Download App

‘प्राइवेट ट्यूशन’ की बात पर फैंस ने किया ट्रोल तो कंगना ने दिया ये जवाब

कंगना रनौत अपनी बेबाक अंदाज के लिए जानी जाती हैं. कंगना कुछ समय पहले से लगातार सुर्खियों में बनी हुई हैं. सुशांत सिंह राजपूत केस को लेकर सुशांत सिंह रातजपूत केस पर कंगना ने बॉलीवुड के कई दिग्गज कलाकारों पर सीधा निशाना साधा था.

कुछ दिनों पहले कंगना ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर ह्यूमन साइकोलॉजी पर प्राइवेट ट्यूशन लेने की सलाह दी थी. एक यूजर ने कंगना पर निशाना साधते हुए तंज कसते हुए कहा कि कंगना को सबकुछ पता है.

जिसके कुछ समय बाद ही कंगना ने यूजर को मुंहतोड़ जवाब दिया. कंगना ने जवाब देते हुए कहा कि मैंने न्यूयॉर्क में स्क्रीन राइटिंग का कोर्स किया है. जिसमें ह्यूमन साइकोलॉजी 6 महीने के कोर्स भी शामिल था. साथ ही  मैंने इस कोर्स को 2 साल के लिए बढ़वा लिया था. भले ही मुझे सब कुछ ना पता हो पर बहुत कुछ जानती हूं, क्या इस बात से कोई तकलीफ है?’

ये भी पढ़ें- ‘द होली फिश : मोक्ष दिलाने के नाम पर धर्म के ठेकेदारों के खेल पर करारी चोट


कंगना के इस जवाब के बाद से यूजर की बोलती बंद हो गई. यूजर ने पीछे मुड़कर कोई रिप्लाई नहीं किया.

ये भी पढ़ें- ‘कसौटी जिंदगी 2’ में लग सकता है ताला, एकता कपूर हुईं परेशान

वहीं कुछ दिनों पहले कंगना रनौत ने दीपिका पादुकोण के डिप्रेशन पर भी सवाल खड़े किए थे कि किसी लड़की को ब्रेकअप के 8 साल बाद डिप्रेशन कैसे हो सकता है.  अब उनकी शादी भी हो चुकी है लेकिन इसके बाद भी इन्हें अपने ब्रेकअप कि याद आ रही हैं तो ये तो गलत है हालांकि कंगना ने दीपिका की काम की तारीफ भी कि दीपिका काम अच्छा कर रही हैं. अपने काम में अच्छा कर रही हैं.

ये भी पढ़ें- संजय दत्त को लेकर सामने आई बड़ी खबर , जल्द होंगे अस्पताल से डिस्चार्ज

कंगना के निशाने पर आलिया भट्ट , महेश भट्ट और करण जौहर आ चुके हैं. इसके आलावा भी कई कलाकार है जिन्हें कंगना बिल्कुल पसंद नहीं करती हैं.

पिंजरा- खूबसूरती का: जिस खूबसूरती को मानें सब वरदान, क्यों है मयूरा के लिए अभिशाप?

खूबसूरती को हमारे समाज में एक वरदान माना जाता है और हमारे इसी समाज का एक प्रमुख हिस्सा लड़कियों की सिर्फ सूरत देखता है, सीरत नहीं. ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि अगर कोई लड़की खूबसूरत है तो उसे जिंदगी में सब कुछ आसानी से हासिल हो जाएगा. एक लड़की की खूबसूरती देखकर लोग उसकी खूबियाँ देखना भूल जाते हैं और अपनी खूबियों के दम पर अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद में उलझी, एक ऐसी ही लड़की की रोमांचक कहानी है कलर्स का नया सीरियल ‘पिंजरा- खूबसूरती का’.

खूबसूरती की बजाय खूबियों से पहचान बनाना चाहती है मयूरा

यह कहानी है मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में रहने वाली एक चुलबुली, जिंदादिल और बेइंतहा खूबसूरत लड़की मयूरा की, जो दूसरों की सेवा करना चाहती है और खूबसरती पर अपना हक समझने वाले ओमकार की.

एक तरफ मयूरा, जिसे पहचान मिली तो सिर्फ और सिर्फ उसकी खूबसूरती की वजह से. घर हो या बाहर लोग बस उसकी खूबसूरती की तारीफ करते हैं. इन्हीं वजहों से मयूरा की अपनी बहन, मेघा के दिल में उसके लिए जलन पैदा हो जाती है. मयूरा चाहती है कि वह एक होम्योपैथी डौक्टर बनकर अपने परिवार की मदद और लोगों की सेवा कर सके. उसकी चाहत यही है कि दुनिया उसकी खूबसूरती नहीं, बल्कि उसकी खूबियों की वजह से उसे जानें और ऐसे ही एक जीवनसाथी का मयूरा को है बेसब्री से इंतजार.

हर खूबसूरत चीज़ को कैद करना चाहता है ओमकार

दूसरी तरफ हैं ओमकार, जिसे पूरा शहर ‘संगमरमर का सरताज’ कहकर बुलाता है. पूरा बचपन मार्बल की खान में काम करते हुए गुजारने वाला ओमकार, हर खूबसूरत चीज को अपनी कैद में कर लेना चाहता है. उसे खूबसूरती से जितना प्यार है, उतनी ही नफरत है किसी भी गंदगी या दाग से. ओमकार के लिए किसी की खूबसूरती ही उसकी सबसे बड़ी खूबी है. यही वजह है कि जैसे ही उसकी नज़र मयूरा पर पड़ती है, वह उसे हासिल करने की ठान लेता है और उससे शादी करना चाहता है.

क्या मयूरा जान पाएगी ओमकार की असलियत या वह फंस जाएगी ओमकार के पिंजरे में? कैसा होगा दोनों का रिश्ता जब दोनों मिलेंगे, जानने के लिए देखिए ‘पिंजरा- खूबसूरती का’, आज से हर सोमवार से शुक्रवार, रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

‘द होली फिश : मोक्ष दिलाने के नाम पर धर्म के ठेकेदारों के खेल पर करारी चोट

फिल्म समीक्षाः ‘द होली फिश

रेटिंगः तीन स्टार


निर्माताःहंबल बुल क्रिएशंस
लेखक व निर्देशकःविमल चंद्र पांडे और संदीप मिश्रा
कलाकारःसैयद इकबाल अहमद समेत सुमन पटेल, अश्विनी अग्रवाल, अभिनव शर्मा, निशांत कुमार, सचिन चंद्र, प्रतिमा वर्मा, शिवकांत लखन पाल, कैलास, सरोज और मुजफ्फर खान
अवधिःएक घंटा तीस मिनट
प्लेटफार्म:सिनेमा्प्रिनोर डाॅट काॅम

हर इंसान जीवन व मृत्यु के चक्र से छुटकारा पाना चाहता है.इसी चाहत के चलते सदियों से लगभग हर भारतीय पौराणिक कथाओं पर यकीन करते हुए उसी हिसाब से जीवन जीने का प्रयास करता आया है.हर इंसान कुछ मान्याताओं में भी यकीन करता है.उन्हीं मान्यताओं व विश्वासों की कहानी को फिल्मकारद्वय विमल चंद्र पांडे और संदीप मिश्रा अर्थात विमल- संदीप अपनी फिल्म‘‘द होली फिश’’में लेकर आए हैं.कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रदर्शित और सराही जा चुकी फिल्म अब इंडी-सिनेमा को शो-केस कर रहे पोर्टल Cinemapreneur.com  पर देखी जा सकती है.फिल्म का नाम भले ही अंग्रेजी में ‘‘द होली फिश है’’है, मगर यह हिंदी भाषा की फिल्म है.इसके साथ अंग्रेजी सब-टाइटल उपलब्ध हैं.

कहानीः
फिल्म की कहानी के केंद्र में उत्तर भारत के एक गाॅव के दो परिवार हैं.गाॅव के एक बुजुर्ग परशुराम (सैयद इकबाल अहमद) काफी बीमार होते हैं,जो कि कभी गांव के प्राइमरी स्कूल मंे षिक्षक थे.उनके गंभीर रूप से बीमार होने की खबर से पूरा गांव इकट्ठा हो जाता है और सभी उनके बेटे से कहते हैं कि उन्हे घर से बाहर खुली हवा मंे लिटाया जाए.गाॅव वालों की सलाह पर उनका बेटा उनके मंुॅह में गंगाजल व तुलसी के पत्ते भी डाल देता है.पर कुछ देर बाद परशुराम मृत्यु शैया से उठ खड़े होते हैं.मृत्यु को छूकर लौट आने के अनुभव से उन्हें एहसास होता है कि उन्हें अब एक नया जीवन मिला है और अब वह अपने इस जीवन का उपयोग मोक्ष प्राप्त करने के लिए करना चाहते हैं.

ये भी पढ़ें- ‘कसौटी जिंदगी 2’ में लग सकता है ताला, एकता कपूर हुईं परेशान

तभी इलाहाबाद के संगम पर लगने वाले माघ मेले लगने वाला होता है और परशुराम माघ मेले में उस मछली की तलाश में जाने का निर्णय लेते हैं,जिसके बारे में कहा जाता है देव-दानव सागर मंथन में निकले अमृत की एक बूंद इस मछली पर भी गिर गई थी.वह ‘होली फिश’यानी कि पवित्र मछली अमर है.मौनी अमावस्या को यह मछली गंगा में सतह पर आती है और जो उसे देख या छू ले वह जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है.वैसे फिल्म की शुरूआत में एक वृद्ध महिला पूजा पाठ के दौरान गाॅव की सभी औरतो को देव दानव संग्राम व मछली की इस कहानी को सुनाती है.

उधर नीची जाति की सरस(सुमन पटेल) नामक विवाहिता का पति शहर में कमायी कर रहा है.सरस अपनी सास के साथ दूसरों के खेतों पर काम करके पैसा कमाकर किसी तरह जीवन जी रही हैं.सरस का पति बिनोद कभी कभी शहर से फोन करता रहता है.गाॅव के कुछ मनचले युवकों की नजर सरस पर है.बिनोद का दोस्त बुधई,सरस को भौजाई मानता है.एक दिन वह सरस से कह देता है कि वह प्यार और दोस्ती के धर्म के बीच फंसा हुआ है.सरस भी माघ मेले मंे जाना चाहती है.

अंततः परशुराम माघ मेले के लिए प्रयाग संगम पहुॅचते हैं,तो वहीं बुधई केट्ैक्टर मे बैठकर सरस व उसकी सास पहुॅचती है.परशुराम को गंगा नदी के तट पर ‘होली फिष’की तलाश है.माघ मेले मे जहंा सभी पंडा खूब पैसा कमा रहे हैं,वहीं एक इमानदार दया नामक पंडा खाली बैठा रहता है.एक नाविक उसे आकर समझाता है,तो पंडा पूरी तरह से झूठ बोलने पर आमादा हो जाता है और परशुराम अब दया पंडा के चंगुल में फंस जाते हैं,अब उन्हे मोक्ष मिलता है या नहीं, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.जबकि मोक्ष व धर्म कर्म के लिए गंगा नहाने पहुॅची सरस के साथ क्या होता है,यह भी देखने योग्य है.

ये भी पढ़ें- संजय दत्त को लेकर सामने आई बड़ी खबर , जल्द होंगे अस्पताल से डिस्चार्ज

लेखन व निर्देशनः
लेखक व निर्देशकद्वय विमल चंद्र पांडे और संदीप मिश्रा की यह पहली फिल्म है.उनका प्रयास काफी सराहनीय है.उन्होने इस फिल्म में मनुष्य की भौतिक इच्छाओं,धर्म के पाखंडों के साथ ही मानव मन के अंदर अच्छाई व बुराई के बीच मचने वाले अंतद्र्वंद का सटीक चित्रण किया है.अधिकाधिक धन कमाने के लिए पंडा रूपी धर्म के ठेकेदार किसी भी इंसान को ‘मोक्ष’दिलाने के नाम  पर किस तरह से ठगी का जाल बुनते हैं,उस पर भी यह फिल्म करारी चोट करती  है.कम बजट में बनी इस फिल्म में कुछ तकनीकी खामियां हैं,जिन्हे नजरंदाज किया जा सकता है.

Crime Story: इश्क में बिखरे अरमान

उत्तर प्रदेश के जिला हरदोई के रज्जाकखेड़ा गांव में पूरनलाल सपरिवार रहता था. वह
खेतीकिसानी का काम करता था. उस के परिवार में पत्नी रमावती के अलावा 2 बेटियां थीं, नीलम (18 साल) और कोमल (15 साल). साथ ही 2 बेटे भी थे, शुभम (16 साल) और शिवम (13 साल). पूरनलाल भले ही कम पढ़ालिखा था लेकिन वह अपने सभी बच्चों को पढ़ा रहा था. नीलम बीएससी कर रही थी. शुभम 12वीं कक्षा में तो कोमल 10वीं में पढ़ रही थी.

किशोरावस्था में कदम रखते ही कोमल का रूप खिलने लगा था. खूबसूरत फिगर के साथ ही उस के चेहरे पर लुनाई भी आ गई थी. इस उम्र में पहुंचने पर मनचलों की निगाहें तीर की तरह चुभती हैं. कोमल के साथ भी ऐसा ही हुआ लेकिन वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे रही थी.

लेकिन 24 वर्षीय सलमान कोमल को कुछ ज्यादा ही हसरतभरी निगाहों से देखता था. सलमान हरदोई जिले के ही थाना कछौना के गांव दुलारखेड़ा के रहने वाले मुनव्वर का बेटा था.सलमान आसपास के गांवों से दूध कलेक्शन कर महिंद्रा पिकअप से संडीला स्थित पारस दूध कंपनी में पहुंचाता था. सलमान से पहले उस का पिता मुनव्वर दूध सप्लाई का काम करता था. पिता की मृत्यु के बाद यह काम सलमान ने संभाल लिया था. महिंद्रा पिकअप गाड़ी खजोहना गांव निवासी अब्दुल वदोद की थी.

ये भी पढ़ें- Crime Story: पिंकी का हनीट्रैप

दूधियों से दूध इकट्ठा करने के लिए सलमान रज्जाकखेड़ा गांव भी जाता था. वहीं पर एक दिन उस ने स्कूल जाती कोमल को देखा तो वह उस की खूबसूरती पर फिदा हो गया. वह उसे इतनी भा गई कि हर समय वह सिर्फ उसी के बारे में ही सोचता रहता. इतना ही नहीं, कोमल के स्कूल जाने के समय एक निश्चित जगह पर खड़ा हो जाता था.सलमान और कोमल का आमनासामना हर रोज होता था. एक दिन कोमल की नजरें सलमान से टकराईं तो उस ने नजरें हटा लीं. उस ने दोबारा नजरें उठाईं तो पाया सलमान अब भी उसे ही देख रहा था. कोमल के दिल की धड़कनें बढ़ गईं. दिल ने जब अपनी बेचैनी जाहिर की तो आंखें फिर सलमान की ओर पलट गईं. आंखें मिलते ही कोमल के होंठ न चाहते हुए भी अपने आप मुसकरा पड़े. इस के बाद कोमल जल्दीजल्दी कालेज की ओर चल पड़ी.

कहते हैं युवतियां युवकों की आंखों की भाषा पढ़ने में माहिर होती हैं. कोमल ने सलमान की आंखों की भाषा पढ़ ली थी. वह कालेज तो चली गई थी पर उस दिन उस का मन पढ़ाई में नहीं लगा. बारबार सलमान का चेहरा उस की आंखों के सामने घूम रहा था. उस का मन बेचैन था. वह दिन भर खोईखोई रही.कालेज की छुट्टी हुई तो वह घर के लिए चल पड़ी. पर उस दिन वह रोज की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही तेज चल रही थी. वह उस जगह पर आई, जहां पर सलमान खड़ा था. लेकिन उस समय वहां कोई नहीं था. सलमान को न पा कर कोमल उदास हो गई और बेचैन हालत में घर आ गई.

अगले दिन सलमान उसे सुबह के समय तो नहीं दिखा लेकिन कालेज से वापस लौटी तो रास्ते में एक जगह पर सलमान बैठा मिल गया. उसे देखते ही कोमल खुश हो गई.कोमल ने घर पहुंच कर बैग रखा और बिना कपड़े बदले ही छत पर चढ़ गई. कोमल के घर के पास ही एक दूधिया रहता था. सलमान उस दूधिए के घर ज्यादा समय बिताता था. सलमान की उस दूधिए से अच्छी दोस्ती थी. या कहें कि कोमल के घर के पास होने के कारण ही सलमान ने उस से दोस्ती बढ़ाई थी.

ये भी पढ़ें- Crime Story: मौज मजे में पति की हत्या

कोमल ने पड़ोसी दूधिए के घर की तरफ देखा, पर उसे सलमान नहीं दिखाई दिया. वह फिर उदास हो गई. उस का मन चाह रहा था कि एक बार वह सलमान का वही मुसकराता हुआ चेहरा देखे.
वह इन्हीं विचारों में खोई हुई थी कि नीचे से मां की आवाज सुनाई पड़ी, ‘‘अरे कोमल, आज तुझे क्या हो गया, आते ही छत पर चढ़ गई. कपडे़ भी नहीं बदले और खाना भी नहीं खाया. चल जल्दी आ जा, मुझे अभी बहुत काम करना है.’’मां की बातें सुन कर कोमल ऊपर से ही बोली, ‘‘आई मां, थोड़ा टहलने का मूड था इसलिए छत पर आ गई थी.’’ कोमल ने एक बार फिर दूधिए की छत की तरफ देखा और फिर नीचे उतर आई.

