लेेखक - विजय कुमार श्रीवास्‍तव

MRP तय करने का कोई कठोर नियम नहीं होता. कंपनियां इसे अपनी मरजी से तय करती हैं और इसे इतना ऊंचा रखती हैं कि खुदरा विक्रेताओं को भी अच्छा मुनाफा मिल सके.

 

समाज में बदलाव होते रहते हैं और बाजार में उपभोक्ताओं की आदतें भी बदलती रहती हैं. अब वस्तुओं, दवाओं आदि के पैकेटों पर छपे अधिकतम खुदरा मूल्य को ही लें.

 

10-15 वर्ष पहले तक हम यह देखा करते थे कि जहां से हम सामान खरीद रहे हैं वहां हम से अधिकतम खुदरा मूल्य से अधिक तो नहीं लिया जा रहा. अब यह देखते हैं कि विक्रेता इस मूल्य के ऊपर कितना डिस्काउंट दे रहा है. डिस्काउंट मिल भी खूब रहा है लेकिन सब को नहीं.

 

डिस्काउंट की संस्कृति सब से अधिक दवाओं के व्यापार पर हावी है. कम से कम महानगरों और शहरों में एलोपैथिक दवाएं बेचने वाले अधिकांश दुकानदार एमआरपी से 10 प्रतिशत कम लिया करते हैं पर यह जरूरी नहीं कि डिस्काउंट बिन मांगे मिल जाए.

 

हाल में मैं डाक्टर को दिखाने के बाद प्रिस्क्रिप्शन ले कर नजदीक की दुकान पर दवा खरीदने गया. डिस्काउंट मिलने की पुष्टि मैं ने दुकानदार से पहले ही कर ली थी. मेरे सामने एक और ग्राहक आया. उस ने मु?ा से भी ज्यादा मूल्य की दवाएं खरीदीं. न उस ने डिस्काउंट के बारे में पूछा, न दुकानदार ने उसे डिस्काउंट दिया. वास्तविकता यह है कि कम आय

 

वाले, अल्पशिक्षित व्यक्ति अज्ञानतावश एमआरपी पर वस्तुएं खरीदा करते हैं. पढ़ेलिखे और अच्छा पैसा कमाने वाले लोग एमआरपी पर मिलने वाली छूट का भरपूर लाभ उठा रहे हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...