लेखिका- काव्या कटारे

"अरे सुमन जी, आज तो आप ने पूरे घर को ही खुशबू की चाशनी में डूबो दिया है. हम से तो रहा न गया, इसलिए चले आए आप की जादुई दुनिया में. वैसे, अब बता भी दीजिए कि हम्म... तो अपने लाल की ख्वाहिश पूरी की जा रही है, समोसे बनाए जा रहे हैं. वही तो हम कहें कि इतनी सुगंध किस पकवान की है जिस ने हमारी नाक को अपने जाल में फंसा लिया है."

"अच्छाअच्छा, ठीक है, बहुत मस्का लगा लिया. मैं जानती हूं यह सब आप मुझे खुश करने के लिए कह रहे हैं. वैसे भी, इन बूढ़े हाथों में अब वह बात नहीं जो सालों पहले हुआ करती थी, वरना जिस खुशबू ने दूसरे कमरे में जा कर आप की नाक को बंदी बना लिया है वह मेरे करीब तक न आई. अब तो इन हाथों में बस इतनी ही जान बची है कि वे मैदा को बेल कर, उस में आलू डाल कर तेल में तल सकें, स्वाद मिलाने का काम तो बहुत पहले ही बंद हो गया."

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मेरी पत्नी ने मेरी बातों का जवाब देते हुए उपरोक्त बात कही. उन की बातों में ऐसी मासूमियत थी कि मैं उन जवाब दिए बिना रह न पाया, "देखिए मिसेज सुमन चतुर्वेदी, आप को मेरी पत्नी की बुराई करने का कोई हक नहीं है. बेहतर यह होगा कि आप मेरे और मेरी पत्नी के बीच में न आएं. मैं ने अपनी पत्नी की बुराई करने का हक जब खुद को नहीं दिया तो आप को कैसे दे दूं."

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