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पिघलते पल : मानव और मिताली की गृहस्थी क्या फिर से बस पाई

अभिमन्यु को वापस छोड़ कर मानव मुड़ा तो अभिमन्यु ने हाथ पकड़ लिया, ‘‘मत जाइए न पापा… यहीं रह जाइए… रुक जाइए न पापा… आप के बिना अच्छा नहीं लगता…’’

‘‘अगले रविवार को आऊंगा न अभि… हमेशा तो आता हूं,’’ मानव उस का गाल सहलाते हुए बोला.

‘‘नहीं, आप बहुतबहुत दिनों बाद आते हैं… मुझे आप की बहुत याद आती है… मेरे दोस्त भी आप के बारे में पूछते हैं… मेरे स्कूल भी आप कभी नहीं आते. मेरे दोस्तों के पापा आते हैं… क्यों पापा?’’

8 साल के नन्हे अभि के अनगिनत सवाल थे. मानव हैरान सा खड़ा रह गया. उस के पास कोई जवाब नहीं था. कुछ ऐसे सवाल थे जिन के जवाब देने से वह खुद से कतराता था. उसे नहीं पता कि यह सिलसिला कब तक यों ही चलता रहेगा.

‘‘मैं आऊंगा अभि. तुम तो मेरे समझदार बेटे हो. जिद्द नहीं करते बेटा… अब तुम ऊपर जाओ… मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगा. फिर हम दोनों साथ रहेंगे.’’

‘‘नहीं, फिर वहां मम्मी नहीं होंगी.’’

‘‘अभि, अब तुम ऊपर जाओ बेटा. हम फिर बात करेंगे. मुझे भी देर हो रही है,’’ कह कर मानव ने उसे लिफ्ट के अंदर किया और खुद बिल्डिंग के बाहर आ कर अपनी कार स्टार्ट की और घर की तरफ चल दिया. मुंबई जैसी जगह में दोनों घरों की दूरी बहुत थी. फिर भी हर रविवार की उस की यही दिनचर्या थी.

मानव एक कंपनी में अच्छे पद पर था. बड़ा पद था तो जिम्मेदारियां भी बड़ी थीं. बहुत व्यस्त रहता था. टूअरिंग जौब थी उस की. 10 साल पहले मिताली से उस का प्रेम विवाह हुआ था. दोनों ने एमबीए साथ किया था. पहली ही नजर में शोख, चुलबुली, फैशनेबल मिताली उसे भा गई थी. एमबीए पूरा होतेहोते कैंपस प्लेसमैंट में दोनों को बढि़या जौब मिल गई. फिर दोनों ने अपनेअपने मातापिता को एकदूसरे के बारे में बताया. दोनों के मातापिता खुशीखुशी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गए. दोनों को ही पहली पोस्टिंग बैंगलुरु में मिली. विवाह के बाद दोनों बैंगलुरु चले गए.

नईनई नौकरी की व्यस्तता और नईनई शादी, व्यस्त दिनचर्या के बावजूद दिन पंख लगा कर उड़ने लगे. दोनों बहुत खुश थे. विवाह का पहला साल खुशीखुशी में बीत गया. दूसरे साल में बच्चे के आने की आहट दस्तक दे गई. दोनों अभी बच्चे के लिए तैयार नहीं थे पर दोनों परिवारों के दबाव की वजह से बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार हो गए.

मिताली को अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी. नौकरी छोड़ने का मिताली को बहुत दुख हुआ पर मानव ने उसे समझाया कि बच्चे के थोड़ा बड़ा होने पर वह फिर नौकरी कर सकती है. लेकिन वह समय फिर कभी नहीं आया और जब आया तब तक सब कुछ बिखर चुका था. जैसेजैसे बच्चा बड़ा होता गया मिताली की घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां बढ़ती चली गईं. इधर मिताली की घरगृहस्थी की जिम्मेदारियां बढ़ीं उधर मानव नौकरी में और एक के बाद बड़े पद पर पहुंचता चला गया. इसीलिए उस की नौकरी की जिम्मेदारियां भी बढ़ती गईं.

नौकरी छोड़ने के कारण एक रोष तो मिताली के स्वभाव में पहले ही घुल गया था. उस पर मानव की अत्यधिक व्यस्तता ने आग में घी का काम कर दिया. वह चिड़चिड़ी हो गई. थोड़ाबहुत गुस्सैल स्वभाव तो उस का पहले ही था. अब तो वह बातबात पर गुस्सा करने लगी. मानव के घर आने का कोई वक्त नहीं होता था. उस पर टूअरिंग जौब. मिताली जबतब भन्ना जाती थी.

‘‘ऐसे कब तक चलेगा मानव? घरगृहस्थी, बीवी के प्रति भी तुम्हारी कोई जिम्मेदारी है या नहीं?’’

‘‘क्या जिम्मेदारी नहीं निभा रहा हूं मैं?’’ थकामांदा मानव भी भन्ना जाता, ‘‘अब क्या नौकरी छोड़ दूं?’’

‘‘ऐसी भी क्या नौकरी हो गई… अभि को तुम से ठीक से मिले हुए भी कितने दिन हो जाते हैं… रात को जब तुम आते हो वह सो जाता है… सुबह वह स्कूल चला जाता है, तब तक तुम सो रहे होते हो… एक टूअर से आ कर तुम दूसरे पर चले जाते हो. यह कैसी जिंदगी बना दी है तुम ने हमारी?’’

‘‘मिताली प्राइवेट कंपनी में जौब कर चुकी हो तुम,’’ मानव किसी तरह स्वर संयत कर कहता, ‘‘प्राइवेट कंपनी की व्यस्तता को समझती हो, फिर भी नासमझों वाली बात करती हो… इतने बड़े पद पर ऐसे ही तो नहीं पहुंचा हूं… काम और मेहनत से ही पहुंचा हूं… ऐशोआराम के सारे साधन हैं तुम्हारे पास… ये सब मेरी मेहनत से ही आए न…’’

‘‘नहीं चाहिए हमें ऐसे ऐशोआराम के साधन जिन से जिंदगी इतनी नीरस हो गई. हमें तुम्हारी जरूरत है मानव, तुम्हारी,’’ मिताली का चिड़चिड़ा स्वर भर्रा जाता, ‘‘घर आ कर भी फोन कौल्स तुम्हारा पीछा नहीं छोड़तीं… फोन पर ही लगे रहते हो.’’

‘‘औफिस के काम के ही फोन आते हैं… अटैंड नहीं करूं क्या?’’ मानव का स्वर भी ऊंचा होने लगता.

‘‘कितने दिन हो जाते हैं हमें दोस्तों के घर गए हुए, दोस्तों को घर बुलाए हुए, कहीं बाहर गए… छुट्टी के दिन तुम थके हुए होते हो.’’

‘‘मैं तुम्हें मना करता हूं क्या? तुम अपना सामाजिक दायरा क्यों नहीं बढ़ातीं? व्यस्त रहोगी तो फालतू की बातों पर ध्यान नहीं जाएगा,’’ कह कर मानव पैर पटक कर सोने चला जाता और आंखों में आंसू भरे मिताली खड़ी रह जाती.

अब अकसर यही होने लगा. मानव ज्यादातर टूअर पर रहता या औफिस के काम में व्यस्त. जो थोड़ाबहुत वक्त मिलता वह दोनों के झगड़ों की भेंट चढ़ जाता. मानव टूअर पर रहता तो मिताली की अनुपस्थिति में परिस्थिति को नए नजरिए से सोचता. सोचता कि आखिर मिताली की शिकायत एकदम गलत भी तो नहीं है. अब वह कोशिश करेगा उसे और अभि को थोड़ा वक्त देने की. मानव की अनुपस्थिति में मिताली के सोचने का नजरिया भी बदल जाता कि आखिर मानव भी क्या करे. कंपनी के इतने बड़े पद पर है तो उस की जिम्मेदारियां भी बड़ी हैं. वह थक भी जाता है और वह उस की व्यस्तता समझने के बजाय उस से झगड़ा करने लगती है… जो थोड़ाबहुत वक्त उन्हें मिलता है उस का भी सदुपयोग नहीं कर पाते हैं.

मगर जब वे एकदूसरे के सामने होते तो ये विचार तिरोहित हो जाते. मानव की व्यस्तता ने पतिपत्नी के शारीरिक संबंधों को भी प्रभावित किया था. एक तो समय ही नहीं उस पर भी झगड़ा और नाराजगी. महीनों बीत जाते उन्हें संबंध बनाए हुए. दोनों मानसिक, शारीरिक स्तर पर अधूरापन महसूस कर रहे थे.

यह समस्या एकमात्र मानव और मिताली की ही नहीं थी. आज के समय में युवावर्ग इतना व्यस्त हो गया है कि अधिकतर की दिनचर्या कुछ ऐसी ही हो गई है. जहां दोनों नौकरी कर रहे हैं वहां तो घर जैसे रैन बसेरा हो गया है. एक तो नौकरी की व्यस्तता दूसरे महानगरों में घर से औफिस आनेजाने में काफी समय लग जाता है. एक छुट्टी का दिन थकान उतारने और दूसरे जरूरी कार्य करने में ही बीत जाता है.

युवावर्ग आज विवाह के नाम से ही घबरा रहा है. लड़का हो या लड़की विवाह की जिम्मेदारियां उठाना ही नहीं चाहते और विवाह कर लें तो बच्चे को जन्म देने से कतरा रहे हैं विशेषकर लड़कियां, क्योंकि विवाह और बच्चे के बाद सब से पहले उन्हीं की स्वतंत्रता और नौकरी दांव पर लगती है.

मानव और मिताली के झगड़े दिनोंदिन बढ़ते चले गए. धीरेधीरे झगड़ों की जगह शीतयुद्ध ने ले ली. दोनों के बीच बातचीत बंद या बहुत ही कम होने लगी. फिर एक दिन मिताली ने विस्फोट कर दिया यह कह कर कि उसे नौकरी मिल गई है और उस ने औफिस के पास ही एक फ्लैट किराए पर ले लिया है. वह और अभि अब वहीं जा कर रहेंगे.

मानव हैरान रह गया. उस ने कहना चाहा कि अकेले वह नौकरी के साथ अभि को कैसे पालेगी और यदि नौकरी करनी ही है तो यहां रह कर भी कर सकती है. लेकिन उस का स्वाभिमान आड़े आ गया कि जब मिताली को उस की परवाह नहीं तो उसे क्यों हो. फिर मिताली ने उसी दिन नन्हे अभि के साथ घर छोड़ दिया. तब से अब तक 2 साल होने को आए हैं, 6 साल का अभि 8 साल का हो गया है. मानव की जिंदगी नौकरी के बाद इन 2 घरों की दूरी नापने में ही बीत रही थी.

तभी रैड लाइट पर मानव ने कार को ब्रैक लगाए तो उस की तंद्रा भंग हुई. कब तक चलेगा यह सब. वह पूरीपूरी कोशिश करता कि अभी का व्यक्तित्व उन के झगड़ों और मनमुटावों से प्रभावित न हो. उसे दोनों का प्यार मिले. लेकिन ऐसा हो ही नहीं पा रहा. नन्हे अभि का व्यक्तित्व 2 भागों में बंट गया था. बड़े होते अभि के व्यक्तित्व में अधूरेपन की छाप स्पष्ट दिखने लगी थी.

तभी सिगनल ग्रीन हो गया. मानव ने अपनी कार आगे बढ़ा दी. घर पहुंचा तो मन व्यथित था. अभि के अनगिनत सवालों के उस के पास जवाब नहीं थे. वह सोचने लगा कि इतने ही सवाल अभि मिताली से भी करता होगा, क्या उस के पास होते होंगे जवाब… आखिर कब तक चलेगा ऐसा?

दोनों के मातापिता ने पहलेपहल दोनों को समझाया, लेकिन दोनों ही झुकने को तैयार नहीं हुए. आखिर थकहार कर दोनों के मातापिता चुप हो गए. पर पिछले कुछ समय से मानव के मातापिता जो बातें दबेढके स्वर में कहते थे अब वे स्वर मुखर होने लगे थे कि ऐसा कब तक चलेगा मानव… साथ में नहीं रहना है तो तलाक ले लो और जिंदगी दोबारा शुरू करने के बारे में सोचो.

यह बात मानव के तनबदन में सिहरन पैदा कर देती कि क्या इतना सरल है एक अध्याय खत्म करना और दूसरे की शुरुआत करना… आखिर उस की जो व्यस्तता आज है वह तब भी रहेगी और फिर अभि? उस का क्या होगा? फिर वही प्रश्नचिह्न उस की आंखों के आगे आ जाता. आखिर क्या करे वह… बहुत चाहा उस ने कि जिस तरह मिताली खुद ही घर छोड़ कर गई है वैसे ही खुद लौट भी आए, लेकिन इस इंतजार को भी 2 साल बीत गए. खुद उस ने कभी बुलाने की कोशिश नहीं की. अब तो जैसे आदत सी पड़ गई है अकेले रहने की.

इधर अभि घर के अंदर दाखिल हुआ तो सीधे अपने कमरे में चला गया. उस का नन्हा सा दिल भी इंतजार करतेकरते थक गया था. कब मम्मीपापा एकसाथ रहेंगे. वह खिन्न सा अपनी स्टडी टेबल पर बैठ गया. हर हफ्ते रविवार आता है. पापा आते हैं, उसे ले जाते हैं, घुमातेफिराते हैं, उस की पसंद की चीजें दिलाते हैं, उस की जरूरतें पूछते हैं और शाम को घर छोड़ देते हैं. मम्मी सोमवार से अपने औफिस चल देती हैं और वह अपने स्कूल. हफ्ता बीतता है. फिर रविवार आता है. वही एकरस सी दिनचर्या. कहीं मन नहीं लगता उस का. पापा के साथ रहता है तो मम्मी की याद आती है और मम्मी के साथ रहता है तो पापा की याद आती है. पता नहीं मम्मीपापा साथ क्यों नहीं रहते?

तभी मिताली अंदर आ गई. उसे ऐसे अनमना सा बैठा देख कर पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा? कैसा रहा तुम्हारा दिन आज?’’

अभि ने कोई जवाब नहीं दिया. वैसे ही चुपचाप बैठा रहा.

‘‘क्या हुआ बेटा?’’ वह उस के बालों में उंगलियां फिराते हुए बोली.

‘‘कुछ नहीं,’’ कह कर अभि ने मिताली का हाथ हटा दिया.

‘‘तुम ऐसे चुपचाप क्यों बैठे हो? किसी ने कुछ कहा क्या तुम्हें?’’

‘‘नहीं,’’ वह तल्ख स्वर में बोला. फिर क्षण भर बाद उस की तरफ मुंह कर उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘मम्मी, यह बताओ कि हम पापा के पास जा कर कब रहेंगे? हम पापा के साथ क्यों नहीं रहते? मुझे अच्छा नहीं लगता पापा के बिना… चलिए न मम्मी हम वहीं चल कर रहेंगे.’’

‘‘बेकार की बात मत करो अभि,’’ मिताली का कोमल स्वर कठोर हो गया, ‘‘रात काफी हो गई है. खाना खाओ और सो जाओ. सुबह स्कूल के लिए उठना है.’’

‘‘नहीं, पहले आप मेरी बात का जवाब दो,’’ अभि जिद्द पर आ गया.

‘‘अभि कहा न कि बेकार की बातें मत करो. हम यहीं रहेंगे… खाना खाओ और सो जाओ,’’ कह कर मिताली हाथ छुड़ा कर किचन में चली गई.

अभि बैठा रह गया. ‘दोनों ही उसे जवाब देना नहीं चाहते. जब भी वह सवाल करता है दोनों ही टाल देते हैं या फिर डांट देते हैं. आखिर वह क्या करे,’ वह सोच रहा था.

काम खत्म कर के मिताली कमरे में आई तो अभि खाना खा कर सो चुका था. वह उस के मासूम चेहरे को निहारने लगी. कितनी समस्याओं से भरा था अभि के लिए उस का बचपन. वह उस के पास लेट कर उस का सिर सहलाने लगी. अभि के सवालों के जवाब नहीं हैं उस के पास. निरुद्देश्य सी जिंदगी बस बीती चली जा रही है. वह गंभीरता से बैठ कर कुछ सोचना नहीं चाहती. एक के बाद एक दिन बीता चला जा रहा है. कब तक यह सिलसिला यों ही चलता रहेगा. अभि बड़ा हो रहा है. उस के मासूम से सवाल कब जिद्द पर आ कर कल कठोर होने लगें क्या पता.

मानव के साथ भी जिंदगी बेरंग सी हो रही थी पर उस से अलग हो कर भी कौन से रंग भर गए उस की जिंदगी में. उस समय तो बस यही लगा कि मानव को सबक सिखाए ताकि वह उस की कमी महसूस करे. अपनी जिंदगी में वह पत्नी के महत्त्व को समझे. पर यह सब बेमानी ही साबित हुआ. शुरूशुरू में उस ने बहुत इंतजार किया मानव का कि एक न एक दिन मानव आएगा और उसे मना कर ले जाएगा. कुछ वादे करेगा उस से और वह भी सब कुछ भूल कर वापस चली जाएगी पर मानव के आने का इंतजार बस इंतजार ही रह गया. न मानव आया और न वह स्वयं ही वापस आ गई.

हर बार सोचती जब मानव को ही उस की परवाह नहीं, उसे उस की कमी नहीं खलती तो वही क्यों परवाह करे उस की. और दिन बीतते चले गए. देखतेदेखते 2 साल गुजर गए. उन दोनों के बीच की बर्फ की तह मोटी होतेहोते शिलाखंड बन गई. धीरेधीरे वह इसी जिंदगी की आदी हो गई. पर इस एकरस दिनचर्या में अभि के सवाल लहरें पैदा कर देते थे. वह समझ नहीं पाती आखिर यह सब कब तक चलेगा.

कल मां फोन पर कह रही थीं कि यदि उसे वापस नहीं जाना है तो अब अपने भविष्य के बारे में कोई निर्णय ले. कुछ आगे की सोचे. आगे का मतलब तलाक और दूसरी शादी. क्या सब इतना सरल है और अभि? उस का क्या होगा. वह भी शादी कर लेगी और मानव भी तो अभि दोनों की जिंदगी में अवांछित सा हो जाएगा.

यह सोच आते ही मिताली सिहर गई कि नहीं और फिर उस ने अभि को अपने से चिपका लिया. पहले ही कितनी उलझने हैं अभि की जिंदगी में. वह उस की जिंदगी और नहीं उलझा सकती. वह लाइट बंद कर सोने का प्रयास करने लगी. पता नहीं क्यों आज दिल के अंदर कुछ पिघला हुआ सा लगा. लगा जैसे दिल के अंदर जमी बर्फ की तह कुछ गीली हो रही है. कुछ विचार जो हमेशा नकारात्मक रहते थे आज सकारात्मक हो रहे थे. समस्या को परखने का नजरिया कुछ बदला हुआ सा लगा. वह खुद को ही समझने का प्रयास करने लगी. सोचतेसोचते न जाने कब नींद आ गई.

सुबह अभि उठा तो सामान्य था. वैसे भी कुछ बातों को वह अपनी नियति मान चुका था. वह स्कूल के लिए तैयार होने लगा. अभि को स्कूल भेज कर वह भी अपने औफिस चली गई. सब कुछ वही था फिर भी दिल के अंदर क्या था जो उसे हलकी सी संतुष्टि दे रहा था… शायद कोई विचार या भाव… पूरा हफ्ता हमेशा की तरह व्यस्तता में बीत गया. फिर रविवार आ गया.

मानव जब बिल्डिंग के नीचे अभि को लेने पहुंचता तो अभि को फोन कर देता और अभि नीचे आ जाता. पर आज मिताली अभि के साथ नीचे आ गई. अभि के लिए यह आश्चर्य की बात थी.

अभि के साथ मिताली को देख कर मानव चौंक गया. आंखें चार हुईं. आज मिताली के चेहरे पर हमेशा की तरह कठोरता नहीं थी. बहुत समय बाद देख रहा था मिताली को… जिंदगी के संघर्ष ने उस के रूपलावण्य को कुछ धूमिल कर दिया था. किसी का प्यार, किसी की सुरक्षा जो नहीं थी उस की जिंदगी में… लेकिन उसे क्या… उस ने अपने विचारों को झटका दिया. तीनों चुपचाप खड़े थे. अभि बड़ी उम्मीद से दोनोें को देख रहा था कि दोनों कोई बात करेंगे. बहुत कुछ कहने को था दोनों के दिलों में पर शब्द साथ नहीं दे रहे थे.

‘‘चलें अभि,’’ आखिर उन के बीच पसरी चुप्पी को तोड़ते हुए मानव ने सिर्फ इतना ही कहा. फिर से मिताली से आंखें चार हुईं तो उसे लगा कि मिताली की आंखों में आज कुछ नमी है. मानव को भी अपने अंदर कुछ पिघलता हुआ सा लगा. बिना कुछ कहे वह मुड़ने को हुआ.

तभी मिताली बोल पड़ी, ‘‘मानव.’’

इतने समय बाद मिताली के मुंह से अपना नाम सुन कर मानव ठिठक गया.

‘‘कल अभि के स्कूल में पेरैंट्सटीचर मीटिंग है. क्या तुम थोड़ा समय निकाल कर आ सकते हो… अभि को अच्छा लगेगा.’’

मानव का दिल किया, हां बोले, पर प्रत्युत्तर में बोला, ‘‘मुझे टाइम नहीं है… कल टूअर पर निकलना है,’’ कह कर बिना उस की तरफ देखे ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और अभि के लिए दरवाजा खोल दिया. निराश सा अभि भी आ कर कार में बैठ गया.

मिताली अपनी जगह खड़ी रह गई. उस का दिल किया कि वह मानव को आवाज दे, कुछ बोले पर तब तक मानव कार स्टार्ट कर चुका था. मानव और अपने बीच जमी बर्फ को पिघलाने की मिताली की छोटी सी कोशिश बेकार सिद्ध हुई. वह ठगी सी खड़ी रह गई. मानव के इसी रुख के डर ने उसे हमेशा कोशिश करने से रोका. थके कदमों से वह घर की तरफ चल दी.

शाम को अभि घर आया तो मिताली ने हमेशा के विपरीत उस से कुछ नहीं पूछा. अभि भी गुमसुम था. आज उस का व मानव का अधिकांश समय अपनेआप में खोए हुए ही बीता था. अभि ने एक बार भी मानव से पेरैंट्सटीचर मीटिंग में आने की जिद्द नहीं की.

अभि को छोड़ कर मानव जब घर पहुंचा तो मिताली व मिताली की बात दिलदिमाग में छाई थी और साथ ही अभि की बेरुखी भी चुभी हुई थी. अभि ने एक बार भी उसे आने के लिए नहीं कहा. शायद उसे उस से ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी. सोचतेसोचते अनमना सा मानव कपड़े बदल कर बिना खाना खाए ही सो गया.

दूसरे दिन मिताली अभि के साथ स्कूल पहुंची. वे दोनों अभि की क्लास के बाहर पहुंचे तो सुखद आश्चर्य से भर गए. मानव खड़ा उन का इंतजार कर रहा था. उसे देख कर अभि मारे खुशी के उछल पड़ा.

‘‘पापा,’’ कह कर वह दौड़ कर मानव से लिपट गया. उस की उस पल की खुशी देख कर दोनों की आंखें नम हो गईं. मिताली पास आ गई. उस के होंठों पर मुसकान खिली थी.

‘‘थैंक्स मानव… अभि को इतनी खुशी देने के लिए.’’

जवाब में मानव के चेहरे पर फीकी सी मुसकराहट आ गई.

पेरैंट्सटीचर मीटिंग निबटा कर दोनों बाहर आए तो उत्साहित सा अभि मानव से अपने दोस्तों को मिलाने लगा. उस की खुशी देख कर मानव को अपने निर्णय पर संतुष्टि हुई. उसे उस के दोस्तों के बीच छोड़ कर मानव उसे बाहर इंतजार करने की बात कह कर बाहर निकल आया. पीछेपीछे खिंची हुई सी मिताली भी आ गई.

दोनों कार के पास आ कर खड़े हो गए. दोनों ही कुछ बोलना चाह रहे थे पर बातचीत का सूत्र नहीं थाम पा रहे थे. इसलिए दोनों ही चुप थे.

‘‘अभि बहुत खुश है आज,’’ मिताली किसी तरह बातचीत का सूत्र थामते हुए बोली.

‘‘हां, बच्चा है… छोटीछोटी खुशियां हैं उस की,’’ और दोनों फिर चुप हो गए.

‘‘ठीक है… मैं चलता हूं. अभि से कह देना मुझे देर हो रही थी… रविवार को आऊंगा,’’ थोड़ी देर की चुप्पी के बाद मानव बोला और फिर पलटने को हुआ.

‘‘मानव,’’ मिताली के ठंडे स्वर में पश्चात्ताप की झलक थी, ‘‘एक बात पूछूं?’’

मानव ठिठक कर खड़ा हो गया. बोला, ‘‘हां पूछो,’’ और फिर उस ने मिताली के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं, जहां कई भाव आ जा रहे थे.

मिताली चुपचाप थोड़ी देर खड़ी रही जैसे मन ही मन तोल रही हो कि कहे या न कहे.

‘‘पूछो, क्या पूछना चाहती हो.’’

मानव का अपेक्षाकृत कोमल स्वर सुन कर मिताली का दिल किया कि जिन आंसुओं को उस ने अभी तक पलकों की परिधि में बांध रखा है, उन्हें बह जाने दे. पर प्रत्यक्ष में बोली, ‘‘सच कहो, क्या कभी इन 2 सालों में मेरी कमी नहीं खली तुम्हें… क्या मेरे बिना जीवन से खुश हो?’’ मिताली का स्वर थका हुआ था. लग रहा था कि ये सब कहने के लिए उसे अपनेआप से काफी संघर्ष करना पड़ा होगा, लेकिन कह दिया तो लग रहा था कि कितना आसान था कहना. कह कर वह मानव के चेहरे पर नजर डाल कर उस के चेहरे पर आतेजाते भावों को पढ़ने का असफल प्रयास करने लगी.

‘‘क्या तुम्हें मेरी कमी खली? क्या तुम खुश हो मेरे बिना जिंदगी से?’’ पल भर की चुप्पी के बाद मानव बोला. मिताली को समझ नहीं आया कि तुरंत क्या जवाब दे मानव की बातों का, इसलिए चुप खड़ी रही.

‘‘छोड़ो मिताली,’’ उसे चुप देख कर मानव बोला, ‘‘अब इन बातों का क्या फायदा… इन बातों के लिए अब बहुत देर हो चुकी है.’’

‘‘जब देर नहीं हुई थी तब भी तो तुम ने एक बार भी नहीं बुलाया,’’ सप्रयास मिताली बोली. उस का स्वर भीगा था.

‘‘मैं ने बुलाया नहीं तो मैं ने घर छोड़ने के लिए भी नहीं कहा था. घर तुम ने छोड़ा. तुम्हें इसी में अपनी खुशी दिखी. जैसे अपनी मरजी से घर छोड़ा था वैसे ही अपनी मरजी से लौट भी सकती थीं,’’ मिताली के स्वर का भीगापन मानव के स्वर को भी भिगो गया था.

‘‘एक बार तो बुलाया होता मैं लौट आती,’’ मिताली का स्वर अभी भी नम था.

‘‘तुम तब नहीं लौटती मिताली. ऐसा ही होता तो तुम घर छोड़ती ही क्यों. घर छोड़ते समय एक बार भी अपने बारे में न सोच कर अभि के बारे में सोचा होता तो तुम्हारे कदम कभी न बढ़ पाते. तुम्हारी जिद्द या फिर मेरी जिद्द हम दोनों की जिद्द में मासूम अभि पिस रहा है. उस का बचपन छिन रहा है. उस का व्यक्तित्व खंडित हो रहा है. क्या दे रहे हैं हम उसे… न खुद खुश रह पाए न औलाद को खुशी दे पाए,’’ कह कर अपने नम हो आए स्वर को संयत कर मानव कार की तरफ मुड़ गया.

कार का दरवाजा खोलते हुए मानव ने पलट कर पल भर के लिए मिताली की तरफ देखा. क्या था उन निगाहों में कि मिताली का दिल किया कि सारा मानअभिमान भुला कर दौड़ कर जा कर मानव से लिपट जाए. इसी पल उस के साथ चली जाए.

एकाएक मानव वापस उस के करीब आया. लगा वह कुछ कहना चाहता है पर वह कह नहीं पा रहा है.

‘‘हां,’’ उस ने अधीरता से मानव की तरफ देखा.

‘‘नहीं कुछ नहीं,’’ कह कर मानव जिस तेजी से आया था उसी तेजी से वापस मुड़ कर ड्राइविंग सीट पर बैठ गया. कार स्टार्ट की और चला गया. वह खोई हुई खड़ी रह गई कि काश मानव कह देता जो कहना चाहता था पर उस का आत्मसम्मान आड़े आ गया था शायद.

अभि के साथ घर पहुंची. अभि उस दिन बहुत खुश था. वह ढेर सारी बातें बता रहा था. खुशी उस के हर हावभाव, बातों व हरकतों से छलक रही थी. ‘कितना कुछ छीन रहे हैं हम अभि से,’ वह सोचने लगी.

कुछ पल ऐसे आ जाते हैं पतिपत्नी के जीवन में जो पिघल कर पाषाण की तरह कठोर हो कर जीवन की दिशा व दशा दोनों बदल देते हैं और कुछ ही पल ऐसे आते हैं जो मोम की तरह पिघल कर जीवन को अंधेरे से खींच कर मंजिल तक पहुंचा देते हैं. उस के और मानव के जीवन में भी वही पल दस्तक दे रहे थे और वह इन पलों को अब कठोर नहीं होने देगी.

दूसरे दिन मानव औफिस जाने के लिए तैयार हो रहा था कि दरवाजे की घंटी बज उठी. ‘कौन हो सकता है इतनी सुबह’, सोचते हुए उस ने दरवाजा खोला तो सामने मिताली और अभि को मुसकराते हुए पाया. वह हैरान सा उन्हें देखता रह गया.

‘‘तुम दोनों?’’ उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था.

‘‘अंदर आने के लिए नहीं कहोगे मानव?’’ मिताली संजीदगी से बोली.

‘‘तुम अपने घर आई हो मिताली… मैं भला रास्ता रोकने वाला कौन होता हूं,’’ कह मानव एक तरफ हट गया.

मिताली और अभि अंदर आ गए. मानव ने दरवाजा बंद कर दिया. उस ने खुद से मन ही मन कुछ वादे किए. अब वह अपनी खुशियों को इस दरवाजे से कभी बाहर नहीं जाने देगा.

सैल्फ क्लेम मिसोजनिस्ट एंड्रू टैट एंड इंडियन इन्फ्लुएंसर्स

सोशल मीडिया पर कई ऐसे इन्फ्लुएंसर्स उभर कर आएहैं जो रातोंरात मशहूर हो गए. इनमें से कुछ तो काम की बातेंबताते या दिखाते हैं लेकिन अधिकतरऐसेहैं जो हेट, मिसलीडिंग कंटेंट और टौक्सिक मर्दानगी को बढ़ावा देते हैं. एंड्रू टैट का नाम इसी सूची में सबसे ऊपर आता है. यह ब्रिटिश इन्फ्लुएंसर है. इंस्टाग्राम, टिकटौक व अन्य दूसरे प्लेटफौर्म पर उस के कंटेंट पर प्रतिबंध के बावजूद इस के फौलोवर्स अलगअलग नामों से उस के फेन पेज बना कर वीडियोज सोशल मीडिया पर सर्कुलेट करते हैं. हैरानी यह कि ट्विटर जैसे प्रोफैशनल प्लेटफौर्म पर एंड्रू टैट के 1 करोड़ से अधिक फौलोवर्स हैं.

टैट के लिए सोशल मीडिया ठीक वैसे ही साबित हो रहा है जैसे एवेंजर फिल्म के विलेन थेनोस के हाथ में 6 इनफिनिटी स्टोन्स थीं जिस से उस ने आधी आबादी को एक चुटकी में खत्म कर दिया था. हालांकि थेनोस के लिए जेंडर मायने नहीं रखता था लेकिनएंड्रू टैटको महिलाओं से सख्त नफरत है. वह अपने फौलोवर्स, जो सिर्फ मर्द हैं, काअपनेमहिलाविरोधीकंटेंट से रोज ब्रेनवाश करता है.

एंड्रू टैट खुद को एक “मिसोजिनिस्ट” क्लेम करता है जिस पर उसे कोई झिझक नहीं है. एंड्रू टैट पर रोमानिया में रेप, ह्यूमन ट्रैफिकिंग और ग्रुप क्राइम करने जैसे आरोप लगे हैं. उसे और उसके भाई ट्रिस्टन टैट को इस तरह के आरोपों में लिप्त पाए जाने के चलते दिसंबर 2022 में गिरफ्तार भीकिया गया था.उस पर आरोप हैं कि वह महिलाओं का यौन शोषण कर उन्हें प्रोस्टिट्यूशन में धकेलताथा.

सिर्फसैक्सुअल हैरासमेंट ही नहीं इनदोनों भाइयों पर कानूनी मामलों में भी कार्रवाईचल रही है, जिसमें औनलाइन व्यापारों से उत्पन्न इनकम पर टैक्स न चुकाने के आरोप शामिल हैं. लेकिन सब से बड़ी बात उन विचारों का है जिसे एंड्रू टैट ने सोशल मीडिया के जरिए यूथ तक पहुंचाया है. वह कई मौकों परकहता आया है कि महिलाओं के लिएस्वतंत्रताजैसी कोई चीज़ नहीं होनी चाहिए. यह ठीक सभीधर्मोंकी किताबों में महिलाओं के लिए लिखी बातों की तरह है.

टैट का मानना है कि मर्दानगी का मतलब है शक्ति और अधिकार. टैट के अधिकतर रील्स इसी तरह के शेयर किए जाते हैं. उसे पोडकास्टमें बुलाया जाता है ताकि वह इसी तरह की बातें करे. टैट ने एक इंटरव्यू में कहा थाकि “रियलिस्ट होने के लिए सैक्सिस्टहोना जरूरी है”. उसका मानना है कि महिलाएं यौन उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार खुद होती हैं.

टैट के मिसोजनिस्टविचार सोशल मीडिया के जरिएयुवाओं में फ़ैलरहे हैं. जुलाई 2024 में, महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा पर रिपोर्ट के लौन्च करने के दौरान डिप्टी चीफ कांस्टेबल मेगीब्लीथ ने कहा कि एंड्रू टैट जैसे इंफ्लुएंसर्स का प्रभाव युवा लड़कों पर खतरनाक रूप से बढ़ रहा है. उन्होंने कहा कि पुलिस अब इस खतरे से निपटने के लिए काउंटर टेरिरिज्म टीमों के साथ मिलकर काम कर रही है.

टैट खुद को एक सेल्फ मेड मिलिनियर बताता है. उस का दावा है कि उसने “वेबकैम बिजनेस” से अपनी संपत्ति बनाई. वह बताया है कि”मेरा काम था लड़कियों को मिलना, उनसे डेटिंग करना, उन्हें प्यार में फंसाना और फिर उन्हें वेबकैम पर काम करने के लिए तैयार करना ताकि हम साथ में अमीर हो सकें.”

वह अपने फौलोवर्स को बताता है कि महिलाएंकमज़ोर कैरेक्टर वाली होती हैं जो सिर्फसैक्स केलिए अच्छी हैं, और जिन सेफिजिकली, सैक्सुअली औरइमोशनलीएब्यूजकिया जा सकता है. वहमानता है कि किसी मर्द के लिए ऐसा सोचना उसे पिक अप आर्टिस्ट या पीयूए ग्रुप का हिस्सा बनाता है.दरअसल पीयूए विदेशों में चल रहे मर्दवादी और स्त्रीविरोधी लोगों का औनलाइन ग्रुप है.

टेट पहली बार 2016 में यूके के रियलिटी शो “बिग ब्रदर” में एक कंट्रोवर्शियल कंटेस्टेंट के रूप में सामने आया था. बिग ब्रदर काइंडियन वर्जन ‘बिग बौस’ है. वही बिग बौस जहां इन दिनोंसोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर भरे जा रहे हैं. हाल ही में एल्विश यादव और लव कटारिया जैसे मिसोजनिस्ट इन्फ्लुएंसर को यहां लाया गया औरउस से बड़ी हैरानी यह कि एल्विश यादव जैसा लफंगा इन्फ्लुएंसर इस शो से विनर बन कर निकलता है. और अब ख़बरों में इन्टरनेट के बदमाश रजत दलाल के आने की चर्चा है.

2022 में, आस्ट्रेलिया में डोमेस्टिक वायलेंस के रिसर्चरों ने एंड्रू टेट की यूथ में बढ़ती पहुंच के बारे में चेतावनी दी थी. इस चेतावनी में टेट को एक प्रीडेटर तक कहा गया जो युवाओं को कंजर्वेटिकऔर फंडामेंटालिस्ट बना रहा है.यहांतक कि ब्रिटेन में, स्कूल प्रशासकों ने स्टूडैंट्स के बीच टेट के प्रभाव की पहचान करने और उसका मुकाबला करने के लिए एक नया पाठ्यक्रम तकतैयार किया है.

ऐसा नहीं है कि टैट जैसे इन्फ्लुएंसर्स सिर्फ विदेशों में हैं. भारत में भी ऐसे कई इन्फ्लुएंसर्स हैं जो अपने कंटेंट में कुछ भी उलजलूल कहते रहते हैं खासकर महिलाओं के मामले में कहते समय वे जरा भी नहीं सोचते. ऐसा कहा जा सकता है कि बहुत मौकों पर वे जानबूझ कर कहते हैं.

उदाहरण के लिए एल्विशयादव को ‘रोस्ट’ की आड़ में महिलाओं के बारे में टिप्पणियां करना खासा पसंद है. एल्विश यादव ने अपने रोस्ट वीडियोज के ज़रिए प्रसिद्धि पाई लेकिनवह रोस्ट में लड़कियों के मेकअप, शरीर की बनावट, लड़कियों की पसंद न पसंद पर टिप्पणी करते दिखाई देता रहा है. यही नहीं गाड़ी चलाते हुए वह स्कूटी से जारही लड़कियों को खुलेआम छेड़ता दिखाई देता है और कमेंट पास करते दिखाई देता है.एल्विश यादव जहरीले सांपों की तस्करी का भी आरोपी है. ऐसे ही इन्फ्लुएंसर लक्ष्य चौधरी, दिग्विजय राठी, लव कटारिया, अनिरुद्धचार्या और देवकीनंदन महाराज हैं जिन की बातों और सोशल मीडिया में फैलाई जा रही रील्स में लड़कियां मूर्खों की तरह दिखती हैं. दिमाग से तेज लड़की को चालू दिखाया जाता है. कई इन्फ्लुएंसर अपनी रील्स में अपने दुखों, बरबादी और परेशानियों का कारण ही लड़कियों को दिखाते हैं.हर कोई खुद को फिल्म‘एनिमल’ केरणबीर कपूर (अल्फ़ा मेल) किरदार की तरह दिखाने की कोशिश करता है. इन तरह के इन्फ्लुएंसर्स की रील्स मेंसोफ्ट स्पोकनऔरलड़कियों से प्यार से बात करने वाले लड़कों को गेहोनेजैसा बताया जाता है.

इन जैसे इन्फ्लुएंसर्स का प्रभाव सिर्फ औनलाइन ही नहीं हो रहा है, बल्कि स्कूलों और कालेजों में भी देखा जा रहा है.लड़कों की भाषा में बदलाव आने लगा है. उनकी भाषा में इसी तरह के स्लैंग दिखाई देते हैं.इन इन्फ्लुएंसर्स का असरटीनएजर्स पर अधिक पड़ता है. इस तरह के इन्फ्लुएंसर्स पैदा हो रहे हैं क्योंकि वह लड़कियों को ले कर एक तरह की धारणा बन लेते हैं. लड़कियां गाड़ियां नहीं चला सकतीं, घर तोड़ती हैं, ‘गोल्ड डिगर’ होती हैं, हमेशा धोखा देती हैं, वगेरहवगेरह का प्रचारप्रसार सोशल मीडिया के माध्यम ही हो रहा है, जिसे यही इन्फ्लुएंसर्स बढ़ावा देते हैं.

सही बौडी लैंग्वेज से बनाएं फ्रैंडली कनैक्शंस

कई दफा जो बात हम जुबान से नहीं कह पाते वह हमारी बौडी लैंग्वेज कह देती है. हमारी बौडी लैंग्वेज यानी हमारे हावभाव हमारे दिल और दिमाग से कनैक्टेड होते हैं. तभी तो जुबान की तरह ये हमें एक्सप्रेस करने में हेल्प करते हैं. अकसर हम जो बात करते हैं लोग उस का सिर्फ 50 प्रतिशत ही सुनते हैं. बाकी का काम बौडी लैंग्वेज करती है. यूसीएलए के प्रोफैसर एलबर्ट मेहराबियान के अनुसार किसी की बात को समझने में 55 प्रतिशत सहायता हमारी बौडी लैंग्वेज यानी शारीरिक प्रतिक्रयाएं करती हैं.

 

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शारीरिक भाषा में पहली एकेडमिक इन्वेस्टीगेशन किसी और ने नहीं बल्कि चार्ल्स डार्विन ने लिखी थी. उन की ‘द एक्सप्रेशन औफ द इमोशंस इन मैन एंड एनिमल्स’ किताब 1872 में प्रकाशित हुई थी. इस भाषा को समझना काफी दिलचस्प है. इस बौडी लैंग्वेज के जरिए हम किसी को दोस्त और किसी को दुश्मन बना सकते हैं. हम किसी के प्रति प्यार तो किसी के प्रति नफरत दर्शा सकते हैं. हम किसी को यह समझा सकते हैं कि उन में हमारी कोई रूचि नहीं तो किसी को यह अहसास भी दिला सकते हैं कि हमें उन की चाहत है और हम उन से दोस्ती करना चाहते हैं.

हमारी आंखों की मुसकान बताती है हमें कितना प्यार है

जब हम किसी को पसंद करते हैं तो हमारे दिल से निकली मुसकान हमारी आंखों से छलकती है. जब हम खुशी से मुसकरा रहे होते हैं तो हमारी आंखें भी हंसती हैं. किसी को करीब पा कर या उस से दिल की बातें कर हमें जो सुकून मिलता है और ह्रदय में जो तितलियां सी उड़ने लगती हैं उस का खुलासा हमारी मदमस्त मुसकान करती है. मगर जब हम दिल से नहीं हंसते और केवल हंसने का दिखावा करते हैं तो इस हंसी के पीछे की सचाई दूसरों को समझ आ जाती है.

यह तब होता है जब हम फेक स्माइल यानी झूठी हंसी ओढ़ते हैं. अगर कोई सिर्फ खुश दिखने की कोशिश कर रहा है लेकिन है नहीं तो उस की बौडी लैंग्वेज खासकर आंखों से इसे समझ पाना आसान होता है. इसलिए कहा जाता है कि अगर दिल के रिश्ते को पाना है तो हंसी भी रियल वाली होनी चाहिए.

चढ़ी या उठी हुई भौंहें रिश्तों में लाती हैं दूरी

जिस तरह ‘रियल मुसकराहट’ का पता हमारी आंखों में छिपा होता है ठीक उसी तरह हमारे मन की बेचैनी और अनिक्छा का पता चढ़ी हुई या तनी हुई भौंहे दे देती हैं. इसलिए अगर रिश्ते में प्यार और सकरात्मकता चाहिए तो ऐसी बौडी लैंग्वेज से तौबा कर लें.

बात करते समय आवाज के उतारचढ़ाव से व्यक्ति की रुचि का पता चलता है

हमारी आवाज का उतारचढ़ाव, बोलने का तरीका या बोलते समय बातों पर दिया जाने वाला जोर बातचीत में हमारी रुचि को प्रदर्शित करता है. किस की बात को हम रुचि ले कर सुन रहे हैं और किस की बात में हमारी रूचि नहीं या हम किस के जाने की राह देख रहे हैं यह सब हमारे बोलने के टोन या तरीके से पता चल जाता है. इसलिए आप जिस के करीब जाना चाहते हैं या जिस का साथ चाहते हैं उस से बातें करते समय अपने बोलने के टोन पर हमेशा ध्यान दें.

अगर वे आप की बौडी लैंग्वेज को मिरर कर रहे हैं तो समझ लीजिए बातचीत सही दिशा में है

दो लोगों में जब बातचीत हो रही होती है तो बातचीत के दौरान प्रयोग किए जाने वाले जेस्चर, तरीके, हाथों या मुंह के मूवमेंट हर चीज से आप को बातचीत का नेगेटिव या पौजिटिव पहलू सब समझ आएगा. कहने का अर्थ है कि जब दो लोग आपस में बात कर रहे होते हैं तो उन की मुद्राएं एकदूसरे का दर्पण होती हैं.

उदाहरण के लिए यदि हमारी सहेली पैर क्रौस कर के बैठती है तो हम भी वैसे ही बैठ जाते हैं. हमारी सहेली के चेहरे पर मुसकान आती है तो हम भी हंस पड़ते हैं. यानी हम अपनी सहेली से बहुत अच्छी तरह कनैक्ट कर पा रहे हैं. मनोवैज्ञानिक बारबरा फ्रेडरिकन कहती हैं कि जब दो लोग एकदूसरे से कनैक्शन फील करते हैं या उन में किसी भी तरह का सकारात्मक जुड़ाव होता है तब ऐसा होता है. यानी तब हम एकदूसरे को मिरर करते हैं.

आंखों में देख कर बात करना रुचि दर्शाता है

जब कोई व्यक्ति सीधे हमारी आंखों में देख कर बात करता है तो कुछ देर के लिए हम असहज महसूस करने लगते हैं. दरअसल जब हम किसी की आंखों में लगातार देखते हैं तो शरीर में एक उत्तेजनापूर्ण स्थिति पैदा होती है. इसी से हम असहजता महसूस करते हैं. क्लेयरमोंट मैककेना कालेज के मनोवैज्ञानिक रोनाल्ड ई रिगियो कहते हैं, ‘किसी अजनबी द्वारा घूरे जाने पर जहां ऐसा आई कौन्टैक्ट डर या भय का माहौल बनाता है और हमें सचेत होने के संकेत देता है. वहीं एक संभावित पार्टनर या प्रेमी को टकटकी लगा कर देखने से प्यार के अहसास पैदा होते हैं जो सकारात्मक रूप में महसूस किए जा सकते हैं. इस के विपरीत अगर हम बातें करते समय सामने वाले के बजाए इधरउधर देख रहे होते हैं तो इस का मतलब है हमें उस की बातों में इंटरेस्ट नहीं आ रहा या हम उस से कनैक्ट होना नहीं चाहते.

इसलिए ध्यान रखें कि बात करते समय आंख से आंख मिलाना संकेत देता है कि आप ध्यान दे रहे हैं. लेकिन बहुत ज्यादा आंख से आंख मिलाना लोगों को परेशान कर सकता है. एक अध्ययन के अनुसार 60-70% समय आंख से आंख मिलाना भावनात्मक संबंध स्थापित करने के लिए आदर्श है.

पैर क्रौस कर के बैठना यानी बातचीत में बुरा संकेत

अकसर हम ने देखा होगा बचपन में हमारे बड़े हमें पैर क्रौस कर के बैठने को मना करते थे. उस का कारण ही यही था कि इसे एक ‘निगेटिव साइन औफ बौडी लैंग्वेज’ माना जाता है. वैसे भी हमारे सामने जब कोई कुर्सी पर पीछे की ओर टेक ले कर पैरों को क्रौस करे आराम से बैठता है तो उसे देख कर ही समझ आ जाता है कि यहां बातचीत का आगे बढ़ पाना मुश्किल है.

मनोवैज्ञानिक रूप से भी क्रौस किए गए पैरों का संकेत एक व्यक्ति के मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक रूप से बंद होने से लगाया जाता है. जिस का अर्थ है- कि उन के साथ किसी तरह की बातचीत, सलाह या फीलिंग्स के आदानप्रदान होने की संभावना न के बराबर ही है. इस के विपरीत कोई आराम से करीब हो कर बैठता है तो उस के बैठने का अंदाज दोस्ती का इशारा कर देता है.

फीलिंग्स का असली कनैक्शन

कई दफा आप अपनी फीलिंग्स अपने हावभाव से दर्शा सकते हैं और इस के लिए कई सारी गतिविधियां शामिल करनी पड़ सकती हैं. खासकर अपने प्यार का अहसास अगर आप बिना बोले जाहिर करना चाहती हैं तो आप को बौडी लैंग्वेज की मदद मिल सकती है. उदाहरण के लिए न्यूरोसाइकोलौजिस्ट मार्शा ल्यूकस किसी फीमेल फिल्मी कैरेक्टर के एक उदाहरण से समझाती हैं, ‘उस ने आंखें मिलाई फिर वह नीचे देखने लगी. फिर उस ने हौले से नजरें उठा कर आंखों के कोने से फिर मुझे छेड़ा. फिर वह अपने बालों को छेड़ते हुए हौले से मुसकरा देती है.’ हुआ न यह एक पूरा संदेश यानी संकेतों का पूरा जखीरा.

यदि वे आप के साथ हंस रहे हैं

यदि कोई आप के मजाक या ह्यूमर पर हंसता है, आप के वन लाइनर्स उसे समझ में आते हैं, वह उन पर रिस्पोन्ड भी करता है तो हो सकता है वह आप में रुचि रखते हों. दरअसल हास्य किसी रिश्ते के बनने की इच्छा रखने को इंगित करता है. कहने का अर्थ है कि हमें किसी का साथ कितना पसंद है या नहीं इस का अंदाजा हम इस बात से लगा सकते हैं कि हमारा साथ और हमारी बातें वह कितना एन्जोय कर रहा है. जब आप उस के साथ होती हैं तो वह कितना खुश रहते हैं या उस के साथ आप कितना हंसती हैं या रिलैक्स फील करती हैं.

पैर हिलाना यानी मन का अस्थिर होना

मैसाचुसेटस के प्रोफैसर सुसान व्हिटबौर्न के अनुसार, ‘पैर हमारे शरीर का सब से बड़ा क्षेत्र होते हैं और जब वे मूव करते हैं या कहें हम उन्हें जल्दीजल्दी हिलाते हैं तो उन की अनदेखी करना नामुमकिन सा होता है. अस्थिर या हिलता हुआ पैर अशांत मन, चिंता, तनाव या जलन इन में से किसी भी बात का संकेत दे सकता है.’

पूरी तरह से उन की ओर मुड़ें

जब आप के शरीर का केवल एक हिस्सा जैसे कि आप का सिर, किसी दूसरे व्यक्ति की ओर मुड़ा होता है तो यह उन्हें बताता है कि आप बातचीत में शामिल नहीं हैं और शायद बातचीत से जल्दी बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं. किसी को जीतने का एक सरल और शक्तिशाली तरीका है अपने पूरे शरीर को उन की ओर मोड़ना.

सिर हिलाएं लेकिन बहुत ज्यादा नहीं

सिर हिलाना सामने वाले को बताता है कि आप उन की बात सुन रहे हैं और उन की बातों में दिलचस्पी रखते हैं. लेकिन आंख से आंख मिलाने की तरह जहां थोड़ाबहुत अच्छा होता है वहीं बहुत ज्यादा सिर हिलाना नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. बहुत ज्यादा सिर हिलाना अधीरता का संदेश देता है जैसे कि आप बातचीत को जल्दी खत्म करने की कोशिश कर रहे हों.

विनम्रता के साथ मिलना

जब भी आप किसी से मिलें तो अपने चेहरे पर एक विनम्र भाव अवश्य रखें. आप को सब से पहले मिलने वाले इंसान के साथ विनम्रता से हाथ मिलाना है और बड़ी शालीनता के साथ उन का कुशल मंगल पूछना है फिर आगे अपनी बात को बढ़ाना है. इस से आप अपनी बात को एक अच्छी शुरुआत दे सकते हैं और यह एक अच्छी बौडी लैंग्वेज को भी दर्शाता है.

स्माइली फेस

मुसकराता हुआ चेहरा किसे पसंद नहीं है. जब भी आप किसी से मिलने जाते हैं तो अपने चेहरे पर एक हल्की मुसकान रखें. किसी भी प्रकार का स्ट्रैस आप के चेहरे पर नजर नहीं आना चाहिए. जब भी कोई इंसान आप का मुसकराता हुआ चेहरा देखेगा तो वह आप से बातें करे बिना रह नहीं सकता और बिना किसी हिचक और परेशानी के सहजता के साथ आप से बातें करेगा.

सकारात्मक रहें

जब भी आप किसी से रिश्ता आगे बढ़ाना चाहते हैं तो अपने व्यवहार को सकारात्मक रखें. अगर आप अपने साथ नकारात्मकता को ले कर जाएंगे तो कोई इंसान आप से प्रभावित नहीं हो सकता. अतः आप को प्रयास करना चाहिए जब भी आप किसी से मिले तो एक सकारात्मक ऊर्जा के साथ मिलें ताकि सामने वाला आप के सकारात्मक विचारों से प्रभावित हुए बिना न रह सके.

शारीरिक भाषा समझने के लाभ

जाहिर है बौडी लैंग्वेज को समझने और उस का इस्तेमाल करने के तरीके में सुधार कर के आप दूसरों के साथ बेहतर तरीके से जुड़ सकते हैं. इस से आप को यह देखने में मदद मिलेगी कि कोई आप से कितना जुड़ा हुआ है, क्या वह आप का साथ एन्जोय कर रहा है? आप इस के जरिए ज्यादा दोस्त बना सकते हैं या अपने प्यार को भी पा सकते हैं.

वैसे बौडी लैंग्वेज के बारे में एकदम से किसी नतीजे तक नहीं पहुंचना चाहिए. इसे महज एक संकेत के रूप में देखने का प्रयास करें. बौडी लैंग्वेज के विभिन्न संस्कृतियों या परिस्थितियों में कई अर्थ हो सकते हैं. उदाहरण के लिए जम्हाई लेना यह संकेत देता है कि सामने वाला ऊब चुका है और उसे बातचीत करने में मजा नहीं आ रहा. लेकिन कई बार अगर कोई सच में थका हुआ है या नींद पूरी न हुई हो तो उसे बातचीत करते हुए बार बार उबासी आ सकती है. यानी किसी दिए गए व्यवहार का हमेशा एक ही मतलब नहीं होता. बौडी लैंग्वेज जटिल होती है और संदर्भ पर भी निर्भर कर सकती है. बौडी लैंग्वेज को लोगों की बातों के साथ जोड़ कर देखना चाहिए.

अस्वच्छता देश के हित में : इस में बुराई क्या है

आजकल जिसे देखो वही राष्ट्रहित में देश को अस्वच्छ बनाने में दिलोजान से जुटा है. कइयों ने तो इस कार्यक्रम की नब्ज और फायदे पहचान कर अपने पुराने सारे काम बंद कर देश को अस्वच्छ करने का नया काम शुरू कर दिया है. प्रोग्राम ताजाताजा है, इसलिए इस काम मेें अभी कमाई की अपार संभावनाएं हैं. वैसे भी, राष्ट्र स्तर पर जब कोई नया काम शुरू होता है तो उस में रोजगार के अपार अवसर हों या नहीं, पर कमाई की अपार संभावनाएं जरूर प्रबल रहती हैं. तब कमाई के हुनरी दाएंबाएं चोखी कमाई कर ही लेते हैं और हर नए प्रोग्राम से अपने बैंक खातों को ठीकठाक भर लेते हैं.

अस्वच्छता से भी कमाई निकल आएगी. किसी दिमागदार ने क्या सपने में भी ऐसा सोचा था? नहीं न? कम से कम मैं ने तो ऐसा नहीं सोचा था कि अपने देश का कूड़ा भी इनकम के उम्दा सोर्स पैदा करने का हुनर रखता है.

वे कल कई दिनों बाद मिले. सुना था कि उन्होंने देश को अस्वच्छ करने का ठेका भर रखा है. इसलिए दिख नहीं रहे. ठेका भरें क्यों न, वे कुशल ठेकेदार हैं. हर किस्म के ठेके उन के आगेपीछे घूमते हैं. वैसे इस देश में बिना ठेके के कोई भी काम पूरा नहीं होता. काम चाहे बनाने का हो, चाहे गिराने का. हर जगह ठेके की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. इसीलिए तो हर किस्म की सरकार को ठेकेदार पर अपने से भी अधिक भरोसा होता है. इस देश में विकास और विनाश के मामले में उतनी भूमिका प्रकृति की नहीं, जितनी ठेके वालों की है. उन के बिना अपना देश टस से मस नहीं हो सकता. देश के सारे काम मरने से ले कर जीने तक के ठेके पर ही चल रहे हैं. दूसरी ओर मरने वाले, जीने वाले दिनरात अपने हाथ मल रहे हैं.

बातों ही बातों में उन्होंने अपनी व्यस्तता व्यक्त करते हुए मेरी जेब से मेरा रूमाल निकाल अपना पसीना पोंछते कहा, ‘‘यार, जब से देश को अस्वच्छ करने का काम चला है, सिर खुजाने तक का वक्त नहीं निकाल पा रहा हूं. पता नहीं यह देश कब अस्वच्छ होगा? होगा भी या नहीं?’’ वाह, चेहरे पर क्या गंभीर आवरण. काश, ऐसा आचरण हमारा भी होता.

वे ठेकेदार वाले चेहरे का मूड छोड़, दार्शनिक वाले मूड में आए, तो मैं अपनी बगलें झांकने लगा. इस देश में कोई किसी मूड में हो या न हो, हर शख्स दार्शनिक वाले मूड में जरूर रहता है और अवसर न मिलने के बाद भी वह अपनी दार्शनिकता को झाड़ने का मौका निकाल ही लेता है. हम किसी और चीज में माहिर हों या नहीं, पर मौका निकालने में बड़े माहिर हैं. हमारी सब से बड़ी विशेषता भी यही है जो हमें दूसरों से अलग करती है.

‘‘जब तक हम रहेंगे, इस देश को स्वच्छ कोई नहीं कर सकता. मित्रो, अगर अफसरों के बदले भगवान के हाथ किन्हीं खाली हाथों में सौ झाड़ू पकड़ा दें और वे आगेआगे झाड़ू लगाते रहें तो दांत निपोरते उन के पीछेपीछे उन के ही खास बंदे कूड़ा डालते रहेंगे. अस्वच्छता का प्रोजैक्ट इस देश में कभी न खत्म होने वाला अनंतकालीन प्रोजैक्ट है. इसीलिए इस में कमाई की अपार संभावनाएं भी हैं,’’ मैं ने कहा तो उन्होंने अपने कंधे उचकाए, ‘‘नहीं, ऐसी तो बात नहीं, दोस्त. सरकार अस्वच्छता के प्रति पूरी तरह दृढ़संकल्प है. अब देखो न, सरकार ने पशुओं तक को तय कर दिया है कि वे सड़क पर एक तय वजन से अधिक गोबर नहीं कर सकेंगे. देखा, हमारी सरकार अस्वच्छता के प्रति कितनी वचनबद्ध है?’’

यह सुन कर न हंसा गया न रोया गया. वैसे किसी और जगह तो बंदा हंस सकता है, रो सकता है, पर जब अपनी ही चुनी सरकार के निर्णय पर बंदा हंसने लगे तो फजीहत सरकार की नहीं, डायरैक्टली-इनडायरैक्टली बंदे की ही होती है.

‘‘पर पशुओं के गोबर को तोल कर कौन पता लगाएगा कि उस ने तय मानकों के बराबर ही उस दिन का गोबर सड़क पर किया है?’’ मेरे लिए यह सवाल बहुत बड़ा था.

‘‘सरकारी मशीनरी काहे को है दोस्त? सारा दिन तो कुरसियों पर बैठ एकदूसरे को उल्लू ही बनाती रहती है. अब से सब तराजू ले कर हर पशु के पीछे…’’ इन दिनों वे इस सरकार के खास बंदे हैं, सो, सरकार की तरफ से फटाक से फाइनल फैसला दे डाला.

‘‘अपने यहां आदमी भले ही आदमी न हो, पर मान लो, जो समझदार पशु ने लाख रोकने के बाद भी निर्धारित सीमा से अधिक गोबर सड़क पर कर दिया तो?’’

‘‘अगर ऐसा पाया गया तो पशु के मालिक को सजा दी जाएगी,’’ एक और कड़ा फैसला.

‘‘पशु के मालिक को सजा…यह कहां का न्याय है, सर? गोबर करे कोई, और भरे कोई?’’

‘‘देखो जनाब, देश को अस्वच्छ रखने के लिए किसी को तो सजा देनी ही पड़ेगी न? अब पशु किस का है? मालिक का ही न? ऐसे में देश को अस्वच्छ बनाने के लिए या तो वह अपने पशु को समझाए या…’’

‘‘पर किसी के समझाने से इस देश में समझता ही कौन है, चाचा?’’

‘‘नहीं समझता, तो सजा भुगते.’’

‘‘पर पशु की सजा उस के मालिक को क्यों?’’

‘‘देखिए, सजा तो किसी न किसी को होनी ही है. सजा का काम हर हाल में होना है. उसे यह थोड़े ही देखना है कि वह किसे हो रही है. किसी को भी, बस, सजा हो जाए, ताकि कानून बना रहे…’’

वे अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाए थे कि मैं ने साफ देखा कि सामने से लोग एक बंदे को गधे पर बैठा कर ला रहे थे. सोचा, किसी और के रंग के, रंगेहाथों पकड़ा गया होगा बेचारा. बिन पहुंच वालों के साथ अकसर ऐसा ही होता रहता है अपने समाज में. कमजोर के हाथ बिना रंग ही रंग दिए जाते हैं, उसे कोई भरोसा दे. और रंगे हाथों वाले पुलिस थाने के बाहर लगे नल में अपने हाथ उन्हीं का साबुन ले धोते रहते हैं.

‘‘यह क्या हो गया? क्या किया इस ने?’’

तो पास वाला मुसकराता बोला, ‘‘अरे, कुछ नहीं साहब, होना क्या?? इस का पशु दैनिक निर्धारित गोबर से अधिक गोबर कर देश को अस्वच्छ कर रहा था. पकड़ा गया, सो…पशु तो पशु है, सर. पर अगर कुछ समझदार को सजा दो तो वह सुधर जरूर जाता है. यही कानून का विधान है.’’

व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी की नौलेज का नमूना कंगना रानौत

कंगना कंट्रोवर्सी का इस्तेमाल कर के, बदनाम होंगे तो क्या नाम नहीं होगा, की तर्ज सोशल मीडिया की चर्चाओं में छाई रहती हैं. क्योंकि भाजपा पूरी सोशल मीडिया की देन है, राजनीति में एंट्री लेने और हिमांचल के मंडी से सांसद बनने का मौका भी उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल होने पर मिला था. यही कारण है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर बनी फिल्म ‘एमरजैंसी’ के प्रचार के दौरान उन के सामाजिक और राजनीतिक बयान फिर से विवादों में घिर गए हैं जो उन्होंने न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के पोडकास्ट पर जाजा कर दिए हैं.

 

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एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “सभी ने देखा जहां प्रदर्शन हुआ वहां क्या हुआ, प्रदर्शन के नाम पर हिंसा फैलाई गई. जहां किसान आंदोलन हुए, वहां रेप हुए, लोगों को मार कर लटकाया जा रहा था. पूरा देश चौंक गया. वो किसान आज भी वहां हैं, लौटे नहीं. उन्होंने वापस जाने का कभी सोचा ही नहीं. वे लंबी प्लानिंग से आए जैसी बांग्लादेश में हुई.”

इसी इंटरव्यू में वह आगे कहती हैं, “अमेरिका, चीन जैसी विदेशी ताकतें देश के खिलाफ काम कर रही हैं. फिल्मी लोगों को लगता है कि देश भाड़ में जाए, हमारी दुकान चलती रहेगी. ऐसा नहीं है… देश भाड़ में जाएगा तो आप भी साथ भाड़ में जाएंगे.”

इस बयान के बाद उन्हीं की पार्टी भाजपा ने हरियाणा में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए उन से पल्ला झाड़ लिया. पार्टी ने कहा, “पार्टी कंगना के बयान से असहमति व्यक्त करती है और पार्टी के नीतिगत विषयों पर बोलने के लिए कंगना को अनुमति नहीं है.”

मगर कंगना तो कंगना है, वह यहीं तक नहीं रुकीं. एक दूसरे इंटरव्यू में उन्होंने आरक्षण और जातीय जनगणना जैसे गंभीर विषयों पर विवादित बयान दिया. उन्होंने कहा, “जातिगत जनगणना पर मेरा वही स्टैंड है जो सीएम योगी आदित्यनाथ का है, साथ रहेंगे, नेक रहेंगे, बंटेंगे तो कंटेंगे. जातिगत जनगणना बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए. हमें अपने आसपास के लोगों की जाति की जानकारी नहीं है और ऐसे में जाति का पता लगाने की आवश्यकता क्यों है? आज तक जाति के आंकड़े नहीं जुटाए गए, तो अब क्यों इस प्रक्रिया की जरूरत महसूस की जा रही है?”

जब एंकर ने उन से कहा कि जातीय जनगणना के जुटाए आंकड़ों से सरकार देश कि नीतिगत फैसले तय कर सकेगी तो कंगना ने कहा, “अगर हमें विकसित भारत की तरफ जाना है तो गरीब, महिला और किसानों की ही बात होनी चाहिए. लेकिन अगर हमें देश को जलाना है, नफरत करना है या फिर एकदूसरे से लड़ना है तो जाति जनगणना होनी चाहिए.”

इन बयानों को ले कर तरहतरह की बातें होने लगी हैं. कोई इसे भाजपा का असली एजेंडा बता रहा है तो कोई कंगना का अपनी फिल्म को चर्चाओं में लाने का हथकंडा. यह दोनों बातें अपनी जगह सही हो सकती हैं मगर असली बात है कंगना को व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से लगातार मिल रहगी आधीअधूरी जानकारी. कंगना रानौत का रुझान जैसेजैसे राजनीति की तरफ होता गया है वैसेवैसे वह उन सोशल मीडिया ग्रुप्स व उस से जुड़े लोगों का हिस्सा बनती गई हैं जो सोशल मीडिया पर भ्रम फैलाने का काम करते हैं.

कंगना की बातें सोशल मीडिया ट्रोलर की तरह जान पड़ती हैं. वह ट्रोलर जो हर बात को देशद्रोह, धर्म और राष्ट्रवाद से जोड़ता है. दिसंबर 2020 में बीबीसी ने 88 साल की बुजुर्ग महिला किसान महिंदर कौर का एक वीडियो पोस्ट किया था. महिंदर झुकी हुई कमर के बावजूद झंडा लिए पंजाब के किसानों के साथ मार्च करती नज़र आ रही थीं.

महिंदर कौर की इस तस्वीर के बाद किसान आंदोलन के विरोधी खासकर भाजपाई आईसेल द्वारा सोशल मीडिया पर उन की तुलना शाहीन बाग में प्रदर्शन की अगुवाई करने वाली बिलकीस दादी से भी की जाने लगी थी.

उस वक्त कंगना रनौत ने बिलकीस और महिंदर कौर दोनों की तस्वीरें एक साथ ट्वीट करते हुए तंज कसा था, “हा हा. ये वही दादी हैं, जिन्हें टाइम मैगज़ीन की 100 सब से प्रभावशाली व्यक्तियों की लिस्ट में शामिल किया गया था….और ये 100 रुपए में उपलब्ध हैं.”

सोशल मीडिया पर फेक नैरेटिव गढ़े जाते हैं. कंगना रानावत के बयान उन्ही नैरेटिव से मिलतेजुलते दिखाई देते हैं. जैसे, साल 2021 में एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में कंगना रनौत ने कहा था कि ‘भारत को साल 1947 में भीख में आजादी मिली थी और देश को असली आजादी साल 2014 में मिली.’

यह ठीक उसी तरह की व्हाट्सऐप जानकारियां हैं जो सोशल मीडिया पर खूब सर्कुलेट होती हैं. ऐसी जानकारियों में पौराणिक परंपराओं का खूब बखान किया जाता है. कभीकभार तो सती प्रथा और दहेज़ प्रथा जैसी परम्पराओं का भी जस्टिफिकेशन मिलता है. इन जानकारियों में कोई तर्क नहीं होता. कोई तथ्य नहीं होते लेकिन यह सीधे और सिंपल होते हैं और प्राइड का एहसास करते हैं तो सोशल मीडिया पर रोज सुबहशाम गुड मोर्निंग गुड नाईट कि तरह पर खूब ठेले जाते हैं.

जाहिर है कंगना को अपनी फिल्म का प्रचार करना है मगर वह इस से सटीक और नपीतुली बात कह भी नहीं सकतीं क्योंकि उन के दिमाग में सोशल मीडिया कि व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी की जानकारी भरी पड़ी है.

 

पतिपत्नी विवाद, जब पत्नी के हाथों पिटते हैं पति और प्रेमिका

रमा का अपने पति रामकुमार के साथ झगड़ा चल रहा था. शादी के बाद से ही शुरू हुई अनबन के चलते रिश्ते बिगड़ते ही गए. पिछले 4 वर्षों से दोनों के बीच झगड़ा बढ़ गया. मारपीट और पुलिस व कचहरी तक मामला गया. तलाक के लिए मुकदमा किया. तलाक मिलना सरल नहीं. पतिपत्नी दोनों अलग रहने लगे.

रमा अपने मायके में रहने लगी. रामकुमार की दोस्ती सपना से हो गई. सपना और रामकुमार में एक कौमन बात यह थी कि दोनों का अपनेअपने जीवनसाथी से विवाद चल रहा था. सपना का अपने पति से तलाक हो चुका था. वह अब पति से अलग रह रही थी.

एक दिन रामकुमार सपना के साथ अपने फ्लैट में मिल रहा था. अचानक उस की पत्नी रमा अपनी मां और भाई के साथ उस के फ्लैट पर आ धमकी. वह रामकुमार पर आरोप लगाने लगी कि वह सपना के साथ ऐश कर रहा है, जबकि उन का तलाक नहीं हुआ है. पूरे अपार्टमैंट में हंगामा खड़ा हो गया. लोग झगड़े का वीडियो बनाने लगे. इस बीच अपार्टमैंट का रखरखाव देखने वाली संस्था आरएडब्ल्यू के लोग भी आ गए. पुलिस को फोन किया गया. पुलिस आई, सपना और रामकुमार को पकड़ कर थाने ले गई.

रामकुमार और सपना दोनों बालिग थे. एकसाथ फ्लैट में थे, यह कोई कानूनी अपराध नहीं था. पुलिस को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस धारा में बंद करे. रमा और उस के परिवार वाले पुलिस पर दबाव डाल रहे थे. ऐसे में सपना के लिए तो यही सजा से कम नहीं था कि उसे थाने ला कर बेइज्जत किया गया. रामकुमार की पत्नी और ससुराल वालों ने जो मारपीट और बेइज्जती की वह पहले ही किसी सजा से कम नहीं था. पूरे शहर में बात दबी जबान से सब के पास पंहुच गई. पुलिस ने थाने में कुछ देर बैठाने के बाद रामकुमार को शांतिभंग करने के मुकदमे में जेल भेज दिया. पुलिस ने सपना को देररात निजी मुचलके पर छोड़ दिया.

रमा को रामकुमार के साथ रहना भी नहीं है और उसे आजादी से रहने भी नहीं देना चाहती. इस से उस का अपना तो जीवन बरबाद हो ही रहा है, रामकुमार का जीवन भी बरबाद हो रहा है. रमा को इस बात की ही खुशी है कि वह रामकुमार को अपने हिसाब से जीने नहीं दे रही है.

रामकुमार इस बात से बेहद परेशान हो चुका है. वह अब किसी सूरत में पत्नी के साथ रहना नहीं चाहता. दूसरी तरफ कोर्ट उन के तलाक का मुकदमा जल्दी नहीं निबटा रही. इस के चलते रमा, रामकुमार और सपना तीनों की जिंदगी बरबाद हो रही है.

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में प्रेमिका के साथ घूम रहे पति को पत्नी ने पकड़ कर बीच रोड पर जम कर पीटा. पति की प्रेमिका की भी पटकपटक कर पिटाई की. वहीं पुलिस मूकदर्शक बनी रही. मारपीट में घायल हुई प्रेमिका और पत्नी को अस्पताल में भरती करवाया गया है, जबकि पति को पुलिस थाने ले गई. सौहरवा तालाब का रहने वाला राहुल अपनी गर्लफ्रैंड के साथ शिवांशी रैस्टोरैंट के पास घूम रहा था. तभी राहुल की पत्नी सुमन ने उन दोनों को पकड़ लिया और फिर उस ने सड़क पर ही पति राहुल और उस की प्रेमिका की पिटाई करने लगी.
मारपीट के चक्कर में प्रेमिका और पत्नी घायल हो गई. बाद में दोनों को महिला पुलिस जिला अस्पताल में इलाज के लिए ले गई. अस्पताल पहुंचते ही पत्नी फिर पति पर टूट पड़ी और पिटाई करने लगी. मारपीट में पति ने पत्नी को पटक दिया जिस से उस के सिर पर चोट आ गई.

राहुल और सुमन की शादी 6 साल पहले हुई थी. पति राहुल अपनी पत्नी समेत परिवार के साथ लोकनगर चौधरी खजान सिंह महल्ले में किराए के मकान पर रहता था. राहुल हलवाई का काम करता है और पत्नी लोगों के घरों में साफसफाई का काम करती है. पत्नी का आरोप था कि पति राहुल ने चोरीछिपे अपनी प्रेमिका शिल्पी से शादी कर ली है और उस को ले कर वह गांधीनगर स्थित किराए के एक मकान में रहता है.

मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले में अपनी पत्नी के साथ बंद कमरे में एक युवक को देख पति ने हंगामा खड़ा कर दिया. साथ ही, लोगों की भीड़ को मौके पर बुला लिया. महिला और प्रेमी ने कमरे के गेट की कुंडी लगा रखी थी. इस वजह से भीड़ अंदर नहीं घुस सकी. लेकिन इस पूरे मामले का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया. मामला विजयपुर के एक कसबे का है जहां एक महिला अपने पति के साथ किराए के कमरे में रहती है.

रात जब महिला का पति किसी काम से बाहर गया था, तभी रात करीब 9 बजे विजयपुर एसडीएम का रीडर जितेंद्र यादव अपने सरकारी आवास से निकल कर महिला के किराए के कमरे में पहुंच गया. उन्होंने अंदर से गेट की कुंडी भी लगा ली. तभी कुछ देर बाद महिला का पति वहां आ गया. उस ने दरवाजा खटखटाया तो महिला और उस के साथ मौजूद रीडर दंग रह गए. उन्होंने कुछ देर तक दरवाजा नहीं खोला और चुप हो गए. जब खिड़की को धक्का दे कर खोला गया तो उस में रीडर यानी सरकारी बाबू और महिला आपत्तिजनक हालत में दिखाई दिए. यह देख महिला के पति ने हल्ला मचा दिया. यह सुन कर वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई.

भीड़ ने डायल 112 कर के पुलिस बुला ली. मौके पर पहुंच कर पुलिस ने गेट खुलवाया. बाहर निकलते ही मारपीट शुरू हो गई. विजयपुर थाने के टीआई पप्पू सिंह यादव ने कहा, रात डायल 100 पर सूचना मिलने के बाद पुलिस पहुंची थी. लेकिन दोनों पक्षों के बीच सुलह हो गई, इसलिए कार्रवाई नहीं हुई.

लखनऊ के एक रैस्टोरैंट में एक आदमी अपनी गर्लफ्रैंड को ले कर डिनर करने पहुंचा था. दोनों खाना खा ही रहे थे कि उस की पत्नी वहां आ धमकी. पति को दूसरी महिला संग देख पत्नी का पारा चढ़ गया. फिर पत्नी ने भाई के साथ मिल कर पति और उस की गर्लफ्रैंड की जम कर पिटाई की. सड़क पर ले जा कर दोनों को पीटा. इस का वीडियो भी वायरल हुआ है. जब पुलिस वहां पहुंची, तब जा कर मामला शांत हुआ.

सीमित हैं पुलिस के अधिकार

इस तरह के मामले समाज में बढ़ते जा रहे हैं. पहले पत्नियां सारे दुख सहन कर लेती थीं. आज की लड़की आत्मनिर्भर हो रही है. उस के मातापिता भी उन की मदद को तैयार रहते हैं. ऐसे में वह पति के साथ दब कर नहीं रहती. कोई दिक्कत होती है तो वह सब से पहले पुलिस बुला लेती थी. पहले पुलिस बुलाने के लिए थाने जाना पड़ता था. सोर्ससिफारिश लगवानी पड़ती थी. अब केवल मोबाइल से 112 नंबर डायल करने की जरूरत होती है. पुलिस पहुंच जाती है. महिला उत्पीड़न की घटना हो तो पुलिस के साथ कई एनजीओ भी तत्पर हो जाते हैं.

पड़ोसी दुख में भले साथ न दे लेकिन वीडियो बनाने के लिए आ जाते हैं. अब सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियोज वायरल होने लगे हैं जिन में पति और उस के साथ मिली लड़की को प्रेमिका बता दिया जाता है. लोग सब से पहले पुलिस को बुला लेते हैं. पुलिस के आने के बाद मामला भड़क जाता है. पुलिस के पास घरेलू मामलों में मुकदमा दर्ज करने का अधिकार बहुत सीमित हो गया है. ऐसे में वह लोगों को थाने लाती है, फिर मारपीट या शांतिभंग जैसी धाराओं में चालान कर देती है. औरतों को ले कर पुलिस को सावधानी ज्यादा बरतनी पड़ती है. ऐसे में वह उन को लिखापढ़ी कर के थाने से ही जमानत दे देती है.

कोर्ट नहीं करते जल्दी फैसले

मुसलमानों में तलाक के जरिए जल्दी अलगाव हो जाता है. हिंदुओं में शादी कराने वाला पंडित तलाक कराने नहीं आता. हिंदू धर्म में पतिपत्नी का साथ सात जन्मों का माना जाता है. जबकि वह 7 कदम साथ चलने को तैयार नहीं होते. कानून अलग भी नहीं रहने देता. इस का कारण होता है कि पतिपत्नी हिंसक और अराजक हो जाते हैं. वे मरनेमारने पर उतारू हो जाते हैं. दहेज हत्याएं इस का प्रमाण हैं. इस के साथ ही साथ दूसरी तरह की मारपीट की हिंसक घटनाएं होती हैं. इन के पीछे की वजह सैक्स बड़ा कारण होता है. पतिपत्नी के बीच झगड़े की शुरुआत से होती है. इस बात को कोई खुल कर बोल नहीं सकता. ऐसे में झगड़े के दूसरे कारण सामने आते हैं.

कई बार पतियों के बाहर अफेयर हो जाते हैं. कई बार पत्नियां भी बाहर चक्कर चलाने लगती हैं. इन पर लोग नजर रखने लगते हैं. जैसे ही यह पता चलता है कि दो लोग मिल रहे, तीसरा पहुंच जाता है. हंगामा, मारपीट वीडियो और पुलिस सीन में आ जाते हैं. कम कपड़ों में पिटते पति और उन की प्रेमिका के वीडियोज बनने लगते हैं. पूरा समाज इस को चटपटे अंदाज में देखता है. ऐसे मसलों में पुलिस के आने से समझौते की संभावना खत्म हो जाती है. अब कोर्ट को यह करना चाहिए कि तलाक जल्द से जल्द मिल सके, जिस से दूसरा पक्ष जल्द अपना नया जीवन शुरू कर सके.

इन घटनाओं का सारा प्रभाव औरतों पर पड़ता है. धर्म के बताए रास्ते पर चल कर वह या तो पति की प्रताड़ना झेलती रहे. करवाचौथ में उस की आरती उतारे. अपमान और मारपीट सहन कर के भी सात जन्मों वाला रिश्ता निभाए. अगर वह इस के विरोध में खड़ी होगी तो समाज उस को कुलटा बदचलन कहेगा. कोर्ट भी तलाक देने की जगह पर समझौता करने के लिए कहेगा. पुलिस तक मामला गया तो बात बनने की जगह बिगड़ जाएगी.

ऐसे में चाहे पत्नी के रूप में, चाहे प्रेमिका के रूप में बदनामी औरत की होती है. पुरुषवादी समाज में उस पर उंगली नहीं उठती है. ऐसे में जरूरत इस बात की है कि महिला की चाह पर कोर्ट उस का फैसला जल्द से जल्द करे. घर, परिवार और समाज को यह समझना चाहिए कि एक बार मामला पुलिस और कोर्ट तक गया तो इस का हल केवल तलाक ही है. समझौते की कोई गुजांइश नहीं रहती है. कोर्ट को समझौते की प्रक्रिया के बहाने मसले को लटकाने के बजाय जल्द तलाक देना चाहिए, जिस से दोनों आजाद हो कर अपना नया जीवन शुरू कर सकें.

(लेख में कानूनी सलाह के चलते पीड़ितों के नाम बदले गए हैं.)

लव बाइट्स : सैक्स में लाएं फैंटेसी

हर इंसान की सैक्स को ले कर कोई न कोई फैंटेसी तो जरूर होती है. किसी को सैक्स करते समय रोल प्ले करना पसंद होता है तो किसी को सैक्स के कुछ ऐसे प्रोडक्ट्स यूज करने का शौक होता है जिस से कि उस के पार्टनर को एक अलग ही सुख की प्राप्ति हो.

आप ने ऐसी कई फिल्म्स देखी या सुनी होंगी जिस में सैक्स फैंटेसीज के बारे में दिखाया गया है.

प्यार में लव बाइट्स हैं जरूरी

हम सब ने जानेअनजाने एक न एक बार तो अपने पार्टनर को लव बाइट्स तो जरूर दी होंगी या अपने पार्टनर से लव बाइट्स ली होंगी. अकसर आप ने देखा होगा कि लड़के या लड़की के गले पर लाल रंग का हलका सा निशान नजर आता है जिसे लव बाइट कहा जाता है.

कुछ लोग इसे छिपाने की कोशिश करते नजर आते हैं, तो वहीं कुछ लोगों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन की लव बाइट किसी को दिख रही है या नहीं.

लव बाइट्स करती हैं कपल्स को उत्तेजित

ऐसा सुना और देखा गया है कि जब लड़के सैक्स या रोमांस करते समय लड़कियों के गले पर किस करना शुरू करते हैं तो इसे लड़कियां काफी ऐंजौय करती हैं. यह नहीं कि लड़के इस चीज का ऐंजौय नहीं करते बल्कि कई लड़कों को भी काफी पसंद आता है जब लड़कियां उन के गले पर किस करती हैं.

अकसर लव बाइट्स गले पर ही नजर आती हैं क्योंकि गले पर किस करने से कपल्स इतने उत्तेजित हो जाते हैं और उन्हें इतना मजा आने लगता है कि वे इस तरह किस करते हैं जिस से निशान पड़ जाता है.

हैल्दी सैक्स लाइफ की निशानी है लव बाइट्स

यह निशान ज्यादा समय तक नहीं रहता बल्कि 4-5 दिनों में चला जाता है पर इन 4-5 दिनों में वे जब भी आईने में अपनी लव बाइट देखते होंगे तो यह निशान उन्हें उस पल की याद जरूर दिलाता होगा जब उन के पार्टनर ने उन्हें यह लव बाइट दी होगी.

लव बाइट्स देना कोई गलत बात नहीं है बल्कि यह तो प्यार की वह निशानी है जिसे देख पता चलता है कि आप की लव लाइफ काफी अच्छी चल रही है.

कहीं भी दे सकते हैं लव बाइट्स

ऐसा जरूरी भी नहीं है कि आप अपने पार्टनर को सिर्फ उन के गले पर ही लव बाइट्स दे सकते हैं बल्कि आप अपने पार्टनर की बौडी के किसी भी पार्ट पर लव बाइट दे सकते हैं पर आप को ध्यान रखना होगा कि लव बाइट देते समय आप के पार्टनर को कोई तकलीफ न हो और वे आप के लव बाइट देने के तरीके को ऐंजौय करें.

रखें इस बात का खयाल

आप को खयाल रखना होगा कि आप लव बाइट देते समय इतना भी मदहोश न हो जाएं कि आप काफी जोर से अपने पार्टनर को किस करते चले जाएं जिस वजह से आप के पार्टनर को दर्द होने लगे और आप अनजाने में लव बाइट देने के बजाए अपने पार्टनर को जख्म दे बैठें.

अगस्त माह का चौथा सप्ताह कैसा रहा बौलीवुड का कारोबार : विवादों के बावजूद ‘स्त्री 2’ डटी रही मैदान पर

अगस्त माह का चौथा सप्ताह नीरस ही रहा. अगस्त माह के चौथे सप्ताह यानी कि 23 अगस्त को एक भी फिल्म सिनेमाघरों में नहीं पहुंची, बल्कि तीसरे सप्ताह में रिलीज हुई फिल्मों के ही कुछ शो चलते रहे. ‘वेदा’, ‘डबल स्मार्ट’ और ‘खेल खेल में’ तो तीसरे सप्ताह ही दम तोड़ चुकी थीं, मगर ‘स्त्री 2’ जरुर चौथे सप्ताह में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही.

अगस्त माह के तीसरे लंबे सप्ताह में ‘स्त्री 2’ के निर्माताओं ने दावा किया था कि उन की फिल्म ने 290 करोड़ रूपए कमा लिए हैं. जबकि फिल्म का बजट 120 करोड़ रूपए है. (फिल्म को सफलता मिलते ही निर्माता ने अब फिल्म का बजट बता दिया, अन्यथा वह फिल्म का बजट बताने केा तैयार नहीं थे.) उस वक्त भी खबरें उड़ी थीं कि ‘स्त्री 2’ की कौरपोरेट बुकिंग कर के सफल बनाया गया. मगर ‘स्त्री 2’ के निर्माण से जुड़े लोगों के डर से या फिल्म को बौक्स औफिस पर मिल रही सफलता के डर से चौथे सप्ताह यानी कि 23 अगस्त को एक भी नई फिल्म रिलीज नहीं की गई.

हां! 23 अगस्त को एक हौलीवुड फिल्म ‘‘एलियन रोमुटुस’’ रिलीज हुई थी, जिस ने पानी नहीं मांगा. यह फिल्म 7 दिनों के अंदर केवल डेढ़ करोड़ रूपए ही कमा सकी. 23 अगस्त को ही हौलीवुड फिल्म ‘द क्रो’ प्रदर्शित होनी थी, पर इस का प्रदर्शन टाल दिया गया था और अब यह फिल्म पांचवे सप्ताह में 30 अगस्त को रिलीज की गई है.

15 अगस्त के दिन प्रदर्शित हुई फिल्म ‘‘स्त्री 2’’ ने 16 दिन में बौक्स औफिस पर 433 करोड़ रूपए कमाए. पर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े तमाम लोग यह तो मान रहे हैं कि फिल्म ‘स्त्री 2’ को जबरदस्त सफलता मिली है, मगर सभी का आरोप है कि ‘स्त्री 2’ के निर्माता अपनी फिल्म के बौक्स औफिस आंकड़े कम से कम 30 प्रतिशत बढ़ा कर बता रहे हैं. अब मुकेश अंबानी की कंपनी ‘जियो स्टूडियो’ ने जिस फिल्म का निर्माण दिनेश वीजन की कपंनी के साथ मिल कर किया हो, उस को ले कर सच जल्दी सामने नहीं आ सकता. पर हम यह नहीं कहते कि ‘स्त्री 2’ को दर्शक नहीं मिल रहे हैं, पर हवाबाजी ज्यादा है. हम आज भी यही कहेंगे कि ‘स्त्री 2’ को मिल रही सफलता चमत्कार ही है, अन्यथा इस फिल्म में दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित करने वाले तत्व नहीं हैं.

पिछले दो सप्ताह, बल्कि 16 दिन के अंदर अक्षय कुमार की फिल्म ‘खेल खेल में’ ने 26 करोड़ रूपए कमा लिए, जिस में से निर्माता की जेब में बामुश्किल 12 करोड़ रूपए ही जाएंगे. वहीँ निखिल अडवाणी निर्देशित जौन अब्राहम और शरवरी वाघ की फिल्म ‘वेदा’ ने 16 दिन में महज 20 करोड़ रूपए ही कमाए. इस में से निर्माता की जेब में केवल 8-9 करोड़ रुपए ही आएंगे.

पांचवें सप्ताह करीबन 10 छोटीछोटी फिल्में रिलीज हुई हैं, इन में से ज्यादातर के शो पहले दिन ही कैंसिल हो गए. अब पूरे सप्ताह यह फिल्में क्या कमाएंगी इस का हाल हम अगले सप्ताह बताएंगे.

जिन, ताबीज और बाबा : अंधविश्वास का शिकार होते युवाओं की कहानी

किशन अपने पड़ोसी अली के साथ कोचिंग सैंटर में पढ़ने जाता था. उस दिन अली को देर हो गई, तो वह अकेला ही घर से निकल पड़ा.

सुनसान सड़क के फुटपाथ पर बैठे एक बाबा ने उसे आवाज दी, ‘‘ऐ बालक, तुझे पढ़ालिखा कहलाने का बहुत शौक है. पास आ और फकीर की दुआएं लेता जा. कामयाबी तेरे कदम चूमेगी.’’

किशन डरतेडरते बाबा के करीब आ कर चुपचाप खड़ा हो गया.

‘‘किस जमात में पढ़ता है?’’ बाबा ने पूछा.

‘‘जी, कालेज में…’’ किशन ने बताया.

‘‘बहुत खूब. जरा अपना दायां हाथ दे. देखता हूं, क्या बताती हैं तेरी किस्मत की रेखाएं,’’ कहते हुए बाबा ने किशन का दायां हाथ पकड़ लिया और उस की हथेली की आड़ीतिरछी लकीरें पढ़ने लगा, ‘‘अरे, तुझे तो पढ़नेलिखने का बहुत शौक है. इसी के साथ तू निहायत ही शरीफ और दयालु भी है.’’

तारीफ सुन कर किशन मन ही मन खुश हो उठा. इधर बाबा कह रहा था, ‘‘लेकिन तेरी किस्मत की रेखाएं यह भी बताती हैं कि तुझे अपनेपराए की समझ नहीं है. घर के कुछ लोग तुझे बातबात पर झिड़क दिया करते हैं और तेरी सचाई पर उन्हें यकीन नहीं होता.’’

किशन सोचने लगा, ‘बाबा ठीक कह रहे हैं. परिवार के कुछ लोग मुझे कमजोर छात्र होने के ताने देते रहते हैं, जबकि ऐसी बात नहीं है. मैं मन लगा कर पढ़ाई करता हूं.’

बाबा आगे बताने लगा, ‘‘तू जोकुछ भी सोचता है, वह पूरा नहीं होता, बल्कि उस का उलटा ही होता है.’’

यह बात भी किशन को दुरुस्त लगी. एक बार उस ने यह सोचा था कि वह गुल्लक में खूब पैसे जमा करेगा, ताकि बुरे समय में वह पैसा मम्मीपापा के काम आ सके, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

अभी किशन कुछ ही पैसे जमा कर पाया था कि एक दिन मोटे चूहे ने टेबल पर रखे उस की गुल्लक को जमीन पर गिरा कर उस के नेक इरादे पर पानी फेर दिया था.

इसी तरह पिछले साल उसे पूरा यकीन था कि सालाना इम्तिहान में वह अच्छे नंबर लाएगा, लेकिन जब नतीजा सामने आया, तो उसे बेहद मायूसी हुई.

बाबा ने किशन के मन की फिर एक बात बताई, ‘भविष्य में तू बहुत बड़ा आदमी बनेगा. तुझे क्रिकेट खेलने का बहुत शौक है न?’’

‘‘जी बहुत…’’ किशन चहक कर बोला.

‘‘तभी तो तेरी किस्मत की रेखाएं दावा कर रही हैं कि आगे जा कर तू भारतीय क्रिकेट टीम का बेहतरीन खिलाड़ी बनेगा. दुनिया की सैर करेगा, खूब दौलत बटोरेगा और तेरा नाम शोहरत की बुलंदी पर होगा,’’ इस तरह बाबा ने अपनी भविष्यवाणी से किशन को अच्छी तरह से संतुष्ट और खुश कर दिया, फिर थैले से एक तावीज निकाल कर उस की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘यह तावीज अपने गले में अभी डाल ले बालक. यह तुझे फायदा ही फायदा पहुंचाएगा.’’

‘‘तू जोकुछ भी सोचेगा, इस तावीज में छिपा जिन उसे पूरा कर देगा. यकीन नहीं हो रहा, तो यह देख…’’ इन शब्दों के साथ बाबा उस तावीज को मुट्ठी में भींच कर बुदबुदाने लगा, ‘‘ऐ तावीज के गुलाम जिन, मुझे 2 हजार रुपए का एक नोट अभी चाहिए,’’ फिर बाबा ने मुट्ठी खोल दी, तो हथेली पर उस तावीज के अलावा 2 हजार रुपए का एक नोट भी नजर आया, जिसे देख कर किशन के अचरज का ठिकाना नहीं रहा. वह बोला, ‘‘बड़ा असरदार है यह तावीज…’’

‘‘हां, बिलकुल. मेरे तावीज की तुलना फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ के बटुक महाराज से बिलकुल मत करना बालक. फिल्मी फार्मूलों का इनसानी जिंदगी की सचाई से दूरदूर का रिश्ता नहीं होता है.’’

‘‘बाबा, इस तावीज की कीमत क्या है?’’ किशन ने पूछा.

‘‘महज 5 सौ रुपए बेटा,’’ बाबा ने कहा.

तावीज की इतनी महंगी कीमत सुन कर किशन गहरी सोच में डूब गया, फिर बोला, ‘‘बाबा, 5 सौ रुपए तो मेरे पास जरूर हैं, लेकिन यह रकम पापा ने कोचिंग सैंटर की फीस जमा करने के लिए दी है. पर कोई बात नहीं, आप से तावीज खरीद लेने के बाद मैं इस के चमत्कार से ऐसे कितने ही 5 सौ रुपए के नोट हासिल कर लूंगा,’’ यह कह कर किशन ने 5 सौ रुपए का नोट निकालने के लिए जेब में हाथ डाला ही था कि तभी अली पीछे से आ धमका और बोला, ‘‘किशन, यह तुम क्या कर रहे हो?’’

‘‘तावीज खरीद रहा हूं अली. बाबा कह रहे हैं कि इस में एक जिन कैद है, जो तावीज खरीदने वाले की सभी मुरादें पूरी करता है,’’ किशन बोला.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो. ऐसी दकियानूसी बात पर बिलकुल भरोसा मत करो. क्या हम लोग झूठे अंधविश्वास की जकड़न में फंसे रहने के लिए पढ़ाईलिखाई करते हैं या इस से छुटकारा पा कर ज्ञान, विज्ञान और तरक्की को बढ़ावा देने के लिए पढ़ाईलिखाई करते हैं?’’ अली ने किशन से सवाल किया.

तभी बाबा गुर्रा उठा, ‘‘ऐ बालक, खबरदार जो ज्ञानविज्ञान की दुहाई दे कर जिन, तावीज और बाबा के चमत्कार को झूठा कहा. जबान संभाल कर बात कर.’’

‘‘चलो, मैं कुछ देर के लिए मान लेता हूं कि तुम्हारा तावीज चमत्कारी है, लेकिन इस का कोई ठोस सुबूत तो होना चाहिए,’’ अली बोला.

बाबा के बजाय किशन बोला, ‘‘अली, मेरा यकीन करो. यह तावीज वाकई चमत्कारी है. बाबा ने अभी थोड़ी देर पहले इस में समाए जिन को आदेश दे कर उस से 2 हजार रुपए का एक नोट मंगवाया था.’’

अली बोला, ‘‘अरे नादान, तेरी समझ में नहीं आएगा. यह सब इस पाखंडी बाबा के हाथ की सफाई है. तुम रोजाना घर से निकलते हो ट्यूशन पढ़ कर

ज्ञानी बनने के लिए, लेकिन यह क्या… आज तो तुम एक सड़कछाप बाबा से अंधविश्वास और नासमझी का पाठ पढ़ने लगे हो.’’

अली के तेवर देख कर बाबा को यकीन हो गया था कि वह उस की चालबाजी का परदाफाश कर के ही दम लेगा, इसलिए उस ने अली को अपने चमत्कार से भस्म कर देने की धमकी दे कर शांत करना चाहा, लेकिन अली डरने के बजाय बाबा से उलझ पड़ा, ‘‘अगर तुम वाकई चमत्कारी बाबा हो, तो

मुझे अभी भस्म कर के दिखाओ, वरना तुम्हारी खैर नहीं.’’

अली की ललकार से बौखला कर बाबा उलटासीधा बड़बड़ाने लगा.

‘‘क्या बाबा, तुम कब से बड़बड़ा रहे हो, फिर भी मुझे अब तक भस्म न कर सके? अरे, सीधी सी बात है कि तुम्हारी तरह तुम्हारा जंतरमंतर भी झूठा है.’’

अली की बातों से खिसिया कर बाबा अपना त्रिशूल हवा में लहराने लगा.

इस पर अली डरे हुए किशन को खींच कर दूर हट गया और जोरजोर से चिल्लाने लगा, ताकि सड़क पर चल

रहे मुसाफिर उस की आवाज सुन सकें, ‘‘यह बाबा त्रिशूल का इस्तेमाल हथियार की तरह कर रहा है…’’

अली की आवाज इतनी तेज थी

कि सादा वरदी में सड़क से गुजर रहे

2 कांस्टेबल वहां आ गए और मामले को समझते ही उन्होंने बाबा को धर दबोचा, फिर उसे थाने ले गए.

‘‘आखिर तुम इतने नासमझ क्यों

हो किशन?’’ भीड़ छंटने के बाद अली ने किशन पर नाराजगी जताई, तो वह बोला, ‘‘मैं हैरान हूं कि बाबा अगर गलत इनसान थे, तो फिर उन्होंने मेरे हाथ की लकीरें पढ़ कर मेरे मन की सच्ची बातें कैसे बता दीं?’’

अली बोला, ‘‘बाबा ने यह भविष्यवाणी की होगी कि तुम पढ़नेलिखने में तेज हो, तुम बहुत अच्छे बालक हो, लेकिन लोग तुम्हें समझने की कोशिश नहीं करते, तुम जोकुछ सोचते हो, उस का बिलकुल उलटा होता है.’’

‘‘कमाल है, मेरे और बाबा के बीच की बातें तुम्हें कैसे मालूम हुईं अली?’’ पूछते हुए किशन अली को हैरान नजरों से देखने लगा.

अली बोला, ‘‘यह कमाल नहीं, बल्कि आम बात है. बाबा जैसे पाखंडी लोग अपने शिकारी का शिकार करने के लिए इसी तरह की बातों का सहारा लिया करते हैं.’’

‘‘अच्छा, एक बात बताओ अली, बाबा ने मुझ से कहा था कि मुझे क्रिकेट का खेल बेहद पसंद है. एक दिन मैं भारतीय क्रिकेट टीम का बेहतरीन खिलाड़ी बनूंगा और ऐसा मेरा दिल भी कहता है. लेकिन मेरे दिल की यह बात भी बाबा को कैसे मालूम हो गई?’’

‘‘दरअसल, भारत में क्रिकेट एक मशहूर खेल है. इसे बच्चे, बूढ़े, जवान सभी पसंद करते हैं. तभी तो उस पाखंडी ने तुम्हें यह सपना दिखाया कि एक दिन तुम भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी बनोगे.’’

किशन अली की बातें गौर से सुनतेसुनते बोला, ‘‘अच्छा, एक बात बताओ दोस्त, क्या मैं वाकई कभी बड़ा आदमी नहीं बन सकूंगा?’’

‘‘क्यों नहीं बन सकते हो. बड़ा आदमी कोई भी बन सकता है, लेकिन सपने देख कर नहीं, बल्कि सच्ची मेहनत, लगन और ज्ञानविज्ञान के सहारे. आइंदा से तुम ऐसे धोखेबाज लोगों से बिलकुल खबरदार रहना.

‘‘किशन, तुम खुद सोचो कि अगर बाबा का तावीज चमत्कारी होता, तो फिर वह फुटपाथ पर बैठा क्यों नजर आता? तावीज के चमत्कार से पहले तो वह खुद ही बड़ा आदमी बन जाता.’’

‘‘तुम ठीक कह रहे हो अली,’’ किशन ने अपनी नादानी पर शर्मिंदा होने के अलावा यह मन ही मन तय किया कि अब वह कभी किसी के झांसे में नहीं आएगा.

चोटीकटवा भूत : क्या थी उस भूत की असलियत

रामप्यारी सुबह से परेशान घूम रही है. आजकल उस के पति की दूधजलेबी की दुकान ठप पड़ी है. वहीं पीपल के नीचे रामू की दुकान के लड्डू ज्यादा बिकने लगे हैं. लोग अब इधर का रुख कम ही करते हैं.

दुलारी की परेशानी थोड़ी अलग है. उस का बेरोजगार शराबी पति और झगड़ालू सास उस की सारी कमाई हड़प जाते हैं, बदले में मिलती हैं उसे सिर्फ गालियां. बड़ीबड़ी कोठियों में उसे कुछ रुपए ऊपरी काम के भी मिल जाते हैं, जिसे वह घर वालों की नजर में आने नहीं देती और छिप कर अपने शौक पूरे करती है. उस का बड़ा मन होता है कि मेमसाहब की तरह वह भी ब्यूटीपार्लर से सज कर आए.

श्यामा 27 साल की गठीले बदन की लड़की है. छोटे भाईबहनों को पालने का जिम्मा उसी के कंधे पर है. मां टीबी की मरीज हैं.

श्यामा का अपने पड़ोसी ननकू के साथ जिस्मानी रिश्ता बना हुआ है. मगर एक डर भी है कि उस का भेद ननकू की बीवी पर खुल गया, तब क्या होगा? वह एक अजीब से तनाव में रहती है.

प्रेमा के सिर पर हीरोइन बनने का भूत सवार है. वह अपनी सारी कमाई सजनेसंवरने में लगा देती है, फिर भले ही अपनी मां से खूब मार खाती रहे. उस के पिता की पंचर की दुकान है, जिस से दालरोटी चल जाती है, मगर प्रेमा के शौक पूरे नहीं हो सकते. इसी के चलते उस ने स्कूल में आया का काम पकड़ रखा है.

इस छोटी सी बस्ती में ज्यादातर मजदूर, मिस्त्री और घरेलू कामगारों के परिवार हैं. शहर के इस बाहरी इलाके में सरकारी फ्लैट भी कम आमदनी वाले तबके के लोगों को मुहैया कराए गए हैं. उन्हीं के साथ लगी हुई जमीन पर गैरकानूनी कब्जा कर झुग्गीझोंपडि़यां भी बड़ी तादाद में बन गई हैं.

यहां चारों तरफ हमेशा चिल्लपौं मची रहती है. कभी सरकारी नल पर पानी का झगड़ा, कभी बच्चों की सिरफुटौव्वल, तो कभी नाजायज रिश्तों की सच्चीझूठी घटना पर औरतमर्द की मारपीट का तमाशा चलता रहता है. सभी लोगों का यही मनोरंजन का साधन है.

‘‘क्या सोच रही हो तुम? जरा इधर टैलीविजन तो देखो… आजकल कई जगह औरतों की चोटियां कट रही हैं. लगता है, किसी भूतप्रेत का साया है.

‘‘तुम जरा सब औरतों को सावधान कर दो कि सभी अपने घर के बाहर नीबूमिर्च, नीम की पत्तियां टांग दें,’’ खिलावन टैलीविजन पर आंखें गड़ाए हुए रामप्यारी से बोला.

‘‘यह सब छोड़ो और अपने फायदे की सोचो. हमें क्या फायदा हो सकता है?’’ रामप्यारी ने पूछा. उस का दिमाग इन सब खुराफातों में तेजी से चलता है.

‘‘देखो, इस बस्ती में कोई नीम का पेड़ तो है नहीं. मैं पहले पास के गांव से नीम की टहनियां ले कर आता हूं. तब तक तुम 20-25 नीबूमिर्च की माला बनाओ. हम नीम की टहनी के साथ ये मालाएं बेच कर कुछ कमाई कर लेंगे. अच्छा रुको, अभी किसी से कुछ मत कहना.’’

जब तक खिलावन बस्ती में लौटा, हाहाकार मच चुका था. वह सीधे अपने घर भागा तो देखा कि रामप्यारी ने नीबूमिर्च की मालाओं का ढेर बना रखा है.

खिलावन ने नीम की छोटीछोटी टहनियों से भरा झोला पटकते हुए कहा, ‘‘तुम यहां पर बैठी हो, पता भी है कि बाहर क्या चल रहा है?’’

‘‘तुम बिलकुल भी चिंता मत करो. अब फटाफट नीम की टहनियों को अलग कर नीबूमिर्च की माला के साथ बांधते जाओ और एक अपने दरवाजे पर टांग दो और बाकी दुकान पर रखो.

‘‘और हां, जलेबी का सामान भी दोगुना तैयार करना पड़ेगा कल से,’’ रामप्यारी इतमीनान से बोली.

‘‘तुम्हें तो कुछ पता नहीं है. बाहर टैलीविजन वाले, पुलिस वाले सब जमा हैं. पता नहीं, क्या चल रहा है उधर

और तुम्हें जलेबी बनाने की पड़ी है,’’ खिलावन घबरा कर बोला.

‘‘तुम चिंता मत करो, यहां भी चोटी कट गई है रधिया की. अरे वही, जो पिछली गली में रहती है.’’

‘‘क्या तुम्हें डर नहीं लग रहा है? तुम्हारी चोटी भी कट सकती है? अब क्या करें?’’

‘‘चुप रहो. उस की चोटी तो मैं ने ही काटी है और वह कालू ओझा है न, उस से मिल कर भी आ गई हूं. मैं ने सारी बातें तय कर ली हैं,’’ रामप्यारी ने कहा.

‘‘तुम ने क्यों काटी? क्या तुझ पर भी भूत चढ़ गया था?’’ खिलावन बोला.

‘‘जब चोटी कटेगी, तभी तो ये लोग नीबूमिर्च की माला लेने दौड़ेंगे. तुझे तो पता ही है कि रधिया को तो वैसे भी जबतब चक्कर आते रहते हैं. अभी जब मैं थोड़ी देर पहले दुकान पर लहसुन लेने गई थी, तो उस का दरवाजा खुला देख अंदर चली गई. घर के अंदर वह बेहोश पड़ी थी. मैं ने भी आव देखा न ताव उस के बाल काट कर चलती बनी.’’

‘‘किसी ने देखा तो नहीं तुझे?’’

‘‘नहीं. अगर कोई देख भी लेता, तो मैं ने सोच रखा था कि कह दूंगी इस के बाल काट देती हूं, नहीं तो भूत परेशान करेगा. अच्छा हुआ किसी ने देखा ही नहीं.’’

‘‘तो फिर तू ओझा के पास क्यों गई थी?’’ खिलावन ने हैरानी से पूछा.

‘‘सैटिंग करने. अभी ओझा झाड़फूंक करेगा और उस को एक दोना जलेबी खिलाने को और एक किलो मजार पर चढ़ाने को भी बोलेगा. फिर देखना, कल से सब लोग जलेबी खाएंगे भी और चढ़ाएंगे भी. मैं अभी आई.’’

‘‘रुको, तुम कहीं मत जाओ. मैं अभी बाहर जा कर देख कर आता हूं,’’ कह कर खिलावन रधिया के घर की तरफ दौड़ पड़ा.

रधिया का इंटरव्यू कर के मीडिया व पुलिस दोनों वहां से जा चुके थे. अब केवल बस्ती के लोग जमा थे. तभी सामने से कालू ओझा रधिया के पति जगन के संग आता दिखा.

‘‘बाहर लाओ, उसे बाहर लाओ,’’ वह ओझा चीखा, ‘‘इसे बूढ़ी इमली के पेड़ का भूत चढ़ा है. वहां प्रीतम ने पेड़ से लटक कर खुदकुशी की थी. जाओ जल्दी जाओ, नीम ले कर आओ. हां, जलेबी भी ले कर आना.

‘‘प्रीतम जलेबी बहुत खाता था. जो जलेबी खाएगा, उस के सिर से भूत खुश हो कर उतर जाएगा. और जो भी नीम दरवाजे पर लगाएगा, वहां पर भूत फटकने न पाएगा,’’ ओझा ने सामने खड़ी रधिया पर मोरपंखी फेरते हुए कहा. खिलावन ने पलक झपकते ही ओझा के आगे नीबूमिर्च, नीम और जलेबी सजा के रख दी.

कालू ने भी तेजी दिखाते हुए नीमनीबू दरवाजे पर टांग दिए. थोड़ी जलेबी रधिया को खिलाई और बाकी जलेबी भीड़ में प्रसाद के तौर पर बंटवा दी.

झाड़फूंक से रधिया के कलेजे को ठंडक पड़ गई कि उस के सिर पर चढ़ा भूत उतर गया है. वह खुशी से ओझा के पैरों में गिर पड़ी. भीड़ जयजयकार कर उठी. खिलावन ने सब की नजर बचा कर सौ रुपए का नोट कालू की मुट्ठी में दबा दिया. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए.

तभी प्रेमा के घर से चीखपुकार आने लगी. किसी ने फिर मीडिया को खबर कर दी थी. वे थोड़ी देर पहले ही अपना मोबाइल नंबर बांट गए थे. पुलिस से पहले मीडिया वाले पहुंच गए.

प्रेमा अपनी कटी चुटिया दिखा कर पूरे फिल्मी अंदाज में बखान कर रही थी. उस ने चीखपुकार मचा कर भूत को अपने पीछे से दबोचने और फिर अपने बेहोश होने की बात कह दी.

लोगों में डर बैठ गया. जितने मुंह उतनी बातें. मगर प्रेमा मन ही मन बहुत खुश थी. आज उस का टैलीविजन पर आने का सपना जो पूरा हो गया था.

दूसरे दिन दुलारी के चीखनेचिल्लाने की आवाज के साथ सब की भीड़ उस के घर के आगे जमा हो गई. उस की चुटिया भी कट चुकी थी. वह अपने टेड़ेमेढ़े ढंग से कटे बालों को दिखा कर खूब चीखीचिल्लाई. फिर बाल सैट कराने के लिए ब्यूटीपार्लर चली गई.

मगर जब श्यामा को अपनी चोटी कटी हुई मिली, तो उसने सारा दोष ननकू की बीवी पर मढ़ दिया और उसे चुड़ैल घोषित कर मारने दौड़ पड़ी.

वहां बड़ा बवाल मच गया. पूरी बस्ती 2 हिस्सों में बंट गई. आधे दुलारी की तरफ, आधे ननकू की बीवी की तरफ. ईंटपत्थर सब चल गए. पुलिस को बीचबचाव करना पड़ा. 2 सिपाहियों की ड्यूटी ‘चोटीकटवा भूत’ को पकड़ने के लिए लगा दी गई.

रामप्यारी अब खुश थी कि उस की जलेबी की दुकान चल निकली है. प्रेमा, श्यामा, दुलारी सभी आजकल अपने अंदर एक अलग ही खुशी महसूस कर रही थीं.

लेकिन खिलावन तनाव में था कि रामप्यारी अगर पकड़ी गई, तो क्या होगा? उस ने डरतेडरते उस से कहा, ‘‘तुम चुटिया काटने का काम बंद कर दो. मुझे बहुत डर लग रहा है. कहीं किसी ने तुम्हें पकड़ लिया, तो चुड़ैल जान कर जान से ही मार देंगे.’’

‘‘मगर, मैं ने तो रधिया के सिवा किसी के भी बाल नहीं काटे. मुझे अब दुकान और घर से फुरसत ही कहां मिलती है कि मैं लोगों के घरों में घूमती फिरूं,’’ रामप्यारी ने शान से कहा. ‘तो फिर बाकी लोगों के बाल किस ने काटे?’ खिलावन सोच में पड़ गया.

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