रामायण और महाभारत ये 2 ऐसे महाकाव्य हैं जिन्हें वैदिक युग में लिखे जाने का गौरव प्राप्त है. इन में से हम यहां ‘महाभारत’ पर कुछ चर्चा कर रहे हैं. श्रीमद्भगवत गीता इसी ‘महाभारत’ का एक भाग है, जिसे हिंदू आत्मा व कर्म की महान दार्शनिक व्याख्या अपने में समेटे होने के कारण अत्यंत पवित्र मानते हैं. जहां तक महाभारत का प्रश्न है तो कहते हैं कि इस की रचना वेदव्यास ने की थी और इसे गणेश द्वारा लिपिबद्ध किया गया था. मोटे तौर पर इसे अर्थात महाभारत को अधर्म पर धर्म की, अनीति पर नीति की, अन्याय पर न्याय की और असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक माना जाता है.

इसीलिए कहा जाता है कि महाभारत के अध्ययन से मनुष्य भवसागर से मुक्त होता है. इस को पढ़ने से मनुष्य को ब्रह्महत्या से मुक्ति प्राप्त होती है. ऐसा भी कहा जाता है कि अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष का वर्णन जोकि महाभारत में किया गया है, वह पुराणों में उपलब्ध नहीं है, अत: महाभारत को पढ़ने या सुनने से मोक्ष की इच्छा रखने वाले को मोक्ष, स्वर्ग की इच्छा रखने वाले को स्वर्ग, विजय की इच्छा रखने वाले को विजय तथा गर्भवती स्त्री को इच्छानुसार संतान प्राप्त होती है. मनुष्य की सारी कामनाएं पूरी होती हैं, उस का यश फैलता है और मृत्यु के बाद उस को परम गति प्राप्त होती है. महाभारत की महत्ता को प्रसारित करने वाले कुछ श्लोक जो ‘महाभारत’ में मौजूद हैं, निम्न हैं :

मातापितृ सहस्त्राणि पुत्र दाराशतानि च.

संसारेष्वनुभूतानि यांति यास्यंति चापरे. (1)

हर्षस्थानसहस्त्राणिभयस्थानि शतानि च.

दिवसे दिवसे मूढ़ामाविशन्तिन पंडितम.(2)

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