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महाकुंभ : पुण्य कमाने के लिए मेहनत करने की जरूरत नहीं

सोमवती अमावस्या पर हरिद्वार में महाकुंभ स्नान की बात श्रीकर टाल नहीं पाया. पत्नी ने जो दलील दी वह कुछ इस तरह थी, ‘कुसुम कह रही हैं यह शाही स्नान 714 वर्षों बाद आ रहा है. यह जीवन तो संयोगों का मेला है. आप चल पड़ो तो ठीक है वरना हम तो जाने वाली हैं.’

सोमवती अमावस्या पर देशविदेश के शीर्ष महंतों, संतों, साधुओं के स्नान से पूर्व कुसुम चाहती हैं कि वे इस से पहले संक्रांति स्नान और अमावस्या के बाद पहला नवरात्र स्नान भी कर लें तो जीवन का महापुण्य कमा लेंगी. श्रीमती ने अपनी अगली बात भी श्रीकर से स्वीकार करवा ली.

संक्रांति से पूर्व वे हरिद्वार पहुंच गए. कनखल बाईपास में एक होटल बुक था. गंगा की हर की पौड़ी यहां से 4 किलोमीटर दूर थी. भीड़ को देखते हुए सुबह 5 बजे स्नान के लिए जाने का निर्णय लिया गया.

श्रीकर ने पत्नी से कहा, ‘‘भीड़ के रेले के रेले पूरी रात से आते देख रहा हूं. लगता है सीधे रास्ते से सुबह पुलिस जाने नहीं देगी. तुम कुसुम, उन की बहन व भाभी को बता देना कि सुबह रिकशा, आटो कुछ भी नहीं मिलने वाला. पैदल ही चलना पड़ेगा 8-10 किलोमीटर. होटल वाले बता रहे थे ट्रैफिक पुलिस ने कुछ इस तरह से भीड़ को बांटा है ताकि कोई अनहोनी न घटे.

सुबह जब चले तो 3 घंटे का सफर  तय करने पर भी हर की पौड़ी नजर नहीं आ रही थी. बाईपास की सड़क से कई क्रौस, कई घाट, कई पुल पार कर लिए, तब कहीं उन्हें लगा कि अब हर की पौड़ी के पास पहुंच गए हैं. लग रहा था कि पूरा हिंदुस्तान यहीं उमड़ पड़ा है महाकुंभ स्नान के लिए. शाही स्नान पर नहाना मिले या नहीं, सब आज के ही दिन संक्रांति का पुण्य कमा लेना चाह रहे थे.

बहुत देर तक गंगा में डुबकी लगाने का मौका नहीं मिल रहा था. सुरक्षाकर्मी जबरदस्ती दोचार डुबकियों के बाद लोगों को बाहर खींच रहे थे, ‘चलो, चलो, औरों को भी स्नान करना है.’

ट्रैफिक पुलिस आनेजाने वालों को उन की दिशाओं की ओर धकेल रही थी.

हमारा वापसी का सफर भी लंबा था. हम जिस रास्ते से आए थे उसी से वापस मुड़ना था. रास्ते में छोटेबड़े सब पूछते मिल रहे थे, ‘हर की पौड़ी अभी और कितनी दूर है?’

‘चलतेचलते, पहुंच ही जाओगे,’ इस उत्तर से दूरी स्वयं पता चल रही थी. श्रीकर से पत्नी ने कहा, ‘सुनते हो जी, कुसुम, उन की बहन, भाभी से पैदल चलना मुश्किल हो गया है.’

‘‘तो अब क्या करूं? आटो या रिकशा कहीं दिख रहा है तो बताओ. जहां से मिलेगा, बैठा दूंगा. अभी पैदल ही चलना पड़ेगा.’’ जब श्रीकर की नजर कुसुम, बहन व भाभी पर पड़ी तो देखा उन के मुंह तपते सूरज से सुर्ख हो गए थे. वे सब हांफ भी रही थीं. उस ने चुटकी ली, ‘‘कुंभ का पुण्य तो यों ही कमाया जाता है, क्यों भाभीजी? लो, रिकशा भी आ गया.’’ उस ने आवाज दी रिकशा वाले को, ‘‘रिकशा, कनखल बाईपास रोड, होटल जाह्नवी चलना है, चलोगे?’’

‘‘हां बाबूजी, 200 रुपया लगेगा. पहले ही बता देता हूं,’’ रिकशे वाला बोला, ‘‘बाबूजी, आप पीछे की तरफ बैठो और ये तीनों माताएं आगे की तरफ.’’

श्रीकर पीछे बैठ कर अपनेआप को एडजस्ट कर ही रहा था कि उस ने पीछे देखा तो रिकशे वाला 2 और औरतों से बात कर रहा था.

‘‘क्या हो गया? अभी तो आप ने खुद 200 रुपए कहे.’’

‘‘नहीं बाबूजी, मुझे 2 सवारियां 500 रुपया दे रही हैं. मुझे नहीं जाना है आप के साथ, मजबूर हूं.’’

‘‘यह तो बहुत गलत बात है,’’ श्रीकर ने कहा.

अब बोलने की बारी श्रीमती श्रीकर की थी, ‘‘ऐ रिकशे वाले, तेरा कोई ईमान है, जमीर भी बेच दिया क्या?’’

रिकशा वाला चुप था. कुसुम, बहन व भाभी एकसाथ लाल होती बोलीं, ‘‘मौका देख कर नीयत बदल गई रे. कुंभ स्नान पर छोकरे ऐसा कर रहा है.’’

‘‘मुझे भी तो कुंभ कमाना है, इतने बरसों बाद जो आया है.’’

‘‘महाकुंभ कमाना, महाकुंभ नहाना महापुण्य है, बेटा, पर यह तो पैसे की चमक है. पैसा फेंको और तमाशा देखो,’’ श्रीकर ने कहा और रिकशे पर बैठी सवारियां झेंप रही थीं.

अगले ही क्षण रिकशे वाला हवा हो गया.

 

विकास बनाम गरीबी : ऐसे ही खत्म नहीं होती देश की गरीबी

किसी देश की गरीबी कुछ सप्ताहों या महीनों में खत्म नहीं हो सकती. एक देश का विकास करने में वर्षों नहीं, दशकों लगते हैं. यूरोप, अमेरिका, चीन, सिंगापुर, मलयेशिया, थाईलैंड को लंबा समय लगा था गरीबी की चपेट में से निकलने के लिए. इसीलिए 2014 में विकास की आभा पर जब चुनाव लड़ा गया था तो बहुत सी उम्मीदें जगी थीं पर आज केंद्र सरकार के कार्यकाल के लगभग 4 साल पूरे होने पर भी विकास की कोई किरण नजर नहीं आ रही.

भारत अमेरिकी डौलर में 1890 के आसपास की प्रतिव्यक्ति आय का देश है, इसे प्रगति कर चीन के बराबर पहुंचने में भी दशकों लगेंगे और यदि चीन की उन्नति होती रही तो संभव है कि हम कभी उस स्तर पर पहुंच ही न पाएं. चीन की प्रतिव्यक्ति आय 8,000 डौलर है और अमेरिका व यूरोप में प्रतिव्यक्ति आय 30,000 से 60,000 डौलर है. चीन, यूरोप और अमेरिका की प्रगति की दर धीमी है पर 2 प्रतिशत की दर से भी वे हर साल 300 से 600 डौलर प्रतिव्यक्ति अमीर हो जाते हैं और भारत 6-7 प्रतिशत की दर से भी महज 100-125 डौलर अतिरिक्त कमा पाता है.

देश में हर तरफ बेकारी है, खाली बैठेठाले लोग सारे देश में दिखते हैं जो देश की सामाजिक संरचना की पोल ही खोलते हैं. यहां उत्पादकता बढ़ाने पर कोई काम हो नहीं रहा. बुलेट ट्रेनों या 8 लेन की सड़कों से गरीबी नहीं हटेगी क्योंकि ये कुछ अमीरों की विलासिता के लिए हैं. दूसरों को दिखाने के लिए गगनचुंबी इमारतें और विदेशी गाडि़यां ठीक हैं पर जब तक हर गरीब का कायाकल्प नहीं होगा, देश के विकसित होने का सवाल ही नहीं उठता.

विकास की राह में सब से बड़ा अड़ंगा सरकार की अकर्मण्यता और सामाजिक सोच है. आज सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक नीतियां सब एक विशेष विचारधारा वालों के हाथों में आ गई हैं और सामाजिक, धार्मिक परंपराएं हावी होने लगी हैं जिन में केवल ऊंचे अमीरों की सुनी जाती है, आम गरीब की नहीं. सरकार की हर दूसरी नीति ऐसी है जो चुने लोगों को विकास के नाम पर एक नया अनूठा एकाधिकार दे रही है जबकि आम लोगों को इस की कीमत चुकानी पड़ रही है.

मोबाइल आज हर हाथ में आ गया है पर इस के साथ कोई और ठोस उत्पादक प्रक्रिया क्या जुड़ी है? गप मारने, गाने सुनने, वीडियो देखने के अलावा क्या यह डिवाइस किसी काम की है? अगर पहले लोग 2 घंटे आपस में मिलबैठ कर बातें करते थे तो आज 6 घंटे मोबाइल पर लगे रहते हैं. यह विकास की नहीं, विनाश की राह है.

सरकार ने घंटेघडि़यालों का व्यापार मोबाइलों से चमकाया है. मोबाइलों से सरकार हर नागरिक पर नजर रख रही है पर वह हर नागरिक को ज्यादा मेहनत करने के मौके नहीं दे रही. मोबाइल पर आप के खर्च का ब्योरा तो मिलता है पर आय बढ़ाने के स्रोत नहीं. उलटे मोबाइलों से लूट बढ़ गई है. जीएसटी और नोटबंदी ने भी कुछ

इसी तरह की ऐक्सरसाइज कराई. गरीबी से लड़ाई में ये सैनिकों को भटकाने, नशा कर के चुप रहने के साधन बन गए हैं. यह सब हमारे भविष्य की छाया है – काली, धुंधली.

अभी और बढ़ेंगे पेट्रोल और डीजल के दाम, जानिये क्या है इसकी वजह

भारत में पेट्रोल-डीजल के दाम रिकौर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के करीब है. अभी तक दिल्ली में पेट्रोल चार महीने के उच्चतम स्तर पर है तो वहीं डीजल रिकौर्ड ऊंचाई पर पहुंच चुका है. आज के भाव के मुताबिक पेट्रोल 74.02 रुपए प्रति लीटर और डीजल 64.89 रुपए प्रति लीटर पर बिक रहा है. पेट्रोल और डीजल के दाम रिकौर्ड ऊंचाई पर पहुंचने के बीच खाड़ी देशों के तेल निर्यातक संगठन ओपेक और रूस ने उत्पादन में और कटौती का फैसला किया है. इससे अगले कुछ महीनों में तेल के दाम और बढ़ने की आशंका है.

कच्चे तेल में आया उछाल

आपको बता दें, वर्ष 2017 में कच्चे तेल का औसत दाम 47.56 डौलर प्रति बैरल था, जो अप्रैल 2018 में बढ़कर 76.60 डौलर प्रति बैरल हो गया है. तेल मंत्रालय की पेट्रोलियम योजना एवं विश्लेषण शाखा के अनुसार, कच्चे तेल का औसत दाम एक माह में 63.80 डौलर से 76.84 डौलर प्रति बैरल के साथ 13 डौलर बढ़ चुका है.

क्रूड उत्पादन में होगी 2% की कटौती

सबसे बड़े तेल उत्पादक रूस और ओपेक ने कच्चे तेल के रोजाना उत्पादन में करीब दो फीसदी की कटौती का फैसला किया है. विशेषज्ञों का कहना है कि व्यापार युद्ध और कोरियाई देशों में तनाव कम होने से भी कच्चे तेल की कीमतों में इजाफा हो सकता है. अगर कच्चा तेल महंगा होता है तो पेट्रोल-डीजल के भाव में भी तेजी आएगी.

90 डौलर पहुंच सकता है दाम

तेल क्षेत्र के विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिकी शेल क्षेत्र में उत्पादन बढ़ने से थोड़ी राहत है. लेकिन, दाम 90 डौलर प्रति बैरल तक पहुंच सकते हैं. जुलाई 2009 में कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दाम 147 डौलर प्रति बैरल पर थे. इससे केंद्र और राज्य सरकारों पर पेट्रोल-डीजल पर टैक्स में कटौती का दबाव बढ़ गया है.

तेल रिफाइनरी घटाएंगी कीमत?

पेट्रोल-डीजल के दाम को नियंत्रित करने के लिए पेट्रोलियम मंत्रालय, तेल रिफाइनरियों से बढ़ी कीमतों का कुछ हिस्सा वहन करने को कह सकता है. इससे उपभोक्ताओं का बोझ कम होगा. हालांकि, रिफाइनरियों का मुनाफा कम होने से सरकार को भी उससे मिलने वाले राजस्व का नुकसान उठाना पड़ेगा.

पड़ोसी मुल्कों से ज्यादा भारत में दाम

देश               पेट्रोल      डीजल

बांग्लादेश     69.53     50.69, रूपये प्रति लीटर

पाकिस्तान    49.38     55.23, रूपये प्रति लीटर

श्रीलंका         53.28      39.64, रूपये प्रति लीटर

मलेशिया      37.04      36.39, रूपये प्रति लीटर

इंडोनेशिया     48.73     43.53, रूपये प्रति लीटर

फिलीपिंस     65.63     51.98, रूपये प्रति लीटर

नेपाल          64.33      51.98, रूपये प्रति लीटर

चीन            74.08      64.33, रूपये प्रति लीटर

भारत          74.02      64.89, रूपये प्रति लीटर

नोट: भारत में पेट्रोल-डीजल का भाव राजधानी दिल्ली में उच्च स्तर के हिसाब से लिया गया है.

उपभोक्ताओं पर पड़ेगी मार

  • तेल कीमतों का सीधा असर वस्तुओं-सेवाओं के कारोबार पर पड़ेगा.
  • लगातार तीन महीने से कम हो रही महंगाई बढ़ सकती है.
  • आयात बिल बढ़ने से व्यापार घाटे में बढ़ोतरी होगी. जीडीपी पर असर संभव.
  • वाहनों के उत्पादन एवं बिक्री पर असर होगा. अभी जो उछाल है वो घट सकती है.

 

कौमनवेल्थ गेम्स : गुरूराजा ने भारत को दिलाया पहला पदक

कौमनवेल्थ गेम्स के पहले ही दिन भारत ने अपना खाता खोला दिया है. वेटलिफ्टर गुरुराजा पुजारी ने गुरुवार को 56 किलोग्राम (मेंस) कैटेगरी में सिल्वर मेडल जीता. मलेशिया के मोहम्मद एएच इजहार अहमद ने गोल्ड अपने नाम किया. वहीं, श्रीलंका के चतुरंगा लकमल को कांस्य पदक मिला. 2014 ग्लास्गो कौमनवेल्थ गेम्स में भारत के सुखन डे ने 56 किग्रा (मेंस) कैटेगरी में गोल्ड जीता था. उन्होंने कुल 248 किग्रा का वजन उठाया था. इस बार गुरुराजा कुल 249 किग्रा का वजन उठाने के बाद भी सिल्वर मेडल ले पाए. बता दें कि गुरुराजा कर्नाटक के रहने वाले हैं और उनके पिता ट्रक चलाते हैं. आर्थिक रूप से कमजोर होने के बाद भी उनके परिवार ने उन्हें वो हर चीज दिलाई, जो उनके इस गेम को बेहतर बनाने के लिए जरूरी थी.

गुरुराजा पुजारी ने टोटल 249 किग्रा का वजन उठाया

  • 25 साल के गुरुराजा पुजारी ने 56 किलोग्राम (मेंस) कैटेगरी में कुल 249 किग्रा (स्नैच में 111 किग्रा और क्लीन एंड जर्क में 138 किग्रा) वजन उठाया.
  • गुरुराजा ने स्नैच की पहली कोशिश में 107 किग्रा भार उठाया. फिर उन्होंने 111 किग्रा भार उठाने की कोशिश की, लेकिन फाउल कर गए. तीसरी कोशिश में उन्होंने 111 किग्रा भार उठाया.
  • इसी तरह, क्लीन एंड जर्क की पहली कोशिश में 138 किग्रा भार औप्ट किया, लेकिन फाउल कर गए. दूसरी कोशिश में भी 138 किग्रा भार औप्ट किया, लेकिन इस बार भी वह फाउल कर गए. हालांकि, तीसरी और आखिरी कोशिश में उन्होंने 138 किग्रा का वजन उठाकर सिल्वर पक्का कर लिया. इस कैटेगरी में 12 देशों ने हिस्सा लिया था.