रात को खाना खाने के बाद कोमल जा कर बैड पर लेट गई, लेकिन आंखों में नींद कहां थी. करवटें बदलते हुए जब नींद आई तो सपने में भी उसे सलमान का चेहरा दिखा.उधर सलमान भी कम बेचैन नहीं था. सुबह को उस ने समय निकाल कर कोमल को देख लिया था, पर शाम को देर हो जाने के कारण वह उसे नहीं देख पाया था. वह अगले दिन की सुबह का इंतजार करने लगा.दूसरे दिन सुबह कोमल जल्दी उठ गई और कालेज जाने की तैयारी करने लगी, लेकिन आज तो जैसे दिन ही काफी बड़ा हो गया था. आखिर इंतजार करते हुए कालेज जाने का समय हुआ तो कोमल कुछ ज्यादा ही सजधज कर घर से निकली.

वह उस स्थान पर जल्दी से पहुंच जाना चाहती थी, जहां खड़ा सलमान उसे निहारा करता था. पंख होते तो वह उड़ कर पहुंच जाती, पर उसे तो पैदल चल कर पहुंचना था. जैसेजैसे वह स्थान नजदीक आता जा रहा था, उस के दिल धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. मन बेचैन होता जा रहा था.वह उस स्थान के पास आ गई तो देखा सलमान की आंखें उसी हसरत से उसे ताक रही थीं, जिस तरह कल ताक रही थीं. आंखें चार हुईं तो कोमल के होंठ स्वत: मुसकरा उठे. उस का मन कह रहा था कि वह अपनी आंखें न हटाए. जब तक वह दिखाई देता रहा, कोमल पलटपलट कर उसे देखती रही.

ये भी पढ़ें- Crime Story: काली की प्रेमिका

दोनों सचमुच आंखों के रास्ते एकदूसरे के दिल में उतर गए थे. उस रात दोनों को नींद नहीं आई. बैड पर लेटे हुए बेचैनी बढ़ने लगी तो कोमल बैड से उठ कर छत पर आ गई. खुले आसमान के खुले वातावरण में उस ने गहरी सांस ली, फिर आसपास देखने लगी.आसमान में तारे चमक रहे थे. उस ने उन तारों को गौर से देखा तो उसे लगा कि हर तारे में उस का सलमान मुसकराता हुआ दिखाई दे रहा है. इसी तरह आग दोनों तरफ लगी थी. दिन तो किसी तरह बीत जाता था लेकिन रात काटनी मुश्किल हो जाती थी.

रोज रात को दोनों सोचते कि कल अपने दिल की बात कह देंगे, लेकिन सुबह होती और दोनों एकदूसरे के सामने आते तो उन के दिल की धड़कनें तेज हो जातीं, पर दिल की बात जुबां पर नहीं आ पाती.
आखिर जब रहा और सहा नहीं गया तो सलमान ने एक तरीका खोज निकाला. उस ने अपने दिल की बात एक कागज पर लिख कर कोमल तक पहुंचाने का मन बना लिया. रोज की तरह उस दिन कोमल कालेज जाने के लिए निकली तो उस की मां ने पूछा, ‘‘कोमल, आज टिफिन ले जाने का इरादा नहीं है क्या?’’
‘‘नहीं मां, आज मुझे भूख नहीं है.’’ कह कर कोमल तेज कदमों से घर के बाहर निकल गई.

सलमान अपनी पूर्व निश्चित जगह पर उस दिन भी उस का इंतजार करता नजर आया. जैसे ही कोमल उस के नजदीक पहुंची, सलमान ने रात में लिखा वह प्रेम पत्र कोमल के सामने धीरे से फेंक दिया और बिना निगाह मिलाए वहां से चला गया. कोमल ने इधरउधर देखा, फिर डरतेडरते वह कागज चुपके से उठा कर अपने बैग में रख लिया और घबराई हुई सी कालेज चली गई.

ये भी पढ़ें- Crime Story: कलंकित मां का यार

कोमल कालेज तो पहुंच गई लेकिन उस का मन पढ़ाई में नहीं लगा. उस की जिज्ञासा उस कागज में लिखे मजमून के लिए अटकी हुई थी. कालेज में इंटरवल के दौरान उस ने कागज की तह को खोल कर देखा. उस में लिखा था—
मेरी प्रिय कोमल
मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मेरे प्यार को तुम कुबूल कर लोगी तो मैं अपने आप को खुशकिस्मत समझूंगा. वैसे मैं नहीं समझता कि मैं तुम्हारी जैसी लड़की के काबिल हूं, लेकिन यह दिल तो तुम पर ही फिदा है. अगर तुम मुझे चाहती हो तो इस नाचीज का प्यार स्वीकार कर लेना. तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी.
—तुम्हारे प्यार में पागल सलमान
कागज के उस टुकड़े का एकएक शब्द कोमल के दिल में उतर गया. पत्र पढ़ कर वह बल्लियों उछलने लगी. उस के मन की मुराद पूरी हो गई थी. वह अपने को सौभाग्यशाली समझने लगी. उस ने अपने जीवन को सलमान को समर्पित करने का निर्णय ले लिया. इस के जवाब में कोमल ने पत्र लिख कर सलमान को दे दिया. पत्र में लिखा था—
मेरे दिल के सलमान
मैं दिल ही दिल में तुम्हें पहले से प्यार करती रही हूं, लेकिन कहने की हिम्मत नहीं कर सकी. तुम ने प्रेम का इजहार किया, उस के लिए शुक्रिया. मुझे तुम्हारा प्यार स्वीकार है.
—सिर्फ तुम्हारी कोमल
पत्र मिलने के बाद सलमान के मन की सारी आशंकाएं समाप्त हो गईं. अब वह कोमल के बारे में सोचते हुए गहरे खयालों में खो गया. उस ने कोमल को ले कर जो सपने देखे थे, वे उसे पूरे होते दिखाई दे रहे थे. दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा.

पत्रों से शुरू हुआ प्यार वादों, कसमों, रूठनेमनाने से ले कर साथ जीनेमरने की प्रतिज्ञाओं तक पहुंच गया. दोनों में प्रेम भरी मुलाकातों के बीच एकदूसरे के होने की सौगंध ली कि वे अपने प्यार की आखिरी मंजिल को पा कर ही दम लेंगे, चाहे इस के लिए जान ही क्यों न चली जाए.4 जनवरी, 2020 की रात सलमान पिकअप गाड़ी ले कर दूध कलेक्शन के लिए घर से निकला लेकिन देर रात तक वह दूध कंपनी नहीं पहुंचा तो दूध कंपनी से गाड़ी मालिक अब्दुल वदोद के पास फोन आया कि आज डेयरी में गाड़ी दूध ले कर नहीं आई है. इस के बाद अब्दुल वदोद ने सलमान के बड़े भाई असलम को जानकारी दी.

यह बात सुन कर असलम चिंता में पड़ गया. उस ने सलमान की तलाश शुरू कर दी तो कासिमपुर में रज्जाकखेड़ा गांव के बाहर उस की पिकअप गाड़ी खड़ी मिली, लेकिन सलमान वहां नहीं था. आसपास तलाश की गई तो पास में स्थित एक नाले में सलमान की लाश पड़ी मिली.लाश मिलने की खबर सुन कर रज्जाकखेड़ा गांव के लोग वहां इकट्ठा हो गए. लोगों ने तरहतरह की बातेकरनी शुरू कर दीं. रज्जाकखेड़ा गांव में ही सलमान और असलम के भी कुछ हितैषी थे. उन्होंने असलम को एकांत में ले जा कर गांव के ही राजेंद्र और पूरनलाल पर सलमान की हत्या का शक जताया.रात एक बजे असलम ने कासिमपुर थाने में घटना की सूचना दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर बृजेश सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. सलमान के शरीर पर किसी प्रकार के घाव के निशान नहीं थे. सिर पर पीछे की तरफ कुछ निशान मिले, जिस से अनुमान लगाया गया कि किसी भारी वस्तु से सिर पर प्रहार कर के सलमान को मौत की नींद सुलाया गया है.

थानाप्रभारी ने असलम और गांव वालों से आवश्यक पूछताछ करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय स्थित मोर्चरी भेज दी.फिर थानाप्रभारी असलम को ले कर थाने आ गए. असलम ने रज्जाकखेड़ा गांव के राजेंद्र और पूरनलाल द्वारा 2 अन्य साथियों के साथ मिल कर सलमान की हत्या किए जाने का शक जताते हुए तहरीर दी. इस तहरीर के आधार पर इंसपेक्टर बृजेश सिंह ने राजेंद्र और पूरनलाल व 2 अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज करा दियाप्रारंभिक जांच में ही मामला प्रेम प्रसंग का निकला. गांव वालों ने दबी जुबान में सलमान का प्रेम प्रसंग पूरनलाल की छोटी बेटी कोमल से होना बताया.

सलमान की लाश भी पूरनलाल के घर के पास ही मिली थी. लाश मिलने पर पूरा गांव तो वहां पहुंच गया था लेकिन पास होने पर भी पूरनलाल व उस के घर का कोई सदस्य घटनास्थल पर नहीं पहुंचा था.
इस पर इंसपेक्टर बृजेश सिंह ने 10 जनवरी को पूरनलाल को हिरासत में ले कर कड़ाई से पूछताछ की तो उस ने अपनी पत्नी रमावती के साथ सलमान की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. पता चला कि लाश को ठिकाने लगाने में पूरनलाल की बड़ी बेटी नीलम ने भी उस का साथ दिया था.
पूरनलाल से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर बृजेश सिंह ने रमावती और नीलम को भी उसी दिन गिरफ्तार कर लिया.
4 जनवरी, 2020 की रात सलमान पिकअप गाड़ी से दूध कलेक्शन के लिए रज्जाकखेड़ा गांव पहुंचा तो लगभग साढ़े 9 बजे कोमल से मिलने उस के घर पहुंच गया. कोमल सलमान से बात कर ही रही थी कि पूरनलाल और रमावती ने दोनों को बातें करते देख लिया. इस पर पूरनलाल ने पीछे से सलमान के सिर पर डंडा मारा.

डंडे का वार इतना तेज और सटीक था कि सलमान नीचे गिर गया और कुछ ही देर में उस की मृत्यु हो गई. सलमान के मरने पर पूरनलाल और रमावती घबरा गए. इतने में वहां नीलम भी आ गई. सलमान की हत्या में वे लोग फंस न जाएं, इसलिए उन्होंने उस की जेब से मोबाइल निकाला और तीनों उस की लाश घसीट कर पास के खेत में बह रहे नाले में डाल आए.

लेकिन उन का गुनाह छिप न सका और तीनों पकडे़ गए. इंसपेक्टर बृजेश सिंह ने अभियुक्तों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त डंडा, सलमान का मोबाइल फोन और हत्या के समय पहनी गई रमावती की साड़ी बरामद कर ली.आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद तीनों अभियुक्तों को सीजेएम के न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

10 टिप्स: बरसात में फूड पौयजनिंग से ऐसे बचें

बारिश के दिनों में पेट की गड़बड़ी आम बात है. इस मौसम में अक्सर पेट खराब हो जाता है. पेट खराब होने के ज्यादातर मामले फूड पौयजनिंग के होते हैं. दरअसल, बारिश के मौसम में आबोहवा में जलीय वाष्प की मात्रा बहुत अधिक होती है.

इससे घर और घर से बहार भी मौसम में एक खास तरह की नमी बनी रहती है. वहीं घर के अंदर सीलन का एहसास होता है. मौसम की इसी नमी का लाभ उठा कर तरह-तरह के जीवाणु हमारे आपसपास सक्रिय हो जाते हैं.

पानी के जरिए ये जीवाणु हमारे पेट में पहुंचते हैं और फूड पौयजनिंग हो जाती है. डायरिया-दस्त की शुरूआत हो जाती है. मौसम की मार का यहीं अंत नहीं है. इस मौसम की और भी कई दिकदारियां हैं. मसलन; डेंगी, मलेरिया, टायफायड, पीलिया. इन बीमारियों में भी पेट की गड़बड़ी होती है.

ये भी पढ़ें- इस आसान तरीके से बनाएं दाल पकवान दाल पकवान

आइए देखते हैं इस मौसम पेट की तमाम तरह की गड़बडि़यों से कैसे निपटा जा सकता है. इस बारे में कोलकाता की जानीमानी डायटिशियन डॉ. मंजीरा सांन्याल क्या कहती हैं?

डॉ. सांन्याल कहती हैं कि बीमारी कोई भी हो, खतरनाक स्तर पर पहुंचने से पहले डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए और डॉक्टर द्वारा प्रेस्क्राइब की गयी दवाएं लेनी चाहिए. लेकिन इसी के साथ कभी-कभार हमारे खाने में कुछ तब्दीली करके भी छोटी-मोटी पेट की समस्या से निपटा जा सकता है.

खासतौर पर हमारे घर व रसोईघर में भी बहुत कुछ है जिनका सेवन ऐसे समय में किया जा सकता है.

1.पानी: शरीर में किसी तरह की गड़बड़ी में पानी अपने आपमें बहुत बड़ी दवा है. सही मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी है. खासतौर पर तब और भी जरूरी है जब तबीयत ठीक न हो. मामूली-से बुखार से लेकर सर्दी, डायरिया, टायफायड जैसे बहुत सारी बीमारियों में पानी ज्यादा से ज्यादा पीना चाहिए.

ये भी पढ़ें- ककोरा से बनाएं स्वादिष्ट सब्जी और अचार

दरअसल, ज्यादातर बीमारियों में शरीर में पानी का क्षय होता है. इससे डिहाइड्रेशन होता है और पानी की कमी हो जाती है. शरीर में पानी मात्रा को बनाये रखने के लिए सही मात्रा में पानी पीना जरूरी है. ऐसी बीमारियों में पानी सबसे जरूरी और अहम दवा है.

2.चाय: पानी के बाद चाय भी उपकारी है. डिहाइड्रेशन में चाय भी पानी की कमी को पूरा करता है. लेकिन मिल्क टी नहीं. इससे फायदे के बजाए नुकसान होता है. बगैर दूध के काली चाय, हल्की या पतली-सी चाय बनाना हर घर में संभव हो सकता है. इसके अलावा ग्रीन टी भी फायदेमंद हो सकता है.

3.जूस: फलों का रस पानी की कमी को पूरा करने का अच्छा जरिया है. किसी भी मौसमी फल का रस डिहाइड्रेशन में लिया जा सकता है. फलों के रस में जरूरी विटामिन और खनिज होते हैं. डिहाइड्रेशन में काफी कारगर होते हैं. अगर घर पर कोई फल न हो तो सीधे-सीधे नींबू की शिकंजी भी पी जा सकती है. नींबू का रस वैक्टेरिया से निपटने और संक्रमण रोकने में कारगर होता है.

4.उबला चावल: शरीर में पानी की कमी होने से कमजोरी हो जाती है. ऐसे में उबले चावल कमजोरी को ताकत में बदल सकती है. इसीलिए सूखे उबले चावल खाने की सलाह देती हैं डॉ. मंजीरा सांन्याल. पेट की गड़बड़ी में सूखे उबले चावल बहुत अच्छी है. इस समय इस तरह से चावल खाने से नींद भी अच्छी आती है. बीमारी में अच्छी नींद भी बहुत कारगर साबित होती है.

ये भी पढ़ें- वेजिटेबल पफ : इसे नहीं खाया तो फिर क्या खाया

5.केला: फूड पौयजनिंग में पका हो या कच्चा केला – बहुत काम का साबित होता है. पक्का केले में विटामिन्स, कैलसियम के साथ इसमें मौजूद खनिज डिहाइड्रेशन में पानी की कमी को पूरा करता है. वहीं कच्चा केला सुपाच्य होता है. पेट को बांधने में मददगार होता है.

6.टोस्ट या क्रैकर बिस्कुट: डायरिया में या डिहाइड्रेशन में टोस्ट खाना अच्छा होता है. लेकिन शर्त यह कि बगैर मक्खन, जैम के टोस्ट. ब्रेड को अच्छी तरह सेंका हुआ कुरकुरा और गरमागरम टोस्ट ही खाना चाहिए. बगैर सेंका हुआ यानि कच्चा ब्रेड फायदा के बजाए नुकसान ही पहुंचाएगा. टोस्ट के अलावा बाजार में मिलनेवाला क्रीम क्रैकर बिस्कुट भी भूख मिटाने के साथ पेट बांधने में कारगर होता है.

7.बेसिल या तुलसी पत्ता: हम सब जानते हैं कि बेसल पत्ता या तुलसी पत्ता सर्दी-खांसी में अच्छा होता है. लेकिन इसके अलावा इसके और भी कई गुण हैं. दरअसल, तुलसी बैक्टेरिया नाशक, फंगस नाशक है. तुलसी पत्ता चबा कर खाया जा सकता है. इसकी चाय भी बना कर ली जा सकती है. यह पेट की गड़बड़ी या फूड पौयजनिंग में भी अच्छा होता है. तुलसी में पायाू जानेवाला एंटी औक्सीडेंट और एंटी कर्सेनोजेनिक उपादान कैंसर में भी कारगर है.

8.जीरा: पेट के लिए जीरा बहुत बढि़या होता है. सब्जी या दाल के बघार में जीरा लिया जा सकता है. और कुछ नहीं तो दही में भुना जीरा पेट के लिए अच्छा रहता है. जीरा शरीर को हल्का-फुल्का बनाता है. जीरा की एक और खासियत यह है कि जलजीरा पेट को ठंडा कर शांत करता है. एसिडिटी का नाश करता है. शरीर की तापमात्रा को नियंत्रित करता है, इसीलिए गर्मी के दिनों में जलजीरा पिया जाता है. फूड पौयजनिंग में काफी फायदेमंद होता है, क्योंकि शरीर में पानी की कमी को दूर करता है. साथ में यह शरीर के वजन को भी कम करता है. कब्ज की भी अचूक दवा है यह जीरा. यह लीवर और पाचन के लिए बढि़या है.

