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महाभारत का कटु यथार्थ

रामायण और महाभारत ये 2 ऐसे महाकाव्य हैं जिन्हें वैदिक युग में लिखे जाने का गौरव प्राप्त है. इन में से हम यहां ‘महाभारत’ पर कुछ चर्चा कर रहे हैं. श्रीमद्भगवत गीता इसी ‘महाभारत’ का एक भाग है, जिसे हिंदू आत्मा व कर्म की महान दार्शनिक व्याख्या अपने में समेटे होने के कारण अत्यंत पवित्र मानते हैं. जहां तक महाभारत का प्रश्न है तो कहते हैं कि इस की रचना वेदव्यास ने की थी और इसे गणेश द्वारा लिपिबद्ध किया गया था. मोटे तौर पर इसे अर्थात महाभारत को अधर्म पर धर्म की, अनीति पर नीति की, अन्याय पर न्याय की और असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक माना जाता है.

इसीलिए कहा जाता है कि महाभारत के अध्ययन से मनुष्य भवसागर से मुक्त होता है. इस को पढ़ने से मनुष्य को ब्रह्महत्या से मुक्ति प्राप्त होती है. ऐसा भी कहा जाता है कि अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष का वर्णन जोकि महाभारत में किया गया है, वह पुराणों में उपलब्ध नहीं है, अत: महाभारत को पढ़ने या सुनने से मोक्ष की इच्छा रखने वाले को मोक्ष, स्वर्ग की इच्छा रखने वाले को स्वर्ग, विजय की इच्छा रखने वाले को विजय तथा गर्भवती स्त्री को इच्छानुसार संतान प्राप्त होती है. मनुष्य की सारी कामनाएं पूरी होती हैं, उस का यश फैलता है और मृत्यु के बाद उस को परम गति प्राप्त होती है. महाभारत की महत्ता को प्रसारित करने वाले कुछ श्लोक जो ‘महाभारत’ में मौजूद हैं, निम्न हैं :

मातापितृ सहस्त्राणि पुत्र दाराशतानि च.

संसारेष्वनुभूतानि यांति यास्यंति चापरे. (1)

हर्षस्थानसहस्त्राणिभयस्थानि शतानि च.

दिवसे दिवसे मूढ़ामाविशन्तिन पंडितम.(2)

उर्ध्व बाहुविरोम्येष न च कश्र्चिच्वृदृणोति मे.

धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थ न सेव्यते. (3)

न जातुकमान्न लोभाद्धर्म त्यजेज्जीवितस्यापि हेतो:.

नित्यो धर्म: सुखदु:खे त्वनित्ये जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्य. (4)

उपरोक्त श्लोकों का अर्थ है :

इस विश्व में सहस्त्रों मातापिता हुए हैं, होते रहेंगे. इसी प्रकार स्त्रीपुरुष भी सैकड़ों हुए हैं, हो रहे हैं और होते रहेंगे. मूर्ख व्यक्तियों को हजारों बार खुशी व सैकड़ों बार विषाद होता है, किंतु पंडित जन हर्ष व विषाद नहीं करते. मैं दोनों भुजाओं को ऊपर उठा कर उच्च स्वर से कह रहा हूं कि धर्म से ही अर्थ और काम की सिद्धि होती है, फिर धर्म का सेवन क्यों नहीं करते? परंतु मेरी बात कोई सुनता ही नहीं. काम, भय और लोभ के कारण तथा जीवन के लिए धर्म को नहीं त्यागना चाहिए, क्योंकि धर्म नित्य है और सुखदुख अनित्य है. जीवन नित्य है किंतु जीव का कारण शरीर आदि अनित्य है. अत: इस महाभारत को जो व्यक्ति सावधानीपूर्वक पढ़ता है वह निश्चय ही परमसिद्धि को प्राप्त करता है.इस प्रकार हमें बारबार यह संदेश दिया गया है कि महाभारत का अध्ययन अर्थात रसपान हमें :

  • ब्रह्महत्या से मुक्ति दिलाता है.
  • हमारे पितरों को तर्पण प्रदान करता है.
  • हमें मोक्ष हासिल कराता है.
  • हमारी स्वर्ग जाने की इच्छा को पूरा करता है.
  • हमें हमेशा विजयश्री प्रदान करता है.
  • इच्छानुसार संतान देता है.
  • मनोकामनाओं की पूर्ति करता है.
  • हमें यश प्रदान करता है.
  • हमें धार्मिक बना कर अर्थ व काम की सिद्धि प्रदान करता है.
  • हमें हर्ष व विषाद में संतुलित रखता है.
  • हमें परमज्ञान व परमसिद्धि प्रदान करता है.

यहां महाभारत अध्ययन, श्रवण व रसास्वादन के परिणामों पर अगर मनन किया जाए तो यह नतीजा निकल कर सामने आता है कि ‘लाखों रोगों की यह तो एक ऐसी अचूक दवा है जो अपनेआप में चमत्कारी है.’

महाभारत के पढ़ने के जो लाभ बताए गए हैं और खुद महाभारत अपने पढ़ने की महत्ता को व्याख्यायित करता है, उस से तो यही लगता है कि सारा हिंदू धर्म एक ओर और महाभारत अकेला दूसरी ओर, फिर भी सब के बराबर है.

दूसरी तरफ बहुप्रचलित अर्थों में महाभारत को अशुभ व परिवार- विनाशक ग्रंथ माना जाता है. ऐसा कहा भी जाता है कि जहां भी महाभारत का वाचन व परायण होता है वहां कुल का विनाश हो जाता है क्योंकि महाभारत आखिर कुल के नाश होने की ही तो कथा है. अगर थोड़ी देर को यह मान भी लिया जाए कि कुल के विनाश होने व परिवार में उत्पात होने की धारणा मनगढं़त है, तो भी इस के परायण से जुड़े लाभों की प्राप्ति पर यकीन करना किसी भी कोण से उचित प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि न तो यह धार्मिक (केवल युद्ध का वर्णन है) ग्रंथ है, न ही मर्यादित या सांस्कृतिक ग्रंथ.

महाभारत में साम, दाम, दंड, भेद से स्वार्थसिद्धि के प्रयासों के अलावा कुछ है ही नहीं. चाहे कौरव हों या पांडव सब के सब अनैतिक, अधर्मी, झूठे व पापी हो कर युद्ध जीतने की चेष्टा से संलग्न नजर आते हैं. इस पूरे ग्रंथ में न तो कहीं सत्य दिखाई देता है, न ही शील, न ही मर्यादा और न ही नैतिकता. तो फिर ऐसा ग्रंथ अपने पढ़ने वालों के लिए मोक्ष, यश, पुण्य लाभ, कामनापूर्ति, यशप्रदाय, पितर तर्पण व सद्गति कहां से ले कर आएगा?

जब पूरे ग्रंथ में सदाचार की होली जलती दिखाई देती है, नारी का बारबार अपमान होता दिखता है और राज्य के लोभ में पड़े कौरवपांडव छल, कपट व झूठ का नंगा नाच करते हुए नजर आते हैं तो ऐसे में इस ग्रंथ को पावन, सत्य उद्घोषक, धर्मप्रचारक, न्याय संरक्षक व नीति उच्चारक मानना सिवा मूर्खता के और क्या है?

अब हम यहां कुछ उन प्रसंगों की चर्चा करते हैं जो महाभारत की कथा के अभिन्न हिस्से हैं और जो घोर दुराचारी व पतनशील समाज की करनी प्रतीत होते हैं. उन पर दृष्टिपात करने से यह सहज में ही स्पष्ट हो जाता है कि महाभारत का धर्म, सत्य और नैतिकता से दूरदूर का रिश्ता नहीं है. ऐसे में इस के पठनपाठन और मनन से खास लाभ प्राप्ति का प्रश्न ही कहां उठता है? तो आइए, हम देखते हैं कि महाभारत कथा के वे कलंकपूर्ण प्रसंग क्या हैं :

  • मल्लाह कन्या व अद्वितीय सुंदरी सत्यवती का बीच मझधार में ऋषि पाराशर द्वारा मोहित हो कर बलपूर्वक शीलभंग किया जाना और फिर अवैध पुत्र द्वैपायन व्यास की उत्पत्ति होना.
  • पूर्व से ही शादीशुदा राजा शांतनु का सत्यवती से विवाह (वही सत्यवती जिस का पाराशर ने शीलभंग किया था) करने का निश्चय तथा भीष्म को पिता की वासना की खातिर आजीवन कुंआरे रहने की प्रतिज्ञा करने को विवश होना.
  • भीष्म द्वारा बलपूर्वक अंबा, अंबिका व अंबालिका का अपहरण किया जाना और वह भी उस समय जब उन का स्वयंवर संपन्न होने जा रहा था.
  • नियोग क्रिया द्वारा (अवैध शारीरिक संसर्ग द्वारा) धृतराष्ट्र, पांडु व विदुर का जन्म होना. इस के लिए व्यास को चुना गया, जोकि खुद अवैध संतति थे.
  • कर्ण व पांडवों की अवैध उत्पत्ति, क्योंकि कर्ण का जन्म तो उस समय हुआ था जब कुंती अविवाहित थी और पांडवों का जन्म कुंती व माद्री से उस समय हुआ जब पांडु पौरुषविहीन हो चुके थे.
  • 5 भाइयों की एक ही स्त्री (द्रौपदी) से शादी होना. इस से यह सिद्ध होता है कि पांडव औरत को भोग्या मानते थे.
  • भीम व अर्जुन का अपनी पत्नी द्रोपदी से बेवफाई करते हुए अनेक स्त्रियों से विवाह करना.
  • द्रौपदी को अपमानित करने के उद्देश्य से दुर्योधन द्वारा युधिष्ठिर को द्यूत क्रीड़ा के षड्यंत्र में फांसा जाना व युधिष्ठिर द्वारा अपनी पत्नी को दांव पर लगाना.
  • द्रौपदी को दुशासन द्वारा भरी सभा में वस्त्रविहीन करने की चेष्टा. ऐसे में भीष्म, द्रोणाचार्य व कृपाचार्य जैसे महारथियों का शांत रहना अनैतिकता का प्रतीक है.
  • धृतराष्ट्र द्वारा पुत्रमोह में लिप्त हो कर उस की सभी उचितअनुचित गतिविधियों का समर्थन करना.
  • युद्ध के नियमों व मर्यादाओं को बलाए ताक रख कर अभिमन्यु का वध.
  • शिखंडी की आड़ में भीष्म का वध किया जाना. वैसे स्वयं भीष्म से उन की मृत्यु का रहस्य पूछा जाना भी अमर्यादित था.
  • द्रोणाचार्य, जोकि पांडवों के भी गुरु थे, का वध करने के लिए युधिष्ठिर द्वारा असत्य बोल कर उन्हें शोकमग्न किया जाना और बाद में धृष्टद्युम्न द्वारा उन का सिर धड़ से अलग कर दिया जाना.
  • कर्ण का वध उस समय किया जाना, जब वह कीचड़ में से रथ के पहियों को निकाल रहा था.
  • दुर्योधन का वध मल्लयुद्ध के नियमों के विरुद्ध किया जाना.
  • भीम द्वारा दुशासन का रक्तपान किया जाना.

इस प्रकार के अमर्यादित प्रसंगों से महाभारत लबालब भरा है जो यह जाहिर करता है कि महाभारत एक अनैतिक कथा से अधिक कुछ नहीं है. न तो इस में कहीं धर्म है, न सत्य, न आदर्श, न मर्यादा, न नीति और न शील. इसलिए इसे महिमामंडित किया जाना और इस के वाचन से विशिष्ट लाभों की प्राप्ति पर विश्वास करना सिवा मूर्खता के और कुछ नहीं है.

अतीत में बी.आर. चोपड़ा द्वारा दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर इसे बड़ी भव्यता व धार्मिकता के साथ प्रसारित किया गया था और लोगों ने भी इसे बड़ी श्रद्धा व मनोयोग के  साथ देखा, पर इस की वास्तविकता क्या है यह इस लेख में भलीभांति विश्लेषित कर दिया गया है. अत: महाभारत अधर्म, असत्य, अन्याय, अनीति से भरपूर एक ऐसा ग्रंथ है जिस के नायक (पांडव) भी उतने ही चरित्र व मर्यादा में गिरे हुए हैं जितने कि खलनायक (कौरव). और कृष्ण ने भी पांडवों को छलकपट व फरेब अपनाने को ही प्रोत्साहित किया है.

