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सहचारिणी-भाग 3 : छोटी मां के आते ही क्या परिवर्तन हुआ

अब मैं तुम्हारी हर हरकत पर नजर रखने लगी. तुम कहांकहां जाते हो, किसकिस से मिलते हो, क्याक्या करते हो… यानी तुम्हारी छोटी से छोटी बात मुझे पता होती थी. इस के लिए मुझे कई पापड़ बेलने पड़े, क्योंकि यह काम इतना आसान नहीं था.

अब मैं दिनरात अपनेआप में कुढ़ती रहती. जब भी सुंदर और कामयाब स्त्रियां तुम्हारे आसपास होतीं, तो मैं ईर्ष्या की आग में जलती. तब कोई न कोई कड़वी बात मेरे मुंह से निकलती, जो सारे माहौल को खराब कर देती.

यहां तक कि घर में भी छिटपुट वादविवाद और चिड़चिड़ापन वातावरण को गरमा देता. मेरे अंदर जलती आग की आंच तुम तक पहुंच तो गई पर तुम नहीं समझ पाए कि इस का असली कारण क्या था. तुम्हारी भलमानसी को मैं क्या कहूं कि तुम अपनी तरफ से घर में शांति बनाए रखने की पूरी कोशिश करते रहे. तुम समझते रहे कि घर में छोटे बच्चे का आना ही मेरे चिड़चिड़ेपन का कारण है. उसे मैं संभाल नहीं पा रही हूं. उस की देखभाल की अतिरिक्त जिम्मेदारी के कारण मैं थक जाती हूं, इसीलिए मेरा व्यवहार इतना रूखा और चिड़चिड़ा हो गया है. तुम्हें अपने पर ग्लानि होने लगी कि तुम मुझे और बच्चे को इतना समय नहीं दे पा रहे हो, जितना देना चाहिए.

आज तुम्हारे सामने एक बात स्वीकारने में मुझे कोई शर्मिंदगी नहीं होगी. भले ही मेरी नादानी पर तुम जी खोल कर हंस लो या नाराज हो जाओ. अगर तुम नाराज भी हो गए तो मैं तुम से क्षमा मांग कर तुम्हें मना लूंगी. मैं जानती हूं कि तुम मुझ से ज्यादा देर तक नाराज नहीं रह सकते. सच कहूं? मेरी आंखें खोलने का सारा श्रेय मेरी सहेली सुरुचि को जाता है. जानते हो कल क्या हुआ था? मुझे अचानक तेज सिरदर्द हो गया था. लेकिन वास्तव में मुझे कोई सिरदर्द विरदर्द नहीं था. मैं अंदर ही अंदर जलन की ज्वाला में जल रही थी. यह बीमारी तो मुझे कई दिनों से हो गई थी जिस का तुम्हें आभास तक नहीं है. हो भी कैसे? तुम्हें उलटासीधा सोचना जो आता नहीं है. मगर सुरुचि को बहुत पहले ही अंदाजा हो गया था.

कल शाम मुझे अकेली माथे पर बल डाले बैठी देख वह मेरे पास आ कर बैठते हुए बोली, ‘‘मैं जानती हूं कि तुम यहां अकेली बैठ कर क्या कर रही हो. मैं कई दिनों से तुम से कहना चाह रही थी मगर मैं जानती हूं कि तुम बहुत संवेदनशील हो और दूसरी बात मुझे आशा थी कि तुम समझदार हो और अपने परिवार का बुराभला देरसवेर स्वयं समझ जाओगी. मगर अब मुझ से तुम्हारी हालत देखी नहीं जाती. तुम जो कुछ भी कर रही हो न वह बिलकुल गलत है. अपने मन को वश में रखना सीखो. लोगों को सही पहचानना सीखो. तुम्हारा सारा ध्यान अपने पति के इर्दगिर्द घूमती चकाचौंध कर देने वाली लड़कियों पर है. उन की भड़कीली चमक के कारण तुम्हें अपने पति का असली रूप भी नजर नहीं आ रहा है. अरे एक बार स्वच्छ मन से उन की आंखों में झांक कर देखो, वहां तुम्हारे लिए हिलोरें लेता प्यार नजर आएगा.

‘‘तुम पुरु भाईसाहब को तो जानती ही हो. वे इतने रंगीन मिजाज हैं कि रंगरेलियों का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते. वही क्यों? इस ग्लैमर की दुनिया में ऐसे बहुत सारे लोग हैं. ऐसे माहौल में तुम्हारे पति ऐसे लोगों से बिलकुल अलग हैं. पुरु भाई साहब की बीवी, बेचारी मीना कितनी दुखी होगी अपने पति के इस रंगीन मिजाज को ले कर. सब के बीच कितनी अपमानित महसूस करती होगी. किस से कहे वह अपना दुख? तुम जानती नहीं हो कि कितने लोग तुम्हारी जिंदगी से जलते हैं.

‘‘पुरु भाईसाहब जैसे लोग जब उन्हें गलत कामों के लिए उकसाते हैं. तब जानती हो वे क्या कहते हैं? देखो, घर के स्वादिष्ठ भोजन को छोड़ कर मैं सड़क की जूठी पत्तलों पर मुंह मारना पसंद नहीं करता. मेरी पत्नी मेरी सर्वस्व है. वह अपना सब कुछ छोड़छाड़ कर मेरे साथ आई है और अपना सर्वस्व मुझ पर निछावर करती है. उस की खुशी मेरी खुशी में है. वह मेरे दुख से दुखी हो कर आंसू बहाती है. ऐसी पत्नी को मैं धोखा नहीं दे सकता. वह मेरी प्रेरणा है. मेरी और मेरे परिवार की खुशहाली उसी के हाथों में है.’’

फिर सुरुचि ने मुझे डांटते हुए कहा ‘‘तुम्हें तो ऐसे पति को पा कर निहाल हो जाना चाहिए और अपनेआप को धन्य समझना चाहिए.’’

उस की इन बातों से मुझे अपनेआप पर ग्लानि हुई. उस के गले लग कर मैं इतनी रोई कि मेरे मन का सारा मैल धुल गया और मुझे असीम शांति मिली. मुझे ऐसा लगा जैसे धूप में भटकते राही को ठंडी छांव मिल गई. मैं तुम से माफी मांगना चाहती हूं और तुम्हारे सामने समर्पण करना चाहती हूं. अब ये तुम्हारे हाथ में है कि तुम अपनी इस भटकी हुई पुजारिन को अपनाते हो या ठुकरा देते हो.

सीमा रेखा : क्या धीरेन दा को इस बात का एहसास हो पाया

‘‘सो मू, उठ जाओ बाबू…’’ धीरेन दा लगातार आवाज दिए जा रहे थे जिस से रूपल की नींद में बाधा पड़ने लगी तो वह कसमसाती हुई सोमेन के आगोश से न चाहते हुए भी अलग हो गई और पति सोमेन को लगभग धकियाती हुई बोली, ‘‘अब जाओ, उठो भी, नहीं तो तुम्हारे दादा सुबहसुबह पूरे घर को सिर पर उठा लेंगे. छुट्टी वाले दिन भी आराम नहीं करने देते.’’

सोमेन अंगड़ाई लेता हुआ उठ बैठा और ‘आया दादा’ कहता हुआ बाथरूम की ओर लपका. जब फे्रश हो कर जोगिंग करने के लिए टै्रकसूट और जूते पहन कर कमरे से बाहर निकला तो दादा रोज की तरह गरम चाय लिए उस का इंतजार करते मिले. उसे देखते ही मुसकरा कर प्यालों में चाय डालते हुए बोले, ‘‘सोमू, रूपल और बच्चों से भी क्यों नहीं कहता कि सुबह जल्दी उठ कर कुछ देर व्यायाम कर लें. सुबह की ताजा हवा से दिन भर तरावट महसूस होती है और साथ में स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.’’ ‘‘दादा, रोज तो उन्हें जल्दी जागना ही पड़ता है, सो कम से कम रविवार को उन्हें नींद का मजा लेने दीजिए. चलिए, हम दोनों जोगिंग पर चलते हैं,’’ कहता हुआ सोमेन चाय की खाली प्याली रख कर उठ खड़ा हुआ.

दोनों भाइयों ने नजदीक के पार्क में धीमी गति से जोगिंग की. फिर धीरेन दा बैंच पर बैठ कर हाथपांव हिलाने लगे और उन के पास ही सोमेन एक्सरसाइज करने लगा. धीरेन दा 55 से ऊपर के हो चले थे और सोमेन भी 34 बसंत पार कर चुका था. लेकिन धीरेन दा हरपल सोमेन का ऐसे खयाल रखते जैसे वह कोई नादान बालक हो. धीरेन दा की दुनिया सोमेन से शुरू हो कर उसी पर खत्म हो जाती थी. कुदरत की इच्छा के आगे किसी का बस नहीं चलता. धीरेन दा के जन्म के बाद काफी कोशिशों के बावजूद उन के मातापिता की कोई दूसरी संतान नहीं हुई फिर भी वे डाक्टर की सलाह पर दवा लेते रहे और फिर 16 साल बाद अचानक सोमेन का जन्म हुआ.

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सोमेन के जन्म से धीरेन दा बहुत खुश थे मानो सोमेन के रूप में उन्हें कोई जीताजागता खिलौना मिल गया हो. उन के बाबूजी की माली हालत कुछ खास अच्छी नहीं थी इसलिए मां को ही घर का हर काम करना पड़ता था. ऐसे में मां का हाथ बंटाने के लिए धीरेन दा ने सोमेन की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी. सोमेन ज्यादातर समय धीरेन दा की गोद में होता या जहां वह पढ़ते थे उन के पास ही पालने में सोया या खेलता रहता.

देखतेदेखते सोमेन 4 साल का हो गया. धीरेन दा उस दिन बहुत खुश थे क्योंकि बी. काम. फाइनल में उन्होंने अपने विश्वविद्यालय में टाप किया था. घर आ कर जब उन्होंने यह खबर मांबाबूजी को सुनाई तो वे बहुत खुश हुए. इस खुशी को अपने पड़ासियों के साथ बांटने के लिए वे दोनों मिठाई लेने ऐसे निकले कि कफन ओढ़ कर घर वापस आए. रास्ते में एक बस ने उन्हें बुरी तरह से कुचल दिया था. एक पल को धीरेन दा को यों लगा मानो उन का सबकुछ खत्म हो गया. पर मासूम सोमेन को बिलखते देख उन्हें भाई से पिता रूप में परिवर्तित होने में तनिक भी वक्त नहीं लगा. उसी वक्त उन्होंने मन ही मन प्रण किया कि वह न सोमेन को अनाथ होने देंगे और न ही कभी उसे मातापिता की कमी महसूस होने देंगे.

इस घटना के कुछ महीनों बाद ही धीरेन दा की बैंक में नौकरी लग गई. नौकरी मिलने के 1 साल बाद उन्होंने रजनी के साथ विवाह रचा लिया. रजनी के गृहप्रवेश करते ही धीरेन दा की दुनिया बदल गई. सोमेन को भी रजनी भाभी कम और मां ज्यादा लगतीं. 2 साल का प्यार भरा समय कैसे गुजर गया, पता ही न चला. एक दिन रजनी को अपने भीतर एक नवजीवन के पनपने का एहसास हुआ तो धीरेन दा की खुशियों की सीमा न रही. सोमेन को भी चाचा बनने की बेहद खुशी थी. पर उन लोगों की सारी खुशियां रेत के घरौंदे की तरह पलक झपकते ही बिखर गईं. एक दिन रजनी बारिश में भीगते कपड़ों को समेटने गई और फिसल कर गिर पड़ी. अंदरूनी चोट इतनी गहरी थी कि लाख कोशिशों के बावजूद डाक्टर मां और बच्चे में से किसी को नहीं बचा सके.

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रजनी की मौत के बाद धीरेन दा ने किसी भी स्त्री के लिए अपने दिल के दरवाजे हमेशाहमेशा को बंद कर लिए. अब उन के जीने का मकसद सिर्फ और सिर्फ सोमेन था. अब वह सोमेन की नींद सोते और जागते थे. उस की हर जरूरत का ध्यान रखना, उसे खुश रखना और उस के विकास के बारे में चिंतनमनन करना ही जैसे उन का एकमात्र ध्येय रह गया था. कंप्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म होते ही जब सोमेन को एक बड़ी इंटरनेशनल कंपनी में नौकरी मिल गई तो सोमेन से कहीं ज्यादा खुशी धीरेन दा को हुई. सोमेन के प्रति उन की बस आखिरी जिम्मेदारी बाकी रह गई थी और वह जिम्मेदारी थी सोमेन की शादी.

साल भर बाद धीरेन दा ने अपने मित्र रमेशजी की मदद से आखिर रूपल जैसी गुणवती, सुंदर और मासूम लड़की को अपने अनुज के लिए तलाश ही लिया. रूपल के रूप में उन्हें एक बेटी का ही रूप नजर आता. रूपल थी भी इतनी प्यारी और नेकदिल कि सोमेन और धीरेन दा के दिलों में बसने के लिए उसे जरा भी वक्त नहीं लगा. सबकुछ ठीक चल रहा था. रूपल को कुछ अखरता था तो वह धीरेन दा का सोमेन को ले कर जरूरत से ज्यादा पजेसिव होना. भाई के प्यार में वह इस कदर डूबे हुए थे कि अकसर रूपल की उपस्थिति को नजरअंदाज कर जाते. वह भूल जाते कि उन की तरह रूपल भी सुबह से सोेमेन का इंतजार कर रही है. पति को देखने को व्याकुल उस नवविवाहिता की आंखें शाम से ही दरवाजे पर टिकी हुई हैं.

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सोमेन भी घर आते ही रूपल को बांहों में ले कर प्यार की बौछार कर देने को आतुर रहता पर घर में प्रवेश करते ही धीरेन दा को अपना इंतजार करते बैठा देखता तो मर्यादा के तहत मन को वश में कर वहीं बैठ जाता और उन से वार्तालाप में मस्त हो जाता. बीच में कभी कपड़े बदलने के बहाने से तो कभी बाथरूम जाने के बहाने से अंदर जा कर झुंझलाईबौखलाई रूपल पर ऐसे तेज गति से चुंबनों की झड़ी लगा देता कि रूपल सारा गुस्सा भूल कर कह उठती, ‘‘अब बस भी करो मेरे सुपर फास्ट राजधानी एक्सप्रेस, बाहर भैया चाय के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं.’’ फिर दोनों भाई शतरंज खेलते. इस बीच खाना बना कर रूपल बेमन से टीवी का चैनल बदलती रहती. कभी सोमेन आवाज लगाता तो चाय या पानी दे जाती. उस की मनोस्थिति से सर्वथा अनजान धीरेन दा शतरंज की बिसात पर नजरें जमाए हुए कहते, ‘‘रूपल, तुम भी शतरंज खेलना सीख जाओ तो मजा आ जाए.’’

‘‘जी दादा, सीखूंगी,’’ संक्षिप्त सा उत्तर दे कर वह वापस अंदर की ओर मुड़ जाती. तब सोमेन का मन शतरंज छोड़ कर उठ जाने को करता. वह चाहता कि रूठी हुई रूपल को हंसाए, गुदगुदाए पर दादा का एकाकीपन अकसर उस के मन पर अंकुश लगा देता. रात को अपने अंतरंग क्षणों में वह रूपल को मना लेता और समझा भी देता कि धीरेन दा ने सिर्फ मेरे लिए अपनी सारी खुशियों की आहुति दे दी. अब हमारे किसी काम से उन्हें यह एहसास नहीं होना चाहिए कि हम उन की परवा या कद्र नहीं करते. रूपल ने भी धीरेधीरे यह सोच कर नाराज होना छोड़ दिया कि जब बच्चे हो जाएंगे तब सब ठीक हो जाएगा पर वैसा कुछ हुआ नहीं. पिंकी व बंटी के होने के बाद भी धीरेन दा की वजह से सोमेन रूपल को वक्त नहीं दे पाता.

यों ही और 8 साल बीत गए. अब तो पिंकी 10 और बंटी 8 साल के हो गए थे. अगर बच्चे कहते, ‘‘पापा, हमें किसी बच्चों के पार्क में या चिडि़याघर दिखाने ले चलिए,’’ तो सोमेन का जवाब होता कि बेटे, हम वहां जाएंगे तो ताऊजी अकेले हो जाएंगे.

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‘‘तो फिर ताऊजी को भी साथ में ले चलिए न,’’ पिंकी ठुनकती हुई कहती. इस पर सोमेन प्यार से उसे समझाते हुए कहता, ‘‘बेटे, इस उम्र में ज्यादा चलनाफिरना ताऊजी को थका देता है. हम फिर कभी जाएंगे,’’ और वह दिन बच्चों के लिए कभी नहीं आया था.

यह सब देखसुन कर रूपल कुढ़ कर रह जाती. उस ने अपनी सारी इच्छाएं दफन कर डालीं पर अब बच्चों के चेहरों पर छाई मायूसी उस के मन में धीरेन दा के लिए आक्रोश भर देती. इन सब का परिणाम यह हुआ कि धीरेधीरे रूपल के व्यवहार में अंतर आने लगा और बोली में भी कड़वापन झलकने लगा.

धीरेन दा कुछ महीनों से रूपल के व्यवहार में आए परिवर्तन को देख रहे थे पर बहुत सोचने पर भी उस की तह तक नहीं पहुंच पाए. अंत में हार कर उन्होंने अपने मित्र रमेश से परामर्श करने की सोची. रमेश से उन का कोई दुराव- छिपाव न था. एक बार फिर रमेश ने उन्हें मर्यादा और व्यावहारिक ज्ञान से रूबरू कराया. रमेश ने धीरेन दा की कही हरेक बातें ध्यान से सुनीं और उन से उन के और घर के हर सदस्यों की दिनचर्या के बारे में विस्तार से जानकारी हासिल की, फिर थोड़ी देर के लिए खामोश हो गए. पल भर के मौन के बाद धीरेन दा को समझाने के लहजे में बोले, ‘‘देख, धीरेन, ऐसा नहीं है कि रूपल अब तुम्हें बड़े भाई का मान नहीं देती. पर मेरे यार, तुम एक बात भूल गए कि कोई भी इनसान किसी एक का नहीं होता.

‘‘सोमेन की शादी से पहले की बात और थी. तब तुम्हारे सिवा उस का कोई नहीं था लेकिन विवाह के बाद वह किसी का पति और किसी का पिता बन गया. तुम्हारी ही तरह पिंकी, बंटी और रूपल को सोमेन से विभिन्न अपेक्षाएं हैं जो वह सिर्फ इसलिए पूरी नहीं कर पा रहा कि कहीं तुम स्वयं को उपेक्षित न समझ बैठो. उलटे तुम्हें हमेशा खुश रखने के प्रयास में वह न तो अच्छा पति साबित हो रहा है और न ही एक अच्छा पिता. हर रिश्ता एक मर्यादा और सीमारेखा से बंधा होता है जिस का अतिक्रमण बिखराव और ऊब की स्थिति ला देता है. ‘‘मेरे यार, अनजाने ही सही, तुम भी रिश्तों की सीमारेखा को लांघने लगे हो. माना कि तुम्हारी नीयत में कोई खोट नहीं पर कौन सी ऐसी पत्नी होगी जो कुछ वक्त अपने पति के साथ अकेले बिताना नहीं चाहेगी या फिर कौन से बच्चे अपने पापा के साथ कहीं घूमने नहीं जाना चाहेंगे. कहते हैं न, जब आंख खुली तभी सवेरा समझो. अब भी देर नहीं हुई है. तुम्हारे घर की खोती हुई खुशियां और रूपल की निगाहों में तुम्हारे प्रति सम्मान फिर से वापस आ सकता है. बस, तुम अपने और सोमेन के रिश्ते को थोड़ा विस्तृत कर लो. खुले मन से अपने साथ रूपल और बच्चों को समाहित कर लो…’’

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सहसा धीरेन दा के चेहरे पर एक चमक आ गई और वह रमेशजी को बीच में ही टोकते हुए बोले, ‘‘बस यार, मेरी आंखें खोलने के लिए तुम्हारा बहुतबहुत धन्यवाद. अब मैं चलता हूं, पहले ही बहुत देर हो चुकी है…अब मैं और देर नहीं करना चाहता,’’ फिर तेजतेज कदमों से वह घर की ओर चल पड़े मानो भागते हुए समय को खींच कर पीछे ले जाएंगे. रमेशजी ने जाते हुए अपने मित्र को और रोकना उचित नहीं समझा और मुसकरा पड़े.

अगले दिन रविवार था. सालों के नियम को भंग करते हुए धीरेन दा अकेले ही सुबहसुबह कहीं गायब हो गए. रूपल की नींद खुली तो सुबह के 8 बज रहे थे. वह उठ कर पूरे घर का एक चक्कर लगा आई. बाहर का दरवाजा भी यों ही उढ़का हुआ था. घबरा कर उस ने सोमेन को जगाया, ‘‘सुनोसुनो, जल्दी उठो, 8 बज गए हैं और दादा का कहीं पता नहीं है. दरवाजा भी खुला हुआ है.’’ सोमेन घबरा कर उठ बैठा. बच्चे भी मम्मीपापा के बीच का होहल्ला सुन कर जाग गए. सब मिल कर सोचने लगे कि धीरेन दा कहां जा सकते हैं? आखिर 10 बजे घर के बाहर आटो रुकने की आवाज आई. पिंकी व बंटी दरवाजे से बाहर झांक कर चिल्लाए, ‘‘ताऊजी आ गए, ताऊजी आ गए.’’

सोमेन और रूपल ने चैन की सांस ली. धीरेन दा के घर में घुसते ही रूपल ने सवालों की झड़ी लगा दी, ‘‘दादा, आप कहां चले गए थे? कह कर क्यों नहीं गए? हम से नाराज हैं क्या? क्या हम से कोई गलती हो गई?’’

धीरेन दा मुसकराते हुए बोले, ‘‘अरे, नहीं बेटा, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं तो अपनी गलती सुधारने गया था.’’ कुछ न समझने की स्थिति में सोमेन और रूपल एकदूसरे का मुंह देखने लगे.

धीरेन दा बोले, ‘‘अरे, बाबा, मैं तुम लोगों को सरप्राइज देना चाहता था इसलिए ‘सिंह इज किंग’ की 2 टिकटें लाया हूं. आइनोक्स में यह फिल्म लगी है, आज तुम दोनों देख आना.’’ रूपल की आंखें आश्चर्य और खुशी से भर गईं. आज तक उसे आइनोक्स में फिल्म देखने का मौका जो नसीब नहीं हुआ था. वह तो कहीं भी आनेजाने की उम्मीद ही छोड़ बैठी थी.

‘‘पर दादा, बच्चे और आप…’’ ‘‘उस की तुम चिंता मत करो. हम तीनों आज ‘एडवेंचर आइलैंड’ जाएंगे, बाहर खाना खाएंगे और खूब मस्ती करेंगे. क्यों बच्चो?’’

‘‘दादाजी, आप कितने अच्छे हैं?’’ यह कहते हुए दोनों बच्चे धीरेन दा के पैरों से लिपट गए तो धीरेन दा भावुक हो उठे.

सहचारिणी-भाग 2 : छोटी मां के आते ही क्या परिवर्तन हुआ

तुम ने मुझे अपनी बांहों में भरते हुए कहा, ‘‘तो सुनो. तुम ने यह प्रश्न कई बार मुझ से कहे अनकहे शब्दों में पूछा. मगर हर बार मैं हंस कर टाल गया. आज जैसा मैं तुम्हें दिख रहा हूं मूलतया मैं वैसा नहीं हूं. मुझे डर था कि कहीं एक अनाथ जान कर तुम मुझ से दूर न हो जाओ. मैं ने जब से होश संभाला अपनेआप को एक अनाथाश्रम में पाया. सभी अनाथाश्रम फिल्मों या कहानियों जैसे नहीं होते. इस अनाथाश्रम की स्थापना एक ऐसे दंपती ने की थी जिन्हें ढलती उम्र में एक पुत्र पैदा हुआ था और वह बेशुमार दौलत और ऐशोआराम पा कर बुरी संगत में पड़ गया था. वह जिस तरह दोनों हाथों से रुपया लुटाता था और ऐश करता था, उसी तरह उसे दोनों हाथों से ढेरों बीमारियां भी बटोरनी पड़ीं. शादीब्याह कर अपना घर बसाने की उम्र में वह इन का घर उजाड़ कर चल बसा.

‘‘वे कुछ समय तक तो इस झटके को सह नहीं पाए और गहरे अवसाद में चले गए. पर अचानक एक दिन उन के घर के आंगन में मैं उन्हें मिल गया तो मेरी देखभाल करते हुए उन्हें जैसे अचानक यह बोध हुआ कि इस दुनिया में ऐसे कई बच्चे हैं, जो मातापिता के प्यार और सही मार्गदर्शन के अभाव में या तो सड़कों पर भीख मांगते हैं या गलत राह पर चल पड़ते हैं. उन्होंने निश्चय किया कि उन के पास जो अपार धनदौलत है उस का सदुपयोग होना चाहिए.

‘‘फिर उन्होंने एक ऐसे आदर्श अनाथाश्रम की स्थापना की जहां मुझ जैसे अनाथ बच्चों को घर की शीतल छाया ही नहीं, मांबाप का प्यार भी मिलता है.

‘‘मैं ने डै्रस डिजाइनिंग में स्नातकोत्तर परीक्षा पास की. उस के बाद एक दोस्त के आग्रह पर उस के काम से जुड़ गया. दोस्त पैसा लगाता है और मैं उस के व्यापार को कार्यान्वित करता हूं. तुम तो जानती ही हो कि इस क्षेत्र में कितनी होड़ लगी रहती है. इस के लिए पैसे तो चाहिए ही. पर पैसों से ज्यादा अहमियत है एक क्रिएटिव माइंड की और मेरे मित्र को इस के लिए मुझ पर भरोसा ही नहीं गर्व भी है. और मेरी इस खूबी का खादपानी यानी जान तुम ही हो,’’ तुम ने मेरी नाक को पकड़ कर झिंझोड़ते हुए कहा तो मुझे अपने आप पर गर्व ही नहीं हुआ मानसिक शांति भी मिली. तुम ने आगे कहना जारी रखा, ‘‘मगर तुम्हारे अंदर एक बहुत बड़ा अवगुण है, जो मुझे बहुत खटकता है.’’

‘‘क्या?’’ मेरा गला सूख गया.

‘‘आत्मविश्वास की कमी. तुम जो हो, अपनेआप को उस से कम समझती हो. मैं ने लाख कोशिश की पर तुम मन के इस भाव से उबर नहीं पा रही हो.’’

यह सब सुन कर मैं अपनेआप पर इतराने लगी थी. मुझे लग रहा था कि मैं दुनिया की ऐसी खुशकिस्मत पत्नी हूं जिस का पति उसे बहुत प्यार करता है और मानसम्मान देता है. मैं और भी लगन से तुम्हारे प्रति समर्पित हो गई.

तुम रातरात भर जागते तो मैं भी तुम्हारे रंगीन कल्पनालोक में तुम्हारे साथसाथ विचरण करती. तुम जब अपने सपनों को स्कैचेज के रूप में कागज पर रखते तो मुझे दिखाते और मेरे सुझाव मांगते तो मुझे बहुत खुशी होती और मैं अपनी बुद्धि को पैनी बनाते हुए सुझाव भी देती.

लेकिन जैसा हर कलाकार होता है, तुम भी बड़े संवेदनशील हो. अपनी छोटी सी असफलता भी तुम से बरदाश्त नहीं होती. तुम्हारी आंखों की उदासी मुझ से देखी नहीं जाती. मैं जी जान से तुम्हें खुश करने की कोशिश करती और तुम सचमुच छोटे बच्चे की तरह मेरे आगोश में आ कर अपना हर गम भूल जाते. फिर नए उत्साह और जोश के साथ नए सिरे से उस काम को करते और सफलता प्राप्त कर के ही दम लेते. तब मुझे बड़ी खुशी होती और गर्व होता अपनेआप पर. धीरेधीरे मेरा यह गर्व घमंड में बदलने लगा. मुझे पता ही नहीं चला कि कब और कैसे मैं एक अभिमानी और सिरफिरी नारी बनती गई.

मुझे लगने लगा था कि ये सारी औरतें, जो धनदौलत, रूपयौवन आदि सब कुछ रखती हैं. वे सब मेरे सामने तुच्छ हैं. उन्हें अपने पतियों का प्यार पाना या उन्हें अपने वश में रखना आता ही नहीं है. मेरा यह घमंड मेरे हावभाव और बातचीत में भी छलकने लगा था. जो लोग मुझ से बड़े प्यार और अपनेपन से मिलते थे, वे अब औपचारिकता निभाने लगे थे. उन की बातचीत में शुष्कता और बनावटीपन साफ दिखता था. मुझे गुस्सा आता. मुझे लगता कि ये औरतें जलती हैं मुझ से. खुद तो नाकाम हैं पति का प्यार पाने में और मेरी सफलता इन्हें चुभती है. इन के धनदौलत और रूपयौवन का क्या फायदा?

उसी समय हमारी जिंदगी में अनुराग आ गया, हमारे प्यार की निशानी. तब जिंदगी में जैसे एक संपूर्णता आ गई. मैं बहुत खुश तो थी पर दिल के किसी एक कोने में एक बात चुभ रही थी. कहीं प्रसव के बाद मेरा शरीर बेडौल हो गया तो? मैं सुंदरी तो नहीं थी पर मुझ में जो थोड़ाबहुत आकर्षण है, वह भी खो गया तो? पता नहीं कहां से एक असुरक्षा की भावना मेरे मन में कुलबुलाने लगी. एक बार शक या डर का बीज मन में पड़ जाता है तो वह महावृक्ष बन कर मानता है. मेरे मन में बारबार यह विचार आता कि तुम्हारा वास्ता तो सुंदरसुंदर लड़कियों से पड़ता है. तुम रोज नएनए लोगों से मिलते हो. कहीं तुम मुझ से ऊब कर दूर न हो जाओ. मैं तुम्हारे बिना अपने बारे में कुछ सोच भी नहीं सकती थी.

बिग बॉस 14: कविता कौशिक ने जब एजाज खान के मोलेस्टेश पर उठाया सवाल , फैंस ने सोशल मीडिया पर किया ट्रोल

बीते दिन बिग बॉस में कुछ ऐसा देखने और सुनने को मिला जिसके बारे में पहले आपने कभी नहीं सुना होगा. एजाज खान ने अपने की कहानी सुनाई जिसमें वह मोलेस्टेशन के शिकार हो चुके हैं.

एजाज खान बताते हैं आज भी वह उस दिन को याद करते हैं तो उनका रूहकांप कांप उठता है. इस स्टोरी को सुनने के बाद घरवालों के आंखों में भी आंसू आ गए थें.

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कविता कौशिक ने इमोशनल होकर एजाज खान को गले लगा लिया था. जिसके बाद सभी घर वाले एजाज को समझाने लगे थें.

हालांकि कुछ समय बाद ही कविता कौशिक अपने अंदाज को बदलते हुए कहा कि अगर वाकई में एजाज खान को छूने स इतन दिक्कत होती है तो वह बिग बॉस में आकर इतनी गंदी हरकत नहीं करते.

जिसके बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने एजाज खान का सपोर्ट करना शुरू कर दिया और कविता कौशिक को उल्टा सीधा कहने लगे. वहीं ट्विटर पर भी लोगों ने कविता कौशिक को ट्रोल करना शुरू कर दिया.

कुछ लोगों ने कविता कौशिक को बुरा भला सुनाते हुए कहा कि आपकी सोच इतनी गंदी है कभी सोचा नहीं था. वहीं कुछ लोगों ने एफआईआर दर्ज करने को कहा .

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लगातार कविता के खिलाफ ट्वीट आ रहे हैं. लेकिन कविता ने अभी तक इस पर कोई बयान नहीं दिया है.

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कविता कौशिक ने इमोशनल होकर एजाज खान को गले लगा लिया था. जिसके बाद सभी घर वाले एजाज को समझाने लगे थें.

हालांकि कुछ समय बाद ही कविता कौशिक अपने अंदाज को बदलते हुए कहा कि अगर वाकई में एजाज खान को छूने स इतन दिक्कत होती है तो वह बिग बॉस में आकर इतनी गंदी हरकत नहीं करते.

जिसके बाद सोशल मीडिया पर लोगों ने एजाज खान का सपोर्ट करना शुरू कर दिया और कविता कौशिक को उल्टा सीधा कहने लगे. वहीं ट्विटर पर भी लोगों ने कविता कौशिक को ट्रोल करना शुरू कर दिया.

कुछ लोगों ने कविता कौशिक को बुरा भला सुनाते हुए कहा कि आपकी सोच इतनी गंदी है कभी सोचा नहीं था. वहीं कुछ लोगों ने एफआईआर दर्ज करने को कहा .

लगातार कविता के खिलाफ ट्वीट आ रहे हैं. लेकिन कविता ने अभी तक इस पर कोई बयान नहीं दिया है.

‘कपिल शर्मा शो’ में दिखे नेहा और रोहनप्रीत , हनीमून को लेकर कपिल ने खींची टांग

कॉमेडियन कपिल शर्मा शो का नया प्रोमो आया है जिसमें कपिल शर्मा के साथ में रोहनप्रत और नेहा कक्कड़ नजर आ रहे हैं. दरअसल, इस हफ्ते कपिल शर्मा शो में रोहनप्रीत औऱ नेहा कक्कड़ मेहमान बनकर पहुंचेगे.

प्रोमो में रोहनप्रीत और नेहा कक्कड़ प्यार कि बातें करते नजर आ रहे हैं. वहीं बीच- बच में कपिल शर्मा जमकर इन दोनों की टांग खंचाई करते नजर आ रहे हैं.

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वहीं एक जगह कपिल शर्मा कह रहे हैं कि हनीमून पर कमी रह गई तो आप लोग यहां शुरू हो गए. कपिल शर्मा क बातों को सुनकर नेहा कक्कड़ जोर- जोर से हंसने लगती हैं.

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कुछ दिनों पहले ही नेहा कक्कड़ औऱ रोहनप्रीत सिंह हनीमून से वापस आएं हैं. दोनों की शाद बेहद धूमधाम से हुई थी. नेहा और रोहन की शादी के बाद से आएं दिन सोशल मीडिया पर छाएं रहते हैं.

कभी अपने शादी के फोटो को लेकर तो कभी अपने हनीमून के फोटो को लेकर. दोनों कपल साथ में बहुत ज्यादा क्यूट लगते हैं. इन दोनों की शादी को करीब एक महीना से ज्यादा हो गया है.

कुछ दिन पहले पति रोहन से नेहा को सरप्राइज मिला था जिसका वीडियो नेहा ने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर किया था.

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नेहा कक्कड़ एक बेहतरीन सिंगर है. वहीं रोहनप्रीत भी पंजाबी सिंगर है. शादी से कुछ वक्त पहले से ये दोनों एक-दूसरे को जानते हैं. इससे पहले नेहा कक्कड़ का नाम हिमांश कोहली के साथ जुड़ चुका है.

हालांकि नेहा और हिमांश ज्यादा लंबे समय तक एक –दूसरे के साथ नहीं रह पाएं थे. कुछ वक्त बाद ही दोनों का ब्रेकअप हो गया था.

किसान आंदोलनों का डेरा

लेखक-रोहित और शाहनवाज

 “सरकार सोचती है,धोती पहने, गमछा ओढ़े वे अनपढ़ किसान आएंगे जिन की चपल्लें फटी होंगी, बनियान में 4 छेद होंगे. जिन को, मोटीमोटी दीवारों के सरकारी बंगले में बैठा कोई भी ऐरागैर अफसर आ कर धमका दे या बहलाफुसला दे तो शांत हो जाएंगे. पर साहब वो पुराना ज़माना गया. आज का नया किसान जींसकमीज पहनता है, हल की जगह ट्रेक्टर चलाता है.पढ़ता भी है और चीजों को समझता भी है. उसे अपने अच्छेबुरे का पता है. उसे जुमलेबाजी से बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता.” यह कहना हैसिंधु बोर्डरमें किसान आंदोलन में शामिल हुए खुशवंत सिंह का.

52 वर्षीय खुशवंत सिंह पंजाब के गुरदासपुर में छोटे किसान हैं. उन के पास खेती के लिए मात्र5-6 एकड़ जमीन है. वे लगभग 440 किलोमीटर की दूरी तय कर यहां तक पहुंचे हैं. और अब मानते हैं कि सब्र इतना कर लिया है कि बिना मांगो के पूरा हुए वापस जाना, आगे का जीवन बर्बाद होते हुए देखने जैसा है.

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देश की संसद से 38 किलोमीटर दूर दिल्ली हरियाणा का बोर्डर इन दिनों देश के किसानों के लिए ठीक वैसा ही बन गया है जैसा पिछले साल की सर्दियों में शाहीन बाग बना हुआ था.दोनों में समानता यही कि संसद के प्राचीर से ऐसे काले विवादित बिल पास हुए, जिस के बाद जन आंदोलनों काशैलाब उमड़ पड़ा.यह आंदोलन सरकार की नजरों में खटके तो आंदोलनों को कुचलने के लिए सरकार ने हर भरसक तरीके से दमनकारी चक्र चलाया, जिस से पूरी दुनिया वाकिफ रही है.

सिंधु बोर्डर जाने से पहले हम बुराड़ी में स्थित निरंकारी मैदान में गए, जहां सरकार ने पिछले ही दिन 27 नवंबर को, भारी मशक्कत के बाद किसान प्रदर्शनकारियों को दिल्ली में प्रदर्शन करने की इजाजतदी थी. लेकिन वहां जाकर देखा तो किसान उतनी संख्या में पहुंचे ही नहीं. सरकार ने यह इजाजत किसानों पर इतने दमन के बाद दिया कि पंजाब और हरियाणा के किसान इस से खिन्न हो गए थे और वे बुराड़ी मैदान में आए ही नहीं. जिस कारण वहां देश के अन्य राज्यों के किसानों का जमावड़ा कुछ देर के लिए तो लगा लेकिन वे भी धीरेधीरे सिंधु बोर्डर या बाकी बोर्डरों की तरफ शिफ्ट होते गए.

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चंडीगढ़ के लंदुडी गांव के 28 वर्षीय हरपिंदर सिंह पेशे से किसान हैं, वे कहते हैं, “आखिर हम किसानों का क्या कसूर है? क्या हम अपनी दिल्ली में नहीं आ सकते? हम तो लगते ही नहीं कि इस देश के वासी हैं. सुबहसुबह 6 बजे हमारे ऊपर टीयर गेस और वाटर केनन चलाया गया. अनाज उगाने के बदले हमारे ऊपर यह कैसा सुलूक है?हम किसान भाइयों और हमारी यूनियनों ने एप्लीकेशन के द्वारा सरकार से रामलीला मैदान या जंतरमंतर के लिए जगह मांगी थी लेकिन इन्होने दी नहीं, और अब बिना एप्लीकेशन के बुराड़ी में जगह दे रहे हैं. हम पुरे देश को खिलाते हैं यहसरकार हमें क्या जगह देगी, हम ने अपने हक की जगह छीनी है. अब हम चाहें तो वहां जाएं या ना जाएं, वह अब हमारी जगह है.”

यूं तो देश के कई जगहों जैसेयूपी, राजस्थान, महाराष्ट्र इत्यादि में इस समय किसान आंदोलन चल रहे हैं, किंतु इन आंदोलनों की धुरी इस समय सिंधु बोर्डर का किसान आंदोलन बन चुका है. सिंधु बोर्डर वह जगह है, जहां से दिल्ली और हरियाणा का डिवीज़न होता है. इस बोर्डर का रास्ता हरियाणा के रास्ते होते हुए सीधे पंजाब में घुसता है. यही कारण है कि ‘चलो दिल्ली’ के आह्वान पर पंजाब और हरियाणा से आने वाले हजारों की संख्या में किसानों ने इसी बोर्डर पर ‘डेरा’ डाल रखा है. और यह ‘डेरा’ डाला भी ऐसा गया है कि दिल्ली के लगभग 2 किलोमीटर इस छोर से ले कर बोर्डर क्रोस करते हुए 6-7 किलोमीटर उस छोर,सोनीपत (हरियाणा), तक ट्रकों, ट्रेक्टरों, गाड़ियों इत्यादि से हाईवे सनी पड़ी है.

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तेरा बोर्डर – मेरा बोर्डर

सिंधु बोर्डर का नजारा दो तरफा एंगल से देखा जा सकता है. एक, बोर्डर के इस तरफ दिल्ली के छोर पर साजोसमान से लैस सैकड़ों की संख्या में तैनात सुरक्षा बल ऐसा तनाव प्रतीत करातेहैं जैसे यह दिल्ली-हरियाणा का बोर्डर नहीं बल्कि बाघा बोर्डर सरीखे हो और किसान इस देश के निवासी नहीं बल्कि पड़ोसी देशों से खदेड़े गए मायग्रंट्स हों. प्रदर्शन स्थल पर कई लेयर की बेरिकेटिंग की गई हैं. जिस में भारीभरकम रोड डिवाइडर, वाटर कैनन, और लोहे की बेरिकेटों के ऊपर बिछाई गई ‘कटीली तारें’ हैं. जिसे देख कर ऐसा लगा, जैसे समय के अनुकूल अब भारत देश का जम्मू कश्मीर हो जाना ही बाकी रह गया है. इस में कंटीले तारों से किसानों को रोकने का यह नायब प्रयोग सरकार की मंशा सामने ला देता है.

वहीँ बोर्डर के दूसरे छोर पर, कई सो किलोमीटर का रास्ता माप चुके किसान ट्रकों-ट्रेक्टरों में गैस सिलेंडर, खाना, कंबल और जरूरत का सामान साथ में लाए हैं. इन की आंखों में भले ही थकावट है लेकिन अपनी मांगों के पूरा होने की भारी उम्मीद भी है, जो इन्हें हमेशा जोश से भर कर रखती है. प्रदर्शन का माहौल पूरा मेलामई है. दूरदूर तक जहां नजर जाती है, वहां ट्रक ही ट्रक खड़े हैं. आंदोलन में शामिल किसान उल्लास से भरे हुए हैं, मानों वें, सरकार द्वारा सदन में पास कराए कथित काले बिलों की नाराजगी से ज्यादा अब इस बात से खुश हैं कि सच में दिल्ली अब दूर नहीं और किसान भाई सब साथ में हैं.

आमतौर पर भाजपा सरकार और सरकार के चाटुकारों द्वारा लगातार यह कहा जा रहा है कि इस आंदोलन में सिर्फ पंजाब के ही किसान शामिल हैं, क्योंकि उन्हें वहां के सीएम अमरिंदर सिंह बरगला रहे हैं. भाजपा प्रायोजित आईटी सेल और ओनेपाने नेताओं द्वारा किसानों को यहां तक कहा जा रहा है कि ये किसान नहीं बल्कि खालिस्तानी उग्रवादी हैं, देशद्रोही हैं. लेकिन इन सभी आरोपों की धज्जियां तभी उड़ जाती हैं, जब देश के कई अलगअलग राज्यों में भी ऐसे किसान आंदोलन बनने लगे हैं. इस में खुद भाजपा शासित राज्य यूपी और हरियाणा के किसान भी शामिल हो रहे हैं. सिंधु बोर्डर के पास आंदोलन में न सिर्फ पंजाब बल्कि, हरियाणा से आए हुए किसानों की अच्छी खासी संख्या है.

प्रशाशन का दमन

हरियाणा में भारतीय किसान यूनियन के जिला कुरुक्षेत्र के 6 में से एक सलालाबाद ब्लाक के अध्यक्ष साहब सिंह, शांति नगर कुर्डी गांव में रहते हैं. वे कहते हैं, “हमें यहां तक पहुंचने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है. हमारे सीएम खट्टर ने हमें रोकने की भरषक कोशिशें की. हमें यहां तक पहुंचने के लिए 5 मोर्चों को तोड़ना पड़ा. मोढ़ा, त्योव्ड़ा, करनाल, सोनीपत और फिर सिंधु बोर्डर पर, दिल्ली आने की जीत. खट्टर सरकार ने कभी 9-9 फुट रोड़ पर खड्डे खुदवा दिए तो, कभी लाठी चार्ज, आंसू गेस के गोले और पानी के फुन्वारो से हमारे बुजुर्ग किसानों पर हमला किया.जिस से काफी बुजुर्गों को चोट आईं. ऐसे में अब देश का कोई व्यक्ति यदि भाजपा की गलत नीतियों के खिलाफ बोलता है तो क्या वह उग्रवादी हो जाएगा?”

वे आगे कहते हैं,“सरकार, किसानों के इस देशव्यापी आंदोलन को बदनाम करने के लिए जानबूझ कर इसे पंजाब तक ही सीमित कर रही है, जब कि हम हरियाणा में पिछले 6 महीनों से, जब से बिल संसद में पास हुआ, तब से आंदोलन कर रहे हैं. कभी रोड़ रोकी,कभी पटरी पर बैठे, कभी भवनों के चक्कर काट रहे हैं. लेकिन आंदोलन को सिर्फ बदनाम करने के लिए मीडिया और सरकार इसे छुपा रही है.”

साहब सिंह कहते हैं, “यह तीनों बिल हम छोटे किसानों के लिए बहुत खतरनाक है. शहरी लोग सोचते होंगे कि इस बिल के पास होने के बाद ‘वाह क्या आजादी मिल रही है किसानों को’, लेकिन यह हमीं जानते हैं कि हम निचले दर्जे के किसान अब अपाहिज हो जाएंगे.” आगे की रणनीति पर वे कहते हैं कि फिलहाल सभी किसान यूनियनों जिस में देश भर से लगभग 350 यूनियनें इस आन्दोलन में शामिल हैं, का दिल्ली के बोर्डरों को डेरा बनाने की योजना है. और वे सिंधु बोर्डर पर ही डेट रहेंगे.”

संगरूर से 27 वर्षीय मंजीत बताते हैं, “अकेले पंजाब से इस समय 31 जत्थेबंदी किसान यूनियन यहां मौजूद हैं.जो पंजाब के सभी हिस्सों से यहां पहुंचे हैं.” रास्ते में हरियाणा सरकार की बर्बर कार्यवाही पर वे बताते हैं, “26 तारिख कोहम सभी जत्थे में निकले थे. जैसे ही गुल्ला चीका बोर्डर पर आए तो उन्होंने (पुलिस) पत्थर, कांटों की तारों को बढ़ा बना कर, वाटर कैनन से हमला किया. इस के चलते कई लोगों को चोटे आईं. कई बुजुर्गों की पगड़ी खुल गईं. जो सरकार के लिए शर्मनाक है.”

काले कानून का विवाद

किसान आंदोलनों के भड़कने का बड़ा कारण, भाजपा सरकार द्वारा लौकडाउन के समय आननफानन में बिना नियमित चर्चा के किसानों से जुड़े 3 बिलों को दोनों सदनों में पास करवाना था. यह 3 बिल- फार्मर्स प्रोड्युसड ट्रेड एंड कामर्स, फार्मर अग्रीमेंट और प्राइस एस्युरेंस और फार्म्स सर्विसेज एंड असेंशियल कमोडिटी हैं. जिसे लेकर किसानों के भीतर तभी से रोष पैदा हो गया था. शुरू में किसान अपने जिले और राज्य स्तर पर आंदोलित रहे लेकिन इस 26 तारिख को लगभग 350 किसान यूनियनों संयुक्त मोर्चा बनाकर दिल्लीमें चढ़ाई की योजना बनाई.

54 वर्षीय गुरदीप सिंह फतहपुर साहब के रहने वाले हैं. उन का अभी जौइंट परिवार है तो भाइयों के बीच जमीन के पट्टे का बंटवारा नहीं किया गया है. पुरे परिवार के पास खेती के लिए जमीन लगभग 20 एकड़ है जिसे साथ में मिल कर बोते हैं. इसी के सहारे पुरे परिवार का पेट पलता है.

वे बताते हैं, “यह कानून हमारी मंडियों को ख़त्म करेगा. भारत की मंडियों में कई बुराइयां ही सही पर वही हमारे लिए रीढ़ की तरह काम करते है. सरकार कहती है अब किसान आजाद हैं कहीं भी अपना सामान बेचने के लिए, मैं कहता हूं इस के लिए हम गुलाम ही कब थे? हमारे पास ना तो भंडार गृह हैं, ना ही अपनी फसल को किसी दुसरे राज्य में बेचने की औकात. फिर क्या लानेलेजाने का खर्च सरकार देगी? इन्ही मंडियों से कर्जा भी मिल जाता है.”

गुरदीप सिंह कहते हैं, “यह पंजाब को भी अब बिहार असम और बाकि राज्यों की तरह बना देना चाहते हैं. आज बिहार का किसान मजबूर है हमारे यहां अपनी फसल बेचने को. क्योंकि हमारे यहां एमएसपी है. फिक्स दाम है. चाहे भाव बढ़े या घटे. इन राज्यों की मंडियों पर सरकार का रोल ही ना के बराबर है. वहां कोई एमएसपी लागू नहीं. अब यहां (पंजाब) भी ये यही करना चाहते हैं. सारी फसल कॉर्पोरेट के हाथों करना चाहते हैं. अब कॉर्पोरेट तो अपना मुनाफा ही देखता है.” जब उन से कहा गया कि प्रधानमंत्री मोदी और कृषि मंत्री एमएसपी को बनाए रहने की बात कह रहे हैं, तो उन्होंने झट से कहा, “इस की कोई गारंटी दे रहे हैं क्या?”

सिंधु बोर्डर से 450 किलोमीटर दूर मोंगा जिला से आए दीपक (28) पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं और साथ ही अभी थिएटर एक्टिविस्ट हैं. वे किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं, उन का कहना है, “यह कानून किसानों को बंधवा बना देगा. किसानों को आजादी नहीं होगी कि वे अपने खेत में क्या उगाएं. उन्हें कारपोरेटों के अनुसार ही फसल उगानी पड़ेगी. जो वो कहेंगे वही करना पड़ेगा. सरकार छोटे किसानों को आपसी सहयोग से खेती करने की बात तो कह रही है, जो ठीक है लेकिन मुनाफा कौरपोरेटों, बिसनेसमेन, पूंजीपतियों केहाथों क्यों?”

वे आगे कहते हैं, “आज हालत यह है कि देश का किसान, जिस कीमत पर अपनी फसल बेचता है उस से कई गुना कीमत पर बाजार में लोगों को मिलता है. जिसे लोग महंगाई कहते हैं. इस की वजह क्या है? यही कौर्पोरेट लोग हैं जो अपने निजी मुनाफे के लिए मार्किट को अपने अनुसार चलाते हैं. ऐसे में अगर पूरा एग्रीकल्चरल सेक्टर इन्ही के हाथों सोंप दिया जाए तो हस्र पुरे देश की जनता भुगतेगी.”

राजनीतिक पार्टियों का नहीं चाहिए साथ

यह अच्छी बात है कि आंदोलित किसान हर बात को ले कर सजग हैं. किसी भी मीडिया के घुसने से पहले किसानों के चेहरे पर संदेह की सुईं लटकी है. घटनास्थल पर लटकता पोस्टर जिसमें कुछ विशेष गोदी मीडिया के चैनलों को आन्दोलन से दूर रहने की सलाह दी गई है. यहां तक कि जितने लोगों से भी वहां हमारी बात हुई उन्होंने भी जांच पड़ताल के साथ ही अपनी बात कही. यह दिखाता है कि मीडिया की एक धड़े की खराब रिपोर्टिंग को ले कर किसानों में भारीरोष है.

वैसे तो भले ही तमाम विपक्षी पार्टियां ट्विटर ट्विटर खेल कर किसानों की हिमायती होने का दिखावा कर रही हों, लेकिन यह हकीकत है कि किसान भी अब तमाम पार्टियों के नेताओं से खिन्न हो चुकी है. मौजूदा समय में भाजपा इस बिल के चलते किसानों के निशाने पर जरूर है लेकिन कांग्रेस ने भी देश में मंडी व्यवस्था और एमएसपी के छप्पर पर छेद करने और कई जगह तो पूरा छप्पर गायब करने में कोरकसर नहीं छोड़ी. हांलाकि पंजाब सरकार और हरियाणा में हूडा ने भी किसानों को खुला समर्थन की बात कही है. लेकिन यह सिर्फ सिर्फ मीडिया के ख़बरों तक सीमित है. वहीँ लेफ्ट भी इस मसले पर शहरी युवाओं को लामबंद नहीं कर पा रहा है. तो दिल्ली की सत्ता में बैठे केज्रिवार भी बस धरनास्थल के फीते काटने और स्टेटमेंट देने तक ही सीमित हैं.

हरियाणा में भाजपा सहयोगी दुष्यंत चौटाला की जेजेपी पार्टी खुद को किसान पार्टी घोषित करती है लेकिन किसान आन्दोलन पर ऐसे मूक बनी हुई है जैसे उसे सांप सूंघ गया हो. यह ध्यान रखने वाली बात है कि यह वही दुष्यंत हैं जिसने इन तीनों बिलों पर भाजपा के साथ थी.

सिंधु बोर्डर के धरनास्थल पर ना तो कोई जानापहचाना नेता दिखा है ना ही पार्टी होंर्डिंग के झंडे डंडे. यह दिखाता है कि यह शुद्धतम किसानों का आन्दोलन है, जिसे ना तो किसी पार्टी के झंडों की जरूरत हैं और न ही उन के होर्डिंग और आश्वासन की. हांलाकि, आन्दोलन को अलगअलग किसान यूनियन नेतृत्व दे रहे हैं.जिस में भारतीय किसान यूनियन, अखिल भारतीय किसान यूनियन, एआईकेएस, जय किसान आन्दोलन इत्यादि हैं.

धरना स्थल पर दिक्कतें और बढ़ते जरुरत मंद हाथ

किसानों के आंदोलन को समर्थन देने के लिए सिंधु बोर्डर पर पंजाब हरियाणा के छात्र ढपली पर थाप देते और गाना गा कर, किसानों का मनोरंजन करते हुए नजर आए हैं, जिन का कहना है कि वे भी इन्ही परिवारों का हिस्सा हैं, इन काली नीतिओं से कहीं ना कहीं उन पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा.वे तब तक यहां रहेंगे जब तक मांगे नहीं मान ली जाती.दिल्ली से कुछ छात्र व्यक्तिगत स्तर पर पानी और बिस्कुट जैसी सामग्री पहुंचाने का भी काम कर रहे हैं.

वहीँ हर बार की तरह गुरुद्वारा कमिटी ने भी आन्दोलनकारियों के पक्ष में मदद का हाथ बढ़ाया है. रमिंदर सिंह, जो इस समय दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधन कमिटी के एलेक्टेड सदस्य है और एक्स चेयरमेन रह चुके हैं. वे कहते हैं, “जब तक प्रोटेस्ट है खाने की कमी नहीं रहेगी.  किसान भी इसी देश का हिस्सा हैं. सरकार से गुजारिश है कि अब भी सुधर जाएं. किसान इतने किलोमीटर तय कर के आए हैं. इन की मांग जायज है, जो पूरी होनी चाहिए.”

जाहिर है किसानों ने सिंधु बोर्डर पर ही नया शाहीन बाग बनाने का फैसला कर लिया है. घर सेही अपना राशन, कंबल रजाई से भरे उन के ट्रेक्टर साफ़ दिखाते हैं कि वे सरकार के सामने झुकने को तैयार नहीं हैं.किंतु धरना स्थल में सामने आ रही समस्या यह कि हरियाणा सरकार और केंद्र पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को पीटने का बंदोबस्त तो पूरा कर रखा है लेकिन एमबुलेंस के नाम पर मात्र दो गाड़ियां ही दिखने में आई हैं. गौरतलब है कि आन्दोलन में शामिल हुए दो किसानों की तथाकथित तौर से रास्ते में दुर्घटना से मौत भी हुई थी.

वहीँ सोचालय के लिए किसानों को या तो खुले में जाना पड़ रहा है या लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर एकमात्र पेट्रोल पम्प की तरफ. ऐसे में पुरुष तो हो यहांवहां हो आते हैं लेकिन महिलाओं के लिए खासा समस्या पैदा हो सकती है. हांलाकि सिंधु बोर्डर में महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले फिलहाल बहुत कम है. जो चिंता का विषय है कि भारत में कृषि क्षेत्र में महिलाओं का बड़ा योगदान रहा है.

खैर, देखना यह है कि भाजपा सरकार और किसान के बीच यह रार कहां तक चलेगी. फिलहाल सरकार ने 3 तारीख तक की बात का आश्वासन दिया है और अमित शाह ने बुराड़ी में आने की बात कही है लेकिन देख के लगता है कि किसानों को अब सरकार परभरोसा नहीं रह गया है.

अगर आप भी जाना चाहते हैं रोड ट्रीप पर तो इन नियमों का करें पालन

यात्रा पर लगा प्रतिबंध पर अब कम कर दिया गया है. अगर आप ड्राइव पर जाना चाहते हैं तो यह आपके लिए अच्छा समय है. ऐसे वक्त में आप कहीं बाहर जानें का प्लान बना सकते हैं. लेकिन इससे पहले आपके लिए कुछ नियम बनाए गए हैं. जिसका आपको खास ख्याल रखना होगा.

तीन लोगों से ज्यादा बनती है भीड़ :

अपने कार में  तीन लोगों से ज्यादा के साथ ही ट्रीप प्लान न करें क्योंकि तीन से ज्यादा लोग भीड़ बना देते हैं. इससे आप भी यात्रा के दौरान नियमों का सही से पालन कर पाएंगे. कार में इतना ही स्पेस होता है कि आप तीन लोगों में सोशल डिस्टेंश को अच्छे से मेंटन कर सकते हैं. हमें खुद से इमानदार रहना पड़ेगा क्योंकि सोशल डिस्टेंसिंग अभी जरूरी है. यह हमारी जिम्मेदारी है कि संक्रमण के खतरों को कम करें न सिर्फ अपने लिए बल्कि दूसरों के लिए भी और यह तभी संभव है जब हम जरुरी नियमों का पालन करें. ही किस और के लिए लेकिन औरों के लिए भी.

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अगर आप नेक्सट रोड ट्रीप प्लान करते हैं तो आप सारे नियमों का पालन जरूर करें. इससे आपको यात्रा में किसी तरह की परेशानी नहीं आएगी इससे आप अपने आप को दूसरों को संक्रमित होने से बचाएंगे #BeThe Better Guy.

 

संयुक्त खाता – भाटिया अंकल के साथ क्या हुआ था

लेखिका-रंजना भारिज

दोपहर का समय था. मैं औफिस में खाना खत्म कर के जल्दीजल्दी अपनी फाइलें इकट्ठी कर रही थी.

बस 15 मिनट में एक जरूरी मीटिंग अटैंड करनी थी. इतने में ही फोन की घंटी बजी.

‘‘उफ्फ… अब यह किस का फोन आ गया?‘‘ परेशान हो कर मैं ने फोन उठाया, तो उधर से कमला आंटी की आवाज सुनाई पड़ी.

कमला आंटी के साथ हमारे परिवार का बहुत पुराना रिश्ता है. उन के पति और मेरे पिता बचपन में स्कूल में साथ पढ़ते थे.

आंटी की आवाज से मेरा माथा ठनका. आंटी कुछ उदास सी लग रही थीं और मैं जल्दी में थी. पर फिर भी आवाज को भरसक मुलायम बना कर मैं ने कहा, ‘‘हां आंटी, बताइए कैसी हैं आप?‘‘

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‘‘बेटा, मैं तो ठीक हूं, पर तुम्हारे अंकल की तबीयत काफी खराब है. हम लोग पिछले 10 दिन से अस्पताल में ही हैं,‘‘ बोलतेबोलते उन का गला भर्रा गया, तो मुझे भी चिंता हो गई.

‘‘क्या हुआ आंटी? कुछ सीरियस तो नहीं है?‘‘

‘‘सीरियस ही है बेटा. उन को एक हफ्ते पहले दिल का दौरा पड़ा था और अब… अब लकवा मार गया है. कुछ बोल भी नहीं पा रहे हैं. डाक्टर भी कुछ उम्मीद नहीं दिला रहे हैं,‘‘ कहते हुए उन का गला रुंध गया.

‘‘आंटी, आप फिक्र मत कीजिए. अंकल ठीक हो जाएंगे. आप हिम्मत रखिए. मैं शाम को आती हूं आप से मिलने,‘‘ एक तरफ मैं उन्हें दिलासा दिला रही थी, वहीं दूसरी तरफ अपनी घड़ी देख रही थी.

मीटिंग का समय होने वाला था और मेरे बौस देर से आने वालों की तो बखिया ही उधेड़ देते थे. किसी तरह भागतेभागते मीटिंग में पहुंची, पर मेरा दिमाग कमला आंटी और भाटिया अंकल की तरफ ही लगा रहा.

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मीटिंग समाप्त होतेहोते शाम हो गई. मैं ने सोचा, घर जाते हुए अस्पताल की तरफ से निकल चलती हूं. वहां जा कर देखा, तो अंकल की हालत सचमुच काफी खराब थी. डाक्टरों ने लगभग जवाब दे दिया था. अस्पताल से निकलते हुए मैं ने कहा, ‘‘आंटी, किसी चीज की जरूरत हो तो बताइए.‘‘

कमला आंटी पहले तो कुछ हिचकिचाईं, पर फिर बोलीं, ‘‘बेटा, एक हफ्ते से अंकल अस्पताल में पड़े हैं. अब तुम से क्या छिपाना? मेरे पास जितना पैसा घर में था, सब इलाज में खर्च हो गया है. इन के अकाउंट में तो पैसा है, परंतु निकालें कैसे? यह तो चेक पर दस्तखत नहीं कर सकते और एटीएम कार्ड का पिन भी बस इन्हें ही पता है. इन का खाता तुम्हारे ही बैंक में है. यह रही इन की पासबुक और चेकबुक. क्या तुम बैंक से पैसे निकालने में कुछ मदद कर सकती हो?‘‘ कहते हुए आंटी ने पासबुक और चेकबुक दोनों मेरे हाथ में रख दी. आंटी को पता था कि मैं उसी बैंक में नौकरी करती हूं.

‘‘आंटी, आप का भी अंकल के साथ जौइंट अकाउंट तो होगा ना? आप चेक साइन कर दीजिए, मैं कल बैंक खुलते ही आप के पास पैसे भिजवा दूंगी.‘‘

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‘‘नहीं बेटा, नहीं. वही तो नहीं है. तुम्हें तो पता ही है, मैं तो इन के कामों में कभी दखल नहीं देती. इन्होंने कभी कहा नहीं और न ही मुझे कभी जरूरत महसूस हुई. बैंक का सारा काम तो अंकल खुद ही करते थे. पर पैसे तो इन के इलाज के लिए ही चाहिए. तुम तो बैंक में ही नौकरी करती हो. किसी तरह पैसा बैंक से निकलवा दोगी ना?‘‘ आंटी ने इतनी मासूमियत भरी उम्मीद से मेरी ओर देखा, तो मुझे समझ न आया कि मैं क्या करूं. बस चेक ले कर सोचती हुई घर आ गई.

घर जा कर चेक फिर से देखा और बैंक की शाखा का नाम पढ़ा तो याद आया कि वहां का मैनेजर तो मुझे अच्छी तरह से जानता है. झटपट मैं ने उसे फोन किया और सारी स्थिति समझाई. उस ने तुरंत मौके की नजाकत समझी और मुझे आश्वासन दिया, ‘‘कोई बात नहीं. मैं भाटिया साहब को अच्छी तरह जानता हूं. उन के सारे खाते हमारी ब्रांच में ही हैं. सुबह बैंक खुलते ही मैं खुद भाटिया साहब के पास अस्पताल चला जाऊंगा और उन के दस्तखत करवा कर पैसे उन के पास भिजवा दूंगा. आप बिलकुल फिक्र मत कीजिए.‘‘

बैंक के निर्देशों के अनुसार यदि कोई खाताधारी किसी कारण से दस्तखत करने की हालत में नहीं होता है तो कोई अधिकारी अपने सामने उस का अंगूठा लगवा कर उस के खाते से पैसे निकालने के लिए अधिकृत कर सकता है. वह मैनेजर इन निर्देशों से भलीभांति अवगत था, और भाटिया अंकल की मदद करने के लिए भी तैयार था, यह जान कर मुझे बहुत तसल्ली हुई और मैं चैन की नींद सो गई.

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सुबह दफ्तर जाने की जगह मैं ने कार अस्पताल की ओर मोड़ ली. मुझे बहुत खुशी हुई, जब 9 बजते ही बैंक का मैनेजर भी वहां पहुंच गया. उस के हाथ में विड्राल फार्म था, जामुनी स्याही वाला इंकपैड भी था. बेचारा पूरी तैयारी से आया था. आते ही उस ने भाटिया अंकल से खूब गर्मजोशी से नमस्ते की, तो अंकल के चेहरे पर भी कुछ पहचान वाले भाव आते दिखे. फिर मैनेजर ने कहा, ‘‘भाटिया साहब, आप के अकाउंट से 25,000 रुपए निकाल कर आप की मैडम को दे दूं?‘‘

जवाब में जब अंकल ने अपना सिर नकारात्मक तरीके से हिलाया, तो मैनेजर समेत हम सब सकते में आ गए.

उस ने फिर कहा, ‘‘भाटिया साहब, आप के इलाज के लिए आप की मैडम को पैसा चाहिए. आप के अकाउंट से पैसे निकाल कर दे दूं?‘‘ जवाब फिर नकारात्मक था.

बेचारे मैनेजर ने 3-4 बार प्रयास किया, पर हर बार भाटिया अंकल ने सिर हिला कर साफ मना कर दिया. उस ने हार न मानी और फिर कहा, ‘‘भाटिया साहब, आप को पता है कि यह पैसा आप के इलाज के लिए ही चाहिए?‘‘

भाटिया अंकल ने अब सकारात्मक सिर हिलाया, परंतु पैसे देने के नाम पर जवाब में फिर ना ही मिला.

हालांकि यह अकाउंट भाटिया अंकल के अपने अकेले के नाम में ही था, उन्होंने उस पर कोई नौमिनेशन भी नहीं कर रखा था. बैंक मैनेजर ने आखिरी कोशिश की, ‘‘भाटिया साहब, आप की मैडम को इस अकाउंट में नौमिनी बना दूं?‘‘ जवाब अब भी नकारात्मक था.

‘‘आप का अकाउंट कमलाजी के साथ जौइंट कर दूं?‘‘ जवाब में फिर नहीं. ताज्जुब की बात तो यह कि भाटिया अंकल, जो कल तक न कुछ बोल रहे थे और न ही समझ रहे थे, बैंक से पैसे निकालने के मामले में आज सिर हिला कर साफ जवाब दे रहे थे.

मैनेजर ने मेरी ओर लाचारी से देखा और हम दोनों कमरे के बाहर आ गए. खाते से पैसे निकालने में मैनेजर ने अपनी मजबूरी जाहिर कर दी, ‘‘मैडम, अच्छा हुआ, आप यहां आ गईं, नहीं तो शायद आप मेरा भी विश्वास नहीं करतीं. आप ने खुद अपनी आंखों से देखा है. भाटिया साहब तो साफ मना कर रहे हैं. ऐसे में कोई भी उन के अकाउंट से पैसे निकालने की अनुमति कैसे दे सकता है?‘‘

मैनेजर की बात तो सोलह आने खरी थी. बैंक मैनेजर तो वापस बैंक चला गया और मैं अंदर जा कर कमला आंटी को उस की लाचारी समझाने की व्यर्थ कोशिश करने लगी.

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अस्पताल से लौटते समय मैं उन्हें अपने पास से 10,000 रुपए दे आई. साथ ही, आश्वासन भी कि जितने रुपए चाहिए, आप मुझे बता दीजिएगा, आखिर अंकल का इलाज तो करवाना ही है.

शाम को बैंक से लौटते हुए मैं कमला आंटी के पास फिर गई. वे अभी भी दुखी थीं. मैं ने भी उन से पूछ ही लिया, ‘‘आंटी, आप ने कभी अंकल को अकाउंट जौइंट करने के लिए नहीं कहा क्या?‘‘

‘‘कहा था बेटा. कई बार कहा था, पर वह मेरी कब मानते हैं? हमेशा यही कहते हैं कि मैं क्या इतनी जल्दी मरने जा रहा हूं? एक बार शायद यह भी कह रहे थे कि यह मेरा पेंशन अकाउंट है, जौइंट नहीं हो सकता है.‘‘

‘‘नहींनहीं आंटी, शायद उन्हें पता नहीं है. अभी तो पेंशन अकाउंट भी जौइंट हो सकता है. चलो, अंकल ठीक हो जाएंगे, तब उन का और आप का अकाउंट जौइंट करवा देंगे और नौमिनेशन भी करवा देंगे,‘‘ कह कर मैं घर आ गई.

रास्तेभर गाड़ी चलाते हुए मैं यही सोचती रही कि भाटिया अंकल वैसे तो आंटी का इतना खयाल रखते हैं, पर इतनी महत्वपूर्ण बात पर कैसे ध्यान नहीं दिया?

कुछ दिन और निकल गए. भाटिया अंकल की तबीयत और बिगड़ती गई. आखिरकार, लगभग 10 दिन बाद उन्होंने अंतिम सांस ले ली और कमला आंटी को रोताबिलखता छोड़ परलोक सिधार गए.

पति के जाने के अकथनीय दुख के साथसाथ आंटी के पास अस्पताल का बड़ा सा बिल भी आ गया. उन का अंतिम संस्कार होने तक आंटी के ऊपर कर्जा काफी बढ़ गया था.

घर की सदस्य जैसी होने के नाते मैं लगभग रोज ही उन के पास जा रही थी और मैं ने जो पहला काम किया, वह यह कि भाटिया अंकल के सभी खाते बंद करवा के उन्हें कमला आंटी के नाम करवाया. इन कामों में बहुत से फार्म पूरे करने पड़ते हैं, पर बैंक में नौकरी करने की वजह से मुझे उन सब की जानकारी थी. आंटी को सिर्फ इन्डेमिनिटी बांड, एफिडेविट, हेयरशिप सर्टिफिकेट आदि पर अनगिनत दस्तखत ही करने पड़े थे, जो मुझ में पूरा भरोसा होने के कारण वे करती चली गईं और रिकौर्ड टाइम में मैं ने भाटिया अंकल के सभी खाते आंटी के नाम में करवा दिए. आंटी ने चैन की सांस ली और सारे कर्जों का भुगतान कर दिया. अपने खातों में उन्होंने नौमिनी भी मनोनीत कर लिया. अंकल के शेयर्स, म्यूच्यूअल फंड्स आदि का भी यही हाल था.

सब को ठीक करने में कुछ समय अवश्य लगा, पर मुझे यह सब काम पूरा कर के बहुत ही संतोष मिला.

भाटिया अंकल सरकारी नौकरी से रिटायर हुए थे. अब आंटी की फैमिली पेंशन भी आनी शुरू हो गई थी. और तो और, उन्होंने एटीएम से पैसे निकालना, चेक जमा करना और पासबुक में एंट्री कराना भी सीख लिया था. सार यह कि उन का जीवन एक ढर्रे पर चल निकला था.

इस बात को कई महीने निकल गए, पर एक बात मेरे दिल को बारबार कचोटती रही. ऐसा क्या था कि अंकल ने अपने अकाउंट से पैसे नहीं निकालने दिए. फिर एक बार मौका निकाल कर मैं ने आंटी से पूछ ही लिया.

यह सुन कर आंटी सकपका कर चुपचाप जमीन की ओर देखने लगीं. मुझे लगा कि शायद मुझे यह सवाल नहीं पूछना चाहिए था, पर कुछ क्षण पश्चात आंटी जैसे हिम्मत बटोर कर बोलीं, ‘‘बेटा, क्या बताऊं? पैसा चीज ही ऐसी है. जब अपने ही सगे धोखा देते हैं, तब शायद आदमी के मन से सभी लोगों पर से विश्वास उठ जाता है. इन के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था.‘‘

मैं चुपचाप आंटी की ओर देखती रही. मेरी उत्सुकता और अधिक जानने के लिए बढ़ गई थी.

आंटी आगे बोलीं, ‘‘जब तुम्हारे अंकल मैडिकल की पढ़ाई कर रहे थे, उन के पिता यानी मेरे ससुरजी बहुत बीमार थे. पैसों की जरूरत पड़ती रहती थी. इसलिए उन्होंने अपनी चेकबुक ब्लैंक साइन कर के रख दी थी. मेरे जेठ के हाथ वो चेकबुक पड़ गई और उन्होंने अकाउंट से सारे पैसे निकाल लिए. ना ससुरजी के इलाज के लिए पैसे बचे और न इन की पढ़ाई के लिए. मेरी सास पैसेपैसे के लिए मोहताज हो गईं. फिर अपने अपने जेवर बेच कर उन्होंने इन की मैडिकल की पढ़ाई पूरी करवाई और साथ ही सीख भी दी कि पैसे के मामले में किसी पर भी विश्वास नहीं करना, अपनी बीवी पर भी नहीं.

“तुम्हारे अंकल ने शायद अपनी जिंदगी के उस कड़वे सत्य को आत्मसात कर लिया था और अपनी मां की सीख को भी. इसीलिए वह अपने पैसे पर अपना पूरा नियंत्रण रखते थे और उस लकवे की हालत में भी उन के अंतर्मन में वही एहसास रहा होगा.“

अब सबकुछ शीशे की तरह साफ था, पर आंटी तनाव में लग रही थीं. मैं ने बात बदली, ‘‘चलिए छोड़िए आंटी, मैं आप को चाय बना कर पिलाती हूं.‘‘

समय बीतता गया, कमला आंटी की मनोस्थिति अब लगभग ठीक हो गई थी और अपने काम संभालने से उन में एक नए आत्मविश्वास का संचार भी हो रहा था. वैसे तो कमला आंटी पढ़ीलिखी थीं, हिंदी साहित्य में उन्होंने स्नातकोत्तर स्तर तक पढ़ाई की थी, परंतु पिछले 40 सालों में केवल घरबार में ही विलीन रहने से उन का जो आत्मविश्वास खो सा गया था, धीरेधीरे वापस आने लगा था.

मैं जब भी उन से मिलने जाती, मुझे यही खयाल बारबार सताता था कि हरेक व्यक्ति भलीभांति जानता है कि उसे एक दिन इस दुनिया से जाना ही है. बुढ़ापे की तो छोडो, जिंदगी का तो कभी कोई भरोसा नहीं है. पर फिर भी अपनी मृत्यु के पश्चात अपने प्रियजनों की आर्थिक सुरक्षा के बारे में कितने लोग सोचते हैं? छोटीछोटी चीजें हैं जैसे कि अपना बैंक खाता जौइंट करवाना, अपने सभी खातों, शेयर्स, म्यूच्यूअल फंड आदि में नौमिनी का पंजीकरण करवाना आदि. साथ ही, अपनी वसीयत करना भी तो कितना महत्त्वपूर्ण काम है. पर इन सब के बारे में ज्यादातर लोग सोचते ही नहीं हैं? अब कमला आंटी को ही ले लीजिए. उन बिचारी को तो यह भी पता नहीं था कि वे फैमिली पेंशन की हकदार हैं, अंकल के पीपीओ वगैरह की जानकारी तो बहुत दूर की बातें हैं. लोग जिंदा रहते हुए अपने परिवार का कितना खयाल रखते हैं, परंतु कभी यह नहीं सोचते कि मेरे मरने के बाद उन का क्या होगा?

धीरेधीरे समय निकलता गया और कमला आंटी के जीवन में सबकुछ सामान्य सा हो गया. उन के घर मेरा आनाजाना भी कम हो गया, पर अचानक एक दिन आंटी का फोन आया, ‘‘बेटा, शाम को दफ्तर से लौटते हुए कुछ देर के लिए घर आ सकती हो क्या?‘‘

‘‘हां… हां, जरूर आंटी. कोई खास बात है क्या?‘‘

‘‘नहीं, कुछ खास नहीं, पर शाम को आना जरूर,‘‘ आवाज से आंटी खुश लग रही थीं.

शाम को जब मैं उन के घर पहुंची, तो उन्होंने मेरे आगे लड्डू रख दिए. चेहरे पर बड़ी सी मुसकान थी.

‘‘लड्डू किस खुशी में आंटी?‘‘ मैं ने कौतूहलवश पूछा, तो एक प्यारी सी मुसकान उन के चेहरे पर फैल गई.

‘‘पहले लड्डू खाओ बेटा,‘‘ बहुत दिन बाद कमला आंटी को इतना खुश देखा था. दिल को अच्छा लगा.

लड्डू बहुत स्वादिष्ठ थे. एक के बाद मैं ने दूसरा भी उठा लिया. तब तक आंटी अंदर के कमरे में गईं और लौट कर सरिता मैगजीन की एक प्रति मेरे हाथ में रख दी.

‘‘यह देखो, तुम्हारी आंटी अब लेखिका बन गई है. मेरी पहली कहानी इस में छपी है.‘‘

‘‘आप की कहानी…? वाह आंटी, वाह. बधाई हो.‘‘

‘‘हां, कहानी क्या, आपबीती ही समझ लो. मैं ने सोचा कि क्यों न सब लोगों को बताऊं कि पैसे के मामले में पत्नी के साथ साझेदारी न करने से क्या होता है? और संयुक्त खाता न खोलने से उस को कितनी परेशानी हो सकती है. वैसे ही कोरोना वायरस इतना फैला हुआ है, क्या पता किस का नंबर कब लग जाए. तुम्हारी मदद न मिलती, तो मैं पता नहीं क्या करती. जैसा मेरे साथ हुआ, ऐसा किसी के साथ न हो,‘‘ कहतेकहते कमला आंटी की आंखें नम हो चली थीं और साथ में मेरी भी.

डूबते किनारे- सौम्या और रेवती के बच कौन आ गया था

दुनिया कितनी छोटी है, इस का अंदाजा महाबलेश्वर में तब हुआ, जब बारिश में भीगने से बचने के लिए दुकान की टप्परों के नीचे शरण लेती रेवती को देखा. जयपुर में वह और रेवती एक ही औफिस में काम करते थे.आज काफी समय बाद पर्यटन स्थल की अनजान जगह पर रेवती से मिलना एक बड़ा इत्तिफाक और रोमांचकारी था. खुशी से बौराती सौम्या रेवती के गले लगते हुए बोली, “कहां रही इतने दिन…? कितना फोन लगाया तुझ को, लगता ही नहीं था… कैसी हो तुम?”

“मैं बिलकुल ठीक हूं… हां, इधर बहुत व्यस्त रही… बेटी रिया की शादी में अपना होश ही नहीं था.”“बड़ी खराब हो… बेटी की शादी में निमंत्रण तक नहीं भेजा…” सौम्या की शिकायत पर वह मुसकरा दी.“आप लोग बातें करो. मैं गरमागरम भुट्टे ले आता हूं…” सौम्या के पति सलिल ने भुट्टे के बहाने दोनों सहेलियों को अकेले छोड़ना बेहतर समझा.

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“हाय, कित्ते दिन बाद मिले हैं… समझ नहीं आ रहा, कहां से बातें शुरू करूं… यहां कब तक हो और कैसे आई हो…”“आज ही निकलना है… मैं कैब का इंतजार कर रही हूं… दरअसल, यहां एक रिश्तेदार के पास आई थी… फंक्शन था…”“अकेले…” सौम्या ने आश्चर्य से पूछा.

“और क्या, इन के पास समय कहां है, जब देखो बिजनैस… अब बेटे ने संभाल लिया है, तो इन्हें कुछ आराम है.”“सुन न रेवती, मेरे होटल चलते हैं, गप्पें मारेंगे…”नहीं यार सौम्या, बिलकुल समय नहीं है….” कहते हुए वह मोबाइल पर अपने कैब की लोकेशन देखने लगी और हड़बड़ा कर बोली, “कैब आ गई…” रेवती मोबाइल से कैब वाले को अपनी लोकेशन बताने लगी.

“हां भैया, लोकेशन पर ही हूं. हां… हां… बस थोड़ा सा आगे आइए, मैं आप को देख रही हूं…” रेवती को अपने कैब ड्राइवर को दिशानिर्देश देते हुए सौम्या ने उसे अजीब नजरों से देखा.सौम्या की ओर देखे बगैर ही रेवती ने बैग में अपने मोबाइल को सरकाते हुए कहा, “यहां की चाय ले जाना और स्ट्राबेरी भी… वैसे, कहांकहां घूमी हो. छोटी सी तो जगह है… बरसात में तो लगता है हम बादलों में हैं…” कह कर वह कैब की ओर देखने लगी.

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सौम्या उस से ढेर सारी बातें करना चाहती थी, पर दोनों सहेलियों के बीच वो कैब ड्राइवर किसी खलनायक सा आ गया.कैब ड्राइवर के आते ही रेवती उस के कंधे पर हाथ रखती हुई, “चलो, फिर मिलते हैं.” कह कर चलती बनी.अरसे बाद मिलने पर क्या कैब छोड़ी नहीं जा सकती थी, यह क्षोभ मिलने की खुशी पर भारी पड़ गया.

“अरे, तुम अकेली खड़ी हो, तुम्हारी सहेली कहां गई…” दोनों हाथों में भुट्टा पकड़े सलिल पूछ रहे थे, “चली गई, उसे कुछ ज्यादा ही जल्दी थी…”“चलो, तुम दोनों भुट्टे खा लो…” कहते हुए सलिल ने उसे भुट्टा पकडाया.

बारिश थम चुकी थी. सलिल आसपास के खूबसूरत नजारों में खो गए. पर, सौम्या का व्यथित मन रेवती के उदासीन व्यवहार का आकलन करने में लगा हुआ था. संपर्क सूत्र का आदानप्रदान हुए बगैर कब मिलेंगे, कैसे मिलेंगे? जैसे अनुत्तरित प्रश्न उस के पाले में डाल कर यों हड़बड़ी में निकल जाना उसे बड़ा अजीब लगा. लगा ही नहीं, कभी दोनों में घनिष्ठता थी. न कुछ जानने की ललक… न बताने की उत्सुकता… रेवती का अतिऔपचारिक व्यवहार सौम्या को अच्छा नहीं लगा.

जयपुर से दिल्ली शिफ्ट होने के बाद वह जब भी रेवती को फोन करती, वह पूरे उत्साह के साथ अपने सुखदुख उस से साझा करती… फोन पर लंबीलंबी बेतकल्लुफ बातचीत में जहां सौम्या दिल्ली जैसी नई जगह पर मन न लगने का रोना रोती, वहीं रेवती अपनी नौकरी की व्यस्तता की भागादौड़ी के बारे में बताती.

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रिटायरमेंट का समय नजदीक आने पर लोग जहां भविष्य की चिंता में डूबते हैं, वहीं रेवती खुश थी कि रिटायरमेंट के बाद खूब आराम करेगी… रिटायरमेंट के पलों को सुकून से जिएगी और अपने पति आकाश के साथ खूब घूमेगी. इधर कुछ सालों से रेवती से उस का संपर्क टूट गया. जो नंबर उस के पास था, उस से उस का फोन नहीं लगता था.

सौम्या को पुराने दिन याद आए. उस के और रेवती के बीच कितनी अच्छी मित्रता थी. दोनों एकदूसरे के सुखदुख की साझीदार थीं.जब सलिल का ट्रांसफर दिल्ली हुआ, तो वह बहुत दुखी हुई. उस वक्त रेवती ने उसे समझाया, “परिस्थितियोंवश हमें कोई निर्णय लेना हो, तो उस के पीछे खुश होने के कारण ढूंढ़ लेने चाहिए.

‘‘अब देखो न, आकाश मेरे घर में खाली बैठने के खिलाफ हैं. उन का मानना है कि काम सिर्फ पैसों के लिए नहीं किया जाता. काम करने से क्रियाशीलता बनी रहती है.

“आकाश औरत की आजादी के पक्ष में हैं. क्या इतना मेरे लिए काफी नहीं… उन की सकारात्मक सोच के चलते मैं अलवर से जयपुर अपडाउन कर पाती हूं.

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“मैं खुश हूं कि आकाश खुले विचारों के हैं. वहीं दूसरी ओर तुझे नौकरी छोड़नी पड़ रही है, क्योंकि सलिल को दूसरे शहर में तबादले पर जाना है. इस समझौते के पीछे सकारात्मक सोच यह होनी चाहिए कि सलिल और तुम्हें टुकड़ोंटुकड़ों में जीवन जीने को नहीं मिलेगा.”

“तुम कुछ भी कहो, मैं तो खालिस समझौता ही कहूंगी… एक मिनट को मेरी बात छोड़ दो… उधर आकाश क्या चाहते हैं, ये भी छोड़ दो. बस दिल से कहो, अपने लिए तुम्हारा अपना मन क्या कहता है,” सौम्या की बात सुन कर रेवती फीकी हंसी हंस कर बोली, “इस भागदौड़ में क्या रखा है… कहने को आजाद हूं. आकाश जैसी खुली विस्तृत सोच वाला पति मिला है, फिर भी जीवन आसान कहां है. 60-65 किलोमीटर रोज के आनेजाने में कब दिन शुरू होता है, कब खत्म, कुछ पता ही नहीं चलता.

“कभीकभी मन में कसक उठती है कि कब वो दिन आएगा, जब मैं रिटायरमेंट के बाद उन्मुक्त जीवन जिऊंगी. चिड़ियों की चहचहाहट सुनूंगी, चाय के कप से धीमेधीमे चुसकियां भरूंगी. बरसती बूंदों की टपटप सुनूंगी.

‘‘अपने जानपहचान के लोगों से संपर्क बढ़ाऊंगी. कुछ छूटा हुआ समेटूंगी. कुछ बेवजह यों ही छोड़ दूंगी. ऐसे में जब बच्चे हायर स्टडीज के लिए बाहर हैं… आकाश के साथ बिना प्लानिंग कहीं निकल जाऊंगी… एकदूसरे का अकेलापन दूर करते हुए सुकून से जिऊंगी.

‘‘आकाश का बस चले, तो रिटायरमेंट के बाद भी मुझे व्यस्त रखें… जबकि मैं सुकून चाहती हूं. अब तो उस दिन का इंतजार है, जब मेरा फेयरवेल होगा…” कह कर रेवती अपने फुरसती दिनों की कल्पना में डूब गई.

“क्या हुआ…? तुम इतनी चुपचुप सी क्यों हो…” सलिल के टोकने पर मन का पंक्षी अतीत से वर्तमान में फुदक कर आ गया.

“थकान सी हो रही है सलिल, होटल चल कर आराम करते हैं…” सौम्या के कहने पर सलिल उस के साथ वापस होटल में आ गए.

रात को डिनर के लिए डाइनिंग एरिया की ओर जाते समय सहसा ही सलिल के मुंह से निकला, “अरे, आज तो वाकई इत्तिफाक का दिन है.”

सलिल के इशारे पर सौम्या की नजरें उठीं, तो बुरी तरह चौंक गई… कौरीडोर में रेवती अपने रूम का लौक खोलती दिखी. पीठ उन की तरफ होने से रेवती सौम्या और सलिल को देख नहीं पाई…

सलिल उस की बेचैनी देख कर बोले, “अगर तुम्हें लगता है कि वह तुम्हें एवौइड कर रही है, तो समझदारी इसी में है कि तुम उन की भावनाओं का खयाल करते हुए उन्हें शर्मिंदा न करो…”

पर, सौम्या को चैन कहां था. रात 9 बजे वह रेवती के कमरे का दरवाजा खटखटा आई.

दरवाजा खुलते ही विस्मय, शर्मिंदगी और हड़बड़ाहट भरे भाव लिए खड़ी रेवती को परे धकेलती वह बेधड़क अंदर आ गई और नाराजगी भरे भाव में व्यंग्यात्मक स्वर में बोली, “तू तो अपने रिश्तेदार के यहां आई है. वहां जगह नहीं होगी, तभी शायद होटल में रुकी है. वह भी उस होटल में, जिस में हम ठहरे हैं. शायद वे… तू तो आज निकलने वाली थी न…”

“तू क्या लेगी, चाय बनाऊं…” रेवती के कहने पर सौम्या उस का हाथ पकड़ कर कहने लगी, “इतने दिनों बाद मुझ से मिली है. क्या मन नहीं करता बातें करने का… जान सकती हूं, वजह क्या है मुझे एवौइड करने की…”

वह सकपकाते हुए बोली, “ऐसी कोई बात नहीं है यार… क्यों एवौइड करूंगी तुझे? रिश्तेदार से मिलने जरूर आई थी, पर रुकी होटल में हूं. इस में कौन सी बड़ी बात है.”

यह सुन कर दो पल के लिए सौम्या रेवती को घूरती रही, फिर सहसा ही उस का हाथ पकड़ कर बोली, “क्या हुआ है तुझे, सब ठीक तो है न…”

“हां… हां, बिलकुल ठीक है…”

“सच बता, अकेले आई है क्या?”

“हां, बिलकुल…”

“बच्चे और पति कहां हैं?”

“बताया तो… बेटी रिया की शादी हो गई और बेटा रोहन एमबीए कर के फैमिली बिजनैस में है.

“और पति आकाश…”

“बिलकुल बढ़िया हैं आकाश…”

उस के बाद कुछ पल के लिए चुप्पी छा गई, एक अनावश्यक सी चुप्पी… सौम्या उस के चेहरे को ध्यान से देखने लगी. दोपहर बाद की चंद पलों की मुलाकात में वह हंसी तो थी, पर उस की हंसी आंखों तक नहीं पहुंची थी.
अजीब सी गंभीरता ओढ़े, मुरझाया चेहरा और सूखी भावहीन आंखें, औपचारिकता में लिपटा रूखासूखा व्यवहार देख कर वह फुसफुसाई, “चेहरा कैसा मुरझा गया है. कहां गया तेरा सुकून वाला फंडा… मैं समझती हूं कि एक बार काम करने की आदत पड़ जाए न, तो घर बैठना बिलकुल नहीं सुहाता… आकाशजी अपने बिजनैस में व्यस्त होंगे और तू खालीपन सा महसूस करती होगी…”

यह सब सुन कर रेवती मुसकराती रही… उसे ध्यान से देख कर सौम्या बोली, “मत मुसकरा इतना… कुछ चल रहा है तेरे दिल में तो बता दे…”

इतना सुन मुसकराती रेवती के भीतर जमा दर्द सखी के स्नेहिल स्पर्श से झरझर आंसू छलकने लगे. सौम्या उसे रोते देख हैरान रह गई, फिर बिना पूछे ही उसे सीने से लगा लिया.

कुछ देर तक दोनों सहेलियां मौन रहीं. फिर कुछ देर बाद रेवती बोली, “क्या कहूं तुझ से, और कह के भी क्या फायदा…”

“मन हलका होगा और क्या…” सौम्या के कहते ही जब दर्द का गुबार निकला, तो वह सन्न रह गई, लगा जैसे पैरों के नीचे से धरती सरक गई…

रेवती अतीत के अवांछित प्रसंग को उस के साथ साझा कर रही थी…

रेवती के औफिस का आखिरी दिन था… वह बड़े उमंगों से भरी घर से निकली. औफिस पहुंचने पर उस का जोरदार स्वागत हुआ.

भावभीनी विदाई की पार्टी के बाद तकरीबन 12 बजे बौस ने कहा, “मुझे अलवर में कुछ काम है. तुम चाहो तो मैं तुम्हें घर छोड़ सकता हूं, लेकिन तुम को अभी निकलना होगा…’’

फूलों के हार, बुके और गिफ्ट को देखते हुए उसे बौस के साथ जाने में ही समझदारी लगी… आखिरी दिन उस को जल्दी घर जाने की छूट मिलना कौम्प्लीमैंट्री था. उस ने झट से हां कर दी.

वह जल्दी घर पहुंच कर आकाश को सरप्राइज करना चाहती थी. पर, खुद सरप्राइज हो गई, जब बड़ी देर तक घंटी बजाने के बाद आकाश ने दरवाजा खोला. शाम के साढ़े 6 और 7 बजे के बीच आने वाली पत्नी को 2 बजे दरवाजे पर देख कर उस के बोल नहीं फूटे…

रेवती घर के भीतर गई, तो बेडरूम में अपने ही बिस्तर पर अपनी कालोनी की एक औरत को देख गुस्से से पागल हो गई… आकाश और उस औरत के अस्तव्यस्त कपड़े और हुलिए को देखने के बाद किसी सफाई की कोई आवश्यकता नहीं रह गई थी.

आकाश का यह रूप और राज जान कर उस का वह ‘अस्तित्व’ हिल गया, जिसे सुरक्षित रखने के लिए आकाश उसे नौकरी करने के लिए प्रेरित करता था. नौकरी की प्रेरणा के पीछे इतना घिनौना उद्देश्य जान कर वह विक्षिप्त सी हो गई… जिस आकाश को देख कर वह जीती थी, उस आकाश ने उसे जीतेजी मार दिया था. नौकरी करने वह जाती थी और आजादी आकाश को मिलती थी ऐयाशियां करने की.

रेवती को फूटफूट कर रोते देख सौम्या ने उस के कंधे को पकड़ कर जोर से हिला कर पूछा, “तू ने इतना घिनौना सच जानने के बाद भी उस के साथ रहने का निर्णय क्यों लिया…

“मैं ने उस का चुनाव नहीं किया सौम्या, मैं ने उस पद प्रतिष्ठा और बच्चों की शांति के लिए उन के भविष्य का चुनाव किया है, जिस को कमाने में मेरी पूरी उम्र लग गई. दुनिया के सामने वह मेरे आदर्श पति थे और आज भी हैं… जबकि हम एक घर में दो अजनबी हैं. हम दोनों एकदूसरे का इस्तेमाल सामाजिक प्रतिष्ठा के चलते ही करते हैं.”

“क्या उसे अपनी गलती का एहसास है?”

“पकड़े जाने के बाद गलती का एहसास किसे नहीं होगा… उसे भी वही डर है, जो मुझे है कि ये बात बाहर आई तो समाज में क्या प्रतिष्ठा रह जाएगी? इसलिए वह अपनी गलती मान कर माफी मांग रहा है, पर मैं कैसे मान लूं कि जिस पति पर आंख मूंद कर मैं ने भरोसा किया, उस ने मेरी पीठ पर छुरा भोंका है… मेरे साथ विश्वासघात किया है… अपने दिल में उस के दिए नागफनी के कांटे ले कर मैं जगहजगह सुकून की तलाश में भटक रही हूं, पर सुकून नहीं मिलता है.
सोतेजागते उस का छल, उस के कुचक्र के कांटे मेरे दिल को घायल कर देते हैं. जिन सुकून के दो शब्द उस से बतियाने को तरसती थी, वो अब ख्वाब बन गए…

मैं ने अपने फोन के सिम को तोड़ कर फेंक दिया था इस भय से कि कहीं किसी जानने वाले का फोन न आ जाए… कहीं वह मेरी आवाज से मेरे मन के भीतर चल रहे तूफान को भांप न जाए… कहीं भावावेश में मैं वो सब न उगल दूं, जिसे छिपाने के लिए हम जद्दोजेहद कर रहे हैं.
मेरे स्वाभाविक स्वभाव के विपरीत उपजते कसैलेपन को भांप कर आज लोग यहां तक कि मेरे अपने बच्चे बढ़ती उम्र की देन मानने लगे हैं.

रेवती की आपबीती सुन कर वाकई सौम्या का दिल भर आया था. वह उस के हाथों को सहलाती हुई बोली, “खुद को शांत रखना अपने हाथों में है. जब साथ रह ही रहे हो, तो जो हो गया उसे भूलने की कोशिश करो.”

“कहना आसान है. आदत के अनुरूप उस के प्रति अपनत्व कभी उभरता भी है, तो अतीत की कंटीली झाड़ियां मुझे लहूलुहान कर देती हैं. मैं दूसरों के सामने हंसतीमुसकराती जरूर हूं, पर सच यह है कि मैं जहां भी रहूं, कुछ भी करूं, नागफनी के दंशों की पीड़ा से मुक्ति नहीं पाती हूं… जब भी उस से बात होती है तब… क्यों, कब, कैसे जैसे प्रश्नों में उलझ कर रह जाती हूं. हम जब भी बात करते हैं, अतीत में उलझ कर रह जाते हैं और कड़वा अतीत नासूर बन कर रिसता है,” रेवती की मनोदशा देख कर सौम्या ने बात बदलने की चेष्टा करते हुए पूछा, “अच्छा, ये तो बता कि तुम महाबलेश्वर कैसे आई हो? कोई है क्या यहां…?”

“अरे, कोई नहीं है यहां… मैं अकसर यहां की शांत वादियों में अपने अशांत मन को सुकून पहुंचाने की कोशिश में आ जाती हूं… आकाश भी चाहते हैं कि मेरा मन शांत हो, मैं फिर से पहले वाली हो जाऊं…

‘‘उन्होंने मुझे विश्वास दिलाने की पूरी कोशिश की कि मेरी जगह उन के दिल में वही है, जो पहले थी. तू बता कि मैं इस छलावे को कैसे सच मान लूं.

“जो मैं वाकई उस के दिल में होती, तो वो मेरे लिए अपने बहकते कदमों को रोक लेता, पर मेरी नौकरी में उस ने सुविधा ढूंढ़ कर मेरे साथ छल किया.

“तू बता, उस के लंबे समय तक चले आ रहे सोचेसमझे छल को कैसे भूल जाऊं…”
रहरह कर रेवती के मन के घाव रिसते रहे. विगत के दोहराव से छाई मनहूसियत दूर करने के लिए सौम्या ने रेवती के दोनों बच्चो की बातें आरंभ कीं, तो उस के चेहरे पर रौनक आ गई.

सौम्या को अच्छा लगा कि उस के मन का एक हिस्सा अभी भी जिंदा है. शायद इस हिस्से के भरोसे जीवन बीत जाए. एकदूसरे को अपनीअपनी कहसुन लेने के बाद अब दोनों शांत थीं.
रेवती कौफी बनाने लगी, तो सौम्या की नजर दीवार पर लगी पेंटिंग पर टिक गई. पेंटिंग में उफनती लहरों के बीच एक स्त्री अकेली नाव खे रही थी… उस पेंटिंग में नदी के किनारे नहीं दिख रहे थे.

उसे लगा, मानो नाव में रेवती हो और वह अपने जीवन की नैया को किनारे लगाने में पूरी शक्ति झोंक रही हो… किनारा देखते ही उस के चेहरे पर खुशी की झलक आई, थकावट से भरे मनमस्तिष्क, शरीर विश्राम करने को बेकल हो गए, पर नाव का किनारों पर पहुंचना उस की किस्मत में शायद नहीं था. नाव किनारे लगती, उस से पहले ही किनारों ने डूबना आरंभ कर दिया था. उस स्त्री की विडंबना देख सौम्या की आंखों में न चाहते हुए भी आंसू भरते चले गए.

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