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विवाह के समय किरन 20-22 साल की थी, जबकि पच्चालाल 43 साल के. नरेश को किरन की बेवफाई का पता चला तो उस ने माथा पीट लिया. शराबी और जुआरी नरेश इतना सक्षम नहीं था कि दरोगा का मुकाबला कर पाता, लिहाजा वह चुप हो कर बैठ गया.

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प्रेम विवाह करने के बाद किरन पच्चालाल की पत्नी बन कर हरदोई में रहने लगी. कुछ समय बाद दरोगा पच्चालाल का ट्रांसफर कानपुर हो गया. कानपुर में पच्चालाल ने नवाबगंज थाना क्षेत्र के सूर्यविहार में किराए पर एक मकान ले लिया और किरन के साथ रहने लगे. बाद में दरोगा पच्चालाल और किरन एक बेटे अमन तथा 2 बेटियों अर्चना व पारुल के मातापिता बने.

कुंती के चारों बेटों ने पिता द्वारा किरन से प्रेम विवाह करने का कोई विरोध नहीं किया था. इस की वजह यह भी थी कि पिता के अलावा उन्हें संरक्षण देने वाला कोई नहीं था. इस तरह दरोगा पच्चालाल 2 परिवारों का पालनपोषण करने लगे. पहली पत्नी के बच्चे गांव में तथा दूसरी पत्नी किरन और उस के बच्चे कानपुर शहर में रहते रहे. पच्चालाल को जब छुट्टी मिलती तो गांव चले जाते और बच्चों से मिल कर लौट आते.

किरन 3 बच्चों की मां जरूर बन गई थी, लेकिन अब भी यौवन से भरपूर थी. वह हर रात पति का संसर्ग चाहती थी, लेकिन इस से वंचित थी. दरोगा पच्चालाल अब तक 50 की उम्र पार कर चुके थे. उन की सैक्स में रुचि भी कम हो गई थी. पहल करने पर भी वह किरन से देह संबंध नहीं बनाते थे.

दरअसल, ड्यूटी करने के बाद पच्चालाल इतने थक जाते थे कि पीने और खाना खाने के बाद बैड पकड़ लेते थे. किरन रात भर तड़पती रहती थी.

उन्हीं दिनों किरन की निगाह जितेंद्र यादव पर पड़ी. जितेंद्र यादव औरैया जिले के सहायल थाना क्षेत्र में आने वाले पुरवा अहिरमा का रहने वाला था. कानपुर में वह नवाबगंज की रोडवेज कालोनी में रहता था और रोडवेज की बस का ड्राइवर था. पच्चालाल और जितेंद्र यादव गहरे दोस्त थे. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. दोनों की महफिल एकदूसरे के घरों में अकसर जमती रहती थी.

किरन की निगाह थी जितेंद्र पर

जितेंद्र यादव शरीर से हृष्टपुष्ट और किरन का हमउम्र था. किरन को लगा कि वह उस की अधूरी ख्वाहिशों को पूरा कर सकता है. अत: उस ने जितेंद्र को लिफ्ट देनी शुरू कर दी. दोनों के बीच देवरभाभी का नाता था.

जबतब दोनों हंसीमजाक भी करने लगे. किरन अपने सुघड़ अंगों का प्रदर्शन कर के जितेंद्र को ललचाने लगी. किरन के हावभाव से जितेंद्र समझ गया कि किरन सैक्स की भूखी है, पहल की जाए तो जल्द ही उस की बांहों में समा जाएगी.

जितेंद्र यादव जब भी किरन के घर आता, बच्चों के लिए फल, मिठाई ले कर जाता. किरन से वह मीठीमीठी बातें करते हुए उसे ललचाई हुई नजरों से देखता. ऐसे ही एक रोज जितेंद्र आया, तो किरन को घर में अकेली देख कर उस से पूछा, ‘‘दरोगा भैया अभी तक नहीं आए?’’

किरन ने बेफिक्री से कहा, ‘‘सरकारी काम से बाहर गए हैं, 1-2 रोज बाद लौटेंगे.’’

जितेंद्र की बांछें खिल गईं. उस ने किरन के चेहरे पर नजरें गड़ाते हुए शरारत की, ‘‘भाभी, आप की रात कैसे कटेगी?’’

‘‘तुम जो हो.’’ किरन ने भी उसी अंदाज में जवाब दे दिया. किरन के खुले आमंत्रण से जितेंद्र का हौसला बढ़ गया. वह बोला, ‘‘तो मैं रात को आऊं?’’

‘‘मैं ने कब मना किया है.’’ किरन ने मादक अंगड़ाई ली.

रात गहराई तो जितेंद्र किरन के दरवाजे पर पहुंच गया. उस ने दरवाजा धकेला तो खुल गया. अंदर नाइट बल्ब जल रहा था. किरन पलंग पर लेटी थी. वह फुसफुसाई, ‘‘दरवाजा बंद कर के सिटकनी लगा दो.’’

जितेंद्र ने ऐसा ही किया और पलंग पर आ कर बैठ गया. दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा तो तभी थमा जब दोनों एकदूसरे की बांहों में समा गए. उस दिन किरन और जितेंद्र के बीच की सारी दूरियां मिट गईं.

किरन और जितेंद्र एक बार देह के दलदल में समाए तो समाते ही चले गए. दोनों को जब भी मौका मिलता, एकदूसरे में सिमट जाते. एक रोज पच्चालाल ड्यूटी के लिए घर से निकले ही थे कि जितेंद्र आ गया. आते ही उस ने किरन को बांहों में भर लिया.

दोनों अभी एकदूसरे से लिपटे ही थे कि पच्चालाल की आवाज सुन कर घबरा गए. किरन ने कपड़े दुरुस्त कर के दरवाजा खोल दिया. घर के अंदर जितेंद्र मौजूद था. बिस्तर कुछ पल पहले गुजरे तूफान की चुगली कर रहा था. पच्चालाल सब समझ गए. उन्होंने किरन को धुनना शुरू किया तो जितेंद्र चुपके से खिसक लिया.

इस घटना के बाद किरन और जितेंद्र ने दरोगा पच्चालाल से माफी मांग ली और आइंदा गलती न करने का वादा किया. पच्चालाल ने दोनों को माफ तो कर दिया, लेकिन जितेंद्र के साथ शराब पीनी बंद कर दी. उस के घर आने पर भी पाबंदी लगा दी. लेकिन देह की लगी ने पाबंदियों को नहीं माना. कुछ दिन दोनों दूरदूर रहे, फिर चोरीछिपे शारीरिक रूप से मिलने लगे.

जितेंद्र बना पच्चालाल की मौत का परवाना  जनवरी, 2018 में दरोगा पच्चालाल का ट्रांसफर कानपुर देहात के थाना सजेती में हो गया. सजेती थाना कानपुर से 50 किलोमीटर दूर है. वहां से रोज घर आनाजाना संभव नहीं था. दरोगा पच्चालाल को थाना परिसर में ही आवास मिल गया. अब वह हफ्ता 10 दिन में ही किरन से मिलने घर जा पाते थे.

पच्चालाल जब भी घर आते थे, किरन से गालीगलौज और मारपीट जरूर करते थे. दरअसल उन्हें शक था कि जितेंद्र के अलावा भी किरन के किसी से नाजायज संबंध हैं. जैसेजैसे समय बीत रहा था, घर में कलह और प्रताड़ना बढ़ती जा रही थी. पति की प्रताड़ना से आजिज आ कर किरन ने अपने प्रेमी जितेंद्र की मदद से पच्चालाल को रास्ते से हटाने की योजना बनाई.

जितेंद्र ने किरन को पच्चालाल की हत्या से फायदे भी बताए. जितेंद्र ने कहा कि पति की हत्या के बाद तुम्हारे बेटे अमन को मृतक आश्रित कोटे से सरकारी नौकरी मिल जाएगी और तुम्हें पेंशन मिलने लगेगी. इस के अलावा प्रेम संबंध का रोड़ा भी हट जाएगा.

किरन और जितेंद्र ने पच्चालाल की हत्या के लिए रुपयों का इंतजाम किया. फिर जितेंद्र ने विधूना निवासी टेलर निजाम अली से बातचीत की. एक लाख रुपए में सौदा तय हुआ. जितेंद्र ने एक लाख रुपया निजाम अली के खाते में ट्रांसफर कर दिया.

इस के बाद निजाम अली ने जितेंद्र को पसहा (विधूना) निवासी राघवेंद्र उर्फ मुन्ना से मिलवाया. राघवेंद्र रिटायर दरोगा हरिदत्त सिंह का अपराधी प्रवृत्ति का बेटा था. निजाम अली ने 20 हजार रुपए एडवांस दे कर उसे इस योजना में शामिल कर लिया.

2 जुलाई, 2018 की देर शाम जितेंद्र यादव राघवेंद्र और निजाम अली को साथ ले कर सजेती पहुंचा और हाइवे से दरोगा के आवास की पहचान कराई. इस के बाद जितेंद्र यादव बाजार गया, जहां उस की मुलाकात दरोगा पच्चालाल से हो गई. जितेंद्र ने झुक कर दरोगा के पैर छुए. पच्चालाल ने उसे रात को वहीं रुक जाने को कहा.

थोड़ी देर की बातचीत के बाद दरोगा पच्चालाल ने अंगरेजी शराब की बोतल और नमकीन खरीदी. दुकानदार को नमकीन के पैसे पच्चालाल ने ही दिए. इस के बाद होटल पर बैठ कर दोनों ने शराब पी और खाना खाया. इस के बाद दोनों पच्चालाल के आवास पर आ गए. दरोगा पच्चालाल ने कपड़े उतारे और कूलर चला कर पलंग पर पसर गए.

कुछ देर बाद जब पच्चालाल सो गए तो जितेंद्र ने आवास का पीछे का दरवाजा खोल कर निजाम अली व राघवेंद्र को अंदर बुला लिया, जो कुछ दूर हाइवे किनारे बैठे थे. साथियों के आते ही जितेंद्र ने पच्चालाल को दबोच लिया. दरोगाजी की आंखें खुलीं तो प्राण संकट में देख वह संघर्ष करने लगे. लेकिन नफरत से भरे जितेंद्र ने पच्चालाल के शरीर को चाकू से गोदना शुरू किया तो गोदता ही चला गया.

हत्या के दौरान खून के छींटे व हाथ के पंजे का निशान एक दीवार पर भी पड़ गया. हत्या के बाद जितेंद्र व उस के साथी दरोगा का मोबाइल, पर्स व घड़ी लूट कर फरार हो गए. जितेंद्र ने मोबाइल से फोन कर के पच्चालाल की हत्या की जानकारी किरन को दे दी थी.

3 जुलाई की शाम 6 बजे मुंशी अजयपाल जब रजिस्टर पर दस्तखत कराने दरोगा पच्चालाल के आवास पर पहुंचा तो हत्या की जानकारी हुई. 7 जुलाई, 2018 को पुलिस ने हत्यारोपी किरन, जितेंद्र, निजाम अली व राघवेंद्र को कानपुर देहात की माती अदालत में रिमांड पर मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से सब को जेल भेज दिया गया.

–  पुलिस सूत्रों पर आधारित

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