ICICI बैंक-वीडियोकौन डील को लेकर सवालों के घेरे में आई बैंक की सीएमडी चंदा कोचर ने अपना नाम FICCI लेडीज और्गेनाइजेशन (FLO) के सालाना कार्यक्रम से वापस ले लिया है. 5 अप्रैल को होने वाले इस कार्यक्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद चंदा कोचर को सम्मानित करने वाले थे. इस कार्यक्रम में गेस्ट औफ औनर के रूप में चंदा कोचर को शामिल होना था. पिछले महीने भेजी गई कार्यक्रम की सूची में उनका नाम शामिल था. लेकिन, संशोधित सूची में चंदा कोचर का नाम शामिल नहीं किया गया है.
क्यों हटा चंदा कोचर का नाम?
FLO की एग्जिक्युटिव डायरेक्टर रश्मि सरिता ने कहा, ‘वह गेस्ट औफ औनर थीं, लेकिन अब वह कार्यक्रम में नहीं आ रही हैं.’ हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि कोचर का नाम क्यों हटाया गया है. सरिता ने कहा, ‘ हां, उन्हें सम्मानित किया जाना था और वह गेस्ट औफ औनर भी थीं. ‘ FLO इंडस्ट्री एसोसिएशन, फेडरेशन औफ इंडियन चैंबर्स औफ कौमर्स एंड इंडस्ट्री महिलाओं का बिजनेस विंग है.
वीडियोकौन डील की जांच शुरू
आपको बता दें, आईसीआईसीआई बैंक और वीडियोकौन लोन मामले की जांच शुरू हो गई है. सीबीआई ने 2012 में आईसीआईसीआई बैंक द्वारा वीडियोकौन कंपनी को दिए गए 3250 करोड़ रुपए के लोन मामले में प्रारंभिक जांच शुरू की है और इसमें चंदा कोचर के पति दीपक कोचर की भूमिका की भी जांच की जा रही है.
आयकर विभाग ने भी भेजा नोटिस
3250 करोड़ रुपए के लोन मामले में आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ और प्रबंध निदेशक चंदा कोचर के पति दीपक कोचर को आयकर विभाग (IT) ने भी नोटिस जारी किया है. आयकर विभाग ने विडियोकौन लोन मामले में कर चोरी की जांच करते हुए दीपक कोचर को नोटिस जारी किया है. कोचर को नोटिस भेजे जाने की जानकारी संबंधित अधिकारियों ने दी. अधिकारियों ने बताया कि दीपक कोचर को आयकर अधिनियम की धारा 131 के तहत नोटिस जारी किया गया है.
क्या है मामला?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वीडियोकौन के चेयरमैन वेणुगोपाल धूत ने आईसीआईसीआई सहित कई बैंकों से लोन मिलने के बाद दीपक कोचर की कंपनी न्यूपावर रीन्यूएबल्स में 64 करोड़ रुपए का निवेश किया था. हालांकि, आईसीआईसीआई बैंक ने इसमें किसी तरह की गड़बड़ी से इनकार किया है.
VIDEO : कार्टून लिटिल टेडी बियर नेल आर्ट
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रिलायंस जियो ने अपना पेमेंट बैंक शुरू कर दिया है. बुधवार से जियो पेमेंट बैंक बैंकिंग का काम शुरू कर देगा. इसकी जानकारी भारतीय रिजर्व बैंक ने ट्वीट कर दी. रिलायंस इंडस्ट्रीज उन 11 आवेदकों में से है, जिन्हें अगस्त 2015 में पेमेंट बैंक की स्थापना की सैद्धान्तिक मंजूरी मिली थी. रिजर्व बैंक की अधिसूचना के मुताबिक, जियो पेमेंट बैंक ने 3 अप्रैल 2018 से भुगतान बैंक के रूप में परिचालन शुरू कर दिया है.
एयरटेल-पेटीएम बैंक टक्कर
जियो पेमेंट बैंक शुरू होने से एयरटेल-पेटीएम के पेमेंट बैंक को टक्कर मिलेगी. टेलीकौम क्षेत्र की भारती एयरटेल ने नवंबर 2016 में सबसे पहले पेमेंट बैंक शुरू किया था. इसके बाद पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा के पेटीएम पेमेंट बैंक की शुरुआत मई 2017 में हुई थी. इसके अलावा दूसरी कंपनियों के भी पेमेंट बैंक शुरू हुए हैं, लेकिन जियो के शुरू होने से सभी को कड़ी टक्कर मिलने की उम्मीद की जा रही है.
रिलायंस जियो पहले से ही टेलीकौम सेक्टर में अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए है. फ्री वौयस कौल और डाटा के जरिए उसने अपना यूजर बेस काफी मजबूत किया है. जियो के पास करीब 12 करोड़ यूजर्स हैं. कंपनी ने अपनी प्राइम मेंबरशिप को भी एक साल के लिए बढ़ा दिया है. ऐसा माना जा रहा है कि अब कंपनी के पेमेंट बैंक शुरू होने से बैंकिंग क्षेत्र में भी उसका दबदबा देखने को मिलेगा. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पेमेंट बैकिंग में एयरटेल-पेटीएम से मुकाबला कैसा रहेगा.
मिलेंगे ये फायदें
पेमेंट बैंक में कोई भी सेविंग अकाउंट खुलवा सकता हैं.
इस अकाउंट में एक लाख रुपए तक जमा करने की सुविधा हैं.
पेमेंट बैंक डेबिट कार्ड भी जारी कर सकते हैं.
पेमेंट बैंक के पास कस्टमर को सामान्य फाइनैंशियल प्रोडक्ट्स जैसे म्युचुअल फंड और इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स देने का भी औप्शन होगा.
कारोबारियों को भी मिलेगा फायदा
छोटे कारोबारियों के लिए भी ये खासा फायदेमंद होगा.
इसके तहत 5-6 कर्मचारियों वाले बिजनेस के लिए पेमेंट बैंक में सैलरी अकाउंट भी खुलवाया जा सकता है.
पेमेंट बैंक से मोबाइल के जरिए बैंकिंग काफी आसान होगी.
इसकी अपनी सीमाएं हैं, जो इसे सामान्य बैंकिंग से अलग बनाती है.
ऐसे खोल सकते हैं अकाउंट
सबसे पहले जियो पेमेंट बैंक का ऐप इंस्टाल करें और अपने जियो नंबर के साथ साइनइन करें.
निश्चित जगह पर अपना आधार नंबर दर्ज करें और अपने आधार कार्ड को लिंक करें.
अगर डेबिट/एटीएम कार्ड की जरूरत हो तो एड्रेस अपडेट करें.
पेमेंट बैंक अकाउंट के लिए कस्टमर एग्जीक्यूटिव पहचान के फिजिकल वेरफिकेशन और अंगूठे के निशान यानी ईकेवाईसी के लिए आपके घर पर आएंगे.
आप जियो पेमेंट बैंक के औथराइज सेंटर पर जाकर भी वेरिफिकेशन करा सकते हैं.
VIDEO : कार्टून लिटिल टेडी बियर नेल आर्ट
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फिल्म ‘‘परमाणु’’ को लेकर जौन अब्राहम और प्रेरणा अरोड़ा के बीच आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला लगातार जारी है, पर जौन अब्राहम ने इसकी परवाह किए बगैर फिल्म ‘‘परमाणु’’ 4 मई 2018 को सिनेमाघरों में पहुंचाने का ऐलान कर दिया है.
जौन अब्राहम के प्रवक्ता ने जो ईमेल भेजा है, उसके अनुसार अभिषेक शर्मा निर्देशित फिल्म ‘‘परमाणुः ए स्टोरी आफ पोखरण’’ का निर्माण जौन अब्राहम के प्रोडक्शन हाउस ‘जेऐ इंटरटेनमेट’ ने किया है और इस फिल्म में जौन अब्राहम के अलावा बोमन ईरानी व डायना पेंटी ने भी अहम भूमिकाएं निभाई हैं.
फिल्म के प्रवक्ता ने कहा है- ‘‘भारत के न्यूकलियर/परमाणु ताकत बनने की यात्रा जिस तरह की रही है, उसी तरह से हमारी फिल्म ‘परमाणु’ की भी यात्रा काफी उतार चढ़ाव पूर्ण रही है. बहरहाल, हमारी फिल्म हमारे देश के सच्चे न्यूकलियर कार्यक्रम के कर्ताधर्ता, वैज्ञानिक व सैनिकों को त्रिब्यूट है. मई 1998 में भारत पहली बार न्यूकलियर ताकत बना था. अब हमारा देश जिस माह में इसकी 20 वीं वर्षगांठ मनाने जा रहा है, उसी माह हमारी फिल्म ‘परमाणु ए स्टोरी आफ पोखरण’ भी सिनेमाघरों में पहुंच रही है. हमें अपनी फिल्म पर गर्व है. इसलिए हम बिना इंतजार किए अपनी फिल्म को 4 मई 2018 को दर्शकों तक पहुंचाएंगे.’’
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2 हत्याओं की बात थी, इसलिए सूचना मिलते ही एसपी (ग्रामीण) जयप्रकाश सिंह, सीओ अजय कुमार और थानाप्रभारी प्रयाग नारायण वाजपेयी गांव अज्योरी पहुंच गए थे. यह गांव उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के थाना सजेती के अंतर्गत आता है. दोनों हत्याएं इसी गांव के श्रीपाल के घर हुई थीं. यह 19 अगस्त, 2017 की बात है.
पुलिस अधिकारी श्रीपाल के घर के अंदर घुसे तो वहां की हालत देख कर दहल उठे. आंगन में 2 लाशें खून से सनी अगलबगल पड़ी थीं. एक लाश युवक की थी तो दूसरी युवती की. युवक की उम्र 25 साल के आसपास थी, जबकि युवती की 20 साल के आसपास थी. दोनों लाशों के बीच 315 बोर का एक तमंचा और कारतूस के 2 खोखे भी पड़े थे.
पुलिस अधिकारी यह देख कर सोच में पड़ गए कि युवती की लाश पर तो घर वाले बिलख रहे थे, जबकि युवक की लाश पर वहां कोई रोने वाला नहीं था. एसपी जयप्रकाश सिंह ने श्रीपाल से इस बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘साहब, युवती मेरी बेटी रीता है और युवक मेरे दामाद बबलू का छोटा भाई पीयूष उर्फ छोटू. इसी ने गोली मार कर पहले रीता की हत्या की होगी, उस के बाद खुद को गोली मार आत्महत्या कर ली है. जब इस ने यह सब किया, तब घर में कोई नहीं था.’’
‘‘इस ने ऐसा क्यों किया?’’ जयप्रकाश सिंह ने पूछा.
‘‘साहब, पीयूष रीता से एकतरफा प्यार करता था और शादी के लिए परेशान कर रहा था. जबकि रीता उस से शादी नहीं करना चाहती थी. आज भी इस ने शादी के लिए ही कहा होगा, रीता ने मना किया होगा तो उस ने उसे मार डाला.’’ श्रीपाल ने कहा.
‘‘तुम ने पीयूष के घर वालों को इस घटना की सूचना दे दी है?’’
‘‘जी साहब, मैं ने फोन कर के इस के पिता और भाई को बता दिया है. लेकिन उन्होंने आने से साफ मना कर दिया है.’’ श्रीपाल ने कहा.
‘‘क्यों?’’ जयप्रकाश सिंह ने पूछा.
‘‘साहब, इस की हरकतों से पूरा परिवार परेशान था. यह घर वालों से रीता से शादी कराने के लिए कहता था, शराब पी कर झगड़ा करता था, इसलिए घर वाले इस से त्रस्त थे. यही वजह है कि इस की मौत की खबर पा कर भी कोई आने को तैयार नहीं है.’’
इस के बाद सीओ अजय कुमार ने पीयूष के पिता विश्वंभर को फोन किया तो उस ने कहा, ‘‘साहब, मिट्टी का तेल डाल कर आप उस की लाश को जला दीजिए. उस ने जो किया है, उस से मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा. अब मैं उस का मुंह नहीं देखना चाहता.’’
इस के बाद अजय कुमार ने उस के बडे़ भाई बबलू को फोन किया तो उस ने भी यह कह कर आने से मना कर दिया कि उस की हरकतों से परेशान हो कर उस ने तो पहले ही उस से संबंध खत्म कर लिए थे. अब तक फोरेंसिक टीम आ चुकी थी. उस ने अपना काम कर लिया तो थानाप्रभारी प्रयाग नारायण वाजपेयी ने दोनों लाशों का पंचनामा तैयार कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया.
इस के बाद रीता के घर वालों से विस्तार से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में हत्या की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—
कानपुर के कस्बा सजेती से 3 किलोमीटर की दूरी पर सड़क किनारे बसा है गांव अज्योरी. इसी गांव में श्रीपाल अपनी पत्नी, 2 बेटियों गुड्डी, रीता और 2 बेटों रविंद्र एवं अरविंद के साथ रहता था. उस के पास खेती की जो जमीन थी, उसी की पैदावार से वह अपना गुजरबसर करता था.
श्रीपाल की बड़ी बेटी गुड्डी ने दसवीं पास कर के पढ़ाई छोड़ दी तो उन्होंने कानपुर के थाना नौबस्ता के मोहल्ला मछरिया के रहने वाले विश्वंभर के बेटे बबलू से उस का विवाह कर दिया. विश्वंभर का अपना मकान था. भूतल पर किराने की दुकान थी, जिसे वह संभालते थे. बबलू नौकरी करता था, जबकि उस से छोटा पीयूष ड्राइवर था.
पीयूष ट्रक चलाता था. उसे जो भी वेतन मिलता था, वह खुद पर ही खर्च करता था. घर वालों को एक पैसा नहीं देता था. हां, अगर गुड्डी कुछ कह देती तो वह उस की फरमाइश पूरी करता था. देवरभाभी में पटती भी खूब थी. दोनों के बीच हंसीमजाक भी खूब होती थी. लेकिन इस हंसीमजाक में दोनों मर्यादाओं का खयाल जरूर रखते थे.
गुड्डी की छोटी बहन रीता बेहद खूबसूरत थी. उस की इस खूबसूरती में चारचांद लगाता था उस का स्वभाव. वह अत्यंत सौम्य और मृदुभाषी थी. जवानी की दहलीज पर उस ने कदम रखा तो उस की खूबसूरती और बढ़ गई. देखने वालों की निगाहें जब उस पर पड़तीं, ठहर कर रह जातीं. रीता तनमन से जितनी खूबसूरत थी, उतना ही पढ़ने में भी तेज थी. इस समय वह बीए फाइनल ईयर में पढ़ रही थी. अपने स्वभाव और पढ़ाई की वजह से रीता मांबाप की ही नहीं, भाइयों की भी आंखों का तारा थी.
पीयूष जब कभी भाई की ससुराल जाता, उस की नजरें रीता पर ही जमी रहतीं. मौका मिलने पर वह उस से हंसीमजाक और छेड़छाड़ भी कर लेता था. जीजासाली का रिश्ता होने की वजह से रीता ज्यादा विरोध भी नहीं करती थी. शरमा कर आंखें झुका लेती थी. इस से पीयूष को लगता था कि रीता उस में दिलचस्पी ले रही है.
इसी साल जून महीने की एक तपती दोपहर को पीयूष ट्रक ले कर हमीरपुर जा रहा था. घाटमपुर कस्बा पार करते ही उस का ट्रक खराब हो गया. उस ने ट्रक खलासी के हवाले किया और खुद आराम करने की गरज से भाई की ससुराल पहुंच गया. संयोग से उस समय रीता घर में अकेली थी. छोटे जीजा को देख कर रीता ने मुसकराते हुए पूछा, ‘‘आप चाय पिएंगे या शरबत?’’
‘‘चिलचिलाती धूप से आ रहा हूं. अभी कुछ भी पीने से तबीयत खराब हो सकती है.’’ अंगौछे से पसीना पोंछते हुए पीयूष ने कहा.
‘‘जीजाजी, आप आराम कीजिए मैं टीवी देख रही हूं. आप को जब भी कुछ पीना हो, बता दीजिएगा.’’ रीता ने कहा.
‘‘टीवी पर देहसुख वाली फिल्म देख रही हो क्या?’’ पीयूष ने हंसी की.
शरमाते हुए रीता ने कहा, ‘‘जीजाजी, आप इस तरह की फालतू बातें मत किया कीजिए.’’
‘‘रीता यह फालतू की बात नहीं, इसी में जिंदगी का सच है.’’
‘‘कुछ भी हो, मुझे इस तरह की बातों में कोई रुचि नहीं है.’’ कहते हुए रीता कमरे से चली गई.
थोड़ी देर आराम करने के बाद पीयूष ने पानी मांगा तो रीता गिलास में ठंडा पानी ले आई. उसे देख कर पीयूष ने कहा, ‘‘रीता, तुम सचमुच बहुत सुंदर हो. तुम्हें देख कर किसी का भी मन डोल सकता है. मेरा भी जी चाहता है कि तुम्हें अपनी बांहों में भर लूं.’’
रीता ने अदा से मुसकराते हुए कहा, ‘‘अभी धीरज रखो जीजाजी और आराम से पानी पियो. मुझे बांहों में भरने का सपना रात में देखना.’’
इस के बाद दोनों खिलखिला कर हंस पड़े. पीयूष मन ही मन सोचने लगा कि रीता उस की किसी भी बात का बुरा नहीं मानती है. इस का मतलब उस के दिल में भी वही सब है, जो वह उस के बारे में सोचता है. जिस तरह वह रीता को चाहता है, उसी तरह रीता भी मन ही मन उसे चाहती है.
रीता के प्यार में आकंठ डूबा पीयूष उसे अपनी जीवनसंगिनी बनाने का ख्वाब देखने लगा. अब वह रीता के घर कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा. उसे रिझाने के लिए जब भी वह आता, कोई न कोई उपहार ले कर आता. थोड़ी नानुकुर के बाद रीता उस का लाया उपहार ले भी लेती. जबकि रीता जानती थी कि इन उपहारों को लाने के पीछे पीयूष का कोई न कोई स्वार्थ जरूर है.
दिन बीतने के साथ रीता को पाने की चाहत पीयूष के मन में बढ़ती ही जा रही थी. लेकिन रीता न तो उस के प्यार को स्वीकार रही थी और न ही मना कर रही थी. रीता के कुछ न कहने से पीयूष की समझ में नहीं आ रहा था कि रीता उस से प्यार करती भी है या नहीं?
इस बात को पता करने के लिए एक दिन पीयूष रीता के यहां आया और उस की खूबसूरती का बखान करते हुए उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘रीता, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अब तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’
‘‘यह क्या कह रहे हैं जीजाजी आप?’’ रीता ने अपना हाथ छुड़ा कर कहा, ‘‘आप भले ही मुझ से प्यार करते हैं, लेकिन मैं आप से प्यार नहीं करती. आप से हंसबोल लेती हूं तो इस का मतलब यह नहीं कि मैं आप से प्यार करती हूं.’’
‘‘मजाक मत करो रीता,’’ पीयूष ने कहा, ‘‘रीता, तुम मेरी साली हो और साली तो वैसे भी आधी घरवाली होती है. लेकिन मैं तुम्हें पूरी तरह अपनी घरवाली बनाना चाहता हूं. इसलिए तुम मना मत करो.’’
‘‘हरगिज नहीं,’’ रीता गुस्से में बोली, ‘‘न तो मैं तुम से प्यार करती हूं और न तुम मेरी पसंद हो. मैं बीए कर रही हूं, जबकि तुम कक्षा 8 भी पास नहीं हो. मैं किसी पढ़ेलिखे लड़के से शादी करूंगी, किसी ड्राइवर से नहीं, इसलिए आप मुझे भूल जाओ.’’
रीता के इस तरह साफ मना कर देने से पीयूष का दिल टूट गया. लेकिन वह एकतरफा प्यार में इस तरह पागल था कि उसे लगता था कि एक न एक दिन रीता मान जाएगी. इसलिए उस ने रीता के यहां आनाजाना बंद नहीं किया. यह बात अलग थी कि अब रीता उस से ज्यादा बात नहीं करती थी.
रीता ने पीयूष के एकतरफा प्यार की बात घर वालों को बताई तो सब परेशान हो उठे. यह एक गंभीर समस्या थी, इसलिए यह बात गुड्डी और उस के पति बबलू को भी बता दी गई. दोनों ने पीयूष को समझाया कि वह रीता को भूल जाए. इस पर पीयूष ने साफ कह दिया कि वह शादी करेगा तो सिर्फ रीता से करेगा, वरना जहर खा कर जान दे देगा.
पीयूष शराब भी पीता था. रीता ने उस के प्यार को ठुकराया तो वह कुछ ज्यादा ही शराब पीने लगा. वह जबतब शराब पी कर रीता से मिलने उस के घर पहुंच जाता और रीता पर शादी के लिए दबाव बनाता. रीता उसे खरीखोटी सुना कर शादी से मना कर देती थी.
पीयूष रीता के घर वालों पर भी शादी के लिए दबाव डाल रहा था. वह धमकी भी देता था कि अगर रीता से उस की शादी नहीं हुई तो अच्छा नहीं होगा. आखिर निराश हो कर पीयूष ने रीता के घर जाना बंद कर दिया. लेकिन वह उसे फोन जरूर करता था. रीता कभी फोन रिसीव कर लेती तो कभी काट देती. पीयूष दिनरात फोन करने लगा तो परेशान हो कर रीता ने अपना फोन नंबर ही बदल दिया.
रीता के यहां से इनकार होने पर पीयूष ने भाई और पिता से कहा कि वे रीता के पिता से बात कर के उस की शादी रीता से करा दें. अगर वे शादी के लिए तैयार नहीं होते तो गुड्डी को घर से निकाल दें. इस पर बात करने की कौन कहे, पिता और भाई ने पीयूष को ही डांटा.
पिता और भाई के मना करने से नाराज हो कर पीयूष ने काफी मात्रा में नींद की गोलियां खा लीं. उस की हालत बिगड़ने लगी तो उसे हैलट अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे बचा लिया. इस के बाद बबलू गुड्डी को ले कर परिवार से अलग हो गया और किराए का कमरा ले कर रहने लगा. विश्वंभर ने भी पीयूष से परेशान हो कर उस से बातचीत बंद कर दी.
पीयूष रीता के प्यार में इस तरह पागल था कि उसे जबरदस्ती हासिल करने के बारे में सोचने लगा. उस का एक साथी ड्राइवर अपराधी प्रवृत्ति का था. कई बार वह जेल भी जा चुका था. उसी की मदद से पीयूष ने 315 बोर का एक तमंचा और 4 कारतूस खरीदे. उस ने उसी से तमंचा चलाना भी सीखा.
