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Mental Health: ऊब हो रही है तो टालिए मत, मनोचिकित्सक से जानें टिप्स

Mental Health Awareness : आज ही अखबार में खबर पढ़ी कि एक तकनीकी संस्थान में काम करने वाला नौजवान कभीकभार औटो चलाता है. उस के अनुसार, ऐसा वह अपनी बेचैनी तथा ऊब को कम करने के लिए करता है. उस के अनेक फोटो भी अखबार में प्रकाशित हुए जिन में वह खुशीखुशी औटो चला रहा है. सवारी को गंतव्य तक पहुंचा रहा है. ऊब होने का यह मनोभाव सचमुच विचारणीय है.

मन को ऊब किसलिए होने लगती है, यह टालने या नजरअंदाज कर देने की बात नहीं है. मनोचिकित्सक कहते हैं कि अचानक ही हर चीज से मन का उचट सा जाना इन दिनों एक सामान्य बात हो रही है. ऐसा लगभग हर किसी के साथ होता है. कुछ लोग अपनी दिनचर्या से इतने परेशान हो रहे हैं कि उन को हर बात से अरुचि सी होने लगी है. जब भी कोई चर्चा करो, अधिकांश का जवाब यह होता है कि सुबह चाय और कौफी गटक ली. नहाया. नाश्ता हो गया. वैब सीरीज देख ली. फोन ले कर सारे सोशल मीडिया के मंच पर जा कर दुनियाभर की चीजें देख लीं. अब मन अजीब हो रहा है.

इस का कारण साफ है. हम को एक ही बटन दबाने से सौ चैनल मिल रहे हैं. एक बटन दबाने से सौ तरह की फिल्मी गपशप का स्वाद मिल रहा है. कुछ खरीदना है तो एक बटन दबाया और सौ तरह की दुकानें सौ तरह के सामान हाजिर. इस से होता यह है कि यह मन बावला होने लगता है, भटकने लगता है. इसीलिए मन को झुंझलाहट होती है. जरूरत से अधिक मनोरंजन, जरूरत से अधिक सुखसुविधा भी मन को उचाट कर देती है. सुकरात ने तो सैकड़ों साल पहले ही कह दिया था कि अति हमेशा दुख देती है. कोई चीज जरूरत से अधिक मिल जाती है तो वह खुशी नहीं, बेचैनी देती है.

वैसे, मन का उचाट हो जाना उन के साथ भी अधिक होता है जो जीवन में कुछ करने की ख्वाहिश रखते हैं मगर वहां तक नहीं पहुंच पाते जहां पहुंचना होता है. सो, उन को भी ऊब तथा बेचैनी सी होने लगती है. अमेरिका के सुप्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वेन ने भी कहा था कि, “खुश मानव के 2 दुश्मन- उदासी और बोरियत- होते हैं. विश्व प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमंड फ्रायड के शिष्य मनोचिकित्सक ओटो फेनीशेल ने सिगमंड फ्रायड के साथ मिल कर इस ऊब तथा बोरियत पर अनगिनत प्रयोग किए थे.
ओटो फेनीशेल बोरियत के विस्तारित सिद्धांत को विकसित करने वाले पहले मनोविश्लेषकों में से एक थे. अपने लेख ‘औन द सायकोलौजी औफ बोरडम’ में उन्होंने ‘सामान्य’ और ‘पैथोलौजिकल’ बोरियत के रूप में बताया था. इन के बीच के अंतर को स्पष्ट करते हुए फेनीशेल ने समझाया कि सामान्य बोरियत तब पैदा होती है जब हम वह नहीं कर सकते जो हम करना चाहते हैं या जब हम कुछ ऐसा करते हैं जो हम नहीं करना चाहते.

फेनीशेल ने जोर दे कर कहा कि दोनों ही स्थितियों में कुछ अपेक्षित या वांछित नहीं होता. यहां हम को खुद पर गौर करने की आवश्यकता होती है. जरा सा खुद पर विचार हम को बोरियत की जड़ तक ले आता है, तब समाधान भी मिलता है.

कई बार जो ऊब जैसा लगता है वह वास्तव में उस कार्य से बचने का बहाना होता है जिसे आप करना ही नहीं चाहते. ‘बोरडम – अ लाइवली हिस्ट्री’ के लेखक टूही पीटर कहते हैं, “बोरियत से उसी प्रकार की मानसिक थकान होती है जैसे निरंतर एकाग्रता वाले कामों में होती है.”

कभीकभी बोरियत होना स्वाभाविक है, लेकिन जब यह स्थायी मनोदशा बन जाए तो चिंताजनक है. बोरियत नकारात्मक विचारों की जड़ है. इस से व्यवहार में चिड़चिड़ापन आने लगता है. कार्यक्षमता और रिश्तों पर इस का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इस की वजह से व्यक्ति डिप्रैशन में भी जा सकता है. मनोवैज्ञानिक थार्नडाइक का कहना है कि कई बार ऐसा होता है कि जब हम बहुत ज़्यादा तनाव में होते हैं तो कामों को टालते रहते हैं. लगातार एकजैसा काम करने पर एक स्थिति यह आती है कि हम अपना काम कर ही नहीं पाते और इस के कारण अन्य कामों में मन नहीं लगता, तब भी हम को ऊब होने लगती है.

डाक्टर रोलो मे, एक मानववादी तथा मनोवैज्ञानिक थे. उन्होंने तर्क दिया कि ऊब महसूस करने की मानसिक स्थिति का जन्म बहुत छोटी उम्र से हो जाता है. सो, अप्रिय लगने के बावजूद आवश्यक है कि रचनात्मक और उत्साह से कैसे रहें, यह सीखें. उन्होंने कहा, “यदि आप एक सफल इंसान के रूप में बोरियत से बचने की चाहत रखते हैं, तो आप को सब से पहले इस का सामना करना सीखना है, स्वीकार करना है कि आप ऊब रहे हैं.

मनोविज्ञान के अनुसार, बोरियत से कुछ मनोभाव सीधेसीधे जुड़े हैं, मिसाल के तौर पर झुंझलाहट, बिखराव, अकेलापन, क्रोध, दुख और चिंता आदि. लगातार बोर रहने वाले व्यक्ति ज़्यादा खाते हैं. उन में मादक पदार्थों के सेवन सहित धूम्रपान व अपराध जैसे दुर्गुणों के बढ़ने की आशंका भी रहती है. अगर आप ऊब रहे हैं तो एक बार एकांत में बैठ कर खुद को परिभाषित करें कि आप को सब से अच्छा क्या लगता है.

सुप्रसिद्ध हौलीवुड स्टार व एंकर ओपेरा विन्फ्रे ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि जब मन उचटता है तो वे कुछ बेक करती हैं, पकाती हैं या आइसक्रीम बनाती हैं. इस उपाय से उन का मन दुरुस्त हो जाता है. इसीलिए आप भी अच्छे लगने वाले कामों को पहचानें. फ़ुरसत के पलों में मोबाइल देखने के बजाय कोई अच्छी किताब पढ़ें, अपने दोस्तों से बातचीत करें, फूलों के पौधे लगाएं व गमलों को पेंट करें. घर की व्यवस्था व सजावट को बदल कर देखें.

हर वह काम जो सुखद तबदीली दिखाए, ऊब से बाहर निकलने में मदद करेगा. फूलों के पौधे भी इसीलिए सुझाए जाते हैं कि जब पौधे पर कलियां आती हैं, फूल खिलते हैं, तो मन प्रसन्न होता है. ऊबाऊ जीवनशैली को बदल लीजिए. महापुरुषों की जीवनगाथा को पढ़िए, आप को उम्मीद मिलेगी. कुदरत की सेवा कीजिए. सार्वजनिक जगह पर जा कर गपशप भी राहत देती है. राह चलते किसी अनजान से बात होने पर भी बहुत ख़ुशी मिलती है. कोई नई आदत पाल लें- नाचना, गाना, चित्रकारी, बागबानी आदि.
बोरियत लगभग सौ फीसदी लोगो को महसूस होती है. इसलिए इसे महसूस करते हुए डरें नहीं. इसे नजरअंदाज भी न करें. इसे ठीक से देखें और इस की आग पर अपने शौक व अपने हुनर का शीतल जल छिड़क दें. बोरियत या ऊब दुम दबा कर भाग जाएगी.

Hemant Soren घिरे अभिमन्यु की तरह, लेकिन जीते अर्जुन की तरह

Hemant Soren: झारखंड चुनाव नतीजों ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को यूं ही हीरो नहीं बना दिया है बल्कि इस कामयाबी के पीछे उन की मेहनत के नंबर ज्यादा हैं. वे वोटर से लगातार कनेक्ट रहे और जेल में डाले जाने के बाद यह जिम्मेदारी उन की पत्नी कल्पना सोरेन ने संभाली जो राजनीति से दूर ही रहती थीं.

बटेंगे तो कटेंगे और एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे जैसे भड़काऊ भाजपाई नारों के मुकाबले झारखंड के वोटर ने तबज्जो दी इंडिया गठबंधन के इन दो नारों को, ‘हेमंत है तो हिम्मत है’ और ‘एक ही नारा हेमंत दुबारा’. ये नारे इतने असरदार साबित हुए कि इंडिया गठबंधन राज्य की 81 विधानसभा सीटों में से 56 सीटें जीत ले गया और एनडीए 24 पर सिकुड़ कर रह गया.

23 नवंबर को आए नतीजों ने बहुत सी बातों के साथ एक अहम बात यह साबित कर दी है कि इस बार भी चुनावी खेल में रांची की पिच पर मेन औफ द इलैक्शन निर्विवाद रूप से हेमंत सोरेन हैं. 24 नवंबर को रांची में लगे ये पोस्टर भी हर किसी को आकर्षित कर रहे थे जिन पर लिखा था – ‘सब के दिलों पर छा गया, शेरदिल सोरेन फिर आ गया.’

बात में और नारों दम है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, केन्द्रीय कृषि मंत्री और झारखंड के चुनाव प्रभारी शिवराज सिंह चौहान के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और 24 X 7 नफरत व हिंदुत्व की आग मुंह से उगलते रहने वाले असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा सहित 2 दर्जन धाकड़ भाजपा नेताओं ने हेमंत सोरेन की ठीक वैसे ही घेराबंदी कर रखी थी जैसी कि महाभारत की लड़ाई में कौरवों ने अभिमन्यु की की थी. लेकिन हेमंत सोरेन इस चक्रव्यूह को भेदते जंग के मैदान में आए तो बिना किसी कृष्ण की मदद के अर्जुन की तरह लड़े और जीते भी तो एक धुरंधर योद्धा की तरह जिस के सियासी तीरों के आगे ये भगवा शूरवीर कागजी शेरों की तरह ढेर हो गए.

महाराष्ट्र की जीत का जश्न मनाते एनडीए के मन में झारखंड की हार तय है कसक ही रही होगी क्योंकि लोकसभा चुनाव में भाजपा को यहां 14 में से 8 सीटें मिली थीं जबकि इंडिया गठबंधन 5 पर रुक कर रह गया था. इस नतीजे से उत्साहित भाजपा ने यह मान लिया था कि अब सत्ता में वापसी तय है क्योंकि वोटर का मन झामुमो और कांग्रेस से उचट रहा है और आदिवासी बाहुल्य इस राज्य में भी उसे वोट हिंदुत्व और राम मंदिर के नाम पर मिले हैं लिहाजा इस सिलसिले को जारी रखा जाए.

लिहाजा उस ने 31 जनवरी 2024 की रात मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जमीन घोटाले के एक केस में ईडी से उठवा लिया. तब सोचा यह गया था कि हेमंत के जेल में रहने से इंडिया गठबंधन टूट जाएगा और झामुमो भी बिखर जाएगा. ऐसा होना मुमकिन था लेकिन जैसे ही हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन अपना चलता छोटा सा स्कूल छोड़ पोलिटिकल यूनिवर्सिटी में उतरीं तो बाजी पलट गई.

खूबसुरत और आकर्षक कल्पना ने बेहद सधे ढंग से पार्टी की कमान संभाली और इस खेल को वहीं से खेलना शुरू किया जहां हेमंत छोड़ गए थे. झामुमो ने अपने भरोसेमंद सिपहसलार चम्पई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाया और कल्पना गांवगांवव गलीगली घूम कर वोटर को यह भरोसा दिलाने में कामयाब रहीं कि यह भाजपा की साजिश है और हमे आप से दूर करने रची गई है.

मई के महीने में झारखंड हाईकोर्ट ने हेमंत सोरेन को जमानत देते हुए साफतौर पर कहा था कि किसी भी रजिस्टर या रेवन्यू रिकौर्ड में उक्त जमीन के अधिग्रहण और भागीदारी में याचिकाकर्ता की प्रत्यक्ष भागीदारी का कोई जिक्र नहीं है, अदालत ने पाया है कि पीएमएलए ( प्रिवेंशन औफ मनी लांड्रिंग एक्ट ) की धारा 45 की शर्त पूरी करते हुए ये मानने के पर्याप्त कारण हैं कि याचिकाकर्ता कथित अपराध का दोषी नहीं हैं.

हेमंत के 5 महीने जेल में रहने के दौरान कल्पना ने ताबड़तोड़ तरीके से झारखंड के दौरे किए और वोटर को यह समझाने में कामयाब रहीं कि भाजपा आदिवासियों की हितेषी पार्टी नहीं है. और वह आप के बेटे, आप के भाई को आप से अलग करना चाहती है इसलिए उस ने झूठा आरोप लगा कर हेमंत को जेल भेज दिया. ये वही कल्पना सोरेन हैं जो पति के जेल जाने के पहले तक खुद को राजनीति और सार्वजनिक जीवन से जितना हो सके दूर रखती थीं. लेकिन मार्च के महीने से उन्होंने पति की लड़ाई संभाली तो आदिवासी तो आदिवासी गैर आदिवासियों ने भी उन्हें हाथोंहाथ लिया. पोलिटिकल कपल्स में ऐसी साझेदारी कम ही देखने में मिलती है. कल्पना के बात करने के लहजे से वही अपनापन और सहजता थी जो हेमंत सोरेन और उन के पिता शिबू सोरेन में है.

जेल से छूटने के बाद हेमंत सोरेन ने भी कोई ढिलाई या लापरवाही नहीं दिखाई और वे खासतौर से आदिवासियों को यह समझाने में सफल रहे कि अगर भाजपा जीती तो झारखंड को दिल्ली से चलाएगी. चुनाव प्रचार के दौरान हेमंत और कल्पना सोरेन ने 200 से भी ज्यादा रैलियां और सभाएं की. इस के पहले एक और नाटकीय लेकिन अपेक्षित घटनाक्रम में चम्पई सोरेन झामुमो छोड़ भाजपा में शामिल हो गए थे. क्योंकि झामुमो जेल से छूटे हेमंत को मुख्यमंत्री बनाना चाहती थी. तब भी भाजपा को लगा था कि अब तो राह और आसान है क्योंकि चम्पई सोरेन झामुमो के धाकड़ नेता हैं. उन के आने से बहुत न सही कुछ तो आदिवासी वोट पाले में आएंगे. लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं, उलटे चम्पई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन ही चुनाव हार गए. उन्हें घाटशिला विधानसभा सीट पर झामुमो के रामदास सोरेन ने 18 हजार से भी ज्यादा वोटों से शिकस्त दी.

भाजपा का यह भ्रम लोकसभा चुनाव में भी टूटा था जब सोरेन परिवार की बगावती बहू यानी हेमंत की भाभी सीता सोरेन भी भगवा खेमे में जा शामिल हुई थी. एवज में बतौर इनाम भाजपा ने उन्हें दुमका लोकसभा सीट से टिकट दे दिया था लेकिन झामुमो के नलिन सोरेन ने उन्हें 22 हजार से ज्यादा वोटों से हरा दिया था. फायदा तो भाजपा को बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम के विलय का भी नहीं मिला जो 2019 के चुनाव में 3 सीटें जीती थी लेकिन इस बार जीत का जायका चखने को तरस गई. यानी झारखंड में सोरेन परिवार का कोई तोड़ भाजपा के पास नहीं है और न ही वह हेमंत सोरेन के कद और वजन का कोई नेता खड़ा कर पाई है. वोटर ने भाजपा नेताओं की इस बात पर भी कान नहीं दिए कि एक ही परिवार राज कर रहा है और भ्रष्टाचार कर रहा है. ‘कटेंगे तो बटेंगे’ और ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ जैसे नारे झारखंड में दम तोड़ते नजर आए क्योंकि आदिवासी समुदाय हिंदूमुसलिम में कोई भेद नहीं करता है और तो और वह खुद को हिंदू मानता ही नहीं.

पिछली जीत के बाद जब इस संवाददाता ने रांची में हेमंत सोरेन से उन के निवास पर बात की थी तो उन्होंने भी एक सवाल के जवाब में कहा था कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं. ये इंटरव्यू सरिता व सरस सलिल दोनों पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे.

आज भी सभाओं में हेमंत आदिवासियों को मूल निवासी बताते हैं और खुद को धरतीपुत्र कहते हैं तो आदिवासी होने के कारण उन की कनेक्टिविटी आदिवासियों से और बढ़ती है. यही वजह है कि आदिवासी बाहुल्य 28 सीटों में से भाजपा गिरते पड़ते महज एक सीट ही जीत पाई. हकीकत तो यह भी है कि भाजपा ने कभी आदिवासियों की बुनियादी जरूरतों और समस्याओं को समझने की कोशिश ही नहीं की. वह सिर्फ हवाहवाई बातों से बहका कर ही उन के वोट झटकती रही है. यह टोटका 2014 के चुनाव में चल गया था तो भाजपा इसे धर्म ग्रंथों का मंत्र समझने की भूल कर बैठी. इसी के चलते उसे पिछले चुनाव के मुकाबले 3 सीट कम मिली और झामुमो की 30 से बढ़ कर 34 हो गईं.

इस चुनाव में भाजपा ने झारखंड के वोटरों को एक नया डर बांग्लादेशी घुसपैठियों का दिखाया. नरेंद्र मोदी से ले कर तमाम छोटेबड़े नेता इसे रट्टू तोते की तरह बोलते रहे. अव्वल तो इस बात कोई दम ही नहीं था और दूसरी वजह उपर बताई गई है कि आदिवासियों में खुद के हिंदू होने की फीलिंग ही नहीं है, लिहाजा उन्होंने इस से कोई सरोकार ही नहीं रखा.

दरअसल में दूसरे राज्यों की तरह भाजपा झारखंड में जो निगेटिव नेरेटिव सेट करना चाहती थी उस ने खासतौर से आदिवासियों को इतना अपसेट कर दिया कि इस चुनाव में भी उस से राम राम कर ली.

लेकिन हैरत इस बात की कि करारी शिकस्त के बाद भी भाजपा इस मरे मुद्दे को सीने से लगाए हुए है. इंडिया गठबंधन को जीत की बधाई देते हुए नरेंद्र मोदी ने इशारा कर ही दिया कि वह बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा छोड़ेंगे नहीं. यह एक तरह की खीझ और जिद ही है जिस के झारखंड में कोई माने नहीं. क्योंकि वहां इस मुद्दे पर वोट करने वाले सवर्णों की तादाद महज 10 फीसदी ही है जो बिना किसी ऐसे या वैसे मुद्दे के भी भाजपा को ही वोट देते हैं. 28 फीसदी आदिवासियों और 50 फीसदी के लगभग पिछड़े तबके के अधिकतर वोटरों ने भी इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया. बचे 12 फीसदी ईसाई और आदिवासी शुरू से ही झामुमो के परम्परागत वोट रहे हैं.

जाहिर है 85 बनाम 15 का इंडिया गठबंधन का फार्मूला यहां चला जिसे हवा देने के लिए राहुल गांधी जातिगत जनगणना की अपनी बात दोहराते रहे. इस का फायदा भी इंडिया गठबंधन को मिला. सीटों और वोटों के मामले में कांग्रेस की स्थिति हालांकि 2019 के नतीजों जैसी ही रही लेकिन चौंकाया राजद ने जिस ने 4 सीटें जीत ली. माकपा माले को भी उम्मीद के मुताबिक 2 सीट मिलीं.

हेमंत सोरेन को एक बड़ा फायदा मैया सम्मान योजना का भी मिला जिस के तहत राज्य की कोई 16 लाख महिलाओं जिन की उम्र 19 से ले कर 49 साल के बीच है को 1000 रु महीना दिए जाते हैं. इसे बढ़ा कर उन्होंने ढाई 2500 करने का वादा किया तो औरतों के वोट उन पर बरस पड़े. 31 सीटों पर महिला वोटरों की खासी तादाद है उन पर महिलाओं की वोट फीसदी भी पुरुषों से ज्यादा रहा है. इन में से 30 इंडिया गठबंधन के खाते में गईं. यह कार्ड भाजपा ने सब से पहले मध्य प्रदेश में और फिर हालिया चुनाव में महाराष्ट्र में भी खेला था जिस का फायदा उसे भी मिला था.

आने वाले विधानसभा चुनावों में यह ट्रेंड ट्रम्प कार्ड ही साबित होगा लेकिन इन तीनों राज्यों के नतीजों से लगता है कि सत्तारूढ़ दल को ही इस का फायदा होता है क्योंकि सरकार चुनाव के 3 – 4 महीने पहले से महिलाओं के खाते में यह पैसा डालना शुरू कर देती है जिस से महिलाओं का भरोसा उस पर बढ़ता है. ऐसे में विपक्षी दल दोगुना तिगुना देने का भी वादा करें तो बात बनती नहीं क्योंकि महिला वोटर उन के वादों पर एतबार नहीं करती. दूसरी कई कल्याणकारी योजनाओं का फायदा भी हेमंत सरकार को मिला. मसलन मुफ्त 200 यूनिट बिजली देना और पुराने बिजली बिलों की माफी. कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम बहाल करने के वादे ने भी झामुमो के वोट बढ़ाए.

इन सब चुनावी बातों और वादों से परे एक बात मील के पत्थर की तरह झारखंड के नतीजों से साबित हुई है कि अब जीतेगा वही जो मेहनत करेगा, वोटर के बीच जाएगा और किसी न किसी बहाने उन से कनेक्ट रहेगा. एयर कंडिशंड घरों में बैठ कर राजनीति करना अब पहले की तरह मुमकिन नहीं रह गया है और न ही वे नेता चुनाव जीत पा रहे जो चुनाव की घोषणा और टिकट मिलने के बाद कुछ ही दिन अपना पसीना बहाते हैं.

Up Byelection Result : उत्तर प्रदेश में ‘साइकिल’ और ‘हाथ’ की दूरी बनी हार की वजह

Up Byelection Result: केरल की वायनाड लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी प्रियंका गांधी की 4 लाख से अधिक वोटों की जीत के बाद उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आनंद भवन पर एक होर्डिंग लगी जिस में लिखा था ‘इंदिरा इज बैक’. वोटर अभी भी कांग्रेस से उम्मीद रखे हैं. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के साथ उपचुनाव में सपा ने जिस तरह का व्यवहार किया उस से लोकसभा में नंबर एक की पार्टी बनी सपा को भाजपा के मुकाबले मुंह की खानी पड़ी.

उत्तर प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर उपचुनावों को 2027 के विधानसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था. लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीत कर सपा उत्साह से लबरेज थी. कांग्रेस के साथ मिल कर इंडिया गठबंधन को 43 सीटें मिली थीं. उत्तर प्रदेश ने ही भाजपा को बहुमत के आंकड़े से दूर रखा था. इस जीत का श्रेय राहुल गांधी और अखिलेश यादव की जोड़ी को गया था. चुनाव के बाद दोनों नेताओं में दूरी बढ़ने लगी. अखिलेश यादव के करीबी लोगों ने उन को समझाया कि कांग्रेस को मिलने वाली सफलता का कारण सपा थी. कांग्रेस जैसेजैसे मजबूत होगी सपा वैसेवैसे कमजोर होगी. इस के बाद कांग्रेस और सपा के बीच बनी दोस्ती में दरार आने लगी.

हरियाणा और जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस के बीच सीटों का कोई तालमेल नहीं हुआ. जम्मू कश्मीर में सपा ने अपने प्रत्याशी चुनाव में उतारे. सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा. इस के बाद महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के साथ ही साथ उत्तर प्रदेश में उपचुनाव भी थे. सपा महाराष्ट्र में कांग्रेस से तालमेल कर सीटें चाहती थी. महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ एनसीपी और शिवसेना भी गठबंधन का हिस्सा थी. ऐसे में सपा के लिए बड़ी गुंजाइश नहीं बनी. इस का बदला अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश में लेने की सोची. उत्तर प्रदेश में कांग्रेस 3 से 5 सीटें चाहती थी. सपा ने 2 सीटें दी उस में भी कई तरह की शर्तें थीं.

कांग्रेस के कारण सपा के साथ खड़ा था दलित

ऐसे में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में उपचुनाव लड़ने से इंकार कर दिया. अब चुनाव में सपा और कांग्रेस साथ होते हुए भी साथ नहीं थे. कांग्रेस का फोकस महाराष्ट्र, झारखंड और वायनाड सीट पर था. उस के नेता वहीं प्रचार करते नजर आए. उपचुनाव में कांग्रेस मंझवा और फूलपुर सीट अपने लिए चाहती थी. सपा कांग्रेस को खैर और गाजियाबाद सीट दे रही थी. असल में 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को दलित और मुसलिम वोट मिले थे. कांग्रेस के साथ होने के कारण ही दलित वोट सपा को मिले थे. ‘दलित और मुसलिम’ वोटों के एक साथ आ जाने से भाजपा को काफी नुकसान हुआ था.

दलित वोट की एक खासियत है कि वह कभी एकजुट हो कर समाजवादी पार्टी को वोट नहीं देता है. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कारण सपा को दलित वोट मिल गए. उपचुनाव में कागज के ऊपर सपा-कांग्रेस का गठजोड़ बना था. चुनाव संचालन के लिए कमेटियां भी बनी थीं. इस के बाद सपा ने कांग्रेस के नेताओं को कोई महत्व नहीं दिया था. जिस के कारण कांग्रेस उत्तर प्रदेश में साइलेंट हो गई थी. जिस से चुनावी नतीजे इतने विपरीत आ गए.

2022 की विधान सभा चुनाव में इन्ही 9 सीटों में से 4 करहल, सीसामऊ, कटेहरी और कुदरकी पर सपा और 4 फुलपुर, गाजियाबाद, मंझवा और खैर पर भाजपा ने चुनाव जीता था. एक सीट मीरापुर लोकदल के खाते में गई थी. उस समय लोकदल सपा की सहयोगी पार्टी थी. 2022 के चुनावी नतीजों में देखें तो सपा के पास 5 और भाजपा के पास 4 सीटें थीं. 2024 में जब इन सीटों पर उपचुनाव हुए तो सपा के पास केवल 2 सीटें ही रह गई. जबकि 5 माह ही पहले सपा ने लोकसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था. इस की मूल वजह दलित वोट रहा जो ‘पीडीए’ यानि पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक का नारा देने के बाद भी सपा के साथ खड़ा नहीं हुआ.

चुनाव प्रचार में नहीं दिखे सपा के सांसद

उपचुनावों में अखिलेश यादव ने पूरी मेहनत के साथ प्रचार किया. यह बात और है कि उन की पार्टी के दूसरे नेताओं ने उस तरह से प्रचार नहीं किया जैसे टोलियां बना कर भाजपा के लोगों ने प्रचार किया. भाजपा की टोलियों ने जमीनी स्तर पर सपा के जातीय गोलबंदी के खिलाफ प्रचार किया. ‘बंटेगे तो कटेंगे’ के नारे को लोगों के बीच ले गए. भाजपा ने इन टोलियों में उन नेताओं को कमान सौंपी जिन जातियों के वोट ज्यादा थे. सपा इस की काट नहीं कर पाई.

सपा को लग रहा था कि दलित उस के साथ हैं, मुसलिम भाजपा को वोट नहीं देगा और पिछड़े भी सपा के साथ हैं. ऐसे में उसे जीत के लिए कांग्रेस के कंधे की जरूरत नहीं है.

सपा का अति आत्मविश्वास उसे ले डूबा. उस ने 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा को आक्सीजन देने का काम किया है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ले कर जो विवाद भाजपा में था वह भी खत्म हो गया है. दलित और मुसलिम वोटर ने एक और संकेत दे दिया है कि वह सपा और बसपा की जगह पर दूसरे विकल्प की ओर भी देख रहा है. दलित भाजपा के साथ ही साथ चन्द्रशेखर की आजाद समाज पार्टी की ओर भी जा रहा है. इन उपचनावों में आजाद समाज पार्टी ने दलित वोटों को अपनी ओर खीचने का काम किया है.

सब से खराब हालत बहुजन समाज पार्टी की रही है. बसपा को कुदरकी में 1036, मीरापुर में 3248, करहल में 8409 और सीसामऊ में 1500 वोट मिले हैं. प्रदेश की तीसरे दर्जे की पार्टी की यह हालत बताती है कि दलित किस तरह से बसपा से दूर जा रहा है. इस के बदले आजाद समाज पार्टी को कुदरकी में 13,896, मीरापुर में 22,661, करहल में 2499 वोट मिले. दलित वोटर आजाद समाज पार्टी के बीच झुकता दिखा तो मुसलिम वोट ओबैसी की पार्टी एआईएमआईएम की तरफ झुकता दिखा. समाजवादी पार्टी को इस खतरे को समझ कर अपनी आगे की रणनीति बनानी चाहिए.

जिन जतियों ने लोकसभा चुनाव में अपना समर्थन सपा को दिया था अब उन की चिंता सपा को नहीं है. सपा के जीते सासंदों की बात करें या हारे हुए, जनता के बीच कोई नहीं जा रहा. उन की परेशानियों को हल करने की दिशा में पहल नहीं कर रहा. सपा में जातीय रूप से यादव सब से हावी रहते हैं. वह दूसरी पिछड़ी जातियों को सहन नहीं करते हैं.

सपा में परिवारवाद हावी है. वहां मुलायम परिवार ही नहीं दूसरे नेताओं के परिजनों को सब से ज्यादा टिकट दिए जाते हैं. जो पार्टी में विरोध के स्वर का मजबूत करता है. 9 विधानसभा सीटों के चुनाव में 3 टिकट परिवार के लोगों को दिए गए. करहल में तेज प्रताप यादव मुलायम परिवार का हिस्सा है. सीसामऊ से चुनाव लड़ी नमीस सोलंकी पूर्व विधायक इरफान सोलंकी की पत्नी थीं और कटेहरी से चुनाव लड़ी शोभावती वर्मा सांसद लालजी वर्मा की पत्नी हैं.

इन चुनावों में सपा ने 4 सीटों फूलपुर, सीसामऊ, कुदंरकी और मीरापुर में मुसलिम प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे जिन के कारण चुनावी समीकरण गड़बड़ हो गया. सपा ने जिन दो सीटों पर जीत हासिल की उन में करहल में 14 हजार और सीसामऊ में 8 हजार से ही जीत हासिल हुई. लोकसभा चुनाव के मुकाबले विधानसभा चुनाव में सपा की सीट वितरण में कमी नजर आई, जिस की वजह से यह हार हुई है. इस से भाजपा लोकसभा चुनाव की हार के नैतिक दबाव से बाहर आ गई है.

सपा और कांग्रेस दोनों ही दलों में केवल राहुल गांधी और अखिलेश यादव से ही उम्मीद की जाती है कि वह जीत को थाली में परोस कर दे दें. भाजपा में जिस तरह से तीसरे और चौथे नंबर के नेता भी जीत के लिए मेहनत करते हैं उस तरह की मेहनत सपा-कांग्रेस के लोग नहीं करते हैं. ऐसे में दोनों ही दलों को नए सिरे से संगठन पर काम करने की जरूरत है. तभी यह उठ खड़े हो पाएंगे. 2024 की हार के 5 माह के अंदर ही भाजपा ने जो ‘कमबैक’ किया उस से दूसरे दलों को सीखने की जरूरत है.

बिन तेरे सब सून

इंद्रपत्नी की मृत्यु के बाद बेटी के साथ अमेरिका चले गए थे. 65 साल की आयु में जब पत्नी विमला कैंसर के कारण उन का साथ छोड़ गई तो उन की जीवननैया डगमगा उठी. इसी उम्र में तो एकदूसरे के साथ की जरूरत अधिक होती है और इसी अवस्था में वह हाथ छुड़ा कर किनारे हो गई थी.

पिता की मानसिक अवस्था को देख कर अमेरिकावासी दोनों बेटों ने उन्हें अकेला छोड़ना उचित नहीं समझा और जबरदस्ती साथ ले गए. अमेरिका में दोनों बेटे अलगअलग शहर में बसे थे. बड़े बेटे मनुज की पत्नी भारतीय थी और फिर उन के घर में 1 छोटा बच्चा भी था, इसलिए कुछ दिन उस के घर में तो उन का मन लग गया. पर छोटे बेटे रघु के घर वे 1 सप्ताह से अधिक समय नहीं रह पाए. उस की अमेरिकन पत्नी के साथ तो वे ठीक से बातचीत भी नहीं कर पाते थे. उन्हें सारा दिन घर का अकेलापन काटने को दौड़ता था. अत: 2 ही महीनों में वे अपने सूने घर लौट आए थे.

अब घर की 1-1 चीज उन्हें विमला की याद दिलाती और वे सूने घर से भाग कर क्लब में जा बैठते. दोस्तों से गपशप में दिन बिता कर रात को जब घर लौटते तो अपना घर ही उन्हें बेगाना लगता. अब अकेले आदमी को इतने बड़े घर की जरूरत भी नहीं थी. अत: 4 कमरों वाले इस घर को उन्होंने बेचने का मन बना लिया. इंद्र ने सोचा कि वे 2 कमरों वाले किसी फ्लैट में चले जाएंगे. इस बड़े घर में तो पड़ोसी की आवाज भी सुनाई नहीं पड़ती, क्योंकि घर के चारों ओर की दीवारें एक दूरी पैदा करती थीं. फ्लैट सिस्टम में तो सब घरों की दीवारें और दरवाजे इतने जुड़े हुए होते हैं कि न चाहने पर भी पड़ोसी के घर होते शोरगुल को आप सुन सकते हैं.

सभी मित्रों ने भी राय दी कि इतने बड़े घर में रहना अब खतरे से भी खाली नहीं है. आए दिन समाचारपत्रों में खबरें छपती रहती हैं कि बूढ़े या बूढ़ी को मार कर चोर सब लूट ले गए. अत: घर को बेच कर छोटा फ्लैट खरीदने का मन बना कर उन्होंने धीरेधीरे घर का अनावश्यक सामान बेचना शुरू कर दिया. पुराना भारी फर्नीचर नीलामघर भेज दिया. पुराने तांबे और पीतल के बड़ेबड़े बरतनों को अनाथाश्रम में भेज दिया. धोबी, चौकीदार, नौकरानी और ड्राइवर आदि को जो सामान चाहिए था, दे दिया. अंत में बारी आई विमला की अलमारी की. जब उन्होंने उन की अलमारी खोली तो कपड़ों की भरमार देख कर एक बार तो हताश हो कर बैठ गए. उन्हें हैरानी हुई कि विमला के पास इतने अधिक कपड़े थे, फिर भी वह नईनई साडि़यां खरीदती रहती थी.

पहले दिन तो उन्होंने अलमारी को बंद कर दिया. उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि इतने कपड़ों का वे क्या करेंगे. इसी बीच उन्हें किसी काम से मदुरै जाना पड़ा. वे अपनी कार से निकले थे. वापसी पर एक जगह उन की कार का टायर पंक्चर हो गया और उन्हें वहां कुछ घंटे रुकना पड़ा. जब तक कोई सहायता आती और कार चलने लायक होती, वे वहां टहलने लगे. पास ही रेलवे लाइन पर काम चल रहा था और सैकड़ों मजदूर वहां काम पर लगे हुए थे. काम बड़े स्तर पर चल रहा था, इसलिए पास ही मजदूरों की बस्ती बस गई थी.

इंद्र ने ध्यान से देखा कि इन मजदूरों का जीवन कितना कठिन है. हर तरफ अभाव ही अभाव था. कुछ औरतों के शरीर के कपड़े इतने घिस चुके थे कि उन के बीच से उन का शरीर नजर आने लगा था. एक युवा महिला के फटे ब्लाउज को देख कर उन्हें एकदम से अपनी पत्नी के कपड़ों की याद हो आई. वे मन ही मन कुदरत पर मुसकरा उठे कि एक ओर तो जरूरत से ज्यादा दे देती है और दूसरी ओर जरूरत भर का भी नहीं. इसी बीच उन की गाड़ी ठीक हो गई और वे लौट आए.

दूसरे दिन तरोताजा हो कर इंद्र ने फिर से पत्नी की अलमारी खोली तो बहुत ही करीने से रखे ब्लाउज के बंडलों को देखा. जो बंडल सब से पहले उन के हाथ लगा उसे देख कर वे हंस पड़े. वे ब्लाउज 30 साल पुराने थे. कढ़ाई वाले उस लाखे रंग के ब्लाउज को वे कैसे भूल सकते थे. शादी के बाद जब वे हनीमून पर गए तो एक दिन विमला ने यही ब्लाउज पहना था. उस ब्लाउज के हुक पीछे थे. विमला को साड़ी पहनने का उतना अभ्यास नहीं था. कालेज में तो वह सलवारकमीज ही पहनती थी तो अब साड़ी पहनने में उसे बहुत समय लगता था. उस दिन जब वे घूमने के लिए निकलने वाले थे तो विमला को तैयार हो कर बाहर आने के लिए कह कर वे होटल के लौन में आ कर बैठ गए. कुछ समय तो वे पेपर पढ़ते रहे और कुछ समय इधरउधर के प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते रहे. आधे घंटे से ऊपर समय हो गया, मगर विमला बाहर नहीं आई. वे वापस कमरे में गए तो कमरे का दृश्य देख कर जोर से हंस पड़े. कमरे का दरवाजा खोल कर विमला दरवाजे की ओट में हो गई. और वह चादर ओढ़े थी.

 

वे बोले, ‘‘अरे, अभी तक तैयार नहीं हुईं?’’

‘‘नहीं. मैं तुम्हारा इंतजार कर रही थी. तुम्हें कैसे बुलाऊं, समझ में नहीं आ रहा था.’’

‘‘क्यों, क्या हुआ?’’

‘‘ब्लाउज बंद नहीं हो रहा.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘हुक पीछे हैं और मुझ से बंद नहीं हो रहे.’’

‘‘तो कोई दूसरी ड्रैस पहन लेतीं.’’

‘‘पहले यह उतरे तो… मैं तो इस में फंसी बैठी हूं.’’

विमला की स्थिति देख कर वे बहुत हंसे थे. फिर उन्होंने उस के ब्लाउज के पीछे के हुक बंद कर दिए थे. तब कहीं जा कर उस ने साड़ी पहनी थी. ब्लाउज के हुक बंद करने का उन का यह पहला अनुभव था और वे इतना रोमांचित हो गए कि विमला के ब्लाउज के हुक उन्होंने फिर से खोल दिए. वह कहती ही रह गई कि इतनी मुश्किल से साड़ी बांधी है और तुम ने सारी मेहनत बेकार कर दी. उस के बाद जब भी वह इस ब्लाउज को पहनती थी तो दोनों खूब हंसते थे.

मगर आज हंसने वाली बहुत दूर जा चुकी थी. हनीमून के दौरान पहना गया हर ब्लाउज उन्हें याद आने लगा. सफेद मोतियों से सजा काला ब्लाउज तो विमला के गोरे रंग पर बेहद खिलता था. जिस दिन विमला ने यह ब्लाउज पहना था उस की उंगलियां उस की गोरी पीठ पर ही फिसलती रहीं.

तब वह खीज उठी और बोली, ‘‘बस करो सहलाना गुदगुदी होती है.’’

‘‘अरे, अपनी बीवी की ही तो पीठ सहला रहा हूं.’’

‘‘मैं ने कहा न गुदगुदी होती है.’’

‘‘अरे, तुम्हारी तो पीठ में गुदगुदी हो रही है यहां तो सारे शरीर में गुदगुदी हो रही है.’’

‘‘बस करो अपनी बदमाशी.’’

विमला की खीज को देख कर उन्होंने चलतेचलते ही उसे अपनी बांहों के घेरे में कस कर कैद कर लिया था और वह नीला ब्लाउज तो विमला पर सब से ज्यादा सुंदर लगता था. नीली साड़ी के साथ वह नीला हार और नीली चूडि़यां भी पहन लेती थी. उस की चूडि़यों की खनक इंद्र को परेशान कर जाती थी. विमला जितनी बार भी हाथ उठाती चूडि़यां खनक उठती थीं और सड़क चलता आदमी मुड़ कर देखता कि यह आवाज कहां से आ रही है.

इंद्र चिढ़ाने के लिए विमला से बोले, ‘‘ये चूडि़यां क्या तुम ने राह चलतों को आकर्षित करने के लिए पहनी हैं? जिसे देखो वही मुड़ कर देखता है. यह मुझ से देखा नहीं जाता.’’

तब विमला खूब हंसी और फिर उस ने मजाकमजाक में सारी चूडि़यां उतार कर इंद्र के हवाले करते हुए कहा, ‘‘अब तुम ही

इन्हें संभालो.’’ तब एक पेड़ की छाया में बैठ कर इंद्र ने विमला की गोरी कलाइयों को फिर से चूडि़यों से भर दिया था.

इतनी प्यारी यादों के जाल में इंद्र इतना उलझ गए और 1-1 ब्लाउज को ऐसे सहलाने लगे मानो विमला ही लिपटी हो उन ब्लाउजों में.

इंद्र बड़ी मुश्किल से यादों के जाल से बाहर आए. फिर उन्होंने दूसरा बंडल उठाया. इस बंडल के अधिकतर ब्लाउज प्रिंटेड थे. उन्हें याद हो आया कि एक जमाने में सभी महिलाएं ऐसे ही प्रिंटेड ब्लाउज पहनती थीं. प्लेन साड़ी और प्रिंटेड ब्लाउज का फैशन कई वर्षों तक रहा था. उन्हें उस बंडल में वह काला प्रिंटेड ब्लाउज भी नजर आ गया जिसे खरीदने के चक्कर में उन में आपस में खूब वाक् युद्ध हुआ था.

विमला को एक शादी में जाना था और उस की तैयारी जोरशोर से चल रही थी.

एक दिन सुबह ही चेतावनी मिल गई थी, ‘‘देखो आज शाम को जल्दी वापस आना. मुझे बाजार जाना है. शीला की शादी में मुझे काली साड़ी पहननी है और उस के साथ का प्रिंटेड ब्लाउज खरीदना है.’’

‘‘तुम खुद जा कर ले आना.’’

‘‘नहीं तुम्हारे साथ ही जाना है. उस के साथ की मैचिंग ज्वैलरी भी खरीदनी है.’’

‘‘अच्छा कोशिश करूंगा.’’

‘‘कोशिश नहीं, तुम्हें जरूर आना होगा.’’

‘‘ओ.के. मैडम. आप का हुक्म सिरआंखों पर.’’ पर शाम होतेहोते इंद्र यह बात भूल गए और रात को जब घर लौटे तो चंडीरूपा विमला से उन का सामना हुआ. उन्हें अपनी कही बात याद आई तो तुरंत अपनी गलती को सुधार लेना चाहा. बोले, ‘‘अभी आधा घंटा है बाजार बंद होने में. जल्दी से चलो.’’

‘‘नहीं, मुझे नहीं जाना. आधे घंटे में भी कोई खरीदारी होती है?’’

‘‘अरे, तुम चलो तो.

तुम्हारे लिए मैं बाजार फिर से खुलवा लूंगा.’’

‘‘बस करो अपनी बातें. मुझे पता है आजकल तुम मुझे बिलकुल प्यार नहीं करते. सारा दिन काम और फिर दोस्त ही तुम्हारे लिए सब कुछ हैं आजकल.’’

‘‘यही बात मैं तुम्हारे लिए कहूं तो कैसा लगेगा? अब तो तुम्हारे बच्चे ही तुम्हारे लिए सब कुछ हैं. तुम मेरा ध्यान नहीं रखती हो.’’

‘‘शर्म नहीं आती है तुम्हें

ऐसा कहते हुए? बच्चे क्या सिर्फ मेरे हैं?’’

विमला की आंखों में आंसू देख कर वे संभल गए और बोले, ‘‘अब जल्दी चलो. झगड़ा बाद में कर लेंगे,’’ और फिर उन्होंने जबरदस्ती विमला को घसीट कर कार में बैठाया और कार स्टार्ट कर दी थी.

पहली ही दुकान में उन्हें इस काले प्रिंटेड ब्लाउज का कपड़ा मिल गया. फिर ज्वैलरी शौप में काले और सफेद मोतियों की मैचिंग ज्वैलरी भी मिल गई. फिर वे बाहर ही खाना खा कर घर लौटे.

इसी बंडल में उन्हें बिना बांहों का पीली बुंदकी वाला ब्लाउज भी नजर आया. जब विमला ने पहली बार बिना बांहों का ब्लाउज पहना था तो वे अचरज से उसे देखते रह गए थे. फिर दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं उन्होंने महसूस की थीं. एक ओर तो वे विमला की गोल मांसल और गोरी बांहों को देखते रह गए, तो दूसरी ओर उन में ईर्ष्या की भावना भी पैदा हो गई. वे विमला को ले कर बहुत ही पजैसिव हो उठे थे इसलिए उन्होंने विमला से कहा, ‘‘मेरी एक बात मानोगी?’’

‘‘बोलो.’’

‘‘यह ब्लाउज पहन कर तुम बाहर मत जाना. लोगों की नजर लग जाएगी.’’

‘‘बेकार की बातें मत करो. मेरी सारी सहेलियां पहनती हैं. किसी को नजर नहीं लगती है. तुम अपनी सोच को जरा विशाल बनाओ. इतने संकुचित विचारों वाले मत बनो.’’

‘‘मुझे जो कहना था, कह दिया. आगे तुम्हारी मरजी,’’ कह कर वे बिलकुल खामोश हो गए.

विमला ने उन की बात रख ली और फिर कभी बिना बांहों वाला ब्लाउज नहीं पहना. उसी बंडल में 20 ब्लाउज ऐसे निकले जो बिना बांहों के थे. लगता था विमला ने एकसाथ ही इतने सारे ब्लाउज सिलवा लिए थे. पर अब देखने से पता चलता कि उन्हें कभी इस्तेमाल ही नहीं किया गया.

अब उन्होंने अगला बंडल उठाया. इस में तरहतरह के ब्लाउज थे. कुछ रेडीमेड ब्लाउज थे, कुछ डिजाइनर ब्लाउज थे, 1-2 ऊनी ब्लाउज और कुछ मखमल के ब्लाउज भी थे.

जब काले मखमल के ब्लाउज पर इंद्र ने हाथ फेरा तो वे बहुत भावुक हो उठे. जब विमला ने यह काला ब्लाउज पहना तो उन की नजर उस की गोरी पीठ और बांहों पर जम कर रह गई.

40 साल पार कर चुकी विमला भी उस नजर से असहज हो उठी और बोली, ‘‘कैसे देख रहे हो? क्या मुझे पहले कभी नहीं देखा?’’

‘‘देखा तो बहुत बार है पर इस मखमली ब्लाउज में तुम्हारी गोरी रंगत बहुत खिल रही है. मन कर रहा है कि देखता ही रहूं.’’

‘‘तो मना किस ने किया है,’’ वह इतरा कर बोली.

कुछ साडि़यां ब्लाउजों सहित हैंगरों पर लटकी थीं. एक पेंटिंग साड़ी इंद्र ने हैंगर सहित उतार ली. हलकी पीली साड़ी पर गहरे पीले रंग के बड़ेबड़े गुलाब बने थे. इस साड़ी को पहन कर 50 की उम्र में भी विमला उन्हें कमसिन नजर आ रही थी. उस की देहयष्टि इस उम्र में भी सुडौल थी. अपने शरीर का रखरखाव वह खूब करती थी. जरा सा मेकअप कर लेती तो अपनी असली उम्र से 10 साल छोटी लगती.

उधर इंद्र ने कभी अपने शरीर की ओर ध्यान नहीं दिया. उन की तोंद निकल आई थी. बाल तो 40 के बाद ही सफेद होने शुरू हो गए थे. बाल काले करने के लिए वे कभी राजी नहीं हुए. सफेद बाल और तोंद के कारण वे अपनी उम्र से 10 साल बड़े लगते थे.

तभी तो एक दिन जब उन के एक मित्र घर आए तो गजब हो गया. मित्र का स्वागत करने के लिए विमला ड्राइंगरूम में आई और हैलो कह कर चाय लाने अंदर चली गई. उस दिन विमला ने यही पीली साड़ी पहनी हुई थी. वह चाय की ट्रे रख कर फिर अंदर चली गई.

आधे घंटे बाद जब मित्र चलने लगे तो बोले, ‘‘यार तू ने भाभीजी से मिलवाया ही नहीं.’’

‘‘अरे अभी तो तुम्हें हैलो कह कर चाय रख कर गई थी.’’

‘‘वे भाभी थीं क्या? मैं ने समझा तुम्हारी बेटी है.’’

‘‘अब तुम चुप हो जाओ, नहीं तो मेरे से पिटोगे.’’

‘‘जो मैं ने देखा और महसूस किया, वही तो बोला. अब इस में बुरा मानने की क्या बात है? छोटी उम्र की लड़की से शादी करोगे तो बापबेटी ही तो नजर आओगे.’’

‘‘तुम मेरे मेहमान हो अन्यथा उठा कर बाहर फेंक देता.’’

दोनों की बातें सुन कर विमला भी ड्राइंगरूम में चली आई. फिर अपने पति के बचाव में बोली, ‘‘लगता है भाईसाहब का चश्मा बदलने वाला है. जा कर टैस्ट करवाइए. अब सफेद बालों और काले बालों से तो उम्र नहीं जानी जाती. आप मेरे पति का मजाक नहीं उड़ा सकते.’’

बात हंसी में उड़ा दी गई. पर हकीकत यही थी कि विमला अपनी उम्र से 10 साल छोटी और इंद्र अपनी उम्र से 10 साल बड़े लगते थे.

छोटे बेटे की शादी में सिलवाए ब्लाउज ने तो उन्हें हैरानी में ही डाल दिया. अधिकतर विमला अपनी खरीदारी स्वयं ही करती थी और स्वयं ही भुगतान भी करती थी. पर उस दिन दर्जी की दुकान से एक नौकर ब्लाउज ले कर आया और क्व800 की रसीद दे कर पैसे मांगने लगा. क्व800 एक ब्लाउज की सिलवाई देख कर वे चकित रह गए. उन्होंने रुपए तो नौकर को दे दिए पर विमला से सवाल किए बिना नहीं रह पाए.

‘‘तुम्हारे एक ब्लाउज की सिलवाई रू 800 है?’’

‘‘हां, है. पर तुम्हें इस से क्या मतलब? मेरे बेटे की शादी है, मेरा भी सजनेसंवरने का मन है.’’

‘‘इतना महंगा ब्लाउज पहन कर ही तुम लड़के की मां लगोगी?’’

‘‘आज तक तो कभी मेरे खर्च का हिसाब नहीं मांगा. आज भी चुप रहो भावी ससुरजी,’’ कह कर विमला जोर से हंस दी.

उन्हें तो उस ब्लाउज में कुछ विशेष नजर नहीं आया था पर विमला की सहेलियों के बीच वह ब्लाउज चर्चा का विषय रहा. उस ब्लाउज को देखते ही उन्हें विमला का वह सुंदर चेहरा याद हो आया, जो बेटे की शादी की खुशी में दमक रहा था.

फिर उन की नजर कुछ ऐसे ब्लाउजों पर भी पड़ी, जिन्हें देख कर लगता था कि उन्हें कभी पहना ही नहीं गया है. पता नहीं विमला को ब्लाउज सिलवाने का कितना शौक था. उन्हें लगा इतने ब्लाउज देख कर वे पागल हो जाएंगे. औरत का मनोविज्ञान समझना उन की समझ से परे था. पर अफसोस जिस विमला को ब्लाउज सिलवाने का इतना शौक था, वही विमला जीवन के आखिरी दिनों में ब्लाउज नहीं पहन सकती थी.

2 साल पहले उसे स्तन कैंसर हुआ और जब तक उस का इलाज शुरू होता वह पूरी बांह में फैल चुका था. उस से अपनी बांह भी ऊपर नहीं उठती थी. बीमारी और कीमोथेरैपी ने उस के गोरे रंग को भी झुलसा दिया था. 3 महीनों में ही वह अलविदा कह गई थी.

आज इंद्र उन्हीं ब्लाउजों के अंबार में बैठे यादों के सहारे कुछ जीवंत क्षणों को फिर से जीने का प्रयास कर रहे थे. पर कुछ समय बाद वे उठे और उन्होंने अपने नौकर को आवाज लगाई. कहा, ‘‘इस अलमारी के सारे कपड़ों को संदूकों में बंद कर के कार में रख दो.’’

सुबह होते ही इंद्र कार ले कर उस रेलवेलाइन जा पहुंचे और फिर दोनों संदूकों को मजदूरों के हवाले कर बहुत ही हलके मन से घर लौट आए कि विमला के कपड़ों से किसी की नग्नता ढक जाएगी.

प्रायश्चित्त

“राजकुमारी, वापस आ गई वर्क फ्रौम होम से? सुना तो था कि घर पर रह कर काम करते हैं पर मैडम के तो ठाठ ही अलग हैं, हिमाचल को चुना है इस काम के लिए.” बूआ आपे से बाहर हो गई थी मिट्ठी को अपनी आंखों के सामने देख कर.

 

“अपनाअपना समय है, बूआ. कोई अपनी पूरी ज़िंदगी उसी घर में बिता देता है जहां पैदा हुआ हो और किसी को काम करने के लिए अलगअलग औफिस मिल जाते हैं, वह भी मनपसंद जगह पर,” मिट्ठी ने इतराते हुए बूआ के ताने का ताना मान कर ही जवाब दिया.

बूआ पहले से ही गुस्से में थी, अब तो बिफर पड़ी, “सिर पर कुछ ज्यादा चढ़ा दिया है, तुझे. पर मुझे हलके में लेने की गलती मत करना. तेरी सारी पोलपट्टी खोल दूंगी भाई के सामने. नौकरी ख्वाब बन कर रह जाएगी. मुंह पे खुद ही पट्टी लग जाएगी.”

“आप से ऐसी ही उम्मीद है, बूआ. लेकिन कोई भी कदम उठाने से पहले सोच लेना कि मैं मां की तरह नहीं हूं, जो तुम्हारे टौर्चर से तंग आ कर अपनी जान से चली गई.”

बूआ मिट्ठी को मारने के लिए दौड़ी ही थी कि कुक्कू बीच में आ गया. उन्हें दोनों हाथों से पकड़ कर अंदर ले गया. तब तक गुरु भी आ गया था. वह मिट्ठी को उस के कमरे तक छोड़ कर आया. मिट्ठी आंख बंद कर के अपनी कुरसी पर बैठ गई. जो उस ने जाना था उस से भक्ति बूआ के लिए उस की नफ़रत और भी बढ़ गई थी. बचपन से ही उसे बूआ से नफ़रत थी. वजह, उन का दोगला व्यवहार. कुक्कू और गुरु को हमेशा प्राथमिकता देती. घर का कोई भी काम हो, मिट्ठी से करवाती और हर बात में उसे ही पीछे रखती. घर में खाना उन दोनों की पसंद का ही बनता था. मिट्ठी का कुछ मन भी होता तो उस में हज़ार कमियां बता कर बात को टाल दिया जाता. मिट्ठी को समझ नहीं आता था कि वह अपनी ससुराल में न रह कर उन के घर में क्यों रह रही है. सब के सामने उन का बस एक ही गाना था-

‘मां तो छोड़ कर चली गई अपने दोनों बच्चों को. वह तो मेरी ही हिम्मत है जो अपना घरबार छोड़ कर यहां पड़ी हुई हूं इन की परवरिश के लिए.’

‘अब तो हम बड़े हो गए हैं, अब तो अपना घर संभालो जा कर.’ मन ही मन मिट्ठी बुदबुदाती. घर में सबकुछ बूआ की मरजी से ही होता आ रहा था. मिट्ठी और उस का छोटा भाई कुक्कू उन की हर बात मानते आ रहे थे. बूआ का बेटा गुरु भी कुक्कू का हमउम्र था, इसलिए दोनों साथ ही रहते थे. लेकिन मिट्ठी को अब घर में रहना और बूआ के कायदेकानून से चलना बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था. यही कारण था कि उस ने कालेज पूरा होते ही नौकरी ढूंढ ली थी. पैकेज ज्यादा नहीं था. नौकरी दूसरे शहर में थी. छह महीने होतेहोते कंपनी में उस की अच्छी साख बन गई थी. घर आने का उस का मन ही नहीं होता था. इस बार पापा से ज़िद कर के उस ने हिमाचल वाले फ्लैट में रहने का मन बनाया. वर्क फ्रौम होम ले लिया. कुक्कू को जैसे ही भनक लगी, तुरंत उस के पास आया.

“देखो दीदी, मैं जानता हूं, तू हिमाचल क्यों जा रही है. मां के बारे में जानने का मेरा भी उतना ही मन है जितना तुम्हारा. बस, मैं कभी दिखाता नहीं हूं. मेरी भी अब छुट्टियां हैं. मैं भी वहीं पर कोई इंटर्नशिप कर लूंगा.”

मिट्ठी को कुक्कू की बात सही लगी और उसे साथ ले जाने को तैयार हो गई. गुरु को उस के पापा ने अपने पास बुला लिया था, इसलिए दोनों भाईबहन अपनाअपना सामान ले कर रवाना हो गए. बूआ अपने बेटे गुरु को उन के साथ भेजना चाहती थी लेकिन पति को मना नहीं पाई. भौंहें तान कर मिट्ठी और कुक्कू को विदा किया.

“गगन, तूने भेज तो दिया हिमाचल पर कोई बीती बात बच्चों के सामने आ गई तो क्या होगा ? उसी फ्लैट में रुकने की क्या पड़ी थी, किसी होटल में भी तो रुक सकते थे. तुम तो सब कुछ भूल गए हो.” बूआ ने लगभग डांटते हुए अपने भाई गगन को अपनी बात समझाने की कोशिश की.

“दीदी, 20 साल बीत चुके हैं उस घटना को. हम ने कोई जुर्म नहीं किया है जो छिपे रहेंगे और बच्चों को उस फ्लैट से दूर रखेंगे. वे दोनों उसी फ्लैट में पैदा हुए थे. अपनी जन्मभूमि इंसान को अपनी ओर खींच कर बुला ही लेती है. आप डरिए मत. सब ठीक होगा.” गगन ने अपनी बड़ी बहन को समझाने की कोशिश की.

“मिट्ठी अब कब तक ऐसे ही बैठी रहेगी? चल उठ, नहा कर आ जा. नाश्ता ठंडा हो गया है. हम दोनों कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं? मुझे भी सुनना है तुम लोग कैसे बिता कर आए हो मेरे बिना पूरा एक महीना.” गुरु मिट्ठी को बाथरूम भेज कर ही कमरे से बाहर गया.

“पापा मेरी कंपनी का एक औफिस शिमला में भी है. मैं ने सोचा है वहीं पर ट्रांसफर ले लेती हूं. अपना फ्लैट तो है ही वहां पर,” शाम को पापा घर आए तो मिट्ठी ने प्रस्ताव रखा.

“देखो बेटा, कुछ दिन वहां जा कर रहना दूसरी बात है और वहीं ठहर जाना बिलकुल अलग. तुम जहां हो, अभी वहीं पर रह कर काम करो,” पापा की स्पष्ट न थी.

“पापा, आप ने भी तो सालों वहां पर नौकरी की है. अपना फ्लैट बंद पड़ा है, मैं रहूंगी तो उस का अच्छे से रखरखाव भी हो जाएगा. फिर मेरा मन है वहां जा कर रहने का. प्लीज, एक बार मेरी तरह सोच कर देखो न,” मिट्ठी ने डरतेडरते अपनी बात दोहराई.

“तुझे सीधी तरह से कोई बात क्यों नहीं समझ आती है, लड़की? गगन वैसे ही उन बातों को याद करके परेशान हो जाता है, तुम हो कि खुद के अलावा किसी के बारे में सोचती ही नहीं हो. जा कर अपना काम करो,” बूआ ने अपने लहजे में मिट्ठी को डांटा. पापा के सामने मिट्ठी चुप रह जाती थी लेकिन आज उसे गुस्सा आ गया.

“आप से कौन बात कर रहा है, बूआ? पापा को ही जवाब देने दो. हिमाचल के नाम से इतना डर क्यों जाती हो? कहीं आप के कहने से ही तो पापा वापस नहीं आए वहां से, आप को इसी घर में जो रहना था?” गुस्से में मिट्ठी बोलती चली गई.

गुरु और कुक्कू आ कर उसे अपने साथ ले गए. घर में क्लेश पसर गया. उस रात किसी ने भी खाना नहीं खाया. गगन का गुस्सा शांत हुआ तो बेटी पर प्यार उमड़ पड़ा और उस के कमरे में आ गए. मिट्ठी लैपटौप पर कुछ काम कर रही थी. उसे देख कर गगन जाने के लिए वापस मुड़े, तभी बेटी ने आवाज़ लगाई.

“आइए पापा, मेरा काम तो पूरा हो गया है. बस, कुछ फोटो देख रही थी हिमाचल की.” गगन मिट्ठी के पास दूसरी कुरसी पर बैठ कर फोटो देखने लगे.

“यह फोटो तुम्हे कहां से मिली?” गगन, मिट्ठी, कुक्कू और नीतू की फोटो थी. मिट्ठी ने आश्चर्य से पापा को देखा, बोली, “फ्लैट के स्टोररूम में कुछ सामान पड़ा हुआ था. यह फोटो उस समान में ही थी.” मिट्ठी ने बताया तो गगन ने आगे पूछा, “बाकी सामान कहां है?”

“इस में है, पापा. आपकी और मम्मी की बहुत सारी यादें. मैं अपने साथ उठा लाई. मिट्ठी ने एक थैला गगन के हाथ में थमा कर दरवाज़ा बंद कर दिया. उसे डर था कि पापा को उन के कमरे में नहीं पाएंगी, तो भक्ति बूआ यहीं धमक पड़ेंगी. पापा जितनी देर घर में रहते हैं, उन की नज़र उन्हीं पर रहती है बूआ की, विशेष रूप से जब मिट्ठी आसपास हो तब. पापा उदास हो गए थे उन फोटो को देख कर, मम्मी के छोटेमोटे सामान को देख कर.

“कितना समझाता था कि छोटीछोटी बातों को दिल से लगाना ठीक नहीं लेकिन उसे तो बात की तह तक जाना होता था. क्यों कही, किस ने कही, क्या जवाब देना चाहिए था, बस, इसी में घुलती रहती थी.”

मिट्ठी को अच्छा लगा. बड़े दिनों बाद पापा ने मम्मी के बारे में खुल कर कुछ बोला था. पर अचानक पापा खड़े हो गए. “बेटा, तुम अपना काम करो, मैं चलता हूं. तुम्हारी बूआ ने दूध बना कर रख दिया होगा. उस के भी सोने का टाइम हो गया है. दिनभर काम में लगी रहती है.” दरवाजा बंद कर के पापा मिट्ठी के कमरे से बाहर निकल गए.

बूआ के लिए पापा की चिंता नई बात न थी. उन के एहसान में दबे हुए थे, पापा. उन के बच्चों की परवरिश कर के बूआ ने उन पर बड़ा एहसान चढ़ा दिया था. मिट्ठी ने सामान वापस समेट कर रख दिया. किसी और को पता चल जाता तो बात का बतंगड़ बन जाता. मां के बारे में घर में कोई भी बात नहीं करता था. कुक्कू के ऊपर बूआ अपना अतिरिक्त प्यार लुटाती थी, इसलिए उसे मां की कमी बस तभी महसूस होती जब मिट्ठी को रोते हुए देखता. मिट्ठी जब भी घर में होती उसे मां की कमी हर पल महसूस होती. बचपन के दिन याद आ जाते. मां कैसे हर जगह उसे साथ रखती थीं.

‘लड़के की इतनी परवा नहीं है जितनी लड़की की है. दिनभर इसी के चोंचलों में लगी रहती है. पढ़लिख कर दिमाग खराब हो जाता है छोरियों का. आखिर वंश तो लड़के से ही चलेगा. लड़की को तो एक दिन अपने घर चली जाना है.’ बूआ के ऐसे ताने से मां आहत होती लेकिन हंस कर जवाब देती.

‘दीदी, आप और मैं भी तो लड़कियां ही हैं. और फिर आप के घर का तो रिवाज़ है. आप अपनी ससुराल नहीं गईं तो मिट्ठी को भी यहीं रख लेंगे.’ मां के जवाब से बूआ आपे से बाहर हो जाती.

‘मेरी क्या रीस करनी है? मेरी तो मां बचपन में ही मर गई थी. गगन को अपने हाथों से पाला है मैं ने. कोई बूआ, चाची या ताई भी नहीं थी जो संभाल लेती. गगन ही नहीं जाने देता है. रहो अपने घर और ससुर की भी रोटी सेंको. मैं तो कल ही चली जाऊंगी अपने घर.’

मां फिर हंस पड़ती. ‘नाराज़ क्यों होती हो, दीदी? आप के भाई ही मुझे साथ ले कर गए हैं. मेरा तो मन भी नहीं लगता वहां. यहां छोड़ेंगे तो ससुरजी को रोटी नहीं, सब्जी भी खिलाऊंगी. रिटायर हो गए हैं, खुद ही सब काम करते हैं फिर भी. मुझे अच्छा नहीं लगता है.’

बूआ बात को पकड़ कर अपने पक्ष में कर लेती. ‘तो इसीलिए तो अपना घरबार छोड़ कर पड़ी हूं यहां. तुम अपना घर संभाल लेती तो गगन क्यों मुझे रोके रखता?’ कुछ भी कर के मां के सिर पर हर बात पटक दिया करती थी, बूआ.

 

कई सालों बाद इस बार नाना मिट्ठी के सामने ही आए. मां के जाने के बाद हर साल नाना दोनों नातियों से मिलने बेटी की ससुराल आते थे. न कोई उन से बात करता था और न ही कोई उन के पास बैठता था. अकेले आते थे और दोनों बच्चों को उन के हिस्से का चैक दे कर चले जाते थे. नाना ने अपनी वसीयत में अपने बेटे और बेटी को बराबर का हिस्सा दिया था. सालभर की कमाई का आधा हिस्सा बेटी के दोनों बच्चों को दे जाते थे उस के जाने के बाद.

‘कितना फजीता किया था हमारे परिवार का इस आदमी ने. अब लाड़ बिखेरने आता है, बच्चों पर. इस की बेटी गई तो पुलिस ले कर गया था फ्लैट पर. अखबार में भी खबर दी कि मार दिया मेरी बेटी को,’ नाना चले गए तो बूआ का बड़बड़ाना शुरू हो गया.

“वे हमारे नाना हैं, बूआ. उन के बारे में ऐसा सोचना ठीक नहीं,” कुक्कू ने बोला तो बूआ ऐसे शुरू हुई जैसे इंतज़ार ही कर रही थी.

“तेरे दादा और पापा को जेल की हवा खानी पड़ती. वह तो तेरी मां की मैडिकल जांच में नहीं निकला कि उस को मारा है किसी ने.” मिट्ठी चाहती थी कि बूआ और भी कुछ बोल दे. “आप तो तब फ्लैट पर ही थी बूआ. पूजा भी आप ने ही रखवाई थी और पंडित को भी आप ही ले कर गई थी. आप को तो सच पता था, फिर आप ने क्यों छिपाया यह सब.” बूआ आज़ पहली बार डर अपने चेहरे पर छिपा नहीं पाई.

“तुझे किस ने बताया यह सब?” मिट्ठी इसी सवाल का जवाब देना चाहती थी.

“आप के पंडित ने, उन सब लोगों ने जो पूजा में आए थे, पड़ोस वाले.” बूआ सीधे मिट्ठी के सामने आ कर खड़ी हो गई.

“इसीलिए मैं नहीं चाहती थी कि तू जाए वहां पर. यही सब कर के आई है वर्क फ्रौम होम के बहाने.” बूआ के हर शब्द से गुस्सा टपक रहा था.

“मम्मी, पापा आए हैं. थोड़ा ध्यान उन पर दो. अकेले बैठे हैं बैठक में.” गुरु बूआ को वहां से ले गया और मिट्ठी भी पीजी वापस जाने के लिए अपना सामान पैक करने चली गई. गुरु 2 साल से खाली घूम रहा था. छोटीमोटी नौकरी उसे समझ नहीं आती थी और बड़ी के लायक न तो उस में काबिलीयत थी और न ही उस ने कोशिश की. जैसेतैसे इंजीनियरिंग पास की थी.

“मां, मुझे उसी कंपनी में नौकरी मिल गई है जिस में मामा काम करते थे.” गुरु ने घोषणा की तो बूआ रसोई से लड्डू का डब्बा उठा कर ले आई. कुक्कू ने लड्डू खा कर डब्बा उन के हाथ से ले लिया.

“बूआ, तुम खा लो, फिर बैठक में ले जा रहा हूं और वहां से बच कर नहीं आएंगे.” बूआ रोकती रह गई पर कुक्कू डब्बा उठा कर भाग गया. मिट्ठी बिना कुछ कहे ही घर से निकल गई. बूआ ने रोकने की कोशिश नहीं की. पीजी में जाते ही बिस्तर पर लेट गई. हमेशा की तरह मां याद आ रही थी.

‘एक हफ्ता तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी मां?’ मां पहली बार कुक्कू को ले कर नाना के घर गई तो मिट्ठी को पापा ने अपने पास ही रोक लिया था. रोतेरोते मुंह से निकल गया था मिट्ठी के. बाथरूम में चली गई मुंह धोने के लिए जिस से पीजी की बाकी लड़कियों को शक न हो. हर बार घर से आ कर एकदो दिन इसी तरह परेशान रहती थी मिट्ठी.

चार दिनों बाद ही पापा का फोन आया, देख कर मिट्ठी सोच में पड़ गई. पहली बार में तो फोन उठाना ही भूल गई. दूसरी बार जब आया तो उठाया, ‘बेटा, तुम्हारी भक्ति बूआ एक पूजा करवाना चाहती हैं. शिमला वाला फ्लैट तुम्हारी मां के जाने के बाद से बंद ही है. अब गुरु वहीं रहेगा, इसलिए पूजा कर के उसे पवित्र करवाना चाहती हैं. अगले रविवार को तुम भी थोड़ा समय निकाल लेना.”

“पापा, आप को पता है, मां जब से गई हैं, विश्वास उठ गया है मेरा पूजापाठ से.” मिट्ठी ने स्पष्ट किया.

“जानता हूं, बेटा. पर हो सकता है यह पूजा तुम्हारे टूटे विश्वास को जोड़ने में कामयाब हो जाए. ऐसा करते हैं, इस पूजा को तुम ही करवाओ. पंडितजी से तो मिल ही चुकी हो.” मिट्ठी समझ गई, वह मना नहीं कर पाएगी पापा को. तभी एक विचार उस के दिमाग में कौंधा.

“ठीक है पापा, कोशिश करती हूं. फ्राइडे तक आप को बताती हूं. भक्ति बूआ को बोलना अब उन के टैंशन के दिन गए. पंडितजी से मैं खुद ही बात कर लूंगी.”

 

पापा की खुशी फ़ोन पर ही फूट पड़ी. “अब उस का एहसान चुकाने का समय आ गया है. खुद को भुला कर उस ने हमारे घर को संभाला है. तुम ने यह ज़िम्मेदारी ले कर मेरे दिल का बोझ हलका कर दिया है.” पापा फ़ोन रखने ही वाले थे कि मिट्ठी ने कहा, “पापा, मैं चाहती हूं कि इस पूजा में नाना को भी बुलाऊं. मां के जाने के बाद नानी भी चली गईं. वे भी अकेले ही हैं. दादाजी भी गांव में चले गए हैं उस के बाद. प्लीज, उन दोनों को भी बुलाने दीजिए.”

कुछ देर तक पापा ने कुछ नहीं कहा लेकिन फ़ोन नहीं काटा. फिर यह कहते हुए फ़ोन रखा, “तुम कहती हो तो मना कैसे कर सकता हूं. बुला लो. भक्ति को मैं समझा लूंगा.”

मिट्ठी ने कमरे से बाहर आ कर आसमान की ओर देखा. उसे महसूस हुआ जैसे मां वहीं से मुसकरा कर कह रही है. “आखिर तुम ने रास्ता निकाल ही लिया सच से परदा उठाने का.” मिट्ठी केवल निर्देश दे रही थी और कुक्कू उस का पालन कर रहा था. पापा ने इस बार चौका लगाया था. “भक्ति दीदी, तुम इतने सालों से सब संभालती आ रही हो, अब मुझे भी कुछ करने का अवसर दो. इस बार पूजा की पूरी ज़िम्मेदारी मैं संभाल लूंगा. आजकल वैसे भी सब काम मोबाइल से हो जाते हैं. लंचटाइम में औफिस में बैठ कर सब प्रबंध कर दूंगा.”

भक्ति सकपका कर बोली, “गगन, क्या तू भी यही मानता है कि मेरी पूजा के कारण ही नीतू की जान गई?”

गगन ने दीदी का हाथ पकड़ लिया. “ऐसा कुछ नहीं है, दीदी. तुम ने मिट्ठी और कुक्कू के लिए कितनाकुछ किया है. मैं भी चाहता हूं कि गुरु को नौकरी मिलने और वहां सैट होने में मदद कर पाऊं. बस, इसीलिए आप को तनाव नहीं देना चाहता हूं.”

भक्ति का दिल भाई की बात मानने से इनकार कर रहा था लेकिन उसे मना भी नहीं कर सकती थी. “ठीक है, गगन. मुझे तो इस बात की खुशी है कि तू पूजा के लिए तैयार हो गया है. कितने साल हो गए, घर में कोई शुभ काम नहीं हुआ.”

“अब होगा दीदी और आप को परेशान भी नहीं होना पड़ेगा. बच्चे अब बड़े हो गए हैं. उन को भी ज़िम्मेदारी लेना सीखना चाहिए न. बस, इस बार उन की ही सहायता लूंगा.”

निश्चित तारीख पर सब लोग शिमला के उस फ्लैट में इकट्ठे  हो गए. दादाजी और नाना को कुक्कू ने मना लिया. सब काम तैयार हो गया तो मिट्ठी भी आ गई. पूजा शुरू हुई. पंडितजी ने हवन और आरती करने के बाद जैसे ही जाने को कहा, भक्ति बूआ ने आदतन उन्हें रोक लिया. “पंडितजी, गुरु की कुंडली देख कर बताइए कि क्या सावधानियां रखनी हैं और कुछ ऊंचनीच हो जाए तो क्या उपाय होगा?”

पंडितजी ने काफ़ी देर तक कुंडली को देख कर कुछ गणना की, फिर बोले, “गुरु मामा की छोड़ी हुई नौकरी पकड़ रहा है. उन्हीं के घर में रहेगा तो इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि बहूरानी की आत्मा इन से संपर्क करे.” भक्ति बूआ ने तुरंत गुरु की कुंडली पंडितजी के हाथ से ले ली. लेकिन उन्होंने अपनी बात जारी रखी. “आज़ की पूजा में ही अगर कुछ मंत्र और पढ़ लिए जाएं और सच्चे दिल से बहूरानी को याद कर के उन से माफ़ी मांगी जाए तो बला टल सकती है.”

सब भक्ति बूआ की ओर देख रहे थे.

“तो जो सही है वो करो, मैं कौन सा मना कर रही हूं. इन बातों का कुछ मतलब थोड़े ही है.” बूआ उठ कर जाना चाहती थी लेकिन फूफाजी ने बिठा दिया.

“पंडितजी, जो बाकी है उस को भी पूरा कीजिए. बेटे को मुश्किल से रोज़गार मिला है, उस में कोई अड़चन न आए, उस का उपाय आप शुरू कीजिए.”

पंडितजी ने मंत्र पढ़ने शुरू किए. सबसे पहले नानाजी बोले. “नीतू बेटा, अगर तू सुन रही है तो मुझे माफ़ करना. मैं समय से तुम्हारी चिट्ठी नहीं पढ़ सका. तुम बच्चों को ले कर मेरे पास आना चाहती थीं लेकिन तुम्हारा खत मुझे तुम्हारे जाने के बाद मिला.”

अब पापा भी चुप नहीं रहे. पहली बार उन्होंने बच्चों के सामने अपनी पत्नी को ले कर कुछ कहा. “मैं भी खतावार हूं, नीतू. तुम्हारे मना करने पर भी मैं ने अपने बिजनैस के जनून के कारण नौकरी छोड़ी और तुम्हें तुम्हारे घर भी नहीं जाने दिया. मुझे डर था कि ससुराल में मेरी साख कम हो जाएगी.”

अब पंडितजी ने बोल कर सब को चौंका दिया. “हो सके तो माफ़ कर देना, बहूरानी. मैं नहीं जानता था कि तुम पूरे महीने व्रत कर रही थी. मैं ने ही भक्तिजी के कहने पर यह घोषणा की थी कि तुम्हारे कुंडली दोष के कारण ही गगन की नौकरी गई है और व्यवसाय भी शुरू नहीं हो पा रहा है. मुझे पता होता तो तुम्हें लगातार 3 दिन निर्जल, निराहार व्रत का उपाय न बताता.” सब की नजर भक्ति की ओर थी.

फूफाजी ने उन्हें कुछ बोलने के लिए हाथ से इशारा किया. भक्ति बूआ रोते हुए बोली, “नीतू, हो सके तो मुझे भी माफ़ करना. पंडितजी से बात कर के मैं ने ही वह पूजा रखी थी. मेरे कहने पर ही उन्होंने कुंडली देखी थी. दूध पीते बच्चे की मां ऐसी कठिन विधि नहीं अपना पाएगी यह जानते हुए भी मैं ने तुम पर दबाव बनाया.” बूआ बोल ही रही थी कि मिट्ठी बीच में बोल पड़ी.

“मां को 3 दिनों से उलटीदस्त हो रहे थे, फिर भी वे पूजा के काम में लगी रहीं और अपनी दवाई भी नहीं ले पाईं व्रत करने के कारण. अगर दवा लेतीं तो उन को हार्टअटैक न आता.”

आज़ पहली बार भक्ति बूआ ने मिट्ठी को घूर कर नहीं देखा.

नाना उठ कर खड़े हो गए. “बस, यही जानने के लिए मैं बेचैन था. अगर सही बात पता चल जाती तो मैं पुलिस के पास कभी न जाता. मेरी बेटी अचानक चली गई, अपनी नातियों से रिश्ता क्यों तोड़ता.”

कुक्कू ने नाना को पकड़ कर बिठा दिया और खुद भी उन के पास ही बैठ गया. फूफाजी ने भक्ति बूआ को वहां से उठा दिया और सामान ले कर चलने लगे. आज़ गगन ने उन्हें नहीं रोका.

बूआ खुद ही गगन के पास आई. “हो सके तो माफ़ कर देना, मेरे भाई. इसी एक गलती को सुधारने के लिए अपने घर नहीं गई.”

“पर मुझे तो सच बता देतीं, दीदी. जीनामरना अपने हाथ में नहीं है लेकिन मेरे विश्वास का कुछ तो मान रखतीं आप.”

भक्ति बूआ साड़ी के पल्लू में मुंह छिपा कर रो रही थी. फूफाजी ने आ कर पापा को सांत्वना दी.

“इस गलती की सज़ा अब मिलेगी इस को. अब यह तब तक तुम्हारे घर नहीं आएगी जब तक तुम बुलाओगे नहीं.” दादाजी उठने की कोशिश कर रहे थे लेकिन मिट्ठी ने उन्हें रोक दिया.

“भक्ति को विदा कर देता हूं, बेटा. शादी के 26 साल बाद ससुराल जा रही है. अब तो तू सब संभाल लेगी. उस को जाने दो.”

कुक्कू पंडितजी की ओर देख कर मुसकरा दिया. उन के प्रायश्चित्त पाठ ने वह कर दिखाया था जो सालों से कोई नहीं कर पाया था.

***

Rave Party : एक्‍ट्रैस की पार्टी में पहुंची पुलिस

बात 18 मई, 2024 की है. सुनहरी शाम थी. देवाशीष राय थीम पार्क में चहलकदमी कर रहा था, तभी उस की निगाह सामने पड़ी तो एक सूटेडबूटेड अधेड़ उम्र का शख्स भी उसे काफी देर से घूर सा रहा था. देवाशीष ने अपने दिमाग पर जोर डाला, कहीं यह आदमी उस की जानपहचान वाला तो नहीं है. 

तभी वह व्यक्ति धीमेधीमे सधे हुए कदमों से चलता हुआ देवाशीष के बिलकुल सामने आ कर खड़ा हो गया. दोनों एक क्षण के लिए एकदूसरे को देख कर मुसकराए. उस व्यक्ति के हाथ में चिप्स का पैकेट था, जिसे वह अकेले खा रहा था. 

जी, मैं ने अपने दिमाग पर काफी जोर डाला, लेकिन आप को पहचान नहीं पाया’’ देवाशीष ने बात की शुरुआत करते हुए कहा. 

भाईसाहब, मैं भी आप को नहीं जानता हूं. वह तो अकेलेअकेले मैं काफी बोर सा हो रहा था. तभी आप मुझे सामने से दिख गए. इसलिए आप के पास चला आया,’’ अजनबी ने चिप्स का पैकेट देवाशीष की ओर बढ़ाते हुए कहा.

जी, मेरा नाम देवीसिंह है. मैं यहां बेंगलुरु में एक फर्म में मैनेजर हूं.’’ देवाशीष ने अपना असली परिचय छिपाते हुए दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाया.

देवीसिंहजी, आप से मिल कर बड़ी खुशी हुई. मेरा नाम पवन खत्री है. मेरा यहां पर कंसट्रक्शन का काम है. चलो, एक से दो भले, आप के साथ अब मेरा भी समय यहां पर कुछ देर के लिए अच्छा गुजर जाएगा.’’ पवन ने अपना परिचय देते हुए कहा.

बस, कुछ देर में इन दोनों की अच्छीखासी दोस्ती भी हो गई थी. दोनों करीब एक घंटे तक थीम पार्क में घूमते रहे. आपस में खूब बातचीत भी करते रहे. देवाशीष यानी देवीसिंह ज्यादा बोल नहीं रहा था, वह केवल पवन खत्री की बातों को बड़ी गंभीरता के साथ सुन रहा था. पवन खत्री ने इस बीच देवीसिंह को अपना विजिटिंग कार्ड भी दे दिया था. अब तक वहां पर उन दोनों को काफी देर भी हो चुकी थी.

पुलिस को ऐसे लगी रेव पार्टी की भनक

देवीसिंहजी, आजकल मैं बहुत ज्यादा बिजी हूं, आप को मैं ने अपना कार्ड तो दे ही दिया है, कल संडे भी है. आप के मनोरंजन के लिए मेरे पास बहुत ही अच्छा प्लान है. आप सुबह १० बजे तक मेरे औफिस पहुंच जाइए. कल आप को मैं जन्नत की सैर जरूर करवा दूंगा.’’ पवन ने उस से हाथ मिलाते हुए कहा. 

पवनजी, मैं समझा नहीं? जन्नत की कैसी सैर करा रहे हैं आप मुझे?’’ देवीसिंह ने पूछा.

देवीसिंहजी, अभी बातचीत में पता चला कि आप सिंगल हो, आप की शादी तो नहीं हुई है न अभी तक?’’ पवन ने कहा. 

जी, आप सही कह रहे हैं. मैं अभी कुंवारा ही हूं. वैसे घर वाले मेरे लिए लड़की ढूंढ रहे हैं. आप बताओ न, आप मुझे जन्नत की कैसी सैर करवाने वाले हैं?’’ देवी सिंह ने उत्सुकता से पूछा.

”यार देवी सिंहजी, आप जवान हो, अच्छी नौकरी करते हो, मैं तुम्हें नशे और शबाब की ऐसी महफिल में ले चलूंगा, जिस से तुम्हारी रात रंगीन हो जाएगी. बात काफी गोपनीय है, इसलिए जरा मेरे पास आ जाइए.’’ यह कह कर पवन खत्री देवी सिंह के कान में फुसफुसाने लगा था.

रेव पार्टी में दिग्गज ऐक्टर भी थे शामिल

पवन खत्री की सारी बात सुन कर देवीसिंह तो जैसे खुशी के मारे उछल ही पड़ा था, वह पवन खत्री की बात तुरंत मान गया और उस ने इस के लिए औनलाइन उसे एडवांस रकम देनी चाही, पर पवन खत्री ने कहा कि पैसे तो कैश में देने होंगे और इस तरह दोनों की डील पक्की हो गई थी. 

दूसरे दिन देवीसिंह ने सारा पैसा नकद पवन खत्री के औफिस में जा कर दे दिया फिर उस ने यह बात बेंगलुरु के डीसीपी (क्राइम II) आर. श्रीनिवास गौड़ा को उन के औफिस में जा कर बता दी. असल में देवाशीष राय पुलिस का एक विश्वस्त मुखबिर था, जिसे पुलिस ने एक खास काम दे रखा था.

डीसीपी के द्वारा यह बात जब बेंगलुरु के पुलिस कमिश्नर बी. दयानंद तक पहुंची तो उन्होंने तुरंत एक विशेष पुलिस टीम का गठन अपर पुलिस आयुक्त (पूर्वी) बेंगलुरु शहर डा. चंद्रगुप्त एवं डीसीपी (क्राइम II) बेंगलुरु शहर आर. श्रीनिवास गौड़ा के नेतृत्व में कर दिया. इस के अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर ने इस विशेष टीम में केंद्रीय अपराध शाखा (सीसीबी) को भी शामिल कर लिया.

बेंगलुरु के बाहरी इलाके अनेकल ताकुल के सिंगोना अग्रहारा गांव में जीएम फार्महाउस में 19 मई, 2024 की रात को पुलिस ने छापा मारा तो वहां से फार्महाउस के मालिक सहित १०४ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया, जिस में तेलुगु अभिनेत्री हेमा का नाम भी था.

एफआईआर के मुताबिक इस रेव पार्टी में 74 पुरुष और 30 महिलाएं शामिल थीं. पुलिस ने पार्टी में शामिल लोगों के पास से 14.4 ग्राम एमडीएमए गोलियां, 1.16 ग्राम एमडीएमए क्रिस्टल, ६ ग्राम हाइड्रो कैनविस, 5 ग्राम कोकीन, कोकीन कोटिंग वाले 500 मूल्यवर्ग के नोट, 6 ग्राम हाइड्रो गांजा, 5 मोबाइल फोन और 2 कारें जब्त कीं. 

20 मई, 2024 को तेलुगु अभिनेत्री हेमा ने एक वीडियो जारी करते हुए दावा किया कि वह 18-19 मई, 2024 को बेंगलुरु में कहीं भी नहीं गई थी और हैदराबाद के एक फार्महाउस में आराम कर रही थी. उस ने वीडियो में अपील की, ”मेरे बेंगलुरु में रेव पार्टी में शामिल होने की खबर का बिलकुल भी विश्वास न किया जाए.’’ 

उस ने मीडिया से बातचीत करते हुए आगे कहा, ”मैं ने कुछ भी गलत नहीं किया है. वे मुझ पर झूठा आरोप लगा रहे हैं, मैं ने ड्रग्स नहीं ली थी. मैं ने हैदराबाद से अपनी वहां मौजूदगी से इंकार करते हुए एक वीडियो भी शेयर किया था, बेंगलुरु से नहीं. मैं ने हैदराबाद में बिरयानी पकाते हुए अपना एक वीडियो भी पोस्ट किया था.’’

इस रेव पार्टी में पुलिस ने टौलीवुड अभिनेत्री आशी राय को भी 22 मई, 2024 को गिरफ्तार किया था. लोकप्रिय तेलुगु अभिनेत्री आशी राय ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया, जिस में उस ने दावा किया कि हालांकि वह पार्टी में मौजूद थी, लेकिन उसे पता नहीं था कि अंदर क्या चल रहा है. उसे रेव पार्टी के बारे में बिलकुल भी पता नहीं था. पुलिस आशी राय से विस्तृत पूछताछ कर रही थी. 

अभिनेता श्रीकांत मेका ने क्यों किया अफवाहों का खंडन

कई लोगों को यह खबर सुन कर आश्चर्य हुआ कि बेंगलुरु रेव पार्टी में तेलुगु अभिनेता श्रीकांत मेका को गिरफ्तार किया गया है. कुछ अखबारों व न्यूज चैनल्स ने इस खबर को प्रसारित भी किया था. उस की गिरफ्तारी की खबर जैसे जंगल में आग की तरह फैल गई और तेलुगु सिनेमा उद्योग में तो जैसे हड़कंप ही मच गया था.

इस खबर पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए अभिनेता श्रीकांत ने खुद मीडिया के सामने आ कर गिरफ्तारी की अफवाहों को खारिज किया. उस ने बेंगलुरु रेव पार्टी में अपनी मौजूदगी पर कहा, ”मैं अपने घर के सामने खड़ा हूं और सभी लोग इस की अच्छी तरह से जांच कर सकते हैं. बेंगलुरु में पुलिस द्वारा पकड़े गए रेव पार्टी में अपना नाम देख कर मैं एकदम से चौंक गया था. पहले तो मेरे परिवार के सदस्यों ने इस खबर पर हंसी उड़ाई, लेकिन जब यह खबर बड़े पैमाने पर प्रसारित हुई और यूट्यूब पर भी चलने लगी तो मैं ने स्पष्टीकरण जारी करने का फैसला किया.’’ 

उस ने आगे कहा, ”मेरे कई मीडिया मित्रों ने मुझे व्यक्तिगत रूप से फोन किया और किसी भी खबर को प्रकाशित या प्रसारित करने से पहले मुझ से पुष्टि की, लेकिन कुछ चैनलों ने तथ्यों की पुष्टि के बिना इसे प्रकाशित और प्रसारित कर दिया. मुझे लगता है कि यह उन की गलती नहीं है, क्योंकि पहली बार जब मैं ने उस व्यक्ति की तसवीर देखी तो वह मुझ से मिलताजुलता सा चेहरा था, हालांकि उस की दाढ़ी थी. 

मैं एक बार फिर स्पष्ट कर रहा हूं कि मुझे रेव पार्टियों में जाने की आदत नहीं है और मुझे नहीं पता इस का क्या मतलब है. कभीकभी मैं जन्मदिन की पार्टियों में चला जाता हूं, लेकिन अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के एक घंटे के भीतर ही वहां से चला आता हूं. मैं मीडिया से अनुरोध करता हूं कि वे किसी भी खबर को प्रकाशित या प्रसारित करने से पहले उस की पुष्टि करें और तथ्यों की पूरीपूरी जांच करें, क्योंकि पहले भी मीडिया ने मेरे बारे में यह अफवाह फैलाई थी कि मैं तलाक ले रहा हूं.’’ 

तेलुगु अभिनेत्री हेमा क्यों हुई गिरफ्तार

बेंगलुरु सिटी पुलिस द्वारा यह ज्वलंत केस केंद्रीय अपराध शाखा (सीसीबी) को ट्रांसफर कर दिया गया था. केंद्रीय अपराध शाखा (सीसीबी) ने सोमवार 3 जून, 2024 को तेलुगु अभिनेत्री हेमा को अपने कार्यालय में बुलाया. अभिनेत्री ने अपनी पहचान छिपाने के लिए बुरका पहन कर अधिकारियों के सामने अपनी गवाही और स्पष्टीकरण दिया. 

सीसीबी ने इस से पहले तेलुगु ऐक्ट्रैस हेमा सहित करीब 8 लोगों को नोटिस भेजा था. अभिनेत्री हेमा द्वारा संतोषजनक जबाब न दिए जाने पर बेंगलुरु पुलिस ने 3 जून, 2024 को ऐक्ट्रैस को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस के अनुसार इस मामले में ऐक्ट्रैस हेमा को बचाने के लिए तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से प्रभावशाली लोगों की ओर से अनावश्यक दबाब भी बनाया जा रहा था. पुलिस जांच से यह भी पता चला कि गिरफ्तार लोगों से की जा रही पूछताछ से ड्रग्स रैकेट का परदाफाश हो सकता है. 

पुलिस सूत्रों ने पुष्टि करते हुए बताया कि 50 से अधिक पुरुषों और करीब 30 महिलाओं ने रेव पार्टी में नशीले पदार्थों का सेवन किया था. एंटी नारकोटिक्स विंग इस मामले की गहराई से जांच करने में जुट गई.

सीसीबी के अतिरिक्त आयुक्त डा. चंद्रगुप्त ने कहा कि अभिनेत्री हेमा की गिरफ्तारी मादक पदार्थों के सेवन, छापे के दौरान गलत नाम (कृष्णवेनी), गलत फोन नंबर देने, रेव पार्टी में ड्रग्स के बारे में पहले से ही जानकारी होने और वीडियो बयानों के जरिए जांच को गुमराह करने के प्रयासों के आधार पर की गई है. 4 जून, 2024 को अभिनेत्री हेमा को अनेकल की अदालत में पेश किया गया. 

क्या होती है रेव पार्टी

बेंगलुरु में आयोजित रेव पार्टी पर पुलिस द्वारा छापेमारी के बाद बड़ेबड़े महानगरों में होने वाली रेव पार्टियां एक बार फिर चर्चा में आ गई हैं. इन रेव पार्टियों में जम कर नशा होता है और इस के लिए सारे नियमकायदे तोड़ दिए जाते हैं. 

करीब 2 साल पहले बौलीवुड अभिनेत्री श्रद्धा कपूर के भाई सिद्धांत कपूर को पुलिस ने बेंगलुरु के एक होटल में चल रही रेव पार्टी में छापेमारी के दौरान हिरासत में लिया था.

बिग बौस विजेता और यूट्यूबर एल्विश यादव के जरिए भी दिल्ली-एनसीआर में होने वाली रेव पार्टियां चर्चा में आ चुकी हैं. महानगरों के होटलों और बड़े शहर से जुड़े इलाकों के फार्महाउस में आमतौर पर रेव पार्टियां आयोजित हुआ करती हैं, जिन में युवाओं की बड़े पैमाने पर भागीदारी होती है. 

आमतौर पर ये सभी युवा धनी व बड़े घरों से ताल्लुक रखने वाले होते हैं. एक रात की इन रेव पार्टियों में लाखों रुपए पानी की तरह बहा दिए जाते हैं. जो भी युवा इन पार्टियों में आते हैं वे सभी महंगी गाडिय़ों में आते हैं. और तो और लड़कियों की मौजूदगी भी इन पार्टियों में खूब रहती है.

देश के लगभग सभी बड़े शहरों में इन रेव पार्टियों का चलन बढ़ता ही जा रहा है. इन पार्टियों में २ खास तरह की ड्रग्स का चलन ज्यादा है, जिसे लेने के बाद लोग 6 से 8 घंटे तक आराम से डांस कर सकते हैं. हालांकि ये ड्रग्स बहुत अधिक नुकसानदायक होते हैं. ये दोनों ही ड्रग्स गैरकानूनी हैं. इन्हें न तो बेच सकते हैं और न ही इन का सेवन कर सकते हैं, लेकिन खास बात तो यह है कि रेव पार्टियों में ये ड्रग्स आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं. 

इन के नाम हैं एसिड और एक्सटेसी. ये दोनों ही ड्रग्स काफी ज्यादा महंगे हैं. जिन के पास पैसे की कोई कमी नहीं होती, वे एसिड व एक्सटेसी जैसी महंगी ड्रग्स खरीद लेते हैं, जिन के पास उतना पैसा नहीं होता वे लोग हशीश या गांजा का सेवन करते हैं.

इन रेव पार्टियों में शराब, ड्रग्स, म्यूजिक और सैक्स का काकटेल होता है. ये पार्टियां बड़े ही गुपचुप तरीके से आयोजित की जाती हैं. वाट्सऐप, टेलीग्राम के जरिए सीक्रेट ग्रुप बना कर इस में लोगों को आकर्षित कर आमंत्रण दिया जाता है. जिन्हें बुलाया जाता है वो सर्किल के बाहर के लोगों को तनिक भी भनक तक नहीं लगने देते. 

आमतौर पर ये रेव पार्टियां नशीले पदार्थ बेचने वालों के लिए सब से सुरक्षित व भरोसेमंद जगह होती हैं. इन पार्टियों में 20 हजार, 30 हजार या 60 हजार वाट का म्यूजिक भी नौनस्टाप बजाया जाता है. इस तेज संगीत और नशे के काकटेल में सारे बंधन टूट जाते हैं, जहां फिर युवा नजदीकियां बढ़ा सकते हैं.

अब तो कई जगह इन रेव पार्टियों में तरहतरह के सांपों से दंश ले कर भी नशा कराया जाने लगा है, उस के लिए खासतौर से राजस्थान और देश के अन्य हिस्सों से सांप पालने वाले सपेरे बुलाए जाते हैं, जिन्हें यहां पर आने और लोगों को सांपों से कटाने के लिए मोटी रकम दी जाती है. 

ऐसा लगता है कि इन रेव पार्टियों में नशे का कोई अंत ही नहीं है. यहां पर हर तरह का नशा आजमा कर हर तरह की मस्ती की जाती है. इस के लिए विदेशी युवतियां भी हायर की जाती हैं. 

इस की भयावहता का दौर 1980 के दशक में ग्रेट ब्रिटेन में शुरू हुआ था, जो धीरेधीरे इतना बढ़ता गया कि लंदन के अधिकांश डांस क्लबों को पीछे छोड़ दिया. इस के बाद डांस क्लबों से निकल कर ये रेव शहर के बाहरी इलाकों के खुले मैदानों में आयोजित की जाने लगी, जिस में हजारों लोग शामिल होने लगे. 

इस के बाद धीरेधीरे इन रेव पार्टियों का क्रेज अमेरिकी शहरों में भी देखा जाने लगा, लेकिन धीरेधीरे कई क्रिमिनल भी इस से जुड़ते चले गए. जिन्होंने इस तरह की रेव पार्टियों को कमाई के नजरिए से देखना शुरू कर दिया.

बाकी देशों की तरह यह प्रचलन धीरेधीरे भारत में भी सफल होने लगा. हालांकि इस का मुख्य केंद्र गोवा माना जाता है, जहां पर विदेशी पर्यटकों ने समुद्र के तट को काफी उपयुक्त स्थान पाया, जहां खुले मैदानों में इन पार्टियों को आयोजित किया जाने लगा. बेहद तेज संगीत के शोर, आसानी से उपलब्ध होने वाले ड्रग्स के चलते अमीर परिवारों के अधिकतर युवाओं को रेव पार्टियों ने अपनी पकड़ में ले लिया. 

इस के बाद मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु जैसे शहरों से होते हुए अब यह कल्चर देश के छोटे शहरों को भी अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है. हालांकि भारत में इस तरह की रेव पार्टियां प्रतिबंधित हैं, जहां अवैध तरीके से ड्रग्स का इस्तेमाल किया जाता है. अगर कोई व्यक्ति इस तरह की पार्टी में जाता है या इसे आर्गेनाइज करता है तो गिरफ्तारी के बाद सजा का भी प्रावधान है. यही कारण है कि देश के अलगअलग क्षेत्रों में इस तरह की घटनाओं पर नारकोटिक्स विभाग की अकसर कड़ी नजर रहती है.

कौन है तेलुगु अभिनेत्री हेमा सैयद हेमा का जन्म 20 नवंबर, 1972 को रजोले, पूर्वी गोदावरी, आंध्र प्रदेश में हुआ था. इस के जन्म का नाम कृष्णा वेणी, पूरा नाम कोल्ला हेमा और हेमा सैयद है. छोटी उम्र से ही उसे फिल्में देखने का शौक था और आगे चल कर वह हीरोइन बनना चाहती थी. फिल्मों में काम करने की तीव्र इच्छा होने के कारण वह अपनी मां के साथ मद्रास चली गई और जूनियर आर्टिस्ट सप्लायर गंगा की मदद से उसे छोटेमोटे रोल करने का मौका मिलने लगा. 

फिल्म इंडस्ट्री में आने के बाद उस ने अपना नाम बदल कर हेमा रख लिया. उस ने ७वीं कक्षा तक ही स्कूली पढ़ाई की है और अभिनय में व्यस्त होने के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर सकी. हेमा का मानना था कि अगर छोटे किरदारों में अभिनय ठीक ढंग से किया जाए तो बड़े किरदार अवश्य मिल सकते हैं.

अपनी कड़ी मेहनत से वह रामगोपाल वर्मा की फिल्म ‘क्षण क्षणम’ में अभिनेत्री की सहेली के किरदार में चुनी गई. इस फिल्म की अभिनेत्री श्रीदेवी थी और इस किरदार ने उसे खूब नाम दिलाया. हेमा का विवाह 1993 में तेलुगु इंडस्ट्री के जानेमाने फोटोग्राफी निर्देशक सैयद जान अहमद के साथ हुआ. 

1993 में शादी से पहले उस ने 100 से अधिक फिल्मों में काम किया. इस बीच उस के एक बेटा समरथ व एक बेटी ईशा का जन्म हुआ. शादी के बाद उस ने लगभग ७ सालों तक अभिनय से दूरी बनाए रखी.

शादी के 7 साल बाद उस ने कृष्णा वामसी द्वारा निर्देशित फिल्म मुरारीसे अपनी दूसरी पारी शुरू की. उस की दूसरी पारी काफी अच्छी रही, जिस में मुरारी, बालकृष्ण की नरसिम्हा नायडू, जयम मनदेस जैसी हिट फिल्में शामिल हैं. हेमा ने अपनी दूसरी पारी में डेढ़ सौ से ज्यादा फिल्में कीं और कुल मिला कर अब तक 240 से अधिक फिल्मों में काम कर चुकी है. 

हेमा 2014 के लोकसभा चुनावों में मंडपेटा निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतरी, मगर वह चुनाव हार गई थी. हेमा ने तेलुगु फिल्मों में ही नहीं बल्कि हिंदी, तमिल और मलयालम फिल्मों में भी अभिनय किया है. 2016 में वह फिल्म तूतक तूतक तूतियामें भी दिखाई दी थी, जिस में सोनू सूद, तमन्ना भाटिया और प्रभुदेवा ने भी अभिनय किया था. इस फिल्म में हेमा ने देव (तमन्ना भाटिया का किरदार) की मां की भूमिका निभाई थी. 

2019 में वह तेलुगु रियलिटी शो बिग बौस के तीसरे सीजन में दिखाई दी थी, लेकिन शो के नौवें दिन उसे शो से बाहर कर दिया गया था. हेमा को कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है. तेलुगु अभिनेत्री हेमा ने कभी यह सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उम्र के इस पड़ाव में उसे इतनी जलालत का सामना करना पड़ेगा. 3 जून, 2024 को पूछताछ में वह सीसीबी के साथ सहयोग करने में विफल रही. मैडिकल जांच में यह पुष्टि भी हुई कि उस रात हेमा ने ड्रग्स का सेवन किया था. 

बेंगलुरु पुलिस की ओर से उसे पहले भी २ बार पूछताछ के लिए नोटिस जारी किया गया था, लेकिन वह पूछताछ के लिए पेश नहीं हुई थी, अंत में उसे गिरफ्तार कर लिया गया. रेव पार्टी में सैक्स रैकेट का है शक

बेंगलुरु रेव पार्टी में नशीले पदार्थ जब्त किए गए और कुछ गिरफ्तारियां भी की गईं. अब कर्नाटक पुलिस को लगता है कि ड्रग्स के साथसाथ यहां पर सैक्स रैकेट भी चल रहा था. पुलिस अब इस ऐंगल से भी जांच कर रही है. जांच में यह बात भी सामने आई कि इस रेव पार्टी में 200 से अधिक लोग शामिल हुए थे. पार्टी में शामिल कई लोग छापेमारी से पहले चले गए.

पुलिस सूत्रों के अनुसार हर व्यक्ति से इस रेव पार्टी में प्रवेश के लिए 2 लाख रुपए लिए गए थे. पुलिस ने कहा कि उन्हें पूरा संदेह है कि पार्टी आयोजक सैक्स रैकेट भी चला रहे थे. हर चीज की योजना बनाई गई थी और पार्टी में शामिल होने वाले लोगों की सभी मांगें पूरी की गई थीं. कौन है बेंगलुरु रेव पार्टी का मुख्य आरोपी लंकापल्ली वासु बताया जा रहा है कि यह रेव पार्टी लंकापल्ली वासु के जन्मदिन के जश्न की आड़ में एक बहुत बड़े आलीशान तरीके से आयोजित की गई थी, जिस में करीब 50 लाख रुपए खर्च हुए थे.

पुलिस ने रेव पार्टी के मुख्य आरोपी लंकापल्ली वासु को जब गिरफ्तार किया और उस के बारे में विस्तृत जांचपड़ताल की तो उस के काले साम्राज्य का चिट्ठा उजागर हो गया. इस पार्टी का संचालक लंकापल्ली वासु आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा ब्रह्मनगरी मठ स्ट्रीट का निवासी है. वह एक सामान्य परिवार से है, जहां उस की मां डोसा बेच कर अपना गुजारा करती है. 

उस के पिता का देहांत हो चुका है. वासु की २ बड़ी बहनें और एक बड़ा भाई है. वह बचपन से ही एक अच्छा क्रिकेटर बनना चाहता था. खेल के प्रति जुनून ने उसे एक सट्टेबाज बना दिया. वह क्रिकेट, हौकी और कबड्डी जैसे प्रमुख खेलों में सट्टेबाज के रूप में काम करता था. लंकापल्ली वासु बेंगलुरु, चेन्नै, मुंबई, विशाखापत्तनम, हैदराबाद, विजयवाड़ा, तिरुपति, चित्तूर, कुरनूल आदि प्रमुख शहरों से सट्टेबाजी का संचालन करता था. उस ने कई राज्यों में सट्टेबाजी का नेटवर्क स्थापित कर रखा है. 

केवल विजयवाड़ा में ही उस ने 150 से अधिक सट्टेबाजी के केंद्र स्थापित कर रखे हैं. बाद में उस ने अपने व्यवसाय का विस्तार करते हुए हैदराबाद और बेंगलुरु शहरों में पब चलाए. वासु की पत्नी और 2 बेटियां विजयवाड़ा में रहती हैं. लंकापल्ली वासु जहां भी जाता है, हवाई जहाज में सफर करता है. वह जहां पर भी आताजाता था, एयरपोर्ट पर उस के समर्थकों और लग्जरी कारों की एक बड़ी भीड़ इकट्ठा हो जाती थी. उस के पास करोड़ों मूल्य वाली 4 लग्जरी गाडिय़ां भी हैं, उस का अपना एक आलीशान विला भी है, जिस की कीमत करोड़ों में है. 

इसी बीच 3 जून, 2024 को बेंगलुरु पुलिस ने इस सनसनीखेज मामले में बेंगलुरु से एक ड्रग तस्कर को भी गिरफ्तार कर लिया, जिस की पहचान बेंगलुरु के डीजे हाल्ली निवासी उमर शरीफ के रूप में हुई है. पुलिस ने आरोपी उमर शरीफ के पास से 40 एमडीएमए की गोलियां जब्त कीं. पुलिस के मुताबिक आरोपी रेव पार्टी में मौजूद था और आयोजकों ने उसे कई तरह की ड्रग्स सप्लाई करने को कहा था.

राज्य के गृहमंत्री डा. जी. परमेश्वर ने इस घटना के बारे में अपना बयान देते हुए कहा कि सरकार का लक्ष्य कर्नाटक को नशामुक्त राज्य बनाना है और वह किसी भी हालत में इन रेव पार्टियों को बरदाश्त नहीं करेगी. उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि जो छात्र पढ़ाई करने के लिए हमारे राज्य में आते हैं और ड्रग्स लेने और उन्हें बेचने में शामिल होते हैं, उन सभी पर कड़ी नजर रखी जा रही है. ऐसे स्टूडेंट्स को उन के राज्यों में वापस भेज दिया जाएगा.

20 मई, 2024 को छापेमारी के दौरान बेंगलुरु पुलिस को एक विधायक और मंत्री (आंध्र प्रदेश) की तसवीर लगी एक कार भी बरामद हुई थी, सीसीबी अब इस बात की जांच कर रही है कि लग्जरी कार का मालिक कौन है और उसे विधायक का स्टीकर कैसे मिला. सीसीबी उन सभी लोगों को नोटिस जारी कर रही है, जो नशे के सेवन के लिए सकारात्मक पाए गए थे. 

इस फार्महाउस के मालिक रियल्टी फर्म कानकोर्ड के प्रबंध निदेशक गोपाल रेड्ïडी हैं. लंकापल्ली वासु और गोपाल रेड्ïडी दोस्त हैं.  पुलिस ने अब तक तेलुगु अभिनेत्री हेमा (52 वर्ष), लंकापल्ली वासु (35 वर्ष), वी. राणाधीर (43 वर्ष), मोहम्मद अबूबकर सिद्ïदीकी (21 वर्ष), वाई.एम. अरुण कुमार (35 वर्ष), उमर शरीफ (35 वर्ष) को गिरफ्तार कर लिया है. 

फार्महाउस इवेंट मैनेजमेंट कंपनी मेसर्स विक्ट्री को किराए पर दिया गया था, जिस का मैनेजमेंट लंकापल्ली वासु कर रहा था, जिस में 19 मई की रात को जन्मदिन की पार्टी रखी थी. कथा लिखी जाने तक तेलुगु अभिनेत्री हेमा सहित अन्य आरोपियों को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. वहीं दूसरी ओर मूवी आर्टिस्ट एसोसिएशन ने भी ऐक्ट्रैस हेमा को फिलहाल सस्पेंड कर दिया है.

(कहानी पुलिस सूत्रों पर आधारित है. तथ्यों का नाट्य रूपांतरण किया गया है. कथा में देवाशीष और पवन खत्री नाम काल्पनिक हैं)

 

Satire : स्‍वर्ग का द्वार और गधे का सवाल

रशीद धोबी की अचानक मृत्यु हो गई. संयोगवश या सदमे से या फिर इस खुशी से कि अब उसे बो झ नहीं ढोना पड़ेगा, उस का गधा भी उसी दिन दुनिया से विदा हो गया.

बेचारे रशीद के खाते में कोई गलत काम तो था ही नहीं. सो, वह सीधा स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंचा. लेकिन समस्या यह हुई कि पीछेपीछे उस का वफादार गधा भी आ गया और जिद करने लगा कि वह भी अपने मालिक यानी उन के संग स्वर्ग जाएगा. मगर दूतों ने उसे एंट्री देने से साफ इनकार कर दिया क्योंकि गधों के लिए स्वर्ग में रहने का कोई प्रावधान नहीं था.

रशीद ने गधे को सम झाया, ‘‘भाई, तू मेरा टाइम बरबाद मत कर और लौट जा. स्वर्ग में भला गधा कैसे रह सकता है?’’

परंतु गधा अड़ गया, ‘‘वाहवाह, जीवनभर आप की सेवा की, बो झ ढोता रहा, डंडे खाए, डांट सुनी और मरा भी तो आप के साथ. अब आप अकेले ही स्वर्ग में मजे लूटना चाहते हैं. सच है कि मनुष्य जैसा स्वार्थी जीव कोईर् दूसरा नहीं. लेकिन मैं तो आप के साथ ही रहूंगा.’’

 

रशीद ने कहा, ‘‘देखो भई, यदि तुम कुत्ते होते, तो स्वर्ग जा भी सकते थे. दूसरा कोई जानवर इतना हाईफ्लाइंग नहीं हो सकता.’’

‘‘मैं कुछ सम झा नहीं?’’ गधे ने सिर हिलाते हुए कहा.

रशीद  झुं झला गया, ‘‘बात तो बिलकुल साफ है. तुम जैसे कितने ही जानवर हैं जो मनुष्य की सेवा करने के लिए जीवनभर कड़ी से कड़ी मेहनत करते हैं, जैसे बैल, भैंस, घोड़े, बकरी, भेड़. ऊंट आदि. क्या तुम ने इन सब की सुरक्षा, इलाज, फैशन, मेकअप, ब्यूटी शो या कुछ नहीं तो गुडलिविंग कंडीशन के लिए कभी किसी संस्था, किसी एनजीओ, किसी आश्रम या फेसबुक का नाम सुना है जो इन पशुओं को एडौप्ट करने यानी गोद लेने या सुरक्षा देने के लिए बनाई गई हो?

‘‘फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने अपने कुत्ते के लिए एक फेसबुक अकाउंट ‘बीस्ट’ के नाम से खोल रखा है. कुछ समय पहले नफीसा अली ने अपने कुत्ते ‘माचो’ की सेवा करने के लिए ग्लैमर की दुनिया से कुछ दिनों की छुट्टी ले ली थी. यही नहीं, उन्होंने अपने एक दूसरे पेट डौग की याद में इंग्लिश भाषा में एक पुस्तक भी लिख डाली जिस का नाम है, ‘हाऊ चीका बिकेम अ स्टार ऐंड अदर डौग स्टोरीज.’

‘‘गुल पनाग ऐसी दरियादिल हैं कि अपने कुत्ते माईलो को हवाई जहाज का सफर करवाती हैं और ऐसे होटलों में चेकइन करती हैं जहां कुत्तों के ठहरने की भी व्यवस्था हो. जैसा कि मुंबई के फोर सीजन होटल में.’’

‘‘लेकिन बहुत सारे कुत्ते गरीबी की हालत में इधरउधर मारे फिरते हैं. उन्हें तो कोई नहीं पूछता?’’ गधे ने एतराज किया.

रसीद हंस पड़ा, ‘‘इतनी सी बात नहीं सम झे? आखिरकार हो तो तुम गधे ही. सुनो भाई, फाइवस्टार लाइफ कौन गुजारता है? अमीर और चमकीले लोग. तो, कुत्ते भी वही मौज करते हैं जो उच्च कोटि यानी उच्च वंश के हों. जैसे, अमिताभ बच्चन ने एक शैनौक पाल रखा है. शाहरुख खान ने अपने लिए 2 कुत्ते विदेश से इंपोर्ट करवाए थे, तो प्रियंका चोपड़ा एक कोकर स्पैनियल ब्रांड के इश्क में डूबी हुई थीं.’’

गधे ने रशीद का मजाक उड़ाते हुए कहा, ‘‘आप का सामान्य ज्ञान काफी वीक है. आप को यह पता नहीं कि अब देशी गरीब कुत्तों का समय भी आ गया है. सुना है हौलीवुड की स्टार पामेला एंडरसन ने कुछ दिनों पहले मुंबई के एक अनाथ कुत्ते यानी सड़क पर फिरने वाले आवारा कुत्ते को एडौप्ट किया यानी गोद लिया है.’’

‘‘यह तो एक अपवाद है. प्रश्न यह है कि क्या आज तक किसी ने दूसरे किसी पशु को गोद लिया है? गाय व भैंस जिन के दूध के बिना मनुष्य का जीवन अधूरा है, उन की लिविंग कंडीशन क्या है? वे  कितनी गंदी, गीली, कूड़ेकरकट तथा कीड़ेमकोड़े से भरी हुई जगहों में बांधी जाती हैं. चारे के नाम पर उन्हें जूठन व सूखी घास खाने को मिलती है,’’ गधे के मालिक रशीद ने कहा.

अब गधे ने धीरे से व्यंग्य किया, ‘‘लेकिन, गाय माता का तो बहुत आदरसत्कार करते हैं.’’

रशीद भड़क उठा, ‘‘ऐसे पाखंड से उसे क्या लाभ पहुंचता है? क्या कभी किसी ने गाय को अपना पेट बनाया है? क्या कोई उस के गले में किसी फैशन डिजाइनर का बनाया हुआ बहुमूल्य चमकता हुआ पट्टा डाल कर शान से सैर करने निकला है? पनीर, दही, मक्खन, आइसक्रीम व दूध से बने अन्य हजारों व्यंजन बेच कर मिलियन और बिलियन कमाने वाले किस इंडस्ट्रियलिस्ट ने अपनी गायभैंसों के लिए फेसबुक अकाउंट खोला है?

‘‘उन के रहने की जगह को क्या एयरकंडीशंड बनाया है? उन के गले में बांहें डाल कर क्या अपनी तसवीर छपवाई या पोस्ट की है? प्रतिदिन 100 एवं 200 टन लोहे की छड़ें, पत्थर, सीमेंट और ईंटों आदि से भरी गाड़ी खींचने वाले और उस पर भी गाड़ीवान के हंटर खाने वाले मासूम बेजबान बैल और भैंसे के बारे में किसी ने कोई पुस्तक लिखी है? क्या कोई एनजीओ गठित हुआ?’’

‘‘आखिरकार, ऐसा अन्याय क्यों है?’’ गधा बेचारा बड़ा हैरान था.

‘‘इसलिए कि मनुष्य को पक्षपात की आदत पड़ चुकी है. सो, हमारी हाईटैक मौडर्न सोसाइटी केवल ऊंची नस्ल के विदेशी कुत्तों को ही महत्त्व देती है. साईं आश्रम डौग एडौप्शन हो या फैंडीकोज, इन साइटों के सारे पेज इसी तरह के कुत्तों की तसवीरों से भरे पड़े हैं. सो, अब तुम भी मेरा रास्ता छोड़ दो, और जा कर विधाता से शिकायत करो,’’ रशीद ने अपनी बात रखी.

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रशीद के तर्कों को सुन कर बेचारा गधा लाजवाब हो कर वापस जाने लगा. इतनी देर में स्वर्ग में एंट्री का समय समाप्त होने लगा और द्वार बंद किए जाने लगे.

रशीद के पैरोंतले मानो आकाश सरकने लगा. गधा भी पछता रहा था. गधे को सहसा एक आइडिया, फ्लैशलाइट की भांति कौंधा. जल्दी से उस ने कुत्ते की आवाज बना कर भौं…भौं…भौं… जोर व शोर से भूंकना शुरू कर दिया. रशीद को भी इशारा मिल गया था. उस ने तुरंत गधे  के गले में बांहें डाल दीं और बड़े गर्व से दूतों से बोला, ‘‘जी, यह मेरा पेट अलसेशियन गुड्डू है. यह एक फैंसी ड्रैस शो, मेरा मतलब है डौग फैंसी ड्रैस शो, में भाग लेने गया था. सहसा इसे मेरी मृत्यु की खबर मिली तो मेकअप और कौस्ट्यूम चेंज किए बिना ही मेरे पीछेपीछे भागता हुआ आ गया. प्रेम और वफा तो इसे कहते हैं. आई लव माई गुड्डू.’’

रशीद ने भावविभोर होने की अच्छी अदाकारी की. दूत प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके. ‘‘औफकोर्स, लव और वफादारी का यह अतुल्य नमूना है.’’ एक दूत ने प्रशंसाभरी निगाहों से उसे निहारते हुए कहा.

दूसरे दूत गधे की ओर देखते हुए नम्रता से बोले, ‘‘वाट अ वंडरफुल डौग. यू कैन टेक योर मास्टर विद यू. रशीद भी तुम्हारे साथ स्वर्ग जा सकता है. वी हैव नो औब्जैकशन.’’

‘‘हिपहिपहुरररे’’ रशीद और उस का गधा शीघ्रता से दौड़ कर स्वर्ग के भीतर प्रवेश कर गए.

उन दोनों में आज भी यह विवाद जारी है कि कौन किस की चतुराई के कारण स्वर्ग के मजे लूट रहा है.

पाठक महोदय, आप किस का झ्र साथ देंगे…

Sunanda Pushkar Death Case : सुनंदा-शशि थरूर के बीच क्‍या हुआ था उस रात

सुनंदा पुष्कर ऐसी महिला थीं, जिन्होंने जिंदगी को पूरी आजादी के साथ अपनी शर्तों पर जिया और हाईप्रोफाइल लोगों में अपनी जगह और पहचान खुद बनाई. आशिक मिजाज शशि थरूर को तीसरे पति के रूप में स्वीकार करना क्या उन की भूल थी? क्या यही वजह उन की मौत का कारण बनी

16-17 जनवरी की रात सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर के बीच क्या हुआ था, पक्के तौर पर कोई नहीं जानता. अलबत्ता, यह जरूर है कि दोनों के बीच कुछ कुछ हुआ जरूर था. और शायद यही सुनंदा पुष्कर की मौत की वजह भी थी. लेकिन उस वजह को ढूंढ पाना इस मामले की जांच करने वाली क्राइम ब्रांच के वश में नहीं है. क्योंकि एक तो मामला हाईप्रोफाइल है, दूसरे जरूरत भर के सुबूत नहीं हैं. कुछ साइंटिफिक सुबूत हैं भी तो उन से साफसाफ कुछ पता नहीं चल सकता.

घटना वाले दिन यानी 17 जनवरी को शशि थरूर सुबह साढ़े 6 बजे ही होटल लीला पैलेस से निकल गए थे, क्योंकि उन्हें कांग्रेस कार्यकारिणी की एक जरूरी मीटिंग में शामिल होना था. सुनंदा पुष्कर दिन भर होटल में रहीं. दिन में उन्होंने क्याक्या किया, यह कोई नहीं जानता. होटल स्टाफ के लोगों और सुनंदा के नौकर नारायण को थोड़ीबहुत जो जानकारी थी, वह उन्होंने पुलिस को बता दी. लेकिन उस में ऐसा कुछ नहीं था, जिस से कोई अनुमान लगाया जा सकता. सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से भी इतना ही पता चल सका कि मैडम 3 बज कर 22 मिनट पर अपने कमरे में आई थीं और उस के बाद कोई भी उन के कमरे की ओर नहीं आया था.

सुनंदा पुष्कर की मौत का पता तब चला, जब देर शाम साढ़े 8 बजे शशि थरूर होटल लीला पैलेस स्थित अपने कमरा नंबर 345 में पहुंचे. उस समय उन की पत्नी बेड पर लिहाफ ओढ़े लेटी थीं. कमरे का दरवाजा चूंकि लौक नहीं था, इसलिए शशि थरूर को अंदर जाने में कोई परेशानी नहीं हुई. थरूर ने अंदर जा कर देखा तो सुनंदा निश्चल पड़ी थीं. उन के शरीर में किसी तरह की कोई हलचल नहीं थी. यह कर देख शशि थरूर ने होटल के स्टाफ और डाक्टर को बुलाया. साथ ही अपने पीए अभिनव को भी.

चंद मिनटों में ही यह बात साफ हो गई कि सुनंदा मर चुकी हैं. शशि थरूर सुबह साढ़े 6 बजे जब होटल से निकले थे तो सब ठीक था. फिर दिन में ऐसा क्या हुआ कि सुनंदा की मौत हो गई. खबर सुन कर अभिनव भी होटल गए और उन्होंने ही सुनंदा पुष्कर की रहस्यमय मृत्यु की खबर पुलिस को दी. चूंकि यह हाईप्रोफाइल मामला था, सो पुलिस के बडे़बडे़ अधिकारी और पूरा मीडिया होटल लीला पैलेस पहुंच गया. पुलिस ने विशेषज्ञों को बुला कर डेडबौडी की जांच कराई, लेकिन सुनंदा के चेहरे और हाथों पर छोटीछोटी 12 चोटों के अलावा कोई ऐसा लक्षण नहीं पाया गया, जिसे उन की मौत की वजह माना जा सकता. वैसे भी उन की बौडी रजाई से इस तरह ढकी हुई थी, जिसे देख कर लग रहा था जैसे सोते समय उन की मौत हुई हो.

कमरे की तलाशी में भी कोई संदिग्ध चीज नहीं मिली. हां, सुनंदा पुष्कर के बैग से एल्प्रैक्स के 2 रैपर जरूर मिले, जिन से 15 टैबलेट गायब थीं. इस से त्वरित तौर पर यही अनुमान लगाया गया कि उन्होंने नींद की दवा खा कर आत्महत्या की होगी. कश्मीरी सेबों के लिए प्रसिद्ध सोपोर क्षेत्र के छोटे से गांव बोमई में 27 जून, 1962 को जन्मी सुनंदा का संबंध एक जमींदार परिवार से था. उन के पिता पुष्करनाथ दास सेना में कर्नल थे, जो 1983 में रिटायर हो गए थे. उन के 2 भाई हैं, जिन में से एक बैंक औफिसर हैं और दूसरे सैन्य अधिकारी. 1990 में आतंकवादियों द्वारा घर जलाए जाने के बाद यह कश्मीरी पंडित परिवार जम्मू कर बस गया था. लेकिन सुनंदा इस से पहले ही गांवघर छोड़ चुकी थीं

1984 में जब वह श्रीनगर के मौलाना आजाद रोड, लाल चौक स्थित गवर्नमेंट कालेज औफ वीमन में इकोनौमिक्स की छात्रा थीं, तभी उन्हें डल लेक पर बने सरकारी होटल सेंटौर के लेक व्यू रेस्तरां में पार्टटाइम होस्टेस की नौकरी मिल गई थी. उन दिनों वहां के असिस्टेंट मैनेजर संजय रैना थे. तब तक सुनंदा का पूरा नाम सुनंदा दास था. सेंटौर होटल में ही सुनंदा और संजय रैना की मुलाकात हुई. पहले दोनों की आंखें लड़ीं, फिर प्यार हुआ. इसी के चलते सुनंदा ने अपने परिवार से विद्रोह कर के सन 1986 में संजय रैना से शादी कर ली थी. शादी के बाद दोनों दिल्ली चले आए थे.

दिल्ली में सुनंदा ने साउथ एक्सटेंशन के एक फैशन इंस्टीट्यूट से फैशन टैक्नोलौजी का डिप्लोमा किया. इस बीच संजय रैना नौकरी करते रहे. लेकिन तब तक दोनों के बीच कई तरह के मतभेद पैदा हो गए थे, जिस की वजह से दूरियां बढ़ती जा रही थीं. आगे चल कर ये मतभेद इतने बढ़े कि दोनों का रिश्ता टूट गयासुनंदा और संजय तलाक ले कर अलग हो गए. सुनंदा ने अपने परिवार से विद्रोह कर के विवाह किया था, वह भी टूट गया. इस से उन्हें काफी दुख पहुंचा था. इस दुख को कम करने और अपने परिवार से अपनी पहचान जोड़े रखने के लिए सुनंदा ने अपने नाम के आगे से दास हटा कर पिता का नाम पुष्कर जोड़ लिया. इस के बाद वह सुनंदा पुष्कर के नाम से जानी जाने लगीं.

संजय रैना से तलाक ले कर सुनंदा ने अपनी राहें अलग कर लीं. तलाक के कुछ समय बाद 1988 में वह दुबई चली गईं. वहां उन्हें दुबई की टेकौम इन्वेस्टमेंट कंपनी में सेल्स मैनेजर की नौकरी मिल गई. इस के 2 साल बाद 1991 में सुनंदा ने मलयाली बिजनैसमैन सुजीत मेनन से दूसरी शादी कर ली. मेनन संजय रैना के ही दोस्त थे और काफी पहले उन्हीं के माध्यम से सुनंदा के संपर्क में आए थे. सुनंदा पुष्कर ने टेकौम इन्वेस्टमेंट कंपनी में नौकरी, अनुभव प्राप्त करने और दुबई में जड़ें जमाने के लिए की थी. जब स्थितियां मनोनुकूल बन गईं तो उन्होंने दुबई में एक्सप्रेशंस नाम से अपनी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी खोल ली. पंख फैला कर खुले आसमान में उड़ने की चाहत रखने वाली सुनंदा की यह पहली मनचाही उड़ान थी

अपनी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के माध्यम से सुनंदा फैशन शो वगैरह आयोजित करने लगीं. इस के चलते उन के संपर्क बड़ेबड़े फैशन डिजाइनर्स और मौडल्स से बन गए. दुबई में रहते हुए ही सन 1992 में सुनंदा एक बेटे की मां बनीं. सुनंदा पुष्कर और सुजीत मेनन करीब 6 साल साथ रहे. सन 1997 में सुजीत मेनन की दिल्ली के करोलबाग क्षेत्र में एक रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई. कहा जाता है कि वह अवसादग्रस्त रहने लगे थे. उन का एक्सीडेंट भी उसी मनोस्थिति में हुआ था. बहरहाल पति की मौत के बाद सुनंदा ने खुद को भी संभाला और बेटे को भी. पिता की मौत के बाद शिव को बोलने संबंधी कोई समस्या हो गई थी, जिस के इलाज के लिए सुनंदा को टोरंटो, कनाडा जाना पड़ा.

सुनंदा काफी दिनों तक कनाडा में रहीं और उन्होंने वहीं की नागरिकता ले ली. इस बीच उन का इंवेट मैनेजमेंट का काम चलता रहा. दुबई उन का आनाजाना लगा रहता थादुबई और कनाडा में रहते हुए सुनंदा पुष्कर कुछ ही सालों में बिलकुल बदल गईं. चालढाल, रंगरूप ही नहीं, उन का हर अंदाज बदल गया. इस बीच वह दुबई और कनाडा के संभ्रांत वर्ग में इतनी मशहूर हो गईं कि वहां की हर बड़ी पार्टी में नजर आने लगीं. चूंकि दिल्ली और मुंबई के बड़ेबड़े फैशन डिजाइनर उन के संपर्क में रहते थे, इसलिए वह मुंबई और दिल्ली के भी चक्कर लगाती रहती थीं. इवेंट मैनेजमेंट के बिजनैस में सुनंदा ने काफी पैसा कमाया. उन्होंने अपना ज्यादातर पैसा दुबई के रियल एस्टेट कारोबार में इनवैस्ट कर दिया था.

सुनंदा की तरह ही शशि थरूर की वैवाहिक जिंदगी में भी काफी उतारचढ़ाव रहे थे. यह अलग बात है कि बड़े लोगों की जिंदगी के उतारचढ़ाव भी उन की तरह ही बड़े होते हैं. केरल के इलावचेरी, पलक्कड़ में जन्मे शशि थरूर ने मुंबई के चैंपियन स्कूल और कोलकाता के सेंट जेवियर स्कूल से शिक्षा हासिल करने के बाद दिल्ली के सेंट स्टीफंस कालेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी. उन्हें फ्लेचर स्कूल औफ ला ऐंड डिप्लोमेसी से स्कौलरशिप भी मिली थी. 3 सालों के अंदर 2 विषयों में मास्टर डिग्री हासिल कर के उन्होंने महज 22 साल की उम्र में पीएचडी की थी. फ्लेचर स्कूल औफ ला ऐंड डिप्लोमेसी में उन के अलावा आज तक किसी ने इतनी कमउम्र में पीएचडी पूरी नहीं की. इस के बाद वह अमेरिका चले गए थे, जहां उन की नियुक्ति संयुक्त राष्ट्र के उपसचिव पद पर हो गई.

शशि थरूर जब कोलकाता के सेंट जेवियर्स कालेज में पढ़ रहे थे, तभी उन की मुलाकात मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाशनाथ काटजू की नातिन तिलोत्तमा मुखोपाध्याय से हुई थी. वह भी शशि की तरह ही इंटेलेक्चुअल थीं. दोनों में पहले दोस्ती हुई, फिर प्रेम विवाह. तिलोत्तमा शशि के 2 जुड़वां बच्चों की मां भी बनीं, लेकिन पतिपत्नी में ज्यादा दिन नहीं निभ सकी और दोनों का तलाक हो गया. शशि थरूर जब अमेरिका में यूएनओ में कार्यरत थे, तभी उन का परिचय क्रिस्टा गाइल्स से हुआ जो वहीं संयुक्त राष्ट्र निरस्तीकरण आयोग की उपसचिव थीं. क्रिस्टा हैंडसम शशि की विद्वता, बौद्धिकता और खूबसूरती से इतनी प्रभावित हुईं कि उन से प्यार करने लगीं. शशि भी क्रिस्टा के प्यार में पागल थे.

चूंकि दोनों की चाह एक ही थी, इसलिए सन 2007 में दोनों ने शादी कर ली. हालांकि क्रिस्टा के घर वाले कतई नहीं चाहते थे कि वह एक दिलफेंक भारतीय से शादी करें. कह सकते हैं, क्रिस्टा गाइल्स ने अपने परिवार की मरजी के खिलाफ जा कर शशि थरूर से शादी की थी. अगले 3 सालों तक थरूर और क्रिस्टा गाइल्स के बीच सब कुछ ठीकठाक चला. इसी बीच शशि थरूर यूएनओ की नौकरी छोड़ कर राजनीति में किस्मत आजमाने के लिए भारत गए थेक्रिस्टा भी अपना सब कुछ छोड़छाड़ कर उन के साथ गईं. शशि के लिए उन्होंने अपनी नौकरी तक छोड़ दी और उन के साथसाथ उन के परिवार को भी अपना लिया.

राष्ट्र संघ में उच्च पद पर रहने के कारण शशि थरूर के नेहरूगांधी परिवार से करीबी रिश्ते बन गए थे. उन्हें इस का लाभ मिला. सन 2009 में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर केरल से लोकसभा का चुनाव लड़ा. उस समय क्रिस्टा केवल उन के साथ थीं, बल्कि उन्होंने थरूर का चुनाव प्रचार भी किया. शशि थरूर चुनाव जीत गए. सोनिया गांधी से नजदीकियां होने के कारण उन्हें विदेश राज्यमंत्री बनाया गया. पहली बार चुनाव लड़ कर जीतने के बाद सांसद बनना और फिर मंत्री पद मिल जाना आसान नहीं होता. लेकिन आला कमान की नेक नजर की वजह से शशि थरूर के लिए सब कुछ आसान हो गया था.

विदेश राज्यमंत्री रहते ही सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर की पहली मुलाकात दुबई की एक पार्टी में तब हुई, जब वह एक सरकारी दौरे पर वहां गए थे. सुनंदा आकर्षक व्यक्तित्व की खूबसूरत महिला थीं. रसिया स्वभाव के थरूर सुनंदा पुष्कर की खूबसूरती और अदाओं से बहुत प्रभावित हुए. इस के कुछ समय बाद सन 2010 में शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर की दूसरी मुलाकात दिवंगत नेता जितेंद्र प्रसाद के बेटे और कांग्रेस सांसद जितिन प्रसाद की दिल्ली में हुई शादी की रिसैप्शन पार्टी में हुई. तब तक आशिकमिजाज थरूर के दिलोदिमाग से क्रिस्टा गाइल्स के प्यार का खुमार उतरने लगा था

फलस्वरूप वह खूबसूरत सुनंदा पुष्कर की ओर आकर्षित हो कर उन से नजदीकियां बनाने लगे. सुनंदा भी उन केप्रभावशाली व्यक्तित्व और विदेश राज्यमंत्री जैसे ऊंचे ओहदे से प्रभावित हुए बिना रह सकीं. रिसैप्शन पार्टी में लंबी बातचीत के बाद दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. सुनंदा होटल मौर्या शेरेटन में ठहरी थीं. दोनों के बीच उसी शाम मोबाइल पर लंबी बात हुई और फिर अगले ही दिन दोनों की होटल मौर्या शेरेटन में अकेले में पहली मुलाकात हुई.

इस के बाद दोनों के मिलने का सिलसिला शुरू हो गया. दोनों अकसर होटल सम्राट, हयात रिजेंसी, अशोका जैसे 5 सितारा होटलों में लंच और कैंडल लाइट डिनर पर मिलने लगे. पति की मौत के बाद से सुनंदा अकेली थीं. उन्हें एक सशक्त व्यक्ति के सहारे की जरूरत थी. शशि थरूर विदेश राज्य मंत्री थे सुंदर और दर्शनीय व्यक्तित्व वाले. सुनंदा उन में अपना सहारा ढूंढने लगीं. रसिया स्वभाव के शशि थरूर यही चाहते थे. सो दोनों ने एक दूसरे के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सुनंदा पुष्कर की खूबसूरती के मोहपाश में बंध कर वह अपनी पत्नी क्रिस्टा गाइल्स को भूल गए

इसी बीच शिलांग में एक सरकारी समारोह हुआ तो शशि थरूर सुनंदा के साथ केवल इस समारोह में शामिल हुए, बल्कि एक 5 सितारा होटल के प्रेसीडेंशियल सुइट में साथसाथ ठहरे भी. तब तक दोनों केवल खुद को एकदूसरे को सौंप चुके थे, बल्कि दोनों ने अपने भविष्य की राह भी तय कर ली थी. इस के बाद उच्च वर्ग और राजनीतिक गलियारों में शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर की नजदीकियों की चरचा आम हो गई थी.

क्रिस्टा गाइल्स ने अपने सुनहरे भविष्य को दांव पर लगा कर शशि थरूर से प्रेम विवाह किया था. जब उन्हें थरूर के इस नए इश्क और बेवफाई का पता चला तो उन्होंने शशि थरूर से अलग हो कर स्वदेश लौटने का फैसला कर लिया. अमेरिका लौटने से पहले क्रिस्टा ने शशि थरूर के नए प्रेम प्रकरण का जिक्र करते हुए उन के नाम एक भावुक पत्र लिखा, जिस में उन्होंने अपना संबंध खत्म करने की बात कही. उन्होंने पत्र में इस बात का भी जिक्र किया था कि वह जब चाहे तलाक के पेपर भेज दें, वह साइन कर देगी. इस पत्र की एक कौपी उन्होंने सोनिया गांधी को भी भेजी थी. लेकिन इसे शशि थरूर का निजी मामला समझ कर किसी ने टांग नहीं अड़ाई. बस इस के बाद सुनंदा और शशि थरूर की मोहब्बत रंग लाने लगी.

दोनों को अकसर साथसाथ देखा जाने लगा. ऐसा लगता था कि दोनों ने साथसाथ रहने का फैसला कर लिया था. शिलांग के एक 5 सितारा होटल के प्रेसीडेंशियल सुइट में साथसाथ रात गुजारने के बाद शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर की प्रेमकहानी खुल कर सामने गई थी. थरूर ने अपने पद की मर्यादा के मद्देनजर उस वक्त इस बात को भले ही स्वीकार नहीं किया, लेकिन सुनंदा ने यह कहना जरूर शुरू कर दिया था कि क्रिस्टा गाइल्स से तलाक होते ही वह और शशि शादी कर लेंगे. इस के बाद सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर अकसर अखबारों की सुर्खियों में रहने लगे थे. लेकिन वह शादी कर पाते इस से पहले ही आईपीएल का विवाद सामने गया

आईपीएल के निलंबित कमिश्नर ललित मोदी ने ट्वीट कर के आरोप लगाया था कि शशि थरूर ने अपने प्रभाव का नाजायज इस्तेमाल कर के कोच्चि टीम खरीदने में रांदेवू स्पोर्ट्स की मदद की, जिस के बदले में इस टीम का 19 प्रतिशत हिस्सा (लगभग 75 करोड़) उन की गर्लफ्रैंड सुनंदा पुष्कर के खाते में गया. इस बात को ले कर नरेंद्र मोदी ने उस वक्त सुनंदा पुष्कर को 50 करोड़ की गर्लफ्रैंड कहा था, जिस के जवाब में शशि थरूर ने ट्वीट कर के जवाब दिया था कि सुनंदा प्राइसलेस हैं. बहरहाल अपनी ओर से सफाई दिए जाने के बाद भी इस विवाद के चलते शशि थरूर को अपना मंत्री पद गंवाना पड़ा.

इस विवाद के 4 महीने बाद शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर ने अगस्त, 2010 में केरल स्थित पलक्कड़ के इलावचेरी में शादी कर ली. यह शादी थरूर के पुश्तैनी घर पर उन के परिवार वालों के बीच पारंपरिक तरीके से हुई. इस शादी में सुनंदा पुष्कर का परिवार भले ही शामिल नहीं हुआ, लेकिन तब तक अपने परिवार से उन के रिश्ते सामान्य हो गए थे. शादी के बाद सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर ज्यादातर साथसाथ देखे जाते थे. यह अलग बात है कि बड़े लोगों की तरह दोनों की कुछ अलगअलग राहें भी थीं. मसलन शशि थरूर अपनी राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त रहते थे और सुनंदा पुष्कर उच्चवर्ग की महिलाओं और दिल्ली, मुंबई और दुबई में देर रात तक चलने वाली पार्टियों में.

थरूर अपनी राजनैतिक छवि को साफसुथरा बनाए रखने के लिए ऐसी पार्टियों में जाने से बचते थे. बहरहाल थरूर की जिंदगी में आने के बाद सुनंदा का रुतबा तो बढ़ ही गया था, वह खुद को मानसिक और सामाजिक स्तर पर सुरक्षित भी समझने लगी थीं. नरेंद्र मोदी ने अपनी राजनैतिक बयानबाजी में सुनंदा पुष्कर को भले ही 50 करोड़ की गर्लफ्रैंड बताया था, लेकिन हकीकत में सुनंदा स्वयं करीब 113 करोड़ रुपए की चलअचल संपत्ति की मालकिन थीं, जिस का शशि थरूर से कोई लेनादेना नहीं था. दुबई में उन के 12 अपार्टमेंट और एक स्पा तो था ही, उन्होंने कनाडा में भी एक शानदार अपार्टमेंट खरीद रखा था. जम्मू में भी उन की काफी जमीनजायदाद थी. इस के अलावा उन के पास 7 करोड़ रुपए की ज्वैलरी और डिजाइनर घडि़यों के साथसाथ करीब इतनी ही नकद रकम बैंकों में जमा थी

सुनंदा पुष्कर अपने बेटे शिव मेनन का भविष्य मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में बनाना चाहती थीं. इस के लिए उन्होंने शिव को अनुपम खेर के ऐक्टिंग स्कूल में दाखिला भी दिला दिया था. मुंबई की पेज-3 पार्टियों में शामिल होते रहने की वजह से वह बड़ेबड़े निर्मातानिर्देशकों और हीरोहीरोइनों को जानती थीं, इसलिए बेटे को फिल्मों में काम दिलाना उन के लिए मुश्किल नहीं थाशशि थरूर और सुनंदा पुष्कर की जिंदगी में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. दोनों की अपनीअपनी रंगीन लाइफ थी. तभी अचानक इन दोनों की जिंदगी में एक त्रिकोण गया. उन की प्रेमकहानी का तीसरा कोण बनी मेहर तरार

दरअसल, शशि थरूर शुरू से ही रसिया स्वभाव के रहे थे, ट्विटर के शौकीन भी. कहा जाता है, उन का ज्यादातर खाली समय ट्विटर पर बीतता था. इसी के चलते उन के संपर्क में आईं 45 वर्षीया पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार. पाकिस्तानी मीडिया में खूबसूरती के लिए जानी जाने वाली मेहर तरार का संबंध पाकिस्तान के एक संभ्रांत परिवार से है. उन्होंने वेस्ट वर्जीनिया यूनिवसिर्टी से जर्नलिस्ट की डिग्री लेने के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा था. उन्होंने बहरीन बेस्ड एक बड़े बिजनैसमैन से शादी की थी. फिलहाल वह पति से कुछ मतभेदों के चलते अपने 13 वर्षीय बेटे के साथ पाकिस्तान में अकेली रह रही हैं और एक बिजनैस न्यूज चैनल से जुड़ी हैं.

ट्विटर के जरिए संपर्क में आई मेहर तरार से थरूर का संपर्क बढ़ा तो वह 7 अप्रैल, 2013 को भारत आईं. मकसद था शशि थरूर का इंटरव्यू. इंटरव्यू सुनंदा पुष्कर के सामने ही हुआ. लेकिन कुछ कारणों से उन्हें शशि और मेहर का घुलमिल कर बातें करना अच्छा नहीं लगा. उसी दौरान मेहर ने शशि थरूर के सामने यह इच्छा भी जाहिर की कि वह केरल पर एक किताब लिखना चाहती हैं. इस के बाद शशि थरूर और मेहर तरार की अगली मुलाकात जून, 2013 में दुबई की एक पार्टी में हुई. सुनंदा उस समय भी साथ थीं. मेहर ने अपने कौलम में भी और वैसे भी शशि थरूर की कुछ ज्यादा ही तारीफ की थी, इसलिए सुनंदा ने उन्हें पसंद नहीं किया था और पूरी कोशिश की थी कि दोनों दूरदूर रहें. लेकिन ऐसा नहीं हो सका और शशि थरूर और मेहर तरार ट्विटर और मोबाइल फोन के जरिए एकदूसरे से बराबर संपर्क बनाए रहे.

हालांकि सुनंदा पुष्कर जुलाई, 2013 से ही इस का विरोध कर रही थीं. जब शशि थरूर और मेहर तरार ट्विटर पर जुडे़ रहे तो सुनंदा पुष्कर को गहरी ठेस पहुंची. वह तनावग्रस्त रहने लगीं. दरअसल वह अपने पति के रसिया स्वभाव को अच्छी तरह जानती थीं. इसलिए उन्हें लग रहा था कि जिस आदमी के लिए उन्होंने हर तरह के समझौते किए, सामाजिक आलोचनाएं झेलीं, वह उन से बेवफाई कर रहा है. इसी बात को ले कर शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर के बीच मतभेद रहने लगे. इसी के चलते उन्होंने ट्विटर पर शशि थरूर और मेहर तरार की पोल खोलनी शुरू कर दी. फलस्वरूप बात बढ़ती गई. इसे ले कर शशि थरूर और सुनंदा के बीच बात काफी बढ़ गई थी.

जब यह बात मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक हो गई तो शशि थरूर परेशान हुए. उन्होंने सुनंदा को कैसे मनाया, यह तो वही जानें, लेकिन उस वक्त वह मान गई थीं. चूंकि शशि थरूर और सुनंदा पुष्कर दोनों ही उस वर्ग से थे, जिस की एकएक गतिविधि पर निगाह रखी जाती है. इसलिए दोनों को संयुक्त रूप से बयान देना पड़ा कि उन के दांपत्यजीवन में सब कुछ ठीक है. शशि थरूर निस्संदेह विद्वान व्यक्ति हैं. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं, ह्यूमन राइट्स पर दिए गए उन के भाषणों को खूब सराहा गया था. लेकिन पिछले 2-3 सालों में उन की सारी विद्वता ट्विटर के इर्दगिर्द सिमट कर रह गई थी. उन के 20 लाख से भी अधिक फालोअर्स थे. ट्विटर प्रेम के आगे उन्हें अपनी पत्नी सुनंदा पुष्कर भी महत्त्वहीन लगती थीं. शायद इसीलिए सुनंदा ने एक टीवी चैनल को दिए अपने इंटरव्यू में कहा था कि ट्विटर उन की सौतन है.

उन के पति उस वक्त भी ट्वीट करते रहते हैं, जब उन्हें उन के प्यार में डूबा होना चाहिए. सुनंदा पुष्कर ट्विटर को ज्यादा पसंद नहीं करती थीं. इस के बावजूद जब उन्हें लगा कि पाकिस्तानी पत्रकार मेहर तरार ट्विटर और मोबाइल के माध्यम से शशि के वजूद पर हावी होने की कोशिश कर रही हैं तो उन्होंने ट्विटर का सहारा लिया. इसी दौरान उन्होंने मेहर तरार पर कई आरोप लगाए. सुनंदा द्वारा बारबार चेतावनी देने के बावजूद जब ट्विटर के माध्यम से मेहर और शशि थरूर की नजदीकियां बढ़ती गईं तो सुनंदा पुष्कर खुद को असुरक्षित महसूस करने लगीं.

सुनंदा पिछले कुछ समय से बीमार चल रही थीं. बताया जाता है कि वह पेट की टीबी और लुपस नाम के औटो इम्यून डिसौर्डर से पीडि़त थीं. इस के इलाज के लिए वह 1-2 बार विदेश भी गई थीं. इन बीमारियों के सिलसिले में केरल इंस्टीट्यूट औफ मैडिकल कालेज में उन के कई टेस्ट भी हुए थे और फिलहाल तिरुवनंतपुरम के किंग्स जौर्ज हौस्पिटल में उन का इलाज चल रहा था. लेकिन बताया जाता है कि उन की ये बीमारियां ज्यादा गंभीर नहीं थीं. 15 जनवरी को शशि और सुनंदा जब हवाईजहाज से तिरुवनंतपुरम से दिल्ली लौट रहे थे तो सफर के दौरान दोनों का खूब झगड़ा हुआ था. वजह यह बताई जाती है कि शशि थरूर ने सुनंदा की चेतावनी के बावजूद अपने मोबाइल में हरीश नाम से मेहर तरार का नंबर सेव कर रखा था, जो सुनंदा ने देख लिया था.

यह उन्हें सरासर बेवफाई लगी थी और इस से वह बुरी तरह टूट गई थीं. दोनों के इस झगड़े की भयावहता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि दिल्ली एयरपोर्ट पर उतर कर सुनंदा वाशरूम चली गई थीं और आधे घंटे तक बाहर नहीं आई थीं. काफी देर इंतजार के बाद शशि थरूर गुस्से में अकेले ही अपने लोधी एस्टेट वाले बंगले पर चले गए थे. जबकि सुनंदा आधा घंटा बाद वाशरूम से बाहर आईं और चाणक्यपुरी स्थित होटल लीला पैलेस चली गईं, जहां शशि थरूर ने सुइट बुक करा रखा था. लीला पैलेस में सुइट बुक कराए जाने की वजह यह बताई जाती है कि थरूर के लोधी एस्टेट के बंगले में व्हाइट वाश चल रहा था और सुनंदा पुष्कर को इस से एलर्जी थी.

उसी दिन सुनंदा ने पति का ट्विटर एकाउंट हैक किया और मेहर तरार को खूब खरीखोटी सुनाई. यहां तक कि उन्होंने मेहर तरार को आईएसआई का एजेंट तक बताया. उस रोज उन दोनों के बीच अच्छाभला ट्विटर वार चला. बाद में शशि थरूर भी लीला पैलेस गए थे. उन्हें जब इस की जानकारी हुई तो उन्होंने ट्वीट कर के सफाई दी कि उन का एकाउंट हैक कर लिया गया था. इस के बाद शायद पतिपत्नी में समझौता हो गया था, क्योंकि अगले दिन यानी 16 जनवरी को दोनों ने संयुक्त बयान जारी कर के कहा कि उन के दांपत्य जीवन में सब कुछ ठीक है. 17 जनवरी को शशि थरूर सुबह साढ़े 6 बजे ही होटल से निकल गए थे. बताया जाता है कि उस रात सुनंदा और शशि के बीच खूब झगड़ा हुआ था जो रात साढ़े 4 बजे तक चला था.

इस झगड़े के बाद शशि थरूर को सोफे पर सोना पड़ा था. जबकि सुनंदा बेड पर सोई थीं. अनुमान है कि सुनंदा के हाथों और मुंह पर चोटें इसी झगड़े के दौरान हाथापाई में आई थीं. अगली सुबह यानी 17 जनवरी को शशि थरूर सुबह साढ़े 6 बजे ही होटल से निकल गए थे. उसी रात लगभग साढ़े 8 बजे सुनंदा पुष्कर होटल लीला पैलेस के अपने कमरा नंबर 345 में मृत पाई गईं. उन की मौत का पता तब चला जब सुबह साढ़े 6 बजे होटल से निकले शशि थरूर रात को लगभग साढ़े 8 बजे वापस लौटे. उस वक्त कमरे का दरवाजा अंदर से बंद नहीं था. दरवाजा खोल कर शशि थरूर अंदर पहुंचे तो सुनंदा बेड पर मरी पड़ी थीं. उस वक्त वह रजाई ओढ़े थीं और दोनों हाथ रजाई के अंदर थे.

कह सकते हैं, वह सामान्य स्थिति में सोई हुई लग रही थीं. उन की स्थिति देख कर थरूर को होटल के स्टाफ को बुलाना पड़ा. प्राथमिक जांच के बाद सुनंदा का शव पोस्टमार्टम के लिए एम्स भेज दिया गया. अगले दिन वीडियोग्राफी के साथ 3 डाक्टरों के पैनल ने सुनंदा के शव का पोस्टमार्टम किया. पता चला सुनंदा पुष्कर की मौत अप्राकृतिक और आकस्मिक थी, जो दवा के ओवरडोज की वजह से हुई थी. उन के शरीर पर चोटों के जो 10 निशान पाए गए, वह संभवत: घरेलू झगड़े की वजह से आए थे, जिन का उन की मौत से कोई संबंध नहीं था. इन में से एक हाथ की हथेली में दांत से काटने का गहरा निशान था, जिस की फोरेंसिक जांच के लिए उस जगह की चमड़ी सुरक्षित रख ली गई. इस के साथ ही सुनंदा के पेट का विसरा भी जांच के लिए रखा गया. पोस्टमार्टम के बाद उसी दिन लोदी रोड श्मशान घाट पर उन का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर की शादी को चूंकि अभी 7 साल पूरे नहीं हुए थे, इसलिए सीआरपीसी की धारा 176 के तहत इस मामले की जांच वसंत विहार के एसडीएम आलोक शर्मा को सौंपी गई. उन्होंने इस सिलसिले में सीनियर जर्नलिस्ट नलिनी सिंह, सुनंदा के भाई कर्नल राजेश, बेटे शिव मेनन, शशि थरूर, उन के पर्सनल सेक्रैटरी अभिनव और होटल के 2 अटेंडेंट आदि 8 लोगों के बयान लिए. उन्हें शशि थरूर के खिलाफ कोई सुबूत नहीं मिला था. नलिनी सिंह का बयान इसलिए लिया गया, क्योंकि उन से सुनंदा की काफी लंबी बात हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट और बया%A

The Sabarmati Report का प्रोपगंडा फेल, Singham Again का पैसा नहीं हुआ वसूल

नवंबर माह के पहले और दूसरे सप्ताह फिल्म ‘सिंघम अगेन’ और ‘भूलभुलैया 3’ आपस में ही टकराते हुए एकदूसरे को नुकसान पहुंचाती रही. कम बजट के चलते ‘भूलभुलैया 3’ ने अपनी लागत वसूलने के साथ ही लाभ कमाने में सफल हो गई, पर ₹375 करोड़ की लागत में बनी फिल्म ‘सिंघम अगेन’ तीसरे सप्ताह के बाद भी अपनी लागत वसूल नहीं कर पाई.

तीसरे सप्ताह यानी कि 15 नवंबर, 2024 से इन दोनों फिल्मों को टक्कर देने के लिए फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ के अलावा ‘द लीजेंड आफ सुदर्शन चक्र 2’, ‘ए रीयल इनकाउंटर’, ‘मटका’ और ‘कंगुवा’ फिल्में भी रिलीज हुईं. यह अलग बात है कि नवंबर के तीसरे सप्ताह में बौक्स औफिस पर लगभग सूखा ही पड़ा रहा.

औंधेमुंह गिरी फिल्म

पूरे 3 सप्ताह में ‘सिंघम अगेन’ ने महज ₹235 करोड़ ही कमाए. इस तरह इस फिल्म ने तीसरे सप्ताह केवल ₹15 करोड़ ही कमाए. ₹375 करोड़ की लागत और अजय देवगन, अक्षय कुमार, रणवीर सिंह, टाइगर श्राफ, जैकी श्रौफ, दीपिका पादुकोण, करीना कपूर खान जैसे कलाकारों से सजी फिल्म की इतनी दुर्गति सिर्फ इसलिए हुई क्योंकि ‘सिंघम अगेन’ के निर्देशक रोहित शेट्टी ने राम, धर्म और रामायण को बेचने के साथ ही ‘जय श्रीराम’ के नारों के साथ हजार करोड़ रुपए कमाने के दावे किए थे. पर फिल्म निकली फुसफुसा पटाखा.

₹150 करोड़ की लागत में बनी कार्तिक आर्यन, माधुरी दीक्षित, तृप्ति डिमरी व विद्या बालन की फिल्म ‘भूल भुलैया 3’ मात्र 3 सप्ताह के अंदर ही ₹238 करोङ कमाने में सफल रही. तीसरे सप्ताह इस फिल्म ने ₹21 करोड़ कमाए.

काम न आया प्रोपेगैंडा

27 फरवरी, 2002 को गोधरा स्टेशन पर ‘साबरमती ट्रेन’ में लगी आग को एक धर्म समूह द्वारा नियोजित तरीके से जलाने की बात करने वाली एकता कपूर निर्मित फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ पूरे 7 दिन में केवल ₹10 करोड़ ही कमा सकी जबकि फिल्म की लागत ₹60 करोड़ है। यह आंकड़े निर्माता ने खुद दिए हैं. ₹10 करोड़ में से निर्माता की जेब में महज ₹4करोड़ ही आएंगे. फिल्म का इतना बुरा हाल तब है, जब सरकारी मशीनरी और आरएसएस ने इस फिल्म को सफल बनाने के लिए जुटा हुआ है.

मिली जानकारी के अनुसार लखनऊ में थिएटर बुक कर लोगों से मुफ्त में ‘द साबरमती’ देखने को बुलाया गया. इस के अलावा मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान की सरकारों ने इस फिल्म को टैक्सफ्री कर दिया है. इस से यह बात साफ हो जाती है कि दर्शकों को बहलाया नहीं जा सकता. दर्शकों ने तय कर लिया है कि उन्हें प्रोपेगैंडा फिल्मों से दूरी बना कर रहना है.

‘द लीजेंड आफ सुदर्शन चक्र 2’, ‘ए रीयल इनकाउंटर’ और ‘मटका’ ये 3 फिल्में भी तीसरे सप्ताह,15 नवंबर को रिलीज हुई, मगर हमें खुद नहीं पता था कि इस तरह की कोई फिल्में आ रही है, तो दर्शकों को कैसे पता होगाा? इस का मतलब यह है कि फिल्में बिना किसी प्रचार के रिलीज कर दी गईं. तभी तो ‘द लीजेंड आफ सुदर्शन चक्र 2’ ने पूरे 7 दिन मे ₹14 लाख, ‘ए रीयल काउंटर ’ ने ₹2 लाख और दक्षिण के सुपर स्टार वरूण तेज, नोरा फतेही व मीनाक्षी चौधरी के अभिनय से सजी फिल्म ‘मटका’ ने सिर्फ ₹1 लाख ही कमाया.

फ्लौप हुआ दावा

दक्षिण के सुपरस्टार सूर्या की पैन इंडिया फिल्म ‘कंगवा’ ने पूरे 7 दिन में हिंदी में ₹13 करोड़, दक्षिण की भाषाओं में ₹60 करोड़ कमाए. जबकि इस फिल्म का बजट ₹250 करोड़ है. इस फिल्म में मेन विलेन हिंदी फिल्मों के स्टार कलाकार बौबी देओल के अलावा दिशा पटानी भी हैं, जिन्हें ‘एनीमल’ से काफी शोहरत मिली थी. मजेदार बात यह है कि मुंबई में आयोजित प्रैस कौन्फ्रेंस में सूर्या ने दावा किया था कि ‘कंगुवा’ जैसी फिल्म अब तक नहीं बनी है और यह फिल्म हजार करोड़ रूपए बड़ी आसानी से कमा लेगी. फिल्म का ट्रेलर देख कर ट्रेड पंडित भी यही दावा कर रहे थे. मगर सूर्या ने इस फिल्म के प्रचार में जितना पैसा खर्च किया था, वह भी नहीं वसूल हुआ.

Adani Controversy : ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और नरेंद्र मोदी

मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है। इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवङियां बहुतों में बंटती हैं। किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी और नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है…

अब गौतम अडानी क्या करेंगे, यह सवाल हर किसी के जेहन में है लेकिन साथ में यह आस और एहसास भी है कि उन का कुछ नहीं बिगड़ने वाला क्योंकि उन और उन जैसे धन कुबेरों के साथ अदृश्य भगवान और उस की कृपा तो हमेशा रहती ही है और यहां धरती पर तो न केवल नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप बल्कि एक हद तक अमेरिकी कानून भी उन के साथ है जो ऐसे मामलों में सेटलमैंट, समझौते या निबटान की व्यवस्था करता है. क्या है यह अमेरिकी कानून और कैसे अडानी का मददगार साबित हो सकता है? उस से पहले बहुत थोड़े से में यह समझ लें कि दरअसल में हंगामा क्यों बरपा है.

बीते 20 नवंबर, 2024 को अमेरिका से एक सनसनाती खबर आई कि भारत के अडानी ग्रुप ने भारत सरकार के कई अधिकारियों को कोई ₹25 करोड़ डौलर की घूस देने की योजना को अंजाम दिया। यहां एक मामूली सा सवाल यह उठ खड़ा होता है कि जब कंपनी भी भारत की और रिश्वतखोर भी देसी तो अमेरिका का इस में क्या रोल? इस सवाल का जवाव यह है कि दरअसल में इस रिश्वत का पैसा अमेरिकी लोगों यानी निवेशकों से धोखाधडी से इकट्ठा किया गया था जिस के लिए प्रतिभूतियां और वायर धोखाधङी करने की साजिश रची गई। इस बारे में पूर्वी न्यूयार्क जिले में स्थित अमेरिकी अटार्नी कार्यालय ने एक प्रैस नोट जारी करते आरोप लगाया था कि इस अनूठे घपले में भारतीय सरकारी अधिकारियों को 250 मिलियन डौलर की रिश्वत देने और अरबों डौलर जुटाने के लिए निवेशकों और बैंकों से झूठ बोलने और न्याय में बाधा डालने की योजना बनाई गई जिस के चलते सौर टैंडर अडानी ग्रीन ऐनर्जी और एक और कंपनी एज्योर को दिया गया.

अधिकारियों से शिकायत

अमेरिका की एक कंपनी ट्रिनी ऐनर्जी ने अमेरिकी अधिकारियों से शिकायत की थी कि अडानी ग्रीन के अधिकारियों ने कथित तौर पर ओडिशा, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और जम्मू कश्मीर सहित दूसरे कई राज्यों के सरकारी अधिकारियों को रिश्वत दी ताकि उन की बिजली वितरण कंपनियों पर बाजार दर से ऊपर सौर उर्जा खरीदने के लिए राजी करने का दबाब बनाया जा सके। यह रिश्वत भारतीय मुद्रा में लगभग ₹2,200 करोड़ होती है. जिस सौर उर्जा के अनुबंध के लिए यह घूस दी गई उस से 20 सालों में तकरीबन ₹16,895 करोड़ का मुनाफा होना संभावित था.

चूंकि वहैसियत निवेशक यह मामला अमेरिकी लोगों के हितों से जुड़ा हुआ था इसलिए अमेरिकी कानूनों के तहत वहीं की अदालतों के न्याय क्षेत्र में आता है. इन कानूनों के मुताबिक अगर अमेरिकी नागरिक और अमेरिकी कंपनियां दुनिया में कहीं भी निवेश कर रही हैं और इस में उन के आर्थिक हितों का नुकसान होता है या कोई भी गड़बड़झाला पाया जाता है तो मुकदमा अमेरिकी अदालतों में ही चलेगा. यह कानून है एफसीपीए जिस का पूरा नाम है विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम जो 1977 में बना था. इस कानून का एक खास मकसद विदेशी अधिकारियों की घूसखोरी को रोकना भी है। हालांकि यह अमेरिकी कंपनियों पर भी लागू होता है। इस ऐक्ट के चक्रव्यूह में कई विदेशी कंपनियां फंस चुकी हैं जिन में से एक प्रमुख और लोकप्रिय हैं जरमनी की सीमेंस जिस का कारोबार दुनियाभर में फैला हुआ है.

गिरफ्तारी वारंट

इसलिए अमेरिका के न्यूयार्क फैडरल कोर्ट ने किसी किस्म का लिहाज न करते हुए गौतम अडानी और उन के 8 और सहयोगियों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया. इन नामों में उन के भतीजे सागर अडानी का नाम भी शुमार है। यह मामला 24 अक्तूबर, 2024 को दर्ज हुआ था।

54 पृष्ठों के इस अभियोजन में 139 बिंदु हैं. इन की प्रस्तावना से ही साफ हो जाता है कि मामला यों ही हंसीमजाक में टलने वाला नहीं है और 3-4 साल तो आराम से खिंच जाएगा तब तक डोनाल्ड ट्रंप दूसरी बार राष्ट्रपति पद की शपथ ले चुके होंगे और अमेरिकी जज उन की मंशा के खिलाफ जाने की जुर्रत करेंगे, ऐसा सोचने की भी कोई वजह नहीं.

अमेरिकी अभियोजकों की मानें तो अडानी की कंपनी को पिछले दिनों केंद्र सरकार की कंपनी सोलर ऐनर्जी कौरपोरेशन औफ इंडिया यानी सेकी से 12 हजार मेगावाट सौर उर्जा देने का अनुबंध मिला है. लेकिन दिक्कत यह थी कि सेकी को भारत में खरीददार नहीं मिल रहे थे. ऐसे में उक्त रिश्वत की भारीभरकम राशि भारत के विभिन्न राज्यों के नेताओं और अफसरों को दी गई ताकि वे महंगे दामों में यह सौर उर्जा खरीद लें. घूस की मेहरबानी से ऐसा हुआ भी और आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तमिलनाडु और छत्तीसगढ़ बिजली खरीदने को तैयार भी हो गए और अनुबंध भी कर लिया.

अडानी को नुकसान

इस सिलसिले में गौतम अडानी घोषित तौर पर जिन खास नेताओं से मिले उन में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी का नाम प्रमुख है. फिर जो घालमेल शुरू हुआ वह महाभारत के चक्रव्यूह सरीखा है.

इस चक्रव्यूह में आखिर में जनता ही फंसी और आगे भी फंसती अगर इस का खुलासा न हुआ होता. खुलासे से तात्कालिक रूप से अडानी को नुकसान हुआ और उन की कंपनियों के शेयर के भाव 23 फीसदी तक गिरे और केन्या ने अडानी समूह के साथ हुआ ₹73 करोड़ का करार तोड़ लिया. इस की घोषणा बाकायदा केन्या के राष्ट्रपति विलियम रुतो ने राष्ट्र के नाम संबोधन में कर एक मिसाल कायम कर दी कि हम ऐसे घूसखोर बेईमानों से कोई डील नहीं करेंगे. लेकिन अडानी के देश में किसी के कान पर जूं भी नही रेंगी उलटे भक्त लोग उन के बचाव में तर्क ढूंढ़ते नजर आए.

ऐसे और कई नुकसान अडानी को हुए लेकिन इस से उन की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ना क्योंकि ऐसा हिंडनबर्ग खुलासे के वक्त भी हुआ था. हलका सा लड़खड़ाने के बाद अडानी ग्रुप सरपट दौड़ने लगा था. समुद्र से कुछ लोटे पानी निकल जाने से उस की जलराशि पर कोई फर्क नहीं पड़ता और यह अभी भी हो रहा है. अडानी नाम के आर्थिक समुद्र की हिफाजत के लिए भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कितने गंभीर और प्रतिबद्ध हैं यह 2014 से हरकोई देख रहा है.

अब गौतम अडानी आगे की सोच रहे हैं. नामी वकीलों और कानूनविदों की फौज चक्रव्यूह भेदने के रास्ते खोजने में दिनरात जुटी है. रास्ता मिलता दिख भी रहा है जिस के लिए सटीक नाम बजाय समझौते या सेटलमैंट का निबटान है.

अफसोस की बात तो यह है…

अमेरिका के विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनयम में रिश्वत मामलों के निबटान की व्यवस्था है जबकि भारत में ऐसा नहीं है. बेईमानी के या गलत कामों की स्वीकृति के नफानुकसान अपनी जगह हैं. लेकिन अफसोस की बात यह है कि अभी तक किसी ने खासतौर से विपक्ष ने सरकार पर हमलावर रवैया और जांच की जोरदार मांग नहीं उठाई है कि सरकार कम से कम उन लोगों की धरपकङ तो करे जिन्होंने अडानी से घूस ली.

राहुल गांधी उम्मीद के मुताबिक हल्ला मचाने और नरेंद्र मोदी को घेरने में कामयाब जरूर रहे लेकिन आंशिक तौर पर, क्योंकि न तो उन के साथ मुख्यधारा वाले ‘जागरूक’ सवर्ण थे न ही उन की अगुवाई करने वाला मीडिया था जिस के लिए बागेश्वर बाबा की हिंदू राष्ट्र की मांग करती भगवायात्रा टीआरपी बढ़ाने वाली खबर थी.

महाराष्ट्र और झारखंड के चुनावी नतीजों का पूर्वानुमान उस के लिए मुनाफे वाला था जिस में कुछ छुटभैये स्वयंभू विशेषज्ञों के विश्लेषण परोसे जा रहे थे. सटोरियों और ज्योतिषियों की राय भी वैसे ही व्यक्त की जा रही थी जैसे सडक पर बैठे तोता चाप ज्योतिषी ग्राहक के कार्ड निकलवाया करते हैं
समझौते या निबटान की राह भी अडानी के लिए बहुत ज्यादा आसान नहीं है . गिरफ्तारी वारंट जारी होने के बाद उन्हें खुद अमेरिकी कानून के तहत कोर्ट में पेश होना पड़ेगा या वकीलों के मार्फत अपनी बात कहना पड़ेगी जिसे भारत में उम्मीद और रिवाज के मुताबिक वह कह ही रहे हैं कि आरोप गलत हैं लेकिन कोर्ट में इन्हें साबित कर पाना टेढ़ी खीर है. हालफिलहाल तो उन्हें अमेरिकी अदालत के सामने जमानत की अर्जी लगाते और फैडरल कोर्ट द्वारा जारी गिरफ्तारी वारंट रद्द करने की याचना करनी पड़ेगी.

ट्रंप की दया पर निर्भर

अमेरिका में राष्ट्रपति को फैडरल कोर्ट द्वारा जारी वारंट रद्द करने का अधिकार हासिल है लेकिन बात निकली है तो मुमकिन है कि सुप्रीम कोर्ट तक भी जाए. अगले साल 20 जनवरी को डोनाल्ड ट्रंप शपथ लेने के बाद ऐसा कर भी सकते हैं लेकिन इस की क्या कीमत वे नरेंद्र मोदी और भारत से वसूलेंगे यह कह पाना मुश्किल है. ट्रंप जानते हैं कि यह अब मोदी की साख का सवाल है इसलिए अपने कारोबारी दिमाग का भरपूर इस्तेमाल करेंगे और कारोबार में दोस्ती के लिए उतना स्पेस नहीं रहता जितना कि इस मामले में चाहिए।

अब बात उस सुराख यानी प्रावधान की जिस के तहत गलत की स्वीकृति को एक गिल्ट के साथ ही सही, मगर भारी कीमत वसूल कर माफ कर दिया जाता है.

इस दिलचस्प किस्से की शुरुआत 90 के दशक में हुई थी जब कई अमेरिकी डाक्टरों ने यह महसूस किया कि अधिकतर देशवासी बदनदर्द से पीड़ित हैं. लिहाजा उन के लिए कोई कारगर दवा खोजी जानी चाहिए. इस के बाद तो अमेरिकी दवा कंपनियों में ऐसी दवा खोजने की होड़ मच गई. इस होड़ में बाजी मारी पडर्यू दवा कंपनी ने, जिस का कर्ताधर्ता सैकलर परिवार था। डाक्टरों के इस कुनबे के मुखिया रिचर्ड सैकलर थे. उन्होंने औक्सिकोटिन नाम की दवा खोज निकाली। यह दवा वाकई दर्द पर असरकारी थी लिहाजा चल निकली और इतनी बिक्री की कि सैकलर परिवार खरबों में खेलने लगा.

जान की कीमत

औक्सिकोटिन की मार्केटिंग ताबडतोड़ तरीके से की गई. नतीजतन 2012 में ही कोई 25 करोड़ अमेरिकियों ने डाक्टरों की अनुशंसा पर इसे लिया। उन्हें दर्द से मुक्ति तो मिली लेकिन जल्द ही यह हकीकत भी सामने आने लगी कि यह दवा दरअसल में एक तरह का नशा है जिस के लोग इतने आदी हो चले हैं कि यह न मिले तो वे छटपटाने लगते हैं.

हल्ला मचा तो अमेरिकी सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन तब तक लाखों लोग इस के न मिलने पर या इस का ओवरडोज लेने से मर चुके थे और जो बच गए वे अफीम, हेरोइन और स्मैक जैसे नशे वाले पदार्थो के अलावा इन से भी ज्यादा घातक फैटेनाइल नाम की ड्रग का इस्तेमाल करने लगे थे। लाखों की तादाद में लोग इन की गिरफ्त में आ चुके थे. 2015 में लगभग 52 हजार लोग इस के ओवरडोज से मारे गए थे जिन्हें इस के नशे की लत लग चुकी थी जबकि 2022 में 1 लाख से भी ज्यादा लोग मारे गये थे।

महामारी की तरह फैले इस नशे को अमेरिका में ओपिआयड संकट नाम दे दिया गया था. दवा पर रोक लगाई गई लेकिन लोग इस के नशे के इतने आदी हो गए थे कि इसे चोरीछिपे खाने लगे थे। साल 2007 में पडर्यू दवा कंपनी पर धोखाधडी का मुकदमा दर्ज हुआ था जो 12 साल तक चला। देखते ही देखते तकरीबन 2,300 मुकदमे इस कंपनी पर विभिन्न राज्यों में दर्ज हो चुके थे जिन से बचने के लिए कंपनी ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया था। कई अदालतों ने पडर्यू दवा कंपनी को आदेश दिया कि वह पीड़ितों को मुआवजा दे जोकि उस ने दिया भी था.

जल्द ही अदालतों ने कंपनी को दोषी करार देना शुरू कर दिया तो मुकदमों की मार और परेशानी के अलावा किश्तों में मुआवजे से बचने सैकलर परिवार ने एकमुश्त 6 बिलियन डौलर मुआवजा देने का फैसला किया. लेकिन एवज में उस के व कंपनी के खिलाफ नए मुकदमे लेने से रोक की मांग की.

झूठ और बेईमानी

आखिरकर अदालत ने इस पेशकश को मान लिया और 6 बिलियन डौलर के हरजाने से एक सार्वजनिक लाभार्थी ट्रस्ट बना दिया.

मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है लेकिन फसाद की जङ यह थी कि पडर्यू ने जानबूझ कर औक्सिकोटिन के साइड इफैक्ट छिपाए थे और उस एनजीओ को भी ₹155 करोड़ की रिश्वत दी थी जो दवाइयों को ले कर सरकार से नीतियां बनाने का सुझाव देता है.

अडानी ग्रुप से इस मामले का इतना संबंध तो है कि झूठ उस ने भी बोला और षड्यंत्रपूर्वक पैसे इकट्ठे किए. मामला तय है, सुप्रीमकोर्ट तक जाने से रोकने की कोशिश की जाएगी और निबटान की पेशकश की जाएगी। बेईमानी और धोखे से ₹2,200 करोड़ से भी ज्यादा रुपए इकट्ठा कर चुके गौतम अडानी को कीमत तो अदा करनी पड़ेगी बशर्ते ट्रिनी ऐनर्जी जैसे अभियोजक अड़े रहें और ट्रंप के दबाब में न आएं तो.

 

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