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अब मैं ओलिंपिक की तैयारी करूंगा : गुरुराजा

  • कौमनवेल्थ गेम्स में सिल्वर मेडल जीतने के साथ ही गुरुराजा ने अगला लक्ष्य तय कर लिया है. अब वे 2020 टोक्यो ओलिंपिक की तैयारी में जुटेंगे. जीत के बाद उन्होंने कहा, ‘अब मैं ओलंपिक की तैयारी करूंगा. नेशनल फेडरेशन और हर उस शख्स से जो मेरी जिंदगी का हिस्सा रहा, उससे मुझे बहुत सहयोग मिला है. सभी कोच मेरे प्रदर्शन में निखार लाए हैं.’
  • गुरुराजा ने बताया, ‘क्लीन एंड जर्क में जब मेरे दो प्रयास खाली चले गए, तो मेरे कोच ने याद दिलाया कि मेरी जिंदगी इस पदक पर कितनी निर्भर है. मैंने अपने परिवार और देश को याद किया.’ उन्होंने कहा, ‘2010 में जब मैंने खेलना शुरू किया, ट्रेनिंग के पहले महीने मैं बहुत हताश था, क्योंकि मुझे यही नहीं पता था कि बार को उठाया कैसे जाता है. यह मुझे बहुत कठिन लगता था.’
  • उनके अनुसार, ‘मैंने 2010 दिल्ली कौमनवेल्थ गेम्स में पहलवान सुशील कुमार को देखा था. उस समय मैंने भी रेसलिंग में अपना कैरियर शुरू करने की सोची. लेकिन जब मैं अपने कोच राजेंद्र प्रसाद से मिला तो उन्होंने मुझसे वेटलिफ्टिंग करने को कहा.’ उन्होंने आगे कहा कि ‘मैं अब भी रेसलिंग इंज्वाय करता हूं. मुझे खेल से बहुत ज्यादा प्यार है.’

ट्रक ड्राइवर के बेटे हैं गुरुराजा

  • गुरुराजा मूल रूप से कोस्टल कर्नाटक में कुंडूपारा के रहने वाले हैं. उनके पिता पिक-अप ट्रक ड्राइवर हैं. उन्होंने 2010 में वेटलिफ्टिंग करियर शुरू किया था. शुरू में उनके सामने कई परेशानियां आईं. डाइट और सप्लीमेंट्स के लिए पैसे की जरूरत होती थी, जो उनके पास नहीं थे, लेकिन उनके पिता ने उन्हें हिम्मत नहीं हारने दी. उनके परिवार में आठ लोग हैं. गुरुराजा बताते हैं कि हालांकि बाद में धीरे-धीरे चीजें बेहतर होती गईं.
  • गुरुराजा एयरफोर्स में काम करते हैं.

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एशियन गेम्स वेटलिफ्टिंग चैम्पियनशिप में जीता था गोल्ड

  • गुरुराजा पुजारी ने 2016 साउथ एशियन गेम्स में 56 किग्रा कैटेगरी में गोल्ड जीता था. तब उन्होंने कुल 241 किग्रा वजन उठाया था.
  • उन्होंने इसी साल पेनांग में कौमनवेल्थ सीनियर वेटलिफ्टिंग चैम्पियनशिप में भी गोल्ड जीता. उन्होंने 249 किग्रा (स्नैच में 108 किग्रा और क्लीन एंड जर्क में 141 किग्रा ) वजन उठाया था.

मलेशिया के इजहार ने बनाए 2 रिकौर्ड

  • मोहम्मद इजहार ने गुरुवार को कौमनवेल्थ गेम्स में दो रिकौर्ड बनाए. पहला उन्होंने टोटल वेट में रिकौर्ड बनाया. उन्होंने 261 किग्रा (स्नैच में 117 किग्रा. और क्लीन एंड जर्क में 144 किग्रा.) का वजन उठाया.
  • इससे पहले यह रिकौर्ड उनके ही देश के हमीजन अमीरुल इब्राहिम के नाम था. हमीजन ने 30 जुलाई, 2002 को मैनचेस्टर (इंग्लैंड) कौमनवेल्थ गेम्स में 260 किग्रा का वजन उठाया था.
  • इसके अलावा इजहार ने स्नैच में भी कौमनवेल्थ गेम्स का रिकौर्ड बनाया. उन्होंने स्नैच की पहली कोशिश में 114 किग्रा का और दूसरी कोशिश में 117 किग्रा वजन उठाया. तीसरी कोशिश में उन्होंने 119 किग्रा का वजन औप्ट किया, लेकिन फाउल कर गए. इससे पहले स्नैच में हमीजन अमीरुल इब्राहिम ने 2010 दिल्ली कौमनवेल्थ गेम्स में 116 किग्रा वजन उठाकर कौमनवेल्थ गेम्स का रिकौर्ड बनाया था.

रेड एफएम लेकर आया है ‘द लाल परी मस्तानी शो’

देश के सबसे बड़े रेडियो नेटवर्क में शुमार ‘93.5 रेड एफएम’ (93.5 Red FM) ने पिछले दिनों एक नया शो ‘द लाल परी मस्‍तानी’ शुरू किया है. इस शो की खास बात ये है कि सिंगर सोना मोहपात्रा पहली बार इस शो के माध्यम से रेडियो जौकी (RJ) बनी हैं. 17 मार्च से शुरू हुए इस कार्यक्रम में वह लोगों से विभिन्‍न मुद्दों पर खट्टी-मीठी बातें और इंटरव्‍यू करती हैं. रेड एफएम का यह शो अपनी सामाजिक जिम्मेदारी और विभिन्न कंटेट प्रारूपों के साथ प्रयोग करने की सोच के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है.

लाल रंग के प्रति अपने लगाव के बारे में बात करते हुए सोना कहती हैं कि, “लाल रंग के प्रति मेरा गहरा आकर्षण है, क्योंकि यह स्त्रीत्व के कई पहलुओं का प्रतीक है और हमारी संस्कृति से गहराई से जुड़ा हुआ है. मैं अपने आप को एक गायिका होने तक सीमित नहीं रखना चाहती थीं और अपने इस दायरे से बाहर निकलने के लिए रेड एफएम से अच्छा कोई ब्रांड नहीं हो सकता था. रेड एफएम जिस तरह से हर मुद्दे पर स्टैंड लेता है, वह प्रशंसनीय है.”

सोना कहती हैं कि, “रेड एफएम एक मजेदार और मनोरंजक रेडियो चैनल है और इसका अपने दर्शकों के साथ अदभुत संबंध है. मुझे उन मुद्दों पर खुलकर बोलने के लिए जाना जाता है जो हमारे समाज से जुड़े हुए हैं और ऐसा ही कुछ रेड एफएम के साथ है. मैं इस शो को होस्ट करने को लेकर बहुत उत्साहित हूं और हमारे शुरुआती ऐपिसोड में हमें दर्शकों की जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है. इस शो के माध्यम से मैं लोगों से जुड़ना चाहती हूं और उन विषयों पर चर्चा करना चाहती हूं जो मेरे दिल के बेहद करीब हैं.”

सोना महापात्रा ने ‘फुकरे’ फिल्‍म में ‘अम्बर सरिया’ गाने में अपनी आवाज दी, जिसे युवा वर्ग द्वारा खासा पसंद किया गया. उन्होंने फिल्म डेली-बेली के ‘बेदर्दी राजा’ गाने में अपनी आवाज दी है. आमिर खान स्टारर फिल्म ‘तलाश’ का ‘जिया लागे ना’ गाना भी उन्‍होंने गाया है. इसके साथ ही बतौर सिंगर सोना महापात्रा ने कई जिंगल्स बनाए हैं.

लाल परी मस्तानी के बारे में रेड एफएम की सीओओ निशा नारायणन का कहना है कि, “मैं ने सोना महापात्रा को सबसे पहले उनके गाने ‘अभी नहीं आना सजना’ के माध्यम से  सुना. यह हमारे लिए गर्व की बात है कि सोना बतौर आरजे हमारे साथ जुड़ी हैं. रेड एफएम एक ऐसा चैनल है जिसका प्रयास उन आवाजों को सामने लाना है जो किसी मुद्दे के लिए खड़ी हुई हैं. इस शो के माध्यम से हमारे उन श्रोताओं की सच्ची कहानियों को सामने लाया जाएगा, जो लैंगिकता, महिलाओं के असमान प्रतिनिधित्व और लैंगिक असमानता के सामाजिक मानदंड़ों के खिलाफ खड़े हुए हैं. इस शो की जान संगीत है, लेकिन हम इससे आगे बढ़कर कलात्मक अभिव्यक्ति की हर बाधा को तोड़ना चाहते हैं. और यह हमारी बजाते रहो स्टाइल के लिए भी प्रेरणादायक है.”

इस शो का प्रसारण रेड एफएम पर शनिवार सुबह नौ बजे किया जाता है. रविवार दोपहर दो बजे इसका पुन: प्रसारण किया जाता है. “लाल परी मस्तानी” एलबम में नौ नए गाने शामिल किए गए हैं, जो लोगों को बहुत पसंद आ रहे हैं और इन्हें आप सिर्फ रेड एफएम पर सुन सकते हैं.

तो आज ही ट्यून करें  ‘93.5 रेड एफएम’ और ‘बजाते रहो’.

विहान अपहरण केस : औपरेशन सी रिवर ऐसे हुआ कामयाब

गणतंत्र दिवस पर दिल्ली पुलिस की व्यस्तता बढ़ जाना स्वाभाविक होता है, कारण इस अवसर पर दिल्ली आने वाले वीआईपी विदेशी मेहमानों, वीवीआईपी और वीआईपी की सुरक्षा की जिम्मेदारी तो दिल्ली पुलिस को संभालनी ही होती है, साथ ही आतंकवादी गतिविधियों का खतरा अलग से बना रहता है.

इस बार तो इस मौके पर आसियान सम्मेलन भी था. बहरहाल, कहने का अभिप्राय यह है कि 26 जनवरी को होने वाले गणतंत्र दिवस के आयोजन की वजह से दिल्ली पुलिस स्थानीय नागरिकों की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पाती. ऐसे में कई बार ऐसी वारदातें हो जाती हैं, जो पीडि़तों के लिए तो दुखदायी होती ही हैं, पुलिस के लिए भी परेशानियां खड़ी कर देती हैं.

ऐसी ही एक वारदात गणतंत्र दिवस से एक दिन पहले यानी बीती 25 जनवरी को पूर्वी दिल्ली के जीटीबी इनक्लेव में घटी. समय था सुबह के साढ़े 7 बजे का. विवेकानंद स्कूल की बस छोटे बच्चों को ले कर स्कूल जा रही थी. इसी बस में कृष्णा मार्ग, न्यू मौडर्न कालोनी, शाहदरा निवासी करोड़पति व्यवसाई सन्नी गुप्ता का 5 वर्षीय बेटा और 7 साल की बेटी भी थे, जो शिवम डेंटल क्लीनिक के सामने से बस में बैठे थे.

विवेकानंद स्कूल की यह बस बच्चों को लेते हुए जब इहबास इलाके में एक बच्चे को लेने के लिए रुकी थी, तभी मोटरसाइकिल पर 2 युवक आए और बाइक खड़ी कर के हेलमेट पहने बस में चढ़ने लगे.

बस के गेट के पास खड़ी मेड ने उन्हें रोकने की कोशिश की तो उन में से एक युवक ने गाली देते हुए उसे साइड कर दिया. ड्राइवर नरेश थापा ने उन्हें टोका तो एक युवक ने उस के पैर में गोली मार दी. यह देख सारे बच्चे घबरा गए. तभी एक युवक ने आवाज दी, ‘‘विहान.’’

विहान पीछे की सीट पर अपनी बहन के साथ बैठा था, अपना नाम सुन कर वह खड़ा हो गया. युवक ने उसे गोद में उठा लिया और बस से उतरने लगा. बच्चे रोने लगे तो उस ने धमकी दी, ‘‘कोई भी रोया तो गोली मार दूंगा.’’ उस समय बस में 22 बच्चे थे.

अगले ही कुछ पलों में दोनों युवक विहान को ले कर मोटरसाइकिल से भाग निकले. जहां वारदात हुई, वह जगह सुनसान थी. जब तक लोग वहां पहुंचे, तब तक दोनों युवक आनंद विहार की ओर निकल गए. लोगों ने घायल ड्राइवर को जीटीबी अस्पताल पहुंचाया. फोन कर के स्कूल से दूसरी बस मंगवाई गई. साथ ही पुलिस को भी सूचना दे दी गई. विहान की बहन से नंबर ले कर उस के घर भी फोन किया गया.

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विहान के मातापिता और अन्य घर वाले तत्काल घटनास्थल पर पहुंच गए. उन का बुरा हाल था. थाना जीटीबी इनक्लेव से पुलिस भी आ गई थी. पुलिस ने विहान के अपहरण की सूचना दर्ज कर के तफ्तीश शुरू कर दी. पुलिस 3 दिनों तक हर तरह से कोशिश करती रही, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

स्थानीय पुलिस की जांच के साथ जिला पुलिस का स्पैशल स्टाफ भी अपहर्त्ताओं की खोज में लगा था. पुलिस ने जिले के 125 मुखबिरों को अपराधियों की गतिविधियों का पता लगाने की जिम्मेदारी अलग से सौंप रखी थी.

तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों को दी जिम्मेदारी

जब थाना पुलिस और स्पैशल स्टाफ कुछ नहीं कर सका तो 28 जनवरी को विहान के अपहरण का मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया. जौइंट पुलिस कमिश्नर आलोक कुमार ने अपने अधीनस्थ क्राइम ब्रांच के डीसीपी डा. जी. रामगोपाल नाइक को एक पुलिस टीम गठित कर के जल्द से जल्द मामले को सुलझाने को कहा.

डा. नाइक अपहरण मामलों के एक्सपर्ट हैं. वह विशाखापट्टनम के एक मशहूर व्यापारी के बेटे को सकुशल रिहा कराने के बाद चर्चा में आए थे. उन्होंने करीब 500 पुलिसकर्मियों की टीम को लीड करते हुए बच्चे को सकुशल बरामद किया था, इसलिए संयुक्त आयुक्त आलोक कुमार ने विहान के केस की जिम्मेदारी इन्हें सौंपी.

डीसीपी डा. जी. रामगोपाल नाइक ने क्राइम ब्रांच के एसीपी ईश्वर सिंह और इंसपेक्टर विनय त्यागी के साथ मीटिंग कर के रणनीति तैयार की कि बच्चे को सहीसलामत कैसे बरामद किया जाए. ईश्वर सिंह और विनय त्यागी दोनों ही बड़ेबड़े मामलों को सुलझाने में माहिर रहे हैं.

ईश्वर सिंह ने सन 2000 में क्रिकेट मैच फिक्सिंग के मामले को उजागर किया था, जिस में दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट टीम के कैप्टन हैंसी क्रोनिए सहित दरजनों लोग शामिल थे. इस के अलावा इन्होंने किडनैपिंग के भी दरजनों मामले सुलझाए थे.

जबकि इंसपेक्टर विनय त्यागी एनकाउंटर स्पैशलिस्ट रहे राजबीर सिंह की टीम का हिस्सा तो थे ही, उन्होंने 1999 में हुए मशहूर कार्टूनिस्ट इरफान हुसैन के मर्डर की गुत्थी सुलझा कर हत्यारों को भी गिरफ्तार किया था. इस के साथ ही विनय त्यागी ने ‘इंडियाज मोस्ट वांटेड’ सीरियल के निर्माता और एंकर सुहेब इलियासी को भी पत्नी के कत्ल के मामले में गिरफ्तार किया था.

बच्चे का पता लगाने और उसे सहीसलामत बचाने की जिम्मेदारी मिलते ही ईश्वर सिंह और विनय त्यागी ने करीब 50 लोगों की टीम गठित की, जिस में सबइंसपेक्टर अर्जुन, दिनेश, हवा सिंह, सुशील, एएसआई राजकुमार, मोहम्मद सलीम, हवलदार शशिकांत और श्यामलाल को शामिल किया गया. इस औपरेशन को नाम दिया गया ‘सी रिवर’.

60 लाख की मांगी फिरौती

28 जनवरी को क्राइम ब्रांच को केस सौंपा गया और उसी दिन अपहृत विहान के पिता सन्नी गुप्ता के फोन पर फोन कर के लड़की की आवाज में 60 लाख रुपए की फिरौती मांगी गई. इतना ही नहीं, अपहर्त्ताओं ने वाट्सऐप काल कर के बच्चे से बात भी कराई. इस वाट्सऐप काल में एक अपहर्त्ता का चेहरा भी नजर आया, पर उसे पहचाना नहीं जा सका.

अपहर्त्ताओं ने फिरौती की रकम देने के लिए विहान के घर वालों से 4 फरवरी को दिल्ली से कड़कड़डूमा क्षेत्र स्थित क्रौस रिवर मौल आने को कहा था. साथ ही उन्होंने यह भी चेतावनी दी थी कि पुलिस के चक्कर में न पड़ें वरना बच्चे को नुकसान हो सकता है. पीडि़त परिवार चाहता था कि किसी भी तरह उन का बच्चा सुरक्षित मिल जाए. वह फिरौती की रकम देने को तैयार थे.

परिजनों ने यह बात पुलिस को बता दी थी, इस पर पुलिस अधिकारियों ने अपहर्त्ताओं को घेरने की पूरी योजना बना ली. चूंकि अपहर्त्ताओं ने पैसे ले कर क्रौस रिवर मौल बुलाया था, इसलिए पुलिस ने इस औपरेशन का नाम रखा ‘सी रिवर’. पुलिस टीम इस मौल के आसपास तैनात हो गई. विहान के पिता को एक बैग में नोट के आकार की कागज की गड्डियां भर कर भेजा गया पर अपहर्त्ता वहां नहीं पहुंचे. शायद उन्हें वहां पुलिस के मौजूद होने का शक हो गया था.

अपहरण के मामले बड़े ही संवेदनशील होते हैं. ऐसे मामलों में पुलिस की पहली प्राथमिकता अपहृत व्यक्ति को सहीसलामत बरामद करने की होती है. इस के बाद अपहर्त्ताओं को गिरफ्तार करने की सोची जाती है. अपहर्त्ताओं के फिरौती की रकम न लेने आने के बाद पुलिस पता लगाने की कोशिश करने लगी कि बच्चे का अपहर्त्ता कौन हो सकता है.

इस से पहले थाना पुलिस की 6 टीमें पीडि़त परिवार, बस चालक, मेड, पड़ोसियों और बस में मौजूद बच्चों से पूछताछ कर चुकी थीं. थाना पुलिस ने 3 संदिग्ध लोगों की तलाश में नोएडा में भी छापेमारी की थी, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. इस के बाद ही यह मामला क्राइम ब्रांच को सौंपा गया था. इस की एक वजह यह भी थी कि क्राइम ब्रांच के पास पर्याप्त तकनीकी संसाधन होते हैं.

क्राइम ब्रांच भी यह बात मान कर चल रही थी कि बच्चे के अपहरण में किसी नजदीकी का हाथ हो सकता है, क्योंकि विहान के पिता ने हाल ही में किसी प्रौपर्टी का सौदा किया था, जिस की रकम उन के घर में मौजूद थी. यह बात उन के किसी करीबी को ही पता हो सकती थी, इसलिए पुलिस किसी नजदीकी पर शक कर रही थी.

क्राइम ब्रांच ने शुरू की अपने तरीके से जांच

पुलिस ने परिवार के सभी सदस्यों सहित वर्तमान नौकरों, पूर्व नौकरों व ऐसे लोगों का ब्यौरा बनाया, जिन्हें बच्चे के व्यापारी पिता सन्नी गुप्ता की उच्च आर्थिक स्थिति की जानकारी थी. पुलिस ने ऐसे 200 लोगों की एक लिस्ट बनाई, जिन से पूछताछ की जा सके. इस के अलावा ऐसे मामलों में शामिल रहे बदमाशों का ब्यौरा भी डोजियर सेल से निकलवाया गया. उन में से जो बदमाश जेल से बाहर थे, उन में से ज्यादातर को हिरासत में ले कर पूछताछ की गई, पर कोई नतीजा नहीं निकला.

विहान को ले कर घर के सभी लोग चिंतित थे. उस की मां शिखा का तो रोरो कर बुरा हाल था. रोतेरोते उन की आंखें सूज गई थीं. चूंकि विहान के पिता एक व्यापारी थे, इसलिए व्यापारी वर्ग भी इस बात को ले कर आक्रोश में था. बच्चे की शीघ्र बरामदगी के लिए व्यापारियों ने विरोध प्रदर्शन भी किया.

अपहर्त्ताओं ने पीडि़त परिवार को 2 वीडियो और 6 फोटो भेजे थे, जिन्हें देख कर पूरा परिवार डर गया था. जो वीडियो भेजे थे, उन में विहान ‘पापा, आई लव यू’ बोल रहा था. वह कह रहा था, ‘डैडी, आप मुझे लेने आ जाओ. मुझे आप की बहुत याद आ रही है.’ परिवार वाले उन वीडियो को बारबार देखते थे. विहान की चिंता में घर वालों की नींद उड़ी हुई थी.

पुलिस ने शाहदरा, इहबास, मंडोली रोड के करीब 2500 सीसीटीवी कैमरों की सूची बनाई, जिन में से 250 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली भी गई. आखिर में साहिबाबाद बौर्डर पर लगे एक सीसीटीवी कैमरे की फुटेज में बदमाश मोटरसाइकिल पर बच्चे को ले जाते दिखाई दिए. इस फुटेज से एक बदमाश की पहचान भी हुई.

दूसरी ओर डीसीपी जौय टिर्की और एसीपी संदीप लांबा की टेक्निकल टीम ने सर्विलांस, मोबाइल ट्रैकर से 35 टावरों के करीब 3 लाख नंबरों की जांच की.

3 लाख नंबरों में मिला अपहर्त्ता का नंबर

पुलिस टीम 3 लाख नंबरों की जांच करती रही. डंप डाटा में उसे 4 लोकेशन पर एक फोन नंबर कौमन मिला. उस फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया गया. जांच में पता चला कि वह फोन नंबर नितिन शर्मा का है. पुलिस ने उस नंबर पर आने वाली काल्स को रिकौर्ड करना शुरू कर दिया. इस से यह जानकारी मिली कि फोनधारक कोड में बात करता है. इस से उस पर पुलिस का शक और बढ़ गया.

फोन सर्विलांस पर लगाने के बाद इस बात की पुष्टि तो हो गई थी कि फोनधारक का नाम नितिन शर्मा है, पर वह रहता कहां है, यह पता नहीं लग सका. क्योंकि जिस आईडी से उस ने फोन का सिमकार्ड लिया था, वह फरजी पाई गई. इतनी बड़ी दिल्ली में उस का पता लगाना आसान नहीं था.

इंसपेक्टर विनय त्यागी ने सबइंसपेक्टर अर्जुन सिंह, हवा सिंह, दिनेश, सुशील, एएसआई राजकुमार, मोहम्मद सलीम, हैडकांस्टेबल श्यामलाल व शशिकांत को जिम्मेदारी दी कि वह मुखबिरों से मिलने वाली जानकारी की पड़ताल करें.

पुलिस ने पूरी दिल्ली में मुखबिरों का जाल बिछा रखा था. सभी मुखबिरों को एक अपहर्त्ता का वह फोटो दे दिया गया, जिस में उस ने पीडि़त परिवार से व्हाट्सऐप पर बात की थी. वह फोटो साफ नहीं था. मुखबिरों के अलावा उस फोटो की एकएक कौफी पूर्वी दिल्ली और उत्तरपूर्वी दिल्ली के सभी बीट अफसरों को भी दे दी गई ताकि वे अपनेअपने क्षेत्र के लोगों को फोटो दिखा कर जानकारी हासिल कर सकें.

जांच टीम में जितने भी पुलिसकर्मी थे, सभी रातदिन एक किए हुए थे. इन में से कुछ पुलिसकर्मियों के परिवार में शादी थी, इस के लिए उन्होंने छुट्टी भी ले रखी थी, पर केस की  संवेदनशीलता को देखते हुए वे छुट्टी पर नहीं गए. सभी की पहली प्राथमिकता केस को हल करने की थी. जौइंट सीपी आलोक कुमार जांच में जुटी सभी टीमों से संपर्क बनाए हुए थे. हर अपडेट वह पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक को दे रहे थे.

उधर पीडि़त परिवार के पास अपहर्त्ताओं की तरफ से फिरौती की और कोई काल नहीं आई. मामला मीडिया में ज्यादा हाईलाइट हो चुका था, इसलिए अपहर्त्ता शायद चौकस हो गए थे. ऐसे में पुलिस को इस बात की आशंका थी कि कहीं अपहर्त्ता बच्चे को नुकसान न पहुंचा दें.

इसी दौरान एक मुखबिर ने उस धुंधले फोटो को पहचान लिया. उस ने बताया कि वह नितिन शर्मा है जो गोकुलपुरी में रहता है. यह जानकारी पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण थी. मुखबिर द्वारा नितिन के घर का पता भी मिल गया था. लेकिन पुलिस अधिकारियों ने अपहृत विहान की सुरक्षा को देखते हुए नितिन के घर दबिश देना जरूरी नहीं समझा.

उधर सर्विलांस टीम नितिन के फोन पर होने वाली बातचीत पर नजर रखे हुए थी. तभी सर्विलांस टीम को पता चला कि नितिन सोमवार की रात को दिल्ली में होने वाले एक शादी समारोह में आ रहा है. मुखबिर द्वारा पुलिस को उस की स्विफ्ट कार का नंबर भी मिल गया था. पुलिस टीम ने मोबाइल लोकेशन के आधार पर उस का पीछा करना शुरू कर दिया. 5 फरवरी, 2018 की रात करीब साढ़े 11 बजे नितिन की कार सीमापुरी में कम्युनिटी ब्लौक के पास रुकी तो क्राइम ब्रांच की टीम ने उसे हिरासत में ले लिया.

हिरासत में लेते ही पुलिस ने सब से पहले उस से विहान के बारे में पूछा. नितिन ने बताया कि विहान सुरक्षित है. उसे बी-505 इबोनी अपार्टमेंट, शालीमार सिटी, साहिबाबाद में रखा गया है. जौइंट सीपी आलोक कुमार ने उसी समय डीसीपी जी. रामगोपाल नाइक के नेतृत्व में 16 सदस्यीय एक टीम नितिन के साथ शालीमार सिटी भेज दी. रात एक बजे टीम 5वीं मंजिल स्थित उस फ्लैट पर पहुंच गई.

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बदमाशों ने कर दिया पुलिस को घायल

उस फ्लैट में अंदर की तरफ लकड़ी का दरवाजा था और बाहर लोहे की जाली वाला. पुलिस के सामने नितिन ने कोड में 3 बार दरवाजा खटखटाया. एक बदमाश ने जैसे ही लकड़ी वाला दरवाजा खोला तो अपने साथी नितिन को हथियारबंद पुलिस के बीच देख वह घबरा गया. तभी इंसपेक्टर विनय त्यागी ने कहा, ‘‘बच्चा पुलिस के हवाले कर दो, इसी में तुम्हारी भलाई है.’’

इंसपेक्टर विनय त्यागी दरवाजे के एकदम सामने थे. उन के बराबर में कमांडो कुलदीप था. उन के पीछे 6 अन्य पुलिसकर्मी एके 47 के साथ पोजीशन लिए खड़े थे. इंसपेक्टर त्यागी के ललकारने पर बदमाश ने फ्लैट के अंदर से कहा, ‘‘आप लोग यहां से चले जाओ वरना बच्चे की जान को खतरा हो सकता है.’’

इसी बीच लकड़ी का दरवाजा खोल कर बदमाश ने पुलिस पर फायरिंग कर दी. उस की एक गोली इंसपेक्टर विनय त्यागी और एक गोली कमांडो कुलदीप को लगी.

जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग की. गोली लगने से एक बदमाश वहीं गिर गया, जबकि दूसरा लंगड़ाते हुए अंदर की तरफ भागा. उस के पैर में गोली लगी थी. बदमाशों की ओर से 5 राउंड फायरिंग की गई थी. गोली चलने से बाहर के लोहे वाले दरवाजे पर लगी जाली ढीली पड़ गई थी. फ्लैट के अंदर कोई हलचल न देख कर पुलिस ने ढीली पड़ चुकी लोहे की जाली को खींच कर मोड़ दिया और फिर अंदर हाथ डाल कर दरवाजे की सिटकनी खोल दी.

पोजीशन लेते हुए पुलिस फ्लैट में दाखिल हो गई. एक बदमाश फर्श पर पड़ा था, उस के सीने पर गोली लगी थी. उस की मौत हो चुकी थी. दूसरे बदमाश को भी पुलिस ने हिरासत में ले लिया. वह किचन में जा कर छिप गया था.

बच्चा छिपा बैठा था बैड के पीछे

जिस घायल बदमाश को हिरासत में लिया था, उस ने अपना नाम पंकज बताया और जिस बदमाश की मौत हुई थी, उस का नाम रवि था. पंकज को हिरासत में लेते ही डीसीपी डा. जी. रामगोपाल नाइक बच्चे को फ्लैट में ढूंढने लगे. वह बैड के पास छिपा मिला. बच्चा सहमा हुआ बैठा था.

डीसीपी ने विहान से कहा, ‘‘बेटा, मैं आप का चाचा हूं और पुलिस में हूं. आप को डैडी के पास ले जाने के लिए आया हूं.’’

यह कहते ही डीसीपी नाइक ने डरेसहमे विहान को गोद में उठा लिया, बच्चा उन से लिपट गया. विहान को सहीसलामत पा कर सभी ने राहत की सांस ली.

डीसीपी डा. नाइक ने अपहृत हुए विहान को सहीसलामत बरामद करने की सूचना संयुक्त आयुक्त आलोक कुमार को देते हुए कहा कि सर औपरेशन ‘सी रिवर’ सक्सेसफुल. यह खबर मिलते ही आलोक कुमार खुश होते हुए बोले, ‘‘वैल डन.’’

पुलिस को अपहरण का यह केस खोलने में भले ही 12 दिन लग गए लेकिन इस में सब से बड़ी सफलता यह रही कि विहान को पुलिस ने सहीसलामत बरामद कर लिया और अपहर्त्ता भी पकड़े गए.

5 वर्षीय विहान को बरामद करने के बाद पुलिस डाक्टरी जांच के लिए उसे जीटीबी अस्पताल ले गई. डाक्टरों ने विहान के कई तरह के टेस्ट किए. उधर डीसीपी ने रात 1 बज कर 5 मिनट पर विहान के दादा अशोक गुप्ता को फोन किया, ‘‘मैं डीसीपी राम नाइक बोल रहा हूं. बच्चा मिल गया है.’’

यह सूचना पाते ही अशोक गुप्ता चहक उठे. उन्होंने तुरंत अपने बेटे सन्नी और बहू शिखा को बताया तो उन के चेहरे खिल गए. मारे खुशी के शिखा की आंखों में आंसू भर आए. इस के बाद शिखा ने उसी समय यह जानकारी अपने मायके वालों को दे दी. घर के सभी लोग जीटीबी अस्पताल पहुंच गए. शिखा ने बेटे को देखते ही उसे उठा कर सीने से चिपका लिया.

विहान भी मां की गोद में आ कर खूब रोया. रोते हुए वह बोला, ‘‘अंकल और आंटी बहुत गंदे थे. अंकल शराब पीते थे. एक दिन उन्होंने मुझे थप्पड़ भी मारा था.’’

औपरेशन सी रिवर में एक अपहर्त्ता रवि मारा गया था, जबकि नितिन शर्मा और पंकज गिरफ्तार किए जा चुके थे. पंकज घायल हो गया था. पुलिस ने उसे जीटीबी अस्पताल में भरती करा दिया था. 7 फरवरी, 2018 को उसे अस्पताल से छुट्टी मिल गई. पुलिस ने दोनों बदमाशों से विहान अपहरण के बारे में पूछताछ की तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. पता चला कि इन बदमाशों ने उस के अपहरण की साजिश 6 महीने पहले रची थी.

मास्टरमाइंड निकला नितिन शर्मा

इस पूरे मामले का मास्टरमाइंड 28 वर्षीय नितिन कुमार शर्मा था, जो उत्तरपूर्वी दिल्ली के गोकुलपुरी का रहने वाला था. संस्थागत रूप से उस ने 10वीं तक पढ़ाई की थी. इस के बाद वह ओपन स्कूल से 12वीं की पढ़ाई कर रहा था. उसे बनठन कर रहने का शौक था. घर वाले कब तक उस के शौक पूरा करते, लिहाजा वह यारदोस्तों से पैसे ले कर अपने खर्चे पूरे करने लगा.

नितिन के पिता ममराज पिछले 30 सालों से ढाबा चला रहे थे. जब नितिन पर कर्ज बढ़ने लगा तो वह अपने पिता के ढाबे पर बैठने लगा. कई साल पहले ममराज परिवार से अलग हो गए तो नितिन अपने भाई नवीन के साथ ढाबा चलाने लगा. नवीन अपनी मां के साथ यमुना विहार में रहता था, जबकि नितिन पत्नी के साथ गोकुलपुरी में.

ढाबे का काम जम गया तो अच्छी आमदनी होने लगी. नितिन धीरेधीरे लोगों का कर्ज चुकाने लगा. करीब एक साल से उस के ढाबे पर गोकुलपुरी का रहने वाला पंकज भी काम करने लगा था. 21 साल का पंकज दिन में उस के ढाबे पर काम करता और कभी शादीपार्टी वगैरह में उसे वेटर का काम मिल जाता तो रात में वह वेटर का काम भी कर लेता था.

