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4 टिप्स: ऐसे रखें बिस्तर को साफ-सुथरा

अगर आप अपने घर को साफ-सुथरा न रखें तो बीमारियों का दस्तक देना शुरु हो जाता है. घर को साफ रखने के साथ-साथ ये भी जरूरी है कि आप अपने बिस्तर को भी साफ रखें. वरना उनमें खटमल पड़ जाने का खतरा हो सकता है.

आमतौर पर लोग बिस्तर को लेकर थोड़े लापरवाह हो जाते है लेकिन यकीन मानिए बिस्तर साफ रखना उतना भी मुश्क‍िल काम नहीं है. आप चाहें तो इन आसान तरीकों को अपनाकर अपने के बिस्तर को साफ-सुथरा रख सकते हैं.

  1. मौसम के अनुसार ही बेड कवर का चुनाव करें. गर्मियों में जहां कॉटन का बेड कवर इस्तेमाल करना बेहतर होगा. वहीं सर्दियों के लिए सिल्क या मोटे कपड़े के बेड कवर का इस्तेमाल करना अच्छा रहेगा. हालांकि सिल्क का बेड कवर या फिर कोई भी मोटे फैब्रिक का कवर गंदा अधिक होता है क्योंकि इसमें धूल बैठती है और इन्हें धोना भी थोड़ा मुश्किल होता है.

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2. सप्ताह में कम से कम दो बार बेड कवर और पिलो कवर बदलना जरूरी है. अगर आपको बालों से जुड़ी कोई समस्या है तो आपको सप्ताह में कम से कम तीन बार तकिये का कवर बदलना चाहिए. वरना आपकी ये समस्या और बढ़ जाएगी. इसके साथ ही अगर कोई और आपके साथ बेड शेयर करता है तो उसे भी ये संकमण होने का खतरा बढ़ जाएगा.

3. महीने में एक बार गद्दों को धूप दिखाना बहुत जरूरी है. इससे गद्दों में कीड़े नहीं पनपने पाएंगे और उनमें से किसी भी प्रकार की गंध भी नहीं आएगी.

4. कई घरों में लोग बिस्तर पर बैठकर ही खाना खाने लग जाते हैं. ये एक गलत आदत है. बिस्तर पर बैठकर खाना खाने से एक ओर जहां कवर के गंदा होने की आशंका बढ़ जाती है वहीं ये सेहत के लिहाज से भी सही नहीं है.

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घातक निकली बीवी नंबर 2 : भाग 3

विवाह के समय किरन 20-22 साल की थी, जबकि पच्चालाल 43 साल के. नरेश को किरन की बेवफाई का पता चला तो उस ने माथा पीट लिया. शराबी और जुआरी नरेश इतना सक्षम नहीं था कि दरोगा का मुकाबला कर पाता, लिहाजा वह चुप हो कर बैठ गया.

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प्रेम विवाह करने के बाद किरन पच्चालाल की पत्नी बन कर हरदोई में रहने लगी. कुछ समय बाद दरोगा पच्चालाल का ट्रांसफर कानपुर हो गया. कानपुर में पच्चालाल ने नवाबगंज थाना क्षेत्र के सूर्यविहार में किराए पर एक मकान ले लिया और किरन के साथ रहने लगे. बाद में दरोगा पच्चालाल और किरन एक बेटे अमन तथा 2 बेटियों अर्चना व पारुल के मातापिता बने.

कुंती के चारों बेटों ने पिता द्वारा किरन से प्रेम विवाह करने का कोई विरोध नहीं किया था. इस की वजह यह भी थी कि पिता के अलावा उन्हें संरक्षण देने वाला कोई नहीं था. इस तरह दरोगा पच्चालाल 2 परिवारों का पालनपोषण करने लगे. पहली पत्नी के बच्चे गांव में तथा दूसरी पत्नी किरन और उस के बच्चे कानपुर शहर में रहते रहे. पच्चालाल को जब छुट्टी मिलती तो गांव चले जाते और बच्चों से मिल कर लौट आते.

किरन 3 बच्चों की मां जरूर बन गई थी, लेकिन अब भी यौवन से भरपूर थी. वह हर रात पति का संसर्ग चाहती थी, लेकिन इस से वंचित थी. दरोगा पच्चालाल अब तक 50 की उम्र पार कर चुके थे. उन की सैक्स में रुचि भी कम हो गई थी. पहल करने पर भी वह किरन से देह संबंध नहीं बनाते थे.

दरअसल, ड्यूटी करने के बाद पच्चालाल इतने थक जाते थे कि पीने और खाना खाने के बाद बैड पकड़ लेते थे. किरन रात भर तड़पती रहती थी.

उन्हीं दिनों किरन की निगाह जितेंद्र यादव पर पड़ी. जितेंद्र यादव औरैया जिले के सहायल थाना क्षेत्र में आने वाले पुरवा अहिरमा का रहने वाला था. कानपुर में वह नवाबगंज की रोडवेज कालोनी में रहता था और रोडवेज की बस का ड्राइवर था. पच्चालाल और जितेंद्र यादव गहरे दोस्त थे. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. दोनों की महफिल एकदूसरे के घरों में अकसर जमती रहती थी.

किरन की निगाह थी जितेंद्र पर

जितेंद्र यादव शरीर से हृष्टपुष्ट और किरन का हमउम्र था. किरन को लगा कि वह उस की अधूरी ख्वाहिशों को पूरा कर सकता है. अत: उस ने जितेंद्र को लिफ्ट देनी शुरू कर दी. दोनों के बीच देवरभाभी का नाता था.

जबतब दोनों हंसीमजाक भी करने लगे. किरन अपने सुघड़ अंगों का प्रदर्शन कर के जितेंद्र को ललचाने लगी. किरन के हावभाव से जितेंद्र समझ गया कि किरन सैक्स की भूखी है, पहल की जाए तो जल्द ही उस की बांहों में समा जाएगी.

जितेंद्र यादव जब भी किरन के घर आता, बच्चों के लिए फल, मिठाई ले कर जाता. किरन से वह मीठीमीठी बातें करते हुए उसे ललचाई हुई नजरों से देखता. ऐसे ही एक रोज जितेंद्र आया, तो किरन को घर में अकेली देख कर उस से पूछा, ‘‘दरोगा भैया अभी तक नहीं आए?’’

किरन ने बेफिक्री से कहा, ‘‘सरकारी काम से बाहर गए हैं, 1-2 रोज बाद लौटेंगे.’’

जितेंद्र की बांछें खिल गईं. उस ने किरन के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए शरारत की, ‘‘भाभी, आप की रात कैसे कटेगी?’’

‘‘तुम जो हो.’’ किरन ने भी उसी अंदाज में जवाब दे दिया. किरन के खुले आमंत्रण से जितेंद्र का हौसला बढ़ गया. वह बोला, ‘‘तो मैं रात को आऊं?’’

‘‘मैं ने कब मना किया है.’’ किरन ने मादक अंगड़ाई ली.

रात गहराई तो जितेंद्र किरन के दरवाजे पर पहुंच गया. उस ने दरवाजा धकेला तो खुल गया. अंदर नाइट बल्ब जल रहा था. किरन पलंग पर लेटी थी. वह फुसफुसाई, ‘‘दरवाजा बंद कर के सिटकनी लगा दो.’’

जितेंद्र ने ऐसा ही किया और पलंग पर आ कर बैठ गया. दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा तो तभी थमा जब दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. उस दिन किरन और जितेंद्र के बीच की सारी दूरियां मिट गईं.

किरन और जितेंद्र एक बार देह के दलदल में समाए तो समाते ही चले गए. दोनों को जब भी मौका मिलता, एकदूसरे में सिमट जाते. एक रोज पच्चालाल ड्यूटी के लिए घर से निकले ही थे कि जितेंद्र आ गया. आते ही उस ने किरन को बांहों में भर लिया.

दोनों अभी एकदूसरे से लिपटे ही थे कि पच्चालाल की आवाज सुन कर घबरा गए. किरन ने कपड़े दुरुस्त कर के दरवाजा खोल दिया. घर के अंदर जितेंद्र मौजूद था. बिस्तर कुछ पल पहले गुजरे तूफान की चुगली कर रहा था. पच्चालाल सब समझ गए. उन्होंने किरन को धुनना शुरू किया तो जितेंद्र चुपके से खिसक लिया.

इस घटना के बाद किरन और जितेंद्र ने दरोगा पच्चालाल से माफी मांग ली और आइंदा गलती न करने का वादा किया. पच्चालाल ने दोनों को माफ तो कर दिया, लेकिन जितेंद्र के साथ शराब पीनी बंद कर दी. उस के घर आने पर भी पाबंदी लगा दी. लेकिन देह की लगी ने पाबंदियों को नहीं माना. कुछ दिन दोनों दूरदूर रहे, फिर चोरीछिपे शारीरिक रूप से मिलने लगे.

जितेंद्र बना पच्चालाल की मौत का परवाना  जनवरी, 2018 में दरोगा पच्चालाल का ट्रांसफर कानपुर देहात के थाना सजेती में हो गया. सजेती थाना कानपुर से 50 किलोमीटर दूर है. वहां से रोज घर आनाजाना संभव नहीं था. दरोगा पच्चालाल को थाना परिसर में ही आवास मिल गया. अब वह हफ्ता 10 दिन में ही किरन से मिलने घर जा पाते थे.

पच्चालाल जब भी घर आते थे, किरन से गालीगलौज और मारपीट जरूर करते थे. दरअसल उन्हें शक था कि जितेंद्र के अलावा भी किरन के किसी से नाजायज संबंध हैं. जैसेजैसे समय बीत रहा था, घर में कलह और प्रताड़ना बढ़ती जा रही थी. पति की प्रताड़ना से आजिज आ कर किरन ने अपने प्रेमी जितेंद्र की मदद से पच्चालाल को रास्ते से हटाने की योजना बनाई.

जितेंद्र ने किरन को पच्चालाल की हत्या से फायदे भी बताए. जितेंद्र ने कहा कि पति की हत्या के बाद तुम्हारे बेटे अमन को मृतक आश्रित कोटे से सरकारी नौकरी मिल जाएगी और तुम्हें पेंशन मिलने लगेगी. इस के अलावा प्रेम संबंध का रोड़ा भी हट जाएगा.

किरन और जितेंद्र ने पच्चालाल की हत्या के लिए रुपयों का इंतजाम किया. फिर जितेंद्र ने विधूना निवासी टेलर निजाम अली से बातचीत की. एक लाख रुपए में सौदा तय हुआ. जितेंद्र ने एक लाख रुपया निजाम अली के खाते में ट्रांसफर कर दिया.

इस के बाद निजाम अली ने जितेंद्र को पसहा (विधूना) निवासी राघवेंद्र उर्फ मुन्ना से मिलवाया. राघवेंद्र रिटायर दरोगा हरिदत्त सिंह का अपराधी प्रवृत्ति का बेटा था. निजाम अली ने 20 हजार रुपए एडवांस दे कर उसे इस योजना में शामिल कर लिया.

2 जुलाई, 2018 की देर शाम जितेंद्र यादव राघवेंद्र और निजाम अली को साथ ले कर सजेती पहुंचा और हाइवे से दरोगा के आवास की पहचान कराई. इस के बाद जितेंद्र यादव बाजार गया, जहां उस की मुलाकात दरोगा पच्चालाल से हो गई. जितेंद्र ने झुक कर दरोगा के पैर छुए. पच्चालाल ने उसे रात को वहीं रुक जाने को कहा.

थोड़ी देर की बातचीत के बाद दरोगा पच्चालाल ने अंगरेजी शराब की बोतल और नमकीन खरीदी. दुकानदार को नमकीन के पैसे पच्चालाल ने ही दिए. इस के बाद होटल पर बैठ कर दोनों ने शराब पी और खाना खाया. इस के बाद दोनों पच्चालाल के आवास पर आ गए. दरोगा पच्चालाल ने कपड़े उतारे और कूलर चला कर पलंग पर पसर गए.

कुछ देर बाद जब पच्चालाल सो गए तो जितेंद्र ने आवास का पीछे का दरवाजा खोल कर निजाम अली व राघवेंद्र को अंदर बुला लिया, जो कुछ दूर हाइवे किनारे बैठे थे. साथियों के आते ही जितेंद्र ने पच्चालाल को दबोच लिया. दरोगाजी की आंखें खुलीं तो प्राण संकट में देख वह संघर्ष करने लगे. लेकिन नफरत से भरे जितेंद्र ने पच्चालाल के शरीर को चाकू से गोदना शुरू किया तो गोदता ही चला गया.

हत्या के दौरान खून के छींटे व हाथ के पंजे का निशान एक दीवार पर भी पड़ गया. हत्या के बाद जितेंद्र व उस के साथी दरोगा का मोबाइल, पर्स व घड़ी लूट कर फरार हो गए. जितेंद्र ने मोबाइल से फोन कर के पच्चालाल की हत्या की जानकारी किरन को दे दी थी.

3 जुलाई की शाम 6 बजे मुंशी अजयपाल जब रजिस्टर पर दस्तखत कराने दरोगा पच्चालाल के आवास पर पहुंचा तो हत्या की जानकारी हुई. 7 जुलाई, 2018 को पुलिस ने हत्यारोपी किरन, जितेंद्र, निजाम अली व राघवेंद्र को कानपुर देहात की माती अदालत में रिमांड पर मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से सब को जेल भेज दिया गया.

–  पुलिस सूत्रों पर आधारित

परीक्षा के समय तनाव से रहें दूर

हर  कोई पढ़ने में एक जैसा नहीं होता. कोई बहुत बुद्धिमान होता है तो कोई कम, लेकिन ऐसा नहीं है कि जो अधिक बुद्धिमान है वो परीक्षा में भी अच्छे नंबरों से पास हो. कई बार ऐसे बच्चें बाजी मार जाते हैं जो पढ़ने में कमजोर होते हैं. इसके पीछे एक कारण है और वो है मानसिक तनाव. हर इंसान की तनाव झेलने की क्षमता अलग होती है. अगर कोई छात्र अधिक तनाव में रहेगा तो वो कभी भी एकाग्रता से परीक्षा की तैयारी नहीं कर पाएगा. परीक्षा में तनाव के कई कारण हो सकते हैं जैसे परीक्षा में आने वाले सवालों से असमंजस में पड़े रहना, परिवारजनों का व मित्रों की उम्मीद पर खरे उतरने का तनाव. सिलेबस पूरा नहीं हो पाना, नंबर कम आने से मनपसंद विषय ,कौलेज या नौकरी न मिल पाने का डर. तो जरूरी है अगर हमें अपने लक्ष्य पर विजय पानी है तो हमें पहले अपने अंदर के डर को खत्म करना होगा और अपनी सोच को नकारात्मकता से कोसों दूर रखना होगा. जरूरी है इन मह्त्वपूर्ण  बातों पर पूरी तरह से ध्यान रखा जाए.

परीक्षा तनाव को कैसे करें दूर

परीक्षा के समय डर को नहीं मेहनत को रखें आगे. हर रोज के लिये टाइम टेबल बना लें और टाइम टेबल के अनुसार पढ़ाई करें परीक्षा के शेड्यूल के अनुसार पढ़ाई करे. अपनी दिनचर्या का पालन करें कब कितना पढ़ना है, उसकी सूची तैयार करें और हर हाल में उसे पूरी करें अगर आप अपने समय का बेहतर उपयोग करते हैं तो आपको विजय पाने से कोई नहीं रोक सकता. और आप तनाव मुक्त भी रहेंगे. समय प्रबंधक के रूप में काम करना आपको हर क्षेत्र में आगे रखेगा.

पढ़ाई करते समय रटने की बजाय समझ कर याद करें और जरूरी पौइंट्स को रेखांकित कर लें. इससे आपको रिवीजन  में सहयता मिलेगी. परीक्षा के समय टू द पौइंट पढ़ने से भी अच्छा परिणाम आ जाता है.

परीक्षा के दौरान आप अपने खानेपीने का ध्यान रखें बाजार का भोजन न करें और न ही तला भुना हुआ खाएं इससे आपकी तबियत बिगड़ सकती है. इसलिए घर का ही खाना खाएं और डाइट में फलों को जरूर लें क्योंकि फल हमें एनर्जी देते हैं. ज्यादा भोजन करने से परहेज करें, इससे हमें नींद  अधिक आती है.

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एग्जाम फोबिया को खुद पर हावी ना होने दें. पूरे साल कुछ ना कुछ पढ़ते रहने से परीक्षा की टेंशन से मुक्ति मिलती है. अगर आप शुरू से ही टाइम टेबल बना के पढ़ाई करते हैं तो परीक्षा के समय पढ़ाई आपको चट्टान की तरह नहीं लगेगी. पहले से की हुई तैयारी परीक्षा के तनाव को बहुत कम कर देती हैं.

सुबह के वक्त पढ़ाई करने से याद ज्यादा रहता है. क्योंकि सुबह शांत और सकारात्मक माहौल होता है जो पढ़ाई के लिए अनुकूल माना जाता है. लगातार सिटिंग ना करे. बीच-बीच में ब्रेक ले. बौडी को स्ट्रेच करे, कुछ देर के लिए बाहर टहल के आए, मनोरंजन करें इससे आपका दिमाग रिलेक्स होगा और पढ़ाई में तीव्रता आएगी.

व्यायाम अवश्य करें. व्यायाम करने से हमें स्फूर्ति मिलती है व व्यायम हमें तनाव मुक्त करता है इससे हम अधिक एकाग्रता से पढ़ाई कर सकते हैं.

परिणाम की चिंता परीक्षा के समय ना करे. अभी तो आप यह देखिए कि आपका कोर्स पूरा हुआ या नहीं. यह बिलकुल न सोचे कि आपके नंबर अच्छे आएंगे भी या नहीं या नंबर कम आए तो आपके परिजन क्या सोचेंगे अपना नजरिया सकारात्मक रखेंगे तो परिणाम अच्छा ही होगा.

परीक्षा के समय पढ़ते वक्त खुद को क्रोसचेक या किसी से तुलना कभी ना करें, इससे आपको नर्वसनेस, मानसिक दबाव और तनाव का सामना करना पड़ सकता है. लिखकर कुछ याद करना अच्छा विकल्प है. जो याद करें, उसे तुरंत लिखें. सोने से पहले पढ़े. कोर्स का एक बार रिवीजन जरूर करें. 5 -6  घंटे की नीद अवश्य लें. इससे  आप ज्यादा समय तक बिना आलस के पढ़ सकते है.

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‘‘अनफ्रेंंड्स’’: बलात्कार  और सोशल मीडिया से पनप रहे अपराध पर सोचने पर मजबूर करती फिल्म

इस अवसर पर निर्माता मौसमी बिश्वास ने कहा- ‘‘मैं इस फिल्म को लेकर काफी उत्साहित हूं. इस फिल्म की कहानी लोगों की आंखें खोल देगी. इस फिल्म में दिखाया गया है कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं और हमें हमेशा दोनों पहलुओं पर गौर करना चाहिए. रेप का शिकार होने वाली महिलाओं पर तोहमतें लगाने का सिलसिला बंद होना चाहिए. यह पीड़िता की गलती नहीं होती है कि वह रेप का शिकार हो जाती है. दोषियों को सलाखों के पीछे होना चाहिए और कानून को ऐसे लोगों के साथ कड़ाई से पेश आना चाहिए. एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हमारा फर्ज बनता है कि हम रेप की पीड़िताओं को लेकर लोगों के नजरिए में बदलाव लाने की हरसंभव कोशिश करें.‘‘

‘‘अनफ्रेंडस’’ एक ऐसी लड़की की कहानी है, जिसकी दोस्ती सोशल मीडिया पर एक ऐसे लड़के से हो जाती है,  जो बेहद हिंसक है. इसके बाद एक लड़का आगे आकर साइबर क्राइम और रेप की मानसिकता के खिलाफ लड़ने में उसकी मदद करता है. इसमें यह भी दिखाया गया है कि इसके बाद दोनों ही राजनीतिक रूप से ताकतवर और कानून को नियंत्रित करने वाले लोगों की साजिशों से कैसे खुद को बचाते हैं. एक ऐसी दुनिया जो सामाजिक और साइबर अपराधों से पटी पड़ी है, वहां एक शख्स ऐसा भी है, जो इस तरह के अस्थिर माहौल में डटकर बुराइयों के खिलाफ खड़ा होता है.

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वीर नामक एक लड़के को विजय नामक अनजान शख्स से सोशल मीडिया पर एक फ्रेंड रिक्वेस्ट प्राप्त होती है. वीर स्टार्ट-अप के लिए इकट्ठे किए जानेवाले पैसों को लेकर काफी संघर्षरत होता है. ऐसे में वीर की कहानी सुनकर विजय उसके स्टार्ट-अप में निवेश करता है और इसका जश्न मनाने के लिए एक लौन्ग ड्राइव पर लोणावाला जाते हैं. इस दौरान दोनों की मुलाकात मौली नामक लड़की से होती है, जो एक बिंदास और बोल्ड लड़की है. इस बीच, विजय अपना आपा खो बैठता है और मौली का रेप कर देता है. वीर रेप पीड़िता मौली की जान बचाने में कामयाब हो जाता है और वहां से बच निकलने में कामयाब हो जाता है. खैर, पता चलता है कि विजय एक ताकतवर मंत्री का बेटा है. मामले में राजनीतिक मोड़ आ जाने के बाद मौली को जलील होने से बचाने और उसे न्याय दिलाने के लिए वीर को अपने करियर की तिलांजलि देनी पड़ती है.

‘‘अनफ्रेंड्स’ में मुलतः सोशल नेटवर्किंग से पनप रहे खतरनाक अपराधियों व अपराध पर रोशनी डाली गयी है.इसमें इस बात का भी चित्रण है कि किस तरह से हमारा समाज रेप पीड़िता के प्रति हमदर्दी जताने और उसे अपनाने की बजाय उसे धुत कारने में यकीन रखता है. गौरतलब है कि अगर बाकघ्ी लोग भी वीर की सोचने लग जाएं और लड़कियों से संबंधित पुरानी बातों को भूल जाएं, तो रेप से पीड़ित लड़कियों को भी सम्मान के साथ जीने का हक हासिल हो जाएगा.

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साइबर और सोशल मीडिया के जरिए होने वाले अपराधों पर आधारित फिल्म ‘‘अनफ्रेंड्स’’ का निर्माण मौसमी बिश्वास और रियांगस एंटरटेनमेंट वर्ल्ड के बैनर तले इसका सह निर्माण इब्राहिम शेख ने किया है, जबकि फिल्म के निर्देशक अशफाक शेख हैं. इस फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में साहित अख्तर खान, रजत रवैल, नफे खान, हिम्मत अली, अयान खान और प्रशांत पुजारी हैं.

टीवी एक्ट्रेस काम्या पंजाबी करने जा रही हैं दूसरी शादी

टीवी अभिनेत्री काम्या पंजाबी काफी लंबे समय से शलभ दांग को डेट कर रही हैं. जी हां, काम्या अपने बौयफ्रेंड शलभ दांग से शादी के रिश्तों में बंधने जा रही हैं. बता दें, काम्या तलाक के 6 साल बाद शलभ दांग से दूसरी शादी करेंगी. शलभ दांग दिल्ली के रहने वाले हैं, ये एक हेल्थकेयर इंडस्ट्री से जुड़े हुए हैं.

अक्सर काम्या शलभ के साथ कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती हैं. अब काम्या ने सोशल मीडिया पर अपने फैंस के साथ शादी की डेट के बारे में बताया है. दरअसल काम्या ने  शलभ के साथ एक तस्वीर इंस्टागाम पर शेयर की है.

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इसके साथ ही लिखा, ‘तो मैं अपने फेवरेट शख्स के साथ अपनी फेवरेट तस्वीर शेयर करते हुए अपनी फेवरेट तारीख की जानकारी दे रही हूं. 10 फरवरी 2020, हमें नए सफर और नई शुरुआत के लिए दुआएं दें’. आपके बता दें, काम्या ने पहली शादी 2003 में बंटी नेगी से की थी. जिनसे 9 साल की बेटी आरा है. लेकिन 10 साल बाद उनकी शादी टूट गई.

एक रिपोर्ट के अनुसार काम्या ने बताया कि शलभ से  उनकी मुलाकात इसी साल फरवरी में एक शादी में हुई थी. काम्या को शलभ से उनके दोस्त ने मिलवाया.  काम्या ने आगे बताया कि दरअसल उस समय मुझे हेल्थ प्रौब्लम थीं जिसकी वजह से मेरे दोस्त ने मुझे शलभ से बात करने को कहा. लगभग एक या डेढ़ महीने बाद शलभ ने मुझे शादी के लिए प्रपोज कर दिया.

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पतिपत्नी के  झगड़े में पालतू कहां जाए

घर में पालतू जानवर रखने के शौकीन बहुत से लोग हैं. कुछ के लिए उन का पालतू उन के बच्चों से भी ज्यादा प्रिय है तो कुछ के लिए उन का पालतू ही सबकुछ है. पालतू जानवर के रूप में कुत्ता, बिल्ली, घोड़ा, पक्षी, गायभैंस आदि हो सकते हैं. इन के रखरखाव में भी लोग कोई कसर नहीं छोड़ते. खाना, कपड़े और खिलौने के साथसाथ उन की ग्रूमिंग पर भी खास ध्यान दिया जाता है. कुल मिला कर पालतू को घर में अच्छीखासी तवज्जुह दी जाती है.

अकसर पतिपत्नी पालतू को घर के सदस्य का दर्जा देते हैं और अपने बच्चे जैसा प्यार करते हैं. वे दोनों साथ में उस की परवरिश करते हैं. इस से पालतू भी उन दोनों का आदी हो जाता है. लेकिन, क्या हो जब पतिपत्नी में अलगाव हो जाए और वे दोनों तलाक ले कर अलग होने का फैसला कर लें? उन के पालतू का उन दोनों के बीच बंटवारा कैसे होगा? इस से भी बढ़ कर, यदि वे दोनों ही अपने पालतू को न छोड़ना चाहें तो?

वाकेआ कैलिफोर्निया का है जहां पतिपत्नी एकदूसरे से तलाक लेने कोर्ट गए. दोनों ने तलाक लेने की एक ही शर्त सामने रखी, उन के पालतू की कस्टडी. उन दोनों का कोई बच्चा नहीं था और यही कारण है कि वे अपनी पिट बुल टेरियर, जिस का नाम स्वीट पी था, की कस्टडी चाहते थे. डाइवोर्स कोर्ट का जज भन्नाया हुआ था और पति का रोना रुक नहीं रहा था. उस महिला के पति ने उसे हजारों डौलर्स तक देने चाहे लेकिन महिला के लिए अपने पालतू से ज्यादा कीमती कुछ नहीं था.

आखिर में महिला द्वारा स्वीट पी की कस्टडी हासिल करने के लिए कोर्ट में एक ग्रीटिंग कार्ड दिखाया गया, जिस पर लिखा था, ‘यह (कुत्ता) तुम्हारा क्रिसमस का तोहफा है. आई लव यू.’ यानी, महिला के मुताबिक, उन का पालतू उस के पति द्वारा दिया गया तोहफा था और इस बाबत उस की असली मालकिन वह ही है. कोर्ट ने महिला की दलील को जायज करार देते हुए स्वीट पी की कस्टडी महिला को दे दी. तब महिला के पति का रोना चुप कराना सभी के लिए लगभग नामुमकिन हो गया था.

इंडियन इंटरनैशनल पैट ट्रेड फेयर की आयोजक क्रिएचर कम्पेनियन मैग्जीन के अनुसार, औसतन 6 लाख पालतू हर वर्ष भारत में एडौप्ट किए जाते हैं. भारतीय पालतू जानवरों के रखरखाव का व्यवसाय लगभग 25 हजार करोड़ रुपए का है जिस के 2024 तक 17 फीसदी बढ़ने की संभावना है. लोग स्पा, पार्लर, डिनर और पार्टीज में जिस आय को खर्च करते थे, उसे अब अपने पालतू के लिए भी खर्च करने लगे हैं.

परिवार पालतुओं को घर का सदस्य बनाने लगे हैं जिस का एक कारण फिल्मों और विज्ञापनों में लगातार जानवरों की बढ़ती मौजूदगी है. ध्यान देने वाली बात यह भी है कि लोग खुद को अपने पालतू का मालिक नहीं कहलवाते बल्कि ‘प्राउड पैट पेरैंट्स’ कहलवाना अधिक पसंद करते हैं. इस के बावजूद भारत में पतिपत्नी के तलाक के बाद उन के पालतू की कस्टडी को ले कर किसी तरह का कोई कानून नहीं है.

भारत में इस तरह के अधिक मामले अभी सुर्खियों में नहीं आए हैं लेकिन, बावजूद इस के यह एक गंभीर मुद्दा है जिस पर वक्त रहते विचार करना जरूरी है. अधिकतर ऐसे मामले इसलिए दब कर रह जाते हैं क्योंकि पतिपत्नी आपसी सहमति से अपने पालतू की कस्टडी ले लेते हैं. इन मामलों में से ऐसा ही एक मामला अहमदाबाद का है जहां एक दंपती के तलाक का मुकदमा एक साल से ज्यादा सिर्फ इसलिए अटक कर रह गया क्योंकि पति का कहना था कि वह तब तक तलाक नहीं देगा जब तक कि उस के दोनों पालतुओं लंगदी और एंजेल की कस्टडी उसे नहीं मिल जाती.

कमला और विजय (बदले हुए नाम) 2010 से अपनी शादी से खुश नहीं थे, जिस कारण उन्होंने 2015 में अलग होने का फैसला कर लिया. कमला ने विजय पर मारपीट और शोषण के आरोप लगाए. परिवार वालों के बीचबचाव में मामला शांत करने और कमला द्वारा विजय पर लगाए आरोप वापस लेने की शर्त पर उसे 30 लाख रुपए मुआवजे के रूप में देने की बात पक्की हो गई.

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मामला आपसी सहमति से तलाक के लिए हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13बी के तहत सिटी फैमिली कोर्ट में पहुंचा. लेकिन, तलाक होतेहोते सिर्फ इस कारण रह गया कि विजय को अपने दोनों पालतू कुत्तों की कस्टडी चाहिए थी जो 2015 से ही उस की पत्नी कमला के साथ रह रहे थे. इस पर कमला अडिग रही कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह अपने कुत्तों को पति के हवाले नहीं करेगी. आखिर एक साल तक केस के खिंचने और कोई भी हल न निकल पाने के बाद कमला ने हार मान कर और जल्द से जल्द इस रिश्ते को खत्म करने के लिए दोनों कुत्तों को अपने पति को सौंप दिया.

पालतू की कस्टडी और कानून

यूएस : पालतू जानवर व्यक्ति के जीवन में क्या महत्त्व रखते हैं, इस से भलीभांति परिचित होते हुए कैलिफोर्निया के गवर्नर जेरी ब्राउन ने सितंबर 2018 में एबी 2274 बिल पर हस्ताक्षर किए, जिस के अनुसार, शादीशुदा दंपतियों के अलग होने पर ‘पालतू जानवर की देखभाल’ को विशेषतया विचार में लिया जाएगा. इस से पहले तक पालतुओं को भी घर के बाकी सामान की तरह का दर्जा दिया जाता था पर अब उन्हें ‘यूनीक नेचर’ की कैटेगरी में डाला जाएगा.

कैलिफोर्निया अमेरिका का तीसरा राज्य है जहां तलाक के मुकदमों में पालतू जानवर के रखरखाव और कस्टडी पर ध्यान दिया जाएगा. इस से पहले अलास्का और इलिनोईस में भी 2017 में समान कानून बन चुका है. इन 3 राज्यों के अलावा अमेरिका के बाकी राज्यों में पालतुओं को प्रौपर्टी के रूप में ही देखा जाता है.

इस कानून के तहत जजों द्वारा तलाक के समय पालतू की कस्टडी को ले कर निम्न बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है :

– पालतू को खाना कौन खिलाता है?

– पालतू को एडौप्ट किस ने किया था?

– पालतू के लिए खाना, कपड़े, खिलौने और अन्य सामान कौन खरीदता है?

–   पालतू को सैर पर कौन ले जाता है?

– पालतू का ज्यादा ध्यान कौन रखता है?

– कौन पालतू के साथ ज्यादा समय व्यतीत करता है?

  • क्या पालतू के साथ कभी किसी तरह की हिंसा हुई है?

यूके : पालतुओं को यूके में घर के बाकी सामान की ही तरह सम झा जाता है. यानी, तलाक के समय पालतू किस के पास जाएगा, यह इस पर निर्भर करता है कि किस ने उसे खरीदा था, उस के खर्च कौन उठाता है व इंश्योरैंस के पैसे कौन देता है. उन मामलों में जहां दंपती यह साबित करने में असमर्थ होते हैं वहां उन्हें कानूनी कार्यवाही के चलते अच्छीखासी रकम चुकानी पड़ती है. ऐसे मामलों में कोर्ट पालतू के हक में फैसला करने हेतु विभिन्न कारकों को मद्देनजर रखता है. जैसे, यदि पतिपत्नी अलग हो रहे हैं और उन के पास पालतू कुत्ता है, तो यदि उन में से एक फ्लैट में रहता है और दूसरा बंगले में, तो कोर्ट कुत्ते की सुविधानुसार बंगले वाले पार्टनर को ही कुत्ते की कस्टडी देगा ताकि उसे खेलनेकूदने के लिए खुला मैदान मिल सके.

पालतू पर भी पड़ता है प्रभाव

जिस तरह मातापिता के तलाक के समय बच्चों पर असर पड़ता है उसी तरह बच्चे जैसे पाले गए पालतू पर भी अपने मालिकों के तलाक का गहरा असर पड़ता है. पतिपत्नी के तलाक के दौरान पालतुओं में कई बदलाव देखने को मिलते हैं. वे खाना खाना छोड़ देते हैं, खेलनाकूदना बंद कर देते हैं और उदासीन एक कोने में पड़े रहते हैं. यह सब उन के अवसादग्रस्त होने के लक्षण हो सकते हैं. कुत्ते, बिल्ली इस स्थिति में अकसर अपने बाकी दोस्तों से मिलने में भी कोई रुचि नहीं दिखाते. इसलिए यह बेहद जरूरी है कि अपने तलाक में दंपती जिस पालतू के लिए लड़ रहे हैं उसी को नजरअंदाज कर उस की भावनाओं से न खेलें.

बदलावों से पालतू को अलग रखें : जानवर एकदम से बड़े बदलावों में ढलने के आदी नहीं होते. यदि आप अपने लड़ाई झगड़ों के बीच शिफ्ट कर रहे हैं तो पालतू को परिवार के बाकी सदस्यों से एकदम से अलग न करें, खासकर घर के बच्चों व उन सदस्यों से जिन के वे बेहद करीब हैं.

पालतू के सामने चिल्लाने और  झगड़ने से बचें : अपने पालतू जानवर के सामने चिल्लाने और एकदूसरे को अपशब्द कहने से बचें. हो सके तो उसे दूसरे शांत कमरे में छोड़ आएं. लड़ाई झगड़ों के बीच पालतू के दिलदिमाग पर गहरा असर पड़ सकता है.  झगड़ों के चलते पालतू में व्यावहारिक बदलाव हो सकते हैं. इन बदलावों के दिखने पर आवश्यक है कि आप उसे डाक्टर के पास ले कर जाएं.

मिलने से न रोकें : यदि पतिपत्नी का तलाक हो रहा है या हो चुका है तो इस का मतलब यह नहीं कि आप अपने पालतू को भी अपने पार्टनर से हमेशा के लिए अलग कर देंगे. उसे समयसमय पर अपने पार्टनर से भी मिलवाते रहें. इस से आप के पालतू को खुशी होगी और उसे अच्छा लगेगा. बीते दिनों हौलीवुड अभिनेत्री और सिंगर माइली साइरस का अपने पति लीएम हैम्स्वर्थ से तलाक हुआ, तो उन के 15 पालतुओं की कस्टडी माइली को मिली. बावजूद इस के, कपल चाहे साथ में वक्त न बिताते हों लेकिन बारीबारी अपने पालतुओं की देखभाल जरूर करते हैं.

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पालतुओं को अलग न करें : यदि तलाक लेते समय पतिपत्नी के पास एक से ज्यादा पालतू हैं और वे यह सोचते हैं कि आपस में दोनों पालतुओं को बराबर बांट लेते हैं, तो यकीन मानिए अपने पालतू के साथ आप अन्याय से कम कुछ नहीं कर रहे. आप उन से उन के असली साथियों को छीन कर केवल दुख ही पहुंचाएंगे. इस से न वे खुश रह पाएंगे और न आप. इसलिए उन्हें आपस में बांट लेने का खयाल दिमाग से निकाल दें.

पालतू को उस के सही हकदार को दें : यदि पतिपत्नी आपस में तलाक लेते समय पालतू की कस्टडी पर विवाद करते हैं, इस बात को जानते हुए कि पालतू का लगाव दोनों में से किसी एक से ज्यादा है, तो स्पष्ट तौर पर दूसरे को यह बात सम झ लेनी चाहिए. मान लीजिए आप अपने पति को केवल इसलिए पालतू नहीं देना चाहतीं क्योंकि आप को लगता है अपने पालतू के साथ आप ज्यादा अच्छा फील करती हैं, तो निस्संदेह ही यह बेतुका तर्क होगा. खुद की खुशी के साथसाथ अपने पालतू की खुशी का खयाल रखना भी जरूरी है. आप उसे खुद से केवल इसलिए मत बांधे रखिए क्योंकि आप चाहते हैं, बल्कि उस की खुद की खुशी को ध्यान में रखने को ज्यादा महत्त्व दें.

निर्णय : भाग 2

मिस्टर जौनसन कुछ समय तक सोचते रहे तो शुभ्रा घबरा कर बोली, ‘‘अंकल, यदि यह आप के लिए तकलीफदेह है तो छोडि़ए. मैं कोई और इंतजाम कर लूंगी और…’’

मिस्टर जौनसन बीच में ही हंस कर बोले, ‘‘नहींनहीं, मेरी बच्ची, मैं तो तुम्हारे और तुम्हारे पति के बारे में सोच रहा था. मेरी चिंता मत करो.’’

शुभ्रा बोली, ‘‘मैं उन के घर आने से पहले जाना चाहती हूं.’’

‘‘जैसी तुम्हारी इच्छा,’’ कह कर वे उठ बैठे.

शुभ्रा कार में बैठी, चलती कार से दूर तक शून्य आंखों से उस बिल्ंिडग को ताकती रही जो चंद दिनों के लिए उस की नीड़ बनी थी, जिस में उस ने घर बनाने के सपने देखे थे और अब वह बिल्ंिडग, वह नीड़, वह घर अंधकार में दीपक की लौ की तरह धीरेधीरे आंखों से ओझल हो गई. सपने कांच की तरह टूट गए व उन की किरचें अंदर ही अंदर धंसती चली गईं.

रास्ते में मिस्टर जौनसन शुभ्रा का ध्यान बंटाने की कोशिश करते रहे. गुजरते हुए शहरों के बारे में बताते रहे. नवंबरकी शुरुआत हो रही थी. दोपहर के ढलते सूरज से हवा में ठंड का एहसास होने लगा था. कार का हीटर औन करते हुए सड़क के दोनों ओर आए मेपल पेड़ के झुंडों की ओर उन्होंने शुभ्रा का ध्यान आकर्षित कराया. वे जानकारी देते हुए बोले, ‘‘मेपल पेड़ कनाडा का विशेष पेड़ है. यह बसंत के मौसम में मीठा सिरप व गर्मी के दिनों में ठंडी छाया देता है. वहीं, पतझड़ के मौसम में इस की हरीहरी पत्तियां लाल सुर्ख हो जाती हैं और उस के बाद झड़ने से पहले सुनहरी. यह खूबसूरत दर्शनीय पेड़ है.’’

शुभ्रा जौनसन की बातों पर ठीक से ध्यान नहीं दे पा रही थी. प्रकृति की मोहकता उसे बांध नहीं पा रही थी. सड़क की सपाटता उसे अपने भविष्य की सपाटता से डरा रही थी. कोलतार से भरी सड़क के बीच की दरारें ऐसे दिखाई दे रही थीं जैसे कालेकाले सांप दूरदूर तक तड़पतड़प कर सड़क पर रेंगते हुए लोट रहे हों. कभी पहिया उन्हें कुचलते हुए निकल जाता और कभी उस की कार का पहिया कुछ दूरी से उन से बच कर निकलता.

निशि और अखिलेश औफिस से वापस आ कर कार से उतर ही रहे थे कि अनजानी कार अपने ड्राइव वे में मुड़ते देख वहीं खड़े हो गए. जब शुभ्रा को कार से उतरते देखा तो निशि लपक कर उस से मिलने गई, पर शुभ्रा का चेहरा व अनजाने कनेडियन व्यक्ति को कार से उतरते देख ठिठक गई, सहम कर बोली, ‘‘नितिन तो ठीक है न?’’

शुभ्रा के हां में सिर हिलाने और मिस्टर जौनसन को कार से अटैची निकालते देख निशि ने आगे कुछ नहीं पूछा और उन्हें अंदर आने को कहा. मिस्टर जौनसन ने बाहर से ही वापस जाने की अनुमति मांगी तो अखिलेश और निशि ने उन्हें बिना चाय पिए वापस नहीं जाने दिया.

चाय के साथसाथ बातों का सिलसिला चल पड़ा. चाय के घूंट बातों की ही तरह हलक से उतरने में परेशानी दे रहे थे. अंत में जाते समय जौनसन शुभ्रा के सिर पर स्नेह से भरा हाथ रखते हुए बोले, ‘‘बेटी, संपर्क बनाए रखना. यदि कभी भी मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकूं तो मुझे फोन करने में न हिचकिचाना.’’

शुभ्रा ने दर्दभरी पनियाली आंखों से मुसकरा कर उन का शुक्रिया कर उन्हें विदा किया.

वातावरण गंभीर हो उठा था. निशि ने सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा, ‘‘शुभ्रा, तुम ने ठीक ही किया. गलती होने पर भी औरत पर हाथ उठाना नीचता है, पर वह तो अपनी गलती की सजा भी तुझे दे रहा है.’’

अखिलेश बीच ही में बोल पड़ा, ‘‘मुझे तो समझ नहीं आता कि यदि रूपा से उस का संबंध था तो उसे शुभ्रा से शादी करने की जरूरत ही क्या थी?’’ और सोफे से उठते हुए बोला, ‘‘खैर, मैं उस से बात कर के देखता हूं. उसे यह भी तो बताना होगा कि शुभ्रा यहां पर है.’’

अखिलेश के जाने पर निशि ने शुभ्रा से पूछा, ‘‘तुम क्या सोचती हो, नितिन तुम्हें लेने यहां आएगा?’’

शुभ्रा ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा, ‘‘पता नहीं.’’

‘‘फिर क्या सोचा है?’’ निशि ने बात आगे बढ़ाई.

शुभ्रा ने कोई जवाब नहीं दिया. दुख की अनुभूति उस पौधे के समान है जो न तो सूख कर मर ही जाता है और न ही बसंत में उस में नई कोंपलें निकलती हैं. मन की उमंग और शरीर की कामना जड़ीभूत हो कर रह जाती है.

निशि ने बातों का सूत्र पकड़ते हुए फिर कहा, ‘‘क्या मातापिता के पास जाना चाहोगी?’’

‘‘नहीं, आंखों के सामने का दुख ज्यादा पीड़ादायक होता है. ओट होने से दुख ओझल तो नहीं हो जाता पर लगातार टीस नहीं होती है. जाना तो क्या, मैं उन्हें इस बात की सूचना भी नहीं देना चाहती, उन्हें दुखी करने से क्या फायदा?’’

‘‘तुम ने तो फिजिक्स में एमएससी की है.’’

‘‘हूं.’’

‘‘मुझे याद आ रहा है कि तुम ने एमफिल भी कर लिया था. तुम यहां टीचिंग लाइन में क्यों नहीं चली जातीं?’’

‘‘हूं,’’ शुभ्रा अपनी दोनों हथेलियां एकदूसरे से रगड़ती जा रही थी.

‘‘क्या ये गूंगों की तरह हूं…हूं…लगा रखी है. तुम्हारी इसी कायरता और दब्बूपन से ही तो तुम्हारा यह हाल हुआ है. जब तुम ने उस जहालत से निकलने के लिए यह साहसिक कदम उठा ही लिया है तो क्यों नहीं इसे दिशा देतीं?’’ निशि जैसे झुंझला पड़ी.

‘‘माफ करना दीदी, सोच रही थी…’’

‘‘क्या सोच रही हो, शुभ्रा? अगर बेबात शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना देना कायरता है तो बेकुसूर मार खाते रहना उस से भी बड़ी मूर्खता है. तुम ने इस बात पर स्टैंड ले कर कोई गलती नहीं की. यह नितिन की सरासर ज्यादती है. अन्याय है. और अन्याय के विरुद्ध आवाज न उठाना उस से भी बड़ा अन्याय है. मैं यह नहीं कहती कि अगर नितिन अपनी गलती मान लेता है तो समझौता न करो. देखा जाए तो जीवन ही समझौता है. पर हां, कायरता से नहीं, नीच, अमानुषिक व्यवहार से नहीं,’’ निशि कुछ और भी कहने जा रही थी कि दूसरे कमरे से आते हुए अखिलेश का लालपीला होता हुआ मुंह देख कर प्रश्नवाचक नजरों से उस की ओर चुप हो देखने लगी.

अखिलेश बहुत ही गुस्से में थे, बोले, ‘‘यह नीच अपने को समझता क्या है?’’

निशि ने पूछा, ‘‘क्या कहा?’’

‘‘कह रहा था कि मैं क्या करूं? जबरन मेरे मातापिता ने मेरी शादी कर दी. मैं रूपा को तो छोड़ नहीं सकता,’’ फिर अखिलेश भन्ना कर बोले, ‘‘जैसे जनाब कोई दूध पीते बच्चे थे कि मांबाप ने कान पकड़ कर मंडप में बैठा दिया और इन्होंने शादी कर ली. अगर रूपा के साथ ही रहना था तो शुभ्रा की जिंदगी बरबाद करने का क्या मतलब था?’’

और फिर अखिलेश शुभ्रा की तरफ मुखातिब हो कर कहने लगे, ‘‘शुभ्रा, तुम फिक्र मत करो. मैं इस इंसान को छोड़ूंगा नहीं. तुम्हें तुम्हारा हक दिला कर ही रहूंगा. नाकों चने न चबवाए तो…अंधेरगर्दी है क्या? पता है ‘वाइफ एब्यूज’ की यहां कितनी सजा है? जेल जाएंगे, जेल. बस, पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने की जरूरत है. फिर देखो, बच्चू कैसे नाक रगड़ेंगे, नानी याद आ जाएगी, आटेदाल का भाव मालूम पड़ जाएगा.’’

बीच में ही टोकते हुए निशि बोली, ‘‘इस विषय पर चर्चा कल सुबह ही होगी. रात में कोई भी निर्णय नहीं लिया जाएगा. यह जिंदगी का सवाल है, कोई खेल नहीं,’’ और निशि शुभ्रा को धकेलते हुए बैडरूम में ले गई.

काफी रात तक शुभ्रा करवटें बदलती रही. अतीत के अनुभवों की याद उसे सोने नहीं दे रही थी.

रात्रि के अंतिम पहर में कुछ देर को शुभ्राकी आंख लगी थी कि खिड़की की सिल पर बैठे सीगल की गुटरगूं तथा चोंच से खिड़की के शीशे पर की जा रही टकटक, मानो अंदर आने की इजाजत मांग रहा हो. शुभ्रा की नींद खुल गई.

उसे दुख का एहसास तो था पर उस का मन हलका हो गया था. लगता था कि जैसे एकाएक उस के हृदय पर पड़ा बहुत बड़ा बोझ उतर गया हो. शुभ्रा का दिमाग उन प्रश्नों से जिन के उत्तर किसी भी प्रकार के उलझाव को इंगित करें, खाली हो गया था. अतीत पीछे छूट रहा था व भविष्य की रूपरेखा का निर्माण हो रहा था. शुभ्रा को लग रहा था कि या तो वह बहुत दूर चली आई है या फिर अतीत की घटनाएं इतनी दूर सरक गई हैं कि जहां वे नीले अंतरिक्ष में महीनतम डोर से बंधे गुब्बारों की तरह दूर, बहुत दूर छितराई हुई दृष्टिगत हो रही हैं.

शुभ्रा खिड़की के सामने खड़ी हलकीहलकी गिरती बर्फ को निहारने लगी. उस के अंतर का कोलाहल भी शांत हो चुका है. एक सन्नाटा सा छा गया है. तूफान आने से पहले का नहीं, तूफान गुजर जाने के बाद का सन्नाटा है.

निशि जब शुभ्रा के लिए सुबह की चाय का कप ले कर कमरे में आई तो उस ने शुभ्रा को विचारों में खोए हुए पाया. शुभ्रा खिड़की से एकटक न जाने क्या देख रही थी. एक क्षण को निशि सहमी, ठिठकी, पर फिर शुभ्रा की संतुलित, सौम्य, शांत काया देख आश्वस्त हो गई. वह अभी सोच ही रही थी कि शुभ्रा की विचारमग्नता को भंग करे या नहीं कि कमरे के बाहर से अखिलेश की आवाज गूंज उठी, ‘‘अरे भई, तुम दोनों ने तो हमें दूध में पड़ी मक्खी की तरह बाहर निकाल रखा है. अब तुम दोनों कमरे में ही घुसी रहोगी या बाहर भी आओगी?’’

शुभ्रा, जो अभी तक शून्य में ही ताके जा रही थी, पलटी और निशि को चाय का कप लिए खड़ी देख आश्चर्य से बोली, ‘‘अरे, दीदी, आप.’’

निशि ने अपनत्व से कहा, ‘‘पहले जाओ हाथमुंह धो लो, बाकी बातें बाद में. चाय ठंडी हो रही है.’’

शुभ्रा जब वापस आई तो भोजनकक्ष में अखिलेश और निशि उस का चाय पर इंतजार कर रहे थे. निशि ने शुभ्रा को चाय का कप पकड़ाते हुए कहा, ‘‘लगता है कि तुम किसी निर्णय पर पहुंच गई हो.’’

अखिलेश अभी भी आक्रोश में भरे बैठे थे, बीच में ही बोल पड़े, ‘‘नितिन ने जानवरों जैसी हरकत की है. मैं इस इंसान को छोड़ूंगा नहीं. बच्चे को छठी का दूध याद दिला दूंगा. शुभ्रा, मैं तुम्हें तुम्हारा हक दिला कर ही रहूंगा.’’

शुभ्रा, जो अभी तक सिर झुकाए बैठी हुई चुपचाप अखिलेश की बात सुन रही थी, अब एक दृढ़ निश्चय से उस ने अखिलेश की तरफ गरदन मोड़ी और बोली, ‘‘नहीं, अखिलेश भैया, जिस इंसान के दिल में मेरे लिए कोई जगह नहीं है, मैं उस के ईंटपत्थरों के घर में जगह पाने की इच्छुक नहीं हूं. यह निर्णय तो जब मैं उन का घर छोड़ कर आईर् थी तभी ले लिया था. हां, बस, इतना ही सोच रही थी कि बिना उन के दिल की बात जाने, सिर्फ रूपा के कहने पर ही घर छोड़ना, क्या उचित था या नहीं. पर अब उन के मुख से वही बात सुन कर बंधन का जो एक तार बचा था वह भी कच्चे धागे की भांति टूट गया है.’’

शुभ्रा की बात काटते हुए अखिलेश ने कुछ बोलना चाहा पर शुभ्रा बिना उस की बात सुने एक गहरी सांस छोड़ कर आगे बोली, ‘‘अखिलेश भैया, जिस आत्मसम्मान को मैं ने भ्रमित प्यार के नाम पर तिलांजलि दे दी थी, उस झूठे प्यार का साथ भी छूटने पर अब मेरे पास सिर्फ आत्मसम्मान का ही धन रह गया है, इसे नहीं खोना चाहती. अपने इस आत्मसम्मान के छिटके हुए सूत्र को पकड़, मैं ने, अपने पैरों पर खड़ी हो, अपने जीवन की बागडोर अपने हाथों में लेने का निर्णय ले लिया है.’’

बेकार कप सेट का इस तरह करें इस्तेमाल

आपके घर में ऐसी बहुत सी वस्तु बेकार रखी होगी- जैसे टूटा हुआ कप, प्लास्टिक की बोतल, पेपर आदि. पर आप अपने घर में बेकार ऱखे हुए कप को भी इस्तेमाल कर सकती हैं. तो देर किस बात की चलिए बताते हैं, कैसे आप बेकार कप को इस्तेमाल कर सकती हैं.

आमतौर पर आप खुले सिक्कों को घर में ऐसे ही रख देती हैं, लेकिन बाद में सिक्के को  ढूंढने में आपको परेशानी होती है. इस परेशानी से निजात पाने के लिए हम आपको तरकिब बता रहे हैं, ऐसे में आप दो से चार कप रख लें और उनमें अलग-अलग सिक्के डालें. इससे आपको पता रहेगा कि किस कप में कौन से सिक्के रखें और जरूरत पड़ने पर बिना समय बर्बाद किए आप झट से ढूंढ लेंगी.

जिन कपों में दही आता है उन्हें यूं ही न फेंक दें. आप उन्हें अच्छी तरह धुलकर बाथरूम में टांग सकती हैं और उनमें ब्रश रख सकती हैं. जब ये पुराने हो जाएं तो नए कपों को लगा दें. अपनी मर्जी के हिसाब से इन पर कई तरीके की डिजाइन भी बनाई जा सकती हैं.

अगर आपको होम गार्डनिंग का शौक है तो इन छोटे-छोटे कपों या बाल्टियों में मिट्टी भरकर उनमें पुदिना, धनिया आदि के बीज बो दें. इससे उनमें आपके इस्तेमाल भर की चीजें उग आएगी. पर  आपको इनका ख्याल रखना होगा.

सजा किसे मिली : भाग 2

इस अकेलेपन के बावजूद उस के पास कुछ खुशनुमा पल थे… गरमियों की छुट्टियों में जब वे 15 दिन किसी हिल स्टेशन पर घूमने जाते…उस के जन्मदिन पर उस की मनपसंद ड्रेस के साथ उस को उपहार भी खरीदवाया जाता…यहां तक कि होस्टल में वार्डन से इजाजत ले कर उस के जन्मदिन पर एक छोटी सी पार्टी आयोजित की जाती तथा उस के सभी दोस्तों को गिफ्ट भी दी जाती.

फिर जैसेजैसे वह बड़ी होती गई अपनों के प्यार से तरसते मन में विद्रोह का अंकुर पनपने लगा…यही कारण था कि पहले जहां वह चुप रहा करती थी, अब अपने मन की भड़ास निकालने लगी थी तथा उन की इच्छा के खिलाफ काम करने लगी थी.

ऐसा कर के वह न केवल सहज हो जाया करती थी वरन मम्मीपापा के लटके चेहरे देख कर उसे असीम आनंद मिलने लगा था. जाने क्यों उसे लगने लगा था, जब इन्हें ही मेरी परवा नहीं है तो मैं ही इन की परवा क्यों करूं.

इसी मनोस्थिति के चलते एक बार वह छुट्टियों में अपने घर न आ कर अपनी मित्र स्नेहा के घर चली गई. वहां उस की मम्मी के प्यार और अपनत्व ने उस के सूने मन में उत्साह का संचार कर दिया…वहीं उस ने जाना कि घर ऊंचीऊंची दीवारों से नहीं, उस में रहने वाले लोगों के प्यार और विश्वास से बनता है. उस का घर तो इन के घर से भी बड़ा था, सुखसुविधाएं भी ज्यादा थीं पर नहीं थे तो प्यार के दो मीठे बोल, एकदूसरे के लिए समय…प्यार और विश्वास का सुरक्षित कवच…वास्तव में प्यार से बनाए मां के हाथ के खाने का स्वाद कैसा होता है, उस ने वहीं जाना.

उन को स्नेहा की एकएक फरमाइश पूरी करते देख, एक बार उस ने पूछा था, ‘आंटी, आप ने स्नेहा को खुद से दूर क्यों किया?’

उन्होंने तब सहज उत्तर दिया था, ‘बेटा, यहां कोई अच्छा स्कूल नहीं है…स्नेहा के भविष्य के लिए हमें यह निर्णय करना पड़ा. स्नेहा इस बात को जानती है अत: इस ने इसे सहजता से लिया.’

घर न आने के लिए मां का फोन आने पर उस ने रूखे स्वर में उत्तर दिया, ‘मैं यहीं अच्छी हूं. आप और पापा ही घूम आओ…मैं नहीं जाऊंगी क्योंकि लौट कर आने के बाद तो आप और पापा फिर नौकरी पर जाने लगोगे और मुझे अकेले ही घर में रहना पडे़गा. मैं यहां स्नेहा के पास ही अच्छी हूं. कम से कम यहां मुझे घर होने का एहसास तो हो रहा है.’

अल्पना का ऐसा व्यवहार देख कर स्नेहा की मां ने अवसर पा कर उसे समझाते हुए कहा, ‘बेटा, तुम मेरी बेटी जैसी हो, मेरी बात का गलत अर्थ मत लगाना…एक बात मैं तुम से कहना चाहती हूं, अपने मातापिता को तुम कभी गलत मत समझना…शायद उन की भी कोई मजबूरी रही होगी जिसे तुम समझ नहीं पा रही हो.’

‘आंटी, अपने बच्चे की परवरिश से ज्यादा एक मातापिता के लिए और भी कुछ जरूरी है?’

‘बेटा, सब की प्राथमिकताएं अलगअलग होती हैं…कोई घरपरिवार के लिए सबकुछ त्याग देता है तो कोई अपने कैरियर को भी जीवन का ध्येय मानते हुए घरपरिवार को सहेजना चाहता है. तुम्हारी मां कैरियर वुमन हैं, उन्हें अपने कैरियर से प्यार है पर इस का यह अर्थ कदापि नहीं कि वह तुम से प्यार नहीं करतीं. मैं जानती हूं कि वह तुम्हें ज्यादा समय नहीं दे पातीं पर क्या उन्होंने तुम्हें किसी बात की कमी होने दी?’

आंटी की बात मान कर अल्पना घर आई तो मां उसे अपने सीने से लगा कर रो पड़ीं. पापा का भी यही हाल था. हफ्ते भर मां छुट्टी ले कर उस के पास ही रहीं…उस से पूछपूछ कर खाना बनाती और खिलाती रहीं.

तब अचानक उस का सारा क्रोध आंखों के रास्ते बह निकला था. तब उसे एहसास हुआ था कि मां की बराबरी कोई नहीं कर सकता…पर जैसे ही उन्होंने आफिस जाना शुरू किया, घर का सूनापन उस के दिलोदिमाग पर फिर से हावी होता गया. अभी छुट्टी के 15 दिन बाकी थे पर लग रहा था जैसे उसे आए हुए वर्षों हो गए हैं.

शाम को मम्मीपापा के आने पर उन के पास बैठ कर वह ढेरों बातें करना चाहती थी पर कभी फोन की घंटी बज उठती तो कभी कोई आ जाता…कभी मम्मीपापा ही उस की उपस्थिति से बेखबर किसी बात पर झल्ला उठते जिस से घर का माहौल तनावपूर्ण हो उठता. यह सब देख कर मन में विद्रोह फिर पनपने लगा.

वह होस्टल जाने लगी तो ममा ने उस के लिए नई डे्रस खरीदी, जरूरत का अन्य सामान खरीदवाया, यहां तक कि उस की पसंद की खाने की कई तरह की चीजें खरीद कर रखीं, फिर भी न जाने क्यों इन चीजों में उसे मां का प्यार नजर नहीं आया. उस ने सोच लिया जब उन्हें उस से प्यार ही नहीं है, तो वही उन की परवा क्यों करे.

अब फोन आने पर वह ममा से ढंग से बातें नहीं करना चाहती थी…वह कुछ पूछतीं तो बस, हां या हूं में उत्तर देती. उस का रुख देख कर एक बार उस की ममा उस से मिलने भी आईं तो भी पता नहीं क्यों उन से बात करने का मन ही नहीं किया…मानो वह अपने मन के बंद दरवाजे से बाहर निकलना ही नहीं चाह रही हो.

छुट्टियां पड़ीं तो उस ने अपनी वार्डन से वहीं रहने का आग्रह किया. पहले तो वह मानी नहीं पर जब उस ने उन्हें अपनी व्यथा बताई तो उन्होंने उस के मम्मीपापा को सूचना दे कर रहने की इजाजत दे दी.

उस का यह रुख देख कर मम्मीपापा ने आ कर उसे समझाना चाहा तो उस ने साफ शब्दों में कह दिया, ‘घर से तो मुझे यहीं अच्छा लगता है…कम से कम यहां मुझे अपनापन तो मिलता है…मैं यहीं रह कर कोचिंग करना चाहती हूं.’

बुझे मन से वह दोनों वार्डन को उस का खयाल रखने के लिए कह कर चले गए.

कुछ दिन तो वह होस्टल में रही किंतु सूना होस्टल उस के मन के सूनेपन को और बढ़ाने लगा…अब उसे न जाने क्यों किसी से मिलना भी अच्छा नहीं लगता था क्योंकि वह जिस से भी मिलती वही उस के घर के बारे में पूछता और वह अपने घर के बारे में किसी को क्या बताती? अब न उस का पढ़ने में मन लगता और न ही किसी अन्य काम में…यहां तक कि वह क्लास भी मिस करने लगी…नतीजा यह हुआ कि वह फर्स्ट टर्म में फेल हो गई.

शक के कफन में दफन हुआ प्यार : भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर के थाना बहरियाबाद क्षेत्र में एक गांव है बघांव. पेशे से अध्यापक दीपचंद राम अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सुमन के साथसाथ 2 बेटे थे सुरेश और सुरेंद्र तथा 2 बेटियां थीं चंदना और वंदना. चंदना सब से बड़ी, समझदार और खूबसूरत लड़की थी. वह दीपचंद और सुमन की लाडली थी.

16 मार्च, 2018 की सुबह करीब 9-10 बजे चंदना मां से खेतों पर जाने को कह कर घर से बाहर निकली तो दोपहर के 1 बजे तक घर नहीं लौटी. दीपचंद और सुमन को चिंता हुई. सयानी बेटी के इस तरह से गायब हो जाने से मांबाप परेशान हो गए. उन्होंने अड़ोसपड़ोस में चंदना को ढूंढा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि चंदना रहस्यमय तरीके से कहां लापता हो गई.

मामला जवान बेटी से जुड़ा था, इसलिए संवेदनशील दीपचंद ने यह सोच कर इस बारे में किसी को नहीं बताया कि व्यर्थ में अंगुलियां उठने लगेंगी. धीरेधीरे शाम ढलने लगी, लेकिन चंदना घर नहीं लौटी. ऐसे में दीपचंद और सुमन की घबराहट और बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक ही थी.

दोनों बेटी के बारे में सोचसोच कर परेशान थे. उन की बेचैनी और चंदना को ढूंढने की वजह से कुछ लोगों ने अनुमान लगा लिया था कि चंदना गायब है. फलस्वरूप धीरेधीरे यह बात पूरे गांव में फैल गई थी. गांव वाले चंदना को ले कर तरहतरह की बातें करने लगे थे. जब शाम तक चंदना का कहीं पता नहीं चला तो दीपचंद गांव के कुछ लोगों को साथ ले कर बहरियाबाद थाने पहुंचा.

थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी थाने में ही मौजूद थे. जब दीपचंद अन्य लोगों के साथ थाने पहुंचा तब तक अंधेरा घिर आया था. थानाप्रभारी ने दीपचंद से रात में थाने आने का कारण पूछा तो दीपचंद ने उन्हें पूरी बात बता दी.

मामला गंभीर था. दीपचंद की बातें सुन कर थानाप्रभारी सिद्दीकी ने लिखने के लिए एक सादा पेपर दीपचंद की ओर बढ़ा दिया और तहरीर लिख कर देने के लिए कहा. दीपचंद ने तहरीर लिख कर दे दी. पुलिस ने दीपचंद की तहरीर पर चंदना की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर के जरूरी काररवाई शुरू कर दी.

लहूलुहान हालत में मिली चंदना की लाश

अगली सुबह यानी 17 मार्च को बघांव का रहने वाला लल्लन यादव गांव के बाहर अपने खेत में पंपिंग सेट देखने पहुंचा. उस ने अपने खेत में पंपिंग सेट लगा रखा था. पैसा ले कर वह दूसरों के खेतों की सिंचाई किया करता था. खेतों में पहुंच कर लल्लन की नजर गेहूं की फसल पर पड़ी तो उसे कुछ अजीब सा लगा. खेत के बीच में काफी दूर तक फसल रौंदी पड़ी थी. ऐसा लग रहा था जैसे किसी जानवर ने खेत में घुस कर उत्पात मचाया हो.

पड़ताल करने के लिए लल्लन अंदर पहुंच गया. उस की नजर जब बरबाद हुई गेहूं की फसल पर पड़ी तो वह वहां का नजारा देख घबरा गया. वह वहां से भागा तो सीधा दीपचंद के घर ही जा कर रुका.

दीपचंद जिस बेटी को 24 घंटे से तलाश कर रहा था, उस की अर्द्धनग्न लाश लल्लन यादव के खेत में पड़ी थी. किसी ने उस के गले और पेट पर चाकू से अनगिनत वार कर के मौत के घाट उतार दिया था.

चंदना की लाश मिलते ही दीपचंद के घर में कोहराम मच गया. दीपचंद और गांव के तमाम लोग लल्लन के खेत पर जा पहुंचे, जहां चंदना की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. चंदना की लाश देख कर गांव वालों ने अनुमान लगाया कि हत्यारों ने दुष्कर्म करने के बाद अपनी पहचान छिपाने के लिए उस की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी होगी. लोगों ने घटनास्थल देख अनुमान लगाया कि हत्यारों की संख्या 2-3 से कम नहीं रही होगी, क्योंकि काफी दूरी तक गेहूं की फसल रौंदी हुई थी.

भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के घटना की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी. कंट्रोलरूम से वायरलैस सेट पर यह सूचना बहरियाबाद थाने को दे दी गई. इस घटना से गांव वाले काफी गुस्से में थे. उन लोगों ने चंदना की लाश ले कर बहरियाबाद-चिरैयाकोट मार्ग (गाजीपुर-मऊ मार्ग) पर जाम लगा दिया.

कंट्रोलरूम से दी गई सूचना के आधार पर बहरियाबाद थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन की टीम में एसआई विपिन सिंह, प्रशांत कुमार चौधरी, विकास श्रीवास्तव, संजय प्रसाद, दिनेश यादव शामिल थे. पुलिस को देखते ही ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा. वे पुलिस प्रशासन के खिलाफ नारे लगाने लगे.

शमीम अली सिद्दीकी ने स्थिति की नजाकत को समझते हुए कप्तान सोमेन वर्मा को फोन कर के फोर्स भेजने का आग्रह किया. पुलिस कप्तान ने तत्काल सीओ (सैदपुर) मुन्नीलाल गौड़, सीओ (भुड़कुड़ा) प्रदीप कुमार, सीओ (जखनिया) आलोक प्रसाद सहित जिले के कई थानों के थानाप्रभारियों को मौके पर पहुंचने का आदेश दिया. वह खुद भी मौके पर पहुंच गए.

कुछ ही देर में बहरियाबाद-चिरैयाकोट मार्ग पर खाकी वरदी ही वरदी नजर आने लगीं. पुलिस ने पंचनामा के लिए चंदना की लाश लेने की कोशिश की तो प्रदर्शनकारियों ने पुलिस को लाश देने से मना कर दिया. उन की 2 मांगें थीं, पहली यह कि घटनास्थल पर डौग स्क्वायड को बुलवाया जाए और दूसरी यह कि हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार किया जाए.

गांव वालों का विरोध प्रदर्शन

पुलिस कप्तान सोमेन वर्मा ने लोगों की पहली मांग पूरी करने में असमर्थता जताई, क्योंकि जिले में डौग स्क्वायड की कोई व्यवस्था नहीं थी. अलबत्ता उन्होंने प्रदर्शनकारियों की दूसरी मांग पूरी करने का भरोसा देते हुए वादा किया कि हत्यारों को 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

पुलिस की 5 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद एसपी वर्मा के आश्वासन पर गांव वाले शांत हुए. पुलिस ने जल्दीजल्दी पंचनामा भर कर लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. इस के साथ ही अज्ञात हत्यारों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया. घटना की तफ्तीश की जिम्मेदारी थानाप्रभारी शमीम अली सिद्दीकी को सौंपी गई.

चंदना की हत्या किस ने और क्यों की, पुलिस के लिए यह गुत्थी सुलझाना आसान नहीं था. थानाप्रभारी ने सब से पहले घटनास्थल का दौरा किया और फिर मृतका चंदना के घर जा कर उस के पिता दीपचंद से पूछताछ की. दीपचंद ने थानाप्रभारी को बताया कि उस की या उस की बेटी चंदना की किसी से कोई अदावत नहीं थी. वैसे भी चंदना अपने काम से मतलब रखती थी. वह किसी के घर भी ज्यादा नहीं उठतीबैठती थी.

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