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एहसास-भाग 4 :मालती के प्यार में क्या कमी रह गई थी बहू निधि के लिए

लेखिका- ममता रैना

निधि ने अपने काम पर जाना शुरू कर दिया था. वह एक लैंग्वेज टीचर थी और पास के एक इंस्टिट्यूट में जौब करती थी. एक दिन उसे घर लौटने में बहुत देर हो गई, तो मालती की त्योरियां चढ़ गईं.

अजय की इस हालत में इतनी देर निधि का यों बाहर रहना मालती को अच्छा नहीं लगा. उस ने सोचा कि अजय भी इस बात पर नाराज होगा. लेकिन उन दोनों को आराम से बातें करते देख उसे लगा नहीं कि अजय को कुछ फर्क पड़ा. हुहूं, बीवी का गुलाम है, बहुत छूट दे रखी है निधि को इस ने, एक बार पूछा तक नहीं, यह सब सोच कर मालती कुढ़ गई थी.

किचन में अजय के लिए थाली लगाती मालती के कंधे पर हाथ रखते हुए निधि बोली, ‘‘मां, आप बैठो अजय के पास, आप दोनों की थाली मैं लगा देती हूं.’’

‘‘रहने दो, तुम दोनों खाओ साथ में, वैसे भी दिनभर अजय अकेला बोर हो जाता है तुम्हारे बिना,’’ मालती कुछ रुखाई से बोली.

‘‘सौरी मां, अब से मु झे आते देर हो जाया करेगी, मैं ने एक और जगह जौइन कर लिया है. तो कुछ घंटे वहां भी लग जाएंगे,’’ निधि ने उस के हाथ से प्लेट लेते हुए बताया.

‘‘तुम ने अजय को बताया क्या?’’

‘‘मां, मैं ने अजय से पहले ही पूछ लिया था और वैसे भी, कुछ ही घंटों की बात है, तो मैं मैनेज कर लूंगी.’’

‘‘ठीक है, अगर तुम दोनों को सही लगता है तो, लेकिन देख लो, थक तो नहीं जाओगी? तुम्हें आदत नहीं इतनी मेहनत करने की,’’ मालती ने अपनी तरफ से जिम्मेदारी निभाई.

‘‘आप चिंता मत करो मां. बस, कुछ दिनों की तो बात है.’’

मालती ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की घर के फालतू खर्चे कम करने की. वह अब थोड़ी कंजूसी से भी चलने लगी थी. सब्जी और फल लेते समय भरसक मोलभाव करती थी. उसे लगा निधि अपने खर्चों पर लगाम नहीं लगा पाएगी. पर जब से अजय का ऐक्सिडैंट हुआ था, निधि की आदतों में फर्क साफ नजर आता था. जो लड़की फर्स्ट डे फर्स्ट शो मूवी देखती थी, तकरीबन रोज ही शौपिंग, आएदिन अजय के साथ बाहर डिनर करना जिस के शौक थे, वह अब बड़े हिसाबकिताब से चलने लगी थी. और तो और, घर के कामों को भी वह मालती के तरीके से ही करने की कोशिश करती थी.

मालती उस में आए इस बदलाव से हैरान थी. एक तरह से निधि ने घर की सारी जिम्मेदारी उठा ली थी. अजय भी थोड़ा बेफिक्र हो गया था. उसे निधि पर पूरा भरोसा था. पर मालती को एक तरह से यह बात चुभती थी कि बहू हो कर  वह बेटे की तरह घर चला रही है. आखिर, बहू तो बहू होती है, मालती सोचती थी.

एक दिन सुबह पार्क जाने से पहले मालती अजय के कमरे में आई. उस की बीपी की दवाई खत्म हो गई थी.

‘‘अजय, मु झे कुछ पैसे दे दे, दवाई लेनी है. पार्क के रास्ते में कैमिस्ट से  ले लूंगी.’’

‘‘लेकिन मां, मेरे पास कैश नहीं है, तुम निधि से ले लो,’’ अजय टीवी पर नजरें गड़ाए हुए बोला.

रहने दे, बाद में ले लूंगी जब एटीएम से पैसे निकालूंगी, ‘‘मालती ने जवाब दिया. निधि के सामने वह हाथ नहीं  फैलाना चाहती थी. बाहर आ कर उस ने पार्क ले जाने वाला बैग उठाया, तो उस के नीचे नोट रखे थे. मालती सम झ गई कि निधि ने चुपचाप से पैसे रखे होंगे ताकि मालती को उस से मांगना न पड़े. जब वह अजय से बात कर रही थी तो निधि बाथरूम में थी. शायद, उस ने उन दोनों की बातचीत सुन ली थी.

मालती को फिजियोथेरैपिस्ट के पास जाना पड़ता था. अकसर उसे पीठ और कमरदर्द की तकलीफ रहती थी. उस ने सोचा, यह खर्च कम करना चाहिए, तो जाना बंद कर दिया. लेकिन तबीयत खराब रहने लगी. अजय को पता चला तो बहुत नाराज हो गया. निधि पास में बैठी लैपटौप पर कुछ काम कर रही थी.

‘‘बेकार में पैसे खर्च होते हैं,’’ मालती ने सफाई दी, ‘‘पार्क में सब कसरत करते हैं, मैं भी वही किया करूंगी.’’

‘‘मां, अब से आप को क्लिनिक जाने की जरूरत नहीं, फिजियोथेरैपिस्ट यहीं घर पर आ कर आप को ट्रीटमैंट देगा,’’ निधि ने मालती से कहा.

‘‘नहीं, नहीं, इस में तो ज्यादा फीस लगेगी, रहने दो ये सब,’’ मालती को बात जंची नहीं.

‘‘मां, आप की तबीयत ठीक होना ज्यादा जरूरी है और आप के साथसाथ डाक्टर अजय को भी देख लेगा,’’ निधि ने तर्क दिया.

‘‘ठीक तो है मां, तुम घर पर ही आराम से ट्रीटमैंट करवाओ, क्लिनिक के चक्कर लगाने की जरूरत क्या है,’’ अजय ने उसे आश्वस्त किया.

अजय की तबीयत धीरेधीरे सुधरने लगी थी. निधि ने अपनी मेहनत से घर में कोई कमी नहीं आने दी. सबकुछ उस ने संभाल लिया था. घर और गाड़ी की किस्तें, महीने का घरखर्च, डाक्टर की फीस सब उस के पैसों से चल रहा था.

निधि के मांबाप 2 दिन पहले ही अमेरिका में रह रहे अपने बेटे के पास से लौटे थे. आते ही वे अजय को देखने आ गए थे. निधि उस वक्त औफिस  में थी.

आइए, चाय पी लीजिए, मालती अजय के पास बैठी निधि की मां से बोली. अजय अपने ससुरजी से बातें कर रहा था. ट्रे में 2 कप चाय उस ने अजय और निधि के पापा के लिए वहीं एक टेबल पर रख दी.

‘‘अरे, आप ने ये सब तकलीफ क्यों की, हम तो बेटी के घर कुछ खातेपीते नहीं,’’ निधि की मां कुछ सकुचा कर बोली.

‘‘छोडि़ए न बहनजी, पुराने रिवाज, आज की बहुएं क्या बेटों से कम हैं,’’ अकस्मात मालती के मुंह से निकल पड़ा.

दोनों चाय पीने लगीं. ‘‘निधि और अजय की शादी के बाद से आप से ठीक से मिलना नहीं हो पाया. आप तो जानती हैं, शादी के तुरंत बाद हमें बेटे के पास जाना पड़ा, इसलिए कभी आप से एकांत में बातें करने का मौका ही नहीं मिला,’’ निधि की मां कुछ गमगीन हो कर बोली.

‘‘हांजी, मु झे पता है, आप का जाना जरूरी था. यह तो समय का खेल है. जान बच गई अजय की, यह गनीमत है.’’

‘‘निधि को अब तक आप जान गई होंगी. अपने पापा की लाड़ली रही है शुरू से. मैं ने भी ज्यादा कुछ सिखाया नहीं उस को, मां हूं उस की, कितनी लापरवाह है, यह मैं जानती हूं. आप को बहुतकुछ सम झाना पड़ता होगा उसे. एक बेटी से बहू बनने में उसे थोड़ा वक्त लगेगा. उस की नादानियों का बुरा मत मानिएगा. बस, यही कहना चाहती थी आप से.’’

जिस दिन से अजय की शादी निधि से हुई थी मालती को हमेशा निधि में कोई न कोई गलती नजर आती थी, उस ने सोचा था कि कभी मौका मिलेगा तो निधि की मां से खूब शिकायतें करेगी कि बेटी को कुछ नहीं सिखाया. लेकिन आज न जाने क्यों मालती के पास कुछ नहीं था निधि की शिकायत करने को, उल्टा उसे बुरा लगा, ऐसा लगा निधि उस की अपनी बेटी है और कोई दूसरा उस की बुराई कर रहा है.

‘‘आप से किस ने कहा कि मु झे निधि से कोई परेशानी है. हर लड़की बेटी ही जन्म लेती है. बहू तो उसे बनना पड़ता है. लेकिन यह मत सम िझए कि निधि एक कुशल बहू नहीं है. आप कभी यह मत सोचिए कि हम खुश नहीं हैं. निधि अब मेरी बेटी है,’’ मालती कुछ रुंधे गले से बोली, उसे खुद यकीन नहीं हो रहा था कि वह यह सब बोल रही थी. पर ये शब्द दिल की गहराई से निकले थे, बिना किसी बनावट के.

एक बेटी की मां के चेहरे पर जो खुशी होती है, वह खुशी दोनों मांओं के चेहरे पर थी.

रात में खाना खाने के बाद मालती बालकनी में रखी कुरसी पर बैठी दूर

से जगमग करती शहर की रोशनी देख रही थी.

हाथ में कौफी का मग लिए निधि उस के पास आ कर धीरे से एक स्टूल ले कर बैठ गई.

‘‘मां, यह आप का टिकट है इलाहबाद का,’’ निधि ने ट्रेन का टिकट उस की तरफ बढ़ा दिया.

‘‘अरे, लेकिन मैं ने तो बोला ही नहीं जाने के लिए, हर शादी में जाना जरूरी नहीं है मेरा,’’ मालती बोली.

‘‘अरे वाह, क्यों नहीं जाएंगी आप? मामाजी को बुरा लगेगा अगर हमारे घर से कोईर् भी इस शादी में नहीं गया. सौरी मां, मैं ने आप से बिना पूछे टिकट ले लिया है. अजय और मु झे लगता है आप को जाना चाहिए.’’

‘‘वह तो ठीक है. पर अभी अजय को मेरी जरूरत है. तुम तो औफिस चली जाओगी. वापस आ कर घर का काम, कितना थक जाओगी. मैं तुम दोनों को छोड़ कर नहीं जा पाऊंगी. मन ही नहीं लगेगा मेरा वहां,’’ मालती ने इसरार किया.

‘‘अजय की तबीयत अब काफी ठीक है. अब तो वे जौब के लिए एकदो इंटरव्यू देने की भी सोच रहे हैं, आप बेफिक्र हो कर जाइए मां.’’

मालती ने निधि के चेहरे की तरफ देखा. वह बहुत सादगी से बोल रही थी, न कोई बनावट न कोई  झूठ. मेरी सगी बेटी भी होती तो इस से बढ़ कर और क्या करती इस घर के लिए. निधि ने बहू का ही नहीं, बेटे का फर्ज भी निभा कर दिखा दिया था. बस, वह खुद ही अपनी सोच का दायरा बढ़ा नहीं पाई. हमेशा उसे अपने हिसाब से ढालना चाहती रही. निधि की सचाई, उस के अपनेपन और इस घर के लिए उस के समर्पण को अब जा कर देख पाई मालती. क्या हुआ अगर उस के तरीके थोड़े अलग थे. लेकिन वह गलत तो नहीं. आज मालती ने अपना नजरिया बदला तो आंखों में जमी गलतफहमी की धूल भी साफ हो गई थी.

मालती ने निधि का हाथ अपने हाथों में लिया और शहद घुले स्वर में बोली, ‘‘थैंक्यू बेटा, हमारे घर में आने के लिए,’’ कुछ आश्चर्य और खुशी से निधि ने उसे देखा और बड़े प्यार से उस के गले लग गई.   द्य

मालती कुनमुना कर रह गई. उस ने उम्मीद की थी कि निधि कुछ नानुकुर करेगी कि नहीं, मैं नहीं दे पाऊंगी, टाइम नहीं है, औफिस के लिए लेट हो जाएगा वगैरहवगैरह. पर यहां तो उस के हाथ से एक और वाकयुद्ध का मौका निकल गया.

मालती उस में आए इस बदलाव से हैरान थी. एक तरह से निधि ने घर की सारी जिम्मेदारी उठा ली थी. अजय भी थोड़ा बेफिक्र हो गया था. उसे निधि पर पूरा भरोसा था. पर मालती को एक तरह से यह बात चुभती थी कि बहू हो कर वह बेटे की तरह घर चला रही है.

एहसास-भाग 3 :मालती के प्यार में क्या कमी रह गई थी बहू निधि के लिए

लेखिका- मामता रैना

छुट्टी वाले दिन दोनों अपने लैपटौप पर या तो कोई मूवी देखते या वीडियो गेम खेलते रहते. मालती अपने सीरियल देखती रहती और कसमसाती रहती कि कोई होता जो उस के साथ बैठ कर यह सासबहू वाले प्रोग्राम देखता. कभी पासपड़ोस में कोई कार्यक्रम होता, तो मालती अकेली ही जाती. लोगबाग पूछते, ‘अरे बहू को क्यों नहीं लाए साथ?’ तो वह मुसकरा कर कोई बहाना बना देती. अब कैसे बोले कि बहू तो वीडियो गेम खेल रही है अपने कमरे में.

कुल मिला कर उस के सपने मिट्टी में मिल गए थे. घर में बहू कम दूसरा बेटा आया हो जैसे. किसी शादीब्याह में भी निधि को खींच कर ले जाना पड़ता था. उसे कोई शौक ही नहीं था सजनेसंवरने का. शादी की इतनी सारी एक से एक कीमती साडि़यां पड़ी थीं, पर मजाल है जो निधि ने कभी पहनने की जहमत उठाई हो.

अपने एक रिश्तेदार की शादी में जयपुर जाना पड़ा मालती को, तो निधि और अजय को खूब सारी हिदायतें दे कर गई. खाना बहुत थोड़ा जल्दी उठ कर बना के फ्रिज में रख जाना. अजय को बाहर का खाना पचता नहीं. पेट अपसैट हो जाता है. फिर राधा को भी 10 दिन के लिए अपने गांव जाना था. ऐसे में घर की जिम्मेदारी उन दोनों पर ही है, मालती उन को बारबार यह बता रही थी. उसे पता था, दोनों लापरवाह हैं, पर जाना जरूरी था.

एक हफ्ते बाद मालती जब वापस घर लौटी तो सुबह की ट्रेन लेट हो कर दिन में पहुंची. स्टेशन से औटो कर के घर पहुंची. एक चाबी उस के पास थी पर्स में. अंदर आ कर सामान वहीं नीचे रख कर वह सोफे पर थोड़ा सुस्ताने बैठी. उस ने सोचा, चाय बनाएगी पहले अपने लिए, फिर फ्रैश होगी. सिर दर्द कर रहा था सफर की थकावट से. एक सरसरी नजर घर पर डाली उस ने पर सफाई का नामोनिशान नजर नहीं आ रहा था. उस के पैरों के पास कालीन पर दालभुजिया बिखरी पड़ी थी.  झाड़ू तक नहीं लगी  थी घर में लगता है उस के जाने के बाद.

वह बुदबुदाती हुई रसोई की तरफ बढ़ी ही थी कि तभी उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. अजय के दोस्त का फोन था, ‘‘हैलो बेटा,’’ मालती ने फोन रिसीव किया. दूसरी तरफ से जो उसे सुनाई दिया उसे सुन कर वह धम्म से सोफे पर गिर पड़ी. अजय के दोस्त ने उसे हौस्पिटल का नाम बता कर जल्द आने को कहा. अजय की बाइक को किसी गाड़ी ने पीछे से टक्कर मार दी थी.

आननफानन मालती ज्यों की त्यों हालत में हौस्पिटल के लिए निकल पड़ी. गेट पर ही उसे अजय का दोस्त यश मिल गया था. दोनों कालेज के गहरे दोस्त थे. अजय को आईसीयू में रखा गया था. उस के हाथपैरों में गहरी चोटें आई थीं. पर उस की हालत खतरे से बाहर थी. मालती ने अपनी रुलाई दबा कर बेटे की तरफ देखा. खून से अजय के कपड़े सने थे और न जाने कितनी पट्टियां उस के शरीर पर बंधी थीं.

‘‘आंटी आप बाहर बैठ जाइए,’’ मालती की हालत देख कर यश ने कहा और सहारा दे कर उस ने मालती को आईसीयू के बाहर बैंच पर बिठा दिया. यश ने उसे बताया कि कैसे ऐक्सिडैंट की जानकारी पुलिस से पहले उसे ही मिली थी. निधि अपनी एक सहेली के साथ मूवी देखने गई हुई थी. उस का फोन शायद इसीलिए नहीं मिल पाया. पास के वाटरकूलर से एक गिलास पानी ला कर उस ने मालती को दिया.

मालती ने होशोहवास दुरुस्त करने की कोशिश की. तभी उसे निधि बदहवास भागती आती दिखाई दी. मालती के पास पहुंच कर वह उस से लिपट कर रो पड़ी. मालती, जो बड़ी देर से अपने आंसू रोके बैठी थी, अब अपनी रुलाई नहीं रोक पाई. कुछ संयत हो कर निधि ने अजय को आईसीयू में देखा, बैड पर बेहोश ग्लूकोस और खून की पाइप्स से घिरा हुआ. निधि ने डाक्टर से अजय की हालत के बारे में पूछा और डाक्टर की पर्ची ले कर दवाइयां लेने चली गई. रात को मालती के लाख मना करने के बावजूद निधि ने उसे यश के साथ घर भेज दिया.

