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#coronavirus: जमातियों ने ही नहीं अफसरों तक ने छिपाई कोरोना की जानकरी

जमाती तो बदनाम है कि उन्होनें कोरोना छिपा कर समाज को बीमार कर दिया.लखनऊ की कनिका और मध्य प्रदेश की अधिकारी पल्लवी जैन ने भी ऐसी तरह से लापरवाही की.

पूरे देश मे इस बात पर हंगामा है कि जमातियों ने कोरोना की जानकारी छिपा कर देश भर में कोरोना को रोकने में मंसूबों पर पानी फेर दिया. पूरा देश एक स्वर में इस बात की आलोचना भी कर रहा है. जमातियों का यह वर्ग कम जानकार था ऐसे में वह उतने गुनाहगार नही है. जितने गुनहगार वह लोग है जो समझदार भी है और सरकार में मुख्य पदों पर बैठे भी है.
हनीमून से वापस आये अफसर ने नही दी जानकारी :
उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के रहने वाले आईएएस अधिकारी अनुपम मिश्रा केरल कैडर से है, वो अपनी पत्नी के साथ 10 दिन के टूर पर सिंगापुर मलेशिया गए थे.जब वह वापस आये तो एयर पोर्ट पर उनको सलाह दी गई कि वो 14 दिन अपने घर मे अकेले रहे.अनुपम मिश्रा अपने जिला सुल्तानपुर चले आये और खुद को कोरोनो से बचाने के लिए किसी नियम का पालन नही की. यह जानकारी एयरपोर्ट अथॉरिटी ने केरल सरकार को दी वँहा से उत्तर प्रदेश सरकार को पता चला.

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उत्तर प्रदेश में अनुपम मिश्रा की लोकेशन पहले कानपुर फिर सुल्तानपुर मिली। तब सुल्तानपुर जिले के अफसरों ने उनको एकांत में रहने के बारे में बताया. इसके बाद ही उनको घर पर रहने के लिए कहा गया.प्रशासन यह पता लगा रहा था कि उनके सम्पर्क में कितने लोग इस दौरान उनसे मिले और उनकी क्या हालत है. एक जिम्मेदार अफसर होते हुए इस तरह का काम ठीक नही था. केरल सरकार ने उनके खिलाफ कड़े कदम उठाने का फैसला भी किया.

एमपी की अफसर की लापरवाही
केरल कैडर के आईएएस अनुपम मिश्रा कोरोना के प्रति लापरवाही बरतने वाले अकेले अफसर नही है.मध्य प्रदेश सरकार की स्वास्थ्य विभाग में प्रमुख सचिव पल्लवी जैन का बेटा विदेश से आया. पल्लवी जैन ने यह बात छिपाई.पल्लवी जैन खुद कोरोना से तो पीड़ित हुई ही उनके सम्पर्क में आ कर 3 दर्जन से अधिक लोग कोरोना को लेकर जांच के घेरे में आ गए.

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जब देश के यह जिम्मेदार लोग इस तरह का कार्य कर सकते है तो जमाती औऱ दूसरे लोगो से हम कैसे यह उम्मीद कर की वह अपना इलाज कराएंगे या सरकार को इस बीमारी की जानकारी देगें.

अकेले रहने का डर सताता है
कोरोना में मर्ज को बताने में लोग डरते क्यो है ? इसकी सबसे प्रमुख वजह यह होती है कि लोगो को लगता है कि कोविड 19 पॉजिटिव होते ही उनको एक अलग थलग जगह पर घर परिवार से दूर रहना होगा.इस डर से वह कोरोना को बीमारी को नही बताते. डॉक्टरों का कहना है कि हमारे यँहा यह अघिक हो रहा है. विदेशों में लोग इसको छिपाते नही है. वह लोग पूरी जांच कराकर इसका इलाज करते है. हमारे देश मे जांच और बीमारी से बचने के दूसरे रास्ते चुने जाने लगते है.जिसकी वजह से मरीज को तलाश करना ही बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है. अगर मरीज समय से अस्पताल पहुच जाए तो बेहतर इलाज मिल जाता है औऱ लोग स्वस्थ हो कर अपने घर वापस पहुच जाते है. हमारे देश के लोग मानते है कि यह कैंडिल जलाने, ताली और थाली बजाने से कोरोना भाग जाएगा.

पुनर्विवाह: भाग 3

शालू, दुनिया में अकेली औरत का जीवन दूभर हो जाता है. मानसजी भले इंसान हैं तथा विधुर भी हैं. उन का हाथ थाम लेना. तुम सुरक्षित रहोगी तो मुझे शांति मिलेगी.’ मेरी चुप्पी पर अधीर हो कर बोले थे, ‘शालू, मान जाओ, हां कह दो, मेरे पास समय नहीं है.’

‘‘उन की पीड़ा, उन की अधीरता देख मैं ने भी स्वीकृति में सिर हिला दिया था. मेरी स्वीकृति मान उन्होंने हलकी मुसकराहट से कहा था, ‘मेरी शादी वाली अंगूठी मेरी सहमति मान, मानस को पहना देना. उस में लिखा ‘एम’ अब उन के लिए ही है.’ किंतु मैं भी आप की दोस्ती न खो बैठूं, इस संकोच में आप से कुछ कह न सकी,’’ वह हलके से मुसकरा दी. मानस इत्मीनान से बोले, ‘‘चलो, सुगंधा की जिद के कारण सभी बातें साफ हो गईं. मैं तो तुम्हें चाहने लगा हूं, यह स्वीकार करता हूं. तुम्हारा प्यार भी उस दिन अस्पताल में उजागर हो चुका है. मेरी  सुगंधा तो हमारी शादी के लिए तैयार बैठी है. तुम भी इस विषय में अपने बेटे से बात कर लो.’’ शालिनी ने उदासीनता से कहा, ‘‘मेरा बेटा तो सालों पहले ही पराया हो गया. अमेरिका क्या गया वहीं का हो कर रह गया. 4 साल से न आता है न हमारे आने पर सहमति व्यक्त करता है. उस की विदेशी पत्नी है तथा उस ने तो हमारा दिया नाम तक बदल दिया है. ‘‘मनोज के क्रियाकर्म हेतु बहुत कठिनाई से उस से संपर्क कर सकी थी. मात्र 3 दिन के लिए आया था. मानो संबंध जोड़ने नहीं बल्कि तोड़ने आया था. कह गया, ‘यों व्यर्थ मुझे आने के लिए परेशान न किया करें, मेरे पास व्यर्थ का समय नहीं है.’

‘‘अकेली मां कैसे रहेगी, न उस ने पूछा, न ही मैं ने बताया. अजनबी की तरह आया, परायों की तरह चला गया,’’ शालिनी की आंखें भीग आई थीं. मानस ने उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘शालू, जिस बेटे को तुम्हारी फिक्र नहीं है, जिस ने तुम से कोई संबंध, संपर्क नहीं रखा है, उस के लिए क्यों आंसू  बहाना. मैं तुम से एक वादा कर सकता हूं, हम दोनों एकदूसरे का इतना मजबूत सहारा बनेंगे कि हमें अन्य किसी सहारे की आवश्यकता ही नहीं होगी.’’ शालिनी अभी भी सिमटीसकुचाई सी बैठी थी. मानस ने उस की अंतर्दशा भांपते हुए कहा, ‘‘शालू, यह तुम भी जानती होगी तथा मैं भी समझता हूं कि इस उम्र में शादी शारीरिक आवश्यकता हेतु नहीं बल्कि मानसिक संतुष्टि के लिए की जाती है. शादी की आवश्यकता हर उम्र में होती है ताकि साथी से अपने दिल की बात की जा सके. एक साथी होने से जीवन में उमंगउत्साह बना रहता है.’’ फोन के जरिए सुगंधा सब बातें जान कर खुशी से उछलते हुए बोली, ‘‘पापा, इस रविवार यह शुभ कार्य कर लेते हैं, मैं और कुणाल इस शुक्रवार की रात में पहुंच रहे हैं.’’ रविवार के दिन कुछ निकटतम रिश्तेदार एवं पड़ोसियों के बीच मानस एवं शालिनी ने एकदूसरे को अंगूठी पहनाई, फूलमाला पहनाई तथा मानस ने शालिनी की सूनी मांग में सिंदूर सजा दिया.

सभी उपस्थित अतिथियों ने करतल ध्वनि से उत्साह एवं खुशी का प्रदर्शन किया. सभी ने सुगंधा की सोच एवं समझदारी की प्रसंशा करते हुए कहा कि मानस एवं शालिनी के पुनर्विवाह का प्रस्ताव रख, सुगंधा ने प्रशंसनीय कार्य किया है. सुगंधा ने घर पर ही छोटी सी पार्टी का आयोजन रखा था. सोमवार की पहली फ्लाइट से सुगंधा एवं कुणाल को लौट जाना था. शालिनी भावविभोर हो बोली, ‘‘अच्छा होता, बेटा कुछ दिन रुक जातीं.’’ सुगंधा ने अपनेपन से कहा, ‘‘मम्मी, अभी तो हम दोनों को जाना ही पड़ेगा, फाइनल रिपोर्ट का समय होने के कारण औफिस से छुट्टी मिलना संभव नहीं है.’’ ‘‘ठीक है, इस बार जाओ किंतु प्रौमिस करो, दीवाली पर आ कर जरूर कुछ दिन रहोगे,’’ शालिनी ने आदेशात्मक स्वर में कहा. सुगंधा को शालिनी का मां जैसा अधिकार जताना भला लगा. वह भावविभोर हो उस के गले लग गई. उसे आत्मसंतुष्टि का अनुभव हो रहा था. होता भी क्यों नहीं, उसे  मां जो मिल गई थी. दोनों के अपनत्त्वपूर्ण व्यवहार को देख कर मानस की आंखें भी सजल हो उठीं.

पुनर्विवाह: भाग 1

मनोज के गुजर जाने के बाद शालिनी नितांत तन्हा हो गई थी. नया शहर व उस शहर के लोग उसे अजनबी मालूम होते थे. पर वह मनोज की यादों के सहारे खुद को बदलने की असफल कोशिश करती रहती. शहर की उसी कालोनी के कोने वाले मकान में मानस रहते थे. उन्होंने ही जख्मी मनोज को अस्पताल पहुंचाने के लिए ऐंबुलैंस बुलवाई थी. मनोज की देखभाल में उन्होंने पूरा सहयोग दिया था. सो, मानस से शालिनी का परिचय पहचान में बदल गया था. मानस ने अपना कर्तव्य समझते हुए शालिनी को सामान्य जीवन गुजारने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा, ‘‘शालिनीजी, आप कल से फिर मौर्निंगवाक शुरू कर दीजिए, पहले मैं ने आप को अकसर पार्क में वाक करते हुए देखा है.’’

‘‘हां, पहले मैं नित्य मौर्निंगवाक पर जाती थी. मनोज जिम जाते थे और मुझे वाक पर भेजते थे. उन के बाद अब दिल ही नहीं करता,’’ उदास शालिनी ने कहा.

‘‘मैं आप की मनोदशा समझ सकता हूं. 4 साल पहले मैं भी अपनी पत्नी खो चुका हूं. जीवनसाथी के चले जाने से जो शून्य जीवन में आ जाता है उस से मैं अनभिज्ञ नहीं हूं. किंतु सामान्य जीवन के लिए खुद को तैयार करने के सिवा अन्य विकल्प नहीं होता है.’’ दो पल बाद वे फिर बोले, ‘‘मनोजजी को गुजरे हुए 3 महीने से ज्यादा हो चुके हैं. अब वे नहीं हैं, इसलिए आप को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है. आप खुद को सामान्य दिनचर्या के लिए तैयार कीजिए.’’

मानस ने अपना तर्क रखते हुए आगे कहा, ‘‘शालिनीजी, मैं आप को उपदेश नहीं दे रहा बल्कि अपना अनुभव बताना चाहता हूं. सच कहता हूं, पत्नी के गुजर जाने के बाद ऐसा महसूस होता था जैसे जीवन समाप्त हो गया, अब दुनिया में कुछ भी नहीं है मेरे लिए, किंतु ऐसा होता नहीं है. और ऐसा सोचना भी उचित नहीं है. किंतु मृत्यु तो साथ संभव नहीं है. जिस के हिस्से में जितनी सांसें हैं, वह उतना जी कर चला जाता है. जो रह जाता है उसे खुद को संभालना होता है. मैं ने उस विकट स्थिति में खुद को व्यस्त रखने के लिए मौर्निंगवाक शुरू की, फिर एक कोचिंग इंस्टिट्यूट जौइन कर लिया. रिटायर्ड प्रोफैसर हूं, सो पढ़ाने में दिल लगता ही है. इस के बाद भी काफी समय रहता है, उस में व्यस्त रहने के लिए घर पर ही कमजोर वर्ग के बच्चों को फ्री में ट्यूशन देता हूं तथा हफ्ते में 2 दिन सेवार्थ के लिए एक अनाथाश्रम में समय देता हूं. इस तरह के कार्यों से अत्यधिक आत्मसंतुष्टि तो मिलती ही है, साथ ही समय को फ्रूटफुल व्यतीत करने का संतोष भी प्राप्त होता है. आप से आग्रह करना चाहता हूं कि आप इन कार्यों में मुझे सहयोग दें.

‘‘अच्छा, अब मैं चलता हूं. कल सुबह कौलबैल दूंगा, निकल आइएगा, मौर्निंगवाक पर साथ चलेंगे, शुरुआत ऐसे ही कीजिए.’’

अन्य विकल्प न होने के कारण शालिनी ने सहमति में सिर हिला दिया. सच में मौर्निंगवाक की शुरुआत से वह एक ताजगी सी महसूस करने लगी. उस ने मानस के साथ कमजोर वर्ग के बच्चों को पढ़ाना व अनाथालय में समय देना भी प्रारंभ कर दिया. इन सब से उसे अद्भुत आत्मसंतुष्टि का अनुभव होता. दो दिनों से मानस मौर्निंगवाक के लिए नहीं आए. शालिनी असमंजस में पड़ गई, शायद मानस ने सोचा हो कि शुरुआत करवा दी, अब उसे खुद ही करना चाहिए. शालिनी पार्क तक चली गई. किंतु उसे  मानस वहां भी दिखाई नहीं दिए. जब तीसरे दिन भी वे नहीं आए तब उसे भय सा लगने लगा कि कहीं एक विधवा और एक विधुर के साथ का किसी ने उपहास बना, मानस को आहत तो नहीं कर दिया, कहीं उन के साथ कुछ अप्रिय तो घटित नहीं हो गया, ऐक्सिडैंट…? नहींनहीं, वे ठीक हैं, उन के साथ कुछ भी बुरा नहीं हुआ है. इन्हीं उलझनों में उस के कदम मानस के घर की ओर बढ़ चले. दरवाजे पर ताला पड़ा था. दो पल संकोचवश ठिठक गई, फिर वह उन के पड़ोसी अमरनाथ के घर पहुंच गई. अमरनाथ और उन की पत्नी ने उस का स्वागत करते हुए कहा, ‘‘आइए, शालिनीजी, कैसी हैं? हम लोग आप के पास आने की सोच रहे थे किंतु व्यस्तता के कारण समय न निकाल पाए.’’

शालिनी ने उन्हें धन्यवाद देते हुए पूछा, ‘‘आप के पड़ोसी मानसजी क्या बाहर गए हुए हैं? उन के घर पर…’’

‘‘नहींनहीं, उन्हें डिहाइड्रेशन हो गया था. वे अस्पताल में हैं. हम उन से कल शाम मिल कर आए हैं. अब वे ठीक हैं,’’ अमरनाथजी ने बताया. शालिनी सीधे अस्पताल चल दी. विजिटिंग आवर होने के कारण वह मानस के समक्ष घबराई सी पहुंच गई, ‘‘कैसे हैं आप, क्या हो गया, कैसे हो गया, आप ने मुझे इतना पराया समझा जो अपनी तबीयत खराब होने की सूचना तक नहीं दी. मैं पागलों सी परेशान हूं. न दिन में चैन है न रात में नींद.’’

‘‘ओह शालू, इतना मत परेशान हो, मुझे माफ कर दो. मुझे तुम्हें खबर करनी चाहिए थी किंतु तुम्हें मेरा हाल कैसे मालूम हुआ?’’ मानस ने आश्चर्य से कहा.

‘‘आज मैं हैरानपरेशान अमरनाथजी के घर पहुंच गई. वहीं से सब जान कर सीधी चली आ रही हूं. आप बताइए, अब आप कैसे हैं, तथा यह हाल कैसे हुआ?’’ शालिनी की आंखें सजल हो उठीं. मानस भी भावुक हो उठे, उन्होंने शालिनी का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘प्लीज, परेशान मत हो, मैं एकदम ठीक हूं. उस दिन रामरतन रात में खाना बनाने न आ सका, साढ़े 8 बजे के बाद फोन करता है, ‘सर, आज नहीं आ सकूंगा, पत्नी को बहुत चक्कर आ रहे हैं.’ मैं ने कह दिया कि ठीक है, तुम पत्नी को डाक्टर को दिखाओ, अभी मैं ही कुछ बना लेता हूं. सुबह सब ठीक रहे तो जरूर आ जाना.

‘‘मैं ने कह तो दिया, किंतु कुछ बना न सका. सो, नुक्कड़ की दुकान से पकौड़े ले आया, वही हजम नहीं हुए बस, रात से दस्त और उल्टियां शुरू हो गईं.’’ ‘‘मनजी, आप मुझे कितना पराया समझते हैं. मेरे घर पर, खाना खा सकते थे, किंतु नहीं, आप नुक्कड़ की दुकान पर पकौड़े लेने चल दिए, जबकि आप के घर से दुकान की अपेक्षा मेरा घर करीब है. सिर्फ आप बात बनाते हैं कि तुम्हें अपनत्व के कारण समझाता हूं कि स्वयं को संभालो और सामान्य दिनचर्या का पालन करो. मैं ने आज आप का अपनापन देख लिया.’’ ‘‘सौरी शालू, मुझे माफ कर दो,’’ मानस ने अपने कान पकड़ते हुए कहा, ‘‘वैसे अच्छा ही हुआ, तुम्हें खबर कर देता तो तुम्हारा यह रूप कैसे देख पाता, तुम्हें मेरी इतनी फिक्र है, यह तो जान सका.’’

शालिनी ने हौले से मानस की बांह में धौल जमाते हुए अपनी आंखें पोंछ लीं तथा मुसकरा दी. भावनाओं की आंधी सारी औपचारिकताएं उड़ा ले गई. मानस शालिनी को ‘शालू’ कह बैठे, वही हाल शालिनी का था, वह  ‘मानसजी’ की जगह ‘मनजी’ बोल गई. भावनाओं के ज्वार में मानस भूल ही गए कि उन के कमरे में उन की बेटी सुगंधा भी मौजूद है. शालिनी तो उस की उपस्थिति से अनभिज्ञ थी, अतिभावुकता में उसे मानस के सिवा कुछ दिखाई ही नहीं दिया. एकाएक मानस की नजरें सुगंधा से टकराईं. संकोचवश शालिनी का हाथ छोड़ते हुए उन्होंने परिचय करवाते हुए कहा, ‘‘शालिनी, इस से मिलो, यह मेरी प्यारी बेटी सुगंधा है. यह आई तो औफिस के काम से थी किंतु मेरी तीमारदारी में लग गई.’’

शालिनी को सुगंधा की उपस्थिति का आभास होते ही उस की हालत तो रंगे हाथों पकड़े गए चोर सी हो गई. वह सुगंधा से दोचार औपचारिक बातें कर झटपट विदा हो ली. अस्पताल से लौटते समय शालिनी अत्यधिक सकुचाहट में धंसी जा रही थी. वह भावावेश में क्याक्या बोल गई, न जाने मानस क्या सोचते होंगे. सुगंधा का खयाल आते ही उस की सकुचाहट बढ़ जाती, न जाने वह बच्ची क्या सोचती होगी, कैसे उस का ध्यान सुगंधा पर नहीं गया, वह स्वयं को समझाती. मानस के लिए व्यथित हो कर ही तो वह अस्पताल पहुंच गई थी, भावनाओं पर उस का नियंत्रण नहीं था. इसलिए जो मन में था, जबान पर आ गया. मानस घर आ गए थे. अब वे पूरी तरह स्वस्थ थे. सुगंधा को कल लौट जाना था. सुगंधा ने मानस एवं शालिनी के  परस्पर व्यवहार को अस्पताल में देखा था. इतना तो वह समझ चुकी थी कि दोनों के मध्य अपनत्व पप चुका है, बात जाननेसमझने की इच्छा से उस ने बात छेड़ते हुए कहा, ‘‘पापा, शालिनी आंटी इस कालोनी में नई आई हैं, मैं ने उन्हें पहले कभी नहीं देखा?’’

मेरी शादी को 3 साल हो चुके हैं, पति रोजाना संबंध बनाने के लिए मारपीट करते हैं, क्या करूं?

सवाल

मेरी शादी को 3 साल हो चुके हैं. पति रोजाना मुझ से संबंध बनाते हैं. मना करने पर वे मारपीट कर के जबरन संबंध बनाते हैं. मैं क्या करूं?

जवाब

आप के पति कोई गुनाह नहीं कर रहे हैं, बस उन का तरीका गलत है. यही काम वे प्यार से भी कर सकते हैं. आप को भी अगर कोई तकलीफ होती है, तो उस बारे में पति को तसल्ली से बता सकती हैं. जब आप इतनी गहराई से जुड़ी हैं, तो बात करने में झिझकना नहीं चाहिए. वैसे, पति का हक है आप के साथ संबंध बनाना, लिहाजा मना न करें.

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

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मैं जब भी पति के साथ शारीरिक संबंध बनाती हूं तो जल्दी थक जाती हूं….

सवाल
मेरी समस्या मेरे और पति के शारीरिक संबंधों को ले कर है. मैं जब भी पति के साथ शारीरिक संबंध बनाती हूं तो जल्दी थक जाती हूं. शारीरिक संबंधों का पूरी तरह आनंद नहीं ले पाती क्योंकि इस दौरान मुझे दर्द होता है.

जवाब
कई बार जब महिला शारीरिक संबंध बनाने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होती तब उस के साथ ऐसी ही समस्या पेश आती है जैसी आप के साथ आ रही है. इस के अलावा वैजाइनल ड्राइनैस भी सैक्स संबंधों के दौरान दर्द का कारण बनता है, इस के लिए आप चाहें तो किसी स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क कर सकती हैं.

सैक्स संबंध को सुखद बनाने के लिए फोरप्ले (चुंबन, सहलाना आदि) जैसी क्रियाएं अवश्य करें. जिस तरह संबंधों को प्रगाढ़ बनाने के लिए सैक्स जरूरी होता है, ठीक उसी तरह फोरप्ले भी जरूरी होता है.

फोरप्ले सैक्स से पहले की कुछ ऐसी क्रियाएं हैं जिन से सैक्स का न केवल खुल कर आनंद लिया जा सकता है बल्कि सैक्स के मजे को दोगुना भी किया जा सकता है. फोरप्ले न केवल सैक्स संबंधों का जरूरी हिस्सा होता है बल्कि इस से आप के साथी की भी सैक्स में रुचि बढ़ती है. यदि आप फोरप्ले करते हैं तो आप अधिक समय तक सैक्स का आनंद उठा पाएंगे. फोरप्ले मूड को तरोताजा करता है, शरीर को रोमांच से भर देता है. फोरप्ले पतिपत्नी को सैक्स के लिए तैयार करता है.

पुनर्विवाह: भाग 2

मानस शांत, गहन चिंता में बैठ गए. सुगंधा ने ही उन्हें टटोलते हुए कहा, ‘‘क्या बात है पापा, नाराज हो गए?’’ ‘‘नहीं, बेटा, तू तो मुझे, मेरे हित में ही समझा रही है किंतु मुझे भय है. शालिनी मुझे स्वार्थी समझ मुझ से दोस्ती न तोड़ बैठे. उस का अलगाव मैं सहन न कर सकूंगा,’’ मानस ने धीरेधीरे कहा. ‘‘पापा, वे आप से प्यार करती हैं किंतु नारीसुलभ सकुचाहट तो स्वाभाविक है न, पहल तो आप को ही करनी होगी.’’ ‘‘मेरी बेटी, इतनी बड़ी हो गई मुझे पता ही नहीं चला,’’ मानस के इस वाक्य पर दोनों ही मुसकरा दिए. सुगंधा लौट गई, किंतु मानस को समझा कर ही नहीं धमका कर गई कि वे जल्दी से जल्दी शालिनी से शादी की बात करेंगे वरना वह स्वयं यह जिम्मेदारी पूरी करेगी. मौर्निंगवाक पर मानस एवं शालिनी सुगंधा के संबंध में ही बातें करते रहे. मानस बोले, ‘‘5 वर्ष हो गए सुगंधा की शादी हुए. जब भी जाती है मन भारी हो जाता है. उस के आने से सारा घर गुलजार हो जाता है, जाती है तो अजीब सूनापन छोड़ जाती है.’’ शालिनी ने कहा, ‘‘बड़ी प्यारी है सुगंधा. खूबसूरत होने के साथसाथ समझदार भी, उस की आंखें तो विशेष सुंदर हैं, अपने में एक दुनिया समेटे हुए सी मालूम होती है वह.’’ मानस खुश होते हुए बोले, ‘‘वह अपनी मां की कार्बनकौपी है. मैं शुभि को अद्भुत महिला कहता था, रूप एवं गुण का अद्भुत मेल था उस के व्यक्तित्व में.’’

शालिनी सुगंधा के साथ विशेष जुड़ाव महसूस करने लगी थी. उस ने सुगंधा के पति, उस की ससुराल के संबंध में विस्तृत जानकारी ली तथा अत्यधिक प्रसन्न हुई कि बहुत समझदार एवं संपन्न परिवार है. मौर्निंगवाक से लौटते समय शालिनी का घर पहले आता है. रोज ही मानस उसे उस के घर तक छोड़ते हुए अपने घर की ओर बढ़ जाते थे, आज शालिनी ने आग्रह करते हुए कहा, ‘‘मनजी, आज आप ब्रेकफास्ट एवं लंच मेरे साथ ही लीजिए. आज ही सुगंधा लौट कर गई है, आप को अपने घर में आज सूनापन ज्यादा महसूस होगा.’’ मानस जल्दी ही मान गए. उन्होंने सोचा, इस बहाने शालिनी से अपने दिल की बात कर सकेंगे. काफी उलझन के बाद मानस ने शालिनी से साफसाफ कहना उचित समझा, ‘‘शालू, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं किंतु तुम से एक वादा चाहता हूं. यदि तुम्हें मेरी बात आपत्तिजनक लगे तो साफ इनकार कर देना किंतु नाराजगी से दोस्ती खत्म नहीं करना.’’ शालिनी ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, ‘‘ऐसा क्यों कह रहे हैं, आप की दोस्ती मेरे जीवन का सहारा है, मनजी. खैर, चलिए वादा रहा.’’ ‘‘शालू, मैं तुम से शादी करना चाहता हूं, क्या मेरा सहारा बनोगी?’’ मानस ने शालिनी की आंखों में देखते हुए कहा. शालिनी ने नजरें झुका लीं और धीरे से बोली, ‘‘यह क्या कह बैठे, मनजी, भला यह भी कोई उम्र है शादी रचाने की.’’ ‘‘देखो शालू, हम दोनों अपनेअपने जीवनसाथी को खो कर जीवन की सांध्यबेला में अनायास ही मिल गए हैं. हम दोनों ही तन्हा हैं. हम एकदूसरे का सहारा बन फिर से जीवन में आनंद एवं उल्लास भर सकते हैं. जीवन के उतारचढ़ाव में परस्पर सहयोग दे सकते हैं.

‘‘मैं अपनी पत्नी शुभि को बहुत चाहता था, किंतु बीमारी ने उसे मुझ से छीन लिया. मेरी शुभि भी मुझे बहुत चाहती थी. अपनी बीमारी के संघर्ष के दौरान भी उसे अपनी जिंदगी से ज्यादा मेरे जीवन की फिक्र थी. एक दिन मुझ से बोली, ‘मनजी, मेरा आप का साथ इतना ही था. आप को अभी लंबा सफर तय करना है. अकेले कठिन लगेगा. मेरे बाद अवश्य योग्य जीवनसाथी ढूंढ़ लीजिएगा,’ अपनी शादी वाली अंगूठी मेरी हथेली पर रख कर बोली, ‘इसे मेरी तरफ से स्नेहस्वरूप आप प्यार से उसे पहना देना. मैं यह सोच कर खुश हो लूंगी कि मेरे मनजी के साथ उन की फिक्र करने वाली कोई है.’’’ मानस, अपनी पत्नी को याद कर बेहद गंभीर हो गए थे, दो पल रुक कर स्वयं को संयत कर बोले, ‘‘मैं ने तुम्हें एवं मनोज को भी साथसाथ देखा था, गृहप्रवेश के अवसर पर तथा अस्पताल के दुखद मौके पर. तुम दोनों का प्यार स्पष्टत: परिलक्षित था. मनोज को भी अपनी जिंदगी से ज्यादा तुम्हारे जीवन की चिंता थी. वे सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी ही चिंता व्यक्त करते थे. मैं आईसीयू में उन से मिलने जब भी जाता, सिर्फ तुम्हारे संबंध में चिंता व्यक्त करते थे. उस दिन उन्हें आभास हो चला था कि वे नहीं बचेंगे. अत्यधिक कष्ट में बोले थे, ‘दोस्त, मैं तुम्हें अकसर पुनर्विवाह की सलाह देता था, और तुम हंस कर टाल जाते थे. किंतु अब तुम से वचन चाहता हूं, मेरी शालू को अपना लेना. तुम्हारे साथ वह सुरक्षित है, यह सोच मुझे शांति मिलेगी. हम ने परिवारों के विरोध के बावजूद अंतर्जातीय विवाह किया था. सभी संबंध खत्म हो गए थे. मेरे बाद एकदम अकेली हो जाएगी मेरी शालू. दोस्त, मेरा आग्रह स्वीकार कर लो, मेरे पास समय नहीं है.’

‘‘उन की दर्द भरी याचना पर मैं हां तो न कर सका था किंतु स्वीकृति हेतु सिर अवश्य हिला दिया था. मेरी सहमति जान कर उस कष्ट एवं दर्द में भी उन के चेहरे पर एक स्मिति छा गई थी किंतु शालिनी, तुम्हारी नाराजगी के डर से मैं तुम से कहने का साहस न जुटा सका था. ‘‘सच कहता हूं शालू, सांत्वना और सहयोग ने मनोज के आग्रह के बाद कब प्यार का रूप ले लिया, इस का आभास मुझे भी नहीं हुआ. किंतु मेरे प्यार की सुगंध मेरी बेटी सुगंधा ने महसूस कर ली है,’’ कहते हुए मानस धीरे से मुसकरा दिए. शालिनी नीची नजरें किए हुए शांत बैठी थी. मानस ने ही कहा, ‘‘शालू, मैं ने तुम्हें मनोजजी की, सुगंधा की एवं अपनी भावनाएं बता दी हैं. अंतिम निर्णय तुम ही करोगी. तुम्हारी सहमति के बिना हम कुछ भी नहीं करेंगे.’’ शालिनी ने आहिस्ताअहिस्ता कहना शुरू किया, ‘‘मनोज ने जैसा आग्रह आप से किया था वैसी ही इच्छा मुझ से भी व्यक्त की थी. मुझ से कहा था, ‘

coronavirus: नया रूप लेकर 102 साल पुराना दर्द

लेखक- नीरज त्यागी

आज पूरी दुनिया कोरोना वायरस से लड़ रही है.ये वायरस लगभग सभी देशों में फ़ैल चूका है.पूरे दुनिया में कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है.कोरोना वायरस कि इस महामारी ने लोगों को 1918 के स्पेनिश फ्लू की याद दिला दी है.उस दौर में जिस तेजी से ये संक्रमण फैला था और जितनी मौतें हुई थी उससे पूरे दुनिया को हिला दिया था.102 साल पहले पूरी दुनिया में स्पेनिश फ्लू के कहर से एक तिहाई आबादी इसकी चपेट में आ गयी थी.कम से कम पाँच से दस करोड़ लोगों की मौत इसकी वजह से हुई थी.रिपोर्टस के मुताबिक इस फ्लू के कारण भारत में कम से कम 1 करोड़ 55 लाख लोगों ने जान गवाईं थी.

स्पेनिश फ्लू की वजह से करीब पौने दो करोड़ भारतीयों की मौत हुई है जो विश्व युद्ध में मारे गए लोगों की तुलना में ज्यादा है. उस वक्त भारत ने अपनी आबादी का छह फीसदी हिस्सा इस बीमारी में खो दिया था.मरने वालों में ज्यादातर महिलाएँ थीं.ऐसा इसलिए हुआ था क्योंकि महिलाएँ बड़े पैमाने पर कुपोषण का शिकार थी.वो अपेक्षाकृत अधिक अस्वास्थ्यकर माहौल में रहने को मजबूर थी.इसके अलावा नर्सिंग के काम में भी वो सक्रिय थी.

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ऐसा माना जाता है कि इस महामारी से दुनिया की एक तिहाई आबादी प्रभावित हुई थी और करीब पाँच से दस करोड़ लोगों की मौत हो गई थी.गांधी जी और उनके सहयोगी किस्मत के धनी थे कि वो सब बच गए. हिंदी के मशूहर लेखक और कवि सुर्यकांत त्रिपाठी निराला की बीवी और घर के कई दूसरे सदस्य इस बीमारी की भेंट चढ़ गए थे.

उन्होंने बाद में इस सब घटना चक्र पर लिखा भी था *कि मेरा परिवार पलक झपकते ही मेरी आँखों से ओझल हो गया था”* वो उस समय के हालात के बारे में वर्णन करते हुए कहते हैं कि *गंगा नदी शवों से पट गई थी. चारों तरफ इतने सारे शव थे कि उन्हें जलाने के लिए लकड़ी कम पड़ रही थी* . ये हालात तब और खराब हो गए थे जब खराब मानसून की वजह से सुखा पड़ गया और आकाल जैसी स्थिति बन गई.इसकी वजह से बहुत से लोगो की प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई थी..शहरों में भीड़ बढ़ने लगी।इससे बीमार पड़ने वालों की संख्या और बढ़ गई.

बॉम्बे शहर इस बीमारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ था.उस वक्त मौजूद चिकित्सकीय व्यवस्थाएं आज की तुलना में और भी कम थीं।हालांकि इलाज तो आज भी कोरोना का नहीं है लेकिन वैज्ञानिक कम से कम कोरोना वायरस की जीन मैपिंग करने में कामयाब जरूर हो पाए हैं. इस आधार पर वैज्ञानिकों ने टीका बनाने का वादा भी किया है.1918 में जब फ्लू फैला था.तब एंटीबायोटिक का चलन इतने बड़े पैमाने पर नहीं शुरू हुआ था. इतने सारे मेडिकल उपकरण भी मौजूद नहीं थे जो गंभीर रूप से बीमार लोगों का इलाज कर सके. पश्चिमी दवाओं का इस्तेमाल भी भारत की एक बड़ी आबादी नही किया करती थी और ज्यादातर लोग देसी इलाज पर ही यकीन करते थे.

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इन दोनों ही महामारियों के फैलने के बीच भले ही एक सदी का फासला हो लेकिन इन दोनों के बीच कई समानताएं दिखती हैं. संभव है कि हम बहुत सारी जरूरी चीजें उस फ्लू के अनुभव से सीख सकते हैं.उस समय भी आज की तरह ही बार-बार हाथ धोने के लिए लोगों को समझाया गया था और एक दूसरे से उचित दूरी  बनाकर ही रहने के लिए कहा गया था.सोशल डिस्टेंसिंग को उस समय भी बहुत अहम माना गया था और आज ही की तरह लगभग लॉक डाउन की स्थिति उस समय भी थी इतने सालों बाद भी वही स्थिति वापस हो गई है.

स्पेनिश फ्लू की चपेट में आए मरीजों को बुखार, हड्डियों में दर्द, आंखों में दर्द जैसी शिकायत थीं. इसकी वजह से महज कुछ दिन में मुंबई में कई लोगों की जान चली गई. एक अनुमान के मुताबिक जुलाई 1918 तक 1600 लोगों की मौत स्पैनिश फ्लू से हो चुकी थी. केवल मुंबई इससे प्रभावित नहीं हुआ था.रेलवे लाइन शुरू होने की वजह से देश के दूसरे हिस्सों में भी ये बीमारी तेजी से फैल गई.ग्रामीण इलाकों से ज्यादा शहरों में इसका प्रभाव दिखाई दिया.

बॉम्बे में तेजी से फैलने के बाद इस वायरस ने उत्तर और पूर्व में सबसे ज्यादा तांडव मचाया.ऐसा माना जाता है कि दुनियाभर में इस बीमारी से मरने वालों में पांचवां हिस्सा भारत का था.बाद में असम में इस गंभीर फ्लू को लेकर एक इंजेक्शन तैयार किया गया, जिससे कथित तौर पर हजारों मरीजों का टीकाकरण किया गया. जिसकी वजह से इस बीमारी को रोकने में कुछ कामयाबी मिली.

हालांकि बाद में कुछ बाते सामने आईसन 2012 की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के जिन हिस्सो में अंग्रेजो की ज्यादा बसावत थी.उन हिस्सों में इस बीमारी ने ज्यादा कहर मचाया था.इन हिस्सो में भारतीय इस महामारी में सबसे अधिक मारे गए थे.अब एक बार फिर से कोरोना के बढ़ते कहर की वजह से लोग बेहद आशंकित हैं.फिलहाल सरकार और दूसरी संस्थाएं लगातार लोगों को इस गंभीर वायरस से बचाव को लेकर कोशिश में जुटी हुई हैं.

आखिरकार गैर सरकारी संगठनों और स्वयं सेवी समूहों ने आगे बढ़कर मोर्चा संभाला था. उन्होंने छोटे-छोटे समूहों में कैंप बना कर लोगों की सहायता करनी शुरू की. पैसे इकट्ठा किए, कपड़े और दवाइयां बांटी है।नागरिक समूहों ने मिलकर कमिटियां बनाईं.एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, “भारत के इतिहास में पहली बार शायद ऐसा हुआ था जब पढ़े-लिखे लोग और समृद्ध तबके के लोग गरीबों की मदद करने के लिए इतनी बड़ी संख्या में सामने आए थे.

आज की तारीख में जब फिर एक बार ऐसी ही एक मुसीबत सामने मुंह खोले खड़ी है. तब सरकार चुस्ती के साथ इसकी रोकथाम में लगी हुई है लेकिन एक सदी पहले जब ऐसी ही मुसीबत सामने आई थी तब भी नागरिक समाज ने बड़ी भूमिका निभाई थी.जैसे-जैसे कोरोना वायरस के मामले बढ़ते जा रहे हैं, इस पहलू को भी हमें ध्यान में रखना होगा और सभी लोगो को मिलकर इस बीमारी की लड़ाई में आगे बढ़ना होगा.

कान

कान न हुए कचरापेटी हो गई. जो आया उडे़ल कर चला गया जमाने भर की गंदगी और हम ने खुली छूट दे रखी है कानों को. आजकल हमारा देखना भी कानों से ही होता है. लोग कान में आ कर धीरे से फुसफुसा जाते हैं और हमें लगता है कि यह हमारा खास, घनिष्ठ और विश्वसनीय है जो इतनी महत्त्वपूर्ण बातें हमें बता कर चला गया. कान से सुन कर हमें इतना विश्वास हो जाता है कि अब हमारा मानना हो गया है कि आंखें धोखा खा सकती हैं लेकिन कान नहीं. कानों से हमें खबरें मिलती हैं कि फलां की लड़की फलां के लड़के के साथ भाग गई. फलां की पत्नी का फलां के साथ चक्कर है. हम ऐसी चटपटी मसालेदार बातें सुन कर आत्मसुख का अनुभव करते हैं. अफवाहें कानों से ही बढ़ती हैं, फैलती हैं, दावानल का रूप लेती हैं. किसी ने कहा, ‘दंगा हो गया.’ कानों ने विश्वास किया. यही हम ने दूसरे के कान में कहा. उस ने तीसरे के कान में. एक कान से दूसरे, फिर तीसरे तक होती हुई बातें कानोंकान चारों तरफ फैल जाती हैं. हमारे कान उस सार्वजनिक शौचालय की तरह हो गए हैं जिस में आ कर कोई भी निवृत्त हो कर, हलका हो कर, गंदगी उड़ेल कर चला जाता है.

हम एक के कान में कहते हैं, देख, तुझे अपना समझ कर बता रहे हैं. किसी और तक बात नहीं पहुंचनी चाहिए. वह कसम उठा कर कहता है कि भरोसा रखो, नहीं पहुंचेगी. लेकिन तुरंत वह अपने किसी परिचित के कान में फुसफुस करता है और उसे भी यही हिदायत देता है. वह भी पहले वाले की तरह सौगंध खा कर कहता है, नहीं पहुंचेगी और तुरंत किसी नए कान की तलाश में लग जाता है. कानों का काम है सुनना लेकिन हम कानों को क्याक्या सुनाते रहते हैं, जो नहीं सुनाना चाहिए. जहां कान बंद कर लेने चाहिए वहां भी हम कान खड़े कर लेते हैं. कानों को हम ने ऐसे शौक दे रखे हैं कि जब तक वे भड़काऊ बयान, शोर भरा संगीत, गुप्त बातें, रहस्य की बातें और अश्लील वार्त्ता सुन न लें, तृप्त ही नहीं होते. कुछ कान बेचारे ऐसे हैं जो धमाकों की आवाजें, चीखपुकार सुन कर बहरे हो गए हैं. उन के लिए हम बहरे शब्द का प्रयोग करते हैं यानी यदि आप के कान हमारी बात, हमारी बकवास, हमारे प्रवचन, हमारे बोलवचन न सुनें तो कहते हैं कि तुम बहरे हो. जैसे आंख के अंधे वैसे कान के बहरे. कुछ कान बड़े संवेदनशील होते हैं. वे दूसरों की व्यथाकथा सुन कर द्रवित हो जाते हैं. कुछ कान जासूस की तरह होते हैं. कहीं खुसुरफुसुर सुनी और फौरन खड़े हो जाते हैं.

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साधुसंत तो कानों के विषय में कहते हैं कि यदि आप ने हमारे श्रीमुख से हरिकथा नहीं सुनी तो आप के कान कान नहीं, सांप के बिल हैं. कुछ कान लापरवाह किस्म के होते हैं. वे एक से सुन कर दूसरे से निकाल देते हैं. आज के जमाने में आप का अंधा या लंगड़ा होना चल जाएगा लेकिन कानों का ठीकठाक होना बहुत जरूरी है. आजकल सुनने के साथसाथ देखना भी कानों से हो रहा है. आंख में दोष हो सकता है लेकिन कान पर हमें पूरा विश्वास है क्योंकि हमारे कानों ने सुना है. किस से सुना है, क्या सुना है? ये महत्त्वपूर्ण नहीं है. हमारे कानों ने सुना है, यह ही काफी है. हम उन कानों तक भी अपनी बात पहुंचाने का प्रयास करते हैं जो कान ऊंचा सुनते हैं. भले ही उन्हें सुनाने के चक्कर में चार लोग और सुन लें. लेकिन हमारा धर्म हो गया है कि जो सुनें वह दूसरे को सुना दें. तथाकथित ईश्वर के विषय में कहा गया है कि बिना कान के सुनते हैं. सुनने के लिए कान का होना आवश्यक है और कान ठीकठाक सुनें, इस के लिए बीचबीच में तेल आदि डालते रहना चाहिए.

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कुछ लोगों के ऐसे भी कान होते हैं जो सुनना पसंद नहीं करते. ऐसे लोग कहते हैं, कान पक गए हैं सुनतेसुनते. ऐसे कान किस काम के जिन्हें सुनने में तकलीफ हो. कान तो वे जो सदा सुनने को व्याकुल हों. हमारे पास 1 नहीं 2 कान हैं. इस का अर्थ यही हुआ कि प्रकृति ने कान का महत्त्व समझ कर हमें 1 नहीं 2 कान दिए हैं. ऐसे में कान की विश्वसनीयता और उपयोगिता दोनों बढ़ जाती हैं. कान का अपना एक निजी गुण यह है कि ये बुराई सुनने में खुशी से खड़कने लगते हैं. जहां किसी की निंदा सुनी, समझो कान का होना सार्थक हो गया. हमारे कान ऊलजलूल, बकवास, निंदा, शोरशराबा, अफवाहें, समाचार, खबरें सब सुनने में दक्ष हैं लेकिन कुछ बातें कानों को बिलकुल रास नहीं आतीं, जैसे मांबाप की सलाहसमझाइश और गुणी लोगों का सत्संग-प्रवचन. हमारे कान नाराज हो कर एक से सुन कर दूसरे से निकाल देते हैं. वैसे तो सुनते ही नहीं. 2 कानों का फायदा यही है कि बात अच्छी न लगे तो एक से सुनो, दूसरे से निकाल दो. आदमी कानोंसुनी पर इतना भरोसा करने लगा है कि वह प्रत्यक्ष देखना जरूरी नहीं समझता. कौन जा कर देख कर समय बरबाद करे. कानों तक बात पहुंच गई, समझो देख लिया. स्त्रियां तो कानोंसुनी आंखों देखी एक बराबर मानती हैं. सुनसुन कर ही वे इतना बड़ा झमेला खड़ा कर देती हैं कि परिवार बिखरने लगते हैं. घर में द्वेष फैलने लगता है. तो फिर कचराघर हैं न कान. आप के क्या हैं?

#coronavirus: बंटाईदार और ठेकेदार भी खरीद केंद्रों पर बेच सकेंगे गेहूं

झांसी: बंटाई और ठेके पर खेती करने वाले किसान भी खरीद केंद्रों पर अपना गेहूं बेच सकेंगे. बंटाईदार को किसान का सहमतिपत्र और ठेकेदार को लेखपाल की संस्तुति के बाद ही खरीद केंद्र पर गेहूं बेचने का हक मिलेगा. इस बार गेहूं खरीद की राशि किसान, बंटाईदारों और ठेकेदारों के खाते में आरटीजीएस से नहीं, बल्कि पीएफएमएस से पहुंचेगी.

जिले में गेहूं खरीद के लिए प्रशासन ने तैयारियां शुरू कर दी हैं. 15 अप्रैल के बाद 57 खरीद केंद्रों को अनुमोदित किया जा चुका है. लेकिन सरकार ने बंटाई और ठेके पर गेहूं की बोआई करने वालों को भी गेहूं खरीद करने का अधिकार दिया है. इस के लिए बंटाईदार और ठेकेदार को किसान और लेखपाल से संस्तुति करानी होगी. वहीं इस के साथ ही बंटाईदार और ठेकेदार को वैबसाइट पर पंजीकरण भी कराना होगा.

नियमों के मुताबिक, ठेके पर जमीन लेने वाले को रजिस्ट्रार के यहां भी अनुबंध कराना होगा. नियम यह भी है कि यदि कोई किसान 100 क्विंटल से अधिक गेहूं बेचता है, तो उसे एसडीएम से अनुमति लेनी होगी.

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जिला खाद्य विपणन अधिकारी अनूप कुमार ने बताया कि गेहूं खरीद के कुछ नियमों में बदलाव किया गया है. 15 अप्रैल के बाद गेहूं खरीद की जाएगी. इस बार गेहूं का समर्थन मूल्य 1,940 रुपए है.

सोशल मीडिया से किसानों को दी जाएगी जानकारी

बक्सर: जिले के किसानों को सभी कृषि योजनाओं की जानकारी सोशल मीडिया और रजिस्र्टर्ड मोबाइल फोनों के जरीए दी जाएगी.

इस बारे में कृषि विभाग ने तमाम निर्देश जारी किए हैं. इन निर्देशों में कहा गया है कि किसानों के बीच कृषि विभाग द्वारा किए जा रहे कामों की जानकारी समयसमय पहुंचाना बेहद जरूरी है, इसलिए कृषि विभाग के साथसाथ पशु व मत्स्य संसाधन विभाग द्वारा किए जा रहे कामों की जानकारी व्हाट्सएप व सोशल मीडिया के जरीए वरीय पदाधिकारी सब से पहले अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को देंगे. इस के बाद कृषि समन्वयक, प्रखंड उद्यान पदाधिकारी, किसान सलाहकार, एटीएम व बीटीएम अपने स्तर से क्षेत्र के किसानों के बीच संदेश पहुंचाएंगे.

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इस के लिए कृषि विभाग के लोग अपने क्षेत्राधीन व्हाट्सएप के जरीए किसानों का समूह गठित करेंगे. इस के लिए पहले से गठित समूहों को भी प्रभावी ढंग से सक्रिय करने को कहा गया है.

दर्जनों गांवों में जंगली सूअरों ने खेती बरबाद की

अल्मोड़ा: ताकुला ब्लौक के दर्जनों गांवों में जहां जंगली सूअरों ने किसानों की आलू, गडेरी, पिनालू और हलदी की खेती को बरबाद कर दिया है, वहीं, बंदरों ने गेहूं, जौ, मसूर, मटर और दूसरी सब्जियों को खराब कर दिया है. काश्तकारों ने जिला प्रशासन से सूअरों और बंदरों के आतंक से नजात दिलाने की मांग की है.

तालुका ब्लौक के तहत एक गांव ने कहा कि सूअरों ने रात में उन के गांव में अनेक किसानों के खेत में लगाए प्याज और आलू बीज खोद कर बरबाद कर दिया है. सूअर के आतंक से किसान खासा परेशान हैं.
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वहीं दूसरे किसान ने कहा कि तारबंदी के काम में हुई हीलाहवाली के चलते सरकारी पैसों का गलत इस्तेमाल होने के साथ ही किसानों को भी अच्छीखासी चपत लगी है.

प्रभावित किसानों ने प्रशासन और कृषि विभाग से जानवरों की रोकथाम के उपाय करने और फसलों के मुआवजे की मांग की है.

मौसम साफ रहे तो करें चना और तिलहन का भंडारण

भागलपुरः जिले के किसानों के लिए ग्रामीण कृषि मौसम सेवा की ओर से एडवाइजरी जारी हुई है. इसे कृषि विभाग ने बीएयू सहित दूसरे किसानों के लिए विभिन्न माध्यमों के द्वारा पहुंचाने का निर्देश दिया है. बीएयू ने इस कड़ी में अगले कुछ दिनों के मौसम और खेती संबंधी जानकारी किसानों को दी है.

बीएयू के निदेशक प्रसार शिक्षा डाक्टर आरके सोहाने ने कहा कि एडवाजरी की खूबी यह है कि इस में किसानों को मौसम की सटीक जानकारी के अलावा और क्याक्या करना चाहिए, इस के बारे में विस्तार से बताया जाता है.

कृषि विभाग के गाइडलाइन का पालन करते हुए बीएयू ने किसानों को जो संदेशा भेजा है, उस में मसूर, गेहूं और चने की कटाई समय पर पूरा करने का निर्देश दिया है. साथ ही, महफूज जगहों पर भंडारण का निर्देश दिया है. वहीं सब्जी की फसलें जैसे टमाटर, बैगन, मिर्च की जरूरत के मुताबिक सिंचाई करें. आम और लीची में दवा का घोल बना कर छिड़काव करें.और हरी पत्तेदार सब्जियों जैसे पालक, बथुआ वगैरह की बोआई गर्मा फसल के रूप में करें.

किसानों को सलाह दी जाती है कि इस मौसम में मूंग की किस्म की बोआई कर देनी चाहिए. जानवरों को उन की प्रतिरक्षा बढ़ाने के लिए हर दिन हरा चारा खिलाया जाना चाहिए. खेती के काम में उचित दूरी बना कर रहें. साथ ही, सर्दी, जुकाम, सिरदर्द या बुखार हो तो निकट के स्वास्थ्यकर्मी को तुरत सूचना दें और जांच कराएं.

पीएम किसान सम्मान निधि योजना में लाखों किसानों को मिला लाभ

नई दिल्ली : किसानों को खेतीबाड़ी में कोई समस्या न हो, इसलिए केंद्र सरकार उन का पूरा सहयोग करती है. देश के अन्नदाता को उच्च स्तर पर रखा जाता है. ऐसे में उन को खेतीबाड़ी में कोई समस्या न आए, इसलिए मोदी सरकार  ने किसानों के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना को चलाया है. इस योजना के तहत किसानों के खाते में सीधे 2-2 हजार की रुपए की राशि भेजी जाती है.

अब तक करोड़ों रुपए की सहायता
मोदी सरकार की पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत  62 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की मदद की जा चुकी है.

सभी जानते हैं कि इस वक्त देश पर कोरोना वायरस का संकट है. इस दौरान सरकार ने किसानों के खाते में 2-2 हजार रुपए भेजे हैं. इस योजना के तहत सरकार द्वारा 4.91 करोड़ रुपए भेजे जा चुके हैं.

कृषि मंत्रालय की मानें, तो देश में पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत में लगभग 9 करोड़ किसान रजिस्टर्ड हो चुके हैं. इस के लिए सरकार ने  लगभग 18 हजार करोड़ रुपए की राशि रखी है.

बता दें कि देश में लगभग 14.5 करोड़ किसान हैं, लेकिन इस योजना से कई किसान अभी भी नहीं जुड़ पाए हैं. इतने करोड़ रुपए हुए ट्रांसफर कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी द्वारा बताया गया है कि लॉकडाउन के बीच लगभग 5 करोड़ किसानों के खाते में 2-2 हजार रुपए भेजे जा चुके हैं. इस वक्त किसानों और गरीबों को समस्या न हो, इसलिए सरकार ने एक बड़ा आर्थिक पैकेज का ऐलान किया है. इस के तहत डायरेक्ट बेनिफट ट्रांसफर द्वारा लगभग 9826 करोड़ की राशि भेजी जाएगी.

कोरोना की परवाह किए बगैर खेतखलिहान में जुटे हैं पूर्वांचल के किसान

वाराणसी : कोरोना महामारी को हराने के लिए देशभर में लॉक डाउन के बीच किसान खेतों में खड़ी सालभर की मेहनत व पसीने से लहलहाती फसल को बचाने निकल पड़ा है.

खास बात यह है कि कोरोना से बचने के लिए देश में सुरक्षा व सावधानी का जो उपाय सरकार की तरफ से बताया गया, उस का पालन भी होता दिख रहा है.  सोशल डिस्टेंसिंग से ले कर साबुन से हाथ धोने का काम खेतखलिहान में काम करते मजदूरों के बीच देखा जा सकता है. खेतखलिहान में उन मजदूरों को ज्यादा वरीयता मिल रही है, जो कमाने के चक्कर में गांव छोड़ कर बाहर नहीं गए हैं.

एक तरफ कोरोना के चलते मास्क व दस्ताना लगा कर लोग शहर में दिखाई दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ खेतों में कटाई से ले कर मड़ाई करते मजदूर मुंह में गमछा या दुपट्टा बांध कर जुटे हैं.

पूर्वांचल के किसानों को ‘कोरोना संक्रमण’ की परवाह किए बगैर चिलचिलाती धूप और पछुवा हवाओं के बीच खेतखलिहान में देखा जा सकता है.

पूर्वांचल के भदोही, वाराणसी, चंदौली, गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, मिर्जापुर और सोनभद्र का किसान घरों के बजाय खेतों में है.

राज्य की योगी सरकार ने किसानों को लॉक डाउन से छूट दी है, क्योंकि गेहूं, सरसों, मटर, चना, मसूर, जौ, अरहर की फसल तैयार है. अगर कोरोना के भय से किसान फसलों की कटाई नहीं करता है तो उस के सामने स्थिति बुरी हो सकती है. मौसम खराब होने से फसलें जहां खराब हो सकती हैं, वहीं किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

मार्च में बारिश हो जाने की वजह से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है. पूरे पूर्वांचल में आंधीतूफान और बारिश की वजह से गेहूं, सरसों, जौ और तिलहनी फसलों को भारी नुकसान पहुंचा था.गेहूं की फसल गिर गई थी, जिस से फसलों की पैदावार प्रभावित हुई.

एक किसान कुमार का कहना है कि बारिश होने से सरसों की उपज कम हुई है, वहीं गेहूं का उत्पादन भी प्रति बीघे घटा है.

21 दिन के लॉक डाउन के कारण मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को किसानों के लिए और सुविधाओं का ऐलान करना चाहिए. पूर्वांचल का किसान अलसुबह सपरिवार खेतों पर निकल रहा है. घर में रूखीसूखी जो है, उसी से काम चला रहा है क्योंकि अभी उस की प्राथमिकता में फसलों की मड़ाई पहले है.  वह दिन और रात में भी फसलों की कटाई और मड़ाई में जुटा है. महिलाओं ने भी कोरोना को देखते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से महिला मजदूरों के लिए भी खास सुविधा देने की मांग की है.

#lockdown: लॉकडाउन में सायबर क्राइम बढ़ें

कोरोना वायरस से फैली वैश्विक महामारी के चलते पूरे भारत देश में लाकडाउन के कारण घरों से बाहर न निकलने के कारण अपराध की घटनाएं कम हुई हैं, परन्तु सायबर क्राइम के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है .

लाकडाउन पीरियड में जहां कुछ लोगों का घर ही आफिस बन गया है ,तो अधिकांश लोगों का काफी समय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बीतने लगा है .लाक डाउन में सभी मोबाइल कंपनियों के डाटा की खपत बढ़ गई है.सायबर अपराधी इसे एक अवसर के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं.मुफ्त नेटफ्लिक्स, सस्ते इंटरनेट प्लान, फ्री बैलेंस, इनाम जीतने के मैसेज कर सायबर अपराधी तकनीक से अंजान लोगों के मोबाइल में सेंध लगाकर बैंक एकाउंट से रुपए उड़ा रहे हैं. लोगों के एटीएम नंबर और ओटीपी पूछकर आन लाइन शापिंग करक लाखों रुपए बैंक एकाउंट से निकाले जा रहे हैं.

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मध्यप्रदेश के गोटेगांव के नेहरू वार्ड में रहने वाले जशवंत कहार ने स्थानीय पुलिस थाना में इसी तरह की शिकायत दर्ज करते हुए बताया है कि  उसे  मोबाइल नंबर 6203039244 से फ़ोन कर बताया गया कि मैं कैनरा बैंक से बोल रहा हूं, तुम्हारा एटीएम बंद होने वाला है.इसको जारी रखने के लिए एटीएम नंबर और  ओटीपी पूछकर एक लाख बीस हजार रुपए की रकम आन लाइन एकाउंट से निकल ली. लाक डाउन में काम धंधे से मोहताज पाई पाई जोड़ कर रखी गई जमा पूंजी के लुटने से जशवंत हताश होकर बैठ गये हैं.

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फिशिंग स्कैमिंग 25 फीसदी बढ़ी
महाराष्ट्र पुलिस के मुताबिक लाक डाउन में बेवसाइट पर सायबर क्राइम के मामले लोगों के द्वारा बहुतायत में दर्ज कराये गये हैं .
लोगों के बैंक खातों में फिशिंग ( डाटा की सेंध से धोखाधड़ी), विशिंग (वाइस काल से ठगी) और स्कैमिंग (एटीएम कार्ड क्लोनिंग) के मामले में 25 फीसदी का इजाफा हुआ है.पुलिस सूत्रों के अनुसार अक्सर सायबर अपराधी फर्जी बैंकिंग ट्रांजेक्शन का स्टेटमेंट ई मेल कर डाउनलोड करने के निर्देश देते हैं. कई बार फोन पर मेसेज के जरिए वेबलिंक भेजे जाते हैं,जो हेकर्स की बेवसाइट के होते हैं. पासवर्ड और संवेदनशील जानकारी साझा करते ही व्यक्ति इन जालसाजों के चंगुल में फंस जाता है.यैसे ज्यादातर मामले डार्क बेव के जरिए रिमोट लोकेशन से संचालित होते हैं, जिसमें अपराधी की ट्रैकिंग मुश्किल से होती है.

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इसी तरह कोविड -19 को लेकर वाट्स ऐप पर झूठे,भ्रामक और शांति, सौहार्द्र भंग करने के 65 मामले महाराष्ट्र में सामने आये है.फेसबुक के माध्यम से अफरा तफरी फैलाने के 11, टिक टाक से जुड़े 3 और अनय सोशल मीडिया चैनलों से संबंधित 19 मामले लाक डाउन पीरियड में दर्ज किये गये हैं.

आपदा राहत के नाप पर भी ठगी
कोरोना वायरस से पूरा देश  जंग लड़ रहा है. ग़रीब, खेतिहर मजदूर, दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूर , राजमिस्त्री, फैक्ट्री वर्कर्स,बूढ़े असहाय लोगो को दो वक्त की रोटी का इंतजाम मुश्किल से हो रहा है. देश के प्रधानमंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में लोगों से दान करने की अपील कर रहे हैं और लोग खुले हाथों से राहत राशि भी दे रहे हैं.संकट के इस दौर में भी सायबर ठग धोखाधड़ी करने से बाज नहीं आ रहे.प्रधानमंत्री के सिटीजन असिस्टेंट एंड रिलीफ फंड इन इमरजेंसी सिचुएशन फंड में आन लाइन डोनेशन से ठगने के मामले भी देश के कई इलाकों में सामने आए हैं. सायबर ठगों ने पीएम केयर्स की यूपीआई आईडी से मिलती  जुलती फर्जी आईडी बनाकर लिंक लोगों को भेजकर दान की राशि हथिया ली. ठगो द्वारा पीएम केयर्स की फर्जी लिंक बनाकर‌ लोगों को भेज कर कोरोना से लड़ने रकम दान करने के मैसेज किये गये, जिसमें अनेक लोगों द्वारा मदद के नाम पर लाखो रुपए की राशि भी भेज दी गई. मामले की जानकारी लगते ही भारतीय स्टेट बैंक द्वारा फर्जी यूपीआई आईडी को ब्लाक किया गया है.

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