Download App

अगस्त माह का चौथा सप्ताह कैसा रहा बौलीवुड का कारोबार : विवादों के बावजूद ‘स्त्री 2’ डटी रही मैदान पर

अगस्त माह का चौथा सप्ताह नीरस ही रहा. अगस्त माह के चौथे सप्ताह यानी कि 23 अगस्त को एक भी फिल्म सिनेमाघरों में नहीं पहुंची, बल्कि तीसरे सप्ताह में रिलीज हुई फिल्मों के ही कुछ शो चलते रहे. ‘वेदा’, ‘डबल स्मार्ट’ और ‘खेल खेल में’ तो तीसरे सप्ताह ही दम तोड़ चुकी थीं, मगर ‘स्त्री 2’ जरुर चौथे सप्ताह में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही.

अगस्त माह के तीसरे लंबे सप्ताह में ‘स्त्री 2’ के निर्माताओं ने दावा किया था कि उन की फिल्म ने 290 करोड़ रूपए कमा लिए हैं. जबकि फिल्म का बजट 120 करोड़ रूपए है. (फिल्म को सफलता मिलते ही निर्माता ने अब फिल्म का बजट बता दिया, अन्यथा वह फिल्म का बजट बताने केा तैयार नहीं थे.) उस वक्त भी खबरें उड़ी थीं कि ‘स्त्री 2’ की कौरपोरेट बुकिंग कर के सफल बनाया गया. मगर ‘स्त्री 2’ के निर्माण से जुड़े लोगों के डर से या फिल्म को बौक्स औफिस पर मिल रही सफलता के डर से चौथे सप्ताह यानी कि 23 अगस्त को एक भी नई फिल्म रिलीज नहीं की गई.

हां! 23 अगस्त को एक हौलीवुड फिल्म ‘‘एलियन रोमुटुस’’ रिलीज हुई थी, जिस ने पानी नहीं मांगा. यह फिल्म 7 दिनों के अंदर केवल डेढ़ करोड़ रूपए ही कमा सकी. 23 अगस्त को ही हौलीवुड फिल्म ‘द क्रो’ प्रदर्शित होनी थी, पर इस का प्रदर्शन टाल दिया गया था और अब यह फिल्म पांचवे सप्ताह में 30 अगस्त को रिलीज की गई है.

15 अगस्त के दिन प्रदर्शित हुई फिल्म ‘‘स्त्री 2’’ ने 16 दिन में बौक्स औफिस पर 433 करोड़ रूपए कमाए. पर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े तमाम लोग यह तो मान रहे हैं कि फिल्म ‘स्त्री 2’ को जबरदस्त सफलता मिली है, मगर सभी का आरोप है कि ‘स्त्री 2’ के निर्माता अपनी फिल्म के बौक्स औफिस आंकड़े कम से कम 30 प्रतिशत बढ़ा कर बता रहे हैं. अब मुकेश अंबानी की कंपनी ‘जियो स्टूडियो’ ने जिस फिल्म का निर्माण दिनेश वीजन की कपंनी के साथ मिल कर किया हो, उस को ले कर सच जल्दी सामने नहीं आ सकता. पर हम यह नहीं कहते कि ‘स्त्री 2’ को दर्शक नहीं मिल रहे हैं, पर हवाबाजी ज्यादा है. हम आज भी यही कहेंगे कि ‘स्त्री 2’ को मिल रही सफलता चमत्कार ही है, अन्यथा इस फिल्म में दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित करने वाले तत्व नहीं हैं.

पिछले दो सप्ताह, बल्कि 16 दिन के अंदर अक्षय कुमार की फिल्म ‘खेल खेल में’ ने 26 करोड़ रूपए कमा लिए, जिस में से निर्माता की जेब में बामुश्किल 12 करोड़ रूपए ही जाएंगे. वहीँ निखिल अडवाणी निर्देशित जौन अब्राहम और शरवरी वाघ की फिल्म ‘वेदा’ ने 16 दिन में महज 20 करोड़ रूपए ही कमाए. इस में से निर्माता की जेब में केवल 8-9 करोड़ रुपए ही आएंगे.

पांचवें सप्ताह करीबन 10 छोटीछोटी फिल्में रिलीज हुई हैं, इन में से ज्यादातर के शो पहले दिन ही कैंसिल हो गए. अब पूरे सप्ताह यह फिल्में क्या कमाएंगी इस का हाल हम अगले सप्ताह बताएंगे.

जिन, ताबीज और बाबा : अंधविश्वास का शिकार होते युवाओं की कहानी

किशन अपने पड़ोसी अली के साथ कोचिंग सैंटर में पढ़ने जाता था. उस दिन अली को देर हो गई, तो वह अकेला ही घर से निकल पड़ा.

सुनसान सड़क के फुटपाथ पर बैठे एक बाबा ने उसे आवाज दी, ‘‘ऐ बालक, तुझे पढ़ालिखा कहलाने का बहुत शौक है. पास आ और फकीर की दुआएं लेता जा. कामयाबी तेरे कदम चूमेगी.’’

किशन डरतेडरते बाबा के करीब आ कर चुपचाप खड़ा हो गया.

‘‘किस जमात में पढ़ता है?’’ बाबा ने पूछा.

‘‘जी, कालेज में…’’ किशन ने बताया.

‘‘बहुत खूब. जरा अपना दायां हाथ दे. देखता हूं, क्या बताती हैं तेरी किस्मत की रेखाएं,’’ कहते हुए बाबा ने किशन का दायां हाथ पकड़ लिया और उस की हथेली की आड़ीतिरछी लकीरें पढ़ने लगा, ‘‘अरे, तुझे तो पढ़नेलिखने का बहुत शौक है. इसी के साथ तू निहायत ही शरीफ और दयालु भी है.’’

तारीफ सुन कर किशन मन ही मन खुश हो उठा. इधर बाबा कह रहा था, ‘‘लेकिन तेरी किस्मत की रेखाएं यह भी बताती हैं कि तुझे अपनेपराए की समझ नहीं है. घर के कुछ लोग तुझे बातबात पर झिड़क दिया करते हैं और तेरी सचाई पर उन्हें यकीन नहीं होता.’’

किशन सोचने लगा, ‘बाबा ठीक कह रहे हैं. परिवार के कुछ लोग मुझे कमजोर छात्र होने के ताने देते रहते हैं, जबकि ऐसी बात नहीं है. मैं मन लगा कर पढ़ाई करता हूं.’

बाबा आगे बताने लगा, ‘‘तू जोकुछ भी सोचता है, वह पूरा नहीं होता, बल्कि उस का उलटा ही होता है.’’

यह बात भी किशन को दुरुस्त लगी. एक बार उस ने यह सोचा था कि वह गुल्लक में खूब पैसे जमा करेगा, ताकि बुरे समय में वह पैसा मम्मीपापा के काम आ सके, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

अभी किशन कुछ ही पैसे जमा कर पाया था कि एक दिन मोटे चूहे ने टेबल पर रखे उस की गुल्लक को जमीन पर गिरा कर उस के नेक इरादे पर पानी फेर दिया था.

इसी तरह पिछले साल उसे पूरा यकीन था कि सालाना इम्तिहान में वह अच्छे नंबर लाएगा, लेकिन जब नतीजा सामने आया, तो उसे बेहद मायूसी हुई.

बाबा ने किशन के मन की फिर एक बात बताई, ‘भविष्य में तू बहुत बड़ा आदमी बनेगा. तुझे क्रिकेट खेलने का बहुत शौक है न?’’

‘‘जी बहुत…’’ किशन चहक कर बोला.

‘‘तभी तो तेरी किस्मत की रेखाएं दावा कर रही हैं कि आगे जा कर तू भारतीय क्रिकेट टीम का बेहतरीन खिलाड़ी बनेगा. दुनिया की सैर करेगा, खूब दौलत बटोरेगा और तेरा नाम शोहरत की बुलंदी पर होगा,’’ इस तरह बाबा ने अपनी भविष्यवाणी से किशन को अच्छी तरह से संतुष्ट और खुश कर दिया, फिर थैले से एक तावीज निकाल कर उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह तावीज अपने गले में अभी डाल ले बालक. यह तुझे फायदा ही फायदा पहुंचाएगा.’’

‘‘तू जोकुछ भी सोचेगा, इस तावीज में छिपा जिन उसे पूरा कर देगा. यकीन नहीं हो रहा, तो यह देख…’’ इन शब्दों के साथ बाबा उस तावीज को मुट्ठी में भींच कर बुदबुदाने लगा, ‘‘ऐ तावीज के गुलाम जिन, मुझे 2 हजार रुपए का एक नोट अभी चाहिए,’’ फिर बाबा ने मुट्ठी खोल दी, तो हथेली पर उस तावीज के अलावा 2 हजार रुपए का एक नोट भी नजर आया, जिसे देख कर किशन के अचरज का ठिकाना नहीं रहा. वह बोला, ‘‘बड़ा असरदार है यह तावीज…’’

‘‘हां, बिलकुल. मेरे तावीज की तुलना फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ के बटुक महाराज से बिलकुल मत करना बालक. फिल्मी फार्मूलों का इनसानी जिंदगी की सचाई से दूरदूर का रिश्ता नहीं होता है.’’

‘‘बाबा, इस तावीज की कीमत क्या है?’’ किशन ने पूछा.

‘‘महज 5 सौ रुपए बेटा,’’ बाबा ने कहा.

तावीज की इतनी महंगी कीमत सुन कर किशन गहरी सोच में डूब गया, फिर बोला, ‘‘बाबा, 5 सौ रुपए तो मेरे पास जरूर हैं, लेकिन यह रकम पापा ने कोचिंग सैंटर की फीस जमा करने के लिए दी है. पर कोई बात नहीं, आप से तावीज खरीद लेने के बाद मैं इस के चमत्कार से ऐसे कितने ही 5 सौ रुपए के नोट हासिल कर लूंगा,’’ यह कह कर किशन ने 5 सौ रुपए का नोट निकालने के लिए जेब में हाथ डाला ही था कि तभी अली पीछे से आ धमका और बोला, ‘‘किशन, यह तुम क्या कर रहे हो?’’

‘‘तावीज खरीद रहा हूं अली. बाबा कह रहे हैं कि इस में एक जिन कैद है, जो तावीज खरीदने वाले की सभी मुरादें पूरी करता है,’’ किशन बोला.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो. ऐसी दकियानूसी बात पर बिलकुल भरोसा मत करो. क्या हम लोग झूठे अंधविश्वास की जकड़न में फंसे रहने के लिए पढ़ाईलिखाई करते हैं या इस से छुटकारा पा कर ज्ञान, विज्ञान और तरक्की को बढ़ावा देने के लिए पढ़ाईलिखाई करते हैं?’’ अली ने किशन से सवाल किया.

तभी बाबा गुर्रा उठा, ‘‘ऐ बालक, खबरदार जो ज्ञानविज्ञान की दुहाई दे कर जिन, तावीज और बाबा के चमत्कार को झूठा कहा. जबान संभाल कर बात कर.’’

‘‘चलो, मैं कुछ देर के लिए मान लेता हूं कि तुम्हारा तावीज चमत्कारी है, लेकिन इस का कोई ठोस सुबूत तो होना चाहिए,’’ अली बोला.

बाबा के बजाय किशन बोला, ‘‘अली, मेरा यकीन करो. यह तावीज वाकई चमत्कारी है. बाबा ने अभी थोड़ी देर पहले इस में समाए जिन को आदेश दे कर उस से 2 हजार रुपए का एक नोट मंगवाया था.’’

अली बोला, ‘‘अरे नादान, तेरी समझ में नहीं आएगा. यह सब इस पाखंडी बाबा के हाथ की सफाई है. तुम रोजाना घर से निकलते हो ट्यूशन पढ़ कर

ज्ञानी बनने के लिए, लेकिन यह क्या… आज तो तुम एक सड़कछाप बाबा से अंधविश्वास और नासमझी का पाठ पढ़ने लगे हो.’’

अली के तेवर देख कर बाबा को यकीन हो गया था कि वह उस की चालबाजी का परदाफाश कर के ही दम लेगा, इसलिए उस ने अली को अपने चमत्कार से भस्म कर देने की धमकी दे कर शांत करना चाहा, लेकिन अली डरने के बजाय बाबा से उलझ पड़ा, ‘‘अगर तुम वाकई चमत्कारी बाबा हो, तो

मुझे अभी भस्म कर के दिखाओ, वरना तुम्हारी खैर नहीं.’’

अली की ललकार से बौखला कर बाबा उलटासीधा बड़बड़ाने लगा.

‘‘क्या बाबा, तुम कब से बड़बड़ा रहे हो, फिर भी मुझे अब तक भस्म न कर सके? अरे, सीधी सी बात है कि तुम्हारी तरह तुम्हारा जंतरमंतर भी झूठा है.’’

अली की बातों से खिसिया कर बाबा अपना त्रिशूल हवा में लहराने लगा.

इस पर अली डरे हुए किशन को खींच कर दूर हट गया और जोरजोर से चिल्लाने लगा, ताकि सड़क पर चल

रहे मुसाफिर उस की आवाज सुन सकें, ‘‘यह बाबा त्रिशूल का इस्तेमाल हथियार की तरह कर रहा है…’’

अली की आवाज इतनी तेज थी

कि सादा वरदी में सड़क से गुजर रहे

2 कांस्टेबल वहां आ गए और मामले को समझते ही उन्होंने बाबा को धर दबोचा, फिर उसे थाने ले गए.

‘‘आखिर तुम इतने नासमझ क्यों

हो किशन?’’ भीड़ छंटने के बाद अली ने किशन पर नाराजगी जताई, तो वह बोला, ‘‘मैं हैरान हूं कि बाबा अगर गलत इनसान थे, तो फिर उन्होंने मेरे हाथ की लकीरें पढ़ कर मेरे मन की सच्ची बातें कैसे बता दीं?’’

अली बोला, ‘‘बाबा ने यह भविष्यवाणी की होगी कि तुम पढ़नेलिखने में तेज हो, तुम बहुत अच्छे बालक हो, लेकिन लोग तुम्हें समझने की कोशिश नहीं करते, तुम जोकुछ सोचते हो, उस का बिलकुल उलटा होता है.’’

‘‘कमाल है, मेरे और बाबा के बीच की बातें तुम्हें कैसे मालूम हुईं अली?’’ पूछते हुए किशन अली को हैरान नजरों से देखने लगा.

अली बोला, ‘‘यह कमाल नहीं, बल्कि आम बात है. बाबा जैसे पाखंडी लोग अपने शिकारी का शिकार करने के लिए इसी तरह की बातों का सहारा लिया करते हैं.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ अली, बाबा ने मुझ से कहा था कि मुझे क्रिकेट का खेल बेहद पसंद है. एक दिन मैं भारतीय क्रिकेट टीम का बेहतरीन खिलाड़ी बनूंगा और ऐसा मेरा दिल भी कहता है. लेकिन मेरे दिल की यह बात भी बाबा को कैसे मालूम हो गई?’’

‘‘दरअसल, भारत में क्रिकेट एक मशहूर खेल है. इसे बच्चे, बूढ़े, जवान सभी पसंद करते हैं. तभी तो उस पाखंडी ने तुम्हें यह सपना दिखाया कि एक दिन तुम भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी बनोगे.’’