सुबह जल्दी उठ कर मालती कुछ जरूरी चीजें एक बैग में और एक थरमस में कौफी भर कर हौस्पिटल पहुंची. निधि की आंखें बता रही थीं कि सारी रात वह सोई नहीं. सो तो मालती भी नहीं पाई थी पूरी रात. निधि ने बैंच पर बैठे एक लंबी अंगड़ाई ली और थरमस से कौफी ले कर पीने लगी. मालती अजय के पास गई. वह होश में था. पर डाक्टर ने बातें करने से मना किया था. मालती को देख कर अजय ने धीरे से मुसकराने की कोशिश की. मालती ने उस का हाथ कोमलता से अपने हाथों में ले लिया और जवाब में मुसकरा दी.

करीब एक हफ्ते बाद अजय डिस्चार्ज हो कर घर आ गया. उस के पैर में अभी भी प्लास्टर लगा था. हड्डी की चोट थी, डाक्टर ने फुल रैस्ट के लिए बोला था. एक महीने के लिए उस ने औफिस से छुट्टी ले ली थी. निधि और मालती दिनरात उस की तीमारदारी में जुट गए. एक महीने के बाद जब अजय के पैर का प्लास्टर उतरा तो उस ने हलकी चहलकदमी शुरू कर दी. मगर समय शायद ठीक नहीं चल रहा था. बाथरूम में फिसलने की वजह से उसे फिर से एक और प्लास्टर लगवाना पड़ा. प्राइवेट जौब में कितने दिन छुट्टी मिलती, तंग आ कर अजय ने रिजाइन दे दिया. निधि और मालती उसे इस हालत में अब बिस्तर से उठने तक नहीं देती थीं.

कहने को तो घर में कोई कमी नहीं थी पर अजय की नौकरी न रहने से मालती को तमाम बातों की चिंता सताने लगी. अजय ने शादी के वक्त नया घर बुक कराया था, जिस की हर महीने किस्त जाती थी. उस के अलावा, घर के खर्चे, अजय की गाड़ी की किस्तें, खुद मालती की दवाइयों का खर्च. हालांकि उसे अपने पति की पैंशन मिलती थी, पर उस के भरोसे सबकुछ नहीं चल सकता था.

 

एहसास-भाग 2:मालती के प्यार में क्या कमी रह गई थी बहू निधि के लिए

लेखिका – मामता रैना

मालती को कभी अखरता नहीं था अजय के यारदोस्तों का आना. पर उस ने अपने लिए कोई लड़की पसंद कर ली थी, यह बात मालती को सपने में भी नहीं आई थी. उस का बेटा अपनी मां की पसंद से शादी करेगा, यही मालती को गुमान था. जिस दिन अजय ने बताया कि वह अपनी किसी खास दोस्त को उस से मिलाने ला रहा है, वह सम झ कर भी अनजान बनने का नाटक करती रही. एक बार भी नहीं पूछा अजय से कि आखिर इस बात का मतलब क्या है?

उस दिन शाम को अजय निधि को अपनी बाइक पर बिठा कर घर ले आया. मालती ने कनखियों से निधि को देखा. नहीं, नहीं, उस के सपनों में बसी बहूरानी के किसी भी सांचे में वह फिट नहीं बैठती थी. आते ही ‘नमस्ते आंटी’ बोल कर धम्म से सोफे पर पसर गई. निधि लगातार च्युइंगम चबा रही थी. बौयकट हेयर, टाइट जींस और टीशर्ट में उस की हलकी सी तोंद भी  झलक रही थी. अजय ने मालती को ऐसे देखा जैसे कोई बच्चा अपना इनाम का मैडल दिखा कर घरवालों के रिऐक्शन का इंतजार करता है.

मालती चायनाश्ता लेने किचन में चली गई. अजय उस के पीछेपीछे चला आया. मां के मन की टोह लेने कुछ मदद करने के बहाने. मालती बड़ी रुखाई से बिना कुछ कहे नमकीन बिस्कुट ट्रे में रखती गई और चाय ले कर बाहर आ गई. निधि बहुतकुछ बातें कर रही थी जिन्हें मालती अनमने मन से सुन रही थी. अजय को मालती के चेहरे से पता चल गया कि उस की मां को निधि जरा भी पसंद नहीं आई.

क्या लड़की है, बाप रे. आते ही ऐसे मस्त हो गई जैसे इस का अपना घर हो. न शरमाना, न कोई  िझ झक, बातबात पर अजय को एकआध धौल जमा रही निधि उन्हें कहीं से भी लड़कियों जैसी नहीं लगी. चलो, ठीक है, आजकल का जमाना है लड़कियां लड़कों से कम नहीं. पर इस तरह किसी लड़की का बिंदासपन उसे अजीब लगा. वह भी तब जब वह पहली बार होने वाली सास से मिल रही हो. मालती पुराने खयालों को ज्यादा नहीं मानती थी पर जब बात बहू चुनने की आई तो एक छवि उस के मन में थी, किसी खूबसूरत सी दिखने वाली लड़की को देखते ही मालती उस के साथ अजय की जोड़ी मिलाने लगती दिल ही दिल में, पर अजय और यह लड़की? मालती की नजरों में यह बेमेल था.

यह सही है कि हर मां को अपना बच्चा सब से सुंदर लगता है. लेकिन अजय तो सच में लायक था. देखने में जितना सजीला, मन का उतना ही उजला.

मालती ने सोचा, आखिर अजय को सारी दुनिया की लड़कियां छोड़ कर एक निधि ही पसंद आनी थी? उस ने लाख चाहा कि अजय अपना इरादा बदल दे निधि से शादी करने का, उस के लिए बहुत से रिश्ते आए और कुछेक सुंदर लड़कियों के. मालती ने फोटो भी छांट कर रख ली थी उसे दिखाने के लिए.

पर, आखिर वही हुआ जो अजय और निधि ने चाहा. बड़ी ही धूमधाम से निधि उस के बेटे की दुलहन बन कर आ गई. अपनी इकलौती बेटी निधि को बहुतकुछ दिया उस के मांबाप ने. लेकिन रिश्तेदारों और जानपहचान वालों की दबीदबी बातें भी मालती तक पहुंच ही गईं. खूब दहेज मिला होगा, एकलौती बेटी जो है अपने मांबाप की, लालच में हुई है यह शादी वगैरहवगैरह.

बेटे की खुशी में ही मालती ने अपनी खुशी ढूंढ़ ली थी. उस के बेटे का घर बस गया. यह एक मां के लिए खुशी की बात थी. वह निधि को घर के कामकाज सिखा देगी, यह मालती ने सोचा. पर मालती को क्या पता था, निधि बिलकुल कोरा घड़ा निकलेगी. घरगृहस्थी के मामलों में, अव्वल तो उसे कुछ आता नहीं था और अगर कुछ करना भी पड़े तो बेमन से करती थी. मालती खुद बहुत सलीकेदार थी. हर काम में कुशल, उसे हर चीज में सफाई और तरीका पसंद था.

शादी के शुरुआती दिनों में मालती ने उसे बहुत प्यार से घर के काम सिखाने की कोशिश की. जिस निधि ने कभी अपने घर में पानी का गिलास तक नहीं उठाया था, उस के साथ मालती को ऐसे लगना पड़ा जैसे कोई नर्सरी के बच्चे को  हाथ पकड़ कर लिखना सिखाता है. एक दिन मालती ने उसे चावल पकाने का काम सौंपा और खुद बालकनी में रखे गमलों में खाद डालने में लग गई. थोड़ी देर बाद रसोई से आते धुएं को देख कर वह  झटपट किचन की ओर भागी. चावल लगभग आधे जल चुके थे. मालती ने लपक कर गैस बंद की.

बासमती चावल पतीले में खिलेखिले बनते हैं, यह सोच कर उस के घर में चावल कुकर में नहीं, पतीले में पकाए जाते थे. वह निधि को तरीका सम झा कर गई थी. उस ने निधि को आवाज दी. कोई जवाब न पा कर वह बैडरूम में आई तो देखा, निधि अपने कानों पर हैडफोन लगा कर मोबाइल में कोई वीडियो देखने में मस्त थी. मालती को उस दिन बहुत गुस्सा आया. इतनी बेपरवाही. अगर वह न होती तो घर में आग भी लग सकती थी. उस ने निधि को उस दिन दोचार बातें सुना भी दीं.

‘सौरी मां’ बोल कर निधि खिसियाई सी चुपचाप रसोई में जा कर पतीले को साफ करने के लिए सिंक में रख आई. उस दिन के बाद मालती ने उसे फिर कुछ पकाने को नहीं कहा कभी. कुछ पता नहीं, कब क्या जला बैठे. और वैसे भी, अजय मां के हाथ का ही खाना पसंद करता था. उस ने भी निधि को टिपिकल वाइफ बनाने की कोई पहल नहीं की. निधि और अजय की कोम्पैटिबिलिटी मिलती थी और दोनों साथ में खुश थे. यही बहुत था मालती के लिए.

