Download App

श्रीश्री 1008 परचून ऋषि

मैं हैरान हूं. हर तरफ ऋषियों की बाढ़ आई हुई है. परसों जिस दुकान पर परचून का सामान खरीदने के लिए गया, उस दुकान के मालिक ने अपना बड़ा सा फोटो दुकान के बाहर लटका कर उस के नीचे श्रीश्री 1008 परचून ऋषि लिखवा लिया है. अब जब डंडी मार कर कम तोलने वाला और उधार के पैसों पर मनमाने तरीके से ब्याज वसूलने वाला आदमी अपनेआप को ऋषि घोषित कर सकता है, तो फिर महर्षियों, देवर्षियों, राजर्षियों और ब्रह्मर्षियों की तो कल्पना कर के ही मन कांप उठता है. वह तो अच्छा हुआ कि कलियुग ने ऋषियों से श्राप देने की शक्ति छीन ली, वरना ये तो पता नहीं किनकिन अबलाओं पर अपनी इच्छाएं थोपते और मनमानी नहीं कर पाने पर उन्हें पत्थर की शिला में परिवर्तित कर देते.

सड़क पर चलते हुए कई बार लगता है कि भारत एक ऋषि प्रधान देश है. भ्रष्ट अफसरों, सत्ता के दलालों, संस्कृति के सौदागरों, पुरस्कारलोलुप लेखकों, उकताए हुए अध्यापकों से ले कर शहर की सड़कों पर आतीजाती महिलाओं के साथ छेड़खानी करने वाले लुच्चेलफंगों  तक के दिल में अपनी साधना के प्रति इतना समर्पण है कि ऋषिपना स्वयं आ कर उन से अनुमति मांगता प्रतीत होता है कि साहब, क्या मैं आप के व्यक्तित्व का वरण कर के खुद को धन्य कर लूं?

चौराहे पर खड़े ट्रैफिक पुलिस वाले को देखिए. लोग गलत तरीके से एकदूसरे को ओवरटेक कर रहे हों या खतरनाक तेजी से अपनी बाइक दौड़ा रहे हों, उसे फर्क नहीं पड़ता. ड्यूटी पर आते ही वह ध्यान में चला जाता है. कभीकभी किसी मेनका की सड़क पर उपस्थिति उस का ध्यान भंग भी करती है तो सिर्फ इसलिए कि वह जानता है कि वह ऋषि हो चुका है और हमारी संस्कृति में ऋषि होने के लिए अप्सराओं की उपस्थिति से विचलित होना आवश्यक माना जाता है.

थाने में मौजूद पुलिस वाला तो किसी आम आदमी को देखते ही उस पौराणिक ऋषि का आधुनिक अवतार हो जाता है, जिसे बातबात पर भड़कने की और लोगों को श्राप देने की आदत थी. चूंकि हमारा आधुनिक ऋषि श्राप नहीं दे पाता, इसलिए वह गैरजमानती धाराओं में फंसाने की धमकी दे कर या फिर आगंतुक को गालियां दे कर अपने ऋषिधर्म की पूर्ति कर लेता है.

एक पुलिस वाले की तो सारी चेतना इस बात पर केंद्रित थी कि वह मुसीबत में पड़ी औरतों के साथ उन की बेबसी का फायदा उठा कर उन का शोषण कर सके. जब उस पर 2-3 बार इस तरह के आरोप लग गए तो मैं ने एक दिन मौका पा कर उस से पूछ ही लिया कि वह इतनी जलील हरकतें क्यों करता है? पट्ठा पूरे हठयोग के साथ बोला, ‘‘मैं कामऋषि हूं और साधना के पथ पर निकल पड़ा हूं. अब कोई डर मुझे अपनी साधना से नहीं रोक सकता.’’ मैं हैरान था. जो किसी काम के नहीं, वो कामऋषि होने की प्रक्रिया में लीन हो गए हैं. पुराने जमाने में ऋषि खुद को मिलने वाली दक्षिणा और शिष्यों द्वारा लाई गई भिक्षा के दम पर जंगल में कुटिया और आश्रम बना कर भी ठीकठाक जीवनयापन कर लेते थे. लेकिन इस दौर में जब उतने घने जंगल ही नहीं बचे, तो फिर वैसे घनघोर ऋषियों की तलाश क्यों? क्या समाज के लिए यही बात संतोषजनक नहीं है कि जिस हाल में हैं और जो भी कर रहे हैं- लेकिन ऋषि कुछ कर तो रहे हैं.

ऋषियों के अड्डे (अब आश्रम बनाने जितनी जगह सब को कहां मिलती है?) रहेंगे तो राज से जुडे़ लोग अपनी प्रेमकथाओं के साथ वहां आते रहेंगे और राजधानी पहुंच कर अपनी कारगुजारियों को भुला देंगे. इस से दिव्य प्रेमकथाओं का और उस प्रेम के फलस्वरूप मोहक कविताओं का सृजन होगा.

मैं कवि हूं, इसलिए मैं ने कविताओं के बारे में सोचा. लेकिन इन आधुनिक ऋषियों की सक्रियता रहेगी तो न जाने कौनकौन से धंधों में बरकत होगी. गीतऋषि काव्यपाठ के लिए मोटे पारिश्रमिक के साथ अपनी चहेती कवयित्री को भी बुलाए जाने की मांग करेंगे और इस तरह अपने यश के संरक्षण में कुछ जरूरतमंदों के पेट भी खाली नहीं रहना सुनिश्चित करेंगे. वहीं, व्यंग्यऋषि किसी पद के लिए जुगाड़ करेंगे तो भ्रमर्षि अपने जुगाड़ों के साथ समाज को सत्य व भ्रम के मायाजाल में उलझा कर उन शक्तियों के हाथ मजबूत करेंगे, जिन शक्तियों से उन्हें अपने आश्रम के लिए बड़ी जमीन दान में मिलने की उम्मीद है. ज्योतिष और आध्यात्म से ले कर जड़ीबूटियों तक का व्यापार तो उन के लिए सदियों से सुरक्षित है ही.

इन आधुनिक ऋषियों की महिमा अपरंपार है. ये आसन से ले कर सिंहासन तक सब साध सकते हैं. मैं इन के बारे में कुछ और बोलता, लेकिन मैं देख रहा हूं कि श्रीमतीजी स्टंटर्षि हो गई हैं और हम जैसे मामूली लोगों के बस में यह कहां कि किसी ऋषि के स्टंट को बरदाश्त कर सकें. इसलिए बाकी ऋषिकथा आप अपने स्तर पर ही समझ लीजिए.

सूरज पाल और कुमार विश्वास : क्यों बदल रहे हैं धर्म के माने

धर्म के बाजार और कारोबार में इन दिनों भारी तब्दीलियां देखने को मिल रही हैं. नएनए बाबा नएनए गेटअप में आ रहे हैं जो लुभावनी कहानियां व प्रसंग सुना कर भक्तों का जी बहला रहे हैं लेकिन साथ ही उन की जेबें भी खाली कर रहे हैं. इन की ग्राहकी अलगअलग है.

कवि कुमार विश्वास और सूरज पाल सिंह उर्फ़ भोले बाबा में जितने फर्क हैं उतनी ही समानताएं भी हैं. मसलन, दोनों ही कथाओं और प्रवचनों के जरिए अकूत दौलत के मालिक बने. सूरज पाल ने खुद के भगवान होने का दावा कर डाला तो कुमार विश्वास ने यह जोखिम नहीं उठाया क्योंकि उन का ग्राहक वर्ग सवर्ण, शिक्षित और बुद्धिजीवी है जिस के लिए रामकथा आस्था के साथसाथ टाइमपास मूंगफली जैसा विषय भी है. इस के, खासतौर से पारिवारिक प्रसंगों के, जरिए वह अपनी आध्यात्मिक भूख मिटाता है. जबकि, सूरज पाल की ग्राहकी हाथरस हादसे के बाद सभी ने देखा कि गरीब, दलित, ओबीसी तबके की है. इन लोगों को मोक्ष नहीं बल्कि पैसा चाहिए, अपनी बीमारियों व परेशानियों से नजात चाहिए. ये दोनों ही बाबा अपनेअपने स्तर पर अपने ग्राहकों की जरूरत के मुताबिक प्रोडक्ट और सर्विस दोनों देते हैं.

एक बड़ा फर्क दोनों में यह भी है कि सूरज पाल का ग्राहक सड़क के किनारे लगे तम्बुओ में बैठ सब्जीपूरी के भंडारे को भगवान का प्रसाद मान संतुष्ट हो जाता है. मौसम की मार बरदाश्त कर लेता है. लेकिन कुमार विश्वास का ग्राहक बड़ी महंगी गाडियों में आता है और वातानुकूलित हौल की कुरसियों में धंस कर धार्मिक किस्सेकहानियां सुन झूमने लगता है. कुमार नए दौर के नए किस्म के बाबा हैं जिन का पहनावा आंशिक रूप से पंडेपुरोहितों जैसा होता है. वे नारद मुनि की स्टाइल में नहीं बल्कि विश्वामित्र की स्टाइल में रामकथा सुनाते हैं जिस में अधिकतर प्रवचन की केंद्रीय पात्र उर्मिला, कौशल्या, मंदोदरी या सीता होती है जिस से महिला ग्राहकों को लुभाया जा सके क्योंकि श्रोताओं में बड़ी हिस्सेदारी उन्हीं की होती है. वे पौराणिक महिला पात्रों की व्यथापीड़ा या तथाकथित त्याग वगैरह को आज की जिंदगी व समाज से रिलेट करते हैं. लेकिन वे इसे कोसते नहीं कि यह सब पितृसत्तात्मक समाज और धर्म की साजिश है कि औरत मर्दों की दादागीरी बरदाश्त करती रहे, यही उस के लिए विधाता ने तय कर रखा है. यही उस की नियति और ड्यूटी है. औरत महान इसलिए है कि वह तमन ज्यादतियां ख़ामोशी से बरदाश्त कर लेती है.
इस से उन का पुरुष ग्राहक भी खुश हो उठता है कि जो वे नहीं कर पाते यानी एक संपन्न घर में बैठी सजीधजी, गहनों से लदी औरत को सनातन धर्म का पालन करना चाहिए, वह कुमार विश्वास इतने लच्छेदार तरीके से करते हैं कि कोई महिला फिर यह सवाल नहीं करती कि आखिर उर्मिला या सीता का गुनाह क्या था जो उन्हें जिंदगीभर तकलीफें उठानी पड़ीं. पुरुषों के फैसलों को उन्हें ख़ामोशी से मानना पड़ा. उर्मिला की पीड़ा को उकेरते उस के त्याग को प्रधान साबित कर दिया जाता है. साथ ही, दोचार दोहे सुना कर वुमेन एंपावरमैंट की नई परिभाषा गढ़ दी जाती है कि त्याग ही किसी महिला को सशक्त बनाता है, अधिकार या समानता नहीं

जबकि सूरज पाल अपने अनुयायियों को सीधे एक काल्पनिक और चमत्कारी दुनिया की सैर कराता है. वह भी औरतों को दूसरे तरीकों से बरगलाता है जिस का सार यह होता है कि अबला जीवन तेरी यही कहानी, आंचल में है दूध और आखों में है पानी. इस तबके की औरत की तकलीफ उस के आसपास के पुरुष हैं जो शराबी, कबाबी और निकम्मे हैं. इन के जोरजुल्म और अत्याचारोंप्रताडनाओं से आजिज आ गई औरत बाबा से एक आश्वासन भर चाहती है कि उन के आशीर्वाद से सब ठीक हो जायेगा और एक दिन उन का पुरुष, फिर चाहे वह पति, पिता या भाई कोई भी हो, उसे तंग करना छोड़ देगा.
सूरज पाल खुद को भगवान घोषित करने से नहीं चूकता जबकि कुमार यह भरोसा दिलाते रहते हैं कि ईश्वर है लेकिन उसे पा लेना कोई हंसीखेल नहीं बल्कि उस के लिए एक तयशुदा रास्ता है जो इन्हीं भव्य और महंगी कथाओं और प्रवचनों से हो कर जाता है. ईश्वर तक पहुंचने, उसे महसूस करने या उसे पाने यानी मोक्ष के लिए यह जरूरी नहीं कि आप नाममात्र के कपड़ों में किसी गुफा या कन्दरा में सालों भूखेप्यासे बैठे रहें, तपस्या या भजन करते रहें बल्कि आप अपने घरगृहस्थी में रहते तमाम सांसारिक कर्म करते भी उसे पा सकते हैं पर शर्त इतनी है कि आप कथाओं को रस्वादन करते रहें और एवज में कथावाचकों की विलासी जिंदगी का खर्च उठाते रहें.

एक हादसा हुआ तो सूरज पाल की राजाओं, महाराजाओं जैसी जिंदगी सार्वजनिक हो गई. उस से पहले भी कई बाबाओं की हो चुकी है. चंद्रास्वामी से यह सिलसिला शुरू हो कर आशाराम, रामरहीम, निर्मल बाबा वगैरह से होते हुए सूरजपाल पर खत्म नहीं होता बल्कि बाबाओं की देश में भरमार है जो भक्तों की दानदक्षिणा पर शाही-विलासी और ऐयाशी की जिंदगी जी रहे हैं.
कुमार विश्वास जैसे बाबा इन मानों में अपवाद हैं. वे ब्राह्मण हैं, बुद्धिजीवी हैं और सामाजिक-राजनातिक घटनाक्रम पर पैनी नजर रखते हैं और उसी के मुताबिक अपनी भूमिका तय करते हैं. इस किस्म के बाबा आमतौर पर हलके स्तर के अंधविश्वास और टोनटोटके नहीं फैलाते. ये अभिजात्य वर्ग को बौद्धिक और पौराणिक रूप से घेरते हैं. दो टूक कहा जाए तो ये लोग वैचारिक और सैद्धांतिक तौर पर वैष्णव हैं जिन का मकसद सनातन धर्म का प्रचार करना है. एक तरह से ये भाजपा का काम आसान करते हैं लेकिन इसे आरोप के तौर पर नहीं स्वीकारते, उलटे, इस से तिलमिला उठते हैं.

बात सच भी है कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तो इस किस्म के बाबा और कथावाचक उस के एजेंडे के मुताबिक काम करते थे लेकिन अब भाजपा बड़ी ताकत बन कर उभरी तो ये लोग राम-कृष्ण करने लगे.
कोई बाबा राजनीति से अछूता नहीं है. सूरजपाल सपा का काम आसान कर रहा था तो मौजूदा ब्रैंडेड बाबाओं में बागेश्वर बाबा, अनिरुद्धाचार्य और प्रदीप मिश्रा टाइप के बाबा भी यही कर रहे हैं.
लेकिन मकसद सभी का एक ही है कि बोरे भरभर कर पैसा कमाओ. हवाई जहाजों में उड़ो लेकिन भक्तों को यह उपदेश देते रहो कि त्याग करो, मोहमाया छोड़ो, भक्ति करो और इन से भी अहम बात, हमें दानदक्षिणा देते रहो, तभी सुखी रहोगे. दक्षिणा के एवज में पापमुक्ति और मोक्ष के इस महंगे कारोबार में अब भक्तों को भी सहूलियतें दे कर उन्हें सुविधाभोगी बनाया जा रहा है. तमाम बाबाओं के आश्रम हाईटैक हो गए हैं. प्रवचन और कथा अब एयरकंडीशंड हौल में किए जाते हैं. किसी कौर्पोरेट इवैंट की तरह भक्तों को सुबह के चायनाश्ते से ले कर बुफे वाला लंच-डिनर हाई टी वगैरह दी जाने लगी है. ऐसा सिर्फ धंधा बढ़ाने के लिए किया जा रहा है.

यही हाल मंदिरों का है जिन के आधुनिकीकरण और भव्यता के लिए मोदी सरकार ने जम कर पैसा फूंका है. हालांकि इस का खमियाजा भी उसे 4 जून के नतीजों में भुगतना पड़ा है. सूरजपाल और कुमार विश्वास जैसे बाबाओं से यह तो साफ़ हो ही जाता है कि अलगअलग तबकों के लिए न केवल धर्म अलग है बल्कि बाबा भी अलगअलग हैं.
अब यह भक्तों, खासतौर से महिलाओं, के सोचने व समझने की बात है कि ये मुफ्तखोर देते तो कुछ नहीं, उलटे, मेहनत की कमाई पर न केवल डाका डालते हैं बल्कि दिमागीतौर पर पिछड़ा भी रखते हैं जिस से कि व्रतत्योहार, दानदक्षिणा का माहौल बना रहे. फिर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह धार्मिक आयोजन या कथा कोलकाता के किसी औडिटोरियम में हो रहा है या हाथरस के खेत में ही टैंपरेरी इंतजाम कर दिए गए हैं.

बौलीवुड July 3rd Week : एडल्ट मूवी BadNewz की कमाई का इशारा समझें

‘बैड न्यूज’ को सैक्स व विषाक्त मर्दानगी भी सफलता नहीं दिला पाई तो वहीं सरकारपरस्त सिनेमा भी ठुकराया गया
जुलाई के दूसरे सप्ताह में अक्षय कुमार की ‘सरफिरा’ और कमल हासन की फिल्म ‘हिंदुस्तानी 2’ को जिस तरह से दर्शकों ने नकारा था, उस से एक ही संदेश उभर कर आया था कि दर्शक की नजर में बौलीवुड या दक्षिण के सिनेमा में कोई फर्क नहीं है. उसे कंटैंट प्रधान अच्छा व मनोरंजक सिनेमा चाहिए. जुलाई माह के तीसरे सप्ताह यानी कि 19 जुलाई को विक्की कौशल व तृप्ति डिमरी की वयस्क फिल्म ‘बैड न्यूज’, गोधरा कांड पर ‘ऐक्सिडैंट और कांसपिरेसी गोधरा’ और ‘द हीस्ट’ ये 3 फिल्में रिलीज हुईं.

जुलाई माह के तीसरे सप्ताह 19 जुलाई को प्रदर्शित फिल्में देखने के बाद किसी भी फिल्म से कोई उम्मीद नहीं थी. विक्की कौशल, तृप्ति डिमरी और एमी विर्क की आनंद तिवारी निर्देशित फिल्म ‘बैड न्यूज’ में विषाक्त मर्दानगी और सैक्स के भूखे इंसानों का एक अलग पक्ष रखते हुए विज्ञान को धता बताने वाली अविश्वसनीय कहानी पेश की गई. इसे देख कर एहसास हुआ था कि इस फिल्म को दर्शक नहीं मिलने वाले.

लेकिन 80 करोड़ रुपए की लागत में बनी फिल्म ‘बैड न्यूज’ ने पूरे सप्ताह में बौक्सऔफिस पर 45 करोड़ रुपए कमा लिए. इस में से निर्माता की जेब में 20 करोड़ रुपए ही जाएंगे. जबकि निर्माता ने अपनी तरफ से काफी कोशिश की. 22 जुलाई से एक टिकट पर एक टिकट मुफ्त भी दिया, पर वह बात नहीं बनी जो निर्माता चाहते थे. फिर भी वाहियात फिल्म ‘बैड न्यूज़’ के 45 करोड़़ रुपए कमा लेने से एक बात उभर कर आती है कि हमारे देश में सैक्स के भूखे इंसानों की कमी नहीं है. दर्शकों का एक वर्ग आज भी फिल्म में सिर्फ सैक्स व हीरोईन की जिस्म की नुमाइश ही देखने जाता है. ऐसे दर्शकों के ही चलते कुछ फिल्मकार अच्छे कंटैंट वाला सिनेमा बनाने के बजाय सैक्स परोसने पर सारा ध्यान देते हैं. इस फिल्म ने सोचने पर विवश कर दिया है कि हमारा समाज किस दिशा में जा रहा है. ‘बैड न्यूज’ को सफलता नहीं मिली. इस से तृप्ति डिमरी के लिए संकेत हैं कि वह अपने जिस्म की नुमाइश व सैकस दृश्यों को करने पर ध्यान देने के बजाय अपनी अभिनय प्रतिभा के बल पर दर्शकों का दिल जीतने का प्रयास करे, तभी वह ‘लंबी रेस का घोड़ा’ बन सकती है.

दूसरी फिल्म ‘द हीस्ट’ ने पूरे सप्ताह में बामुश्किल 10 लाख रुपए ही कमाए. तीसरी फिल्म ‘ऐक्सिडैंट और कांसपिरेसी गोधरा’ ने 7 दिनों में एक करोड़ दस लाख रुपए ही कमाए. इस में से निर्माता की जेब में बामुश्किल 45 लाख रुपए ही आएंगे. इस फिल्म की बौक्सऔफिस पर हुई इतनी दुर्गति से फिल्मकारों को साफ संदेश है कि सराकरपरस्त सिनेमा से लोग दूर रहना चाहते हैं. लोग चाहते हैं कि फिल्मकार महज सरकार को खुश रखने के लिए तथ्यों को तोड़मरोड़ कर फिल्मों में पेश कर लोगों को दिग्भ्रमित करने का प्रयास छोड़ दें.
शान्तिस्वरुप त्रिपाठी

अनोखा सबक

सिपाही टीकाचंद बड़ी बेचैनी से दारोगाजी का इंतजार कर रहा था. वह कभी अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी की तरफ देखता, तो कभी थाने से बाहर आ कर दूर तक नजर दौड़ाता, लेकिन दारोगाजी का कहीं कोई अतापता न था. वे शाम के 6 बजे वापस आने की कह कर शहर में किसी सेठ की दावत में गए थे, लेकिन 7 बजने के बाद भी वापस नहीं आए थे.

‘शायद कहीं और बैठे अपना रंग जमा रहे होंगे,’ ऐसा सोच कर सिपाही टीकाचंद दारोगाजी की तरफ से निश्चिंत हो कर कुरसी पर आराम से बैठ गया.

आज टीकाचंद बहुत खुश था, क्योंकि उस के हाथ एक बहुत अच्छा ‘माल’ लगा था. उस दिन के मुकाबले आज उस की आमदनी यानी वसूली भी बहुत अच्छी हो गई थी.

आज उस ने सारा दिन रेहड़ी वालों, ट्रक वालों और खटारा बस वालों से हफ्ता वसूला था, जिस से उस के पास अच्छीखासी रकम जमा हो गई थी. उन पैसों में से टीकाचंद आधे पैसे दारोगाजी को देता था और आधे खुद रखता था.

सिपाही टीकाचंद का रोज का यही काम था. ड्यूटी कम करना और वसूली करना… जनता की सेवा कम, जनता को परेशान ज्यादा करना.

सिपाही टीकाचंद सोच रहा था कि इस आमदनी में से वह दारोगाजी को आधा हिस्सा नहीं देगा, क्योंकि आज उस ने दारोगाजी को खुश करने के लिए अलग से शबाब का इंतजाम कर लिया है.

जिस दिन वह दारोगाजी के लिए शबाब का इंतजाम करता था, उस दिन दारोगाजी खुश हो कर उस से अपना आधा हिस्सा नहीं लेते थे, बल्कि उस दिन का पूरा हिस्सा उसे ही दे देते थे.

रात के तकरीबन 8 बजे तेज आवाज करती जीप थाने के बाहर आ कर रुकी. सिपाही टीकाचंद फौरन कुरसी छोड़ कर खड़ा हो गया और बाहर की तरफ भागा.

नशे में चूर दारोगाजी जीप से उतरे. उन के कदम लड़खड़ा रहे थे. आंखें नशे से बुझीबुझी सी थीं. उन की हालत से तो ऐसा लग रहा था, जैसे उन्होंने शराब पी रखी हो, क्योंकि चलते समय उन के पैर बुरी तरह लड़खड़ा रहे थे. उन के होंठों पर पुरानी फिल्म का एक गाना था, जिसे वे बड़े रोमांटिक अंदाज में गुनगुना रहे थे.

दारोगाजी गुनगुनाते हुए अंदर आ कर कुरसी पर ऐसे धंसे, जैसे पता नहीं वे कितना लंबा सफर तय कर के आए हों.

सिपाही टीकाचंद ने चापलूसी करते हुए दारोगाजी के जूते उतारे. दारोगाजी ने सामने रखी मेज पर अपने दोनों पैर रख दिए और फिर पैरों को ऐसे अंदाज में हिलाने लगे, जैसे वे थाने में नहीं, बल्कि अपने घर के ड्राइंगरूम में बैठे हों.

दारोगाजी ने अपनी पैंट की जेब में से एक महंगी सिगरेट का पैकेट निकाला और फिल्मी अंदाज में सिगरेट को अपने होंठों के बीच दबाया, तो सिपाही टीकाचंद ने अपने लाइटर से दारोगाजी की सिगरेट जला दी.

‘‘साहबजी, आज आप ने बड़ी देर लगा दी?’’ सिपाही टीकाचंद अपनी जेब में लाइटर रखते हुए बोला.

दारोगाजी सिगरेट का लंबा कश खींच कर धुआं बाहर छोड़ते हुए बोले, ‘‘टीकाचंद, आज माहेश्वरी सेठ की दावत में मजा आ गया. दावत में शहर के बड़ेबड़े लोग आए थे. मेरा तो वहां से उठने का मन ही नहीं कर रहा था, लेकिन मजबूरी में आना पड़ा.

