जैसे ही घर पहुंचा, पत्नी ने बताया कि अपनी कालोनी में मिस्टर गुलाटी के यहां चोरी हो गई है. मैं ने पूछा, ‘‘चोरों का कोई पता चला?’’

‘‘अभी तक तो मुझे कोई जानकारी नहीं मिली है,’’ पत्नी बोली, ‘‘आप आ गए हो तो सारी जानकारी मिल जाएगी. कोई कह रहा था कि चोरी हो गई और कोई बता रहा था डकैती पड़ी है. मुझे तो दोनों में अंतर ही पता नहीं चलता.’’

पत्नी के साथ यही दिक्कत है. अंतर करने से चूक जाती है. मुझे सीआईडी का आदमी समझती है. अखबारों में पढ़े समाचारों को कभी मनोरंजक और कभी खौफनाक ढंग से मिर्चमसाला लगा कर बता देता हूं. इसलिए पत्नी को ऐसा भ्रम हो जाता है कि मैं जासूसी भी करने लगा हूं.

मैं ने तुरंत पूछा, ‘‘तुम हालचाल जानने के लिए उन के घर गई थीं?’’

उस ने वर्षों पुराना घिसापिटा रिकार्ड दोहरा दिया, ‘‘घर के काम से फुर्सत नहीं मिली. बच्चे धींगामस्ती कर रहे थे. पड़ोसिन बैठने आ गई थीं.’’

मैं ने कहा, ‘‘क्या पड़ोसिन सुबह से शाम तक बैठी रही थीं. रही बात बच्चों की तो तुम्हीं बताओ, किस के घर के बच्चे धींगामस्ती नहीं करते. यह तो गनीमत है कि अपने बच्चे बाहर लड़तेझगड़ते नहीं. वरना दिनभर शिकायतों का ही तांता लगा रहता. तुम जानती नहीं, अपने पड़ोसी वर्माजी कितने परेशान रहते हैं बच्चों की कंपलेंट से.’’

चोरी और किसी के घर होती तो जाने, न जाने की बात अलग थी. गुलाटी का पारा तो इसी बात को ले कर 108 डिगरी तक पहुंच गया होगा कि न शर्माजी आए न उन की श्रीमतीजी. पिछली बार गुलाटी को फ्लू हो गया था. समाचार कुछ देर से मिला. हम दोनोें घर गए तो ठीक हो चुका था. देखते ही बरस पड़ा, ‘‘अब फुर्सत मिली है. अच्छा होने के बाद देखने आए हो. आधी कालोनी आ कर चली गई. अब कोई बहाना मत बनाना और मेरी अगली बीमारी का ध्यान रखना.’’

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चोरी तो हो चुकी थी लेकिन चोरों की तरह डरतेसहमते गुलाटी के घर पहुंचा. वह 4-5 अतिथियों से घिरे बैठे थे. उन के सामने की मेज पर अखबारों का ढेर पड़ा था. रसोईघर से कुछ बनने की महक कमरे में आ रही थी. मेरी ओर देख कर भी वह बिलकुल चुप थे. नाराज हो जाने  पर यह गुलाटी की खास किस्म की आदत थी यानी जिस से नाराज हो जाओ, उस की ओर देखो जरूर लेकिन बातों का सिलसिला शुरू न करो.

गुलाटी ने पड़ोसियों को विस्तार से डकैती का हाल बताया कि किधर से डकैत आए, किधर गए होंगे, संख्या कितनी रही होगी. डकैती के अभिनय से ले कर पुलिस की भूमिका तक सरगर्म चर्चा हो गई. इतने में नाश्ता आ गया. उस का तामझाम देख कर मुझे तो ऐसा लगा नहीं कि गुलाटी के यहां चोरी हुई है. नाश्ते की सजी हुई प्लेटों और उस के चेहरे के हावभाव से लग रहा था डैकती का माल बरामद हो चुका है. उसी के उपलक्ष्य में स्वल्पाहार का आयोजन है.

पड़ोसियों ने वही किया जो ऐसे मौके पर किया जाता है. नाश्ता ठूंसते हुए प्रशासन की जम कर आलोचना हुई. गुलाटी को सांत्वना और डकैतों के पकड़े जाने का आश्वासन देते हुए वे एकएक कर विदा हो गए. हालांकि उन्हें इशारा मिल जाता तो इसी विषय पर बहस करते हुए कम से कम 1 घंटा और जम सकते थे. पड़ोसियों के जाते ही गुलाटी ने खबरों का ढेर मेरी ओर पटक दिया और कहा, ‘‘कल चोरी हुई है और आज दर्शन दे रहे हो. अच्छी दोस्ती निभाते हो.’’

अखबार पलटते हुए मैं ने कहा, ‘‘भाई, शहर के बाहर था. पहुंचते ही पत्नी ने डकैती का समाचार बताया और तुरंत यहां आया हूं. पूरा समाचार तो अभी अखबार पढ़ कर ही जान पाया.’’

‘‘देख लिया न तुम ने अखबार वालों का हाल. पूरे 2 लाख की डकैती हुई है. पूरी कालोनी में सनसनी है. आनेजाने वालों का तांता लगा है और समाचार इतना छोटा. न्यूज देख कर तो ऐसा लगता है कि जैसे 100-50 मुरगियों की चोरी का हलकाफुलका समाचार हो.’’

मैं ने कहा, ‘‘ठीक कह रहे हो यार. सारा अखबार तो पी.एम. के समाचारों और तसवीरों से भरा है. कहीं उद्घाटन है, कहीं शिलान्यास. पूरे फ्रंट पेज पर उन के भाषण, स्वागत और झलकियों की झलक है. इसी वजह से डकैती के समाचार को स्थान ठीक से नहीं मिल सका.’’

मेरी बातें सुन कर गुलाटी हां में हां मिलाते हुए बोला, ‘‘मेरे साथ यही दिक्कत है. अखबारों ने कभी मेरे साथ न्याय नहीं किया. पिछली बार जब मैं मेयर पद का उम्मीदवार बना था तो अखबारों ने सतही ढंग से लिया. मेरी उम्मीदवारी का समाचार भी नहीं बना और जब 15 पार्षदों ने मेरे पक्ष में वातावरण बनाया, हस्ताक्षर अभियान चलाया तो अखबारों में भी हरकत बढ़ी तब कहीं फोटो सहित समाचार आया,’’ इतना कह कर उस ने राहत की सांस ली और 2 लाख की डकैती के दुख को कुछ कम किया.

मैं ने झिड़कते हुए कहा, ‘‘गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या फायदा, अतीत को छोड़ कर अपने वर्तमान में आजा और डकैती का सार संक्षेप में बता.’’

‘‘देख लो दुर्भाग्य, डकैतों ने भी कैसा दिन चुना. दिन भर पी.एम. नगर में रहे, रात में डकैत आए. 1-2 दिन आगेपीछे आ जाते तो अपने को इतना अफसोस नहीं होता,’’ इतना कह कर उस ने आज का अखबार दिखाया.

अखबार में पुलिस दल के निरीक्षण और डाकुआें का कोई सुराग न मिलने का समाचार छपा था. मैं ने कहा, ‘‘आज के अखबार में भी डकैती को विशेष स्थान नहीं मिला. सी.एम. की खबर से अखबार भरा पड़ा है.’’

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अपने घर की डकैती का समाचार तो पी.एम. और सी.एम. के दौरे के बीच दब कर दम तोड़ चुका है. पुलिस वाले भी देर से आए. 2 दिन के थकेहारे खानापूर्ति कर के चले गए. 2 पुलिस के नौसिखिए भी आए. एक तो पूछ रहा था कि डकैती का सही समय बताइए. उस की बात सुन किसी को भी गुस्सा आ सकता है. फिर भी अपने को संयत कर मैं ने कहा, ‘‘ठीक समय मालूम होता तो जान पर खेल कर पकड़ नहीं लेता डकैत को, डाकुओं के आने के लिए अलार्म लगा कर तो सोए नहीं थे. ठीक समय क्या बताएंगे. सो कर उठे तो मालूम हुआ, सुबह के 5 बज चुके थे.’’

दूसरे ने पूछा, ‘‘सुना है, कालोनी के कुछ लोगों ने डकैतों को भागते भी देखा है. क्या डकैत सशस्त्र थे?’’ मैं ने कह दिया, ‘‘यह आप उन्हीं से पूछ लीजिए, जिन्होंने देखा है. अब भला यह भी कोई पूछने की बात है कि डकैत सशस्त्र थे? सशस्त्र नहीं होंगे तो क्या चकलाबेलन ले कर रोटी बेलने आएंगे. यह हाल है अपने नए अफसरों का. फिल्मों में कामेडियन कम हो गए हैं पुलिस विभाग में ज्यादा.’’

पत्नी और बच्चे भी पहुंच चुके थे. वे लोग अंदर मिसेज गुलाटी के साथ नाश्ता करते हुए डकैतों के जाने के बाद का आंखोंदेखा हाल सुन रहे थे. बच्चों को मिस्टर गुलाटी का लड़का वह खिड़की दिखा रहा था जिधर से डकैत आए थे. मैं मिस्टर गुलाटी का साथ दे रहा था. कालोनी के अनेक परिचित अभी तक नहीं आ पाए थे. गुलाटी को इसी बात की चिंता सता रही थी. बारबार उस की नजर दरवाजे की ओर उठ जाती थी. वह स्वागत के लिए कमर कस कर बैठा था. तभी अचानक कुत्ते के भौंकने की आवाज आई. मैं ने कहा, ‘‘यार गुलाटी, तुम्हारी पामेरियन नस्ल का कुत्ता क्या कर रहा था. तेज कुत्ता है जरूर भौंका होगा डकैतों की आहट सुन कर.’’

खीजते हुए गुलाटी बोला, ‘‘पामेरियन और अल्सेशियन बस, नाम के रह गए हैं. हमारा जानी तो दिन में आनेजाने वालों को भौंकता है और रात को खर्राटे भरता है. दरअसल, विदेशी नस्ल का भी भारतीयकरण हो गया है. रात को बिलकुल ही नहीं भौंकता. मुझे तो लगता है कि यह कुत्ता डकैतों से मिला हुआ है.’’

मैं ने अपनी हंसी दबाते हुए कहा, ‘‘पुलिस के कुत्ते तो आए होंगे. उन्होंने क्या डिटेक्ट किया?’’

‘‘अरे, यार, पी.एम. और सी.एम. के दौरे में कुत्ता ज्यादा व्यस्त और सक्रिय रहा. सुना है 2-3 दिन से बीमार चल रहा है. एक पशु चिकित्सक की सतत निगरानी मेें है. उस के लिए राजधानी से इंजेक्शन आ रहे हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘तुम्हारी तो तकदीर ही खराब है. 2 लाख की डकैती हो गई, अभी तक पुलिस के जासूसी कुत्ते भी नहीं पहुंचे.’’

गुलाटी ने तैश में आ कर कहा, ‘‘शर्माजी, पैसा तो अपने हाथ में नाचता है. गहने और नकदी मिला कर 2 लाख के करीब गए हैं. ये तो ट्रांसफर के सीजन में फिर कमा लेंगे. मानसून के आनेजाने से मामले में धोखा हो सकता है. गरज के साथ सिर्फ छींटे पड़ सकते हैं लेकिन अपना सीजन ठीक समय में आता है. आंगन में अच्छी बारिश हो जाती है. इसलिए सवाल 2 लाख की डकैती का नहीं है. अपन तो अखबारों में ठीक कवरेज न आने से दुखी हैं.’’

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