पर उस को एक कमी हमेशा खलती रही. वह चाहती थी कि औरों की तरह उस के घर में भी पायल की रुन झुन, चूडि़यों की खनक गूंजे, सरसराता साड़ी का आंचल लहराती घर की बहू रसोई संभाले या छत पर अचारपापड़ सुखाए. कुछ तो हो जो लगे कि नई बहू आई है घर में. शादी के एक हफ्ते बाद ही निधि ने पायल, बिछुए और कांच की चूडि़यां उतार कर रख दी थीं. हाथों में, बस, एक गोल्ड ब्रैसलेट और छोटे से इयर रिंग्स पहन कर टीशर्ट व पाजामे में घूमने लगी थी. मालती ने उसे टोका भी पर उस के यह बोलने पर कि, मां ये सब चुभते हैं, मालती चुप हो गई थी.

 

तलाक तलाक तलाक

हाईस्कूल तक पढ़े पश्चिम बंगाल की विष्णुपुर सीट से भाजपा सांसद 40 वर्षीय सौमित्र खान अपनी पत्नी सुजाता खान को महज इसलिए तलाक देने पर आमादा हो गए हैं कि वे भाजपा छोड़ टीएमसी में शामिल हो गई हैं. दिलचस्प बात यह है कि इस कपल ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत ममता बनर्जी की सरपरस्ती में टीएमसी से ही की थी. कुछकुछ सीता त्याग सरीखा यह मामला बड़ा दिलचस्प कानूनी लिहाज से हो चला है. लगता नहीं कि कोई अदालत सौमित्र की दलील से सहमत होगी जो पत्नी की वैचारिक स्वतंत्रता का हनन कर रहे हैं.

दलित समुदाय के सौमित्र पर भगवा रंग पूरी तरह चढ़ा दिख रहा है जिस का पहला ही उसूल यह है कि औरत पैर की जूती है. लोकतंत्र कितना अपाहिज किया जा रहा है, यह इस मामले से साबित हो रहा है. सुजाता, जो फिर से सुजाता मंडल हो गई हैं, का यह कहना सटीक लगता है कि सौमित्र की बुद्धि भाजपा में जा कर भ्रष्ट हो गई है.

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  साध्वी की ड्रामेबाजी

अपराधी और गवाह अदालत में पेश होने से बचने के लिए सब से ज्यादा बहाना बीमारी का लेते हैं. भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर ने भी वही किया. बीती 19 दिसंबर को वे मुंबई के स्पैशल एनआईए कोर्ट में हाजिर नहीं हुईं. 18 दिसंबर को उन का ब्लडप्रैशर हाई हो गया और पेशी के डर से सांस भी फूलने लगी तो उन्हें दिल्ली के एम्स में भरती कर दिया गया. मामले की गंभीरता को देखते हुए अस्पताल प्रबंधन ने प्रज्ञा को तुरंत प्राइवेट वार्ड में शिफ्ट कर दिया और इधर उन के वकील जे पी मिश्रा ने हाजिरी माफी ले ली.

गौरतलब है कि प्रज्ञा 2008 के मालेगांव बम बलास्ट की प्रमुख आरोपी हैं और एक महीने में दूसरी बार अदालत में पेश नहीं हुईं. अब 4 जनवरी की तारीख को वे कौन सा बहाना बना कर गैरहाजिर होंगी, यह देखना दिलचस्प होगा. ये वही प्रज्ञा हैं जो 4 दिनों पहले ही सीहोर में शूद्रों को सलाह दे रही थीं कि वे खुद के शूद्र कहलाने पर बुरा न माना करें.

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  किसान विरोधी नीतीश

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अब यह मजबूरी हो गई है कि वे भगवा धुन पर नाचें, वरना, संन्यास ले कर घर बैठ जाएं. किसान आंदोलन को गैरजरूरी बताने वाले नीतीश ने किसानों पर नया कहर डीजल अनुदान बंद कर बरपा दिया है, वह भी तब जब डीजल की कीमत सुरसा के मुंह की तरह बढ़ रही है.

60 रुपए प्रतिलिटर की यह सब्सिडी, हालांकि, 6.37 लाख किसानों को ही मिल रही थी जबकि आवेदक किसानों की संख्या इस से दोगुनी थी. इतना ही नहीं, सुशासन बाबू ने कई कृषि यंत्रों पर भी सब्सिडी बंद कर किसानों को उन्हें चुनने पर पछताने का मौका दे दिया है.

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बचकानी दलील सरकार ने यह दी है कि अब चूंकि गांवगांव में बिजली पहुंच गई है, इसलिए डीजल अनुदान के कोई माने नहीं रह गए थे. अब भला कौन हैलिकौप्टर में उड़ने वाले नीतीश बाबू को सम झाए कि हार्वेस्टर और ट्रैक्टर बिजली से नहीं चलते और बिजली भी उतनी नहीं मिल रही कि किसानों को डीजल पंप कबाड़े में बेचने पड़ें.

  रामकथा का प्रताप

अब वह जमाना गया जब कवि लगभग कंगाल और भांड हुआ करते थे. अब कवि हाईटैक होने लगे हैं. वे हवाई जहाज में उड़ते हैं और सितारा होटलों में ऐश करते हैं. दरअसल, कविता अब बड़ा धंधा हो गई है, इतना बड़ा कि कुमार विश्वास जैसे मंचीय कवि करोड़ों का मकान बना कर खुद सोशल मीडिया पर उस का प्रचार भी करते हैं.

ये वही कुमार विश्वास हैं जिन्हें आम आदमी पार्टी से अरविंद केजरीवाल ने बिना धक्का दिए ही बाहर का रास्ता दिखा दिया था.

इस मनुवादी कवि ने प्रचार लायक मकान असल में कविता से नहीं, बल्कि रामकथा गागा कर बनाया है जिस के वीडियो आएदिन सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते हैं. यानी गलत नहीं कहा जाता कि रामकथा आर्थिकरूप से चमत्कारी तो है.

कहां से आता है ऑफिस में लोकप्रिय होने का जादू

नौकरी करने वाला आखिर कौन ऐसा शख्स है, जो अपने दफ्तर में सुपरहिट यानी लोकप्रिय नहीं होना चाहता. लेकिन सभी लोग अपने ऑफिस  के लोकप्रिय सितारा नहीं होते. अब बबीता शर्मा को ही लें. बबीता शर्मा काम से कभी भी जी नहीं चुरातीं. दिन में आठ की जगह बारह घंटे काम करने के लिए तैयार रहती हैं, फिर भी उन्हें ऑफिस  में बहुत अधिक अहमियत नहीं मिलती. अपने काम के लिए उन्हें जरूर सम्मान मिलता है, लेकिन अगर दफ्तर में लोकप्रियता के आईने में उन्हें देखें तो वे कहीं नहीं दिखतीं. सवाल है आखिर ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिए है क्योंकि उनमें वे तमाम गुण नहीं है जो किसी को दफ्तर में  लोकप्रिय बनाते हैं.

सवाल है आपके व्यक्तित्व के वे कौन से गुण हैं, जो किसी को दफ्तर में  सबका चहेता बना देते हैं. वे गुण ये हैं-

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– आपका आत्मविश्वास और पहल करने की आदत

– आपका अपने काम में रुचि लेने का भाव

– आपका अनुशासित और जिम्मेदाराना रवैय्या

आत्मविश्वास से भरा व्यक्तित्व किसी को कहीं भी लोकप्रिय बना देता है. आत्मविश्वास से भरा खिलाड़ी हमेशा अपने कप्तान का चहेता और साथियों का प्रेरणास्रोत होता है. आत्मविश्वास से भरा छात्र अपने अध्यापकों के ही नहीं सहपाठियों के बीच भी लोकप्रिय होता है. कई लोगों के पास बेहतरीन आइडियाज़ और योजनाएं होती हैं, लेकिन आत्मविश्वास की कमी के चलते बॉस  के साथ मीटिंग के दौरान ये लोग अपने विचार या सुझाव उनके सामने रखने की हिम्मत नहीं दिखा पाते. ऐसे लोगों के दिमाग में भले नये नये विचार, नये सुझाव मौजूद हों लेकिन आत्मविश्वास की कमी के चलते बॉस  के सामने मुखरता से अपनी बात रख पाने में उन्हें हिचकिचाहट होती है. हर समय दिल, दिमाग में यह डर समाया रहता है कि उनके सुझावों, विचारों पर बॉस न जाने कैसी प्रतिक्रिया करें? इस मुखरता के चलते कहीं दूसरे उससे ईष्र्या न करने लगें. कहीं बॉस   को ही न लगने लगे कि वह चमचागीरी कर रहा है.

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वजह चाहे जो भी हो, लेकिन इस तरह की दुविधाएं ऑफिस में आपके लोकप्रिय बनने का रास्ता बंद करती हैं. अतः यदि आप आॅफिस में लोकप्रिय होना चाहते हैं, तो अपनी इस स्वभावगत कमी को तुरंत दूर करें. नहीं तो प्रतिभा, कौशल और योग्यता होने के बावजूद आप न सिर्फ लोकप्रियता बल्कि प्रमोशन से भी वंचित रह सकते हैं. आॅफिस में लोकप्रियता हासिल करने का दूसरा रामबाण नुस्खा है अपने काम में रुचि लेना. लोग खुद भले कामचोर हों, लेकिन उसी व्यक्ति को पसंद करते हैं जो कामचोर न हो. इसलिए अगर आप उन लोगों में शामिल हैं जो अपने काम में रुचि लेते हैं और उसे जिम्मेदारी से पूरा करते हैं तो क्या बाॅस, क्या सहकर्मी आप तो आम पब्लिक के बीच भी लोकप्रिय हो जाएंगे. इस सम्बंध में इन बातों का खासतौर पर ध्यान रखें-

¨ अगर आपके घर की परिस्थितियां किसी भी वजह से निराशाजनक हैं, तो भी किसी भी हाल में उसके कारण आपके आॅफिस का काम प्रभावित नहीं होना चाहिए.

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¨ अगर निराशा का कारण आपकी जॉब  ही है, तो इसके निवारण का उपाय सोचना चाहिए, क्योंकि अगर एक बार आपने निराशा को अपने मन में जगह बनाने दी, तो ऑफिस की स्थितियां आपके लिए बद से बदतर होती जाएंगी. अपनी जॉब का असंतोष अपने वर्तमान वर्क रेस्पान्सिबिलिटीज़ पर नहीं आने देना चाहिए.

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प्रभावशाली व्यक्तित्व, अपने काम में रुचि और जिम्मेदारी लेने के अलावा जो तीसरी बात आपको ऑफिस  में लोकप्रिय बनाती है, वह है अनुशासन. जी हां, अनुशासन के मामले में भी वही बात लागू होती है जो बात काम करने के संदर्भ में लागू होती है. जिस तरह हर नाकारा अफसर और सहकर्मी भी चाहता है कि दूसरा व्यक्ति काम में रुचि लेने वाला हो इसी तरह हर बॉस चाहता है कि उसके मातहत व्यक्ति अनुशासित रहे. भले उसे खुद अनुशासन से दूर-दूर तक लेना-देना न हो. यही वजह है कि ऑफिस  में ऐसे लोग लोकप्रिय होते हैं जो अनुशासित रहते हैं और अपने अनुशासन से दूसरे के सामने आचरण का आदर्श प्रस्तुत करते हैं. कहने की जरूरत नहीं है कि लोकप्रिय होने के लिए अनुशासित रहें.

एहसास-भाग 1:मालती के प्यार में क्या कमी रह गई थी बहू निधि के लिए

लेखिका- ममता रैना

मालती सास थी लेकिन फिर भी पूरी कोशिश करती कि बहू निधि से मां सा व्यवहार करे. मालती का यह प्यार और व्यवहार ही था कि निधि ने भी दिखा दिया कि बहू के साथसाथ वह घर की बेटी भी है.

मालती ने अलमारी खोली. कपड़े ड्राईक्लीनर को देने के लिए, सुबह ही अजय बोल कर गया था, ‘मां ठंड शुरू हो गई है. मेरे कुछ स्वेटर और जैकेट निकाल देना,’ कपड़े समेटते हुए उस की नजर कुचड़मुचड़ कर रखे शौल पर पड़ी. उस ने खींच कर उसे शैल्फ से निकाला. हलके क्रीम कलर के पश्मीना के चारों ओर सुंदर कढ़ाई का बौर्डर बना था. गहरे नारंगी और मैजेंटा रंग के धागों से चिनार के पत्तों का पैटर्न. शौल के ठीक बीचोंबीच गहरा दाग लगा था. शायद, चटनी या सब्जी के रस का था जो बहुत भद्दा लग रहा था.

यह वही शौल था जो उस ने कुछ साल पहले कश्मीर एंपोरियम से बड़े शौक से खरीदा था. प्योर पश्मीना था. अजय की बहू को मुंहदिखाई पर दूंगी, तब उस ने सोचा था. पर इतने महंगे शौल का ऐसा हाल देख कर उस ने माथा पीट लिया. हद होती है, किसी भी चीज की. निधि की इस लापरवाही पर बहुत गुस्सा आया. पिछले संडे एक रिश्तेदार की शादी थी, वहीं कुछ गिरगिरा दिया गया होगा खाना खाते वक्त, दाग लगा, सो लगा, पर महारानी से इतना भी न हुआ की ड्राईक्लीन को दे देती या घर आ कर साफ ही कर लेती.

तमीज नाम की चीज नहीं इस लड़की को. कुछ तो कद्र करे किसी सामान की. ऐसा अल्हड़पन कब तब चलेगा. मालती बड़बड़ाती हुई किचन में आई. किचन में काम कर रही राधा को उन्होंने शाम के खाने के लिए क्या बनाना है, यह बताया और कपड़ों को ड्राइंगरूम में रखे दीवान के ऊपर रख दिया. और फिर हमेशा की तरह शाम के अपने नित्य काम में लग गई.

देर शाम अजय और निधि हमेशा की तरह हंसतेबतियाते, चुहल करते घर में दाखिल हुए. ‘‘राधा, कौफी,’’ निधि ने आते ही आवाज दी और अपना महंगा पर्स सोफे पर उछाल कर सीधे बाथरूम की ओर बढ़ गई. अजय वहीं लगे दीवान पर पसर गया था. मालती टीवी पर कोई मनपसंद सीरियल देख रही थी, पर उस की नजरें निधि पर ही थीं. वह उस के बाथरूम से आने का इंतजार करने लगी. शौल का दाग दिमाग में घूम रहा था.

‘‘और मां, क्या किया आज?’’ जुराबें उतारते हुए अजय ने रोज की तरह मां के दिनभर का हाल पूछा. बेचारा कितना थक जाता है, बेटे की तरफ प्यार से देखते हुए उन्होंने सोचा और किचन में अपने हाथों से उस के लिए चाय बनाने चली गई. इस घर में, बस, वे दोनों ही चाय के शौकीन थे. निधि को कौफी पसंद थी.

निधि फ्रैश हो कर एक टीशर्ट और लोअर में अजय की बगल में बैठ कर कौफी के सिप लेने लगी. मालती उस की तरफ देख कर थोड़े नाराजगीभरे स्वर में बोली, ‘‘निधि, ड्राईक्लीन के लिए कपड़े निकाल दिए हैं. सुबह औफिस जाते हुए दे देना. तुम्हारे औफिस के रास्ते में ही पड़ता है तो मैं ने निकाल कर रख दिए,’’ मालती ने जानबू झ कर शौल सब से ऊपर दाग वाली तरफ से रखा था कि उस पर निधि की नजर पड़े.

‘‘ठीक है मां,’’ कह कर निधि अपने मोबाइल में मैसेज पढ़ने में बिजी हो गई. उस ने नजर उठा कर भी उन कपड़ों की तरफ नहीं देखा.

मालती कुनमुना कर रह गई. उस ने उम्मीद की थी की निधि कुछ नानुकुर करेगी कि नहीं, मैं नहीं दे पाऊंगी, टाइम नहीं है, औफिस के लिए लेट हो जाएगा वगैरहवगैरह. पर यहां तो उस के हाथ से एक और वाकयुद्ध का मौका निकल गया. हमेशा यही होता है, उस के लाख चाहने के बावजूद निधि का ठंडापन और चीजों को हलके में लेना मालती की शिकायतों की पोटली खुलने ही नहीं देता था.

मालती उन औरतों में खुद को शुमार नहीं करना चाहती थी जो बहू से बहाने लेले कर लड़ाई करे और बेटे की नजरों में खुद मासूम बनी रहे. वह खुद को आधुनिक सम झती थी और यही वजह थी कि अपनी तरफ से वह कोई राई का पहाड़ वाली बात नहीं उठाती थी. वैसे भी, घर में कुल जमा 3 प्राणी थे और चिकचिक उसे पसंद नहीं थी. पर कभीकभी वह निधि की आदतों से चिढ़ जाती थी. मालती को घर में बहू चाहिए थी जो सलीके से घरबाहर की जिम्मेदारी संभाले. पर यहां तो मामला उलटा था. ठीक है, उस ने सोचा, अगर किसी को कोई परवा नहीं तो मैं भी क्यों अपना खून जलाऊं, मैं भी दिखा दूंगी कि मु झे फालतू का शौक नहीं कि हर बात में इन के पीछे पड़ूं. इन की तरह मैं भी, वह क्या कहते हैं, कूल हूं.

अपनी इकलौती संतान को ले कर हर मां की तरह मालती के भी बड़े सपने थे. अजय को जौब मिली भी नहीं थी कि रिश्तेदारी में उस की शादी की बातें उठने लगीं. मालती खुद से कोई जल्दी में नहीं थी. पर कोई भाभी, चाची या पड़ोसिन अजय के लिए किसी न किसी लड़की का रिश्ता खुद से पेश कर देती. ‘अभी अजय की कौन सी उम्र निकली जा रही है. जरा सैटल हो जाने दो.’ यह कह कर वह लोगों को टरकाया करती.

पर दिल ही दिल में अपनी होने वाली बहू की एक तसवीर उस के मन में बन चुकी थी. चांद सी खूबसूरत, गोरी, पतली, नाजुक सी, सलीकेदार जो घर में खाना पकाने से ले कर हर काम में हुनरमंद हो. अब यह सब थोड़ा मुश्किल तो हो सकता है पर नामुमकिन नहीं. वह तो ऐसी लड़की ढूंढ़ कर रहेगी अपने लाड़ले के लिए. लेकिन उस की उम्मीदों के गुब्बारे को उस के लाड़ले ने ही फोड़ा था. एक दिन, निधि को घर ला कर.

उसे निधि का इस तरह घर पर आना बहुत अटपटा लगा था. क्योंकि अजय किसी लड़की को इस तरह से कभी घर ले कर नहीं आया था. वह बात अलग थी कि स्कूलकालेज के दोस्त  झुंड बना कर कभीकभार आ धमकते थे. जिस में बहुत सी लड़कियां भी होती थीं.

 

पंजाब के किसान-हिम्मत की मिसाल

लेखक- रोहित और शाहनवाज

26 नवम्बर वह दिन जब देश के शहरी लोगों को इस बात की भनक लगनी शुरू हुई कि 2 महीने पहले सितंबर में, सरकार ने कोरोना को अवसर बना संसद से ऐसे विवादित कृषि कानून पास किए हैं जिसे ले कर आगे आने वाले दिनों में दिल्ली के बोर्डर जाम होने वाले हैं. दिलचस्प बात यह कि जिस समयपार्लियामेंट के 40 किलोमीटर की परिधि में अधिकतर शहरी लोगों को कृषि कानूनों का ‘क’ भी नहीं पता था, उस समय संसद से सैकड़ों किलोमीटर दूर देहातों में रहने वाले किसान इन कानूनों के खिलाफ पहले से चल रहे अपने आंदोलन की रुपरेखा तैयार कर रहे थे.

शहरी लोगों की नींद तब खुली जब किसान कई स्तरों के मोर्चों को तोड़ते हुए दिल्ली की तरफ कूच कर गए. हजारों की संख्या में पंजाब से किसान अपनी ट्रेक्टरट्रौली लेकर दिल्ली के बौर्डर पर पहुंच गए.आंदोलन की आवाज इतनी बुलंद थी कि नेताओं से ले कर आम जन के कानों को भेद रही थी. स्वाभाविक था कि इस आन्दोलन में अधिकतर किसान पंजाब राज्य से थे, तो एक सवाल लगातार चारों तरफ से घूमने लगा कि आखिर पंजाब के किसानों को इन नए कानूनों से क्या समस्या है?

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यह सवाल हमारे दिमाग में भी खलबली मचाने लगा, जिसे ले कर हम दिल्ली के अलगअलग बौर्डरों पर जा पहुंचे.अब यह सीधे देखने में आ ही रहा था कि खास रूप से पंजाब केकिसान मोर्चों पर डटे हुए थे, और उन के नेतृत्व में बाकी राज्यों के किसानोंकी भी मोर्चेबंदी होने लगीथी. इस दौरान, हम ने कई किसानों से बात की, जिन्होंने बताया कि वे अपने साथ कई महीनों का राशन, बर्तन, कंबल, रजाई इत्यादि जरुरी सामान ले कर आए हैं. जाहिर है यह एक योजना का हिस्सा था. लेकिन उस दौरान आम लोगों के बीच इस तरह की चर्चा भी गर्म थी कि इस आन्दोलन को भी ठीक उसी तरह कुचल दिया जाएगा जैसे अतीत में भाजपा सरकार द्वारा पुराने आन्दोलनों को कुचला गया है.

किन्तु आज 44 दिनों से भी ज्यादा हो चले हैं और वह सारी गर्म चर्चाएं ठन्डे बस्ते में जाती दिख रही हैं. यह कहना गलत नहीं होगा कि आन्दोलन पहले से अधिक व्यापक, मजबूत और सुनियोजित हो चुका है, जिसे अब आम जन का भी सहयोग मिलता नजर आ रहा है. ऐसे में इस आन्दोलन की मुख्य धुरी के रूप में पंजाब बड़े भाई का किरदार निभा रहा है, जो पुरे देश के किसानों का नेतृत्व कर रहा है.ऐसे में सवाल यह कि बड़े भाई का किरदार अदा करने वाले पंजाब के किसानों के अन्दर सरकार से टकराने की इतनी हिम्मत आखिर आई कहां से?

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एकजुट मजबूत यूनियनें

5 जून को अध्यादेश आने के बाद सब से पहले पंजाब में ही किसानों ने आन्दोलन करना शुरू कर दिया था. भले देश लोकडाउन के चलते कैदखाना बन गया हो लेकिन पंजाब उस दौरान उड़ रहा था. वहां के किसान अपनी घरों की छतों से ही इन अध्यादेशों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे. लौकडाउन हटा तो इस आन्दोलन ने आग पकड़ना शुरू किया. शुरुआत में पंजाब के 11 किसान यूनियनों ने इन कानूनों का विरोध किया. जिन के आन्दोलन भले ही अलग रहे हों, लेकिन एजेंडा एक था ‘नए कृषि कानूनों की वापसी’. इसी के चलते पुरे पंजाब में कई जत्थेबंदियां बढ़ी. अलगअलग मोर्चों पर ‘रेल रोको’, ‘ट्रेक्टर रैली’, नेताओं का घेराव इत्यादि आन्दोलनों को संचालित किया गया. और देखते ही देखते 31 किसान यूनियनों, जिन में खेत मजदूर यूनियन भी शामिल हो गईं. किसानों ने फैसला लिया कि अब इस आन्दोलन को व्यापक बनाने के लिए एक साथ मिल कर एक मंच बनाने की जरुरत है ताकि साझा फैसले लिए जाएं. जिस के बाद उन्होंने संयुक्त मोर्चा का गठन किया.

यह इस आन्दोलन की खूबसूरती है कि तमाम आपसी वैचारिक मतभेदों को दरकिनार कर यह यूनियनें एक मंच पर आ कर सहमतियों का रास्ता खोज रही हैं. इसी के तहत वे तमाम आन्दोलन की योजनाओं की रूपरेखाएं तैयार कर रही हैं जो जाहिर है विशुद्ध लोकतान्त्रिक प्रक्रिया से गुजर रही है. गौरतलब है कि इन में से अधिकतर किसान यूनियनों का किसी भी राजनैतिक पार्टीयों से सम्बन्ध नहीं है. यह एक बहुत बड़ा कारण भी है कि यह जत्थेबंदियां बिना किसी राजनीतिक दबाव, लोभलाभ के इस आन्दोलन को चला रहे हैं.और यही कारण भी है कि पंजाब के आम किसानों के भीतर अपनी यूनियनों के प्रति एक विश्वास कायम है जो उन्हें इन विपरीत परिस्थितियों में लड़ने की हिम्मत दे रहा है.

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गहरी सामुदायिक भावना और अस्मिता का सवाल

आन्दोलन के शुरूआती समय से ही पंजाब के अलगअलग तबकों, वर्गों, पेशों से एक सुर में इन कृषि कानूनों के खिलाफ आवाज उठने लगी थी. और इन आवाजों को और अधिक तीखा करने का काम खुद सरकार और उस के टटपूंजियों ने किया. जिस दौरान किसान दिल्ली की सीमाओं पर पहुंचे तो उन्हें बदनाम करने के लिए कभी खालिस्तानी, कभी आतंकी, कभी देशद्रोही तो कभी नक्सली कह कर पुकारा जाने लगा. ऐसे में पंजाब के हर व्यक्ति के भीतर सामुदायिक भावना और भी दृढ़ होती चली गई. पंजाब की मिट्टी से जुड़े वे सारे लोग जो देशविदेश में फैले हुए हैं, उन की भावनाओं को भी क्षति पहुंची. और यह बात किसी से छुपी नहीं कि यूरोप के देशों में पंजाब राज्य से जुड़े काफी संख्या में एनआरआई हैं, तो स्वाभाविक था कि वे भी किसान आन्दोलन के समर्थन में आंदोलित हुए.

किसान आन्दोलन की खासियत यह है कि यहां बात पंजाब की अस्मिता से भी जुड़ती दिखाई दे रही है. मानो बात पंजाब बचाने पर आ गई हो. इसी तरह का वाक्यांश सिंघु बौर्डर पर प्रदर्शन में शामिल हुए इंदरजीत का था. इंदरजीत सिदमान बट, लुधियाना से आते हैं. वे कहते हैं, “पंजाबी कौम एक बार कुछ ठान ले तो जान की बाजी लगा कर उसे पूरा करते हैं. और अब तो हमारे जीवन जीने पर हमला है ऐसे में तो हमें बाहर आना ही था.”

किसी भी आन्दोलन में आपसी सामुदायिक भावना का प्रबल होना बेहद जरुरी होता है. इसे समझने के लिए दिल्ली के किसी भी बोर्डर, जहां किसान आन्दोलन चल रहा है, वहां जा कर समझा जा सकता है. हमारी टीम जिस समय भी धरनास्थलों परगई, वहां टूरिस्ट प्रदर्शनकारी कम और वोलिंटियर प्रदर्शनकारी अधिक दिखाई दिए, जो लगातार किसी न किसी काम में व्यस्त रहते, कभी बुजुर्गों की सेवा में, कभी लंगर के काम में, कभी साफसफाई में. मानों हर काम, वहां मौजूद हर व्यक्ति को परफेक्ट्ली बांट दिया गया हो. यह चीजें बिना आपसी समझदारी, प्रेमभाव, और इमानदारी के नहीं हो सकता.

सामुदायिक भावना की प्रबलता का सब से बड़ा उदाहरण इसी से समझा जा सकता है कि भाजपा सरकार के खुद का कोई भी ऐसा पंजाबी चेहरा इन कानूनों के पक्ष में खुल कर सामने नहीं आ पाया है. छुटपुट सांसद (सनी देओल) ट्विटर पर जरुर आए लेकिन वे पूरी तरह किसानों का विरोध करने में बचते रहे. बल्कि उल्टा 2 दशकों से ऊपर की सहयोगी पार्टी (एसएडी) तक भाजपा से छिटक गई. देखा जाए तो पंजाब पूरा किसान प्रधान राज्य है. यहां रोजगार का मसला पूरा खेती से जुड़ा हुआ है. किसान प्रधान राज्य होने के चलते यहां की राजनीति कृषि से जुड़ी है. ऐसे में जो पार्टी किसानों के हितों के खिलाफ होती है उस का यहां सामूहिक बहिष्कार होता है, और किसानों के लिए मुद्दा जीवन का अपनेआप बन जाता है.वहीँ अगर दूसरा सब से आक्रोशित राज्य, हरियाणा की ही बात की जाए तो कथित किसान हितैषी जेजेपी पार्टी भले ही आज सब से अधिक दबाव में चल रही हो,लेकिन वह भाजपा के साथ जाकर अपनी नैतिकता को दावं पर लगाने को तैयार है.

इंदरजीत कहते हैं, “आज पंजाब में ऐसा माहौल बन चुका है कि अगर लोग आन्दोलन में शामिल नहीं हो पा रहे तो वे खुद को दोषी मान रहे हैं. यह पंजाब की एकजुटता का स्वर्णिम समय है. गांव में लोग बिन कहे एकदुसरे के खेतों का काम कर रहे हैं. एकदुसरे का घरबार संभाल रहे हैं.”

सामुदायिक भावना का उदाहरण कई मौकों पर देखा जा सकता है, लेकिन सब से जरुरी उस हिस्से परचर्चा की है जो आमतौर पर ऐसे परिघटनाओं से खुद को काट कर चलता है.यह हिस्सा मशहूर हस्तियों का है. यह हिस्सा सीधासरकार के खिलाफ जाने से कतराता है. लेकिन पंजाब एक अपवाद बन कर उभरा है जहां शुरू से ही छोटे से ले कर बड़े कलाकारों, खिलाड़ीयों, वैज्ञानिक, सरकारी मुलाजिम खुल कर इन कानूनों के खिलाफ सामने आए.

शहादत का जज्बा

आन्दोलन के शुरूआती दिनों से पंजाब के किसानों के हावभाव बिलकुल ही अलग थे. हमारी टीम पहले दिन ही सिंघु बोर्डर की तरफ चली गई थी. सिंघु जाने के बाद वहां का नजारा साफ दर्शा रहा था कि किसान किस मकसद से दिल्ली आए हैं. धरनास्थल पर घुसे तो ट्रेक्टरों, ट्रोलियों पर क्रांतिकारियों और शहीदों के पोस्टर चिपके हुए थे. कहीं क्रांतिकारियों की कविताएं तो कहीं गीत वाले बड़े पोस्टर दिख रहे थे.खासकर युवाओं के हाथों में शहीद भगत सिंह, उधम सिंह, पाश इत्यादि की तख्तियां थी.समय गुजरने के साथ अलगअलग बोर्डर पर लाइब्रेरी, बुक स्टाल, टेंट की व्यवस्था अधिक हुई हैं, लेकिन दिलचस्प बात यह कि वह तख्तियां मात्र नामी नहीं हैं. बल्कि उन क्रांतिकारियों को किसान आत्मसात भी कर रहे हैं.

युवाओं के बीच किताबों के माध्यम से भगत सिंह की प्रेजेंस वहां आसानी से देखी जा सकती है. टेंट, लाइब्रेरी, ट्रोली में पाश और भगत सिंह की किताबें पढ़ते हुए युवाओं का दिखना आम है.सिंघु में ‘सांझी सथ’ लाइब्रेरी चलाने वाले वोलिंटियर से जब युवाओं में किताबों की दिलचस्पी के बारे में पूछा गया तो उन में से एक विशाल कुमार का कहना था, ‘यहां हर समय लोग रहते हैं. लाइब्रेरी में खास कर 15 से 40 साल के लोग अधिकतर आते हैं. जिन्हें युवा कहना ठीक रहेगा. पूरे दिन लाइब्रेरी चलती रहती है. हांलाकि यहां लोगों की चोइस उम्र के हिसाब से थोड़ी अलगअलग है. कहना थोड़ा मुश्किल है लेकिन भगत सिंह की ‘जेल नोट बुक’, ‘मैं नास्तिक क्यों हूं’, ‘संकलित रचना’, करतार सिंह साराभा, उधम सिंह, सुखदेव, किसान आन्दोलन का इतिहास, पंजाब का इतिहास और पाश इत्यादि हम ने इसलिए रखी है क्योंकि युवाओं में इसे ले कर दिलचस्पी है. कुछकुछ तो यहां अलगअलग विषयों पर बहसचर्चा भी करने आते हैं.”

यह आन्दोलन कीएक जरुरी बात है कि आन्दोलन में आन्दोलनकारी किसे अपना आइकन बनाते हैं. ऐसे में पंजाब के किसान और युवा खुद को उस शहादत की विरासत से जोड़ कर देखने लगे हैं, जो इतिहास से इस भूमि के सपूतों ने दी हैं.उत्तराखंड के बाजपुर (काशीपुर) से टीकरी बोर्डर पर आन्दोलन में शामिल, रिटायर्ड सूबेदार मेजर राजदीप ढिल्लन का कहना है, “पंजाब हमेशा से ही देशव्यापी आंदोलनों का नेतृत्व करता आया है. हम ने मुगलों से जंग लड़ी, फिर अंग्रेजों के साथ भी लोहा लिया और अब इन नए कंपनी राज का भी सामना कर रहे हैं. हमें जो गलत लगता है हम एक साथ खड़े हो जाते हैं चाहे जान क्यों ना चली जाए.” गौरतलब है कि 7 जनवरी तक आन्दोलन में शामिल कुल 56 लोगों की मौत हो चुकी है. यह किसान आन्दोलन में शामिल रहे हैं, कुछ ने धरनास्थलों पर इन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ फांसी लगा ली है. ऐसे में किसान इन्हें शहीद का दर्जा देते हैं.

आकड़े मजबूत तो किसान हिम्मती

यह बात अब खुल कर सामने है कि यह नए कानून कृषि से जुड़े सेक्टर में निजी उद्यमों को खुली छूट देने के लिए लाए जा रहे हैं. इस से अब नियंत्रण सरकार से सीधा बड़े उद्योगपतियों के पास जाने वाला है. सरकार भले ही एमएसपी को बनाए रखने की बात कर रही हो लेकिन इन कानूनों से किसान ऐसे ट्रैप में फंसेंगे जिस से कुछ समय बाद एमएसपी का वजूद ही ख़त्म हो जाएगा.वहीँ भंडारण के कानून से मार्किट के भाव अब पूरी तरह कौर्पोरेट के हाथों नियंत्रित रहेंगे. वे फूड चैन सप्लाय को अपने इशारों से चलाएंगे, जिस पर सरकार की कोई रोकटोक नहीं रहेगी.

इस बात को पंजाब के किसान पूरी तरह समझ चुके हैं. यह एक कारण है कि वे सब से ज्यादा आंदोलित नजर आ रहे हैं. लेकिन सवाल यह कि बाकी राज्यों के किसान क्या अपनी बुराई चाहते हैं? क्या उन्हें यह मसला समझ नहीं आ रहा? इस पर राजदीप का कहना है, “देश का किसान इस बात को समझ तो रहा है लेकिन सरकार ने कंडीशन ही ऐसी रख दी है कि बाकि राज्यों के किसान आ ही नहीं पा रहे. अब आप बताइए महाराष्ट्र का किसान बिना ट्रेन के हजारों किलोमीटर दूर क्या पैदल चल कर आ पाएगा? जिन से संभव हो पा रहा है वे बस का महंगा खर्चा उठा कर आ पा रहे हैं. बाकी रही बात यूपी, उत्तराखंड और हरियाणा की तो वे दिल्ली के नजदीक हैं इसलिए आजा रहे हैं.”

हांलाकि वे यह भी मानते हैंपंजाब की तरह बाकी राज्यों में किसान लहर थोड़ी फीकी भी है. इस का कारण लम्बे समय से सरकारों द्वारा पैदा की गई परिस्थितयां हैं. इसे समझने के लिए कुछ आकड़ों पर गौर करने की जरुरत है.पंजाब वह राज्य है जिसने “देश की खाद्य टोकरी” और “भारत के अन्न भंडार” का नाम कमाया है.5 नदियों की यह भूमि पृथ्वी पर सबसे उपजाऊ क्षेत्रों में से एक है. भौगोलिक दृष्टि से देखें तो सम्पूर्ण पंजाब की जमीन के 83.4% हिस्से पर खेती की जाती है.

भारत सरकार कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में टोटल धान के उत्पादन का 97% हिस्सा और गेंहूं का टोटल 70-80% हिस्से की सरकारी खरीद होती है.मुख्य रूप से इस राज्य में धान और गेहूं की फसल उगाई जाती है. ऐसे में सीधा नुकसान पंजाब के किसानों को होने वाला है. इन कानूनों के वजूद में आने से सवाल उन के डूबते भविष्य का बन गया है. देश में कुल 7,320 एपीएमसी मंडियां है जिन में से लगभग 1,850 एपीएमसी की मंडियां अकेले पंजाब में ही है,उन में से 152 बड़ी मंडियां हैं. यानि देश की कुल एपीएमसी मंडियों का एक चौथाई पंजाब में ही मौजूद है.ऐसे में पंजाब में अच्छीखासी एपीएमसी मंडियों का जाल यहीं बिछा हुआ है.

भारत सरकार कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में किसानों के जमीन पर मालिकाने हक की बात करें तो 18.7% सीमान्त किसान,जिन के पास 1 हेक्टेयर से कम जमीन हैं, 16.7% छोटे किसान, जिन के पास 1-2% तक जमीन हैं और 64.6% वे किसान हैं,जिन के पास 2 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन हैं जिन पर वे खेती करते हैं.भारत का 6 फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है यानी 94 फीसदी किसान अपनी खेती को औनेपौने दाम में बेचने को मजबूर हैं. ऐसे में इकलौता पंजाब और बहुत हद तक हरियाणा ऐसे प्रदेश हैं जहां एपीएमसी मंडियां मजबूत हैं. जहां फसल की सरकारी खरीदबेच हो पाती है. इसलिए पंजाब के किसानों के लिए यह जीनेमरने वाली परिस्थित बनी हुई है. यही कारण भी है किएनएसएसओ के आकड़ों के अनुसार पुरे देश में पंजाब के किसानों की औसत आय सब से अधिक है. देश में जहां देश की औसत आय 6,426 है वहीँ पंजाब की 18,056 है.हांलाकि देश के किसानों की औसत मासिक आय का 3 गुना होने के बावजूद पंजाब के किसान कर्ज में डूबे हुए हैं. पंजाब यूनिवर्सिटी, पटिआला के अर्थशास्त्र विभाग के द्वारा 2017 में जारी किए गए एक सर्वे के अनुसार पंजाब में 85.9% कृषक परिवार और लगभग 80% कृषि श्रमिक परिवार कर्ज में डूबे हुए हैं. ऐसे में निजी उद्यमीयों की दखल का डर उन्हें और भी सता रहा है.

बाकि राज्यों किसानों की हालत पहले ही खस्ता हो चुकी है. वहां सरकारी खरीद ना के बराबर है. एपीएमसी मंडियां उजाड़ हो चुकी हैं. निजी दखल बढ़ चुकी है. ऐसे में अब ये कानून देश के अब बचेकुचे कृषि व्यवस्था पर हमले जैसा है. यही कारण भी है किपंजाब के किसानों के लिए यह सीधा सर के ताज छिनने जैसी बात हो गई है. जिसे पंजाब का किसान हरगिज नहीं चाहता. और वह इस अब सरकार के खिलाफ सीधा संघर्ष करने का माद्दा रख रहा है.

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रामगोपाल वर्मा के खिलाफ “फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज (FWICE  ) ने उठाया सख्त कदम

‘सत्या’,’ रंगीला’,’ आग’,’ कंपनी’ ,’सरकार’, ‘निशब्द’,’ भूत’,’दौड़’  सहित कई चर्चित फिल्मों का निर्माण व निर्देशन कर चुके फिल्मकार रामगोपाल वर्मा ने लंबे समय से फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कलाकारों ,तकनीशियन और वर्करों की पारिश्रमिक राशि नहीं चुकाई है. जिन लोगों ने इस बाबत अपनी शिकायत “फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने इंप्लाइज” (FWICE)के साथ दर्ज कराई है, उसके अनुसार यह रकम सवा करोड़ रुपए से भी अधिक है.
शिकायत मिलने के बाद से “फेडरेशन आफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज” ने कई बार रामगोपाल वर्मा को नोटिस भेजकर वर्करों का पैसा चुकाने का निवेदन किया. मगर रामगोपाल वर्मा के कानों में अब तक जूं नहीं रेंगी है . परिणामत अब  ” फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज” ने रामगोपाल वर्मा के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए आदेश जारी किया है कि फिल्म इंडस्ट्री की 32 यूनियनों में से किसी भी यूनियन का कोई भी सदस्य भविष्य  में रामगोपाल वर्मा के संग काम नहीं करेगा.
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“फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज” के अध्यक्ष बीएन तिवारी, महासचिव अशोक दुबे और कोषाध्यक्ष गंगेश्वर श्रीवास्तव उर्फ संजू भाई के अनुसार फेडरेशन ने रामगोपाल वर्मा को पहले ही कई कानूनी नोटिस  भेजी थी. मगर रामगोपाल वर्मा ने फेडरेशन की कानूनी नोटिस का सटीक जवाब नहीं दिया और ना ही तकनीशियन और वर्करों का पैसा ही लौटाया. फेडरेशन ने 17 सितंबर 2020 को राम गोपाल वर्मा को पत्र लिखकर वर्करों की पूरी सूची और बकाया राशि लिख कर दिया था. उसके बाद भी कई पत्र भेजें , मगर रामगोपाल वर्मा ने इन पत्रों को बैरंग वापस कर दिया.
 
“फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्पलाइज” के कुछ के अध्यक्ष बी एन तिवारी कहते हैं-“हमें बीच मे पता चला की कोरोना कॉल में भी राम गोपाल वर्मा अपने एक प्रोजेक्ट की शूटिंग कर रहे हैं ,जिस पर हमने गोवा के मुख्यमंत्री को भी   10 सितंबर 2020 को पत्र लिखा था. हम चाहते थे कि राम गोपाल वर्मा गरीब टेक्नीशियनों , कलाकारों और वर्करों  की बकाए राशि का भुगतान करें  .मगर राम गोपाल वर्मा ने इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया .जिसके बाद मजबूरी में उनके साथ भविष्य में काम नहीं करने का निर्णय लिया गया.इस बारे में इम्पा और गिल्ड तथा सभी प्रमुख यूनियनों को सूचित कर दिया गया है.”

बिग बॉस 14: इसी साल अली गोनी के साथ शादी करेंगी जैस्मिन भसीन, घर से बाहर आते ही किया खुलासा

अली गोनी और जैस्मिन भसीन के रिश्ते को लेकर लोग आए दिन कुछ न कुछ करते रहते हैं. ऐसे में अली गोनी और जैस्मिन भसीन को बिग ब़स के घर में एक साथ अब लोग ज्यादा बात करने लगे हैं. नेशनल टीवी पर जैस्मिन भसीन ने इस बात को मानी कि अली गोनी उनके लाइफ में अहमियत रखते हैं.

बिग बॉस के घर से बागहर आने के बाद जब जैस्मिन से अली गोनी को लेकर पूछ गया तो उन्होंने एक रिपोर्ट में बात करते हुए कहा कि उनके मन में अली को लेकर खूबसूरत फिलिंग्स है. वह जल्द ही अली के घर वालों से मिलेंगी और दोनों शादी के बंधन में बधने वाले हैं.

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उन्होंने कहा कि मुझे अली से प्यार है लेकिन मैं इस खूबसूरत रिश्ते को नाम देना चाहती हूं. मुझे अली के साथ शादी करना है. हम एक बार या फिर दो बार ही उनके परिवार वालों से मिले होंगे. जल्द मिलकर हम अपने रिश्ते को मंजूरी देंगे.

 

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उम्मीद करते हैं कि आप लोगों को भी हमारा रिश्ता पसंद आएगा. बता दें कि इससे पहले अली गोनी और जैस्मिन भसीन रोहित शेट्टी के शो कतरों के खिलाड़ी 9 में हिस्सा लिया था. जिसमें दोनों को खूब पसंद किया गया था. लेकिन बिग बॉस 14 के घर में आने के बाद इन्होंने अपने रिश्ते को जग जाहिर किया है.

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