‘‘अच्छा, यह बता टीकाचंद, आज का काम कैसा रहा?’’ दारोगाजी ने बात का रुख बदलते हुए पूछा.

‘‘आज का काम तो बस ठीक ही रहा, लेकिन आज मैं ने आप को खुश करने का बहुत अच्छा इंतजाम किया है,’’ सिपाही टीकाचंद ने धीरे से मुसकराते हुए कहा, तो दारोगाजी के कान खड़े हो गए.

‘‘कैसा इंतजाम किया है आज?’’ दारोगाजी बोले.

‘‘साहबजी, आज मेरे हाथ बहुत अच्छा माल लगा है. माल का मतलब छोकरी से है साहबजी, छोकरी क्या है, बस ये समझ लीजिए एकदम पटाखा है, पटाखा. आप उसे देखोगे, तो बस देखते ही रह जाओगे. मुझे तो वह छोकरी बिगड़ी हुई अमीरजादी लगती है,’’ सिपाही टीकाचंद ने कहा.

उस की बात सुन कर दारोगाजी के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई.

‘‘टीकाचंद, तुम्हारे हाथ वह कहां से लग गई?’’ दारोगाजी अपनी मूंछों पर ताव देते हुए बोले.

दारोगाजी के पूछने पर सिपाही टीकाचंद ने बताया, ‘‘साहबजी, आज मैं दुर्गा चौक से गुजर रहा था. वहां मैं ने एक लड़की को अकेले खड़े देखा, तो मुझे उस पर कुछ शक हुआ.

‘‘जिस बस स्टैंड पर वह खड़ी थी, वहां कोई भला आदमी खड़ा होना भी पसंद नहीं करता है. वह पूरा इलाका चोरबदमाशों से भरा हुआ है.

‘‘उस को देख कर मैं फौरन समझ गया कि यह लड़की चालू किस्म की है. उस के आसपास 2-4 लफंगे किस्म के गुंडे भी मंडरा रहे थे.

‘‘मैं ने सोचा कि क्यों न आज आप को खुश करने के लिए उस को थाने ले चलूं. ऐसा सोच कर मैं फौरन उस के पास जा पहुंचा.

‘‘मुझे देख कर वहां मौजूद आवारा लड़के फौरन वहां से भाग लिए. मैं ने उस लड़की का गौर से मुआयना किया.

‘‘फिर मैं ने पुलिसिया अंदाज में कहा, ‘कौन हो तुम? और यहां अकेली खड़ी क्या कर रही हो?’

‘‘मेरी यह बात सुन कर वह मुझे घूरते हुए बोली, ‘यहां अकेले खड़ा होना क्या जुर्म है?’

‘‘उस का यह जवाब सुन कर मैं समझ गया कि यह लड़की चालू किस्म की है और आसानी से कब्जे में आने वाली नहीं.

‘‘मैं ने नाम पूछा, तो वह कहने लगी, ‘मेरे नाम वारंट है क्या?’

‘‘वह बड़ी निडर छोकरी है साहब. मैं जो भी बात कहता, उसे फौरन काट देती थी.

‘‘मैं ने उसे अपने जाल में फंसाना चाहा, लेकिन वह फंसने को तैयार ही नहीं थी.

‘‘आसानी से बात न बनते देख उस पर मैं ने अपना पुलिसिया रोब झाड़ना शुरू कर दिया. बड़ी मुश्किल से उस पर मेरे रोब का असर हुआ. मैं ने उस पर 2-4 उलटेसीधे आरोप लगा दिए और थाने चलने को कहा, लेकिन थाने चलने को वह तैयार ही नहीं हुई.

‘‘मैं ने कहा, ‘थाने तो तुम्हें जरूर चलना पड़ेगा. वहां तुम से पूछताछ की जाएगी. हो सकता है कि तुम अपने दोस्त के साथ घर से भाग कर यहां आई हो.’

‘‘मेरी यह बात सुन कर वह बौखला गई और मुझे धमकी देते हुए कहने लगी, ‘‘मुझे थाने ले जा कर तुम बहुत पछताओगे, मेरी पहुंच ऊपर तक है.’

‘‘छोकरी की इस धमकी का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ. ऐसी धमकी सुनने की हमें आदत सी पड़ गई है…

‘‘पता नहीं, आजकल जनता पुलिस को क्या समझती है? हर कोई पुलिस को अपनी ऊंची पहुंच की धमकी दे देता है, जबकि असल में उस की पहुंच एक चपरासी तक भी नहीं होती.

‘‘मैं धमकियों की परवाह किए बिना उसे थाने ले आया और यह कह कर लौकअप में बंद कर दिया कि थोड़ी देर में दारोगाजी आएंगे. पूछताछ के बाद तुम्हें छोड़ दिया जाएगा.

‘‘जाइए, उस से पूछताछ कीजिए, बेचारी बहुत देर से आप का इंतजार कर रही है,’’ सिपाही टीकाचंद ने अपनी एक आंख दबाते हुए कहा.

दारोगाजी के होंठों पर मुसकान तैर गई. उन की मुसकराहट में खोट भरा था. उन्होंने टीकाचंद को इशारा किया, तो वह तुरंत अलमारी से विदेशी शराब की बोतल निकाल लाया और पैग बना कर दारोगाजी को दे दिया.

दारोगाजी ने कई पैग अपने हलक से नीचे उतार दिए. ज्यादा शराब पीने से उन का चेहरा खूंख्वार हो गया था. उन की आंखें अंगारे की तरह लाल हो गईं.

वह लुंगीबनियान पहन लड़खड़ाते कदमों से लौकअप में चले गए. सिपाही टीकाचंद ने फुरती से दरवाजा बंद कर दिया और वह बैठ कर बोतल में बची हुई शराब खुद पीने लगा.

दारोगाजी को कमरे में घुसे अभी थोड़ी ही देर हुई थी कि उन के चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं.

सिपाही टीकाचंद ने हड़बड़ा कर दरवाजा खोला, तो दारोगाजी उस के ऊपर गिर पड़े. उन का हुलिया बिगड़ा हुआ था.

थोड़ी देर पहले तक सहीसलामत दारोगाजी से अब अपने पैरों पर खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. उन का सारा मुंह सूजा हुआ था. इस से पहले कि सिपाही टीकाचंद कुछ समझ पाता, उस के सामने वही लड़की आ कर खड़ी हो गई और बोली, ‘‘देख ली अपने दारोगाजी की हालत?’’

‘‘शर्म आनी चाहिए तुम लोगों को. सरकार तुम्हें यह वरदी जनता की हिफाजत करने के लिए देती है, लेकिन तुम लोग इस वरदी का नाजायज फायदा उठाते हो,’’ लड़की चिल्लाते हुए बोली.

लड़की एक पल के लिए रुकी और सिपाही टीकाचंद को घूरते हुए बोली, ‘‘तुम्हारी बदतमीजी का मजा मैं तुम्हें वहीं चखा सकती थी, लेकिन उस समय तुम ने वरदी पहन रखी थी और मैं तुम पर हाथ उठा कर वरदी का अपमान नहीं करना चाहती थी, क्योंकि यह वरदी हमारे देश की शान है और हमें इस का अपमान करने का कोई हक नहीं. पता नहीं, क्यों सरकार तुम जैसों को यह वरदी पहना देती है?’’

लड़की की इस बात से सिपाही टीकाचंद कांप उठा.

‘‘जातेजाते मैं तुम्हें अपनी पहुंच के बारे में बता दूं, मैं यहां के विधायक की बेटी हूं,’’ कह कर लड़की तुरंत थाने से बाहर निकल गई.

सिपाही टीकाचंद आंखें फाड़े खड़ा लड़की को जाते हुए देखता रहा.

दारोगाजी जमीन पर बैठे दर्द से कराह रहे थे. उन्होंने लड़की को परखने में भूल की थी, क्योंकि वह जूडोकराटे में माहिर थी. उस ने दारोगाजी की जो धुनाई की थी, वह सबक दारोगाजी के लिए अनोखा था.                   

ज्योतिष से रोजगार

किसी भी धंधे को शुरू करने के लिए आप को एक मोटी रकम को धंधे में लगाने का जोखिम उठाना पड़ता है. सरकारी सेवा क्षेत्र में जाने से पहले तमाम तरह की प्रतियोगी परीक्षाओं को ‘झेलना’ पड़ता है. चार्टर्ड अकाउंटैंट, वकील, डाक्टर, इंजीनियर वगैरह बनने के लिए बरसों तक हजारों लाखों रुपए बहा कर मोटीमोटी किताबों से दिनरात माथापच्ची कर के आप कोई डिगरी अगर हासिल कर भी लेते हैं, तो आप 15-20 हजार रुपए महीने ही कमा पाते हैं. इस के उलट ‘ज्योतिषाचार्य’ बनने के लिए आप को न तो ज्यादा रुपएपैसे खर्च करने की जरूरत है और न ही दिमाग की. बस, आप में बात करने की चालाकी व अंदाजा लगाने की लियाकत होनी चाहिए.

अगर आप शर्मीले मिजाज के हैं, तो हम आप को पहले ही बता देना चाहेंगे कि इस कमी की वजह से आप कभी भी इस क्षेत्र में कामयाबी हासिल नहीं कर पाएंगे. ज्योतिषी बनने से पहले शर्म छोड़ना उसी तरह बहुत जरूरी है, जिस तरह बीवी बनने के लिए मायके को छोड़ना. ज्योतिषाचार्य बनने के लिए सब से पहले तो आप को पैंटशर्ट छोड़ कर धोतीकुरते की ‘यूनीफार्म’ अपनानी पड़ेगी. शास्त्रों में लिखा है कि शिखा रखने से आदमी की बुद्धि तेज होती है. हर पंडित इस बात को ध्यान में रख कर ही औरतों की माफिक चोटी रखता है, इसलिए आप को भी रखनी पड़ेगी. इस के लिए आप को एक बार सिर मुंड़वाने की जरूरत भी पड़ सकती है.

अपने ललाट पर तिलक भी लगाना पड़ेगा. अगर आप का ललाट काफी चौड़ा है, तो हम आप को चंदन का बड़ा व गोल तिलक लगाने की सलाह देते हैं. अगर आप का मुंह पिचका हुआ है, तो आप अपनी धर्मपत्नी से सिंदूर ले कर, उस में थोड़ा पानी मिला कर, झाड़ू की तीली की मदद से लंबा सा तिलक, जिसे ‘श्री’ कहा जाता है, लगा सकते हैं.

आजकल बहुत तरह के तिलक चल निकले हैं. जिस तिलक को लगा कर आप की इमेज ‘ऐक्स्ट्रा और्डिनरी’ जैसी लगे, आप उसी को अपना सकते हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि इस पेशे में ऊटपटांग बोलचाल व हरकतों की बेहद अहमियत है.

आप अपना ‘ज्योतिष दफ्तर’ अपने घर के ही किसी कमरे में आराम से खोल सकते हैं. आप के घर के बाहर इस बारे में एक बोर्ड जरूर लगा होना चाहिए, ताकि लोगों को इस बात की जानकारी आसानी से हो सके.

जिस तरह किसी दिल के माहिर डाक्टर के क्लिनिक में दिल का बड़ा सा फोटो व कान के माहिर डाक्टर के यहां कान के फोटो लगे रहते हैं, उसी तरह आप के ‘दफ्तर’ में भी ‘हाथ’ का एक बड़ा सा फोटो लगा होना चाहिए.

पूरे कमरे में जहांतहां संस्कृत भाषा में लिखी सूक्तियां, मंत्रों व श्लोकों के स्टीकर चिपके होने चाहिए. भले ही इस से कमरे की शोभा खराब हो, पर ये आप के पहुंचे हुए ज्योतिषी होने की शख्सीयत में चार चांद लगा जाएंगे.

आप के दफ्तर में 4-5 तरह के पंचांग बेतरतीबी से बिखरे होने चाहिए. यह आप के बिजी होने का सुबूत होगा.

दफ्तर में सैकड़ों साल पहले लिखी हुई धर्म व कर्मकांडों की किताबों का भी अच्छाखासा संग्रह होना जरूरी है. ज्यादातर ज्योतिषियों की संतानें इतनी भ्रष्ट व कामचोर होती हैं कि वे अपने बाप का पेशा अपना नहीं पातीं. सो, अगर आप अपने शहर की किसी कबाड़ी की दुकान खंगालें, तो तमाम कीमती किताबें आप को रद्दी के भाव भी मिल सकती हैं.

इस से आप को एक फायदा और भी होगा. वह यह कि आप के ‘ग्राहकों’ की नजर जब इन पुरानी किताबों पर पड़ेगी, तो वे यही सोचेंगे कि आप ने इन किताबों का बड़ा गहरा अध्ययन किया है, तभी तो ये ग्रंथ इस हालत में हैं.

इस से आप के शहर में आप की इमेज शास्त्रों के ज्ञाता व महापंडित जैसी बनने लगेगी. भले ही आप को संस्कृत की एबीसीडी न आती हो, पर इस से आप के नाम के साथ ‘पुराणाचार्य’, ‘वेदाचार्य’ व ‘व्याकरणाचार्य’ जैसे शब्द लगने लगेंगे.

ये तो हुई बुनियादी बातें. अब जरा प्रैक्टिकल बातों को ध्यान से समझ लें.

आप अपनी बातों में संस्कृत के कुछ शब्दों को रट कर जहांतहां ‘फिट’ करने की आदत डालें. किसी आदमी के चेहरे को पढ़ कर कुछ जानने की कोशिश करें. कुछ बातें ऐसी होती हैं कि उन्हें हर किसी पर आसानी से फिट किया जा सकता है.

मसलन, आप काफी प्रतिभावान हैं, मगर यह दुख की बात है कि आप की प्रतिभा का सही इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. समाज में जो इज्जत आप को मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल रही है.

आप में काफी कुछ करगुजरने की क्षमता है, पर शनि की बुरी नजर की वजह से आप हर बार नाकाम हो रहे हैं. आप जिस क्षमता से काम कर रहे हैं, उस के मुताबिक आप को कामयाबी नहीं मिल रही है.

आप सभी से प्यार करने वाले जज्बाती इनसान हैं, पर इस के बदले आप को कभी किसी का प्यार नहीं मिल पा रहा है. उलटे आप अपनों द्वारा ही दुत्कारे जा रहे हैं.

आप कला प्रेमी, संगीत प्रेमी व खास काबिलीयत रखने वाले हैं. आप अपने वजूद की वजह से सब से अलग जानेपहचाने जाते हैं, वगैरह.

लड़कियां कुंआरी हैं या शादीशुदा, यह उन के सुहागचिह्नों की मदद से आसानी से पहचाना जा सकता है. लड़कों के संबंध में देखिए कि उस की अनामिका उंगली में कोई सोने की अंगूठी है या गले में सोने का हार है या नहीं.

जब आप के पास कोई कुंआरा लड़का आता है, तो वह यही जानना चाहेगा कि वह इम्तिहान में पास हो सकेगा या नहीं. या फिर उस के लिए कोई धंधा करना ठीक रहेगा या नौकरी.

अगर आप के पास कोई कुंआरी लड़की आती है, तो वह यकीनन अपनी शादी में आ रही अड़चनों को ले कर परेशान होगी और आप से यह जानना चाहेगी कि कौन सा ग्रह इस काम में रुकावट डाल रहा है. इस को शांत करने के लिए आप को कितना चढ़ावा देना पड़ेगा. गोया, आप ज्योतिषी न हो कर इस मृत्युलोक में सारे ग्रहों के प्रतिनिधि हो गए.

कोई शादीशुदा नौजवान यदि आए, तो वह अपनी बीवी से पीडि़त होता है. यदि कोई नवविवाहिता आए, तो वह बेचारी अपने पति के शराबी, दुर्व्यसनी व कामचोर होने की वजह से परेशान हो कर आप के पास पहुंचती है.

अगर आप के पास 25-30 साल के मियांबीवी आते हैं, तो आप सीधे ही इस नतीजे पर पहुंच जाइए कि उन को संतानसुख की प्राप्ति नहीं हो पा रही है.

इस के लिए पहले तो आप उन दोनों की कुंडली मिलाने के बहाने ‘मोटी फीस’ झटक सकते हैं. बाद में उन्हें बता सकते हैं कि क्या करने से संतान योग बनता दिख रहा है. इस के लिए ऐसा अनुष्ठान आदि का काम चुनें, जिस से कि आप को लंबा फायदा हो.

आप अपने पास पहुंचे ग्राहक की आंखों को ध्यान से देखिए, अगर वे गहरी लाल हैं और उन के नीचे गहरे काले गड्ढे भी हैं, तो वह आदमी बीमार ही नहीं, बल्कि अनिद्रा का भी शिकार होता है. ऐसे आदमी शारीरिक रूप से कम व दिमागी रूप से ज्यादा बीमार होते हैं. ऐसे लोगों के घर जा कर आप कोई जाप कर के कमाई कर सकते हैं.

पीडि़त आदमी आप को अपने घर से भोजन करा कर ही जाने देगा. ऐसे में आप अपना मनचाहा भोजन यह कह कर उस से बनवा सकते हैं कि अमुक भोजन ऊपर वाले को बहुत प्रिय है और इस का भोग लगाने से वे शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं.

एक कहावत है कि सेठ, जेठ और ब्राह्मण का पेट बड़ा ही होता है. ब्राह्मणों को खुद का कमाया भोजन रास नहीं आता है और यह भोजन उन के शरीर को भी नहीं लग पाता है. ऐसे में मजबूत बदन बनाने के लिए यजमान के भोजन पर निर्भर रहना बहुत जरूरी होता है. इसलिए यजमान को उपाय बताते समय ‘ब्राह्मण भोज’ की बात जरूर बतानी चाहिए.

आप के पास रिटायर होने की उम्र में कोई आदमी पहुंचता है, तो वह निश्चित रूप से अपने बेटेबहुओं की अनदेखी का शिकार होता है.

सावधान रहें, ऐसा भी हो सकता है कि वह कोई सरकारी मुलाजिम रहा हो या उस की पेंशन अटकी पड़ी हो.

शुरूशुरू में आप को थोड़ी दिक्कत जरूर आ सकती है, पर 2-4 साल बाद आप अंदाजा लगाने में इतने माहिर हो जाएंगे कि आप का अंधेरे में छोड़ा गया तीर भी निशाने पर जा लगेगा. आप की आंखों की काबिलीयत किसी ‘ऐक्सरे मशीन’ जैसी बन जाएगी. कामयाबी आप के कदम चूमेगी.

आप के द्वारा यजमानों का सही भविष्यफल बता देने से वे आप के परमभक्त बन जाएंगे. वे आप के चलतेफिरते इश्तिहार भी साबित होंगे. इस से आप के दफ्तर में यजमानों की भीड़ लग जाएगी और आप डाक्टरों, वकीलों आदि की जलन की वजह बन जाएंगे.

इस धंधे का सब से बड़ा फायदा तो यह है कि यह तेजी व मंदी से बेअसर रहता है. उलटे ऐसे समय में जो लोग इस से पीडि़त होंगे, वे सभी आप की ही ‘शरण’ में आएंगे. सो, ऐसे उलट समय में भी आप का कारोबार अच्छाखासा चलता रहेगा.

तो जनाब, देरी किस बात की है  आज ही अपना कोई अच्छा सा नामकरण कर लीजिए और आज के जमाने में सब से ज्यादा मुनाफा देने वाला ज्योतिष का ‘धंधा’ शुरू कर दीजिए.

रज्जो – सुरेंद्र और माधवी की चाल

रज्जो रसोईघर का काम निबटा कर निकली, तो रात के 10 बज रहे थे. वह अपने कमरे में जाने से पहले सुरेंद्र के कमरे में पहुंची. वह उस समय बिस्तर पर आंखें बंद किए लेटा था.

‘‘साहबजी, मैं कमरे पर सोने जा रही हूं. कुछ लाना है तो बताइए?’’ रज्जो ने सुरेंद्र की ओर देखते हुए पूछा.

सुरेंद्र ने आंखें खोलीं और अपने माथे पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘रज्जो, आज सिर में बहुत दर्द हो रहा है.’’

‘‘मैं आप के माथे पर बाम लगा कर दबा देती हूं,’’ रज्जो ने कहा और अलमारी में रखी बाम की शीशी ले आई. वह सुरेंद्र के माथे पर बाम लगा कर सिर दबाने लगी.

कुछ देर बाद रज्जो ने पूछा, ‘‘अब कुछ आराम पड़ा?’’

‘‘बहुत आराम हुआ है रज्जो, तेरे हाथों में तो जादू है,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने अपना सिर रज्जो की गोद में रख दिया.

रज्जो सिर दबाने लगी. वह महसूस कर रही थी कि एक हाथ उस की कमर पर रेंग रहा है. उस ने सुरेंद्र की ओर देखा.

सुरेंद्र बोला, ‘‘रज्जो, यहां रहते हुए तू किसी बात की चिंता मत करना. तुझे किसी चीज की कमी नहीं रहेगी. जब कभी जितने रुपए की जरूरत पड़े, तो बता देना.’’

‘‘जी साहब.’’

‘‘आज तेरी मैडम लखनऊ गई हैं. वहां जरूरी मीटिंग है. 4 दिन बाद वापस आएंगी,’’ कह कर सुरेंद्र ने उसे अपनी ओर खींच लिया.

रज्जो समझ गई कि सुरेंद्र की क्या इच्छा है. वह बोली, ‘‘नहीं साहबजी, ऐसा न करो. मुझे तो मां-काका ने आप की सेवा करने के लिए भेजा है.’’

‘‘रज्जो, यह भी तो सेवा ही है. पता नहीं, आज क्यों मैं अपनेआप पर काबू नहीं रख पा रहा हूं?’’ सुरेंद्र ने रज्जो की ओर देखते हुए कहा.

‘‘साहबजी, अगर मैडम को पता चल गया तो?’’ रज्जो घबरा कर बोली.

‘‘उस की चिंता मत करो. वह कुछ नहीं कहेगी.’’

रज्जो मना नहीं कर सकी और न चाहते हुए भी सुरेंद्र की बांहों समा गई.

कुछ देर बाद जब रज्जो अपने कमरे में आ कर बिस्तर पर लेटी, तो उस की आंखों से नींद भाग चुकी थी. उस की आंखों के सामने मां-काका, 2 छोटी बहनों व भाई के चेहरे नाचने लगे.

यहां से 3 सौ किलोमीटर दूर रज्जो का गांव चमनपुर है. काका राजमिस्त्री का काम करता है. महीने में 10-15 दिन मजदूरी पर जाता है, क्योंकि रोजाना काम नहीं मिलता.

रज्जो तो 5 साल पहले 10वीं जमात पास कर के स्कूल छोड़ चुकी थी. उस की 2 छोटी बहनें व भाई पढ़ रहे थे. मां ने उस का नाम रजनी रखा था, पर पता नहीं, कब वह रजनी से रज्जो बन गई.

एक दिन गांव की प्रधान गोमती देवी ने मां को बुला कर कहा था, ‘मुझे पता चला है कि तेरी बेटी रज्जो तेरी तरह बहुत बढि़या खाना बनाती है. तू उसे सुबह से शाम तक के लिए मेरे घर भेज दे.’

‘ठीक है प्रधानजी, मैं रज्जो को भेज दूंगी,’ मां ने कहा था.

2 दिन बाद रज्जो ने गोमती प्रधान के घर की रसोई संभाल ली थी.

एक दिन एक बड़ी सी कार गोमती प्रधान के घर के सामने रुकी. कार से सुरेंद्र व उस की पत्नी माधवी मैडम उतरे. कार पर लाल बत्ती लगी थी. गोमती प्रधान की दूर की रिश्तेदारी में माधवी मैडम बहन लगती थीं.

दोपहर का खाना खा कर सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को बुला कर कहा, ‘तुम बहुत अच्छा खाना बनाती हो. हमें तुम जैसी लड़की की जरूरत है. क्या तुम हमारे साथ चलोगी? जैसे तुम यहां खाना बनाती हो, वैसा ही तुम्हें वहां भी रसोई में काम करना है.’

रज्जो चुप रही.

गोमती प्रधान बोल उठी थीं. ‘यह क्या कहेगी? इस के मां-काका को कहना पड़ेगा.’

कुछ देर बाद ही रज्जो के मां-काका वहां आ गए थे.

गोमती प्रधान बोलीं, ‘रामदीन, यह मेरी बहन है. सरकार में एक मंत्री की तरह हैं. इस को रज्जो के हाथ का बना खाना बहुत पसंद आया, तो ये लोग इसे अपने घर ले जाना चाहते हैं रसोई के काम के लिए.’

‘रामदीन, बेटी रज्जो को भेज कर बिलकुल चिंता न करना. हम इसे पूरा लाड़प्यार देंगे. रुपएपैसे हर महीने या जब तुम चाहोगे भेज देंगे,’ माधवी मैडम ने कहा था.

‘साहबजी, आप जैसे बड़े आदमी के यहां पहुंच कर तो इस की किस्मत ही खुल जाएगी. यह आप की सेवा खूब मन लगा कर करेगी. यह कभी शिकायत का मौका नहीं देगी,’ काका ने कहा था.

सुरेंद्र ने जेब से कुछ नोट निकाले और काका को देते हुए कहा, ‘लो, फिलहाल ये पैसे रख लो. हम लोग हर तरह  से तुम्हारी मदद करेंगे. यहां से लखनऊ तक कोई भी सरकारी या गैरसरकारी काम हो, पूरा करा देंगे. अपनी सरकार है, तो फिर चिंता किस बात की.’

रज्जो उसी दिन सुरेंद्र व माधवी के साथ इस कसबे में आ गई थी.

सुरेंद्र की बहुत बड़ी कोठी थी, जिस में कई कमरे थे. एक कमरा उसे भी दे दिया गया था. माधवी मैडम ने उस को कई सूट खरीद कर दिए थे. उसे एक मोबाइल फोन भी दिया था, ताकि वह अपने घरपरिवार से बात कर सके.

रज्जो को पता चला था कि सुरेंद्र की काफी जमीनजायदाद है. एक ही बेटा है, जो बेंगलुरु में पढ़ाई कर रहा है.

माधवी मैडम बहुत बिजी रहती हैं. कभी पार्टी मीटिंग में, तो कभी इधरउधर दूसरे शहरों में और कभी लखनऊ में.

इन्हीं विचारों में डूबतेतैरते रज्जो को नींद आ गई थी. अगले दिन सुरेंद्र ने रज्जो को कमरे में बुला कर कुछ गोलियां देते हुए कहा, ‘‘रज्जो, ये गोलियां तुझे खानी हैं. रात जो हुआ है, उस से तेरी सेहत को नुकसान नहीं होगा.’’

‘‘जी…’’ रज्जो ने वे गोलियां देखीं. वह जान गई कि ये तो पेट गिराने वाली गोलियां हैं.

‘‘और हां रज्जो, कल अपने घर ये रुपए मनीऔर्डर से भेज देना,’’ कहते हुए सुरेंद्र ने 5 हजार रुपए रज्जो को दिए.

‘‘इतने रुपए साहबजी…?’’ रज्जो ने रुपए लेते हुए कहा.

‘‘अरे रज्जो, ये रुपए तो कुछ भी नहीं हैं. तू हम लोगों की सेवा कर रही है न, इसलिए मैं तेरी मदद करना चाहता हूं.’’

रज्जो सिर झुका कर चुप रही.

सुरेंद्र ने रज्जो का चेहरा हाथ से ऊपर उठाते हुए कहा, ‘‘तुझे कभी अपने गांव जाना हो, तो बता देना. ड्राइवर और गाड़ी भेज दूंगा.’’

सुन कर रज्जो बहुत खुश हुई.

‘‘रज्जो, तू मुझे इतनी अच्छी लगती है कि अगर मैडम की जगह मैं मंत्री होता, तो तुझे अपना पीए बना लेता,’’ सुरेंद्र ने कहा.

‘‘रहने दो साहबजी, मुझे ऐेसे सपने न दिखाओ, जो मैं रोटी बनाना ही भूल जाऊं.’’

‘‘रज्जो, तू नहीं जानती कि मैं तेरे लिए क्या करना चाहता हूं,’’ सुरेंद्र ने कहा.

खुशी के चलते रज्जो की आंखों की चमक बढ़ गई.

4 दिन बाद माधवी मैडम घर लौटीं. इस बीच हर रात को सुरेंद्र रज्जो को अपने कमरे में बुला लेता और रज्जो भी पहुंच जाती, उसे खुश करने के लिए.

अगले दिन रज्जो एक कमरे के बराबर से निकल रही थी, तो सुरेंद्र व माधवी की बातचीत की आवाज आ रही थी. वह रुक कर सुनने लगी.

‘‘कैसी लगी रज्जो?’’ माधवी ने पूछा.

‘‘ठीक है, बढि़या खाना बनाती है,’’ सुरेंद्र का जवाब था.

‘‘मैं रसोई की नहीं, बैडरूम की बात कर रही हूं. मैं जानती हूं कि रज्जो ने इन रातों में कोई नाराजगी का मौका नहीं दिया होगा.’’

‘‘तुम्हें क्या रज्जो ने कुछ बताया है?’’

‘‘उस ने कुछ नहीं बताया. मैं उस के चेहरे व आंखों से सच जान चुकी हूं.

‘‘खैर, मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं. तुम कहा करते थे कि मैं बाहर चली जाती हूं, तो अकेले रात नहीं कटती, इसलिए ही तो रज्जो को इतनी दूर से यहां लाई हूं, ताकि जल्दी से वापस घर न जा सके.’’

‘‘तुम बहुत समझदार हो माधवी…’’ सुरेंद्र ने कहा, ‘‘लखनऊ में तुम्हारे नेताजी के क्या हाल हैं? वह तो बस तुम्हारा पक्का आशिक है, इसलिए ही तो उस ने तुम्हें लाल बत्ती दिला दी है.’’

‘‘इस लाल बत्ती के चलते हम लोगों का कितना रोब है. पुलिस या प्रशासन में भला किस अफसर की इतनी हिम्मत है, जो हमारे किसी भी ठीक या गलत काम को मना कर दे.’’

‘‘नेताजी का बस चले तो वह तुम्हें लखनऊ में ही हमेशा के लिए बुला लें.’’

‘‘अगले हफ्ते नेताजी जनपद में आ रहे हैं. रात को हमारे यहां खाना होगा. मैं ने सोचा है कि नेताजी की सेवा में रात को रज्जो को उन के पास भेज दूंगी.

‘‘जब नेताजी हमारा इतना खयाल रखते हैं, तो हमारा भी तो फर्ज बनता है कि नेताजी को खुश रखें. अगले महीने रज्जो को लखनऊ ले जाऊंगी, वहां 2-3 दूसरे नेता हैं, उन को भी खुश करना है,’’ माधवी ने कहा.

सुनते ही रज्जो के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. वह चुपचाप रसोई में जा पहुंची. उस ने तो साहब को ही खुश करना चाहा था, पर ये लोग तो उसे नेताओं के पास भेजने की सोच बैठे हैं. वह ऐसा नहीं करेगी. 1-2 दिन बाद ही वह अपने गांव चली जाएगी.

तभी मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. वह बोली, ‘‘हैलो…’’

‘‘हां रज्जो बेटी, कैसी है तू?’’ उधर से काका की आवाज सुनाई दी.

काका की आवाज सुन कर रज्जो का दिल भर आया. उस के मुंह से आवाज नहीं निकली और वह सुबकने लगी.

‘‘क्या हुआ बेटी? बता न? लगता है कि तू वहां बहुत दुखी है. पहले तो तू साहब व मैडम की बहुत तारीफ किया करती थी. फिर क्या हो गया, जो तू रो रही है?’’

‘‘काका, मैं गांव आना चाहती हूं.’’

‘‘ठीक है रज्जो, मेरा 2 दिन का काम और है. उस के बाद मैं तुझे लेने आ जाऊंगा. मैं जानता हूं कि मैडम व साहब बहुत अच्छे लोग हैं. तुझे भेजने को मना नहीं करेंगे. तू हमारी चिंता न करना. यहां सब ठीक है. तेरी मां, भाईबहनें सब मजे में हैं,’’ काका ने कहा.

रज्जो चुप रही.

अगले दिन सुरेंद्र व माधवी ने रज्जो को कमरे में बुलाया.

सुरेंद्र ने कहा, ‘‘रज्जो, 4-5 दिन बाद लखनऊ से बहुत बड़े नेताजी आ रहे हैं. यह हमारा सौभाग्य है कि वे हमारे यहां खाना खाएंगे और रात को आराम भी यहीं करेंगे.’’

‘‘जी…’’ रज्जो के मुंह से निकला.

‘‘रात को तुम्हें नेताजी की सेवा करनी है. उन को खुश करना है. देखना रज्जो, अगर नेताजी खुश हो गए तो…’’ माधवी की बात बीच में ही अधूरी रह गई.

रज्जो एकदम बोल उठी, ‘‘नहीं मैडमजी, यह मुझ से नहीं होगा. यह गलत काम मैं नहीं करूंगी.’’

‘‘और मेरे पीठ पीछे साहबजी के साथ रात को जो करती रही, क्या वह गलत काम नहीं था?’’

रज्जो सिर झुकाए बैठी रही, उस से कोई जवाब नहीं बन पा रहा था.

‘‘रज्जो, तू हमारी बात मान जा. तू मना मत कर,’’ सुरेंद्र बोला.

‘‘साहबजी, ये नेताजी आएंगे, इन को खुश करना है. फिर कुछ नेताओं को खुश करने के लिए मुझे मैडमजी लखनऊ ले कर जाएंगी. मैं ने आप लोगों की बातें सुन ली हैं. मैं अब यह गलत काम नहीं करूंगी. मैं अपने घर जाना चाहती हूं. 2 दिन बाद मेरे काका आ रहे हैं,’ रज्जो ने नाराजगी भरे शब्दों में कहा.

‘‘अगर हम तुझे गांव न जाने दें तो…?’’ माधवी ने कहा.

‘‘तो मैं थाने जा कर पुलिस को और अखबार के दफ्तर में जा कर बता दूंगी कि आप लोग मुझ से जबरदस्ती गलत काम कराना चाहते हैं,’’ रज्जो ने कड़े शब्दों में कहा.

रज्जो के बदले तेवर देख कर सुरेंद्र ने कहा, ‘‘ठीक है रज्जो, हम तुझ से कोई काम जबरदस्ती नहीं कराएंगे. तू अपने काका के साथ गांव जा सकती है,’’ यह कह कर सुरेंद्र ने माधवी की ओर देखा.

उसी रात सुरेंद्र ने रज्जो की गला दबा कर हत्या कर दी और ड्राइवर से कह कर रज्जो की लाश को नदी में फिंकवा दिया. दिन निकलने पर इंस्पैक्टर को फोन कर के कोठी पर बुला लिया.

‘‘कहिए हुजूर, कैसे याद किया?’’ इंस्पैक्टर ने आते ही कहा.

‘‘हमारी नौकरानी रजनी उर्फ रज्जो घर से एक लाख रुपए व कुछ जेवरात चुरा कर भाग गई है.’’

‘‘सरकार, भाग कर जाएगी कहां वह? हम जल्द ही उसे पकड़ लेंगे,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और कुछ देर बाद चला गया.

दोपहर बाद रज्जो का काका रामदीन आया. सुरेंद्र ने उसे देखते ही कहा, ‘‘अरे ओ रामदीन, तेरी रज्जो तो बहुत गलत लड़की निकली. उस ने हम लोगों से धोखा किया है. वह हमारे एक लाख रुपए व जेवरात ले कर कल रात कहीं भाग गई है.’’

‘‘नहीं हुजूर, ऐसा नहीं हो सकता. मेरी रज्जो ऐसा नहीं कर सकती,’’ घबरा कर रामदीन बोला.

‘‘ऐसा ही हुआ है. वह यहां से चोरी कर के भाग गई है. जब वह गांव में अपने घर पहुंचे तो बता देना. थाने में रिपोर्ट लिखा दी है. पुलिस तेरे घर भी पहुंचेगी.

‘‘अगर तू ने रज्जो के बारे में न बताया, तो पुलिस तुम सब को उठा कर जेल भेज देगी.

‘‘और सुन, तू चुपचाप यहां से भाग जा. अगर पुलिस को पता चल गया कि तू यहां आया है, तो पकड़ लिया जाएगा.’’

यह सुन कर रामदीन की आंखों में आंसू आ गए. रज्जो के लिए उस के दिल में नफरत बढ़ने लगी. वह रोता हुआ बोला, ‘‘रज्जो, यह तू ने अच्छा नहीं  किया. हम ने तो तुझे यहां सेवा करने के लिए भेजा था और तू चोर बन गई.’’

रामदीन रोतेरोते थके कदमों से कोठी से बाहर निकल गया.

मजबूर

थाने के करीब आते ही उस की चाल में धीमापन आ गया.  तेजतेज चलने से मेवा का कसा हुआ ब्लाउज पसीने से तरबतर हो कर गोलाइयों से चिपक गया था. सामने गेट पर बड़ीबड़ी मूंछों वाला संतरी खड़ा था. उस की कामुक नजरें मेवा के बदन से चिपके ब्लाउज पर फिसल रही थीं. उस ने सुलगती बीड़ी का गहरा कश भरा और धीरेधीरे चलता हुआ डरीसहमी मेवा के करीब आ गया. यह देख मेवा घबरा गई. उस की काली चमकती आंखों में दहशत भर उठी थी. उस ने कई जवान औरतों से सुना भी था कि पुलिस वाले बहुत बदमाश होते हैं. फिर भी डरते हुए वह थाने तक आ गई थी.

पुलिस वाले की प्यासी नजरें उस की गदराई जवानी पर फिसल रही थीं.

‘‘यहां क्यों आई है. मुझे बता.’’

वह वहीं चुपचाप खड़ी रही.

‘‘अरे, बोलती क्यों नहीं? गूंगी है क्या?’’ सामने खड़े पुलिस वाले ने कड़कती आवाज में पूछा, ‘‘किसी ने तंग किया है तुझ को? बता मुझे.’’

‘‘थानेदार साहब, ऐसा नहीं है,’’ मेवा ने कांपती आवाज में कहा.

‘‘फिर रास्ते में अकेली देख कर किसी ने पकड़ लिया होगा? तू डर मत, मुझे साफसाफ बता दे. एक घंटे बाद मेरी ड्यूटी खत्म हो रही है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है थानेदारजी, मैं तो दूसरी फरियाद ले कर आई हूं जी,’’ मेवा सहज आवाज में बोली.

पुलिस वाला अभी जाल फेंक ही रहा था कि अंदर से असली थानेदार राम सिंह जीप स्टार्ट कर के निकला.

थानेदार राम सिंह जीप रोकते हुए  बोला, ‘‘अरे नफे सिंह, यह लड़की कौन है?’’

‘‘साहबजी, यह… यह…’’ पहरे पर खड़ा संतरी कुछ बोलता, उस से पहले ही मेवा ने कहा, ‘‘साहबजी, मैं हरिया की घरवाली हूं. उसे पुलिस ने पकड़ रखा है. हुजूर, मेरे हरिया को छोड़ दो. वह बेकुसूर है.’’

‘‘ओह… तुम चरसगांजा और नकली नोटों की सप्लाई करने वाले हरिया की जोरू हो.’’

‘‘हां साहब… हां,’’ कहते हुए मेवा की आंखों में चमक उभरी.

थानेदार ने देखा कि मेवा के गोलगोल उभारों पर जवानी हिलोरें ले रही थी.

‘‘चल, अपनी झोंपड़ी की तलाशी लेने दे. जरूर तुम ने माल छिपा रखा होगा. चल बैठ गाड़ी में,’’ थानेदार ने रोब जमाया.

‘‘साहबजी… अगर झोंपड़ी से कुछ नहीं मिला, तो मेरे हरिया को छोड़ देंगे?’’ मेवा ने हाथ जोड़ते हुए पूछा.

‘‘हां, छोड़ देंगे…’’ थानेदार ने कहा, तो मेवा गाड़ी में बैठ गई.

संतरी ने मन ही मन थानेदार को भद्दी सी गाली दी.

थानेदार राम सिंह ने अगले चौराहे पर ड्राइवर को उतार दिया. फिर वह अकेला ही मेवा को ले कर झोंपड़पट्टी की ओर चल दिया.

दोपहरी में सभी अपनीअपनी झोंपड़ी में आराम कर रहे थे. एक मामूली सी झोंपड़ी के सामने जीप रुकी.

थानेदार ने उतर कर सारी झोंपड़ी की तलाशी ली. वहां उसे कोई भी गलत चीज नहीं मिली.

मेवा सोच रही थी कि अब थानेदार उस के हरिया को छोड़ देगा. वह हाथ जोड़ कर फरियाद करने लगी.

‘‘देख छोकरी, यह दुनिया कुछ लेदे कर चलती है. तुम अगर अपने हरिया को छुड़ाना चाहती हो, तो इन पर से परदा उठा दो,’’ राम सिंह का संकेत उस के कसे उभारों की तरफ था.

‘‘मेरा हरिया घर आ जाएगा न?’’ मेवा गिड़गिड़ा उठी.

‘‘हां… हां, जरूर आ जाएगा,’’ कहते हुए राम सिंह आगे बढ़ा.

थोड़ी देर बाद थानेदार अपने कपड़े दुरुस्त करता हुआ झोंपड़ी से बाहर आया, जीप स्टार्ट की और चला गया.

मेवा बेचारी लुट गई थी, मगर करती भी क्या. उस की अपनी मजबूरी थी.

उस की बूढ़ी मां बीमार थी. घर में कोई इलाज कराने वाला नहीं था. उस का बड़ा भाई जहरीली शराब पीने से मर गया था. छोटा भाई नशीली चीजें बेचने के जुर्म में जेल में था. घर में कमाई करने वाला कोई नहीं था. हरिया ने उसे बीवी बनाने के एवज में मां के इलाज की जिम्मेदारी ली थी. मेवा ने जिंदगी से समझौता कर लिया था.

मेवा ने कभी यह जानने की कोशिश ही नहीं की थी कि असल में हरिया क्या काम करता  है. अब उस ने सोच लिया था कि हरिया एक बार घर लौट आए, तो उसे गलत काम करने से रोकेगी.

आज जोकुछ हुआ, मेवा उसे एक बुरा सपना समझ कर भूलना चाहती थी.

मेवा भूखीप्यासी पति को छुड़ाने के लिए मारीमारी फिर रही थी. उस ने हाथ जोड़े, पैर पकड़े, फिर भी थानेदार ने उसे मजबूर कर दिया था.

मेवा अगली सुबह तड़के ही थाने के गेट पर पहुंच गई. उस समय पहरे पर दूसरा संतरी खड़ा था.

मेवा ने महसूस किया कि उस की भी कामुक निगाहें उस के उभारों पर फिसल रही हैं. लेकिन वह बेपरवाह हो कर आगे बढ़ी. उस ने तो बड़े थानेदार से बात कर रखी थी. कल उस की झोंपड़ी में कैसे मिमिया रहा था…

‘‘अरे… रे… कौन है तू… अंदर कहां भागी जा रही है?’’ संतरी गुर्राते हुए आगे लपका. तब तक मेवा भाग कर थानेदार के दफ्तर तक पहुंच गई थी.

दफ्तर के बाहर शोर सुन कर थानेदार बाहर आ गया. वह मेवा को पहचान तो गया था, फिर भी अनजान बनते हुए दहाड़ा, ‘‘अरे धूल सिंह, यह औरत कौन है? इसे बाहर निकालो.’’

मेवा ने थानेदार की दहाड़ की तरफ ध्यान नहीं दिया. वह गिड़गिड़ाते हुए फरियाद करने लगी, ‘‘साहबजी, मेरे हरिया को छोड़ दो… 2 दिन से घर में चूल्हा नहीं जला. मां बीमार है. हमारा दूसरा कोई सहारा नहीं है. मुझ पर दया करो साहबजी. कल आप ने कहा भी था…’’ मेवा थानेदार के पैरों में झुक गई.

‘‘अरे भई… यहां शोर न करो… यह थाना है… मैं कोशिश कर के देखता हूं. मेरे ऊपर भी अफसर हैं,’’ थानेदार राम सिंह कहते हुए दफ्तर में घुसा, तभी फोन की घंटी घनघना उठी.

‘हैलो थानेदार राम सिंह…’

‘‘बोल रहा हूं सर… क्या हरिया को सीबीआई के हवाले कर दूं… कोई खास बात सर?’’ थानेदार ने पूछा.

वह तो हरिया के बारे में बात करना चाहता था, मगर यहां तो पासा ही पलट गया था.

‘‘राम सिंह, सीबीआई से सूचना मिली है कि हरिया माफिया सरगना इब्राहिम के गैंग से ताल्लुक रखता है. हरिया को छुड़ाने के लिए थाने पर हमला भी हो सकता है. तुम्हारे पास जवान भी कम हैं, इसलिए फौरन हरिया को थाने से निकाल लाओ,’’ दूसरी तरफ से सख्त आदेश था.

‘‘ठीक है सर,’’ कहते हुए राम सिंह तेजी से दफ्तर से बाहर निकला, तो मेवा एक बार फिर से गिड़गिड़ा उठी. शायद उसे पूरी उम्मीद थी कि उस का हरिया छूट जाएगा.

फोन पर बातचीत के दौरान उस ने बारबार हरिया के नाम का जिक्र सुना था. साथ ही, कल उस ने साहब को खुश भी किया था.

‘‘अरे धूल सिंह, इसे धक्के मार कर गेट से बाहर निकाल दे. हम इस के बाप के नौकर थोड़े ही हैं. पहले तो अंडरवर्ल्ड के लिए काम करते हैं, फिर हाथपैर जोड़ते हैं,’’ राम सिंह ने सामने खड़े सिपाही से कहा.

‘‘नफे सिंह, जीप स्टार्ट करो… हरिया को सैंट्रल जेल ले जाना है. यह तो हमें भी मरवाएगा,’’ कहते हुए राम सिंह 3 जवानों के साथ हवालात की तरफ बढ़ गया.

रोतीचिल्लाती मेवा को पहरेदार ने गेट से बाहर धकिया दिया. उस ने मेवा को एकाध थप्पड़ मार कर चेतावनी दी, ‘‘अगर ज्यादा हंगामा करेगी, तो हरिया को उम्रकैद हो जाएगी. अगर चुपचाप चली जाएगी, तो 4-5 दिन बाद हरिया अपनेआप घर आ जाएगा. तुझे यहां आने की जरूरत नहीं.’’

बेचारी मेवा लुटीपिटी रोतेसिसकते हुए गेट से बाहर निकाल दी गई थी.

पुलिस मददगार के बजाय दुश्मन बन गई थी. हरिया ने भी उसे धोखा दिया था. अगर उसे अपराध करना था, तो मेवा को जिंदगी के सपने दिखाने और उस की बीमार मां की जिम्मेदारी लेने की क्या जरूरत थी?

मेवा को थानेदार और हरिया में कोई फर्क नजर नहीं आ रहा था. दोनों ने उसे धोखा दिया था. दोनों ने उस की जवानी को लूटा और गुम हो गए.

सोमालिया में सौंदर्य प्रतियोगिता यानी धार्मिक कट्टरता से निकलने की छटपटाहट

मुसलिम रूढ़िवादी देश सोमालिया जहां औरतें सिर से पांव तक नकाब में लिपटी होती हैं वहां रैंप पर जिस्म उघाडू पोशाक में कैटवौक की कल्पना करना मुश्किल है, मगर औरतों ने इसे मुमकिन कर दिखाया.

 

15 जुलाई की रात जब 2024 यूरो कप का फाइनल मुकाबला इंगलैंड और स्पेन के बीच बर्लिन के ओलम्पिया स्टेडियम में खेला जा रहा था और पूरी दुनिया अपने घरों में टीवी स्क्रीन में मुंह घुसाए बैठी थी, उस समय मुसलिम देश सोमालिया में 2 घटनाएं एकसाथ घटीं. पहली सोमालिया की राजधानी मोगादिशु के समुद्रतट पर बने एक होटल में सौंदर्य प्रतियोगिता और दूसरी उस होटल से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर टौप कौफ़ी रैस्टोरैंट के बाहर हुआ कार बम धमाका जिस में 5 लोग मारे गए और 20 से ज्यादा घायल हुए.

सोमालिया एक ऐसा मुसलिम देश है जो जीवन की विखंडित प्रकृति को उजागर करता है. उग्रवादी इसलामी समूह अलशबाब, जो वहाबी इसलाम का समर्थक है और जिस ने 15 वर्षों से अधिक समय से सोमालिया के अधिकांश भाग पर नियंत्रण कर रखा है, का मकसद सोमालिया सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकना है. अलशबाब का पूरा नाम हरकत अलशबाब अलमुजाहिदीन है. यह चरमपंथी गुट वर्ष 2006 में अस्तित्व में आया था और इस ने कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया. अमेरिका ने 2008 में अलशबाब को एक दुर्दांत आतंकी संगठन घोषित किया था. वर्ष 2012 में अलकायदा में इस का विलय हो गया था. अलशबाब अरबी भाषा का शब्द है, जिस का अर्थ है ‘युवावस्था या तरक्की का दौर’. लेकिन यह अपने नाम से बिलकुल उलट सोमालिया की तरक्की में लगातार बाधा बन रहा है. सोमालिया में सौंदर्य प्रतियोगिता के वक़्त हमले की जिम्मेदारी इसी गुट ने ली.

अलशबाब की गिनती दुनिया के खतरनाक आतंकी संगठनों में होती है. इस का नाता पाकिस्तानी आतंकी संगठन अलकायदा, नाइजीरिया के बोको हरम और आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों के साथ भी माना जाता है. इस संगठन में कई खूंखार और खतरनाक आतंकवादी हैं. इस के कई आतंकियों पर करोड़ों डौलर का इनाम घोषित है. ये ऐसे आतंकी हैं जो आत्मघाती हमलों को भी अंजाम देने के लिए तैयार रहते हैं. यानी, इन्हें फर्क नहीं पड़ता कि हमले में इन की जान चली जाए. अपने मकसद के लिए ये किसी भी हद तक गुजरने को तैयार होते हैं.

ऐसे में आतंकवादियों से भरे और सांस्कृतिक रूप से रूढ़िवादी देश सोमालिया में स्त्री सौंदर्य प्रतियोगिता करवाना एक बहुत बड़े साहस का काम है. जहां औरतें सिर से पांव तक नकाब में लिपटी होती हैं वहां रैंप पर जिस्मउघाडू पोशाक में कैटवौक की कल्पना करना मुश्किल है, मगर औरतों ने इसे मुमकिन कर दिखाया.
गौरतलब है कि सोमालिया नियमित रूप से महिलाओं के लिए दुनिया की सब से खराब जगहों की सूची में सब से ऊपर रहा है. लेकिन जिस तरह पाकिस्तान के ख़ैबरपख़्तूनख़्वा प्रांत के स्वात जिले में स्थित मिंगोरा शहर की मलाला यूसुफजई ने 11 वर्ष की नन्ही सी उम्र में स्वात पर क्रूर और रूढ़िवादी तालिबान के कब्जे के दौरान स्त्रीजीवन की हकीकत को उजागर करने के लिए छद्म नाम गुल मकाई के तहत ब्लौग लिखने की शुरुआत की थी और 17 साल की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते अपनी मातृभूमि स्वात में महिलाओं व बच्चों की शिक्षा के लिए एक मशाल बन गई थी, बिलकुल वैसे ही सोमालिया में इसलामी कट्टरवाद को ललकारते हुए हनी आब्दी गैस ने 2021 में मिस सोमालिया प्रतियोगिता की शुरुआत की थी.

हनी आब्दी गैस केन्या के दादाब शरणार्थी शिविर में पलीबढ़ी, जहां हज़ारों अन्य सोमालियाई लोग युद्ध और सूखे से बच कर भागे थे व शरणार्थी के रूप में रह रहे थे. गैस 2020 में अपने वतन लौट आईं. महिलाओं की मुक्ति के लिए गैस लगातार काम कर रही हैं और इस सौंदर्य प्रतियोगिता के आयोजन का मकसद भी महिलाओं की आवाज को उठाना और उन्हें धार्मिक कट्टरता व अलगाव से बाहर निकालना है. गैस मानती हैं कि इस तरह की प्रतियोगिताओं से एकता और सशक्तीकरण को बढ़ावा मिलता है.

गैस चाहती हैं कि सोमालिया की औरतें भी बाकी दुनिया के साथ विश्व स्तर पर होने वाली सौंदर्य प्रतियोगिताओं में शामिल हों. वे अलगअलग पृष्ठभूमि से आने वाली महिलाओं की आकांक्षाओं और उन के सपनों का जश्न मनाना चाहती हैं. उन के अंदर आत्मविश्वास बढ़ाना चाहती हैं और दुनियाभर में सोमाली संस्कृति की पहचान कायम करना चाहती हैं. उन के इस मकसद से सैकड़ों सोमाली महिलाएं जुड़ चुकी हैं. जान कर आश्चर्य होता है कि उस रात रैंप पर अपने सौंदर्य का जलवा बिखेरने वाली महिलाओं में एक महिला पुलिसकर्मी भी शामिल थी.

इस सौंदर्य प्रतियोगिता का ताज आइशा इकोव नाम की सुंदरी के सिर सजा. आइशा विश्वविद्यालय की स्टूडैंट हैं और साथ ही, मेकअप कलाकार भी हैं. उन्होंने इस प्रतियोगिता में दक्षिणपश्चिम राज्य का प्रतिनिधित्व किया था. 24 वर्षीया आइशा इकोव ने उस रात भड़कीला, चुस्त और उभारों को रेखांकित करने वाला फुल आस्तीन का सुनहरा गाउन पहना था. उन के साथ अन्य प्रतियोगियों के गाउन भी कुछ ऐसे ही भड़कीले व शरीर के कर्व्स को उजागर करने वाले थे, जो आमतौर पर सोमाली महिलाओं द्वारा पहने जाने वाले गहरे, उदास रंग के वस्त्रों और नकाब से बिलकुल उलट थे.

आइशा इकोव ने जब प्रतियोगिता में जीत का ताज अपने सिर पर पहना तो उन का पहला वाक्य जो हौल में गूंजा, वह था- “मैं इस उपलब्धि का इस्तेमाल कम उम्र में महिलाओं के होने वाले विवाह के ख़िलाफ़ लड़ने और लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के अवसर के रूप में करूंगी.”

उन्होंने कहा- ”यह प्रतियोगिता महिलाओं के उज्ज्वल भविष्य को न केवल आकार देती है बल्कि सोमाली संस्कृति व सुंदरता का जश्न भी मनाती है.”

जाहिर है, सोमालिया में औरतें इसलामी कट्टरवाद से निकलने के लिए छटपटा रही हैं. वे घरों से बाहर निकल कर पढ़ना चाहती हैं, काम करना चाहती हैं. सिर्फ मर्दों के बिस्तर सजाने और उन के बच्चे पालने की त्रासदी से वे अब उबरना चाहती हैं. वे अपनी काबिलीयत का प्रदर्शन करना चाहती हैं और अपने मुल्क को उन तरक्कीपसंद मुल्कों के बराबर खड़ा करने के लिए लालायित हैं जो धार्मिक कट्टरता की बेड़ियां तोड़ कर विज्ञान के रास्ते पर हैं.

गौरतलब है कि धार्मिक कट्टरता का जुल्म सब से ज्यादा औरतें सहती हैं. औरत धर्म की सब से आसान शिकार है. धर्म कोई हो- हिंदू, मुसलिम, ईसाई, उस को ढोने व उस के रीतिरिवाज निभाने का काम औरत के जिम्मे जबरन डाला गया है. वह न करे तो मारीपीटी जाए, जलील की जाए, उस के साथ सामूहिक बलात्कार हो या उसे पत्थर मारमार कर मौत की नींद सुला दिया जाए. हर धर्म में औरत को ही नकाब, घूंघट, स्कार्फ जैसे परदों में लपेट कर उस से जबरन धार्मिक कृत्य कराए जाए हैं. धर्म के जरिए उस को मर्दों का गुलाम बनाया जाता है जो उस के गोश्त के साथसाथ उस की आत्मा तक नोच डालें. तो जो सब से ज्यादा पीड़ित है वही एक दिन सब से ज़्यादा विस्फोटक हो सकता है. यही हो रहा है सोमालिया में.

संयुक्त राष्ट्र के लैंगिक असमानता सूचकांक में सोमालिया नीचे से चौथे स्थान पर है. इस देश में लगभग 52 फीसदी महिलाओं को लैंगिक हिंसा का सामना करना पड़ता है. वहीं करीब 98 फीसदी महिलाएं खतना जैसी क्रूर प्रथा से गुज़रती हैं. सोमालिया में जब कोई पुरुष किसी महिला के साथ बलात्कार करता था, तो परंपरागत रूप से उस की ‘सज़ा’ यह होती थी कि उसे उस महिला से शादी करनी होती थी, जिस का उस ने यौन उत्पीड़न किया है. वीभत्स!

अमेरिका समर्थित सरकार होने के बावजूद बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार के प्रति उन के दृष्टिकोण में बहुत अधिक बदलाव देखने को नहीं मिला है. स्वघोषित गणराज्य सोमालीलैंड में धार्मिक नेताओं ने 2018 के यौन अपराध कानून के पारित होते ही उसे रद्द कर दिया था. कानून का संशोधित संस्करण भी महिलाओं को बाल विवाह, जबरन विवाह, बलात्कार या अन्य प्रकार के यौनशोषण से सुरक्षा प्रदान नहीं करता है. ऐसे में अपनी मुक्ति की राह महिलाओं को स्वयं बनानी है, जिस के लिए वे धीरेधीरे सिर उठा भी रही हैं.

मुसलिम देशों में धार्मिक कट्टरता अधिक रही है. कोई कैसे जिए, कैसे कपड़े पहने, कैसे अपने जीवन के फैसले ले, ये फैसले कठमुल्लाओं ने अपने हाथों में ले रखे हैं बिलकुल वैसे ही जैसे भारत में पंडेपंडितों ने एक मनुष्य के जन्म से ले कर उस की मृत्यु तक हर सांस को धर्म की बेड़ियों में जकड़ रखा है. अभी तक दुनिया के अधिकांश मुसलिम देश अपनी जमीन में मौजूद तेल की बदौलत जीवित थे. उन का कट्टरवाद इसी तेल की कमाई पर सदियों तक फलाफूला और मजबूत हुआ. मगर अब धीरेधीरे मुसलिम देशों के पास यह तेल कम होता जा रहा है. कट्टरवाद को जीवित रखने के लिए एक तरफ उन्हें हथियार चाहिए तो दूसरी तरफ अवाम का पेट भरने के लिए रोटी. मगर दुनिया के दूसरे अमीर देश जो धार्मिक कट्टरता और आतंकवाद के खिलाफ हैं, मुसलिम देशों को तब तक कोई मदद नहीं देंगे जब तक वे अपनी धार्मिक कट्टरता को कम नहीं करेंगे. यह बात बहुतेरे मुसलिम देश अब समझने भी लगे हैं और खुद को बदलने की दिशा में उन्होंने काम शुरू कर दिया है. क्योंकि पेट के दावानल के आगे धर्म की आग छोटी मालूम पड़ती है. सऊदी अरब, इंडोनेशिया, क़तर जैसे मुसलिम देश अब काफी उदार और आधुनिक हो चुके हैं. उन्हें पश्चिमी देशों की तरक्की ने भयभीत किया और जल्दी ही उन की समझ में आ गया कि इस से पहले कि धर्म के लबादे उन का गला घोंट दें, इसे उतारने में ही भलाई है.

आज दुबई जैसा कठोर इसलामिक देश बड़ीबड़ी इमारतों, चमकते बीच, बड़ी गाड़ियां, कैसीनो, ख़ूबसूरत रैस्तरां और सोने के जेवरों से लदी खूबसूरत औरतों का देश बन चुका है. दुनियाभर के अमीर दुबई में संपत्तियां खरीद रहे हैं. वहां तरक्की के नित नए द्वार खुल रहे हैं क्योंकि वहां धर्म का बोलबाला कम हुआ है. आज आधुनिक दुबई संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) का सब से ज्यादा आबादी वाला शहर है और मध्यपूर्व का एक प्रमुख व्यापार केंद्र है. दुबई की अर्थव्यवस्था पर्यटन, विमानन, रियल एस्टेट और वित्तीय सेवाओं पर आधारित है. यह शहर अपनी ऊंची इमारतों और गगनचुंबी इमारतों के लिए भी जाना जाता है, जिन में से सब से ऊंची इमारत बुर्ज खलीफा भी है. दुबई ने हाल ही में कई बड़ी निर्माण परियोजनाओं और खेल आयोजनों के ज़रिए भी दुनिया का ध्यान खींचा है.

काली की भेंट

शहर के किनारे काली माता का मंदिर बना हुआ था. सालों से वहां कोई पुजारी नहीं रहता था. लोग मंदिर में पूजा तो करने जाते थे, लेकिन उस तरह से नहीं, जिस तरह से पुजारी वाले मंदिर में पूजा की जाती है. एक दिन एक ब्राह्मण पुजारी काली माता के मंदिर में आए और अपना डेरा वहीं जमा लिया. लोगों ने भी पुजारीजी की जम कर सेवा की. मंदिर में उन की सुखसुविधा का हर सामान ला कर रख दिया.

पहले तो पुजारीजी बहुत नियमधर्म से रहते थे, सत्यअसत्य और धर्मअधर्म का विचार करते थे, लेकिन लोगों द्वारा की गई खातिरदारी ने उन का दिमाग बदल दिया. अब वे लोगों को तरहतरह की बातें बताते, अपनी हर सुखसुविधा की चीजों को खत्म होने से पहले ही मंगवा लेते.

काली माता की पूजा का तरीका भी बदल दिया. पहले पुजारीजी काली माता की सामान्य पूजा कराते थे, लेकिन अब उन्होंने इस तरह की पूजा करानी शुरू कर दी, जिस से उन्हें ज्यादा से ज्यादा चढ़ावा मिल सके.

धीरेधीरे पुजारीजी ने काली माता पर भेंट चढ़ाने की प्रथा शुरू कर दी. वे पशुओं की बलि काली माता को भेंट करने के नाम पर लोगों से बहुत सारा पैसा ऐंठने लगे. जब कोई किसी काम के लिए काली माता की भेंट बोलता, तो पुजारीजी उस से बकरे की बलि चढ़ाने के नाम पर 5 हजार रुपए ले लेते और बाद में कसाई से बकरे का खून लाते और काली माता को चढ़ा देते.

बकरे के नाम पर लिए हुए 5 हजार रुपए पुजारीजी को बच जाते थे, जबकि बकरे का मुफ्त में मिला खून काली माता की भेंट के रूप में चढ़ जाता था. धीरेधीरे दूरदूर के लोग भी काली माता के मंदिर में आने शुरू हो गए. पुजारीजी दिनोंदिन पैसों से अपनी जेब भर रहे थे. लोग सब तरह के झंझटों से बचने के लिए पुजारीजी को रुपए देने में ही अपनी भलाई समझते थे.

लेकिन कुछ ऐसे भी लोग थे, जो पुजारीजी की इस प्रथा का विरोध करते थे. लेकिन पुजारीजी के समर्थकों की तुलना में ये लोग बहुत कम थे, इसलिए उन्हें ऐसा काम करने से रोक न सके.

जब पुजारीजी के ढोंग की हद बढ़ गई, तो कुछ लोगों ने पुजारी की अक्ल ठिकाने लगाने की ठान ली. शहर में रहने वाले घनश्याम ने इस का बीड़ा उठाया.

घनश्याम सब से पहले पुजारीजी के भक्त बने और 2-4 झूठी समस्याएं उन्हें सुना डालीं. साथ ही बताया कि उन के पास पैसों की कमी नहीं है, लेकिन इतना पैसा होने के बावजूद भी उन्हें शांति नहीं मिलती. अगर किसी तरह उन्हें शांति मिल जाए, तो वे किसी के कहने पर एक लाख रुपए भी खर्च कर सकते हैं.

एक लाख रुपए की बात सुन कर पुजारीजी की लार टपक गई. उन्होंने तुरंत घनश्याम को अपनी बातों के जाल में फंसाना शुरू कर दिया.

पुजारी बोला, ‘‘देखो जजमान, अगर तुम इतने ही परेशान हो, तो मैं तुम्हें कुछ उपाय बता सकता हूं.

‘‘अगर तुम ने ये उपाय कर दिए, तो समझो तुम्हें मुंहमांगी मुराद मिल जाएगी. लेकिन इस सब में खर्चा बहुत होगा.’’

घनश्याम ने पुजारीजी को अपनी बातों में फंसते देखा, तो झट से बोल पड़े, ‘‘पुजारीजी, मुझे खर्च की चिंता नहीं है. बस, आप उपाय बताइए.’’

पुजारीजी ने काली माता की पूजा के लिए एक लंबी लिस्ट तैयार कर दी.

घनश्याम पुजारीजी की कही हर बात  मानता गया. पुजारीजी ने काली माता की भेंट के लिए 2 बकरों का पैसा भी घनश्याम से ले लिया. साथ ही, उन्हें घर में एक पूजा कराने को कह दिया.

पुजारीजी की इस बात पर घनश्याम तुरंत तैयार हो गए. तीसरे दिन घनश्याम के घर पर पूजा की तारीख तय हुई, जबकि भेंट चढ़ाने के लिए पैसे तो पुजारीजी उन से पहले ही ले चुके थे.

तीसरे दिन पुजारीजी घनश्याम के घर जा पहुंचे. पुजारीजी ने अमीर जजमान को देख हर बात में पैसा वसूला और घनश्याम अपनी योजना को कामयाब करने के लिए पुजारी द्वारा की गई हर विधि को मानते गए.

जोरदार पूजा के बाद घनश्याम ने पुजारीजी के लिए स्वादिष्ठ पकवान बनवाए, बाजार से भी बहुत सी स्वादिष्ठ चीजें मंगवाई गईं. पुजारीजी ने जम कर खाना खाया. उन्होंने आज तक इतना लजीज खाना नहीं खाया था.

जब पुजारीजी खाना खा चुके, तो उन्होंने घनश्याम से पूछा, ‘‘घनश्याम, तुम ने हमें इतना स्वादिष्ठ खाना खिला कर खुश कर दिया. ये कौन सा खाना है और किस ने बनाया है?

पुजारी के पूछने पर घनश्याम ने जवाब दिया, ‘‘पुजारीजी, कुछ खाना तो बाजार से मंगवाया था और कुछ यहीं पकाया था. सारा खाना ही बकरे के मांस से बना हुआ था.’’

घनश्याम ने बकरे के मांस का नाम लिया, तो पुजारीजी की सांसें अटक गईं, लेकिन उन्होंने सोचा कि शायद घनश्याम मजाक कर रहे हैं. वे बोले, ‘‘जजमान, आप मजाक बहुत कर लेते हैं, लेकिन हमारे सामने मांसाहारी चीज का नाम मत लो. हम तो मांसमदिरा को छूते भी नहीं, खाना तो बहुत दूर की बात है.’’

घनश्याम ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, ‘‘मैं सच कह रहा हूं पुजारीजी. आप चाहें तो जिस बावर्ची ने खाना बनाया है, उस से पूछ लें.’’

घनश्याम की बात सुन पुजारीजी का दिल बैठ गया. मन किया कि उलटी कर दें. नफरत से भरे मन में घनश्याम के लिए गुस्सा भी बहुत था.

घनश्याम ने आवाज दे कर बावर्ची को बुला कर कहा, ‘‘जरा पुजारीजी को बताओ तो कि तुम ने क्या बनाया था.’’

बावर्ची अपने बनाए हुए खाने को बताने लग गया. सारा खाना बकरे के मांस से बनाया गया था.

पुजारीजी पैर पटकते हुए गुस्से से भरे घनश्याम के घर से चले गए. घर के बाहर आ कर उन्होंने गले में उंगली डाली और खाए हुए खाने को अपने पेट से खाली कर दिया, लेकिन मन की नफरत इतने से ही शांत नहीं हुई.

पुजारीजी ने बस्ती में हंगामा कर लोगों को जमा कर लिया, जिन में ज्यादातर उन के भक्त थे. उन्होंने घनश्याम द्वारा की गई हरकत सब लोगों को बताई, तो हर आदमी घनश्याम की इस हरकत पर गुस्सा हो उठा.

अब लोग पुजारीजी समेत घनश्याम के घर जा पहुंचे. सब ने घनश्याम को भलाबुरा कहा.

घनश्याम ने सब लोगों की बातें चुपचाप सुनीं, फिर अपना जवाब दिया, ‘‘भाइयो, मैं किसी भी गलती के लिए माफी मांगने के लिए तैयार हूं, लेकिन आप पहले मेरी बात ध्यान से सुनें,

उस के बाद जो आप कहेंगे, वह मैं करूंगा.’’

सब लोग शांत हो कर घनश्याम की बात सुनने लगे. घनश्याम ने बोलना शुरू किया, ‘‘देखो भाइयो, जब मैं पुजारीजी के पास गया और अपनी परेशानी बताई, तो इन्होंने मुझ से 2 बकरों की भेंट काली माता पर चढ़ाने के लिए रुपए लिए थे. साथ ही, मुझ से यह भी कहा था कि मैं घर में पूजा कराऊं.’’

‘‘मैं ने पुजारीजी के कहे मुताबिक ही पूजा कराई और घर में बकरे के मांस से बना खाना परोसा. पुजारीजी ने मुझ से पूछा नहीं और मैं ने बताया नहीं.’’

भीड़ में से एक आदमी ने लानत भेजते हुए कहा, ‘‘तो भले आदमी, तुम को तो सोचना चाहिए कि पुजारी को मांस खिलाना कितना अधर्म का काम है. क्या तुम यह नहीं जानते थे?’’

घनश्याम ने शांत लहजे में जवाब दिया, ‘‘भाइयो, मुझे नहीं लगता कि यह कोई अधर्म का काम है. जब ब्राह्मण पुजारी अपनी आराध्य काली माता पर बकरे की बलि चढ़ा सकता है, तो उस बकरे के मांस को खुद क्यों नहीं खा सकता? क्या पुजारी की हैसियत भगवान से भी ज्यादा है या भगवान ब्राह्मण से छोटी जाति के होते हैं?’’

लोगों में सन्नाटा छा गया. घनश्याम की बात पर किसी से कोई जवाब न मिल सका.

पुजारीजी का सिर शर्म से झुक गया. उन्होंने यह बात तो कभी सोची ही नहीं थी. लोग खुद इस बात को सोचे ही बिना काली माता के लिए बकरे की बलि देते रहे थे.

आज पंडितजी की समझ में आया कि भला भगवान किसी जानवर का मांस क्यों खाने लगे? वे तो किसी भी जीव की हत्या को बुरा मानते हैं, वहां मौजूद सभी लोग घनश्याम की बात का समर्थन करने लगे.

भीड़ के लोगों ने पुजारीजी को ही फटकार कर काली माता का मंदिर छोड़ देने की चेतावनी दे दी. उस दिन से काली माता के मंदिर पर पशु बलि की प्रथा बंद हो गई.

पुजारीजी का धर्म भ्रष्ट हो चुका था, ऊपर से लोगों की नजरों में उन की इज्जत न के बराबर हो गई थी. उन्होंने वहां से भाग जाने में ही अपनी भलाई समझी. अब मंदिर वीरान हो गया था. अब वहां जानवर बंधने लगे थे.

मेरी पत्नी अपने औफिस के यंग लड़कों के साथ छोटे कपड़ों में पार्टी करने जाती है. मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल – 

मेरी पत्नी मुझसे उम्र में 6 साल छोटी है और दिखने में बेहद खूबसूरत और सेक्सी है. उसे पार्टीज़ करने का बहुत शौंक है. वे हर वीकेंड अपने औफिस के कलीग्स के साथ पार्टीज़ करती है और उन्हीं के साथ रात को लेट घर आती है. अभी कुछ टाइम से ही उसको इन सब पार्टीज़ की आदत पड़ी है. ऐसे में जब वे वीकेंड्स पर पार्टी करने जाती है तब वन पीस और शोर्ट ड्रैसिज पहन कर जाती है. उसके औफिस में काफी लड़के यंग दिखते है जिनके साथ वे पार्टी करने जाती है. जब वे घर होती है तब भी वे ज्यादातर टाइम अपने फोन में लगी रहती है और मेरे पूछने पर कहती है कि वे औफिस के काम की बात कर रही है जबकि पहले ऐसा कभी नहीं होता था. मुझे काफी बार शक होता है कि मेरी पत्नी का अपने औफिस के लड़को के साथ संबंध है.

जबाव –

आज के समय में औफिस के कलीग्स के साथ पार्टीज करना आम बात है. ज्यादातर औफिस में लोग वीकेंड्स पर पार्टी करते हैं जिससे कि उनका आपस में बौंड अच्छा बन जाता है. आपकी बातों से ऐसा दिख रहा है कि अपकी पत्नी बेहद खुले वीचारों वाली इंडिपैंडेंट लड़की है. अगर वे पार्टीज करने अपने कलीग्स के साथ जाती भी है तो जरूरी नहीं है कि उनके मन में किसी के लिए कुछ गलत विचार हो या फिर उनका किसी के साथ संबंध हो.

आजकल के युवा नौजवान अच्छे से अपनी लिमिट्स जानते हैं और उन्हे इस बात की जानकारी होती है कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए. अगर आपको किसी बात का शक है तो आप एक बार उनके साथ उनके कलीग्स व दोस्तों से मिल सकते हैं, उनसे बात कर सकते हैं. आपको अपनी पत्नी का दोस्त बनना चाहिए और उनसे उनके औफिस की बातें पूछनी चाहिए. लड़कियों को अच्छा लगता है जब कोई उनकी बातों में इंट्रस्ट दिखाता है और उनसे पूछता है कि उनका दिन कैसा गया.

आपको एक दोस्त बन कर अपनी पत्नी से बात करनी चाहिए. ऐसे में आप अपनी पत्नी के दोस्तों के भी दोस्त बन सकते हैं. कभी अपनी पत्नी को कहें कि उनके कलीग्स को घर डिनर पर बुलाते हैं तो कभी आप भी उनके साथ चले जाएं. ऐसे में आप दोनों एक दूसरे के नज़दीक आने लगेंगे और आपके मन में जो शक है वे भी दूर हो जाएगा.

अगर आप उनकी बातों को समझेंगे और बिना लड़ाई-झगड़ा या बिना उनके ऊपर शक जताए उनसे बाते करेंगे तो वे भी आपकी बातों को समझेंगी. ऐसे में आपको उनके साथ थोड़ा मोडर्न होने की जरूरत है क्योंकि समय के साथ हम सबको बदलना पड़ता है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें