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नई उम्र के 2 थानेदार थे, जिन में से एक का नाम था अकबर शाह और दूसरे का नाम तलजा राम. दोनों बहुत बहादुर, दिलेर और निडर थे. दोनों में घनिष्ठ मित्रता थी, इतनी घनिष्ठता कि एकदूसरे के बिना जीना भी अच्छा नहीं लगता था. उन की तैनाती कहीं भी हो, लेकिन मिलने के लिए समय निकाल ही लेते थे. दोनों कभीकभी अवैध काम भी कर जाते थे, लेकिन करते इतनी चालाकी से थे कि किसी को उस की भनक तक नहीं लगती थी. दोनों बहुत बुद्धिमान थे, इसीलिए बहुत अकड़ कर चलते थे.

सन 1930 की जब की यह कहानी है तब सिंध में पुलिस के थानेदार को सूबेदार कहते थे. उस समय सूबेदार इलाके का राजा हुआ करता था. अकबर शाह और तलजा राम की भी दूसरे सूबेदारों की तरह बहुत इज्जत थी. अकबर शाह ऊंचे परिवार का था, इसलिए हर मिलने वाला पहले उस के पैर छूता था और बाद में बात करता था. तलजा राम भी उच्च जाति का ब्राह्मण था.

एक बार दोनों एक हत्या के मामले में फंस गए. हत्या जिला मीरपुर खास के पथोरो रेलवे स्टेशन पर हुई थी. वहीं से कुछ देर पहले अकबर शाह और तलजा राम गाड़ी में सवार हुए थे. रेलवे पुलिस के एसपी ने स्वयं विवेचना की और कह दिया कि हत्या दोनों के उकसावे पर की गई. देश की सभी रेलवे लाइन एकदूसरे से जुड़ी हुई थीं. फरंटियर मेल (अब स्वर्ण मंदिर मेल) मुंबई और लाहौर तक आतीजाती थीं, इसी तरह बीकानेर और जोधपुर से रेलवे की गाडि़यां हैदराबाद सिंध तक आतीजाती थीं.

एक शाम ऐसी ही एक गाड़ी में अकबर शाह और तलजा राम सवार होने के लिए पथोरो रेलवे स्टेशन पर बड़ी शानबान से आए. जोधपुर से आने वाली गाड़ी जब पथोरो स्टेशन पर आ कर रुकी तो दोनों झट से फर्स्ट क्लास के डिब्बे में बैठ गए.

उन दिनों गाडि़यों में इतनी भीड़ नहीं हुआ करती थी. उस डिब्बे से जिस में ये दोनों सवार हुए थे, रेलवे का एक अधिकारी उतरा जो पथोरो स्टेशन का निरीक्षण करने आया था. जब उस ने प्लेटफार्म पर भीड़ एकत्र देखी तो स्टेशन मास्टर से पूछा. उस ने बताया कि इस इलाके का सूबेदार सफर करने जा रहा है, ये भीड़ उसे छोड़ने आई है.

रेलवे का अधिकारी कुछ अनाड़ी किस्म का था, वह रेलवे का कुछ ज्यादा ही हितैषी था. उसे लगा कि पुलिस का एक सूबेदार फर्स्ट क्लास में कैसे यात्रा कर सकता है. उस ने टीटी को बुला कर कहा कि उन के टिकट चैक करे. जब टीटी ने टिकट मांगे तो अकबर शाह जो इलाके का सूबेदार था, उसे अपना अपमान लगा. उस ने गुस्से में दोनों टिकट निकाल कर टीटी के मुंह पर दे मारे. टिकट सेकेंड क्लास के थे. टीटी ने रेलवे अधिकारी की ओर देखा तो उस ने कहा, ‘‘इन से कहो कि उतर कर सेकेंड क्लास में चले जाएं.’’

अकबर शाह को बहुत गुस्सा आया. लेकिन मजबूरी यह थी कि यह थाना नहीं रेलवे स्टेशन था, इसलिए उस ने तलजा राम को इशारा किया. दोनों उतर कर सेकेंड क्लास के डिब्बे में बैठ गए. गाड़ी हैदराबाद के लिए रवाना हो गई. अगली सुबह पुलिस को सूचना मिली कि पथोरो स्टेशन के प्लेटफार्म पर जोधपुर से आए रेलवे अधिकारी को किसी ने सोते में कुल्हाडि़यों के घातक वार कर के मार डाला है.

रेलवे के एसपी मंझे हुए अधिकारी थे, चूंकि हत्या रेलवे स्टेशन की सीमा में हुई थी इसलिए विवेचना भी रेलवे पुलिस को करनी थी. मृतक बीकानेर रेलवे का कर्मचारी था. उन लोगों ने शोर मचा दिया, जिस से सिंध की बदनामी होने लगी. जोधपुर रेलवे पुलिस ने हत्यारों का पता बताने वाले को 500 रुपए का इनाम देने की घोषणा कर दी. बीकानेर वाले क्यों पीछे रहते उन्होंने भी 1000 रुपए के इनाम का ऐलान कर दिया.

मामला बहुत नाजुक था, इसलिए उस की तफ्तीश स्वयं एसपी ने संभाल ली. वह घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया, गवाहों के बयान लिए. जब उन्हें पता लगा कि मृतक की 2 सूबेदारों से तूतूमैंमैं हुई थी तो उन्हें पक्का यकीन हो गया कि हत्या उन दोनों ने ही कराई होगी. वे दोनों सूबेदार थे, यह कैसे सहन कर सकते थे कि उन्हें फर्स्ट क्लास के डिब्बे से उतर कर सेकेंड क्लास में बैठना पड़ा.

वह भी उन चाटुकारों के सामने जो उन्हें स्टेशन पर छोड़ने आए थे. उन दोनों के बारे में यह भी मशहूर था कि वे अपराधी प्रवृत्ति के लोगों से संबंध रखते थे. उन के लिए हत्या कराना बाएं हाथ का खेल था.

मृतक परदेसी आदमी था, जो एक दिन के लिए यहां आया था. वहां न तो उसे कोई पहचानता था और न उस की किसी से दुश्मनी थी. उस की हत्या उन दोनों सूबेदारों ने ही कराई थी. माना यह गया कि उन्होंने पथोरो से अगले स्टेशन पर पहुंच कर किसी बदमाश को इशारा कर दिया और वह बदमाश एक माल गाड़ी से जो पथोरो जा रही थी, उस में बैठ कर पथोरो स्टेशन पहुंचा. वह अफसर प्लेटफार्म पर सो रहा था, उस बदमाश ने कुल्हाड़ी के वार कर के उस की हत्या कर दी और भाग गया.

एसपी साहब ने अपनी रिपोर्ट डीआईजी को भेज दी और दोनों सूबेदारों की गिरफ्तारी की इजाजत मांगी. उन दिनों सिंध का उच्च अधिकारी डीआईजी हुआ करता था. रिपोर्ट डीआईजी के पास पहुंची तो उन्होंने एसपी साहब को बुला कर उन से इस मामले में बात की. फिर दोनों सूबेदारों को बुला कर पूछा कि उन पर हत्या का आरोप है तो दोनों भौचक्के रह गए.

हत्या और हम, दोनों ने कानों पर हाथ रख कर कहा, ‘‘आप यह सोच भी कैसे सकते हैं. हम कानून के रक्षक हैं और कानून तोड़ने की सोच भी नहीं सकते. हमारा काम लोगों की जान बचाना है, जान लेना नहीं. मृतक ने हमारा अपमान जरूर किया था और हमें गुस्सा भी आया था लेकिन इतनी छोटीसी बात पर हत्या नहीं हुआ करती.’’

डीआईजी साहब ने उन की बात ध्यान से सुनी, एसपी से सलाह भी ली, उन्हें रिपोर्ट पर पुनर्विचार करने के लिए कहा, लेकिन बेकार. एसपी साहब टस से मस नहीं हुए.

एसपी ने कहा, ‘‘आप को हत्यारा चाहिए, आप अकबर शाह और तलजा राम को गिरफ्तार करने की आज्ञा दे दीजिए, हत्यारा स्वयं चल कर आ जाएगा.’’ लेकिन डीआईजी साहब तैयार नहीं हुए.

मैं उन दिनों सिंध क्राइम ब्रांच में एसपी था. मेरे पास ऐसे बहुत से केस आते रहते थे. एक दिन मेरी मेज पर रेलवे एसपी साहब की तफ्तीश की फाइल भी आ पहुंची. डीआईजी ने मुझे उस की तफ्तीश के लिए कहा था. साथ ही अकबर शाह और तलजा राम को मीरपुर खास से दूसरे शहर में तैनात कर दिया, जिस से तफ्तीश में कोई बाधा न पडे़े.

रेलवे के एसपी साहब मेरे सीनियर भी थे और अच्छे दोस्त भी. तफ्तीश में हिचकिचाहट तो हो रही थी लेकिन हुक्म तो हुक्म था, इसलिए मैं ने काम शुरू कर दिया.

सब से पहले मैं एसपी साहब से मिला और उन से तफ्तीश के बारे में बात की. उन्होंने कहा, ‘‘आप तो जानते ही हैं कि वे दोनों कैसे आदमी हैं. उन दोनों की प्रसिद्धि आप ने भी सुन रखी होगी. अपने अपमान का बदला कैसे लेते हैं, यह भी आप जानते होंगे. उन के लिए हत्या करवाना कोई मुश्किल काम नहीं है. मृतक कोई आम आदमी नहीं, रेलवे का उच्च अधिकारी था. उस की हत्या करने की हिम्मत उन के अलावा किसी में नहीं हो सकती.’’

‘‘यह बात तो ठीक है, लेकिन किसी की इतनी जल्दी हत्या करवाना भी तो संभव नहीं है. पथोरो से गाड़ी रात के 8 बजे चली, शादीपुर स्टेशन वहां से 14 मील दूर है. गाड़ी वहां करीब 9 बजे पहुंची होगी, 4 मिनट वहां ठहरी भी होगी. अकबर और तलजा राम वहां नहीं उतरे, बल्कि हैदराबाद गए थे. उन्होंने 2-4 मिनट में हत्यारा कैसे तलाश कर लिया, जो वहां से गाड़ी में सवार हो कर पथोरो जा पहुंचा.’’

‘‘यह सब तो ठीक है लेकिन सवाल यह है कि फिर हत्या किस ने की? वह तो पथोरो पहली बार आया था. वह सीधासादा इंसान था. उस का न किसी से लेना था न देना. न झगड़ा न फसाद, उस का अचानक दुश्मन कैसे पैदा हो गया? जाइए इन सूबेदारों के अलावा कोई और हत्यारा ढूंढि़ए.’’

मैं पथोरो जाने के लिए तैयार हुआ, मेरे साथ मेरा अर्दली था. हैदराबाद से पथोरो 105 मील था. मुझे वहां पहुंचने में 5 घंटे लगे. पथोरो स्टेशन दूसरे कस्बों के स्टेशनों जैसा छोटा सा था और वीरान पड़ा था.

वहां पहुंच कर स्टेशन के वेटिंग रूम में अपना सामान रख कर मैं स्टेशन मास्टर से मिला. घटनास्थल का निरीक्षण किया, रेलवे एसपी साहब की रिपोर्ट को दोबारा पढ़ा. अपना काम शुरू करने से पहले मैं ने एसपी साहब की रिपोर्ट में लिखी खास बातों को देखा और उन पर आगे की काररवाई करने का निश्चय किया.

उस दिन जिस ट्रेन में मृतक और सूबेदार यात्रा कर रहे थे, वह जोधपुर से हैदराबाद जा रही थी. मृतक पहले से ही उस में सवार था. पथोरो पहुंच कर जब वह गाड़ी से उतरा, तभी अकबर शाह और तलजा राम गाड़ी में सवार होने लगे. उन्हें फर्स्ट क्लास में सवार होते देख कर मृतक को संदेह हुआ, उस ने टीटी से कह कर उन के टिकट चैक करवाए. उन के टिकट फर्स्ट क्लास के नहीं थे इस पर उस ने उन्हें फर्स्ट क्लास से निकलवा दिया. फिर गाड़ी आगे के लिए रवाना हुई.

उस समय रात के 8 बजे थे. दोनों सूबेदार जब अगले स्टेशन शादीपुर पहुंचे तब रात के 9 बजे थे. उस समय वहां एक माल गाड़ी पथोरो जाने के लिए तैयार हो रही थी. दोनों सूबेदारों के चोरों के साथ संबंध थे. उन्होंने उस रेलवे अफसर को ठिकाने लगाने के लिए वहां एक बदमाश को ढूंढ निकाला. वह हत्या करने के लिए तुरंत तैयार हो गया और उसी माल गाड़ी में बैठ कर पथोरो पहुंच गया.

दोनों सूबेदार हैदराबाद चले गए. उस हत्यारे ने प्लेटफार्म पर सोेते हुए रेलवे अफसर की कुल्हाड़ी से हत्या कर दी. कहानी अच्छी थी, लेकिन किसी भी तरह मुझे सच नहीं लग रही थी. वे दोनों सूबेदार बदमाश होंगे, हत्या भी करवा सकते थे लेकिन इतनी जल्दी यह काम नहीं हो सकता था. मुझे इस पूरी कहानी पर यकीन नहीं आया.

मैं ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट निकाल कर पढ़ी. उस में लिखा था कि हत्या एक तेज धारदार हथियार से सिर की बाईं ओर वार कर के की गई थी. इस के अलावा पूरे शरीर पर कोई घाव नहीं था. इस से यह पता लगा कि जब मृतक की हत्या हुई तब वह बाईं ओर करवट ले कर सो रहा था.

मैं ने स्टेशन मास्टर को बुलाया और उस के साथ उस जगह गया, जहां मृतक सोया हुआ था. वहीं खड़ेखड़े मैं ने उस से कुछ प्रश्न किए. उस ने बताया कि गाड़ी जाने के बाद मृतक मेरे कमरे में आया था. वह कुछ देर बैठा, अगले दिन के निरीक्षण के बारे में कुछ निर्देश दिए और वेटिंग रूम चला गया.

स्टेशन मास्टर ने उस से खाने को पूछा तो उस ने कहा कि वह खाना साथ लाया है. मैं ने एएसएम से कहा तो उस ने प्लेट फार्म के अंतिम सिरे पर उस के लिए एक पलंग लगवा दिया ताकि आनेवाली गाडि़यों से उस के आराम में खलल न पडे़. मृतक ने अपना बिस्तर खुद बिछाया और मुंह ढक कर सो गया.

उस के बाद सब लोग वहां से चले आए. बाकी स्टाफ तो अपने क्वार्टरों पर चला गया, लेकिन एएसएम अपने दफ्तर की एक बेंच पर सो गया. स्टेशन मास्टर तो बूढ़ा और वहां नया था, लेकिन एएसएम पुराना था और वहां के सब लोगों को जानता था. मैं ने उसे बुलवा कर उस से पूछा, ‘‘उस रात तुम कहां सोए थे?’’

‘‘जी, मैं स्टेशन मास्टर के दफ्तर के बाहर एक बेंच पर लेटा था.’’

‘‘वैसे तुम हर रात कहां सोते हो?’’

‘‘जी, मैं यहीं प्लेटफार्म के आखिरी सिरे पर सोया करता था.’’ उस ने कहा, ‘‘यहां हवा भी अच्छी आती है और शोर भी कम होता है. उस रात साहब यहां आए तो मैं ने उन के आराम की खातिर उन्हें यहीं सुला दिया था.’’

‘‘तुम्हारी पत्नी और बच्चे कहां हैं?’’

उस ने दांत निकाल कर कहा, ‘‘जी, अभी मेरी शादी नहीं हुई है.’’

‘‘उस रात एक माल गाड़ी भी तो आई थी, कितने बजे पहुंची थी यहां?’’

‘‘जी हां,’’ उस ने कहा, ‘‘आई थी, वह यहां 2 बज कर 7 मिनट पर पहुंची थी. यहां लोडिंग का कोई काम नहीं था, इसलिए मैं ने लाइन क्लियर कर सिग्नल दे दिया था.’’

‘‘माल गाड़ी यहां कितने मिनट ठहरी?’’

‘‘यही कोई 3 मिनट.’’

‘‘कोई उतरा भी था?’’

‘‘जी नहीं, माल गाड़ी के जाने के बाद भी मैं बहुत देर तक घूमता रहा, यहां कोई आदमी नहीं था.’’ उस ने आगे बताया कि सुबह जब सूरज निकलने के बाद भी वह अफसर अपने बिस्तर से नहीं उठा तो मैं उस के पास गया, उस का मुंह चादर से ढंका था. मैं ने चादर हटा कर देखी तो उस का सिर फटा हुआ था और खून बह कर जम चुका था.

अब मैं ने सोचना शुरू किया, कहीं उस का दुश्मन जोधपुर से ही तो सवार नहीं हुआ था. ताकि सुनसान इलाके में अपना काम कर सके. मैं ने स्टेशन के पूरे स्टाफ से पूछा कि उस गाड़ी से किसी को उतरते तो नहीं देखा. उन्होंने बताया कि अपने अफसर को देख कर सब लोग उस के पास इकट्ठे हो गए थे. वैसे 2 आदमी और भी उतरे थे, उन के साथ उन की बीवी और बच्चे भी थे, वे यहीं के रहने वाले थे.

मैं ने स्टेशन मास्टर से उस के काम के बारे में भी सवाल किए. मैं सोच रहा था कि यह भी हो सकता था कि वह अफसर स्टेशन मास्टर के विरुद्ध किसी शिकायत की छानबीन करने आया हो और स्टेशन मास्टर ने उस की हत्या करा दी हो. स्टेशन मास्टर ने बताया कि वह तो स्टेशन पर साधारण सी चैकिंग के लिए आया था. उसे खुद भी अपने किसी अफसर से शिकायत नहीं थी. वैसे मृतक बहुत सज्जन पुरुष था.

मुझे पथोरो पहुंचे 3 दिन बीत चुके थे. इस बीच मैं बहुत से लोगों से मिला, आनेजाने वाली गाडि़यों को देखता रहा. हत्या के बारे में सोचता रहा.

चौथे दिन मैं ने टे्रन पकड़ी और जोधपुर पहुंच गया. मुझे लगा कि हत्यारा जोधपुर में है और मृतक का दुश्मन है. मृतक का हेडक्वार्टर भी वहीं था. वहां मैं ने उस के दफ्तर से उस की पर्सनल केस फाइल निकलवाई और उसे पढ़ने लगा. उस के काम की हर अफसर ने तारीफ की. उस के विरुद्ध एक भी शिकायत नहीं मिली. मैं ने स्टेशन मास्टर और एएसएम की फाइलें भी देखीं. उन में भी कोई काम भी बात नहीं मिली. उस के बाद मैं ने मृतक के घर का पता लिया और उस की विधवा से मिलने चला गया.

वह काली साड़ी पहने बैठी थी, आंखें रोरो कर सूज गई थीं. मैं ने उस से पूछा कि क्या उसे अपने पति की हत्या के बारे में किसी पर शक है. किसी ऐसे आदमी पर जिसे वह उस का दुश्मन समझती हो. वह फूटफूट कर रोने लगी और रोतेरोते कहने लगी कि हर आदमी यही पूछता है कि उन की किसी से दुश्मनी तो नहीं थी.

इस पर वह बोली, ‘‘अगर आप उन से मिले होते तो आप भी यही कहते कि वह बहुत ही सज्जन थे, किसी लड़ाईझगड़े के बारे में वह सोच भी नहीं सकते थे.’’

मैं ने उस से कहा कि मैं आप को दुखी करने नहीं आया, बल्कि मैं आप की मदद करने आया हूं. अगर आप इस संबंध में मुझे कुछ बता देंगी तो मैं हत्यारे को पकड़ कर उसे सजा दिलवा सकूंगा. देखिए कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन का ज्ञान पत्नी के अलावा किसी को नहीं होता. मुझे एक दो मोटीमोटी बातें बता दीजिए. उस ने कहा, ‘‘पूछिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘यह बताइए आप के पति रात को किस समय सो जाया करते थे?’’

वह बोली, ‘‘हम शाम ढलते ही भोजन कर लेते थे और वह रात 9 बजे तक सो जाया करते थे.’’

‘‘वह किस करवट सोया करते थे?’’

‘‘वह पहले तो बाईं करवट लेटते थे और आधी रात के बाद दाईर्ं करवट ले कर सुबह तक सोते थे.’’

‘‘क्या वह हर रात इसी तरह करवट लिया  करते थे?’’

‘‘हर रात,’’ उस ने जवाब दिया, ‘‘यह उन की आदत थी.’’

इतना पूछ कर मैं पहली ट्रेन पकड़ कर पथोरो वापस आ गया. मैं वहां के वेटिंग रूम में बैठा सोचता रहा. 5 दिन हो गए थे और मैं अभी तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा था. मुझे यह भी सूचना मिल चुकी थी कि कराची  और हैदराबाद में मेरे बारे में खुसरफुसर हो रही थी, कि मैं अपने भाई अकबर शाह को बचाने के लिए तफ्तीश का रुख मोड़ने की कोशिश में लगा हुआ हूं.

लेकिन मैं ने इन बातों पर ध्यान नहीं दिया और अपनी तफ्तीश में लगा रहा. मैं ने एक बार फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट निकाली और उसे पढ़ने लगा. मैं ने घावों वाले हिस्से को ध्यान से पढ़ा. तेज धारदार हथियार से 3 गहरे घाव… कनपटी के आसपास, हर एक की लंबाई 3 इंच. अर्थात कुल्हाड़ी के गहरे घाव थे, क्योंकि हत्यारे ने सिर के पास खड़े हो कर इत्मीनान से वार किए थे.

पहला ही वार जबरदस्त लगा होगा, क्योंकि मृतक अपनी जगह से हिला तक नहीं. सुबह तक इसी तरह चादर ओढ़े पड़ा रहा और फिर मैं रिपोर्ट के उस वाक्य पर ठिठक गया, तीनों घाव सिर के दाएं हिस्से पर… यानी मृतक बाईं करवट सो रहा था. उसी तरह जिस तरह वह रात के पहले हिस्से में सोता था. दाईं ओर करवट तो वह आधी रात के बाद लेता था. इस से यह साबित हुआ कि हत्या रात के पहले हिस्से में हुई थी. वहां मुझे बताया गया था कि हत्यारा शादीपुर से मालगाड़ी द्वारा रात के 2 बजे पथोरो पहुंचा था.

मैं पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ता रहा, आगे चल कर जब मेदे का विवरण आया तो मैं ने एक वाक्य पढ़ कर झटके से पढ़ना बंद कर दिया. उस में लिखा था कि मेदे में बिना हजम हुआ खाना मौजूद था. आगे पढ़ने की जरूरत भी नहीं थी, क्योंकि अफसर की हत्या का माल गाड़ी के आने से कोई संबंध नहीं था.

हत्या तो रात के 12 बजे से भी बहुत पहले की गई थी. रात के पहले हिस्से में हत्या वही लोग करते हैं, जिन्हें अपने ठिकाने पर पहुंचने के लिए लंबी दूरी तय करनी होती है. अकबर शाह और तलजा राम के भेजे हुए हत्यारे को लंबी दूरी तय करनी थी. लेकिन जब इन सूबेदारों ने रात के 9 बजे किसी को हत्या करने के लिए भेजा तो वह हत्यारा 10 बजे तक पहुंचा कैसे?

मैं सुबह सवेरे वेटिंग रूम से निकला तो सामने एएसएम खड़ा मुस्कुरा रहा था. मैं ने उसे साथ लिया और स्टाफ के क्वार्टरों की ओर चल दिया.

‘‘कौन कौन रहता है यहां?’’ मेरे पूछने पर उस ने बताया, ‘‘यह पहला पानी वाले का है, दूसरा कांटे वाले का.’’

‘‘और यह तीसरा?’’

‘‘यह खाली पड़ा रहता है, इस से अगले में टिकट बाबू रहता है और उस से अगला मेरा है.’’

‘‘लेकिन तुम तो अविवाहित हो, क्वार्टर क्यों लिया हुआ है?’’

उस ने कहा, ‘‘जी यहां तो सब अविवाहित ही रहते हैं,  इस उजाड़ में बीवीबच्चों वाले भी अपनी फैमिली नहीं लाते.’’

‘‘तुम्हारा क्वार्टर तो बहुत अच्छा होगा, चलो देखें.’’

अंदर से क्वार्टर देखा, बहुत अच्छी तरह सजा हुआ था. रसोई तो और भी ज्यादा अच्छी तरह सजी हुई थी. मर्द कितना ही सफाई वाला हो, लेकिन इस तरह रसोई और घर नहीं सजा सकता. एएसएम तो वैसे भी अविवाहित था, मेरी छठी इंद्री जाग गई.

‘‘तुम्हारा खाना कौन पकाता है?’’

‘‘जी, वह पानी वाला पका देता है.’’

मैं ने उस का जवाब एक पुलिस वाले की नजर से उस के चेहरे की ओर देखते हुए सुना. मैं ने देखा उस के चेहरे का रंग बदल रहा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘इस उजाड़ में तुम्हारा दिल कैसे लगता है?’’

वह बोला, ‘‘बस जी, कोई किताब पढ़ लेता हूं या फिर घूमने निकल जाता हूं.’’

बातें करतेकरते हम घर से बाहर निकले तो क्वार्टर के सामने कुछ झोपडि़यां दिखाई दीं. मैं ने उस से पूछा, ‘‘ये किस की झोपडि़यां हैं?’’

‘‘जी, वे भीलों के झोपडे़ हैं.’’

मैं ने कहा, ‘‘चलो, चल कर देखते हैं.’’

वहां गए तो झोपडि़यों के पास कुछ बकरियां बंधी थीं. हमें देख कर कुत्ते भौंकने लगे. उन की आवाज सुन कर झोपडि़यों से औरतें निकल आईं और हमारी ओर देखने लगीं.

मैं ने झोपडि़यों का चक्कर लगा कर देखा तो वहां औरतें ही नजर आईं, मर्द कोई नहीं था. मैं ने उन औरतों से उन के मर्दों के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वे थरपारकर (रेगिस्तान की एक जगह) में खेतों पर काम करने जाते हैं.’’

‘‘तुम्हारे मर्द खेतों पर रहते हैं और तुम?’’ सवाल सुन कर एक औरत बोली, ‘‘वे वहां और हम यहां.’’

‘‘तुम क्या काम करती हो?’’

‘‘बकरियों का दूध निकाल कर रेलवे वालों को बेचते हैं.’’ एक औरत ने एएसएम को देख कर कहा, ‘‘ये बाबू तो यहां भी दूध लेने आ जाते हैं.’’

मैं ने उसी औरत से कहा, ‘‘तुम्हारा आदमी कहां है?’’

उस ने कहा, ‘‘बताया था ना थरपारकर में काम करता है.’’

‘‘वह यहां कब आता है?’’

‘‘1-2 महीने बाद आता है.’’

‘‘उसे आए हुए कितने दिन हो गए?’’

‘‘एक महीने से तो उस ने सूरत भी नहीं दिखाई.’’ वह मुसकरा कर बोली.

‘‘तुम्हारे आदमी का क्या नाम है?’’

वह कुछ लजा गई, दूसरी औरत ने बताया, ‘‘शिवाराम नाम है.’’

मैं ने एएसएम का बाजू पकड़ा और उसे स्टेशन पर ले आया. एएसएम का उजाड़ इलाके में क्वार्टर, भीलों की जवान लड़की, वह दूध लेने उन के घर जाता था. निस्संदेह वह कोई फरिश्ता नहीं था. उस समय सुबह 7 बजे थे. मैं ने वहां के थाने से पुलिस इंसपेक्टर को बुलवाया और उस से ऊंटों का इंतजाम करने के लिए कहा. उस ने तुरंत ऊंट बुलवा लिए.

मैं पुलिस इंसपेक्टर और 2 सिपाहियों को ले कर थर पार कर के खेतीबाड़ी वाले इलाके में 20 मील लंबा सफर कर के पहुंच गया. शाम का समय था, कुछ लोग अब भी खेतों पर काम कर रहे थे. ऊंट रुकवा कर मैं उन लोगों की ओर गया. पुलिस की वरदी में देख कर वे सब खड़े हो गए.

मैं ने जाते ही सख्ती से पूछा, ‘‘तुम में शिवा कौन है?’’

वे सब डर गए थे, फिर धीरेधीरे एक आदमी हमारी ओर आया. मैं ने पूछा, ‘‘तुम हो शिवा?’’

‘‘हां, मेरा ही नाम शिवा है.’’ उस की आवाज में जरा भी घबराहट नहीं थी.

‘‘तुम ने हत्या की है. मैं तुम्हें गिरफ्तार करने आया हूं. वह कुल्हाड़ी कहां है, जिस से तुम ने हत्या की है?’’

वह जवाब देने के बजाए एक ओर मुंह घुमा कर देख रहा था, वहां एक झोंपड़ी थी. मेरा हमला उस पर इतना सख्त और जल्दबाजी वाला था कि वह संभल नहीं सका. सूबेदार को अपने एरिए का राजा समझने वाला भील अपने बचाव के बारे में सोच भी नहीं सका.

शिवा मेरे साथ झोपड़ी में गया और वहां से एक कुल्हाड़ी और खून में सने अपने कपड़े जमीन से खोद कर मेरे हवाले कर दिए. वह बिलकुल शांत था, उस के चेहरे से घमंड साफ दिखाई दे रहा था. वह यही समझ रहा था कि उस ने एक व्यभिचारी एएसएम को अपनी पत्नी को बिगाड़ने का बदला ले लिया है.

लेकिन जिस रात वह एएसएम की हत्या करने के लिए कुल्हाड़ी ले कर उस जगह गया था, जहां एएसएम सोया करता था, वहां वह अफसर सोया हुआ था, जो निरीक्षण के लिए आया हुआ था.

हत्यारे ने अंधेरे में अपने शिकार को पहचाना नहीं, उसे यह पता था कि यहां हर रात वही बाबू सोता था, जिस के क्वार्टर में उस की जवान पत्नी दूध देने जाती थी.

उस के  ऊपर हत्या का भूत सवार था. हत्या करने के बाद उसे 20 मील दूर भी जाना था. उसे जब आजीवन कारावास की सजा हुई तो उसे इस का दुख नहीं था, दुख तो उस की पत्नी के प्रेमी के बच जाने का था.

प्रस्तुति : एस.एम. खान

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