9. सौंफ: हमारे किचेन में सौंफ आमतौर पर मौजूद रहता है. यह सौंफ पेट को ठंडा रखता है. प्राचीनकाल से मिस्र और चीन में इसके पौधे को मेडिसिनल माना गया है. हालांकि बाद में इसका उपयोग पूरे यूरोप और भूमध्यसागरीय देशों से एशिया और पूरे विश्व में फैला. विश्व के कई देशों में इसके पौधे के खास अंश से सब्जी भी बनायी जाती है. इसमें जीवाणुनाशक गुण के साथ एसिड का नाश करने के तत्व भी पाए जाते हैं. यह पाचन में भी सहायक है. यही कारण है कि खाना खाने के बाद इसके खाने का चलन है. फूड पौयजनिंग में भी यह बड़ा ही कारगर है. यहां तक कि नवजात शिशु को फीडिंग करानेवाली मां अगर सौंफ किसी भी रूप में लेती है तो बच्चे का पेट खराब नहीं होता.

ये भी पढ़ें- FOOD TIPS: खाने का स्वाद बढ़ाते हैं ये 10 खुशबूदार मसाले

10. धनिया: बंगाल में साबूत भुना धनिया भी खाना खाने के बाद खाने का चलन है. बंगाल और ओडिशा पान में भुना धनिया खाने का प्रचलन पुरना है. मकसद सहज पाचन है. अफरा, गैस की शिकायत होने पर घनिया की सेवन करने की सलाह दी जाती है. लेकिन जहां तक फूड पौयजनिंग में धनिया खाने का सवाल है तो इसमें पाया जानेवाला एंटी-माइक्रोबियल गुण है. यहां तक कि धनिया की पत्तियों में लाल साग, पालक जैसे अन्य किसी सब्जी से कहीं ज्यादा आयरन पाया जाता है. हर रोज 100 ग्राम धनिया पत्ता आयरन, कैलसियम और विटामिन ए की जरूरत को पूरा करता है. सबसे बड़ी बात यह रोग-प्रतिरोध शक्ति बढ़ा‍ता है.

बदले की आग-भाग 3: अक्को का क्या रिश्ता था स्टेशन पर मिली औरत के साथ ?

अक्को ने उसे सांत्वना दे कर पूछा, ‘‘तुम अपनी सोच बताओ, फिर मैं तुम्हें कोई सलाह दूंगा.’’

वह कुछ सोच कर बोली, ‘‘मैं शाहिदा को नाचनागाना सिखाना चाहती हूं.’’

अक्को कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, ‘‘अच्छा, मैं इस बाजार के चौधरी दारा से बात करूंगा.’’

अगले दिन उस ने दारा से बात कर के सुरैया को उस से मिलवा दिया. शाहिदा के भोलेपन, सुंदरता और सुरैया की भरपूर जवानी ने दारा के दिल पर भरपूर वार किया. उस ने चालाकी से अपना घर उन के लिए पेश कर दिया और थाने जा कर सुरैया और शाहिदा का वेश्या बनने का प्रार्थना पत्र जमा कर दिया.

कुछ ही दिनों में मां बेटी ने उस इलाके के जानेमाने उस्तादों से नाचनेगाने की ट्रेनिंग ले ली. पहली बार मां बेटी सजधज कर कोठे पर बैठीं तो लोगों की भीड़ लग गई. शाहिदा की आवाज में जादू था, फिर पूरे बाजार में यह बात मशहूर हो गई कि यह किसी बड़े घर की शरीफ लड़की है, जिस ने अपनी इच्छा से वेश्या बनना पंसद किया है. दारा चूंकि शाहिदा को अपनी बेटी बना कर कोठे पर लाया था, इसलिए दोनों की इज्जत थी.

पूरे शहर में शाहिदा के हुस्न के चर्चे थे. देखतेदेखते बड़ेबड़े रईसजादे उस की जुल्फों में गिरफ्तार हो गए. जब शाहिदा अपनी आवाज का जादू चला तो नोटों के ढेर लग जाते. उस के एक ठुमके पर नोट उछलउछल कर दीवारों से टकरा कर गिरने लगते.

शाहिदा के भाई शावेज के खून में बेइज्जती तो आ गई थी, लेकिन जब कभी उस के शरीर में खानदानी खून जोश मारने लगता तो वह अपनी मांबहन से झगड़ने लगता. लेकिन वे दोनों उस की एक भी नहीं चलने देती थीं.

शाहिदा की नथ उतराई की रस्म शहर के बहुत बड़े रईस असलम के हाथों हुई, जिस के एवज में लाखों की रकम हाथ लगी. असलम जब आता, ढेरों सामान ले कर आता. घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. असलम शहर का बदमाश भी था. बातबात पर वह रिवौल्वर निकाल लेता था, लेकिन वही असलम शाहिदा के पैरों की मिट्टी चाटने लगता था.

एक दिन दबी जुबान से असलम ने उस की मां से शाहिदा को कोठे पर मुजरा न करने के लिए कहा तो उस की मां ने कहा, ‘‘उतर जाओ इस कोठे से, तुम से बढ़ कर सैकड़ों धनवान है मेरी शाहिदा के चाहने वाले. अब कभी इस कोठे पर आने की हिम्मत भी न करना.’’

असलम ने माफी भी मांगी, लेकिन सुरैया नरम नहीं पड़ी. असलम चला गया. सुरैया अक्को कुली को कुछ न कुछ देती रहती थी, क्योंकि उसी की वजह से वह इस कोठे पर बैठी थी. पूरे शहर में शाहिदा और असलम के चरचे थे.

मां बेटी बनठन कर रोज शाम को तांगे में बैठ कर निकलतीं तो लोग उन्हें देखते रह जाते. तांगे पर उन का इस तरह निकलना कारोबारी होता था, इस से वे रोज कोई न कोई नया पंछी फांस लेती थीं.

एक दिन शावेज अपनी बहन शाहिदा और मां से उलझ गया. बात हाथापाई तक पहुंच गई. उस ने शाहिदा के मुंह पर इतनी जोरों से थप्पड़ मारा कि उस के गाल पर निशान पड़ गया. सुरैया को गुस्सा आया तो उस ने उसे डांटडपट कर घर से निकाल दिया.

शावेज गालियां देता हुआ घर से निकल गया और एक हकीम की दुकान पर जा बैठा. वहां वह अकसर बैठा करता था. उस की मां को वहां बैठने पर आपत्ति थी, क्योंकि उसे लगता था कि वही हकीम उसे उन के खिलाफ भड़काता है. शावेज ने असलम और एक दो ग्राहकों से भी अभद्र व्यवहार किया था.

वेश्या बाजार के वातावरण ने शावेज को नशे का आदी बना दिया था, वह जुआ भी खेलने लगा था. उस के खरचे बढ़ रहे थे, लेकिन उस की मां उसे खरचे भर के ही पैसे देती थी. वह जानबूझ कर लोगों से लड़ाईझगड़ा मोल लेता था. इसी चक्कर में वह कई बार थाने की यात्रा भी कर आया था, जिस की वजह से उस के मन से पुलिस का डर निकल गया था.

रात गए तक शावेज हकीम की दुकान के आगे बैठा रहा. जब बाजार बंद हुआ तो सुरैया को शावेज की चिंता हुई. मांबेटी उसे देखने आईं तो वह हकीम की दुकान पर बैठा मिला. दोनों उसे मना कर कोठे पर ले गई.

उधर इकबाल को पता चला कि उस की बीवी और बेटी हुस्न के बाजार में बैठ कर उस की इज्जत का जनाजा निकाल रही हैं तो अपनी इज्जत बचाने के लिए वह परेशान हो उठा.

उस ने अपनी पत्नी सुरैया और बच्चों के घर से जाने की खबर पुलिस को नहीं दी थी. 8 सालों बाद एक दिन उस के एक जानने वाले ने सुरैया और उस की बेटी को कोठे पर बैठे देखा तो यह बात उसे बताई थी.

इकबाल चाहता तो पुलिस को सूचना दे कर उन्हें अपने साथ ले जा सकता था. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. हुस्न का बाजार जनरल बसस्टैंड के पास था. इकबाल ने वहां पास के एक होटल में कमरा लिया और शाम होने का इंतजार करने लगा.

शाम होते ही वेश्या बाजार सज गया. इकबाल ने कमरा लौक किया और रेडलाइट एरिया में आ गया. उसे सुरैया बेगम का कोठा ढूंढने में कोई परेशानी नहीं हुई.

मां बेटी दोनों सजसंवर कर ग्राहकों के इंतजार में बैठी थीं. इकबाल को देख कर दोनों पत्थर की मूर्ति बन गईं. दोनों उठीं और इकबाल को कमरे के अंदर आने के लिए इशारा किया.

इकबाल उन के पीछे कमरे में अंदर गया तो देखा शावेज टीवी देख रहा था. पिता को देख कर वह खड़ा हो गया. चारों एकदूसरे को देख रहे थे.