किशन अली की बातें गौर से सुनतेसुनते बोला, ‘‘अच्छा, एक बात बताओ दोस्त, क्या मैं वाकई कभी बड़ा आदमी नहीं बन सकूंगा?’’

‘‘क्यों नहीं बन सकते हो. बड़ा आदमी कोई भी बन सकता है, लेकिन सपने देख कर नहीं, बल्कि सच्ची मेहनत, लगन और ज्ञानविज्ञान के सहारे. आइंदा से तुम ऐसे धोखेबाज लोगों से बिलकुल खबरदार रहना.

‘‘किशन, तुम खुद सोचो कि अगर बाबा का तावीज चमत्कारी होता, तो फिर वह फुटपाथ पर बैठा क्यों नजर आता? तावीज के चमत्कार से पहले तो वह खुद ही बड़ा आदमी बन जाता.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो अली,’’ किशन ने अपनी नादानी पर शर्मिंदा होने के अलावा यह मन ही मन तय किया कि अब वह कभी किसी के झांसे में नहीं आएगा.

चोटीकटवा भूत : क्या थी उस भूत की असलियत

रामप्यारी सुबह से परेशान घूम रही है. आजकल उस के पति की दूधजलेबी की दुकान ठप पड़ी है. वहीं पीपल के नीचे रामू की दुकान के लड्डू ज्यादा बिकने लगे हैं. लोग अब इधर का रुख कम ही करते हैं.

दुलारी की परेशानी थोड़ी अलग है. उस का बेरोजगार शराबी पति और झगड़ालू सास उस की सारी कमाई हड़प जाते हैं, बदले में मिलती हैं उसे सिर्फ गालियां. बड़ीबड़ी कोठियों में उसे कुछ रुपए ऊपरी काम के भी मिल जाते हैं, जिसे वह घर वालों की नजर में आने नहीं देती और छिप कर अपने शौक पूरे करती है. उस का बड़ा मन होता है कि मेमसाहब की तरह वह भी ब्यूटीपार्लर से सज कर आए.

श्यामा 27 साल की गठीले बदन की लड़की है. छोटे भाईबहनों को पालने का जिम्मा उसी के कंधे पर है. मां टीबी की मरीज हैं.

श्यामा का अपने पड़ोसी ननकू के साथ जिस्मानी रिश्ता बना हुआ है. मगर एक डर भी है कि उस का भेद ननकू की बीवी पर खुल गया, तब क्या होगा? वह एक अजीब से तनाव में रहती है.

प्रेमा के सिर पर हीरोइन बनने का भूत सवार है. वह अपनी सारी कमाई सजनेसंवरने में लगा देती है, फिर भले ही अपनी मां से खूब मार खाती रहे. उस के पिता की पंचर की दुकान है, जिस से दालरोटी चल जाती है, मगर प्रेमा के शौक पूरे नहीं हो सकते. इसी के चलते उस ने स्कूल में आया का काम पकड़ रखा है.

इस छोटी सी बस्ती में ज्यादातर मजदूर, मिस्त्री और घरेलू कामगारों के परिवार हैं. शहर के इस बाहरी इलाके में सरकारी फ्लैट भी कम आमदनी वाले तबके के लोगों को मुहैया कराए गए हैं. उन्हीं के साथ लगी हुई जमीन पर गैरकानूनी कब्जा कर झुग्गीझोंपडि़यां भी बड़ी तादाद में बन गई हैं.

यहां चारों तरफ हमेशा चिल्लपौं मची रहती है. कभी सरकारी नल पर पानी का झगड़ा, कभी बच्चों की सिरफुटौव्वल, तो कभी नाजायज रिश्तों की सच्चीझूठी घटना पर औरतमर्द की मारपीट का तमाशा चलता रहता है. सभी लोगों का यही मनोरंजन का साधन है.

‘‘क्या सोच रही हो तुम? जरा इधर टैलीविजन तो देखो… आजकल कई जगह औरतों की चोटियां कट रही हैं. लगता है, किसी भूतप्रेत का साया है.

‘‘तुम जरा सब औरतों को सावधान कर दो कि सभी अपने घर के बाहर नीबूमिर्च, नीम की पत्तियां टांग दें,’’ खिलावन टैलीविजन पर आंखें गड़ाए हुए रामप्यारी से बोला.

‘‘यह सब छोड़ो और अपने फायदे की सोचो. हमें क्या फायदा हो सकता है?’’ रामप्यारी ने पूछा. उस का दिमाग इन सब खुराफातों में तेजी से चलता है.

‘‘देखो, इस बस्ती में कोई नीम का पेड़ तो है नहीं. मैं पहले पास के गांव से नीम की टहनियां ले कर आता हूं. तब तक तुम 20-25 नीबूमिर्च की माला बनाओ. हम नीम की टहनी के साथ ये मालाएं बेच कर कुछ कमाई कर लेंगे. अच्छा रुको, अभी किसी से कुछ मत कहना.’’

जब तक खिलावन बस्ती में लौटा, हाहाकार मच चुका था. वह सीधे अपने घर भागा तो देखा कि रामप्यारी ने नीबूमिर्च की मालाओं का ढेर बना रखा है.

खिलावन ने नीम की छोटीछोटी टहनियों से भरा झोला पटकते हुए कहा, ‘‘तुम यहां पर बैठी हो, पता भी है कि बाहर क्या चल रहा है?’’

‘‘तुम बिलकुल भी चिंता मत करो. अब फटाफट नीम की टहनियों को अलग कर नीबूमिर्च की माला के साथ बांधते जाओ और एक अपने दरवाजे पर टांग दो और बाकी दुकान पर रखो.

‘‘और हां, जलेबी का सामान भी दोगुना तैयार करना पड़ेगा कल से,’’ रामप्यारी इतमीनान से बोली.

‘‘तुम्हें तो कुछ पता नहीं है. बाहर टैलीविजन वाले, पुलिस वाले सब जमा हैं. पता नहीं, क्या चल रहा है उधर

और तुम्हें जलेबी बनाने की पड़ी है,’’ खिलावन घबरा कर बोला.

‘‘तुम चिंता मत करो, यहां भी चोटी कट गई है रधिया की. अरे वही, जो पिछली गली में रहती है.’’

‘‘क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा है? तुम्हारी चोटी भी कट सकती है? अब क्या करें?’’

‘‘चुप रहो. उस की चोटी तो मैं ने ही काटी है और वह कालू ओझा है न, उस से मिल कर भी आ गई हूं. मैं ने सारी बातें तय कर ली हैं,’’ रामप्यारी ने कहा.

‘‘तुम ने क्यों काटी? क्या तुझ पर भी भूत चढ़ गया था?’’ खिलावन बोला.

‘‘जब चोटी कटेगी, तभी तो ये लोग नीबूमिर्च की माला लेने दौड़ेंगे. तुझे तो पता ही है कि रधिया को तो वैसे भी जबतब चक्कर आते रहते हैं. अभी जब मैं थोड़ी देर पहले दुकान पर लहसुन लेने गई थी, तो उस का दरवाजा खुला देख अंदर चली गई. घर के अंदर वह बेहोश पड़ी थी. मैं ने भी आव देखा न ताव उस के बाल काट कर चलती बनी.’’

‘‘किसी ने देखा तो नहीं तुझे?’’

‘‘नहीं. अगर कोई देख भी लेता, तो मैं ने सोच रखा था कि कह दूंगी इस के बाल काट देती हूं, नहीं तो भूत परेशान करेगा. अच्छा हुआ किसी ने देखा ही नहीं.’’

‘‘तो फिर तू ओझा के पास क्यों गई थी?’’ खिलावन ने हैरानी से पूछा.

‘‘सैटिंग करने. अभी ओझा झाड़फूंक करेगा और उस को एक दोना जलेबी खिलाने को और एक किलो मजार पर चढ़ाने को भी बोलेगा. फिर देखना, कल से सब लोग जलेबी खाएंगे भी और चढ़ाएंगे भी. मैं अभी आई.’’

‘‘रुको, तुम कहीं मत जाओ. मैं अभी बाहर जा कर देख कर आता हूं,’’ कह कर खिलावन रधिया के घर की तरफ दौड़ पड़ा.

रधिया का इंटरव्यू कर के मीडिया व पुलिस दोनों वहां से जा चुके थे. अब केवल बस्ती के लोग जमा थे. तभी सामने से कालू ओझा रधिया के पति जगन के संग आता दिखा.

‘‘बाहर लाओ, उसे बाहर लाओ,’’ वह ओझा चीखा, ‘‘इसे बूढ़ी इमली के पेड़ का भूत चढ़ा है. वहां प्रीतम ने पेड़ से लटक कर खुदकुशी की थी. जाओ जल्दी जाओ, नीम ले कर आओ. हां, जलेबी भी ले कर आना.

‘‘प्रीतम जलेबी बहुत खाता था. जो जलेबी खाएगा, उस के सिर से भूत खुश हो कर उतर जाएगा. और जो भी नीम दरवाजे पर लगाएगा, वहां पर भूत फटकने न पाएगा,’’ ओझा ने सामने खड़ी रधिया पर मोरपंखी फेरते हुए कहा. खिलावन ने पलक झपकते ही ओझा के आगे नीबूमिर्च, नीम और जलेबी सजा के रख दी.

कालू ने भी तेजी दिखाते हुए नीमनीबू दरवाजे पर टांग दिए. थोड़ी जलेबी रधिया को खिलाई और बाकी जलेबी भीड़ में प्रसाद के तौर पर बंटवा दी.

झाड़फूंक से रधिया के कलेजे को ठंडक पड़ गई कि उस के सिर पर चढ़ा भूत उतर गया है. वह खुशी से ओझा के पैरों में गिर पड़ी. भीड़ जयजयकार कर उठी. खिलावन ने सब की नजर बचा कर सौ रुपए का नोट कालू की मुट्ठी में दबा दिया. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए.

तभी प्रेमा के घर से चीखपुकार आने लगी. किसी ने फिर मीडिया को खबर कर दी थी. वे थोड़ी देर पहले ही अपना मोबाइल नंबर बांट गए थे. पुलिस से पहले मीडिया वाले पहुंच गए.

प्रेमा अपनी कटी चुटिया दिखा कर पूरे फिल्मी अंदाज में बखान कर रही थी. उस ने चीखपुकार मचा कर भूत को अपने पीछे से दबोचने और फिर अपने बेहोश होने की बात कह दी.

लोगों में डर बैठ गया. जितने मुंह उतनी बातें. मगर प्रेमा मन ही मन बहुत खुश थी. आज उस का टैलीविजन पर आने का सपना जो पूरा हो गया था.

दूसरे दिन दुलारी के चीखनेचिल्लाने की आवाज के साथ सब की भीड़ उस के घर के आगे जमा हो गई. उस की चुटिया भी कट चुकी थी. वह अपने टेड़ेमेढ़े ढंग से कटे बालों को दिखा कर खूब चीखीचिल्लाई. फिर बाल सैट कराने के लिए ब्यूटीपार्लर चली गई.

मगर जब श्यामा को अपनी चोटी कटी हुई मिली, तो उसने सारा दोष ननकू की बीवी पर मढ़ दिया और उसे चुड़ैल घोषित कर मारने दौड़ पड़ी.

वहां बड़ा बवाल मच गया. पूरी बस्ती 2 हिस्सों में बंट गई. आधे दुलारी की तरफ, आधे ननकू की बीवी की तरफ. ईंटपत्थर सब चल गए. पुलिस को बीचबचाव करना पड़ा. 2 सिपाहियों की ड्यूटी ‘चोटीकटवा भूत’ को पकड़ने के लिए लगा दी गई.

रामप्यारी अब खुश थी कि उस की जलेबी की दुकान चल निकली है. प्रेमा, श्यामा, दुलारी सभी आजकल अपने अंदर एक अलग ही खुशी महसूस कर रही थीं.

लेकिन खिलावन तनाव में था कि रामप्यारी अगर पकड़ी गई, तो क्या होगा? उस ने डरतेडरते उस से कहा, ‘‘तुम चुटिया काटने का काम बंद कर दो. मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं किसी ने तुम्हें पकड़ लिया, तो चुड़ैल जान कर जान से ही मार देंगे.’’

‘‘मगर, मैं ने तो रधिया के सिवा किसी के भी बाल नहीं काटे. मुझे अब दुकान और घर से फुरसत ही कहां मिलती है कि मैं लोगों के घरों में घूमती फिरूं,’’ रामप्यारी ने शान से कहा. ‘तो फिर बाकी लोगों के बाल किस ने काटे?’ खिलावन सोच में पड़ गया.

जिया जले

शहर चाहे कोई भी हो, युवा चाहे जिस किसी भी प्रदेश के हों, वे अपनी पसंद से जीवनसाथी चुन लेते हैं. ऐसा होने पर समाज के कर्ताधर्ता परिवार वालों पर दोषारोपण करते हैं, कहते हैं, ‘परवरिश ठीक नहीं थी.’

दूसरी ओर धर्म के ठेकेदार, पाखंडी पंडित जोगाराम जैसे लोग लड़का या लड़की की खामियों को छिपा कर परंपरागत हिसाब से विवाह करवा देते हैं. ऐसे में भुगतना जिसे पड़ता है वही जानता है.

‘नलिनी, थोड़ा तो ड्रैसिंग सैंस रखा कर. यह क्या है, काली कुरती पर नीला दुपट्टा?’ कालेज के लिए निकलते वक्त बड़ी बहन दामिनी ने टोका.

‘हुंह, रहने दो न, दीदी. सब चलता है और मैं कालेज पढ़ने के लिए जाती हूं कोई…’

‘क्या मतलब है तुम्हारा?’ दामिनी तिलमिला उठी.

‘दामिनी नाम रख लेने से कोई मीनाक्षी शेषाद्रि नहीं बन जाती,’ नलिनी ने मुंह बनाते हुए कहा.

‘बसबस, फिर शुरू हो गईं तुम दोनों,’ मां ने रसोईघर से डांट लगाई.

मां की आवाज ने युद्ध को तत्काल के लिए विराम दे दिया.

‘अच्छा सुन दामो, शाम को तुझे देखने के लिए नीरज के परिवार वाले आ रहे हैं,’ बोलतेबोलते मां कमरे में आ गई.

‘अरे वाह, शाम को फिर से कुछ अच्छा खाने को मिलेगा,’ नलिनी नाचते हुए बोली.

‘अच्छा, तो तुझे अच्छा खाने की पड़ी है,’ दामिनी ने छोटी बहन की चोटी खींचते हुए कहा.

‘मां, देखो न,’ नलिनी ने मां से शिकायत की.

तब तक मां ने पंडित जोगाराम द्वारा दिखाई नीरज की फोटो को सामने ला कर रख दिया और सभी उसे देखने में व्यस्त हो गए. दामिनी ने भी चोर निगाहों से देख लिया, कमोबेश ऋषि कपूर जैसा लगा उसे. मन में फूटे लड्डू को दबाती हुई दूसरे कमरे में चली गई.

‘लड़का कैसा लगा, बता कर तो जाओ?’ मां ने आवाज लगाई.

