. इस महल की वास्तुकला व बनावट मुगल जीवनशैली को दर्शाती है. इस पैलेस का निर्माण हैदर अली ने करवाया जबकि इसे पूरा टीपू सुल्तान ने किया था. यह पूरे राज्य में निर्मित कई खूबसूरत महलों में से एक है.

आजकल धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले टीपू के नाम को इतिहास से मिटा देने पर उतारू हैं. यहां आएं तो खुद टीपू सुल्तान के बारे में कुछ जानकारी अवश्य लें.

रामनगरम : बेंगलुरु से मैसूर जाते हुए शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर राजमार्ग पर स्थित रामनगरम काफी दिलचस्प जगह है. फिल्म ‘शोले’ की शूटिंग यहीं हुई थी. अगर आप भी इस फिल्म के दीवाने हैं तो चले आइए रामनगरम. इसे रेशम का शहर भी कहा जाता है. यह बेंगलुरु के दक्षिणपश्चिम में लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. कनार्टक के अन्य भागों की तरह यहां भी गंग, चोल, और मैसूर के राजाओं ने राज किया. वर्ष 1970 के दौरान ‘शोले’ फिल्म की शूटिंग इस स्थान पर हुई और इस स्थान को प्रसिद्धि मिली.

मैसूर की शाही सैर

बेंगलुरु से करीब 150 किलोमीटर दूर बसा मैसूर रंगीन सांस्कृतिक माहौल, शाही किस्सों और खानेपीने के  दिलचस्प ठिकानों से लैस है. विश्व में अपनी तरह का अकेला सेंट फिलोमेना चर्च मैसूर में ही स्थित है.

मैसूर पैलेस : इसे महाराजा पैलेस के नाम से भी जानते हैं. हिंदू और मुसलिम वास्तुशिल्प का अनूठा संगम यह महल धूसर रंग के ग्रेनाइट पत्थरों से निर्मित है. गोल गुबंद सोने के पत्र से जड़ा हुआ है. यहां का प्रमुख आकर्षण है मैसूर की आकृति का स्वर्ण सिंहासन.

जगनमोहन पैलेस : वर्ष 1861 में बने इस पैलेस को मैसूर पैलेस के पास ही देखा जा सकता है. फिलहाल इसे आर्ट के शौकीनों के लिए एक रौयल आर्ट गैलरी में बदल दिया गया है.

वृंदावन गार्डन : प्राकृतिक सौंदर्य और आधुनिक तकनीक का संगम वृंदावन गार्डन शहर के केंद्र से 19 किलोमीटर दूर है. कावेरी नदी के पास स्थित इस गार्डन को कृष्णाराज सागर बांध के नीचे बनाया गया है जो अपनेआप में उत्कृष्ट इंजीनियरिंग का नायाब नमूना है. यहां आ कर डासिंग फौआरे और बोटिंग का लुत्फ उठाना न भूलें.

बांदीपुर वन्यप्राणी उद्यान: वन्यजीव का लुत्फ उठाने वाले बांदीपुर वन्यप्राणी उद्यान जरूर देखें. यहां बारहसिंगे, चितकबरे हिरण, हाथी, बाघ और तेंदुओं को प्रकृति के साथ अठखेलियां करते देखा जा सकता है. शहर से 80 किलोमीटर दूर स्थित इस उद्यान की सैर हाथी, जीप या ट्रक के अलावा नाव द्वारा भी की जा सकती है. जून से सितंबर तक यह उद्यान अनेक प्रकार के पक्षियों के कलरव

से गूंजता रहता है. यह कई प्रजातियों के पशुपक्षियों से भरा पड़ा है. उद्यान में सुबह

9 बजे से शाम 6 बजे तक भ्रमण किया जा सकता है.

सोमनाथपुरम मंदिर : दक्षिण भारत के मंदिर पूजापाठ के कर्मकांड से लैस हैं, इसलिए इस क्षेत्र में न पड़ें लेकिन इन की बनावट और वास्तुकला के लिए सोमनाथपुरम मंदिर को एक बार निहार सकते हैं.

चामुंडी हिल्स : मैसूर से 11 किलोमीटर दूर और तकरीबन 34,89 फुट ऊंचाई पर है चामुंडी हिल्स. कहते हैं कि करीब 300 साल पहले इसे मोटर मार्ग के जरिए बनाया गया था. 1,000 कदम चढ़ाई से पहाडि़यों के ऊपर तक जा कर आप को रोमांच महसूस होगा.

ऊटी की नैचुरल ब्यूटी

उत्तर भारतीय जब भी साउथ इंडिया जाते हैं, उन की घुमक्कड़ी की लिस्ट में ऊटी सब से ऊपर होता है. मैसूर से ऊटी 125 किलोमीटर है. कई साल पहले मिथुन चक्रवर्ती जब अपना फिल्मी कैरियर छोड़ ऊटी में होटल व्यापारी बन जा बसे तब यह इलाका खास चर्चा में रहा. फिल्म की शूटिंग के लिए यह सब से अच्छी जगह मानी जाती है. नीलगिरी की पहाडि़यों में बसा ऊटी तमिलनाडु का सब से उम्दा हिल स्टेशन है.

बोटैनिकल गार्डन : करीब 22 एकड़ में फैले बोटैनिकल गार्डन में 650 से भी ज्यादा दुर्लभ किस्म के पेड़पौधों के साथसाथ अद्भुत और्किड, रंगबिरंगे लिली के फूल, खूबसूरत झाडि़यां व 2,000 साल पुराने पेड़ के अवशेष देखने को मिलते हैं. बौटनी में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह किसी संग्रहालय से कम नहीं है. मई के महीने में ग्रीष्मोत्सव में शरीक होंगे तो और मजा आएगा. तब फूलों की प्रदर्शनी और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिन में स्थानीय प्रसिद्ध कलाकार भाग लेते हैं.

ऊटी झील : ऊटी लेक में बाग और झील का अद्भुत संगम दिखता है. लेक के चारों ओर फूलों की क्यारियों में इंद्रधनुषी रंगों के फूल यहां की खूबसूरती में चारचांद लगाते हैं. झील में मोटरबोट, पैडलबोट और रो-बोट्स में बोटिंग का लुत्फ भी उठाया जा सकता है. ढाई किलोमीटर लंबी इस लेक में फिश्ंिग का अनुभव शानदार है.

डोडाबेट्टा चोटी : नीलगिरी के सब से ऊंचे पर्वत का रुतबा लिए डोडाबेट्टा चोटी से पूरे शहर का विहंगम नजारा देखते ही बनता है. प्रकृति का पैनोरोमा शौट लेना हो तो यही से लें.

कालहट्टी जलप्रपात : झरनों के मामले में साउथ इंडिया का कोई मुकाबला नहीं है. जाहिर है ऊटी का कालहट्टी जलप्रपात भी ऐसा ही एक नायाब प्रपात है.

100 फुट ऊंचा यह प्रपात ऊटी से केवल 13 किलोमीटर की दूरी पर है. झरना देखने के बाद कालहट्टीमसिनागुडी की ढलानों पर जानवरों की अनेक प्रजातियां, मसलन चीते, सांभर और जंगली भैंसा देखना न भूलें.

कोटागिरी हिल : ऊटी से 28 किलोमीटर की दूरी पर यह हिल चाय बागानों के चलते आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. नीलगिरी के 3 हिल स्टेशनों में से यह सब से पुराना है. ऊटी और कून्नूकी के मुकाबले यहां की आबोहवा ज्यादा सुहावनी मानी जाती है. यहां आए तो यहीं के रिसोर्ट में रुक कर प्रकृति की गोद में जाएं.

कूर्गसोती पहाड़ियों पर बसा धुंध का जंगल

ब्यूटी कौरिडोर के इस आखिरी पड़ाव में आप चाहें तो ऊटी से पहले यानी मैसूर से सीधे यहीं आ कर फिर ऊटी जा सकते हैं या फिर ऊटी के बाद आखिर में इस मनोरम स्थल का लुत्फ उठा सकते हैं. मैसूर से 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कूर्ग को कोडागू भी कहा जाता है. इस का अर्थ है सोती पहाडि़यों पर बसा धुंध जंगल. स्कौटलैंड और इंडिया के नाम से मशहूर कूर्ग को देखने के लिए देशदुनिया से लोग आते हैं.

नागरहोल वाइल्डलाइफ सैंचुरी : जंगल का रोमांच तलाश रहे हैं तो मादिकेरी से करीब 110 किलोमीटर दूर नागरहोल वाइल्डलाइफ सैंचुरी है. यहां बिजोन, हाथी, हिरण, सांभर, मंगूज, लोमड़ी, बाघ, पैंथर या कोबरा जैसे कई जानवर व पक्षी दिख जाते हैं. फोरैस्ट डिपार्टमैंट के सौजन्य से सुबह व शाम जंगल सफारी की जा सकती है.

तलाकावेरी : ऐंडवैंचर के शौकीन यहां आ कर मध्य जून से मध्य सितंबर के दौरान कावेरी नदी में वाटर राफ्टिंग का मजा ले सकते हैं.

मादिकेरी फोर्ट : 19वीं शताब्दी के महल मादिकेरी फोर्ट में एक मंदिर, गिरजाघर, जेल और छोटा संग्रहालय है. यहां से मादिकेरी के खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों को निहारा जा सकता है.

राजा सीट : यह पार्क सनसैट के मनोरम नजारे के लिए जाना जाता है. हरीभरी घाटी और धुंध में छिपे पहाड़ों का अनूठा सौंदर्य देख कर आप की थकान दूर हो जाती है. पार्क में लेजर शो, कौफी के पौधे आकर्षण का बड़ा केंद्र हैं.

निसारगधमा : हिंदी फिल्मों में इस आइलैंड को कई बार दिखाया गया है मादिकेरी से 30 किलोमीटर की दूरी पर बसे निसारगधमा जाने के लिए पुल से गुजरना पड़ता है. पिकनिक स्पौट बन चुके इस अड्डे में बोटिंग और हाथी की सवारी का अलग आनंद है.

अब्बे फौल्स : आकर्षक जलप्रपातों की लिस्ट में मादिकेरी से 8 किलोमीटर दूर स्थित अब्बे फौल्स का नाम भी शुमार है. झरने की कलकल करती ध्वनि, पास में ही कौफी, इलायची के पौधों की खुशबू और पक्षियों की चहचहाचट का मधुर संगीत भला कहां मिलेगा.

बहरहाल, यह पूरी ट्रिप जल्दी पहुंचने के लिए नहीं है, बल्कि आप को बेंगलुरु से मैसूर, ऊटी और कूर्ग के बीच के मुख्य आकर्षणों से अवगत कराने के लिए है. इसलिए, बिंदास जाइए इस ब्यूटी कौरिडोर की सैर पर और बनाइए अपनी इस यात्रा को हमेशा के लिए यादगार.

ब्यूटी कौरिडोर-कहां शुरू कहां खत्म : ब्यूटी कौरिडोर के लिए आप बेंगलुरु से अपनी यात्रा आरंभ करें. फिर मैसूर, ऊटी होते हुए कूर्ग में पर्यटन को विराम दें. बेंगलुरु से मैसूर 149 किलोमीटर है तो मैसूर से ऊटी 125 किलोमीटर दूर है. यहां से फिर करीब 107 किलोमीटर दूर कूर्ग आता है.

बेंगलुरु : बेंगलुरु इंटरनैशनल एअरपोर्ट शहर के बीच से करीब 40 किलोमीटर दूर स्थित है जो बंगलौर सैंट्रल रेलवे स्टेशन से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर है. कई प्रमुख शहरों से यहां के लिए नियमित रूप से उड़ानें भरी जाती हैं. बेंगलुरु में 2 प्रमुख रेलवे स्टेशन हैं – बंगलौर सिटी जंक्शन रेलवे स्टेशन और यशवंतपुर जंक्शन रेलवे स्टेशन. ये स्टेशन भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़े हुए हैं. यहां कई बस टर्मिनल भी हैं.

कब और कैसे जाएं मैसूर: यहां सितंबर से फरवरी तक आना सही रहता है. निकटतम हवाई अड्डा बेंगलुरु  है, जोकि मैसूर से 140 किलोमीटर दूर है. यहां से मैसूर जाने के लिए रेल, बस और टैक्सी की सुविधाएं उपलब्ध हैं.

कैसे जाएं ऊटी : कोयंबटूर यहां का निकटतम हवाई अड्डा है. सड़कों द्वारा यह तमिलनाडु और कर्नाटक के अन्य हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा है, परंतु यहां आने के लिए कन्नूर से रेलगाड़ी या टौय ट्रेन ही जाती है. ऊटी में उदगमंडलम रेलवे स्टेशन है.

कैसे जाएं कूर्ग: नजदीकी एअरपोर्ट मंगलोर है. नजदीकी रेलवे स्टेशन मैसूर (120 किलोमीटर) और मंगलोर हैं. बेंगलुरु, मैसूर, मंगलोर और हासन (करीब 150 किलोमीटर) से नियमित बस सेवाएं और टैक्सी उपलब्ध हैं.

राजनीति में ये बेटे हैं बाप से बढ़ के

उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में भाजपा की किरकिरी कर देने वाले अखिलेश यादव ने एक तरफ साबित किया है कि पिताजी आउटडेटेड हो गए थे, वे चापलूसों से छुटकारा पाने में खुद को असमर्थ पा रहे थे. दूसरी ओर यही बात बिहार की अररिया सीट से साबित की तेजस्वी यादव ने कि जेल में अपनी वृद्धावस्था काट रहे पिता लालू यादव की बादशाहत संभालने के लिए वे पूरी तरह फिट हैं. उत्तर प्रदेश में बूआभतीजे की जोड़ी ने भगवा रथ थामा तो बिहार में भतीजे ने चाचा नीतीश के कान कुतर डाले.

मुलायम और लालू इस बात पर गर्व भी कर सकते हैं कि बेटे नालायक नहीं निकले और भाजपा के पौराणिक मानस पुत्रों से बेहतर हैं जिन्होंने पूर्वजों को अज्ञातवास काटने के लिए ढकेल दिया था. पांडवों की याद कर लें कि युद्ध जीतने के बाद उन्हें कहां कहां भटकना पड़ा.

ऊर्जा क्षेत्र में तैयार होंगे 20 हजार नए पेशेवर प्रबंधक

देश में बिजली की मांग जिस गति से बढ़ रही है उसी स्तर पर बिजली आपूर्ति के लिए प्रयास भी किए जा रहे हैं और इस दिशा में उठाए जा रहे कदम संकेत देते हैं कि आने वाले समय में लोगों को ऊर्जा की किल्लत से कम जूझना पड़ेगा. वैकल्पिक ऊर्जा पर भी सरकार विशेष ध्यान दे रही है. इस दिशा में भी कई महत्त्वपूर्ण पहल की जा रही हैं.

बिजली का उत्पादन तो बढ़ेगा लेकिन उस को किस तरह से लोगों तक पहुंचाना है और उत्पादन का प्रबंधन किस तरह से करना है, यह सरकार के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है. इस चुनौती से निबटने के लिए हाल ही में देश की सब से बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी एनटीपीसी ने देश के शीर्ष प्रबंधन संस्थान आईआईएम अहमदाबाद के साथ समझौता किया है. यह संस्थान एनटीपीसी स्कूल औफ बिजनैस के साथ मिल कर काम करेगा और उस के अनुकूल पाठ्यक्रम भी तैयार करेगा. सरकार का कहना है कि ऊर्जा क्षेत्र में प्रबंधन को ले कर उसे और अच्छी टीम की जरूरत है. ऊर्जा क्षेत्र में इस के पास पेशेवर प्रबंधकों के लिए करीब 20 हजार लोगों की आवश्यकता है. एनटीपीसी के मानव संसाधन निदेशक सप्तर्षि राय ने पत्रकारों को यह जानकारी देते हुए हाल में बताया कि बिजली क्षेत्र का देश की अर्थव्यवस्था में अहम स्थान है और इस के लिए उसे अच्छे पेशेवर प्रबंधक चाहिए.

उन्होंने बताया कि यह समझौता फिलहाल 5 वर्षों के लिए किया गया है. इस तरह के समझौते से आईआईएम अहमदाबाद को और मजबूती मिलेगी और देश में श्रेष्ठ प्रबंधकों की कमी को दूर किया जा सकेगा.

यह समझौता और पहले किया जाना चाहिए था. लगता है कि वैकल्पिक ऊर्जा के बढ़ रहे प्रभाव को देखते हुए एनटीपीसी ने अपनी महत्ता बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया है. उस का यह प्रयास सराहनीय है और इस के देश के ऊर्जा क्षेत्र में अच्छे परिणाम दिखेंगे.

साधु संतों के बहाने आदिवासियों को साधने की कोशिश

मध्य प्रदेश में आदिवासियों की तादाद सवा करोड़ से भी ज्यादा है और इनमें से अधिकांश राज्य की लाइफ लाइन कही जाने वाली नर्मदा नदी के किनारे रहते हैं. कहने सुनने को तो ये आदिवासी बड़े सरल और सहज हैं, पर इनका एक बड़ा एब खुद को हिन्दू न मानने की जिद है. पिछले साल फरबरी में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत आदिवासी बाहुल्य जिले बैतूल गए थे, तो वहां के आदिवासियों ने साफ तौर पर सार्वजनिक एतराज यह जताया था कि वे हिन्दू किसी भी कीमत या शर्त पर नहीं हैं, लेकिन संघ से जुड़े लोग आए दिन उन्हें हिन्दू बनाने और साबित करने उतारू रहते हैं, इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

तब आदिवासी संगठनो की अगुवाई कर रहे एक आदिवासी शिक्षक कल्लू सिंह उइके ने इस प्रतिनिधि को बताया था कि आदिवासी हिंदुओं की तरह पाखंडी नहीं हैं और न ही मूर्ति पूजा में भरोसा करते हैं. ऐसे कई उदाहरण इस आदिवासी नेता ने गिनाए थे, जो यह साबित करते हैं कि वाकई आदिवासी हिन्दू नहीं हैं, यहां तक की शादी के फेरे भी इस समुदाय में उल्टे लिए जाते हैं और शव को दफनाया जाता है, जबकि हिन्दू धर्म में शव को जलाए जाने की परम्परा है.

तमाम शिक्षित और जागरूक आदिवासियों का डर यह है कि आरएसएस और भाजपा उन्हें हिन्दू करार देकर उनकी मौलिकता और प्राकृतिकता खत्म करने की साजिश रच रहे हैं, जिससे आदिवासियों की पहचान खत्म करने में सहूलियत रहे और धर्म व राजनीति में उनके इस्तेमाल किया जा सके. उधर संघ का दुखड़ा यह है कि ईसाई संगठन आदिवासियों को लालच और सहूलियतें देकर उन्हें अपने धर्म में शामिल कर रहे हैं, जो हिन्दुत्व के लिए बड़ा खतरा है.

ये तीनों ही बातें सच हैं और इस बाबत कोई रत्ती भर भी झूठ नहीं बोल रहा है. ईसाई मिशनरियां आजादी के पहले से इन जंगलों में घुसकर जानवरों सी जिंदगी जी रहे आदिवासियों के लिए स्वास्थ व शिक्षा मुहैया कराती रहीं हैं. अब यह हिंदुओं की कमजोरी या खुदगरजी रही कि वे कभी आदिवासियों के नजदीक नहीं गए, उल्टे उन्हे शूद्र और जंगली कहकर दुतकारते ही रहे. आदिवासी खुद को ईसाई धर्म में ज्यादा सहज और फिट महसूसते हैं तो इसकी कई वजहें भी हैं, एक लंबा ऐतिहासिक और धार्मिक विवाद इन वजहों की वजह है. यह विवाद द्रविड़ों और आर्यों का संघर्ष है, जो अब नए नए तरीकों से सामने आता रहता है. आदिवासी खुद को देश का मूल निवासी और बाकियों को बाहरी मानते हैं.

ये करेंगे कमाल

इस पूरे फसाद में आरएसएस ने कभी या अभी भी हथियार नहीं डाले हैं, इसकी ताजी मिसाल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान द्वारा पांच संतों को राज्य मंत्री का दर्जा दे देना है. चुनावी साल के लिहाज से विवादित और चर्चित ये गैर जरूरी नियुक्तियां निश्चित ही एक जोखिम भरा फैसला है, जो हर किसी को चौंका रहा है और हर कोई अपने स्तर पर कयास भी लगा रहा है.

साधु संतों को राज्यमंत्री का दर्जा दिये जाने की एक बड़ी वजह यह मानी जा रही है कि चूंकि इन पांचों ने शिवराज सिंह की चर्चित और विवादित नर्मदा यात्रा से जुड़े घोटाले उजागर करने की धोंस दी थी, इसलिए उनका मुंह बंद करने शिवराज सिंह के पास यही इकलौता रास्ता बचा था. बात एक हद तक सही भी है कि बीती 28 मार्च को इंदौर के गोम्मटगिरि में संत समुदाय की एक अहम मीटिंग में इस आशय का फैसला लेकर उसे सार्वजनिक भी किया गया था. इन संतों ने एलान किया था कि 1 अप्रेल से 15 मई तक वे नर्मदा घोटाला यात्रा निकालेंगे. यह धौंस पूर्वनियोजित इस लिहाज से लग रही है कि भारीभरकम खर्च के अलावा कोई घोटाला हुआ होता तो वह विपक्ष और मीडिया से छिपा नहीं रह पाता.

जिन पांच संतों को राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया है उनमे सबसे बड़ा नाम चौकलेटी चेहरे बाले युवा संत भय्यू महाराज का है, जिनके दरबार में देश भर के दिग्गज नेता आकर माथा टेकते हैं, दूसरे चार हैं कंप्यूटर बाबा, नर्मदानन्द, हरिहरानंद और महंत योगेन्द्र. इन पांचों में कई बातें समान हैं, मसलन इन सभी ने कम उम्र में ही खासी दौलत और शोहरत हासिल कर ली है, इन पांचों का सीधा कनेकशन भगवान से है और अहम बात यह कि इन पांचों का नर्मदा नदी के घाटों और इलाकों पर अच्छा असर है, यानि इनका बड़ा भक्त वर्ग यहीं है.

नर्मदा नदी की परिक्रमा अगर कोई करे, तो वह राज्य की 230 विधानसभा सीटों में से 100 की नब्ज टटोल कर बता सकता है कि सियासी बहाव किस पार्टी की तरफ है. अपनी नर्मदा यात्रा के दौरान ही शिवराज सिंह को यह एहसास हो गया था कि उनकी इस धार्मिक तामझाम वाली यात्रा में आदिवासियों ने कोई दिलचस्पी नहीं ली है, इसके बाद भी वे संतुष्ट थे कि कुछ आदिवासी तो उनकी तरफ झुकेंगे ही.

शिवराज सिंह और आरएसएस का मकसद आदिवासी ही थे और हैं, जो इस बार धार्मिक कारणों के चलते भाजपा से बिदकने लगे हैं. जब बैतूल में मोहन भगवत का विरोध हुआ था तभी समझने वाले समझ गए थे कि इस दफा आदिवासी इलाकों में भगवा दाल नहीं गलने वाली, लिहाजा संघ ने भी इन इलाकों से अपनी गतिविधियां समेट लीं थीं. राज्य सरकार ने नर्मदा किनारे के इलाकों में पौधारोपण और जलसंरक्षण जैसे उबाऊ मसलों पर एक जागृति लाने एक विशेष समिति गठित कर इन पांचों को उसका सदस्य बनाते राज्य मंत्री का भी दर्जा दे डाला, तो किसी को इसकी वजह शिवराज सिंह की डोलती नैया लगी तो किसी को इस फैसले के पीछे उनकी सियासी लड़खड़ाहट नजर आई.

इत्तफाक से यह फैसला उस वक्त लिया गया जब सुप्रीम कोर्ट के एससी एसटी एक्ट में बदलाव या ढील के खिलाफ दलितों ने सड़कों पर आकर विरोध जताया था और देशव्यापी हिंसा में कोई डेढ़ दर्जन लोग मारे गए थे. सर्वाधिक हिंसा और मौतें भी इत्तफाक से मध्यप्रदेश में ही हुई थीं. दलितों ने अदालत से ज्यादा दोषी नरेंद्र मोदी की सरकार को करार दिया था, तो पूरी भाजपा थर्रा उठी थी और डेमेज कंट्रोल में जुट गई थी. इस हिंसक प्रदर्शन से एक अहम बात यह भी उजागर हुई थी कि दलितों का भाजपा से मोह भंग हो चुका है.

इन बातों से चिंतित और हैरान परेशान शिवराज सिंह को सहारा अगर आदिवासी वोटों में दिख रहा है तो उन्होंने उन्हें अपने पाले में खींचने इन पांडवों को जिम्मेदारी सौंप एक तीर से दो चार निशाने साधने की कोशिश ही की है जो कामयाब होंगे, इसमें शक है.

भाजपा की धर्म की राजनीति से अब आम लोग चिढ़ने लगे हैं, फिर पहले से ही चिढ़े बैठे आदिवासियों को ये संत रिझा पाएंगे ऐसा लग नहीं रहा. भाजपा के राज में साधु संतों की मौज ज्यादा रहती है और उन्हें दान दक्षिणा भी ज्यादा मिलती है. अब तो संत मंत्री बन गए हैं, लिहाजा उनका रुतबा और बढ़ा है, अब वे किसी घोटाले की बात नहीं कर रहे और न ही सरकार से मिलने वाली 7500 रुपये की पगार की उन्हें दरकार है, जो उनका शायद एक मिनट का भी खर्च पूरा न कर पाये.

इन संतों को चाहिए थे अफसरों के झुके सर और आगे पीछे हिफाजत में लगी पुलिस और यह सब इन्हें मिल रहा है तो वे आदिवासियों को हिन्दू होने के फायदे भी समझाएंगे और यह भी बताएंगे कि हनुमान, शबरी, केवट, सुग्रीव और अंगद आदिवासी होते हुये भी राम भक्त थे और कैसे राम ने उनका उद्धार किया था. अब नर्मदा किनारे रोपे गए 6 करोड़ पेड़ गिनने के बजाय नर्मदा के घाटों पर पूजा–पाठ, यज्ञ- हवन और आरतियां व  प्रवचन होंगे, क्योंकि इन संतों का तो पेशा ही यही है. लपेटे में अगर आया तो वह गरीब आदिवासी होगा, जो हिन्दू धर्म के कर्मकांडों और पाखण्डों का न तो आदी है और न ही पहले कभी इससे सहमत हुआ था.

मैं ने अपने पति को छोड़ कर एक युवक से शारीरिक संबंध बना लिए. अब वह युवक किसी अन्य युवती से शादी कर चुका है. मैं क्या करूं.

सवाल
मेरी उम्र 35 वर्ष है. जिस युवक से मेरी बचपन में शादी हुई थी उसे छोड़ कर मैं ने किसी अन्य युवक से संबंध बना लिए क्योंकि पति दिखने में बदसूरत था. लेकिन फिर भी उस ने मुझे कुछ नहीं कहा और न ही उस के घर वालों ने. वह हमेशा मुझे बुलाता रहा. जिस युवक के लिए मैं ने यह सब किया अब मुझे छोड़ कर किसी अन्य युवती से शादी कर चुका है और यहां तक कि अब वह मेरा फोन भी नहीं उठाता है. मैं बहुत बेचैन व परेशान हूं क्योंकि मैं ने उस के साथ शारीरिक संबंध तक बना लिए थे. अब मुझे अपनी गलती का एहसास हो रहा है. मैं अपने पति के पास वापस जाना चाहती हूं लेकिन जाने में हिचक हो रही है?

जवाब
बचपन के विवाहों का कई बार नुकसान होता है और पति व पत्नी दोनों को इस का खमियाजा भुगतना पड़ता है. जिस तरह आप की भावनाओं को ठेस पहुंची है उसी तरह पति की भावनाओं को भी चोट पहुंची होगी. आप तो दूसरे पुरुष के कारण अपना सबकुछ लुटा चुकी हैं. तभी तो कहा जाता है कि हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती. अब पछताने से कुछ नहीं होगा. आप अपने पति और घर वालों से दिल से माफी मांगें और पति के घर में लौट जाएं और फिर कभी अपने स्वार्थ के लिए किसी को बलि का बकरा न बनाएं.

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पति पत्नी के रिश्ते में हैवान बनता शक

शक एक ऐसी लाइलाज बीमारी होती है जिसका कोई इलाज नहीं, अगर एक बार यह किसी को खास कर पतिपत्नी में से किसी को अपनी चपेट में ले ले तो  वह इंसान को हैवान बना सकती है. हाल ही में कुछ ऐसी ही घटना हैदराबाद में देखने को मिली जहां अवैध संबंधों के शक पर एक महिला ने अपने पति को ऐसी सजा दी जिसका दर्द शायद वह अपनी जिन्दगी में कभी नही भुला पाएगा. आप यह जानकर दंग रह जाएंगे की ३० साल की इस आरोपी महिला ने पति से विवाद होने पर चाकू से उसका प्राइवेट पार्ट काटने की कोशिश की जिसके चलते उसके पति को काफी गंभीर चोटें आर्इं.

ऐसा ही एक अन्य मामला दिल्ली के निहाल विहार इलाके में भी सामने आया जहाँ  पति ने ही अपनी पत्नी का मर्डर कर दिया. पकड़े जाने पर पति ने सारी बातें पुलिस के सामने खोल दीं. उसने साफ किया कि उसे अपनी पत्नी के चरित्र पर उसे शक था.आपको जानकार हैरानी होगी कि दोनों ने लव मैरिज की थी, लेकिन पति को लगता था कि उसकी पत्नी की दोस्ती कई लड़कों से है. इस बात को लेकर अक्सर दोनों में झगड़ा होता था.

टूटते परिवार बिखरते रिश्ते

शक न जाने कितने हँसते खेलते परिवारों को तबाह कर देता है. दांपत्य जीवन जो विश्वास की बुनियाद पर टिका होता है. उसमे शक की आहट जहर घोल देती है हाल के दिनों में अवैध संबंधों के शक में लाइफ पार्टनर पर हमले और हत्या करने की घटनाएं बढ़ रही हैं. मनोवैज्ञानिक इसके पीछे संयुक्त परिवारों के बिखरने को एक बड़ा कारण मानते हैं.

दरअसल, संयुक्त परिवारों में जब पति पत्नी के बीच कोई भी मन मुटाव होता था तो घर के बड़े उसे आपसी बातचीत से सुलझा देते थे, या बड़ों की उपस्थिति में पतिपत्नी का झगडा बड़ा रूप नहीं ले पाता था जबकि आज की स्थिति में जहाँ पति पत्नी अकेले रहते है आपसी झगड़ों में वे एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश करते हैं वहां उनके आपसी सम्बन्धों  में शक की दीवार को हटाने वाला कोई नहीं होता. ऐसे में शक गहराने के कारण पति-पत्नी के रिश्ते दम तोड़ने लगते हैं वर्तमान लाइफस्टाइल जहाँ जहाँ पति पत्नी दोनों कामकाजी हैं और दिन के आधे  से ज्यादा समय वे घर से बाहर रहते हैं घर से बाहर  उनका विपरीत  सेक्स के साथ उठाना बैठना होता है. ज्यादा समय साथ रहने से उनके बीच आकर्षण जन्म लेता है और ऐसे में वे बाहरी सम्बन्ध दोनों के बीच शक का आधार बनते हैं. ऐसे में पति पत्नी दोनों को एक दूसरे पर विश्वास रखना  होगा और सामने वाले को उस विश्वास को कायम रखना होगा.

बिजी लाइफ स्टाइल

शादी के बाद जहां वैवाहिक रिश्ते को बनाए रखने में पति और पत्नी दोनों की जिम्मेदारी होती है वहीं  इसके खत्म करने में भी दोनों का हाथ होता है. शादी के कुछ वर्षों बाद जब दोनों अपनी रूटीन लाइफ से बोर होकर और जिम्मेदारियों से बचने के लिए किसी तीसरे की तरफ आकर्षित होने लगते हैं, यानी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर रखते हैं, तो वैवाहिक रिश्ते का अंत शक से शुरू हो कर एक दूसरे को शारीरिक नुकसान पहुंचाने और हत्या तक पहुंच जाता है.

कई बार परिवार की जिम्मेदारियों के बीच फंसे होने के कारण  जब पति पत्नी  जिंदगी की उलझनों को  सुलझा नहीं पाते तो उनके बीच अनबन होने लगती है और उस के लिए वे बाहरी संबंधों को जिम्मेदार ठहराने लगते हैं. उनके दिमाग में  शक  घर करने लगता है. धीरे-धीरे शक गहराता है और झगड़े बढ़ जाते हैं. यदि कोई उन्हें समझाए तो शक और सारी समस्याएं खत्म हो सकती हैं, लेकिन, एकल परिवार में उन्हें समझाने वाला कोई नहीं होता. इस कारण हालात मारपीट, हमले और हत्या तक पहुंच जाते हैं.

तुम सिर्फ मेरे हो वाली सोच

लाइफ पार्टनर के प्रति अधिक  पजेसिव होना भी शक का बडा कारण  बनता है. आज के माहौल में जहां महिलाएं और पुरुष ऑफिस में साथ में बड़ी बड़ी जिम्मेदारियां संभालते हैं ऐसे में उनका आपसी मेलजोल होना स्वाभाविक है . ऐसे में पति या पत्नी में से जब भी कोई एक दुसरे को किसी बाहरी व्यक्ति से मेलजोल बढ़ाते देखता है तो उस पर शक करने लगता है और उसे  यह बर्दाश्त नहीं होता कि उसका लाइफ पार्टनर जिसे वह प्यार करता है वह किसी और के साथ मिले जुले या बात भी करे क्योंकि वह उस पर सिर्फ अपना अधिकार समझता है. इस  तरह की मानसिकता संबंधों में कडवाहट भर देती है. पति या पत्नी जब फ़ोन पर किसी अन्य महिला  या पुरुष का मेसेज या कॉल देखते हैं तो एक दुसरे पर शक करने लगते हैं. भले ही वास्तविकता कुछ और ही हो लेकिन शक का बीज दोनों के सम्बन्ध में दरार डाल देता है जिसका अंत मारपीट और हत्या जैसी घटनाओं से होता है.

जासूसी का जरिया बनते एप्स

पति पत्नी के रिश्ते में दूरियां लाने में स्मार्टफ़ोन भी कम जिम्मेदार नहीं हैं. जहां सोशल मीडिया ने वैवाहिक जोड़ों को शादी के बंधन से अलग किसी और के  साथ प्यार की पींगें बढ़ने का मौका दिया है, वहीं स्मार्ट फ़ोन में ऐसे एप्स आ गए हैं, जो पति पत्नी को एक दूसरे की जासूसी करने  का पूरा अवसर देते हैं. इन एप्स द्वारा पति या पत्नी जान सकते हैं कि उनका लाइफ पार्टनर उनके अतिरिक्त किस से फोन पर सबसे ज्यादा बातें करता है यानी किस से आजकल उसकी नजदीकियां बढ़ रही  हैं , उनके बीच क्या बातें होती है , वे कौन सी इमेजेज या वीडियोज शेयर करते हैं, यानी लाइफ पार्टनर के फ़ोन पर कंट्रोल करने का पूरा इन्तजाम है. ये एप्स लाइफ पार्टनर की हर एक्टिविटी पर नजर रखने का पूरा मौका देते हैं. इन एप्स की मदद से आपके लाइफ पार्टनर का फोन पूरी तरह आपका हो सकता है.

अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप तकनीक का सदुपयोग आपसी रिश्तों में नज़दीकी लाने में करें या इन्हें रिश्तों में दूरियां बनाने का कारण बनायें? फैसला आपका है.

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कहानी ऐसी अदाकारा की, जिसे कामयाबी के बाद भी नहीं मिला मुक्कमल जहां

अपने दौर की सबसे पौपुलर अभिनेत्रियों में से एक परवीन बौबी काफी बोल्ड और बिंदास थीं. 70 के दशक में सिनेमाई पर्दे पर वह सबकुछ कर रही थीं, जो आधुनिकता और आत्म निर्भरता के नाम पर महिलाएं आज करने की चाहत रखती हैं. इंडस्ट्री में अपनी एक खास जगह बनाने वाली अभिनेत्री को एक गुमनाम मौत नसीब हुई. आइये जानते हैं उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ अनसुनी और अनसुलझी बातें!

बचपन और कैरियर

परवीन बौबी का पूरा नाम परवीन वली मोहम्मद अली खान बौबी था. माता पिता की शादी के 14 साल बाद परवीन का जन्म हुआ था. 10 साल की उम्र में ही उनके पिता का देहांत हो गया. 1972 में परवीन ने मौडलिंग से अपने कैरियर की शुरुआत की और 1973 की फिल्म ‘चरित्रम’ में पहली बार वो सिल्वर स्क्रीन पर नजर आईं. 1974 में रिलीज हुई फिल्म ‘मजबूर’ बौबी की पहली हिट फिल्म रही.

1970 से 1980 के बीच में परवीन ने ‘दीवार’, ‘नमक हलाल’, ‘अमर अकबर एंथनी’ और ‘शान’ जैसी ब्लौकबस्टर फिल्में दीं. इसी बीच रीना रौय के बाद परवीन बौबी दूसरी सबसे ज्यादा फीस लेने वाली अभिनेत्री थीं.

छोटी भूमिकाओं में भी जादू

दीवार जैसी सुपरहिट फिल्म में छोटी सी भूमिका से ही परवीन बौबी ने एक बड़ी लकीर खींच दी थी. यही वजह है कि परवीन बौबी के सक्रिय फिल्म कैरियर के तीन दशक के लंबे अंतराल के बाद भी उनकी भूमिकाएं लोगों को याद हैं. ये बात भी महत्वपूर्ण है कि परवीन बौबी की भूमिकाएं, हीरो को ध्यान में रखकर बनी फिल्मों में नितांत छोटी हुआ करती थीं. ये उनके चेहरे और अभिनय का ही जादू था कि छोटी भूमिकाएं भी उन्हें चर्चा में बनाए रखने के लिए काफी थीं.

यकीन ना हो तो दीवार का वो दृश्य याद कीजिए जिसमें अमिताभ एक बियर बार में बैठे हैं. वहां उनको अकेला देखकर परवीन बौबी पहुंच जाती हैं और बिना जान पहचान के बातचीत शुरू करती हैं. एक हाथ में सिगरेट और दूसरे में शराब का प्याला. एकदम कौन्फिडेंट लड़की. ये तो महज एक दृश्य भर है, परवीन बौबी का पूरा कैरियर ऐसे ही दृश्यों से भरा पड़ा है जिसमें वो अपने दौर को बदलते हुए दिखाई देती हैं.

परवीन बौबी का जादू

जब सिनेमाई पर्दे पर अच्छी लड़कियों के सलवार सूट और साड़ी पहनने का चलन था, तब पाश्चात्य रंग-ढंग में पली-पढ़ी परवीन बौबी को फिल्म निर्देशक बीआर इशारा ने पहली बार क्रिकेटर सलीम दुर्रानी के साथ 1973 में फिल्म ‘चरित्र’ में मौका दिया. फिल्म तो फ्लौप हो गई, लेकिन परवीन बौबी का जादू चल पड़ा. कई जगहों पर इसका जिक्र है कि बीआर इशारा नई अभिनेत्री की तलाश में थे. ऐसे ही किसी दिन उनकी नजर परवीन बौबी पर पड़ी, जो उस वक्त सिगरेट का कश लगा रही थीं, जिन्हें देखकर बीआर काफी प्रभावित हुए और अभिनेत्री की खोज पर विराम लगा दिया.

टाइम के कवर पर

1976 में परवीन बौबी इस कदर कामयाब हो चुकी थीं कि उस साल प्रतिष्ठित मैग्जीन टाइम ने उन्हें अपने कवर पर छापा था. टाइम के कवर पर जगह पाने वाली पहली बौलीवुड कलाकार परवीन बौबी थीं.

सिनेमाई कैरियर जैसी कामयाबी निजी जीवन में नहीं

सिनेमाई कैरियर में वो जितनी कामयाब हुईं, वैसी कामयाबी उन्हें अपने निजी जीवन में नहीं मिली. पहले पहल उनका अफेयर डैनी के साथ हुआ. लेकिन ये प्यार बहुत आगे नहीं बढ़ पाया. डैनी ने फिल्मफेयर को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि परवीन बौबी और उनका साथ तीन-चार साल तक रहा, इसके बाद दोनों के रास्ते अलग हो गए थे.

डैनी के बाद परवीन बौबी का प्यार कबीर बेदी के साथ हुआ था. दोनों ने एक साथ 1976 में ‘बुलेट’ फिल्म में काम किया था और करीब तीन साल तक दोनों एक दूसरे के प्यार में डूबे रहे. कबीर बेदी के प्यार की खातिर परवीन बौबी ने अपने चमचमाते कैरियर को भी छोड़ दिया. लेकिन इनका रिश्ता भी ज्यादा समय तक टिक न सका.

कबीर बेदी के साथ ब्रेकअप को अपने जीवन का टर्निंग प्वाइंट बताने वाली परवीन बौबी इसके बाद महेश भट्ट के प्यार में पड़ीं. दोनों का रोमांस 1977 के आखिर में शुरू हुआ था, तब महेश भट्ट भी कबीर बेदी की तरह शादीशुदा थे. लेकिन वो अपनी पत्नी और बेटी पूजा बेदी को छोड़कर परवीन बौबी के साथ रहने लगे थे. ये वो दौर था जब परवीन चोटी की स्टार थीं और महेश भट्ट एक फ्लौप फिल्ममेकर.

परवीन बौबी के साथ अपने रिश्तों पर ही महेश भट्ट ने ‘अर्थ’ फिल्म बनाई थी. इस फिल्म से जहां महेश भट्ट का कैरियर परवान चढ़ा वहीं परवीन बौबी ऐसी स्थिति में पहुंच गईं जहां से उनका मानसिक संतुलन डगमगाने लगा था. महेश भट्ट ने अपने कई इंटरव्यू में बताया कि बौबी को पैरानायड स्कित्जोफ्रेनिया है. हालांकि परवीन बौबी ने खुद को कभी इस बीमारी की चपेट में नहीं बताया. उन्होंने ये जरूर माना था कि आनुवांशिक मानसिक बीमारी ने उन्हें अपनी चपेट में ले रखा है.

 

ग्लैमर का सपना और बौलीवुड का गहरा अंधेरा

परवीन बौबी ने ‘द इलस्ट्रेटेड वीकली औफ इंडिया’ में अपना एक संस्मरण लिखा था – “मेरा कैरियर इससे बेहतर कभी नहीं रहा. मैं नंबर एक की रेस में हूं. बंबई में कोई ऐसी फिल्म नहीं बन रही है, जिसमें परवीन बौबी ना हो. लोग मेरी इस कामयाब वापसी से चकित हैं. कई लोग इसे मेरा लक बता रहे हैं, लेकिन मैं आपको बताना चाहती हूं कि इसमें लक की कोई बात नहीं है, ये बिल्कुल पसीना और आंसू है जो टूटे दिल के साथ कठिन मेहनत से आई है. हालांकि इस दौरान मैं ये जान गई हूं कि इंडस्ट्री में बने रहने का अपना संघर्ष है, इसके अपने दबाव और चुनौतियां हैं. मैं इसमें इतनी धंस चुकी हूं कि मुझे अब इसे झेलना ही होगा.”

गुमनाम मौत

1976 में मशहूर ‘टाइम’ मैगजीन ने परवीन बौबी को अपने कवर पेज पर जगह दी थी. 1983 में परवीन अपना फिल्मी कैरियर और भारत को छोड़कर अमेरिका चली गयी थीं. कम उम्र में ही परवीन डायबिटीज की शिकार हो चुकीं थीं. 22 जनवरी 2005 को जब तीन दिनों तक परवीन ने अपने मुंबई के घर का दरवाजा रोज की तरह दूध और अखबार लेने के लिए नहीं खोला तो पुलिस को इसकी जानकारी दी गई. उसके बाद परवीन का शव उनके घर से बरामद किया गया जो बेहद ही खराब हालत में था.

जान के खतरे का शक

अपनी बीमारी के दौरान ही उन्होंने अमिताभ बच्चन सहित दुनिया के नामचीन लोगों से अपनी जान को खतरा बताया था. अमिताभ बच्चन को लेकर उनका संशय आखिरी समय तक बना रहा था. हालांकि अमिताभ ने कभी परवीन बौबी को लेकर सार्वजनिक तौर पर कुछ भी अटपटा नहीं कहा. 2005 में परवीन बौबी के निधन के बाद उन्होंने मीडिया से कहा था कि परवीन अपनी शर्तों पर जीने वाली कलाकार थीं जिनका हिंदी सिनेमा पर गहरा असर रहेगा.

बहरहाल, मानसिक बीमारी और सनक की हद तक अपनी शर्तों पर जीने वाली शकमिजाजी के बाद भी परवीन बौबी अपने जीवन के अंतिम दिनों तक आत्मनिर्भर बनी रहीं. लेकिन ये भी सच है कि जिस परवीन बौबी के घर के सामने प्रोड्यूसरों की कतार लगी रहती थी, उस परवीन बौबी के आखिरी दिनों में सबने उन्हें भुला दिया था.

करीब एक दशक तक का स्टारडम और करीब 50 फिल्में उनके जीवन के सूनेपन को भर नहीं पाईं, यही अकेलापन उन्हें आखिरी समय तक परेशान करता रहा. दरअसल परवीन बौबी की कहानी, एक छोटे शहर से आकर बौलीवुड में छाने वाली उस लड़की की कहानी है जिसे मुक्कमल जहां नहीं मिला. कुछ तो बौलीवुड में बने रहने का दबाव, कुछ प्यार में मिलने वाले धोखें और कुछ मानसिक बीमारी- इन सबने आपस में मिलकर परवीन बौबी के करिश्मे को फीका जरूर कर दिया, लेकिन उनका असर बौलीवुड में लंबे समय तक बना रहेगा.

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भारत विरोधी ट्वीट पर शाहिद को गंभीर की फटकार, शाहिद ने दी सफाई

पाकिस्तान के पूर्व कप्तान शाहिद अफरीदी ने जम्मू-कश्मीर में रविवार को सेना के आतंकरोधी अभियान के तहत मारे गए 12 आतंकियों से हमदर्दी जताई तो भारतीय क्रिकेटर गौतम गंभीर ने उऩ्हें लताड़ लगाई, लेकिन गंभीर की फटकार के बाद भी अफरीदी ने एक और ट्वीट किया.

अफरीदी ने इस बार जो ट्वीट किया है उसमे उन्होंने भारतीय तिरंगे का फोटो डालते हुए लोगों से मानवता दिखाने की अपील की है. अफरीदी ने इस ट्वीट में लिखा है कि, हम सभी का आदर करते हैं, और ये उसका उदाहरण है (तिरंगे के साथ फोटो पर) लेकिन जब बात मानवाधिकार की आती है तो हम सभी अपने मासूम कश्मीरियों के लिए एक ही उम्मीद रखते हैं.

ये है इस फोटो के पीछे की कहानी

ये फोटो सेंट मोरित्ज में हुए आइस क्रिकेट मैचों के आयोजन के दौरान का है. स्विट्जरलैंड के सेंट मोरित्ज में जब दूसरा मैच खत्म हुआ तब अफरीदी तिरंगे का सम्मान करते नजर आए थे. दूसरे मैच में जीत के बाद अफरीदी अपने प्रसंशकों से फोटो खिंचवा रहे हैं. उनके साथ फोटो और सेल्फी के लिए प्रशंसकों की भीड़ जमा हो गई. एक भारतीय लड़की तिरंगा लेकर खड़ी थी और वह अफरीदी के साथ भी फोटो खिंचवाना चाहती थी. जैसे ही अफरीदी उसके साथ फोटो खिंचवाने आए, उनकी नजर तिरंगे पर पड़ी जो कि पूरा खुला हुआ नहीं था. अफरीदी ने उस लड़की से कहा, ‘फ्लैग सीधा करो’ और फिर फोटो खिंचवाई. मंगलवार को कश्मीर के मुद्दे पर किए गए अफरीदी के ट्वीट की बाद जब उन्हें गंभीर ने लताड़ लगाई, तो फिर अब अफरीदी इस तिरंगे वाली तस्वीर का सहारा लेकर ये कहने की कोशिश कर रहे हैं कि हम सभी का आदर करते हैं.

इस वजह से हुई अफरीदी की आलोचना

अफरीदी ने ट्वीट कर कश्मीर की स्थिति को बेचैन करने वाला बताया और संयुक्त राष्ट्र के साथ ही दूसरे अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर भी सवाल खड़े किए थे. इसके जवाब में भारतीय बल्लेबाज और दिल्ली डेयरडेविल्स के कप्तान गंभीर ने उन्हें जमकर लताड़ा था. अफरीदी ने ट्वीट में लिखा था कि कश्मीर की स्थिति बेचैन करने वाली और चिंताजनक है. यहां आत्मनिर्णय और आजादी की आवाज को दबाने के लिए दमनकारी शासन द्वारा निर्देशों को मार दिया जाता है. हैरान हूं कि संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन कहां हैं? वे इस खूनी संघर्ष को रोकने के लिए कुछ क्यों नहीं कर रहे?

गंभीर ने लगाई थी लताड़

इसके जवाब में गंभीर ने लिखा था कि मीडिया मुझ से अफरीदी के बयान पर राय देने के लिए कह रही है. इस पर क्या कहा जाए, अफरीदी सिर्फ यूएन को देख रहे हैं. अफरीदी के लिए यूएन अंडर-19 की तरह है. मीडिया को शांत रहने की जरूरत है, क्योंकि अफरीदी नो बौल पर आउट करने का जश्न मना रहे हैं. गौतम ने अंडर-19 को उनकी उम्र से जोड़ा है. यानि गौतम का कहना था कि अफरीदी की उम्र तो बढ़ गई है, लेकिन मानसिक रूप से वह अभी भी अपरिपक्व हैं.

यह पहली बार नहीं है जब अफरीदी ने कश्मीर का मुद्दा उठाया हो. पिछले साल भी उन्होंने ऐसा ही ट्वीट किया था. तब अफरीदी ने लिखा था कि कश्मीर पिछले कई दशकों से क्रूरता का शिकार हो रहा है, अब वक्त आ गया है कि इस मुद्दे को सुलझा लिया जाए, जिसने कई लोगों की जान ली.

दूसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा था कि कश्मीर धरती पर स्वर्ग है और हम मासूमों की पुकार को अनदेखा नहीं कर सकते. वहीं गंभीर हमेशा से भारत और भारतीय सेना के लिए खड़े रहते हैं. उन्होंने सुकमा हमले में शहीदों को अपनी आइपीएल की विजेता राशि भेंट कर दी थी. वह ऐसा कई बार कह चुके हैं कि अगर वह क्रिकेटर नहीं होते तो भारतीय सेना का हिस्सा होते. उन्होंने देशवासियों से यह भी अपील की थी कि अपनी झिझक तोड़कर सैनिकों का सम्मान करें.

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इस तरीके से करें अपने वर्चुअल आधार आईडी को जनरेट

क्या आप अपने आधार नंबर को शेयर नहीं करना चाहते हैं? क्या आपको डर है कि अगर आपने 12 अंकों के आधार नंबर को कहीं शेयर किया, तो आपकी जानकारी चोरी हो सकती है? ऐसे में जो यूजर्स अपने यूनिक बायोमेट्रिक नंबर को कहीं शेयर नहीं करना चाहते हैं उनके लिए UIDAI( भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण) एक नई सुविधा लेकर आई है, जिसका नाम है आधार वर्चुअल आइडी(VID). VID की मदद से आप बैंक ट्रांजिक्शन से लेकर ई-केवाईसी(e- KYC) तक की सेवा में इसका इस्तेमाल कर सकेंगे. वर्चुअल आइडी के बाद आपको आधार कार्ड का नंबर देने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

क्या है वर्चुअल आईडी?

VID एक 16 अंकों की संख्या है, जो आपके आधार नंबर से लिंक होता है. ये नंबर अस्थाई होता है और ये बदलता रहता है. VID की मदद से आपको 12 अंकों के आधार नंबर की बजाय 16 नंबर की वर्चुअल आईडी देनी होगी.

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क्यों है खास?

क्योंकि ये डिजिटल आइडी है, इसलिए आधार धारक इसे कई बार जनरेट कर सकता हैं. आधार नंबर को साझा करने के बजाय वर्जुअल आइडी का इस्तेमाल ज्यादा सुरक्षित है. मौजूदा समय में वर्जुअल आइडी एक दिन के लिए ही वैद्द है. एक दिन के बाद आपको फिर से इसे जनरेट करना होगा.

इन तरीकों से करें वर्जुअल आइडी जनरेट

  • आधार वर्चुअल आइडी को जनरेट करने के लिए UIDAI की वेबसाइट पर जाएं.
  • यहां आपको Aadhaar Services टैब में Virtual ID (VID) Generator औप्शन दिखेगा, इसपर क्लिक करें. यह प्रक्रिया तभी संभव है जब आपका मोबाइल नंबर UIDAI डाटाबेस पर रजिस्टर हो. ऐसा इसलिए क्योंकि यहां आपको अपने रजिस्टर मोबाइल नंबर से वन टाइम पासवर्ड(OTP) देना होता है.
  • आधार नंबर, ओटीपी और सिक्योरिटी कोड के औप्शन्स को भरने के बाद Submit बटन पर क्लिक कर दें.
  • इसके बाद आपका वर्जुअल आडी जनरेट हो जाएगा.

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इस ऐप की मदद से कोई भी रख सकता है आपके व्हाट्सऐप चैट पर नजर

फेसबुक के डाटा लीक का मामला अभी पूरी तरह से शांत भी नहीं हुआ कि अब व्हाट्सऐप यूजर्स के लिए बुरी खबर आई है. मार्क जुकरबर्ग ने माफी मांगने के बाद पौलिसी भी बदल दी है लेकिन इसके बाद भी दिन पर दिन कई ऐसी खबरें सामने आ रही हैं जिसने हर किसी की नींद उड़ा कर रख दी है. अब हाल ही में आई एक खबर के अनुसार, एक ऐसा ऐप लौन्च हो गया है जिसकी मदद से कोई भी आपके व्हाट्सऐप चैट पर नजर रख सकता है और पता कर सकता है कि आप किस वक्त किससे बात कर रहे हैं. इस ऐप का नाम है चैटवौच. तो आइए जानते हैं कैसे काम करता है यह ऐप ?