इकबाल ने कहा, ‘‘सुरैया, तुम ने इतनी छोटी गलती के लिए मुझे इतनी बड़ी सजा दी. तुम्हारे घर से निकलने के बाद मैं ने तुम्हारे लिए अपनी दूसरी पत्नी को भी छोड़ दिया. कहांकहां नहीं ढूंढा तुम्हें. शायद मैं यह दिन देखने के लिए जिंदा था. काश, मैं पहले ही मर गया होता.’’

इकबाल की आंखों से आंसू निकलने लगे. सुरैया के मन में पति का प्रेम उमड़ पड़ा. वह उस के आंसू पोंछने पास गई और गुजरी स्थितियों के बारे में बताने लगी. दोनों बच्चे भी अपने पिता से लिपट कर रो पड़े. उन सब को रोता देख चौधरी दारा अंदर आया तो इकबाल को देख कर ठिठक गया. सुरैया ने बताया कि यह उस के पति हैं.

जब सब रो चुके तो इकबाल ने सुरैया से घर चलने को कहा. लेकिन उस ने यह कह कर मना कर दिया कि अब वे शरीफ लोगों में नहीं जा सकते. हां, अगर शावेज जाना चाहे तो इसे ले जा सकते हो.

इकबाल अपनी बेटी शाहिदा से चलने को कहा तो उस ने मां के स्वर में स्वर मिलाया, ‘‘अब्बू, अम्मी ठीक कह रही हैं, मैं आप के साथ नहीं जा सकती.’’

जबकि शावेज ने अपने पिता से कहा, ‘‘अब्बू चलिए, मैं आप के साथ चलूंगा.’’

दोनों कमरे से निकल कर चले गए और होटल के कमरे पर आ गए. शावेज अपने पिता के साथ अपने आप को बहुत सुरक्षित महसूस कर रहा था. बाप बेटे अपनीअपनी कहानी सुनाते सुनाते सो गए. सुबह नाश्ता करने के बाद शावेज अपने पिता से इजाजत ले कर अपनी मां और बहन को समझा कर लाने के लिए चला गया. सुरैया ने शावेज को देख कर कहा, ‘‘एक रात भी नहीं काट सका अपने बाप के साथ?’’

इस पर शावेज बोला, ‘‘नहीं मां, यह बात नहीं है. तुम्हें इस सच्चाई का पता है कि यह सब तुम्हारा ही कियाधरा है. तुम ने ही हमें शराफत की दुनिया से निकाल कर इस गंदगी के ढेर पर ला पटका है.’’

शाहिदा ने गुस्से से फुफकारते हुए कहा, ‘‘यह भाषण देना बंद कर. अगर यहां रहना है तो शराफत से रह, नहीं तो अपना बोरियाबिस्तर उठा और जा यहां से.’’

‘‘तू अपनी बकवास बंद कर, मैं अम्मा से बात कर रहा हूं.’’

‘‘यह ठीक कह रही है शावेज, अगर तुझे यहां रहना है तो रह, नहीं तो मेरी भी सलाह यही है कि यहां से चला जा,’’ सुरैया ने कहा.

‘‘मां इतनी पत्थर दिल न बनो, अब्बू अपनी गलती पर बहुत शर्मिंदा हैं. अब वह भी तुम्हें ले जाने के लिए तैयार हैं. इस गंदगी से निकलो और मेरे साथ चलो.’’

इस पर शाहिदा बिफर पड़ी और चिल्ला कर उसे वहां से बाहर निकल जाने को कहा.

शावेज उस के इस व्यवहार से इतना दुखी हुआ कि वह तेजी से ऊपर वाले कमरे की ओर दौड़ा. वह वापस लौटा तो हाथ में चमकीली कटार लिए हुए था. सुरैया कुछ बोलती, इस से पहले ही उस ने कटार शाहिदा के पेट में भोंक दी. मां बचाने आई तो उस ने दूसरा वार मां पर कर दिया.

दोनों फर्श पर गिर कर तड़पने लगीं, वह तब तक वहां खड़ा रहा, जब तक वे ठंडी नहीं हो गईं. जब उसे यकीन हो गया कि दोनों जीवन की बाजी हार चुकी हैं तो कटार हाथ में लिए वह बाहर निकल गया. उस पर जिस की भी नजर पड़ी, वह इधरउधर छिप गया.

बाहर आ कर शावेज ने तांगा रोका और उस में बैठ कर सीधा थाने पहुंचा. वहां इंसपेक्टर मौजूद था. शावेज ने खूनसनी कटार इंसपेक्टर की मेज पर रख कर अपनी मां और बहन की हत्या के बारे में बता कर अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पोस्टमार्टम के बाद इकबाल मां बेटी की लाशों को अपने घर ले गया और अपने बेटे के खिलाफ थाने में हत्या की तहरीर लिख कर दे दी. इस तरह एक व्यक्ति की गलती की वजह से हंसता खेलता पूरा परिवार बरबाद हो गया.

 

बदले की आग-भाग 2: अक्को का क्या रिश्ता था स्टेशन पर मिली औरत के साथ ?

मां ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं बेटी, जिस ने पैदा किया है, वह रहने का भी इंतजाम करता है और खाने का भी. लेकिन यह बताओ बेटी कि इतना बड़ा कदम तुम ने उठाया किस लिए?’’

‘‘मां जी, मेरे साथ जो भी हुआ, वह वक्त का फेर था. मेरे साथसाथ बच्चे भी घर से बेघर हो गए. मेरे पति और मैं ने शादी अपनी मरजी से की थी. मेरे मां बाप मेरी मरजी के आगे कुछ नहीं बोल सके. शादी के कुछ सालों तक तो सब ठीक रहा, लेकिन धीरेधीरे पति का रवैया बदलता गया.’’

थोड़ा रुक कर वह आगे बोली, ‘‘शाहिदा के बाद शावेज पैदा हुआ. इस के जन्म के कुछ दिनों बाद मुझे पता चला कि इकबाल ने दूसरी शादी कर ली है. मैं ने एक दिन उन से कहा, ‘तुम ने दूसरी शादी कर ली है तो उसे घर ले आओ. हम दोनों बहनें बन कर रह लेंगे. तुम 2-2 दिन घर नहीं आते तो बच्चे पूछते हैं, मैं इन्हें क्या जवाब दूं?’

‘‘उस ने कुछ कहने के बजाए मेरे मुंह पर थप्पड़ मारने शुरू कर दिए. उस के बाद बोला, ‘मैं ने तुम्हें इतनी इजाजत नहीं दी है कि तुम मेरी निजी जिंदगी में दखल दो. और हां, कान खोल कर सुन लो, तुम अपने आप को अपने बच्चों तक सीमित रखो, नहीं तो अपने बच्चों को साथ लो और मायके चली जाओ.’

‘‘इस के बाद इकबाल अपना सामान ले कर चला गया और कई दिनों तक नहीं आया. फोन भी नहीं उठाता था. एकदो बार औफिस का चपरासी आ कर कुछ पैसे दे गया. काफी छानबीन के बाद मैं ने पता लगा लिया कि उन की दूसरी बीवी कहां रहती है. बच्चों को स्कूल भेज कर मैं उस के फ्लैट पर पहुंच गई.

‘‘कालबैल बजाने के थोड़ी देर बाद एक लड़की ने दरवाजा खोला. मैं ने अनुमान लगा लिया कि यही वह लड़की है, जिस ने मेरे जीवन में जहर घोला है. वह भी समझ गई कि मैं इकबाल की पत्नी हूं. उस ने मुझे अंदर आने को कहा. मैं अंदर गई, कमरे में सामने इकबाल की बड़ी सी फोटो लगी थी, उसे देखते ही मेरे शरीर में आग सी लग गई.

‘आपी, मैं ने उन से कई बार कहा कि वह अपने बच्चों के पास जा कर रहें, लेकिन वह मुझे डांट कर चुप करा देते हैं.’ उस ने कहा. इस के बाद उस ने मुझे पीने के लिए कोक दी.

‘‘मैं ने उस के पहनावे पर ध्यान दिया, वह काफी महंगा सूट पहने थी और सोने से लदी थी. इस से मैं ने अनुमान लगाया कि इकबाल उस पर दिल खोल कर खर्च कर रहे हैं. जबकि हमें केवल गुजारे के लिए ही पैसे देते हैं. उस ने अपना नाम नाहिदा बताया.

मैं ने कहा, ‘देखो नाहिदा, तुम इकबाल को समझाओ कि वह तुम्हें ले कर घर में आ कर रहें. हम सब साथसाथ रहेंगे. बच्चों को उन की बहुत जरूरत है. उस ने कहा, ‘आपी, मैं उन्हें समझाऊंगी.’

‘‘उस से बात कर के मैं घर आ गई. जो आंसू मैं ने रोक रखे थे, वह घर आ कर बहने लगे. शाम को इकबाल का फोन आया. उन्होंने मुझे बहुत गालियां दीं, साथ ही कहा कि मेरी हिम्मत कैसे हुई उन का पीछा करने की. मैं ने 2-3 बार उन्हें फोन किया, उन्होंने केवल इतना ही कहा कि उन्हें मेरे ऊपर भरोसा नहीं है. बच्चों के बारे में उन्होंने कहा कि उन्हें शक है कि ये उन के बच्चे नहीं हैं. फिर मैं ने सोच लिया कि अब मुझे उन के साथ नहीं रहना. वह पत्थर हो चुके हैं.’’

इतना कह कर सुरैया सिसकियां भरभर कर रो पड़ी. अक्को और उस की मां ने कहा, ‘‘आप रोएं नहीं, जब तक आप का दिल चाहे, आप यहां रहें, आप को किसी चीज की कमी नहीं रहेगी.’’

जिस आबादी में अक्को कुली का घर था, उस के आखिरी छोर पर नई आबादी थी. वह रेडलाइट एरिया था. गरमियों के दिन थे, छत पर चारपाइयां लगा दी जातीं. सब लोग छत पर ही सोते थे. शाम होते ही नई आबादी में रोशनी हो जाती, संगीत और घुंघरुओं की आवाज पर सुरैया बुरी तरह चौंकी.

अक्को ने बताया कि ये रेडलाइट एरिया है, यहां शाम होते ही नाचगाना शुरू हो जाता है. मोहल्ले वालों ने बहुत कोशिश की कि रेडलाइट एरिया यहां से खत्म हो जाए, लेकिन किसी की नहीं सुनी गई. अब हमारे कान तो इस के आदी हो गए हैं.

ऊपर छत पर खड़ेखड़े बाजार में बैठी वेश्याएं और आतेजाते लोग दिखाई देते थे. शाहिदा ने वहां का नजारा देख कर एक दिन अपने भाई शावेज से पूछा, ‘‘भाई, इन दरवाजों के बाहर कुरसी पर जो औरतें बैठी हैं, वे क्या करती हैं? कभी दरवाजा बंद कर लेती हैं तो थोड़ी देर बाद खोल देती हैं. फिर किसी दूसरे के साथ अंदर जाती हैं और फिर दरवाजा बंद कर लेती हैं.’’

शावेज ने जवाब दिया, ‘‘मुझे क्या पता, होगा कोई उन के घर का मामला.’’

उस समय शावेज भी खुलते बंद होते दरवाजों को देख रहा था. सुरैया भी यह सब रोजाना देखती थी, कुछ इस नजरिए से मानो कोई फैसला करना चाहती हो. जो पैसे वह अपने साथ लाई थी, धीरेधीरे वे खत्म हो रहे थे. बस कुछ जेवरात बाकी थे, जिन में से एक लौकेट और चेन बिक चुकी थी.

एक दिन अक्को कुली और सुरैया छत पर बैठे दीवार के दूसरी ओर उन दरवाजों को खुलता और बंद होते देख रहे थे. तभी सुरैया ने पूछा, ‘‘अक्को, धंधा करने वाली इन औरतों को पुलिस नहीं पकड़ती?’’

अक्को ने बताया कि उन्हें सरकार की ओर से धंधा करने का लाइसेंस दिया गया है. उन्हें लाइसेंस की शर्तों पर ही काम करना होता है.

सुरैया ने पूछा, ‘‘अक्को, क्या तुम कभी उधर गए हो?’’

‘‘एकआध बार अनजाने में उधर चला गया था, लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रही हो?’’ अक्को ने आश्चर्य से पूछा.

सुरैया कहने लगी, ‘‘मेरे अंतरमन में एक अजीब सी लड़ाई चल रही है. मैं इकबाल को यह बताना चाहती हूं कि औरत जब बदला लेने पर आ जाए तो सभी सीमाएं लांघ सकती है.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं?’’ अक्को चौंका.

‘‘मैं इस बाजार की शोभा बनना चाहती हूं.’’

‘‘तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया है?’’ अक्को ने साधिकार उसे डांटते हुए कहा.

‘‘अक्को तुम मेरे जीवन के उतारचढ़ाव को नहीं जानते. मैं ने इकबाल के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया. उस की खूब सेवा भी की और इज्जत भी बना कर रखी. लेकिन उस ने मुझे क्या दिया?’’ सुरैया की आवाज भर्रा गई.

मधुमक्खी पालन : रोजगार की मीठी उड़ान

यदि कृषि जगत के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो तकरीबन 40 फीसदी किसान अपने व्यवसाय से खुश नहीं हैं. बीजों व रासायनिक खादों के बढ़ते मूल्य, फसलों के समर्थन मूल्य का कम होना, समय से बिजली न मिल पाना वगैरह ऐसे कई कारण हैं, जिन से उन का काम प्रभावित हो रहा?है. ऐसी स्थिति में जरूरी हो जाता है कि वे ऐसी व्यवस्था या रोजगार करें, जिस से उन्हें कुछ अतिरिक्त आमदनी भी हो. मधुमक्खीपालन उद्योग इस में उन की भरपूर मदद कर सकता है कुछ सालों से न सिर्फ लोगों का रुझान इस की तरफ बढ़ा है, बल्कि खादी ग्राम उद्योग भी अपनी तरफ से कई सुविधाएं दे रहा है. मधुमक्खीपालन एक लघु व्यवसाय है, जिस से शहद व मोम मिलता है. खेती करने वालों के लिए यह एक सस्ता व कम मेहनत वाला रोजगार है. इस के तहत भारत सरकार ने किसी भी राष्ट्रीयकृत बैंक से 20-25 हजार रुपए लोन की व्यवस्था कर रखी है.

और अवसर : मधुमक्खीपालन उद्योग से जुड़ने वाले या तो अपना रोजगार कर सकते?हैं या प्रशिक्षण के बाद किसी सरकारी या गैरसरकारी संस्थानों में सुपरवाइजर या सहायक विकास अधिकारी या विकास अधिकारी का पद पा सकते हैं. गैर सरकारी संस्थानों व अन्य मल्टीनेशनल कंपनियों में समयसमय पर प्रशिक्षित लोगों की मांग निकलती रहती है. व्यवसाय शुरू करने में मात्र 50-75 हजार रुपए का खर्च आता है. सिर्फ 1 साल में ही मुनाफे का स्तर लाख डेढ़ लाख रुपए तक पहुंच जाता है. धीरेधीरे यह आमदनी बढ़ती जाती है.

ये भी पढ़ें- कीटनाशकों के इस्तेमाल में बरतें सावधानी

योग्यता : मधुमक्खीपालन से संबंधित कई तरह के सर्टिफिकेट, डिप्लोमा या डिगरी कोर्स किए जा सकते हैं. डिप्लोमा करने वाले के लिए विज्ञान से स्नातक होना जरूरी है, जबकि हाबी कोर्स के लिए किसी खास योग्यता की जरूरत नहीं होती. प्रशिक्षण के लिए 1 हफ्ते से ले कर 9 महीने तक के कोर्स मौजूद हैं. कम पढ़ालिखा व्यक्ति, जो इस काम में दिलचस्पी रखता हो, वह भी यह काम सफलतापूर्वक कर सकता है. प्रशिक्षण शुल्क 200 रुपए से ले कर 2500 रुपए तक है. प्रशिक्षण के दौरान मधुमक्खीपालन से ले कर शहद निकालने, रोगों से बचाव, बेहतर रखरखाव, ज्यादा शहद उत्पादन संबंधी जानकारियां भी दी जाती हैं.

वेतनमान : खुद का रोजगार कर के 50-75 हजार रुपए की पूंजी लगा कर यदि कोई घटना न हुई तो तकरीबन डेढ़ लाख रुपए हर साल कमाए जा सकते हैं, जबकि सरकारी कर्मचारियों को केंद्र सरकार द्वारा मुनासिब वेतन दिया जाता है. गैर सरकारी संस्थान अपने यहां सुपरवाइजर को 15-17 हजार रुपए तथा विकास अधिकारियों को 25 हजार रुपए तक वेतन देते हैं.

व्यावसायिक जानकारी : मधुमक्खीपालन का काम शुरू करने से पहले किसी प्रशिक्षण संस्थान से जानकारी हासिल करना काफी सहायक हो सकता है. इस के अलावा भरपूर शहद उत्पन्न करने के लिए अच्छा माहौल भी जरूरी है. अधिक शहद देने वाली मधुमक्खियों की प्रजातियों व उन्हें रोगों से बचाने की जानकारी होना भी जरूरी है. इस के अलावा मधुमक्खीपालन की नई तकनीक का ज्ञान होना भी जरूरी है. तभी यह व्यवसाय आप को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचा सकता है. इस से जुड़ी कुछ खास बातें निम्नलिखित?हैं:

ये भी पढ़ें- भारत के उत्तरीमध्य इलाकों में केले की उन्नत खेती

1 शुरू में यह व्यवसाय कम लागत से?छोटे पैमाने पर करना चाहिए.

2 मधुमक्खी पालने की जगह समतल होनी चाहिए और भरपूर मात्रा में पानी, हवा, छाया व धूप होनी चाहिए.