पीयूष 19 अगस्त, 2017 की दोपहर घर पहुंचा और पिता से जबरदस्ती मोटरसाइकिल की चाबी ले कर मोटरसाइकिल निकाली और रीता के घर पहुंच गया. संयोग से उस समय घर में रीता अकेली थी. पीयूष ने रीता को आंगन में बुला कर उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘रीता, मैं तुम से आखिरी बार पूछ रहा हूं कि तुम मुझ से शादी करोगी या नहीं?’’
अपना हाथ छुड़ाते हुए रीता गुस्से में बोली, ‘‘मैं ने कितनी बार कहा कि मैं तुम से शादी नहीं कर सकती. आखिर यह बात तुम्हारी समझ में क्यों नहीं आती?’’
‘‘एक बार और सोच लो रीता. तुम्हारा मना करना कहीं तुम्हें भारी न पड़ जाए?’’
‘‘मैं ने एक बार नहीं, हजार बार सोच लिया है कि मैं तुम से शादी नहीं करूंगी.’’
‘‘तो फिर यह तुम्हारा आखिरी फैसला है?’’ पीयूष ने पूछा.
‘‘हां, यह मेरा आखिरी फैसला है.’’ रीता ने कहा.
‘‘तो फिर मेरा भी फैसला सुन लो. अगर तुम मेरी दुलहन नहीं बनोगी तो मैं तुम्हें किसी और की भी दुलहन नहीं बनने दूंगा.’’ कह कर पीयूष ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और रीता के सीने पर फायर कर दिया. गोली लगते ही रीता जमीन पर गिरी और तड़प कर मर गई.
रीता की हत्या करने के बाद पीयूष ने अपनी भी गरदन पर तमंचा सटा कर गोली चला दी. गोली उस के सिर को भेदती हुई उस पार निकल गई. कुछ देर तड़पने के बाद उस ने भी दम तोड़ दिया.
गोली चलने की आवाज सुन कर आसपड़ोस वाले श्रीपाल के घर पहुंचे तो आंगन में 2-2 लाशें देख कर दहल उठे. पूरे गांव में शोर मच गया. श्रीपाल घर पहुंचे तो रीता के साथ पीयूष की लाश देख कर समझ गए कि पीयूष ने रीता की हत्या कर के आत्महत्या कर ली है. इस के बाद उन्होंने पुलिस को सूचना दे दी.
पीयूष के घर वाले पुलिस के कहने के बाद भी उस की लाश लेने नहीं आए तो पुलिस ने रीता की लाश के साथ पीयूष की लाश को भी श्रीपाल के हवाले कर दिया. मजबूरी में श्रीपाल को बेटी की लाश के साथ पीयूष का अंतिम संस्कार करना पड़ा. थाना सजेती पुलिस ने इस मामले में रिपोर्ट तो दर्ज की, पर आरोपी द्वारा आत्महत्या कर लेने से फाइल बंद कर दी.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
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सुबह का उजाला अभी फैलना शुरू हुआ था कि ‘बचाओ बचाओ’ की मर्मभेदी चीख ने वहां मौजूद लोगों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया था. चीखने वाले पर तेजधार हथियार से एक युवक ने हमला किया था, जिस से गंभीर रूप से घायल हो कर वह चीखा था. चीखने के साथ ही वह सड़क पर गिर पड़ा था और गिरते ही बेहोश हो गया था.
उस युवक के गिरते ही उस पर हमला करने वाला युवक लंबे फल का खून सना चाकू हाथ में लिए भागा था. सुबह का समय होने की वजह से वहां बहुत कम लोग थे, लेकिन जो भी थे, वे उस का पीछा करने या पकड़ने की हिम्मत नहीं कर सके थे.
पर उन लोगों ने इतना जरूर किया कि हमलावर के भागने के बाद सड़क पर घायल पड़े युवक को पंचकूला के सैक्टर-6 स्थित जनरल अस्पताल पहुंचा दिया था. उसे देखते ही डाक्टरों ने मृत घोषित करने के साथ इस की सूचना पुलिस को दे दी थी.
सूचना मिलते ही थाना मौलीजागरां के एएसआई गुरमीत सिंह सुबह 7 बजे के करीब अस्पताल पहुंच गए थे. घटना की जानकारी ले कर उन्होंने थानाप्रभारी इंसपेक्टर बलदेव कुमार को सूचित किया तो सिपाही अमित कुमार के साथ वह भी अस्पताल पहुंच गए थे.
जरूरी काररवाई कर के बलदेव कुमार ने उन लोगों से बात की, जो मृतक को अस्पताल ले कर आए थे. वे 2 लोग थे, जिन में एक 19 साल का मोहम्मद चांद था और दूसरा था ड्राइवर अशोक कुमार. पूछताछ में चांद ने बताया था कि वह पंचकूला के सैक्टर-16 की इंदिरा कालोनी के मकान नंबर 1821 में रहता था और सैक्टर-17 की राजीव कालोनी स्थित शरीफ हलाल मीट शौप पर नौकरी करता था.
सुबह जल्दी जा कर चांद ही दुकान खोलता था. मृतक को ही नहीं, उस पर हमला करने वाले को भी वह अच्छी तरह से पहचानता था. वह सुबह 5 बजे दुकान पर पहुंचा तो मुर्गा सप्लाई करने वाली गाड़ी आ गई. गाड़ी के ड्राइवर अशोक कुमार ने मोहम्मद चांद को आवाज दे कर गाड़ी से मुर्गे उतारने को कहा.
मोहम्मद चांद गाड़ी के पीछे पहुंचा तो गाड़ी में बैठा ड्राइवर का सहायक इरफान उतर कर उस के पास आ गया. जैसे ही वह जाली वाला दरवाजा खोल कर मुर्गे निकालने के लिए आगे बढ़ा, शाहबाज हाथ में चाकू लिए वहां आया और इरफान के सिर पर उसी चाकू से वार कर दिया.
वार होते ही इरफान पीछे की ओर घूमा तो शाहबाज ने कहा, ‘तुम ने मेरी भोलीभाली बहन को अपनी मीठीमीठी बातों में फंसा कर मेरी मरजी के खिलाफ उस से शादी की है न? तो आज मैं तुझे उसी का सबक सिखा रहा हूं. आज मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’
इस के बाद शाहबाज ने इरफान की छाती, आंख के नीचे और कमर तथा पेट पर लगातार कई वार किए. इरफान ‘बचाओ…बचाओ’ की गुहार लगाते हुए नीचे गिर गया. शाहबाज का गुस्सा और उस के हाथ में चाकू देख कर कोई भी उस के पास जाने की हिम्मत नहीं कर सका.
लेकिन जैसे ही शाहबाज चला गया, मोहम्मद चांद और अशोक कुमार ने किसी तरह इरफान को अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे देखते ही मरा हुआ बताया. ऐसा ही कुछ अशोक कुमार ने भी बताया था, लेकिन उस का कहना था कि वह आगे था. शोर सुन कर पीछे आया. तब तक शाहबाज अपना काम कर के जा चुका था.
इंसपेक्टर बलदेव कुमार ने हत्याकांड के चश्मदीद मोहम्मद चांद के बयान के आधार पर शाहबाज के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करने की अनुशंसा कर के तहरीर थाना भेज दी, जहां एफआईआर नंबर 101 पर भादंवि की धारा 302 के तहत यह केस दर्ज कर लिया गया. यह घटना 4 जून, 2016 की है.
उसी दिन पुलिस की एक टीम शाहबाज की तलाश में जुट गई. उस के बारे में पता करने के लिए विश्वस्त मुखबिर भी सक्रिय कर दिए गए थे. मुखबिर की ही सूचना पर शाहबाज को उसी दिन रात में गांव मक्खनमाजरा से गिरफ्तार कर लिया गया.
अदालत से कस्टडी रिमांड ले कर सब से पहले शाहबाज से उस चाकू के बारे में पूछा गया, जिस से उस ने इरफान का कत्ल किया था. 6 जून को उस की निशानदेही पर वह चाकू मौलीजागरां की एक कब्रगाह से बरामद कर लिया गया. उस ने वहां चाकू को पत्थरों के नीचे दबा कर रखा था. लेकिन उस पर लगा खून उस ने साफ कर दिया था.
इस के बाद शाहबाज से इरफान की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—
मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के रहने वाले शाहबाज और इरफान एक ही गांव के रहने वाले थे, इसलिए वे एक साथ खेलकूद कर बड़े हुए थे. कुछ दिनों पहले कामधंधे की तलाश में दोनों चंडीगढ़ आ गए. इरफान जहां अपने बड़े भाई के साथ आया था, वहीं शाहबाज अपने पूरे परिवार के साथ आया था. उस के परिवार में अब्बूअम्मी के अलावा एक छोटी बहन साहिबा थी.
चंडीगढ़ में दोनों पंचकूला की सीमा पर बसे गांव मौलीजागरां में थोड़ी दूरी पर अलगअलग किराए के मकान ले कर रहने लगे थे. मौलीजागरां जहां चंडीगढ़ में पड़ता है, वहीं मुख्य सड़क के उस पार की दुकानें हरियाणा के जिला पंचकूला के सैक्टर-17 की राजीव कालोनी के अंतर्गत आती हैं. उन्हीं में से एक दुकान पर शाहबाज जहां मुर्गे काटने का काम करने लगा था, वहीं इरफान को मुर्गे सप्लाई करने वाली गाड़ी पर सहायक की नौकरी मिल गई थी.
अपने हिसाब से दोनों का काम ठीकठाक चल रहा था. शाहबाज के अब्बू को भी नौकरी मिल गई थी. इरफान और शाहबाज हमउम्र थे. दोनों इतने गहरे दोस्त थे कि उन में सगे भाइयों जैसा प्यार था. एक दिन भी दोनों एकदूसरे से मिले बिना नहीं रह पाते थे. एकदूसरे के यहां आनाजाना, खाना खा लेना या फिर कभीकभार सो जाना आम बात थी.
साहिबा भी दोनों के साथ बचपन से खेलतीकूदती आई थी. मगर अब वह जवान हो चुकी थी. घर वाले उस के निकाह के बारे में सोचने लगे थे. देखनेदिखाने की बात चली तो साहिबा ने हिम्मत कर के शरमाते हुए घर वालों से कहा कि वह इरफान से प्यार करती है और उसी से निकाह करना चाहती है.
साहिबा की इस बात से शाहबाज के घर में तूफान सा आ गया. घर का कोई भी आदमी इस रिश्ते के लिए तैयार नहीं था. शाहबाज ने साफ कहा, ‘‘इस से बड़ी जिल्लत मेरे लिए और क्या होगी कि लोग यह कह कर मेरा मजाक उड़ाएंगे कि अपनी बहन का निकाह करने के लिए ही मैं ने इरफान से दोस्ती की थी. क्या निकाह के लिए सिर्फ वही रह गया है? दुनिया में और कोई लड़का नहीं है? मैं यह निकाह किसी भी कीमत पर नहीं होने दूंगा.’’
शाहबाज ने साहिबा को तो लताड़ा ही, इरफान से भी झगड़ा किया. इरफान ने उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि जो भी होगा, घर वालों की रजामंदी से होगा. लेकिन शाहबाज ने साफ कह दिया कि वह साहिबा को भूल जाए और किसी अन्य लड़की से निकाह कर ले, वरना उस के लिए ठीक नहीं होगा.
शाहबाज की इस धमकी का नतीजा यह हुआ कि कुछ दिनों बाद इरफान साहिबा को भगा ले गया और एक धार्मिक स्थल पर दोनों ने निकाह कर लिया. वह वापस आया तो साहिबा को शरीकेहयात बना कर आया. शाहबाज को इस मामले में सारी गलती इरफान की नजर आ रही थी. उस ने अपने दिलोदिमाग में बैठा लिया कि इरफान ने साहिबा के भोलेपन का फायदा उठा कर उसे अपनी बातों में फंसा लिया है.
शाहबाज इरफान से पहले से ही नाराज था, जलती पर घी का काम किया उस ने साहिबा को भगा कर. उस के अब्बू ने इस से बहुत ज्यादा शर्मिंदगी महसूस की. इसी की वजह उन्होंने 2 दिनों बाद ही मौलीजागरां का अपना निवास छोड़ दिया था और वहां से 20 किलोमीटर दूर जा कर कस्बा डेराबस्सी में किराए का मकान ले कर रहने लगे थे. उन्होंने उधर जाना ही छोड़ दिया था. शाहबाज को नौकरी की वजह से उधर जाना पड़ता था.
जिस मीट की दुकान पर शाहबाज काम करता था, इरफान रोजाना उधर मुर्गे की सप्लाई करने आता था. लेकिन निकाह के बाद वह उधर दिखाई नहीं दिया था. पता चला कि निकाह के दिन से ही उस ने छुट्टी ले रखी है.
4 जून, 2016 की बात है. साहिबा से इरफान को निकाह किए 5 दिन हो गए थे. सुबह के 5 बजे शाहबाज दुकान पर पहुंच कर मुर्गा काटने वाला चाकू तेज कर रहा था. तभी मुर्गेवाली गाड़ी आ कर उस की दुकान से थोड़ी दूरी पर सड़क के किनारे रुकी. इरफान उतर कर गाड़ी के पीछे की ओर आया.
शाहबाज ने उसे आते देखा तो उसे देख कर उस की आंखों में खून उतर आया. उस के पास सोचनेविचारने का वक्त नहीं था. वह मीट काटने वाला चाकू ले कर तेजी से भागता हुआ इरफान के पास पहुंचा और जरा सी देर में उसे मौत के घाट उतार कर भाग गया.
पहले तो उस ने कब्रिस्तान के पास एक जगह चाकू को साफ कर के पत्थरों के नीचे छिपा दिया. उस के बाद बचने के लिए इधरउधर छिपता रहा. लेकिन पुलिस ने उसे पकड़ लिया. उस ने कहा कि इरफान ने काम ही ऐसा किया था, जिस से उसे मारने का कोई अफसोस नहीं है. इरफान ने जो किया था, उस की उसे यही सजा मिलनी चाहिए थी.
पूछताछ के बाद पुलिस ने शाहबाज को फिर से अदालत में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में बुड़ैल जेल भेज दिया गया.
बलदेव कुमार ने उस के खिलाफ आरोपपत्र तैयार कर समय से निचली अदालत में दाखिल कर दिया, जहां से सैशन कमिट हो कर 13 सितंबर, 2016 से मामले की सुनवाई चंडीगढ़ के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश अतुल कसाना की अदालत में शुरू हुई.
6 अक्तूबर को अदालत ने शाहबाज के खिलाफ धारा 302 का चार्ज फ्रेम कर दिया. उस ने अदालत में खुद को बेकसूर बताते हुए दरख्वास्त की थी कि पुलिस ने एक झूठी कहानी गढ़ कर इस केस में उसे बिना मतलब फंसा दिया है. वह अपने उन बयानों से भी मुकर गया, जो उस ने कस्टडी रिमांड के दौरान पुलिस को दिए थे.
मामले की विधिवत सुनवाई शुरू होते ही अभियोजन पक्ष ने डा. अमनदीप सिंह, डा. गौरव, मोहम्मद चांद, इंतजाम अली, अशोक कुमार, इंसपेक्टर बलदेव कुमार, फोटोग्राफर फूला सिंह, हवलदार सतनाम सिंह, रमेशचंद, धर्मपाल एवं यशपाल के अलावा सीनियर कांस्टेबल कृष्णकुमार, एसआई गुरमीत सिंह, एसआई गुरनाम सिंह और डा. मनदीप सिंह के रूप में 15 गवाह अदालत में पेश किए.
इस के बाद अतिरिक्त पब्लिक प्रौसीक्यूटर ने अभियोजन पक्ष की गवाहियों के पूरी होने के बाद सीआरपीसी की धारा 293 के तहत फोरैंसिक साइंस लैबोरेटरी की रिपोर्ट के अलावा विसरा रिपोर्ट भी पेश की.
अभियोजन पक्ष की काररवाई पूरी होने के बाद 20 जनवरी, 2017 को कोड औफ क्रिमिनल प्रोसीजर की धारा 313 के तहत अभियुक्त शाहबाज का स्टेटमैंट रिकौर्ड किया गया. अभियुक्त ने उक्त सभी गवाहों को झूठ करार देते हुए यही कहा कि वह बेकसूर है. उसे झूठा फंसाया गया है.
बचाव पक्ष की ओर से साहिबा को पेश किया गया. कोड औफ क्रिमिनल प्रोसीजर की धारा 315 के अधीन दर्ज अपने बयान में साहिबा ने अदालत को बताया कि उस ने इरफान से प्रेम विवाह किया था, जिस का परिवार वालों ने पहले तो विरोध किया, लेकिन बाद में मान गए थे.
इरफान ने उसे बताया था कि उस की कुछ गलत लोगों से ऐसी दुश्मनी हो गई है कि वे मौका मिलने पर उस की जान ले सकते हैं. ऐसे में हो सकता है, इरफान को उन्हीं लोगों ने मारा हो, न कि शाहबाज ने.
बचाव पक्ष की ओर से अशोक कुमार को अविश्वसनीय करार देते हुए अदालत ने उसे मुकरा गवाह घोषित करने की गुहार लगाई गई, जो अदालत ने मान भी ली. यह भी दलील दी गई कि पुलिस द्वारा बरामद चाकू पर डाक्टर की रिपोर्ट के मुताबिक मानवीय खून नहीं लगा था.
31 जनवरी, 2017 को विद्वान जज अतुल कसाना ने इस मामले का फैसला सुनाते हुए खुली अदालत में कहा कि उन्होंने दोनों पक्षों को ध्यानपूर्वक सुनने के अलावा सभी साक्ष्यों को गौर से जांचापरखा है, जिन से यह केस शीशे की तरह साफ है. अशोक कुमार को भले मुकरा गवाह करार दिया गया है, लेकिन उस की गवाही को नकारा नहीं जा सकता.
वह भी एक तरह से इस केस का चश्मदीद गवाह था. भले ही उस की गवाही में बाद में कुछ विपरीत बातें सामने आईं, जिस वजह से उसे मुकरा गवाह घोषित किया गया. लेकिन उस की शुरू की गवाही अभियोजन पक्ष को पूरी तरह मजबूती देने में सहायक सिद्ध हुई है.
चाकू पर मानवीय खून का अंश होने की बात रिपोर्ट में पहले ही आ चुकी है. हालांकि अभियुक्त ने उसे फेंकने से पहले साफ कर दिया था. साहिबा को बचाव पक्ष ने गवाह के रूप में पेश कर के केस की दिशा बदलने का प्रयास किया. लेकिन उस की प्रेम विवाह वाली बात मान लेने से ही प्रौसीक्यूशन की कहानी को बल मिल जाता है.
लिहाजा यह अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि अभियोजन पक्ष आरोप सिद्ध करने में कामयाब रहा है और अभियुक्त शाहबाज खान मृतक मोहम्मद इरफान का कत्ल करने का दोषी पाया गया है. अभी वह जेल में है. सजा की बाबत सुनने के लिए उसे अगले दिन अदालत में पेश किया जाए.
अगले दिन शाहबाज को ला कर अदालत में पेश किया गया तो माननीय एडीजे अतुल कसाना ने उसे उम्रकैद के अलावा 10 हजार रुपए जुरमाने की सजा सुनाई.
– कथा अदालत के फैसले पर आधारित
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संजय वर्मा का परिवार दिल्ली के हुमायूंपुर में रहता था, लेकिन उस के पिता मदनमोहन वर्मा रिटायरमेंट के बाद उत्तरपूर्वी दिल्ली के भजनपुरा में अकेले ही रहते थे. पिता और पुत्र अपनीअपनी दुनिया में मस्त थे.
22 जुलाई, 2017 की सुबह भजनपुरा में मदनमोहन के पड़ोस में रहने वाले विजय ने संजय वर्मा को फोन कर के बताया, ‘‘आप के पिता के कमरे का कल सुबह से ताला बंद है. उन के कमरे से तेज बदबू आ रही है.’’
विजय की बात सुन कर संजय वर्मा को पिता की चिंता हुई. उन्होंने उसी समय पिता का नंबर मिलाया, तो उन का फोन स्विच्ड औफ मिला. फोन बंद मिलने पर उन की चिंता और बढ़ गई. इस के बाद वह भजनपुरा के सी ब्लौक स्थित अपने पिता के तीसरी मंजिल स्थित कमरे पर पहुंच गए.
संजय को भी पिता के कमरे से तेज दुर्गंध आती महसूस हुई. उस के मन में तरहतरह की आशंकाएं आने लगीं. कहीं उन के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई, यह सोच कर उस ने अपने मोबाइल फोन से दिल्ली पुलिस के कंट्रोलरूम को फोन कर के पिता के बंद कमरे से आ रही बदबू की सूचना दे दी. यह क्षेत्र थाना भजनपुरा के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोलरूम से यह सूचना थाना भजनपुरा को प्रेषित कर दी गई.
सूचना पा कर एएसआई हरकेश कुमार हैडकांस्टेबल सतेंदर कुमार को अपने साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जैसे ही वह भजनपुरा के सी ब्लौक स्थित मकान नंबर 412 की तीसरी मंजिल पर पहुंचे, वहां बालकनी पर कुछ लोगों की भीड़ लगी दिखाई दी. उन्हीं के बीच संजय परेशान हालत में मिला.
एएसआई हरकेश कुमार को अपना परिचय देते हुए संजय ने बताया, ‘‘सर, मैं ने ही पीसीआर को फोन किया था.’’
जिस कमरे से बदबू आ रही थी, उस के बाहर ताला लगा था. इस से उन्होंने सहज ही अनुमान लगा लिया कि जरूर कोई अप्रिय घटना घटी है. इसलिए उन्होंने इस की जानकारी थानाप्रभारी अरुण कुमार को दे दी.
कुछ ही देर में थानाप्रभारी अन्य स्टाफ के साथ वहां आ पहुंचे. कमरे के बाहर लटके ताले की चाबी संजय के पास नहीं थी, इसलिए पुलिस ने ताला तोड़ दिया. दरवाजा खुलते ही दुर्गंध का झोंका आया. पुलिस कमरे में दाखिल हुई तो पूरब दिशा की ओर की दीवार से सटे दीवान के अंदर एक अधेड़ आदमी की सड़ीगली लाश एक कार्टून में बंद मिली.