क्या है चैटवौच (Chatwatch)

चैटवौच ऐप एक ऐसा ऐप है जिसकी मदद से कोई भी अपने दोस्तों के व्हाट्सऐप चैट पर नजर रख सकता है. इस ऐप के जरिए व्हाट्सऐप यूजर्स को ट्रैक कर यह भी पता चल सकता है कि आपके दोस्त कब औनलाइन थे और क्या बातें कर रहे थे?

दरअसल, यह ऐप व्हाट्सऐप के स्टेटस फीचर का फायदा उठाकर यूजर्स की जासूसी करता है. यह ऐप यह भी बता सकता है कि आपका दोस्त कब सोने जाता है. हालांकि इस ऐप के लिए आपको पैसे देने होते हैं. इसे आप $1.99 यानी करीब 129.70 रुपये में डाउनलोड कर सकते है. वैसे बता दें कि फेसबुक जल्द ही इस ऐप को ब्लौक भी कर सकता है.

चैटवौच ऐप को एप्पल ने स्टोर से हटाया, गूगल प्ले-स्टोर पर अभी भी है मौजूद

अभी हाल ही में एप्पल प्ले-स्टोर पर चैटवौच ऐप आया था अब इस ऐप को एप्पल ने अपने स्टोर से हटा दिया है. वहीं यह ऐप अभी भी एंड्रायड के लिए गूगल प्ले-स्टोर पर मौजूद है. गूगल प्ले-स्टोर पर यह ऐप ChatW के नाम से है.

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आईपीएल : आखिर कैसे मुनाफा कमाते हैं टीम के मालिक

इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) का 11वां सीजन 7 अप्रैल से शुरू हो रहा है. इस बार आठ टीमें अगले 51 दिनों तक कुल 60 मैच खेलेंगी. आईपीएल के मैच देशभर के नौ वैन्यू में खेले जाएंगे. लीग का ओपनिंग गेम 7 अप्रैल को मुंबई के वानखेडे स्टेडियम में होने वाला है. सीजन का पहला मैच मुंबई इंडियन और चेन्नई सुपर किंग्स के बीच होगा.

इस लीग के जरिये दुनियाभर के बेहतरीन क्रिकेट खिलाड़ियों को जगह दी जाती है. साथ ही इसके जरिए कौर्पोरेट जगत को भी अपने साथ जोड़ा जाता है. जानिए कैसे आईपीएल फ्रैंचाइज करोड़ों रुपए में स्टार खिलाड़ियों को खरीदती हैं और उनके जरिए करोड़ों की कमाई करती हैं. आईपीएल में विजेता बनना अहम जरूर होता है लेकिन फ्रैंचाइज केवल इसपर ही निर्भर नहीं करती.

आईपीएल को बिजनेस के‍ लिए किया गया है डिजाइन

आईपीएल को बिजनेस के दृष्टिकोण से डिजाइन किया गया है. यह एक क्रिकेट टूर्नामेंट है, जिसे मूल्यवान कमर्शियल प्रौपर्टी के तौर पर विकसित किया गया है. यह कंपनियों को आक्रामक ढंग से अपने बिजनेस को प्रचारित करने का अवसर प्रदान करता है. आईपीएल का प्रमुख बिजनेस प्लान यह है कि प्राइवेट कंपनियों को क्रिकेट फ्रैंचाइजी खरीदने के लिए बुलाया जाए. जब फ्रैंचाइजी को बड़ी कीमत पर बेच दिया जाएगा, तब कौर्पोरेट्स भारतीय क्रिकेट के प्रमुख घटकों में निवेश के लिए आकर्षित होंगे. यही वह रास्ता है जहां से पैसा आता है.

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प्लेयर्स की जर्सी पर विज्ञापन

कंपनियां खिलाड़ियों की जर्सी पर विज्ञापन देती हैं जिससे उन्हें पब्लिसिटी मिलती है. इसके लिए टीम को अच्छी खासी रकम दी जाती है. टीम में हर चीज के लिए स्पौन्सर होते हैं. इनमें मेन स्पौन्सर, जर्सी स्पौन्सर और स्लीव स्पौन्सर भी होते हैं जो इनकम का मुख्य स्त्रोत होते हैं.

टिकट बिक्री

भारतीय क्रिकेट प्रेमियों के बीच आइपीएल का बड़ा क्रेज है. टिकट का दाम टीम मालिक तय करते हैं. आईपीएल टीम के रेवेन्यू में टिकट की हिस्सेदारी तकरीबन 10 फीसदी है. खेले गए करीब 60 फीसद मैचों में स्टेडियम हाउस फुल होता है. होम टीम को कुल टिकटों की बिक्री में से एक निश्चित हिस्सा मिलता है. इसलिए हर टीम के 7 होम गेम मैच होते हैं.

मीडिया राइट्स

पिछले एक दशक से आईपीएल का आधिकारिक मीडिया स्पौन्सर सोनी इंडिया है. आईपीएल में एक रेवेन्यू् डिस्ट्रीब्यूशन मौडल है. यहां बीसीसीआई को ब्रौडकास्टर और औनलाइन स्ट्रीमर से अच्छी खासी रकम मिलती है. इसमें से अपनी फीस काटकर इस राशि को टीम रैंकिंग के आधार पर सभी आईपीएल टीम के बीच बांट दिया जाता है. आपको बता दें कि खेल के अंत में जिस टीम की रैंक जितनी ज्यादा होती है उसे मीडिया रेवेन्यू में उतना बड़ा हिस्सा मिलता है. आईपीएल टीम की कुल कमाई में 60-70 फीसद हिस्सा मीडिया राइट्स का होता है. आपको जानकार हैरानी होगी कि कंपनियां 10 सेकेंड के स्लौट के लिए कई लाख रुपये दे देती हैं.

ब्रैंड वैल्यू

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क्रिकेट में खिलाड़ियों के अलावा ब्रैंड वैल्यू भी एक अहम भूमिका निभाता है. इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि बौलीवुड सितारें जैसे शाहरुख खान, प्रीति जिंटा खेल में ग्लैमर डालते हैं. विराट कोहली और एम एस धोनी कई ब्रैंड्स के साथ जुड़े हुए हैं. टीम का इनके साथ जुड़ाव ब्रैंड वैल्यू को बढ़ाता है, जो कि कई स्पौन्सर्स को अपनी ओर आकर्षित करता है.

प्राइज मनी

आईपीएल विजेताओं और रनर अप को एक बड़ी राशि इनाम के रुप में देता है. वर्ष 2017 में विनर्स को 25.8 करोड़ रुपये, रनर अप को 12.9 करोड़, प्लेऔफ में तीसरे स्थान वाले को 6.4 करोड़, प्लेऔफ में चौथे स्थान वाले को 6.4 करोड़ रुपये मिले हैं. आपको बता दें कि टूर्नामेंट की विजेता टीम को ईनाम राशि का सबसे बड़ा हिस्सा मिलता है. प्राइज मनी को टीम के मालिक और खिलाड़ियों के बीच बांटा जाता है.

मर्चेंडाइजिंग

भारत में गेम मर्चेंडाइज (खेल सामग्री) का बाजार वार्षिक आधार पर 100 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. यह बाजार करीब तीन करोड़ डौलर का है. हर फ्रैंचाइजी मर्चेंडाइज की बिक्री करती है. इसमें टी-शर्ट, कैप, बैट, रिस्ट वौच और अन्य कई सामग्री शामिल होती हैं.

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