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मेरी राय में हर तरह की फिल्म का दर्शक है : सिद्धार्थ मल्होत्रा

कैरियर के टर्निंग प्वाइंट्स क्या रहे?

मेरे कैरियर की टर्निंग प्वाइंट में पहला टर्निंग प्वाइंट तो मेरी लौंच वाली फिल्म ‘‘स्टूडेंट आफ द ईअर’’ ही रही. इसके बाद ‘एक विलेन’, जो कि मेरे करियर की तीसरी फिल्म थी. इस फिल्म से मुझे जो रिस्पांस मिला, वह कमाल का रहा. इस फिल्म को न सिर्फ बौक्स आफिस पर सफलता मिली,  बल्कि दर्शकों ने भी काफी सराहा. मेरे लिए इस फिल्म को करना रिस्क भी था.इससे पहले मेरी दोनों फिल्में ‘स्टूडेंट आफ द ईअर’ और ‘हंसी तो फंसी’ प्रेम कहानी वाली फिल्में थीं. इसके बाद मेरे कैरियर की टर्निंग प्वाइंट वाली फिल्म ‘‘कपूर एंड संस’’ रही. यह छोटे बजट की फिल्म थी. पर इसमें कई कलाकार थे. इसकी स्क्रिप्ट मुझे बहुत पसंद थी. इस फिल्म को लोगों का अच्छा प्यार मिला, तो मेरे कैरियर के शुरूआती दौर में यह दोनों फिल्में टर्निंग प्वाइंट रहीं. इन फिल्मों ने मुझे बहुत कुछ दिया. उसके बाद मेरी कई फिल्में सफल हुईं और कई असफल हुर्इं, पर मैंने हर फिल्म में काफी कुछ सीखा.

मैथौस एडीशन ने जब लाइट बाक्स की खोज की, तो उन्हें 160 बार असफला मिली. पर हर कोई यही चर्चा करता है कि उन्होंने इस बात की खोज की, कि बल्ब कैसे जलता है. पर कहने वाले तो कहते हैं कि उन्हें बार बार असफल हुए. इस पर उन्होंने कहा कि मुझे 160 बार समझ में आया कि बल्ब क्यों नहीं जला.

इसी तरह हम पहले से नही कह सकते कि कौन सी फिल्म सफल होगी, कौन सी नही या कौन सी फिल्म क्यों सफल हुई, मेरी कुछ फिल्में असफल हुईं. पर मैंने उनसे भी बहुत कुछ सीखा. मुझे हर बार समझ में आया कि इसमें कुछ तो बेहतर होना चाहिए था, फिर चाहे वह क्रिएटिव हो या कहानी हो या स्क्रिप्ट हो या मैनेजमेंट हो. तो मैं इसे अनुभव की तरह लेकर चल रहा है.

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‘‘हंसी तो फंसी’’की असफलता से आपने क्या सीखा?

मैं इसे असफल नही मानता. इस फिल्म को छोटे दर्शकों ने पसंद किया. यह मास इंटरटेनर नहीं थी, पर इस फिल्म को लेकर लोगों के संदेश अभी तक आते रहते हैं. मुझे फायदा यह हुआ कि ‘स्टूडेंट आफ द ईअर’ में लैमरस किरदार था और ‘हंसी तो फंसी’ में नौन ग्लैमरस किरदार था. कई निर्देशकों ने मुझे फोनकर बधाई दी थी. इसी फिल्म को देखकर ‘एक्सेल इंटरटेनमेंट’ने मुझे फिल्म ‘‘बार बार देखो’’ का आफर दिया. हम हर फिल्म को एक ही दृष्टिकोण से देखते हैं. ज्यादातर लोग सिर्फ बौक्स आफिस के आधार पर तुलना करते हैं. जबकि कई बार असफल फिल्म भी कलाकार को बहुत कुछ दे सकती है.

फिल्म ‘‘बार बार देखो’’ से आपको काफी उम्मीदें थीं. पर यह फिल्म भी नहीं चली ?

मुझे लगता है कि इसमें कहानी, नरेटिब, एडिट की गड़बड़ी रही. जब मैंने कहानी सुनी थी, तो जिस तरह की एनर्जी व ह्यूमर नजर आया था, वह फिल्म के रिलीज के बाद नजर नहीं आया. मुझे लगता है कि पूरी फिल्म इंडस्ट्री पहले से नही जानती कि स्क्रिप्ट के जो पन्ने लिखे हुए हैं, वह परदे पर कैसे आएंगे. यह एक महत्वाकांक्षी फिल्म थी. हम बताना चाहते हैं कि किसी को अगर अपनी जिंदगी में आगे देखने का मौका मिले, तो वह क्या क्या जिंदगी में बदलाव लाना चाहेगा. इसमें बहुत अच्छा संदेश था कि सिर्फ कैरियर को महत्व न दे, जिंदगी को बैलेंस करे. रिश्ते भी महत्वपूर्ण होते है. पर जब फिल्म सिनेमाघरों में पहुंची, तो फिल्म का यह नजरिया लोगों को ज्यादा पसंद नहीं आया.

समाज में आए बदलाव के बाद एकाकी परिवार का बोलबाला है. संयुक्त परिवार खत्म हो गए. लोग अपने आप में मग्न हो गए. इसके चलते लोग परिवार के कौंसेप्ट से कम सहमत होते हैं? इसका असर ‘कपूर एंड संस’ पर भी पड़ा था?

‘कपूर एंड संस’ सफल फिल्म थी. यदि आप अलग अलग हिसाब से फिल्म को देखेंगे, तो हर फिल्म असफल है. ‘कपूर एंड संस’ ने सत्तर करोड़ रूपए कमाए थे. मैं नही मानूंगा कि ‘कपूर एंड संस’ असफल है. यह फिल्म मेरी पसंदीदा फिल्म है. खामी तो आप ‘शोले’ में भी निकाल सकते हैं.

लोग कह रहे हैं कि सिनेमा बदल गया. अब लोग रियालिस्टिक सिनेमा देखना चाहते हैं. ऐसे दौर में लार्जर देन द लाइफ वाली चीज करना रिस्क ही है?

बिल्कुल नहीं….‘बाहुबली’ को भी इसी दौर में पसंद किया गया. यह तो हिंदुस्तान की सबसे बड़ी और सफलतम फिल्म रही? जो कि बिलकुल भी रियालिस्टिक नहीं है. इसमें लार्जर देन लाइफ का मसला है. अमेरिका की ‘अवेंजर्स’ भी वही है. मुझे लगता है कि यह स्टेटमेंट सिर्फ सब्जेक्टिव स्टेटमेंट है. हर फिल्म को आप बहुत ही अलग रिपोर्ट कर सकते हैं. पर यह सारे स्टेटमेंट सही और गलत हैं. मेरी राय में हर तरह की फिल्म का दर्शक है. सबसे ज्यादा जरूरी है कि आप क्या दिखा रहे हैं ?

जब एक लेखक खुद निर्देशक बनता है, तो क्या सीन ज्यादा अच्छे ढंग से उभरकर आते हैं?

मुझे लगता है कि अच्छे ढंग से कंट्रोल होता है. उनका पूरा होल्ड होता है. अपने कंविंशन पर उनकी पकड़ रहती है. इस फिल्म के सेट पर उन्हे पता था कि वह किस तरह का सिनेमा बना रहे हैं. यह फिल्म दर्शकों को ध्यान में रखकर बनाई गयी है.

जब आपने कैरियर की शुरुआत की थी, तो आपका नाम आलिया भट्ट के साथ जोड़ा जा रहा था. अभी कुछ समय से आपका नाम तारा सुतारिया के साथ जोड़ा जा रहा है. यह सब क्या है ?

यह सब आप यानी कि मीडिया ही जाने. पता नहीं ऐसा क्यों है. शिवाय अक्षय कुमार के सभी कलाकारों के संग मेरा नाम जुड़ चुका है. मुझे यह सब बुरा लग रहा है. मैं और अक्षय पाजी बहुत करीब है. और हमारे बारे में किसी ने कुछ नहीं लिखा. सिर्फ लड़कियों के बारे में लिखा. दोस्ती यारी होती है. हम हर किसी के साथ घूमते हैं. मुझे लगता है कि यह सब जरूरी नहीं है.

हमारे लिए महत्वपूर्ण हमारी फिल्म और हमारा काम है. लोग उससे हमें पहचानते हैं. हम मुंबई अपनी जगह, एक मुकाम बनाने आए हैं. हम बहुत अच्छा काम करना चाहते हैं.

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सोशल मीडिया पर कितना व्यस्त रहते हैं. क्या लिखना पसंद करते हैं ?

मैं सोशल मीडिया का उपयोग अच्छे कामों के लिए करता हूं. सोशल मीडिया का मैं अपने फ्रेंड्स के साथ कनेक्ट करने के लिए इस्तेमाल करना चाहता हूं. कितने प्यारे फ्रेंड्स से इतने सालों से टच में हूं. मुझे सोशल मीडिया इसलिए बहुत पसंद है कि मैं अपने लोगों से, जो मुझे पहली फिल्म से चाहते हैं, उनसे जुड़ पा रहा हूं. लोग मुझे अपनी दुआएं देते हैं या पैजिटिव चीजें लिखते हैं. ऐसे लोगों से बातचीत करना मुझे बहुत अच्छा लगता है. ‘इंस्टाग्राम’ हो या ‘ट्विटर’ हो या ‘फेसबुक’. कभी- कभी अपनी राय आप डिस्कस करना चाहते हैं. मीडिया में जो छप जाए, उसके कहने के अपने मतलब को हम सोशल मीडिया के माध्यम से तुरंत पहुंचा पाते हैं. यह पौजीटिब बातों को लोगों तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है.

सोशल मीडिया पर आपके जो फौलोअर्स हैं, क्या उसका असर बौक्स औफिस पर पड़ता है?

नहीं…नहीं…बिल्कुल नहीं. आपको इस बात का भी एहसास करना पड़ेगा कि सोशल मीडिया एकदम अलग दुनिया है. इंटरनेट की दुनिया है. रीयल दुनिया नहीं है.

इसके बाद कौन सी फिल्म कर रहे हैं?

इन दिनों फिल्म ‘‘शेरशाह सूरी’’ की शूटिंग कर रहा हूं. जो कि कैप्टन विक्रम की बायोपिक है. कैप्टन विक्रम कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे.

महाराष्ट्र में सरकार : दलबदल कानून की नई परिभाषा

भाजपा हिन्दू राष्ट्र की समर्थक है. अपने हर काम को जायज ठहराने के लिये महाभारत और रामायण काल के उदाहाण से काम चलाती है. रामायण और महाभारत में राजाओं ने सत्ता पर कब्जा करने के लिये हर तरह का कदम उठाया और बाद में उसे जायज भी करार दिया. राजाओं के उस दौर में रातोरात सत्ता पलटी जाती थी. लोकतंत्र में ऐसे उदाहरण कम मिलेगे जब समय से पहले प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग जाये और समय से पहले ही मुख्यमंत्री पद की शपथ भी दिला दी जाये. अब दलबदल कानून और संविधान की रोशनी में इसे भी जायज ठहराने का काम किया जाएगा.

महाराष्ट्र में एनसीपी को सरकार बनाने के लिये दिये गये समय से पहले राज्यपाल भगत सिंह कोश्यिारी ने प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की सिफारिश कर दी. भाजपा नेता देवेन्द्र फड़वनीस को एनसीपी के विद्रोही गुट के नेता अजीत पवार ने जैसे ही अपना समर्थन दिया राज्यपाल ने सुबह औफिस खुलने का भी इंतजार नहीं किया और सुबह 8 बजकर 15 मिनट पर ही मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. सत्ता को कब्जे में करने के लिये दलबदल के ऐसे खेल रात में ही खेले जाते है. दलबदल के इस खेल में सबसे महत्वपूर्ण दो खिलाड़ी होते है. तो संवैधानिक पद पर बैठे होते है. जिनके बारे में संविधान कहता है कि वह दलीय परंपरा से उठ कर संविधान के हित में काम करते है. राज्यपाल और विधानसभा अध्यक्ष दलबदल के खेल में सबसे महत्वपूर्ण होते है. कई बार इनमें आपस में टकराव भी होता है.

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कई प्रदेशों में दलबदल के उदाहरण इस बात को साबित करते है. उत्तर प्रदेश में 1996 में बहुजन समाज पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने आपस में मिलकर 6-6 माह की सरकार बनाई थी. पहले 6 माह बसपा नेता मायावती मुख्यमंत्री रही तो विधानसभा अध्यक्ष भाजपा ने अपना रखा. 6 माह पूरे होने पर जब बसपा ने सत्ता छोड़ने में आनाकानी की तो दलबदल का खेल शुरू हुआ. बसपा को तोड़ा गया. उससे अलग हुए गुट को विधानसभा में अलग दल की मान्यता दी गई. उसके समर्थन से भाजपा के कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने. बदलबदल कानून देखता रहा और उसकी कानून में दिखे छेदों से सरकार बन गई.

उत्तर प्रदेश में दलबदल के इस खेल का असर हुआ और यह मांग तेज हो गई कि दलबदल कानून को सख्त किया जायेगा. कुछ बदलाव हुये पर इसका भी कोई असर होता नहीं दिख रहा है. कई राज्यों में बदबदल कानून को ताक पर रख सरकार बनाई गई. कर्नाटक इसका बड़ा उदाहरण है. अब महाराष्ट्र में भी दलबदल कानून की ऐसी ही नजीरे पेश की जायेगी. राजनीति में परिवारवाद की असफलता का भी यह सबसे बड़ा उदाहरण है. जिस समय एपसीपी नेता शरद पवार, शिवसेना के उद्धव ठाकरे और कांग्रेस सरकार बनाने की पूरी रणनीति तय कर चुके थे तभी अगली सुबह एनसीपी अचानक महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यिारी ने भाजपा नेता देवेन्द्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी. देवेन्द्र फड़नवीस का मुख्यमंत्री बनवाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका एनसीपी के ही अजीत पंवार ने अदा की. अजीत पवार शरद पंवार के भतीजे है और इनके खिलाफ ईडी जांच की सिफारिश भी हुई थी.

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दलदल : भाग 2

पूर्व कथा

पिछले अंक में आप ने पढ़ा कि नित्या एक बार प्यार में धोखा खा चुकी थी इसलिए अब फूंकफूंक कर कदम रख रही थी. उस ने दूसरे शहर में एमबीए जौइन कर लिया. कालेज में जब सब उसे ठूंठ कहने लगे तो उस ने अपने मकान में रहने वाले एक और पेइंगगैस्ट राहुल को बौयफ्रैंड बना लिया. नित्या प्यार की परिणति विवाह मानती थी जबकि उस की रूममेट शिखा उसे समझाती कि वह प्यार और शादी को अलगअलग रख कर चले. नित्या राहुल से जब भी शादी की बात करती, वह टाल जाता.

पढ़िए आगे…

नित्या का मन खट्टा हो गया, लेकिन उस ने राहुल से दूरी बनाने का कोई प्रयास नहीं किया. उस से फायदा भी क्या होता. उच्छृंखल प्यार आज के युवाओं की नियति है.

‘‘तुम्हारा अफेयर कैसा चल रहा है?’’ एक दिन शिखा ने नित्या से पूछ लिया.

‘‘ठीक जैसा कुछ भी नहीं है,’’ उस ने उदासीनता से कहा. फिर पूछा, ‘‘एक बात बताओ शिखा, प्यार के मामले में क्या युवक अपने बारे में सबकुछ सहीसही नहीं बताते?’’

शिखा ने कुछ सोचने के बाद जवाब दिया, ‘‘हां, मुझे भी ऐसा लगता है. ज्यादातर मामलों में हम इन के नाम के सिवा और कुछ नहीं जानते. युवतियों को इंप्रैस करने के लिए ये बड़ीबड़ी बातें करते हैं. अपने घरपरिवार और बाप की आमदनी के बारे में बहुत ऊंचीऊंची हांकते हैं. अपनी हैसियत से बढ़ कर खर्च करते हैं, पर जब युवती चंगुल में फंस जाती है, तो धीरेधीरे इन की पोलपट्टी खुलने लगती है. ऐसे संबंधों में बहुत जल्दी खटास घुल जाती है, लेकिन तुम ये यह क्यों पूछ रही हो. क्या राहुल से कोईर् अनबन हुई है? ’’

‘‘नहीं, अनबन तो नहीं हुई है, परंतु मैं ने जब उस के व्यक्तिगत जीवन और परिवार के बारे में पूछा तो वह टाल गया.’’

‘‘तुम मूर्ख हो, इस उम्र के प्यार में कोई गंभीरता नहीं होती. युवक अच्छी तरह जानते हैं कि ऐसा प्यारक्षणिक मौजमस्ती के अलावा और कुछ नहीं होता. बाद में उन्हें अपने कैरियर पर ध्यान देना होता है और मांबाप की पसंद से शादी करनी पड़ती है. इसलिए कालेज में पढ़ाई के दौरान कोई भी युवक प्यार के प्रति गंभीर नहीं होता. 1-2 फीसदी को छोड़ दें, तो शेष युवक उसे शादी के अंजाम तक नहीं ले जाना चाहते. ये तो केवल युवतियां हैं, जो इस प्यार को बहुत गंभीरता से लेती हैं. तभी तो उन का संबंध थाना,कचहरी में जा कर समाप्त होता है.’’

‘‘क्या तुम भी अपने बौयफ्रैंड के बारे में कुछ नहीं जानती?’’ उस ने पूछा.

‘‘क्या जरूरत है डार्लिंग, उस की मरजी है, बताए चाहे न बताए. हम क्यों इन बेकार की बातों में अपना समय बरबाद करें. कुछ दिनों तक का साथ हैं, फिर वह अपने रास्ते, मैं अपने घर. मैं कौन सा उस के साथ शादी करने वाली हूं. कालेज के बाद कौन कहां जाता है, किस को पता? मैं तो इस बात की पक्षधर हूं, जवानी में प्यार चाहे किसी से कर लो, लेकिन शादी मांबाप की पसंद से करो, तभी सुखचैन मिलता है.’’

‘‘तो तुम प्यार में सीरियस नहीं हो?’’

‘‘प्यार में सीरियस हूं, पर शादी के लिए नहीं. हम दोनों ही यह बात अच्छी तरह जानते हैं. एक बात तुम भी जान लो नित्या कोई भी युवक लंबे समय तक किसी लड़की को प्यार के बंधन में बांध कर नहीं रख सकता. कुछ समय बाद दोनों एकदूसरे से ऊबने लगते हैं, फिर उन के बीच मनमुटाव और लड़ाईझगड़ा आरंभ होता है. ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं कि उन का प्रेमसंबंध लंबे समय तक चल नहीं पाता.

‘‘विवाह ही एक ऐसा सामाजिक बंधन है, जो जीवनभर 2 व्यक्तियों को आपस में बांध कर रखता है. शादी के बाद बच्चे पतिपत्नी को जोड़ कर रखने में अहम भूमिका निभाते हैं. इसीलिए शादी हर पुरुष और महिला के सुखमय जीवन के लिए बहुत आवश्यक है.’’

नित्या सोच में पड़ गई. भावुकता में आ कर उस ने दूसरी बार प्यार कर लिया था. पहले प्यार के दुष्परिणाम से उस ने कोई सबक नहीं सीखा. अब राहुल से प्यार कर के वह क्या प्राप्त करना चाहती थी. क्या यह प्रेम भी शारीरिक मिलन तक ही सीमित रहेगा? नहीं, इस प्यार को वह खिलवाड़ नहीं बनने देगी. इसे शादी के अंजाम तक ले कर जाएगी.

उस ने शिखा से कहा, ‘‘यार, मैं अपने प्यार को शादी के अंजाम तक पहुंचाना चाहती हूं, लेकिन मुझे नहीं लगता, राहुल इस बारे में सीरियस है. बताओ, मैं क्या करूं?’’

‘‘तब तो तुम उस से दूरी बना कर रखो. अभी तक जो किया उसे भूल जाओ. अब जब भी उस से मिलो, उसे केवल बातों में उलझा कर रखो. वह संबंध बनाने की बात करे तो साफ मना कर दो कि अब यह सब शादी के बाद ही होगा. तुम अपने मन को दृढ़ बना कर रखोगी, तो वह तुम से जबरदस्ती नहीं कर सकेगा. देखना, कुछ दिनों में ही उस के मन की बात सामने आ जाएगी. अगर वह तुम से वास्तव में प्यार करता होगा और घर बसाने के लिए जरा भी गंभीर होगा, तो तुम से संबंध बना कर रखेगा वरना खुद ही दूरी बना कर रास्ते से हट जाएगा.’’

अगली बार जब राहुल ने उस के साथ संबंध बनाने का प्रयास किया, तो उस ने कड़े शब्दों में मना कर दिया, ‘‘नहीं राहुल, रोजरोज यह ठीक नहीं है.’’

‘‘क्यों, पहले तो हम रोज यह करते थे?’’ राहुल ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘पहले नादानी थी, भावुकता थी और प्यार भी नयानया था, लेकिन अब हमें भविष्य के बारे में भी सोचना है. हम एकदूसरे को अगर वास्तव में प्यार करते हैं, तो शारीरिक मिलन कोई आवश्यक नहीं है. हम शादी होने तक इसे स्थगित रख सकते हैं.’’

‘‘शादी, यह विचार तुम्हारे मन में कहां से आ गया?’’ राहुल तिलमिला उठा.

‘‘क्यों, प्यार की परिणति क्या शादी नहीं होती. प्यार क्या केवल वासना का खेलभर है?’’

‘‘नहीं, मेरा मतलब, तुम अभी पढ़ रही हो. मेरा कैरियर अभी शुरू हुआ है.’’

‘‘इस से क्या… मैं पढ़ते हुए प्यार के खेल में शारीरिक संबंध बना सकती हूं, तुम कैरियर की शुरूआत में मुझे पत्नी की तरह भोग सकते हो, तो हम शादी क्यों नहीं कर सकते.’’

‘‘मेरा मतलब है, तुम्हारा एमबीए का यह पहला साल है. मुझे आर्थिक रूप से जमने में 2-4 साल लग ही जाएंगे. इस के बाद ही हम शादी के बारे में सोच सकते हैं. तब तक हम अपनी भावनाओं और शारीरिक आवश्यकताओं को दबा कर कैसे रह सकते हैं?’’

‘‘जिस तरह अविवाहित युवकयुवतियां संयमित हो कर रहते हैं. क्या हम में इतना संयम नहीं है,’’ नित्या ने कहा तो राहुल तिलमिला कर रह गया.

इस के बाद लगभग रोज ही संबंध बनाने के लिए उन के बीच तकरार होती. मुसीबत यह थी कि दोनों एक ही बिल्डिंग में रहते थे. राहुल का जब मन करता, उसे अपने कमरे में बुला लेता.

नित्या के मना करने से राहुल आक्रामक होने लगा. कई बार तो वह जबरदस्ती नित्या को नोचनेखसोटने लगता. एकदो बार तो उस ने उस के कपड़े तक फाड़ दिए. नित्या किसी तरह अपने शरीर में खरोंचो के निशान ले कर बचतीबचाती बाहर निकलती. फिर कई दिनों तक उन के बीच बातचीत नहीं होती. राहुल की तरफ से मोबाइल पर धमकीभरे मैसेज आते कि वह नित्या के अश्लील वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड कर देगा.