वेटर का काम उसे गोकुलपुरी के ही रहने वाले रवि के पिता के सहयोग से मिलता था. उस के पिता वेटर सप्लाई का काम करते थे. इस तरह रवि से भी उस की दोस्ती हो गई थी. पंकज नितिन का अच्छा दोस्त था. बाद में उस की रवि से भी दोस्ती हो गई थी. ढाबे से नितिन को अच्छी कमाई हो ही रही थी. उस कमाई को नितिन अपने दोस्तों के साथ पार्टी में खर्च कर देता था. इस के अलावा नितिन की कई गर्लफ्रैंड थीं, उन पर भी वह खूब खर्च करता था.

अंधाधुंध खर्च करने की वजह से नितिन पर कर्ज और बढ़ने लगा. बाद में उस के पास लोग तगादे के लिए आने लगे. उन से बचने के लिए वह पूरे समय ढाबे पर भी नहीं बैठ पाता था, जिस से उस की आमदनी दिनोंदिन कम होती गई. एक दिन नितिन ने अपने दोस्तों पंकज और रवि के साथ बात की कि आमदनी कैसे बढ़ाई जाए. दोनों दोस्तों ने अलगअलग सुझाव दिए, जो नितिन को पसंद नहीं आए.

सोचसमझ कर किया विहान को टारगेट

नितिन कोई ऐसा काम करना चाह रहा था, जिस से एक ही झटके में उसे इतनी कमाई हो जाए जिस से कर्ज चुकाने के बाद बचे पैसों से वह कोई ढंग का बिजनैस शुरू कर सके. इस पर पंकज ने किसी अमीर घर के बच्चे का अपहरण करने का सुझाव दिया. पंकज का यह सुझाव नितिन की समझ में आ गया. इस के बाद वे ऐसी आसामी के बारे में सोचने लगे, जिस के बच्चे का अपहरण कर के फिरौती में 50-60 लाख रुपए लिए जा सकें.

नितिन अपने ढाबे का सामान अशोक गुप्ता की दुकान से लाता था, जो न्यू मौडर्न शाहदरा की गली नंबर-3 में रहते थे. वह अशोक गुप्ता के पूरे परिवार को अच्छी तरह जानता था. गुप्ता परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था. उन के पोतेपोती दोनों स्कूल जाते थे.

दोनों बच्चे विवेकानंद स्कूल में पढ़ते थे. स्कूल की बस दोनों बच्चों को लेने आती थी. तीनों ने अशोक के 4 साल के पोते विहान का अपहरण करने का इरादा बना लिया. इस से पहले कि वे योजना को अंजाम देते, दिसंबर, 2017 में पंकज गाड़ी चोरी के एक मामले में जेल चला गया.

करीब 10 दिन बाद पंकज जमानत पर जेल से बाहर आया, तब तक नितिन ने सारी प्लानिंग कर ली थी कि कहां से बच्चे को उठाना है और अपहरण के बाद उसे कहां रखना है.

नितिन ने करीब 6 महीने पहले शालीमार सिटी के इबोनी अपार्टमेंट में एक फ्लैट साढ़े 10 हजार रुपए महीने के किराए पर ले लिया था. उसी फ्लैट पर वह दोस्तों के साथ अय्याशी करता था. यह फ्लैट पटपड़गंज स्थित तरंग अपार्टमेंट में रहने वाली सुशीला का था. नितिन ने फ्लैट मालकिन को बताया था कि उस का गांधीनगर में रेडीमेड गारमेंट का कारोबार है.

इलाके की अच्छी तरह रैकी करने के बाद 25 जनवरी, 2018 को रवि और पंकज वारदात को अंजाम देने के लिए निकले. नियत समय पर विहान स्कूल बस में अपनी 7 साल की बहन के पास बैठ गया. उस समय स्कूल बस शिवम डेंटल क्लीनिक के पास खड़ी थी. रवि और पंकज मोटरसाइकिल द्वारा बस के पास पहुंच गए, लेकिन वहां भीड़भाड होने की वजह से उन्होंने वारदात को अंजाम नहीं दिया.

स्कूल बस को अगले पिकअप पौइंट से और बच्चे लेने थे. जैसे ही बस उस स्टाप पर पहुंची तो विहान का अपहरण करने के लिए उन्होंने बस के पास अपनी बाइक रोक दी. लेकिन इस से पहले कि वे कुछ कर पाते, बस वहां से निकल गई. बस के अगले स्टाप पर बच्चे को किडनैप करने के लिए जैसे ही वे आगे बढ़े, उसी समय राह चलते कुछ लोग बीच में आ गए. तब तक स्कूल बस आगे निकल गई.

इस के बाद स्कूल बस दिलशाद गार्डन सी ब्लौक फ्लैटों के पीछे के गेट के सामने रुकी. इस के सामने इहबास अस्पताल का गेट नंबर-1 है. रवि और पंकज बाइक से पीछा करते हुए वहां पहुंच गए. दहशत फैलाने के लिए उन्होंने बस के ड्राइवर नरेश थापा के पैर में गोली मारी. इस के बाद उन्होंने बस के गेट पर खड़ी आया को धक्का दे दिया. तभी उन्होंने गेट से ही विहान को आवाज लगाई तो विहान अपनी सीट से खड़ा हो गया. रवि और पंकज ने विहान को उठा कर अपनी बाइक पर बैठा लिया.

मोटरसाइकिल पर विहान को बीच में बैठा कर वे आनंदविहार होते हुए शालीमार सिटी, साहिबाबाद स्थित उसी फ्लैट पर ले गए जो नितिन ने 6 महीने पहले किराए पर लिया था. नितिन उन का फ्लैट पर ही इंतजार कर रहा था.

वहां ले जा कर उन्होंने विहान को इतना डराधमका दिया, जिस से वह सहमा हुआ रहे. उन का इरादा बच्चे को कोई नुकसान पहुंचाना नहीं था. वह तो किसी तरह उस के घर वालों से फिरौती वसूलना चाहते थे.

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चोरी के फोन से मांगी थी फिरौती

तीनों बदमाशों का वैसे तो पुराना आपराधिक रिकौर्ड नहीं है, लेकिन वे थे बहुत शातिर. मोबाइल लोकेशन से वह पुलिस के हत्थे न चढ़ें, इसलिए उन्होंने वहां से 10 किलोमीटर दूर जा कर फिरौती की काल की थी. जिन मोबाइल फोनों से वे बातें करते थे, वह चोरी के थे. पंकज लड़की की आवाज निकालने में माहिर था, इसलिए विहान के घर वालों से वही बात करता था.

जिस फ्लैट में बच्चे को रखा गया था, वहां रात को केवल एक बदमाश बच्चे के साथ सोता था और 2 रात भर जागते हुए चौकस रहते थे. उन्होंने योजना तो फूलप्रूफ बनाई थी लेकिन मामला क्राइम ब्रांच के हाथ में पहुंचते ही उन के अरमानों पर पानी फिर गया. इस चक्कर में उन के साथी रवि को तो अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.

पुलिस ने अपहर्त्ता पंकज और नितिन कुमार शर्मा से विस्तार से पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर 7.65 एमएम की 2 पिस्टल और मैगजीन बरामद कर लीं. दोनों को भादंवि की धारा 363, 307 और 25/27 आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार कर के कड़कड़डूमा न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

बच्चे की हत्या कर 37 दिनों तक घर में रखे रहा लाश

विहान अपहरण मामले की तरह जनवरी, 2018 के पहले हफ्ते में उत्तरपश्चिमी दिल्ली के स्वरूपनगर इलाके से एक और बच्चे का फिरौती के लिए अपहरण कर लिया गया था, लेकिन इस मामले में अपहर्त्ता ने सब से पहले बच्चे की हत्या कर के लाश एक सूटकेस में भर ली. उस सूटकेस को वह 37 दिनों तक अपने कमरे में रखे रहा. बदबू न आए, इस के लिए वह कमरे में परफ्यूम छिड़कता रहता था. बच्चे की लाश बरामद होने के बाद जब सच्चाई सामने आई तो सभी हैरान रह गए.

उत्तरपश्चिमी दिल्ली के थाना स्वरूपनगर क्षेत्र के नत्थूपुरा में करण सिंह की परचून की दुकान थी. उन की दुकान अच्छी चलती थी, जिस से उन्हें ठीक आमदनी हो जाती थी. करण सिंह अपना पूरा ध्यान अपने परिवार और बिजनैस पर ही लगाते थे. परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा आशीष उर्फ आशू और एक बेटी थी. अपनी मेहनत की बदौलत उन्होंने अपनी एक दुकान से परचून की 3 दुकानें कर ली थीं. उन का परिवार हर तरह से खुशहाल था.

लेकिन 7 जनवरी, 2018 को उन के परिवार में जो हुआ, उसे करण सिंह पूरी जिंदगी नहीं भुला सकेंगे. दरअसल हुआ यह कि 7 जनवरी रविवार को 7 वर्षीय आशीष अपनी बुआ के बेटे के साथ घर के बाहर खेल रहा था. खेलकूद कर वह शाम 4 बजे घर लौट आया. घर पहुंच कर उस ने अपनी बड़ी बहन से कहा, ‘‘गुंजन दीदी, साढ़े 5 बज गए क्या?’’

‘‘क्यों, क्या कहीं जाना है?’’ गुंजन ने पूछा.

‘‘हां, मुझे अवधेश चाचा के पास जाना है. वह मुझे साइकिल दिलाएंगे.’’ आशू बोला.

आशू की इच्छा थी कि उस के पास एक इतनी छोटी साइकिल हो, जिसे वह आसानी से चला सके. मोहल्ले के बच्चे स्कूल से लौटने के बाद गली में जब साइकिल चलाते थे तो उस का मन भी साइकिल चलाने को करता था. इस बारे में उस ने अपनी मम्मी और पापा से कई बार कहा था लेकिन वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाते थे.

ऐसा नहीं था कि करण सिंह की स्थिति  साइकिल दिलाने की नहीं थी, लेकिन वह यह सोच कर उसे साइकिल नहीं दिला रहे थे कि कहीं उन के लाडले को चोट न लग जाए.

लेकिन 7 जनवरी को जब उन के पड़ोसी और दूर के रिश्ते में आशीष के चाचा लगने वाले अवधेश ने जब उसे साइकिल दिलाने की बात कही तो आशू के मन में लालच आ गया.

बहन से कुछ देर बात करने के बाद आशू अपने घर से निकल गया. इस के बाद वह घर वापस नहीं लौटा. घर वालों ने आशू को इधरउधर ढूंढा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चल सका. मोहल्ले के लोग भी उन के साथ बच्चे को ढूंढने में मदद करने लगे. जब वह नहीं मिला, तो करण सिंह अपने रिश्तेदार अवधेश के साथ थाना स्वरूपनगर पहुंच गए और आशू के गायब होने की बात थानाप्रभारी को बता दी.

थानाप्रभारी ने कोई लापरवाही न बरतते हुए उसी समय अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज कर लिया और बच्चे के ढूंढने की काररवाई शुरू कर दी. बच्चे के गायब होने के 2 दिन बाद भी करण सिंह के पास फिरौती की कोई काल नहीं आई तो पुलिस को यही लगा कि किसी ने दुश्मनी में बच्चे का अपहरण किया है.

गली में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने पर पुलिस को पता लगा कि आशू अवधेश के घर के पास देखा गया था. उस के बाद उस की फुटेज नहीं दिखाई दी. तब पुलिस ने उस गली के 50 से ज्यादा घरों में तलाशी अभियान चलाया.

इतना ही नहीं, पुलिस ने छत पर रखी पानी की सभी टंकियां भी चैक कीं, पर बच्चे का कहीं पता नहीं चला.

इसी बीच पड़ोसियों को अवधेश के घर से अजीब सी दुर्गंध आती महसूस हुई. इस बारे में उस से पूछा गया तो वह बोला कि बदबू तो मुझे भी आती है. लगता है घर में कोई चूहा मर गया है. अगले दिन वह एक मरा हुआ चूहा घर के अंदर से निकाल कर ले आया. वही चूहा उस ने पड़ोसियों को दिखाते हुए कहा कि बदबू इसी से आ रही थी.

एक दिन करण की बेटी गुंजन ने घर वालों को बताया कि आशू साइकिल लेने के लिए अवधेश चाचा के यहां जाने की बात कह रहा था. सीसीटीवी फुटेज में भी आशू अवधेश के घर तक ही जाता दिखा था.

इन सब बातों से घर वालों को अवधेश पर शक होने लगा. अपना शक उन्होंने पुलिस से जाहिर किया तो पुलिस ने अवधेश से पूछताछ तक नहीं की. पुलिस का कहना यह था कि बिना किसी सबूत के उस के खिलाफ काररवाई नहीं कर सकते.

इस पर करण सिंह ने न्यायालय की शरण ली. कोर्ट के आदेश पर पुलिस सक्रिय हुई और बच्चा गुम होने के 38वें दिन अवधेश के घर की तलाशी ली. वहां एक सूटकेस से तेज बदबू आ रही थी.

जब उस सूटकेस को खुलवाया गया तो उस में आशू की लाश निकली जो पौलीथिन में लपेट कर रखी थी. पुलिस ने तुरंत अवधेश को हिरासत में ले लिया और सूचना डीसीपी असलम खान को दे दी. कुछ ही देर में डीसीपी और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम वहां पहुंच गई.

लोगों को जब पता चला कि करण सिंह के रिश्तेदार ने ही बच्चे की हत्या कर लाश अपने घर में छिपा रखी थी तो सैकड़ों लोग वहां एकत्र हो गए. सभी के मन में अवधेश के प्रति आक्रोश था. भीड़ के मूड को देखते हुए डीसीपी ने जिले के अन्य थानों की पुलिस भी वहां बुला ली ताकि स्थिति नियंत्रण में रहे.

पुलिस ने आननफानन में जरूरी कारवाई कर के बच्चे की सड़ी लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबू जगजीवनराम अस्पताल भेज दिया और अवधेश को पूछताछ के लिए थाने ले गई. पूछताछ में अवधेश ने आशू के अपहरण और हत्या करने की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—

अवधेश शाक्य मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के कुरावली का रहने वाला था. उस के परिवार में मातापिता के अलावा 3 बहनें हैं.

वह सन 2010 में दिल्ली आया था. यहां रह कर वह सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी कर रहा था. 2 बार वह यह परीक्षा पास भी कर चुका था पर मुख्य परीक्षा में फेल हो गया था. इसी वजह से वह डिप्रेशन की हालत में चला गया.

बेरोजगार होने से उस पर लोगों का कर्ज भी चढ़ गया. कर्ज के साथसाथ उसे अपनी बहनों की शादी की चिंता भी खाए जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्या करे, जिस से उस की आर्थिक हालत सुधरे.

तब उस के दिमाग में आया कि क्यों न वह अपने ही दूर के रिश्तेदार करण सिंह के बेटे का अपहरण कर ले. वह करण सिंह की हैसियत से वाकिफ था. उसे उम्मीद थी कि फिरौती में 18-20 लाख रुपए आसानी से मिल जाएंगे.

इस के बाद वह आशू के अपहरण की योजना बनाने लगा. इसी बीच उसे पता चला कि आशू अपने पिता से साइकिल की मांग कर रहा था लेकिन उन्होंने उसे साइकिल नहीं दिलवाई.

7 जनवरी को अवधेश ने आशू से कहा, ‘‘आशू, तुम्हें साइकिल चाहिए?’’

‘‘हां चाचा.’’ आशू खुश हो कर बोला.

‘‘ऐसा करो आज शाम साढ़े 5 बजे के बाद तुम मेरे कमरे पर आ जाना, मैं साइकिल खरीदवा दूंगा.’’ अवधेश ने लालच दिया.

‘‘ठीक है चाचा, मैं आ जाऊंगा.’’ कह कर आशू अपने घर चला गया था और उस ने यह बात अपनी बहन को बता दी थी.

साढ़े 5 बजे से पहले ही वह अवधेश के यहां चला गया. अवधेश आशू को अपने कमरे में ले गया और योजनानुसार गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने आशू की लाश पौलीथिन में लपेट कर सूटकेस में बंद कर दी.

सूटकेस उस ने अपने कमरे में ही रख दिया. उस का इरादा लाश को कहीं बाहर ले जा कर ठिकाने लगाने का था. बाद में वह बच्चे के घर वालों से फिरौती मांगना चाहता था. आशू के घर वालों से अवधेश के पारिवारिक संबंध थे. वह उस के घर वालों के साथ आशू को ढूंढने का नाटक भी करता रहा. उसी ने घर वालों के साथ थाने जा कर रिपोर्ट लिखवाई. दूसरी तरफ उसे घर में रखी लाश को ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिल पा रहा था क्योंकि इलाके में पुलिस गश्त कर रही थी.

15-20 दिन बाद जब लाश से बदबू आनी शुरू हो गई तो उस ने कमरे में परफ्यूम छिड़का. ऐसा वह रोजाना करता. पर बदबू बढ़ती जा रही थी. अवधेश परेशान था. कोई शक न करे, इसलिए उस ने एक चूहा मार कर घर के एक कोने में डाल दिया. उस पर भी उस ने परफ्यूम छिड़क दिया था.

एक दिन पड़ोसियों ने बदबू के बारे में उस से पूछा तो उस ने कह दिया कि घर में चूहा मर गया होगा. फिर वही मरा हुआ चूहा उस ने पड़ोसियों को दिखा दिया. उसे वह बाहर फेंक आया. लाश ठिकाने लगाने का मौका न मिलने से वह परेशान था. इस तरह बच्चे की लाश उस के यहां 37 दिन तक रखी रही.

पुलिस ने अवधेश से पूछताछ करने के बाद उसे रोहिणी न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

ये है 50 लाख साल पुरानी गुफा, तस्वीरें देख हैरान रह जाएंगे आप

यहां आप जिस गुफा का चित्र देख रहे हैं, वह दुनिया की सब से बड़ी गुफा है. 9 किलोमीटर लंबी, 200 मीटर चौड़ी और 150 मीटर ऊंची इस गुफा की अपनी अलग ही दुनिया है. इस के अंदर छोटे से जंगल और पेड़पौधे से ले कर बादल और नदी तक सब कुछ हैं.

2013 में पहली बार इसे टूरिस्ट्स के लिए खोल दिया गया, लेकिन साल में यहां सिर्फ 250-300 लोगों को जाने की परमिशन मिलती थी. लेकिन इस साल यहां 900 टूरिस्ट जाएंगे.

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सौन डोंग गुफा क्वांग विन्ह-के फांग न्हा के बंग नैशनल पार्क में मौजूद है. इसे वियतनाम की ग्रेट वाल भी कहा जाता है. सौन डोंग गुफा कार्बोनिफेरस और पर्मियन चूना पत्थरों से बनी है. इस की उम्र 20 से 50 लाख साल आंकी गई है. इस गुफा के अंदर भूमिगत नदी और एक छोटा सा जंगल भी है. इस में गूंजने वाली हवा और आवाज बाहरी गेट तक सुनाई देती हैं.

इस गुफा की खोज स्थानीय युवक हो खानह ने 1991 में की थी. 2009 में एक ब्रिटिश एसोसिएशन ने इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई. ब्रिटिश केव रिसर्च एसोसिएशन ने फांग न्हा नैशनल पार्क का दौरा किया. इस रिसर्च एसोसिएशन ने फांग न्हा दीवार को पार किया. इस के अंदर आनेजाने के 2 रास्तों का पता लगाया. गुफा के अंदर सूर्य की रोशनी भी पहुंचती है.

सन 2013 में इस गुफा के अंदर जाने की अनुमति 220 टूरिस्टों को मिली थी. गुफा में टूरिस्ट्स हर साल अगस्त से पहले आते हैं, क्योंकि इस के बाद नदी का जलस्तर बढ़ जाता है. इस साल पहली बार 900 से ज्यादा टूरिस्ट इस गुफा में जा सकेंगे. वे गुफा में 4 दिन और 4 रात तक रहेंगे. इस के लिए टिकट की बिक्री भी शुरू हो गई है. एक टिकट 1.91 लाख रुपए का है.

गुफा में जाने वाले टूरिस्टों को 6 महीने तक विशेष ट्रेनिंग दी जाती है. उन्हें 10 किलोमीटर पैदल चलने और 6 बार रौक क्लाइंबिंग कराई जाती है, साथ ही योगा भी कराया जाता है. उन का फिटनैस टेस्ट भी होता है.

पीएनबी घोटाला : मिलीभगत के बड़े खेल की ये है असली कहानी

किसी हिंदी फिल्म की शुरुआत के लिए भी शायद यह अति नाटकीय सीन लगे और निर्देशक आंख में इतने धूलझोंकू सीन को फिल्माने से मना कर दे, जैसी हकीकत पंजाब नैशनल बैंक की मुंबई स्थित ब्रेडी हाउस ब्रांच घोटाले से सामने आई है. जैसा कि बैंक के एमडी सुनील मेहता बताते हैं, ‘यह सब 2011 से ही चल रहा था और 3 जनवरी 2018 को 11,360 करोड़ रुपए के घोटाले के रूप में सामने आया.’

अब सामने कैसे आया, जरा यह भी देख लीजिए. कई महीने पहले नीरव मोदी के कुछ अधिकारी पंजाब नैशनल बैंक की ब्रैंडी हाउस शाखा पहुंचे. उन्होंने बैंक के मैनेजर से कहा कि उन्हें हांगकांग से कुछ सामान मंगाना है. सामान मंगाने के लिए उन्होंने बैंक से एलओयू यानी लेटर औफ अंडरटेकिंग जारी करने को कहा. उन्होंने ये लेटर औफ अंडरटेकिंग हांगकांग में मौजूद इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक के नाम पर जारी करने की गुजारिश की.

भारत में लेटर औफ अंटरटेकिंग का मतलब यह होता है कि किसी अंतरराष्ट्रीय बैंक या किसी भारतीय बैंक की अंतरराष्ट्रीय शाखा कारोबारी का अपना बैंक का साखपत्र जारी करता है, जिस का मतलब यह होता है कि आप इन साहब को इन की बताई हुई पार्टी को इतनी रकम का भुगतान कर दें. ये यह रकम 90 दिनों या अधिकतम 180 दिनों में लौटा देंगे. अगर ऐसा नहीं होता तो इस की भरपाई हम (यानी एलओयू या साखपत्र जारी करने वाला वाला बैंक) कर देंगे. यह शौर्ट टर्म लोन होता है.

इस लेटर के आधार पर कोई भी कंपनी दुनिया के किसी भी हिस्से में राशि को निकाल सकती है. इन एलओयू का इस्तेमाल ज्यादातर आयात करने वाली कंपनियां, विदेशों में भुगतान के लिए करती हैं. लेटर औफ अंडरटेकिंग किसी भी कंपनी को लेटर औफ कंफर्ट के आधार पर दिया जाता है. लेटर औफ कंफर्ट का मतलब होता है कि उसे कंपनी के स्थानीय बैंक की ओर से जारी किया गया है,यह उस कारोबार के लिए होता है, जो हो रहा होता है. यहां पीएनबी से यह गारंटी देने को कहा गया कि वह हांगकांग स्थित उन बैंकों को दे दे जिन का नाम ऊपर लिखा गया है.

पीएनबी ने हांगकांग में मौजूद इलाहाबाद बैंक को 5 और एक्सिस बैंक को 3 लेटर औफ अंडरटेकिंग जारी कर दिए. हांगकांग से करीब 280 करोड़ रुपए का सामान इंपोर्ट किया गया. कुछ महीने गुजर गए यानी वह पीरियड निकल गया, जितने दिनों बाद एलओयू के आधार पर भुगतान होना था.

अब 18 जनवरी को नीरव मोदी के कुछ अधिकारियों के साथ जिन बैंकों को एलओयू जारी किया गया था, उन के कुछ लोग बैंक पहुंचते हैं. वे अपने इंपोर्ट दस्तावेज दिखाते हुए कहते हैं कि पैसों का भुगतान कर दिया जाए. लेकिन अब वह बैंक मैनेजर नहीं है, जो इन के जारी करने के समय था. अत: वह कहता है कि जितना भी पैसा विदेश में भेजना है, उतना नकद जमा करना पड़ेगा.

कंपनियों के अधिकारियों ने फिर लेटर औफ अंडरटेकिंग दिखाया और उस के आधार पर पेमेंट करने को कहा. बैंक ने जब इन एलओयू की जांच शुरू की तो उन के होश उड़ गए. क्योंकि बैंक के रिकौर्ड में तो इन 8 लेटर औफ अंडरटेकिंग का कहीं जिक्र ही नहीं था. मतलब बैंक ने बिना कोई गारंटी लिए, बिना कुछ गिरवी रखे लेटर औफ अंडरटेकिंग जारी कर दिए थे. संक्षेप में यही पीएनबी घोटाला है, जिसे हीरा व्यापारी नीरव मोदी और उस के मामा मेहुल चौकसी ने अंजाम दिया है.

हकीकत पता चली तो मालूम हुआ घोटाला अरबों का है

बहरहाल, इस हकीकत के उजागर होने के बाद पीएनबी को तात्कालिक रूप से 280 करोड़ और जब पूरे मामले को खंगाला गया तो पता चला कि 11,360 करोड़ रुपए की चपत लग चुकी थी. इस के पता चलते ही पीएनबी के एमडी के मुताबिक, तुरंत संबंधित जांच एजेंसियों को इस की जानकारी दी गई. मगर सवाल यह है कि जब एलओयू मुंहजुबानी वायदे पर नहीं जारी किए जाते, बल्कि इस के पीछे कोई मजबूत गारंटी होती है तो फिर नीरव मोदी के मामले में ऐसा कैसे हुआ? आखिर कौन है ये नीरव मोदी?

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नीरव मोदी हीरे की ज्वैलरी का बहुत बड़ा कारोबारी है, जोकि इस खुलासे के पहले ही समझा जाता है कि 1 जनवरी 2018 को 4 बड़े बड़े सूटकेसों के साथ हिंदुस्तान छोड़ चुका है, जिस के बारे में भारत सरकार के अधिकारियों का कहना है कि उन्हें नहीं पता कि वह गया कहां या कहां है?

यह अलग बात है कि वह बैंक को लेटर भी लिख रहा है और धमकी भी दे रहा है. बहरहाल, ग्लैमर की दुनिया में भी इस 48 वर्षीय शख्स की खूब धाक थी. उस के नाम यानी ‘नीरव मोदी’ के नाम से हीरों का बड़ा ब्रांड है. कहा जाता है कि मेहमानों को लुभाने के लिए वह पेड़ों को भी हीरों से जड़ देता है. मौडल्स नीरव मोदी के करोड़ों के गहने पहन कर इतराती हैं. फिल्म एक्ट्रेस प्रियंका चोपड़ा से ले कर सिद्धार्थ मल्होत्रा तक नीरव मोदी के लिए विज्ञापन कर चुके हैं.

48 साल के नीरव की तीन कंपनियां हैं, जिन में एक हीरों का कारोबार करने वाली ‘फायरस्टार डायमंड’और दूसरी खुद उसी के नाम की ‘नीरव मोदी’. इन्हीं 2 कंपनियों के जरिए ये घोटाला हुआ, जिस की तह में है महत्त्वाकांक्षा.

नीरव अपने ब्रांड, नीरव मोदी को दुनिया का सब से बड़ा लग्जरी ब्रांड बनाना चाहता था. वह दुनिया की डायमंड कैपिटल कहे जाने वाले बेल्जियम के एंटवर्प शहर के मशहूर डायमंड ब्रोकर परिवार से ताल्लुक रखता है. एक वक्त ऐसा था कि वह खुद ज्वैलरी डिजाइन नहीं करना चाहता था, लेकिन पहली ज्वैलरी डिजाइन करने के बाद उस ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.

नीरव मोदी भारत की उस एकमात्र भारतीय ज्वैलरी ब्रांड का मालिक है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित है. उस के डिजाइन किए गए गहने हौलीवुड की हस्तियों से ले कर देशी धनकुबेरों की पत्नियों तक की शोभा बढ़ाते रहे हैं. उस के द्वारा डिजाइन किया गया गोलकोंडा नेकलेस 2010 में नीलामी के जरिए 16.29 करोड़ में बिका था. जबकि 2014 में उस के द्वारा डिजायन किया एक हीरा 50 करोड़ रुपए में नीलाम हुआ था.

अपनी ज्वैलरी ब्रांड के दम पर ही वह फोर्ब्स की भारतीय धनकुबेरों की 2017 की सूची में 84वें नंबर पर मौजूद था. उस की माली हैसियत लगभग 12 हजार करोड़ रुपए की है, जबकि माना जा रहा है कि उस की निजी कंपनी 149 अरब रुपए के आसपास की है. दिल्ली में नीरव मोदी का शोरूम डिफेंस कालोनी में है.

इस धनकुबेर ने जो घोटाला किया, उस के संबंध में पंजाब नैशनल बैंक से जो हकीकत बाहर आई है, वह यह है कि बैंक ने एलओयू जारी नहीं किए, बल्कि बैंक के 2 कर्मचारियों ने चोरी से फरजी एलओयू बना कर दिए. इन कर्मचारियों के पास स्विफ्ट सिस्टम का कंट्रोल था, जो 200 देशों की बैंकिंग गतिविधियों के लिए आधिकारिक तकनीक है.

बैंकों की दुनिया का यह एक अति सीक्रेट अंतरराष्ट्रीय कम्युनिकेशन सिस्टम है. यह दुनिया के सभी बैंकों को आपस में जोड़ता है. इस स्विफ्ट सिस्टम से जो संदेश जाते हैं, वो उत्कृष्ट तकनीक का इस्तेमाल करते हुए कोड में भेजे जाते हैं. एलओयू भेजना, खोलना, उस में बदलाव करने का काम इसी सिस्टम के जरिए किया जाता है. इसी कारण से जब इस सिस्टम के जरिए किसी बैंक को संदेश मिलता है तो उस बैंक को पता होता है कि ये आधिकारिक और सही संदेश है.

लेकिन नीरव को भेजे गए दस्तावेजों में असल में बैंक का कोई दस्तावेज था ही नहीं यानी इस के साथ बैंक ने उस व्यापारी को कोई लिमिट नहीं दी थी, ब्रांच मैनेजर ने स्विफ्ट सिस्टम से इसे भेजने वाले को कोई कागज हस्ताक्षर कर के नहीं दिया कि इसे आगे भेजा जाए. उन्होंने चुपचाप एलओयू भेज दिया. जबकि इस माध्यम से आए किसी संदेश पर कभी कोई बैंक शक नहीं करता. लेकिन बात यह है कि किसी सिस्टम को संभालने वाला आखिर कोई न कोई व्यक्ति ही तो होता है.

सब कुछ हुआ बैंककर्मियों की मदद से

माना जा रहा है कि पीएनबी में इस काम को करने वाले 2 लोग थे, एक क्लर्क जो इस में डेटा डालता था और दूसरा अधिकारी जो इस जानकारी की आधिकारिक पुष्टि करता था. दोनों मिल कर नीरव के लिए काम करते थे. यही नहीं अब पता चला है कि ये दोनों कई सालों तक इसी डेस्क पर काम कर रहे थे, जोकि नहीं होना चाहिए था. इस पद पर काम करने वालों की अदलाबदली होती रहनी चाहिए.

एक और बात है कि स्विफ्ट सिस्टम कोर बैंकिंग से नहीं जुड़ा था. क्योंकि कोर बैंकिंग में पहले एलओयू बनाया जाता है और फिर वह स्विफ्ट के मैसेज से चला जाता है. इस कारण कोर बैंकिंग में एक कौन्ट्रा एंट्री बन जाती है कि अमुक दिन बैंक ने अमुक राशि का कर्ज देने की मंजूरी दी है तो अगले दिन जब बैंक का मैनेजर अपनी फाइलें यानी बैलेंसशीट देखता तो उसे पता चल जाता है कि बैंक ने बीते दिन कितने कर्जे की मंज़ूरी दी है.  लेकिन इस मामले में स्विफ्ट कोर बैंकिंग से जुड़ा हुआ नहीं था.

इन दोनों ने फरजी मैसेज को स्विफ्ट से भेजा, मैसेज भी गायब कर दिया और इस की कोर बैंकिंग में एंट्री नहीं की तो कुछ पता भी नहीं चला.  बैंक का पूरा सिस्टम कैसे बाईपास हो गया, अगर कोई चोर कोई निशान या सबूत ना छोड़े तो उसे पकड़ना बहुत मुश्किल होता है. खासकर तब जब कोई संदेह भी नहीं कर रहा है.

कोई संदेह करे तो इस मामले में जांच की जा सकती है, लेकिन ऐसा कुछ हुआ ही नहीं. वो एक बैंक से पैसे लेते रहे और दूसरे को चुकाते रहे. आज 50 मिलियन के एलओयू खोले, जब तक अगले साल इसे चुकाने की बारी आई तो उन्होंने तब तक 100 मिलियन के और करा लिए. अब उन्होंने पहले लिए गए 50 मिलियन चुका दिए और अगला कर्ज़ किसी और बैंक से ले लिया गया.  इस प्रकार से ये लेनदेन महीनों तक चलता रहा.

सवाल है कि इस पूरे खेल का माटरमाइंड कौन है? जैसेजैसे जांच आगे बढ़ रही है पता चल रहा है कि इस घोटाले का सूत्रधार नीरव मोदी नहीं बल्कि कोई और ही था. यह नीरव की अमेरिकन पत्नी एमी थी, जिस ने इस बड़े घोटाले की साजिश रची. यही नहीं, घोटाले का मास्टरमाइंड होने के साथ साथ नीरव के अमेरिका भागने के साजिश के पीछे भी एमी का ही दिमाग बताया जा रहा है.

माना जा रहा है कि यह बैंकिंग घोटाला हनीट्रैप के जरिए अंजाम दिया गया है. कुछ मौडल्स के जरिए बैंक के उच्च अधिकारियों को घोटाले में शामिल किया गया था. इन मौडल्स को हनीट्रैप के लिए कोऔर्डिनेट करने का काम एमी मोदी का था, जो नीरव मोदी और बौलीवुड के बीच एक कड़ी का काम कर रही थी.

वास्तव में पीएनबी की ब्रेडी फोर्ड ब्रांच के जिस पूर्व डिप्टी मैनेजर गोकुलनाथ शेट्टी को 17 फरवरी, 2018 को गिरफ्तार किया गया, 2013 में उस का ट्रांसफर इस ब्रांच से किया जाना था, जिसे रुकवा दिया गया. इस के बाद  2015 में 5 साल पूरे होने पर भी उस का ट्रांसफर ब्रांच से नहीं किया गया. सीबीआई अब ये पता लगाने की कोशिश कर रही है कि किस के इशारे पर शेट्टी का ट्रांसफर रोका गया.

वास्तव में गोकुलनाथ शेट्टी के ट्रांसफर को रुकवाने में भी मौडल्स और हनीट्रैप का इस्तेमाल हुआ. गोकुलनाथ शेट्टी ने एक बड़ा खुलासा किया है. उस के मुताबिक यह पूरा मामला पीएनबी के बड़े अधिकारियों की जानकारी में था. सीबीआई की तरफ से डायमंड किंग नीरव मोदी और गीतांजलि जेम्स के प्रमोटर मेहुल चौकसी के खिलाफ शिकायत के बाद एफआईआर दर्ज की गई है.

नीरव मोदी और मेहुल चौकसी इस घोटाले के मुख्य आरोपी हैं और उन्हें देखते ही पकड़ने के लिए लुकआउट नोटिस भी जारी किया जा चुका है. विदेश मंत्रालय ने नीरव मोदी और मेहुल चौकसी का पासपोर्ट निलंबित कर दिया है और इन के विदेशों के आउटलेट्स पर भी कारोबार न करने का आदेश दिया जा चुका है. रिजर्व बैंक ने स्पष्ट कर दिया है कि इस घोटाले में फंसी राशि का बोझ पीएनबी को खुद उठाना पड़ेगा.

सीबीआई जांच तो कर सकती है, पर पैसा नहीं ला सकती

यह मामला जनवरी में पकड़ा गया और 29 जनवरी, 2018 को इस की जांच सीबीआई से करवाने का अनुरोध किया गया. दूसरे सभी बैंकों ने सारी जिम्मेदारी पीएनबी पर ही डाली है कि उस की तरफ से जारी लेटर औफ अंडरटेकिंग (एलओयू) को सही मानते हुए नियमों के मुताबिक, संबंधित उद्योगपतियों की कंपनियों को फंड उपलब्ध कराए जा रहे थे. ऐसे में घाटा पूरी तरह से पीएनबी को उठाना पड़ेगा.

आरबीआई के सूत्रों का कहना है कि पीएनबी पर सख्ती दिखा कर देश के सभी बैंकों के सामने एक उदाहरण पेश करने की जरूरत है.

अगर यह मान भी लिया जाए कि दूसरे बैंक इस में शामिल थे, तब भी इस की शुरुआत पीएनबी की उस शाखा से हो रही थी, जहां से नीरव मोदी व अन्य रत्न व आभूषण कारोबारियों को नियमों की अनदेखी कर के हीरेमोती आयात करने के लिए लेटर औफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी किए जा रहे थे. इसलिए यह घाटा पीएनबी को ही उठाना चाहिए. घोटाले की राशि 11,360 करोड़ रुपए की है, जो पीएनबी के पूरे बाजार पूंजीकरण का तकरीबन एक तिहाई है.

नीरव ने राजस्थान में बिखेरी हीरों की चमक

देश के सब से बड़े बैंकिंग घोटाले को अंजाम देने वाले नीरव मोदी का राजस्थान से गहरा नाता रहा है. नीरव मोदी की कंपनी गीतांजलि जेम्स की जयपुर में 3 फैक्ट्रियां हैं. इन में 2 फैक्ट्रियां जयपुर के सीतापुरा औद्योगिक क्षेत्र में और एक सीतापुरा सेज में है. इन में आभूषण बनाने का काम होता है.

इस कंपनी के प्रमोटर मेहुल चौकसी हैं. इन फैक्ट्रियों पर 15 फरवरी को ईडी ने छापे मारे. इस के अगले दिन जयपुर में 2 अन्य ठिकानों पर ईडी ने छापे मारे. इन पांचों जगहों से 10 करोड़ 44 लाख करोड़ रुपए के हीरे, रंगीन रत्न, जवाहरात और आभूषण जब्त किए गए. साथ ही महत्त्वपूर्ण दस्तावेज भी जब्त किए गए. कंपनी का एक बैंक खाता फ्रीज किया गया. इस खाते में एक करोड़ से ज्यादा की रकम जमा थी.

इस बैंकिंग घोटाले में भरतपुर की लक्ष्मण मंदिर शाखा के मुख्य प्रबंधन आर.के. जैन और सर्किल कार्यालय में कार्यरत अधिकारी पी.सी. सोनी को भी निलंबित कर दिया गया है. ये दोनों अधिकारी मुंबई की ब्रेडी हाउस शाखा में कार्यरत रहे थे. बैंक प्रबंधन उन सभी अधिकारियों पर काररवाई कर रहा है, जो 2011 से अब तक मुंबई की ब्रेडी हाउस शाखा में कार्यरत रहे हैं.

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बैंक प्रबंधन को शक है कि इन में कोई अधिकारी भले ही घोटाले में शामिल न हो, लेकिन जांच को प्रभावित कर सकता है. आर.के. जैन ब्रेडी हाउस शाखा में सन 2012 से 2015 तक सेकंड इंचार्ज के रूप में कार्यरत रहे थे. वे भरतपुर की रणजीत नगर कालोनी के रहने वाले हैं. पी.सी. मीणा अप्रैल, 2011 से नवंबर 2011 तक मुंबई की इसी शाखा में कार्यरत थे. वहां वे कौन्ट्रैक्टर औडिटर के पद पर कार्यरत थे. ये दोनों अधिकारी स्केल 4 के थे.

हीरे के कारोबार में पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाला नीरव मोदी भव्य पार्टियों व रईसों के साथ रहने का शौकीन है. उस ने करीब 2 साल पहले जोधपुर में अपने हीरों की चमक से लोगों को चकाचौंध कर दिया था. नीरव मोदी ने अपने ब्रांड के 5 साल पूरे होने पर मारवाड़ के ताज के रूप में मशहूर जोधपुर के उम्मेद भवन में देशविदेश की नामी हस्तियों के साथ 2 दिन के जश्न का आयोजन किया था.

इस आयोजन में फैशन डिजाइनर राघवेंद्र, कविता राठौड़, मनीष मल्होत्रा, योहानन, मिशेल पूनावाला, इशिता, राज, दीप्ति सालगांवकर, चिराग, तनाज जोशी, लीजा हेडन, निखिल व इलिना मेशवानी सहित देशविदेश की नामी मौडल्स ने भाग लिया था. इस जश्न में जोधपुर के पूर्व महाराजा गज सिंह भी खासतौर से शरीक हुए थे. नीरव मोदी ने इस मौके पर अपने ब्रांड के तहत तैयार किए गए हीरों के आभूषणों की प्रदर्शनी भी लगाई थी. इस प्रदर्शनी के दौरान देशविदेश की टौप मौडल्स ने नीरव के हीरे के आभूषण पहन कर कैटवाक किया था.

काश ! तभी चेत जाते

वैसे देश के बैंकिंग क्षेत्र को हिला देने वाले पीएनबी घोटाले की शुरुआत 2013 में इलाहाबाद बैंक की निदेशक मंडल की बैठक में ही हो गई थी. नई दिल्ली में हुई उस बैठक में गीतांजलि ज्वैलर्स के मालिक मेहुल चौकसी को 550 करोड़ रुपए देने को मंजूरी दी गई थी. मेहुल चौकसी रिश्ते में घोटालेबाज नीरव मोदी के मामा हैं.

बाद में मामाभांजे ने मिल कर बैकों को हजारों करोड़ का चूना लगाया. चौकसी को बैंक की हांगकांग शाखा से भुगतान किया गया था. इलाहाबाद बैंक पीएनबी सहित देश के 4 अन्य सरकारी बैंकों को लीड करता है. आभूषण कारोबारी नीरव मोदी और गीतांजलि, नक्षत्र और गिन्नी ज्वैलरी चेन चलाने वाले मेहुल चौकसी मूलत: गुजरात के हैं. दोनों मुंबई में रहते हैं.

नई दिल्ली के होटल रेडिसन में 14 सितंबर, 2013 को इलाहाबाद बैंक के निदेशक मंडल की बैठक हुई. इस में भारत सरकार की ओर से नियुक्त निदेशक दिनेश दुबे ने चौकसी को 550 करोड़ लोन देने का विरोध किया.

16 सितंबर को इस बैठक की जानकारी दुबे ने भारतीय रिजर्व बैंक के तत्कालीन डिप्टी गवर्नर के.सी. चक्रवर्ती को दी. इस के बाद बैंक अधिकारियों को तलब भी किया गया, लेकिन इस के बावजूद मेहुल चौकसी को बैंक की हांगकांग शाखा से भुगतान कर दिया गया.

सवाल है अब पीएनबी एक झटके में इस राशि को किस तरह से उठाएगा. पीएनबी को इस राशि को इसी तिमाही में अपनी बैलेंसशीट में दिखाना होगा. इस बारे में पीएनबी, वित्त मंत्रालय और आरबीआई के बीच विचारविमर्श शुरू हो चुका है.

सूत्रों के मुताबिक एक सीधा उपाय यह है कि फिलहाल सरकार की तरफ से पीएनबी को दी जाने वाली पूंजीकरण की राशि बढ़ा दी जाए. दूसरा रास्ता यह है कि केंद्रीय बैंक की तरफ से पीएनबी के लिए विशेष उपाय किए जाएं.

क्योंकि छापों से जो 5100 और इस के बाद 650 करोड़ पकडे़ जाने के दावे किए गए वे सब झूठे हैं. मुश्किल से 1000 करोड़ ही बरामद होंगे.

रोटोमैक कंपनी के मालिक विक्रम कोठारी भी आए सीबीआई के शिकंजे में

डायमंड कारोबारी नीरव मोदी और मेहुल चौकसी के बाद कानपुर की रोटोमैक कंपनी के मालिक विक्रम कोठारी भी अचानक सुर्खियों में आ गए. आरोप है कि उन्होंने कई बैंकों को अरबों रुपए का चूना लगाया था.

रोटोमैक एक जानीमानी कंपनी है. इस कंपनी के मालिक विक्रम कोठारी ने इलाहाबाद बैंक, यूनियन बैंक, बैंक औफ इंडिया सहित कई सरकारी बैंकों से करीब 2919 करोड़ रुपए का लोन लिया था. यह लोन लेने के बाद उन्होंने न तो इस का ब्याज चुकाया और न ही मूलधन. बल्कि वह खुद भी सामने आने से बचते रहे. पिछले कुछ दिनों से इस बात की भी खबरें आनी शुरू हो गई थीं कि विक्रम कोठारी देश छोड़ कर जा चुके हैं.

सूद और मूलधन न मिलने पर पिछले साल बैंक औफ बड़ौदा ने विक्रम कोठारी को विलफुल डिफाल्टर घोषित कर दिया था. जब विक्रम कोठारी को इस बात की जानकारी हुई तो वह इलाहाबाद हाईकोर्ट चले गए. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डी.बी. भोसले और जस्टिस यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने उन की याचिका मंजूर कर ली.

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्होंने बैंक को आदेश दिया कि विक्रम कोठारी की कंपनी को विलफुल डिफाल्टर लिस्ट से बाहर किया जाए. बैंक को माननीय हाईकोर्ट का आदेश मानने के लिए बाध्य होना पड़ा.

विक्रम कोठारी के खिलाफ बैंक द्वारा सीबीआई में शिकायत दर्ज कराई जा चुकी थी. सीबीआई को कोठारी की तलाश थी. 18 फरवरी को विक्रम कोठारी कानपुर में एक वैवाहिक समारोह में शामिल होने के लिए आए थे. सीबीआई को पता चला तो उस ने 19 फरवरी की रात 1 बजे उन के घर पर छापा मार कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

2500 करोड़ का विलफुल डिफाल्टर चढ़ा सीबीआई के हत्थे

बैंकों से हजारों करोड़ रुपए का कर्ज लो और विदेश भाग जाओ. इस तरह की प्रवृत्ति वाले उद्योगपतियों की संख्या भारत में बढ़ती जा रही है. ऐसे उद्योगपति यह काम एक सोचीसमझी साजिश के तहत करते हैं. उन के फरार हो जाने के बाद बैंक और सरकार लकीर पीटती रह जाती हैं.

जिस तरह विजय माल्या बैंकों के 5600 करोड़ रुपए ले कर फरार हो गया, उसी तरह भारत के ही एक और उद्योगपति कैलाश अग्रवाल भी बैंकों से करीब ढाई हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले कर फरार हो गए थे. देश के सब से बड़े विलफुल डिफाल्टर्स में से एक कैलाश अग्रवाल को सीबीआई ने 5 अगस्त, 2017 को गिरफ्तार किया था.

वरुण इंडस्ट्रीज के प्रमोटर्स कैलाश अग्रवाल और उन के पार्टनर किरण मेहता ने चेन्नै स्थित इंडियन बैंक से 330 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था. इस के अलावा उन्होंने एक सोचीसमझी साजिश के तहत अन्य बैंकों से भी 1593 करोड़ रुपए कर्ज लिए. सन 2007 से 2012 के बीच इन्होंने कई बैंकों से वरुण इंडस्ट्रीज और इस की सहयोगी कंपनी वरुण जूल्स के नाम पर 10 सरकारी बैंकों से करीब 1242 करोड़ रुपए का कर्ज लिया.

कैलाश अग्रवाल और किरण मेहता ने सरकारी बैंकों के अलावा प्राइवेट बैंक्स, फाइनेंस कंपनियों से भी लोन लिया. शेयर्स के बदले बाजार से भी इन्होंने काफी पैसा उठा लिया. लोन की राशि उन्होंने नहीं चुकाई, जिस से सन 2013 में ये डिफाल्टर हो गए. बैंकों ने इन के पास कई नोटिस भेजे, पर ये दोनों यहां होते, तब तो मिलते. दोनों कभी के विदेश जा चुके थे. मार्च 2013 में इंडियन बैंक एंप्लाइज एसोसिएशन द्वारा तैयार की गई विलफुल डिफाल्टर्स की सूची में इन दोनों उद्योगपतियों का नाम भी शामिल था. इंडियन बैंक की शिकायत पर सीबीआई ने वरुण इंडस्ट्रीज के प्रमोटर कैलाश अग्रवाल और किरण मेहता के खिलाफ आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी और फरजीवाड़े का केस दर्ज कर लिया.

सीबीआई ने जांच की तो पता चला कि ये दोनों सब से बड़े विलफुल डिफाल्टर्स में से हैं. सब से बड़े विलफुल डिफाल्टर सूरत के डायमंड कारोबारी हैं, जिन पर 7 हजार करोड़ रुपए का कर्ज है. दूसरे नंबर पर लंदन भागे विजय माल्या का नाम आता है, जिन पर 5600 करोड़ रुपए का कर्ज है. कैलाश अग्रवाल भी अपने साथी किरण मेहता के साथ दुबई भाग गए थे. तब से सीबीआई इन के पीछे लगी थी. 5 अगस्त, 2017 को कैलाश अग्रवाल जब दुबई से भारत लौटे, तो सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

सरकार बैंकों को दे चुकी है ढाई लाख करोड़ से ज्यादा

कारपोरेट फ्रौड और बैड लोन की वजह से बैंकों की हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है. पब्लिक सेक्टर बैंकों को एनपीए से उबारने के लिए सरकार प्रयासरत है. सरकार पिछले 11 सालों में बैंकों को ढाई लाख करोड़ से ज्यादा दे चुकी है, इस के बावजूद बैंक एनपीए से उबर नहीं पा रहे हैं.

बजट बनाते समय वित्त मंत्रियों के सामने 2 बड़ी समस्याएं होती हैं. पहली खर्च की जरूरत पूरी करना जिस से सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं को सुधारा जा सके और दूसरी  राजकोषीय घाटे को कम करना. क्योंकि टैक्स का कलेक्शन काफी नहीं होता. इन के अलावा हाल के सालों में वित्त मंत्रालय के सामने एक और नई चुनौती उभर कर सामने आई है और वह चुनौती है सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को संभालने की.

पिछले 11 सालों में देश के 3 वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी, पी. चिदंबरम और अरुण जेटली पब्लिक सेक्टर बैंकों को एनपीए से उबारने के लिए 2.6 लाख करोड़ रुपए दे चुके हैं. यह राशि सरकार द्वारा इस साल ग्रामीण विकास के लिए आवंटित की गई राशि के दोगुने से ज्यादा है.

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एसबीआई सहित अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक एनपीए के कारण पिछले 2 वित्त वर्ष से घाटे में हैं. बताया जाता है कि इस वित्त वर्ष में भी बैंकों के हालात सुधरते नहीं दिख रहे. भारतीय स्टेट बैंक ने पिछले 18 सालों में पहली बार तिमाही घाटा दर्ज किया.

यही हाल बैंक औफ बड़ौदा का है. सरकारी बैंकों का मानना है कि मुद्रा समेत कई सरकारी योजनाओं के लिए कर्ज देना पड़ रहा है, इस से भी स्थिति बिगड़ी है. जबकि आम लोगों का मानना है कि जब करोड़ों रुपए कर्ज के बकाएदार बैंकों को कर्ज नहीं लौटाएंगे तो बैंकों की स्थिति दयनीय तो होगी ही.

हैरिटेज कौरिडोर डैस्टिनेशंस : इतिहास को जानने समझने का मौका

भारत में ऐतिहासिक पर्यटन के लिए कुछ शहर बहुत खास हैं. अच्छी बात यह है कि आगरा, फतेहपुर सीकरी, भरतपुर, जयपुर, अजमेर और उदयपुर एकसाथ घूमा जा सकता है. इसे भारत का हैरिटेज कौरिडोर भी कह सकते हैं. ये सभी शहर अपनी स्थापत्यकला का नमूना तो हैं ही, प्राकृतिक रूप से भी ये शहर बहुत संपन्न हैं. ये सभी शहर आवागमन के आधुनिक साधनों व सुखसुविधाओं से युक्त हैं. यहां खरीदारी के लिए अनेक बाजार हैं तो रहने के लिए होटलों की कमी नहीं है.

देश का यह हैरिटेज कौरिडोर ‘बजट टूरिज्म’ की तरह है. यहां हर किसी को अपने बजट में रह कर पर्यटन करने का अवसर मिल सकता है. हैरिटेज कौरिडोर के इन 6 शहरों आगरा, फतेहपुर सीकरी, भरतपु़र, जयपुर, अजमेर और उदयपुर का मौसम एकसा रहता है जिस से पर्यटकों को आबोहवा के साथ तालमेल बिठाना आसान रहता है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से करीब होने के कारण यहां तक पहुंचना भी आसान है.

दुनिया में मशहूर ताजनगरी आगरा

ताजनगरी आगरा उत्तर प्रदेश का एक बहुत ही खास पर्यटन स्थल है. यहां जो भी आता है विश्वविख्यात ताजमहल को देखने जरूर जाता है. अगर आप हैरिटेज टूरिज्म के शौकीन हैं तो ताज के साथ फतेहपुर सीकरी और आगरा का किला भी जरूर देखें. ताजमहल आगरा ही नहीं, पूरे विश्व की सब से प्रसिद्ध जगह है. ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में कराया था. यह सफेद संगमरमर से बना हुआ है, इस को बनाने में 22 साल लगे.

ताजमहल को मुगलशैली के 4 बागों के साथ बनाया गया है. ताज का निर्माण फारसी वास्तुकार उस्ताद ईसा खां के निर्देशन में हुआ था. ताजमहल को आगरा किला से भी देखा जा सकता है. शाहजहां को जब औरंगजेब ने आगरा किला में कैद कर दिया था तो उस समय वह वहां से ही ताजमहल को निहारा करता था.

ताजमहल का मुख्यद्वार भी बहुत ही आकर्षक है. इस के ऊपर 22 छोटे गुंबद हैं. इन से ताजमहल के बनने में लगे समय का पता चलता है. ताजमहल को बनाने से पहले लाल बलुआ पत्थर का बड़ा चबूतरा बनाया गया था. इस के बाद सफेद संगमरमर से ताजमहल का निर्माण कराया गया. ताज की सुंदरता इस के ऊंचे गुंबद हैं. यह 60 फुट व्यास और 80 फुट ऊंचाई के बने हैं. इस के नीचे मुमताज महल की कब्र बनी हुई है, ताजमहल के बनाने में बहुमूल्य रत्नों और पत्थरों का प्रयोग किया गया था. सफेद संगमरमर से बने ताजमहल के पास मखमली घास का मैदान है. जहां गरमी की शाम का मजा लिया जा सकता है. इस के पीछे यमुना नदी बहती है. ताजमहल अपने अंदर बहुत सारी खूबियां समेटे हुए है. इस का एक हिस्सा गरमी में भी सर्दी की ठंडक का एहसास कराता है. यहां पर खरीदारी करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. ताजमहल के सामने बैठ कर पर्यटक फोटो खिंचवाना नहीं भूलते हैं.

आगरा का किला, ताजमहल की ही तरह अपने इतिहास के लिए पहचाना जाता है. यह किला विश्व धरोहर माना जाता है. इस को आगरा का लालकिला भी कहा जाता है. इस का निर्माण 1565 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा कराया गया था. इस के बाद मुगल बादशाह शाहजहां ने इस का पुनर्निर्माण कराया.

आगरा किला में संगमरमर और नक्काशी का महीन काम दिखाई देता है. इस किले में जहांगीर महल, दीवाने खास, दीवाने आम और शीशमहल देखने वाली जगहें हैं. यह किला अर्द्धचंद्राकार आकृति में बना है. इस की दीवार सीधे यमुना नदी तक जाती है. आगरा का किला 2.4 किलोमीटर परिधि तक फैला हुआ है. सुरक्षा के लिहाज से किले की दीवारों को मजबूत बनाया गया है. इस के किनारे गहरी खाई और गड्ढे बनाए गए थे.

फतेहपुर सीकरी आगरा से 35 किलोमीटर दूर बसा है. इस का निर्माण अकबर ने कराया था. यहां पर सलीम चिश्ती की दरगाह है. इस कारण अकबर ने अपनी राजधानी आगरा से हटा कर फतेहपुर सीकरी कर ली थी. यहां पर कई इमारतें बनी हैं जो मुगलकाल की वास्तुकला का बेजोड़ नमूना हैं.

फतेहपुर सीकरी में पानी की कमी के कारण अकबर को अपनी राजधानी वापस आगरा लानी पड़ी थी. फतेहपुर सीकरी के गेट को बुलंद दरवाजा कहते हैं. कहा जाता है कि बुलंद दरवाजा बिना नींव के बनाया गया है.

प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर भरतपुर

भरतपुर राजस्थान का एक प्रमुख शहर होने के साथसाथ देश का सब से प्रसिद्ध पक्षी उद्यान भी है. 29 वर्ग किलोमीटर में फैला यह उद्यान पक्षीप्रेमियों के लिए बेजोड़ है. विश्व धरोहर सूची में शामिल इस स्थान पर प्रवासी पक्षियों का भी बसेरा है. भरतपुर शहर की स्थापना जाट शासक राजा सूरजमल ने की थी. अपने समय में यह जाटों का गढ़ हुआ करता था. यहां के मंदिर, महल व किले जाटों के कलाकौशल की गवाही देते हैं. भारत में यह एक हैरिटेज शहर के साथ ही प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है. यहां बर्ड सैंचुरी देखने दुनियाभर से लोग आते हैं. राष्ट्रीय उद्यान के अलावा भी देखने के लिए यहां अनेक स्थान हैं.

भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान केवलादेव घना के नाम से भी जाना जाता है. घना नाम घने वनों की ओर संकेत करता है जो एक समय इस उद्यान को घेरे हुए था. यहां करीब 375 प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं जिन में यहां रहने वाले और प्रवासी पक्षी शामिल हैं. यहां भारत के अन्य भागों से तो पक्षी आते ही हैं, साथ ही यूरोप, साइबेरिया, चीन, तिब्बत आदि जगहों से भी प्रवासी पक्षी आते हैं. पक्षियों के अलावा सांभर, चीतल, नीलगाय आदि पशु भी यहां पाए जाते हैं. भरतपुर का लोहागढ़ किला एक हैरिटेज दर्शनीय स्थल है. महाराजा सूरजमल ने यहां एक अभेद्य किले की परिकल्पना की थी जिस की शर्त यह थी कि पैसा कम लगे और मजबूती में वह बेमिसाल हो.

फलस्वरूप किले के दोनों तरफ मजबूत दरवाजे हैं जिन पर लोहे की नुकीली सलाखें लगाई गई हैं. उस समय तोपों और बारूद का काफी ज्यादा प्रचलन था, जिस से किलों की मजबूत से मजबूत दीवारों को आसानी से ढहाया जा सकता था, इसलिए पहले किले की चौड़ीचौड़ी मजबूत पत्थर की ऊंचीऊंची प्राचीरें बनाई गईं. अब इन पर तोप के गोलों का असर न हो, इस के लिए इन दीवारों के चारों ओर सैकड़ों फुट चौड़ी कच्ची मिट्टी की दीवार बनाई गई. नीचे सैकड़ों फुट गहरी और चौड़ी खाई बना कर उस में पानी भरा गया, जिस से दुश्मन द्वारा तोपों के गोले दीवारों पर दागने के बाद मिट्टी में धंस कर दम तोड़ दें. अगर वे नीचे की ओर प्रहार करें तो पानी में शांत हो जाएं. और पानी को पार कर सपाट दीवार पर चढ़ना तो मुश्किल ही नहीं, असंभव था.

मुश्किल वक्त में किले के दरवाजों को बंद कर के सैनिक सिर्फ पक्की दीवारों के पीछे और दरवाजों पर मोरचा ले कर किले को आसानी से अभेद्य बना लेते थे. इस किले में लेशमात्र भी लोहा नहीं लगा  और अपनी अभेद्यता के बल पर यह लोहागढ़ कहलाया. इस ने समयसमय पर दुश्मनों के दांत खट्टे किए और अपना लोहा मनवाने में शत्रु को मजबूर किया.

लोहागढ़ किले का निर्माण 18वीं शताब्दी के आरंभ में जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया था. किले के चारों ओर गहरी खाई है जो इसे सुरक्षा प्रदान करती है. लोहागढ़ किला इस क्षेत्र के अन्य किलों के समान वैभवशाली नहीं है लेकिन इस की ताकत और भव्यता अद्भुत है.

किले के अंदर महत्त्वपूर्ण स्थान हैं किशोरी महल, महल खास, मोती महल और कोठी खास. सूरजमल ने मुगलों और अंगरेजों पर अपनी जीत की याद में किले के अंदर जवाहर बुर्ज और फतेह बुर्ज बनवाए. वहां अष्टधातु से निर्मित एक द्वार भी है जिस पर हाथियों के विशाल चित्र बने हुए हैं.

आसपास के दर्शनीय स्थल

भरतपुर से 34 किलोमीटर उत्तर में डीग नामक बागों का खूबसूरत नगर है, इसे डीग कहते हैं. शहर के मुख्य आकर्षणों में मनमोहक उद्यान, सुंदर फौआरा और भव्य जलमहल शामिल हैं. यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं. डीग के राजमहलों में निर्मित गोपाल भवन का निर्माण वर्ष 1780 में किया गया था. खूबसूरत बगीचों से सजे इस भवन से गोपाल सागर का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है. भवन के दोनों ओर 2 छोटी इमारतें हैं, जिन्हें सावन भवन और भादो भवन के नाम से जाना जाता है.

भरतपुर के आसपास घूमना तब तक अधूरा है जब तक डीग किला नहीं देख लिया जाता. राजा सूरजमल ने इस किले का निर्माण कुछ ऊंचाई पर करवाया था. किले का मुख्य आकर्षण यहां की घड़ी मीनार है, जहां से न केवल पूरे महल को देखा जा सकता है बल्कि नीचे शहर का नजारा भी लिया जा सकता है. इस के ऊपर एक बंदूक रखी है जो आगरा किले से यहां लाई गई थी. ऊंची दीवारों और द्वारों से घिरे इस किले के अब अवशेष मात्र ही देखे जा सकते हैं.

भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान एशिया में पक्षियों के समूह प्रजातियों वाले सर्वश्रेष्ठ उद्यान के तौर पर प्रसिद्ध है. भरतपुर की गरम जलवायु में सर्दी बिताने के लिए हर वर्ष साइबेरिया के दुर्लभ सारस आते हैं. एक समय में भरतपुर के राजकुंवरों का शाही शिकारगाह रहा यह उद्यान विश्व के उत्तम पक्षी विहारों में से एक है जिस में पानी वाले पक्षियों की 400 से अधिक प्रजातियों की भरमार है.

गरम तापमान में सर्दी बिताने अफगानिस्तान, मध्य एशिया, तिब्बत से प्रवासी चिडि़यों की मोहक किस्में और साइबेरिया से भूरे पैरों वाले हंस और चीन से धारीदार सिर वाले हंस जुलाईअगस्त में यहां आते हैं और अक्तूबरनवंबर तक उन का यहां प्रवास काल रहता है. उद्यान के चारों ओर जलकौओं, स्पूनबिल, लकलक बगलों, जलसिंह इबिस और भूरे बगलों के समूह देखे जा सकते हैं.

देश का सब से बड़ा हैरिटेज शहर जयपुर

 

 

जयपुर, जिसे गुलाबी नगर के नाम से भी जाना जाता है, राजस्थान की राजधानी है. इस शहर की स्थापना 1728 में आमेर के महाराजा जयसिंह द्वितीय ने की थी. जयपुर अपनी समृद्धि, भवन निर्माण परंपरा, सरस संस्कृति और ऐतिहासिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है. यह शहर तीनों ओर से अरावली पर्वतमाला से घिरा हुआ है. जयपुर शहर की पहचान यहां के महलों और पुराने घरों में लगे गुलाबी धौलपुरी पत्थरों से होती है जो यहां के स्थापत्य की खूबी है.

1876 में तत्कालीन महाराज सवाई रामसिंह ने इंगलैंड की महारानी एलिजाबेथ, प्रिंस औफ वेल्स युवराज अल्बर्ट के स्वागत में पूरे शहर को गुलाबी रंग से आच्छादित करवा दिया था. तभी से शहर का नाम गुलाबी नगरी यानी पिंक सिटी पड़ा है. राजा जयसिंह द्वितीय के नाम पर ही इस शहर का नाम जयपुर पड़ा. जयपुर भारत के टूरिस्ट सर्किट गोल्डन ट्रायंगल का हिस्सा भी है. इस गोल्डन ट्रायंगल में दिल्ली, आगरा और जयपुर आते हैं. भारत की राजधानी दिल्ली से जयपुर की दूरी 280 किलोमीटर है.

शहर चारों ओर से दीवारों और परकोटों से घिरा हुआ है. इस में प्रवेश के लिए 7 दरवाजे हैं. शहर में हवा महल परिसर, व्यवस्थित उद्यान है. पुराने शहर के उत्तरपश्चिमी ओर पहाड़ी पर नाहरगढ़ दुर्ग शहर के मुकुट के समान दिखता है. इस के अलावा यहां मध्य भाग में सवाई जयसिंह द्वारा बनवाई गई वैधशाला और जंतरमंतर भी हैं. 17वीं शताब्दी में जब मुगल अपनी ताकत खोने लगे, तो समूचे भारत में अराजकता सिर उठाने लगी. ऐसे दौर में राजपूताना की आमेर रियासत, एक बड़ी ताकत के रूप में उभरी.

जाहिर है कि महाराजा सवाई जयसिंह को तब मीलों के दायरे में फैली अपनी रियासत संभालने और सुचारु राजकाज संचालन के लिए आमेर छोटा लगने लगा और इस तरह से इस नई राजधानी के रूप में जयपुर की कल्पना की गई.

जयपुर में खरीदारी

जयपुर प्रेमी कहते हैं कि जयपुर के सौंदर्य को देखने के लिए कुछ खास नजर चाहिए, बाजारों से गुजरते हुए, जयपुर की बनावट की कल्पना को आत्मसात कर इसे निहारें तो पलभर में इस का सौंदर्य आंखों के सामने प्रकट होने लगता है.

जयपुर के दर्शनीय स्थलों में जंतरमंतर, हवा महल, सिटी पैलेस, बीएम बिड़ला तारामंडल, आमेर का किला, जयगढ़ दुर्ग आदि शामिल हैं. जयपुर के रौनकभरे बाजारों में दुकानें रंगबिरंगे सामानों से सजी रहती हैं, जिन में हथकरघा उत्पाद, बहुमूल्य पत्थर, हस्तकला से युक्त व वनस्पति रंगों से बने वस्त्र, मीनाकारी आभूषण, पीतल का सजावटी सामान, राजस्थानी चित्रकला के नमूने, नागरामोजरी जूतियां, ब्लू पौटरी, हाथीदांत के हस्तशिल्प और सफेद संगमरमर की मूर्तियां आदि सामान दिख जाते हैं. प्रसिद्ध बाजारों में जौहरी बाजार, बापू बाजार, नेहरू बाजार, चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया बाजार और एमआई रोड के साथ लगे बाजार हैं.

स्थापत्यकला में अनूठा है अजमेर

अजमेर अरावली पर्वत श्रेणी की तारागढ़ पहाड़ी की ढाल पर स्थित है. यह नगर 7वीं शताब्दी में अजयराज सिंह नामक एक चौहान राजा द्वारा बसाया गया था. इस नगर का मूल नाम ‘अजयमेरू’ था. अजमेर में मेघवंशी, जाट, गुर्जर, रावत, ब्राह्मण, गर्ग, भील व जैन समुदाय का बहुमत है.

नगर के उत्तर में अनासागर तथा कुछ आगे वायसागर नामक कृत्रिम झीलें हैं. यहां फकीर मुईनुद्दीन चिश्ती का मकबरा प्रसिद्ध है. अढ़ाई दिन का झोंपड़ा एक ऐतिहासिक इमारत है, जिस में कुल 40 स्तंभ हैं और सब में नएनए प्रकार की नक्काशी है. कोई भी 2 स्तंभ नक्काशी में समान नहीं हैं. तारागढ़ पहाड़ी की चोटी पर एक दुर्ग भी है. यहां पर नमक का व्यापार होता है जो सांभर झील से लाया जाता है. यहां खाद्य, वस्त्र तथा रेलवे के कारखाने हैं. तेल तैयार करना भी यहां का एक प्रमुख व्यापार है.

तारागढ़ और हैप्पी वैली अजमेर की सब से ज्यादा घूमने वाली जगहें हैं. यह भारत का पहला पहाड़ी दुर्ग माना जाता है. इस के अनूठे सामरिक स्थापत्य और पहाड़ी की दुर्गमता को देख कर विशप हैबर ने लिखा कि थोड़ी सी यूरोपियन तकनीक के सहारे इसे विश्व का दूसरा जिब्राल्टर बनाया जा सकता था.

80 एकड़ क्षेत्र में फैले इस किले का आरंभिक नाम अजयमेरू दुर्ग था जिस का निर्माण 7वीं सदी में अजयपाल चौहान ने आरंभ किया था. यह समुद्रतल से 2,885 फुट और मैदानी सतह से 1,300 फुट ऊंचाई पर है. यह दुर्ग अपनी नींव से 900 फुट ऊंचा है. केवल दक्षिण भाग को छोड़ कर यह किला दुर्गम रहा है. चूंकि यह बीटली पहाड़ी पर बना है इसलिए इसे गढ़ बीटली भी कहते हैं. वर्ष 1506 में चित्तौड़ के राणा रायमल के पुत्र पृथ्वीराज ने इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया और अपनी पत्नी तारा के नाम पर इस का नामकरण तारागढ़ कर दिया.

दुर्ग तक जाने के लिए पहले एक ही चट्टानी रास्ता था जो दुर्गम और जोखिमभरा था. बाद में अंगरेजों ने 2 अन्य मार्ग बनवाए. एक दक्षिण में नसीराबाद से जाने वाले सैनिकों के लिए और दूसरा अंदरकोट वाला रास्ता.

किले के भीतर बड़ा झालरा और कचहरी वाला भवन, ये मूल अवशेष चौहान काल के बताए जाते हैं. पानी के स्रोत के रूप में वहां नाना साहब का झालरा, इब्राहिम का झालरा, गोल झालरा आदि अभी भी देखे जा सकते हैं.

अजमेर स्थित अनासागर भारत की सुंदरतम 10 झीलों में शामिल है. 1135-1140 में अजमेर के चौहान राजा अर्णाराज ने इस का निर्माण कराया. पहले यहां मैदान था और उस मैदान में मुसलिम सेना के साथ चौहानों का जोरदार युद्घ हुआ. अर्णाराज की सेना विजेता रही. फिर यहां झील बनवाई गई. पूरब दिशा में 20 फुट चौड़ा और 1,012 फुट लंबा बांध बनवाया गया. यह बांध 2 छोटी पहाडि़यों के बीच बनवाया गया और चंद्रभागा नदी के पानी को रोक कर उसे झील का रूप दे दिया गया.

झीलों का शहर उदयपुर

बनास नदी पर नागदा के दक्षिणपश्चिम में उपजाऊ परिपत्र गिर्वा घाटी में महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने 1559 में उदयपुर को स्थापित किया था. इसे मेवाड़ राज्य की नई राजधानी के रूप में स्थापित किया गया था. इस क्षेत्र ने पहले से ही मेवाड़ की राजधानी के रूप में कार्य किया था, जो तब एक संपन्न व्यापारिक शहर था. महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने इस शहर की खोज के बाद इस झील का विस्तार कराया था. झील में 2 द्वीप हैं और दोनों पर महल बने हुए हैं. एक है जग निवास जो अब लेक पैलेस होटल बन चुका है और दूसरा है जग मंदिर. दोनों ही महल राजस्थानी शिल्पकला के बेहतरीन उदाहरण हैं. बोट द्वारा जा कर इन्हें देखा जा सकता है.

जग निवास द्वीप पिछोला झील पर बने द्वीप पैलेस में से एक महल है जो अब एक सुविधाजनक होटल का रूप ले चुका है. कोर्टयार्ड, कमल के तालाब और आम के पेड़ों की छांव में बना स्विमिंगपूल मौजमस्ती करने वालों के लिए आदर्श स्थान है. यहां आएं और रहने तथा खाने का आनंद लें, किंतु आप इस के भीतरी हिस्सों में नहीं जा सकते.

जग मंदिर पिछोला झील पर बना एक अन्य द्वीप पैलेस है. यह महल महाराजा करण सिंह द्वारा बनवाया गया था, किंतु महाराजा जगत सिंह ने इस का विस्तार कराया. महल से बहुत शानदार दृश्य दिखाई देते हैं. इस गोल्डन महल की सुंदरता दुर्लभ और भव्य है. सिटी पैलेस उदयपुर के जीवन का अभिन्न अंग है. यह राजस्थान का सब से बड़ा महल है. इस महल का निर्माण शहर के संस्थापक महाराणा उदय सिंह द्वितीय ने करवाया था. उन के बाद आने वाले राजाओं ने इस में विस्तार कार्य किए. महल में जाने के लिए उत्तरी ओर से बड़ीपोल और त्रिपोलिया द्वार से प्रवेश किया जा सकता है.

शिल्पग्राम में गोवा, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के पारंपरिक घरों को दिखाया गया है. यहां इन राज्यों के शास्त्रीय संगीत और नृत्य भी प्रदर्शित किए जाते हैं.

उदयपुर शहर के दक्षिण में अरावली पर्वतमाला के एक पहाड़ की चोटी पर इस महल का निर्माण महाराजा सज्जन सिंह ने करवाया था. यहां गरमी में भी अच्छी ठंडी हवा चलती है. सज्जनगढ़ से उदयपुर शहर और इस की झीलों का सुंदर नजारा दिखता है. पहाड़ की तलहटी में अभयारण्य है. सायंकाल में यह महल रोशनी से जगमगा उठता है, जो देखने में बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है.

पार्टनर सही या गलत : कैसे परखें अपने पार्टनर को, आप भी जानिए

आप की सगाई पक्की हो चुकी है. शादी में अभी समय है. सपने हैं, इच्छाएं हैं, उमंगें हैं, ललक है… आजकल आप को कोई अच्छा लगने लगा है. वह भी आप को कनखियों से देखता है. मिल्स ऐंड बून का रोमांस किताबों में ही नहीं, असल जीवन में भी होता है, ऐसा आप को लगने लगा है. उस रात पार्टी में जब आप बेहद खूबसूरत लग रही थीं, उस ने प्रपोज कर दिया वह भी आकर्षक अंदाज में. आप हवा में उड़ रही हैं. जिंदगी में इतने अच्छे पल पहले कभी नहीं आए थे. चाहा जाना किसे अच्छा नहीं लगता. फिर चाहने वाला विपरीतलिंगी हो, तो कहना ही क्या.

प्यार करना अच्छा एहसास है पर आज के माहौल को देखते हुए जहां लवजिहाद, फेक मैरिज, एसिड अटैक जैसे केसेज हो रहे हों, वहां थोड़ा सावधान रहना अच्छा है.

आप कैसे जान सकती हैं कि आप का बौयफ्रैंड, मंगेतर या लवर आप को चीट तो नहीं कर रहा? मनोचिकित्सकों, परिवार के परामर्शदाताओं, समाजसेवकों और पुलिस अधिकारियों से बातचीत के आधार पर कुछ बिंदु उभरे हैं, जिन्हें यदि आप देखपरख लें तो धोखा खाने से बच सकती हैं :

दिखावा ज्यादा करता हो

आप का पार्टनर चाहे रईस न हो, पर महंगे शौक रखता हो. उन का हर जगह प्रदर्शन करता हो. खुद को हाइप्रोफाइल कहलाना उसे पसंद हो. उधार ले कर स्टैंडर्ड लाइफ जीने में उसे आनंद आता हो तो सावधान हो जाएं. ऐसा शख्स भविष्य में किसी को भी संकट में डाल सकता है.

पैसों की खातिर गलत काम करने में वह हिचकिचाएगा नहीं. हो सकता है आप को भी उस ने सब्जबाग दिखा रखे हों, जितना आप उसे जानती हो, वह वैसा भी न हो.

ऐसे व्यक्ति को ध्यानपूर्वक नोटिस कीजिए. उस के बाद अपनी धारणा बनाइए.

फिजिकल क्लोजनैस चाहता हो

अकसर उस की तारीफ में आप के हुस्न की तारीफ छिपी रहती हो. साथ घूमने जाने या मिलने के लिए वह एकांत स्थल या ऐक्सक्लूसिव प्लेस चुनता हो. मौका पाते ही आप को हाथ लगाने, चूमने या स्पर्शसुख प्राप्त करने से न चूकता हो. रिवीलिंग ड्रैसेज आप को गिफ्ट करता हो और उन्हें पहनने की फरमाइश करता हो. फोन पर सैक्सी मैसेज भेजता हो तो सावधान हो जाइए. जो मजनूं सीमाएं लांघते हैं वे विश्वसनीय नहीं होते. कौन जाने आप से फिजिकल प्लेजर हासिल करने के बाद वह आप को छोड़ दे. बेहतर है लिमिट में रहिए और उस की ऐसी हरकतों पर पैनी नजर रखिए.

अकसर पैसे उधार लेता हो

जमाना कामकाजी महिलापुरुष का बेशक है, पर जो पुरुष अपनी गर्लफ्रैंड, प्रेमिका, मंगेतर से पैसे उधार मांगता रहता हो उस से सावधान रहिए. मैरिज के बाद वह आप पर पूर्णतया आर्थिक रूप से आश्रित नहीं हो जाएगा, इस की क्या गारंटी है. स्वावलंबी व आत्मनिर्भर पुरुष, पति या बौयफ्रैंड हर महिला चाहती है. पत्नियों पर आश्रित पुरुषों के साथ रिश्ते स्थायी तौर पर नहीं टिक पाते.

बातें छिपाता हो

लंबे रिश्ते के बाद भी यदि वह आप से बातें छिपाए, टालमटोल करे, दोस्तों से न मिलवाए, मोबाइल को न छूने दे तो सावधान रहिए. दाल में कुछ काला है. यदि मंगेतर या बौयफ्रैंड विदेश में काम करता हो तो उस के स्थानीय मित्रों, घर वालों, रिश्तेदारों से उस की कारगुजारियों पर नजर रखिए.

विदेश में जहां वह काम करता है उस संस्थान और दोस्तों के बारे में खंगालिए. जानकारी जुटाइए. उस के पैतृक गांव या कसबे से भी आप जानकारी जुटा सकती हैं. फेसबुक अकाउंट, व्हाट्सऐप या ईमेल से भी आप पता लगा सकती हैं. बात उसे बुरा लगने की नहीं, बल्कि खुद का भविष्य सुरक्षित रखने की है.

अजीबोगरीब व्यवहार करता हो

अचानक यों ही किसी दिन उस ने अपनी सगाई की अंगूठी उतार दी. आप को टाइम दे कर वह निर्धारित स्थल पर पहुंचना भूल गया, सार्वजनिक स्थल पर आप को बेइज्जत कर दिया या आप से ज्यादा अपनी भावनाओं को तवज्जुह देता हो तो चिंता की बात है.

दोहरा चरित्र या व्यवहार खतरे की घंटी है. व्यक्ति का असम्मानजनक व्यवहार या तो आप को डीवैल्यू करने के लिए या स्वयं स्थिर न हो पाने का नतीजा हो सकता है.

सामने कुछ, पीठ पीछे कुछ

दोहरापन, चुगलखोरी, छल किसी भी रिश्ते में दरार डाल सकते हैं. आप के सामने अच्छा और पीठ पीछे बुरा कहने वाला आप का अपना कैसे बन सकता है. आप का पार्टनर भी यदि ऐसा करता है तो वह यकीनन इस रिश्ते को ले कर सीरियस नहीं है.

उस के मित्रों के टच में रहिए ताकि फीडबैक मिल सके. यदि वह सामने पौजिटिव और पीठ पीछे नैगेटिव हो तो उसे खतरे की घंटी समझिए.

अकाउंट्स के बारे में न बताता हो

पार्टनर यदि वित्तीय मामलों में आप को शामिल नहीं करना चाहता हो, आप से छिपाए या बहाने बनाए, तो पड़ताल कर लीजिए. कोई भी रिलेशन विश्वास के आधार पर ही टिकता है.

बातें शेयर न करता हो

यदि पार्टनर अपनी बातें छिपाए और पूछने पर भी न बताए, उलटे, आप ही को टौंट करे और ओवरक्यूरियस कहे तो जाग जाइए. स्पष्टवादिता और सचाई रिश्ते की आधारशिला होती हैं.

महिला मित्र बनाम पुरुष सहकर्मी

पार्टनर खुद तो मित्रों के साथ काफी फ्री हो, वैस्टर्न व मौडर्न तरीकों से पेश आता हो पर आप के मेल कलीग्स को शक की दृष्टि से देखता हो तो सावधान हो जाइए. ऐसे पुरुष शादी के बाद भी फ्लर्ट करने की आदत नहीं छोड़ते.

बातबात पर झूठ बोलता हो

वजहबेवजह जब आप का पार्टनर छोटीछोटी बातों पर झूठ बोलता हो तो यह इस बात का संकेत है कि कुछ तो संदिग्ध है. उस के साथ रहने वाले, उस के मैसेज, उस के फोन कौल्स, उस के संपर्क…यदि इन बातों पर वह झूठ बोलता हो तो निसंदेह कहीं कुछ गड़बड़ है.

अचानक व्यवहार में बदलाव

पार्टनर अचानक सफाईपसंद हो जाए, गाड़ी अपेक्षाकृत साफ रखने लग जाए, अपने पुराने परफ्यूम को छोड़ कर दूसरा लगाने लग जाए, बेहद रूमानी हो जाए या बिलकुल रूखा हो जाए तो किसी महिला मित्र की उपस्थिति अवश्यंभावी है. सावधान हो जाइए. आप से ध्यान हटना, आप को इग्नोर करना, आप में रुचि न लेना किसी अन्य महिला की उपस्थिति का प्रभाव है.

जनूनी हो

यदि पार्टनर आप को दिलोजान से चाहता हो. किसी और की आप कभी नहीं हो पाएंगी, यह जताता रहता हो. आप की जुदाई को जीवनमरण का प्रश्न बना लेता हो तो सावधान हो जाइए. किसी कारणवश यदि यह रिश्ता टूट गया तो वह किसी भी सीमा तक जा सकता है. ऐसे प्रेमी से सावधान रहें. ऐसे जनूनी पुरुष असफल होने पर कुछ भी कर सकते हैं.

पार्टनर की कई बातें आप को अजीब लग सकती हैं. दिल से काम मत लीजिए, दिमाग से काम करें. जहां थोड़ा भी संशय हो, तसल्ली कर लीजिए. पार्टनर को बुरा लगेगा यह मत सोचिए. अपना विवेक रखिए. आखिर, थोड़ी सी सावधानी आप को भावी जीवन के दुखों से बचा सकती है.

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