‘बहुत अच्छा,’ नलिनी ने सैंडिल पहनते हुए कहा और दोनों बहनें कालेज के लिए निकल गईं.

रास्ते में निखिल मिला, आज दामिनी उसे देख कर न मुसकराई, न कोई इशारा किया. मां ने निखिल के साथ रिश्ते के लिए जब से मना कर दिया था तभी से दोनों तरफ से प्रेमालाप बंद हो चुका था. निखिल भी चोर निगाहों से देखता हुआ निकल गया.

इधर दामिनी के नसीब का फैसला पंडित जोगाराम कर रहे थे.

‘पंडितजी, आप चाहे जितनी दक्षिणा ले लीजिए लेकिन मेरे बेटे का विवाह करवा दीजिए, मरते हुए बेटे नीरज की भी यही इच्छा है,’ नीरज की मां ने आंचल से आंसू पोंछते हुए कहा.

‘यजमान, आप के सुपुत्र का विवाह तो मैं जब चाहूं तब करवा दूं लेकिन कैंसरग्रस्त दूल्हे को अपनी बेटी देगा कौन?’ पंडित जोगाराम ने दक्षिणा की पोटली को बेवजह खोलतेबंद करते हुए कहा.

‘आप से उम्मीद न करूं तो किस के आगे झोली फैलाऊं? आखिर आप ने ही तो इस खानदान के सभी लोगों का विवाह करवाया है,’ नीरज की मां ने पंडित जी के सामने नाश्ते की प्लेट रखते हुए कहा.

‘हेहेहे, सो तो है,’ पंडित जी ने 2 रसगुल्ले एकसाथ मुंह में रखते हुए खींसे निपोरे.

नीरज की मां ने आखिरी हथकंडा अपनाया और 10 हजार रुपए व एक जोड़े जनेऊ उन के सामने रख दिए. जिसे पंडित जी ने झट दक्षिणा वाली पोटली में सरका लिया.

‘समझ लीजिए आप के बेटे का विवाह हो गया. लड़की के सिंदूर के जोर से आप का पुत्र सौ बरस जिएगा,’ पंडित जी ने अपने पोथी के साथ बचीखुची खानेपीने की वस्तुओं को समेटते हुए कहा.

‘जैसी आप की कृपा महाराज,’ मां ने विदा करते हुए श्रद्धा से पैर छू लिए.

पाखंडी पंडित ने भी वादे के मुताबिक 10 हजार रुपए का मान रखते हुए बिना सोचेसमझे कैंसरग्रस्त नीरज के साथ दामिनी का विवाह करवा दिया. यही वजह थी कि शादी के बाद दामिनी ने मायके वालों की तरफ़ पलट कर भी नहीं देखा.

इस बार करीब 5 वर्षों के बाद दामिनी अपने मायके आई थी. बीमार मां ने अपनी सांसों की कसम दिलाई थी और यही वजह थी कि वह मना न कर सकी थी. मां को जीभर कोसना चाहती थी लेकिन कोस न सकी.

मामा जी के बेटी की शादी थी. चारों तरफ हंसीखुशी का माहौल था.

दामिनी रिक्शे उतर कर उसे पैसे दिए और निगाह नीची किए ही सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर के कमरे में जाने लगी. हड़बड़ाहट में निखिल से टकरातेटकराते बची, मुड़ कर देखा तो देखते ही रह गई, 5 साल पहले वाला दुबलापतला एक हड्डी का इंसान नहीं रह गया था बल्कि खातेपीते घर का हृष्टपुष्ट युवक बन चुका था वह.

निखिल ने भी दामिनी को गौर से देखा, सोचा, ‘क्या यह वही लड़की है जो अपने रंगरूप और फैशन के लिए महल्लेभर में जानी जाती थी, जिस की एक झलक पाने के लिए दिनभर परचून की दुकान के चक्कर लगाया करता था. यह क्या हाल कर लिया है इस ने अपना.’

निखिल दरअसल दामिनी से करीब 2 साल छोटा था, यही वजह थी कि दोनों परिवारों ने रिश्ते को नकार दिया था और निखिल का रिश्ता दामिनी की छोटी बहन नलिनी से कर दिया गया था. दामिनी शादी होते ही दुबई चली गई थी.

शुरूशुरू में तो सबकुछ बहुत अच्छा रहा. दामिनी अपने पति नीरज को पा कर निहाल हो गई थी. नीरज ने भी कोई कमी न रखी थी. सोने के गहनों से तो लद गई थी दामिनी. ऐसे में दुबलापतला निखिल कहां याद आता था. लेकिन दुबई में तेल के कुएं में बहुत दिनों तक काम करने के कारण नीरज कैंसरग्रस्त हो चुका था और यह बात पंडित जोगाराम जी रिश्ता करवाते वक्त 10 हजार रुपए की गड्डी के साथ ही दबा गए थे.

घर की जमापूंजी इलाज में घुलती जा रही थी और साथ ही, खोती रही थी दामिनी की खूबसूरती. निखिल को देखने के बाद अचानक से उसे अपने चेहरे की फिक्र होने लगी. जिसे उस ने पिछले कई सालों से संवारना तो दूर, निहारा भी नहीं था. दरअसल इन दिनों उसे आईने के सामने बैठने की या खुद को निहारने की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई थी. सुबहदोपहरशाम केवल नीरज की दवाइयों के समय का ध्यान रखते और सिलाई मशीन पर बैठेबैठे बीत जाता था. बाकी बचा समय और्डर मिले कपड़ों को लाने व पहुंचाने में चला जाता था. वही सब तो घर के आमदनी का जरिया था.

भारत आने के बाद उस ने किसी से भी बातचीत करने या मिलनेजुलने की कोशिश भी नहीं की थी. अगर फोन आता भी था तो टाल जाती या कोई न कोई बहाना देती थी. नीरज की बीमारी की खबर उस ने घर में किसी को नहीं बताई थी क्योंकि ससुराल वालों की तरह मायके वालों से भी नीरज के लिए बदनसीब पत्नी का तमगा नहीं पहनना चाहती थी. आईने में खुद को देखा. रूखा चेहरा, उदास आंखें, उम्र से कहीं ज्यादा की दिख रही थी. वह कुछ पल के लिए आईने के पास ही बैठ गई और अतीत उस के सामने आ खड़ा हो गया.

परचून की दुकान पर पहली बार मिली थी निखिल से. दोनों ही नमक खरीदने गए थे. अंतर बस इतना था की दामिनी ने टाटा नमक मांगा था और निखिल ने साधारण नमक. शायद आकर्षण ही था जो दामिनी निखिल को टाटा नमक के फायदे समझाने लगी और निखिल ने भी टाटा नमक के लिए दुकानदार से कह दिया था और इस नमकीन हादसे ने दोनों के मन में मिठास घोल दिया था. दोनों एक ही महल्ले में रहते थे, जब भी दामिनी सौदा लेने के लिए निकलती और निखिल की नजर पड़ जाती है तो वह भी कुछ न कुछ खरीदने के बहाने दुकान पहुंच जाता. वहीं थोड़ीबहुत बात भी हो जाती थी.

दोतीन मुलाकातों में ही पता चल गया था कि निखिल उसे पसंद करता है. बातों ही बातों में मोबाइल नंबर का लेनदेन भी हो गया था लेकिन सख्त हिदायत दी गई थी कि सिग्नल मिले तभी जा कर किसी प्रकार की कौल या मैसेज किया जाए, क्योंकि यह दामिनी का व्यक्तिगत मोबाइल नहीं है. निखिल ने भी सीमारेखा का उल्लंघन कभी नहीं किया था. निखिल साइकिल पर घूमघूम कर ट्यूशंस देता था, यही उस की आय का जरिया था.

कहते हैं न, शिक्षा कभी बेवफाई नहीं करती. देखतेदेखते निखिल सरकारी शिक्षक बन गया था. दामिनी की शादी के बाद भी निखिल दामिनी के घर जाता था शायद दामिनी के विषय में कोई जानकारी मिल जाए. नतीजा यह हुआ की दामिनी की मां ने उसे अपनी छोटी बेटी नलिनी के लिए पसंद कर लिया. जिसे निखिल और उस के परिवार वालों ने स्वीकार कर लिया. उस वक्त नलिनी देखने में एक साधारण सी लड़की थी.

श्यामला रंग, दो चोटी किए हुए, सलीकेदार या डिजाइन वाले कपड़े पहनने का कोई शौक नहीं. लाल कुरती के साथ नीला पजामा पहन लेती, सफेद ओढ़नी डाल लेती या फिर काले पजामे के साथ हरी ओढ़नी डाल लेती, चेहरे की रंगाईपुताई तो उस ने सीखा ही नहीं था. यह सब तो शादी के बाद निखिल ने उसे सिखाया था. और अब तो वह इतना कुछ सीख चुकी थी कि उस की वैनिटी में ब्रैंडेड लिपस्टिक से ले कर पैर के सैंडिल तक मैचिंग रहता था.

“बड़ी बूआ,” नन्हे दीपू ने कंधा पकड़ कर हिलाया. दामिनी वर्तमान में लौट आई.

“ऊपर के कमरे में चलिए न, सभी आप का इंतजार कर रहे हैं,” दीपू ने बाल को उछालते हुए कहा और कमरे से निकल गया. दामिनी ने खुद को एक बार फिर से निहारा और फिर समेटती, सकुचाती हुई सीढ़ियां चढ़ने लगी. एकएक कदम सावधानी से रखती हुई सीढ़ियां चढ़ रही थी क्योंकि दिमाग कहीं और उलझा हुआ था. तभी सामने से नलिनी ने झुक कर पैर छू लिए. उस के परफ्यूम की खुशबू ने उस की तरफ देखने के लिए मजबूर कर दिया. आंख फटी की फटी रह गईं. जिस नलिनी को उस के भद्दे कपड़ों के लिए, सांवले रंग के लिए मां कोसा करती थी वह आज खिलीखिली, फूलों सी महक रही थी.

“अपनी छोटी बहन की कभी याद नहीं आई, दीदी,” नलिनी ने गले लगते हुए कहा.

पहले निखिल, अब नलिनी, खुद को कहां तक संभाले दामिनी.

“परिस्थितियां ही कुछ ऐसी थीं,” केवल इतना ही कह पाई.

सामने रिश्तेदार बैठे थे, उस ने बारीबारी से सभी का आशीर्वाद लिया.

“दामाद जी नहीं आए?” मां ने पूछा.

शादी के वक्त नीरज को चुनने के लिए जिस मां का दिल से शुक्रिया किया था आज अचानक से वही मां निखिल के रिश्ते को अपने लिए ठुकराने की वजह से बुरी लग रही थी. काश, उम्र को नजरअंदाज कर के रिश्ते की बात आगे बढ़ गई होती तो आज जहां नलिनी खड़ी है वहां वह खड़ी होती.

“बरात आने तक आ जाएंगे,” मन के जज्बात को मचोड़ते हुए दामिनी ने जवाब दिया.

जितने लोग उतने प्रश्न, किसकिस का जवाब दे. इसीलिए सभी से कतराने लगी थी. लेकिन उस की नज़रें नलिनी को परखने में लगी हुई थीं. आखिर ऐसा कौन सा कुबेर का खाना खजाना इन के हाथ लग गया जो दोनों इतना दिखावा कर रहे हैं क्योंकि जब वह निखिल को जानती थी तब तक वह मामूली था, साइकिल पर घूमघूम कर घरघर जा कर बच्चों को पढ़ाने वाला शिक्षक हुआ करता था.

“अरी नलिनी, ऐसा कौन सा कुबेर का खजाना तुम दोनों के हाथ लग गया, जरा मैं भी तो सुनूं?” आखिरकार दामिनी ने पूछा ही लिया.

“कोई कुबेर का खजाना नहीं है, दीदी. हम दोनों की लगातार मेहनत का नतीजा है. इन की सरकारी स्कूल में नौकरी लग गई और मैं ब्यूटीशियन का कोर्स कर के अपना पार्लर चला रही हूं,” नलिनी ने खुले बालों पर हाथ फेरते हुए कहा.

“हां, वह दिख रहा है वरना…तुम तो…,” दामिनी कुछ और बोलने ही वाली थी कि नलिनी ने बीच में टोका, “दीदी, जीजाजी कहां हैं, वे साथ नहीं आए,”

“बस, ठीक हैं,” बात आगे और बढ़ती, उस के पहले वह वहां से हट गई. उस की निगाहें निखिल का पीछा कर रही थीं. उस की जिज्ञासा जाग उठी कि उस के विवाह के बाद निखिल ने उसे याद किया या नहीं और कहीं न कहीं इस बात से परेशानी भी थी कि उस के जाने के बाद टूट कर बिखर क्यों न गया, सवंर कैसे गया?

रात को फेरे होने तक निखिल कहीं दिखाई नहीं दिया. इस बीच नलिनी जितनी बार भी मिली, दामिनी ने इस बात का एहसास करना जरूरी समझा कि निखिल को उस ने अपने लिए पसंद किया था और निखिल उस का छोड़ा हुआ कपड़ा है जिसे उस ने पहले पहना था जैसा कि अकसर बचपन में वह करती थी. शादी में नीरज को को न आना था, न वह आया. सुबह जब मेहमान जाने लगे तो दामिनी को छोड़ने का जिम्मा निखिल को मिला. दामिनी को तो बिन मांगी मूराद पूरी हो गई थी. जितना सजधज कर वह शादी में नहीं आई थी उस से कहीं ज्यादा सजधज कर वह जाने के लिए निकली.

दामिनी की कुटिल भावनाओं से दूर नलिनी इसे अपने दोनों का कर्तव्य समझ रही थी कि दीदी को सहीसलामत उन के घर पहुंचाया जाए.
रास्ते में झूठमूठ का पेटदर्द बहाना कर गाड़ी रुकवाई गई. दामिनी हर पल निखिल के क़रीब आने की कोशिश करती रही. निखिल अपना कर्तव्य निभाता गया और दामिनी का साथ देता गया. दामिनी ने निखिल से कुछ न छिपाया जहां वह अन्य लोगों से अपनी सचाई बयां करने से कतराती रही वहीं निखिल को उस ने बढ़ाचढ़ा कर बताया. रिश्ते के नाते निखिल भी हमदर्दी जताने में पीछे न रहा. जिसे दामिनी ने अपने प्रति पुराना प्यार जागता हुआ समझ लिया और उस को पाने की ललक में सीमाएं तोड़ने लगी.

दामिनी ने निखिल को जहां उतारने के लिए कहा था वहां से उस का घर थोड़ी दूरी पर था. वह नहीं चाहती थी कि निखिल उस के घर के हालात को देखे. रास्ते में उस ने अपना मेकअप पोंछ लिया, बाल बिखेर लिए और कमरे में दाखिल हुई, जहां बीमार नीरज उस का इंतजार कर रहा था. और इंतजार कर रहे थे घर के काम. विदाई में जो कुछ भी मिला था उसे दिखाने के अलावा दामिनी ने नीरज से कुछ न बताया. नीरज की बीमारी के कारण करीब 3 सालों से दामिनी अपना बिस्तर अलग कर चुकी थी. आज अपने बिस्तर के खालीपन में अचानक से निखिल की मौजूदगी देखने लगी. सालों बाद उस ने अपने अंगों को छूआ और सहलाया था. औरत के लिए शरमोहया जहां आभूषण होते हैं वहीं उस की जरूरत उसी गहने को बोझ बना देती है और बोझ तो ज़रूरत पड़ने पर उतार कर रख दिए जाते हैं.

कई दिनों की दिमागी हलचल के बाद दामिनी उस बोझ को अपने से अलग करने के लिए तैयार हो गई थी. वह निखिल से मिलने के बहाने ढूंढने लगी. गाड़ी में जब अपना दुखड़ा निखिल को सुना रही थी तो उसी दरमियान अपने परिवार की गोपनीयता की शपथ भी दिला दी थी, साथ ही, मोबाइल नंबर का आदानप्रदान भी कर चुकी थी.

दामिनी ने निखिल को कौल किया और मिलने की गुजारिश की. निखिल ने मददगार इंसान बनने की नीयत से मिलना स्वीकार कर लिया. करीब 2 घंटे के बाद वे दोनों एकदूसरे के आमनेसामने थे.

दामिनी ने उस की पसंद को ध्यान में रखते हुए हलके गुलाबी रंग का सूट पहना था. हलका मेकअप जैसा वह पहले किया करती थी, जिस का कभी निखिल दीवाना हुआ करता था. आज वह केवल निखिल की परीक्षा लेना चाहती थी. जबकि निखिल केवल हमदर्दी जताने के लिए उस के बुलाने पर आया था. जितनी भी देर बातें हुईं, उन बातों में दामिनी केवल यही ढूंढती रही कि कब निखिल उस की तारीफ करेगा और उन नज़रों से निहारेगा जिन से निहारा करता था.

“तुम आज भी लेडी डायना ही लगती हो,” निखिल ने कहा.

दामिनी की बांछें खिल गईं, निखिल को सबकुछ याद है, वह खुश हो गई. इस वाक्य ने दामिनी को एक मजबूत आधार दे दिया था. इसी आधार के सहारे वह अपने प्रेम की नैया को मझधार में ले जाने के लिए तैयार मान रही थी. दामिनी का विवेक उस के बोझ के तले चेतनाशून्य हो चुका था जिस में नलिनी का वजूद धूमिल हो चुका था.

मिलन का सिलसिला औपचारिकता की दीवार पार कर लगाव वाले घेरे में आ चुका था. जिस की शुरुआत आर्थिक मदद के नाम पर एक अच्छी कंपनी में नौकरी दिलवाने से हुई थी.

उधर, नलिनी विश्वास और भरोसे में बंधी पति में आ रहे बदलाव को नजरअंदाज कर रही थी और यही मानती रही कि व्यस्तता की वजह से निखिल ज्यादा बाहर रह रहे हैं. आखिर बच्चों के भविष्य की जिम्मेदारी भी तो है.

इधर, अपने शरीर से मजबूर नीरज ने तो अपने होंठ सालों पहले से सिल लिए थे. घर में आय का जरिया दामिनी ही थी. फर्क इतना ही पड़ा था कि पहले दामिनी जैसे घर में रहती थी वैसे अब बाहर निकल जाती थी लेकिन अब उस के निकलने के बाद भी कमरा लेडी डायना की खुशबू सा महकता रहता था.

नीरज शरीर से मजबूर था, दिमाग से नहीं लेकिन अपने हालात पर तरस खाने के अलावा कुछ भी नहीं कर पा रहा था. दामिनी तो अपनी सोचीसमझी योजना के तहत काम कर रही थी लेकिन निखिल पहला प्यार, जो कि इंसान कभी भूलता नहीं है’, की गिरफ्त में आ रहा था. धीरेधीरे उसे भी दामिनी में नमक वाला स्वाद आने लगा था, जिस के बगैर हर नमकीन व्यंजन अधूरा होता है.

“तुम केवल उम्र में मुझ से छोटे हो, बाकी हर क्षेत्र में मुझ से अव्वल,” एक दिन बातों ही बातों में दामिनी ने कहा.

“अपनी तारीफ भला किस को अच्छी नहीं लगती,” जवाब में निखिल ठहाका लगा कर हंसने लगा, साथ ही पूछ बैठा था, “वह कैसे?”

“बस, कह दिया जो सही लगा.”

“कुछ तो वजह होगी न.”

“हर बात की वजह नहीं होती.”

“ऐसे कैसे, होती है?”

“अच्छा, फिर यह बताओ कि हमारेतुम्हारे मिलने की वजह क्या है?” दामिनी अब अपनी सोच पर उस की इच्छा की मोहर लगाना चाहती थी.

“सच कहूं या झूठ?”

“क्यों, तुम झूठ भी बोलते हो?”

निखिल फिर हंसा, “अब तक तो नहीं बोलता था लेकिन अब बोलने लगा हूं. जब तुम से मिलने के लिए निकलता हूं तो घर में झूठ बोल कर आता हूं.” यह कहतेकहते संजीदा हो गया था निखिल.

दामिनी को निखिल के एकएक शब्द में अपनी जीत नज़र आ रही थी.

निखिल थोड़ी देर रुका, फिर बोला, “वैसे, अच्छा तो नहीं लगता लेकिन तुम्हारी बहन बहुत भोली है.”

“भोली नहीं, समय की बलवान है, यही वजह है कि जो कुछ मेरा था वह सब उस का हो चुका है. तुम भी तो पहले मेरे थे,” भावावेश में मन की बात कह गई दामिनी और निशान बिलकुल सही लगा.

बदले में निखिल ने उसे अपने सीने से लगा लिया था.

सीने से लगते ही दामिनी के अंदर सोई हुई औरत जाग गई जिस की वासना विगत कुछ वर्षों से अपूर्ण थी. उस ने पकड़ को और मजबूत कर लिया. कुछ देर यों ही दोनों लिपटे रहे, अलग होने का मन किसी का न था. तभी नलिनी के फोन ने दोनों को अलग होने की वजह दे दी. आज पहली बार पूछा गया था, “स्कूल की टाइमिंग तो 9 से 5 होती है न, 9 से 9 कब से हो गई?”

जवाब में निखिल की जबान लड़खड़ा गई और सच बाहर आ गया.

“दामिनी के साथ हूं.”

“क्यों, सब ठीक तो है न?” नलिनी ने चिंता जताते हुए पूछा.

“हां, कुछ दवाइयां खरीदवानी थीं, बाद में बात करता हूं.” फोन रख दिया गया.

मैसेज आया, ‘थैंक यू, टेक योर टाइम.’ लव वाला इमोजी भी था.

दोनों बेमन से अलग हुए और अपनीअपनी राह चले गए.

अब निखिल अपनी जिंदगी में दामिनी की कमी को महसूस करने लगा था और दामिनी तो पहले से ही घर में मनहूसियत और नीरसता को कोसती थी.

निखिल से लिपटने के बाद से ही मन में उठ रही तरंगों को दबा नहीं पा रही थी. 10 बजे के करीब घर आई. आज नीरज बिस्तर पर नहीं, दरवाजे पर उस का इंतजार कर रहा था. उसे देखते ही जलभुन गई. आंतों में आग लगी, तो मेरी याद आई होगी. मेरे तन में जो आग लगी है उस का क्या? लेकिन मन की आवाज मन में ही दम तोड़ गई.

“खाना बना देती हूं, बस 5 मिनट इंतजार करो,” दामिनी ने कंधे से औफिसबैग उतार कर रखते हुए कहा.

“नहीं, भूख नहीं लगी. बस, तुम्हारी चिंता सता रही थी,” नीरज ने मुसकराते हुए कहा.

“मेरी चिंता, तुम्हें कब से सताने लगी?” दामिनी बिफर पड़ी.

“ऐसा न कहो, जब तुम से शादी हुई थी, तुम ने भी देखा था मेरा रुतबा क्या था.”

“अच्छा, तो तुम भी मानते हो कि मैं मनहूस हूं और मैं ने आते ही तुम्हारी जिंदगी उजाड़ दी,” दामिनी ने मुड़ कर जवाब दिया.

“ऐसा मैं ने कब कहा?”

“मेरा मुंह न खुलवाओ.”

“तुम गुस्से में हो, हम बाद में बात करेंगे,” नीरज ने अपने कमरे की तरफ जाते हुए कहा.

“हुंह,” कहते हुए वह भी पैर पटकती रसोई में चली गई.

सब्जी धोते वक्त उंगलियों को सहलाया, निखिल की छुअन को महसूस किया. मन में हलचल मचने लगी. मन कर रहा था उस पल को फिर से जी ले. उस का जिया उस पल को जीने के लिए बेताब हो रहा था. एक घंटे के अंदर नीरज को खाना खिला कर दवाई खिला चुकी थी.

“थोड़ी देर मेरे पास बैठो न,” नीरज ने उसी हथेली को पकड़ा जिसे कुछ देर पहले निखिल ने छुआ था.

उस ने इस तरह खींचा कि जैसे निखिल के निशान मिट जाएंगे और ऐसा करते वक्त अंगूठी से नीरज के होंठों पर चोट लग गई, खून निकल आया. खून देख कर सारा प्यार जाता रहा.

“सौरीसौरी, गलती हो गई. मैं ने जानबूझ कर नहीं किया,” दामिनी ने खून पोंछते हुए कहा.

“हां, मुझे पता है,” नीरज रोंआसा हो मुंह फेर कर लेट गया.

दामिनी भी अपने बिस्तर पर आ कर लेट गई. वह बिस्तर पर आते ही निखिल के साथ बिताए पलों में खो गई. उस से लिपट कर अपनी प्यास बुझा लेना चाहती थी. उन्मादित हो रही थी लेकिन उस के उन्माद में नीरज के होंठों का खून फैल रहा था. दो अलगअलग चित्र एक के बाद एक आ-जा रहे थे. एक तरफ अपने निखिल से लिपट कर स्वयं में पूर्णता महसूस कर रही थी तो दूसरी तरफ अंगूठी की वजह से नीरज का खून. दोनों चित्र एकदूसरे से अलग कर रहे थे. जब किसी एक भावुक पल को जी न सकी तो रुलाई छुट गई.

पंडित को, मां को भरभर कोसा. तब भी शांति नहीं मिली, तो मेज़ पर रखा गिलासभर पानी स्वयं पर उड़ेल लिया.

निखिल से अलग हो कर लौटते समय उस ने मन बना लिया था कि अगले दिन वह अपने मन की बात बता देगी कि ‘अपना पुराना हक वापस पाना चाहती है, अपना पहला प्यार जीना चाहती है’ और उसे कहीं न कहीं यकीन था कि निखिल भी इस बात के लिए राजी हो जाएगा.

जिस तरह से निखिल ने उसे गले से लगाया था वह 5 साल पुराने एहसास पर भी भारी था. इसी सुखद एहसास में लेटेलेटे न जाने कब सपने में निखिल उस के पास आया. दामिनी सारी शरमोहया छोड़ कर उसे अपना बना लेने का आग्रह करने लगी. निखिल जाने लगा.

‘तुम मेरा पहला प्यार हो, मैं तुम्हें नहीं भूल सकती. तुम मुझे अपना लो.’

‘नहीं, मैं यह गलती नहीं कर सकता. तुम अब किसी और की हो.’

‘नहीं, निखिल नहीं. मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी, मुझे अपना लो.’ और वह उस के कदमों में गिर जाती है. फिर उठ कर निखिल को बेतहाशा चूमने लगती है. निखिल विरोध करता है. दामिनी उसे पाने के लिए बेचैन हो रही थी. खुद से लड़ रही थी. पसीने से तरबतर हो चुकी थी.

“दामिनी, दामिनी,” नीरज ने झकझोर कर उठाया और गले से लगाने की कोशिश करने लगा, “कोई बुरा सपना देखा है तुम ने?” और उसे सहलाता रहा. नीरज खुद बुखार से तप रहा था.

“अरे, तुम्हें तो बुखार है,” दामिनी ने खुद को उस की पकड़ से दूर करते हुए कहा.

“यह तो हर रोज होता है लेकिन तुम, तुम क्यों परेशान हो?”

“पता नहीं,” दामिनी ने पानी पीते हुए कहा.

“मैं तो तुम्हारे सिंदूर के नाम पर जी रहा हूं वरना डाक्टर साहब ने तो कब का जवाब दे दिया है. मैं ने तुम्हें कभी नहीं बताया, मेरा तुम से विवाह करने का उद्देश्य केवल इतना था कि मैं कुंआरा नहीं मरना चाहता था. मैं जानता हूं कि तुम्हारे साथ नाइंसाफी हुई है, ऐसे व्यक्ति को विवाह करने का कोई हक नहीं जिस की झोली में चंद सांसें बची हों. लेकिन पंडित जी ने कहा था कि लड़की के सिंदूर के सहारे मैं जी सकता हूं, शायद इसीलिए मैं अब तक जिंदा हूं,” नीरज एक सांस में बोल गया.

“और तुम मान गए. इतना भी नहीं सोचा कि जब वह बिस्तर पर अपना हक मांगेगी तो क्या दूंगा,” दामिनी बोलती चली गई.

“मैं तुम्हारे सहारे जी रहा हूं, तुम मेरे लिए बहुत भाग्यशाली हो. तुम मुझे कभी छोड़ कर मत जाना, दामिनी,” कहते हुए नीरज दामिनी से लिपट गया.

“चलो, तुम्हें दवाई देती हूं,” दामिनी ने अलग करने की कोशिश करते हुए कहा.

“नहीं, ऐसे ही रहने दो न. तुम से लिपट कर अच्छा लग रहा है.”

“ठीक है, पहले दवा खा लो, फिर लिपट जाना,” दवा खिला व पानी पिला कर उसे लिटा दिया और उस की बगल में खुद भी लेट गई.

लेकिन नींद आंखों से कोसों दूर थी. एक तरफ अनैतिकता थी लेकिन सुख था, दूसरी तरफ सुहाग लेकिन संभोग नहीं. निर्णय उसे ही लेना था.

उस के साथ धोखा हुआ था और धोखे का बदला धोखा से दे सकती थी. उस पंडित को जान से मार देना चाहती थी जिस ने नीरज को यह समझाया था कि अगर वह शादी कर लेगा तो उस की जान बच सकती है लेकिन वह भूल गया कि ऐसा कर के वह किसी और की खुशियों में आग लगा रहा था. दूसरी तरफ वह जिस के साथ धोखा करना चाहती थी वह उस की छोटी बहन थी. एक गलत कदम उस की बहन के घर को उजाड़ देगा. असमंजस में पड़ी दामिनी नीरज के बाल सहला रही थी. नीरज मीठी मुसकान लिए उस से लिपट कर सो रहा था.

40+ में ऐसे बनाएं सैक्स लाइफ मजेदार

जैसेजैसे उम्र बढ़ती है वैसेवैसे लोगों में सैक्स करने की ऐक्साइटमैंट खत्म होने लगती है. ऐसे में अकसर 40 की उम्र के बाद लोग अपनी सैक्स लाइफ पर ध्यान नहीं दे पाते और इस के कई कारण हो सकते हैं.

दरअसल, लोग इस उम्र में अपने बच्चों के कैरियर को ज्यादा गंभीरता से देखते हैं और अपना ज्यादातर समय बच्चों को समझाने में या उन की चिंता करने में लगा देते हैं.

ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप 40 की उम्र के बाद भी अपनी सैक्स लाइफ में ऐक्साइटेड फील करें. तो चलिए, हम आप को बताते हैं कुछ ऐसे टिप्स जिस से आप अपनी सैक्स लाइफ को बढ़ती उम्र के बाद भी रोमांच से भर सकते हैं.

ट्राई करें नईनई चीजें

अकसर शुरुआती दिनों में तो पतिपत्नी बहुत सी ऐसी चीजें ट्राई करते हैं जिस से कि उन की सैक्स लाइफ में रोमांच बना रहे पर धीरेधीरे वे यह सब ट्राई करना बंद कर देते हैं. ऐसे में जरूरी है कि पतिपत्नी को सैक्स में कुछ न कुछ नयापन जरूर लाना चाहिए जैसेकि नई पोजिशंस ट्राई करना, सैक्सी कपड़े पहनना, अपने पार्टनर की पसंद का ध्यान रखना और टूर पर जाना.

जरूरी है छेड़छाड़

पतिपत्नी की रिश्ता बेहद कमाल का होता है जिस में वे दोनों एकदूसरे के हमसफर के साथसाथ एकदूसरे के अच्छे दोस्त भी होते हैं. तो ऐेसे रिश्ते में एकदूसरे के साथ कभीकभी छेड़छाड़ भी जरूर करनी चाहिए जैसेकि अगर किचन में पत्नी कुछ काम कर रही है तो पीछे पति को जा कर उसे गले लगा लेना चाहिए या फिर चुंबनों की बौछार कर देनी चाहिए.

ऐसे ही अगर पति काम से घर आता है तो पत्नी को उस के लिए बढ़िया सी कोई डिश बनानी चाहिए और घर का माहौल रोमांटिक रखना चाहिए जिस से कि पति घर आते ही खुश हो जाए.

एकदूसरे के साथ क्वालिटी टाइम बिताएं

ऐसा देखा गया है कि 40 की उम्र के बाद पतिपत्नी एकदूसरे के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते बल्कि सिर्फ अपने बच्चों या अपने काम में लगे रहते हैं तो ऐसे में उन्हें इस बात का खास खयाल रखना चाहिए कि उन्हें एकदूसरे के साथ घूमने भी जाना चाहिए और अकेले में समय भी बिताना चाहिए.

ओरल सैक्स भी है जरूरी

हर इंसान का स्वभाव होता है कि उसे नई चीजें ट्राई करना बेहद अच्छा लगता है और शादी के कुछ सालों बाद अगर सैक्स में कुछ नयापन न आए तो सैक्स लाइफ बोरिंग होने लगती है. ऐसे में आप ओरल सैक्स को अपना कर अपनी सैक्स लाइफ में रोमांच का तड़का लगा सकते हैं.

सैक्स से ज्यादा फोकस रोमांस पर करना चाहिए और अपने पार्टनर के साथ जम कर किसिंग, कडलिंग, आदि करना चाहिए जिस से सैक्स लाइफ हमेशा रोमांटिक रहे.

बुराई में अच्छाई : धांसू आइडिया में अच्छाई का शहद

आवश्यकता आविष्कार की जननी है. बचपन में मास्टर साहब ने यह सूत्रवाक्य रटाया था मगर इस का अर्थ अब समझ में आया है. दरअसल, लोकतंत्र में बाबू, अफसर, नेता सभी आम जनता की सेवा कर मेवा खा रहे हैं. लेकिन बेचारे फौजी अफसर क्या करें? उन की तो तैनाती ही ऐसी जगह होती है जहां न तो ‘आम रास्ता’ होता है न ‘आम जनता’ होती है. ऐसे में बेचारे कैसे करें किसी की सेवा और कैसे खाएं मेवा? मगर भला हो उस वैज्ञानिक का जिस ने ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है’ नामक फार्मूला बनाया था. फौजियों के बीवीबच्चे भी खुशहाल जिंदगी जी सकें, इस के लिए जांबाजों ने मलाई जीमने के नएनए फार्मूले ईजाद कर डाले. ऐसेऐसे जो ‘न तो भूतो और न भविष्यति’ की श्रेणी में आएं.

एक बहादुर अफसर ने तो अपने ही जवानों को टमाटर का लाल कैचअप लगा कर लिटा दिया और फोटो खींचखींच कर अकेले दम दुश्मनों से मुठभेड़ का तमगा जीत लिया. वह तो बुरा हो उन विभीषणों का जिन्होंने चुगली कर दी वरना अब तक वीरता के सारे पुरस्कार अगले की जेब में होते. कुछ लोगों को इस मामले में बुराई नजर आती है. मगर मुझे तो इस में ढेरों अच्छाइयां नजर आती हैं (जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी वाला मामला). भारतीय जवानों की वीरता, अनुशासन, वफादारी और फरमांबरदारी के किस्से तो पुराने जमाने से मशहूर हैं. वे अपने अफसरों के हुक्म पर हंसतेहंसते प्राण निछावर कर देते हैं. कभी उफ नहीं करते. अब अफसर ने कहा, प्राण निछावर करने की जरूरत नहीं, बस, लाल कैचअप लगा कर मुरदा बन जाओ. बेचारों ने उफ तक नहीं की और झट से मुरदा बन फोटो खिंचवा ली. है किसी और सेना में अनुशासन की इतनी बड़ी मिसाल?

बालू से तेल निकालने के किस्से तो आप ने बहुत सुने होंगे लेकिन चाइना बौर्डर पर टाइमपास कर रहे कुछ अफसरों ने पानी से तेल निकाल ईमानदारी के सीने पर नए झंडे गाड़ दिए हैं. अगलों ने फौजी टैंकों के लिए पैट्रोल पहुंचाने वाले टैंकरों में शुद्ध जल सप्लाई कर दिया. बाकायदा हर चैकपोस्ट पर टैंकरों की ऐंट्री हुई ताकि कागजपत्तर पर हिसाब पक्का रहे. उस के बाद गश्त लगाते लड़ाकू टैंक कितने किलोमीटर चले, उन का प्रति लिटर ऐवरेज क्या है और वे कितना पैट्रोल पी गए, यह या तो ऊपर वाला जानता है या जुगाड़खोर अफसर. कुछ लालची ड्राइवरों के चलते हिसाबकिताब गड़बड़ा गया वरना सबकुछ रफादफा रहता और चारों ओर शांति छाई रहती.

कुछ लोगों को इस में भी बुराई नजर आती है. लेकिन, मुझे तो इस में भी ढेरों अच्छाइयां नजर आती हैं. ऊपर वाला न करे लेकिन अगर कभी दुश्मन की सेना आप के चैकपोस्ट पर कब्जा कर ले और वहां आप के डीजलपैट्रोल से भरे टैंकर खड़े हों तो क्या होगा? आप का ही तेल भर कर वह आप के सीने पर चढ़ी चली आएगी. लेकिन अगर टैंकरों में पानी

भरा हो तो बल्लेबल्ले हो जाएगी. गलतफहमी में दुश्मन मुफ्त का तेल समझ उन टैंकरों से पानी अपने टैंकों में भर लेंगे और थोड़ी दूर चलने के बाद उन के टैंक टें बोल जाएंगे. है न बिलकुल आसान तरीका दुश्मन को चित करने का.

ये सब तो हुई पुरानी बातें. हाल ही में प्रतिभाशाली फौजियों ने जन कल्याण का ऐसा फार्मूला ईजाद किया कि दांतों तले उंगलियां दबाई जाएं या उंगलियों से दांत दाबे जाएं, तय करना मुश्किल है. किसी भले आदमी ने कानून बना दिया कि कश्मीर में गोलाबारूद, विस्फोटक का पता बताने वालों को

30 से 50 हजार रुपए का इनाम दिया जाएगा. बस, लग गई लौटरी हाथ. अगलों ने खाली डब्बों में काले रंग की बालू भर दी और तारवार जोड़ कर सुरक्षित स्थानों पर रखवा दिया. उस के बाद? अरे भैया, उस के बाद क्या पूछते हो? जानते नहीं कि इतनी बड़ी फौज का इतना बड़ा नैटवर्क चलाने के लिए मुखबिरों की टीम बनानी बहुत जरूरी है और उस से भी ज्यादा जरूरी है मुखबिरों को खुश रखना. बेचारे जान जोखिम में डाल कर फौज के लिए सूचनाएं लाते हैं. अब नियमानुसार तो नियम से ज्यादा रकम मुखबिरों को दी नहीं जा सकती और उतने में मुखबिर काम करने को राजी नहीं होते. इसीलिए अगलों ने अपने मुखबिरों से ही उन नकली विस्फोटकों के छिपे होने की सूचना दिलवा दी और फटाक से छापा मार उसे बरामद करवा दिया. बस, 30 से 50 हजार रुपए तक का इनाम पक्का. अब भैया, मुखबिर कोई बेईमान तो होते नहीं जो सारा माल खुद हड़प जाएं. सुना है बेचारे आधा इनाम पूरी ईमानदारी से हुक्मरानों को सौंप देते हैं ताकि उन के भी परिवार पलते रहें वरना खाली तनख्वाह में आजकल होता क्या है.

कुछ लोगों को इस में भी बुराई नजर आती है. (पता नहीं इस देश के लोग इतनी संकीर्ण मानसिकता वाले क्यों हैं?) मगर मुझे तो इस में अच्छाइयों का महासागर नजर आता है. कुछ अच्छाइयां गिनवा देता हूं. पहली बात ऐसी घटनाओं से मुखबिरों और उन के खास अफसरों के दिन बहुरे, ऊपर वाला करे ऐसे ही सब के दिन बहुरें.

दूसरी बात यह है कि इस से पाकिस्तान का असली चेहरा  सामने आ गया. वह कैसे? अरे भैया, इतना  भी नहीं समझे? देखो, एक जमाने से पूरी दुनिया आरोप लगा रही है कि इंडिया में जो बमवम दग रहे हैं उस के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, जबकि वहां के बेचारे निर्दोष हुक्मरान एक जमाने से दुहाई दे रहे हैं कि भारत में चल रहे आतंकवाद में उन का कोई हाथ नहीं है. अब इस घटना से यह साफ हो गया है कि बमवम हमारे ही फौजी रखवा रहे हैं. इस से पाकिस्तान का चेहरा बेदाग साबित हो गया. दुनिया वालों को उस पर तोहमत लगाना छोड़ देना चाहिए.

अगर थोड़ी देर के लिए मान लिया जाए कि आईएसआई वालों ने बिना अपने मासूम हुक्मरानों की जानकारी के दोचार बम अपने एजेंटों से रखवा दिए होंगे तो उन में भी आपस में सिरफुटौव्वल हो जाएगी. वह कैसे? अरे भैया, आप तो कुछ भी नहीं समझते. सीधी सी बात है, भारतीय सेना जब दनादन विस्फोटक बरामद करेगी तो आईएसआई वाले अपने एजेंटों को हड़काएंगे कि तुम लोग एक भी काम ढंग से नहीं करते. ऐसी जगह बम लगाया जो बरामद हो गया. इस के अलावा हम ने बारूद दिया था 2 बम लगाने का और तुम लोगों ने आधाआधा लगा दिया 2 जगह. तभी एक भी ढंग से नहीं फटा. बेचारे एजेंट अपनी सफाई देते रहें लेकिन उन की सुनेगा कोई नहीं. ताव खा कर वे आपस में लड़ मरेंगे. आखिर वे भी महान तालिबानी गुरुओं के महान चेले हैं. कोई ऐरेगैरे नहीं. बताइए, अगर ऐसा हुआ तो मजा आ जाएगा या नहीं? खामखां दुश्मन आपस में लड़ मरेंगे और अपनी पौबारह हो जाएगी. इसी को कहते हैं कि हींग लगे न फिटकरी और रंग निकले चोखा.

तो भैया, देखा आप ने, फौजी जो भी करते हैं देशहित में करते हैं. देशहित में कई बार उन को अपनी असली योजना गुप्त रखनी पड़ती है. इसलिए उन के कामों को ऊपरी नजर से मत देखिए. गहराई में जा कर देखेंगे तो आप को भी उन की हर हरकत में अच्छाई नजर आएगी. जैसे, मुझे नजर आ रही है. इसलिए, अब जरा जोर से बोलिए, जयहिंद.

हल्ला करने का नतीजा रेप जैसी घटनाओं के डर के कारण लड़कियों को घर की कैद

कोलकाता में महिला डाक्टर से रेप की वारदात ने सभी को झकझोर कर रख दिया है, जो कुछ भी हुआ वह वाकई में दर्दनाक था. लेकिन अब उस का फायदा उठा कर महिलाओं को घर में कैद करने की साजिश ने जोर पकड़ लिया है. ताकि महिलाएं घर में रह कर सिर्फ चूल्हा चौका संभालें. पुरुषों के साथ कंधें से कंधा मिला कर न चल पाएं. पहले भी यही कह कर महिलाओं को डराया जाता था कि घर से बाहर जाओगी तो लूट ली जाओगी, रेप का डर है और न जाने क्याक्या कह कर उन्हें धमकाया जाता रहा है. इस से तो अच्छी भली औरतें डर ही जाएंगी कि बाहर पता नहीं क्या हो रहा है, हमारा घर से बाहर निकलना सेफ नहीं है.

जबकि सच यह है कि बहुत थोड़े से लोगों में इतनी हिम्मत होती है कि वह लड़की के साथ जबरदस्ती संबंध बनाएं. लेकिन इस तरह की घटनाएं होने पर हल्ला इस तरह मचा दिया जाता है कि बाहर का माहौल बहुत खतरनाक है जगहजगह दरिंदगी हो रही है. नतीजन लोग डर जाते हैं.

रिस्क तो हर जगह है

जहां तक बाहर जाने पर रिस्क की बात है वो तो हर जगह है. जो लोग सेना में होते हैं उन्हें भी कभी भी लड़ाई करते वक्त उन के हाथपैर टूटने का डर होता है, गोली लगने और मारे जाने का रिस्क होता है, यही बात पुलिस वालों के साथ भी है, तो क्या इस डर से वे अपनी नौकरी करना छोड़ देंगे, नहीं न, तो फिर लड़कियों को आप क्यों कहते हैं कि हाय तुझे कुछ हो न जाए.

महिलाओं का नौकरी करना धर्म के खिलाफ

2017 में भी देवबंद के मौलाना व तंजीम उलेमा-ए-हिंद के प्रदेश अध्यक्ष नदीम उल वाजदी ने मुसलिम महिलाओं की नौकरी को ले कर विवादित बयान दिया था, जिस का काफी विरोध किया गया था.

वाजदी ने कहा था कि महिलाओं को सरकारी या गैर सरकारी, किसी भी तरह की नौकरी नहीं करनी चाहिए. वाजदी के मुताबिक महिलाओं का नौकरी करना इसलाम के खिलाफ है. घर का खर्चा उठाने की जिम्मेदारी मर्द की होती है, जबकि महिलाओं का काम घर और बच्चों की देखभाल करना है.

वाजदी का कहना है कि महिलाओं का नौकरी करना उसी सूरत में जायज है जब घर का खर्च उठाने वाला कोई मर्द न हो, वह चेहरे सहित खुद को ढक कर काम करे.

नौकरी ऐसी जगह होनी चाहिए जो केवल महिलाओं के लिए हो और गैर-महरम पुरुषों के साथ मेलजोल नहीं होना चाहिए. काम के दौरान उसे पूर्णतः शरई हिजाब का पालन करना चाहिए. काम पर जाते समय उसे कोई निषिद्ध कार्य नहीं करना चाहिए, जैसे ड्राइवर के साथ अकेले रहना, या परफ्यूम लगाना, जहां गैर-महरम उसे सूंघ सकें.

सिर्फ मुसलिम नहीं बल्कि हिंदू धर्म के ठेकेदार भी महिलाओं को घर बैठने और बच्चों गृहस्थी की गाड़ी चलने पर जोर देते हैं. क्योंकि अगर महिलाएं काम गई तो इन की दुकानदारी चौपट हो जाएगी. फिर कहां महिलाओं इतना समय होगा की इन बाबाओं के पास जा कर चक्कर काटें. इसलिए ये लोग खुद नहीं चाहते महिलाएं घर से बाहर निकललें. इसलिए ऐसी घटनाओं के होने के बाद महिलाओं को घर में कैद करने की साजिश ये लोग करते हैं और अच्छे पढ़ेलेखे लोग इन की बातों में आ कर बेटियों को बाहर भेजने से कतराने लगते हैं.

श्रम बल में पिछड़ती महिलाएं

धर्म के ठेकेदारों के द्वारा इस तरह का माहौल बना दिया जाता है कि पारंपरिक तय भूमिका, लैंगिक भेदभाव और पितृसत्ता के कारण महिलाओं के लिए घर से बाहर निकल कर काम करना बहुत चुनौतीपूर्ण है. ये सब बाधाएं भारतीय महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी को सीमित करती है. चाहते हुए भी वे नौकरी नहीं कर पाती है या फिर पूर्णरूप से उस से जुड़ी नहीं रह पाती है.

द वायर में छपी जानकारी के अनुसार पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएलएस जुलाई 2021-जून 2022) के आंकड़े बताते हैं कि 29.4 प्रतिशत महिलाएं (15-49 उम्र) ही भारतीय श्रम बल में योगदान दे रही हैं. पुरुषों में यह दर 80.7 फीसदी है. भारत में ऐतिहासिक रूप से महिलाओं की श्रम बल में कमी रही है और इस का एक बड़ा कारण महिलाओं के लिए निर्धारित जेंडर रोल्स हैं. जेंडर के आधार पर तय की गई भूमिका के कारण महिलाओं से वे घरपरिवार को ज्यादा महत्व देने की अपेक्षा की जाती है.

हाल ही में 2024 में यूनिसेफ के द्वारा किए गए एक सर्वे से पता चला है कि भारतीय महिलाएं शिक्षा के तुरंत बाद शादी के बजाय नौकरी करना चाहती हैं पर उन की इच्छाओं को समझने वाला कोई नहीं है. यूनिसेफ के यूथ प्लेटफौर्म ‘युवाह’ और यू रिपोर्ट के द्वारा किए गए सर्वे में देश के 18-29 साल के 24,000 से अधिक युवाओं ने अपनी राय सामने रखीं. आउटलुक में प्रकाशित खबर के मुताबिक सर्वे के परिणाम में 75 फीसदी युवा महिलाएं और पुरुषों का मानना है कि पढ़ाई के बाद नौकरी हासिल करना महिलाओं के लिए सबसे जरूरी कदम है. इस से अलग 5 फीसदी से भी कम उत्तरदाताओं ने पढ़ाई के तुरंत बाद शादी की वकालत की है.

बाहर जौब करने व पढ़नेलिखने पर पाबंदी

इस तरह इन्हीं धर्म के ठेकेदारों की साजिश का नतीजा कि लड़कियों के बाहर जौब करने व पड़नेलिखने पर पाबंदी लगा है. इस बारे में उत्तर प्रदेश के बड़ौत की रहने वाली आस्था का कहना है, “मैं अपने आगे की पढ़ाई के लिए बेंगलुरु जाना चाहती थी और मेरे घरवाले मान भी गए थे लेकिन अब इस घटना के बाद उन्होंने साफ कह दिया है कि पढ़ाई करनी है तो या तो अपने ही शहर में करो या फिर किसी रिश्तेदार के यहां रह कर करो. हम तुम्हे इतने दूर अकेले भेजने का रिस्क नहीं ले सकते.” आस्था मायूस हो कर कहती हैं कि शायद मेरे सपने पूरे होने से पहले ही दब गए.

वहीँ अलीगढ़ के रहने वाले संदीप का कहना है कि “यह सच है हमें अपने बच्चों को बाहर भेजने से डर लगता है. हमें लड़कियों की शादी भी करनी है कुछ उल्टासीधा हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगें. और हां मुझे यह स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं है कि इस तरह की घटनाओं का असर हम पर पड़ता है. बड़े शहरों वालों के लिए ये आम बात होती होगी लेकिन हमें डरा देती हैं ऐसी खबरें.

लड़केलड़कियों की मदद करने से भी घबराते हैं

इस तरह का माहौल देख कर कोई लड़की किसी भी आदमी से बात करने में घबराती है. वही आदमी भी घबराता कि अगर मैं ने लड़की की हेल्प करने की कोशिश की और इस ने डर कर शोर मचा दिया तो मैं तो बेवजह ही मारा जाऊंगा. आज की तारीख में अगर कोई लड़की कहीं जा रही है या सड़क पर परेशान खड़ी है, तो आप उसे लिफ्ट देने के लिए भी नहीं पूछ सकते क्योंकि हो सकता है वह इस का कुछ और ही मतलब निकाल ले ओर शोर मचा दे.

समाज में आपसी विशवास कम होता जा रहा है

लोग आपस में एकदूसरे पर भरोसा नहीं करते, एकदूसरे को और उन के बच्चों को शक नजर से देखते हैं. लोग सगे रिश्तेदारों के यहां अपनी लड़कियों को छोड़ने से पहले 10 बार सोचते हैं. क्या यह सही है.

सैक्स वर्कर्स के पास जाने में शर्म कैसी

यह बात हम नहीं बल्कि खुद सैक्स वर्कर्स सामने आ कर कह रही हैं. आजकल सोशल मीडिया पर कुछ सैक्स वर्कर्स सामने आ कर अपील कर रही हैं कि बाहर काम पर जाने वाली लड़कियों के साथ इस तरह की हरकत करना सही नहीं है. आप हमारे पास आएं यह हमारा काम है. इस के बदले में हम कुछ पैसे ही तो लेते हैं. लेकिन हम आप के साथ सहयोग करने को तैयार हैं. वाकई वह सही कह रही है और खुद ऐसा कहने की पहल करना एक सराहनीय कदम है. जब इन लोगों को ऐसी दरिंदगी करते शर्म नहीं आती तो फिर सैक्स वर्कर्स के पास जा कर अपनी हवस मिटने में शर्म कैसी.

बेटों में बचपन से डाले संस्कार

लड़कियों के साथ बुरा होने की सजा आप लड़कियों को ही घर में बंद कर के क्यों दे रहे हैं. उन के बजाय एक बार जरा अपने लड़कों को घर में बंद कर के देखिए और उन्हें कहें तुम्हारे वजह से लड़कियां सुरक्षित नहीं है इसलिए तुम बाहर नहीं जाओगे. क्या आप ऐसा कर पाओगे. यह भी छोड़िए आप इतना ही कर लीजिए कि बचपन से अपने बेटों को लड़कियों की इज़्ज़त करना सिखाएं लेकिन उस के लिए आप को पहले खुद अपनी बीवी की इज्जत करनी पड़ेगी. क्योंकि आप को देख कर ही तो आप का बेटा तय करेगा कि उसे महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करना है. तो क्यों न इस के लिए शुरआत अपने ही घर से करें. जब आप के अपने घर की ही नींव कमजोर है तो सजा बेटियों को क्यों. सच तो यह है कि अगर समस्या की जड़ में जाएंगे तो दीवारें अपनी ही कमजोर निकलेंगी.

लड़कियों को नहीं, लड़कों को कंट्रोल करने जरुरत

महिलाओं को घर में कैद करना या उन के मन में डर बैठा देना कोई हल नहीं है. उन्हें बाहर जाने से रोकने से कोई हल नहीं निकलेगा क्योंकि कंट्रोल उन्हें नहीं लड़कों को करना है और वो काम आप के अपने घर से ही हो सकता है.

सब को अपने बच्चे के बारे में पता होता है कि वह कैसी प्रवृति का है, वह हिंसक है, महिलाओं पर गंदी नजर रखता है, गलत कामों में इन्वोल्व रहता है तो क्या आप इतनी हिम्मत जुटा पाएंगे कि अपने बेटों के खिलाफ कुछ बड़ा घटित होने से पहले ही पुलिस कंप्लेंट करा पाएं.

हिम्मत नहीं है, तो पैदा कीजिए. और अगर यह नहीं पता कि खुद का बेटा कैसा है तो पता करें बेटियों पर नज़र रखने से पहले बेटों पर नजर रखें और उन्हें खुद सही रास्ते पर लाएं. समस्या का हल बेटियों को घर में कैद करने से नहीं बल्कि अपने ही घर के बेटों पर नजर रख कर उन्हें सुधारने से निकलेगा.

कानूनों को भी सख्त करे सरकार

दूसरे, दरिंदगी हो रही है तो कानूनों को सख्त करें. लेकिन सरकारों को एकदूसरे पर आरोप लगा कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने से फुर्सत मिले तो वह कुछ ओर करें. यहां तक कि मौजूदा सरकार अपराधियों के साथ मिल कर उन के अपराध को छिपाने में उन का पूरा साथ देती है.

अब इस की वजह वोट बटोरना हो या कुछ और पर ऐसा हमेशा से होता आया है. तभी तो सबूतों से छेड़छाड़ कर इतनी आसानी से ये अपराधी कानून के चुंगल से बच निकलते हैं और हम अगली इसी तरह की कोई घटना होने का इन्तजार करते हैं ताकि फिर इसी तरह का रोना पीटना मचा कर लड़कियों की सुरक्षा पर सवाल उठा कर उन्हें डराधमका के घर में कैद कर दे.

जहां तक बात है कानूनों को सख्त करने की तो जब इन सरकारों के बिगड़े लाडले ही इस तरह की घटनाओं में इन्वोल्व होते हैं, तो फिर कानूनों को सख्त कर के अपने ही घर पर गाज थोड़े ही न गिराएंगे ये राजनेता.

औनलाइन शौपिंग की लत और ग्राहकों को ठगती कंपनियां

भागदौड़ भरी जिंदगी में आजकल ज्यादा से ज्यादा लोग घर बैठे औनलाइन शौपिंग पर निर्भर होने लगे हैं. आजकल ज्यादातर लोग औनलाइन चीजें खरीदते हैं. इंटरनेट और हर हाथ में फोन आ जाने से लोगों को औनलाइन शौपिंग का चस्का लग चुका है. औनलाइन शौपिंग करना भी एक तरह का एडिक्शन है और ये सब से ज्यादा एक्सेप्टेबल एडिक्शन में से एक माना जाता है.

हाल तो यह है कि घर में 100 ग्राम धनिया या एक ब्रेड भी चाहिए हो तो लोग औनलाइन और्डर करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कैसे औनलाइन खरीदारी के इस चस्के का फायदा उठा कर कंपनियां ग्राहकों के दिमाग से खेल कर उन की जेब खाली कर रही हैं?

लोकल सामान भी औनलाइन खरीदना नहीं है कोई समझदारी

गोबर के उपले, सब्जियां, मिट्टी के बर्तन, फूल, फल जैसे लोकल सामान जो आप के घर के आसपास आसानी से और कम दाम में मिल जाता है उन्हें भी औनलाइन और फटाफट डिलीवरी के साथ आप के घर पहुंचाने के पीछे भी कंपनियों की साजिश है. इस तरह के सामान को औनलाइन प्लेटफौर्म पर ज्यादा पैसे खर्च कर के खरीदना कोई समझदारी नहीं है.

सेल और डिस्काउंट का खेल

फेस्टिव सीजन में ई-कौमर्स वेबसाइट्स पर बेहतरीन सेल और औफर दिए जाते हैं. फेस्टिव सीजन के नाम पर सेल सब को अट्रैक्ट करती है. त्योहारों के आने के पहले ही औनलाइन शौपिंग प्लेटफौर्म पर सेल सेल ही सेल दिखाई देने लगती है. लेकिन इन सेल्स और डिस्काउंट से सिर्फ कंपनियों का ही फायदा होता है. कंपनियां अपने प्रोडक्ट की एमआरपी बढ़ा कर डिस्काउंट देने का दिखावा करती हैं. जैसे- कोई प्रोडक्ट 1000 रुपए का है तो पहले उस की एमआरपी 2000 रुपए कर दी जाएगी फिर उस पर 500 रुपए का डिस्काउंट मिलेगा.

इस तरह कंपनी को न सिर्फ 500 रुपए का फायदा होगा बल्कि डिस्काउंट के चक्कर में ज्यादा लोग उस प्रोडक्ट को खरीदेंगे. इस के अलावा सेल के नाम पर भी कंपनियां अपना पुराना और जल्द एक्सपायर होने वाला माल भी बेचती हैं. डिस्काउंट और सेल देख कर कस्टमर उन सामानों को भी खरीद लेते हैं जिन की उन्हें उस समय जरूरत नहीं होती.

यूजर का भरोसा जीतने की तकनीक

कंपनियां कभी भी सीधेसीधे प्रोडक्ट या सर्विस नहीं बेचती हैं बल्कि ऐसा करने के लिए वो कैशबैक, ईजी रिटर्न जैसी पौलिसी के बारे में बता कर यूजर का भरोसा जीतती हैं. प्रोडक्ट की क्वालिटी से जुड़े रिव्यूज दिखाना या ये बताना कि कितने लोगों ने उन की सर्विसेज को खरीदा है ये यूजर का भरोसा जीतने की तकनीक है. ज्यादातर सिर्फ उन चीजों पर भारी छूट होती है जिन की बिक्री कम होती है.

ऐसे छूट सिर्फ त्योहारी सीजन में ही देखने को मिलती है. क्योंकि इस वक्त लोग सामान खरीदना पसंद करते हैं और तो और बंपर छूट का समय फिक्स कर दिया जाता है ताकि लोग उस समय में सामान खरीदने में देरी न करें. जैसे- किसी सामान में छूट दिवाली तक ही रहेगी उस के बाद इस की कीमत बढ़ जाएगी. ऐसा होने पर लोग तय तारीख तक उस सामान को खरीद लेते हैं और कंपनियों का मतलब पूरा हो जाता है.

औनलाइन टैक्सी ट्रांसपोर्ट कंपनियों की लूट

औनलाइन टैक्सी ट्रांसपोर्ट कंपनियां भी लूट मचा कर कस्टमर की जेब खाली कर रही हैं. ओला, उबर जैसी कंपनियां बरसात में लोगों से 4 से 5 गुना ज्यादा किराया वसूल रही हैं. कई बार ओला उबर में जब सवारी अपने पिकअप प्वाइंट से सवार होती हैं तो उन्हें कम किराया दिखा कर बैठा लिया जाता है, लेकिन जैसे ही ड्रोप प्वाइंट आता है कंपनियां सरचार्ज जोड़ कर 80 से 100 रुपए ज्यादा की डिमांड करने लगती हैं.

‘Price May Vary’ या ‘Fare May Vary’लिख कर वेटिंग टाइम, ट्रैफिक, बीच राइड एड्रैस में बदलाव या फिर तयशुदा रूट से अलग कोई और रास्ता ले कर मनमाने दाम ले कर ग्राहकों को लूटा जा रहा है. बेंगलुरु की एक घटना में एक कालेज छात्र को बेंगलुरु एयरपोर्ट से शहर की एक लोकेशन तक का ओला कैब का किराया शुरू में 730 रुपए दिखाया गया लेकिन बाद में यह बढ़ कर 5,194 रुपए हो गया.

सोचीसमझी रणनीति से दिखाए जाते हैं एड

आपने नोटिस किया होगा औनलाइन सर्फिंग करते वक्त आप को ऐसी चीजों के विज्ञापन दिखाई देते हैं जिन्हें आप लेने की सोच रहे हैं या महज जानकारी जुटाने भर के लिए आपने जिन्हें देखा है. बारबार इस तरह के विज्ञापन देखने से आप के दिमाग को ये लगने लगता है कि आप को उस की जरूरत है और आप वो सामान खरीद लेते हैं.

मेल, मैसेज और नोटिफिकेशन का गेम

ईकौमर्स कंपनियां ग्राहकों को फंसाने के लिए बारबार मैसेज नोटिफिकेशन भेजती हैं कि “आप की मनपसंद ड्रैस अब कम कीमत पर या आपने जिस ड्रैस को देखा था उसे 200 लोगों ने खरीद लिया लास्ट पीस बचा है. जैसे मेल मैसेज और नोटिफिकेशन भेज कर भी कस्टमर को बेवकूफ बनाया जाता है और ग्राहक इन के झांसे में आ कर ऐसे वक्त में तुरंत उस प्रोडक्ट को खरीद लेते हैं.

इसी तरह ट्रैवल साइट पर भी ग्राहकों की जेब खाली करने के लिए भी इसी तरह की ट्रिक्स लगाई जाती हैं जैसे कि फलां होटल में सिर्फ 4 या 5 कमरे बचे हैं जल्दी बुकिंग कराएं. ये डील जल्द ही खत्म होने वाली है.

कंपनियों के कौम्बो औफर की ट्रिक

कंपनियों के कौम्बो औफर देने का मकसद ज्यादा से ज्यादा मात्रा में सामान को बेचना होता है. अगर कंपनी हर सामान पर छूट देंगे तो ग्राहक सिर्फ एक सामान खरीदेगा, लेकिन अगर कंपनी बाय वन गेट टू और थ्री का कौम्बो औफर देती है तो अपने फायदे के लिए कस्टमर एक की जगह कौम्बो औफर का सामान खरीद लेता है और इस तरह ग्राहक अपनी जरूरत के हिसाब से नहीं बल्कि इन कंपनियों की चालाकी के कारण ज्यादा शौपिंग करता है और अपना बजट बिगाड़ लेता है.

औनलाइन शौपिंग और पैसे खर्च नहीं होने का इल्यूजन

चूंकि हम औनलाइन शौपिंग में कैश नहीं देते बैंक से पैसे डेबिट होते हैं इसलिए कस्टमर को ये इल्यूजन होता है कि उस के पैसे खर्च नहीं हुए जबकि यह इल्यूजन आप की इनकम का एक बड़ा हिस्सा खाली कर रहा होता है और घर में गैर जरूरी सामान आ रहा होता है.

अतुल्य भारत : सच्ची तसवीर देख कर क्या हुआ आम आदमी का हाल

मुंबई रूट के एक व्यस्त रेलवे जंक्शन मनमाड का दृश्य. मैंअपनी पत्नी के साथ ‘पुष्पक ऐक्सप्रैस’ ट्रेन का इंतजार कर रहा हूं. मैं शिरडी से सड़कमार्ग से लौटते समय यहां ट्रेन आने के डेढ़ घंटे पहले आ पहुंचा हूं. अब इंतजार के अलावा कोई और चारा नहीं होने से वातानुकूलित वेटिंगरूम के एक कक्ष में आ कर बैठ गया हूं. 10-15 यात्री यहां पहले से इंतजार करते बैठे हैं, चेहरे मायूस हैं. इंतजार करते लोगों के चेहरे मायूस हो ही जाते हैं. सोच रहा हूं कि मुझे भी मेरी टे्रन लेट आ कर मायूस कर सकती है. एसी का कहीं पता नहीं है.

मेरी नजर सामने की दीवार पर लगे ‘इनक्रैडिबल इंडिया’ के पोस्टर पर चली गई. कितना आकर्षक लगता है पोस्टर में इंडिया? ‘इनक्रैडिबल’ के बाद और ‘इंडिया’ के पहले ‘आई’ का परिवर्तित रूप ऊपर मुगदर व नीचे एक गोलबिंदु जैसा और भी आकर्षक है. मैं फ्रेम किए हुए दीवार पर लगे पोस्टर को ध्यान से देख रहा हूं. वाराणसी के एक घाट का आकर्षक, सुहाना व चकाचौंध भरा रात्रिकालीन दृश्य है. मैं ‘अतुल्य भारत’ के इस दृश्य को एकटक देख रहा हूं. जबकि मेरे सामने की ओर कुरसियों पर बैठी 3 महिलाओं में से एक मुझे देख रही है. किसी चीज को एकटक देखने में भी समस्या हो सकती है. मेरा ध्यान तो अतुल्य भारत पर है लेकिन उस का मेरे पर.

मुझे अचानक ध्यान आया, नए कानून के हिसाब से घूरना एक अपराध है लेकिन यहां तो महिला मुझे घूर रही है और महिला भी यदि कोई सुंदर युवती होती तो मुझे भी अच्छा लगता. वैसे, सारे शादीशुदा पुरुष यही सोचते होंगे. लेकिन यह तो कोई आंटी से दादी की वय में बढ़ रही महिला थी. अब मुझे ध्यान आया कि वह सोच रही है कि मैं उसे क्यों एकटक घूर रहा हूं. वह तो मैं विश्वस्त हूं कि पत्नी बाजू में बैठी है तो मेरे चालचलन पर कोई यदि आक्षेप करेगा तो पत्नी शेरनी की तरह मेरे सपोर्ट में गरज सकती है. मतलब, कोई खतरा नहीं है.

लेकिन उस की आखें शायद जैसे कुछ कहना चाह रही हों कि ओ मिस्टर, क्या बात है? इसी समय मेरे मुंह से निकल गया कि मैं आप को नहीं ‘इनक्रैडिबल इंडिया’ को देख रहा हूं. मेरे यह कहते ही उस ने भी सामने के पोस्टर की ओर देखा. अब उस को शायद समझ में आया कि सभी पुरुष सारे समय महिलाओं को ही नहीं घूरते हैं, और भी काम करते हैं. यदि मैं अकेला होता तो भी क्या मेरी सोच ऐसी कंफर्टेबल रहती, मिनटों में यह शोचनीय हो सकती है?

‘अतुल्य भारत’ की पेंटिंग से मेरी नजर अब हट कर ‘अतुल्य भारत’ के जीवंत दृश्य पर आ गई. 2 महिलाएं, जो मेरे दाईं ओर बैठी हैं, ओम व चक्र के निशान वाला गेरुए रंग का कुरता पहने हैं तथा दोनों बौबकट हैं. वेटिंगरूम की एक टेबल को अपनी पर्सनल प्रौपर्टी समझ कर पैर फैलाए ट्रेन का इंतजार कर रही हैं. इन में एक अतुल्य ढंग से खर्राटे भी ले रही है, दूसरी जाग रही है, शायद टे्रन के आने पर इसे जगाने हेतु. इसी टेबल पर कई अन्य लोग खाना खाते होंगे? मेरी फिर ‘अतुल्य भारत’ की तसवीर पर नजर चली गई. 

इस के बाद मेरी नजर इस कक्ष में भिनभिना रही सैकड़ों मक्खियों पर चली गई, फिर अतुल्य भारत पर गई. अब नजर एक सामने रखे बड़े से कूलर पर चली गई क्योंकि यह शीतलता की जगह गरमी दे रहा था. मैं ने जा कर देखा तो इस में पानी नहीं था, तली पर लग गया है. किसी यात्री को भी कोई मतलब नहीं है, गरम हवा फेंक रहा है तो इसे नियति मान बैठे हैं. अब मेरे अंदर का जिम्मेदार व सचेत नागरिक जाग गया. मैं ने बाहर जा कर महिला अटैंडैंट को कूलर में पानी डालने के लिए बोला. उस ने कहा कि यह ठेकेदार का काम है.

मैं ने कहा कि वह नहीं आएगा तो क्या पानी नहीं डलेगा? उस ने बड़े आत्मविश्वास से ‘हां’ में सिर हिला दिया. मुझे लगा कि वास्तव में रेलवे ने अच्छी प्रगति कर ली है, कम से कम कर्मचारियों में डिनाई (इंकार) करने का कौन्फीडैंस तो आ गया है. उस ने अब बोला कि ऐंट्री कर दो रजिस्टर में?

मैं ने कहा, ‘‘पानी कूलर में?’’

उस ने अनसुनी करते हुए दोहराया, ‘‘ऐंट्री करो.’’

मैं ने झक मार कर पानी वाली बात भूल कर ऐंट्री कर दी उस के रजिस्टर में. मैं ने फिर पानी को बोला तो उस ने कहा कि ठेकेदार के आदमी के आने पर उस को बोलती हूं. चलो, मैं ने सोचा कम से कम कुछ जिम्मेदारी तो इस ने समझी. मेरी नजर फिर ‘अतुल्य भारत’ पर चली गई. लेकिन दूसरे ही क्षण उन 3 लोगों पर चली गई जो कहीं से आए थे और इस कक्ष में पड़ी एक दूसरी टेबल को अपनी कुरसियों के सामने लगा कर उस पर अपने ‘चरण कमल’ रख कर आराम की नीयत से लंबे हो गए थे. मेरे सिर के पीछे लगा एक स्पीकर कान फोड़े दे रहा है.

यह अंगरेजी में लिखे ‘इनक्रैडिबल इंडिया’ के पोस्टर, जिस में नीचे हिंदी में ‘अतुल्य भारत’ लिखा है, की तर्ज पर हिंदी व अंगरेजी दोनों में बारीबारी से आनेजाने वाली ट्रेनों की उद्घोषणाएं कर रहा है. भुसावल, मुंबई, अप डाउन, निर्धारित समय पर या देर से. असुविधा के लिए खेद है. आप की यात्रा मंगलयमय हो आदि जैसे वाक्यांश बारबार सुनाई पड़ रहे हैं. अब तो यह असहनीय हो रहा है. असहनीय तो कक्ष के फर्श की गंदगी का दृश्य भी हो रहा है. मेरे बाईं ओर एक खिड़की प्लेटफौर्म 3 की ओर है. यह बंद है. उस पर कांच है.

एक अतुल्य भारतीय उस पर टिका है. मेरी नजर ‘अतुल्य भारत’ के पोस्टर पर गई, मेरा सिर ऊंचा हो गया. लेकिन इस ‘अतुल्य भारतीय’ ने मेरा ध्यान भंग कर दिया. उस ने पलट कर खिड़की पर अपने मुंह में भरी पान की पीक दे मारी थी. बाकी दृश्य मुझ से देखा नहीं गया, मेरा सिर नीचा हो गया. आदमी अपना अपमान जल्दी ही भूल जाता है. मेरी नजर फिर ‘अतुल्य भारत’ पर चली गई और मुझे फिर सिर ऊंचा उठा लगने लगा. बाथरूम से आ रही बदबू हाथ रूमाल सहित नाक पर रखने को मजबूर कर रही है. कुछ थोड़ीबहुत कमी इस एक और यात्री महिला की ऐंट्री से पूरी हुई लगती है. थोड़ी देर में ही यह मेरे बाजू में बैठी 2 महिलाओं से वार्त्तालाप में मशगूल हो गई है.

लेकिन उद्घोषिका की आवाज की पिच से इन की पिच अधिक है. लगता है दोनों में कौन तेज है, का कंपीटिशन हो रहा है. मुझे समझ में ही नहीं आ रहा है कि कौन क्या बोल रहा है. इसी समय प्लेटफौर्म 2 व 3 दोनों पर टे्रनें आ गई हैं. यह वेटिंगरूम प्लेटफौर्म नंबर 2 पर है. खोमचे वालों की चांवचांव, इस महिला की कांवकांव व उद्घोषिका की लगातार उद्घोषणा-ये तीनों आवाजें मिल कर अजीब सा कोलाहल पैदा कर रही थीं.

मुझे तो लगा कि कोई अपराधी यदि अपराध न उगल रहा हो तो उसे यहां ला कर बैठा दो. थोड़ी ही देर में वह हाथ जोड़ लेगा कि मुझे यहां से ले चलो, मैं सब सचसच बताता हूं. दरवाजे से आई ट्रेन के स्लीपर कोच की खिड़की पर एक लड़का बनियान पहने बैठा दिख रहा है और उस ने भारतीय अतुल्यता दिखा दी, पिच्च से नीचे प्लेटफौर्म पर थूक दिया. मेरा सिर फिर से नीचा हो गया. ट्रेन इस यात्री के इस सतकर्म के बाद रवाना हो गई. अतुल्य भारत पर फिर नजर गई तो मैं फिर सिर उठा समझने लगा. अब एक महिला, जो नीली साड़ी पहने थी, 3 जुड़ी हुई सीट वाली कुरसी पर लंबी हो गई है, उस की साड़ी से बाहर लटक रहा पेट व उस के खर्राटों के कारण उस के ऊपरनीचे को हो रहे ‘अतुल्य मूवमैंट’ पर नजर गई. सचमुच भारत अतुल्य है. मुझे लगा ऐसे जेनरिक लक्षण वाले तोंद लिए कितने ‘अतुल्य’ पुरुष व स्त्री भारत में हैं. सिर फिर नीचा हो गया. अब मेरी ‘शिकायती पूछताछ’ काम कर गई थी. एक लड़का जरूरत से ज्यादा मोटा कूलर का मुआयना करने आया था. मैं ने उस का मुआयना किया तो वह सफेद पाजामा व शर्ट, जो कीट से काले दिख रहे थे, पहने था. मुझे लगा कि यही ठेकेदार का आदमी होना चाहिए. वह बाथरूम के अंदर गया. शायद बालटी की खोज में था. नहीं मिली तो उस ने एक मग से ही 2-4 बार कूलर में पानी डाला और खानापूर्ति के बाद रवानगी डाल ही रहा था कि मैं ने टोका, ‘‘इतने पानी से क्या होगा? इतने बड़े कूलर को कम से कम पानी से आधा भरो?’’

वह अनमना सा अंदर गया और शायद टायलेट से ही एक बड़ी बालटी ला कर कूलर में कुछ बालटी पानी पलट कर बाहर रवानगी डालने को पलट गया. यह सिद्ध हो गया कि इस कूलर में रोज पानी नहीं डाला जाता. मैं थोड़ा मुसकराया तो उस के माथे पर बल पड़ गए. मेरी गलती यह रही कि मैं उस के चेहरे पर मुसकराहट नहीं ला पाया. वह शायद यह सोच रहा था कि यह मेरा मजाक उड़ाने के मूड में है. उसे आज इस में पानी डालने की मेरी ड्यूटी करनी अच्छी नहीं लग रही थी. निकम्मापन भी कुछ समय बाद अधिकार की भावना बलवती कर देता है. उसे क्या मालूम कि मेरा मूड तो ‘अतुल्य भारत’ की खोज इस वेटिंगरूम में ही करने में रम गया है.

मेरी नजर फिर ‘अतुल्य भारत’ के पोस्टर पर गई और मेरा सिर अपने आप ऊंचा हो गया है. लेकिन कितनी देर रहता? अभीअभी एक बुजुर्ग सज्जन का दाखिला हुआ है. वे आ कर एक चेयर पर बैठ गए हैं. आते ही उन्होंने एक ओर को थोड़ा उठ कर ऐसा धमाल कर दिया है कि उन के सामने की कुरसियों पर बैठे परिवार के साथ के 3 बच्चे खिलखिला कर हंस पड़े हैं. दरअसल, उन्होंने जोर की आवाज के साथ निसंकोच भाव से हवा के दबाव को बाहर कर शारीरिक पटाखा चला दिया था. मेरी नजर फिर ‘अतुल्य भारत’ पर चली गई. मुझे लगा कि ‘अतुल्य भारत’ से ज्यादा ‘अतुल्य भारतीय’ हैं और ये ‘बाहुल्य भारतीय’ हैं. अतुल्य भारत की तसवीर भी लगाने के पहले बहुत सोचविचार करना पड़ेगा कि कहा लगाएं, कहां नहीं लगाएं क्योंकि ‘अतुल्य भारतीय’ पलपल में इस की हवा निकाल देने में कोई कसर बाकी नहीं रखते हैं.

चारित्रिक हमलों पर उतारू डोनाल्ड ट्रम्प क्या कमला हैरिस से डरे हुए हैं

पिछले दिनों डैमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने इलिनौइस में शिकागो के यूनाइटेड सेंटर में डैमोक्रेटिक नैशनल कन्वेन्शन में भाग लिया और राष्ट्रपति पद का नामांकन स्वीकार किया. अमेरिका में नवंबर में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने वाले हैं. इस चुनाव में डैमोक्रेटिक पार्टी की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और रिपब्लिकन पार्टी के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच कड़ी टक्कर है. इस दौरान उन्होंने ट्रम्प पर निशाना साधा और कहा कि वे वह धीर गम्भीर व्यक्ति नहीं हैं और उन का फिर से एक बार राष्ट्रपति बनने के परिणाम गंभीर होंगे.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Sarita (@sarita_magazine)

रास्ता नहीं आसान

कमला हैरिस के जबरदस्त भाषण ने बता दिया है कि रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रम्प का दोबारा राष्ट्रपति बनने का सपना इतना आसान नहीं होगा, जितना उन्होंने सोचा था, क्योंकि कमला हैरिस चुनावी दौड़ में अब उन से आगे निकल गई हैं. उन्होंने अपने भाषण में अमेरिका की नेतृत्व, सुरक्षा और महिलाओं के अधिकारों पर अधिक जोर दिया है. फलस्वरूप कमला हैरिस की ये रणनीति अमेरिका की जनता को काफी रास आ रही है जिस की वजह से ट्रम्प की दावेदारी कमजोर पड़ती हुई दिखाई पड़ रही है और वे ट्रम्प को छोड़ कर कमला हैरिस को अपना राष्ट्रपति बनाने में बेहतर महसूस कर रहे हैं.

जो बाइडेन के उम्मीदवारी वापस लेने के बाद से ही डोनाल्ड ट्रम्प की जीत शक के दायरे में आ गई थी इसलिए अब वे घबरा कर कमला हैरिस के चरित्र को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहे हैं जो परवान नहीं चढ़ पा रही है. 18 अगस्त को हैरिस पर नस्लीय कमेंट करने के बाद 28 अगस्त को उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफौर्म ट्रुथ सोशल पर लिखा, “हैरिस ने शारीरिक संबंधों का इस्तेमाल कर राजनीति में अपने कैरियर को आगे बढ़ाया है. दरअसल में अब से कोई 23 साल पहले कमला हैरिस सैन फ्रांसिस्को के पूर्व मेयर विली ब्राउन के साथ रिलेशनशिप में थीं तब ब्राउन कैलिफोर्निया स्टेट असैम्बली के स्पीकर थे. गौरतलब यह भी है कि ब्राउन उम्र में कमला हैरिस से 30 साल बड़े हैं.

हैरानी तो इस बात कि है कि खुद सैक्स स्कैंडल में फंस चुके ट्रम्प सच्चरित्रता का पाठ पढ़ा रहे हैं. इस बयान से साबित यह भी होता है कि औरत कहीं की भी हो किसी भी देश या धर्म की हो उसे बदनाम करने में मर्द कोई कसर नहीं छोड़ते. सभी धर्मों ने इस बात की इजाजत और सहूलियत उन्हें दे रखी हैं कि मर्द के पांव चरण होते हैं और औरत के पांवपांव ही होते हैं.

वैसे भी अमेरिकी चुनाव में लड़ाई इस बार खुले तौर पर पूरी तरह कट्टरवाद और उदारता के बीच है. 29 जुलाई को अपनी ट्रम्प चाल चलते ट्रम्प ने फ्लोरिडा में बहुत स्पष्ट कहा था कि अगर इसाई नवंबर में उन्हें वोट देंगे तो उन्हें दोबारा कभी वोट देने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इस बयान की तुलना भारत से इन मानो में की जा सकती है कि अगर सभी हिंदू एकजुट हो कर भाजपा को वोट दें तो भारत को हिंदू राष्ट्र बनने से कोई नहीं रोक सकता.

इसी तर्ज पर अमेरिका को ईसाई राष्ट्र बनाने का वादा कर रहे ट्रम्प ने ईसाईयों से अपील की थी कि वे घरों से निकल कर वोट डालें. उन्होंने कहा, “इस के बाद अगले 4 साल में मैं सब कुछ ठीक कर दूंगा. मैं खुद भी ईसाई हूं और सभी ईसाईयों से प्यार करता हूं.”

इतना कहना था कि सोशल मीडिया पर ट्रम्प का घिरना शुरू हो गया था. अधिकांश अमेरिकी यूजर्स की प्रतिक्रिया यह थी कि ट्रम्प खुद को तानाशाह घोषित कर देंगे और अमेरिका में फिर कभी राष्ट्रपति पद का चुनाव नहीं होने देंगे, यानी खुद इस पद पर आजीवन जबरिया काबिज रहेंगे जो कि अमेरिका के लिए बेहद खतरनाक बात होगी क्योंकि इस से वो लोकतंत्र खत्म हो जाएगा जिस के चलते अमेरिका दुनिया का सिरमोर बना हुआ है. इस के पहले पिछले साल दिसम्बर में ट्रम्प ने अवैध प्रवासियों को एलियन कहते उन पर रोक लगाने की बात कही थी.

लेकिन इन दकियानूसी बातों का कोई निर्णायक असर पड़ता नहीं दिख रहा है, जाहिर है वहां के लोग भी लोकतंत्र चाहते हैं. हर देश में मुट्ठी भर लोग ही हैं जो लोकतंत्र विहीन यानी धर्म का शासन चाहते हैं. दूसरी तरफ कमला हैरिस सधे खिलाड़ी की तरह मुद्दों की बात करती नजर आ रही हैं. मसलन ग्रीन एनर्जी को बढ़ाबा, गन सेफ्टी रेगुलेशन का समर्थन, महंगाई पर काबू, एबौर्शन का समर्थन, पेड़ फैमिली लीव और सस्ते घर सहित वे एक ऐसी अर्थव्यवश्ता का नक्शा जनता के सामने पेश कर चुकी हैं जिस में सभी के लिए प्रतिस्पर्धा करने और आगे बढ़ने के मौके हों. हालांकि प्रवासी संकट पर वे अपनी राय बदलती रही हैं जो अमेरिका के अहम चुनावी मुद्दों में से एक हमेशा ही रहा है.

10 सितम्बर को फोक्स न्यूज द्वारा आयोजित हैरिस और ट्रम्प के बीच बहस यानी प्रेसिडेंसियल डिबेट होना है. उस में मुमकिन है हैरिस को इस मुद्दे पर अपनी स्पष्ट राय देनी पड़े. इस दिन तय है वे रूस यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन का पक्ष लेंगी.

वोटर्स की राय

विस्कोन्सिन की रहने वाली दिशा को आज कमला हैरिस पर भरोसा है और वह उन्हें ही वोट देना चाहती हैं, ट्रम्प को नहीं. हालांकि पहले वह इस बात से दुखी थीं कि उन के पास ट्रम्प को वोट देने के अलावा कोई औप्शन नहीं है, लेकिन अब वह खुश हैं कि कमला हैरिस ने अपनी दावेदारी एक लीडर के रूप में अच्छी तरह से पेश की है, जिस से अमेरिका में नस्लवादी और गन शूट की समस्या को काबू में किया जा सकेगा.

ओरेगन के रहने वाले और फूड ट्रक चलाने वाले जौन स्मिथ को भी कमला हैरिस पर काफी भरोसा है और उन्हें ही अपना राष्ट्रपति के रूप में देखना चाहते हैं. उन्हें ट्रम्प की बातों पर विश्वास नहीं होता है, क्योंकि वे कहते कुछ हैं, लेकिन करते कुछ और हैं.

प्रभावी विषयों पर जोर

असल में कमला हैरिस ने भाषण में अपनी ताकत और आत्मविश्वास का प्रदर्शन करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के लिए एक अभियोजक की तरह अपनी बात रखी, जो प्रभावी, संक्षिप्त और मध्यम वर्ग को ध्यान में रख कर बढ़ाया गया कदम था, जिन की संख्या अधिकतर सभी देशों में होती है और उन्हें उद्देश्य बनाते हुए कोई भी रणनीति सब से अधिक सफल होती है.

यहां हम आप को बता दें कि हैरिस डैमोक्रेट्स द्वारा सब से ऊंचे पद के लिए नामांकित होने वाली दूसरी महिला हैं. इस से पहले हिलेरी क्लिंटन वर्ष 2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ चुकी हैं, लेकिन तब उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. इस बार काफी समझदारी से हैरिस ने अपने महिला होने या फिर अपनी मूल विरासत को मुद्दा नहीं बनाया, बल्कि दोनों का उपयोग अमेरिका की संभावनाओं को प्रदर्शित करने के लिए किया. यह क्लिंटन के नजरिये से अलग है. हिलेरी क्लिंटन जेंडर के मुद्दों में उलझ गई थीं, जिस से उन्हें नुकसान उठाना पड़ा.

जेंडर का कोई काम नहीं

हैरिस ने कहा है कि उन्हें राष्ट्रपति बनने का अधिकार है और इस में जेंडर आड़े नहीं आना चाहिए. यही सोच उन के राष्ट्रपति बनने में अहम रणनीति साबित हो सकती है. इतना ही नहीं उन्होंने अपने भाषण में अपनी मां श्यामला गोपालन को एक शानदार, 5 फुट लंबी, ब्राउन महिला के रूप में श्रद्धांजलि दी, जो मजबूत और साहसी थीं, जिस की वजह से आज वह यहां तक पहुंची हैं.

हैरिस ने अपनी मां की कहानी को संक्षेप में बताने के लिए पर्याप्त विवरण दिया, जिस में माइग्रेशन, भेदभाव, संकल्प और सफलता की कहानी छिपी थी, जिस से जनता का प्रेरित होना स्वाभाविक था.

मिली है बढ़त

हैरिस को इस सम्मेलन के बाद सर्वेक्षणों में उल्लेखनीय बढ़त मिली है. सिर्फ एक महीने में उन्होंने न केवल ट्रंप के साथ मुकाबला बराबर का कर लिया है बल्कि राष्ट्रीय और कुछ महत्वपूर्ण राज्यों में थोड़ी बढ़त भी हासिल कर ली है. न्यूयौर्क टाइम्स ने बताया है कि कमला हैरिस को डैमोक्रेटिक मतदाताओं का 70 प्रतिशत संमर्थन प्राप्त है और करीब 46 प्रतिशत लोगों ने हैरिस को अपना लोकप्रिय उम्मीदवार बताया है. अब तक की चुनावी प्रक्रिया में इसे सब से बेहतर माना गया है. इतना ही नहीं हैरिस को गर्भपात संबंधी मामले में निपटने और लोगों की देखभाल करने में भी सब से अच्छा बताया गया है.

चिंतित है ट्रम्प

एक पोल ट्रैकर FiveThirtyEight ने दिखाया है कि हैरिस 47 प्रतिशत के साथ आगे है. जबकि ट्रंप 43.7 प्रतिशत पर हैं. हैरिस की लोकप्रियता की रेटिंग नीचे से चढ़ कर एक सम्मानजनक 45 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जबकि ट्रंप की पहले के मुकाबले घट गई है. इसलिए डोनाल्ड ट्रम्प भी अब अपनी रणनीति को ले कर असमंजस में हैं कि कमला हैरिस पर व्यक्तिगत हमले करें या नीतिगत मुद्दों ध्यान केंद्रित करें, जिस में उन्होंने वेटरों और सेवा कर्मचारियों द्वारा दिए जाने वाले टिप पर टैक्स को समाप्त करने की योजना पर बात की.

इतना ही नहीं ट्रम्प नेवादा में हिस्पैनिक और लैटिन मतदाताओं को लुभाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि पिछले राष्ट्रपति चुनावों में इन की भागीदारी उम्मीदवार को जिताने में अधिक रही है.

पहले ट्रम्प, कमल हैरिस की शक्ल, अश्वेत, बुद्धिमता आदि पर लगातार प्रहार करते रहे थे, लेकिन अब उन के सलाहकार आर्थिक एजेंडे को भुनाने का दबाव बना रहे हैं. सलाहकारों का मानना है कि कमला हैरिस पर व्यक्तिगत हमले करने से उदारवादी वोटर उन से दूर हो सकते हैं, जिस से उन की जीत में समस्या आ सकती है. इधर ट्रम्प भी लगातार कोशिश कर रहे हैं कि कमला हैरिस से मीडिया का ध्यान हटे, क्योंकि मीडिया की लगातार कवरेज उन्हें डरा रही है. लेकिन पूर्वाग्रहों के चलते वे कमला हैरिस पर व्यक्तिगत और चारित्रिक हमलों पर जोर दे रहे हैं जिन से उन के समर्थक ही सहमत नहीं.

इस प्रकार इस सम्मेलन ने साबित कर दिया है कि एक हतोत्साहित पार्टी को प्रेरित किया जा सकता है. थके हुए में फिर से जोश भरा जा सकता है, अगर आप की राजनीतिक सोच और परिपक्वता देश के हित लिए हो.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें