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मेरी सास कुछ दिनों के लिए हमारे पास रहने आ गई हैं और मेरे पति उन की सेवा करने के कारण उन के पास ही सो जाते हैं.

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मेरी हाल ही में शादी हुई है और मेरे पति का काम शहर में है. इस वजह से मुझे और मेरे पति को गांव छोड़ कर शहर में शिफ्ट होना पड़ा. वैसे तो मुझे यह बात काफी अच्छी लगी क्योंकि मैं शुरुआत से ही अपने पति के साथ अकेली रहना चाहती थी. मेरी सासूमां गांव में रहती हैं लेकिन कुछ दिन पहले उन के पैर में फ्रैक्चर हो गया और उन के ध्यान रखने के लिए गांव में कोई नहीं था जिस कारण वे हमारे साथ शहर में रहने आ गईं. मेरे पति को अपनी मां से बहुत प्यार है और जब से वे आई हैं तब से मेरे पति उन की बहुत अच्छे से देखभाल कर रहे हैं. शुरुआत में तो मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई पर कभीकभी वे अपनी मां का ध्यान रखतेरखते उन्हीं के पास सो जाते हैं जोकि मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगता. मैं रात को उन्हें मिस करती रह जाती हूं. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब –

आप की परिस्थिति को अच्छे से समझा जा सकता है. क्योंकि आप की हाल ही में शादी हुई है और ऐसे में अपने पति के बिना सोना आप के लिए काफी मुश्किल हो जाता होगा पर आप को पति की फीलिंग्स की रिस्पैक्ट करनी चाहिए. आप की सास बीमार हैं और उन के पास उन की देखभाल करने के लिए कोई नहीं है तो ऐसे में आप के पति के अलावा कौन देखेगा उन्हें?

ऐसे में आप को अपने पति का साथ देना चाहिए और सास की सेवा करनी चाहिए. वे हमेशा के लिए तो आप के पास रहने नहीं आई हैं बल्कि अपनी परेशानियों के चलते आई हैं. आप यह सोचिए कि अगर आप की सास की जगह आप की खुद की मां होती तो आप को भी उन की उतनी ही चिंता होती जितनी आप के पति को अभी अपनी मां की है.

रही बात अपने पति को रात में मिस करने की तो आप इस बारे में अपने पति से बात कीजिए कि वे अपनी मां के सोने के बाद आप के पास आ जाया करें और जब तक आप के पति अपनी मां की सेवा कर रहे होते हैं तब तक आप भी उन के पास बैठें और अपनी सास का खयाल रखें.

ऐसे में आप के पति को भी खुशी होगी कि आप को भी अपनी सास की चिंता है और अगर आप उन के साथ रहेंगी तो वे सोएंगे भी नहीं और अपनी मां के सोने के बाद आप के पास आ जाया करेंगे.

इन छोटीछोटी बातों की वजह से अपनी वैवाहिक जिंदगी को खराब न होने दें क्योंकि यह सब तो जीवन का हिस्सा हैं और आप दोनों को ही एकदूसरे को समझना है और एकदूसरे का साथ देना है.

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पिता या हैवान : बेटी को बनाता था हवस का शिकार

किसी ने सच ही कहा है कि इंसान को हैवान बनते जरा भी देर नहीं लगती. हम आएदिन लड़कियों के साथ हो रहे रेप के बारे में सुनते रहते हैं और यह सब सुन कर हमारा खून इतना खौल उठता है कि कभीकभी लगता है कि इन्हें कानून द्वारा बीच चौराहे पर फांसी पर लटका देना चाहिए. मन में एक और विचार आता है कि इन आरोपियों के अंदर इतनी दरिंदगी आती कहां से है? जवान लड़कियों के साथसाथ अब छोटीछोटी बच्चियों के साथ भी सनकी लोग दुष्कर्म करते जा रहे हैं.

ऐसा ही एक सनसनीखेज मामला मध्य प्रदेश के गुना जिले से सामने आया है जिस ने लोगों के दिल और दिमाग को हिला कर रख दिया है. मध्य प्रदेश के गुना जिले में एक 8 साल की छोटी सी बच्ची के साथ बलात्कार कर हत्या करने का मामला सामने आया है. आरोपी ने पहले 8 साल की बच्ची के साथ बलात्कार किया और फिर उस के हाथों और पैरों को पत्थरों से बांध कर शव को एक कुएं में फेंक दिया.

पिता नहीं दरिंदा

आप जान कर हैरान हो जाएंगे कि इस मामले को अंजाम किस ने दिया होगा. जहां एक तरफ मांबाप अपने बच्चों पर जान छिड़कते हैं और अपने बच्चों के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैय्यार रहते हैं वहीं इस सनसनीखेज मामने को अंजाम उस 8 साल की मासूम बच्ची के बाप ने ही दिया है. बिना कुछ सोचे, बिना किसी की परवाह किए अपनी ही फूल जैसी बच्ची के साथ बलात्कार कर उसे मौत के घाट उतार दिया सनकी बाप ने.

दरअसल, उस बच्ची का शव पिछले दिनों कुएं से बरामद किया गया और शव मिलते ही परिजनों ने सब से पहले पुलिस को सुचित किया. पुलिस अधिकारी ने बताया कि जिला मुख्यालस से लगभग 75 किलोमीटर दूर चाचौड़ा पुलिस थाना छेत्र के एक गांव में रहने वाली 8 वर्षीय बच्ची 3 दिन पहले अपने घर से लापता हो गई थी और पीड़िता को आखिरी बार अपने पिता के साथ देखा गया था.

पुलिस की सख्ती

पुलिस ने शव मिलते ही पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और पोस्टमार्टम रिपोर्ट आते ही पता चला कि बच्ची की मौत से पहले उस के साथ बलात्कार किया गया था. पुलिस को शुरुआत से ही पीड़िता के पिता पर शक था क्योंकि जहां एक तरफ 8 साल की बच्ची के लापता होने पर मांबाप का खून सूख जाता है, वहीं दूसरी यह बाप अपनी बच्ची को ढूंढ़ने में बिलकुल भी दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था.

रविवार सुबह बच्ची के अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने पिता को हिरासत में लिया और सख्ती से पूछताछ करने के दौरान उस ने अपना मुंह खोल अपनी दास्तान सुनाई. उस का कहना था कि वह अपनी बच्ची से जरा भी प्यार नहीं करता था और उसे अपनी बेटी बिलकुल भी पसंद नहीं थी, जिस वजह से उस ने अपनी 8 साल की बेटी के साथ दुष्कर्म किया और फिर हाथपैरों को पत्थरों से बांध कर कुएं में धकेल दिया.

कहां जाएं लङकियां

यह घटना सभ्य समाज के मुंह पर एक तमाचा ही है कि जब हम अपनी लड़कियों को बाहर के दरिंदों से बचाने के लिए घर में रहने को कहते हैं लेकिन जब घर में अपना बाप ही दरिंदा निकल जाए तो ऐसे में लड़कियां कहां जाएं?

दरअसल, इन सब मामलों में देखा जाए तो हमारे कानून व्यवस्था भी जिम्मेदार है. आरोपियों को पता है कि अगर हम आज कोई गुनाह करते हैं तो सजा मिलतेमिलते पता नहीं कितने साल निकल जाएंगे और कुछ आरोपी तो जेल में अपनी सजा का इंतजार करतेकरते मस्त जिंदगी गुजार लेते हैं. यही अगर ऐसे गुनाहों की सजा हाथोंहाथ मिलने लगें और इन आरोपियों की कोई सुनवाई न हो तो बाकी आरोपियों के लिए यह एक सबक बन सकता है.

बुलडोजर पर रोक से खत्म होगी योगी की राजनीति

सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर को ले कर साफ कह दिया है कि ‘बिना हमारी अनुमति के कोई भी सरकार पूरे देश में बुलडोजर एक्शन न ले’. फिलहाल यह रोक 1 अक्टूबर तक के लिए लगाई गई है. कोर्ट ने कहा कि बुलडोजर एक्शन देश के कानून को ध्वस्त करने जैसा है. सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से इस मामले को लिया है उस से साफ है कि आगे भी बुलडोजर पर रोक लगी रहेगी. पहला सवाल यह है कि अब बुलडोजर पर प्रतिबंध लगने के बाद यूपी के बुलडोजर बाबा पहले जैसे लोकप्रिय बने रहेंगे ? दूसरा सवाल अगर बुलडोजर एक्शन इतना बुरा है तो जनता ने इस को पसंद क्यों किया ? बुलडोजर बाबा ने लगातार दूसरी बार विधानसभा का चुनाव कैसे जीता ?

बुलडोजर बाबा की लोकप्रियता बुलडोजर से बनी तो बुलडोजर भी पूरे देश में ही नहीं विदेशों तक में मशहूर हो गया. इतना प्रचार तो बुलडोजर बनाने वाली कंपनी करोड़ों रूपया खर्च कर के भी नहीं पाती. क्या बुलडोजर केवल विध्वंस का प्रतीक है. बुलडोजर जस्टिस इतना लोकप्रिया हो गया कि सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि बुलडोजर का महिमामंडन न किया जाए. बुलडोजर जस्टिस का महिमामंडन बंद होना चाहिए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि यह निर्देश अवैध निर्माण सार्वजनिक सड़क, फुटपाथ और किसी भी अनधिकृति निर्माण पर लागू नहीं होगा. सवाल उठता है कि अवैध निर्माण गिराने के लिए बुलडोजर का प्रयोग किया जाएगा या नहीं ?

क्या है बुलडोजर ?

एक मषीन जिस का काम निर्माण करना था वह भारत में न्याय का प्रतीक बन गई. इस मषीन का नाम ‘बैकहो लोडर’ है. जो ‘बुलडोजर’ के नाम से लोकप्रिय हो गया है. हाल के कुछ सालों में राजनीति से ले कर कोर्ट और मीडिया में बुलडोजर को नाम प्रयोग तेजी से बढ़ा. यह पीले रंग में देखी जाने वाली मषीन है. शुरुआत में यह पीला नहीं सफेद रंग या लाल रंग की होती थी. जब कंस्ट्रक्शन साइट्स पर जेसीबी मशीन से काम चलता था. तब दूर से मशीन दिखाई नहीं देती थी.

रात में भी इन मशीनों को दूर से नहीं देखा जा सकता था. इस कारण बाद में जेसीबी मशीन का रंग पीला कर दिया जिस के चलते जेसीबी मशीन को दूर देख कर पहचाना जाने लगा. पीले रंग के चलते लोग दूर से समझ सकते हैं कि वहां मशीन खड़ी है, वहां खुदाई या दूसरा निर्णाम काम चल रहा है. इस मशीन का नाम जेसीबी नहीं है. जेसीबी उस कंपनी का नाम है जो यह मशीन बनाती है. इस भारी भरकम मशीन का सही नाम ‘बैकहो लोडर’ है.

1945 में शुरू हुई जेसीबी कंपनी ने 1953 में पहला बैकहो लोडर बनाया था. इस का रंग नीला और लाल था. इस के बाद इस मशीन में बहुत से बदलाव किए गए और 1964 में एक पीले रंग का बैकहो लोडर बनाया गया. यहीं से इन मशीनों का रंग पीला हो गया. जेसीबी ही नहीं, बल्कि ऐसी मशीनें बनाने वाली अन्य कंपनियां भी इन मशीनों का रंग पीला ही रखती हैं. शुरुआत में यह मशीन ट्रैक्टर के साथ जुड़ी होती थीं लेकिन समय के साथ इस के मौडल में बदलाव किए गए.

ब्रिटिश कंपनी जेबीसी एक्सावेटर्स लिमिटेड का मुख्यालय रोसेस्टर स्टाफोर्डशायर में स्थित है. भारी उपकरण बनाने के लिए जानी जाने वाली इस कंपनी के मालिक और फाउंडर ब्रिटिश अरबपति जोसेफ सायरिल बम्फोर्ड थे. 2001 में जोसेफ की मौत हो गई और उन की कंपनी का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया. भारत में भी जेसीबी इंडिया की 6 फैक्ट्री और एक डिजाइन सेंटर है. कंपनी ने भारत में बनी मशीनों का निर्यात 110 से ज्यादा देशों में किया है. विश्व की तीसरी सब से बड़ी निर्माण उपकरण बनाने वाली कंपनी जेसीबी बैकहो लोडर के साथ 300 से ज्यादा तरह की बड़ी मशीनों का निर्माण भी करती है.

इन की बड़ी मशीनों का प्रयोग निर्माण कार्य, खेती, भार उठाना या जमीन खोदना आदि कामों मंव किया जाता है. जेसीबी के अलावा भारत में वोल्वो, महिंद्रा एण्ड महिंद्रा जैसी कई कंस्ट्रक्शन इक्यूपमेंट मैन्युफैक्चरिंग कंपनियां हैं बैकहो लोडर का निर्माण करती हैं. बैकहो लोडर की कीमत 10 लाख रुपए से शुरू होती है जो 40-50 लाख रुपए तक जाती है.

उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ यह रोग

बुलडोजर न्याय का एक्शन शुरू करने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी ही पार्टी में तमाम विरोध के बाद 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. अपने बुलडोजर एक्शन से वह देश में दूसरे नम्बर के सब से चर्चित मुख्यमंत्री बन गए. उन का मौडल भाजपा ही नहीं गैर भाजपा शासित राज्यों में प्रयोग होने लगा. बुलडोजर का सब से चर्चित प्रयोग उत्तर प्रदेश के कानपुर में हुआ. जहां अपराधी विकास दुबे ने 9 पुलिस वालों की हत्या कर दी थी. इस के बाद पुलिस ने बुलडोजर जस्टिस करते हुए विकास दुबे का पूरा घर गिरा दिया गया. एनकांउटर में विकास दुबे मारा गया.

माफियाओं के अवैध निर्मार्णो पर बुलडोजर चलने लगा. मुख्तार अंसारी, अतीक अहमद दर्जनों अपराधियों बुलडोजर एक्शन का सामना करना पड़ा. तमाम अपराधियों पर यह बुलडोजर चला. सीएए और एनआरसी का विरोध करने वालों के खिलाफ भी यह कदम उठाया गया. इस के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का नाम ही ‘बुलडोजर बाबा’ पड़ गया. जनता उन को और उन के बुलडोजर जस्टिस पर मेहरबान हो गई. लोकतंत्र में वोट को लोकप्रियता का पैमाना माना जाता है.

क्यों चर्चित हुआ बुलडोजर एक्शन ?

2022 के विधानसभा चुनाव में योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के इतिहास में पहले ऐसे मुख्यमंत्री बन कर उभरे जो लगातर दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे. इस जीत का श्रेय उन की कड़क कानून व्यवस्था यानि बुलडोजर को दी गई. तमाम चुनावी रैलियों में बुलडोजर को भी ला कर रखा जाने लगा था. धीरेधीरे उत्तर प्रदेश से चला बुलडोजर देश के दूसरे राज्यों में भी असर करने लगा. मध्य प्रदेश दिल्ली और गुजरात जैसे तमाम राज्यों से होता यह बुलडोजर असम तक पहुंच गया.

सवाल उठता है कि जनता ने बुलडोजर जस्टिस को क्यों पंसद किया. इस का बहुत सीधा सा जवाब है. पिछले कुछ सालों में उत्तर प्रदेश में गुंडागर्दी बढ़ गई थी. अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण दे कर उन को विधायक, सांसद बनने के लिए पार्टियों ने टिकट देने शुरू किए. बदले में यह अपराधी माफिया नेताओं और उन पार्टियों को बूथ कैप्चरिंग कर चुनाव जितवाने में मदद करते थे. समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव ने एक संभा में मंच पर माफिया अतीक अहमद के कुत्ते से हाथ मिलाया. ऐसे अपराधियों के भय में गवाह कोर्ट नहीं जाते थे. जो जाता था उस का गोली से मार दिया जाता था. कई वकील और जज भी उन के मुकदमें सुनने से इंकार कर देते थे.

अतीक अहमद ने अपने भाई के खिलाफ विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले विधायक बन चुके राजू पाल को सरेबाजार गोली मार कर हत्या कर दी. उस को जब अस्पताल ले जाया जा रहा था तो फिर उस का पीछा कर के दोबारा गोली मारी गई कि कहीं वह जिंदा न बच जाए. इस मामले में कोई गवाही देने को तैयार नहीं था. उमेश पाल ने इस की गवाही देने का साहस दिखाया. कोर्ट ने उमेश पाल को सरकारी सुरक्षा भी दी. इस के बाद भी अतीक अहमद के साथियों ने उमेश पाल और उस के सुरक्षा कर्मियों को गोली मार दी.

जब योगी का बुलडोजर ऐसे लोगों पर चला तो जनता को लगा कि अपराधियों के खिलाफ भी कुछ हो सकता है. इस के पहले भी मायावती ने कुंडा के विधायक रघुराज प्रताप सिंह के खिलाफ पोटा के तहत मुकदमा कायम कर के अपने समर्थकों को खुश करने का काम किया था. रघुराज प्रताप सिंह, रायबरेली के विधायक अखिलेश सिंह के घर जेसीबी चलवाई थी. यह दोनों जेल से तब बाहर आए जब मायावती मुख्यमंत्री मद से हट गई थी. नेता अपनी छवि को मजबूत करने के लिए इस तरह के काम करते हैं. भाजपा नेता कल्याण सिंह जब पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो नकल कानून ले कर आए थे. कक्षा 10 और 12 में नकल करते बच्चों को जेल भेजने का प्रावधान था.

1980 में जब विश्वनाथ प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो प्रदेश की सब से बड़ी समस्या डकैत थे. डकैती और अपहरण प्रदेश में उद्योग जैसा बन गया था. इस को खत्म करने के लिए सरकार ने डकैती उन्मूलन अभियान चलाया. जिस में डकैतों का एनकाउंटर होने लगा. इस के जवाब में डकैतों ने विश्वनाथ प्रताप सिंह के भाई जस्टिस चन्द्रशेखर प्रताप सिह और उन के 14 साल के बेटे की गोली मार कर हत्या कर दी थी. उस समय चले डकैत उन्मूलन अभियान का असर हुआ की 10 सालों में डकैती की समस्या खत्म हो गई.

कल्याण सिंह जब मुख्यमंत्री बने तो श्रीप्रकाश शुक्ल नामक माफिया गैंग ने उन को जान से मारने की धमकी दी थी. इस के बाद कल्याण सिंह एसटीएफ यानि स्पैशल टास्क फोर्स बनाई. जिस ने 4 माह में श्रीप्रकाश शुक्ला सहित उस के पूरे गिरोह को खत्म कर दिया. उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था किस मुख्यमंत्री के राज में सब से बेहतर रही तो इस सवाल के जवाब में 3 नाम जनता बताती है कल्याण सिंह, मायावती और योगी आदित्यनाथ.

सोशल मीडिया के जमाने में बुलडोजर एक्शन को बड़ी आसानी से बुलडोजर जस्टिस बता दिया गया. 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव प्रचार में योगी आदित्यनाथ ने 58 रैलियों में बुलडोज़र शब्द का इस्तेमाल किया. पार्टी ने इन सभी सीटों पर जीत दर्ज की. योगी के प्रशसंकों ने बुलडोज़र और बुलडोज़र बाबा के नाम का टैटू बनवा लिया.

अब इस बुलडोजर एक्शन पर सुप्रीम रोक लग गई है. बुलडोजर एक्शन को जनता इसलिए पंसद कर रही थी कि इस से न्याय जल्द होते दिखता था. हमारे देश में पुलिस की विवेचना इतनी लचीली है कि अपराधियों के खिलाफ सही सबूत पेश नहीं हो पाते हैं. सबूतों के अभाव में मुकदमें छूट जाते हैं. जनता अपराध और अपराधी के खिलाफ बोलने का साहस नहीं जुटा पाती. डरा धमका कर मुकदमें वापस ले लिए जाते हैं. ऐसे में पूरे देश में त्वरित न्याय की मांग बनी रहती है. बुलडोजर जैसे गैर कानून काम लोकप्रिय हो जाते हैं.

कानून और व्यवस्था दो अलगअलग काम हैं. संविधान ने कोर्ट और पुलिस को दो अलगअलग जिम्मेदारियां दी हैं. अगर पुलिस खुद ही फैसला करने लगेगी तो यह ठीक नहीं होगा. अपराध रोकने के लिए बुलडोजर जैसी नीतियां 18वीं और 17वीं सदी में सही मानी जा सकती थी. 21वीं सदी में इस की बात करना उचित नहीं है. बड़ी मुश्किल से देश के अंदर रूल औफ लौ यानी क़ानून का राज स्थापित हो पाया है. इसे और बेहतर बनाया जाना है. इसे तोड़ा नहीं जा सकता.

खत्म हो जाएगी बुलडोजर बाबा की लोकप्रियता

2022 में माकपा नेता वृंदा करात ने जहांगीरपुरी में बुलडोजर कार्रवाई को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की. याचिका में बुलडोजर कार्रवाई रोकने की मांग की गई. इस के साथ ही साथ जमीयत उलेमा ए हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में आए दिन होने वाली बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की. सरकार का कहना है कि किसी के अपराधी होने से नहीं उस के अवैध निर्माण करने के कारण यह काम किया गया है. इस को ‘रूल औफ लौ’ कहा.

जमीयत उलेमा ए हिंद की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ से कहा कि ‘2022 में जहांगीरपुरी में हिंसा भड़की थी. हिंसा के बाद कई लोगों के घरों पर बुलडोजर कार्रवाई की गई, इन लोगों पर यह आरोप था कि उन्होंने हिंसा भड़काई थी.’ याचिका में कहा गया कि अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाया गया है. याचिका में ‘बुलडोजर जस्टिस’ की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर पर रोक लगा दी है. इस का राजनीतिक नफा और नुकसान भी तलाशा जा रहा है. योगी आदित्यनाथ के विरोधी नेताओं को समीक्षकों का मानना है कि योगी की एक मात्र उपलब्धि बुलडोजर रही है. अब इस के रोक के बाद उन की राजनीति खत्म हो जाएगी. जिस से सपा, बसपा और कांग्रेस को चुनाव जितने में मदद मिल सकेगी.

समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने बुलडोजर एक्शन पर रोक लगने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते कहा कि बुलडोजर का प्रयोग लोगों को डराने और विपक्ष की आवाज दबाने के लिए था. इस के बंद होने से न्याय हो सकेगा.’ कोर्ट के बुलडोजर फैसले पर कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने कहा कि ‘जब तक आरोपी का दोश साबित न कर दिया जाए, तब तक वो आरोपी साबित नहीं होता है. एक सस्ती लोकप्रियता के लिए यूपी की बीजेपी सरकार ने बुलडोजर का सहारा लिया.’

बसपा सुप्रीमो मायावती ने सोशल मीडिया प्लेटफौर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट किया ‘बुलडोजर विध्वंस कानून का राज का प्रतीक नहीं होने के बावजूद इस के प्रयोग की बढ़ती प्रवृति चिंतनीय है. वैसे बुलडोजर व अन्य किसी मामले में जब आम जनता उस से सहमत नहीं होती है तो फिर केंद्र को आगे आ कर उस पर पूरे देश के लिए एक समान गाइडलाइंस बनाना चाहिए, जो नहीं किए जा रहे हैं. वरना बुलडोजर एक्शन के मामले में माननीय सुप्रीम कोर्ट को इसमें दखल दे कर केंद्र सरकार की जिम्मेदारी को खुद नहीं निभाना पड़ता, जो यह जरूरी था. केंद्र व राज्य सरकारें संविधान व कानूनी राज के अमल होने पर जरूर ध्यान दें.’

अब देखना है कि बुलडोजर पर प्रतिबंध के बाद योगी आदित्यनाथ कैसे चुनाव प्रचार करेंगे. जिस से जनता के बीच उन की छवि बनी रह सके. जैसे ही उन की लोकप्रियता घटेगी भाजपा में ही उन का विरोध शुरू हो जाएगा. इस का प्रभाव भाजपा के चुनाव पर पड़ेगा. भाजपा की खींचतान में विपक्षी कांग्रेस और समाजवार्दी पार्टी 2027 में उत्तर प्रदेश जीतने में सफल हो जाएंगे. उत्तर प्रदेश के बाद 2029 में दिल्ली की कुर्सी भी भाजपा नहीं बचा पाएगी.

निर्णय आप का : जब दामाद को दहेज में मिली सास

संसार में शायद मुझ से अधिक कोई बदनसीब नहीं होगा. विवाह में सब को दहेज में गाड़ी, सोफा, फ्रिज मिलता है, सुंदर पत्नी घर आती है, लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं हुआ. हमारा विवाह हुआ, पत्नी भी आई और दहेज में सास मिल गई. हम ने सोचा 1-2 दिन की परेशानी होगी सो भोग लो, किंतु हमारी सोच एकदम गलत साबित हुई. हमें पत्नीजी ने बताया कि आप की सास को यहां का हवापानी काफी जम गया है सो वह अब यहीं रहेंगी. यहां की जलवायु से उन का ब्लड प्रेशर भी सामान्य हो गया है.

हम ने सुना तो हमारा ब्लड प्रेशर बढ़ गया, लेकिन यदि विरोध करते तो तलाक की नौबत आ जाती. हो सकता है ससुराल पक्ष के व्यक्ति दहेज लेने का, प्रताड़ना का मुकदमा ठोंक देते. इसलिए मन मार कर हम ने यह सोच कर कि आज का दौर एक पर एक फ्री का है, सास को भी स्वीकार कर लिया. 2-3 माह तक दिल पर पत्थर रख कर हम अपनी सास को सहन करते रहे, लेकिन सोचा कि आखिर यह छाती पर पत्थर रख कर हम कब तक जीवित रह पाएंगे? सो हम ने पत्नीजी से सास की पसंद एवं नापसंद वस्तुओं को जान लिया. हमारी सास को कुत्ते, बिल्ली से सख्त नफरत थी. बचपन में उन की मां का स्वर्गवास कुतिया के काटने से हुआ था. पिताजी का नरकवास बिल्ली के पंजा मारने से हुआ था. हम ने भी मन ही मन ठान लिया कि कुत्ता, बिल्ली जल्दी से लाएंगे ताकि सासूजी प्रस्थान कर जाएं और हम अपनी जिंदगी को सुचारु रूप से चला सकें.

हम ने अपने अभिन्न मित्र मटरू से अपनी समस्या बताई और वह महल्ले से एक खजिया कुत्ते का पिल्ला और एक मरियल बिल्ली को ले आए. हम उन्हें खुशीखुशी झोले में डाल कर अपने घर ले आए. हमारी पत्नी ने देखा तो दहाड़ मार कर पीछे हट गई. सासूमां ने बेटी की दहाड़ सुनी तो दौड़ती आईं. हमारे झोले से खजिया कुत्ता एवं बिल्ली को देखा. हम खुश हो गए कि अब तो हमारी सास आधे घंटे बाद घर छोड़ कर प्रस्थान कर जाएंगी लेकिन मनुष्य जो सोचता है वह कब पूरा होता है? सास ने उन 2 निरीह प्राणियों को देखा तो चच्चच् कर के वहीं जमीन पर बैठ गईं और हमारी ओर बड़ी दया की नजरों से देख कर कहा, ‘‘सच में दामाद हो तो तुम जैसा.’’

‘‘क्यों, ऐसा हम ने क्या कर दिया सासूमां?’’ हम ने प्रसन्नता को मन में छिपाते हुए पूछा. ‘‘अरे, दामादजी, तुम इन निरीह प्राणियों को ऐसी स्थिति में उठा लाए, ये काम बिरले व्यक्ति ही कर सकते हैं. मैं पहले जानवरों से बहुत नफरत करती थी, लेकिन जब से जानवरों की रक्षा करने वाली संस्था की सदस्य बनी हूं तब से मेरा दृष्टिकोण ही बदल गया. तुम खड़े क्यों हो…आटोरिकशा लाओ?’’ सासूजी ने आदेश दिया.

‘‘आटोरिकशा किसलिए?’’ ‘‘अस्पताल चलना है.’’

‘‘क्यों? यह (पत्नीजी उठ बैठी थीं) तो ठीकठाक हैं?’’ हम ने भोलेपन से कहा. ‘‘दामादजी, इन कुत्तेबिल्ली के बच्चों को ले कर चलना है, जल्दी करो,’’ सासूमां ने आर्डर दिया. हम दिल पर पत्थर रख कर चले गए. आगे की घटना बड़ी छोटी है.

आटोरिकशा आया, उस के रुपए हम ने दिए. वेटनरी डाक्टर को दिखाया उस के रुपए हम ने दिए. जानवरों के लिए 1 हजार रुपए की दवा खरीदी वह रुपए देतेदेते हमें चक्कर आने लगे थे. कुल जमा 1,500 रुपयों पर हमें हमारे दोस्त मटरू ने उतार दिया था. घर ला कर उन जानवरों के लिए दूध, ब्रेड की व्यवस्था भी की, और जब ओवर बजट होने लगा तो एक रात चुपके से हम ने दोनों को थैली में बंद कर के मटरू के?घर में छोड़ दिया. हमारी सास जब सुबह उठीं तो बड़ी दुखी थीं कि पालतू जानवर कहां चले गए? हमारा दुर्भाग्य देखो कि मटरू स्कूटर से सुबह ही आ धमका, ‘‘अरे, गोपाल, ये दोनों मेरे घर आ गए थे. मैं इन्हें ले आया हूं,’’ कह कर उस ने मुझे शादी के तोहफे की तरह कुत्ते का पिल्ला और बिल्ली दी. सासूमां खुशी से झूम उठीं. हम मन ही मन कुढ़ कर रह गए. आखिर किस से अपने मन की व्यथा कहते?

कुत्ते का पिल्ला ठीक हो गया था. उस की खुराक भी हमारी सास की खुराक की तरह बढ़ रही थी. हम खून के आंसू रो रहे थे. सास को जमे 6 माह हो चुके थे. पत्नी थीं कि उन्हें घर भेजने का नाम ही नहीं ले रही थीं. हम अपने दोस्त मटरू के पास गए. उस के सामने खूब रोएधोए. उसे हमारी दशा पर दया आ गई. उस ने मुझे एक प्लान बताया जिसे सुन कर हम खुश हो गए. उस प्लान में एक ही गड़बड़ी थी कि श्रीमती को ले कर मुझे बाहर जाना था, लेकिन वह सास के बिना माफ करना, अपनी मां के बिना जाने को तैयार ही नहीं होती थीं.

हम ने अपने मित्र मटरू को वचन दिया कि उस की दी गई तारीख को केवल सास ही घर में रहेंगी. मैं और पत्नी सिनेमा देखने जाएंगे. इन 3-4 घंटों में वह काम निबटा कर सब ठीक कर लेगा.

हम ने मौका देख कर पत्नी की प्रशंसा की, उस के साथ कुछ पल तन्हातन्हा गुजारने की मनोकामना प्रकट की. वह थोड़ा लजाई, थोड़ा घबराई, मां की याद भी आई, लेकिन हमारे प्यार ने जोर मारा और वह तैयार हो गई कि मैं और वह शाम को फिल्म देखने चलेंगे. हालांकि सासूमां को अकेला छोड़ कर जाने पर उन्होंने आपत्ति प्रकट की लेकिन पत्नी ने उन्हें समझाया कि टिक्कू कुत्ता, दीयापक बिल्ली?है इसलिए अकेलापन खलेगा नहीं. बुझे मन से उन्होंने भी जाने की इजाजत दे दी.

हम ने खट से मटरू को मोबाइल से यह खबर दे दी कि हम शाम को निकल रहे हैं, देर से लौटेंगे. रात 10 से 1 के बीच सासूमां का काम निबटा ले. मटरू भी तैयार हो गया?था. हम भी खुश थे कि चलो, बला टलेगी, लेकिन पति हमेशा से ही बदकिस्मत पैदा होता है. प्लान यह था कि मटरू रात में साढ़े 10 बजे के बीच घर में प्रवेश करेगा और मुंह पर कपड़ा बांध कर सासूमां को डरा कर चोरी कर लेगा. सासूमां डर के मारे या तो भाग जाएंगी या हमारे घर से हमेशा के लिए बायबाय कर लेंगी.

हम पत्नी को 4 घंटे की एक फिल्म दिखलाने शहर से बाहर ले गए. रात 10 बजे फिल्म छूटी. हम ने भोजन किया. फोन से मटरू को खबर भी कर दी कि जल्दी से अपने आपरेशन को अंजाम दे. हमारी पत्नी अपनी मां को ले कर काफी चिंतित थी. हम ने आटोरिकशा वाले को पटा कर 50 रुपए अधिक दिए ताकि वह घर पर लंबे रास्ते से धीमी गति से पहुंचे.

रात साढ़े 12 बजे जब हम अपने घर पहुंचे तो घर के बाहर भीड़ जमा थी. पुलिस की एक वैन खड़ी थी. चंद पुलिस वाले भी थे. हमारा माथा ठनका कि मटरू ने कहीं जल्दबाजी में सासूमां का मर्डर तो नहीं कर दिया? हम जब आटोरिकशा से उतरे तो महल्ले के निवासी काफी घबराए थे. पत्नी अपनी मां की याद में रोने लगी तभी अंदर से सासूमां पुलिस इंस्पेक्टर के साथ बाहर हंसतीखिलखिलाती निकलीं. उन्हें हंसते देख हमारा माथा ठनका कि भैया आज मटरू पकड़ा गया और हमारा प्लान ओपन हुआ. बस, तलाक के साथसाथ पूरा महल्ला थूथू करेगा सो अलग. सब कहेंगे, ‘‘ऐसे टुच्चे दोस्त हैं जो ऐसी सलाह देते हैं.’’

हम शर्म से जमीन में गड़ गए. मन ही मन विचार किया, कभी ऐसा गंदा प्लान नहीं बनाएंगे. अचानक हमारे कान में मटरू की आवाज सुनाई पड़ी. देखा कि वह तो भीड़ में खड़ा तमाशा देख रहा है. अब हमारी बारी चक्कर खा कर गिरने की आ गई थी.

हम हिम्मत कर के आगे बढ़े तो देखते हैं कि पुलिस एक चोर को पकड़ कर बाहर आ रही थी. हमें देख कर सासूमां ने कहा, ‘‘लो दामादजी, इसे पकड़ ही लिया, पूरा शहर इस की चोरियों से परेशान था.’’ पुलिस इंस्पेक्टर ने हमें बधाई दी और कहा, ‘‘आप की सास वाकई बड़ी हिम्मती हैं. इन्होंने एक शातिर चोर को पकड़वाया है. इन्हें सरकार से इनाम तो मिलेगा ही लेकिन हमें आज आप के भाग्य पर ईर्ष्या हो रही है कि ऐसी सास हमारे भाग्य में क्यों नहीं थी?’’ हम ने सुना तो गद्गद हो गए. हमारी पत्नी ने लपक कर अपनी मां को गले से लगा लिया.

किस्सा यों हुआ कि हमारे मटरू दोस्त को आने में देर हो गई थी. उस की जगह उस रात अचानक असली चोर घुस आया. सासूमां ने पुराना घी खाया था, सो बिना घबराए अपने कुत्ते के साथ उसे धोबी पछाड़ दे दी. महल्ले वालों को आवाज दे कर बुलाया, पुलिस आ गई. इस तरह सासूमां ने एक शातिर चोर को पकड़ लिया. अगले दिन समाचारपत्रों में फोटो सहित सासूमां का समाचार छपा हुआ था. अब आप ही विचार करें, ऐसी प्रसिद्ध सासूमां को कौन घर से जाने को कहेगा? आप ही निर्णय करें कि हम भाग्यशाली हैं या दुर्भाग्यशाली? आप जो भी निर्णय लें लेकिन हमारी सासूमां जरूर सौभाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसा दामाद मिला…

जम्मूकश्मीर विधानसभा चुनाव में कौन मारेगा बाजी, चौकाने वाला मतदान

जम्मू कश्मीर में चुनावी रंग अपने सबाब पर दिखाई दे रहे हैं. पहले चरण का मतदान संपन्न हुआ जिस से साफ दिखाई दे रहा है कि आने वाले समय में जम्मू कश्मीर सही अर्थों में धरती का स्वर्ग बदलने जा रहा है.

पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह दावा कर देश को ‘गुमराह’ कर रहे हैं कि अगर नैशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन केंद्र शासित प्रदेश में सत्ता में आया तो जम्मू कश्मीर में आतंकवाद फिर से बढ़ जाएगा.”

आगे कहा, “मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहता हूं कि पिछले 5 साल से उन की सरकार है और अनुच्छेद 370 हट चुका है, वह कहते थे कि अनुच्छेद 370 यहां (जम्मू-कश्मीर) आतंकवाद के लिए जिम्मेदार है, लेकिन आज अनुच्छेद 370 है ही नहीं. अब भी ये आतंकवाद क्यों है?”

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, “प्रधानमंत्री को यह पता होना चाहिए कि जब वह दूसरों पर आरोप लगाते हैं तो तीन उंगलियां उन की ओर उठती हैं.” अब्दुल्ला ने आगे कहा, “जो लोग हम पर आरोप लगा रहे हैं, मैं उन से कहना चाहता हूं कि जब आप हमारी ओर एक उंगली उठाते हैं तो तीन उंगलियां आप की ओर उठती हैं. आप लोगों को गुमराह कर रहे हैं, आप हर दिन झूठ बोल रहे हैं.”

जम्मू-कश्मीर के चुनाव में मतदाताओं की पसंद निम्नलिखित कारकों पर निर्भर कर सकती है:

स्थानीय मुद्दे: रोजगार, विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, और सुरक्षा जैसे मुद्दों पर मतदाता अपने मत का उपयोग कर सकते हैं.

राष्ट्रीय मुद्दे: राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, और सामाजिक न्याय जैसे मुद्दों पर भी मतदाता अपने मत का उपयोग कर सकते हैं.

दलों की नीतियाँ और घोषणाएं: मतदाता विभिन्न दलों की नीतियों और घोषणाओं का मूल्यांकन करेंगे और अपने हितों के अनुसार मतदान करेंगे.

नेताओं की छवि: मतदाता नेताओं की छवि और उन की क्षमता का मूल्यांकन करेंगे और अपने मत का उपयोग करेंगे.

इन कारकों के आधार पर, जम्मू-कश्मीर के चुनाव में मतदाता किसी भी दल को चुन सकते हैं, जो उन के हितों और मुद्दों को पूरा करता हो.

जम्मू कश्मीर में राजनीतिक दलों की उपस्थिति और चुनावी माहौल एक जटिल और गतिशील परिदृश्य है. राज्य की राजनीति में कई दल सक्रिय हैं, जिन में से प्रत्येक की अपनी विचारधारा, नीतियां और समर्थक हैं. यहां कुछ मुख्य दलों की उपस्थिति और चुनावी माहौल पर एक नज़र :

नैशनल कान्फ्रेंस – यह दल जम्मू कश्मीर की राजनीति में एक प्रमुख भूमिका निभाता है. इस का नेतृत्व फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला जैसे अनुभवी नेताओं ने किया है.

पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) – यह दल भी जम्मू कश्मीर की राजनीति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस का नेतृत्व महबूबा मुफ्ती जैसे नेताओं ने किया है.

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) – भाजपा भी जम्मू कश्मीर में सक्रिय है और राज्य के विकास के लिए अपनी नीतियों को लागू करने की कोशिश कर रही है.

कांग्रेस- कांग्रेस पार्टी भी जम्मू कश्मीर में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है और राज्य के लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए काम कर रही है.

जम्मू कश्मीर में चुनावी माहौल अकसर तनावपूर्ण और जटिल होता है. राज्य की राजनीति में कई मुद्दे हैं, जैसे कि आतंकवाद, सुरक्षा, विकास, और रोजगार. इन मुद्दों पर विभिन्न दलों के अलगअलग दृष्टिकोण होते हैं.

चुनावी माहौल में अक्सर धार्मिक और क्षेत्रीय मुद्दे भी शामिल होते हैं. राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में अलगअलग दलों का प्रभाव होता है, जैसे कि कश्मीर घाटी में नैशनल कान्फ़्रेंस और पीडीपी का प्रभाव है, जबकि जम्मू क्षेत्र में भाजपा का प्रभाव है.

चुनावी माहौल में सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है. दलों द्वारा अपने अभियानों को चलाने और मतदाताओं तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया का उपयोग किया जाता है.

अंत में, जम्मू कश्मीर में राजनीतिक दलों की उपस्थिति और चुनावी माहौल एक जटिल और गतिशील परिदृश्य है, जिस में कई दल और मुद्दे शामिल होते हैं

जम्मू कश्मीर की घटनाक्रम

पहला – विधानसभा की अवधि समाप्ति: जम्मू कश्मीर विधानसभा की अवधि जून 2016 में समाप्त हो गई थी, लेकिन राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने के कारण चुनाव नहीं हो पाए.

दूसरा – अनुच्छेद 370 का हटना: अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद, जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. इस के बाद, राज्य में नए सिरे से चुनाव कराने की आवश्यकता है.

राजनीतिक अस्थिरता – जम्मू कश्मीर में राजनीतिक अस्थिरता के कारण, चुनाव आवश्यक हो गए हैं. राज्य में विभिन्न दलों के बीच मतभेद और गठबंधन की स्थिति ने चुनाव को आवश्यक बना दिया है.

लोकतंत्र की बहाली – चुनाव लोकतंत्र की बहाली के लिए आवश्यक है. इस से राज्य में एक स्थिर और निर्वाचित सरकार का गठन हो पाएगा.

विकास और सुरक्षा – जम्मू कश्मीर में विकास और सुरक्षा के मुद्दों को हल करने के लिए चुनाव आवश्यक हैं. राज्य में विभिन्न दलों के बीच विकास और सुरक्षा के मुद्दों पर अलगअलग दृष्टिकोण है.

इन कारणों से, जम्मू कश्मीर में चुनाव आवश्यक हो गए हैं. इस से राज्य में एक स्थिर और निर्वाचित सरकार का गठन हो पाएगा, जो राज्य के विकास और सुरक्षा के लिए काम करेगी.

जम्मू कश्मीर भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है, जो अपनी भौगोलिक, राजनीतिक, और सामाजिक विशेषताओं के लिए जाना जाता है. यहां कुछ मुख्य बिंदु हैं-

जम्मू कश्मीर हिमालय पर्वत श्रृंखला में स्थित है.
• इस की सीमाएं पाकिस्तान, चीन, और लद्दाख से लगती हैं.
• यहां कई नदियां हैं, जिन में से जेहलम, चेनाब, और रावी प्रमुख हैं.
• जम्मू कश्मीर की जलवायु ठंडी और शीतोष्ण है.

राजनीतिक स्थिति – जम्मू कश्मीर भारत का एक केंद्र शासित प्रदेश है.

यहां विधानसभा और लोकसभा के लिए चुनाव होते हैं. राज्य में कई राजनीतिक दल सक्रिय हैं, जिन में नैशनल कान्फ़्रेंस, पीडीपी, भाजपा, और कांग्रेस प्रमुख हैं. राज्य की राजनीति में आतंकवाद, सुरक्षा, और विकास मुद्दे प्रमुख हैं.

सामाजिक स्थिति- जम्मू कश्मीर की जनसंख्या लगभग 1.25 करोड़ है. यहां के मुख्य धर्म इस्लाम, हिंदू, और सिख हैं. राज्य में कई भाषाएं बोली जाती हैं, जिन में कश्मीरी, डोगरी, और उर्दू प्रमुख हैं.

यहां की संस्कृति विविध और समृद्ध है, जिस में संगीत, नृत्य, और कला का महत्वपूर्ण स्थान है

आर्थिक स्थिति- जम्मू कश्मीर की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि, पर्यटन, और उद्योग पर आधारित है. यहां के मुख्य उद्योग हैं, कश्मीरी कालीन, हस्तशिल्प, और फलों का उत्पादन. राज्य में बेरोजगारी और आर्थिक विकास मुद्दे प्रमुख हैं.

शैतानी मंसूबा : जब भाभी के रूप में सामने आई महबूबा

उन दिनों मेरी पोस्टिंग नौशहरा में थी. मेरी रिहाइश भी थाने के करीब ही थी. एसआई मशकूर हुसैन ने खबर सुनाई,

‘नौशहरा गांव में एक कत्ल की वारदात हो गई है. मकतूल का बाप और 2 आदमी बाहर बैठे आप का इंतजार कर रहे हैं.’

मैं उन लोगों के साथ फौरन मौकाएवारदात पर जाने के लिए रवाना हो गया. मकतूल का नाम आफताब था, वह फय्याज अली का बड़ा बेटा था. उस से छोटा नौशाद उस की उम्र 20 साल थी. आफताब उस से 2 साल बड़ा था. उस की शादी एक महीने पहले ही हुई थी.

मकतूल का बाप फय्याज अली छोटा जमींदार था. उस के पास 10 एकड़ जमीन थी, जिस पर बापबेटे काश्तकारी करते थे. मैं खेत में पहुंचा, जहां पर 2 छोटे कमरे बने हुए थे. बरामदे में कटे हुए गेहूं का ढेर लगा था. फय्याज के साथ मैं कमरे के अंदर पहुंच गया. मकतूल की लाश कमरे में पड़ी चारपाई के पायंते पर पड़ी थी.

मैं ने गौर से लाश की जांच की. वह औंधे मुंह पड़ा था. मुंह के करीब खून का छोटा सा तालाब बन गया था. खोपड़ी पर किसी वजनी चीज से वार किया गया था. खोपड़ी का पिछला हिस्सा काफी जख्मी था. खोपड़ी चटक गई थी. यह जख्म ही मौत की वजह था. वार बड़ी बेदर्दी से किया गया था, जिस से मारने वाले की नफरत का अंदाजा होता था.

मेरे अंदाज के मुताबिक उसे सुबह 5-6 बजे मारा गया था. मैं ने कमरे की अच्छे से तलाशी ली. आला ए कत्ल नहीं मिला. मैं ने दूसरे कमरे की भी तलाशी ली, जहां खेती के औजार और बीज पड़े थे. काररवाई पूरी होने पर लाश मशकूर हुसैन के साथ पोस्टमार्टम के लिए सिटी अस्पताल भिजवा दी.

कमरे के बाहर अब तक काफी लोग जमा हो चुके थे. मैं ने फय्याज को तसल्ली दी. उसे यकीन दिलाया कि कातिल जल्दी ही पकड़ा जाएगा. फिर उस से पूछा, ‘‘क्या आफताब की किसी से लड़ाई थी?’’

उस ने रोते हुए जवाब दिया, ‘‘उस का कोई दुश्मन नहीं था. वह तो सब से मिलजुल कर रहता था.’’

‘‘पर फय्याज अली, लाश की हालत देख कर लगता है कि किसी ने दुश्मनी निकाली है. क्या किसी पर शक है? उस की लाश कितने बजे मिली थी?’’

‘‘हुजूर, वह सुबह 5 बजे अपने भाई के साथ खेतों पर निकल जाता था. लाश 8 बजे मिली. मैं देर से उन का नाश्ता ले कर जाता था.’’

‘‘क्या तुम आज भी 8 बजे नाश्ता ले कर निकले थे?’’

‘‘जी सरकार. आज मैं अकेले आफताब का नाश्ता लाया था, क्योंकि नौशाद बीमार घर पर पड़ा है.’’

काफी देर तक मैं अंदरबाहर की तलाशी लेता रहा. फिर फय्याज अली से पूछा, ‘‘जब तुम कमरे पर पहुंचे तो तुम ने क्या देखा?’’

‘‘जब मैं खेतों पर पहुंचा, मैं ने उसे खेत में नहीं देखा तो परेशान हो गया. वह सवेरे घर से आ कर डेरे से खेतों के कपड़े पहन कर काम शुरू करता था. शाम को काम खत्म कर के घर के कपड़े बदलता था. जब मैं कमरे पर पहुंचा तो वह घर के कपड़ों में ही औंधा पड़ा था. उसे कपड़े बदलने का मौका भी नहीं मिला था. शायद कातिल उस के साथ ही यहां पहुंचा हो.’’

‘‘मेरे खयाल में कातिल ने बेखबरी में मकतूल पर पीछे से वार किया है. उसे कपड़े बदलने का मौका तक नहीं मिल सका. मुझे शक है कि कातिल पहले से ही कमरे में था.’’

‘‘लेकिन दोनों कमरों के दरवाजे हम ताला लगा कर बंद करते हैं. कोई बंदा अंदर कैसे जा सकता है?’’

अचानक मेरी नजर कमरे की खिड़की पर पड़ी, जिस से आसानी से एक आदमी कमरे के अंदर आ सकता था. मैं ने खिड़की की तरफ इशारा करते हुए कहा, ‘‘देखो, वह खिड़की खुली हुई है. कुंडी नहीं लगी है.’’

फय्याज हैरानी से बोला, ‘‘हैरत है जनाब, हम रोज शाम को खिड़की दरवाजे याद से बंद करते हैं. कल शायद भूल हो गई और कातिल को अंदर आने का मौका मिल गया.’’

उस के बाद मैं फय्याज के साथ कमरे बंद करवा कर उस के घर पहुंचा, जहां उस की बीवी सुलताना और बहू खालिदा थीं. घर का माहौल बेहद बोझिल था. आसपड़ोस की औरतें दोनों को तसल्ली दे रही थीं. मुझे नौशाद कहीं दिखाई नहीं दिया. मैं ने उस के बारे में पूछा तो पता लगा कि वह रिश्तेदारी में मौत की खबर देने गया है. औरतें कुछ बताने की हालत में नहीं थीं.

मैं बाहर आ गया. सामने किराने की एक दुकान थी. मैं वहां पहुंच गया. मैं ने दुकानदार अली से कहा, ‘‘तुम्हारी दुकान के सामने ही रहने वाले फय्याज का कत्ल हो गया है. तुम्हारा इस बारे में क्या खयाल है?’’

उस ने बड़ी ही उदासी से कहा, ‘‘बहुत अफसोसजनक घटना है. आफताब बहुत अच्छा लड़का और कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी था.’’

‘‘चाचा, मुझे लगता है कि यह कत्ल दुश्मनी और नफरत का नतीजा है. क्या तुम्हें कुछ अंदाजा है, कौन यह काम कर सकता है?’’

कुछ देर वह सोचता रहा फिर बोला, ‘‘सरकार, ऐसे तो मुझे कुछ अंदाजा नहीं है. अभी तो बेचारे की शादी हुई थी. बड़ा ही सीधा बंदा था और बहुत ही धीमे मिजाज का. पर मुझे याद पड़ता है कुछ अरसे पहले कबड्डी के एक मैच में विरोधी टीम के एक बंदे ने बेइमानी की थी. उस का नाम फैजी था. दोनों की खूब कहासुनी हुई थी. फैजी का एक साथी जावेद भी बहुत बढ़चढ़ कर बोल रहा था. वह तो अच्छा हुआ देखने वालों ने समझाबुझा कर मामला संभाल लिया. मैं भी वहीं था. फैजी और जावेद बड़े लड़ाकू किस्म के लड़के हैं. उस दिन आफताब खेल से बाहर निकल गया. बात खत्म हो गई.’’

‘‘यह कितने दिन पहले की बात है?’’

चाचा ने सोच कर कहा, ‘‘उस की शादी के बाद ये मैच हुआ था. पर थानेदार साहब, यह इतनी बड़ी बात नहीं है कि कोई किसी का कत्ल कर दे.’’

मैं ने चाचा को बहुत कुरेदा पर कोई खास जानकारी न हो सकी. थाने पहुंच कर मैं ने जावेद को बुलवाया तो पता चला कि वह किसी काम से गल्ला मंडी गया है. सिपाही उस की मां से कह कर आया था कि आने पर उसे थाने भेज दे.

शाम को मशकूर हुसैन शहर से वापस आ गया. लाश दूसरे दिन मिलने वाली थी. मौत की वजह खोपड़ी पर लगी चोट थी. मैं ने मशकूर हुसैन से पूछा, ‘‘तुम जावेद के बारे में क्या जानते हो?’’

उस ने कहा, ‘‘जावेद कबड्डी का अच्छा खिलाड़ी है. एक मैच में उस की आफताब से लड़ाई भी हुई थी, पर यह इतनी अहम बात नहीं है कि बात कत्ल तक पहुंच जाए.’’

‘‘जावेद के आने पर असली बात पता चलेगी.’’

‘‘एक बात और है सर, मेरी मालूमात के मुताबिक जावेद की बहन फरीदा की शादी आफताब से होने वाली थी. एक साल मंगनी रही फिर आफताब के घर वालों ने यह कह कर मंगनी तोड़ दी कि लड़की का चालचलन ठीक नहीं है. और फिर उस की शादी भाई की बेटी खालिदा से कर दी.’’

मैं ने कहा, ‘‘मंगनी टूटने का भी दुख और अपमान ऐसे काम को उकसा सकता है.’’

अगले दिन फिर मैं फय्याज अली के घर गया. जावेद अभी तक नहीं आया था. मैं उस के बारे में सोच रहा था. फय्याज अली के घर का माहौल वैसा ही शोकग्रस्त था. मैं मकतूल की बेवा खालिदा से मिला. वह सदमे में थी. रोरो कर उस की आंखें सुर्ख हो रही थीं.

अच्छी खूबसूरत लड़की बेहाल हो रही थी. उस से कुछ पूछना बेकार था. मैं ने फय्याज से पूछा, ‘‘क्या कबड्डी के एक मैच में जावेद और आफताब की लड़ाई हुई थी?’’

उस ने बेबसी से कहा, ‘‘हां, मैं ने भी सुना था कि कुछ बेइमानी होने पर दोनों के बीच में कहासुनी हुई थी.’’

मैं ने आफताब की मां से पूछा, ‘‘आप के बेटे की मंगनी पहले जावेद की बहन फरीदा से हुई थी. फिर मंगनी क्यों तोड़ दी? हो सकता है, इस वाकये की वजह से जावेद आफताब से नफरत करने लगा हो.’’

‘‘मंगनी तो टूटी थी क्योंकि फरीदा का चालचलन अच्छा नहीं था. पर थानेदार साहब, मुझे जावेद से ज्यादा फैजी पर शक है क्योंकि कबड्डी के मैदान के साथसाथ आफताब ने उसे जिंदगी के मैदान में भी हरा दिया था. क्योंकि फैजी खालिदा से शादी करना चाहता था. वैसे हमारी फैजी से कोई सीधी रिश्तेदारी नहीं है, पर खालिदा की मां और फैजी की मां आपस में बहनें हैं.

‘‘खालिदा फैजी की खालाजाद बहन है. फैजी की मां की बड़ी आरजू थी कि वह खालिदा को अपनी बहू बनाए पर खालिदा की मां ने साफ इनकार कर दिया. इस पर बहुत लड़ाई भी हुई थी. लंबी नाराजगी चल रही है और खालिदा की शादी मेरे बेटे आफताब से हो गई. इस के पहले फैजी की मां और खालिदा की मां के ताल्लुकात बहुत अच्छे थे और सदमे में फैजी के बाप को फालिज का असर हो गया.’’

सारी कहानी सुन कर मैं सोच में पड़ गया. अब फैजी और जावेद दोनों शक के घेरे में आ गए थे. मैं ने फय्याज अली को बताया, ‘‘लाश शाम तक आ जाएगी. वे लोग मय्यत का बंदोबस्त कर लें.’’

सब को तसल्ली दे कर मैं वहां से उठ गया. उस दिन भी नौशाद से मुलाकात न हो सकी. वह काम से बाहर गया था.

सुलताना से की गई मालूमात तफ्तीश को आगे बढ़ाने में कारामद थी. जब मैं बाहर निकला तो फय्याज के साथ एक अधेड़ उम्र का आदमी और एक लड़का भी था. फय्याज ने बताया, ‘‘यह मेरे भाई फिदा अली हैं और यह खालिदा का भाई सईद.’’

इन के बारे में मैं पहले ही सुन चुका था. इन लोगों से कुछ पूछना बेकार था.

दूसरे दिन जावेद मेरे सामने खड़ा था. कसरती नौजवान था. उस के चेहरे पर रूखापन और अकड़ थी. उस ने तीखे लहजे में पूछा, ‘‘थानेदार साहब, मैं ने क्या किया है जो आप ने मुझे थाने बुलाया है?’’

‘‘मुझे कुछ पूछताछ करनी है. सीधा और सही जवाब चाहिए.’’

‘‘मुझे झूठ बोलने की क्या जरूरत है. बेवजह मुझे पकड़ लाए.’’

हवलदार ने एक चांटा उसे जड़ा तो उस का दिमाग सही हो गया. धीमे लहजे में बोला, ‘‘पूछिए, क्या पूछना है?’’

‘‘वारदात के दिन तुम कहां थे? शाम तक भी घर वापस नहीं आए.’’

‘‘सरकार, मैं गल्ला मंडी गया था. कुछ काम पड़ गया, आतेआते रात हो गई. सुबह आप की खिदमत में हाजिर हूं.’’

‘‘गल्ला मंडी क्यों गए थे?’’

‘‘मुझे सब्जियों के बीज लाने थे और गेहूं के दाम भी चैक करने थे. मैं सवेरे 8 बजे घर से निकला था.’’

इस का मतलब वह आफताब की मौत के बाद घर से निकला था. मैं आंख बंद कर के उस पर यकीन नहीं कर सकता था.

‘‘तुम ने जो बीज खरीदे, उस की रसीद दिखाओ?’’

उस ने जेब से तुड़ीमुड़ी रसीद निकाल कर मेरे आगे कर दी. तारीख की जगह पर मुझे ओवरराइटिंग का गुमान हुआ. मैं ने रसीद दराज में रख ली.

‘‘जावेद, यह बताओ कि आफताब की मंगनी तुम्हारी बहन से हुई थी तो यह मंगनी क्यों टूट गई?’’

‘‘सरकार, उन लोगों ने मेरी बहन पर बदचलनी का इलजाम लगा कर मंगनी तोड़ दी. मुझे बहुत गुस्सा आया रंज भी हुआ. बेवजह मेरी बहन बदनाम हुई.’’

‘‘और इसी का बदला लेने के लिए गुस्से में तुम ने आफताब का कत्ल कर दिया.’’

वह घबरा कर बोला, ‘‘थानेदार साहब, गुस्सा अपनी जगह है. मैं इस बात के लिए आफताब को कत्ल नहीं कर सकता. हां, मेरी उस से लड़ाई हुई थी. उसे बुराभला कह कर मैं ने अपना गुस्सा उतार लिया था और अपने दोस्त फैजी का साथ दिया था. मैं कसम खाता हूं, मैं इस कत्ल में शामिल नहीं हूं.’’

मैं ने पलटवार किया, ‘‘तो क्या यह कत्ल फैजी ने किया है? वह खालिदा से शादी करना चाहता था, पर जब उस की शादी आफताब से हो गई तो बदला लेने के लिए उस ने आफताब को मार दिया.’’

वह जल्दी से बोला, ‘‘नहीं सरकार, फैजी ऐसा नहीं कर सकता. इतनी सी बात के लिए कोई खून नहीं कर सकता. मैं यह मानता हूं कि मेरे और फैजी के दिल में आफताब के लिए जहर भरा था, पर हम ने कत्ल की वारदात नहीं की है.’’

मैं ने धमकाते हुए कहा, ‘‘तुम शक के दायरे से बाहर नहीं हो. गांव छोड़ कर बाहर मत जाना.’’

दोपहर को पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई और साथ ही लाश भी. लाश घर वालों के सुपुर्द कर दी गई. रिपोर्ट के मुताबिक, आफताब को 18 तारीख की सवेरे 5 और 6 बजे के बीच मारा गया था.

मौत खोपड़ी चटखने से हुई. खोपड़ी के पिछले हिस्से पर लोहे की भारी चीज से वार किया गया था. यह वार बेखबरी में पीछे से किया गया था.

शाम को लाश को दफना दिया गया. काफी लोग जमा हुए थे. गमी का माहौल था. दूसरे दिन मैं ने मशकूर हुसैन को जावेद की बात की सच्चाई जानने को रसीद के साथ गल्ला मंडी रवाना कर दिया. उस के बाद फैजी को थाने बुलाया.

फैजी 23-24 साल का गोरा जवान था. आते ही उस ने तीखे लहजे में पूछा, ‘‘मुझे आप ने सिपाही से पकड़वा कर क्यों बुलवाया? मेरा क्या कसूर है?’’

मैं ने नरम लहजे में कहा, ‘‘तुम से कुछ पूछताछ करनी है. एक बार में सच बोल दो तो बेहतर है. मार के बाद तो सच ही निकलेगा. तुम ने आफताब का कत्ल क्यों किया?’’

वह चीखते हुए बोला, ‘‘आप यह कैसा इलजाम लगा रहे हैं. इस कत्ल में मैं शामिल नहीं हूं. खुदा की कसम, मैं ने उस का कत्ल नहीं किया. यह सरासर इलजाम है.’’

मैं ने कड़क कर कहा, ‘‘फिर बताओ किस ने कत्ल किया? तुम उस से नफरत करते थे क्योंकि तुम्हारी पसंद की लड़की की शादी आफताब से हो गई थी. उस की जीत तुम से बरदाश्त नहीं हुई. कबड्डी के मैदान में भी तुम ने उस से झगड़ा किया था.’’

‘‘यह सही है कि मैं उस से नफरत करता था, पर सच्चाई यह है कि मैं ने आफताब को नहीं मारा.’’

‘‘जब तक सही कातिल हाथ नहीं आता, शक में तुम हवालात में बंद रहोगे.’’

फैजी की गिरफ्तारी की खबर जल्दी ही गांव में फैल गई. उस की मां रोतेधोते हमारे पास पहुंच गई. कहने लगी, ‘‘मेरा बेटा बेकसूर है. सुलताना ने आप को भड़काया, इलजाम लगाया, आप ने उसे हवालात में डाल दिया. यह जुल्म है सरकार. यह बात सही है कि फैजी खालिदा से शादी करना चाहता था पर मेरी बहन ने ही मना कर दिया, मैं किसी को क्या दोष दूं.’’

मैं ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘देखो, अभी जांच चल रही है. फैजी शक के दायरे में आता है, इसलिए उसे बंद किया है. अगर वह बेकसूर है तो यकीन रखो, मैं उसे छोड़ दूंगा.’’

वह रोते हुए बोली, ‘‘हुजूर, उस का बाप भी फालिज में पड़ा हुआ है. बेटा जेल में बंद है, हम पर रहम करें.’’

मैं ने समझाबुझा कर उसे घर भेजा. इसी बीच मशकूर हुसैन गल्ला मंडी से लौट आया. उस ने बताया, ‘‘तारीख में हेरफेर किया गया है. 3 को 8 बनाया गया है. बीज 13 तारीख को खरीदे गए थे, रसीद में 18 है.’’

वह दूसरी रसीद भी साथ लाया था. मैं ने फौरन जावेद को बुलवाया. उसे दोनों रसीदें दिखाईं तो वह हड़बड़ा गया. कहने लगा, ‘‘मैं ने तारीख बदली है यह सच है, पर इस की वजह दूसरी है, जिसे मैं ही जानता हूं.’’

मैं ने एक चांटा लगाते हुए पूछा, ‘‘वारदात के अलावा और क्या वजह हो सकती है.’’

वह गिड़गिड़ाया, ‘‘हुजूर, बात यह है कि 13 तारीख की रसीद दिखा कर मैं ने अपने बाप से पैसे वसूल कर लिए थे. मुझे जुए की लत लग गई है. 18 को मैं गल्ला मंडी तो गया था पर कुछ खरीदा नहीं और पुरानी रसीद में तारीख बदल कर अब्बा से दोबारा पैसे वसूल कर लिए. बस इतनी सी बात है.’’

वह रोने लगा, कसमें खाने लगा. उस की बात में सच्चाई थी क्योंकि गल्ला मंडी से यही मालूम हुआ था कि वह 13 तारीख को बीज ले गया था, 18 तारीख को सिर्फ आ कर चला गया था. वहां से वह हनीफ के जुआ अड्डे पर गया था. पर मैं इस तरह से उसे छोड़ नहीं सकता था. मैं ने उसे भी हवालात में डलवा दिया. गल्ला मंडी की जांच एक सिपाही के जिम्मे कर दी.

शाम को मैं खुद फैजी के घर चला गया. उस का बाप बाबू खां दुबलापतला, बीमार सा आदमी था. फालिज ने उसे बिस्तर से लगा दिया था. मैं ने उसे तसल्ली दी, ‘‘हौसला रखो बाबू खां. फैजी अगर बेकसूर है तो मैं तुम से वादा करता हूं कि उस का बाल भी बांका नहीं होगा.’’

उस ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘थानेदार साहब, इंसान गलती का पुतला है. ऐसी ही संगीन गलती मेरी बीवी जाहिदा ने भी की. वह खालिदा की शादी आफताब के बजाय नौशाद से करती तो बहुत अच्छा होता.’’

बाबू खां की एक बात में हजार भेद छिपे थे. बाबू खां को समझा कर मैं लौट आया. जैसे ही मैं थाने पहुंचा, सिपाही साजिद मेरे आगे हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘‘सर, मुझ से बड़ी गलती हो गई. 18 तारीख वारदात के दिन जब हम लोग कमरों की तलाशी ले रहे थे, मुझे यह अंगूठी खिड़की के बाहर पड़ी मिली थी. मैं ने इसे जेब में रख लिया था और फिर एकदम भूल गया. आज जब ड्रैस धोने को निकाला तो यह अंगूठी हाथ लगी.’’

उस ने अंगूठी मेरी टेबल पर रख दी. गुस्सा तो मुझे बहुत आया. क्लू के होते हुए भी मैं अंधेरे में हाथपांव मार रहा था. 2 बंदों को हवालात में बिठा रखा था. मैं ने साजिद अली की अच्छी खबर ली और वार्निंग दी कि ऐसी गलती दोबारा नहीं होनी चाहिए.

अंगूठी अच्छीखासी महंगी थी, जिस में चौकोर माणिक जड़ा था. चारों तरफ नन्हे फिरोजे जड़े हुए थे. मैं ने जावेद और फैजी को अपने कमरे में बुलाया. दोनों के हाथ बारीकी से चैक किए. वहां किसी की अंगुली पर अंगूठी का निशान नहीं था. फिर मैं ने उन्हें अंगूठी दिखाते हुए कहा, ‘‘सचसच बताना, यह अंगूठी किस की है? क्या इसे पहचानते हो?’’

दोनों के मुंह से एक साथ निकला, ‘‘हां सरकार, यह अंगूठी नौशाद की है.’’

कच्चा वारदाती जब पुलिस के हाथ चढ़ता है तो 2 झन्नाटेदार थप्पड़ उसे सच बोलने पर मजबूर कर देते हैं. नौशाद को गिरफ्तार कर के जब मेरे सामने लाया गया, मैं ने माणिक जड़ी अंगूठी उस के सामने रख दी. थप्पड़ों से पहले ही उस के होश ठिकाने आ चुके थे. अंगूठी देखते ही उस का रंग उड़ चुका था. मैं ने पूछा, ‘‘यह अंगूठी तुम्हारी है न?’’

‘‘सर, यह आप को कहां से मिली?’’

‘‘जहां से तुम खिड़की के रास्ते कमरे के अंदर पहुंचे थे, वहां दीवार के पास पड़ी थी.’’

वह हक्काबक्का मेरी सूरत देख रहा था. बाबू खां का कहा हुआ एक वाक्य मेरे जहन में गूंज रहा था, ‘‘मांबाप को शादी के वक्त औलाद की पसंदनापसंद का खयाल रखना चाहिए. अगर वह खालिदा का रिश्ता आफताब के बजाय नौशाद से करती तो बहुत बेहतर होता.’’ अब इस वाक्य के पीछे छिपी कहानी पूरी तरह मेरी समझ में आ गई थी. नौशाद ने कांपती आवाज में कहा, ‘‘यह अंगूठी मेरी है.’’

‘‘क्या तुम खालिदा से मोहब्बत करते हो और वह भी तुम्हें पसंद करती है?’’

‘‘जी, यह सच है मैं और खालिदा एकदूसरे से बहुत मोहब्बत करते हैं.’’ उस ने थूक निगलते हुए कहा.

‘‘तो क्या अपनी पसंद और मोहब्बत को पाने के लिए सगे भाई को कत्ल कर देना चाहिए?’’ मैं ने नफरत भरे लहजे में कहते हुए एक तमाचा और मारा.

यह खुदगर्जी और जुल्म की एक बदतरीन मिसाल थी. इस से पहले मैं ने नौशाद को देखा ही नहीं था, नहीं तो शायद उस की खूबसूरती देख कर मेरे दिल में शक होता. नौशाद ने रोते हुए गरदन झुका ली.

अगले एक घंटे के अंदर मैं ने उस का इकबालिया बयान ले लिया. किस्सा यूं था—

खालिदा और नौशाद बेहद खूबसूरत थे. वे दोनों एकदूसरे से मोहब्बत करते थे पर खालिदा की मां ने फैजी का रिश्ता आने की वजह से उस की शादी आफताब से तय कर दी और एक हफ्ते के अंदर ही खालिदा और आफताब की शादी निपटा दी. खालिदा और नौशाद को शादी के मौके पर कुछ कहने का वक्त ही नहीं मिला. जब होश आया, जुबान खोलते, तब तक शादी हो चुकी थी.

खालिदा ब्याह कर उसी के घर में आ गई. वह ब्याह कर और कहीं जाती तो शायद नौशाद उसे भूल जाता, पर अपने ही घर में अपनी महबूबा को भाभी के रूप में देख कर नौशाद का दिमाग खराब हो गया. वह रातदिन खालिदा को देख कर जलता और सोचता कि उसे कैसे हासिल किया जाए. फिर एक दिन उस ने एक शैतानी मंसूबा बना डाला और फैसला कर लिया कि सगे भाई आफताब को रास्ते से हटा देगा.

अपने मंसूबे के मुताबिक वारदात के एक दिन पहले अपनी बीमारी का कामयाब ड्रामा रचाया और 18 तारीख की सुबह वह भाई के साथ काम करने के लिए खेतों पर नहीं गया. वह छत पर सोता था, इसलिए उस की कारगुजारी सब से छिपी रही. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं हुई कि मकतूल के पहले चुपके से वह डेरे पर पहुंच गया.

अपने मकसद को पूरा करने के लिए उस ने खिड़की की कुंडी नहीं लगाई थी. वह खिड़की के रास्ते आफताब से पहले ही कमरे में घुस कर दरवाजे के पीछे छिप कर खड़ा हो गया और आफताब का इंतजार करने लगा.

जैसे ही आफताब ताला खोल कर कमरे में दाखिल हुआ, उस ने लोहे के भारी रेंच-पाने से उस के सिर पर करारा वार किया. अगले ही पल किसी कटे हुए दरख्त की तरह वह जमीन पर गिर गया. उस की खोपड़ी चटख गई थी.

नौशाद खिड़की के रास्ते कमरे में आया था. चढ़ते वक्त उस की अंगूठी दीवार के पास गिर गई, उसे पता नहीं चला. और साजिद ने भी अंगूठी देने में देर कर दी, नहीं तो केस दूसरे दिन ही हल हो जाता. बेवजह ही फैजी और जावेद को हवालात में बंद रखा. जर, जोरू और जमीन शुरू से ही कत्ल की वजह बनते रहे हैं. दोनों ही खूबसूरत लड़की और लड़के की जिंदगी नादानी में उठाए एक कदम से बरबाद हो गई.

प्रस्तुति : शकीला एस. हुसैन

लाइफ एंज्वायमेंट : मोनिका की मीठी आवाज का जादू

टेलीफोन की घंटी घनघनाई. मैं ने जैसे ही फोन उठाया, उधर से आई मधुर आवाज ने कानों में मिठास घोल दी.

‘‘क्या मिस्टर गंभीर लाइन पर हैं? क्या मैं उन से बात कर सकती हूं?’’

प्रत्युत्तर में मैं ने कहा, ‘‘बोल रहा हूं.’’ इस से पहले कि मैं कुछ कहूं, उधर से पुन: बातों का सिलसिला जारी हो गया, ‘‘सर, मैं पांचसितारा होटल से रिसेप्स्निष्ट बोल रही हूं. हम ने हाल ही में एक स्कीम लांच की है. हम चाहते हैं कि आप को उस का मेंबर बनाएं. सर, इस के कई बेनीफिट हैं. शहर के प्रतिष्ठित लोगों से कांटेक्ट कर के आप हाइसोसायटी में उठबैठ सकेंगे. क्रीम सोसायटी में उठनेबैठने से आप का स्टेटस बढ़ेगा और आप ऐश से लाइफ एंज्वाय करेंगे. इतने सारे लाभों के बावजूद सर, आप के कुल बिल पर हम 10 परसेंट डिस्काउंट भी देंगे. आप समझ सकते हैं सर कि यह स्कीम कितनी यूजफुल है, आप के लिए. सर, बताइए, मैं कब आ कर मेंबरशिप ले लूं?’’

मैं एकाग्रता से उस की बातें सुन रहा था क्योंकि उस के लगातार बोलने के कारण मुझे कुछ कहने का अवसर ही नहीं मिल सका. वह जब कुछ क्षण के लिए रुकी तो मैं ने तुरंत पूछ  लिया, ‘‘मैडम, आप पहले अपना नाम और परिचय दीजिए ताकि मैं आप की स्कीम के संबंध में कुछ सोच सकूं. बिना सोचेसमझे कैसे मेंबर बन पाऊंगा?’’

उस ने कहा, ‘‘सर, मैं पहले ही बता चुकी हूं कि मैं रिसेप्शनिस्ट हूं. क्या परिचय के लिए इतना काफी नहीं है? आप तो सर मेंबरशिप में इंटरेस्ट लीजिए. जो आप के लिए बहुत यूजफुल है.’’

‘‘मैडम, आप का कहना सही है पर उस से पहले आप के बारे में जानना भी तो जरूरी है. बिना कुछ जानेपहचाने मेंबर बनना कैसे संभव है.’’ वह अपनी बात पर कायम रहते हुए फिर बोली, ‘‘सर, आप मेंबर बनने के लिए यस कीजिए. जब मैं पर्सनली आ कर आप से कांटेक्ट करूंगी तब आप मुझ से रूबरू भी हो लीजिएगा. बस, आप के यस कहने की ही देर है. आप जो चाहते हैं, वह सब डिटेल में जान जाएंगे. हमारे आनरेबल कस्टमर के रूप में, आप जब यहां आएंगे तो मुलाकातें होती रहेंगी. लोगों को आपस में मिला कर, लाइफ एंज्वाय कराने का चांस देना ही हमारी स्कीम का मेन मोटो है. सर, प्लीज हमें सेवा करने का एक चांस तो अवश्य दीजिए. मेरा नाम और परिचय जानने में आप क्यों टाइम वेस्ट कर रहे हैं?’’

यह तर्क सुनने के बाद भी मैं अपनी बात पर अटल रहा. मैं ने कहा, ‘‘मैडम, जब तक आप नाम और परिचय नहीं बताएंगी, तब तक आप के प्रस्ताव पर कैसे विचार करूं?’’

जब उस ने देखा कि मैं अपनी बात पर कायम हूं, तो हार कर उस ने कहा, ‘‘सर, जब आप को इसी में सैटिस्फैक्शन है कि पहले मैं अपना इंट्रोडक्शन दूं, तो मैं दिए देती हूं. पर सर, मेरी भी एक शर्त है. इस के बाद आप मेंबर अवश्य बनेंगे. आप इस का भी वादा कीजिए.’’

मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘पहले कुछ बताइए तो सही.’’

उस ने कहा, ‘‘सर, मेरा नाम मोनिका है,’’ और यह बताने के साथ ही उस ने फिर अपनी बात दोहराई और बोली, ‘‘अब तो प्लीज मान जाइए, मैं कब आ जाऊं?’’

उस के बारबार के मनुहार पर कोई ध्यान न देते हुए मैं ने उस की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘‘मैडम, कितना सुंदर नाम है, मोनिका? जिसे बताने में आप ने इतनी देर लगा दी. जब नाम इतना शार्ट और स्वीट है, आप की आवाज इतनी मधुर है, आप बात इतने सलीके से कर रही हैं तो स्वाभाविक है, आप सुंदर भी बहुत होंगी? सच कहूं तो आप के दर्शन करने की अब इच्छा होने लगी है.’’

अपनी तारीफ सुन कर उस ने हंस कर कहा, ‘‘सर, अब आप मेन इश्यू को अवाइड कर रहे हैं. यह फेयर नहीं है. जो आप ने नाम पूछा वह मैं ने बता दिया. फिर आप मेरी तारीफ करने लगे और अब दर्शन की बात. आखिर इरादा क्या है आप का, सर? हम ने बहुत बातें कर लीं. अब आप काम की बात पर आइए. सर, बताइए कब आ कर दर्शन दे दूं.’’

वह बराबर सदस्यता लेने के लिए अनुनयविनय करती जा रही थी लेकिन मेरे मन में एक जिज्ञासा थी जिस का समाधान करना उपयुक्त समझा. मैं ने पूछा, ‘‘मोनिकाजी, इतने बड़े शहर में आप ने मुझे ही क्यों इस के लिए चुना? शहर में और लोग भी तो हैं?’’

उस ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘सर, वास्तव में स्कीम लांच होने पर हम शहर के स्टेटस वाले लोगों से फोन पर कांटेक्ट कर रहे हैं, जो हमारी मेंबरशिप अफोर्ड करने योग्य हैं. वैसे आप के नाम का प्रपोजल आप के मित्र सुदर्शनजी ने किया था. उन्होंने कहा था कि यदि मिस्टर गंभीर तैयार हो जाते हैं तो मैं भी मेंबर बन जाऊंगा. इसीलिए आप से इतनी रिक्वेस्ट कर रही हूं क्योंकि आप के यस कह देने पर हमें आप दोनों की मेंबरशिप मिल जाएगी. सर, अब तो सारी बातें क्लीयर हो गई हैं. इसलिए अब कोई और बहाना मत बनाइए. बताइए, मैं कब आऊं?’’

यह सुन कर मैं पसोपेश में पड़ गया क्योंकि कुछ कहने की कोई गुंजाइश नहीं थी. मुझे चुप देख कर उस ने घबराई आवाज में पूछा, ‘‘सर, अब क्या हो गया? किस गंभीर सोच में पड़ गए हैं? आप का नाम तो गंभीर है ही, क्या नेचर से भी गंभीर हैं? लाइफ में एंज्वाय करने का चांस, आप का वेट कर रहा है और आप इतनी देर से सोचने में टाइम वेस्ट कर रहे हैं. मैं ने कहा न, कम से कम मेरी बात मान कर आप एक चांस तो लीजिए, नो रिस्क नो गेन.’’

मैं ने कहा, ‘‘मोनिकाजी, मैं बहुत कनफ्यूज्ड हो गया हूं. आप को जान कर दुख होगा कि मैं अब 68 का हो गया हूं. जीवन के इस पड़ाव में आप के द्वारा दर्शित जिंदगी का उपभोग कैसे कर सकूंगा? एंज्वाय करने के दिन तो लद गए.’’

उस ने तुरंत मेरी बात को काटते हुए कहा, ‘‘गंभीरजी, यही उम्र तो होती है मौजमस्ती करने की. जब आदमी सभी रिस्पोंसिबिलिटीज से फ्री हो जाता है. फ्री माइंड हो एंज्वाय करने का मजा ही कुछ और होता है. आप मिसेज को साथ ले कर आइए और दोनों मिल कर लुफ्त उठाइए. आप अभी तक जो मजा नहीं उठा पाए  हैं, उसे कम से कम लेटर एज गु्रप में तो उठा लीजिए.’’

मैं ने कहा, ‘‘यही तो परेशानी है. श्रीमतीजी एक घरेलू और धार्मिक प्रवृत्ति की महिला हैं. होटलों में आनाजाना उन्हें पसंद नहीं है. आज तक तो कभी गईं ही नहीं फिर अब कैसे जा पाएंगी? हमारे दौर में आज जैसा होटलों में जाने का चलन और संस्कृति नहीं थी. फिर इस उम्र में लोग क्या कहेंगे? आप ही बताइए, इन हालात में आप का प्रस्ताव कैसे स्वीकार करूं?’’

उस ने तपाक से कहा, ‘‘गंभीरजी, आप जैसे एज गु्रप वालों के साथ यही तो समस्या है कि सेल्फ डिसीजन लेने में हिचकिचाते हैं. लोग क्या कहेंगे, यह सोच कर अपना इंटरेस्ट और फ्यूचर क्यों किल कर रहे हैं आप? यदि आप की मिसेज को होटल आने में दिक्कत है तो क्या हुआ? उस का समाधान भी मेरे पास है. मैं आप के लिए पार्टनर का प्रबंध कर दूंगी. हाइसोसायटी में तो यह कामन बात है.

‘‘हमारे यहां कई सिंगल फीमेल मेंबर्स हैं. वे भी यही सोच कर मेंबर बनी हैं कि यदि अदर सेक्स का कोई सिंगल मेंबर होगा तो वे उस के साथ पार्टनरशिप शेयर कर लेंगी. गंभीरजी, जरा सोचिए, अब उन्हें आप के साथ एडजेस्ट होने में कोई आब्जेक्शन नहीं है तो आप को क्या डिफीकल्टी है? बस, आप को करेज दिखाने की जरूरत है. बाकी बातें आप मुझ पर छोड़ दीजिए. आप कोई टेंशन न लें अपने ऊपर. मैं हूं न, सब मैनेज कर दूंगी. आप तो अपनी च्वाइस भर बता दीजिए. बस, अब कोई और बहाना मत बनाइए और हमारा आफर फाइनल करने भर का सोचिए.’’

मोनिका की खुली और बेबाक दलीलें सुन कर मैं सकते में आ गया. मन में अकुलाहट होने लगी. सोचने लगा कि कहीं मैं उस के शब्दजालों में घिरता तो नहीं जा रहा हूं? यद्यपि उस से चर्चा करते हुए मन को आनंद की अनुभूति हो रही थी. टेलीफोन के मीटर घूमते रहने की भी चिंता नहीं थी. इसलिए बात को आगे बढ़ाते हुए, मैं ने पूछ लिया, ‘‘मोनिकाजी, इस प्रकार की पार्टनरशिप में पैसे काफी खर्च हो सकते हैं. मैं एक रिटायर आदमी हूं. इस का खर्च सब कैसे और कहां से बरदाश्त कर सकूंगा?’’

उस ने कहा, ‘‘आप का यह सोचना सही है. हमारी एनुअल मेंबरशिप ही 5 हजार रुपए है. होटल विजिट की सिंगल सिटिंग में 700-800 का बिल आना साधारण बात है पर आप चिंता क्यों कर रहे हैं? इस बिल पर 10 परसेंट का डिस्काउंट भी तो मिल रहा है आप को. वैसे कभीकभी पार्टनर के बिल का पेमेंट भी आप को करना पड़ सकता है. कभी वह भी पेमेंट कर दिया करेंगी. मैं उन्हें समझा दूंगी. वह मुझ पर छोडि़ए.’’

वह एक पल रुक कर फिर बोली, गंभीरजी, एक बात कहूं, जब लाइफ एंज्वाय करना ही है तो फिर पैसों का क्या मुंह देखना? आखिर आदमी पैसा इसीलिए तो कमाता है. फिर बिना पार्टनरशिप के जिंदगी में एंज्वायमेंट कैसे होगा? सिर्फ रूखीसूखी दालरोटी खाना ही तो जिंदगी का नाम नहीं है. ‘‘गंभीरजी, एक बार इस लाइफ स्टाइल का टेस्ट कर के देखिए, सबकुछ भूल जाएंगे. शुरू में आप को कुछ अजीबअजीब जरूर लगेगा लेकिन एक बार के बाद आप का मन आप को बारबार यहां विजिट करने को मजबूर करेगा. इस का नशा सिर चढ़ कर बोलता है. यही तो रियल लाइफ का एंज्वायमेंट है.’’

‘‘मोनिकाजी, मैं 68 का हूं. क्या ऐसा करना मुझे अच्छा लगेगा?’’ मैं ने यह कहा तो वह तुनक कर बोली, ‘‘गंभीरजी, आप एज का आलाप क्यों कर रहे हैं? अरे, हमारे यहां तो 80 तक के  मेंबर हैं. उन्होंने तो कभी लाइफ एंज्वायमेंट में एज फेक्टर को काउंट नहीं किया. जिंदादिली इसी को कहते हैं कि आदमी हर एज गु्रप में स्वयं को फुल आफ यूथ समझे. बस, जोश और होश से जीने की मन में तमन्ना होनी चाहिए. ‘साठा सो पाठा’ वाली कहावत तो आप ने सुनी ही होगी. आदमी कभी बूढ़ा नहीं होता, जरूरत है सिर्फ आत्मशक्ति की.’’

मोनिकाजी द्वारा आधुनिक जीवन दर्शन का तर्क सुन कर मैं अचंभित हुए बिना नहीं रहा. मुझे ऐसा लगा कि मेरी प्रत्येक बात का, एक अकाट्य तथ्यात्मक उत्तर उस के पास है. वह मुझे प्रत्येक प्रश्न पर निरुत्तर करती जा रही है. अंदर ही अंदर भय भी व्याप्त होने लगा था. एकाएक मन में एक नवीन विचार प्रस्फुटित हुआ. उन से तुरंत पूछ बैठा कि आप की एज क्या है? यह सुन कर वह चौंक गई और कहने लगी, ‘‘अब मेरी एज बीच में कहां से आ गई?’’ पर जब इस के लिए मैं ने मजबूर किया तो उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘आप स्वयं समझ सकते हैं कि फाइव स्टार रिसेप्सनिस्ट की एज क्या हो सकती है? इतना तो श्योर है कि मैं आप के एज ग्रुप की नहीं हूं.’’

‘‘फिर भी बताइए तो सही, मैं विशेष कारण से पूछ रहा हूं.’’

‘‘25.’’

इस के बाद मैं ने फिर प्रश्न किया कि आप के मातापिता भी होंगे? उस ने सहजता से हां में उत्तर दिया. मैं ने फिर पूछा, ‘‘मोनिकाजी, क्या आप ने उन्हें भी सदस्य बना कर जीवन का आनंद उठाने का अवसर दिलाया है? वे तो शायद मुझ से भी कम उम्र के होंगे. जब आप अन्य लोगों को लाइफ एंज्वाय करने के लिए प्रोत्साहित और अवसर प्रदान कर रही हैं, तो उन्हें क्यों और कैसे भूल गईं? वे भी तो अन्य लोगों की तरह इनसान हैं. उन्हें भी जीवन में आनंद उठाने का अधिकार है. उन्हें भी मौका मिलना चाहिए. पूर्व में आप ही ने कहा कि यही उम्र तो एंज्वाय करने की होती है, इसलिए आप को स्मरण दिलाना मैं ने उचित समझा. ‘चैरिटी बिगिंस फ्राम होम’ वाली बात आप शायद भूल रही हैं.’’

मेरी बात सुन कर शायद उसे अच्छा नहीं लगा. खिन्न हो कर बोली, ‘‘आप मेरे मातापिता में कैसे इंटरेस्ट लेने लगे? मैं तो आप के बारे में चर्चा कर रही हूं.’’

‘‘आप ठीक कहती हैं,’’ मैं ने कहा, ‘‘आप के मातापिता से मेरा इनसानियत का रिश्ता है. मुझे यही लगा कि जब आप सभी लोगों को जीवन में इतना सुनहरा अवसर प्रदान करने के लिए आमादा हो कर जोर दे रही हैं तो फिर इस में मेरा भी स्वार्थ है.’’

उस ने तुरंत पूछा, ‘‘मेरे मातापिता से आप का क्या स्वार्थ सिद्ध हो रहा है?’’

तब मैं ने कहा, ‘‘कुछ खास नहीं, मुझे उन की कंपनी मिल जाएगी. आप मुझे पार्टनर दिलाने का जो टेंशन ले रही हैं, उस से मैं आप को मुक्त करना चाहता हूं. इसलिए मैं उन्हें भी मेंबर बनाने की नेक सलाह दे रहा हूं,’’ बिना अवरोध के अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मैं ने कहा, ‘‘मोनिकाजी, आप उन दोनों के मेंबर बन जाने का शुभ समाचार मुझे कब दे रही हैं, ताकि मैं खुद आप के पास आ कर सदस्यता ग्रहण कर सकूं?’’

मेरी इस बात का उत्तर शायद उस के पास नहीं था. अब उस की बारी थी निरुत्तर होने की. एकाएक खट की आवाज आई और फोन कट गया. मैं ने एक लंबी सास ली और फोन रख दिया.

विगत 15 मिनट से चल रही बातचीत के क्रम का इस प्रकार एकाएक पटाक्षेप हो गया. मेरी एकाग्रता भंग हो गई. मैं गंभीरता से बीते क्षणों मेें हुई बातचीत के बारे में सोचने लगा कि आज के इस आधुनिक युग में विज्ञापनों के माध्यम से उपभोक्ताओं को जीवन में आनंद और सुखशांति की परिभाषा जिस प्रकार युवाओं द्वारा परोसी तथा पेश की जा रही है, वह कितनी घिनौनी है. जिस का एकमात्र उद्देश्य उपभोक्ता को किसी भी प्रकार आकर्षित कर, उन्हें सिर्फ ‘ईट, ड्रिंक एंड बी मेरी’ के आधुनिक मायाजाल में लिप्त और डुबो दिया जाए. क्या यह सब बातें हमारी भारतीय संस्कृति, संस्कारों, आदर्शों और परंपराओं के अनुरूप और उपयुक्त हैं? क्या यह उन के साथ छल और कपट नहीं है? सोच कर मन कंपित हो उठता है.

आज के आधुनिक युग की दुहाई दे कर जिस प्रकार का घृणित प्रचारप्रसार, वह भी देश की युवा पीढ़ी के माध्यम से करवाया जा रहा है, क्या वह हमारी संस्कृति पर अतिक्रमण और कुठाराघात नहीं है? हम कब तक मूकदर्शक बने, इन सब क्रियाकलापों तथा आपदाओं के साक्षी हो कर, इन्हें सहन करते जाएंगे?

दूसरे दिन फिर उसी होटल से फोन आया. इस बार आवाज किसी पुरुष की थी. उस ने कहा, ‘‘सर, मैं पांचसितारा होटल से बोल रहा हूं. हम ने एक स्कीम लांच की है. हम उस का आप को मेंबर…’’ इतना सुनते ही मैं ने बात काटते हुए उस से प्रश्न किया, ‘‘आप के यहां मोनिकाजी रिसेप्शनिस्ट हैं क्या?’’

उस ने सकारात्मक उत्तर देते हुए प्रत्युत्तर में हां कहा. इतना कह कर मैं ने फोन काट दिया कि कल इस बारे में उन से विस्तृत चर्चा हो चुकी है. मेंबरशिप के बारे में आप उन से बात कर लीजिए.

तब से मैं उन के फोन की प्रतीक्षा कर रहा हूं. पर खेद है कि उन का फोन नहीं आया. इस प्रकार तब से मैं रियल माडर्न लाइफ एंज्वायमेंट करने के लिए प्रतीक्षारत हूं

आतिशी का मास्टरस्ट्रोक : बनेगी दिल्ली की नई सीएम

बात 2015 की है. अन्ना आंदोलन से उभरे अरविन्द केजरीवाल ने जब 2012 में आम आदमी पार्टी का गठन किया, तब आंदोलन से जुड़े अनेक धुरंधरों ने उनकी पार्टी को ज्वाइन किया. जिसमें कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव, आशुतोष, प्रशांत भूषण जैसे बहुतेरे नाम थे. आम आदमी पार्टी के गठन के तीन साल बाद ही इसमें एक बड़ा भूचाल आया. पार्टी के दो दिग्गज नेताओं योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण की अरविन्द केजरीवाल से ठन गयी. उस वक्त योगेंद्र यादव की करीबी आतिशी पार्टी की प्रवक्ता थीं. आतिशी को आम आदमी पार्टी में योगेंद्र यादव ही लेकर आये थे. पार्टी में बगावत हुई और योगेंद्र यादव, कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, आशुतोष जैसे अनेक लोग पार्टी से अलग हो गए. आतिशी पार्टी में बानी रहीं मगर उनको प्रवक्ता पद से हटा दिया गया.

उस वक्त आतिशी ने योगेंद्र यादव का साथ छोड़ कर अरविन्द केजरीवाल पर भरोसा जताया था. आतिशी का वह फैसला 9 साल बाद उनके लिए मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ और आतिशी दिल्ली में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाली तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं. उनसे पहले सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित इस पद को सुशोभित कर चुकी हैं. 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के अवसर पर अरविन्द केजरीवाल ने आतिशी को अपना उत्तराधिकारी चुन कर दिल्ली की जनता को ही नहीं, बल्कि भाजपा को भी गिफ्ट दिया है. आतिशी एक जुझारू और ईमानदार नेता हैं. उच्च शिक्षित हैं, स्ट्रेट फॉरवर्ड हैं, सख्त हैं, हिम्मती हैं और उनका दामन फिलहाल दाग मुक्त है.

केजरीवाल के इस दांव पर भाजपा चकराई हुई है. दिल्ली की राजनीति में एलजी के जरिये मोदी सरकार ने केजरीवाल के हाथ-पैर बाँध रखे थे. जमानत मिलने के बाद भी उन पर अनेक प्रतिबन्ध हैं जिसके कारण जनता से जुड़े कार्य वे नहीं कर सकते थे. आतिशी को मुख्यमंत्री बना कर उन्होंने मोदी सरकार को ना सिर्फ जबरदस्त धोबीपाट दिया है बल्कि अब वे हरियाणा विधानसभा चुनाव में प्रचार के लिए बिलकुल मुक्त हैं. उधर भाजपा जो जरा जरा सी बात पर केजरीवाल के कान उमेठने में लगी रहती थी, अब एक महिला मुख्यमंत्री पर कोई आरोप मढ़ने से पहले उसे काफी आगापीछा सोचना पड़ेगा.

केजरीवाल ने खुद पर गिरफ्तारी की तलवार लटकने से पहले ही आतिशी को ना सिर्फ 9 मार्च 2023 को कैबिनेट मंत्री बनाया था, बल्कि सबसे ज्यादा मंत्रालय भी दिए थे. आतिशी ना सिर्फ दिल्ली सरकार में इकलौती महिला मंत्री हैं, बल्कि उनके पास इस वक्त दिल्ली सरकार में सबसे ज्यादा मंत्रालय भी हैं. वे ही शिक्षा विभाग, पीडब्ल्यूडी, जल विभाग, राजस्व, योजना और वित्त विभाग संभाल रही हैं.

आतिशी पिछले 9 साल से पार्टी के लिए काम कर रही हैं. 2020 में जब कालकाजी सीट से चुनाव जीत कर वे विधानसभा पहुंची थीं तब पार्टी ने उन्हें मीडिया के सामने अपना प्रमुख चेहरा बनाया था. मनीष सिसोदिया के साथ आतिशी ने दिल्ली के बच्चों की शिक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण कार्य किये. आज दिल्ली के सरकारी स्कूल किसी प्राइवेट इंग्लिश मीडियम स्कूल से ज्यादा बेहतर हैं. शिक्षा के क्षेत्र में दिल्ली सरकार ने जो अभूतपूर्व कार्य किये उसमें आतिशी की अहम भूमिका रही है.

कथित शराब घोटाले में मनीष सिसोदिया कर सत्येंद्र जैन के जेल जाने के बाद आतिशी को केजरीवाल कैबिनेट में शामिल किया गया और उन्हें शिक्षा और बिजली समेत 18 विभागों की जिम्मेदारी सौंपी गयी. आतिशी ने केजरीवाल और सिसोदिया के जेल में रहते संगठन और सरकार में बहुत जिम्मेदारी से महत्वपूर्ण कार्य किये और पार्टी का प्रमुख चेहरा बनकर उभरीं. महिला होने के साथ प्रशासनिक अनुभव उन्हें इस पद के लायक भी बनाता है.

अरविन्द केजरीवाल ने शायद जेल में रहते हुए ही यह तय कर लिया था कि जेल से बाहर आकर वे इस्तीफा देंगे और जनता के बीच जाकर उसका भरोसा फिर से जीतेंगे. और इस दौरान वे अपना उत्तराधिकारी आतिशी को बनाएंगे. यह बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि केजरीवाल के जेल में बंद रहते जब यह सवाल उठा था कि 15 अगस्त को तिरंगा कौन फहरायेगा तब केजरीवाल ने जेल से एलजी के नाम एक पत्र लिखा था कि आतिशी को यह मौक़ा दिया जाए. इस बात से ही दिल्ली को यह संकेत मिल गया था कि आतिशी का कद अब दिल्ली सरकार में सबसे ऊपर है.

अपनी नई मुख्यमंत्री के बारे में जानने के लिए दिल्ली वाले बेकरार हैं

पंजाबी राजपूत परिवार से ताल्लुक रखने वाली आतिशी को केजरीवाल का करीबी सहयोगी और विश्वासपात्र माना जाता है. वे अन्ना आंदोलन के समय से संगठन में सक्रिय हैं. इस समय उनके पास सबसे ज्यादा मंत्रालयों की जिम्मेदारी है. वे अरविंद केजरीवाल कैबिनेट में सबसे हैवीवेट मंत्री रही हैं. अब जबकि आतिशी सिंह दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री बनने जा रहीं हैं तो दिल्ली की जनता को उनके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की इच्छा भी बलवती हो रही है. तो बताते चलें कि दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विजय कुमार सिंह और त्रिप्ता वाही के घर जन्मी आतिशी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा नई दिल्ली के स्प्रिंगडेल स्कूल में ली.

उन्होंने सेंट स्टीफंस कॉलेज से इतिहास में डिग्री हासिल की, जहां उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में शीर्ष स्थान हासिल किया. इसके बाद, उन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री हासिल करने के लिए शेवनिंग छात्रवृत्ति मिली. बाद में, उन्होंने ऑक्सफोर्ड में शैक्षिक अनुसंधान में रोड्स स्कॉलर के रूप में अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाया, और अपनी दूसरी मास्टर डिग्री हासिल की. अपनी शैक्षणिक साख के अलावा, आतिशी एक समर्पित सामाजिक कार्यकर्ता रहीं, जिन्होंने मध्य प्रदेश के एक छोटे से गाँव में ग्राम वासियों के लिए कार्य करते सात साल बिताए हैं. उन्होंने विभिन्न गैर-लाभकारी संगठनों के साथ सहयोग करते हुए जैविक खेती और प्रगतिशील शिक्षा पहलों में सक्रिय रूप से भाग लिया,इसी दौरान उनकी मुलाकात आम आदमी पार्टी के नेताओं से हुई और उन्होंने पार्टी ज्वाइन की.

आम आदमी पार्टी की सदस्य बनने से पहले, आतिशी ने आंध्र प्रदेश के ऋषि वैली स्कूल में इतिहास और अंग्रेजी पढ़ाने के लिए कुछ समय दिया था. पार्टी में शामिल होने के बाद आतिशी ने 2013 के विधानसभा चुनाव के लिए घोषणा पत्र मसौदा समिति के प्रमुख सदस्य के रूप में पार्टी की नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

आतिशी को दिल्ली में शैक्षणिक संस्थानों के पुनरुद्धार में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए जाना जाता है. उन्होंने सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने, शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुसार स्कूल प्रबंधन समितियों की स्थापना करने, निजी स्कूलों द्वारा मनमानी फीस वृद्धि को रोकने के लिए सख्त नियमों को लागू करने और ‘खुशी’ पाठ्यक्रम शुरू करने में उल्लेखनीय काम किया है.

2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान, पार्टी ने उन्हें पूर्वी दिल्ली निर्वाचन क्षेत्र के लिए नामित किया. कांग्रेस नेता अरविंदर सिंह लवली और भाजपा उम्मीदवार गौतम गंभीर के खिलाफ एक मजबूत उम्मीदवार के रूप में देखे जाने के बावजूद, आतिशी पर्याप्त वोट हासिल करने में विफल रहीं और हार गयीं. मगर 2020 में उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ा और कालकाजी क्षेत्र से विधायक बनीं. उन्होंने भाजपा उम्मीदवार धर्मवीर सिंह को 11 हजार 393 वोटों से हराया था. 2023 में पहली बार केजरीवाल सरकार में मंत्री बनीं. और अब एक साल के अंदर ही वो मुख्यमंत्री बनने जा रही हैं.

पंजाबी राजपूत परिवार से ताल्लुक रखने वाली आतिशी के पति का नाम प्रवीण सिंह है. प्रवीण एक रिसर्चर और एजुकेटर हैं. वह सद्भावना इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी जैसे संस्थानों के साथ जुड़े हुए हैं. प्रवीण सिंह आईआईटी दिल्ली से पढ़े हैं और फिर आईआईएम अहमदाबाद से भी उन्होंने पढ़ाई की है. उन्होंने करीब 8 साल तक कॉर्पोरेट सेक्टर में काम किया. भारत और अमेरिका की कंसल्टेंसी फर्म्स में भी काम किया. इसके बाद सोशल सर्विस में उतर गए. वह सार्वजनिक तौर पर कम ही नजर आते हैं.

भाषणों और प्रवचनों से दूर नहीं होंगे छुआछूत और जातिगत भेदभाव

आजकल कहां छुआछूत बची है, अब तो कोई किसी से जाति की बिना पर व्यवहार नहीं करता अगर आप किसी होटल या कैंटीन में कुछ खा पी रहे हों तो वेटर से जाति थोड़े ही पूछते हैं. इसी तरह आप बस, ट्रेन या प्लेन में सफर कर रहे हैं तो आप को इस बात से कोई सरोकार नहीं होता कि आप के सहयात्री किस जाति के हैं. ये गुजरे कल की बातें हैं अब वक्त बहुत बदल गया है.

ऐसा कहने वालों की खासतौर से शहरों में कमी नहीं और ऐसा कहने वाले अकसर नहीं बल्कि हर दफा सवर्ण ही होते हैं जो कट्टर हिंदूवादी संगठनों के अघोषित सदस्य, अवैतनिक कार्यकर्त्ता और हिमायती होते हैं जो चाहते यह हैं कि जातपात और छुआछूत पर कोई बात ही न करे जिस से उन की यह खुशफहमी जो दरअसल में सवर्णों की नई धूर्तता है कायम रहे कि अब कौन जातपात को मानता है. यह तो इतिहास में वर्णित एक झूठा सच है. अब इस पर चर्चा करना फिजूल है और जो करते हैं वे अर्बन नक्सली, कांग्रेसी, वामपंथी पापी या देश तोड़ने की मंशा रखने वाले लोग हैं जो नहीं चाहते कि भारत विश्वगुरु बने और दुनिया सनातन उर्फ़ वैदिक उर्फ़ हिंदू धर्म को लोहा माने.

उदारता का मुखोटा पहने इन कथित और स्वयंभू समाज सुधारकों को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का 16 सितम्बर को राजस्थान के अलवर में दिया प्रवचननुमा भाषण जरुर पढ़ना चाहिए और फिर सोचना सिर्फ इतना चाहिए कि आखिर क्यों उन्हें बहुत सी रस्मअदाई वाली बातों के साथ यह कहने मजबूर होना पड़ा कि हमें छुआछूत को पूरी तरह मिटा देना है. अब जो लोग ऊपर बताई बातों की दुहाई देते यह दावा करते हैं कि अब कहां छुआछूत और जातिगत भेदभाव है वे मोहन भागवत को देश तोड़ने वाला, अर्बन नक्सली, वामपंथी, पापी, कांग्रेसी या कुछ और कहने की हिम्मत या जुर्रत कर पाएंगे. क्योंकि उन्होंने एक बार फिर अलवर से माना है और सवर्ण हिंदुओं का आह्वान किया है (क्योंकि यह सब जाहिर है वही करते हैं क्योंकि धार्मिक तौर पर वही कर सकते हैं दलित नहीं) कि हमें छुआछूत को पूरी तरह मिटाना है.

छुआछूत किसी कैंसर से कम नहीं जिस के आधी मिटने के इलाज का दावा कोई कर सके जैसी कि संघ प्रमुख की बातों से जाहिर होता है. जिन्हें भागवत के इस बयान के माने समझ न आएं उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 8 अगस्त 2016 का हैदराबाद में दिया यह भाषण याद कर लेना चाहिए कि “मैं दलित भाइयों की जगह गोली खाने तैयार हूं, मेरे दलित भाइयों को बख्शिए, हमला करना है तो मुझ पर करिए.” गुजरात के उना में हुई दलित हिंसा के बाद उस वक्त पूरे देश भर में गौरक्षकों का तांडव सर चढ़ कर बोल रहा था जो दलितों और मुसलमानों का गौकशी के नाम पर सरेआम कत्ल कर रहे थे. इस ताबड़तोड़ हो रही हिंसा की प्रतिक्रिया में दलितों के भी एकजुट और लामबंद होने से मोदी घबरा गए थे.

भाजपा कार्यकर्ताओं से रूबरू होते हुए मोदी ने यह भी कहा था कि “मैं जानता हूं कि यह सामाजिक समस्या है. यह पाप का नतीजा है, जो हमारे समाज में घर कर गया है समाज को जाति धर्म और सामाजिक हैसियत के आधार पर बंटने नहीं देना चाहिए.”

पाप और पुण्य दोनों धार्मिक शब्द हैं जिन का इस्तेमाल देश में 2 नेता अकसर किया करते हैं नरेंद्र मोदी के बाद पाप शब्द का इस्तेमाल करने वाले नेता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हैं जिन के प्रदेश में दलित अत्याचारों के पाप देश भर में सब से ज्यादा होते हैं. नरेंद्र मोदी छुआछूत को सामाजिक समस्या करार देते धर्म का बचाव करते नजर आते हैं तो मोहन भागवत भी इसे दूर करने सामाजिक समरसता का राग अलापा करते हैं. अलवर में भी उन्होंने यह राग अलापा ताकि कोई उन के सनातन धर्म को कटघरे में खड़ा न करे कि छुआछूत दरअसल में धार्मिक समस्या है. मनु स्मृति, रामायण और भागवत गीता तक में ये निर्देश हैं कि शुद्र आखिर शूद्र हैं. मनु स्मृति में तो साफतौर पर शूद्रों को तरहतरह से प्रताड़ित करने के उपाय और तरीके बतलाए गए हैं जिन्हें सवर्ण आज तक भूल नहीं पा रहे हैं.

हिंदू या सनातन धर्म के ये दोनों तीनों प्रमुख ठेकेदार यह तो मानते हैं कि छुआछूत और जातिगत भेदभाव खत्म करने की जिम्मेदारी सवर्णों की है. ल्रेकिन ये लोग धर्म ग्रंथों का भूले से भी जिक्र नहीं करते कि फसाद की असल जड़ यहां है जिस की फसल इफरात से फलफूल रही है और इस की गवाही सरकारी आंकड़े भी देते हैं.

अपने दूसरे कार्यकाल के चौथे साल में सरकार ने संसद में स्वीकारा था कि दलित अत्याचारों के मामले साल दर साल बढ़ रहे हैं. भाजपा के ही वरिष्ठ सांसद पीपी चौधरी के सवालों के जबाब में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा ने लिखित जबाब में बताया था कि राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में साल 2018 में अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्यचार के 42 हजार 793 मामले दर्ज हुए थे. यह संख्या 2021 में बढ़ कर 50 हजार 900 हो गई.

उत्तर प्रदेश, जहां भगवा परचम लहराने की बात की जाती है वहां साल 2018 में अनुसूचित जाति के लोगों पर अत्याचार के 11,924 मामले दर्ज हुए थे जो 2019 में 11,829 हो गए थे. 2020 में भी यह बढ़ कर 12,714 मामले दर्ज हुए और 2021 में 13,146 हो गए. इस के बाद के आंकड़े जब सार्वजनिक होंगे तब होंगे लेकिन यह साबित करने की जरूरत नहीं कि मोदी या भागवत के भाषणों से यह समस्या हल होनी होती तो कभी की हो चुकी होती. जब तक ये दोनों और इस तरह के लाखों ऊंची जाति वाले धर्म खत्म करने की बात नहीं करेंगे तब उन की आवाज नक्कारखाने में तूती सरीखी साबित होगी.

ये लोग भले ही अपने वोट बैंक और धर्म के दुकानदारों से लगाव के चलते असल वजह से किनारा करते रहें लेकिन उत्तर प्रदेश के स्वामी प्रसाद मोर्य, बिहार के चन्द्रशेखर यादव और तमिलनाडु के उदयनिधि स्टालिन जैसे दर्जन भर नेता वक्तवक्त पर असल वजह बताते रहे हैं जिन पर सवर्ण हिंदू हाउ हाउ करते चढ़ाई करते रहे हैं.

पिछले साल 2 सितम्बर को स्टालिन ने बेहद नपे तुले शब्दों में सनातन धर्म की कलई यह कहते खोल दी थी कि सनातन धर्म लोगों को जाति और धर्म के नाम पर बांटने वाला विचार है. इसे खत्म करना मानवता और समानता को बढ़ावा देना है. बकौल उदयनिधि जिस तरह हम मच्छर डेंगू मलेरिया और कोरोना को खत्म करते हैं उसी तरह सनातन धर्म का विरोध करना काफी नहीं है इसे समाज से पूरी तरह खत्म कर देना चाहिए.

इस बयान से स्वयं भू समाज सुधारक कथित उदारवादी सवर्णों को भी मिर्ची लगी थी फिर कट्टर हिदुओं की तो बात करना ही फिजूल है जिन्होंने स्टालिन को राक्षस करार देते सनातन धर्म को नष्ट कर देने का आरोप लगाया था. स्टालिन की मंशा तकनीकी तौर पर वैज्ञानिक किस्म की थी कि अगर खटमल खत्म नहीं किए जा सकते तो खटिया में ही आग लगा दो जिस से न बांस रहेगा और न बजेगी बांसुरी.

उलट इस के दक्षिणपंथी इसी सनातन धर्म के सहारे चल और पल रहे हैं जिन की नजर और नजरिये में छुआछूत और जातिगत मुद्दे बेदम हैं. इन पर चर्चा करना ही व्यर्थ है क्योंकि अब यह सब खत्म हो चुका है. इन की नजर में संसद में सरकार द्वारा पेश किए गए आंकड़े मिथ्या हैं, रोजमर्रा की दलित अत्याचार की खबरें बकवास हैं इन के प्रकाशन प्रसारण पर रोक लगना चाहिए. एससी एसटी कानून खत्म कर देना चाहिए फिर दलित अत्याचार खुद ब खुद खत्म हो जाएगा.

यानी ये लोग भी खाट जलाने की ही बात कर रहे हैं लेकिन वह खाट दलितों की है सवर्णों की नहीं. 4 जून के नतीजों ने हिंदूवादियों को सकते में डाल दिया है क्योंकि दलितों ने भाजपा को 14 और 19 की तरह अंधे हो कर वोट नहीं किया सो चिंता करना और होना तो लाजिमी है इसलिए इस गंभीर संवेदनशील और अमानवीय समस्या को सामाजिक समस्या करार देते भाषणों और प्रवचनों से सुलझाने की नाकाम कोशिश जारी है.

इन की दिक्कत कुछ फीसदी ही सही दलितों का जागरूक हो जाना है और जाहिर है इस के लिए नेहरु, आम्बेडकर और उन का बनाया समानता का अधिकार देने वाला संविधान दोषी है. जिस की महिमा और चमत्कार राहुल गांधी 2019 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान दिखा चुके हैं और तमाम आलोचनाओं के बाद भी संविधान का पल्लू नहीं छोड़ रहे तो खतरा धर्म के व्यापारियों पंडेपुजारी और पेशवाओं पर भी मंडरा रहा है जिन का पेट ही मंदिरों के चढ़ावे से पलता है.

इस पेट को पालने के लिए मोहन भागवत ने हिंदुओं से दान करने की भी यह कहते अपील कर डाली कि हिंदू होने का अर्थ दुनिया में सब से उदार व्यक्ति होना है जो सभी को गले लगाता है. सभी के प्रति सद्भावना दिखाता है और जो महान पूर्वजों का वंशज है. ऐसा व्यक्ति शिक्षा का उपयोग मतभेद पैदा करने के लिए नहीं बल्कि ज्ञान बांटने के लिए करता है. वह धन का उपयोग भोग विलास के लिए नहीं बल्कि दान के लिए करता है. वह शक्ति का उपयोग कमजोर लोगों की रक्षा के लिए करता है.

अभिनेता मनोज बाजपेयी की 100 फिल्मों के सफर की कहानी है प्रेरणादायक, पढ़ें इंटरव्यू

मनोज बाजपेयी की फिल्म ‘गुलमोहर’ को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्का  मिला है. फिल्म को स्पैशल मेंशन और बेस्ट स्क्रीनप्ले के अवार्ड से भी नवाजा गया. इसे ले कर अभिनेता ने अपनी खुशी जाहिर की है. उन्होंने इसे पूरी टीम के लिए बड़ी उपलब्धि बताया है.

फिल्म गुलमोहर से शर्मिला टैगोर ने पर्दे पर अपनी वापसी की है. इस में बत्रा परिवार की कहानी को दिखाया गया है. इस फिल्म का निर्देशन राहुल वी चिटेला ने किया है. यह फिल्म 3 मार्च 2023 को रिलीज हुई थी. शर्मिला टैगोर और मनोज बाजपेयी के अलावा इस फिल्म में सिमरन, सूरज शर्मा, कावेरी सेठ, उत्सवी झा, जतिन गोस्वामी, चंदन रौय और अमोल पालेकर जैसे सितारे नजर आए थे.

असल में इस की कहानी एक सयुक्त परिवार की है, जिस में परिवार और रिश्तों की भावनाओं को बारीकी से दिखाया गया है, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया. आप को बता दें कि पारिवारिक पत्रिका ‘गृहशोभा’ (दिल्ली प्रैस) इस की मीडिया पार्टनर रही, क्योंकि यह पत्रिका रिश्तों की गहराई को हमेशा महत्व देती है.

रिश्तों को दें समय

इंटरव्यू के दौरान रिश्ते और संबंधों में हल्कापन आने के बारे में मनोज का कहना है कि शहरों में किसी के पास रिश्ते को बनाए रखने का समय नहीं होता है, जबकि गांव में रिश्तों की अहमियत आज भी है. वहां रिश्ते मजबूत होते हैं. शहरों में व्यक्ति काम से अपनेआप को बाहर नहीं निकाल पाता, ताकि रिश्तों को मजबूत कर पाएं. रिश्तों को उतना ही महत्व देना चाहिए,जितना काम को देते हैं, ताकि बाद में कोई अफसोस न हो, क्योंकि जब अपनेलोग बिछड़ते हैं, तभी रिश्तों की गहराई समझ में आती है.

मनोज बाजपेयी आज की तारीख में एक सफल कलाकार हैं, जिन्होंने दर्शकों को अपनी प्रतिभा से लोहा मनवाया है, उन के सफर की कहानी आज के यूथ के लिए प्रेरणादायक है.

मनोज बाजपेयी की 100 फिल्मों का सफर

साधारण कदकाठी और शक्ल सूरत के अभिनेता मनोज बाजपेयी ने 30 सालों में 100 फिल्मों का सफर तय किया है और अपनी एक पहचान इंडस्ट्री में बनाई है. उन के यहां तक का सफर आसान नहीं था, क्योंकि उन का कोई गोडफादर नहीं था, ऐसे में इंडस्ट्री में सफल होना प्रेरणादायक है, उन्होंने उन के बारे में बात की आइए जानते हैं.

साधारण जीवन

अभिनेता मनोज बाजपेयी फिल्मों में विलेन से ले कर कौमेडी और गंभीर किरदार निभाया है. उन्होंने एक्टिंग की शुरुआत दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक ‘स्वाभिमान’ से किया है. उन्हें फिल्मों में सब से पहले मौका शेखर कपूर ने साल 1994 में फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ में दिया था. वहीँ से उन के फिल्मी कैरियर की शुरुआत हुई, लेकिन उन्हें पहचान मिली साल 1998 में रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘सत्या’ से. फिल्म ‘सत्या’ और ‘शूल’ के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर का अवार्ड भी मिला है, जबकि फिल्म ‘पिंजर’ में शानदार एक्टिंग के लिए उन्हें नैशनल फिल्म अवार्ड (स्पैशल ज्यूरी) भी मिला.

पश्चिमी चंपारण जिले के नरकटियागंज के छोटे से गांव बेलवा में 1969 को हुआ. उन के पिता खेती किया करते थे. उन के पिता की इच्छा थी कि वे डाक्टर बनें, लेकिन उन्हें अभिनेता बनने का शौक था और 18 वर्ष की आयु में दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में दाखिला लिए. मनोज बाजपेयी ने जिंदगी में काफी चुनौतियों का सामना किया है. पहले उन की भूमिका उन के मन मुताबिक नहीं मिली थी, इस से वे कई बार मायूस और निराश हुए और आत्महत्या तक करना चाहते थे, लेकिन तभी उन्हें रामगोपाल वर्मा की फिल्म सत्या मिली और वे सफल एक्टर के रूप में औडियंस में परिचित हुए.

धैर्य रखना जरूरी

उन की सफलता का राज वे खुद की धीरज को मानते हैं. यही वजह है कि उन्होंने हर तरह की फिल्में कीं और कई पुरस्कार भी जीते हैं. बचपन से कविताएं पढ़ने का शौक रखने वाले मनोज बाजपेयी एक थिएटर आर्टिस्ट भी हैं. उन्होंने हिंदी और अंगरेजी में हर तरह की कविताएं पढ़ी हैं. साल 2019 में साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें पद्मश्री अवार्ड से भी नवाजा गया है.

लगातार काम करते रहना जरूरी

मनोज बाजपेयी की 100वीं फ़िल्म भैयाजी है, जो पर्दे पर कमजोर पटकथा की वजह से सफल नहीं रही, हालांकि ये एक कमर्शियल तरीके की फिल्म रही, जिस के निर्माता खुद मनोज बाजपेयी ही थे. हालांकि उन्होंने इस तरह की कमर्शियल फिल्म में खुद को कभी फिट नहीं पाया. निर्देशक के पैशन पर उन्होंने स्वीकृति दी, पर फिल्म नहीं चली.

मनोज बाजपेयी इस बात से खुश है कि उन्होंने 30 वर्षों में 100 फिल्में कर डाली हैं, जिसे वे अपने जीवन की बड़ी उपलब्धि मानते हैं. उन्होंने कहा है कि मुझे नहीं पता था कि मैं पहले ही 99 फिल्में पूरी कर चुका हूं, लेकिन भैयाजी के निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की के याद दिलाने पर मुझे अच्छा लगा. यह फिल्म उन सभी फिल्मों को श्रद्धांजलि देने का सब से बेहतर तरीका है,जिस के वजह से मैं इंडस्ट्री में आया और अपने सपने को साकार किया. साथ ही एक अभिनेता भी बना.

मनोज के इतने सालों के कैरियर में वे धैर्य को प्रमुखता से मानते हैं. वे कहते है कि “मैं ने 30 सालों में इतना भी अधिक काम नहीं किया है. मैं ने कुछ बड़ी फिल्में तो कुछ छोटी फिल्में, टीवी आदि पर भूमिकाएं की हैं, जिस में कुछ सफल तो कुछ असफल भी हुई है, लेकिन मैँ हमेशा लगा रहा और जब भी मैँ नीचे गिरा, एक बड़े निर्देशक ने मुझ पर भरोसा किया और आगे आने का मौका दिया. बचपन से मेरे अंदर जिद्दी स्वभाव है, इसलिए गिरने पर भी टूटता नहीं, कैसे भी आगे बढ़ने की कोशिश करता रहता हूं, धैर्य भी बनाए रखता हूं. किसी फिल्म के फ्लौप पर मैँ 6 घंटे यानि आधे दिन से अधिक दुखी नहीं होता.”

किसी फिल्म के न चलने को मनोज गलत नहीं मानते, क्योंकि सभी फिल्में सफल नहीं हो सकती, कुछकुछ कारणों से असफल भी होती हैं. मनोज की इसी सोच ने उन्हें इंडस्ट्री में टिकाए रखा. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि “मैँ फिल्मों में किरदार की मजबूती को देखता हूं, फिर चाहे भूमिका किसी भी किरदार का हो मुझे करना पसंद होता है, क्योंकि एक हवलदार या डब्बेवाले की भूमिका भी दर्शकों के ऊपर छाप छोड़ सकती है.”

गुड लुकिंग नहीं हूं

मनोज खुद को एक हैंड्सम सितारे के रूप में कभी नहीं देखते, यही वजह है कि वे एक आम इंसान की तरह भूमिका निभा कर दर्शकों के दिल पर राज किया. वे कहते हैं कि “हमारे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अधिकतर गुड लुक को प्रमुखता सालों से दी जा रही है. ऐसे में गुड लुक न रखने वाले अभिनेता अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा, ओमपुरी, नाना पाटेकर आदि सभी को झेलना पड़ा है, लेकिन उन सभी ने अपनी प्रतिभा और मेहनत से इसे तोड़ा है. इंडस्ट्री आज भी वैसी ही है, लेकिन हमें इस से दुखी होने की कोई जरूरत नहीं. कलाकार को मेहनत और जिद से काम करते रहना पड़ता है और कोई आ कर उसे अवश्य तोड़ देता है. कोई निर्माता निर्देशक अगर गुड लूकिंग को अपने फिल्मों में जगह देना चाहता है तो ये उस की मर्जी है, लेकिन मैँ अपनी पत्नी और मां के लिए सब से अधिक गुड लुकिंग व्यक्ति हूं. ऐसे में मुझे ऐसी औडियंस क्रिएट करनी है, जिन के लिए मैँ हीरों हूं और उन के लिए ही मैँ मेहनत करता हूं.”

किए संघर्ष

मनोज अपने ऐक्टिंग कैरियर की शुरुआत को याद करते हुए कहते हैं कि “मुझे याद आता है, मैं एक्टर बनना चाहता था और मैं ने 18 साल की उम्र में गांव छोड़ा था. गांव में तब फ़ोन की व्यवस्था नहीं थी, बाद में टेलीफ़ोन आया और कम्युनिकेशन स्मूथ हो गया और अब सब के हाथ में मोबाइल फ़ोन है, लेकिन बात नहीं होती. इस के अलावा जब गांव से निकला, तो परिवार से दूर हो गया, जब मैं ने उन्हें गांव से दिल्ली लाया, तो मैं मुंबई आ गया, इस तरह से मैं उन के साथ नहीं रह पाया, लेकिन कुछ अपनी मां से और कुछ अपने पिता से अडौप्ट किया है. परिवार का साथ मिल कर रहना और बातचीत करना बहुत जरुरी होता है. इस से इमोशनल बौन्डिंग बढ़ती है, जिस की आज की स्ट्रैसफुल लाइफ में बहुत जरुरी होता है.”

इंडिपेंडेंट फिल्मों के दौर को मनोज अच्छा मानते हैं और कहते हैं कि “इंडिपेंडेंट सिनेमा में पैसे कम होते हैं, लेकिन कहानी को अपने हिसाब से कहने का मौका मिलता है. आज सब के पास वौयस है, पहले ऐसा नहीं था. फिल्म किसी को कुछ सिखाती नहीं, रिलेट कराती है. इसलिए विश्वास के साथ काम करें, तो सफल अवश्य होगी. मुझे याद है, मुझे फिल्मों में एंट्री मिलना थोड़ा मुश्किल था, लेकिन मैं ने एक्टिंग की ड्रीम को नहीं छोड़ा. बदलाव जरुरी था, लेकिन ओटीटी ने इस बदलाव को जल्दी ला दिया. फिल्म मेकिंग की तकनीक भी बहुत बदली है.”

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