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मध्यांतर भी नहीं हुआ अभी : सोम का दिल क्या महसूस कर रहा था

‘‘आप का परिवार कहां है, सोम? अब तो बच्चे बड़े हो गए होंगे. मैं ने तो सोचा भी नहीं था, इस तरह अचानक हमारा मिलना हो जाएगा.’’ ‘‘सब के सामने आप यह कैसा सवाल पूछने लगी हैं, चंद्राजी. कहां के बच्चे… कैसे बच्चे…अभी तो हमारी उम्र खेलनेखाने की है.’’

चंद्रा के चेहरे की मुसकान फैलतेफैलते रुक गई. उस ने आगेपीछे देखा मानो जो सुना उसी पर अविश्वास करने के लिए किसी का समर्थन चाहती हो. उस ने गौर से मेरा चेहरा देखा और बोली, ‘‘अरे भई, बाल काले कर लेना कोई बड़ी बात नहीं. उम्र छिपा कर दिखाओ तो मानें. आंखों का बढ़ता नंबर और चाल में आए ठहराव को छिपाया नहीं जा सकता. हां, अगर अपना नाम ही बदल लो तो मैं मान लूंगी कि पहचानने में मैं ही भूल कर गई हूं. आप सोम नहीं हैं न?’’ चंद्रा के शब्दों का तर्क आज भी वही है जो बरसों पहले था. वह आज भी उतनी ही सौम्य है जितनी बरसों पहले थी. बल्कि उम्र के साथ पहले से भी कहीं ज्यादा गरिमामय लग रहा है चंद्रा का स्वरूप. मुसकरा पड़ा मैं. हाथ बढ़ा कर चंद्रा का सर थपथपा दिया.

‘‘याद है तुम मुझे क्या कहा करती थीं जब हम पीएच.डी. कर रहे थे. वह आदत आज भी बदली नहीं. निहायत निजी बातें तुम सब के सामने पूछने लगती हो…’’ ‘‘पहचान लिया है मैं ने. आज भी मेरे पापा की तरह सर थपथपा रहे हो. तब भी तुम मुझे मेरे पापा जैसे लगते थे…आज भी वैसे ही हो…तुम जरा भी नहीं बदले हो, सोम.’’

20-22 साल पुरानी दोस्ती और सौहार्द्र आंखों में नमी बन कर तैरने लगा था. सुबह से सेमिनार में व्यस्त था. पहचान तो बहुत लोगों से थी लेकिन कोई अपना सा पा कर यों लगने लगा है जैसे बुझते दिए में किसी ने तेल डाल दिया हो. ‘‘तुम कहां ठहरी हो, चंद्रा?’’

‘‘यहीं होस्टल में ही हमारा इंतजाम किया गया है.’’ ‘‘भूख नहीं लगी तुम्हें, 7 बज रहे हैं. आओ, चलो मेरे साथ…कुछ खा कर आते हैं.’’

मैं ने कहा तो साथ चल पड़ी चंद्रा. हम ने टैक्सी पकड़ी और 5-10 मिनट बाद ही हम उसी जगह पर खडे़ थे जहां अकसर 20-22 साल पहले हमारा गु्रप खानेपीने आया करता था. ‘‘क्या खाओगी, चंद्रा, बोलो?’’

‘‘कुछ भी हलकाफुलका मंगवा लो. भारी खाना मुझे पचता नहीं है.’’ ‘‘मैं भी मीठा नहीं ले पाऊंगा, शुगर का मरीज हूं. इसीलिए भूख सह नहीं पाता. मुझे घबराहट होने लगती है.’’

डोसा और इडली मंगवा लिया चंद्रा ने. कुछ पेट में गया तो शरीर की झनझनाहट कम हुई. ‘‘तुम्हें खाने की कोई चीज पास रखनी चाहिए थी, सोम.’’

‘‘क्या पास रखनी चाहिए थी? यह देखो, है न पास में. अब क्या इन से पेट भर सकता है?’’ जेब से मीठीनमकीन टाफियां निकाल सामने रख दीं मैं ने. दोपहर में खाना खाया था. उस के बाद सेमिनार इतना लंबा ख्ंिच गया कि शाम के 7 बज गए. 6 घटे में क्या मेरी तबीयत खराब नहीं हो जाती.

मुसकरा पड़ी चंद्रा, ‘‘इस का मतलब है अब हम बूढे़ हो गए हैं. तुम्हें शुगर है, मेरा जिगर ठीक से काम नहीं करता. लगता है हमारी एक्सपायरी डेट पास आ रही है.’’ ‘‘नहीं तो, ऐसा क्यों सोचती हो. हम बूढे़ नहीं हो रहे बडे़ हो रहे हैं, ऐसा सोचो. जीवन का सार हमारे सामने है. बीता कल अपना अनुभव लिए है जिस का उपयोग हम भविष्य को सुधारने में लगा सकते हैं.’’

पुरानी बातों का सिलसिला चला और खूब चला. चंद्रा के साथ विश्वविद्यालय के भव्य पार्क में हम रात 10 बजे तक बैठे रहे. ‘‘अच्छा समय था वह भी. बहुत याद आता है वह एकएक पल,’’ ठंडी सांस ली थी चंद्रा ने.

‘‘क्या बीता समय लौटाया नहीं जा सकता?’’ ‘‘हमारे बच्चे हमारा बीता कल ही तो हैं, जो हमें नहीं मिला वह बच्चों को दिला कर हम अपनी इच्छा की पूर्ति कर सकते हैं. जीवन इसी का नाम है…पुराना गया नया आया.’’

मुझे होटल तक पहुंचतेपहुंचते साढ़े 10 बज गए. मैं थक गया हूं फिर भी मन प्रफुल्लित है. अपनी सहपाठी से जो मिला हूं इतने बरसों बाद. बहुत अच्छी दोस्ती थी मेरी चंद्रा के साथ. अच्छे इनसान अकसर कम होते हैं और इन्हीं कम लोगों में अकसर मैं चंद्रा की गिनती किया करता था. कभीकभी हमारे बीच झगड़ा भी हो जाया करता था जिस की वजह हमारी निजी कमी नहीं होती थी. उसूलों की धनी थी चंद्रा और यही उसूल अकसर टकरा जाते थे. मैं कभी चंद्रा को झुकने को कह देता तो उस का जवाब होता था, ‘‘मैं केंचुआ बन कर नहीं जी सकती. प्रकृति ने मुझे रीढ़ की हड्डी दी है न. मैं वैसी ही हूं जैसी मुझ से प्रकृति उम्मीद करती है.’’

‘‘तुम्हारी फिलासफी मेरी समझ में नहीं आती.’’ ‘‘तो मत समझो, तुम जैसे हो रहो न वैसे. मैं ने कब कहा मुझे समझो.’’

7-8 लड़केलड़कियों का गु्रप था हमारा जिस में हर स्वभाव का इंसान था… बस, चंद्रा ही थी जो अपनी सीमाओं, अपनी दलीलों में बंधी थी. मैं चंद्रा की नसनस से वाकिफ था. उस के चरित्र और बातों में गजब की पारदर्शिता थी, न कहीं कोई लागलपट न हेरफेर. कभी कोई गोलमोल बात करने लगता तो वह झुंझला जाती.

‘‘यह जलेबी क्यों पका रहे हो? सीधी तरह मुद्दे की बात पर क्यों नहीं आते…साफसाफ कहो क्या कहना चाहते हो?’’ ‘‘कोई भी बात कभीकभी इतनी सीधी सरल नहीं न होती चंद्रा जिसे हम झट से कह दें…कुछ बातें छिपानी भी पड़ती हैं.’’

‘‘तो छिपाओ उन्हें, आधीअधूरी भी क्यों बतानी. तुम्हें अगर लगता है बात छिपाने वाली है तो सब के सामने उस का उल्लेख भी क्यों करना. पूरी तरह छिपा लो न.’’ मुझे आज भी याद है जब हम आखिरी बार मिले थे तब भी झगड़ कर ही अलग हुए थे. वह दिल्ली लौट गई थी और मैं आगरा. उस के बाद कभी नहीं मिले थे. उस की शादी की खबर मिली थी जिस पर इक्कादुक्का मित्र ही पहुंच पाए थे.

दूसरे दिन विश्वविद्यालय पहुंचे तो नजरें चंद्रा को ही खोजती रहीं. कहने को तो ढेर सारी बातें कल हम ने की थीं लेकिन अपनी निजी एक भी बात हम नहीं कर पाए थे. ‘‘किसे खोज रहे हैं, वर्माजी? किसी का इंतजार है क्या?’’

मेरी नजरों को भांप गए थे मेरे एक सहयोगी. ‘‘हां, वह मेरी सहपाठी मिल गई थीं कल मुझे. आज भी उन्हीं को खोज रहा हूं.’’

‘‘लंचब्रेक में ढूंढ़ लीजिएगा. अभी जरा इन की बातें सुनिए. इन की बातों का मैं सदा ही कायल रहता हूं. मिसेज गोयल की फिलासफी कमाल की होती है. कभी इन के लेख नहीं पढे़ आप ने…कमाल की सोच है.’’ चंद्रा खड़ी थी सामने. तो क्या श्रीमती गोयल अपनी चंद्रा ही हैं जिस के लेख अकसर देश की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में छपते हैं?

‘‘जरा किस्मत देखो, पति शादी के 5 साल बाद अपने से आधी उम्र की लड़की के साथ भाग गया. औलाद कोई है नहीं. अफसोस होता है मुझे श्रीमती गोयल के लिए.’’

काटो तो रक्त नहीं रहा मेरी शिराओं में. आंखें फाड़फाड़ कर मैं अपने सहयोगी का चेहरा देखने लगा जो बड़बड़ा भी रहा था और बड़ी रुचि ले कर चंद्रा को सुन भी रहा था. इस सत्य का इतना बड़ा धक्का लगेगा मुझे मैं नहीं जानता था. ब्लड प्रेशर का मरीज तो हूं ही मैं, उसी का दबाव इतना बढ़ गया कि लंच बे्रेक तक पहुंच ही नहीं पाया मैं. तबीयत इतनी ज्यादा खराब हो गई कि अस्पताल में जा कर ही मेरी आंख खुली. ‘‘सोम, क्या हो गया तुम्हें? क्या सुबह कुछ परेशानी थी?’’

चंद्रा ही तो थी मेरे पास. इतने लोगों की भीड़ में बस चंद्रा. शायद 22 वर्ष पुरानी दोस्ती का ही नाता था जिस का प्रभाव चंद्रा की आंखों में था. माथे पर उस का हाथ और शब्दों में ढेर सारी चिंता. ‘‘अब कैसे हो, सोम?’’

50 के आसपास पहुंच चुका हूं मैं. वर्माजी, वर्मा साहब सुनसुन कर कान इतने पथरा गए हैं कि अपना नाम याद ही नहीं था मुझे. मांबाप अब जिंदा नहीं हैं और छोटी बहन भाई कह कर पुकारती है. बरसों बाद कोई नाम से पुकार रहा है. कल से यही आवाज है जो कानों में रस घोल रही है और आज भी यही आवाज है जो संजीवनी सी घुल रही है कानों में. ‘‘सोम, क्या हुआ? तुम्हारे घर में सब ठीक तो हैं न…क्या परेशानी है…मुझ से बात करो.’’

क्या बात करूं मैं चंद्रा से? समझ नहीं पा रहा हूं क्या कहूं. डाक्टर ने आ कर मेरी पूरी जांच की और बताया… अभी भी मैं पूरी तरह सामान्य नहीं हूं. सुबह तक यहीं रुकना होगा. ‘‘तुम्हारे घर से बुला लूं किसी को, तुम्हारी पत्नी को, बच्चों को, अपने घर का नंबर दो.’’

अधिकार के साथ आज भी चंद्रा ने मेरा सामान टटोला और मेरा कार्ड निकाल कर घर का नंबर मिलाया. एक बार 2 बार, 10 बार. ‘‘कोई फोन नहीं उठा रहा. घर पर कोई नहीं है क्या?’’

मैं ने इशारे से चंद्रा को पास बुलाया. बड़ी हिम्मत की मुसकराने में. ‘‘ऐसा कुछ नहीं है. सब ठीक है…’’

‘‘तो कोई फोन क्यों नहीं उठाता. तुम भी परेशान हो और मुझ से कुछ छिपा रहे हो?’’ ‘‘हमारे पास छिपाने को है ही क्या, चंद्रा? तुम भी खाली हाथ हो और मैं भी. मेरे घर पर जब कोई है ही नहीं तो फोन का रिसीवर कौन उठाएगा.’’

‘‘क्या मतलब?’’ अब चौंकने की बारी चंद्रा की थी. हंसने लगा मैं. तभी हमारे कुछ सहयोगी मुझे देखने चले आए. मुझे हंसते देखा तो आंखें तरेरने लगे.

‘‘वर्माजी, यह क्या तमाशा है. हमें दौड़ादौड़ा कर मार दिया और आप यहां तमाशा करने में लगे हैं.’’ ‘‘इन के परिवार का पता है क्या आप के पास? कृपया मुझे दीजिए. मैं इन की पत्नी को बुला लेना चाहती हूं. ऐसी हालत में उन का यहां होना बहुत जरूरी है.’’

पलट कर चंद्रा ने उन आने वालों से सारी बात करना उचित समझा. कुछ पल को चुप हो गए सब के सब. बारीबारी से एकदूसरे का चेहरा देखा और सहसा सब सच सुना दिया. ‘‘इन की तो शादी ही नहीं हुई… पत्नी का पता कहां से लाएंगे…वर्माजी, आप ने इन्हें बताया नहीं है क्या?’’

‘‘अपनी सहपाठी से इतने सालों बाद मिले, कल रात देर तक पुरानी बातें भी करते रहे तो क्या आप ने अपने बारे में इतना सा भी नहीं बताया?’’ ‘‘इन्होंने पूछा ही नहीं, मैं बताता कैसे?’’

‘‘श्रीमती गोयल, आप वर्माजी के साथ पढ़ती थीं. ऐसी कौन लड़की थी जिस की वजह से वर्माजी ने शादी ही नहीं की. क्या आप को जानकारी है?’’ ‘‘नहीं तो, ऐसी तो कोई नहीं थी. मुझे तो याद नहीं है…क्यों सोम? कौन थी वह?’’

‘‘सब के सामने क्यों पूछती हो. कुछ तो मेरी उम्र का खयाल करो. तुम्हारी यह आदत मुझे आज भी अच्छी नहीं लगती.’’ ‘‘कौन थी वह, सोम? जिस का मुझे ही पता नहीं चला.’’

‘‘बस, हो गया न मजाक,’’ मैं जरा सा चिढ़ गया. ‘‘तुम जाओ चंद्रा. मैं अब ठीक हूं. यह लोग रहेंगे मेरे पास.’’

‘‘कोई बात नहीं. मैं भी रहूंगी यहां. कुछ मुझे भी तो पता चले, आखिर इस उच्च रक्तचाप का कारण क्या है. कोई चिंता नहीं, कोई तनाव नहीं, कल ठीक थे न तुम, आज सुबहसुबह ऐसा क्या हो गया कि सीधे यहीं आ पहुंचे.’’ मैं ने चंद्रा को बहुत समझाना चाहा लेकिन वह गई नहीं. सच यह भी है कि मन से मैं भी नहीं चाहता था कि वह चली जाए. उथलपुथल का सैलाब जितना मेरे अंदर था शायद उस से भी कुछ ज्यादा अब उस के मन में होगा.

सब चले गए तो हम दोनों रह गए. वार्ड ब्वाय मेरा खाना दे गया तो उसे चंद्रा ने मेरे सामने परोस दिया.

‘‘आज सुबह ही मुझे तुम्हारे बारे में पता चला कि श्रीमती गोयल तुम हो…तुम्हारे साथ इतना सब बीत गया. उसी से दम इतना घुटने लगा था कि समझ ही नहीं पाया, क्या करूं.’’ अवाक् सी चंद्रा मेरा चेहरा देखने लगी.

‘‘तुम्हारे सुखी भविष्य की कल्पना की थी मैं ने. तुम मेरी एक अच्छी मित्र रही हो. जब भी तुम्हें याद किया सदा हंसती मुद्रा में नजर आती रही हो. तुम्हारे साथ जो हो गया तुम उस लायक नहीं थीं. ‘‘मैं तुम्हारा सिर थपथपाया करता था और तुम मुझे ‘पापा’ कह कर चिढ़ाती थीं. आज ऐसा ही लगा मुझे जैसे मेरे किसी बच्चे का जीवन नर्क हो गया और मैं जान ही नहीं पाया.’’

‘‘वे सब पुरानी बातें हैं, सोम, लगभग 17-18 साल पुरानी. इतनी पुरानी कि अब उन का मुझ पर कोई असर नहीं होता तो तुम ने उन्हें अपने दिल पर क्यों ले लिया? वह इनसान मेरे लायक नहीं था. इसीलिए वहीं चला गया जहां उस की जगह थी.’’ उबला दलिया अपने हाथों से खिलातेखिलाते गरदन टेढ़ी कर चंद्रा हंस दी.

‘‘तुम छोटे बच्चे हो क्या सोम, जो इतनी सी बात पर इतने परेशान हो गए. जीवन में कई बार गलत लोग मिल जाते हैं, कुछ देर साथ रह कर पता चलता है हम तो ठीक दिशा में नहीं जा रहे… सो रास्ता बदल लेने में क्या बुराई है.’’ ‘‘रास्ता ही खो जाए तो?’’

‘‘तो वहीं खडे़ रहो, कोई सही इनसान आएगा… सही रास्ता दिखा देगा.’’ ‘‘दुखी नहीं होती हो, चंद्रा.’’

‘‘कम से कम अपने लिए तो कभी नहीं होती. खुशनसीब हूं…मेरे पास कुछ तो है. दालरोटी मिल रही है…समाज में मानसम्मान है…ढेरों पत्र आते हैं जो मुझे अपने बच्चों जैसे प्यारे लगते हैं. इतने साल कट गए हैं सोम, आगे भी कट ही जाएंगे. जो होगा देख लेंगे.’’ ‘‘बस चंद्रा, और खाया नहीं जाएगा,’’ पतला दलिया मेरे गले में सूखे कौर जैसा अटकने लगा था. उस का हाथ रोक लिया मैं ने.

‘‘शुगर के मरीज हो न, भूखे रहोगे तो शुगर कम हो जाएगी…अच्छा, एक और चीज है मेरे पास तुम्हारे लिए…सुबह होस्टल में ढोकला बना था तो मैं ने तुम्हारे लिए पैक करवा लिया था…सोचा, क्या पता आज फिर से सेमिनार लंबा ख्ंिच जाए और तुम भूख से परेशान हो कर कुछ खाने को बाहर भागो.’’ ‘‘मेरी इतनी चिंता रही तुम्हें?’’

‘‘अब अपना है कौन जिस की चिंता करूं? कल बरसों बाद अपना नाम तुम्हारे होंठों से सुना तो ऐसा लगा जैसे कोई आज भी ऐसा है जो मुझे नाम से पुकार सकता है. कोई आज भी ऐसा है जो बिना किसी बनावट के बात शुरू भी कर सकता है और समाप्त भी. बहुत चैन मिला था कल तुम से मिल कर. सुबह नाश्ते में भी तुम्हारा खयाल आया.’’ चंद्रा रो पड़ी थी. मेरा प्याला तो पहले ही छलकने के कगार पर था. सच ही तो कह रही है चंद्रा…अब अपना है ही कौन जो चिंता करे. मेरी चिंता करने वाले मेरे मांबाप भी अब नहीं हैं और शायद चंद्रा के भी अब इस संसार में नहीं होंगे.

देर तक एकदूसरे के सामने बैठे हम अपने बीते कल और अकेले आज पर आंसू बहाते रहे, न उस ने मुझे चुप कराना चाहा और न मैं ने ही उसे रोका. काफी समय बीत गया. जब लगा मन हलका हो गया तब हाथ उठा कर चंद्रा का सिर थपथपा दिया मैं ने.

‘‘बस करो, अब और कितना रोओगी?’’

रोतेरोते हंस पड़ी चंद्रा. आंखें पोंछ अपना पर्स खोला और मेरे लिए लाया ढोकला मुझे दिखाया. ‘‘जरा सा चखना चाहोगे, मुंह का स्वाद अच्छा हो जाएगा.’’

लगा, बरसों पीछे लौट गया हूं. आज भी हम जवान ही हैं…जब आंखों में हजारोंलाखों सपने थे. हर किसी की मुट्ठी बंद थी. कौन जाने हाथ की लकीरों में क्या होगा. अनजान थे हम अपने भविष्य को ले कर और अनजाने रहने में ही कितना सुख था. आज सबकुछ सामने है, कुछ भी ढकाछिपा नहीं. पीछे लौट जाना चाहते हैं हम. ‘‘मन नहीं हो रहा चंद्रा…भूख भी नहीं लग रही.’’

‘‘तो सो जाओ, रात के 9 बज गए हैं.’’ ‘‘तुम होस्टल चली जातीं तो आराम से सो पातीं.’’

‘‘यहां क्या परेशानी है मुझे? पुराना साथी सामने है, पुरानी यादों का अपना ही मजा है, तुम क्या जानो.’’ ‘‘मैं कैसे न जानूं, सारी समझदारी क्या आज भी तुम्हारी जेब में है?’’

मेरे शब्दों पर पुन: चौंक उठी चंद्रा. मुझे ठीक से लिटा कर मुझ पर लिहाफ ओढ़ातेओढ़ाते उस के हाथ रुक गए. ‘‘झगड़ा करना चाहते हो क्या?’’

‘‘इस में नया क्या है? बरसों पहले जब हम अलग हुए थे तब भी तो एक झगड़ा हुआ था न हमारे बीच.’’ ‘‘याद है मुझे, तो क्या आज हारजीत का निर्णय करना चाहते हो?’’

‘‘हां, आखिर मैं एक पुरुष हूं. जाहिर सी बात है जीतना तो चाहूंगा ही.’’ ‘‘मैं हार मानती हूं, तुम जीत गए.’’

‘‘चंद्रा, मेरी बात सुनो…’’ सामने बेंच की ओर बढ़ती चंद्रा का हाथ पकड़ लिया मैं ने. पहली बार ऐसा प्रयास किया है मैं ने और मेरा यह प्रयास एक अधिकार से ओतप्रोत है. ‘‘मेरे पास बैठो, यहां.’’

एक उलझन उभर आई है चंद्रा की आंखों में. शायद मेरा यह प्रयास मेरी अधिकार सीमा में नहीं आता. ‘‘सब के सामने तो तुम पूछती हो कि मेरा परिवार कहां है? मेरी पत्नी कहां है? अगर शादी नहीं की तो क्यों नहीं की? अकेले में क्यों नहीं पूछतीं? अभी हम अकेले हैं न. पूछो मुझ से कि मैं किस की चाह में अकेला रहा सारी उम्र?’’

मेरे हाथ से अपना हाथ नहीं छुड़ाया चंद्रा ने. मेरी बगल में चुपचाप बैठ गई. ‘‘बरसों पहले भी मैं तुम से हारना नहीं चाहता था. तब भी मेरे जीतने का मतलब अलग होता था और आज भी अलग है…

‘‘तुम्हें हरा कर जीतना मैं ने कभी नहीं चाहा. तब भी जब तुम सही प्रमाणित हो जाती थीं तो मुझे खुशी होती थी और आज भी तुम्हारी ही जीत में मेरी जीत है. ‘‘चंद्रा, तुम्हारे सुख की कामना में ही मेरा पूरा जीवन चला गया और आज पता चला मेरा चुप रह जाना किसी भी काम नहीं आया. मेरा तो जीनामरना सब बस, यों ही…

‘‘देखो चंद्रा, जो हो गया उस में तुम्हारा कोई दोष नहीं. वही हुआ जो होना था. स्वयं पर गुस्सा आ रहा है मुझे. जिस की चाह में अकेला रहा सारी उम्र, कम से कम कभी उस का हाल तो पूछ लेता. तुम जैसी किसी को खोजखोज कर थक गया. थक गया तो खोज समाप्त कर दी. तुम जैसी भला कोई और हो भी कैसे सकती थी. सच तो यह है कि तुम्हारी जगह कोई और न ले सकती थी और न ही मैं ने वह जगह किसी को दी.’’ डबडबाई आंखों से चंद्रा मुझे देखती रही.

‘‘मेरे दिल पर इसी सत्य ने प्रहार किया है कि मेरा चुप रह जाना आखिर किस के काम आया. न तुम्हारे न ही मेरे. एक घर जो कभी बस सकता था… बस ही नहीं पाया… किसी का भी भला नहीं हुआ. खाली हाथ तुम भी हो और मैं भी.’’ ‘‘कल से तुम्हें महसूस कर रही हूं मैं सोम. 50 के आसपास तो मैं भी पहुंच चुकी हूं. तुम जानते हो न मेरी छटी इंद्री की सूचना कभी गलत नहीं होती…जिस इनसान से मेरी शादी हुई थी वह कभी मुझे अपना सा नहीं लगा था. और सच में वह मेरा कभी था भी नहीं…उस के बाद हिम्मत ही नहीं हुई किसी पर भरोसा कर पाऊं.’’

‘‘क्या मुझ पर भी भरोसा नहीं कर पाओगी?’’ ‘‘तुम तो सदा से अपने ही थे सोम, पराए कभी लगे ही नहीं थे. आज इतने सालों बाद भी लगता नहीं कि इतना समय बीत गया. तुम पर भरोसा है तभी तो पास बैठी हूं…अच्छा, मैं पूछती हूं तुम से…

‘‘सोम, तुम ने शादी क्यों नहीं की?’’ ‘‘मत पूछना, क्योंकि अपनी बरबादी का सारा जिम्मा मैं तुम्हीं पर डाल दूंगा जो शायद तुम्हें बुरा लगेगा. तुम्हारे बाद रास्ता ही खो गया. वहीं खड़ा रहा मैं…दाएंबाएं कभी नहीं देखा. तनमन से वैसा ही हूं जैसा तुम ने छोड़ा था.’’

‘‘तनमन से मैं तो वैसी नहीं हूं न. 2 संतानें मेरे गर्भ में आईं और चली गईं. पहले उन्हीं को याद कर के दुखी हो लेती थी फिर सोचा पागल हूं क्या मैं? जिंदा पति किसी बदनाम औरत का हाथ पकड़ गंदगी में समा गया. उसे नहीं बचा पाई तो उन बच्चों का क्या रोना जिन्हें कभी न देखा न सुना. कभीकभी तो लगता है पत्थर बन गई हूं जिस पर सुखदुख का कोई असर नहीं होता.’’ ‘‘असर होता है. असर कैसे नहीं होता?’’ और इसी के साथ मैं ने चंद्रा को अपने पास खींच लिया. फिर सस्नेह उस का माथा सहला कर सिर थपथपा दिया.

‘‘असर होता है तुम पर चंद्रा. समय की मार से हम समझदार हो गए हैं, पत्थर तो नहीं बने. पत्थर बन जाते तो एकदूसरे के आरपार कभी नहीं देख पाते.’’ मेरे हाथों की ही सस्नेह ऊष्मा थी जिस ने दर्द की परतों को उघाड़ दिया.

‘‘यदि आज भी एकदूसरे का हम सहारा पा लें तो शायद 100 साल जी जाएं और उस हिसाब से तो अभी मध्यांतर भी नहीं हुआ.’’ नन्ही बच्ची की तरह रो पड़ी चंद्र्रा. बांहों में छिपा कर माथा चूम लिया मैं ने. छाती में जो हलकाफुलका दर्द सुबह शुरू हुआ था सहसा कहीं खो सा गया.

गर्लफ्रैंड का भाई मुझे धमकी दे रहा है

अगर आप भी अपनी समस्या भेजना चाहते हैं, तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें..

सवाल –

मैं 22 साल का हूं और एक कालेज में पढ़ता हूं. कालेज में मेरी एक गर्लफ्रैड है जिसे मैं बहुत प्यार करता हूं। वह भी मुझे बेहद प्यार करती है. हम दोनों एकदूसरे के साथ बहुत खुश रहते हैं और ऐसा लगता है जैसे हम एकदूसरे के लिए ही बने हैं. हम दोनों ने एकदूसरे से वादा किया है कि हम शादी करेंगे और मैं ने उस के बारे में अपने पेरैंट्स को भी बताया भी है. लेकिन जब उस के घर में मेरे बारे में पता चला तो पता नहीं क्यों उस के भाई को बिलकुल अच्छा नहीं लगा और उस दिन के बाद से उस का भाई मुझे धमकी देने लगा है कि मैं उसकी बहन से दूर रहूं. मैं अपनी गर्लफ्रैंड को नहीं छोड़ सकता और मैं ने उस के भाई से भी कहा है कि मैं उस की बहन को हमेशा खुश रखूंगा पर वह मानने को तैयार नहीं है. मैं क्या करूं?

जवाब –

यह जहां एक तरफ एक भाई की चिंता है, वहीं दूसरी तरफ आप का अपनी गर्लफ्रैंड के लिए प्यार भी कोई गलत नहीं है. आप दोनों अपनी अपनी जगह बिलकुल ठीक हैं. आप ने बहुत अच्छा किया कि अपने प्यार के बारे में पहले ही अपने घर वालों को बता दिया है. मगर ऐसे में आप को गर्लफ्रैंड के भाई की स्थिति को भी समझना होगा. अगर आप की भी कोई बहन है तो यकीनन आप को भी उस की चिंता रहती होगी.

आप दोनों एकदूसरे के साथ जिंदगीभर रहना चाहते हैं यह बात काफी अच्छी है और आप दोनों बालिग हैं तो कानूनी तौर पर कोई कुछ नहीं कर सकता। आप अपनी गर्लफ्रैंड से कहें कि वह अपने भाई को समझाए कि सिर्फ आप ही नहीं, बल्कि वह भी आप से उतना ही प्यार करती है और आप उस का अच्छे से खयाल रख सकते हैं. एक भाई के लिए यह बहुत जरूरी होता है कि उस की बहन जिस के साथ भी रहे बस खुश रहे और सेफ रहे.

हां, आप दोनों को इस समय अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान देना चाहिए क्योंकि अगर आप अच्छे से पढ़ कर वैल सैटल्ड होंगे तो आप की गर्लफ्रैंड के घर वालों को मनाना मुश्किल नहीं होगा. लड़की के घर वाले बस यह चाहते हैं कि उन की लड़की अपना जीवनसाथी उसे चुने जो अच्छा कमाता हो, उन की बेटी को प्यार करता हो और उन की बेटी के सारे सपनों को हकीकत में बदलने का दम रखता हो.

ध्यान रहे कि प्यार में आप को कोई ऐसा कदम नहीं उठाना है जिस से दोनों घरों की बदनामी हो और आपकी गर्लफ्रैंड के घर वालों ने अगर मानना भी हो वे तब भी न मानें. जैसे आप ने अपने गर्लफ्रैंड के दिल में अपनी जगह बनाई है ठीक उसी तरह उस के घर वालों के दिलों में भी अपनी जगह बनाएं.

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बाजारों में नहीं है शोचालय, महिलाएं हो रहीं बीमार

सोशल मीडिया पर एक रील बहुत वायरल है. स्कूटी से जा रही दो लड़कियां सड़क पर जा रही है. एक दीवार पर पेशाब करता युवक दिखता है. लड़कियां स्कूटी रोक कर उस से पूछती है ‘भैया टौयलेट किधर है ?’ वह युवक सड़क के दूसरी तरफ हाथ से इशारा कर देता है. लड़कियां कहती हैं ‘जब पता है तो यहां पेशाब क्यों कर रहा है ?’

दिल्ली के जनपथ मार्केट की तर्ज पर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी जनपथ मार्केट बनाने का काम 1975 में शुरू किया गया. हजरतगंज से जुड़ा होने के कारण इस का एक अलग महत्व था. इस में करीब 300 दुकाने हैं. ऊपरी मंजिल पर सरकारी औफिस है. जिस समय यह जनपथ मार्केट बना उसी समय इस में 4 टौयलेट बनाए गए. 2 महिलाओं के लिए 2 पुरूषों के लिए. 50 सालों में ग्राहकों की संख्या तेजी से बढ़ी है. इस के बाद भी यहां टौयलेट का इंतजाम जस का तस है. यहां शौपिंग करने आ रही महिलाओं को परेशानी का सामना करना. इस के अलावा जो महिलाएं दुकान पर काम कर रही हैं या जो औनर हैं वह भी परेशान रहती हैं.

यह हालत केवल जनपथ मार्केट की नहीं है हर बाजार के यही हाल हैं. फेस्टिवल सीजन शुरू होने वाला है. शौपिंग करने वाली महिलाओं की भीड़ बढ़ेगी. बाजारों में टौयलेट की अव्यवस्था का प्रभाव महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ता है. टौयलेट में गंदगी के कारण यौन रोग हो सकते हैं. ज्यादा देर पेशाब से ब्लैडर संक्रमण व स्टोन का खतरा बढ़ जाता है. हाल के कुछ सालों में ऐसे मरीजों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. सिविल अस्पताल की ओपीडी में रोज 25 से 30 मरीज इस परेशानी के कारण आ रहे हैं. इन में सब से अधिक महिलाओं की संख्या होती है.

महिला रोग विषेशज्ञ डाक्टर रेनू मक्कड़ कहती हैं, ‘गंदे टौयलेट का प्रयोग करने से महिलाओं में संक्रमण तेजी से फैलता है. गंदगी और शर्म की वजह से वे पेशाब रोकने का प्रयास करती हैं. यह भी खतरनाक होता है. बड़ी उम्र के लिए पेशाब रोकना संभव नहीं होता है. ऐसे में महिलाएं कई बार बाजार और शौपिंग करने से बचने लगती हैं. पेशाब रोकने की आदत पेशाब नली व थैली को नुकसान पहुंचाने का काम करती है. यदि समय रहते इलाज न कराया जाए तो स्थिति गंभीर होने पर स्टोन व कैंसर तक की आशंका प्रबल हो जाती है.’

बाजारों में टौयलेट की दिक्कतें:

लखनऊ के जनपथ मार्केट जैसे हालात हजरतगंज के भी हैं. यहां पर सरकारी सुलभ शौचालय नगर निगम औफिस के सामने है. एक भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय के पास है. इस के अलावा शाहजनफ रोड पर भी एक सुलभ शौचालय है. सुलभ शौचालय प्रयोग करने का पैसा पड़ता है. 10 रूपए यूरीनल के लिए और 25 रूपए टौयलेट के लिए देने पड़ते हैं. यह रेट कुछ बाजारों में 5 रूपए और 15 रूपए भी होता है.

यह हालत करीबकरीब पूरे देश में एक जैसी है. बहुत सारी दीवारों पर यह लिखा मिल जाता है कि ‘यहां मूतना मना है’. यह लाइन उन पुरूषों के लिए होती है जो पेशाब लगने पर किसी भी कोने का प्रयोग शौचालय की तरह करने लगते हैं. नरेंद्र मोदी सरकार ने शौचालय को ले कर बहुत शोर मचाया. गांव में जो शौचालय बने वह प्रयोग में नहीं आ रहे हैं. शौचालय की सब से पहली जरूरत होती है कि वह सीवर लाइन से जुड़े हों. गांव में बने शौचालय गढ्ढे वाले हैं.

शहर के बाजार में सीवर है तो यहां नए शौचालय नहीं. बाजारों में अच्छे मापदंड वाले शौचालय नहीं हैं. नगर निगम ने जो शौचालय बनाए हैं उन की संख्या काफी कम है. लखनऊ के ही अमीनाबाद बाजार की हालत बेहद खराब है. अखिल भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के लखनऊ महानगर अध्यक्ष सुरेश छबलानी कहते हैं, ‘अमीनाबाद में हनुमान मंदिर के पास और झंडेवाला पार्क के पास दो सुलभ शौचालय हैं. यहां करीब 5 हजार दुकाने हैं. छोटेबड़े 31 बाजार हैं. कुछ नए बने शौपिंग कम्पलैक्स में टौयलट हैं. वे भी बहुत अच्छी हालत वाले नहीं हैं. इन का प्रयोग यहां के दुकानदार करते हैं. ग्राहकों के लिए हालात बेहद खराब हैं.’

महिला ग्राहकों की सब से बड़ी परेशानी यह है कि उन को बाजार के टौयलेट का पता नहीं होता है. किसी से पूछने में उन को शर्म लगती है. जो टौयलेट हैं उन की हालत खराब होती है. किसी अंधेरे कोने में होते हैं जहां जाना महिलाओं के लिए खतरनाक भी होता है. ऐसे में वे टौयलेट का प्रयोग करने की जगह पर पेशाब रोकने का प्रयास करती हैं. जो सेहत के लिए ठीक नहीं होता है. गंदे टौयलेट का प्रयोग करें तो संक्रमण होने का खतरा होता है. पिंक बूथ पर भी टौयलेट का इंतजाम है लेकिन वह भी बाजार से दूर हैं.

वायदा था फीडिंग बूथ का

नगर निगम लखनऊ के आंकड़ों से पता चलता है कि यहां पुरुषों के लिए सार्वजनिक शौचालय 494 हैं. पिंक शौचालय 62 और कुल यूरिनल 30 हैं. 2011 की जनगणना के अनुसार लखनऊ की आबादी 46 लाख है. 15 साल में यह बढ़ कर 65 लाख पहुंच गई है. यहां पर बाजार तेजी से आगे बढ़े हैं. इन बाजारों में आलीशान दुकाने हैं. बाजार में आने वाले ग्राहकों के लिए टौयलेट का इंतजाम बेहद खराब है. अगर देखा जाए तो आज के समय में टौयलेट बनाने के लिए इंतजाम बहुत अच्छे अच्छे हो गए हैं. टाइल्स का प्रयोग होता है जिस से उस को साफसुथरा रखना सरल होता है.

अगर टौयलेट को सीवर से नहीं जोड़ पा रहे तो टैंक बना कर भी तैयार किया जा सकता है. टैंक साफ करने के लिए भी अब नई सुविधा है जहां पर इस को खाली टैंकर में भरा जा सकता है. इस से साफ करने का भी कोई झंझट नहीं रहता है. ऐसे में टौयलेट बनवाना कठिन कार्य नहीं रह गया है. अगर बाजारों में अच्छे टौयलेट होंगे तो महिला ग्राहकों को बीमारियों से गुजरना नहीं पड़ेगा. मौल्स में अच्छे टौयलेट है तो बाजारों में क्यों नहीं हो सकते. बाजारों में व्यापारियों के संगठन बने हैं. यह भी अपने स्तर से यह काम कर सकते हैं. यह सरकार और नगर निगम से कह कर अच्छे टौयलेट बनवाने के लिए दबाव डाल सकते हैं.

नगर निगम चुनाव के समय भारतीय जनता पार्टी ने वादा किया था कि बाजारों में फीडिंग बूथ बनाए जाएंगे. जहां महिलाएं अपने बच्चों को दूध पिला सकें. सुनने में यह बहुत अच्छा लगा था कि पार्षद स्तर पर इस तरह की सोच बन रही है. लेकिन सच बात यह है कि अभी बाजारों में अच्छे साफसुथरे टौयलेट तक नहीं हैं. इन का पूरी तरह से अभाव है. जिस की वजह से महिला ग्राहकों को परेशनियों का सामना करना पड़ रहा है.

वैसे अगर आप के आसपास पेट्रोल पंप है तो वहां के टौयलेट का प्रयोग कर सकते हैं. होटलों के लिए भी सरकार न आदेश दिए हैं कि वे महिलाओं को इस तरह की सुविधा दें. कई शहरों होटल मालिकों को कहा जा रहा है कि वे इस तरह की सुविधाएं देने पर विचार करें. जब तक इन मुद्दों पर खुल कर बात नहीं होगी तब तक इस परेशानी का अंत नहीं मिलेगा. इस का प्रभाव दुकानदारों की दुकानदारी पर पड़ता है. समाज के लिए यह खराब संदेश है कि हमारे यहां महिलाओं के लिए साफसुथरे टौयलेट नहीं हैं. महिला मुद्दों की बात करते समय इस का ध्यान रखा जरूरी है. यह महिलाओं की सेहत से जुड़ा बहुत बड़ा मुद्दा है.

मां, पराई हुई देहरी तेरी : मीनू के लिए कैसे पराया हो गया मायका

कमरे में पैर रखते ही पता नहीं क्यों दिल धक से रह जाता?है. मां के घर के मेरे कमरे में इतनी जल्दी सब- कुछ बदल सकता है मैं सोच भी नहीं सकती थी. कमरे में मेरी पसंद के क्रीम कलर की जगह आसमानी रंग हो गया है. परदे भी हरे रंग की जगह नीले रंग के लगा दिए गए हैं, जिन पर बड़ेबड़े गुलाबी फूल बने हुए हैं.

मैं अपना पलंग दरवाजे के सामने वाली दीवार की तरफ रखना पसंद करती थी. अब भैयाभाभी का दोहरा पलंग कुछ इस तरह रखा गया है कि वह दरवाजे से दिखाई न दे. पलंग पर भाभी लेटी हुई हैं. जिधर मेरी पत्रिकाओं का रैक रखा रहता था, अब उसे हटा कर वहां झूला रख दिया गया?है, जिस में वह सफेद मखमली सा शिशु किलकारियां ले रहा है, जिस के लिए मैं भैया की शादी के 10 महीने बाद बनारस से भागी चली आ रही हूं.

‘‘आइए दीदी, आप की आवाज से तो घर चहक रहा था, किंतु आप को तो पता ही है कि हमारी तो इस बिस्तर पर कैद ही हो गई है,’’ भाभी के चेहरे पर नवजात मातृत्व की कमनीय आभा है. वह तकिए का सहारा ले कर बैठ जाती हैं, ‘‘आप पलंग पर मेरे पास ही बैठ जाइए.’’

मुझे कुछ अटपटा सा लगता है. मेरी मां के घर में मेरे कमरे में कोई बैठा मुझे ही एक पराए मेहमान की तरह आग्रह से बैठा रहा है.

‘‘पहले यह बताइए कि अब आप कैसी हैं?’’ मैं सहज बनने की कोशिश करती हूं.

‘‘यह तो हमें देख कर बताइए. आप चाहे उम्र में छोटी सही, लेकिन अब तो हमें आप के भतीजे को पालने के लिए आप के निर्देश चाहिए. हम ने तो आप को ननद के साथ गुरुभी बना लिया है. सुना है, तनुजी ‘बेबी शो’ में प्रथम आए?थे.’’

मैं थोड़ा सकुचा जाती हूं. भैया मुझ से 3 वर्ष ही तो बड़े थे, लेकिन उन्हीं की जिद थी कि पहले मीनू की शादी होगी, तभी वह शादी करेंगे. मेरी शादी भी पहले हो गई और बच्चा भी.

भाभी अपनी ही रौ में बताए जा रही हैं कि किस तरह अंतिम क्षणों में उन की हालत खराब हो गई थी. आपरेशन द्वारा प्रसव हुआ.

‘‘आप तो लिखती थीं कि सबकुछ सामान्य चल रहा है फिर आपरेशन क्यों हुआ?’’ कहते हुए मेरी नजर अलमारी पर फिसल जाती है, जहां मेरी अर्थशास्त्र की मोटीमोटी किताबें रखी रहती थीं. वहां एक खाने में मुन्ने के कपड़े, दूसरे में झुनझुने व छोटेमोटे खिलौने. ऊपर वाला खाना गुलदस्तों से सजा हुआ है.

‘‘सबकुछ सामान्य ही था लेकिन आजकल ये प्राइवेट नर्सिंग होम वाले कुछ इस तरह ‘गंभीर अवस्था’ का खाका खींचते हैं कि बच्चे की धड़कन कम हो रही है और अगर आधे घंटे में बच्चा नहीं हुआ तो मांबच्चे दोनों की जान को खतरा है. घर वालों को तो घबरा कर आपरेशन के लिए ‘हां’ कहनी ही पड़ती है.’’

‘‘अब तो जिस से सुनो, उस के ही आपरेशन से बच्चा हो रहा है. हमारे जमाने में तो इक्कादुक्का बच्चे ही आपरेशन से होते थे,’’ मां शायद रसोई में हमारी बात सुन रही हैं, वहीं से हमारी बातों में दखल देती हैं.

मेरी टटोलती निगाह उन क्षणों को छूना चाह रही है जो मैं ने अपनी मां के घर के इस कमरे में गुजारे हैं. परीक्षा की तैयारी करनी है तो यही कमरा. बाहर जाने के लिए तैयार होना है तो शृंगार मेज के सामने घूमघूम कर अपनेआप को निखारने के लिए यही कमरा. मां या पिताजी से कोई अपनी जिद मनवानी हो तो पलंग पर उलटे लेट कर रूठने के लिए यही कमरा या किसी बात पर रोना हो तो सुबकने के लिए इसी कमरे का कोना. मेरा क्या कुछ नहीं जुड़ा था इस कमरे से. अब यही इतना बेगाना लग रहा है कि यह अपनी उछलतीकूदती मीनू को पहचान नहीं पा रहा.

‘‘तू यहीं छिपी बैठी है. मैं तुझे कब से ढूंढ़ रहा हूं,’’ भैया आते ही एक चपत मेरे सिर पर लगाते हैं. भाभी के हाथ में कुछ पैकेट थमा कर कहते हैं, ‘‘लीजिए, बंदा आप के लिए शक्तिवर्धक दवाएं व फल ले आया है.’’ फिर मुन्ने को गोद में उठा कर अपना गाल उस के गाल से सटाते हुए कहते हैं, ‘‘देखा तू ने इसे. मां कह रही थीं बचपन में तू बिलकुल ऐसी ही लगती थी. अगर यह तुझ पर ही गया तो इस के नखरे उठातेउठाते हमारी मुसीबत ही आ जाएगी.’’

‘‘मारूंगी, ऐसे कहा तो,’’ मैं तुनक कर जवाब देती हूं. मुझे यह दृश्य भला सा लग रहा है. अपने संपूर्ण पुरुषत्व की पराकाष्ठा पर पहुंचा पितृत्व के गर्व से दीप्त मुन्ने के गाल से सटा भैया का चेहरा. सबकुछ बेहद अच्छा लगने पर भी, इतनी खुश होते हुए भी एक कतरा उदासी चुपके से आ कर मेरे पास बैठ जाती है. मैं भैया की शादी में भी कितनी मस्त थी. भैया की शादी की तैयारी करवाने 15 दिन पहले ही चली आई थी. मैं ने और मां ने बहुत चाव से ढूंढ़ढूंढ़ कर शादी का सामान चुना था. अपने लिए शादी के दिन के लिए लहंगा व स्वागत समारोह के लिए तनछोई की साड़ी चुनी थी. बरात में भी देर तक नाचती रही थी.

मां व मैं घर पर सारी खुशियां समेट कर भाभी का स्वागत करने के लिए खड़ी थीं. भैया भाभी के आंचल से अपने फेंटे की गांठ बांधे धीरेधीरे दरवाजे पर आ रहे थे.

‘‘अंदर आने का कर लगेगा, भैया.’’ मैं ने अपना हाथ फैला दिया था.

‘‘पराए घर की छोकरी मुझ से कर मांग रही है, चल हट रास्ते से,’’ भैया मुझे खिजाने के लिए आगे बढ़ते आए थे.

‘‘मैं तो नहीं हटूंगी,’’ मैं भी अड़ गई थी.

‘‘कमल, झिकझिक न कर, नेग तो देना ही होगा,’’ मां और एक बुजुर्ग महिला ने बीचबचाव किया था.

‘‘तुम्हीं बताओ, इसे कितनी बख्शीश दें?’’ भैया ने स्नेहिल दृष्टि से भाभी को देखते हुए पूछा था.

भाभी तो संकोच से आधे घूंघट में और भी सिमट गई थीं. किंतु मुझे कुछ बुरा लगा था. मुझे कुछ देने के लिए भैया को अब किसी से पूछने की जरूरत महसूस होने लगी है.

अपनी शादी के बाद पहले विनय का फिर तनु का आगमन, सच ही मैं भी अपनी दुनिया में मस्त हो गई थी. मुझे खुश देखती मां, पिताजी व भैया की खुशी से उछलती तृप्त दृष्टि में भी एक कातर रेखा होती थी कि मीनू अब पराई हो गई. मां तो मुझ से कितनी जुड़ी हुई थीं. घर का कोई महत्त्वपूर्ण काम होता है तो मीनू से पूछ लो, कुछ विशेष सामान लाना हो तो मीनू से पूछ लो. शायद मेरे पराए हो जाने का एहसास ही उन के लिए मेरे बिछोह को सहने की शक्ति भी बना होगा.

‘‘संभालो अपने शहजादे को,’’ भैया, मुन्ने को भाभी के पास लिटाते हुए बोले, ‘‘अब पड़ेगी डांट. मैं यह कहने आया था कि मेज पर मां व विनयजी तेरा इंतजार कर रहे हैं.’’

खाने की मेज पर तनु नानी की गोद में बैठा दूध का गिलास होंठों से लगाए हुए है.

मेरे बैठते ही मां विनय से कहती हैं, ‘‘विनयजी, मैं सोच रही हूं कि 3 महीने बाद हम लोग मुन्ने का मुंडन करवा देंगे. आप लोग जरूर आइए, क्योंकि बच्चे के उतरे हुए बाल बूआ लेती है.’’

मैं या विनय कुछ कहें इस से पहले ही भैया के मुंह से निकल पड़ता है, ‘‘अब ये लोग इतनी जल्दी थोड़े ही आ पाएंगे.’’

मैं जानती हूं कि भैया की इस बात में कोई दुराव नहीं है पर पता नहीं क्यों मेरा चेहरा बेरौनक हो उठता है.

विनय निर्विकार उत्तर देते हैं, ‘‘3 महीने बाद तो आना नहीं हो सकता. इतनी जल्दी मुझे छुट्टी भी नहीं मिलेगी.’’

मां जैसे बचपन में मेरे चेहरे की एकएक रेखा पढ़ लेती थीं, वैसे ही उन्होंने अब भी मेरे चेहरे की भाषा पढ़ ली है. वह भैया को हलकी सी झिड़की देती हैं, ‘‘तू कैसा भाई है, अपनी तरफ से ही बहन के न आ सकने की मजबूरी बता रहा है. तभी तो हमारे लोकगीतों में कहा गया है, ‘माय कहे बेटी नितनित आइयो, बाप कहे छह मास, भाई कहे बहन साल पीछे आइयो…’’’ वह आगे की पंक्ति ‘भाभी कहे कहा काम’ जानबूझ कर नहीं कहतीं.

‘‘मां, मेरा यह मतलब नहीं था.’’ अब भैया का चेहरा देखने लायक हो रहा है, लेकिन मैं व विनय जोर से हंस कर वातावरण हलकाफुलका कर देते हैं.

मैं चाय पीते हुए देख रही हूं कि मां का चेहरा इन 10 महीनों में खुशी से कितना खिलाखिला हो गया है. वरना मेरी शादी के बाद उन की सूरत कितनी बुझीबुझी रहती थी. जब भी मैं बनारस से यहां आती तो वह एक मिनट भी चुप नहीं बैठती थीं. हर समय उत्साह से भरी कोई न कोई किस्साकहानी सुनाने में लगी रहती थीं.

‘‘मां, आप बोलतेबोलते थकती नहीं हैं.’’ मैं चुटकी लेती.

‘‘तू चली जाएगी तो सारे घर में मेरी बात सुनने वाला कौन बचेगा? हर समय मुंह सीए बैठी रहती हूं. मुझे बोलने से मत मना कर. अकेले में तो सारा घर भांयभांय करता रहता है.’’

‘‘तो भैया की शादी कर दीजिए, दिल लग जाएगा.’’

‘‘बस, उसी के लिए लड़की देखनी है. तुम भी कोई लड़की नजर में रखना.’’

कभी मां को मेरी शादी की चिंता थी. उन दिनों तो उन के जीवन का जैसे एकमात्र लक्ष्य था कि किसी तरह मेरी शादी हो. लेकिन वह लक्ष्य प्राप्त करने के बाद उन का जीवन फिर ठिठक कर खड़ा हो गया था. कैसा होता है जीवन भी.एक पड़ाव पर पहुंच कर दूसरे पड़ाव पर पहुंचने की हड़बड़ी स्वत: ही अंकुरित हो जाती है.

‘‘मां, लगता है अब आप बहुत खुश हैं?’’

‘‘अभी तो तसल्ली से खुश होने का समय भी नहीं है. नौकर के होते हुए भी मैं तो मुन्ने की आया बन गई हूं. सारे दिन उस के आगेपीछे घूमना पड़ता है,’’ वह मुन्ने को रात के 10 बजे अपने बिस्तर पर लिटा कर उस से बातें कर रही हैं. वह भी अपनी काली चमकीली आंखों से उन के मुंह को देख रहा है. अपने दोनों होंठ सिकोड़ कर कुछ आवाज निकालने की कोशिश कर रहा है. तनु भी नानी के पास आलथीपालथी मार कर बैठा हुआ है. वह इसी चक्कर में है कि कब अपनी उंगली मुन्ने की आंख में गड़ा दे या उस के गाल पर पप्पी ले ले.

‘‘मां, 10 बज गए,’’ मैं जानबूझ कर कहती हूं क्योंकि मां की आदत है, जहां घड़ी पर नजर गई कि 10 बजे हैं तो अधूरे काम छोड़ कर बिस्तर में जा घुसेंगी क्योंकि उन्हें सुबह जल्दी उठने की आदत है.

‘‘10 बज गए तो क्या हुआ? अबी अमाला मुन्ना लाजा छोया नहीं है तो अम कैसे छो जाएं?’’ मां जानबूझ कर तुतला कर बोलते हुए स्वयं बच्चा बन गई हैं.

थोड़ी देर में मुन्ने को सुला कर मां ढोलक ले कर बैठ जाती हैं, ‘‘चल, आ बैठ. 5 जच्चा शगुन की गा लें, आज दिन भर वक्त नहीं मिला.’’

मैं उबासी लेते हुए उन के पास नीचे फर्श पर बैठ जाती हूं. उन्हें रात के 11 बजे उत्साह से गाते देख कर सोच रही हूं कि कहां गया उन का जोड़ों या कमर का दर्द. मां को देख कर मैं किसी हद तक संतुष्ट हो उठी हूं, अब कभी बनारस में अपने सुखद क्षणों में यह टीस तो नहीं उठेगी कि वह कितनी अकेली हो गई हैं. मेरा यह अनुभव तो बिलकुल नया है कि मां मेरे बिना भी सुखी हो सकती हैं.

नामकरण संस्कार वाले दिन सुबह तो घरपरिवार के लोग ही जुटे थे. भीड़ तो शाम से बढ़नी शुरू होती है. कुछ औरतों को शामियाने में जगह नहीं मिलती, इसलिए वे घर के अंदर चली आ रही हैं. खानापीना, शोरशराबा, गानाबजाना, उपहारों व लिफाफों को संभालते पता ही नहीं लगता कब साढ़े 11 बज गए हैं.

मेहमान लगभग जा चुके हैं. कुछ भूलेभटके 7-8 लोग ही खाने की मेज के इर्दगिर्द प्लेटें हाथ में लिए गपशप कर रहे हैं. बैरों ने तंग आ कर अपनी टोपियां उतार दी हैं. वे मेज पर रखे डोंगों, नीचे रखी व शामियाने में बिखरी झूठी प्लेटों व गिलासों को समेटने में लगे हुए हैं.

तभी एक बैरा गुलाब जामुन व हरी बरफी से प्लेट में ‘शुभकामनाएं’ लिख कर घर के अंदर आ जाता?है. लखनऊ वाली मामी बरामदे में बैठी हैं. वह उन्हीं से पूछता है, ‘‘बहूजी कहां हैं, जिन के बच्चे की दावत है?’’

तभी सारे घर में बहू की पुकार मच उठती है. भाभी अपने कमरे में नहीं हैं. मुन्ना तो झूले में सो रहा है. मैं भी उन्हें मां, पिताजी के कमरे में तलाश आती हूं.

तभी मां मुझे बताती हैं, ‘‘मैं ने ही उसे ऊपर के कमरे में कपड़े बदलने भेजा है. बेचारी साड़ी व जेवरों में परेशान हो रही थी.’’

मैं ऊपर के कमरे के बंद दरवाजे पर ठकठक करती हूं, ‘‘भाभी, जल्दी नीचे उतरिए, बैरा आप का इंतजार कर रहा है.’’

भाभी आहिस्ताआहिस्ता सीढि़यों से नीचे उतरती हैं. अभी उन्होंने जेवर नहीं उतारे हैं. उन के चलने से पायलों की प्यारी सी रुनझुन बज रही है.

‘‘बहूजी, हमारी शुभकामनाएं लीजिए,’’ बैरा सजी हुई प्लेट लिए आंगन में आ कर भाभी के आगे बढ़ाता?है. भाभी कुछ समझ नहीं पातीं. मामी बरामदे में निक्की की चोटी गूंथते हुए चिल्लाती हैं, ‘‘बहू, इन को बख्शीश चाहिए.’’

‘‘अच्छा जी,’’ भाभी धीमे से कह कर अपने कमरे में से पर्स ले आती हैं.

अब तक मां के घर के हर महत्त्वपूर्ण काम में मुझे ही ढूंढ़ा जाता रहा है कि मीनू कहां है? मीनू को बुलाओ, उसे ही पता होगा. मैं…मैं क्यों अनमनी हो उठी हूं. क्या सच में मैं यह नहीं चाह रही कि बैरा प्लेट सजा कर ढूंढ़ता फिरे कि इस घर की बेटी कहां है?

‘‘21 रुपए? इतने से काम नहीं चलेगा, बहूजी.’’

भाभी 51 रुपए भी डालती हैं लेकिन वह बैरा नहीं मानता. आखिर भाभी को झुकना पड़ता है. वह पर्स में से 100 रुपए निकालती हैं. बैरे को बख्शीश देता हुआ उन का उठा हुआ हाथ मुझे लगता है, जिस घर के कणकण में मैं रचीबसी थी, जिस से अलग मेरी कोई पहचान नहीं थी, अचानक उस घर की सत्ता अपनी समग्रता लिए फिसल कर उन के हाथ में सिमट आई है. न जाने क्यों मेरे अंदर अकस्मात कुछ चटखता है.

जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव : भाजपा के पक्ष में क्या है गणित

जम्मू कश्मीर की कुल 90 सीटों पर विधानसभा के चुनाव होने हैं. इन में 47 सीटें कश्मीर में हैं, जबकि 43 सीटें जम्मू में हैं. जम्मू रीजन की सभी 30 हिंदू बहुल सीटों को भाजपा ने हर हाल में जीतने का लक्ष्य तय किया है. लोकसभा चुनावों में इन में से 29 सीटों पर भाजपा आगे चल रही थी. साथ ही भाजपा जम्मू के राजौरी क्षेत्र की करीब 7 सीटों पर जहां हिंदू वोटर निर्णायक भूमिका में हैं उसे भी जीतने की प्लानिंग कर रही है. भाजपा का प्लान है कि कश्मीर घाटी में पार्टी सिर्फ 25 विधानसभा सीटों पर ही चुनाव लड़ेगी. बाकी 22 सीटों पर निर्दलीयों और स्थानीय पार्टियों के उम्मीदवारों को भाजपा समर्थन दे सकती है. ये भी कहा जा रहा है कि भाजपा हब्बा कदल, बारामूला समेत घाटी की कुछ अन्य सीटों पर कश्मीरी पंडितों को उम्मीदवार बना सकती है.

श्रीनगर के हब्बा कदल इलाके में विस्थापित कश्मीरी पंडितों के करीब 22 हजार रजिस्टर्ड वोट हैं. भाजपा की प्लानिंग है कि इन्हें अधिक से अधिक संख्या में इकट्ठा कर के वोट डलवाया जाए. एक लाख 22 हजार विस्थापित कश्मीरी पंडितों में से करीब 70 हजार के वोट रजिस्टर हो चुके हैं, उन को भी वोट कास्ट कराने की तैयारी पार्टी कर रही है.

चुनावों के ऐलान के बाद भारतीय जनता पार्टी की पीर पंजाल क्षेत्र में ताकत बढ़ी है. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मंत्री चौधरी जुल्फिकार अली भी अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए हैं. जुल्फिकार अली को कट्टरपंथी नेता माना जाता है. चौधरी जुल्फिकार अली जम्मू व कश्मीर की राजनीति में लंबे वक्त से सक्रिय रहे हैं. वे पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी से जुड़े रहे और उन की सरकार में मंत्री भी रहे. जुल्फिकार अली ने जम्मू व कश्मीर सरकार में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है, जिन में शिक्षा मंत्री, खाद्य आपूर्ति मंत्री और ग्रामीण विकास मंत्री जैसे पद शामिल हैं. इन पदों पर रहते हुए, उन्होंने राज्य के विकास के लिए कई कदम उठाए. जुल्फिकार अली का प्रभाव मुख्य रूप से जम्मू क्षेत्र में देखा जाता है और वे इस क्षेत्र के लोगों के मुद्दों को ले कर काफी मुखर भी रहे हैं. इन के भाजपा से जुड़ने पर भाजपा को काफी फायदा पहुंचेगा.

इस तरह जोड़तोड़ कर के अगर भाजपा विधनसभा की 35 सीटें भी जीतने में सफल होती है तो उसे उपराज्यपाल कोटे से नियुक्त 5 विधायकों का समर्थन और मिल सकता है. नए परिसीमन में विधानसभा सीटें बढ़ाए जाने के साथ ही केंद्र सरकार ने दो विस्थापित कश्मीरी पंडितों को भी विधायक के तौर पर नामित किए जाने का प्रावधान किया है. इन के अलावा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से विस्थापित समुदाय के एक सदस्य और दो महिलाओं को भी विधायक के तौर पर नामित करने का प्रावधान हुआ है.

जाहिर है इन नामित सदस्यों का वोट भाजपा को ही मिलेगा. फिर भी भाजपा को पूर्ण बहुमत के लिए करीब 5 से 7 सीटों की और जरूरत होगी. इस के लिए भाजपा ने अभी से तैयारी कर ली है. भारतीय जनता पार्टी ने पोस्ट पोल एलायंस की संभावना के लिए राष्ट्रीय महासचिव राम माधव सरीखे नेता की ड्यूटी लगाई है. उन्हें जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव का प्रभारी बनाया है. उन को असम और नौर्थ ईस्ट में काम करने का व्यापक अनुभव है.

2014 में जम्मू-कश्मीर में भाजपा की गठबंधन सरकार बनवाने से ले कर 2018 में त्रिपुरा में भगवा फहराने तक, राम माधव की विशेष भूमिका रही है. जम्मू-कश्मीर में पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती के साथ सत्ता के गठबंधन से ले कर जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने की तैयारियों में भी राम माधव महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके हैं. साफ है, जम्मू व कश्मीर में पहले जैसे ही काम के लिए राम माधव को फिर से भाजपा में लाया गया है. राम माधव के बजाय संघ का कोई और नेता भाजपा में आया होता तो उस का अलग मतलब होता, लेकिन ये मामला राम माधव का है, इसलिए दिलचस्पी बढ़ जाती है. कश्मीर में पोस्ट पोल एलायंस का बहुत बड़ा खेला होने वाला है.

अपने चुनाव प्रचार के बीच भाजपा पिछले 10 सालों में जम्मू क्षेत्र के विकास की गाथा सुना रही है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह कहते हैं, “ये 10 साल जम्मू-कश्मीर के लिए शांति और विकास के रहे हैं. ये 10 साल मैक्सिमम टेररिज़म की जगह मैक्सिमम टूरिज्म पर शिफ्ट हुए हैं.”

भाजपा का कहना है कि आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में पर्यटन में भारी उछाल आया है, खासतौर पर धार्मिक पर्यटन में, इस से लोगों को रोजगार में फायदा पहुंच रहा है. 10 साल सुख और समृद्धि का रास्ता प्रशस्त करने वाले रहे हैं. वे जम्मू क्षेत्र में आईआईएम, आईआईएमसी और एम्स की स्थापना की बात कहते हैं.

उन का कहना है कि 10 सालों में पहाड़ी इलाकों के दूर दराज के गांवों में नई सड़कें बनाई गई हैं. यही नहीं जम्मू कश्मीर के निवासियों के लिए आयुष्मान स्वास्थ्य बीमा योजना चलाई जा रही है, जिस से जनमानस को काफी लाभ हो रहा है. भाजपा केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं का जम्मू कश्मीर में विस्तार का वादा कर रही है. पश्चिमी पाकिस्तान के शरणार्थियों, वाल्मीकि समाज और गोरखा समुदाय के लिए निवास और विधानसभा चनावों में मतदान का अधिकार दिलाने की बात भी भाजपा बढ़चढ़ कर बता रही है.

विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने बड़ी चुनौती स्थानीय पार्टियां और कांग्रेस है, जिन का स्थानीय स्तर पर भाजपा के मुकाबले पैठ अच्छी है. कांग्रेस का प्लान है कि वह जम्मू डिवीजन में भाजपा को 20 सीटों पर सिमटा दे ताकि विधानसभा में स्थानीय पार्टियों के साथ सरकार में शामिल हो सके. भाजपा के खिलाफ स्थानीय स्तर पर कई इलाकों में भारी विरोध देखा जा रहा है. ऐसे में अगर जम्मू डिवीजन में कांग्रेस कुछ सीटें जीतने में कामयाब होती है तो भाजपा का सरकार बनाने का सपना चकनाचूर हो सकता है.

नैशनल कौन्फ्रेंस और कांग्रेस का गठबंधन देख कर भी भाजपा काफी बौखलाई हुई है. यही वजह है कि उस ने कई बार अपने उम्मीदवारों की लिस्ट बदली है. भाजपा ही नहीं बल्कि मेहबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी, जो भाजपा से गठबंधन कर के एक बार सत्ता की कमान संभाल चुकी है, कांग्रेस और नैशनल कौन्फ्रेंस गठबंधन से डरी हुई है. हालांकि मेहबूबा मुफ़्ती जिन को मोदी सरकार ने लम्बे समय तक नजरबंद रखा, वह दोबारा तो भाजपा के साथ हरगिज नहीं आएगी.

उधर इंजीनियर रशीद को भी दिल्ली की अदालत से अंतरिम जमानत मिल गई है. वह टेरर फंडिंग मामले में 2019 से जेल में बंद थे. रशीद अब जम्मू-कश्मीर में होने वाले विधानसभा चुनावों में प्रचार कर सकेंगे. रशीद आम आदमी की छवि रखने और ऐसे मुद्दे उठाने के लिए जाने जाते हैं जो आम लोगों के जुड़े होते हैं. अकसर पठानी सूट और फिरन- कश्मीरी ऊनी गाउन पहने हुए दिखाई देने वाले रशीद ने चुनावों के दौरान युवाओं के बीच अपनी खास जगह बनाई है.

रशीद की अवामी इत्तेहाद पार्टी ने विधानसभा चुनाव में 34 उम्मीदवार उतारे हैं. उन के छोटे भाई खुर्शीद अहमद शेख भी उत्तरी कश्मीर के कुपवाड़ा जिले की लंगेट सीट से उम्मीदवार हैं. विधानसभा चुनाव प्रचार में राशिद के उतरने से विधानसभा चुनाव में उन की पार्टी को बड़ी बढ़त मिलने की उम्मीद है. रशीद लंगेट सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं. फिलहाल वह उत्तरी कश्मीर की बारामूला सीट से सांसद हैं. वह अलगाववादी नेता रहे हैं.

57 वर्षीय रशीद लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान उस समय चर्चा में आए थे, जब उन्होंने उत्तरी कश्मीर की बारामूला सीट पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को 2 लाख से अधिक मतों से हराया था. रशीद की वह जीत चौंकाने वाली थी, क्योंकि उन्होंने तिहाड़ जेल में बंद रहते चुनाव लड़ा था, जहां वे पिछले 5 सालों से गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत आरोपों का सामना कर रहे हैं.

राशिद ने एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव लड़ा था और विधानसभा चुनावों के विपरीत उन्हें लोकसभा चुनावों के दौरान प्रचार करने की अनुमति नहीं मिली थी. जाहिर है इस विधानसभा चुनाव में रशीद इंजीनियर और मेहबूबा मुफ्ती की पार्टियां कांग्रेस गठबंधन और भाजपा का बड़ा वोट काटेंगी.

जम्मू-कश्मीर के मुख्यधारा के राजनेताओं द्वारा रशीद इंजीनियर की जमानत के समय पर सवाल उठाए जा रहे हैं. नैशनल कौन्फ्रेंस और पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) दोनों ने गड़बड़ी की आशंका जताई है और दावा किया है कि भाजपा का एआईपी और अन्य छोटी पार्टियों के साथ कुछ न कुछ समझौता है, तभी ऐन चुनावों के वक्त रशीद को जमानत दी गई है. महबूबा मुफ्ती यह सवाल भी उठाती हैं कि रशीद इंजीनियर की पार्टी एआईपी को इतने सारे उम्मीदवार उतारने के लिए संसाधन कहां से मिल रहे हैं?

ऐतिहासिक रूप से जम्मू-कश्मीर में चुनाव संवेदनशील मामला रहा है. बहुत से लोगों का मानना है कि इलाके के भारत समर्थक राजनेताओं को फायदा पहुंचाने के लिए चुनावों में कई बार धांधली भी हुई है. बहुत से लोगों में इन चुनावों को ले कर कोई उत्साह नहीं है, खासतौर से घाटी में. हालांकि ऐसे लोग भी हैं जिन्हें लग रहा है कि केंद्र सरकार के खिलाफ नाराजगी जताने का यह अच्छा मौका है. वे अपने वोटों के जरिए यह काम करना चाहते हैं. इलाके में रहने वाले बहुत से मुसलिम भारत से आजादी की बात करते हैं, लेकिन यहां के राजनीतिक दलों के नेता भारत के साथ रहना चाहते हैं. इन में से कई नेताओं को शांति भंग करने के आरोप में महीनों तक जेल में रखा गया. कुछ लोग भ्रष्टाचार के आरोपों में भी जेल में बंद रहे. ये लोग इन चुनावों को राज्य में केंद्र की सत्ताधारी पार्टी की तरफ से हुए बदलावों का विरोध करने के मौके के रूप में देख रहे हैं.

लाली : रोशन और लाली के बीच क्यों बढ़ गई दूरियां

वह दीवार के सहारे बैठा था. उस के चेहरे पर बढ़ी दाढ़ी को देख कर लगता था कि उसे महीने से नहीं छुआ गया हो. दाढ़ी के काले बालों के बीच झांकते कुछ सफेद बाल उस की उम्र की चुगली कर रहे थे. जिंदगी की कड़वी यादें और अनुभव के बोझ ने उस की कमर को भी झुका दिया था. रात का दूसरा पहर और सड़क के किनारे अंधेरे में बैठा वह अपनी यादों में खोया था. यादें सड़क से गुजरने वाले वाहनों की रोशनी की तरह ही तो थीं, जो थोड़ी देर के लिए अंधेरी दुनिया को रोशन कर जाती थीं, लेकिन आज क्षणभंगुर रोशनी का भी आखिरी दिन था. आज लाली की शादी जो हो रही थी, उसी चारदीवारी के अंदर जिस के सहारे वह बैठा था. वह अपने 12 साल पुराने अतीत में चला गया.

रेल के डब्बे के पायदान पर बैठा वह बहुत खुश था. उम्र करीब 14 साल रही होगी. उस दिन बड़ी तन्मयता के साथ वह अपनी कमाई गिन रहा था. 2…4…10…15… वाह, आज पूरे 15 रुपए की कमाई हुई है. अब देखता हूं उस लाली की बच्ची को…कैसे मुझ से ज्यादा पैसे लाती है. हर बार मुझ से ज्यादा पैसे ला कर खुद को बहुत होशियार समझती है. आज आने दो उसे…आज तो वह मुझ से जीत ही नहीं सकती. 15 रुपए तो उस ने एकसाथ देखे भी नहीं होंगे. जो टे्रन की रफ्तार के साथ भाग रहे थे.

‘अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम…’ भजन के स्वर कान में पड़ते ही वह अपने खयालों से बाहर आ गया. यह लाली की आवाज ही थी, जैसे दूर किसी मंदिर में घंटी बज रही हो. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो लाली खड़ी थी. उम्र करीब 12 वर्ष, आंखों में चमक मगर रोशनी नहीं, दाएं हाथ में 2 संगमरमर के छोटेछोटे टुकड़े जो साज का काम करते थे, सिर के बाल पीछे की ओर गुंथे हुए.

‘लाली, मैं यहां हूं. तू इधर आ. कब से तेरा इंतजार कर रहा हूं. स्टेशन आने वाला है. आज कितने पैसे हुए?’ ‘रोशन, तू यहां है,’ लाली बोली और अपने दोनों हाथों को आगे की ओर उठा कर आवाज आने की दिशा की ओर मुड़ गई. इन 12 सालों में लाली ने हाथों से ही आंखों का काम लिया था. रोशन ने उसे अपने साथ पायदान पर बिठा लिया.

‘रोशन, जरा मेरे पैसे गिन दे.’ ‘अभी तू इन्हें अपने पास रख. स्टेशन आने वाला है. उतरने के बाद पार्क में बैठ कर इन पैसों को गिनेंगे.’

स्टेशन आते ही दोनों टे्रन से उतर कर पार्क की ओर चल दिए. पार्क की बेंच पर बैठते ही लाली ने अपने सभी पैसे रोशन को पकड़ा दिए.

रोशन के चेहरे पर विजयी मुसकान आ गई, आज तो उस की जीत होनी ही थी. उस ने पैसे लिए और गिनने लगा.

‘2…4…10…12…15…20…22, ओह, आज फिर हार गया और अब फिर से इस के ताने सुनने होंगे.’ रोशन ने मन ही मन सोचा और चिढ़ कर सारे पैसे लाली के हाथ में पटक दिए. ‘बता न कितने हैं?’

‘मैं क्यों बताऊं, तू खुद क्यों नहीं गिनती, मैं क्या तेरा नौकर हूं.’ ‘समझ गई,’ लाली हंसते हुए बोली.

‘तू क्या समझ गई.’ ‘आज फिर मेरे पैसे तुझ से ज्यादा हैं, तू मुझ से जल रहा है.’

‘अरे, जले मेरी जूती,’ रोशन ने बौखलाते हुए कहा. ‘तेरे पास तो जूते भी नहीं हैं जलाने को, देख खाली पैर बैठा है,’ लाली यह कह कर हंसने लगी. लाली की इस बात ने जैसे आग में घी डाल दिया. रोशन गुस्से में बोला, ‘अरे, तू अंधी है तभी तुझ पर तरस खा कर लोग पैसे दे देते हैं, वरना तेरे गाने को सुन कर तो जिंदा आदमी भी मर जाए और मरे आदमी का भूत भाग जाए.’

यह सुन कर लाली जड़ हो गई और उस की आंखों से आंसू निकल पड़े. लाली के आंसुओं ने रोशन के गुस्से को धो डाला. वह पछताने लगा मगर माफी मांगे तो कैसे? ‘लाली, माफ कर दे मुझे, मैं तो पागल हूं. किसी पागल की बात का बुरा नहीं मानते.’

लाली ने दूसरी तरफ मुंह मोड़ लिया. ‘अरे, लाली, मैं ने तुझ से अच्छा गाने वाला आज तक नहीं सुना. मैं सच बोल रहा हूं. तुझ से अच्छा कोई गा ही नहीं सकता.’

वह सच बोल रहा था. काश, लाली उस की आंखों में देख पाती तो जरूर विश्वास कर लेती. लाली के चेहरे पर अविश्वास की झलक साफ पढ़ी जा सकती थी. ‘लाली, मैं सच कह रहा हूं…बाबा की कसम. देख तुझे पता है मैं बाबा की झूठी कसम नहीं खाता. अब तू चुप हो जा.’

लाली के चेहरे पर अब मुसकान लौटने लगी थी. ‘अब मैं कभी तुझे अंधी नहीं बोलूंगा, तुझे आंखों की जरूरत ही नहीं है, ये रोशन तेरी आंखों की रोशनी है,’ अब लाली के चेहरे पर मुसकान लौट आई थी.

कमरे में खाट पर जर्जर काया लेटी हुई थी. टूटी हुई छत से झांकते हुए धूप के टुकड़ों ने कमरे में कुछ रोशनी कर रखी थी. माखन खाट पर लेटा रोशन के आने का इंतजार कर रहा था. ‘आज इतनी देर हो गई रोशन आया नहीं है.’

माखन की उम्र करीब 65 वर्ष होगी. खाट पर लेटे हुए वह अपने अंतिम दिनों को गिन रहा था. लोगों की घृणा भरी नजरें और अपने शरीर को गलता देख माखन में जीने की चाह खत्म हो गई थी पर मौत भी शायद उस के साथ आंखमिचौली का खेल खेल रही थी.

दिल की इच्छा थी कि रोशन पढ़लिख कर साहब बने. उस ने वादा भी किया था रोशन से कि जिस दिन वह मैट्रिक पास कर लेगा उस दिन वह उसे अपने रिकशे में साहब की तरह बिठा कर पूरा शहर घुमाएगा. लेकिन गरीब का सपना पूरा कहां होता है. 4 साल पहले कोढ़ ने उसे रिकशा चलाने लायक भी नहीं छोड़ा और वह बोझ बन गया रोशन पर. रोशन को स्कूल छोड़ना पड़ा. गरीब की जिंदगी में बचपन नहीं होता, गरीबी और जिम्मेदारी ने रोशन को उम्र से पहले ही बड़ा कर दिया. कलम की जगह झाड़ू ने ले ली, स्कूल की जगह रेलगाड़ी ने और शिक्षक की प्यार भरी डांटफटकार की जगह लोगों के कटु वचनों और गाली ने ले ली.

‘अरे, तू आ गया रोशन. कहां था अब तक और यह तेरे हाथ में क्या है?’ ‘बाबा, यह लो अपनी दवाई, तुम्हें जलेबी पसंद है न. लो, खाओ और यह भी लो,’ यह कहते हुए उस ने देसी शराब की बोतल माखन की ओर बढ़ा दी.

‘अरे, बेटा, इतने पैसे खर्च करने की क्या जरूरत थी.’ रोशन के चेहरे पर मुसकान आ गई. उस ने बाबा की आंखों की चमक को पढ़ लिया था. उसे पता था कि बाबा को रोज शराब की तलब होती है, लेकिन पैसों की तंगी के कारण कई महीने बाद बाबा के लिए वह बोतल ला पाया था.

रोशन हर दिन की तरह उस दिन भी टे्रन के पायदान पर लाली के साथ बैठा था. ‘वह देख लाली, इंद्रधनुष, कितना खूबसूरत है,’ टे्रन के पायदान पर बैठे रोशन ने इंद्रधनुष की ओर इशारा करते हुए कहा.

‘इंद्रधनुष कैसा होता है, कहां रहता है?’ ‘अरे, तुझे इतना भी नहीं पता. इंद्रधनुष 7 रंगों से बना होता है. उस में लाल रंग सब से सुंदर होता है और पता है यह आसमान में लटका रहता है.’

स्कूल में सीखे हुए इंद्रधनुष के सारे तथ्य उस ने लाली को बता दिए लेकिन उसे खुद इन बातों में भरोसा नहीं था. जैसे इंद्रधनुष के 7 रंग. उस ने 5 रंग बैगनी, नीला, हरा, पीला और लाल से ज्यादा रंग कभी इंद्रधनुष में नहीं देखे थे. और भी मास्टरजी की कई बातों पर उसे भरोसा नहीं होता था जैसे धरती गोल है, सूरज हमारी धरती से बड़ा है…इन सारी बातों पर कोई पागल ही भरोसा करेगा.

लेकिन दूसरे बच्चों पर अपनी धौंस जमाने के लिए ये बातें वह अकसर बोला करता था. अपनी आंखों के सामने अंधेरा छाता देख माखन समझ गया अब उस का अंतिम समय आ गया है. रोशन को अंतिम बार देखने के लिए उस ने अपनी सांसें रोक रखी थीं, उस ने अपनी आंखें दरवाजे पर टिका रखी थीं. लेकिन जितनी सांसें उस के जीवन की थीं शायद सारी खत्म हो चुकी थीं. आत्मा ने शरीर का साथ छोड़ दिया था. बस, बचा रह गया था उस का ठंडा शरीर और इंतजार करती दरवाजे की ओर देखती आंखें.

बाबा को गुजरे 1 साल हो गया था. रोशन ने टे्रन की सफाई के साथसाथ घर भी छोड़ दिया था. जब भी वह घर जाता उसे लगता बाबा का भूत सामने खड़ा है और बारबार उसे बारूद के कारखाने में काम करने से मना कर रहा है. टे्रन का काम रोशन को कभी पसंद नहीं था लेकिन बाबा के दबाव में वह कारखाने में काम नहीं कर पाया था. बाबा ने उस से वादा भी किया था कि उन के मरने के बाद रोशन बारूद के कारखाने में काम नहीं करेगा, लेकिन वह उस वादे को निभा नहीं पाया.

लाली को भी घर से निकलना पड़ा. उस के चाचा से अंधी लड़की का बोझ संभाला नहीं गया और अनाथ लड़की को अनाथ आश्रम में शरण लेनी पड़ी. शायद अच्छा ही हुआ था उस के साथ. आश्रम की पढ़ाई में उस का मन नहीं लगता था. पूरे दिन उसे बस, संगीत की कक्षा का इंतजार रहता और उस के बाद वह इंतजार करती रोशन का. रोज शाम को आधे घंटे के लिए बाहर वालों से मिलने की इजाजत होती थी. पर समय तो मुट्ठी में रखी रेत की तरह होता है, जितनी जोर से मुट्ठी बंद करो रेत उतनी ही जल्दी फिसल जाती है.

आज बेसब्री से लाली रोशन का इंतजार कर रही थी. जैसे ही रोशन के आने की आहट हुई उस की आंखों के बांध को तोड़ आंसू छलक पड़े. ‘मुझे यहां नहीं रहना रोशन, मुझे यहां से ले चलो.’

‘क्यों, क्या हुआ लाली?’ रोशन ने लड़खड़ाते स्वर में पूछा. ‘मुझे यहां सभी अंधी कोयल कह कर बुलाते हैं. मैं और यह सब नहीं सुन सकती.’

‘अरे, बस इतनी सी बात, शुक्र मना, वे तुझे काली कौवी कह कर नहीं बुलाते या काली लाली नहीं बोलते.’ ‘क्या मतलब है तुम्हारा. मैं काली हूं और मेरी आवाज कौवे की तरह है?’

‘अरे, तू तो बुरा मान गई. मैं तो मजाक कर रहा था. तेरी आवाज कोयल की तरह है तभी तो सभी तुझे कोयल कह कर बुलाते हैं और रोशन के रहते तेरी आंखों को रोशनी की जरूरत ही नहीं है,’ रोशन ने खुद की तरफ इशारा करते हुए कहा. ‘पर मुझे यहां नहीं रहना, मुझे यहां से ले चलो.’

‘लाली, मैं ने तुझे पहले भी बोला है कि कुछ दिन सब्र कर, मुझे कुछ रुपए जमा कर लेने दे फिर मैं तुझे मुंबई ले चलूंगा और बहुत बड़ी गायिका बनाऊंगा,’ रोशन ने खांसते हुए कहा. ‘देख, रोशन, मुझे गायिका नहीं बनना. तू बारूद के कारखाने में काम करना बंद कर दे. बाबा भी नहीं चाहते थे कि तू वहां काम करे. मुझे तेरी जान की कीमत पर गायिका नहीं बनना. मैं देख नहीं सकती, इस का मतलब यह तो नहीं कि मैं महसूस भी नहीं कर सकती. तेरी हालत खराब हो रही है,’ लाली ने परेशान होते हुए कहा.

लाली की परेशानी बेवजह नहीं थी. रोशन सचमुच बीमार रहने लगा था. दिन- रात बारूद का काम करने के कारण उस की छाती में जलन होने लगी थी, लेकिन लाली को गायिका बनाने का सपना उसे दिनरात काम करने की प्रेरणा देता था. आज रोशन की खुशी का ठिकाना नहीं था. टे्रन सपनों की नगरी मुंबई पहुंचने ही वाली थी. उस के साथसाथ लाली का वर्षों का सपना पूरा होने वाला था. बारबार वह अपनी जेब में रखे 10 हजार रुपयों को देखता और सोचता क्या इन रुपयों से वह अपना सपना पूरा कर पाएगा. इन रुपयों के लिए ही तो उस ने जीवन के 4 साल कारखाने की अंधेरी कोठरी में गुजारे थे. लाली साथ वाली सीट पर बैठी थी. नाबालिग होने के कारण आश्रम ने उसे रोशन के साथ जाने की इजाजत नहीं दी लेकिन वह सब की नजरों से बच कर रोशन के पास आ गई थी.

मुंबई की अट्टालिकाओं को देख कर रोशन को लगा कि लोगों के इस महासागर में वह एक कण मात्र ही तो है. उस ने अपने को इतना छोटा कभी नहीं पाया था. अब तो बस, एक ही सवाल उस के सामने था कि क्या वह अपने सपनों को सपनों की इस नगरी में यथार्थ रूप दे पाएगा. काफी जद्दोजहद के बाद मुंबई की एक गंदी सी बस्ती में एक छोटा कमरा किराए पर मिल पाया. कमरे की खोज ने रोशन को एक सीख दी थी कि मुंबई में कोई काम करना आसान नहीं होगा. उस ने खुद को आने वाले दिनों के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था.

आज सुबह रोशन और लाली को अपने सपने को सच करने की शुरुआत करनी थी अत: दोनों निकल पड़े अपने उद्देश्य को पूरा करने. उन्होंने कई संगीतकारों के दफ्तर के चक्कर काटे पर कहीं भी अंदर जाने की इजाजत नहीं मिली. यह सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा. लाली का धैर्य और आत्म- विश्वास खत्म होने लगा और खत्म होने लगी उन की पूंजी भी. लेकिन रोशन इतनी जल्दी हार मानने वाला कहां था. वह लाली को ले कर हर दिन उम्मीद क ी नई किरण अपनी आंखों में बसाए निकल पड़ता.

उस दिन रोशन को सफलता मिलने की पूरी उम्मीद थी, क्योंकि वह लाली को ले कर एक गायन प्रतियोगिता के चुनाव में जा रहा था, जिसे जीतने वाले को फिल्मों में गाने का मौका मिलने वाला था. रोशन को भरोसा था कि लाली इस प्रतियोगिता को आसानी से जीत जाएगी. हर दिन के रियाज और आश्रम में मिलने वाली संगीत की शिक्षा ने उस की आवाज को और भी अच्छा बना दिया था. प्रतियोगिता भवन में हजारों लोगों की भीड़ अपना नामांकन करवाने के लिए आई हुई थी. करीब 3 घंटे के इंतजार के बाद एक चपरासी ने उन्हें एक कमरे में जाने को कहा. वहां एक बाबू प्रतियोगिता के लिए नामांकन करा रहे थे.

अंदर आते 2 किशोरों को देख उस व्यक्ति ने उन्हें बैठने का इशारा किया और अपने मोटे चश्मे को नीचे करते चुटकी लेते हुए कहा, ‘किस गांव से आ रहे हो तुम लोग और इस अंधी लड़की को कहां से भगा कर ला रहे हो?’ ‘अरे, नहीं साहब, भगा कर नहीं लाया, मैं लाली को यहां गायिका बनाने लाया हूं,’ रोशन ने धीमे से कहा.

‘गायिका और यह…सुर की कितनी समझ है तुझे, गलीमहल्ले में गा कर खुद को गायिका समझने की भूल मत कर, यहां देश भर से कलाकार आ रहे हैं. मेरा समय बरबाद मत करो और निकलो यहां से,’ साहब ने गुर्राते हुए कहा. ‘अरे, नहीं साहब, लाली बहुत अच्छा गाती है. आप एक बार सुन कर तो देखिए,’ रोशन ने बात को संभालने के अंदाज से कहा.

‘देखो लड़के, यह कार्यक्रम सारे देश में टेलीविजन पर दिखाया जाएगा और मैं नहीं चाहता कि एक गंवार, अंधी लड़की इस का हिस्सा बने. तुम जाते हो या पुलिस को बुलाऊं,’ साहब ने चिल्लाते हुए कहा. दोनों स्तब्ध, अवाक् खड़े रहे जैसे सांप सूंघ गया हो उन्हें. लाली खुद को ज्यादा देर रोक नहीं पाई और उस की आंखों से आंसू निकल आए और वह फौरन कमरे से बाहर निकल आई. अंदर रोशन अपने सपनों को टूट कर बिखरते हुए देख खुद टूट गया था.

मुंबई नगरी अब उसे सपनों की नगरी नहीं शैतानों की नगरी लग रही थी. ये बिलकुल वैसे ही शैतान थे जिन्हें वह बचपन में सपनों में देखा करता था. बस, एक ही अंतर था, इन के सिर पर सींग नहीं थे. पर यह सब सोचने का समय नहीं था उस के पास, अभी तो उसे लाली को संभालना था. दोनों समंदर के किनारे बैठे अपने दुख को भूलने की कोशिश कर रहे थे. रोशन डूबते सूरज के साथ अपने सपने को भी डूबता देख रहा था. उस ने लाली को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसे समझाना मुश्किल लग रहा था.

‘तुम्हें पता है लाली, डूबता सूरज बहुत खूबसूरत होता है,’ उस ने लाली को समझाने का अंतिम प्रयास किया, ‘और पता है यह खूबसूरत क्यों होता है, क्योंकि यह लाल रंग का होता है. और पता है तेरा नाम लाली क्यों है क्योंकि तू सब से सुंदर है. मेरा भरोसा कर लाली, तू मेरे लिए दुनिया की सब से खूबसूरत लड़की है.’ रोशन ने अनजाने में आज वह बात कह दी थी जिसे कहने की हिम्मत वह पहले कभी नहीं जुटा पाया था. डूबते सूरज की रोशनी में लाली का चेहरा पहले से ही लाल नजर आ रहा था, यह सुन कर उस का चेहरा और भी लाल हो गया और उस के होठोंपर मुसकान आ गई.

12 साल बाद की उस घटना को सोच कर रोशन के चेहरे पर हंसी आ गई जैसे सबकुछ अभी ही हुआ है. रात का तीसरा पहर भी बीत गया था. चारदीवारी के अंदर का कोलाहल शांत हो गया था. शायद लाली की शादी हो गई थी. उस के सीने की जलन बढ़ती जा रही थी. कारखाने में काम करने के कारण उस के फेफड़े जवाब दे चुके थे. डाक्टरों के लाख समझाने के बाद भी उस ने बारूद के कारखाने में काम करना नहीं छोड़ा था अब उसे मरने से डर नहीं लगता था वह जीना ही नहीं चाहता था. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं और फिर से उस के जेहन में अतीत की यादें सजीव होने लगीं.

अब लाली महल्ले के मंदिर केसत्संग में गाने लगी थी और रोशन एक ढाबे में काम करने लगा था. शायद उन लोगों ने मुंबई की जिंदगी से समझौता कर लिया था. लाली के गाए भजनों की लोकप्रियता बढ़ने लगी थी, अब आसपास के लोग भी उसे सुनने आते थे. लाली इसी में खुश थी. एक दिन सुबहसुबह दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. रोशन ने दरवाजा खोला तो देखा एक अधेड़ व्यक्ति साहब जैसे कपड़े पहने खड़ा था.

‘बेटे, लाली है क्या? मैं आकाश- वाणी में सितार बजाता हूं. हमारा भक्ति संगीत का कार्यक्रम हर दिन सुबह 6 बजे रेडियो पर प्रसारित होता है. जो गायिका हमारे लिए गाया करती थी वह बीमार है,’ उस व्यक्ति ने कमरे के अंदर बैठी लाली को देखते हुए कहा. लाली यह सुन कर बाहर आ गई.

‘लाली, क्या तुम हमारे रेडियो कार्यक्रम के लिए गाओगी?’ यह सब किसी सपने से कम नहीं था, रोशन को अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा था.

‘बेटे, मैं ने लाली को मंदिर में गाते हुए सुना है. मैं ने अपने संगीतकार को लाली के बारे में बताया है. वह लाली को एक बार सुनना चाहते हैं. अगर उन्हें लाली की आवाज पसंद आई तो लाली को रेडियो में गाने का काम मिल सकता है,’ उस व्यक्ति ने स्पष्ट करते हुए कहा. उसी दिन शाम को दोनों रेडियो स्टेशन पहुंच गए. लाली को माइक्रो- फोन के आगे खड़ा कर दिया गया. साजिंदों ने साज बजाने शुरू किए और लाली ने गाना :

‘अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम…’ गाना खत्म हुआ और अचानक सभी बाहर आ गए. लाली के आसपास भीड़ जुटने लगी. स्वर के जादू ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया था, जैसे सभी उस आवाज को आत्मसात कर रहे हों. गाने के बाद तालियों की गूंज ने लाली को बता दिया था कि उस की नौकरी पक्की हो गई है. रोशन की खुशी का ठिकाना नहीं था.

श्रोताओं में शास्त्रीय संगीत के जानेमाने संगीतकार पंडित मदनमोहन शास्त्री भी थे. दूसरों की तरह वह भी लाली की आवाज से बेहद प्रभावित थे. उन्होंने लाली को बुलाया और कहने लगे, ‘बेटी, तुम्हारे कंठ में बेहद मिठास है पर तुम अभी सुर में थोड़ी कच्ची हो. मैं तुम्हें संगीत की विधिवत शिक्षा दूंगा.’

लाली मारे खुशी के कुछ बोल नहीं पाई. बस, स्वीकृति में सिर हिला दिया. लाली की संगीत की शिक्षा शुरू हो गई. पंडितजी लाली के गाने से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने लाली को गोद ले लिया और वह लाली से लालिमा शास्त्री बन गई. पंडितजी के इस फैसले के कारण लाली पंडितजी के घर में ही रहने लगी और नियति ने रोशन के एकमात्र सहारे को भी उस से छीन लिया.

अब रोशन को लाली से मिलने के लिए पंडितजी की इजाजत लेनी पड़ती और पंडितजी को बिलकुल भी पसंद नहीं था कि कोई फुटपाथ का आदमी रोज उन के घर आए पर लाली की इच्छा का खयाल रखते हुए वह कुछ देर के लिए इजाजत दे देते. धीरेधीरे लाली की लोकप्रियता बढ़ने लगी और घटने लगा रोशन को दिया जाने वाला समय. रोशन इस अचानक आए बदलाव को समझ नहीं पा रहा था. वह लालिमा शास्त्री के सामने खुद को छोटा पाने लगा था. एक दिन उस ने एक निर्णय लिया और लाली से मिलने उस के घर चला गया.

‘लाली, मेरा यहां मन नहीं लग रहा. चलो, वापस गांव चलते हैं,’ रोशन ने लाली क ी ओर देखते हुए कहा. ‘क्यों, क्या हुआ? मन क्यों नहीं लग रहा तेरा,’ लाली ने सोचते हुए कहा, ‘लगता है, मैं तुझ से मिल नहीं पा रही हूं, इसी कारण मन नहीं लग रहा तेरा.’

‘नहीं…सच तो यह है कि पंडितजी यही चाहते हैं कि मैं तुझ से न मिलूं और मुझे लगता है कि शायद तू भी यही चाहती है. तुझे लगता है कि मैं तेरे संगीत की शिक्षा में रुकावट हूं,’ रोशन ने गुस्से में कहा. ‘अरे, नहीं, यह बात नहीं है. रियाज और बाकी काम होने के कारण मैं तुम से मिल नहीं पाती,’ लाली ने समझाने की कोशिश की.

लेकिन रोशन समझने को तैयार कहां था, ‘सचाई यह नहीं है लाली. सच तो यह है कि पंडितजी की तरह तू भी नहीं चाहती कि गंदी बस्ती का कोई आदमी आ कर तुझ से मिले. तू बदल गई है लाली, तू अब लालिमा शास्त्री जो बन गई है,’ रोशन ने कटाक्ष किया. ‘सच तो यह है रोशन कि तू मेरी सफलता से जलने लगा है. तू पहले भी मुझ से जलता था जब मैं टे्रन में तुझ से ज्यादा पैसे लाती थी. सच तो यह है, तू नहीं चाहता कि मैं तुझ से आगे रहूं. मैं नहीं जा रही गांव, तुझे जाना है तो जा,’ लाली के होंठों से लड़खड़ाती आवाज निकली.

रोशन आगे कुछ नहीं बोल पाया. बस, उस की आंखें भर आईं. जिस की सफलता के लिए उस ने अपने शरीर को जला दिया आज उसी ने अपनी सफलता से जलने का आरोप उस पर लगाया था. ‘खुश रहना, मैं जा रहा हूं,’ यह कह कर रोशन कमरे से बाहर निकल आया.

रोशन गांव तो चला गया पर गांव में पुलिस 1 साल से उस की तलाश कर रही थी. आश्रम वालों ने उस के खिलाफ नाबालिग लड़की को भगाने की रिपोर्ट लिखा दी थी. गांव पहुंचते ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया और कोर्ट ने उसे 1 साल की सजा सुनाई. इधर 1 साल में लालिमा शास्त्री ने लोकप्रियता की नई ऊंचाइयों को छुआ. उस के चाहने वालों की संख्या रोज बढ़ती जा रही थी और साथ ही बढ़ रहा था अकेलापन. रोशन के लौट आने की कामना वह रोज करती थी.

जेल से छूटने के बाद रोशन खुद को लाली से और भी दूर पाने लगा. उस की हालत उस बच्चे की तरह थी जो ऊंचाई में रखे खिलौने को देख तो सकता है मगर उस तक पहुंच नहीं सकता. उस ने बारूद के कारखाने में फिर से काम करना शुरू कर दिया. वह सारा दिन काम करता और शाम को चौराहे पर पीपल के पेड़ के नीचे निर्जीव सा बैठा रहता. जब भी अखबार में लाली के बारे में छपता वह हर आनेजाने वाले को पढ़ कर सुनाता और फिर अपने और लाली के किस्से सुनाना शुरू कर देता. सभी उसे पागल समझने लगे थे.

रोशन ने कई बार मुंबई जाने के बारे में सोचा लेकिन बस, एक जिद ने उसे रोक रखा था कि जब लाली को उस की जरूरत नहीं है तो उसे भी नहीं है. कारखाने में काम करने के कारण उस की तबीयत और भी खराब होने लगी थी. खांसतेखांसते मुंह से खून आ जाता. उस ने अपनी इस जर्जर काया के साथ 4 साल और गुजार दिए थे. एक दिन वह चौराहे पर बैठा था, कुछ नौजवान उस के पास आए, एक ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘अब तेरा क्या होगा पगले, लालिमा शास्त्री की तो शादी हो रही है. हमें यह समझ नहीं आ रहा कि आखिर तेरे रहते वह किसी और से शादी कैसे कर सकती है,’ यह कह कर उस ने अखबार उस की ओर बढ़ा दिया और सभी हंसने लगे.

अखबार देखते ही उस के होश उड़ गए. उस में लाली की शादी की खबर छपी थी. 2 दिन बाद ही उस की शादी थी. अंत में उस ने फैसला किया कि वह मुंबई जाएगा.

वह फिर मुंबई आ गया. वहां 12 साल में कुछ भी तो नहीं बदला था सिवा कुछ बहुमंजिली इमारतों के. आज ही लाली की शादी थी. वह सीधे पंडितजी के बंगले में गया. पूरे बंगले को दुलहन की तरह सजाया गया था. सभी को अंदर जाने की इजाजत नहीं थी. सामने जा कर देखा तो पंडितजी को प्रवेशद्वार पर अतिथियों का स्वागत करते पाया. ‘पंडितजी,’ आवाज सुन कर पंडितजी आवाज की दिशा में मुड़े तो पागल की वेशभूषा में एक व्यक्ति को खड़ा पाया.

‘पंडितजी, पहचाना मुझे, मैं रोशन… लाली का दोस्त.’ पंडितजी उसे अवाक् देखते रहे, उन्हें समझ में नहीं आ रहा था वह क्या करें. पिछले 5-6 साल के अथक प्रयास के बाद वह लाली को शादी के लिए मना पाए थे. लाली ने रोशन के लौटने की उम्मीद में इतने साल गुजारे थे लेकिन जब पंडितजी को शादी के लिए न कहना मुश्किल होने लगा तो अंत में उस ने हां कर दी थी.

‘पंडितजी, मैं लाली से मिलना चाहता हूं,’ इस आवाज ने पंडितजी को झकझोरा. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें, अगर रोशन से मिल कर लालिमा ने शादी से मना कर दिया तो? और पिता होने के नाते वह अपनी बेटी का हाथ किसी पागल जैसे दिखने वाले आदमी को कैसे दे सकते हैं. इसी कशमकश में उन्होंने कहा. ‘लालिमा तुम से मिलना नहीं चाहती, तुम्हारे ही कारण वह पिछले 5-6 साल से दुख में रही है, अब और दुख मत दो उसे, चले जाओ.’

‘बस, एक बार पंडितजी, बस एक बार…मैं फिर चला जाऊंगा,’ रोशन ने गिड़गिड़ाते हुए पंडितजी के पैर पकड़ लिए. पंडितजी ने हृदय को कठोर करते हुए कहा, ‘नहीं, रोशन. तुम जाते हो या दरबान को बुलाऊं,’ यह सुन कर रोशन बोझिल मन से उठा और थोड़ी दूर जा कर बंगले की चारदीवारी के सहारे बैठ गया. पंडितजी उसे वहां से हटने के लिए नहीं कह पाए. वह रोशन की हालत को समझ रहे थे लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी.

रोशन की जब आंख खुली तो उस ने लाली को दुलहन के लिबास में सामने पाया. उसे लगा जैसे वह सपना देख रहा हो. आसपास देखा तो खुद को अस्पताल के बिस्तर में पाया. उस ने पिछली रात की बात को याद करने की कोशिश की तो उसे याद आया उस की छाती में काफी तेज दर्द था, 1-2 बार खून की उलटी भी हुई थी…उस के बाद उसे कुछ भी याद नहीं था. शायद उस के बाद उस ने होश खो दिया था. पंडितजी को जब पता चला तो उन्होंने उसे अस्पताल में भरती करा दिया था. लाली ने रोशन के शरीर में हलचल महसूस की तो खुश हो कर रोशन के चेहरे को छू कर कहा, ‘‘रोशन…’’ और फिर वह रोने लगी.

‘‘अरे, पगली रोती क्यों है, मैं बिलकुल ठीक हूं. अभी देख मेरा पूरा चेहरा लाल है,’’ खून से सने अपने चेहरे को सामने दीवार पर लगे आईने में देखते हुए उस ने कहा, ‘‘अच्छा है, तू देख नहीं सकती नहीं तो आज मेरे लाल रंग को देख कर तू मुझ से ही शादी करती.’’ यह सुन कर लाली और जोर से रोने लगी.

‘‘मेरी बहुत इच्छा थी कि मैं तुझे दुलहन के रूप में देखूं, आज मेरी यह इच्छा भी पूरी हो गई,’’ अब रोशन की आंखों में भी आंसू थे. ‘‘रोशन, तू ने बहुत देर कर दी…’’ बस, इतना ही बोल पाई लाली.

इस के बाद रोशन भी कुछ नहीं बोल पाया. बस, आंसू भरी निगाहों से दुलहन के लिबास में बैठी, रोती लाली को देखता रहा.

आंखों में सफेद पट्टी बांधे लाली अस्पताल के एक अंधेरे कक्ष में बैठी थी. रोशन को गुजरे 12 दिन हो गए थे. जातेजाते रोशन लाली को अपनी आंखें दान में दे गया था. आज लाली की आंखों की पट्टी खुलने वाली थी, लेकिन वह खुश नहीं थी, क्योंकि उस के जीवन में रोशनी भरने वाला रोशन अब नहीं था. डाक्टर साहब ने धीरेधीरे पट्टी खोलना शुरू कर दिया था. ‘‘अब आप धीरेधीरे आंखें खोलें,’’ डाक्टर ने कहा.

लाली ने जब आंखें खोलीं तो सामने पंडितजी को देखा. पंडितजी काफी खुश थे. वह लाली को खिड़की के पास ले गए और बोले, ‘‘लालिमा, यह देखो इंद्रधनुष, प्रकृति की सब से सुंदर रचना.’’ लाली को इंद्रधनुष शब्द सुनते ही रोशन की इंद्रधनुष के बारे में कही बातें याद आ गईं. उस ने ऊपर आसमान की तरफ देखा तो रंगबिरंगी आकृति आसमान में लटकी देखी, और सब से सुंदर रंग ‘लाल’ को पहचानते देर नहीं लगी उसे. आखिर वह इंद्रधनुष रोशन की आंखों से ही तो देख रही थी.

उस की आंखों से 2 बूंद आंसू की निकल पड़ीं. ‘‘पिताजी, उस ने बहुत देर कर दी आने में,’’ यह कह कर लालिमा ने पंडितजी के कंधे पर सिर रख दिया और आंखों का बांध टूट गया.

घर पर मेहमान आ जाएं तो उन की मेहमान नवाजी नए ढंग से कैसे करें, जानिए

बचपन से हम लोगों को सिखाया गया है कि अतिथि देवो भवः लेकिन क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप मेहमान नवाजी करना चाहते थे, लेकिन आप को लगा कि ऐसा करना आप के बस में नहीं? शायद आप स्वभाव से शर्मीले हों और सोचें, ‘मैं मेहमानों से क्या बातें करूंगा, वे तो उकता जाएंगे.’ या फिर शायद आप को लगे कि आप इतने अच्छे मेजबान नहीं है कि बाकि लोगों की तरह अच्छी खातिरदारी कर पाएं. लेकिन याद रखिए, मेहमान-नवाजी करने के लिए जरूरी नहीं कि आप का घर आलीशान हो. अगर आप का घर साफ-सुथरा है और आप मिलनसार हैं, तो मेहमानों को आप के यहां आने में खुशी होगी.

आज हम आप को यही बताएंगे कि हम किस तरह “एकदूसरे की” मेहमान नवाजी कर सकते हैं? मेहमान नवाजी करने में वे कौन सी बाते हैं जिन से हमें मेहमानों को बुलाने में हिचकिचाहट होती हैं? और हम कौन से स्मार्ट तरीके अपना कर मेहमान नवाजी के नए ढंग सीख सकते हैं?

मेहमानों का स्वागत प्यारी सी मुसकराहट के साथ करिए

मेहमानों का स्वागत पान पसंद के साथ नहीं बल्कि एक प्यारी सी मुसकराहट के साथ करिए. आप की एक प्यारी मुसकान उन का दिल जीत लेगी. उन्हें लगेगा कि आप उन का ही इंतजार कर रहे थे. ऐसा करने पर एक पौजिटिव वाइब्स के साथ मेहमान घर में दाखिल होंगे और पूरा माहौल खुशनुमा हो जाएगा.

घर को साफसुथरा रखिए

मेहमानों के आने से पहले ही पूरे घर की अच्छे से साफसफाई कर दीजिए. किचन भी व्यवस्थित होना चाहिए. ऐसा नहीं कि आप को खुद ही गंदे किचन में कोई सामान न मिले. जिस कमरे में मेहमान रुकेंगे वहां की साफसफाई के साथ जरुरत का सामान आदि पहले से ही रख दें.

फ्रैश फ्लावर्स और रूम फ्रैशनर्स का यूज भी करें

मेहमानों के आने पर ड्रिंगरूम में फ्लावर पौट में थोड़े से तजा फूल लगाना एक अच्छा औप्शन हो सकता है. इस से उन्हें स्पैशल फील होगा. साथ ही आप चाहे तो घर में रूम फ्रैशनर्स भी छिड़क सकते हैं जिस से पूरे टाइम एक भीनीभीनी खुशबू घर में फैल जाए और पूरा माहौल अच्छा हो जाए.

साथ में गेम खेलें

अगर आप कुछ इनडोर गेम्स जैसे ताश, लूडो, कटान आदि खेलने के शौकीन हैं तो साथ में खेलें. यह टाइम पास करने का एक अच्छा औप्शन हो सकता है. साथ ही उन्हें जाने के बाद भी याद रहेगा कि उन्होंने आप के साथ इतना अच्छा गेम खेला और हो सकता है वो भी अपने घर यह सब खेलने लग जाएं.

म्यूजिक और फिल्म या कोई प्रोग्राम साथ में देखें

अगर आप को लगता है आप थोड़े शाई नेचर के हैं और ज्यादा देर तक बातें करना आप को नहीं आता, तो परेशान न हों. पहले ही इंतजाम कर के रखें कि मेहमानों के आने के बाद टाइम पास कैसे करेंगे? कैसे बच्चों को खेल में लगाएंगे. आप मेहमानों की पसंद का धयान रखते हुए कोई मूवी या प्रोग्राम टीवी में लगाएं जिस से साथ में टाइम भी स्पेंड हो जाए और बोरियत भी न हो.

खाना बाहर से और्डर करें या बाहर खाने जाएं

मेहमानों का आना अकसर इसलिए ही खलता है कि कौन घंटों किचन में लगा रहे. लेकिन अब उस की जरुरत भी नहीं है. अब खाना बाहर से ही और्डर करें. यह सस्ता भी पड़ता है और अगर कहीं बाहर भी जा रहे हैं तो मेहमान भी आप का शहर घूम लेंगें और आप भी घर के झंझट से बच जाएंगी. मेहमानों के साथ समय जरूर बिताएं क्योंकि मेहमान सिर्फ खाना खाने या फिर आवभगत के लिए आप के घर नहीं आते बल्कि आप के साथ समय बिताने आते हैं.

इन बातों का भी रखें धयान

मेहमानों को स्पैशल फील कराना चाहते हैं तो कुछ अलग करने के बजाए कुछ ऐसा करें जो आप और आप के मेहमानों में कौमन हो. ऐसा करने से मेहमान को अपनापन महसूस होगा, और वो परिवार के साथ जल्दी घुलमिल जाएंगे.

मेहमानों की खातिरदारी करते वक्त आप को गुस्से और इमोशन पर कंट्रोल भी रखना होगा. किसी भी बात को पर्सनली न ले कर सिर्फ इंजोय करने पर फोकस करें. सब से जरूरी बात आप को उन के सामने बिल्कुल भी खुद को व्यस्त नहीं दिखाना है.

जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव : नैशनल कौन्फ्रेंस के साथ कांग्रेस का गठबंधन कितना फायदेमंद होगा

जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. हालांकि 10 साल पहले जम्मू कश्मीर राज्य के लिए चुनाव हुए थे, अब केंद्र शासित प्रदेश के लिए जनता वोट डालेगी. आर्टिकल 370 और 35ए के खात्मे के बाद पहली बार यहां की जनता विधानसभा चुनावों में भाग लेगी. जम्मू कश्मीर में मतदान की तारीखें करीब आने के साथ ही चुनाव प्रचार में तेजी आ गई है. इस बार जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों के लिए तीन चरणों में मतदान होगा. पहले चरण का चुनाव 18 सितंबर, दूसरे चरण का 25 सितंबर और तीसरे चरण का मतदान एक अक्तूबर को होगा. मतगणना चार अक्तूबर को कराई जाएगी. तब सैद्धांतिक रूप से राज्य का प्रशासन स्थानीय विधानसभा के जरिए चुने गए मुख्यमंत्री के पास आ जाएगा. मुख्यमंत्री के पास एक मंत्रिपरिषद होगी और यह कुछ कुछ वैसा ही होगा जैसे 2018 के पहले था. हालांकि इन चुनावों से बनने वाली नई सरकार के पास पहले जैसी वैधानिक शक्तियां नहीं होंगी.

चुनाव के बाद भी जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश ही बना रहेगा. चुनी हुई सरकार के पास केवल शिक्षा और संस्कृति जैसे मसलों पर नाममात्र के ही अधिकार होंगे. अहम फैसले केंद्र सरकार ही करेगी. प्रदेश की नई सरकार को अधिकार देने के लिए उस के राज्य के दर्जे को बहाल करना होगा. कांग्रेस सहित नैशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी ने कश्मीर की अर्ध-स्वायत्तता को वापस दिलाने के लिए कानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़ने की बात कही है.

विधानसभा के लिए नैशनल कौन्फ्रेंस और कांग्रेस ने जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए हाथ मिलाया है. लाख कोशिशों के बाद भी पीपुल्स डैमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) इस में शामिल नहीं हो सकी. हालांकि पीडीपी के इस गठबंधन में शामिल होने की चर्चा बहुत थी. कांग्रेस और नैशनल कौन्फ्रेंस सीटों का बंटवारा भी कर लिया है. पीडीपी अब अकेले चुनाव मैदान में है. इस से पहले लोकसभा चुनाव में भी दोनों दलों ने अकेलेअकेले चुनाव लड़ा था.

दरअसल जम्मू कश्मीर में नैशनल कान्फ्रेंस और पीडीपी कट्टर दुश्मन की तरह हैं. हालांकि कुछ मौकों पर वो एक साथ दिखने की कोशिश करते हैं, लेकिन केवल ऊपरी तौर पर. इसलिए महबूबा मुफ्ती के कांग्रेस और नैशनल कौन्फ्रेंस से उन का एजेंडा मानने की सूरत में ही समर्थन देने की बात कही थी. मगर नैशनल कौन्फ्रेंस शुरू से यह बात फैला रही थी कि पीडीपी ने उस का एजेंडा चोरी किया है. ऐसी सूरत में पीडीपी ने अपनी राह अलग कर ली है. हालांकि चुनाव बाद सरकार बनाने की सूरत में वह इन दोनों से मिल भी सकती है.

सरकार बनाने की दिशा में कांग्रेस और नैशनल कौन्फ्रेंस की राह आसान नहीं है. दोनों ही पार्टियों में अंदरूनी कलह जारी है. जिन नेताओं को टिकट नहीं मिला वे सभी पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं. ऐसे में दोनों दलों को ही नुकसान हो सकता है. इन नेताओं के पार्टी छोड़ने की वजह से भाजपा और पीडीपी को फायदा मिल सकता है.

बीते लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो देखा गया है कि पुरानी पार्टियों जैसे नैशनल कौन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस के लिए जम्मू कश्मीर की जनता के दिल में जगह कुछ कम हुई है. लोकसभा चुनावों में 2 सीट नैशनल कौन्फ्रेंस को जरूर मिली थीं पर बारामूला सीट पर नैशनल कौन्फ्रेंस नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की हार ये बताती है कि पार्टी का दबदबा अब कमजोर हो गया है. उमर अब्दुल्ला दो लाख से अधिक वोटों से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद इंजीनियर रशीद से हार गए थे. इंजीनियर रशीद निर्दलीय चुनाव लड़े थे. गौरतलब है कि लोकसभा चुनावों में पीडीपी 5 विधानसभा क्षेत्रों में आगे चल रही थी जबकि इंजीनियर राशिद की पार्टी 14 विधानसभा क्षेत्रों में आगे चल रही थी. इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए इन पार्टियों को विधानसभा में अच्छी सीटें मिलेंगी.

इस के बावजूद कांग्रेस और नैशनल कौन्फ्रेंस के साथ आने से जाहिर है कि दोनों पार्टियों को थोड़ी मजबूती मिलेगी. वहीं भारतीय जनता पार्टी के लिए उम्मीद खत्म नहीं हुई है. क्योंकि जम्मू कश्मीर में किसी भी पार्टी में 35-40 सीट से ज्यादा जीतने की ताकत नहीं दिख रही है.

अगर लोकसभा चुनावों को आधार मानें तो नैशनल कौन्फ्रेंस कुल 34 विधानसभा सीटों पर आगे थी. कांग्रेस को भी सात सीटों पर आगे रहने का मौका मिला था. जाहिर है कि इस तरह विधानसभा में कुल 41 सीटें जीतने की उम्मीद यह गठबंधन कर सकता है. पर कांग्रेस की 7 सीटों में 2 सीटें हिंदू बहुल सीटें हैं. यह हो सकता है कि आमनेसामने की फाइट में हिंदू बहुल सीटों पर कांग्रेस की बजाय भाजपा समर्थित कैंडिडेट को फायदा हो जाए. क्योंकि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और नैशनल कौन्फ्रेंस का साथ है.

हालांकि इस गठबंधन में अभी भी कुछ और दलों के शामिल होने की संभावना है. अगर ऐसा होता है तो यह गठबंधन और मजबूत हो जाएगा. एक संभावना यह भी है कि चुनाव बाद जब सरकार बनाने की बात आएगी तो पीडीपी और अन्य पार्टियां भाजपा से गठजोड़ करने की बजाए कांग्रेस-एनसी गठबंधन के साथ आना ज्यादा पसंद करेंगी.

हालांकि चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने के लिए भाजपा यह बात जोरशोर से उठाएगी कि नैशनल कौन्फ्रेंस (एनसी) के मेनिफेस्टो में हरी/शंकराचार्य पर्वत का नाम बदल कर तख्त ए सुलेमान करने का वादा किया गया है. इस के साथ ही एनसी मेनिफेस्टो में पाकिस्तान से बातचीत और मध्यस्थता के साथ 370 को खत्म करने की बात भी की गई है. जाहिर है कि इन मुद्दों पर जम्मू रीजन के हिंदू कांग्रेस से बिदक सकते हैं. यही कारण है कि भाजपा नेता बारबार कांग्रेस और राहुल गांधी से 370 और 35 ए पर अपना स्टैंड क्लियर करने की मांग करते रहे हैं.

उधर कांग्रेस अपने चुनाव प्रचार में जनता से जुड़े मुद्दों को उठा रही है. जिस में बिजली, पानी, रोजगार की बातें प्रमुख हैं. बिजली की अनियमितता से होने वाली समस्याएं और घरों में स्मार्ट बिजली मीटर की स्थापना का उन का लक्ष्य है. इस के अलावा बढ़ती बेरोजगारी और भर्ती परीक्षाओं में अनियमितताएं भी उन की लिस्ट में है. स्थानीय व्यापारियों की समस्याओं को ले कर वह व्यापारी संगठनों के संपर्क में है. जम्मू के पहाड़ी इलाकों में सुरक्षा की स्थिति में जो गिरावट आई है, और जहां बीते 3 सालों में लगातार आतंकी हमले हो रहे हैं, वहां की सुरक्षा को मजबूत करना और आम आदमी को डर से मुक्त करने का उस का प्रयास होगा.

आतंकी घटनाएं आज भी जम्मू-कश्मीर की शांति भंग किए हुए है. यहां आज भी जनजीवन सामान्य नहीं हुआ है. कई इलाकों में आज भी भय की स्थिति बनी हुई है. बीते कई महीनों से जम्मू कश्मीर में आतंकी हमले तेज हुए हैं. जिस में सेना के कई अधिकारी और जवान शहीद हो चुके हैं. आर्टिकल 370 हटाने के बाद मोदी सरकार दावा कर रही थी कि इस से घाटी में आतंकवाद पर शिकंजा कसेगा और शांति बहाल होगी. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. जो दहशतगर्द पहले कश्मीर तक सीमित थे और वहां आतंकी गतिविधियों को अंजाम देते थे, वे अब जम्मू तक घुस आए हैं. बीते महीनों में खासतौर से हिंदू बहुल जम्मू इलाके में ज्यादा हमले हुए हैं, जबकि यह इलाका बीते 3 दशकों की अलगाववादी हिंसा के दौरान मोटे तौर पर शांत रहा है.

अनंतनाग में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने लगातार हो रहे आतंकी हमलों पर चिंता जाहिर की है. चुनावी रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “जम्मू कश्मीर में आज हर जगह हमले हो रहे हैं, फिर भी मोदी झूठ बोलने में शर्माते नहीं हैं. अगर लोकसभा चुनाव में हमें 20 सीटें और मिल जातीं तो ये सारे लोग जेल में होते, क्योंकि ये जेल में रहने के ही लायक हैं. भाजपा भाषण तो बहुत देती है, लेकिन इन के काम और कथनी में बहुत अंतर होता है.”

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि अनंतनाग एक ऐतिहासिक महत्व रखने वाली जगह है. यहां मौजूद अमरनाजी की गुफा के दर्शन के लिए हजारों लोग आते हैं, क्योंकि यह धार्मिक एकता का स्थल है. आज भाजपा यहां के लोगों को धर्म के नाम पर बांटने की कोशिश कर रही है, लेकिन वो कभी कामयाब नहीं होंगे. हम सब एक हैं और हमेशा एक रहेंगे.

खड़गे को पूरी उम्मीद है कि इस बार जम्मू कश्मीर में कांग्रेस गठबंधन की सरकार बनेगी. भाजपा चाहे जितनी कोशिश कर ले, कांग्रेस और नैशनल कौन्फ्रेंस गठबंधन कमजोर नहीं होगा. उन्होंने कहा, “हम ने संसद में अपनी ताकत दिखाई है, यहां भी हम उसी ताकत के साथ आगे बढ़ेंगे और जम्मू कश्मीर को उस का विशेष राज्य का दर्जा वापस दिलाएंगे.”

पिताजी के वौलेट से कंडोम मिला है. मुझे उन से इस बारे में बात करनी चाहिए?

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सवाल –

मेरी शादी हो चुकी है और मेरे घर में में मेरी पत्नी, मेरी मां और मेरे पिताजी रहते थे. मेरी मां की कुछ समय पहले मौत हो गई थी जिस की वजह से मैं काफी परेशान रहने लगा था. मेरे पिताजी का स्वभाव काफी अच्छा है और मेरी मां के बाद उन्होंने मुझे संभाला है. उन्होंने मुझे काफी सपोर्ट किया और मुझे मेरी मां की कमी बिलकुल भी महसूस नहीं होने दी. मेरे पिताजी दिल के बहुत साफ हैं और वे सब की मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. वे घर के प्रति अपनी सारी जिम्मेदारियां भी निभाते हैं. मगर कुछ दिनों पहले मुझे उन के वौलेट से कंडोम मिला जिसे देख मैं अवाक रह गया हूं. मैं ने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरे पिताजी मेरी मां के बाद ऐसा भी कुछ कर सकते हैं. मैं यह सोचसोच कर काफी परेशान हूं.

जवाब –

हर इंसान की उम्र में एक ऐसा मोड़ आता है जहां वे खुद को बिलकुल अकेला महसूस करता है और जब वह साथ उन्हें घर में नहीं मिलता तो मजबूरन उस इंसान को बाहर जाना पड़ता है.

जैसाकि आप ने बताया कि वे अपनी सारी जिम्मेदारियां निभाते हैं और एक कंप्लीट फैमिली मैन हैं लेकिन कहीं न कहीं वे भी तो खुद को अकेला समझते होंगे.

आप अपनी पत्नी के साथ रहते हैं इसलिए आप को यह सब इतना शौकिंग लग रहा है लेकिन आप की मां के बाद कभी न कभी उन को भी तो ऐसा लगता होगा कि काश उन के साथ भी कोई हो इसलिए उन्होंने शायद बाहर किसी को देखा जो उन्हें अपना सा लगा हो और जिस के साथ उन की नजदीकियां बढ़ गई हों.

आज के समय सैक्स कोई हौआ नहीं है न ही कोई बुरी चीज है। सचाई तो यही है कि सैक्स हमारी शारीरिक जरूरत है जिसे हम चाह कर भी इग्नोर नहीं कर सकते.

आप को आगर यह बात इतना परेशान कर रही है तो आप इस बारे में अपने पिताजी से बात करें लेकिन ध्यान रहे कि इस बात का आप के अलावा किसी को पता नहीं चलना चाहिए खासतौर पर आप की पत्नी को. अगर आप किसी और को बताएंगे तो इस में आप के पिताजी की ही बदनामी होगी।

आप अपने पिताजी से उन के एक अच्छे दोस्त बन कर बात करें और उन्हें बताएं कि आप ने उन के वौलेट में कंडोम देखा है. उन्हें समझाएं कि अगर कोई है जो जिसे आप के पिताजी चाहते हैं तो वे उन्हें घर पर बुला कर आप से भी मिलवाएं. ऐसे बाहर अगर किसी और को पता चला तो बदनामी भी हो सकती है. हो सकता है कि वे आप का सपोर्ट पा कर काफी खुश हो जाएं.

अगर दुख की घड़ी में आप के पिताजी ने आप को सपोर्ट किया है तो अब आप की बारी है उन्हें सपोर्ट करने की.

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बौयफ्रैंड के साथ लिव इन में रहना चाहती हूं पर घर वाले नहीं मान रहे.

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सवाल –

मेरी उम्र 22 साल है और मैं अपने घर वालों से दूर बैंगलुरु में कानून की पढ़ाई कर रही हूं. मुझे यहां पढ़ाई करते करीब 6 महीने हो गए हैं. यहां मेरा एक बौयफ्रैंड भी है. हम दोनों एकदूसरे को बहुत प्यार करते हैं और एकदूसरे का अच्छे से खयाल भी रखते हैं. मैं यहां एक पीजी में रहती हूं और इस पीजी में मुझे मेरे पेरैंट्स ही छोड़ कर गए थे. मेरे घर वाले कभीकभी मुझ से मिलने भी आते रहते हैं. मेरा बौयफ्रैंड कई बार मुझे बोल चुका है कि हमें पीजी छोड़ एक फ्लैट रैंट पर ले लेना चाहिए और लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहिए. मुझे उस की बात बिलकुल गलत नहीं लगती क्योंकि हम दोनों एकदूसरे से बहुत प्यार करते हैं और एकदूसरे के बिना नहीं रह पाते. लिव इन रिलेशनशिप में रहने की बात जब मैं ने अपने घर वालों से कही तो वे बिलकुल नहीं माने और गुस्सा हो गए. उन के हिसाब से यह सब हमारी संस्कृति नहीं है. मुझे अपने घर वालों को मनाने के लिए क्या करना चाहिए?

जवाब –

हमें विदेश में रह रहे लोगों से काफी कुछ सीखना चाहिए क्योंकि वहां के लोग काफी जल्दी आत्मनिर्भर बन जाते हैं.

आप की बात करें तो आप के पेरैंट्स की सोच बिलकुल भी गलत नहीं है. उन्होंने आप के ऊपर विश्वास कर के आप को खुद से दूर भेजा है ताकि आप का कैरियर अच्छा बन पाए और आप लाइफ में काफी कुछ हासिल कर पाएं. जैसाकि आप ने बताया कि आप को गए हुए अभी 6 महीने ही हुए हैं तो ऐसे में आप के पेरैंट्स भी उस लड़के पर कैसे भरोसा कर सकते हैं कि वह लड़का गलत नहीं है और सच में आपषसे प्यार करता है.

लाइफ को ले कर हम से ज्यादा हमारे पेरैंट्स को अनुभव होता है क्योंकि इस उम्र में हम प्यार में सहीगलत का फैसला नहीं कर पाते. कल को अगर उस लड़के ने आप के साथ कुछ गलत किया तो आप किस को जिम्मेदार ठहराएंगे?

आप खुद सोचिए कि अगर आप अपने पेरैंट्स की मरजी के खिलाफ जा कर उस लड़के के साथ लिव इन रिलेशनशिप में आ जाएंगी और कुछ समय बाद वह आप के साथ बुरा बरताव करने लगे या फिर आप का फायदा उठा कर आप से ब्रेकअप कर ले तो आप किसे ब्लेम कर पाओगे?

ऐसे में बहतर यही होगा कि आप अपने घर वालों की बात मान कर पीजी में ही रहें और अपनी पढ़ाई पर फोकस करें. ऐसा नहीं है कि कोई आप को अपने बौयफ्रैंड को छोड़ने के लिए कह रहा है. आप बिलकुल उस लड़के के साथ रिलेशनशिप में रह सकती हैं और अगर वह सच में आप से प्यार करता है तो आप की इस सोच की कद्र करेगा और जब आप दोनों अपनेअपने पैरों पर खङे हो जाएं तब अपने घर वालों से बात कर एकदूसरे के साथ शादी कर साथ रह सकते हैं.

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