यह धमकी मिलने के बाद नित्या चिंता में पड़ गई. उस ने शिखा से सलाह ली. शिखा ने पूछा, ‘‘क्या उस ने तुम्हारा कोई अश्लील वीडियो बनाया है?’’

‘‘कह नहीं सकती. मेरी जानकारी में तो नहीं, परंतु आजकल मोबाइल फोन का जमाना है. कहीं भी छिपा कर वीडियो बनाए जा सकते हैं.’’

‘‘मेरा सोचना सही था, राहुल बदमाश किस्म का युवक है. उस की मनशा पूरी नहीं हो रही है, तो वह तुम्हें बदनाम करने की धमकी दे रहा है. वह कोईर् ऐसा प्रयास करे, उस के पहले ही हमें उस के पंख कुतर कर फेंकने होंगे.’’

‘‘वह कैसे?’’

‘‘वैसे तो अगर उस ने तुम्हारा कोई गलत वीडियो इंटरनैट पर अपलोड किया तो हम कानून का सहारा ले सकते हैं, पर यह एक लंबी प्रक्रिया है और इस में बदनामी भी हो सकती है. लेकिन तुम चिंता मत करो, मैं कुछ करती हूं,’’ उस ने नित्या को आश्वासन दिया. शिखा उस समय उस को बड़ी बहन जैसी लगी.

शिखा ने अपने बौयफ्रैंड को नित्या की समस्या के बारे में बताया, तो उस ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिल कर शर्लाक होम्स टाइप की जासूसी की और राहुल के बारे में जो सूत्र एकत्र किए, वह नित्या के होश उड़ाने के लिए काफी थे.

राहुल किसी आईटी कंपनी में काम नहीं करता था. वह एक कूरियर कंपनी में डिलीवरी बौय था और मात्र 10वीं पढ़ा था. वे देखने में ठीकठाक और बातें बनाने में माहिर था, इसलिए वह अपने बारे में ढेर सारी अच्छी बातें बता कर युवतियों को इंप्रैस करता था. उस की आमदनी बहुत कम थी, जो एक व्यक्ति के गुजारे के लिए भी पूरी न पड़े.

नित्या को अब समझ में आ गया था कि राहुल क्यों एक छोटे से कमरे में रहता था. आईटी कंपनी में काम करता होता, तो किसी बड़े फ्लैट में रहता. पता नहीं  युवतियों को ये बातें प्यार करते समय क्यों ध्यान में नहीं आतीं.

अब क्या? नित्या के समक्ष एक बहुत बड़ा प्रश्न आ खड़ा हो गया था. उस ने शिखा और उस के मित्रों के साथ बैठ कर इस पर चर्चा की. नित्या का दिल ही नहीं टूटा था, उस का आत्मसम्मान भी बिखर गया था. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करे? राहुल के प्रति उस के मन में घृणा का लावा उबल रहा था. वह उस का मुंह भी नहीं देखना चाहती थी.

शिखा ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘‘नित्या, तुम चिंता न करो. हम सब तुम्हारे साथ हैं.’’

‘‘शिखा, मुझे डर लग रहा है. उस ने अगर मेरा कोई अश्लील फोटो सोशल मीडिया पर डाल दिया तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी. मांबाप को कैसे मुंह दिखाऊंगी. बात अगर थानापुलिस तक पहुंच गई, तब तो और भी मुश्किल में पड़ जाऊंगी. सिवा मरने के मेरे पास और कोई चारा नहीं रहेगा.’’

‘‘इतना हताश होने की जरूरत नहीं है,’’ शिखा के दोस्त अभिनव ने कहा. उसी ने राहुल के बारे में व्यक्तिगत जानकारी जुटाई थी, ‘‘वह कुछ करे, उस से पहले ही हम लोग कुछ करते हैं.’’

‘‘क्या पुलिस में रिपोर्ट लिखाओगे?’’ नित्या ने सहमते हुए पूछा.

‘‘नहीं, हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे.’’

इस के बावजूद नित्या का मन अशांत था. शिखा के समझाने के बावजूद वह अपने मन को स्थिर नहीं रख पा रही थी. सोचसोच कर वह पागल हो गई थी. राहुल का उसे उतना डर नहीं था, जितना बदनामी का. यह स्थिति बहुत दुखद होती है. मनुष्य गलत काम करते समय नहीं डरता, परंतु बदनामी से बहुत डरता है.

इस हताशा भरी स्थिति में भी वह राहुल से हंसहंस कर मिलती थी, ताकि वह उस को बदनाम करने के लिए कोई गलत कदम न उठा ले, लेकिन उस के साथ बाहर नहीं जाती थी. राहुल बहुत जिद करता था, वह पढ़ाई का बहाना बना कर टाल जाती थी. केवल उस के कमरे में जाती और दोचार बातें कर के तुरंत लौट आती. राहुल को वह कोई मौका नहीं देना चाहती थी कि उस के साथ जोरजबरदस्ती करे. जितना हो चुका था, उतना ही उस की आंखें खोलने के लिए काफी था. अब वह और दलदल में नहीं धंसना चाहती थी.

एक दिन राहुल ने उसे पकड़ कर कहा, ‘‘आखिर, तुम्हारे साथ दिक्कत क्या है? बहाने बनाबना कर मुझ से दूर क्यों चली जाती हो? एक दिन था, जब मेरी बांहों से निकलने का तुम्हारा मन नहीं करता था और अब छूते ही जैसे तुम्हें करंट लग जाता है.’’

राहुल ऐसे कह रहा था, जैसे वह उस की बीवी हो. नित्या को भी गुस्सा आ गया. उस ने तीक्ष्ण दृष्टि से राहुल की आंखों में देखा और तड़पती आवाज में कहा, ‘‘यह तुम अपने दिल से पूछो. मैं क्यों तुम से दूर जाने का प्रयास कर रही हूं. तुम वह नहीं हो, जो तुम ने मुझे बताया है. क्या मैं तुम्हारा कच्चाचिट्ठा खोलूं. झूठे कहीं के… मक्कार… अपनी झूठी बातों से मुझे बहला कर लूट लिया, अब और मुझे कितना बहकाओगे,’’ यह बात उस ने ऊंची आवाज में कही थी.

अचानक राहुल के कमरे का दरवाजा भड़ाक से खुला और शिखा के साथ उस के 3 दोस्त एकसाथ कमरे में घुस आए. राहुल अब भी नित्या को बांहों से पकड़ कर अपनी तरफ खींच रहा था और नित्या खुद को उस से छुड़ाने का प्रयास कर रही थी. शिखा के दोस्तों ने इसी अवस्था में उस के कई फोटोग्राफ खींच लिए. एक दोस्त ने वीडियो बना लिया. राहुल ने हकबका कर नित्या को छोड़ दिया.

‘‘तो जनाब अकेली लड़की के साथ बलात्कार करने की कोशिश कर रहे थे,’’ शिखा ने आगे बढ़ कर राहुल के गाल पर तमाचा जड़ दिया. वह विवेकशून्य हो कर रह गया. इस स्थिति की उस ने कल्पना ही नहीं की थी. शिखा के दोस्त उस की तरफ धमकाने वाले अंदाज में देख रहे थे.

अभिनव ने उस का कौलर पकड़ते हुए कहा, ‘‘लड़कियों का बहुत शौक है न तुम्हें. तो जरा प्यार से उन्हें पटाओ. यह क्या? जोर जबरदस्ती करने लगे. यह तो बलात्कार की श्रेणी में आता है. अब तो बच्चू, तुम 10 वर्षों तक जेल में रहोगे.’’

‘‘मैं ने कुछ नहीं किया, कुछ नहीं, वो तो बस…’’ राहुल घबरा कर बोला. उस की आंखों में बेचारगी और भय के मिलेजुले भाव साफ दिखाई दे रहे थे. उस की आवाज गले में खरखराने लगी थी.

‘‘यह तो तुम थाने में जा कर सफाई देना. तुम्हारी करतूत हमारे मोबाइल में कैद हो चुकी है. तुम्हें मालूम ही होगा, दिल्ली के निर्भयाकांड के बाद बालात्कार का कानून कितना सख्त हो गया है. आसाराम जैसा तथाकथित भगवान भी अपने बेटे के साथ जेल में बंद है. तुम तो भूल ही जाओ कि मरते दम तक तुम्हारी जमानत होगी. हम सब तुम्हारे खिलाफ गवाही देंगे.’’

राहुल की घिग्घी बंध गई. वह कांपने लगा था. उस के मुंह से आवाज भी नहीं निकल रही थी. आंखों में आश्चर्य, अनिश्चय और भय की रेखाएं एकसाथ तैर रही थीं.

‘‘पुलिस बुलाने से पहले चलो बैठ कर कुछ बात कर लेते हैं,’’ वे सब इधरउधर बैठ गए, लेकिन राहुल और नित्या खड़े ही रहे.

‘‘तो तुम ने नित्या के कितने वीडियो बनाए हैं,’’ अभिनव ने पूछा.

‘‘वीडियो, नहीं तो… मैं ने इस का कोईर् वीडियो नहीं बनाया. बस, फोटो खींचे हैं, जो मेरे मोबाइल में हैं.’’

‘‘मोबाइल दिखा.’’

मोबाइल में सचमुच नित्या का कोई अश्लील वीडियो नहीं था. कुछ फोटो थे, जिन्हें अभिनव ने तुंरत डिलीट कर दिए. फिर उस के दोस्त ने पूरे कमरे की तलाशी ली. कोई दूसरा मोबाइल, मैमोरी कार्ड या कंप्यूटर भी नहीं मिला.

‘‘अब बताओ, तुम नित्या के साथ जबदस्ती क्यों कर रहे थे?’’

‘‘सर, मैं जबरदस्ती नहीं कर रहा था. मैं तो उसे प्यार करता हूं और वह भी …’’

‘‘कमीने, तूने अपनी औकात देखी है. तू एक कूरियर बौय है और वह एक सम्मानित घराने की युवती, जो एमबीए कर रही है. तू उस की हैसियत तक कैसे पहुंचेगा? अब बता तेरे साथ क्या सुलूक किया जाए?’’

‘‘सर, मैं मानता हूं, मुझसे गलती हुई. मैं ने उस से झूठ बोला था कि मैं आईटी कंपनी में इंजीनियर हूं, परंतु मुझे पुलिस में मत दीजिए, मैं बरबाद हो जाऊंगा. मैं बहुत गरीब हूं.’’

‘‘ये बातें तू ने पहले क्यों नहीं सोची थीं. अब जब फंस गए, तो तुम्हें अपनी गरीबी याद आ रही है. लेकिन आदमी जब गलत काम करता है तो उस को कष्ट, दुख और परेशानी उठानी ही पड़ती है. तुम्हें भी अपने दुष्कर्म का परिणाम भुगतना पड़ेगा,’’ अभिनव ने नाटकीय अंदाज में कहा.

‘‘सर, आप मुझे छोड़ दीजिए. आप जो कहेंगे, मैं करने के लिए तैयार हूं,’’ उस ने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए कहा.

‘‘जेल जाने से डर लगता है, नित्या को धमकाते हुए डर नहीं लगा, उस के साथ जोरजबरदस्ती करते हुए डर नहीं लगा. खुद की बारी आई तो जेल जाने से डर लगने लगा, वाह रे सूरमा चलो, कागजकलम निकालो और अपना बयान लिखो.’’

नित्या की समझ में नहीं आ रहा था कि शिखा और उस के दोस्त क्या करने वाले थे. उन्होंने अपनी योजना के बारे में उसे कुछ नहीं बताया था.

राहुल ने लिख कर दिया, ‘‘मैं शपथपूर्वक यह बयान करता हूं कि मैं नित्या को कभी, किसी प्रकार तंग नहीं करूंगा. मैं ने उस के साथ जो किया, उस के लिए माफी मांगता हूं. अगर उस के साथ किसी प्रकार की ज्यादती हुई, तो उस के लिए मैं जिम्मेदार होऊंगा.’’

यह परवाना लिखवाने के बाद अभिनव ने कहा, ‘‘अब आज ही यहां से कमरा खाली कर दफा हो जाओ. दोबारा इधर मुड़ कर देखने की कोशिश की तो तुम्हारे फोटोग्राफ्स और यह बयान पुलिस के हवाले कर दूंगा. इस के बाद तुम अपना परिणाम देखना. यह मत सोचना कि तुम्हारा पता नहीं चलेगा. तुम्हारी कंपनी से तुम्हारा व्यक्तिगत चिट्ठा हम ने निकलवा कर अपने पास रख लिया है.’’

राहुल को डराधमका कर जब सब नित्या के कमरे में आए, तब भी वह गौरैया की तरह डरी हुई थी.

‘‘अगर उस ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर कोई बदमाशी की तो… ’’ नित्या ने कांपते हुए कहा.

‘‘समझदार होगा तो नहीं करेगा वरना मूर्ख और अपराधी प्रवृत्ति के लोगों की कमी इस दुनिया में नहीं है. वैसे, तुम्हें चिंता करने की आवश्यकता नहीं है. हम ने कालेज प्रबंधन से बात कर के तुम्हारे लिए कालेज होस्टल में एक कमरा अलौट करवा दिया है. कल से तुम वहीं रहोगी.’’

‘‘मेरे प्यारे दोस्तो, मैं आप लोगों का किस प्रकार शुक्रिया अदा करूं?’’

‘‘शुक्रिया तुम शिखा का अदा करो. यदि वह न होती तो पता नहीं तुम किस मुसीबत में फंस जातीं. वह बहुत स्ट्रौंग युवती है. अब तुम अपनी पढ़ाई की तरफ ध्यान दो. इस उम्र में प्यार होना स्वाभाविक है, लेकिन यदि सोचसमझ कर प्यार किया जाए तो अच्छा होता है. कई बार हम गलत व्यक्ति से प्यार कर बैठते हैं. अब एक बार तुम ठोकर खा चुकी हो, अगली बार ध्यान रखना.’’

‘एक बार कहां, वह तो 2-2 बार ठोकर खा चुकी है,’ नित्या ने सोचा, ‘काश प्यार सोचसमझ कर किया जा सकता. मुश्किल तो यही है कि यह अचानक हो जाता है और प्यार करने वाले को पता ही नहीं चलता कि उस का प्यार कब उसे मुसीबत और परेशानी की दलदल में धकेल देता है.’

डेंगू से मौत हुई तो अदालत ने दिलाया 25 लाख रुपए

साल 2016 में डेंगू से हुई एक व्यक्ति की मौत पर कोर्ट ने एतिहासिक फैसला सुनाया है.

यह मामला साल 2016 की है जब एडवोकेट बीपी मिश्रा के बेटे को अस्पताल में भरती कराया गया पर उसे डेंगू है, यह डाक्टरों की टीम नहीं जान सकी. लापरवाही का घोर आलम तो यह रहा कि जिस व्यक्ति को डेंगू था उसे इस से संबंधित दवा न दे कर ऐसी दवाएं दी गईं जो इस बीमारी के लिए घातक होती हैं.

गलत इलाज से पीड़ित की मौत हुई तो पिता बीपी मिश्रा ने कोर्ट में न्याय की गुहार लगाई और जनहित याचिका दायर कर दी.

कोर्ट का फैसला

मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में चला और कोर्ट ने मृत व्यक्ति के पक्ष में फैसला सुनाया और उस के परिवार वालों को 25 लाख रूपए देने का आदेश दिया.

इतना ही नहीं कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को डेंगू की रोकथाम और जरूरी उपाय करने के भी आदेश दिए ताकि किसी की मौत डेंगू से न हो.

मालूम हो कि एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका समेत दुनिया की तकरीबन आधी आबादी हर साल डेंगू की चपेट में है और लाखों लोग इस रोग की चपेट में आ जाते हैं. इन में सैकड़ों लोग अपनी जिंदगी भी गंवा बैठते हैं.

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कई शहर हैं चपेट में

इस रोग की चपेट में वही इलाके आते हैं जहां पानी निकासी की समस्या हो, बेतरतीब शहरीकरण और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से भी डेंगू तेजी से पैर पसारता है.

साल 1970 से इस रोग का तेजी से फैलना शुरू हुआ और अब कई शहर इस की चपेट में हैं.

ताकी किसी की मौत न हो

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पूरे प्रदेश में इस रोग से बचाव के लिए स्पैशल हास्पीटल व ब्लड सैपरेशन को दुरूस्त रखा जाए ताकि लापरवाही में किसी की मौत न हो.

ठंढ के मौसम में डेंगू हालांकि ऐक्टिव मोड में नहीं होता पर इस बीमारी के होने का खतरा तकरीबन साल भर  रहता है. अभी तक इस रोग के लिए कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है, इसलिए मच्छरों को न काटने देना ही इस बीमारी से रोकथाम का एकमात्र उपाय है.

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शरद पवार बाजीगर भी सौदागर भी

आदमी ठीक से देख पाता नहीं और पर्दे पे मंजर बदल जाता है …

उपरोक्त पंक्तियां फिल्म आप की कसम नाम की फिल्म के एक गाने की हैं. आनंद बख्शी द्वारा लिखे इस गाने को अभिनेता राजेश खन्ना पर फिल्माया गया था. इस गाने का मुखड़ा था-

जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम वो फिर नहीं आते ….

महाराष्ट्र में राजनीति के लिहाज से नया कुछ नहीं हुआ है, हां आज सुबह जब वहां के लोग उठे तो सरकार वजूद में आ चुकी थी लेकिन वो शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस की नहीं थी बल्कि भाजपा और आधी एनसीपी की थी. मुंबई में इडली सांभर और बड़ा पाव का नाश्ता करते लोगों ने हैरानी से वही बात कही जो एक दिग्गज कांग्रेसी ने टोस्ट खाने और काफी पीने के बाद ट्वीट की थी कि पवार साहब तुस्सी ग्रेट हो……

शरद पवार अब भले ही पूरी मासूमियत से यह कहते रहें कि इस प्रात कालीन चौंका देने वाले ड्रामे से उनका कोई लेना देना नहीं बल्कि यह उनके प्रिय भतीजे अजित पवार की करतूत है तो महाराष्ट्र की चिड़िया भी उन पर भरोसा करने वाली नहीं. महानता दिखाना कभी कभी मजबूरी हो जाती है इस मजबूरी को तकनीक भरी चालाकी से कैसे दिखाया जा सकता है, यह जरूर शरद पवार से सीखा जा सकता है. जो कल शाम तक कह रहे थे सब कुछ ठीकठाक है और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे सीएम होंगे.

इधर बेचारे उद्धव ठाकरे का दर्द कोई नहीं समझ सकता जो बीती रात सरकार के सपने बुनते सोए थे लेकिन सुबह उठे तो हाट लुट चुकी थी. देवेंद्र फड़वनीस चमचमाते कपड़े पहने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके थे. दरअसल में डील तो तभी हो चुकी थी जब मोदी-पवार किसानों की परेशानियों की ओट लेकर मिले थे और पूरी स्क्रिप्ट लिखकर तय किया था कि कैसे उद्धव को राजनीति सिखाना है. उम्मीद है उद्धव को दिनांक 23 नवंबर के सूर्योदय के साथ वह बुद्धत्व मिल गया होगा जिसके लिए बुद्ध सालों साल भूखे प्यासे यहां से वहां भटकते रहे थे.

मोदी पवार की डील क्या थी इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है कि वह पवार के सहकारिता घोटाले से जुड़ी हुई थी जिसके तहत प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने विधानसभा चुनाव के पहले अड़ी डाल कर जता दिया था कि भविष्य में क्या क्या हो सकता है. बुजुर्गावस्था और सेहत को किनारे करते वे दिल्ली और मुंबई के बीच हवाई अप डाउन करते रहे.

लोग शक न करें इसलिए उन्होंने मुकम्मल दिखावा किया, नखरे भी किए लेकिन सरकार बनाने की ठान बैठे उद्धव हर शर्त मानते गए तो तय है शरद पवार को उन पर थोड़ी बहुत तो दया भी आई होगी लेकिन यह उतनी ही थी जितनी अभिमन्यु को चक्रव्यूह में फंसे देख कौरवों को आई थी कि बख्शना नहीं है वक्त और हालात रहम खाने के नहीं हैं.

फिर अजित पवार को उन्होंने भगवा खेमे के सुपुर्द कर दिया और घोषित तौर पर प्रलाप भी कर डाला कि नालायक और द्रोही भतीजा धोखा दे गया अब मैं क्या करूं ?

अब करने कुछ है भी नहीं शरद पवार ने सब की भूमिकाएं खत्म कर दी हैं सोनिया गांधी भी अपना सर धुन रहीं होंगी कि कैसे वे पवार के जाल में फसी थीं यह वही वीर मराठा होनहार नेता है जिसने उन पर विदेशी होने का इल्जाम लगाते कांग्रेस छोड़ी थी और अपनी नई सल्तनत गढ़ डाली थी. राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता यह पाठ सोनिया और उद्धव दोनों भूल गए थे कि यह लोकतान्त्रिक महाभारत है जिसमें छल कपट उतने ही आम हैं जितने कुरुक्षेत्र में थे. अश्वशथामा को मारने झूठ भी इसमें बोला जाता है और सारथी गुस्से में आकर नियम धरम तोड़ने कीचड़ में धंसा रथ का पहिया भी निकाल सकता है.

इस युद्ध में भी सब जायज था उद्धव धोखा खा गए तो यह उनकी गलती थी. पर्दे पे मंजर बदला है तो उन्हें ठीक से देखना आना चाहिए था. इसमें कोई शक नहीं कि अब वे हिन्दी फिल्मों के नायक की तरह वापसी करेंगे लेकिन तब तक गोदावरी का काफी पानी बह चुका होगा. हालफिलहाल तो इस घायल शेर के सामने चिंता अपने विधायकों को संभाल कर रखने की है जो अब नई चुनौती उनके सामने है.

मोदी शाह की जोड़ी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वे वाकई सरकार बनाने के हकीम हैं. लोकतन्त्र  नीति, शुचिता, ईमान उसूल बगैरह निरे खोखले लफ्ज भर हैं, इनकी उन्हें कोई परवाह नहीं. दोस्त हो या दुश्मन उसे गले लगाकर ये ऐसा छुरा भोंकते हैं कि मरने वाले को एहसास ही नहीं हो पाता महबूबा मुफ्ती इसकी एक बेहतर मिसाल हैं .

लेकिन उद्धव ठाकरे घायल भर हुए हैं, जिनके पास महाराष्ट्र में हर स्तर की ताकत है. इसी के चलते अमित शाह शिवसेना के विधायकों की खरीद फरोख्त नहीं कर पाये थे, इसलिए शरद पवार के जरिये उनके भतीजे अजित पवार को फोड़ा और बिना बहुमत साबित किए या फ्लोर टेस्ट के रातों रात देवेंद्र फड़वनीस को सीएम बनवा डाला. रही बात शरद पवार की तो वे लाख पतिव्रता होने का दावा करें उनकी आबरू तो ये इन्द्र लूट ही गए हैं.

वो लौट कर आएगा : भाग 4

वक्त बीतता रहा, प्यार गहराता रहा. इन डेढ़-दो सालों में नीलू शरद के बहुत करीब आ चुकी थी. दोनों कभी रेस्टोरेंट में, कभी किसी बाग के एकान्त कोने में या फिर रातों को छुप-छुप कर छत पर मिलने लगे. किसी ने सच ही कहा है कि इश्क और मुश्क छुपाये नहीं छुपते. उड़ते-उड़ते बात नीलमणि के पिता विजय सिंह के कानों तक भी पहुंच गयी कि उनकी बेटी शरद के साथ बाहर घूमती फिरती है. विजय सिंह के दिल को बड़ी ठेस पहुंची. बात बाहर वालों के मुंह से उनके कान तक पहुंची थी, इसलिए तकलीफ ज्यादा हुई. मगर बात का बतंगड़ न बने और घर की इज़्ज़त बची रहे इसलिए गुस्से से काम न लेकर उन्होंने दोनों को सामने बिठा कर सच्चाई जाननी चाही. दोनों शर्मिन्दा थे. नीलू ने पिता के सामने सिर झुकाकर सच्चाई कबूल की और यह भी कि वह और शरद एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं और उनकी इजाज़त से शादी करना चाहते हैं. शरद ने भी विजय सिंह के पैर पकड़ कर उनसे नीलू का हाथ मांगा. कहा कि वह नीलू को बहुत खुश रखेगा. किसी बात की कमी नहीं होने देगा. वह उससे बहुत प्यार करता है.

स्थिति की गम्भीरता को भांपते हुए विजय सिंह ने दोनों की शादी के लिए हामी भर दी. शरद तो उन्हें पहले ही बहुत पसन्द था, मगर दामाद के रूप में उन्होंने अभी तक कोई कल्पना नहीं की थी. अब जब उसका चेहरा देखा तो लगा कि नीलू के लिए वह बहुत अच्छा पति साबित होगा. खास बात यह थी कि उनकी लाडली उससे प्यार करती थी. उनकी लाडली ने उसे चुना था. अब डॉक्टर-इंजीनियर न हुआ तो क्या हुआ… कमा तो अच्छा ही रहा है और फिर उसके आगे-पीछे भी कोई नहीं है… सास-ननद का कोई झंझट नीलू को नहीं झेलना पड़ेगा… सबसे बड़ी बात तो यह थी कि शादी के बाद उनकी लाडली बेटी उनके पास ही रहेगी और उन दोनों को बुढ़ापा अकेले नहीं काटना पड़ेगा. शरद ने खुशी-खुशी घर जमाई बनना स्वीकार कर लिया था. ऐसे में विजय सिंह और उनकी पत्नी को दामाद के रूप में एक बेटा भी मिल रहा था. दोनों की शादी के लिए ‘न’ की तो कहीं कोई गुंजाइश ही नहीं थी.

एमए की परीक्षा के बाद दोनों की शादी होना निश्चित हो गयी. मां-बाप की रज़ामंदी मिलने के बाद नीलू के तो पांव ही जमीन पर नहीं टिकते थे. दिन भर उड़ी-उड़ी फिरती थी. सहेलियां शरद का नाम ले-लेकर छेड़ती थीं. वह शरमा-शरमा कर लाल हुई जाती थी, मगर शरद से जुड़ी हर बात उसे रोमांचित करती थी. समय पंख लगा कर उड़ रहा था. परीक्षा भी नजदीक आ गयी थी. पढ़ाई के साथ-साथ शादी की तैयारियां जोरों पर थीं. उसकी मां ने शादी की खरीदारी शुरू कर दी थी. जरी-गोटा और मोती पिरो-पिरो कर न जाने कितने दुपट्टे और शलवार सूट उन्होंने अपने हाथों से नीलू के लिए तैयार किये थे. विभिन्न रंगों की कांच की चूड़ियां, सोने के गहने, श्रृंगार का सामान, बर्तन, बेडकवर, परदे खरीद-खरीद कर उन्होंने संदूक भर दिये थे. नीलू अपनी मां के इस उत्साह और खरीदारी पर हैरानी भी जताती. कहती, ‘अरे मां, तुम तो ये सब चीजें ऐसे खरीद रही हो जैसे मुझे यह सारा दहेज में लेकर जाना है… अरे, मुझे तो यहीं रहना है… तो जब जिस चीज की जरूरत होगी तब खरीद लेंगे…. अभी से इतने संदूक क्यों भर रही हो….?’ मगर नीलू की मां का दिल नहीं मानता था. आखिर नीलू उनकी इकलौती बेटी थी. उनके घर में तो यह पहली और आखिरी शादी थी. तो क्यों न मन के सारे अरमान पूरे करें. फिर लोग ये न कहें कि बेटी के लिए घर जमाई मिला तो विजय सिंह ने सारा पैसा बचा लिया. इसलिए वह जितनी बार बाजार जातीं, थैले भर-भर कर खरीदारी करती थीं. शरद के कपड़ों की खरीदारी और सिलाई की जिम्मेदारी भी उन्होंने अपने कंधों पर उठा ली थी.

नीलू और शरद बहुत खुश थे. वे अक्सर शाम को हाथों में हाथ डाले बाजार की ओर निकल जाते थे. कभी नीलू उसके लिए कोई शर्ट-पैंट पसन्द कर लेती तो कभी शरद नीलू के लिए कोई नई डिजाइन का सूट. एक दिन शरद ने नीलू को ज्वेलरी शॉप ले जाकर शादी के दिन पहनने के लिए बहुत मंहगा सेट दिलवाया. नीलू की तो नजरें ही नहीं हट रही थीं उन आभूषणों पर से. कितना सुन्दर डिजाइन था… बिल्कुल नया… और कितना हैवी सेट था…. नीलू ने एतराज भी जताया था कि इतना हैवी सेट क्यों लेते हो… मगर शरद न माना. अपनी चांद सी दुल्हन के लिए वह कोई हल्की चीज कैसे ले ले….

जीवन की सारी खुशियां जैसे नीलू के आंचल में इकट्ठे आ गिरी थीं. उसकी खुशी देखकर उसकी सहेलियों को भी ईर्ष्या होने लगी थी. शादी का वक्त धीरे-धीरे नजदीक आता जा रहा था. वातावरण प्रफुल्लित था. कार्ड बांटे जा चुके थे. शादी के बस पन्द्रह दिन ही शेष थे. विजय सिंह के गांव से तमाम रिश्तेदार आने शुरू हो गये थे. घर में तिल धरने की जगह नहीं बची थी. इसीलिए पास की एक धर्मशाला भी विजय सिंह ने किराये पर ले ली थी ताकि अतिथियों को ठहरने में कोई दिक्कत न हो. शादी से हफ्ते भर पहले सगाई की रस्म पूरी हुई. सगाई के बाद नीलू का घर से निकलना प्रतिबंधित हो गया. गांव की रस्मों के मुताबिक ही शादी का कार्यक्रम होना तय हुआ. गांव-देहातों में तरह-तरह की रस्में होती हैं. वह सब नीलू पहली बार देख रही थी. शहरों में तो इतना कुछ होता ही नहीं है. यहां तो बस पंडित बुलाओ, फेरे लो और लो हो गयी शादी. मगर यहां तो बहन-भौजाइयां मिल कर रस्मों के साथ-साथ कई खेल भी खेलती हैं. कैसी-कैसी रस्में होती हैं. हल्दी की रस्म, मेंहदी की रस्म, पेड़ पूजने की रस्म, पांव पूजन की रस्म, नदी पूजने की रस्म और न जाने क्या क्या. नीलू सारा दिन रिश्ते की बहनों, भाभियों के साथ हंसी-मजाक के बीच इन रस्मों को पूरा करने में लगी थी. वहीं शरद सुबह ऑफिस चला जाता और शाम को लौटता था. अभी उसने ऑफिस से छुट्टी नहीं ली थी. सोचा था शादी से एक दिन पहले से लेकर एक हफ्ते की छुट्टी ले लेगा और शादी के बाद नीलू के साथ हफ्ते भर कहीं किसी हिल स्टेशन पर हनीमून मना आएगा. आखिर इतने पहले से छुट्टी लेकर वह घर में करेगा भी क्या? बेकार में उसकी सालियां-भौजाइयां उसे छेड़ती और तंग करती रहेंगी. वह उनसे बड़ा घबराया-घबराया सा नजर आता था. ऑफिस से लौट कर वह सीधे अपने कमरे में घुस जाता था. उसके सामने नीलू की कोई बहन या भाभी पड़ जाती फिर तो उसकी खैर नहीं. उनका हंसी-मजाक झेलना उसके लिए बड़ी आफत थी. रात को विजय सिंह उसको खाने के लिए नीचे बुलाते तभी उतरता था और खाना खाते ही ऊपर भाग जाता था. विजय सिंह उसकी हालत देख कर अपनी हंसी नहीं रोक पाते थे. उन्हें शरद पर बड़ा तरस आता था. बेचारा…. एक तो उसकी तरफ से शादी में शरीक होने वाला कोई नहीं था, ऊपर से ये लड़कियां उसके लिए आफत बनी हुई थीं. विजय सिंह अक्सर उसका पक्ष लेते हुए बहुओं-भतीजियों को डपट देते थे कि उसे इतना तंग मत करो.

शादी के तीन दिन बचे थे. दोपहर का वक्त था. सब खाना खाकर थोड़ी देर आराम करने के लिए इधर-उधर पसरे पड़े थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई. नीलू की मां ने दरवाजा खोला तो आगन्तुक ने शरद के बारे में पूछा. वह आगन्तुक कोई अधिकारी जैसा दिखता था. नाम तो वह किसी और ही व्यक्ति का ले रहा था, मगर जो हुलिया बता रहा था वह शरद से मिलता-जुलता था. नीलू की मां ने उससे साफ कह दिया कि इस नाम का यहां कोई नहीं है. वह चला गया. उस वक्त शरद भी घर पर नहीं था वरना वह आमना-सामना करा देतीं.

शाम को शरद घर लौटा तो नीलू की मां से यह सारी बातें सुनकर काफी परेशान हुआ. मगर उसने साफ कह दिया कि इस शहर में ऑफिस के लोगों के अलावा वह किसी को नहीं जानता और उसका कोई रिश्तेदार भी नहीं है. दूसरे दिन शरद सुबह का गया काफी रात गये लौटा. नीलू ने पूछा तो शरद ने बहाना बना दिया कि ऑफिस से आगे एक हफ्ते की छुट्टी मिली है तो कुछ पेंडिंग काम निपटाने के लिए रुक गया था. शादी को बस एक दिन ही बचा था. दूसरे दिन सुबह ही दोनों को आंगन में बिठा कर बहनों और भाभियों ने हल्दी और सरसों का तेल पोत-पोत कर पीला कर दिया. आज सुबह से ही घर में चारों ओर गहमा-गहमी मची हुई थी. ढोलक की थापों पर बन्ना-बन्नी के गीतों से पूरा मोहल्ला गूंज रहा था. आंगन में गांव की औरतों और अपनी सहेलियों के बीच घिरी नीलू भविष्य के सुन्दर सपनों में खोई हुई थी. एक-एक पल, एक-एक रस्म को आत्मा की गहराइयों से जी रही थी. विजय सिंह और उनकी पत्नी रिश्तेदारों के खाने-पीने के इंतजाम में व्यस्त थे. विजय सिंह सुबह घोड़ीवाले को समय बताकर आये थे, अभी उन्हें बैंड वाले को जाकर एडवांस पेमेंट भी करना था. तय हुआ था कि शरद दूल्हा बन कर धर्मशाला से घोड़ी चढ़ेगा और बारात गाजे-बाजे के साथ धर्मशाला से घर तक आएगी. घर के दरवाजे पर बड़ा भारी बंदनवार सजाया गया था, आंगन के बीचोंबीच मंडप बन रहा था. आंगन का एक कोना माली ने फूलों और केले-आम के पत्तों की टोकरियों से ही भर दिया था. बाहर वाले पार्क में पंडाल लग रहा था, जहां भोज देने की तैयारी थी. हलवाई अपनी जरूरत की चीजों की लिस्ट लिए विजय सिंह का सिर चाट रहा था. किसी को भी दम मारने की फुर्सत नहीं थी. बस आज का दिन और…. फिर कन्यादान करके विजय सिंह और उनकी पत्नी जिन्दगी की एक बड़ी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाएंगे. विजय सिंह के मन में हर्ष भी था और रह-रह कर उनकी आंखें भी भीग जाती थीं. आज उनकी बिटिया इतनी बड़ी हो गयी थी. अभी कल ही की बात लगती है… नीलू कैसे अपनी पसन्द की कोई चीज लेने के लिए मचलती हुई उनकी गोद में चढ़ बैठती थी और आज… आज उनकी लाडली शादी के मंडप में बैठने वाली है. उनकी जान से प्यारी बेटी… उसकी शादी में कहीं कोई कमी न रह जाए… इसी आशंका में ग्रस्त विजय सिंह सारा इन्तजाम खुद दौड़-दौड़ कर देख रहे थे.

शरद हल्दी की रस्म के बाद जबसे अपने कमरे में गया था, किसी ने उसे फिर नहीं देखा. वैसे भी सारे लोग अपने-अपने कामों में व्यस्त थे. किसी का ध्यान ही नहीं गया कि वह कमरे में है या बाहर. दोपहर बाद दो पुलिस अधिकारी आये और शरद के बारे में पूछताछ करने लगे. इत्तेफाक से विजय सिंह घर पर ही थे. अधिकारियों ने उनको एक तस्वीर दिखायी जो शरद की ही थी. विजय सिंह परेशान हुए कि वह उसके बारे में क्यों पूछ रहे हैं. वे लोग उसका नाम टाइगर बता रहे थे. विजय सिंह को भनक भी नहीं लगी कि उनके घर को चारों तरफ से पुलिस ने घेर रखा है. घर के दरवाजे पर दर्जन भर पुलिसकर्मी बंदूकें ताने खड़े थे. विजय सिंह उन दोनों अधिकारियों के साथ घर के आंगन में खड़े थे, जहां वे उनको धमकाते हुए शरद के बारे में जानकारी पाना चाह रहे थे. विजय सिंह ने ऊपर वाली मंजिल की ओर मुंह करके शरद को पुकारा. मगर वहां से कोई जवाब नहीं आया. शरद के कमरे का दरवाजा भिड़ा हुआ दिख रहा था. वह दोनों अधिकारियों को लेकर ऊपर गये तो कमरे के दरवाजे पर ताला पड़ा हुआ था. न जाने कब शरद चुपचाप बाहर चला गया. किसी को बिना कुछ बताये. विजय सिंह ने नीलू से पूछा तो उसको भी कोई जानकारी नहीं थी. वह तो सोच रही थी कि हल्दी की रस्म के बाद वह थोड़ा आराम करने के लिए ऊपर अपने कमरे में गया होगा. मगर वह कब सबकी नजरें बचा कर बाहर निकल गया?

तब तक आंगन में काफी पुलिसकर्मी घुस आये थे. विजय सिंह के रिश्तेदार सहमे-सहमे से सारा माजरा समझने की कोशिश कर रहे थे. पुलिस वाले सबको धमका रहे थे. अन्दर डाल देने की बातें कर रहे थे. नीलू, उसकी मां और घर की तमाम औरतें एक कोने में डरी-सहमी इकट्ठा हो गयी थीं. सब यह जानने के लिए परेशान थीं कि आखिर पुलिस शरद को क्यों पूछ रही है? किसी के पल्ले कुछ नहीं पड़ रहा कि आखिर बात क्या है. विजय सिंह और नीलू ने शरद के मोबाइल फोन पर कई फोन किये मगर उसका फोन बंद बता रहा था. इसी बीच पुलिस अधिकारियों ने शरद के कमरे का ताला तोड़ दिया. उनके साथ विजय सिंह भी कमरे में घुसे. कमरा खाली पड़ा था. पलंग पर नये सिले कपड़ों का ढेर लगा था. शादी के लिए सिलाई गयी  उसकी अचकन, साफा और कुर्ता-पैजामा भी एक ओर लटके हुए थे. सारी चीजें जस की तस रखी थीं, मगर शरद का बैग और सूटकेस गायब था. वह हैंडबैग भी नहीं था, जिसे लेकर वह रोज ऑफिस जाता था. तभी विजय सिंह की नजर वहां पड़ी मेज पर गयी. वह मेज की तरफ लपके. मेज पर एक खत पड़ा था… नीलू के नाम…. कांपते हाथों से विजय सिंह ने खत उठाया… तभी एक पुलिस अधिकारी ने तेजी से उनके हाथों से वह खत छीन लिया….

पछतावा : भाग 2

‘‘वजह यह है कि सनोबर का कोई भाई नहीं है. भाई की तरफ से कोई रस्म आप के यहां नहीं होगी. जब मैं ने सनोबर से मंगनी की थी तब वह 5 साल की थी. मुझे उम्मीद थी कि अब आमना के यहां लड़का होगा. लेकिन जुड़वां लड़कियां हो गईं. और आमना ने औपरेशन भी करा लिया. अब लड़का होने के कोई चांस नहीं बचे. तभी से सनोबर की तरफ से मेरा दिल बदल गया था. और आमना भी 4 बहनें हैं. उन का भी कोई भाई नहीं है. मतलब यह है कि नुक्स खानदान में ही है. जब सनोबर ब्याह कर हमारे घर आएगी तो अपनी मां की तरह लड़कियों को ही जन्म देगी. हमारी तो नस्ल ही खत्म हो जाएगी.’’

सगीर बोले, ‘‘लड़का या लड़की होना मौके की बात है. यह जरूरी नहीं है कि आमना के कोई बेटा नहीं है, तो सनोबर के यहां भी बेटा नहीं होगा. आप कुदरत के कानून को अपने हाथ में क्यों ले रही हैं? यह सब समय पर छोड़ दीजिए. शादी न करने की यह कोई जायज वजह नहीं है.’’

खुतेजा उलझ कर बोली, ‘‘वजह क्यों नहीं है. मेरा भाईर् जिस लड़की को बहू बना कर लाया है उस की मां के भी कोई भाई नहीं है. अब मेरा भाई पोते की शक्ल देखने को तरस रहा है. बहू ने 3 बेटियों को जन्म दिया. सारे इलाज करा चुके. किसी तरह भी लड़का न हुआ. सो, मैं अपने अख्तर की शादी ऐसी लड़की से करूंगी जिस का भाई हो. यह मेरा आखिरी फैसला है. अभी सिर्फ मंगनी ही तो हुईर् है, टूट भी सकती है. कई लोगों की मंगनियां टूटती हैं. इस में कौन सी कयामत आ गई है.’’

जब से आमना के यहां जुड़वां बेटियां हुई थीं तब से खुतेजा के दिल में यह बात बैठ गई थी कि बिना भाई की लड़की से हरगिज शादी नहीं करेगी. तब से ही वह शादी के खिलाफ हो गई थी.

अख्तर यह सुन कर बेहद परेशान हो गया. उसे सनोबर से मोहब्बत थी. वह किसी कीमत पर दूसरी लड़की से शादी नहीं करना चाहता था. उस ने मां को बहुत समझाया पर वह अपनी जिद पर अड़ी रही. किसी कीमत पर भी शादी के लिए तैयार नहीं हुई. उस ने साफ कह दिया कि अगर अख्तर ने सनोबर से शादी की तो वह जहर खा लेगी.

बहुत दिनों तक बहस चलती रही. पर खुतेजा ने अख्तर की बात मानने से साफ इनकार कर दिया. अख्तर अपनी मोहब्बत खोना नहीं चाहता था. वह सनोबर के पास आया और बोला, ‘‘सनोबर, अम्मा तो किसी कीमत पर शादी करने को राजी नहीं हैं. मैं ने हजार मिन्नतें कीं, लेकिन वे अपनी जिद पर अड़ी हैं. खुदकशी करने की धमकी दे रही हैं. मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता. चलो, हम कोर्ट मैरिज कर लेते हैं. जो होगा, देखा जाएगा.’’

सनोबर खुद गम से निढाल थी. उस की मोहब्बत दांव पर लगी हुई थी. पर वह समझदार थी. वह खुतेजा को जानती थी. वह हठधर्म औरत बड़ी शक्की थी, वहम और पुराने खयालात छोड़ नहीं सकती थी. ऐसे में अगर वह अख्तर से कोर्ट मैरिज कर लेती और खुतेजा जहर खा लेती तो मौत की बुनियाद पर शादी की शहनाई उन्हें उम्रभर रुलाती. वह एक अच्छी बेटी थी और एक बेमिसाल बहू बनना चाहती थी. शादी बस 2 दिलों का मेल ही नहीं, बल्कि 2 खानदानों का आपसी संबंध है.

सनोबर ने कहा, ‘‘मान लो शादी के बाद तुम्हारी मां कुछ कर लेती हैं तो यह शादी शादमानी के बजाय उम्रभर की परेशानी बन जाएगी. मैं खुद आप से बेहद मोहब्बत करती हूं. पर जो अफसाना अंजाम तक पहुंचना नामुमकिन हो, उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा है. आप अपनी राह बदल लीजिए. अपनी मां की खातिर अपनी मोहब्बत कुरबान कर दीजिए. मां का दिल दुखा कर हम सुखी नहीं रह सकेंगे. आप उन की मरजी से शादी कर लीजिए.

‘‘मैं ने आप को अपनी मोहब्बत और मंगनी के बंधन से आजाद किया. आप मां की खुशी की खातिर अपना फैसला बदल लीजिए. मैं वादा करती हूं, मैं खुश रहने की पूरी कोशिश करूंगी और अगर कोई रिश्ता आता है तो शादी भी कर लूंगी. मैं अपने मांबाप को अपने लिए आंसू बहाता नहीं देख सकती. आइए, अब हम बीते हुए समय को भुला कर एक नई शुरुआत करते हैं. आप को हमारी मोहब्बत की खातिर, यह बात माननी पड़ेगी.’’

सनोबर ने इस तरह से समझाया कि अख्तर को उस की बात माननी पड़ी. उन्होंने वादा किया कि अब वे दोनों नहीं मिलेंगे. यह फैसला तकलीफदेह है, पर जरूरी है. एक खूबसूरत कहानी बिना अपने अंजाम को पहुंचे बीच में ही खत्म हो गई.

अख्तर ने मां से कहा, ‘‘आप जहां चाहें, मेरी शादी कर दें.’’

खुतेजा ने देर नहीं की. 2 महीने के अंदर ही वह अपने रिश्ते की बहन की बेटी रुखसार को बहू बना कर ले आई. रुखसार अच्छी, खूबसूरत लड़की थी. सब से बड़ी बात, 4 भाइयों की इकलौती बहन थी. उस की मां भी 2 भाइयों की एक बहन थी. खुतेजा बेहद खुश थी. उसे मनचाही, मरमरजी की बहू मिल गई थी. सगीर और आमना रस्म निभाने की खातिर शादी में शामिल हुए. दोनों सनोबर के लिए दुखी थे. अकसर एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा दरवाजा खुल जाता है.

सगीर के खास दोस्त नोमान का बेटा अरशद दुबई में जौब करता था. वह शादी के लिए इंडिया आया हुआ था. नोमान और उस की बीवी अच्छी लड़की की तलाश में थे. यहांवहां लड़कियां देख रहे थे. एक दिन वे दोनों सगीर से मिलने घर आए. वहां सनोबर से मिले. उस की खूबसूरती, व्यवहार और सलीका देख कर वे बहुत प्रभावित हुए. उन लोगों ने 2 दिनों बाद अरशद को भी लड़की दिखा दी. उसे सनोबर बहुत पसंद आई. वह तो जीजान से फिदा हो गया.

दूसरे दिन ही नोमान, उन की पत्नी सनोबर के लिए अरशद का रिश्ता ले कर आ गए. बहुत अरमानों से सनोबर की मांग करने लगे. सगीर के जानेपहचाने लोग थे. पढ़ालिखा खानदान था. अरशद की जौब भी बहुत अच्छी थी. आमना ने सनोबर की मरजी पूछी. उस ने कोई एतराज नहीं किया क्योंकि जो कहानी खत्म हो चुकी थी उस पर आंसू बहाना फुजूल था. पर उस ने एक शर्त रखी कि अरशद को उस की मंगनी टूटने के बारे में बता दिया जाए.

नोमान को यह बात पहले से ही पता थी क्योंकि वह सगीर का खास दोस्त था. यह बात अरशद को भी बता दी गई. उसे इस बात पर कोई एतराज न हुआ. 15 दिनों के अंदर अरशद से सनोबर की शादी धूमधाम से हो गई. अरशद ने सनोबर को दुबई बुलाने की कारर्रवाई शुरू कर दी. अरशद छुट्टी खत्म होने पर इस वादे के साथ दुबई रवाना हुआ कि वह जल्दी ही सनोबर को दुबई बुला लेगा.

अरशद बहुत मोहब्बत करने वाला पति साबित हुआ. 3 महीने के अंदर ही उस ने सनोबर को दुबई बुला लिया. उस की मोहब्बत ने धीरेधीरे सनोबर के जख्म भर दिए. वे दोनों खुशहाल जिंदगी गुजारने लगे.

सनोबर की शादी के एक साल बाद ही उस के यहां बेटा हुआ जबकि अख्तर के यहां बेटी हुई. बेटी देख कर खुतेजा फूटफूट कर रोई. सगीर और आमना ने शुक्र अदा किया कि उन की बेटी पर लगा बेहूदा इलजाम गलत साबित हो गया. खुतेजा ने लड़की होने पर रुखसार को बुराभला कहना शुरू किया. पर वह दबने वाली बहू न थी. 4 भाइयों की इकलौती बहन थी. मिजाज बहुत ऊंचे थे. उस ने साफ कह दिया, ‘‘आप मुझे इलजाम न दें. लड़का या लड़की होने के लिए मर्द जिम्मेदार होता है. औरत तो सिर्फ उस के दिए हुए तोहफे को कोख में पालती है. इस में औरत कुछ नहीं कर सकती. चाहें तो आप डाक्टर से पूछ लें. और दोष ही देना है, तो अपने बेटे को दीजिए. वही इस के लिए जिम्मेदार है.’’

रुखसार ने ऐसा खराखरा जवाब दिया कि खुतेजा की बोलती बंद हो गई. उस ने बेटे की तरफ मदद के लिए देखा, पर अख्तर बाप की तरह सीधासादा था. रुखसार के आगे कुछ बोल न सका. वैसे भी, रुखसार ने साइंस का हवाला दिया था जो कि सच था.

2 साल और गुजर गए. एक बार फिर सनोबर के यहां बेटा हुआ और अख्तर के यहां फिर बेटी हुई. खुतेजा मारे सदमे के बेहोश हो गई. होश आने पर फूटफूट कर रोने लगी. जमाल और अख्तर ने उस की अच्छी खबर ली और कहा, ‘‘अपनी मरजी से अपनी पसंद की बहू लाई थी 2 दिल तोड़ कर, बरसों पुरानी मंगनी ठुकरा कर. सो, अब क्यों रोती हो. सब कियाधरा तो तुम्हारा है. तुम तो खुशियां मनाओ. अपनी दकियानूसी सोच व वहम की वजह से 2 दिलों की मोहब्बत रौंद डाली.’’

खुशबूदार फसल धनिया सीड ड्रिल से करें बोआई

धनिया भारतीय रसोई का खास मसाला है और इस की खासीयत से सभी वाकिफ हैं. धनिया बीज में बहुत अधिक औषधीय गुण होने के कारण इस का दवाओं से ले कर खाने तक में इस्तेमाल होता है और इस की पत्तियों की महकती खूशबू का तो जवाब नहीं. सूखा व ठंडा मौसम इस का अच्छा उत्पादन हासिल करने के लिए माकूल होता है. बीजों के अंकुरण के लिए 25 से 26 सेंटीग्रेड तापमान अच्छा होता है. धनिया की फसल के लिए पाला बहुत नुकसानदायक होता है. धनिया की अच्छी क्वालिटी के लिए ठंडी आबोहवा और खुली धूप की जरूरत होती है. धनिया की सिंचित फसल के लिए पानी निकलने वाली अच्छी दोमट मिट्टी सब से सही होती है और असिंचित फसल के लिए काली भारी मिट्टी अच्छी होती है. इस के साथ ही अच्छी उपजाऊ ताकत वाली दोमट या मटियार दोमट मिट्टी भी धनिया की खेती के लिए अच्छी होती है.

धनिया की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 होना चाहिए. सिंचित इलाकें में अगर जुताई के समय मिट्टी में पानी की कमी हो, तो पलेवा दे कर मिट्टी को तैयार करना चाहिए. ऐसा करने से जुताई के समय ढेले भी नहीं बनेंगे और खरपतवार के बीज अंकुरित होने के बाद जुताई के समय नष्ट हो जाएंगे. बारानी फसल के लिए खरीफ फसल की कटाई के बाद 2 बार आड़ीखड़ी जुताई कर के फौरन पाटा लगा देना चाहिए.

बोआई का समय : धनिया की फसल रबी मौसम में बोई जाती है. उत्तरी राज्यों में धनिया बोने का सब से सही समय 15 अक्तूबर से 15 नवंबर के बीच होता है. धनिया की समय से बोआई फायदेमंद होती है. बढि़या दानों के लिए धनिया की बोआई का सही समय नवंबर पर पहला पखवाड़ा होता है. हरे पत्तों के लिए इस की बोआई का समय अक्तूबर से दिसंबर महीने के बीच होता है. लेकिन पाले से बचाव के लिए धनिया की बोआई नवंबर के दूसरे हफ्ते में करना ठीक होता है. दक्षिण राज्यों में इस की खेती दोनों मौसमों में की जाती है.

बीज दर व बीज उपचार : सिंचित अवस्था में 15-20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर और असिंचित अवस्था में 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत होती है. मिट्टी व बीज से पैदा हुए रोगों से बचाव के लिए बीजों को उपचारित जरूर करें.

बोआई का तरीका : बोने से पहले धनिया बीज को हलका रगड़ कर टुकड़े कर लें. धनिया की बोआई सीडड्रिल कृषि यंत्र या मल्टीक्रौप बिजाई मशीन से भी कर सकते हैं. इस की बोआई में कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेंटीमीटर रखें. भारी भूमि या ज्यादा उपजाऊ भूमि में कतारों की दूरी 40 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. कूंड में बीज की गहराई 2-4 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए, क्योंकि ज्यादा गहराई होने से बीजों का अंकुरण कम होता है. धनिया की बोआई कतारों में करना ज्यादा फायदेमंद होता है.

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फसलचक्र अपनाएं

धनिया की बोआई में फसलचक्र भी काफी अहम होता है. इसलिए धनिया की बोआई फसलचक्र के अनुसार ही करनी चाहिए, जैसे कि धनियामूंग, धनियाभिंडी, धनियासोयबीन, धनियामक्का जैसे फसलचक्र काफी फायदेमंद पाए गए हैं.

सिंचाई : धनिया में पहली सिंचाई पत्ती बनने की दशा में 30-35 दिनों बाद, दूसरी सिंचाई शाखा निकलने के बाद 50-60 दिनों पर, तीसरी सिंचाई फूल आने की दशा में में 70-80 दिनों बाद और चौथी सिंचाई 90-100 दिनों बाद बीज बनने की दशा में करनी चाहिए. हलकी जमीन में पांचवीं सिंचाई 105-110 दिनों बाद दाना पकने की दशा में करना फायदेमंद रहता है.

खरपतवार रोकथाम : धनिया की फसल में खरपतवार पनपने का समय 35-40 दिनों का होता है. इस समय में अगर खरपतवारों की निराईगुड़ाई नहीं की जाती है, तो फसल की पैदावार में 40-45 फीसदी कम हो जाती है.

धनिया में खरपतवारों की अधिकता या सघनता होने पर खरपतवानाशी दवा पेंडिमीथालिन 30 ईसी की 3000 मिलीलीटर मात्रा का 600-700 लीटर पानी या पेंडिमीथालिन 38.7 सीएस की 2000 मिलीलीटर मात्रा का 600-700 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव कर सकते हैं.

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ब्लैकमेलिंग का धंधा, बन गया गले का फंदा !

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आदिम जाति कल्याण विभाग के रिटायर्ड कर्मचारी का अश्लील वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करने का मामला पुलिस ने उजागर किया है. यहां के एक रिटायर्ड ड्राफ्टमैन को भिलाई निवासी  दंपति ने ब्लैकमेल अर्थात भय दोहन कर लगभग डेढ़ लाख  रुपए झटक लिए . और जैसा की ब्लैकमेलिंग के मामलों में अक्सर होता है. शिकारी शिकार  पर अपना फंदा  कस्ता ही चला जाता है उसकी लालच निरंतर बढ़ती चली जाती है और वह चाहता है कि मैं अपने शिकार को पूरी तरह निचोड़ लूं.  यही लालच उसके गले का फंदा बन जाती है, रायपुर के इस ब्लैक मेलिंग के प्रकरण में भी कुछ ऐसा ही हुआ. पूरा मामला जानने से पूर्व आपका यह जानना बहुत जरूरी है की पुलिस को शक है यह दंपत्ति पूर्व में भी कई लोगों को अपना शिकार बना चुका है,जिसकी पड़ताल जारी है.

शिकार ने दे दिए डेढ़ लाख रुपए

ब्लैकमेलिंग का शिकार  ड्राफ्टमैन परिमल कुमार को जब लगा कि यह भय दोहन का मामला उसके जीवन को बर्बाद कर देगा तब जाकर उसने  इसकी शिकायत राजधानी रायपुर के सिविल लाइन थाने में दर्ज कराई. पुलिस ने शिकायत के पश्चात  इस मामले को  संज्ञान में लिया  और जांच-पड़ताल  प्रारंभ हो गई पुलिस के अनुसार आरोपी दंपत्ति तपन मजूमदार और रूपा मजूमदार दो महीने से रिटायर्ड ड्राफ्टमैन को पैसों के लिए ब्लैकमेल कर रहे थे. औल और सुबूत मिलते ही पुलिस ने ब्लैक मेलिंग करने वाले दंपत्ति को अपनी गिरफ्त में ले लिया.

प्रार्थी परिमल कुमार ने  हमारे संवाददाता को बताया कि वह लगभग डेढ़ लाख रूपए दे चुका था. लेकिन इसके बाद भी आरोपी पैसों की मांग लगातार कर रहे थे. यही नहीं पैसा न देने पर सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल करने की धमकी लगातार दंपत्ति द्वारा दी जा रही थी. जब आरोपी बाज नहीं आए तो पीड़ित को विवश होकर मामला दर्ज करवाना पड़ा. इस मामले में महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि आरोपी रूपा मजूमदार ने परिमल कुमार के साथ पहले दोस्ती की और फिर छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर और भिलाई में अश्लील वीडियो स्वयं बनाया था.

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ब्लैक मेलिंग अर्थात भया दोहन एक गंभीर अपराध

छत्तीसगढ़ विशेष का राजधानी रायपुर के पुलिस इन दिनों दया दोहन ब्लैकमेलिंग के प्रकरणों पर कुछ विशेष ध्यान दे रही है क्योंकि यह समाज का एक बड़ा नासूर माना गया है अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रफुल्ल ठाकुर के अनुसार ब्लैक मेलिंग ही अनेक अपराधों का मूल होती है. सिविल लाइन थाने में परिमल की रिपोर्ट पर मजूमदार दंपत्ति के खिलाफ धारा 384 ,34 का केस दर्ज किया गया है.

अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रफुल्ल ठाकुर ने जानकारी दी कि अश्लील वीडियो ब्लैकमेल करने वाले दंपत्ति को गिरफ्तार कर लिया गया है. आरोपी दंपत्ति भिलाई के स्मृति नगर के रहने वाले हैं. यह तथ्य भी सामने आया है कि रिटायर कर्मचारी को नशे की दवाई खिलाकर बेहोशी की हालत में वीडियो बनाया गया था. प्रार्थी से डेढ़ लाख रूपए दंपत्ती ने ब्लैकमेलिंग कर वसूले थे. इस मामले में आरोपी दंपत्ति तपन मजूमदार रूपा मजूमदार को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया है.

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बेवजह शक के ये हैं 5 साइड इफैक्ट्स

पार्टी खत्म होते ही कावेरी हमेशा की तरह मुंह फुलाए पति संदीप के आगेआगे चलने लगी. कार में बैठते ही उस ने संदीप के सामने सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘मिसेज टंडन जब भी मिलती हैं, तब आप को देख कर इतना क्यों मुसकराती हैं? टंडन साहब के सामने तो वे मुंह बनाए रखती हैं… नेहा ने आप को मिस्टर हैंडसम क्यों कहा और अगर कह भी दिया था तो आप को क्या जरूरत थी सीने पर हाथ रख मुसकराते हुए सिर झुकाने की? और ये जो आप की असिस्टैंट सोनाली है न उस की तो किसी दिन उस के ही घर जा कर अच्छी तरह खबर लूंगी. अपने हसबैंड को घर छोड़ कर पार्टी में आ जाती है और बहाना यह कि उन की तबीयत ठीक नहीं रहती. दूसरों के पति ही मिलते हैं इसे चुहलबाजी करने के लिए?’’ कावेरी का बड़बड़ाना लगातार जारी था.

2 साल पहले कावेरी की शादी हुई थी तो संदीप जैसे स्मार्ट और हैंडसम पति को पा कर उस के पांव जमीन पर नहीं टिकते थे. मगर कुछ दिनों बाद ही उस की सारी खुशी हवा हो गई. अब संदीप के इर्दगिर्द किसी महिला को देख तिलमिला उठती है. असुरक्षा की भावना से घिर कर संदीप से ही झगड़ा करने लगती है.

कावेरी की ही तरह नताशा भी अपने पति रितेश की स्मार्टनैस को अपनी सौतन समझने लगी है, क्योंकि रितेश की स्मार्टनैस ने उस का चैन छीन लिया है. उसे लगता है कि रितेश अपने स्मार्ट होने का फायदा उठा रहा है. कोई चाहे कुंआरी हो या शादीशुदा सब से मेलजोल बढ़ाता है.

नताशा तो रितेश को किसी महिला से बात करता देख सब के सामने ही झगड़ना शुरू कर देती है. अपनी इज्जत बचाने की खातिर रितेश अपने मित्रों  की पत्नियों द्वारा की गई ‘हैलो,’ ‘नमस्ते’ का जवाब देने से भी कतराता है. जब वह नताशा के साथ होता है तो उसे बेहद सतर्क रहना पड़ता है. नताशा के बेबुनियाद शक ने रितेश की सोशल लाइफ लगभग समाप्त कर दी है.

नताशा और कावेरी की तरह ही न जाने ऐसी कितनी पत्नियों के उदाहरण मिल जाएंगे जो अपने पति पर किसी महिला की नजर केवल इसलिए सहन नहीं कर पातीं कि उन का पति उन के मुकाबले अधिक आकर्षक दिखाई देता है. ऐसे में किसी भी महिला के करीब आने का दोषी वे पति को भी मानते हुए उस पर शक करने लगती हैं.

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संदेह के दुष्प्रभाव

दांपत्य जीवन तनावग्रस्त: कोई भी पति अपनी पत्नी द्वारा बिना वजह लगाए गए लांछन सहन नहीं करेगा. इस का परिणाम यह होगा कि दोनों के बीच लड़ाईझगड़े होते रहेंगे. ऐसे में दांपत्य जीवन में प्रेम व शांति के स्थान पर तनाव हावी हो जाएगा.

आत्मविश्वास में कमी: यदि पतिपत्नी आत्मविश्वास से लबरेज होंगे तो दोनों का मन खुश रहेगा और वे एकदूसरे के साथ सुखद समय व्यतीत कर पाएंगे. किंतु पत्नी द्वारा बेबुनियाद शक पति के आत्मविश्वास में कमी ले कर आएगा. वह समझ ही नहीं पाएगा कि उस ने क्या गलत किया जो क्लेश का कारण बन गया. पत्नी भी स्वयं को अन्य महिलाओं की तुलना में हीन आंक कर कुंठाग्रस्त हो जाएगी.

बच्चों की मानसिकता पर प्रभाव: बच्चों की उचित देखभाल के लिए मातापिता में समयसमय पर सलाहमशवरा बेहद जरूरी है, किंतु निरंतर शक के कारण पतिपत्नी के बीच बढ़ी दूरी बच्चों के विषय में चर्चा करने के अवसर न दे कर आपस के निराधार मसले सुलझाने को बाध्य करती रहेगी, जिस से बच्चों की मानसिकता प्रभावित होगी.

सामाजिक मेलजोल में कमी: बेकार का शक पति को किसी भी सामाजिक समारोह में जाने से रोक देगा. वह इस बात से डरता रहेगा कि किसी भी महिला का उस की और मुसकरा कर देखना घर में तूफान ला सकता है. इसी तरह पत्नी भी सोशल गैदरिंग से बचने लगेगी. पति का हैंडसम होना उस की नजरों में अपने लिए एक नई परेशानी खड़नी करने जैसा हो जाएगा.

पति लेने लगता है झूठ का सहारा: शक के कारण कुछ पत्नियां औफिस तक पति का पीछा करती हैं. वहां वह किस महिला सहकर्मी को कितनी अहमियत देता है, किसकिस के साथ हंस कर बातें करता है तथा अपनी सैके्रटरी के साथ कितना समय बिताता है, इन सब बातों की जानकारी बातोंबातों में पति से लेती रहती हैं. आपस में किसी भी बात पर जब जरा सी भी बहस होती है तो वे उन सब के नाम पति के साथ जोड़ कर उसे नीचा दिखने लगती हैं. परेशान हो कर धीरेधीरे पति सबकुछ सच न बता कर झूठ बोलने लगते हैं.

आत्महत्या की नौबत: लखनऊ में एक भूतपूर्व सैनिक ओमप्रकाश की पत्नी को शक रहता था कि उस के पति का किसी अन्य महिला के साथ अनैतिक संबंध है. पति ने इस बेबुनियाद शक को दूर करने का पूरापूरा प्रयास किया. मगर पत्नी का शक दूर न कर पाया तो खुद को गोली मार कर उस ने अपना जीवन समाप्त कर लिया.

स्वयं को समाप्त कर देने का विचार पतिपत्नी के मन में आए या न आए, किंतु यह तो सत्य है कि संदेह से जन्मा क्लेश दांपत्य जीवन को नर्क अवश्य बना देता है. जब मन में संदेह के बीज पनप रहे हों तो पत्नी को ये बातें ध्यान में रखनी चाहिए.

– एक स्मार्ट पति पा कर पत्नी को खुश होना चाहिए. यदि ऐसे व्यक्ति ने उसे पसंद किया है तो यकीनन उस में कुछ खासीयत तो होगी ही. इस बात को वह मन में बैठा ले तो स्वयं को किसी से कम नहीं आंकेगी और तब पति का किसी महिला से बात करना उसे नहीं खलेगा.

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– पति के हैंडसम होने पर हीनभावना से ग्रस्त होने के बजाय पत्नी को चाहिए कि वह अपने सौंदर्य को निखारने का प्रयास करे. इस के लिए विभिन्न पत्रपत्रिकाओं व यूट्यूब के माध्यम से मेकअप के नएनए टिप्स जान कर उन्हें अपनाया जा सकता है. भिन्नभिन्न प्रकार के नएनए ब्यूटी प्रोडक्ट्स बाजार में व औनलाइन उपलब्ध हैं, जिन की मदद से खुद को आकर्षक बनाया जा सकता है.

– अपने पति के आसपास मंडराती हुई महिलाओं की ओर मुंह फुला कर देखते हुए पति को मन ही मन कोसने से अच्छा है कि उन महिलाओं से खुल कर हंसते हुए बातचीत करने का प्रयास किया जाए. इस प्रकार घुलनेमिलने से वे महिलाएं एक पारिवारिक मित्र की तरह लगने लगेंगी.

– अपने गुणों को पहचान कर उन्हें निखारना

शुरू करें. मसलन, यदि पत्नी खाना अच्छा बनाती है तो मेहमानों, अपने व पति के मित्रों के आने पर नईनई डिशेज बना कर खिला सकती है. जब उस के स्वादिष्ठ खाने की चर्चा सब के बीच होगी तो वह स्वयं को उच्चतर महसूस करेगी. इसी प्रकार आवाज अच्छी होने पर किसी भी गैटटूगैदर में गाना गाने में हिचक महसूस न करें.

– यदि संदेह से घिरी पत्नी टच में रहना ही चाहती है, तो पति की महिलामित्रों की जानकारी देने वाले लोगों के स्थान पर अच्छीअच्छी पत्रिकाओं, ज्ञानवर्धक व मनोरंजक वैबसाइट्स तथा व्हाट्सऐप पर अपने पुराने दोस्तों के टच में रहे. इस से नईनई जानकारी मिलने से उस की पर्सनैलिटी में निखार आएगा तथा मन खुश रहने से तनाव भी नहीं होगा.

इसी तरह अपनी पत्नी के शक्कीमिजाज का सामना करने के लिए पति भी रखे इन बातों का ध्यान:

– पत्नी द्वारा बिना वजह शक व्यक्त किए जाने पर स्वयं को नियंत्रित रखें. गुस्से में या चिल्ला कर जवाब देने से पत्नी को लगेगा कि पति उसे कोई महत्त्व ही नहीं देना चाहता. यदि पत्नी सब के सामने झगड़ा करने लगे तो वहां चुप रह कर उसे बाद में समझाए और एहसास करवाए कि  वह सब के सामने उसे बेइज्जत नहीं करना चाहता. शक से घिरी पत्नी को पति से मिला सम्मान अपना नजरिया बदलने में मदद करेगा.

– पत्नी की प्रशंसा करने में कंजूसी न करें. जब वह कुछ नया पहने या बाहर जाने के लिए तैयार हो तो तारीफ के 2 बोल जरूर बोलें.

– पत्नी को समयसमय पर याद दिलाते रहना चाहिए कि शारीरिक सौंदर्य ही सबकुछ नहीं है. पत्नी के कुछ खास गुणों की तारीफ करते हुए कहें कि उस में सच में ऐसे गुण हैं, जो उस ने आज तक किसी भी सुंदरी में नहीं देखे.

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– समयसमय पर पत्नी के साथ घूमने का कार्यक्रम बनाएं. कभी रैस्टोरैंट में डिनर आदि का तो कभी वीकैंड पर आसपास की जगह जा कर 1-2 दिन बिताने का. वहां मस्ती के मूड में डूब कुछ तस्वीरें खींच कर फेसबुक पर पोस्ट की जा सकती हैं या व्हाट्सऐप स्टेटस के रूप में भी डाली जा सकती हैं. यदि कैप्शन ‘माई लवली वाइफ ऐंड आई’ जैसी हो तो सोने में सुहागा हो जाएगा.

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