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अहंकार के दायरे-भाग 3: नीरा ने अपने परिवार को टूटने से कैसे रोका

नीरा सन्न रह गई. कुछ पलों के लिए तो जैसे होश ही न रहा. इतने में उसे रोटी जलने की गंध आई. उस ने फुरती से गैस बंद की और पलट कर यतीन का चेहरा देखने लगी, ‘यह तुम ने क्या किया?’

‘मैं मजबूर था, भाभी. मैं स्वयं ऐसा कदम नहीं उठाना चाहता था किंतु क्या करता, अर्चना को क्या छोड़ देता? पिछले 4-5 वर्षों से उस की और मेरी मित्रता है.’

‘तुम कुछ समय तक प्रतीक्षा कर सकते थे. मैं और नरेन बाबूजी को मनाने का दोबारा प्रयास करते.’

‘कोई फायदा नहीं होता, भाभी. मैं जानता हूं, वे मानने वाले नहीं थे. उधर अर्चना के घर वाले विवाह के लिए जल्दी मचा रहे थे इसलिए विवाह में विलंब नहीं हो सकता था वरना वे लोग उस का अन्यत्र रिश्ता कर देते.’

‘अब क्या होगा, यतीन? अर्चना को तुम घर कैसे लाओगे?’ नीरा बुरी तरह घबरा रही थी.

‘मैं अर्चना को तब तक घर नहीं लाऊंगा जब तक बाबूजी उसे स्वयं नहीं बुलाएंगे. अब वह मेरी पत्नी है. उस का अपमान मैं हरगिज सहन नहीं कर सकता,’ यतीन दृढ़ स्वर में बोला.

‘फिर उसे कहां रखोगे?’

‘फिलहाल कंपनी की ओर से मुझे फ्लैट मिल गया है. मैं और अर्चना वहीं रहेंगे,’ यतीन धीमे स्वर में बोला और वहां से चला गया.

पिछले कुछ दिनों से यतीन कितना परेशान था, यह तो उस का दिल ही जानता था. भैयाभाभी और बाबूजी से अलग रहने की कल्पना उसे बेचैन कर रही थी. वह किसी को भी छोड़ना नहीं चाहता था किंतु परिस्थितियों के सम्मुख विवश था.

इस के बाद के दिनों की यादें नीरा को अंदर तक कंपा देतीं. बाबूजी को जब यतीन के विवाह के विषय में पता चला तो वे बुरी तरह से टूट गए. उन की हठधर्मी बेटे को विद्रोही बना देगी, इस का उन्हें स्वप्न में भी गुमान न था. उन्होंने बेटों को पालने में बाप की ही नहीं, मां की भूमिका भी निभाई थी. बेटों के पालनपोषण में स्वयं का जीवन होम कर डाला था. किंतु एक लड़की के प्रेम में पागल बेटे ने उन के समस्त त्याग को धूल में मिला दिया था.

अब बाबूजी थकेथके और बीमार रहने लगे थे. नीरा के आने से घर की जो खुशियां पूर्णिमा के चांद के समान बढ़ रही थीं, यतीन के जाते ही अमावस के चांद की तरह घट गईं. नीरा की दशा उस चिडि़या की तरह थी जिस के घोंसले का तिनका बिखर कर दूर जा गिरा था. वह उस तिनके को उठा लाने की उधेड़बुन में लगी रहती थी.

आज जब उस ने बाबूजी को यतीन की फोटो के समक्ष रोते देखा तो विकलता और भी बढ़ गई. अगले दिन नीरा बाजार गई हुई थी. जब लौटी, उस के साथ एक अन्य युवती भी थी. बाबूजी बाहर लौन में बैठे थे.

नीरा ने उस का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘बाबूजी, यह मेरी सहेली पूजा है. हम दोनों एक ही साथ पढ़ती थीं. इस का इस शहर में विवाह हुआ है. आज मुझे अचानक बाजार में मिल गई तो मैं इसे घर ले आई.’’

पूजा ने आगे बढ़ कर बाबूजी के पांव छू लिए. बाबूजी ने उस के सिर पर हाथ रख कर पास पड़ी कुरसी पर बैठ जाने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘बैठो बेटी, कहां काम करते हैं तुम्हारे पति?’’

‘‘जी, एचएएल हैदराबाद में.’’

‘‘अभी पूजा यहां अकेली है, बाबूजी. जब इस के पति को वहां कोई अच्छा मकान मिल जाएगा, वे इसे ले जाएंगे,’’ नीरा ने कहा.

बाबूजी एचएएल का नाम सुन कर खामोश हो गए. यतीन भी तो यहां इसी फैक्टरी में  काम करता था. दर्द की एक परछाईं उन के चेहरे पर से आ कर गुजर गई किंतु शीघ्र ही उन्हें पूजा की उपस्थिति का भान हो गया और उन्होंने स्वयं को संभाल लिया. इस के बाद वे, पूजा और नीरा काफी देर तक बातचीत करते रहे.

जब पूजा जाने लगी तो बाबूजी ने कहा, ‘‘बेटी, अब तो तुम ने घर देख लिया है, आती रहना.’’

‘‘जी बाबूजी, अब जरूर आया करूंगी. मैं भी घर में अकेली बोर हो जाती हूं.’’

इस के बाद पूजा अकसर नीरा के घर आने लगी. धीरेधीरे वह बाबूजी से खुलने  लगी थी. वे तीनों बैठ कर विभिन्न विषयों पर बातचीत करते, हंसते, कहकहे लगाते और कभीकभी ताश खेलते.

पूजा ने अपने स्वभाव और बातचीत से बाबूजी का मन मोह लिया था. बाबूजी भी उसे बेटी के समान प्यार करने लगे थे. वह 3-4 दिनों तक न आती तो वे उस के बारे में पूछने लगते थे. पूजा नीरा को घर के कामों में भी सहयोग देने लगी थी.

कुछ दिनों बाद न जाने क्यों पूजा एक सप्ताह तक न आई. एक दिन बाबूजी नीरा से बोले, ‘‘पूजा आजकल क्यों नहीं आ रही है?’’

‘‘मैं आप को बताना भूल गई बाबूजी, कल पूजा का फोन आया था. वह बीमार है.’’

‘‘बीमार है? और तुम मुझे बताना भूल गईं. तुम से ऐसी लापरवाही की उम्मीद न थी. जाओ, उसे देख कर आओ. उसे किसी चीज की आवश्यकता हो तो लेती जाना. आखिर हमारा भी तो उस के प्रति कुछ फर्ज बनता है.’’

बाबूजी की पूजा के प्रति इस ममता को देख कर नीरा मुसकरा उठी. पूजा ने बाबूजी के मन में अपना स्थान बना लिया था, फिर भी यतीन का अभाव उन्हें खोखला बना रहा था. नरेन, नीरा और पूजा के अथक प्रयासों के बावजूद उन का स्वास्थ्य दिन पर दिन गिरता जा रहा था.

एक रात बाबूजी को दिल का दौरा पड़ा. वे बेहोश हो गए. नरेन ने यतीन को भी फोन कर दिया था. वह और अर्चना तुरंत अस्पताल पहुंचे. सारी रात आंखों में ही कट गई.

यतीन की दशा सब से खराब थी. वह बारबार रो पड़ता था. नीरा ही उसे तसल्ली दे रही थी. सुबह के समय बाबूजी को होश आया. समय पर डाक्टरी चिकित्सा मिल जाने के कारण खतरा टल गया था. बाबूजी के होश में आने पर यतीन सामने से हट गया. सोचा, हो सकता है उस को देख कर उन के दिल को धक्का लगे और उन की दशा फिर से बिगड़ जाए.

10 दिनों तक बाबूजी अस्पताल में रहे. नरेन और नीरा उन की सेवा में जुटे रहे. घर का सारा काम पूजा ने संभाला. जिस दिन बाबूजी को घर आना था, पूजा ने सारा घर मोमबत्तियों से सजा दिया था. जिस समय वे कार से उतरे, उस ने आगे बढ़ कर बाबूजी के चरण स्पर्श किए. नरेन और नीरा उन्हें अंदर ले आए.

‘‘बाबूजी, पूजा ने आप की बहुत सेवा की है,’’ नीरा ने उन्हें पलंग पर बैठाते हुए कहा.

‘‘हमेशा सुखी रहो बेटी. वे लोग कितने सुखी होंगे जिन्हें तुम्हारे जैसी बहू मिली है,’’ बाबूजी एक क्षण खामोश रहे. फिर आह सी भरते हुए दुखी स्वर में बोले, ‘‘नरेन ने मेरी पसंद से विवाह किया, देखो कितना खुश है. नीरा हजारों में एक है. काश, यतीन ने भी कहा माना होता तो उस की बहू भी तुम दोनों जैसी होती.’’

नीरा को लगा, यदि अब उस ने बाबूजी से अपने मन की बात न कही तो फिर बहुत देर हो जाएगी. जीवन में अनुकूल क्षण बारबार नहीं आते. वह उन के समीप जा बैठी. उस ने आंखों ही आंखों में नरेन से अनुमति मांगी और बोली, ‘‘आप की इस बेटी से बहुत बड़ा अपराध हो गया है बाबूजी. मुझे क्षमा कर दीजिए.’’

‘‘कौन सा अपराध?’’ बाबूजी हैरान हो उठे.

नीरा ने उन के घुटनों पर सिर रख दिया और डरतेडरते बोली, ‘‘पूजा जिस घर की बहू है, वह घर यही है, बाबूजी. यह पूजा नहीं, आप की दूसरी बेटी अर्चना है.’’

‘‘अर्चना यानी यतीन की पत्नी? इतने दिनों तक तुम मुझ से…’’

‘‘बाबूजी, मैं ने यह अपराध आप को धोखा देने या दुख पहुंचाने के उद्देश्य से नहीं किया. मैं और नरेन चाहते हैं, हम सब आप की छत्रछाया में रहें. यह घर एक घोंसले के समान है, बाबूजी. इस के तिनके को बिखरने मत दीजिए, इन्हें समेट लीजिए,’’ कहतेकहते नीरा रोने लगी.

बाबूजी की आंखों में भी आंसू आ गए. कुछ तो नीरा की निष्ठा और कुछ अर्चना का सरल स्वभाव व सेवाभावना उन्हें कमजोर बना रही थी. साथ ही, हालात ने उन के और यतीन के बीच जो दूरी पैदा कर दी थी उस ने उन की हठधर्मिता को कमजोर बना डाला था. उन्होंने स्नेहपूर्वक नीरा को उठाया फिर अर्चना को अपने पास बैठा लिया और अर्चना की तरफ देख कर कहा, ‘‘बेटी, जीवन में यदि किसी को अपना आदर्श बनाना तो नीरा को ही बनाना. इस के प्रयत्नों के फलस्वरूप इस घर की खुशियां वापस आई हैं,’’ फिर उन्होंने नरेन को यतीन को बुलाने भेज दिया.

वास्तव में व्यक्ति अपने झूठे अहंकार के दायरे में कैद रह कर स्वयं ही अपने जीवन में दुखों का समावेश कर लेता है. बाबूजी ने सोचा, यदि वे अपने इस अहं के दायरे से बाहर आ कर भावनाओं के साथसाथ विवेक से भी काम लेते तो उन बीते दिनों को भी आनंदमय बना सकते थे जो उन्होंने और उन के परिवार ने दुखी रह कर गुजारे थे. उन्होंने खिड़की में से देखा, यतीन नरेन के साथ कार से उतर रहा है. बाहर मोमबत्तियों की झिलमिलाती लौ भविष्य को अपने प्रकाश से आलोकित कर रही थी.

अहंकार के दायरे-भाग 2: नीरा ने अपने परिवार को टूटने से कैसे रोका

दीवाली के बाद आने के लिए लिख दें,’ इतना कह कर नीरा चली गई.

दीवाली से 2 दिन पहले यतीन का नियुक्तिपत्र आ गया तो दीवाली की खुशी दोगुनी हो गई. उसे एचएएल में बहुत अच्छी नौकरी मिली थी.

एक दिन दोपहर के समय नीरा घर पर अकेली थी. सब अपनेअपने काम पर गए हुए थे. तभी दरवाजे की घंटी बजी. उस ने उठ कर दरवाजा खोला तो देखा सामने एक लड़की खड़ी थी. उस के हाथ में एक ब्रीफकेस था. वह नीरा से बोली, ‘नमस्ते दीदी. मैं एक साबुन कंपनी की तरफ से आई हूं. आप अपने घर में कौन सा साबुन इस्तेमाल करती हैं?’

नीरा उस समय गाजर का हलवा बना रही थी. वह बोर सी होती हुई बोली, ‘देखो, फिर कभी आना. इस समय मैं बहुत व्यस्त हूं. वैसे भी हमारे घर में साबुन और अन्य वस्तुएं कैंटीन से आती हैं.’

‘मैं आप का अधिक समय नहीं लूंगी. आप बस एक नजर देख लीजिए.’

‘नहींनहीं, अभी तो बिलकुल समय नहीं है,’ कह कर नीरा अंदर जाने को मुड़ी कि तभी न जाने कहां से यतीन प्रकट हो गया. वह हंसते हुए नीरा की बांह पकड़ कर बोला, ‘2 मिनट तो ठहरो भाभी, ऐसी भी क्या जल्दी है. साबुन न भी देखो, अर्चना को तो देख लो.’

‘अरे, यह अर्चना है?’ नीरा आश्चर्य व्यक्त करते हुए प्रसन्न हो उठी, ‘तुम दोनों ने मिल कर मुझे बेवकूफ बनाया. आओ अर्चना,’ नीरा ने उसे प्यार से अपने पास बैठा लिया, ‘कहां से घूम कर आ रहे हो तुम दोनों?’

‘भाभी, आज मैं औफिस से जल्दी आ गया था. अर्चना को तुम से मिलवाने लाना था न.’

‘यह तुम ने बहुत अच्छा किया, यतीन. मैं तो स्वयं ही तुम से कहने वाली थी.’

अर्चना करीब 2 घंटे वहां बैठी रही. नीरा ने उस से बहुत सी बातें कीं. जब यतीन उसे छोड़ कर वापस आया तो नीरा ने कहा, ‘लड़की मुझे पसंद है. अपने लिए मुझे ऐसी ही देवरानी चाहिए.’

‘सच, भाभी,’ प्रसन्नता के अतिरेक में यतीन चहक उठा, ‘बस फिर तो भाभी, बाबूजी और भैया को ऐसी पट्टी पढ़ाओ कि वे लोग तैयार हो जाएं.’

‘परंतु अर्चना राजपूत है और हम लोग ब्राह्मण. मुझे डर है, बाबूजी इस रिश्ते के लिए कहीं इनकार न कर दें.’

‘सबकुछ तुम्हारे हाथ में है, भाभी. तुम कहोगी तो बाबूजी मान जाएंगे.’

किंतु बाबूजी सहमत न हुए. नरेन को तो नीरा ने तुरंत राजी कर लिया था मगर बाबूजी के समक्ष उस की एक न चली. एक दिन रात को नरेन और नीरा ने जब इस विषय को छेड़ा तो बाबूजी ने क्रोधित होते हुए कहा, ‘तुम लोगों ने यह सोच भी कैसे लिया कि मैं इस रिश्ते के लिए सहमत हो जाऊंगा. यतीन के लिए मेरे पास एक से एक अच्छे रिश्ते आ रहे हैं.’

‘वह भी बहुत अच्छी लड़की है, बाबूजी. आप एक बार उस से मिल कर तो देखिए. सुंदर, पढ़ीलिखी और अच्छे संस्कारों वाली लड़की है.’

‘किंतु है तो राजपूत.’

‘जातिपांति सब व्यर्थ की बातें हैं, बाबूजी, हमारे ही बनाए हुए ढकोसले. अगर लड़के और लड़की के विचार मेल खाते हों, दोनों एकदूसरे को पसंद करते हों तो मेरे विचार में आप को आपत्ति नहीं होनी चाहिए,’ नरेन पिताजी को समझाते हुए बोले.

‘लड़के और लड़की की पसंद ही सबकुछ नहीं होती. कभी सोचा है, लोग क्या कहेंगे? रिश्तेदार क्या सोचेंगे? आखिर रहना तो हमें समाज में ही है न. आज तक इस खानदान में दूसरी जाति की बहू नहीं आई है.’

‘रिश्तेदारों की वजह से क्या आप अपने बेटे की खुशियां छीन लेंगे?’

‘मुझ से बहस मत करो, नरेन. मैं किसी की खुशियां नहीं छीन रहा. तुम मुझे नहीं यतीन को समझाओ. यह प्रेम का चक्कर छोड़ कर जहां मैं कहूं वहां विवाह करे. उस के लिए अर्चना से भी अच्छी लड़की ढूंढ़ना मेरा काम है. व्यर्थ की भावुकता में कुछ नहीं रखा.’

बाबूजी उठ कर बाहर चले गए. इस का मतलब था, अब वे इस विषय पर और बात नहीं करना चाहते थे.

नीरा परेशान रहने लगी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस समस्या को कैसे सुलझाए. एक ओर बाबूजी का हठी स्वभाव, दूसरी ओर यतीन की कोमल भावनाएं. दोनों में सामंजस्य किस प्रकार स्थापित करे.

जब से यतीन को बाबूजी के इनकार के विषय में बताया था, वह खामोश रहने लगा था. उस का अधिकांश समय घर से बाहर व्यतीत होता था. नीरा को भय था कि कहीं यह खामोशी आने वाले तूफान की सूचक न हो.

एक दिन नीरा रसोई में खाना बना रही थी. यतीन वहीं आ कर खड़ा हो गया और बोला, ‘भाभी, मैं आप से कुछ कहना चाहता हूं.’ नीरा का हृदय जोरजोर से धड़कने लगा कि न जाने यतीन क्या कहने वाला है. उस ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उस की ओर देखा.

‘मैं ने अर्चना से विवाह कर लिया है,’ यतीन नीरा से नजरें चुराते हुए बोला.

कोरोना ने बढ़ाया‘बर्ड फ्लू‘ का डर

वैसे तो बर्ड फ्लू पहले भी फैल चुका है. इस बार कोरोना वायरस के डर से बर्ड फ्लू तेजी से लोगों में डर की वजह बन गया. कोराना वायरस और बर्ड फ्लू के वायरस के लक्षण काफी मिलते जुलते है. बर्ड फ्लू का असर सबसे अधिक खानेपीने की दुकानों पर पडा. जहां ‘चिकन और अंडे‘ और उससे तैयार खाने की व्यंजन मिलते है. बर्ड फ्लू का असर पोल्ट्री फार्म के बिजनेस पर भी पडा. उत्तर प्रदेश में मुर्गी पालने वालों की संख्या 1 हजार से अधिक है. एक कारोबारी 25 से 30 लाख लगाकर बिजनेस शुरू  करता है. पोल्ट्री फार्म में दो तरह का कारोबार होता है. पहला ब्रायलर यानि खाने वाला मुर्गा और दूसरा लेयर यानि अंडे देने वाली मुर्गी हो होता है. बर्ड फ्लू के कारण यह कारोबार 60 फीसदी घट गया.

खाने के लिये एक किलो मुर्गा तैयार करने में कम से कम 1 सौ रूपये की लागत आती है. यह अपने दाम पर ही नही बिकने रहा है. मीट खाने के शौकीनों  में ज्यादातर लोग चिकन और अंडे की जगह मटन खाने लगे है. ‘नवाब एंड निजाम‘ नाम से लखनऊ और हैदराबाद के व्यंजनों को रेस्त्रां चला रही हिना शिराज कहती है ‘कोरोना के कारण होटल और रेस्ट्रा  पहले से ही प्रभावित थे. कोरोना का डर लोगों में खत्म ही हो रहा था कि बर्ड फ्लू ने दस्तक दे दी. इससे होटल में मीट खाने वालों की संख्या पर असर पडा है.’
अंडे का कारोबार कर रहे जफर बताते है ‘हम लोग पंजाब और हैदराबाद से अंडे मंगाते थे. अब मंगाना बंद कर दिया है. हमारा थोडा बहुत जो काम है वह यहां के अंडो से ही चल रहा है. ‘चिक एंड चिन‘ रेस्ंत्रा चला रहे फुजैल अब्दुला बताते है ‘बर्ड फ्लू का डर खाने वालों में दिख रहा है. अब लोग इससे मिलते जुलते खाने की तरफ जा रहे है.’

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पोल्ट्री फार्म का बिजनेस करने वाले मोहम्मद शोएब कहते है ‘मीट के रेस्ंत्रा चलाने वालों पर उतना असर नहीं हुआ. वह चिकन और अंडे की जगह मटन, मछली से काम चला लेगे. लेकिन पोल्ट्री फार्म का बिजनेस करने वालों पर अधिक असर पडा. बर्ड फ्लू से इन कारोबारियों का नुकसान तो हो ही रहा है प्रशासन भी नियम कानून की आड में परेशान भी किया जा रहा है.

देश भर में बर्ड फ्लू का असर: बर्ड फ्लू उत्तर प्रदेश को मिलाकर देश के 11 राज्यों तक फैल चुका है. छत्तीसगढ़ के बालोद में बर्ड फ्लू की पुष्टि के बाद गिधाली के पोल्ट्री फार्म की 10 हजार मुर्गियों को दफनाया गया. संक्रमित पोल्ट्री फॉर्म को सील कर दिया गया है. इसके संचालक और वहां काम करने वाले 2 कर्मचारियों समेत 15 लोगों को होम आइसोलेशन में रहने के लिये कहा गया. इसी फार्म हाउस में इससे पहले लगभग 1200 मुर्गियों को दफनाया गया था. खतरे को देखते हुये 10 किलोमीटर के इलाके में हाईएलर्ट किया गया.

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पंजाब के जालंधर में बर्ड फ्लू के मिले हैं. जिन 11 राज्यों में बर्ड फ्लू का सकंट गहरा उनमें केरल, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ प्रमुख रहे. केवल मुर्गे ही इसके असर में नहीं आये. कौवे और दूसरे पक्षी भी बर्ड फ्लू के असर में आये. कई जगहों से इनके मरने की जानकारी मिली. बर्ड फ्लू के असर को रोकने के लिये चिडियाघरों में बंद पक्षियों को भी दर्शको से दूर रखा जाने लगा. उनको बाडों में कैद करके रखा गया.

बर्ड फ्लू का असर अलग अलग राज्यों में अलग तरह से दिखा. प्रवासी पक्षियों में भी इसका असर देखने मिला. हिमाचल प्रदेश में 4874 विदेशी पक्षियों की मौत हुई. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि बर्ड फ्लू से घबराने की जरूरत नहीं है.  प्रदेश में केवल पौंग बांध में ही वायरस से पक्षियों की मौत हुई है. सावधानी बस प्रदेश में बाहर से आ रही पोल्ट्री की सप्लाई रोक दी गई.

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मध्य प्रदेश के 27 जिलों में बर्ड फ्लू का असर दिखाई दिया. इनमें हरदा, बुरहानपुर, छिंदवाड़ा, डिंडोरी, मंडला, सागर, धार और सतना शामिल हैं. हरदा के रहटगांव में मुर्गी में वायरस मिला. यहां एक किलोमीटर के दायरे में मुर्गियों को मारा गया राजस्थान के जयपुर में चिडियाघर में इसका असर दिखा. राजस्थान के 16 जिलों में इसका असर फैला. जयपुर के चिडियाघर मंे कॉमन डक समेत 22 प्रजातियों के करीब 370 पक्षी हैं. इनमें से 10 कॉमन डक, 1 ब्लैक स्टार्क और 2 पैलिकन संक्रमित पाई गई. कुछ कॉमन डक, एक ब्लैक स्टार्क और एक पैलिकन की मृत्यु के बाद चिडियाघर बंद किया गया. राजस्थान में पक्षियों की मौत का आंकड़ा अब 5 हजार के करीब पहुंच चुका है. इनमें से 3495 कौवे, 261 मोर, 367 कबूतर और 792 अन्य पक्षी शामिल है.

खतरनाक है बर्ड फ्लू वायरस: बर्ड फ्लू को ‘एवियन इनफ्लुएंजा वायरस’ भी कहते हैं. बर्ड फ्लू के सबसे कॉमन ‘एच5एन1’ वायरस है. यह एक खतरनाक वायरस है जो चिड़ियों के साथ इंसान और दूसरे जानवरों को भी संक्रमित कर सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक ‘एच5एन1’ को 1997 में खोजा गया था. इस वायरस से संक्रमित होने पर 60 फीसदी मामलों में मौत हो जाती है. बर्ड फ्लू का संक्रमण  के मामले में वायरस का असर शरीर में लम्बे समय तक रहता है. पक्षियों में संक्रमण होने पर वायरस उसमें 10 दिन तक रहता है. यह मल और लार के रूप से बाहर निकलता रहता है. इसे छूने या सम्पर्क में आने पर संक्रमण हो सकता है.

बर्ड फ्लू इनफ्लुएंजा एक जूनोटिक बीमारी है अर्थात जानवरों में बहुतायत में पाई जाती है. कभी-कभी इसका संक्रमण इंसानों में भी देखने को मिलता है. यह इनफ्लुएंजा वायरस का एक प्रकार है जो पक्षियों में एक से दूसरे में हवा के जरिए फैलता है. संक्रमण की वजह से प्रभावित पक्षियों की नाक, गले और सांस नली में सूजन आ जाती है. सूजन की वजह से उन्हें सांस लेने में कठिनाई होती है और इससे उनकी मौत हो जाती है. कौआ और मुर्गी जैसे पक्षी इस रोग से ज्यादा प्रभावित होते हैं.

कोरोना वायरस की वजह से बढ गया डर: इनफ्लुएंजा वायरस की सबसे बड़ी विकृति है कि इसमें दो तरह के परिवर्तन लगातार होते रहते हैं. एक एंटीजनिक शिफ्ट, जिसके तहत एंटीजन की प्रकृति में बड़ा परिवर्तन होता है और दूसरा एंटीजनिक डिफ्ट, जिसमें छोटे-छोटे प्रकार के म्यूटेशन (जीन में बदलाव) वायरस में लगातार होते रहते हैं. यही कारण है कि इनफ्लुएंजा में कोई भी वैक्सीन लंबे समय तक कारगर नहीं होती है. जब कोई पक्षी या पक्षियों का समूह एवियन इनफ्लुएंजा वायरस के संक्रमण से ग्रस्त होता है तो उनके संपर्क में आने वाले इंसान तक यह वायरस पहुंच सकता है और उन्हें भी बीमार कर सकता है. वायरस में म्यूटेशन की वजह से कभी-कभार ऐसा भी हो सकता है कि पक्षियों में फैलने वाले वायरस में इंसानों में फैलने की क्षमता विकसित हो जाए. बीमारी जितनी तेजी से पक्षियों में फैलती है, वायरस में म्यूटेशन भी उतनी ही तेजी से होता है. बर्ड फ्लू का संक्रमण फैलने पर इंसानों को भी अलर्ट कर दिया जाता है जिससे यह बीमारी इंसानों में न फैले.

ऐसे में सावधान रहने की जरूरत होती है. किसी तरह से पक्षियों के संपर्क में आने पर यदि सर्दी, खांसी, बुखार, गले में दर्द और सांस लेने में तकलीफ हो तो डॉक्टर को दिखाएं. डाक्टर की सलाह के बिना कोई दवा नहीं खानी चाहिए. यदि संक्रमण है तो पूरी तरह से चिकित्सकीय दिशा निर्देशों को अपनाएं. बचाव के लिये जरूरी है कि जिस जगह पर पक्षी मरे मिले हों वहां सेनेटाइजेशन किया जाना चाहिए. शहर और गांव के लोगों को इस तरह से जागरूक किया जाना चाहिए कि वह पूरी सतर्कता बरतें.

इतना भी संवेदनशील होना ठीक नहीं कि दिमागी हालत खराब हो जाए

सदियों से माना जा रहा है कि महिलाओं का हृदय कोमल होता है. पर कोई महिला पुरुष की अपेक्षा कठोर भी हो सकती है और कोई पुरुष भी महिला की अपेक्षा संवेदनशील हो सकता है. कुछ भी हो, पर यह खूबी मानसिक तनाव देने वाली होती है. महिलाएं बहुत जल्दी विश्वास कर लेती हैं, इसलिए वे जल्दी ही हर्ट भी होती हैं. वे कुछ भी गलत सहन नहीं कर सकतीं.
संवेदना यानी कि समवेदना यानी कि किसी की वेदना उसी की तरह अनुभव करने वाली भावना. यह भावना रखने वाला अदमी संवेदनशील माना जाता है. इस मामले में महिलाओं को अधिक संवेदनशील कहा गया है. कुछ हद तक यह सच भी है. अब तो ट्रैजडी वाली फिल्में ज्यादा आती नहीं हैं. ढ़ाईतीन दशकों पहले हर फिल्म में इस तरह की घटनाएं जरूर दिखाई जाती थीं और उस समय सिनेमाघर में सिसकने की आवाजें निश्चित सुनाई देती थीं और सिसकने की वे आवाजें महिलाओं की होती थीं.

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इस का मतलब यह हुआ कि संवेदनशील महिलाएं दूसरे की भावना को बहुत गहराई से अनुभव करती हैं. जो दूसरे की भावना को गहराई से अनुभव करती हो, वह अपने प्रति कितना संवेदनशील होगी? ऐसी महिला को अगर कोई मजाक में भी कोई बुरी बात कह देता है तो कई दिनों तक उस की नींद हराम रहती है. उसे खाना भी नहीं अच्छा लगता. उस की भावनाओं पर हुए इस आघात का सीधा असर पहले मैंटल हैल्थ पर और फिर उस के बाद फिजिकल हैल्थ पर पड़ता है.

बहुत जल्दी विश्वास करना : महिलाएं बहुत जल्दी विश्वास कर लेती हैं. इसीलिए वे तेजी से हर्ट भी होती हैं. वे कुछ भी गलत नहीं सहन कर सकतीं. वे अपने खतरे पर दूसरे की हैल्प करने को तत्पर रहती हैं. अगर उन्हें हर्ट करने वाला माफी मांग लेता है तो वे सरलता से दूसरे की गलती को माफ कर देती हैं. यह गुण बेशक अच्छा है, परंतु महिलाओं के इस अच्छे गुण का पौजिटिव परिणाम क्या सचमुच उन के घर-परिवार-आफिस-समाज पर पड़ता है? यह जानने के लिए कुछ उदाहरण देखते हैं-

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12-13 साल की संवेदनशील बेटी जब देखती है कि उस के पैरेंट्स उस के भाई को ओवर पेंपरिंग कर रहे हैं और उस के प्रति अन्याय कर रहे हैं तो उस की संवेदनशीलता पर नकारात्मक असर पड़ता है. युवा होने पर जब दर्जनों लड़के शादी के लिए रिजैक्ट कर देते हैं तो उन की संवेदनशीलता घायल होती है, क्योंकि उन के सपने जो धराशायी होते हैं. यह बात सच है कि महिलाए अधिक संवेदनशील होती हैं. परंतु सभी महिलाओ में यह बात एकसामान नहीं होती. कालेज में भेदभाव सहना पड़ता है तो अधिक संवेदनशील लड़कियां मन से घायल होती हैं. कम संवेदना रखने वाली महिलाएं ‘यह सब तो जिंदगी में चलता रहता है’ मन को यह आश्वासन दे कर शांत हो जाती हैं. हमारे समाज में सभी व्यक्ति सभी कामों में आसपास के सभी लोगों की संवेदना का ख़याल नहीं रख सकते. परिणामस्वरूप हर मौके और हर स्थान पर अधिक संवेनशील महिलाओं का हृदय घायल होता रहता है. सो, वे बातबात में हताशा, निराशा और आघात से पीड़ित होती रहती हैं. आसपास के लोग उन की इस अधिक संवेदनशीलता के बारे में व्यंग्य भी मारते रहते हैं. परंतु वे अपनी संवेदना की धार गोठिल नहीं होने देतीं.

प्रैक्टिकल महिला :संवेदना तर्क के म्यान में रहती हो, ऐसी महिलाएं नहीं अच्छी लगतीं. पीड़ा देने वाली बातों की वास्तविकता को ध्यान में रख कर वे आगे बढ़ती हैं. अन्याय की सोच को खंगाल कर खुद को स्वस्थ करती हैं. ऐसी महिला को समाज में प्रैक्टिकल महिला कहा जाता है. अगर इसे तर्क के रूप में सोचें तो महिलाओं को प्रैक्टिकल होना ही चाहिए. पर प्रकृति ने सभी का भावनात्मक तंत्र पहले ही बना दिया है, इसलिए संवेदनशील महिलाएं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सकतीं. उदाहरण के लिए, एक संवेदनशील महिला का पति सब के सामने कहता है कि ‘तुम्हारे पास अक्ल नाम की कोई चीज नहीं है.’ यह कहने वाले पति को पता पहीं कि उस की इस बात से पत्नी का दिल टूट जाएगा और वह कमरे में जा कर अकेले में रोएगी और कई दिनों तक इसी बात को बिसूरती रहेगी. इस से उस के चेहरे की हंसी और आंखों की नींद गायब हो जाएगी. इस बीच वह अपने काम भूल जाएगी और छोटीछोटी बातों पर दूसरे पर गुस्सा करेगी. इस का असर उस के अपने मन के साथ तन पर भी पड़ेगा. जबकि उस की जगह कोई प्रैक्टिकल महिला होगी तो वह पति को तार्किक जवाब दे कर खुश होगी अथवा पति का स्वभाव ही ऐसा है, यह सोच कर इस बात पर वहीं पूर्णविराम लगा देगी.

संवेदनाओं को घायल करना : हमारे परिवारों में महिलाओं की संवेदनाओं को अनेक तरह से घायल किया जाता है. उस के मायके वालों को ताना मार कर उसे चोट पहुंचाई जाती है. घर के महत्त्वपूर्ण निर्णय से उसे बाहर रखा जाता है. उस की स्वतंत्रता और इच्छाओें का गला घोंटा जाता है. मैरिटल रेप होता है. बच्चों से ले कर परिवार के किसी भी सदस्य की जिंदगी में कुछ गलत होता है, तो उस का दोष महिलाओं के सिर मढ़ दिया जाता है. अगर वह कुछ कहना चाहती है तो ‘तुम्हें इस बारे में क्या पता’ यह कह कर उस का अपमान किया जाता है. तर्क की लगाम से संवेदना को लगाम में रखने वाली महिलाओं पर इस सब का कोई असर नहीं होता. कुछ जो लड़ाकू स्वभाव की महिलाएं होती हैं, वे लड़झगड़ कर अपना अधिकार पाने की कोशिश करती हैं. जबकि, संवेदनशील महिलाएं अगर इस तरह का कोई अन्याय होता है तो सिर्फ रोती हैं, दुखी होती हैं, खुद को सब से अलग कर लेती हैं. अपने ऊपर हुए अन्याय के लिए खुद को जिम्मेदार मानती हैं. हमेशा गिल्टी फील करती हैं.इस सब का क्या परिणाम होता है? उन की तबीयत खराब होती है. शरीर में तरहतरह की गड़बड़ियां होती हैं. बीमारियां लगती हैं. खुद को व्यर्थ और असहाय समझती हैं. अतिशय विचार, अतिशय गिल्टी और अतिशय भावनात्मकता मन पर हमेशा नकारात्मक असर करती है.

ज्यादा संवेदनशील व्यक्ति ही मानसिक रोग का शिकार बनते हैं. उदासी, डर, आत्मविश्वास का अभाव, हमेशा तनाव, सैल्फ रिस्पेक्ट की कमी, अपराधबोध, चिड़चिड़ापन, हमेशा रोना आना और जीवन से रुचि का खत्म हो जाना जैसे कई मानसिक सवाल पैदा होते हैं. ये उसे तनमन से असमय बूढ़ा बना देते हैं.

तरहतरह के लांछन : जो महिला अधिक संवेदनशील और रो कर संतोष कर लेने वाले स्वभाव की होती है, उसे लोग और दुखी करते हैं. परंतु दुख की बात यह है कि हमारे यहां न तो महिला की संवेदनशीलता का न तो उस के मानसिक सवालों को जितनी चाहिए उतनी मात्रा में गंभीरता से महत्त्व नहीं दिया जाता. महिला बारबार रोती है तो उसे नाटक मान लिया जाता है. उदास रहती है तो कहा जाता है कि यह है ही ऐसी, जब देखो तब मुंह लटकाए रहती है. तनाव का अनुभव करती है तो आरोप लगता है कि यह काम बिगाड़ने वाली है. महिलाओं के इन मानसिक सवालों के लिए खुद महिलाएं ही नहीं, अगलबगल के लोग या वातावरण भी जिम्मेदार हो सकता है, इस बात पर भी सोचना चाहिए.

यहां बात संवेदनहीन बनने की नहीं है. सही बात तो यह है कि संवेदनशील होना गर्व की बात है. संवेदना जीवंतता की निशानी है और अपने आसपास जड़ लोगों का साम्राज्य हो तो हमें जीवतंता पर मोटी चमड़ी का थोड़ा आवरण चढ़ाना पड़ता है. जिन लोगों को हमारे आंसुओं की कद्र न हो, उन के लिए क्यों रोना? अपना लगाव, भावना, अनुकंपा, सहानुभूति या संवेदना एकदम कुपात्रें को दान नहीं की जा सकती.

हमारी संवेदनशीलता हमारे ही सुख में रुकावट पैदा करने लगे, तो वह हमारे लिए खराब बन जाती है. मानसिक समस्याएं बुरे या निर्लज्ज लोगों को समझ में नहीं आतीं क्योंकि वे तनाव लेने में नहीं, तनाव देने में विश्वास करते हैं, जो सरासर गलत है. उन के सामने अधिक संवेदनशील बनना खुद पर अत्याचार करना है. इतना भी संवेदनशील नहीं होना चाहिए कि जिस से जीवन में बहुत ज्यादा ऊबड़खाबड़  दिखार्द दे, हमेशा पीड़ा ही होती रहे.

हर दुखी या गलत व्यक्ति अपने कर्म के हिसाब से भोगता है. अपवादस्वरूप मामलों के सिवा अब  खुद के जलने का समय नहीं रहा. संवेदना की इस भावना को इस तरह व्यक्त करो कि मानसिक समस्याओं का तूफान आप की खुशियों और जीवन के उत्साह को तबाह न कर सके. बी सैंसिटिव बट बी केयरफुल…

बिग बॉस 14: राखी सावंत ने किया शादी का झूठा नाटक! जानें क्या है सच

बॉलीवुड अभिनेत्री और अपने बेबाक अंदाज के लिए मशहूर अदाकारा राखी सावंत को हर कोई पसंद करता है. राखी इन दिनों बिग बॉस 14 के घर में हैं जहां पर वह अपने टॉस्क को लेकर काफी ज्यादा पॉपुलर होती नजर आ रही हैं.

राखी सावंत अपने पति को लेकर पिछले कुछ महीनों से चर्चा में बनी हुई हैं. ऐसे में जब राखी सावंत से उनके पति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने हमेशा एक रितेश नाम के शख्स का नाम लिया लेकिन वह आज तक मीडिया के सामने खुलकर आया नहीं . राखी ने हमेशा अपने पति के बारे में एक बात कह कि वह बहुत ज्यादा निजी हैं इसलिए कैमरा फेस नहीं करना चाहतें.

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हालांकि अभी एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जिस होटल का नाम राखी सावंत लेती थी वहां उनकी शादी रितेश नाम के एक व्यक्ति से हुई है . जब उस होटल का रिकॉर्ड चेक किया गया तो वहां ऐसी कोई शादी नहीं हुई थी. जिसके बाद राखी सावंत का झूठ एक बार फिर से सभी के सामने आ गया है कि राखी सावंत ने किसी से शादी नहीं रचाई है. वह अपने फैंस को झूठ बोलती हैं.

 

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अब लोगों का ये कहना है कि राखी सावंत एक ऐसी अभिनेत्री है जो अपने शादी कि तस्वीर अपने पति के साथ इंटरनेट पर जरुर शेयर करती.

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तो अब आपको भी लगा होगा राखी सावंत के इस बात से झटका तो परेशान न हो यहीं सच्चाई है. अब सभी फैंस और बिग बॉस देखने वाले दर्शकों को लगने लगा है कि राखी सावंत एक नाटक कर रही थी. राखी की कोई शादी नहीं हुई है. यह सब दिखावा है. सिर्फ अपनी तरफ लोगों का ध्यान केंद्रित करने के लिए. तो इसी के साथ राखी सावंत ने एक बार फिर अपने चाहने वालों का दिल तोड़ दिया है.

‘पवित्र रिश्ता’ एक्टर करणवीर मेहरा जल्द करेंगे शादी , फैंस को दी जानकारी

टीवी एक्टर करण वीर मेहरा की जिंदगी में एक ऐसा समय आया था जब उन्हें लगता था कि वह अपने फेल्ड मैरेज से बाहर नहीं आ पाएंगे. लेकिन समय बदला और उनकी जिंदगी में एक बार फिर खुशियों ने दस्तक दिया है.

जी हां करणवीर मेहरा अपने पुराने जख्मों को भूलकर अपने जीवन में आगे बढ़ने के बारे में सोचा है. वह अपनी गर्लफ्रेंड के साथ शादी करने वाले हैं. करण वीर मेहरा अपनी को स्टार निधि सेठ को दिल दे बैठे हैं.

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अब ये दोनों 24 जनवरी को शादी करने जा रहे हैं. दिल्ली के गुरु द्वारे में शादी के सात फेरे लेंगे. जहां उनके परिवार के साथ- साथ उनके करीबी दोस्त भी मौजूद होंगे.

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एक रिपोर्ट से बातचीत के दौरान करणवीर मेहरा ने बताया कि इनकी शादी में सिर्फ 30 लोग शामिल होंगे. वहीं कुछ खास दोस्तों के लिए मुंबई में रिसेप्शन रखा जाएगा. आगे उन्होंने बातचीत के दौरान बताया कि हम दोनों अपने जिंदगी में 2020 नहीं लाना चाहते थे इसलिए हमने शादी करने का फैसला साल 2021 में किया.

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करण ने कहा कि हम दोनों की पहली मुलाकात साल 2008 में हुई थी जहां हम सिर्फ काम के लिए मिले उसके बाद कभी भी टच में नहीं रहें. फिर तीन साल पहले हमदोनों एक जिम में मिले जिसके बाद हमारे बीच बात चीत करने का सिलसिला आगे बढ़ा उसके बाद हम एक अच्छे दोस्त बन गए , ये दोस्ती हमारी हमदोनों के लिए कब इतनी ज्यादा क्लोज हो गई हमें पता नहीं चला और हमारा रिश्ता प्यार में बदल गया . अब हमदोनों अपने रिश्ते को एक नाम देने के बारे में सोचा है. इसलिए हम दोनों अपने परिवार वालों की मर्जी से शादी करने का यह अहम फैसला लिया है.

मेरी जीवनसाथी -भाग 3 : क्यों पुराने दिनों को याद कर रहा था नवीन

मैं क्या कहती. मेरा तो अंगअंग उस के प्रेम में आकंठ डूबा जा रहा था. चंदन मुझे मिल जाए, इस की तो सिर्फ कल्पना की थी, सपना देखा था. मगर वह सपना हकीकत में तबदील हो जाएगा, नहीं जानती थी.

तभी जोरों से बिजली कड़की और पानी बरसना शुरू हो गया. मां के आने की संभावना जाती रही. चंदन ने उस पल मेरी कमजोरी और अवसर का फायदा उठाया. मेरे प्रथम एवं अछूते प्रेम को उस ने अपनी मादक सांसों से उभारा. मेरा पूरा शरीर पत्ते सा कांपने लगा. उस अल्हड़ उम्र में प्रथम बार किसी पुरुष ने, वह भी जो मेरे सपनों का बादशाह था, मेरे शरीर को सहलाया. मैं लता की तरह लिपटती चली गई.

मैं भूल गई कि वह सबकुछ क्षणिक सुख विनाश का रास्ता है, सुखद भविष्य का उजाला नहीं. उस समय तो चंदन की प्यारीप्यारी मीठी बातें ही मुझे बस याद थीं…उस के वादे, कसमें और बांहों का कसता घेरा.

2 दिन सबकुछ सामान्य रहा लेकिन चंदन नहीं आया. मेरा अंगअंग टूटा जा रहा था. चंदन के आने की आस और शरीर का टूटना मुझे चिंतित कर रहा था. तीसरे दिन नवीन हमारे घर आए. बाबूजी भी जल्दी ही आ गए थे.

नवीन आए तो मैं सिर नीचा किए रसोई में चली गई. उसी प्यार से उन्होंने मु झे देखा. फिर थोड़ी देर बाद मां की आवाज आई थी, ‘आप यह क्या कह रहे हैं? कहां आप, कहां हम?’

‘मैं छोटेबड़े की बात नहीं, रिश्ते की बात करने आया हूं. मोहित के सिवा मेरा कोई नहीं. वह भी बाहर रहता है. चाहता हूं, मेरा घर फिर से बस जाए.’

‘पर इतनी जल्दी? चंदन भैया भी तो कल चले गए?’ यह बाबूजी का स्वर था.

‘चंदन मेरा सगा भाई नहीं है. बचपन में पिताजी ने उसे पाला था, पढ़ायालिखाया. उन के बाद उस की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई थी. उसे डाक्टर बनाना मेरा लक्ष्य था, वह पूरा हो गया.

‘मंत्री की बेटी से उस का ब्याह हो चुका है जिस का पूरा परिवार अमेरिका में है. लड़की तो वहां की नागरिकता भी ले चुकी है. पढ़ाई के कारण चंदन यहां रुका था, सो वह भी कल चला गया.’

ब्याह…पत्नी…मेरे सिर पर मानो किसी ने हथौड़े बरसाए हों. चंदन और शादीशुदा? इतना बड़ा  झूठ? इतना बड़ा फरेब? मेरे शरीर से अपनी हवस प्यार के  झूठे बोल बोल कर बु झाने वाला व्यक्ति विवाहित? नहींनहीं. मैं बेहोश हो कर वहीं गिर पड़ी.

होश आया तो पूरा घर खुशी में डूबा था. अम्माबाबूजी ने तो सोचा भी न था कि अचानक उन की बेटी को इतना बड़ा घरवर मिल जाएगा. थोड़ी ज्यादा उम्र और एक बेटे का बाप हुआ तो क्या. 11वीं तक पढ़ी शरणार्थी परिवार की गरीब कन्या को कौन ब्याहता. फिर नवीन के हम पर इतने सारे एहसान जो थे.

लेकिन मैं एक भले और आदर्श व्यक्ति को धोखा नहीं देना चाहती थी. चंदन की बेवफाई ने एक ही पल में मु झे परिपक्व बना दिया था. इसलिए मैं नवीन से मिल कर उन्हें सबकुछ बता देना चाहती थी. नवीन की पत्नी बन कर मैं उन के साथ विश्वासघात नहीं करना चाहती थी.

अस्पताल में नवीन उस समय किसी आपरेशन में व्यस्त थे. मुझे वहां लोग जानते थे. मैं उन के कक्ष में बैठी प्रतीक्षा करने लगी. कुछ देर बाद कक्ष का दरवाजा खुला और नवीन ने प्रवेश किया. मु झे वहां बैठा देख कर एक पल वे रुके, फिर हंसते हुए अपनी कुरसी पर बैठ गए.

‘चाय लोगी?’

‘नहीं,’ मैं ने साहस बटोर कर कहा, ‘मैं आप से कुछ कहना चाहती हूं.’

‘बोलो… हां, शाम को खाली हो तो चलो, थोड़ी खरीदारी कर ली जाए. भई, मेरेतुम्हारे बीच उम्र में बहुत अंतर है. फिर लड़कियों की खरीदारी मुझे आती नहीं,’ नवीन बड़े हलके मूड में थे.

‘मैं आप से…’ मेरे शब्द गले में ही अटक कर बाहर आने से इनकार करते रहे.

‘देखो,’ नवीन उठ कर मेरे पास आए और मेरा हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘यदि तुम मेरी ज्यादा उम्र या एक बच्चे के कारण परेशान हो तो चिंता मत करो. मोहित छात्रावास में रहता है, वहीं रह कर पढ़ता रहेगा. मैं तुम्हारा हमउम्र दोस्त बनने का पूरा प्रयास करूंगा.’

उस वक्त मैं नवीन की हथेली में मुंह छिपा कर रो पड़ी. नवीन का इतना विश्वास और प्यार मेरी आंखों से छिपा क्यों रहा? चंदन की  झूठी खुशबू में मैं नवीन के सच्चे प्यार को क्यों न देख सकी? जो व्यक्ति पलपल मार्गदर्शन करता रहा, सहारा देता रहा, उस की उपेक्षा कर क्षणभर के एक कथित प्रेमी के प्रेम में मैं कैसे फिसल गई?

उस क्षण नवीन ने मु झे कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया. घर पर बाबूजी की बीमारी और मां की आंखों की चमक ने मुझे होंठ सी लेने पर मजबूर कर दिया था.

हमारी शादी सादगी से हो गई. नवीन मुझे ले कर कुछ दिनों के लिए नैनीताल जाना चाहते थे, लेकिन मैं ने उन्हें शिमला चलने की राय दी. मोहित के साथ कुछ पल गुजार कर मैं उसे अपना ममत्व देना चाहती थी. हरीभरी वादियों में मैं अपने सीने पर रखे बो झ को हलका करना चाहती थी.

नवीन की मीठी बातें और मोहित की प्यारी बातें भी मेरा मन न बहला सकीं. नवीन का सारा प्रयास व्यर्थ गया और मोहित भी मुझे उदासीन पा कर अपने में सिमट गया. मैं ने अनेक प्रयास किए कि मोहित को अपने वक्ष से लगा कर दिल का बोझ हलका कर लूं, पर सफल न हो सकी.

तभी अपनी कोख में पलते अंश का मु झे एहसास हुआ. मैं समझ गई कि यह अंश उस बेवफा चंदन का है. लेकिन भोलेभाले नवीन को मैं कैसे बताती कि शादी से पहले ही मैं गर्भवती हो चुकी हूं.

कभीकभी जी होता, आत्महत्या कर लूं या कहीं चली जाऊं पर नवीन का निश्छल प्यार, मातापिता की इज्जत, सबकुछ सामने आ कर मेरे पांव जकड़ लेते.

फिर धीरेधीरे सबकुछ सामान्य होता गया. मोहित बीच में जब भी छात्रावास से घर आता, मु झ से खिंचा रहता. मैं लाख प्रयास करती कि वह मेरे पास आए, तब भी शांत स्वभाव का मोहित मेरे पास ज्यादा देर न टिकता.

तेज प्रसवपीड़ा के बीच एक रात मैं ने एक स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया. नवीन फूले न समाए. अम्माबाबूजी को तो मानो बरसों की संजोई दौलत हाथ लग गई हो. पर मेरा मन खुश नहीं था. चंदन के बेटे को जन्म देने के बाद मैं स्वयं की नजरों से गिर गई थी.

शीलू के होने के बाद मोहित कुछकुछ मु झ से खुलने लगा था. दोनों में 7 वर्ष का अंतर था. मोहित एवं शीलू की खूब पटती थी. मेरे ही कहने पर नवीन ने उसे भी छात्रावास में डाल दिया था.

समय धीरेधीरे सरकता गया. मैं और नवीन पूरे घर में 2 प्राणी रह गए. 2 वर्ष पूर्व अम्मा का देहांत हो गया. बाबूजी तो पहले ही गुजर चुके थे. लाख कहने पर भी अम्मा हमारे साथ रहने नहीं आईं.

अब नवीन के सिवा मेरा कोई नहीं था. नवीन की सेवा कर के मु झे आत्मिक संतोष मिलता था. लेकिन एक सच था कि नवीन और अपने बीच मैं ने हमेशा एक फासला महसूस किया. अपने अंदर इतना बड़ा  झूठ रख कर मैं हमेशा स्वयं को हेय सम झती रही.

‘टिकटिक…’ घड़ी की तेज आवाज ने मु झे अतीत से खींच कर वर्तमान में ला खड़ा किया…

सुबह होने को थी. नवीन को 8 बजे ओटी में जाना था. उन के लिए नाश्ता भी तैयार करना था. नवीन जाग चुके थे. मु झे काम करता देख वे सम झ गए कि फिर पूरी रात मैं जगी हूं.

मेरा हाथ पकड़ उन्होंने मु झे पलंग पर लिटा दिया और कहा, ‘‘एक गोली देता हूं. खा कर आराम से सो जाओ. बाई आ कर सब कर देगी. भोलू से कह जाऊंगा कि बाहर से कोई आए या फोन आए तो वह देख ले. तुम बस आराम करो.’’

‘‘लेकिन आप?’’

‘‘मेरी चिंता छोड़ो संगीता. तुम अपने लिए भी तो जीना सीखो. तुम्हारा नवीन तुम्हारे बगैर अधूरा रह जाएगा,’’ कहतेकहते नवीन की आवाज रुंध गई. आज पहली बार मैं ने उन्हें अतिशय भावुक होते देखा था.

ऐसा अकसर हुआ था जब मैं पूरीपूरी रात जगी थी और दूसरे दिन नवीन ने मु झे दवा दे कर सुला दिया था.

दोनों बेटे बाहर ही शिक्षा पा रहे थे. बीचबीच में आते भी तो मेरे और उन के बीच हमेशा एक दूरी बनी रहती. मोहित तो मुझ से कतराता था और शीलू से मैं. लेकिन नवीन का ढेर सारा प्यार बच्चों को मेरी कमी महसूस ही न होने देता. पढ़ने में दोनों ही होशियार थे. शीलू अभी पढ़ ही रहा था. मोहित का नेवी में चयन हो गया था.

पूरे 5 वर्ष और बीत गए हैं. आज नवीन भी इस दुनिया में नहीं हैं. बड़ा बेटा मोहित अकसर विदेश में ही रहता है, जहाजों पर. दूसरा शीलू भी पायलट बन चुका है. वह दिल्ली में रहता है. मैं घर में अकेली हूं, बाई के साथ.

बेटों ने औपचारिकतावश पूछा था. शीलू ने तो साथ ले जाना भी चाहा, पर मैं ने इनकार कर दिया. मोहित ने विवाह भी कर लिया है. बहू को ले कर आशीर्वाद लेने आया था. जी चाहा था, पूछूं कि क्या यह शादी मु झ से बता कर करता तो मैं मना कर देती. नवीन होते तब भी यही करते. पर पूछ न सकी.

अचानक बैंक से एक दिन नवीन द्वारा करवाया हुआ फिक्स्ड डिपौजिट का कागज आया जिस में रकम की मियाद पूरी होने की बात थी. इस विषय में मु झे कुछ भी मालूम नहीं था. उस पत्रक में अनुरोध था कि या तो ज कर पैसे ले आऊं या पुन: जमा करवा दूं.

अब वह फिक्स्ड डिपौजिट का कागज मुझे ढूंढ़ना था. मैं ने पूरा घर छान मारा पर वह कहीं नहीं मिला. शायद मेरे विवाह के पूर्व का किया हो या नवीन बताना भूल गए हों.

तभी मुझे ध्यान आया कि नवीन की एक खास अलमारी थी जिसे खोलने की मैं ने कभी जरूरत महसूस नहीं की. वह नवीन ही खोलते थे. शायद पूर्व पत्नी की यादें उस में संजोई हों, यही सोच कर मैं ने कभी पूछा भी नहीं. फिर जिस के अंदर खुद चोर हो वह दूसरे की छानबीन क्या करता.

कागज ढूंढ़ने की गरज से मैं ने अलमारी खोल दी, मेरी दृष्टि एक डायरी पर पड़ी जो अधखुली अवस्था में जाने कब से पड़ी थी. बीच में खुला पैन भी था. सर्वत्र धूल जमी हुई थी. उत्सुकतावश मैं ने उसे उठा लिया. डायरी, वह भी नवीन की लिखावट में. किस पल वे डायरी लिखते रहे, मैं जान भी न सकी.

उजाले में आंखों पर चश्मा चढ़ा कर पढ़ने लगी. उस वक्त वह कागज ढूंढ़ना भी भूल गई. शुरू में नवीन ने अपनी पूर्व पत्नी का जिक्र किया था. फिर उस की मृत्यु एवं मोहित के छात्रावास में जाने के बाद घर के एकाकीपन का, फिर हमारे परिवार के मिलने की घटना का वर्णन था.

एक जगह लिखा था, ‘अच्छी बच्ची है, संगीता. सोचता हूं इस का कालेज में दाखिला करवा दूं. फिर कोई अच्छा लड़का देख कर इस की शादी कर दूं. अभी अल्हड़ और नादान है. कैसा टूट गया है यह परिवार. सांप्रदायिकता की भयंकर आग ने कितने ही ऐसे परिवारों को उजाड़ दिया है, तबाह कर दिया है.’

आगे जिक्र था… ‘इस भोली लड़की ने यह क्या किया? चंदन के प्रेमजाल में कैसे फंस गई? कितनों को बरबाद किया है चंदन ने? काश, मैं कुछ देर पहले पहुंचा होता तो चंदन घर से निकलता नहीं, जाते देखता और जो हुआ, उसे रोक लेता. अब कौन करेगा उस से शादी? कहीं कुछ उलटासीधा कदम न उठा ले यह अल्हड़ लड़की. मुझे ही इस से शादी करनी होगी.’

आगे लिखा था… ‘इस लड़की के अंदर पलते अंश को मेरी नजरें अनदेखा नहीं कर सकतीं. यह शादी शीघ्र होनी चाहिए. लेकिन भविष्य में मु झे इस से कुछ नहीं पूछना या बताना है वरना यह जीवित नहीं रहेगी.’

आगे बहुत कुछ था, पर मेरी पढ़ने की सामर्थ्य समाप्त हो चुकी थी.

मैं सोचने लगी, ‘ओह नवीन, तुम मुझे सजा देते, मुझे एहसास कराते कि मुझे अपनाकर तुम ने मुझ पर एहसान किया है. शीलू को पाल कर मुझे मेरी गलती का एहसास कराते. सहारा देने की सजा दे कर तो तुम ने मुझे बिलकुल ही अपनी नजरों से गिरा दिया.

‘काश, आज तुम होते और मैं पूछ सकती कि मैं ने तुम्हें न बता कर ठीक किया या तुम ने मुझे बिना बताए क्षमा कर के. लेकिन तुम तो मुझे पछतावे की आग में जलता छोड़ इतनी दूर जा चुके हो, जहां से वापस नहीं आ सकते.’

घड़ी की टिकटिक हर पल अपने अस्तित्व का, इस सन्नाटे में मुझे मेरे अकेलेपन का आभास करा रही थी.

 

आपके पशुओं के लिए डाक्टरी सलाह

लेखक-डा. नागेंद्र कुमार त्रिपाठी व डा. संजय सिंह 

अगर आप का पशु बीमार पड़ जाए, तो आप लोग परेशान हो जाते हैं और पशु डाक्टर से संपर्क करने लगते हैं. कुछ झोलाछाप आप को इलाज के नाम पर उलटीसीधी दवा दे कर पैसे का नुकसान तो पहुंचाते ही हैं, बल्कि पशु की जिंदगी से खिलवाड़ भी करते हैं. इन सब बातों को ध्यान में रख कर आप लोगों के लिए पशुओं के प्राथमिक उपचार पर जानकारी दी जा रही है, जिस का आप लोग जरूर ही फायदा उठाएंगे.

प्राथमिक चिकित्सा आकस्मिक दुर्घटना या बीमारी के चलते पशु चिकित्सक के आने तक कम से कम आप इतना इंतजाम करें कि चोटग्रस्त पशु को सही इलाज कराने की हालत में लाने में लगने वाले समय में कम से कम नुकसान हो, इसलिए प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षित या अप्रशिक्षित लोगों द्वारा कम से कम साधनों में किया गया सरल उपचार है. कभीकभी यह पशु की जिंदगी बचाने में भी मददगार साबित होता है. टिंचर आयोडीन इस दवा को घाव साफ करने के बाद लगाया जाता है.

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कीटाणुओं को खत्म कर घाव ठीक हो जाता है. जरूरत के मुताबिक गहरे घाव में दवा की पट्टी बना कर चिमटी से रख देते हैं, ऊपर से पट्टी बांधनी चाहिए. यह जीवाणुनाशक व उत्तेजक होने से खून का संचालन भी बढ़ाती है, जिस से घाव जल्दी ठीक हो जाता है. टिंचर बेंजोइन इस दवा को ताजा घाव से बहते हुए खून को बंद करने के लिए लगाया जाता है. यदि पशु का किसी वजह से सींग टूट जाए, तो सींग को साफ करने के बाद पट्टी बांधें और उस पर इस दवा को डाल कर भिगो दें. कुछ देर में पट्टी चिपक जाएगी व खून का रिसाव एकदम बंद हो जाएगा.

निमोनिया से बचाव अगर पशुपालकों के पशुओं को ठंड लग जाए या निमोनिया हो जाए, तो आधा बालटी गरम पानी में 1 से 2 चम्मच टिंचर बेंजोइन दवा डालें और इस की भाप पशु को सुंघाएं. यह प्रयोग सर्दियों के लिए बहुत ही फायदेमंद और कारगर होता है. बोरिक एसिड पाउडर यह गंधहीन, एंटीसैप्टिक, सफेद पाउडर होता है. इस पाउडर को सीधे घाव पर लगाया जाता है. बोरिक पाउडर व ग्लिसरीन को बराबर मात्रा में मिला कर पशु के होंठ, जीभ के छालों पर लगाने से आराम मिलता है. घाव थनों पर हो, तो 1:2 के अनुपात में बोरिक पाउडर और वैसलीन लगाएं.

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अगर पशु की आंख से पानी निकलता है, तो पानी में 1 फीसदी का घोल बना कर आंख धोएं, तुरंत ही फायदा होगा. मैग्नीशियम सल्फेट यह सफेद, गंधहीन, कड़वा, रवा के रूप में होता है. कब्ज होने पर छोटे पशु को 20 ग्राम, बडे़ पशु को 50 ग्राम पानी में घोल कर व हिमालयन बत्तीसा 100 ग्राम मिला कर नाल द्वारा आराम से पिलाएं. जरूरत के मुताबिक 8-10 घंटे बाद दोबारा एक खुराक और दी जा सकती है. बुखार में 200-300 ग्राम कल्मी सोडा मिला कर देना चाहिए. अगर पशु को चोट लग गई है और घाव सड़ गया है, तो सड़े घाव में दवा के गाड़े घोल में कपड़ा गीला कर रख दिया जाता है. 1-2 दिन में सड़ा भाग गल जाता है व घाव ठीक होने लगता है. पशु के अंग पर चोट, सूजन, मोच हो, तो 2 लिटर पानी में 100 ग्राम दवा डाल कर सेंक करें. जिंक औक्साइड यह स्वादहीन, गंधहीन और सफेद रंग का पाउडर होता है. इसे पशुओं की गीली खाजखुजली में लगाया जाता है.

साथ ही, जिंक औक्साइड को मलहम के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है. लाल दवा (पोटेशियम परमैंगनेट) यह दवा गंधहीन, काले रंग के बारीक दानों के रूप में होती है. इस के पानी में मिलने से पानी का रंग गुलाबी हो जाता है. यह घोल एंटीसैप्टिक का काम करता है. दवा का 1 फीसदी घोल घावों, थन, पूंछ आदि को धोने और साफ करने के लिए काम आता है. खुरपका और मुंहपका रोग में इस के घोल से पशुओं के खुर, मुंह साफ किए जाते हैं. सांप के काटने के ताजा घाव पर दवा का पाउडर लगाने से लाभ मिलता है. धूनी (फ्यूमिगेशन) देने के लिए फार्मेल्डिहाइड घोल के साथ मिला कर इस्तेमाल करते हैं.

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जीवाणुनाशक की यह उत्तम दवा है. तारपीन का तेल यह रंगहीन व तीखा होता है और अलग तरह की गंध होती है. यदि पशु के घाव में कीडे़ (मेगेट्स) पड़ जाएं, तो इस तेल को क्लोरोफार्म के साथ बराबर मात्रा में मिला कर लगाने से कीड़े मर जाते हैं और घाव पर मक्खियां भी नहीं बैठतीं. पशु को अफरा (पेट फूलना) में 30 मिलीलिटर तारपिन का तेल और 250 ग्राम मीठा तेल (अलसी, मूंगफली, तिली) मिला कर पिलाएं. जरूरत के मुताबिक एक खुराक और दें, पशु का अफरा खत्म हो जाएगा. आधी बालटी गरम पानी में 20 मिलीलिटर तारपिन का तेल डालें और निमोनिया/ठंड से पीडि़त पशु को भाप देने से फायदा मिलता है. कैरन तेल चूने का पानी और अलसी का तेल बराबर मात्रा में मिलाने पर कैरन तेल बन जाता है.

इस में थोड़ा सा कपूर मिलाएं. इस तेल को जले हुए भाग पर लगाने से बहुत ही जल्द आराम मिल जाता है. अरंडी का तेल यह एक हलके पीले रंग का वनस्पति तेल है. इस की कुछ बूंदें आंख में डालने से कचरा आसानी से निकल जाता है. यह परगेटिव और हलका एस्ट्रिनजैंट होता है. कब्ज होने पर छोटे पशु को 30 मिलीलिटर और बडे़ पशु को आधा से 1 लिटर अरंडी का तेल पिलाएं. पशु को तुरंत ही आराम मिलता है. एक्रीफ्लेविन यह एक नारंगी रंग पाउडर है. यह जीवाणुनाशक है. दवा का 1 भाग और 1000 भाग पानी मिला कर घोल तैयार किया जाता है. इस का उपयोग एंटीसैप्टिक के रूप में किया जाता है. गंधक का मलहम गंधक एक पीले रंग का ठोस पदार्थ होता है.

यह मलहम गंधक पाउडर और वैसलीन के 1:8 के अनुपात में मिला कर बनाया जाता है. पशु के खाजखुजली के अंग को साफ कर इस मलहम को लगाया जाता है. गंधक से गोल्डन लोशन तैयार किया जाता है. इस का प्रयोग दाद, खाज व खुजली में होता है. नीला थोथा यह कणदार, नीले रंग का होता है. यह कृमिनाशक, परजीवीनाशक और कास्टिक के रूप में उपयोग होता है. इस का प्रयोग पशु को हीट में लाने के लिए भी होता है. गैमेक्सीन यह एक सफेद पाउडर होता है.

इस का प्रयोग कीटनाशक या परजीवीनाशक के रूप में किया जाता है. पशु के शरीर पर जूं, चीचड़, किलनी पड़ने पर कंडे की राख में बराबर मात्रा में मिला कर लगाने से जूं, किलनी वगैरह मर जाते हैं. दवा लगाने के पहले पशु के मुंह पर मास्क जरूर लगा देना चाहिए. अधिक जानकारी के लिए वरिष्ठ वैज्ञानिकों और अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र, लखीमपुर खीरी अथवा केंद्र के वैज्ञानिकों के संपर्क में रहें और समयसमय पर सरकार द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों का पालन भी करें.

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