राम स्नेही और जसोदा की बेटी मीना को अकसर पागलपन के दौरे पड़ते थे. वह गोरीचिट्टी और खूबसूरत थी. मातापिता को सयानी हो चली मीना की शादी की चिंता सता रही थी. शादी की उम्र आने से पहले उस की बीमारी का इलाज कराना बेहद जरूरी था. राम स्नेही का खातापीता परिवार था. उन की अच्छीखासी खेतीबारी थी. उन्होंने गांवशहर के सभी डाक्टरों और वैद्यों के नुसखे आजमाए, पर कोई इलाज कारगर साबित नहीं हुआ. मीना को पागलपन के दौरे थमे नहीं. दौरा पड़ने पर उस की आवाज अजीब सी भारी हो जाती थी. वह ऊटपटांग बकती थी. चीजों को इधरउधर फेंकती थी. कुछ देर बाद दौरा थम जाता था और मीना शांत हो जाती थी और उसे नींद आ जाती थी. नींद खुलने पर उस का बरताव ठीक हो जाता था, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. उसे कुछ याद नहीं रहता था.
सरकारी अस्पताल का कंपाउंडर छेदीलाल राम स्नेही के घर आया था. राम स्नेही ने पिछले साल सरकारी अस्पताल के तमाम चक्कर लगाए थे. अस्पताल में डाक्टर हफ्ते में केवल 3 दिन आते थे. डाक्टर की लिखी परची के मुताबिक छेदीलाल दवा बना कर देता था. छेदीलाल लालची था. वह मनमानी करता था. मरीजों से पैसे ऐंठता था. पैसे नहीं देने पर वह सही दवा नहीं देता था. वह मीना की बीमारी से वाकिफ था. उसे मालूम था कि मीना की हालत में कोई सुधार नहीं हो पाया है. राम स्नेही ने डाक्टरी इलाज में पानी की तरह रुपया बहाया था, लेकिन निराशा ही हाथ लगी थी. छेदीलाल को इस बात की भी खबर थी.
‘‘मीना को तांत्रिक को दिखाने की जरूरत है. यह सब डाक्टर के बूते के बाहर है,’’ छेदीलाल ने जसोदा को सलाह दी.
‘‘झाड़फूंक जरूरी है. मैं कब से जिद कर रही हूं, इन को भरोसा ही नहीं है,’’ जसोदा ने हामी भरी.
‘‘मैं ने एक तांत्रिक के बारे में काफी सुना है. उन्होंने काफी नाम कमाया है. वे उज्जैन शहर से ताल्लुक रखते हैं. गांवशहर घूमते रहते हैं. अब उन्होंने यहां पहाड़ी के पुराने मंदिर में धूनी रमाई है,’’ ऐसा कहते हुए छेदीलाल ने एक छपीछपाई परची जसोदा को थमाई. उस समय राम स्नेही अपने खेतों की सैर पर निकले थे. जब वे घर लौटे, तो जसोदा ने उन को छेदीलाल की दी हुई परची थमाई और मीना को तांत्रिक के पास ले जाने की जिद पर अड़ गईं. दरअसल, जब मीना को दौरे पड़ते थे, तब जसोदा को ही झेलना पड़ता था. वे मीना के साथ ही सोती थीं. चिंता से देर रात तक उन्हें नींद नहीं आती थी. वे बेचारी करवटें बदलती रहती थीं. जसोदा की जिद के सामने राम स्नेही को झुकना पड़ा. जसोदा और मीना को साथ ले कर वे पहाड़ी के एक पुराने मंदिर में पहुंचे. मंदिर के साथ 3 कमरे थे. वहां बरसों से पूजापाठ बंद था. तांत्रिक के एक चेले, जो तांत्रिक का सहयोगी और सैके्रटरी था, ने उन का स्वागत किया.
तांत्रिक के सैक्रेटरी ने अपनी देह पर सफेद भभूति मल रखी थी और चेहरे पर गहरा लाल रंग पोत रखा था. सैके्रटरी ने फीस के तौर पर एक हजार रुपए वसूले और तांत्रिक से मिलने की इजाजत दे दी. तांत्रिक ने भी अपनी देह पर भभूति मल रखी थी. चेहरे पर काला रंग पोत रखा था. दाएंबाएं दोनों तरफ नरमुंड और हड्डियां बिखेर रखी थीं. वह हवन कुंड में लगातार कुछ डाल रहा था और मन ही मन कुछ बुदबुदा भी रहा था.
‘‘जल्दी बता, क्या तकलीफ है?’’ तांत्रिक ने सवाल किया.
‘‘बेटी को अकसर मिरगी के दौरे पड़ते हैं. इलाज से कोई फायदा नहीं हुआ,’’ जसोदा ने बताया.
‘‘शैतान दवा से पीछा नहीं छोड़ता. अतृप्त आत्मा का देह में बसेरा है. सब उसी के इशारे पर होता है,’’ कह कर तांत्रिक ने मीना को सामने बिठाया. हाथ में हड्डी ले कर उस के चेहरे पर घुमाई और जोरजोर से मंत्र बोले.
‘‘शैतान से कैसे नजात मिलेगी बाबा?’’ पूछते हुए जसोदा ने हाथ जोड़ लिए.
‘‘अतृप्त आत्मा है. उसे लालच देना होगा. बच्ची की देह से निकाल कर उसे दूसरी देह में डालना होगा,’’ तांत्रिक ने बताया.
‘‘हमें क्या करना होगा?’’ इस बार राम स्नेही ने पूछा.
‘‘अनुष्ठान का खर्च उठाना पड़ेगा… दूसरी कुंआरी देह का जुगाड़ करना होगा… आत्मा दूसरी देह में ही जाएगी,’’ तांत्रिक ने बताया और दोबारा पूरी तरह से तैयार हो कर आने को कहा. राम स्नेही सुलझे विचारों के थे. उन्होंने अपनी ओर से मना कर दिया. वैसे, वे खर्च उठाने को तो तैयार थे, लेकिन दूसरी देह यानी दूसरे की बेटी लाने का जोखिम उठाने को तैयार नहीं थे. उन की मीना की बीमारी किसी दूसरे की बेटी को लगे, वे ऐसा नहीं चाहते थे.
लेकिन जसोदा जिद पर अड़ी थीं. अपनी बेटी के लिए वे हर तरह का जोखिम उठाने को तैयार थीं. राम स्नेही ने यह बात सोच कर जल्दी ही कुछ करने की बात कही. एक रात को राम स्नेही और जसोदा अपनी बेटी मीना को साथ लिए बैलगाड़ी में सवार हो कर पहाड़ी मंदिर की ओर निकल पड़े. गाड़ी में उन के साथ एक कुंआरी लड़की और थी. बैलगाड़ी में टप्पर लगा था, जिस से सवारियों की जानकारी नहीं हो सकती थी.दोनों लड़कियों को चादर से लपेट कर बिठाया गया था. तांत्रिक के सैक्रेटरी ने देह परिवर्तन अनुष्ठान के खर्च के तौर पर 10 हजार रुपए की मांग की. राम स्नेही तैयार हो कर आए थे. उन्होंने रुपए जमा करने में कोई आनाकानी नहीं की.
‘‘अनुष्ठान देर रात को शुरू होगा और यह 3 रातों तक चलेगा…’’ सैक्रेटरी ने बताया और अनुष्ठान पूरा होने के बाद आने को कहा. राम स्नेही और जसोदा अपने घर वापस लौट आए. जसोदा को उम्मीद थी कि तांत्रिक के अनुष्ठान से मीना ठीक हो जाएगी. दोनों लड़कियों को एक कमरे में बिछे बिस्तरों पर बिठाया गया. अनुष्ठान से पहले उन्हें आराम करने को कहा गया. तांत्रिक ने लड़कियों के सेवन के लिए नशीला प्रसाद और पेय भिजवाया. नशीले पेय के असर में दोनों लड़कियों को अपने देह की सुध नहीं रही. वे अपने बिस्तरों पर बेसुध लेट गईं. तांत्रिक और उस के सैक्रेटरी ने देर तक दारूगांजे का सेवन किया. नशे में धुत्त वे दोनों लड़कियों के कमरे में घुस आए. अनुष्ठान के नाम पर उन का लड़कियों के साथ गंदा खेल खेलने का इरादा था. उन को कुंआरी देह की भूख थी. वे ललचाई आंखों से बेसुध लेटी कच्ची उम्र की लड़कियों को घूर रहे थे. थोड़ी ही देर में वे उन की देह पर टूट पड़े.
मीना के साथ आई दूसरी लड़की झटके से उठी. उस ने तांत्रिक के सैक्रेटरी को जोरदार घूंसा जमाया और जोरजोर से चिल्लाना शुरू किया. मीना ने भी तांत्रिक को झटक कर जमीन पर गिरा दिया. नशे में धुत्त तांत्रिकों को निबटने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई. मौके पर पुलिस के कई जवान भी आ गए. उन्होंने उन दोनों को हथकड़ी पहना दी. राम स्नेही को इस तरह के फरेब का पहले से ही डर था. उन्होंने थाने जा कर पूरी रिपोर्ट दी थी. थानेदार ने ही दूसरी देह का इंतजाम किया था. दूसरी लड़की सुनैना थाने में काम करने वाली एक महिला पुलिस की बेटी थी. उस ने जूडोकराटे की ट्रेनिंग ली हुई थी. वह इस मुहिम से जुड़ने के लिए फौरन तैयार हो गई थी.
सुनैना को नशीली चीज व पेय से बचने की हिदायत दी गई थी. उसे हमेशा सतर्क रहने और तांत्रिकों को भरमाने के लिए जरूरी स्वांग भरने की भी सलाह दी गई थी. हथियारबंद जवानों को पहाड़ी मंदिर के आसपास तैनात रहने के लिए भेजा गया था. जवानों ने वरदी नहीं पहनी थी. जसोदा को इस मुहिम की कोई खबर नहीं थी. सरकारी अस्पताल के कंपाउंडर छेदीलाल ने यह सारी साजिश रची थी. उस ने अपने ससुराल के गांव के 2 नशेड़ी आवारा दोस्तों चंदू लाल और मनोहर को नशे के लिए पैसे का जुगाड़ करने और जवानी के मजे लेने का आसान तरीका समझाया था. थाने में पिटाई हुई, तो चंदू लाल और मनोहर ने सच उगल दिया. छेदीलाल को नशीली दवाओं व दिमागी मरीजों को दी जाने वाली दवाओं की अधकचरी जानकारी थी. उसे अस्पताल से गिरफ्तार कर लिया गया. तीनों को इस प्रपंच के लिए जेल की हवा खानी पड़ी.
छेदीलाल को नौकरी से बरखास्त कर दिया गया. राम स्नेही को उन के रुपए वापस मिल गए. थानेदार ने जयपुर के एक नामी मनोचिकित्सक का पता बताया. उन की सलाह के मुताबिक राम स्नेही ने मीना का इलाज जयपुर में कराने का इरादा किया. जसोदा ने हामी भरी. इस से मीना के ठीक होने की उम्मीद अब जाग गई थी.
बीच में एक छोटी सी रात है और कल सुबह 10-11 बजे तक राकेश जमानत पर छूट कर आ जाएगा. झोंपड़ी में उस की पत्नी कविता लेटी हुई थी. पास में दोनों छोटी बेटियां बेसुध सो रही थीं. पूरे 22 महीने बाद राकेश जेल से छूट कर जमानत पर आने वाला है. जितनी बार भी कविता राकेश से जेल में मिलने गई, पुलिस वालों ने हमेशा उस से पचास सौ रुपए की रिश्वत ली. वह राकेश के लिए बीड़ी, माचिस और कभीकभार नमकीन का पैकेट ले कर जाती, तो उसे देने के लिए पुलिस उस से अलग से रुपए वसूल करती.
ये 22 महीने कविता ने बड़ी परेशानियों के साथ गुजारे. पारधियों की जिंदगी से यह सब जुड़ा होता है. वे अपराध करें चाहे न करें, पुलिस अपने नाम की खातिर कभी भी किसी को चोर, कभी डकैत बना देती है. यह कोई आज की बात थोड़े ही है. कविता तो बचपन से देखती आ रही है. आंखें रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर खुली थीं, जहां उस के बापू कहीं से खानेपीने का इंतजाम कर के ला देते थे. अम्मां 3 पत्थर रख कर चूल्हा बना कर रोटियां बना देती थीं. कई बार तो रात के 2 बजे बापू अपनी पोटली को बांध कर अम्मां के साथ वह स्टेशन छोड़ कर कहीं दूसरी जगह चले जाते थे. कविता जब थोड़ी बड़ी हुई, तो उसे मालूम पड़ा कि बापू चोरी कर के उस जगह से भाग लेते थे और क्यों न करते चोरी? एक तो कोई नौकरी नहीं, ऊपर से कोई मजदूरी पर नहीं रखता, कोई भरोसा नहीं करता. जमीन नहीं, फिर कैसे पेट पालें? जेब काटेंगे और चोरी करेंगे और क्या…
लेकिन आखिर कब तक ऐसे ही सबकुछ करते रहने से जिंदगी चलेगी? अम्मां नाराज होती थीं, लेकिन कहीं कोई उपाय दिखलाई नहीं देता, तो वे भी बेबस हो जाती थीं. शादीब्याह में वे महाराष्ट्र में जाते थे. वहां के पारधियों की जिंदगी देखते तो उन्हें लगता कि वे कितने बड़े नरक में जी रहे हैं. कविता ने बापू से कहा भी था, ‘बापू, हम यहां औरंगाबाद में क्यों नहीं रह सकते?’
‘इसलिए नहीं रह सकते कि हमारे रिश्तेदार यहां कम वहां ज्यादा हैं और यहां की आबोहवा हमें रास नहीं आती,’ बापू ने कहा था. लेकिन, शादी के 4-5 दिनों में खूब गोश्त खाने को मिलता था. बड़ी खुशबू वाली साबुन की टिकिया मिलती थी. कविता उसे 4-5 बार लगा कर खूब नहाती थी, फिर खुशबू का तेल भी मुफ्त में मिलता था. जिंदगी के ये 4-5 दिन बहुत अच्छे से कटते थे, फिर रेलवे स्टेशन पर भटकने को आ जाते थे. इधर जंगल महकमे वालों ने पारधी जाति के फायदे के लिए काम शुरू किया था, वही बापू से जानकारी ले रहे थे, जिस के चलते शहर के पास एक छोटे से गांव टूराखापा में उस जाति के 3-4 परिवारों को बसा दिया गया था. इसी के साथ एक स्कूल भी खोल दिया गया था. उन से कहा जाता था कि उन्हें शिकार नहीं करना है. वैसे भी शिकार कहां करते थे? कभी शादीब्याह में या मेहमानों के आने पर हिरन फंसा कर काट लेते थे, लेकिन वह भी कानून से अपराध हो गया था.
यहां कविता ने 5वीं जमात तक की पढ़ाई की थी. आगे की पढ़ाई के लिए उसे शहर जाना था. बापू ने मना कर दिया था, ‘कौन तुझे लेने जाएगा?’
अम्मां ने कहा था, ‘औरत की इज्जत कच्ची मिट्टी के घड़े जैसी होती है. एक बार अगर टूट जाए, तो जुड़ती नहीं है.’ कविता को नहीं मालूम था कि यह मिट्टी का घड़ा उस के शरीर में कहां है, इसलिए 5 साल तक पढ़ कर घर पर ही बैठ गई थी. बापू दिल्ली या इंदौर से प्लास्टिक के फूल ले आते, अम्मां गुलदस्ता बनातीं और हम बेचने जाते थे. 10-20 रुपए की बिक्री हो जाती थी, लेकिन मौका देख कर बापू कुछ न कुछ उठा ही लाते थे. अम्मां निगरानी करती रहती थीं. कविता भी कभीकभी मदद कर देती थी. एक बार वे शहर में थे, तब कहीं कोई बाबाजी का कार्यक्रम चल रहा था. उस जगह रामायण की कहानी पर चर्चा हो रही थी. कविता को यह कहानी सुनना बहुत पसंद था, लेकिन जब सीताजी की कोई बात चल रही थी कि उन्हें उन के घर वाले रामजी ने घर से निकाल दिया, तो वहां बाबाजी यह बतातेबताते रोने लगे थे. उस के भी आंसू आ गए थे, लेकिन अम्मां ने चुटकी काटी कि उठ जा, जो इशारा था कि यहां भी काम हो गया है.
बापू ने बैठे-बैठे 2 पर्स निकाल लिए थे. वहां अब ज्यादा समय तक ठहर नहीं सकते थे, लेकिन कविता के कानों में अभी भी वही बाबाजी की कथा गूंज रही थी. उस की इच्छा हुई कि वह कल भी जाएगी. धंधा भी हो जाएगा और आगे की कहानी भी मालूम हो जाएगी. बस, इसी तरह से जिंदगी चल रही थी. वह धीरेधीरे बड़ी हो रही थी. कानों में शादी की बातें सुनाई देने लगी थीं. शादी होती है, फिर बच्चे होते हैं. सबकुछ बहुत ही रोमांचक था, सुनना और सोचना. उन का छोटा सा झोंपड़ा ही था, जिस पर बापू ने मोमजामा की पन्नी डाल रखी थी. एक ही कमरे में ही वे तीनों सोते थे. एक रात कविता जोरों से चीख कर उठ बैठी. बापू ने दीपक जलाया, देखा कि एक भूरे रंग का बिच्छू था, जो डंक मार कर गया था. पूरे जिस्म में जलन हो रही थी. बापू ने जल्दी से कहीं के पत्ते ला कर उस जगह लगाए, लेकिन जलन खूब हो रही थी. कविता लगातार चिल्ला रही थी. पूरे 2-3 घंटे बाद ठंडक मिली थी. जिंदगी में ऐसे कई हादसे होते हैं, जो केवल उसी इनसान को सहने होते हैं, कोई और मदद नहीं करता. सिर्फ हमदर्दी से दर्द, परेशानी कम नहीं होती है.
आखिर पास के ही एक टोले में कविता की शादी कर दी गई थी. लड़का काला, मोटा सा था, जो उस से ज्यादा अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन था तो वह उस का घरवाला ही. फिर वह बापू के पास के टोले का था, इसलिए 5-6 दिनों में अम्मां के साथ मुलाकात हो जाती थी. यहां कविता के पति की आधा एकड़ जमीन में खेती थी. 8-10 मुरगियां थीं. लग रहा था कि जिंदगी कुछ अच्छी है, लेकिन कभीकभी राकेश भी 4-5 दिनों के लिए गायब हो जाता था. बाद में पता चला कि राकेश भी डकैती या बड़ी चोरी करने जाता है. हिसाब होने पर हजारों रुपए उसे मिलते थे. कविता भी कुछ रुपए चुरा कर अम्मां से मिलने जाती, तो उन्हें दे देती थी.
लेकिन कविता की जिंदगी वैसे ही फटेहाल थी. कोई शौक, घूमनाफिरना कुछ नहीं. बस, देवी मां की पूजा के समय रिश्तेदार आ जाते थे, उन से भेंटमुलाकात हो जाती थी. शादी के 4 सालों में ही वह 2 लड़कियों की मां बन गई थी. इस बीच कभी भी रात को पुलिस वाले टोले में आ जाते और चारों ओर से घेर कर उन के डेरों की तलाशी लेते थे. कभीकभी उन के कंबल या कोई जेवर ही ले कर वे चले जाते थे. अकसर पुलिस के आने की खबर उन्हें पहले ही मिल जाती थी, जिस के चलते रात में सब डेरे से बाहर ही सोते थे. 2-4 दिनों के लिए रिश्तेदारियों में चले जाते थे. मामला ठंडा होने पर चले आते थे. इन्हें भी यह सबकुछ करना ठीक नहीं लगता था, लेकिन करें तो क्या करें? आधा एकड़ जमीन, वह भी सरकारी थी और जोकुछ लगाते, उस पर कभी सूखे की मार और कभी ओलों की बौछार हो जाती थी. सरकारी मदद भी नहीं मिलती थी, क्योंकि जमीन का कोई पट्टा भी उन के पास नहीं था. जोकुछ भी थोड़ाबहुत कमाते, वह जमीन खा जाती थी, लेकिन वे सब को यही बताते थे कि जमीन से जो उग रहा है, उसी से जिंदगी चल रही है. किसी को यह थोड़े ही कहते कि चोरी करते हैं.
पिछले 7-8 महीनों से बापू ने महुए की कच्ची दारू भी उतारना चालू कर दी थी. अम्मां उसे शहर में 1-2 जगह पहुंचा कर आ जाती थीं, जिस के चलते खर्चापानी निकल जाता था. कभीकभी राकेश रात को सोते समय कहता भी था कि यह सब उसे पसंद नहीं है, लेकिन करें तो क्या करें? सरकार कर्जा भी नहीं देती, जिस से भैंस खरीद कर दूध बेच सकें. एक रात वे सब सोए हुए थे कि किसी ने दरवाजे पर जोर से लात मारी. नींद खुल गई, तो देखा कि 2-3 पुलिस वाले थे. एक ने राकेश की छाती पर बंदूक रख दी, ‘अबे उठ, चल थाने.’
‘लेकिन, मैं ने किया क्या है साहब?’ राकेश बोला.
‘रायसेन में बड़े जज साहब के यहां डकैती डाली है और यहां घरवाली के साथ मौज कर रहा है,’ एक पुलिस वाले ने डांटते हुए कहा.
‘सच साहब, मुझे नहीं मालूम,’ घबराई आवाज में राकेश ने कहा. कविता भी कपड़े ठीक कर के रोने लगी थी.
‘ज्यादा होशियारी मत दिखा, उठ जल्दी से,’ और कह कर बंदूक की नाल उस की छाती में घुसा दी थी. कविता रो रही थी, ‘छोड़ दो साहब, छोड़ दो.’
पुलिस के एक जवान ने कविता के बाल खींच कर राकेश से अलग किया और एक लात जमा दी. चोट बहुत अंदर तक लगी. 3-4 टोले के और लोगों को भी पुलिस पकड़ कर ले आई और सब को हथकड़ी लगा कर लातघूंसे मारते हुए ले गई. कविता की दोनों बेटियां उठ गई थीं. वे जोरों से रो रही थीं. वह उन्हें छोड़ कर नहीं जा सकती थी. पूरी रात जाग कर काटी और सुबह होने पर उन्हें ले कर वह सोहागपुर थाने में पहुंची. टोले से जो लोग पकड़ कर लाए गए थे, उन सब की बहुत पिटाई की गई थी. सौ रुपए देने पर मिलने दिया. राकेश ने रोरो कर कहा, ‘सच में उस डकैती की मुझे कोई जानकारी नहीं है.’ लेकिन भरोसा कौन करता? पुलिस को तो बड़े साहब को खुश करना था और यहां के थाने से रायसेन जिले में भेज दिया गया. अब कविता अकेली थी और 2-3 साल की बेटियां. वह क्या करती? कुछ रुपए रखे थे, उन्हें ले कर वह टोले की दूसरी औरतों के साथ रायसेन गई. वहां वकील किया और थाने में गई. वहां बताया गया कि यहां किसी को पकड़ कर नहीं लाए हैं.
वकील ने कहा, ‘मारपीट कर लेने के बाद वे जब कोर्ट में पेश करेंगे, तब गिरफ्तारी दिखाएंगे. जब तक वे थाने के बाहर कहीं रखेंगे. रात को ला कर मारपीट करने के बाद जांच पूरी करेंगे.’ हजार रुपए बरबाद कर के कविता लौट आई थी. बापू के पास गई, तो वे केवल हौसला ही देते रहे और क्या कर सकते थे. आते समय बापू ने सौ रुपए दे दिए थे. कविता जब लौट रही थी, तब फिर एक बाबाजी का प्रवचन चल रहा था. प्रसंग वही सीताजी का था. जब सीताजी को लेने राम वनवास गए थे और अपमानित हुई सीता जमीन में समा गई थीं. सबकुछ इतने मार्मिक तरीके से बता रहे थे कि उस की आंखों से भी आंसू निकल आए, तो क्या सीताजी ने आत्महत्या कर ली थी? शायद उस के दिमाग ने ऐसा ही सोचा था. जब कविता अपने टोले पर आई, तो सीताजी की बात ही दिमाग में घूम रही थी. कैसे वनवास काटा, जंगल में रहीं, रावण के यहां रहीं और धोबी के कहने से रामजी ने अपने से अलग कर के जंगल भेज दिया गर्भवती सीता को. कैसे रहे होंगे रामजी? जैसे कि वह बिना घरवाले के अकेले रह रही है. न जाने वह कब जेल से छूटेगा और उन की जिंदगी ठीक से चल पाएगी.
इस बीच टोले में जो कागज के फूल और दिल्ली से लाए खिलौने थोक में लाते, उन्हें कविता घरघर सिर पर रख कर बेचने जाती थी. जो कुछ बचता, उस से घर का खर्च चला रही थी. अम्मां-बापू कभीकभी 2-3 सौ रुपए दे देते थे. जैसे ही कुछ रुपए इकट्ठा होते, वह रायसेन चली जाती. पुलिस ने राकेश को कोर्ट में पेश कर दिया था और कोर्ट ने जेल भेज दिया था. जमानत करवाने के लिए वकील 5 हजार रुपए मांग रहा था. कविता घर का खर्च चलाती या 5 हजार रुपए देती? राकेश का बड़ा भाई, मेरी सास भी थीं. वे घर पर आतीं और कविता को सलाह देती रहती थीं. उस ने नाराजगी भरे शब्दों में कह दिया, ‘क्यों फोकट की सलाह देती हो? कभी रुपए भी दे दिया करो. देख नहीं रही हो कि मैं कैसे बेटियों को पाल रही हूं,’ कहतेकहते वह रो पड़ी थी. जेठ ने एक हजार रुपए दिए थे. उन्हें ले कर कविता रायसेन गई, जो वकील ने रख लिए और कहा कि वह जमानत की अर्जी लगा देगा. उस वकील का न जाने कितना बड़ा पेट था. कविता जो भी देती, वह रख लेता था, लेकिन जमानत किसी की नहीं हो पाई थी. बस, जेल जा कर वह राकेश से मिल कर आ जाती थी. वैसे, राकेश की हालत पहले से अच्छी हो गई थी. बेफिक्री थी और समय से रोटियां मिल जाती थीं, लेकिन पंछी पिंजरे में कहां खुश रहता है. वह भी तो आजाद घूमने वाली कौम थी. कविता रुपए जोड़ती और वकील को भेज देती थी. आखिर पूरे 22 महीने बाद वकील ने कहा, ‘जमानतदार ले आओ, साहब ने जमानत के और्डर कर दिए हैं.’
फिर एक परेशानी. जमानतदार को खोजा, उसे रुपए दिए और जमानत करवाई, तो शाम हो गई. जेलर ने छोड़ने से मना कर दिया. कविता सास के भरोसे बेटियां घर पर छोड़ आई थी, इसलिए लौट गई और राकेश से कहा कि वह आ जाए. सौ रुपए भी दे दिए थे. रात कितनी लंबी है, सुबह नहीं हुई. सीताजी ने क्यों आत्महत्या की? वे क्यों जमीन में समा गईं? सीताजी की याद आई और फिर कविता न जाने क्याक्या सोचने लगी. सुबह देर से नींद खुली. उठ कर जल्दी से तैयार हुई. बच्चियों को भी बता दिया था कि उन का बाप आने वाला है. राकेश की पसंद का खाना पकाने के लिए मैं जब बाजार गई, तो बाबाजी का भाषण चल रहा था. कानों में वही पुरानी कहानी सुनाई दे रही थी. उस ने कुछ पकवान लिए और टोले पर लौट आई.
दोपहर तक खाना तैयार कर लिया और कानों में आवाज आई, ‘राकेश आ गया.’ कविता दौड़ते हुए राकेश से मिलने पहुंची. दोनों बेटियों को उस ने गोद में उठा लिया और अपने घर आने के बजाय वह उस के भाई और अम्मां के घर की ओर मुड़ गया. कविता तो हैरान सी खड़ी रह गई, आखिर इसे हो क्या गया है? पूरे 22 महीने बाद आया और घर छोड़ कर अपनी अम्मां के पास चला गया.
कविता भी वहां चली गई, तो उस की सास ने कुछ नाराजगी से कहा, ‘‘तू कैसे आई? तेरा मरद तेरी परीक्षा लेगा. ऐसा वह कह रहा है, सास ने कहा, तो कविता को लगा कि पूरी धरती, आसमान घूम रहा है. उस ने अपने पति राकेश पर नजर डाली, तो उस ने कहा, ‘‘तू पवित्तर है न, तो क्या सोच रही है?’’
‘‘तू ऐसा क्यों बोल रहा है…’’ कविता ने कहा. उस ने बेशर्मी से हंसते हुए कहा, ‘‘पूरे 22 महीने बाद मैं आया हूं, तू बराबर रुपए ले कर वकील को, पुलिस को देती रही, इतना रुपया लाई कहां से?’’ कविता के दिल ने चाहा कि एक पत्थर उठा कर उस के मुंह पर मार दे. कैसे भूखेप्यासे रह कर बच्चियों को जिंदा रखा, खर्चा दिया और यह उस से परीक्षा लेने की बात कह रहा है. उस समाज में परीक्षा के लिए नहाधो कर आधा किलो की लोहे की कुल्हाड़ी को लाल गरम कर के पीपल के सात पत्तों पर रख कर 11 कदम चलना होता है. अगर हाथ में छाले आ गए, तो समझो कि औरत ने गलत काम किया था, उस का दंड भुगतना होगा और अगर कुछ नहीं हुआ, तो वह पवित्तर है. उस का घरवाला उसे भोग सकता है और बच्चे पैदा कर सकता है.
राकेश के सवाल पर कि वह इतना रुपया कहां से लाई, उसे सबकुछ बताया. अम्मांबापू ने दिया, उधार लिया, खिलौने बेचे, लेकिन वह तो सुन कर भी टस से मस नहीं हुआ.
‘‘तू जब गलत नहीं है, तो तुझे क्या परेशानी है? इस के बाप ने मेरी 5 बार परीक्षा ली थी. जब यह पेट में था, तब भी,’’ सास ने कहा. कविता उदास मन लिए अपने झोंपड़े में आ गई. खाना पड़ा रह गया. भूख बिलकुल मर गई.
दोपहर उतरते-उतरते कविता ने खबर भिजवा दी कि वह परीक्षा देने को तैयार है. शाम को नहाधो कर पिप्पली देवी की पूजा हुई. टोले वाले इकट्ठा हो गए. कुल्हाड़ी को उपलों में गरम किया जाने लगा. शाम हो रही थी. आसमान नारंगी हो रहा था. राकेश अपनी अम्मां के साथ बैठा था. मुखियाजी आ गए और औरतें भी जमा हो गईं. हाथ पर पीपल के पत्ते को कच्चे सूत के साथ बांधा और संड़ासी से पकड़ कर कुल्हाड़ी को उठा कर कविता के हाथों पर रख दिया. पीपल के नरम पत्ते चर्रचर्र कर उठे. औरतों ने देवी गीत गाने शुरू कर दिए और वह गिन कर 11 कदम चली और एक सूखे घास के ढेर पर उस कुल्हाड़ी को फेंक दिया. एकदम आग लग गई. मुखियाजी ने कच्चे सूत को पत्तों से हटाया और दोनों हथेलियों को देखा. वे एकदम सामान्य थीं. हलकी सी जलन भर पड़ रही थी. मुखियाजी ने घोषणा कर दी कि यह पवित्र है. औरतों ने मंगलगीत गाए और राकेश कविता के साथ झोंपड़े में चला आया. रात हो चुकी थी. कविता ने बिछौना बिछाया और तकिया लगाया, तो उसे न जाने क्यों ऐसा लगा कि बरसों से जो मन में सवाल उमड़ रहा था कि सीताजी जमीन में क्यों समा गईं, उस का जवाब मिल गया हो. सीताजी ने जमीन में समाने को केवल इसलिए चुना था कि वे अपने घरवाले राम का आत्मग्लानि से भरा चेहरा नहीं देखना चाहती होंगी. राकेश जमीन पर बिछाए बिछौने पर लेट गया. पास में दीया जल रहा था. कविता जानती थी कि 22 महीनों के बाद आया मर्द घरवाली से क्या चाहता होगा?
राकेश पास आया और फूंक मार कर दीपक बुझाने लगा. अचानक ही कविता ने कहा, ‘‘दीया मत बुझाओ.’’
‘‘क्यों?’’
‘‘मैं तेरा चेहरा देखना चाहती हूं.’’
‘‘क्यों? क्या मैं बहुत अच्छा लग रहा हूं?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘तो फिर?’’
‘‘तुझे जो बिरादरी में नीचा देखना पड़ा, तू जो हार गया, वह चेहरा देखना चाहती हूं. मैं सीताजी नहीं हूं, लेकिन तेरा घमंड से टूटा चेहरा देखने की बड़ी इच्छा है.’’ उस की बात सुन कर राकेश भौंचक्का रह गया. कविता ने खुद को संभाला और दोबारा कहा, ‘‘शुक्र मना कि मैं ने बिरादरी में तेरी परीक्षा लेने की बात नहीं कही, लेकिन सुन ले कि अब तू कल परीक्षा देगा, तब मैं तेरे साथ सोऊंगी, समझा,’’ उस ने बहुत ही गुस्से में कहा.
‘‘क्या बक रही है?’’
‘‘सच कह रही हूं. नए जमाने में सब बदल गया है. पूरे 22 महीनों तक मैं ईमानदारी से परेशान हुई थी, इंतजार किया था.’’ राकेश फटी आंखों से उसे देख रहा था, क्योंकि उन की बिरादरी में मर्द की भी परीक्षा लेने का नियम था और वह अपने पति का मलिन, घबराया, पीड़ा से भरा चेहरा देख कर खुश थी, बहुत खुश. आज शायद सीता जीत गई थी.
दिशा रसोई में फटाफट काम कर रही थी. मनीष और क्रिया अपने-अपने कमरों में सो रहे थे. यहीं से उस के दिन की शुरुआत होती थी. 5 बजे उठ कर नाश्ता और दोपहर का खाना तैयार कर, मनीष और 13 वर्षीया क्रिया को जगाती थी. उन्हें जगा कर फिर अपनी सुबह की चाय के साथ 2 बिस्कुट खाती थी. उस ने घड़ी पर निगाह डाली तो 6:30 बज गए थे. वह जल्दी से जा कर क्रिया को जगाने लगी.
‘‘क्रिया उठो, 6:30 बज गए,’’ बोल कर वह वापस अपने काम में लग गई.
‘‘मम्मा, आज हम तृष्णा दीदी के मेहंदी फंक्शन में जाएंगे.’’
‘‘ओफ्फ, क्रिया, तुम्हें स्कूल के लिए तैयार होना है. देर हो गई तो स्कूल में एंट्री बंद हो जाएगी और फिर तुम्हें घर पर अकेले रहना पड़ेगा,’’ गुस्से से दिशा ने कहा, ‘‘जाओ, जल्दी से स्कूल के लिए तैयार हो जाओ, मेरा सिर न खाओ.’’ क्रिया पैर पटकती हुई बाथरूम में अपनी ड्रैस ले कर नहाने चली गई. दिशा को सब काम खत्म कर के 8 बजे तक स्कूल पहुंचना होता था, इसलिए उस का पारा रोज सुबह चढ़ा ही रहता था. 7 बज गए तो वह मनीष को जगाने गई. ‘‘कभी तो अलार्म लगा लिया करो. कितनी दिक्कत होती है मुझे, कभी इस कमरे में भागो तो कभी उस कमरे में. और एक तुम हो, जरा भी मदद नहीं करते,’’ गुस्से से भरी दिशा जल्दीजल्दी सफाई करने लगी. साथ ही बड़बड़ाती जा रही थी, ‘जिंदगी एक मशीन बन कर रह गई है. काम हैं कि खत्म ही नहीं होते और उस पर यह नौकरी. काश, मनीष अपनी जिम्मेदारी समझते तो ऐसी परेशानी न होती.’
मनीष ने क्रिया और दिशा को स्कूटर पर बैठाया और स्कूल की ओर रवाना हो गया.
दिशा की झुंझलाहट कम होने का नाम नहीं ले रही थी. जल्दी-जल्दी काम निबटाते ही वह 15 मिनट देर से स्कूल पहुंची. शुक्र है प्रिंसिपल की नजर उस पर नहीं पड़ी, वरना डांट खानी पड़ती. अपनी क्लास में जा कर जैसे ही उस ने बच्चों को पढ़ाने के लिए ब्लैकबोर्ड पर तारीख डाली 04/04/16. उस का सिर घूम गया.
4 तारीख वो कैसे भूल गई, आज तो रिया का जन्मदिन है. है या था? सिर में दर्द शुरू हो गया उस के. जैसे-तैसे क्लास पूरी कर वह स्टाफरूम में पहुंची. कुरसी पर बैठते ही उस का सिरदर्द तेज हो गया और वह आंखें बंद कर के कुरसी पर टेक लगा कर बैठ गई. रिया का गुस्से वाला चेहरा उस की आंखों के आगे आ गया. कितना आक्रोश था उस की आंखों में. वे आंखें आज भी दिशा को रातरात भर जगा देती हैं और एक ही सवाल करती हैं – ‘मेरा क्या कुसूर था?’ कुसूर तो किसी का भी नहीं था. पर होनी को कोई टाल नहीं सकता. कितनी मन्नतोंमुरादों से दिशा और मनीष ने रिया को पाया था. किस को पता था कि वह हमारे साथ सिर्फ 16 साल तक ही रहेगी. उस के होने के 4 साल बाद क्रिया हो गई. तब से जाने क्यों रिया के स्वभाव में बदलाव आने लगा. शायद वह दिशा के प्यार पर सिर्फ अपना अधिकार समझती थी, जो क्रिया के आने से बंट गया था.
जैसे-जैसे रिया बड़ी होती रही, दिशा और मनीष से दूर होती रही. मनीष को इन सब से कुछ फर्क नहीं पड़ता था. उसे तो शराब और सिगरेट की चिंता होती थी बस, उतना भर कमा लिया. बीवीबच्चे जाएं भाड़ में. खाना बेशक न मिले पर शराब जरूर चाहिए उसे. उस के लिए वह दिशा पर हाथ उठाने से भी गुरेज नहीं करता था. अपनी बेबसी पर दिशा की आंखें भर आईं. अगर क्रिया की चिंता न होती तो कब का मनीष को तलाक दे चुकी होती. दिशा का सिर अब दर्द से फटने लगा तो वह स्कूल से छुट्टी ले कर घर आ गई. दवा खा कर वह अपने कमरे में जा कर लेट गई. आंखें बंद करते ही फिर वही रिया की गुस्से से लाल आंखें उसे घूरने लगीं. डर कर उस ने आंखें खोल लीं.
सामने दीवार पर रिया की तसवीर लगी थी जिस पर हार चढ़ा था. कितनी मासूम, कितनी भोली लग रही है. फिर कहां से उस में इतना गुस्सा भर गया था. शायद दिशा और मनीष से ही कहीं गलती हो गई. वे अपनी बड़ी होती रिया पर ध्यान नहीं दे पाए. शायद उसी दिन एक ठोस समझदारी वाला कदम उठाना चाहिए था जिस दिन पहली बार उस के स्कूल से शिकायत आई थी. तब वह छठी क्लास में थी. ‘मैम आप की बेटी रिया का ध्यान पढ़ाई में नहीं है. जाने क्या अपनेआप में बड़बड़ाती रहती है. किसी बच्चे ने अगर गलती से भी उसे छू लिया तो एकदम मारने पर उतारू हो जाती है. जितना मरजी इसे समझा लो, न कुछ समझती है और न ही होमवर्क कर के आती है. यह देखिए इस का पेपर जिस में इस को 50 में से सिर्फ 4 नंबर मिले हैं.’ रिया पर बहुत गुस्सा आया था दिशा को जब रिया की मैडम ने उसे इतना लैक्चर सुना दिया था.
‘आप इस पर ध्यान दें, हो सके तो किसी चाइल्ड काउंसलर से मिलें और कुछ समय इस के साथ बिताएं. इस के मन की बातें जानने की कोशिश करें.’
रिया की मैडम की बात सुन कर दिशा ने अपनी व्यस्त दिनचर्या पर नजर डाली. ‘कहां टाइम है मेरे पास? मरने तक की तो फुरसत नहीं है. काश, मनीष की नौकरी लग जाए या फिर वह शराब पीना छोड़ दे तो हम दोनों मिल कर बेटी पर ध्यान दे सकते हैं,’ दिशा ने सोचा लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं.
फिर तो बस आएदिन रिया की शिकायतें स्कूल से आती रहती थीं. दिशा को न फुरसत मिली उस से बात करने की, न उस की सखी बनने की. एक दिन तो हद ही हो गई जब मनीष उसे हाथ से घसीट कर घर लाया था.
‘क्या हुआ? इसे क्यों घसीट रहे हो. अब यह बड़ी हो गई है.’ दिशा ने उस का हाथ मनीष के हाथ से छुड़ाते हुए कहा.
मनीष ने दिशा को धक्का दे कर पीछे कर दिया और तड़ातड़ 3-4 चाटें रिया को लगा दिए.
दिशा एकदम सकते में आ गई. उसे समझ नहीं आया कि रिया को संभाले या मनीष को रोके.
मनीष की आंखें आग उगल रही थीं.
‘जानती हो कहां से ले कर आया हूं इसे. मुझे तो बताते हुए भी शर्म आती है.’
दिशा हैरानी से मनीष की तरफ सवालिया नजरों से देखती रही.
‘पुलिस स्टेशन से.’
‘क्या?’ दिशा का मुंह खुला का खुला रह गया.
‘इंसपैक्टर प्रवीर शिंदे ने मुझे बताया कि उन्होंने इसे एक लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ा था.’ दिशा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया और वह रिया को खा जाने वाली नजरों से देखने लगी. रिया की आंखों से अब भी अंगारे बरस रहे थे और फिर उस ने गुस्से से जोर से परदों को खींचा और अपने कमरे में चली गई. मनीष अपने कमरे में जा कर अपनी शराब की बोतल खोल कर पीने लग गया. दिशा रिया के कमरे की तरफ बढ़ी तो देखा कि दरवाजा अंदर से बंद था. उस ने बहुत आवाज लगाई पर रिया ने दरवाजा नहीं खोला. एक घंटे के बाद जब मनीष पर शराब का सुरूर चढ़ा तो वह बहकते कदमों से लड़खड़ाते हुए रिया के कमरे के दरवाजे के बाहर जा कर बोला, ‘रिया, मेरे बच्चे, बाहर आ जा. मुझे माफ कर दे. आगे से तुझ पर हाथ नहीं उठाऊंगा.’ दिशा जानती थी कि यह शराब का असर है, वरना प्यार से बात करना तो दूर, वह रिया को प्यारभरी नजरों से देखता भी नहीं था.
रिया ने दरवाजा खोला और पापा के गले लग कर बोली, ‘पापा, आई एम सौरी.’
दोनों बापबेटी का ड्रामा चालू था. न वह मानने वाली थी और न मनीष. दिशा कुछ समझाना चाहती तो रिया और मनीष उसे चुप करा देते. हार कर उस ने भी कुछ कहना छोड़ दिया. इस चुप्पी का असर यह हुआ कि दिशा से उस की दूरियां बढ़ती रहीं और रिया के कदम बहकने लगे.
दिशा आज अपनेआप को कोस रही थी कि अगर मैं ने उस चुप्पी को न स्वीकारा होता तो रिया आज हमारे साथ होती. बातबात पर रिया पर हाथ उठाना तो रोज की बात हो गई थी. आज उसे महसूस हो रहा था कि जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उन के साथ दोस्तों सा व्यवहार करना चाहिए.कुछ पल उन के साथ बिताने चाहिए, उन के पसंद का काम करना चाहिए ताकि हम उन का विश्वास जीत सकें और वे हम से अपने दिल की बात कह सकें. पर दिशा यह सब नहीं कर पाई और अपनी सुंदर बेटी को आज के ही दिन पिछले साल खो बैठी.
आज उसे 4 अप्रैल, 2015 बहुत याद आ रहा था और उस दिन की एकएक घटना चलचित्र की भांति उस की आंखों के बंद परदों से हो कर गुजरने लगी…
कितनी उत्साहित थी रिया अपने सोलहवें जन्मदिन को ले कर. जिद कर के 4 हजार रुपए की पिंक कलर की वह ‘वन पीस’ ड्रैस उस ने खरीदी थी. कितनी मुश्किल से वह ड्रैस हम उसे दिलवा पाए थे. वह तो अनशन पर बैठी थी.
स्कूल से छुट्टी कर ली थी उस ने जन्मदिन मनाने के लिए. सुबहसवेरे तैयार होने लगी. 4 घंटे लगाए उस दिन उस ने तैयार होने में. बालों की प्रैसिंग करवाई, फिर कभी ऐसे, कभी वैसे बाल बनाते हुए उस ने दोपहर कर दी. जब दिशा उस दिन स्कूल से लौटी तो एक पल निहारती रह गई रिया को.
‘हैप्पी बर्थडे, बेटा.’
दिशा ने कहा तो रिया ने जवाब दिया, ‘रहने दो मम्मी, अगर आप को मेरे जन्मदिन की खुशी होती तो आज आप स्कूल से छुट्टी ले लेतीं और मुझे कभी मना नहीं करतीं इस ड्रैस के लिए.’ दिशा का मन बुझ गया पर वह रिया का मूड नहीं खराब करना चाहती थी. दिशा यादों में डूबी थी कि तभी क्रिया की आवाज सुन कर उस की तंद्रा भंग हुई.
‘‘मम्मा, मम्मा आप अभी तक सोए पड़े हो?’’ क्रिया ने घर में घुसते ही सवाल किया. दिशा का चेहरा पूरा आंसुओं से भीग गया था. वह अनमने मन से उठी और रसोई में जा कर क्रिया के लिए खाना गरम करने लगी. क्रिया ने फिर सुबह वाला प्रश्न दोहराया, ‘‘मम्मी, क्या हम तृष्णा दीदी के मेहंदी फंक्शन में जाएंगे?’’
दिशा ने कोई जवाब नहीं दिया. क्रिया बारबार अपना प्रश्न दोहराने लगी तो उस ने गुस्से में कहा, ‘‘नहीं, हम किसी फंक्शन में नहीं जाएंगे.’’ आज रिया की बरसी थी तो ऐसे में वह कैसे किसी फंक्शन में जाने की कल्पना कर सकती थी. क्रिया को बहुत गुस्सा आया. शायद वह इस फंक्शन में जाने के लिए अपना मन बना चुकी थी. उसे ऐसे फंक्शन पर जाना अच्छा लगता था और मां का मना करना उसे बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा था.
‘‘मम्मा, आप बहुत गंदे हो, आई हेट यू, मैं कभी आप से बात नहीं करूंगी.’’ गुस्से से बोलती हुई क्रिया अपने कमरे में चली गई और उस ने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.
दरवाजे की तेज आवाज से मनीष का नशा टूटा तो वह कमरे से चिल्लाया, ‘‘यह क्या हो रहा है इस घर में? कोई मुझे बताएगा?’’
दिशा बेजान सी कमरे की कुरसी पर धम्म से गिर गई. उस की नजरें कभी मनीष के कमरे के दरवाजे पर जातीं, कभी क्रिया के बंद दरवाजे पर तो कभी रिया की तसवीर पर. अचानक उसे सब घूमता हुआ नजर आया, ठीक वैसे ही जब पिछले साल 4 तारीख को फोन आया था, ‘देखिए, मैं डाक्टर दत्ता बोल रहा हूं सिटी हौस्पिटल से. आप जल्द से जल्द यहां आ जाएं. एक लड़की जख्मी हालत में यहां आई है. उस के मोबाइल से ‘होम’ वाले नंबर पर मैं ने कौल किया है. शायद, यह आप के घर की ही कोई बच्ची है.’
यह सुनते ही दिल जोरजोर से धड़कने लगा, वह रिया नहीं है. अगर वह रिया नहीं हैं तो वह कहां हैं? अचानक उसे याद आया, वह तो 6 बजे अपने दोस्तों के साथ जन्मदिन मनाने गई थी. असमंजस की स्थिति में वह और मनीष हौस्पिटल पहुंचे तो डाक्टर उन्हें इमरजैंसी वार्ड में ले गया और यह जानने के बाद कि वे उस लड़की के मातापिता हैं, बोला, ‘आई एम सौरी, इस की डैथ तो औन द स्पौट ही हो गई थी.’ अचानक से आसमान फट पड़ा था दिशा पर. वह पागलों की तरह चीखने लगी और जोरजोर से रोने लगी. ‘इस के साथ एक लड़का भी था वह दूसरे कमरे में है. आप चाहें तो उस से मिल सकते हैं.’
मनीष और दिशा भाग कर दूसरे कमरे में गए. और गुस्से से बोले, ‘बोल, क्यों मारा तू ने हमारी बेटी को, उस ने तेरा क्या बिगाड़ा था?’
16 साल का हितेश घबरा गया और रोतेरोते बोला, ‘आंटी, आंटी, मैं ने कुछ नहीं किया, वह तो मेरी बहुत अच्छी दोस्त थी.’
‘फिर ये सब कैसे हुआ? बता, नहीं तो मैं अभी पुलिस को फोन करता हूं,’ मनीष ने गुस्से में कहा. ‘अंकल, हम 4 लोग थे, रिया और हम 3 लड़के. मोटरसाइकिल पर बैठ कर हम पहले हुक्का बार गए…’
मनीष और दिशा की आंखें फटी की फटी रह गईं यह जान कर कि उन की बेटी अब हुक्का और शराब भी पीने लगी थी. फिर मैं ने रिया से कहा, ‘रिया काफी देर हो गई है. चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं. पर अंकल, वह नहीं मानी, बोली कि आज घर जाने का मन नहीं है. ‘मेरे बहुत समझाने पर बोली कि अच्छा, थोड़ी देर बाद घर छोड़ देना तब तक लौंग ड्राइव पर चलते हैं. तभी, अंकल आप का फोन आया था जब आप ने घर जल्दी आने को कहा था. पर वह तो जैसे आजाद होना चाहती थी. इसीलिए उस ने आगे बढ़ कर चलती मोटरसाइकिल से चाबी निकालने की कोशिश की और इस सब में मोटरसाइकिल का बैलेंस बिगड़ गया और वह पीछे की ओर पलट गई. वहीं, डिवाइडर पर लोहे का सरिया सीधा उस के सिर में लग गया और उस ने वहीं दम तोड़ दिया.’
दहशत में आए हितेश ने सारी कहानी रोतेरोते बयान कर दी. दिशा और मनीष सकते में आ गए और जानेअनजाने में हुई अपनी गलतियों पर पछताने लगे. काश, हम समय रहते समझ पाते तो आज रिया हमारे बीच होती. तभी अचानक दिशा वर्तमान में लौट आई और उसे क्रिया का ध्यान आया जो अब भी बंद दरवाजे के अंदर बैठी थी. दिशा ने कुछ सोचा और उठ कर क्रिया का दरवाजा खटखटाने लगी, ‘‘क्रिया बेटा, दरवाजा खोलो.’’
अंदर से कोई आवाज नहीं आई.
‘‘अच्छा बेटा, आई एम सौरी. अच्छा ऐसा करना, वह जो पिंक वाली ड्रैस है, तुम आज रात मेहंदी फंक्शन में वही पहन लेना. वह तुम पर बहुत जंचती है.’’ दिशा का इतना बोलना था कि क्रिया झट से बाहर आ कर दिशा के गले लग गई और बोली, ‘‘सच मम्मा, हम वहां बहुत मस्ती करेंगे, यह खाएंगे, वह खाएंगे. आई लव यू, मम्मा.’’ बच्चों की खुशियां भी उन की तरह मासूम होती हैं, छोटी पर अपने आप में पूर्ण. शायद यह बात मुझे बहुत पहले समझ आ गई होती तो रिया कभी हम से जुदा नहीं होती. दिशा ने सोचा, वह अपनी एक बेटी खो चुकी थी पर दूसरी अभी इतनी दूर नहीं गई थी जो उस की आवाज पर लौट न पाती. दिशा ने कस कर क्रिया को गले से लगा लिया इस निश्चय के साथ कि वह इतिहास को नहीं दोहराएगी.
अगले दिन उस ने अपने स्कूल में इस्तीफा भेज दिया इस निश्चय के साथ कि वह अब अपनी डोलती जीवननैया की पतवार बन कर मनीष और क्रिया को संभालेगी. सब से पहले वह अपनी सेहत पर ध्यान देगी और गुस्से को काबू करने के लिए एक्सरसाइज करेगी. घर बैठे ही ट्यूशन से आमदनी का जरिया चालू करेगी. काश, ऐसा ही कुछ रिया के रहते हो गया होता तो रिया आज उस के साथ होती. इस तरह अपनी गलतियों को सुधारने का निश्चय कर के दिशा अपनी जिंदगी की नई शुरुआत कर चुकी थी.
लोकसभा चुनाव के बाद देश ने उपचुनाव में जनमत दे कर समझा दिया है कि इंडिया ब्लौक की जीत कोई तुक्का नहीं थी. चुनावी संदेश भाजपा में असंतोष को हवा दे दी है, जो धर्म की राजनीति पर सवालिया निशान खड़ा कर रही है.
देश के 7 राज्यों में 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजों ने बता दिया कि भाजपा ने जिस धर्म के ऊपर राजनीति शुरू की थी वह अब उस से नहीं संभल रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में अयोध्या में भाजपा की हार ने पूरे चुनावी महौल को बदल दिया. भाजपा उस झटके से संभल नहीं पाई थी कि विधानसभा के उपचुनावों में बद्रीनाथ क्षेत्र में मिली हार ने भाजपा की कमर तोड़ दी. इन चुनावों का असर यह हुआ कि भाजपा में धर्म की राजनीति पर बगावत होने लगी है. धर्म के दबाव में जो बातें भाजपा के एससी और ओबीसी नेता कह नहीं पा रहे थे अब वह खुल कर बोलने लगे हैं.
‘सरिता’ ने अपने लेखों में हमेशा यह समझाने का प्रयास किया है कि धर्म की राजनीति समाज के लिए हमेशा नुकसानदायक रही है. यह समाज को बांटने का काम करती है. धर्म का नशा लंबे समय तक नहीं रहता है. यह बहुत जल्द उतर जाता है. एक ही चुनावी हार में भाजपा में यह नशा उतर रहा है. उत्तर प्रदेश में जहां के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लोकसभा चुनाव के पहले तक भाजपा के ब्रांड माने जाते थे उन को चुनौती देने का साहस भाजपा का कोई नेता नहीं कर सकता था. लोकसभा चुनाव में जैसे ही भाजपा उत्तर प्रदेश में नम्बर 2 की पार्टी बनी योगी आदित्यनाथ के खिलाफ विद्रोह हो गया है.
इस विद्रोह में पार्टी के एससी और ओबीसी नेता सब से आगे हैं. इन को हवा देने का काम सवर्ण नेता कर रहे हैं. जो धर्म की राजनीति से खुद को जोड़ नहीं पा रहे थे. ऐसे में अब यह साफ दिख रहा है कि 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा उत्तर प्रदेश में बड़ा बदलाव कर के योगी आदित्यनाथ को हटा सकती है. इस पर फाइनल मोहर उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा के 10 उपचुनाव के बाद होगा. अगर इन उपचुनाव में भाजपा को सफलता मिलती दिखी तब लड़ाई धीमी होगी लेकिन अगर इन उपचुनाव में भी भाजपा को हार मिलती है तो योगी को हटाने की मुहिम तेज हो जाएगी.
7 राज्यों मे भाजपा की हार 7 राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा केवल 2 सीटें ही जीत सकी. लोकसभा चुनाव के बाद लग रहा था कि भाजपा उस से सबक ले कर उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन करेगी. जब उप चुनाव के परिणाम आए तो यह साफ हो गया कि भाजपा का डिब्बा गुल है. दूसरी तरफ राहुल गांधी और इंडिया ब्लौक पर मतदाताओं का भरोसा कायम है. 13 में 10 सीटें जीत कर इंडिया ब्लौक ने 2 सीट जीतने वाली भाजपा को बड़ा झटका दिया है. भाजपा को सब से बड़ा झटका लगा है बंगाल में, जहां 4 सीटों पर उसे टीएमसी के हाथों मात खानी पड़ी. वह भी तब जब बंगाल में इन 4 सीटों में से 3 सीटों पर पिछले चुनाव में बीजेपी का कब्जा था.
भाजपा की दूसरी बड़ी हार धर्म के राज्य उत्तराखंड की बदरीनाथ सीट पर मिली है. उत्तराखंड के बहुत सारे विकास के दावे धरे के धरे रह गए.हिमाचल में भी कांग्रेस ने भाजपा को हरा दिया. लोकसभा चुनाव के बाद राजनीतिक दलों की ये सब से बड़ी परीक्षा थी. जिस में इंडिया ब्लौक ने एनडीए को 10-2 स्कोर से मात दे दी. उपचुनाव के नतीजों ने इंडिया ब्लौक को खुशी मनाने का बड़ा मौका दे दिया है. बंगाल में टीएमसी ने सभी चारों सीटें जीत कर जलवा बिखेरा है तो उत्तराखंड की दोनों सीटें कांग्रेस के खाते में आई हैं. हिमाचल में भी 3 में से 2 सीटों पर कांग्रेस ने विजय पताका लहराई है तो पंजाब की इकलौती सीट आप की झोली में गिरी है. तमिलनाडु की एकमात्र सीट पर डीएमके ने कब्जा जमाया है.
अयोध्या के बाद बद्रीनाथ
उपचुनाव में इंडिया ब्लौक निखर कर सामने आया है. इस के परिणामों से लोकसभा चुनाव परिणामों पर मोहर लग गई है. जो लोग लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लौक की सफलता को तुक्का समझ रहे थे उन को उपचुनाव ने जबाव दे दिया है. अयोध्या के बाद बद्रीनाथ की हार ने भाजपा की धर्म की राजनीति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. कांग्रेस नेता और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत कहते हैं, ‘बदरीनाथ में बीजेपी की हार ऊपर वाले का दंड है. भगवान राम की धरती अयोध्या में इंडिया ब्लौक की जीत बहुत महत्वपूर्ण है. अब इस पर बदरीनाथ की जीत ने भी मुहर लगा दी है.’
उत्तराखंड में मंगलौर और बद्रीनाथ सीट पर उपचुनाव हुआ था. इन सीटों पर पहले कांग्रेस और बसपा का कब्जा था. बद्रीनाथ सीट पर कांग्रेस के लखपत सिंह बुटोला ने करीब 5 हजार से अधिक वोटों से भाजपा के राजेंद्र भंडारी को मात दी. राजेंद्र भंडारी ही पहले यहां से विधायक थे लेकिन बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए थे. मंगलौर सीट जो बसपा विधायक सरबत करीम अंसारी के निधन के बाद खाली हुई थी, उस सीट पर पर कांग्रेस के काजी निजामुद्दीन ने बाजी मारी और कड़े मुकाबले में उन्होंने बीजेपी के करतार सिंह भड़ाना को 400 से अधिक वोटों से हराया. काजी निजामुद्दीन इस सीट पर पहले भी 3 बार कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं.
भाजपा जिस तरह से धनबल और ईडी-सीबीआई के दबाव में काम करवा रही थी उस से लोगों में विद्रोह भी भावना भड़क रही थी. चुनाव में वह भाजपा को जवाब दे रही है. हिमांचल के देहरा में 25 वर्षों के बाद कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई है और नालागढ़ में भी कांग्रेस प्रत्याशी बड़े अंतर से जीते हैं. भाजपा केवल हिमाचल में हमीरपुर और मध्य प्रदेश में अमरवाड़ा सीट पर जीत का झंडा लहरा पाई. अब उत्तर प्रदेश में भी 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाला है और भाजपा के लिए बड़ी अग्निपरीक्षा है. भाजपा में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ विद्रोह के दौर में पार्टी के सामने मुश्किलों का दौर है.
हिमाचल प्रदेश की 3 सीटों में से 2 सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है. देहरा सीट से सीएम सुक्खू की पत्नी 9,399 वोटों से चुनाव जीतीं तो वहीं नालागढ़ सीट से कांग्रेस के हरदीप सिंह बावा ने बीजेपी के के. एल. ठाकुर को करीब 9 हजार वोटों से हराया. हमीरपुर में बीजेपी के आशीष शर्मा ने कांग्रेस के पुष्पेंद्र वर्मा को कड़े मुकाबले में 1571 वोटों से हराया. पहले ये तीनों सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के पास थी.
छोटा चुनाव बड़े संदेश
7 राज्यों की 13 विधानसभा सीटों का चुनाव एक सर्वे जैसा था, जिस में पता चल गया कि पूरे देश में भाजपा के खिलाफ माहौल कायम है. भाजपा लोकसभा चुनाव की हार से कोई सबक नहीं ले पाई है. पश्चिम बंगाल में 4 विधानसभा सीटों पर सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस ने जीत हासिल की. रायगंज, बागदा, राणाघाट और मानिकतला सीट पर टीएमसी उम्मीदवारों ने शानदार जीत हासिल की है. रायगंज सीट से टीएमसी प्रत्याशी कृष्णा कल्याणी ने बीजेपी उम्मीदवार मानस कुमार घोश को 49 हजार वोटों से ज्यादा के अंतर से शिकस्त दी. वहीं बागदा सीट पर टीएमसी की उम्मीदवार मधुपर्णा ठाकुर ने 33,455 वोटों से जीत हासिल की. इस के अलावा राणाघाट से टीएमसी के मुकुट मणि ने बीजेपी के मनोज कुमार बिस्वास को करीब 39 हजार वोटों से हराया. मानिकतला सीट पर टीएमसी की सुप्ती पांडे ने बीजेपी के कल्याण चैबे को 41,406 वोटों से हराया.
पंजाब में जालंधर पश्चिम सीट से आम आदमी पार्टी के मोहिंदर भगत ने बीजेपी के शीतल अंगुरल को करीब 37 हजार वोटों से हराया. पहले यह सीट आम आदमी पार्टी के पास ही थी और शीतल ही यहां से विधायक थे लेकिन बाद में वह बीजेपी में शामिल हो गए जिस के बाद यहां उपचुनाव हुआ. बिहार की रुपौली सीट पर बड़ा उलटफेर हुआ है यहां निर्दलीय उम्मीदवार शंकर सिंह ने जेडीयू और आरजेडी जैसे दलों को पीछे छोड़ते हुए जीत हासिल कर ली है. बीमा भारती के जेडीयू में शामिल होने की वजह से यहां सीट रिक्त हुई थी. बीमा भारती ने लोकसभा का चुनाव भी लड़ा था लेकिन वहां भी वह तीसरे नंबर पर रहीं.
तमिलनाडु की विकरावंडी सीट पर सत्ताधारी डीएमके ने जीत हासिल की है. डीएमके के अन्नियुर शिवा शिवाशनमुगम. ए ने पट्टाली मक्कल काची पार्टी के अन्बुमणि. सी को 50 हजार से अधिक वोटों से हराया. मध्य प्रदेश की अमरवाड़ा सीट पर भाजपा से कमलेश शाह 3,252 वोटों से जीत गए. पहले के विधानसभा चुनाव में अमरवाड़ा सीट पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, लेकिन कमलेश प्रताप बाद में बीजेपी में शामिल हो गए जिस के बाद यह सीट खाली हो गई.
अब यूपी की बारी यूपी में 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं. जब से लोकसभा चुनाव में भाजपा को केवल 33 सीटें ही मिली हैं पार्टी निराशा के दौर में है.इस के मुकाबले विपक्ष उत्साह में है. अब उत्तर प्रदेश में भी 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं. इन चुनावों से प्रदेश की राजनीति करवट लेगी. भाजपा बनाम विपक्ष की जगह अब यह लड़ाई भाजपा बनाम भाजपा हो गई है. भाजपा के अंदर ही विद्रोह के हालात है.
प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में जिस तरह से डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने सरकार और संगठन की मुद्दा उठाया उस के बाद से पर्दे के पीछे की लड़ाई खुल कर सामने आ गई है. भाजपा के विधायक रमेश मिश्रा, पूर्वमंत्री मोती सिंह, केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और सुभाष निशाद जैसे नेताओं के बयान पार्टी के अंदर सबकुछ ठीक नहीं है इस की गवाही दे रहे हैं. राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि भाजपा में अभी यह असंतोष की शुरूआत है. उपचुनाव के परिणाम आने के बाद इस में और तेजी आएगी.
सफल हो रही कांग्रेस की रणनीति
लोकसभा चुनाव प्रचार में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ओबीसी का जो मुद्दा उठाया वह जनता को समझ में आ गया. राहुल ने दूसरा मुद्दा रोजगार का उठाया वह युवाओं में लोकप्रिय हो गया है. अब युवाओं को समझ आ गया है कि उन के लिए मंदिर नहीं रोजगार जरूरी है. राहुल गांधी ने संविधान और आरक्षण खत्म करने की जो बात कही वह भी लोगों के दिल में घर कर गई है. राहुल गांधी द्वारा उठाए गए अग्निवीर जैसे मुद्दे अब लोगों को समझ आ रहे हैं. लोगों को समझ आ रहा है कि अब चुनाव में धर्म और मंदिर की राजनीति पर जनता से जुड़े मुद्दे भारी पड़ रहे हैं. केन्द्र की नई सरकार में कुछ बदलता नहीं दिख रहा है. नीट सहित बहुत परीक्षाओं में पेपर लीक की बात हुई. एनडीए सरकार ने लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी को बोलने नहीं दिया.
लगातार कई परीक्षाओं के कैंसल होने और कई परीक्षाओं के पेपर आउट होने से आम जनता का भरोसा टूट रहा है. नीट परीक्षा को ले कर आम लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि सरकार चाहती क्या है ? भ्रष्टाचार के मोर्चे पर सरकार असफल रही है. जब माहौल अपने पक्ष में नहीं होता तो विपक्ष को छोड़िए पार्टी के भीतर से भी असंतोष की आवाजें उठने लगती हैं. उत्तर प्रदेश में भाजपा के अंदर फैला अंसतोष बढ़ता ही जा रहा है.
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जिस तरह का माहौल बनाया जा रहा है उस से भाजपा की मुश्किलें बढ़ती दिख रही है. अगर योगी हटते हैं तो यह यूपी में कल्याण सिंह पार्ट 2 हो जाएगा. एक तरह से देखें तो भाजपा के अंदर धर्म की राजनीति को ले कर बहस शुरू हो गई है.एससी और ओबीसी नेताओं को समझ आ गया है कि जब तक धर्म का राज खत्म नहीं होगा पार्टी में उन को महत्व नहीं मिलेगा. ऐसे मे वह अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं. पार्टी की चुनावी हार के बाद बने माहौल ने उन को बोलने का मौका दे दिया है. ऐसे में अब उत्तर प्रदेश के 10 उपचुनाव प्रदेश की नई दिशा देने वाले होंगे.
संघर्ष में आदमी अकेला होता है और सफलता में दुनिया उस के साथ होती है. ये बात सच है जिसजिस पर ये जग हंसा है, उसी ने एक दिन इतिहास लिखा है. लेकिन जो लोग इतिहास रच चुके हैं क्यों न उन के अनुभवों से सीखते हुए आगे बढ़ें और हम भी उन से इतिहास रचने का जज्बा लें. जैसे कि भारतीय हौकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान मेजर ध्यान चंद ने कहा था कि जीवन में जीत और हार तो होती रहती है, लेकिन हार हमेशा निराशा नहीं देती बल्कि आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी करती है. अगर हम इसे अपने जीवन में उतार लें तो कभी निराश नहीं होंगे. और यही बात अभी हाल ही में वर्ल्ड कप 2024 जीतने वाली हमारी इंडियन टीम ने भी साबित करके दिखाई है.
उन के लिए समय बड़ा बलवान होता है
सफल लोग हमेशा अपना हर काम समय पर करते हैं और कल पर नहीं टालते. यही उन की सफलता की सब से बड़ी कुंजी होती है.
सेल्फ कौन्फिडेंस भी होता है
ऐसे लोगों को खुद पर पूरा विश्वास होता है. कई बार असफल होने पर भी वे निराश नहीं होते बल्कि इसे एक एक्सपीरियंस की तरह लेते हैं. अगली बार और भी ज्यादा जोश से तैयारी करते हैं और सफल होते हैं.
बोलने से ज्यादा सुनने की कला में होते हैं माहिर
कहते हैं न कि समझदारी इसी में है कि कुछ भी बोलने से पहले सामने वाले की सुन लेना चाहिए और फिर अपनी प्रतिक्रिया देनी चाहिए. सफल लोग यही करते हैं. वह अपनी अपनी नहीं कहते बल्कि सामने वाले की बात को सुन कर समझ कर ही किसी नतीजे पर पहुंचते हैं.
अपनों के लिए निकालते हैं समय
हम यहां बिजी थे वहां बिजी थे. ये सब तो बहाने हैं. अपनों के लिए टाइम मिल ही जाता है. जैसे की अभी हाल ही में सब ने देखा के वर्ल्ड कप 2024 में किस तरह विराट कोहली ने मैच जीतते ही अपने बिजी टाइम में से मैदान पर ही फोन निकाल कर अपनी बीवी और बेटी से बात की. सफल लोग ऐसा ही करते हैं वे अपनी सफलता में अपनी फैमिली को साथ ले कर चलते हैं तभी उन्हें मुश्किलों से उबरने में अपनी फैमिली का पूरा सपोर्ट भी मिलता है और यही बात उन की कामयाबी खूबसूरत बना देती है.
न्यू स्किल्स सीखते हैं
आज के समय में आ कर आप एक सफल व्यक्ति बनना चाहते हैं तो आप को अपनी स्किल सीखना बेहद ही जरूरी है. इसलिए आप को पहले ऐसी स्किल गेन करनी चाहिए जो आप को आसानी से पैसा कमा कर दे सके इसलिए आप पहले नौलेज लें फिर पैसा कमाने के बारे में सोचें.
दुनिया को बनाएं अपना विश्वविद्यालय
सीखना कभी बंद न करें. हर किसी से कुछ न कुछ सीखा जा सकता है, इसलिए हर दिन कुछ नया ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करें.
सफलता क्रमिक है
रातोंरात सफलता मिलना वाकई दुर्लभ है. ज़्यादातर लोगों को एक बेहतरीन कैरियर बनाने में सालों, यहां तक कि दशकों लग जाते हैं. इस का रहस्य हर दिन कड़ी मेहनत करना है, और याद रखें कि छोटीछोटी जीत भी आप के जीवन को काफी हद तक बेहतर बना सकती है. समय के साथ, आप खुद को बड़े से बड़े लक्ष्य हासिल करते हुए पाएंगे.
जो दूसरों से जलते नहीं
सफल लोग दूसरों को देख जलते नहीं बल्कि उन से सीखने की कोशिश करते हैं. सिर्फ उन की सफलता से ही नहीं बल्कि गलतियों से भी सीखते हैं.
रहते हैं कूल कूल
अपने गुस्से पर कंट्रोल कर के मन को शांत रखना भी एक कला है जिसे सीखना बहुत जरुरी होता है. इस वजह से हम विपरीत परिस्थितयों का भी आसानी से मुकाबला कर माइंड को कूल रख के एक सही फैसले पर पहुंच सकते हैं.
प्लानिंग करते हैं फिर आगे बढ़ते हैं
कहते है न कि अपने हर कदम क साथ आगे लेने वाले चार कदम के बारे में पहले ही सोचने वाले लोगों को सफलता जल्दी मिलती है. ये बात सही भी है इसलिए अपने फ्यूचर प्लान पर पहले से ही काम कर लें और बैकअप प्लान भी बनाएं ताकि आप को पता हो कि एक बार असफल होने पर वापसी का रास्ता कहां से हो कर गुजरेगा.
अपनी हैल्थ के लिए सजग होते हैं
अगर आप शरीर से और मन से फिट है तभी आप अपने रस्ते में आने वाली बाधाओं को पार कर के सफलता हासिल करेंगे. हर सफल व्यक्ति अपनी सेहत का पूरा धयान रखता है.
मेहनती होते हैं
मेहनत सफलता की सब से बड़ी कुंजी होती है और आलस दुश्मन. इसलिए सफल लोगों के पीछे कई साल की कड़ी मेहनत है जो उन्हें सफलता के दरवाजे तक ले कर जाती है इसलिए मेहनत करने में कोई कमी न छोड़ें.
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
भले ही आप की हार तय हो लेकिन कोशिश करने से हार भी कब जीत में बदल जाएगी कुछ कहा नहीं जा सकता.
कुछ लड़के-लड़कियां अकसर पैसों के लिए शादी करते हैं. उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन का होने वाले जीवनसाथी से मेंटल लेवल मैच करता भी या नहीं, उन के परिवार कैसे है वे इस पर धयान नहीं देते. लड़की संस्कारी है या नहीं. इस से कोई लेनादेना नहीं होता. अब लड़के वालों को लड़की बड़े घर की चाहिए ताकि दहेज मिल सके और लड़की वालों को लड़का अमीर चाहिए ताकि लड़की को घर का कोई काम न करना पड़े. वे अपनीअपनी लाइफस्टाइल अपग्रेड करने के लिए एकदूसरे का साथ चाहते हैं क्योंकि यही उन की जरुरत है.
पैसा देख कर हो रही हैं शादियां
एक जमाना था, अभी हाल ही में 1990 के आसपास जब भावनाओं का जोर था लोग अपनी भावनाओं के कारण अमीरगरीब सब तरह की लड़कियां लेने लगे थे लेकिन अब सब कमर्शियल हो गया है. लोग यह चाहते हैं कि मुझे बिना कमाई करे पैसे मिल जाएं. लड़का भी यही चाहता है और लड़कियां भी यही चाहती हैं. लड़कियों को लगता है लड़का अमीर है प्यार करें न करें पैसे वाला तो है. अब रिश्ते पैसों में तोले जा रहे हैं. जिस के पास पैसा है बड़ी गाड़ी है तो लड़की टिक जाती है और जिस दिन उस लड़के के पास पैसे खतम हो जाते हैं वो लड़की छोड़ के भाग जाती है. चाहे शादी हो चुकी हो या न हुई हो. यही समाज का सच है.
पहले प्यार पैसों का मोहताज नहीं था
पहले फर्स्ट नाइट पर पति अपनी पत्नी को जो भी उपहार देता था वह निजी होता था किसी को उस से कोई मतलब नहीं था फिर चाहे प्यार से दिया गुलाब का फूल हो या फिर गोल्ड की रिंग हो. लेकिन अब यह भी स्टेटस सिम्बल बन गया है. लड़की को अपनी सहेलियों और रिश्तेदारों को बताना होता है कि मुझे गिफ्ट में आई फोन मिला या डायमंड सेट मिला. यह अब एक स्टेटस सिम्बल बन गया है.
इसी तरह विवाह के बाद हनीमून पर जाना साथ में टाइम स्पेंड करने का मात्र एक बहाना था लेकिन अब यह भी स्टेटस सिम्बल हो गया है क्योंकि इस के पिक्स सोशल मीडिया पर शेयर किए जाते हैं. जो घूमने जितनी बड़ी इंटरनेशनल हौलिडे पर गया उतना ही ज्यादा उस महिला के पति ने उसे सर आंखों पर बैठाया हुआ है. अब सारा खेल पैसों का हो गया है जो ज्यादा पैसे वाला है वो ही प्यार करता है क्योंकि दुनिया और बीवी दिखावा देखती है भावनाए नहीं.
साल में 12 एनीवर्सरी मनाते हैं
पहले शादी की पहली वर्षगांठ का बहुत महत्त्व था. उस में बड़े बुजुर्गो का आशीर्वाद भी शामिल होता था. सब के लिए यह दिन खास होता था क्योंकि मन जाता था कि कपल हंसी खुशी अपनी शादी निभा रहे हैं लेकिन अब हर महीने ही शादी की फर्स्ट और सैकेंड एनीवर्सरी के नाम पर केक काटा जाता है और पिक्स सोशल मीडिया पर डाले जाते हैं.
अब पति अगर अपनी पत्नी के लिए जलेबी ले आए तो यह बात पत्नी को नहीं भाती, भले ही वह आप की मनपसंद चीज ही क्यों न हो. क्योंकि लड़की को केक काटते हुए फोटो सोशल मीडिया पर डालना है और जलेबी लो क्लास है. इसलिए वह अपने पति के द्वारा प्यार से लाए गए जलेबी को देख मुंह बना लेती है और केक का डिमांड करती है ताकि वह फोटो शेयर कर वाहवाही लूट सके.
खानदानी ज्वैलरी में भावनाएं थी
खानदानी जूलरी में भावनाएं थीं. लेकिन अब शादी से पहले ही लड़कियां उन्हें तुड़वा कर नए डिजाइन की ज्वैलरी बनवाने की डिमांड करने लगती है. ज्वैलरी पहले पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली एक विरासत थी जिसे सास की सास ने उन्हें दी और अब सास अपने खानदानी जेवर बहु को चढ़ाती है. ये परंपरा इसी तरह से चली आ रही थी. लेकिन अब बहू पहले ही कह देती है कि ये पुराना डिजाइन मुझे नहीं चाहिए, फिर उस के लिए नए गहने खरीदें जाते हैं तो फिर वह ज्वैलरी अब खानदानी विरासत नहीं सिर्फ ज्वैलरी बन कर रह जाती है जिसे सिर्फ फैशन के लिए पहना जाता है.
लड़के को कमाऊं लड़की चाहिए
पहले शादी के लिए अच्छा परिवार, संस्कार, गुणी अधिक चाहिए थी लेकिन अब इन सब में वह कोम्प्रोमाइज भले ही कर ले. लेकिन लड़की कमाने वाली हो ताकि लाइफस्टाइल अपग्रेड हो सकें.
पहले शादी के लिए एक अच्छा परिवार और अच्छे लड़की की तलाश होती थी जिस से गृहस्थी की गाड़ी सुचारु और आसानी से चल सके. लेकिन अब गृहस्थी और बच्चे भले ही नौकरों के भरोसे हो जाएं लेकिन बीवी तो कमाऊं ही चाहिए.
सोना और चांदी दोनों को निवेश के साथ-साथ गहनों के रूप में भी प्रयोग किया जाता है. शादी में महिलाओं को जो जेवर मिलते हैं उन को स्त्रीधन कहा जाता है. गहने इसलिए भी महिलाएं साथ रखती हैं कि आर्थिक जरूरत में उस का प्रयोग कर सकें. अब बदलते दौर में चांदी का भाव सोने के मुकाबले अनुपातिक रूप से बढ़ रहा है. इस की कई वजहें हैं.
पिछले 6 माह में चांदी के दामों में तेज उछाल आया है. 14 फरवरी को चांदी का भाव ठीक 74,000 रुपए प्रति किलो था. जुलाई के दूसरे सप्ताह मे लखनऊ सर्राफा एसोसिएशन के विनोद महेश्वरी के अनुसार 15 जुलाई को इस का भाव 94,500 रूपए प्रतिकिलो हो गया है. मंहगाई की इतनी लंबी उछाल सोने ने भी नहीं लगाई है. चांदी के दाम लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं. यह नए उच्चतम स्तर पर पहुंच रही है. चांदी का प्रयोग गहनों के साथ बड़े पैमाने पर इंडस्ट्री पर हो रहा है. सभी तरह के कंप्यूटर, फोन, औटोमोबाइल और इक्विपमैंट में चांदी का प्रयोग हो रहा है.
पिछले कुछ समय से चांदी के दाम लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं. यह नए उच्चतम स्तर 94,500 रुपए किलो पर पहुंच गई है. तेजी का यह मौजूदा दौर करीब 6 महीने पहले शुरू हुआ. 14 फरवरी को चांदी का भाव ठीक 74,000 रुपए प्रति किलो था. भारत में सोने और चांदी का प्रयोग सब से अधिक गहनों में होता था. महिलाएं गहनों का प्रयोग अधिक करती थी.
अब चांदी के गहनों पर सोने का कलर चढ़ा कर गहने भी तैयार होने लगे हैं. यह सोने जैसे दिखते हैं पर इन की कीमत सोने से कम होती है. चांदी में तेजी का एक कारण यह भी है.सोने का भाव बढ़ने से गहनों के शौकीनों ने चांदी का रुख किया है. इस में बड़ी संख्या नौजवानों की है. इस से चांदी की डिमांड बढ़ रही है और उस का असर कीमतों पर भी दिख रहा है. शादियों में भी इस की मांग बढ़ गई है. युवाओं के बीच चांदी से बने गहनों की डिमांड बढ़ी है. हाथ, गले और पैरों में पहने जाने वाली ज्वैलरी में चांदी का प्रयोग होने लगा है.
दूसरा कारण यह है कि दुनिया भर में राजनीतिक और आर्थिक उथलपुथल है. इस वजह से पिछले कुछ समय के दौरान सोने की कीमतें काफी तेजी से बढ़ी हैं. भारत समेत दुनिया भर के केंद्रीय बैंक भी गोल्ड रिजर्व बढ़ा रहे हैं. जिस से आने वाली मुश्किलों का मुकाबला किया जा सके. भारत में चांदी की डिमांड पूरी करने में हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड की अहम भूमिका है.
इलैक्ट्रौनिक्स इंडस्ट्री में चांदी का बढ़ता प्रयोग
सोने और चांदी का जिक्र भले ही एक साथ होता हो, लेकिन चांदी को हमेशा ही कमतर आंका जाता है. इन का इस्तेमाल साथ-साथ भी होता है. और इन का इस्तेमाल अलगअलग भी होता है. चांदी सोने के मुकाबले कम कीमती है. इस वजह से इस का दाम भी कम रहता है. सोने का गहनों और निवेश में ज्यादा इस्तेमाल होता है. चांदी का जेवरात से ज्यादा इलैक्ट्रौनिक्स इंडस्ट्री में प्रयोग होता है. जैसे इलैक्ट्रिक स्विच, सोलर पैनल और आरएफआईडी चिप्स बनाने में इस का सब से अधिक प्रयोग होता है. इस वजह से पिछले साल चांदी की ग्लोबल डिमांड में करीब 11 प्रतिशत का उछाल आया था.
चांदी में उछाल का एक बड़ा कारण इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में इस का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है. इस साल दुनियाभर में चांदी की डिमांड 1.2 अरब औंस तक पहुंचने का अनुमान है. चांदी की औद्योगिक डिमांड लगातार बढ़ रही है. इस का सोलर पैनल, इलैक्ट्रौनिक्स और पावर सैक्टर में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है.
सरकार लगातार सोलर एनर्जी पर फोकस कर रही है. इस से भी चांदी की डिमांड में भारी तेजी है, क्योंकि यह सोलर पैनल को बनाने में चांदी का प्रयोग होता है. चांदी का फोटोवोल्टिक्स (पीवी) के रूप में प्रयो दुनियाभर में बढ़ रहा है. यह तकनीक धूप को सीधे बिजली में कन्वर्ट करती है.
इस से जाहिर है कि चांदी की तेज डिमांड बनी रहेगी और उस की कीमतों में उछाल आएगा. बाजार की गतिविधियां बता रही है कि चांदी की कीमतों में उछाल का दौर बना रहेगा. ऐसे में अगर निवेश के हिसाब से चांदी की खरीददारी करना चाहते हैं तो यह एक अच्छा निवेश भी हो सकता है. चांदी का निवेश गहनों की जगह पर सिक्कों में करें. इस की प्योरिटी का ध्यान रखें. चांदी में मिलावट हो जाती है. ऐसे में प्योरिटी का सख्त जरूरत होती है.
अभी तक पत्नी के काला रंग से पति को शिकायत होती थी. मध्य प्रदेश के जबलपुर में पति के काला रंग से परेशान पत्नी ने अलग रहने का फैसला किया है.
समाज में एक कहावत बहुत प्रचलित है कि ‘घी का लड्डू टेढ़ा भला’ यानि लड़का कैसा भी हो अच्छा ही माना जाता है. खासकर घर परिवार शादी विवाह में ऐसे उदाहरण बहुत दिए जाते हैं. लड़का अगर काला है तो भी घर वाले परेशान नहीं होते हैं. वहीं जब लड़की काली हो तो उस की शादी की चिंता उस के पैदा होते ही होने लगती है. कई बार शादी टूटने का बड़ा कारण लड़की की रंगरूप होता है. अब हालात बदल रहे हैं. लड़कियों की संख्या तो कम हो ही रही है वह आत्मनिर्भर भी हो कर अपने फैसले खुद कर रही हैं. ऐसे में वह काले रंग के लड़के के साथ भी शादी कर के नहीं रहना चाहती.
यह बात और है कि कई जोड़े ऐसे भी हैं जो काले गोरे के रंग को छोड़ कर खुशीखुशी रह रहे हैं. कई गोरी पत्नियों को अपने काले रंग वाले पति में आकर्षण नजर आता है. वह उन के साथ खुश रहती हैं. मध्य प्रदेश के जबलपुर में रहने वाले रमेश कुमार नामक युवक ने पुलिस मे शिकायत दर्ज कराई कि पत्नी उस के काले रंग को ले कर ताने मारती है और अब उस ने अलग रहने का फैसला कर लिया है. वह उसे छोड़ कर चली गई है. रमेश की शिकायत पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने से पहले पत्नी के साथ परामर्श करना सही समझा है. उसे बुला कर मामला समझेगी.
यह मामला खुल कर सामने आ गया है. इसलिए उदाहरण के लिए इस को सामने रखा जा रहा है. समाज में कई पतिपत्नी ऐेसे हैं जिन के बीच रंग एक बड़ी परेशानी बन रही है. लड़के के तो तमाम मामले हैं जहां सांवली पत्नी से उस को शिकायत होती है. वह तलाक भी मांग लेता है. लड़की को बिना तलाक के छोड़ देता है. दूसरी पत्नी रख लेता है. बहुत सारे उदाहरण समाज में मौजूद हैं. पति के सांवले होने पर पत्नी उसे छोड़ दे ऐसे मामले भी अब आने लगे हैं.
लड़कियों की चाहत बढ़ रही हैं
लड़कियां पढ़ लिख कर आगे बढ़ रही है. नौकरी कर रही है. उन का भी अपना सोशल सर्किल हो रहा है. उन को भी अपनी चाहते पूरी करने का मन होता है. ऐसे में वह अपनी पंसद का लड़का ही चुनना चाहती है. आज के दौर में शादी के लिए लड़के और लड़की की खोज सोशल मीडिया पर बनी साइड्स पर होती है. जहां पर रूप, रंग, नौकरी, आदतें सबकुछ देखने समझने का प्रयास होता है. दूसरी चीजें तो छिपाई भी जा सकती है पर रंग और रूप छिपाया नहीं जा सकता है. कई बार ऐसा होता है कि बढ़ती उम्र का दबाव, अच्छी नौकरी और घर परिवार के दबाव में आकर लड़कियां समझौता कर लेती हैं.
जब शादी के बाद यह साथ चलती है. सोशल मीडिया पर साथसाथ फोटो आते हैं तो देखने के एकदम विपरीत होते हैं. ऐसे में थोड़ी दिक्कत आती है. समाज का एक बड़ा हिस्सा दिखावा पंसद करता है. उन के लिए लड़कालड़की का रंग भी दिखावे में आता है. शादी के लिए लड़कालड़का चुनाव करते समय उन के समान गुणों स्वभाव को देखना चाहिए. जहां तक हो सके समान सोच वाले का चुनाव ही हों. इस में रूपरंग को भी सामने रखना चाहिए. कहते है 19-20 का फर्क तो चल सकता है लेकिन 18 और 24 का फर्क हो तो साथसाथ चलना मुश्किल हो जाता है. शादी के लिए चुनाव करते समय इस का ख्याल रखें.
कई बार रंग में बहुत अधिक फर्क होने का प्रभाव बच्चों पर भी पड़ता है. एक बच्चा गोरा तो एक काला हो जाता है. आपस में उन के बीच भी परेशानी होती है. यह बात और है कि कैरियर और सफलता में रंग रूप का प्रभाव नहीं पड़ता है लेकिन देखने में फर्क पड़ता है और समाज उस को अलग नजर से देखता है. कानून भी इस को ले कर अलग नजरिया रखता है.
क्या कहती है अदालत
बेंगलुरु कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा कि अपने पति की त्वचा का रंग ‘काला’ होने के कारण उस का अपमान करना क्रूरता है और यह उस व्यक्ति को तलाक की मंजूरी दिए जाने की ठोस वजह है. उच्च न्यायालय ने 44 वर्षीय व्यक्ति को अपनी 41 वर्षीय पत्नी से तलाक दिए जाने की मंजूरी देते हुए कहा कि उपलब्ध साक्ष्यों की बारीकी से जांच करने पर निष्कर्ष निकलता है कि पत्नी काला रंग होने की वजह से अपने पति का अपमान करती थी और वह इसी वजह से पति को छोड़ कर चली गई थी.
उच्च न्यायायल ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ए) के तहत तलाक की याचिका मंजूर करते हुए कहा, ‘इस पहलू को छिपाने के लिए उस ने (पत्नी ने) पति के खिलाफ अवैध संबंधों के झूठे आरोप लगाए. ये तथ्य निश्चित तौर पर क्रूरता के समान हैं.’ बैंगलुरु के रहने वाले इस दंपति ने 2007 में शादी की थी और उन की एक बेटी भी है. पति ने 2012 में बैंगलुरु की एक पारिवारिक अदालत में तलाक की याचिका दायर की थी.
महिला ने भी भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए (विवाहित महिला से क्रूरता) के तहत अपने पति तथा ससुराल वालों के खिलाफ एक मामला दर्ज कराया था. उस ने घरेलू हिंसा कानून के तहत भी एक मामला दर्ज कराया और बच्ची को छोड़ कर अपने मातापिता के साथ रहने लगी. उस ने पारिवारिक अदालत में आरोपों से इनकार कर दिया और पति तथा ससुराल वालों पर उसे प्रताड़ित करने का आरोप लगाया. पारिवारिक अदालत ने 2017 में तलाक के लिए पति की याचिका खारिज कर दी थी, जिस के बाद उस ने उच्च न्यायालय का रुख किया था.
न्यायमूर्ति आलोक अराधे और न्यायमूर्ति अनंत रामनाथ हेगड़े की खंडपीठ ने कहा, ‘पति का कहना है कि पत्नी उस का काला रंग होने की वजह से उसे अपमानित करती थी. पति ने यह भी कहा कि वह बच्ची की खातिर इस अपमान को सहता था.’ उच्च न्यायालय ने कहा कि पति को ‘काला’ कहना क्रूरता के समान है. उस ने पारिवारिक अदालत के फैसले को रद्द करते हुए कहा, ‘पत्नी ने पति के पास लौटने की कोई कोशिश नहीं की और रिकौर्ड में उपलब्ध साक्ष्य यह साबित करते हैं कि उसे पति का रंग काला होने की वजह से इस शादी में कोई दिलचस्पी नहीं थी. इन दलीलों के संदर्भ में यह अनुरोध किया जाता है कि पारिवारिक अदालत विवाह भंग करने का आदेश दें.’
काला रंग होने से लड़की को व्यवहारिक दिक्कतें हो सकती हैं. इन बातों को शादी से पहले समझना चाहिए. जिस से कोर्ट और पुलिस तक मामले न पहुंचे. जिस तरह से लड़कियों की संख्या घट रही है और जन्मदर में गिरावट आ रही है ऐसे मसले आम होंगे. लड़कियां अपनी पसंद के लड़कों को खोजेंगी, ऐसे में केवल लड़का होने से काम नहीं चलने वाला. उसे भी अपने रूपरंग और स्मार्टनेस और कैरियर की तरफ ध्यान देना होगा. पत्नी ज्यादा सुदंर हो तो पति खुद भी कुंठा का शिकार होता रहता है. उसे भी साथ चलने में दिक्कत होती है. ऐसे में जरूरी है कि जोड़ा मेल का हो. बेमेल जोड़े में परेशानी ज्यादा होती है
दीवाली के बाद बजने वाले पटाखों की आवाजों से ही मैं जान गया कि ‘भगवान’ जाग गए हैं. यह आतिशबाजी उन के स्वागत के लिए की जा रही है. 4 माह की गहन निद्रा के बाद अंगड़ाई ले कर वे उठ गए हैं. अब हिंदुओं का इंतजार खत्म हुआ. देवताओं ने इस दौरान शादी करनेकरवाने पर लगाई गई पाबंदी हटा दी है. अब अटके हुए प्रेम प्रकरण या सगाइयां अपनी मंजिल पा लेंगे. पंडेपुरोहित, बैंडबाजे वाले, टैंट वाले और कैटरिंग वाले फिर से अपनेअपने मूल व्यापार में व्यस्त हो जाएंगे. अभी तक बेचारे पेट पालने के लिए चार माह से मन मार कर दूसरे काम कर रहे थे. भगवान ने उन्हें अपने असली काम करने का परवाना दे दिया है. भिड़ जाओ अपने पुश्तैनी धंधे में. चार माह का इंतजार कोई कम नहीं होता. अब कमाई करो जब तक कि हम फिर से सो नहीं जाते.
बस, सभी जुट जाते हैं अपनेअपने काम में. कहीं ऐसा न हो कि सोचनेसोचने में समय निकल जाए और भगवान फिर से सो जाएं. लड़केलड़कियों की जन्मपत्रिकाएं खंगाली जाने लगती हैं.उम्मीदवारों की जन्मराशि देख कर मुहूर्त निकाले जाने लगते हैं. लड़केलड़की में खोट को नजरअंदाज करने की नौबत आने लगती है. अगर इस बार चूक गए तो कहीं कुंआरे ही न रह जाएं. पंडितजी अपनी डायरी देखने लगते हैं कि कौन सी तारीख को वे उपलब्ध हैं और कितना समय दे सकते हैं. मैरिज हौल के लिए वरवधू के पिता भागदौड़ करने लगते हैं. रिश्तेदार एडवांस में छुट्टी की अर्जियां देने लगते हैं. कैटरिंग मैन्यू और मेहमानों की संख्या के हिसाब से सामान और पैकेज व डील्स बताने लगते हैं.
बैंड वाले बैंड के आकार को ले कर अपनी दर बताने लगते हैं. मेहमानों की सूची बनने लगती है. सवाल उठता है कि डीजे कितने डैसिबल का शोर बजाएगा और कौनकौन से डांस होंगे. मेहंदी रचाने वालों के हाथपैर जोड़ने की नौबत आ जाती है. मुसीबत तो तब होती है जब वर तो तय हो जाता है पर घोड़ा नहीं मिलता.
भगवान ने ढेरों इंसान तो बना दिए पर गिनती के घोड़े क्यों बनाए? बरात के आगेआगे कौनकौन नाचेगा या नाचेगी, इस की सूची बनने लगती है. गानों की भी सूची तैयार की जाने लगती है. इस बात पर वादविवाद होता है कि सड़क पर नाचतेनाचते कितनी देर का जाम लगाया जाए ताकि मंडप पर समय पर पहुंच सकें. वर मंडली को कौन सी शराब परोसी जाए, इस पर चर्चा होने लगती है. लेनदेन की शर्तों पर गुपचुप ‘हां’ ‘न’ होती हैं.
विवाह के निमंत्रणकार्ड छापने वाले भी पहले से कंपोज और टाइपसैट किए रटेरटाए वाक्य फिर से छापने लगते हैं, ‘भेज रहे हैं प्रियजन निमंत्रण तुम्हें बुलाने को. ओ मानस के हंस, तुम भूल न जाना आने को.’ और अंत में तुतलाते हुए बच्चों की मनुहार, ‘जलूल जलूल आना’. न तो निमंत्रणकार्डों का मैटर बदला और न ही विवाह की रीत. यानी सारे रुके हुए काम अब वर्तमान काल में होने लगते हैं.
रावण के भाई कुंभकरण के साल में
6 माह सोने का वर्णन तो सभी ने पढ़ा है, लेकिन मुझे विश्वास है कि देवताओं के
4 माह सोने का वर्णन किसी धर्मप्राण जीव ने भी कहीं नहीं पढ़ा होगा. सवाल यह है कि आखिर देवताओं को 4 माह तक ‘सुलाने’ का और्डर किस ने दिया होगा? शायद देवताओं ने खुद ही अपनी छुट्टी तय की हो और पंडों को बता दिया हो. पंडों ने अपने वारिसों को बता दिया हो और वारिस भले बदलते रहते हों लेकिन ‘भगवान’ का सोने का सीजन वही रहता है.
हो सकता है कुंभकरण को आधे साल सोता देख देवताओं के मन में भी प्रतिस्पर्धा की भावना जागी हो. सोचा होगा, वह राक्षस हो कर 6 माह सोता है तो हम दुनिया चलाने वाले हो कर 4 महीने क्यों नहीं सो सकते. हो सकता है कि उन्होंने कुंभकरण को पछाड़ने के लिए 8 माह तक सोने का टारगेट बनाया हो लेकिन मंदिरों में होने वाले भजन नामक शोर से परेशान हो कर कटौती कर दी हो. 4 माह ही सही, खर्राटे तो भर लें. आखिर इतनी बड़ी दुनिया चलाने वाले को भी आराम की जरूरत तो होती ही है.
आम आदमी सप्ताह में एक दिन छुट्टी रख सकता है तो उसे बनाने वाला उस की हैसियत के अनुसार साल में 4 महीने की छुट्टी नहीं ले सकता क्या? सूर्य भगवान और उन का कर्ज नियमित रूप से चुकाने वाला कर्जदार चंद्रमा भी छुट्टी मनाता है, लेकिन वे कभी किसी की शादी के आड़े नहीं आते. वे अपनी ड्यूटी ईमानदारी से निभाते हैं.इसीलिए उन के भक्त और भजन कम हैं. इन्हें छोड़ कर बाकी के सारे भगवान इन 4 माह के अलावा बीचबीच में झपकियां भी ले लेते हैं. मैं समझ जाता हूं कि अब शादियां किसी भी हालत में नहीं हो सकेंगी. चूंकि भगवानों का हर शादी में उपस्थित रहना जरूरी है और पहली निमंत्रणपत्रिका उन्हें ही देते हैं, इसलिए उन के जागने का इंतजार करो. सिर्फ पंडे ही उन्हें जागते हुए देखने की दिव्यदृष्टि रखते हैं. वे भगवान के नाम से फरमान निकालते हैं और धड़ाधड़ शादियां करवाने में भिड़ जाते हैं. मातापिता भी उन की राय मान कर अपनी बेटियों को जल्दीजल्दी रवाना करने लगते हैं.
हिंदुओं की मान्यता है कि उन के 33 कोटि (यानी श्रेणी, करोड़ नहीं) देवीदेवता हैं. इस हिसाब से तो एक माह में पौनेतीन देवीदेवता तो आराम से हो सकते हैं. शेष दुनिया चला सकते हैं. मेरा कहना है कि आपसी समझबूझ से काम लें तो वे बारहों महीने दुनिया चला सकते हैंऔर इंसान की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं. बस, टाइमटेबल बनाना है. शिवरात्रि को महादेव जागें तो रामनवी को राम, जन्माष्टमी को कृष्ण तो हनुमान जयंती को हनुमान जागते रहें. वैसे भी, अपने बर्थडे के दिन झांझमंजीरों के शोर में ये सो ही नहीं सकते. बाकी सब पैर पसार कर सोएं. लेकिन नहीं. ये भी सांसदों की तरह अडि़यल रवैया अपनाते हैं. किसी के साथ ऐडजस्ट नहीं करते. माखन चुराने वाला, लड्डू चुराने वाले के लिए अपनी नींद खराब नहीं करेगा. त्रिशूल वाला सुदर्शन चक्र वाले के लिए अपना शैड्यूल नहीं बिगाड़ना चाहता. शेर की सवारी करने वाली, कमल पर बैठने वाली के लिए छुट्टी पर नहीं जाना चाहती. सब गड़बड़ है. एक बार तय कर लिया कि बारीबारी से ड्यूटी नहीं देंगे तो नहीं ही देंगे. सोएंगे तो सभी एकसाथ. जागेंगे भी तो सभी एकसाथ. कोई क्या बिगाड़ लेगा? तो भैया नोट कर लो, दुनिया चलाने वाले सोते भी हैं. लेकिन यह भी नोट कर लो कि उन के सोने के साथ दुनिया नहीं सो जाती. उस का काम बदस्तूर चलता रहता है. स्कूलकालेज चालू रहते हैं. दफ्तरों में काम होता है, बच्चे पैदा होते हैं, व्यापार होता है, बसें, कार, रेलें चलती हैं, हत्या, बलात्कार, चोरी, डकैती, भ्रष्टाचार, दलबदल, तस्करी, धोखाधड़ी वगैरा भी आम दिनों की तरह होते रहते हैं.
इन चार महीनों में न तो पाप थकता है और न ही पुण्य सुस्ताता है. फिर शादी ने ऐसा क्या अपराध किया है जो भगवानों के जागने पर ही हो पाती है? और क्या इन दिनों मंदिरों पर ‘डौंट डिस्टर्ब’ की तख्ती लगी होती है? नहीं, वहां तो हमेशा जैसी ही भीड़ लगी रहती है. किसी खास तिथि को ऐसी भगदड़ मचती है कि कई लोग सीधे भगवान के पास पहुंच जाते हैं. इस दौरान पैदा हुए बच्चे को मंदिर में ले जाने की क्या तुक है? भगवान तो सो रहा है. वह आशीर्वाद कैसे देगा?
परीक्षा के दिनों में विद्यार्थी सिनेमाघरों में कम, मंदिरों में ज्यादा नजर आते हैं. आशीर्वाद किस से लें? भगवान तो खर्राटे मार रहे होते हैं. शायद इसीलिए सभी सफल नहीं हो पाते. मंदिर का पुजारी असफल विद्यार्थी को दिलासा देता है कि परीक्षा वालों ने देवताओं के सोने के दिनों में परीक्षा रखी, इसलिए उन का आशीर्वाद नहीं मिल पाया. वे शिक्षा प्रणाली बदलने के बजाय परीक्षाओं की तारीख बदलने का सुझाव देते हैं.
अजीब बात है. भगवान तो सो रहे होते हैं. लेकिन मंदिरों में चढ़ावा बदस्तूर आ रहा है. चांदी का सिंहासन, सोने का मुकुट, हीरे की अंगूठी और भी न जाने क्याक्या. भजनआरती नामक शोर भी जारी है. कमाल है जिस के हजारवें हिस्से में भी इंसान सो नहीं पाता, उस शोर में भगवान आराम से सो कैसे सकते हैं. नींद की कौन सी गोली खाते होंगे वे? अगर उन की नींद टूटती तो वे पुजारियों और भक्तों को डांटते, ‘कमबख्तो, सोने दो. हम तुम्हारे लिए काम करते हैं. बंद करो यह शोरशराबा. यह हमारे सोने का सीजन है. नहीं माने, तो जागने पर एकएक को देख लेंगे.’ लेकिन सभी के सभी सो रहे होते हैं.
अजीब बात तो यह है कि दूसरे धर्मों के देवता कभी नहीं सोते. मजाल है जो एक पल के लिए भी सो जाएं. कर्तव्यनिष्ठ भगवान हैं उन के. वे जानते हैं कि उन के धर्मावलंबी अक्लमंद हैं, अपने निर्णय खुद लेने में समर्थ हैं इसलिए, वे शादी करनेकरवाने का फरमान जारी करवाने के पचड़े में नहीं पड़ते. जब हमारे भगवानों के सोते हुए भी वही काम होते रहते हैं जो उन के जागते हुए होते हैं, तो फिर उन की नींद खुलने का इंतजार करते रहने में कोई समझदारी है क्या? नहीं न. तो फिर सोने दो उन्हें?
रविवार की सुबह 7 बजे के लगभग नोएडा का धनवानों का इलाका सेक्टर-15ए अभी सोया पड़ा था. वीआईपी इलाका होने के कारण यहां सवेरा यों भी जरा देर से उतरता है. चहलपहल थी तो सिर्फ सेक्टर-2 के पीछे के इलाके में. सवेरे 4 बजे से ही
यहां मछलियों का बाजार लग जाता था. इसी बाजार के पास फाइन चिकन एंड मीट शौप है, जहां सवेरे 4 बजे से ही बकरों को काटने और उन्हें टांगने का काम शुरू हो जाता था.
सामने स्थित डीटीसी बस डिपो से बसें बाहर निकलने लगी थीं. डिपो के एक ओर नया बास गांव है, जिस में स्थानीय लोगों के मकान हैं. डिपो के सामने पुलिस चौकी है, जिस के बाहर
2-3 सिपाही बेंच पर बैठ कर गप्पें मार रहे थे और चौकी के अंदर बैठे सबइंसपेक्टर आशीष शर्मा झपकियां ले रहे थे.
गांव के पीछे के मयूरकुंज की अलकनंदा इमारत की पांचवी मंजिल का एक फ्लैट सेक्टर-62 की एक सौफ्टवेयर कंपनी में काम करने वाले धनंजय विश्वास का था. फ्लैट में धनंजय अपनी पत्नी रोहिणी के साथ रहते थे. रोहिणी दिल्ली में पंजाब नेशनल बैंक में प्रोबेशनरी औफिसर थी. वह दिल्ली की रहने वाली थी. धनंजय के औफिस का समय सवेरे 9 बजे से शाम 6 बजे तक था. वह औफिस अपनी कार से जाता था. रोहिणी शाम साढ़े 6 बजे तक घर लौट आती थी.
पति पत्नी शाम का खाना साथ ही खाया करते थे. हां, छुट्टी के दिनों दोनों मिल कर हसंतेखेलते खाना बनाते थे. धनंजय हर रविवार को सेक्टर-2 में लगने वाली मछली बाजार से मछलियां और फाइन चिकन एंड मीट शौप की दुकान से मीट लाता था. पहली अप्रैल की सुबह 6 बजे फ्लैट की घंटी बजने पर दूध देने वाले गनपत से दूध ले कर धनंजय फटाफट तैयार हो कर मीट लेने के लिए निकल गया. रोहिणी को वह सोती छोड़ गया था. वह कार ले कर निकलने लगा तो चौकीदार ने हंसते हुए पूछा, ‘‘साहब, आज रविवार है न, मीट लेने जा रहे हैं?’’
धनंजय ने हंस कर कार आगे बढ़ा दी थी.
फाइन चिकन एंड मीट शौप पर आ कर उस ने 2 किलोग्राम मीट और एक किलोग्राम कीमा लिया. इस के बाद उस ने रास्ते में मछली और नाश्ते के लिए अंडे, ब्रेड, मक्खन और 4 पैकेट सिगरेट लिए. लगभग साढ़े 7 बजे वह फ्लैट पर लौट आया. ऊपर पहुंच कर उस ने ‘लैच की’ से दरवाजा खोला. दरवाजे के अंदर अखबार पड़ा था, जिसे नरेश पेपर वाला दरवाजे के नीचे से अंदर सरका गया था. अखबार उठाते हुए उस ने रोहिणी को आवाज लगाई, ‘‘उठो भई, मैं तो बाजार से लौट भी आया.’’
उस ने डाइनिंग टेबल पर सारा सामान रख कर 2 बड़ी प्लेटें उठाईं. एक में उस ने गोश्त और दूसरे में मछली निकाली. सारा सामान डाइनिंग टेबल पर रख कर वह बैडरूम में घुसा तो उस की चीख निकल गई, ‘‘रोहिणी?’’
धनंजय की सुंदर पत्नी रोहिणी रक्त से सराबोर बैड पर मरी पड़ी थी. उस के गले, सीने और पेट से उस वक्त भी खून रिस रहा था, जिस से सफेद बैडशीट लाल हो गई थी. कुछ क्षणों बाद धनंजय रोहिणी का नाम ले कर चीखता हुआ बाहर की ओर भागा. उस के अड़ोसपड़ोस में 3 फ्लैट थे. दाईं ओर के 2 फ्लैटों में सक्सेना और मिश्रा तथा बाईं ओर के फ्लैट में रावत रहते थे. पागलों की सी अवस्था में धनंजय ने सक्सेना के फ्लैट की घंटी पर हाथ रखा तो हटाया ही नहीं. कुछ क्षणों बाद तीनों पड़ोसी बाहर निकले. वे धनंजय की हालत देख कर दंग रह गए. उस के कंधे पर हाथ रख कर सक्सेना ने पूछा, ‘‘क्या हुआ विश्वास?’’
सक्सेना रिटायर्ड कर्नल थे. उन्होंने ही नहीं, मिश्रा और रावत ने भी किसी अनहोनी का अंदाजा लगा लिया था. धनंजय ने हकलाते हुए कहा, ‘‘रो…हि…णी.’’
सक्सेना, उन का बेटा एवं बहू, मिश्रा और रावत उस के फ्लैट के अंदर गए. बैडरूम का हृदयविदारक दृश्य देख कर सक्सेना की बहू डर के मारे चीख पड़ी. अपने आप को संभालते हुए सक्सेना ने कोतवाली पुलिस को फोन कर घटना की सूचना दी. कोतवाली में उस समय ड्यूटी पर सबइंसपेक्टर दयाशंकर थे.
दयाशंकर ने मामला दर्ज कर के मामले की सूचना अधिकारियों को दी और खुद 2 सिपाही ले कर अलकनंदा पहुंच गए. तब तक आशीष शर्मा भी 2 सिपाहियों के साथ वहां पहुंच गए थे. लोगों के बीच से जगह बनाते हुए पुलिस सीधे पांचवीं मंजिल पर पहुंची. पुलिस के पहुंचते ही धनंजय उठ कर खड़ा हो गया. थोड़ी ही देर में फोरैंसिक टीम के सदस्य भी आ पहुंचे. इंसपेक्टर प्रकाश राय भी आ पहुंचे थे.
प्रकाश राय ने सीधे ऊपर न जा कर इमारत को गौर से देखना शुरू किया. इमारत में ‘ए’ और ‘बी’ 2 विंग थे. दोनों विंग के लिए अलगअलग सीढि़यां थीं. धनंजय ‘ए’ विंग में रहता था. इमारत के गेट पर ही वाचमैन के लिए एक छोटी सी केबिन थी, जिस में से आनेजाने वाला हर व्यक्ति उसे दिखाई देता था. इमारत के चारों ओर घूमते हुए पीछे एक जगह रुक कर प्रकाश राय ने सिक्योरिटी इंचार्ज खन्ना से पूछा, ‘‘ये कमरे किस के हैं?’’
‘‘सफाई कर्मचारियों और वाचमैन के .’’
‘‘कितने वाचमैन हैं?’’
‘‘2 हैं. इन की ड्यूटी 2 शिफ्टों में होती है. सुबह 8 बजे से रात 8 बजे और रात 8 बजे से सवेरे 8 बजे तक.’’
‘‘दोनों के नाम क्या हैं और ये रहते कहां है?’’
‘‘कल नाइट शिफ्ट पर नारायण था. वह सेक्टर-10 में रहता है. मौर्निंग शिफ्ट में जो गार्ड अभी पौने 8 बजे आया है, उस का नाम भास्कर है, वह खोड़ा में रहता है.’’
‘‘अच्छा, यहां स्वीपर कितने हैं?’’
‘‘एक ही है साहब, रणधीर और उस की पत्नी देविका. ये दोनों अपने दोनों बच्चों के साथ यहीं रहते हैं. बाहर का काम रणधीर और टायलेट वगैरह साफ करने का काम देविका करती है.’’
खन्ना से बात करतेकरते प्रकाश राय इमारत के गेट पर पहुंचे. तभी एसएसपी, एसपी और सीओ भी आ गए. इन्हीं अधिकारियों के साथ डौग स्क्वायड की टीम भी आई थी. ऊपर जांच चल रही थी. प्रकाश राय एक सिपाही के साथ नीचे रुक गए, बाकी सभी अधिकारी ऊपर चले गए. प्रकाश राय चौकीदार नारायण, जो रात की ड्यूटी पर था, उसी के रहते हत्या हुई थी. उस से पूछताछ करने लगे, पर उस से प्रकाश राय के हाथ कोई सूत्र नहीं लगा. उस ने धनंजय को मीट लेने जाते और लौटते देखा था बस.
प्रकाश राय के ऊपर पहुंचते ही दयाशंकर ने धनंजय से उन का परिचय कराया. धनंजय के कंधे पर हाथ रख कर सहानुभूति जताते हुए प्रकाश राय ने कहा, ‘‘धनंजय, तुम्हारे साथ जो हुआ, उस का मुझे बेहद अफसोस है. मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि अगर तुम्हारा सहयोग मिला तो मैं खूनी को कानून के शिकंजे में जकड़ कर रहूंगा.’’
प्रकाश राय ने खून से लथपथ रोहिणी की लाश देखी. कमरे का निरीक्षण करते. वह सिर्फ एक ही बात सोच रहे थे कि हत्यारा मुख्य द्वार से आया था या दरवाजे से लग क र जो पैसेज है उस में से किचन पार कर के आया था? पैसेज की जांच के लिए वह किचन के दरवाजे पर आए तो किचन टेबल पर ढेर सारा मीट और मछलियां देख कर चौंके. खाने वाले सिर्फ 2 और सामान इतना. प्रकाश राय बैडरूम में लौट आए. एसआई दयाशंकर और आशीष शर्मा अलमारी को सील कर रहे थे. आश्चर्य की बात यह थी कि अलमारी का लौकर खुला था. उस में चाबियां लटक रही थीं. अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था, जो इस बात का प्रमाण था कि हत्यारे ने सिर्फ लौकर का माल साफ किया था.
बैडरूम में दूसरी अलमारी भी थी. उसे हाथ नहीं लगाया गया था. दयाशंकर ने प्रकाश राय की ओर प्रश्नभरी नजरों से देखते हुए धनंजय से कहा, ‘‘मिस्टर विश्वास, आप जरा यह अलमारी खोलने की मेहरबानी करेंगे?’’
धनंजय ने प्रकाश राय को दयाशंकर की ओर देखते हुए पूछा, ‘‘मैं इन चाबियों को हाथ लगा सकता हूं?’’
फिंगरप्रिंट्स एक्सपर्ट ने गर्दन हिलाते हुए अनुमति दे दी. धनंजय ने पहली अलमारी से चाबी निकाल कर दूसरी अलमारी खोली. प्रकाश राय ने गौर से देखा, अलमारी का सारा सामान ज्यों का त्यों था. पहली अलमारी के लौकर से चोरी गए सामान के बारे में पूछा, ‘‘तुम्हारे अंदाज से कितना सामान चोरी गया होगा?’’
‘‘रोहिणी के जेवरात ही लगभग 30-40 लाख रुपए के थे. 40-42 हजार नकदी भी थी.’’
‘‘इतनी नकदी तुम घर में रखते हो?’’
‘‘नहीं साहब, कल शनिवार था, रोहिणी ने 40 हजार रुपए बैंक से निकाले थे. बैंक में हम दोनों का जौइंट एकाउंट है. कल सवेरे यह रकम मैं एक टूरिस्ट कंपनी में जमा कराने वाला था.’’
‘‘कारण?’’
‘‘अगले महीने मैं और रोहिणी घूमने जाने वाले थे.’’ कहते हुए धनंजय ने प्रकाश राय को चेकबुक थमा दी. उन्होंने चेकबुक देखा. वह सही कह रहा था. आशीष शर्मा को चेकबुक देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘आशीष, इस चेकबुक को भी कब्जे में ले लो और ‘एवन ट्रैवेल्स’ के एजेंट का स्टेटमेंट भी ले लो. रकम बरामद होने पर प्रमाण के रूप में यह सब काम आएगा.’’
प्रकाश राय किचन में आए. एसआई दयाशंकर और आशीष शर्मा किचन का निरीक्षण कर रहे थे. प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘धनंजय साहब, बुरा मत मानिएगा. मैं एक बात जानना चाहता हूं. तुम और रोहिणी सिर्फ 2 लोग हो, इस के बावजूद इतना सारा गोश्त और मछली?’’
‘‘साहब, आज मेरे घर पार्टी थी. मेरे औफिस के 2 अधिकारी आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी बीवियों के साथ खाना खाने आने वाले थे. बारीबारी से हम तीनों एकदूसरे के घर अपनी पत्नियों सहित जमा होते हैं और खातेपीते हैं. इस रविवार को मेरे यहां इकट्ठा होना था.’’
‘‘तुम हमेशा फाइन चिकन एंड मीट शौप से ही मीट लाते हो?’’
‘‘जी सर.’’
थोड़ी देर में आशीष तनेजा और देवेश तिवारी अपनीअपनी पत्नियों के साथ धनंजय के घर आ पहुंचे. रोहिणी की हत्या के बारे में सुन कर वे कांप उठे. सक्सेना उन्हें अपने फ्लैट में ले गए. सवेरे 9 बजे धनंजय के मातापिता भी अलकनंदा आ पहुंचे थे.
अधिकारियों ने आपस में सलाहमशविरा किया और अन्य सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. इस के बाद एसएसपी और एसपी तो चले गए, लेकिन सीओ और इंसपेक्टर प्रकाश राय सहयोगियों के साथ कोतवाली आ गए. सभी चाय पीतेपीते इसी मर्डर केस के बारे में विचारविमर्श करने लगे.
पोस्टमार्टम के बाद लाश धनंजय और उस के घर वालों को सौंप दी गई थी. अंतिम संस्कार में प्रकाश राय तो फोर्स के साथ गए ही थे, अपने कुछ लोगों को भी ले गए थे, जो अंतिम संस्कार में आए लोगों की बातें सुन रहे थे.
विद्युत शवदाहगृह में 2 व्यक्तियों की बातचीत सुन कर आशीष तनेजा के कान खड़े हो गए. एक आदमी कह रहा था, ‘‘कमाल की बात है. आनंदी दिखाई नहीं दी?’’
‘‘सचमुच हैरानी की बात है भई, वह तो रोहिणी की बहुत पक्की सहेली थी. लगता है, उसे किसी ने खबर नहीं दी. रोहिणी के पास तो उस का फोन नंबर भी था.’’
‘‘आनंदी दिखाई देती तो मिस्टर आनंद के भी दर्शन हो जाते.’’
‘‘शनिवार को बैंक में आनंदी का फोन भी आया था?’’
आनंदी को ले कर कुछ ऐसी ही बातें देवेश तिवारी ने भी सुनीं. उधर मेहता ने जो कुछ सुना, वह इस प्रकार था—
‘‘विवाह आगरा में था, इसीलिए दोनों आगरा गए थे.’’
‘‘आगरा तो वे हमेशा आतेजाते रहते थे.’’
‘‘वैसे विवाह बड़ी धूमधाम से हुआ था.’’
ऐसा ही कुछ नागर ने भी सुना था. इन लोगों ने अपने कानों सुनी बातें फोन पर प्रकाश राय को बता दीं.
यह पता नहीं चल रहा था कि आगरा में किस का विवाह था. प्रकाश राय के लिए यह जानना जरूरी भी नहीं था. एक विचार जो जरूर उन्हें सता रहा था, वह यह कि रोहिणी की पक्की सहेली होने के बावजूद आनंदी उस के अंतिम दर्शन करने भी नहीं आई थी. और तो और आनंदी का पति भी दाहसंस्कार में शामिल नहीं हुआ था. इन दोनों का न होना लोगों को हैरान क्यों कर रहा था? अब इस आनंदी को कहां ढूंढ़ा जाए?
प्रकाश राय स्वयं आशीष शर्मा को ले कर चल पड़े. रास्ते में उन्होंने उसे आनंदी के बारे में जो कुछ सुना था, बता दिया. रोहिणी के बैंक के मैनेजर रोहित बिष्ट से मिल कर प्रकाश राय ने अपना परिचय दिया और वहां आने का कारण बताते हुए कहा, ‘‘जो कुछ हुआ, बहुत बुरा हुआ. हमें तो दुख इस बात का है कि हत्यारे का हमें कोई सुराग नहीं मिल रहा है.’’
‘‘हम तो आसमान से गिर पड़े. सवेरे 10 बजे आते ही फोन पर रोहिणी की हत्या की खबर मिली.’’
‘‘तुम्हें किस ने फोन किया था?’’
‘‘सक्सेना नाम के किसी व्यक्ति ने. पर एकाएक हमें विश्वास ही नहीं हुआ. हम ने मिसेज विश्वास के घर फोन किया. तब पता चला कि रोहिणी वाकई अब इस दुनिया में नहीं रही. हम अलकनंदा गए थे. मैं दाहसंस्कार में जा नहीं पाया. हां, मेरे कुछ साथी जरूर गए थे.’’
‘‘आप जरा बुलाएंगे उन्हें?’’
कुछ क्षणों बाद ही 5-6 कर्मचारी मैनेजर के कमरे में आ गए. उन्होंने प्रकाश राय से उन का परिचय कराया. बातचीत के दौरान प्रकाश राय ने वहां उपस्थित हैडकैशियर सोलंकी से पूछा, ‘‘शनिवार को मिसेज विश्वास ने कुछ रुपए निकाले थे क्या?’’
‘‘हां, 40 हजार…’’
‘‘खाता किस के नाम था?’’
‘‘मिस्टर और मिमेज विश्वास का जौइंट एकाउंट है.’’
‘‘आप ने मिसेज विश्वास को जो रकम दी, वह किस रूप में थी?’’
‘‘5 सौ के नए कोरे नोटों के रूप में दी थी. उन नोटों के नंबर भी मेरे पास हैं.’’
प्रकाश राय ने आशीष शर्मा से नोटों के नंबर लेने और उस चेक को कब्जे में लेने को कहा.
कुछ क्षण रुक कर उन्होंने अपना अंदाज बदलते हुए कहा, ‘‘बिष्ट साहब, विश्वास के यहां हमें बारबार ‘बैंक, आनंदी, कल फोन किया था’- ऐसा सुनाई पड़ रहा था. आप के यहां कोई आनंदी काम..?’’
‘‘नहीं,’’ वहां मौजूद एक अधिकारी ने कहा, ‘‘वह आनंदी गौड़ है. रोहिणी की फास्टफ्रैंड. वह यहां काम नहीं करती.’’
‘‘अच्छा, यह बात है. बारबार आनंदी का नाम सुनने पर मुझे लगा कि वह यहीं काम करती होगी. आप को मालूम है, यह आनंदी कहां रहती है?’’
‘‘निश्चित रूप से तो मालूम नहीं, पर वह दिल्ली में कहीं रहती है. 2-3 बार वह बैंक भी आई थी. शनिवार को उस का फोन भी आया था. शायद एक, डेढ़ महीना पहले ही उन की जानपहचान हुई थी. मिसेज विश्वास ने ही मुझे बताया था?’’
‘‘यहां किसी ने मिसेज आनंदी को रोहिणी की हत्या के बारे में बताया तो नहीं है? अगर नहीं तो अब कोई नहीं बताएगा. क्या किसी के पास उस का नंबर है? अगर नहीं है तो रोहिणी के काल डिटेल्स से तलाशना पड़ेगा.’’
मैनेजर ने बैंक की औपरेटर से इंटरकौम पर बात की तो प्रकाश राय को आनंदी का फोन नंबर मिल गया. इस के बाद उन्होंने उस नंबर से आनंदी के घर का पता मालूम कर लिया.
‘‘पता कहां का है?’’ मैनेजर से पूछे बिना नहीं रहा गया.
‘‘साउथ एक्स का. अच्छा मिसेज गौड़ ने किसलिए फोन किया था?’’
‘‘औपरेटर ने बताया कि किसी वजह से मोबाइल पर फोन नहीं मिला तो मिसेज गौड़ ने लैंडलाइन पर फोन किया था. वह रविवार को मिसेज विश्वास को शौपिंग के लिए साथ ले जाना चाहती थीं. पर रोहिणी ने कहा था कि उस के यहां कुछ मेहमान खाना खाने आ रहे हैं, इसलिए वह नहीं आ सकेगी.’’
इतने में ही आशीष शर्मा और मिश्रा वहां आ पहुंचे. आशीष अपना काम पूरा कर चुके थे. प्रकाश राय ने रोहिणी का बियरर चेक ले कर उसे देखा और बडे़ ही सहज ढंग से पूछा, ‘‘मिस्टर बिष्ट, आप के बैंक में सेफ डिपौजिट वाल्ट की सुविधा है?’’
‘‘हां, है. आप को कुछ…?’’
‘‘नहीं…नहीं, मैं ने यों ही पूछा. अब हम चलते हैं.’’
प्रकाश राय और आशीष शर्मा बैंक से निकल कर साउथ एक्स में जहां आनंदी रहती थी, वहां पहुंचे. प्रकाश राय ने ऊपर पहुंच कर एक फ्लैट के दरवाजे की घंटी बजाई. कुछ क्षणों बाद दरवाजा खुला. प्रकाश राय को समझते देर नहीं लगी कि उन के सामने आनंदी और उस के पति आनंद गौड़ खड़े हैं और दोनों बाहर जाने की तैयारी में हैं. मिस्टर गौड़ ने आश्चर्य से प्रकाश राय को देखा. प्रकाश राय ने शांत भाव से कहा, ‘‘मुझे आनंद गौड़ से मिलना है.’’
आनंद ने आनंदी को और आनंदी ने आनंद को देखा. 2 अपरिचितों को देख कर वे हड़बड़ा गए थे.
‘‘मैं ही आनंद गौड़ हूं, आप…?’’
‘‘हम दोनों नोएडा पुलिस से हैं. एक जरूरी काम से आप के पास आए हैं. घबराने की कोई बात नहीं है. मुझे आप से थोड़ी जानकारी चाहिए.’’
‘‘आइए, अंदर आइए.’’
प्रकाश राय और राजेंद्र सिंह ने घर में प्रवेश किया. ड्राइंगरूम में बैठते हुए प्रकाश राय ने कहा, ‘‘मिस्टर आनंद, जिन लोगों का पुलिस से कभी सामना नहीं होता, उन का आप की तरह घबरा जाना स्वाभाविक है. मैं आप से एक बार फिर कहता हूं, आप घबराइए मत. बस, आप मेरी मदद कीजिए.’’
बातचीत के दौरान आनंद से प्रकाश राय को मालूम हुआ कि आनंद के परिवार में मातापिता, भाईबहन और पत्नी, सभी थे. 2 साल पहले आनंद और आनंदी का विवाह हुआ था. करोलबाग में आनंद के पिता की करोलबाग शौपिंग सेंटर नामक एक शानदार दुकान थी . टीवी, डीवीडी प्लेयर, फ्रिज, पंखा आदि कीमती सामानों की यह दुकान काफी प्रसिद्ध थी. मंगलवार को दुकान बंद रहती थी. इसीलिए मिस्टर आनंद घर पर मिल गए थे. पतिपत्नी अपने किसी रिश्तेदार के यहां पूजा में जा रहे थे कि वे वहां पहुंच गए थे. आनंद ने अपने निजी जीवन के बारे में सब कुछ बता दिया तो आनंदी ने प्रकाश राय से कहा, ‘‘अब तो बताइए कि आप हमारे घर कौन सी जानकारी हासिल करने आए हैं?’’
‘‘मिसेज आनंदी, आप यह बताइए कि आप मिसेज रोहिणी विश्वास को जानती हैं?’’
प्रकाश राय के मुंह से रोहिणी का नाम सुन कर आनंद और आनंदी भौचक्के रह गए.
‘‘हां, वह मेरी सहेली है. क्यों, क्या हुआ उसे?’’
‘‘आप की और रोहिणी की मुलाकात कब और कहां हुई थी?’’
‘‘हमारी जानपहचान हुए लगभग एक महीना हुआ होगा. फरवरी के अंतिम सप्ताह में हम दोनों घूमने आगरा गए थे. आगरा से दिल्ली आते समय शताब्दी एक्सप्रेस में हमारी मुलाकात हुई थी.’’
‘‘लेकिन जानपहचान कैसे हुई?’’
‘‘हम आगरा स्टेशन से गाड़ी में बैठे थे. रोहिणी और उस के पति भी वहीं से गाड़ी में बैठे थे. उन की सीट हमारे सामने थी. बांतचीत के दौरान हमारी जानपहचान हुई. हम दोनों के पति गाड़ी चलते ही सो गए थे. हम एकदूसरे से बातें करने लगी थीं. फिर हम बचपन की सहेलियों की तरह घुलमिल गईं.’’
‘‘सारे रास्ते तुम दोनों के पति सोते ही रहे?’’
‘‘अरे नहीं, दोनों जाग गए थे. फिर हम ने एकदूसरे का परिचय कराया. रोहिणी को गाजियाबाद उतरना था, हमें नई दिल्ली. उतरने से पहले हम दोनों ने एकदूसरे को अपनेअपने घर का पता और फोन तथा मोबाइल नंबर दे दिए थे.’’
‘‘तुम अपने पति के साथ रोहिणी के घर जाती थी?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘रोहिणी के पति तुम्हारे घर आया करते थे?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘इस का कारण?’’ प्रकाश राय ने आनंद की ओर देखते हुए पूछा.
‘‘कारण…?’’ आनंद गड़बड़ा गया, ‘‘एक तो दुकान के कारण मुझे समय नहीं मिलता था, दूसरे न जाने क्यों मुझे मिस्टर विश्वास से मिलने की इच्छा नहीं होती थी.’’
‘‘रोहिणी से आखिरी बार तुम कब मिली थीं?’’ प्रकाश राय ने आनंदी से पूछा.
‘‘पिछले हफ्ते मैं रोहिणी के बैंक गई थी.’’
‘‘अच्छा रोहिणी को तुम ने आखिरी बार फोन कब किया था और क्यों?’’
‘‘शनिवार को. लाजपतनगर में शौपिंग के लिए मैं ने उसे बुलाया था. पर उस ने मुझे बताया कि रविवार को उस के यहां कुछ लोग खाने पर आने वाले थे.’’
अब तक आनंद दंपति ने जो कुछ बताया था, वह सब सही था. लेकिन ॐन के एक प्रश्न का उत्तर नहीं मिल रहा था. इतनी पूछताछ के बाद बेचैन हुए आनंद ने प्रकाश राय से पूछा, ‘‘आप रोहिणी के बारे में इतनी पूछताछ क्यों कर रहे हैं?’’
गंभीर स्वर में प्रकाश राय ने कहा, ‘‘लोग हम से सत्य को छिपाते हैं, लेकिन हमारा काम ही है लोगों को सच बताना. परसों सवेरे 6 से 7 बजे के बीच किसी ने छुरा घोंप कर रोहिणी की हत्या कर दी है.’’
‘‘नहीं..,’’ आनंदी चीख पड़ी. लगभग 10 मिनट तक आनंदी हिचकियां लेले कर रोती रही. उस के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. आनंदी के शांत होने पर प्रकाश राय ने पूरी घटना सुनाई और अफसोस जाहिर करते हुए कहा, ‘‘अभी तक हमें कोई भी सूत्र नहीं मिला है. हमारी जांच जारी है, इसलिए रोहिणी के सभी परिचितों से मिल कर हम पूछताछ कर रहे हैं. कल उस का अंतिम संस्कार भी हो गया है.’’
‘‘लेकिन सर, किसी ने हमें इस घटना की सूचना क्यों नहीं दी?’’ आनंद ने पूछा.
‘‘मैं भी यही सोच रहा हूं मिस्टर आनंद, तुम्हारी पत्नी और रोहिणी में बहुत अच्छी मित्रता थी. फिर भी धनंजय ने तुम्हें खबर क्यों नहीं दी, जबकि उस ने कर्नल सक्सेना को तमाम लोगों के फोन नंबर दे कर इस घटना की खबर देने को कहा था. है न आश्चर्य की बात?’’
‘‘मैं क्या कह सकता हूं?’’
‘‘मैं भी कुछ नहीं कह सकता मिस्टर आनंद. कारण मैं धनंजय से पूछ नहीं सकता. पूछने से लाभ भी नहीं है, क्योंकि धनंजय कह देगा, मैं तो गम का मारा था, मुझे यह होश ही कहां था? अच्छा आनंदी, मैं तुम से एक सवाल का उत्तर चाहता हूं. रोहिणी ने कभी अपने पति के बारे में कोई ऐसीवैसी बात या शिकायत की थी तुम से?’’
‘‘नहीं, कभी नहीं. वह तो अपने वैवाहिक जीवन में बहुत खुश थी.’’
प्रकाश राय का प्रश्न और आनंदी का उत्तर सुन कर आनंद ने जरा घबराते हुए पूछा, ‘‘आप धनंजय पर ही तो शक नहीं कर रहे हैं?’’
‘‘नहीं, उस पर मैं शक कैसे कर सकता हूं, अच्छा, अब हम चलते हैं. जरूरत पड़ने पर मैं फिर मिलूंगा.’’
मंगलवार, 5 मई. रोहिणी कांड की गुत्थी ज्यों की त्यों बरकरार थी. प्रकाश राय को कई लोगों पर शक था, पर प्रमाण नही थे. सिर्फ शक के आधार पर किसी को पकड़ कर बंद नहीं किया ज सकता. दोपहर बाद प्रकाश राय के औफिस पहुंचने से पहले ही उन की मेज पर फिंगरप्रिंट्स ब्यूरो की रिपोर्ट रखी थी. रिपोर्ट देखतेदेखते उन के मुंह से निकला, ‘‘अरे यह…तो.’’ घंटी बजा कर इन्होंने आशीष शर्मा को बुलाया.
‘‘आशीष शर्मा, रोहिणी मर्डर केस का अपराधी नजर आ गया है.’’ कह कर प्रकाश राय ने उन्हें एक नहीं, अनेक हिदायतें दीं. आशीष शर्मा और उन के स्टाफ को महत्पूर्ण जिम्मेदारी सौंप कर योजनाबद्ध तरीके से समझा कर बोले, ‘‘जांच को अब नया मोड़ मिल गया है. भाग्य ने साथ दिया तो 2-3 दिनों में ही अपराधी पूरे सबूत सहित अपने शिकंजे में होगा. समझ लो, इस केस की गुत्थी सुलझ गई है. बाकी काम तुम देखो. मैं अब जरा दूसरे केस देखता हूं.’’
उत्साहित हो कर आशीष शर्मा निकल पड़े. 7 मई की सुबह 9 बजे दयाशंकर अपने स्टाफ के साथ औफिस पहुंचे. पिछली रात प्रकाश राय के निर्देश के अनुसार आशीष शर्मा पूरी तरह मुस्तैद थे. थोड़ी देर बाद प्रकाश राय के गाड़ी में बैठते ही गाड़ी सेक्टर-15 की ओर चल पड़ी.
करीब साढ़े 9 बजे प्रकाश राय और आशीष शर्मा अलकनंदा स्थित धनंजय के घर पहुंचे. प्रकाश राय को देख कर धनंजय जरा अचरज में पड़ गया. उस के पिता भी हौल में ही बैठे थे. उस की मां और बहन अंदर कुछ काम में व्यस्त थीं. ज्यादा समय गंवाए बगैर प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘मि. विश्वास, तुम जरा मेरे साथ बाहर चलो. रोहिणी के केस में हमें कुछ महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिली हैं. हम तुम्हें दूर से ही एक व्यक्ति को दिखाएंगे. तुम ने अगर उसे पहचान लिया तो समझो इस हत्या में उस का हाथ जरूर है. उस के पास से तुम्हारी संपत्ति भी मिल जाएगी. अब उसे पहचानने के लिए हमे तुम्हारी मदद की जरूरत है.’’
‘‘ठीक है, आप बैठिए. मैं 10 मिनट में तैयार हो कर आता हूं.’’ कह कर धनंजय अंदर चला गया और प्रकाश राय उस के पिता के साथ गप्पें मारने लगे. गप्पें मारतेमारते उन्होंने बड़े ही सहज ढंग से पास रखी टेलिफोन डायरी उठाई, उस के कुछ पन्ने पलटे और यथास्थान रख दिया. फिर वह टहलते हुए शो केस के पास गए. उस में रखा चाबी का गुच्छा उन्हें दिखाई दिया. शो केस में रखी कुछ चीजों को देख कर वह फिर सोफे पर आ बैठे.
15-20 मिनट में धनंजय तैयार हो गया. प्रकाश राय और आशीष शर्मा के साथ निकलने से पहले उस ने शो केस में से सिगरेट का पैकेट, लाइटर, पर्स, चाबी और रूमाल लिया. प्रकाश राय और आशीष शर्मा धनंजय को साथ ले कर निरुला होटल की ओर चल पड़े. लगभग 10 मिनट बाद उन की गाड़ी होटल के निकट स्थित बैंक के सामने जा कर रुकी. गाड़ी रुकते ही प्रकाश राय ने धनंजय से कहा, ‘‘विश्वास, हम ने तुम्हारी सोसायटी के वाचमैन नारायण को गिरफ्तार कर लिया है. इस समय वह हमारे कब्जे में है. इस बैंक के सेफ डिपौजिट लौकर डिपार्टमेंट में 2 चौकीदार काम करते हैं. इन में से हमें एक पर शक है. मुझे विश्वास है कि उस ने नारायण के साथ मिल कर चोरी और हत्या की है. हम उसे दरवाजे पर ला कर तुम्हें दिखाएंगे. देखना है कि तुम उसे पहचानते हो या नहीं?’’
धनंजय को ले कर प्रकाश राय बैंक में दखिल हुए और बैंक के लौकर डिपार्टमेंट में पहुंचे. वहां मौजूद 2-4 लोगों में से प्रकाश राय ने एक व्यक्ति से पूछा, ‘‘आप…?’’
‘‘मैं बैंक मैनेजर हूं.’’
‘‘आप इन्हें जानते हैं?’’
‘‘हां, यह धनंजय विश्वास हैं.’’
‘‘आप के बैंक में इन का खाता है?’’
‘‘खाता तो नहीं है, लेकिन कल दोपहर 3 बजे इन्होंने लौकर नंबर 106 किराए पर लिया है.’’
‘‘आप जरा वह लौकर खोलने का कष्ट करेंगे?’’
बैंक मैनेजर सुरेशचंद्र वर्मा ने लौकर के छेद में चाबी डाल कर 2 बार घुमाई, पर लौकर एक चाबी से खुलने वाला नहीं था, क्योंकि दूसरी चाबी धनंजय के पास थी. प्रकाश राय धनंजय से बोले, ‘‘मिस्टर विश्वास, तुम्हारी जेब में चाबी का जो गुच्छा है, उस में लौकर नंबर 106 की दूसरी चाबी है. उस से इस लौकर को खोलो.’’
धनंजय घबरा गया. उस ने चाबी निकाल कर कांपते हाथों से लौकर खोल दिया. प्रकाश राय ने लौकर में झांक कर देखा और फिर धनंजय से पूछा, ‘‘यह क्या है मिस्टर विश्वास?’’
धनंजय ने गरदन झुका ली. प्रकाश राय ने लौकर से कपड़े की एक थैली बाहर निकाली. उस थैली में धनंजय के फ्लैट से चोरी हुए सारे जेवरात और 5 सौ रुपए के नोटों का एक बंडल भी था, जिस पर रोहिणी के पंजाब नेशनल बैंक की मोहर लगी थी. इस के अलावा एक और चीज थी उस में, एक रामपुरी छुरा.
‘‘मिस्टर विश्वास, यह सब क्या है?’’ प्रकाश राय ने दांत भींच कर पूछा.
एक शब्द कहे बिना धनंजय ने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक कर रोते हुए कहा, ‘‘साहब, मैं अपना गुनाह कबूल करता हूं. रोहिणी का खून मैं ने ही किया था.’’
दरअसल, हुआ यह था कि मंगलवार को प्रकाश राय को जो फिंगरप्रिंट्स रिपोर्ट मिली थी, उस के अनुसार फ्लैट में केवल रोहिणी और धनंजय के ही प्रिंट्स मिले थे. इसीलिए प्रकाश राय की नजरें धनंजय पर जम गई थीं. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, रोहिणी की मौत आधी रात के बाद 2 बजे से सुबह 4 बजे के बीच हुई थी.
जबकि धनंजय सवा 6 बजे से 7 बजे के बीच हत्या होने की बात कह रहा था? पूरा माजरा प्रकाश राय की समझ में धीरेधीरे आता जा रहा था. धनंजय को अपने ही घर में चोरी करने की क्या जरूरत थी? इस सवाल का जवाब भी प्रकाश राय की समझ में आ गया था. उन्होंने आशीष शर्मा को समझाते हुए कहा, ‘‘आशीष, धनंजय बहुत ही चालाक है. तुम एक काम करो,पिछले 2 दिनों से धनंजय बाहर नहीं गया है. आज भी वह घर पर ही होगा. कुछ दिनों बाद वह चोरी का सामान किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर जरूर रखेगा. उस का सारा घर हम लोगों ने छान मारा है. हो सकता है, उस ने बिल्डिंग में ही कहीं सामान छिपा कर रखा हो या फिर…
‘‘धनंजय जिस वक्त गोश्त लाने निकला था, उस समय उस ने सामान कहीं बाहर रख दिया होगा. पर उस ने कहां रखा होगा? आशीष कहीं ऐसा तो नहीं कि वह थैली ले कर नीचे उतरा हो और स्कूटर की डिक्की में रख दी हो? हो सकता है.’’ प्रकाश राय चुटकी बजाते हुए बोले, ‘‘वह थैली अभी उसी डिक्की में ही हो? तुम फौरन अपने स्टाफ सहित निकल पड़ो और धनंजय पर नजर रखो.’’
इस के बाद आशीष शर्मा ने अलकनंदा के आसपास अपने सिपाहियों को धनंजय पर निगरानी रखने के लिए तैनात कर दिया था. धनंजय अपने स्कूटर पर ही निकलेगा, यह आशीष शर्मा जानते थे. इसलिए उन्होंने स्कूटर वाले और टैक्सी वाले अपने 2 मित्रों को सहायता के लिए तैयार किया. सारी तैयारियां कर के वह अलकनंदा के पास ही एक इमारत में रह रहे अपने एक गढ़वाली मित्र के घर में जम गए.
5 मई का दिन बेकार चला गया. 6 मई को दोपहर के समय धनंजय के नीचे उतरते ही आशीष शर्मा सावधान हो गए. वह अपनी स्कूटर स्टार्ट कर के जैसे ही बाहर निकला, वैसे ही ही अपने सिपाहियों के साथ टैक्सी में बैठ कर वह उस के पीछे हो लिए. गोल चक्कर होते हुए धनंजय निरुला होटल के पास स्थित बैंक के सामने आ कर रुक गया. आशीष ने थोड़ी दूरी पर ही टैक्सी रुकवा दी. स्कूटर खड़ी कर के धनंजय ने डिक्की खोली और कपड़े की एक थैली निकाली. धनंजय के हाथ में थैली देख कर ही उन्होंने मन ही मन प्रकाश राय के अनुमान की प्रशंसा की.
थैली ले कर धनंजय के बैंक में घुसते ही आशीष ने अपने मित्र को बैंक में भेजा, क्योंकि यह जानना जरूरी था कि धनंजय का बैंक में खाता है या किसी परिचित से मिलने गया था. उन के मित्र ने लौट कर उन्हें बताया कि धनंजय मैनेजर के साथ लौकर वाले कमरे में गया है. इस से पहले सीधे मैनेजर की केबिन में जा कर उस ने एक फार्म भरा था.
धनंजय को खाली हाथ बाहर आते देख कर अपने 2 सिपाहियों को उस का पीछा करने के लिए कह कर आशीष शर्मा वहीं ओट में खड़े हो गए. धनंजय के वहां से जाते ही वह सीधे बैंक मैनेजर की केबिन में पहुंचे. अपना परिचय दे कर उन्होंने कहा, ‘‘अभी 5 मिनट पहले जिस व्यक्ति ने आप के यहां लौकर लिया है, वह वांटेड है. हमारे आदमी उस का पीछा कर रहे हैं. आप हमें सिर्फ यह बताइए कि आप से उस की क्या बातचीत हुई. ’’
‘‘धनंजय को एक महीने के लिए लौकर चाहिए था. यहां उपलब्ध लौकर्स में से उस ने 106 नंबर लौकर पसंद किया. नियमानुसार फार्म भर कर एडवांस जमा किया और लौकर में एक थैली रख कर चला गया.’’
आशीष शर्मा ने बैंक से ही प्रकाश राय को फोन किया. इस के बाद बैंक मैनेजर से कहा, ‘‘यह व्यक्ति शायद कल फिर आए, तब इसे लौकर खोलने की इजाजत मत दीजिएगा. मैं कुछ सिपाही कल सवेरे बैंक खुलने से पहले ही यहां भेज दूंगा. वह यहां आया तो इसे गिरफ्तार कर लिया जाएगा. अगर यह खुद नहीं आया तो हम इसे ले कर आएंगे.’’
धनंजय को बैंक ले जाने के लिए जब प्रकाश राय अलकनंदा पहुंचे थे तो वहां शो केस की वस्तुओं को देखने के बहाने उन्होंने चाबी के गुच्छे में लौकर नंबर 106 की चाबी देख ली थी. टेलीफोन के पास रखी धनंजय की टेलीफोन डायरी को उन्होंने केवल आनंदी का नंबर जानने के लिए यों ही उल्टापलटा था. ‘ए’ पर आनंदी का नंबर न पा कर उन्होंने ‘जी’ पर नजर दौड़ाने के लिए पन्ने पलटे, क्योंकि आनंदी का पूरा नाम आनंदी गौड़ था. मगर ‘एफ’ और ‘एच’ के बीच का ‘जी’ पेज गायब था. वह पेज फाड़े जाने के निशान मौजूद थे.
पकड़े जाने के थोड़ी देर बाद ही धनंजय ने अपने आप पर काबू पा लिया था. गहरी सांस ले कर उस ने कहा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं ने ही अपनी बीवी की हत्या की है. उस के चरित्र पर मुझे लगातार शक रहता था. आगे चल कर मेरा शक विश्वास में बदल गया. लेकिन कुछ बातें अपनी आंखों से देखने पर मैं बेचैन हो उठा. मैं अपनी पत्नी को बेहद चाहता था, पर मुझे धोखा दे कर उस ने सब कुछ नष्ट कर दिया था. उस की चरित्रहीनता का कोई सबूत मैं नहीं दे सकता. मेरे पास एक ही रास्ता था, उसे हमेशा के लिए मिटा देने का. वही मैं ने किया भी.’’
प्रकाश राय धनंजय को कोतवाली ले आए. धनंजय ने बड़े योजनाबद्ध तरीके से रोहिणी का खून किया था. रविवार पहली तारीख को उस ने जानबूझ कर आशीष तनेजा और देवेश तिवारी को अपने घर बुलाया. रात 3 से 4 बजे के बीच रोहिणी की हत्या करने के बाद सवेरे उठ कर वह बड़े ही सहज ढंग से मटनमछली लाने गया, सिर्फ इसलिए कि कोई उस पर शक न करे. इतना ही नहीं, पुलिस को चकमा देने के लिए उस ने खुद चोरी भी की थी. चोरी का सारा सामान उस ने मटन लेने जाते समय स्कूटर की डिक्की में रख दिया था.
इस के बाद वह कुछ बताने को तैयार नहीं था. जब प्रकाश राय ने टेलीफोन डायरी का ‘जी’ पेज कैसे फटा, इस बारे में पूछा तो जवाब में उस ने सिर्फ 2 शब्द कहे, ‘‘मालूम नहीं.’’
धनंजय को अगले दिन कोर्ट में पेश करना था. उस रात प्रकाश राय देर तक औफिस में ठहरे थे. एक सिपाही से उन्होंने धनंजय को अपने पास बुलवाया और उसे कुर्सी पर बैठा कर बोले,‘‘धनंजय, मेरा काम पूरा हो गया है. कल तुम्हें जेल भेजने के बाद हमारी मुलाकात कोर्ट में होगी. मुझे मालूम है कि तुम कुछ न कुछ छिपा रहे हो. मैं सत्य जानने के लिए उत्सुक हूं. अब तुम मुझे कुछ भी बतोओगे, उस का कोई लाभ नहीं होगा, क्योंकि तुम्हारे सारे कागजात तैयार हो गए हैं. उस में परिवर्तन नहीं हो सकता है. तुम जो कुछ भी बताओगे, वह मेरे तक ही सीमित रहेगा. अब मुझे बताओ कि तुम ने आनंद और आनंदी को रोहिणी की हत्या की खबर क्यों नहीं दी और आनंदी के फोन नंबर का ‘जी’ पेज तुम ने क्यों फाड़ डाला?’’
धनंजय गंभीर हो गया. उस की आंखों में आंसू भर आए. कुछ क्षणों बाद खुद को संभालते हुए बोला, ‘‘जो सच है, मैं सिर्फ आप को बता रहा हूं. एक सुखी परिवार को नष्ट करना या बचाना, आप के हाथ में है. पर मुझे विश्वास है कि आप यह बात किसी और को नहीं बताएंगे.
‘‘आगरा में रोहिणी की मौसेरी बहन का विवाह था. उसी विवाह में हम आगरा गए थे. विवाह के बाद शताब्दी एक्सप्रेस से हम लौट रहे थे तो हमारी मुलाकात आनंद और आनंदी से हो गई. वे सामने की सीट पर बैठे थे. मैं 2 पैग पिए हुए था, फिर भी मुझे नींद नहीं आ रही थी. उस समय मेरी नींद उड़ गई थी.’’
‘‘ऐसा क्यों?’’
‘‘मेरे सामने बैठी आनंदी और कोई नहीं, मेरी प्रेमिका थी. हम दोनों एकदूसरे को जीजान से चाहते थे.’’
‘‘क्या?’’ प्रकाश राय की आंखें हैरानी से फैल गईं, ‘‘अच्छा, फिर क्या हुआ?’’
‘‘मेरी क्या हालत हुई होगी, आप अंदाजा लगा सकते हैं. पास में पत्नी बैठी थी और सामने प्रेमिका, वह भी अपने पति के साथ. मुझे देखते ही आनंदी भी परेशान हो गई थी. मैं असहज मानसिक अवस्था और बेचैनी के दौर से गुजर रहा था, वह भी उसी दौर से गुजर रही थी. सचसच कहूं तो हम दोनों ही अपने ऊपर काबू नहीं रख पा रहे थे.
‘‘इस मुलाकात के असर से उबरने में मुझे 4 दिन लगे. तब मुझे नहीं मालूम था कि एक चक्रव्यूह से निकल कर मैं दूसरे चक्रव्यूह में फंस गया हूं. तब मैं यह भी नहीं जानता था कि इस दूसरे चक्रव्यूह से निकलने के लिए मुझे रोहिणी की हत्या करनी पड़ेगी. खैर…
‘‘ट्रेन में आनंदी और रोहिणी की गप्पें जो शुरू हुईं तो थोड़ी देर बाद वे एकदूसरे की पक्की सहेली बन गईं. आनंदी 2-3 बार मेरे घर भी आई थी. खुदा का लाख शुक्र था कि हर बार मैं घर पर नहीं रहा. मैं आनंदी से मिलना भी नहीं चाहता था. मैं उस से संबंध बढ़ा कर रोहिणी को धोखा देना नहीं चाहता था. इसलिए रोहिणी और आनंदी की बढ़ती दोस्ती से मैं चिंतित था.’’
धनंजय सांस लेने के लिए रुका. प्रकाश राय को लगा, कुछ कहने के लिए वह अपने आप को तैयार कर रहा है. उन का अंदाजा गलत नहीं था. धनंजय भारी स्वर में बोला, ‘‘एक दिन ऐसी घटना घटी कि मैं पागल सा हो गया. मुझे लगा, मेरे दिमाग की नसें फट जाएंगी. अपने सिर को दोनों हाथों से थाम कर मैं जहां का तहां बैठ गया. अपने आप पर काबू पाना मुश्किल हो गया. मैं कंपनी के काम से सेक्टर-18 गया था. वहां एक होटल में मैं ने रोहिणी को एक युवक के साथ सटी हुई बैठी देखा, हकीकत जाहिर करने के लिए यह काफी था. मैं यह जानता था कि उस होटल में रूम किराए पर मिलते थे. मैं उस होटल से थोड़ी दूरी पर ही बैठ कर कल्पना से सब देखता रहा. खून कैसे खौलता है, मैं ने उसी वक्त महसूस किया. 12 बजे उस होटल में गई रोहिणी 4 बजे बाहर निकली थी.
‘‘इस के बाद कुछ दिनों की छुट्टी ले कर मैं ने रोहिणी का पीछा किया. अनेक बार रोहिणी मुझे उसी युवक के साथ दिखाई दी. वह युवक और कोई नहीं, आनंद था…आनंदी का पति.’’
धनंजय ने आंखों में भर आए आंसुओं को पोंछा. प्रकाश राय स्तब्ध बैठे थे, पत्थर की मूर्ति बने. थोड़ी देर बाद शांत होने पर धनंजय बोला, ‘‘कैसा अजीब इत्तफाक था. विवाह से पहले मेरी प्रेमिका के साथ मेरे शारीरिक संबंध थे और विवाह के बाद मेरी प्रेमिका के पति के साथ मेरी पत्नी के शारीरिक संबंध. आनंदी को तो मैं पहले से जानता था, लेकिन रोहिणी और आनंद की पहचान तो शताब्दी एक्सप्रेस में हुई थी. यात्रा के दौरान जिस चक्रव्यूह में मैं फंसा था, उस से निकलने के लिए मैं ने रोहिणी को हमेशा के लिए मिटा दिया और आनंदी मेरी नजरों के सामने न आए, इसीलिए मैं ने टेलीफोन डायरी से ‘जी’ पेज फाड़ दिया था. मुझे जो भी सजा होगी, इस का मुझे जरा भी रंज नहीं होगा. मैं खुशीखुशी सजा भोग लूंगा. बस यही है मेरी दास्तान.’’
इस केस की बदौलत आनंद और आनंदी से प्रकाश राय की जानपहचान हो गई थी. कुछ दिनों बाद आनंद से उन्हें एक ऐसी बात पता चली कि उन का सिर चकरा कर रह गया था. जबजब आनंद और आनंदी उन के सामने आते थे, वह बेचैन हो जाते थे और सोचने पर मजबूर हो जाते थे कि काश, धनंजय और आनंदी एवं रोहिणी और आनंद का विवाह हो गया होता.
एक दिन बातचीत में आनंद ने कहा, ‘‘मुझे धनंजय की सजा का दुख नहीं है. उसे सजा होनी भी चाहिए. मुझे दुख है तो रोहिणी का. मैं ने आप से कहा था कि रोहिणी की और मेरी मुलाकात शताब्दी एक्सप्रेस में हुई थी. रोहिणी को देख कर मैं अभेद्य चक्रव्यूह में फंस गया था. आगरा से दिल्ली तक की यात्रा के घंटे मैं ने कैसे बिताए, मैं ही जानता हूं, क्योंकि मेरे सामने बैठी रोहिणी कोई और नहीं, मेरी पूर्व प्रेमिका थी.’’
यह सुनते ही प्रकाश राय के होश फाख्ता होतेहोते बचे. विचित्र था संयोग और भयानक थी भाग्य की विडंबना. क्या सचमुच नियति के खेल में मनुष्य मात्र खिलौना होता है?
(कथा सत्य घटना पर आधारित है, किसी का जीवन बरबाद न हो, कथा में स्थानों एवं सभी पात्रों के नाम बदले हुए हैं)