3 मधुमक्खीपालन की जगह के चारों ओर 1 से 2 किलोमीटर तक अमरूद, जामुन, केला, नारियल, नाशपाती व फूलों के पेड़पौधे लगे होने चाहिए.

4 मधुमक्खीपालन का सब से सही समय फरवरी से नवंबर तक का होता?है. इस दौरान मधुमक्खियों के लिए तापमान सब से सही होता?है और इसी मौसम में रानी मक्खी ज्यादा तादाद में अंडे देती है.

5 मधुमक्खियों के शत्रु मुख्य रूप से पतंगा, गिरगिट, पक्षी, छिपकली, चूहे व चीटियां वगैरह हैं. इन से बचाव जरूरी है.

ये भी पढ़ें- गाजर में होने वाली बीमारियां

प्रशिक्षण संस्थान

मधुमक्खीपालन से संबंधित जानकारी व इस में करियर बनाने के लिए निम्न प्रशिक्षण संस्थानों से संपर्क किया जा सकता?है:

1. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूसा रोड, नई दिल्ली 110012, फैक्स 011-576642, 5751719.

2.मधुमक्खीपालन केंद्र, खादी ग्राम उद्योग, राजघाट, नई दिल्ली.

3. नेशनल बी बोर्ड, 3बी इंस्टीट्यूशनल एरिया, अगस्त क्रांति मार्ग, हौज खास, नई दिल्ली.

ये  भी पढ़ें- पाले से कैसे करें फसलों की सुरक्षा

4.निदेशक उद्यान विभाग कृषि, पंत भवन, जयपुर, राजस्थान.

5.ल्यूपिन हायूपिन वेलफेयर एंड रिसर्च फाउंडेशन, कृष्णानगर, भरतपुर, राजस्थान.

6. केंद्रीय मधुमक्खीपालन अनुसंधान संस्थान, पुणे, महाराष्ट्र.

7.राष्ट्रीय बागबानी बोर्ड, लाल कोठी, जयपुर, राजस्थान.

बदले की आग-भाग 1: अक्को का क्या रिश्ता था स्टेशन पर मिली औरत के साथ ?

पूरा प्लेटफार्म रोशनी में नहाया हुआ था. कराची एक्सप्रेस अभी अभी आई थी, जो यात्रियों को उतार कर आगे बढ़ गई थी. प्लेटफार्म पर कुछ यात्रियों और स्टेशन स्टाफ के अलावा काली चादर में लिपटी अपनी 10 वर्षीया बेटी और 8 वर्षीय बेटे के साथ एक जवान औरत भी थी. ऐसा लगता था, जैसे वह किसी की प्रतीक्षा कर रही हो. अक्की अकबर उर्फ अक्को कुली उस के पास से दूसरी बार उन्हें देखते हुए उधर से गुजरा तो उस महिला ने उसे इशारा कर के अपने पास बुलाया.

अक्को मुड़ा और उस के पास जा कर मीठे स्वर में पूछा, ‘‘जी, आप को कौन सी गाड़ी से जाना है?’’

‘‘मुझे कहीं नहीं जाना, मैं ने तो केवल यह पूछने के लिए बुलाया है कि यहां चाय और खाने के लिए कुछ मिल जाएगा?’’

‘‘जी, बिलकुल मिल जाएगा, केक, रस, बिस्किट वगैरह सब कुछ मिल जाएगा.’’ अक्को ने उस महिला की ओर ध्यान से देखते हुए कहा.

गोरेचिट्टे रंग और मोटीमोटी आंखों वाली वह महिला ढेर सारे गहने और अच्छे कपड़े पहने थी. वह किसी अच्छे घर की लग रही थी. दोनों उस से लिपटे हुए थे. महिला के हाथ से सौ रुपए का नोट ले कर वह बाहर की ओर चला गया. कुछ देर में वह चाय और खानेपीने का सामान ले कर आ गया. चाय पी कर महिला बोली, ‘‘यहां ठहरने के लिए कोई सुरक्षित मकान मिल जाएगा?’’

महिला की जुबान से ये शब्द सुन कर अक्को को लगा, जैसे किसी ने उछाल कर उसे रेल की पटरी पर डाल दिया हो. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘जी, मैं कुछ समझा नहीं?’’

‘‘मैं अपने घर से दोनों बच्चों को ले कर हमेशा के लिए यहां आ गई हूं.’’ उस ने दोनों बच्चों को खुद से सटाते हुए कहा.

‘‘आप को यहां ऐसा कोई ठिकाना नहीं मिल सकता. हां, अगर आप चाहें तो मेरा घर है, वहां आप को वह सब कुछ मिल जाएगा, जो एक गरीब के घर में होता है.’’ अक्को ने कुछ सोचते हुए अपने घर का औफर दिया.

महिला कुछ देर सोचती रही, फिर अचानक उस ने चलने के लिए कह दिया. अक्को ने उस की अटैची तथा दोनों बैग उठाए और उन लोगों को अपने पीछे आने को कह कर चल दिया.

मालगोदाम वाला गेट टिकिट घर के पीछे था, जहां लोगों का कम ही आनाजाना होता था. महिला को उधर ले जाते हुए उसे कोई नहीं देख सकता था. अक्को ने वही रास्ता पकड़ा. बाहर आ कर उस ने एक औटो में सामान रखा और महिला के बेटे को अपनी गोद में ले कर अगली सीट पर बैठ गया.

औटो चल पड़ा. रेलवे फाटक पार कर के अक्को ने औटो वाले से टैक्सी वाली गली में चलने को कहा. उस गली में कुछ दूर चल कर रास्ता खराब था, जिस की वजह से औटो वाले ने हाथ खड़े कर दिए. अक्को सामान उठा कर पैदल ही उन सब को अपने घर ले गया. दरवाजे पर पहुंच कर उस ने आवाज लगाई, ‘‘अम्मा.’’

अंदर से कमजोर सी आवाज आई, ‘‘आई बेटा.’’

मां ने दरवाजा खोला. पहले उस ने अपने बेटे को देखा, उस के बाद हैरानी भरी निगाह उन तीनों पर जम गई. अक्को सामान ले कर अंदर चला गया. वह एक छोटा सा 2 कमरों का पुराने ढंग का मकान था. इस घर में मां बेटे ही रह रहे थे. बहन की शादी हो चुकी थी, पिता गुजर गए थे.

बाप कुली था, इसलिए बाप के मरने के बाद बेटे ने लाल पगड़ी पहन ली थी और स्टेशन पर कुलीगिरी करने लगा था. मां ने महिला और उस के दोनों बच्चों के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और अक्को की ओर देखने लगी.

अक्को ने कहा, ‘‘मां, ये लोग कुछ दिन हमारे घर मेहमान बन कर रहेंगे.’’

मां उन लोगों की ओर देख कर बोली, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, मेहमानों के आने से तो घर में रौनक आ जाती है.’’

सुबह हो चुकी थी, अक्को ने मां से कहा, ‘‘अम्मा, तुम चाय बनाओ, मैं नाश्ते का सामान ले आता हूं.’’

कुछ देर में वह सामान ले आया. मां, बेटे और बेटी ने नाश्ता किया. अक्को ने अपना कमरा मेहमानों को दे दिया और खुद अम्मा के कमरे में चला गया. नाश्ते के बाद तीनों सो गए.

मां ने अक्को को अलग ले जा कर पूछा, ‘‘बेटा, ये लोग कौन हैं, इन का नाम क्या है?’’

उस ने जवाब दिया, ‘‘मां, मुझे खुद इन का नाम नहीं मालूम. ये लोग कौन हैं, यह भी पता नहीं. ये स्टेशन पर परेशान बैठे थे. छोटे बच्चों के साथ अकेली औरत कहीं किसी मुसीबत में न फंस जाए, इसलिए मैं इन्हें घर ले आया. अम्मा तुम्हें तो स्टेशन का पता ही है, कैसेकैसे लोग आते हैं. किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता.’’

‘‘बेटे, तुम ने यह बहुत अच्छा किया, जो इन्हें यहां ले आए. खाने के बाद इन से पूछेंगे.’’

दोपहर ढलने के बाद वे जागे. कमरे की छत पर बाथरूम था, तीनों बारीबारी से नहाए और कपड़े बदल कर नीचे आ गए. मां ने खाना लगा दिया. आज काफी दिनों बाद उन के घर में रौनक आई थी. सब ने मिल कर खाना खाया.

खाने के बाद महिला ने मां से कहा, ‘‘मेरा नाम सुरैया है, बेटे का नाम शावेज और बेटी का शाहिदा. हम बहावलपुर के रहने वाले हैं. मेरे पति का नाम मोहम्मद इकबाल है. वह सरकारी दफ्तर में अफसर हैं.’’ कह कर सुरैया मां के साथ बरतन साफ करने लगी. इस के बाद उस ने खुद ही चाय बनाई और चाय पीते हुए बोली, ‘‘आप की बड़ी मेहरबानी, जो हमें रहने का ठिकाना दे दिया.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें