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हसबैंड के टूअर पर जाने का इंतजार

अपना बैग पैक करते हुए अजय ने कविता से बहुत ही प्यार से कहा, ‘‘उदास मत हो डार्लिंग, आज सोमवार है, शनिवार को आ ही जाऊंगा. फिर वैसे ही बच्चे तुम्हें कहां चैन लेने देते हैं. तुम्हें पता भी नहीं चलेगा कि मैं कब गया और कब आया.’’ कविता ने शांत, गंभीर आवाज में कहा, ‘‘बच्चे तो स्कूल, कोचिंग में बिजी रहते हैं… तुम्हारे बिना कहां मन लगता है.’’

‘‘सच मैं कितना खुशहाल हूं, जो मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी मिली. कौन यकीन करेगा इस बात पर कि शादी के 20 साल बाद भी तुम मुझे इतना प्यार करती हो… आज भी मेरे टूअर पर जाने पर उदास हो जाती हो… आई लव यू,’’ कहतेकहते अजय ने कविता को गले लगा लिया और फिर बैग उठा कर दरवाजे की तरफ बढ़ गया. कविता का उदास चेहरा देख कर फिर प्यार से बोला, ‘‘डौंट बी सैड, हम फोन पर तो टच में रहते ही हैं, बाय, टेक केयर,’’ कह कर अजय चला गया.

कविता दूसरी फ्लोर पर स्थित अपने फ्लैट की बालकनी में जा कर जाते हुए अजय को देखने लगी. नीचे से अजय ने भी टैक्सी में बैठने से पहले सालों से चले आ रहे नियम का पालन करते हुए ऊपर देख कर कविता को हाथ हिलाया और फिर टैक्सी में बैठ गया. कविता ने अंदर आ कर घड़ी देखी. सुबह के 10 बज रहे थे. वह ड्रैसिंगटेबल के शीशे में खुद को देख कर मुसकरा उठी. फिर उस ने रुचि को फोन मिलाया, ‘‘रुचि, क्या कर रही हो?’’

रुचि हंसी, ‘‘गए क्या पति?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘फटाफट अपना काम निबटा, अंजलि से भी बात करती हूं, मूवी देखने चलेंगे, फिर लंच करेंगे.’’

‘‘तेरी मेड काम कर के गई क्या?’’

‘‘हां, मैं ने उसे आज 8 बजे ही बुला लिया था.’’

‘‘वाह, क्या प्लानिंग होती है तेरी.’’

‘‘और क्या भई, करनी पड़ती है.’’

रुचि ने ठहाका लगाते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आधे घंटे में मिलते हैं.’’

कविता ने बाकी सहेलियों अंजलि, नीलम और मनीषा से भी बात कर ली. इन सब की आपस में खूब जमती थी. पांचों हमउम्र थीं, सब के बच्चे भी हमउम्र ही थे. सब के बच्चे इतने बड़े तो थे ही कि अब उन्हें हर समय मां की मौजूदगी की जरूरत नहीं थी. कविता और रुचि के पति टूअर पर जाते रहते थे. पहले तो दोनों बहुत उदास और बोर होती थीं पर अब पतियों के टूअर पर जाने का जो समय पहले इन्हें खलता था अब दोनों को उन्हीं दिनों का इंतजार रहता था. कविता ने अपने दोनों बच्चों सौरभ और सौम्या को घर की 1-1 चाबी सुबह ही स्कूल जाते समय दे दी थी. आज का प्रोग्राम तो उस ने कल ही बना लिया था. नियत समय पर पांचों सहेलियां मिलीं. रुचि की कार से सब निकल गईं. फिर मूवी देखी. उस के बाद होटल में लंच करते हुए खूब हंसीमजाक हुआ. मनीषा ने आहें भरते हुए कहा, ‘‘काश, अनिल की भी टूरिंग जौब होती तो सुबहशाम की पतिसेवा से कुछ फुरसत मुझे भी मिलती और मैं भी तुम दोनों की तरह मौज करती.’’

रुचि ने छेड़ा, ‘‘कर तो रही है तू मौज अब भी… अनिल औफिस में ही हैं न इस समय?’’

‘‘हां यार, पर शाम को तो आ जाएंगे न… तुम दोनों की तो पूरी शाम, रात तुम्हारी होगी न.’’

कविता ने कहा, ‘‘हां भई, यह तो है. अब तो शनिवार तक आराम ही आराम.’’ मनीषा ने चिढ़ने की ऐक्टिंग करते हुए कहा, ‘‘बस कर, हमें जलाने की जरूरत नहीं है.’’ नीलम ने भी अपने दिल की बात कही, ‘‘यहां तो बिजनैस है, न घर आने का टाइम है न जाने का, पता ही नहीं होता कब अचानक आ जाएंगे. फोन कर के बताने की आदत नहीं है. न घर की चाबी ले जाते हैं. कहते हैं, तुम तो हो ही घर पर… इतना गुस्सा आता है न कभीकभी कि क्या बताऊं.’’

रुचि ने पूछा, ‘‘तो आज कैसे निकली?’’

‘‘सासूमां को कहानी सुनाई… एक फ्रैंड हौस्पिटल में ऐडमिट है. उस के पास रहना है. हर बार झूठ बोलना पड़ता है. मेरे घर में मेरा सहेलियों के साथ मूवी देखने और लंच पर जाना किसी को हजम नहीं होगा.’’

कविता हंसी, ‘‘जी तो बस हम रहे हैं न.’’

यह सुन तीनों ने पहले तो मुंह बनाया, फिर हंस दीं. बिल हमेशा की तरह सब ने शेयर किया और फिर अपनेअपने घर चली गईं. सौरभ और सौम्या स्कूल से आ कर कोचिंग जा चुके थे. जब आए तो पूछा, ‘‘मम्मी, कहां गई थीं?’’

‘‘बस, थोड़ा काम था घर का,’’ फिर जानबूझ कर पूछा, ‘‘आज डिनर में क्या बनाऊं?’’

बाहर के खाने के शौकीन सौरभ ने पूछा, ‘‘पापा तो शनिवार को आएंगे न?’’

‘‘हां.’’

‘‘आज पिज्जा मंगवा लें?’’ सौरभ की आंखें चमक उठीं.

सौम्या बोली, ‘‘नहीं, मुझे चाइनीज खाना है.’’

कविता ने गंभीर होने की ऐक्टिंग की, ‘‘नहीं बेटा, बाहर का खाना बारबार और्डर करना अच्छी आदत नहीं है.’’

‘‘मम्मी प्लीज… मम्मी प्लीज,’’ दोनों बच्चे कहने लगे, ‘‘पापा को घर का ही खाना पसंद है. आप हमेशा घर पर ही तो बनाती हैं… आज तो कुछ चेंज होने दो.’’

कविता ने बच्चों पर एहसान जताते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आज मंगवा लो पर रोजरोज जिद मत करना.’’ सौम्या बोली, ‘‘हां मम्मी, बस आज और कल, आज इस की पसंद से, कल मेरी पसंद से.’’

‘ठीक है, दे दो और्डर,’’ दोनों बच्चे चहकते हुए और्डर देने उठ गए.

कविता मन ही मन हंस रही थी कि उस का कौन सा मूड था खाना बनाने का, अजय को घर का ही खाना पसंद है, बच्चे कई बार कहते हैं पापा का तो टूअर पर चेंज हो जाता है, हमारा क्या… वह खुद बोर हो जाती है रोज खाना बनाबना कर. आज बच्चे अपनी पसंद का खा लेंगे. उस ने हैवी लंच किया था. वह कुछ हलका ही खाएगी. फिर वह सैर पर चली गई. सोचती रही अजय टूअर पर जाते हैं तो सैर काफी समय तक हो जाती है नहीं तो बहुत मुश्किल से 15 मिनट सैर कर के भागती हूं. अजय के औफिस से आने तक काफी काम निबटा कर रखना पड़ता है. शाम की सैर से संतुष्ट हो कर सहेलियों से गप्पें मार कर कविता आराम से लौटी. बच्चों का पिज्जा आ चुका था. उस ने कहा, ‘‘तुम लोग खाओ, मैं आज कौफी और सैंडविच लूंगी.’’

बच्चे पिज्जा का आनंद उठाने लगे. अजय से फोन पर बीचबीच में बातचीत होती रही थी. बच्चों के साथ कुछ समय बिता कर वह घर के काम निबटाने लगी. बच्चे पढ़ने बैठ गए. काम निबटा कर उस ने कपड़े बदले, गाउन पहना, अपने लिए कौफी और सैंडविच बनाए और बैडरूम में आ गई. अजय टूअर पर जाते हैं तो कविता को लगता है उसे कोई काम नहीं है. जो मन हो बनाओ, खाओ, न घर की देखरेख, न आज क्या स्पैशल बना है जैसा रोज का सवाल. गजब की आजादी, अंधेरा कमरा, हाथ में कौफी का मग और जगजीतचित्रा की मखमली आवाज के जादू से गूंजता बैडरूम.अजय को साफसुथरा, चमकता घर पसंद है. उन की नजरों में घर को साफसुथरा देख कर अपने लिए प्रशंसा देखने की चाह में ही वह दिनरात कमरतोड़ मेहनत करती रहती है. कभीकभी मन खिन्न भी हो जाता है  कि बस यही है क्या जीवन?

ऐसा नहीं है कि अजय से उसे कम प्यार है या वह अजय को याद नहीं करती, वह अजय को बहुत प्यार करती है. यह तो वह दिनरात घर के कामों में पिसते हुए अपने लिए कुछ पल निकाल लेती है, तो अपनी दोस्तों के साथ मस्ती भरा, चिंता से दूर, खिलखिलाहटों से भरा यह समय जीवनदायिनी दवा से कम नहीं लगता उसे. अजय के वापस आने पर तनमन से और ज्यादा उस के करीब महसूस करती है वह खुद को. उस ने बहुत सोचसमझ कर खुद को रिलैक्स करने की आदत डाली है. ये पल उसे अपनी कर्मस्थली में लौट कर फिर घरगृहस्थी में जुटने के लिए शक्ति देते हैं. अजय महीने में 7-8 दिन टूअर पर रहते हैं. कई बार जब टूअर रद्द हो जाता है तो ये कुछ पल सिर्फ अपने लिए जीने का मौका ढूंढ़ते हुए उस का दिमाग जब पूछता है, कब जाओगे प्रिय, तो उस का दिल इस शरारत भरे सवाल पर खुद ही मुसकरा उठता है.

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य : धर्म की ब्रेनवाशिंग का मौडर्न आर्किटैक्ट

कथावाचक अनिरुद्धाचार्य महाराज ने सोशल मीडिया का उपयोग अपने धार्मिक विचारों को फैलाने के लिए किया है. उन के विवादित व ऊटपटांग बयानों ने उन्हें लोकप्रियता दिला दी है, सोशल मीडिया पर मीम बनाए जा रहे हैं पर चिंता वाली बात उन के धार्मिक प्रवचन हैं जो युवाओं को प्रभावित और भ्रमित कर रहे हैं.

डिजिटल एरा में कोई भी अपने विचार दुनियाभर में फैला सकता है. सोशल मीडिया ने सभी को आसान मंच दे दिया है. अब इस का इस्तेमाल कैसे करना है यह निर्भर उसी पर करता है जो इस का इस्तेमाल कर रहा है. कुछ लोग इस का बेहतर इस्तेमाल करते हैं मगर अधिकतर के लिए यह दस्तबिन बन गया है, जहां अपना सारा कचरा त्यागा जा रहा है.
बात यहां अनिरुद्धाचार्य महाराज की, जिन के ‘मेरे चरणों में आप का कोटिकोटि प्रणाम’ और ‘बिस्किट का मतलब विष की किट’ जैसे मीम सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहे हैं. अनिरुद्धाचार्य महाराज भी उसी श्रेणी में आते हैं जो विज्ञान जनित टैक्नोलौजी का इस्तेमाल कर धर्म का प्रचारप्रसार करने में जुटे हैं. कथावाचकों की कैटगरी में अनिरुद्धाचार्य महाराज का बड़ा नाम है और हालफिलहाल वे अपनी ऊटपटांग बातों से चर्चाओं में भी हैं.

सोशल मीडिया पर एक्टिव
यूट्यूब को इन का दूसरा गढ़ माना जाए तो गलत नहीं होगा क्योंकि ये भारत में इकलौते कथावाचक हैं जिन के 1 करोड़ 40 लाख से ऊपर सब्सक्राइबर्स हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो इन्हें कथावाचकों का ध्रुव राठी कहा जा सकता है. इन का प्राइम चैनल ‘अनिरुद्धाचार्य जी’ के नाम से है. इस के अलावा ‘गौरी गोपाल आश्रम’, ग्रौरी गोपाल टीवी’, ‘अनिरुद्धाचार्य शोर्ट्स’ भी इन्हीं के चैनल हैं. खुद ही अपने नाम के पीछे ‘जी’ और आगे ‘श्री’ लगाना संतों, कथावाचकों, बाबाओं के बीच आम प्रचलन है तो इन्होने भी लगाया हुआ है. इन के प्राइम चैनल ‘अनिरुद्धाचार्य जी’ में 7 हजार से ज्यादा वीडियोज डाले गए हैं और प्रोफाइल भक्तिमयी दिखाई देती है.
अनिरुद्धाचार्य का जन्म 27 सितंबर 1989 को मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले के रेवझ गांव में हुआ था. उन का शुरूआती जीवन एक साधारण परिवेश में बीता, जहां उन्होंने धार्मिक ग्रंथों और वेद-पुराणों का अध्ययन किया. उन्होंने वृंदावन में रामानुजाचार्य संप्रदाय से आने वाले संत गिरिराज शास्त्री से दीक्षा प्राप्त की. आज वे कथावाचकों की टोली के सरदार हैं.
अपने यूट्यूब प्रोफाइल में ये लिखते हैं, “सनातन धर्म की ध्वजा को ले कर पूरे विश्व में लाखोंकरोड़ों लोगों को गौरी गोपाल भगवान की भक्ति और अपनी अमृतमयी वाणी से सेवा, संस्कृति और संस्कारों से जोड़ कर लोगों का जीवन बदलने वाले श्री अनिरुद्धाचार्य जी महाराज के आधिकारिक यूट्यूब चैनल में आप का स्वागत है.”
अब ये कैसे लोगों का जीवन बदलने की बात करते हैं इसे आगे समझेंगे. ये उसी प्रोफाइल में लिखते हैं, “आइए हम भी इस परिवार का हिस्सा बन कर सनातन धर्म को और उच्च शिखर तक पहुंचाने में पूज्य महाराज जी की मदद करें.”
अपने इस चैनल में अनिरुद्धाचार्य सनातन धर्म की शिक्षाएं देते हैं, लेकिन इन की वीडियोज के कंटेंट देखें तो यह पारिवारिक, दांपत्य, युवाओं, खासकर युवतियों के जीवन पर सेंट्रिक रहती हैं. प्रवचन के दौरान इन के कई कमेंट्स विवादों में घिरे हैं और सोशल मीडिया पर मीम मैटिरियल भी बने हैं.

महिलाओं पर टीकाटिप्पणी
ये सत्संग लगाते हैं. हजारों की भीड़ इन के सत्संग में आती है. महाराज के सत्संग के लिए बड़ा सा रंगबिरंगी स्टेज सजा रहता है. वे अपने माथे पर हमेशा चंदन लगा कर रखते हैं. गले में ढेर सारी मालाएं होती हैं और उन के कपड़ों की तरह ही उन का सिंहासन भी चमचमाता है.
इन के सत्संग हाथरस के ‘भोले बाबा’ जैसे मिसमैनेज नहीं होते. स्टेज और लोगों में दूरी होती है तो भगदड़ जैसी नोबत की गुंजाइश कम होती है. एक तरह से माने तो ये खातेपीते और पढ़ेलिखे अंधभक्तों के कथावाचक हैं. यह जाहिर भी करता है कि अंधविश्वासी होने के लिए किसी का अनपढ़ होना जरुरी नहीं. अनिरुद्धाचार्य महाराज के पास अकूत पैसा है तो लोगों के बैठनेबिठाने की जगह ठीकठाक हो जाती है. लोगों में अधिकतर महिलाएं ही होती हैं. अनिरुद्धाचार्य उन्हीं महिलाएं पर उलजलूल टीकाटिप्पणी करते हैं, फिर भी बड़ी संख्या में वे भक्त बनी हुई हैं.
वे अपने सत्संगों के माध्यम से महिलाओं को पतिव्रता होने का धार्मिक पाठ पढ़ाते हैं. 2 महीने अफ्ले अपलोड की अपनी एक वीडियो ‘पति के साथ एक थाली में खाना खाने वाली स्त्रियां’ में वे कहते हैं, “जो पत्नी अपने पति के खाना खाने के बाद ही खाना ग्रहण करती हैं वही पतिव्रता स्त्रियां हैं.” इस वीडियो में वह हिदायत देते हैं कि अगर पति कभी बाहर हो तो उन की एब्सेंस में पत्नियां पहले गाय को खाना खिलाएं फिर खाना खाएं. इस से दोष ख़त्म हो जाता है.”
हैरानी तो यह कि वह इस का साइंटिफिक कहते हैं और तर्क देते हैं कि, “जैसे गर्भवती स्त्री खाए तो उस के बच्चे में पेट में अपनेआप चले जाता है ऐसे ही गाय को खिलाने से पति के पेट में अपनेआप चले जाता है.”
वे अपने एक और वीडियो, “गृहस्थ में पति के साथ संभोग करने से भक्ति पर असर’ पर कहते हैं, “एक महिला मेरे पास आई और कहने लगी कि हमारा मन भगवान् में लग गया है पर मगर मेरे पति का मन नहीं लगा है. वे हमारे पास आते हैं और प्रेम का इजहार करते हैं. हमें तो सारी वासना से मन हट गया है. हमारे पति अभी ब्रह्मचारी नहीं बन पाए. हमारे पति जब हमारे पास काम भाव ले कर आते हैं तो असंतुष्टि होने लगती है.”
अनिरुद्धाचार्य महाराज उस महिला को एक पत्नी का फर्ज समझाते हैं और पति से सहयोग करने को कहते हैं. अब ये अजीब विडंबना है कि एक तो उसे धर्मकर्म में फंसा कर ब्रह्मचर्य का पाठ पढ़ा दिया और अब उसे बेमन पति से सम्भोग करने को कहा जा रहा है. एक अन्य वीडियो ‘दिन में संभोग करने वाले स्त्रीपुरुषों की कैसी होती है संतान’ में अनिरुद्धाचार्य महाराज बताते हैं कि, “शास्त्ररोक्त बात कह रहा हूं यदि कोई स्त्री दिन में गर्भवती (गर्भ स्थापित) हो गई तो लिख लो जो स्त्री दिन में गर्भवती हुई है उस का बच्चा मांबाप और समाज को बहुत बड़ी हानि पहुंचाएगा.” वे आगे कहते हैं, “शाम के समय अगर स्त्री गर्भवती हो गई तो वह नालायक ही होगी.” अनिरुद्धाचार्य महाराज के कहे अनुसार संभोग रात में ही करना चाहिए और दिन और शाम को करने से बच्चे नालायक पैदा होते हैं.
इन कथावाचक का महिलाओं पर कुतर्की कमेन्ट करने का एक लंबा इतिहास है. वे महिला को पतिव्रता नारी की पहचान के बारे में बताते हैं. वे अपने प्रवचन में यह भी बताते हैं कि, “सुंदर होना स्त्री का दोष है,” और “बेटियां फिल्में देखने जाती हैं इसलिए उन के 35 टुकड़े होते हैं.”
वे अपने एक और वीडियो, ‘लड़की का विवाह कहां कराना चाहिए’ में कहते हैं, “पति की सेवा करना नारी का परमधरम है. चाहे पति कैसा भी हो, अंधा हो, लंगड़ा हो, काना हो. अच्छा हो चाहे बुरा हो. किसी के पति बुरे भी हैं. कोई बात नहीं, शादी के पहले छानबीन कर लेनी थी. अब जैसा है सो तुम्हारा है. जुवारी, भंगेड़ी, गंजेड़ी, चरित्र का खोटा यह सब शादी से पहले देख लो. शादी के बाद तो भगवान मान कर सेवा करो.” हैरानी यह कि यह सुनने वालों में अधिकतर भीड़ महिलाओं की है, साथ में उन की किशोर लड़कियां होती हैं. यही नहीं वे हर दूसरे प्रवचन में पत्नी का पति के लिए कर्तव्य की बातें करते हैं.

गुमराह करने वाली बातें
वे अपने एक वीडियोज में बताते हैं कि अमीर होना अच्छा नहीं और दूसरी वीडियो में बताते हैं कि दीवाली में ऐसे उपाय करने से बरसेगी धनवर्षा, किसी और वीडियो में वे बिल गेट्स की तरह बनने के टिप्स दे देते हैं. वे ब्राह्मणों को श्रेष्ट बताते हैं. वे अपने एक सत्संग में बताते हैं, “तुलसीदास जी ने पहला प्रणाम ब्राह्मणों को किया. ब्राह्मणों को प्रणाम करना चाहिए. क्योंकि ब्राह्मण अन्य लोगों की अपेक्षा तपस्वी और त्यागी होते हैं. नित्य नियम से रहता है. ब्राहमण होना सरल नहीं है.” वे इस वीडियो में सुदामा, चाणक्य जैसे ब्राह्मणों का उदाहरण देते हैं. लेकिन वे ये नहीं बताते कि अतीत में ब्राह्मणों ने कैसे अपने लालच और प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए जातिप्रथा को पोषित किया.
वे अपने एक अन्य वीडियो ‘ब्राह्मणों के योगदान’ की बात करते हैं. अब कोई उन्हें बताए कि जब नियमकानून बनाने की सारी व्यवथा उन्हीं के हाथ में थी तो योगदान भी तो उन्हीं के दिखाई देंगे. अनिरुद्धाचार्य महाराज के बयान और उन के विचारों का प्रसार केवल हास्यास्पद या विवादित नहीं है, बल्कि यह युवाओं के दिमागों को गुमराह करने का एक गंभीर प्रयास भी है. उन के बयानों का युवाओं पर प्रभाव पड़ता है.
वे आधुनिकता पर हमला करते हैं. कहते हैं, “आज की शिक्षा ने युवाओं को जानवर बना दिया है. आजकल के पढ़े लिखे लोग, आधुनिक कल्चर के नाम पर लिव-इन में रह रहे हैं, किसी के भी साथ रह रहे हैं, यह जानवरों का कल्चर है. हमारे देश में कुत्तेबिल्ली लिवइन में रह रहे हैं. हमारा हिंदू संस्कृति ऐसी नहीं है. जो लड़की आज इस के साथ, कल उस के साथ, वो लड़की लड़की रही नहीं बल्कि वैश्या हो गई.” अनिरुद्धाचार्य महाराज विधवा होने से बचने का उपाय भी बताते हैं, जिस में पति की सेवा, व्रत उपवास की बातें ही मुख्य हैं. वे असली पति भगवान को बताते हैं.

कई लोगों को इस तरह की बातें मजाकिया लग सकती हैं पर अनिरुद्धाचार्य महाराज के बयानों का प्रभाव युवाओं की मानसिकता पर गहरा हो रहा है. उन के भक्त अकसर उन के बयानों को बिना सोचेसमझे मानते हैं, जिस से उन की सोच प्रभावित होती है. पंडाल में बहुत से युवा भी दिखते हैं जिस में ज्यादातर लड़कियां होती हैं. उन्हीं लड़कियों पर अनिरुद्धाचार्य महाराज कमेन्ट करते हैं, और उन के मातापिता खड़ेखड़े मुसकरा रहे होते हैं.
छोटे शहरों के युवा भी अपनी परेशानियों का हल इन्हीं जैसे कथावाचकों के पास ले कर जा रहे हैं, और ये कथावाचक कथा में आने की मोटी फीस तो वसूलते ही हैं साथ में दान चंदा भी खूब बटोरते हैं. ‘दीपावली’ नाम की वेबसाइट के अनुसार अनिरुद्धाचार्य एक कथा के लिए करीब 7,00,000 से 10,00,000 तक फीस लेते हैं. यानी अनिरुद्धचार्य की भागवत कथा सुनाने की प्रतिदिन फीस्ट लगभग 1-3 लाख रुपए है और कथा कुल 8-10 दिनों तक चलती है. बताया जाता है कि यह पैसा सामाजिक सेवा में लगता है, लेकिन इस का क्या हिसाबकिताब है ये तो वही जानें.

अगर अनिरुद्धाचार्य महाराज की नेट वर्थ की बात करें तो उन की कुल संपत्ति करीब 25 करोड़ रुपए के आसपास बताई जाती है. अब यह संपत्ति कैसे अर्जित की गई, कितना दानपिंड लपेटा गया, समाज सेवा के नाम पर कितनों का फर्जीवाड़ा चल रहा है यह बातें तो तभी निकलती हैं जब ऐसे बाबा लोग विवादों में घिरते हैं.
आज लोग घरों में बैठेबैठे इन जैसे कथावाचकों के प्रवचन यूट्यूब से सुनते हैं. इस में पैसा नहीं लगता लेकिन समय और दिमाग दोनों ख़राब होते हैं. सोशल मीडिया के दौर में अनिरुद्धाचार्य अपनी कुतर्की बातों का प्रचारप्रसार कर रहे हैं. 21वीं सदी में यदि अनिरुद्धाचार्य महाराज के करोड़ से अधिक फौलोवर्स हैं तो समझ जाइए देश किस तरफ बढ़ रहा है.

डोनाल्ड ट्रम्प पर गोली : चुनाव में वायलेंस का पुराना है इतिहास

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप पर जानलेवा हमला हुआ है. अमेरिका में चुनाव के दौरान वायलेंस का पुराना इतिहास है, जानिए.

अमेरिका में एक ऐसी सनसनीखेज घटना घटित हुई है जो दुनिया भर में चर्चा का विषय है. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप पर गोली का चलना और गोली चलाने वाले की सुरक्षा कर्मियों द्वारा उसे मौत के घाट पहुंचाना. यह सब कुछ ऐसे घटित हुआ जैसे किसी फिल्म या ड्रामे का दृश्य. आप को हम बताते चलें कि डोनाल्ड ट्रंप अपने कार्यकाल के समय में चर्चा में रहते थे मगर यह चर्चा नकारात्मक ज्यादा होती थी. और जब चुनाव हुए थे तो जो बाइडेन राष्ट्रपति निर्वाचित जब हुए और डोनाल्ड ट्रंप हारते हुए दिखाई दिए तो डोनाल्ड ट्रंप इसे स्वीकार नहीं कर सके और अपने लावा लशकर के साथ आपा खो बैठे. यह दृश्य सारी दुनिया ने टीवी पर देखे और यह सब इतिहास में दर्ज है.

यह भी तथ्य है कि उन पर कई गंभीर आरोप लगे हुए हैं जिस में वह लगातार दोषी पाए जाते रहे हैं. मगर अमेरिका में जैसी लोकतांत्रिक व्यवस्था है उस के साए में वे अभी भी राष्ट्रपति दावेदार हैं और जो घटनाक्रम हुआ है उस के बाद उन की लोकप्रियता बढ़ने की संभावना दिखाई देती है. आमतौर पर यह माना जाता है कि जो हमले का शिकार होता है वह लोगों की संवेदना का पात्र बन जाता है और वह चुनाव जीत जाता है. दुनियाभर का यही इतिहास है. मगर जो डोनाल्ड ट्रंम्प का व्यवहार है, प्रदर्शन है उन की प्रकृति है वह इस घटनाक्रम के बाद भी बदल नहीं सकते. दरअसल, अमेरिका के 45 वें राष्ट्रपति रहे डोनाल्ड ट्रंप पर हुए जानलेवा हमले से पहले भी अमेरिका में राष्ट्रपतियों, पूर्व राष्ट्रपतियों और प्रमुख दलों के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को निशाना बनाने की कई घटनाएं हो चुकी हैं.

वर्ष 1776 से देश के राजनीतिक इतिहास में हत्या और हत्या के प्रयासों की कुछ ऐसी ही घटनाएं इस प्रकार हैं:
अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन अमेरिका के पहले राष्ट्रपति थे, जिन की जान वाइक्स बूथ ने 14 अप्रैल 1865 की गोली मार कर हत्या कर दी थी. घटना के दौरान वह अपनी पत्नी मेरी टाड लिंकन के साथ वाशिंगटन के फोर्ड थियेटर में ‘अवर अमेरिकन कजिन’ नाटक देख रहे थे.

अमेरिका के 20 वें राष्ट्रपति जेम्स गारफील्ड देश के दूसरे राष्ट्रपति थे जिन की कार्यभार संभालने के 6 महीने बाद हत्या कर दी गई थी. वह दो जुलाई 1881 को वाशिंगटन में एक ट्रेन स्टेशन की ओर जा रहे थे तभी चार्ल्स गितेऊ ने उन्हें गोली मार दी थी. गितेऊ को जून 1882 में दोषी ठहराया गया और मृत्युदंड दिया गया.

अमेरिका के 25वें राष्ट्रपति विलियम मैकिनले को 6 सितंबर 1901 में न्यूयौर्क के बफेलो में तब गोली मारी गई थी जब वह भाषण देने के बाद लोगों से हाथ मिला रहे थे. एक व्यक्ति ने नजदीक से उन की छाती में दो गोली मारी. मैकिनले की 14 सितंबर 1901 में मौत हो गई थी.

अमेरिका के 32वें राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डीरूजवेल्ट ने मियामी में एक खुली कार से भाषण दिया ही था कि तभी गोलियां चलने लगीं. फरवरी 1933 में हुई इस घटना में रूजवेल्ट घायल नहीं हुए लेकिन इस में शिकागो के महापौर एंटन कर्मांक की जान चली गई थी.

अमेरिका के 33 वें राष्ट्रपति हैरी एस टुमैन नवंबर 1950 में वाशिंगटन के ब्लेयर हाउस में थे तभी दो बंदूकधारी उसमें घुस गए थे. बंदूकधारियों के साथ गोलीबारी में टुमैन तो बच गए थे लेकिन वाइट हाउस का एक पुलिसकर्मी और एक हमलावर मारा गया था.

अमेरिका के 35 वें राष्ट्रपति जान एफ केनेडी नवंबर 1963 में जब प्रथम महिला जैकलीन केनेडी के साथ डलास गए थे तो एक बंदूकधारी ने घात लगा कर उन पर हमला कर दिया था और उन की मृत्यु हो गई.

अमेरिका के 38 वें राष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड पर 1975 में कुछ ही हफ्तों के भीतर दो जानलेवा हमले किए गए थे और वह दोनों घटना में बच गए‌ थे. अमेरिका के 40 वें राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन मार्च 1981 में वाशिंगटन में भाषण दे कर निकल रहे थे तभी भीड़ में शामिल जान हिंकले जूनियर ने उन्हें गोली मारी. वह बच गए‌.

अमेरिका के 43 वें राष्ट्रपति जार्ज डब्लू बुश 2005 में जार्जिया के राष्ट्रपति मिखाइल साकाश्विली के साथ एक रैली में भाग ले रहे थे तभी उन की और एक हथगोला फेंका गया. हथगोला फटा नहीं था और कोई भी हताहत नहीं हुआ. राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी थियोडोर रूजवेल्ट को 1912 में मिलवाकी में प्रचार के दौरान गोली मारी गई थी.

उन्हें इस हमले में कोई गंभीर चोट नहीं आई थी. राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी राबर्ट एफ केनेडी डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी बनने की दौड़ में शामिल थे तभी 1968 में लास एंजिलिस में उन की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी. राष्ट्रपति पद के प्रत्याशी जार्ज सी वालेस डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल थे तभी 1972 में मैरीलैंड में एक प्रचार अभियान के दौरान उन्हें गोली मारी गई थी. इस घटना के कारण उन्हें कमर के निचले हिस्से में लकवा मार गया था.

अब हम बात करते हैं डोनाल्ड ट्रंप की, जिस ने भी गोली चलवाई या चलाई इस का उद्देश्य क्या हो सकता है? और क्या डोनाल्ड ट्रंप इतने लोकप्रिय हैं या फिर अलोकप्रिय हैं कि उन पर गोली चलाई गई है? यह विचारणीय सवाल है. उन के राष्ट्रपति बनने से अमेरिका किस दिशा में जाएगा और दुनिया भर में क्या असर होगा यह भी आज चिंतन का विषय बन गया है.

बाबाओं और चमत्कार का चक्कर कहीं खाली न कर दे तिजोरी

हाल ही में दिल्ली के आदर्श नगर की महिला को कष्ट हरने और मनोकामना पूरी करने का भरोसा दे कर दो बाबाओं ने लूट लिया. ये दो ‘फूंक मार’ बाबा थे जिन्होंने माल डबल करने के बहाने नीलम नाम की इस महिला से गहने मंगाए और सब ले कर फरार हो गए.

 

नीलम का पति फ्रूट शौप चलाता है. वह अपने पति को खाना दे कर दोपहर 3 बजे घर लौट रही थी. तभी गली में दो लोग मिले जिन्होंने तांत्रिकों जैसे कपड़े पहने थे. वे नीलम को रोक कहने लगे कि उन पर हनुमानजी की कृपा रहती है. इसलिए मंत्र फूंक कर किसी की भी मनोकामना पूरी कर देते हैं. दोनों ने नीलम से पूछा कि इन दिनों परिवार में पैसों की तंगी बनी रहती है. नीलम के हामी भरते ही दोनों ने उसे मंदिर चलने को कहा ताकि मंदिर में पूजा अनुष्ठान कर के सारे कष्ट हमेशा के लिए खत्म कर दें. नीलम उन की बातों में आ गई और दोनों के साथ पैदल शनि मंदिर पहुंची.

फिर पास के पार्क में बैठ कर दोनों ने पहले कुछ मंत्र फूंके. फिर उस की सोने की बालियां ले लीं. साथ ही मोबाइल भी रख लिया. दोनों बाबाओं ने कहा कि घर में जो भी सोने की जूलरी और कैश है वह ले आओ. उस पर फूंक मार कर जूलरी और कैश को डबल करने का दावा किया. महिला दोनों बाबाओं पर भरोसा कर के अपने घर पहुंची और एक जोड़ी चांदी की पायल, सोने का मंगलसूत्र, सोने का लौकेट और 20 हजार कैश ले कर आ गई. फिर यह सब तिकोना पार्क में उन दोनों बाबाओं को दे दिया. दोनों ने पूरे सामान में फूंक मारी. मंत्र पढ़े फिर राख जैसी चीज मुट्ठी में देकर कहा कि चौराहे पर जा कर अपने सिर से घुमाकर पीछे की और फेंक देना. रास्ते में पीछे मुड़ कर मत देखना. नीलम ने वैसा ही किया. फिर लौट कर वापस पहुंची तो वो दोनों बाबा गायब मिले.

चमत्कार की ख्वाहिश और विज्ञान की हकीकत

दरअसल हम हमेशा ही चमत्कार की तलाश में रहते हैं. हम चाहते हैं हमें बिन मेहनत कहीं से अचानक बहुत सारी दौलत मिल जाए. हमें एकदम से कोई हैंडसम या खूबसूरत पार्टनर मिल जाए. हमारी सब समस्याएं एकदम से खत्म हो जाएं. हम सो कर उठें और हमारी उम्र 10 साल पीछे चली जाए. हम बिल्कुल स्वस्थ हो जाएं. हमारी लौटरी निकल जाए या फिर हमें कोई गढ़ा हुआ धन या खजाना मिल जाए. कहने का मतलब यह कि हम अपने जीवन में सदैव कुछ चमत्कार की ख्वाहिश रखते हैं. इस के लिए हम दूसरों का मुंह ताकते हैं. हमें लगता है कोई चमत्कारी शख्स ही हमारे लिए इस तरह का कोई चमत्कार कर सकता है. ऐसे में अगर कोई फरेबी बाबा, फ़कीर या गुरु हमें इस बात का आश्वासन देता है तो हम एकदम से उस के कहे अनुसार काम करने लगते हैं ताकि वह हमारे लिए तुरंत कोई चमत्कार कर दे.

हमारे धर्म ग्रन्थ, धार्मिक पुस्तकें, धार्मिक रीतिरिवाज से जुड़ी कहानियां और मुल्ला, पादरी, पंडेपुजारी सब हमें चमत्कार की कहानियां सूना कर अपना अंधभक्त बनाने की कोशिश में रहते हैं. आप कोई भी धार्मिक किताब उठा कर पढ़ो उस में कितनी ही चमत्कार की कहानियां मिल जाएंगी. कृष्ण ने बचपन में ही कितने सारे चमत्कार कर डाले थे तो हनुमान भी चमत्कारों में कम नहीं थे. रीतिरिवाजों से जुड़ी कहानियां भले ही वह सावित्री की हों या प्रह्लाद की, तीज की हो या करवा चौथ की चमत्कार हर जगह मिल जाएगा.

हमारे यहां चमत्कार की बहुत सी घटनाओं को धार्मिक रूप से महिमा मंडित किया जाता रहा है. मगर वे घटनाएं वैज्ञानिक धरातल पर महज विज्ञान की सामान्य घटनाएं पाई गईं. याद कीजिए 21 सितंबर 1995 का दिन जब दुनिया का सब से महान धार्मिक चमत्कार घटित होने की अफवाह उड़ी थी. दुनियाभर की मूर्तियों ने दूध पीना शुरु कर दिया था. इस के बाद यही घटना दोबारा 2006 में घटी. भारत के सभी न्यूज़ चैनलों सहित बीबीसी, सीएनएन, वाशिंगटन पोस्ट, न्यूयौर्क टाइम्स, डेली एक्सप्रेस आदि दुनियाभर के अखबारों और चैनलों ने इस को कवरेज दिया था.

तर्कवादी लोग चमत्कार होने की बातों का पुरजोर विरोध करते हैं क्योंकि अधिकतर कथित चमत्कारों का कोई न कोई वैज्ञानिक आधार होता ही है. इस अफवाह का ही मामला लीजिए. तब हजारों की संख्या में श्रद्धालु मंदिरों के बाहर कतारें लगा कर भगवान को दूध पिलाने पहुंच गए थे. अंत में यह भौतिकी का एक सामान्य सा नियम निकला और हमें पता लग गया था कि एक चम्मच से दूध कैसे गायब हो जाता है और गुरुत्व बल के कारण कैसे वह धरती की ओर चला जाता है.

ऐसी मान्यता है कि रामसेतु बनाने के लिए जिन पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था वे पत्थर राम नाम लिखा होने की वजह से पानी में फेंकने के बाद समुद्र में नहीं डूबे बल्कि पानी की सतह पर ही तैरते रहे. कुछ लोग इसे धार्मिक महत्व देते हुए ईश्वर का चमत्कार मानते हैं लेकिन साइंस इस के पीछे जो तर्क देता है वह बिल्कुल विपरीत है.

दरअसल कुछ ऐसे पत्थर होते हैं जिस में कई सारे छिद्र होते हैं. छिद्रों की वजह से यह पत्थर एक स्पौजी यानी कि खंखरा आकार ले लेता है जिस कारण इन का वजन भी सामान्य पत्थरों से काफी कम होता है. इस खास पत्थर के छिद्रों में हवा भरी रहती है. यही कारण है कि यह पत्थर पानी में जल्दी डूबता नहीं है क्योंकि हवा इसे ऊपर ही रखती है.

एक और सब से आम चमत्कार है एक नारियल पर पानी छिड़क कर किसी के शरीर से भूत निकालना. आम तौर पर कथित चमत्कार करने वाले व्यक्ति ने नारियल के रेशों में सोडियम का टुकड़ा छिपाया होता है. जब उस पर पानी छिड़का जाता है तो सोडियम आग पकड़ लेता है और उस से धुंआ उठने लगता है. लोगों यह सोच कर मूर्ख बन जाते हैं कि भूत को पीड़ित के शरीर से निकाल दिया गया है. वास्तव में यह और कुछ नहीं बल्कि पानी और सोडियम की ऊष्मा पैदा करने वाली अभिक्रिया है जिसे भूत निकाले जाने का नाम दे दिया जाता है.

कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा था जिस में एक शख्स बता रहा था कि गंगाजी के पानी में इतना चमत्कार है कि छलनी से पानी नहीं गिरेगा. वीडियो में वह शख्स एक गिलास में पानी भर कर उसे छलनी पर रख कर उल्टा कर देता है लेकिन गिलास का पानी एक बूंद भी नहीं गिरा.

दरअसल इस में कोई चमत्कार नहीं बल्कि विज्ञान है. इसे आप भी घर पर ट्राय कर सकते हैं. वैसे तो छलनी में पानी नहीं रुकता है लेकिन विज्ञान की एक तकनीक का इस्तेमाल कर आप छलनी से पानी गिरने से रोक सकते हैं. इसे पृष्ठ तनाव कहते हैं. जब आप सावधानी से छलनी पर रखे गिलास को उल्टा करते हैं तो एक परत बन जाती है जो पानी को गिरने से रोकती है. इस वीडियो को देखने के बाद एक सोशल मीडिया यूजर ने लिखा कि यह चमत्कार तो है लेकिन विज्ञान का. एक ने लिखा कि इसी तरह विज्ञान दिखा कर चमत्कार बताते रहो हम विश्व गुरु बन जाएंगे. वीडियो को सोशल मैसेज नाम के फेसबुक पेज से शेयर किया गया था. इस वीडियो को कुछ ही दिनों में 20-25 मिलियन से अधिक लोगों ने देखा. हैरानी की बात यह कि अधिकतर लोग इसे चमत्कार मानने लगे.

देखा जाए तो भारत के संविधान का अनुच्छेद 51 ए (एच) ‘वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानवीयता और जांच एवं सुधार की भावना का विकास’ करने पर जोर देता है. यहीं इन कथित चमत्कारों और आधुनिक विज्ञान की समझ के बीच टकराव पैदा होता है. लेकिन भारत एक ऐसी जटिल सभ्यता है जहां आस्था, विज्ञान, धर्म और अंधविश्वास सब साथ साथ रहते हैं.

भारत रत्न से सम्मानित किए गए देश के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक प्रोफैसर सीएनआर राव से एक सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा था, ‘मैं चमत्कारों में यकीन नहीं रखता. मैं एक बात आप को बता देना चाहता हूं कि भारत में धर्म, विश्वास, अंधविश्वास और विज्ञान के बीच एक उलझन है. हर किसी को किसी न किसी चीज में आस्था होनी चाहिए. उदाहरण के लिए यदि आप विज्ञान से जुड़े हैं तो आप को भौतिकी के नियमों पर विश्वास होना चाहिए. यदि कोई दर्शन या ईश्वर में आस्था रखता है तो मैं उस के खिलाफ नहीं हूं. हालांकि इस से अंधविश्वास पैदा नहीं होना चाहिए.’

मदर टेरेसा के चमत्कार

सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी चमत्कार की बहुत महिमा देखी जाती है. उदाहरण के लिए मदर टेरेसा नाम से दिमाग में एक तस्वीर उभरती है. नीली धारियों वाली सफेद धोती में लिपटी हुई एक महिला जो बीमार और गरीब लोगों की सेवा कर रही हो. उन को नोबेल शांति पुरस्कार और भारत रत्न से सम्मानित किया गया. वह एक उच्च कोटि की महिला थी लेकिन उन्हें संत का दर्जा मरने के कई साल बाद मिला.

दरअसल ईसाई धर्म में संत होना इतना आसान नहीं. बाक़ायदा पूरी प्रक्रिया का पालन होता है. रिज्यूमे भेजा जाता है, क्रेडेंशियल चेक होते हैं और देखा जाता है कि उस ने कितने चमत्कार किए. दुनिया में रह कर अच्छे काम किए हों ये भी काफ़ी नहीं. दुनिया से चले जाने के बाद भी ज़रूरी है कि संतत्व की झलकियां मिलती रहें. मदर टेरेसा के संतत्व को ले कर किसी को शक नहीं होने के बावजूद आधिकारिक ऐलान ज़रूरी था. चर्च को इंतजार था दो चमत्कारों का जो कथित तौर पर हुए भी और तभी उन्हें यह उपाधि मिली.

मदर टेरेसा का पहला चमत्कार : मोनिका बेसरा का उपचार

मोनिका बेसरा का ट्यूमर ठीक होना पहला चमत्कार था जिस के कारण मदर टेरेसा को संत घोषित किया गया. मोनिका के पेट में लगभग 16 सेंटीमीटर का ट्यूमर था. एक दिन मोनिका प्रार्थना सभा में गई और उस ने मदर टेरेसा की तस्वीर से प्रकाश की किरण निकलती देखी. बाद में एक पदक जिसे अंतिम संस्कार के समय मदर टेरेसा के शरीर पर सीधे स्पर्श कराया गया था. उसे मोनिका के पेट पर रखा गया और एक बहुत ही सरल प्रार्थना की गई, ‘मदर आज आप का दिन है. आप गरीबों से प्यार करती हैं. मोनिका के लिए कुछ करें.’

करीब 8 घंटे बाद मोनिका का ट्यूमर पूरी तरह से गायब हो गया था. ग्यारह डाक्टरों ने मोनिका के मामले की जांच की और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ट्यूमर इतनी जल्दी कैसे गायब हो गया इस का कोई मैडिकल स्पष्टीकरण नहीं है. वेटिकन ने मोनिका के ठीक होने को मदर टेरेसा के पहले चमत्कार के रूप में स्वीकार किया. मोनिका बेसरा का चमत्कारी उपचार 2002 में हुआ था और अक्तूबर 2003 में पोप सेंट जौन पौल द्वितीय ने मदर टेरेसा को संत घोषित किया था.

नेशनल कैथोलिक रजिस्टर के अनुसार, ‘दूसरा चमत्कार दिसंबर 2008 में ब्राजील में हुआ. ब्राजील के सांतोस के 42 वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर मार्सीलियो हेडाड एंड्रिनो को मस्तिष्क में बेक्टीरिया का संक्रमण हो गया था. इस के कारण मस्तिष्क में एक बड़ा फोड़ा हो गया था और सिर में भारी दर्द उठता था.’ इस के अनुसार, ‘एक पादरी के मित्र ने इस नवविवाहित युवक और उस की पत्नी फर्नेडा नासीमेंटो रोचा से मदर टेरेसा की मदद के लिए प्रार्थना करने को कहा. एंड्रिनो तो कोमा में चला गया लेकिन रोचा ने प्रार्थना की. उस समय एंड्रिनो को उस की अंतिम गंभीर सर्जरी के लिए ले जाया गया. इस में कहा गया, जब सर्जन औपरेशन कक्ष में दाखिल हुआ तो उस ने एंड्रिनो को जागा हुआ पाया और वह सर्जन से पूछ रहा था- क्या चल रहा है? एंड्रिनो पूरी तरह ठीक हो गया और इस दंपति के दो बच्चे हुए. चिकित्सकों ने ऐसा होना भी चिकित्सीय रूप से असंभव करार दिया था.

इन चमत्कारों की तथाकथित रूप से पुष्टि की गई और इन्हीं के चलते 2016 में मदर टेरेसा को संत की उपाधि दे दी गई. जाहिर है अपने जीवनकाल में ही ‘गरीबों की मददगार’ और हजारों जरूरतमंदों के लिए ‘जीवित ईश्वर’ कहला चुकी मदर टेरेसा को मरने के बाद संत की उपाधि दी गई. यह इंतजार किया गया कि उन की आत्मा कोई चमत्कार करे. मेसेडोनिया में जन्मीं कैथोलिक नन एग्नेस गोंक्शे बोयाशियु का लोगों की सेवा के लिए पश्चिम बंगाल तक आना और गरीबों तथा बीमारों के लिए काम करना अपने आप में एक खासियत है. लेकिन गरीबों की सेवा का असीम हौसला अपने अंदर समेटे महिला के बारे में यह कहना अतार्किक जैसा है कि उस ने मरने के बाद ‘चमत्कार’ किए और तब उन्हें संत माना गया. मदर टेरेसा के नाम से इन कथित चमत्कारों को जोड़े बिना भी उन्हें संत बनाया जा सकता था.

पाखंडी बाबाओं की हकीकत

नए जमाने के इन बाबाओं के क्या कहने. बैठने के लिए भव्य सिंहासन चाहिए. घूमने के लिए लंबी गाड़ी और ए-ग्रेड बाबा है तो हेलिकौप्टर से कम में काम नहीं चलता. इन का ईश्वर से सीधा कनैक्शन है फिर भी ज़ेड प्लस सिक्यूरिटी चाहिए. बाबा के आसपास 10-20 चेलाचेली दौड़ते रहते हैं. राजनेता इन के आशीर्वाद लेने आ रहे हैं. जहां ये प्रवचन झाड़ते हैं वहां फूलों से भव्य सजावट की जाती है. शहंशाही आसन पर बाबा विराजमान होता है. जनता बेवकूफ है. उन्हें लगता है कि ऐसा करके वे चमत्कार पाएंगे.

बाबाओं की झोलियां लगातार भरती रहती है. बाबाओं के नाम प्रौपर्टी की भरमार, होटल, फ्लैट्स, बड़ीबड़ी गाड़ियां. बाबा के बैंक खाते में हर दिन करोड़ों रुपए आते हैं. ये है 21वीं सदी का अंधविश्वासी भारत. कौन कहता है भारत में पैसे की कमी है. गरीब से गरीब और धनी से धनी बाबा के लिए अपनी संपत्ति कुर्बान कर देना चाहता है.

ये बाबा भी बड़ी सोचसमझ कर ऐसे लोगों को अपना लक्ष्य बनाते हैं जो असुरक्षित हैं. आस्था और अंधविश्वास के बीच बहुत छोटी लकीर होती है जिसे मिटा कर ऐसे बाबा अपना काम निकालते हैं. नौकरी के लिए तरसता व्यक्ति या फिर बेटी की शादी न कर पाने में असमर्थ कोई गरीब इन बाबाओं का टारगेट नहीं. इन का टारगेट है मध्यमवर्ग जो बड़ेबड़े स्टार्स और व्यापारिक घराने के लोगों की श्रद्धा देख कर इन बाबाओं की शरण में आ जाता है. बच्चन फैमिली हो या अंबानी, राजनेता हों या नौकरशाह बड़े लोगों ने जाने अनजाने में इस अंधविश्वास को बल दिया है.

चुनाव जीतने के लिए मंदिरों मस्जिदों या बाबाओं के चक्कर लगाते नेता दरअसल अंधविश्वास का ही प्रचार करते हैं. उन्हें अपना रुतबा, अपनी दौलत कायम रखने का लालच होता है. जो जितना समृद्ध वो उतना ही अंधविश्वासी होता है. फिर समृद्धि के पीछे भागता मध्यमवर्ग इस मामले में क्यों पीछे रहेगा. जब तक हमारी सोच नहीं बदलेगी ऐसे फरेबी बाबा और तांत्रिक हमें मूर्ख बनाते ही रहेंगे.

यह एक हकीकत है कि हर युग में चाहे जिस का भी शासन रहा हो हिंदू शासन हो या मुसलिम शासन इन साधु संतों और तथाकथित गुरुओं बाबाओं का बोलबाला रहा है. शासन में यह लोग दूध मलाई का भोग खाते रहे हैं. शासक वर्ग की कुटिलता और शोषण के टूल के रूप में कार्यरत रहे हैं. किसी एक पीर, फ़कीर या बाबा की पोल खुलतेखुलते दूसरा हाज़िर नाज़िर हो कर लूट खसोट शुरू कर देता है.

हमारा संविधान वैज्ञानिक सोच और उस के आधार पर व्यवस्था चलाने की वकालत करता है और इस का प्रावधान कर रखा है. लेकिन हमेशा उलटी गंगा बहती है. तरह तरह के बाबा, पीर फकीर समय समय पर खुद को किसी न किसी का अवतार कह कर अपना उल्लू सीधा करते ही रहते हैं.

बाबाओं के अलावा ऐसे मंदिर भी हैं जिन में रोज करोड़ों रुपयों का चढ़ावा आता है. दोनों को एक ही श्रेणी में रखा जाना चाहिए. अंतर बस इतना है कि एक में हाड़मांस का पुतला नजर आ रहा है दूसरे में नहीं. लोगों की आस्था और कुछ पैसे देकर काम चमत्कार करवाने की चाह दोनों जगह है.

सबक लेना जरूरी

भारत एक ऐसा देश है जहां आप सड़क से एक बड़े पत्थर को तिलक लगा कर अगरबत्ती सुलगा दीजिए वही आस्था का केंद्र बन जाएगा. लोगों के इस पढ़ेलिखे अनपढ़ होने या फिर चमत्कार की ख्वाहिश रहने की प्रवृत्ति का नाजायज फायदा उठाया जाता है. हमारे देश में पैसा कमाना बहुत आसान है बस आपके दिमाग में एक शातिर खुराफात होनी चाहिए. धर्म हमेशा से ही हमारे देश की सब से बड़ी कमजोरी रहा है.

हाथरस हादसा ऐसे ही अंधविश्वासियों के लिए एक सबक है. आप भीड़ का हिस्सा क्यों बन रहे हैं? आप इन बाबाओं की गुलामी में क्यों लगे होते हैं? ये ढोंगी जादू टोना, चमत्कार के नाम पर रोजाना आपको ठगते हैं, आप के आत्मसम्मान के साथ छल करते हैं. आप की दरिद्रता, गरीबी का फायदा उठाते हैं. आप के जागरूक न होने का लाभ ले कर अपनी कोठियां बनवाते हैं और आप वही के वहीं रह जाते हैं या और भी बुरे हालात हो जाते हैं. ये ढोंगी चमत्कार नहीं कर सकते. ये केवल ढोंग कर के आप को बेवकूफ बना रहे हैं. आप के नाम पर करोड़ों की जमीन पर कब्जा कर रहे हैं. जिस दिन इन ढोंगियों के यहां आप जाना बंद कर देंगे इन की दुकान खुद बख़ुद बंद हो जाएगी.

बाबाओं की सब से ज्यादा शक्तियां और चमत्कार भारत में ही पाए जाते हैं. लेकिन मजेदार बात यह है कि इन की इतनी शक्तियों और चमत्कारों के बावजूद भारत विश्व में सैकड़ों सालों से गुलाम रहे देशों में तीसरा देश कहलाता है. गरीबी, गंदगी, अनुशासनहीनता, लालच, भ्रष्टाचार, अंधभक्ति जैसी समस्याओं से जूझ रहा है किन्तु ये बाबा आज तक देश का कल्याण नहीं कर पाए. यदि आप यकीन कर सकें तो वास्तविकता यह है कि किसी बाबा में कोई शक्ति नहीं, कोई चमत्कार नहीं. आप अपने को टटोलें तो पायेंगे कि शक्ति तो आप में है, चमत्कार तो आप में है. बेवजह ही आप बाबाओं के चक्कर में पड़े थे.

इस देश में पाखंडी व ढोंगी बाबाओं का जमावड़ा हो गया है कि जिधर देखो उधर ये पाखंडी डेरा जमाए हुए हैं. कोई सैक्सी फिल्में बना रहा है तो कोई पूरा सैक्स रैकेट ही चला रहा है. कहीं ये देखने को आ रहा है कि अपनी उम्र से भी आधी से भी कम उम्र की लड़कियों को बाबा अपने प्रेमजाल में फंसा रहे हैं. उन से अनुष्ठान करा रहे हैं.

अच्छा होता आप अपनेआप पर कृपा करते. इन से दूर रह कर अपनी शक्ति को पहचानते. प्रकृति तथा ब्रह्मांड के अचूक, तर्कसम्मत एवं वैज्ञानिक नियमों की पहचान करते. आप अज्ञानता, बेबसी एवं भय के कारण ही तो बाबाओं, ज्योतिषियों, तांत्रिकों या अन्य पाखंडी गुरुओं के पीछे भागते हैं. यदि आप वैज्ञानिक विश्लेषण एवं तर्क से सोचते तो आप की आंखें हमेशा के लिए खुल जातीं. ये फालतू और बेवजह की भागदौड़ हमेशा के लिए बंद हो जाती.

भारत जैसे देश में आज सब से बड़ी आवश्यकता बौद्धिक स्तर को ऊंचा करने की है. साइंटिफिक तरीकों से तथ्यों का विश्लेषण करने की है. आंख मूंद कर विश्वास करना मूर्खतापूर्ण है. हमें अपने बच्चों को स्कूल में सही जानकारी देनी चाहिए. उन्हें तार्किक बातें बतानी चाहिए. इस तरह की ढोंगी बातों को तर्क के आधार पर तुरंत खारिज किया जाना चाहिए. हमारे देश मे ऐसे लोगों को हमेशा हतोत्साहित किया जाना चाहिए जो भोलेभाले लोगों को बेवकूफ बनाते हैं. सरकार को शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन करना चाहिए जिस से हमारे बच्चे तार्किक हो सकें.

धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने का हक हर आश्रित को

धारा – 125 सिर्फ तलाक लेने वाली महिलाओं के लिए ही गुजारे भत्ते का इंतजाम नहीं करती, बल्कि यह निराश्रित मातापिता, जायजनाजायज या अनाथ बच्चों, छोटे भाईबहनों या बहुओं के लिए भी सम्मान से जीवन जीने लायक पूंजी दिलवाने का प्रावधान करती है. नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में ये प्रावधान धारा 144 में किया गया है.

 

10 जुलाई 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने एक तलाकशुदा स्त्री को गुजारा भत्ता देने के संबंध में फैसला सुनाते हुए उस के पति को प्रतिमाह 20 हजार रुपये गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया. मामला चूंकि मुसलिम धर्म से जुड़ा था, लिहाजा अखबारों और टीवी चैनलों पर खूब चला. भारतीय जनता पार्टी और उस के गोदी मीडिया ने तो दो कदम आगे बढ़ कर इसे तीन तलाक के मुद्दे के बाद मुसलिम महिलाओं की दूसरी जीत करार दिया. तमाम मुसलिम महिलाओं की बाइट टीवी पर दिखाई जाने लगी. जबकि सीआरपीसी की धारा – 125 के तहत किसी भी आश्रित के लिए गुजारा भत्ता पाने का यह कोई पहला मामला नहीं था. देश भर की अदालतों में हर दिन ऐसे सैकड़ों मामलों की सुनवाई होती है और आश्रितों के हक में अदालतों द्वारा ऐसे फैसले दिए जाते हैं. पर चूंकि यह मुसलिम समाज से जुड़ा मामला था इसलिए होहल्ला अधिक हुआ.

पत्नी, बच्चों, और मातापिता के भरणपोषण के लिए आदेश देने से जुड़ी दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125, साल 1973 में बनी और 1 अप्रैल, 1974 को लागू हुई. यह धारा खासतौर पर हिंदू महिलाओं की दुर्दशा को देखते हुए लागू की गयी थी. पति द्वारा त्याग दिए जाने पर, पति की मृत्यु हो जाने पर, बच्चों द्वारा प्रताड़ित किए जाने पर अधिकांश हिंदू औरतें नारकीय जीवन जीने के लिए बाध्य हो जाती थीं. उन्हें उस नारकीय जीवन से निकल कर सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार मिले, इस सोच के तहत यह कानून बना.

आमतौर पर हिंदू विवाह विच्छेद के बाद महिलाओं की दूसरी शादी बहुत मुश्किल से होती है. पुराने समय में तो होती भी नहीं थी, यही वजह थी कि पति द्वारा त्याग दिए जाने पर वे वृन्दावन की राह पकड़ लेती थीं और वहां भिक्षा मांग कर अपना गुजरबसर करती थीं. वृन्दावन विधवाओं और निराश्रित हिंदू महिलाओं का इतना बड़ा स्थल इसीलिए बना क्योंकि महिलाओं के पास ना तो कोई आश्रय स्थल होता था और न ही अपने गुजरबसर करने लायक पूंजी होती थी. पति ने यदि त्याग दिया तो मायके वाले भी उस को नहीं अपनाते थे. हिंदू समाज ऐसी औरतों को बहुत नीच दृष्टि से देखता था. इस के विपरीत मुसलिम समाज में तलाक और दूसरा निकाह दोनों ही काफी आसान और जल्द होते थे. वे अपनी महिलाओं को बेसहारा नहीं छोड़ते थे और तलाक के 3 महीने बाद ही उस का दूसरा निकाह पढ़वा देते थे. यही वजह है कि मुसलिम महिलाओं के लिए वृन्दावन जैसी किसी व्यवस्था की जरूरत इस देश में कभी नहीं हुई. हिंदू महिलाओं की दुर्दशा को दृष्टिगत रखते हुए कानून के जानकारों ने धारा-125 लागू की और इस के जरिए महिलाओं को आत्मसम्मान के साथ जीवन यापन करने की राह हासिल हुई.

धारा-125 सिर्फ तलाक लेने वाली महिलाओं के लिए ही गुजारे भत्ते का इंतजाम नहीं करती, बल्कि यह निराश्रित मातापिता, जायज, नाजायज या अनाथ बच्चों, छोटे भाईबहनों या बहुओं के लिए भी सम्मान से जीवन जीने लायक पूंजी दिलवाने का प्रावधान करती है. नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में ये प्रावधान धारा 144 में किया गया है.

ये धारा कहती है कि कोई भी पुरुष अलग होने की स्थिति में अपनी पत्नी, बच्चे और मातापिता को गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं कर सकता. इस में नाजायज लेकिन वैध बच्चों को भी शामिल किया गया है. धारा साफ करती है कि पत्नी, बच्चे और मातापिता अगर अपना खर्चा नहीं उठा सकते तो पुरुष को उन्हें हर महीने गुजारा भत्ता देना होगा. गुजारा भत्ता मजिस्ट्रेट तय करेंगे. पत्नी को गुजारा भत्ता तब तक मिलेगा जब तक महिला दोबारा शादी नहीं कर लेती.

ढेरों मामले

इस धारा में ये भी प्रावधान है कि अगर कोई पत्नी बिना किसी कारण के पति से अलग रहती है या किसी और पुरुष के साथ रहती है या फिर आपसी सहमति से अलग होती है तो वो गुजारा भत्ता पाने की हकदार नहीं होगी. वहीं अगर पत्नी की आय पति से अधिक है, या पति बेरोजगार है तो वह भी इस धारा के तहत पत्नी से गुजारा भत्ता पाने का हकदार हो सकता है. इस धारा के तहत, अगर कोई व्यक्ति पर्याप्त साधन संपन्न है, लेकिन भरणपोषण करने में उपेक्षा करता है या इनकार करता है, तो प्रभावित व्यक्ति मजिस्ट्रेट के सामने आवेदन कर के भरणपोषण की मांग कर सकता है. मजिस्ट्रेट को भरणपोषण देने की उचित मासिक दर तय करने का अधिकार है. किसी भी धर्मजाति, सम्प्रदाय, भाषा का नागरिक इस धारा के तहत आवेदन कर सकता है. ऐसे सैकड़ों केस देशभर की अदालतों में आएदिन आते हैं.

हालिया सुप्रीम कोर्ट के फैसले की इतनी चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि मुसलिम महिला पर 1986 का मुसलिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) कानून भी लागू होता है. यह कानून 1986 में तब बना जब शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने धारा-125 के तहत उसे गुजारा भत्ता देने का प्रावधान किया. शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से देशभर में राजनीतिक माहौल गरमा गया था. मुसलिम धर्मगुरुओं और पर्सनल ला बोर्ड ने इस फैसले का पुरजोर विरोध किया था. जिस के चलते कांग्रेस पार्टी के हाथ से मुसलिम वोट के खिसकने का डर पैदा हो गया था, लिहाजा मई 1986 में मुसलिम कठमुल्लाओं के दबाव में तत्कालीन राजीव गांधी की सरकार ने मुसलिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) कानून पास किया और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया.

1986 के इस कानून की धारा 3 में तलाकशुदा मुसलिम महिला के गुजारा भत्ता का प्रावधान है. धारा 3 में लिखा है कि तलाकशुदा मुसलिम महिला को पूर्व पति से इद्दत की अवधि तक ही गुजारा भत्ता मिल सकता है. इद्दत की अवधि तीन महीने होती है. इसी धारा में ये भी लिखा है कि अगर तलाक से पहले या तलाक के बाद महिला अकेले बच्चे का पालनपोषण नहीं कर सकती तो उसे दो साल तक पूर्व पति से गुजारा भत्ता मिलेगा.

हालांकि, शाहबानो मामले में फैसले के दो साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक और फैसले में साफ किया था कि तलाकशुदा मुसलिम महिला इद्दत की अवधि के बाद भी पूर्व पति से तब तक गुजारा भत्ता पाने की हकदार है, जब तक वो दोबारा शादी नहीं कर लेती. शाहबानो इंदौर की रहने वाली थीं और उन के पति ने उन्हें तीन तलाक दे दिया था. तब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत शाहबानो अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता पाने की हकदार है.

इतना ही नहीं, 2001 में डेनियल लतीफी नाम के वकील ने 1986 की कानून की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून की वैधता बरकरार रखते हुए साफ किया था कि 1986 का कानून सिर्फ इद्दत की अवधि तक ही गुजारा भत्ता देने तक सीमित नहीं है.

गौरतलब है कि इद्दत एक इस्लामी परंपरा है. इद्दत का पालन एक मुसलिम महिला को करना पड़ता है. पति से तलाक होने या उसकी मृत्यु होने पर मुसलिम महिला को इद्दत का पालन करना होता है.

इद्दत की अवधि के दौरान तलाकशुदा महिला के दोबारा शादी करने पर पाबंदी होती है. अगर किसी गर्भवती महिला का तलाक होता या वो विधवा होती है तो बच्चे के जन्म के साथ ही इद्दत की अवधि खत्म हो जाती है. पति की मृत्यु के बाद इद्दत की अवधि 4 महीने 10 दिन होती है, जबकि तलाक के बाद 3 महीने 10 दिन की इद्दत की जाती है.

1986 का कानून और धारा 125 दोनों ही देश में एक साथ चल रहे हैं. मुसलिम महिला अगर 1986 के कानून के तहत आवेदन नहीं करना चाहती है तो वह धारा 125 के तहत मुकदमा दर्ज कर गुजारे भत्ते की मांग कर सकती है. हालिया केस में यही हुआ है.

क्या है मामला

ये पूरा मामला शुरू होता है 15 नवंबर 2012 से. उस दिन तेलंगाना में एक मुसलिम महिला आगा ने अपने पति अब्दुल समद का घर छोड़ दिया. 2017 में महिला ने अपने पति के खिलाफ आईपीसी की धारा 498A और 406 के तहत दहेज़ उत्पीड़न, विश्वासघात और घरेलू हिंसा का केस दर्ज कराया. इस से नाराज हो कर पति ने महिला को तीन तलाक दे दिया. 28 सितंबर 2017 को दोनों को तलाक का सर्टिफिकेट जारी हो गया.

दावा है कि तलाक के बाद इद्दत की अवधि तक पति ने महिला को हर महीने 15 हजार रुपये का गुजारा भत्ता देने की पेशकश की. इद्दत की अवधि तीन महीने तक होती है. लेकिन महिला ने इसे लेने से इनकार कर दिया. इस के बजाय महिला ने फैमिली कोर्ट में याचिका दायर की और सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता देने की मांग की. 9 जून 2023 को फैमिली कोर्ट ने हर महीने 20 हजार रुपये का गुजारा भत्ता देने का आदेश पति को दिया.

फैमिली कोर्ट के फैसले को पति ने तेलंगाना हाईकोर्ट में चुनौती दी. 13 दिसंबर 2023 को हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. लेकिन हर्जाने की रकम 20 हजार से घटा कर 10 हजार रुपये कर दी.

अब्दुल समद ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. उस ने दलील दी कि एक तलाकशुदा मुसलिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत याचिका दायर करने की हकदार नहीं है. मुसलिम महिला पर 1986 का मुसलिम महिला (तलाक पर अधिकार का संरक्षण) कानून लागू होता है. उस ने यह भी दलील दी 1986 का कानून मुसलिम महिलाओं के लिए ज्यादा फायदेमंद है. लेकिन वहां से भी उसे राहत नहीं मिली और मामला सुप्रीम कोर्ट में आ गया.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

10 जुलाई 2024 को सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस औगस्टिन जौर्ज मसीह की बेंच ने 99 पन्नों का फैसला देते हुए कहा कि एक तलाकशुदा मुसलिम महिला भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने के लिए याचिका दायर करने की हकदार है.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि सीआरपीसी की धारा 125 सभी शादीशुदा महिलाओं पर लागू होती है, जिन में शादीशुदा मुसलिम महिलाएं भी शामिल हैं. अदालत ने ये भी कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 सभी गैर-मुसलिम तलाकशुदा महिलाओं पर भी लागू होती है.

मुसलिम तलाक पर कोर्ट ने कहा –

– अगर किसी मुसलिम महिला की शादी या तलाक स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत होती है, तो भी उस पर धारा 125 लागू होगी.

– अगर मुसलिम महिला की शादी और तलाक मुसलिम कानून के तहत होता है तो उस पर धारा 125 के साथसाथ 1986 के कानून के प्रावधान भी लागू होंगे. तलाकशुदा मुसलिम महिलाओं के पास दोनों कानूनों में से किसी एक या दोनों के तहत गुजारा भत्ता पाने का विकल्प है.

– अगर 1986 के कानून के साथसाथ मुसलिम महिला सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भी याचिका दायर करती है तो 1986 के कानून के प्रावधानों के तहत जारी हुए किसी भी आदेश पर सीआरपीसी की धारा 127(3)(b) के तहत विचार किया जा सकता है. इस का मतलब ये है कि अगर पर्सनल लॉ के तहत मुसलिम महिला को गुजारा भत्ता दिया गया है, तो धारा 127(3)(b) के तहत मजिस्ट्रेट उस आदेश पर विचार कर सकते हैं.

दोनों जजों का फैसला

1. जस्टिस मसीह – एक तलाकशुदा मुसलिम महिला को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता पाने के अधिकार का उपयोग करने से नहीं रोका जा सकता, बशर्ते वो सारी शर्तें पूरी करती हो. धारा 125 एक सेक्युलर प्रावधान है और 1986 के कानून की धारा 3 के बराबर ही है.

2. जस्टिस नागरत्ना – 1986 का कानून धारा 125 का विकल्प नहीं है और दोनों कानून तलाकशुदा मुसलिम महिलाओं के लिए हैं. अगर मुसलिम महिलाओं को धारा 125 से बाहर रखा जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 15(1) का उल्लंघन होगा, जो सभी नागरिकों को समानता का अधिकार देता है.

गौरतलब है कि तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में असंवैधानिक घोषित कर दिया था. इस के बाद 2019 में मोदी सरकार ने कानून लाकर तीन तलाक को न सिर्फ असंवैधानिक किया, बल्कि इसे अपराध के दायरे में भी रखा.

जस्टिस नागरत्ना ने अपने फैसले में साफ किया है कि तीन तलाक के अवैध तरीके से भी किसी मुसलिम महिला को तलाक दिया जाता है तो वो भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत हर्जाने का दावा कर सकती है.

उन्होंने कहा, तलाकशुदा मुसलिम महिला को सीआरपीसी की धारा 125 से बाहर नहीं रखा जा सकता है, भले ही उसे किसी भी कानून के तहत तलाक दिया गया हो. जिस का

लेखपाल ऋचा, PCS अधिकारी ज्योति ने पति को छोड़ा तो सोसाइटी जजमैंटल क्यों हो गया

कुछ घटनाओं में यह देखा गया कि कुछ पत्नियों ने कामयाब होते ही  पति का हाथ जोर से झटक दिया, पति का कसूर था कि वह  शिक्षा और ओहदे की दृष्टि से पत्नी के लायक नहीं रह गया था, इसके बाद सारा समाज जज बन गया और ऐसी महिलाओं को भलाबुरा कहने लगा, लेकिन क्या इस तरह के मामलों में औरतों को लेकर जजमैंटल होना जरूरी है 

 

घटनाएं जिसने बदलती महिलाओं की ओर समाज का ध्यान खींचा
जुलाई 2024 में,  कारपेंटर नीरज विश्वकर्मा ने झांसी के सदर तहसील में हाल में नियुक्त हुई पत्नी लेखपाल ऋचा पर गंभीर आरोप लगाया. नीरज का कहना था कि जिस पत्नी को मेहनतमजदूरी कर उसने पढ़ाया और लेखपाल बनाया, उसने नौकरी मिलते ही पति को छोड़ दिया.  ऋचा का कहना है कि उनकी शादी नहीं हुई है हालांकि इनकी 3 साल पहले हुई लव मैरिज शादी की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है.  इस मामले से पहले 2023 में भी इसी तरह का एक केस बहुत चर्चा में रहा. जब यूपी की PCS अफसर ज्योति मौर्या पर पति आलोक मौर्या ने ऐसा ही आरोप लगाया था. आलोक का आरोप था कि उसने पत्नी के एजुकेशन में मदद की और उसने एसडीएम बनते ही पति से मुंह मोड़ लिया, यहां तक कि किसी अन्य अधिकारी के साथ प्रेमसंबंध भी बनाया.
उन दिनों कई पतियों के वीडियो वायरल हुए, जिसमें वे कह रहे थे कि इन मामलों की वजह से वे पत्नी को आगे नहीं पढ़ाना चाहते हैं. उन्हीं दिनों पटना के मशहूर खान सर ने भी कहा था कि उनके BPSC बैच से 93 महिलाओं के पति ने अपनी पत्नियों के नाम कटवा दिए.

 

लड़कियों को लेकर समाज जजमैंटल क्यों
एक समय था दहेज के लिए लड़कियां जला दी जाती थी इस वजह से भ्रूण हत्याएं होने लगी. समय बदला साथ ही समाज भी, बेटियों की दशा और दिशा में शिक्षा के मामले में थोड़ा सुधार आया.  कम ही संख्या में सही लड़कियों ने बोर्ड परीक्षा से  लेकर आईएएस की परीक्षाओं में टौप करके दिखा दिया कि सोसाइटी ने जिस चिंगारी को हवा से बुझाने का काम किया, उसी हवा का औक्सीजन ले कर चिंगारी, मशाल बन गई और दहकने लगी है.  कई बार यह मशाल अंधेरे में रास्ता दिखाने का काम करती है, तो कई बार इसका इस्तेमाल जलाने के लिए भी किया जाता है.  आज ऋचा और ज्योति जैसे ऐसे कई मामले आ रहे हैं, जिसमें लड़की की शिक्षा रूपी मशाल ने अपने ही आशियाने में आग लगाने का काम किया है, लेकिन क्या वाकई इसके लिए लड़कियां जिम्मेदार है या वो समाज जिसने उसे ऐसा करने पर विवश कर दिया? 

 

 

न नजरअंदाज किए जाने वाले कारण
National Crime Record Bureau के डेटा को देखें, तो दहेज निषेध अधिनियम 1961 के तहत साल 2022 में करीब 13,479 मामले दर्ज किए गए जबकि उसी साल दहेज से होने वाली मौतों की संख्या 6,450 रही.   NCRB के आंकड़ों में इस बात का भी जिक्र था कि दहेज से होने वाली मौतों में 4.5 % की और रजिस्टर्ड केसेज की संख्या में  0.6% की कमी आई है यह हाल तो साल 2022 का है. जरा सोचिए, 70, 80 और 90 के दशक में ऐसे मामलों का क्या हाल रहा होगा.  भले ही दहेज के मामलों में कमी पौजिटिव चेंज की तरह दिख रहा है लेकिन NCRB की रिपोर्ट में दिए गए इस डेटा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि 2020 की तुलना में 2021 में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या 56. 5% से बढ़कर 64.5 % हो गई. ‘क्राइम इन इंडिया 2022’ की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ सबसे अधिक अपराध उसके पति या रिश्तेदारों के क्रूरता के थे, जो करीब 31. 2% है. जब घर के अंदर सबसे ज्यादा पीड़ा पहुंचाई जा रही है, तो सबसे पहला प्रतिकार तो वहीं दिखेगा, जो पतियों को छोड़ने वाली महिलाओं के रूप में सामने आ रहा है. ऋचा विश्वकर्मा ने अपने मामले में कहा भी कि उसका पति नीरज उसे शराब पीकर मारता पीटता था. 

 

गिरेबान में झांककर देखें

  महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में दहेज तो बस एक मामला भर है और भी कई ऐसे अपराध है जिसने महिलाओं को अपने हित के बारे में सोचने को मजबूर कर दिया .  समाज उनको स्वार्थी कह सकता है लेकिन यही समाज उनके साथ बलात्कार, भ्रूण हत्या, किडनैपिंग, घरेलू हिंसा, शील भंग करने के प्रयास से हिंसा जैसे मामलों को अंजाम देता रहा है . आखिर इन चीखों को कब तक दबाया जा सकता था, ऋचा, ज्योति मौर्या जैसे मामले उसी बैड एक्शन के रिएक्शन के रूप में उभरी है.  लेकिन सम्मानित पदों पर बैठनेवाली ऐसी महिलाओं की संख्या काफी  कम है . ज्यादातर तो हर परिस्थिति में घर की चाहरदीवारी में ही रंगीन चमकदार साड़ियों में सजधज कर सुखद दांपत्य का दिखावा करती रहती हैं, जबकि उन्हीं साड़ियों की तहों के नीचे बदन पर नीले दाग के निशान होते हैं .      

समाज के रूढ़िवादी और हिंसात्मक तौरतरीके का प्रतिकार पढ़ीलिखी महिलाओं का पति का साथ छोड़ने तक ही सीमित नहीं है . महिलाओं के प्रतिकार के कई रूप होते हैं सूरजपाल, रामरहीम, आशाराम बाबू  जैसे ढोंगियों की ड्योढ़ी पर मत्था टेकनेवाली महिलाएं भी इसमें शामिल है . घर और समाज में दुत्कार मिलने पर बाबाओं का सहारा इनको रास आता है . पर अफसोस कि यहां से फिर उनके शोषण का दौर शुरू होता है . 

उच्च तबका और पीड़ित शरीर पर ग्लैमर का मलहम

अफसोस की बात तो यह है कि समाज के उच्च तबके की हाइअली एजुकेटेड महिलाएं भी बाबाओं से दूर नहीं है, बस किसी का बाबा गेरुआ पहना है, तो किसी का सफेद, किसी का बाबा गांव की बोली बोलता है, किसी की फ्लूएंट इंग्लिश . हाईअर सोसायटी में डोमेस्टिक वाैयलेंस के मामले सामने नहीं आ पाते क्योंकि वहां पीड़ित महिला यह स्वीकार कर चुकी होती है कि पति के घर से निकलने के बाद वह तमाम तरह की सुविधाओं से वंचित हो जाएगी . इन्हें लंबी कार में घूमने, महंगे रेस्तरां में खाने, फाइवस्टार होटल में पार्टियां करने, डिजाइनर ड्रेसेज पहनने की लत लग चुकी होती है, डिवोर्स मांगने पर इनके हाथ से ये सारे भत्ते उसी तरह स्लिप कर जाएंगे जैसे बरसात में चिकनी मिट्टी पर पैर फिसल जाते हैा और चोट भी जबरदस्त आती है इसलिए वह पीड़ित होने का उपचार तलाशती है, जो बाबाओं की शरण में जाकर खत्म होता है .
 द डेली बीस्ट को दिए इंटरव्यू में साइकोथेरैपिस्ट सुजैन वीट्जमैन ने ऐसे मामलों के लिए अपस्केल अब्यूज का शब्द इस्तेमाल किया.  Not To People Like Us Hidden Abuse In Upscale Marriage विषय पर अपने  शोध में उन्होंने अपर मिडिल क्लास की ऐसी शादीशुदा महिलाओं से बात की, जो काफी पढ़ीलिखी थी, अच्छे खानदान से थी और अमीर घरानों में ब्याही गई थीं. इन्होंने हिंसक पार्टनर की बात को एक सिरे से नकार दिया क्योंकि ऐसे मामले को जाहिर करने को वह शर्मिंदगी मानती हैं. जब यूएस के शिकागो का यह हाल है, तो इंडिया के बिहार, यूपी का क्या कहे

महलों में रहने वाली सीता और द्रौपदी भी तो 

अब  लड़कियों ने प्रतिकार करना शुरू कर दिया है, तो समाज बहुत कसमसा रहा है, पुरुषवादी सोच यह कैसे बरदाश्त करेगा कि औरत ने मर्द को छोड़ दिया जबकि छोड़ी जानी वाली चीज तो महिला रही है. जब सीता और द्रौपदी जैसी राजकुमारियों को छोड़ा या छेड़ा गया , तो सामान्य घरों की युवतियों का पतियों का तिरस्कार कर देनेवाली बात कैसे हजम होगी.  कभी शादी के इश्तेहारों में सांवले लड़के भी मिल्की वाइट लड़की की मांग करते थे आज उन्हीं लड़कियों ने इन लड़कों को झटक दिया, तो पूरा समाज दर्द से कराह रहा है.  लड़की को धोखेबाज बता रहा है, उसके कैरेक्टर को कटघरे में खड़ा कर रहा है, क्यों ? 

 

धर्म का ठेला

मैंने बहुत से कारोबार किए, पर कामयाब न हुआ. थकाहारा मैं एक ग्राहक के लिए एक किलो के बदले साढ़े 7 सौ ग्राम गोभी तोल रहा था कि एकाएक कहीं से प्रकट हुए बाबा ने मुझ से पूछा, ‘‘सब्जी के ठेले पर एक किलो के बदले साढ़े 7 सौ ग्राम तोल कर अपना यह लोक तो छोड़ो, परलोक तक क्यों खराब कर रहे हो कामपाल?’’

मैं ने उन के पैरों में गिर कर गिड़गिड़ाते हुए कहा, ‘‘मैं कामपाल? मैं तो… प्रभु, और क्या करूं? अगर मैं एक किलो के बदले साढ़े 7 सौ ग्राम न तोलूं, तो शाम को कमेटी वालों को, इस इलाके के हवलदार को, इनकम टैक्स वाले अफसर को 4-4 किलो मुफ्त सब्जी कहां से दूंगा? अगर न दूंगा, तो कल यहां ठेला कौन लगाने देगा?

‘‘बाबा, अपना तो नसीब ही ऐसा है कि जब भी सिर मुंड़वाने बैठता हूं, तो साफ मौसम में भी पता नहीं कहां से ओले पड़ने लगते हैं.

‘‘जवानी में पहली दफा प्यार के चक्कर में सिर मुंड़वाने बैठा ही था कि शादी कर के वह मेरे गले पड़ गई. और फिर कमबख्त आज तक पता ही नहीं चल पाया कि प्यार किस बला का

नाम है.

‘‘अब आप ही बताइए कि ऐसे में मैं एक किलो के बदले साढ़े 7 सौ ग्राम न तोलूं, तो और क्या करूं?’’

‘‘तो सुनो कामपाल, अब तुम्हारे शक्तिवर्धक कैप्सूल खाने के दिन आ गए हैं. कल से तुम्हें यह देश कामपाल के नाम से जानेगा. बाबा का हुक्म है कि कल से तुम सब्जी का पंचर टायरों वाला ठेला लगाना बंद कर के धर्म का ठेला लगाओ.’’

‘‘धर्म ठेले पर भी बिकता है क्या बाबा? मैं ने तो आज तक धर्म के मौल ही देखे हैं. ऐसे में ठेले पर कौन मुझ से धर्म खरीदने आएगा? ऐसा न हो कि मैं दो वक्त की रोटी से भी जाता रहूं.’’

बाबा मेरी अक्ल पर गुस्सा होते हुए बोले, ‘‘मूर्ख, लगता है कि बीवी ने तुम्हारे दिमाग को चाटचाट कर साफ कर दिया है. इस देश में जितना धर्म बिकता है, उतना और कोई माल नहीं बिकता. धर्म के खरीदार यहां हर तबके के लोग हैं. जिन लोगों के पास आटादाल खरीदने तक को पैसे नहीं हैं, वे भी आटेदाल की परवाह किए बिना धर्म जरूर खरीदते हैं.

‘‘रही बात ठेले पर धर्म बेचने की, तो आज धर्म के जितने भी मौल सजे देख रहे हो न, सब ने ठेले से ही धर्म बेचना शुरू किया था. यह धंधा वह धंधा है, जो दिन दूनी रात सौ गुनी तरक्की करता है. जिस ने भी यह धंधा किया है, वह गंगू तेली से राजा भोज हो गया है.

‘‘मेरा तुझे आदेश है कि जनता में धर्म की स्थापना के लिए तू भी धर्म का ठेला लगा और ठेले से मौल तक पहुंच कर करोड़पति हो जा.’’

‘‘पर बाबा, मेरे पास तो सब्जी बेचने की ही पुश्तैनी कला है. ऐसे में मैं धर्म को कैसे बेच पाऊंगा? सड़ी सब्जी की गंध मेरी नसनस में बस चुकी है,’’ मैं ने अपने भीतर का दर्द कहा.

बाबा मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले, ‘‘धर्म बेचना सब्जी बेचने से कहीं ज्यादा आसान है. न तराजू, न बट्टे. न लंगोट, न कच्छे. न तेल लगा कर चमकाई गई सड़ी शिमला मिर्च, न ग्रीस मले मुरझाए भुट्टे. कोशिश कर के तो देख. इस धंधे में न गला फाड़ने की जरूरत, न सड़ी बंदगोभी को ताजा बनाए रखने के लिए उस के सड़े पत्ते उखाड़ने की.’’

बाबा की बातों से हैरानपरेशान हो कर मैं गश खा कर गिरतेगिरते बचा. मैं ने टूटी तराजू और सील निकाले बट्टों को परे फेंकते हुए पूछा, ‘‘पर बाबा…’’

‘‘जानता हूं. तुम बरवाला वाले का केस देख कर डर रहे हो. पर बेटा, चांदनी चौक की एक दुकान बंद होने का मतलब पूरे चांदनी चौक का बाजार बंद होना तो नहीं? गरीबी की सौ बरस की जिंदगी से अच्छे हैं मौल के 2-4 दिन. घोर कलियुग है, घोर कलियुग. अब धर्म का झंडा उठाने वालों के साथ यहां ऐसा ही होगा, पर तुम डरना मत.’’

‘‘पर बाबा…’’

‘‘पर क्या… सब्जी का ठेला छोड़ कर कल से धर्म का ठेला लगा और चंद दिनों में ही इसरो से भी कम लागत में चांद पर पहुंच जा,’’ इतना कह कर बाबा अंतर्ध्यान हो गए.

मुझे बाबा की बात जंच गई. लिहाजा, शाम को ठेले की बची सब्जी के भरभर झोले कमेटी वालों को, इलाके के हवलदार को, इनकम टैक्स वाले अफसर को दे कर घर पर ही धर्म का ठेला लगाने की बात पत्नी से की, तो 10-20 दिन न नहाने वाली बीवी खोली में ही स्विमिंग पूल में तैरने के सपने लेने लगी.

खुले में शौच जाने वाली मेरी आंखों के सामने एयरकंडीशंड वाशरूम सज उठा. इधरउधर से गत्ते की पेटियां चुन कर लाने वाली मेरी बीवी की आंखों के आगे मौड्यूलर किचन नाचने लगा. देखते ही देखते मैं ने देखा कि जैसे मैं नामीगिरामी बाबा हो गया हूं.

कुछ भी बकने के लिए मेरे भक्तों ने मेरे लिए सोने का सिंहासन बनवा दिया है. भक्त मेरी बकवास सुनने को बेचैन हैं.

मेरे पास स्वर्ग तक जाने के लिए लिफ्ट मौजूद है. भीतर ही भीतर आई फील दैट स्वर्ग के देवता तक मुझ से चिढ़ने लगे हैं.

हजारों की तादाद में मेरे दिमाग और बिना दिमाग वाले भक्त हैं. घर के खाली दालचावल के डब्बों में सोने के गहने, हीरेजवाहिरात भरे पड़े हैं. कल तक जिन्हें मैं हफ्ता दिया करता था, वे सब मेरे पैरों में ‘डेली’ चढ़ाने आ रहे हैं.

 

हकीम साहब का इलाज

रोशन अली जब 45 साल का था, तब उस की पहली बीवी की मौत हो गई थी. इस के बाद उस ने 23 साला फातिमा के साथ दूसरा निकाह कर लिया था.

फातिमा का रंग गोरा था. उस का कमसिन बदन हर किसी की निगाह में चढ़ गया था, पर वह किसी को भी घास नहीं डालती थी. रोशन अली की ढलती उम्र व कड़ी मेहनतमजदूरी करने के चलते उस का शरीर भी ठंडा पड़ गया था. वह फातिमा को खुश नहीं कर पा रहा था, जिस के चलते वह हमबिस्तर होने से कतराती थी. इसी तनाव के चलते वह टीबीके मरीज की तरह खांसती रहती थी.उस का मन घर के कामों में भी नहीं लगता था.

रोशन अली ने फातिमा का खूब इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, क्योंकि फातिमा की बीमारी तो जिस्मानी तौर पर असंतुष्टि थी.

एक दिन रोशन अली ने गांव के तालाब के पास एक हकीम साहब का कैंप लगा देखा. उन की उम्र तकरीबन 30 साल थी. उन का दावा था कि वे हर तरह की बीमारी का शर्तिया इलाज करते थे. हिमालय की जड़ीबूटियों से तैयार की गई दवाएं लेने से 7 दिन में बीमारी से छुटकारा मिल जाता था, ऐसा हकीम साहब का कहना था.

रोशन अली फातिमा को ले कर उन के कैंप में गया और बीमारी का हाल सुनाया. हकीम असलम एकबारगी फातिमा को देख कर दंग रह गए. उस की जवानी, गोरे बलखाते बदन को देख कर उन की लार टपक गई.फातिमा भी हकीम साहब की जवानी देख कर मुसकरा उठी और वह ललचाई नजरों के साथ जमीन कुरेदने लगी.

हकीम ने उस की नब्ज देखने के बहाने हाथ से हाथ मिला कर कहा, ‘‘रोशन साहब, आप रात को 8 बजे इन्हें दोबारा यहां लाएं, ताकि फुरसत में पूरी तसल्ली से इन के शरीर की जांच की जा सके.’’

रोशन अली फातिमा को रात 8 बजे हकीम के कैंप में दोबारा ले गया. उसे बाहर इंतजार करने को कहा गया.हकीम साहब ने रोशन अली से दवाओं और सलाह के 5 सौ रुपए एडवांस में ले लिए.

रोशन अली ने देखा कि फातिमा के इलाज में ज्यादा समय लगेगा, इसलिए वह खाना खाने घर चला गया. इधर हकीम साहब ने फातिमा का हाथ पकड़ कर एक टेबल पर लिटा दिया और उसे नशे की गोलियां दे दीं, जिस से वह नशे की हालत में अंगड़ाइयां लेने लगी.

हकीम साहब ने अपना स्टैस्थोस्कोप निकाल कर कान में लगाया और फातिमा के ब्लाउज के बटन खोल कर उस के उभारों को सहलाना शुरू कर दिया. फातिमा नशे में चूर मुसकरा रही थी और मजा ले रही थी. इस तरह कुछ देर में दोनों में जोश जाग गया और टेबल पर ही वे एक हो गए. जब वे दोनों संतुष्ट हो गए, तो अलग हो गए.

हकीम साहब ने कहा, ‘‘7 दिन तक आती रहना. तुझे पूरी तरह संतुष्ट कर दूंगा और औलाद भी दे दूंगा.’’ फातिमा तो यही चाहती थी.

थोड़ी देर में रोशन अली भी आ गया. हकीम साहब ने दवा की पुडि़या पकड़ाते हुए कहा, ‘‘इन्हें 7 दिनों तक मेरे कैंप में ले कर आते रहना, जिस से इन की बीमारी का पूरा इलाज हो जाए.’’ इस तरह हकीम साहब ने 7 दिनों तक फातिमा को भोगा.

इस बीच हकीम साहब की करतूतों की कहानी कई गांवों में भी फैल चुकी थी, इसलिए कुछ गांव वाले एक सिपाही को ले कर उन के कैंप पर आ धमके.

छानबीन में जाली दस्तावेज, लाइसैंस, फोटो, गर्भ निरोधक वगैरह मिले. पूछताछ में हकीम ने सब सच उगल दिया और उन्हें जेल भेज कर मुकदमा दायर कर दिया गया. उन की चुपड़ी और 2-2 की पोल खुल गई.

लेकिन रोशन अली अब खुश है, क्योंकि फातिमा उस का बिस्तर पर बढ़चढ़ कर साथ देती है. जब उस ने बताया कि वह पेट से है, तो रोशन अली ने पूरे महल्ले में मिठाई बांटी.

सब ने मिठाई तो खाई, पर ज्यादातर लोग जानते थे कि असलियत क्या है, क्योंकि गांवों के कई घरों में बुजुर्ग होते मर्दों की बीवियों को अचानक उलटियां होने लगी थीं.

वैवाहिक विज्ञापन : व्हाट्सऐप और फेसबुक फैन है बेटी

मेरी 25 वर्षीय बेटी कौन्वैंट एजुकेटेड डिगरीधारी है. एक एमएनसी यानी मल्टीनैशनल कंपनी के मैनेजिंग डायरैक्टर की पर्सनल सैक्रेटरी है. उस का सालाना पैकेज 15 लाख रुपए है. रंग गोरा, सुडौल, कदकाठी आकर्षक नयननक्श, कद 5 फुट 5 इंच के लिए गृहकार्य में दक्ष, सरकारी नौकरी करने वाला (प्राइवेट नौकरी वाले कृपया क्षमा करें), पढ़ालिखा, आधुनिक विचारों वाला, सहनशील, गौरवर्ण और कम से कम 5 फुट 9 इंच कद वाला आज्ञाकारी वर चाहिए. जो निम्न शर्तें पूरी करता हो वही संपर्क करें :

•     मेरी बेटी को देररात तक अपने पसंदीदा सीरियल देखने की आदत है. उसे ऐसा करने से रोका न जाए. रविवार या छुट्टी के दिन उसे जीभर कर सोने दिया जाए और उसे डिस्टर्ब न किया जाए.

•     पति स्वयं सुबह की गरमागरम चाय बनाने के बाद ही उसे जगाए.

•     जब वह निवृत्त हो कर बाथरूम से डैसिंगरूम में जाए तो डायनिंग टेबल पर  नाश्ता सर्व करना शुरू कर दिया जाए.

•     नाश्ता करने के बाद औफिस जाते समय उसे लंचबौक्स तैयार मिलना चाहिए.

     औफिस में बहुत काम होते हैं, इसलिए वापसी में देर होने पर पूछताछ न की जाए.

•     उस का वेतन उस का अपना है, उस पर किसी तरह का अधिकार न जमाया जाए. साथ ही, पति अपना पूरा वेतन उस के हाथ में ला कर देगा क्योंकि पति के वेतन पर पत्नी का ही अधिकार होता है, अन्य किसी का नहीं.

•     हमारी लाड़ली बेटी को खाना बनाना नहीं आता है, इसलिए वह खाना नहीं बनाएगी. उसे खाना बनाने की कला सिखाने के लिए भी बाध्य न किया जाए. वहीं, यह ध्यान रखें कि घर में खाना उसी की पसंद का बनाया जाए.

•     साफसफाई का घर में पूरा ध्यान रखा जाए क्योंकि उसे गंदगी से सख्त नफरत है.

•     उस का बाथरूम कोई अन्य इस्तेमाल न करे. यदि प्रयोग किया है तो उसे पूरी तरह वायपर से रगड़ कर और पोंछा लगा कर साफ किया जाए.

•     हमारी बेटी व्हाट्सऐप और फेसबुक की फैन है. फोन पर व्यस्त रहते समय उसे बिलकुल भी डिस्टर्ब न किया जाए. उस की स्किल के कारण ही सैकड़ों लोग फ्रैंडरिक्वैस्ट भेज रहे हैं और उस की मित्रता पाने को तरस रहे हैं.

•     भूल कर भी उस के मोबाइल फोन को कोई हाथ न लगाए वरना दुष्परिणाम भुगतने के लिए परिवार को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा.

•     वह जो भी सूट या साड़ी पसंद करे उसे पति ही खरीद कर देगा. कोई नानुकुर सहन नहीं होगी.

•     जब भी कभी वह बच्चे को जन्म देगी तो बच्चे के लालनपालन की जिम्मेदारी बच्चे के पिता की ही होगी, मसलन नहलाना, डायपर्स बदलना, कपड़े पहनाना, दूध पिलाना, झूले पर झुलाना आदि. रात के समय बच्चे के रोने के कारण यदि उस की नींद डिस्टर्ब होगी तो इस के लिए सीधेसीधे बच्चे का पिता जिम्मेदार होगा और उसे ही कोपभाजन का शिकार होना पड़ेगा.

•     सास या ननद को उस की निजी जिंदगी में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होगा.

•     परिवार के किसी भी सदस्य को उस से जिरह करने और किसी तरह का ताना देने का हक नहीं होगा.

शेष शर्तें लड़का पसंद आने पर बता दी जाएंगी.

नोट : हम ने अपनी बेटी को राजकुमारी की तरह पाला है और साथ ही, आधुनिक संस्कार भी दिए हैं. हम दावा तो नहीं करते लेकिन वादा जरूर करते हैं कि यह जिस घर में भी जाएगी वह परिवार ऐसी संस्कारवान वधू पा कर धन्य हो जाएगा.

धोखेबाज लड़की : आशिकमिजाज बापबेटे

सेठ मंगतराम अपने दफ्तर में बैठे फाइलों में खोए हुए थे, तभी फोन की घंटी बजने से उन का ध्यान टूट गया. फोन उन के सैक्रेटरी का था. उस ने बताया कि अनीता नाम की एक औरत आप से मिलना चाहती है. वह अपनेआप को दफ्तर के स्टाफ रह चुके रमेश की विधवा बताती है. सेठ मंगतराम ने कुछ पल सोच कर कहा, ‘‘उसे अंदर भेज दो.’’

सैक्रेटरी ने अनीता को सेठ के केबिन में भेज दिया. सेठ मंगतरात अपने काम में बिजी थे कि तभी एक मीठी सी आवाज से वे चौंक पड़े. दरवाजे पर अनीता खड़ी थी. उस ने अंदर आने की इजाजत मांगी. सेठ उसे भौंचक देखते रह गए.

अनीता की न केवल आवाज मीठी थी, बल्कि उस की कदकाठी, रंगरूप, सलीका सभी अव्वल दर्जे का था. सेठ मंगतराम ने अनीता को बैठने को कहा और आने की वजह पूछी. अनीता ने उदास सूरत बना कर कहा, ‘‘मेरे पति आप की कंपनी में काम करते थे. मैं उन की विधवा हूं. मेरी रोजीरोटी का कोई ठिकाना नहीं है. अगर कुछ काम मिल जाए, तो आप की मेहरबानी होगी.’’

सेठ मंगतराम ने साफ मना कर दिया. अनीता मिन्नतें करने लगी कि वह कोई भी काम कर लेगी. सेठ ने पूछा, ‘‘कहां तक पढ़ी हो?’’

यह सुन कर अनीता ने अपना सिर झुका लिया. सेठ मंगतराम ने कहा, ‘‘मेरा काम सर्राफ का है, जिस में हर रोज करोड़ों रुपए का लेनदेन होता है. मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि तुम्हें कहां काम दूं? खैर, तुम कल आना. मैं कोई न कोई इंतजाम कर दूंगा.’’

अनीता दूसरे दिन सेठ मंगतराम के दफ्तर में आई, तो और ज्यादा कहर बरपा रही थी. सभी उसे ही देख रहे थे. सेठ भी उसे देखते रह गए. अनीता को सेठ मंगतराम ने रिसैप्शनिस्ट की नौकरी दे दी और उसे मौडर्न ड्रैस पहनने को कहा.

अनीता अगले दिन से ही मिनी स्कर्ट, टीशर्ट, जींस और खुले बालों में आने लगी. देखते ही देखते वह दफ्तर में छा गई. अनीता ने अपनी अदाओं और बरताव से जल्दी ही सेठ मंगतराम का दिल जीत लिया. उस का ज्यादातर समय सेठ के साथ ही गुजरने लगा और कब दोनों की नजदीकियां जिस्मानी रिश्ते में बदल गईं, पता नहीं चला.

अनीता तरक्की की सीढि़यां चढ़ने लगी. कुछ ही समय में वह सेठ मंगतराम के कई राज भी जान गई थी. वह सेठ के साथ शहर से बाहर भी जाने लगी थी. सेठ मंगतराम का एक बेटा था. उस का नाम राजीव था. वह अमेरिका में ज्वैलरी डिजाइन का कोर्स कर रहा था. अब वह भारत लौट रहा था.

सेठ मंगतराम ने अनीता से कहा, ‘‘आज मेरी एक जरूरी मीटिंग है, इसलिए तुम मेरे बेटे राजीव को लेने एयरपोर्ट चली जाओ.’’ अनीता जल्दी ही एयरपोर्ट पहुंची, पर उस ने राजीव को कभी देखा नहीं था, इसलिए वह एक तख्ती ले कर रिसैप्शन काउंटर पर जा कर खड़ी हो गई.

राजीव उस तख्ती को देख कर अनीता के पास पहुंचा और अपना परिचय दिया. अनीता ने उस का स्वागत किया और अपना परिचय दिया. उस ने राजीव का सामान गाड़ी में रखवाया और उस के साथ घर चल दी.

राजीव खुद बड़ा स्मार्ट था. वह भी अनीता की खूबसूरती से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका. अनीता का भी यही हालेदिल था. घर पहुंच कर राजीव ने अनीता से कल दफ्तर में मुलाकात होने की बात कही.

अगले दिन राजीव दफ्तर पहुंचा, तो सारे स्टाफ ने उसे घेर लिया. राजीव भी उन से गर्मजोशी से मिल रहा था, पर उस की आंखें तो किसी और को खोज रही थीं, लेकिन वह कहीं दिख नहीं रही थी. राजीव बुझे मन से अपने केबिन में चला गया, तभी उसे एक झटका सा लगा.

अनीता राजीव के केबिन में ही थी. वह अनीता से न केवल गर्मजोशी से मिला, बल्कि उस के गालों को चूम भी लिया. आज भी अनीता गजब की लग रही थी. उस ने राजीव के चूमने का बुरा नहीं माना. इसी बीच राजीव के पिता सेठ मंगतराम वहां आ गए. उन्होंने अनीता से कहा, ‘‘तुम मेरे बेटे को कंपनी के बारे में सारी जानकारी दे दो.’’

अनीता ने ‘हां’ में जवाब दिया. मंगतराम ने आगे कहा, ‘‘अनीता, आज से मैं तुम्हारी टेबल भी राजीव के केबिन में लगवा देता हूं, ताकि राजीव को कोई दिक्कत न हो.’’

इस तरह अनीता का अब ज्यादातर समय राजीव के साथ ही गुजरने लगा. इस वजह से उन दोनों के बीच नजदीकियां भी बढ़ने लगीं. आखिरकार एक दिन राजीव ने ही पहल कर दी और बोला, ‘‘अनीता, मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. क्या हम एक नहीं हो सकते?’’

अनीता यह सुन कर मन ही मन बहुत खुश हुई, पर जाहिर नहीं किया. कुछ देर चुप रहने के बाद वह बोली, ‘‘राजीव, तुम शायद मेरी हकीकत नहीं जानते हो. मैं एक विधवा हूं और तुम से उम्र में भी 4-5 साल बड़ी हूं. यह कैसे मुमकिन है.’’ राजीव ने कहा, ‘‘मैं ऐसी बातों को नहीं मानता. मैं अपने दिल की बात सुनता हूं. मैं तुम्हें चाहता हूं…’’ इतना कह कर राजीव अचानक उठा और अनीता को अपनी बांहों में भर लिया. अनीता ने भी अपनी रजामंदी दे दी.

राजीव और अनीता अब खूब मस्ती करते थे. बाहर खुल कर, दफ्तर में छिप कर. राजीव अनीता पर बड़ा भरोसा करने लगा था. उस ने भी अनीता को अपना राजदार बना लिया था. इस तरह कुछ ही दिनों में अनीता ने कंपनी के मालिक और उस के बेटे को अपनी मुट्ठी में कर लिया. अनीता ने अपने जिस्म का पासा ऐसा फेंका, जिस में बापबेटे दोनों उलझ गए.

अनीता ने सेठ मंगतराम के घर पर भी अपना सिक्का जमा लिया था. उस ने सेठजी की पत्नी व नौकरों पर भी अपना जादू चला दिया. वह अपने हुस्न के साथसाथ अपनी जबान का भी जादू चलाती थी. एक दिन राजीव ने अनीता से कहा, ‘‘मैं तुम से शादी करना चाहता हूं.’’

अनीता बोली, ‘‘मैं भी तुम्हें पसंद करती हूं, पर सेठजी ने तो तुम्हारे लिए किसी अमीर घराने की लड़की पसंद की है. वे हमारी शादी नहीं होने देंगे.’’ राजीव बोला, ‘‘हम भाग कर शादी कर लेंगे.’’

अनीता ने जवाब दिया, ‘‘भाग कर हम कहां जाएंगे? कहां रहेंगे? क्या खाएंगे? सेठजी शायद तुम्हें अपनी जायदाद से भी बेदखल कर दें.’’ अनीता की बातें सुन कर राजीव चौंक पड़ा. वह सोचने लगा, ‘क्या पिताजी इस हद तक नीचे गिर सकते हैं?’

अनीता ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मैं पिछले 2 साल से सेठजी के साथ हूं. जहां तक मैं जान पाई हूं, सेठजी को अपनी दौलत और समाज में इज्जत बहुत प्यारी है. क्यों न ऐसा तरीका निकाला जाए कि सेठजी जायदाद से बेदखल न कर पाएं.’’ राजीव ने पूछा, ‘‘वह कैसे?’’

अनीता ने बताया, ‘‘क्यों न सेठजी के दस्तखत किसी तरह जायदाद के कागजात पर करा लिए जाएं?’’ राजीव बोला, ‘‘यह कैसे मुमकिन है? पिताजी कागजात नहीं पढ़ेंगे क्या?’’

अनीता बोली, ‘‘सेठजी मुझ पर काफी भरोसा करते हैं. दस्तखत कराने की जिम्मेदारी मेरी है.’’ कुछ दिनों के बाद अनीता सेठजी के केबिन में पहुंची, तो उन्होंने पूछा, ‘‘बड़े दिन बाद आई हो? क्या तुम्हें मेरी याद नहीं आई?’’

अनीता ने कहा, ‘‘दफ्तर में काफी काम था. आज भी मैं आप के पास काम से ही आई हूं. कुछ जरूरी फाइलों पर आप के दस्तखत लेने हैं.’’ सेठ मंगतराम बुझे मन से बिना पढ़े ही फाइलों पर दस्तखत करने लगे. अनीता ने जायदाद वाली फाइल पर भी उन से दस्तखत करा लिए.

सेठजी ने अनीता से कहा, ‘‘कुछ देर बैठ भी जाओ मेरी जान,’’ फिर उस से पूछा, ‘‘सुना है कि तुम मेरे बेटे से शादी करना चाहती हो?’’ यह सुन कर अनीता चौंक पड़ी, पर कुछ नहीं बोली.

सेठजी ने बताया, ‘‘राजीव की शादी एक रईस घराने में तय कर दी गई है. तुम रास्ते से हट जाओ.’’ अनीता ने कहा, ‘‘सेठजी, मैं अपनी सीमा जानती हूं. मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगी, जिस से मैं आप की नजरों में गिर जाऊं.’’

वैसे, अनीता ने एक शक का बीज यह कह कर बो दिया कि शायद राजीव ने विदेश में किसी गोरी मेम से शादी कर रखी है. सेठजी अनीता की बातों से चौंक पड़े. यह उन के लिए नई जानकारी थी. उन्होंने अनीता को राजीव से जुड़ी हर बात की जानकारी देने को कहा.

अनीता ने अपनी दस्तखत कराने की योजना की कामयाबी की जानकारी राजीव को दी. वह खुशी से झूम उठा. राजीव ने अनीता से कहा,‘डार्लिंग, मैं ने कई बार ज्वैलरी डिजाइन की है. इन डिजाइनों की कीमत बाजार में करोड़ों रुपए है. मैं इस के बारे में अपने पिताजी को बताने वाला था, पर अब मैं इस बारे में उन से कोई बात नहीं करूंगा.’’

अनीता ने जब ज्वैलरी डिजाइन के बारे में सुना, तो वह चौंक पड़ी. उस ने मन ही मन एक योजना बना डाली. एक दिन अनीता सेठजी के केबिन में बैठी थी, तब उस ने चर्चा छेड़ते हुए कहा, ‘‘राजीवजी के पास लेटैस्ट डिजाइन की हुई ज्वैलरी है, जिस की बाजार में बहुत ज्यादा कीमत है. आप का बेटा तो हीरा है.’’

यह सुन कर सेठजी चौंक पड़े और बोले, ‘‘मुझे तो इस बारे में तुम से ही पता चला है. क्या पूरी बात बताओगी?’’ अनीता ने कहा, ‘‘शायद राजीवजी आप से खफा होंगे, इसलिए उन्होंने इस सिलसिले में आप से बात नहीं की.’’

अनीता ने चालाकी से सेठजी के दिमाग में यह कह कर शक का बीज बो दिया कि शायद राजीव अपना कारोबार खुद करेंगे. सेठ चिंतित हो गए. वे बोले, ‘‘अगर ऐसा हुआ, तो हमारी बाजार में साख गिर जाएगी. इसे रोकना होगा.’’

अनीता ने कहा, ‘‘सेठजी, अगर डिजाइन ही नहीं रहेगा, तो वे खाक कारोबार कर पाएंगे?’’ सेठजी ने पूछा, ‘‘तुम क्या पहेलियां बुझा रही हो? मैं कुछ समझा नहीं?’’

अनीता ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘सेठजी, अगर वह डिजाइन किसी तरह आप के नाम हो जाए, तो आप राजीव को अपनी मुट्ठी में कर सकते हैं.’’ ‘‘यह होगा कैसे?’’ सेठजी ने पूछा.

अनीता बोली, ‘‘मैं करूंगी यह काम. राजीवजी मुझ पर भरोसा करते हैं. मैं उन से दस्तखत ले लूंगी.’’ सेठजी ने कहा, ‘‘अगर तुम ऐसा कर दोगी, तो मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगा.’’

अनीता ने यहां भी पुराना तरीका अपनाया, जो उस ने सेठजी के खिलाफ अपनाया था. राजीव से फाइलों पर दस्तखत लेने के दौरान ज्वैलरी राइट के ट्रांसफर पर भी दस्तखत करा लिए. सेठ चूंकि सोने के कारोबारी थे, इसलिए काफी मात्रा में सोना व काले धन अपने घर के तहखाने में ही रखते थे, जिस के बारे में उन्होंने किसी को नहीं बताया था. पर बुढ़ापे का प्यार बड़ा नशीला होता है. लिहाजा, उन्होंने अनीता को इस बारे में बता दिया था.

इस तरह कुछ दिन और गुजर गए. एक दिन राजीव ने अनीता से कहा, ‘‘अगले सोमवार को हम कोर्ट में शादी कर लेंगे. तुम ठीक 9 बजे आ जाना.’’ अनीता ने भी कहा, ‘‘मैं दफ्तर से छुट्टी ले लेती हूं, ताकि किसी को शक न हो.’’

फिर अनीता सेठजी के पास गई. उन्हें बताया, ‘‘सोमवार को राजीव कोर्ट में किसी विदेशी लड़की से शादी करने जा रहा है. मुझे उस ने गवाह बनने को बुलाया है.’’ सेठजी गुस्से से आगबबूला हो गए.

तब अनीता ने सेठजी को शांत करते हुए कहा, ‘‘कोर्ट पहुंच कर आप राजीव को एक किनारे ले जा कर समझाएं. शायद वह मान जाए. आप अभी होहल्ला न मचाएं. आप की ही बदनामी होगी.’’ सेठजी ने अनीता से कहा, ‘‘तुम सही बोलती हो.’’

सोमवार को राजीव कोर्ट पहुंच गया और अनीता का इंतजार करने लगा, तभी उस के सामने एक गाड़ी रुकी, जिस में अपने पिताजी को देख कर वह चौंक पड़ा.

सेठजी ने राजीव को एक कोने में ले जा कर समझाया, ‘‘क्यों तुम अपनी खानदान की इज्जत उछाल रहे हो? वह भी दो कौड़ी की गोरी मेम के लिए.’’ यह सुन कर राजीव हंस पड़ा और बोला, ‘‘क्यों नाटक कर रहे हैं आप? मैं किसी गोरी मेम से नहीं, बल्कि अनीता से शादी करने वाला हूं. पता नहीं, वह अभी तक क्यों नहीं आई?’’

अनीता का नाम सुन कर अब चौंकने की बारी सेठजी की थी. उन्होंने कहा, ‘‘क्या बकवास कर रहे हो? अनीता ने मुझे बताया है कि तुम आज एक गोरी मेम से शादी कर रहे हो, जिस के साथ तुम विदेश में रहते थे.’’ राजीव ने झुंझलाते हुए कहा, ‘‘आप क्यों अनीता को बीच में घसीट रहे हैं? मैं उसी से शादी कर रहा हूं.’’

सेठजी को अब माजरा समझ में आने लगा कि अनीता बापबेटों के साथ डबल गेम खेल रही है. उन्होंने राजीव को समझाते हुए कहा, ‘‘बेटे राजीव, वह हमारे बीच फूट डाल कर जरूर कोई गहरी साजिश रच रही है. अब वह यहां कभी नहीं आएगी.’’ राजीव को भी अपने पिता की बातों पर विश्वास होने लगा. उस ने अनीता के घर पर मोबाइल फोन का नंबर मिलाया, पर कोई जवाब नहीं मिला.

दोनों सीधे दफ्तर गए, तो पता चला कि अनीता ने इस्तीफा दे दिया है. दोनों सोचने लगे कि आखिर उस ने ऐसा क्यों किया?

कुछ दिनों के बाद जब सेठजी को कुछ सोने और पैसों की जरूरत हुई, तो वे अपने तहखाने में गए. तहखाना देख कर वे सन्न रह गए, क्योंकि उस में रखा करोड़ों रुपए का सोना और नकदी गायब हो चुकी थी. सेठजी के तो होश ही उड़ गए. वे तो थाने में शिकायत भी दर्ज नहीं करा सकते थे, क्योंकि वे खुद टैक्स के लफड़े में फंस सकते थे.

सेठजी ने यह सब अपने बेटे राजीव को बताया. राजीव ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं. मेरे पास कुछ डिजाइन के कौपी राइट्स हैं, उन्हें बेचने पर काफी पैसे मिलेंगे.’’

पर यह क्या, राजीव जब शहर बेचने गया, तो पता चला कि वे तो 12 महीने पहले किसी को करोड़ों रुपए में बेचे जा चुके हैं. यह सुन कर राजीव सन्न रह गया. उस पर धोखाधड़ी का केस भी दर्ज हुआ, सो अलग.

सेठजी ने साख बचाने के लिए अपनी कंपनी को गिरवी रखने की सोची, ताकि बाजार से लिया कर्ज चुकाया जा सके. पर यहां भी उन्हें दगा मिली. एक फर्म ने दावा किया और बाद में कागजात भी पेश किए, जिस के मुताबिक उन्होंने करोड़ों रुपए बतौर कर्ज लिए थे और

4 महीने में चुकाने का वादा किया था. देखतेदेखते सेठजी का परिवार सड़क पर आ गया. उन्होंने अनीता की शिकायत थाने में दर्ज कराई, पर वह कहां थी किसी को नहीं पता.

पुलिस ने कार्यवाही के बाद बताया कि रमेश की तो शादी ही नहीं हुई थी, तो उस की विधवा पत्नी कहां से आ गई. आज तक यह नहीं पता चला कि अनीता कौन थी, पर उस ने आशिकमिजाज बापबेटों को ऐसी चपत लगाई कि वे जिंदगीभर याद रखेंगे.

VIDEO : फंकी लेपर्ड नेल आर्ट

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