जड़ों से जुड़ा जीवन

मुख्य सड़क से घर की ओर मुड़ते ही मिली सहसा ठिठक गई. दूर से ही देखा कि पोर्च में डैड की गाड़ी खड़ी थी.

‘डैड इस समय घर में,’ यह सोच कर ही मिली का दिल बैठ गया. स्कूल से घर लौटने का सारा उत्साह जाता रहा. दिन के दूसरे पहर में, डैड का घर में होने का मतलब है वह बैठ कर पी रहे होंगे.

शराब पी लेने के बाद डैड और भी अजनबी हो जाते हैं. उन के मन के भाव उन की आंखों में उतर आते हैं. तब मिली को डैड से बहुत डर लगता है. सामने पड़ने में उलझन होती है.

मिली ने धीरे से दरवाजा खोला. दरवाजे की ओर डैड की पीठ थी. हाथ में गिलास थामे वह टेलीविजन देख रहे थे. दबेपांव मिली सीढि़यां चढ़ कर अपने कमरे में पहुंच गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. बैग को कमरे में एक ओर पटका और औंधेमुंह बिस्तर पर जा पड़ी. कितनी देर तक मिली यों ही लस्तपस्त पड़ी रही.

अचानक मिली को हलका सा शोर सुनाई दिया तो वह चौंक कर उठ बैठी. शायद आंख लग गई थी. नीचे वैक्यूम क्लीनर के चलने की धीमी आवाज आ रही थी.

‘अरे हां,’ मिली के मुंह से अपनेआप बोल फूट पड़े, ‘आज तो फ्राइडे है… साप्ताहिक सफाई का दिन.’ उस ने खिड़की से नीचे झांका तो पोर्च  में मिसेज स्मिथ की छोटी कार खड़ी थी. डैड की गाड़ी गायब थी, शायद वह कहीं निकल गए थे.

मिली ने झटपट ब्लेजर हैंगर में टांगा. जूते रैक पर लगाए और गरम पानी के  बाथटब में जा बैठी.

नहाधो कर मिली नीचे पहुंची तो मिसेज स्मिथ डिशवाशर और वाशिंग मशीन लगा कर साफसफाई में लगी थी.

शुक्रवार को मिसेज स्मिथ के आने से मिली डिशवाशिंग से बच जाती है वरना स्कूल से लौट कर लंच के बाद डिशवाशर लगाना, बरतन पोंछना व सुखाना उसी का काम है.

मिली को बड़े जोर से भूख लग आई तो उस ने फ्रिज खोल कर अपनी प्लेट सजाई और माइक्रोवेव में उसे लगा कर खिड़की के पास आ कर खड़ी हो गई. सुरमई सांझ बिलकुल बेआवाज थी.

ऐसी खामोशी में मिली का मन अतीत की गलियों में भटकने लगा और गुजरा समय कितना कुछ आंखों के आगे तिर आया.

बरसों बीत गए. मिली तब यही कोई 5 साल की रही होगी. सब समझते हैं कि मिली सबकुछ भूल चुकी है पर मिली कुछ भी तो नहीं भूल पाई है.

वह देश, वह शहर और उस की गलियां व घर और इन सब के साथ फरीदा अम्मां की यादें जुड़ी हैं. और उस के ढेरों साथी, बालसखा, उस की यादों में आज भी बने हुए हैं.

तब वह मिली नहीं, मृणाल थी. उस के हुड़दंग करने पर फरीदा अम्मां उसे लंबेलंबे बालों से पकड़तीं और उस की पीठ पर धौल जड़ देतीं. बचपन की बातें सोचते ही मिली को पीठ पर दर्द का एहसास होने लगा और अनायास ही उस का हाथ अपने बौबकट बालों पर जा पड़ा. डाइनिंग टेबल पर मुंह में फिश-चिप्स का पहला टुकड़ा रखते ही मिली की जबान को माछेरझोल का स्वाद याद हो आया और याद आ गईं कोलकाता की छोटीछोटी शामें, बाल आश्रम के गलियारों में गुलगपाड़ा मचाते हमजोली, नाराज होती फरीदा अम्मां, नन्हेमुन्नों को पालने में झुलाती, सुलाती वेणु मौसी.

तब लंबेलंबे गलियारों व बरामदों वाला बाल आश्रम ही उस का घर था. पहली बार स्कूल गई तो घर और आश्रम में अंतर का भेद खुला. साथ ही उसे यह भी पता चला कि उस के मातापिता नहीं थे, वह अनाथ थी.

उस दिन स्कूल से लौट कर अबोध मिली ने पहला प्रश्न यही पूछा था, ‘फरीदा अम्मां, मेरी मां कहां हैं?’

फरीदा बरसों से अनाथाश्रम में काम कर रही थीं. एक नहीं अनेक बार वह इस सवाल का पहले भी सामना कर चुकी थीं. मिली के इस प्रश्न से वह एक बार फिर दुखी व बेचैन हो उठीं. उन के उस मौन पर मिली ने अपने सवाल को नए रूप में दोहराया, ‘फरीदा अम्मां, मेरा घर कहां है? मां मुझे यहां क्यों छोड़ गईं?’

नन्हे सुहेल को गोद में थपकी देते हुए फरीदा ने सहजता से उत्तर दिया, ‘रही होगी बेचारी की कोई मजबूरी…’

‘यह मजबूरी क्या होती है, अम्मां?’ उलझन में पड़ी मिली ने एक और प्रश्न किया.

मिली के एक के बाद एक प्रश्नों से फरीदा अम्मां झल्ला पड़ीं. तभी सुहेल जाग कर जोरजोर से रोने लगा था. सहम कर मृणाल ने अपना मुंह फरीदा की गोद में छिपा लिया और सुबकने लगी.

फरीदा ने पहले तो सुहेल को चुप कराया फिर मिली को बहलाया और उस के सिर पर हाथ फेरते हुए बोलीं, ‘रो मत, बिटिया…मैं जो हूं तेरी मां…चलोचलो, अब हम दोनों मिल कर तुम्हारी किताब का नया पाठ पढ़ेंगे…’

मृणाल को अब खेलतेखाते उठते- बैठते बस एक ही इंतजार रहता कि मां आएगी…उसे दुलार कर गोद में बिठाएगी. स्कूल तक छोड़ने भी चलेगी-सोहम की मां जैसे. विदुला की मम्मी तो उस का बस्ता भी उठा कर लाती हैं…उस की भी मां होतीं तो यही सब करतीं न…पर…पर…वह मुझे छोड़ कर गईं ही क्यों?

फिर एक दिन लंदन से ब्र्र्राउन दंपती एक बच्चा गोद लेने आए और उन्हें मिली उर्फ मृणाल पसंद आ गई. सारी औपचारिकताएं पूरी होने पर काउंसलर उसे पास बैठा कर सबकुछ स्नेह से समझाती हैं:

‘मिली, तुम्हारे मौमडैड आए हैं. वह तुम्हें अपने साथ ले जाएंगे, खूब प्यार करेंगे. खेलने के लिए तुम्हें ढेरों खिलौने देंगे.’

मिली चौंक कर चुपचाप सबकुछ सुनती रही थी. फरीदा अम्मां भी यही सब दोहराती रहीं पर मिली खुश नहीं हो पाई. बाहर से देख कर लगता, मिली बहल गई है पर भीतर ही भीतर तो वह बहुत भयभीत है.

ऐसा पहले भी हो चुका है, कुछ लोग आ कर अपना मनपसंद बच्चा अपने साथ ले जाते हैं. अभी कुछ महीने पहले ही कुछ लोग नन्ही ईना को ले गए थे. ईना कितनी छोटी थी, बिलकुल जरा सी. वह हंसीखुशी उन की गोद में बैठ कर हाथ हिलाती चली गई थी पर मिली तो बड़ी है. सब समझती है कि उस का सबकुछ छूट रहा था. फरीदा अम्मां, घर, स्कूल संगीसाथी.

मृणाल का रोना फरीदा अम्मां सह नहीं पातीं. आतेजाते अम्मां उसे बांहों में भर कर गले से लगाती हैं, फिर जोर से खिलखिलाती हैं. मिली भी उन का भरपूर साथ देती है, आतेजाते उन की गोद में छिपती है, उन के आंचल से लिपटती है.

जाने का दिन भी आ गया. सारी काररवाई  पूरी हो गई. अब तो बस, नए देश, नए नगर जाना था.

चलने से पहले अंतिम बार फरीदा ने मृणाल को गोद में बैठा कर गले से लगाया तो मिली फुसफुसाते, गिड़गिड़ाते हुए बोली, ‘फरीदा अम्मां, जब मेरी असली वाली मां आएंगी तो तुम उन्हें मेरा पता जरूर दे देना…’ इतना कहतेकहते मिली का गला रुंध गया था.

मिली का इतना कहना था कि फरीदा अम्मां का सब्र का बांध टूट गया और दोनों मांबेटी एकदूसरे से लिपट कर रो पड़ी थीं.

आखिर फरीदा ने ही धीरज धरा. अपनी पकड़ को शिथिल किया. फिर आंचल से आंसू पोंछे. भरे गले से बच्ची को समझाया, ‘जा बेटी, जा…बीती को भूल जा…अब यही तेरे मातापिता हैं… बिलकुल सच्चे…बिलकुल सगे. तू तो बड़ी तकदीर वाली है बिटिया जो तुझे इतना अच्छा घर मिला, अच्छा परिवार मिला… यहां क्या रखा है? वहां अच्छा खाएगी, अच्छा पहनेगी, खूब पढ़ेगी और बड़ी हो कर अफसर बनेगी…मेरी बच्ची यश पाए, नाम कमाए, स्वस्थ रहे, सुखी रहे, सौ बरस जिए…जा बिटिया, जा…मुड़ कर न देख, अब निकल ही जा…’ कहतेकहते फरीदा ने उसे गोद से उतारा और मिली उर्फ मृणाल की उंगली मिसेज ब्राउन को पकड़ा दी.

नई मां की उंगली पकड़ कर मिली, मृणाल से मर्लिन बन गई. नया परिवार पा कर कितना कुछ पीछे छूट गया पर यादें हैं कि आज भी साथ चलती हैं. बातें हैं कि भूलती ही नहीं.

घर के लाल कालीन पर पैर रखते ही मिली को लाल फर्श वाले बाल आश्रम के लंबे गलियारे याद आ जाते जिन पर वह यों ही पड़ी रहती थी…बिना चादरचटाई के. उन गलियारों की स्निग्ध शीतलता आज भी उस के पोरपोर में रचीबसी है.

मिली को शुरुआत में लंदन बड़ा ही नीरव लगा था. सड़कों पर कोलकाता जैसी भीड़ नहीं थी और पेड़ भी वहां जो थे हरे भरे न थे. सबकुछ जैसे स्लेटी. मिली को कुछ भी अपना न दिखता. दिल हरदम देश और अपनों के छूटने के दर्द से भरा रहता. मन करता कि कुछ ऐसा हो जाए जो फिर वह वापस वहीं पहुंच जाए.

मौम उस का भरसक ध्यान रखतीं. खूब दुलार करतीं. डैड कुछ गंभीर से थे. कुछकुछ विरक्त और तटस्थ भी. उसे गोद लेने का मौम का ही मन रहा होगा, ऐसा अब अनुमान लगाती है मिली.

यहां सब से भला उस का भाई जौन है. उस से 8 साल बड़ा. खूब लंबा, ऊंचा, गोराचिट्टा. मिली ने उसे देखा तो देखती ही रह गई.

पहले परिचय पर घुटनों के बल बैठ कर जौन ने उस के छोटेछोटे हाथों को अपने दोनों हाथों में ले लिया फिर हौले से उसे अंक में भर लिया. कैसा स्नेह था उस स्पर्श में, कैसी ऊष्मा थी उस आलिंगन में, मानो पुरानी पहचान हो.

मिली के मन में आता कि वह उसे दादा कह कर बुलाए. अपने देश में तो बड़े भाई को दादा कह कर ही पुकारते हैं. पर यहां संभव न था. यहां और वहां में अनेक भेद गिनतेबुनते मिली हर पल हैरानपरेशान रहती.

अपनी अलग रंगत के कारण मिली स्कूल में भी अलग पहचानी जाती. सहज ही सब से घुलमिल न पाती. कैसी दूरियां थीं जो मिटाए न मिटतीं. सबकुछ सामान्य होते हुए भी कुछ भी सहज न था. मिली को लगता, चुपचाप कहीं निकल जाए या फिर कुछ ऐसा हो जाए कि वह वापस वहीं पहुंच जाए पर ऐसा कुछ भी न हुआ. मिली धीरेधीरे उसी माहौल में रमने लगी. मां के स्नेह के सहारे, भाई के दुलार के बल पर उस ने मन को कड़ा कर लिया. अच्छी बच्ची बन कर वह अपनी पढ़ाई में रम गई.

अंधेरा घिरने लगा था. गुडनाइट बोल कर मिसेज स्मिथ कब की जा चुकी थीं और मिली स्थिर सी अब भी वहीं डाइनिंग टेबल पर बैठी थी…अपनेआप में गुमसुम.

दरवाजे में चाबी का खटका सुन मिली अतीत की गलियों से निकल कर वर्तमान में आ गई…

एक हाथ में बैग, दूसरे में कापीकिताबों का पुलिंदा लिए ब्राउन मौम ने प्रवेश किया और सामने बेटी को देख मुसकराईं.

मिली के सामने खाली प्लेट पड़ी देख वह कुछ आश्वस्त सी हुईं.

‘‘ठीक से खाया… गुड, वैरी गुड…’’

इकतरफा एकालाप. फिर बेटी के सिर में हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘मर्लिन, मैं ऊपर अपने कमरे में जा रही हूं, बहुत थक गई हूं…नहा कर कुछ देर आराम करूंगी… फिर पेपर सैट करना है…डिनर मैं खुद ले लूंगी…मुझे डिस्टर्ब न करना. अपना काम खत्म कर सो जाना,’’ कहतेकहते मिसेज ब्राउन सीढि़यां चढ़ गईं और मिली का दिल बैठ गया.

‘काम…काम…काम…जब समय ही न था तो उसे अपनाया ही क्यों? साल पर साल बीत गए फिर भी यह सवाल बारबार सामने पड़ जाता. समाज सेवा करेंगी, सब की समस्याएं सुलझाती फिरेंगी पर अपनी बेटी के लिए समय ही नहीं है. यह सोच कर मिली चिढ़ गई.

जब से जौन यूनिवर्सिटी गया था मिली बिलकुल अकेली पड़ गई थी. सुविधासंपन्न परिवार में सभी सदस्यों की दुनिया अलग थी. सब अपनेआप में, अपने काम में व्यस्त और मगन थे.

पहले ऐसा न था. लाख व्यस्तताओं के बीच भी वीकएंड साथसाथ बिताए जाते. कभी पिकनिक तो कभी पार्टी, कभी फिल्म तो कभी थिएटर. यद्यपि मूड बनतेबिगड़ते रहते थे फिर भी वे हंसते- बोलते रहते. हंसीखुशी के ऐसे क्षणों में मौम अकसर ही कहती थीं, ‘मर्लिन थोड़ी और बड़ी हो जाए, फिर हम सब उस को इंडिया घुमाने ले जाएंगे.’

मिली सिहर उठती. उसे रोमांच हो आता. उस का मन बंध जाता. उसे मौम की बात पर पूरा यकीन था.

डैड भी तब मां को कितना प्यार करते थे. उन के लिए फूल लाते, उपहार लाते और उन्हें कैंडिल लाइट डिनर पर ले जाते. मौम खिलीखिली रहतीं लेकिन डैड के एक अफेयर ने सबकुछ खत्म कर दिया. घर में तनातनी शुरू हो गई. मौम और डैड आपस में लड़नेझगड़ने लगे. परिवार का प्रीतप्यार गड़बड़ा गया. उन्हीं दिनों जौन को यूनिवर्सिटी में प्रवेश मिल गया और भाई के दूर जाते ही अंतर्मुखी मिली और भी अकेली पड़ गई.

मौम और डैड के बीच का वादविवाद बढ़ता गया और एक दिन बात बिगड़ कर तलाक तक जा पहुंची. तभी डैड की गर्लफ्रेंड ने कहीं और विवाह कर लिया और मौमडैड का तलाक टल गया. उन्होंने आपस में समझौता कर लिया. बिगड़ती बात तो बन गई पर दिलों में दरार पढ़ गई. अब मौम और डैड 2 द्वीप थे जिन्हें जोड़ने वाले सभी सेतु टूट चुके थे.

उन के रिश्ते बिलकुल ही रिक्त हो चुके थे. मन को मनाने के लिए मौम ने सोशल सर्विस शुरू कर ली और डैड को पीने की लत लग गई. कहने को वे साथसाथ थे, पर घर घर न था.

मिली को अब इंतजार रहता तो बस, जौन के फोन का लेकिन जब उस का फोन आता तो वह कुछ बोल ही न पाती. भरे मन और रुंधे गले से बोलती उस की आंखें…बोलते उस के भाव.

जौन फोन पर झिड़कता, ‘‘मर्लिन… मुंह से कुछ बोल…फोन पर गरदन हिलाने से काम नहीं चलता,’ और मिली हंसती. जौन खिलखिलाता. बहुत सी बातें बताता. नए दोस्तों की, ऊंची पढ़ाई की. वह मिली को भी अच्छाअच्छा पढ़ने को प्रेरित करता. खुश रहने की नसीहतें देता. मिली उस की नसीहतों पर चल कर खूब पढ़ती.

मिसेज ब्राउन ने अपने को पूरी तरह से काम में झोंक कर अपनी सेहत को खूब नकारा था. अचानक वह बीमार पड़ीं और डाक्टर को दिखाया तो पता चला कि उन्हें कैंसर है और वह अंतिम स्टेज में है.

मिली ने सुना तो सकते में आ गई. लेकिन मौम बहादुर बनी रहीं. जौन मिलने आया तो उसे भी समझाबुझा कर वापस भेज दिया. उस की पीएच.डी. पूरी होने वाली थी. मां के लिए उस की पढ़ाई का हर्ज हो यह मिसेज ब्राउन को मंजूर न था.

मां के समझाने पर मिली सामान्य बनी रहती और रोज स्कूल जाती. बीमार अवस्था में भी मौम अपना और अपने दोनों बच्चों का भी पूरा खयाल रखतीं. डैड अपनेआप में ही रमे रहते. पीते और देर रात गए घर लौटते थे.

इधर मौम का इलाज चलता रहा. उधर अमेरिका के फ्लोरिडा विश्व- विद्यालय में पढ़ाई पूरी होते ही जौन को नौकरी मिल गई. यह जानने के बाद कि उसे फौरन नौकरी ज्वाइन करनी है, मौम ने उसे घर आने के लिए और अपने से मिलने के लिए साफ और सख्त शब्दों में मना करते हुए कह दिया कि उसे सीधा वहीं से रवाना होना है.

उस दिन बिस्तर में बैठेबैठे ही मौम ने पास बैठी मिली का हाथ अपने दोनों हाथों के बीच रख लिया फिर धीरे से बहुत प्रयास कर उसे अपने अंक में भर लिया. मिली डर गई कि मौम को अंत की आहट लग रही है. मिली ने भी मौम की क्षीण व दुर्बल काया को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘मर्लिन मेरी बच्ची, मैं तेरे लिए क्याक्या करना चाहती थी लेकिन लगता है सारे अरमान धरे के धरे रह जाएंगे. लगता है अब मेरे जाने का समय आ गया है.’’

‘‘नहीं, मौम…नहीं, तुम ने सबकुछ किया है…तुम दुनिया की सब से अच्छी मां हो…’’ रुदन को रोक, रुंधे कंठ से मिली बस, इतना भर बोल पाई और अपना सिर मौम के सीने पर रख दिया.’’

कांपते हाथों से मिसेज ब्राउन बेटी का सिर सहलाती रहीं और एकदूसरे से नजरें चुराती दोनों ही अपनेअपने आंसुओं को छिपाती रहीं.

मिली भाई को बुलाना चाहती तो मौम कहतीं, ‘‘उसे वहीं रहने दे…तू है न मेरे पास, वह आ कर भी क्या कर लेगा. वह कद से लंबा जरूर है पर उस का दिल चूहे जैसा है…अब तो तुझे ही उस का ध्यान रखना होगा, मर्लिन.’’

मौम की हालत बिगड़ती देख अकेली पड़ गई मिली ने एक दिन घबरा कर चुपचाप भाई को फोन लगाया और उसे सबकुछ बता दिया.

आननफानन में जौन आ पहुंचा और फिर देखते ही देखते सबकुछ बीत गया. मौम चुपके से सबकुछ छोड़ कर इस दुनिया को अलविदा कह गईं.

उस रात मां के चेहरे पर और दिनों सी वेदना न थी. कैसी अलगअलग सी दिख रही थीं. मिली डर गई. वह समझ गई कि मौम को मुक्ति मिल गई है. मिली ने उन को छू कर देखा, वे जा चुकी थीं. मिली समझ ही न पाई कि वह हंसे या रोए. अंतस की इस ऊहापोह ने उसे बिलकुल ही भावशून्य बना दिया. हृदय का हाहाकार कहीं भीतर ही दब कर रह गया.

लोगों का आनाजाना, अंतिम कर्म, चर्च सर्विस, मिली जैसे सबकुछ धुएं की दीवार के पार से देख रही थी. होतेहोते सबकुछ हो गया. फिर धीरेधीरे धुंधलका छंटने लगा. कोहरा भी कटने लगा. मिली की भावनाएं पलटीं तो मां के बिना घर बिलकुल ही सूना लगने लगा था.

कुछ ही दिन के बाद डैड अपनी एक महिला मित्र के साथ कनाडा चले गए. जैसे जो हुआ उन्हें बस, उसी का इंतजार था.

सत्र समाप्ति पर था. मिली नियमित स्कूल जाती और मेहनत से पढ़ाई करती पर एक धुकधुकी थी जो हरदम उस के साथसाथ चलती. अब तो जौन भी चला जाएगा, फिर कैसे रहेगी वह अकेली इस सांयसांय करते सन्नाटे भरे घर में.

मौम क्या गईं अपने साथसाथ उस का सपना भी लेती गईं. सपना अपने देश जा कर अपने शहर कोलकाता देखने का था. सपना अपनी फरीदा अम्मां से मिल आने का था. टूट चुकी थी मिली की आस. अब कोई नहीं करेगा इंडिया जाने की बात. काश, एक बार, सिर्फ एक बार वह अपना देश और कोलकाता देख पाती.

स्कूल का सत्र समाप्त होने पर जौन उसे अपने साथ ले जाने की बात कर रहा था. अब वह कैसे उस से कहे कि मुझे इंडिया ले चलो. देश दिखा लाओ.

मौम के जाने पर ही भाईबहन ने जाना कि वह बिन बोले, बिन कहे कितना कुछ सहेजेसंभाले रहती थीं. अब वह चाहे जितना कुछ करते, कुछ न कुछ काम रह ही जाता.

उस दिन जौन मां के कागज सहेजनेसंभालने में व्यस्त था. बैंक पेपर, वसीयत, रसीदें, टैक्स पेपर तथा और भी न जाने क्या क्या. इतने सारे तामझाम के बीच जौन एकदम से बोल पड़ा, ‘‘मर्लिन, इंडिया चलोगी?’’

मिली हैरान, क्या कहती? ओज के अतिरेक में उस की आवाज ही गुम हो गई और आंखों में आ गया अविश्वास और आश्चर्य.

‘‘यह देखो मर्लिन, मौम तुम्हारे भारत जाने का इंतजाम कर के गई हैं, पासपोर्ट, टिकट, वीसा और मुझे एक चिट्ठी भी, छुट्टियां शुरू होते ही बहन को इंडिया घुमा लाओ…और यह चिट्ठी तुम्हारे लिए.’’

मिली ने कांपते हाथों से लिफाफा पकड़ा और धड़कते दिल से पत्र पढ़ना शुरू किया:

‘‘प्यारी बेटी, मर्लिन,

कितना कुछ कहना चाहती हूं पर अब जब कलम उठाई है तो भाव जैसे पकड़ में ही नहीं आ रहे. कहां से शुरू करूं और कैसे, कुछ भी समझ नहीं पा रही हूं्. कुछ भावनाएं होती भी हैं बहुत सूक्ष्म, वाणी वर्णन से परे, मात्र मन से महसूस करने के लिए. कैसेकैसे सपनों और अरमानों से तुम्हें बेटी बना कर भारत से लाई थी कि यह करूंगी…वह करूंगी पर कितना कुछ अधूरा ही रह गया… समय जैसे यों ही सरक गया.

कभीकभी परिस्थितियां इनसान को कितना बौना बना देती हैं. मनुष्य सोचता कुछ है और होता कुछ है. फिर भी हम सोचते हैं, समय से सब ठीक हो जाएगा पर समय भी साथ न दे तो?

मैं तुम्हारी दोषी हूं मर्लिन. तुम्हें तुम्हारी जड़ों से उखाड़ लाई…तुम्हारी उमर देखते हुए साफ समझ रही थी कि तुम्हें बहलाना, अपनाना कठिन होगा पर क्या करती, स्वार्थी मन ने दिमाग की एक न सुनी. दिल तुम्हें देखते ही बोला, तुम मेरी हो सिर्फ मेरी. तब सोचा था तुम्हें तुम्हारे देश ले जाती रहूंगी और उन लोगों से मिलवाती रहूंगी जो तुम्हारे अपने हैं. पर जो चाहा कभी कर न पाई. तुम्हारे 18वें जन्मदिन का यह उपहार है मेरी ओर से. तुम भाई के साथ भारत जाओ और घूम आओ…अपनी जननी जन्मभूमि से मिल आओ. मैं साथ न हो कर भी सदा तुम्हारे साथ चलूंगी. तुम दोनों मेरे ही तो अंश हो. ऐसी संतान भी सौभाग्य से ही मिलती है. जीवन के बाद भी यदि कोई जीवन है तो मेरी कामना यही रहेगी कि मैं बारबार तुम दोनों को ही पाऊं. अगली बार तुम मेरी कोख में ही आना ताकि फिर तुम्हें कहीं से उखाड़ कर लाने की दोषी न रहूं.

तुम पढ़ोलिखो, आगे बढ़ो, यशस्वी बनो, अपने लिए अच्छा साथी चुनो. घरगृहस्थी का आनंद उठाओ, परिवार का उत्सव मनाओ. तुम्हारे सारे सुख अब मैं तुम्हारी आंखों से ही तो देखूंगी. इति…

मंगलकामनाओं के साथ तुम्हारी मौम.’’

मौम बिन बताए उस के लिए कितना कुछ कर गई थीं. उसे घर, धनसंपत्ति और सब से ऊपर जौन जैसा प्यारा भाई दे गई थीं.

मौम की अंतिम इच्छा को कार्यरूप देने में जौन ने भी कोई कोरकसर न छोड़ी.

स्कूल का सत्र समाप्त होते ही रोमांच से छलकती मिली हवाई यात्रा कर रही थी. जहाज में बैठी मिली को लग रहा था कि बचपन जैसे बांहें पसारे खड़ा हो. गुजरा, भूला समय किसी चलचित्र की तरह उस की आंखों के सामने चल रहा था.

पिछवाड़े का वह बूढ़ा बरगद जिस की लंबी जटाओं से लटक कर वह हमउम्र बच्चों के साथ झूले झूलती थी, और वेणु मौसी देख लेती तो बस, छड़ी ले कर पीछे ही पड़ जाती. बच्चों में भगदड़ मच जाती. गिरतेपड़ते बच्चे इधरउधर तितरबितर हो जाते पर मौसी का कोसना देर तक जारी रहता.

विमान ने कोलकाता शहर की धरती को छुआ तो मिली का मन आकाश की अनंत ऊंचाइयों में उड़ चला.

बाहर चटकचमकीली धूप पसरी पड़ी थी. विदेशी आंखों को चौंध सी लगी. बाहर निकलने से पहले काले चश्मे चढ़ गए. चौडे़ हैट लग गए. पर मान से भरी मिली यों ही बाहर निकल गई मानो कह रही हो कि अरे, धूप का क्या डर? यह तो मेरी अपनी है.

मिली के मन से एक आह सी निकली, ‘तो आखिर, मैं आ ही गई अपने नगर, अपने शहर.’ जौन ने भारत के बारे में लाख पढ़ रखा था पर जो आंखों से देखा तो चकित रह गया. ज्योंज्यों गंतव्य नजदीक आ रहा था, मिली के दिल की धुकधुकी बढ़ती जा रही थी. कई सवाल मन में उठ रहे थे.

कैसी होंगी फरीदा अम्मां? पहचानेंगी तो जरूर. एकाएक ही सामने पड़ कर चौंका दूं तो? तुरंत न भी पहचाना तो क्या…नाम सुन कर तो सब समझ जाएंगी…मृणाल…मृणालिनी कितना प्यारा लग रहा था आज उसे अपना वह पुराना नाम.

लोअर सर्कुलर रोड के मोड़ पर, जिस बड़े से फाटक के पास टैक्सी रुकी वह तो मिली के लिए बिलकुल अजनबी था पर ऊपर लगा नामपट ‘भारती बाल आश्रम’ बिलकुल सही.

टैक्सी के रुकते ही वर्दीधारी वाचमैन ने दरवाजा खोला और सामान उठवाया.

अंदर की दुनिया तो मिली के लिए और भी अनजानी थी. कहां वह लाल पत्थर का एकमंजिला भवन, कहां यह आधुनिक चलन की बहुमंजिला इमारत.

सामने ही सफेद बोर्ड पर इमारत का इतिहास लिखा था. साथ ही साथ उस का नक्शा भी बना था. मिली ठहर कर उसे पढ़ने लगी.

सिर्फ 5 वर्ष पहले ही, केवलरामानी नाम के सिंधी उद्योगपति के दान से यह बिल्ंिडग बन कर तैयार हुई थी. मिली भौंचक्क सी रह गई. लाल गलियारे और हरे गवाक्ष, ऊंची छतों वाला शीतल आवास काल के गाल में समा चुका था. मिली अनमनी हो उठी.

रिसेप्शन पर बैठी लड़की ने रजिस्टर में उन का नाम पता मिलाया. गेस्ट हाउस में उन की बुकिंग थी. कमरे की चाबी निकाल कर जब लड़की उन का लगेज लिफ्ट में लगवाने लगी तो मिली ने डरतेडरते पूछा, ‘‘क्या मैं पहली मंजिल पर बनी नर्सरी को देखने जा सकती हूं?’’

लड़की ने बहुत शिष्टता से कहा, ‘‘मैम, उस के लिए आप को आफिस से अनुमति लेनी होगी. और आफिस शाम को 5 बजे के बाद ही खुलेगा.’’

‘‘तो आप ऊपर से फरीदा अम्मां को बुलवा दीजिए, प्लीज,’’ मिली ने हिचक के साथ अनुरोध किया.

लड़की ने जब यह कहा कि वह यहां की किसी फरीदा अम्मां को नहीं जानती तो मिली निराश सी हो गई. उस का लटका चेहरा देख कर जौन ने लिफ्ट में उसे टोकते हुए कहा, ‘‘चीयर अप सिस्टर, वी आर इन इंडिया…’’

मिली बेमन से हंस दी.

मिली ने विशेष आग्रह कर के अपने लिए मछली का झोल और भात मंगवाया. पहले उसे यह बंगाली खाना पसंद था पर आज 2 चम्मच से अधिक नहीं खा पाई, जीभ जलने लगी. आंखों में जल भर आया.

मिली की हताशा पर जौन हंस कर बोला, ‘‘चलो, चलो, पानी पियो…मुंह पोंछो… यह लो, मेरे सैंडविच खाओ.’’

जौन की लाख कोशिशों के बाद भी मिली अधीर और उदास ही बनी रही. इतने बदलावों ने उस के मन में इस शंका को भी जन्म दिया कि कहीं अगर फरीदा अम्मां भी…और इस के आगे वह और कुछ नहीं सोच सकी.

मिली के लिए 2 घंटे 2 युगों के बराबर गुजरे. 5 बजे कार्यालय खुला और जैसे ही संचालक महोदय आए मिली सब को पीछे छोड़ती हुई जौन को साथ ले कर उन के पास पहुंच गई.

संचालक, मिलन मुखर्जी आश्रम की बाला को बरसों बाद वापस आया जान खूब खुश हुए और आदरसत्कार कर मिली से इंगलैंड के बारे में, उस के परिवार के बारे में बात करते रहे. मिली ने अधीरता से जब नर्सरी देखने के लिए आज्ञापत्र मांगा तो मुखर्जी महोदय होहो कर हंस दिए और बोले, ‘‘अरे, तुम्हारे लिए कैसा आज्ञापत्र? तुम तो हमारी अपनी हो…यह तो तुम्हारा अपना घर है…चलो…मैं दिखाता हूं तुम्हें नर्सरी.’’

बड़ा सा हौल. छोटेछोटे पालने. नन्हेमुन्ने बच्चे. कितने सलोने, कितने सुंदर. वह भी तो ऐसे ही पलीबढ़ी है, यह सोचते ही मिली का मन फिर उमड़ने- घुमड़ने लगा.

हौल में बच्चों को पालनेपोसने वाली मौसियां उत्सुकता से मिलीं. वे सब जौन को देखे जा रही थीं. मुखर्जी बाबू ने बड़े अभिमान से मिली का परिचय दिया कि यहीं की बच्ची है मृणालिनी, अब लंदन से अपने भाई के साथ आई है.

हौल में हलचल सी मच गई. खूब मान मिला. मिली के साथसाथ लंबे जौन ने भी सब को बड़ा प्रभावित किया.

मिली बच्चों से मिली. बड़ों से मिली लेकिन उस फरीदा अम्मां से नहीं मिल पाई जिस के लिए समंदर पार कर वह भारत आई थी.

‘‘बाबा, फरीदा अम्मां कहां हैं?’’ उसे याद है बचपन में संचालक को सभी बच्चे बाबा ही कह कर बुलाते थे. आज मुखर्जी बाबू के लिए भी मिली के पास वही संबोधन था.

‘‘कौन? फरीदा बेग? अरे, वह 4-5 साल पहले तक यहीं थी. उस की नजर कमजोर हो गई थी. मोतियाबिंद का आपरेशन भी हुआ पर अधिक उम्र होने के कारण वह काम नहीं कर पाती थी, लेकिन रहती यहीं थी. फिर एक दिन उस का बेटा सेना से स्वैच्छिक अवकाश ले कर आ गया और वह अपने साथ फरीदा को भी ले गया,’’ मुखर्जी ने पूरी जानकारी एकसाथ दे दी.

अम्मां चली गई हैं, यह जानते ही मिली का चेहरा सफेद पड़ गया. उस के निरीह चेहरे को देख कर जौन ने एक और प्रयत्न किया, ‘‘आप के पास उन का कोई पता तो होगा ही मिस्टर मुखर्जी?’’

‘‘हां…हां, क्यों नहीं. आप उन से मिलने जाएंगे? खूब खुश होंगी वह अपनी पुरानी बच्ची से मिल कर.’’ मुखर्जी बाबू आनंदित हो उठे. मिली की जाती जान जैसे वापस लौट आई.

पुराने खातों की खोज हुई. कोलकाता के उपनगर दमदम से भी आगे, नागेर बाजार के किसी पुराने इलाके का पता लिखा था.

अगले दिन, संचालक ने उन के जाने के लिए टूरिस्ट कार की व्यवस्था कर दी.

अम्मां के लिए फलफूल लिए गए. चौडे़ पाड़ वाली बंगाली धोती खरीदी गई. मिली बहुत खुश थी. आखिर दूरियां नापतेनापते जब वे दिए गए पते पर पहुंचे तो पता चला कि वहां तो कोई और परिवार रहता है. पड़ोसियों से पूछताछ की लेकिन पक्के तौर पर कोई कुछ कह न सका. शायद वे अपने गांव उड़ीसा चले गए थे, जहां उन की जमीन थी. पर वहां का पता किसी को मालूम न था.

मिली की तो जैसे सुननेसमझने की शक्ति ही जाती रही. फिर रुलाई का ऐसा आवेग उमड़ा कि उस की हिचकियां बंध गईं. जौन ने उसे संभाल लिया. बांहों में उसे बांध कर उस का सिर सहलाया. स्नेह से समझाया पर मिली तो जैसे कुछ सुननेसमझने के लिए तैयार ही न थी.

उस का कातर कं्रदन जारी रहा तो जौन घबरा उठा. कंधे झकझोर कर उस ने मिली को जोर से डांटा, ‘‘मिली, बहुत हुआ…अंब बंद करो यह नादानी.’’

‘‘यहां आना तो बेकार ही हो गया न जौन,’’ मिली रोंआसे स्वर से बोली.

‘‘यह तो बेवकूफों वाली बात हुई,’’ जौन फिर नाराज हुआ, ‘‘अरे, अपने भाई के साथ तुम वापस अपने देश आई हो. मैं तो पहली बार ही इंडिया देख रहा हूं और इसे तुम बेकार कहती हो. असल में मिली, तुम्हारी अपेक्षाएं ही गलत हैं. तुम ने सोचा, तुम जो जैसा जहां छोड़ गई हो वह वैसा का वैसा वहीं पाओगी. बीच के समय का तुम्हें जरा भी विचार नहीं…तुम्हें तुम्हारा पुराना भवन न दिखा तो तुम निराश हो गईं. फरीदा अम्मां न मिलीं तो तुम हताश हो उठीं. तनिक यह भी सोचो कि बिल्ंिडग कितनी सुविधामयी है. फरीदा अम्मां अपने परिवार के साथ सुख से हैं. यह    दुख की बात है कि तुम उन से नहीं मिल पाईं पर इस बात को दिल से तो न लगाओ. जिन को चाहती हो, प्यार करती हो उन को अपना आदर्श बनाओ. जुझारू, बहादुर और सेवामयी बनो, फरीदा अम्मां जैसे.’’

भाई की बातों को ध्यान से सुनती मिली एकाएक ही बोल पड़ी, ‘‘जौन, मैं तो अभी कितनी छोटी हूं…मैं भला क्या कर सकती हूं.’’

‘‘तुम क्याक्या कर सकती हो, समय आने पर सब समझ जाओगी. फिलहाल तो तुम इस संस्था को कुछ दान दो जिस ने तुम्हें पाला, पोसा, बड़ा किया, प्यार दिया. मौम तुम्हें कितना सारा पैसा दे कर गई हैं…आओ, मैं तुम्हें चेक भरना बताऊं.’’

दोनों भाईबहनों ने ‘भारती बाल आश्रम’ के नाम एक चेक बनाया जिसे चुपचाप गलियारे में रखे दानपात्र में डाल दिया.

‘‘कोलकाता घूम कर शांतिनिकेतन चलेंगे फिर नालंदा और बोधगया देखेंगे. उस के बाद आगरा का ताज देख कर दिल्ली पहुंचेंगे और दिल्ली दर्शन के बाद वापस लंदन लौट चलेंगे. इस ट्रिप में तो बस, इतना ही घूमा जा सकता है.’’

आंख खुली तो मिली ने देखा एक सितारा अभी भी अपनी पूरी निष्ठा से दमक रहा था. मिली इस सितारे को पहचानती है यह भोर का तारा है.

फरीदा अम्मां कहती थीं, भोर का यह तारा भूलेभटकों को राह दिखाता है, दिशाहारों की उम्मीद जगाता है. बड़ा ही हठीला है पूरब दिशा का यह सितारा. किरणें उसे लाख समझाएं पर जबतक सूरज खुद नहीं आ जाता यह जिद्दी तारा जाने का नाम ही नहीं लेता. इसी हठी सितारे के आकर्षण में बंधी मिली बिस्तर से उठ खड़ी हुई.

पिछवाड़े की बालकनी खोल मिली ने बाहर कदम रखा ही था कि सहसा ठिठक गई. सामने जटाजूटधारी बरगद खड़ा था. वही वैभवशाली वटवृक्ष. पहले से कहीं ऊंचा, उन्नत, विराट और विशाल.

मिली ने हाथ आगे बढ़ा कर हौले से पेड़ के पत्तों को सहलाया, धीरे से उस की डालों को छुआ, मानो पूछ रही हो कि  पहचाना मुझे? मैं मिली हूं जो कभी तुम्हारी छांव में खेलती थी, तुम्हारी जटाओं पर झूलती थी. और इस तरह एक बार फिर मिली बचपन में भटकने लगी थी.

अचानक मसजिद से अजान की आवाज उभरी तो किसी मंदिर के घंटे घनघना उठे. और यह सब सुनते ही मिली को अभिमान हो आया कि कैसी विशाल, विराट, भव्य और उदार है उस की मातृभूमि.

मौम सच कहती थीं, हर जीवन अपनी जड़ों से जुड़ा होता है. मनुष्य अपनी माटी से अनायास ही आकर्षित होता है. अपनी जमीन और अपनी मिट्टी ही देती है व्यक्ति को असीम ऊर्जा और अलौकिक आनंद.

दिन चढ़ने लगा था. कोलकाता शहर के विहंगम विस्तार पर सूरज दमक रहा था. सड़कों पर गलियों में धूप पसर रही थी. सूरज की किरणों के साथ ही जैसे संपूर्ण शहर जाग उठा था.

मिली को अचानक ही लंदन की याद हो आई. शांत, सौम्य लंदन. लंदन उस का अपना नगर, अपना शहर, जहां बर्फ भी गिरती है तो चुपचाप बेआवाज. सर्द मौसम में, पेड़ों की फुनगियों पर, घरों की छतों पर, सड़कों और गलियों में. यहां से वहां तक बस चांदी ही चांदी, बर्फ की चांदी. मिली के मन में जैसे बर्फ की चांदी बिखर गई. मिली अकुला उठी. उसे अपना घर याद हो आया. भोर का सितारा तो न जाने कब, कहां निकल गया था. अब तो उसे भी जाना था, वापस अपने घर.

किस्तों में सुपारी

मनदीप बंसल और शादीशुदा कर्मजीत कौर अच्छे दोस्त तो थे ही, दोनों के बीच अच्छाखासा रोमांटिक अफेयर भी था. कर्मजीत कौर 2 ऐसी नावों पर सवार थी, जिन में छेद थे. ऐसे में डूबना गारंटी होता है. और यही बात मनदीप पर भी लागू थी.

आर्किटेक्ट मनदीप बंसल उर्फ मिंटी मशहूर बिल्डर था. वह ठेके पर बड़ीबड़ी बिल्डिंग बनाने के साथसाथ प्लौट खरीद कर उन पर कोठियां बना कर बेच देता था. इस काम में उसे अच्छाखासा मुनाफा हो जाता था. सिविल इंजीनियर मनदीप को भवन निर्माण का बड़ा तजुर्बा था. लुधियाना शहर में उस की गिनती बड़े बिल्डरों में होती थी. हालांकि उस के पिता सुरिंदर सिंह कपड़े के व्यापारी थे, पर मिंटी ने भवन निर्माण के क्षेत्र में काफी नाम कमाया था.

मनदीप 3 भाईबहन थे. सब से बड़े थे सुरजीत सिंह बंसल, जो कपड़े का व्यापार करते थे. दूसरे नंबर पर मनदीप था और सब से छोटी बहन थी रवनीत कौर. सुरजीत को छोड़ कर मनदीप और रवनीत अभी अविवाहित थे. लगभग 2 साल पहले बंसल परिवार गुरु अंगतदेव नगर में रहता था.

फिर अचानक उन्हें वह घर छोड़ कर खन्ना एन्क्लेव, धांदरा रोड पर किराए की एक कोठी में रहना पड़ा. बंसल परिवार के गुरु अंगतदेव नगर छोड़ने के पीछे की भी एक अहम कहानी है, जिस ने आगे चल कर एक बहुत बड़े अपराध को जन्म दिया था.

बहरहाल, खन्ना एन्क्लेव में रहते हुए बंसल बंधुओं ने लुधियाना के ही शहीद भगत सिंह नगर में एक प्लौट खरीद कर उस पर एक विशाल कोठी का निर्माण करवाया, जो लगभग पूरा हो चुका था. मुहूर्त के अनुसार उन्हें दिनांक 14 अक्तूबर, 2018 को नई कोठी में गृहप्रवेश करना था. इस के लिए सभी तैयारियां पूरी हो चुकी थीं. उन्होंने घर का सारा सामान भी बांध लिया था.

11 अक्तूबर की सुबह 9 बजे मनदीप बंसल अपनी एक निर्माण साइट दुगरी फेज-1 की कोठी नंबर-196 पर चल रहे काम को देखने गया था. यह कोठी सरदार सुखविंदर सिंह की थी, जिस का निर्माण मनदीप करवा रहा था. निर्माणाधीन कोठी पर मनदीप पूरे एक घंटे तक रुका. इस के बाद उसे दूसरी साइट पर जाना था.

ठीक 10 बज कर 2 मिनट पर मनदीप कोठी से बाहर निकल कर अपनी इंडिका कार के पास आया और कार में बैठने के लिए जैसे ही उस ने ड्राइविंग सीट का दरवाजा खोलना चाहा, तभी कार के पीछे छिपा एक बाइक सवार अचानक वहां आया और उस ने मनदीप पर रिवौल्वर से अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी.

उस ने मनदीप पर 5 गोलियां दागीं. इस के बाद वह वहां से निकल गया.गोलियां लगते ही मनदीप कटे पेड़ की तरह लहरा कर जमीन पर गिर गया.

गोलियों की आवाज सुन कर लोग वहां जमा हो गए. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि हत्यारा कौन था और उस ने मनदीप पर गोलियां क्यों चलाईं. निर्माणाधीन कोठी का मालिक सुखदेव सिंह भी दौड़ता हुआ बाहर आ गया. उस ने मनदीप को सहारा दे कर कुरसी पर बिठा कर पानी पिलाने की कोशिश की, पर मनदीप की हालत गंभीर थी, उस ने अस्पताल चलने के लिए कहा.

सुखदेव ने इस घटना की सूचना मनदीप के घर वालों और पुलिस को दे दी और मनदीप को डीएमसी अस्पताल ले गया. पर अस्पताल पहुंचते ही डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. तब तक मनदीप का बड़ा भाई सुरजीत और पुलिस भी वहां पहुंच गई.

सूचना मिलते ही लुधियाना पुलिस कमिश्नर डा. सुखचैन सिंह गिल, एडीसीपी सुरिंदर लांबा, एसीपी (क्राइम) सुरिंदर मोहन, एसीपी रमनदीप सिंह भुल्लर, सीआइए स्टाफ-2 के इंचार्ज राजेश शर्मा और थाना दुगरी प्रभारी इंसपेक्टर राजेश ठाकुर घटनास्थल पर पहुंच गए.

सुरजीत बंसल की तरफ से अज्ञात के खिलाफ धारा 302, 120 बी और 25,27,54, 59 आर्म्स ऐक्ट के तहत दुगरी थाने में रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

घटनास्थल का मुआयना करने पर पुलिस को वहां से खाली कारतूस का कोई खोखा नहीं मिला था, जो हैरानी वाली बात थी. आखिर गोलियों के खाली खोखे कहां गायब हो गए?

पुलिस इसे आंतकवादी हमले से भी जोड़ कर देख रही थी. एडीसीपी डा. सुखचैन सिंह ने मनदीप बंसल हत्याकांड को जल्द सुलझाने के लिए पुलिस की कई टीमें बनाईं. इस वारदात के बाद शहर में दहशत का माहौल था. पुलिस टीमें कई एंगल्स और थ्यौरियों पर काम कर रही थीं.

पुलिस सब से पहले यह पता करने में जुट गई कि क्या मृतक की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. इस दिशा में एक ऐसा नाम उभर कर सामने आया था, जिस पर पुलिस को शकहुआ. वह नाम था मृतक के पूर्व पड़ोसी बलविंदर सिंह का.

जांच का दायरा जैसेजैसे आगे बढ़ा, वैसेवैसे यह बात भी स्पष्ट होती चली गई कि बलविंदर सिंह ही मनदीप का हत्यारा हो सकता है. इसी के साथ 2 साल पहले बंसल बंधुओं के गुरु अंगतदेव नगर वाली कोठी को छोड़ने की वजह भी स्पष्ट हो गई.

पुलिस ने बलविंदर के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो वारदात के समय उस के फोन की लोकेशन उस के घर न्यू अमर कालोनी की आ रही थी. इस का मतलब साफ था कि शातिर बलविंदर ने यह काम खुद न कर के किराए के किसी हत्यारे से करवाया होगा.

एक पुलिस टीम बलविंदर के घर भेजी गई पर वह अपने घर नहीं मिला, शायद वह फरार हो गया था. दरअसल पुलिस का ध्यान बलविंदर की ओर इस कारण गया था कि जब उन्होंने मृतक के भाई सुरजीत से बात की तो यह पता चला कि आज से 2 साल पहले मृतक और बलविंदर पड़ोसी हुआ करते थे और उन के बीच अच्छाखासा याराना था. दोनों हम प्याला हम निवाला दोस्त थे. इतना ही नहीं, दोनों का एकदूसरे के घर भी काफी आनाजाना था.

बलविंदर का स्पेयर पार्ट्स का बिजनैस था. बलविंदर की पत्नी कर्मजीत कौर बहुत खूबसूरत थी. लोग उस की एक झलक पाने के लिए तरसते थे. उस का झुकाव अविवाहित मनदीप बंसल की ओर हो गया था. बाद में मनदीप और कर्मजीत के बीच अवैध संबंध बन गए थे, जिस का बलविंदर को जल्द ही पता चल गया था.

तब उस ने अपनी पत्नी को समझाने के साथसाथ मनदीप को भी अपने घर आने से रोक दिया था. मोहल्लेदारी देखते हुए एक टाइम तो मनदीप ने अपने आप को रोक लिया था पर कर्मजीत कौर नहीं मानी. वह कोई न कोई बहाना कर मनदीप से मिलने उस के घर पहुंच जाती थी.

बलविंदर अपनी पत्नी कर्मजीत पर नजर रखे हुए था. उसे पत्नी की एकएक हरकत की जानकारी मिल जाती थी. इस बात को ले कर उस के घर हर समय क्लेश रहने लगा था. बलविंदर और कर्मजीत के बीच रिश्ते अब सामान्य नहीं रह गए थे. उन के रिश्तों और शादीशुदा जिंदगी में जहर घुल चुका था.

कुछ रिश्ते कुदरत तय करती है, जो मर्यादाओं और खून के धागों से बंधे होते हैं. कुछ रिश्ते समाज बनाता है, जो मजबूरी की सलाखों में जकड़े होते हैं. और कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं जो दिल की धड़कनों पर सवार, चाहत की मझदार में तैरते हैं.

मनदीप बंसल और शादीशुदा कर्मजीत कौर का इसी तरह का संबंध था. दोनों अच्छे दोस्त तो थे ही, इन के बीच अच्छाखासा रोमांटिक अफेयर भी था. कर्मजीत कौर 2 ऐसी नावों पर सवार थी, जिन में छेद थे. ऐसे में डूबना गारंटी होता है. और यही बात मनदीप पर भी लागू थी.

जब कोई इंसान अपनी जिंदगी के अहम फैसले को बिना सोचेसमझे या लापरवाही से लेता है, तो ऐसा कर के वो जुए की बाजी खेल रहा होता है. अगर जीत गए तो ठीक, लेकिन हार हुई तो उस की अपनी जिंदगी और कइयों की जिंदगियां इस कदर बरबाद होती हैं कि संभलने का दूसरा मौका तक हाथ नहीं आता है.

बलविंदर ने पत्नी को लाख समझाने का प्रयास किया, लेकिन पत्नी पर इस का फर्क नहीं पड़ा. क्योंकि अब पानी उस के सिर के ऊपर से गुजर चुका था. करीब 2 साल पहले मंदीप और कर्मजीत कौर घर से भाग गए. इस से बलविंदर की बड़ी बदनामी हुई. शर्म के मारे वह समाज में किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा.

उस ने अपने स्तर पर दोनों की तलाश शुरू की, पर 2 दिनों बाद वे दोनों अपनेअपने घर लौट आए. पत्नी के इस शर्मनाक कारनामे से बलविंदर किसी से आंख मिलाने लायक नहीं रहा. पत्नी के वापस आ जाने के बाद उस ने बिना किसी से कोई बात किए और बिना कुछ कहे रातोंरात अपना गुरु अंगतदेव नगर वाला मकान छोड़ दिया. वह अपने परिवार के साथ कोठी नंबर-9, खन्ना एन्क्लेव, धांधरा रोड पर आ कर रहने लगा था. इस बात को पूरे 2 साल बीत चुके थे और लगभग सभी लोग इस बात को भूल भी चुके थे.

अपनी तफ्तीश को आगे बढ़ाने से पहले पुलिस के सामने यह बात लगभग पूरी तरह से साफ हो गई थी कि अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए ही बलविंदर ने मनदीप की हत्या करवाई थी. अब पुलिस का टारगेट भाड़े के वे हत्यारे थे, जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया था. सो उन की तलाश में पुलिस ने पूरे क्षेत्र के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगालनी शुरू की. सीसीटीवी कैमरों की फुटेज में हत्यारे का चेहरा स्पष्ट दिखाई दे रहा था. वह बाइक पर आया था और वारदात को अंजाम दे कर निकल गया था.

हत्यारा कैमरे में कैद तो हो गया था पर पुलिस अभी पता नहीं लगा पाई थी कि वह कौन शख्स है. इसी बीच पुलिस को सूचना मिली कि दुगडी मार्केट में एक बाइक लावारिस खड़ी है. पुलिस ने वह बाइक अपने कब्जे में ले ली. पुलिस ने जब आगे की जांच की तो पता चला कि 5 अक्तूबर को वह बाइक गुरुद्वारा आलमगीर साहब के बाहर से चोरी हुई थी. चोरी की रिपोर्ट उस ने थाना डेहलों में दर्ज करवाई थी.

पुलिस ने जांच की तो जानकारी मिली कि वह बाइक वही थी, जो सीसीटीवी कैमरे में दिखी थी. इस का मतलब यह हुआ कि हत्यारे ने चोरी की बाइक से वारदात को अंजाम दिया था.

कैमरे में कैद हत्यारा वैसे तो पुलिस के सामने था पर सफलता अभी बहुत दूर थी. सीसीटीवी फुटेज से पुलिस को यह भी जानकारी मिल गई थी कि मौके पर हत्यारे ने आधे घंटे तक इंतजार किया था. इस का मतलब यह था कि मंजीत की हत्या की प्लानिंग बहुत पहले ही बना ली गई थी. हत्यारे ने वारदात को अंजाम देने के लिए पूरी रेकी की हुई थी.

मौका देख कर उस ने मनदीप को गोली मारी और फरार हो गया. प्रत्यक्षदर्शियों ने भी यही बताया था कि हत्यारा 9 बजे के करीब उस निर्माणाधीन कोठी के सामने आ कर खड़ा हो गया था. उस ने फरार होने के लिए ही बाइक सीधी कर के लगा रखी थी. वह वहां काफी समय तक मनदीप का इंतजार करता रहा था.

बहरहाल पुलिस ने काफी भागदौड़ करने के बाद हत्यारे की पहचान कर ली थी. उस का नाम गुरविंदर सिंह था और वह शिमला पुरी का रहने वाला था. गुरविंदर के बारे में अधिक जानकारी जुटाई तो पुलिस को पता चला कि गुरविंदर कंप्यूटर हार्डवेयर इंजीनियर है. वह किसी कंप्यूटर हार्डवेयर की दुकान पर काम करता था.

गुरविंदर के बारे में जानकारी मिलते ही पुलिस ने चारों ओर अपना जाल बिछा दिया. काफी मेहनत के बाद पुलिस ने वारदात के 15 घंटों बाद मनदीप हत्याकांड के सुपारीकिलर शूटर गुरविंदर को दुगडी से धर दबोचा.

थाने में पुलिस के उच्चाधिकारियों के सामने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बड़ी आसानी से अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि उसी ने बलविंदर के कहने पर मनदीप की हत्या का सौदा 15 लाख रुपए में तय किया था.

15 लाख रुपए उसे एक साल की अवधि में किस्तों के रूप में मिलने थे. पेशगी के तौर पर उसे 20 हजार रुपए अवैध रिवौल्वर खरीदने के लिए दे दिए गए थे और एक हजार रुपए उसे मनदीप की हत्या से कुछ समय पहले दिए गए थे.

बाकी 5 लाख रुपए मनदीप की हत्या करने के बाद देना तय हुआ था. यानी ये पैसे सुपारीकिलर गुरविंदर की शादी से एक दिन पहले 13 अक्तूबर को देने थे. गुरविंदर पर इसी बात का दबाव था. इसी वजह से उस ने सही समय पर मनदीप की हत्या कर भी दी थी.

अब उसे कौंट्रैक्ट की पहली किस्त के 5 लाख रुपए मिलने थे. इस से पहले कि उसे सुपारी की यह 5 लाख रुपए की किस्त मिलती, पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. गुरविंदर को अब भी उम्मीद थी कि बलविंदर उसे पैसे देगा क्योंकि कौंट्रैक्ट के अनुसार समय रहते उस ने मनदीप की हत्या कर दी थी.

14 अक्तूबर को मनजीत बंसल को अपनी नई कोठी में गृहप्रवेश करना था और 14 अक्तूबर को ही गुरविंदर की भी शादी होनी थी. शादी में खर्च किए जाने वाले रुपए उसे मनदीप की हत्या करने के बाद ही मिलने थे.

बलविंदर सिंह और हार्डवेयर की दुकान पर काम करने वाले आरोपी गुरविंदर की मुलाकात करीब 6 महीने पहले हुई थी. जल्द ही वह दोनों एकदूसरे के दोस्त बन गए थे. गुरविंदर सिंह ने बातोंबातों में बलविंदर सिंह को बताया था कि 14 अक्तूबर को उस की शादी है और उसे काफी पैसों की जरूरत है.

गुरविंदर की शादी वाली बात को ध्यान में रखते हुए बलविंदर ने मनदीप को मौत के घाट उतारने की पूरी प्लानिंग बनाई. 2 साल से उस के अंदर जो चिंगारी धीरेधीरे सुलग रही थी अब उसे बुझाने का समय आ गया था. वैसे भी बीते 2 सालों में वह खामोश नहीं बैठा था.

अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए उस ने अपनी कोशिशें जारी रखी थीं और सही समय का इंतजार कर रहा था. दूसरे उस के पास ऐसा कोई आदमी भी नहीं था, जो इस काम को अंजाम तक पहुंचा सकता. उसे गुरविंदर जैसे जरूरतमंद आदमी की तलाश थी.

गुरविंदर जरूरतमंद था, वह एक लड़की से प्रेम करता था और लड़की के घर वाले शादी के लिए तैयार नहीं थे. अपनी प्रेमिका से शादी करने के लिए उस ने घर से भाग कर कोर्टमैरिज करने की योजना बनाई थी और इस सब के लिए उसे पैसों की सख्त जरूरत थी.

बलविंदर ने जब गुरविंदर को मनदीप की हत्या के बदले 15 लाख रुपए देने का औफर दिया तो वह झट से तैयार हो गया. बलविंदर ने उस से कहा कि वह जिस दिन हत्या करेगा, उस दिन 5 लाख रुपए और बाकी के 10 लाख रुपए वह एक साल की किस्तों में देगा. इस पर गुरविंदर राजी हो गया था.

मनदीप की हत्या की सुपारी लेने के बाद गुरविंदर ने 4 महीने पहले मनदीप की रेकी करनी शुरू कर दी थी. गुरविंदर को पता था कि मनदीप कितने बजे घर से निकलता है और कहांकहां जाता और रुकता है.

गुरविंदर को इतना तक पता था कि मनदीप कौन सी जगह पर कितना समय गुजारता है. पेंच यहां फंसा कि वह हत्या करेगा कैसे? उस के पास हथियार तक नहीं था.

इस के लिए उस ने बलविंदर से 20 हजार रुपए हथियार खरीदने के लिए मांगे. पैसे ले कर वह कुछ समय पहले बलविंदर के साथ फिरोजपुर गया और .32 बोर के रिवौल्वर की 6 गोलियां खरीदीं. वहीं उस ने गोली चलाने की भी ट्रेनिंग ली और खरीदी हुई 6 गोलियों में से एक गोली भी चलाई. बाकी की बची 5 गोलियां उस ने मनदीप की हत्या करने के लिए रख ली थीं.

गोलियां खरीदने के बाद बलविंदर ने गुरविंदर से पूछा कि बिना रिवौल्वर के गोली कैसे चलाओगे? तब गुरविंदरटालमटोल करता रहा. लेकिन उस ने इस का इंतजाम पहले ही कर लिया था.

गुरविंदर की मां डाबा इलाके में रहने वाले एक प्रौपर्टी डीलर के घर खाना पकाने का काम करती थी और वहीं रहती थी. गुरविंदर भी अकसर वहीं रहता था. वह कभीकभार जसपाल बांगड़ स्थित अपने घर भी चला जाता था. उसे अपने मालिक के बारे में पूरी जानकारी थी कि वह सुबह 11 बजे से पहले घर से नहीं निकलते. उस के मालिक के पास भी .32 बोर की रिवौल्वर थी. वह पिछले डेढ़ महीने से मालिक बिल्ला की रिवौल्वर ले कर घर से निकल जाता था. वारदात वाले दिन भी आरोपी बिल्ला का रिवौल्वर ले कर चला गया था.

गुरविंदर ने बलविंदर को यह नहीं बताया था कि उस के पास रिवौल्वर है या नहीं, इसलिए बलविंदर को गुरविंदर पर शक होने लगा कि वह काम कर पाएगा या नहीं. इस के लिए उस ने अपने एक खास दोस्त अमनपाल से बात की और कहा वह गुरविंदर की रेकी करे. गुरविंदर जहां मनदीप की रेकी कर रहा था, वहीं बलविंदर के कहने पर अमनपाल गुरविंदर की रेकी करने लगा था.

वारदात वाले दिन सुबह अमनपाल और गुरविंदर एक स्कूल के पास मिले और वारदात को अंजाम देने के बाद फिर से वहीं मिलने की बात की. जिस समय गुरविंदर सिंह वारदात को अंजाम देने दुगरी फेज-1 पहुंचा और मनदीप के इंतजार में कार के पास खड़ा हो गया, जबकि अमनपाल दूसरी तरफ खड़ा उस पर नजर रखे हुए था.

जैसे ही गुरविंदर ने मनदीप को गोलियां मारीं तो अमनपाल ने तुरंत बलविंदर को फोन कर बता दिया कि काम हो गया है. वारदात को अंजाम देने के बाद गुरविंदर अमनपाल से मिला और उसे पूरा यकीन दिलाने के लिए रिवौल्वर से निकाले हुए 5 खाली खोखे दे दिए.

उस के बाद वह अपने घर गया और अपने मालिक की रिवौल्वर रख कर कपड़े बदले. फिर वह बलविंदर से पैसे लेने के लिए निकल पड़ा. पर इस घटना के बाद बलविंदर ने अपना फोन बंद कर दिया था.

गुरविंदर का बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर अमनपाल को गिरफ्तार कर लिया और हत्या में प्रयोग रिवौल्वर भी दुगरी से बरामद कर ली.

13 अक्तूबर को पुलिस ने गुरविंदर और अमनपाल को अदालत में पेश कर पूछताछ के लिए 2 दिन के रिमांड पर लिया. विस्तार से पूछताछ करने के बाद आरोपी गुरविंदर और अमनपाल को पुन: 15 अक्तूबर को अदालत में पेश किया गया, जहां अदालत के आदेश पर उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

दूसरी ओर मृतक मनदीप बंसल के घर वालों और व्यापार मंडल के सदस्यों ने अस्पताल में हंगामा खड़ा कर दिया था. वे मनदीप का पोस्टमार्टम नहीं होने दे रहे थे. उन की मांग थी कि जब तक सभी हत्यारे पकड़े नहीं जाएंगे, लाश का पोस्टमार्टम नहीं होने देंगे. पुलिस कमिश्नर सुखचैन सिंह गिल ने अस्पताल पहुंच कर उन्हें समझाया और आश्वासन दिया, तब कहीं जा कर मृतक का पोस्टमार्टम किया गया.

सिविल अस्पताल के 3 डाक्टरों डा. रिपुदमन, डा. गुरिंदरदीपग्रेवाल और डा. दविंदर के पैनल ने लाश का पोस्टमार्टम किया.

रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि मनदीप की पीठ पर 2 गोलियां दाईं तरफ और 2 बाईं तरफ लगीं, जो दिल और फेफड़े में जा घुसीं, जिस से उस की मौत हो गई थी. एक गोली उस की बाजू में लगी थी.

दूसरी तरफ वारदात में प्रयोग किए गए रिवौल्वर के असली मालिक का रहस्य पुलिस के लिए बरकरार था. पहले गुरविंदर की तरफ से बताया गया कि जिस घर में वह रहता है, उस ने उस के मालिक बिल्ला का रिवौल्वर चुरा कर मनदीप की हत्या की थी.

लेकिन जब पुलिस ने रिकौर्ड खंगाला तो सामने आया कि बिल्ला के पास रिवौल्वर है ही नहीं. पुलिस द्वारा बरामद किया गया रिवौल्वर उसी इलाके के रहने वाले एक अन्य व्यक्ति का था. जब पुलिस ने उस तक पहुंचने की कोशिश की तो वह घर से फरार हो गया.

सूत्रों के अनुसार मामले में एक कांग्रेसी नेता मैदान में उतर आया था, जो एक स्वयंभू प्रधान को बचाना चाहता था. उस की भूमिका इस हत्याकांड में है या नहीं, पुलिस इस मामले की भी जांच करेगी. इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड बलविंदर सिंह कथा लिखने तक नहीं पकड़ा गया था.

 -कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मूंग दाल के पैनकेक

सामग्री

– 1 कप मूंग दाल पकौड़ों का पाउडर

– 1/4 कप प्याज बारीक कटा

– 1 बड़ा चम्मच टमाटर

– बारीक कटा  थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

–  पैनकेक सेंकने के लिए रिफाइंड औयल

बनाने की विधि

– सारी सामग्री मिला कर पानी डाल कर गाढ़ा घोल तैयार करें.

– 10 मिनट ढ़क कर रखा रखें.

– फिर नौनस्टिक पैन में थोड़ाथोड़ा औयल लगा कर छोटेछोटे पैनकेक बना लें.

व्यंजन सहयोग: नीरा कुमार 

हेयर सीरम के फायदे

हेयर एक्सपर्ट्स अक्सर बालों में सीरम लगाने की सलाह देते हैं. लेकिन वो ऐसा क्यों कहते हैं आज हम आपको बताते हैं. अगर आपने अभी तक बालों में सीरम नहीं लगाया है तो जल्द से जल्द आपको इसका इस्तेमाल करना शुरु कर देना चाहिए. क्योंकि इसके बेहद फायदे हैं. हेयर सीरम में सिलिकान होता है जो बालों में समा कर उन्‍हें चमकीला दिखाने में मदद करता है. ये रूखे, सूखे और खराब दिखने वाले बालों के लिये एक जादुई छड़ी के समान है. इसको हल्‍का सा बालों में लगाया और बाल बन जाते हैं स्‍मूथ और सिल्‍की.

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हेयर सीरम को लगाने से आपके बाल सुलझे और स्‍वस्‍थ्‍य रहते हैं. साथ ही इसे लगाने से सूरज की कठोर यूवी रेज, प्रदूषण और वातावरण की नमी आपके बालों पर कोई बुरा असर नहीं डाल पाएंगी. हेयर सीरम को बालों की लंबाई के अनुसार कवर कर के लगाना चाहिये. इसे जड़ में नहीं लगाया जाता नहीं तो बाल औयली हो जाते हैं. अच्‍छा रिजल्‍ट पाने के लिये इसे गीले बालों में ही लगाना चाहिये.

hair style

  • घने बालों के लिये रूखे और कड़े बालों के लिये हेयर सीरम लगाएं. इससे बाल घने और संभालने में आसान हो जाते हैं. अगर बाल उलझते हैं तो वह भी सही हो जाते हैं.
  • बालों को स्‍ट्रेट या कर्ल करने के लिये जब आप रौड का प्रयोग करेंगी तो बाल लंबे समय तक खराब हो सकते हैं लेकिन अगर आप बालों पर हेयर सीरम लगा कर गरम रौड का प्रयोग करेंगी तो आपके बालों पर कोई बुरा असर नहीं होगा.
  • प्रदूषण, धूल-मिट्टी, तेज सूरज की किरणे आदि से ये आपके बालों को बचाता है. इसको लगाने से बाल रूखे नहीं पड़ते.
  • कुछ खास हेयर सीरम में यूवी प्रोटेक्‍शन फार्मूला होता है. जो कि बालों को लगातार सूरज की किरणों से बचाता है.
  • कंडीशनिंग तेल की जगह पर आप हेयर सीरम का प्रयोग कर के बालों को सुंदर बना सकती हैं. इससे बाल चिपचिप नहीं करते और अच्‍छे से संभाले भी जा सकते हैं.

ई सिगरेट का सेवन है जानलेवा

सिगरेट पीना स्वास्थ के बहुत हानिकारक है. इससे स्वास्थ संबंधित बहुत सी बीमारियां होती हैं. फेफड़ों के लिए खासकर के ये हानिकारक होता है. सिगरेट में पाए जाने वाले निकोटीन का प्रभाव सिगरेट पीने के 40 मिनट बाद भी रहता है. बदलते वक्त के साथ ये लोगों में एक फैशन के तौर पर उभर रहा है और इसका स्वरूप भी बदल रहा है. आज एक बड़ी आबादी में ई सिगरेट पीने का चलन तेजी से बढ़ रहा है. लोगों का मानना है कि ई सिगरेट पीने से लोगों की सेहत पर कोई बुरा असर नहीं पड़ता है. पर असल बात धारणाओं के बिल्कुल उलटा है.

ई सिगरेट से स्वास्थ पर होने वाले प्रभावों के बारे में हाल ही मे एक स्टडी हुई. आइए जाने कि इससे क्या बातें सामने आई हैं.

ईसिगरेट पर हुई एक स्टडी की माने तो इसका सेवन करने वाले लोगों में डिप्रेशन होने की संभावना दोगुनी हो जाती है. इसके बाद जो लोग इसके स्वास्थ पर नकारात्मक असर ना करने का दावा करते रहे, उनकी बातें धरी की धरी रह गईं. इस स्टडी को और भी विश्वसिनिय बनाने के लिए शोधकर्ताओं ने करीब 96,000 लोगों को शामिल किया. इस स्टडी के जो परिणाम आए वो काफी चिंताजनक रहे.  शोध के मुताबिक जो लोग ई सिगरेट का सेवन करते हैं, उन्हे हार्ट अटैक से होने वाला खतरा 56 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. वहीं लंबे समय तक इसका सेवन करने से ब्लड क्लोट की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है.

स्टडी में शामिल जानकारों का कहना है कि ‘हमारी ये स्टडी जो लोग सिगरेट का सेवन करते हैं, उनकी आंखे खोलने के लिए काफी है. ये समझना जरूरी है कि आप ई सिगरेट कम  पिएं या ज्यादा, आपको हार्ट अटैक होने का खतरा बना रहेगा.’

रंगों से बच्चों का ना हो नुकसान, ऐसे रखें ख्याल

त्योहारों में बच्चों की धूम रहती है, उनका उत्साह सातवें आसमान पर रहता है. इस दौरान मां बाप को अपने बच्चों के लिए अधिक सतर्क रहने की भी जरूरत होती है. मां बाप को अपने बच्चों की सुरक्षा को पहले ही सुनिश्तित कर लेनी चाहिए. इसी क्रम में हम आपको कुछ जरूरी टिप्स देने वाले हैं जिसकी मदद से आप अपनी और अपने बच्चों की होली यादगार और मजेदार बना सकते हैं.

 सिंथेटिक कलर्स को कहें ना

सिंथेटिक कलर्स बच्चों के लिए काफी हानिकारक होते हैं. ये बच्चों की आंखों में, त्वचा पर, नाक, कान में जा कर काफी नुकसान पहुंचाते  हैं. कोशिश करें की बच्चे हर्बल कलर्स का इस्तेमाल करें. ये कलर्स बच्चों के लिए सेफ होता है और साथ में आसानी से छूट भी जाता है.

करें सही कपड़ों का चुनाव

बच्चों को फुल स्लीव का शर्ट या कुर्ता, पायजामा या पैंट पहनाएं. इससे उनकी त्वचा ढंकी रहेगी.

गौगल्स का इस्तेमाल करें

बच्चों की आंखों को रंगों से नुकसान ना पहुंचे इसलिए उन्हें गौगल्स दें. कोशिश करें कि गौगल्स कलरफुल हो. इससे बच्चे स्टाइलिश दिखेंगे और आंखें भी सेफ रहेंगी.

बचाएं त्वचा को

रंगों से सबसे अधिक नुकसान त्वचा का  होता है. स्किन की सेफ्टी के लिए पेट्रोलियम जेली या सरसो/ नारियल का तेल लगाएं. ये आपकी त्वचा को रंगों से बचाएंगे.

बनाएं पलकों को घना

लड़कियों की खूबसूरती उनकी आंखों से होती है और अगर उनकी पलके घनी हुईं तब तो इन आंखों का कहर देखिये. आपने देखा होगा कि कई महिलाओं की पलके घनी नहीं होती इसलिये वे अपनी आंखों की सुंदरता को उभारने के लिये नकली या आर्टिफीशियल पलको का इस्‍तमाल करती हैं. लेकिन जब आप अपनी पलको को प्राकृतिक रूप से घना बना सकती हैं, तो आपको इतनी तकलीफ उठाने की जरुरत ही क्‍या है. आइये जानते हैं कि किस तरह से आप अपनी पलको को घना और मोटा बना सकती हैं-

कैस्‍टर तेल

रात को सोते समय हर रोज अपनी पलको पर यह तेल लगाएं. चाहे तो तेल को हल्‍का सा गरम भी कर सकती हैं. इसको दो महीने तक के लिये लगाइये और फिर देखिये कि आपकी पलके किस तरह से घनी हो जाती हैं.

वि‍टामिन इ तेल

एक छोटा सा आइ लैश ब्रश लें और उसे इस तेल में डुबा कर रोजाना अपनी आंखों की पलको पर लगाएं. चाहें तो विटामिन इ की कुछ टैबलेट को क्रश कर के इस तेल के साथ मिला कर लगा सकती हैं. अगर आपकी पलको पर खुजली होती है तो वह भी इस तेल को लगाने से खतम हो जाएगी.

वैसलीन

अगर आप किसी प्रकार का तेल नहीं लगाना चाहती, तो वैसलीन इसका सबसे बेहतर विकल्‍प है. रोजाना रात को सोने से पहले अपनी पलको पर वैसलीन लगाएं. उसके बाद सुबह उठते ही अपनी पलको पर हल्‍के गरम पानी से छींटे मार कर साफ करें वरना पूरे दिन वह चिपचिपाती रहेंगी.

प्रोटीन डाइट

अगर आपका शरीर स्‍वस्‍थ्‍य रहेगा, तो जाहिर सी बात है कि आपकी आंखें और पलके भी ठीक रहेंगी. रोजाना अपनी डाइट में प्रोटीन खाइये क्‍योंकि त्‍वचा, बाल, नाखून और पलको को इसकी बहुत जरुरत होती है. अपने आहार में दाल, मछली, मीट, चने और मेवे आदि को शामिल कीजिये.

ब्रश

जिस तरह से हम अपने बालों को झाडते हैं, ठीक उसी तरह से हमें अपनी पलको को भी ब्रश से झाडना चाहिये. चाहें तो मस्‍कारे का ब्रश भी प्रयोग कर सकती हैं. पलको को रोजाना दो बार ब्रश से झाड़े.

वरमाला डाल रही प्रेमिका को प्रेमी ने गोली मार खुद को गोली मारी

बछरावां थाना क्षेत्र के अंतर्गत बछरावा मौरावा मार्ग पर स्थित गजियापुर गांव में बीती रात गांव के पुत्ती लाल की बेटी आशा देवी उम्र 22 वर्ष की शादी कार्यक्रम की तैयारियां जोरों पर चल रही थी. कुसहरी नवाबगंज जनपद उन्नाव से आई आशा की बारात में बराती ढोल नगाड़े पर नाच रहे थे. दूल्हा और दुल्हन जय माल के कार्यक्रम के लिए बने स्टेज पर बैठे थे.

दूल्हा दुल्हन एक दूसरे को वरमाला डाल रहे तभी गांव के ही दुल्हन के प्रेमी बृजेंद्र कुमार, पुत्र जागेश्वर कुमार, उम्र 26 वर्ष. प्रेमिका को दूसरे के गले में वरमाला डालना सहन नहीं हुआ और उसने अपने चाचा लोधेश्वर की लाइसेंसी डीबीबीएल बंदूक से पहले तो प्रेमिका को गोली मार दी. फिर स्टेज पर ही स्वयं को गोली मार ली और दोनों लहूलुहान हो वहीं पर गिर पड़े. घटना से मौके पर भगदड़ मच गई.

varmala

आनन फानन दोनों घायलों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बछरावां लाया गया जहां से उन्हें जिला अस्पताल रायबरेली रेफर कर दिया गया. जहां दोनों की मौत हो गई. घटना के बाद शादी की खुशियां मातम में बदल गई. बराती व घराती बिना खाए पिए ही वापस चले गए और दोनों मृतक परिवारों में मातम छा गया.

अचानक हुई इस घटना से पूरे गांव में सनसनी फैल गई. घटना की सूचना पर कोतवाल रावेंद्र सिंह पुलिस फोर्स मौके पर पहुंचे और अधिकारियों को सूचना देकर जांच पड़ताल शुरू की. घटना की जानकारी होने पर पुलिस अधिक्षक सुनील कुमार सिंह, एडिशनल एसपी शशि शेखर सिंह, क्षेत्राधिकारी आर पी शाही सहित आसपास के कई थानों की फोर्स मौके पर पहुंच गई. कोतवाल रावेंद्र सिंह ने बताया कि प्रेम प्रसंग में घटना घटित हुई है.मामले की जांच पड़ताल की जा रही है मुकदमा दर्ज कर कार्यवाही की जाएगी.

यह पूरा खिलाड़ी, क्या है आधा कप्तान?

एक बार जब सचिन तेंदुलकर से पूछा गया था कि उन के बनाए गए रिकार्ड्स को कौन सा बल्लेबाज खिलाड़ी तोड़ सकता है तो उन्होंने बेझिझक विराट कोहली और रोहित शर्मा का नाम लिया था. तब से अब तक ये दोनों खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट टीम को अपनी सेवाएं दे रहे हैं और विराट कोहली तो जिस अंदाज में फिलहाल खेल रहे हैं, उस से लगता है कि वे सचिन तेंदुलकर की कही बात को सच साबित कर दिखाएंगे.

30 साल के विराट कोहली ने अब तक 77 टेस्ट मैच खेले हैं जिन में उन्होंने 53.76 पगलऔसत से 6,613 रन बना लिए हैं. उन्होंने अब तक 25 शतक भी लगा लिए हैं. वनडे मैचों की बात करें तो उन्होंने 226 मैच खेल कर 59.79 की औसत से 10,823 रन बटोर लिए हैं. उन्होंने अब तक 41 शतक भी जमाए हैं.

ट्वेंटी20 मैचों में भी विराट कोहली कमाल का खेल रहे हैं. उन्होंने ऐसे 67 मैचों में 50.28 की औसत से 2,263 रन ठोंक डाले हैं. हालांकि उन्होंने अभी तक कोई शतक नहीं लगाया है.

अपने बल्ले से इतने कारनामे करने के बाद भी विराट कोहली की बतौर कप्तान इमेज ज्यादा अच्छी नहीं बन पाई है, क्योंकि आज भी जब वे मैच में कहीं फंस जाते हैं तो महेंद्र सिंह धौनी की ओर ताकने लगते हैं. अभी हाल ही में औस्ट्रेलिया के खिलाफ मोहाली में खेला गया चौथा वनडे मैच उन की कप्तानी पर ही सवाल उठा गया है. इस मैच में 358 रन बनाने के बाद भी भारत हार गया था. उस मैच में महेंद्र सिंह धौनी को नहीं खिलाया गया था.

इसी मसले पर हमारे पूर्व क्रिकेटर भारतीय स्पिनर और कप्तान बिशन सिंह बेदी ने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कल दिल्ली में होने वाले भारतऑस्ट्रेलिया के बीच 5वें और आखिरी वनडे मैच से पहले कहा कि विराट कोहली टीम के ‘आधे कप्तान’ हैं. महेंद्र सिंह धौनी की गैरहाजिरी में वे ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चौथे वनडे में असहज नजर आ रहे थे.

बिशन सिंह बेदी ने सवाल उठाया कि आखिर महेंद्र सिंह धौनी को आखिरी के 2 वनडे मैचों में आराम देने की क्या जरूरत थी? हालांकि बिशन सिंह बेदी मानते हैं कि धौनी अब युवा नहीं रह गए हैं, लेकिन मैदान में कप्तान विराट कोहली को उन की जरूरत होती है. उन के बिना वे असहज नजर आते हैं. ये अच्छे संकेत नहीं हैं.

इन बातों में इसलिए भी दम लग रहा है क्योंकि औस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे इतिहास में यह पहला मौका था जब भारतीय क्रिकेट टीम को 350 से ज्यादा रन बनाने के बाद भी हार का सामना करना पड़ा. इस से पहले भारत को 23 बार साढ़े 3 सौ से ज्यादा रन बनाने पर हमेशा जीत मिली थी. अब मोहाली में मिली हार से विराट कोहली की कप्तानी पर सवाल उठने लगे हैं. लोग दबी जबान में कहने लगे हैं कि महेंद्र सिंह धौनी के न रहने से विराट कोहली की कप्तानी कमजोर पड़ जाती है.

इस की जो सब से अहम वजह दिखाई पड़ती है वह यह है कि विराट कोहली में महेंद्र सिंह धौनी की तरह ‘कैप्टन कूल’ होने का गुण नहीं दिखाई देता है. वे आज भी मैदान पर किसी 18 साल के नए खिलाड़ी जैसा बरताव करते दिखाई देते हैं. वे जैसे जीतने के लिए ही खेलते हैं. इस जज्बे में कोई बुराई नहीं है पर जब भी उन के हाथ से मैच फिसलता दिखाई देता है तो तनाव उन के चेहरे पर हावी हो जाता है. मुश्किल घड़ी में किसे क्या कहना है या क्या काम कराना है उस में उन के जैसे हाथपैर फूल जाते हैं.

ऑस्ट्रेलिया के साथ हो रही वनडे मैचों की इस सीरीज के तीसरे मैच में जब ऑस्ट्रेलिया को आखिरी ओवर में जीतने के लिए 14 रन चाहिए थे तो महेंद्र सिंह धौनी के कहने पर ही विराट कोहली ने विजय शंकर को गेंद पकड़ाई गई थी. उस के बाद का नतीजा सब जानते हैं.

अभी तो विराट कोहली का बल्ला खूब बोल रहा लेकिन कल को अगर उन पर ‘बैड फॉर्म’ की गाज गिरेगी तो इस का असर उन की कप्तानी पर भी पड़ेगा. तब कहीं यह ‘आधी कप्तानी’ भी उन के हाथ से न निकल जाए.

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