लाश देख कर संजय रोने लगा, क्योंकि वह लाश उस के पिता मदनमोहन वर्मा की थी. अरुण कुमार ने मौके पर क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को भी बुला लिया. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम का काम निपट गया तो पुलिस लाश का निरीक्षण करने लगी. मृतक के सिर के पीछे चोट का गहरा निशान था.
दीवान के बौक्स में और उस के नीचे कमरे के फर्श पर खून फैला था, जो सूख चुका था. इस से अनुमान लगाया कि यह हत्या 2-3 दिन पहले की गई थी. कमरे में मौजूद सारा सामान अपनी जगह मौजूद था. इस से इस बात की पुष्टि हो गई कि हत्यारे का मकसद लूटपाट नहीं था.
हत्या क्यों की गई, यह जांच के बाद ही पता चल सकता था. पुलिस ने मौके की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद लाश को पोस्टमार्टम के लिए जीटीबी अस्पताल भेज दिया. इस के बाद थाने आ कर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. इस मामले की जांच अतिरिक्त थानाप्रभारी राजीव रंजन को सौंपी.
इंसपेक्टर राजीव रंजन ने इस हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने के लिए संभावित सुराग की तलाश में दोबारा घटनास्थल का निरीक्षण किया. उन्होंने मृतक के बेटे संजय वर्मा और वहां रहने वाले पड़ोसियों से काफी देर तक पूछताछ की. पड़ोसी विजय ने बताया कि उन्होंने आखिरी बार मदनमोहन वर्मा को 20 जुलाई की रात साढ़े 10 बजे कमरे के बाहर देखा था.
संजय ने उन्हें बताया था कि उस के पिता शुरू से ही अलग मिजाज के व्यक्ति थे. घर के लोगों में वह ज्यादा रुचि नहीं लेते थे. रिटायरमेंट के बाद बेटे और बहुओं के होते हुए भी वह यहां भजनपुरा में अलग रहते थे. उन की देखभाल करने नौकरानी चंपा आती थी. वह घर की साफसफाई, खाना बनाने के साथ उन के कपड़े भी धोती थी.
नौकरानी चंपा का जिक्र आते ही इंसपेक्टर राजीव रंजन उस में रुचि लेने लगे. उन्होंने विजय को थाने में बुला कर पुन: पूछताछ की. उन्होंने नौकरानी के स्वभाव और उस के मदनमोहन के यहां आने और घर जाने के समय के बारे में पूछा. विजय ने बताया कि चंपा मदनमोहन वर्मा के काफी करीब थी. जिस दिन से उन के दरवाजे के बाहर ताला लगा था, पिछली रात को नौकरानी चंपा के जवान बेटे प्रेमनाथ को एक अन्य लड़के के साथ मकान के नीचे टहलते देखा था.
इंसपेक्टर राजीव रंजन विजय से चंपा का पता हासिल कर वह करावलनगर स्थित उस के घर पहुंच गए. चंपा और उस का पति कल्लन घर पर ही मिल गए.
इंसपेक्टर राजीव रंजन ने चंपा से पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘कल सुबह मदनमोहन वर्मा के यहां काम करने गई थी, लेकिन कमरे का दरवाजा बंद होने के कारण लौट आई थी.’’
उस वक्त चंपा का बेटा प्रेमनाथ घर पर मौजूद नहीं था. राजीव रंजन चंपा से उस के बेटे का मोबाइल नंबर ले कर थाने आ गए.
अगले दिन जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो पता चला कि मदनमोहन का पहले गला घोंटा गया था, उस के बाद में सिर पर घातक चोट पहुंचाई गई थी. इस से इंसपेक्टर राजीव रंजन सोचने लगे कि ऐसी क्रूर हरकत तो कोई दुश्मन ही कर सकता है. यह दुश्मन कौन हो सकता है?
जांच में पुलिस को पता चला था कि सरकारी नौकरी के रिटायर होने के बाद का सारा पैसा मदनमोहन के बैंक एकाउंट में जमा था. वह किसी से पैसा न तो उधार लेते थे और न ही किसी को देते थे. और तो और, बेटों को भी उन्होंने उस में से कोई रकम नहीं दी थी.
राजीव रंजन ने चंपा के बेटे प्रेमनाथ का नंबर मिलाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. इस से उन्हें उस पर शक हुआ. उस का नंबर सर्विलांस पर लगाने और काल डिटेल्स रिपोर्ट निकलवाने पर पता चला कि घटना वाली रात उस के फोन की लोकेशन उसी इलाके की थी, जहां मदनमोहन वर्मा रहते थे.
फिलहाल उस की लोकेशन उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर की थी. प्रेमनाथ के बारे में गुप्तरूप से पता किया गया तो जानकारी मिली कि वह नशेड़ी होने के साथसाथ एक बार जेल भी जा चुका था. भजनपुरा थाने की एक पुलिस टीम प्रेमनाथ की तलाश में मथुरा भेजी गई. पुलिस टीम मथुरा पहुंची तो खबर मिली कि प्रेमनाथ दिल्ली चला गया है. पुलिस ने 24 जुलाई को मुखबिर की सूचना पर प्रेमनाथ को करावलनगर, दिल्ली के कजरी चौक से हिरासत में ले लिया.
थाने में जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने अपने एक दोस्त के साथ मिल कर मदनमोहन वर्मा की हत्या की थी. उस ने हत्या की जो वजह बताई, वह इस प्रकार थी—
मदनमोहन वर्मा सपरिवार दिल्ली के सफदरजंग एनक्लेव के पास हुमायूंपुर में रहते थे. उन का भरापूरा परिवार था. उन के परिवार में पत्नी यशोधरा के अलावा 3 बेटे और एक बेटी थी. बड़ा बेटा संजय वर्मा है, जो दिल्ली की एक प्राइवेट फर्म में नौकरी करता है.
मदनमोहन वर्मा मिंटो रोड स्थित गवर्नमेंट प्रैस में नौकरी करते थे. अच्छे पद पर होने की वजह से उन के घर की आर्थिक स्थिति ठीकठाक थी. घर में सब कुछ होने के बावजूद वह परिवार के सदस्यों में कम रुचि लेते थे. पत्नी यशोधरा से भी उन का रिश्ता बहुत अच्छा नहीं था. दांपत्य जीवन में पति की बेरुखी यशोधरा को हमेशा परेशान करती रही.
वह चाहती थीं कि पति घरपरिवार की जरूरतों को समझें. बेटों के सुखदुख के मौके पर उन का साथ दें. पर उन की यह ख्वाहिश कभी पूरी नहीं हो सकी. आखिरकार पति की बेजा हरकतों और दांपत्य जीवन की कड़वाहट से तंग आ कर 4 साल पहले उन्होंने अपने कमरे में पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली.
उन की मौत के बाद मदनमोहन वर्मा ने घरेलू कामकाज के लिए नौकरानी चंपा को 9 हजार रुपए वेतन पर रख लिया. गोरे रंग और भरे बदन की चंपा की उम्र करीब 35 साल थी. वह सुबह 9 बजे उन के घर आती और सारा काम निपटा कर शाम को अपने घर चली जाती.
चंपा के काम से घर के सारे सदस्य संतुष्ट थे. कभीकभार चंपा को रुपएपैसों की जरूरत होती तो मनमोहन उस की मदद कर देते थे. बाद में वह चंपा पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गए. वह उस से कुछ ज्यादा ही हमदर्दी जताने लगे. चंपा भी अपने मालिक के दयालु स्वभाव से खुश थी.
जिस दिन मदनमोहन औफिस से जल्दी घर आ जाते या उन की छुट्टी होती तो चंपा बहुत खुश रहती. वह पूरे दिन उन के आसपास ही मंडराती रहती. घर के सदस्यों को चंपा की ये हरकतें नागवार गुजरने लगीं. संजय ने चंपा से साफ कह दिया कि वह पापा के कमरे में ज्यादा न जाया करे.
चंपा को नौकरी करनी थी, इसलिए उस ने संजय की बात मानते हुए उन के कमरे में आनाजाना कम कर दिया. मदनमोहन को इस बात का पता नहीं था कि चंपा को उन के कमरे में आने के लिए रोक दिया गया है.
जब मदनमोहन को महसूस हुआ कि चंपा उन से दूर रहने लगी है तो एक दिन उन्होंने उस से पूछ लिया. तब चंपा ने बताया, ‘‘आप के बेटे और बहुओं की नाराजगी की वजह से मैं ने यह दूरी बनाई है.’’
चंपा की बात सुन कर मदनमोहन वर्मा को अपने परिवार वालों पर गुस्सा बहुत आया. वह अपने घर वालों के प्रति और कठोर हो गए. करीब 1 साल पहले जब वह रिटायर हुए तो उन्होंने घर में यह कह कर सब को चौंका दिया कि अब वह उन लोगों से अलग भजनपुरा में अकेले ही रहेंगे.
उन्होंने भजनपुरा में किराए पर कमरा ले भी लिया. रिटायरमेंट के बाद उन्हें करीब 20 लाख रुपए मिले थे. इस में से उन्होंने अपने बेटों को कुछ भी नहीं दिया, जबकि तीनों बेटों और बहुओं को उम्मीद थी कि ससुर के रिटायरमेंट के बाद जो पैसे मिलेंगे, उस में से कुछ उन्हें भी मिलेंगे.
मदनमोहन का तुगलकी फैसला सुन कर बेटों ने उन्हें समझाने की कोशिश की, पर उन के दिमाग में तो कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी. दरअसल, उन के दिमाग में चंपा का यौवन मचल रहा था. अब वह अपनी बाकी की जिंदगी चंपा के साथ गुजारना चाहते थे. चंपा की खातिर उन्होंने खून के सभी रिश्तेनातों को दूर कर दिया.
इस उम्र में मदनमोहन के इस फैसले से उन के बेटों की कितनी बदनामी होगी, इस बात की भी उन्हें परवाह नहीं थी. उन्होंने किसी की एक नहीं सुनी और बेटों का साथ छोड़ कर भजनपुरा के सी-ब्लौक में कमरा ले कर अकेले रहने लगे.
चंपा भजनपुरा के पास स्थित करावलनगर में रहती थी. उस के परिवार में पति कल्लन के अलावा बेटे भी थे. मूलरूप से मथुरा का रहने वाला कल्लन कामचोर प्रवृत्ति का था. हरामखोर कल्लन बीवी की कमाई पर ऐश कर रहा था. जब कभी उसे पैसों की जरूरत होती, वह चंपा को ही मालिक से कर्ज मांगने के लिए उकसाता था.
अब चंपा रोज सुबह मदनमोहन के भजनपुरा स्थित कमरे पर आती और सारा दिन वहां का काम निपटा कर शाम को घर जाती थी. कुछ दिनों तक तो ऐसे ही चला, पर जब वह रात में भी वह मदनमोहन के कमरे में रुकने लगी तो आसपड़ोस के लोगों के बीच उन के रिश्तों को ले कर तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं.
कुछ लोगों ने उस के पति कल्लन को भी उस की हरकतों की जानकारी दी, पर कल्लन को तो पहले से ही सब कुछ पता था. इसलिए उस ने लोगों की बातों को अनसुना कर दिया. इस तरह चंपा और मदनमोहन मौजमस्ती करते रहे.
धीरेधीरे चंपा के पड़ोसियों को भी पता चल गया कि चंपा ने किसी बुड्ढे को फांस लिया है. इस के बाद चंपा और मदनमोहन की चर्चा चंपा के मोहल्ले में होने लगी. चंपा का बेटा प्रेमनाथ 21 साल का हो चुका था. वह अब कोई बच्चा नहीं था, जो मोहल्ले के लोगों की बातों को न समझता.
कोईकोई तो उसे यह तक कह देता कि तेरे 2-2 बाप हैं. प्रेमनाथ कुछ करताधरता नहीं था. साथियों के साथ गांजा और कई अन्य नशे करता था. वह अपनी मां के मदनमोहन वर्मा की रखैल होने के ताने सुनसुन कर परेशान रहने लगा था. धीरेधीरे बात बरदाश्त से बाहर होती जा रही थी.
एक दिन तो एक दोस्त ने उस पर तंज कसते हुए कहा, ‘‘अरे तुझे कामधंधे की क्या चिंता है, तेरे तो 2-2 बाप हैं. तुझे भला किस बात की कमी है?’’
दोस्त की यह बात प्रेमनाथ के कलेजे में नश्तर की तरह चुभी. जवानी का खून उबाल मारने लगा. उस ने अपने एक नाबालिग दोस्त सुमित (बदला हुआ नाम) को अपना सारा दर्द बताते हुए कहा, ‘‘सारे फसाद की जड़ बुड्ढा मदनमोहन वर्मा है. उसी के कारण लोग मुझे ताना देते हैं. अगर तुम मेरा साथ दो तो मैं आज ही उसे ठिकाने लगा दूं.
इस उम्र की दोस्ती बड़ी खतरनाक होती है. दोस्त का दुख अपना दुख होता है. प्रेमनाथ की बात सुन कर सुमित उस का साथ देने को तैयार हो गया. 20 जुलाई, 2017 की रात दोनों दोस्त पूर्व नियोजित योजना के अनुसार, मदनमोहन के घर के आसपास तब तक चक्कर लगाते रहे जब तक कि वहां लोगों की लाइटें बंद नहीं हो गईं.
सड़क से मदनमोहन का कमरा साफ दिखाई देता था. जब मदनमोहन के पड़ोसी कमरा बंद कर के सोने चले गए तो दोनों नशा कर के सीढि़यों से तीसरी मंजिल स्थित मदनमोहन के कमरे के सामने पहुंच गए. उस रात अत्याधिक गरमी होने के कारण मदनमोहन ने कमरे का दरवाजा खोल दिया था. वह सोने की तैयारी में थे.
वह प्रेमनाथ को जानते थे, क्योंकि 2-3 बार वह मां के साथ उन के कमरे पर आ चुका था. इतनी रात को प्रेमनाथ को अपने कमरे के बाहर देख कर मदनमोहन कांप उठे. हिम्मत जुटा कर उन्होंने उसे बाहर जाने के लिए को कहा. लेकिन प्रेमनाथ और सुमित ने 61 साल के मदनमोहन वर्मा को संभलने का मौका दिए बगैर साथ लाया अंगौछा उस की गरदन में लपेट कर दोनों ने पूरी ताकत से कस दिया.
मदनमोहन ने बचने के लिए हाथपांव मारे, लेकिन उन की कोशिश नाकाम रही. कुछ ही देर में उन की मौत हो गई. वह जीवित न बच जाएं, इसलिए प्रेमनाथ ने वहां पड़ा डंडा उठा कर उन के सिर पर मारा, जिस से सिर से खून बहने लगा.
इतना करने के बाद उन्होंने लाश को कमरे में रखे एक कार्टून में बंद कर के उसे दीवान के बौक्स में रख दिया और बाहर आ गए. प्रेमनाथ ने दरवाजे में ताला लगाया और नीचे उतर कर दोनों फरार हो गए.
अतिरिक्त थानाप्रभारी राजीव रंजन ने पूछताछ के बाद प्रेमनाथ को 25 जुलाई को अदालत में पेश कर एक दिन के रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से वह अंगौछा भी बरामद कर लिया गया, जिस से मदनमोहन वर्मा का गला घोंटा गया था. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. अगले दिन पुलिस ने उस के साथी सुमित को भी गिरफ्तार कर उसे बाल न्यायालय में पेश कर उसे बाल सुधार गृह भेज दिया.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
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आजकल शादियां चट मंगनी पट ब्याह की तर्ज पर होने लगी हैं, इसलिए न्यू कपल्स को हनीमून की योजना भी शादी तय होते ही बना लेनी चाहिए. लेकिन हड़बड़ाहट और जल्दबाजी दिखाने के बजाय हनीमून ट्रिप का फैसला सोचसमझ कर करना चाहिए, बेहतर होगा कि नवदंपती इन अहम बातों का ध्यान रखें :
-कहां जाएं यह फैसला करना वाकई मुश्किल है. पतिपत्नी दोनों मिल कर तय करें तो बेहतर होता है. ऐसी जगह हो जहां दोनों ही पहले न गए हों.
-लंबी दूरी पर जाएं तो हवाई जहाज का सफर ठीक रहता है. इस से समय की बचत होती है. ट्रेन से 20-22 घंटे की यात्रा एसी फर्स्ट या सैकंड क्लास में करनी चाहिए. एसी कोच सुरक्षित तो रहते ही हैं, साथ ही, कपल्स को आपस में बातचीत करने का और आराम करने का मौका मिल जाता है.
-कीमती गहने और ज्यादा नकदी साथ में नहीं रखना चाहिए. यह आ बैल मुझे मार वाली कहावत की तर्ज पर खतरे वाली बात है.
-सारे आरक्षण पहले ही करा लेने चाहिए, टिकट बुक करा लेने चाहिए और बुकिंग की फोटोकौपी साथ रख लेनी चाहिए.
-ट्रेन में एकदूसरे से बिलकुल चिपक कर बैठना शोभा नहीं देता, इस से सहयात्रियों को परेशानी होती है.
-जहां जा रहे हैं वहां की यथासंभव जानकारियां इकट्ठी कर लेनी चाहिए.
-शौपिंग व अनापशनाप खर्च से बचना चाहिए. पार्टनर पर रोब डालना, उस पर पैसा उड़ाना महंगा पड़ जाता है.
-पर्यटन स्थलों पर ज्यादा घूमने के चक्कर में खुद को थकाना नहीं चाहिए. दिन में 2-3 घंटे का आराम, रात में तरोताजा रखता है.
-हनीमून के दौरान सेहत और खानपान का खास खयाल रखना चाहिए. मसालेदार खाना नुकसान कर सकता है, जिस से हनीमून का मजा बिगड़ता है.
-अपने डाक्टर या कैमिस्ट से पूछ कर जरूरी दवाइयां साथ रखनी चाहिए.
-होटल के कमरे को जांचने में हर्ज नहीं कि कहीं छिपे हुए कैमरे तो नहीं लगे हैं.
-सामान का खास खयाल रखना चाहिए, जल्दबाजी से कई दफा छोटेमोटे आइटम्स होटल, टैक्सी या ट्रेन में ही छूट जाते हैं.
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फिनलैंड विश्व का सर्वाधिक ईमानदार और भ्रष्टाचारमुक्त देश है. फिनलैंड के निवासियों को फिन्स कहा जाता है जो उत्कृष्ट वास्तुशिल्प, कला, विज्ञान और तकनीकी कौशल से संपन्न हैं. पूर्व में रूस, उत्तर में नार्वे तथा दक्षिण में स्वीडन से घिरे फिनलैंड का नैसर्गिक सौंदर्य पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है.
भूगोलविदों के अनुसार यहां 1,88,000 झीलें और लगभग इतने ही द्वीप हैं. धु्रवीय छोर पर स्थित फिनलैंड वर्ष में 2 महीने हिमाच्छादित रहता है जिस के कारण दिन में घटाटोप अंधकार रहता है. आसमान में सूरज का नामोनिशान नहीं दिखाई देता. उस दौरान तकरीबन संपूर्ण विश्व के पर्यटक यहां पर नौर्दर्न लाइट्स का अद्वितीय नजारा देखने के लिए एकत्रित होते हैं. पाइन और फर के पेड़ों के बीच से छन कर आती हरीपीली रोशनी धरती पर अलौकिक दृश्य प्रस्तुत करती है.
शांत, विनम्र फिनलैंडवासी न तो शीतऋतु के अंधकार से प्रभावित होते हैं और न ही ठंड से.
पौराणिक मिथक के अनुसार, कोर्वाटन टुरी पर्वत पर सांता क्लास का घर है. यहां सांता क्लास से मिलने के इच्छुक लोगों की वजह से पर्यटन उद्योग में निरंतर वृद्धि हो रही है.
फिनलैंड में गिनेचुने शहर हैं जो पूरी तरह से योजनाबद्ध व सुविधासंपन्न हैं. बाल्टिक सागर के तट पर बसा हेलसिंकी फिनलैंड की राजधानी और सब से बड़ा शहर है. यह बाल्टिक की बेटी कहलाता है. वास्तव में हेलसिंकी के विशाल उद्योग, विराट बंदरगाह, पुराने भव्य शिल्प, वैभव संपन्नता में बाल्टिक सागर का बहुमूल्य योगदान है.
यही नहीं, हेलसिंकी के अल्पकालीन संघर्षपूर्ण इतिहास के लिए भी बाल्टिक ही उत्तरदायी है. शहर में स्कैंडेनेवियन सभ्यता, संस्कृति के अवशेष आज भी वि-मान हैं. डाउनटाउन पर स्कैंडेनेवियन प्रभाव प्रतिबिंबित होता है.
सदियों तक पड़ोसी देशों के आधिपत्य में रहने तथा पश्चिमी, पूर्वी व दक्षिणी सभ्यताओं को आत्मसात करने के बाद फिनलैंडवासियों की स्वतंत्र पहचान 19वीं सदी में स्थापित हुई. स्वाधीनता प्राप्ति के बाद उन्होंने कहा, ‘‘हम स्वीड्स नहीं हैं, रूसी बनना नहीं चाहते, हमें फिन ही रहना है.’’
हेलसिंकी नगर की स्थापना रूस के जार निकोलस प्रथम के आदेश पर जरमन वास्तुशिल्पी कार्ल एंजल लुडविग ने की थी. निकोलस की कल्पना के अनुरूप लुडविग ने शहर की भव्य इमारतों, चौकचौराहों को शिल्पाकृतियों से सजा दिया. कई बार आगजनी, महामारी तथा विध्वंसकारी युद्ध होने के बावजूद हेलसिंकी ने अपनी गौरवमय सुंदरता को सुरक्षित रखा है.
315 द्वीपों से बना यह शहर सागर पर ही बसा है. द्वीपों को जोड़ने के लिए पुल हैं तथा एक द्वीप से दूसरे द्वीप पर नावों के जरिए पहुंचा जा सकता है. आधुनिक हेलसिंकी शांत व विकासशील नगर है. निर्जन झाडि़यों तथा काष्ठनिर्मित घरों का स्थान नवशिल्प से सज्जित भवनों ने ले लिया है.
हेलसिंकी का चप्पाचप्पा वहां के वास्तुविदों के अद्भुत शिल्प कौशल का परिचायक है. उन्होंने वहां के सामान्य भवनों को भी फिनलैंड के विशिष्ट स्मारकों में परिवर्तित कर दिया. 1914 में निर्मित रेलवे स्टेशन इस का अद्वितीय उदाहरण है.
वास्तुशिल्पी एलेल सारिनेन ने इस की परिकल्पना 1905 में की थी तथा इस का निर्माणकार्य 1919 में पूरा हुआ था. गुलाबी रंग के ग्रेनाइट से बना गोलाकार रेलवे स्टेशन अपनी तांबे से मढ़ी छत, 160 फुट ऊंचे घंटाघर के साथ नगर के सौंदर्य में चारचांद लगा रहा है. प्रवेशद्वार के दोनों ओर एमिल विक्सट्राम द्वारा निर्मित मशालवाहक विराट मूर्तियों का युगल गंभीर मुद्रा में खड़ा है.
रेलवे स्टेशन हेलसिंकी को पूरे फिनलैंड से जोड़ता है. शहर की सैर शुरू करने के लिए यह सर्वोत्तम स्थान है. अधिकांश दर्शनीय स्थलों की सैर पैदल ही की जा सकती है. नगरीय परिवहन सेवा यहीं से आरंभ होती है. मैट्रो भी यहीं से चलती है. इस के समीप अनेक बसें आ कर रुकती हैं. रेलवे स्टेशन के सामने सभी ट्राम्स आ कर रुकती हैं. हेलसिंकी नगर में पर्यटकों के लिए अनेक ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व प्राकृतिक स्थल आकर्षण के केंद्र हैं.
मेनरहम गली : रेलवे स्टेशन के उत्तरपूर्व में मेनरहम गली हेलसिंकी के एस्प्लेनेड के अंतिम छोर तक जाती है. सैंट्रल रेलवे स्टेशन का डिजाइन एलेल सारिनेन ने तैयार किया था. 48 मीटर ऊंचे क्लौक टावर वाली यह एक शानदार इमारत है. इस के आसपास थोड़े महंगे लेकिन उच्च श्रेणी के रैस्टोरैंट हैं. पोस्टऔफिस से आगे फिनिश इतिहास के महानायक मार्शल मेनरहम की घोड़े पर सवार भव्य प्रतिमा है. इस के ठीक पीछे समकालीन कला संग्रहालय कीएसमा है. गली में अनेक विशाल स्टोर तथा बढि़या होटल हैं.
एटेनियम (फिनिश राष्ट्रीय कला संग्रहालय) : हेलसिंकी रेलवे स्टेशन के दक्षिण में फिनिश राष्ट्रीय कला संग्रहालय यानी एटेनियम है. यहीं पर फिनिश एकेडमी औफ आर्ट है. एटेनियम में फिनलैंड की सर्वोत्कृष्ट ऐतिहासिक कलाकृतियों के साथसाथ समकालीन कलाकृतियों का संग्रह भी है. विदेशी चित्रकारों में प्रमुख हैं, रेम्ब्रां व विंहसेंट वान-गाग तथा 650 अन्य प्रख्यात अंतर्राष्ट्रीय कलाकारों की कृतियां हैं. स्कलप्चर हौल में प्रख्यात शिल्पकारों, वी वेलरगन, डब्लू आल्टोनेन, डब्लू रुनेबर्ग और एस हिल्डेन की शिल्पाकृतियां रखी हैं.
कनसाली म्यूजिओ (फिनिश राष्ट्रीय संग्रहालय): मैनरथिमिंटी रोड पर वर्ष 1912 में रोमांटिक शैली में निर्मित कनसाली म्यूजिओ यानी फिनिश राष्ट्रीय संग्रहालय है. संग्रहालय में फिन्स की सभ्यता, संस्कृति से संबद्ध विपुल सामग्री संग्रहीत है.
फिन्लैंडिया हौल : यह हेलसिंकी का म्यूनिसिपल म्यूजियम है. इस के उत्तर में टूलू खाड़ी के तट पर फिन्लैंडिया हौल है. यहां पर कई विशिष्ट आकर्षण के केंद्र हैं. चौड़ी वेनेशियन सीढि़यां ग्राउंडफ्लोर को प्रमुख सभागार तथा चैबेर म्यूजिक हौल से जोड़ती हैं. सभागार के उत्तर में एक मनोरम उद्यान है. यहां पर शतरंज के बड़ेबड़े बोर्ड और मोहरे रखे हुए हैं.
फिन्लैंडिया हौल के उत्तर में टूलोनहटी झील के शिखर पर पुराना ट्रेड फेयर हौल है और उस से आगे है 1938 में निर्मित ओलिंपिक स्टेडियम. यहां पर 72 मीटर ऊंचे टावर से नगर का मनमोहक दृश्य दिखाई देता है. द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू होने से पहले फिनलैंड में ओलिंपिक खेलों का आयोजन होना था परंतु युद्ध के कारण खेल स्थगित हो गए. बाद में वर्ष 1952 में यहां पर ओलिंपिक खेलों का आयोजन किया गया.
कोस्कुसपिस्टो (सैंट्रल पार्क) : हेलसिंकी का सैंट्रल पार्क नगर के मध्य स्थित विशाल पार्क है. यह 10 वर्ग किलोमीटर से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है. पार्क में फूलों की अपेक्षा जंगली पौधे अधिक हैं.
कौपाटोरी : यह हेलसिंकी का प्रमुख योजनाबद्ध स्क्वायर है. यह उत्तरी यूरोप की प्रसिद्ध बाहरी मार्केट में से एक है. बाल्टिक सागर के किनारे स्थित यह मार्केट वसंत से पतझड़ तक खुला रहता है.
चारदीवारी से घिरे सुओमेनलीना किले के सभी 6 द्वीप हेलसिंकी के अंतरंग भाग हैं. देखने पर ये दूर दिखाई देते हैं लेकिन नौका से वहां आसानी से पहुंचा जा सकता है.
बाल्टिक में रूस को पहुंचने से रोकने के लिए 18वीं सदी के मध्य में स्वीडन ने इस किले का निर्माण करवाया था. 1808-1809 के स्वीडनरूस युद्ध में किले पर रूसियों का आधिपत्य हो गया था. आधिपत्य के बाद 1918 में उन्होंने इस का विस्तार कर और अधिक सुदृढ़ किया और फिनिश नाम सुओमेनलीना रखा. यह सांस्कृतिक तथा आमोदप्रमोद के कार्यस्थल के रूप में नवनिर्मित किया गया.
हेलसिंकी के भव्य सीनेट स्क्वायर के मध्य जार अलेक्जैंडर की कांस्य प्रतिमा स्थापित है. यहां से मार्केट स्क्वायर तक पर्यटकों के लिए अनेक दर्शनीय स्थल हैं. प्रैसिडैंट्स पैलेस तथा गार्डहाउस के बीच से एक गली अलेक्स्नटेरीरिकटु तक जाती है.
इस के बाईं तरफ फिनिश इतिहास की गवाह अनेक इमारतें हैं. अलेक्स्नटेरीरिकटु के दाईं तरफ हाउस औफ नोबेलिटी है. दूसरी तरफ फिनिशि लिटरेरी सोसायटी का परिसर तथा गवर्नमैंट पैलेस है.
फिन्स लोग विनम्र व शांत स्वभाव के होते हैं. बाह्म सभ्याचार के लिए उन को सौरी कहना अथवा क्षमा चाहता हूं जैसे वाक्य कहने नहीं आते. बड़ी गलती हो जाने पर वे विनम्रतापूर्वक अन्तीक्सी कहते हैं. फिनलैंड की राजधानी हेलसिंकी की सैर कुल मिला कर पर्यटकों को मुग्ध कर देती है.
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पर्यटन को बढ़ावा देने की दिशा में बीच खास महत्व रखते हैं. बीच लवर्स और ऐडवैंचर लवर्स यहां घूमने का प्रोग्राम बना सकते हैं. इस में समुद्री किनारों की खूबसूरती से अभिभूत होने के साथसाथ हर मौसम में हुए बदलाव, बैक वाटर्स, मैनग्रोव फौरेस्ट आदि का भी आनंद लिया जा सकता है.
पहले इस ओर लोगों का ध्यान अधिक नहीं जाता था, लेकिन फिल्मों में इस खूबसूरती को संगीत के माध्यम से दिखाए जाने के चलते पर्यटकों की रुचि इस ओर बढ़ी है. समुद्र के किनारे रहनेखाने व घूमने के लिए सहूलियतें मुहैया हैं, जिन का पर्यटक भरपूर फायदा उठाते हैं. इस कड़ी में सब से पहले मडगांव का रुख करते हैं, जो सब से अधिक आकर्षक समुद्रतट है.
मडगांव
गोवा की राजधानी पणजी के दक्षिण में स्थित मडगांव राज्य का दूसरा बड़ा शहर है. इस के निकट कई आकर्षक बीच यानी समुद्रतट हैं. यहां हर साल लाखों पर्यटक आते हैं. पुर्तगाली समय में बने मकान, बंगलों और उन की खूबसूरती यहां आज भी उसी रूप में वि-मान है. मडगांव, बेनौलिम, वर्का, बैतूल, मजोरदा जैसे बीच एक लाइन में मौजूद हैं. इन सारे स्थानों पर आवागमन के पर्याप्त साधन होने के फलस्वरूप पर्यटक यहां आसानी से आ जा सकते हैं.
मडगांव बीच जाने के लिए शहर से 10 से 15 मिनट का समय लगता है. यहां के समुद्रतटों की सुंदरता की खास बात यह है कि कूल ब्लू, एमरल्ड ग्रीन जैसा पानी, सफेद मुलायम रेत और लगातार समुद्री किनारों पर आ रही लहरें पर्यटकों को खास आकर्षित करती हैं.
मडगांव बीच के बाद सैलानी आसपास के सारे समुद्रतटों को आसानी से देख सकते हैं. मडगांव से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बेनौलिम बीच साफसुथरा, चाइल्डफ्रैंडली और नो स्मोकिंग समुद्रतट है. वहां से कुछ ही दूरी पर वर्का बीच भीड़भाड़ से दूर एक शांतप्रिय स्थल है, जहां समुद्री किनारे पर घूमनाटहलना पर्यटकों को अच्छा लगता है.
बैतूल बीच एक रोमांटिक बीच है. अधिकतर नवविवाहित जोड़े यहां आना पसंद करते हैं. सुबह की ताजगीभरी हवा और शाम के समय इस समुद्र के किनारे पर घूमना पर्यटक अधिक पसंद करते हैं. एक छोटी सी लैगून, पास में नदी और 17वीं शताब्दी में बने बरदी क्रौस चर्च बहुत ही सुंदर हैं.
यहां की खास बात यह भी है कि यहां एक नदी शहर को समुद्रतट से अलग करती है. नेचर लवर्स के लिए यह स्थान बेहद उपयुक्त है. शाम को नीले आकाश के नीचे, ढलते सूरज को देखना पर्यटकों के लिए खास आकर्षण है. फोटोग्राफी की दृष्टि से यह स्थल सब से उपयुक्त है. अगर छोटी सी राइड का मजा लेना हो तो फिशरमेन व्हार्फ जाना अच्छा होता है. यह बैतूल बीच के पास है. दिलचस्प यह है कि मानसून में भी पर्यटक यहां खूब आते हैं.
मडगांव पहुंचने के लिए डाबोलिम हवाई अड्डा सब से बेहतर विकल्प है. यहां से प्राइवेट कैब द्वारा किफायती दाम में बीच तक आसानी से पहुंचा जा सकता है. इस के अलावा वास्को डी गामा और डाबोलिम से ट्रेन भी मिलती है. पणजी और वास्को डी गामा से कार ड्राइव कर के भी आया जा सकता है.
ठहरने के लिए ताज, लीला, होलीडे इन, बैंबू हाउस, गोवा होटल, बैतूल बीच रिसोर्ट आदि जगहें हैं. ये सभी समुद्रतट से लगभग 1-2 किलोमीटर के दायरे में हैं. यहां के पारंपरिक भोजन और सी फूड के लिए भी ये स्थान सब से बेहतर हैं. खरीदारी के लिए यहां का ओशिया मौल लोकप्रिय मार्केटिंग प्लेस है.
कोलवा
कोलवा बीच दक्षिणी गोवा में स्थित एक शांत व खूबसूरत समुद्री किनारा है. इसे क्वीन औफ बीचेज भी कहा जाता है. 24 किलोमीटर लंबा यह बीच दुनिया के सब से लंबे समुद्रतटों में से एक है. इस समुद्री किनारे पर बिछी सफेद रेत की परत पर्यटकों के खास आकर्षण का केंद्र है. यह स्थान फन लवर्स, नेचर लवर्स और ऐंडवैंचर सीकर्स के लिए खास है. किनारों पर लाइन में लगे नारियल के पेड़ इस की शोभा को और भी बढ़ाते हैं. यहां लोग खूब फोटोग्राफी करते हैं.
यहां बजट होटल्स, गेस्ट हाउसेस, बीच शैक्स, फूड स्टौल्स, रेस्तरां, पब्स आदि खूब मिलते हैं. ऐसा माना जाता है कि हाई सोसाइटी के पुर्तगालियों ने हवा परिवर्तन के लिए इस समुद्री किनारे को विकसित किया था. यहां उन के विला और घरोंके अवशेषों को देखा जा सकता है.
यहां पर अधिकतर पर्यटक सप्ताह के अंत में या फिर अक्टूबर महीने में आते हैं. यहां पर्यटक सूर्यास्त को देखने के अलावा एक्टिविटीज जैसे जेट स्कीइंग, बनाना राइड, मोटरबोट राइड, पैराग्लाइडिंग आदि का लुत्फ उठाते हैं. विदेशी सैलानियों की यहां खूब भीड़ रहती है. यहां पर्यटक समुद्र में नहाने, किनारों पर घूमने, रेत से तरहतरह की आकृति बनाने का आनंद भी उठाते हैं.
कोलवा बीच की अच्छी बात यह भी है कि तट की निगरानी लाइफगार्ड करते हैं और स्विमिंग एरिया को फ्लैग की सहायता से निर्देशित किया गया है ताकि कोई अनहोनी न हो. इस के अलावा कोलवा से पर्यटक आसानी से काबो डी रामा किले तक जा सकते हैं, जो पुर्तगाली समय का किला होने के साथसाथ गोवा का सब से पुराना किला है.
यहां से डाबोलिम एअरपोर्ट मात्र 21 किलोमीटर की दूरी पर है. वहां से टैक्सी ले कर कोलवा बीच जाया जा सकता है. कोलवा बीच जाने के लिए किराए की बाइक या कार भी आसानी से मिल जाती हैं. इस का निकटतम रेलवे स्टेशन मारगाओ है, जहां से टैक्सी ले कर आसानी से कोलवा बीच पहुंचा जा सकता है. इस के अलावा यहां बस और औटोरिकशा की भी अच्छी सुविधा है.
कोलवा में सीफिश करी और राइस काफी प्रचलित है. यहां आने वाले पर्यटक तरहतरह के लजीज सीफिश करी के साथ राइस का आनंद उठा सकते हैं. यहां पाई जाने वाली प्रमुख सीफिश पौम्फ्रेट, टूना, किंगफिश शार्क आदि हैं, जबकि शेल फिश में लोबस्टार, क्रेबस, प्रौन्स आदि अधिक प्रसिद्ध हैं. कैंडल लाइट डिनर का मजा भी इस समुद्रतट पर लिया जा सकता है.
पणजी
पणजी शहर गोवा के उत्तरी प्रांत में मंडोवी नदी के किनारे बसा है. यह गोवा की राजधानी है. पुर्तगाली समय में इस का नाम पंजिम था. समुद्रतट से 7 मीटर की ऊंचाई पर बसा यह शहर अपनी खूबसूरती के लिए खास प्रसिद्ध है. पणजी, वास्को डी गामा और मडगांव के बाद यह सब से बड़ा तीसरा शहर है. सीढ़ीदार पहाडि़यों पर बसा यह स्थान मकानों की लाल रंग की छतों, बालकनी, नदी और गुलमोहर के पेड़ों की अधिकता के चलते काफी आकर्षक है.
प्राचीनकाल में इस स्थान पर बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह का अस्तबल था, जो समय के साथसाथ शहर के रूप में परिवर्तित हुआ. यहां पुर्तगाली सभ्यता और ईसाई धर्म का प्रभाव खासतौर पर देखा जा सकता है.
यहां आदिलशाही पैलेस, मीरामार समुद्रतट, महालक्ष्मी मंदिर, नगर स्क्वायर गार्डन में पुर्तगाली बरोक औवर लेडी चर्च, अस्वेम बीच, वैन्गुइनिम बीच, सेंट फ्रांसिस जेवियर का मकबरा, दोना पावला आदि सभी दर्शनीय स्थल हैं. ऐडवैंचर पसंद पर्यटकों के लिए यह खास जगह है. यहां आ कर पर्यटक राफ्ंिटग, बैलून राइडिंग, बोट टूर आदि का आनंद ले सकते हैं. पणजी का मौसम पूरे साल एकजैसा रहता है, इसलिए सैलानी पूरे साल यहां आते हैं.
मीरामार समुद्रतट अधिक भीड़भाड़ वाला समुद्रतट है. यह स्थान पणजी से नजदीक है. इस के अलावा यहां की स्थानीय वस्तुएं यहां की छोटीछोटी दुकानों में मिलती हैं, साथ ही, खानेपीने की वस्तुएं उचित दाम में मिलती हैं. अस्वेम बीच एक शांतप्रिय समुद्रतट है. यहां शैक्स और हौकर्स नहीं हैं.
यहां सैलानी शांत वातावरण का आनंद उठाते हैं. वैन्गुइनिम बीच अपने सिल्वर सैंड और साफ ग्रीनिश वाटर के लिए जाना जाता है. यह समुद्रतट पलाश के पेड़ों से घिरा होने से भिन्नभिन्न प्रजातियों के पक्षियों का निवास स्थान भी है, जिन्हें सूरज ढलते ही देखा जा सकता है.
पणजी से 6 किलोमीटर दक्षिणपश्चिम में दोना पावला बीच स्थित है. इस बीच पर ऐडवैंचर के लिए बहुतकुछ मौजूद होने की वजह से यहां पर्यटकों का जमावड़ा लगा रहता है. वाटर स्पोर्ट, हारबर, पथरीले तटों के अलावा यहां बहुतकुछ देखने लायक है.
इस बीच के बारे में कहावत है कि पुर्तगाल के वायसराय की बेटी दोना पावला को एक मछुआरे से प्यार हो गया था, लेकिन उस के पिता द्वारा उसे न स्वीकारे जाने की वजह से दुखी हो कर उस ने ऊंची चट्टान से अरब सागर में छलांग लगा कर आत्महत्या कर ली थी. इसलिए उस की याद में वायसराय ने उस स्थान का नाम दोना पावला रखा. फिल्म ‘एकदूजे के लिए’ का एक भाग यहां पर शूट किया गया था.
समुद्रतट के अलावा पणजी में गोवा का संग्रहालय देखने योग्य है. इस में गोवा की रबड़ की खेती से ले कर नमक की कंपनियों को विस्तार से दिखाया गया है. इतना ही नहीं, पणजी में कुटीर उद्योग अधिक मात्रा में विकसित होने की वजह से कछुए की खाल और हाथीदांत से बनी वस्तुएं, काजू, बादाम, दालचीनी आदि भी पर्यटकों की खरीदारी के लिए खास हैं.
यहां पहुंचना बहुत आसान है. गोवा जाने वाली सभी बसें पणजी से गुजरती हैं, बाइक या कार किराए पर ले कर भी यहां जाया जा सकता है. डाबोलिम हवाई अड्डे से पणजी केवल 30 मिनट की दूरी पर है. नजदीकी रेलवे स्टेशन मडगांव है.
पुणे या मुंबई से गोवा आने पर पहला शहर पणजी ही पड़ता है. यहां काफी होटल, लौज, गैस्ट हाउस मौजूद हैं. इस के अलावा यहां पेइंग गैस्ट के तौर पर भी स्थानीय लोगों के घरों में रह सकते हैं. पणजी के लोग घरों में पेइंगगैस्ट के तौर पर देशीविदेशी पर्यटकों को कम चार्ज ले कर ठहराते हैं. पर्यटक के कहने पर वे चाय व खाने का इंतजाम भी कर देते हैं.
कुल मिला कर गोवा के बीच पर्यटकों को हर लिहाज से मंत्रमुग्ध कर देते हैं. सो, आप भी इस के नजारे देखने के लिए तैयार हो जाएं.
कहां से शुरू करें
मडगांव गोवा की ऐसी जगह है जहां से कई समुद्रीतट निकट हैं. यहां से तटों पर घूमने जाना आसान है. मडगांव स्टेशन से बाहर निकलते ही मात्र 300 मीटर की दूरी से ही बस और टैक्सी मिलती हैं. जिन से आसपास के किसी भी समुद्रीतट पर जाया जा सकता है. वहां से बस, टैक्सी, औटो, प्राइवेट कार द्वारा 30 रुपए में 40 मिनट का सफर तय कर कोलवा बीच पहुंचा जा सकता है. और कोलवा से पणजी जाना आसान है. सभी बसें पणजी से गोवा में प्रवेश करती हैं. करीब एक घंटे का सफर करने के बाद पणजी पहुंचते हैं. गोवा का यह पूरा क्षेत्र सब से अधिक विकसित और आकर्षक है, फलस्वरूप पर्यटक भी यहां खूब आते हैं.
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सतयुग में एक केवट ने राम को नदी पार करा कर एहसान ही किया था लेकिन उस के एवज में शूद्र करार दी गई निषाद जाति का तिरस्कार और प्रताड़ना कलियुग और उस में भी लोकतंत्र की स्थापना तक जारी है. इस का प्रमाण इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रहे दर्जनों मुकदमे हैं जिन का सार यह है कि इस दौर के दबंग भी उन्हें उन के अधिकार के बजाय आशीर्वाद (वह भी सशुल्क) दे कर यह चौपाई गाते रहने की सलाह दे रहे हैं कि, कभीकभी भगवान को भी भक्तों से काम पड़े….यानी गंगा किनारे की रेत और बालू जैसे कीमती आइटमों पर मत्स्यजीवी यह जाति अपना हक न मांगे.
गोरखपुर लोकसभा सीट, जो संतमहंतों की जागीर बन गई थी, पर होनहार युवा पेशे से इंजीनियर प्रवीण निषाद ने भाजपा के उपेंद्र शुक्ला को धोबीपछाड़ दे कर क्या साबित कर दिया, यह भाजपा के चुनाव प्रबंधकों और आरएसएस के महानुभावों को समझ आ गया है कि अब दिखावे के दलितप्रेम की हांडी पर वोटों की डिश पकने वाली नहीं. अतिपिछड़े जागरूक हो रहे हैं और अब वे धर्म के नाम पर सवर्णों व ब्राह्मणों की पालकी ढोने या नैया पार लगाने को तैयार नहीं.
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