फिल्म समीक्षाः ‘द होली फिश

रेटिंगः तीन स्टार


निर्माताःहंबल बुल क्रिएशंस
लेखक व निर्देशकःविमल चंद्र पांडे और संदीप मिश्रा
कलाकारःसैयद इकबाल अहमद समेत सुमन पटेल, अश्विनी अग्रवाल, अभिनव शर्मा, निशांत कुमार, सचिन चंद्र, प्रतिमा वर्मा, शिवकांत लखन पाल, कैलास, सरोज और मुजफ्फर खान
अवधिःएक घंटा तीस मिनट
प्लेटफार्म:सिनेमा्प्रिनोर डाॅट काॅम

हर इंसान जीवन व मृत्यु के चक्र से छुटकारा पाना चाहता है.इसी चाहत के चलते सदियों से लगभग हर भारतीय पौराणिक कथाओं पर यकीन करते हुए उसी हिसाब से जीवन जीने का प्रयास करता आया है.हर इंसान कुछ मान्याताओं में भी यकीन करता है.उन्हीं मान्यताओं व विश्वासों की कहानी को फिल्मकारद्वय विमल चंद्र पांडे और संदीप मिश्रा अर्थात विमल- संदीप अपनी फिल्म‘‘द होली फिश’’में लेकर आए हैं.कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रदर्शित और सराही जा चुकी फिल्म अब इंडी-सिनेमा को शो-केस कर रहे पोर्टल Cinemapreneur.com  पर देखी जा सकती है.फिल्म का नाम भले ही अंग्रेजी में ‘‘द होली फिश है’’है, मगर यह हिंदी भाषा की फिल्म है.इसके साथ अंग्रेजी सब-टाइटल उपलब्ध हैं.

कहानीः
फिल्म की कहानी के केंद्र में उत्तर भारत के एक गाॅव के दो परिवार हैं.गाॅव के एक बुजुर्ग परशुराम (सैयद इकबाल अहमद) काफी बीमार होते हैं,जो कि कभी गांव के प्राइमरी स्कूल मंे षिक्षक थे.उनके गंभीर रूप से बीमार होने की खबर से पूरा गांव इकट्ठा हो जाता है और सभी उनके बेटे से कहते हैं कि उन्हे घर से बाहर खुली हवा मंे लिटाया जाए.गाॅव वालों की सलाह पर उनका बेटा उनके मंुॅह में गंगाजल व तुलसी के पत्ते भी डाल देता है.पर कुछ देर बाद परशुराम मृत्यु शैया से उठ खड़े होते हैं.मृत्यु को छूकर लौट आने के अनुभव से उन्हें एहसास होता है कि उन्हें अब एक नया जीवन मिला है और अब वह अपने इस जीवन का उपयोग मोक्ष प्राप्त करने के लिए करना चाहते हैं.

ये भी पढ़ें- ‘कसौटी जिंदगी 2’ में लग सकता है ताला, एकता कपूर हुईं परेशान

तभी इलाहाबाद के संगम पर लगने वाले माघ मेले लगने वाला होता है और परशुराम माघ मेले में उस मछली की तलाश में जाने का निर्णय लेते हैं,जिसके बारे में कहा जाता है देव-दानव सागर मंथन में निकले अमृत की एक बूंद इस मछली पर भी गिर गई थी.वह ‘होली फिश’यानी कि पवित्र मछली अमर है.मौनी अमावस्या को यह मछली गंगा में सतह पर आती है और जो उसे देख या छू ले वह जीवन-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है.वैसे फिल्म की शुरूआत में एक वृद्ध महिला पूजा पाठ के दौरान गाॅव की सभी औरतो को देव दानव संग्राम व मछली की इस कहानी को सुनाती है.

उधर नीची जाति की सरस(सुमन पटेल) नामक विवाहिता का पति शहर में कमायी कर रहा है.सरस अपनी सास के साथ दूसरों के खेतों पर काम करके पैसा कमाकर किसी तरह जीवन जी रही हैं.सरस का पति बिनोद कभी कभी शहर से फोन करता रहता है.गाॅव के कुछ मनचले युवकों की नजर सरस पर है.बिनोद का दोस्त बुधई,सरस को भौजाई मानता है.एक दिन वह सरस से कह देता है कि वह प्यार और दोस्ती के धर्म के बीच फंसा हुआ है.सरस भी माघ मेले मंे जाना चाहती है.

अंततः परशुराम माघ मेले के लिए प्रयाग संगम पहुॅचते हैं,तो वहीं बुधई केट्ैक्टर मे बैठकर सरस व उसकी सास पहुॅचती है.परशुराम को गंगा नदी के तट पर ‘होली फिष’की तलाश है.माघ मेले मे जहंा सभी पंडा खूब पैसा कमा रहे हैं,वहीं एक इमानदार दया नामक पंडा खाली बैठा रहता है.एक नाविक उसे आकर समझाता है,तो पंडा पूरी तरह से झूठ बोलने पर आमादा हो जाता है और परशुराम अब दया पंडा के चंगुल में फंस जाते हैं,अब उन्हे मोक्ष मिलता है या नहीं, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.जबकि मोक्ष व धर्म कर्म के लिए गंगा नहाने पहुॅची सरस के साथ क्या होता है,यह भी देखने योग्य है.

ये भी पढ़ें- संजय दत्त को लेकर सामने आई बड़ी खबर , जल्द होंगे अस्पताल से डिस्चार्ज

लेखन व निर्देशनः
लेखक व निर्देशकद्वय विमल चंद्र पांडे और संदीप मिश्रा की यह पहली फिल्म है.उनका प्रयास काफी सराहनीय है.उन्होने इस फिल्म में मनुष्य की भौतिक इच्छाओं,धर्म के पाखंडों के साथ ही मानव मन के अंदर अच्छाई व बुराई के बीच मचने वाले अंतद्र्वंद का सटीक चित्रण किया है.अधिकाधिक धन कमाने के लिए पंडा रूपी धर्म के ठेकेदार किसी भी इंसान को ‘मोक्ष’दिलाने के नाम  पर किस तरह से ठगी का जाल बुनते हैं,उस पर भी यह फिल्म करारी चोट करती  है.कम बजट में बनी इस फिल्म में कुछ तकनीकी खामियां हैं,जिन्हे नजरंदाज किया जा सकता है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...